60 साल का लुटेरा: 18 महिलाओं से शादी करने वाला बहरूपिया – भाग 2

सच तो यह भी था कि उसे देख कर उस की आंखों में चमक आ गई थी. उस के दिमाग में अपनी नौकरी के लिए पैरवी की उम्मीद की किरण नजर आई थी. कारण वह स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़ा था. उस के दिमाग में फायदे की 2 बातें बैठ गईं.

उस ने तुरंत अपनी सहेली को फोन मिलाया. उसे भी प्रोफाइल के बारे में बताया और उस से सलाह मांगी. सहेली ने सिर्फ इतना कहा कि उस से सपंर्क कर चैक कर ले. यह बात मई 2020 की थी. उन दिनों देश में कोरोना के दूसरे फेज का माहौल भी चल रहा था.

अगले ही रोज अवंतिका ने इस बारे में अपना निर्णय ले लिया. उस प्रोफाइल के डा. स्वैन को संपर्क करने के साथसाथ अपनी डिटेल्स भी भेज दी. उधर से प्रपोजल भी आ गया और उस ने शादी की तारीख भी तय कर दी. उस ने कोरोना पर लगी पाबंदियों का हवाला देते हुए कम से कम लोगों के बीच मंदिर में शादी की बात कही.

जुलाई 2020 में भुवनेश्वर के एक मंदिर में शादी की तारीख तय हो गई. स्वैन ने शादी के बाद वहीं से बेंगलुरु चलने की बात कही. बातोंबातों में उस ने घर के रेनोवेशन के लिए 5 लाख रुपए की भी मांग कर ली. अवंतिका के बैंक खाते में दिवंगत पति के पैसे जमा थे. उस में से ही उस ने पैसे देने का वादा भी कर लिया. स्वैन ने शादी में परिवार से किसी सदस्य को आने से मना कर दिया था. अवंतिका भी घर वालों के शोरशराबे से बचना चाहती थी. वह अपने कुछ कपड़ों से भरे सूटकेस के साथ भुवनेश्वर आ गई थी.

मंदिर में साधारण तरह से हुई शादी के समय स्वैन की तरफ से केवल एक दंपति मौजूद था. उस का परिचय उस ने बहन और बहनोई के रूप में करवाया था. अवंतिका नवविवाहिता बन भुवनेश्वर स्थित स्वैन के 3 कमरे वाले एक मकान में आ गई थी. वहां केवल एक नौकरानी रहती थी. उसी से मालूम हुआ कि घर की देखभाल की जिम्मेदारी उस पर थी.

स्वैन अकसर शहर से बाहर ही रहता था. महीनों बाद शादी के लिए आया था. फिर भी अवंतिका को घर का शांत माहौल अच्छा लगा. उस से भी अच्छा लगा स्वैन का स्वभाव और मधुर बोली. वह बेहद खुश थी. लंबे समय बाद किसी पुरुष का साथ मिला था, जिसे वह अपना कह सकती थी और खास बात यह थी कि वह एक बड़े अधिकारी की पत्नी थी.

2 दिनों बाद ही स्वैन ने बेंगलुरु जाने की फ्लाइट बुक करवा ली थी. उस का टिकट साथ में नहीं लेने पर जब अवंतिका ने सवाल किया, तब उस ने बताया कि औफिस में हेल्थ रिलेटेड एक जरूरी प्रोजेक्ट जमा करवाना है. सेंटर की हेल्थ मिनिस्टरी का और्डर है. उसे निपटा कर एक सप्ताह में लौट आएगा. फिर कहीं घूमने का प्लान बनाएंगे. तब तक वह यहां का घर अपने अनुसार दुरुस्त कर ले.

वादे के मुताविक स्वैन ठीक आठवें रोज भुवनेश्वर आ गया था. आते ही उस ने 2 दिन बाद अवंतिका को आगे के टूर का प्रोग्राम बताया, जो गोवा का था. वह टूर भी उस के औफिस से रिलेटेड था. वह 2 दिनों के लिए भुवनेश्वर में ठहरा था. इस दौरान स्वैन जब सुबह के समय बाथरूम में था, तब नौकरानी भागती हुई उस के पास आई. उस के हाथ में मोबाइल था, ‘‘मैडम! देखिए आप के फोन में कौल आ रही है?’’

‘‘मेरा मोबाइल! वह तो मेरे पास है. अरे, यह साहब का है. यहीं रख दो वह बाथरूम से आएंगे तब देख लेंगे. एप्पल मोबाइल एक जैसे दिखते हैं, किस का कौन है पहचाना ही नहीं जाता.’’

अवंतिका के बोलतेबोलते काल डिस्कनेक्ट हो गई थी. कुछ सेकेंड बाद फिर कौल आया, नाम उभरा ‘वाइफ डाक्टर’. सोचा किसी डाक्टर की वाइफ का फोन होगा. कुछ सेकेंड बाद फोन फिर डिस्कनेक्ट हो गया. किंतु तुरंत एक कौल आ गई. उस में दूसरा नाम उभरा था ‘वाइफ बेंगलुरु’.

अवंतिका को स्वैन पर होने लगा शक

यह नाम देख कर अवंतिका को एक बार फिर अजीब लगा. खुद से बातें करने लगी, ‘वाइफ बेंगलुरु’ का मतलब क्या हो सकता है?

उस फोन के कटते ही अवंतिका ने स्वैन का फोन उस समय आए मिस काल को स्क्राल कर दिया. देखा, उस से पहले और 2 काल आई थी. एक में ‘वाइफ टीचर’ था, जबकि दूसरे में सिर्फ ‘डब्ल्यू भुवनेश्वर’ लिखा था. उसी वक्त स्वैन बाथरूम से निकल आया. उस के हाथ में अपना मोबाइल देख कर एक झपट्टे के साथ ले लिया. डांटते हुआ बोला, ‘‘मेरा मोबाइल क्यों देख रही हो. जरा भी मैनर नहीं है क्या? एजूकेटेड हो.’’

अवंतिका अभी अपनी सफाई देती उस से पहले ही स्वैन ने उसे खूब खरीखोटी सुना दी. अचानक स्वैन के बदले तेवर को देख कर अवंतिका सहम गई. स्वैन उस रोज नाश्ता किए बगैर चला गया.

उस के जाने के बाद अवंतिका उदास हो गई. नौकरानी ने आ कर उसे नाश्ता दिया. हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मेम साहब, साहब की बातों का बुरा नहीं मानना. वह ऐसे ही हैं. तुरंत नाराज हो जाते हैं, लेकिन तुरंत शांत भी हो जाते हैं. देखना अभी एक घंटे में वापस आएंगे और कोई गिफ्ट भी देंगे.’’

‘‘अच्छा?’’ अवंतिका बोली.

‘‘जी मेमसाहब!’’ नौकरानी मुसकराती हुई बोली.

‘‘और कुछ बताओ साहब के बारे में,’’ अवंतिका ने कहा.

‘‘और क्या बताऊं उन के बारे में… सब कुछ तो ठीक है, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, बताओ. हो सका तो मैं तुम्हारी मदद करूंगी,’’ अवंतिका बोली.

‘‘साहब को मत बोलना… मैं खुद बोल दूंगी. मेरा 3 महीने का पैसा बाकी है. सोचा थी आज मांगूंगी… लेकिन साहब नाराज हो गए,’’ नौकरानी मायूसी के साथ बोली.

‘‘कितना पैसा बाकी है? बताओ मैं दे देती हूं.’’

‘‘जी 9 हजार,’’ नौकरानी झिझकती हुई बोली. अवंतिका ने तुरंत अपने बैग से 10 हजार रुपए निकाले और नौकरानी के हाथ में रख दिए.

‘‘मेमसाहब आप बहुत अच्छी हैं. इस में एक हजार अधिक हैं,’’ नौकरानी बोली.

‘‘कोई बात नहीं, रख लो मेरी तरफ से गिफ्ट है.’’ अवंतिका ने कहा.

नौकरानी के कहे मुताबिक स्वैन उस रोज नहीं आ पाया. अवंतिका ने रात होने पर नौकरानी से स्वैन के नहीं आने का कारण पूछा. किंतु उस से कोई सही जवाब नहीं मिल पाया. उस ने सिर्फ आश्चर्य जताते हुए कहा कि ऐसा तो पहली बार हुआ है.

अगले रोज स्वैन शाम के वक्त आया. वह हड़बड़ी में था. फटाफट खुद सामान पैक किया और तुरंत निकल पड़ा. अवंतिका कुछ पूछती, इस से पहले ही उस ने सौरी बोलते हुए बताया कि उसे एक दिन पहले ही निकलना पड़ेगा. अगली बार बेंगलुरु ले चलने का वादा कर चला गया.

रिश्तों की कब्र खोदने वाला क्रूर हत्यारा – भाग 1

30 जनवरी, 2017 को पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले से क्राइम ब्रांच की एक टीम भोपाल आई. 5 सदस्यीय इस टीम का नेतृत्व बांकुरा क्राइम ब्रांच के टीआई अमिताभ कुमार कर रहे थे. उन के साथ सबइंसपेक्टर कौशिक हजरत और संदीप बनर्जी के अलावा एएसआई चंद्रबाला भी थीं. इस टीम के साथ एक स्मार्ट और खूबसूरत युवक आयुष सत्यम भी था, जो काफी परेशान लग रहा था.

भोपाल स्टेशन पर उतर कर यह टीम सीधे गोविंदपुरा इलाके के सीएसपी वीरेंद्र कुमार मिश्रा के पास पहुंची और उन्हें सिलसिलेवार सारी बात बता कर अपने आने का कारण स्पष्ट किया. अमिताभ ने वीरेंद्र मिश्रा को बताया कि एक युवती आकांक्षा शर्मा जोकि उन के साथ आए आयुष सत्यम की बड़ी बहन है, रहस्यमय तरीके से गायब है.

उस के घर वालों ने 5 जनवरी को उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई है. उन लोगों ने उदयन दास नाम के एक युवक पर संदेह व्यक्त किया है. पश्चिम बंगाल की पुलिस टीम ने यह भी बताया कि आकांक्षा का मोबाइल चालू है और उस की लोकेशन भोपाल के साकेतनगर की आ रही है.

अमिताभ कुमार ने यह भी बताया कि 28 वर्षीय आकांक्षा ने जयपुर के नजदीक स्थित वनस्थली से एमएससी इलैक्ट्रौनिक्स से डिग्री ली थी. उस के पिता शिवेंद्र शर्मा यूनाइटेड बैंक औफ इंडिया में चीफ मैनेजर हैं. जून 2016 में आकांक्षा ने घर वालों को बताया था कि अमेरिका में उस की जौब लग गई है और वह अमेरिका जा रही है. पासपोर्ट बनवाने की बात कह कर वह दिल्ली चली गई थी. इस के पहले कुछ दिनों तक वह दिल्ली की एक कंपनी में नौकरी भी कर चुकी थी.

आजकल के युवाओं के लिए विदेश में नौकरी करना अब कोई बहुत बड़ी बात नहीं रह गई है. ज्यादातर अभिभावकों की तरफ से उन्हें कैरियर चुनने के मामले में छूट मिली होती है. 24 जून, 2016 को आकांक्षा नौकरी के लिए कथित रूप से न्यूयार्क चली गई थी. जुलाई तक तो वह फोन पर घर वालों से बातें करती रही, लेकिन फिर व्यस्तता का बहाना बना कर उन्हें टालने लगी थी. मोबाइल फोन पर घर वालों से उस की आखिरी बार बात 20 जुलाई को हुई थी.

इस के बाद आकांक्षा ने वायस काल करना बंद कर दिया और मैसेज के जरिए चैट करने लगी थी. इस से शिवेंद्र शर्मा को तसल्ली तो थी लेकिन पूरी तरह नहीं. उन्हें बेटी को ले कर कुछकुछ आशंकाएं भी होने लगी थीं. उन की परेशानी तब बढ़ी जब मैसेज के जरिए भी बात होना बंद हो गया. इस पर उन्होंने 5 जनवरी, 2016 को बांकुरा थाने में आकांक्षा की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी.

दरअसल, बात उतनी मामूली भी नहीं थी, जितनी दिख रही थी. शिवेंद्र और उन का बेटा अपने स्तर पर आकांक्षा को ढूंढ रहे थे. जब कहीं से कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस ने अपनी साइबर सेल के जरिए आकांक्षा के मोबाइल फोन की लोकेशन ट्रेस की. पता चला उस के फोन की लोकेशन भोपाल की आ रही है.

इस के कुछ दिन पहले शिवेंद्र शर्मा एक उम्मीद ले कर भोपाल आए थे. मोबाइल फोन पर हुई बात के आधार पर वह उदयन के घर एमआईजी 62, सेक्टर-3ए, साकेतनगर, भोपाल पहुंचे और उस से आकांक्षा के बारे में पूछताछ की. उदयन को वह पहले से जानते थे क्योंकि वह आकांक्षा का खास दोस्त था.

उदयन ने यह तो नहीं कहा कि वह आकांक्षा को नहीं जानता, लेकिन गोलमोल बातें बना कर वह शिवेंद्र शर्मा को टरकाने में जरूर कामयाब रहा था. शिवेंद्र शर्मा को उदयन की बातों पर पूरी तरह विश्वास नहीं हुआ था, लेकिन वह कर ही क्या सकते थे.

शिवेंद्र शर्मा को मायूस लौटाने के बाद उदयन का माथा ठनकने लगा था. कुछ दिन बाद वह सीधे कोलकाता स्थित शिवेंद्र के घर जा पहुंचा और 2 दिन तक वहीं रुका. आकांक्षा के बारे में शिवेंद्र और उन की पत्नी शशिकला की चिंता का भागीदार बन कर उस ने उन्हें भरोसा दिलाया कि आकांक्षा चूंकि उस की अच्छी फ्रैंड है, इसलिए वह उसे ढूंढने में उन की हरसंभव मदद करेगा.

उसी दौरान शिवेंद्र ने यह महसूस किया कि उदयन असामान्य व्यवहार कर रहा है और उन के घर आने के बाद ठीक से सोया भी नहीं है. इस से उन का शक यकीन में बदल गया कि जरूर कोई गड़बड़ है. यह उन के लिए एक और संदिग्ध बात थी कि उदयन बेवजह शशिकला से जिद करता रहा था कि किचन में जा कर वह खुद चाय बनाएगा. जाहिर है सहज होने की कोशिश में उदयन कुछ ज्यादा ही असहज हो गया था. यह बात शर्मा दंपति से छिपी नहीं रह सकी थी.

खूबसूरत, बिंदास और महत्त्वाकांक्षी आकांक्षा और उदयन के इस कनेक्शन को ले कर बांकुरा और भोपाल पुलिस के बीच लंबी मंत्रणा हुई, जिस का निष्कर्ष यह निकला कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. इस गड़बड़ का पता लगाने के लिए पुलिस टीम ने जो योजना तैयार की, उस का पहला चरण उदयन के बारे में खुफिया तरीके से जानकारियां इकट्ठा करने के साथसाथ उस की निगरानी करना भी था.

31 जनवरी और 1 फरवरी को पुलिस टीम ने उदयन की रैकी की. इस कवायद में पुलिस को जो जानकारियां मिलीं, वे चौंका देने वाली थीं. उदयन अड़ोसपड़ोस में किसी से भी मिलताजुलता नहीं था. अलबत्ता वह बेहद विलासी जिंदगी जी रहा था. उस के पास महंगी कारें औडी और मर्सिडीज थीं. पुलिस वालों को उस की जिंदगी और हरकतें हद से ज्यादा रहस्यमय लगीं. साकेतनगर वाला मकान, जिस में वह रहता था, उस का नीचे का हिस्सा उस ने ब्रह्मकुमारी आश्रम को किराए पर दे रखा था.

इन 2 दिनों में वह अपनी एक गर्लफ्रैंड पूजा अटवानी के साथ ‘काबिल’ और ‘रईस’ फिल्में देखने सिनेमा हौल गया था. पुलिस वालों ने दोनों फिल्में उस के पीछे वाली सीट पर बैठ कर देखी थीं, जिस की उसे भनक तक नहीं लगी थी.

2 फरवरी को पुलिस वाले जब उस के घर पहुंचे तो ताला बाहर से बंद था, लेकिन उदयन अंदर मौजूद था. ताला बंद होने के बावजूद पुलिस वालों ने दरवाजा खटखटाया तो अंदर किसी के होने की आहट मिली. किसी अनहोनी से बचने के लिए बांकुरा पुलिस टीम ने गोविंदपुरा थाने से भी पुलिस बुला ली. उदयन अंदर है, पुलिस यह जान चुकी थी. उसे पकड़ने के लिए गोविंदपुरा थाने के एएसआई सत्येंद्र सिंह कुशवाहा छत के रास्ते से हो कर नीचे गए और उदयन का हाथ पकड़ कर उस से मुख्य दरवाजा खुलवाया.

पुलिस टीम जब अंदर दाखिल हुई तो वहां का नजारा देख चौंकी. कमरों का इंटीरियर बहुत अच्छा था, हर कमरे में एलसीडी लगे थे पर पूरा घर अस्तव्यस्त पड़ा था. ऐसा लग रहा था जैसे वहां मुद्दत से साफसफाई नहीं की गई है. पुलिस ने उदयन से आकांक्षा के बारे में पूछा तो वह खामोश रहा.

पहली मंजिल पर चबूतरा बना देख पुलिस वालों का चौंकना स्वाभाविक था. कमरों में सिगरेट के टोंटे पड़े थे. साथ ही शराब की खाली बोतलें भी लुढ़की पड़ी थीं. सिगरेट के टोंटों की तादाद हजारों में थी. कुछ प्लेटों में बासी सब्जी व दाल पड़ी थी, जिन से बदबू आ रही थी.

जैसेजैसे पुलिस टीम घर को देख रही थी, वैसेवैसे रोमांच और उत्तेजना दोनों ही बढ़ती जा रही थीं. हर कमरे की दीवार पर लव नोट्स लिखे हुए थे, जिन में आकांक्षा के साथ बिताए लम्हों का जिक्र साफ दिखाई दे रहा था. कुछ देर घर में घूमने के बाद पुलिस ने जब उदयन से दोबारा पूछा कि आकांक्षा कहां है तो उस ने बेहद सर्द आवाज में जवाब दिया, ‘‘मैं ने उस का कत्ल कर दिया है और वह इस चबूतरे के नीचे है.’’

मकसद में इतनी जल्दी और आसानी से कामयाबी मिल जाएगी, यह बात पुलिस टीम की उम्मीद से बाहर थी. एक बम सा फोड़ कर उदयन खामोश हो गया. उस के चेहरे पर कोई शिकन या घबराहट नहीं थी. आकांक्षा की हत्या कर के उदयन ने उस की लाश दफना दी थी, यह जान कर पुलिस वालों ने उस पर सवालों की झड़ी लगा दी. इस के बदले उदयन ने जो जवाब दिए, उन से सिलसिलेवार यह कहानी सामने आई.

                                                                                                                                       क्रमशः

60 साल का लुटेरा: 18 महिलाओं से शादी करने वाला बहरूपिया – भाग 1

मध्य प्रदेश में जबलपुर की रहने वाली 38 वर्षीया अवंतिका को पढ़ाई करतेकरते शादी की उम्र कब फुर्र हो गई थी उसे पता ही नहीं चल पाया. पढ़ाई के दौरान ही 30 साल उम्र में उस ने शादी कर ली. उस का पति एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में था, लेकिन शादी के 2 साल बाद ही एक सड़क हादसे में उस के पति की मृत्यु हो गई थी. तब वह 32 साल की थी. उस के बाद उस ने अपने पैरों पर खड़ा होने की शुरूआत की. अधूरी पढ़ाई पूरी करने में जुट गई.

पति की मौत के बाद अवंतिका का ससुराल से नाता टूट चुका था. उस के मातापिता ने उस की दूसरी शादी के लिए प्रयास शुरू कर दिए. घरवालों को कभी उस के लिए वर पसंद आता था, तब लड़के के घरपरिवार में कोई न कोई खोट नजर आ जाती थी. जब कभी उन्हें घरपरिवार पसंद आता था, तब लड़के के साथ उस की कुंडली नहीं मिल पाती थी.

जन्मकुंडली के मुताबिक अवंतिका मंगल के प्रभाव वाली मांगलिक थी. इस के अलावा उस का विधवा होना भी दूसरी शादी में आड़े आ रहा था. उस की हमउम्र सहेलियां जब कभी मायके आती थीं तब वे उस की सुंदरता की तारीफ के पुल बांध देती थीं. कारण, उस ने उदासी की जिंदगी से तौबा कर ली थी. वह सुंदर और कम उम्र वाली हसीन लड़की जैसी दिखती थी. बनठन कर जब निकलती थी, तब उस का गोरा रंग और भी निखर उठता था.

हर पहनावे में उस के उभार, लचक और शारीरिक मांसलता का ग्लैमर बरवस किसी को भी अपनी ओर खींच लेता था. चालढाल सेक्सी आदाओं वाली होती थी. फिर भी वह विधवा होने का दंश झेलने को मजबूर थी. कारोबारी परिवार से थी. पैसे की कमी नहीं थी. अच्छी खासी रकम पति की मृत्यु के बाद उस की बहुराष्ट्रीय कंपनी से भी मिल गई थी. फिर भी वह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी.

स्थाई आमदनी वाली सम्मानित नौकरी की तलाश में थी. समय गुजारने के लिए सामाजिक कार्य में लगी रहती थी. राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग में वह एक नौकरी का फार्म भर चुकी थी. किसी ने बताया कि केंद्रीय स्वस्थ्य मंत्रालय से कोई अच्छी सिफारिश लगाई जाए तब उसे नौकरी मिल सकती है.

इस तरह अवंतिका को 2 सपने पूरे करने थे. एक तमन्ना दूसरी शादी से मनपसंद जीवनसाथी की थी, तो दूसरी थी अच्छी आमदनी वाली नौकरी की. उस के हालात को देख कर कहा जा सकता है कि वह एक तरह से जीवन को संवारने के लिए महत्त्वाकांक्षाओं के बीच झूल रही थी.

कड़वा सच था कि उसे किसी में भी सफलता हाथ नहीं लग पाई थी. इस कारण वह तनाव में रहने लगी थी. जब कोई शादी के बारे में उस से पूछता तब मन कसैला हो जाता था. कई बार लोगों के ताने सुन कर दिमाग झन्ना उठता था. जी तो करता था कि उलट कर कोई तगड़ा जवाब दे डाले, फिर वह कुछ सोच कर चुप लगा जाती थी. उसे अपने अच्छे दिन आने का इंतजार था… लेकिन कब तक? उसे नहीं मालूम था कि जिंदगी आगे किस ओर करवट लेने वाली थी, बिलकुल ऊंट की तरह!

सहेली ने सुझाया शादी करने का तरीका

एक दिन उस का स्कूल के जमाने की सहेली से लंबे समय बाद मिलना हुआ. उस ने उस के साथ ही ग्रैजुएशन की थी. हाउसवाइफ की जिंदगी मजे में गुजार रही थी. खुश थी. मिलते ही पूछ बैठी, ‘‘तुम्हारा कोई रिश्ता तय हुआ?’’

यह सुनते ही अवंतिका तिलमिला गई. बोल पड़ी, ‘‘सालों बाद मिली हो… और तुम ने भी वही राग शुरू कर दिया?’’

‘‘मेरे पूछने का मतलब तुम्हें दुखी करना नहीं था,’’ सहेली बात संभालते हुए बोली, ‘‘मेरी बात बुरी लगी तो लो कान पकड़ती हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं…मैं क्या करूं? किसकिस से अपनी तकलीफ सुनाऊं? कितनों को अपने दिल की बात बताऊं?’’ बोलतेबोलते अवंतिका निराश हो गई.

‘‘मेरा कहा मानो तो तुम मैरेज ब्यूरो में सर्च किया करो,’’ सहेली बोली और मुसकराने लगी.

‘‘सुनते हैं कि उस में ज्यादातर फरजी होते हैं,’’ अवंतिका बोली.

‘‘फरजीवाड़ा कहां नहीं है. यह तो तुम पर निर्भर करता है, उस की जांचपरख करना. तुम अनपढ़ थोड़े हो.’’ सहेली ने समझाया.

‘‘लेकिन कई केस आते ही रहते हैं. असलीनकली की पहचान कैसे होगी?’’

‘‘विश्वसनीय मैरेज साइट पर जाओ. सोशलसाइट से संपर्क वाले में ही धोखे की बातें अधिक होती हैं. अच्छी तरह से प्रोफाइल पढ़ो. रिश्ता फाइनल होने से पहले खुद मिलो, परिवार वालों से मिलवाओ. कुछ समय ले कर उस की डिटेल्स की जांच करो…’’ सहेली बोलती चली गई.

‘‘कह तो तुम सही रही हो, लेकिन अधितर 28-30 उम्र तक ही मांगते हैं. मेरी तो…’’ अवंतिका ने चिंता जताई.

‘‘साइट पर जनरल से अलग सिंगल वीमन, विडो या डाइवोर्सी कालम में सर्च कर देखो. कोई न कोई मिल ही जाएगा… तुम्हारी तरह कई पुरुष सुघड़, सुंदर, सुशिक्षित और सुकुमारी प्रोफेशनल लेडी की तलाश में बैठे होंगे. अब भला तुम से अधिक योग्य लेडी कहां मिलेगी…’’ यह कहती हुई सहेली ने उस की ठुड्डी पकड़ ली और हंसने लगी.

सहेली के जाते ही अवंतिका के मन में उम्मीद की एक हलचल होने लगी. संभावना जाग उठी. दिल की धड़कनें बढ़ गईं. एक गिलास पानी पीया, फिर लैपटाप उठा कर छत पर अपने एकांत स्टडी रूम में चली गई. उस रोज उस ने लैपटाप ऐसे खोला जैसे कोई पट खोल रही हो और उस के खुलते ही उस में से कुछ नया निकलने वाला हो. लगता है लैपटाप भी उस की भावनाएं और दिल में मची हलचल के साथ बेसब्री को भांप गया था.

उस रोज धीरेधीरे विंडो का पेज खुला था. अवंतिका ने झट गूगल क्रोम के बटन को 3-4 बार क्लिक कर दिया. गूगल के कई पेज फटाफट खुल गए. तुरंत मैट्रीमोनियल साइट खोल ली और सहेली के बताए कालम को सर्च करने लगी. सहेली ने जैसा कहा था, ठीक वैसा ही मिला. स्क्रीन पर कई अनमैरीड पुरुषों के प्रोफाइल खुल गए. उन के साथ उन की तसवीरें भी थीं. कुछ ने अपने बेहतरीन करियर और प्रौपर्टी की जानकारी भी दे रखी थी.

एक प्रोफाइल पर अटक गईं नजरें

देखतेदेखते एक प्रोफाइल पर उस की नजर अटक गई. नाम था डा. बिधु प्रकाश स्वैन. केंद्र सरकार की नौकरी थी. वह स्वास्थ्य मंत्रालय के सेंट्रल बोर्ड औफ ऐडमिशन कमिटी का डेप्युटी डायरेक्टर जनरल के पद पर बेंगलुरु में पोस्टेड था. उस ने अपनी पसंद के बारे में लिखा था, ‘‘उसे एक एक समझदार और कल्चर्ड महिला की तलाश है.’’

प्रोफाइल में उम्र दर्ज थी 42 साल. मैरिटल स्टेटस में अनमैरेड लिखा था. साथ ही अपने अविवाहित होने का कारण भी था कि उस की शादी पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाने और नौकरी के सिलसिले में ट्रांसफर आदि होते रहने के चलते नहीं हो पाई थी. पुश्तैनी घर, परिवार और इलाके की कुछ तसवीरों के अलावा अशोक स्तंभ चिह्न के लोगो लगे विजिटिंग कार्ड और भारत सरकार लिखे लालबत्ती गाड़ी की तसवीरें भी लगी हुई थीं.

यह सब देख कर अवंतिका को उस पर भरोसा बन गया. दूसरी बात यह कि वह भुवनेश्वर में पढ़ाई के सिलसिले में रह चुकी थी, इसलिए उस प्रोफाइल को नजरंदाज नहीं कर पाई. लैपटाप पर सेव कर वह विशलिस्ट में डाल दी.

करोड़ों के लिए सीए की हत्या

मालकिन की इज्जत के साथ खेलता नौकर

शराब को भले ही सामाजिक बुराई माना जाता हो, लेकिन देश में शराब का अरबों का कारोबार चलता है. शाम ढलते ही शहरों के मयखानों, बार और नाइट क्लब आबाद होने लगते हैं.  शाम के तकरीबन साढ़े 7 बजे का वक्त था. उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में नौचंदी थाना क्षेत्र के सूरजकुंड स्थित एक कैंटीननुमा मयखाने में शराब पीने वालों की भीड़ लगनी शुरू हो चुकी थी.

लोग मेजों पर खानेपीने का सामान सजाए बैठे थे. किनारे की एक मेज पर आमनेसामने 2 युवक बैठे शराब की चुस्कियां ले रहे थे. तभी अचानक 2 युवक उन के पास आ कर खड़े हो गए. उन के हाथों में पिस्तौलें थीं. उन में से एक युवक हवाई फायर करते हुए चिल्लाया, ‘‘अगर किसी ने भी शोरशराबा किया या भागा तो जिंदा नहीं बचेगा.’’

युवक की इस हरकत से वहां का माहौल दहशतजदा हो गया. लोग सकते में आ गए. कोई कुछ समझ पाता उस से पहले ही दोनों युवकों में से एक ने आमनेसामने बैठे युवकों में से एक ने उस के सिर, सीने और पेट को निशाना बना कर गोलियां चला दीं. गोलियां लगते ही युवक कुरसी पर लुढ़क गया.

इस के बाद दोनों युवक चले गए. टेबल पर रखा उस युवक का मोबाइल भी वे अपने साथ ले गए थे. गोलियां चलने से वहां अफरातफरी मच गई थी. किसी ने छिप कर जान बचाई तो किसी ने भाग कर. मृत युवक के साथ बैठा युवक भी भाग खड़ा हुआ था.

इसी बीच किसी व्यक्ति ने पुलिस को सूचना दे दी थी. वारदात की सूचना पा कर पुलिस भी वहां पहुंच गई. निरीक्षण में पता चला युवक मर चुका है. पूछताछ में जानकारी मिली कि दोनों हमलावर मोटरसाइकिल से आए थे. उन्होंने मृतक पर करीब 25 राउंड गोलियां चलाई थीं. मारा गया युवक अपने साथी के साथ पल्सर मोटरसाइकिल नंबर यूपी-15 बीए-4351 से आया था, जो बाहर खड़ी थी.

घटनास्थल से पुलिस को कारतूस के कई खोखे मिले. मृतक की शिनाख्त तुरंत नहीं हो सकी. उस के सीने, पेट और सिर पर 10 से ज्यादा गोलियों के निशान थे, लेकिन वहां किसी अन्य व्यक्ति को खरोंच तक नहीं आई थी. इस का मतलब हमलावर सिर्फ उसे ही मारने आए थे. जिस तरह उस पर गोलियां चलाई गई थीं, इस का मतलब था कि हत्यारे उसे किसी भी कीमत पर जिंदा नहीं छोड़ना चाहते थे.

पुलिस को मृतक की जेबों की तलाशी में एक पर्स मिला, जिस में मिलें कागजों के आधार पर उस की शिनाख्त जुहेब आलम उर्फ साहिल खान के रूप में हुई. पुलिस ने पर्स में मिले पते पर उस की हत्या की सूचना दी तो थोड़ी देर में उस के घर वाले रोतेबिलखते हुए वहां आ पहुंचे.

पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई निपटा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मृतक जुहेब शहर के ही थाना लालकुर्ती क्षेत्र के मैदा मोहल्ला स्थित जफर बिल्डिंग में रहने वाले सुलतान का बेटा था. उस के 2 भाई और थे, जुहेब एमबीए था और करीब 5 सालों से हापुड़ रोड स्थित कीर्तिका पब्लिकेशन में बतौर एकाउंटैंट नौकरी करता था. वह सुबह घर से निकलता था तो रात 10 बजे तक ही घर लौट पाता था.

जिस तरह उस की हत्या की गई थी, उस से यही लगता था कि उस की किसी से गहरी रंजिश थी. पुलिस ने उस के घर वालों से पूछताछ की तो उन्होंने किसी से भी जुहेब या परिवार की रंजिश होने से साफ मना कर दिया. लेकिन यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी, क्योंकि कोई तो वजह थी, जिस के चलते उस का कत्ल किया गया था.

पुलिस ने पब्लिकेशन के मालिक अमित अग्रवाल से भी पूछताछ की. उन्होंने भी अपनी जानकारी में जुहेब की किसी से रंजिश होने की बात से इनकार कर दिया. उन्होंने बताया था कि उस दिन जुहेब शाम करीब साढ़े 6 बजे उन के यहां से निकला था. कैंटीन में उस के साथ गया दूसरा युवक कौन था, इस की जानकारी पुलिस को नहीं मिल सकी. कत्ल का राज उस युवक के सीने में दफन हो सकता था.

यह 20 फरवरी, 2017 की घटना थी. इस मामले में पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ और एसपी (सिटी) आलोक प्रियदर्शी ने घटना के खुलासे के लिए डीएसपी विकास जायसवाल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया. जिस में थानाप्रभारी मोहन सिंह, सबइंसपेक्टर अफसर अली, हैडकांस्टेबल धर्मराज, कांस्टेबल सतीश और राकेश को शामिल किया गया.

पुलिस के हाथ ऐसा कोई सबूत नहीं लगा, जिस से कत्ल का राज खुल पाता. सभी पहलुओं पर गौर किया गया तो सुई मृतक के मोबाइल पर जा कर अटक गई. हत्यारे जुहेब का मोबाइल फोन अपने साथ ले गए थे. मतलब उस के मोबाइल में कोई गहरा राज छिपा था. यह मामला प्रेमप्रसंग का लग रहा था, अगले दिन पुलिस ने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स की छानबीन से पता चला कि जुहेब का नोएडा की रहने वाली किसी युवती से संबंध था. दोनों की अकसर बातें होती रहती थीं. युवती दूसरे संप्रदाय की थी. पुलिस की एक कड़ी मिली तो उस ने जांच आगे बढ़ाई. हत्या की वजह यह प्रेमप्रसंग भी हो सकता था. संभवत: मोबाइल फोन में युवती के फोटोग्राफ रहे होंगे, इसीलिए हत्यारे उसे अपने साथ ले गए थे. एक पुलिस टीम नोएडा गई और उस ने युवती को खोज निकाला.

पूछताछ में पता चला कि युवती और जुहेब का संपर्क सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के जरिए हुआ था. बाद में दोनों में बातें होने लगी थीं. जुहेब उस से मिलने नोएडा भी जाया करता था. इस बात की जानकारी घर वालों को हुई तो युवती का अलग संप्रदाय की होने की वजह से खासा हंगामा हुआ.

फरवरी के पहले सप्ताह में जुहेब नोएडा गया तो युवती के घर वालों ने उसे काफी डांटाफटकारा. जुहेब ने उस वक्त भविष्य में उस से किसी तरह का संबंध न रखने का वादा किया. लेकिन वह उस से संबंध तोड़ नहीं सका. इन सब बातों से पुलिस को युवती के घर वालों पर शक हुआ. बेटी के संबंधों से नाराज हो कर वे हत्या करा सकते थे.

पुलिस ने उन से गहराई से पूछताछ की, लेकिन उम्मीदों पर तब पानी फिर गया, जब उन्होंने जुहेब को डांटने फटकारने की बात तो स्वीकारी, लेकिन हत्या में किसी भी तरह का हाथ होने से मना कर दिया. तथ्यों की कसौटी पर उन के बयान खरे पाए गए तो पुलिस खाली हाथ लौट आई.

पुलिस ने अपना ध्यान जुहेब के मोबाइल फोन पर केंद्रित किया. पुलिस यह जान कर हैरान रह गई कि वह अपने मोबाइल में 3 सिमकार्ड का इस्तेमाल करता था. पुलिस ने उस के सभी नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस की दोस्ती कई लड़कियों और महिलाओं से थी. एक चौंकाने वाली बात यह पता चली कि उस की जिस नंबर पर सब से अधिक बातें होती थीं, वह पब्लिकेशन हाउस की मालकिन का था. पुलिस ने पब्लिकेशन के मालिक अमित अग्रवाल की पत्नी नेहा (परिवर्तित नाम) से पूछताछ की.

नेहा ने बताया कि चूंकि उन का ज्यादातर काम जुहेब ही संभालता था इसीलिए उस की जुहेब से अकसर बातें होती थीं. पुलिस उस के इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुई, क्योंकि दोनों के बीच देर रात तक लंबीलंबी बातें होती थीं. इस का राज नेहा ही बता सकती थी. इस का मतलब कुछ ऐसा जरूर था, जिसे नेहा छिपा रही थी. पुलिस ने 3 अन्य महिलाओं से भी पूछताछ की,  जिन से जुहेब की बातचीत होती थी.

इस के बाद पुलिस को शक हुआ कि जुहेब की हत्या के तार अग्रवाल परिवार से ही जुड़े हैं. पुलिस अभी तक जुहेब के उस साथी तक नहीं पहुंच सकी थी, जिस के साथ वह उस दिन शराब पी रहा था. वह कातिलों से मिला हुआ भी हो सकता था. संभव था कि उसे योजना बना कर वहां लाया गया हो और हत्यारों को इस की सूचना दे दी गई हो.

पुलिस ने रास्तों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई तो एक फुटेज में जो युवक उस के साथ मोटरसाइकिल पर बैठा नजर आया, उस की पहचान असब उर्फ बिट्टू के रूप में हुई. वह पब्लिकेशन हाउस में बतौर ड्राइवर नौकरी करता था. खास बात यह थी कि घटना के बाद उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था.

अब तक अग्रवाल परिवार पूरी तहर शक के घेरे में आ गया था. अपनी मालकिन से नजदीकियां जुहेब की हत्या की वजह हो सकती हैं, यह सोच कर पुलिस ने अमित अग्रवाल से पूछताछ की. लेकिन उस से काम की कोई बात पता नहीं चली. पुलिस ने नेहा के युवा बेटे मयंक अग्रवाल की काल डिटेल्स निकलवाई. घटना के समय उस का मोबाइल फोन बंद था, जबकि सीसीटीवी फुटेज के हिसाब से वह पब्लिकेशन के औफिस में ही था.

घटना के समय मोबाइल का बंद होना संदेह पैदा करता था. पुलिस ने जुहेब के कई दोस्तों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि जुहेब की नेहा से न केवल खासी नजदीकियां थीं, बल्कि वह उस पर काफी मेहरबान रहती थी.

आखिर 24 फरवरी को पुलिस ड्राइवर असब तक पहुंच ही गई. उसे कस्टडी में ले लिया गया, साथ ही पुलिस ने पूछताछ के लिए मयंक अग्रवाल को भी कस्टडी में ले लिया. दोनों से पुलिस ने गहराई से पूछताछ की तो ऐसा सच समने आया, जिसे जान कर पुलिस हैरान रह गई. महत्वाकांक्षी जुहेब जल्दी से जल्दी आगे बढ़ने की चाहत में बड़ी भूल कर बैठा था. वह घर की इज्जत और दौलत, दोनों से खेल रहा था. उस का यही खेल उस की जान पर भारी पड़ा.

अगले दिन पुलिस ने प्रैसवार्ता कर के पूरे मामले का खुलासा कर दिया. दरअसल, पब्लिकेशन हाउस में नौकरी के दौरान जुहेब की नेहा से नजदीकियां बढ़ गई थीं. इस की भी एक वजह थी. अमित अग्रवाल काम के सिलसिले में अकसर शहर से बाहर आतेजाते रहते थे. बेटा बाहर रह कर पढ़ रहा था. ऐसे में औफिस की जिम्मेदारी नेहा संभालती थी. यही नहीं, पब्लिकेशन के कागजों के अनुसार, मालकिन भी वही थी. वह आजादखयाल महिला थीं, जबकि जुहेब महत्त्वाकांक्षी और लच्छेदार बातों का बाजीगर था.

उस का यही अंदाज नेहा को भा गया. दोनों की उम्र में करीब 20 साल का फासला था. लेकिन आगे बढ़ने की ललक में जुहेब ने उम्र का फासला नजरअंदाज कर दिया था. वह जानता था कि कंपनी की असली मालकिन नेहा है, इसलिए मजे से नौकरी करने और आगे बढ़ने के लिए नेहा को अपने पक्ष में करना जरूरी है.

नेहा जितनी ज्यादा मेहरबान होगी, उस की जिंदगी में उतनी ही खुशियां आएंगी. यही सब सोच कर वह नेहा पर डोरे डालने लगा. उस की बातों में नेहा को भी रस आने लगा था. नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में जुहेब नेहा का दिल जीतने में कामयाब हो गया.

जुहेब ने चालाकी दिखाई थी, लेकिन नेहा को तो समझदारी दिखाते हुए सतर्क हो जाना चाहिए था. पर वह खुद भी अंजाम की परवाह किए बिना उस के रंग में रंगने लगी थी. दोनों की बातें और मुलाकात रोज होती ही होती थी. इस के अलावा वे फोन पर भी बातें और चैटिंग करने लगे. भूल कुछ पलों के निर्णय पर निर्भर होती है. गलत निर्णयों के नतीजे बाद में कितने अच्छे और बुरे निकलेंगे, इस बात को पहले कोई नहीं सोचता. एक दिन ऐसा भी आया, जब दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूट गई. इस के बाद यह आए दिन का सिलसिला बन गया.

समय अपनी गति से चलता रहा. अमित को दोनों की नजदीकियों पर शक हुआ. जुहेब का आचरण उन्हें अच्छा नहीं लगा तो उन्होंने उसे नौकरी से निकालने का प्रयास किया. लेकिन हर बार नेहा ढाल बन कर खड़ी हो गई.

कहते हैं कि अनैतिक संबंध छिपाए नहीं छिपते. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. जब सब को यकीन हो गया कि दोनों के बीच अनैतिक संबंध हैं तो परिवार कलह का अखाड़ा बन गया. बात बढ़ती देख नेहा ने वादा किया कि वह अपनी गलती को सुधारने का प्रयास करेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

कुछ दिनों की खामोशी के बाद दोनों फिर से मिलनेजुलने लगे, उन की राह गलत है, दोनों ही जानते थे, लेकिन अपने संबंधों को वे प्यार का नाम दे कर खुश थे. जुहेब की वजह से एक हंसतेखेलते परिवार में तूफान उठ खड़ा हुआ था. उसे ले कर घर में हमेशा तनाव रहने लगा था. अमित ने कई बार जम कर विरोध किया लेकिन जब स्थितियों में परिवर्तन नहीं आया तो एक दिन उन्होंने आत्महत्या के इरादे से अपने हाथ की नसें काट लीं. लेकिन समय से मिले उपचार की वजह से उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा.

जुहेब और नेहा, दोनों ही बदलने को तैयार नहीं थे. नेहा की मेहरबानियों का असर यह हुआ कि जुहेब की न सिर्फ तनख्वाह बढ़ती गई, बल्कि उस का ओहदा भी बढ़ता गया. एक साल पहले की बात है.

नेहा का बेटा मयंक एमबीए की पढ़ाई कर के घर लौट आया और उस ने बिजनैस संभालना शुरू कर दिया. वह दूर था तो उसे कुछ पता नहीं था. लेकिन घर आ कर उसे वे बातें भी पता चलने लगीं जो नहीं पता चलनी चाहिए थीं. सब कुछ जान कर उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई, वह जुहेब से नफरत करने लगा.

मयंक ने जुहेब की कई गलतियां पकड़ीं. जुहेब एकाउंटैंट था. हिसाबकिताब की सभी बारीकियां उस के हाथों में थीं. उस की नजर में जुहेब कंपनी को चूना लगा रहा था. उस ने नेहा से उस की शिकायतें कीं, लेकिन वह एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देती थी. एक दिन मयंक ने अपनी मां से इस मुद्दे पर स्पष्ट कहा, ‘‘जब आप को पता है कि जुहेब गलत है और वह कंपनी को चूना लगा रहा है तो उसे हटाने में क्या बुराई है? मैं उसे फूटी आंख नहीं देखना चाहता.’’

‘‘चाहती तो मैं भी यही हूं, लेकिन…’’ नेहा ने अपनी बात अधूरी छोड़ी तो मयंक ने पूछा, ‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘तुम जानते हो कि कंपनी का सारा काम उसे पता है. लेनदारियां भी उसे मालूम हैं. उसे हटाया गया तो कंपनी को काफी नुकसान हो सकता है. तुम पूरी तरह काम संभाल लो, उस के बाद उसे बाहर कर देंगे.’’

मां की बात सुन कर मयंक सोच में पड़ गया. एक हद तक उन की बात ठीक भी थी. कई सालों में जुहेब कंपनी के हिसाबकिताब की सभी बारीकियां जान गया था. नेहा की तरफ से उसे मिली छूट का ही नतीजा था कि वह बड़े हिसाब अपने हाथों में रखता था.

पूछने या कहने पर भी वह मयंक या उस के पिता को हिसाब नहीं देता था. बात भी उतनी ही बताता था, जितनी वह जरूरी समझता था. जोर देने पर वह मयंक के साथ मारपीट करने तक पर उतारू हो जाता था.

मयंक को शक था कि उस ने कंपनी में लाखों का घोटाला किया है. ऐसे में मयंक की तिलमिलाहट और बढ़ गई. जुहेब शानदार लाइफ स्टाइल में जीता था. एक दिन नेहा के मोबाइल में मयंक ने जुहेब की चैटिंग देख ली. दोनों की बातें शर्मसार करने वाली थीं. मयंक खून का घूंट पी कर रह गया. सब कुछ जान कर भी वह कुछ नहीं कर पा रहा था.

घर में आए दिन झगड़ा होता रहता था. जुहेब के प्रति मयंक के मन में नफरत तो थी ही, यह नफरत तब और बढ़ गई जब नेहा ने उसे गिफ्ट में स्कूटी दी. मयंक को लगा कि अगर वक्त रहते उस ने कुछ नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं, जब जुहेब उस के परिवार को न सिर्फ बर्बाद कर देगा, बल्कि बिजनैस पर भी कब्जा कर लेगा.

इज्जत और दौलत की बर्बादी वह अपनी आंखों से देख रहा था. उसे लगा कि जब तक जुहेब का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किया जाएगा तब तक मां सुधरने वाली नहीं है. आखिर उस ने मन ही मन एक खतरनाक निर्णय ले लिया.

मयंक का एक मौसा था राजू उर्फ किशनपाल. वह मुजफ्फरनगर जिले के थाना रामराज क्षेत्र के गांव देवल का रहने वाला था. वह आपराधिक और दबंग प्रवृति का था. मयंक ने सारी बातें उसे बता कर जुहेब को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने को कहा तो वह बोला, ‘‘झगड़े की जड़ जुहेब को हटाने के लिए पेशेवर लोगों का इंतजाम करना होगा.’’

‘‘जो उचित लगे, आप करें जितना भी खर्चा होगा, मैं देने को तैयार हूं.’’ मयंक ने कहा.

राजू की पहचान ऐसे कई लोगों से थी, जो पैसे ले कर हत्या करते थे. उस ने मेरठ के शास्त्रीनगर के रहने वाले सारिक और नदीम से बात कर के उन्हें जुहेब की हत्या के लिए तैयार कर लिया. इस के बाद सभी ने मिल कर हत्या की योजना बना डाली.

योजना के तहत 20 फरवरी की सुबह राजू मेरठ आ कर मयंक से मिला. मयंक जानता था कि जुहेब और असब के बीच दोस्ती है, इसलिए उस ने असब को भी योजना में शामिल करने का फैसला किया. उस ने असब को औफिस से बाहर बुलवाया और उसे रुपयों का लालच दे कर अपने साथ शामिल कर लिया. तय हुआ कि असब जुहेब को सही ठिकाने पर ले कर जाएगा और फोन कर के राजू को इस बारे में बताएगा.

योजनानुसार राजू शूटरों के पास चला गया. सारिक और उस के साथी के पास पहले से ही हथियार थे. दिन में असब ने जुहेब से शाम को पीनेपिलाने की बात कही तो वह खुशीखुशी तैयार हो गया.

शाम को दोनों मोटरसाइकिल से शराब के ठेके पर पहुंचे तो असब ने फोन कर के राजू को सटीक जानकारी दे दी. इस के बाद राजू शूटर सारिक और नदीम के साथ वहां पहुंचा और चालाकी से जुहेब की पहचान करा दी. इस के बाद उन्होंने वारदात को अंजाम दे दिया.

असब वहां से निकला और बाहर आ कर राजू तथा शूटरों से मिला. शूटरों ने उसे एक पिस्टल छिपा कर रखने के लिए दी और खुद चले गए. असब भी अपने मोबाइल का स्विच औफ कर के घर चला गया.

मयंक ने सोचा था कि योजनाबद्ध तरीके से काम करने की वजह से पुलिस इस मामले में उलझ कर रह जाएगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. जुहेब और नेहा की नासमझी से 2 परिवारों पर मुसीबत आ गई. जुहेब को अपनी जान गंवानी पड़ी तो नेहा के बेटे मयंक को जेल जाना पड़ा. समय रहते अगर दोनों सुधर गए होते तो यह नौबत नहीं आती.

असब की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त 32 बोर का पिस्टल और कारतूस बरामद कर लिए. पुलिस ने दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों में से किसी की जमानत नहीं हो सकी थी. फरार आरोपियों की सरगर्मी से तलाश जारी थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 4

नर्सिंग होम मालिकों ने रची साजिश

इधर अनुज महतो अविनाश के किसी भी मकसद को और पनपने देना नहीं चाहता था क्योंकि वह उस के लिए बेहद खतरनाक बन चुका था.

पहले रची योजना के मुताबिक 9 नवंबर, 21 को अनुज महतो ने रात 9 बज कर 58 मिनट पर पूर्णकला देवी से अविनाश को फोन करवाया और एक अहम जानकारी देने के लिए उसे अपने नर्सिंग होम बुलवाया. नर्स पूर्णकला देवी ने वैसा ही किया जैसा मालिक ने उसे करने को कहा.

नर्स पूर्णकला देवी का फोन आने के बाद अविनाश उस से मिलने फोन पर बात करते हुए अपने औफिस से पैदल ही निकल गया और अपनी बाइक वहीं छोड़ गया था. उसी समय उस की मां संगीता जब खाना खाने के लिए उसे बुलाने पहुंची तो औफिस खुला देख समझा कि यहीं कहीं बाहर गया होगा, आ जाएगा. फिर वह वापस घर लौट आई थीं.

इधर फोन पर बात करता हुआ अविनाश थाना बेनीपट्टी से 400 मीटर दूर कटैया रोड पहुंचा, जहां एक कार उस के आने के इंतजार में खड़ी थी. कार में नर्स पूर्णकला देवी सवार थी. अविनाश को देखते ही उस ने पीछे का दरवाजा खोल कर उसे बैठा लिया.

फिर वहां से सीधे अनुराग हेल्थकेयर सेंटर पहुंची, जहां पहले से घात लगाए सब से आगे वाले कमरे में अनुज महतो बैठा था. उसी कमरे में उस ने लकड़ी का मूसल भी छिपा कर रखा था, जबकि पूर्णकला ने अनुज महतो के चैंबर में लाल मिर्च का पाउडर और एक पैकेट कंडोम रखा था.

अविनाश को साथ ले कर वह सीधा चैंबर में पहुंची, जहां उस ने उपर्युक्त सामान छिपा कर रखा था. खाली पड़ी एक कुरसी पर उसे बैठने का इशरा कर भीतर कमरे में गई और जब लौटी तो उस के हाथ में पानी भरा कांच का गिलास था.

उस ने पानी अविनाश की ओर बढ़ा दिया. अविनाश ने पानी भरा गिलास नर्स के हाथों से ले कर जैसे ही अपने होठों से लगाया, फुरती से मिर्च पाउडर पूर्णकला ने उस की आंखों में झोंक दिया. मिर्च की जलन से अविनाश के हाथ से कांच का गिलास छूट कर फर्श पर गिर पड़ा और खतरे को भांप कर अविनाश आंखें मलता हुआ बाहर की ओर भागा.

तब तक मूसल ले कर कमरे में पहले से घात लगाए बैठा अनुज महतो बाहर निकला और उस के सिर पर पीछे से मूसल का जोरदार वार किया. वार इतना जोरदार था कि वह धड़ाम से फर्श पर जा गिरा. तब तक वहां रोशन, बिट्टू, दीपक, पवन और मनीष भी आ पहुंचे.

फर्श पर गिरे अविनाश की सांसों की डोर अभी टूटी नहीं थी. वह बेहोश हुआ था. फिर उसे खींचकर चैंबर में ले जाया गया. वहां अस्पताल की चादर से अविनाश का गला तब तक दबाया गया, जब तक उस का बदन ठंडा नहीं पड़ गया. इस के बाद अनुज महतो पांचों की मदद से एक बोरे में अविनाश की लाश भर कर जिस कार से आया था, उसी कार की डिक्की में छिपा कर औंसी थानाक्षेत्र के उड़ने चौर थेपुरा के जंगल में फेंक कर फरार हो गए.

2 दिनों बाद जब अविनाश की खोज जोर पकड़ी तो अनुज महतो सहित सभी घबरा गए कि कहीं उस की लाश बरामद न हो जाए, नहीं तो सब के सब पकड़े जाएंगे. बुरी तरह परेशन अनुज महतो 11 नवंबर की रात अपनी बाइक ले कर उड़ने चौर थेपुरा पहुंचे, जहां अविनाश की लाश फेंकी थी. उस की लाश अभी वहीं पड़ी थी. फिर क्या था, उस ने बोरे के ऊपर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी और अपनी बाइक थेपुरा गांव में छोड़ कर फरार हो गया.

अपने दुश्मन अविनाश को रास्ते से हटाने के बाद अनुज महतो ने जो फूलप्रूफ योजना बनाई थी, वह फेल हो गई और आरोपी कानून के मजबूत फंदों से बच नहीं सके. वह असल ठिकाने पहुंच गए. अनुज महतो कथा लिखने तक फरार चल रहा था.

पुलिस ने नर्स पूर्णकला देवी की निशानदेही पर अनुराग हेल्थकेयर सेंटर से मिर्च से भरी डिब्बी, कंडोम का पैकेट, खून से सनी चादर और मूसल बरामद कर लिया था. जांचपड़ताल में यह पता चली थी कि अविनाश और नर्स पूर्णकला देवी के बीच मधुर संबंध थे. ये मधुर संबंध भी अविनाश की हत्या का एक वजह बनी थी.

अविनाश की हत्या के मुख्य आरोपी अनुज महतो, जो फरार चल रहा था, ने पुलिस के दबाव में आ कर 21 जनवरी, 2022 को व्यवहार न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया था, जहां पुलिस ने 48 घंटे की रिमांड पर ले कर उस से हत्या की जानकारी जुटाई और फिर जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पत्रकार अविनाश के सभी आरोपी जेल की सलाखों के पीछे कैद अपनी करनी पर पछता रहे थे

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

क्रूरता की इंतिहा

जमाना कितना भी आगे बढ़ गया हो, देश में कितना ही तकनीकि विकास हो गया हो, लोग चाहे कितने ही शिक्षित बन गए हों पर कुछ लोग अपनी मानसिकता से अंधविश्वासी बने हुए हैं. इसीलिए गलीनुक्कड़ पर दुकान जमाए बैठे नीमहकीम, मुल्लामौलवी और तांत्रिक उन्हें अब भी चंद पैसों के लिए अपने जाल में फंसा ही लेते हैं.

ये लोग अंधविश्वासी लोगों का न केवल शोषण करते हैं बल्कि कभीकभी उन के हाथों ऐसा अपराध करवा देते हैं, जिस की वजह से उन्हें अपनी सारी जिंदगी सलाखों के पीछे काटनी पड़ती है. हाल ही में पंजाब की एक महिला तांत्रिक ने एक महिला को अपने सम्मोहन के जाल में फांस कर ऐसा जघन्य अपराध करा दिया, जिसे सुन कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं.

पंजाब में थाना सदर बटाला के अंतर्गत एक गांव है काला नंगल. 32 वर्षीय बलविंदर सिंह उर्फ बिंदर अपनी 27 वर्षीय पत्नी जसबीर कौर के साथ इसी गांव में रहता था. वैसे बलविंदर सिंह मूलरूप से अमृतसर के गांव अकालगढ़ दपिया का निवासी था. लेकिन अपनी शादी के बाद वह अपनी पत्नी को साथ ले कर अपनी ननिहाल काला नंगल में रहने लगा था.

इस गांव में उस के नाना गुरनाम सिंह, मामा संतोख सिंह और बड़ा मामा जगतार सिंह रहते थे. उस के ननिहाल वाले कोई अमीर आदमी नहीं थे. बस मेहनतमजदूरी कर अपना परिवार चलाने वाले लोग थे. बिंदर भी उन के साथ खेतों में मेहनतमजदूरी करने लगा. बिंदर के मामा के साथ उन की पत्नियां भी खेतों में काम करने जाया करती थीं. ताकि घर में ज्यादा पैसे आए. उन के देखादेखी बिंदर की पत्नी भी उन के साथ काम करने जाती थी.

बिंदर के पड़ोस में पूर्ण सिंह का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी जोगिंदर कौर के अलावा बेटा हरप्रीत सिंह, उस की पत्नी रविंदर कौर, बेटी नीतू अमन और राजिंदर कौर थीं. हालांकि नीतू और राजिंदर कौर दोनों ही शादीशुदा थीं पर वह अधिकतर अपने मायके में ही डेरा जमाए रहती थीं. ये सब लोग उन्हीं के खेतों के साथ वाले खेत में काम करते थे, जिस में बिंदर और उस के मामामामी काम किया करते थे, यह भी कहा जा सकता है कि ये दोनों परिवार साथसाथ काम करते थे.

27 अप्रैल, 2019 की बात है. सुबह के लगभग 11 बजे का समय था. कुछ लोग उस समय खेतों में काम पर लगे हुए थे तो कुछ लोग पेड़ों के नीचे बैठे सुस्ता रहे थे.

बिंदर का मामा संतोख सिंह, उस की पत्नी कंवलजीत कौर, मामा जगतार सिंह और बिंदर की पत्नी जसबीर कौर साथ बैठे इधरउधर की बातें कर रहे थे कि उन के बीच बैठी जसबीर कौर अचानक गायब हो गई.

उन लोगों ने सोचा शायद वह लघुशंका के लिए गई होगी और किसी ने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया. सब अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए थे. शाम के 5 बजे यानी छुट्टी का समय हो गया पर तब तक जसबीर कौर किसी को दिखाई नहीं दी. अब पूरे परिवार को चिंता ने घेर लिया कि आखिर सब के बीच जसबीर कहां गायब हो गई. जसबीर कौर इन दिनों गर्भवती थी. उसे सातवां महीना चल रहा था.

सब ने मिल कर सोचा कि कहीं तबीयत खराब होने के कारण वह घर तो नहीं चली गई. घर पहुंचने पर पता चला कि वह वहां भी नहीं थी. उसे फिर पूरे गांव में ढूंढा गया पर उस का कहीं पता नहीं चला.

जसबीर के मायके और अन्य रिश्तेदारियों में भी उसे तलाशा गया. कुल मिला कर रातभर की खोज के बाद भी जसबीर का कहीं सुराग नहीं लगा. अगली सुबह 28 अप्रैल को सब लोगों ने थाना सदर बटाला जा कर जसबीर कौर के रहस्यमय तरीके से लापता होने की सूचना दी. पुलिस ने जसबीर कौर का फोटो ले कर उस की तलाश शुरू कर दी.

जसबीर कौर के लापता होने की वजह किसी की समझ में नहीं आ रही थी, क्योंकि न तो वो पैसे वाले लोग थे जो कोई फिरौती के लिए उस का अपहरण करता और न ही जसबीर कौर चालू किस्म की औरत थी. वह बेहद शरीफ औरत थी.

सरपंच परजिंदर सिंह और साबका सरपंच नवदीप सिंह भी यही सोचसोच कर हैरान थे. पुलिस और बिंदर के परिजन अपनेअपने तरीके से जसबीर की तलाश में जुटे  थे. इसी दौरान किसी ने सरपंच नवदीप सिंह और बिंदर को बताया कि जसबीर के गायब होने वाले दिन यानी 27 अप्रैल को उसे पूर्ण सिंह की पत्नी जोगिंदर कौर और पड़ोसन राजिंदर कौर के साथ उन के घर की तरफ जाते देखा गया था.

इस बात का पता चलते ही सरपंच नवदीप सिंह कुछ गांव वालों के साथ पूर्ण सिंह के घर पहुंचे और जसबीर के बारे में पूछा.

उस समय घर पर पूर्ण सिंह, उस की पत्नी जोगिंदर कौर, बेटा गुरप्रीत, उस की बहू रविंदर कौर और दोनों बेटियां नीतू व राजिंदर कौर मौजूद थीं. उन्होंने बताया कि जसबीर कौर दोपहर को उन के घर आई तो जरूर थी पर 3 बजे वापस अपने घर चली गई थी. जसबीर कौर का पता लगने की जो आशा दिखाई दे रही थी वह जोगिंदर कौर के बताने से बुझ गई थी.

जसबीर की तलाश फिर से शुरू की गई. पर न जाने क्यों सरपंच नवदीप को ऐसा लगने लगा कि जसबीर के गायब होने का राज पूर्ण सिंह और उस का परिवार जानता है. यही बात बिंदर और उस के दोनों मामाओं को भी खटक रही थी. आखिर 29 अप्रैल, 2019 को शाम को सरपंच नवदीप और परजिंदर  के साथ पूरे गांव ने पूर्ण सिंह के घर पर धावा बोल दिया.

उन्होंने उस के घर के चप्पेचप्पे की तलाशी लेनी शुरू कर दी. उन्हें घर में एक जगह बड़ा संदूक दिखाई दिया. वह संदूक कमरों के पीछे पशुओं के बाड़े के पास पड़ा था. संदूक पर मक्खियां भिनभिना रही थीं और उस में से अजीब सी दुर्गंध आ रही थी.

सरपंच नवदीप ने बढ़ कर जब उस संदूक को खोल कर देखा तो उन के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. संदूक में जसबीर कौर की लाश थी जो जगहजगह से कटी हुई थी. थोड़ी ही देर में यह खबर गांव भर में फैल गई. पूरा गांव पूर्ण सिंह के घर की ओर दौड़ने लगा.

बिंदर ने सरपंच नवदीप सिंह के साथ थाना बटाला जा कर इस की सूचना एसएचओ हरसंदीप सिंह को दी. एसएचओ तुरंत एएसआई बलविंदर सिंह, सितरमान सिंह, लेडी एएसआई अंजू बाला, लेडी हवलदार जसविंदर कौर, बलजीत कौर, हवलदार दिलबाग, सुखजीत सिंह, लखविंदर सिंह, सिपाही जगदीप सिंह और सुखदेव सिंह को साथ ले कर पूर्ण सिंह के घर पहुंच गए.

मौके पर पहुंच कर पुलिस ने सब से पहले जसबीर कौर की लाश अपने कब्जे में ली. इस के बाद पूर्ण सिंह उस की पत्नी जोगिंदर कौर, बेटे की पत्नी रविंदर कौर तथा एक महिला तांत्रिक जगदीशो उर्फ दीशो को गिरफ्तार कर लिया.

इस हत्याकांड से जुड़े अन्य 3 आरोपी नीतू, अमन और राजिंदर कौर फरार होेने में कामयाब हो गए थे. एसएचओ हरसंदीप सिंह ने एसपी बटाला एच.एस. हीर, डीएसपी बलबीर सिंह को भी घटना की सूचना दे दी थी.

कुछ देर में दोनों पुलिस अधिकारी क्राइम टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. मृतका जसबीर कौर का पेट चीरा हुआ था. वह 7 महीने की गर्भवती थी. पुलिस ने जब लाश बरामद की तो उस के पेट से बच्चा गायब था.

इस बारे में पुलिस के साथ आरोपियों से पूछताछ की गई तो प्रथम पूछताछ में ही रविंदर कौर ने अपना अपराध स्वीकर कर लिया. उस ने बताया कि उस के परिवार के लोगों ने मृतका का पेट चीर कर उस के गर्भ से बच्चा निकाला था. इन लोगों ने गर्भवती महिला के पेट को चीर कर गर्भ से बच्चा निकालने की जो कहानी बताई वह वास्तव में रोंगटे खडे़ कर देने वाली निकली.

इस कहानी की मुख्य अभियुक्ता रविंदर कौर की शादी लगभग 12 साल पहले हुई थी. उस के 4 बच्चे थे. रविंदर कौर बचपन से ही आजादखयाल की महत्त्वाकांक्षी औरत थी. वह अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीना चाहती थी. उसे अपने ऊपर किसी भी तरह की बंदिश पसंद नहीं थी.

अपने स्वार्थपूर्ति के लिए रिश्ते बदलना, बनाना उस का मनपसंद खेल था. करीब 6 साल पहले जब उस की आंख पूर्ण सिंह के बेटे हरप्रीत सिंह के साथ लड़ीं तो वह अपने चारों बच्चों सहित अपने पुराने पति को अलविदा कह कर हरप्रीत सिंह की पत्नी बन उस के घर आ गई थी.

अब इसे रविंदर की बदकिस्मती कहें या उस की ढलती उम्र समझें अथवा नए पति हरप्रीत सिंह की शारीरिक कमी. बात कुछ भी रही हो पर हरप्रीत के साथ शादी के 5 साल बीत जाने के बाद भी वह उस के बच्चे की मां नहीं बन पाई थी. बच्चा न जनने के कारण उस की सास जोगिंदर कौर हर समय उसे कोसती रहती और ताने देती थी. जिस कारण रविंदर कौर बड़ी परेशान थी.

एक बार उस की एक खास सहेली ने उसे बताया कि पास के गांव में जगदीशो उर्फ दीशो नाम की महिला तांत्रिक रहती है, जिस के आशीर्वाद से कई बांझ औरतों की गोद हरी हुई है. तुम उस के पास चलो.

सहेली के कहने पर रविंदर कौर तांत्रिक दीशो से मिली. दीशो कुछ टाइम तक अपनी ढोंग विद्या से उस से पैसे ऐंठ कर उल्लू बनाती रही. अंत में उस ने स्पष्ट कह दिया ‘‘रविंदर तुम्हारी कोख पर ऐसे जिन्न का साया है जो अब कभी तुम्हें मां नहीं बनने देगा. हां एक तरीका है अगर तुम उसे कर सको तो मैं तुम्हें बताऊं?’’

‘‘मैं कुछ भी करने को तैयार हूं.’’ रविंदर कौर बोली.

‘‘तो सुनो, अपने अड़ोसपड़ोस में कोई ऐसी औरत तलाश करो जो गर्भवती हो और तुम अभी कुछ दिन अपने घर से बाहर मत निकलना. अपने बारे में यह बात भी फैला दो कि तुम गर्भ से हो. इस के बाद क्या करना है यह मैं तुम्हें बाद में बताऊंगी.’’ दीशो ने सलाह दी.

दीशो के कहने पर रविंदर कौर ने वैसा ही किया. साथ ही यह बात अपनी सास और ननदों को भी बता दी. उन्हीं दिनों जसबीर कौर गर्भवती थी. यह बात रविंदर कौर ने तांत्रिक दीशो को बता दी. दीशो ने फिर एक भयानक योजना बनाई.

घटना वाले दिन रविंदर कौर पड़ोस के खेतों में काम कर रही जसबीर को इशारे से बुला कर वह उसे अपने घर ले गई. उस ने जसबीर को बताया था कि एक बड़ी देवी उन के घर आई हुई है. वह उस से आशीर्वाद ले ले ताकि उस का बच्चा सहीसलामत पैदा हो.

जसबीर नीयत की साफ थी और भोली भी. रविंदर कौर की बातों को वह समझ नहीं पाई और उस के घर चली गई. वहां पहले से ही रविंदर कौर के परिवार के सब लोग मौजूद थे. सो समय व्यर्थ न करते हुए सब ने किसी तरह जसबीर को अपने कब्जे में ले कर दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

दम घुटते ही जसबीर एक ओर लुढ़क गई. वह मर चुकी थी. तभी तांत्रिक दीशो ने अपने साथ लाए सर्जिकल ब्लेड से उस का पेट चीर कर पेट का शिशु बाहर निकाल लिया. शिशु को गोद में ले कर जब देखा तो पता चला कि जसबीर कौर के साथसाथ वह भी मर चुका है. मां और बच्चे की मौत के बाद उन सब के हाथपैर फूल गए.

अब क्या किया जाए? सब के सामने अब यही एक प्रश्न था. काफी सोचविचार के बाद तय किया गया कि शिशु के शव को घर में बनी सीढि़यों के नीचे गाड़ दिया जाए और जसबीर की लाश कमरे के बाहर रखे संदूक में छिपा दिया जाए.

बाद में मौका मिलने पर जसबीर की लाश के टुकड़े कर नहर में बहा देंगे. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं लगेगी कि जसबीर कहां गई. बाद में यह अफवाह फैला देंगे कि वह अपने किसी यार के साथ भाग गई होगी.

एसएचओ हरसंदीप सिंह ने भादंवि की धारा 302, 313, 316, 201 और 120 बी के तहत पूर्ण सिंह, जोगिंदर कौर, रविंदर कौर, गुरप्रीत सिंह, नीतू, अमन और राजिंदर कौर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर चारों अभियुक्तों पूर्ण सिंह, उस की पत्नी जोगिंदर कौर, बेटे की पत्नी रविंदर कौर और महिला तांत्रिक जगदीशो उर्फ दीशो को गिरफ्तार कर पहली मई को अदालत में पेश कर पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड के दौरान इस हत्याकांड की मुख्य आरोपी रविंदर कौर की निशानदेही पर ड्यूटी मजिस्ट्रैट अजय पाल सिंह और नायब तहसीलदार तथा पुलिस के उच्च अधिकारियों व गांव वालों की मौजूदगी में उन के घर में सीढि़यों के नीचे दफनाए गए मृतका जसबीर के शिशु को जमीन खोद कर बाहर निकला. फिर मांबेटे का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवाया गया. अन्य 3 दोषियों की निशानदेही पर घर से खून सने कपडे़ और सर्जिकल ब्लेड बरामद कर लिया गया.

बहरहाल जो 4 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं, उन्हें सीखचों के पीछे से बाहर आने का मौका कब मिलेगा, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. वह बाहर आ पाएंगे या नहीं, किसी को पता नहीं है. अदालत से उन्हें कितनी सजा मिलती है, यह भी अभी भविष्य के गर्भ में है.

लेकिन इतना तय है कि समाज में अंधविश्वास की जड़ें बहुत गहरे तक जमी हुई हैं. ये जड़ें कैसे और कब उखड़ सकेंगी, कोई नहीं जानता.

करोड़ों के लिए सीए की हत्या – भाग 3

उस से कड़ाई से पूछताछ की तो वह खुल गया. उस ने बताया, ‘‘साहब, मैं कुशांक गुप्ता हत्याकांड में जरूर था, लेकिन जिस ने हत्या की, उसे मैं नहीं जानता. कुशांक गुप्ता की हत्या पूर्व ब्लौक प्रमुख ललित कौशिक ने करवाई थी. मैं शूटर को ले कर जरूर गया था. उस शूटर को ललित कौशिक जानता है.’’

अब पुलिस को विश्वास हो गया कि इन दोनों हत्याओं का मास्टरमाइंड भाजपा नेता और पूर्व ब्लौक प्रमुख ललित कौशिक ही है. आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस को श्वेताभ तिवारी हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली.

सीए हत्याकांड का हुआ खुलासा

श्वेताभ तिवारी उत्तर प्रदेश के शहर मुरादाबाद के मंडी चौक मोहल्ले में रहते थे. वहीं पर अभियुक्त विकास शर्मा का आनाजाना था. उस के बाद श्वेताभ तिवारी कांठ रोड पर साईं गार्डन कालोनी में अपना मकान बना कर रहने लगे थे. श्वेताभ तिवारी मुरादाबाद व आसपास के जिलों में बड़े चार्टर्ड एकांउंटेंट के रूप में गिने जाते थे. इन का औफिस दिल्ली रोड पर बंसल कांप्लैक्स में था, जिस में करीब 80 कर्मचारी कार्य करते थे.

श्वेताभ तिवारी चार्टर्ड एकाउंटेंट के अलावा प्रौपर्टी डीलिंग का भी काम करते थे. उन का यह धंधा मुरादाबाद के अलावा नोएडा, गाजियाबाद, दिल्ली, उत्तराखंड, नैनीताल, भवाली में भी था. यहां इन्होंने काफी संपत्ति भी अर्जित कर रखी थी. इन की करीब 40-50 करोड़ रुपए की संपत्ति थी. उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपने साले संदीप ओझा व अपनी पत्नी शालिनी के नाम कर रखी थी. इतनी बड़ी संपत्ति श्वेताभ तिवारी ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से अर्जित की थी.

संदीप ओझा एमडीए कालोनी में लवीना रेस्टोरेंट चलाता है. उस की दोस्ती थाना कोतवाली क्षेत्र के मोहल्ला रेती स्ट्रीट निवासी विकास शर्मा से थी. विकास शर्मा भी प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. उस का अकसर संदीप ओझा के रेस्टोरेंट पर उठनाबैठना था.

संदीप ओझा सरल स्वभाव का था. विकास शर्मा के साथ शराब पार्टी के दौरान जब संदीप ओझा जब नशे में हो जाता तो वह अपने घरपरिवार के बारे में बतियाता रहता था. उस ने विकास शर्मा को बताया कि मेरे जीजा श्वेताभ तिवारी कितने महान हैं, जिन्होंने अपनी आधी संपत्ति उस के नाम कर दी है और आधी उस की बहन शालिनी के नाम कर रखी है. अपने लिए उन्होंने कुछ नहीं रखा है. पीनेपिलाने का खर्च संदीप ओझा ही उठाता था. शाम को यह महफिल रेस्टोरेंट पर जमती थी.

विकास शर्मा का एक दोस्त भाजपा नेता ललित कौशिक भी था. वह दलपतपुर डिलारी थाना मंूढापांडे का रहने वाला था व मंूढापांडे ब्लौक का ब्लौक प्रमुख था जोकि सत्ता की हनक रखता था. ललित कौशिक हेकड़, बदमाश किस्म का व्यक्ति था. भाजपा नेता रामवीर जोकि कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुका है, वही ललित कौशिक को राजनीति में लाया था. ललित कौशिक को मूंढापांडे ब्लौक का ब्लौक प्रमुख बनवाने में उस की अहम भूमिका थी. बाद में ललित कौशिक का भी उस से छत्तीस का आंकड़ा हो गया.

शराब पी कर घर की हकीकत जाहिर कर देता था संदीप

अभियुक्त विकास शर्मा ने ललित कौशिक से बताया कि चार्टर्ड एकाउंटेंट श्वेताभ तिवारी का साला करोड़ों का मालिक है. उस के जीजा ने आधी से ज्यादा संपत्ति संदीप ओझा व आधी संपत्ति अपनी पत्नी शालिनी के नाम कर रखी है, जोकि 40-50 करोड़ रुपए की है.

इतना सुनते ही ललित कौशिक खुशी से उछल पड़ा था. दोनों ने एक योजना पर काम करना शुरू कर दिया. दोनों मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने लगे थे. उन्होंने मिल कर एक खतरनाक योजना बना डाली. योजना के मुताबिक दोनों ने सोचा कि क्यों न चार्टर्ड एकाउंटेंट श्वेताभ तिवारी का मर्डर करवा दिया जाए. जब श्वेताभ तिवारी इस दुनिया में नहीं होगा तो हम लोग इन के सीधेसादे साले संदीप ओझा से संपत्ति औनेपौने दाम पर खरीद लेंगे. नहीं देगा तो जबरदस्ती कब्जा कर लेंगे. यह काम तो हमारे बाएं हाथ का खेल है. सत्ता हमारे पास है तो सारे अफसर हमारे हैं.

यह बैठक ललित कौशिक के मोहल्ला दीनदयाल के औफिस पर की गई थी, जिस में ललित कौशिक, विकास शर्मा, शूटर केशव सरन शर्मा उस का साथी खुशवंत उर्फ भीम भी मौजूद था. इस के बाद इन्होंने चार्टर्ड एकाउंटेंट श्वेताभ तिवारी की रैकी की व उन का चेहरा दिखाने का काम विकास शर्मा को दिया गया था.

विकास शर्मा ने शूटर केशव सरन शर्मा को श्वेताभ तिवारी का चेहरा दिखाया व उन का फोटो भी शूटर को उपलब्ध करा दिया. श्वेताभ तिवारी कब घर से निकलते हैं, औफिस से कब आते हैं, कब जाते हैं. इस की 3-4 बार रैकी करवाई गई, जब शूटर केशव सरन शर्मा को पूरा विश्वास हो गया तो उन्होंने 15 फरवरी, 2023 का दिन उन की हत्या करने का चुना.

योजना के मुताबिक श्वेताभ तिवारी रोजाना की भांति बंसल कांप्लैक्स स्थित अपने औफिस गए. वह रोजाना शाम 7 बजे अपना औफिस छोड़ देते थे. शूटर केशव सरन शर्मा व उस का साथी खुशवंत उर्फ भीम बाइक से बंसल कांप्लैक्स पहुंचे. बाहर खड़े दोनों उन के आने का इंतजार करते रहे. वह 7 बजे औफिस से बाहर नहीं आए तो वे दोनों आसपास चहलकदमी करते रहे.

करीब पौने 9 बजे श्वेताभ तिवारी अपने पार्टनर अखिल अग्रवाल के साथ औफिस से बाहर आए तो उसी समय उन के मोबाइल पर किसी का फोन आया. वह अपनी गाड़ी से उतर कर बात करते हुए बंसल कांप्लैक्स से करीब 50 मीटर दूर तक बात करते हुए आ गए थे. उसी समय शूटर केशव सरन शर्मा ने गोलियां चला कर उन की हत्या कर दी. इस के बाद दोनों बाइक पर बैठ कर भाग गए.

आरोपियों से बरामद हुए कई सबूत

बुद्धि विहार होते हुए सोनकपुर पुल पार कर वे अपनेअपने घरों को चले गए थे. अभियुक्त ललित कौशिक ने अपने साथियों को बताया था कि 12 जनवरी, 2022 को स्पोट्र्स कारोबारी व कुशांक गुप्ता की हत्या उस ने ही करवाई थी, जिसे पुलिस आज तक नहीं खोल पाई थी. उस हत्या में उस के किराएदार 2 भाई जेल की हवा खा रहे हैं.

पुलिस ने 31 मार्च, 2023 को श्वेताभ तिवारी हत्याकांड का खुलासा कर दिया. शूटर केशव सरन शर्मा व उस के साथी विकास शर्मा को पुलिस हिरासत में ले चुकी थी.

इन के पास से एक अदद पिस्टल .32 बोर और 6 जिंदा कारतूस, एक तमंचा .315 बोर, एक यामहा बाइक, एक मोबाइल फोन, एक काला बैग, जोकि हत्या के समय प्रयोग में लाया गया था, बरामद किया. पुलिस ने ललित कौशिक के घर से अवैध असलहा की मैगजीन तलाशी के दौरान बरामद की थी. उस असलहा को बरामद करने के लिए पुलिस ने 12 अप्रैल, 2023 को उसे रिमांड पर लिया था.

फिर उस ने विवेकानंद अस्पताल के पीछे चट्ïटा पुल, रामगंगा नदी की झाडिय़ों से एक पिस्टल बरामद करवाई. जब शूटर केशव सरन शर्मा को पुलिस ने पकड़ा तो उस ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की. उस ने कहा कि जिस दिन श्वेताभ तिवारी की हत्या हुई थी, वह उस दिन देहरादून में एक तारीख पर कोर्ट गया था. उस ने अपना रिजर्वेशन टिकट भी दिखाया.

पुलिस देहरादून से तस्दीक करवाई तो पता चला कि 5 फरवरी को उस की कोर्ट में तारीख तो थी, लेकिन वह वहां पहुंचा नहीं था. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

मुरादाबाद रेंज के डीआईजी शलभ माथुर ने इस बहुचर्चित केस के आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली 5 टीमों को 50 हजार रुपए का ईनाम व प्रशस्ति पत्र देने की घोषणा की.

ठगों ने खोला गृह मंत्रालय का फरजी ट्रेनिंग सेंटर

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 3

अपने ही इलाके बेनीपट्टी के कटैया रोड पर किराए का 5 कमरों का एक मकान ले कर उस में जयश्री हेल्थकेयर के नाम से नर्सिंग होम खोल लिया. भिन्नभिन्न इलाजों के लिए अलगअलग डाक्टरों को नियुक्त कर के नर्सिंग होम शुरू किया था. थोड़ी मेहनत से अविनाश का नर्सिंग होम चल निकला. लेकिन उस के सपनों का शीशमहल धरातल पर ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका. इस की बड़ी वजह थी बेनीपट्टी में कुकुरमुत्तों की तरह नर्सिंग होम्स का पहले से संचालित होना.

दरअसल, दरजनों नर्सिंग होम उस इलाके में पहले से चल रहे थे. अच्छी जगह पर अविनाश का नर्सिंग होम खुल जाने और सब से कम पैसों में इलाज करने से बाकी के नर्सिंग होम्स की कमाई बुरी तरह प्रभावित हुई थी, जिस से सभी नर्सिंग होम संचालकों की नींद हराम हो गई थी.

वे नहीं चाहते थे कि जयश्री हेल्थकेयर चले. फिर क्या था, सभी संचालकों ने मिल कर स्वास्थ्य विभाग में झूठी शिकायत कर के उस का नर्सिंग होम बंद करवा दिया. एक साल के भीतर ही उस का नर्सिंग होम बंद हो गया. यह बात 2019 की है.

ऐसा नहीं था कि धन माफियाओं के डर से हार मान कर अविनाश ने हथियार डाल दिया हो. उस दिन के बाद से अविनाश ने दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली कि स्वास्थ्य के नाम पर नर्सिंग होमों द्वारा गरीबों से मनमाने तरीके से की जा रही वसूली को वह ज्यादा दिनों तक चलने नहीं देगा. उन नर्सिंग होमों को भी वह बंद करवा कर दम लेगा, जिन्होंने उस के सपनों को कुचलामसला था. क्योंकि उसे पता था कि जिले के अधिकांश नर्सिंग होम अपने आर्थिक लाभ के लिए नियमकानून को ताख पर रख कर कैसे संचालित हो रहे हैं.

अवैध नर्सिंग होम्स के खिलाफ अविनाश ने उठाई आवाज

बड़ेबड़े मगरमच्छों से टकराना अविनाश के लिए आसान नहीं था. क्योंकि वह उन की ताकत को देख चुका था. उन्हें कुचलने के लिए एक ऐसे हथियार की उसे जरूरत थी, जो उसे सुरक्षा भी दे सके और दुश्मनों को मीठे जहर के समान धीरेधीरे मार भी सके.

विकास झा अविनाश का सब से अच्छा दोस्त भी था और हमदर्द भी. उस के सीने में सुलग रही आग को वह अच्छी तरह जानता था. बीएनएन न्यूज पोर्टल नाम से वह एक न्यूज चैनल भी चलाता था. शार्प दिमाग वाले अविनाश के मन में आया कि दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए क्यों न पत्रकारिता को अपना ले. फिर उस ने विकास से बात कर के बीएनएन न्यूज पोर्टल जौइन कर लिया.

पत्रकारिता का चोला ओढ़ने के बाद अविनाश बेहद ताकतवर बन गया था. खाकी वरदी से ले कर खद्दर वालों के बीच उस ने एक अच्छा मुकाम हासिल कर लिया था. धीरेधीरे वह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था. अपने विरोधियों और दुश्मनों को धूल चटाने के लिए वह परिपक्व हो चुका था. उस के दुश्मनों की लिस्ट में बेनीपट्टी के 2 नर्सिंग होम अनन्या नर्सिंग होम के संचालक डा. संजय और अनुराग हेल्थकेयर सेंटर के मालिक डा. अनुज महतो थे.

2019 के अगस्त महीने में अविनाश ने आरटीआई के माध्यम से दरजन भर नर्सिंग होम्स से सूचना मांगी थी, जिन के नाम अलजीना हेल्थकेयर, शिवा पाली क्लीनिक, सुदामा हेल्थेयर, सोनाली हेल्थकेयर, मां जानकी सेवा सदन, आराधना हेल्थ ऐंड डेंटल केयर क्लिनिक, जय मां काली सेवा सदन, अंशु हेल्थकेयर सेंटर, सानवी हौस्पिटल, अनन्या नर्सिंग होम, अनुराग हेल्थकेयर सेंटर और आर.एस. मेमोरियल हौस्पिटल थे.

अविनाश के इस काम से सभी नर्सिंग होम के संचालकों की भौहें तन गईं कि इस की इतनी हिम्मत कि हमें ही आंखें दिखाने लगा. उसे पता नहीं है किस से टकराने की कोशिश कर रहा है. बात यहीं खत्म नहीं हुई थी. इन धन माफियाओं की गीदड़भभकी के आगे अविनाश न झुका और न ही डरा. बल्कि इन से टक्कर लेने के लिए वह डट कर खड़ा हो गया था.

काररवाई से तिलमिला गए नर्सिंग होम मालिक

अविनाश द्वारा डाली गई आरटीआई का  किसी भी नर्सिंग होम के संचालकों ने उत्तर नहीं दिया तो उस ने लोक जन शिकायत के माध्यम से इस की शिकायत ऊपर के अधिकारियों तक पहुंचा दी. अविनाश की शिकायत पर स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उपर्युक्त नर्सिंग होमों की जांच की तो उन में से कई नर्सिंग होम स्वास्थ्य विभाग के मानक पर खरे नहीं उतरे. अंतत: उन्हें स्वास्थ्य विभाग के कोप का भाजन पड़ा और उन पर ताला लगा दिया गया.

अविनाश ने पानी में रह कर मगरमच्छों से दुश्मनी मोल ले ली थी. विरोधियों की कमर तोड़ने के लिए अविनाश ने जो तीर छोड़ा था, वह ठीक उस के निशाने पर जा कर लगा था. अविनाश के इस काम से खफा चल रहे सभी नर्सिंग होम संचालक आपस में एकजुट हो गए और मिल कर अविनाश को सबक सिखाने की तैयारी में जुट गए थे. इसी कड़ी में अनन्या नर्सिंग होम के संचालक डा. संतोष एक दिन अविनाश के घर जा पहुंचे.

इत्तफाक से उन की मुलाकात अविनाश के बडे़ भाई त्रिलोकीनाथ झा उर्फ चंद्रशेखर से हुई. उस समय अविनाश घर पर नहीं था, कहीं गया हुआ था.

त्रिलोकीनाथ को समझाते हुए डा. संतोष ने कहा, ‘‘तुम अपने भाई अविनाश को समझाओ कि वह जो कर रहा है, उसे तुरंत बंद कर दे. वरना जानते ही हो आए दिन सड़कों पर तमाम एक्सीडेंट होते रहते हैं. वह भी किसी दुर्घटना का शिकार हो कर कहीं सड़क किनारे पड़ा मिलेगा. फिर मत कहना कि मैं ने समझाया नहीं.’’

डा. संतोष त्रिलोकीनाथ को धमकी दे कर चला गया. त्रिलोकीनाथ जानता था कि बदले की आग में जल रहा अविनाश अपने विरोधियों को धूल चटाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहा है. उस ने संतोष की धमकी को दरकिनार कर दिया और छोटे भाई को कुछ नहीं बताया.

विरोधियों को खाक में मिलाने के लिए पत्रकार अविनाश बहुत आगे निकल चुका था. उस के आरटीआई पर 2 और नर्सिंग होमों अनन्या और अनुराग पर स्वास्थ्य विभाग की काररवाई होनी तय हो गई थी. दोनों नर्सिंग होम भी स्वास्थ्य विभाग के मानकों पर खरे नहीं उतरे थे. अनन्या के मालिक संतोष और अनुराग के मालिक अनुज महतो किसी कीमत पर अपने नर्सिंग होम बंद होने नहीं देना चाहते थे. उन के बंद होने से हाथों से लाखों रुपए की कमाई जा रही थी.

क्रोध की आग में जल रहे अनुज महतो ने अविनाश को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. अपनी इस योजना में उस ने अपने नर्सिंग होम की सब से विश्वासपात्र नर्स पूर्णकला देवी के साथ रोशन कुमार, बिट्टू कुमार पंडित, दीपक कुमार पंडित, पवन कुमार पंडित और मनीष कुमार को मिला लिया.

कहीं से इस की भनक अविनाश को मिल गई थी. 7 नवंबर को फेसबुक पर उस ने बेहद मार्मिक पोस्ट शेयर की, जिस में उस ने अपनी हत्या किए जाने की आशंका जाहिर करते हुए 15 नवंबर को ‘द गेम इज ओवर’ लिखते हुए बड़ा खेल होना पोस्ट किया था.

                                                                                                                                         क्रमशः