जुर्म की दुनिया में दहशत फैलाने वाली Lady Don

शक्लसूरत से भले ही वह बहुत ज्यादा खूबसूरत नहीं है लेकिन वह है बहुत आकर्षक. कंधे तक झूलते बाल उसके सांवले लंबे चेहरे पर खूब फबते हैं. उस की नाजुक कलाइयों में शायद ही कभी किसी ने चूडि़यां देखी हों, लेकिन एके 47 को वह खिलौना गन की तरह चलाती थी. नाम है उस का अनुराधा सिंह चौधरी. वह अकसर लोगों को पैंटशर्ट या टीशर्ट जींस जैसे वेस्टर्न लुक में नजर आई. साड़ी सरीखा कोई परंपरागत भारतीय परिधान पहने भी उसे किसी ने शायद नहीं देखा.

लंबी, दुबलीपतली, छरहरी 36 वर्षीय इस महिला के चेहरे से दुनिया भर की मासूमियत टपकती थी. लेकिन वह थी कितनी खूंखार, इस का अंदाजा उस के गुनाहों की लिस्ट देख कर लगाया जा सकता है. राजस्थान के सीकर के गांव अलफसर के एक मध्यमवर्गीय जाट परिवार में जन्मी अनुराधा का घर का नाम मिंटू रखा गया था. जब वह बहुत छोटी थी तभी उस की मां चल बसी. पिता रामदेव की कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी, इसलिए वह दिल्ली आ गए. मिंटू जैसेजैसे बड़ी और समझदार होती गई, उसे यह एहसास होता गया कि जिंदगी में अगर कुछ बनना है तो पढ़ाईलिखाई बहुत जरूरी है. लिहाजा उस ने दिल लगा कर पढ़ाई की और वक्त रहते बीसीए और फिर एमबीए की भी डिग्री ले ली.

पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वह स्थाई रूप से सीकर वापस आई तो वही हुआ जो इस उम्र में लड़कियों के साथ होना आम बात है. अनुराधा को फैलिक्स दीपक मिंज नाम के युवक से प्यार हो गया और उस ने घर और समाज वालों के विरोध और ऐतराज की कोई परवाह नहीं की और दीपक से लवमैरिज कर ली. यहां तक अनुराधा ने कुछ गलत नहीं किया था. दीपक के साथ वह खुश थी और आने वाली जिंदगी के सपने आम लड़कियों की तरह देखने लगी थी. दीपक सीकर में ही शेयर ट्रेडिंग का कारोबार करता था. अब पढ़ीलिखी अनुराधा भी उस के काम में हाथ बंटाने लगी, लेकिन शेयर मार्किट में खुद के लाखों और अपने क्लाइंट्स के करोड़ों रुपए इन दोनों ने तगड़े मुनाफे की उम्मीद में लगवा दिए थे, जो नातुजर्बेकारी और जोश के चलते एक झटके में डूब गए.

लेनदारों के बढ़ते दबाव से निबटने के लिए अनुराधा ने जुर्म का रास्ता चुना, जिस ने उस की जिंदगी बदल डाली. अनुराधा की मुलाकात राजस्थान के हिस्ट्रीशीटर बलबीर बानूड़ा से हुई, जिस ने उस की मुलाकात आनंदपाल सिंह से करवा दी. दोनों ने एकदूसरे को देखापरखा और देखते ही देखते अनुराधा की सारी परेशानियां दूर हो गईं. आनंदपाल सिंह की दहशत राजस्थान में किसी सबूत या पहचान की मोहताज कभी नहीं रही. जिस के रसूख से सियासी गलियारे भी कांपते थे.

आनंद ने अनुराधा को जुर्म की दुनिया के गुर और उसूल सिखाए. अनुराधा ने देखा और महसूस किया कि आनंद अपने रुतबे और दहशत को कैश नहीं करा पाता और थोड़े से में ही संतुष्ट हो जाता है तो उस ने आनंद को बदलना शुरू कर दिया. देखते ही देखते आनंद का हुलिया, आदतें, रहनसहन सब बदल गया. उधर जैसे ही दीपक को पत्नी के एक जरायमपेशा गिरोह में शामिल होने की बात पता चली तो उस ने उस से नाता तोड़ लिया. अनुराधा अब न केवल बिनब्याही पत्नी की हैसियत से बल्कि तेजतर्रार आला दिमाग की मालकिन होने की वजह से भी आनंद के गिरोह में नंबर 2 की हैसियत रखने लगी थी, जिस ने जरूरत से कम समय में हथियार चलाना सीख लिया था. गैंग और अपराध की दुनिया से जुड़े लोग उसे मैडम मिंज भी कहने लगे थे.

अनुराधा ने सीखे अपराध के गुर

अब अनुराधा ही किए जाने वाले अपराधों की प्लानिंग करने लगी थी. आनंद एक बात अनुराधा को और अच्छे से सिखा चुका था कि अपराध की दुनिया उस कार सरीखी होती है, जिस में रिवर्स गियर नहीं होता. अनुराधा जल्द ही पेशेवर मुजरिम बन गई थी और उस का नाम भी चलने लगा था. वह जहां से गुजरती थी वहां लोगों के सर अदब से झुकें न झुकें, खौफ से जरूर झुक जाते थे. अब वह धड़ल्ले से वारदातों को अंजाम देने लगी थी.

वह चर्चा और सुर्खियों में साल 2013 में तब आई थी, जब उस पर रंगदारी का पहला मामला दर्ज हुआ था. जिस पर पुलिस ने उस पर पहली दफा 10 हजार रुपए का ईनाम भी रखा था.

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राजस्थान में बवंडर उस वक्त खड़ा हुआ, जब एक चर्चित हत्याकांड के गवाह का अपहरण हो गया. दरअसल, 27 जून, 2006 को जीवनराम गोदारा नाम के शख्स की हत्या आनंद ने दिनदहाड़े कर दी थी, जिस से पूरा राज्य हिल उठा था. जीवनराम का भाई इंद्रचंद्र गोदारा इस हत्याकांड का गवाह था, जिस की गवाही आनंद को लंबा नपवा देती. अपने आशिक को बचाने के लिए अनुराधा ने साल 2014 में इंद्रचंद्र को अगवा कर लिया और पुणे ले गई. जहां एक फ्लैट में उसे बंधक बना कर रखा गया था.

एक दिन मौका पा कर इंद्रचंद्र ने एक परची खिड़की से नीचे फेंक दी, जिस पर लिखा था, ‘मैं किडनैप हो गया हूं और मुझे यहां पर मदद की जरूरत है.’ परची जिस ने भी पढ़ी, उस ने औरों को बताया तो फ्लैट के बाहर भीड़ इकट्ठा हो गई और फ्लैट को घेर लिया. तब अनुराधा और उस के गुर्गे बमुश्किल वहां से भागने में कामयाब हो पाए थे. जैसेतैसे बचतेबचाते वह राजस्थान वापस आ गई और आनंद के जेल में होने के चलते खुद उस का गैंग चलाने लगी. इस दौरान उस ने कारोबारियों को अगवा कर फिरौती से खूब पैसा कमाया.

लेकिन उसे झटका तब लगा जब पुलिस ने साल 2017 में एनकाउंटर में नाटकीय तरीके से आनंद पाल सिंह को मार गिराया. जिस के बाद डरीसहमी अनुराधा फरार हो गई. जान बचाने के खौफ और गैंग के टूट जाने से अनुराधा इधरउधर भागती रही. इसी फरारी के दौरान सहारा ढूंढती अनुराधा लारेंस बिश्नोई गैंग में शामिल हो गई. मकसद था, जैसे भी हो पुलिस से बचना. हालांकि जुर्म की दुनिया में भी उस के खासे चर्चे और किस्से फैल चुके थे. इस नए गिरोह से उस की पटरी ज्यादा नहीं बैठी और जल्द ही वह काला जठेड़ी उर्फ संदीप के संपर्क में आई.

आनंद की मौत से आया खालीपन उसे काला जठेड़ी से भरता नजर आया तो इस की वजहें भी थीं. अनुराधा बगैर किसी एंट्रेंस एग्जाम के जठेड़ी गैंग में न केवल शामिल हो गई, बल्कि देखते ही देखते इस गैंग में भी उस ने वही जगह और रुतबा हासिल कर लिए, जो उसे आनंद के गैंग में हासिल था. दोनों ने हरिद्वार के एक मंदिर में विधिविधान से शादी भी कर ली. किशोरावस्था से ही जुर्म की दुनिया में दाखिल हो चुके काला पर हत्या, अपहरण लूटपाट, जमीनों पर जायजनाजायज कब्जे और फिरौती वगैरह के कोई 3 दरजन मामले दर्ज हो चुके थे. अनुराधा की आपराधिक जन्मपत्री से पूरे 36 गुण उस से मिले थे.

काला भी उस के व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ था और उस के आला खुराफाती दिमाग का कायल हो गया था. काला की दहशत अपने इलाकों में ठीक वैसी ही थी, जैसी राजस्थान में आनंद की थी. दोनों को एकदूसरे की जरूरत थी, कारोबारी भी जिस्मानी भी और जज्बाती भी. काला के गिरोह के मेंबर भी अनुराधा के एके 47 चलाने की स्टाइल से इतने इंप्रैस थे कि उन्होंने उसे रिवौल्वर रानी का खिताब दे दिया था.

फिर जैसे ही सागर धनखड़ हत्याकांड में नामी पहलवान सुशील कुमार का नाम आया तो दिल्ली गरमा उठी, क्योंकि इस वारदात में गैंगस्टर नीरज बवाना और काला जठेड़ी का नाम भी आया. जेल में बंद सुशील पहलवान ने उस से अपनी जान को खतरा जताया था.

काला जठेड़ी की तलाश में जुटी स्पैशल सेल

अब पुलिस की स्पैशल सैल ने काला की तलाश को मुहिम की शक्ल दे दी तो वह अनुराधा के साथ भागता रहा. काला की तलाश में पुलिस की स्पैशल सैल जुटी तो अनुराधा फिर चिंतित हो उठी.

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क्योंकि अगर आनंद की तरह काला भी किसी एनकाउंटर में मारा जाता तो वह फिर बेसहारा हो जाती. दूसरे गिरफ्तारी की तलवार अब उस के सिर पर भी लटकने लगी थी. पुलिस को अंदेशा इन दोनों के नेपाल में होने का था, जबकि हकीकत में दोनों भारत भ्रमण करते आंध्र प्रदेश के अलावा पंजाब और मुंबई भी गए थे और बिहार के पूर्णिया में भी रुके थे. मध्य प्रदेश के इंदौर और देवास में भी इन्होंने फरारी काटी थी. हर जगह इन्होंने खुद को पतिपत्नी बताया और लिखाया था.

काला को घिरता देख अनुराधा ने 70-80 के दशक के मशहूर जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक के एक किरदार विमल का सहारा लिया, जिस ने पुलिस से बचने के लिए सरदार का हुलिया अपना लिया था. अपनी नई पत्नी के कहने पर काला जठेड़ी विमल की तर्ज पर सरदार बन गया. उस ने अपना नया नाम पुनीत भल्ला और अनुराधा का नाम पूजा भल्ला रखा. सोशल मीडिया पर भी दोनों ने नए नामों से आईडी बना ली थी. अनुराधा ने जठेड़ी गैंग के गुर्गों को यह हिदायत भी दी थी कि अगर उन में से कोई कभी पुलिस के हत्थे चढ़ जाए तो काला के बारे में यही बताए कि वह इन दिनों नेपाल में है और वहीं से गैंग चला रहा है. इस हिदायत का मकसद पुलिस को भटकाए और उलझाए रखना था.

आनंदपाल के गिरोह में रहते अनुराधा कई बार नेपाल भी गई थी और वहां के अड्डों से भी वाकिफ थी, इसलिए वह काला को भी 2 बार नेपाल ले गई थी. मकसद था विदेश भागने की संभावनाएं टटोलना और जमा पैसों की ट्रोल को रोकना. अनुराधा के खुराफाती दिमाग का आनंद भी कायल था और अब काला भी हो गया था, जिसे अनुराधा ने सख्त हिदायत यह दे रखी थी कि वह भारत में फोन पर किसी से बात न करे जोकि आजकल पुलिस को मुजरिम तक पहुंचने का सब से आसान और सहूलियत भरा जरिया और रास्ता होता है.

अब काला को जिस से भी बात करनी होती थी तो वह विदेश में बैठे अपने किसी गुर्गें की मदद से करता था. काला और अनुराधा तक पहुंचने के लिए पुलिस की स्पैशल सेल ने लारेंस बिश्नोई को मोहरा बनाया जो जेल में बंद था. पुलिस ने अपने मुखबिरों के जरिए बिश्नोई तक एक फोन पहुंचाया, जिस से वह अपने गुर्गों से बात करता रहा और पुलिस खामोशी से तमाशा देखती रही. एक बार वही हुआ जो पुलिस चाहती थी कि बिश्नोई ने काला से भी बात कर डाली. उस का फोन सर्विलांस पर तो था ही जिस से उस के सहारनपुर के अमानत ढाबे पर होने की लोकेशन मिली. पुलिस तुरंत हरकत में आई और आसानी से काला और अनुराधा को गिरफ्तार कर लिया. दोनों हतप्रभ थे. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि वे चूहेदानी में फंस चुके हैं.

बिलाशक पुलिस की स्पैशल सेल ने दिमाग से काम लिया, जिसे उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल बिश्नोई काला से जरूर बात करेगा और ऐसा हुआ भी.

किडनैपिंग क्वीन अर्चना शर्मा

अनुराधा जुर्म की दुनिया की छोटी मछली थी, जिस का हल्ला मीडिया ने ज्यादा मचाया क्योंकि आमतौर पर औरतों के बहुत ज्यादा क्रूर होने की उम्मीद कोई नहीं करता. लेकिन वक्तवक्त पर महिलाएं जुर्म की दुनिया में आ कर लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचती रही हैं. ऐसा ही एक नाम अर्चना शर्मा का है, जिसे किडनैपिंग क्वीन के खिताब से नवाज दिया गया. अर्चना की कहानी एकदम फिल्मों सरीखी है. उज्जैन में एक मामूली पुलिस कांस्टेबल बालमुकुंद शर्मा के यहां जन्मी अर्चना भी अनुराधा की तरह पढ़ाईलिखाई में तेज थी, इसलिए सैंट्रल स्कूल के स्टाफ की चहेती भी थी.

4 भाईबहनों में सब से बड़ी अर्चना पेंटिंग की शौकीन थी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. रामलीला में सीता का रोल निभाना उसे बहुत भाता था. सभी लोगों को उम्मीद थी कि महत्त्वाकांक्षी और बहुमुखी प्रतिभा की धनी यह लड़की एक दिन नाम करेगी. अर्चना ने नाम किया, लेकिन जुर्म की दुनिया में. जिसे जान कर हर कोई दांतों तले अंगुली दबा लेता है. एक दिन अचानक उस ने पढ़ाई छोड़ देने का ऐलान कर दिया, जिस से घर वाले हैरान रह गए, उन्होंने उसे समझाया लेकिन वह टस से मस नहीं हुई.

असल में वह पिता की तरह पुलिस विभाग में नौकरी करना चाहती थी, जो उस ने कर भी ली. लेकिन जल्द ही वह इस नौकरी से ऊब गई और नौकरी छोड़ भी दी, जिस से गुस्साए घर वालों ने उस से नाता तोड़ लिया. पुलिस की छोटे ओहदे की नौकरी में मेहनत के मुकाबले पगार कम मिलती थी, जबकि अर्चना का सोचना था कि वह इस से ज्यादा डिजर्व करती है. कुछ कर गुजरने की चाह लिए वह उज्जैन से भोपाल आ गई और वहां एक छोटी नौकरी कर ली.

यहीं से उस के जुर्म की दुनिया में दाखिले के द्वार खुले. अब अर्चना घरेलू बंदिशों से आजाद थी. लिहाजा बेरोकटोक अपनी जिंदगी खुद जीने लगी और उसे एक छोटे नेता से प्यार हो गया. लेकिन यह परवान नहीं चढ़ पाया, क्योंकि इस नेता की मंशा केवल एक खूबसूरत लड़की के साथ टाइम पास करने की थी. पहले ही प्यार में धोखा खाई अर्चना को समझ आ गया कि न तो छोटी नौकरी से उस के सपने पूरे होने वाले और न ही रोमांटिक ख्वावों से जिंदगी का मकसद पूरा होने वाला. लिहाजा वह भोपाल छोड़ कर मुंबई चली गई.

लेकिन जिंदगी का मकसद क्या है, यह वह खुद भी तय नहीं कर पा रही थी. मुंबई में उस ने बाबा सहगल का आर्केस्ट्रा ग्रुप जौइन कर लिया और प्रोग्राम देने खाड़ी देशों तक गई और जल्द ही ऐक्ट्रेस बनने के सपने देखने लगी. लेकिन उसे यह भी समझ आ गया कि मुंबई में जम पाना कोई हंसीखेल नहीं है. इसी दौरान अर्चना को अहमदाबाद के एक कारोबारी से प्यार हो गया, लेकिन यहां भी उसे नाकामी मिली. उस कारोबारी ने प्यार नहीं, बल्कि कारोबार ही किया था और खुद अर्चना की भी मंशा किसी पैसे वाले को फांस कर सेटल हो जाने की थी, जोकि पूरी नहीं हुई.

देखा जाए तो अर्चना एक भटकाव का शिकार हो चुकी थी. एक दिन यही भटकाव उसे यूं ही दुबई ले गया, जहां उस की मुलाकात अंडरवर्ल्ड के सरगनाओं से हुई, इन में से एक नाम अपने दौर के चर्चित अपराधी बबलू श्रीवास्तव का भी था. बहुत जल्द अर्चना को तीसरी बार प्यार हुआ. बबलू श्रीवास्तव भी उस पर जान छिड़कने लगा था. लेकिन कुख्यात बबलू को यह पसंद नहीं था कि अर्चना किसी से हंसेबोले इस को ले कर अपने ही साथियों से कई बार उस का झगड़ा भी हुआ. आजाद जिंदगी जीने की आदी हो चली अर्चना को प्यार का यह तरीका और बबलू का पजेसिव नेचर नागवार गुजरने लगा. कुछ दिनों बाद बबलू उसे ले कर नेपाल चला आया. यहां अर्चना को चौथी बार प्यार हुआ राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेता दिलशाद बेग से.

अब तक अर्चना किस्मकिस्म के मर्दों से मिल चुकी थी और उन की कमजोरियां भी समझने लगी थी. दिलशाद पर उस ने अपने हुस्न और प्यार का जादू चलाया तो वह भी बबलू की तरह उस पर मरने लगा. असल में अर्चना की मंशा दिलशाद को मोहरा बना कर बबलू से छुटकारा पाने की थी. दोनों को वह मैनेज करती रही. साल 1994 में बबलू गिरफ्तार हुआ तो अर्चना भारत वापस चली आई और बबलू का गिरोह संभालने लगी. अब वह एक पेशेवर मुजरिम बन चुकी थी और जुर्म की दुनिया में लेडी डौन का खिताब हासिल कर चुकी थी. कई उद्योगपतियों को अगवा कर उस ने मोटी फिरौती वसूली. इस काम की वह स्पैशलिस्ट हो गई थी.

धीरेधीरे बबलू और उस का साथ छूट गया और अर्चना देश के कई गिरोहों के संपर्क में आई, जिन में गैंगस्टर हिंदू सिंह यादव का नाम भी शामिल था. आए दिन अर्चना पुलिस से आंखमिचौली खेलने लगी और मध्य प्रदेश को अपना गढ़ बनाने की कोशिश करने लगी, पर बना नहीं पाई. क्योंकि पुलिस उस के पीछे थी. अब अर्चना कहां है, यह किसी को नहीं मालूम क्योंकि उस की गतिविधियां बंद हैं और अफवाह यह भी उड़ी थी कि वह तो साल 2010 में बांग्लादेश में मारी गई. अर्चना को ले कर पुलिस कितनी परेशान थी, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक वक्त में पुलिस ने उस की बाबत 40 देशों को अलर्ट जारी किया था.

जेनाबाई, जिस के इशारे पर अंडरवर्ल्ड डौन भी नाचते थे

अनुराधा और अर्चना तो अभी सुर्खियों में हैं, क्योंकि उन के मामले ताजेताजे हैं लेकिन देश में लेडी डौन की लिस्ट काफी लंबी है, जिन के कारनामे भी हैरतंगेज हैं और दिलचस्प भी. इस लिस्ट को देख कर लगता है कि औरतों का अंडरवर्ल्ड से पुराना नाता है और वे समयसमय पर जुर्म की दुनिया में अपनी हाजिरी दर्ज कराती रही हैं. माफिया क्वीन जेनाबाई दारू वाली आज जिंदा होती तो उस की उम्र 100 साल होती, जिस का नाम आज भी एक मिसाल के तौर पर लिया जाता है. जेनाबाई दूसरी महिला डौनों की तरह किसी जरायमपेशा के इशारों पर कभी नहीं नाची, बल्कि उस ने कई नामी अपराधियों को इशारों पर नचाते लंबे वक्त तक राज किया.

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सांप्रदायिक हिंसा और दीगर अपराधों के लिए जाने जाने वाले मुंबई के बदनाम डोंगरी इलाके, जहां की एक चाल में उस का परिवार रहता था, से शराब की तसकरी करने वाली यह लेडी डौन आला दिमाग की मालकिन और चालाक थी. दाऊद इब्राहिम, हाजी मस्तान और करीम लाला जैसे मुंबइया डौन जिन के नाम और खौफ के सिक्के चलते थे. वे महारथी अगर किसी के इशारे पर नाचते थे तो वह जेनाबाई दारू वाली थी, जिस के दरबार में मुंबई क्राइम ब्रांच के छोटेबड़े अफसर भी सिर नवा कर दाखिल होते थे.

जेना थी तो एक दुस्साहसी और असाधारण महिला, जो आजादी की लड़ाई में भी शरीक हुई थी. उस का पति उसे छोड़ कर पाकिस्तान चला गया था, लेकिन 5 बच्चों की जिम्मेदारी जेना पर छोड़ गया था. गरीब जेना ने पहले चावल और फिर शराब की तसकरी शुरू कर दी. कई बार वह पकड़ी गई, लेकिन छूट भी गई. इस परेशानी से बचने के लिए जेना पुलिस की मुखबिर बन गई. उस का एक बेटा गैंगवार में मारा गया तो जुर्म से उस का जी उचट गया और वह धर्मकर्म करने लगी और 1994 में उस की मौत हो गई.

संतोकबेन जडेजा जिस की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘गौडमदर’

गौडमदर संतोक बेन जडेजा ने 90 के दशक में फिल्मी स्टाइल में अपने पति सरमन जडेजा की हत्या का बदला लेने के लिए जुर्म का रास्ता अख्तियार किया था, लेकिन जल्द ही वह दहशत का दूसरा नाम बन गई थी. एक वक्त में पूरा गुजरात उस के नाम से खौफ खाता था. संतोक ने बाकायदा अपना गिरोह बना लिया था, जिस में सैकड़ों छोटेबड़े बदमाश काम करते थे. ये लोग रियल एस्टेट, फिरौती, तसकरी और जबरिया वसूली करते थे.

संतोक का खौफ इतना था कि कोई उस के गुर्गों के लिए न कहने की हिम्मत नहीं कर पाता था और जो करता था वह अगली सुबह का सूरज नहीं देख पाता था. पोरबंदर इलाके में तो उस की हुकूमत चलती थी. वह इतनी निर्दयी और खूंखार हो गई थी कि उस के खिलाफ हत्या के 14 मामले दर्ज हुए थे और उस के गैंग के सदस्यों के खिलाफ 550 के लगभग मामले विभिन्न अपराधों के दर्ज थे. लेकिन अपने चाहने वालों और गरीबों पर वह मेहरबान रही, जिस से उसे गौडमदर का खिताब मिल गया.

संतोक बेन देश की पहली लेडी डौन थी जिस की जिंदगी पर विनय शुक्ला ने फिल्म ‘गौडमदर’ साल 1999 में बनाई थी, जिस में उस का रोल शबाना आजमी ने निभाया था. यह फिल्म जबरदस्त हिट साबित हुई थी, जिसे 6 नैशनल अवार्ड सहित एक फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था. अपने खौफ और रसूख को संतोक ने राजनीति में भी इस्तेमाल किया और साल 1990 में वह जनता दल के टिकट पर कुतियाना सीट से 35 हजार वोटों से जीत कर विधायक भी चुनी गई थी. उस का एक बेटा कांधल जडेजा कुतियाना सीट से ही एनसीपी के टिकट पर जीत कर विधायक बना. साल 2011 की होली के पहले संतोक की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी.

खतरनाक सायनाइड किलर केमपंमा

सायनाइड मल्लिका के.डी. केमपंमा बेंगलुरु के नजदीक कमालीपुरा गांव की रहने वाली सीरियल किलर थी, जिस ने कितनों को सायनाइड दे कर मौत की नींद सुलाया. इस की सही गिनती किसी के पास नहीं. के.डी. केमपंमा ने हत्या करने का नायाब लेकिन पुराना तरीका चुन रखा था. वह अपने शिकार को एकांत में बुलाती थी और वहां उस की हत्या कर उसे लूट लेती थी. जुर्म करने के लिए वह उन महिलाओं को चुनती थी, जो पारिवारिक या दूसरे कारणों से परेशान रहती थीं और मन्नतें मांगने व पूजापाठ करने मंदिर जाया करती थीं.

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के.डी. इन के सामने खुद को एक जानकार तांत्रिक की तरह पेश करती थी और पूजापाठ कर परेशानी दूर करने का झांसा दे कर शिकार को किसी वीरान मंदिर बुलाती थी और वहीं सायनाइड खिला कर हमेशा के लिए परेशान जिंदगी से ही छुटकारा दिला देती थी. गिरफ्तार होने के बाद उसे मौत की सजा सुनाई गई थी. लेकिन बाद में उसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. बेहद गरीब घर की केमपंमा ने एक दरजी से शादी की थी और खुद चिटफंड कंपनी चलाती थी. पर रातोंरात अमीर बनने के लालच में साल 1999 में उस ने पहली हत्या की थी और फिर मुड़ कर नहीं देखा. साल 2008 में गिरफ्तार होने तक उस का खासा खौफ बेंगलुरु में रहा.

कोठों की बादशाहत वाली सायरा बेगम

सायरा बेगम कोठे वाली के नाम से इसलिए मशहूर हुई थी कि उस ने देह व्यापार के धंधे में तकरीबन 5 हजार लड़कियों को धकेला. हैदराबाद की रहने वाली इस मौसी सायरा बेगम की दिल्ली के बदनाम रेडलाइड इलाके जीबी रोड पर बादशाहत लंबे समय तक कायम रही. उस पर दरजनों आपराधिक मामले भी दर्ज हुए थे. देह व्यापार के धंधे से सायरा ने करोड़ों रुपए कमाए. साल 2016 में जब वह गिरफ्तार हुई तो पता चला कि 6 कोठे तो उस के जीबी रोड पर ही हैं और दिल्ली में ही आलीशान फार्महाउस के अलावा बेंगलुरु में भी उस के बेशकीमती 3 फ्लैट हैं. उस के बैंक खातों में ही करोड़ों रुपए जमा थे. सायरा का पति अफाक हुसैन इस धंधे में उस का साथ देता था.

ये लोग पूर्वोत्तर भारत और नेपाल से लड़कियां ला कर उन से धंधा कराते थे. जिस सायरा ने कोई 5 हजार लड़कियों को देह धंधे के दलदल में धकेला, खुद उस की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं. मांबाप की मौत के बाद वह साल 1990 में दिल्ली रोजगार की तलाश में आई थी, लेकिन वह नहीं मिला तो वह कालगर्ल बन गई. बेरोजगारी और दुश्वारियां झेल चुकी सायरा को कभी मजबूर गरीब लड़कियों की हालत पर तरस नहीं आया, जो कम उम्र लड़कियों को जल्द जवान बनाने के लिए हारमोंस के इंजेक्शन भी देती थी. लड़कियों को इस धंधे में लाने के लिए उस ने गिरोह भी बना लिया था, जिस की वह डौन थी.

इन का भी बजता था डंका

इसी तरह खूबसूरती की वजह से रूबीना सिराज सैय्यद ने अपराध की दुनिया में हीरोइन नाम से पहचान बनाई. कभी जानीमानी ब्यूटीशियन रही रूबीना ने पैसों के लालच में छोटा राजन से हाथ मिला लिया. उस ने अपनी खूबसूरती से कइयों को काबू किया. पुलिस वाले भी उस की खूबसूरती पर लट्टू हो जाते थे. इसी का फायदा उठा कर 70 के दशक में वह जेल में बंद छोटा शकील के गुर्गों तक हथियार और नशे का सामान पहुंचाती थी. महाराष्ट्र सरकार ने उस की आपराधिक गतिविधियों की वजह से उस पर मकोका भी लगाया था. दूध बेचने वाली शशिकला ने पैसों के लालच में ड्रग्स की तसकरी शुरू की और जल्द ही मुंबई में कुख्यात हो गई. अपराध की दुनिया में उसे बेबी नाम से जाना जाने लगा.

वर्ष 2015 में मुंबई पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया, तब तक ड्रग्स की तसकरी से वह 100 करोड़ रुपए की संपत्ति खड़ी कर चुकी थी. शशिकला उर्फ बेबी को मुंबई का सब से बड़ा ड्रग्स माफिया माना जाता है. बेला आंटी को तो मुंबई की सब से बड़ी शराब माफिया के रूप में जाना जाता था. 70 के दशक में जब अवैध शराब के खिलाफ सख्ती बढ़ी, तब भी बेला आंटी ने ट्रकों में भर कर पूरी मुंबई में अवैध शराब की तसकरी की. अधिकारियों का मुंह बंद कराने के लिए बेला ने उन्हें मोटी रिश्वत दी. उस ने शराब की तसकरी जारी रखने के लिए तब के गैंगस्टरों, अधिकारियों और राजनेताओं सब को डरा रखा था.

किसी में हिम्मत नहीं थी कि अवैध शराब की तसकरी में लगी उस की गाडि़यों को कोई रोक सके. यहां तक कि उस वक्त का अंडरवर्ल्ड डौन वर्धाभाई भी उसे अपने एरिया धारावी में शराब की तसकरी करने से नहीं रोक सका था. भारत के मोस्टवांटेड दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर वो नाम है, जो किसी परिचय का मोहताज नहीं. दाऊद इब्राहिम के भारत से भागने के बाद मुंबई में उस के अवैध धंधों की बागडोर बहन हसीना पारकर ने ही संभाली. अपराध की दुनिया में उस की पहचान गौडमदर औफ नागपाड़ा और अप्पा मतलब बड़ी बहन के तौर पर रही है.

इस में कोई संदेह नहीं कि उस में मुंबई के अपराध जगत में एकछत्र राज किया है. वर्ष 2014 में हार्ट अटैक से उस की मौत हो गई.

पुलिस अफसर ने क्यों किए 2 मर्डर

वह सर्दी का महीना था तथा उस समय आसपास काफी कोहरा छाया हुआ था. कोहरा इतना घना था कि 50 मीटर की दूरी के बाद कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था. उस समय सुबह के 8 बज रहे थे. थाना झबरेड़ा (हरिद्वार) के एसएचओ अंकुर शर्मा उस वक्त नहा रहे थे. तभी उन्हें अपने बाथरूम के दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज सुनाई दी.

आवाज सुनते ही जल्दीजल्दी नहा कर वह बोले, ”कौन है?’’

तभी बाहर से उन के थाने के सिपाही मुकेश ने बताया, ”सर, गांव भिश्तीपुर के प्रधान जोगेंद्र का अभी फोन आया था, वह बता रहा था कि गांव भिश्तीपुर अकबरपुर झोझा की सड़क के नाले में एक लड़के की लाश पड़ी है. लाश के गले में खून के निशान उभरे हुए हैं.’’

”ठीक है मुकेश, मैं जल्दी तैयार हो कर आता हूं.’ शर्मा बोले.

इस के बाद अंकुर शर्मा जल्दीजल्दी तैयार होने लगे थे. सुबह होने के कारण उस वक्त थानेदार भी थाने में नहीं आए थे. मामला चूंकि हत्या का था, इसलिए एसएचओ ने देर करना उचित नहीं समझा.

इस के बाद उन्होंने इस हत्या की सूचना फोन द्वारा हरिद्वार के एसएसपी प्रमेंद्र डोबाल, एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह व सीओ (मंगलौर) विवेक कुमार को दी थी. फिर वह अपने साथ सिपाही मुकेश व रणवीर को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. घटनास्थल थाने से महज 7 किलोमीटर दूर था, इसलिए उन्हें वहां पहुंचने में 15 मिनट लगे.

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      मृतक बच्चा राजा

घटनास्थल पर काफी भीड़ इकट्ठी थी. वहां पर नाले में एक लड़के का शव पड़ा हुआ था. मृतक की उम्र 15 साल के आसपास थी. पुलिस को देख कर वहां खड़ी भीड़ तितरबितर होने लगी थी. वहां खड़े लोगों से एसएचओ ने शव के बारे में पूछताछ करनी शुरू कर दी थी. यह घटना 9 फरवरी, 2024 को उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के थाना झबरेड़ा क्षेत्र में घटी थी.

वहां मौजूद लोगों ने उन्हें बताया था कि यह शव आज सुबह ही लोगों ने देखा था. ऐसा लग रहा है कि हत्यारों ने इस की हत्या कहीं और की होगी तथा हत्या करने के बाद शव को यहां फेंक दिया होगा. इस के बाद एसएचओ अंकुर शर्मा ने मौजूद लोगों से बच्चे की शिनाख्त करने को कहा था, मगर बच्चे की पहचान नहीं हो सकी थी.

इस के बाद पुलिसकर्मियों ने शव की जामातलाशी ली तो लड़के की शर्ट की जेब में पुलिस को एक टेलर का विजिटिंग कार्ड मिला था. उस टेलर की दुकान हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में थी. पुलिस ने उस टेलर के पास जा कर संपर्क किया. लड़की की लाश के फोटो देखने के बाद टेलर ने भी इस बालक के शव को पहचानने में अपनी अनभिज्ञता जताई.

उधर मौके पर एसएसपी प्रमेंद्र डोबाल, एसओजी प्रभारी रविंद्र शाह व पुलिस के पीआरओ विपिन चंद पाठक भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए थे.

कैसे हुई मृतक की शिनाख्त

लोगों से जानकारी मिलने के बाद एसएसपी इस नतीजे पर पहुंचे थे कि मृतक का कोई न कोई लिंक सिडकुल क्षेत्र से जरूर है. इस के बाद उन्होंने एसएचओ जरूरी काररवाई करने के निर्देश दिए. उन्होंने एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह की अध्यक्षता और सीओ विवेक कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसएचओ अंकुर शर्मा व एसओजी के इंसपेक्टर को शामिल किया. उन्होंने टीम को सिडकुल क्षेत्र में जा कर बच्चे की जानकारी करने के निर्देश दिए.

श्री डोबाल का निर्देश पा कर पुलिस टीम सिडकुल पहुंच गई थी. यहां पर पुलिस टीम ने बच्चे के फोटो कुछ दुकानदारों को दिखाए. पुलिस की कई घंटों की मशक्कत के बाद एक दुकानदार ने पुलिस को बताया कि यह फोटो 15 वर्षीय नरेंद्र उर्फ राजा की है, जो यहां अपनी दृष्टिहीन मां ममता के साथ रहता था. इस के बाद पुलिस टीम जब ममता के मकान पर पहुंची तो वहां परचून की दुकान चलाने वाला हेमराज मिला.

जब पुलिस ने हेमराज से ममता व उस के बेटे राजा के बारे में पूछताछ की तो हेमराज ने पुलिस को बताया, ”सर, यह मकान मैं ने ममता से पिछले महीने 20 लाख 70 हजार रुपए में खरीदा था. 3 दिन पहले ही ममता ने मकान खाली कर के मुझे कब्जा दिया है. कब्जा देते समय पुलिस लाइंस में तैनात एएसआई छुन्ना यादव व शहजाद नामक युवक भी ममता के साथ थे. मुझे कब्जा दे कर ममता व राजा छुन्ना यादव की न्यू आल्टो कार में बैठ कर गए थे.’’

पुलिस को जब यह जानकारी हुई तो सीओ विवेक कुमार व एसओजी प्रभारी रविंद्र शाह तुरंत ही पुलिस लाइंस पहुंचे और वहां से वे पूछताछ करने के लिए छुन्ना सिंह यादव को अपने साथ ले कर थाना झबरेड़ा आ गए.

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थाने में एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह व सीओ विवेक कुमार ने जब एएसआई छुन्ना सिंह से ममता व राजा के बारे में पूछताछ की तो वह पुलिस अधिकारियों को काफी देर तक वह इधरउधर की बातें बताता रहा. छुन्ना यादव कहता रहा कि ममता मेरी परिचित तो थी, मगर मुझे नहीं मालूम कि वह अब कहां है?

इस के बाद जब एसपी (देहात) स्वप्न किशोर ने सख्ती से छुन्ना सिंह से उस की नई आल्टो कार के बारे में पूछा तो वह कोई संतोषजनक उत्तर न दे सका.

तभी एसपी स्वप्न किशोर ने छुन्ना सिंह से कहा, ”देखो छुन्ना, तुम्हें पता है कि पुलिस के सामने मुरदे भी बोलने लग जाते हैं. इसलिए या तो तुम हमें सीधी तरह से राजा की मौत की सच्चाई बता दो, नहीं तो हम तुम्हारे साथ वह सब करेंगे, जो पुलिस अपराधियों के साथ करती है.’’

एएसआई ने ऐसे कुबूला जुर्म

एसपी साहब की इन बातों का छुन्ना यादव के ऊपर जादू की तरह असर हुआ और वह पुलिस को राजा की हत्या की सच्चाई बताने को तैयार हो गया था. फिर छुन्ना यादव ने पुलिस को राजा की हत्या की जो कहानी बताई, उसे सुन कर वहां मौजूद सभी पुलिस अधिकारियों के होश उड़ गए.

एएसआई छुन्ना यादव ने बताया था कि वह 9 फरवरी, 2024 को अपनी नई आल्टो कार में राजा व उस की नेत्रहीन मां ममता को बैठा कर मंगलौर हाईवे की ओर लाया था.

इसी बीच मैं और मेरे दोस्त शहजाद व विनोद ममता का सिडकुल वाला मकान हेमराज को 20 लाख 70 हजार रुपए में बिकवा चुके थे. ममता की रकम को हड़पने के लिए हम तीनों ने मांबेटे की हत्या की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक हम तीनों जब मांबेटे को कार में बैठा कर ले जा रहे थे तो चलती कार में हम तीनों ने शहजाद के गमछे से पहले ममता का गला घोंट कर उसे मार डाला था, फिर इस के बाद हम ने नरेंद्र उर्फ राजा का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी थी. गला घोंटते वक्त मांबेटा चलती कार में चीखतेचिल्लाते रहे.

दोनों की हत्या करने के बाद हम ने पहले थाना मंगलौर के अंतर्गत लिब्बरहेड़ी नहर पटरी की झाडिय़ों में ममता के शव को फेंक दिया था. इस के बाद 15 वर्षीय राजा की लाश गांव भिश्तीपुर रोड के नाले में फेंक दी थी. दोनों मांबेटे के शवों को ठिकाने लगा कर तीनों लोग आराम से वापस अपनेअपने घर चले गए थे.

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एएसआई छुन्ना यादव के इस अपराध से जहां एक ओर पुलिस की छवि धूमिल हुई थी तो दूसरी ओर छुन्ना जैसे वरदीधारियों से आम जनता में पुलिस पर विश्वास डगमगाने जैसे हालात हो गए थे. इस के बाद एसपी (देहात) स्वप्न किशोर ने छुन्ना की इस करतूत की जानकारी एसएसपी प्रमेंद्र डोबाल को दे दी.

एक नहीं की थीं 2-2 हत्याएं

श्री डोबाल ने वरदी को दागदार करने वाले छुन्ना सिंह यादव के खिलाफ तुरंत कानूनी काररवाई करने तथा छुन्ना की निशानदेही पर मंगलौर की लिब्बरहेड़ी नहर पटरी की झाडिय़ों से ममता का शव बरामद करने के निर्देश एसएचओ अंकुर शर्मा व एसओजी प्रभारी रविंद्र शाह को दिए. दोनों अधिकारी छुन्ना यादव को ले कर लिब्बरहेड़ी नहर पटरी पर पहुंच गए.

छुन्ना यादव ने वह जगह पुलिस को दिखाई, जहां उस ने अपनी आल्टो कार से ममता के शव को फेंका था. छुन्ना की निशानदेही पर पुलिस ने ममता के शव को झाडिय़ों से बरामद कर लिया. शव बरामद होने के बाद अंकुर शर्मा ने ममता के शव का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए राजकीय जे.एन. सिन्हा स्मारक अस्पताल भेज दिया.

ममता का शव बरामद होने के बाद एसओजी प्रभारी रविंद्र शाह अपने साथियों अशोक, रविंद्र खत्री, राहुल, नितिन व महीपाल के साथ इस दोहरे हत्याकांड के शेष बचे 2 आरोपियों शहजाद व विनोद की गिरफ्तारी हेतु निकल पड़े थे. हालांकि छुन्ना यादव की गिरफ्तारी की जानकारी शहजाद व विनोद को मिल चुकी थी. तब वह किसी सुरक्षित स्थान पर छिपने की योजना बना रहे थे.

इस से पहले कि वे दोनों फरार होते, एसओजी टीम ने उन्हें हिरासत में ले लिया था. इस के बाद एसओजी टीम ने शहजाद निवासी गांव अकबरपुर झोझा तथा विनोद निवासी मोहल्ला सराय ज्वालापुर को हिरासत में ले लिया था. पुलिस टीम उन्हें ले कर थाना झबरेड़ा आ गई थी.

वहां पुलिस ने इन तीनों आरोपियों का आमनासामना कराया था. फिर तीनों आरोपियों ने पुलिस के सामने ममता व राजा की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. आरोपियों से पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो  कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

छुन्ना यादव उत्तर प्रदेश के शहर औरैया के गांव राठा के रहने वाले भोलानाथ यादव का बेटा है. इस समय वह हरिद्वार पुलिस लाइन में एएसआई के पद पर तैनात है. साल 1995 में वह उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के पद पर भरती हुआ था. सन 2000 में जब उत्तर प्रदेश से काट कर उत्तराखंड का पुनर्गठन हुआ तो छुन्ना यादव उत्तराखंड पुलिस में चला गया. बाद में उस का प्रमोशन होता गया तो वह एएसआई बन गया. वर्ष 2011 से 2014 तक मैं यातायात पुलिस हरिद्वार में तैनात रहा था. शहजाद से पिछले 4 सालों से उस की दोस्ती थी.

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मृतका ममता

पिछले साल शहजाद ने छुन्ना यादव को ममता नामक महिला से मिलवाया था, जो अपने 15 वर्षीय बेटे राजा के साथ मोहल्ला सूर्यनगर सिडकुल (हरिद्वार) में रहती थी. ममता मूलरूप से कस्बा कांठ, जिला मुरादाबाद की रहने वाली थी. वह दृष्टिहीन थी. पिछले साल ममता मुरादाबाद से अपनी पुश्तैनी प्रौपर्टी बेच कर सिडकुल में मकान खरीद कर रहने लगी थी.

मुन्ना और शहजाद का अकसर ममता के घर पर आनाजाना लगा रहता था. इसी दौरान दोनों को यह पता चल गया कि किसी दूर के रिश्तेदार तक का ममता के पास आनाजाना नहीं है. इस से इन के मन में लालच आ गया था.

पुलिस वाले के मन में ऐसे जन्मा अपराध

इस के बाद छुन्ना यादव ने शहजाद के साथ मिल कर ममता का मकान बिकवा कर वह रकम हड़पने की योजना बनाई. छुन्ना ने ममता को उस का मकान बिकवा कर उसे रुड़की में मकान खरीदवाने का झांसा दिया.

चूंकि ममता उस की बातों पर विश्वास करती थी, इसलिए उस की बात वह मान गई थी. फिर उस ने व शहजाद ने ममता के पड़ोसी किनारा दुकानदार हेमराज को 20 लाख 70 हजार रुपए में मकान बिकवा दिया था और अधिकांश रकम दोनों शातिरों ने कब्जे में कर ली थी.

ममता के मकान बेचने से मिली रकम में से छुन्ना ने नई आल्टो कार खरीद ली थी. 9 फरवरी, 2024 को ममता को मकान खाली कर हेमराज को कब्जा देना था.

योजना के मुताबिक 9 फरवरी की सुबह को छुन्ना और शहजाद आल्टो कार से उसी समय ममता के घर पहुंचे. उसी समय शहजाद का बेटा भी वहां मिनी ट्रक ले कर आ गया था. उन्होंने ममता के घर का सामान उस मिनी ट्रक में रख कर मकान खाली कर दिया था.

शहजाद का बेटा वहां से मिनी ट्रक ले कर चला गया. छुन्ना ने ममता को आल्टो कार में अगली सीट पर बैठा लिया था. पिछली सीट पर शहजाद व नरेंद्र उर्फ राजा बैठ गए थे. कार ले कर वह रोशनाबाद की ओर चले थे तो रास्ते में उन्हें विनोद भी मिल गया था. छुन्ना ने कार रोक कर उसे भी पीछे बैठा लिया था. इस के बाद वे लोग हर की पौड़ी पहुंचे थे. यहां पर ममता व राजा नहाने लगे थे. उसी दौरान उन तीनों ने कार में बैठ कर शराब पी थी.

शाम को जब कुछ अंधेरा छाने लगा तो हम लोग कार ले कर रुड़की की ओर चल पड़े थे. जब कार रुड़की से पुरकाजी की ओर जा रही थी तो अचानक शहजाद ने अपने गमछे का फंदा बना लिया था और कार में आगे बैठी ममता के गले में डाल कर उस का गला घोंट दिया था.

राजा ने शोर मचाते हुए विरोध किया तो शहजाद और विनोद ने उसे दबोच लिया. ममता के दम तोडऩे के बाद शहजाद व विनोद ने उसी गमछे से नरेंद्र उर्फ राजा का भी गला घोंट कर उसे मार डाला था. फिर उन्होंने ममता के शव को लिब्बरहेड़ी गंगनहर पटरी की झाडिय़ों में फेंक कर भिश्तीपुर की ओर चले गए थे.

रकम बांट कर रह रहे थे बेखौफ

इस के बाद उन्होंने राजा के शव को भिश्तीपुर के एक नाले में फेंक दिया था. ममता व राजा के शवों को ठिकाने लगाने के बाद उन्होंने ममता के मकान को बेचने में मिली रकम को आपस में बांट लिया था और अपने अपने घरों को लौट गए थे.

तीनों आरोपियों छुन्ना यादव, शहजाद व विनोद से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 302, 201, 34 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया था.

वैसे तो ममता के बुरे दिनों की शुरुआत तब से शुरू हो गई थी, जब से वह शहजाद व छुन्ना यादव के संपर्क में आई थी. उस वक्त शहजाद सिडकुल के मोहल्ला सूर्यनगर में ममता के घर के पास ही किराए के कमरे में रहता था.

इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड छुन्ना यादव ने पुलिस को बताया था कि ममता अपनी रकम हड़पने की शिकायत पुलिस से भी कर सकती थी, इसलिए उस ने ममता व उस के बेटे की हत्या की साजिश रची थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ममता व राजा उर्फ नरेंद्र की मौत का कारण गला घोंटने से हुई मौत बताया गया है. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने ममता पत्नी मुनेश व राजा के शवों को सिडकुल निवासी उन के दूर के रिश्तेदार को अंतिम संस्कार के लिए सौंप दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पहलवानी के नाम पर दहशतगर्दी

सत्तर के दशक की बात है. जगह थी उत्तर प्रदेश का जिला खुर्जा. वहां के सब्जी बेचने वाले एक  परिवार के 2 भाई गूंगा पहलवान और अनवर लंगड़ा काम की तलाश में दिल्ली आए थे. दोनों अंगूठाछाप थे, इसलिए उन्होंने दिल्ली की आजादपुर मंडी में सब्जी बेचने का पुश्तैनी धंधा शुरू किया. बाद में उन्होंने यही काम दिल्ली के दरियागंज इलाके में जमा लिया. काम तो जम गया, लेकिन उन की मंजिल कुछ और ही थी. ऐसी मंजिल जिस तक जुर्म की काली राह से ही पहुंचा जा सकता था.

हालांकि यह साफतौर पर नहीं कहा जा सकता कि वे इस स्याह रास्ते पर पहली बार कब चले थे. पर 14 अक्तूबर, 1986 में जब एक सब्जी बेचने वाले ने ही जबरन वसूली की शिकायत पुलिस से की तो पता चला कि वे दोनों पहले से ही जबरन वसूली के गोरखधंधे में उतर चुके थे.

बताया जाता है कि गूंगा पहलवान और अनवर लंगड़ा जब दरियागंज छोड़ कर ओखला गए थे, तभी उन्होंने प्रोटैक्शन मनी के नाम पर ओखला सब्जीमंडी में गैरकानूनी उगाही का धंधा शुरू कर दिया था. गूंगा पहलवान का असली नाम मोहम्मद उमर था. उस पर 13 और उस के भाई अनवर पर 15 पुलिस केस दर्ज होने की बात सामने आई है.

जुर्म का यह पौधा देखते ही देखते बड़ा पेड़ बन गया. एकएक कर के इन दोनों भाइयों के परिवार वाले भी इस धंधे में हिस्सेदार बनते गए. 23 सदस्यों वाले इस परिवार में 13 सदस्यों पर करीब सवा सौ आपराधिक मामले दर्ज हैं.

गैरकानूनी उगाही का धंधा अब उन का फैमिली बिजनैस बन चुका था. 55 साल के गूंगा पहलवान और 52 साल के अनवर लंगड़ा ने 5 साल पहले इस कारोबार से रिटायरमैंट ले लिया है. उन के रिटायरमैंट के बाद उन के 9 बेटों ने इस धंधे की कमान अपने हाथों में ले ली. 2 नाबालिग बेटे भी जुर्म की राह पर चल चुके हैं.

पुलिस से पता चला कि उमर और अनवर पहले स्थानीय स्तर पर पहलवानी करते थे. तब उन के बेटे बौडी बिल्डिंग करते थे. अपने गठीले बदन से वे लोगों पर रौब जमाने लगे थे. 21 जुलाई, 2017 की रात 2 बजे गूंगा पहलवान के बेटे राशिद ने ओखला सब्जीमंडी में सब्जी बेचने वाले नरेश चंद से उगाही मांगी थी. नरेश ने जब उसे पैसे नहीं दिए तो राशिद ने कांच की बोतल नरेश के सिर पर मारी, जिस से उस का सिर फट गया था.

नरेश की शिकायत पर अमर कालोनी पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया. काफी कोशिश के बाद भी जब राशिद नहीं मिला तो पुलिस ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया.

इसी बीच 5 जनवरी, 2018 को राशिद ओखला मंडी आया तो उस ने वहीं पर 3 सब्जी बेचने वालों धर्मेंद्र, रणवीर सिंह और कपिल से चाकू के बल पर लूटपाट की. वारदात कर के वह फरार हो गया.

राशिद की गिरफ्तारी के लिए एसीपी जगदीश यादव ने थानाप्रभारी उदयवीर सिंह के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में एसआई आरएस डागर को शामिल किया गया. 21 जनवरी, 2018 को टीम को मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि आरोपी राशिद श्रीनिवासपुरी के एक फिटनैस जिम में आने वाला है.

पुलिस टीम वहां पहले ही मुस्तैद हो गई. जैसे ही राशिद वहां पहुंचा, उसे दबोच लिया गया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने वारदात को अंजाम देने की बात स्वीकार कर ली.

10 अक्तूबर, 2016 की देर रात पुलिस को सूचना मिली कि कुछ बदमाश सब्जीमंडी के कारोबारियों से जबरदस्ती उगाही कर रहे हैं. जब तक पुलिस वहां पहुंची, तब तक बदमाश फरार हो गए. बाद में पता चला कि जो बदमाश भागे थे, वह और कोई नहीं अनवर लंगड़ा और उस के 3 बेटे सलमान, शाहरुख और इमरान थे.

पुलिस ने तलाश जारी रखी और अनवर लंगड़ा के तीनों बेटों को अलगअलग इलाकों से गिरफ्तार कर लिया, लेकिन अनवर हाथ नहीं आया. इस के बावजूद पुलिस ने उस की तलाश जारी रखी और 5 दिसंबर, 2016 को उसे ओखला रेलवे स्टेशन के पास से गिरफ्तार कर लिया.

अपने जुर्मों को छिपाने के लिए मोहम्मद उमर और अनवर लंगड़ा ने दिखावे के लिए ओखला की होलसेल मार्केट में 2 दुकानें खरीद रखी हैं. वहां के लोग बताते हैं कि उमर खुद को उस मार्केट का चेयरमैन बताता है. इन पहलवान भाइयों और इन के परिवार वालों से श्रीनिवासपुरी क्षेत्र के लोग आंतकित रहते थे. और तो और क्षेत्र में अगर कहीं लड़ाईझगड़ा हो जाता तो उमर या अनवर के बेटों में से किसी न किसी की संलिप्तता जरूर निकलती थी.

श्रीनिवासपुरी रैजीडैंट वेलफेयर एसोसिएशन ने भी कई बार थाने में इन लोगों के खिलाफ शिकायत की थी. पुलिस ने अनवर के अनवर लंगड़ा बनने के बारे में बताया कि सन 1990 में जब वह तिहाड़ जेल में बंद था, तब एक बार उस ने वहां से भागने की कोशिश की थी. मजबूरी में पुलिस को उस पर फायरिंग करनी पड़ी, जिस से एक गोली उस के दाएं पैर में लग गई थी. तब से अनवर के नाम के साथ लंगड़ा जुड़ गया.

इस ‘क्रिमिनल फैमिली’ की एक और खास बात यह है कि इस के ज्यादातर सदस्य पढ़ेलिखे नहीं हैं. उमर और अनवर के कुल 19 बच्चे हैं, जिन में से कोई 5वीं फेल है तो कोई तीसरी फेल. 9 बच्चे तो बिलकुल अनपढ़ हैं.

नजफगढ़ से तकरीबन 3 किलोमीटर दूर दिल्ली देहात का एक गांव है ढिचाऊं कलां. इस गांव में रामनिवास उर्फ रामी पहलवान रहता था. उस के पास खेती की अच्छी जमीन थी. उस का एक पहलवान भतीजा था कृष्ण. कृष्ण का उन दिनों गांव कराला के रहने वाले जयबीर कराला से झगड़ा चल रहा था. जयबीर कराला पड़ोसी गांव मितराऊं के रहने वाले बलराज का गहरा दोस्त था.

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कृष्ण पहलवान

एक दिन मौका पा कर कृष्ण पहलवान ने अपने साथियों के साथ मिल कर जयबीर कराला की हत्या कर दी. इस के बदले में सन 2002 में रामनिवास उर्फ रामी पहलवान और उस के दोस्त रोहताश की हत्या कर दी गई.

कृष्ण पहलवान को शक था कि उस के चाचा की हत्या में उन के पड़ोसी सूरज प्रधान का हाथ है. बताया जाता है कि सूरज पुलिस का मुखबिर था. कृष्ण पहलवान इस हत्या का बदला लेने के लिए मौका तलाशने लगा.

बलराज के एक चाचा थे, जिन की शादी नहीं हुई थी. उन की ढांसा रोड पर तकरीबन 15 बीघा जमीन थी. उस जमीन को उन्हीं के गांव का बलवान फौजी जोता करता था. जब बलराज के चाचा की मौत हो गई तो उस के पिता सूरत सिंह ने बलवान फौजी से वह जमीन खाली करने के लिए कहा.

तब तक जमीन का वह टुकड़ा बेशकीमती हो चुका था. बलवान फौजी उस जमीन को छोड़ना नहीं चाहता था. उस ने मौके का फायदा उठाने का फैसला किया और मदद के लिए वह बलराज के दुश्मन कृष्ण पहलवान के पास पहुंच गया.

किसी तरह यह बात बलराज को पता चल गई. बलराज ने इस बारे में अपने पहलवान भाई अनूप को बताया. फिर एक योजना के तहत सन 1997 में अनूप पहलवान और उस के दोस्त संपूरण ने बलवान फौजी और उस के साले अनिल को घेर लिया. वे दोनों गांव ढिचाऊं कलां जा रहे थे. तभी उन लोगों ने इन सालेबहनोई पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं. इस हमले में अनिल की मौत हो गई, जबकि बलवान फौजी को गंभीर चोटें आईं. लेकिन वह बच गया.

इस वारदात ने बलवान फौजी के जवान बेटे कपिल को हथियार उठाने पर मजबूर कर दिया. वह कृष्ण पहलवान के साथ ही काम करने लगा. इस के बाद 3 अप्रैल, 1998 को गांव ककरोला में बलराज को घेर कर ढेर कर दिया गया.

बलराज के मरने के बाद गैंग की कमान बलराज के भाई अनूप पहलवान ने संभाल ली. 12 जुलाई, 1998 को अनूप पहलवान ने मौका देख कर कपिल के पिता बलवान फौजी और कृष्ण पहलवान के रिश्तेदार और दोस्तों समेत 6 लोगों का कत्ल कर दिया.

उस समय कपिल जेल में बंद था. 13 सितंबर, 1999 को वह जेल से बाहर आया. उसी दिन अनूप गैंग ने कपिल के भाई कुलदीप उर्फ गुल्लू की हत्या कर दी. कपिल ने भी उसी दिन इस हत्या का बदला ले लिया और उस ने अनूप के भतीजे यशपाल को मार गिराया. इस के बाद वह फरार हो गया.

इतनी हत्याएं होने के बाद भी कृष्ण पहलवान का अपने चाचा रामनिवास उर्फ रामी पहलवान की हत्या का बदला पूरा नहीं हुआ था. 20 फरवरी, 2002 को ढिचाऊं कलां से एक बारात सोनीपत के जगमेंद्र सिंह के यहां गई थी, उन की बेटी पिंकी की शादी थी.

बारात दुलहन के घर की तरफ जा ही रही थी कि एक खबर के बाद गाजेबाजे बंद कराने पड़ गए. वजह, जनवासे के पास ही 3 लाशें पड़ी थीं. वे लाशें सूरज प्रधान, उस के बेटे सुखबीर और दिचाऊं कलां के ही नारायण सिंह की थीं. यह वही सूरज प्रधान था, जिस के बारे में कृष्ण पहलवान को पुलिस का मुखबिर होने का शक था.

इस के बाद साल 2003 में अनूप पहलवान रोहतक कोर्ट में एक मुकदमे के सिलसिले में पेश होने आया था. पुलिस सिक्योरिटी के बीच कृष्ण पहलवान गैंग के एक शार्पशूटर महावीर डौन ने अनूप पर गोलियां दाग दीं और उस ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.

अनूप पहलवान की हत्या के बाद तकरीबन 10 साल तक इस गैंगवार में शांति का माहौल रहा. इस बीच कृष्ण पहलवान का भाई भरत सिंह राजनीति में आ चुका था. वह सन 2008 में विधायक बन गया था, लेकिन बाद में 2013 का चुनाव वह हार गया.

भरत सिंह मर्डर केस के आरोपी

29 मार्च, 2015 को भरत सिंह की हत्या कर दी गई. इस से पहले सन 2012 में भी उस पर हमला किया गया था, पर तब वह बच गया था. बाद में पता चला कि यह हत्या उसी के गांव के रहने वाले उदयवीर उर्फ काले ने कराई थी. उदयवीर सूरज प्रधान का बेटा है. उस ने अपने पिता, भाई और चाचा की हत्या का बदला लिया था.

देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो अपने शारीरिक दम पर, आसान शब्दों में कहें तो ‘पहलवान‘ कहलवा कर जुर्म की दुनिया में कदम रख देते हैं और कभीकभी तो वे इतने बड़े गैंग बना लेते हैं कि अपने इलाके में डर का पर्याय बन जाते हैं.

परमीत डबास

2-4 आपराधिक वारदातों को अंजाम देने के बाद ऐसे लोग शस्त्र लाइसैंस ले लेते हैं, ताकि इन का रौब बरकरार रहे. न जाने कितने पहलवाननुमा लोग हथियार लिए धड़ल्ले से घूमते देखे जा सकते हैं. इस तरह के लोग ही शादीब्याह में गोलियां चला कर हादसों को न्यौता देते हैं. रोडरेज में भी ऐसे ही लोग गोलियां चलाते हैं.

हथियार और उसे चलाने की हिम्मत ऐसे लोगों को दूसरे बड़े अपराध करने को उकसाती है. जल्दी अमीर बनने की चाहत भी ऐसे लोगों को अपराध करने का बढ़ावा देती है.

इस मसले पर मशहूर पहलवान चंदगीराम के बेटे पहलवान जगदीश कालीरमन, जो खुद मेरठ उत्तर प्रदेश के डीएसपी पद पर कार्यरत हैं और देश के नामचीन पहलवान और कोच हैं, ने बताया, ‘‘हमारे समाज के पहलवानों को ले कर अपनी अलग धारणा बनी हुई है. कोई भी हट्टाकट आदमी अगर ट्रैक सूट पहन लेता है तो लोग उसे पहलवान कहने लगते हैं. भले ही वह किसी भी खेल कुश्ती, जूडो, कबड्डी, बौडीबिल्डिंग आदि से जुड़ा हो या न जुड़ा हो.

‘‘जबकि खिलाड़ी बेहद अनुशासित होते हैं. वे अपने खेल, उस की प्रैक्टिस और अपने बेहतर भविष्य के लिए समाज तक से कट जाते हैं. फिर वे जुर्म की राह पर कैसे जा सकते हैं?

‘‘जुर्म से जुड़े ऐसे अपराधियों की अगर उपलब्धियों की बात की जाए तो वे न के बराबर मिलती हैं. हां, कई बार बेरोजगारी या दूसरी वजहों से खिलाड़ी भी अपराध की राह पकड़ लेते हैं, लेकिन उन का प्रतिशत बहुत कम होता है और ऐसे ही लोगों की वजह से ‘पहलवान’ शब्द के साथसाथ पहलवानों की इमेज भी खराब होती है.’’

‘अर्जुन अवार्ड’ विजेता पहलवान कोच कृपाशंकर बिश्नोई के मुताबिक, ‘‘अपराधियों ने पहलवान शब्द का मतलब ही बदल दिया है. बहुत से अपराधी पहलवानों ने कुश्ती तो छोडि़ए, किसी भी खेल में भारत की बड़े स्तर  पर नुमाइंदगी तक नहीं की होती है. वे तो लोकल अपराधी होते हैं. मैं ने तो खुद लोगों से कह दिया है कि आप मुझे ‘पहलवान’ संबोधन से न बुलाया करें. मेरा मानना है कि पहलवान शब्द का इस्तेमाल चैंपियन कुश्ती खिलाड़ी के लिए किया जाना चाहिए, गुंडेबदमाशों या तानाशाह लोगों के लिए नहीं.’’

बहुत बार ऐसा भी होता है कि बिल्डर या प्रौपर्टी डीलर वगैरह अपने पैसे की उगाही के लिए छुटभैये पहलवानों से मदद मांगते हैं ताकि डराधमका कर लोगों से वसूली कर सकें. जब उन में इस तरह पैसा छीनने की आदत पनपने लगती है तो धीरेधीरे वे अपना गैंग बना लेते हैं.

इस तरह के लोग खेल और समाज दोनों के लिए खतरा हैं. पुलिस को इन के खिलाफ कड़ी से कड़ी काररवाई करनी चाहिए ताकि ‘पहलवान’ शब्द की गरिमा बनी रहे.

हरियाणा का जज नियुक्ति घोटाला

पंचकूला के ऐतिहासिक नगर पिंजौर की वकील सुमन कुमारी प्रैक्टिस करने के साथसाथ जज बनने की तैयारी भी कर रही थीं. इस के लिए वह चंडीगढ़ के सेक्टर-24 स्थित ज्यूरिस्ट एकेडमी से कोचिंग ले रही थीं. यह एकेडमी उन्होंने मई, 2017 में जौइन की थी. यहीं पर सुनीता और सुशीला नाम की युवतियां भी कोचिंग लेने आती थीं. सुशीला पंचकूला के सेक्टर-5 की रहने वाली थी, जबकि सुनीता चंडीगढ़ में ही रहती थी.

सुशीला और सुनीता पिछले कई सालों से सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी कर रही थीं, लेकिन इन में से कोई भी नौकरी से संबंधित परीक्षा पास नहीं कर पा रही थी.

वैसे भी दोनों एवरेज स्टूडेंट की श्रेणी में आती थीं, कोचिंग सेंटर द्वारा लिए जाने वाले वीकली टेस्टों में दोनों के बहुत कम नंबर आते थे. इस के बावजूद इन का हौसला कभी पस्त नहीं हुआ था. दोनों अपने प्रयासों में निरंतर लगी हुई थीं. इन का सपना कोई बड़ी सरकारी नौकरी हासिल करना था.

रोजाना एक ही जगह आनेजाने की वजह से सुमन की इन लड़कियों से जानपहचान हो गई थी. तीनों ने अपने मोबाइल नंबर भी आपस में एक्सचेंज कर लिए थे. सुशीला वकील सुमन से ज्यादा मिक्सअप हो गई थी.

एकेडमी में कोचिंग कर रहे अन्य युवकयुवतियों की तरह ये तीनों भी अपनेअपने ढंग से तैयारी करते हुए सुनहरे भविष्य के सपने बुन रही थीं. वकील सुमन के साथ अब सुनीता और सुशीला का भी सपना जज की कुरसी पर बैठने का बन गया था.

हरियाणा की अदालतों में 109 जजों की नियुक्ति होनी थी. इस के लिए 20 मार्च, 2017 को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा विभिन्न समाचारपत्रों में एक विज्ञापन छपवाया गया, जिस के हिसाब से 16 जुलाई, 2017 को प्रारंभिक परीक्षा होनी थी. वांछित औपचारिकताएं पूरी कर के हजारों आवेदकों के साथसाथ इन तीनों युवतियों ने भी इस परीक्षा के लिए आवेदन किया.

सब के रोल नंबर समय पर आ गए, जिन के साथ परीक्षा सेंटरों की सूची भी संलग्न थी. ये सेंटर चंडीगढ़ के विभिन्न शिक्षा संस्थानों में थे.

वक्त के साथ जून का अंतिम सप्ताह आ गया. न्यायालय में जज नियुक्ति के प्रतिष्ठित एग्जाम एचसीएस (जुडिशियल) के परीक्षार्थी अपनी तैयारी में जीजान से जुटे थे. एकेडमी वाले भी इन की तैयारी करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. कानून के विद्वान जानकारों द्वारा तैयार करवाए गए रिकौर्डेड लेक्चर तक उपलब्ध करवाए जा रहे थे.

27 जून को सुमन किसी कारण से एकेडमी नहीं आ पाई थीं. अगले रोज उन्होंने सुशीला को फोन कर के कहा, ‘‘कल के लेक्चर की रिकौर्डिंग भिजवा दे यार.’’

‘‘नो प्रौब्लम, अभी भिजवाए देती हूं.’’ सुशीला ने बेपरवाह लहजे में कहा.

इस के बाद सुमन के वाट्सऐप पर एक औडियो क्लिप आ गई. खोलने पर मालूम हुआ कि वह कोई लेक्चर न हो कर एक ऐसा वार्तालाप था, जो 2 महिलाओं के बीच हो रहा था. इन में एक आवाज सुशीला की ही लग रही थी.

सुमन को लालच में फंसाने की कोशिश की गई

इस बातचीत को सुमन ने ध्यान से सुना तो यह बात सामने आई कि कोई महिला सुशीला को जज बनने का आसान और पक्का रास्ता बता रही थी. वह महिला कह रही थी कि उस ने पक्का इंतजाम कर रखा है. डेढ़ करोड़ रुपया खर्च करने पर उस के पास संबंधित प्रश्नपत्र परीक्षा से पहले ही पहुंच जाएगा. उस में दिए गए प्रश्नों की तैयारी कर के वह प्रारंभिक परीक्षा में अच्छी पोजीशन के साथ पास हो जाएगी. इस तरह वह मेन एग्जाम के लिए क्वालीफाइ कर लेगी.

बाद में समयसमय पर उसे शेष 5 परीक्षाओं के प्रश्नपत्र भी मुहैया करवा दिए जाएंगे, जिन की तैयारी करने के बाद वह मुख्य परीक्षा में भी अच्छे मार्क्स हासिल कर लेगी. इस के बाद इंटरव्यू में कैसे भी अंक मिलें, उसे नियुक्ति पत्र देने से कोई नहीं रोक सकेगा. इस तरह महज डेढ़ करोड़ रुपए खर्च कर के वह जज का प्रतिष्ठित पद हासिल कर लेगी. इस के बाद तो ऐश ही ऐश हैं.

बातचीत में इस महिला ने यह भी कहा कि महंगी कोचिंग ले कर दिनरात मेहनत करने का कोई फायदा नहीं, जजों के सभी पद पहले ही बिके होते हैं.

मैं तो यही सब करने जा रही हूं, तुम चाहो तो किसी भी तरह पैसों का इंतजाम कर के अपनी नौकरी पक्की कर सकती हो. बाद में जिंदगी भर कमाना. समाज में जो प्रतिष्ठा बनेगी सो अलग. इतना जान लो कि मिडल क्लास से अपर क्लास में शिफ्ट होने में देर नहीं लगेगी.

यह सब सुन कर सुमन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. अगर यह बात सच थी तो वह कभी जज नहीं बन सकती थीं. इतनी बड़ी रकम जुटा पाने की बात तो वह सपने में भी नहीं सोच सकती थीं. न तो प्रैक्टिस से उन्हें इतनी कमाई हो रही थी और न ही वह किसी अमीर घराने से संबंध रखती थीं. वह केवल अपनी कड़ी मेहनत के बूते पर जज बनने का सपना संजोए थीं.

सुमन ने इस बारे में सुशीला को फोन किया. उन की बात सुनते ही सुशीला बोली, ‘‘ओह सौरी, यह औडियो गलती से चला गया. तुम इसे अभी के अभी डिलीट कर दो. मैं भी डिलीट कर रही हूं.’’

‘‘ठीक है, कर देती हूं, लेकिन तुम मुझे लेक्चर वाली औडियो भेज दो.’’

‘‘अभी भेजती हूं, चिंता मत करो.’’ कहने के तुरंत बाद सुशीला ने पिछले दिन के लेक्चर की औडियो भेज दी.

वांछित औडियो का क्लिप तो सुमन को मिल गया लेकिन सुशीला ने गलती से भेजी गई औडियो को अपने फोन से डिलीट नहीं किया. यह औडियो उन के फोन की गैलरी में सुरक्षित थी. बाद में उन्होंने उसे कई बार सुना. जितनी बार सुना, उतनी बार वह परेशान होती रहीं. उन के भीतर यह डर गहराता जा रहा था कि ऐसे तो वह कभी जज नहीं बन पाएंगी.

2 दिन बाद सुमन की मुलाकात सुशीला से हुई तो उन्होंने उस औडियो की चर्चा छेड़ दी. इस पर सुशीला ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘यह बात तो गलत है मैडम, जब मैं ने आप से कहा था कि गलती से चली गई औडियो को डिलीट कर दो तो आप को उसे डिलीट कर देना चाहिए था.’’

‘‘अरे नहीं नहीं,’’ बात संभालने का प्रयास करते हुए सुमन ने स्पष्टीकरण दिया, ‘‘तुम्हारे कहने के बाद मैं ने उसी समय वह औडियो डिलीट कर दी थी. लेकिन उसे डिलीट करने से पहले लेक्चर के मुगालते में मैं ने उस बातचीत को सुन ही लिया था.’’

‘‘सुन लिया तो कोई बात नहीं, लेकिन इस बारे में किसी को कुछ बताया तो नहीं न?’’

‘‘मैं ने इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताया. लेकिन सुशीला, मैं तुम से एक बात की जानकारी चाहती हूं.’’

‘‘किस बात की?’’

‘‘यही कि क्या यह काम डेढ़ करोड़ दे कर ही हो सकता है, कुछ कम पैसे दे कर नहीं?’’

सुमन के इस सवाल का जवाब देने के बजाय सुशीला ने इधरउधर देखते हुए उल्टा उन्हीं से प्रश्न किया, ‘‘तुम इंटरेस्टेड हो क्या?’’

सुमन को अपनी मेहनत बेकार जाती लग रही थी

‘‘देखो सुशीला, सीधी सी बात है. इतनी बड़ी पोस्ट हासिल करने का सपना हजारों लोग देख रहे हैं. मैं भी उन्हीं में से एक हूं. लेकिन अगर उस औडियो में आई बातें सही हैं तो सच बता दूं कि मैं इतने पैसों का इंतजाम नहीं कर सकती. डेढ़ करोड़ रुपया बहुत होता है यार.’’

‘‘अब जब बात खुल ही गई है तो सीधेसीधे बता देती हूं कि यहां यही सब चल रहा है. फिर यह कोचिंग क्या मुफ्त में मिल रही है? मोटी फीस अदा करनी पड़ती है हर महीने. किताबों पर कितना खर्च हो रहा है. एकेडमी तक आनाजाना क्या फ्री में हो जाता है? सौ बातों की एक बात यह है कि सारी मेहनत और किया गया तमाम खर्च गड्ढे में चले जाना है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यही कि जज की ऊंची कुरसी पर बैठना है तो यह इनवैस्टमेंट करना ही पड़ेगा. इस के बाद जिंदगी भर इस पोस्ट से कमाना ही है, बड़ा रुतबा मिलेगा, सो अलग. इतने बड़े काम के लिए डेढ़ करोड़ रुपया भला कौन सी बड़ी रकम है.’’

‘‘हमारे जैसे लोगों के लिए है न.’’ सुमन ने मायूस होते हुए कहा.

इस पर सुशीला चुप रह कर सोचने की मुद्रा में आ गई. कुछ देर सोचने के बाद उस ने सुमन का हाथ अपने हाथों में ले कर सधे हुए शब्दों में कहना शुरू किया, ‘‘देखो सुमन, तुम बहुत नाइस और मेहनती हो. मैं दिल से चाहती हूं कि अपने मकसद में कामयाब होते हुए जज की कुरसी तक पहुंचो. लेकिन तुम्हारी मजबूरी मुझे साफ दिख रही है. चलो, मैं कुछ करती हूं, तुम्हें रिलीफ दिलवाने के लिए.’’

इस के बाद इस बारे में दोनों के बीच होने वाली बात यहीं खत्म हो गई.

सुशीला के पति हरियाणा में सबइंसपेक्टर हैं. सुशीला पति को साथ ले कर 12 जुलाई को पिंजौर गई. मार्केट में एक जगह रुक कर उस ने सुमन को फोन कर के वहां बुलाया.

वह आ गईं तो सुशीला ने उन से सीधेसीधे कहा, ‘‘प्रश्नपत्र की कौपी सुनीता के पास है. उस ने यह कौपी डेढ़ करोड़ में खरीदी है. जो औडियो मैं ने गलती से तुम्हें भेज दिया था, उस में मेरी उसी से बात हो रही थी. सुनीता से मिल कर मैं ने तुम्हारे बारे में बात की है.’’

‘‘तो क्या कहा उस ने?’’ सुमन ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘देखो, मेरी बात का बुरा मत मानना, यह काम मुफ्त में तो होगा नहीं. आप 10-10 लाख कर के पैसे देती रहो. हर बार के 10 लाख पर तुम्हें प्रश्नपत्र में से 5-6 सवाल नोट करवा दिए जाएंगे. काम एकदम गारंटी वाला है, लेकिन बिना पैसों के होने वाला नहीं है. इतना जान लो कि इस तरह की सुविधा भी केवल तुम्हें दी जा रही है, वरना एकमुश्त डेढ़ करोड़ रुपया देने वालों की लाइन लगी है. पक्के तौर पर जज की पोस्ट उन्हीं लोगों से भरी जानी है.’’ सुशीला ने बताया.

‘‘ठीक है सुशीला, मैं सोचती हूं इस बारे में.’’ सुमन ने मायूस होते हुए कहा.

‘‘सोच लो, बस इस बात का ध्यान रखना कि टाइम बहुत कम है. एक बार मौका हाथ से निकल गया तो सिवाय पछताने के कुछ हासिल नहीं होगा.’’

एक तरह से चेतावनी देने के बाद सुशीला अपने पति के साथ वापस चली गई. कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था सुमन को, पैसा उन के पास था नहीं

सुमन इस सब से काफी अपसेट सी हो गई थी. जितने जोशोखरोश से वह परीक्षा की तैयारी कर रही थी, अब उस तरह पढ़ाई कर पाना उस के लिए मुश्किल हो गया था. उस का मन यह सोचसोच कर अवसाद से भरता जा रहा था कि जब जजों की नियुक्ति पैसा दिए जाने के बाद ही होनी है तो फिर इस तरह जीतोड़ मेहनत करने का क्या फायदा. इस तरह 2 दिन का वक्त और निकल गया. 15 जुलाई को सुशीला ने सुमन को फोन कर के दोपहर 2, ढाई बजे चंडीगढ़ के सेक्टर-17 स्थित सिंधी रेस्टोरेंट पहुंचने को कहा.

निर्धारित समय पर सुमन वहां पहुंच गईं. वहां सुशीला के साथ सुनीता भी थी. इन लोगों ने रेस्टोरेंट के फर्स्ट फ्लोर पर बैठ कर बातचीत शुरू की. सुनीता ने कहा कि वह सुमन का काम डेढ़ करोड़ की बजाय केवल 1 करोड़ में कर देगी, सीधे 50 लाख का फायदा.

सुमन के लिए यह कतई संभव नहीं था. फिर भी उन्होंने जैसेतैसे 10 लाख रुपयों का इंतजाम कर के सुनीता से संपर्क किया, लेकिन उस ने एक भी प्रश्न दिखाने से मना कर दिया. सुमन ने सुशीला से मिल कर उसे बताया कि पता नहीं क्यों सुनीता उस पर शक करते हुए अजीब ढंग से बात कर रही थी.

अब टाइम नहीं बचा था. अगले रोज पेपर था. सुशीला व सुनीता के साथ सुमन ने भी परीक्षा दी.

सुमन पढ़ाई में होशियार थीं, वह पेशे से वकील भी थीं. फिर भी रिजल्ट घोषित होने पर जहां सुमन को निराशा मिली, वहीं सुशीला और सुनीता इस टफ एग्जाम को क्लीयर कर गईं. यह बात भी सामने आई कि सुनीता सामान्य वर्ग में और सुशीला रिजर्व कैटेगरी में न केवल प्रथम आई थीं, बल्कि दोनों इतने ज्यादा अंक हासिल किए थे, जिस की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.

सुमन को इस परीक्षा के उत्तीर्ण न होने का इतना दुख नहीं था, जितना अफसोस इस बात का था कि जैसा सुशीला ने कहा था, वैसा ही हुआ था. यह एक बड़ी ज्यादती थी, जिस के बल पर जिंदगी में ऊंचा उठने के काबिल लोगों के भविष्य से सरेआम खिलवाड़ किया जा रहा था.

सुमन ने इस मुद्दे पर काफी गहराई से सोचा. उन के पास न केवल सुशीला द्वारा गलती से भेजी गई औडियो क्लिप थी, बल्कि बाद में भी उस के साथ हुई बात की कई टेलीफोनिक काल्स थीं, जो उन्होंने रेकौर्ड की थीं. आखिर उन से रहा नहीं गया और जुटाए गए सबूतों के साथ उन्होंने इस संबंध में अपनी एक याचिका पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में दायर कर दी. यह याचिका हाईकोर्ट के वकील मंजीत सिंह के माध्यम से दाखिल की गई थी.

आखिर सुमन ने उठा ही लिया कानूनी कदम

हाईकोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए इस की गोपनीय तरीके से गहन जांच करवाई तो यह बात सामने आई कि इस घोटाले में मुख्यरूप से हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार डा. बलविंदर कुमार शर्मा शामिल थे. उन्हीं के पास परीक्षापत्र थे, जिन में से एक की कौपी करवा कर उन्होंने सुनीता को मुहैया करवा दी थी.

सुनीता सुशीला से मिल कर परीक्षार्थियों से संपर्क कर के डेढ़ करोड़ रुपयों में इस डील को अंतिम रूप देने लगी थी. रजिस्ट्रार का पद जज के पद के समानांतर होता है.

अपनी गहन छानबीन के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में डा. बलविंदर कुमार शर्मा, सुनीता और सुशीला के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर के इन्हें गिरफ्तार करने की संस्तुति दे दी.

इस तरह 19 सितंबर, 2017 को चंडीगढ़ के सेक्टर-3 स्थित थाना नौर्थ में भादंवि की धाराओं 409, 420 एवं 120बी के अलावा भ्रष्टाचार अधिनियम की धाराओं 8, 9, 13(1) व 13(2) के तहत तीनों आरोपियों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज हो गई.

हाईकोर्ट के आदेश पर ही इस केस की जांच के लिए चंडीगढ़ पुलिस के नेतृत्व में स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम का गठन कर दिया गया. इस एसआईटी में डीएसपी कृष्ण कुमार के अलावा थाना नौर्थ की महिला एसएचओ इंसपेक्टर पूनम दिलावरी को भी शामिल किया गया था. एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद डा. बलविंदर कुमार को उन के पद से हटा दिया गया. 28 दिसंबर, 2017 को उन के अलावा सुनीता को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

डा. बलविंदर जहां जज के पद का रुतबा हासिल किए हुए थे, वहीं सुनीता भी वकालत करती थी. लिहाजा पुलिस द्वारा इन से सख्त तरीके से पूछताछ करना संभव नहीं था. मनोवैज्ञानिक आधारों पर ही पूछताछ कर के इन्हें न्यायिक हिरासत में भिजवा दिया गया. सुशीला अभी तक पकड़ में नहीं आई थी.

14 जनवरी, 2018 को उसे भी उस के पंचकूला स्थित आवास से गिरफ्तार कर लिया गया. उसे अदालत में पेश कर के कस्टडी रिमांड में लिया गया. पुलिस ने उस से गहनता से पूछताछ की.

आज जहां हर केस की एफआईआर पुलिस की वेबसाइट पर उपलब्ध हो जाती है, इस मामले को सेंसेटिव केस की संज्ञा देते हुए इस की एफआईआर जगजाहिर नहीं की गई थी. पुलिस पत्रकारों से बचते हुए इस केस की छानबीन का काम निहायत होशियारी से करती रही. इस मामले में किस ने कितना पैसा लिया, किस ने दिया और किस से कितना रिकवर किया गया, आदि मुद्दों की जानकारी पुलिस ने सामने नहीं आने दी.

हाईकोर्ट के आदेश पर जज के पद की यह प्रारंभिक परीक्षा पहले ही रद्द कर दी गई थी. थाना पुलिस ने तीनों अभियुक्तों के खिलाफ अपनी 2140 पेज की चार्जशीट अदालत में पेश कर दी है. अन्य केसों के आरोपियों की तरह इस केस के आरोपी भी अपने को बेकसूर कह रहे हैं. किस का क्या कसूर रहा, इस घोटाले में किस की क्या भूमिका रही, इस का उत्तर तो केस का फैसला आने पर ही मिल पाएगा.

बहरहाल, जज जैसे अतिप्रतिष्ठित पद के साथ भ्रष्टाचार का ऐसा खिलवाड़ किसी त्रासदी से कम नहीं.

कौन समझेगा इनके दर्द को?

भोपाल के करोंद इलाके में रहने वाली 20 वर्षीय रानी (बदला हुआ नाम) के पिता की मौत एक साल पहले हुई थी. पिता के साथसाथ आमदनी का जरिया भी खत्म हो गया तो घर में फांकों की नौबत आ गई. खुद रानी ही नहीं बल्कि उस के 8 भाईबहन भी एक वक्त भूखे सोने को मजबूर हो गए. बड़े भाई ने प्राइवेट नौकरी कर ली पर उसे इतनी पगार नहीं मिलती थी कि घर के सभी सदस्य भर पेट खाना खा सकें.

ऐसे में रानी को लगा कि उसे भी कुछ काम करना चाहिए. सोचविचार कर वह नौकरी की तलाश में घर से बाहर निकली. रानी खूबसूरत भी थी और जवान भी, लेकिन नामसमझ नहीं थी. नौकरी के नाम पर हर किसी ने उस से जो चाहा, वह थी उस की जवानी. जहां भी वह काम मांगने जाती, मर्दों की निगाह उस के गठीले जिस्म पर रेंगने लगती थी. कम पढ़ीलिखी रानी को पहली बार समझ आया कि किसी भी अकेली जरूरतमंद लड़की के लिए सफेदपोश लोगों से अपनी आबरू सलामत रख पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है.

काम की तलाश में दरबदर घूमने के बाद जब वह शाम को थकीहारी घर लौटती तो भाईबहनों के लटके, भूखे और मुरझाए चेहरे उस की चाल देख कर ही नाउम्मीद हो उठते थे. वे समझ जाते थे कि आज भी खाली पेट पानी पी कर सोना पड़ेगा. भाई की पगार से मुश्किल से 10-12 दिन का ही राशन आ पाता था. घर के दीगर खर्चे भी खींचतान कर चलते थे.

नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों ने तो पिता की मौत के साथ ही नाता तोड़ लिया था. रानी अब उन लोगों की ज्यादा गलती नहीं मानती, क्योंकि उसे समझ आ गया था कि पैसा ही सब कुछ है. जबकि पैसा उतनी आसानी से नहीं मिलता, जितना आसान सोच कर लगता है. यह दुनिया बड़ी हिसाब किताब वाली है, जो पैसे देता है वह बदले में कुछ न कुछ चाहता भी है.

एक असहाय बेसहारा लड़की के पास देने के लिए जो कुछ होता है, वह रानी ने अपनी कीमत पर देना शुरू किया तो उस पर पैसा बरसने लगा.

भूख से बिलबिलाते जिन भाईबहनों को देख रानी का कलेजा मुंह को आ जाता था, उन के पेट उस की कमाई से भरने लगे तो रानी को सुकून देने वाला अहसास हुआ. घर में अब खानेपीने की कमी नहीं थी.

न तो बड़े भाई ने पूछा, न ही किसी और ने. फिर भी समझ हर किसी ने लिया कि रानी कैसे और कहां से इतना पैसा लाती है कि उस के पास महंगे कपड़े और मेकअप का सामान आने लगा है.

काम की तलाश के दौरान रानी को कई तरह के तजुरबे हुए थे. तमाम नए लोगों से उस की जानपहचान भी हो गई थी. उन में से एक था कपिल नाम का शख्स, जिस ने बहुत अपनेपन से उसे यह समझाने में कामयाबी पा ली थी कि यूं अकेली काम की तलाश में दरदर भटकोगी तो लोग नोच खाएंगे. इस से तो बेहतर है कि लोग जो चाहते हैं, उसे बेचना शुरू कर दो. इस से जल्द ही मालामाल हो जाओगी.

कपिल उसे भरोसे का और समझदार आदमी लगा तो उस ने मरती क्या न करती की तर्ज पर देह व्यापार के लिए हामी भर दी. कपिल अपने वादे पर खरा उतरा और देखते ही देखते वह हजारों में खेलने लगी.

बीती 29 दिसंबर को कपिल ने उसे बताया कि टीकमगढ़ से उस के कुछ दोस्त आने वाले हैं और एक दिन रात के एवज में उसे इतनी रकम देंगे, जितनी वह महीने भर में कमा पाती है.

सौदा 14 हजार रुपए में तय हुआ. हालांकि कपिल और उस के दोस्तों की बेताबी देख रानी ज्यादा पैसे मांग रही थी. लेकिन कपिल इस से ज्यादा देने को तैयार नहीं हुआ तो वह इतने में ही मान गई. उस के लिए यह सौदा घाटे का नहीं था.

साल की दूसरी आखिरी शाम यानी 30 दिसंबर को जब पूरी दुनिया नए साल के जश्न की तैयारियों में लगी थी, तब रानी कपिल के बताए मिसरोद इलाके के शीतलधाम अपार्टमेंट के फ्लैट पर पहुंच गई, जहां कपिल सहित 3 और मर्द बेचैनी से उस का इंतजार कर रहे थे. रानी तो यही सोचसोच कर खुश थी कि एक झटके में 14 हजार रुपए मिल जाएं तो वह 2-4 दिन घर पर आराम करेगी और भाईबहनों के साथ वक्त बिताएगी.

रात भर चारों ने जैसेजैसे चाहा, वैसेवैसे उस ने उन्हें खुश किया, पर साल की आखिरी सुबह रानी पर भारी पड़ी. सुबहसुबह ही मिसरोद पुलिस ने दबिश दे कर देह व्यापार के इलजाम में उन पांचों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

ऐसे पुलिस छापों के बारे में रानी ने काफी कुछ सुन रखा था पर वास्ता पहली बार पड़ा था. थाने में जैसे ही उसे मीडिया वालों से बात करने का मौका मिला तो उस ने अपनी गरीबी और बदहाली की दास्तां बयां कर दी, जिस से किसी ने हमदर्दी नहीं जताई.

रानी कोई पहली या आखिरी लड़की नहीं थी जो अपनी मजबूरियों के चलते अपना और अपने घर वालों का पेट पालने के लिए देह व्यापार की दलदल में उतरी थी. ऐसी लड़कियों की तादाद अकेले भोपाल में 25 हजार से ऊपर आंकी जाती है, जो पार्टटाइम या फुलटाइम यह धंधा करती हैं.

पिछले साल अक्तूबर में भोपाल के ही एक मसाजपार्लर में पड़े छापे में 2 और लड़कियों की आपबीती रानी से ज्यादा जुदा नहीं है. 24 वर्षीय मधु (बदला नाम) इस मसाजपार्लर में ग्राहकों की मालिश करती थी. सच यह भी है कि ग्राहक खुद पहल करता था तो वाजिब दाम पर वह जिस्म बेचने को भी तैयार हो जाती थी.

मधु छापे वाले दिन थाने में खड़ी थरथर कांप रही थी. उसे चिंता अपनी कम अपने अपाहिज पिता की ज्यादा थी, जिन्हें रोजाना शाम को दवा और खाना वही देती थी. रानी की तरह ही झोपड़ेनुमा मकान में रहने वाली मधु अपने अपाहिज पिता के इलाज और पेट भरने के लिए इस धंधे में आई थी, जिसे अपने धंधे की बाबत किसी से न कोई गिलाशिकवा था और न ही वह इसे गलत मानती थी.

इसी छापे में पकड़ी गई 26 वर्षीय सुचित्रा (बदला नाम) को उस के शौहर ने छोड़ दिया था. मायके वालों ने कुछ दिन तो उसे रखा पर शौहर से सुलह की गुंजाइश खत्म होते देख उसे आए दिन ताने दिए जाने लगे.

खुद सुचित्रा को भी लग रहा था कि उसे किसी दूसरे पर बोझ नहीं बनना चाहिए. लिहाजा वह भी रानी और मधु की तरह जोशजोश में काम की तलाश में निकल पड़ी. 4 हजार रुपए महीने की पगार पर एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी मिली, पर जल्द ही उसे समझ आ गया कि नौकरी तो कहने भर की है. अगर वक्त पर पैसा चाहिए तो जैसा ब्यूटीपार्लर चलाने वाली कह रही है, वैसा करना पड़ेगा. इस के बाद उस ने नौकरी छोड़ दी.

इस पर घर वालों ने फिर ऐतराज जताया तो उस ने भी मसाजपार्लर में नौकरी कर ली, जहां उसे 15 हजार रुपए देने की बात कही गई थी. 15 हजार रुपए के एवज में क्याक्या करना है, यह बात सुचित्रा से छिपी नहीं थी. लिहाजा वह मालिश के साथसाथ बाकी सब भी करने लगी, जिस से उसे 10-12 हजार रुपए मिलने लगे थे. अब घर वालों की शिकायतें दूर हो गई थीं, पर जब छापे में वह पकड़ी गई तो उन्होंने उस से कन्नी काट ली.

मधु और सुचित्रा को थाने में पुलिस अफसर लताड़ती रहीं कि ऐसी ही लड़कियों ने औरतों को बदनाम कर रखा है, जो दूसरे कामधंधों के बजाय देहव्यापार करने लगती हैं.

उस वक्त तो दोनों चुप रहीं पर बाद में बताया कि ये लोग हमारा दर्द नहीं समझेंगी. हम ने पहले ईमानदारी से ही कोशिश की थी. इज्जत से नौकरी करना चाहा था, लेकिन हर जगह हम पर सैक्स के लिए या तो दबाव बनाया गया था या फिर लालच दिया गया.

सुचित्रा बताती है कि कोई लड़की नहीं चाहती कि वह इस पेशे में आए लेकिन समाज मर्दों का है और वे एक ही चीज चाहते हैं. हर कोई हमारी मजबूरी का फायदा उठाना चाहता है और हम उन की मंशा पूरी न करें तो नौकरी से निकाल दिया जाता है. कोई हमें बहनबेटियों की तरह इज्जत नहीं देता, जिस की हम उम्मीद भी नहीं करतीं.

मधु और सुचित्रा को मसाजपार्लर महफूज लगा, जहां देहव्यापार करना मजबूरी या दबाव की बात नहीं थी बल्कि मरजी की बात थी. यहां मालिश कराने काफी बड़ी हस्तियां आती हैं और थोड़ी देर की मौजमस्ती के एवज में 2-4 हजार रुपए ऐसे दे जाती हैं, जैसे पैसा वाकई हाथ का मैल हो.

ये तीनों फिर पुराने धंधे में आ गई हैं. पैसा इन की जरूरत भी है और मजबूरी भी. दूसरी तरफ ये मर्दों की जरूरत हैं जो इन पर पैसा न्यौछावर करने को तैयार बैठे रहते हैं.

देहव्यापार को बुरी नजर से क्यों देखा जाता है और इसे सिर्फ बुरी नजर से क्यों नहीं देखा जाना चाहिए, इस पर आए दिन बहस होती रहती हैं और आगे भी होती रहेंगी, लेकिन मधु, रानी और सुचित्रा का दर्द हर कोई नहीं समझ सकता. अगर वे इस पेशे में नहीं आतीं तो मुफ्त में लुटतीं और इस के बाद भी खाली पेट रहतीं.

रानी अपने भाईबहनों को भूख से तिलमिलाते नहीं देख पा रही थी तो इस में उस का कोई कसूर नहीं. मधु अपने पिता के लिए मसाजपार्लर में काम कर रही थी और सुचित्रा के निकम्मे और नशेड़ी पति को कोई दोषी नहीं ठहरा रहा था, जिस ने धक्के दे कर बीवी को घर से बाहर कर के दरदर की ठोकरें खाने को छोड़ दिया था. ऐसे में तय कर पाना मुश्किल है कि ये लड़कियां फिर और क्या करतीं?

बेटी बनी मां बाप की शादी की गवाह

25 अक्तूबर, 2017 को धौलपुर के आर्यसमाज मंदिर में एक शादी हो रही थी. इस शादी में हैरान करने वाली बात यह थी कि वहां न लड़की के घर वाले मौजूद थे और न ही लड़के के घर वाले. इस से भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि जिस लड़के और लड़की की शादी हो रही थी, उन की ढाई साल की एक बेटी जरूर इस शादी में मौजूद थी.

इस शादी में लड़की के घर वालों की भूमिका बाल कल्याण समिति धौलपुर के अध्यक्ष अदा कर रहे थे तो इसी संस्था के अन्य सदस्य लड़के के घर वालों तथा बाराती की भूमिका अदा कर रहे थे. इस के अलावा कुछ अन्य संस्थाओं के कार्यकर्ता भी वहां मौजूद थे.

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दरअसल, इस के पीछे जो वजह थी, वह बड़ी दिलचस्प है. राजस्थान के भरतपुर का रहने वाला 19 साल का सचिन धौलपुर के कोलारी के रहने वाले अपने एक परिचित के यहां आताजाता था. उसी के पड़ोस में अनु अपने मांबाप के साथ रहती थी. लगातार आनेजाने में सचिन और अनु के बीच बातचीत होने लगी.

ऐसे परवान चढ़ा दोनों का प्यार

15 साल की अनु को सचिन से बातें करने में मजा आता था. चूंकि दोनों हमउम्र थे, इसलिए फोन पर भी उन की बातचीत हो जाती थी. इस का नतीजा यह निकला कि उन में प्यार हो गया. मौका निकाल कर दोनों एकांत में भी मिलने लगे.

जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी अनु सचिन पर फिदा थी. उस ने तय कर लिया था कि वह सचिन से ही शादी करेगी. ऐसा ही कुछ सचिन भी सोच रहा था. जबकि ऐसा होना आसान नहीं था. इस के बावजूद उन्होंने हिम्मत कर के अपने अपने घर वालों से शादी की बात चलाई.

सचिन ने जब अपने घर वालों से कहा कि वह धौलपुर की रहने वाली अनु से शादी करना चाहता है तो उस के पिता ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘कमाता धमाता कौड़ी नहीं है और चला है शादी करने. अभी तेरी उम्र ही क्या है, जो शादी के लिए जल्दी मचाए है. पहले पढ़लिख कर कमाने की सोच, उस के बाद शादी करना.’’

सचिन अभी इतना बड़ा नहीं हुआ था कि पिता से बहस करता, इसलिए चुप रह गया.

दूसरी ओर अनु ने अपने घर वालों से सचिन के बारे में बता कर उस से शादी करने की बात कही तो घर के सभी लोग दंग रह गए. क्योंकि अभी उस की उम्र भी शादी लायक नहीं थी. उन्हें चिंता भी हुई कि कहीं नादान लड़की ने कोई ऐसा वैसा कदम उठा लिया तो उन की बड़ी बदनामी होगी. उन्होंने अनु को डांटाफटकारा भी और समझाया भी. यही नहीं, उस पर घर से बाहर जाने पर पाबंदी भी लगा दी गई.

घर वालों की यह पाबंदी परेशान करने वाली थी, इसलिए अनु ने सारी बात प्रेमी सचिन को बता दी. उस ने कहा कि उस के घर वाले किसी भी कीमत पर उस की शादी उस से नहीं करेंगे. जबकि अनु तय कर चुकी थी कि उस की राह में चाहे जितनी भी अड़चनें आएं, वह उन से डरे बिना सचिन से ही शादी करेगी.

घर वालों के मना करने के बाद कोई और उपाय न देख सचिन और अनु ने घर से भागने का फैसला कर लिया. लेकिन इस के लिए पैसों की जरूरत थी. सचिन ने इधरउधर से कुछ पैसों का इंतजाम किया और घर से भागने का मौका ढूंढने लगा.

दूसरी ओर अनु के घर वालों को लगा कि उन की बेटी बहक गई है, वह कोई गलत कदम उठा सकती है. हालांकि उस समय उस की उम्र महज 15 साल थी, इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी करने का फैसला कर लिया. इस से पहले कि वह कोई ऐसा कदम उठाए, जिस से उन की बदनामी हो, उन्होंने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया.

यह बात अनु ने सचिन को बताई. सचिन अपनी मोहब्बत को किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था, इसलिए योजना बना कर एक दिन अनु के साथ भाग गया. अनु को घर से गायब देख कर घर वाले समझ गए कि उसे सचिन भगा ले गया है. अनु के पिता अपने शुभचिंतकों के साथ थाने पहुंचे और सचिन के खिलाफ अपहरण और पोक्सो एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

मामला नाबालिग लड़की के अपहरण का था, इसलिए पुलिस ने तुरंत काररवाई शुरू कर दी. धौलपुर के कोलारी का रहने वाला सचिन का जो परिचित था, उस से पूछताछ की गई. उसे साथ ले कर पुलिस भरतपुर स्थित सचिन के घर गई, लेकिन वह वहां नहीं मिला.

पुलिस ने उस के घर वालों से भी पूछताछ की, पर उन्हें सचिन और अनु के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. सचिन की जहांजहां रिश्तेदारी थी, पुलिस ने वहांवहां जा कर जानकारी हासिल की. सभी ने यही बताया कि सचिन उन के यहां नहीं आया है.

सचिन का फोन नंबर भी स्विच्ड औफ था. पुलिस के पास अब ऐसा कोई जरिया नहीं था, जिस से उस के पास तक पहुंच पाती. इधरउधर हाथपैर मारने के बाद भी पुलिस को सफलता नहीं मिली तो वह धौलपुर लौट आई.

पुलिस को महीनों बाद भी न मिला दोनों का सुराग

अनु के गायब होने से उस के मातापिता बहुत परेशान थे. उन्हें चिंता सता रही थी कि उन की बेटी पता नहीं कहां और किस हाल में है. पुलिस में रिपोर्ट वे करा ही चुके थे. जब पुलिस उसे नहीं ढूंढ सकी तो उन के पास ऐसा कोई जरिया नहीं था कि वे उसे तलाश पाते. महीना भर बीत जाने के बाद भी जब अनु के बारे में कहीं से कोई खबर नहीं मिली तो वे शांत हो कर बैठ गए.

पुलिस को भी लगने लगा कि सचिन और अनु किसी दूसरे शहर में जा कर रह रहे हैं. पुलिस ने राजस्थान और उत्तर प्रदेश के सभी थानों में दोनों का हुलिया भेज कर यह जानना चाहा कि कहीं उस हुलिए से मिलतीजुलती डैडबौडी तो नहीं मिली है.

सचिन उत्तर प्रदेश के इटावा का मूल निवासी था और उस के ज्यादातर रिश्तेदार उत्तर प्रदेश में ही रहते थे. इसलिए वहां के थानों को भी सूचना भेजी गई थी. इस से भी पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली.

समय बीतता रहा और पुलिस की जांच अपनी गति से चलती रही. थानाप्रभारी ने हिम्मत नहीं हारी. वह अपने स्रोतों से दोनों प्रेमियों के बारे में पता करते रहे. एक दिन उन्हें मुखबिर से जानकारी मिली कि सचिन अनु के साथ इटावा में रह रहा है.

यह उन के लिए अच्छी खबर थी. अपने अधिकारियों को सूचित करने के बाद वह पुलिस टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताए गए इटावा वाले पते पर पहुंच गए. मुखबिर की खबर सही निकली. सचिन और अनु वहां मिल गए. लेकिन उस समय अनु 7 महीने की गर्भवती थी. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया और उन्हें धौलपुर ले आई.

पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां अनु ने अपने प्रेमी सचिन के पक्ष में बयान दिया. अनु के मातापिता को बेटी के मिलने पर खुशी हुई थी. वे उसे लेने के लिए कोर्ट पहुंचे. बेटी के गर्भवती होने की बात जान कर भी उन्होंने अनु से घर चलने को कहा. पर अनु ने कहा कि वह मांबाप के घर नहीं जाएगी. वह सचिन के साथ ही रहेगी.

चूंकि सचिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज थी, इसलिए न्यायालय ने उसे जेल भेजने के आदेश दे दिए थे. घर वालों के काफी समझाने के बाद भी जब अनु नहीं मानी तो कोर्ट ने उसे बालिका गृह भेज दिया. अनु 7 महीने की गर्भवती थी, इसलिए बालिका गृह में उस का ठीक से ध्यान रखा गया. समयसमय पर उस की डाक्टरी जांच भी कराई जाती रही. वहीं पर उस ने बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म के बाद भी अनु की सोच नहीं बदली, वह प्रेमी के साथ रहने की रट लगाए रही.

सचिन जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आ गया था. उसे जब पता चला कि अनु ने बेटी को जन्म दिया है और वह अभी भी बालिका गृह में है तो उसे बड़ी खुशी हुई. वह उसे अपने साथ रखना चाहता था. इस बारे में उस ने वकील से सलाह ली तो उस ने कहा कि जब तक उस की उम्र 18 साल नहीं हो जाएगी, तब तक शादी कानूनन मान्य नहीं होगी. अनु ने तय कर लिया था कि जब तक वह बालिग नहीं हो जाएगी, वह बालिका गृह में ही रहेगी.

अनु अपनी बेटी के साथ वहीं पर दिन बिताती रही. उस के घर वालों ने उस से मिल कर उसे लाख समझाने की कोशिश की, पर वह अपनी जिद से टस से मस नहीं हुई. उस ने साफ कह दिया कि वह सचिन को हरगिज नहीं छोड़ सकती.

बाल कल्याण समिति, धौलपुर के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह परमार को जब अनु और सचिन के प्रेम की जानकारी हुई तो वह इन दोनों से मिले. इन से बात करने के बाद उन्होंने तय कर लिया कि वह इन की शादी कराएंगे, ताकि इन की बेटी को भी मांबाप दोनों का प्यार मिल सके. वह भी अनु के बालिग होने का इंतजार करने लगे.

16 अक्तूबर, 2017 को अनु की उम्र जब 18 साल हो गई तो उसे आशा बंधी कि लंबे समय से प्रेमी से जुदा रहने के बाद अब वह उस के साथ रह सकेगी. अब तक उस की बेटी करीब ढाई साल की हो चुकी थी. उसे भी पिता का प्यार मिलेगा.

सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों ने कराया दोनों का विवाह

अनु के बालिग होने पर धौलपुर की बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह परमार ने उन के विवाह की तैयारियां शुरू कर दीं. इस बारे में उन्होंने भरतपुर की बाल कल्याण समिति और सामाजिक संस्था प्रयत्न के पदाधिकारियों से बात की. वे भी इस काम में सहयोग करने को तैयार हो गए.

अनु धौलपुर की थी और बिजेंद्र सिंह परमार भी वहीं के थे, इसलिए उन्होंने तय किया कि वह इस शादी में लड़की वालों का किरदार निभाएंगे. जबकि सचिन भरतपुर का था, इसलिए बाल कल्याण समिति, भरतपुर के पदाधिकारियों ने वरपक्ष की जिम्मेदारियां निभाने का वादा किया.

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हैरान करने वाली इस शादी का आयोजन धौलपुर के आर्यसमाज मंदिर में किया गया. इस मौके पर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों के अलावा पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. तमाम लोगों की मौजूदगी में सचिन और अनु की शादी संपन्न हुई. शादी में उन की ढाई साल की बेटी भी मौजूद थी.

सामाजिक संस्था प्रयत्न के एडवोकेसी औफिसर राकेश तिवाड़ी ने बताया कि उन का मकसद था कि ढाई साल के बच्चे को उस के मातापिता का प्यार मिले और अनु को भी समाज में अधिकार मिल सके.

सचिन और अनु दोनों वयस्क हैं. वे अपनी मरजी से जीवन बिताने का अधिकार रखते हैं. यह शादी सामाजिक दृष्टि से भी उचित है. अब वे अपना जीवन खुशी से बिता सकते हैं. खास बात यह रही कि इस शादी में वर और कन्या के घर का कोई भी मौजूद नहीं था.

वहां मौजूद सभी लोगों ने वरवधू को आशीर्वाद दिया. शादी के बाद सचिन अनु को अपने घर ले गया. सचिन के घर वालों ने अनु को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया. अनु भी अपनी ससुराल पहुंच कर खुश है.

गर्लफ्रेंड को जीबी रोड बेचने आए प्रेमी ने की एसएचओ से डील

दिल्ली के थाना कमला मार्केट के थानाप्रभारी सुनील कुमार ढाका के सरकारी मोबाइल फोन पर  लगातार ऐसी काल्स आ रही थीं, जिस में फोन करने वाला अपने बारे में कुछ न बता कर उन से ही पूछता था कि आप कौन हैं और कहां से बोल रहे हैं? जब वह उसे अपने बारे में बताते तो फोन करने वाला तुरंत काल डिसकनेक्ट कर देता.

शुरुआत में तो वह यही समझ रहे थे कि शायद किसी से गलत नंबर लग जा रहा है. पर जब रोजाना ही अलगअलग नंबरों से ऐसी काल्स आने लगीं तो उन्हें शक हुआ. क्योंकि फोनकर्ता पुलिस का नाम सुनते ही फोन काट देता था. वह यह जानना चाहते थे कि आखिर फोन करने वाला कौन है और वह चाहता क्या है. क्योंकि एक ही फोन पर लगातार रौंग काल आने की बात गले नहीं उतर रही थी.

इस के बाद उन के पास एक अनजान नंबर से काल आई तो उन्होंने फोन करने वाले से झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘मैं अशोक बोल रहा हूं, आप कौन हैं और किस से बात करनी है?’’

‘‘जी, मैं ने जीबी रोड फोन मिलाया था.’’ उस ने कहा.

जीबी रोड दिल्ली का बदनाम रेडलाइट एरिया है. लेकिन अब इस का नाम बदल कर श्रद्धानंद मार्ग हो गया है. यहां पर मशीनरी पार्ट्स का बड़ा मार्केट है और उन्हीं दुकानों के ऊपर तमाम कोठे हैं, जहां सैकड़ों की संख्या में वेश्याएं धंधा करती हैं. रोड का नाम कागजों में भले ही बदल गया है, लेकिन लोगों की जबान पर आज भी जीबी रोड ही रटा हुआ है.

जैसे ही उस आदमी ने जीबी रोड का नाम लिया, थानाप्रभारी उस के फोन करने का आशय समझ गए. वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘‘आप ने सही जगह नंबर मिलाया है. मैं वहीं से बोल रहा हूं. बताइए, किसलिए फोन किया है?’’

‘‘मैं वहां पूरी रात एंजौय करना चाहता हूं, कितना खर्च आएगा.’’ उस ने पूछा.

इस बात पर थानाप्रभारी को गुस्सा तो बहुत आया कि वह पुलिसिया भाषा में उसे सही खुराक दे दें, लेकिन उन्होंने गुस्सा जाहिर करना उचित नहीं समझा. उन्होंने बड़े प्यार से कहा, ‘‘आप यहां आ जाइए. जिस लड़की को पसंद करेंगे, उसी के हिसाब से पैसे बता दिए जाएंगे. आप जब यहां आएंगे तो मैं यकीन दिलाता हूं कि खुश हो कर ही जाएंगे. आप यहां मार्केट में आने के बाद मेरे इसी नंबर पर फोन कर देना, मैं किसी को भेज दूंगा.’’

इतना कह कर थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘वैसे एक बात यह बताओ कि मेरा यह नंबर आप को कहां से मिला?’’

‘‘यह नंबर एक सैक्स साइट पर था. मैं जीबी रोड की एक वीडियो देख रहा था. उसी में यह फोन नंबर था. वहीं से ले कर मैं आप को फोन कर रहा हूं.’’ उस आदमी ने कहा.

सैक्स साइट पर पुलिस का फोन नंबर होने की बात पर थानाप्रभारी चौंके. जब नंबर वहां है तो ऐसे ही लोगों के फोन आएंगे. चूंकि उन की फोन पर बातचीत जारी थी, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘मैं तो यह सोच रहा था कि यह नंबर हमारे किसी कस्टमर ने आप को दिया होगा.’’

‘‘नहीं, कस्टमर ने नहीं दिया, सैक्स साइट से ही लिया है.’’ उस ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं, आप जब आएं तो मुझे बता देना. अच्छी व्यवस्था करा दूंगा.’’ उन्होंने कहा और काल डिसकनेक्ट कर दिया.

इस तरह के फोन काल्स से थानाप्रभारी परेशान थे. इस से बचने के 2 ही रास्ते थे. पहला यह कि वह अधिकारियों से बात कर इस नंबर के बदले कोई दूसरा नंबर ले लें और दूसरा यह कि जिस सैक्स साइट पर उन का यह नंबर डाला गया है, वहां से यह नंबर हटवा दें.

इंटरनेट पर सैक्स से संबंधित तमाम साइटें हैं. यह फोन नंबर पता नहीं किस साइट पर है. फिर भी थानाप्रभारी ने गूगल पर कई साइट्स खोजीं, लेकिन उन्हें अपना नंबर नहीं मिला. जिस फोन नंबर से उन के पास फोन आया था, उन्होंने उसी नंबर को रिडायल किया. पर वह नंबर स्विच्ड औफ पाया गया. उन्होंने सोचा कि अब की बार इस तरह का किसी का फोन आएगा तो उस से साइट का नाम भी पूछ लेंगे.

19 नवंबर, 2017 को भी थानाप्रभारी अपने औफिस में बैठे थे, तभी सुबह करीब पौने 9 बजे उन के मोबाइल पर किसी ने फोन कर के पूछा, ‘‘क्या आप जीबी रोड से बोल रहे हैं?’’

यह सुन कर थानाप्रभारी झुंझलाए लेकिन खुद पर काबू पाते हुए उन्होंने फोन करने वाले से कहा, ‘‘हां, मैं वहीं से बोल रहा हूं. कहिए, कैसे याद किया?’’

‘‘दरअसल, बात यह है कि मेरे पास एक न्यू ब्रैंड टैक्सी है. मैं उसे बेचना चाहता हूं.’’ उस आदमी ने धीरे से कहा.

चूंकि जीबी रोड थाना कमला मार्केट इलाके में ही है. यहां पर टैक्सी धंधा करने वाली महिला को कहते हैं, इसलिए वह समझ गए कि यह किसी लड़की का सौदा करना चाहता है. जो लड़की या महिला यहां लाई जाती है, वह यहीं की हो कर रह जाती है.  उस आदमी की बात से लग रहा था कि वह इस क्षेत्र का पुराना खिलाड़ी है, क्योंकि वह कोड वर्ड का प्रयोग कर रहा था. उस लड़की की जिंदगी बचा कर थानाप्रभारी उस गैंग तक पहुंचना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘यह बताओ कि टैक्सी किस हालत में है?’’

‘‘एकदम न्यू ब्रैंड है. बस यह समझ लो कि वह अभी सड़क पर भी नहीं उतरी है.’’ उस ने कहा, ‘‘वह केवल 15 साल की है.’’

15 साल की है तो उसे जरूर प्रेमजाल में फांस कर या नौकरी के बहाने लाया गया होगा. उस की नीयत को भांप कर थानाप्रभारी ने उस से बातचीत जारी रखी, ‘‘ठीक है, हम उसे खरीद लेंगे.’’

‘‘कितने रुपए देंगे उस टैक्सी के?’’ वह बोला.

‘‘देखो भाई, हम बिना देखे उस के दाम कैसे बता सकते हैं. अच्छा, यह बताओ कि वह है कैसी? आप हमें उस के फोटो वगैरह दिखाइए, उस के बाद ही बताया जाएगा.’’

‘‘वह एकदम स्लिम है और लंबाई करीब 5 फुट है.’’ उस ने बताया, ‘‘मैं उस के फोटो भी दिखा दूंगा. कोई लफड़ा तो नहीं होगा.’’

‘‘लफड़ा किस बात का. देखो, तुम्हें बेचना है और हमें खरीदना तो इस में लफड़े की कोई बात ही नहीं है.’’

‘‘आप को एक बात ध्यान रखना है कि किसी भी तरह वह लड़की अपने घर वालों को फोन न कर पाए. अगर उस ने फोन कर दिया तो हम दोनों ही फंसेंगे.’’ उस ने आशंका जताते हुए कहा.

‘‘यहां आने के बाद किसी का भी घर लौटना मुमकिन नहीं होता. और तो और बाद में जब तुम भी यहां आओगे तो वह तुम्हें भी यहां नहीं दिखेगी.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘तुम से मिलने मैं आ जाऊंगा, तभी बात करते हैं.’’

‘‘ठीक है आ जाना, पर तुम यहां कोठे पर मत आना, क्योंकि इस तरह के सौदे बाहर ही होते हैं. दूसरी जगह कहां मिलना है, इस बारे में हम फोन कर के तय कर लेंगे.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

इस पूरी बातचीत में थानाप्रभारी सुनील ढाका ने यह जाहिर नहीं होने दिया कि वह पुलिस अधिकारी हैं. वह कोठों के दलालों की स्टाइल में ही बात करते रहे.

इस के बाद भी उस दिन 3-4 बार उसी आदमी ने फोन कर इस संबंध में बात की. इस बातचीत में उस ने तय कर लिया कि कल वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आएगा और वहां बैठ कर आपस में बात की जाएगी.

‘‘ठीक है, तुम वहां आ जाना. मैं 2 लड़कों गुलाब और सुंदर को भेज दूंगा. लड़की का फोटो वगैरह देख कर वे डील फाइनल कर लेंगे. इस के बाद तुम लड़की ले आना और वहीं हम तुम्हें पैसे दे देंगे.’’ थानाप्रभारी ने कहा. इसी के साथ उन्होंने गुलाब का फोन नंबर भी उसे दे दिया.

थानाप्रभारी ने इस मामले की जानकारी एसीपी अमित कौशिक और डीसीपी मंजीत सिंह रंधावा को दे दी. मामला एक लड़की की जिंदगी उजड़ने से बचाना था, इसलिए डीसीपी ने कहा कि वह बातचीत में ऐहतियात बरतें. लड़की बेचने वालों को किसी तरह का शक नहीं होना चाहिए, वरना गड़बड़ हो सकती है.

डीसीपी के निर्देश के बाद सुनील कुमार ढाका ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से उन के पास लड़की का सौदा करने वाले का फोन आया था. उस फोन की लोकेशन गुड़गांव की आ रही थी.

20 नवंबर को थानाप्रभारी उस आदमी से फोन द्वारा संपर्क में रहे. उस ने बताया कि वह दिल्ली के लिए मैट्रो से चल पड़ा है. शाम 4, साढ़े 4 बजे तक वह नई दिल्ली पहुंच जाएगा.

‘‘ठीक है, तुम नई दिल्ली मैट्रो स्टेशन पहुंचो, मेरे दोनों लड़के गुलाब और सुंदर वहां पहुंच जाएंगे. तुम उन से बात कर लेना.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

थानाप्रभारी ने उसे अपने कांस्टेबल गुलाब का फोन नंबर दे दिया था, इसलिए वह गुलाब के संपर्क में आ गया. उस ने बताया कि वे 2 लोग आ रहे हैं और शाम साढ़े 4 बजे मैट्रो के गेट नंबर-4 के बाहर मिलेंगे. कांस्टेबल सुंदर और गुलाब मैट्रो के गेट नंबर 4 के बाहर खड़े हो गए.

मैट्रो ट्रेन से उतरने के बाद उस आदमी ने गुलाब से बात की तो गुलाब ने बताया कि वह मैट्रो के गेट नंबर 4 पर खड़ा है. कुछ देर बाद वहां 2 युवक पहुंचे. उन्होंने अपने नाम अमर और रंजीत बताए. अमर गुलाब से बातें करने लगा और रंजीत वहां से कुछ दूर जा कर खड़ा हो गया. अमर ने अपने मोबाइल फोन में उस लड़की की फोटो गुलाब को दिखाई, जिस का सौदा करना था. 15 साल की वह लड़की वास्तव में खूबसूरत थी. अमर ने उस लड़की के साढ़े 3 लाख रुपए मांगे.

‘‘साढ़े 3 लाख तो बहुत ज्यादा है. मैं कल ही बंगाल से 70-70 हजार में 2 लड़कियां लाया हूं. भाई, जो मुनासिब है ले लो.’’ गुलाब ने कहा.

‘‘देखिए, मेरे पास इस के अलावा 5 लड़कियां और हैं. अगर सही पैसों में तुम से डील हो जाती है तो सारी की सारी तुम्हें ही दे दूंगा.’’ अमर ने कहा.

‘‘हमारे पास भी आल इंडिया से लड़कियां आती हैं. हमारे आदमी हर स्टेट में हैं. वे हम से जुड़ कर मोटी कमाई कर रहे हैं. तुम भी ऐसा कर सकते हो.’’

दोनों ही तरफ से लड़की का मोलभाव होने लगा. अंत में बात 2 लाख 30 हजार रुपए में तय हो गई. अमर ने कहा कि वह लड़की को यहीं ले आएगा और किसी बहाने से उसे छोड़ कर चला जाएगा.

गुलाब और सुंदर अमर और रंजीत से इस तरह बातचीत कर रहे थे, जैसे वे सचमुच में पक्के धंधेबाज हों. गुलाब ने उन के साथ सेल्फी ली और एक दुकान पर बैठ कर चायनाश्ता भी किया. कुछ ही देर की बातचीत में वे सब एकदूसरे से घुलमिल गए. अमर ने बताया कि वह कल 11-12 बजे के बीच लड़की को यहां ले आएगा. लौटते समय गुलाब ने अमर को एक हजार रुपए थमा दिए.

‘‘ये पैसे किस बात के?’’ अमर ने पूछा.

‘‘इन्हें ऐसे ही रख लो. इतनी दूर से आए हो, किराएभाड़े के लिए हैं. घबराओ मत, इन्हें मैं सौदे की रकम से नहीं काटूंगा. वह पैसे तो लड़की के मिलते ही तुम्हें हाथोंहाथ दे दूंगा.’’ गुलाब ने कहा.

इस के बाद अमर और रंजीत मैट्रो से ही वापस चले गए.  कांस्टेबल गुलाब ने विश्वास बनाए रखने के लिए उन से यह भी नहीं पूछा कि वे कहां से आए हैं. अगले दिन दोपहर डेढ़ बजे अमर ने फोन कर के गुलाब से कहा, ‘‘आप लोग गुड़गांव बसअड्डे पर आ जाइए. यहीं पर लड़की भी दिखा दूंगा और पैसे ले कर सौंप भी दूंगा.’’

थानाप्रभारी ने कांस्टेबल गुलाब से पहले ही कह दिया था कि डील करते समय वह किसी भी तरह की जल्दबाजी नहीं करेंगे. उन से खरीदार की तरह ही बातचीत करें. इसी बात को ध्यान में रखते हुए गुलाब ने उस दिन गुड़गांव आने से मना कर दिया.

उन्होंने कहा कि हम आज गुड़गांव नहीं आ सकते, क्योंकि आज उन्हें अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी में जाना है. अगर ज्यादा जल्दी हो तो वे लड़की को ले कर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आ जाएं.

कुछ देर सोच कर अमर ने कहा, ‘‘ठीक है, आप लोग कल ही गुड़गांव आ जाइए.’’

‘‘हां, यही ठीक रहेगा.’’ गुलाब ने उस की बात का समर्थन करते हुए कहा.

अमर सुनील कुमार ढाका और गुलाब से फोन पर दिन में कईकई बार बातें कर रहा था, लेकिन अगले दिन यानी 21 नवंबर को उन के पास अमर का कोई फोन नहीं आया. इस से थानाप्रभारी को आशंका हुई कि कहीं उसे उन के पुलिस होने की भनक तो नहीं लग गई.

यदि ऐसा हुआ तो गड़बड़ हो जाएगी. अगर उस ने किसी तरह लड़की कोठे पर पहुंचा दिया तो वहां लड़की को तलाश पाना मुश्किल हो जाएगा.

वह गुलाब से इसी मुद्दे पर बात कर रहे थे कि तभी 11 बजे के करीब अमर का फोन आ गया. उस ने कहा, ‘‘आप लोग गुड़गांव आ जाइए. मैं बसअड्डे के पास आप का इंतजार करूंगा. यहीं पर आप लड़की को देख लेना.’’

थानाप्रभारी ने एएसआई विजय, कांस्टेबल गुलाब और सुंदर को निर्देश दे कर गुड़गांव भेज दिया. तीनों गुड़गांव पहुंच गए. रास्ते भर गुलाब अमर से फोन पर बातचीत करते रहे.

जब वह वहां पहुंचे तो अमर और उस का साथी बसअड्डे के पास ही खड़े मिले. चूंकि वे गुलाब और सुंदर को ही जानते थे, इसलिए एएसआई विजय बसअड्डे के पास एक दुकान पर खड़े हो गए. गुलाब ने अमर से लड़की के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि वह अभी उसे ले कर नहीं आया है. उस ने मोबाइल फोन में लड़की के कुछ अन्य फोटो उन्हें दिखाए.

इस बार उस के मोबाइल में लड़की के अलगअलग तरह के फोटो थे. उस ने कहा कि वह लड़की को यहीं ले आता है, वे यहीं पैसे दे कर लड़की को ले जाएं.

‘‘लेकिन अभी हम पैसे नहीं लाए हैं. ऐसी बात थी तो पहले बता देते, हम पैसे ले कर आते. अब बताइए, क्या करें.’’ गुलाब ने कहा.

‘‘करना क्या है, हम चाह रहे थे कि यह मामला आज ही निपट जाए.’’ अमर ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं, आज नहीं तो कल निपट जाएगा. लेकिन हम चाहते हैं कि लड़की को ले कर तुम दिल्ली आ जाओ. पैसे वहीं मिल जाएंगे.’’

अगले दिन 22 नवंबर, 2017 को अमर अपने दोस्त और उस लड़की को ले कर मैट्रो से दिल्ली के लिए निकल पड़ा. दिल्ली के लिए निकलने से पहले उस ने गुलाब को फोन कर के बता दिया.

कांस्टेबल गुलाब ने यह बात थानाप्रभारी को बता दी. थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसआई दिनेश कुंडू, एएसआई सर्वेश, विजय, कांस्टेबल गुलाब, सुंदर, महिला कांस्टेबल मधु को शामिल किया. गवाही के लिए वह किसी स्थानीय आदमी को साथ रखना चाहते थे. इस के लिए उन्होंने मोहम्मद हफीज उर्फ बबलू प्रधान से बात की और उसे अपनी टीम के साथ नई दिल्ली मैट्रो स्टेशन पर ले गए.

चूंकि अमर ने मैट्रो के गेट नंबर 4 के पास मिलने को कहा था, इसलिए उस गेट के आसपास सभी पुलिसकर्मी तैनात हो गए.

दिल्ली पहुंच कर अमर ने गुलाब को फोन किया तो गुलाब अपने साथी सुंदर के साथ वहां पहुंच गए. वह अमर को पहचानते थे, इसलिए मैट्रो के गेट नंबर 4 के पास उन्होंने अमर को खड़े देखा तो वह उस से बड़ी गर्मजोशी से मिले.

उन्होंने उसे 20 हजार रुपए दे कर बाकी के पैसे लड़की सौंपते समय देने को कहा. वहां अमर अकेला था. उस ने लड़की को अपने साथी रंजीत के साथ वहां से थोड़ी दूरी पर खड़ी कर दिया था.

अमर जल्द ही अपनी बकाया की रकम ले कर लड़की को उन के हवाले कर वहां से खिसक जाना चाहता था, इसलिए वह गुलाब को उस जगह ले गया, जहां रंजीत के साथ लड़की खड़ी थी. लड़की को देख कर गुलाब ने अपने सिर को खुजाया. यह उन का इशारा था. इस के बाद थानाप्रभारी सहित उन की टीम के सदस्य वहां पहुंच गए. उन्होंने अमर और उस के साथी को हिरासत में ले लिया.

गुलाब और सुंदर को जीबी रोड कोठे का दलाल समझने वाले अमर और रंजीत को जब पता चला कि वे दलाल नहीं, बल्कि पुलिस वाले हैं तो उन के होश उड़ गए. जिस मनीषा नाम की लड़की को वे बेचने लाए थे, उसे महिला कांस्टेबल मधु ने अपनी हिफाजत में ले लिया.

थाने ले जा कर जब अमर और रंजीत से पूछताछ की गई तो पता चला कि वे दोनों बिहार के रहने वाले थे और वह लड़की भी बिहार की थी.

लड़की को अपने प्यार के जाल में फांस कर उसे रेडलाइट एरिया में बेचने की कोशिश करने की उन्होंने जो कहानी बताई, वह बहुत ही हैरान कर देने वाली थी—

24 साल का अमर मूलरूप से बिहार के सुपौल जिले के इरारी गांव के रहने वाले लक्ष्मण का बेटा था. इसी गांव के रहने वाले रंजीत शाह से उस की अच्छी दोस्ती थी. अमर दिल्ली और गुड़गांव में पहले नौकरी कर चुका था.

मई, 2017 की बात है. अमर बिहार के मोतिहारी जिले में अपने एक जानकार के यहां आयोजित भोज में गया था. वहीं पर मनीषा से उस की मुलाकात हुई. 15 साल की मनीषा खूबसूरत के साथ हंसमुख भी थी. वह भी परिवार के साथ उसी भोज में आई थी. पहली मुलाकात में ही दोनों एकदूसरे से काफी प्रभावित हुए. उसी दौरान उन्होंने अपने फोन नंबर एकदूसरे को दे दिए.

भोज से घर लौटने के बाद अमर के दिलोदिमाग में मनीषा ही घूमती रही. अगले दिन मन नहीं लगा तो उस ने मनीषा को फोन लगा दिया. दोनों में औपचारिक बातें हुईं. इस के बाद उन के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया. धीरेधीरे बातों का दायरा बढ़ता गया और वह प्यार के बंधन में बंधते गए. दोनों ही एकदूसरे को इतना चाहने लगे कि उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया.

इस के बाद योजना बना कर दोनों 15 अक्तूबर, 2017 को अपनेअपने घरों से भाग निकले. 15 साल की मनीषा अपना घर छोड़ कर मोतिहारी रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई, जहां अमर अपने दोस्त रंजीत के साथ उस का इंतजार कर रहा था.  मोतिहारी से तीनों दिल्ली आ गए. दिल्ली से मैट्रो द्वारा गुड़गांव पहुंच गए. चूंकि गुड़गांव से अमर और रंजीत अच्छी तरह वाकिफ थे, इसलिए गुड़गांव सेक्टर-10 के शक्तिनगर में रह रहे अपने जानकार की मदद से एक कमरा किराए पर ले लिया.

चूंकि अमर ने मनीषा से शादी करने का वादा किया था, इसलिए अपने ही कमरे में 2 दोस्तों के सामने उस ने मनीषा से शादी कर ली. अग्नि के फेरे लगा कर पर मनीषा की मांग में सिंदूर भर दिया. इस के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

शादी के बाद अमर ने मनीषा को बताया कि वह शादीशुदा तो है ही, उस का एक बच्चा भी है. इस पर मनीषा ने हैरानी से कहा, ‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘तुम ने कभी पूछा ही नहीं, इसलिए मैं ने नहीं बताया. लेकिन तुम परेशान मत होओ, भले ही मैं शादीशुदा हूं, तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगा. पहली पत्नी से मेरा एक बच्चा है. एक बच्चा मैं तुम से चाहता हूं. मैं वादा करता हूं कि तुम्हें हर तरह से खुश रखने की कोशिश करूंगा.’’ अमर ने कहा.

मनीषा बिना सोचेसमझे ऐसा कदम उठा चुकी थी जो उस के लिए नुकसानदायक साबित हुआ था. वह अमर से शादी कर चुकी थी. इसलिए घर वापस जाना उस ने जरूरी नहीं समझा. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि अब चाहे जो भी हो, वह अमर के साथ ही रहेगी. आगे जो होगा, देखा जाएगा. वह अमर के साथ हंसीखुशी से रहने लगी.

15-20 दिनों बाद अमर का मनीषा से मन भर गया. अब मनीषा उसे गले की हड्डी लगने लगी. वह उस से छुटकारा पाना चाह रहा था. इस बारे में उस ने दोस्त रंजीत से बात की. उसे अकेली छोड़ कर वह जा नहीं सकता, क्योंकि बाद में मनीषा द्वारा पुलिस से शिकायत करने पर उस के फंसने की आशंका थी. अगर वह उस की हत्या कर देता तो भी उस के जेल जाने की आशंका थी.

ऐसे में रंजीत ने उसे कोठे पर बेचने की सलाह दी. कोठे पर जाने के बाद कोई भी लड़की बाहर नहीं आ सकती और इस में उन्हें अच्छीखासी रकम भी मिल जाती. दोस्त का यह आइडिया अमर को पसंद आ गया. उन्होंने जीबी रोड के कोठों का नाम सुना था. वे उसे दिल्ली के जीबी रोड के किसी कोठे पर बेचना चाहते थे.

वे ऐसे किसी दलाल को नहीं जानते थे, जो उन का यह काम करा देता. वे सीधे कोठे पर यह सोच कर नहीं जा रहे थे कि सौदा न पटने पर कहीं कोठे वाली पुलिस से पकड़वा न दे. लिहाजा वे मनीषा को कोठे पर बेचने का कोई और तरीका खोजने लगे.

आजकल ज्यादातर लोगों के पास स्मार्टफोन है, जिन पर इंटरनेट का खूब प्रयोग होता है. इस स्मार्टफोन ने लोगों को स्मार्ट बना दिया है. उन्हें कोई भी जानकारी चाहिए, झट गूगल पर सर्च करने बैठ जाते हैं. रंजीत के दिमाग में जाने क्या आया कि वह गूगल पर सैक्स से संबंधित साइट्स खोजने लगा. इस के बाद उस ने यूट्यूब पर जीबी रोड रेडलाइट एरिया से संबंधित वीडियो देखीं.

एक वीडियो में जीबी रोड के कोठों के अंदर के दृश्य भी दिखाए गए थे. वीडियो देखते देखते रंजीत की नजर दीवार पर लिखे एक फोन नंबर 8750870424 पर गई, जहां लिखा था कि कोई भी समस्या या शिकायत इस नंबर पर करें.

यह फोन नंबर दिल्ली के कमला मार्केट थाने के थानाप्रभारी का था. यह फोन नंबर मध्य जिला के डीसीपी ने इस आशय से जीबी रोड के कोठों पर लिखवाया था कि किसी जरूरतमंद लड़की से जबरदस्ती धंधा कराए जाने पर वह इस नंबर पर शिकायत कर सके.

रंजीत को यह जानकारी नहीं थी कि यह नंबर पुलिस का है. उस ने सोचा कि यह कोठे के संचालक का होगा. दोनों दोस्तों ने तय कर लिया कि इस फोन नंबर पर बात कर के वे मनीषा को बेचने की कोशिश करेंगे.

रंजीत ने अमर को यह बात पहले बता दी थी कि मनीषा का सौदा जितने रुपयों का होगा, उस में से एक लाख रुपए वह लेगा. इन रुपयों को खर्च करने का प्लान भी उस ने बना लिया था. रंजीत ने तय कर लिया था कि वह कोई पुरानी कार खरीद कर अपने घर ले जाएगा. इस के बाद अमर ने उसी नंबर पर फोन किया.

जैसे ही अमर ने पूछा कि आप जीबी रोड से बोल रहे हैं तो थानाप्रभारी सुनील कुमार ढाका ने हां कह दिया. क्योंकि इस से पहले भी उन के पास ऐसी कई काल आ चुकी थीं. उन्होंने अमर से ऐसे बात की, जैसे वह किसी कोठे के संचालक हों.

उन की इसी समझदारी पर मनीषा कोठे पर बिकने से बच गई. उन्होंने अमर और रंजीत के खिलाफ भादंवि की धारा 120बी, 363, 366ए, 376, 370 और पोक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. उन्हें गिरफ्तार कर 23 नवंबर, 2017 को न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी कपिल कुमार के समक्ष पेश कर एक दिन का रिमांड लिया.

रिमांड अवधि में पूछताछ करने के बाद उन्हें फिर से 24 नवंबर को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने मनीषा को चाइल्ड वेलफेयर सोसायटी भेज दिया.

थानाप्रभारी के इस कार्य की पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक, डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा ने भी सराहना की है. उन्होंने इसे एक सच्ची समाजसेवा बताया. मनीषा बिहार के मोतिहारी जिले के लौकी थानाक्षेत्र की थी. लिहाजा थानाप्रभारी सुनील कुमार ढाका ने इंटरनेट से मोतिहारी के एसएसपी औफिस का नंबर हासिल किया. फिर उन्होंने एसएसपी औफिस से थाना लौकी का फोन नंबर लिया.

वहां के थानाप्रभारी रामचंद्र चौपाल को उन्होंने मनीषा के बरामद होने की सूचना दी तो उन्होंने बताया कि मनीषा एक गरीब परिवार की है. घर वालों ने उस के भाग जाने की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं कराई थी.

बहरहाल, थानाप्रभारी रामचंद्र चौपाल ने मनीषा के घर वालों को मनीषा के दिल्ली से बरामद होने की जानकारी दे दी. कथा संकलन तक मनीषा के घर वाले दिल्ली नहीं पहुंच सके थे. मामले की जांच थानाप्रभारी सुनील कुमार ढाका कर रहे हैं.

जीबी रोड के कोठे में लिखे इस फोन पर भले ही किसी शोषिता ने पुलिस से शिकायत न की हो, पर इस नंबर ने एक लड़की को शोषित होने से जरूर बचा लिया. देश भर के सभी रेडलाइट एरिया में यदि स्थानीय पुलिस के नंबर इसी तरह प्रसारित किए जाएं तो और भी तमाम लड़कियां देह व्यापार के धंधे में जाने से बच सकती हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. मनीषा परिवर्तित नाम है.

रेलवे में नौकरी के नाम पर ठगी

चाय की दुकान हो या नाई की या फिर पान की दुकान हो, ये सब ऐसे अड्डे होते हैं, जहां आदमी को तरह तरह की जानकारी ही नहीं मिलती, बल्कि उन पर विस्तार से चर्चा भी होती है. इंटरनेट क्रांति से पहले इन्हीं अड्डों पर इलाके में घटने वाली घटनाओं की जानकारी आसानी से मिल जाती थी.

अब भले ही दुनिया बहुत आगे निकल गई है, लेकिन आज भी ये दुकानें सूचनाओं की वाहक बनी हुई हैं. बाल काटते या हजामत करतेकरते नाई, चाय की दुकान पर बैठे लोग और पान खाने वाले किसी न किसी विषय पर बातें करते रहते हैं.

उत्तर पश्चिम दिल्ली के सराय पीपलथला के रहने वाले सरफराज की भी सराय पीपलथला में बाल काटने की दुकान थी. यह जगह एशिया की सब से बड़ी आजादपुर मंडी से सटी हुई है, इस मंडी में हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है. इस वजह से उस की दुकान अच्छी चलती थी. उस की दुकान पर हर तरह के लोग आते थे. उन्हीं में से उस का एक स्थाई ग्राहक था ओमपाल सिंह.

ओमपाल सिंह रोहिणी के जय अपार्टमेंट में अपने परिवार के साथ रहता था. उस ने आजादपुर मंडी में कुछ लोगों को हाथ ठेले किराए पर दे रखे थे. उन से किराया वसूलने के लिए वह रोजाना शाम को मंडी आता था. किराया वसूल कर वह सरफराज की दुकान पर कुछ देर बैठ कर उस से बातें करता था.

बातों ही बातों में सरफराज को पता चल गया था कि ओमपाल पहले दिल्ली में ही मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) औफिस में नौकरी करता था, पर अपना काम ठीक से चल जाने के बाद उस ने रेलवे की नौकरी छोड़ दी थी.

एक दिन ओमपाल ने सरफराज को बताया कि डीआरएम औफिस में भले ही वह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था, पर अधिकारियों से उस की अच्छी जानपहचान थी, जिस का फायदा उठा कर उस ने कई लोगों को रेलवे में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी दिलवाई थी. यह जान कर सरफराज को लगा कि ओमपाल तो काफी काम का आदमी है, क्योंकि न इस से फायदा उठाया जाए.

दरअसल, सरफराज का एक छोटा भाई था राशिद, जो 12वीं तक पढ़ा था. पढ़ाई के बाद उस ने सरकारी नौकरी के लिए काफी कोशिश की. जब नौकरी नहीं मिली तो भाई की दुकान पर काम करने लगा था. सरफराज ने सोचा कि अगर ओमपाल सिंह की मदद से भाई की नौकरी रेलवे में लग जाए तो अच्छा रहेगा.

इस बारे में सरफराज ने ओमपाल से बात की तो उस ने बताया कि वह राशिद की नौकरी तो लगवा देगा, पर इस में कुछ खर्चा लगेगा.

सरफराज ने पूछा, ‘‘कितना खर्चा आएगा?’’

‘‘ज्यादा नहीं, बस 60 हजार रुपए. डीआरएम औफिस में जिन साहब के जरिए यह काम होगा, उन्हें पैसे देने पड़ेंगे. और रही बात मेरे मेहनताने की तो जब राशिद की नौकरी लग जाएगी तो अपनी खुशी से मुझे जो दोगे, रख लूंगा.’’ ओमपाल ने कहा.

आज के जमाने में चतुर्थ श्रेणी नौकरी के लिए 60 हजार रुपए सरफराज की नजरों में ज्यादा नहीं थे. वह जानता था कि अब सरकारी नौकरी इतनी आसानी से मिलती कहां है.

सरकारी विभाग में क्लर्क की जगह निकलने पर लाखों की संख्या में लोग आवेदन करते हैं. लोग मोटी रिश्वत देने को भी तैयार रहते हैं सो अलग. इन सब बातों को देखते हुए सरफराज ने ओमपाल से अपने भाई की रेलवे में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी लगवाने के लिए 60 हजार रुपए देने की हामी भर ली.

‘‘सरफराज भाई, राशिद की नौकरी तो लग ही जाएगी. इस के अलावा तुम्हारे किसी रिश्तेदार या दोस्त का कोई ऐसा बच्चा तो नहीं है, जो रेलवे में नौकरी करना चाहता हो, यदि कोई हो तो बात कर लो. राशिद के साथसाथ उस का भी काम हो जाएगा.’’ ओमपाल ने कहा.

‘‘हां, बच्चे तो हैं. इस के बारे में मैं 1-2 दिन में आप को बता दूंगा.’’ सरफराज ने कहा.

सरफराज के बराबर में गंगाराम की भी दुकान थी. वह दिल्ली के ही स्वरूपनगर में रहते थे. वह सरफराज को अपने बेरोजगार बेटे नीरज के बारे में बताते रहते थे. उस की नौकरी को ले कर वह चिंतित थे. सरफराज ने गंगाराम से उन के बेटे की रेलवे में नौकरी लगवाने के लिए बात की.

सरफराज की बात पर गंगाराम को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि सरकारी नौकरी इतनी आसानी से भला कहां मिलती है. सरफराज ने जब उन्हें पूरी बात बताई तो गंगाराम को यकीन हो गया. तब उन्होंने कहा कि वह उन के बेटे नीरज के लिए भी बात कर ले.

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इसी तरह सरफराज ने अपने एक और दोस्त अशोक कुमार से बात की, जो शालीमार बाग के  बी ब्लौक में रहते थे. उन की एक बेटी थी, जो नर्सिंग का कोर्स करने के बाद घर पर बैठी थी. बेटी की रेलवे में स्थाई नौकरी लगवाने के लिए अशोक कुमार ने भी 60 हजार रुपए देने के लिए हामी भर दी.

सरफराज ने ओमपाल सिंह की गंगाराम और अशोक कुमार से मुलाकात भी करा दी. ओमपाल से बात करने के बाद अशोक कुमार व गंगाराम को भी ओमपाल की बातों पर विश्वास हो गया. ओमपाल ने तीनों से पैसों का इंतजाम करने के लिए कह दिया.

तीनों दोस्त इस बात को ले कर खुश थे कि उन के बच्चों की नौकरी लग रही है. इस के बाद 13 जून, 2017 को उन्होंने ओमपाल सिंह को 1 लाख 80 हजार रुपए दे दिए. रुपए लेने के बाद ओमपाल ने उन्हें विश्वास दिलाया कि एकडेढ़ महीने के अंदर उन के बच्चों की नौकरी लग जाएगी.

अशोक, गंगाराम व सरफराज एकएक कर दिन गिनने लगे. विश्वास जमाने के लिए ओमपाल ने फार्म वगैरह भी भरवा लिए थे. जब 2 महीने बाद भी बच्चों की नौकरी नहीं लगी तो ओमपाल सभी को कोई न कोई बहाना बना कर टालने लगा. कुछ दिनों तक वे उस की बातों पर विश्वास करते रहे. बाद में ओमपाल ने सरफराज की दुकान पर आना बंद कर दिया तो सभी को चिंता हुई.

फोन नंबर बंद होने पर सरफराज, गंगाराम और अशोक की चिंता बढ़ गई. इस के बाद एक दिन सरफराज, अशोक और गंगाराम ओमपाल के जय अपार्टमेंट स्थित फ्लैट नंबर 131 पर जा पहुंचे, जहां पता चला कि ओमपाल इस फ्लैट को खाली कर के जा चुका है. यह जान कर तीनों के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वे समझ गए कि बड़े शातिराना ढंग से ओमपाल ने उन के साथ ठगी की है.

उन के पास ऐसा कोई उपाय नहीं था, जिस से वे ओमपाल को तलाश करते. मजबूरन वे उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी मिलिंद एम. डुंब्रे से मिले और अपने साथ घटी घटना की जानकारी विस्तार से दी. डीसीपी ने इस मामले की जांच औपरेशन सेल के एसीपी रमेश कुमार को करने के निर्देश दिए.

एसीपी रमेश कुमार ने इस मामले को सुलझाने के लिए स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर कुलदीप सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में तेजतर्रार एसआई अखिलेश वाजपेयी, हैडकांस्टेबल राहुल कुमार, दिलबाग सिंह, विकास कुमार, कांस्टेबल उम्मेद सिंह आदि को शामिल किया. टीम ने सब से पहले ओमपाल के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

पिछले 6 महीने की काल डिटेल्स का अध्ययन करने के बाद एसआई अखिलेश वाजपेयी ने उन फोन नंबरों को चिह्नित किया, जिन पर ओमपाल की बातें हुई थीं. उन में से कुछ फोन नंबर ओमपाल के रिश्तेदारों के थे.

उन पर दबाव बना कर एसआई अखिलेश वाजपेयी को ओमप्रकाश का वह ठिकाना मिल गया, जहां वह रह रहा था. जानकारी मिली कि वह सोनीपत स्थित टीडीआई कोंडली के सी-3 टौवर में रह रहा था.

ठिकाना मिलने के बाद पुलिस टीम ने 14 नवंबर, 2017 को टीडीआई कोंडली स्थित ओमपाल के फ्लैट पर दबिश दी तो वह वहां मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस दिल्ली लौट आई. स्पैशल स्टाफ औफिस में जब उस से सरफराज, गंगाराम और अशोक कुमार से ठगी किए जाने के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया कि उस ने रेलवे में नौकरी लगवाने का झांसा दे कर तीनों से 1 लाख 80 हजार रुपए लिए थे.

सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने यह भी स्वीकार कर लिया कि अब तक वह 20 से ज्यादा लोगों से इसी तरह पैसे ले चुका है. इस से पहले भी ठगी के मामले में वह दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा गिरफ्तार किया जा चुका है. विस्तार से पूछताछ के बाद इस रेलवे कर्मचारी के ठग बनने की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार है—

उत्तरपूर्वी दिल्ली के मंडोली में रहने वाला ओमपाल सिंह दिल्ली के डीआरएम औफिस में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की यह नौकरी सन 1992 में लगी थी. इस नौकरी से वह अपना घरपरिवार चलाता रहा. जैसेजैसे उस का परिवार बढ़ता जा रहा था, वैसेवैसे खर्च भी बढ़ रहा था, पर आमदनी सीमित थी, जिस से घर चलाने में परेशानी हो रही थी.

ओमपाल सोचता रहता था कि वह ऐसा क्या काम करे, जिस से उस के पास पैसों की कोई कमी न रहे. ओमपाल की साथ काम करने वाले संदीप कुमार से अच्छी दोस्ती थी. वह उस से अपनी परेशानी बताता रहता था. वह भी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की भी यही समस्या थी, पर वह अपनी यह परेशानी किसी को नहीं बताता था. दोनों ही शौर्टकट तरीके से मोटी कमाई करने के तरीके पर विचार करने लगे.

दोनों ने रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी लगवाने के नाम पर लोगों से पैसे ऐंठने शुरू कर दिए. तमाम लोगों से उन्होंने लाखों रुपए इकट्ठे कर लिए, पर किसी की नौकरी नहीं लगी. जिन लोगों ने इन्हें पैसे दिए थे, उन्होंने इन से अपने पैसे मांगने शुरू कर दिए. तब दोनों कुछ दिनों के लिए भूमिगत हो गए. लोगों ने दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच थाने में भादंवि की धारा 420, 406 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह बात सन 2011 की है.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद क्राइम ब्रांच ने ओमपाल और उस के दोस्त को भरती घोटाले में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस के बाद रेलवे ने दोनों आरोपियों को बर्खास्त कर दिया. जेल से जमानत पर छूटने के बाद ओमपाल ने रोहिणी में जय अपार्टमेंट में किराए पर फ्लैट ले लिया और आजादपुर मंडी में किराए पर हाथ ठेले देने का धंधा शुरू कर दिया.

इस काम से उसे अच्छी कमाई होने लगी. पर उसे तो चस्का मोटी कमाई का लग चुका था. लिहाजा उस ने फिर से लोगों को रेलवे में नौकरी दिलवाने का झांसा दे कर ठगना शुरू कर दिया. सराय पीपलथला के सरफराज, स्वरूपनगर निवासी गंगाराम और शालीमार बाग के अशोक कुमार ने भी उस के झांसे में आ कर उसे 1 लाख 80 हजार रुपए दे दिए.

पूछताछ में ओमपाल ने बताया कि वह करीब 20 लोगों से रेलवे में नौकरी दिलवाने के नाम पर लाखों रुपए ठग चुका है. उस की निशानदेही पर पुलिस ने रेलवे के आवेदन पत्र, सीनियर डीसीएम, उत्तर रेलवे की मुहर और उन के हस्ताक्षरयुक्त पेपर, रेलवे के वाटरमार्क्ड पेपर आदि बरामद किए.

पूछताछ के बाद ओमपाल को 15 नवंबर, 2017 को रोहिणी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी के समक्ष पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस के बाद उसे पुन: न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. कथा संकलन तक अभियुक्त जेल में बंद था. मामले की विवेचना एसआई अखिलेश वाजपेयी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

फोन बना दोधारी तलवार

पूनम का मूड सुबह से ही ठीक नहीं था. बच्चों को स्कूल भेजने का भी उस का मन नहीं हो रहा था. पर बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी था, इसलिए किसी तरह उस ने बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज दिया. पूनम के चेहरे पर एक अजीब सा खौफ था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी परेशानी किस से कहे. वह सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई.

पूनम का मूड खराब देख कर उस के पति विनय ने हंसते हुए पूछा, ‘‘डार्लिंग, तुम कुछ परेशान सी लग रही हो. आखिर बात क्या है?’’

पूनम ने पलकें उठा कर पति को देखा. फिर उस की आंखों से आंसू बहने लगे. वह फूट फूट कर इस तरह रोने लगी, जैसे गहरे सदमे में हो.

विनय ने करीब आ कर उसे सीने से लगा लिया और उस के आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ पूनम, तुम मुझ से नाराज हो क्या? क्या तुम्हें मेरी कोई बात बुरी लग गई?’’

‘‘नहीं,’’ पूनम सुबकते हुए बोली.

‘‘तो फिर क्या बात है, जो तुम इस तरह रो रही हो?’’ विनय ने हमदर्दी दिखाई.

पति का प्यार मिलते ही पूनम ने मोबाइल की ओर इशारा कर के सुबकते हुए बोली, ‘‘मेरी परेशानी का कारण यह मोबाइल है.’’

विनय ने हैरत से एक नजर मेज पर रखे मोबाइल फोन पर डाली, उस के बाद पत्नी से मुखातिब हुआ, ‘‘मैं समझा नहीं, इस मोबाइल से तुम्हारी परेशानी का क्या संबंध है? साफसाफ बताओ, तुम कहना क्या चाहती हो?’’

पूनम मेज से मोबाइल उठा कर पति के हाथ में देते हुए बोली, ‘‘आप खुद ही देख लो. इस के मैसेज बौक्स में क्या लिखा है?’’

विनय की उत्सुकता बढ़ गई. उस ने फटाफट फोन के मैसेज का इनबौक्स खोल कर देखा. जैसे ही उस ने मैसेज पढ़ा, उस के चेहरे पर एक साथ कई रंग आए गए.

मैसेज में लिखा था, ‘मेरी जान, तुम ने मुझे अपने रूप का दीवाना बना दिया है. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, चैन से जी नहीं पा रहा हूं. मैं तुम्हें जब भी विनय के साथ देखता हूं, मेरा खून खौल जाता है. आखिर तुम उस के साथ जिंदगी कैसे गुजार रही हो. मैं ने जिस दिन से तुम्हें देखा है, मेरी आंखों से नींद उड़ चुकी है.’

मैसेज पढ़ कर विनय को गुस्सा आ गया. फोन को मेज पर रख कर उस ने पत्नी से कहा, ‘‘ये सब क्या है?’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानती.’’ पूनम दबी जुबान से बोली.

विनय कुछ देर सोचता रहा, फिर उस ने पत्नी की आंखें में झांका. उसे लगा कि पत्नी सच बोल रही है, क्योंकि अगर वह उस के साथ गेम खेल रही होती तो इस तरह परेशानी और रुआंसी नहीं होती. उसे लगा कि वाकई कोई उस की पत्नी को परेशान कर रहा है.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के कल्याणपुर थाने का एक मोहल्ला है शारदानगर. इसी मोहल्ले के इंद्रपुरी में विनय झा अपने परिवार के साथ रहता था. उस का अपना आलीशान मकान था, जिस में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं. उस का हौजरी का व्यवसाय था. इस से उसे अच्छीखासी आमदनी होती थी, जिस से उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत थी.

विनय झा इस से पहले अपने भाइयों के साथ दर्शनपुरवा में रहता था. वहां उस का अपना छोटा सा कारखाना था. उस का परिवार काफी दबंग किस्म का था. दबंगई से ही इन लोगों ने पैसा कमाया और फिर उसी पैसे से हौजरी का काम शुरू किया. व्यवसाय अच्छा चलने लगा तो विनय ने इंद्रपुरी में मकान बनवा लिया.

पूनम से विनय की शादी कुछ साल पहले हुई थी. पूनम बेहद खूबसूरत थी. पहली ही नजर में विनय उस का दीवाना हो गया था. उस की दीवानगी पूनम को भी भा गई. दोनों की पसंद के बाद उन की शादी हो गई. दोनों ही अपने गृहस्थ जीवन में खुश थे. 8 साल के अंतराल में पूनम 2 बच्चों की मां बन गई.

ससुराल में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं. उसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी. पति भी चाहने वाला मिला था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक पूनम को अश्लील मैसेज तथा प्रेमप्रदर्शन वाले फोन आने लगे. पूनम पति का गुस्सा जानती थी, अत: पहले तो उस ने पति को कुछ नहीं बताया, पर जब अति हो गई तो मजबूरी में बताना पड़ा.

विनय झा ने जब पत्नी के फोन में आए हुए मैसेज पढ़े तो उस की आंखों में खून उतर आया. जिस फोन नंबर से मैसेज आए थे, विनय ने उस नंबर पर काल की तो फोन रिसीव नहीं किया गया. इस पर विनय गुस्से में बड़बड़ाया, ‘‘कमीने…तू एक बार सामने आ जा. अगर तुझे जिंदा दफन न कर दिया तो मेरा नाम विनय नहीं.’’

गुस्से में कांपते विनय ने पूनम से पूछा, ‘‘क्या वह तुम्हें फोन भी करता है?’’

‘‘हां,’’ पूनम ने सिर हिलाया.

‘‘क्या कहता है?’’

‘‘नाजायज संबंध बनाने को कहता है. अब कैसे बताऊं आप को, इस ने तो मेरी जान ही सुखा दी है. लो, आप दूसरे मैसेज भी पढ़ लो. इन से पता चल जाएगा कि उस की मानसिकता क्या है.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि वह तुम्हें फोन कब करता है या मैसेज कब भेजता है?’’ विनय ने पूछा.

‘‘जब आप घर पर नहीं होते, तभी उस के फोन आते हैं. जब आप घर पर होते हो तो न फोन आता है न मैसेज.’’ वह बोली.

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि वह मुझ पर निगाह रखता है. उसे मेरे घर जानेआने का वक्त भी मालूम है.’’ कहते हुए विनय ने मैसेज बौक्स खोल कर दूसरे मैसेज भी पढ़े. एक मैसेज तो बहुत जुनूनी था, ‘‘तुम मुझ से क्यों नहीं मिलतीं? रात को सपने में तो खूब आती हो. अपने गोरे बदन को मेरे बदन से सटा कर प्यार करती हो. आह जान, तुम कितनी प्यारी हो. एक बार मुझ से साक्षात मिल कर मेरी जन्मों की… नहीं तो समझ लेना मैं तुम्हारी चौखट पर आ कर जान दे दूंगा. अभी तो मैं इसलिए चुप हूं कि तुम्हें रुसवा नहीं करना चाहता.’’

मैसेज पढ़ कर विनय की मुट्ठियां भिंच गईं, ‘‘कमीने, तेरी प्यास तो मैं बुझाऊंगा. तू जान क्या देगा, मैं ही तेरी जान ले लूंगा.’’

पति का रूप देख कर पूनम का कलेजा कांप उठा. उसे लगा कि उस ने पति को बता कर कहीं गलती तो नहीं कर दी. विनय ने डरीसहमी पत्नी को मोबाइल देते हुए समझाया, ‘‘अब जब उस का फोन आए तो उस से बात करना. मीठीमीठी बातें कर के उस का नाम व पता हासिल कर लेना. इस के बाद मैं उस के सिर से प्यार का भूत उतार दूंगा.’’

पति की बात पर सहमति जताते हुए पूनम ने हामी भर दी.

एक दिन विनय जैसे ही घर से निकला, पूनम के मोबाइल पर उस का फोन आ गया. पूनम के हैलो कहते ही वह बोला, ‘‘पूनम, तुम मुझे भूल गई, लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूला और न भूलूंगा. याद है, हम दोनों की पहली मुलाकात कब और कहां हुई थी?’’

पूनम अपने दिमाग पर जोर डाल कर कुछ याद करने की कोशिश करने लगी. तभी उस ने कहा, ‘‘2 साल पहले, जब मैं तुम्हारे घर फर्नीचर बनाने आया था. याद है, उस समय मैं तुम्हारे इर्दगिर्द रहा करता था. तुम्हारी खूबसूरती को निहारता रहता था. तुम इतराती इठलाती होंठों पर मुसकान बिखेरती इधर से उधर निकल जाती थी और मैं तड़पता रह जाता था.’’

‘‘अच्छा, तब से तुम मेरे दीवाने हो. पागल, तब प्यार का इजहार क्यों नहीं किया? अच्छा, तुम्हारा नाम मुझे याद नहीं आ रहा, अपने बारे में थोड़ा बताओ न.’’ पूनम खिलखिला कर हंसी.

‘‘हाय मेरी जान, तुम हंसती हो तो मेरे दिल में घंटियां सी बज उठती हैं. सो स्वीट यू आर.’’ उधर से रोमांटिक स्वर में कहा गया, ‘‘मैं तुम्हारा दीवाना विजय यादव बोल रहा हूं.’’

विजय यादव का नाम सुनते ही पूनम चौंकी. अब उसे उस की शक्लसूरत भी याद आ गई. इस के बाद पूनम ने उसे समझाया, ‘‘देखो विजय, अब बहुत हो गया. मैं किसी की पत्नी हूं, तुम्हें ऐसे मैसेज भेजते हुए शर्म आनी चाहिए. मैं कह देती हूं कि आइंदा मुझे न फोन करना और न मैसेज करना, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’

पूनम ने फोन काटा ही था कि उस का पति विनय आ गया. उस ने पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘उसी का जो फोन करता है और अश्लील मैसेज भेजता है. आज मैं ने जान लिया कि वह कौन है.’’ पूनम ने विनय को बताया, ‘‘विजय यादव जो अपने यहां फर्नीचर बनाने आया था, वही यह सब कर रहा है. वैसे मैं ने उसे ठीक से समझा दिया है, शायद अब वह ऐसी हरकत न करे.’’

विजय यादव उर्फ   के पिता रामकरन यादव रावतपुर क्षेत्र के केशवनगर में रहते थे. रामकरन फील्डगन फैक्ट्री में काम करते थे. उन के 3 बेटों में इंद्रबहादुर मंझला था. वह बजरंग दल का नेता था और प्रौपर्टी तथा फर्नीचर का व्यवसाय करता था. ब्रह्मदेव चौराहा पर उस की फर्नीचर की दुकान थी. दुकान पर करीब आधा दर्जन से ज्यादा कारीगर काम करते थे.

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इंद्रबहादुर आर्थिक रूप से संपन्न होने के साथ दबंग भी था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां थीं. वह बजरंग दल का जिला संयोजक था. उस की एक बड़ी खराब आदत थी उस का अय्याश होना. घर में खूबसूरत बीवी होने के बावजूद वह इधर धर मुंह मारता रहता था.

करीब 2 साल पहले इंद्रबहादुर इंद्रपुरी में  विनय झा के घर फर्नीचर बनाने आया था. उस समय जब उस ने खूबसूरत पूनम को देखा तो वह उस पर मर मिटा. उस ने उसी समय उसे अपने दिल में बसा लिया. उस के बाद वह किसी न किसी बहाने उस के आगे पीछे मंडराने लगा. किसी बहाने से उस ने पूनम का फोन नंबर ले लिया. फिर वह उसे फोन करने लगा और अश्लील मैसेज भेजने लगा.

पूनम के समझाने के बाद वाकई कुछ दिनों तक इंद्रबहादुर ने उसे न तो फोन किया और न ही मैसेज भेजे. इस से पूनम को तसल्ली हुई. पर 15-20 दिनों बाद उस की यह खुशी परेशानी में बदल गई. वह फिर से उसे फोन करने लगा.

एक रोज तो विजय ने हद कर दी. उस ने फोन पर पूनम से कहा कि अब उस से रहा नहीं जाता. उस की तड़प बढ़ती जा रही है. वह उस से मिल कर अपने अरमान पूरे करना चाहता है. गुरुदेव चौराहा आ कर मिलो. उस ने यह भी कहा कि अगर वह नहीं आई तो वह खुद उस के घर आ जाएगा.

इंद्रबहादुर की धमकी से पूनम डर गई. वह नहीं चाहती थी कि वह उस के घर आए. क्योंकि वह पति व परिवार के अन्य सदस्यों की निगाहों में गिरना नहीं चाहती थी. इसलिए वह उस से मिलने गुरुदेव चौराहे पर पहुंच गई. वहां वह उस का इंतजार कर रहा था. पूनम ने उस से घरपरिवार की इज्जत की भीख मांगी, लेकिन वह नहीं पसीजा. वह एकांत में मिलने का दबाव बनाता रहा.

इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. इंद्रबहादुर जब बुलाता, पूनम डर के मारे उस से मिलने पहुंच जाती. इस मुलाकात की पति व परिवार के किसी अन्य सदस्य को भनक तक न लगती. एक दिन तो इंद्रबहादुर ने पूनम को जहरीला पदार्थ देते हुए कहा, ‘‘मेरी जान, तुम इसे अपने पति को खाने की किसी चीज में मिला कर खिला देना. कांटा निकल जाने पर हम दोनों मौज से रहेंगे.’’

पूनम जहरीला पदार्थ ले कर घर आ गई. उस ने उस जहर को पति को तो नहीं दिया, लेकिन खुद उस का कुछ अंश दूध में मिला कर पी गई. जहर ने असर दिखाना शुरू किया तो वह तड़पने लगी. विनय उसे तुरंत अस्पताल ले गया, जिस से पूनम की जान बच गई. विनय ने पूनम से जहर खाने की बाबत पूछा तो उस ने सारी सच्चाई बता दी.

इस के बाद पूनम को ले कर इंद्रबहादुर और विनय में झगड़ा होने लगा. दोनों एकदूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे. इसी झगड़े में एक दिन आमनासामना होने पर इंद्रबहादुर ने छपेड़ा पुलिया पर विनय के पैर में गोली मार दी. विनय जख्मी हो कर गिर पड़ा. उसे अस्पताल ले जाया गया. वहां किसी तरह विनय की जान बच गई.

विनय ने थाना कल्याणपुर में इंद्रबहादुर के खिलाफ भादंवि की धारा 307 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. विनय ने घटना के पीछे की असली बात को छिपा लिया. उस ने लेनदेन तथा महिला कर्मचारी को छेड़ने का मामला बताया. पुलिस ने भी अपनी विवेचना में पूनम का जिक्र नहीं किया. पुलिस ने इंद्रबहादुर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

लगभग 10 महीने तक इंद्रबहादुर जेल में रहा. इस के बाद 9 अक्तूबर, 2017 को वह कानपुर जेल से जमानत पर रिहा हुआ. जेल से बाहर आने के बाद वह फिर पूनम से मिलने की कोशिश करने लगा. लेकिन इस बार पूनम की ससुराल वाले सतर्क थे. उन्होंने पूनम का मोबाइल फोन बंद करा दिया था और घर पर कड़ी निगरानी रख रहे थे.

काफी मशक्कत के बाद भी जब वह पूनम तक नहीं पहुंच पाया, तब उस ने एक षडयंत्र रचा. षडयंत्र के तहत उस ने एक लड़की को सेल्सगर्ल बना कर विनय के घर भेजा और उस के जरिए पूनम को अपने नाम से लिया गया सिमकार्ड और मोबाइल फोन भिजवा दिया. पूनम के पास फोन पहुंचा तो विजय एक बार फिर पूनम के संपर्क में आ गया.

अब वह दिन में कईकई बार पूनम को फोन करने लगा. दोनों के बीच घंटों बातचीत होने लगी. बातचीत में विजय पूनम से एकांत में मिलने की बात कहता था. पूनम ने उसे उस की शादीशुदा जिंदगी और परिवार की इज्जत का हवाला दिया तो वह पूनम को बरगलाने की कोशिश करने लगा.

उस ने पूनम को समझाया कि वह अपने पति विनय की कार में चरस, स्मैक और तमंचा रख दे. यह सब चीजें वह उसे मुहैया करा देगा. इस के बाद वह पुलिस को फोन कर के विनय को पकड़वा देगा. विनय के जेल जाने के बाद दोनों आराम से साथ रहेंगे.

पूनम ने इंद्रबहादुर द्वारा फोन देने तथा बातचीत करने की जानकारी पति विनय को नहीं दी थी. दरअसल पूनम डर रही थी कि पति को बताने से वह भड़क जाएगा और उस से झगड़ा करेगा. इस झगड़े और मारपीट में कहीं उस के पति की जान न चली जाए. क्योंकि इंद्रबहादुर गोली मार कर विनय को पहले भी ट्रेलर दिखा चुका है.

इधर पति का साथ छोड़ने और अवैध संबंध बनाने की बात जब पूनम ने नहीं मानी तो इंद्रबहादुर ने एक और षडयंत्र रचा. उस ने पूनम को बदनाम करने के लिए रिचा झा और राधे झा नाम की फरजी आईडी से फेसबुक एकाउंट बना लिया. इस के बाद इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव ने पूनम के साथ अपनी अश्लील फोटो फेसबुक पर अपलोड कर इस की जानकारी उस के पति विनय, परिवार के अन्य लोगों तथा रिश्तेदारों को दे दी, ताकि वह बदनाम हो जाए.

विनय झा ने जब पूनम के साथ इंद्रबहादुर की अश्लील फोटो फेसबुक पर देखी तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने पूनम से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सारी सच्चाई विनय को बता दी.

सच्चाई जानने के बाद विनय ने इस गंभीर समस्या पर अपने बड़े भाई विनोद झा और भतीजे सत्यम उर्फ विक्की से बात की. विनोद व सत्यम भी फेसबुक पर पूनम अश्लील फोटो देख चुके थे. वे दोनों भी इस समस्या का निदान चाहते थे. गहन मंथन के बाद पूनम, विनय, विनोद तथा सत्यम उर्फ विक्की ने इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव की हत्या की योजना बनाई. हत्या की योजना में विनय ने अपने मामा के साले के लड़के अनुपम को भी शामिल कर लिया.

अनुपम गाजियाबाद का रहने वाला था. उस का आपराधिक रिकौर्ड था. वह पूर्वांचल के एक बड़े माफिया के संपर्क में भी रहा था. इस के बाद अनुपम ने पूनम, विनय, विनोद व सत्यम उर्फ विक्की के साथ विजय की हत्या की अंतिम रूपरेखा तैयार की और हत्या के लिए एक चापड़ खरीद कर रख लिया. इस के बाद अनुपम वापस गाजियाबाद चला गया.

24 सितंबर, 2017 को अनुपम अपने एक अन्य साथी के साथ कानपुर आया और विनय झा के घर पर रुका. उस ने इंद्रबहादुर की हत्या के संबंध में एक बार फिर पूनम, विनोद व सत्यम उर्फ विक्की से विचारविमर्श किया. इस के बाद वह उन के साथ वह जगह देखने गया, जहां इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव को षडयंत्र के तहत बुलाना था.

शाम पौने 6 बजे पूनम झा ने योजना के तहत इंद्रबहादुर को फोन किया. उस ने उसी मोबाइल से बात की, जो उस ने पूनम को भिजवाया था. फोन पर पूनम ने उस से कहा कि वह पति विनय को फंसा कर जेल भिजवा कर उस के साथ रहने को तैयार है, लेकिन इस से पहले वह उस की सारी योजना समझना चाहती है, इसलिए वह उस से मिलने अरमापुर थाने के पीछे मजार के पास आ जाए. चरस, स्मैक व असलहा भी साथ ले आए, ताकि मौका देख कर वह उस सामान को पति की गाड़ी में रख सके.

पूनम की बातों में फंस कर इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव अपनी बोलेरो गाड़ी से अरमापुर थाने के पीछे पहुंच गया. यह सुनसान इलाका है. वहां पूनम व उस का पति तथा अन्य साथी पहले से मौजूद थे. इंद्रबहादुर पूनम से बात करने लगा. उसी समय अनुपम ने रेंच से विजय के सिर पर पीछे से वार कर दिया. विजय लड़खड़ा कर जमीन पर गिरा तो पूनम के पति विनय झा, जेठ विनोद झा, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की तथा अनुपम ने उसे दबोच लिया.

उसी समय पूनम विजय की छाती पर सवार हो गई और बोली, ‘‘कमीने, तूने मेरी और मेरे परिवार की इज्जत नीलाम कर बदनाम किया है. आज तुझे तेरे पापों की सजा दे कर रहूंगी.’’ कहते हुए पूनम ने चापड़ से विजय की गरदन पर वार कर दिया. गरदन पर गहरा घाव बना और खून बहने लगा. इस के बाद विनय ने चापड़ से कई वार किए. इस के बाद वे सब उसे मरा समझ कर वहां से भाग निकले. चापड़ उन्होंने पास की झाड़ी में छिपा दिया.

इंद्रबहादुर गंभीर घायलावस्था में पड़ा कराह रहा था. कुछ समय बाद उधर से एक राहगीर निकला तो इंद्रबहादुर ने आवाज दे कर उसे रोक लिया. उस ने राहगीर को अपने बड़े भाई वीरबहादुर यादव का नंबर दे कर कहा कि वह फोन कर के उसे उस के घायल होने की सूचना दे दे. उस राहगीर ने वीरबहादुर को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही वीरबहादुर अपने साथियों के साथ वहां पहुंच गया. गंभीर रूप से घायल इंद्रबहादुर ने अपने बड़े भाई को बता दिया कि उस की यह हालत पूनम झा, उस के पति विनोद, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की तथा रिश्तेदार अनुपम व उस के साथी ने की है. यह बता कर विजय बेहोश हो गया. वीरबहादुर ने भाई विजय यादव के बयान की मोबाइल पर वीडियो बना ली थी.

वीरबहादुर अपने घायल भाई इंद्रबहादुर को साथियों के साथ हैलट अस्पताल ले गया. पर उस की हालत गंभीर बनी हुई थी, इसलिए उसे वहां से रीजेंसी अस्पताल भेज दिया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बजरंग दल के नेता इंद्रबहादुर की हत्या की खबर फैली तो हड़कंप मच गया.

उस के सैकड़ों समर्थक अस्पताल पहुंच गए. एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को खबर लगी तो वह भी रीजेंसी अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने मृतक के परिजनों व समर्थकों को आश्वासन दिया कि हत्यारों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा.

मीणा ने अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता को आदेश दिया कि वह शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाएं तथा रिपोर्ट दर्ज कर अभियुक्तों के खिलाफ सख्त काररवाई करें. मीणा ने घटनास्थल का भी निरीक्षण किया और पोस्टमार्टम हाउस व अस्पताल के बाहर भारी पुलिस फोर्स भी तैनात कर दिया.

एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा का आदेश पाते ही अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता ने मृतक विजय यादव के भाई वीरबहादुर यादव से घटना के संबंध में बात की. उस ने भाई के मरने से पहले रिकौर्ड किया वीडियो उन्हें सौंप दिया.

वीरबहादुर की तहरीर पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302 के तहत पूनम झा, उस के पति विनय, जेठ विनोद झा, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की, रिश्तेदार अनुपम तथा उस के साथी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

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चूंकि हत्या का यह मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए नामजद अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी ने एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता, क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर मनोज मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी विनोद मिश्रा, सर्विलांस सेल प्रभारी देवी सिंह, कांस्टेबल चंदन कुमार गौड़, देवेंद्र कुमार, भूपेंद्र कुमार, धर्मेंद्र, ललित, राहुल कुमार तथा महिला कांस्टेबल पूजा को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने ताबड़तोड़ छापे मार कर 25 नवंबर की दोपहर पूनम झा, उस के पति विनय झा, जेठ विनोद झा तथा भतीजे सत्यम उर्फ विक्की को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई.

प्रारंभिक पूछताछ में आरोपी खुद को बेकसूर बताते रहे, लेकिन जब पुलिस ने पूनम झा के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में इंद्रबहादुर से घंटों बातचीत होने और घटना से पहले भी इंद्रबहादुर से बातचीत होने का रिकौर्ड सामने आ गया.

इस के बाद सख्ती करने पर सभी आरोपी टूट गए और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन की निशानदेही पर झाडि़यों में छिपाया गया चापड़ तथा पूनम ने अपनी साड़ी बरामद करा दी, जो उस ने हत्या के समय पहनी थी.

पुलिस टीम ने सभी आरोपियों को एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा के सामने पेश किया. मीणा ने आननफानन प्रैस कौन्फ्रैंस बुला कर पत्रकारों के समक्ष घटना का खुलासा कर दिया. आरोपी विनय ने पत्रकारों को बताया कि इंद्रबहादुर जबरन उस की पत्नी के साथ संबंध बनाना चाहता था. इस के लिए वह पूनम पर दबाव बना रहा था. वह पूनम की मार्फत उसे तथा उस के परिवार को गलत धंधे में भी फंसाना चाहता था.

पूनम जब तैयार नहीं हुई तो उस ने फरजी फेसबुक आईडी बना कर पूनम को बदनाम किया. इसी के बाद उस ने विजय की हत्या की योजना बनाई और उसे मौत की नींद सुला दिया.

पुलिस ने 26 नवंबर, 2017 को सभी अभियुक्तों को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. अभियुक्त अनुपम व उस का साथी फरार था. पुलिस उन की गिरफ्तारी का प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शेख के चंगुल में फंसी रीना की वतन वापसी

अक्तूबर, 2017 महीने में सोशल मीडिया पर एक ऐसा वीडियो वायरल हो रहा था, जिसे जो  कोई भी देखता था, उस का कलेजा दहल उठता था. वीडियो में एक महिला पंजाब के जिला संगरूर के आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान को संबोधित करते हुए गुहार लगा रही थी कि वह बहुत ही गरीब परिवार से है. एक साल पहले वह नौकरी के लिए सऊदी अरब के दावाद्मी शहर आई थी. वह जहां नौकरी करती है, उसे कई कई दिनों तक खाना नहीं दिया जाता. कमरे में बंद कर के बाहर से ताला बंद कर दिया जाता है. उस के साथ बेरहमी से मारपीट करने के साथसाथ अन्य तरह से भी यातनाएं दी जाती हैं.

महिला के कहने के अनुसार, उस का पति है, बच्चे हैं, मां है, जो बहुत बीमार है. उन का औपरेशन होना है. वह अपने घर वालों के बीच आना चाहती है. लेकिन उसे आने नहीं दिया जा रहा है. वीडियो में अपनी दुखभरी कहानी बयान करते हुए वह महिला पंजाब के लड़कों और लड़कियों से अपील कर रही थी कि वे भूल कर भी नौकरी के लिए सऊदी अरब न आएं, क्योंकि यहां न केवल शोषण किया जाता है, बल्कि तरह तरह से प्रताडि़त भी किया जाता है.

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किसी तरह निकल कर वह स्थानीय थाने भी गई थी, लेकिन पुलिस ने उस की मदद करने के बजाय उसे डरा धमका कर वापस भेज दिया, जहां उस की जम कर पिटाई की गई. इस तरह वह फिर उसी घर पहुंच गई.

अपनी दुखभरी कहानी सुनाने के बाद वह महिला सांसद भगवंत मान को संबोधित करते हुए कह रही थी, ‘भगवंत मान साहब, मेरी मदद कीजिए. मैं यहां बहुत दुखी हूं. मैं यहां मुसीबत में फंसी हूं. मुझे यहां आए एक साल हो गया है. मैं एक साल से जुल्म सह रही हूं. आप ने होशियारपुर की एक लड़की की मदद की थी, उसे यहां से निकलवाया था, उसी तरह मुझे भी निकलवाइए. मैं आप की बेटी की तरह हूं.

‘मुझे पता नहीं था कि मेरे साथ इस तरह होगा. यहां मुझे कई कई दिनों तक खाना नहीं दिया जाता. मेरे साथ मारपीट की जाती है. मैं सऊदी अरब के दावाद्मी शहर में रहती हूं. मैं यहां नौकरी करने आई थी, लेकिन यहां आ कर मैं बुरी तरह फंस गई हूं.

‘अब आप किसी तरह मुझे यहां से निकलवाइए. अगर आप ने मुझे यहां से नहीं निकलवाया तो मैं मर जाऊंगी. मुझे ये लोग मार डालेंगे. मैं अपने बच्चों के पास वापस आना चाहती हूं. मेरी मां का औपरेशन होना है. वह बहुत बीमार हैं.’

अपनी शरीर पर लगी चोटों की ओर इशारा करते हुए वह आगे कह रही थी, ‘देखिए, मेरे साथ किस तरह मारपीट की गई है. जगहजगह से खून निकल रहा है. ये लोग बहुत गंदे हैं. मैं अपने भाईबहनों से यही कहूंगी कि वे कभी सऊदी अरब न आएं. मेरी हालत देख लीजिए, मैं जिस तरह से दिन काट रही हूं, उस से यही विनती है कि आप लोग यहां कभी मत आना.’

सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस वीडियो से पंजाब में जैसे तूफान आ गया. समाजसेवी संस्थाओं ने जनता के साथ मिल कर पंजाब के शहरों में जगहजगह पर भारत सरकार और राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने और जुलूस निकालने शुरू कर दिए.

सभी जिलों के डीसी औफिसों के घेराव किए गए. सऊदी अरब में शेखों के चंगुल में फंसी उस महिला की शीघ्र वापसी के लिए ज्ञापन दिए गए. इसी के साथ समाचारपत्रों में भी उस महिला के बारे में प्रमुखता से समाचार छपे.

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जिसजिस ने भी वह वीडियो देखा, उन सब की यही प्रार्थना थी कि यह महिला किसी तरह मुक्त हो जाए. सांसद भगवंत मान कुछ करते, उस के पहले ही भारत सरकार की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उस वीडियो को देखा और उस महिला की परेशानी को गंभीरता से लेते हुए खुद ही संज्ञान ले कर ट्वीट किया.

इसी के साथ विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सऊदी अरब स्थित भारतीय दूतावास को उस महिला के बारे में पता करने का आदेश दिया. उन्हीं की पहल पर उस लड़की को शेख के चंगुल से मुक्त करा कर भारत लाने के प्रयास शुरू कर दिए गए.

बाद में पता चला कि उस महिला का नाम रीना रानी था. 9 अक्तूबर को उस ने अपनी मां चंदरानी को यह वीडियो भेजा था. इस वीडियो को देख कर घर वाले परेशान हो उठे. चंदरानी ने भारत सरकार व आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान को वह वीडियो भेज कर प्रार्थना की कि किसी भी तरह उन की बेटी को शेखों के चंगुल से मुक्त कराया जाए.

रीना रानी ने वीडियो में जो अपनी परेशानी बताई थी, उसे ले कर अखबारों में खबरें छपने लगी थीं. खबर पढ़ कर भगवंत मान ने रीना रानी की मां चंदरानी से फोन द्वारा संपर्क किया और उन्हें सांत्वना दी कि वह रीना को सऊदी अरब से जल्द ही भारत लाएंगे.

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भगवंत मान ने रीना के मामले में गंभीरता दिखाते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से बात की तो पता चला कि यह पूरा मामला उन के संज्ञान में है और उन्होंने रीना के बारे में पता कर के उसे मुक्त करा कर भारत लाने की काररवाई शुरू कर दी है. इस के बाद सुषमा स्वराज ने रीना रानी की मां चंदरानी से फोन पर बात की और रीना का पता और फोन नंबर हासिल कर गृह मंत्रालय को भेज दिया.

सऊदी अरब में फंसी रीना होशियारपुर के थाना दसूहा के गांव बोदल कोटली के रहने वाले किशन की पत्नी थी. किशन से उस की शादी सन 1991 में हुई थी. इस समय उस की एक बेटी नवजोत 21 साल की और बेटा हरीश 17 साल का है. किशन दुबई में नौकरी करने गया था, लेकिन पारिवारिक परेशानी की वजह से वापस आ गया. भारत आने के बाद दुर्घटना में उस के दोनों पैर बेकार हो गए, जिस से वह चलफिर नहीं सकता था.

वही अकेला कमाने वाला था. उस के अपंग होने से घर में भूखों मरने की नौबत आ गई. दोनों बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हुई. इस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. घर चलाने के लिए रीना मेहनत मजदूरी करने लगी. किसी तरह दो जून की रोटी का जुगाड़ तो हो जाता था, लेकिन पति की दवा, बच्चों की पढ़ाई और कपड़ों का जुगाड़ नहीं हो पाता था.

पंजाब के तमाम लोग विदेशों में जा कर नौकरी कर रहे हैं. उन में तमाम महिलाएं भी हैं. महिलाओं को विदेशों में घरों में काम करने के लिए अच्छा पैसा मिलता है. रीना के गांव की भी तमाम महिलाएं विदेशों में जा कर नौकरी कर रही हैं और अच्छाखासा पैसा कमा रही हैं. घर की परेशानी को देखते हुए रीना ने भी विदेश जाने का मन बनाया.

किसी से ब्याज पर रुपए ले कर विगत 24 अक्तूबर, 2016 को किसी एजेंट के जरिए वह 2 साल के वीजा पर सऊदी अरब चली गई. उसे वहां एक शेख के घर में काम करना था. एजेंट ने उसे बताया था कि उस परिवार में 12 लोग हैं.

रीना सऊदी अरब के दावाद्मी शहर के रहने वाले उस शेख के घर पहुंच कर काम करने लगी. 4 महीने तक तो सब ठीक रहा, लेकिन उस के बाद उसे परेशान किया जाने लगा. उसे बुरी तरह से मारापीटा जाने लगा. एक तरह से वह नरक की जिंदगी जीने लगी. अब रीना की समझ में आया कि उस के साथ धोखा हुआ है.

एजेंट ने उसे मलेशिया भेजने की जगह सऊदी अरब भेज दिया. वह भी ऐसे जालिम लोगों के यहां, जिन्होंने उस का जीना हराम कर दिया. वह वहां हंसने की कौन कहे, किसी से बात भी नहीं कर सकती थी. किसी तरह उस ने अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों की वीडियो बना कर मां को भेजी तो उसे भारत वापस लाने के प्रयास शुरू कर दिए गए.

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विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के आदेश पर सऊदी अरब स्थित भारतीय दूतावास रीना को शेख के घर से मुक्त करा कर दूतावास ले आया, ताकि रीना को भारत भेजने की काररवाई की जा सके. क्योंकि रीना को एजेंट ने धोखे से ट्रैवल वीजा पर सऊदी भेजा था. इसलिए उसे वापस भेजने में कानूनी अड़चनें आ रही थीं.

लेकिन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का आदेश था, इसलिए दूतावास अधिकारी दोनों देशों के बीच कानूनी अड़चनों को दूर कर रीना को भारत भेजने की तैयारी शुरू कर दी. जब तक कानूनी अड़चनें दूर नहीं हुईं, तब तक रीना को सऊदी अरब के लेबर कोर्ट में रखा गया. लेकिन रीना शेख के चंगुल से आजाद हो चुकी थी. अब वह रोजाना पंजाब में रह रहे अपने घर वालों से बात करने लगी थी.

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस मामले में निजी तौर पर दिलचस्पी ले रही थीं और रीना रानी की सुरक्षित वापसी के लिए जीजान से जुटी थीं. उन्हें पता चल चुका था कि रीना होशियारपुर से टूरिस्ट वीजा पर पहले दुबई गई थी, जहां से उसे सऊदी अरब ले जाया गया था.

2 देशों, सऊदी अरब और दुबई की इमिग्रेशन पौलिसी की कानूनी अड़चन की वजह से रीना की वापसी में देर हो रही थी. उन्होंने जल्दी से जल्दी इस समस्या का समाधान करा कर रीना के घर वापसी का रास्ता खोल दिया. इस तरह 17 नवंबर, 2017 को रीना सऊदी अरब से सकुशल भारत आ गई.

18 नवंबर की शाम रीना अपने घर पहुंची. घर वालों के गले लग कर रोते हुए उसे अजीब सा सुख मिल रहा था. उस ने लोगों से जो अपनी आपबीती बताई, वह इस प्रकार थी—

अपने घर को गरीबी से उबारने की चाहत में रीना 16 अक्तूबर, 2016 को सऊदी अरब पहुंची. शुरू में तो 3-4 महीने तक सब ठीक रहा. लेकिन उसे 25 हजार के वेतन पर जहां ले जाया गया था, लेकिन उसे 25 हजार की जगह 15 हजार रुपए ही वेतन दिया गया. इस के बाद उसे परेशान किया जाने लगा. वे इंसान को इंसान नहीं, मशीन समझते थे.

रीना से 20-20 घंटे काम करवाते थे.

वे काम में जरा भी ढील होने पर जानवरों की तरह पीटते थे. कई कई दिनों तक खाना नहीं देते थे. उन की यातनाओं से तंग आ कर उस ने कई बार आत्महत्या करने का मन बनाया, लेकिन परिवार और मां के बारे में सोच कर हिम्मत नहीं कर पाई.

किसी तरह उस ने बच्चों से वाईफाई का पासवर्ड ले कर अपनी परेशानी की वीडियो बनाई और वाट्सऐप के जरिए मां को वह वीडियो भेज दिया. उसी की बदौलत वह वहां से मुक्त हो सकी.

वीडियो भेजने के कुछ दिनों बाद सऊदी पुलिस रीना को खोजते हुए पहुंची. शेख के घर की एक लड़की ने रीना को अंगरेजी में समझाने की कोशिश की कि पुलिस उसे भारत ले जाने आई है, लेकिन शेख ने नहीं जाने दिया.

इस के बाद 2 बार फिर पुलिस आई, लेकिन उसे नहीं भेजा गया. अंत में 16 नवंबर को पुलिस आई और उसे जबरदस्ती अपने साथ ले गई. इस के बाद सारी काररवाई पूरी कर उसे भारत लाया गया.