यादव सिंह के खिलाफ सरकार ने तत्काल कोई काररवाई नहीं की थी. इस पर राजनीतिक दलों ने घेराबंदी शुरू की. जब सरकार पर सवाल उठने लगे तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफ किया कि आयकर विभाग और अन्य एजेंसियों की जांच रिपोर्ट आने के बाद सरकार यादव सिंह के खिलाफ कोई काररवाई करेगी. आखिर 8 दिसंबर को यादव सिंह समेत 3 लोगों को सस्पैंड कर दिया गया. यादव सिंह यह सोच कर बेफिक्र था कि इस बार भी वह पुराने फार्मूले अपना कर बच जाएगा.
लेकिन यादव सिंह का समय अनुकूल नहीं था. फिर भी उसे अपनी पहुंच और रसूख पर पूरा भरोसा था. उसे पूरी उम्मीद थी कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. लेकिन यादव सिंह के सितारे गर्दिश में थे. शायद उस का बिगड़ा खेल बन भी जाता, लेकिन सी बीच उत्तर प्रदेश के चर्चित सीनियर आईपीएस अमिताभ ठाकुर की पत्नी और सामाजिक कार्यकर्ता डा. नूतन ठाकुर ने 11 दिसंबर को हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर दी.
उन्होंने तर्क दिया कि यादव सिंह के यहां आयकर छापों में करोड़ों की अवैध संपत्ति के सुबूत मिले हैं. इसलिए उस के खिलाफ सीबीआई जांच होनी चाहिए. अदालत ने 16 दिसंबर को सरकार से जवाब तलब किया तो सरकार ने इसी बीच 10 फरवरी को यादव सिंह के खिलाफ जांच करने के लिए रिटायर्ड जस्टिस अमरनाथ वर्मा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग गठित कर दिया.
बाद में हुई सुनवाई में याची ने अदालत में तर्क दिया कि राज्य सरकार ने काररवाई करने के बजाय न्यायिक आयोग बना दिया. ऐसा इसलिए किया गया, ताकि सूबे में पूर्व और मौजूदा सरकारों में ऊंची पहुंच रखने वाले यादव सिंह के मामले को रफादफा किया जा सके. आरोप लगाया गया कि सन 2002 से 2014 के बीच यादव सिंह करीब 2 हजार करोड़ की परियोजनाओं से ने बड़ी तादाद में अवैध संपत्ति अर्जित की. याची सीधे तौर पर सीबीआई जांच की मांग की.
इस पर कोर्ट ने एसआईटी से भी जानकारियां हासिल कीं. कई सुनवाइयों के बाद आखिर 16 जुलाई, 2015 की हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच के मुख्य न्यायमूर्ति डा. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति नारायण शुक्ल की खंडपीठ ने सीबीआई जांच के आदेश दे दिए. हाईकोर्ट ने कहा कि ‘हमारे मतानुसार इस मामले के हालात सीबीआई के सुपुर्द करने लायक हैं. क्योंकि इस में भ्रष्टचार का मामला बनता है.’
अदालत के हस्तक्षेप के बाद यादव सिंह की बचाव की तैयारियां धरी की धरी रह गई. उस के लिए यह बड़ी मुसीबत थी. इस बुरे वक्त में उस के नातेरिश्तेदारों से ले कर बड़े घरानों और नेताओं ने भी पल्ला झाड़ लिया था. वजह यह थी कि कोई भी जांच के लपेटे में नहीं आना चाहता था.
इस दौरान वह खुद भी सामने नहीं आया. आखिर हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने इस मामले में 30 जुलाई, 2015 को यादव सिंह व उस के साथियों के खिलाफ धारा 120बी, 409, 420, 466, 467, 469, 471 के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया. इस पूरे प्रकरण की जांच का जिम्मा एसटीएफ व एंटी करैप्शन विंग के सुपुर्द कर दिया गया. सीबीआई जानती थी कि यादव सिंह बड़ा खिलाड़ी है. इसलिए वह उसे बचने का कोई मौका नहीं देना चाहती थी.
4 अगस्त, 2015 को सीबीआई की टीमों ने एक साथ दिल्ली, आगरा, नोएडा व फिरोजाबाद समेत 12 स्थानों पर छापेमारी की और यादव सिंह की 38 प्रौपर्टी का पता लगाने के साथ ही महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद कर लिए. सीबीआई की 14 सदस्यीय टीम ने यादव सिंह की कोठी में घंटों जांचपड़ताल की. आयकर विभाग ने भी सबूत एकत्र किए. अगले कुछ महीनों में जांच में जुटी सीबीआई ने धीरेधीरे टेंडर व जमीनों के आवंटन से जुड़ी 3 हजार फाइलों का जखीरा एकत्र कर लिया.
सीबीआई ने इस दौरान कई बार नोएडा अथौरिटी जा कर जांच की और टेंडर से जुड़ी मूल पत्रावलियों को जब्त किया. यादव सिंह ने सन 2002 से ले कर 1 दिसंबर, 2014 तक विभिन्न कार्यों के हजारों करोड़ रुपए के टेंडर जारी किए थे. सन 2014 में तो महज 8 दिनों के भीतर उस ने 950 करोड़ रुपए के ठेके बांट दिए थे. यह भी साफ हो गया कि यादव सिंह के पास आय से अधिक संपत्ति है.
सीबीआई ने इस की भी जांच की कि 950 करोड़ के बड़े घोटाले में आखिर यादव सिंह बच कैसे गया? इस की नए सिरे से जांच हुई. सीबीआई ने बिल्डरों के ठिकानों पर छापेमारी की और दस्तावेज बरामद किए. इस में खुलासा हुआ कि यादव सिंह ने 5 फीसदी कमीशन के बदले टेंडर बांटे थे. 17 दिसंबर को सीबीआई ने नोएडा के सहायक परियोजना अभियंता रामेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. उस से कड़ी पूछताछ के बाद सुबूत जुटाए और उसे जेल भेज दिया गया.
इस बीच अथौरिटी से पता किया गया कि यादव सिंह को तैनाती के बाद से कुल कितना वेतन मिला. पता चला कि सैकड़ों करोड़ की प्रौपर्टी जुटाने वाले यादव सिंह को सन 1980 से निलंबन तक की अवधि में वेतन के रूप में 70 लाख रुपए दिए गए थे. सैकड़ों पत्रावलियों और छापेमारी में बरामद दस्तावेजों की जांच में भ्रष्टïाचार के पुख्ता सबूत मिले. जांच टीम ने सीबीआई के डायरेक्टर अनिल कुमार सिन्हा से विचारविमर्श के बाद यादव सिंह को गिरफ्तार करने का फैसला किया.
आखिरकार सीबीआई ने 3 फरवरी को यादव सिंह को अपने हैड क्वार्टर बुला कर गिरफ्तार कर लिया. रिमांड अवधि पूरी होने पर सीबीआई ने यादव सिंह को पुन: अदालत में पेश किया और 5 दिनों का रिमांड और ले लिया. यादव सिंह जांच में सहयोग नहीं कर रहा था. फलस्वरूप सीबीआई को उस की रिमांड अवधि बढ़वानी पड़ी. 17 फरवरी को उसे पुन: अदालत पर पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. फिलहाल वह जेल में है.
कथा जांच एजेंसियों की कार्यवाई व जनचर्चाओं पर आधारित