50 करोड़ का खेल : भीलवाड़ा का बिल्डर अपहरण कांड – भाग 3

पुलिस ने 4 मई, 2019 को धोबी की मदद से शिवदत्त को देहरादून के अरोड़ा पेइंग गेस्टहाउस से बरामद कर लिया. शिवदत्त अपने औफिस के कर्मचारी राकेश शर्मा की आईडी से इस गेस्टहाउस में ठहरा हुआ था. देहरादून से वह लगातार जयपुर की अपनी एक परिचित महिला के संपर्क में था. इस दौरान शिवदत्त ने देहरादून में एक कोचिंग सेंटर में इंग्लिश स्पीकिंग क्लास भी जौइन कर ली थी.

42 दिन तक कथित रूप से लापता रहे शिवदत्त को पुलिस देहरादून से भीलवाड़ा ले आई. उस से की गई पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी.

नाटक और हकीकत में फर्क होता है

शिवदत्त ने प्रौपर्टी व्यवसाय में कई जगह पैर पसार रखे थे. उस ने भीलवाड़ा में विनायक रेजीडेंसी, सांगानेर रोड पर मल्टीस्टोरी प्रोजैक्ट, अजमेर रोड पर श्रीमाधव रेजीडेंसी, कृष्णा विहार बाईपास, कोटा रोड पर रूपाहेली गांव के पास वृंदावन ग्रीन फार्महाउस आदि बनाए. इन के लिए उस ने बाजार से मोटी ब्याज दर पर करीब 50 करोड़ रुपए उधार लिए थे, लेकिन कुछ प्रोजैक्ट समय पर पूरे नहीं हुए.

बाद में प्रौपर्टी व्यवसाय में मंदी आ गई. इस से उसे अपनी प्रौपर्टीज के सही भाव नहीं मिल पा रहे थे. जिन लोगों ने शिवदत्त को रकम उधार दी थी, वह उन पर लगातार तकाजा कर रहे थे. ब्याज का बोझ बढ़ता जा रहा था. इस से शिवदत्त परेशान रहने लगा. वह इस समस्या से निकलने का समाधान खोजता रहता था.

इस बीच जनवरी में शिवदत्त अपने घर पर सीढि़यों से फिसल गया. उस की रीढ़ की हड्डी में चोट आई थी. कुछ दिन वह अस्पताल में भरती रहा. फिर चोट के बहाने करीब 2 महीने तक घर पर ही रहा. इस दौरान उस ने अपना कारोबार पत्नी शर्मीला और स्टाफ के भरोसे छोड़ दिया था. पैसा मांगने वालों को घरवाले और स्टाफ शिवदत्त के बीमार होने की बात कह कर टरकाते रहे.

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घर पर आराम करने के दौरान एक दिन शिवदत्त ने सारी समस्याओं से निपटने के लिए खुद के अपहरण की योजना बनाई. उस का विचार था कि अपहरण की बात से कर्जदार उस के परिवार को परेशान नहीं करेंगे. उन पर पुलिस की पूछताछ का दबाव भी नहीं रहेगा. यहां से जाने के बाद वह भीलवाड़ा से बाहर जा कर कहीं रह लेगा और मामला शांत हो जाने पर किसी दिन अचानक भीलवाड़ा पहुंच कर अपने अपहरण की कोई कहानी बना देगा.

अपनी योजना को मूर्तरूप देने के लिए उस ने होली का दिन चुना. इस से पहले ही शिवदत्त ने अपनी कार में करीब 8-10 जोड़ी कपड़े और जरूरी सामान रख लिया था. करीब एक लाख रुपए नकद भी उस के पास थे. शिवदत्त ने अपनी योजना की जानकारी पत्नी और किसी भी परिचित को नहीं लगने दी. उसे पता था कि अगर परिवार में किसी को यह बात बता दी तो पुलिस उस का पता लगा लेगी. इसलिए उस ने इस बारे में पत्नी तक को कुछ बताना ठीक नहीं समझा.

योजना के अनुसार, शिवदत्त होली की शाम पत्नी से अपने दोस्त राजेश त्रिपाठी से मिलने जाने की बात कह कर कार ले कर घर से निकल गया. वह अपने दोस्त से मिला और रात करीब 8 बजे वहां से निकल गया. शिवदत्त ने राजेश त्रिपाठी के घर से आ कर अपनी कार सुखाडि़या सर्किल के पास लावारिस छोड़ दी. कार से कपड़े और जरूरी सामान निकाल लिया. कपड़े व सामान ले कर वह भीलवाड़ा से प्राइवेट बस में सवार हो कर दिल्ली के लिए चल दिया.

भीलवाड़ा से रवाना होते ही शिवदत्त ने अपने मोबाइल से पत्नी के मोबाइल पर खुद के अपहरण का मैसेज भेज दिया था. इस के बाद उस ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर लिया. भीलवाड़ा से दिल्ली पहुंच कर वह ऋषिकेश चला गया.

ऋषिकेश में शिवदत्त ने अपने औफिस के कर्मचारी राकेश शर्मा की आईडी से नया सिमकार्ड खरीदा. फिर एक नया फोन खरीद कर वह सिम मोबाइल में डाल दिया. कुछ दिन ऋषिकेश में रुकने के बाद शिवदत्त देहरादून चला गया. देहरादून में 29 मार्च को उस ने राकेश शर्मा की आईडी से अरोड़ा पेइंग गेस्टहाउस में कमरा ले लिया.

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खेल एक अनाड़ी खिलाड़ी का

देहरादून में उस ने दिखावे के लिए इंग्लिश स्पीकिंग क्लास जौइन कर ली. वह अपने कपड़े धुलवाने और प्रैस कराने के लिए धोबी को देता था. एक दिन गलती से शिवदत्त का पुराना मोबाइल उस के कपड़ों की जेब में धोबी के पास चला गया. इसी से उस का भांडा फूटा.

शुरुआती जांच में सामने आया कि देहरादून में रहने के दौरान शिवदत्त मुख्यरूप से जयपुर की एक परिचित महिला के संपर्क में था. इस महिला से शिवदत्त की रोजाना लंबीलंबी बातें होती थीं. जबकि वह अपनी पत्नी या अन्य किसी परिजन के संपर्क में नहीं था.

भीलवाड़ा के सुभाष नगर थानाप्रभारी अजयकांत शर्मा ने शिवदत्त को 6 मई को जोधपुर ले जा कर हाईकोर्ट में पेश किया और उस के अपहरण की झूठी कहानी से कोर्ट को अवगत कराया. इस पर मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस संदीप मेहता और विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ ने शिवदत्त के प्रति नाराजगी जताई. जजों ने याचिका का निस्तारण करते हुए अदालत और पुलिस को गुमराह करने पर याचिकाकर्ता शर्मीला पर 5 हजार रुपए का जुरमाना लगाते हुए यह राशि पुलिस कल्याण कोष में जमा कराने के आदेश दिए.

बाद में सुभाष नगर थाना पुलिस ने शिवदत्त के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. उस के खिलाफ अपने ही अपहरण की झूठी कहानी गढ़ कर पुलिस को गुमराह करने, अवैध रूप से देनदारों पर दबाव बनाने और षडयंत्र रचने का मामला दर्ज किया गया. इस मामले की जांच सदर पुलिस उपाधीक्षक राजेश आर्य कर रहे थे.

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पुलिस ने इस मामले में 7 मई, 2019 को बिल्डर शिवदत्त को गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन उसे अदालत में पेश कर 6 दिन के रिमांड पर लिया गया. रिमांड अवधि में भी शिवदत्त से विस्तार से पूछताछ की गई, फिर उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

बहरहाल, बिल्डर शिवदत्त मोहमाया के लालच में अपने ही बिछाए जाल में फंस गया. अपहरण की झूठी कहानी से उस के परिजन भी 42 दिन तक परेशान रहे. पुलिस भी परेशान होती रही. भले ही वह जमानत पर छूट कर घर आ जाएगा, लेकिन सौ करोड़ के कारोबारी ने बाजार में अपनी साख तो खराब कर ही ली. इस का जिम्मेदार वह खुद और उस का लोभ है.

50 करोड़ का खेल : भीलवाड़ा का बिल्डर अपहरण कांड – भाग 2

पुलिस जुट गई जांच में

इस बीच 24 मार्च का दिन भी निकल गया. लेकिन अपहर्त्ताओं की ओर से कोई सूचना नहीं आई. जबकि उन्होंने 2 दिन में एक करोड़ रुपए का इंतजाम करने को कहा था. घर वाले इस बात को ले कर चिंतित थे कि कहीं अपहर्त्ताओं को उन के पुलिस में जाने की बात पता न लग गई हो. क्योंकि इस से चिढ़ कर वे शिवदत्त के साथ कोई गलत हरकत कर सकते थे.

शर्मीला पति को ले कर बहुत चिंतित थी. अपहर्त्ताओं की ओर से 3 दिन बाद भी शिवदत्त के परिजनों से कोई संपर्क नहीं किया गया. ऐसे में पुलिस को भी उस की सलामती की चिंता थी.

पुलिस ने शिवदत्त की तलाश तेज करते हुए 4 टीमें जांचपड़ताल में लगा दी. इन टीमों ने शिवदत्त के रिश्तेदारों से ले कर मिलनेजुलने वालों और संदिग्ध लोगों से पूछताछ की, लेकिन कहीं से कोई सुराग नहीं मिला. शिवदत्त की कार जिस जगह लावारिस हालत में मिली थी, उस के आसपास सीसीटीवी फुटेज खंगालने की कोशिश भी की गई, लेकिन पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल सका.

इस पर पुलिस ने 25 मार्च को शिवदत्त के फोटो वाले पोस्टर छपवा कर भीलवाड़ा जिले के अलावा पूरे राजस्थान सहित गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के पुलिस थानों को सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करने के लिए भेजे.

पुलिस को भी नहीं मिला शिवदत्त

जांच में पता चला कि शिवदत्त ने कुछ समय पहले महाराष्ट्र में भी अपना कारोबार शुरू किया था. इसलिए किसी सुराग की तलाश में पुलिस टीम मुंबई और नासिक भेजी गई. लेकिन वहां हाथपैर मारने के बाद पुलिस खाली हाथ लौट आई.

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उधर लोग इस मामले में पुलिस की लापरवाही मान रहे थे. पुलिस के प्रति लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा था. 26 अप्रैल, 2019 को ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधि मंडल ने भीलवाड़ा के कलेक्टर और एसपी को ज्ञापन दे कर शिवदत्त को सुरक्षित बरामद कर अपहर्त्ताओं को गिरफ्तार करने की मांग की. ऐसा न होने पर उन्होंने आंदोलन की चेतावनी दे दी.

दिन पर दिन बीतते जा रहे थे, लेकिन न तो अपहर्त्ताओं ने शिवदत्त के परिजनों से कोई संपर्क किया था और न ही पुलिस को कोई सुराग मिला था. इस से शिवदत्त के परिजन भी परेशान थे. उन के मन में आशंका थी कि अपहर्त्ताओं ने शिवदत्त के साथ कुछ गलत न कर दिया हो. क्योंकि इतने दिन बाद भी न तो अपहर्त्ता संपर्क कर रहे थे और न ही खुद शिवदत्त.

पुलिस की चिंता भी कम नहीं थी. वह भी लगातार भागदौड़ कर रही थी. पुलिस ने शिवदत्त के फेसबुक, ट्विटर, ईमेल एकाउंट खंगालने के बाद संदेह के दायरे में आए 50 से अधिक लोगों से पूछताछ की.

पुलिस की टीमें महाराष्ट्र और गुजरात भी हो कर आई थीं. शिवदत्त और उस के परिवार वालों के मोबाइल की कालडिटेल्स की भी जांच की गई. भीलवाड़ा शहर में बापूनगर, पीऐंडटी चौराहा से पांसल चौराहा और अन्य इलाकों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई, लेकिन इन सब का कोई नतीजा नहीं निकला.

बिल्डर शिवदत्त के अपहरण का मामला पुलिस के लिए एक मिस्ट्री बनता जा रहा था. पुलिस अधिकारी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर अपहर्त्ता शिवदत्त को कहां ले जा कर छिप गए. ऐसा कोई व्यक्ति भी पुलिस को नहीं मिल रहा था जिस ने राजेश त्रिपाठी के घर से निकलने के बाद शिवदत्त को देखा हो. त्रिपाठी ही ऐसा शख्स था, जिस से शिवदत्त आखिरी बार मिला था. पुलिस त्रिपाठी से पहले ही पूछताछ कर चुकी थी. उस से कोई जानकारी नहीं मिली थी तो उसे घर भेज दिया गया था.

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जांचपड़ताल में सामने आया कि शिवदत्त का करीब 100 करोड़ रुपए का कारोबार था. साथ ही उस पर 20-30 करोड़ की देनदारियां भी थीं. महाराष्ट्र के नासिक और गुजरात के अहमदाबाद में भी उस ने कुछ समय पहले नया काम शुरू किया था.

शिवदत्त ने सन 2009 में प्रौपर्टी का कारोबार शुरू किया था. शुरुआत में उस ने इस काम में अच्छा पैसा कमाया. कमाई हुई तो उस ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए. एक साथ कई काम शुरू करने से उसे नुकसान भी हुआ. इस से उस की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने लगी तो उस ने लोन लेने के साथ कई लोगों से करोड़ों रुपए उधार लिए. भीलवाड़ा जिले का रहने वाला एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी भी शिवदत्त की प्रौपर्टीज में पैसा लगाता था.

शिवदत्त भीलवाड़ा में ब्राह्मण समाज और अन्य समाजों के धार्मिक कार्यक्रमों में मोटा चंदा देता था. इस से उस ने विभिन्न समाजों के धनी और जानेमाने लोगों का भरोसा भी जीत रखा था. ऐसे कई लोगों ने शिवदत्त की प्रौपर्टीज में निवेश कर रखा था.

शिवदत्त के ऊपर उधारी बढ़ती गई तो लेनदार भी परेशान करने लगे. शिवदत्त प्रौपर्टी बेच कर उन लोगों का पैसा चुकाना चाहता था, लेकिन बाजार में मंदी के कारण प्रौपर्टी का सही भाव नहीं मिल रहा था. इस से वह परेशान रहने लगा था. लोगों के तकाजे से परेशान हो कर उसने फोन अटेंड करना भी कम कर दिया था.

हालांकि शर्मीला ने पुलिस थाने में पति के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस को एक भी ऐसा सबूत नहीं मिला, जिस के उस के अपहरण की पुष्टि होती. एक सवाल यह भी था कि शिवदत्त अगर उधारी का पैसा नहीं चुका रहा था तो अपहर्त्ता उन के किसी परिजन को उठा कर ले जाते, क्योंकि लेनदारों को यह बात अच्छी तरह पता थी कि पैसों की व्यवस्था शिवदत्त के अलावा कोई दूसरा नहीं कर सकता.

घूमने लगा पुलिस का दिमाग

आधुनिक टैक्नोलौजी के इस जमाने में पुलिस तीनचौथाई आपराधिक मामले मोबाइल लोकेशन, काल डिटेल्स व सीसीटीवी फुटेज से सुलझा लेती है, लेकिन शिवदत्त के मामले में पुलिस के ये तीनों हथियार फेल हो गए थे. उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. सीसीटीवी फुटेज साफ नहीं थे. काल डिटेल्स से भी कोई खास बातें पता नहीं चलीं.

प्रौपर्टी का काम करने से पहले शिवदत्त के पास बोरिंग मशीन थी. वह हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर सहित कई राज्यों में ट्यूबवैल के बोरिंग का काम करता था. इन स्थितियों में तमाम बातों पर गौर करने के बाद पुलिस शिवदत्त के अपहरण के साथ अन्य सभी पहलुओं पर भी जांच करने लगी.

इसी बीच शिवदत्त की पत्नी शर्मीला ने राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर दी. इस में शर्मीला ने अपने पति को ढूंढ निकालने की गुहार लगाई. इस पर हाईकोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि शिवदत्त को तलाश कर जल्द से जल्द अदालत में पेश किया जाए.

अब पुलिस के सामने शिवदत्त मामले में दोहरी चुनौती पैदा हो गई. पुलिस ने शिवदत्त की तलाश ज्यादा तेजी से शुरू कर दी. मई के पहले सप्ताह में शिवदत्त का मोबाइल स्विच औन किया गया. इस से उस की लोकेशन का पता चल गया. पता चला कि वह मोबाइल देहरादून में है. भीलवाड़ा से तुरंत एक पुलिस टीम देहरादून भेजी गई. देहरादून में पुलिस ने मोबाइल की लोकेशन ढूंढी तो वह मोबाइल एक धोबी के पास मिला.

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धोबी ने बताया कि पास के ही एक गेस्टहाउस में रहने वाले एक साहब के कपड़ों में एक दिन गलती से उन का मोबाइल आ गया. उस मोबाइल को धोबी के बेटे ने औन कर के अपने पास रख लिया था. मोबाइल औन होने से उस की लोकेशन पुलिस को पता चल गई.

3 करोड़ के सपने ने पहुंचाया जेल

एक तो कड़ाके की सर्दी, दूसरे रात के यही कोई 2 बज रहे थे, तीसरे पहाड़ी इलाका, ऐसे में सड़कों पर धुंध होने की वजह से काफी शांति थी. कभी कभार इक्कादुक्का वाहन सामने से आता जरूर दिखाई दे जाता था. हालात ऐसे थे कि पीछे से आने वाला कोई वाहन आगे जाने की हिम्मत नहीं कर सकता था. वैसे में उत्तराखंड के हरिद्वार की सड़कों पर एक पुलिस जीप भागी चली जा रही थी.

वह पुलिस जीप जिस समय हरिद्वार के चित्रा लौज के गेट पर पहुंची थी, रात के 3 बज रहे थे. कड़ाके की उस ठंड में हर कोई रजाई में दुबका सो रहा था. लेकिन जीप से आए पुलिस वाले किसी भी चीज की परवाह किए बगैर फुर्ती से जीप से उतरे और सीधे जा कर मैनेजर से मिले.

अपना परिचय दे कर उन्होंने मैनेजर को एक फोटो दिखाया तो वह उन्हें साथ ले कर दूसरी मंजिल की ओर चल पड़ा. दूसरी मंजिल पर पहुंच कर उस ने कमरा नंबर 206 का दरवाजा खटखटाया तो थोड़ी देर बाद आंखें मलते हुए एक युवक ने दरवाजा खोला.

युवक काफी स्वस्थ और सुंदर था. वह वही युवक था, जिस का फोटो पुलिस वाले ने लौज के मैनेजर को दिखाया था. उसे देख कर पुलिस वालों के चेहरे खिल उठे, क्योंकि उन की मंजिल मिल चुकी थी. जबकि उस युवक के चेहरे से साफ लग रहा था कि उतनी रात को दरवाजा खटखटा कर उस की नींद में खलल डालना उसे जरा भी अच्छा नहीं लगा था.

इस हरकत से क्षुब्ध युवक ने बेरुखी से सामने खड़े मैनेजर से पूछा, ‘‘क्या बात हो गई मैनेजर साहब, जो इतनी रात को दरवाजा खटखटा रहे हैं?’’

मैनेजर ने साथ आए लोगों की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘ये लोग आप से मिलने आए हैं.’’

युवक उन लोगों से कुछ पूछता, उस के पीछे से आवाज आई, ‘‘कौन है भाई, इतनी रात को दरवाजा खटखटा रहा है?’’

दरवाजा खोलने वाला युवक अपने साथी के सवाल का जवाब दिए बगैर मैनेजर के साथ आए लोगों को पहचानता नहीं था, इसलिए उन्हें पहचानने की कोशिश करने लगा.

तभी मैनेजर के साथ आए लोगों में से सब से आगे खड़े व्यक्ति ने कहा, ‘‘इतनी रात को किसी का दरवाजा खटखटा कर परेशान करना ठीक नहीं है. लेकिन हम मजबूर थे मि. प्रमोद कुमार भाटी. तुम ने काम ही ऐसा किया है कि इतनी रात को तुम्हें परेशान करना पड़ा.’’

अजनबी के मुंह से अपना नाम सुन कर युवक एकदम से घबरा गया, जो उस के चेहरे पर साफ झलक आया था. लेकिन उस ने जल्दी ही खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘क्या कहा आप ने, प्रमोद कुमार भाटी, यह कौन हैं? यहां तो इस नाम का कोई आदमी नहीं है. आप लोग कौन हैं, मैं तो आप लोगों को पहचानता नहीं?’’

‘‘चिंता मत करो, अभी पहचान जाओगे.’’ कह कर उस आदमी ने युवक का कौलर पकड़ कर बाहर खींचा तो उस के साथ आए अन्य लोगों ने उसे दबोच लिया. इस के बाद कमरे के अंदर बैड पर रजाई में दुबके उस के साथी को भी पकड़ लिया गया.

इस के बाद उस कमरे की तलाशी ली गई. कमरे में जो भी जरूरत की चीज मिली, पुलिस ने जब्त कर लिया. सारे सुबूत और दोनों युवकों को साथ ले कर पुलिस स्थानीय थाने आ गई, जहां औपचारिक पूछताछ के बाद पुलिस ने उन के तीसरे साथी को उस के घर से पकड़ लिया था.

पकड़े गए तीनों युवकों के नाम प्रमोद कुमार भाटी, कमलेश उर्फ कल्पेश कुमार पटेल तथा भावी कुमार मोदी थे. उन पर मुंबई में एक बड़ी चोरी करने का आरोप था. मुबई की थाना कुर्ला पुलिस ने हरिद्वार पुलिस की मदद से 2 लोगों को चित्रा लौज से उस समय गिरफ्तार किया था, जब वे लौज के कमरे में सो रहे थे, जबकि उन के तीसरे साथी को गुजरात से उस के घर से पकड़ा गया था.

30 जनवरी, 2014 की रात साढ़े 11 बजे मुंबई के उपनगर थाना कुर्ला में 73 वर्षीय रतनचंद जैन ने अपनी फर्म में करोड़ों की चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने वाले रतनचंद जैन अपने परिवार के साथ मुंबई के लालबाग के उदय गार्डन में रहते थे. उन का गहने बनाने का कारोबार था. उन का यह कारोबार आर.आर. संघवी एंड कंपनी के नाम की फर्म के माध्यम से होता था. उन की यह कंपनी कुर्ला न्यू मिल रोड पर थी, जो सोनेचांदी से ले कर हीरेजवाहरात के गहने बना कर बेचती थी.

रतनचंद जैन की यह फर्म लगभग 60 साल पुरानी थी, जिसे वह अपने तीन नौकरों की मदद से चलाते थे. फर्म सुबह ठीक 9 बजे खुलती थी अैर रात के ठीक 9 बजे बंद होती थी. फर्म में काम करने वाले तीनों नौकर फर्म में ही रहते थे. फर्म गुरुवार को बंद रहती थी, इसलिए उस दिन नौकरों को कहीं भी आनेजाने की छूट होती थी.

चोरी गुरुवार को ही हुई थी, जिस दिन फर्म बंद रहती थी. रात साढ़े 10 बजे रतनचंद जैन खापी कर सोने की तैयारी कर रहे थे कि फर्म में काम करने वाले नौकर कैलाश कुमार भाटी ने फोन कर के आशंका व्यक्त की थी कि लगता है फर्म में चोरी हो गई है. चोरी की बात सुन कर रतनचंद घबरा गए, क्योंकि करोडों का मामला था. घर वालों को बिना कुछ बताए ही उन्होंने कपड़े पहने और टैक्सी पकड़ कर फर्म पर जा पहुंचे.

फर्म पर पहुंच कर रतनचंद जैन को पता चला कि उन का एक नौकर प्रमोद कुमार भाटी गायब है. उस का फोन भी बंद है. रतनचंद जैन अपने तीनों नौकरों पर आंख मूंद कर विश्वास करते थे. तीनों नौकरों में 2 तो पुराने थे, लेकिन प्रमोद कुमार भाटी को उन्होंने अभी 6 महीने पहले ही रखा था.

लेकिन वह भी कोई बाहरी नहीं था. वह उन के पुराने और विश्वासपात्र नौकर कैलाश कुमार भाटी का चचेरा भाई था. इसलिए वह उस पर भी उसी तरह विश्वास करने लगे थे, जैसा कैलाश पर करते थे.

प्रमोद के गायब होने से उस के प्रति मन में तरहतरह की आशंकाएं उठने लगीं. वैसे तो वह काम में मेहनती और बातचीत में शरीफ था. लेकिन आदमी की कब नीयत खराब हो जाए, कौन जानता है. वह ताला तोड़वा कर अंदर पहुंचे तो फर्म की तिजोरी की स्थिति देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.

तिजोरी में रखे सारे जेवरात और पैसे गायब थे. उन्होंने फर्म में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी तो प्रमोद कुमार भाटी का असली चेहरा सामने आ गया.

कैमरे की फुटेज में प्रमोद कुमार भाटी अपने एक साथी के साथ तिजोरी से गहने निकालते हुए साफ दिखाई दे रहा था. इस के बाद उन्होंने इस मामले में देर करना उचित नहीं समझा और दोनों नौकरों के साथ थाना कुर्ला जा पहुंचे.

रतनचंद जैन ने फर्म में हुई चोरी की रिपोर्ट थाना कुर्ला में लिखाई तो करोड़ों की इस चोरी पर थाने हड़कंप सा मच गया. थाने में ड्यूटी पर तैनात सबइंसपेक्टर प्रदीप पगारे ने तुरंत इस चोरी की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और कंट्रोल रूम को दी. इस के बाद कुछ सिपाहियों को साथ ले कर वह रतनचंद जैन की फर्म पर जा पहुंचे.

तिजोरी का निरीक्षण करने पर पता चला कि वह एकदम ठीकठाक थी. इस का मतलब उसे उसी की चाबी से खोला गया था. सबइंस्पेक्टर प्रदीप पगारे अभी निरीक्षण कर रहे थे कि डीसीपी धनंजय कुलकर्णी, एसीपी प्रकाश लाड़गे, सीनियर इंसपेक्टर विनोद शिंदे, इंसपेक्टर सर्वेराज जगदाले, असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत, सबइंसपेक्टर तुकाराम कोयडे भी वहां पहुंच गए.

डीसीपी धनंजय कुलकर्णी और एसीपी प्रकाश लाड़गे ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और सीनियर इंसपेक्टर विनोद शिंदे को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए.

अधिकारियों के जाने के बाद सीनियर इंसपेक्टर विनोद शिंदे ने रतनचंद जैन और उन के दोनों नौकरों से काफी लंबी पूछताछ की. इसी पूछताछ में चोरी गए गहनों की सूची बनाई गई. पता चला, चोरी गए स्वर्ण आभूषणों का वजन साढ़े 10 किलोग्राम था, जिन की बाजार में कीमत 2 करोड़ 84 लाख रुपए के आसपास थी. इस के अलावा तिजोरी में नकद 5 लाख की रकम भी रखी थी.

रतनचंद जैन और उन के दोनों नौकरों से पूछताछ कर के पुलिस थाने आ गई. अब पुलिस को चोरों तक पहुंचना था. चोरों के बारे में उन्हें पता चल ही गया था. मुख्य चोर प्रमोद कुमार भाटी के बारे में उन्हें सारी जानकारी उस के चचेरे भाई कैलाश कुमार भाटी से मिल गई थी.

सीसीटीवी फुटेज से साफ हो गया था कि चोरी प्रमोद कुमार भाटी ने ही अपने 2 साथियों के साथ मिल कर की थी, इसलिए किसी दूसरी दिशा में जांच का कोई सवाल ही नहीं उठता था. चोरों को जल्दी पकड़ना भी था, क्योंकि अगर उन्होंने चोरी का माल ठिकाने लगा दिया तो परेशानी खड़ी हो सकती थी.

इस बात को ध्यान में रख कर सीनियर इंसपेक्टर विनोद शिंदे ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर सर्वेराज जगदाले को सौंप दी. इंसपेक्टर सर्वेराज जगदाले ने मामले की जांच की रूपरेखा तैयार की और पुलिस की 3 टीमें बना कर अलगअलग लोगों को उन की कमान सौंप दी. इन में से एक टीम का नेतृत्व असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत को सौंपा गया था.

असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत ने अपने सहयोगियों हेडकांस्टेबल निवृत्ती येधे यशवंत पवार, इब्राहीम सैयद, संदीप माने के साथ फर्म के पुराने नौकर कैलाश कुमार भाटी से प्रमोद के बारे में पूरी जानकारी ले कर उसे पकड़ने के प्रयास शुरू कर दिए.

इस तरह की घटना को अंजाम दे कर कोई भी अपराधी जल्दी अपने घर नहीं जाता, यही सोच कर असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत प्रमोद के घर जाने के बजाय उस की तलाश मुंबई में ही रहने वाले उस के नातेरिश्तेदारों के यहां करने लगे. मुंबई में जब उस के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उन्होंने उस के गांव का रुख किया.

प्रमोद की तलाश के साथ उस के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा कर का लोकेशन भी पता किया जा रहा था. उस के मोबाइल की पहली लोकेशन बोरीवली नेशनल पार्क की मिली थी. इस से अंदाजा लगाया गया कि प्रमोद साथियों के साथ मुंबई से बाहर निकल गया है, क्योंकि शहर से बाहर जाने वाली बसें वहीं से जाती थीं.

इस के बाद प्रमोद कुमार भाटी के मोबाइल फोन की लोकेशन गुजरात के उस के गांव की मिली थी. उसी लोकेशन के आधार पर असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत उस के गांव पहुंचे. लेकिन पुलिस टीम के वहां पहुंचने तक उस ने दोस्त के साथ गांव छोड़ दिया था. दादादादी ने पुलिस को बताया कि वह दिल्ली जाने की बात कह कर घर से निकला था.

पुलिस टीम दिल्ली पहुंची. लेकिन दिल्ली में भी प्रमोद उन्हें नहीं मिला, क्योंकि पुलिस टीम के दिल्ली पहुंचने तक वह उत्तराखंड के हरिद्वार पहुंच गया था. पुलिस को यह जानकारी उस के मोबाइल फोन के लोकेशन से मिल रही थी. मोबाइल फोन के लोकेशन के आधार पर ही पुलिस टीम हरिद्वार जा पहुंची थी.

पुलिस टीम हरिद्वार तो पहुंच गई थी, लेकिन वहां प्रमोद और उस के साथी को ढूंढ़ना आसान नहीं था. लेकिन चोरों को तो पकड़ना ही था. असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत ने स्थानीय पुलिस की मदद से वहां के होटलों और लौजों में फोटो दिखा कर उन की तलाश शुरू कर दी.

आखिर उन की मेहनत रंग लाई और उन्होंने चित्रा लौज से प्रमोद और उस के साथी कमलेश उर्फ कल्पेश कुमार पटेल को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में प्रमोद ने बताया कि चोरी का सारा माल उस के तीसरे साथी भावी कुमार मोदी के पास रखा है.

असिस्टैंट इंसपेक्टर संपतराव राऊत ने हरिद्वार से ही यह जानकारी सीनियर इंसपेक्टर विनोद शिंदे और इंसपेक्टर सर्वेराज जगदाले को दी तो इंसपेक्टर सर्वेराज जगदाले ने तत्काल सबइंस्पेक्टर प्रदीप पगारे की टीम को चोरी का माल बरामद करने के लिए भावी कुमार मोदी के गांव के लिए रवाना कर दिया था.

सबइंसपेक्टर प्रदीप पगारे अपनी टीम के साथ भावी कुमार मोदी के घर पहुंचे तो संयोग से वह घर पर ही मिल गया. उन्होंने उसे गिरफ्तार कर के चोरी का सारा माल बरामद कर लिया.

तीनों को मुंबई लाया गया और अगले दिन महानगर दंडाधिकारी के सामने पेश कर पूछताछ के लिए 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में प्रमोद कुमार भाटी और उस के साथियों ने आर.आर. संघवी एंड कंपनी में चोरी की जो कहानी सुनाई, वह चोरी कर के जल्दी से जल्दी करोड़पति बनने की निकली.

प्रमोद कुमार भाटी गुजरात के जिला मानसरोवर के गांव पालनपुर का रहने वाला था. उस के पिता प्रकाश कुमार के पास खेती की थोड़ी जमीन थी, उसी में मेहनत कर के वह किसी तरह गुजारा कर रहे थे. परिवार बड़ा था, इसलिए घर में हमेशा आर्थिक तंगी रहती थी.

प्रमोद कुमार भाटी भाईबहनों में सब से बड़ा था. समझदार हुआ तो कोई कामधंधा कर के वह परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के बारे में सोचने लगा. इसी चक्कर में वह मुंबई में रहने वाले अपने चचेरे भाई कैलाश कुमार भाटी के पास आ गया.

कैलाश कुमार 15 सालों से मुंबई में रतनचंद जैन की गहने बनाने वाली आर.आर. संघवी एंड कंपनी में काम कर रहा था. वह मेहनती और ईमानदार था, इसलिए रतनचंद जैन उसे बेटे की तरह मानते थे. यही वजह थी कि करोड़ों का माल वह उस के भरोसे छोड़ देते थे.

फर्म की तिजोरी की एक चाबी वह अपने पास रखते थे, जबकि दूसरी चाबी उन की फर्म के ठीक सामने स्थित के.के. ज्वैलर्स के मालिक के पास रहती थी.

यह फर्म रतनचंद जैन के रिश्तेदार की थी. यह चाबी उन के पास इसलिए रहती थी कि अगर कभी किसी ग्राहक को अचानक जरूरत पड़ जाए तो फर्म के नौकर इस चाबी से तिजोरी खोल कर उस ग्राहक को माल दे सकें.

रतनचंद कैलाश पर ही नहीं, अपने सभी नौकरों पर उसी तरह भरोसा करते थे. यही वजह थी कि उन के रहने और सोने की व्यवस्था उन्होंने अपनी कंपनी में ही कर रखी थी.

कैलाश कुमार को अपने चाचा के घर की आर्थिक स्थिति पता थी, इसलिए प्रमोद जब गांव से काम की तलाश उस के पास आया तो उस ने अपने मालिक रतनचंद जैन से कह कर उसे अपनी ही कंपनी में नौकरी दिला दी.

प्रमोद कुमार भाटी भी उसी तरह मेहनत और ईमानदारी से काम करने लगा, जिस तरह कैलाश और अन्य नौकर कर रहे थे. अपनी मेहनत और ईमानदारी से जल्दी ही उस ने फर्म के मालिक रतनचंद जैन के मन में अपने लिए खास जगह बना ली. इस तरह अन्य नौकरों की तरह वह भी उन का विश्वासपात्र बन गया.

रतनचंद जैन को प्रमोद पर भरोसा हो गया तो वह उसे भी फर्म की तिजोरी की चाबी देने लगे. इस के बाद जरूरत पड़ने पर अन्य नौकरों की तरह वह भी के.के. ज्वैलर्स के यहां से चाबी लाने लगा.

प्रमोद कुमार भाटी को नौकरी पर लगे 2-3 महीने ही हुए थे कि किसी काम से उसे गांव जाना पड़ा. छुट्टी ले कर वह गांव गया तो वहां वह अपने दोस्तों कमलेश उर्फ कल्पेश पटेल और भावी कुमार मोदी से मिला.

कमलेश उर्फ कल्पेश पटेल और भावी कुमार मोदी के परिवारों की भी आर्थिक स्थिति वैसी ही थी, जैसी प्रमोद कुमार के परिवार की थी. वे ज्यादा पढ़लिख भी नहीं पाए थे. कामधंधा न होने की वजह से गांव में आवारों की तररह घूमते रहते थे.

मुंबई से आए प्रमोद को देख कर उस के दोनों दोस्त हैरान रह गए. बातचीत में जब उन्हें पता चला कि प्रमोद गहने बनाने वाली कंपनी में काम करता है और वहां रोजाना लाखों का कारोबार होता है तो उन के मुंह में पानी आ गया. उन्हें लगा कि अगर फर्म का सारा माल उन के हाथ लग जाए तो वे तुरंत करोड़पति बन जाएंगे. सही बात है, खाली दिमाग शैतान का घर होता है, वह हमेशा उलटा ही सोचता है.

कमलेश और भावी ने जब यह बात प्रमोद से कही तो उस ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया. लेकिन उन दोनों ने हार नहीं मानी और लगातार उसे चोरी के लिए राजी करने में लगे रहे. आखिर वे प्रमोद को पटरी पर लाने में कामयाब हो ही गए. उसे भी लगा कि अगर कंपनी का सारा माल उसे मिल जाता है तो उस के परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी. उस के बाद उसे कहीं काम करने की जरूरत नहीं रहेगी.

प्रमोद को कंपनी की सारी गतिविधियों और कामकाज का पता ही था, यह भी पता था कि कंपनी में हमेशा 3-4 करोड़ का माल यानी सोने के गहने, नकदी रखी रहती है.

दोस्तों के साथ करोड़ों की चोरी करने की योजना बना कर प्रमोद छुट्टी खतम होने के बाद मुंबई आ गया और पहले की ही तरह कंपनी के काम करने लगा. लेकिन अब उसे योजना को अंजाम देने के लिए हमेशा मौके की तलाश रहने लगी थी.

चोरी करने के एक दिन पहले यानी 29 जनवरी, 2014 को प्रमोद ने फोन कर के अपने दोनों दोस्तों, कमलेश उर्फ कल्पेश कुमार पटेल और भावी कुमार मोदी को मुंबई बुला लिया. 30 जनवरी, 2014 को कंपनी बंद थी. उस दिन अगलबगल की भी सारी दुकानें बंद रहती थीं, इसलिए रास्ता पूरी तरह साफ था.

शाम 7 बजे कैलाश और अन्य नौकर घूमने और खाना खाने बाहर चले गए तो प्रमोद अपने काम में लग गया. उस ने तुरंत फोन कर के कुर्ला स्टेशन के आसपास घूम रहे अपने दोस्तों को बुला लिया और खुद तिजोरी की चाबी लेने के.के. ज्वैलर्स के यहां चला गया.

के.के. ज्वैलर्स से चाबी लेते समय उस ने कहा था कि एक बड़ा ग्राहक आया है, जिसे और्डर का समान देना है. ऐसा हमेशा होता आया था, इसलिए तिजोरी की चाबी मिलने में उसे कोई परेशानी नहीं हुई.

चाबी ला कर प्रमोद ने भावी कुमार मोदी को फर्म के बाहर निगरानी पर खड़ा कर दिया और खुद कमलेश उर्फ कल्पेश पटेल के साथ अंदर आ गया. इस के बाद तिजोरी खोल कर उस में रखे सारे गहने और 5 लाख रुपए नकद ले कर तिजोरी को बंद कर के चाबी के.के. ज्वैलर्स को दे दी. सारा काम निपटा कर फर्म में बाहर से ताला बंद किया और दोस्तों के साथ चला गया.

तीनों ने कुर्ला स्टेशन के पास से टैक्सी पकड़ी और बोरीवली आ गए, जहां से बस पकड़ कर अपने गांव चले गए. गांव में प्रमोद ने चेरी का सारा माल भावी कुमार मोदी के यहां रखा और गिरफ्तारी से बचने के लिए खुद कमलेश उर्फ कल्पेश के साथ गांव छोड़ दिया.

गांव से दोनों दिल्ली आए, जहां वसंत विहार के एक लौज में ठहरे. अगले दिन दोनों हरिद्वार चले गए. हरिद्वार में एक रात वे बालाजी लौज में ठहरे. इस के अगले दिन वे चित्रा लौज में ठहरे, जहां से पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया. इस के बाद पुलिस ने सारा माल भी बरामद कर लिया. इस तरह उन के करोड़पति बनने और ऐशोआराम से जीने का सपना टूट गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने प्रमोद कुमार भाटी, कमलेश उर्फ कल्पेश कुमार पटेल और भावी कुमार मोदी के खिलाफ चोरी का मामला दर्ज कर के पुन: अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में आर्थर रोड जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

50 करोड़ का खेल : भीलवाड़ा का बिल्डर अपहरण कांड – भाग 1

21 मार्च, 2019 की बात है. उस दिन होली थी. होलिका दहन के अगले दिन रंग गुलाल से खेले जाने वाले त्यौहार का आमतौर पर दोपहर तक ही धूमधड़ाका रहता है. दोपहर में रंगेपुते लोग नहाधो कर अपने चेहरों से रंग उतारते हैं. फिर अपने कामों में लग जाते हैं. कई जगह शाम के समय लोग अपने परिचितों और रिश्तेदारों से मिलने भी जाते हैं.

भीलवाड़ा के पाटील नगर का रहने वाला शिवदत्त शर्मा भी होली की शाम अपने दोस्त राजेश त्रिपाठी से मिलने के लिए अपनी वेरना कार से बापूनगर के लिए निकला था. शिवदत्त ने जाते समय पत्नी शर्मीला से कहा था कि वह रात तक घर आ जाएगा. थोड़ी देर हो जाए तो चिंता मत करना.

शिवदत्त जब देर रात तक नहीं लौटा तो शर्मीला को चिंता हुई. रात करीब 10 बजे शर्मीला ने पति के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन मोबाइल स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद शर्मीला घरेलू कामों में लग गई. उस के सारे काम निबट गए, लेकिन शिवदत्त घर नहीं आया था. शर्मीला ने दोबारा पति के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन इस बार भी उस का फोन स्विच्ड औफ ही मिला. उसे लगा कि शायद पति के मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई होगी, इसलिए स्विच्ड औफ आ रहा है.

शर्मीला बिस्तर पर लेट कर पति का इंतजार करने लगी. धीरेधीरे रात के 12 बज गए, लेकिन शिवदत्त घर नहीं आया. इस से शर्मीला को चिंता होने लगी. वह पति के दोस्त राजेश त्रिपाठी को फोन करने के लिए नंबर ढूंढने लगी, लेकिन त्रिपाठीजी का नंबर भी नहीं मिला.

शर्मीला की चिंता स्वाभाविक थी. वैसे भी शिवदत्त कह गया था कि थोड़ीबहुत देर हो जाए तो चिंता मत करना, लेकिन घर आने की भी एक समय सीमा होती है. शर्मीला बिस्तर पर लेटेलेटे पति के बारे में सोचने लगी कि क्या बात है, न तो उन का फोन आया और न ही वह खुद आए.

पति के खयालों में खोई शर्मीला की कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला. त्यौहार के कामकाज की वजह से वह थकी हुई थी, इसलिए जल्दी ही गहरी नींद आ गई.

वाट्सऐप मैसेज से मिली पति के अपहरण की सूचना

22 मार्च की सुबह शर्मीला की नींद खुली तो उस ने घड़ी देखी. सुबह के 5 बजे थे. पति अभी तक नहीं लौटा था. शर्मीला ने पति को फिर से फोन करने के लिए अपना मोबाइल उठाया तो देखा कि पति के नंबर से एक वाट्सऐप मैसेज आया था.

शर्मीला ने मैसेज पढ़ा. उस में लिखा था, ‘तुम्हारा घर वाला हमारे पास है. इस पर हमारे एक करोड़ रुपए उधार हैं. यह हमारे रुपए नहीं दे रहा. इसलिए हम ने इसे उठा लिया है. हम तुम्हें 2 दिन का समय देते हैं. एक करोड़ रुपए तैयार रखना. बाकी बातें हम 2 दिन बाद तुम्हें बता देंगे. हमारी नजर तुम लोगों पर है. ध्यान रखना, अगर पुलिस या किसी को बताया तो इसे वापस कभी नहीं देख पाओगी.’

मोबाइल पर आया मैसेज पढ़ कर शर्मीला घबरा गई. वह क्या करे, कुछ समझ नहीं पा रही थी. पति की जिंदगी का सवाल था, घबराहट से भरी शर्मीला ने अपने परिवार वालों को जगा कर मोबाइल पर आए मैसेज के बारे में बताया.

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मैसेज पढ़ कर लग रहा था कि शिवदत्त का अपहरण कर लिया गया है. बदमाशों ने शिवदत्त के मोबाइल से ही मैसेज भेजा था ताकि पुष्टि हो जाए कि शिवदत्त बदमाशों के कब्जे में है. यह मैसेज 21 मार्च की रात 9 बज कर 2 मिनट पर आया था, लेकिन उस समय शर्मीला इसे देख नहीं सकी थी.

शिवदत्त के अपहरण की बात पता चलने पर पूरे परिवार में रोनापीटना शुरू हो गया. जल्दी ही बात पूरी कालोनी में फैल गई. चिंता की बात यह थी कि अपहर्त्ताओं ने शिवदत्त पर अपने एक करोड़ रुपए बकाया बताए थे और वह रकम उन्होंने 2 दिन में तैयार रखने को कहा था.

शर्मीला 2 दिन में एक करोड़ का इंतजाम कहां से करती? शिवदत्त होते तो एक करोड़ इकट्ठा करना मुश्किल नहीं था लेकिन शर्मीला घरेलू महिला थी, उन्हें न तो पति के पैसों के हिसाब किताब की जानकारी थी और न ही उन के व्यवसाय के बारे में ज्यादा पता था. शर्मीला को बस इतना पता था कि उस के पति बिल्डर हैं.

शर्मीला और उस के परिवार की चिंता को देखते हुए कुछ लोगों ने उन्हें पुलिस के पास जाने की सलाह दी. शर्मीला परिवार वालों के साथ 22 मार्च को भीलवाड़ा के सुभाषनगर थाने पहुंच गई और पुलिस को सारी जानकारी देने के बाद अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने शर्मीला और उन के परिवार के लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि कपड़ा नगरी के नाम से देश भर में मशहूर भीलवाड़ा के पथिक नगर की श्रीनाथ रेजीडेंसी में रहने वाले 42 साल के शिवदत्त शर्मा की हाइपर टेक्नो कंसट्रक्शन कंपनी है. शिवदत्त का भीलवाड़ा और आसपास के इलाके में प्रौपर्टी का बड़ा काम था. उन के बिजनैस में कई साझीदार हैं और इन लोगों की करोड़ों अरबों की प्रौपर्टी हैं.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी अजयकांत शर्मा ने इस की जानकारी एडिशनल एसपी दिलीप सैनी को दे दी. इस के बाद पुलिस ने शिवदत्त की तलाश शुरू कर दी. साथ ही शिवदत्त की पत्नी से यह भी कह दिया कि अगर अपहर्त्ताओं का कोई भी मैसेज आए तो तुरंत पुलिस को बता दें.

चूंकि शिवदत्त अपने दोस्त राजेश त्रिपाठी के घर जाने की बात कह कर घर से निकले थे, इसलिए पुलिस ने राजेश त्रिपाठी से पूछताछ की. राजेश ने बताया कि शिवदत्त होली के दिन शाम को उन के पास आए तो थे लेकिन वह रात करीब 8 बजे वापस चले गए थे.

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जांचपड़ताल के दौरान 23 मार्च को पुलिस को शिवदत्त की वेरना कार भीलवाड़ा में ही सुखाडि़या सर्किल से रिंग रोड की तरफ जाने वाले रास्ते पर लावारिस हालत में खड़ी मिल गई. पुलिस ने कार जब्त कर ली. पुलिस ने कार की तलाशी ली, लेकिन उस से शिवदत्त के अपहरण से संबंधित कोई सुराग नहीं मिला. कार भी सहीसलामत थी. उस में कोई तोड़फोड़ नहीं की गई थी और न ही उस में संघर्ष के कोई निशान थे.

पुलिस ने शिवदत्त के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया. लेकिन मोबाइल के स्विच्ड औफ होने की वजह से उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. जांच की अगली कड़ी के रूप में पुलिस ने शिवदत्त, उस की पत्नी और कंपनी के स्टाफ के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस के अलावा शिवदत्त के लेनदेन, बैंक खातों, साझेदारों के लेनदेन से संबंधित जानकारियां जुटाईं. यह भी पता लगाया गया कि किसी प्रौपर्टी को ले कर कोई विवाद तो नहीं था.

विश्वास का खून : मोमिता अभिजीत हत्याकांड – भाग 3

अभिजीत और मोमिता दोनों कला प्रेमी थे. चालाकियों से उन का वास्ता नहीं था इसलिए भरोसा कर लिया. राजू के तीनों दोस्त भी टैक्सी में सवार हो गए. थोड़ा आगे जाने पर बबलू व अन्य ने राजू से स्थानीय भाषा में मोमिता से छेड़छाड़ करने की बात कही तो उस ने थोड़ा अंधेरा होने का इंतजार करने को कहा.

मोमिता व अभिजीत नहीं जानते थे कि विश्वास कर के वह चंडालों की चौकड़ी में फंस चुके हैं. हलका अंधेरा हुआ तो राजू के साथियों ने मोमिता से छेड़छाड़ शुरू कर दी. उन का यह रवैया दोनों को ही खराब लगा. उन्हें ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी.

अभिजीत ने उन का विरोध किया, ‘‘यह क्या बदतमीजी है.’’

‘‘क्यों, क्या हम कुछ नहीं कर सकते?’’ तीनों ने बेशरमी से हंसते हुए उसे धमकाया, ‘‘चुपचाप बैठा रह, वरना…’’

‘‘…वरना क्या?’’

‘‘उठा कर खाई में फेंक देंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’

उस वक्त सड़क पर सन्नाटा था. बावजूद इस के अभिजीत नहीं डरा. अभिजीत को लगा कि वह ऐसे नहीं मानेंगे तो उस ने उन लोगों से हाथापाई शुरू कर दी. इस से बौखलाए युवकों ने टैक्सी में पड़ी रस्सी निकाल कर अभिजीत का गला दबा दिया. फलस्वरूप उस ने छटपटा कर दम तोड़ दिया.

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मोमिता ने विरोध किया तो उन्होंने उस के साथ भी मारपीट की. वह डर से कांप रही थी. तीनों ने अभिजीत के शव को टैक्सी में पीछे डाल दिया. युवकों के सिर पर हैवानियत सवार थी. चलती टैक्सी में बबलू ने मोमिता के साथ दुराचार किया. बाकी साथियों ने उस की मदद की.

मोमिता चीखी चिल्लाई तो उस के साथ मारपीट की गई. इस के बाद उन्होंने दुपट्टे से गला दबा कर उस की भी हत्या कर दी. मरने से पहले मोमिता बहुत गिड़गिड़ाई, लेकिन किसी को भी उस पर दया नहीं आई. दोनों का सामान लूट कर थोड़ा आगे जा कर राजू ने टैक्सी रोक दी. चारों ने मिल कर लाखामंडल के पास एक पुल से मोमिता के शव को यमुना नदी में फेंक दिया.

ये लोग अभिजीत का शव भी फेंकने वाले थे कि तभी एक गाड़ी आती दिख जाने से रुक गए और वहां से आगे बढ़ गए. आगे जा कर उन्होंने अभिजीत के शव को चकराता के लाखामंडल मार्ग पर क्वांसी के पास नौगांव इलाके में खाई में फेंक दिया.

लूटा गया सामान आपस में बांट कर सभी अपनेअपने घर चले गए. दोनों के मोबाइल उन्होंने स्विच औफ कर के उन के सिम कार्ड निकाल कर फेंक दिए. उधर संपर्क टूटने से मोमिता व अभिजीत के घर वाले परेशान हो गए थे और उन्होंने दोनों की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

लूटे गए मोबाइलों का किसी ने इस्तेमाल नहीं किया. इस बीच कई दिन बीत गए. इसी बीच 30 अक्तूबर को उत्तरकाशी जनपद के पुरोला थाना क्षेत्र की नौगांव पुलिस चौकी क्षेत्र में एक युवक का शव मिला. सूचना पा कर थानाप्रभारी ठाकुर सिंह रावत मौके पर पहुंचे. उन्होंने उत्तरकाशी के एसपी जगतराम जोशी को घटना से अवगत कराया.

मृतक युवक के पास कोई सामान या शिनाख्त के लिए पहचानपत्र नहीं मिला था. पुलिस को यह मामला लूटपाट के लिए की गई हत्या का लगा था. इसलिए अज्ञात हत्यारे के खिलाफ धारा 302 व 201 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. पुलिस ने शव की शिनाख्त का प्रयास किया, लेकिन एक तो शव पुराना था दूसरे उस की शिनाख्त भी नहीं हो पा रही थी. उसे ज्यादा दिन रखना संभव नहीं था इसलिए उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की मौत का कारण गला दबाना पता चला. यह शव अभिजीत का ही था.

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बाद में दिल्ली पुलिस जांचपड़ताल करते हुए राजू तक पहुंची तो उस ने सीधेपन का नाटक करते हुए पुलिस को बहका दिया. पुलिस ने भी उस पर विश्वास कर लिया क्योंकि ऐसा नहीं लग रहा था कि वह इतना भयानक कृत्य कर सकता है.

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इस के बाद चारों दोस्तों ने एक बार फिर जश्न मनाया कि पुलिस को उन पर शक नहीं है और उस ने झूठ बोल कर मामला सुलटा दिया है. राजू व उस के दोस्तों को यह विश्वास हो गया था कि उन का राज अब कभी नहीं खुलेगा और दिल्ली पुलिस इतनी दूर बारबार पूछताछ करने नहीं आएगी.

यही सोच कर राजू ने मोमिता के मोबाइल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था. उस की इस बेवकूफी ने पुलिस की मंजिल को आसान कर दिया और वह दोस्तों के साथ शिकंजे में फंस गया. अभिजीत का मोबाइल आरोपी कुंदन ने अपनी बहन को बतौर गिफ्ट दे दिया था. पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से मोमिता व अभिजीत का मोबाइल, पर्स, शौल व अन्य सामान भी बरामद कर लिया.

फोटो के आधार पर अभिजीत के शव की शिनाख्त हो चुकी थी, लेकिन मोमिता का शव अभी तक नहीं मिला था. अगले दिन पुलिस टीम हत्यारोपियों को ले कर चकराता व उत्तरकाशी पहुंच गई. एसपी जगतराम जोशी व थानाप्रभारी पुरोला ठाकुर सिंह रावत भी आ गए.

आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने गोताखोरों की मदद से नदी के 12 किलोमीटर एरिया में मोमिता के शव की तलाश की लेकिन उस का शव नहीं मिल सका. उस के शव का मिलना भी एक बड़ी चुनौती थी.

अगले दिन पुलिस ने फिर तलाशी अभियान चलाया. इस बीच आरोपियों को पुरोला पुलिस के हवाले कर दिया गया. पुलिस ने अपराध संख्या 50/2014 पर आरोपियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

थानाप्रभारी ठाकुर सिंह रावत ने सुरक्षा के बीच सभी आरोपियों को अदालत में पेश किया जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

13 नवंबर को आखिर पुलिस को मोमिता का शव नदी में मिल गया. पुलिस ने शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम हेतु भेज दिया. मोमिता के परिजन भी आ चुके थे. शव की हालत ऐसी नहीं थी कि उसे वे लोग ले जा सकते. इसलिए उन्होंने पोस्टमार्टम के बाद उस के शव का केदारघाट पर अंतिम संस्कार कर दिया.

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चकराता जैसे शांत इलाके में अपनी तरह की यह पहली घिनौनी घटना थी. इस घटना को ले कर चकराता व आसपास के लोगों में बहुत गुस्सा था. वे हत्यारों को फांसी देने की मांग कर रहे थे. इलाकाई लोगों ने अभिजीत व मोमिता की आत्मा की शांति के लिए कई कैंडल मार्च निकाले और मौनव्रत रखा.

इस घटना को ले कर 16 नवंबर को चकराता में कई गांवों के करीब 300 लोगों की पंचायत हुई. पंचायत में सर्वसम्मति से आरोपियों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया. निर्णय लिया गया कि उन के घर वाले न तो उन से जेल में मिलने जाएंगे और न ही उन की पैरवी करेंगे.

घर वालों ने उन से नाता तोड़ दिया. लोगों को आशंका है कि इलाके की छवि धूमिल होने से पर्यटकों की संख्या पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. आरोपियों के घर वालों की मांग है कि उन के बेटों को फांसी की सजा दी जाए. मोमिता व अभिजीत ने राजू पर विश्वास किया था, लेकिन उस ने उन के विश्वास को बुरी तरह छल कर उन की जिंदगी का चिराग हमेशा के लिए बुझा दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

विश्वास का खून : मोमिता अभिजीत हत्याकांड – भाग 2

पुलिस ने मोमिता अभिजीत के मोबाइल को सर्चिंग में लगा दिया. दरअसल पुलिस को उम्मीद थी कि अगर उन के साथ कुछ गलत हुआ होगा तो हो सकता है कोई अन्य व्यक्ति उन के मोबाइलों का इस्तेमाल कर रहा हो. नवंबर के पहले सप्ताह में मोमिता के मोबाइल का इस्तेमाल किया गया. पुलिस ने उस नंबर की जांच कराई, जो उस के मोबाइल में इस्तेमाल हुआ था. वह नंबर चकराता के टैक्सी चालक राजू का ही निकला. इस से वह शक के दायरे में आ गया.

हालांकि पहली पूछताछ में पुलिस ने राजू के बयानों को सही मान लिया था. लेकिन मोमिता का मोबाइल उस के पास कैसे आया, यह एक बड़ा सवाल था. अब पुलिस को आशंका होने लगी कि मोमिता और अभिजीत के साथ जरूर कोई अनहोनी हुई है.

इस के बाद पुलिस टीम एक बार फिर उत्तराखंड के लिए रवाना हो गई. इस टीम में एसआई दुर्गादास सिंह, हेडकांस्टेबल सुधीर कुमार और गोपाल शामिल थे. डीआईजी संजय गुंज्याल ने दिल्ली पुलिस को पूरे सहयोग का आश्वासन दिया. उन्होंने इस बाबत विकासनगर सीओ एसके सिंह को काररवाई के निर्देश भी दे दिए.

दिल्ली पुलिस की टीम के साथ थानाप्रभारी विकासनगर चंदन सिंह बिष्ट, चकराता थानाप्रभारी मुकेश थलेड़ी, विकासनगर थाने के सबइंसपेक्टर दिनेश ठाकुर, चौकीप्रभारी नरेंद्र, कांस्टेबल अमित भप्त, धर्मेंद्र धामी और सोवन सिंह भी थे. दिल्ली व उत्तराखंड पुलिस की टीम ने 10 नवंबर को टैक्सी चालक राजू को हिरासत में ले लिया.

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विकासनगर के सीओ एसके सिंह ने राजू से पूछताछ की तो उस ने पुलिस को घुमाने का प्रयास किया. लेकिन पुलिस इस बार उस के साथ सख्ती से पेश आई तो उस ने जो राज खोला उसे सुन कर सभी शर्मसार हो गए. राजू ने अपने ही गांव के 3 दोस्तों के साथ मिल कर मोमिता और अभिजीत की हत्या कर दी थी. पुलिस ने उस के दोस्तों बबलू, गुड्डू और कुंदन को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस की विस्तृत पूछताछ में इन लोगों की सारी करतूत सामने आ गई.

राजू का परिवार बेहद साधारण था. उस ने बचपन से ही गरीबी देखी थी, लेकिन युवा होतेहोते उस ने परिवार को गरीबी से निजात दिलाने की ठान ली थी. वह टैक्सी चलाने लगा. उस के टैक्सी रूट में विकासनगर, चकराता और देहरादून शामिल थे. राजू बुरी लतों का शिकार था. इस के लिए वह अकेला नहीं, बल्कि उस की संगत भी जिम्मेदार थी. गांव के ही बबलू, गुड्डू और कुंदन से उस की गहरी दोस्ती थी. वह भी उसी की तरह थे.

वह आए दिन बैठते थे और बड़ीबड़ी बातें करते थे. चारों की सोच एक जैसी थी. वे लोग हमेशा एक ही बात सोचा करते थे कि शार्टकट अपना कर जीवन में कैसे आगे बढ़ा जाए. शराब पीने के बाद उन के सपने और भी जाग जाते थे. राजू जो कमाता था, उस में उस का पूरा नहीं पड़ता था. कोई और होता, तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती. उस की बुरी लतों की वजह से उस की कमाई की आधी रकम पीने पिलाने में उड़ जाती थी.

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उत्तराखंड की आबादी का एक हिस्सा पर्यटन पर निर्भर है. यहां लाखों पर्यटक आते हैं जिन से स्थानीय लोगों की आजीविका चलती है. पुराने विचारों वाले लोग आज भी पर्यटकों को सम्मान की नजर से देखते हैं. वे लोग यह भी जानते हैं कि अगर पर्यटक नहीं आएंगे और वे उन के साथ अपना व्यवहार अच्छा नहीं रखेंगे, तो उन का काम नहीं चलेगा.

लेकिन राजू नई पीढ़ी का युवक था, उसे इन बातों से कोई मतलब नहीं था. वह पर्यटकों से उल्टेसीधे पैसे ऐंठने को अपनी कला समझता था. जो लोग समय हालात के हिसाब से खुद को स्थापित नहीं करते, जिंदगी अकसर उन्हें अपने हिसाब से परेशान करती रहती है. राजू के साथ भी ऐसा ही था, वह आर्थिक तंगियों से जूझता रहता था.

22 अक्तूबर को मोमिता और अभिजीत दोनों ट्रेन से देहरादून पहुंचे थे. उन्होंने रेलवे स्टेशन के नजदीक ही एक होटल में कमरा ले लिया. पहले दिन वह विकासनगर घूमने गए. लौट कर शाम को होटल से नंबर ले कर उन्होंने टैक्सी चालक राजू से बात की और उसे अगले दिन चकराता चलने के लिए बुक कर लिया. चकराता का नाम अभिजीत व मोमिता ने पहले ही सुन रखा था कि वह खूबसूरत जगह है.

समुद्र तल से 6730 फुट की ऊंचाई पर बसा चकराता उत्तराखंड का प्रमुख पर्यटन स्थल है. इस के साथसाथ यहां भारतीय सेना का क्षेत्रीय कार्यालय है. यहां सेना के कमांडोज को प्रशिक्षण दिया जाता है. चकराता में जहां खूबसूरत घने जंगल हैं वहीं टाइगर फाल, यमुना नदी जैसे स्थल पर्यटकों को लुभाते हैं. गर्मियों में पर्यटकों की संख्या यहां और भी ज्यादा बढ़ जाती है.

जैसी कि 22 अक्तूबर की शाम को ही बात हो चुकी थी, अगले दिन यानी 23 अक्तूबर की दोपहर को राजू अभिजीत और मोमिता को अपनी टैक्सी में बैठा कर चकराता ले गया. वहां का प्राकृतिक सौंदर्य देख कर दोनों बहुत खुश हुए. राजू के व्यवहार से भी दोनों खुश थे. राजू पूरे रास्ते उन की बातें सुनता रहा और वहां के बारे में बताता रहा.

बातचीत व पहनावा देख कर राजू को लग गया था कि दोनों ही अच्छे घरों से ताल्लुक रखते हैं. बस यहीं से उस का दिमाग घूम गया और उस ने उन्हें लूटने की ठान ली. अभिजीत व मोमिता चकराता घूमते रहे. इस बीच राजू ने कुछ देर में वापस आने की बात कही और अपने तीनों आवारा दोस्तों से मिला.

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राजू ने उन्हें बताया, ‘‘बाहर की एक पार्टी है. मुझे लगता है उन के पास अच्छा माल है. उन्हें लूटा जाए तो कुछ दिन आराम से बीत जाएंगे.’’

‘‘हम पकड़े भी तो जा सकते हैं?’’

‘‘खाक पकड़े जाएंगे. दोनों बंगाल के रहने वाले हैं, यहीं कहीं ठिकाने लगा देंगे.’’ राजू ने कहा तो चारों ने मिल कर लूटपाट की योजना बना ली. इस के बाद उन्होंने शराब पी. शराब पी कर राजू जाने लगा तो उस ने तीनों दोस्तों से टाइगर फौल के बाहर मिलने को कहा.

इस के बाद राजू अभिजीत व मोमिता के पास गया और उन्हें टाइगर फौल घुमाने ले गया. दोनों को प्राकृतिक नजारों ने बहुत लुभाया. वहां से वापसी के वक्त शाम होनी शुरू हो गई थी. जैसे ही वह सड़क पर आए, तो योजना के अनुसार वहां बबलू, गुड्डू व कुंदन मिल गए. राजू ने उन्हें अपनी टैक्सी में बैठा लिया. यह देख कर मोमिता ने विरोध किया, ‘‘भैया, जब टैक्सी बुक है तो किसी को क्यों बैठा रहे हो?’’

‘‘मेमसाहब, ये मेरे गांव के साथी हैं. इन्हें बस थोड़ा आगे रास्ते में छोड़ना है. आप को कोई परेशानी नहीं होगी. आप आराम से बैठिए.’’ राजू ने समझाया तो मोमिता व अभिजीत ने विश्वास कर लिया.

विश्वास का खून : मोमिता अभिजीत हत्याकांड – भाग 1

पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के रहने वाले मृणाल कृष्णा दास उन खुशहाल लोगों में से थे जो अपने बच्चों को पढ़ालिखा कर किसी काबिल बना देते हैं. वह एक सरकारी बैंक में नौकरी करते थे. कुछ साल पहले मिली सेवानिवृत्ति के बाद उन का अधिकांश समय घर पर ही बीतता था. उन के परिवार में पत्नी काजोल दास के अलावा 2 बच्चे थे, मोमिता दास और बेटा मृगांक दास.

मोमिता को चित्रकारी का शौक था. स्कूलकालेजों में होने वाली आर्ट प्रतियोगिताओं में वह हमेशा अव्वल आती थी. इसी के मद्देनजर उस ने एमए तक की पढ़ाई आर्ट से ही की.

प्राकृतिक फोटोग्राफी भी उस के शौक में शामिल थी. मोमिता की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. इसलिए 2 साल पहले घर वालों की सलाह पर वह कैरियर बनाने के लिए नदिया से दिल्ली आ गई. वह चूंकि समझदार थी इसलिए उस के अकेले दिल्ली आने पर मातापिता को ज्यादा चिंता नहीं थी. मोमिता का छोटा भाई मृगांक भी पढ़ाई के लिए बेंगलुरु चला गया.

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दिल्ली आ कर मोमिता ने अपने एक परिचित के माध्यम से दक्षिणी दिल्ली के लाडोसराय इलाके में किराए पर एक कमरा ले लिया और अपने लिए नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी. थोड़ी कोशिश के बाद उसे गुडगांव, हरियाणा के एक निजी स्कूल में आर्ट टीचर की नौकरी मिल गई. 28 वर्षीय मोमिता स्वभाव से मिलनसार व खुशमिजाज थी.

कुछ दिनों बाद मोमिता की दोस्ती ग्राफिक डिजाइनर अभिजीत पौल से हो गई. अभिजीत भी पश्चिमी बंगाल के कोलकाता शहर का रहने वाला था और दिल्ली में रह कर अपना कैरियर बनाने की कोशिश कर रहा था. दोनों की आदतें, विचार और शौक एक जैसे थे. लिहाजा उन की दोस्ती बदलते वक्त के साथ प्यार में बदल गई थी.

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उन की इस दोस्ती की खबर उन के परिजनों तक भी पहुंच गई थी. मोमिता के मातापिता ने इस बात पर कोई ऐतराज नहीं किया. वे जानते थे कि बेटी ने जो कदम उठाया है वह कुछ सोच कर ही उठाया होगा.

मोमिता को प्राकृतिक सौंदर्य से बहुत प्यार था. वह जब भी कहीं घूमने के लिए जाती थी, तो अकसर वहां की फोटोग्राफी किया करती थी. कुछ पत्र पत्रिकाओं में उस के द्वारा खींचे गए फोटो छपने भी लगे थे. बेटी की उपलब्धियों से मृणाल बहुत खुश थे. वह लगातार उस के संपर्क में रहते थे.

22 अक्तूबर, 2004 की सुबह का वक्त था. मृणाल कृष्णदास के पास मोमिता का फोन आया. उस ने बताया, ‘‘पापा, मैं आज उत्तराखंड जा रही हूं.’’

‘‘क्यों?’’ मृणाल ने पूछा.

‘‘बस घूमने और अच्छे फोटोग्राफ के लिए.’’

‘‘अकेली जाओगी?’’

‘‘नहीं पापा मेरे साथ अभिजीत है. हम दोनों जा रहे हैं.’’ बेटियां भले ही कितनी भी समझदार क्यों न हो जाएं, मातापिता को हमेशा उन की फिक्र लगी ही रहती है. मृणाल को भी उस की फिक्र रहती थी. इसलिए उन्होंने उसे सफर की सावधानियों के बारे में समझा दिया.

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मृणाल ने शाम को मोमिता को फोन किया तो उस ने बताया कि वे लोग देहरादून पहुंच गए हैं और कल से घूमने का प्रोग्राम बनाएंगे. अगले दिन उन की बात हुई, तो मोमिता ने बताया, ‘‘पापा, आज हम लोग चकराता जाएंगे. यहां की बहुत खूबसूरत जगह है.’’ मोमिता की बातों से ही झलक रहा था कि उत्तराखंड पहुंच कर वह बहुत खुश थी.

24 अक्तूबर को मृणाल बहुत परेशान थे. उन की परेशानी की वजह मोमिता थी. 23 अक्तूबर की शाम से उन का मोमिता से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था. बारबार मिलाने पर भी मोबाइल स्विच औफ आ रहा था. कृष्णा समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर मोमिता का मोबाइल अचानक क्यों बंद हो गया. वह सैकड़ों मील दूर थे. उन की परेशानी पत्नी काजोल से भी नहीं छिपी रह सकी.

‘‘क्यों परेशान हैं आप?’’ काजोल ने पूछा.

‘‘मोमिता का नंबर नहीं लग रहा है.’’ मृणाल ने कहा.

‘‘नेटवर्क में नहीं होगी या मोबाइल की बैटरी वीक हो गई होगी.’’

‘‘वह तो मैं भी समझता हूं. लेकिन बहुत वक्त हो गया.’’ इस बात से वह भी परेशान हो गईं. इस के बाद इंतजार का सिलसिला शुरू हो गया. लेकिन न तो मोमिता का नंबर मिला और न उस का फोन आया. इस से पतिपत्नी को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. देखतेदेखते 4 दिन बीत गए. अगर मोमिता का मोबाइल खो गया था तो भी उसे संपर्क करना चाहिए था. ऐसा कभी नहीं होता था कि वह उन लोगों से बात न करें. नाते रिश्तेदारों की सलाह पर मृणाल कृष्णा दिल्ली आ गए.

अपने बेटे को भी उन्होंने बेंगलुरु से बुलवा लिया. मृणाल कृष्णा ने दिल्ली के थाना साकेत जा कर पुलिस को बेटी से संबंधित अपनी चिंता बताई. चिंता की बात यह थी कि मोमिता का अपने घर वालों से सपंर्क नहीं हो पा रहा था. पुलिस ने गुमशुदगी संख्या 33 ए पर मोमिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. दूसरी तरफ कोलकाता में अभिजीत के घर वाले भी परेशान थे, उस का भी कुछ पता नहीं चल रहा था. उस के घर वालों ने कोलकाता में ही उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

गुमशुदगी दर्ज कर के मोमिता के मामले की जांच सबइंसपेक्टर दुर्गादास सिंह के हवाले कर दी गई. मामला एक युवक युवती के लापता होने का था. इस मामले में अपनी मरजी से गायब हो जाने की आशंकाएं भी नहीं थीं क्योंकि मोमिता व अभिजीत के रिश्ते उन के परिजनों से छिपे नहीं थे.

पुलिस ने कुछ दिन इंतजार किया. जब कोई पता नहीं चला तो दिल्ली पुलिस की एक टीम उत्तराखंड के लिए रवाना हो गई. इस बीच पुलिस ने मोमिता के मोबाइल की काल डिटेल्स हासिल कर ली थी. उस के मोबाइल की अंतिम लोकेशन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 98 किलोमीटर दूर पर्यटनस्थल चकराता में पाई गई थी. इस से पहले उस के मोबाइल की लोकेशन देहरादून और विकासनगर में थी. यह भी पता चला कि मोमिता ने 23 अक्तूबर को अंतिम बार एक स्थानीय नंबर पर बात की थी.

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दिल्ली पुलिस ने देहरादून के डीआईजी संजय गुंज्याल और एसएसपी अजय रौतेला से संपर्क किया. पुलिस ने उस नंबर की जांचपड़ताल कराई जिस पर मोमिता की बात हुई थी. वह नंबर एक टैक्सी चालक राजू दास पुत्र मोहन दास का निकला. राजू चकराता के गांव टुंगरौली का रहने वाला था. वह विकासनगर और चकराता के बीच टैक्सी चलाता था. दिल्ली पुलिस राजू तक पहुंच गई.

पुलिस ने मोमिता का फोटो दिखा कर उस से पूछताछ की, तो उस ने बताया, ‘‘हां सर, यह लड़की एक लड़के के साथ विकासनगर से मेरी टैक्सी में चकराता तक गई थी.’’

‘‘उस के बाद?’’

‘‘उस के बाद मुझे नहीं पता सर. मुझे लड़की ने फोन कर के बुलाया था कि उन्हें चकराता जाना है. उस दिन हम लोग दोपहर में विकासनगर से चले थे. चकराता पहुंच कर उन्होंने मुझे मेरा भाड़ा दे दिया और मैं वापस आ गया.’’

‘‘तुम्हें उन्होंने कुछ बताया. मतलब आगे का कोई प्रोग्राम?’’

‘‘नहीं सर, लेकिन हां दोनों काफी खुश थे और पूरा उत्तराखंड घूमने की बात कर रहे थे.’’ टैक्सी चालक राजू देखने में सीधासादा युवक लगता था. उस की बातों में सच्चाई झलक रही थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे छोड़ दिया. उस से पूछताछ के बाद दिल्ली पुलिस वापस आ गई. मोमिता व अभिजीत के इस तरह गायब होने की वजह पुलिस भी नहीं समझ पा रही थी. पुलिस को जांच के लिए कोई ऐसा सिरा नहीं मिल पा रहा था जिस से दोनों के लापता होने का राज खुल सके.

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