
देह व्यापार की दुनिया में दखल और दिलचस्पी रखने वाला भोपाल का कोई बिरला शख्स ही होगा जो सना को न जानता हो. भोपाल की इस महिला की अपनी एक पहचान है, क्योंकि वह कालगर्ल्स और कस्टमर के बीच पुल का काम करती है. सना के पास हजारों उन लड़कियों के मोबाइल नंबर हैं, जो पार्ट या फुल टाइम देह व्यापार के जरिए पैसे कमाना चाहती हैं.
सना के पास हजारों ऐसे ग्राहकों के भी नंबर हैं, जिन्हें कभीकभार सैक्स सर्विस की जरूरत पड़ती है. ये लोग बेहतर जानते हैं कि भोपाल में मनपसंद लड़की अगर कोई मुहैया करा सकता है तो वह केवल सना ही है.
सना कई खूबियों की मालकिन है, और उस की इन खूबियों को भोपाल के लोग ही नहीं पुलिस वाले भी जानते हैं. भोपाल में लंबे अर्से से सैक्स रैकेट चला रही सना ने पुलिस को छकाने का नया तरीका खोज निकाला है, वह भोपाल में ही ठिकाने बदलबदल कर अपना धंधा चलाती है. 4-6 महीने में वह पहला ठिकाना छोड़ कर दूसरे पर जा बैठती थी.
इस साल फरवरी के महीने में सना ने निशातपुरा इलाके के विश्वकर्मा नगर को चुना था, जहां से कभी भोपाल शहर शुरू होता था. विश्वकर्मा नगर में मध्यमवर्गीय लोगों की भरमार है जो शराफत और सुकून की जिंदगी जीते हैं.
भोपाल के होशंगाबाद रोड निवासी और पेशे से ट्रांसपोर्टर रमेश शर्मा ने सना को विश्वकर्मा नगर स्थित अपना मकान साढ़े 5 हजार रुपए महीना किराए पर दिया था. तब उन्हें इल्म तक नहीं रहा होगा कि खुद को अकेली और बेसहारा बता रही यह खूबसूरत बला उन्हें किस झमेले में डालने वाली है.
बीती 11 मई की अलसुबह भोपाल गरमी और उमस से बेहाल था. जब आसमान से उजाला उतरने लगता है, तब पुलिस थानों में ड्यूटी बजा रहे पुलिसकर्मी भी अंगड़ाइयां लेते हुए सोचते हैं कि चलो आज की रात बगैर किसी भागदौड़ी के गुजर गई. सुबह 5 बजे तक अगर किसी संगीन वारदात की खबर न मिले तो पुलिस वाले बेफिक्र हो जाते हैं, क्योंकि इस वक्त से ले कर दोपहर 12 बजे तक जुर्म न के बराबर होते हैं.
निशातपुरा थाने के टीआई चैन सिंह भी चैन की सांस लेते हुए घर जाने की सोच रहे थे, तभी उन के पास सीएसपी लोकेश सिन्हा का फोन आया. फोन पर मिले निर्देशानुसार वे तुरंत पुलिस टीम के साथ विश्वकर्मा नगर की तरफ रवाना हो गए. लोकेश सिन्हा की बातों से उन्हें इतना ही समझ में आया था कि विश्वकर्मा नगर के एक मकान में देह व्यापार चल रहा है, जिस में कुछ विदेशी युवतियां भी शामिल हैं. लोकेश सिन्हा को यह शिकायत विश्वकर्मा नगर के एक संभ्रांत और जिम्मेदार नागरिक ने दी थी.
मामला चूंकि गंभीर और देह व्यापार का था, इसलिए उन्होंने अपनी टीम में थाने में मौजूद महिला पुलिसकर्मियों को भी शमिल कर लिया. पुलिस टीम जब बताए हुए ठिकाने पर पहुंची तो मकान की कुंडी बाहर से बंद थी, जो मोहल्ले वालों ने बंद कर दी थी. दरवाजा खोल कर पुलिस टीम अंदर पहुंची तो वहां का नजारा देख कर सकते में आ गई.
6 युवतियां और 5 पुरुष ब्लू फिल्मों जैसी आपत्तिजनक अवस्था में एकदम जंगली और वहशियाना तरीके से सैक्स कर रहे थे. शायद पुलिस वालों ने भी अप्राकृतिक सहवास के ऐसे दृश्य पहली दफा देखे थे. सैक्स के इस खेल में कोई बंदिश नजर नहीं आ रही थी.
अप्रत्याशित रूप से पुलिस टीम को आया देख कर इन युवक युवतियों में दहशत और अफरातफरी मच गई. हर कोई अपने आप को ढकने की कोशिश में लग गया. 2 लड़कियां तो चादर में मुंह छिपा कर सो गईं. पुलिस टीम ने वक्त न गंवा कर काररवाई शुरू की तो मौजूद युवक हिम्मत जुटा कर बहसबाजी पर उतर आए. उन का कहना था कि वे अपने एक दोस्त की बर्थडे पार्टी मनाने के लिए इकटठा हुए थे और रात ज्यादा हो जाने के कारण यहीं रुक गए थे.
इस के अलावा उन्होंने यह कह कर भी पुलिस पर दबाव बनाने की कोशिश की कि वे पतिपत्नी हैं, पतिपत्नी के बीच यूं दखल देने का हक पुलिस को भी नहीं है. लेकिन जब पुलिस वालों ने पतिपत्नी होने के सबूत मांगे तो उन की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई.
बाकी 9 लोग तो कपड़े पहन कर लाइन में खड़े हो गए, लेकिन मुंह ढक कर सोई 2 युवतियां चुपचाप चादर ओढ़े बिना हिलेडुले पड़ी रहीं. पुलिस वालों ने जब चादर हटाई तो उन्हें देख चौंक गए, क्योंकि वे अफ्रीकन थीं, जिन्हें लोग नीग्रो भी कहते हैं. इधर पुलिस ने युवक युवतियों के भागने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा था इसलिए वे हल्ला मचाने के बाद खामोशी से आगे की काररवाई का इंतजार करने लगे.
पूछताछ के पहले मकान की तलाशी की औपचारिकता में आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई, जिन में कंडोम, नशे की सामग्री और सैक्स पावर बढ़ाने वाली दवाइयां भी थीं. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी कि देह व्यापार की खबर गलत नहीं थी.
उस में विदेशी युवतियों के लिप्त होने की बात भी सच थी. आपत्तिजनक सामान जब्त करने के बाद पुलिस ने आरोपियों से पूछताछ शुरू की तो पता चला कि इस सैक्स रैकेट की सरगना सना नाम की चर्चित महिला है. युवकों के नाम अनवर मछली, बुधवारा निवासी सादिक और फैजान खान के अलावा कोहेफिजा निवासी जैद, आयाज खान व तलैया निवासी सलमान खान थे.
रमजान का पाक महीना शुरू होने से पहले ही ईद मना रहे इन युवाओं के बाद जब 4 देसी और 2 विदेशी कालगर्ल्स से पूछताछ की गई तो कुछ नई बातें भी उजागर हुईं. सना तो खामोशी से आगे की सोचती रही, लेकिन अफ्रीकन युवतियों ने खुद को युगांडा का नागरिक बता कर अपने वीजा पर आने की बात कबूली.
भोपाल की 3 लड़कियों ने भी सच उगलने में ही भलाई समझी कि वे पेशेवर कालगर्ल्स हैं और भोपाल के होटलों व बार में डांस करती हैं. डांस करते करते ही वे ग्राहक फंसाती थीं और उन के मोबाइल नंबर ले कर बाद में सौदेबाजी करती थीं.
शुरुआती पूछताछ में भी पता चला कि हर एक लड़की को एक रात के लिए 1500 रुपए से ले कर 5000 रुपए मिलने थे. जबकि युगांडाई युवतियों को कुछ ज्यादा रकम मिलनी थी, क्योंकि वे बिना किसी हिचक के अप्राकृतिक और ओरल सैक्स भी करती थीं.
भोपाल में युगांडा की ये कालगर्ल्स कटारा हिल्स जैसे पौश इलाके में रह रही थीं और पिछले 2 महीनों से सना की सरपरस्ती में देह व्यापार कर रही थीं. ये दोनों मुंबई से भोपाल अपनी एक हमवतन युवती से मिलने आई थीं. चूंकि पैसों की जरूरत थी, इसलिए वे जिस्म फरोशी के धंधे में आ गई थीं.
ये दोनों बहुत फिल्मी तरीके से सना के संपर्क में आई थीं. आमतौर पर अफ्रीकी यानी नीग्रो लोग सार्वजनिक स्थलों पर दिखने से बचने की कोशिश करते हैं तो इस की कई दीगर वजहें भी हैं. लेकिन इन्हें कभी कभार खानेपीने गांधीनगर स्थित एक रेस्टोरेंट में जाना पड़ता था, जहां उन की जानपहचान जैद नाम के शख्स से हुई. जैद की पहल पर इन की दोस्ती एक अन्य युवती से हो गई. इसी युवती ने इन दोनों को देह व्यापार में आने के लिए राजी किया.
पकड़ी गई भोपाली युवतियों ने इस का राज भी यह बता कर खोल दिया कि भोपाल में इन दिनों अफ्रीकन लड़कियों के शौकीनों की तादाद बढ़ रही है. इस के पीछे मर्दों की यह सोच है कि अफ्रीकन यानी काली लड़कियां सैक्स में माहिर होती हैं और अप्राकृतिक व ओरल सैक्स से परहेज नहीं करतीं. इस के अलावा इन के सामान्य से बड़े आकार के स्तन भी पुरुषों को बहुत लुभाते हैं.
एक कालगर्ल का कहना था कि मर्द जो कुछ ब्लू फिल्मों में देखते हैं, वह खुद भी वैसा ही करना चाहते हैं. लेकिन आमतौर पर देसी कालगर्ल्स इस तरह के जंगली सैक्स से परहेज करती हैं, इसलिए युगांडाई युवतियों को फंसाया गया या राजी किया गया, कहना मुश्किल है. हां, सैक्स में प्रयोग का यह शौक पांचों युवकों को महंगा पड़ा.
सना के बयान इस मामले में काफी अहम थे, जिस ने यह तो माना कि उस के संपर्क में कई लड़कियां थीं, इन में भी कालेज गर्ल्स खास तादाद में हैं. ये लड़कियां फुल टाइम देह व्यापार नहीं करतीं बल्कि महीने में एकदो दफा सर्विस देती हैं. वे एक दो दिन ही सना के ठिकाने पर रुकती थीं और पैसा मिल जाने पर चली जाती थीं. बारबार सना की मोहताजी से बचने के लिए ये लड़कियां ग्राहकों से उन के मोबाइल नंबर ले कर उन की मांग के मुताबिक सर्विस देती थीं.
सना ने यह भी बताया कि उस के पास आने वाली अधिकांश लड़कियां भोपाल के आसपास के शहरों की होती थीं, हालांकि उन में कुछ भोपाल की भी थीं. यह मानने से उस ने एकदम इनकार कर दिया कि वह या उस की नियमित कालगर्ल्स कालेजों और दूसरी सार्वजनिक जगहों पर जा कर लड़कियों को देहव्यापार के लिए उकसाती या फंसाती थीं. उस के मुताबिक यह मरजी और जरूरत का सौदा था. जिस में उस का रोल केवल एक मध्यस्थ का हुआ करता था.
भोपाल के होटलों व बार में डांस करने वाली बाकी 3 लड़कियां अपने लिए खुद ग्राहक फंसातीं, या ढूंढती थीं, इन में से चूंकि अधिकांश के पास खुद का कोई ठिकाना नहीं होता था, इसलिए वे अपने ग्राहकों को सना के ठिकाने पर ले आती थीं.
जब युगांडा की कालगर्ल्स की और छानबीन की गई तो पता चला कि वे मैडिकल वीजा पर भारत आई थीं. इन में से एक को पथरी थी और दूसरी को एलर्जी की शिकायत. भारत आने पर इन्होंने मैडिटेशन सीखने की बात कही थी. पर ये किस तरह का ध्यान लगा या लगवा रही थीं, यह 11 मई की सुबह उजागर हो गया.
पकड़ी गई कालगर्ल्स ने यह भी बताया कि अप्राकृतिक और ओरल सैक्स के चलते सना की दुकान लगातार गुलजार हो रही थी, जिसे उस ने पावर पौइंट का नाम दिया था. सना ग्राहकों की मर्दाना ताकत आजमाने के लिए कहती थी कि जो मर्द इन अफ्रीकन लड़कियों को संतुष्ट कर देगा वही असली और सच्चा मर्द है.
पांचों सच्चे और असली मर्द जो आपस में दोस्त भी हैं, अब हवालात और अदालत के चक्कर काट रहे हैं. पुलिस युगांडा के दूतावास से युगांडाई युवतियों के बाबत उन के देश से जानकारियां इकट्ठा कर रही है.
हालफिलहाल यह आशंका निर्मूल साबित हुई कि देहव्यापार के अलावा वे किसी और तरह से भी संदिग्ध हैं. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कटारा हिल्स में रहने वाली युगांडा की ही तीसरी युवती फरार हो जाने के कारण गिरफ्तार नहीं हो पाई थी, जिस के यहां ये दोनों कालगर्ल्स आ कर ठहरी थीं.
आज से कुछ वर्ष पहले 15 नवंबर, 2009 को जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक अदालत ने एक शिक्षक को 1 लाख रुपए मुआवजे की सजा से दंडित किया था, जिस ने फैसले से ठीक 12 वर्ष पहले अपने छात्र को पूरे दिन निर्वस्त्र खड़ा रखा था, तब एक उम्मीद बंधी थी कि सम्माननीय शिक्षक समाज के वे सदस्य जो परिस्थितिवश अपने आचरण के विपरीत कदम उठा लेते हैं, कोई सबक लेंगे. उस समय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रतिभा रानी ने अपने फैसले में उक्त शिक्षक को निर्देश दिया था कि वह बतौर मुआवजा 1 लाख रुपए पीडि़त छात्र को अदा करे.
मार्च, 1997 को दिल्ली के एक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक पी सी गुप्ता ने उस 13 वर्षीय छात्र को विद्यालय के तालाब में नहाते हुए पकड़ लिया. वे इतने नाराज हुए कि उन्होंने पहले उसे जम कर पीटा, फिर पूरे समय तक विद्यालय में निर्वस्त्र खड़ा रखा. अभिभावकों ने उन के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, मुकदमा चला और 19 मार्च, 2007 को निचली अदालत ने गुप्ता को 1 वर्ष की कैद और ढाई हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई. गुप्ता ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी.
उन की उसी अपील के आलोक में अदालत ने यह फैसला दिया. लेकिन हालात सुधरने के बजाय लगातार बिगड़ते चले गए. न जाने हमारे देश के शिक्षकशिक्षिकाओं को आखिर क्या होता जा रहा है कि वे आएदिन अपनी करतूतों से अभिभावकों का विश्वास तारतार कर रहे हैं. कहीं छात्रछात्राओं की पिटाई हो रही है, तो कहीं यौन उत्पीड़न या उस का प्रयास.
बिहार में 15 अक्तूबर को चोरसुआ गांव में नालंदा पब्लिक स्कूल के शिक्षक ने प्रथम वर्ग के छात्र की पिलर से बांध कर बेरहमी से पिटाई की. जिस से बच्चा बुरी तरह से जख्मी हो गया और उस का बायां हाथ टूट गया. इसी तरह 15 सितंबर को उत्तर प्रदेश के कानपुर में क्लासरूम में एक बच्चे को खेलता देख एक शिक्षक ने उस की इतनी पिटाई की कि बच्चे की आंखों की रोशनी चली गई.
इस वर्ष अगस्त माह के अंतिम सप्ताह में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में शिक्षक समाज उस समय एक बार फिर शर्मसार हुआ जब पुलिस द्वारा चलाए जा रहे औपरेशन सखी के तहत दिल्ली के उत्तरपूर्वी जिले के खजूरी थानांतर्गत एक सरकारी विद्यालय की छात्राओं की काउंसलिंग के दौरान शिकायत मिली कि गणित पढ़ाने वाला शिक्षक आतेजाते समय एवं कक्षा में उन्हें गलत तरीके से छूता है. जांच में शिकायत सही मिली और उक्त शिक्षक को पास्को के तहत गिरफ्तार कर लिया गया.
इस से पहले बीते 5 अगस्त को दिल्ली पुलिस ने शालीमार बाग के बीटी ब्लौक स्थित सरकारी विद्यालय के एक शिक्षक के खिलाफ अपने छात्र के उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज किया. उक्त शिक्षक ने अपने 8 वर्षीय छात्र को इसलिए उठा कर पटक दिया क्योंकि उस ने घर जा कर अभिभावकों व विद्यालय के अन्य कर्मचारियों पर यह राज जाहिर कर दिया था कि उक्त शिक्षक उस से और दूसरे छात्रों से पैर दबवाता है, मालिश कराता है.
कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के कानपुर में नौबस्ता स्थित एक विद्यालय में पहली कक्षा की 6 वर्षीया छात्रा अविका अपनी शिक्षिका के वहशीपन का शिकार बन गई. कानपुर के पूर्णादेवी गर्ल्स इंटर कालेज में कक्षा 6 की छात्रा रूपा को मोबाइल रखने के आरोप में सब के सामने कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया. नतीजतन, घर आ कर उस ने फांसी लगा ली.
कानपुर के ही विजय नगर स्थित राजकीय इंटर कालेज में कक्षा 6 के छात्र विनीत ने महज इस बात पर फांसी लगा कर जान दे दी क्योंकि उस से स्कूल की एक बैंच असावधानीवश बैठने से टूट गई और उस के लिए उस से 1,500 रुपए हर्जाने की मांग की गई. जब विनीत ने उक्त रकम देने में असमर्थता जताई तो शिक्षकों ने उस की जम कर पिटाई की. अपमान से क्षुब्ध विनीत घर आ कर फांसी पर लटक गया.
इस से पहले अप्रैल माह में 5 खबरें आई थीं. पहली अकोला (महाराष्ट्र), दूसरी व तीसरी कांचीपुरम एवं सलेम (तमिलनाडु) और चौथी व 5वीं बाराबंकी एवं मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) से. अकोला में जवाहर नवोदय विद्यालय में 49 छात्राओं के यौन शोषण के आरोप में 3 शिक्षक गिरफ्तार किए गए. आरोपी शिक्षक छात्राओं से अश्लील बातें करते और उन्हें जबरन आलिंगन में लेते थे.
कांचीपुरम स्थित एक सरकारी विद्यालय की 7वीं कक्षा की 13 वर्षीय छात्रा के साथ दुष्कर्म करने वाले शिक्षक को पुलिस ने धरदबोचा. आरोपी शिक्षक ने अपनी मासूम छात्रा के साथ कई बार दुष्कर्म किया, नतीजतन वह गर्भवती हो गई. सलेम में एक सहायक प्रोफैसर अपनी छात्रा को घर पर बुला कर उस का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में गिरफ्तार हुआ. उस ने अध्ययन संबंधी दिक्कतें दूर करने के नाम पर अपनी छात्रा की अस्मत लूटी. बाराबंकी के रहलामऊ में 2 रुपए की कलम चोरी के आरोप में प्रधानाचार्य ने 6 वर्षीय छात्र को इतना पीटा कि उस की मौत हो गई.
उक्त सभी घटनाएं देशभर के अभिभावकों के लिए किसी सदमे से कम नहीं हैं, जो अपने बेटेबेटियों का भविष्य उज्ज्वल बनाने की खातिर उन्हें स्कूलकालेज भेजते हैं, उन के भविष्य और सुरक्षा के प्रति निश्चिंत रहते हैं. लेकिन जब ऐसी घटनाएं प्रकाश में आती हैं तो उन का सारा विश्वास डगमगा जाता है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में आएदिन ऐसी घटनाएं सुननेपढ़ने को मिलती रहती हैं. इस से अभिभावकों के दिल हमेशा आशंकित रहते हैं कि कब, कौन सा शिक्षक या शिक्षिका उन के बच्चे के साथ बदसलूकी कर गुजरे. कई बार तो सुनने में आया कि मामूली सी गलती पर बच्चे को ऐसी सजा दे दी गई कि अभिभावक ने भयवश उसे स्कूल से निकाल लिया.
आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के एक कौन्वैंट स्कूल की शिक्षिका ने एलकेजी में पढ़ने वाले एक छात्र को मूत्र पीने के लिए मजबूर कर दिया. उस का कुसूर यह था कि उस ने अपनी प्लास्टिक की बोतल में पेशाब कर दिया था. पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के गोपाल नगर स्थित एक स्कूल की शिक्षिका ने कथित रूप से पैसे चोरी करने के आरोप में 8वीं कक्षा की छात्रा के न सिर्फ कपड़े उतरवाए, बल्कि सहपाठियों के सामने उस की तलाशी ली.
मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के नौगांव स्थित एक विद्यालय की शिक्षिका ने 2 चोटियां बांध कर न आने के अपराध में 10वीं कक्षा की 3 छात्राओं के बाल काट दिए. राजस्थान के भीलवाड़ा में बोरडा गांव स्थित एक सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल ने 35 छात्राओं के बाल कतर डाले. वजह, उक्त छात्राएं 2 चोटियां बना कर नहीं आई थीं.
मध्य मुंबई स्थित एक स्कूल की प्रिंसिपल एवं एक शिक्षिका के खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज किया कि उन्होंने 3 छात्रों को न केवल चैन से बांध कर उन की परेड कराई, बल्कि उन्हें शौचालय की सफाई करने को मजबूर किया. सूरत (गुजरात) के अडाजण थानांतर्गत एलएनबी स्कूल की 9वीं कक्षा के छात्र हर्ष ने फांसी लगा कर जान दे दी. अपने सुसाइड नोट में हर्ष ने लिखा, ‘पापा, मेरी आखिरी इच्छा है कि आप पीटी वाले सर के गाल पर 10-20 थप्पड़ मारना.’
हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के संतोषगढ़ स्थित एक निजी स्कूल में पाठ न याद करने की सजा के बतौर, छात्रों की टाई और छात्राओं के बालों की चोटियों में जूते बांध दिए गए. उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के थाना हियोरनिया अंतर्गत राठ स्थित एक निजी स्कूल में नर्सरी कक्षा के विद्यार्थी को टीचर ने इस कदर पीटा कि वह हेड इंजरी का शिकार हो गया और अस्पताल पहुंच कर उस ने दम तोड़ दिया. उस का कुसूर यह था कि वह होमवर्क कर के नहीं लाया था.
फरीदाबाद स्थित होली चाइल्ड स्कूल की 8वीं कक्षा के छात्र कौश्तुब पंडित ने स्कूल के बाथरूम में खुद पर पैट्रोल डाल कर आग लगा ली. गंभीरावस्था में उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दाखिल कराया गया, जहां मौत ने उस से बाजी जीत ली. कौश्तुब होमवर्क वाली कौपी घर पर भूल गया था, जिस के लिए उस की शिक्षिका ने उसे जम कर डांट पिलाई थी.
गाजियाबाद के कविनगर स्थित महर्षि दयानंद विद्यापीठ में एक शिक्षिका ने होमवर्क पूरा न करने पर छात्र मोहित को इतना पीटा कि उस के कान के परदे में छेद हो गया. गाजियाबाद के ही टीला शाहबाजपुर स्थित डायमंड सीनियर सैकंडरी स्कूल में 7वीं कक्षा का छात्र सचिन अपनी होमवर्क की फाइल घर पर भूल आया था. इस से नाराज शिक्षक ने उसे जम कर पीटा, जिस से वह बेहोश हो गया.
गलीमहल्ले में खुलने वाले कथित मौंटेसरी, पब्लिक स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकशिक्षिकाएं अपनी अल्प, अपर्याप्त और सीमित आमदनी के चलते अकसर अनेक दिक्कतों से दोचार रहते हैं. उन्हें अपनी काबिलीयत का सही मोल न मिल पाने की कुंठा वक्त-बेवक्त सताती रहती है. लेकिन इस का मतलब यह तो कतई नहीं है कि नियोजकों के प्रति उपजा गुस्सा किसी मासूम पर उतारा जाए. सरकारी स्कूलों के शिक्षक तो इस के अपवाद हैं.
उन्हें पर्याप्त वेतन और सुविधाएं हासिल हैं, बावजूद इस के वे भी संवेदनशून्य होते जा रहे हैं. असल चिंता तो यह है कि शिक्षकों में हिंसा घुसपैठ करती जा रही है क्योंकि प्रशिक्षण में कोई कमी रह जाती है. बाल मनोविज्ञान न समझ पाने की खीझ उन्हें हिंसक और अमानवीय बनने को मजबूर कर रही है. हालात बहुत गंभीर हैं. बच्चों के मन में स्कूल और शिक्षकों के प्रति भय घर करता जा रहा है. इस का इलाज कानूनी कार्यवाही, निलंबन या बदले में मारपिटाई से संभव नहीं.
17 जनवरी की सर्द रात में कटिहार रेलवे स्टेशन से डिब्रूगढ-नई दिल्ली राजधनी एक्सप्रेस खुली तो ट्रेन के अंदर का महौल काफी गर्म हो गया. जोकीहाट के जदयू विधायक सरफराज आलम बगैर टिकट के ट्रेन में सवार हो गए और एक महिला मुसाफिर के साथ छेड़खानी करने लगे. ट्रेन जब पटना जंक्शन पर पहुंची तो दिल्ली के वीरेंद्र नगर के रहने वाले इंद्रपाल सिंह बेदी ने रेलवे थाने में शिकायत दर्ज कराई कि विधायक ने उनके और उनकी बीबी रूपसी बेदी के साथ बदसलूकी की.
एफआईआर में कहा गया है कि कटिहार स्टेशन पर बोगी नंबर एसी-4 में विधायक और उनके साथ 2 लोग सवार हुए और हंगामा शुरू कर दिया. नशे की हालत में हंगामा करते हुए वह फर्स्ट एसी के कूपे में चले गए और वहां से लौटने के बाद उनकी बीबी के साथ बदसलूकी करने लगे. छेड़खानी मामले के तूल पकड़ने के बाद विधायक के होश उड़ गए और उन्होंने राजधानी एक्सप्रेस से सफर करने की बात से ही इंकार कर दिया.
कटिहार और पटना जंक्शन के सीसीटीवी फुटेज की जांच के बाद साफ हो गया कि विधायक उस दिन ट्रेन में सवार हुए थे. वहीं रेलवे के मुताबिक 17 जनवरी के रिजर्वेशन चार्ट में भी सरफराज आलम नाम के किसी मुसाफिर का नाम नहीं था. जांच में खुलासा हुआ है कि विधायक के पिता अररिया के राजद सांसद मोहम्मद तसलीमुद्दीन की ओर से एक पीएनआर वीवीआईपी कोटा से कंफर्म कराने के लिए भेजा गया था. उसमें कामरान आदिम, वी मैहर और एस अंजुम का नाम था. इसमें कामरान का कोच नंबर ए3/ 32 पहले से ही कंफर्म था और अंजुम को ए3 को बर्थ नंबर 43 कंफर्म हुआ था. मैहर का टिकट कंफर्म नहीं हो सका था.
6 दिनों तक चले हाइ वोल्टेज ड्रामा के बाद आखिरकार 24 जनवरी को सरफराज को गिरफ्तार कर लिया गया. उनके साथ सफर कर रहे बौडीगार्ड इंजमामुल हक और कमर सईद को भी गिरफ्तार किया गया. पटना के रेल थाना में 7 घंटे की पूछताछ के बाद तीनों को जमानत दे दी गई. विधायक का कहना है कि वह बेकसूर हैं. वहीं रेल एसपी पीएन मिश्रा ने बताया कि विधायक का पासपोर्ट जब्त कर लिया है और कुछ शर्तों के साथ विधायक को जमानत दी गई है. विधायक की छेड़खानी को लेकर फजीहत झेलने के बाद जदयू ने उन्हें पार्टी से सस्पेंड भी कर दिया है.
यह तो था हाई प्रोफाइल छेड़खानी का मामला, लेकिन चलती रेलगाडि़यों में महिलाओं और लड़कियों के साथ छेड़खानी करने के मामले में काफी तेजी से इजाफा होता जा रहा है. रेलगाडि़यों में साथ सफर करने वाली महिलाओं के जरिए सेक्स की कुंठा शांत करने की ओछी कोशिश करने वालों की कतार लंबी होती जा रही है. पिछले साल 23 मार्च को डिब्रूगढ़-दिल्ली राजधनी एक्सप्रेस में पैंट्रीकर्मी ने 9 साल की बच्ची के साथ छेड़खानी कर छुकछुक करती चलती रेलगाड़ी पर एक और बदनुमा दाग लगा दिया.
9 साल की लड़की अपने भाई के साथ गुवाहाटी में सवार हुई थी और दिल्ली जा रही थी. रेल पुलिस में दर्ज रिपोर्ट में कहा गया है कि बरौनी रेलवे स्टेशन से जब ट्रेन खुली तो लड़की बाथरूम गई. जब वह बाथरूम से बाहर निकली तो पैंट्रीकर्मी जितेंद्र पांडे ने उसे गोद में उठा लिया और उसके साथ छेड़खानी करने लगा. बच्ची जब शोर मचाने लगी तो पैंसेजर उसकी ओर दौड़े. पैंसेंजर ने जितेंद्र की जम कर पिटाई कर डाली. वहीं जितेंद्र का कहना है कि लड़की जब बाथरूम से निकली तो ट्रेन की स्पीड अचानक कम होने की वजह से लड़खड़ा कर गिर गई थी इसलिए उसने उसे उठाकर उसकी सीट की ओर ले जा रहा था.
इसी तरह पिछले साल दिसंबर महीने में भी डिब्रूगढ़-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस में टीटीआई ने एक महिला से छेड़खानी की थी. वह महिला अपने बच्चे के साथ सफर कर रही थी. पटना जंक्शन पर ट्रेन के रूकते ही मुसाफिरों ने हंगामा मचा दिया और टीटीआई को गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. आरपीएपफ थाने में टीटीआई के खिलाफ केस दर्ज कराया गया. रेलवे पुलिस ने टीटीआई की खोजबीन की तो पता चला कि टीटीआई समेत ट्रेन की पूरी स्कार्ट पार्टी ही फरार हो चुकी थी.
छेड़खानी की शिकार महिला चारू ने पुलिस में दर्ज रिपोर्ट में कहा था कि वह अपने 3 साल के बच्चे के साथ कानपुर जा रही थी. ट्रेन के बोगी नंबर-बी-10 में 31 नंबर सीट पर चारू को अकेली बैठी देख टीटीआई भरत कुमार शर्मा के अंदर का हैवान जाग गया और उसने उसके साथ बदतमीजी शुरू कर दी. वह महिला की सुरक्षा का हवाला देकर महिला की सीट पर बैठ गया और ओछी हरकतें करने लगा. मौका मिलते ही महिला ने अपने पति और पटना में रहने वाले अपने रिश्तेदार को मोबाइल फोन पर मामले की जानकारी दी थी.
इससे पहले नबंबर महीने में गुवहाटी-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस में ही नशे की हालत में सेना के 2 जवानों ने जम कर उत्पात मचाया और महिला मुसाफिरों के सामने गंदी हरकतें की. कोच नंबर बी-9 में सफर कर रहे जवानों ने पहले तो जम कर दारू पिया और उसके बाद मुसाफिरों के साथ बदसलूकी करने लगे. महिलाओं के सामने ही नशे में धुत्त जवानों ने अपने कपड़े उतार डाले और मना करने पर गाली-गलौज करने लगे. ट्रेन के पटना जंक्शन पहुंचते ही दोनों जवानों को गिरफ्तार कर लिया.
पिछले कुछेक सालों में चलती ट्रेनों में महिला मुसाफिरों के साथ छेड़खानी की वारदातों में तेजी से इजाफा हुआ है. अकसर ही इस तरह की वारदातें होती रहती हैं और रेल पुलिस और रेलवे महकमा आरोपियों को पकड़ने और मामले की जांच की बात कह कर पल्ला झाड़ लेता है. ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि रेलवे ऐसे मामलों में आरोपियों को सजा देने या दिलाने के बजाए मामले को दबाने में ज्यादा दिलचस्पी लेता है.
रेल पुलिस फोर्स के एक रिटायर्ड अपफसर अंजनी सिन्हा कहते हैं कि ट्रेनों में औरतों के साथ छेड़खानी, भद्दे इशारे या गप्पबाजी करना आम बात हो गई है, अपने सामने या आजू-बाजू की सीट या बर्थ पर बैठी महिला या लड़कियों को देखकर गलत हरकतें ओछी मानसिकता वाले लोग ही करते हैं. इसमें मुसाफिर, ट्रेन के स्टाफ, आरपीएफ और सेना के जवान समेत हर तरह के लोग शामिल होते हैं, जिससे छेड़खानी के ज्यदातर मामलों को आसानी से दबा दिया जाता है.
ट्रेनों में महिलाओं के साथ छेड़खानी करने वाले मनचलों के बारे में मनोविज्ञानी अजय मिश्र कहते हैं कि खुराफाती मानसिकता वाले और साथ में औरतों को बैठा देख सेक्स की भावना जगने वालों की कमी नहीं है. कुछ लोग खुद पर काबू रख कर खामोश रह जाते हैं और कुछ लोगों की सेक्स कुंठा पास बैठी लड़कियों और औरतों को देख कर ज्यादा ही मचलने लगती हैं. जिससे वह औरतों के साथ गलत हरकत कर बैठते हैं. यह सब तो दिमागी रोग की तरह है और ऐसे लोगों पर कानून के डंडे से रोक नहीं लगाई जा सकती है.
समाजवादी पार्टी के अधेड़ उमर के बडे़ नेता भी ट्रेन में छेड़खानी कर अपने चेहरे वा कालिख पोत चुके हैं. 18 मार्च 2013 को समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद चंद्रनाथ सिह भी ट्रेन में महिला के साथ छेड़खानी के आरोप में गिरफ्तार हो चुके हैं. 62 साल के सिंह पद्मावत एक्सप्रेस में साथ में सपफर कर रही एक औरत के साथ गलत व्यवहार कर रहे थे. पीडि़त महिला ने नेता पर आरोप लगाया था कि वह नशे की हालत में थे और कई बार समझाने के बाद भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे थे.
एक बड़ी प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले राजेश कुमार राज बताते हैं कि मार्केटिंग के काम के सिलसिले में वह हर महीने करीब 15-20 दिन ट्रेनों में ही गुजारते हैं. चलती ट्रेन में लड़कियों और औरतों को देखकर छेड़खानी करने या गंदी फब्तियां कसने वालों की अलग ही सोच होती है. वह लड़कियों को छूने, उनके बदन से सटने और चिपकने के मौके ढ़ूंढ़ते रहते हैं और कोई मौका न मिले तो खुद मौका पैदा कर लेते हैं.
मसलन इधर-उधर आती जाती लड़कियों के शरीर से सटने के लिए वैसे लोग रास्ते पर खड़े हो जाते हैं, नीचे झुक कर कोई सामान निकालने का स्वांग करने लगते हैं. ऐसे ज्यादातर मामले में महिलाएं खामोश रह जाती हैं. कोई हंगामा न हो या फिर लोक-लाज के डर से औरतों के चुप रहने की वजह से ही लफंगों का मन बढ़ जाता है. अगर पीडि़त महिला हल्ला मचाए तो ट्रेन की बोगी में सवार बाकी मुसाफिर लफंगे को सबक सीखा सकते हैं.
महिला बिग्रेड के जरिए बिहार में औरतों को उनके हकों को लेकर जागरूक करने की मुहिम चलाने वाली अनीता सिन्हा कहती हैं कि औरतों को अपनी रक्षा और सुरक्षा को लेकर खुद ही सतर्क और जागरूक होना होगा, केवल कानून और पुलिस के भरोसे महिलाओं को सुरक्षा हासिल नहीं हो सकती है.
आज काफी पढ़ने लिखने के बाद भी ज्यादातार महिलाएं छेड़खानी और शारीरिक उत्पीड़न को लेकर चुप्पी साधे रह जाती हैं, इसके पीछे बस एक ही वजह होती है, लोक-लाज के डर, लोग क्या कहेंगे, बेकार का फसाद खड़ा होगा. कई मामलों में देखा गया है कि छेड़खानी के खिलाफ हो-हल्ला मचाने या आवाज उठाने वाली महिला को ही समाज बदचलन करार दे देता है. इस वजह से भी कई महिलाएं लफंगों की बेजा हरकतों को चुपचाप सह लेती हैं. ऐसी औरतों को यह समझना पड़ेगा की खामोश रह कर वह लफंगों के मनोबल को बढ़ाने की ही काम करती हैं.
पटना में रेल एसपी प्रकाश नाथ मिश्रा का दावा है कि रेलगाडि़यों में छेड़खानी करने वालों के साथ कड़ी कानूनी कारवाई की जाती है. वह कहते हैं कि ट्रेनों में अगर कोई लफंगा किसी महिला के साथ छेड़खानी करता है या गंदी बातें करता है तो ऐसे में बोगी में मौजूद बाकी सवारियों को इसका विरोध करना चाहिए. इसकी जानकारी ट्रेन में मौजूद रेल पुलिस के जवानों को देनी चाहिए. कोई लफंगा बोगी में गलत हरकत करता है तो बाकी मुसफिरों के चुपचाप रहने से ही बदमाशों का हौसला बढ़ता है, अगर उसे सही समय पर सही सबक दे दिया जाए तो आगे वह ऐसी हरकतें करने से पहले कोई भी लफंगा सौ बार सोचेगा.
रेलगाडि़यों में जब कोई करे छेड़खानी
– अगर कोई रेलकर्मी ही छेड़खानी कर रहा हो तो अपने बोगी या कूपे के बाकी मुसाफिरों की मदद लें.
– कोई लफंगा जब छेड़छाड़ करने की कोशिश करे तो चुप्पी नहीं साधें.
– अगर आपके साथ कोई अपना सफर कर रहा हो तो उसे बताएं, नहीं तो बाकी मुसाफिरों या फिर रेल पुलिस को तुरंत सूचना दें.
– अपने मोबाइल फोन के जरिए किसी रिश्तेदार या दोस्त को एसएमएस के जरिए पूरी जानकारी दें.
– रेल पुलिस की महिला हेल्पलाइन नंबर अपने पास जरूर रखें. हेल्प लाइन नंबर-1800-111322
उम्र के आखिरी पड़ाव में अपनों की मार झेलते बुजुर्गों की सुरक्षा पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है. अक्तूबर 2015, मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के ग्राम बडेरी में बेटे ने दौलत की खातिर मां और मामा के साथ मिल कर अपने ही पिता की हत्या कर डाली.
अक्तूबर 2015, शहडोल के पाली थाना के औढेरा गांव में एक युवक अपनी पत्नी को पीट रहा था. उसी दौरान उस का बेटा वहां पहुंच गया और पिता को रोकना चाहा. लेकिन जब पिता नहीं माना तो उस ने पिता पर लाठी से वार कर दिया जिस से उस की मौत हो गई.
सितंबर 2015, जशपुरनगर जिले के दुलदुला थाना क्षेत्र के बांसपतरा टीपन टोली में 25 सितंबर को संतोष राम पिता रतिराम के साथ गांव से शराब पी कर घर पहुंचे. नशे में धुत्त बेटे का मां से किसी बात को ले कर विवाद हो गया. गुस्साए संतोष राम ने मां धनमेत बाई पर लाठी से वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. 2 सितंबर 2015 को हरियाणा के रोहतक में परिजनों की रोकटोक से नाराज बेटे ने दोस्तों के साथ मिल कर मां की गला घोंट कर हत्या की और पिता पर भी धारदार हथियारों से हमला कर दिया. सभी आरोपी नाबालिग.
मई 2015, उत्तर प्रदेश के शामली जिले में एक व्यक्ति ने जमीन नहीं बेचने पर अपने मांबाप की हत्या कर दी. बेटे ने बिना पुलिस को सूचित किए मांबाप का अंतिम संस्कार कर दिया और लोगों को बताया कि दोनों ने आत्महत्या कर ली.
धन और जमीन का लालच
चंद महीनों में इस तरह की सैकड़ों वारदातें बताती हैं कि बुजुर्ग अपने ही घर में सुरक्षित नहीं रहे. देश के हर कोने में कहीं संपत्ति तो कहीं संबंधों की उलझन के चलते कभी बेटा पिता का कत्ल कर रहा है तो कहीं जमीन हथियाने के लिए करीबी रिश्तेदारों द्वारा मांबाप की सामूहिक हत्या की जा रही है. बिहार का हालिया मामला भी इसी बात की तस्दीक करता है कि बुजुर्गों की नृशंस हत्या के मामले में ज्यादातर अपराधी अपना ही खून होते हैं.
बिहार की राजधानी पटना का पुराना और घना इलाका पटना सिटी की पटनदवी कालोनी. पिछले 19 सितंबर को सुबह 9 बजे चीखपुकार मचती है. 78 साल की दौलती देवी का उस के 55 साल के बेटे विजय के साथ पैसों को ले कर अनबन शुरू होती है. दौलती ने जब विजय को रुपया देने से इनकार कर दिया तो गुस्से से हैवान बने विजय ने अपनी मां को जोर से धक्का दे दिया.
बूढ़ी दौलती मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ी और उस के मुंह से खून बहने लगा. दौलती के छोटे बेटे सुजय ने जख्मी मां को उठाया और अस्पताल ले गया. जांच के बाद डाक्टरों ने बताया कि दौलती की मौत हो चुकी है. मां की मौत होने के बाद गुस्साए सुजय ने घर पहुंच कर विजय पर ईंट, पत्थरों और धारदार हथियार से हमला कर दिया. मौके पर ही विजय की मौत हो गई.
इस दोहरे हत्याकांड के पीछे रुपए और जमीन का ही विवाद था. आसपास के लोगों ने बताया कि दौलती और उस के बेटों के बीच अकसर रुपयों के लेनदेन को ले कर जम कर झगड़ा होता रहता था. दौलती के पति फकीरा महतो सरकारी मुलाजिम थे और रिटायर होने के कुछ ही दिनों के बाद उन की मौत हो गई थी. उन की पैंशन दौलती देवी को मिलती थी. पैंशन की रकम को ले कर हमेशा मांबेटों में विवाद होता था. इस के अलावा ढाई कट्ठे (3,350 वर्गफुट) जमीन के कुछ हिस्से में घर बना हुआ था और अगले हिस्से को मोटरगैराज वाले को किराए पर दिया गया था. किराए का पैसा छोटे बेटे सुजय को मिलता था.
विजय की निगाह पैंशन की रकम पर लगी रहती थी और इसी को ले कर वह झगड़ा करता रहता था. कुछ हजार रुपए के लिए विजय ने अपनी मां की जान ले ली. उस ने मांबेटे के रिश्ते को तारतार कर डाला. जमीन के टुकड़े और कुछ रुपयों को हथियाने के चक्कर में पूरा परिवार तबाह हो गया. दौलती और विजय की तो जान गई, सुजय की पूरी जिंदगी अब जेल की सलाखों के पीछे कटेगी. विजय की बीवी किरण देवी और उस की 3 बेटियों के साथ ही सुजय की बीवी रानी की जिंदगी भी तबाह हो चुकी है.
इसी तरह 15 जुलाई, 2014 को पटना के पीरबहोर थाना क्षेत्र के बिहारी साव लेन में कारोबारी धीरज सहाय की गोली मार कर हत्या कर दी गई. पुलिस को इस मामले में आज तक कोई सुराग नहीं मिल सका है. पुलिस को शक है कि संपत्ति हथियाने की नीयत से धीरज के किसी अपने ने ही उस की हत्या की है. मई 2013 में दानापुर के व्यापारी हरिमोहन लाल को नासरीगंज इलाके के उन के घर में चाकुओं से गोद कर मार डाला गया. इस मामले में पुलिस अपराधियों को दबोचने में कामयाब हो गई.
अपराधियों ने बताया कि हरिमोहन के परिवार के ही एक सदस्य ने हत्या की सुपारी दी थी, पर नाम का खुलासा नहीं हो सका. दिसंबर 2012 में पाटलीपुत्र थाना क्षेत्र के इंद्रपुरी महल्ले में देवेश नाम के युवक ने अपनी सौतेली मां व 2 बहनों का खून कर डाला. देवेश ने संपत्ति को हथियाने के लिए एकसाथ 3 लोगों की जान ले ली.
नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट बताती है कि साल 2014 में देशभर में बुजुर्गों से जुड़े 18,714 मामले अलगअलग पुलिस थानों में दर्ज किए गए और इन मामलों के तहत 19,008 बुजुर्ग अपराध के शिकार हुए.
रिपोर्ट के मुताबिक, बुजुर्गों से जुड़े अपराध के सब से ज्यादा 3,981 मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए. अन्य राज्यों–मध्य प्रदेश में 3,438, तमिलनाडु में 2,121, आंध्र प्रदेश में 1,852, राजस्थान में 1,034 और दिल्ली में 1,021 मामले पुलिस थानों में दर्ज किए गए. बिहार में बुजुर्गों की हत्या, लूट और प्रताड़ना के 496 मामले दर्ज किए गए. इन मामलों में 521 बुजुर्गों को अपराधियों ने निशाना बनाया.
दौलत और रुपयों की खातिर बुजुर्गों के बेटे, रिश्तेदार, दोस्त आदि ही उन का कत्ल करने लगे हैं, जिस से परिवार में भरोसा नाम की चीज खत्म होती जा रही है और अपराध का नया व घिनौना चेहरा सामने आने लगा है. रुपयोंपैसों और जमीनजायदाद के लिए पिता, मां, दादा, चाचा आदि का अपने करीबी रिश्तेदारों द्वारा खून करने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.
ब्यूरो के आंकड़ों को देख कर महसूस किया जा सकता है कि रिश्तेदारी और दोस्ती पर दौलत किस कदर भारी पड़ने लगी है. बुजुर्ग और असहाय रिश्तेदारों को मार कर उन की दौलत हड़पने के बढ़ते मामलों से रिश्तों के भरोसे का भी खून हो रहा है.
दौलत को हथियाने के लिए आज अपने खून, अपने जाए ही अपनों का बेरहमी से खून बहा रहे हैं. पुलिस के एक आला अफसर कहते हैं कि ऐसे मामलों में परिवार के सदस्य बड़ी ही सफाई से और मौके का इंतजार कर बड़ी ही चतुराई के साथ हत्या को अंजाम देते हैं. इस से पुलिस को पड़ताल में काफी दिक्कतें आती हैं. ऐसे ज्यादातर मामलों में हत्यारे या हत्या की साजिश रचने वाले ही शिकायत दर्ज कराते हैं.
हत्या को अंजाम देने के बाद सुबूतों को पूरी तरह से मिटा कर ही वे पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कराने पहुंचते हैं. इतना ही नहीं, वे समयसमय पर पुलिस जांच के बारे में जानकारी भी लेते रहते हैं और पुलिस को गुमराह कर जांच को दिशा से भटकाने में कामयाब हो जाते हैं. बिहार पुलिस मुख्यालय से मिली रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013 से मई 2015 तक पटना जिले में 699 हत्याएं हुईं, जिन में से 77 फीसदी में किसी न किसी तरह से परिवार के किसी सदस्य या पहचान वालों का ही हाथ था.
गया जिले के एसएसपी मनु महाराज कहते हैं कि जब पुलिस में हत्या की शिकायत दर्ज कराने वाला ही कातिल हो तो पुलिस को जांचपड़ताल में काफी दिक्कतें आती हैं. कई मामलों में यह भी देखा गया है कि बुजुर्ग की हत्या के बाद उन के परिवार वाले हत्या को खुदकुशी का भी रूप देने की कोशिश करते हैं, जिस से कानून के चंगुल से आसानी से बचा जा सके. पंखे से लटकने, नींद की गोलियां खाने, फिनाइल और एसिड जैसी जहरीली व जानलेवा द्रव्यपदार्थ पीने, सीढि़यों से गिरने से मौत होने की साजिश परिवार वाले आसानी से रच लेते हैं.
इस के साथ ही यह भी देखा गया है कि पेशेवर हत्यारा मर्डर करने से पहले सौ बार सोचता है और काफी सोचसमझ कर काम करता है. वह ज्यादातर मामलों में बूढ़ों व बच्चों की हत्या नहीं करता है. लेकिन परिचित या रिश्तेदार नौसिखिए होते हैं, अपनी पहचान छिपाने के लिए वे बेरहमी से बूढ़ों व बच्चों की हत्या कर डालते हैं.
पटना हाई कोर्ट के वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि घर के बुजुर्ग को परिवार पर बोझ मानने का चलन तेजी से बढ़ा है. बच्चे सोचने लगे हैं कि बूढ़े मांबाप उन के ऊपर बोझ की तरह हैं. उन की वजह से ही वे अपने बीवीबच्चों के साथ घर छोड़ कर घूमने नहीं जा सकते हैं. इस के अलावा, लड़के उस दौलत को जल्दी पाने के चक्कर में अपनों का खून कर डालते हैं जो दौलत कल आसानी से उन्हीं की होने वाली है.
मांबाप की सेवा कर उन्हें जिंदगी के आखिरी पड़ाव में खुश रख कर उन की दौलत पाने के बजाय गैरकानूनी तरीके से उसे पाने की कोशिश करना अकसर उन्हें भारी पड़ जाता है. अपनों की जान लेने के बाद वे अपनों के साथ जायदाद व अपने परिवार को भी खो देते हैं और बाकी जिंदगी उन्हें जेल में काटनी पड़ती है. उन की बीवी और बच्चे की जिंदगियां भी बरबाद हो जाती हैं.
मनोविज्ञानी अनिल पांडे कहते हैं कि जमीनजायदाद को ले कर घरेलू विवादों के बढ़ते मामलों के बीच परिवार वालों को देखनासमझना होगा कि ऐसे विवादों को तूल न पकड़ने दें और न ही ऐसे मामलों को लटका कर रखें. ऐसे मामलों का जितना जल्दी निबटारा कर दिया जाए, परिवार और परिवार वालों के लिए उतना ही अच्छा है.
आज की फास्ट लाइफ के बीच रिश्तों और जज्बातों की डोर कमजोर होती जा रही है. यही वजह है कि जराजरा सी घरेलू झड़प या संपत्ति के विवादों में अपनों का खून करने में जरा भी हिचक नहीं होती है. रिश्तों में कड़वाहट इस कदर बढ़ती जा रही है कि बाप बेटे का, बेटा मां का, भाई बहन का, मामा भांजे का, भतीजा चाचा का कत्ल करने में देर नहीं लगाते.
परिवार की संपत्ति को ले कर बढ़ते विवाद को कम करने के लिए बुजुर्ग मांबाप को यह ध्यान रखना होगा कि उन के बच्चों के बीच दौलत व रुपयों को ले कर तनाव की गुंजाइश ही नहीं हो. इस के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रख कर बुजुर्ग अपने बच्चों को खुश रख सकते हैं और अपनी जान पर आफत आने से भी रोक सकते हैं. आज रिश्तों के महत्त्व के कम होने के बीच भी कुछ सावधानी बरत कर रिश्ते और जान दोनों को बचा कर रखा जा सकता है :
– दौलत का बंटवारा बच्चों के बीच कर दें और यह ताकीद कर दें कि उन के मरने के बाद सभी बच्चों को उन की दौलत पर बराबरी का हक होगा.
– अपनी दौलत की वसीयत समय रहते कर दें और बच्चों व परिवार के सभी लोगों को इस की जानकारी दें, ताकि कोई अंधेरे में न रहे.
– घरेलू झगड़ों की अनदेखी न करें, न ही उसे दबाने की कोशिश करें. परिवार के साथ मिलबैठ कर निबटारा कर लें. ऐसा नहीं हो पाता है तो अदालत का दरवाजा खटखटाएं.
– कई ऐसे मामले देखने में आते हैं कि किसी बच्चे के प्रति मांबाप का ज्यादा झुकाव होता है, जिस से बाकी बच्चों में असुरक्षा की भावना बैठ जाती है कि कहीं पिता अपने लाड़ले बेटे को सारी दौलत या दौलत का ज्यादा हिस्सा न दे दें. मांबाप को चाहिए कि किसी बच्चे में ऐसी गलत भावना न आने दें और बच्चों को भी चाहिए कि सभी मांबाप के लिए जिम्मेदार हों, ताकि किसी एक बच्चे की ओर उन का ज्यादा झुकाव न हो.
– अगर किसी बेटे को किसी कारोबार को शुरू करने में रुपयों की मदद करते हैं तो बाकी बेटों और परिवार के सभी सदस्यों को भरोसे में ले कर करें. ऐसा नहीं करने से बेटों के बीच तनाव का माहौल पैदा होने लगता है जो बाद में बड़े झगड़े का रूप ले लेता है. उस के बाद मामला थानाअदालत तक जा पहुंचता है.
– किसी बेरोजगार बेटे को कोई धंधा चालू करने के लिए रुपए दें तो उसे यह हिदायत भी दें कि रुपए कर्ज के तौर पर दिए जा रहे हैं, जिसे धीरेधीरे वापस करना होगा. इस से बेटा धंधे में पूरा मन लगाएगा और बाकी बेटों में किसी तरह की ईर्ष्या की भावना नहीं पैदा होगी.
– घर के किसी भी सदस्य से किसी भी तरह का खतरा होने या किसी के धमकी देने के मामले में बुजुर्ग खामोश नहीं रहें. अपने किसी रिश्तेदार, दोस्त, वकील और पुलिस को इस के बारे में जरूर बताएं.
विदेशों में स्थिति बेहतर
जहां भारत में बुजुर्गों की सुरक्षा को ले कर सिर्फ कागजी कानून है वहीं विदेशों में, खासकर अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के देशों में, रिटायरमैंट के साथ ही बुजुर्गों के घरों पर वे तमाम तरह की सहूलियतें दी जाती हैं जो उन की सुरक्षा के लिए जरूरी हैं. भले सीढि़यों से उतरने और बाथरूम्स में रैलिंग या हैंडिल का मामला हो या फिर उन के घरों को पुलिस केंद्रों से फोन के जरिए सीधे जोड़ना, बुजुर्गों को हर मदद तत्काल मिलती है.
जमीन को ले कर हुए झगड़े ने एक बार फिर सदियों पुराने जातीय विद्वेष को उभार दिया है. घटना किसी दूरदराज इलाके में नहीं, देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा गाजियाबाद के कनावनी गांव में हुई. घटना के बाद हमेशा की तरह औपचारिक सरकारी प्रशासनिक कर्मकांड शुरू हो गया है. पुलिस, पीएसी फोर्स की गश्त, मानवाधिकारवादियों के दौरे, मीडिया रिपोर्टें और पीडि़तों के रोनेधोने, कोसने और दोषारोपण के दौर चले.\
28 अप्रैल की सुबह करीब 9 बजे गांव में 70 गज की जमीन के एक टुकड़े को ले कर समझौते के लिए गुर्जर और दलित समुदाय के लोग पूर्व प्रधान देशराज कसाना के यहां जुटे थे. इस जमीन पर देशराज गुर्जर और चमन सिंह अपनाअपना दावा कर रहे थे. दोनों पक्षों के बीच पहले भी इस जमीन को ले कर झगड़ा हुआ था और मामला कोर्ट में लंबित है.
देशराज ने विवादित जमीन पर कुछ निर्माण करा लिया और दावा किया कि उस ने यह जमीन एक ग्रामीण से खरीदी थी. इस पर चमन सिंह ने विरोध किया. दोनों के बीच जबानी बहस हुई. सो, दोनों समुदायों के लोग जुटे. समझौता नहीं हुआ तो दोनों ओर से पत्थरबाजी और फिर फायरिंग हुई. देशराज के भतीजे राहुल की गरदन में गोली लगने से मौत हो गई. दोनों ओर के दर्जनभर लोग घायल हो गए. करीब 2 घंटे तक चले संघर्ष में दर्जनों राउंड गोलियां चलीं. घटना के बाद इस प्रतिनिधि ने गांव का जायजा लिया.
दलित-गुर्जर झगड़ा
गौतमबुद्धनगर के कनावनी गांव में सन्नाटा पसरा था. गांव में प्रवेश करने से करीब 500 मीटर पहले चौक पर पुलिस के दर्जनभर जवान इक्कादुक्का आनेजाने वालों पर नजर रखे दिखे. सामने दूर से दिखाई दे रहे गांव के पूर्व प्रधान देशराज कसाना के बड़े से मकान के बाहर लगे टैंट में 15-20 लोग मातम की मुद्रा में बैठे थे.
28 अप्रैल को जातीय झगड़े में प्रधान के परिवार का 22 वर्षीय बेटा गोली से मारा गया था. बाहर 8-10 छोटीबड़ी गाडि़यां खड़ी दिखीं. पूर्व प्रधान के घर के पास अहाते में पीएसी और पुलिस के जवान हथियारों से लैस नजर आए. गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद से पुलिसकर्मी और पीएसी के 300 जवानों को तैनात किया गया और 6 दमकल की गाडि़यां लगाई गई थीं.
कनावनी गांव की दलित महिला ने गुर्जरों के खिलाफ लूट, आगजनी, हत्या का प्रयास, मारपीट, बलवा व बेटे के स्कूल में तोड़फोड़ कर उसे तहसनहस करने की शिकायत नोएडा थाने में दर्ज करा दी है.
जवान युवक की मौत के बाद गुस्साए गुर्जरों ने शाम को गांव के डूब क्षेत्र में स्थित दलित बस्ती में हमला बोल दिया. आरोप है कि भीड़ ने दलित घरों के पास फायरिंग शुरू कर दी. करीब 50 लोगों की भीड़ थी. यह भीड़ अर्थमूवर ले कर आई थी जिस से सिद्धार्थ पब्लिक स्कूल को तहसनहस कर दिया गया. यह स्कूल चमन सिंह का बताया जाता है.
स्कूल के 5 कमरे, लोहे के दरवाजे सहित धराशायी कर दिए गए. स्कूल के पास स्थित एक दुकान को तोड़ दिया गया. घरों में आग लगा दी गई. कारें, मोटरसाइकिलें जो भी सामने आईं, तोड़फोड़ डाली गईं. लूट की शिकायतें भी हैं. हमले की खबर पर पुलिस मौके पर जब पहुंची तो हमलावर भाग गए. दोनों जातियों की ओर से की गई करतूत में 18 लोगों के खिलाफ मामला दर्र्ज किया गया, इन में कुछ लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
सरकारी अमला
गुर्जर समुदाय का एक झुंड सैक्टर 9, वसुंधरा में स्थित रामकृष्ण इंस्टिट्यूट में घुस गया जहां ज्यादातर दलितों के बच्चे पढ़ते हैं. जब वे बच्चों को मारने की धमकी देने लगे तो स्कूल प्रबंधन ने आननफानन पुलिस को सूचित किया. पुलिस ने आ कर भीड़ को खदेड़ा पर इस से बच्चे और अध्यापक दहशत में आ गए. घटना के बाद 29 अप्रैल को पुलिस और पीएसी फोर्स तैनात कर दी गई.
इलाके में बरबादी का दृश्य दृष्टिगोचर था. बस्ती शुरू होते ही पुलिस के दर्जनभर जवान खड़े दिखाईर् दिए. पास में करीब 300 वर्गगज में बनी स्कूल की इमारत धराशायी नजर आई. लोहे का बना मुख्य दरवाजा, लोहे के गार्टर, एंगल तुड़ेमुड़े पड़े दिखे. क्लासरूम, प्रिंसिपल रूम, टौयलेट सब तहसनहस कर दिए गए. पिं्रसिपल के कमरे में शांति और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी और गौतमबुद्ध की लगी तसवीरें तबाही के मंजर की मौन गवाह बनी रहीं. स्कूल में तकरीबन 400 बच्चे पढ़ रहे थे.
एसएसपी सिटी योगेश सिंह अपने दलबल के साथ खड़े दिखे. वे कहते हैं, ‘‘गांव में अब शांति है. कोई तनाव नहीं है. जाटवों और गुर्जरों का जमीन को ले कर झगड़ा था. पीएसी की 3 प्लाटून और दर्जनों पुलिस के जवान लगाए गए हैं. शांति बहाली के लिए दोनों पक्षों से बातचीत की गई ताकि भविष्य में झगड़ा आगे न बढे़.’’
दलितों की दशा
गांव में तकरीबन 150 दलित परिवार रहते हैं. इन में से करीब 50 परिवार घरबार छोड़ कर जा चुके हैं. इन परिवारों के पुरुष वापस लौटने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं. दलितों के इन घरों में कई किराएदार भी हैं पर वे मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं. पूछने पर साफ कहते हैं, ‘‘हमें तो पता नहीं जी. हम तो बाहर के हैं, किराएदार हैं.’’
बचेखुचे दलितों के चेहरों पर तनाव, भय साफ दिख रहा था. गांव की गलियों में लोग किसी अजनबी से डरेसहमे से बात करने को तैयार होते हैं पर मुंह अधिक नहीं खोलना चाहते. दर्जनों दुकानें बंद. इक्कीदुक्की दुकानें ही खुली दिखीं.
कनावनी व उस के आसपास के गांवों की तमाम दलित बस्तियों के युवा व कमाने लायक पुरुषों का खासा हिस्सा दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ में छोटेमोटे कामों में लगा है. मेहनत के बल पर इन लोगों ने यहां अपने पक्के मकान बना लिए हैं. मोटरसाइकिल, स्कूटर से ले कर छोटेबड़े 4 पहिया वाहन भी ले लिए. दलितों में शिक्षा की ललक भी यहां साफ देखी जा सकती है. ऊंचेऊंचे अपार्टमैंटों से घिरे कनावनी गांव में ज्यादातर जमीन गुर्जरों के अधिकार में है. उन के पास बड़े मकान, बड़ी गाडि़यां हैं.
पूर्व प्रधान देशराज कसाना के भतीजे व मृतक राहुल के भाई अशोक कुमार बताते हैं कि डूब क्षेत्र में ग्रामसभा की करीब 15 बीघा जमीन को सुभाष, चमन सिंह ने घेर कर स्कूल बना लिया और कालोनी काटने लगे. आज की तारीख में इस की कीमत करीब 35-40 करोड़ रुपए है. इस की शिकायत प्रधानजी द्वारा डीएम, एसडीएम से की गई. अफसरों ने जमीन की पैमाइश की और कहा कि अभी चुनाव है, चुनाव के बाद खाली करा लेंगे. इस बात को ले कर देशराज से चमन सिंह व सुभाष की रंजिश हो गई.
इस बीच चमन सिंह ने 60 गज के प्लौट को साजिशन बेच दिया. इस कार्यवाही ने रंजिश में घी डालने का काम किया. समझौते के लिए दोनों पक्ष बैठे थे. पूर्व प्रधान देशराज पर पत्थर मारे गए, परिवार को चोटें आईं. सुभाष, चमन के पास पिस्टलें थीं. राहुल को गोली मार दी गई.
अशोक कहते हैं कि जाटव लोग दारू की तस्करी में शामिल हैं. अवैध हथियार रखते हैं. वे संपन्न हैं. बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ते हैं. लग्जरी गाडि़यां हैं. चारमंजिले मकान हैं. हम तो शांति की अपील कर रहे हैं. कोई जातीय मुद्दा नहीं बना रहे.
दलितों और पिछड़ों के बीच जमीन और अन्य वादविवाद को ले कर यह कोई पहला झगड़ा नहीं है. आएदिन देश के कोनेकोने में इस तरह के विवाद में हत्या, तोड़फोड़, आगजनी की वारदातें होती रहती हैं. लेकिन पीडि़त पक्ष हमेशा दलित ही होता है. उन के घर लूट लिए जाते हैं, तहसनहस कर दिए जाते हैं, आग के हवाले कर दिए जाते हैं और जानें भी ले ली जाती हैं.
इतिहास और आज
दरअसल, सामाजिक हैसियत पाने के लिए दलित 2-2 मार झेलते आ रहे हैं. एक तो उन्हें वर्णव्यवस्था से बाहर रख कर जमीनजायदाद, धनसंपत्ति के संग्रह से दूर रखा गया. दूसरा आजादी के बाद बने कानूनों में भी उन के साथ भेदभाव व पुरानी सोच बनाए रखी गई. ज्यादातर कृषिभूमि व रिहायशी जमीनों पर ऊंची जातियों का कब्जा है. दलितों को गांव, कसबे के बाहर किसी कोने में रहने की छोटी जमीन दे दी जाती है. कानून ने भले ही कुछ अधिकार दलितों को दिए हैं पर उस से ऊपर ऊंची जातियों के पास सामाजिक व्यवस्था के नाम पर परंपराओं, रीतिरिवाजों के सारे अधिकार सदियों से मौजूद हैं. व्यवहार में ऊंची जातियों के ये तमाम अधिकार सर्वोपरि और सर्वमान्य हैं.
असल में पहले ऊंची जातियां धर्म की जातिगत व्यवस्था बनाए रखने के लिए शूद्रों और दलितों को दबाए रखने में कामयाब थीं. संविधान में दलितों को बराबरी के अधिकार दिए जाने के बाद ऊंचों वाले काम पिछड़े करने लगे. पिछड़ी जातियों वाले ऊंची जातियों के नेताओं की ओर से दलितों को नियंत्रित करते हैं.
उन्हें कुओं पर नहीं चढ़ने देना, सार्वजनिक नलों, हैंडपंपों से पानी न भरने देना, जमीन, संपत्ति न जुटाने देना, विवाह में दूल्हे को घोड़ी पर न बैठने देना, मंदिरों में प्रवेश न करने देना, खुद से ऊपर की जाति से प्रेम या शादी न करने देना, ऊंची जाति की सामाजिक परंपराओं और रीतिरिवाजों को अपनाने से रोकने जैसे काम अब पिछड़े करने लगे हैं. ऐसा कर के पिछड़े आज दलितों पर अपना सामाजिक वर्चस्व दिखाना चाहते हैं.
सदियों से दलित ऊंची, दबंग जातियों के खेतों में मजदूरी करते आ रहे हैं. इन के पास न अपनी खेती की कोई जमीन है और न ही रिहायशी. आंकड़ों की बात करें तो देश में 80 प्रतिशत दलित भूमिहीन हैं. जिन के पास जमीन है वह 10×12 फुट के आसपास है. 20-25 गज के घर में 15 से 20 सदस्य एकसाथ रह रहे हैं.
पिछले कुछ समय से दलितों और पिछड़ों में वर्चस्व की होड़ बढ़ी है. दबंग पिछड़ा वर्ग अब दलितों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उभार को एक चुनौती के तौर पर लेने लगा है और इसी बात पर दलितों व पिछड़ों के बीच की खाई गहरी होती जा रही है. इस तरह के झगड़े इसी का नतीजा हैं. पिछड़ों के पास जमीनें, जायदाद, राजनीतिक, प्रशासनिक शक्ति आई लेकिन अब यह सब उन से निचले यानी दलित वर्ग के पास आने लगी तो दोनों के बीच झगड़े होने लगे. सामाजिक तौर पर पिछड़ों से नीचे रहे दलितों को उन की औकात में रखे जाने के गैरकानूनी तरीके इस्तेमाल किए जाने लगे.
बिना जमीन के दलितों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति मुश्किल में है. गांवों और छोटे कसबों में किसी की भी सामाजिक हैसियत जमीन और पशुओं से आंकी जाती है. दलित इस मामले में सब से पीछे हैं.
इतिहास और आज
स्वतंत्रता के बाद भी भूमि उपयोग की कोई समान नीति नहीं बनाई गई. हालांकि जमीनों की सीलिंग तय की गई लेकिन वह बड़े भूस्वामियों के लिए थी. इस से भूमिहीनों, दलितों को कोई फायदा नहीं मिला. पिछले सालों में 19 राज्यों में 86,107 हैक्टेअर भूमि कौर्पोरेट कंपनियों को स्पैशल इकोनौमिक जोन के लिए दे दी गई. यह जमीन किसानों से छीन कर दी गई. इस से दलितों को भी नुकसान हुआ है. जमीनें गईं तो दबंग जातियों के यहां खेतों में काम करने वाले इन दलित मजदूरों का काम छिन गया.
स्वतंत्रता के तुरंत बाद अर्थशास्त्री जे सी कुमारप्पा की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने कहा था कि अधिकतर भूमि उन चंद शक्तिशाली लोगों के पास है जिन की स्वयं की खेती करने में कोई रुचि नहीं है. कुमारप्पा अपने समय में महात्मा गांधी के सहयोगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के जानकार थे. हैरानी है कि इतने साल गुजर जाने के बाद भी भूमिहीनों की हालत ज्यों की त्यों है. केंद्र और राज्य सरकारें इन वर्षों में कोई समान भू वितरण की ठोस नीति नहीं बना पाईं. जो नियमकायदे बने वे केवल कागजों में चल रहे हैं. इसी वजह से दलित बड़ी संख्या में अभी भी भूमिहीन हैं.
असल में यह स्थिति जातीय भेदभाव, ऊंचनीच की वजह से है. ब्राह्मणों ने शूद्रों यानी आज के पिछड़ों को तो पढ़नेलिखने. पूजापाठ के वे अधिकार दे दिए, जो उन के पास सुरक्षित थे लेकिन दलितों को स्वतंत्रता नहीं दी. उन्हें स्वतंत्रता देने से ही देश में उत्पादकता बढे़गी. जातीयता की संकीर्ण सोच से हर वर्ग को नुकसान हो रहा है.
भूमि सुधारों और उत्पादन साधनों पर वंचितों, दलितों, मजदूरों के नियंत्रण के बिना मेहनतकश की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता. दलित और पिछड़ों के झगड़ों का निदान जमीन के समान बंटवारे और जातिव्यवस्था के खात्मे में है.
9 अप्रैल, 2017 : मिस्र के अलैक्जैंड्रिया और तांता शहरों के गिरजाघरों में हुए धमाकों के बाद राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल सीसी ने देश में 3 महीने के आपातकाल की घोषणा कर दी. इन धमाकों में 45 लोगों की मौत हो गई जबकि सैकड़ों घायल हो गए. 2 गिरजाघरों में हुए विस्फोटों की जिम्मेदारी आतंकी संगठन आईएस ने ली है. अलैक्जैंड्रिया के सैंट मार्क्स चर्च में शक होने पर सुरक्षा बलों ने चर्च के मुख्यद्वार पर ही आत्मघाती हमलावर को रोक लिया था, जहां उस ने खुद को उड़ा लिया.
3 अप्रैल, 2017 : रूस में सैंट पीट्सबर्ग के मैट्रो स्टेशन पर 3 धमाकों में 10 लोगों की मौत हो गई जबकि 50 से अधिक लोग घायल हो गए. बम विस्फोट करने वाले संदिग्ध व्यक्ति की पहचान को प्रारंभिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया है. यह संदिग्ध व्यक्ति मध्य एशियाई है, जिस के सीरियाई आतंकवादियों से संबंध हैं.
विशेषज्ञों ने विश्लेषण किया है कि यह हमलावर खुद के बनाए हुए बम को ले कर मैट्रो में गया था. वह डब्बे में बीच वाली जगह पर खड़ा हुआ था. मैट्रो टे्रन के चलने के दौरान उस ने विस्फोट कर दिया.
7 अप्रैल, 2017 : स्वीडन की राजधानी स्टौकहोम में एक ट्रक भीड़भाड़ वाले शौपिंग इलाके में घुस गया और लोगों को रौंदते हुए निकल गया, जिस में 5 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. यह घटना स्टौकहोम के ड्रोटिनिंगटन क्वीन स्ट्रीट पर हुई. अधिकारियों के मुताबिक यह घटना आतंकी हमलों की ओर इशारा करती है.
7 मार्च, 2017 : भारत में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में करीब 12 घंटे चली मुठभेड़ के बाद सैफुल्लाह मारा गया. यह भारत पर आईएस का पहला हमला था. शुरुआती जांच के हिसाब से यह स्वघोषित कट्टरपंथी या लोन वुल्फ था जो खुद को आईएसआईएस खुरासान गु्रप के तौर पर प्रचारित कर रहा था.
जरमनी की राजधानी बर्लिन के क्रिसमस मार्केट में हुए ट्रक हमले की जिम्मेदारी आईएसआईएस ने ली. उस से जुड़ी एक एजेंसी अमाक ने हमले के दूसरे दिन बयान जारी कर के हमले की जिम्मेदारी ली. बयान में कहा गया है कि गठबंधन देशों को निशाना बनाने की अपील के बाद आईएस के एक लड़ाके ने हमला किया. हमले में
12 लोगों की मौत हो गई थी और 50 से ज्यादा घायल हुए थे.
आतंकी वारदात को अंजाम देने के बाद यह आतंकी बच कर भाग निकलने में भी सफल रहा. इसलिए जरमनी में इस बात का खौफ था कि वह दूसरा हमला कर सकता है लेकिन वह 2 दिनों बाद इटली पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया. इसे लोन वुल्फ या अकेले भेडि़ए का हमला माना जा रहा है.
क्या बला है लोन वुल्फ
मौजूदा दौर में लोन वुल्फ हमले का मतलब है बिना किसी नेतृत्व के अपने धार्मिक, सांप्रदायिक और कट्टर विचारधारा के नाम पर अकेले हथियार ले कर आम लोगों व सुरक्षाबल पर हिंसक हमले करना. इस सिलसिले में जो शोध हुए हैं, वे बताते हैं कि ऐसे लोन वुल्फ अकसर किसी छोटे से नैटवर्क का हिस्सा होते हैं. कुछ तो सिर्फ परिवार के सदस्यों व दोस्तों से मदद लेते हैं. या उन की असलियत बहुत नजदीकी लोगों को ही पता होती है.
बोस्टन में बम धमाका करने वाले दोनों लोग भाई थे, जबकि सैन बै्रंडिनो में हमला करने वाले पतिपत्नी थे. यूरोप में पिछले 9 महीनों में इस तरह के जो हमले हुए हैं वे नौजवानों के छोटे से नैटवर्क की करतूतें थीं. वे एकदूसरे को जानते थे, दोस्त थे या पासपड़ोस के ही लड़के थे. खुफिया एजेंसी के लिए इस तरह के हमलावरों को ढूंढ़ना टेढ़ी खीर होता है.
पुलिस व सुरक्षा एजेंसियां पस्त
आधुनिक युग में आतंकवाद का चेहरा कोई खास अलग नहीं है, लेकिन जैसे ही इस पर आईएसआईएस की मुहर लगती है, हमारी रीढ़ की हड्डी में कंपकंपी छूट जाती है. यह हमें ज्यादा डराता है. आईएसआईएस महज हत्याएं नहीं करता, बल्कि सभ्य समाज और बर्बरता के बीच का फासला कम करता हुआ ऐसे कृत्य को न्यायसंगत व सही भी ठहराता है. वह यह भी समझाता है कि ऐसा करने में गई उस के सदस्यों की जानें दरअसल शौर्य का प्रतीक हैं.
आईएसआईएस एक ऐसी फ्रैंचाइज है जो कोई भी हथिया सकता है बिना उस की इजाजत के. सिर्फ इतना भर करना होता है कि हमला करो, हिंसा फैलाओ, बेगुनाह और मासूम लोगों की जानें लो और हमले से ठीक पहले एक संदेश जारी कर दो कि इस हमले का रिश्ता आईएसआईएस से है. आईएसआईएस को बुरा नहीं लगता, वह भी तुरतफुरत ऐसे हमलों की जिम्मेदारी या कहें कि श्रेय लेने में पीछे नहीं रहता.
जब आतंक का रूप ऐसा हो जाए तो चुनौती यह है कि इस से निबटा कैसे जाए. तमाम देशों की सुरक्षा एजेंसियां इस तरह को हमलों को कैसे रोकें, जहां न तो कोई गुट काम कर रहा है, न कोई ट्रेनिंग या उकसावे के कैंप चल रहे हैं, न कोई बड़ा हथियारों का जखीरा जमा किया जा रहा है. अलकायदा के जमाने में तो यही होता रहा है कि एजेंसिया ऐसे लोगों पर नजर रखती थीं जो अपने देश से बाहर जाते थे.
फ्रांस के आतंकी और मतीन में काफी समानताएं हैं. फ्रांस का हमलावर भी पुलिस की नजर में था और मतीन भी. दोनों ही के बारे में पुलिस को लगता था कि वे नाराज युवक हैं, और हिंसा की इस पराकाष्ठा तक नहीं पहुंच सकते. दोनों ही मामलों में पुलिस और एजेंसियां गलत साबित हुई हैं.
लोन वुल्फ का हाइटैक हथियार
‘लोन वुल्फ टैररिज्म : अंडरस्टैडिंग द ग्रोइंग थ्रेट’ पुस्तक के लेखक जैफ्री सिमोन आतंकवाद की इस नई प्रवृत्ति के बारे में कहते हैं –
‘‘मेरी पुस्तक लोन वुल्फ आतंकवाद की बढ़ती समस्या के बारे में है जो संगठित आतंकवाद से अलग तरह की है जिस के हम सातवें, आठवें और नवें दशक और 21वीं सदी के पहले 5 सालों में आदी रहे हैं. बुनियादी तौर पर लोन वुल्फ एक व्यक्ति होता है, वह 2 व्यक्ति भी हो सकते हैं, वे बाहरी लौजिस्टिक और आर्थिक सहायता के बिना काम करते हैं. ‘‘दरअसल वे अपने लिए काम कर रहे होते हैं. उन की पहचान कर पाना या उन्हें पकड़ पाना मुश्किल होता है क्योंकि उन की किसी से बातचीत नहीं होती, न गु्रप के कोर सदस्य पकडे़ जाते हैं.
अपनी पुस्तक में मैं ने कहा है कि इंटरनैट ने इस खेल को बदल दिया है. इंटरनैट ने इन आतंकवादियों को यह अवसर दिया है कि आतंकवादी संगठन के वैब पेजेज, ट्वीट्स और ब्लौग पढ़ कर स्वयंमेव उग्रवादी बन सकते हैं. लेकिन इस से अधिकारियों को लोन वुल्फ के बारे में जानने का मौका मिल सकता है क्योंकि कई वुल्फ हमले से पहले संदेश भेजते हैं. हाल ही में लोन वुल्फ की संख्या भी बढ़ती जा रही है और उन के द्वारा की जानेवाली तबाही भी.
‘‘परंपरागत आतंकवादी और लोन वुल्फ आतंकवादियों में एक फर्क यह है कि लोन वुल्फ आतंकवादी नएनए तरीके अपनाते हैं. बुनियादी तौर पर लोन वुल्फ बहुत खतरनाक होते हैं और बहुत रचनात्मक भी. चूंकि उन के पीछे कोई सामूहिक निर्णय प्रक्रिया नहीं होती, इसलिए वे अपनी पसंद का तरीका या रणनीति चुन सकते हैं. इस कारण लोन वुल्फ की संख्या बढ़ती जा रही है. यह एक ट्रैंड बन सकता है.’’
आईएसआईएस आतंकवाद के इतिहास में सब से ज्यादा तकनीक और मीडियापसंद गुट है. इस ने इंटरनैट के इस्तेमाल में महारत हासिल की हुई है. अलकायदा ने भी उस का इस्तेमाल किया मगर आईएसआईएस इसे और ऊंचे स्तर तक ले गया. इसलिए यह कह पाना मुश्किल है कि आने वाले दिनों में क्या नई बात निकल कर आती है.
हमें यह जरूर जानना चाहिए कि आईएसआईएस इराक और सीरिया में घिर चुका है. हो सकता है निकट भविष्य में यह देखने को मिले कि वह हार चुका है मगर वह विकेंद्रित वैश्विक ताकत के रूप में बना रहेगा. इंटरनैट और सोशल मीडिया का उपयोग कर लोगों को आत्मघाती हमले करने को प्रेरित करता रहेगा.
रहना होगा सावधान
फ्रांस के एक शिक्षाविद के मुताबिक, ये वो लोग हैं जो किसी भी समाज में ऐडजस्ट नहीं हो सकते. ये लोग एक काल्पनिक दुनिया में रहते हैं और ये इसलाम के कट्टरपंथ से नहीं, बल्कि अपने ही मन के कट्टरपंथ से प्रभावित हैं. हमलों में आईएसआईएस का नाम लेना इन्हें अच्छा लगता है क्योंकि वह एकमात्र समाजविरोधी और विश्वविरोधी संस्था है. आईएसआईएस आधुनिकता के खिलाफ है और दुनिया को इसलाम के शुरुआती दौर में ले जाना चाहता है. दरअसल, इसलाम का कट्टरपंथी रूप नहीं है यह, वास्तविकता यह है कि यह कट्टरपंथ का इसलामीकरण है.
आतंक के इस नए हाइटैक व धार्मिक हथियारों से घिरे रूप से पूरी दुनिया परेशान है. आज भले ही लोन वुल्फ के निशाने पर फ्रांस, अमेरिका जैसे यूरोपीय देश हों लेकिन जिस तरह से एशिया, खासकर भारत, पिछले कई सालों से आतंक के निशाने पर रहा है उस से यहां भी लोन वुल्फ की क्रूर करतूतों की गुंजाइश और बढ़ जाती है. जाहिर है आने वाले खतरे से चारकदम आगे चलने व निबटने के लिए कमर कसने में ही समझदारी है.
लोन वुल्फ का आईएसआईएस कनैक्शन
आईएसआईएस की लोन वुल्फ आतंकी हमले की सोच काफी पुरानी है. सितंबर 2014 में आईएसआईएस ने अपने एक सरगना का औडियोटेप जारी किया था. उस टेप में इराक पर हवाई हमला करने वाले अमेरिका और उसके सहयोगियों पर लोन वुल्फ के ढंग के हमले करने का आह्वान किया गया था. अकेले आतंकी हमला करने वालों को पश्चिमी देशों में लोन वुल्फ कहा जाता है. पहले हमले छोटे स्तर पर ही होते थे, अब ये बड़ा रूप लेते जा रहे हैं. इस हमले का यूरोप में नतीजा यह हुआ है कि सभी मुसलमान और मध्यपूर्व से आए मुसलिम शरणार्थी संभावित आतंकवादी के कठघरे में खड़े कर दिए गए हैं.
अमेरिका के ओरलैंडो के गे क्लब में उस रात ऐसा ही खौफनाक वाकेआ हुआ था. अंधाधुंध फायरिंग कर के 50 से ज्यादा लोगों की जान लेने वाले उमर मतीन के बारे में अभी तक इतना ही पता चल सका है कि वह इसलामिक स्टेट यानी आईएस से प्रभावित था, लेकिन यह हत्याकांड उस ने इसलामिक स्टेट के किसी निर्देश पर नहीं किया था. लेकिन कई अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार मतीन ने हमले से पहले और हमले के दौरान इमरजैंसी सर्विस को फोन कर के यह स्वीकार किया था कि वह इसलामिक स्टेट के लिए प्रतिबद्ध है.
इस घटना से 2015 में कैलिफोर्निया के सैन ब्रैंडिनों में हुई शूटिंग याद आती है, जहां हमलावर ने एक क्लिनिक में गोलीबारी कर के 14 लोगों की जान ले ली थी और हमले से पहले सोशल मीडिया में स्वीकार किया था कि वह आईएसआईएस के प्रति आस्था रखता है. इस के बाद आईएस ने भी न सिर्फ उस की प्रतिबद्धता को स्वीकार किया, बल्कि हमले की जिम्मेदारी भी ली थी.
अकेले भेडि़यों की फौज
यह भी एक तरह से आईएस की रणनीति का ही हिस्सा है. वह लगातार ऐसे समर्थक तैयार करने की कोशिश करता रहता है, जो जहां कहीं भी हैं, जैसे भी हैं, अपनी तरह से उस के लिए कुछ करते रहें. खासकर अगर वे खिलाफत वाले क्षेत्र में जा बसने की हिजरत की अपनी जिम्मेदारी निभाने की स्थिति में नहीं हैं.
पिछले कुछ समय से इसलामिक स्टेट अपने दुश्मनों से घिर गया है. रूस, पश्चिमी सैनिक गठबंधन और अरब देशों की आसमान से बरसती हजारों मिसाइलों के कारण इराक और सीरिया की अपनी जमीन पर उस की हालत खस्ता है. वह इराक में 45 प्रतिशत और सीरिया की 20 प्रतिशत जमीन खो चुका है मगर इस का बदला चुकाने के लिए वह दुनियाभर में आतंकवादी वारदातों को अंजाम दे कर कई देशों को दहला रहा है.
आईएस ने ओरलैंडो के हमले की जिम्मेदारी ली, और कहा कि इस काम को इसलामिक स्टेट के एक लड़ाके ने अंजाम दिया. लेकिन यह बयान जिस तरह संक्षिप्त है, उस से यही लगता है कि संगठन को इस हमले की पहले से कोई जानकारी नहीं थी और यह किसी अकेले सिरफिरे की हरकत है. इस के विपरीत पेरिस हमले के दौरान जो जिम्मेदारी ली गई थी, उस में जिस तरह का ब्योरा दिया गया था, वह बता रहा था कि बयान देने वाला हमले की साजिश में शामिल था.
निशाने पर फ्रांस, अमेरिका और…
फ्रांस में भी लोन वुल्फ का हमला हो चुका है जिस में केवल ट्रक के जरिए आतंकी हमला किया गया. वह महज 30 साल का नौजवान था ट्यूनीशिया से आ कर फ्रांस में बसे समुदाय का. पुलिस उसे शातिर अपराधी के तौर पर जानती थी, वह अकसर हथियारों का इस्तेमाल किया करता था. पुलिस की उस पर नजर रहती थी, लेकिन कभी भी उस के बारे में यह शक तक नहीं हुआ कि वह किसी कट्टरपंथी इसलामी संगठन से जुड़ा हुआ है.
जब वह फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस का उत्सव मना रहे लोगों की भीड़ में ट्रक ले कर उन्हें कुचलता हुआ बढ़ा तो उस के पास एक पिस्टल और एक अन्य गन थी. उस ने इसी गन से फायरिंग भी की. उस के ट्रक से कुछ हथगोले और अन्य हथियार मिले, लेकिन जांच में पता चला कि वे नकली थे. इस हमले में 77 लोगों की मौत हुई जबकि 50 से ज्यादा लोग जख्मी हुए. इतना क्रूर कदम उठाने की उसे प्रेरणा या ट्रेनिंग कहां से मिली, यह पता नहीं चल पाया .
फ्रांस में पिछले 10 महीनों में दूसरा बड़ा हमला था. हमले के तुरंत बाद पुलिस ने ट्रक के ड्राइवर को मार गिराया. 2015 में 13 नवंबर को हुए हमले से उबर ही रहा था फ्रांस, जिसमें करीब 130 लोग मारे गए थे, कि यह हमला हो गया.
अमेरिका में भी लोन वुल्फ हमले की कई वारदातें हुई हैं. ओरलैंडो के गे क्लब का हमला हो या फिर सिनेमाघर में अंधाधुंध गोलियां बरसाने वाली घटना, दोनों ही मामलों में हमलावर अकेले थे और लोन वुल्फ की तरह घटना को अंजाम दे रहे थे. उन का किसी आतंकी संगठन से संबंध भी नहीं पाया गया.
आतंक की सिरफिरी ब्रैंडिंग
लोन वुल्फ सिर्फ हमले ही नहीं करता बल्कि कभी उन के हमले बहुत छोटे स्तर के भी होते हैं. दक्षिण जरमनी में एक सिरफिरे शख्स ने 4 लोगों को ट्रेन में कुल्हाड़ी मार कर जख्मी कर दिया. हमलावर की कुल्हाड़ी का शिकार हुए 3 लोग गंभीररूप से घायल हुए, जबकि एक को हलकी चोट आई. यह घटना बवेरिया में वुर्जबर्ग और ट्रेचलिंगन के बीच एक लोकल ट्रेन में हुई. हमलावर को पुलिस ने ढेर कर दिया. चाकू और कुल्हाड़ी से लैस इस हमलावर की पहचान 17 साल के अफगानी युवक के रूप में हुई.
ये सभी ऐसे आतंकी थे जिन्हें आज की भाषा में लोन वुल्फ यानी अकेला भेडि़या या अकेला हमलावर कहा जाता है. ये आईएसआईएस की रणनीति थी जो जहां है वहीं रहे और हमले का मौका तलाशता रहे, जब मौका मिले अपने निशाने पर हमला बोल दे. पहली बार किसी आतंकवादी संगठन ने लोन वुल्फ का फंडा अपनाया है. यह बेहद खतरनाक है क्योंकि इस के लिए किसी खास ट्रेनिंग या पैसे की जरूरत पडती है, सिर्फ दिमागी ब्रेन वौश चाहिए.
लोन वुल्फ की ये आतंकी घटनाएं इस तथ्य की ओर संकेत करती हैं कि इसलामिक स्टेट एक स्थायी मानसिक अवस्था बन चुका है. दरअसल
इस मामले में आईएसआईएस अलकायदा से बहुत आगे है. अलकायदा महज आतंक फैलाने का काम कर रहा था तो आईएसआईएस वैचारिक आतंकवाद का एक ऐसा विचार, जो आम से दिखने वाले साधारण लोगों को हिंसक तरीके अपनाने के लिए उकसाता है.
जिस तरह देसी उत्पाद ग्लोबल ब्र्रैंड का ठप्पा लगते ही आकर्षण का केंद्र बन जाता है वैसे ही किसी भी तरह की हिंसा में आईएसआईएस का ठप्पा लगते ही वह वैश्विक घटना में बदल जाती है. उन के पीछे बड़ी संगठित ताकत सक्रिय रहती थी.
आतंक की आर्थिक रणनीति
अब आतंकवाद के नए रूप में किसी संगठन को लंबे अरसे तक योजना बना कर करोड़ों रुपए खर्च कर हमले करवाने की जरूरत नहीं, बल्कि कोई भी अकेला इंसान इन्हें अंजाम दे कर दुनियाभर में दहशत फैला सकता है. लेकिन अब दुनियाभर में ऐसी ही दहशत पैदा करने के लिए 1 या 2 लोग ही काफी होंगे.
वह किसी एक जीप या कार पर सवार हो किसी भीड़ को कुचलता हुआ निकल सकता है या फिर रसोई में काम आने वाले चाकू की मदद से ही किसी भीड़ वाले इलाके में एकसाथ दसों लोगों का कत्ल कर सकता है.
ऐसी हरकत चीन के शिनच्यांग में देखी गई है. ऐसे इंसान के लिए कोई धार्मिक आतंकवादी या अलगाववादी संगठन प्रेरणा का स्रोत बनता है. उसे संगठन से मदद की कोई जरूरत नहीं होती और न ही उस के निर्देशों की जरूरत होती है. ऐसे लोग कई देशों के लिए एक बड़ी परेशानी बने हुए हैं.
बहरहाल, लोन वुल्फ जिस तरह पनप रहे हैं उन से निबटने के लिए सैन्य या पुलिस ताकत से काम नहीं चलेगा. ऐसे तत्त्व अब हर समाज में नजर आ रहे हैं.
10 साल की सोनी रोज की तरह तैयार हो कर स्कूल पहुंची. उस की क्लास के मौनीटर ने उस से कहा कि उस के हाथ का नाखून काफी बढ़ा हुआ है, इसलिए डायरैक्टर साहब ने उसे अपने चैंबर में बुलाया है. सोनी के साथ उस की एक सहेली भी डायरैक्टर के चैंबर में पहुंची. डायरैक्टर ने सोनी की सहेली को क्लास में भेज दिया और उस के साथ जबरन अपना मुंह काला किया.
स्कूल की छुट्टी होने पर सोनी को स्कूल की गाड़ी से उस के घर पहुंचा दिया गया. सोनी की मां को बताया गया कि वह स्कूल में बेहोश हो गई थी. जब सोनी को होश आया, तो उस ने अपनी मां को सारी बातें बताईं. इस के बाद सोनी के परिवार वाले और आसपास के लोग स्कूल पहुंच गए और जम कर तोड़फोड़ की. डायरैक्टर को गिरफ्तार करने की मांग को ले कर सड़क जाम कर दी गई.
पटना के पुराने इलाके पटना सिटी के पटना सिटी सैंट्रल स्कूल, दर्शन विहार के डायरैक्टर पवन कुमार दर्शन की इस घिनौनी करतूत ने जहां एक ओर टीचर और स्टूडैंट के रिश्तों पर कालिख पोत दी है, वहीं दूसरी ओर मासूम बच्चियों की सुरक्षा पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं. सच तो यह है कि मासूम बच्चियां स्कूल टीचर, प्रिंसिपल, ड्राइवर, खलासी, नौकर, चपरासी, पड़ोसी समेत करीबी रिश्तेदारों की घटिया सोच की शिकार हो रही हैं.
पटना हाईकोर्ट के सीनियर वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि पहले लोग करीबी रिश्तेदारों और पड़ोसियों के पास अपने बच्चों को छोड़ कर किसी काम से बाहर चले जाते थे, पर आज ऐसा नहीं के बराबर हो रहा है. अपनों द्वारा भरोसा तोड़ने के बढ़ते मामलों की वजह से लोग पासपड़ोस में बच्चियों को छोड़ने से कतराने लगे हैं.
पुलिस अफसर राकेश दुबे कहते हैं कि अपने आसपास खेलतीकूदती, स्कूल आतीजाती और छोटीमोटी चीज खरीदने महल्ले की दुकानों पर जाने वाली बच्चियों के साथ छेड़छाड़ करना काफी आसान होता है. परिवार और पड़ोस के लोगों की आपराधिक सोच और साजिश का पता लगा पाना किसी के लिए भी आसान नहीं है. पता नहीं, कब किस के अंदर का शैतान जाग उठे और वह किसी मासूम को अपनी खतरनाक साजिश का निशाना बना डाले.
ऐसे में हर मांबाप को अपने बच्चों पर खास ध्यान देने की जरूरत है. मासूम बच्चियों की हिफाजत को ले कर तो मांबाप को किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतनी चाहिए. समाजशास्त्री अजय मिश्र बताते हैं कि समाज की टूटती मर्यादाओं और घटिया सोच की वजह से ही बच्चियों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है. अब इनसान अपने भाई, चाचा, मामा, दोस्तों समेत अपनों से लगने वाले पड़ोसियों पर भरोसा न करें, तो फिर किस पर करें?
आज के हालात तो ये हैं कि लोगों की नीयत बदलते देर नहीं लगती है. अपने ही अपनों के भरोसे का खून कर रहे हैं. यह सब रिश्तों और समाज के लिए बहुत ही खतरनाक बन चुका है. प्रोफैसर अरुण कुमार प्रसाद कहते हैं कि बच्चियों के कोचिंग जाने, खेलनेकूदने पर या बाजारस्कूल जाने पर हर समय हर जगह उन पर नजर रखना मांबाप के लिए मुमकिन नहीं है.
अकसर ऐसा होता है कि पति दफ्तर में और पत्नी बाजार में है. इस बीच बच्चा स्कूल से आ जाता है, तो वह पड़ोस के ही अंकल या आंटी के पास मजे में रहता है. लेकिन अब कुछ शैतानी सोच वाले लोगों की वजह से यह भरोसा ही कठघरे में खड़ा हो चुका है.
करीबी रिश्तेदारों, पड़ोसियों, नौकरों और ड्राइवरों द्वारा बच्चियों से छेड़छाड़ करने और उन के साथ जबरन सैक्स संबंध बनाने की वारदातें तेजी से बढ़ रही हैं. ऐसी वारदातों के बढ़ने की सब से बड़ी वजह पारिवारिक और सामाजिक संस्कारों और मर्यादाओं का तेजी से टूटना है.
समाजसेवी किरण कुमारी कहती हैं कि पहले परिवार के करीबी रिश्तेदारों के बीच कुछ सीमाएं और लिहाज होता था, जो आज की भागदौड़ की जिंदगी में खत्म होता जा रहा है. यही वजह है कि करीबी रिश्तेदारों और पड़ोसियों की गंदी नजरों की शिकार मासूम बच्चियां बन रही हैं. ऐसे मांबाप को अपनी बच्चियों को ऐसे अनजान खतरों से आगाह करते रहना चाहिए. साथ ही, वे खुद भी सतर्क रहें.