घर वालों को रास न आया बेटी का प्यार – भाग 1

उस रात सभी लोग खाना खाने के बाद सोने चले गए. आधी रात को राघव को कुछ उलझन महसूस हुई  तो वह बाहर आ गया. बाहर टहलने के बाद राघव आरती के कमरे की ओर गया तो वह वहां नहीं थी. तब राघव मम्मी के पास गया, आरती वहां भी नहीं थी. इस के बाद राघव ने घर में सभी को उठा दिया. लेकिन बदनामी के डर से घर वालों ने शोर नहीं मचाया.

पहले तो आरती की घर में ही तलाश की फिर बाहर गांव में निकल गए, लेकिन  आरती कहीं नहीं मिल रही थी. घर वाले समझ गए कि वह सतीश चौरसिया के साथ ही होगी. उसे तलाशता हुआ राघव जब अपने घर के पीछे पहुंचा तो वहां का दृश्य देख कर उस का खून खौल उठा. आरती और सतीश आपत्तिजनक स्थिति में थे. राघव इसे बरदाश्त नहीं कर पाया. उस ने अपने पापा मम्मी को मौके पर बुला लिया.

उत्तर प्रदेश के जनपद गोंडा का एक थाना है धानेपुर. इस थाना क्षेत्र के अंतर्गत गांव मेहनौन आता है. इसी गांव के रहने वाले हैं बिंदेश्वरी चौरसिया. उन के 5 बेटे व एक बेटी थी. अपने 3 बेटों लवकुश, संजय और हरिश्चंद्र के साथ बिंदेश्वरी मुुंबई में रहते थे.

संजय व हरिश्चंद्र अपने पिता के साथ वहां पावरलूम में काम करते थे, जबकि लवकुश चाय की दुकान चलाता था. बिंदेश्वरी के 2 बेटे सतीश व विशाल गांव में ही अपनी मां के साथ रह रहे थे. जबकि बेटी की वह शादी कर चुके थे.

गांव में सब कुछ ठीक चल रहा था. अचानक बिंदेेश्वरी  का 19 वर्षीय बेटा सतीश चौरसिया 20-21 अगस्त, 2023 की रात घर से अचानक लापता हो गया. घर वाले सारी रात उस का इंतजार करतेे रहे. सुबह होने पर उन्होंने अपने तरीके से खोजबीन की, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. इस पर सतीश की मां प्रभावती ने थाना धानेपुर में 21 अगस्त की सुबह सतीश की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

गुमशुदगी दर्ज हो जाने के बाद 22 अगस्त, 2023 को थाना धानेपुर के एसएचओ सत्येंद्र वर्मा जांच के लिए  पुलिस टीम के साथ गांव मेहनौन पहुंचे. सतीश के घर वालों से उन्होंने पूछताछ की.

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एसएचओ सत्येंद्र वर्मा

सतीश की मां प्रभावती ने उन्हें बताया कि 20-21 अगस्त की देर रात खाना खा कर सतीश घर के बाहरी हिस्से में बनी बैठक (कमरे) में सोने चला गया था. आधी रात को जब उस की आंखें खुलीं तो सतीश बैठक में नहीं दिखाई दिया.

उस ने सोचा कि शायद वह टायलेट के लिए खेत में गया होगा. लेकिन काफी देर बाद भी वह नहीं लौटा. सुबह होते ही सतीश को सभी ने गांव में तलाशना शुरू किया, लेकिन वह कहीं नहीं मिला.

पुलिस ने गांव में अपने स्तर से जांचपड़ताल करने के साथ ही सतीश के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि रात को सतीश की गांव की रहने वाली एक युवती से फोन पर बात हुुई थी. वह रात को उस से मिलने गया था. इस के बाद से ही वह लापता हो गया था.  सतीश की मां ने बताया कि उसे पता चला है कि गांव की आरती भी अपने घर पर नहीं है.

सतीश और आरती अपने घरों में नहीं थे. दोनों के इस तरह गायब हो जाने पर गांव में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया. सभी दबी जुबान से कह रहे थे कि दोनों गांव से भाग गए हैं. अब कहीं जा कर शादी कर लेंगे. कोई कह रहा था कि आरती सतीश पर जान छिड़कती थी. 2 साल से चल रहे उन के प्रेम प्रसंग के बारे में कौन नहीं जानता. जितने मुंह उतनी बातें.

घर वालों ने पुलिस को क्यों उलझाया

इस जानकारी के बाद पुलिस आरती के घर पहुंची. घर पर आरती के पिता कृपाराम चौरसिया और भाई राघवराम चौरसिया मिले. आरती के घर वाले शांति से अपने घर पर बैठे थे. आरती के पिता कृपाराम से एसएचओ ने आरती के बारे में पूछताछ की.

पहले तो उन लोगों ने पुलिस को अपनी बातों में उलझाया. कई तरह की बातें बनाईं. कृपाराम चौरसिया ने बताया कि गांव का सतीश चौरसिया उन की बेटी आरती को बहलाफुसला कर रात को अपने साथ भगा ले गया है. जिस से गांव में उन की बहुत बदनामी हो रही है.

तब एसएचओ सत्येंद्र वर्मा ने कहा कि आप लोग दोनों की तलाश क्यों नहीं कर रहे? अब तक थाने में रिपोर्ट दर्ज क्यों नहीं कराई?

बापबेटे इस बात पर बगलें झांकने लगे. अपनी बातों से पुलिस को उन्होंने हरसंभव उलझाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस के तर्कों के आगे उन की एक नहीं चली.

पुलिस को पहले ही इस मामले में मुखबिर से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल गई थी. सतीश के मोबाइल की काल डिटेल्स से यह पता चल गया था कि रात को सतीश आरती के घर गया था.

पुलिस ने अनहोनी का शक होने पर कृपाराम व उस के बेटे राघवराम को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने दोनों से कहा, ”सीधेसीधे सच बता दो, नहीं तो पुलिस फिर अपने तरीके से पूछेगी.’’

तब दोनों कहने लगे कि आरती की कई दिनों से तबियत खराब चल रही थी. हम लोग इलाज के लिए उसे अयोध्या ले जा रहे थे. रास्ते में उस की मौत हो गई. तब हम ने अयोध्या में ही उस का अंतिम संस्कार कर दिया. सतीश के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है.

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एसपी अंकित मित्तल

बापबेटे पलपल में बयान बदल रहे थे. तब पुलिस ने दोनों से सख्ती की इस पर वे टूट गए और सतीश और आरती की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.  इस के बाद एसएचओ एएसपी शिवराज व सीओ शिल्पा वर्मा को घटना से अवगत करा दिया. दोनों पुलिस अधिकारी गांव पहुंच गए. दोनों ने पूछताछ कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी एसपी अंकित मित्तल को दी.

कानपुर में टप्पेबाज गिरोह – भाग 1

पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल जब कानपुर के थाना किदवईनगर पहुंचे, तब दोपहर के 12 बज रहे थे. थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा थाने में मौजूद थे और क्षेत्र में बढ़ रही आपराधिक घटनाओं को रोकने के लिए अपने अधीनस्थ अफसरों से विचारविमर्श कर रहे थे.

संजय पाल ने उठतीगिरती सांसों के बीच उन्हें बताया, ‘‘सर, मेरे साथ टप्पेबाजी हो गई. 2 टप्पेबाज युवकों ने मेरी कार से नोटों से भरा बैग पार कर दिया. बैग में 10 लाख 69 हजार रुपए थे, जिसे मैं अपने ड्राइवर अरुण पाल के साथ भारतीय स्टेट बैंक की गौशाला शाखा में जमा करने जा रहा था.’’

संजय पाल की बात सुन कर थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा चौंके. उन्होंने तत्काल पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. जब यह सूचना पुलिस कंट्रोल रूम से प्रसारित हुई तो पूरा पुलिस महकमा अलर्ट हो गया.

पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर जाने के लिए रवाना हो गए. टप्पेबाजी की यह बड़ी वारदात संजय वन वाली मेनरोड पर हुई थी. कुछ ही देर में किदवईनगर थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा, नौबस्ता थानाप्रभारी संतोष कुमार, अनवर गंज थानाप्रभारी मंसूर अहमद, चकेरी थानाप्रभारी अजय सेठ, सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी, सीओ (नजीराबाद) अजीत कुमार सिंह, सीओ (बाबूपुरवा) अजीत कुमार रजक, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन, एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी तथा एसएसपी अनंत देव तिवारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और पूरे कानपुर शहर में वाहन चैकिंग शुरू करा दी. टूव्हीलरों और फोर व्हीलरों की सघन तलाशी होने लगी. यह बात 19 दिसंबर, 2018 की है.

टप्पेबाजी का शिकार हुए संजय पाल घटनास्थल पर मौजूद थे. एसएसपी अनंत देव ने उन से घटना के संबंध में पूछताछ की. संजय पाल ने बताया कि वह चकेरी थाने के श्याम नगर मोहल्ले में रहते हैं. नौबस्ता के कोयला नगर, मंगला विहार में उन का श्री बालाजी फिलिंग स्टेशन नाम से पैट्रोल पंप है. पैट्रोल बिक्री की रकम वह गौशाला स्थित भारतीय स्टेट बैंक की शाखा में जमा करते हैं.

हर रोज की तरह वह उस दिन भी पैट्रोल बिक्री का 10.69 लाख रुपए अपनी निजी कार से जमा करने जा रहे थे. कार को उन का ड्राइवर अरुण पाल चला रहा था.

संजय पाल ने बताया कि करीब साढ़े 11 बजे जब वह संजय वन चौकी से 80 मीटर पहले एक निर्माणाधीन बिल्डिंग के सामने पहुंचे ही थे कि पीछे से बाइक पर सवार 2 युवकों ने कार के आगे की ओर इशारा किया. ड्राइवर अरुण ने कार रोक कर देखा तो बोनट के पास मोबिल औयल गिरता नजर आया.

अरुण ने बोनट खोल कर चैक किया और कार मिस्त्री को फोन कर के जानकारी दी. मिस्त्री ने कहा कि कोई खास दिक्कत नहीं है. इस पर वे दोनों कार में बैठ गए. संजय ने बताया कि कार में बैठते ही आंखों में तेज जलन हुई. वह आंखें मलते हुए ड्राइवर के साथ बाहर निकले. इसी बीच बाइक सवार युवकों ने कार की पीछे वाली सीट पर रखा रुपयों से भरा बैग उड़ा दिया.

जब उन्हें इस बात की जानकारी हुई तो वे तत्काल संजय वन चौकी गए. लेकिन चौकी पर ताला लटक रहा था. उस के बाद वह थाना किदवईनगर गए और पुलिस को सूचना दी.

संजय पाल की बातों से स्पष्ट था कि किसी बड़े टप्पेबाज गिरोह ने टप्पेबाजी की है. गैंग के अन्य सदस्य भी रहे होंगे जो वारदात के समय आसपास ही होंगे. एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी को शक हुआ कि इस वारदात में कहीं ड्राइवर तो शामिल नहीं.

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उन्होंने कार ड्राइवर अरुण पाल को बातों में उलझा कर पूछताछ की लेकिन उस ने वही सब बताया जो संजय पाल ने बताया था. संजय पाल ने भी अरुण पाल को क्लीनचिट दे दी. उन्होंने कहा कि वह उन का विश्वासपात्र ड्राइवर है. घटनास्थल पर एक नाबालिग चश्मदीद था, जो पोस्टर बैनर बना रहा था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की, लेकिन कुछ हासिल नहीं हो सका.

जिस जगह सड़क पर टप्पेबाजी हुई थी, उस के दूसरी ओर एक मकान के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. एसएसपी अनंत देव तिवारी तथा एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी ने इस सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो उस में पूरी वारदात कैद थी. सीसीटीवी में साफ दिख रहा था कि जब पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल और उन का ड्राइवर अरुण पाल कार का बोनट खोल कर जांच करने लगी, तभी बाइकर्स आगे जा कर डिवाइडर कट से मुड़े.

पीछे बैठा युवक बाइक से नीचे उतरा. वह काली शर्ट व नीली जींस पहने था. डिवाइडर फांद कर उस ने कार की पीछे वाली सीट से रुपयों से भरा बैग उठाया और फिर वापस साथी के पास आया. बाइक चलाने वाला युवक नीली शर्ट, जींस, लाल जूते पहने था और हेलमेट लगाए था. इस के बाद बाइकर्स यशोदा नगर की ओर भागते दिखे.

इधर देर रात तक पुलिस शहर भर में वाहन चैकिंग करती रही लेकिन वारदात को अंजाम देने वालों का पता नहीं चल सका. उधर दूसरे दिन पैट्रोल और एचएसडी डीलर्स एसोसिएशन ने आपात बैठक बुलाई और पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल से 10.69 लाख की टप्पेबाजी की घटना को ले कर रोष व्यक्त किया.

बैठक के बाद अध्यक्ष ओमशंकर मिश्रा, महासचिव सुनील शरन गर्ग, कोषाध्यक्ष संजय गुप्ता, सुखदेव पाल, बसंत माहेश्वरी तथा पवन गर्ग ने पुलिस के आला अधिकारियों एडीजी अविनाश चंद्र तथा आईजी आलोक सिंह से मुलाकात की. उन्होंने पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल से टप्पेबाजी की घटना का जल्दी खुलासा करने का अनुरोध किया.

पैट्रोल और एचएसडी डीलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने कहा कि पुलिस प्रशासन को पैट्रोल मालिकों को समुचित सुरक्षा देनी चाहिए. असलहों के लाइसैंस शीघ्र निर्गत किए जाएं. अगर ऐसा नहीं होता है तो पैट्रोल पंप मालिक हड़ताल पर चले जाएंगे.

एडीजी अविनाश चंद्र तथा आईजी आलोक सिंह ने पैट्रोल पंप एसोसिएशन के पदाधिकारियों की बात गौर से सुनी और उन्हें आश्वासन दिया कि संजय पाल के साथ हुई टप्पेबाजी की घटना का जल्दी ही खुलासा हो जाएगा. उन की मांगों का भी निस्तारण होगा.

पदाधिकारियों को आश्वासन देने के बाद एडीजी अविनाश चंद्र ने पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुलाई. इस में एसपी, सीओ, इंसपेक्टर तथा तेजतर्रार दरोगाओं ने भाग लिया. मीटिंग में शहर में आए दिन हो रही टप्पेबाजी की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की गई.

मीटिंग के बाद एडीजी अविनाश चंद्र व आईजी आलोक सिंह ने टप्पेबाजी गैंग को पकड़ने के लिए 4 टीमें बनाईं. इन टीमों की कमान एसएसपी अनंत देव तिवारी, एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल को सौंपी गई.

टीम में सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी, सीओ (नजीराबाद) अजीत कुमार सिंह, सीओ (बाबूपुरवा) अजीत कुमार रजक, इंसपेक्टर अनुराग मिश्रा, संतोष कुमार, मंसूर अहमद, अजय सेठ, राजीव सिंह, एडीजीजी की क्राइम ब्रांच से अजय अवस्थी, कुलभूषण सिंह, वंश बहादुर, सीमांत और अखिलेश व एक दरजन तेजतर्रार तथा सुरागसी में दक्ष दरोगा वगैरह के साथसाथ सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

इन टीमों ने टप्पेबाजों की तलाश शुरू की और एक दरजन से अधिक लोगों को उठा कर उन से कड़ाई से पूछताछ की. लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. टीमों ने पैट्रोल पंप पर काम करने वाले कर्मचारियों तथा घटना के चश्मदीद नाबालिग किशोर से भी पूछताछ की, लेकिन कोई क्लू नहीं मिला.

ब्लैकमेलिंग का अग्निकुंड : स्वाहा हुआ परिवार

कपूरथला (Kapurthala) के थाना सदर क्षेत्र में एक कस्बा है आलमगीर काला संघिया (Alamgir Kala Sanghia). कुलविंदर सिंह बुग्गा का परिवार इसी कस्बे में रहता था. करीब 9 साल पहले कुलविंदर की शादी मनदीप कौर के साथ हुई थी. वह अपनी पत्नी से खुश भी था और संतुष्ट भी. मनदीप कौर भी कुलविंदर जैसे मेहनती और शरीफ पति से खूब खुश थी.

कुलविंदर में सब से बड़ी खासियत यह थी कि वह पंजाब के आम युवकों की तरह कोई नशा वगैरह नहीं करता था. वह दिनरात अपने परिवार की खुशी और कामयाबी के बारे में ही सोचा करता था. वह सोचता था कि इतनी मेहनत करे कि उस के बच्चे शिक्षित हों और सुखी रह सकें.

उस के ऐसा सोचने की वजह यह थी कि कुलविंदर खुद एक दलित परिवार का अशिक्षित नौजवान था. वह अशिक्षित होने का दर्द अच्छी तरह से समझता था. उस की कोशिश थी कि जो दर्द और तकलीफ उस ने झेली थी, वह उस के बच्चों को न झेलनी पड़े, इसीलिए वह खूब मेहनत करता था.

कुलविंदर के परिवार में 30 वर्षीय पत्नी मनदीप कौर के अलावा 8 वर्षीय बेटी सोनल और 5 वर्षीय बेटा अभि था. पिता की मृत्यु होने के बाद कुलविंदर का परिवार अपनी मां महिंदर कौर के साथ रहता था. वैसे उस की बड़ी बहन जसविंदर कौर और जीजा सरबजीत सिंह भी वहीं पास में रहते थे.

वैसे तो पूरे पंजाब से अधिकांश कामगार लोग विदेशों में पैसा कमाने चले जाते हैं, पर विदेश जाने वालों में कपूरथला, नवां शहर, बंगा, जालंधर आदि शहरों के लोगों की तादाद दूसरे शहरों से ज्यादा है. कुलविंदर भी अपने परिवार का भविष्य बनाने और पैसा कमाने के लिए विदेश जाने का प्रयास कर रहा था.

काफी हाथपांव मारने के बाद उसे जौर्डन की एक कंपनी में नौकरी मिल गई. यह 2016 की बात है. नौकरी मिल जाने के बाद वह अपनी पत्नी और दोनों बच्चों को बड़ी बहन जसविंदर कौर और मां महिंदर कौर के भरोसे छोड़ कर जौर्डन चला गया. कुलविंदर के जौर्डन चले जाने के बाद उस के परिवार के दिन फिरने लगे. कुलविंदर जौर्डन से हर महीने एक मोटी रकम अपने घर भेजने लगा.

सब कुछ ठीक चल रहा था. कुलविंदर के दोनों बच्चे भी अच्छे स्कूलों में पढ़ने लगे थे. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. अगस्त 2018 में कुलविंदर को जौर्डन गए डेढ़ साल हो चुका था, लेकिन 2 अगस्त, 2018 को कुलविंदर सिंह किसी को बिना सूचना दिए रात 12 बजे अपने घर आलमगीर काला संघिया आ पहुंचा.

इस तरह एकाएक उस का गांव आना सब को अजीब लगा. उसे देख उस के परिवार के सदस्यों में जहां खुशी की लहर दौड़ गई, वहीं सब इस बात से भी परेशान थे कि कुलविंदर अचानक बिना किसी को बताए जौर्डन से गांव क्यों लौट आया.

कुलविंदर की मां का तो किसी अनहोनी की सोच कर दिल कांपने लगा था. कुलविंदर किसी से बात किए बिना सीधा अपने कमरे में चला गया और उस ने अंदर से दरवाजे की कुंडी बंद कर दी. उस की पत्नी और बच्चे अंदर ही थे.

कमरे में जाने के बाद वह बेचैनी के आलम में काफी देर तक अंदर चहलकदमी करता रहा. इस बीच उस ने किसी से कोई बात नहीं की थी और न ही पत्नी और अपने बच्चों से मिला था. फिर अचानक वह रुका और अपनी पत्नी मनदीप कौर के पास बैड पर बैठ कर उसे बड़ी बेबसी से देखने लगा.

सो रहे दोनों बच्चों की ओर भी उस ने बड़ी बेबसी से देखा. उस ने कुछ देर पत्नी से बातें कीं. इस के बाद उस ने अपने मोबाइल फोन से मंजीत कौर की कुछ कहते हुए वीडियो बनाई और उस वीडियो में खुद भी एक संदेश छोड़ा.

यह सब करने के बाद कुलविंदर ने घर में रखा इंजन चलाने वाला डीजल से भरा केन उठाया और पूरे घर में छिड़काव कर दिया था.

पास वाले कमरे में उस की मां और बहन जसविंदर कौर को इस बात का तनिक भी आभास नहीं था कि साथ वाले कमरे में क्या अनर्थ होने जा रहा है. उन्हें तब पता चला जब कुलविंदर का कमरा धूधू कर के जलने लगा और कमरे के अंदर से दिल दहला देने वाली चीखों की आवाजें आईं.

पलक झपकते ही वहां कोहराम मच गया. महिंदर कौर और जसविंदर कौर उन्हें बचाने में जुट गई थीं. पासपड़ोस के लोग भी आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे, पर कुलविंदर, उस की पत्नी और बच्चों को बचाना संभव नहीं था, क्योंकि कमरे का दरवाजा भीतर से बंद था. फिर भी जिस से जो बन पड़ा, उस ने किया.

काफी मशक्कत के बाद कमरे का दरवाजा तोड़ कर सब को बाहर तो निकाल लिया गया पर तब तक वे आग में काफी हद तक जल चुके थे. सभी की हालत नाजुक थी. इस आग को बुझाते हुए जसविंदर कौर भी बुरी तरह से झुलस गई थी. सभी को तुरंत जालंधर के अस्पताल ले जाया गया.

कुलविंदर सिंह और उस के बेटे अभि की तो अस्पताल पहुंचते ही मौत हो गई, जबकि मनदीप कौर और उस की बेटी 90 प्रतिशत तक जली हुई थी और उन की हालत गंभीर थी. दोपहर तक उन की बेटी सोनम ने भी दम तोड़ दिया.

इस घटना ने पूरे क्षेत्र में दहशत का माहौल बना दिया था. वहीं इस पूरे घटनाक्रम ने सन 2015 में काला संघिया में ही एक व्यक्ति द्वारा अपने 2 बच्चों तथा पत्नी को जहर दे कर मारने के बाद खुद आत्महत्या कर लेने की यादें ताजा कर दी थीं.

घटना की सूचना मिलते ही जिला पुलिस प्रमुख सतिंदर सिंह, एसपी इनवैस्टीगेशन जगजीत सिंह सरोहा, डीएसपी सबडिवीजन कपूरथला सरबजीत सिंह, थाना सदर कपूरथला प्रभारी इंसपेक्टर सरवन सिंह बल, पुलिस चौकी इंचार्ज काला संघिया सबइंसपेक्टर परमिंदर सिंह सहित कई आला अधिकारी मौकाएवारदात पर और अस्पताल पहुंच गए.

मनदीप कौर की हालत अब तक बेहद नाजुक बनी हुई थी. किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था. एक साथ एक ही जगह 4 लोगों द्वारा आत्महत्या करने की बात भी किसी के गले नहीं उतर रही थी.

पुलिस मनदीप कौर के होश में आने और उस के बयान लेने का इंतजार कर रही थी, ताकि आगे की काररवाई की जा सके. पुलिस ने घटनास्थल को पहले ही सील कर दिया था ताकि कोई सबूत से छेड़छाड़ न कर सके.

दिल दहला देने वाला यह मामला महज एक आत्महत्या का केस नहीं था, बल्कि इस के पीछे बड़ी भयानक सच्चाई छिपी हुई थी, जो जल्द ही पुलिस और बाकी लोगों के सामने आने वाली थी. आखिर मनदीप कौर को होश आ गया और इस अग्निकांड का उस ने जो खुलासा किया, उसे सुन कर सब के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

आत्महत्या की वजह गांव के दबंग लोगों द्वारा दलितों पर किए जाने वाले शोषण और उन्हें प्रताडि़त करने से संबंधित थी. मनदीप कौर के बयान पुलिस प्रशासन, सिविल सर्जन डा. दीपक सिक्का और (जेएमआईसी) ड्यूटी जुडीशियल मजिस्ट्रैट राहुल कुमार की उपस्थिति में दर्ज किए गए.

दम तोड़ने से पहले मनदीप कौर ने पुलिस को दिए बयान में बताया कि गांव के 4 लोग बलकार सिंह, तीर्थ सिंह, गुरप्रीत सिंह उर्फ सन्नी और उस की मां सत्या देवी उन्हें परेशान कर रहे थे. इन लोगों ने उस की अश्लील वीडियो बना ली थी, उसे दिखा कर वे उसे ब्लैकमेल कर रहे थे.

यह सिलसिला काफी समय से चल रहा था. यहां तक कि इन की बात न मानने पर ये लोग उसे, उस के बच्चों और सास को बुरी तरीके से मारतेपीटते थे. एक तरह से इन लोगों ने उसे व उस के परिवार पर अधिकार जमा कर उन्हें गुलाम बना रखा था.

घटना वाली रात का जिक्र करते हुए मनदीप कौर ने बताया कि इन चारों लोगों के उक्त वीडियो उस के पति को भी भेज दिया था. दरअसल घटना से कुछ दिन पहले कुलविंदर को किसी ने एक अश्लील वीडियो भेजा था, जिस में उस की पत्नी मनदीप कौर गांव के एक युवक गुरप्रीत सिंह उर्फ सन्नी के साथ सैक्स करती दिखाई दी थी.

\पत्नी का उक्त वीडियो देखने के बाद सच्चाई जानने कुलविंदर अपने घर आया और मनदीप से जब इस वीडियो के बारे में पूछा तो उस ने रोरो कर अपने ऊपर हुए अत्याचारों की कहानी सुना दी थी. उस ने बताया था कि उन चारों ने मिल कर कैसे उस की अश्लील वीडियो बनाई और वीडियो के बल पर उसे ब्लैकमेल किया जाता रहा.

मनदीप कौर ने अपने पति कुलविंदर को यह भी बताया था कि हिम्मत जुटा कर उस ने एक बार पुलिस में भी शिकायत की थी, पर कुछ नहीं हुआ था. मनदीप की बातें सुन कर कुलविंदर बहुत ज्यादा नर्वस होने के साथसाथ डर भी गया था. एक तो उस की बहुत बदनामी हुई थी, उस की पत्नी ने जो झेला वह अलग था.

उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह उन दबंगों से टक्कर ले पाता. पुलिस प्रशासन पर उसे तनिक भी भरोसा नहीं था. उसे इस बदनामी से और उन चारों ब्लैकमेलरों से बचने का एक ही उपाय नजर आया था.

मनदीप के बयानों के आधार पर पुलिस ने आत्महत्या के लिए विवश करने के अपराध में धारा 306, 34 पर बलकार सिंह मंत्री, नंबरदार तीर्थ सिंह, गुरप्रीत सिंह उर्फ सन्नी और उस की मां सत्या देवी के खिलाफ 2 अगस्त, 2018 को मुकदमा दर्ज कर उसी दिन गुरप्रीत सिंह सन्नी तथा बलकार सिंह मंत्री को गिरफ्तार कर लिया.

उसी दिन 3 अगस्त को एक ही परिवार के 4 सदस्यों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने के आरोप में गुरप्रीत सिंह सन्नी तथा बलकार सिंह मंत्री को एसएचओ सदर इंसपेक्टर सरवन सिंह बल के नेतृत्व में पुलिस टीम ने गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया.

पुलिस ने अदालत में तर्क दिया कि दोनों आरोपियों ने मृतक महिला मनदीप कौर की अश्लील फोटो तथा वीडियो बनाई हैं, जिन्हें आरोपियों की निशानदेही पर बरामद करना है, इसलिए दोनों का 3 दिन का पुलिस रिमांड जरूरी है. जिस पर अदालत ने सन्नी तथा बलकार सिंह को 2 दिन के पुलिस रिमांड पर भेज दिया.

वहीं 2 अन्य फरार आरोपियों तीर्थ सिंह नंबरदार तथा सत्या देवी की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी गई थी. अभियुक्तों की गिरफ्तारी की खबर सुनते ही वे फरार हो गए थे.

पुलिस रिमांड पर पुलिस ने कुलविंदर सिंह के जले हुए घर से उस का वह फोन भी बरामद कर लिया था, जिस में जौर्डन से लौटने के बाद उस ने वीडियो बना कर यह आरोप लगाया था कि कैसे कैसे ये चारों लोग उस की पत्नी का यौनशोषण और ब्लैकमेल कर रहे थे.

पुलिस उस फोन को इसलिए भी अहम मान कर चल रही थी कि कुलविंदर को उसी फोन पर किसी ने वह अश्लील वीडियो भेजा था, जिस के कारण इतना बड़ा कांड हुआ था. यदि किसी ने उसे वीडियो भेजा था तो उस की फुटेज भी उस के फोन में होनी चाहिए थी.

इसीलिए पुलिस ने जांच के लिए फोन को फोरैंसिक लैब मोहाली भेज दिया था, क्योंकि आग में जल जाने के कारण फोन को भी नुकसान पहुंचा था. सन्नी का फोन पुलिस ने उस से बरामद कर लिया था और उस वीडियो को भी   अपने कब्जे में ले लिया था, जिस की बिना पर वह मनदीप कौर को ब्लैकमेल करता था.

इस पूरे मामले के दौरान कुलविंदर सिंह की मां महिंदर कौर रोरो कर सवाल करती रही कि उन्होंने पापियों का क्या बिगाड़ा था, जो हमारा हंसता खेलता परिवार तबाह कर के मेरा बुढ़ापा खराब कर दिया है.

कुलविंदर सिंह उर्फ बुग्गा की बड़ी बहन जसविंदर कौर, जो अभी तक अस्पताल में भरती थी, ने कहा कि हमारा हंसताखेलता घर तबाह करने वाले लोग सख्त सजा के हकदार हैं. अगर हमारे देश का कानून इन 4 आरोपियों को फांसी की सजा देता है तो ही हम समझेंगे कि कानून गरीबों को इंसाफ देता है, समाज विरोधी तत्वों के साथ किसी भी किस्म की रियायत नहीं होनी चाहिए.

इस पूरे मामले ने यह साबित कर दिया कि दिल्ली के दामिनी कांड के बाद केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा महिलाओं से जुड़े अपराधों व शोषण को रोकने के लिए चाहे कितने भी सख्त कानून बना दिए गए हों, पर इस का दरिंदों    पर कोई खास असर देखने को नहीं   मिल रहा.

ऐसे समाज विरोधी तत्व महिलाओं को अपने जाल में फंसा कर खतरनाक हद तक ब्लैकमेल करते हैं जो पारिवारिक क्लेश तथा समाज में बदनामी के डर के कारण उन की करतूतों को झेलती रहती हैं. कई परिवारों का अंत तो बेहद दर्दनाक व चौंकाने वाला होता है.

गौरतलब है कि किसी महिला की अश्लील तसवीरें बना कर उस की वीडियो बनाने का यह कोई नया मामला नहीं है. इस से पहले भी ऐसे आपराधिक तत्वों से दुखी हो कर कई महिलाएं पुलिस को शिकायत दे कर ऐसे अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजने की हिम्मत कर चुकी हैं.

लेकिन मनदीप कौर के मामले में पीडि़ता द्वारा पुलिस के समक्ष आरोपियों की शिकायत न करना कहीं न कहीं उक्त परिवार की बरबादी का सब से अहम कारण बन गया.

हालांकि नए कानूनों के मुताबिक ऐसे मामलों में महिला की शिकायत पर तुरंत काररवाई करने के दिशानिर्देश जारी किए गए हैं. वहीं पूरे मामले की जांच में जुटी पुलिस टीम का मानना है कि आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद उन के द्वारा बनाई गई महिला की वीडियो संबंधी बात से जहां कई खुलासे सामने आ सकते हैं, वहीं इस पूरे मामले में परदे के पीछे छिपे कई और तथ्य भी सामने आने की संभावना है.

रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद गुरप्रीत उर्फ सन्नी और बलकार सिंह को अदालत में पेश किया गया, जहां अदालत के निर्देश पर दोनों को न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया. इस कांड से जुड़े 2 अभियुक्त अभी पकड़े नहीं जा सके हैं.

इस मामले में पुलिस की मुश्किलें अभी तक कम नहीं हुईं. कुलविंदर ने विदेश से लौट कर तेल छिड़क कर अपने पूरे परिवार को जिंदा जला दिया. इस घटना को अंजाम देने से पहले उस ने अपने मोबाइल में पत्नी मनदीप कौर को ब्लैकमेल करने और अश्लील वीडियो तैयार करने के लिए गुरप्रीत सिंह सन्नी, बलकार सिंह मंत्री, तीर्थ सिंह नंबरदार और सत्या को जिम्मेदार बताया था.

वहीं मनदीप कौर ने भी मौत से कुछ पहले पहले ड्यूटी मजिस्ट्रैट, सिविल सर्जन और पुलिस की मौजूदगी में उक्त चारों आरोपियों को अपने परिवार की मौत के लिए जिम्मेदार बता कर सख्त सजा देने की मांग की थी.

गिरफ्तारी से बचे 2 अभियुक्तों की गिरफ्तारी को ले कर शहर की कई समाजसेवी संस्थाओं ने आवाज उठाते हुए रोष मार्च निकाला था. मृतक कुलविंदर सिंह बुग्गा के घर के सामने से शुरू हुआ यह कैंडल मार्च विभिन्न स्थानों से होता हुआ करीब डेढ़ घंटे बाद वापस पीडि़त परिवार के घर के आगे आ कर समाप्त हुआ.

कैंडल मार्च के आगे छोटे बच्चे हाथों में पीडि़त परिवार को इंसाफ दिलाने के लिए बैनर पकड़े हुए थे और उन के पीछे नौजवान, बुजुर्ग व महिलाएं शामिल थीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपनी अपनी चाहत : क्या थी फातिमा और सकीना की चाहत?

महानगरों में कितनी ही कामवालियां ऐसी होती हैं, जो अपने छोटे बच्चे को ले कर काम पर जाती हैं और दिन भर लोगों के घरों में काम कर के अपने ठिकाने पर लौट जाती हैं. कई लोग ऐसे भी होते हैं जो यह पसंद नहीं करते कि वे अपने बच्चे को ले कर घर में आएं.

ऐसे में उन की मजबूरी होती है कि बच्चे को मालिक के घर के बाहर बैठा दें या खेलने के लिए छोड़ दें. जबकि कई बार घर के मालिक या मालकिन को तरस आ जाता है और वे बच्चे को अंदर लाने की इजाजत दे देते हैं. इस से उन्हें यह भी डर नहीं रहता कि कामवाली कोई गड़बड़ करेगी.

फुटपाथ पर या झुग्गीझोपड़ी में रहने वाली कामवालियों की यह मजबूरी होती है कि अपना और बच्चों का पेट पालने के लिए हर स्थिति को फेस करें. इन्हें कितने ही ऐसे लोग भी मिलते हैं जो इन्हें या इन के बच्चों को इंसान नहीं समझते. यह अलग बात है कि उन के घर ऐसी ही महिलाओं की वजह से साफसुथरे रहते हैं. शानू शेख भी ऐसी ही महिला थी, जिस का ठौरठिकाना भायखला, मुंबई के एक फुटपाथ पर था.

शानू शेख की बहन भी इसी तरह फुटपाथ पर रह कर घरों में कामकाज करती थी. दोनों बहनें घरेलू कामकाज के लिए रोजाना साथ निकलती थीं और घरों में काम करने के बाद भायखला रेलवे स्टेशन के बाहर मिलती थीं, जहां से वे अपने ठिकाने पर लौट जाती थीं. 16 दिसंबर, 2018 को भी दोनों बहनें साथसाथ काम पर निकलीं. शानू शेख के साथ उस की 3 साल की बेटी कुसुम शेख भी थी.

शानू शेख काम कर के वापसी के लिए दोपहर में अपनी बेटी के साथ भायखला रेलवे स्टेशन पहुंची. तब तक उस की बहन नहीं आई थी. दोनों बहनों को रोजाना की तरह साथ वापस लौटना था.

शानू दिन भर की थकी हुई थी. वह स्टेशन के बाहर ठहर कर बहन का इंतजार करने लगी. उस की बेटी कुसुम पास ही खेल रही थी. कुछ देर बाद उस की बहन तो आ गई, लेकिन इस बीच बेटी गायब हो गई थी. दोनों बहनों ने कुसुम को आसपास ढूंढा, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आई. खोजबीन के बाद भी जब 3 साल की कुसुम नहीं मिली तो दोनों बहनें अग्रीपाड़ा पुलिस स्टेशन जा पहुंचीं.

कामवाली या गरीब औरतों पर पुलिस भी ध्यान नहीं देती. इसी सोच की वजह से दोनों बहनें डरीसहमी थीं. लेकिन अग्रीपाड़ा पुलिस स्टेशन में ऐसा नहीं हुआ. पुलिस ने दोनों बहनों को बैठा कर पहले पानी पिलाया, फिर उन से आने का कारण पूछा.

शानू शेख ने अपने और घटना के बारे में पुलिस को बता दिया. महानगरों में बच्चा चोरी की घटनाएं अकसर घटती रहती हैं. कई बच्चाचोर बच्चों को बेचने के लिए ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं.

बहरहाल, बच्चा किसी का भी हो, उस का दर्द और छटपटाहट सिर्फ मां ही समझ सकती है. शानू शेख भले ही गरीब थी, लेकिन थी तो मां ही. पुलिस ने उस के दर्द, उस की छटपटाहट को महसूस कर के भादंवि की धारा 363, 34 के तहत बच्ची के किडनैपिंग का केस दर्ज कर लिया.

थाना अग्रीपाड़ा के सीनियर इंसपेक्टर सावलाराम आगवणे ने इस मामले की जानकारी एडीशनल सीपी (स्पैशल ब्रांच) रविंद्र शिसवे, डीसीपी अविनाश कुमार और अग्रीपाड़ा डिवीजन एसीपी दीपक जे. कुंडल को दी. सभी अधिकारियों ने सावलाराम आगवणे से कहा कि चाहे जैसे भी हो, उस गरीब मां की बच्ची जरूर मिलनी चाहिए.

सीनियर इंसपेक्टर सावलाराम आगवणे ने 3 वर्षीय बच्ची की तलाश की जिम्मेदारी एसआई अमित बाबर को सौंप दी. उन के सहयोग के लिए एक पुलिस टीम भी बनाई गई. अमित बाबर ने भायखला, जहां शानू शेख काम करती थी, से पूछताछ शुरू की.

बच्ची के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. चूंकि वह बच्ची भायखला रेलवे स्टेशन से ही गायब हुई थी, इसलिए एसआई अमित बाबर ने आसपास के रेलवे स्टेशनों पर जानकारी जुटाना जरूरी समझा. उन्होंने भायखला से कल्याण (पुणे) के बीच पड़ने वाले सभी स्टेशनों की जीआरपी से 3 साल की बच्ची कुसुम शेख के बारे में पूछा. लेकिन कहीं से भी बच्ची के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

एसआई अमित बाबर टीम के साथ भायखला वापस लौट आए. अब उन्होंने नए सिरे से कुसुम के गायब होने के मामले की जांच शुरू की. उन्होंने भायखला रेलवे स्टेशन के आसपास के इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को ध्यान से देखा.

एक फुटेज में उन्हें एक महिला 3 साल की कुसुम को ले जाती दिखी. उस महिला के पास एक बैग भी था. बच्ची को ले कर वह महिला कहां गई, यह तो पता नहीं चल सका लेकिन पुलिस ने महिला के उस बैग को जब जूम कर के देखा तो उस पर धागे के सहारे एक टैग लटका हुआ दिखाई दिया. टैग से लग रहा था कि वह बैग हाल ही में खरीदा गया है. पुलिस ने उस बैग की फोटो मोबाइल में ले ली.

यह एक सूत्र काम का हो सकता था. इसलिए अमित बाबर अपनी टीम के साथ भायखला के बाजार में निकल गए. उन्होंने बैग की दुकानों पर जा कर मोबाइल में सेव उस बैग की फोटो दुकानदारों को दिखाते हुए पूछताछ की. इसी कड़ी में एक दुकानदार ने बता दिया कि एक महिला यह बैग उस की दुकान से खरीद कर ले गई थी. उस दुकानदार ने पुलिस को एक नई जानकारी देते हुए बताया कि उस महिला ने पास ही स्थित मसजिद के पास के एसटीडी बूथ से किसी को फोन भी किया था.

पुलिस उस टेलीफोन बूथ पर पहुंची तो बूथ मालिक ने बताया कि वह महिला फोन पर बात करते समय हैदराबाद एक्सप्रैस से जाने की बात कह रही थी. बूथ से महिला ने जिस फोन नंबर पर बात की थी, वह नंबर भी पुलिस ने बूथ वाले से हासिल कर लिया, नंबर हैदराबाद का था. थोड़ा समय तो लगा, लेकिन उस नंबर के आधार पर पुलिस ने वह पता भी हासिल कर लिया, जहां उस महिला ने फोन किया था.

सीनियर अधिकारियों के निर्देश पर एसआई अमित बाबर हैदराबाद के लिए रवाना हो गए. टीम में उन के साथ एएसआई हुसनूर, हैडकांस्टेबल खानविलकर, कांस्टेबल अविनाश चव्हाण भी शामिल थे.

हैदराबाद पहुंचने के बाद मुंबई पुलिस ने स्थानीय थाने की पुलिस के सहयोग से एक मकान में दबिश दी. उस मकान में एक महिला 3 साल की कुसुम के साथ मिल गई. पुलिस ने कुसुम को सुरक्षित बरामद करने के बाद उस महिला को हिरासत में ले लिया. महिला ने अपना नाम फातिमा बताया. यह बात 24 दिसंबर, 2018 की है.

फातिमा एक अमीर महिला थी. पूछताछ में उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. फातिमा और कुसुम को पुलिस हैदराबाद से मुंबई ले आई. फातिमा ने बताया कि उस ने इस बच्ची का अपहरण नहीं किया था, बल्कि यह अपहरण उस की देवरानी सकीना ने किया था. फातिमा ने अग्रीपाड़ा पुलिस को सकीना का मोबाइल नंबर भी दे दिया.

पुलिस ने जब उस फोन नंबर की लोकेशन का पता लगाया तो जानकारी मिली कि पिछले 3 दिनों से वह नंबर पुणे में ही कार्य कर रहा है. एसआई सुमित बाबर और अर्जुन कुदले टीम के साथ पुणे के लिए रवाना हो गए. वहां जा कर पुलिस को पता चला कि वह फोन नंबर सकीना के पास नहीं बल्कि उस के पति बिलाल के पास रहता है.

पुलिस उस फोन के सहारे बिलाल तक पहुंच गई. बिलाल उस समय पुणे में एक मसजिद के पास था. चूंकि फातिमा ने इस केस में बिलाल की पत्नी सकीना का हाथ बताया था, इसलिए पुलिस ने बिलाल की निशानदेही पर सकीना को हिरासत में ले लिया.

फातिमा और सकीना से पूछताछ के बाद कुसुम के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

फातिमा और सकीना एक ही परिवार से थीं. फातिमा बेगम सकीना के देवर अली बिन उमर की पत्नी थी. यानी सकीना फातिमा की जेठानी थी. अधिकांश दंपति यही चाहते हैं कि उन के परिवार में लड़का हो, जिस से वह वंश चला सके. लेकिन फातिमा उन से अलग थी. उस के 4 बेटे तो थे लेकिन बेटी नहीं थी.

फातिमा चाहती थी कि उस की एक बेटी हो. वैसे वह खुशहाल थी. दूसरी ओर उस की देवरानी सकीना के घर की हालत काफी खस्ता थी. उस के पति बिलाल को शराब की लत थी, जिस की वजह से घर के और बच्चों की पढ़ाई के खर्चे की किल्लत उठानी पड़ती थी.

आखिर अपनी गरीबी को मिटाने के लिए सकीना ने दिमाग लगाया. उस ने फातिमा के साथ एक सौदा किया. सकीना ने अपनी जेठानी से कहा कि वह कहीं से भी उसे एक बच्ची ला कर उसे देगी, लेकिन इस के बदले उसे उस के घर के खर्चे पूरे करने होंगे. फातिमा ने जवाब में कहा कि अगर ऐसा हो गया तो वह उस के मकान का किराया, बच्चों की फीस और घर का खर्च उठाती रहेगी.

सकीना के लिए यह सौदा फायदे का था, इसलिए उस ने तय कर लिया कि किसी भी तरह वह कहीं न कहीं से फातिमा के लिए एक छोटी बच्ची ला कर देगी. सकीना बच्ची की तलाश में मुंबई चली गई. मुंबई के भायखला इलाके में उस की नजर अकेली खेल रही नन्ही कुसुम पर पड़ी.

सकीना को अपने परिवार की खुशियों के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था. इसलिए मौका मिलते ही उस ने कुसुम को उठाया और सीधे चल पड़ी. कुसुम को ले कर वह अपनी जेठानी फातिमा के पास पहुंच गई और बच्ची उसे सौंप दी. बच्ची पा कर फातिमा बहुत खुश हुई.

जांच में सकीना के पति बिलाल को बेकसूर पाए जाने पर घर भेज दिया गया, जबकि फातिमा और सकीना को गिरफ्तार कर उन्हें अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों को पहले पुलिस रिमांड पर भेजा.

रिमांड अवधि में पुलिस ने उन से पूछताछ कर कुछ सबूत जुटाए. रिमांड की अवधि खत्म होने पर उन्हें फिर से कोर्ट में पेश किया गया. कोर्ट ने दोनों को भायखला की ही महिला जेल भेज दिया.

उधर अपनी बेटी कुसुम शेख को सही सलामत पा कर शानू शेख बहुत खुश हुई. उसे उम्मीद नहीं थी कि एक गरीब औरत की बेटी को ढूंढने में पुलिस इतनी तत्परता दिखाएगी. उस ने अग्रीपाड़ा पुलिस को बेटी के सुरक्षित बरामद करने के लिए धन्यवाद दिया.

सकीना अगर गरीब न होती तो शायद वह यह अपराध न करती और फातिमा को भी अगर बेटी की जरूरत थी तो वह किसी अनाथालय से या किसी गरीब मांबाप की बच्ची को गोद ले सकती थी. इस के लिए सकीना से सौदा करने की क्या जरूरत थी.

पीसी ज्वैलर्स में करोड़ों की चोरी : जीरो बना हीरो

10 दिसंबर, 2018 की बात है. कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी. सर्दी के मौसम में आमतौर  पर सुबह देरी से ही कामकाज शुरू होता है. उस दिन आसमान में बादल भी छाए हुए थे, इसलिए धूप में भी तेजी नहीं थी.

गुड़गांव के सेक्टर-14 मार्केट के सामने राजीव नगर में पीसी ज्वैलर्स का विशाल शोरूम है. यह शोरूम आमतौर पर रोजाना सुबह साढ़े 10-11 बजे तक खुल जाता है. उस दिन भी कर्मचारी सुबह करीब साढ़े 10 बजे शोरूम पर पहुंच गए. इन में गार्ड, सेल्सगर्ल्स, मैनेजर व अन्य कर्मचारी शामिल थे.

कर्मचारियों को शोरूम के बाहर ही सुरक्षा एजेंसी के 2 गार्ड तैनात मिले. गार्ड्स और कर्मचारियों में औपचारिक अभिवादन हुआ. इस के बाद कर्मचारियों ने शोरूम के गेट खोले. गेट खोल कर कर्मचारी जब शोरूम में घुसे, तो अंदर का नजारा देख कर हैरान रह गए.

शोरूम के अंदर सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. शोकेस में रखे कीमती गहने और हीरे जवाहरात गायब थे. शोरूम के स्ट्रांगरूम की छत में एक बड़ा सुराख बना हुआ था. लग रहा था कि स्ट्रांगरूम में सेंध लगा कर चोरी की गई है.

कर्मचारियों ने यह बात बाहर खड़ी शोरूम की स्टोर मैनेजर संगीता जैन को बताई. चोरी की बात सुन कर संगीता घबरा गईं. वे तुरंत शोरूम के अंदर गईं. अंदर का नजारा देख कर उन्हें भी समझते देर नहीं लगी कि किसी ने सुनियोजित तरीके से शोरूम में सेंधमारी की है. शोकेस पर एक नजर डालने के बाद संगीता को स्ट्रांगरूम की चिंता हुई. उन्होंने स्ट्रांगरूम खोल कर देखा तो वहां से अधिकांश ज्वैलरी और कीमती जवाहरात गायब थे.

मैनेजर संगीता जैन ने तुरंत शोरूम के मालिकों को चोरी के वारदात की सूचना दे दी. साथ ही चोरी की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी गई. सूचना मिलते ही थाना सेक्टर-14 की पुलिस, सेक्टर-31, सेक्टर-17 की पुलिस और पालम विहार क्राइम ब्रांच की टीमें मौके पर पहुंच गईं. डीसीपी और एसीपी भी घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना किया तो पता चला कि चोरों ने स्ट्रांगरूम की छत काटने के लिए ड्रिल मशीन और छेनी वगैरह औजारों का उपयोग किया था. इन औजारों से चोरों ने छत में इतना बड़ा छेद कर दिया था कि एक आदमी आराम से नीचे उतर जाए.

इसी छेद के रास्ते चोरों ने शोरूम में प्रवेश किया और इसी रास्ते से सारा माल बाहर निकाला था. पुलिस को शोरूम के पीछे की तरफ एक रस्सी लटकी हुई मिली. इस के अलावा पत्थर काटने का हरे रंग का एक ब्लेड भी छत पर पड़ा मिला. पुलिस ने ये दोनों चीजें जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दीं.

आयताकार भूखंड पर बने पीसी ज्वैलर्स के 4 मंजिला भवन में स्ट्रांगरूम भूतल पर सब से पीछे की ओर बना हुआ था. इसी तल पर आगे की ओर शोरूम बना था. बेसमेंट के बड़े हिस्से का उपयोग भी शोरूम में किया जाता था. पहली और दूसरी मंजिल को रिकौर्ड रूम के रूप में इस्तेमाल किया जाता था.

इस भवन के भूतल की छत पूरी थी, लेकिन प्रथम तल पर पीछे की तरफ करीब 10×10 फुट का हिस्सा खुला रखा गया था. यहां से ऊपर जाने के लिए सीढि़यां बनी हुई थीं. इसी के ठीक नीचे शोरूम का स्ट्रांगरूम था. स्ट्रांगरूम में सीसीटीवी कैमरा लगा था, लेकिन चोरों ने उसे तोड़ दिया था.

पुलिस को प्रारंभिक तौर पर यह पता नहीं चल सका कि चोर इस बिल्डिंग की छत तक कैसे पहुंचे. लेकिन वारदात के तरीके को देख कर पुलिस अधिकारियों को यह आभास जरूर हो गया कि यह वारदात रैकी करने के बाद ही की गई थी.

चोरों को पुख्ता तौर पर इस बात का पता था कि स्ट्रांगरूम कहां पर है और वहां तक कैसे पहुंचा जा सकता है. इन सब बातों को देखते हुए पुलिस ने अनुमान लगाया कि इस वारदात में शोरूम का कोई मौजूदा या पुराना कर्मचारी जरूर शामिल रहा होगा.

हालांकि मौके पर पुलिस अधिकारियों को शोरूम प्रबंधन से इस बात की जानकारी नहीं मिली कि कितना माल चोरी गया है, लेकिन यह अंदाजा जरूर हो गया कि चोरी गई ज्वैलरी की कीमत करोड़ों रुपए में रही होगी.

मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस अधिकारियों ने डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को बुला कर जांचपड़ताल कराई. फोरैंसिक टीम ने शोरूम में कई जगहों से फिंगरप्रिंट लिए. डौग स्क्वायड ने भी बिल्डिंग के चारों तरफ घूम कर छानबीन की, लेकिन इस कवायद से पुलिस को चोरों के बारे में कोई सुराग नहीं मिला.

इस बीच उसी दिन शोरूम की स्टोर मैनेजर संगीता जैन ने सेक्टर-14 पुलिस थाने में चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने भादंसं की धारा 380 और 457 के तहत केस दर्ज कर लिया.

जांचपड़ताल में पुलिस को पता चला कि चोर खासतौर से महंगी ज्वैलरी और डायमंड ले गए हैं. उन्होंने छोटे जेवरों पाजेब, कड़े, अंगूठी, नोज पिन, कान की बाली आदि को हाथ भी नहीं लगाया था. चोर केवल हीरे जवाहरात की ज्वैलरी, सोने के हार और अन्य कीमती आभूषण ले गए थे. शोरूम के हालात से पुलिस ने अनुमान लगाया कि वारदात में जरूर 4 से अधिक बदमाश शामिल रहे होंगे.

पिछले कुछ सालों में गुड़गांव के किसी बड़े ज्वैलरी शोरूम में इस तरह की कोई वारदात नहीं हुई थी, इसलिए पुलिस इस वारदात में दूसरे राज्य के किसी बड़े गिरोह का हाथ होने का अनुमान लगा रही थी.

पुलिस ने चोरों का सुराग लगाने के लिए शोरूम में तोड़े गए स्ट्रांगरूम के डीवीआर और अन्य जगहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी. इस के अलावा शोरूम के बाहर रात को तैनात रहे निजी सुरक्षा कंपनी के गार्ड्स से भी पूछताछ की.

पुलिस को हैरानी इस बात की थी कि शोरूम में इतनी बड़ी वारदात हो गई थी और बाहर तैनात सुरक्षा गार्ड्स को भनक तक नहीं लगी थी. सुरक्षा गार्ड्स से पूछताछ में केवल इतना पता चला कि पिछली रात साढ़े 12 बजे से डेढ़ बजे के बीच कुत्ते जरूर भौंक रहे थे, लेकिन कोई आदमी नजर नहीं आया था. भौंक रहे कुत्तों को सुरक्षा गार्ड्स ने ही भगाया था.

शोरूम प्रबंधन ने दूसरे दिन 11 दिसंबर को पुलिस को उन आभूषणों की लिस्ट दे दी, जो चोरी हुए थे. इन आभूषणों की कीमत तो कंपनी ने नहीं बताई थी, लेकिन मोटे तौर पर यह अनुमान लगाया था कि चोरी गए आभूषणों की कीमत 20 करोड़ तक हो सकती है. इन में सब से ज्यादा डायमंड व सोने के आभूषण थे.

डीसीपी शमशेर सिंह के निर्देशन में अपराध शाखा की कई टीमों को जांच में लगा दिया गया. पुलिस अफसरों ने दूसरे दिन भी शोरूम का मौकामुआयना कर चोरों का सुराग हासिल करने का प्रयास किया. वहां आसपास की दुकानों के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी गईं.

अपराध शाखा के इंसपेक्टरों के साथ पुलिस उपायुक्त शमशेर सिंह ने पीसी ज्वैलर्स की बिल्डिंग के आसपास की इमारतों की छत पर जा कर यह जानने का प्रयास किया कि चोर किस रास्ते से ज्वैलरी शोरूम में पहुंचे.

चूंकि ज्वैलरी शोरूम के मुख्य गेट पर सुरक्षा गार्ड मौजूद थे, इसलिए पुलिस अधिकारियों  ने अनुमान लगाया कि चोरों ने इमारत पर चढ़ने और माल ले कर उतरने में उस रस्सी का इस्तेमाल किया होगा, जो पुलिस को शोरूम के पीछे की तरफ लटकी हुई मिली थी. यह रस्सी पीसी ज्वैलर्स की बिल्डिंग की छत पर बने कमरे की खिड़की से बंधी हुई थी. इस से अनुमान लगाया गया कि रस्सी वारदात से पहले दिन यानी 9 दिसंबर को बांध कर लटका दी गई होगी.

इस के अलावा पुलिस ने शोरूम प्रबंधन से मौजूदा कर्मचारियों और पिछले कुछ महीनों में नौकरी छोड़ने वाले कर्मचारियों की लिस्ट ली. मौजूदा कर्मचारियों से पूछताछ की गई. साथ ही पुलिस ने अपने स्तर पर इन कर्मचारियों के चालचलन के बारे में भी पता कराया. नौकरी छोड़ने वाले पुराने कर्मचारियों के पतेठिकाने मालूम कर उन की तलाश की गई.

पुलिस की एक टीम दूसरे शहरों में हुई ऐसी वारदातों के बारे में पता करने में जुटी थी. इस टीम को पता लगा कि सन 2013 में हरियाणा के रोहतक शहर में एक ज्वैलरी शोरूम की छत काट कर इसी तरह चोरी की गई थी. यह वारदात मेरठ के रहने वाले बदमाशों ने की थी. इस वारदात का मास्टरमाइंड आरोपी जेल में बताया गया.

गुड़गांव पुलिस को जानकारी मिली कि लखनऊ में भी इसी तरह एक शोरूम की छत काट कर चोरी की गई थी. इसी आधार पर पुलिस ने मेरठ और बुलंदशहर के कुछ बदमाशों को हिरासत में ले कर पूछताछ की, लेकिन चोरों का सुराग फिर भी नहीं मिल सका.

जांचपड़ताल में पुलिस को पता चला कि स्ट्रांगरूम के ठीक ऊपर छत काट कर एक बदमाश फिल्मी अंदाज में सीधे नीचे उतरा था. छत काट कर बनाए गए सुराख से ही बाकी चोर भी शोरूम में पहुंचे.

इन चोरों को शोरूम के बारे में एकएक चीज की जानकारी थी, इसीलिए रस्सी के सहारे स्ट्रांगरूम के अंदर लटकते ही मंकी कैप पहने पहले चोर ने अंदर छत में लगे सीसीटीवी कैमरे को डंडा मार कर तोड़ दिया था. इस से आगे की वारदात कैमरे में कैद नहीं हो सकी थी.

वारदात के तरीके से पुलिस को पक्का यकीन हो गया था कि जरूर इस में किसी मौजूदा या पुराने कर्मचारी का हाथ रहा होगा. इसलिए पुलिस ने पीसी ज्वैलर्स के मौजूदा और पुराने संदिग्ध कर्मचारियों पर फोकस कर के जांच शुरू की. इस रास्ते पर जांच आगे बढ़ती गई तो कडि़यां जुड़ती चली गईं. आखिर पुलिस का शक हकीकत के रूप में सामने आ गया.

पुलिस ने इस वारदात के 3 आरोपियों को 16 दिसंबर की शाम भारत बांग्लादेश की सीमा से गिरफ्तार कर लिया. इन आरोपियों को पश्चिम बंगाल की स्थानीय अदालत में पेश कर ट्रांजिट रिमांड पर लिया गया. इस के बाद पुलिस उन्हें ले कर 18 दिसंबर की रात गुड़गांव पहुंच गई.

इन आरोपियों से की गई पूछताछ में खुलासा हुआ कि इस वारदात को 2 कर्मचारियों ने ही अपने साथियों की मदद से अंजाम दिया था. ये दोनों कर्मचारी बांग्लादेश के बौर्डर पर स्थित पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे. करोड़ों रुपए की इस चोरी का हीरो साढ़े 3 फुट का बौना युवक जफर था.

बौना जफर बीए सेकेंड ईयर तक पढ़ा था. बाकी दोनों आरोपी 10वीं व 12वीं तक पढ़े थे. 26 साल के मास्टरमाइंड जफर रहमान ने पीसी ज्वैलर्स के शोरूम में अपने 5 अन्य साथियों की मदद से चोरी की थी. पुलिस ने इन में से जफर, शफीबुल मंडल और सुलतान मुमताज को गिरफ्तार कर लिया.

इन में जफर और शफीबुल पीसी ज्वैलर्स में काम करते थे. शफीबुल ने कुछ दिन पहले नौकरी छोड़ दी थी. गिरफ्तार तीनों आरोपियों से पूछताछ में पुलिस के सामने जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

बांग्लादेश का रहने वाला शफीबुल मंडल करीब 6 महीने से पीसी ज्वैलर्स के गुड़गांव वाले शोरूम में स्टोरकीपर की नौकरी कर रहा था. शफीबुल ने अपनी मेहनत से शोरूम प्रबंधन का भरोसा जीत लिया था. इस के बाद उस ने वारदात से कुछ दिन पहले बांग्लादेश के ही रहने वाले अपने साथी जफर रहमान को भी इसी शोरूम में नौकरी दिलवा दी.

जफर ने अपनी मेहनत और ईमानदारी दिखा कर शोरूम प्रबंधकों का विश्वास हासिल कर लिया था. जफर और शफीबुल का मुख्य काम शोरूम की साफसफाई और ग्राहकों के लिए चायपानी की व्यवस्था करना था. बाद में शफीबुल ने नौकरी छोड़ दी थी.

बौने युवक जफर ने शोरूम पर नौकरी करते हुए शफीबुल के साथ मिल कर चोरी की योजना बनानी शुरू कर दी. इसी योजना के तहत वारदात के लिए जफर और शफीबुल ने अपने 4 साथियों को गुड़गांव बुला लिया. इन साथियों को दोनों कर्मचारियों ने शोरूम की सारी बातें बता कर अच्छी तरह समझा दिया कि कहां पर क्या क्या चीजें हैं.

जफर की मदद से शफीबुल सहित 5 चोर वारदात के दिन पीसी ज्वैलर्स की बिल्डिंग में छिप कर बैठ गए. मंकी कैप पहने ये चोर उस दिन शाम करीब साढ़े 5 बजे सीढि़यों के जरिए शोरूम की छत पर जा कर बैठ गए.

छत पर पहुंच कर इन लोगों ने वहां लगे सीसीटीवी कैमरे की दिशा बदल दी. ये लोग रस्सी, 2 बैग और छत काटने के लिए ग्राइंडर व गैस कटर, छेनी, हथौड़ा वगैरह साथ ले कर आए थे. इन का साथी जफर शोरूम से पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए था. 9 दिसंबर की रात करीब पौने 9 बजे शोरूम बंद हुआ तो जफर अंदर ही रह गया. वह शोरूम से बाहर नहीं निकला और कैमरों की नजर से दूर अंदर छिप कर बैठा रहा. शोरूम के प्रबंधकों और सिक्योरिटी वालों को भी इस बात का पता नहीं चला.

रात को शोरूम बंद होने के 2-3 घंटे बाद तक सभी बदमाश चुपचाप बैठे रहे. रात करीब साढ़े 11 बजे जफर ने छत का लोहे का गेट खोल दिया. छत पर पहले से छिपे बैठे सभी बदमाश वहां से पहली मंजिल पर आ गए.

चूंकि जफर और शफीबुल को पहले से पता था कि सब से ज्यादा जेवर स्ट्रांगरूम में हैं, लेकिन स्ट्रांगरूम को खोलना हंसी खेल नहीं था. इसलिए इन लोगों ने योजना के अनुसार स्ट्रांगरूम की छत काटने का फैसला किया.

कुछ देर बाद इन्होंने ग्राइंडर और कटर की मदद से शोरूम के स्ट्रांगरूम की छत का लेंटर काटना शुरू कर दिया. करीब डेढ़ घंटे की मशक्कत के बाद छत का इतना हिस्सा कट गया कि उस में से एक आदमी निकल सके.

इसी सुराख से एक चोर रस्सी के सहारे स्ट्रांगरूम में दाखिल हुआ. अंदर लटकते ही उस ने डंडे की मदद से स्ट्रांगरूम की छत पर लगे सीसीटीवी कैमरे को तोड़ दिया. इस चोर ने स्ट्रांगरूम में रखे हीरेजवाहरात और सोने के कीमती गहने 2 बैगों में भर लिए. इस काम में उसे करीब आधे घंटे का समय लगा.

स्ट्रांगरूम की छत पर पहले से मौजूद इन के साथियों ने रस्सी की मदद से जेवरों से भरा बैग ऊपर खींच लिया. बाद में जफर व शफीबुल सहित सभी चोर शोरूम की छत पर पहुंच गए. रात करीब सवा 2 बजे छत से सभी आरोपी रस्सी के सहारे जेवरों से भरे 2 बैग ले कर मेनरोड के बजाय पीछे के रास्ते से नीचे उतरे.

वहां से आटोरिक्शा में सवार हो कर ये लोग गुड़गांव के सोहना रोड पर अपने साथी के कमरे पर गए.

दूसरे दिन पांचों चोर गुड़गांव से ओला कैब में सवार हो कर दिल्ली के लिए निकल गए, जबकि जफर वहीं रह गया. दिल्ली गए 5 चोरों में एक चोर तो उसी दिन हवाईजहाज से कोलकाता चला गया, जबकि 4 दूसरे दिन ट्रेन से कोलकाता के लिए रवाना हुए.

इधर मास्टरमाइंड जफर पूरे मामले पर नजर रखने के लिए गुड़गांव में ही रुका रहा. वह वारदात के अगले दिन अपनी ड्यूटी पर शोरूम भी पहुंचा. वहां वह चायपानी पिलाने के बहाने पुलिस अफसरों की बातें सुनता रहा. पुलिस अफसरों की बातों से उसे यकीन हो गया कि उस का और उस के साथियों का पता नहीं चल पाएगा.

जांचपड़ताल में पुलिस को पता चला कि शफीबुल ने कुछ दिन पहले ही नौकरी छोड़ी थी. यह पता लगने पर पुलिस उस की तलाश में पश्चिम बंगाल गई. वहां संबंधित थाना पुलिस ने बताया कि शफीबुल पर पहले भी चोरी के मामले दर्ज हैं.  वह जेल भी जा चुका है. इस के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि वारदात में शफीबुल का किसी न किसी रूप में हाथ जरूर है.

शफीबुल ने जफर को नौकरी पर रखवाया था, इसलिए पुलिस ने जफर से पूछताछ करने की सोची. लेकिन तब तक जफर गायब हो चुका था. वह वारदात के बाद केवल एक दिन ही शोरूम पर आया था. इस से पुलिस को यह अनुमान हो गया कि जफर भी भाग कर पश्चिम बंगाल गया होगा.

पुलिस ने लगातार भागदौड़ कर जफर और शफीबुल को पकड़ लिया. इन से पूछताछ के बाद तीसरे आरोपी को पकड़ा गया. जफर 10 दिसंबर को नौकरी पर जाने के बाद अगले दिन पश्चिम बंगाल चला गया था और अपने घर जा पहुंचा था.

पूछताछ में सामने आया कि अगर पुलिस आरोपियों तक नहीं पहुंचती, तो ये लोग 2 दिन बाद बांग्लादेश भाग जाते. दरअसल, बांग्लादेश बौर्डर पर 2 दिन बाद ही काली माता का मेला लगना था. यह मेला 10 दिन तक चलता है. इस मेले में बौर्डर के दोनों ओर के गांवों के लोग आते हैं.

इस दौरान दोनों देशों के लोगों की आवाजाही के कारण कोई जांचपड़ताल भी नहीं होती, इसलिए जफर व शफीबुल की योजना थी कि मेले के दौरान चोरी की ज्वैलरी ले कर बांग्लादेश भाग जाएंगे.

पुलिस ने गिरफ्तार चोरों की निशानदेही पर करीब 13 करोड़ रुपए की ज्वैलरी बरामद कर ली. इस का वजन करीब 16 किलो था. गुड़गांव पुलिस के लिए पश्चिम बंगाल से इतने वजन की कीमती ज्वैलरी लाना जोखिम भरा रहा.

इन चोरों ने करीब 13 करोड़ रुपए की ज्वैलरी के साथ लगभग साढ़े 9 लाख रुपए नकद भी चुराए थे. इस में से अधिकांश नकद रकम उन्होंने नए कपड़े, मोबाइल और अन्य सामान खरीदने के अलावा टैक्सी और हवाई जहाज की यात्रा पर खर्च कर दी थी.

पुलिस ने 20 दिसंबर को तीनों गिरफ्तार चोरों को गुड़गांव की अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें 6 दिन के रिमांड पर पुलिस को सौंप दिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने चोरों के बताए अनुसार 21 दिसंबर को चोरी का सीन रीक्रिएट किया.

सीन रीक्रिएट के दौरान गुड़गांव के थाना सेक्टर-14 की पुलिस, अपराध शाखा सेक्टर-17 और फोरैंसिक विशेषज्ञों की टीम मौजूद रही. पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर गुड़गांव के सेक्टर-48 स्थित एक आरोपी के कमरे से छेनी, हथौड़ा व कटर आदि बरामद किए. इन का उपयोग वारदात में किया गया था.

पुलिस का दावा है कि चोरी गए 90 फीसदी जेवर बरामद हो गए हैं. पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को रिमांड अवधि पूरी होने पर 26 दिसंबर को अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

हुस्न और नशे के जाल में फंसा खिलाड़ी – भाग 3

कोई डेढ़ दो साल पहले एक युवक के माध्यम से सुहैल को पता चला कि कोठारी के रईस किसान का खूबसूरत जवान बेटा जिम खेलने के लिए सीहोर के चक्कर लगा रहा है. नरेश देखने में था भी हैंडसम, इसलिए मोटी मुर्गी देख कर सुहैल किसी तरह नरेश से जानपहचान करने के बाद एक रोज उसे अपने घर ले गया.

वास्तव में सुहैल शिकार को फांसने के लिए हर किस्म के हथियार का इस्तेमाल करता था. इसलिए नरेश को फांसने के लिए सुहैल की पत्नी और बेटी रुकैया खुल कर अपना जादू दिखाने लगीं. नरेश भी रुकैया की खूबसूरती पर फिदा हो गया, जिस से वह अकसर सुहैल से मिलने के बहाने उस के घर आनेजाने लगा.

आखिर रुकैया उसे फांसने में सफल हो ही गई. फिर सुहैल ने धीरेधीरे नरेश को मुफ्त में कोकीन और ब्राउन शुगर का नशा करवाना शुरू कर दिया. जब वह नशे का आदी हो गया तो सुहैल ने नशे की कीमत वसूलनी शुरू कर दी.

नरेश के पास पैसों की कमी नहीं थी, इसलिए वह रुकैया के चक्कर में पैसा लुटाने लगा. योजना के अनुसार नरेश के नशे की गिरफ्त में आ जाने के बाद रुकैया को पीछे हट जाना था, लेकिन नरेश के मामले में रुकैया खुद शिकार हो चुकी थी. इसलिए वह नरेश से नजदीकी बनाए रही, जिस के चलते सुहैल को नरेश से परेशानी होने लगी. लेकिन वह खूब पैसे लुटा रहा था, इसलिए सुहैल अपनी आंखें बंद किए रहा.

नरेश खतरे को समझ नहीं पाया

धीरेधीरे नरेश के हाथ की वह रकम खत्म होने लगी, जो उस ने जिम खोलने के लिए घर से ली थी. पैसा खत्म हो गया तो सुहैल उसे उधारी में नशे की पुडि़या देने लगा. इस में सुहैल को कोई परेशानी नहीं थी. उसे डर केवल इस बात का था कि रुकैया और नरेश को ले कर समाज में कोई बवाल खड़ा न हो जाए. इसलिए वह नहीं चाहता था कि अब नरेश उस के घर आए.

लेकिन नरेश के ऊपर प्यार और कोकीन का ऐसा नशा सवार था कि गांव से निकल कर सीधे सुहैल के घर पहुंच जाता. बाद में धीरे धीरे नरेश को अपनी गलती का अहसास होने लगा था. उस का स्वास्थ्य भी गिरने लगा था इसलिए उस ने सुहैल के घर जाना कुछ कम कर दिया. सुहैल को अब अपने पैसों की चिंता होने लगी, जो नरेश के ऊपर उधार थे.

11 नवंबर को नरेश ने जिम के उपकरण खरीदने के लिए घर से 4 लाख रुपए लिए, लेकिन पैसा जेब में आया तो उसे नशे की सुध आ गई. वह सीधे सुहैल के घर जा पहुंचा, जहां सुहैल ने नशे की पुडि़या देने से पहले अपने उधार के 2 लाख रुपए मांगे. इस पर नरेश ने कहा कि पैसा तो उस के पास इस समय भी है, लेकिन वह इस से जिम का सामान खरीदने जा रहा है. बाद में जिम से पैसे कमा कर उस का सारा हिसाब चुकता कर देगा.

उस दौरान नरेश की नजरें घर में रुकैया की तलाश कर रही थीं. यह देख कर सुहैल का दिमाग खराब हो गया. उसे लगा कि अगर आज नरेश का फाइनल हिसाब कर दिया जाए तो उस का पैसा वसूल हो जाएगा. यह सोच कर उस ने कमरे में पड़ा चाकू उठा कर सीधे नरेश के सीने पर वार कर दिया.

नरेश काफी ताकतवर था. चाकू से घायल होने के बावजूद भी वह सुहैल से भिड़ गया. इधर कमरे में हल्ला सुन कर सुहैल की पत्नी इशरत और बेटा अमन अंदर पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर चौंक गए. चूंकि नरेश सुहैल पर भारी पड़ रहा था, इसलिए सुहैल ने पत्नी और बेटे से मदद करने को कहा.

इशरत और अमन नरेश पर पिल पड़े, जिस के चलते सुहैल ने जल्द ही उस पर चाकू से कई वार कर खेल खत्म कर दिया. अब जरूरत नरेश की लाश को ठिकाने लगाने की थी. इतनी भारी लाश एक बार में चोरीछिपे नहीं ले जाई जा सकती थी. इसलिए तीनों ने मिल कर बांके की मदद से रात में ही नरेश की लाश के 8 टुकड़े कर दिए.

इस के बाद एक प्लास्टिक के बोरे में धड़ और दूसरे में सिर तथा तीसरे में हाथ व चौथे बोरे में उस के पैर एवं कपड़े और जूते भर दिए. फिर रात में 4 बजे के करीब सुहैल अपनी स्कूटी पर एकएक बोरा ले जा कर कर्बला के पास सीवन नदी में फेंक आया.

इस दौरान रात में ही नरेश के घर वाले बेटे के बारे में सुहैल से पूछताछ कर चुके थे, इसलिए वह समझ गया कि अगर वह घर पर रहा तो फंस जाएगा. योजनानुसार सुबह होते ही वह बीमारी के नाम पर भोपाल के एलबीएस अस्पताल में भरती हो गया. लेकिन एडीशनल एसपी समीर यादव के सामने उस की एक नहीं चली, जिस के चलते खुद सुहैल के हिस्से में मौत आई, जबकि आरोपी मांबेटे को मिलीं सलाखें.

इशरत और अमन से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा में रुकैया परिवर्तित नाम है

हुस्न और नशे के जाल में फंसा खिलाड़ी – भाग 2

इस बीच पुलिस ने नरेश के मोबाइल फोन की काल डिटेल निकलवा ली थी, जिस में पता चला कि नरेश की दिन में कईकई बार सुहैल से बात होती थी. इतना ही नहीं, सुहेल की पत्नी के अलावा सुहैल की जवान बेटी रुकैया से भी नरेश की अकसर बात होने के सबूत मिले.

घटना वाले दिन भी नरेश और सुहैल के बीच कई बार बात हुई थी. जिस समय नरेश का मोबाइल बंद हुआ था, तब वह उसी टावर के क्षेत्र में था, जिस में सुहैल का घर है. अब तक पुलिस के सामने यह साफ हो चुका था कि जिस रोज नरेश गायब हुआ था, वह सुहैल के घर आया था यानी उस के साथ अच्छाबुरा जो भी हुआ इसी इलाके में हुआ था.

इस इलाके में सुहैल का मकान ही एक ऐसा ठिकाना था, जहां नरेश का लगभग रोज आनाजाना था. लेकिन पुलिस पूछताछ से पहले ही उस की मौत हो चुकी थी, इसलिए यह मामला पुलिस के सामने बड़ी चुनौती बन कर खड़ा हो गया था. पुलिस अभी और सबूत हासिल करना चाहती थी ताकि सुहैल की बीवी से पूछताछ की जा सके.

एएसआई आर.एस. शर्मा ने सुहैल के घर के आसपास के रास्तों पर लगे सीसीटीवी की फुटेज चैक की. जल्द ही इस के अच्छे परिणाम सामने आए. पता चला कि 12 नवंबर की सुबह कोई 4 बजे सुहैल 4 बार अपनी एक्टिवा से निकला और एक निश्चित  दिशा में जा कर वापस आता हुआ दिखा. जाते समय हर बार उस की एक्टिवा पर प्लास्टिक का एक बोरा रखा था, जो सफेद रंग का था.

इतनी रात में किसी काम से आदमी का एक ही दिशा में 4-4 बार जाना संदेह पैदा कर रहा था. पता नहीं उन बोरों में वह क्या ले कर गया था.

पत्नी और बेटा आए संदेह के घेरे में

इस बारे में पुलिस ने सुहैल की पत्नी इशरत और बेटे अमन से पूछताछ की. इस पर उन का कहना था कि नशा कर के वह आधी रात में कहां आतेजाते थे, इस बारे में उन्हें कुछ नहीं पता. पूछने पर वह झगड़ा करने लगते थे, इसलिए उन से कोई बात नहीं करता था.

मुख्य संदिग्ध सुहैल की मृत्यु हो चुकी थी, इसलिए ये दोनों मांबेटे सारी बात उस के ऊपर टाल कर बच निकलना चाहते थे. लेकिन पुलिस उन की मंशा जान चुकी थी. उन के साथ वह सख्ती भी नहीं करना चाहती थी. लिहाजा पुलिस टीम ने उन रास्तों की जांच की जो सुहैल के घर से निकल कर आगे जाते थे. उन रास्तों से पुलिस कर्बला तक पहुंच गई. वहीं पर पुलिस को सीवन नदी में सफेद रंग के बोरे तैरते दिखे.

प्लास्टिक के उन बोरों के ऊपर मक्खियां भिनभिना रही थीं. अब शक करने की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. क्योंकि सुहैल भी हर बार अपनी एक्टिवा पर घर से सफेद रंग की प्लास्टिक के बोरे ले कर निकला था. पुलिस ने उन बोरों को बाहर निकाल कर खोला तो उन में से एक युवक का 8 टुकड़ों में कटा सड़ागला शव मिला. पुलिस को 3 बोरे मिल चुके थे. चौथा बोरा वहां नहीं था. यानी मृतक के पैर अभी नहीं मिले थे. पुलिस चौथे बोरे को भी तलाशती रही.

दूसरे दिन सुबह कुछ दूरी पर चौथी बोरा भी मिल गई, जिस में शव के पैर व खून सने कपड़े और जूते थे. इन अंगों को जब नरेश के भाई को दिखाया तो उस ने शव की पहचान अपने भाई नरेश के रूप में कर दी.

मामला अब सीहोर कोतवाली के हाथ आ चुका था, इसलिए एडीशनल एसपी समीर यादव के निर्देश पर टीआई संध्या मिश्रा की टीम ने सुहैल के घर की तलाश ली तो टीम को एक कमरे की दीवारों पर लगे खून के दाग मिल गए, जिन के नमूने जांच के लिए सुरक्षित रख लिए गए.

घर की दीवारों पर खून के धब्बे मिलने के अलावा नरेश वर्मा की लाश भी बरामद हो चुकी थी, इसलिए अब सुहैल की पत्नी और बेटे के सामने बच निकलने का कोई रास्ता नहीं था. पुलिस ने इशरत और उस के बेटे से पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि 11 नवंबर को किसी बात पर नरेश से विवाद हो जाने पर सुहैल ने नरेश की हत्या कर दी थी.

मांबेटे द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उन के घर से हत्या में प्रयुक्त चाकू और बांका के अलावा खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. दोनों से पूछताछ के बाद नरेश वर्मा की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार सामने आई—

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के कोठारी गांव के रहने वाले नरेश को बचपन से ही खेलों में रुचि थी. उम्र बढ़ने के साथ उस की खेलों में रुचि और भी बढ़ती गई. नतीजतन उस ने कराटे में ब्लैक बेल्ट हासिल कर लिया.

इस के अलावा वह पावर लिफ्टिंग जैसे खेल में भी बढ़चढ़ कर भाग लेने लगा. पावर लिफ्टिंग की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले कर मैडल भी हासिल किए. खेलों से उसे बेहद लगाव था, इसलिए वह इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहता था.

नरेश फंसा नशे और ग्लैमर के चक्कर में

जब उसे मनमुताबिक नौकरी नहीं मिली तो उस ने सीहोर में अपना खुद का जिम खोलने की कवायद शुरू कर दी. वैसे भी उस के पिता कोठारी गांव के संपन्न किसान थे, उस के पास पैसों की कमी नहीं थी. सीहोर में ही दूल्हा बादशाह रोड पर सुहैल अपने परिवार के साथ रहता था.

सुहैल कोकीन और ब्राउन शुगर बेचता था. वह कई सालों से नए युवकों को अपने जाल में फांस कर नशे का लती बना देता था. कोकीन और ब्राउन शुगर की तस्करी के आरोप में वह कई बार गिरफ्तार हो चुका था. लेकिन जमानत पर बाहर आने के बाद फिर अपने इसी धंधे से जुड़ जाता था. केवल सुहैल ही नहीं, इस काम में उस का पूरा परिवार संलिप्त था.

सुहैल पैसे वाले युवकों से दोस्ती कर उन्हें अपने घर बुलाता, जहां उस की पत्नी इशरत और खूबसूरत बेटी रुकैया पिता के इशारे पर उस युवक पर ऐसा जादू चलातीं कि वह बारबार उस के घर के चक्कर लगाने लगता था. जब सुहैल देखता कि शिकार उस के फैलाए जाल में फंस चुका है तो पहले वह उसे कोकीन या ब्राउन शुगर का फ्री में नशा करवाता था, फिर बाद में धीरेधीरे नशे की पुडि़या के बदले पैसे वसूलने लगता.

जब युवक को नशे की लत लग जाती तो उस की पत्नी और बेटी शिकार से दूरी बना लेती थीं. लेकिन तब तक उस युवक की चाह दूसरे सुख से अधिक नशे के सुख की बन जाती थी. इसलिए वह सुहैल का गुलाम बन कर रहने के लिए भी तैयार हो जाता था, जिस के बाद सुहेल उस से तो पैसा लूटता ही, साथ ही उस की मदद से दूसरे युवकों को भी अपने नशे का आदी बना देता था.

हुस्न और नशे के जाल में फंसा खिलाड़ी – भाग 1

घटना मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के आष्टा थाने की है. 12 नवंबर, 2018 को आष्टा के टीआई कुलदीप खत्री थाने में बैठे थे. तभी क्षेत्र के कोठरी गांव का हेमराज अपने गांव के कन्हैयालाल को साथ ले कर टीआई के पास पहुंचा. उस ने उन्हें अपने 29 वर्षीय बेटे नरेश वर्मा के लापता होने की खबर दी.

हेमराज ने बताया कि नरेश कराटे में ब्लैक बेल्ट होने के अलावा पावर लिफ्टिंग का राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी रह चुका है. वह सीहोर में अपना जिम खोलना चाहता था. जिम का सामान खरीदने के लिए वह सुबह 10 बजे के आसपास घर से 4 लाख रुपए ले कर निकला था.

उस ने रात 8-9 बजे तक घर लौटने को कहा था. लेकिन जब वह रात 12 बजे तक भी नहीं आया तो हम ने उस के मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की, पर उस का मोबाइल फोन बंद मिला. उस के दोस्तों से पता किया तो उन से भी नरेश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

नरेश के पास 4 लाख रुपए होने की बात सुन कर टीआई कुलवंत खत्री को मामला गंभीर लगा, इसलिए उन्होंने नरेश की गुमशुदगी दर्ज कर मामले की जानकारी एसपी राजेश चंदेल और एडीशनल एसपी समीर यादव को दे दी.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर टीआई खत्री ने जब हेमराज सिंह से किसी पर शक के बाबत पूछा तो उस ने बादशाही रोड पर रहने वाले सुहैल खान का नाम लिया. उस ने बताया कि सुहैल व उस के बेटे नरेश का वैसे तो कोई मेल नहीं था, इस के बावजूद काफी लंबे समय से नरेश का सुहैल के घर आनाजाना काफी बढ़ गया था.

सुहैल और नरेश की दोस्ती किस तरह बनी और बढ़ी थी, इस बात की जानकारी हेमराज को भी नहीं थी. परंतु लोगों में इस तरह की चर्चा थी कि सुहैल की खूबसूरत बेटी इस का कारण थी और घटना वाले दिन भी नरेश के मोबाइल पर सुहैल का कई बार फोन आया था.

हेमराज ने आगे बताया कि जब देर रात तक नरेश घर नहीं लौटा था तो हम ने सुहैल से ही संपर्क किया. उस ने बताया कि नरेश के बारे में उसे कुछ पता नहीं है. इतना ही नहीं नरेश का अच्छा दोस्त होने के बावजूद सुहैल ने उसे ढूंढने में भी रुचि नहीं दिखाई.

यह जानकारी मिलने के बाद एडीशनल एसपी समीर यादव ने सीहोर कोतवाली की टीआई संध्या मिश्रा को सुहैल की कुंडली खंगालने के निर्देश दिए. टीआई संध्या मिश्रा ने जब सुहैल के बारे में जांच की तो पता चला कि सुहैल कई बार नशीले पदार्थ बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है.

इस के बाद अगले ही दिन पुलिस ने सुहैल के घर दबिश डाली, लेकिन सुहैल घर पर नहीं मिला. घर में केवल उस की बीवी इशरत और बेटा अमन मिले. सुहैल के बारे में पत्नी ने बताया कि उन की तबीयत खराब हो गई थी और वह भोपाल के एलबीएस अस्पताल में भरती हैं.

‘‘उन की तबीयत को क्या हुआ?’’ पूछने पर परिवार वालों ने बताया, ‘‘कभीकभी अधिक नशा करने पर उन की ऐसी ही हालत हो जाती है. इस बार हालत ज्यादा खराब हो गई, जिस से वह कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे.’’

यह बात एडीशनल एसपी समीर यादव के दिमाग में बैठ गई. क्योंकि सुहैल की तबीयत उसी रोज खराब हुई, जिस रोज नरेश गायब हुआ था. दूसरे अब तक तो वह तबीयत खराब होने पर बातचीत करता था, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ कि वह बोल भी नहीं पा रहा था.

यादव समझ गए कि वह न बोल पाने का नाटक पुलिस पूछताछ से बचने के लिए कर रहा है, इसलिए उन्होंने आष्टा थाने के टीआई को जरूरी निर्देश दे कर सुहैल से पूछताछ के लिए भोपाल के एलबीएस अस्पताल भेज दिया.

सुहैल से पूछताछ के लिए टीआई कुलदीप खत्री एलबीएस अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने वार्ड में भरती सुहैल से पूछताछ की तो उस ने पुलिस की किसी बात का जवाब नहीं दिया.  तब टीआई अस्पताल से लौट आए, लेकिन उन्होंने उस पर नजर रखने के लिए सादे कपड़ों में एक कांस्टेबल को वहां छोड़ दिया.

पुलिस के जाने के कुछ देर बाद सुहैल जेब से मोबाइल निकाल कर किसी से बात करने लगा. यह देख कर कांस्टेबल चौंका और समझ गया कि सुहैल वास्तव में न बोलने का ढोंग कर रहा है. यह बात उस ने टीआई कुलदीप खत्री को बता दी.

अब टीआई समझ गए कि जरूर नरेश के लापता होने का राज सुहैल के पेट में छिपा है. लेकिन सुहैल इलाज के लिए अस्पताल में भरती था. डाक्टर की सहमति के बिना उस से अस्पताल में पूछताछ नहीं हो सकती थी. तब पुलिस ने सुहैल के बेटे और पत्नी को पूछताछ के लिए उठा लिया.

सांप की पूंछ पर पैर रखो तो वह पलट कर काटता है, लेकिन पैर अगर उस के फन पर रखा जाए तो वह बचने के लिए छटपटाता है. यही इस मामले में हुआ.

जैसे ही सुहैल को पता चला कि पुलिस उस के बीवी बच्चों को थाने ले गई है तो वह खुदबखुद स्वस्थ हो गया. इतना ही नहीं, अगले दिन ही वह अस्पताल से छुट्टी करवा कर पहले घर पहुंचा और वहां से सीधे आष्टा थाने जाने के लिए रवाना हुआ. सुहैल भी कम शातिर नहीं था. वह किसी तरह पुलिस पर दबाव बनाना चाहता था. इसलिए आष्टा बसस्टैंड से थाने की तरफ जाने से पहले उस ने सल्फास की कुछ गोलियां मुंह में डाल लीं.

पुलिस को धोखा देने के चक्कर में मौत

सल्फास जितना तेज जहर होता है, उतनी ही तेज उस की दुर्गंध भी होती है. सुहैल का इरादा कुछ देर मुंह में सल्फास की गोली रखने के बाद बाहर थूक देने का था, ताकि जहर अंदर न जाए और उस की दुर्गंध मुंह से आती रहे, जिस से डर कर पुलिस उस से ज्यादा पूछताछ किए बिना ही छोड़ दे. हुआ इस का उलटा. मुंह में रखी एक गोली हलक में अटकने के बाद सीधे पेट में चली गई. इस से वह घबरा गया. उस ने तुरंत थाने पहुंचने की सोची, लेकिन थाने से बाहर कुछ दूरी पर गिर कर तड़पने लगा.

पुलिस को इस बात की खबर लगी तो उसे पहले आष्टा, फिर सीहोर अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन उपचार के दौरान सुहैल की मौत हो गई. सुहैल की मौत हो जाने से पुलिस को सुहैल की बीवी और बेटे को छोड़ना पड़ा. अब तक पुलिस पूरी कहानी समझ चुकी थी. नरेश के साथ जो कुछ भी हुआ है, उस में सुहैल और उस के परिवार का ही हाथ है.

हकीकत यह जानते हुए भी एडीशनल एसपी समीर यादव को कुछ दिनों के लिए जांच का काम रोक देना पड़ा. कुछ दिन बाद फिर जांच आगे बढ़ी तो सुहैल की बीवी और बेटे से पूछताछ की गई. लेकिन वे कुछ भी जानने से इनकार करते रहे.

बहू के भेष में आयी मौत

उत्तर प्रदेश जिला फिरोजाबाद के थाना शिकोहाबाद का एक गांव है औरंगाबाद. यहां के निवासी राजाराम बघेल के बेटे राकेश कुमार की उम्र काफी हो गई थी, लेकिन किसी वजह से उस की शादी नहीं हो पा रही थी. मांबाप को बेटे की शादी की चिंता सता रही थी. वे लोग चाहते थे कि किसी तरह राकेश का घर बस जाए. उन्होंने यह इच्छा अपने रिश्तेदारों को भी बता रखी थी.

राजाराम की रिश्ते की एक बहन रज्जो की बेटी रेनू आगरा के पास एत्मादपुर कस्बे में ब्याही थी. एक दिन रेनू ने बातों ही बातों में अपनी पड़ोसन को बताया कि उस के रिश्ते का एक भाई है राकेश, जिस की अभी तक शादी नहीं हुई है. कोई लड़की हो तो बताना.

पड़ोसन ने कुछ सोचते हुए कहा कि वह इटावा के पास जसवंतपुर में रहने वाली पूजा नाम की एक लड़की को जानती है. लड़की सुंदर और भले परिवार की है. लेकिन उस बेचारी के मांबाप नहीं हैं. तुम कहो तो मैं उस से बात कर सकती हूं. लेकिन एक बात और है, यदि बात बन गई तो शादी का दोनों तरफ का खर्चा राकेश के घर वालों को ही करना पड़ेगा.

रेनू ने यह बात मामा राजाराम को बताई तो वह उम्मीद की इस किरण को खोना नहीं चाहते थे. लिहाजा वह बेटे का घर बसाने के लिए दोनों तरफ का खर्चा करने के लिए तैयार हो गए. राजाराम एत्मादपुर में रेनू के यहां चले गए. उन्होंने शादी की बात चलाने वाली उस महिला से बात की तो उस महिला ने 40 हजार रुपए का खर्च बताया. इस के लिए राजाराम तैयार हो गए.

शादी के लिए रेनू ने अपनी पड़ोसन को 40 हजार रुपए मामा राजाराम से दिलवा दिए. दोनों पक्षों में आपसी रजामंदी से तय हुआ कि शादी मंदिर में करा ली जाए तो ठीक रहेगा. इस से शादी का अनावश्यक खर्चा बच जाएगा. और जो 40 हजार रुपए दिए हैं, उन से पूजा के लिए कपड़े, जेवर आदि खरीद लिए जाएंगे. बातचीत में तय हो गया कि शादी फिरोजाबाद के एक मंदिर में संपन्न करा ली जाएगी.

17 नवंबर, 2018 को दोनों पक्ष फिरोजाबाद के एक मंदिर में पहुंच गए. शादी में राकेश के कुछ रिश्तेदारों के साथ ही लड़की पूजा के चाचा, भाई व कुछ अन्य रिश्तेदार शामिल हुए. रीतिरिवाज से राकेश और पूजा का विवाह संपन्न हो गया.

शादी संपन्न होने के बाद दुलहन को विदा करा कर राकेश अपने घर औरंगाबाद गांव लिवा लाया. दूसरे दिन शादी की अन्य रस्मों के साथ ही कंगन खुलने की रस्म संपन्न हुई. घर में खुशी का माहौल था. शादी के बाद राकेश के मन में खुशी के लड्डू फूट रहे थे.

18 नवंबर को पूजा का भाई भी उस से मिलने आ गया. रात 8 बजे नईनवेली दुलहन पूजा ने घर का खाना खुद बनाया. घर में सास कंठश्री, ससुर राजाराम के अलावा पति राकेश ही था. सभी को खाना खिलाने के बाद बहू ने सोते समय सभी को पीने को दूध भी दिया.

बहू के इस व्यवहार से सभी खुश थे. घर के सब काम निपटाने के बाद पूजा भी पति के कमरे में चली गई. जहां राकेश उस का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था. दुलहन के आते ही राकेश ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. इस के बाद वह कुछ देर पूजा से बात करता रहा. बातचीत करते हुए उसे 10 मिनट ही हुए होंगे कि राकेश को नींद आने लगी.

अगले दिन जब राकेश की आंखें खुलीं तो वह शिकोहाबाद के जिला संयुक्त अस्पताल में था. राकेश को पता चला कि उस के अलावा उस के मातापिता भी वहां भरती हैं. सभी को बेहोशी की हालत में वहां पड़ोसियों ने भरती कराया था. अस्पताल से छुट्टी मिली तो वे लोग घर पहुंचे तो वहां न तो उस की पत्नी थी और न ही पत्नी का भाई.

दोनों भाईबहन के वहां न होने पर राकेश को चिंता हुई. घर में तलाशी लेने पर उसे पता चला कि उस के घर में रखे 80 हजार रुपए, सोनेचांदी की ज्वैलरी, नए कपड़ों के अलावा उस की मोटरसाइकिल भी गायब थी. इस का मतलब साफ था कि दोनों भाईबहन यह सामान ले कर रफूचक्कर हो चुके थे. फिर तो यह बात जंगल की आग की तरह पूरे गांव में फैल गई और गांव में लुटेरी दुलहन की चर्चा होने लगी.

किसी ने इस मामले की सूचना थाना शिकोहाबाद को दी तो थानाप्रभारी लोकेश भाटी भी औरंगाबाद में राजाराम के घर पहुंच गए. उन्होंने राकेश से घटना की जानकारी ली. थानाप्रभारी भी समझ गए कि दुलहन के रूप में उस के घर आई पूजा ही योजनाबद्ध तरीके से घर में लूटपाट कर सामान ले गई. इसलिए उन्होंने राकेश की तहरीर पर भादंवि की धारा 328, 380, 420, 34 व 411 के तहत मुकदमा दर्ज कर के मामले की पड़ताल शुरू कर दी.

उन्होंने इस की सूचना एसपी सचिंद्र पटेल को भी दे दी. एसपी सचिंद्र पटेल ने आरोपियों की तलाश के लिए एसपी (ग्रामीण) महेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में सीओ अजय सिंह चौहान, थानाप्रभारी लोकेश भाटी, क्राइम ब्रांच प्रभारी कुलदीप सिंह आदि को शामिल किया गया.

शादी के दौरान राकेश के रिश्तेदारों ने पूजा और उस के परिजनों के कुछ फोटो अपने मोबाइल से खींच लिए थे. उन्होंने वह फोटो पुलिस को सौंप दिए. उन फोटो के आधार पर पुलिस ने मुखबिरों के माध्यम से लुटेरी दुलहन पूजा और उस के परिजनों को तलाशना शुरू कर दिया.

जिस महिला के माध्यम से यह शादी हुई थी, पुलिस ने उस महिला से भी पूछताछ की. वह महिला पुलिस को इटावा जिले के जसवंतनगर गांव में स्थित पूजा के घर पर भी ले गई, लेकिन वहां पूजा नहीं मिली.

पुलिस अपने स्तर से पूजा की तलाश कर रही थी, पर वह नहीं मिली. लेकिन इस जांच के दरम्यान पुलिस को एक महत्त्वपूर्ण जानकारी जरूर मिल गई. पता चला कि राकेश के साथ शादी रचा कर लूट करने वाली दुलहन पूजा जसवंतनगर की नहीं बल्कि जिला फिरोजाबाद के थाना रामगढ़ के अब्बास नगर निवासी सलीम की पत्नी रुखसाना है.

पुलिस ने बिना देरी किए अब्बास नगर में सलीम के घर दबिश डाल दी. उस समय रुखसाना घर पर ही मिल गई. महिला सिपाही प्रेमवती शर्मा ने उसे हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर रुखसाना से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि उस का नाम पूजा नहीं रुखसाना है और राकेश के यहां हुई लूट की घटना से उस का कोई संबंध नहीं है. जबकि शादी के फोटो से उस का चेहरा मेल खा गया. उस की बातचीत से लग रहा था कि वह झूठ बोल रही है. लिहाजा पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की.

सख्ती से पूछताछ करने पर रुखसाना टूट गई. उस ने न सिर्फ अपना यह अपराध स्वीकार किया बल्कि इस घटना में शामिल अपने गिरोह के साथियों के नाम भी पुलिस को बता दिए.

पूजा उर्फ रुखसाना द्वारा बताए गए साथियों को गिरफ्तार करने के लिए थानाप्रभारी ने एसआई शेर सिंह, हैडकांस्टेबल मनोज कुमार, महिला कांस्टेबल प्रेमवती शर्मा आदि की एक टीम क्राइम ब्रांच प्रभारी कुलदीप सिंह के नेतृत्व में भेजी.

टीम ने शिकोहाबाद के गांव लभौआ निवासी मुकेश कुमार, थाना रामगढ़ के छपरिया निवासी जुबैर, इटावा जिले के गांव टिमरुआ निवासी अनिल कुमार तथा थाना रामगढ़ के प्रतापनगर निवासी मनोहर सिंह को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को इन के कब्जे से 12,350 रुपए नकद, राकेश के यहां से लूटे गए सोने के कुछ आभूषण व राकेश की चुराई गई बाइक भी बरामद कर ली. इन से पूछताछ में जो कहानी आई, वह इस प्रकार निकली—

यह 5 लोगों का गिरोह था, जो ऐसे युवकों को अपना शिकार बनाता था जिन की किसी वजह से शादी नहीं हो पा रही होती थी. पूजा उर्फ रुखसाना दुलहन बनती थी, जबकि अनिल कुमार व मुकेश कुमार मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे. जुबैर दुलहन का भाई व वृद्ध मनोहर सिंह फरजी दुलहन के चाचा की भूमिका निभाता था.

इसी तरह इन्होंने राजाराम के बेटे राकेश को फांसा था. 17 नवंबर को जब राकेश की शादी पूजा उर्फ रुखसाना से हुई, तो ये चारों लोग निश्चित समय पर मंदिर भी गए थे. शादी के बाद पूजा जब राकेश के घर पहुंची तो योजनानुसार जुबैर 18 नवंबर को शाम के समय राकेश के घर पहुंच गया.

जुबैर अपने साथ नशीला पाउडर ले कर गया था. दूध में नशीला पाउडर मिला कर राकेश, उस के पिता राजाराम व मां कंठश्री को रात में दे दिया गया. तीनों के बेहोश होते ही दुलहन बनी पूजा और नकली भाई जुबैर ने संदूक व अलमारी की तलाशी ली. उन्होंने उस में रखे नए कपड़े, 80 हजार रुपए की नकदी और ज्वैलरी निकाल ली. फिर दोनों राकेश की मोटरसाइकिल ले कर वहां से रफूचक्कर हो गए.

अभियुक्तों ने बताया कि उन के दिमाग में यह आइडिया अभिनेत्री सोनम कपूर की सन 2015 में आई फिल्म ‘डौली की डोली’ से आया था. जल्द पैसा कमाने के लिए इन लोगों ने भी गैंग बनाया.

गैंग का सदस्य मुकेश कुमार शादी कराने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाता था. रुखसाना पैसों के लालच में इस काम के लिए तैयार हो गई. रुखसाना 4 बच्चों की मां थी. पर अपनी शारीरिक बनावट से ऐसी नहीं दिखती थी.

लड़के पक्ष को बताया जाता कि यह बिना मांबाप की लड़की है. इसलिए शादी का खर्च भी यह दूल्हा पक्ष से ले लेते थे. इस तरह वह जिले के अनेक लोगों को अपना निशाना बना चुके थे. लूटे हुए माल को सभी आपस में बांट लेते थे.

पांचों आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद एसपी (देहात) महेंद्र सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के केस का खुलासा किया. उन्होंने बताया कि जिस महिला के सहयोग से राकेश की शादी कराई गई थी, उस पर भी शक किया जा रहा है. इस के अलावा गिरोह में और भी लोगों के शामिल होने की आशंका व्यक्त की जा रही है. जांच के बाद जो भी आरोपी होगा, उसे गिरफ्तार कर जेल भेजा जाएगा.

पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. उधर राकेश के पिता राजाराम की अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद फिर से तबीयत खराब रहने लगी. उन्हें शायद दूध में ज्यादा मात्रा में नशीला पदार्थ मिला दिया था, जिस से घटना के 20 दिन बाद 4 दिसंबर, 2018 को उन की मौत हो गई.

राजाराम की मौत हो जाने पर पुलिस ने केस में हत्या की धारा भी जोड़ दी. पुलिस मामले की जांच कर रही है. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में बंद थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सरकारी कारतूसों का नक्सली कनेक्शन

कारतूस कांड घोटाले का संबंध 6 अप्रैल, 2010 की एक हिंसक घटना से है. उस रोज दिनदहाड़े छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा इलाके में एक बड़ा नक्सली हमला हुआ था, जिस में सीआरपीएफ की एक टुकड़ी पर नक्सलियों ने अंधाधुंध गोलियां चला दी थीं.

इस हमले में कुल 76 जवान घटनास्थल पर ही मारे गए थे. इतनी बड़ी घटना से पूरे देश में हाहाकार मच गया था. सामान्य तौर पर नक्सली बारूदी विस्फोट करते रहे हैं या फिर जमीन के नीचे विस्फोटक बिछा देते थे. जबकि यह मामला सीधे गोलियां बरसाने का था.

इस की एसटीएफ द्वारा गहन जांच की जाने लगी तभी इस सिलसिले में एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. घटनास्थल पर बरामद सैकड़ों कारतूस पुलिस द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले यानी प्रतिबंधित थे. इस का सीधा अर्थ था कि नक्सलियों ने पुलिस से सांठगांठ कर गोलियां हासिल कर ली थीं. वे गोलियां 9 एमएम बोर की थीं. फिर क्या था, इस के बाद तो केंद्र समेत कई राज्य सरकारों के कान खड़े हो गए.

मामले की जांच उत्तर प्रदेश की एसटीएफ को सौंपी गई. एसटीएफ की टीम ने बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत प्रदेश के कई जिलों में छापेमारी शुरू कर दी.

एसआई की डायरी ने खोले राज

एसटीएफ की टीम ने घटना के 3 सप्ताह बाद 29 अप्रैल, 2010 को रामपुर सिविल लाइंस थाना क्षेत्र के ज्वालानगर में रेलवे क्रौसिंग के पास छापेमारी की. तब सीआरपीएफ के 2 हवलदार विनोद पासवान और विनेश कुमार को गिरफ्तार किया था. उन के पास से कारतूस, राइफल और नकदी बरामद की गई थी.

इस के बाद एसटीएफ ने दोनों की निशानदेही पर अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया था. गिरफ्तार लोगों में पीएसी से रिटायर्ड दरोगा यशोदानंद भी शामिल था.

यही नहीं, एसटीएफ ने तीनों के कब्जे से 1.76 लाख रुपए और ढाई क्विंटल कारतूस के खोखे, मैगजीन और हथियारों के पुरजे बरामद किए थे.

इस मामले में एसटीएफ के दरोगा आमोद कुमार सिंह की तहरीर पर सिविल लाइंस रामपुर की कोतवाली में केस दर्ज किया गया था. उस समय रामपुर के एसपी रमित शर्मा थे. उन्होंने मामले को गंभीरता से लिया था और वर्तमान समय में प्रयागराज पुलिस कमिश्नर ने घटना की जांच अपनी निगरानी में शुरू करवाई थी. जांच के इस क्रम में टीम को यशोदानंद के पास से एक डायरी मिली थी.

यशोदानंद की डायरी में कई जिलों के पुलिस और पीएसी के जवानों के नाम लिखे थे. दरअसल, यशोदानंद उन से खोखा और कारतूस खरीदता था. एसपी ने डायरी के आधार पर सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था. कुल 25 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई थी. जांच और पूछताछ में करीब एक साल का वक्त लग गया था.

आखिरकार कोर्ट ने इस मामले में 31 मई, 2013 को आरोप तय कर दिया था. हालांकि इस के बाद केस की जब सुनवाई शुरू हुई, तब कोर्ट से सभी आरोपियों को जमानत मिल गई थी. केस की सुनवाई के दौरान ही इस मामले के सूत्रधार यशोदानंद की मौत हो गई थी.

इस तरह कारतूस घोटाले के जिन आरोपियों पर नक्सलियों से संबंध के भी आरोप लगे थे, वह एक गिरोह की तरह काम करते थे.

उस गिरोह का सरगना पीएसी का रिटायर्ड दरोगा यशोदानंद था, जबकि दूसरे सहयोगियों में पुलिस और पीएसी के जो 20 जवान रहे, वे हैं- (1) विनोद पासवान, निवासी महादेवगढ़, थाना भदोह, जिला पटना, बिहार. (2) विनेश, निवासी ग्राम धीमरी, थाना मझोला, जिला मुरादाबाद, यूपी. (3) दिनेश कुमार, निवासी गांव सुधनीपुर कलां, थाना सराय इनायत, प्रयागराज, यूपी. (4) वंशलाल, निवासी वीरपुर, थाना घाटमपुर, जिला, कानपुर नगर, यूपी. (5) अखिलेश पांडेय, निवासी रेकबार डीह, थाना सराय लखन, जिला मऊ, यूपी. (6) रामकृपाल सिंह, निवासी बिशनुपुरा, थाना बिरियारपुर, जिला देवरिया, यूपी. (7) नाथीराम सैनी, निवासी जलालपुर, थाना भवन, जिला शामली. (8) रामकृष्ण शुक्ल, निवासी सुगौना, थाना हरपुर बुधहट, जिला गोरखपुर. (9) अमर सिंह, निवासी चांद बेहटा, थाना कोतवाली नगर, जिला हरदोई. (10) बनवारी लाल, निवासी विजीदपुर, थाना फतेहपुर चौरासी, जिला उन्नाव. (11) राजेश कुमार सिंह, निवासी सोहगप, पूरनपट्टी थाना गुढऩी, जिला सीवान, बिहार. (12) राजेश शाही, निवासी हरैया, थाना तटकुलवा, जिला देवरिया. (13) अमरेश कुमार, निवासी देवनगर, थाना शिवली, जिला कानपुर देहात. (14) विनोद कुमार सिंह, निवासी उमती, थाना रानीपुर, जिला मऊ. (15) जितेंद्र सिंह, निवासी शेखपुरा, थाना बक्सा, जिला जौनपुर. (16) सुशील कुमार मिश्र, निवासी बजेटा, थाना लालगंज बनकटी, जिला बस्ती. (17) ओमप्रकाश सिंह, निवासी रघुनाथपुर, थाना खुरहजा बबुरी, जिला चंदौली. (18) लोकनाथ निवासी, विहिवा कलां, थाना कोतवाली, जिला चंदौली. (19) मनीष कुमार राय, निवासी पई, थाना भंडवा, जिला चंदौली. (20) रजयपाल सिंह, निवासी किशनपुर, थाना बकेवर, जिला फतेहपुर.

21 पुलिस जवानों को हुई सजा

इन पर भले ही  नक्सलियों को कारतूस की सप्लाई के आरोप लगे, लेकिन पुलिस आरोपियों और नक्सलियों के बीच के संपर्क को कोर्ट में साबित करने में नाकाम रही. बचाव पक्ष ने पुलिस पर ही सभी आरोपियों को झूठे केस में फंसाने का आरोप लगाया था. तब अभियोजन पक्ष की ओर से सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता प्रताप सिंह मौर्य और अमित कुमार ने केस की पैरवी करते हुए 9 गवाह पेश किए थे.

साल 2013 में भले ही आरोपियों पर दोष साबित नहीं हो पाया हो, लेकिन यह मामला बना रहा और आरोपियों से पूछताछ और घटनाक्रम की जांचपड़ताल जारी रही. अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि एसटीएफ ने मौके से आरोपियों की गिरफ्तारी की. कारतूस और दूसरे संदिग्ध सामान भी बरामद किए गए. यशोदानंद अलगअलग जिलों में तैनात आर्मरों से खोखा कारतूस खरीद कर नक्सलियों को सप्लाई करता था.

पूछताछ में नाथीराम सैनी ने गिरोह के कारनामे का खुलासा कर दिया. वह बी.आर. अंबेडकर पुलिस अकादमी, मुरादाबाद में आर्मर हैडकांस्टेबल था. उसे एसटीएफ ने मुरादाबाद रेलवे स्टेशन के बाहर से गिरफ्तार किया था. नाथीराम ने बताया कि कैसे उस की मदद से पुलिस ने कारतूस घोटाले को अंजाम दिया था.

मुरादाबाद की पुलिस अकादमी में सबइंसपेक्टर की ट्रेनिंग होती है. पुलिस रंगरूटों को अभ्यास के लिए फायरिंग रेंज में निशाना लगाना होता है. प्रत्येक रंगरूट को निशाने के लिए 7 कारतूस मिलते थे. जबकि वह रिकौर्ड में 7 की जगह 70 दर्ज कर देता था. इस रिपोर्ट को वह अपने सीनियर अफसर को भेज देता था. इसी तरह के काम पीएसी और सीआरपीएफ के कुछ जवान भी करते थे.

शस्त्रागार से कारतूसों की हेराफेरी का यह अनोखा तरीका तब तक किसी की नजर में नहीं आया था. जबकि इस से जवान मोटी रकम हासिल कर लेते थे. कारतूस घोटाले का मास्टरमाइंड रिटायर्ड दरोगा यशोदानंद पुलिस, पीएसी और सीआरपीएफ में फायरिंग अभ्यास के बाद निकलने वाले खाली कारतूस खोखों को भी खरीद लेता था. इस के लिए वह पुलिस पीएसी और सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर के आर्मर के संपर्क में रहता था.

इस की विस्तृत जांच रिपोर्ट तत्कालीन एसपी रमित शर्मा ने बनाई थी और वह थाना सिविल लाइंस के तत्कालीन एसएचओ रईस पाल सिंह को सौंप दी थी. इस में एसआई देवकी नंदन गुप्ता को भी एसपी रमित शर्मा का सहयोगी बनाया गया था. देवकीनंदन ने ही विभिन्न जिलों से 21 पुलिस जवान और 4 अन्य आम नागरिकों को पकड़वाया था.

दोनों पक्षों की सुनवाई का महत्त्वपूर्ण दिन 12 अक्तूबर, 2023 को रामपुर की कचहरी के अपर जिला एवं स्पैशल जज (ईसी) की अदालत का था. इस मामले को सुनने के बाद स्पैशल जज विजय कुमार ने सभी आरोपियों को सरकारी संपत्ति चोरी करने, चोरी का माल बरामद होने और षडयंत्र रचने की धाराओं में दोष सिद्ध कर दिया.

अगले दिन 13 अक्तूबर को उन्हें सजा सुनाई जानी थी. दिन के 10 बज चुके थे. जिला न्यायाधीश विजय कुमार अपने चैंबर में प्रवेश कर चुके थे. कुछ समय में वह अदालत में दाखिल हो गए. अदालत कक्ष खचाखच भरा हुआ था. परिसर में पुलिसकर्मी, मीडियाकर्मी, आरोपियों के परिजनों का भी जमावड़ा लगा हुआ था.

अदालत की काररवाई शुरू हो चुकी थी. पेशकार ने न्यायाधीश महोदय के सामने केस की फाइलें रख दी थीं. उन्होंने सामने रखी फाइलों को खोल कर कुछ कागजात देखते हुए सामने खड़े सरकारी वकील प्रताप सिंह मौर्य और अमित सक्सेना से मामले के बारे में बताने को कहा था.

इस दौरान बचाव पक्ष के वकील शंकर लाल लोधी, पी.के. नंदा, सुधीर सरन कपूर, विनीत चौधरी भी मौजूद थे. उन की दलीलों को न्यायाधीश ने नहीं माना. बचाव पक्ष से सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर, रामपुर के तत्कालीन असिस्टेंट कमांडर जे.एन. मिश्रा को भी अदालत ने तलब किया था. वर्तमान में जे.एन. मिश्रा कश्मीर के पुलवामा में तैनात हैं.

सीआरपीएफ जवानों के अनुरोध पर उन की कोर्ट में गवाही हुई थी. घटना के समय वह सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर, रामपुर में तैनात थे. अपनी गवाही में असिस्टेंट कमांडर जे.एन. मिश्रा ने सीआरपीएफ जवानों को बचाने का प्रयास किया. उन्होंने कहा था कि घटना के समय जवानों की मौजूदगी सीआरपीएफ कैंपस में ही थी, लेकिन अदालत ने उन के बयान को नकार दिया था.

सरकारी वकील ने पिछली सुनवाई में 9 गवाहों के बयानों के चलते अभियुक्तों के बच जाने का हवाला देते हुए नई रिपोर्ट के आधार पर संक्षिप्त जानकारी दी और उन्हें सख्त से सख्त सजा देने की गुजारिश की. इस आधार पर ही बीते दिन 12 अक्तूबर को आरोपियों को दोषी ठहराया गया था.

दोषी ठहराए गए 20 जवानों के अलावा  4 आम लोगों को भी इस मामले में दोषी ठहराया गया था. इस में बिहार के रोहतास के डेहरीआन सोन के तेंदवा थाना के मुरलीधर शर्मा, मऊ के हलधर थाना के अगडीपुर गांव निवासी दिलीप कुमार एवं आकाश और गाजीपुर जिले के थाना बिरनो के बद्ïदूपुर गांव निवासी शंकर हैं.

उत्तर प्रदेश के रामपुर कारतूस कांड में सभी आरोपियों को 10-10 साल की कैद की सजा के साथसाथ 10-10 हजार रुपए का जुरमाना भी लगाया गया. इस के अलावा सीआरपीएफ के दोनों हवलदारों विनाद कुमार पासवान और विनेश कुमार को आम्र्स ऐक्ट में 7-7 साल की सजा और 10-10 हजार का जुरमाना भी लगाया. सभी को अदालत से ही दोपहर बाद सीधा जेल भेज दिया गया.