आवारगी में गंवाई जान – भाग 3

रेखा ने रिंकी को पहली बार तेजप्रताप गिरि के यहां देखा था, तभी से वह भांप गई थी कि यह औरत उस के काम की साबित हो सकती है. उस ने तेजप्रताप से रिंकी का मोबाइल नंबर ले कर उस से बातचीत शुरू कर दी थी. बातचीत के दौरान उसे पता चल गया कि रिंकी पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है, इसलिए वह उसे पैसे कमाने का रास्ता बताने लगी. फिर जल्दी ही रिंकी उस के जाल में फंस भी गई.

रिंकी जब भी गोरखपुर आती, रेखा से मिलने उस के घर जरूर जाती थी. इसी आनेजाने में अपनी उम्र से छोटे बबलू, संदीप और मनोज से उस के संबंध बन गए. इन लड़कों से संबंध बनाने में उसे बहुत मजा आता था.

रेखा का एक पुराना ग्राहक था सरदार रकम सिंह, जो सहारनपुर का रहने वाला था. उस ने रेखा से एक कमसिन, खूबसूरत और कुंवारी लड़की की व्यवस्था के लिए कहा था, जिस से वह शादी कर सके. रेखा को तुरंत रिंकी की याद आ गई. रिंकी भले ही शादीशुदा और 2 बच्चों की मां थी, लेकिन देखने में वह कमसिन लगती थी. कैसे और क्या करना है, उस ने तुरंत योजना बना डाली.

अब तक रिंकी की बातचीत से रेखा को पता चल गया था कि वह अपने सीधेसादे पति से खुश नहीं है. उसे भौतिक सुखों की चाहत थी, जो उस के पास नहीं था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी.

1 दिसंबर, 2013 को रिंकी छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर गोरखपुर आई. संयोग से उसी दिन किरन किसी बात पर पति से लड़झगड़ कर बड़ी बहन पुष्पा के यहां कुबेरस्थान (कुशीनगर) चली गई. रिंकी ने वह रात तेजप्रताप के साथ आराम से बिताई.

अगले दिन सुबह तेजप्रताप ने रिंकी को उस की ससुराल वापस पटहेरवा भेज दिया. इस के 2 दिनों बाद रेखा ने रिंकी को फोन किया. हालचाल पूछने के बाद उस ने कहा, ‘‘रिंकी मैं ने तुम्हारे लिए एक बहुत ही खानदानी घरवर ढूंढा है. अगर तुम अपने पति को छोड़ कर उस के साथ शादी करना चाहो तो बताओ.’’

रिंकी ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘मैं तैयार हूं.’’

‘‘ठीक है, कब और कहां आना है, मैं तुम्हें फिर फोन कर के बताऊंगी.’’ कह कर रेखा ने फोन काट दिया.

8 दिसंबर, 2013 को फोन कर के रेखा ने रिंकी से 11 दिसंबर को गोरखपुर आने को कहा. तय तारीख पर रिंकी अजय से बड़ी ननद पुष्पा के यहां जाने की बात कह कर घर से निकली. शाम होतेहोते वह रेखा के यहां पहुंच गई. उस ने इस की जानकारी तेजप्रताप को नहीं होने दी. रात रिंकी ने रेखा के यहां बिताई. 12 दिसंबर को रेखा ने भतीजे बबलू और भांजे मनोज के साथ उसे सहारनपुर सरदार रकम सिंह के पास भेज दिया और उस के बेटे को अपने पास रख लिया.

रिंकी को सिर्फ इतना पता था कि उस की दूसरी शादी हो रही है, जबकि रेखा ने उसे सरदार रकम सिंह के हाथों 45 हजार रुपए में बेच दिया था. रिंकी को वहां भेज कर उस ने उस के बेटे को बेलीपार की रहने वाली भाजपा नेता इशरावती के हाथों 30 हजार रुपए में बेच दिया था. बच्चा लेते समय इशरावती ने उसे 21 हजार दिए थे, बाकी 9 हजार रुपए बाद में देने को कहा था.

दूसरी ओर 2 दिनों तक रिंकी का फोन नहीं आया तो अजय को चिंता हुई. उस ने खुद फोन किया तो फोन बंद मिला. इस से वह परेशान हो उठा. उस ने पुष्पा को फोन किया तो उस ने बताया कि रिंकी तो उस के यहां आई ही नहीं थी. अब उस की परेशानी और बढ़ गई. वह अपने अन्य रिश्तेदारों को फोन कर के पत्नी के बारे में पूछने लगा. जब उस के बारे में कहीं से कुछ पता नहीं चला तो वह उस की तलाश में निकल पड़ा.

रिंकी का रकम सिंह के हाथों सौदा कर के रेखा निश्चिंत हो गई थी. लेकिन सप्ताह भर बाद उसे बच्चों की याद आने लगी तो वह रकम सिंह से गोरखपुर जाने की जिद करने लगी. तभी सरदार रकम सिंह को रिंकी के ब्याहता होने की जानकारी हो गई. चूंकि रिंकी खुद भी जाने की जिद कर रही थी, इसलिए उस ने रेखा को फोन कर के पैसे वापस कर के रिंकी को ले जाने को कहा.

अब रेखा और मनोज की परेशानी बढ़ गई, क्योंकि रिंकी आते ही अपने बेटे को मांगती. जबकि वे उस के बेटे को पैसे ले कर किसी और को सौंप चुके थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. रिंकी के वापस आने से उन का भेद भी खुल सकता था. इसलिए पैसा और अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्होंने उसे खत्म करने की योजना बना डाली.

21 दिसंबर, 2013 को बबलू और मनोज सहारनपुर पहुंचे. रकम सिंह के पैसे लौटा कर वे रिंकी को साथ ले कर ट्रेन से गोरखपुर के लिए चल पड़े. रात 7 बजे वे गोरखपुर पहुंचे. स्टेशन से उन्होंने रेखा को फोन कर के एक मोटरसाइकिल मंगाई. संदीप उन्हें मोटरसाइकिल दे कर अपने गांव चौरीचौरा गौनर चला गया.

आगे रिंकी के साथ क्या करना है, यह रेखा ने मनोज को पहले ही समझा दिया था. मनोज, बबलू रिंकी को ले कर कुसुम्ही जंगल पहुंचे. मनोज ने उस से कहा था कि वह कुसुम्ही के बुढि़या माई मंदिर में उस से शादी कर लेगा. मंदिर से पहले ही मोड़ पर उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तीनों नीचे उतरे तो मनोज ने बबलू को मोटरसाइकिल के पास रुकने को कहा और खुद रिंकी को ले कर आगे बढ़ा.

शायद रिंकी मनोज के इरादे को समझ गई थी, इसलिए उस ने भागना चाहा. लेकिन वह भाग पाती, उस के पहले ही मनोज ने उसे पकड़ कर कमर में खोंसा 315 बोर का कट्टा निकाल कर बट से उस के सिर के पीछे वाले हिस्से पर इतने जोर से वार किया कि उसी एक वार में वह गिर पड़ी.

घायल हो कर रिंकी खडंजे पर गिर कर छटपटाने लगी. उसे छटपटाते देख मनोज ने अपना पैर उस के सीने पर रख कर दबा दिया. जब वह मर गई तो उस की लाश को ठीक कर के दोनों मोटरसाइकिल से घर आ गए. बाद में इस बात की जानकारी तेजप्रताप को हो गई थी, लेकिन उस ने यह बात अपने साले अजय को नहीं बताई थी.

कथा लिखे जाने तक रिंकी हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त मनोज कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. सरदार रकम सिंह की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी. वह भी फरार था. बाकी सभी अभियुक्तों को पुलिस ने जेल भेज दिया था.

इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार ने 5 हजार रुपए पुरस्कार देने की घोषणा की है.

—कथा पारिवारिक और पुलिस सूत्रों पर आधारित.

आवारगी में गंवाई जान – भाग 2

उसी दिन पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया. इन की गिरफ्तारी के बाद अजय गिरि का 3 वर्षीय बेटा सुंदरम भी सहीसलामत मिल गया. गिरफ्तार पांचों अभियुक्तों से की गई पूछताछ के बाद रिंकी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी…

पुलिस ने लाश बरामद होने पर हत्या का जो मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज किया था, खुलासा होने पर अजय से तहरीर ले कर अज्ञात हत्यारों की जगह मनोज पाल, बबलू, संदीप पाल, तेजप्रताप गिरि, रंभा उर्फ रेखा पाल, इशरावती और सरदार रकम सिंह के नाम डाल कर नामजद कर दिया.

25 वर्षीया रिंकी उर्फ रिंकू, उत्तर प्रदेश के जिला कुशीनगर के थाना तरयासुजान के गांव लक्ष्मीपुर राजा की रहने वाली थी. उस के पिता नगीना गिरि गांव में ही रह कर खेती करते थे. इस खेती से ही उन का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में रिंकी के अलावा 3 बच्चे, जियुत, रंजीत और नंदिनी थे. नगीना के बच्चों में रिंकी सब से बड़ी थी. रिंकी खूबसूरत तो थी ही, स्वभाव से भी थोड़ा चंचल थी, इसलिए हर कोई उसे पसंद करता था.

नगीना की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ाते, इसलिए उन्होंने रिंकी की पढ़ाई छुड़ा दी थी. रिंकी जैसे ही सयानी हुई, गांव के लड़के उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे. चंचल स्वभाव की रिंकी शहजादियों की तरह जीने के सपने देखती थी. लेकिन उस के लिए यह सिर्फ सपना ही था. यही वजह थी कि पैसों के लालच में वह दलदल में फंसती चली गई.

गांव के कई लड़कों से उस के संबंध बन गए थे. वे लड़के उसे सपनों के उड़नखटोले पर सैर करा रहे थे. जब इस बात का पता उस के पिता नगीना को चला तो उन्होंने इज्जत बचाने के लिए बेटी की शादी कर देना ही उचित समझा. उन्होंने प्रयास कर के कुशीनगर के ही थाना परहरवा के गांव पगरा बसंतपुर के रहने वाले पारस गिरि के बेटे अजय गिरि से उस की शादी कर दी.

पारस गिरि भी खेती से ही 7 सदस्यों के अपने परिवार कोे पाल रहे थे. शादी के बाद बड़ा बेटा नौकरी के लिए बाहर चला गया तो उस से छोटा अजय पिता की मदद करने लगा. साथ ही वह एक बिल्डिंग मैटेरियल की दुकान, जहां वेल्डर का भी काम होता था, पर नौकरी करता था. इस नौकरी से उसे इतना मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. पारस ने बेटियों की शादी अजय की मदद से कर दी थी.

पारस ने छोटी बेटी किरण की शादी जिला देवरिया के थाना तरकुलवा के गांव बालपुर के रहने वाले लालबाबू गिरि के सब से छोटे बेटे तेजप्रताप गिरि से की थी. शादी के बाद तेजप्रताप किरण को ले कर गोरखपुर आ गया था, जहां शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था.

रिंकी ने शहजादियों जैसे जीने के जो सपने देखे थे, शादी के बाद भी वे पूरे नहीं हुए. वह खूबसूरत और स्मार्ट पति चाहती थी, जो उसे बाइक पर बिठा कर शहर में घुमाता, होटल और रेस्तरां में खाना खिलाता. जबकि रिंकी का शहजादा अजय बेहद सीधासादा, ईमानदार और समाज के बंधनों को मानने वाला मेहनती युवक था. दुनिया की नजरों में वह भले ही रिंकी का पति था, लेकिन रिंकी ने दिल से कभी उसे पति नहीं माना . वह अभी भी किसी शहजादे की बांहों में झूलने के सपने देखती थी.

रिंकी सपने भले ही किसी शहजादे के देख रही थी, लेकिन रहती अजय के साथ ही थी. वह उस के 2 बेटों, सत्यम और सुंदरम की मां भी बन गई थी. इसी के बाद अजय ने छोटी बहन किरन की शादी तेजप्रताप से की तो पहली ही नजर में तेजप्रताप रिंकी को सपने का शहजादा जैसा लगा. फिर आनेजाने में कसरती बदन और मजाकिया स्वभाव के तेजप्रताप पर रिंकी कुछ इस तरह फिदा हुई कि उस से नजदीकी बनाने के लिए बेचैन रहने लगी.

तेजप्रताप को रिंकी के मन की बात जानने में देर नहीं लगी. सलहज के नजदीक पहुंचने के लिए वह जल्दीजल्दी ससुराल आने लगा. इस आनेजाने का उसे लाभ भी मिला. इस तरह दोनों जो चाहते थे, वह पूरा हो गया. रिंकी और तेजप्रताप के शारीरिक संबंध बन गए. दोनों बड़ी ही सावधानी से अपनअपनी चाहत पूरी कर रहे थे, इसलिए उन के इस संबंध की जानकारी किसी को नहीं हो सकी थी.

तेजप्रताप पादरी बाजार पुलिस चौकी के पास छोलेभटूरे का ठेला लगाता था. उस की दुकान पर बबलू और संदीप पाल अकसर छोले भटूरे खाने आते थे. बबलू और संदीप में अच्छी दोस्ती थी. उन की उम्र 15-16 साल के करीब थी. तेजप्रताप के वे नियमित ग्राहक तो थे, इसलिए उन में दोस्ती भी हो गई थी. बाद में पता चला कि वे रहते भी उसी के पड़ोस में थे. इस से घनिष्ठता और बढ़ गई. उन का परिवार सहित तेजप्रताप के घर आनाजाना हो गया.

एक बार रिंकी अजय के साथ ननद के घर गोरखपुर ननदननदोई से मिलने आई तो संयोग से उसी समय संदीप पाल की मां रंभा उर्फ रेखा पाल भी किसी काम से तेजप्रताप से मिलने आ गई. रेखा ने रिंकी को गौर से देखा तो महिलाओं की पारखी रेखा को वह अपने काम की लगी.

रिंकी ने तेजप्रताप के घर का रास्ता देख लिया तो उस का जब मन होता, वह किसी न किसी बहाने तेजप्रताप से मिलने गोरखपुर आने लगी. रिंकी गोरखपुर अकसर आने लगी तो रंभा उर्फ रेखा से भी जानपहचान हो गई. रेखा के 20 वर्षीय भांजे मनोज पाल की नजर मौसी के घर आनेजाने में रिंकी पर पड़ी तो खूबसूरत रिंकी का वह दीवाना हो उठा.

मनोज गोरखपुर में टैंपो चलाता था. वह रहने वाला गोरखपुर के थाना गोला के गांव हरपुर का था. वह मौसी रेखा के यहां इसलिए बहुत ज्यादा आताजाता था, क्योंकि वह उस का खास शागिर्द था. रेखा देखने में जितनी भोलीभाली लगती थी, भीतर से वह उतनी ही खुराफाती थी. उस औरत से पूरा मोहल्ला परेशान था. इस की वजह यह थी कि वह कालगर्ल रैकट चलाती थी. उस के इस काम में उस का भतीजा बबलू, बेटा संदीप और भांजा मनोज उस की मदद करते थे. रेखा के अच्छेबुरे सभी तरह के लोगों से अच्छे संबंध थे, इसलिए मोहल्ले वाले सब कुछ जानते हुए भी उस का कुछ नहीं कर पाते थे.

आगे क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग…

आवारगी में गंवाई जान – भाग 1

रात साढ़े 9 बजे के आसपास कुसुम्ही जंगल के वन दरोगा राकेश कुमार गश्त करते हुए बुढि़या माई दुर्गा मंदिर रोड पर मंदिर से थोड़ा आगे बढ़े थे कि वहां लगे खड़ंजे पर उन्हें एक लाश पड़ी दिखाई दी. उन्होंने टार्च की रोशनी में देखा, लाश महिला की थी. वह हरा सूट पहने थी. उस के दोनों पैरों में चांदी की पाजेब थी. लाश के पास ही एक पीले रंग की शौल पड़ी थी. सिर पर पीछे की ओर किसी धारदार हथियार से वार किया गया था. वहां बने घाव से अभी भी खून बह रहा था. इस से उन्हें लगा कि यह हत्या अभी जल्दी ही की गई है.

राकेश कुमार ने फोन द्वारा थाना खोराबार के थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव को लाश पड़ी होने की सूचना दी. वह गायघाट मर्डर केस को ले कर वैसे ही परेशान थे, इस लाश ने उन की परेशानी और बढ़ा दी. बहरहाल उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी और खुद पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव, एसपी (सिटी) परेश पांडेय और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मृतका के सिर से बह रहे खून से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हत्या एकाध घंटे के अंदर हुई है. मृतका की उम्र 24-25 साल थी. घटनास्थल पर संघर्ष के निशान थे. खड़ंजे से कुछ दूरी पर जूते और  दुपहिया वाहन के टायरों के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. इस का मतलब हत्यारे मोटरसाइकिल से आए थे. मृतका की छाती पर भी जूते के निशान मिले थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे मृतका से नफरत करते रहे होंगे.

लाश के निरीक्षण के दौरान मृतका की दाहिनी हथेली पर पुलिस को एक मोबाइल नंबर लिखा दिखाई दिया. पुलिस ने वह मोबाइल नंबर नोट कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मृतका के पास से मिला सामान कब्जे में ले लिया था, ताकि उस की शिनाख्त कराने में मदद मिल सके. यह 21 दिसंबर की रात की बात थी. 22 दिसंबर की सुबह उन्होंने मृतका की हथेली से मिले मोबाइल नंबर पर फोन किया तो दूसरी ओर से फोन उठाने वाले ने ‘हैलो’ कहने के साथ ही उन के बारे में भी पूछ लिया.

‘‘मैं गोरखपुर के थाना खोराबार का थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव बोल रहा हूं.’’ उन्होंने अपना परिचय देते हुए पूछा, ‘‘यह नंबर आप का ही है. आप कहां से और कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘साहब मैं अजय गिरि बोल रहा हूं. यह नंबर आप को कहां से मिला?’’

‘‘यह नंबर एक महिला की हथेली पर लिखा था, जिस की हत्या हो चुकी है.’’

‘‘उस का हुलिया कैसा था?’’ अजय गिरि ने पूछा.

थानाप्रभारी ने हुलिया बताया तो अजय ने छूटते ही कहा, ‘‘साहब, यह हुलिया तो मेरी पत्नी रिंकी का है. क्या उस की हत्या हो चुकी है? दिसंबर, 2013 को छोटे बेटे सुंदरम को ले कर घर से निकली थी. तब से उस का कुछ पता नहीं चला. उसी की तलाश में मैं बड़े भाई की ससुराल मधुबनी आया था.’’

‘‘ऐसा करो, तुम थाना खोराबार आ जाओ. मरने वाली तुम्हारी पत्नी है या कोई और यह तो यहीं आ कर पता चलेगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘लेकिन मृतका के पास से हमें कोई बच्चा नहीं मिला है. भगवान तुम्हारे साथ अच्छा ही करे.’’

अजय ने पत्नी के साथ बच्चे के होने की बात की थी, जबकि महिला की लाश के पास से कोई बच्चा नहीं मिला था. इस से थानाप्रभारी थोड़ा पसोपेश में पड़ गए कि उस का बच्चा कहां गया? बच्चे की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं थी. उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हत्यारों ने बच्चे को कहीं दूसरी जगह ले जा कर ठिकाने लगा दिया हो. गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझ गई थी. अब यह अजय के आने पर ही सुलझ सकती थी.

उसी दिन शाम होतेहोते अजय थाना खोराबार आ पहुंचा. थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मेज की दराज से कुछ फोटो और लाश से बरामद सामान निकाल कर उस के सामने रखा तो सामान और फोटो देख कर वह रो पड़ा. थानाप्रभारी समझ गए कि मृतका इस की पत्नी रिंकी थी. इस के बाद मैडिकल कालेज ले जा कर उसे शव भी दिखाया गया. अजय ने उस शव की भी शिनाख्त अपनी पत्नी रिंकी के रूप में कर दी. अब सवाल यह था कि उस के साथ जो बच्चा था, वह कहां गया?

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव द्वारा की गई पूछताछ में अजय ने बताया, ‘‘रिंकी अपने 3 वर्षीय छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर ननद पुष्पा की ससुराल कुबेरस्थान जाने की बात कह कर घर से निकली थी. वहां जाने के लिए मैं ने ही उसे जीप में बैठाया था. उस ने 2 दिन बाद लौट कर आने को कहा था.

2 दिनों बाद जब वह घर नहीं लौटी तो मैं ने उस के मोबाइल पर फोन किया. उस के मोबाइल का स्विच औफ था. बाद में पता चला कि वह कुबेरस्थान न जा कर सीधे गोरखपुर में रहने वाले मेरे बहनोई तेजप्रताप गिरि के यहां चली गई थी. इस के बाद मैं ने उन से रिंकी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के यहां आई तो थी, लेकिन दूसरे ही दिन चली गई थी. उस के बाद उस का कुछ पता नहीं चला.’’

अजय के अनुसार उस का बहनोई तेजप्रताप गिरि शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए पर परिवार के साथ रहता था. पुलिस ने उसी रात उस के घर से उसे पकड़ लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई. तेजप्रताप गिरि कुछ भी बताने को तैयार नहीं था. वह काफी देर तक पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा. जब पुलिस को लगा कि यह झूठ बोल रहा है, तब पुलिस ने अपने ढंग से उस से सच्चाई उगलवाई.

तेजप्रताप ने पुलिस को जो बताया था, उसी के आधार पर पुलिस ने बबलू और संदीप पाल को गिरफ्तार कर लिया. जबकि मनोज फरार होने में कामयाब हो गया. बबलू और संदीप से पूछताछ की गई तो पता चला कि रिंकी की हत्या के मामले में 2 महिलाएं रंभा उर्फ रेखा पाल और इशरावती भी शामिल थीं.

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Lady Don अस्मिता गोहिल, जिसका नाम सुनते लोग थर्रा उठते

गुजरात के सिल्क और डायमंड सिटी सूरत की गलियों में जिस समय खतरनाक हथियारों के साथ लेडी डौन (Lady Don) अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी निकलती थी, उस समय लोग थर्रा उठते थे. शहर के कारोबारियों और दुकानदारों की रूह कांप जाती थी. वे यह सोच कर डर जाते थे कि अब पता नहीं किस का नंबर आने वाला है. यह लेडी डौन सिर्फ गुंडागर्दी कर के रंगदारी ही नहीं वसूलती बल्कि फेसबुक और यूट्यूब पर भी काफी एक्टिव रहती थी.

सोशल मीडिया पर उस के 13 हजार से अधिक फालोअर्स हैं और ढाई हजार के करीब दोस्त हैं. आए दिन वह अपने फेसबुक एकाउंट पर नईनई वीडियो पोस्ट करती रहती है. कई वीडियो में वह अपने हाथों में नंगी तलवार और रिवौल्वर ले कर लोगों से रंगदारी वसूलती दिखी.

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अपराध की दुनिया में अस्मिता उर्फ डीकू उर्फ भूरी अपने आप को बीते जमाने की लेडी डौन उर्फ गौड मदर संतोषबेन जाडेजा के रूप में देखना चाहती थी. यह प्रेरणा उसे संतोषबेन जाडेजा के जीवन पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ से मिली थी. यह फिल्म अस्मिता ने कई बार देखी थी. इस फिल्म का अस्मिता गोहिल पर गहरा असर पड़ा था.

जिस धमाके के साथ अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी ने सूरत की जमीन पर कदम रखा था, उसे देख कर सूरत के अधिकांश लोगों को लेडी डौन गौड मदर संतोषबेन जाडेजा की याद ताजा हो गई थी.

सारा शहर उस के कारनामों से भयभीत हो गया था. उस का खौफ सूरत शहर के लोगों के बीच कुछ इस प्रकार घर कर गया था कि कोई भी उस के खिलाफ पुलिस के पास जाने और बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. मजबूरन पुलिस को उस के वायरल हुए वीडियो को सबूत के तौर पर मान कर उस के खिलाफ काररवाई करनी पड़ी थी.

13 मार्च, 2017 के इस वीडियो में जहां सूरत के वराछा इलाके में लोग होली का त्यौहार मनाने में मस्त थे तो वहीं अस्मिता गोहिल अपने कारनामों में व्यस्त थी. वह अपने प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला और गोपाल विट्ठल जाधव के साथ हाथों में नंगी तलवार और चाकू लिए उन के बीच पहुंची थी. फिर उस ने भागीरथी मार्केट की गलियों में वहां के लोगों को डरातेधमकाते हुए वहां भय का माहौल बना दिया था. उस के डर से लोग सहम गए थे.

इस वीडियो के वायरल होते ही सूरत के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए थे. वे पता लगाने लगे कि ये कौन सी डौन थी, जिस के आतंक से वहां के लोग इतने सहमे हुए थे. मामले की गंभीरता को देखते हुए सीनियर पुलिस अधिकारियों ने वराछा के थानाप्रभारी मयूर पटेल से उस वीडियो की सच्चाई जानने के निर्देश दिए. सीनियर अधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी मामले की जांच में जुट गए.

जांच में थानाप्रभारी को पता लग गया कि वह लेडी और कोई नहीं, बल्कि अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी है. पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि इस लेडी डौन का प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा तो सूरत शहर का कुख्यात अपराधी है.

वह शहर के एक ट्रिपल मर्डर केस में वांछित है, जिस की काफी दिनों से पुलिस को तलाश है. इस के पहले कि वह पुलिस के हत्थे चढ़ता अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी ने उस के साथ मिल कर वराछा की भागीरथी सोसायटी और मार्केट में कुछ इस तरह से अपना आतंक फैलाया कि मजबूरन लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस को वहां अपनी एक चौकी स्थापित करनी पड़ी थी.

उच्चाधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम ने अस्मिता और उस के प्रेमी की तलाश शुरू कर दी. उन के कई ठिकानों पर छापा मारने के बाद आखिरकार पुलिस को कामयाबी मिली और अस्मिता गोहिल पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस से पूछताछ करने के बाद उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने अस्मिता के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया. लेकिन सबूतों के अभाव में उसे जमानत मिल गई थी. यानी 3 महीने बाद वह जेल से बाहर आ गई थी.

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3 महीने जेल में रहने के बाद भी अस्मिता उर्फ भूरी में कोई बदलाव नहीं आया था, बल्कि जेल जाने के बाद वह पूरी तरह निडर हो गई और पहले से ज्यादा आपराधिक मामलों में शामिल हो गई थी. वह संजय भूरा के जिगरी दोस्त राहुल उर्फ गोदो बामनिया और उस के दोस्तों को साथ ले कर सरेआम लोगों से रंगदारी वसूलती. इतना ही नहीं, वह लोगों के पैसे भी छीनने लगी.

20 वर्षीय सुंदरी अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी गुजरात के सौराष्ट्र काठियावाड़ के उसी इलाके की रहने वाली थी, जिस इलाके की लेडी डौन संतोषबेन जाडेजा थी. काले साम्राज्य की दुनिया में वह भी संतोषबेन जाडेजा की तरह अपना दबदबा बना कर सूरत शहर के लोगों पर गौड मदर बन कर राज कायम करना चाहती थी.

गरीब परिवार की थी लेडी डौन अस्मिता

अस्मिता गोहिल काठियावाड़ के जिला सोमनाथ तालुका ऊना के गांगडा गांव के रहने वाले एक गरीब किसान जीमुआभाई गोहिल की बेटी थी. गांव में उन की थोड़ी सी जमीन थी, जिस पर वह काश्तकारी करते थे. परिवार बड़ा होने के नाते उन्हें बाहर भी मेहनतमजदूरी करनी पड़ती थी. तब कहीं जा कर उन के परिवार की गाड़ी आगे सरकती थी.

उन के परिवार में पत्नी जसुबेन के अलावा एक बेटा और 6 बेटियां थीं. बेटा सब से छोटा था. अस्मिता गोहिल बड़ी बेटी होने के नाते पूरे परिवार की प्यारी और दुलारी थी. पिता ने तो अस्मिता को बेटे का स्थान दिया था.

चंचल स्वभाव की अस्मिता गोहिल का बचपन गरीबी में बीता था. यही कारण था कि वह अपनी उम्र के साथ तेजतर्रार और उग्र स्वभाव की महत्त्वाकांक्षी युवती बन गई थी. जिन चीजों का उस के पास अभाव था, वह उन्हें पाने के सपने देखा करती थी. उन सपनों को पूरा करने का आइडिया उसे लेडी डौन संतोष बेन जाडेजा की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ देख कर मिल चुका था.

अस्मिता के पिता गरीब जरूर थे, लेकिन गांव में उन का मानसम्मान था. अन्य बच्चों की तरह वह अस्मिता को भी पढ़ाना चाहते थे लेकिन अस्मिता का मन स्कूल की पढ़ाई में कम और ग्लैमरस व आपराधिक गतिविधियों की तरफ अधिक रहता था.

किसी भी बात को ले कर वह अकसर अपने सहपाठियों से उलझ जाया करती थी. वह लड़कियों के बजाय लड़कों के साथ दिखना पसंद करती थी. यही वजह थी कि उस के दोस्तों में लड़कों की संख्या अधिक थी. उस की यह आदत घर वालों को पसंद नहीं थी.

सन 2015 के दौरान वह अपने ही गांव के एक बिगड़े हुए लड़के के साथ घर से गायब हो गई. थाने में उस के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला था. करीब एक साल तक गायब रहने के बाद एक दिन अस्मिता अपने प्रेमी के साथ खुद पुलिस थाने में हाजिर हो गई. दोनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने प्रेमी को जेल भेज दिया और अस्मिता को उस के मांबाप के हवाले कर दिया था.

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अस्मिता गोहिल के घर वालों ने उस के सारे गुनाह माफ कर के उसे अपने गले लगा लिया था, लेकिन एक साल तक बिगड़े हुए रईसजादे के साथ रहने के बाद अस्मिता को अपने घर का माहौल रास नहीं आया तो वह एक रात चुपके से घर से भाग कर सूरत में रहने वाले अपने मामा और मामी के पास चली गई थी. यहीं पर उस की मुलाकात भावनगर के रहने वाले कुख्यात अपराधी संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा से हुई थी, जिस पर लूटपाट, मारपीट और मर्डर आदि के दरजनों मामले चल रहे थे.

संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा और अस्मिता गोहिल की दोस्ती का पता जब उस के मामामामी को चला तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने अस्मिता को समझानेबुझाने की काफी कोशिश की, लेकिन उन की कोई भी बात अस्मिता गोहिल के गले से नीचे नहीं उतरी थी.

प्रेमी के साथ रखा अपराध में कदम

मामामामी की बातों पर ध्यान देने के बजाय अस्मिता उन का घर छोड़ कर संजय उर्फ भूरा के साथ रहने के लिए चली गई और उस के साथ लिवइन में रहने लगी. संजय के साथ रहने और उस के साथ आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण लोग अस्मिता को भूरी डौन के नाम से पुकारने लगे थे.

ब्यूटी डौन बनी अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी का इलाके में खासा नाम हो गया था. जब उस के पास पैसा आया तो वह अच्छे रहनसहन के साथ अपने शौक पूरे करने में लग गई. क्रूजर मोटरसाइकिल, लग्जरी कार उस की पसंद बन गई थी, जिस के साथ फोटो खिंचवा कर वह फेसबुक और इंस्टाग्राम पर डालती रहती थी.

लोग उस की सुंदरता और अदाओं पर जम कर कमेंट करते थे. लेकिन जब वह उस का अपराधों से भरा प्रोफाइल देखते तो उन का सिर चकरा जाता था. अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी अपने इन्हीं वाहनों पर सवार हो कर के लोगों से रंगदारी वसूलती थी.

आतंक का पर्याय बन चुकी लेडी डौन अस्मिता गोहिल के अपराधों की जानकारी तो समयसमय पर पुलिस को मिलती रहती थी, लेकिन किसी शिकायतकर्ता के सामने न आने के कारण पुलिस बेबस रहती थी. वह चाह कर भी उस के खिलाफ काररवाई नहीं कर पाती थी.

मगर पुलिस भी हाथों पर हाथ रख कर नहीं बैठी थी. वह उस की हर हरकत पर नजर रख रही थी और इस में उसे सफलता भी मिली. पुलिस के हाथ अस्मिता गोहिल का एक और वीडियो लग गया, जिस से अस्मिता गोहिल और उस के साथियों के कारनामों का परदा हट गया था.

21 मई, 2018 को वायरल हुए इस वीडियो में अस्मिता गोहिल और उस के साथियों का चेहरा सामने आ गया था. उस दिन सुबह के साढ़े 6 बजे ही भागीरथी सोसायटी की मार्केट के एक एंब्रायडरी कारखाने में तोड़फोड़ करते हुए व उस के मालिक को डरातेधमकाते हुए अस्मिता उर्फ भूरी और उस के साथी कैमरे में कैद हो गए.

इस के एक घंटे बाद ही वह अपने एक और साथी राहुल उर्फ गोदो बामनिया के साथ अपनी क्रूजर मोटरसाइकिल पर सवार हो कर वर्षा सोसायटी की एक पान की दुकान पर पहुंची. दुकानदार को डरा कर उस ने उस के गल्ले का सारा पैसा ले लिया. इतना ही नहीं, उस ने उसे भद्दी गालियां भी दीं.

आतंक बढ़ने पर कस गया शिकंजा

वह अपने हाथों में जिस समय नंगी तलवार ले कर पान की दुकान पर आई थी, उसी समय दुकान पर इक्केदुक्के ग्राहक चुपचाप वहां से खिसक गए. पान वाले के साथ ही साथ वहां से गुजरने वाला एक दूध वाला भी उस का शिकार बन गया था. राहुल और भूरी ने उसे रोक कर उस के पास से सारे पैसे छीन लिए थे.

एक ही दिन में अस्मिता गोहिल के अपराधों के 2 वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया था. सूरत पुलिस कमिश्नर सतीश शर्मा ने वराछा और शहर के अन्य थानों के थानाप्रभारियों को आड़े हाथों लिया और उन्हें सख्त काररवाई के आदेश दिए थे. पुलिस कमिश्नर के सख्त आदेश पर पुलिस और क्राइम ब्रांच ने अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी को घटना के 5 दिनों बाद ही उस के साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया.

अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी के खिलाफ सूरत शहर के विभिन्न थानों में एक दरजन से अधिक मामले दर्ज हैं. लेडी डौन से विस्तृत पूछताछ कर पुलिस ने इस बार उस पान वाले और एंब्रायडरी कारखाने के मालिक को भी ढूंढ कर उन की शिकायत ली फिर सीसीटीवी के फुटेज भी जब्त कर लिए.

इस के आधार पर भूरी के खिलाफ मामला दर्ज कर उस के साथी राहुल उर्फ गोदो बामनिया, भावेशभाई, रणछोड़ देसाई, संजय मनुभाई को 26 मई, 2018 को कोर्ट में पेश कर लाजपोर जेल भेज दिया.

लेडी डौन अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी और उस के साथियों के जेल जाने के बाद सूरत शहर के कारखाना मालिकों और दुकानदारों के साथ ही साथ आम जनता ने भी राहत की सांस ली. लेकिन उस के डर से वे पूरी तरह मुक्त नहीं हुए हैं.

उन का मानना है कि आज नहीं तो कल वह जेल से बाहर आएगी, मगर पुलिस का यह दावा है कि इस बार लेडी डौन अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी के जेल से बाहर आने की संभावना न के बराबर है. क्योंकि इस बार उन के पास अस्मिता गोहिल के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं. पुलिस के दावों में कितना दम है, यह तो वक्त ही बताएगा.

कथा लिखे जाने तक अस्मिता गोहिल अपने साथियों के साथ जेल की सलाखों में बंद अपनी रिहाई के दिन गिन रही थी.

फरीदाबाद में भी मस्ती की पार्टी

कोरोना वायरस का असर कम होते ही देह कारोबार के अड्डे आबाद होने लगे. लोगों का आवागमन शुरू हुआ नहीं कि सेक्स वर्कर लड़कियां, उन के दलाल और मानव तसकरी जैसे धंधे में लगे लोगों की सक्रियता बढ़ गई. दिल्ली से सटे फरीदाबाद में ऐसे मामलों की सूचना मिलते ही पुलिस बल ने भी मुस्तैदी दिखाते हुए देह के धंधेबाजों को धर दबोचा. मौके से महीने भर में दर्जनों लड़कियां भी पकड़ी गईं.

फरीदाबाद में नीलम बाटा रोड से करीब 8 किलोमीटर दूर बल्लभगढ़ के रहने वाले 48 वर्षीय आलोक को उन के जन्मदिन के बारे मे खास दोस्त प्रदीप ने याद दिलाया. वे तो भूल ही गए थे कि 4 दिनों बाद उन का जन्मदिन आने वाला है. वह फरीदाबाद के बाटा की मार्किट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट (प्रधान) हैं.

अपना रोज का काम निपटा कर 25 जुलाई, 2021 की रात को अपनी गाड़ी में घर की ओर निकले थे. कान में इयरबड्स लगाए म्यूजिक का आनंद ले रहे थे और गाड़ी भी ड्राइव कर रहे थे. तभी उन के कान में किसी के फोन की रिंग सुनाई दी. उन्होंने सामने रखे मोबाइल पर नजर डाली. काल उन के खास दोस्त प्रदीप की थी.

‘‘हैलो भाई, कैसा है तू? 2 हफ्ते हो गए, कोई खबर नहीं मिल रही है. कहां बिजी है आजकल?’’ आलोक शिकायती लहजे में बोले.

‘‘मैं ठीक हूं. बता तू कैसा है? और सुन लौकडाउन खत्म होने के बाद लगता है बिजी मैं नहीं तू हो गया है’’ प्रदीप भी उसी अंदाज में बोले.

‘‘बस कर यार! कुछ दिनों से मार्केट में काम थोड़ा बढ़ गया था, इसीलिए फोन करने का मौका नहीं मिला. तू बता घरपरिवार में बाकि सब कैसे हैं?’’ आलोक ने पूछा.

प्रदीप जवाब देते हुए बोले, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. घर पर भी सब ठीक है. तू ये बता कि 29 को क्या कर रहा है?’’

‘‘क्यों 29 को क्या है?’’ प्रदीप ने सस्पेंस के साथ कहा, ‘‘भाई, 29 को तेरा जन्मदिन है. भूल गया है क्या?’’

प्रदीप की बात सुन कर आलोक के दिमाग में अचानक बत्ती जल उठी. उसे अपने जन्मदिन की न केवल तारीख याद आ गई, बल्कि इस मौके पर दोस्तों के साथ मौजमस्ती की पुरानी यादें ताजा हो गईं.

बोला, ‘‘अरे हां! भाई सच कहूं तो अगर तू याद नहीं दिलाता तो मुझे याद ही नहीं था. पिछले साल भी कोरोना के चलते इस मौके पर कुछ ज्यादा नहीं कर पाया, लेकिन इस बार सारी कसर निकाल दूंगा. बड़ी पार्टी दूंगा, पार्टी.’’

प्रदीप और आलोक दोनों स्कूल के दिनों के दोस्त थे. वे काफी गहरे दोस्त थे. लेकिन शादी के बाद दोनों अपनीअपनी घरगृहस्थी में व्यस्त हो गए थे. हालांकि उन के बीच फोन पर बातें होती रहती थीं.

फिर भी जब कभी वे किसी विशेष मौके पर मिलते थे, तब एकदूसरे की खैरखबर लेने के साथसाथ खूब जम कर मस्ती करते थे. उस रोज भी दोनों ने फोन पर ही जन्मदिन सेलिब्रेशन के मौके को यादगार बनाने की योजना बना ली थी.

बाटा टूल मार्केट में आलोक की तूती बोलती थी. हर दुकानदार के लिए वह बहुत ही खास और प्रिय थे. सभी उन की काफी इज्जत करते थे. मार्केट में यदि किसी को कोई भी औजार क्यों न खरीदना हो, प्रधान आलोक के रहते ही संभव हो पाता था.

इलाके के नेताओं से भी आलोक की अच्छी जानपहचान थी. एसोसिएशन का प्रधान होने की वजह से उन का अच्छा खासा पौलिटिकल कनेक्शन भी था.

अगले रोज 26 जुलाई को सुबह करीब 10 बाजे आलोक एसोसिएशन के औफिस पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले प्रदीप को फोन कर आने का समय पूछा. उस के बाद वे छोटेमोटे काम निपटाने लगे.

आधे घंटे में ही प्रदीप आ गया. आलोक ने उस की खातिरदारी चायनमकीन से की. उस के द्वारा जन्मदिन की बात छेड़ने पर कुछ अलग करने की भी योजना बताई.

‘‘रात भर में तूने कुछ और प्लानिंग कर ली क्या?’’ प्रदीप ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘हां यार, सोच रहा हूं इस बार की बर्थडे पार्टी यादगार हो, पहले के मुकाबले सब से अलग रहे.’’ आलोक बोले.

यह सुन कर प्रदीप चौंक गया. पूछा, ‘‘क्या मतलब? कैसी अलग होगी पार्टी, जरा मुझे भी तो बताओ’’

आलोक इत्मीनान से दबी आवाज में बोले, ‘‘यार सोच रहा हूं इस बार पार्टी में नाचगाने वाली कुछ लड़कियों को भी बुलाया जाए. उन से ही शराब की पैग सर्व करवाई जाए.’’

‘‘लड़कियां! क्या कह रहा है तू?’’ प्रदीप चौंकता हुआ बोला.

‘‘लड़कियों को बुलाने से पार्टी की रौनक और मजा ही कुछ और होगा. मैं ने प्लानिंग कर ली है. कोरोना के चलते जिंदगी के सारे मजे खत्म से हो गए थे.

इसलिए मैं ने सोचा है कि अपने सारे दोस्तों और जिन के साथ बिजनैस करता हूं सभी को इस पार्टी में इनवाइट करूं. इसी बहाने सब से मुलाकात भी हो जाएगी और इसी के साथ बिजनैस में हुए घाटे की भरपाई करने के लिए कुछ टाइम भी मिल जाएगा.’’

यह सुन कर प्रदीप के मन में मानो खुशी के बुलबुले फूटने लगे. वह आलोक से बोला, ‘‘अरे यार, मैं ने तो यह सोचा ही नहीं था. लेकिन पार्टी के लिए आएंगी कहां से? कोई जुगाड़ है?’’

प्रदीप के इस सवाल का जवाब आलोक ने बड़ी बेफिक्री के साथ दिया. भरे अंदाज में दिया और कहा, ‘‘अरे मैं ने सारी प्लानिंग अपने दिमाग में कर के रखी है. दिल्ली वाली निशा के बारे में याद नहीं है क्या तुझे? वही जिस के पास हम शादी के बाद अकसर जाते थे? अब वो लड़कियां सप्लाई करती है. दलाल बन गई है. अच्छी जानपहचान है उस से मेरी. मैं आज ही लड़कियों के लिए फोन कर के कह दूंगा.’’

आलोक और प्रदीप ने औफिस में घंटों बैठ कर 29 जुलाई के लिए प्लानिंग कर ली. नीलम बाटा रोड पर ऐसा कोई भी दुकानदार नहीं था, जो आलोक को नहीं जानता हो. इसी का फायदा उठाते हुए आलोक ने उसी रोड पर मौजूद ‘द अर्बन होटल’ के मालिक को फोन कर 28 और 29 जुलाई के लिए होटल बुक कर लिया.

होटल के मालिक की आलोक से अच्छी जानपहचान थी. होटल में कमरे समेत पार्टी के लिए बने खास किस्म के हौल की भी बुकिंग हो गई.

अब बारी थी खास दोस्तों के लिस्ट बनाने की, जिन्हें आलोक बुलाना चाहता था. लिस्ट बनाने में प्रदीप ने मदद की. सभी दोस्तों को फोन से 28 जुलाई के लिए मैसेज भी कर दिया. आलोक ने अपने जरुरी बिजनैस क्लाइंट्स को भी इस पार्टी में शामिल होने का न्यौता दे दिया. उस ने निशा को फोन कर के 15 लड़कियों को पार्टी में भेजने के लिए कहा. इस तैयारी के साथसाथ होटल मैनेजमेंट को ही कैटरिंग के इंतजाम की जिम्मेदारी दे दी.

प्रदीप के मन में अभी भी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने उस के कान के पास मुंह सटा कर कहा,‘‘इस का मोटा खर्चा तू अकेले कैसे उठाएगा?’

आलोक मुसकराया, सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘तू आगेआगे देखता जा मैं क्या करता हूं. इसी पार्टी से तुम्हारी झोली भी भर दूंगा.’’

‘‘वो कैसे?’’ प्रदीप बोला.

‘‘मैं ने कमरे यूं ही नहीं बुक करवाए हैं? तुम सिर्फ मेरे इशारे पर नजर रखना.’’ आलोक ने बताया.

इस तरह से 28 जुलाई की शाम भी आ गई. जन्मदिन की पूर्व संध्या पर मेहमानों के लिए विशेष आयोजन किया गया था. पार्टी का इंतजाम था, जो आधी रात तक चलना था.

रात के 12 बजे के बाद आलोक ने जन्मदिन का केक काटने का इंतजाम किया था. आमंत्रित मेहमान धीरेधीरे कर हौल के किनारे लगे सोफों पर आ गए. सभी पूरी तैयारी के साथ आए थे, उन के चेहरे पर मास्क जरूर लगे थे, लेकिन वे पहचाने जा रहे थे.

आलोक और प्रदीप दोस्तों से मिलने में व्यस्त हो गए. वे अच्छे सजावटी कपड़े में एकदम अलग दिख रहे थे. वे कभी रिसैप्शन पर जाते तो कभी हौल में आमंत्रित दोस्तों से बातें करने लगते. दूसरी तरफ प्रदीप उन के बताए इशारे पर अपना काम करने में लगा हुआ था.

हौल में जगहजगह गोल टेबल और कुरसियां लगी थीं. दीवारों को तरहतरह के सजावटी फूलों, सामानों से सजाया गया था. मध्यम रोशनी माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए काफी था. देखते ही देखते रात के 8 बज गए.

तभी एक काल को देख कर आलोक हौल के एक कोने में चले गए. काल निशा की थी. उस ने बताया कि उस की भेजी सभी लड़कियां 2 गाडि़यों में 5 मिनट के भीतर पहुंचने वाली हैं.

आलोक ने निशा को कहा कि वे लड़कियों को पीछे के दरवाजे से आने के लिए बोले. तुरंत वे रिसैप्शन पर गए. होटल के मैनेजर से इशारे में बात की और उन के साथ प्रदीप को लगा दिया. थोडी देर में प्रदीप ने आलोक को आ कर बताया कि उस ने सभी लड़कियों को उन के कमरे में ठहरा दिया है.

उस ने वहां के इंतजाम के बारे में जानकारी देने के साथसाथ आलोक को बैग दिखाया. ‘थम्स अप’ करता हुआ जाने लगा. आलोक ने टोका, ‘‘उधर नहीं, गाड़ी के पार्क में जा. बैग वहीं गाड़ी में छोड़ कर आना.’’

निशा ने अपने साथ ले कर आई सभी लड़कियों को कुछ खास हिदायतें दीं. उन्हें उन के कमरे में भेज कर मेकअप आदि कर तैयार होने को कह दिया.

कब किसे हौल में आना है और किसे किस कमरे में ठहरना है. इस बारे में निशा ने लड़कियों को अलगअलग समझाया. उन्हें लोगों के साथ शालीनता के साथ पेश आने को भी कहा.

साढ़े 9 बजे के आसपास हौल का माहौल और भी रंगीन हो चुका था. कुछ लड़कियां हौल में आ चुकी थीं. अतिथियों में कोई भी महिला नहीं थीं.

लड़कियों को देखते ही बड़ेबड़े स्पीकर पर तेज और पार्टी वाले गाने बजने के साथ सीटियों की आवाजें भी सुनाई देने लगीं. हर टेबल पर शराब परोसने की शुरुआत हुई. कुछ लोग नशे में डांसिंग प्लेटफार्म की ओर बढ़ गए.

जल्द ही लड़कियों को जिस काम के लिए बुलाया गया था, वे काम में लग गईं. नशे में चूर अतिथियों ने जिस किसी लड़की को अपनी ओर खींचना चाहा उस ने जरा भी विरोध नहीं किया.

पसंद की लड़की का हाथ पकड़ा. जेब से 2000 वाले गुलाबी नोट निकाले और उस के लोकट कपड़े में डाल दिए.

लड़की झट से नोट निकालती, अंगुलियों में दबाती और सीढि़यों की ओर बढ़ जाती. पीछे से अतिथि महोदय झूमतेमटकते रह जाते. लड़की सीढि़यों पर बैठी निशा को अंगुलियों में फंसे नोट थमाती और अतिथि के साथ होटल के कमरे की ओर बढ़ जाती.

इस दृश्य से इतना तो साफ हो गया था कि जन्मदिन के बहाने से बुलाए गए अतिथियों का स्वागत लड़कियों के साथ यौन संतुष्टि से किया जा रहा था. इस मौके के इंतजार में न केवल ग्राहक बने अतिथि थे, बल्कि वे लड़कियां भी थीं, जिन का धंधा पिछले कुछ समय से मंदा पड़ गया था.

इस पूरी पार्टी में आलोक और प्रदीप दोनों कहां गायब हो गए थे किसी को भी कोई खबर नहीं थी.  संभवत: दोनों ने अपनी पसंद की लड़की के साथ अलगअगल कमरे में खुद को बंद कर लिया हो. यानी देह व्यापार का धंधा पूरे शबाब पर था.

इस की भनक फरीदाबाद में पुलिस को भी लग गई. अनलौक के नियमों के उल्लंघन करने वालों पर नजर रखने के लिए कोतवाली पुलिस स्टेशन द्वारा फैलाए गए मुखबिरों ने इस की सूचना अधिकारियों तक पहुंचा दी थी. रात के करीब एक बजे अश्लील पार्टी के बारे में जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने एसीपी रमेशचंद्र को सूचना दे कर बिना किसी देरी के जल्द से जल्द होटल में रेड मारने की तैयारी कर दी. सभी आरोपियों को रंगे हाथों पकड़ने के लिए थाने में एक टीम का गठन किया.

जल्द से जल्द प्लान के मुताबिक टीम बिना सादा कपड़ों में होटल के बाहर पहुंची. होटल के बाहर से ही तेज गानों की आवाज आ रही थी.

प्लानिंग के मुताबिक थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने हैडकांस्टेबल मनोज के साथ एक और कांस्टेबल को सादे कपड़ों में होटल के अंदर जाने को कहा. उन के अंदर जाने से पहले राठी ने अपनी जेब से 2000 का नोट निकाला और नोट के एक किनारे पर छोटे अक्षरों में अपने हस्ताक्षर कर के उन्हें दिया.

यह सारा काम प्लान के अनुसार ही था. वे दोनों पुलिस कर्मचारी बिना किसी झिझक के होटल के अंदर पहुंचे. होटल के रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति को उन पर किसी तरह का शक नहीं हुआ.  वे दोनों सीधे होटल के हौल में जा पहुंचे.

सीढि़यों से उतरते हुए उन्होंने एक युवती को सीढि़यों के पास बैठे देखा. बाद में पता चला कि वह निशा थी. वह भी उस की बगल से एक खाली टेबल और कुरसियों पर जा कर बैठ गए. उस समय हौल में बहुत कम लोग थे.

हर टेबल पर शराब के ग्लास थे. प्लेटों में स्नैक्स बिखरे पडे़ थे. हौल के एक किनारे पर 2-4 लड़कियां आपस में बातें कर रही थीं, कुछ लोग डीजे पर बजते हुए गाने पर डांस कर रहे थे.

थोड़ी देर बाद हैडकांस्टेबल मनोज ने प्लान के अनुसार साइन किया हुआ 2000 का नोट हवा में लहराया तो लड़कियों के झुंड में से एक लड़की पैसे लेने के लिए उन के टेबल पर पहुंच गई.

मनोज ने इशारे से लड़की को कमरे में ले जाने का इशारा किया. लड़की ने भी इशारे से उन्हें रुकने को कहा और निशा के पास चली गई. साइन किया हुआ नोट उस ने निशा के हाथों में थमा दिया, फिर लड़की ने मनोज को वहीं से आने का इशारा किया.

हेड कांस्टेबल ने कान में लगे ब्लूटूथ संचालित बड्स और बटन में छिपे मोबाइल माइक को औन कर दिया. उस के औन होते ही बाहर खड़ी पुलिस फोर्स को सूचना मिल गई. देखते ही देखते हेड कांस्टेबल के लड़की के साथ कमरे तक पहुंचने से पहले ही पुलिस की छापेमारी शुरू हो गई.

थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने होटल में रेड के दौरान सब से पहले हौल में बजने वाले तेज गानों को बंद करवाया और वहां मौजूद सभी लोगों को हिरासत में ले लिया. उसी दौरान होटल के कमरों से कई लड़कियां और अतिथि अर्धनग्नावस्था में दबोच लिए गए.

रात के 12 बजे तक चली छापेमारी की इस काररवाई में करीब 4 दरजन लोगों को हिरासत में लिया गया. उन्हें 7 जिप्सियों में भर कर थाने लाया गया. उन से पूछताछ में ही खुलासा हुआ कि यह सैक्स रैकेट एक पार्टी में शमिल होने के नाम पर चलाया गया था. इस में होटल के मालिक की भी मिलीभगत थी. पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की रेड की बात जब तक आलोक तक पहुंची तब तक काफी देर हो चुकी थी. उसे भी एक कमरे से एक लड़की के साथ पकड़ लिया गया. उसे कमरे का दरवाजा तोड़ कर बाहर निकाला गया था. प्रदीप भी उस के बगल वाले कमरे से पकड़ा गया.

पुलिस सभी आरोपियों को थाने ले गई. उन्होंने पुलिस को बताया कि वह होटल में कमेटी के ड्रा का आयोजन कर रहे थे. सभी से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

इस के अलावा कोतवाली पुलिस ने 2 अगस्त को क्षेत्र के ही श्री बालाजी होटल में दबिश दे कर 13 लड़कियों सहित 37 लोगों को गिरफ्तार किया. यहां की गेट टुगेदर पार्टी के बहाने एंजौय का कार्यक्रम था.

समीर वानखेडे : शिकारी बन रहा शिकार

बौलीवुड के बादशाह शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को क्रूज पार्टी में मादक पदार्थ इस्तेमाल करने के आरोप में गिरफ्तार करने वाले नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेडे खुद आरोपों के घेरे में बुरी तरह फंस रहे हैं.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक ने समीर वानखेडे पर ड्रग्स रखवाने से ले कर चोरी और फरजीवाड़े तक के आरोप मढ़ दिए हैं.

इस से पूरे डिपार्टमेंट में खलबली मची हुई है. बौलीवुड अभिनेता के बेटे को गिरफ्तार करने पर जहां नारकोटिक्स विभाग चर्चा में था, वहीं अब समीर वानखेडे पर लग रहे संगीन आरोपों के कारण पूरा डिपार्टमेंट बैकफुट पर है.

क्रूज ड्रग्स केस में मुंबई की आर्थर रोड जेल में बंद आर्यन खान को तो 26 दिन बाद जमानत मिल गई. मगर समीर वानखेडे के खिलाफ विभागीय जांच और विजिलेंस की जांच शुरू हो चुकी है.

मुंबई पुलिस में भी दर्ज 4 एफआईआर की बिना पर ड्रग माफियाओं से उन के संबंध, धन उगाही और धोखाधड़ी की तफ्तीश हो रही है. यानी अब शिकारी अपने जाल में खुद बुरी तरह फंसता नजर आ रहा है.

नवाब मालिक ने समीर वानखेडे पर 26 आरोपों की एक लंबी चिट्ठी सोशल मीडिया पर जारी की है. उस के साथ ही समीर वानखेडे के नाम, धर्म, शादी आदि को ले कर उन का व्यक्तिगत जीवन सार्वजनिक होना शुरू हो गया है.

नवाब मलिक का आरोप है कि समीर वानखेड़े ने अपना धर्म और जाति छिपा कर नकली जाति प्रमाण पत्र के जरिए सरकारी नौकरी प्राप्त की है. नौकरी में रहते हुए समीर ने कई निर्दोष और मासूम लोगों को मादक पदार्थ निषेध अधिनियम के तहत गलत तरीके से फंसा कर जेल भेजा है.

वह अपनी पावर का इस्तेमाल धन उगाही के लिए करते हैं और इस तरह फिल्म इंडस्ट्री से उन्होंने काफी पैसा बनाया है. मलिक का आरोप है कि दीपिका पादुकोण जैसी ख्यात एक्ट्रैस से भी वानखेडे ने काफी पैसा ऐंठा है.

कहा जा रहा है कि नवाब मलिक ने समीर के खिलाफ आरोपों की जो चिट्ठी सार्वजनिक की है, वह उन को नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के ही किसी शख्स ने भेजी है.

हालांकि मलिक ने उस शख्स के नाम का खुलासा अब तक नहीं किया है और चिट्ठी पर किसी के हस्ताक्षर भी नहीं हैं. मलिक ने अपने ट्विटर हैंडल से चिट्ठी साझा की है.

इस चिट्ठी की शुरुआत की लाइनों में कहा गया है, ‘मैं एनसीबी का कर्मचारी हूं और पिछले 2 सालों से मुंबई कार्यालय में कार्यरत हूं. पिछले साल जब एनसीबी को एक्टर सुशांत सिंह राजपूत मामले में ड्रग एंगल की जांच सौंपी गई, तब राजस्व खुफिया निदेशालय में काम कर रहे समीर वानखेड़े को एनसीबी के जोनल डायरेक्टर के पद पर जौइन कराया गया.’

चिट्ठी में आगे समीर वानखेड़े और एनसीबी अधिकारियों पर कई बौलीवुड सेलिब्रिटीज से पैसे मांगने और उन का उत्पीड़न करने के आरोप लगाए गए हैं.

चिट्ठी से यह भी पता चलता है कि तालाब में सिर्फ एक ही मछली तालाब को गंदा नहीं कर रही है, बल्कि समीर के साथ काम करने वाले अन्य अधिकारी, कर्मचारी भी हैं, जो उन के लिए और खुद के लिए अवैध धन उगाही करते हैं.

वे लोगों को मादक पदार्थ के झूठे केस में फंसाते हैं और छोड़ने की एवज में बड़ा अमाउंट मांगते हैं. जो नहीं दे पाते उन्हें जेल भेज दिया जाता है. समीर वानखेडे ने अपने कार्यकाल में ऐसे कई लोगों को जेल भेजा है.

चिट्ठी में आरोप है कि कार्डेलिया क्रूज पर जो छापा डाला था, उस में सभी पंचनामे एनसीबी मुंबई द्वारा लिखे गए थे. भाजपा के इशारे पर उन के 2 कार्यकर्ताओं ने समीर वानखेडे के साथ मिलीभगत से ड्रग केस बनाया है.

क्रूज पर एनसीबी के कर्मचारी एवं सुपरिटेंडेंट विश्व विजय सिंह, जांच अधिकारी आशीष रंजन, किरण बाबू, विश्वनाथ तिवारी और जूनियर इनवैस्टिगेटिंग औफिसर सुधाकर शिंदे, ओटीसी कदम, सिपाही रेड्डी, पी.डी. गोरे व विष्णु गीगा, ड्राइवर अनिल माने व समीर वानखेडे का निजी सचिव शरद कुमार व अन्य कर्मचारी अपने सामान में छिपा कर ड्रग ले गए थे, वह ड्रग उन्होंने मौका पा कर लोगों के निजी समान में रख दी.

उन्होंने बताया कि समीर वानखेडे को सर्च औपरेशन के दौरान कोई बौलीवुड कलाकार या मौडल मिलती है तो वह अपने पास रखा ड्रग उस का दिखा कर उसे आरोपी बना देते हैं. इस मामले में भी यही हुआ है.

समीर पिछले एक माह से भाजपा के 2 कार्यकर्ताओं— के.पी. गोसावी और मनीष भानुशाली के संपर्क में थे. क्रूज से जितने भी आदमी पकड़े गए थे, उन्हें एनसीबी औफिस लाया गया.

क्रूज से गिरफ्तार लोगों में से ऋषभ सचदेव, प्रतिमा व अगीर फरनीचरवाला को उसी रात दिल्ली से फोन आने पर छोड़ दिया गया. इस मामले में समीर वानखेडे की काल डिटेल्स चेक की जा सकती है.

अरबाज मर्चेंट के दोस्त अब्दुल से कोई ड्रग्स नहीं मिली थी, लेकिन समीर के कहने से उस पर भी ड्रग की रिकवरी दिखा दी गई. समीर ने इस केस में अपने (एनसीबी) कार्यालय के ड्राइवर विजय को पंच यानी गवाह बना दिया था, जबकि कानून कहता है कि गवाह स्वतंत्र होने चाहिए. यह सारा केस फरजी है. जो ड्रग प्राप्त हुई, वह समीर और उन के साथियों ने खुद प्लांट की थी.

आरोप यह भी है कि समीर वानखेड़े ने एनसीबी मुंबई में जब से कार्यभार संभाला, तब से जो भी केस एनसीबी ने किए हैं, उन में पकड़े गए लोगों से लगभग 25 खाली पेपरों पर हस्ताक्षर लिए जाते हैं और अपनी मनमरजी से पंचनामा बदल लिया जाता है.

हस्ताक्षर वाले खाली कागज एनसीबी के सभी इनवेस्टिगेटिंग औफिसर्स की मेज की दराज में रखे हैं व सुपरिटेंडेंट विश्व विजय सिंह की अलमारी में रखे हैं, जिन्हें छापा मार कर निकाल सकते हैं.

इस के साथ थोड़ी मात्रा में ड्रग्स भी समीर व विश्व विजय सिंह के कार्यालय के कमरे से बरामद की जा सकती है.

यह लंबाचौड़ा पत्र जो नवाब मलिक द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल किया गया था, इस से यही लगता है कि इसे लिखने वाला नारकोटिक्स विभाग का ही कोई व्यक्ति है, इस में दोराय नहीं कि कोई घर का भेदी ही समीर वानखेडे की लंका ढहाने में लगा है.

मुंबई पुलिस के एसीपी स्तर के एक अधिकारी ने समीर वानखेडे के खिलाफ जबरन वसूली के आरोपों और अन्य मुद्दों की स्वतंत्र जांच शुरू कर दी है. वानखेड़े के खिलाफ मुंबई के अलगअलग थानों में 4 शिकायतें दर्ज की गई हैं.

मुंबई पुलिस ने शिकायतों की जांच के लिए 4 अधिकारियों को नियुक्त किया है. अतिरिक्त पुलिस आयुक्त दिलीप सावंत की देखरेख में यह जांच कराई जा रही है.

क्रूज ड्रग्स मामले में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी के बाद उस की रिहाई के लिए 25 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने के आरोप भी समीर वानखेडे पर लगे हैं, जिस की सतर्कता जांच शुरू हो चुकी है. इस में वानखेडे द्वारा गवाह बनाया गया भाजपा कार्यकर्ता किरण गोसावी बिचौलिए की भूमिका निभा रहा था.

एनसीबी की 5 सदस्यीय सतर्कता जांच टीम ने मुंबई पहुंच कर वानखेड़े के बयान दर्ज किए. टीम ने दक्षिण मुंबई के बलार्ड एस्टेट स्थित विभाग के दफ्तर से भी कुछ दस्तावेज व रिकौर्डिंग जब्त की हैं. सतर्कता जांच का नेतृत्व कर रहे एनसीबी के उपमहानिदेशक (उत्तरी क्षेत्र) ज्ञानेश्वर सिंह ने इस जांच से जुड़े सभी गवाहों को बुला कर उन के बयान दर्ज किए. समीर वानखेडे खुद को हिंदू बताते हैं. उन के पिता भी खुद को हिंदू कहते हैं मगर मंत्री नवाब मलिक ने समीर वानखेडे के निकाहनामे को सार्वजनिक कर के उन के धर्म पर सवाल खड़ा कर दिया है.

दरअसल, समीर की मां मुसलिम थीं और पिता हिंदू. समीर की पहली शादी एक मुसलिम लड़की शबाना कुरैशी से हुई थी. जिस से बाद में तलाक हो गया. 7 दिसंबर, 2006 को मुंबई में संपन्न यह शादी मुसलिम रीतिरिवाज से हुई थी और निकाहनामे पर समीर का नाम समीर दाऊद वानखेडे लिखा था. नीचे उर्दू में उन के हस्ताक्षर भी हैं.

निकाह कराने वाले काजी ने भी इस बात की तसदीक कर दी कि समीर की शादी मुसलिम तरीके से हुई थी. शरीयत के मुताबिक गैरमुसलिम का निकाह नहीं कराया जा सकता. तो जाहिर है इस के लिए समीर ने मुसलिम धर्म अपनाया होगा क्योंकि शरीयत के मुताबिक निकाह के लिए उन का मुसलिम होना जरूरी है.

निकाह के वक्त उन्होंने 33 हजार रुपए मेहर के रूप में अदा किए थे. उन के निकाहनामे में गवाह नंबर दो अजीज खान, जोकि मुसलिम हैं, समीर वानखेडे की बहन यास्मीन के पति हैं.

निकाह कराने वाले काजी ने भी कहा है कि समीर वानखेडे उस वक्त मुसलिम थे. ऐसे में अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र के आधार पर समीर वानखेडे ने सरकारी नौकरी कैसे पा ली, इस पर बवाल उठ खड़ा हुआ है.

नवाब मलिक का कहना है, ‘‘मैं वानखेडे के धर्म या उन के व्यक्तिगत जीवन को नहीं, बल्कि उन के कपटपूर्ण कृत्य को सामने लाना चाहता हूं, जिस के जरिए उन्होंने आईआरएस की नौकरी हासिल की और एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति का हक मारा.’’

नवाब मलिक ने दावा किया है कि एनसीबी ने क्रूज पर छापेमारी नहीं की थी, बल्कि ट्रैप लगा कर कुछ लोगों को फंसाया गया है. और इस में समीर वानखेडे के साथ भाजपा के लोगों की मिलीभगत है.

मलिक कहते हैं कि अगर क्रूज की सीसीटीवी फुटेज खंगाले जाएं तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी. दरअसल क्रूज के जो वीडियो सोशल मीडिया और समाचार चैनलों पर दिखाई दे रहे हैं उस में एक दाड़ीवाला व्यक्ति अपनी मंगेतर के साथ वहां डांस करता नजर आ रहा है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक वह एक अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफिया है और समीर वानखेडे का अच्छा दोस्त है, जो तिहाड़ और राजस्थान की जेलों में कई साल सजा काट चुका है.

मलिक पूछते हैं कि वह व्यक्ति वहां क्या कर रहा था? उस को समीर वानखेडे से बात करते भी देखा गया है. इस के अलावा 2 व्यक्ति जिन्हें एनसीबी ने अपना गवाह बनाया है, वे दोनों न सिर्फ भाजपा से जुड़े हुए हैं, बल्कि उन में से एक किरण गोसावी, जो इस मामले के उछलने के बाद लखनऊ से पुणे तक अपनी जान बचा कर भागता और छिपता फिरा और जिसे पुणे में गिरफ्तार कर लिया गया है. कहा जा रहा है कि आर्यन खान को छोड़ने की एवज में उसी ने शाहरुख खान से 25 करोड़ रुपए की डील करने की कोशिश की थी.

यह व्यक्ति एक वीडियो में आर्यन खान के पास बैठा अपने मोबाइल फोन पर आर्यन का बयान रिकौर्ड करते हुए दिख रहा है और एक अन्य वीडियो में वह आर्यन का हाथ पकड़ कर ले जाते हुए भी नजर आ रहा है.

सवाल यह है कि जब यह व्यक्ति न तो पुलिस का है और न नारकोटिक्स विभाग का, तो वह ये हरकतें किस हैसियत से कर रहा था.

बहरहाल, अब आर्यन खान सहित 5 अन्य मामलों की जांच समीर वानखेडे से हटा कर एसआईटी को सौंप दी गई है. इस स्पैशल जांच टीम का निर्देशन 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी और एनसीबी के डीडीजी (औपरेशंस) संजय कुमार सिंह कर रहे हैं. देखना यह होगा कि इस जांच में समीर वानखेड़े पाकसाफ साबित होते हैं या नहीं.

जिस्म के धंधे में धकेली 200 लड़कियां

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा गठित स्पैशल इनवैस्टिगेशन टीम (एसआईटी) के आला अधिकारियों द्वारा भोपाल में सितंबर 2021 के अंतिम सप्ताह में एक अहम बैठक की गई. इस दौरान मानव तस्करी समेत हनीट्रैप के बढ़ते मामले को ले कर चिंता जताई गई.

राज्य में विगत कुछ माह में ऐसे मामले बढ़ गए थे. राजधानी भोपाल और दूसरे बड़े शहर इंदौर एवं ग्वालियर में एमएलए, एमपी, ब्यूरोक्रेट, बिजनैसमैन या बड़े उद्योगपति को लड़की द्वारा सैक्स जाल में फंसाने और उन से वसूली की कई शिकायतें आ चुकी थीं. अधिकतर मामलों में लड़की द्वारा फार्महाउस, गेस्ट हाउस, रेंटेड फ्लैट या होटल के कमरे में अवैध सैक्स के वीडियो छिपे कैमरे से बनाए जाते थे. फिर उन से मोटी रकम वसूली जाती थी. इस काम को बड़े ही सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया जा रहा था.

जबकि पुलिस के बड़े अफसरों पर ऐसे गिरोह को धर दबोचने का पौलिटिकल प्रेशर भी बना हुआ था. कब कौन किस तरह से हनी ट्रैप का शिकार हो जाए, कहना मुश्किल था. वे टेक्नोलौजी, ऐप्स और सोशल साइटों का इस्तेमाल करते हुए बच निकलते थे.

इसी तरह पिछले कुछ महीनों से आए दिन होटल, गेस्टहाउस, स्पा और मसाज सेंटर से सैक्स रैकेट का भी भंडाफोड़ हो रहा था. दूसरे राज्यों से आई जिस्फरोशी में लिप्त लड़कियां वहां से पकड़ी जा रही थीं, लेकिन उन का सरगना गिरफ्त से बाहर था. 2-3 से ले कर कभी 11, तो कभी 15 या 21 पकड़ी गई लड़कियों में अधिकतर बांग्लादेश की होती थीं.

वे वहां तक कैसे पहुंचीं, उन का मुखिया कौन है, उन के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं होती थी. यहां तक कि वे ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पाती थीं. अपना सही पताठिकाना तक नहीं बता पाती थीं.

इन्हीं सब बातों को ले कर एसआईटी की बुलाई गई विशेष बैठक में बडे़ अफसरों ने इंदौर, भोपाल और ग्वालियर की पुलिस को आड़ेहाथों लिया था. उन्हें जबरदस्त डांट पिलाई थी.

उसी सिलसिले में सैंडो, आफरीन, बबलू सरकार, दिलीप बाबा, प्रमोद पाटीदार, उज्ज्वल ठाकुर एवं विजयदत्त उर्फ मुनीरुल रशीद का नाम भी सामने आया. पता चला कि मुनीरुल ही इस गैंग का सरगना है. उसे मुनीर कह कर बुलाते थे.

इस पर यह सवाल भी उठा कि मुनीर पिछले 11 महीने से क्यों फरार है, जबकि उस पर 10 हजार रुपए का ईनाम भी है. वह पकड़ा क्यों नहीं गया?

उल्लेखनीय है कि पिछले साल दिसंबर में इंदौर के विजय नगर और लसूडि़या इलाके में सैक्स रैकेट के खिलाफ औपरेशन चलाया गया था. तब कुल 15 लड़कियां पकड़ी गई थीं.

उन से मिली जानकारी के आधार पर ही उन आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे. उस वक्त मुख्य आरोपी मुनीर भाग निकला था. उसे पकड़ने के लिए 10 हजार रुपए ईनाम की भी घोषणा की गई थी.

उस के बाद ही इंदौर में हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट और मानव तस्करी की जांच के लिए डीआईजी ने दिसंबर 2020 में ही एसआईटी बनाई थी. इस में पूर्व क्षेत्र के एएसपी राजेश रघुवंशी, विजय नगर सीएसपी राकेश गुप्ता, एमआईजी टीआई विजय सिसौदिया और विजय नगर टीआई तहजीब काजी को रखा गया था.

फिर एसआईटी ने सैक्स रैकेट के खिलाफ एक अभियान छेड़ दिया था और जगहजगह सैक्स रैकेट के अड्डों पर लगातार छापेमारी की गई थी, लेकिन मुनीर पकड़ा नहीं जा सका था. वह पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर हमेशा बच निकलता था.

एसआईटी को मुनीर के सूरत में छिपे होने की सूचना मिली थी. वह बारबार अपना ठिकाना बदलने में माहिर था, उस की लोकेशन की पूरी जानकारी पुख्ता होने के बाद ही एसपी ने उसे पकड़ने के निर्देश दिए.

इस के लिए टीम ने एक सप्ताह तक सूरत में डेरा डाल दिया. टीम को बताया गया था कि वह अपना धंधा वीडियो कालिंग के जरिए करता है. वाट्सऐप से मैसेज करता है.

इसे ध्यान में रखते हुए उस की ट्रैकिंग पूरी मुस्तैदी के साथ मोबाइल टेक्नोलौजी का इस्तेमाल करते हुए की जानी चाहिए. जरा सी भी चूक या नजरंदाजी से वह बच निकल सकता था.

टीम के एक्सपर्ट पुलिसकर्मियों ने आखिरकार मोबाइल लोकेशन के आधार पर मुनीर को 30 सितंबर, 2021 की रात को पकड़ ही लिया.

पकड़े जाने पर उस ने पहले तो अपनी पहचान छिपाने की हरसंभव कोशिश की, किंतु इस में वह सफल नहीं होने पर तुरंत रुपए ले कर छोड़ने का दबाव बनाया. इस में भी उसे सफलता नहीं मिली. अंतत: टीम उसे पकड़ कर पहली अक्तूबर को इंदौर के पुलिस हैडक्वार्टर ले आई.

इंदौर में एसआइटी के सामने सख्ती से पूछताछ में उस ने कई ऐसे राज खोले, जिसे सुन कर सभी को काफी हैरानी हुई. उस ने मानव तस्करी से ले कर लड़कियों को डरानेधमकाने, प्रताडि़त करने, यौन उत्पीड़न किए जाने, बांग्लादेश का बौर्डर पार करवाने, देह के बाजार के लिए बिकाऊ बनाने के वास्ते ट्रेनिंग देने और कानून को झांसा देने के लिए फरजी शादियां करने तक के कई खुलासे किए. उस के अनुसार जो तथ्य सामने आए वे इस प्रकार हैं.

मूलत: बांग्लादेश का रहने वाला विजयदत्त उर्फ मुनीरुल रशीद उर्फ मुनीर पिछले 5 सालों से मानव तस्करी के धंधे में था. बांग्लादेश के जासोर में उस का पुश्तैनी घर है. गर्ल्स स्मगलिंग में तो वह एक माहिर और मंझा हुआ खिलाड़ी था.

उस की नजर हमेशा बांग्लादेश के उन गरीब परिवारों पर टिकी रहती थी, जिन में लड़कियां होती थीं. उन की उम्र 16-17 के होते ही उन के परिवार वालों को भारत में काम दिलाने के बहाने अच्छी कमाई का लालच दे कर मना लेता था.

शक से बचने के लिए कई बार लड़कियों को वह दुलहन बना कर लाता था. इस के लिए बाकायदा निकाहनामा साथ रखता था, लड़की का पासपोर्ट और टूरिस्ट वीजा बनने में अड़चन नहीं आती थी, भारत में ला कर उन्हें लड़कियों की मांग के आधार पर मुंबई, आगरा, अहमदाबाद, सूरत, इंदौर, भोपाल, दिल्ली आदि में सप्लाई कर देता था.

वह भारत में रहते हुए भारत-बांग्लादेश के पोरस बौर्डर पर बने नाले या तार के बाड़ों से हो कर गुप्त रास्ते से पश्चिम बंगाल से सटे बांग्लादेश आताजाता रहता था. इस कारण अपने पसंद की लड़कियों को भी आसानी से बौर्डर पार करवा लेता था.

लड़कियों को एक दिन अपने पास के गांव में एजेंटों के यहां ठहरा देता था.  उन्हें वहां 15 दिनों तक छोटे कपड़े पहना कर रखा जाता और उन्हें हल्दी की उबटन भी लगाई जाती ताकि वे मौडर्न और खूबसूरत दिखें. फिर पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद ला कर उन्हें महाराष्ट्र और गुजरात में पहले से तैनात एजेंटों को 75 से एक लाख रुपए में बेच देता था.

कुंवारी लड़कियों की कीमत अधिक मिलती थी. कुछ लोग उन लड़कियों का नकली आधार कार्ड और दूसरे कागजात बनाने का काम भी करते थे. एजेंट उन्हें ग्राहकों के सामने पेश करने से पहले दुलहन की तरह सजाता था. हलका मेकअप करने और अच्छे ग्लैमरस कपड़ों में रईस ग्राहकों के पास भेज देता था.

हालांकि इस के लिए सभी लड़कियों को नौकरी के लिए इंटरव्यू का झांसा ही दिया जाता था. जो ऐसा करने से इनकार करती थी या भागने का प्रयास करती थी, उन्हें भूखाप्यासा कमरे में बंद रखा जाता था. बाद में उसे मजबूरन देहव्यापार के धंधे में उतरना पड़ता था.

इंदौर के विजय नगर में छापेमारी के दौरान पकड़ी गई 11 लड़कियों में एक लड़की ने पुलिस को अपनी आपबीती सुनाई थी. उस ने बताया था कि साल 2009 में वह 15 साल की थी. उस की मां का निधन हो गया था. तब वह नौवीं कक्षा में पढ़ रही थी. पिता पहले ही गुजर चुके थे.

मां की मौत के बाद वह एकदम से अनाथ हो गई थी. पढ़ाई बंद चुकी थी. पढ़ना चाहती थी. स्कूल की फीस भरने की चिंता में वह एक दिन पेड़ के नीचे बैठी रो रही थी.

तभी उस के पास एक युवती आई. उस से बोली कि बांग्लादेश में कुछ नहीं रखा है. यहां से अच्छा भारत है. वहां बहुत तरह के काम मिल जाते हैं. कंपनियों में अच्छी नौकरी मिल जाती है. कुछ नहीं हुआ तो मौल या बड़ेबड़े होटलों या अस्पतालों में काम मिल जाता है.

वहां चाहे तो पढ़ाई भी कर सकती है. वहां दूसरे देशों से आए लोगों के लिए सरकार ने कई शहरों में शेल्टर बना रखे हैं. दिल्ली में तो बांग्लादेशियों के रहने का एक बड़ा मोहल्ला तक बसा हुआ है. इसी के साथ युवती ने अपने बारे में बताया कि भारत अकसर आतीजाती रहती है. वहीं उस ने एक युवक से शादी कर ली है. वह भी बांग्लादेशी है. बिल्डिंग बनाने की ठेकेदारी का काम करता है. अच्छी आमदनी हो जाती है.

दूर बैठे एक युवक की तरफ इशारा करते उस ने लड़की को बताया कि वह उस का शौहर है. उस युवती ने लड़की को उस की भी अच्छी शादी हो जाने के सपने दिखाए. उस ने कहा कि भारत में रह रहे बांग्लादेश के कई अविवाहित युवक चाहते हैं कि वह अपने ही देश की लड़की से शादी करे.

वह लड़की न केवल पूरी तरह से उस युवती और युवक की बातों में आ गई, बल्कि वह उन के साथ भारत जाने को राजी भी हो गई. उसे अगले रोज सूरज निकलने से पहले इंडोबांग्ला बौर्डर तक पहुंचने के लिए कहा गया.

उस ने ऐसा ही किया, किंतु उसे बौर्डर तक पहुंचने में पूरी रात पैदल चलना पड़ा. वहीं युवकयुवती उस का इंतजार करते हुए मिल गए और उसे बौर्डर पार करवा दिया.

कुछ समय बाद ही लड़की उन के साथ मुर्शिदाबाद चली गई. वहीं उसे एक दूसरे आदमी के यहां ठहराया गया और एकदूसरे को मियांबीवी बताने वाले दंपति चले गए. दोनों फिर लड़की को कभी नहीं मिले.

लड़की को जिस व्यक्ति के पास ठहराया गया था, वहां अगले रोज एक दूसरा युवक आया. उस का परिचय मुनीर नाम के व्यक्ति से करवाया गया. उस के साथ लड़की का निकाह करवा दिया गया. लड़की को बताया गया कि इस से उस के भारत में रहने और ठहरने का प्रमाणपत्र बन जाएगा.

फिर मुनीर नवविवाहिता लड़की के साथ गुजरात के सूरत शहर चला आया. मुनीर ने लड़की को अपने साथ 2 दिनों तक एक किराए के कमरे में रखा. इस बीच मुनीर ने उसे छुआ तक नहीं. उसे सिर्फ इतना बताया गया कि दोनों को मुंबई जाना है.

तीसरे दिन मुनीर ने लड़की को एक व्यक्ति के हाथों बेच दिया. लड़की को कहा कि उसे उस के साथ जाना होगा, वहीं उस की नौकरी लग जाएगी. सूरत का कुछ जरूरी काम निपटा कर 2 दिन बाद वह भी आ जाएगा. लड़की को मुनीर भी दोबारा कभी नहीं मिला.

इस बात को मुनीर ने भी पूछताछ के दौरान स्वीकार कर लिया था. उस ने बताया कि तब उस का इस धंधे में रखा गया पहला कदम ही था, जिस में उसे सफलता मिलने के बाद उस का उत्साह बढ़ गया था.

मुनीर ने बताया कि वह इसी तरह करीब 200 लड़कियों से शादी कर चुका है, लेकिन उसे याद भी नहीं है कि वे लड़कियां इस समय कहां हैं. लड़कियों को ट्रैप करने और उन्हें बहलाफुसला कर अपने जाल में फंसाने के लिए वह तरहतरह के तरीके अपनाता था.

मोबाइल के सहारे वह सारा काम निपटाता था, लेकिन हर महीने 2 महीने पर नया सिम बदल लेता था. उस का टारगेट होता था कि हर महीने कम से कम 50 लड़कियों को बांग्लादेश से ट्रैप करे और उन्हें मानव तस्करी में शामिल एजेंटों के हाथों बेच डाले.

इसी के साथ उस ने स्वीकार कर लिया कि वह 200 से अधिक लड़कियों को जिस्मफरोशी में धकेल चुका है. देखते ही देखते वह पुलिस की निगाह में बांग्लादेशी लड़कियों का एक बडा तस्कर बन चुका था. छापेमारी के दौरान जब भी बांग्लादेशी लड़कियां गिरफ्तार होतीं, तब उस का नाम जरूर आता था.

मुनीर ने बताया कि उस ने इंदौर में अड्डा जमाने के लिए यहीं के लसूडि़या थानाक्षेत्र के रहने वाले एजेंट सैजल से संपर्क किया था. सैजल ने कुछ साल पहले ही मुंबई के दलाल जीवन बाबा की बेटी से शादी की थी.

इस के बाद वह इंदौर आ गया. फिर जीवन बाबा ने उसे लड़कियों की दलाली के काम में शामिल कर लिया.

मुनीर का एक बड़ा नेटवर्क था, जिस में ज्यादातर पुरुष थे, लेकिन उन में 20 फीसदी के करीब महिलाएं भी थीं. एजेंट महिलाएं बांग्लादेश में लड़कियों को फंसाने और बांग्लादेश के गांवों से बौर्डर तक पहुंचाने या फिर भारत में बौर्डर के पास के इलाके मुर्शिदाबाद तक लाने का ही काम करती थीं.

वे औरतें बौर्डर पर तैनात बीएसएफ के जवानों के लिए खानेपीने का सामान ला कर देती थीं. बदले में लड़कियों को बौर्डर पार करने की थोड़ी छूट मिल जाती थी.

एजेंटों द्वारा लड़कियों को मानव तस्करी के लिए जैसोर और सतखिरा से बांग्लादेश में गोजादंगा और हकीमपुर लाया जाता है. कारण वहां के बौर्डर पर कंटीले तारों के बाड़ नहीं लगे हैं. साथ ही वहां की अबादी भी घनी है. इस कारण रोजाना की जरूरतों के लिए भारत और बांग्लादेश में लोगों का आनाजाना लगा रहता है.

उसे बेनोपोल बौर्डर के नाम से जाना जाता है, दक्षिणपश्चिम के  इस हिस्से में खुली जमीन होने के कारण लोग बौर्डर को आसानी से पार लेते हैं. बौर्डर पर पकड़े जाने पर लोग 200 से 400 टका (बांग्लादेश की मुद्रा) दे कर आसानी से छूट जाते हैं.

मानव तस्करी के लिए बदनाम अन्य जिलों में कुरीग्राम, लालमोनिरहाट, नीलफामरी, पंचगढ़ी, ठाकुरगांव, दिनाजपुर, नौगांव, चपई नवाबगंज और राजशाही भी है.

पुलिस ने विजय दत्त उर्फ मुनीरुल रशीद उर्फ मुनीर से पूछताछ करने के बाद उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

मुंगेर का चर्चित गोलीकांड : घटना से हुआ प्रसिद्ध समाज

जयकारा लगाते हुए माता के भक्त दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन के लिए दीनदयाल उपाध्याय चौक से बाटला चौक की ओर बढ़ते जा रहे थे. उस वक्त रात के साढ़े 11 बजे थे. सैकड़ों लोगों के पीछेपीछे सीआईएसएफ के जवान और जिले के कई थानों की फोर्स थी.

माता के भक्तों पर पुलिस का दबाव था कि वे जल्द से जल्द मूर्ति विसर्जित कर शहर को भीड़ से मुक्ति दें, ताकि चल रही चुनाव प्रक्रिया आसानी से कराई जा सके. हालांकि शांतिपूर्वक मूर्ति विसर्जन कराने के लिए पुलिस के पास 2 दिनों का पर्याप्त समय था, इस के बावजूद पुलिस जल्दबाजी में थी.

दरअसल, पुलिस का भारी दबाव लोगों पर इसलिए भी था क्योंकि शहर में चुनाव का दौर चल रहा था, दूसरे कोरोना प्रोटोकाल का चक्कर भी था. इसलिए एसपी लिपि सिंह चाहती थीं कि सब कुछ शांतिपूर्वक संपन्न हो जाए.  लोग माता का जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे.  लेकिन पुलिस के भारी दबाव से अचानक माहौल गरमा गया और भक्तों की ओर से किसी ने पुलिस पर पत्थर उछाल दिया.

पत्थर एक पुलिस वाले के सिर पर जा गिरा और वह जख्मी  हो गया.  एक तो पुलिस पहले से ही लोगों से नाराज थी. साथी को चोटिल देख कर पुलिस फोर्स आपे से बाहर हो गई. गुस्साई फोर्स ने भक्तों पर लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. अचानक लाठीचार्ज से लोग मूर्ति को चौक के बीचोंबीच छोड़ जान बचा कर इधरउधर भागने लगे. साथ ही आत्मरक्षा में पुलिस पर पत्थर फेंकने लगे.

जवाबी काररवाई में पुलिस ने हवाई फायर किए. गोलियों की तड़तड़ाहट से भक्तों की भीड़ बेकाबू हो गई और इधरउधर भागने लगी. इसी भगदड़ में 21 साल के युवक अनुराग कुमार पोद्दार की गोली लगने से मौत हो गई.

एक युवक की मौत से माहौल और बिगड़ गया. शहर में अशांति की आग फैल गई. आग की लपटों पर काबू पाने के लिए रातोंरात शहर भर में चप्पेचप्पे पर भारी फोर्स लगा दी गई. जैसेतैसे रात बीती. पुलिस ने फोर्स के बल पर उपद्रवियों पर काबू तो पा लिया था, लेकिन माहौल तनावपूर्ण बना हुआ था. बिगडे़ माहौल के लिए शहरवासी पुलिस कप्तान लिपि सिंह को दोषी मान रहे थे. उन का कहना था पुलिस फोर्स के पीछे चल रही एसपी लिपि सिंह के आदेश पर ही पुलिस ने गोली चलाई थी, जिससे एक युवक की मौत हुई थी.

यह घटना बिहार के मुंगेर जिले के थाना कोतवाली क्षेत्र में 26 अक्तूबर, 2020 की रात में घटी थी. अगले दिन मृतक अनूप पोद्दार के पिता की तहरीर पर कोतवाली थाने में धारा 304 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

इस के अलावा पब्लिक की ओर से 6 और मुकदमे दर्ज किए गए. मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन इस काररवाई से उपजी चिंगारी अभी भी सुलग रही थी.

मुकदमा दर्ज होने के बावजूद आक्रोशित जनता एसपी लिपि सिंह को गिरफ्तार करने की मांग पर अड़ी हुई थी. जिस का खतरनाक नतीजा 29 अक्तूबर को वीभत्स तरीके से सामने आया, जिस के बारे में किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था.  पुलिस काररवाई से असंतुष्ट जनता ने पूरबसराय थाने को आग के हवाले कर दिया. साथ ही एसपी कार्यालय में काम भी अवरुद्ध कर दिया.

जब मामले की जानकारी डीआईजी मनु महाराज को मिली तो वह भारी फोर्स सहित मुंगेर जा पहुंचे और कानूनव्यवस्था अपने हाथों में ले कर दीनदयाल उपाध्याय चौक से बाटला चौक तक पैदल फ्लैग मार्च किया.

फ्लैग मार्च के दौरान नागरिकों से अपील की गई कि कानून अपने हाथों में न लें, पुलिस को अपने तरीके से काम करने दें, मृतक के साथ न्याय होगा, कानून पर विश्वास रखें.  मनु महाराज की अपील का नागरिकों पर असर पड़ा और वे अपनेअपने घरों को लौट गए. इस पर पुलिस की ओर से उपद्रवियों पर 9 मुकदमे दर्ज किए गए.  शहर का माहौल खराब था. घटना के लिए एसपी लिपि सिंह को दोषी ठहराया जा रहा था. यह मामला यहीं नहीं रुका, मगध के डीआईजी मनु महाराज से होते हुए बात चुनाव आयोग तक पहुंच गई थी.

चुनाव आयोग ने इस पर कड़ा एक्शन लेते हुए जिलाधिकारी राजेश मीणा और एसपी लिपि सिंह को तत्काल प्रभाव से पद से हटा कर वेटिंग लिस्ट में डाल दिया. इन दोनों पदों पर नई तैनाती कर दी गई.

नई जिलाधिकारी रचना पाटिल बनी तो मानवजीत सिंह ढिल्लो को एसपी की कमान मिली. उधर मगध डिवीजन के कमिश्नर सुशील कुमार को डीआईजी मनु महाराज ने घटना की जांच कर एक हफ्ते में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया.

काररवाई चल ही रही थी कि पुलिस की पिटाई से घायल बड़ी दुर्गा महारानी के कार्यकर्ता शादीपुर निवासी कालू यादव उर्फ दयानंद कुमार ने मुंगेर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी न्यायालय में परिवाद दायर किया.  दायर वाद में कुल 7 आरोपी बनाए गए. आरोपियों के नाम थे लिपि सिंह (एसपी), खगेशचंद्र झा (सीओ), कृष्ण कुमार और धर्मेंद्र कुमार (एसपी के अंगरक्षक), संतोष कुमार सिंह (थानाप्रभारी कोतवाली), शैलेष कुमार (थानाप्रभारी कासिम बाजार) और ब्रजेश कुमार (थानाप्रभारी मुफस्सिल).  एसपी लिपि सिंह एक बार फिर चर्चाओं में आ गई थीं.

जलियावाला बाग कांड को याद कर के लोगों ने उन्हें जनरल डायर की उपाधि दी. हालांकि एसपी लिपि सिंह ने खुद पर लगाए गए आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा, ‘‘अनुराग की मौत पुलिस की गोली से नहीं हुई थी, बल्कि जुलूस में शामिल उपद्रवियों की ओर से की गई फायरिंग से हुई थी.

जांचपड़ताल में घटनास्थल से 3 देशी कट्टे और 12 खोखे मिले थे. पुलिस जांच चल रही है.’’  इस घटना में जांच का क्या नतीजा सामने क्या आया, कहानी यहीं ब्रेक कर के आइए जानते हैं लिपि सिंह के बारे में.  लेडी सिंघम कही जाने वाली आइपीएस लिपि सिंह मूलरूप से बिहार के नालंदा जिले के मुस्तफापुर गांव की रहने वाली हैं. इसी गांव के रहने वाले रामचंद्र प्रसाद सिंह (आर.सी.पी. सिंह) और गिरिजा सिंह की बेटी हैं लिपि सिंह.  आर.सी.पी. सिंह की 2 बेटियां हैं, जिन में लिपि सिंह बड़ी हैं और उस से छोटी दिल्ली में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है.

आर.सी.पी. सिंह खुद आईएएस अधिकारी थे. उन का राजनीति में आना महज इत्तफाक था. दरअसल, उन्होंने सर्विस के दौरान यूपी काडर में लंबे समय तक काम किया. नीतीश कुमार जब केंद्र में मंत्री बने तो आर.सी.पी. सिंह दिल्ली में उन के प्राइवेट सेक्रेट्री थे. इस दौरान दोनों ने लंबे समय तक साथ काम किया.

साल 2005 में जब नीतीश कुमार पहली बार बिहार में मुख्यमंत्री बने, तब आर.सी.पी. सिंह मुख्य सचिव बन कर आए. कहा जाता है कि आर.सी.पी. सिंह ने नीतीश कुमार के कहने पर नौकरी छोड़ दी और जेडीयू पार्टी जौइन कर ली थी. नीतीश कुमार ने बाद में उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया और फिलहाल वह पार्टी में नंबर 2 की हैसियत रखते हैं.

आर.सी.पी. सिंह का परिवार शिक्षा का महत्त्व जानता था. खुद वह एक काबिल आईएएस अफसर थे और चाहते थे कि उन की बेटियां भी उन्हीं के नक्शेकदम पर चलें. बेटियों की शिक्षा पर उन्होंने पानी की तरह पैसा बहा कर उन्हें काबिल बनाया.  लिपि सिंह चाहती थी कि वह भी अपने पिता की ही तरह आईएएस अधिकारी बने. भविष्य संवारने के लिए उन्होंने दिल्ली का रुख किया. वहां हौस्टल में रह कर आगे की पढ़ाई जारी रखी और कंपटीशन की तैयारी में जुट गईं. उन्होंने 2015 में यूपीएससी की परीक्षा दी.

परीक्षा में लिपि का 114वां रैंक आया और 2016 में वह आईपीएस अफसर बनीं.  हालांकि इस से पहले भी लिपि का चयन इंडियन औडिट अकाउंट सर्विस में हुआ था. तब उन्होंने वाणिज्य सेवा में सफलता हासिल की थी और देहरादून में प्रशिक्षण के दौरान अवकाश ले कर दोबारा यूपीएससी की परीक्षा देनी चाही ताकि आईएएस या आईपीएस बन सकें, लेकिन लिपि को एकेडमी से छुट्टी नहीं मिली तो पक्के इरादों वाली लिपि ने इंडियन औडिट एकाउंट से इस्तीफा दे दिया और कंपटीशन की तैयारी में जुट गईं. फलस्वरूप उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली.  इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की भी शिक्षा ली थी.

सपनों को पूरा करने में पिता आर.सी.पी. सिंह का काफी योगदान रहा. लिपि को बेहतर भविष्य देने वाले उन के पिता गुरु भी थे. गुरुस्वरूप पिता ने बेटी को एक ही शिक्षा दी थी कि अपनी मंजिल पाने के लिए लक्ष्य को मन की आंखों से साधो. मंजिल खुदबखुद मिल जाएगी.   पिता का दिया गुरुमंत्र लिपि हमेशा याद रखती थी. लिपि सिंह संघर्षशील और कर्मठी युवती थी.

ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन की पहली पोस्टिंग इन के गृह जनपद नालंदा में हुई थी. यह नालंदा जिले की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनी थीं. ट्रेनिंग में अच्छा काम करने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इन्हें बिहार कैडर अलाट किया था. कहा जाता है यह सब सांसद पिता आर.सी.पी. सिंह की बदौलत हुआ था.

आईपीएस लिपि सिंह ने पुलिस फोर्स जौइन करने के बाद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. कानून के हिसाब से पुलिस महकमे, बालू माफिया और अपराधियों के खिलाफ उन का डंडा लगातार चलता रहा है. महज कुछ ही साल की सर्विस में इस लेडी अफसर ने ऐसा काम किया कि पुलिसकर्मी, बाहुबली से ले कर अपराधी तक खौफ खाने लगे.

जिस जिले में लिपि की तैनाती होती थी, वहां वह अपने विभाग के सिस्टम की गंदगी अपने तरीके से साफ करने में कोई कोताही नहीं बरतती थीं. नालंदा से लिपि सिंह का पहली बार स्थानांतरण पटना के बाढ़ सर्किल में हुआ.

लिपि सिंह बाढ़ इलाके की एडिशनल एसपी थीं. जिस क्षेत्र में इन का स्थानांतरण हुआ था, वहां बाहुबली विधायक अनंत सिंह का कानून चलता था.   लिपि का खौफ इतना था कि कोई इन के खिलाफ अपना मुंह तक नहीं खोलता था. इतना दबदबा कि लोग उन से डरते थे. उन के हुक्म के बिना पत्ता नहीं हिलता था.  एक दौर था जब अनंत सिंह नीतीश कुमार की सरकार में छोटे सरकार के नाम से जाने जाते थे. ऐसी जगह पर लिपि सिंह का स्थानांतरण होना दांतों के बीच जीभ के होने की तरह था.

आखिरकार जिस बात का डर था, हुआ वही. लिपि सिंह का कार्यकाल बाहुबली अनंत सिंह से टकराहट के साथ शुरू हुआ. दरअसल, 2019 में हुए आम चुनाव के दौरान अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने चुनाव आयोग में लिपि सिंह की शिकायत कर दी थी.  आरोप था कि लिपि सिंह अनंत सिंह के करीबियों को जानबूझ कर परेशान कर रही थीं.

इस के बाद चुनाव आयोग के आदेश पर लिपि सिंह का ट्रांसफर एंटी टेरेरिज्म स्क्वायड (एटीएस) में कर दिया गया. लेकिन चुनाव के बाद इन्हें एक बार फिर बाढ़ इलाके का सर्किल दे कर उसी पद पर यानी एडिशनल एसपी नियुक्त कर दिया गया.

लिपि सिंह को दोबारा उसी पद पर देख अनंत सिंह का लोहे का मजबूत किला हिल गया. इस के बाद लिपि सिंह ने लोहा लिया बाहुबली कहे जाने वाले विधायक अनंत सिंह से. खुद को बब्बर शेर समझने वाले अनंत सिंह लिपि सिंह के खौफ से डर कर घर छोड़ कर फरार होने पर मजबूर हो गए.

दरअसल, लिपि सिंह को मुखबिर के जरिए सूचना मिली थी कि बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने अपने एक दुश्मन को मौत के घाट उतारने के लिए अपने गांव वाले घर नदवां में एके-47 राइफल, बड़ी मात्रा में कारतूस और देशी बम छिपा रखे हैं.   लिपि सिंह ने अनंत सिंह के पैतृक गांव नदवां में उन के घर पर छापेमारी की.

इस छापेमारी के दौरान एक एके-47 राइफल, 22 जिंदा कारतूस और 2 देशी बम बरामद हुए.  उस के बाद लिपि सिंह ने अनंत सिंह के खिलाफ यूएपीए यानी अनलाफुल एक्टीविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद अनंत सिंह को गिरफ्तार किया जाना था. पुलिस उन की गिरफ्तारी के लिए पटना स्थित उन के सरकारी आवास पर गई, लेकिन अनंत सिंह फरार हो गए. उन पर काररवाई करने के लिए उन के दाहिने हाथ कहे जाने वाले लल्लू मुखिया के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया. पर पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने पहुंची, तो वह भी गायब हो गया. फिर लिपि सिंह कोर्ट गईं और वहां से उन्होंने लल्लू मुखिया की संपत्ति कुर्क करने का आदेश ले लिया.

इस के लिए काररवाई भी शुरू कर दी गई. चूहेबिल्ली के इस खेल में लिपि सिंह ने अनंत सिंह को जेल भेज कर अपना लोहा मनवा लिया. उन्होंने दिखा दिया कि औरत कमजोर नहीं होती. जब वह कानूनी जामा पहने हो तो और भी नहीं. बिहार में आईपीएस लिपि सिंह अपने कारनामों से सुर्खियों में छाई रहने लगीं.

बहरहाल, लौह इरादों वाली अफसर लिपि सिंह ने चट्टान जैसे भारीभरकम अनंत सिंह को धूल चटा दी थी. अत्याधुनिक और खतरनाक असलहा एके-47, जिंदा कारतूस और बम बरामदगी के जुर्म में अब तक वह जेल में हैं.

इस मामले में अदालत में गवाही चल रही है. लिपि सिंह ने पहली बार अदालत में हाजिर हो कर अपना बयान दिया था.  इस मामले में आगे क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन मुंगेर गोलीकांड में सीआईएसएफ की ओर से की गई जांच में पुलिस की तरफ से 13 राउंड 5.56 एमएम इंसास राइफल से गोली चलाने का उल्लेख किया गया था और यह रिपोर्ट ईमेल के जरिए डीआईजी को भेज दी गई थी.

इस पूरे प्रकरण के बाद तत्काल आईपीएस लिपि सिंह और डीएम राजेश मीणा को पद से हटा कर प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया था. फिलहाल लिपि सिंह को सहरसा जिले की एसपी बना दिया गया है.

आटा-साटा कुप्रथा में पिसी सुमन

सहयोग: मनीष व्यास

सुमन 3 भाइयों के बीच अकेली बहन थी, इसलिए वह घर में सभी की लाडली थी. वह पढ़ाईलिखाई में होशियार थी लेकिन पिता की मृत्यु हो जाने के बाद वह ग्रैजुएशन से आगे नहीं पढ़ सकी.

अन्य लड़कियों की तरह सुमन ने भी रंगीन ख्वाब देखे थे. उस की चाहत थी कि उसे भी सपनों का राजकुमार मिलेगा, जो सुंदर और बांका होने के साथ पढ़ालिखा और उस का हर तरह से खयाल रखने वाला होगा.

जवान होने पर सुमन का रूपसौंदर्य निखर आया था. उस की मोहक मुसकान देख कर देखने वाला एकटक उसे ताकता रह जाता था. सुमन चौधरी जाट थी. इसलिए उस के रिश्तेदारों और उस की बिरादरी के कई लोग अपने घर की बहू बनाने को लालायित हो उठे.

रिश्तेदार सुमन के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते लाने लगे. मगर सुमन के चाचा व भाइयों ने ये रिश्ते लौटा दिए और रिश्तेदारों से कहा, ‘‘सुमन का रिश्ता तो बचपन में ही तय हो चुका है. बात पक्की हो रखी है आटासाटा प्रथा के तहत.’’

तब रिश्तेदार शांत बैठ गए. सुमन जब 19 बरस की हो गई थी तो आज से 2 साल पहले उस की शादी तय कर दी गई. सुमन की शादी गांव भूणी जिला नागौर के नेमाराम चौधरी से तय कर दी. सुमन उस वक्त नहीं जानती थी कि उस का पति न केवल मामूली सा पढ़ालिखा है बल्कि उम्र में भी उस से दोगुना है और वह बकरियां चराने वाला व खेती करने वाला मजदूर है.

सुमन के चाचा और भाइयों ने सुमन के बदले 4 शादियों की सौदेबाजी की. वैसे भी राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में आज भी लड़की का रिश्ता उस के परिजन ही तय करते हैं. परिजन लड़की का रिश्ता जिस युवक से कर देते हैं, उसी से लड़की को शादी करनी पड़ती है. लड़की को भले ही वह लड़का पसंद न हो, मगर परिजनों द्वारा किए गए रिश्ते को लड़की को निभाना ही होता है.

सुमन के बदले हुईं 4 शादियां

सुमन भी ग्रामीण परिवेश की शर्मीली लड़की थी. उस ने सोचा था कि उस की पढ़ाई और उस की सुंदरता के अनुरूप हमउम्र युवक से शादी तय की होगी, मगर जब नेमाराम शादी करने हेमपुरा आया और दुलहन बना कर सुमन को अपने साथ भूणी गांव ले गया, तब सुमन को अपने पति की असलियत पता चली.

सुमन ससुराल चली तो गई लेकिन अपने भाग्य को कोसने लगी. मगर अब क्या हो सकता था. वह चुप लगा गई. सुमन की 2 ननदों की शादी गांव लिचाना जिला नागौर में सुमन के भाइयों के सालों से की गई.

इस शादी के बाद सुमन के 2 भाई उस की ननदों की 2 ननदों से शादी कर अपने घर हेमपुरा ले आए. सुमन को अब जा कर आटासाटा के खेल के बारे में पूरा पता लगा था.

सुमन को उस के पति नेमाराम ने एक दिन कहा, ‘‘तुझ से शादी करने के लिए मैं ने अपनी 2 बहनें तुम्हारे भाइयों के 2 सालों से ब्याही हैं. और मेरी बहनों की 2 ननदें तुम्हारे भाइयों से ब्याही हैं. यानी तेरे बदले 4 शादियों की सौदेबाजी हुई है. अब समझ गई न कि तेरी जैसी ग्रैजुएट और सुंदर लड़की की मुझ गंवार व उम्र में दोगुने से शादी किस कारण की गई. तेरे कारण 4 घर और बसे हैं.’’

सुन कर सुमन को सारा माजरा समझ में आ गया. उस के सगे भाइयों ने अपना घर बसाने के लिए उस का सौदा किया था. वह टूट गई. उसे रिश्ते बेमानी लगने लगे. उस के सगे भाइयों और चाचाताऊ ने अपने फायदे के लिए उसे एक ऐसे व्यक्ति के पल्लू से बांध दिया था, जो उस के किसी तरह काबिल नहीं था.

सुमन ने अपने आसपास अपने जाट समाज के अलावा अन्य कई जातियों में आटासाटा कुप्रथा का कुरूप चेहरा देखा था. उस ने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि वह भी इस प्रथा के तहत ऐसे व्यक्ति से ब्याह दी जाएगी जो उस के लायक नहीं होगा.

सुमन ने सोचा कि वह तलाक ले कर अपनी मरजी से शादी कर लेगी. मगर जब उसे पता चला कि उस की शादी से पहले ही नेमाराम के घर वालों ने यह भी शर्त रखी थी कि अगर शादी के बाद सुमन ने नेमाराम से तलाक लिया तो उस के बदले में की गई चारों शादियां टूट जाएंगी.

सुमन के तलाक लेने पर सुमन की ननदें और भाभियां भी तलाक ले लेंगी. यानी सुमन की शादी टूटने पर 4 शादियां और टूट जाएंगी. इस कारण सुमन ने तलाक लेने का खयाल अपने मन से निकाल दिया. वह अपनी सुख की खातिर 4 परिवार नहीं बिखरने देना चाहती थी.

सुमन अपने जीवन में सामंजस्य बिठाने की कोशिश करने लगी. इस के अलावा वह कुछ कर भी नहीं सकती थी. समय का पहिया अपनी गति से घूम रहा था. सुमन की शादी को सवा साल हो गया था.

उन्हीं दिनों नेमाराम ने सुमन से एक दिन कहा, ‘‘मैं इराक काम करने जा रहा हूं.’’

सुन कर सुमन बोली, ‘‘आप 3-4 साल बाद आओगे. मैं अकेली कैसे जी सकूंगी. आप इराक मत जाओ. हम यहीं पर कोई कामधंधा देख लेंगे.’’

‘‘तुम समझती क्यों नहीं, बड़ी मुश्किल से नंबर आया है. मैं किसी हाल में नहीं रुक सकता और तुम अकेली कहां हो, भरापूरा परिवार है तो सही.’’ नेमाराम ने कहा.

‘‘तुम्हें इराक में भी मजदूरी ही करनी है तो फिर यहीं रह कर करो न. तुम जितना कमाओगे, मैं उसी में खुश रहूंगी.’’ सुमन बोली.

‘‘सुमन, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारा पति परदेश में कमाने जा रहा है. यह सब मैं अपने घरपरिवार के लिए ही तो कर रहा हूं.’’ नेमाराम ने समझाया.

सुमन ने खूब मिन्नतें कीं मगर नेमाराम नहीं माना और करीब 8 महीने पहले वह इराक चला गया. सुमन भरी दुनिया में तनहा और अकेली रह गई. वह टूट गई और कुछ दिन बाद ससुराल से मायके हेमपुरा आ गई.

सुमन मायके में रह रही थी. उस ने ससुराल का रास्ता भुला दिया था. उस का पति इराक जा बैठा था. वह शादीशुदा हो कर भी मायके में बैठी थी. उस की मायके में अब पहले जैसी इज्जत भी नहीं थी. उस की भाभियां उस से सीधे मुंह बात नहीं करती थीं. भाई भी उस से पल्ला झाड़ने लगे थे.

सुमन का छोटा भाई जरूर उस का लाडला था. दोनों भाईबहन अपना दुखसुख आपस में जरूर बांट लेते थे.

सुमन ने मन ही मन विचार किया कि वह शादीशुदा हो कर मायके में कितने दिन गुजारेगी. पति जाने कब इराक से लौटेगा. उस के जीने की इच्छा खत्म हो गई थी.

वह दुनियादारी को समझ गई थी. रिश्तेनाते सब मतलब के हैं. मतलब निकलने के बाद कोई उसे पूछ नहीं रहा था.

कुप्रथा ने झकझोर दिया सुमन को

इसी दौरान वह 28-29 जून, 2021 की रात को घर के पास वाले कुएं में कूद गई. सुमन के कुएं में कूदने पर घरपरिवार में हड़कंप मच गया. गांव वालों ने नावां थाने में सूचना दी और सुमन को कुएं से निकाला. वह उसे अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टर ने सुमन को मृत घोषित कर दिया.

सुमन के चाचा तब नावां थाने पहुंचे और थानाप्रभारी धर्मेश दायमा को तहरीर दे कर बताया कि पति के इराक जाने के बाद सुमन मायके आ कर रहने लगी. पिछले 4-5 दिनों से वह मानसिक रोगी और पागलों जैसी हरकतें कर रही थी. आज उस ने घर के पास बने कुएं में कूद कर आत्महत्या कर ली.

थानाप्रभारी धर्मेश दायमा रिपोर्ट दर्ज कर पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. गांव वालों से इस संबंध में बात करने के बाद वह अस्पताल पहुंचे और सुमन का पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया.

पुलिस इसे आत्महत्या मान कर जांच कर रही थी. वहीं परिजन सुमन को मानसिक रोगी व पागल बता कर आटासाटा के तहत हुई शादी की बात को दबाना चाहते थे.

मगर इसी दौरान सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो गई. वह सुमन का सुसाइड नोट था, जो उस ने आटासाटा कुप्रथा के खिलाफ लिखा था. आत्महत्या करने से पहले उस ने उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया था. उस ने उस में लिखा था—

मेरा नाम सुमन चौधरी है. मुझे पता है कि सुसाइड करना गलत है, पर सुसाइड करना चाहती हूं. मेरे मरने की वजह मेरा परिवार नहीं, पूरा समाज है, जिस ने आटासाटा नाम की कुप्रथा चला रखी है. इस में लड़कियों को जिंदा मौत मिलती है. लड़कियों ंको समाज के समझदार परिवार अपने लड़कों के बदले बेचते हैं.

समाज के लोगों की नजरों में तलाक लेना गलत है, परिवार के खिलाफ शादी करना गलत है तो फिर यह आटासाटा प्रथा भी गलत है. आज इस कुप्रथा के कारण हजारों लड़कियों की जिंदगी और परिवार बरबाद हो गए हैं.

इस कुप्रथा के कारण पढ़ीलिखी लड़कियों की जिंदगी खराब हो जाती है. इसी प्रथा के तहत 17 साल की लड़की की शादी 70 साल के बुजुर्ग से कर दी जाती है. केवल अपने स्वार्थ के कारण.

मैं चाहती हूं कि मेरी मौत के बाद यह बातें बनाने और मेरे परिवार वालों पर अंगुली उठाने के बजाय इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाएं. इस प्रथा को बंद करने के लिए शुरुआत करनी होगी. मेरी हरेक भाइयों को अपनी बहन की राखी की सौगंध, अपनी बहन की जिंदगी खराब कर के अपना घर न बसाएं.

आज इस प्रथा के कारण समाज की सोच इतनी खराब हो गई है कि लड़की के पैदा होते ही तय कर लेते हैं कि इस के बदले किस की शादी करानी है.

सुसाइड नोट में सुमन ने लिखा कि आज समाज के लोगों से मेरी हाथ जोड़ कर विनती है इस प्रथा को बंद कर दें. मेरे मरने की वजह समाज है. सजा देनी है तो उन को दें.

और मेरी इच्छा है कि मेरी लाश को अग्नि मेरा छोटा भाई दे और कोई नहीं. मेरा पति भी नहीं. मेरे इन विचारों को सभी लोग अपने परिवार वालों में समझाएं व स्टेटस लगाएं.

सुमन ने अपने पापा के लिए आई लव यू लिखा और साथ ही कहा कि इस प्रथा के खिलाफ जानकारी स्कूलकालेज की पुस्तकों तथा अखबारों में दें, जिस से कुछ की जिंदगी बचेगी तो मैं सोचूंगी कि मेरी जिंदगी किसी के काम आ गई.

नावां थानाप्रभारी धर्मेश दायमा कथा लिखने तक सुमन सुसाइड मामले की जांच कर रहे थे. सुमन ने सुसाइड नोट में समाज को ही अपनी मौत का जिम्मेदार बताया है. उस ने व्यक्ति विशेष को मौत का जिम्मेदार नहीं बताया. इस कारण पुलिस भी इस मामले में कोई काररवाई कर पाएगी, यह लगता नहीं है.

जिंदा मौत है आटासाटा कुप्रथा

आटासाटा एक सामाजिक कुप्रथा है. इस के तहत किसी एक लड़की की शादी के बदले ससुराल पक्ष को भी अपने घर से एक लड़की की शादी उस के पीहर पक्ष में करानी होती है. इस में योग्यता और गुण नहीं बल्कि लड़की के बदले लड़की की सौदेबाजी होती है.

वर्तमान दौर में जब लड़कियों की बेहद कमी है तो कई समाज में इसे खुले तौर पर किया जाने लगा है. इस के चलते कई पढ़ीलिखी जवान लड़कियों की शादी अनपढ़ और उम्रदराज लोगों से कर दी जाती है. जिस के चलते सुमन जैसी अनेक लड़कियों की जिंदगी तबाह हो रही है.

सुमन के घर वाले उसे पागल और मानसिक बीमार भले ही अपने बचाव के लिए कह रहे हों लेकिन सुमन का सुसाइड नोट साफ इशारा कर रहा है कि वह आटासाटा कुप्रथा के चक्रव्यूह में ऐसी उलझी कि उसे अपनी मुक्ति के लिए मौत ही दिखी.

राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में समाज की कई जातियों में फैली इस कुप्रथा के बारे में लेखक ने पड़ताल की तो सामने आया कि आटासाटा एक ऐसी कुप्रथा है जहां लड़कियों की 2 नहीं 3 से 4 परिवारों के बीच सौदेबाजी होती है. वह भी सिर्फ इसलिए ताकि उन के नाकारा और उम्रदराज बेटे की शादी हो जाए.

और उन के घरपरिवारों में दूसरे जो लड़के हैं, जिन की किसी कारणवश शादी नहीं हो पा रही है, उन की भी शादी हो जाए.

वैसे राजस्थान के ज्यादातर गांवों में इस कुप्रथा का चलन है. ऐसे में पढ़ीलिखी लड़कियों की जिंदगी भी खराब हो रही है. इस कुप्रथा का एक दर्दनाक सच यह भी है कि बेटी होने से पहले ही उस का रिश्ता तय कर दिया जाता है.

कई बार ऐसा भी होता है कि बेटी नहीं होती तो रिश्तेदार की बेटी को दबावपूर्वक दिलाया जाता है. इस शर्त पर कि उन्हें भी वे बेटी दिलाएंगे.

ज्यादातर मामलों में लड़के और लड़की के बीच उम्र को भी नजरअंदाज कर  दिया जाता है और 21 साल की लड़की  45-50 साल के व्यक्ति से ब्याह दी जाती है.

कई मामलों में घर में बड़ी बहन होती है और भाई छोटा होता है. दोनों में 7-8 साल का अंतर होता है.

ऐसे में घर वाले बड़ी लड़की की तब तक शादी नहीं करते, जब तक उन का छोटा बेटा शादी लायक न हो जाए.

जब वह शादी लायक हो जाता है तो बड़ी बेटी के आटासाटा के बदले में उस की शादी की जाती है. ऐसे में बेटियों की उम्र निकलने के बाद उम्रदराज व्यक्ति से जबरदस्ती शादी कर दी जाती है.

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारा समाज अभी भी इस तरह की प्रथाओं का पालन कर रहा है. महिलाओं को अपना जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता है और हम अपनी बेटियों को नहीं खो सकते. राजस्थान सरकार को इस प्रथा को रोकने के लिए उपाय करने चाहिए.

राजस्थान महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष सुमन शर्मा ने इस बारे में कहा, ‘‘आटासाटा प्रथा बहुत ही कष्टदायक है, विशेषकर उन महिलाओं के लिए जिन का कुरीतियों के नाम पर पूरा जीवन ही कुरबान कर दिया गया हो.

‘‘जब मैं आयोग की अध्यक्ष थी तो मेरे पास आटासाटा से जुड़ी 4 बड़ी घटनाएं आई थीं जो इतनी पीड़ादायक थीं कि बेवजह 2 घरों की जिंदगियां बरबाद हो रही थीं. इस में कुछ लोगों को हम ने सजा भी दिलाई थी पर सीधे तौर पर इस में कोई कानून न होने से कोई सख्त काररवाई नहीं की जा सकती थी.

‘‘आजादी के बाद से महिलाओं के कल्याण के लिए कई सुधार हुए और कानूनी प्रावधान भी लाए गए पर दुर्भाग्य है कि अब तक आटासाटा पर रोकथान के लिए कोई कानून या नियमकायदे ही नहीं हैं. जबकि राजस्थान के कई इलाकों में ये बहुतायत से किया जा रहा है. सरकार को चाहिए कि इस कुप्रथा पर प्रभावी रोक लगाने के लिए जल्द से जल्द कानून बनाए जाए.’’

गोल्डन ईगल का जाल : कैसे कर रहा लड़कियों का पथभ्रष्ट

रंजना के पति राजू की 15 साल पहले मृत्यु हो गई थी. उस समय रंजना के चारों बच्चे, 2 बेटे और 2 बेटियां छोटे थे. ऐसे में विधवा औरत के कंधों पर अगर 4 बच्चे पालने की जिम्मेदारी आ जाए तो उस के लिए मुश्किल हो जाती है. बिना मर्द के राह में कई रोड़े आ जाते हैं, अंजना के साथ भी यही हुआ.

उस के पास बदायूं के मोहल्ला लोटनपुरा में पति राजू का बनाया घर तो था, लेकिन जमापूंजी या आय का कोई साधन नहीं था. मजबूरी में उसे 2 बच्चों आशीष और नेहा की जिम्मेदारी अपने जेठ सरवन को सौंपनी पड़ी, जो पड़ोस में ही रहते थे.

2 बच्चों बेटे अनिल और बेटी नीना को साथ ले कर उस ने घर से थोड़ी दूर बसे गांव कुंवरपुर निवासी छोटे के साथ बिना किसी विधिविधान के रहना शुरू कर दिया. समाज के सहयोग से बने नए पति के साथ रहने को बैठना कहा जाता है. रंजना के बच्चे समय के साथ बड़े होने लगे. सारी बातों को समझने लायक हुए तो उन्होंने पढ़ाई में विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया. आशीष के स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद नेहा ने भी स्नातक की शिक्षा ग्रहण कर ली.

नेहा जवान और बालिग हो चुकी थी. गौरवर्ण वाली नेहा की देहयष्टि आकर्षक थी, चेहरे पर मासूमियत. झील सी गहरी आंखों में तो कोई भी उतरने को तैयार हो जाता. नेहा पर कालेज में कई युवक फिदा थे. जब वह कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में कंप्यूटर सीखने के लिए जाने लगी तो वहां आने वाले युवक भी उस पर डोरे डालने लगे.

लेकिन नेहा किसी को भाव नहीं देती थी, न ही उन में से कोई उस के दिल को भाया था. फिर एक दिन उस की जिंदगी का वह दिन भी आया, जब उस के दिल में किसी ने दस्तक दे दी.

एक स्मार्ट और दर्शनीय युवक ने उस की कंप्यूटर क्लास में आना शुरू किया. वह काफी मिलनसार और हंसमुख था. पहले दिन वह सब से बारीबारी से मिला और अपना परिचय दिया. उस ने अपना नाम राजकुमार बताया. नेहा को ऐसा लगा जैसे वह नाम का ही नहीं, उस के दिल का राजकुमार भी है.

नेहा ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया. समय के साथ दोनों में दोस्ती हो गई. साथ बैठ कर दोनों खूब बातें करने लगे. राजकुमार भी उस में दिलचस्पी ले रहा था. वह नेहा की खूबसूरती को चुपचाप निहारता रहता था.

असल में राजकुमार की नजर नेहा पर ही थी. वह उसी के लिए वहां आया था. उस ने नेहा के नजदीक रहने, उस से मेलजोल बढ़ाने के लिए ही कंप्यूटर क्लासेज जौइन की थी. नेहा को वह अपने दिल की रानी बनाना चाहता था.

प्यार की शुरुआत

बातें करतेकरते नेहा ने भी कई बार गौर किया कि राजकुमार नजरें चुरा कर उसे निहारता है. इस का मतलब यह था कि वह भी उसे दिल ही दिल में चाहता है, लेकिन मन की बात कह नहीं पा रहा है या फिर मौके की तलाश में है.

उस के बारे में सोच कर नेहा मन ही मन खुश थी. राजकुमार नेहा को हंसाने और उस का दिल बहलाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था. एक दिन कंप्यूटर क्लासेज खत्म होने पर जब सब घर जाने लगे तो रास्ते में राजकुमार ने नेहा को रोक लिया. नेहा ने प्रश्नवाचक निगाहों से उस की ओर देखा तो वह बोला, ‘‘नेहा, एक मिनट के लिए रुक जाओ. मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘नेहा, पहले वादा करो कि तुम्हें मेरी बात अच्छी नहीं लगी तो बुरा नहीं मानोगी.’’

‘‘मुझे पता तो चले कि बात क्या है? बुरा मानना या न मानना तो बाद की बात है.’’

‘‘आई लव यू नेहा… आई लव यू. हां नेहा, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. अगर तुम मेरे प्यार को स्वीकार कर लो तो मेरी जिंदगी संवर जाएगी.’’

‘‘तुम्हारी यह कहने की हिम्मत कैसे हुई?’’

नेहा की तीखी आवाज सुन कर राजकुमार सकपका गया. उस की हालत देख कर नेहा खिलखिला कर हंस पड़ी.

नेहा को हंसता देख राजकुमार ने प्रश्नवाचक निगाहों से उस की ओर देखा तो नेहा बोली, ‘‘बस इतने में घबरा गए. मैं भी तुम से प्यार करती हूं और यह भी जानती थी कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो लेकिन मैं चाहती थी कि पहल तुम ही करो.’’

राजकुमार ने खुश हो कर उसे गले लगाना चाहा तो नेहा पीछे हटते हुए बोली, ‘‘देख नहीं रहे हो, हम दोनों सड़क पर खड़े हैं. यह खुशी रोक कर रखो, समय आने पर जता देना.’’ कह कर नेहा वहां से चली गई.

दूसरे दिन दोनों सुनसान जगह पर एकांत में झाडि़यों के पीछे बैठ गए.

राजकुमार ने नेहा का चेहरा अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘‘नेहा, तुम्हारा फूलों सा चेहरा और कलियों जैसी मुसकान देख ऐसा लगा जैसे मेरे जीवन की बगिया में बहार आ गई है. आज मैं इतना खुश हूं कि बयान नहीं कर सकता.’’

नेहा अपनी सुंदरता की तारीफ सुन कर शरमाते हुए बोली, ‘‘तुम बेकार में मेरी तारीफ किए जा रहे हो, जैसी भी हूं, तुम्हारे सामने हूं. मैं अपनी सुंदरता पर प्यार लुटाने का अधिकार तुम्हें पहले ही दे चुकी हूं.’’

‘‘तुम्हारी खूबसूरती और शरारत भरी बातों ने ही मेरा दिल जीत लिया है.’’ कह कर राजकुमार ने उसे अपने सीने से लगा लिया.

इस के बाद दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. नेहा और राजकुमार एक जाति के नहीं थे. इसलिए उन के परिवार उन के विवाह के लिए तैयार नहीं होंगे, यह बात दोनों जानते थे.

हालांकि राजकुमार ने नेहा को कभी अपने परिवार से नहीं मिलाया था, न इस बारे में कुछ बताया था. नेहा ने राजकुमार को अपने भाई व ताऊ से मिलवाया, लेकिन वे नेहा का रिश्ता राजकुमार से जोड़ने को तैयार नहीं हुए.

उन दिनों नेहा की मां रंजना अपने पति छोटे के साथ उत्तराखंड के रूद्रपुर में रह रही थी. नेहा राजकुमार के साथ मां के पास गई और मां पर राजकुमार से विवाह का दबाव डालने लगी. उस ने मां को धमकाया भी कि अगर राजकुमार से उस का विवाह नहीं हुआ तो वह हाथ की नस काट कर अपनी जान दे देगी.

राजकुमार की खुली पोल

रंजना बेटी को खो देने के डर से सहम गई. नेहा के पीछे पड़ने से आखिर रंजना को बेटी की जिद के आगे झुकना पड़ा. उस ने बेटी नेहा का विवाह हिंदू रीतिरिवाज से राजकुमार से कर दिया. यह डेढ़ साल पहले की बात है. दोनों वहीं रहने लगे.

कुछ दिनों बाद राजकुमार उसे दिल्ली ले आया. दिल्ली में रहते हुए वह एक फर्नीचर की दुकान पर काम करने लगा, वह पेशे से बढ़ई था. फिर एक दिन नेहा के सामने उस की पोल खुल गई. राजकुमार का असली नाम आसिफ उर्फ बाबा था.

आसिफ उर्फ बाबा बदायूं के निकटवर्ती गांव शेखूपुर का रहने वाला था. उस के पिता शकील खेतीकिसानी करते थे. आसिफ 4 भाई व 2 बहनों में तीसरे नंबर का था.

2018 में बदायूं शहर के खंडसारी मोहल्ला निवासी हिस्ट्रीशीटर रहे नईम उर्फ राजा की छह सड़का के नजदीक गोली मार कर हत्या कर दी गई थी, जिस में 17 लोगों के नाम सामने आए थे. उन में आसिफ के पिता शकील और बड़े भाई साबिर का भी नाम था. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था, तब से दोनों जेल में हैं.

आसिफ का विवाह ढाई साल पहले आगरा की अर्शी के साथ हुआ था. उस से आसिफ का एक डे़ढ साल का बेटा भी है. आसिफ शातिर और खुराफाती था. वह उन मुसलिम युवकों में से था जो हिंदू नाम रख कर हिंदू युवतियों को प्रेमजाल में फंसाते हैं और उन से विवाह कर लेते है. उस के बाद उन्हें अपना धर्म स्वीकार कर के अपने साथ रहने को मजबूर करते हैं. ये लोग युवती के न मानने पर उस की जान लेने से भी पीछे नहीं हटते.

आसिफ ने पहले से शादीशुदा होते हुए हिंदू बन कर फरजी नाम राजकुमार रखा और नेहा को पे्रमजाल में फंसाया और उस से हिंदू रीतिरिवाज से विवाह कर लिया. शादी के बाद दिल्ली पहुंचने पर नेहा के सामने राजकुमार का असली नाम और रूप तब आया, जब आसिफ की पत्नी अर्शी उस के पास रहने के लिए आई.

नेहा अभी उस के विधर्मी होने के झटके को नहीं सह पाई थी कि उस के शादीशुदा और एक बच्चे का बाप होने की बात पता लगी तो उस पर जैसे वज्रपात हो गया. आसिफ के दिए धोखे से नेहा सन्न थी. इस के बाद नेहा और आसिफ में रोज विवाद होने लगा.

एक दिन नेहा ने अपने भाई आशीष को फोन कर के आसिफ की सच्चाई बताई और घर वापस आने की इच्छा जाहिर की. लेकिन आशीष ने उस से कोई संबंध न होने की बात कह कर फोन काट दिया. इस से नेहा आसिफ के साथ रहने को मजबूर हो गई.

मजबूरी में नेहा आसिफ और उस की पहली पत्नी अर्शी के साथ रह रही थी. नेहा को उन के साथ रहना दुश्वार लग रहा था. इसलिए आए दिन किसी न किसी समय उस का मूड उखड़ जाता तो वह आसिफ से भिड़ जाती थी.

आसिफ उस की चिकचिक से तंग आने लगा था. वैसे भी नेहा के साथ वह भरपूर समय बिता चुका था. उसे नेहा गले में फंसी हड्डी की तरह लगने लगी थी.

इसी बीच लौकडाउन शुरू हो गया. सारा कामकाज बंद हो गया. कमाई न होने से खाने के लाले पड़ने लगे. आसिफ की पहली पत्नी अर्शी अपने मायके आगरा चली गई.

कोई सहारा न देख आसिफ नेहा के साथ घर वापस लौटने की सोचने लगा. लौकडाउन में वह नेहा को ले कर अपने गांव शेखूपुर पहुंच गया. वहां भी नेहा से उस का विवाद होता रहता था. ऐसे में आसिफ उस की पिटाई कर देता था.

कुछ समय पहले वह नेहा को ले कर नोएडा गया और एक फरनीचर की दुकान पर काम करने लगा. शातिरदिमाग आसिफ ने अपने मोबाइल में एक रिकौर्डिंग कर के नेहा को सुनाई कि उस के भाई उन दोनों को मारना चाहते हैं. इस के लिए इधरउधर से धमकियां दी जा रही हैं. नेहा ने उस की बात पर फिर से भरोसा कर लिया.

आसिफ ने नेहा से एक औडियो रिकौर्ड करवाई, जिस में वह अपने भाइयों का नाम ले कर कह रही है कि यहां से जल्दी चलो. उस के भाई के पास तमंचा है. उस ने इसी तरह की और भी कई औडियो नेहा की रिकौर्ड करवा कर अपने मोबाइल में रख लीं.

शातिरदिमाग आसिफ नेहा से हमेशा के लिए छुटकारा पाने और अपने आप को बचाने की तैयारी में लगा था. आसिफ ने उस से कहा कि बदायूं चलते हैं वहां कालेज से तुम अपनी मार्कशीट निकाल लेना, मेरा भी कुछ काम है, मैं उसे निपटा लूंगा. नेहा ने हामी भर दी.

25 सितंबर की दोपहर दोनों बदायूं पहुंचे. आसिफ ने उसे मार्कशीट निकलवाने के लिए कालेज में छोड़ दिया. वह खुद अपने गांव शेखूपुर गया. वहां से अपने चचेरे भाई सलमान की बाइक ले कर अपने दोस्त तौफीक उर्फ बबलू के घर जाने के लिए निकल गया.

तौफीक बदायूं के कस्बा उझानी के मोहल्ला अयोध्यागंज में रहता था और सब्जी का ठेला लगाता था. आसिफ ने उसे अपनी योजना के बारे में बता दिया था. आसिफ बबलू के घर पहुंचा और वहां से तमंचा ले कर गांव जाने के बजाए वह गांव से पहले ही एक जगह रुक गया.

नेहा के फोन करने पर आसिफ ने उसे आटो से गांव आने की बात कही. तब तक अंधेरा हो चुका था. नेहा आटो में बैठ कर गांव के लिए चल दी. रास्ते में आसिफ का फोन आने पर वह मीरासराय और शेखूपुर के बीच में उतर गई. वह सुनसान इलाका था.

नेहा आटो से उतरी तो आसिफ वहां पहले से मौजूद था. नेहा के पास आते ही उस ने तमंचा निकाल कर नेहा के सीने पर दिल की जगह पर गोली मार दी. गोली लगते ही नेहा जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. आसिफ वहां से अपने गांव चला गया.

घर में तमंचा छिपाने के बाद उस ने सलमान की बाइक उसे लौटा दी. फिर अपने मोबाइल से नेहा के मोबाइल पर काल करने लगा.

उधर जहां नेहा को गोली मारी गई थी, वहां से गुजर रहे कुछ राहगीरों ने गोली लगी नेहा को बेहोशी की हालत में देखा तो वहां रुक गए. उस के मोबाइल की घंटी बजी तो एक राहगीर ने फोन उठा कर काल रिसीव कर ली. दूसरी ओर से आसिफ बोला तो राहगीर ने उस के घायल होने की बात बताई. इस पर योजना के तहत आसिफ आटो ले कर वहां पहुंच गया.

नेहा को आटो में लिटा कर वह रात 8 बजे जिला अस्पताल पहुंचा. वहां डाक्टरों ने नेहा को देख कर मृत घोषित कर दिया. डाक्टरों ने पुलिस केस कह कर नेहा की लाश मोर्चरी में रखवा दी और आसिफ से पुलिस को सूचना देने को कहा.

आसिफ वहां से सीधा सिविल लाइंस थाने पहुंचा. उस समय इंसपेक्टर सुधाकर पांडेय अपने औफिस में मौजूद थे. आसिफ ने उन्हें बताया कि उस की पत्नी नेहा को उस के भाइयों ने गोली मार दी है. नेहा से उस ने प्रेम विवाह किया था, इसलिए वे नाराज थे. अपनी बात को साबित करने के लिए उस ने अपने मोबाइल में पड़ी औडियो रिकार्डिंग सुनाई, जिस में नेहा अपने भाइयों से जान का खतरा जता रही थी.

काम नहीं आया शातिराना अंदाज

उस की बातें सुनने के बाद इंसपेक्टर पांडेय पुलिस टीम के साथ आसिफ को ले कर जिला अस्पताल गए. वहां नेहा की लाश को देखा. नेहा के शरीर पर किसी प्रकार की चोट के निशान नहीं थे. दिल की जगह पर गोली लगने का गहरा घाव था.

डाक्टर से आवश्यक पूछताछ के बाद इंसपेक्टर पांडेय आसिफ को ले कर घटनास्थल पर गए. वहां लोगों से पूछताछ की तो कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिस ने हमला होते हुए देखा हो. सभी ने नेहा को सड़क पर घायल पडे़ हुए देखा था.

आसिफ को साथ ले कर इंसपेक्टर पांडेय नेहा के घर पहुंचे और आसिफ द्वारा बताए अनुसार नेहा के सगे भाई आशीष और तहेरे भाई राज को थाने ले आए.

रात में ही थाने में आसिफ, आशीष और राज से कई बार पूछताछ की गई. पूछताछ के दौरान इंसपेक्टर पांडेय ने तीनों के चेहरों पर विशेष नजर रखी, जिस से आसिफ शक के घेरे में आ गया. बाद में जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म कुबूल करते हुए पूरी कहानी बयां कर दी. पूछताछ के बाद नेहा के दोनों भाइयों को छोड़ दिया गया.

आशीष से लिखित तहरीर ले कर इंसपेक्टर पांडेय ने 26 सितंबर को आसिफ और तौफीक उर्फ बबलू के खिलाफ भादंवि की धारा 302/120बी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. सुधाकर पांडेय ने आसिफ की निशानदेही पर आसिफ के घर से हत्या में प्रयुक्त तमंचा और सलमान के घर से हत्या में इस्तेमाल उस की बाइक बरामद कर ली.

कागजी खानापूर्ति करने के बाद 27 सितंबर को आसिफ को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. 28 सितंबर को इंसपेक्टर पांडेय ने शहर के गांधी ग्राउंड से तौफीक उर्फ बबलू को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

यह लव जिहाद का मामला उन युवतियों के लिए सबक है जो बिना सोचेसमझे बिना जांचेपरखे बिना हकीकत जाने किसी भी युवक से दिल लगा बैठती हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित