लड़की नहीं खिलौना : धर्म के नाम पर बनाया मोहरा

जिला: सोनभद्र, उत्तर प्रदेश. तारीख: 21 सितंबर 2020. वक्त: अपराह्न 3 बजे. स्थान: वाराणसी-शक्ति नगर राजमार्ग.  इस राजमार्ग पर वन विभाग के एक भुखंड की झाडि़यों में किसी युवती की सिर कटी लाश मिली. जिस झाड़ी में लाश पड़ी थी, वह मुख्य मार्ग से 10 मीटर अंदर थी.

यह खबर तेजी से फैली. कुछ ही देर में स्थानीय लोगों का वहां जमावड़ा लग गया. वहां के चौकीदार ने लाश देखी तो तत्काल स्थानीय थाना चोपन को लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना मिलते ही चोपन थाना इंसपेक्टर नवीन तिवारी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश घासफूस से ढकी हुई थी, जिसे हटवा कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र लगभग 20-25 साल के बीच रही होगी. उस के धड़ पर जींस पैंट, टीशर्ट और पैरों में जूते थे. कपड़ों के साथ जूते भी काले रंग के थे.

इंसपेक्टर तिवारी ने आसपास सिर की तलाश कराई, लेकिन सिर कहीं नहीं मिला. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर पाया. लाश के फोटो आदि करवाने के बाद इंसपेक्टर तिवारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. फिर थाने वापस लौट गए.

थाने में चौकीदार को वादी बना कर अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

लाश की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. वह फोटो देखने के बाद मोहल्ला प्रीतनगर के वार्ड नंबर-7 निवासी लक्ष्मी नारायण सोनी अपनी छोटी बेटी शर्मिला के साथ थाना चोपन पहुंचे. जिस वन भूखंड में लाश मिली थी, वह प्रीतनगर में ही आता था.

थाने पहुंचे लक्ष्मी नारायण ने मृतका के कपड़ों, जूतों व शरीर की बनावट के आधार पर लाश की शिनाख्त कर दी. वह उन की 21 वर्षीया बेटी प्रिया सोनी थी. लक्ष्मी नारायण ने बताया कि प्रिया ने उन की मरजी के बिना पड़ोसी युवक एजाज अहमद उर्फ आशिक से प्रेम विवाह कर लिया था और फिलहाल वह ओबरा में रह रही थी.

शिनाख्त होने के बाद मृतका के संबंध में कुछ अहम बातें पता चलीं तो इंसपेक्टर तिवारी ने राहत की सांस ली. लेकिन अभी तक प्रिया का सिर बरामद नहीं हुआ था. देर रात एएसपी (मुख्यालय) ओ.पी. सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

जबकि एसपी आशीष श्रीवास्तव ने मोर्चरी पहुंच कर प्रिया की लाश का निरीक्षण किया. इस के बाद उन्होंने स्वाट टीम प्रभारी प्रदीप सिंह को और सर्विलांस प्रभारी सरोजमा सिंह को थाना पुलिस की मदद के लिए लगा दिया ताकि जांच तेजी से और जल्दी हो.

अगले दिन यानी 22 सितंबर को फिर से घटनास्थल पहुंच कर सिर की तलाश शुरू की गई. तलाशी के दौरान एक झाड़ी से लोहे की रौड और एक फावड़ा मिला.

फावड़ा मिलने से यह संभावना बढ़ गई कि हत्यारों ने सिर को कहीं जमीन में गड्ढा खोद कर दफनाया होगा. फावड़ा मिलने से तलाश तेज की गई तो एक झाड़ी से प्रिया का सिर मिल गया. सिर लाश मिलने वाली जगह से 150 मीटर की दूरी पर मिला.

इंसपेक्टर नवीन तिवारी ने प्रिया के पति एजाज अहमद और उस के संपर्क में रहने वालों की लिस्ट बनाई. उन के मोबाइल नंबरों का पता लगा कर सारे नंबर सर्विलांस प्रभारी सरोजमा सिंह को सौंप दिए गए.

सरोजमा सिंह और स्वाट प्रभारी प्रदीप सिंह ने उन सभी नंबरों की लोकेशन व काल रिकौर्ड की जांच की तो प्रिया का पति एजाज शक के घेरे में आ गया.

 संदेह के फंदे में एजाज

प्रिया और एजाज के मोबाइल नंबरों के काल रिकौर्ड की जांच की गई तो घटना के दिन दोपहर में दोनों के बीच बातचीत होने के सुबूत मिले. बातचीत के समय प्रिया की लोकेशन ओबरा में थी. बात होने के बाद प्रिया की लोकेशन ओबरा से होते हुए घटनास्थल तक आई. सड़क किनारे जिस जगह प्रिया की लाश मिली. उस के दूसरे किनारे पर एजाज की टायर रिपेयरिंग की दुकान थी.

पुख्ता साक्ष्य मिलने के बाद इंसपेक्टर नवीन तिवारी ने 24 सितंबर को शाम साढ़े 5 बजे बग्घा नाला पुल के नीचे से एजाज अहमद को उस के साथी शोएब के साथ गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयां कर दी.

लक्ष्मीनारायण सोनी का परिवार जिला सोनभद्र के थाना चोपन के मोहल्ला प्रीतनगर के वार्ड नंबर 7 में रहता था. उन की पत्नी सुमित्रा का देहांत हो चुका था. उन की 4 बेटियां थीं— प्रीति, शीना, प्रिया और शर्मिला. प्रीति और शीना का विवाह हो चुका था.

लक्ष्मी नारायण ‘कन्हैया स्वीट हाउस ऐंड रेस्टोरेंट’ पर काम करते थे. इसी नौकरी से वह घर का खर्च चलाते थे. उन की सभी बेटियां होनहार और समझदार थीं. उन्होंने दिल लगा कर पढ़ाई की और जब कुछ करने लायक हुई तो नौकरी करने लगीं, जिस से खुद का खर्च स्वयं उठा सकें.

प्रिया ने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण कर ली थी. गोरा रंग, आकर्षक चेहरा और छरहरा बदन प्रिया की अलग पहचान बनाते थे. इसीलिए वह आसानी से किसी की भी नजरों में चढ़ जाती थी. महत्त्वाकांक्षी प्रिया फैशनेबल कपड़े पहनती थी, मौडर्न बनने की चाह में वह अपने बालों को अलगअलग रंगों में रंगवा लेती थी. उस का रहनसहन हाईसोसायटी की लड़कियों की तरह था. जब फैशन उन की तरह था तो प्रिया की सोच भी उन की तरह ही थी. वह हर किसी से आसानी से हंसबोल लेती थी. शर्मसंकोच से वह कोसो दूर थी.

प्रिया के घर से कुछ ही दूरी पर एजाज अहमद उर्फ आशिक का मकान था. उस के पिता जाकिर हुसैन टायर रिपेयरिंग का काम करते थे. एजाज भी पिता की दुकान पर बैठ कर उन के काम में हाथ बंटाता था. वह 4 भाईबहनों में दूसरे नंबर का था. प्रिया पर एजाज की नजर भी थी. उस की खूबसूरती को देख वह पागल सा हो गया था. यह जान कर भी कि वह उस के धर्म की नहीं है, इस के बावजूद वह उस की चाहत को पाने के लिए आतुर था.

पड़ोसी होने की वजह से प्रिया और एजाज एकदूसरे को जानते तो थे ही, जबतब बातचीत भी हो जाती थी. लेकिन जब से प्रिया ने अपने रूपयौवन को आधुनिक रूप से सजाना शुरू किया था, तब से वह कयामत ढाने लगी थी. प्रिया का यौवन जब कदमताल पर थिरकता तो एजाज का दिल तेजी से धड़कने लगता.

एजाज अब प्रिया के नजदीक रहने की कोशिश करता. उस से किसी न किसी बहाने से बात करने की कोशिश करता. जब बारबार ऐसा होने लगा तो प्रिया भी समझ गई कि एजाज उस के नजदीक रहने और बात करने के बहाने ढूंढढूंढ कर पास आता है, ऐसा तभी होता है जब दिल में चाहत होती है.

वह समझ गई कि एजाज उसे चाहने लगा है, इसलिए उस के नजदीक रहने की कोशिश करता है. यह सब जान कर भी न जाने क्यों प्रिया को खराब नहीं लगा. बल्कि उस के दिल में भी कुछ कुछ होने लगा. इस का मतलब था कि उस के दिल में एजाज के लिए सौफ्ट कौर्नर था, जो उसे बुरा मानने नहीं दे रहा था.

प्रिया ने एजाज को यह बात जाहिर नहीं होने दी कि वह उस की हरकतों को जान गई है. अपनी धुन में डूबा एजाज उस के नजदीक रह कर अपने दिल को तसल्ली देता रहता था. वह सोचता था कि एक न एक दिन अपनी बातों से प्रिया का दिल जीत ही लेगा.

प्रिया भी उस की बातों में दिलचस्पी लेने लगी थी. बातों में वह भी पीछे नहीं रहती थी. बातें बढ़ीं तो दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए. अब दोनों को कोई भी बात कहने में संकोच नहीं होता था. दोनों साथ घूमने भी जाने लगे थे. दोनों खातेपीते और मौजमस्ती करते.

इस से दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. अब प्रिया एजाज पर विश्वास करने लगी थी. साथ ही वह यह भी सोचने लगी थी कि एजाज उसे हमेशा खुश रखेगा, कभी कोई कष्ट नहीं होने देगा.

एजाज बड़ी ऐहतियात से कदम दर कदम आगे बढ़ रहा था. वह प्रिया के दिल में अपनी जगह बनाने के लिए वह सब कर रहा था, जो उसे करना चाहिए था. जब उसे लगा कि प्रिया उस के रंग में पूरी तरह रंग गई है, तो उस ने प्रिया से प्रेम का इजहार करने का फैसला कर लिया.

एजाज की दुकान के सामने सड़क पार किनारे पर वन विभाग की जमीन का छोटा सा टुकड़ा था. प्रिया से वह वहीं मिलता था. प्रिया भी जानती थी कि वह सुरक्षित जगह है, वहां कोई आताजाता नहीं था. उन दोनों को साथ देख बात मोहल्ले में फैल सकती थी. इसलिए प्रिया को एजाज से वहां मिलने से कोई गुरेज नहीं था.

पहली मुलाकात में जब दोनों वहां बैठे थे, तो एजाज ने प्यार से प्रिया को निहारते हुए उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोला, ‘‘प्रिया,  मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं जो काफी दिन से मेरे दिल में कैद है.’’

‘‘कहो, तुम कब से अपनी बात कहने में संकोच करने लगे.’’ प्रिया ने उस की आंखों में देखते हुए मुसकरा अपनी भौंहें उचकाईं.

इस से एजाज की हिम्मत बढ़ गई और वह बेसाख्ता बोल पड़ा, ‘‘प्रिया, आई लव यू… आई लव यू प्रिया.’’ कह कर एजाज ने बड़ी उम्मीद से प्रिया की ओर देखा.

प्रिया को पहले ही एजाज से ऐसी उम्मीद थी. क्योंकि वह जो भूमिका बना रहा था, उस से ही जाहिर हो गया था कि एजाज अपने प्यार का इजहार करेगा.

प्रिया ने भी बिना देरी लगाए प्यार का जवाब प्यार से दे दिया, ‘‘लव यू टू एजाज.’’

प्रिया के मुंह से प्यार के मीठे शब्द निकले तो एजाज ने खुशी से उसे अपनी बांहों में भर लिया. प्रिया ने भी उस की खुशी देख कर उस का साथ दिया.

उस का जवाब सुन एजाज ने उस के होंठों को चूम लिया. प्रिया ने उस में भी उस का साथ दिया. लेकिन एजाज जब इस से आगे बढ़ने लगा तो प्रिया ने उसे रोक दिया, ‘‘इतने तक ठीक है, इस के आगे नहीं.’’

एजाज ने मन मसोस कर उस की बात मान ली. इस के बाद दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. प्रिया अच्छी तरह जानती थी कि एजाज से प्यार की बात जानते ही घर में कोहराम मच जाएगा.

उस के पिता लक्ष्मी नारायण कभी भी गैरधर्म के युवक से शादी को तैयार नहीं होंगे. इसलिए उस ने एजाज से बात की. सलाह मशवरे के बाद दोनों ने घरवालों की बिना मरजी के शादी करने का मन बना लिया.

धर्म के नाम पर पंगा

घटना से डेढ़ महीने पहले दोनों ने चोरीछिपे शादी कर ली. शादी के बाद एजाज ने प्रिया को ओबरा के एक महिला लौज में ठहरा दिया. उस ने प्रिया से कहा कि जब मामला ठंडा हो जाएगा, तब उसे घर ले जाएगा. इस बीच वह अपने घर वालों को भी मना लेगा. प्रिया ने उस की बात मान ली. वह महिला लौज में रहने लगी. उस ने पास की ही कपड़े की एक दुकान में नौकरी जौइन कर ली.

शादी के कुछ ही दिन बीते थे कि एजाज प्रिया पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने लगा. प्रिया इस के लिए तैयार नहीं थी. उस ने एजाज से कहा, ‘‘मैं ने तुम से प्यार किया है, तुम्हारे साथ रहने को तैयार हूं. लेकिन मैं अपना धर्म नहीं बदल सकती. जैसे तुम को अपने धर्म से प्यार है, वैसे ही मुझे अपना धर्म प्यारा है. जैसे मैं ने तुम्हें तुम्हारे धर्म के साथ स्वीकारा है, वैसे ही तुम मुझे मेरे धर्म के साथ स्वीकार करो. इस में दिक्कत क्या है. हमारे प्यार के बीच धर्म को क्यों ला रहे हो.’’

‘‘प्रिया, हमारे यहां गैरधर्म की लड़की को उस के धर्म के साथ नहीं स्वीकारा जाता. उसे अपना धर्म परिवर्तन करना ही पड़ता है. तुम मेरा धर्म स्वीकार कर लो तो मैं तुम्हें अपने घर ले चलूं.’’

‘‘मैं किसी भी हालत में अपना धर्म नहीं बदलूंगी. यह बात तुम्हें शादी और प्यार करने से पहले सोचना चाहिए था. मुझ से ही पूछ लेते तो ये नौबत न आती.’’

‘‘मैं ने सोचा जब तुम मुझ से प्यार कर सकती हो, शादी कर सकती हो तो मेरा धर्म भी स्वीकार कर लोगी.’’

‘‘सब तुम ने अपने आप ही सोच लिया, मुझ से एक बार भी पूछने की जहमत नहीं उठाई. इस में गलती तुम्हारी है, मेरी नहीं.’’

दोनों के बीच इस बात को ले कर काफी देर तक बहस होती रही लेकिन प्रिया नहीं मानी. फिर दो दोनों के बीच जबतब इस बात को ले कर विवाद होने लगा.

19 सितंबर को शाम 6:05 बजे प्रिया की एजाज से बात हुई. प्रिया ने उस से मिलने आने की बात कही. एजाज ने आने के लिए हां कर दी. प्रिया से बात होने के बाद एजाज ने फोन कर अपने दोस्त शोएब को बुला लिया. उस के साथ मिल कर उस ने योजना बनाई.

प्रेमी का असली रूप

कुछ देर बाद प्रिया ओबरा से आटो ले कर आई और एजाज की दुकान के सामने उतरी. एजाज ने उसे आते देख लिया था. वह उसे सड़क के दूसरी ओर वन विभाग की जमीन पर ले गया, जहां दोनों शादी से पहले मिला करते थे.

एजाज और प्रिया लगभग 10 मीटर अंदर जा कर एक जगह बैठ गए. दोनों में बात हुई. एजाज ने एक बार फिर प्रिया से धर्म परिवर्तन करने की बात छेड़ी लेकिन प्रिया ने दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘नहीं.’’

एजाज गुस्से से भर उठा, लेकिन उस ने प्रिया पर जाहिर नहीं होने दिया. एक मिनट में आने की बात कह कर वह दुकान पर आ गया. वहां से उस ने एक लीवर रौड और चाकू उठाया और शोएब को पीछे आने को कहा.

एजाज फिर वहां पहुंचा, जहां प्रिया बैठी थी. प्रिया की पीठ उस की तरफ थी. एजाज ने प्रिया के सिर पर पीछे से लीवर रौड से तेज प्रहार किया. उस का वार इतने जोरों का था कि प्रिया चीख भी न सकी और वहीं ढेर हो गई.

इस के बाद शोएब के वहां पहुंचने पर एजाज ने तेज धारदार चाकू से प्रिया का गला काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर सिर को वहां से डेढ़ सौ मीटर दूर एक झाड़ी में फेंक दिया. इस के बाद धड़ को जमीन में दफनाने के लिए एजाज अपनी मारुति आल्टो कार से फावड़ा लेने चला गया.

बाजार से फावड़ा खरीद कर लाने के बाद दोनों ने जमीन को खोदने का प्रयास किया, लेकिन जमीन पथरीली होने के कारण दोनों गड्ढा नहीं खोद पाए. लाश को दफना नहीं सके तो दोनों ने आसपास उगी घास और पौधों से लाश ढक दी. प्रिया का मोबाइल उस की जींस की जेब में था. एजाज ने उस का मोबाइल निकाल कर अपनी जेब में रख लिया.

लोहे की रौड, चाकू और फावड़ा झाडि़यों में छिपाने के बाद दोनों वापस लौट आए. अगले दिन 20 सितंबर को एजाज ने प्रिया के मोबाइल में उस का वाट्सऐप एकाउंट खोल कर प्रिया की तरफ से अपने नंबर पर न मिलने आने का मैसेज भेज दिया, जिस से उस पर शक न जाए. फिर उस ने प्रिया का मोबाइल स्विच्ड औफ कर के अपनी दुकान के पीछे फेंक दिया.

लेकिन उस का गुनाह छिप न सका. आखिर वह और शोएब कानून की गिरफ्त में आ ही गए. एजाज की निशानदेही पर प्रिया का मोबाइल और आल्टो कार भी पुलिस ने बरामद कर ली. हत्या में इस्तेमाल बाकी हथियार घटनास्थल से बरामद हो चुके थे. जरूरी कानूनी लिखापढ़ी के बाद दोनों को सीजेएम कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यमनोहर कहानियां, नवंबर 2020

 ये भी पढ़े : अमन की पूजा               

 ये भी पढ़े : घातक प्रेमी                                    

फिरौती 1 करोड़ की: अपराधियों का आतंक

लगातार बढ़ रही घटनाओं से पुलिस भी शक के घेरे में आ रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद में 14 वर्षीय बलराम गुप्ता की अपहरण के बाद हुई हत्या से प्रदेश के लोगों में डर बैठ गया है. लोगों का सोचना है कि जब मुख्यमंत्री के जिले के लोग ही सुरक्षित नहीं हैं तो और लोग कैसे सुरक्षित रह सकते हैं.

गोरखपुर जिले के थाना पिपराइच के गांव जंगल छत्रधारी टोला मिश्रौलिया के रहने वाले बच्चे बलराम गुप्ता का जिस तरह अपहरण करने के बाद उस की हत्या कर दी गई, उस से पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई.

5वीं कक्षा में पढ़ने वाला बलराम गुप्ता 26 जुलाई, 2020 को दोपहर 12 बजे खाना खा कर रोजाना की तरह घर से बाहर खेलने निकला. अपने दोस्तों के साथ खेलने के बाद वह अकसर डेढ़दो घंटे में घर लौट आता था, लेकिन उस दिन वह घर नहीं लौटा. उस की मां और बहन ने उसे आसपास ढूंढा, लेकिन बलराम के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

बलराम के पिता महाजन गुप्ता घर के पास में ही पान की दुकान चलाते थे. इस के अलावा वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करते थे. जब उन्हें पता लगा कि बलराम दोपहर के बाद से गायब है तो वह भी परेशान हो गए. करीब 3 बजे महाजन गुप्ता के मोबाइल फोन पर एक ऐसी काल आई जिस से घर के सभी लोग असमंजस में पड़ गए.

फोन करने वाले ने कहा कि तुम्हारा बेटा बलराम हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा चाहते हो तो एक करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो, अन्यथा बहुत पछताना पड़ेगा.

यह खबर सुनते ही महाजन गुप्ता घबरा गए. उन्होंने अपहर्त्ता से कहा कि वह उन के बेटे का कुछ न करें. जैसा वे कहेंगे वैसा ही करने को तैयार हैं. बलराम अपनी 5 बहनों के बीच इकलौता भाई था, इसलिए वह घर में सभी का लाडला था. बलराम के अपहरण की जानकारी उस की मां और बहनों को हुई तो सभी परेशान हो गईं.

महाजन गुप्ता की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि वह एक करोड़ रुपए की व्यवस्था कर सकें, इसलिए वह यह सोचसोच कर परेशान हो रहे थे कि इतने पैसों का इंतजाम कहां से करें. उसी दौरान अपहर्त्ताओं ने उन्हें दोबारा फोन किया, ‘‘एक बात याद रखना पुलिस को सूचना देने की भूल मत करना…’’

‘‘नहींनहीं, मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगा. लेकिन आप जितने पैसे मांग रहे हैं, मेरे पास नहीं हैं. अगर कुछ कम कर लेंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’ महाजन गुप्ता ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘इस बारे में हम 5 बजे के करीब फिर बात करेंगे. तब तक तुम पैसों का इंतजाम करो.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

महाजन को लगा कि वह अपहर्त्ताओं द्वारा मांगी गई फिरौती का इंतजाम नहीं कर सकते, इसलिए उन्होंने इस की जानकारी पुलिस को दे दी. बच्चे के अपहरण की सूचना मिलते ही थाना पपराइच पुलिस उसी समय महाजन के घर पहुंच गई. घर वालों से बातचीत करने के बाद पुलिस ने उन बच्चों से भी पूछताछ की, जिन के साथ बलराम अकसर खेला करता था.

थाना पुलिस अभी यह जांच कर ही रही थी कि पुलिस को सूचना मिली कि गांव से 3-4 किलोमीटर दूर नहर में एक बच्चे की लाश पड़ी है. सूचना मिलने पर पुलिस महाजन गुप्ता को ले कर नहर पर पहुंच गई. नहर में मिली लाश बलराम की ही निकली, जिस की शिनाख्त महाजन ने कर ली.

बेटे की लाश देखते ही महाजन गुप्ता गश खा कर वहीं गिर गए. गांव में यह खबर फैली तो सभी सन्न रह गए. महाजन के घर में तो हाहाकार मच गया. गांव वाले समझ नहीं पा रहे थे कि प्रदेश में यह क्या हो रहा है. अपराधी बेलगाम हो कर वारदात पर वारदात कर रहे हैं और पुलिस कान में तेल डाले सो रही है.

लिहाजा बलराम की हत्या के बाद ग्रामीणों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ने लगा, जिस के बाद खबर मिलने पर जिला स्तर के पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. चूंकि मामला प्रदेश के मुख्यमंत्री के गृह जनपद का था, इसलिए मुख्यमंत्री को भी इस घटना की जानकारी मिल गई. उन्होंने मामले को गंभीरता से लेते हुए शीघ्र ही केस का खुलासा करने के आदेश दिए.

मुख्यमंत्री के आदेश पर थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच और एसटीएफ भी केस को खोलने में जुट गई. पुलिस टीमों ने सब से पहले महाजन गुप्ता से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश तो नहीं है. महाजन ने जब दुश्मनी होने से इनकार कर दिया तो जांच टीमों ने उस फोन नंबर की जांच शुरू कर दी,जिस से महाजन के पास फिरौती की काल आई थी.

उस फोन नंबर की जांच के सहारे पुलिस रिंकू नाम के उस शख्स के पास पहुंच गई, जिस ने वह सिम कार्ड फरजी आईडी पर दिया था. रिंकू ने बताया कि वह सिम उस ने दयानंद राजभर नाम के व्यक्ति को दिया था.

रिंकू को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने  उस की निशानदेही पर दयानंद राजभर को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि बलराम की हत्या में अजय चौहान और नितिन चौहान भी शामिल थे. उन्होंने फिरौती के चक्कर में उस की हत्या की थी.

बलराम की हत्या का केस लगभग खुल चुका था. अब केवल अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी बाकी थी. पुलिस टीमों ने अन्य अभियुक्तों की तलाश में संभावित स्थानों पर दबिश डालनी शुरू की. अगले दिन 27 जुलाई को पुलिस को सूचना मिली कि आरोपी अजय चौहान और नितिन उर्फ मुन्ना चौहान को हैदरगंज के गुलरिहा गांव में रहने वाले उन के एक रिश्तेदार ने कमरे में बंद कर लिया है.

सूचना मिलने पर भारी तादाद में पुलिस गुलरिहा पहुंच गई और दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आई. अब तक पुलिस के हत्थे 5 आरोपी चढ़ चुके थे, जिन में 3 लोग बलराम के अपहरण और हत्या में शामिल थे और 2 पर फरजी कागजात के जरिए सिम कार्ड बेचने की बात सामने आई.

पूछताछ में अभियुक्तों ने बताया कि उन्हें खबर मिली थी कि महाजन गुप्ता प्रौपर्टी डीलिंग में अच्छी कमाई करते हैं. हाल ही में उन्होंने अपनी कोई जमीन अच्छे पैसों में बेची थी. मोटी फिरौती के लालच में उन्होंने उन के इकलौते बेटे बलराम का अपहरण किया था. बलराम का अपहरण करने के बाद वे उसे एक दुकान में ले गए थे और भेद खुलने के डर से उस की गला घोंट कर हत्या कर दी थी.

फिर उस की लाश नहर में डाल आए थे. लाश ठिकाने लगाने के बाद आरोपी नितिन उर्फ मुन्ना चौहान और अजय चौहान गुलरिहा स्थित अपनी मौसी के घर छिपने के लिए पहुंचे. उन्होंने मौसी को सच्चाई बता दी. मौसी को इस बात का डर था कि कहीं उन के चक्कर में पुलिस एनकाउंटर कर के उस के बच्चों की जान न ले ले, इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण करने की सलाह दी.

दोनों आरोपियों को डर था कि आत्मसमर्पण के बाद भी पुलिस उन का एनकाउंटर कर सकती है. तब रिश्तेदारों ने पूरे गांव वालों के सामने उन का आत्मसमर्पण करने की योजना बनाई. अजय और नितिन को एक कमरे में बंद कर उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया और जब पुलिस उन दोनों को गिरफ्तार कर ले जा रही थी तो उस समय पूरा गांव जमा हो गया था.

14 वर्षीय बलराम के अपहरण और हत्या के आरोप में पुलिस ने 5 अभियुक्तों को गिरफ्तारकर लिया. एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने लापरवाही बरतने के आरोप में एक दरोगा और 2 सिपाहियो ंको सस्पेंड कर दिया.

उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बलराम गुप्ता की हत्या पर संवेदना व्यक्त की और उस के परिजनों को 5 लाख रुपए की सहायता राशि जिलाधिकारी के माध्यम से भिजवाई.

बलराम एक साल पहले एक रिश्तेदार के घर से रहस्यमय तरीके से लापता हो गया था, जिसे 4-5 दिन बाद पुलिस ने कुसमही के जंगल से बरामद किया था. लेकिन इस बार गायब होने पर उस की लाश मिली.

सौजन्य: मनोहर कहानियां, सितबंर 2020

ये भी पढ़े  : देवर की दीवानी
ये भी पढ़े  : शीतल का अशांत मन

सौफ्टवेयर की दोस्ती, प्यार और दुश्मनी

फिरोजाबाद जिले का एक थाना है नगला खंगर. इसी के थाना क्षेत्र में एक गांव है धौनई. यहीं के रहने वाले अजयपाल का बेटा है प्रदीप यादव. वह झारखंड की एक कंपनी में नौकरी करता था.

अजयपाल रक्षाबंधन से 9-10 दिन पहले अपने गांव धौनई आ गया था ताकि त्यौहार अच्छे से मनाया जा सके. उस के आने से पूरा परिवार खुश था. वजह यह कि नौकरी की वजह से अजय को झारखंड में रहना पड़ता था. वहां से वह कईकई महीने में आ पाता था.

करीब 8 महीने पहले अजयपाल की फेसबुक के माध्यम से एक युवती ज्योति शर्मा से दोस्ती हो गई थी. बाद में दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी दे दिए थे. इस के बाद मोबाइल पर दोनों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया था.

बातों बातों में प्रदीप को पता चला कि ज्योति फिरोजाबाद जिले के गांव नगला मानसिंह की रहने वाली है. ज्योति ने बताया था कि वह बीए में पढ़ रही है. फेसबुक से शुरू हुई दोनों की दोस्ती धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी. अब ज्योति और प्रदीप मोबाइल पर प्यार भरी बातें भी करने लगे.

अगर किसी लड़केलड़की के बीच लगातार बातचीत होती रहे तो कई बार प्यार हो जाता है. यही अजयपाल और ज्योति के बीच भी हुआ. दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. दोनों ने एकदूसरे पर अपने प्रेम को भी उजागर कर दिया.

प्रदीप ने ज्योति को बताया कि वह भी फिरोजाबाद जिले के थाना नगला खंगर के गांव धौनई का रहने वाला है. यह जानने के बाद दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए उतावले हो गए. लेकिन प्रदीप को कंपनी से छुट्टी नहीं मिल पा रही थी. अपने गांव जाने से वह इसलिए भी कतरा रहा था कि घर वाले पूछेंगे कि तुम अचानक क्यों आ गए? इसलिए प्रदीप ने ज्योति को बताया, वह रक्षाबंधन पर घर आएगा तो उस से जरूर मुलाकात करेगा.

प्रदीप अपनी प्रेयसी से मिलने को आतुर था. इसलिए उस ने रक्षाबंधन से पहले ही घर जाने का निर्णय कर लिया. उस ने घर जाने के लिए छुट्टी ले ली. फिर वह रक्षाबंधन से 10 दिन पहले ही गांव आ गया. रक्षाबंधन 3 अगस्त को था. इस बीच उस की ज्योति से फोन पर बातचीत होती रही.

प्रदीप का गांव में एक ही दोस्त था सत्येंद्र. वह गांव में ही खेतीकिसानी करता था. उस के पिता रामनिवास की मृत्यु हो चुकी थी. सत्येंद्र फौज में भरती होने की तैयारी कर रहा था.

2 अगस्त की शाम 7 बजे थे. सत्येंद्र खेत से काम कर के वापस घर लौटा था. हाथमुंह धो कर उस ने मां से खाना परोसने के लिए कहा. मां थाली परोस कर लाई ही थी कि सत्येंद्र का दोस्त प्रदीप आ पहुंचा. प्रदीप ने इशारे से सत्येंद्र को अपने पास बुलाया.

प्रदीप ने उस के कान के पास मुंह ले जा कर धीमी आवाज में कुछ कहा. इस पर सत्येंद्र बोला, ‘‘खाना खा कर चलते हैं.’’

लेकिन प्रदीप ने कहा, ‘‘अभी लौट कर आते हैं, तभी खा लेना.’’

इस पर सत्येंद्र ने परोसी थाली छोड़ कर मां से कहा कि वह जरूरी काम से प्रदीप के साथ तिलियानी गांव जा रहा है. थोड़ी देर में लौट आएगा और वह जाने लगा तो मां ने कहा, ‘‘बेटा खाना तो खा ले, अभी तो कह रहा था तेज भूख लग रही है.’’

‘‘चिंता मत करो मां, वापस आ कर खा लूंगा.’’ कह कर 23 वर्षीय सत्येंद्र अपने 24 वर्षीय दोस्त प्रदीप की मोटरसाइकिल पर बैठ कर उस के साथ चला गया.

दोस्ती में सत्येंद्र बना शिकार

रात सवा 8 बजे सत्येंद्र के घर वालों को सूचना मिली कि सत्येंद्र तिलियानी रोड पर नगला मानसिंह के पास लहूलुहान पड़ा है. यह सुन कर घर वालों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई.

घर वाले आननफानन में घटनास्थल पर पहुंचे और घायल सत्येंद्र को उपचार के लिए जिला अस्पताल ले आए. उस के माथे पर गोली लगी थी. उस की गंभीर हालत देख डाक्टरों ने उसे आगरा रेफर कर दिया.

घर वाले सत्येंद्र को उपचार के लिए जब आगरा ले जा रहे थे, तो रास्ते में उस की मौत हो गई. पोस्टमार्टम के लिए उस के शव को जिला अस्पताल वापस लाया गया. सत्येंद्र के शरीर में गोली न मिलने के कारण उस के शव का एक्सरे किया गया.

पता चला कि गोली माथे में लगने के बाद पार हो गई थी. सुबह जब सत्येंद्र की मौत की खबर गांव पहुंची तो सनसनी फैल गई. सभी उसे सीधासादा बता कर उस की हत्या पर शोक जताने लगे.

उधर पुलिस की पूछताछ में सत्येंद्र के भाई धर्मवीर ने बताया कि कल शाम 7 बजे जब सत्येंद्र खाना खाने बैठा था, तभी गांव का उस का दोस्त प्रदीप आया और भाई को जबरन साथ ले गया. धर्मवीर ने आरोप लगाया कि उसी ने भाई की गोली मार कर हत्या कर दी है.

धर्मवीर की तहरीर पर पुलिस ने प्रदीप के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस ने प्रदीप को हिरासत में लेने के साथसाथ उस के मोबाइल को भी कब्जे में ले लिया और उस से पूछताछ शुरू कर दी.

पूछताछ के दौरान प्रदीप ने पुलिस को बताया कि वह सत्येंद्र के साथ तिलियानी गांव की ओर जा रहा था. इसी दौरान रास्ते में अचानक गोली चली और मोटरसाइकिल चला रहे सत्येंद्र के माथे में आ लगी, उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. सत्येंद्र को गोली लगने पर वह डर गया और अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गया.

हत्या का यह मामला आईजी (आगरा रेंज) ए. सतीश गणेश तक पहुंचा. उन्होंने कहा, ‘कहानी जितनी सीधी दिख रही है उतनी है नहीं. कोई पागल ही होगा जो अपने साथ किसी को उस के घर से ले कर आए और उस की हत्या कर दे. इस मामले में गहराई से जांच कराई जाए.’

पुलिस को प्रदीप की बात गले नहीं उतर रही थी. पुलिस को लगा कि वह सच्चाई छिपा रहा है. सवाल यह था कि रात में दोनों तिलियानी गांव किस से मिलने जा रहे थे और क्या काम था, पुलिस प्रदीप से जानना चाहती थी कि हत्या से पहले क्याक्या हुआ था, अब प्रदीप के पास सच बताने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

पुलिस ने इस बारे में प्रदीप से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने पुलिस को बहुत बाद में बताया कि उस की एक गर्लफ्रैंड है ज्योति शर्मा. उस ने ही उसे मिलने के लिए नगला मानसिंह मोड़ पर बुलाया था, दोनों उसी के पास जा रहे थे कि रास्ते में यह घटना घट गई. उस ने पुलिस से कहा कि वह चाहें तो ज्योति से पूछ ले.

प्रदीप के बयानों की सच्चाई जानने के लिए पुलिस ने ज्योति की तलाश शुरू की. लेकिन ज्योति होती तो मिलती. प्रदीप से उस का मोबाइल नंबर लेने के बाद सर्विलांस पर लगा दिया गया. साइबर सेल ने यह गुत्थी सुलझा दी.

दरअसल प्रदीप को फंसाने के लिए ज्योति शर्मा के नाम से एक हाईटेक जाल फैलाया गया था, जांच में पुलिस को पता चला कि जो नंबर ज्योति शर्मा का बताया जा रहा था वह नंबर गांव इशहाकपुर निवासी राघवेंद्र उर्फ काके का है. पुलिस ने प्रदीप से कहा, तुम जिस नंबर को ज्योति शर्मा का बता रहे हो, वह तो राघवेंद्र का है.

यह सुनते ही प्रदीप का माथा ठनका. उस ने पुलिस को बताया कि इशहाकपुर का राघवेंद्र तो उस से रंजिश रखता है. लगता है वह मेरी बात ज्योति शर्मा नाम की किसी लड़की से कराता था. वह लड़की कौन है, यह बात तो राघवेंद्र ही बता सकता है.

एसएसपी सचिंद्र पटेल इस सनसनीखेज हत्याकांड की पलपल की जानकारी ले रहे थे. उन्होंने इस केस के आरोपियों की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी एसपी (देहात) राजेश कुमार को सौंपी. साथ ही उन्होंने उन की मदद के लिए एएसपी डा. इरज रजा और थाना सिरसागंज के प्रभारी गिरीश चंद्र गौतम को ले कर एक पुलिस टीम का गठन कर दिया.

इस पुलिस टीम में थानाप्रभारी के साथ ही एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह, एसआई रनवीर सिंह, अंकित मलिक, प्रवीन कुमार, कांस्टेबल विजय कुमार, परमानंद, राघव दुबे, हिमांशु, महिला कांस्टेबल हेमलता शामिल थे.

इस टीम के सहयोग के लिए एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह को भी सहयोग करने का आदेश दिया गया. पुलिस शुरू से ही इस मामले की गहनता से जांच कर रही थी.

सौफ्टवेयर का कमाल

जांच कार्य में एसएसपी सचिंद्र पटेल के निर्देश के बाद और तेजी आ गई. 7 अगस्त को पुलिस को मुखबिर से जानकारी मिली कि नगला मानसिंह में हुई हत्या के आरोपी गड़सान रोड पर व्यास आश्रम के गेट के पास खड़े हैं.

इस सूचना पर थानाप्रभारी गिरीशचंद्र गौतम पुलिस टीम के साथ बताए गए स्थान पर पहुंच गए और घेराबंदी कर राघवेंद्र यादव उर्फ काके और उस के दोस्त अनिल यादव को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस दोनों हत्यारोपियों को थाने ले आई. पुलिस ने उन के कब्जे से हत्या में इस्तेमाल 315 बोर का तमंचा, एक खोखा, एक कारतूस, 3 मोबाइल और हत्या में इस्तेमाल मोटरसाइकिल बरामद कर ली.

दोनों आरोपियों ने सत्येंद्र की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस लाइन सभागार में आयोजित प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार ने हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

राघवेंद्र प्रदीप से रंजिश के चलते उस की हत्या करना चाहता था. उस ने फूलप्रूफ षडयंत्र भी रचा. हत्यारोपियों ने हाईटेक जाल बिछाया और प्रदीप को अपने जाल में फंसा कर उसे अपनी मनपसंद जगह पर भी बुला लिया लेकिन निशाना चूक गया. हत्या प्रदीप की करनी थी, लेकिन हो गई उस के दोस्त सत्येंद्र की.

हत्यारोपियों ने इस सनसनीखेज हत्याकांड के पीछे की जो कहानी बताई, वह चाैंकाने वाली थी—

सन 2014 की बात है. प्रदीप के गांव धौनई की रहने वाली एक लड़की से थाना नगला खंगर क्षेत्र के गांव इशहाकपुर निवासी राघवेंद्र का प्रेमप्रसंग चल रहा था. एक दिन प्रदीप राघवेंद्र को उसी लड़की के चक्कर में धोखे से बुला कर अपने गांव ले गया था. उस ने अपने परिवार के युवक हिमाचल से राघवेंद्र की पिटाई करवाने के साथसाथ उसे बेइज्जत भी कराया. तभी से वह प्रदीप से रंजिश मानने लगा था.वह प्रदीप से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. लेकिन इस घटना के बाद प्रदीप नौकरी के लिए झारखंड चला गया था.

राघवेंद्र के सीने में प्रतिशोध की आग धधक रही थी. करीब 8 माह पहले उसे प्रदीप की फेसबुक से पता चला कि वह झारखंड की एक कंपनी में काम करता है. इस के बाद उस ने ज्योति शर्मा बन कर उस से दोस्ती कर ली और उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

प्रदीप का मोबाइल नंबर लेने के बाद राघवेंद्र ने अपने मोबाइल में वौइस चेंजर ऐप डाउनलोड किया. इसी ऐप के माध्यम से वह नगला मानसिंह की ज्योति शर्मा बन कर प्रदीप से बातें करने लगा.

रक्षाबंधन पर प्रदीप को गांव आना था, राघवेंद्र को इस की जानकारी थी. उस ने कई दिन पहले से प्रदीप की हत्या की साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया था. उस ने ज्योति शर्मा बन कर आवाज बदलने वाले सौफ्टवेयर से आवाज बदल कर प्रदीप को फोन किया. दोनों के बीच फोन पर प्यार भरी बातें होने लगीं. मिलने के वादे हुए.

फोन पर प्रदीप जिसे ज्योति समझ कर हंसीमजाक करता था, उस से अपने दिल की बात कहता था वह राघवेंद्र था. वह भी ज्योति बन कर प्रदीप से पूरे मजे लेता था.

रक्षाबंधन पर प्रदीप के घर आने की जानकारी राघवेंद्र को थी. प्रदीप से बदला लेने का अच्छा मौका देख उस ने ज्योति की आवाज में पहली अगस्त को प्रदीप को नगला मानसिंह मोड़ पर मिलने के लिए शाम को बुलाया. उस से वादा किया कि आज मिलने पर उस की सारी हसरतें पूरी कर देगी.

पहले दिन मोटरसाइकिल पर 2 लोग होने के कारण राघवेंद्र घटना को अंजाम नहीं दे सका था. 2 अगस्त को उस ने दोबारा ज्योति बन कर प्रदीप को फोन किया और मिलने के लिए बुलाया. प्रदीप ने ज्योति से कहा कि वह कुछ ही देर में उस से मिलने आ रहा है. इस के बाद प्रदीप अपने दोस्त सत्येंद्र के घर गया और उसे साथ ले कर तिलियानी रोड स्थित नगला मानसिंह मोड़ की ओर चल दिया.

नगला मानसिंह के पास रास्ते में राघवेंद्र अपने गांव के ही दोस्त अनिल यादव के साथ मोटरसाइकिल से पहले ही पहुंच गया था. प्रदीप को मोटरसाइकिल पर आते देख कर राघवेंद्र ने गोली चला दी. गोली प्रदीप को न लग कर उस के दोस्त सत्येंद्र के माथे में लगी, जिस से बाद में उस की मौत हो गई थी.

पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. इस सनसनीखेज घटना का खुलासा करने वाली टीम को एसएसपी सचिंद्र पटेल ने 15 हजार रुपए का पुरस्कार दिया.

यह सच है कि युवक हों या युवतियां प्यार में अंधे हो जाते हैं. न तो खुद गहराई से सोचते हैं और न दूसरे को सोचने देते हैं. इसी वजह से कभीकभी ऐसा कुछ हो जाता है, जो सावधानी बरतने पर नहीं होता. उस के अंधे प्यार ने उस के दोस्त की बलि ले ली.

आईजी के शक के चलते प्रदीप हत्या का आरोपी बनने से बच गया. उस की जगह उस का दोस्त सत्येंद्र बिना वजह मारा गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां, सितबंर 2020

ये भी पढ़े : रिश्तों में सेंध
ये भी पढ़े : एक सहेली ऐसी भी

सोने की तस्करी: स्वप्न सुंदरी ने दूतावास को बनाया मोहरा

इसी साल जुलाई के पहले सप्ताह की बात है. केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एयर कार्गो से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के

वाणिज्य दूतावास के नाम से कुछ बैगों में राजनयिक सामान आया था. यूएई का वाणिज्य दूतावास तिरुवनंतपुरम शहर के मनाक में स्थित है. सामान क्या शौचालयों में उपयोग होने वाले उपकरण थे, जो खाड़ी देश से आई फ्लाइट से आए थे.

विमान से आए बैग उतार कर कार्गो यार्ड में रख दिए गए. इन बैगों को लेने के लिए 2 दिनों तक कोई भी संबंधित व्यक्ति हवाई अड्डे नहीं पहुंचा, तो कस्टम अधिकारियों ने भारतीय विदेश मंत्रालय से इजाजत ले कर 5 जुलाई को बैगों की जांच की.

जांच के दौरान एक बैग में छिपा कर रखा गया 30 किलो से ज्यादा सोना मिला. सोने को इस तरह पिघला कर रखा गया था कि वह शौचालय के सामानों में पूरी तरह फिट हो जाए.

भारतीय बाजार में इस सोने की कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई. यूएई के वाणिज्य दूतावास ने बैग में मिला सोना अपना होने से इनकार कर दिया. इस पर सोने को सीज कर सीमा शुल्क विभाग ने मामले की जांच शुरू की.

प्रारंभिक जांच में अधिकारियों को यह मामला सोने की तस्करी से जुड़ा होने का संदेह हुआ. अधिकारियों को शक हुआ कि इस संदिग्ध मामले में राजनयिक को मिलने वाली छूट का दुरुपयोग किया गया है.

दरअसल, संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा सम्मेलन में लिए गए फैसलों के तहत भारत सरकार की ओर से दूसरे देशों के राजनयिकों को कई तरह की छूट दी गई थीं. इस में उन की और उन के सामान की जांच पड़ताल की छूट भी शामिल है.

जांच शुरू करने के दूसरे दिन 6 जुलाई को कस्टम अधिकारियों ने संयुक्त अरब अमीरात के वाणिज्य दूतावास के एक पूर्व अधिकारी सरित पी.आर. से पूछताछ की. पूछताछ के बाद अधिकारियों को रहस्य की परतों में उलझा और दूसरे देशों से जुड़ा यह मामला काफी बड़ा होने का अंदाजा हो गया. इस मामले में एक महिला अधिकारी पर भी शक जताया गया.

सीमा शुल्क अधिकारियों ने दूतावास के पूर्व अधिकारी सरित पी.आर. को गिरफ्तार कर शक के दायरे में आई महिला अधिकारी की तलाश शुरू कर दी.

कस्टम अधिकारियों की प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ कि सरित पी.आर. ने पहले भी ऐसी कई खेप हासिल की थी. इस मामले में केरल सरकार की एक महिला अधिकारी स्वप्ना सुरेश भी शामिल थी.

सोने की तस्करी का यह मामला केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की जानकारी तक भी पहुंच गया. मुख्यमंत्री को अपने स्तर पर पता चला कि इस मामले में संदेह के दायरे में आई महिला अधिकारी स्वप्ना के संबंध राज्य के कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों से हैं. मुख्यमंत्री खुद भी उस महिला से परिचित थे. हालांकि बाद में मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस बात से इनकार किया कि सीएम उस महिला को जानते थे.

विपक्ष ने उठाई आवाज

इस बीच, यह मामला राजनीतिक स्तर पर उछल गया. विपक्षी दल भाजपा और कांग्रेस ने प्रदर्शन करते हुए केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा की सरकार को घेरने की कोशिश शुरू कर दी. केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने 7 जुलाई को प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मुख्यमंत्री कार्यालय में सोना तसकरी गिरोह के कथित प्रभाव की सीबीआई से जांच कराने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा कि एक महिला इस रैकेट की कथित सरगना है. यह महिला केरल सरकार के आईटी विभाग के तहत केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में आपरेशंस मैनेजर के तौर पर 6 जुलाई, 2020 तक कार्यरत थी. संदेह है कि इस तसकरी की मास्टरमाइंड वही है.

इस महिला के केरल के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम. शिवशंकर के साथ घनिष्ठ संबंध हैं. यह महिला कई बार मुख्यमंत्री के महत्वपूर्ण आयोजनों में भी नजर आई थी.

महिला का नाम स्वप्ना सुरेश है. सोना तसकरी रैकेट में स्वप्ना सुरेश का नाम आने पर केरल के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री कार्यालय और आईटी सचिव ने स्वप्ना सुरेश का नाम हटाने के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाया.

शीर्ष स्तर पर संपर्कों के लिए जानी जाने वाली स्वप्ना सुरेश को आईटी सचिव एम. शिवशंकर संरक्षण दे रहे हैं. वे स्वप्ना के आवास पर अक्सर आतेजाते हैं. सुरेंद्रन ने स्वप्ना की नियुक्ति की सीबीआई से जांच कराने की भी मांग की.

राजनीतिक स्तर पर इस मामले के तूल पकड़ने पर केरल सरकार ने 7 जुलाई को सूचना प्रौद्योगिकी सचिव एम. शिवशंकर को मुख्यमंत्री के सचिव पद से हटा दिया. पद से हटाए जाने के बाद शिवशंकर एक साल की छुट्टी पर चले गए. दूसरी ओर, सरकार ने स्वप्ना सुरेश को केरल स्टेट आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर से बर्खास्त कर दिया. मुख्यमंत्री कार्यालय ने स्वप्ना से किसी तरह के संबंध होने से इनकार किया.

8 जुलाई को केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने केरल सरकार की ओर से आयोजित स्पेस कौंक्लेव-2020 में पूरा ब्यौरा मीडिया के सामने रखते हुए कहा कि इस कौंक्लेव का प्रबंधन स्वप्ना सुरेश ही संभाल रही थी.

स्वप्ना ने ही राज्य सरकार की ओर से गणमान्य लोगों को आमंत्रण पत्र भेजे थे. उन्होंने आरोप लगाया कि इसरो से संबंधित एक संस्था में कार्यक्रम प्रबंधक के रूप में स्वप्ना की नियुक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकती है.

सोना तस्करी का यह मामला देशभर में चर्चित हो जाने और इस घटना का राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ने की संभावना को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 9 जुलाई को इस की जांच एनआईए को सौंप दी. वहीं, भूमिगत हुई स्वप्ना सुरेश ने इस मामले में पहली बार औडियो संदेश जारी कर चुप्पी तोड़ी.

उस ने कहा कि इस में मेरी कोई भूमिका नहीं है. मैं ने यूएई के राजनयिक राशिद खमीस के निर्देशों के अनुसार काम किया है. कार्गो परिसर में सामान को जब क्लियर नहीं किया गया, तो राशिद ने मुझे सीमा शुल्क अधिकारियों से संपर्क करने को कहा था. तब तक मुझे पता नहीं था कि यह खेप कहां से आई थी और इस में क्या था? सोना जब्त किए जाने का पता लगने पर राशिद के कहने पर वे बैग वापस भेजने की कोशिश भी की गई थी.

दूसरी ओर, गिरफ्तारी की आशंका से स्वप्ना सुरेश ने 9 जुलाई को केरल हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल की. अगले दिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने यह याचिका 14 जुलाई तक के लिए टाल दी. एनआईए ने 10 जुलाई को सोने की तस्करी के मामले को आतंकवाद से जोड़ते हुए 4 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. इस मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत सरित पीआर, स्वप्ना सुरेश, संदीप नैयर के अलावा एर्नाकुलम के फैसल फरीद को आरोपी बनाया गया.

इस के दूसरे ही दिन 11 जुलाई को एनआईए ने स्वप्ना सुरेश को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा संदीप नैयर को भी गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों को अगले दिन 12 जुलाई को एनआईए की विशेष अदालत में पेश किया गया. अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

विशेष अदालत ने एनआईए की अर्जी पर दोनों आरोपियों को 13 जुलाई को 8 दिन के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी की हिरासत में दे दिया. कहानी में आगे बढ़ने से पहले यह जानना जरूरी है कि सोना तसकरी के मामले में केरल में सियासी भूचाल लाने वाली हाई प्रोफाइल महिला स्वप्ना सुरेश है कौन?

बहुत ऊंचे तक थी स्वप्ना सुरेश की पहुंच

केरल के राजनीतिक गलियारों और ब्यूरोक्रेट्स के बीच अपना प्रभाव रखने वाली स्वप्ना सुरेश का जन्म यूएई के अबूधाबी में हुआ था. अबूधाबी में ही उस ने पढ़ाई की. इस के बाद उसे एयरपोर्ट पर नौकरी मिल गई. स्वप्ना ने शादी भी की, लेकिन जल्दी ही तलाक हो गया था.

इस के बाद वह बेटी के साथ रहने के लिए केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम आ गई. भारत आने के बाद स्वप्ना सुरेश ने तिरुवनंतपुरम में 2011 से 2 साल तक एक ट्रेवल एजेंसी में काम किया.

वर्ष 2013 में उसे एयर इंडिया में एसएटीएस में एचआर मैनेजर पद पर नौकरी मिल गई. यह एयर इंडिया और सिंगापुर एयरपोर्ट टर्मिनल सर्विसेज का संयुक्त उद्यम है. साल 2016 में जब केरल पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जालसाजी के एक मामले में उस की जांच शुरू की, तो वह अबूधाबी चली गई.

फर्राटेदार अंग्रेजी और अरबी भाषा बोलने वाली स्वप्ना सुरेश ने अबूधाबी में यूएई महावाणिज्य दूतावास में नौकरी हासिल कर ली. पिछले साल यानी 2019 में उस ने यह नौकरी छोड़ दी.

कहा यह भी जाता है कि उसे नौकरी से निकाल दिया गया था. बताया जाता है कि एयर इंडिया एसएटीएस और अबूधाबी में यूएई महावाणिज्य दूतावास में काम करते हुए स्वप्ना सुरेश हवाई अड्डों और सीमा शुल्क विभाग के कई अधिकारियों के संपर्क में आ गई थी. उसे राजनयिक खेपों की आपूर्ति और हैंडलिंग के सारे तौरतरीके पता चल गए थे.

यूएई के महावाणिज्य दूतावास में की गई नौकरी स्वप्ना सुरेश को जिंदगी के एक नए मोड़ पर ले गई. वहां उस ने बड़ेबड़े लोगों से अपनी जानपहचान बना ली थी. इस दौरान उस के यूएई से केरल आने वाले कई प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व भी किया. अबूधाबी में नौकरी से हटने के बाद वह अपने संपर्कों की गठरी बांध कर वापस केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम आ गई.

यूएई के अपने संपर्कों के बल पर इस बार वह तिरुवनंतपुरम में हाई प्रोफाइल तरीके से सामने आई. उस ने राजनीतिज्ञों और ब्यूरोक्रेट्स से अच्छे संबंध बना लिए. केरल के मुख्यमंत्री के सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम. शिवशंकर से उस के गहरे ताल्लुकात बन गए.

कहा जाता है कि शिवशंकर उस के घर भी आतेजाते थे. आरोप यह भी है कि शिवशंकर की सिफारिश पर ही स्वप्ना को केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में अनुबंध पर आपरेशंस मैनेजर की नौकरी मिली थी. स्वप्ना सुरेश केरल के बड़े होटलों में होने वाली पार्टियों में अकसर शामिल होती थी. अरबी समेत कई भाषाएं जानने वाली स्वप्ना केरल आने वाले अरब नेताओं की अगुवाई करने वाली टीम में शामिल रहती थी.

सोने की तस्करी का मामला सामने आने के बाद ऐसे कई वीडियो और फोटो वायरल हुए, जिन में स्वप्ना सुरेश केरल के मुख्यमंत्री, अरब नेताओं और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर के साथ दिखाई दी.

एनआईए की हिरासत में भेजे जाने के बाद स्वप्ना सुरेश के बुरे दिन शुरू हो गए. 13 जुलाई को उस के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस मामले में स्वप्ना के साथ 2 कंपनियों प्राइम वाटर हाउस कूपर्स और विजन टेक्नोलोजी को भी आरोपी बनाया गया. आरोप है कि स्वप्ना ने केरल के आईटी विभाग में नौकरी हासिल करने के लिए फर्जी अकादमिक डिग्री का इस्तेमाल किया था.

स्वप्ना के शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच करने की जिम्मेदारी कंसल्टिंग एजेंसी प्राइस वाटर हाउस कूपर्स और विजन टैक्नोलोजी पर थी. केरल के आईटी विभाग के अधीन केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की शिकायत पर दर्ज इस मामले में स्वप्ना पर आरोप है कि उस ने महाराष्ट्र के डा. बाबा साहेब आंबेडकर विश्वविद्यालय की बीकौम की फर्जी डिगरी से नौकरी हासिल की थी.

मुख्यमंत्री के सचिव शिवशंकर की करीबी थी स्वप्ना

14 जुलाई को यह बात काल डिटेल्स से सामने आई कि केरल के मुख्यमंत्री के सचिव पद से हटाए गए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर ने स्वप्ना सुरेश सहित सोने की तसकरी के 2 आरोपियों से फोन पर बातचीत की थी. उसी दिन कस्टम अधिकारियों की एक टीम ने आईएएस अधिकारी शिवशंकर के घर जा कर उन्हें नोटिस दिया और उन से पूछताछ की.

बाद में शिवशंकर उसी दिन शाम को तिरुवनंतपुरम में सीमा शुल्क विभाग के कार्यालय पहुंचे, अधिकारियों ने उन से शाम से रात 2 बजे तक 9 घंटे पूछताछ की.

कोच्चि से कस्टम कमिश्नर और अन्य अधिकारियों ने भी वीडियो कौंफ्रेंस के जरीए शिवशंकर से पूछताछ की. रात 2 बजे पूछताछ पूरी होने के बाद कस्टम अधिकारियों ने उन्हें घर ले जा कर छोड़ दिया. पूछताछ में शिवशंकर ने स्वीकार किया कि स्वप्ना सुरेश ने उन के पास काम किया था, और सरित पीआर उन का दोस्त है.

कस्टम अधिकारी इस बात की जांच कर रहे हैं कि आईएएस अधिकारी ने अपने पद का दुरुपयोग कर सोना तस्करी के आरोपियों स्वप्ना सुरेश, संदीप नायर और सरित पीआर को किसी तरह की मदद तो नहीं पहुंचाई थी.

इस बीच, कस्टम अधिकारियों ने एक होटल के एक और 2 जुलाई के सीसीटीवी फुटेज हासिल किए, जहां आईएएस अधिकारी शिवशंकर और आरोपी ठहरे थे. कहा जाता है कि शिवशंकर के एक कर्मचारी ने इस होटल में कमरा बुक कराया था.

शिवशंकर पर गंभीर आरोप लगने पर मुख्यमंत्री के निर्देश पर केरल के मुख्य सचिव डा. विश्वास मेहता के नेतृत्व में अधिकारियों के एक पैनल ने जांच शुरू कर दी. सोना तस्करों से कथित रूप से तार जुड़े होने की बातें सामने आने के बाद केरल सरकार ने 16 जुलाई को वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर को निलंबित कर दिया.

इस मामले की जांच चल ही रही थी कि 17 जुलाई को यूएई वाणिज्य दूतावास से जुड़ा केरल पुलिस का एक जवान जयघोष अपने घर से करीब 150 मीटर दूर बेहोशी की हालत में पड़ा मिला.

पुलिस ने संदेह जताया कि उस ने कलाई काट कर आत्महत्या करने की कोशिश की थी. पुलिस ने उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया. जयघोष के परिजनों ने इस से एक दिन पहले ही उस के लापता होने की शिकायत थुंबा थाने में दर्ज कराई थी.

परिजनों ने कहा था कि अज्ञात लोगों की ओर से धमकी दिए जाने के कारण वह खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा था. इस से पहले जयघोष ने वट्टियोरकावु थाने में अपनी सर्विस पिस्तौल जमा करा दी थी. जयघोष के मोबाइल पर जुलाई के पहले हफ्ते में स्वप्ना सुरेश ने भी फोन किया था.

केरल सोना तस्करी मामले की जांच कर रही एनआईए ने 18 जुलाई को आरोपी फैजल फरीद के खिलाफ इंटरपोल से ब्लू कौर्नर नोटिस जारी करने का अनुरोध किया. इस से पहले कोच्चि की विशेष एनआईए अदालत ने फरीद के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था.

एनआईए ने विशेष अदालत को बताया था कि वे वारंट को इंटरपोल को सौंप देंगे, क्योंकि फरीद के दुबई में होने का संदेह है. एनआईए ने दावा किया कि फरीद ने ही संयुक्त अरब अमीरात के दूतावास की फरजी मुहर और फरजी दस्तावेज बनाए थे.

एनआईए और कस्टम विभाग की प्रारंभिक जांच में जो तथ्य उभर कर सामने आए, उन के मुताबिक यूएई के वाणिज्य दूतावास के नाम पर सोने की तसकरी करीब एक साल से हो रही थी. इस तसकरी में एक पूरा गिरोह संलिप्त था.

स्वप्ना सुरेश इस गिरोह की मास्टर माइंड थी और गिरोह से दूतावास के कुछ मौजूदा और पूर्व कर्मचारी जुड़े हुए थे.

यह गिरोह डिप्लोमैटिक चैनल के जरीए पिछले एक साल में खाड़ी देशों से तस्करी का करीब 300 किलो सोना भारत ला चुका था. तस्करी के सोने की पहली खेप का कंसाइनमेंट डिप्लोमेटिक चैनल के जरीए पिछले साल जुलाई में तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर आया था.

इस साल जुलाई के पहले हफ्ते में पकड़े गए सोने सहित 13 खेप लाई गई थीं. सोने की तस्करी के मामले में नाम उछलने पर तिरुवनंतपुरम स्थित यूएई के वाणिज्य दूतावास में तैनात राजनयिक अताशे राशिद खमिस जुलाई के दूसरे हफ्ते में भारत छोड़ कर स्वदेश चले गए.

स्वप्ना सुरेश ने राशिद के इशारे पर ही काम करने की बात कही है. हालांकि, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और कस्टम विभाग सोना तस्करी मामले की जांच कर रहे हैं. मामले में कुछ और प्रभावशाली लोगों की गिरफ्तारियां भी हो सकती हैं.

लेकिन चिंता की बात यह है कि सोने की तस्करी में राजनयिक चैनल का दुरुपयोग किया जा रहा था. एक खास तथ्य यह भी है कि भारत में सोने की सब से ज्यादा तसकरी केरल में होती है.

हालांकि अब जयपुर का एयरपोर्ट भी सोने की तस्करी का एक नया माध्यम बन कर उभर रहा है. जयपुर में जुलाई के ही पहले हफ्ते में 2 फ्लाइटों से लाया गया 32 किलो सोना पकड़ा गया था. इस मामले में 14 यात्रियों को गिरफ्तार किया गया था.

सोने की तसकरी में केरल नंबर एक पर है. इस के अलावा मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरु और चेन्नई एयरपोर्ट पर सोने की तसकरी के सब से ज्यादा मामले पकड़े जाते हैं.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, अगस्त 2020

ये भी पढ़े  : जानलेवा गेम ‘ब्लू व्हेल’
ये भी पढ़े  : बेसमेंट में छिपा राज

स्वामी चिन्मयानंद: एक और संत जेल में

सब से पहले वह अपने लिए सुख वैभव के साधन तैयार करता है, फिर उसे देह सुख भी सामान्य लगने लगता है. स्वामी चिन्मयानंद के साथ भी ऐसा ही कुछ था, जिस की वजह से…

हाल ही में कानून की छात्रा कामिनी द्वारा स्वामी चिन्मयानंद पर लगाया गया यौनशोषण और बलात्कार का आरोप खूब चर्चाओं में रहा. छात्रा द्वारा निर्वस्त्र स्वामी की मसाज करने के वायरल वीडियो ने भी स्वामी की हकीकत खोल कर रख दी. यौनशोषण और बलात्कार की यह कहानी पूरी तरह से फिल्मी सैक्स, सस्पेंस और थ्रिल से भरी हुई है. शाहजहांपुर के सामान्य परिवार की कामिनी स्वामी शुकदेवानंद ला कालेज से एलएलएम यानी मास्टर औफ ला की पढ़ाई कर रही थी.

हौस्टल में रहने के दौरान नहाते समय उस का एक वीडियो तैयार किया गया और उसी वीडियो को आधार बना कर उस का यौनशोषण शुरू हुआ. शोषण से मुक्ति पाने के लिए लड़की ने भी वीडियो का सहारा लिया. लेकिन इस प्रभावशाली संत और पूर्व केंद्रीय मंत्री को कटघरे में खड़ा करना आसान नहीं था. फिर भी लड़की ने हिम्मत से काम लिया और अंत में संत को विलेन साबित कर के ही दम लिया. यह संत थे स्वामी चिन्मयानंद.

अटल सरकार के बाद हाशिए पर चले गए स्वामी चिन्मयानंद 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रयासरत थे. वह राज्यसभा के जरिए संसद में पहुंचना चाहते थे. इस के पहले कि उन के संसद जाने का सफर पूरा होता, उन के ही कालेज में पढ़ने वाली लड़की कामिनी ने उन का चेहरा बेनकाब कर दिया.

कानून की पढ़ाई करने वाली 24 वर्षीया कामिनी ने जब मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ यौनशोषण और बलात्कार का आरोप लगाया तो पूरा देश सन्न रह गया.

एक लड़की के लिए ऐसे आरोप लगाना और साबित करना आसान काम नहीं था. इस का कारण यह था कि पूरा प्रशासन स्वामी चिन्मयानंद को बचाने में लगा था. इस के बावजूद पीडि़त लड़की और चिन्मयानंद के बीच शह और मात का खेल चलता रहा.

स्वामी चिन्मयानंद का रसूख लड़की पर भारी पड़ रहा था, जिस के चलते शोषण और बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की के खिलाफ 5 करोड़ की रंगदारी मांगने का मुकदमा कायम कर के उसे जेल भेज दिया गया.

लड़की को जेल में और आरोपी को एसी कमरे में रहने को सुख मिला. शोषण और बलात्कार के मुकदमे में हिरासत में लिए गए स्वामी चिन्मयानंद को जेल में 2 रात रखने के बाद सेहत की जांच को ले कर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पीजी अस्पताल भेज दिया गया था.

शह और मात के खेल में बाजी किस के हाथ लगेगी, यह तो अदालत के फैसले पर निर्भर करेगा. लेकिन धर्म के नाम पर कैसेकैसे खेल खेले जाते हैं, यह समाज ने खुली आंखों से देखा. नग्नावस्था में लड़की से मसाज कराते वीडियो के सामने आने पर खुद स्वामी चिन्मयानंद ने जनता से कहा, ‘वह अपने इस कृत्य पर शर्मिंदा हैं.’

चिन्मयानंद से पहले सन 2015 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की ही रहने वाली एक लड़की ने भी आसाराम बापू के खिलाफ ऐसे ही आरोप लगाए थे. आसाराम और चिन्मयानंद में केवल इतना ही फर्क है कि आसाराम केवल संत थे, जबकि चिन्मयानंद संत के साथसाथ भाजपा के सांसद और मंत्री भी रह चुके हैं.

चिन्मयानंद के जेल जाने के समय भाजपा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने कहा कि स्वामी चिन्मयानंद भाजपा के सदस्य नहीं हैं. वह इस बात का जवाब नहीं दे सके कि यदि वह सदस्य नहीं हैं तो उन्हें भाजपा की सदस्यता से कब निकाला गया था.

स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के सहारे अपनी राजनीति शुरू की थी. वह राममंदिर आंदोलन के दौरान देश के उन प्रमुख संतों में थे, जो मंदिर निर्माण की राजनीति कर रहे थे. भाजपा ने स्वामी चिन्मयानंद को 3 बार लोकसभा का टिकट दे कर सांसद बनाया और अटल सरकार में उन्हें मंत्री बनने का मौका भी दिया.

चिन्मयानंद भाजपा में उस समय के नेता हैं, जब संतों को राजनीति में शामिल कर के सत्ता का रास्ता तय किया गया था. उस समय लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, कल्याण सिंह, महंत अवैद्यनाथ जैसे संत और नेताओं का भाजपा में बोलबाला था.

ऐसे कद्दावर स्वामी चिन्मयानंद की सच्चाई तब खुली, जब 24 अगस्त, 2019 को उन के ही स्वामी शुकदेवानंद ला कालेज में एलएलएम में पढ़ने वाली कामिनी ने उन के खिलाफ यौनशोषण और बलात्कार का आरोप लगाते हुए वीडियो जारी किया.

स्वामी शुकदेवानंद ला कालेज मुमुक्षु आश्रम की शिक्षण संस्थाओं में से एक है. इस कालेज की स्थापना शाहजहांपुर और उस के आसपास के इलाकों के छात्रों को कानून की शिक्षा देने के लिए हुई थी.

पीडि़त कामिनी इसी कालेज में एलएलएम की पढ़ाई कर रही थी. वह यहीं के हौस्टल में रहती थी. हौस्टल में रहने के दौरान ही स्वामी चिन्मयानंद की उस पर निगाह पड़ी. फलस्वरूप पढ़ाई के साथसाथ उसे कालेज में ही नौकरी दे दी गई. कामिनी सामान्य कदकाठी वाली गोरे रंग की लड़की थी.

कालेज में पढ़ने वाली दूसरी लड़कियों की तरह उसे भी स्टाइल के साथ सजसंवर कर रहने की आदत थी. चिन्मयानंद ने उस के जन्मदिन की पार्टी में भी हिस्सा लिया और केक काटने में हिस्सेदारी की. वैसे कामिनी और चिन्मयानंद की नजदीकी बढ़ने की अपनी अलग कहानी है.

कामिनी का कहना है कि उसे योजना बना कर फंसाया गया. जब वह हौस्टल में रहने आई तो एक दिन नहाते समय चोरी से उस का वीडियो बना लिया गया. इस के बाद उस वीडियो को वायरल कर के उसे बदनाम करने की धमकी दी गई. फिर स्वामी चिन्मयानंद ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बलात्कार की भी उन्होंने वीडियो बनाई. इस के बाद उस के शोषण का सिलसिला चल निकला.

चिन्मयानंद को मसाज कराने का शौक था. मसाज के दौरान ही कभीकभी वह सैक्स भी करते थे. अपने शोषण से परेशान कामिनी ने स्वामी की तर्ज पर उन की मसाज और सैक्स के वीडियो बनाने शुरू कर दिए. वह जान गई थी कि स्वामी चिन्मयानंद के जाल से निकलने के लिए शोषण की कहानी को दुनिया के सामने लाना होगा.

पीडि़त कामिनी ने स्वामी चिन्मयानंद के तमाम वीडियो पुलिस को सौंपे हैं. इन में से 2 वीडियो वायरल भी हो गए. वायरल वीडियो में चिन्मयानंद नग्नावस्था में कामिनी से मसाज करा रहे थे. इस में वह कामिनी से आपसी संबंधों की बातें भी कर रहे थे. उन की आपसी बातचीत से ऐसा लग रहा था, जैसे दोनों के बीच यह सामान्य घटना हो.

इस दौरान कामिनी की तबीयत और नया मोबाइल खरीदने की बात भी हुई. कामिनी ने काले रंग की टीशर्ट पहनी थी. उस ने मसाज वाले दोनों वीडियो अपने चश्मे में लगे खुफिया कैमरे से तैयार किए थे. खुद को फ्रेम में रखने के लिए उस ने अपना चश्मा मेज पर उतार कर रख दिया था, जिस से स्वामी चिन्मयानंद के साथ वह भी कैमरे में दिख सके.

यह कैमरा कामिनी के नजर वाले चश्मे के फ्रेम में नाक के ठीक ऊपर इस तरह लगा था जैसे कोई चश्मे की डिजाइन हो. कामिनी ने यह चश्मा औनलाइन शौपिंग से मंगवाया था.

मसाज करने के बाद जब कामिनी हाथ धोने बाथरूम में गई तो शीशे में उस का अपना चेहरा भी कैमरे में कैद हो गया था. पूरी तैयारी के बाद उस ने स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. लेकिन उस की तैयारी के मुकाबले स्वामी का प्रभाव भारी पड़ा.

खुद को फंसता देख स्वामी चिन्मयानंद ने कामिनी और उस के 3 दोस्तों पर 5 करोड़ की फिरौती मांगने का मुकदमा दर्ज करा दिया. इस काम में स्वामी चिन्मयानंद का रसूख काम आया.

कामिनी की कोशिश के बावजूद स्वामी चिन्मयानंद पर उत्तर प्रदेश में मुकदमा दर्ज नहीं हो सका. लेकिन पुलिस ने कामिनी पर फिरौती मांगने का मुकदमा दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी. कामिनी अपने दोस्त के साथ राजस्थान के दौसा शहर चली गई थी. वहां उस ने सोशल मीडिया पर अपनी दास्तान सुनाई. जनता और सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान लेने के बाद उस का मुकदमा दिल्ली में दर्ज किया गया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने आननफानन में स्पैशल जांच टीम बना कर पूरा मामला उस के हवाले कर दिया. भारी दबाव के बाद आखिर चिन्मयानंद को 19 सितंबर, 2019 की सुबह करीब पौने 9 बजे एसआईटी ने गिरफ्तार कर लिया. जिस समय चिन्मयानंद को गिरफ्तार किया गया, उस समय वह अपने आश्रम में ही थे.

शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम को मोक्ष प्राप्त करने का स्थान बताया जाता है. शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश के पिछडे़ जिलों में गिना जाता है. करीब 30 लाख की आबादी वाले इस जिले की साक्षरता 59 प्रतिशत है. मुमुक्षु आश्रम भी यहां की धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र माना जाता था.

शाहजहांपुर बरेली हाइवे पर स्थित यह आश्रम करीब 21 एकड़ जमीन पर बना है. इस के परिसर में ही इंटर कालेज से ले कर डिग्री कालेज तक 5 शिक्षण संस्थाएं हैं. मुमुक्षु आश्रम का दायरा शाहजहांपुर के बाहर दिल्ली, हरिद्वार, बद्रीनाथ और ऋषिकेश तक फैला है.

मुमुक्षु आश्रम की ताकत का लाभ ले कर वर्ष 1985 के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के साथसाथ अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाई. वह 3 बार सांसद और एक बार केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री बने. दूसरों को मोक्ष देने का दावा करने वाला मुमुक्षु आश्रम स्वामी चिन्मयानंद को मोक्ष की जगह जेल भेजने का जरिया बन गया.

मुमुक्षु आश्रम में संत के रूप में रहने आए चिन्मयानंद मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता बन गए थे. अधिष्ठाता बनने के बाद चिन्मयानंद खुद को भगवान समझने लगे. अहंकार का यही भाव उन के पतन का कारण बना.

श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने स्वामी चिन्मयानंद को अखाड़ा परिषद से बाहर कर दिया है. अखाड़ा सचिव महंत स्वामी रामसेवक गिरी ने कहा कि चिन्मयानंद के कारण संत समाज की छवि धूमिल हुई है.

मुमुक्षु आश्रम की स्थापना सन 1947 में स्वामी शुकदेवानंद ने की थी. शुकदेवानंद शाहजहांपुर के ही रहने वाले थे. उन की सोच हिंदूवादी थी. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में ‘गांधी फैज-ए-आजम’ नाम से कालेज की स्थापना हुई थी. शुकदेवानंद को यह कालेज मुसलिमपरस्त लगा.

शुकदेवानंद को लगा कि इस के जवाब में संस्कृत का प्रचार करने के लिए इसी तरह से दूसरे कालेज की स्थापना होनी चाहिए, जिस से हिंदू संस्कृति का प्रचारप्रसार किया जा सके. इस के बाद शुकदेवानंद ने 1947 में श्री दैवी संपदा इंटर कालेज और 1951 में दैवी संपदा संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की.

स्वामी शुकदेवानंद पोस्ट ग्रैजुएट कालेज की स्थापना सन 1964 में हुई. छात्रों की संस्कृत में विशेष रुचि न होने के कारण यहां पढ़ने वाले छात्रों की संख्या काफी कम थी. पोस्टग्रैजुएट कालेज खुल जाने के बाद यहां के इंटर कालेज और डिग्री कालेज के छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी, जिस से कालेज में पैसा आने लगा.

देखते ही देखते शुकदेवानंद का प्रभाव बढ़ने लगा. शाहजहांपुर के बाद दिल्ली, हरिद्वार, बद्रीनाथ और ऋषिकेश में शुकदेवानंद आश्रम बन गए. शुकदेवानंद के निधन के बाद उन के नाम पर शुकदेवानंद ट्रस्ट की स्थापना हुई. सभी कालेज और आश्रम इसी के आधीन आ गए.

शुकदेवानंद के निधन के बाद उन के आश्रम और बाकी काम की जिम्मेदारी स्वामी धर्मानंद ने संभाली. धर्मानंद स्वामी शुकदेवानंद के शिष्य थे और उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले थे. स्वामी धर्मानंद ने भी अपने समय में शिक्षा के माध्यम से हिंदू संस्कृति को ले कर काम किया. बीमार रहने के कारण कुछ सालों बाद उन का भी देहांत हो गया. धर्मानंद के बाद चिन्मयानंद ने गद्दी संभाली.

चिन्मयानंद का जन्म सन 1947 में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में परसपुर क्षेत्र के त्योरासी गांव में हुआ था. उन का असल नाम कृष्णपाल सिंह है. 1967 में 20 साल की उम्र में संन्यास लेने के बाद वह हरिद्वार पहुंचे, जहां संत समाज ने उन का नाम चिन्मयानंद रखा.

चिन्मयानंद का परिचय भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी से था. राजनीतिक रुचि के कारण चिन्मयानंद उन के करीबी बन गए. इस के बाद चिन्मयानंद उत्तर प्रदेश में प्रमुख संत नेता के रूप में उभरने लगे. इसी के चलते वह विश्व हिंदू परिषद के संपर्क में आए.

यही वह समय था जब विश्व हिंदू परिषद राममंदिर को ले कर उत्तर प्रदेश में आंदोलन चला रहा था. उस के लिए मठ, मंदिर और आश्रम में रहने वाले संत मठाधीश बहुत खास हो गए थे.

विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल ने उत्तर प्रदेश में जिन आश्रम के लोगों को राममंदिर आंदोलन से जोड़ा, उन में गोरखपुर जिले के गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ, शाहजहांपुर के स्वामी चिन्मयानंद और अयोध्या से महंत परमहंस दास प्रमुख थे.

जब देश में हिंदुत्व की राजनीतिक लहर बनी, तब चिन्मयानंद विश्व हिंदू परिषद के साथसाथ भाजपा के भी कद्दावर नेता बन गए. विश्व हिंदू परिषद ने जब राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति का गठन किया तो स्वामी चिन्मयानंद को उस का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया. राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति का राष्ट्रीय संयोजक बनने के बाद

स्वामी चिन्मयानंद के नेतृत्व में संघर्ष समिति का दायरा बढ़ाने का काम किया गया. इस से उन की पहचान पूरे देश में प्रखर हिंदू वक्ता के रूप में स्थापित हुई.

हिंदुत्व के सहारे देश की सत्ता हासिल करने का सपना देख रही भाजपा ने साधुसंतों को संसद पहुंचाने की योजना बनाई. इसी के चलते चिन्मयानंद को लोकसभा का चुनाव लड़ाने की योजना बनी. सन 1990 में भाजपा ने केंद्र में वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले कर देश को मध्यावधि चुनाव में धकेल दिया तो 1991 में चिन्मयानंद को शरद यादव के खिलाफ बदायूं से टिकट दिया गया.

चुनाव में स्वामी चिन्मयानंद ने शरद यादव को 15 हजार वोटों से पटखनी दे दी. इस के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने 1998 में मछलीशहर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

इस के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म और सत्ता का तालमेल बैठा कर आगे बढ़ना शुरू किया. सन 1992 में जब बाबरी मसजिद ढहाई गई तब स्वामी चिन्मयानंद भी वहां मौजूद थे. लिब्रहान आयोग ने जिन लोगों को आरोपी माना था, उस में चिन्मयानंद का नाम भी शामिल था.

बाबरी मसजिद ढहाए जाने से 9 दिन पहले चिन्मयानंद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर एफिडेविट में बताया था कि 6 दिसंबर, 1992 को सिर्फ कार सेवा की जाएगी और अयोध्या में इस से कानूनव्यवस्था के लिए किसी तरह का खतरा नहीं होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने उन की बातों पर विश्वास भी किया, लेकिन बाबरी मसजिद ढहा दी गई. सन 2009 में लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट में

कहा था कि कार सेवा के बहाने मसजिद गिराने का प्लान पहले से तय था और इस की भूमिका में परमहंस रामचंद्र दास, अशोक सिंघल, विनय कटियार, चंपत राय, आचार्य गिरिराज, वी.पी. सिंघल, एस.सी. दीक्षित और चिन्मयानंद शामिल थे.

1990 के दशक में राजनीतिक रूप से स्वामी चिन्मयानंद अपना रसूख काफी मजबूत कर चुके थे. देश के हिंदुत्व के नायकों में से उन की गिनती होने लगी. 12वीं लोकसभा (1998) में उन्होंने अपने आप को सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता और धार्मिक गुरु बताया था. चिन्मयानंद 30 से अधिक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थाओं के साथ जुड़े थे.

चिन्मयानंद और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच गहरा रिश्ता है. 1980 के दशक में राममंदिर आंदोलन के दौरान स्वामी चिन्मयानंद और योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ ने मंदिर निर्माण के लिए कंधे से कंधा मिला कर काम किया था. दोनों ने मिल कर राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति की स्थापना भी की थी. उन के बीच करीबी रिश्ता था.

अटल सरकार में मंत्री पद से हटने के बाद स्वामी चिन्मयानंद का राजनीतिक रसूख हाशिए पर सिमट गया था. 2017 में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो स्वामी चिन्मयानंद का रसूख फिर से बढ़ गया. उन का दरबार सजने लगा था. तमाम नेता और अफसर वहां शीश झुकाने जाने लगे. मुमुक्षु आश्रम का दरबार एक तरह से सत्ता का केंद्र बन गया था.

कामिनी के पिता की तरफ से चिन्मयानंद उर्फ कृष्णपाल सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 376सी, 354बी, 342, 306 के तहत मुकदमा लिखाया गया. दूसरी ओर स्वामी चिन्मयानंद के वकील की तरफ से कामिनी और उस के दोस्तों संजय सिंह, सचिन और विक्रम के खिलाफ भादंवि की धारा 385, 506, 201, 35 और आईटी ऐक्ट 67ए के तहत 5 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

दोनों ही मुकदमों में गिरफ्तारी हो चुकी है. जानकार लोगों का मानना है कि रंगदारी के मुकदमे के सहारे यौनशोषण और बलात्कार के मुकदमे को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है.

पुलिस द्वारा आरोप लगाने वाली कामिनी के ही खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे 24 सितंबर को पकड़ कर जेल भेज दिया गया. इस के बाद विरोधी दलों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर चिन्मयानंद को बचाने के आरोप लगाए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कामिनी नाम परिवर्तित है.

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

 

कामुक तांत्रिक की काम विधा

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर की रहने वाली तबस्सुम बेहद खूबसूरत थी. उस की शादी शहर के ही रहने वाले नफीस अहमद से हुई थी. नफीस का अपना कारोबार था जिस से उसे अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. नफीस से निकाह कर के तबस्सुम खुश थी. उसे नफीस अपने सपनों के राजकुमार की तरह ही मिला था. नफीस भी तबस्सुम को बहुत प्यार करता था. तबस्सुम के व्यवहार की वजह से उस के सासससुर भी उसे बहुत चाहते थे. धीरेधीरे उन्होंने भी घर की बागडोर बहू तबस्सुम को सौंप दी थी. इस तरह हंसीखुशी के साथ उस का समय बीत रहा था.

हर सासससुर की तरह तबस्सुम के सासससुर भी यही चाहते थे कि उन की बहू जल्द मां बन जाए और यदि पहली बार में ही बेटे का जन्म हो जाए तो बात ही कुछ और होगी. फिर वह अपने पोते के साथ ही लगे रहेंगे. पर शादी को डेढ़दो साल हो गए, लेकिन वह मां नहीं बनी. धीरेधीरे 4 साल बीत गए लेकिन तबस्सुम गर्भवती नहीं हुई.

इस के बाद तो सासससुर ही नहीं बल्कि खुद तबस्सुम और नफीस भी परेशान रहने लगे. नफीस पत्नी को ले कर डाक्टर के पास गया. दोनों की कई तरह की जांच कराई गईं, जो सामान्य आईं. डाक्टर भी हैरान था कि सब कुछ सामान्य होने के बावजूद भी आखिर तबस्सुम को गर्भ क्यों नहीं ठहर रहा. फिर भी डाक्टर ने अपने हिसाब से उन दोनों का इलाज किया. इस के बावजूद भी तबस्सुम की कोख सूनी रही.

इस से तबस्सुम बहुत चिंतित रहने लगी. परेशान हाल इंसान को समाज में तमाम सलाहकार फ्री में मिल जाते हैं. लोग नफीस और तबस्सुम को भी तरहतरह की सलाह देने लगे. और वह सलाह भी उदाहरण के साथ देते थे कि फलां औरत वहां गई थी या उस डाक्टर, हकीम से इलाज कराया तो वह मां बन गई.

अपने मन में उम्मीद ले कर तबस्सुम भी लोगों की सलाह के अनुसार कई डाक्टरों, हकीमों के पास गई. तमाम धार्मिक स्थलों पर जा कर उस ने माथा टेका लेकिन उस की इच्छा पूरी नहीं हुई.

इस तरह शादी के 7 साल बाद भी तबस्सुम  की कोख नहीं भरी तो मोहल्ले के लोग ही नहीं, बल्कि सासससुर भी उसे बांझ समझने लगे. जो सास उसे सरआंखों पर बिठाए रहती थी वह ही उसे ताने देने लगी.

बातबात पर वह उसे बांझ कहती. अब तबस्सुम की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. हां, नफीस उसे समझाने की कोशिश करता था. केवल उस का पति ही था, जो हमेशा उस की हिम्मत बढ़ाता था.

तबस्सुम को जिस घर की जिम्मेदारी दी गई थी, सास के तानों ने उस का उसी घर में रहना दूभर कर दिया था. उस के जीवन में शांति तो जैसे कोसों दूर चली गई थी, इसलिए उस घर में रहना उसे अब अच्छा नहीं लगता था.

अब वह उस घर के बजाए कहीं और रहना चाहती थी. इस बारे में उस ने पति से बात की तो नफीस ने उस का साथ दिया और वह अपना घर छोड़ कर शहर की ही एडवोकेट कालोनी में किराए पर एक मकान में रहने लगा.

नफीस जिस कालोनी में रहता था, वह मकान शफीउल्लाह नाम के एक तांत्रिक का था. उस ने शहर के ही चंदननगर के एक मकान में अपना औफिस बना रखा था. वह यह धंधा कर के मोटी रकम कमा रहा था.

किराए के मकान में रहने पर तबस्सुम को एक सुकून यह मिल रहा था कि उसे यहां ताने देने वाला कोई नहीं था. इस तरह वह वहां रह कर शांति महसूस कर रही थी.

इस मकान में आए हुए तबस्सुम को करीब 20-22 दिन ही हुए थे कि एक दिन दोपहर के समय में जब वह कमरे में अकेली थी तभी मकान मालिक तांत्रिक शफीउल्लाह उस के कमरे में आया और उस का हालचाल पूछने लगा.

औपचारिकतावश तबस्सुम ने उसे चाय बना कर पिलाई. इसी दौरान शफी ने उस से कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि तुम संतान न होने की वजह से परेशान हो.  लेकिन अब चिंता मत करो. ऊपर वाले ने तुम्हारी गोद भरने के लिए ही तुम्हें मेरे यहां किराएदार बना कर भेजा है.’’

तबस्सुम की कुछ समझ में नहीं आया तो शफी ने उसे बताया कि वह तंत्रमंत्र का बड़ा जानकार है. तंत्रमंत्र से संतानहीन महिला की गोद भरने में उसे महारथ हासिल है. न मालूम कितनी महिलाएं उस से यह लाभ ले चुकी हैं. जिस के चलते लोग उसे गोद स्पेशलिस्ट बाबा भी कहते हैं.

तुम चिंता मत करो जल्द ही वक्त आने पर वह अपनी तांत्रिक शक्ति से उस की गोद भर देगा. साथ ही उस ने यह भी सलाह दी कि वह इस बारे में अपने पति से कोई बात नहीं करे. शफी की बात सुन कर तबस्सुम खुश हो गई. उसे लगा कि सचमुच अब उस का सपना सच हो जाएगा.

उस दिन के बाद शफी उसे अकसर अपने एक कमरे में उस के पति की गैरमौजूदगी में पूजा के लिए बुलाने लगा. चूंकि पूजा के बारे में पति को कुछ भी बताने से तांत्रिक शफी ने उसे मना कर रखा था इसलिए यह सारे काम तबस्सुम अपने शौहर से छिपा कर कर रही थी.

शुरुआती दौर में तो शफी पूजा के दौरान पूरी शराफत दिखाता था लेकिन बाद में धीरेधीरे वह उसे कभीकभार छूने भी लगा. तबस्सुम को छूने का उस का लगातार क्रम बढ़ता गया. कभीकभार वह पूजा के नाम पर उस के वक्षस्थल पर भी हाथ रख देता था. तबस्सुम को यह अजीब सा लगा.

उसे तांत्रिक शफी की नीयत पर शक होने लगा. इसलिए वह उस की पूजा में अरुचि दिखाने लगी. इस से शफीउल्लाह को इस बात का अंदाजा होने लगा कि यह उस से दूरी बनाने लगी है. चिडि़या कहीं पिंजरे से उड़ न जाए, यह सोच कर शफी ने भी वक्त जाया करना उचित नहीं समझा.

19 सितंबर, 2018 को शफी को इस का मौका भी मिल गया. एक रात तबस्सुम का पति नफीस इंदौर से बाहर गया था. यह देख कर शफी ने उसे रात में पूजा करने को बुलाया.

तबस्सुम का मन तो नहीं हुआ लेकिन जब शफी ने उसे पूजा को अधूरा बीच में छोड़ देने  के नुकसान बता कर डराया तो वह उस रोज तांत्रिक के कहने पर आधी रात में नहाने के बाद खुले गीले बाल ले कर उस के कमरे में चली गई. पूजा करते समय शफीउल्लाह ने उसे पीने के लिए जन्नती जल के नाम पर पीला सा पानी दिया, जिसे पी कर तबस्सुम को चक्कर सा आने लगा.

इस के बाद पूजा करने के नाम पर शफी  काफी देर तक उस के शरीर से छेड़छाड़ करता रहा, फिर उस ने उसे जमीन पर लिटा दिया और खुद भी उस के ऊपर लेट गया. तबस्सुम पर बेहोशी सी छाई हुई थी. उस समय वह उस का विरोध करने की हालत में नहीं थी. शफी ने उस के साथ बलात्कार किया.

इस के बाद तबस्सुम को होश आया तो उस ने शफी को खरीखोटी सुनाई. उस के तेवर देख शफी ने कहा कि यह सब उस ने उस की भलाई के लिए ही किया है. अब पूजा पूरी हो गई है. वह अपने पति के साथ पहली बार सोते ही गर्भधारण कर लेगी. शफी ने उसे धमकाया कि इस बारे में यदि उस ने किसी को बताया तो वह अपनी व पति की जान खो देगी.

तबस्सुम जान गई थी कि यह पूरा नाटक शफी ने उसे हासिल करने के लिए किया था. उसे खुद से नफरत हो रही थी, इसलिए उस ने कमरे पर पहुंचने के बाद अगले दिन गले में फंदा डाल कर आत्महत्या करने की कोशिश की. लेकिन अचानक पति के आ जाने के बाद वह ऐसा नहीं कर सकी.

पति ने उसे बचा लिया. फिर तबस्सुम ने पति को सारी कहानी बता दी. नफीस ने उसी दिन तांत्रिक का कमरा खाली कर दिया. चूंकि तांत्रिक शफीउल्लाह ने तबस्सुम को डरा दिया था इसलिए उस के पति की भी तांत्रिक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की हिम्मत नहीं हुई.

इस वाकये को हुए करीब 3 सप्ताह गुजर गए. तभी तबस्सुम के दिमाग में आया कि तांत्रिक के खिलाफ पुलिस से शिकायत जरूर करनी चाहिए वरना वह किसी और को अपना शिकार बनाएगा.

इस के बाद वह 9 अक्तूबर, 2018 को पति को साथ ले कर खजराना थाने पहुंच गई. टीआई कमलेश शर्मा को तबस्सुम ने सारी बात विस्तार से बता दी. उस की शिकायत पर पुलिस ने तांत्रिक शफीउल्लाह के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने शफीउल्लाह के घर दबिश डाली लेकिन वह घर पर नहीं मिला. वह फरार हो चुका था. तब पुलिस ने उस के पीछे मुखबिर लगा दिए.

10 अक्तूबर, 2018 को टीआई कमलेश शर्मा को मुखबिर द्वारा तांत्रिक के बारे में सूचना मिली. सूचना के बाद टीआई कमलेश शर्मा पुलिस टीम के साथ चंदननगर में स्थित एक मकान के पास पहुंचे.

उस समय रात हो चुकी थी. घर से लोभान के सुलगने की महक आ रही थी. टीआई ने उस मकान का दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद एक 26-27 साल की बेहद खूबसूरत युवती ने दरवाजा खोला. उस वक्त रात के 10 बजे थे. उस युवती के लंबे खुले बालों से टपकती पानी की बूंदों को देख कर लग रहा था कि वह अभीअभी नहा कर निकली है.

इतनी रात को उस के नहाने की बात आसानी से टीआई शर्मा के गले नहीं उतर रही थी. परंतु टीआई कमलेश शर्मा का टारगेट वह युवती नहीं बल्कि शफीउल्लाह था. उन्होंने उस युवती से शफीउल्लाह के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि बाबा अभी पूजा पर बैठ चुके हैं.

यह सुन कर टीआई ने कहा कि बाबा की पूजा हम थाने में करवा देंगे. फिर वह कमरे में घुस गए. पूजा का ढोंग कर रहे तांत्रिक शफीउल्लाह को उन्होंने गिरफ्तार कर लिया और इस की सूचना डीआईजी हरिनारायण चारी को दे दी. उन के निर्देश पर उन्होंने तांत्रिक के खिलाफ काररवाई शुरू की.

टीआई कमलेश शर्मा ने थाने ले जा कर शफीउल्लाह से पूछताछ की तो पहले तो वह खुद को नेक बंदा साबित करने पर तुला रहा. लेकिन पुलिस ने सख्ती की तो उस ने तंत्रमंत्र के नाम पर तबस्सुम को धोखे में रख कर उस के साथ बलात्कार करने की बात स्वीकार कर ली.

उस ने बताया कि वह आज फिर यही काम एक दूसरी महिला के साथ करने वाला था. वह अपने मकसद में सफल हो पाता उस से पहले वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

तथाकथित तांत्रिक शफीउल्लाह से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शफीउल्लाह का मैडिकल करवा कर उसे अदालत में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया.        द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में तबस्सुम और नफीस अहमद परिवर्तित नाम हैं.

सौजन्य- सत्यकथामार्च 2018

हर्ष नहीं था हर्षिता के ससुराल में

उस दिन जुलाई 2019 की 6 तारीख थी. सुबह के 10 बज चुके थे. कानपुर शहर के जानेमाने कागज व्यापारी पदम

अग्रवाल अपनी 80 फुटा रोड स्थित दुकान पर कारोबार में व्यस्त थे. कागज खरीदने वालों और कर्मचारियों की चहलपहल शुरू हो गई थी. तभी 11 बज कर 21 मिनट पर पदम अग्रवाल के मोबाइल पर काल आई. उन्होंने मोबाइल स्क्रीन पर नजर डाली तो काल उन की बेटी हर्षिता की थी. काल रिसीव कर पदम अग्रवाल ने पूछा, ‘‘कैसी हो बेटी? ससुराल में सब ठीक तो है?’’

हर्षिता रुंधे गले से बोली, ‘‘पापाजी, यहां कुछ भी ठीक नहीं है. सासू मां झगड़ा कर रही हैं और मुझे प्रताडि़त कर रही हैं. उन्होंने मेरे गाल पर कई थप्पड़ मारे और झाडू से भी पीटा. पापा, मुझे ऐसा लग रहा है कि ये लोग मुझे जान से मारना चाहते हैं. इस षड्यंत्र में मेरी ननद परिधि और उस का पति आशीष भी शामिल हैं. सासू मां ने मुझ से कार की चाबी छीन ली है और दरवाजा लाक कर दिया है. पापा, आप जल्दी से मेरी ससुराल आ जाइए.’’

बेटी हर्षिता की व्यथा सुन कर पदम अग्रवाल का मन व्यथित हो उठा, गुस्सा भी आया. उन्होंने तुरंत अपने दामाद उत्कर्ष को फोन मिलाया, लेकिन उस का फोन व्यस्त था, बात नहीं हो सकी. तब उन्होंने अपने समधी सुशील अग्रवाल को फोन कर के हर्षिता के साथ उस की सास रानू अग्रवाल द्वारा मारपीट की जानकारी दी और मध्यस्तता की बात कही.

दुकान पर चूंकि भीड़ थी. इसलिए पदम अग्रवाल को कुछ देर रुकना पड़ा. अभी वह हर्षिता की ससुराल एलेनगंज स्थित एल्डोराडो अपार्टमेंट जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि 12 बज कर 42 मिनट पर उन के मोबाइल पर पुन: काल आई. इस बार काल उन के समधी सुशील अग्रवाल की थी.

उन्होंने काल रिसीव की तो सुशील कांपती आवाज में बोले, ‘‘पदम जी, आप जल्दी घर आ जाइए.’’ पदम उन से कुछ पूछते, उस के पहले ही उन्होंने फोन का स्विच औफ कर दिया.

समधी की बात सुन कर पदम अग्रवाल बेचैन हो गए. उन के मन में विभिन्न आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगीं. वह कार से पहले घर  पहुंचे फिर वहां से पत्नी संतोष व बेटी गीतिका को साथ ले कर हर्षिता की ससुराल के लिए निकल पड़े. हर्षिता की ससुराल कानपुर शहर के कोहना थाने के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र एलेनगंज में थी. सुशील अग्रवाल का परिवार एलेनगंज के एल्डोराडो अपार्टमेंट की सातवीं मंजिल के फ्लैट नं. 706 में रहता था.

क्षतविक्षत मिला हर्षिता का शव पदम अग्रवाल सर्वोदय नगर में रहते थे. सर्वोदय नगर से हर्षिता की ससुराल की दूरी 5 कि.मी. से भी कम थी. उन्हें कार से वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. वह कार से उतर कर आगे बढे़ तो वहां का दृश्य देख कर वह अवाक रह गए.

अपार्टमेंट के बाहर फर्श पर उन की बेटी हर्षिता का क्षतविक्षत शव पड़ा था और सामने गैलरी में हर्षिता का पति उत्कर्ष, सास रानू, ससुर सुशील तथा ननद परिधि मुंह झुकाए खडे़ थे. पदम के पूछने पर उन लोगों ने बताया कि हर्षिता ने सातवीं मंजिल की खिड़की से कूद कर जान दे दी.

उन लोगों की बात सुन कर पदम अग्रवाल गुस्से से बोले, ‘‘मेरी बेटी हर्षिता ने स्वयं कूद कर जान नहीं दी. तुम लोगों ने दहेज के लिए उसे सुनियोजित ढंग से मार डाला है. मैं तुम लोगों को किसी भी हालत में नहीं छोड़ूंगा.

इसी के साथ उन्होंने मोबाइल फोन द्वारा थाना कोहना पुलिस को घटना की सूचना दे दी. उन्होंने अपने परिवार तथा सगे संबंधियों को भी घटना के बारे में बता दिया. खबर मिलते ही पदम के भाई मदन लाल, मनीष अग्रवाल, भतीजा गोपाल और साला मनोज घटनास्थल पर आ गए.

हर्षिता का क्षतविक्षत शव देख कर मां संतोष दहाड़ मार कर रोने लगी थीं. रोतेरोते वह अर्धमूर्छित हो गईं. परिवार की महिलाओं ने उन्हें संभाला और मुंह पर पानी के छींटे मार कर होश में लाईं. गीतिका भी छोटी बहन की लाश देख कर फफक रही थी. रोतेरोते वह मां को भी संभाल रही थी. मां बेटी का करूण रुदन देख कर परिवार की अन्य महिलाओं की आंखों में भी अश्रुधारा बहने लगी.

इधर जैसे ही कोहना थानाप्रभारी प्रभुकांत को हर्षिता की मौत की सूचना मिली, वह पुलिस टीम के साथ एल्डोराडो अपार्टमेंट आ गए. आते ही उन्होंने घटनास्थल को कवर कर दिया, ताकि कोई सबूतों से छेड़छाड़ न कर सके. मामला चूूंकि 2 धनाढ्य परिवारों का था. इसलिए उन्होंने तत्काल घटना की खबर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

खबर पाते ही एडीजी प्रेम प्रकाश, आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी अनंत देव तिवारी, सीओ (कर्नलगंज) जनार्दन दुबे और सीओ (स्वरूप नगर) अजीत सिंह चौहान घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. साथ ही उपद्रव की आशंका से थाना काकादेव, स्वरूप नगर तथा कर्नलगंज से पुलिस फोर्स मंगवा ली.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वह भी दहल उठे. हर्षिता  अपार्टमेंट की सातवीं मंजिल की खिड़की से गिरी थी. अधिक ऊंचाई से गिरने के कारण उस के सिर की हड्डियां चकनाचूर हो गई थीं और चेहरा विकृत हो गया था. शरीर के अन्य हिस्सों की भी हड्डियां टूट गई थीं.

हर्षिता का रंग गोरा था और उस की उम्र 27 वर्ष के आसपास थी. पुलिस अधिकारियों ने फ्लैट नं. 706 की किचन के बराबर वाली उस खिड़की का भी मुआयना किया जहां से हर्षिता कूदी थी या फिर उसे फेंका गया था.

फ्लैट से पुलिस को कोई ऐसी संदिग्ध वस्तु नहीं मिली जिस से साबित होता कि हर्षिता की हत्या की गई थी. फोरैंसिक टीम ने भी एक घंटे तक जांच कर के साक्ष्य जुटाए. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने हर्षिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपत राय चिकित्सालय भिजवा दिया.

घटनास्थल पर अन्य लोगों के अलावा हर्षिता का पति उत्कर्ष तथा उस के माता पिता मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने सब से पहले मृतका के पति उत्कर्ष से पूछताछ की. उसने बताया कि वह हर्षिता से बहुत प्यार करता था, लेकिन उस के जाने से सब कुछ खत्म हो गया है. शादी के बाद वह दोनों बेहद खुश थे. मम्मीपापा भी उसे काफी प्यार करते थे. उसे अपना फोटोग्राफी का व्यवसाय शुरू कराने वाले थे, आनेजाने के लिए उसे कार भी दे रखी थी. कहीं आनेजाने पर कोई रोकटोक नहीं थी.

28 मई से 16 जून 2019 तक वे दोनों अमेरिका में रहे, तब भी भविष्य को ले कर सपने बुने लेकिन क्या पता था कि सारे सपने टूट जाएंगे. आज मैं और पापा फैक्ट्री में थे तभी मम्मी का फोन आया. हम लोग तुरंत घर आए. हर्षिता खिड़की से नीचे कैसे गिरी उसे पता नहीं है.

हर्षिता के ससुर सुशील कुमार अग्रवाल ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि उन्हें अपनी फैक्ट्री मंधना से तांतियागंज में शिफ्ट करनी थी. माल ढुलाई के लिए वह आज सुबह 9 बजे ही फैक्ट्री पहुंच गए थे. उस समय घर में सबकुछ ठीकठाक था.

दोपहर 12.35 बजे पत्नी रानू ने फोन कर बताया कि बहू हर्षिता अपार्टमेंट की खिड़की से गिर गई है. यह पता चलते ही उन्होंने हर्षिता के पिता को फोन किया और फौरन घर आने को कहा. फिर बेटे उत्कर्ष को साथ ले कर घर के लिए चल दिए. घर पहुंचे तो वहां बहू हर्षिता की लाश नीचे पड़ी मिली.

मृतका हर्षिता की सास रानू अग्रवाल ने बताया कि सुबह 9 बजे के लगभग उत्कर्ष अपने पापा के साथ मंधना स्थित फैक्ट्री चला गया था. बरसात थमने के बाद नौकरानी आ गई. उस के आने के बाद वह एक जरूरी कुरियर करने जाने लगी. उस वक्त बहू हर्षिता सफाई कर रही थी. शायद वह खिड़की के पास कबूतरों द्वारा फैलाई गई गंदगी को साफ कर रही थी.

नौकरानी ने खोला भेद  वह कुरियर का पैकेट ले कर फ्लैट के दरवाजे के पास ही पहुंची थी कि नौकरानी के चिल्लाने की आवाज आई. वह वहां पहुंची तो देखा कि हर्षिता खिड़की से नीचे गिर गई है. नौकरानी ने उसे खींचने की कोशिश की लेकिन वह उसे बचा नहीं पाई. इस पर उस ने शेर मचाया और नीचे जा कर देखा. बहू की मौत हो चुकी थी. फिर उस ने जानकारी फोन पर पति को दी.

फ्लैट पर नौकरानी शकुंतला मौजूद थी. पुलिस अधिकारियों ने उस से पूछताछ की. उस ने मालकिन रानू अग्रवाल के झूठ का परदाफाश कर दिया और सारी सच्चाई बता दी. शकुंतला ने बताया कि वह सुबह साढे़ 9 बजे फ्लैट पर पहुंची थी.

उस समय भैया (उत्कर्ष) और उन के पापा (सुशील) फैक्ट्री जा चुके  थे. भाभी (हर्षिता) और मालकिन रानू ही फ्लैट में मौजूद थी. किसी बात पर उन में विवाद हो रहा था.

मालकिन भाभी से कह रही थीं कि नौकरानी को 8 हजार रुपए दिए जाते हैं और तुम कमरे में पड़ी रहती हो. घर का काम नहीं कर सकतीं. इस के बाद दोनों में नौकझोंक होने लगी. इसी नौकझोंक में मालकिन ने भाभी को 2-3 थप्पड़ जड ़दिए और फिर झाडू उठा कर मारने लगीं. तब भाभी कार की चाबी ले कर बाहर जाने लगीं. पर मालकिन गेट पर खड़ी हो गईं.

मेनगेट बंद कर ताला लगा लिया और चाबी अपने पास रख ली. गुस्से में भाभी ने सिर दीवार से टकराने की कोशिश की तो मैं ने मना किया. फिर वह खिड़की से नीचे कूदने लगीं तो मैं ने उन का हाथ पकड़ कर खींच लिया और कमरे में ले आई.

इस के बाद वह बरतन धोने लगी. लगभग साढे़ 12 बजे मालकिन चिल्लाईं तो मैं वहां पहुंची. मैं ने देखा कि भाभी खिड़की से नीचे लटकी थीं. मैं ने उन के पैर का पंजा व कुरता पकड़ कर ऊपर खींचने की कोशिश की, लेकिन बचा नहीं पाई. इस दौरान मालकिन पीछे खड़ी रहीं. उन्होंने मदद नहीं की.

नौकरानी शकुंतला के बयानों के बाद थानाप्रभारी प्रभुकांत ने पुलिस अधिकारियों के आदेश पर रानू अग्रवाल को महिला पुलिस के सहयोग से हिरासत में ले लिया. उसे हिरासत में लेते ही मृतका के मायके वालों का गुस्सा फूट पड़ा. महिलाएं हत्यारिन सास कह कर रानू पर टूट पड़ीं.

पुलिस ने बड़ी मशक्कत से रानू अग्रवाल को हमलावर महिलाओं से बचाया और उसे पुलिस सुरक्षा में जीप में बिठा कर थाना कोहना भेज दिया. पुलिस को शक था कि कहीं मायके वाले उत्कर्ष व उस के पिता सुशील कुमार पर भी हमला न कर दें. इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें भी थाने भेज दिया गया.

पुलिस अधिकारियों ने मृतका हर्षिता के पिता पदम अग्रवाल से घटना के संबंध में जानकारी ली तो वह फफक पडे़ और बोले, ‘‘मैं ने हर्षिता को बडे़ लाडप्यार से पालपोस कर बड़ा किया, पढ़ायालिखाया था. शादी भी बडे़ अरमानों के साथ की थी. उस की शादी में करीब 40 लाख रुपए खर्च किया था. इस के बावजूद ससुराल वालों का पेट नहीं भरा. शादी के कुछ दिन बाद ही वह रुपयों के लालच में बेटी को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडि़त करने लगे थे.

‘‘मार्च 2019 में समधी सुशील कुमार की बेटी परिधि की शादी थी. शादी के लिए उन्होंने हर्षिता के मार्फत 25 लाख रुपए मांगे थे. लेकिन उस ने मना कर दिया था. तब पूरा परिवार बेटी को प्रताडि़त करने लगा. फैक्ट्री शिफ्ट करने के लिए भी कभी 30 लाख तो कभी 40 लाख की मांग की थी.

‘‘आज 11.20 बजे हर्षिता ने फोन कर के सास द्वारा प्रताडि़त करने की जानकारी दी थी. उस ने जानमाल का खतरा भी बताया था. आखिर दहेज लोभियों ने मेरी बेटी को मार ही डाला. आप से मेरा अनुरोध है कि इन दहेज लोभियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर के इन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाने में मदद करें.’’

ससुराल वालों के खिलाफ हुआ केस दर्ज पदम अग्रवाल की तहरीर पर कोहना थानाप्रभारी प्रभुकांत ने भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 506 तथा दहेज अधिनियम की  धारा 3/4 के अंतर्गत हर्षिता की सास रानू अग्रवाल, पति उत्कर्ष अग्रवाल, ससुर सुशील कुमार  अग्रवाल, ननद परिधि और ननदोई आशीष जालौन के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. मामले की जांच का कार्य सीओ (कर्नलगंज) जनार्दन दुबे को सौंपा गया.

7 जुलाई, 2019 को हर्षिता का जन्म दिन था. बर्थ  डे पर ही उस की अरथी उठी. पदम अग्रवाल की लाडली बेटी का जन्म 7 जुलाई, 1991 को रविवार के दिन हुआ था. 28 साल बाद उसी तारीख और रविवार के दिन घर से बेटी की अरथी उठी.

उसी दिन उस के शव का पोस्टमार्टम हुआ. दोपहर बाद शव घर पहुंचा तो वहां कोहराम मच गया. लाल जोडे़ में सजी अरथी को देख कर मां संतोष बेहोश हो गई. महिलाओं ने उन्हें संभाला. हर्षिता को अंतिम विदाई देने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा.

हर्षिता की मौत का समाचार 7 जुलाई को कानपुर से प्रकाशित प्रमुख समाचार पत्रों में प्रमुखता से छपा तो शहर वासियों में गुस्सा छा गया. लोग एक सुर से हर्षिता को न्याय दिलाने की मांग करने लगे. सामाजिक संगठन, महिला मंच, मुसलिम महिला संगठन, जौहर एसोसिएशन आदि ने घटना की घोर निंदा की और एकजुट हो कर हर्षिता को न्याय दिलाने का आह्वान किया.

इधर विवेचक जनार्दन दुबे ने जांच प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण किया. फ्लैट को ख्ांगाला और घटना की अहम गवाह नौकरानी शकुंतला का बयान दर्ज किया. साथ ही फ्लैट के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखीं. आरोपियों के बयान भी दर्ज किए गए. साथ ही मृतका के मातापिता का बयान भी लिया गया.

जांच के बाद ससुरालियों द्वार हर्षिता को प्रताडि़त करने का आरोप सही पाया गया. इस में सब से बड़ी भूमिका हर्षिता की सास रानू की थी. यह बात भी सामने आई कि उत्कर्ष और सुशील कुमार अग्रवाल भी हर्षिता को प्रताडि़त करते थे. रानू अग्रवाल हर्षिता को सब से ज्यादा प्रताडि़त करती थी.

जांच के बाद 7 जुलाई, 2019 को थाना कोहना पुलिस ने अभियुक्त रानू अग्रवाल, उत्कर्ष अग्रवाल तथा सुशील अग्रवाल को विधि सम्मत गिरफ्तार कर लिया. रानू अग्रवाल को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया. जहां से उसे जेल भेज दिया गया. दूसरे रोज 8 जुलाई को उत्कर्ष तथा सुशील को कोर्ट में पेश किया गया. जहां से उन दोनों को भी जेल भेज दिया गया.

हर्षिता की मौत के मामले में नामजद 5 आरोपियों में से 3 जेल चले गए थे, जबकि 2 आरोपी हर्षिता की ननद परिधि जालान तथा ननदोई आशीष जालान बाहर थे. सीओ जनार्दन दुबे की विवेचना में ये दोनों निर्दोष पाए गए. रिपोर्टकर्ता पदम अग्रवाल ने भी इन दोनों को क्लीन चिट दे दी थी. इसलिए विवेचक ने दोनों का नाम मुकदमे से हटा दिया.

हर्षिता की मौत के गुनहगारों को पुलिस ने हालांकि जेल भेज दिया था, लेकिन कानपुर वासियों का गुस्सा अब भी ठंडा नहीं पड़ा था. सामाजिक संगठन, महिला मंच आल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेंस एसोसिएशन, मौलाना मोहम्मद अली जौहर एसोसिएशन महिला संगठन तथा स्कूली छात्राएं सड़कों पर प्रदर्शन कर रही थीं

10 जुलाई को भारी संख्या में महिलाएं छात्राएं तथा सामाजिक संगठनों के लोग मोतीझील स्थित राजीव वाटिका पर जुटे और हर्षिता की मौत के गुनहगारों को फांसी की सजा दिलाने के लिए शांति मार्च निकाला. इस दौरान हर किसी की आंखों में गम और चेहरे पर गुस्सा था.

हर्षिता की मौत को ले कर मुसलिम महिलाओं में भी आक्रोश था. इसी कड़ी में हर्षिता को न्याय दिलाने के लिए मौलाना मोहम्मद अली जौहर एसोसिएशन की महिला पदाधिकारियों ने हलीम मुसलिम कालेज चौराहे पर श्रद्धांजलि सभा की, फिर कैंडिल मार्च निकाला. कैंडिल मार्च का नेतृत्व जैनब कर रही थीं. मुसलिम महिलाएं हाथ में ‘जस्टिस फार हर्षिता’, ‘हत्यारों को फांसी दो’ लिखी तख्तियां लिए थीं.

पदम अग्रवाल ने विवेचक पर आरोप लगाया कि वह जांच को प्रभावित कर के आरोपियों को फायदा पहुंचा रहे हैं. इस की शिकायत उन्होंने डीएम विजय विश्वास पंत से की. साथ ही आईजी मोहित अग्रवाल व एसएसपी अनंतदेव को भी इस बात से अवगत कराया.

पदम अग्रवाल की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए आईजी मोहित अग्रवाल ने सीओ (कर्नलगंज) जनार्दन दुबे से जांच हटा कर सीओ (स्वरूपनगर) अजीत सिंह चौहान को सौंप दी. जांच की जिम्मेदारी मिलते ही अजीत सिंह चौहान ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा फ्लैट में जा कर बारीकी से जांच की. साथ ही पदम अग्रवाल, उन की पत्नी संतोष, बेटी गीतिका तथा हर्षिता के पड़ोसियों का बयान दर्ज किया. फोरैंसिक टीम को साथ ले कर उन्होंने क्राइम सीन को भी दोहराया.

कानपुर महानगर के काकादेव थाना क्षेत्र में पौश इलाका है सर्वोदय नगर. इसी सर्वोदय नगर क्षेत्र के मोती विहार में पदम अग्रवाल अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी संतोष के अलावा 2 बेटियां गीतिका व हर्षिता थीं. पदम अग्रवाल कागज व्यापारी हैं. कागज का उन का बड़ा कारोबार है. 80 फुटा रोड पर उन का गोदाम तथा दुकान है. अग्रवाल समाज में उन की अच्छी प्रतिष्ठा है.

पदम अग्रवाल अपनी बड़ी बेटी गीतिका की शादी कर चुके थे. वह अपनी ससुराल में खुशहाल थी. गीतिका से छोटी हर्षिता थी, वह भी बड़ी बहन गीतिका की तरह खूबसूरत, हंसमुख तथा मृदुभाषी थी. उस ने छत्रपति शाहूजी महाराज (कानपुर) यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन कर लिया था.

हर्षिता को फोटोग्राफी का शौक था. वह फोटोग्राफी से अपना कैरियर बनाना चाहती थी. इस के लिए उस ने न्यूयार्क इंस्टीट्यूट औफ फोटोग्राफी से प्रोफेशनल फोटोग्राफी का कोर्स पूरा कर लिया था.

हर्षिता जहां फोटोग्राफी के व्यवसाय की ओर अग्रसर थी, वहीं पदम अग्रवाल अपनी इस बेटी के हाथ पीले कर उसे ससुराल भेज देना चाहते थे. वह ऐसे घरवर की तलाश में थे, जहां उसे मायके की तरह सभी सुखसुविधाएं मुहैया हों. काफी प्रयास के बाद एक विचौलिए के मार्फत उन्हें उत्कर्ष पसंद आ गया.

उत्कर्ष के पिता सुशील कुमार अग्रवाल अपने परिवार के साथ कानपुर के कोहना थाना क्षेत्र स्थित एल्डोराडो अपार्टमेंट की 7वीं मंजिल पर फ्लैट नंबर 706 में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रानू अग्रवाल के अलावा बेटा उत्कर्ष तथा बेटी परिधि थीं. दोनों ही बच्चे अविवाहित थे.

सुशील कुमार धागा व्यापारी थे. मंधना में उन की अनुशील फिलामेंट प्राइवेट लिमिटेड नाम से पौलिस्टर धागा बनाने की फैक्ट्री थी. उत्कर्ष अपने पिता सुशील के साथ धागे की फैक्ट्री को चलाता था. वह पढ़ालिखा और स्मार्ट था. पदम अग्रवाल ने उसे अपनी बेटी हर्षिता के लिए पसंद कर लिया. हर्षिता और उत्कर्ष ने एकदूसरे को देखा, तो वे दोनों भी शादी के लिए राजी हो गए. इस के बाद रिश्ता तय हो गया.

हर्षिता की जिंदगी में आया उत्कर्ष रिश्ता तय होने के बाद 24 जनवरी, 2017 को उत्कर्ष के साथ हर्षिता की शादी संपन्न हो गई. शादी मध्य प्रदेश के ओरछा रिसोर्ट में हुई थी. इस शादी में कानपुर शहर के उद्योगपतियों के अलावा अनेक जानीमानी हस्तियां शामिल हुई थीं. पदम अग्रवाल ने इस शादी में लगभग 40 लाख रुपया खर्च किए. उन्होंने बेटी को ज्वैलरी के अलावा उस की ससुराल वालों को वह सब दिया था, जिस की उन्होंने डिमांड की थी.

शादी के बाद 6 माह तक हर्षिता के जीवन में बहार रही. सासससुर व पति का उसे भरपूर प्यार मिला. लेकिन उस के बाद सास व ननद के ताने शुरू हो गए. उस पर घरगृहस्थी का बोझ भी लाद दिया गया. घर की साफसफाई कपडे़ व रसोई का काम भी उसे ही करना पड़ता.

नौकरानी कभी रख ली जाती तो कभी उस की छुट्टी कर दी जाती. काम करने के बावजूद हर्षिता के हर काम में टोकाटाकी की जाती. सास ताने देती कि तुम्हारी मां ने यह नहीं सिखाया, वह नहीं सिखाया.

धीरेधीरे हर्षिता की सास रानू अग्रवाल के जुल्म बढ़ने लगे. रानू हर्षिता के उठनेबैठने, सोने पर आपत्ति जताने लगी थी. खानेपीने व घर के बाहर जाने पर भी आपत्ति जताती और प्रताडि़त करती थी. हर्षिता जब कभी घर से ब्यूटीपार्लर जाती तो सजासंवरा देख कर ऐसे ताने मारती कि हर्षिता का दिल छलनी हो जाता.

वह उत्कर्ष से शिकायत करती तो उत्कर्ष मां का ही पक्ष लेता और उसे प्रताडि़त करता. ससुर सुशील अग्रवाल भी अपनी पत्नी रानू के उकसाने पर हर्षिता को दोषी ठहराते और प्रताडि़त करते.

हर्षिता मायके जाती, लेकिन ससुराल वालों की प्रताड़ना की बात नहीं बताती थी. वह सोचती थी कि आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा. पर एक रोज मां ने प्यार से बेटी के सिर पर हाथ फेर कर पूछा तो हर्षिता के मन का गुबार फट पडा.

वह बोली, ‘‘मां, आप लोगों से दामाद चुनने में भूल हो गई. उस के मातापिता का व्यवहार ठीक नहीं है. सभी मुझे प्रताडि़त करते हैं.’’

बेटी की व्यथा से व्यथित मां संतोष ने हर्षिता को ससुराल नहीं भेजा. इस पर उत्कर्ष ससुराल आया और हर्षिता तथा संतोष से माफी मांग कर हर्षिता को साथ ले गया

हर्षिता के ससुराल आते ही उसे फिर प्रताडि़त किया जाने लगा. उस पर अब 25 लाख रुपए दहेज के रूप में लाने का दबाव बनाया जाने लगा.

दरअसल हर्षिता की ननद परिधि की शादी तय हो गई थी. शादी के लिए ही पति, सासससुर हर्षिता पर रुपए लाने का दबाव बना रहे थे. रुपए न लाने पर उन का जुल्म बढ़ने लगा था.

23 नवंबर, 2018 को हर्षिता के चचेरे भाई की शादी थी. हर्षिता शादी में शामिल होने आई तो उस ने मां को 25 लाख रुपया मांगने तथा प्रताडि़त करने की बात बताई. इस पर पदम अग्रवाल ने हर्षिता को ससुराल नहीं भेजा. 2 हफ्ते बाद उत्कर्ष अपने पिता सुशील के साथ आया और दोनों ने हाथ जोड़ कर माफी मांगी. सुशील ने अपनी पत्नी रानू के गलत व्यवहार के लिए भी माफी मांगी, साथ ही हर्षिता को प्रताडि़त न करने का वचन दिया, तभी हर्षिता को ससुराल भेजा गया.

सुशील कुमार अग्रवाल ने फैक्ट्री में नई मशीनें लगाने के लिए लगभग 2.5 करोड़ रुपए बैंक से लोन लिया था. इस लोन की भरपाई हेतु सुशील ने कभी 30 लाख, तो कभी 40 लाख की डिमांड की. लेकिन पदम अग्रवाल ने रुपया देने से मना कर दिया था.

हर्षिता की सास रानू अग्रवाल व पति उत्कर्ष ने भी हर्षिता के मार्फत लाखों रुपए मायके से लाने की बात कही. रुपए लाने से मना करने पर हर्षिता को परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी.

मई, 2019 में पदम अग्रवाल ने अमेरिका घूमने का प्लान बनाया. उन के साथ बड़ी बेटी गीतिका व उस का पति भी जा रहा था. पदम अग्रवाल ने हर्षिता व उस के पति उत्कर्ष को भी साथ ले जाने का निश्चय किया.

हर्षिता की सास रानू नहीं चाहती थी कि हर्षिता घूमने जाए. अत: उस ने हर्षिता का टिकट बुक कराने से मना कर दिया. तब पदम अग्रवाल ने ही बेटीदामाद का टिकट बुक कराया. 25 मई को पदम अग्रवाल अपनी पत्नी तथा दोनों दामाद व बेटियों के साथ टूर पर चले गए.

सास ने की बहू हर्षिता की पिटाई  16 जून को वे सब अमेरिका से लौट आए. टूर से लौटने के बाद हर्षिता मायके में ही रुक गई. वह ससुराल नहीं जाना चाहती थी. लेकिन उत्कर्ष माफी मांग कर तथा समझा कर हर्षिता को ले गया. ससुराल पहुंचते ही सास रानू अग्रवाल हर्षिता को बातबेबात मानसिक रूप से प्रताडि़त करने लगी. उस ने हर्षिता के ब्यूटीपार्लर जाने पर भी रोक लगा दी. हर्षिता घर से निकलती तो वह कार की चाबी छीन लेती और मारपीट पर उतारू हो जाती.

6 जुलाई, 2019 को जब उत्कर्ष तथा सुशील फैक्ट्री चले गए तो घरेलू काम करने को ले कर सासबहू में झगड़ा होने लगा. कुछ देर बाद नौकरानी शकुंतला आ गई. तब भी दोनों में झगड़ा हो रहा था. तकरार ज्यादा बढ़ी तो किसी बात का जवाब देने पर सास रानू ने हर्षिता के गाल पर 2-3 थप्पड़ जड़ दिए तथा झाड़ू से पीटने लगी.

गुस्से में हर्षिता ने पर्स और कार की चाबी ली और घर के बाहर जाने लगी. यह देख कर रानू दरवाजे पर जा खड़ी हुई और उस ने मुख्य दरवाजा लौक कर दिया. इस पर गुस्से में हर्षिता किचन की बराबर वाली खिड़की पर पहुंची और वहां से कूदने लगी. लेकिन शकुंतला ने उसे खींच लिया और कमरे में ले आई.

इस के बाद शकुंतला बरतन साफ करने लगी. लगभग साढ़े 12 बजे रानू चिल्लाई तो शकुंतला वहां पहुंची. लेकिन हर्षिता खिड़की से कूद चुकी थी. हर्षिता स्वयं कूदी या सास रानू ने उसे धक्का दिया, शकुंतला नहीं देख पाई. हर्षिता जीवित है या मर गई, यह देखने के लिए रानू अपार्टमेंट के नीचे आई. उस ने हर्षिता का पर्स व चाबी उठाई, फिर हर्षिता की कलाई पकड़ कर नब्ज टटोली. इस के बाद उस ने पति सुशील को फोन किया, ‘‘जल्दी घर आओ. हर्षिता खिड़की से कूद गई है.’’

जानकारी पाते ही सुशील ने समधी पदम अग्रवाल को घर आने को कहा और उत्कर्ष के साथ घर आ गए. कुछ देर बाद पदम अग्रवाल भी अपनी पत्नी संतोष व बेटी गीतिका के साथ आ गए और बेटी का शव देखकर रो पड़े. उन्होंने थाना कोहना में ससुराली जनों के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई.

रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने रानू, उत्कर्ष, तथा सुशील कुमार अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया. बाद में उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

दहेज हत्या के आरोपी सुशील कुमार अग्रवाल की जमानत हेतु जिला न्यायाधीश अशोक कुमार सिंह की अदालत में बचाव पक्ष के वकील ने अरजी दाखिल की. जिस पर 9 अगस्त को सुनवाई हुई. बचावपक्ष के वकील ने हृदय की बीमारी को आधार बना कर तथा दहेज न मांगने की बात कह कर अरजी दाखिल की थी.

बचावपक्ष के वकील ने हृदय की बीमारी के तर्क के जरिए कोर्ट में जमानत की गुहार लगाई. वहीं पीडि़त पक्ष के वकील ने न्यायालय में जमानत का विरोध करते हुए दलील दी कि हर्षिता की मृत्यु विवाह के ढाई वर्ष के अंदर ससुराल में असामान्य परिस्थितियों में हुई है. विवेचना में भी विवेचक को पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं. दहेज हत्या का अपराध गैरजमानती होने के साथसाथ गंभीर भी है.

दोनों वकीलों की दलील सुनने के बाद जज ने कहा कि दहेज हत्या जैसे मामले में उदारता नहीं बरती जा सकती. इस से पीडि़तों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास कम होगा. जहां तक आवेदक के बीमार होने की बात है, उसे जेल में इलाज मुहैया कराया जा सकता है. इस पर जज ने सुशील की जमानत खारिज कर दी. कथा संकलन तक सभी आरोपी जेल में बंद थे.

अंधविश्वास की पराकाष्ठा

साइंस ने भले ही कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो, भले ही हम डिजिटल युग में आ गए हों, जहां

ज्यादातर जरूरी काम बैठेबैठे हो जाते हैं. लेकिन इस के बावजूद अंधविश्वास ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा है. आश्चर्य तब होता है जब पढ़ेलिखे लोगों को अंधविश्वास के आगे सिर झुकाते देखा जाता है.

हमारे समाज के कितने ही लोग अपनी गलीसड़ी मानसिकता के साथ अभी तक अंधविश्वास की खाइयों में पड़े हैं. यह पिछले दिनों कौशांबी जिले के गांव बेरूई में देखने को मिला. खबर फैली कि 6 साल का बच्चा बीमार लोगों को छू कर इलाज कर रहा है. बीमारी कोई भी हो 6 वर्षीय गोलू बाबा के छूने भर से दूर हो जाती है.

इसी के चलते बेरुई में उस के घर के सामने लंबीलंबी कतारें लग रही हैं. आश्चर्य की बात यह कि उस के पास गांव कस्बों के लोग भी नहीं महानगरों के पढ़ेलिखे लोग भी आ रहे हैं. जिन के चलते गांव में मेला सा लग जाता है.

6 वर्षीय गोलू बाबा का मकान गांव के बाहर खेत पर बना था. उस के पिता का नाम है- राजू पासवान, गोलू उस का एकलौता बेटा था. बेरूई गांव में रोजाना हजारों की भीड़ जुट रही थी. राजू के मकान से कुछ दूर साइकिल स्टैड, मोटरसाइकिल स्टैंड बना दिए गए थे. वहां सैकड़ों की संख्या में साइकिलें, मोटरसाइकिलें खड़ी होने लगी थीं. थोड़ी दूर आगे टैंपो स्टैंड बनाया गया था. कुछ कारें भी वहां आने लगी थीं. प्रशासन की ओर से वहां 2 सिपाहियों और 2 होम गार्डों की ड्यूटी भी लगाई गई थी.

गोलू बाबा के दरबार में 2 लाइनें लगती थीं. एक पुरुषों की दूसरी औरतों की. भीड़ बढ़ी तो गांव के 4-5 युवकों ने 10 रुपए फीस ले कर टोकन बांटने शुरू कर दिए. मतलब यह कि गोलू बाबा उसी का स्पर्श करता था, जिस के पास टोकन होता था. टोकन नंबर से उस के पास जाया जाता था.

बेरूई गांव उतर प्रदेश के नवनिर्मित जिले कौशांबी में है. कौशांबी पहले इलाहाबाद जिले का कस्बा था. बाद में इलाहाबाद की 2 तहसीलों को सम्मिलित कर कौशांबी को नया जिला बना दिया गया. कौशांबी के थाना अंकिल सराय क्षेत्र का गांव बेरुई दलित बाहुल्य है. इस गांव में रहने वाले राजू पासवान के परिवार में पत्नी गोमती देवी के अलावा एक बेटी सरोजनी और एक बेटा गोलू था.

राजू के पास नाममात्र की जमीन थी. वह मेहनत मजदूरी कर के परिवार का भरणपोषण करता था. गांव में उस का मिट्टी का घर था, जो बरसात में गिर गया था. इस की जगह उस ने अपने खेत के किनारे पक्का मकान बनवा लिया था और उसी में परिवार के साथ रहने लगा था.

राजू पासवान का बेटा गोलू एकलौता बेटा था, इसलिए घरपरिवार के लोग उसे बहुत प्यार करते थे. चाचा मनोज का तो वह आंख का तारा था. घर आंगन में खेलकूद कर जब गोलू ने 4 वर्ष की उम्र पार की तो उसे बेरुई गांव के प्राथमिक स्कूल में दाखिल करा दिया गया. गोलू गांव के हमउम्र बच्चों के मुकाबले पढ़ने में कमजोर था. एक वर्ष बाद गोलू दूसरी कक्षा में आ गया.

अभी तक सब कुछ सामान्य था. राजू का परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा था. उस का बेटा गोलू सामान्य बालक की तरह हंसखेल कर बचपन व्यतीत कर रहा था. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घटी जिस ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया. अफवाह और अंधविश्वास ने रातोंरात राजू के बेटे गोलू को चमत्कारिक बना दिया. गोलू सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रौनिक मीडिया की सुर्खियों में आ गया.

गोलू बन गया चमत्कारी   6 वर्षीय बालक गोलू व उस की मां गोमती देवी के अनुसार 10 अगस्त, 2019 को गोलू अपनी नानी के घर से चाचा मनोज के साथ घर वापस लौट रहा था. अचानक वह यमुना नदी के पुल पर रुक गया. उस ने मनोज से कहा, ‘‘चाचा तुम थोड़ी देर रुको, मुझे मछलियां देखनी हैं.’’

मनोज थका हुआ था. वह यमुना किनारे पेड़ की छांव में लेट कर आराम करने लगा. जबकि गोलू यमुना के पानी में मछलियां देखने लगा. अचानक पानी में उसे एक बड़ी मछली दिखाई दी, जो नथुनी पहने थी. बड़ी मछली देख कर राजू डर कर मूर्छित हो गया. उस की मूर्छा तब टूटी, जब मछली ने उछल कर उस के मुंह पर पानी उड़ेला. मूर्छा टूटी तो मछली बोली, ‘‘तुम डरो नहीं, मैं ने तुम्हें दैवीय शक्ति दे दी है. आज के बाद तुम जिस व्यक्ति को अपने हाथों से छू दोगे, वह निरोगी हो जाएगा.’’

घर वापस आने पर गोलू ने मछली वाली कहानी अपने मातापिता व अन्य परिजनों को बताई तो उन्होंने सहजता से उस की बात पर विश्वास कर लिया. दूसरे दिन गोलू स्कूल गया तो उस ने साथ पढ़ने वाले बच्चों को मछली वाली कहानी बताई. बाल बुद्धि बच्चों ने कौतूहलवश गोलू की कहानी को सच मान लिया.

बच्चों ने गोलू से अपने शरीर को छूने को कहा. गोलू ने उन्हें छुआ तो वह चिल्लाने लगे कि मेरे शरीर का दर्द चला गया. बच्चों की बात स्कूल में पढ़ाने वाले मास्टर कृपाशंकर तक पहुंची तो उन्होंने बच्चों को डांटा और अफवाह न फैलाने की बात कही.

मास्टरजी ने बच्चों को तो डांट दिया. लेकिन अपने बारे में सोचने लगे, क्योंकि वह खुद कमर दर्द से पीडित थे. उन्हें लगा कि कहीं बच्चे सच तो नहीं कह रहे. उन्होंने गोलू को एकांत में बुला कर कमर छूने को कहा. गोलू ने जैसे ही कमर पर हाथ रखा तो उन्हें चट्ट की आवाज सुनाई दी और दर्द से राहत मिल गई.

स्कूल कर्मचारी सपना सिर दर्द से परेशान थी. गोलू के स्पर्श से उसे सिर दर्द में आराम मिल गया. इन दोनों को अपनेअपने दर्द में कोई राहत मिली थी या नहीं, यह तो वही जानें, लेकिन इस सब से स्कूल में गोलू की इज्जत बढ़ गई.

बेरूई गांव के आसपास के गांवों में अफवाह फैली तो लोग राजू के घर आ कर बालक गोलू से इलाज कराने लगे. गोलू जब स्कूल में होता तो लोग वहां भी पहुंच जाते और गोलू को जबरन स्कूल से बाहर ले आते. लोगों का स्कूल में आनाजाना शुरू हुआ तो हेडमास्टर ने राजू पासवान को बुलवा कर गोलू को स्कूल न भेजने का फरमान जारी कर दिया.

गोलू का स्कूल जाना बंद हुआ तो लोग उस के घर पर आने लगे. गोलू के मातापिता उसे सुबहसुबह नहलाधुला कर घर के बाहर तख्त पर बिठा देते. इस के बाद गोलू आने वाले लोगों को स्पर्श कर उन का रोग दूर करता. कहते हैं, अफवाह की चाल हवा से भी तेज होती है. शुरू में तो सौपचास लोग ही इलाज के लिए आते थे, लेकिन जब अफवाह एक गांव से दूसरे गांव में फैली तो राजू पासवान के घर पर भीड़ जुटने लगी.

अफवाह, अंधविश्वास और भीड़ जुटने की जानकारी जब थाना सराय अंकिल के थानाप्रभारी मनीष कुमार पांडेय को लगी तो वह पुलिस टीम के साथ बेरूई गांव पहुंचे. उन्होंने वहां मौजूद लोगों को समझाया कि विज्ञान के इस युग में आप लोग अंधविश्वास के चक्कर में न पड़ें. इस बालक में ऐसी कोई शक्ति नहीं है कि किसी के मर्ज ठीक कर सके. यह सब आप का वहम है.

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि वे कई ऐसे बाबाओं को जानते हैं, जो चमत्कार दिखा कर लोगों को बेवकूफ बनाते थे. मैं उन का नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन आज वे जेल में हैं और अदालत से जमानत की भीख मांग रहे हैं. इसलिए सभी से गुजारिश है कि आप अफवाह न फैलाएं और अंधविश्वास से दूर रहें.

लेकिन अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी होती हैं कि उन्हें उखाड़ फेंकना आसान नहीं होता. यहां भी ठीक ऐसा ही हुआ. अंधविश्वासी लोगों को इंसपेक्टर मनीष कुमार पांडेय की नसीहत नागवार लगी. इंसपेक्टर की नसीहत के बावजूद दूसरे रोज और ज्यादा भीड़ उमड़ पड़ी.

यह जान कर मनीष पांडेय खीझ गए. वह बेरूई गांव पहुंचे और बालक गोलू, उस की मां गोमती तथा पिता राजू पासवान को अज्ञात स्थान पर ले गए और तीनों को नजरबंद कर दिया.  होने लगी नेतागिरी पुलिस द्वारा गोलू तथा उस के मातापिता को नजरबंद करने की जानकारी लोक जनशक्ति पार्टी के दलित नेता राजीव पासवान को मिली तो वह अपने समर्थकों के साथ बेरूई गांव आए. गांव में उन्होंने पुलिस काररवाई को गलत बताते हुए भड़काऊ बयान दिया.

उन्होंने कहा कि 6 वर्षीय बालक गोलू गरीब दलित का बेटा है इसलिए पुलिस ने उसे व उस के मातापिता को नजरबंद कर दिया है. यही गोलू अगर किसी ब्राह्मण का बेटा होता तो पुलिस किसी पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे तख्त डाल कर बिठा देती और उस की सुरक्षा करती.

राजीव पासवान ने कहा कि वह गोलू व उस के मातापिता को रिहा कराने के लिए डीएम व एसपी से बात करेंगे. फिर भी बात न बनी तो लोक जनशक्ति पार्टी के नेता तथा केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान से मिलेंगे और तीनों को हर हाल में रिहा कराएंगे.

गोलू को नजरबंद हुए अभी 2 ही दिन बीते थे कि क्षेत्रीय विधायक संजय कुमार गुप्ता अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ बेरूई गांव आए. उन्होंने डीएम मनीष कुमार वर्मा तथा एसपी प्रदीप गुप्ता से मोबाइल फोन पर बात की और नजरबंद बालक गोलू तथा उस के मातापिता को बेरूई गांव बुलवा लिया.

बालक गोलू से मिलने और बातचीत करने के बाद विधायक संजय गुप्ता ने अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाला बयान दिया, जबकि उन्हें लोगों को अंधविश्वास से दूर रहने की नसीहत देनी चाहिए  थी.

विधायक संजय गुप्ता ने कहा कि बालक गोलू से बात कर के और उस के हाथों के स्पर्श से उन्हें भी बच्चे के अंदर दैवीय शक्ति की अनुभूति हुई है. गोलू नाम के इस बच्चे के ऊपर वाकई दैवीय कृपा है, जिस के छूने मात्र से असाध्य रोग ठीक हो जाता है.

उन्होंने आगे कहा कि यह बच्चा किसी को छूता है तो अंदर से चट्ट सी आवाज आती है. यह आवाज हमने भी सुनी है. निश्चित तौर पर जन कल्याण के लिए पैदा हुए इस बच्चे के माध्यम से लोगों को लाभ होगा, ऐसा मुझे विश्वास है.

विधायक के इस बयान के बाद अंधविश्वास को बढ़ावा मिला तो लोगों की भीड़ और भी ज्यादा जुटने लगी. इलाहाबाद, फतेहपुर, कानपुर, इटावा, उन्नाव और लखनऊ आदि जिलों से पीडि़त लोग आने लगे. भीड़ का रिकौर्ड तब टूटने लगा जब चमत्कारी बालक की खबरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं, प्रिंट मीडिया में छपने लगीं और इलेक्ट्रौनिक मीडिया पर दिखाई जाने लगीं. अभी तक लोग जिलों से ही आते थे. अब अन्य प्रदेशों से भी आने लगे.

अगस्त माह बीततेबीतते 15 दिनों में बेरूई गांव में 4-5 हजार लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई. जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन अंधाबहरा हो गया. हां, इतना जरूर हुआ कि कुछ बेरोजगारों को रोजगार मिल गया. गोलू बाबा के दरबार के बाहर कई दरजन चाय, पान और खानेपीने की दुकानें सज गईं.

आटो टैंपो वालों की आमदनी 10 से 20 गुना बढ़ गई. आसपास के जिलों के होटल मालिकों की भी आमदनी बढ़ गई. यही नहीं गोलू बाबा के परिजनों को भी अच्छी आमदनी होने लगी.

दरअसल, जब भीड़ बढ़ी तो गांव के कुछ दबंग युवकों ने गोलू के परिजनों के साथ मिल कर एक कमेटी बना ली और कमेटी मेंबरों को पहचान पत्र दे दिया गया. इस कमेटी के सदस्यों ने 10 रुपए में टोकन नंबर देने शुरू कर दिए, जो कमाई का बड़ा जरिया बना. गोलू बाबा से मिलने के लिए दिन रात टोकन दिए जाने लगे.

इन दबंगों ने विरोध करने वालों से निपटने के लिए लठैत युवकों को तैनात कर दिया गया, जिन्हें भीड़ को संभालने का जिम्मा सौंपा गया. टोकन नंबर धारी ही गोलू बाबा के पास पहुंचता और उस के तथाकथित स्पर्श पा कर रोग से राहत पाता.

आस्था और अंधविश्वास के मेले में ऐसे तमाम स्त्रीपुरुष थे, जिन का रोग गोलू बाबा के स्पर्श मात्र से ठीक हो गया था, लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो गोलू बाबा के स्पर्श से ठीक नहीं हुए थे. उन का कहना था कि यह सब अंधविश्वास है, लेकिन गोलू बाबा के समर्थक और कमेटी के लोग बाबा के विरुद्ध कुछ सुनना या बोलना पसंद नहीं करते थे.

बेहोश हो कर गिरा चमत्कारी बालक  कौशलपुरी (कानपुर नगर) निवासी रवींद्र मोहन ठक्कर सामाजिक कार्यकर्ता हैं. ठक्कर पेट रोग से पीडि़त थे, उन्हें एक टीवी चैनल के माध्यम से गोलू के बारे में पता चला तो वह बेरूई गांव आए. गोलू बाबा ने उन्हें स्पर्श किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

वह समझ गए कि यह सब अफवाह और अंधविश्वास है. उन्होंने कौशांबी पहुंच कर डीएम और एसपी से मिल कर अपना विरोध जताया और इस अंधविश्वास को जल्दी खत्म कराने की अपील की.

8 सितंबर, 2019 को गोलू बाबा के दरबार में लगभग 5-6 हजार लोगों की भीड़ जुटी थी. मरीजों के स्पर्श करने के दौरान गोलू बाबा की तबीयत बिगड़ गई. पुलिस प्रशासन को खबर लगी तो एसपी प्रदीप गुप्ता ने तत्काल मासूम बालक को अस्पताल में भरती करने का आदेश दिया.

आदेश पाते ही मझनपुर, कौशांबी कोतवाल उदयवीर सिंह, बेरूई गांव पहुंचे और गोलू को जीप में बिठा कर कौशांबी लाए. उसे जिला अस्पताल में भरती करा दिया गया. कौतूहलवश कई नर्स व कर्मचारी चमत्कारी बालक को देखने के लिए आए.

जिला चिकित्सालय के सीएमओ दीपक सेठ की देखरेख में बालरोग विशेषज्ञ डा. आर.के. निर्मल ने गोलू का शारीरिक परीक्षण किया और एमआरआई कराई.

शारीरिक परीक्षण के बाद डा. निर्मल कुमार ने बताया कि बालक शारीरिक रूप से स्वस्थ है उसे कोई बीमारी नहीं है. थकान के चलते वह मूर्छित हो गया था. उन्होंने यह भी बताया कि उस के शरीर में कोई दैवीय या चमत्कारिक शक्ति नहीं है. दूसरे बच्चों की तरह वह भी बालक है.

जिला अस्पताल में ही कोतवाल उदयवीर सिंह ने बालक गोलू से स्पर्श करा कर इलाज कराया. वह कमर दर्द से परेशान थे. नर्स रमा ने भी स्पर्श करा कर इलाज कराया. वह पीठ दर्द से पीडि़त थी. दोनों ने कहा कि उन का दर्द चला गया है.

कोतवाल उदयवीर सिंह द्वारा बालक के स्पर्श वाला इलाज कराने का वीडियो सोशल मीडया पर वायरल हुआ तो एडीजी इलाहाबाद ने नाराजगी जताई. यही नहीं उन्होंने त्वरित काररवाई करते हुए अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले इंसपेक्टर उदयवीर सिंह को लाइन हाजिर कर दिया.

आस्था और अंधविश्वास के बीच गोलू बाबा जब मीडिया की सुर्खियां बना तो चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के सदस्य भी गोलू की जांच करने पहुंचे. जांच के बाद कमेटी के सदस्य मोहम्मद रेहान ने इसे मात्र एक अफवाह और अंधविश्वास मानते हुए बच्चे के मौलिक अधिकारों का हनन बताया. साथ ही एसपी प्रदीप गुप्ता से जेजे एक्ट के प्रावधानों के तहत काररवाई करने की मांग की.

चाइल्ड वेयफेयर कमेटी की रिपोर्ट के बाद जिला पुलिस प्रशासन की नींद टूटी. एसपी प्रदीप गुप्ता ने 11 सितंबर, 2019 को बेरूई गांव में भारी पुलिस तैनात कर दिया, जिस ने भीड़ को वहीं से खदेड़ दिया. यही नहीं उन्होंने गोलू बाबा तथा उस के परिवार वालों को नजरबंद करा दिया. ताकि अंधविश्वासी उस से न मिल सके.

एसपी प्रदीप गुप्ता ने अंधविश्वास का मेला बंद तो करा दिया है, लेकिन अब सूबे के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, सांसद विनोद सोनकर, डीएम मनीष कुमार वर्मा तथा बाल विकास मंत्री, स्वाति सिंह की जिम्मेदारी है कि वह पुन: इस अंधविश्वास को न पनपने दें. साथ ही विधायक संजय गुप्ता तथा राजीव पासवान जैसे लोगों पर भी नजर रखें जिन्होंने सरे आम अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले बयान दिए.

बहरहाल यह तो समय ही बताएगा कि गोलू बाबा का दरबार पुन: चालू होगा या फिर बंद हो जाएगा. कथा संकलन तक गोलू बाबा उस के मातापिता थाना सराय अंकिल पुलिस थाने में नजरबंद थे. कुछ शरारती तत्वों, जिन की कमाई की दुकानें बंद हो गई थीं, ने पुलिस थाने पर धरनाप्रदर्शन भी किया.