करोड़ों के लिए सीए की हत्या – भाग 2

श्वेताभ हत्याकांड से पूर्व 12 जनवरी, 2023 की रात में स्पोट्र्स सामान की दुकान करने वाले कुशांक गुप्ता जब दुकान बंद कर घर जा रहे थे तो अज्ञात हत्यारे ने उन की गोली मार कर हत्या कर दी थी. पुलिस ने मृतक कुशांक गुप्ता के घर वालों के शक के आधार पर उन के 2 किराएदार प्रियांशु गोयल व हिमांशु गोयल को हत्या के इस केस में जेल भेजा था.

प्रियांशु व हिमांशु के घर वालों ने पुलिस से बहुत विनती की कि इस हत्याकांड से इन दोनों का दूरदूर तक कोई वास्ता नहीं है. पुलिस को भी इन दोनों से हत्या का कोई सबूत नहीं मिला था. मृतक के घर वालों ने इन पर शक इस आधार पर किया था कि कुछ दिन पहले किराए को ले कर कुशांक गुप्ता का इन से झगड़ा हुआ था.

प्रियांशु और हिमांशु मूलत: नूरपुर बिजनौर के रहने वाले थे. वे यहां पर पढऩे के लिए आए थे. 3 महीने बाद जब इन दोनों भाइयों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला तो पुलिस ने कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल की. फिर कोर्ट के आदेश पर दोनों भाइयों को रिहा कर दिया गया.

एक जैसे थे दोनों हत्याकांड

13 माह बीतने के बाद भी पुलिस हत्याकांड का खुलासा नहीं कर पा रही थी. श्वेताभ तिवारी हत्याकांड के साथ पुलिस ने इस केस को भी खोलने का प्रयास तेज कर दिया था. क्योंकि इन दोनों मामलों में एक ही तरह से घटना को अंजाम दिया था. दोनों की हत्या करने का तरीका एक जैसा ही था.

पुलिस ने श्वेताभ तिवारी और कुशांक गुप्ता हत्याकांड के सीसीटीवी फुटेज का मिलान किया तो दोनों में समानता थी. दोनों ही केसों में शूटर का हुलिया एक जैसा था. सिद्ध वली स्पोट्र्स सोनकपुर में मृतक कुशांक गुप्ता की एक दुकान है. 2020 में यह दुकान (नाई की दुकान) खाली करवाने का विवाद चल रहा था.

दुकान खाली करने को ले कर तत्कालीन ब्लौक प्रमुख मूंढापांडे और भाजपा नेता ललित कौशिक ने अपने साथियों के साथ हथियार लहराते हुए मृतक कुशांक गुप्ता को धमकाया था. कुशंाक गुप्ता की दुकान पर लगे सीसीटीवी में वह घटना कैद हो गई थी. कैद हुई घटना को कुशांक गुप्ता ने सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया था. जिस कारण तत्कालीन ब्लौक प्रमुख मूंढापांडे ललित कौशिक की वजह से भाजपा की काफी छीछालेदर हुई थी.

दुकान पर आ कर धमकाने की रिपोर्ट मृतक कुशांक गुप्ता ने थाना सिविल लाइंस में करवाई थी, लेकिन सत्ता पक्ष से जुड़ा ललित कौशिक ब्लौक प्रमुख के खिलाफ पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की थी. उधर ब्लौक प्रमुख ललित कौशिक बीजेपी में अपनी छवि खराब होने पर कुशांक गुप्ता से बहुत नाराज था. उस ने प्रण कर लिया कि वह कुशंाक गुप्ता को इस का सबक जरूर सिखाएगा.

फिर उस ने भाड़े के हत्यारे से कुशांक गुप्ता की 12 जनवरी, 2022 को रात 8 बजे हत्या करवा दी. इतना ही नहीं, वह हत्या होने के बाद भी संवदेना प्रकट करने के लिए कुशांक गुप्ता के घर गया था. कुशांक की हत्या से कुछ दिन पहले 2 भाई प्रियांशु और हिमांशु, जोकि कुशांक के किराएदार थे, से किराए को ले कर मारपीट हो गई थी. कुशांक गुप्ता के पिता अशोक गुप्ता ने इन दोनों भाइयों के खिलाफ कुशांक की हत्या करने की रिपोर्ट दोनों भाइयों के खिलाफ दर्ज करवाई थी.

एसपी (सिटी) ने कराई निगरानी

एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया ने मृतक श्वेताभ तिवारी के बंगले साईं गार्डन में आनेजाने वाले लोगों पर विजिलेंस टीम को लगाया जो वहां आनेजाने वाले सभी संदिग्ध लोगों पर नजर रखें. डा. अनूप सिंह ने श्वेताभ तिवारी की पत्नी शालिनी से उन दोनों व्यक्तियों के बारे में जानकारी की तो उस ने बताया, ‘‘ये दोनों व्यक्ति मेरे भाई संदीप ओझा के मिलने वाले हैं. घर पर ये लोग पहली बार आए हैं और बिना मांगे मुझे कानूनी सलाह दे रहे हैं, हमारे परिवार के नजदीकी बने हुए हैं. मुझे भी ये लोग संदिग्ध लगे.’’

पुलिस ने जांच की तो पता चला कि इन में से एक व्यक्ति का नाम ललित कौशिक है, वह मूंढापांडे का पूर्व ब्लौक प्रमुख है, जिसे थाना मंढापांडे पुलिस एक अपहरण व मारपीट के मामले में ढूंढ रही है. उस के साथ आने वाले दूसरे व्यक्ति का नाम विकास शर्मा था. पुलिस ने उसे उस के मुरादाबाद शहर के रेती स्ट्रीट स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया.पुलिस ने उस से पूछताछ की तो विकास शर्मा ने बताया कि मृतक श्वेताभ तिवारी के साले संदीप ओझा से उस की दोस्ती है. उस के साथ उठनाबैठना खानापीना है.

उधर पुलिस की एक टीम पूर्व ब्लौक प्रमुख ललित कौशिक की तलाश में लगी थी. 25 मार्च, 2023 को प्रदेश के मंत्री जितिन प्रसाद सर्किट हाउस में कार्यकर्ताओं की मीटिंग ले रहे थे. उस मीटिंग में पूर्व ब्लौक प्रमुख ललित कौशिक भी सम्मिलित हुआ था.

सर्किट हाउस से किया गिरफ्तार

पुलिस ने ललित कौशिक को सर्किट हाउस में चल रही मीटिंग में से किसी बहाने से बुला लिया. फिर उसे गिरफ्तार कर गाड़ी में बैठा कर पहले पुलिस लाइन ले जाया गया. वहां उस से श्वेताभ तिवारी की हत्या के संबंध में पूछताछ की. उस ने उस की हत्या की कहानी बयां कर दी. पुलिस ने उसी रात ललित कौशिक के घर की तलाशी ली तो वहां से 8 लाख रुपए और अवैध पिस्टल की मैगजीन बरामद की थी. पुलिस ने विकास शर्मा नाम के जिस युवक को उठाया था, वह खुद को निर्दोष बता रहा था. कह रहा था कि श्वेताभ तिवारी के साले संदीप ओझा से उस की दोस्ती है.

पुलिस ने उस का फोन ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो पुलिस को कुछ संदिग्ध फोन नंबर मिले. जिस दिन श्वेताभ तिवारी की हत्या हुई थी, विकास शर्मा की लोकेशन एपेक्स अस्पताल पर थी. उस ने वहां से कई बार ललित कौशिक से बात की थी. पुलिस ने उस से उस बातचीत के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘मैं ने उन से कहा था सीए सर को किसी ने गोली मार दी है. उस के बाद मैं ने दूसरी बार बताया कि श्वेताभ तिवारी की मृत्यु हो गई है.’’

पुलिस ने उस से पूछा कि घटना के तुरंत बाद तुम अस्पताल क्यों पहुंचे तो वह पुलिस के सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया. पुलिस को कुछ संदिग्ध नंबर भी मिले. पुलिस ने ललित कौशिक के फोन को भी खंगाला. उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस से कई बार बातचीत का ब्यौरा पुलिस को मिला. उक्त नंबर विकास शर्मा के मोबाइल में भी था.

जांच की तो वह फोन नंबर भोजपुर (मुरादाबाद) निवासी खुशवंत उर्फ भीम का था. वह वर्तमान में हरथला (मुरादाबाद) में रह रहा था. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

हैवानियत की हद पार : एक डाक्टर ने इंसानियत पर किया वार

याद है न बदन में सिरहन पैदा कर देने वाला निठारी कांड? साल था 2006 और जगह थी नोएडा का निठारी गांव. वहां की कोठी नंबर डी-5 दूसरी आम कोठियों की तरह ही थी. लेकिन जब इस कोठी के आसपास से नरकंकाल मिलने शुरू हुए, तो पूरा देश सकते में आ गया था. सीबीआई को जांच के दौरान इनसानी हड्डियों के हिस्से और 40 ऐसे पैकेट मिले थे, जिन में इनसानी अंगों को भर कर जमीन में गाड़ दिया था या पास के नाले में फेंक दिया था.

इस के बाद कोठी के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उस के नौकर सुरेंद्र कोली को पुलिस ने धर दबोचा. इस तरह से निठारी के कांड का काला सच सब के सामने आ गया. सुरेंद्र कोली के मुताबिक उस का मालिक (मोनिंदर सिंह पंढेर) कई वेश्याएं घर पर लाया करता था. उन्हें आतेजाते देखते हुए उस के मन में सैक्स और इनसानी शरीर को काटने की प्रबल इच्छा पैदा होने लगी.

बाद में खुलासा हुआ कि सुरेंद्र कोली अपने शिकारों को पहले फंसाता था, फिर पीड़ित को बेहोश कर देता था. उस के बाद रेप की कोशिश करता था. आखिर में पीड़ित को मार कर उस के शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर देता था, फिर उन्हें जमीन में गाड़ देता था या नाले में बहा देता था.

पहले तो सीबीआई ने मई, 2007 में मोनिंदर सिंह पंढेर को अपनी चार्जशीट में एक पीड़िता रिम्पा हलदर के अपहरण, बलात्कार और हत्या के मामले में आरोपमुक्त कर दिया था, पर इस के 2 महीने बाद अदालत की फटकार के बाद सीबीआई ने मोनिंदर सिंह पंढेर को इस मामले में सहआरोपी बनाया था.

तब इस मामले में इनसानी अंगों की तस्करी का मुद्दा भी उछला था. अब फिर एक दिल दहला देने वाला कांड सामने आया है और इसे अंजाम देने वाला कोई कसाई नहीं, बल्कि एक डाक्टर है जिस पर दूसरों की जान बचाने की जिम्मेदारी होती है.

इस डाक्टर का नाम देवेंद्र शर्मा है, पर है पूरा सीरियल किलर. उस ने कबूल किया है कि साल 2002 से 2004 के बीच दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में अब तक वह 100 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है, जिन में से ज्यादातर को उस ने उत्तर प्रदेश की एक नहर में मौजूद मगरमच्छों का खाना बना दिया.

गुरुग्राम किडनी कांड में शामिल अलीगढ़ के डाक्टर देवेंद्र शर्मा को हाल ही में दिल्ली से पकड़ा गया गया था. इस से पहले वह किडनी केस में पिछले 16 साल से सजा काट रहा था और अब परोल पर बाहर था. मियाद पूरी होने के बाद उसे वापस जेल जाना था, लेकिन वह अंडरग्राउंड हो गया था. पर अब पकड़े जाने के बाद उस की काली करतूतों की परतें खुल रही हैं.

ऐसे बना अपराधी…

कोई डाक्टर अपराधी कैसे बन गया? यह सवाल अब हर किसी के मन में उठ रहा है. जानकारी हासिल हुई है कि एक निवेश में धोखे के बाद देवेंद्र शर्मा ने जुर्म का रास्ता चुना था, फिर वह डाक्टरी के साथसाथ किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट, फर्जी गैस एजेंसी भी चलाने लगा था. इतना ही नहीं वह चोरी की गाड़ियां भी बेचता था. अपनी फर्जी गैस एजेंसी के लिए जब उसे सिलेंडर चाहिए होते थे, तब वह गैस डिलीवरी वाले ट्रक लूट लेता था और उस के ड्राइवर को मार देता था.

यह भी खुलासा हुआ है कि दिल्ली से उत्तर प्रदेश जाने के लिए डाक्टर देवेंद्र शर्मा के गैंग के लोग जिस टैक्सी को बुक करते थे बाद में उसे ही लूट लेते थे. हाल ही में पकड़े जाने के बाद डाक्टर देवेंद्र शर्मा ने बताया कि उस ने ज्यादातर लाशों को उत्तर प्रदेश के कासगंज इलाके की हजारा नहर में फेंक दिया था. इस नहर में बड़ी तादाद में मगरमच्छ रहते हैं.

डाक्टर देवेंद्र शर्मा को बुधवार, 29 जुलाई को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था. वह कोई एमबीबीएस डाक्टर नहीं था, बल्कि साल 1984 में उस ने बिहार के सिवान से बैचलर औफ आयुर्वेद मैडिसिन ऐंड सर्जरी की डिगरी पूरी कर के राजस्थान में क्लिनिक खोला था, फिर साल 1994 में उस ने गैस एजेंसी के लिए एक कंपनी में 11 लाख रुपए लगाए थे, लेकिन वह कंपनी अचानक गायब हो गई. इस नुकसान के बाद उस ने साल 1995 में एक फर्जी गैस एजेंसी खोल ली थी.

बनाया अपना गैंग…

इस के बाद डाक्टर देवेंद्र शर्मा ने एक गैंग बनाया जो एलपीजी सिलेंडर ले कर जाते ट्रकों को लूट लेता था. इस के लिए वे लोग ड्राइवर को मार देते थे और ट्रक को भी कहीं ठिकाने लगा देते थे. इस दौरान उस ने अपने गैंग के साथ मिल कर तकरीबन 24 लोगों का खून किया था. फिर देवेंद्र शर्मा किडनी ट्रांसप्लांट गिरोह में शामिल हो गया था और उस ने 5 लाख से 7 लाख रुपए प्रति ट्रांसप्लांट के हिसाब से 125 ट्रांसप्लांट करवाए थे.

इतना ही नहीं, ये लोग कैब ड्राइवरों को मार कर उन की कैब लूट लेते थे और ड्राइवर की लाश को नहर में फेंक देते थे. बाद में कैब को सैकंडहैंड कार बता कर बेच दिया जाता था. इस के बाद साल 2004 में डाक्टर देवेंद्र शर्मा पकड़ा गया था और 16 साल जयपुर जेल में रहा था, फिर अच्छे बरताव के लिए उसे जनवरी, 2020 को 20 दिन की परोल मिली थी, लेकिन वह भाग कर अंडरग्राउंड हो गया था.

अंधविश्वास ने ली पिता पुत्र की जान

अंधविश्वास हमारे समाज में अमरवेल की तरह फल फूल रहा है.और इसको खाद पानी देने का काम धर्म के ठेकेदार पंडो , पुजारियों के द्वारा बखूबी किया जा रहा है. समाज में फैले तरह-तरह के अंधविश्वास लोगों की जेब से  रुपए पैसे तो ऐंठते  ही हैं, साथ ही जरा सी असावधानी की वजह से जान माल का नुक़सान भी कर रहे हैं.अंधविश्वास के शिकार दलित, पिछड़ों के साथ पढ़े लिखे  नौकरी पेशा लोग भी हो रहे हैं.

एक ऐसा ही ताजा मामला मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में देखने को मिला है. लोगों को न्याय देने जज की कुर्सी पर बैठने वाले एक अंधविश्वासी शख्स की नासमझी ने अपने साथ अपने पुत्र की जान भी गंवा दी. बताया जा रहा है कि  जज के एक महिला मित्र से संबंधों की बजह से परिवार में कलह चल रही थी, जिससे छुटकारा पाने जज साहब तंत्र मंत्र के चक्कर में पड़ गये.

बैतूल  जिला न्यायालय में पदस्थ अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश  महेन्द्र कुमार त्रिपाठी  और इसके दो बेटे अभियान राज त्रिपाठी, और  छोटा बेटा आशीष राज त्रिपाठी ने  20 जुलाई 2020 को रात्रि 10.30 बजे के लगभग एक साथ बैठकर डायनिंग टेबल पर  खाना खाया. कुछ समय बाद अचानक वे तीनों उल्टीयां करने लगे . जिस भोजन में परोसी ग‌ई रोटियों की बजह  से तीनों की तबीयत खराब हुई ,वह  जज साहब की पत्नी श्रीमती भाग्य त्रिपाठी ने तैयार की थी.

जज साहब की पत्नी ने दोपहर की बची  रोटियां खाई थी, इस कारण उन्हें कुछ नहीं हुआ.  21  एवं 22 जुलाई  तक जज साहब और इनके बेटो का इलाज न्यायाधीश आवास परिसर बैतूल में ही  चलता रहा. 23 जुलाई को जिला चिकित्सालय के चिकित्सक डॉ. आनद मालवीय की सलाह पर  जज साहब व इनके दोनो बेटों को पाढर अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया.

छोटे बेटे आशीष राज त्रिपाठी की तबीयत में सुधार होने के कारण वह घर पर ही रहे .25 जुलाई को शाम के समय जज साहब एवं इनके बड़े बेटे अभियान राज त्रिपाठी की तबीयत अचानक ज्यादा खराब होने से  इन्हे नागपुर के प्रतिष्ठित एलेक्सिसी अस्पताल ले जाया गया . जहां अस्पताल के चिकित्सको ने अभियान राज त्रिपाठी को मृत घोषित किया. और जज श्री महेन्द्र त्रिपाठी जी का ईलाज चलता रह . 26 जुलाई को प्रातः 04.30 बजे के लगभग जज महेन्द्र त्रिपाठी  की भी मौत हो गई.

दोनो पिता पुत्र की मृत्यु के बाद नागपुर के  मानकापुर पुलिस थाने में एफआईआर  जज के छोटे बेटे आशीष राज त्रिपाठी ने दर्ज कराते हुए पुलिस को बताया कि नागपुर आते समय उसके पिता महेन्द्र त्रिपाठी ने रास्ते में उसे बताया था कि उनकी किसी परिचित महिला संध्या सिह ने उन्हें  किसी पंडित से पूजा पाठ करवा कर  गेहूं का आटा दिया था और कहा था कि आटा घर के आटे में मिलाकर खाना बनाना . उसी आटे से तैयार रोटी खाने के बाद फुड पाईजनिग से उसके पापा और भाई की मौत हो गई.

न्यायिक क्षेत्र का मामला होने से पुलिस अधीक्षक द्वारा सम्पूर्ण जांच पड़ताल हेतु विशेष कार्य दल का गठन किया गया . इसी संदर्भ में जज महेन्द्र कुमार त्रिपाठी के घर से 20 जुलाई को प्रयुक्त शेष आटे के पैकेट को जप्त कर जांज के लिए लैब भेजा गया. लैब से आई रिपोर्ट में आटे में जहर मिले होने की पुष्टि हुई. पुलिस की जांच में जो कहानी सामने आई वह चौकाने वाली थी.

मूलतः रीवा निवासी श्रीमति संध्या सिंह विगत कई वर्षों से छिन्दवाडा में रहकर एन.जी.ओ चलाती है . महिलाओं को कानूनी सलाह देने जैसे कार्यक्रम आयोजित करने की वजह से जज महेन्द्र त्रिपाठी से नजदीकियां हो गई थी . चूंकि जज बैतूल में अकेले रहते थे, तो अक्सर दोनों की मेल मुलाकात होती रहती थी संध्या जज साहब से रूपए पैसों की मांग भी करने लगी थी.

लाक डाउन की बजह से जज साहब की पत्नी व वेटों के बैतूल आ जाने के कारण से संध्या विगत चार माह से जज  से नहीं मिल पा रही थी. परेशान होकर  उसने छिन्दवाड़ा में अपने ड्रायवर संजू , संजू के फूफा देवीलाल  चन्द्रवशी  और बाबा रामदयाल के साथ मिलकर एक योजना बनाई.   योजना के अनुसार श्रीमति संध्या सिंह ने बैतूल आकर  जज साहब से उनके घर से आटा मंगवाया और वही आटा पन्नी में भरकर बाबा उर्फ रामदयाल को दिया गया .

दो दिन  बाद बाबा उर्फ रामदयाल ने आटे में जहर मिला कर संध्या को दे दिया. 20 जुलाई को  सर्किट हाउस बैतूल में संध्या और जज ने एकांत में मुलाकात की.  संध्या सिंह ने बाबा की पूजा वाला जहरीला आटा जज साहब को देते हुए कहा-

“बाबा ने इस‌ आटे को तंत्र मंत्र से सिद्ध किया है, इसकी रोटी खाने से सारी परेशानियां दूर हो जायेगी और हमारा मिलना जुलना आसान हो जाएगा.”

घर आकर  इसी तंत्र मंत्र वाले आटे को जज साहब ने घर में रखे आटे के डिब्बे में मिला दिया.  इसी आटे की रोटी खाने के बाद जज साहब और इनके दोनो बेटो की तबीयत खराब हुई और अंत में जज  महेन्द्र कुमार त्रिपाठी और इनके बड़े बेटे श्री अभियान राज त्रिपाठी की मौत हो गई .

एक पढ़ें लिखे उच्च पद पर काम करने वाले जज की यह कहानी बताती है कि हम किस तरह आंख मूंदकर तंत्र मंत्र और चमत्कारों पर विश्वास करने लगते हैं. अपनी गर्लफ्रेंड के प्यार में अंधे कानूनी पढाई वाले जज ने कैसे विश्वास कर लिया कि बाबा द्वारा दिए गए इस आटे के टोटके से  घर की परेशानियां दूर हो जायेगी.

आज भी विज्ञान के युग में भले ही हम आधुनिक तकनीक का उपयोग कर अपने आपको माडर्न समझने लगे हैं, परन्तु हमारे समाज में वैज्ञानिक सोच विकसित नहीं हुई है. जब हमारे देश के वैज्ञानिक चंद्रयान की सफलता के लिए पूजा पाठ और हवन करते हो, देश के रक्षा मंत्री राफेल विमान की नारियल और नींबू से पूजा करते हों,तो फिर समाज के दूसरे वर्ग से क्या उम्मीद की जा सकती हैं.

अंधविश्वास का आलम ये है रोज सोशल मीडिया पर देवी देवताओं की पोस्ट वाले मेसैज 5 ग्रुप में फारवर्ड करने की अपील पर हम बिना सोचे समझे भेड़ चाल चलने लगते हैं. ज्ञान विज्ञान और समाज को जागरूक करने  वाली पत्रिकाओं को पढ़ने की रूचि लोगों की खत्म होती जा रही है.

ऐसे में दिल्ली प्रेस की पत्रिकाएं सरिता, सरस सलिल, मुक्ता, गृहशोभा समाज में फैले पाखंड और अंधविश्वास के प्रति समाज को जागरूक करने का काम कर रही हैं. इसी तरह सत्यकथा और मनोहर कहानियां जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित अपराध कथाओं में यह सीख प्रमुखता से दी जाती है कि अपराध का अंजाम सुखद नहीं होता. नशा, अंधविश्वास, धार्मिक आडंबर और अपराध पैसे से तंगहाली लाकर हमें  बर्बाद की ओर ले जाते हैं.

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 2

हत्या के विरोध में लोगों ने किया आंदोलन

बहरहाल, पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश झा की निर्मम हत्या के विरोध में विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का शांतिपूर्ण आंदोलन चरम पर था. उस के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग जोर पकड़ रही थी. उस से शहर की शांति व्यवस्था उथलपुथल हो चुकी थी.

इस बीच, अविनाश का पोस्टमार्टम कर के उस का पार्थिव शरीर घर वालों को सौंप दिया गया था, लेकिन घर वालों और राजनीतिक दलों के नेताओं ने हत्यारों के गिरफ्तार होने तक उस का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया.

एसपी डा. सत्यप्रकाश जानते थे कि जब तक अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा, शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जाएगी. उन्होंने एसडीपीओ (बेनीपट्टी) अरुण कुमार सिंह के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल अविनाश के घर उन्हें समझाने के लिए भेजा कि अविनाश के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा, उस का अंतिम संस्कार कर दें.

एसपी सत्यप्रकाश के आश्वासन पर मृतक के घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. इधर अविनाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. रिपोर्ट में उस की मौत का कारण सिर में गहरी चोट लगना बताया गया था. साथ ही मौत 72 से 80 घंटे पहले होनी बताई गई.

यानी जिस दिन अविनाश रहस्यमय ढंग से गायब हुआ था, उसी दिन उस की हत्या हो चुकी थी. पुलिस ने अविनाश के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहन अध्ययन किया. काल डिटेल्स में रात के 9 बज कर 58 मिनट पर आखिरी बार किसी को काल आई थी.

जब पुलिस ने अविनाश के न्यूज पोर्टल औफिस में लगे सीसीटीवी कैमरे को चैक किया तो उस समय भी फुटेज में यही समय हो रहा था जब काल रिसीव करते हुए अविनाश बाहर निकल रहा था. उस के बाद वह घर नहीं लौटा था.

बहरहाल, पुलिस ने उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर पूर्णकला देवी के नाम का निकला. पुलिस ने जब और गहराई से जांच की तो पता चला कि अनुराग हेल्थ सेंटर में काम करने वाली नर्स पूर्णकला देवी और अविनाश के बीच पिछले 3 महीने से मधुर संबंध कायम थे. पुलिस की जांच प्रेम प्रसंग की ओर मुड़ गई थी.

नर्स से मिली महत्त्वपूर्ण जानकारी

पुलिस की जांच तभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचती, जब पूर्णकला देवी पुलिस के हाथ लगती. इधर पुलिस पर हत्यारों को गिरफ्तार करने का लगातार दबाव बना हुआ था. अखबारों ने अविनाश हत्याकांड की खबरें छापछाप कर पुलिस की नाक में दम कर दिया था. चारों ओर पुलिस की आलोचना हो रही थी. घटना का सही ढंग से खुलासा करना पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी. पूर्णकला देवी के गिरफ्तार होने पर ही निर्मम हत्याकांड का खुलासा हो सकता था.

14 नवंबर, 2021 को अरेर थानाक्षेत्र के अतरौली की रहने वाली पूर्णकला देवी को पुलिस ने दबिश दे कर उस के घर से गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए बेनीपट्टी थाने ले आई. एसडीपीओ अरुण कुमार सिंह और थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू की.

नर्स पूर्णकला देवी कोई पेशेवर अपराधी तो थी नहीं, जो घंटों पुलिस को यहांवहां भटकाती. पुलिस के सवालों के सामने उस ने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म स्वीकार कर बता दिया कि पत्रकार अविनाश हत्याकांड में उस के अलावा कई और लोग शामिल थे. उसी दिन पुलिस ने पूर्णकला देवी की निशानदेही पर बेनीपट्टी के रोशन कुमार, बिट्टू कुमार पंडित, दीपक कुमार पंडित, पवन कुमार पंडित और मनीष कुमार को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया और थाने ले आई.

पांचों आरोपियों से कड़ाई से हुई पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म कुबूल लिया. उन्होंने अविनाश हत्याकांड के मास्टरमाइंड अनुराग हेल्थकेयर सेंटर के संचालक डा. अनुज महतो को बताया था, जिस ने अविनाश की ब्लैकमेलिंग से त्रस्त हो कर घटना को अंजाम दिया था. घटना के बाद से ही डा. अनुज महतो फरार चल रहा था.

नीतीश कुमार ने जारी किया फरमान

खैर, अविनाश हत्याकांड की गूंज प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कानों तक पहुंच चुकी थी. उन्होंने प्रदेश के पुलिस प्रमुख को अविनाश के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे भेजने का फरमान जारी कर दिया था. पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश झा हत्याकांड हाईप्रोफाइल मर्डर कांड बन चुका था, इसीलिए पुलिस की आंखों से नींद उड़ी हुई थी.

पुलिस ने आननफानन में उसी दिन शाम को पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता आयोजित कर अविनाश के हत्यारों को पेश किया और घटना की असल वजहों से रूबरू कराया. उस के बाद सभी आरोपियों को जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

25 वर्षीय अविनाश उर्फ बुद्धिनाथ झा मूलरूप से बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी थानाक्षेत्र के लोहिया चौक का निवासी था. अंबिकेश झा के 2 बेटों में वह छोटा था.

सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले अंबिकेश किसान थे. खेतीबाड़ी से इतनी आमदनी कर लेते थे कि परिवार का भरणपोषण करने के बाद कुछ बचा लेते थे. बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए पानी की तरह रुपए बहाते थे. ऐसा नहीं था कि उन के दोनों बेटे अपने सामान्य परिस्थितियों को न समझते रहे हों या पैसों की कीमत न समझते हों, बल्कि वे गरीबी की भट्ठी में तप कर कुंदन बन गए थे.

दोनों बेटे त्रिलोकीनाथ और अविनाश पढ़लिख कर योग्य इंसान बनाना चाहते थे. इस के लिए दोनों ही हाड़तोड़ मेहनत करते थे. जिस तरह दोनों हाथों की सभी अंगुलियां एक समान नहीं हैं, उसी तरह अंबिकेश के दोनों बेटे एक समान नहीं थे.

अविनाश घर में सब से छोटा था, इसलिए सब का लाडला था. मांबाप से ले कर भाईबहन सभी उस पर अपना प्यार लुटाते थे. इसलिए वह थोड़ा जिद्दी भी था. जिस भी काम को करने की जिद वह ठान लेता था, उसे पूरा कर के ही मानता था. चाहे इस के लिए उसे बड़ी से बड़ी कुरबानी क्यों न देनी पड़े. वह पीछे नहीं हटता था.

अविनाश का नर्सिंग होम करा दिया बंद

बात साल 2018 की है. ग्रैजुएशन पूरा कर चुके अविनाश का सपना था नर्सिंगहोम खोल कर वह गरीबों की सेवा करे. इतनी ही छोटी उम्र में उस की सोच महासागर से भी गहरी थी क्योंकि वह गरीबी अपनी आंखों से देख चुका था. इसलिए वह नहीं चाहता था कि कोई भी गरीब पैसों के अभाव में इलाज के लिए दम तोड़े.

                                                                                                                                           क्रमशः

साजिश जो छिप न सकी

पंजाब के जिला संगरूर के गांव लखोवाल निवासी शेर सिंह पहली अक्तूबर, 2017 को थाना भवानीगढ़ के अंतर्गत पड़ने वाली पुलिस चौकी पहुंचे. उन्होंने चौकीइंचार्ज एएसआई गुरमीत सिंह को एक लिखित तहरीर देते हुए कहा कि मैं कल सुबह अपने बेटे यादविंदर के साथ अपने खेतों पर काम करने के लिए गया था. खेतों के नजदीक ही एक प्लाईवुड फैक्ट्री थी. कुछ देर बाद उसी फैक्ट्री में काम करने वाले शिवकुमार और राम नरेश हमारे पास खेत पर आ गए.

शिवकुमार और रामनरेश दिन भर खेतों पर साथ ही रहे. रात करीब 9 बजे मैं ने और मेरे बेटे ने उन दोनों को अपनी मोटरसाइकिलों से प्लाईवुड फैक्ट्री छोड़ दिया. उन्हें छोड़ कर मैं अपने बेटे के साथ घर की ओर लौट रहा था तभी कोई ट्रक बेटे की मोटरसाइकिल में पीछे से टक्कर मार कर भाग गया. उस समय रात के यही कोई साढ़े 9 बज रहे थे, इसलिए मैं ट्रक का नंबर भी नहीं देख पाया.

यादविंदर खून से लथपथ सड़क पर पड़ा तड़पने लगा. फोन करने के बाद जब अस्पताल की एंबुलेंस वहां पहुंची तो उसे नाभा अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. यादविंदर के पास उस समय एक मोबाइल फोन था. वह मौके पर ही कहीं खो गया. शेर सिंह ने उस अज्ञात ट्रक चालक के खिलाफ कानूनी काररवाई किए जाने की मांग की.

शेर सिंह की इस सूचना पर चौकीइंचार्ज गुरमीत सिंह ने भादंसं की धारा 279, 304ए के तहत अज्ञात ट्रक चालक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी. पुलिस ने काफी कोशिश की, लेकिन घटना के 3-4 महीने बाद भी वह उस ट्रक चालक को नहीं ढूंढ पाई. लिहाजा इस केस की जांच वहां से सीआईए के इंचार्ज इंसपेक्टर विजय कुमार को ट्रांसफर कर दी गई.

शुरूशुरू में इंसपेक्टर विजय कुमार को भी इस केस में कोई सफलता मिलती नजर नहीं आई, पर उन्हें मामले की तह तक तो पहुंचना ही था सो उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. साथ ही अपने खास मुखबिरों को इस काम पर लगाने के बाद मृतक के पिता शेर सिंह से भी पूछताछ की. इस बार शेर सिंह ने बताया कि उन्हें संदेह है कि उस के बेटे यादविंदर की मृत्यु दुर्घटना में नहीं हुई थी, बल्कि उस की हत्या की गई थी.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ इंसपेक्टर विजय कुमार ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, ‘‘आप ने तो अपने बयानों में लिखवाया था कि उस की मौत एक्सीडेंट से हुई थी. आप के बयानों के अनुसार एक अंजान ट्रक चालक के खिलाफ रिपोर्ट भी लिखी गई थी. अगर ऐसी बात थी तो आप ने यह सब पहले क्यों नहीं बताया था. इस प्रकार गलतबयानी कर के आप ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की है.’’

‘‘साहबजी, दरअसल किसी ने मुझे उस रात खबर दी थी कि यादविंदर का एक्सीडेंट हो गया है और उस की लाश सड़क पर पड़ी है. खबर सुनते ही मैं मौके पर पहुंचा तो बेटा तड़प रहा था. वहीं उस की मोटरसाइकिल भी पड़ी थी. फोन कर के मैं ने एंबुलेंस बुलाई और उसे नाभा के अस्पताल ले गया था.

‘‘पहली अक्तूबर को मैं ने पुलिस चौकी के एसआई गुरमीत सिंह को जो बयान दिया था, वह किसी के कहने पर दिया था, जबकि सच्चाई यह है कि मैं ने ट्रक वाले को नहीं देखा था.

‘‘सच्चाई यह है कि उस समय बेटे की लाश देख कर मैं अपना होश खो बैठा था. लोग जैसा कह रहे थे, मैं वैसा ही कर रहा था. अब मैं पूरी तरह ठीक हूं. मुझे उम्मीद है कि मेरे बेटे की किसी ने हत्या कर मामले को एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की है.’’

शेर सिंह की बात सुनने के बाद इंसपेक्टर विजय कुमार ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. जांच की शुरुआत उन्होंने शेर सिंह के घर से ही की. उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि कहीं यादविंदर या शेर सिंह की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. इस काम में उन्होंने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया.

इस बीच एक मुखबिर ने इंसपेक्टर विजय कुमार को खबर दी कि शेर सिंह के परिवार की नूरपुर गांव के रहने वाले जसवंत सिंह उर्फ जस्सा के साथ दुश्मनी थी. दुश्मनी की वजह क्या थी, यह बात मुखबिर नहीं बता सका.

जस्सा के साथ शेर सिंह की क्या दुश्मनी थी, यह जानने के लिए उन्होंने शेर सिंह को सीआईए औफिस बुलाया तो शेर सिंह ने बताया, ‘‘साहब, जस्सा से उस की ऐसी कोई खास दुश्मनी नहीं है. बस खेतों के पानी को ले कर एकदो बार उस से कहासुनी जरूर हो गई थी.’’

शेर सिंह के हावभाव और बातों से इंसपेक्टर विजय कुमार समझ गए कि वह कुछ छिपा रहा है या जानबूझ कर वह सच नहीं बताना चाहता. और फिर खेतों के पानी को ले कर तो गांवों में अकसर छोटेमोटे झगड़े होते ही रहते हैं. इस के पीछे कोई किसी का कत्ल नहीं करता. बात जरूर कोई और ही रही होगी.

बहरहाल, इंसपेक्टर विजय को किसी ऐसे आदमी की तलाश थी जो जस्सा और शेर सिंह के बीच चल रही दुश्मनी की सही वजह का पता लगा सके. थोड़ी कोशिश के बाद उन्हें एक ऐसी चतुर औरत मिल गई. वह न केवल जसवंत सिंह उर्फ जस्सा और शेर सिंह के परिवारों के बीच की दुश्मनी का पता लगा सकती थी बल्कि उन की कुंडली भी खंगाल सकती थी.

इंसपेक्टर विजय ने उसे कुछ ईनाम देने का लालच दिया तो वह यह काम करने के लिए तैयार हो गई. काम सौंपे जाने के कुछ दिनों बाद उस औरत ने सब पता लगाने के बाद उन्हें जो कुछ बताया, उस में उन्हें सच्चाई दिखाई दी. उस औरत ने बताया कि जस्सा और शेर सिंह के बीच दुश्मनी की वजह खेतों का पानी नहीं था बल्कि जस्सा की खूबसूरत बेटी थी. जस्सा की एक बेटी थी कल्पना, जिस की सुंदरता की चर्चा आसपास के गांवों में भी थी. उस के चाहने वालों की लंबी फेहरिस्त थी.

शेर सिंह के बेटे यादविंदर की नजर जब उस पर पड़ी तो पहली नजर में ही वह उस का दीवाना हो गया था. लड़की के अन्य चाहने वालों की तरह वह भी उस के घर के इर्दगिर्द चक्कर लगाने लगा था. यादविंदर भी अच्छाखासा गबरू नौजवान था. वह पढ़ालिखा भी था और अच्छे घर से ताल्लुक रखता था, पर कल्पना ने उसे कभी लिफ्ट नहीं दी. वह भी एक अच्छे परिवार की संस्कारी लड़की थी.

प्यार वगैरह के फालतू चक्करों में वह नहीं पड़ना चाहती थी. इसलिए यादविंदर क्या उस ने किसी भी लड़के को भाव नहीं दिया. लेकिन यादविंदर किसी न किसी तरह उस के नजदीक पहुंचने की कोशिश करता रहा. कल्पना के घर के चक्कर लगाने की यादविंदर की दिनचर्या सी बन गई थी. कल्पना की झलक पाने या उस से बात करने के चक्कर में वह उस के घर के कई चक्कर रोजाना लगाता था. जब वह उसे रास्ते में मिल जाती तो वह उस के साथ छेड़छाड़ करे बिना नहीं मानता था.

1-2 बार तो कल्पना के पिता जस्सा ने यादविंदर को अपनी बेटी के साथ छींटाकशी करते देख लिया था. तब उन्होंने उसे चेतावनी दे कर छोड़ दिया था. पर यादविंदर अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. एक रोज तो यादविंदर ने हद ही कर दी. उस ने कल्पना का रास्ता रोक कर उस का हाथ पकड़ कर बात करने की कोशिश की. कल्पना को यह बात बहुत बुरी लगी. उस ने यह सारी बात अपने पिता जसवंत सिंह को बता दी. पानी सिर से इतना ऊंचा पहुंच जाएगा, इस बात का अंदाजा शायद जसवंत सिंह उर्फ जस्सा को नहीं था.

बेटी के मुंह से यादविंदर की करतूतें सुन कर जस्सा का खून खौल उठा. वह सीधा शेर सिंह के घर गया. उस ने यादविंदर को ही नहीं, बल्कि शेर सिंह को भी खरीखोटी सुनाई. बापबेटे की उस ने गांव वालों के सामने ही बेइज्जती की और बाद में चलते समय उस ने शेर सिंह को यह भी धमकी दी कि अगर उस ने अपने बेटे पर लगाम नहीं लगाई तो वह उस के टुकड़ेटुकड़े कर देगा.

यह धमकी जस्सा ने पूरे गांव के सामने दी थी, पर इंसपेक्टर विजय कुमार को गांव वालों ने यह बात नहीं बताई थी. बहरहाल, जस्सा और शेर सिंह के बीच दुश्मनी की असली वजह इंसपेक्टर विजय कुमार को पता चल चुकी थी. उन्होंने जस्सा को पूछताछ के लिए सीआईए औफिस बुलवा लिया. उन्होंने उस से यादविंदर की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने खुद को निर्दोष बताया. उस ने कहा, ‘‘साहब, आप को शायद गलतफहमी हुई है. यादविंदर की हत्या नहीं हुई, बल्कि उस का एक्सीडेंट हुआ था.’’

‘‘बकवास बंद करो.’’ इंसपेक्टर विजय ने उसे धमकाते हुए कहा, ‘‘हमें सब मालूम है कि यादविंदर का एक्सीडेंट हुआ था या अपनी बेटी के चक्कर में तुम ने मिल कर उस की हत्या की थी. यह सारी सच्चाई मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

इंसपेक्टर विजय की घुड़की के बाद जसवंत सिंह उर्फ जस्सा हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगा और रोते हुए कहने लगा, ‘‘साहबजी, मैं यादविंदर की हत्या नहीं करना चाहता था पर जब बात इज्जत पर बन आई तो मजबूरन मुझे यह कदम उठाना पड़ा.’’

इस के बाद उस ने यादविंदर के एक्सीडेंट के रहस्य से परदा उठाते हुए उस की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

यादविंदर काफी समय से जस्सा की बेटी कल्पना को छेड़छेड़ कर परेशान कर रहा था. जस्सा ने उसे प्यार से और धमका कर हर तरह से समझा कर देख लिया था पर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. जस्सा ने उस के पिता शेर सिंह को भी चेतावनी दी पर यादविंदर पर किसी बात का असर नहीं हुआ था. उल्टे यादविंदर कल्पना को धमकी देता था कि यदि उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उसे उठा कर ले जाएगा.

30 सितंबर, 2017 की रात यादविंदर कल्पना से बातचीत करने के लिए उस के घर की तरफ चक्कर लगाने के लिए आया था. इत्तफाक से उस समय जस्सा भी अपने घर के बाहर खड़ा था. यादविंदर को देखते ही उस के तनबदन में आग लग गई. उस जलती हुई आग पर तेल खुद यादविंदर ने ही डाला. वह जस्सा के घर के बाहर खड़ा हो कर अपनी बाइक का हौर्न बजाने लगा. जस्सा ने यादविंदर को अपने पास बुला लिया और प्यार से बातें करते हुए उसे अपने खेतों की ओर ले गया.

उस समय जस्सा के साथ उस का भतीजा मनदीप सिंह मनी व नौकर सुखविंदर सिंह उर्फ काला भी था. अपने खेत में पहुंचने के बाद यादविंदर को सबक सिखाने की नीयत से तीनों ने जम कर उस की पिटाई की. उन का इरादा यादविंदर की हत्या करने का नहीं था पर अंधाधुंध पिटाई करने से यादविंदर की मौत हो गई. यादविंदर की मौत के बाद तीनों घबरा गए और इस हत्या से बचने के उपाय सोचने लगे.

अंत में तीनों ने मिल कर यादविंदर की हत्या को एक्सीडेंट का रूप देने की योजना बनाई और उस की लाश और मोटरसाइकिल अपनी ट्रौली पर लाद कर नाभा रोड पर चन्नो गांव के पास ला कर सड़क पर फेंक दिया. उस की लाश उधर से गुजरने वाले किसी वाहन से कुचल गई थी. फिर जस्सा ने ही किसी से यादविंदर का एक्सीडेंट होने की सूचना शेर सिंह के पास पहुंचा दी थी.

शेर सिंह चन्नो गांव के करीब गया तो बेटे की लहूलुहान लाश देख कर घबरा गया. फिर वह उसे एंबुलेंस से नाभा अस्पताल ले गया था. जस्सा से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने अन्य आरोपी मनदीप सिंह और सुखविंदर उर्फ काला को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों को अदालत में पेश कर उन्हें 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

रिमांड अवधि में उन की निशानदेही पर कुछ सबूत भी हासिल किए. बाद में उन्हें पुन: न्यायालय में पेश कर जिला जेल भेज दिया गया. पुलिस को यह मामला सुलझाने में भले ही 8 महीने लग गए, लेकिन साजिश का खुलासा कर के आरोपियों को जेल पहुंचा दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कल्पना परिवर्तित नाम है.

करोड़ों के लिए सीए की हत्या – भाग 1

वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट (सीए) श्वेताभ तिवारी की मुरादाबाद में दिल्ली रोड पर बंसल कांप्लैक्स में श्वेताभ ऐंड एसोसिएट नाम से फर्म है, यहीं पर इन का औफिस भी है. श्वेताभ तिवारी यहीं पर प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करते थे. इन के औफिस में करीब 80 कर्मचारी काम करते थे.

बात 5 फरवरी, 2023 की शाम 7 बजे की है. इन का औफिस बंद हो चुका था, लेकिन काम की अधिकता के कारण श्वेताभ तिवारी अपने बिजनैस पार्टनर अखिल अग्रवाल के साथ कार्यालय में बैठे अपना काम निबटा रहे थे. उसी समय श्वेताभ तिवारी के निजी ड्राइवर ने कहा, ‘‘सर, मैं ने गाड़ी लगा दी है.’’

श्वेताभ तिवारी ने कहा कि हमें कुछ जरूरी काम है समय लग जाएगा. इसलिए तुम अपने घर चले जाओ, मैं गाड़ी खुद ड्राइव कर के ले जाऊंगा. पता नहीं कि हमें कितना समय लगे. इतना सुनते ही ड्राइवर अपने घर चला गया था.

रात करीब पौने 9 बजे श्वेताभ तिवारी ने गार्ड नीरज को बुला कर कहा कि औफिस बंद कर के चाबी मुझे दे दो. गार्ड नीरज ने औफिस बंद कर चाबियां श्वेताभ तिवारी को सौंप दीं. इस के बाद श्वेताभ तिवारी और पार्टनर अखिल अग्रवाल औफिस से निकल कर कार में बैठ गए थे. ठीक उसी समय श्वेताभ तिवारी के फोन की घंटी बजी. किसी परिचित या महत्त्वपूर्ण व्यक्ति का फोन था.

वह गाड़ी कादरवाजा खोल कर बाहर आ गए थे. फोन पर बात करतेकरते वह 50 मीटर दूर स्थित बैंक औफ बड़ौदा के एटीएम के पास आकर बात करने लगे. ठीक उसी समय कुछ अज्ञात व्यक्तियों ने उन्हें गोली मार दी. गोली उन का जबड़ा पार कर निकल गई थी. वह अपनी जान बचाने के लिए तेजी से बंसल कांप्लैक्स की तरफ भागे, लेकिन वह जमीन पर गिर पड़े. हमलावर उन के पीछे था. उस ने उन पर पुन: फायर झोंक दिए.

उन्हें 6 गोलियां मारी गई थीं. एक हमलावर बाइक लिए खड़ा था. श्वेताभ तिवारी गोली खा कर भी तड़प रहे थे. तभी बाइक पर बैठे व्यक्ति ने हमलावर युवक से कहा कि देख वो तो जिंदा है. बाइक पर सवार व्यक्ति से हमलावर युवक ने .315 बोर का तमंचा ले कर 7वां फायर भी झोंक दिया. जब हमलावर ने देखा कि वह शांत हो गए हैं तो वे दोनों बाइक पर सवार हो कर बुद्धि विहार कालोनी, सोनकपुर पुल होते हुए हरथला की तरफ भाग गए थे.

श्वेताभ तिवारी के पार्टनर अखिल अग्रवाल कार में ही बैठे रहे, लेकिन उन्हें गोली चलने की आवाज सुनाई नहीं दी. वह उस समय फोन से अपने बेटे से बात करने में व्यस्त थे. उस दिन शादियों का सहालग था. श्वेताभ तिवारी का गार्ड नीरज भी बारात देखने के लिए सडक़ पर जाने लगा तो उस ने देखा श्वेताभ तिवारी खून से लथपथ जमीन पर गिरे पड़े हैं. वह भाग कर चिल्लाता हुआ गाड़ी तक आया. उस ने उन के पार्टनर अखिल अग्रवाल को बताया कि साहब श्वेताभ तिवारी जमीन पर गिरे पड़े हैं व खून से लथपथ हैं. यह सुन कर अखिल अग्रवाल भी भाग कर वहां पहुंचे, नजारा बहुत गंभीर था.

अखिल अग्रवाल व गार्ड नीरज ने उन्हें उठा कर गाड़ी में डाला व पास के ही एपेक्स अस्पताल ले गए. वहां पर डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

सीए की हत्या पर लोगों में आक्रोश

इस हादसे की सूचना अखिल अग्रवाल ने मृतक श्वेताभ तिवारी की पत्नी शलिनी को दी. सीए श्वेताभ तिवारी की हत्या की खबर सुन कर पूरे घर में कोहराम मच गया. शालिनी का रोतेराते बुरा हाल था. इस हत्याकांड की खबर सुन कर तमाम एक्सपोर्टर, गणमान्य नागरिक, जन प्रतिनिधि, मुरादाबाद के डीआईजी शलभ माथुर, एसएसपी हेमराज मीणा, एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया, सीओ डा. अनूप सिंह अस्पताल पहुंचे. तुरंत ही घटनास्थल का निरीक्षण किया.

इधर सूचना मिलते ही बरेली से (मुरादाबाद बरेली) रेंज के एडीजी प्रेमचंद्र मीणा भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने भी मृतक श्वेताभ तिवारी की पत्नी शालिनी व दोस्तों से बात कर घटना की वजह जानने की कोशिश की. पुलिस ने घटनास्थल से 6 खोखे बरामद किए. वहां से सबूत बरामद करने के बाद शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया. पोस्टमार्टम में मृतक श्वेताभ तिवारी को 7 गोलियां लगने की पुष्टि हुई.

चूंकि मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए एसएसपी हेमराज मीणा ने एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया के नेतृत्व में 5 पुलिस टीमों का गठन किया. इन टीमों में मुख्यरूप से सीओ डा. अनूप सिंह, एसएचओ (मझोला) विप्लव शर्मा, एसएचओ (सिविल लाइंस) महेंद्र सिंह, एसएचओ (मूंढापांडे) रविंद्र प्रताप सिंह, एसओजी इंचार्ज रविंद्र सिंह, सर्विलांस सेल इंचार्ज राजीव कुमार, एसआई सतराज सिंह आदि को शामिल किया गया.

सब से पहले तेजतर्रार सीओ डा. अनूप सिंह ने मृतक श्वेताभ तिवारी की पत्नी शालिनी से पूछा कि आप को किस पर शक है, किसकिस से आप की दुश्मनी है तो शालिनी ने बताया कि साहब हमारी किसी से कोई रंजिश नहीं है. वह तो बहुत ही सीधेसादे थे. उन का प्रौपर्टी का बड़ा काम था. कहीं भी किसी से उन का कोई झगड़ा नहीं था. उन्हें बस अपने काम से मतलब रहता था, इसी में वह लगे रहते थे.

400 सीसीटीवी फुटेज की जांच

पुलिस ने घटनास्थल के आसपास के लगभग 400 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक किए, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी. इस के बाद पुलिस ने श्वेताभ तिवारी के औफिस में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को थाने बुला कर उन से पूछताछ की. उन से भी कोई क्लू नहीं मिल पा रहा था. पुलिस ने करीब 8 हजार मोबाइल नंबरों को भी खंगाला, जो उस समय नजदीक टावरों की रेंज में थे. इन में से पुलिस को कोई भी संदिग्ध नंबर नहीं मिला. पुलिस का मानना था कि साजिशकर्ता ने शूटरों से जरूर संपर्क किया होगा.

मृतक श्वेताभ तिवारी की फर्म श्वेताभ एसोसिएट में 4 पार्टनर हैं. एक पार्टनर की मृत्यु हो चुकी है 3 अन्य पार्टनरों से भी पुलिस ने पूछताछ की. इन से भी हत्या के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. पुलिस ने मृतक श्वेताभ तिवारी के घर के नौकर, नौकरानियों ड्राइवरों से भी पूछताछ की, यहां भी पुलिस को निराशा मिली.

इस के बाद पुलिस ने आसपास के टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले, उन से भी हत्यारों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. पुलिस ने हत्या के बाद से पूरे शहर की नाकेबंदी कर दी थी. पुलिस यह मान कर चल रही थी कि शूटर बाहर के नहीं, बल्कि यहीं के हैं.

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 1

रात के साढ़े 10 बज रहे थे. बिहार के मधुबनी जिले की रहने वाली संगीता देवी बेटे अविनाश को ढूंढती हुई दूसरे मकान पहुंची, जहां उस ने न्यूज पोर्टल का अपना औफिस बना रखा था. यहीं बैठ कर वह न्यूज एडिट करता था. लेकिन अविनाश अपने औफिस में नहीं था. दरवाजे के दोनों पट भीतर की ओर खुले हुए थे. कमरे में ट्यूबलाइट जल रही थी और बाइक बाहर खड़ी थी. संगीता ने सोचा कि बेटा शायद यहीं कहीं गया होगा, थोड़ी देर में लौट आएगा तो खाना खाने घर पर आएगा ही.

लेकिन पूरी रात बीत गई, न तो अविनाश घर लौटा था और न ही उस का मोबाइल फोन ही लग रहा था. उस का फोन लगातार बंद आ रहा था. मां के साथसाथ बड़ा भाई त्रिलोकीनाथ झा भी यह सोच कर परेशान हो रहा था कि भाई अविनाश गया तो कहां? उस का फोन लग क्यों नहीं रहा है? वह बारबार स्विच्ड औफ क्यों आ रहा है?

ये बातें उसे परेशान कर रही थीं. फिर त्रिलोकीनाथ ने अविनाश के सभी परिचितों के पास फोन कर के उस के बारे में पूछा तो सभी ने ‘न’ में जवाब दिया. उन सभी के ‘न’ के जवाब सुन कर त्रिलोकीनाथ एकदम से हताश और परेशान हो गया था और मांबाप को भी बता दिया कि अविनाश का कहीं पता नहीं चल रहा है और न ही फोन लग रहा है.

पता नहीं कहां चला गया? बड़े बेटे का जवाब सुन कर घर वाले भी परेशान हुए बिना नहीं रह सके. यही नहीं, घर में पका हुआ खाना वैसे का वैसा ही रह गया था. किसी ने खाने को हाथ तक नहीं लगाया था. अविनाश के अचानक इस तरह लापता हो जाने से किसी का दिल नहीं हुआ कि वह खाना खाए.

पूरी रात बीत गई. घर वालों ने जागते हुए पूरी रात काट दी. कभीकभार हवा के झोंकों से दरवाजा खटकता तो घर वालों को ऐसा लगता जैसे अविनाश घर लौट आया हो. यह बात 9 नवंबर, 2021 बिहार के मधुबनी जिले की लोहिया चौक की है.

अगली सुबह त्रिलोकीनाथ दरजन भर परिचितों को ले कर बेनीपट्टी थाने पहुंचे. थानाप्रभारी अरविंद कुमार सुबहसुबह कई प्रतिष्ठित लोगों को थाने के बाहर खड़ा देख चौंक गए. उन में से कइयों को वह अच्छी तरह पहचानते भी थे. वे छुटभैए नेता थे. वह कुरसी से उठ कर बाहर आए और उन के सुबहसुबह थाने आने की वजह मालूम की. इस पर लिखित तहरीर उन की ओर बढ़ाते हुए त्रिलोकीनाथ ने छोटे भाई के रहस्यमय तरीके से गुम होने की बात बता दी.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने जब सुना कि बीएनएन न्यूज पोर्टल के चर्चित पत्रकार और जुझारू आरटीआई कार्यकर्ता अविनाश उर्फ बुद्धिनाथ झा से मामला जुड़ा है तो उन के होश उड़ गए. उन्होंने तहरीर ले कर आवश्यक काररवाई करने का भरोसा दिला कर सभी को वापस लौटा दिया.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार ने पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश की गुमशुदगी दर्ज कर ली और उस की तलाश में जुट गए. उन्होंने मुखबिरों को भी अविनाश की खोजबीन में लगा दिया था. अरविंद कुमार ने साथ ही साथ इस मामले की जानकारी एसडीपीओ (बेनीपट्टी) अरुण कुमार सिंह और एसपी डा. सत्यप्रकाश को भी दे दी थी ताकि बात बनेबिगड़े तो अधिकारियों का हाथ बना रहे.

अविनाश को गुम हुए 4 दिन बीत चुके थे. लेकिन उस का अब तक कहीं पता नहीं चल सका था. बेटे के रहस्यमय ढंग से गायब होने से घर वालों का बुरा हाल था. 3 दिनों से घर में चूल्हा तक नहीं जला था. अब भी घर वालों को उम्मीद थी कि अविनाश कहीं गया है, वापस लौट आएगा. इसी बीच उन के मन में रहरह कर आशंकाओं के बादल उमड़ने लगते थे जिसे सोचसोच कर उन का पूरा बदन कांप उठता था.

झुलसी अवस्था में मिली पत्रकार की लाश

बहरहाल, 12 नवंबर, 2021 की दोपहर में अविनाश के बड़े भाई त्रिलोकीनाथ को एक बुरी खबर मिली कि औंसी थानाक्षेत्र के उड़ने चौर थेपुरा के सुनसान बगीचे में बोरे में जली हुई एक लाश पड़ी है, आ कर देख लें. लाश की बात सुनते ही त्रिलोकीनाथ का कलेजा धक से हो गया. बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा कर खुद को संभाला, लेकिन घर वालों को भनक तक नहीं लगने दी. अलबत्ता उस ने इस की जानकारी बेनीपट्टी के थानाप्रभारी अरविंद कुमार को दे दी और साथ में मौके पर चलने को कहा.

थानाप्रभारी अरविंद कुमार टीम के साथ  त्रिलोकीनाथ को ले कर उड़ने चौर धेपुरा पहुंचे, जहां जली हुई लाश पाए जाने की सूचना मिली थी. चूंकि वह क्षेत्र औंसी थाने में पड़ता था, इसलिए इस की सूचना उन्होंने औंसी थाने के प्रभारी विपुल को दे कर उन्हें भी घटनास्थल पहुंचने को कह दिया था. सूचना पा कर थानाप्रभारी विपुल भी मौके पर पहुंच चुके थे.

लाश प्लास्टिक के अधजले कट्टे में थी. लग रहा था कि लाश वाले उस कट्टे पर कोई ज्वलनशील पदार्थ डाल कर आग लगाई गई थी. जिस से कट्टे के साथ लाश काफी झुलस गई थी. चेहरे से वह पहचानने में नहीं आ रही थी. थानाप्रभारी अरविंद ने त्रिलोकीनाथ को लाश की शिनाख्त के लिए आगे बुलाया.

लाश के ऊपर कपड़ों के कुछ टुकड़े चिपके थे और उस के दाएं हाथ की मध्यमा और रिंग फिंगर में अलगअलग नग वाली 2 अंगूठियां मौजूद थीं. कपड़ों के अवशेष और अंगूठियों को देख कर त्रिलोकीनाथ फफकफफक कर रोने लगा. उसे रोता हुआ देख पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि मृतक उस का भाई अविनाश है, जो पिछले 4 दिनों से रहस्यमय तरीके से लापता हो गया था.

अब क्या था, जैसे ही अविनाश की लाश पाए जाने की जानकारी घर वालों को हुई, उन का जैसे कलेजा फट गया. घर में कोहराम मच गया और रोनाचीखना शुरू हो गया. इस के बाद तो पत्रकार और एक्टीविस्ट अविनाश की हत्या की खबर देखते ही देखते जंगल में आग की तरह पूरे शहर में फैल गई थी. अविनाश की हत्या की खबर मिलते ही मीडिया जगत में शोक की लहर दौड़ गई. उस के समर्थकों के दिलों में आक्रोश फूटने लगा थे. समर्थक उग्र हो कर आंदोलन की राह पर उतर आए.

13 नवंबर को अविनाश की निर्मम हत्या के विरोध में शाम के वक्त विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बेनीपट्टी बाजार की मुख्य सड़क पर कैंडल मार्च निकाल कर हत्यारे को फांसी देने, परिवार को एक करोड़ रुपए का मुआवजा देने और हत्याकांड की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग को ले कर प्रशासन के खिलाफ जम कर नारेबाजी की. सभी लोग कैंडल मार्च के माध्यम से विरोध प्रकट करते हुए डा. लोहिया चौक से अनुमंडल रोड तक सड़क पर नारेबाजी करते रहे.

कैंडल मार्च भाकपा नेता आनंद कुमार झा के नेतृत्व में शुरू हुआ. वहां जनकल्याण मंच के महासचिव योगीनाथ मिश्र, कांग्रेसी नेता विजय कुमार मिश्र, भाजपा नेता विजय कुमार झा, मुकुल झा और बीजे विकास सहित तमाम लोग मौजूद थे.

एक ओर जहां नेता कैंडल मार्च निकाल कर प्रशासन पर दबाव बना रहे थे तो वहीं दूसरी ओर झंझारपुर प्रैस क्लब के सदस्यों ने ललित कर्पूरी स्टेडियम में एक आपात बैठक कर इस पूरे घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग की.

                                                                                                                                          क्रमशः 

जिद ने बनाया हत्यारा : धर्मेंद्र और चैतन्य का कैसा था हठ

योगमाया साहू छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के किशनपुर में स्थित उपस्वास्थ्य केंद्र में एएनएम थी. वहीं पर उसे सरकारी क्वार्टर मिला हुआ था, जिस में वह अपने पति चैतन्य साहू और 2 बेटों तन्मय और कुणाल के साथ रहती थी. चैतन्य साहू भी रायपुर के एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करता था. चूंकि दोनों पतिपत्नी कमा रहे थे, इसलिए घर में आर्थिक समस्या नहीं थी. परिवार खुशहाली से रह रहा था.

घर की साफसफाई और बरतन मांजने के लिए योगमाया ने त्यागी राणा नाम की एक बाई रख रखी थी. वह घर में झाड़ूपोंछा आदि काम निबटा कर चली जाती थी. घर के मुख्य दरवाजे की 2 चाबियां थीं. उन में से एक चाबी योगमाया ने बाई को दे रखी थी और एक को वह खुद अपने पास रखती थी.

बात पहली जून, 2018 की है. काम वाली बाई त्यागी राणा रोज की तरह उस दिन भी सुबह 6 बजे सफाई करने एएनएम योगमाया साहू के क्वार्टर पर पहुंची. घर के मुख्य दरवाजे पर ताला बाहर से लगा देख बाई त्यागी राणा को अजीब लगा. क्योंकि अमूमन गेट पर ताला अंदर की ओर से बंद रहता था.

अपने पास मौजूद चाबी से गेट का ताला खोल कर वह अंदर आई तो उस ने कमरे के दरवाजे को हलका सा धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया. कमरे में कोई नहीं था. उस के बाद आवाज लगाती हुई वह आंगन में पहुंची तो आंगन में खून देख कर वह घबरा गई और उलटे पांव चीखती हुई बाहर भागी.

वह सीधी स्वास्थ्य केंद्र में मौजूद मितानिन हिरौंदी बाई साहू के पास पहुंची. वह उसी स्वास्थ्य केंद्र में नौकरी करती थी. उस ने उन्हें अपनी आंखों देखी बात बताई. स्वास्थ्य केंद्र में मौजूद स्टाफ के लोग एएनएम योगमाया के क्वार्टर पर पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर सभी चौंक गए. योगमाया साहू, पति चैतन्य साहू और उस के बड़े बेटे तन्मय की रक्तरंजित लाशें आंगन में पड़ी हुई थीं. दूसरे कमरे में छोटे बेटे कुणाल का खून से लथपथ शव खाट के एक कोने में पड़ा था.

स्वास्थ्य केंद्र में खबर देने के बाद बाई सरपंच सुरेश खुंटे के घर पहुंच गई. सरपंच ने जब सुना कि चैतन्य के घर में 4 हत्याएं हो चुकी हैं तो वह भी हैरान रह गए. पलभर में ही यह खबर पूरे किशनपुर में फैल गई. देखते ही देखते सैकड़ों तमाशबीन मौके पर पहुंच गए.

सूचना सरपंच सुरेश खुंटे ने पिथौरा थाने के थानाप्रभारी को फोन द्वारा दे दी. थानाप्रभारी रात की गश्त से लौट कर गहरी नींद में सो रहे थे. जैसे ही सरपंच का फोन आया तो उन की नींद काफूर हो गई. वह तुरंत सहयोगियों के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

थानाप्रभारी ने घटनास्थल पर पहुंच कर मौकामुआयना किया. उन्होंने सूचना आला अधिकारियों को दे दी. चौहरे हत्याकांड की सूचना पाने के कुछ देर बाद ही एसपी संतोष सिंह, एएसपी संजय धु्रव और एएसपी (प्रशिक्षु आईपीएस) उदय किरण घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना किया. आंगन में फैला खून देख कर ऐसा लग रहा था जैसे घटना को 3-4 घंटे पहले अंजाम दिया गया हो. एएनएम योगमाया, उन के पति चैतन्य साहू और बड़े बेटे तन्मय की लाश एक साथ पड़ी थी. लाश से थोड़ी दूर खून से सना एक फावड़ा पड़ा था. लग रहा था कि हत्यारों ने इसी फावड़े से हत्या की थी.

कमरे में लोहे की अलमारी खुली पड़ी थी. उस का सामान फर्श और बिस्तर पर बिखरा पड़ा था. यह सब देख कर यही अनुमान लगाया जा रहा था कि हत्यारे शायद चोरी की नीयत से घर में घुसे होंगे. जैसे ही उन्होंने अलमारी का लौक खोलने की कोशिश की होगी तो खटपट की आवाज सुन कर घर के किसी सदस्य की आंख खुली होगी. इसी बीच घटना को अंजाम दिया गया होगा.

पुलिस ने घटना की सूचना मृतक चैतन्य के पिता बाबूलाल साहू को दे कर मौके पर बुला लिया. वह सांकरा में अकेले रहते थे. घटना से 2 दिन पहले ही यानी 30 मई, 2018 की शाम करीब 5 बजे बाबूलाल साहू कुछ रिश्तेदारों के साथ बेटा, बहू और पोतों से मिलने किशनपुर आए थे. 3-4 घंटे बच्चों के बीच बिताने के बाद रात वह करीब 9 बजे सांकरा वापस लौट गए थे.

एसपी संतोष सिंह ने बाबूलाल साहू से बेटे या बहू की किसी से कोई रंजिश या दुश्मनी की बात पूछी तो उन्होंने किसी से रंजिश या दुश्मनी होने से साफ इनकार कर दिया. पुलिस को पता चला कि मोहल्ले में चैतन्य या योगमाया साहू का व्यवहार बहुत अच्छा था. किसी के मुसीबत में होने पर दोनों पतिपत्नी उस की तीमारदारी करने उस के घर पहुंच जाते थे. इसलिए किशनपुर का एकएक बच्चा उन के व्यवहार से वाकिफ था.

जब ये इतने भले इंसान थे तो पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि इस वारदात को किस ने अंजाम दिया, गुत्थी काफी उलझी और पेचीदगी से भरी थी. ध्यान देने वाली बात यह थी कि हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए घटना को लूटपाट में तब्दील करने की कोशिश की थी. घर की सारी वस्तुएं मौजूद मिलीं.

रायपुर से फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम भी वहां पहुंची, लेकिन उस के हाथ कोई खास सफलता नहीं लगी. स्थानीय लोगों से पूछताछ में पता चला कि रात में चीखने की आवाज तो आ रही थी. उन्होंने यह सोच कर इस ओर ध्यान नहीं दिया कि अस्पताल है, प्रसव पीड़ा के समय यहां महिलाएं चीखती हैं. हो सकता है कोई महिला प्रसव पीड़ा से तड़प रही हो इसीलिए वह आवाज सुन कर भी अपने घरों से बाहर नहीं निकले और हत्यारे अपने काम पूरे कर गए.

पुलिस ने घटना की रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी. ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी को सुलझाने के लिए एसपी संतोष सिंह ने एएसपी संजय धु्रव के नेतृत्व में एक एसआईटी का गठन किया गया. एसआईटी में प्रशिक्षु आईपीएस उदय किरण, पिथौरा एसडीपीओ के अलावा क्राइम ब्रांच के 10 पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. इस के अलावा पुलिस की 3 टीमों को पिथौरा से बाहर भेजा गया.

सनसनीखेज चौहरे हत्याकांड के खुलासे के लिए पुलिस हत्यारों की खोजबीन में भटक रही थी. घटना के 3 दिनों बाद यानी 3 जून की शाम को पुलिस ने शक के आधार पर किशनपुर के ही रहने वाले 3 व्यक्तियों को हिरासत में ले कर पूछताछ की. संदिग्धों से पूछताछ में जब कोई नतीजा नहीं निकला तो उन्हें सख्त हिदायत दे कर छोड़ दिया.

पुलिस ने जहां से जांच की काररवाई शुरू की थी, घूमफिर कर वहीं आ खड़ी हुई. पुलिस ने मृतक पतिपत्नी की काल डिटेल्स की जांच कर ली थी लेकिन उस में कोई काल संदिग्ध नहीं मिली. घटना की परिस्थितियों से साफ पता चल रहा था कि इस में कोई अपना शामिल है. लेकिन वह कौन है? पुलिस इसी बात का पता लगाने में जुटी हुई थी. जब पुलिस को कहीं से कोई सुराग हाथ नहीं लगा तो उस ने 4 जून को उसी एरिया के मोबाइल टावर के संपर्क में आने वाले फोन नंबरों की लिस्ट निकलवाई.

हजारों मोबाइल नंबरों की लोकेशन ट्रेस हुई. काफी मेहनत और मशक्कत के बाद उन नंबरों में से एक संदिग्ध नंबर सामने आया जो 30/31 मई की रात 2 से 3 बजे के बीच घटनास्थल पर मौजूद मिला था. उस के बाद बड़ी तेजी से उस की लोकेशन बदलती गई. पते की बात तो यह थी कि वही संदिग्ध नंबर चैतन्य साहू की काल डिटेल्स में भी पाया गया था. एक ही नंबर दोनों जगह पाए जाने से वह नंबर संदेह के घेरे में आ गया.

पुलिस ने उस संदिग्ध नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह नंबर किशनपुर के रहने वाले धर्मेंद्र बहिरा के नाम पर लिया गया था. धर्मेंद्र बहिरा के बारे में पुलिस को पता चला कि वह प्लंबर का काम करता है.

5 जून, 2018 को एसआईटी ने धर्मेंद्र बहिरा को उस के घर से दबोच लिया. एएसपी संजय धु्रव ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू की, ‘‘अच्छा, यह बताओ कि तुम साहू परिवार को कितने दिनों से जानते हो?’’

‘‘साहब, वे मेरे पड़ोसी थे, इसलिए मैं उन्हें लंबे समय से जानता हूं.’’ धर्मेंद्र ने हाथ जोड़ कर जवाब दिया.

‘‘तब तो उन के घर में तुम्हारी अंदर तक पैठ बनी होगी?’’ एएसपी ने फिर सवाल किया.

‘‘नहीं साहब, उन के यहां कभी- कभार जाना होता था. चैतन्य साहू एक बार मेरे पास प्लंबिंग का काम कराने के लिए आए थे.’’ उस ने बताया.

‘‘30/31 मई की रात में तुम कहां थे?’’ एएसपी ने अगला सवाल किया.

‘‘सर, मैं उस रात अपने घर पर था.’’ धर्मेंद्र बोला.

‘‘तुम अपने घर पर थे तो तुम्हारा मोबाइल साहू के घर क्या कर रहा था?’’ एएसपी संजय ने अंधेरे में तीर चलाया.

इतना सुन कर धर्मेंद्र सन्न रह गया. उन्होंने उस के चेहरे के उड़े रंग को भांप लिया था.

‘‘चलो, सीधे मुद्दे पर आते हैं. अच्छा यह बता दो कि तुम ने साहू परिवार का कत्ल क्यों किया? सहीसही बताना.’’ इस बार थानाप्रभारी दीपक चंद ने सवाल किया था.

‘‘साहब, यह झूठ है, मैं ने किसी को नहीं मारा है.’’ धर्मेंद्र ने जवाब दिया.

एएसपी संजय धु्रव और थानाप्रभारी दीपक चंद समझ गए कि यह आसानी से मानने वाला नहीं है. इस के बाद उन्होंने उस के साथ सख्ती से पूछताछ की तो वह पूरी तरह टूट गया और कबूल कर लिया कि उसी ने साहू परिवार के चारों सदस्यों को मौत के घाट उतारा है.

इस के बाद वह पूरी कहानी तोते की तरह बकता चला गया. पुलिसिया पूछताछ से पता चला कि वह बड़ा ही नराधम निकला, महज चंद रुपयों की खातिर उस ने हंसतेखेलते पूरे परिवार की जिंदगी छीन ली. पूछताछ में कहानी कुछ ऐसी सामने आई—

40 वर्षीय चैतन्य साहू मूलरूप से छत्तीसगढ़ के रायपुर का रहने वाला था. इसी जिले की आरंग की रहने वाली योगमाया से उस की शादी सन 2008 में हुई थी. शादी के बाद चैतन्य के 2 बच्चे हुए. उस की जिंदगी खुशियों से भरी हुई थी. वे दोनों बच्चों की ठीक से परवरिश करने में लगे थे.

शादी के 7 साल बाद चैतन्य की भी रायपुर के ओम अस्पताल में वार्डबौय की नौकरी लग गई थी. 3 साल तक उस ने वहां नौकरी की. शादी के 8 साल बाद जुलाई 2016 में उस की पत्नी योगमाया की भी नौकरी स्वास्थ्य विभाग में एएनएम पद पर लग गई. उस की पहली पोस्टिंग महासमुंद जिले के किशनपुर के उप स्वास्थ्य केंद्र में हुई थी, जिस के बाद से पतिपत्नी बच्चों सहित रायपुर छोड़ कर पिथौरा में रहने लगे.

योगमाया साहू को किशनपुर के उप स्वास्थ्य केंद्र में ही रहने के लिए क्वार्टर मिल गया था. थोड़े ही समय में पतिपत्नी ने अपने मृदुल व्यवहार से किशनपुर के नागरिकों को अपना मुरीद बना लिया था. योगमाया पीडि़त महिलाओं का खास खयाल रखती थी. प्रसव वेदना के समय वह तीमारदारों की हिम्मत बंधाती थी. यही नहीं, तीमारदारों के बुलाने पर दोनों पतिपत्नी उन के घर तक पहुंच जाते थे.

उप स्वास्थ्य केंद्र के पास में 28 वर्षीय धर्मेंद्र बहिरा अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में मांबाप और भाईबहन थे. वह अविवाहित था. धर्मेंद्र मेहनतकश इंसान था. वह एक अच्छा प्लंबर था. लोग उसे बुला कर अपने घरों में काम करवाते थे. योगमाया के यहां उस का आनाजाना था.

एक दिन की बात है. एएनएम योगमाया के क्वार्टर का नल खराब हो गया. चैतन्य ने धर्मेंद्र के घर जा कर क्वार्टर का नल ठीक करने को कह दिया. अगले दिन धर्मेंद्र ने योगमाया के क्वार्टर का नल ठीक कर दिया. इस काम की उस की मजदूरी डेढ़ सौ रुपए हुई थी. चैतन्य ने उसे अगले दिन आ कर पैसे ले जाने को कह दिया तो धर्मेंद्र बिना कुछ बोले मुसकरा कर वहां से चला गया.

अगले दिन धर्मेंद्र अपनी मजदूरी के पैसे लेने चैतन्य के क्वार्टर पर गया. चैतन्य घर पर ही था. उस ने कह दिया कि पैसे शाम में आ कर ले जाना, अभी मेमसाहब घर पर नहीं हैं. पैसे उन्हीं के पास रहते हैं. यह सुन कर धर्मेंद्र को बुरा लगा लेकिन पड़ोस की बात होने के नाते बिना कुछ कहे वापस लौट गया.

उस के बाद ऐसे करतेकरते कई दिन बीत गए. चैतन्य कोई न कोई बहाना बना कर उसे घर से वापस लौटा देता था लेकिन उसे पैसे नहीं दिए. चैतन्य अब इस बात पर आ कर अड़ गया कि 50 रुपए के काम के डेढ़ सौ रुपए क्यों दूं. मैं डेढ़ सौ नहीं केवल 50 रुपए ही दूंगा.

उस के बाद पैसों को ले कर चैतन्य और धर्मेंद्र के बीच विवाद छिड़ गया. धर्मेंद्र ने चैतन्य से कह दिया कि वह अपनी मजदूरी के डेढ़ सौ रुपए उस से वसूल कर के ही रहेगा. चैतन्य ने भी कह दिया कि वह जो चाहे कर ले, 50 रुपए से एक फूटी कौड़ी ज्यादा नहीं देगा. योगमाया भी पति के ही पक्ष में बोलने लगी. मजदूरी को ले कर दोनों के बीच बात बढ़ गई.

धर्मेंद्र ने सोच लिया कि वह अपनी मेहनत के पैसे ले कर रहेगा, चाहे कुछ भी हो जाए. धर्मेंद्र ने मन ही मन सोच लिया कि उसे अब क्या करना है. उस ने सोच लिया कि चैतन्य साहू मजदूरी के पैसे नहीं दे रहा है तो कोई बात नहीं, वह उस से इस के कई गुना वसूल कर लेगा.

दरअसल चैतन्य के क्वार्टर पर आतेजाते धर्मेंद्र उस के क्वार्टर के कोनेकोने से परिचित हो चुका था. उसे मालूम हो चुका था कि घर में कहांकहां कीमती चीजें रखी जाती हैं. उसे यह तक पता चल चुका था कि चैतन्य की पत्नी एएनएम योगमाया साहू के पास सोने और चांदी के कितने गहने हैं और वह कहां रखे हैं. उस ने अपनी मजदूरी के एवज में गहनों को चुराने की योजना बना ली.

योजना के मुताबिक 30-31 मई, 2018 की रात धर्मेंद्र बहिरा चैतन्य साहू के सरकारी क्वार्टर में चुपके से पीछे के रास्ते से घुस गया. उस ने अपने साथ फावड़ा ले रखा था ताकि मुसीबत के वक्त वह अपना बचाव कर सके. दबे पांव क्वार्टर में घुस कर उस ने कमरे का निरीक्षण किया. देखा कि सभी गहरी नींद में सो रहे थे. फिर वह बीच कमरे में रखी अलमारी के पास गया और अपनी मास्टर की से अलमारी खोलने लगा. चाबी की आवाज सुन कर चैतन्य की नींद टूट गई.

उठ कर वह उस ओर बढ़ा जिस ओर से खड़खड़ाहट की आवाज आ रही थी. चैतन्य कमरे में पहुंचा तो धर्मेंद्र को देख कर चौंक गया. धर्मेंद्र की नजर जब चैतन्य पर पड़ी, उसे सामने देखा तो उसे सांप सूंघ गया. वह बुरी तरह डर गया और घबरा गया कि अब उस की चोरी पकड़ी जाएगी.

इस घबराहट में उसे कुछ सूझा नहीं तो फावड़े से चैतन्य की गरदन पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए. वह चीखता हुआ फर्श पर जा गिरा. धड़ाम की आवाज सुन कर योगमाया की नींद टूट गई और कमरे में आ गई. फर्श पर पति को लहूलुहान देख कर उस के मुंह से चीख निकल पड़ी.

धर्मेंद्र योगमाया को सामने देख कर घबरा गया. घबराहट में उस ने योगमाया की भी गरदन पर फावड़े से ताबड़तोड़ वार कर उसे भी मौत के घाट उतार दिया. इसी बीच मां की आवाज सुन कर तन्मय भी उठ कर कमरे में आ गया और धर्मेंद्र को पहचान गया तो धर्मेंद्र ने उसे भी मौत के उतार दिया. उस के बाद तीनों की लाशें घसीट कर आंगन में ले गया.

चैतन्य का एक और बेटा कुणाल जिंदा था और वह कमरे में अभी भी सो रहा था. धर्मेंद्र को डर था कि कुणाल उसे पहचानता है. कहीं वह जिंदा बच गया और उस ने भांडा फोड़ दिया तो उसे जेल जाना पड़ सकता है. उस समय धर्मेंद्र की मति ऐसी मारी जा चुकी थी कि वह इतना तक नहीं समझ सका कि जब गहरी नींद में सो रहे कुणाल ने उसे वारदात करते देखा ही नहीं है तो वह उस का नाम क्यों लेगा.

फिर क्या था विवेकहीन हो चुका धर्मेंद्र उस कमरे में जा पहुंचा, जहां कुणाल सोया था. उस ने सोते हुए कुणाल पर फावड़े से वार कर उसे भी मौत के घाट उतार दिया और लाश उसी बिस्तर पर छोड़ दी. चारों को मौत के घाट उतारने के बाद दरिंदा बन चुके धर्मेंद्र को होश आया तो उस के होश फाख्ता हो गए. चारों ओर खून ही खून देख कर वह घबरा गया और फावड़ा आंगन में ही छोड़ कर मौके से फरार हो गया. अब उसे पश्चाताप हो रहा था कि आवेश में आ कर वह कितना बड़ा गुनाह कर बैठा.

चंद रुपयों के लिए उस ने हंसतेखेलते परिवार की दुनिया ही उजाड़ दी. लेकिन उस के पश्चाताप करने से अब क्या फायदा होने वाला था. जो होना था सो तो हो चुका था. साहू परिवार की दुनिया ही उजड़ चुकी थी.

5 जून, 2018 को पुलिस ने धर्मेंद्र बहिरा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. जेल में बंद धर्मेंद्र अपने किए पर पश्चाताप के आंसू बहा रहा था. काश, धर्मेंद्र पहले ही सोचसमझ कर कदम उठाता तो आज साहू परिवार दुनिया में सांस ले रहा होता.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपहरण का नया स्टाइल : जेल में बनाई कमाई की योजना

राजीव कुमार नोएडा स्थित एचसीएल कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर थे. वैसे वह हरिद्वार के अंतर्गत नंदग्राम के मूल निवासी थे. उन की नौकरी नोएडा में थी इसलिए वह पत्नी और बच्चों के साथ नोएडा में ही रह रहे थे. उन के बच्चों के स्कूल की छुट्टियां चल रही थीं. पत्नी और बच्चे नंदग्राम (हरिद्वार) गए हुए थे.

बीवीबच्चों के चले जाने के बाद राजीव नोएडा स्थित अपने फ्लैट पर अकेले रह गए थे. 24 मई को राजीव कुमार का जन्मदिन था. उन्होंने जन्मदिन अपने बीवीबच्चों के साथ नंदग्राम में मनाने का प्रोग्राम बनाया. उन्होंने सोचा कि 23 मई को ड्यूटी करने के बाद वह सीधे हरिद्वार के लिए निकल जाएंगे.

उन्होंने यही किया भी. 23 मई को ड्यूटी खत्म होने के बाद वह कंपनी की कैब से नोएडा से गाजियाबाद के राजनगर एक्सटेंशन पहुंच गए. यहां से उन्हें बस द्वारा हरिद्वार जाना था. लिहाजा वह वहीं पर खड़े हो कर हरिद्वार जाने वाली बस का इंतजार करने लगे.

वहां खड़ेखडे़ उन्हें काफी देर हो गई लेकिन हरिद्वार जाने वाली कोई बस नहीं आई. वह परेशान थे कि घर कैसे पहुंचेंगे. रात करीब सवा 12 बजे उन के सामने एक कार आ कर रुकी. कार का चालक हरिद्वार जाने की आवाज लगाने लगा. साथ ही वह वहां मौजूद लोगों से हरिद्वार जाने के बारे में पूछने भी लगा.

ड्राइवर ने जब राजीव से हरिद्वार जाने के बारे में पूछा तो उन्होंने पहले तो मना कर दिया. लेकिन जब कार की तरफ देखा तो उन्हें पहले से ही कुछ सवारियां बैठी दिखाई दीं. इस से राजीव को तसल्ली हो गई कि यदि वह कार से जाएं तो वह अकेली सवारी नहीं होंगे. साथ में दूसरी सवारी भी रहेंगी. इस के बाद वह उस कार में बैठ गए.

राजीव कार की पिछली सीट पर बैठे थे. उन के अगलबगल भी सवारियां थीं. कार चलने के बाद राजीव ने सोचा कि वह 3 साढ़े 3 घंटे में हरिद्वार पहुंच जाएंगे. अभी कार गाजियाबाद से कुछ दूर ही पहुंची थी कि राजीव के पास बैठे व्यक्तियों ने उन के ऊपर काला कपड़ा डाल कर चाकू सटाते हुए चेतावनी दी, ‘‘ज्यादा होशियार बनने की जरूरत नहीं है. चुपचाप ऐसे ही बैठे रहो, वरना अपनी जान गंवा बैठोगे.’’

राजीव समझ गए कि वह बदमाशों के चंगुल में फंस चुके हैं. उन हथियारबंद बदमाशों से वह अकेले मुकाबला नहीं कर सकते थे. लिहाजा उन्होंने बदमाशों से बड़े प्यार से कहा, ‘‘देखिए मेरा हरिद्वार पहुंचना बहुत जरूरी है. आप लोगों को मुझ से जो कुछ चाहिए ले लो, लेकिन मुझे छोड़ दो.’’

इस के बाद एक बदमाश ने राजीव की तलाशी ले कर उन का फोन और पर्स अपने कब्जे में ले लिया. पर्स में कुछ रुपए थे. दोनों चीजें अपने पास रखते हुए एक बदमाश बोला, ‘‘हम तुम्हें छोड़ तो देते लेकिन हमें जितने रुपए चाहिए, उतने तुम्हारे पर्स में नहीं हैं. यदि उतने पैसे हमें मिल जाएं तो हम तुम्हें छोड़ देंगे.’’

‘‘बताइए, आप को कितने पैसे चाहिए.’’ राजीव ने पूछा.

‘‘हमें 15 लाख रुपए चाहिए.’’ चलती कार में ही बदमाश बोला.

‘‘यह तो बहुत ज्यादा है. हमारी हैसियत इतने पैसे देने की नहीं है.’’ राजीव कुमार बोले.

‘‘तुम इस की चिंता मत करो. पैसे कहां से और कैसे आने हैं, इस बात को हम अच्छी तरह से जानते हैं. तुम खुद देखना कि तुम्हारे घर वाले हमारे पास पैसे किस तरह पहुंचाएंगे.’’ बदमाश बोला.

रात में सड़कों पर वह कई घंटे तक कार को घुमाते रहे, फिर वे राजीव को एक कमरे में ले गए और उन के हाथपैर बांध कर एक बोरे में बंद कर दिया. फिर बोरे को कमरे में रखी सेंट्रल टेबल के नीचे डाल दिया. इस से पहले बदमाशों ने राजीव से उन के घर वालों के फोन नंबर हासिल कर लिए थे. बदमाशों ने जिस इलाके में राजीव को बंधक बना कर रखा था, उन्होंने वहां से कहीं दूर जा कर राजीव के फोन से ही उन की पत्नी को फोन किया.

पत्नी को पता नहीं था कि उन के पति का अपहरण कर लिया गया है. इसलिए वह अपने फोन की स्क्रीन पर पति का नाम देखते ही बोलीं, ‘‘कैसे हो और घर कब तक पहुंचोगे?’’

‘‘वो घर पर अभी नहीं पहुंचेंगे. राजीव अब हमारे कब्जे में हैं. अगर तुम लोग उन्हें चाहते हो तो हमें 15 लाख रुपए दे दो.’’ बदमाश बोला.

‘‘आप कौन हैं और कहां से बोल रहे हैं.’’ पत्नी ने घबराते हुए पूछा.

‘‘तुम हमारा इतिहास जानने की कोशिश मत करो. जितना कह रहे हैं, समझ जाओ और पैसों का इंतजाम कर लो. बाकी बात मैं वाट्सऐप से करूंगा.’’ कह कर बदमाश ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

पति के अपहरण की बात सुनते ही राजीव की पत्नी परेशान हो गईं. उन्होंने फोन कर के पति के अपहरण की बात अपने ससुरालियों और मायके वालों को बता दी. इस के बाद घर के सभी लोग बहुत परेशान हो गए. अपहर्त्ताओं ने फोन कर के 15 लाख रुपए का इंतजाम करने की बात कही थी. पैसे कहां पहुंचाए जाएं, यह उन्होंने नहीं बताया था.

चूंकि अपहर्त्ता ने वाट्सऐप द्वारा बात करने को कहा था, इसलिए राजीव की पत्नी ने पति के फोन पर वाट्सऐप मैसेज भेज कर पूछा, ‘‘मेरे पति कैसे हैं, क्या उन से हमारी बात हो सकती है. उन का एक फोटो भी भेज दीजिए.’’

‘‘वो बिलकुल ठीक हैं. तुम लोगों ने पैसों का इंतजाम किया या नहीं.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

‘‘हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं.’’ राजीव की पत्नी ने कहा.

‘‘ठीक है मैं एक वीडियो भेजूंगा. उस के बाद खुद ही फैसला करना कि क्या करना है.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

इस के बाद अपहर्त्ता ने राजीव को बोरे से बाहर निकाल कर उन की पिटाई करनी शुरू कर दी. दूसरे बदमाश ने पिटाई का वीडियो बना लिया. अपहर्त्ता ने राजीव से यह भी कहा कि तुम्हारे घर वालों को शायद तुम्हारी फिक्र नहीं है. इसलिए वे पैसे नहीं दे रहे. यह वीडियो देख कर शायद उन्हें तुम्हारी चिंता हो जाए.

अपहर्त्ता ने राजीव की पिटाई वाली वीडियो उन के घर वालों को वाट्सऐप कर दी. वीडियो देख कर घर वालों का दिल कांप उठा कि वे लोग कितनी बेदर्दी से राजीव की पिटाई कर रहे थे. अब घर वालों ने तय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए वह उन्हें उन के चंगुल से छुड़ाने की कोशिश करेंगे वरना इस तरह तो वह लोग उन की जान ही ले लेंगे.

इस के तुरंत बाद राजीव की पत्नी ने पति के मोबाइल पर वाट्सऐप मैसेज भेजा, ‘‘आप इन से कुछ मत कहिए, अभी हमारे पास जितने भी पैसे हैं, हम आप को देने को तैयार हैं, बताइए पैसे कहां पहुंचाए जाएं.’’

दूसरी तरफ से अपहर्त्ता ने भी मैसेज भेजा, ‘‘आप पैसे राजीव कुमार के ही बैंक अकाउंट में जमा करा दीजिए.’’ तब राजीव के घर वालों ने डेढ़ लाख रुपए उन के बैंक खाते में जमा करा कर इस की जानकारी बदमाशों को दे दी.

उन्होंने फिलहाल पैसे जमा तो करा दिए लेकिन उन्हें इस बात पर भी संशय था कि बदमाशों द्वारा मांगी गई फिरौती की रकम देने के बाद इस बात की क्या गारंटी है कि वह राजीव को छोड़ देंगे. इसलिए उन्होंने इस की जानकारी अपने नजदीकी थाने को दे दी.

मामला अपहरण का था, हरिद्वार पुलिस ने जांच की तो केस उत्तर प्रदेश के जिला  गाजियाबाद का लगा. क्योंकि बदमाशों ने पहली बार राजीव के फोन से उन की पत्नी को फोन कर के जो 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी, उस फोन की लोकेशन उस समय गाजियाबाद जिले की ही आ रही थी. इसलिए हरिद्वार पुलिस ने राजीव के घर वालों से कहा कि वह गाजियाबाद पुलिस से संपर्क करें. इतना ही नहीं हरिद्वार पुलिस ने गाजियाबाद पुलिस से संपर्क कर काल डिटेल्स की जानकारी भी दे दी.

राजीव के घर वालों ने गाजियाबाद के एसएसपी वैभव कृष्ण से मुलाकात कर सारी जानकारी दे दी. यह मामला सीधे तौर पर अपहरण का था, इसलिए एसएसपी ने इस केस को गंभीरता से लिया. उन्होंने एसटीएफ के एसपी आर.के. मिश्रा के साथ विभिन्न थानों में मौजूद तेजतर्रार पुलिस वालों को भी केस की छानबीन में लगा दिया.

उधर राजीव के घर वालों ने उन के खातों में जो डेड़ लाख रुपए जमा कराए थे, वह रुपए बदमाशों ने राजीव से उन का डेबिट कार्ड और पिन नंबर ले कर कई बार में अलगअलग जगहों पर स्थित एटीएम मशीनों से निकाल लिए थे.

राजीव के घर वालों ने गाजियाबाद पुलिस को यह भी जानकारी दे दी कि अपहर्त्ताओं के कहने पर उन्होंने राजीव के बैंक खाते में डेढ़ लाख रुपए जमा करा दिए थे. पुलिस ने बैंक अधिकारियों से मिल कर जब राजीव के खाते की जांच की तो पता चला कि बदमाशों ने राजीव के डेविड कार्ड से दिल्ली, गाजियाबाद, हापुड़ और बुलंदशहर के एटीएम से कई बार में सारे पैसे निकाल लिए हैं.

जिन एटीएम सेंटरों से उन्होंने वह पैसे निकाले थे, पुलिस ने वहां लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी तो पता चला कि अलगअलग एटीएम मशीनों से अलगअलग लोगों द्वारा पैसे निकाले गए थे और उन्होंने अपने चेहरे कैप से ढक रखे थे. राजीव का अपहरण हुए कई दिन बीत चुके थे. उन के घर वालों और रिश्तेदारों को उन की चिंता हो रही थी. सब इस बात को ले कर परेशान थे कि पता नहीं राजीव को उन लोगों ने किस हाल में रखा होगा.

वैसे बदमाश राजीव को हर समय हाथपैर बांध कर ही रखते थे. सुबह और शाम को वह उन के हाथपैर केवल खाना खाने के लिए खोलते थे. खाना खाने के बाद वह फिर से उन्हें रस्सी से बांध देते थे. वह नशे में रहे इस के लिए उन्हे नींबू पानी में नींद की गोलियां मिला कर दे देते. इस के अलावा वह उन की कमर में नशे का इंजेक्शन भी लगाते थे.

राजीव को अपहर्त्ताओं के चंगुल में रहते हुए 9 दिन बीत चुके थे. उन के घर वाले लगातार पुलिस अधिकारियों से संपर्क कर अपनी चिंता जाहिर कर रहे थे. पुलिस की 20 टीमें अपनेअपने तरीकों से अपहर्त्ताओं के पास पहुंचने की कोशिश में लगी थीं. सर्विलांस टीम भी मुस्तैद थी.

अब तक की जांच और अपने मुखबिरों से मिली जानकारी के बाद पुलिस और एसटीएफ की टीम ने अपहरण के 9वें दिन यानी पहली जून, 2018 को गाजियाबाद की पौश कालोनी वसुंधरा के पास स्थित प्रह्लादगढ़ी गांव में दबिश दे कर रिंकू नाम के बदमाश को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने उस से पूछताछ कर सैंट्रल टेबल के नीचे बोरी में बंद पड़े राजीव कुमार को बरामद कर लिया. उन के हाथपैर बांधे हुए थे और उस समय वह बेहोशी की हालत में थे. उन्हें 2 पुलिसकर्मी तुरंत अस्पताल ले गए. इस के बाद पुलिस ने रिंकू से उस के अन्य साथियों के बारे में पूछताछ की तो रिंकू ने बताया कि उस के साथी शरद और महेश राजनगर एक्सटेंशन की तरफ गए हैं.

रिंकू को साथ ले कर पुलिस राजनगर एक्सटेंशन की तरफ गई तो उन्हें एक सैंट्रो कार दिखी. रिंकू के इशारे पर पुलिस ने उस कार का पीछा किया तो उन लोगों ने सैंट्रो कार की स्पीड और तेज कर दी. बाद में 2 बदमाश कार छोड़ कर पैदल ही भागने लगे. इतना ही नहीं उन्होंने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी. जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की.

बदमाशों की फायरिंग से 2 पुलिसकर्मी अरुण कुमार और मनीष कुमार घायल हो गए. उधर पुलिस की गोली से दोनों अपहर्त्ता भी घायल हो कर गिर पड़े. तभी पुलिस ने दोनों बदमाशों को भी हिरासत में ले लिया. सभी घायलों को तुरंत अस्पताल में भरती कराया गया.

एसएसपी वैभव कृष्ण और एसटीएफ के एसपी आर.एन. मिश्रा को मुठभेड़ में पुलिसकर्मियों के घायल होने और अपहर्त्ताओं को गिरफ्तार कर राजीव कुमार के सकुशल बरामद करने की जानकारी मिली तो दोनों पुलिस अधिकारी अस्पताल पहुंच गए.

उधर सूचना मिलने पर राजीव के घर वाले भी गाजियाबाद के लिए रवाना हो गए. एसएसपी के समक्ष जब तीनों बदमाशों से सख्ती से पूछताछ की गई तो पता चला कि लोगों का अपहरण कर मोटी फिरौती मांगना इन बदमाशों का धंधा बन चुका था.

राजीव से पहले ये और भी कई लोगों का अपहरण कर उन से फिरौती की मोटी रकम वसूल चुके थे. नशे की ज्यादा खुराक देने के चक्कर में अपहरण किए गए 3 लोगों की नशे की ओवरडोज से इन के यहां मौत भी हो चुकी थी और 2 लोगों की वह हत्या भी कर चुके थे.

इन लोगों ने अपहरण करने का गैंग क्यों बनाया और इन का अपहरण करने का तरीका क्या था आदि के संबंध में पुलिस ने पूछताछ की तो इन शातिर बदमाशों ने जो कहानी बताई वह वास्तव में हैरान कर देने वाली थी.

पता चला कि हापुड़ निवासी रिंकू, अयोध्या के रहने वाले शरद और सूरजपुर निवासी महेश मिश्रा तीनों ही वाहन चोर हैं. ये अलगअलग रह कर वाहन चोरी करते थे. जेल में मुलाकात होने के बाद इन्होंने एक साथ मिल कर लूटपाट भी शुरू कर दी. इन लोगों ने लिफ्ट देने के बहाने लोगों को लूटना भी शुरू कर दिया. ज्यादा पैसे पाने के लिए इन्होंने नए तरीके से लोगों का अपहरण कर उन के घर वालों से मोटी फिरौती वसूलनी चालू कर दी.

करीब एक महीने पहले इन्होंने लालकुआं (गाजियाबाद) से बिजनौर जा रहे सौरभ नाम के एक युवक को अपनी कार में लिफ्ट दे कर बंधक बनाया. जब उस ने लूट का विरोध किया तो इन्होंने उस की हत्या कर दी. इस के बाद इन्होंने उस का मोबाइल फोन, अन्य सामान लूट लिया और उस की लाश डासना क्षेत्र में डाल दी.

इस के अलावा 24 मई, 2018 को इन्होंने डाबर तिराहे से दिल्ली में प्राइवेट जौब पर जाने वाले देवेंद्र नाम के युवक को लूटने के लिए रोका. देवेंद्र ने विरोध किया तो उन्होंने चाकू मार कर उस की हत्या कर दी. हत्या के बाद ये उस का लैपटौप, मोबाइल फोन आदि लूट कर फरार हो गए.

28 अप्रैल, 2018 को इन लोगों ने गजरौला के रहने वाले 22 वर्षीय पप्पू खान को आनंद विहार बस अड्डे से लिफ्ट दे कर किडनैप किया और उस के घर वालों से फिरौती  की रकम वसूल की. पप्पू खान 28 अप्रैल को बस द्वारा गजरौला से दिल्ली के लिए चला था. वह रात साढ़े 12 बजे आनंद विहार बस अड्डे पहुंचा. वहां से उसे हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर मुंबई में अपने भाई ने पास जाना था.

आनंद विहार बस अड्डे के बाहर महेश, रिंकू और शरद सैंट्रो कार लिए शिकार की तलाश कर रहे थे. ये लोग सराय काले खां बस अड्डे जाने की आवाज लगाने लगे. हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन सराय काले खां बस अड्डे के बराबर में ही है. यही सोच कर पप्पू खान उन की सैंट्रो कार में बैठ गया.

कार में बैठने के बाद इन्होंने पप्पू खान के एक तरफ से चाकू और दूसरी तरफ से पिस्टल लगा दी. पप्पू के मुंह से कोई भी आवाज नहीं निकली. वह बुरी तरह से डर गया. तभी बदमाशों ने उस के मुंह में जबरदस्ती नशे की गोलियां डाल कर ऊपर से पानी पिला दिया और उस का मोबाइल फोन और एटीएम कार्ड अपने कब्जे में ले लिया.

पप्पू को जब होश आया तो उस ने खुद को एक कमरे में बंद पाया. बदमाश 29 अप्रैल को उसे एनएच-24 हाईवे पर डासना के पास ले गए. उन्होंने उस के ही मोबाइल से उस के भाई से बात कराई. उन्होंने उस के भाई से 10 लाख रुपए की फिरौती मांगी. बाद में मामला 2 लाख रुपए में तय हो गया. 2 लाख रुपए उन्होंने पप्पू खान के ही बैंक खाते में मंगाए. फिर अपहर्त्ता अलगअलग जगहों की एटीएम मशीन से रोजाना 25 हजार रुपए निकाल लेते.

इस तरह उन्होंने 9 दिनों तक पप्पू खान को अपने पास बंधक बना कर रखा. वह उसे नशे की हालत में बांध कर कमरे में रखे संदूक में छिपा कर रखते थे. 2 लाख रुपए वसूलने के बाद उन्होंने पप्पू खान की आंखों पर पट्टी बांध कर सुबह 4 बजे एनएच-24 हाईवे पर यूपी गेट के पास छोड़ दिया. बदमाशों ने घर जाने के लिए उसे 500 रुपए भी दिए थे.

आनंद विहार बस अड्डा और मयूर विहार से उन्होंने अप्रैल माह में ही 2 और लोगों का अपहरण कर उन्हें 10 दिनों तक अपने कब्जे में रखा था. इन में एक को उत्तर प्रदेश के गजरौला में और दूसरे को गाजियाबाद के प्रह्लादगढ़ी में रखा गया था.

किडनैप किए लोगों को ये लोग नशे का इंजेक्शन लगा कर या नशीली गोलियां खिला कर, उन्हें बांध कर रखते थे. हैवी डोज देने की वजह से इन लोगों के पास रहते 3 लोगों की मौत भी हो गई थी. एचसीएल के इंजीनियर राजीव कुमार का अपहरण करने के बाद उन्हें भी नशे की हालत में रखा गया था.

बेहोशी की हालत में कभी उन्हें गद्दे के नीचे छिपा दिया जाता था तो कभी बोरी में बांध कर सेंट्रल टेबल के नीचे. राजीव कुमार ने बताया कि उन्हें बदमाशों के हावभाव देखने के बाद खुद के जीवित रहने की उम्मीद नहीं थी.

किडनैपिंग के अलावा भी शरद, महेश और रिंकू ने गाडि़यां चोरी करनी बंद नहीं की थीं. यह चोरी इस वजह से करते थे ताकि इन की पहचान छोटेमोटे चोर के रूप में बनी रहे. पुलिस ने शरदचंद्र, महेश मिश्रा और रिंकू से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें अदालत में पेश कर जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों एवं जनचर्चा पर आधारित

तांत्रिकों के जाल में दिल्ली

लोग चाहे कितने भी जागरूक हो गए हों, भले ही डिजिटल क्रांति आ गई हो लेकिन आज भी समाज में अंधविश्वास कायम है. कुछ अंधविश्वासी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए तांत्रिकों के पास पहुंचते हैं. तांत्रिक भी ऐसे लोगों की अंधी आस्था का लाभ उठाने से नहीं चूकते.

अंधविश्वास में डूबे ऐसे लोग आर्थिक शोषण के साथसाथ शारीरिक शोषण भी करा बैठते हैं. ऐसी बात नहीं है कि केवल अनपढ़ और निम्न तबके के लोग ही तांत्रिकों के पास पहुंचते हैं. सच्चाई तो यह है कि उच्च वर्ग के कई लोग भी तांत्रिकों की शरण में जाते हैं, मामूली पढ़ेलिखे नहीं बल्कि उच्चशिक्षित भी.

तथाकथित तांत्रिकों के चक्कर में फंस कर कई परिवार बरबाद हो चुके हैं, क्योंकि अपने स्वार्थ के लिए ये तांत्रिक कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. दिल्ली के मंदिर मार्ग इलाके में एक तांत्रिक के क्रियाकलाप की ऐसी खौफनाक हकीकत सामने आई कि सुनने वाले का भी कलेजा कांप उठे.

सेंट्रल दिल्ली के थाना मंदिर मार्ग का एक इलाका है कालीबाड़ी, जो प्रसिद्ध बिड़ला मंदिर (लक्ष्मीनारायण मंदिर) के सामने है. वैसे इस इलाके में अधिकांशत: सरकारी फ्लैट बने हुए हैं, जिन में सरकारी कर्मचारी रहते हैं.

यहीं के एक फ्लैट में 44 साल की के.वी. रमा अपने पति डी.वी.एस.एस. शिव शर्मा (45 साल) और 2 बच्चों के साथ रहती थी. के.वी. रमा शर्मा भारत सरकार के एक मंत्रालय में स्टेनोग्राफर के पद पर नौकरी करती थी. जबकि पति शिव शर्मा डीएलएफ कंपनी में फाइनैंस मैनेजर थे. इस दंपति की बेटी 7वीं कक्षा में और बेटा 5वीं कक्षा में पढ़ रहे थे. दोनों मियांबीवी कमा रहे थे, इसलिए घर पर हर महीने सैलरी के रूप में मोटी रकम आती थी. कुल मिला कर यह छोटा सा परिवार हर तरह से खुश और सुखी था.

कहते हैं जब किसी व्यक्ति के पास जरूरत से ज्यादा पैसा आने लगता है तो उस का दिमाग और ज्यादा सक्रिय हो जाता है. वह उस पैसे से और ज्यादा पैसे कमाने के उपाय खोजता है. शिव शर्मा भी अपने पैसे को और ज्यादा करने के उपाय खोजने लगे.

किसी ने उन्हें बताया कि शेयर मार्केट की कुछ कंपनियां ऐसी हैं, जिन में पैसे लगाने पर अच्छाखासा मुनाफा कमाया जा सकता है. यह बात शिव शर्मा को समझ आ गई. उन्हें शेयर मार्केट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, लिहाजा उन्होंने इंटरनेट से अच्छा लाभांश देने वाली कुछ कंपनियों के बारे में जानकारी हासिल कर ली.

इस के बाद उन्होंने उन कंपनियों के शेयर खरीदने शुरू कर दिए. शुरुआत में उन्हें फायदा हुआ तो उन की दिलचस्पी और बढ़ती गई. उन्होंने शेयर मार्केट में और ज्यादा पैसा लगाया. इस में उन्हें मिलाजुला अनुभव मिलने लगा. कुछ शेयरों ने लाभ दिया तो कुछ में उन्हें नुकसान भी हुआ. हो चुके नुकसान की भरपाई के लिए उन्होंने मोटा निवेश किया.

इस का नतीजा यह निकला कि उन्हें इस में भारी नुकसान हुआ. इस से उन की जमापूंजी तो चली ही गई, साथ ही उन पर कई लाख रुपए का कर्ज भी चढ़ गया. औफिस के लोगों से भी उन्होंने काफी पैसे उधार ले लिए थे. जिन लोगों से शिव शर्मा ने पैसे उधार ले रखे थे, उन के पैसे समय पर नहीं लौटाए तो उन्होंने तकादा करना शुरू कर दिया. कुछ लोग पैसे मांगने उन के फ्लैट तक आने लगे.

फलस्वरूप शिव शर्मा तनाव में रहने लगे. पत्नी के.वी. रमा को भी लोगों की तकादा करने वाली बात अच्छी नहीं लगती थी. शिव शर्मा कर्ज निपटाने के लिए पत्नी से पैसे मांगते थे. उन का कर्ज उतारने में पत्नी भी सहयोग कर देती थी. इन सब बातों को ले कर पतिपत्नी में नोंकझोंक होने लगी. शिव शर्मा तनाव की वजह से चिड़चिड़े हो गए थे, इसलिए वह गुस्से में पत्नी की पिटाई कर देते थे.

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घर में शुरू हो गई कलह

नतीजतन जिस घर में पहले सभी लोग शांति से रहते थे, अब वहां कलह ने डेरा डाल लिया था. पत्नी सरकारी कर्मचारी थी, वह अच्छीखासी सैलरी पाती थी, इसलिए वह पति की तनाशाही सहने के बजाय करारा जवाब दे देती तो पति उस पर हाथ छोड़ देता. के.वी. रमा महसूस करने लगी कि पति की वजह से ही वह शारीरिक और मानसिक समस्या से जूझ रही है. उधर शिव शर्मा लोगों के तकादे से परेशान थे. वह पत्नी से और पैसे मांगते तो वह मना कर देती कि अब उसे फूटी कौड़ी नहीं देगी.

एक दिन रमा ने अपने एक जानकार से अपने घर की समस्या के बारे में चर्चा की. उस जानकार ने बताया कि आप के पति पर किसी ऊपरी हवा का चक्कर हो सकता है. ऐसे में अगर किसी तांत्रिक से मिला जाए तो समस्या का समाधान हो सकता है. रमा इस तरह के अंधविश्वास से दूर रहती थी. हालांकि उस ने कई सार्वजनिक स्थानों पर तांत्रिकों के पैंफ्लेट चिपके देखे थे, जिन में हर तरह की समस्या का समाधान कुछ घंटों में करने की बात लिखी होती थी. इस के अलावा लोकल केबल चैनल पर भी ऐसे तांत्रिकों के विज्ञापन देखे थे.

रमा तंत्रमंत्र, टोनेटोटकों आदि को केवल ढकोसला समझती थी. पर अब जब उन के एक जानकार ने घर की समस्या के बारे में तांत्रिक के पास जाने की सलाह दी तो रमा ने भी सोचा कि अगर घर का तनाव किसी तांत्रिक के पास जाने से ठीक हो जाए तो तांत्रिक के पास जाने में कोई बुराई नहीं है. यानी जिस बात को वह अंधविश्वास और ढकोसला बताती थी, अब जरूरत पड़ने पर वह उसी पर विश्वास करने लगी.

करना पड़ा तंत्रमंत्र पर विश्वास

रमा किसी तांत्रिक को नहीं जानती थी, उस के जानकार ने दिल्ली के दक्षिणपुरी इलाके रहने वाले तांत्रिक श्याम सिंह उर्फ भगतजी के बारे में बताया. उस से पता ले कर वह तथाकथित तांत्रिक श्याम सिंह के पास पहुंच गई. तांत्रिक ने सब से पहले बातों बातों में रमा से उस के परिवार की आर्थिक स्थिति को समझा. इस के बाद रमा ने पति के बारे में एकएक बात तांत्रिक को बता दी.

रमा की बात सुनने के बाद तांत्रिक ने अपनी आंखें मूंद लीं और अपनी गद्दी पर बैठेबैठे ही बोला, ‘‘आप के पति के साथ किसी ने कुछ कर दिया है, जिस की वजह से वह घर का एकएक सामान बेच देंगे. यानी वह घर की बरबादी कर के रहेंगे.’’

‘‘भगतजी, इस का उपाय क्या है. मैं चाहती हूं कि वह शेयर बाजार से एकदम दूर हो जाएं. इस शेयर बाजार ने तो हमारे घर की सुखशांति सब छीन ली है.’’ रमा ने कहा.

‘‘देखो, मैं समाधान तो कर दूंगा. वह शेयर में पैसे भी नहीं लगाएंगे, साथ ही बदसलूकी भी नहीं करेंगे. लेकिन इस में करीब एक लाख रुपए का खर्च आएगा.’’ तांत्रिक बोला.

‘‘कोई बात नहीं, हम आप को यह रकम दे देंगे. लेकिन हमें समस्या का समाधान चाहिए.’’ रमा ने कहा.

‘‘आप इस की चिंता न करें. आप हमारे रिसैप्शन पर 30 हजार रुपए जमा करा दीजिए, जिस से हम अपना काम शुरू कर सकें.’’ तांत्रिक ने कहा तो रमा ने पैसे रिसैप्शन पर बैठी लड़की को दे दिए.

वह इस विश्वास से घर चली आईं कि अब समस्या दूर हो जाएगी.

तांत्रिक ने कुछ मंत्र बुदबुदाने के बाद रमा को भभूत देते हुए कहा, ‘‘लो यह भभूत, तुम 7 शनिवार तक पति को शाम के खाने में मिला कर दे देना, सब कुछ ठीक हो जाएगा. ध्यान रखना केवल शनिवार को ही देना. इसे खाने में तब मिलाना जब मिलाते समय कोई टोके नहीं.’’

‘‘ठीक है भगतजी, मैं ऐसा ही करूंगी.’’ कह कर रमा घर चली आई. तांत्रिक के कहे अनुसार रमा ने ऐसा ही किया. वह हर शनिवार को शाम के खाने में पति के खाने में तांत्रिक द्वारा दी गई भभूत मिला कर देने लगी थी. उसे उम्मीद थी कि भभूत अपना असर जरूर दिखाएगी. पर 4-5 सप्ताह बाद भी पति के व्यवहार में कोई फर्क नहीं पड़ा तो रमा ने तांत्रिक को फोन किया. जवाब में तांत्रिक ने कहा कि 7 शनिवार होने दो, पूरा असर होगा. इस बीच रमा तांत्रिक से फोन पर बात करती रहती थी.

किसी तरह शिव शर्मा को इस बात का आभास हो गया था कि उस की पत्नी किसी तांत्रिक के पास जाती है. शिव शर्मा ने पत्नी से इस बारे में कभी कुछ नहीं कहा. 7 शनिवार पति को भभूत खिलाने के बाद भी पति पर कोई असर नहीं हुआ तो रमा तांत्रिक के पास पहुंची. तांत्रिक ने फिर दूसरी भभूत दी.

इतना ही नहीं, तांत्रिक से उस के फ्लैट पर पूजा, हवन भी कराया. निश्चित दिनों तक भभूत खिलाने के बाद भी पति की आदतों में कोई फर्क नहीं पड़ा तो रमा फिर से तांत्रिक से मिली. चूंकि वह पति से अब ज्यादा ही परेशान हो चुकी थी, इसलिए उस ने तांत्रिक से शीघ्र समाधान करने के लिए कहा.

बना लिया मारने का प्लान

इस पर तांत्रिक ने रमा से कहा कि अब तो इस के लिए आरपार की लड़ाई लड़नी पड़ेगी. रमा ने भी कह दिया कि पति के स्थाई निदान के लिए वह तैयार है. इस के बाद तांत्रिक ने एक बोतल पानी में कुछ घोल कर दे दिया. तांत्रिक श्याम सिंह उर्फ भगतजी मूलरूप से उत्तराखंड का रहने वाला था. वह दक्षिणपुरी में किराए के मकान में पिछले दोढाई साल से अपना धंधा चला रहा था.

वह पहाड़ों से कुछ जड़ीबूटियां लाता रहता था. उन में से ही कोई बूटी उस ने बोतल के पानी में घोल कर रमा को दे दी थी. घर पहुंच कर रमा ने एक गिलास में बोतल का पानी पति को देते हुए कहा, ‘‘लो, यह बाबाजी का दिया हुआ प्रसाद है. इसे पी लो, सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी.’’

पत्नी के विश्वास पर शिव शर्मा ने वह पानी पी लिया. पानी पीने के बाद उन की हालत बिगड़ने लगी. हालत बिगड़ने पर पत्नी उन्हें डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल ले गई. पति को अस्पताल में भरती कराने के बाद रमा ने जब देखा कि पति की हालत गंभीर है तो वह वहां से घर चली आई. अस्पताल में कुछ देर बाद ही शिव शर्मा की मौत हो गई.

शिव शर्मा की मौत के बाद अस्पताल के लोगों ने रमा को ढूंढा पर वह नहीं मिली. इस पर अस्पताल प्रशासन द्वारा पुलिस को खबर दे दी गई. पुलिस ने लाश अस्पताल की मोर्चरी पहुंचवा दी. थाना मंदिर मार्ग के थानाप्रभारी आदित्य रंजन भी वहां पहुंच गए.

पुलिस छानबीन कर रमा के फ्लैट तक पहुंच गई. थाने बुला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि तांत्रिक श्याम सिंह द्वारा दिया गया पानी पीने के बाद ही उन की हालत बिगड़ी थी. रमा की निशानदेही पर पुलिस ने दक्षिणपुरी से तांत्रिक श्याम सिंह को भी हिरासत में ले लिया. उस ने पूछताछ में स्वीकार कर लिया कि उस ने रमा को दिए गए पानी में जहर मिलाया था. पुलिस तांत्रिक को भी थाने ले आई.

उधर शिव शर्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी जहरीले पदार्थ के सेवन से मृत्यु होने की पुष्टि हो गई. तब पुलिस ने आरोपी के.वी. रमा और तांत्रिक श्याम सिंह को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. इस तरह एक तांत्रिक के चक्कर में फंस कर रमा ने अपनी गृहस्थी खुद ही उजाड़ ली.

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खजाना मिलने के लालच में गंवाए 17 लाख रुपए

कहते हैं लालच बुरी बला है. ज्यादा लालच हमेशा नुकसानदायक होता है. दिल्ली के मंगोलपुरी के रहने वाले किशनलाल (परिवर्तित नाम) के साथ ऐसा ही हुआ. मंगोलपुरी के वाई ब्लौक में रहने वाले किशनलाल के परिवार में पत्नी के अलावा 5 बच्चे हैं. उन की दवाई की दुकान है. उन का कारोबार अच्छाखासा चल रहा था. करीब 6 साल पहले उन के मकान में जाहिद नाम का एक युवक किराए पर रहता था.

एक दिन जाहिद किशनलाल के घर आया. वह काफी दिनों बाद आया था, इसलिए उन्होंने जाहिद की खूब खातिरतवज्जो की. बातचीत के दौरान जाहिद ने बताया कि वह तांत्रिक है. अपनी तंत्र विद्या से लोगों का भला करता है. उस ने किशनलाल ने कहा, ‘‘आप के इस घर में काला साया है. यह परिवार के लिए अहितकर है. यदि शीघ्र ही इस का समाधान नहीं किया गया तो परिवार में किसी की जान भी जा सकती है.’’

यह सुन कर किशनलाल घबरा गए. वह बोले, ‘‘इस का समाधान कैसे होगा. तुम तो तांत्रिक हो, इसलिए तुम्हीं बताओ.’’

‘‘आप परेशान मत होइए. समाधान हो जाएगा, लेकिन इस की पूजा आदि पर करीब 30 हजार रुपए खर्च होंगे.’’ जाहिद ने बताया.

जाहिद किशनलाल से पूजा के नाम पर 30 हजार रुपए ले गया. करीब 10 दिन बाद जाहिद फिर से किशनलाल के यहां आया. वह बोला, ‘‘10 दिन की पूजा के दौरान मुझे पता चला कि आप के घर में मुगलों की दौलत गड़ी हुई है. यही मुसीबत का साया है. अगर खुदाई कर के दौलत निकाल कर पूजा की जाए तो यह साया दूर हो जाएगा.’’

घर में खजाना गड़ा होने की बात सुन कर किशनलाल खुश हो गए. उन्होंने जाहिद से मकान में खुदाई करने को कहा तो जाहिद ने कहा यह काम बड़ा है. इस काम में 2 तांत्रिकों को और लगाया जाएगा. इस के लिए उस ने किशनलाल से 60 हजार रुपए और ले लिए. जाहिद 2 तांत्रिकों को किशनलाल के घर ले आया.

तांत्रिकों ने किशनलाल के घर में पूजा कर के बताया कि वास्तव में इस घर में भारी मात्रा में खजाना दबा हुआ है. यकीन दिलाने के लिए उन तांत्रिकों ने फर्श की खुदाई शुरू कर दी. थोड़ी खुदाई करने पर सोने का एक सिक्का मिला. सिक्का देख कर किशनलाल खुश हो गए. उन्होंने वह सिक्का एक ज्वैलर को दिखाया. ज्वैलर ने सिक्के की जांच कर के बताया कि सिक्का 100 प्रतिशत सोने का है.

इस के बाद किशनलाल को लालच आ गया. उन्होंने और खुदाई कराने को कहा तो जाहिद ने कहा कि आगे की खुदाई से पहले पूजा करनी होगी, वरना वह साया इस कार्य में व्यवधान डालेगा. जाहिद ने उन से 3 लाख रुपए के अलावा 110 लोगों को खाना खिलाने और उन्हें कपड़े दान दिए जाने का खर्च मांगा. किशनलाल ने वह भी दे दिया.

इस के बाद उन तांत्रिकों ने किशनलाल से पूजा आदि के नाम पर 11 लाख रुपए और ऐंठ लिए. किशनलाल ने भी यह सोच कर रकम दे दी कि जो खजाना निकलेगा, उस के मुकाबले यह रकम मामूली है. इसी लालच में उन्होंने इतनी बड़ी रकम उन तांत्रिकों को दे दी थी. जाहिद और उस के साथी किशनलाल से अब तक 17 लाख रुपए ऐंठ चुके थे. किशनलाल ने लालच में आ कर पैसे ब्याज पर ला कर दिए थे.

अगले दिन जाहिद ने किशनलाल को फोन कर के बताया कि उन्हें अशोक विहार थाना पुलिस ने पकड़ लिया है. पुलिस 6 लाख रुपए मांग रही है. किशनलाल थाना अशोक विहार गए तो पता चला कि पुलिस ने उन्हें नहीं पकड़ा है. तब उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें ठगा जा रहा है. किशनलाल को अपने साथ हुई ठगी का बड़ा अफसोस हुआ. उन्होंने इस की शिकायत पुलिस से की.

तांत्रिकों के चक्कर में पड़ कर कई परिवार बरबाद हो चुके हैं. 7 फरवरी, 2018 को उत्तर पश्चिमी दिल्ली के नेताजी सुभाष पैलेस क्षेत्र में तांत्रिक के बहकावे में आ कर एक व्यक्ति ने अपनी बेटी को ही उस के हवाले कर दिया. पीडि़त लड़की ने पुलिस को बताया कि तांत्रिक बुरी आत्माओं को भगाने के नाम पर पिछले 12 सालों से उस के साथ रेप करता रहा.

18 फरवरी, 2018 को भी एक महिला ने इसलिए खुदकुशी कर ली थी कि बच्चा न होने पर उस के ससुराल वालों ने उसे तांत्रिक के हवाले कर दिया था. पश्चिमी दिल्ली के जखीरा में एक महिला ने बेटे की चाह में अपनी दोनों बेटियों को मार दिया था. तांत्रिक के कहने पर वह महिला अपनी 5 साल और 6 माह की बेटी के ऊपर लेट गई थी, जिस से दोनों बेटियों की मौत हो गई थी.

दिल्ली में ही 22 फरवरी, 2018 को एक दोस्त की इसलिए हत्या कर दी थी क्योंकि तांत्रिक ने आरोपी से कहा था कि तुम्हारी बहन पर दोस्त ने जादू किया था, इसलिए बहन ने आत्महत्या कर ली थी.

आजकल तांत्रिकों ने भी अपने बिजनैस का ट्रेंड बदल दिया है. दिल्ली एनसीआर के तांत्रिकों का बिजनैस फेसबुक, वाट्सऐप और ट्विटर पर भी चल रहा है. तांत्रिक इन माध्यमों पर प्रचार कर के अपनी चमत्कारिक शक्तियों से कुछ ही घंटों में किसी भी समस्या का समाधान करने का दावा करते हैं. कई तांत्रिकों ने तो अपना प्रभाव जमाने के लिए आकर्षक वेबसाइट भी बनवा रखी है.

इन वेबसाइटों पर औनलाइन बुकिंग की भी विशेष सुविधा उपलब्ध करा रखी है. पेमेंट भी ये औनलाइन पहले ही जमा करा लेते हैं. अपनी समस्याओं का समाधान कराने के चक्कर में लोग जब तथाकथित तांत्रिकों द्वारा ठगे जाते हैं तो शर्म की वजह से यह बात किसी को बताने में हिचकते हैं. यानी ठगे जाने के बावजूद भी लोग बदनामी की वजह से चुप रहते हैं. यही वजह है कि तांत्रिकों का अंधी आस्था के नाम पर ठगी का यह बिजनैस खूब फलफूल रहा है.