Social Crime : बीटेक छात्रा से रेप करने के बाद सबूत मिटाने के लिए कपड़े और फोन को जलाया

Social Crime : अपराधी प्रवृत्ति का राहुल हत्या और बलात्कार के मामले में पकड़ा गया और उसे जेल भेज दिया गया. लेकिन वह पैरोल पर आ कर भाग निकला. उस ने कई लड़कियों के साथ व्यभिचार किया और उन्हें मार डाला. ऐसे खतरनाक अपराधी…

झारखंड की राजधानी रांची स्थित सीबीआई कोर्ट के जज ए.के. मिश्र की अदालत में 22 दिसंबर, 2019 को कुछ ज्यादा ही भीड़ थी. वकीलों के अलावा कुछ अन्य लोग भी अदालत की काररवाई शुरू होने से पहले कोर्टरूम में पहुंच चुके थे. अदालत परिसर में तमाम मीडियाकर्मी भी थे. दरअसल, उस दिन रांची के बहुचर्चित बीटेक की छात्रा माही हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. करीब 3 साल पहले हुई हत्या की यह वारदात काफी दिनों तक मीडिया की सुर्खियों में रही थी. जब थाना पुलिस इस केस को नहीं खोल सकी तो यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था. सीबीआई इंसपेक्टर परवेज आलम की टीम ने लंबी जांच के बाद न सिर्फ इस केस का परदाफाश किया, बल्कि आरोपी राहुल कुमार उर्फ राहुल राज उर्फ आर्यन उर्फ रौकी राज उर्फ अमित उर्फ अंकित को भी गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.

पता चला कि रेप की वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी फरार हो जाता था या नाम बदल कर कहीं दूसरी जगह रहने लगता था. इस तरह वह एकदो नहीं, बल्कि 10 लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बना चुका था. एक तरह से वह साइको किलर बन चुका था. इस वहशी दरिंदे के खिलाफ सीबीआई की विशेष अदालत में केस चल रहा था. सीबीआई की ओर से इस मामले में 30 गवाह पेश किए गए थे. जज ए.के. मिश्र ने तमाम गवाह और सबूतों के आधार पर 30 अक्तूबर, 2019 को छात्रा माही हत्याकांड में आरोप तय करते हुए राहुल कुमार को दोषी ठहराया. उन्होंने सजा सुनाए जाने के लिए 22 दिसंबर, 2019 का दिन निश्चित किया.

सीबीआई की विशेष अदालत में 22 दिसंबर को जितने भी लोग बैठे थे, उन सभी के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था कि जज साहब साइको किलर राहुल कुमार को क्या सजा सुनाएंगे. इस वहशी दरिंदे ने जिस तरह कई लड़कियों की जिंदगी तबाह की थी, उसे देखते हुए उन्हें उम्मीद थी कि उसे फांसी की सजा दी जानी चाहिए. राहुल कुमार कौन है और वह कामुक दरिंदा कैसे बना, यह जानने के लिए उस के अतीत को जानना होगा. 25 वर्षीय राहुल कुमार बिहार के नालंदा जिले के एकंगर सराय थाना क्षेत्र के गांव धुर का रहने वाला था. उस के पिता उमेश प्रसाद पेशे से आटो चालक थे. 3 भाईबहनों में राहुल सब से बड़ा था.

कहते हैं कि पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं. ऐसा ही कुछ राहुल के साथ भी हुआ. बचपन से ही राहुल जिद्दी और झगड़ालू किस्म का था. वह एक बार जो करने की ठान लेता था, उसे पूरा कर के ही मानता था. इस दौरान वह किसी की भी नहीं सुनता था. मांबाप की डांटफटकार का भी उस पर कोई असर नहीं होता था. राहुल जैसेजैसे बड़ा होता गया, उस की संगत आवारा किस्म के लड़कों से होती गई. घर से उस का मतलब केवल 2 वक्त की रोटी से होता था. जब उस के पिता उमेश प्रसाद आटो ले कर शहर की ओर निकलते, वह भी घर से निकल जाता था. फिर दिन भर आवारा दोस्तों के साथ घूमता रहता था.

बचपन से ही जिद्दी आवारा था राहुल मटरगश्ती करने के लिए वह मां से जबरन पैसे लिया करता था. अगर मां उसे पैसे नहीं देती तो वह लड़झगड़ कर पैसे छीन लेता था. दिन भर दोस्तों के बीच घूमनेफिरने के बाद वह शाम ढलने पर घर लौटता था. घर का वह एक काम तक नहीं करता था, रात को जब आटो चला कर उमेश प्रसाद घर लौटता तो उस की पत्नी राहुल की दिन भर की शिकायतों की पोटली खोल कर बैठ जाती. उमेश राहुल को डांटता और समझाता, पर पिता की बातों को वह अनसुना कर देता. ऐसे में उमेश माथे पर हाथ रख कर चिंता में डूब जाता.

उमेश प्रसाद ने राहुल को समझाने और सही राह पर लाने के बहुत उपाय किए, लेकिन राहुल सुधरने के बजाए दिनबदिन जरायम की दलदल में उतारता गया. शुरुआत उस ने अपने घर के पैसे चुराने से की थी. इस के बाद उस ने औरों के घरों में भी चोरी करनी शुरू की. भेद न खुलने पर उस की हिम्मत बढ़ती गई. चोरी के साथसाथ राहुल लड़कियों को अपनी हवस का शिकार भी बनाने लगा. बात सन 2012 की है. राहुल ने पटना के जीरो रोड पर स्थित एक घर में चोरी की. इतना ही नहीं, उस ने वहां एक युवती को अपनी हवस का शिकार भी बनाया. युवती से दुष्कर्म के मामले में 29 जून, 2012 को उसे बेउर जेल भेजा गया. जब वह जेल में था, तभी उस के चाचा की मौत हो गई. श्राद्धकर्म में शामिल होने के लिए वह 4 सितंबर, 2016 को पैरोल पर अपने गांव गया, उस समय वह पुलिस की सुरक्षा में था.

श्राद्धकर्म के बाद शातिर राहुल ने सिपाहियों को शराब पिलाई और अनुष्ठान का बहाना बना कर फरार हो गया. इस के बाद पुलिस उसे छू तक नहीं सकी. पुलिस अभिरक्षा से फरार होने के बाद उस ने जो कांड किया, उस ने समूचे झारखंड को हिला कर रख दिया. राहुल नालंदा से भाग कर रांची आ गया था और वहां वह नाम बदल कर राज के नाम से रहने लगा. राहुल हर बार जुर्म करने के बाद अपना नाम बदल लेता था, ताकि पुलिस उस तक आसानी से न पहुंच सके. खैर, वह राहुल से राज बन कर रांची की बूटी बस्ती में पीतांबरा पैलेस के सामने वाली गली में स्थित दुर्गा मंदिर के कमरे में रहने लगा. यहां उस ने मंदिर कमेटी के पदाधिकारियों से आग्रह किया था. कमेटी के बंटी नामक युवक ने उस पर तरस खा कर वहां रखवाया था.

यहां रह कर राहुल उर्फ राज कमरा खोजने लगा. कमरे की तलाश में वह बीटेक की छात्रा माही के घर पहुंच गया. लेकिन वहां कमरा किराए पर नहीं मिला. राहुल का मुख्य पेशा चोरी था. उसे घूमतेघूमते पता चल गया कि माही के घर में सिर्फ लड़कियां रहती हैं. उस दिन के बाद से वह आतेजाते माही का पीछा करने लगा. माही इतनी खूबसूरत थी कि एक ही नजर में उस पर मर मिटा था. 23 वर्षीया माही मूलरूप से झारखंड के बरकाकाना जिले के थाना सिल्ली क्षेत्र की रहने वाली थी. उस के पिता संजीव कुमार बरकाकाना में सेंट्रल माइन प्लानिंग ऐंड डिजाइन इंस्टीट्यूट लिमिटेड (सीएमपीडीआई) में नौकरी करते थे.

संजीव कुमार की 2 बेटियां रवीना और माही थीं. दोनों पढ़ने में अव्वल थीं. इसीलिए पिता संजीव भी उन्हें उन के मनमुताबिक पढ़ाना चाहते थे. वह अपनी बेटियों पर पानी की तरह पैसे बहा रहे थे. बच्चों के भविष्य के लिए संजीव कुमार ने सन 2005 में रांची की बूटी बस्ती में एक प्लौट खरीदा था. उस पर उन्होंने घर भी बनवा दिया था. घटना से करीब 2 साल पहले यानी 2017 में उन की दोनों बेटियां रवीना और माही वहीं रह कर पढ़ाई करती थीं. संजीव और परिवार के अन्य सदस्य बरकाकाना में रहते थे. बड़ी बेटी रवीना रांची शहर के एक प्रतिष्ठित कालेज से स्नातक कर रही थी, जबकि छोटी बेटी माही ओरमांझी के एक इंजीनियरिंग कालेज से बीटेक के चतुर्थ सेमेस्टर की छात्रा थी. माही का 15 दिसंबर, 2016 को रिजल्ट आने वाला था. उस के पिता रिजल्ट देखने बरकाकाना से रांची आए थे. रिजल्ट देखने के लिए वह माही के कालेज गए और वहीं से बरकाकाना वापस लौट गए.

दरिंदे ने भांप लिया था कि अकेली है माही बहरहाल, रिजल्ट देखने के बाद माही जब कालेज से बूटी बस्ती स्थित अपने आवास जाने लगी तो पहले से घात लगाए बैठा राज पीछेपीछे उस के घर तक पहुंच गया. माही घर में बैग रख कर वापस बाहर आई. उस ने अपने घर के पास एक दुकान से मैगी खरीदी और वापस चली गई. इस से राज आश्वस्त हो गया था कि घर में माही अकेली है. घर में अगर कोई और होता तो माही के बजाए वही सामान खरीदने आता. इत्तफाक की बात यह थी कि कुछ दिनों पहले बड़ी बहन रवीना किसी जरूरी काम से अपने गांव बरकाकाना चली गई थी. माही के घर पर अकेला होने की जानकारी शातिर राज को पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए वह निश्चिंत हो गया और उस ने फैसला कर लिया कि आज रात माही को अपनी हवस का शिकार बना कर रहेगा.

उसी रात करीब साढ़े 10 से 11 बजे के बीच राहुल कुमार उर्फ राज माही के घर पहुंचा. उस के मुख्य दरवाजे पर लोहे का मजबूत ग्रिल लगा था. ग्रिल पर भीतर की ओर से बड़ा ताला लगा था. उस के पास मास्टर चाबी रहती थी, जिस से वह कोई भी ताला आसानी से खोल सकता था. मास्टर चाबी से उस ने माही की ग्रिल का ताला खोल लिया. माही जिस कमरे में सो रही थी, उस में सिटकनी नहीं लगी थी. दबेपांव वह उस के कमरे में आसानी से पहुंच गया और गहरी नींद में सोई माही का गला दबाने लगा. तभी माही की आंखें खुल गईं. उसे देख कर वह डर गई.

इस से पहले कि वह शोर मचाती, राज ने उसे धमका दिया. डर की वजह से माही चुप हो गई. राहुल ने उस के साथ रेप किया. उस दौरान उस ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दीं. इस दरम्यान माही के नाजुक अंग से रक्तस्राव हुआ, जिस से वह बेहोश हो गई. उस के बाद दरिंदे राहुल उर्फ राज ने मोबाइल के चार्जर वाले तार से उस का गला घोंट दिया ताकि वह किसी को कुछ बता न सके. हैवानियत पर उतरे राज ने सबूत मिटाने के लिए माही को निर्वस्त्र कर दिया, फिर उस के कपड़ों को एक जगह रख कर उस पर मोबिल औयल डाल कर आग लगा दी. आग लगाने के बाद वह वहां से फरार हो गया. दरअसल, साक्ष्य मिटाने का यह तरीका उस ने अपने ही एक जुर्म से सीखा था.

अपराध की दुनिया में कदम रखते समय राहुल पहली बार पटना में एक घर में चोरी करने की नीयत से घुसा था. यह भी इत्तफाक था कि घर के एक कमरे में 11 वर्षीय नेहा अकेली सो रही थी. बाकी के लोग दूसरे कमरे में सो रहे थे. उस समय रात के करीब 3 बज रहे थे. अकेली नेहा को देख कर उस के जिस्म में वासना की आग धधक उठी. हैवान राहुल जिस्म की आग ठंडी करने के लिए मासूम नेहा की जिंदगी तारतार कर के भाग गया. लेकिन कानून के लंबे हाथों से कुकर्मी राहुल ज्यादा दिनों तक नहीं बच सका. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. तब राहुल को पता चला कि नेहा के अंडरगारमेंट में उस का सीमेन (वीर्य) मिला था, जिस से वह दोषी पाया गया था. इस घटना से ही सीख लेते हुए उस ने बीटेक की छात्रा माही से दुष्कर्म के बाद उस के अंडरगारमेंट के साथ अन्य कपड़े भी जला दिए थे ताकि वह पकड़ा न जा सके.

खैर, अगली सुबह यानी 16 दिसंबर, 2019 की सुबह रहस्यमय तरीके से जली हुई माही की लाश उस के कमरे में पाई गई थी. दरअसल, रात में उस के पिता संजीव कुमार फोन कर के उस का हालचाल लेना चाहते थे. चूंकि दिन में कालेज का रिजल्ट आ चुका था. वह कालेज तक उस के साथ गए भी थे, इसलिए वह फोन कर उसे घर आने के लिए कहना चाहते थे. लेकिन उस का फोन नहीं लग रहा था. फोन बारबार स्विच्ड औफ बता रहा था. बेटी का फोन स्विच्ड औफ होने से वह परेशान हो गए. रात भी काफी गहरा चुकी थी, इसलिए किसी और के पास फोन भी नहीं कर सके थे, जिस से माही का हालचाल मिल पाता. अगली सुबह जब सदर थाने के थानेदार बांकेलाल का फोन उन के पास पहुंचा तो बेटी की मौत की सूचना पा कर संजीव सकते में आ गए.

केस की जांच पर निगाह रखे था राहुल बेटी की मौत की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया था. परिवार के लोगों को साथ ले कर संजीव रांची पहुंचे. शराफत का चोला पहने दरिंदा राज भी अपने दोस्त बंटी के साथ घटनास्थल पर पहुंचा था. वहां पहुंच कर वह यह जानना चाहता था कि पुलिस क्या काररवाई कर रही है. तब उस के दोस्त बंटी ने उस के सामने ही अज्ञात दरिंदे को भद्दीभद्दी गालियां देनी शुरू कर दीं तो राज ने बंटी को समझाया कि किसी को भी इस तरह गालियां देना ठीक नहीं है. उस दिन के बाद से वह बंटी से पुलिस की गतिविधि पूछता था कि माही के हत्यारों तक पुलिस पहुंची या नहीं. उस के केस में क्या हो रहा है. यह बात बंटी को बड़ी अटपटी लगती थी कि राहुल उर्फ राज माही के केस में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है.

बहरहाल, पुलिस ने अपनी काररवाई कर माही की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट पढ़ कर थानाप्रभारी बांकेलाल दंग रह गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि पहले पीडि़ता के साथ बलात्कार किया गया था, फिर किसी पतले तार से गला कस कर उस की हत्या की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद पुलिस ने अज्ञात हत्यारे के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 376, 499, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर मामले की छानबीन शुरू कर दी. घटना के करीब 6 महीने बीत जाने के बाद भी पुलिस जहां की तहां खड़ी रही. न तो वह हत्या का कारण जान सकी और न ही हत्यारों का पता लगा पाई.

माही हत्याकांड को ले कर रांची समेत समूचे झारखंड में बवाल मचा हुआ था. पुलिस की कार्यप्रणाली पर लोग अंगुलियां उठा रहे थे. पीडि़ता के पिता संजीव ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की. यह आवाज प्रदेश सरकार के कान तक पहुंची तो सरकार ने जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा कर दी. जब मामला सीबीआई के पास पहुंचा तो सीबीआई के तेजतर्रार इंसपेक्टर परवेज आलम के नेतृत्व में पुलिस टीम बनाई गई. टीम में एसआई नीरज कुमार यादव, कांस्टेबल प्रभात कुमार, आरिफ हुसैन, नैमन टोप्पो, अशोक कुमार, रितेश पाठक, महिला सिपाही जूही खातून आदि को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर परवेज आलम झारखंड पुलिस में सन 1994 में एसआई पद पर भरती हुए थे. वह ड्यूटी मीट के ओवरआल चैंपियन भी रह चुके थे. झारखंड पुलिस में उन का डीएसपी पद पर प्रमोशन हो चुका था. फिर भी सीबीआई में इंसपेक्टर थे. इंसपेक्टर परवेज आलम ने माही का केस लेने के बाद झारखंड पुलिस द्वारा दिए गए दस्तावेजों व साक्ष्यों का पूरा अध्ययन किया. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों से पूरी रिपोर्ट पर चर्चा की. डाक्टरों ने सीबीआई को बताया कि मृतका के नाखूनों और वैजाइनल स्वैब राज्य विधिविज्ञान प्रयोगशाला भेजे गए हैं. इंसपेक्टर परवेज आलम ने एफएसएल की रिपोर्ट में पाया कि नाखून व वैजाइनल स्वैब में केवल एक ही पुरुष होने के सबूत मिले हैं.

इस से जांच टीम आश्वस्त हो गई थी कि केवल एक ही व्यक्ति ने इस घटना को अंजाम दिया है. घटना की तह तक जाने के लिए इंसपेक्टर परवेज आलम ने अपने अधिकारियों से बूटी बस्ती में रहने की इजाजत मांगी. सीबीआई मुख्यालय के आदेश पर परवेज आलम अपनी टीम के साथ बूटी बस्ती में किराए पर कमरा ले कर रहने लगे. वहीं रह कर वह गुप्त तरीके से हत्यारोपी के बारे में छानबीन करने में जुट गए. बूटी बस्ती की रहने वाली एक बूढ़ी महिला ने उन्हें बताया कि एक युवक यहां अकसर घूमता था, जो मंदिर परिसर के एक कमरे में रहता था. वह अब दिखाई नहीं दे रहा.

इंसपेक्टर आलम के लिए यह सुराग महत्त्वपूर्ण साबित हुआ. इसी सुराग के आधार पर उन्होंने 300 से अधिक लोगों के काल डंप डाटा के आधार पर छानबीन की. जांच में पता चला कि उन में से करीब 150 फोन नंबर घटनास्थल के आसपास के हैं, उन में कुछ नंबर मृतका के संबंधियों और दोस्तों के भी थे. सीबीआई ने शक के आधार पर 150 संदिग्धों में से 11 लोगों के खून के नमूने ले कर जांच के लिए केंद्रीय विधिविज्ञान प्रयोगशाला, दिल्ली भेजे. इस बीच सीबीआई राहुल के दोस्त बंटी तक पहुंच गई. बंटी से उस संदिग्ध युवक यानी राज के बारे में पूछताछ की गई जो मंदिर के पास अकसर घूमता था.

बंटी ने बताया कि उस का नाम राहुल उर्फ राज है. वह बिहार के नालंदा जिले के एकंगर सराय के गांव धुर का रहने वाला है. इंसपेक्टर परवेज आलम की मेहनत रंग लाई. उन्हें संदिग्ध युवक राहुल उर्फ राज का पता मिल चुका था. वह टीम के साथ नालंदा स्थित उस के घर जा पहुंचा. वहां से पता चला कि राहुल फरार है. परवेज आलम ने एकएक तथ्य जुटाया वहां उन्हें एक और चौंकाने वाली बात पता चली कि राहुल दुष्कर्म के आरोप में पटना की बेउर जेल में बंद था. चाचा की मौत पर वह जेल से पैरोल पर घर आया था और चकमा दे कर पुलिस हिरासत से भाग गया था. तब से वह फरार है. इस के बाद सीबीआई की टीम ने राहुल की मां निर्मला देवी व पिता उमेश प्रसाद को बुलाया.

संदिग्ध आरोपी राहुल उर्फ राज की सच्चाई पता लगाने के लिए उन्होंने उस के मातापिता के खून के नमूने लिए और जांच के लिए केंद्रीय विधिविज्ञान प्रयोगशाला दिल्ली भेज दिए. वहां माही के नाखून व वैजाइनल स्वैब से मिले पुरुष के डीएनए से संदिग्ध आरोपी राहुल उर्फ राज की मां निर्मला देवी का डीएनए मैच कर गया. जबकि पिता उमेश प्रसाद का मैच नहीं किया. डीएनए रिपोर्ट के आधार पर यह तय हो गया कि माही का कातिल राहुल उर्फ राज ही है. राहुल उर्फ राज की तलाश में सीबीआई ने कोलकाता, वाराणसी सहित कई जगहों पर छापेमारी की, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला.

इसी बीच 15 जून, 2019 को राहुल उर्फ राज लखनऊ में मोबाइल चोरी के एक केस में पकड़ा गया. सीबीआई इंसपेक्टर परवेज आलम राहुल के पीछे पड़े ही थे. उन्हें उस की गिरफ्तारी की सूचना मिली, तो वह लखनऊ पहुंच गए. वहां से राहुल उर्फ राज को ट्रांजिट रिमांड पर 22 जून, 2019 को रांची लाया गया. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने माही हत्याकांड की पूरी कहानी बयां कर दी. राहुल ने सीबीआई को बताया कि पटना में 11 साल की नेहा से दुष्कर्म करने के मामले में वह पकड़ा गया था. तभी उसे पता चला नेहा के अंडरगारमेंट में उस का सीमेन मिला था, जिस से वह पकड़ा गया था. सीख लेते हुए उस ने माही से दुष्कर्म के बाद उस के कपड़े जला दिए थे.

यही नहीं, उस ने फरारी के दौरान इसी जिले की अगस्त 2018 की एक घटना का भी राजफाश किया. जिस घर में वह चोरी की नीयत से घुसा तो वहां 9 वर्षीय सोनी को अकेली सोता देख कर वह उस पर टूट पड़ा. बेटी की चीख सुन कर मां के बेटी के कमरे में आ जाने से सोनी की अस्मत लुटने से तो बच गई लेकिन उस दिन की घटना के बाद से वह आज तक सदमे से उबर नहीं पाई है. सीबीआई की पूछताछ में क्रूर दरिंदे राहुल उर्फ राज ने कबूल किया कि उस ने हर घटना में अपना नाम बदल कर अपराध किया था. अब तक उस ने 10 मासूमों की जिंदगी तबाह की थी, जिस में कई तो असमय काल का ग्रास बन गई थीं और कई विक्षिप्त अवस्था में पहुंच गई थीं.

बहन ने पहचाना दरिंदे को राहुल उर्फ राज की शिनाख्त माही की बड़ी बहन रवीना से कराई गई तो उस ने आरोपी राहुल उर्फ राज को देख कर शिनाख्त कर ली. रवीना से इस मामले में अदालत में गवाही दर्ज कराई. रवीना ने अदालत को बताया कि घटना के कुछ दिन पहले राहुल किराए का कमरा लेने के लिए उस के घर आया था. हम ने उसे कमरा देने से मना कर दिया था. उस दिन के बाद कई बार अहसास हुआ कि राहुल उस की बहन का पीछा करता है. घटना से पहले उसे घर के आसपास घूमते हुए भी देखा था. जबकि घटना के बाद से उसे कभी नहीं देखा गया. इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर परवेज आलम ने सूक्ष्मता से एकएक सबूत जुटाया. फिर विशेष अदालत में चार्जशीट पेश की. जज ए.के. मिश्र ने सजा सुनाए जाने से पहले केस की फाइल पर नजर डाली.

तभी शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि योर औनर, मुजरिम राहुल कुमार ने जो अपराध किया है, वह रेयरेस्ट औफ रेयर है. ऐसे व्यक्ति का समाज में रहना ठीक नहीं है. यह समाज के लिए जहर के समान है. ऐसे पेशेवर अपराधी को फांसी की सजा देनी चाहिए. तभी बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि मुजरिम राहुल को अपने किए पर पछतावा है, इसलिए उसे सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए. उन्होंने उसे कम से कम सजा सुनाए जाने की अपील की. दोनों वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जज ए.के. मिश्र ने कहा कि कटघरे में खड़ा यह अपराधी समाज के लिए एक कलंक है. इस ने योजनाबद्ध तरीके से घटना को अंजाम दिया था. इस के सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं है. इस का अपराध रेयरेस्ट औफ रेयर है. इसलिए इसे मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाया जाए.

फैसला सुनाने के बाद पुलिस ने मुजरिम राहुल कुमार को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया. वहीं फैसला आने के बाद कोर्ट में मौजूद मृतका के पिता संजीव कुमार घटना को याद कर रोने लगे. उन्होंने कहा कि फांसी की सजा भी अपराधी के लिए कम ही है, परंतु संतोष है कि अदालत ने न्याय किया है. इस प्रकार के फैसले से समाज को शुभ संदेश जाएगा.

—कथा में माही, नेहा और सोनी परिवर्तित नाम हैं.

 

 

Social Crime : लड़के ने लड़की बन कर फोन पर बातें की और लूटे लाखों

Social Crime : ह किसी के अंदर कोई कोई प्रतिभा छिपी होती है. जब यही प्रतिभा निखर कर सामने आती है तो उस की एक नई पहचान बन जाती है. मध्य प्रदेश के हरदा शहर के रहने वाले सिद्धार्थ पटेल के अंदर भी एक खास प्रतिभा थीवह तरहतरह की आवाजें निकालने में माहिर था. इतना ही नहीं, वह पुरुषों के अलावा हर आयु वर्ग की महिलाओं की आवाज इतनी स्पष्टता से निकाल लेता था कि सुनने वाले आश्चर्यचकित रह जाते थे. इस के अलावा वह अलगअलग शख्सियतों की भी मिमिक्री कर लेता था. सिद्धार्थ पटेल अगर चाहता तो अपनी इस प्रतिभा को स्टेज के जरिए एक नई पहचान दिला सकता था, लेकिन उस ने ऐसा करने के बजाए लोगों को ठगने का काम किया

सिद्धार्थ ने सब से पहले फेसबुक पर संजना के नाम से एक लड़की की फेक आईडी बनाई, जिस में उस ने दिल्ली की रहने वाली बताया. इस के बाद उस ने फेसबुक के माध्यम से रवि इनाणिया नाम के एक बिजनैसमैन से दोस्ती की. रवि जोधपुर के चौहाबो कस्बे का रहने वाला था. रवि को जब भी समय मिलता, वह संजना (सिद्धार्थ) से चैटिंग कर लेता. धीरेधीरे दोनों के बीच बातचीत का दायरा बढ़ता गया. उन की फोन पर भी बात होने लगी. सिद्धार्थ फोन पर रवि से लड़की की आवाज में बात करता था. रवि को उस की आवाज और बातें बहुत अच्छी लगती थीं. उसे बात करते समय बिलकुल भी अहसास नहीं हुआ कि वह जिस संजना से बात कर रहा है, वह लड़की नहीं बल्कि लड़का है.

रवि शादीशुदा था, इस के बावजूद वह संजना से बहुत प्रभावित था. कह सकते हैं, वह संजना को चाहने लगा था और उस से शादी करने का फैसला ले चुका था. उस ने अपने मन की बात फोन पर संजना को बता दी थी. शादी के लिए संजना ने भी अपनी सहमति दे दी थी, लेकिन उस ने बताया कि उस की कुंडली में शनि और मंगल का दोष है, जब तक यह दोष दूर नहीं हो जाता तब तक शादी नहीं हो सकती. रवि उस से शादी के लिए इतना उतावला था कि कुछ भी करने को तैयार था. इस बारे में उस ने संजना के परिजनों से बात करने की इच्छा जताई तो सिद्धार्थ ने पिता, मां और भाई की आवाज में उस से फोन पर खुद ही बात की

उस ने बदली हुई आवाज में रवि को बताया कि जब तक शनि और मंगल का दोष दूर नहीं होगा, तब तक शादी नहीं हो सकेगी. दोष दूर करने के लिए उस ने 4 बार में नर्मदा नदी की 10,400 किलोमीटर की यात्रा भी करवाई. मजे की बात यह कि इस दौरान सिद्धार्थ जो संजना बन कर रवि से फोन पर बातें करता था, वह संजना का भाई बन कर रवि के साथ घूमता भी रहा. वह 3 साल तक रवि के पैसों से ही जगहजगह घूमा. उस से लाखों रुपए ऐंठे. रवि ने सिद्धार्थ से कहा कि वह अपनी बहन संजना से उस की कम से कम एक बार तो मुलाकात करा दे. तब सिद्धार्थ ने कहा कि उन के यहां शादी से पहले लड़की को अपने होने वाले पति से मिलने की अनुमति नहीं होती.

रवि फोन पर बात करते समय समझता था कि वह अपनी प्रेमिका संजना से ही फोन पर बात कर रहा है, जबकि हकीकत कुछ और ही थीसंजना के भाई बने सिद्धार्थ ने एक बार रवि से कहा कि संजना की तबीयत बहुत खराब है. इलाज कराने पर भी फायदा नहीं हो रहा है. एक पंडित ने होने वाले पति और भाई को कामाख्या मंदिर और ओंकारेश्वर की परिक्रमा करने की सलाह दी है. यदि ऐसा किया गया तो वह बच सकती है. रवि अपनी प्रेमिका संजना को हर हालत में ठीक देखना चाहता था, इसलिए वह पंडित द्वारा बताया गया उपाय करने को तैयार हो गया. सिद्धार्थ ने रवि के साथ कामाख्या मंदिर और ओंकारेश्वर की भी परिक्रमा की.

काश! रवि यह जान पाता कि सिद्धार्थ केवल खुद संजना था, बल्कि संजना की मां, पिता, मौसी सब वही था और अलगअलग आवाजों में वही रवि से बातें करता था. वही सोशल साइट पर उस से चैटिंग करता था. लेकिन रवि तो संजना की आवाज का मुरीद था. सिद्धार्थ अपनी आवाज का पूरा फायदा उठा रहा था. इस तरह सिद्धार्थ ने रवि के साथ 3 सालों में करीब 1 लाख किलोमीटर से अधिक की यात्राएं कीं और समयसमय पर किसी किसी बहाने उस से पैसे भी ऐंठता रहा. लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी जब रवि को उस की प्रेमिका संजना से नहीं मिलाया गया तो रवि को शक हो गया कि आखिर सिद्धार्थ और उस के घर वाले उसे संजना से मिलने क्यों नहीं दे रहे.

रवि इनाणिया ने इस बात की शिकायत जोधपुर के चौहाबो थाना पुलिस से की. पुलिस ने रवि की शिकायत पर जांच शुरू की. पुलिस ने संजना का फेसबुक एकाउंट चैक किया. इस एकाउंट और फोन नंबर के सहारे पुलिस 16 दिसंबर, 2019 को मध्य प्रदेश के हरदा जिले के रहने वाले सिद्धार्थ पटेल के पास पहुंच गईसिद्धार्थ से जब सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार किया कि वही संजना बन कर लड़की की आवाज निकाल कर रवि से बातें करता था. पुलिस को सिद्धार्थ के बारे में जानकारी मिली कि उस ने अंगरेजी मीडियम स्कूल में अपनी पढ़ाई की. 10वीं और 12वीं कक्षा में सिद्धार्थ अपने स्कूल का टौपर रहा था. स्कूल की पढ़ाई के बाद उस ने राजस्थान यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन किया था.

उस का सपना आईएएस बनना था, इसलिए सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी के लिए वह दिल्ली चला गया था. वह शुरू से प्रतिभावान रहा. वह बचपन से ही कई तरह की आवाजें निकाल कर दोस्तों का मनोरंजन करता था. पुलिस ने सिद्धार्थ को न्यायालय में पेश कर 7 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में सिद्धार्थ से विस्तार से पूछताछ की गई. सिद्धार्थ ने रवि के सामने संजना (लड़की) की आवाज निकाली तो रवि के अलावा पुलिस भी आश्चर्यचकित रह गई. तब रवि ने कहा कि यह आवाज तो उस की प्रेमिका संजना की ही है लेकिन सिद्धार्थ संजना नहीं है. उस ने आशंका जताई कि हो सकता है कि इन लोगों ने संजना का मोबाइल छीन कर उसे जबरदस्ती कैद कर रखा हो. रवि को भले ही उस की संजना नहीं मिली पर पुलिस ने सिद्धार्थ पटेल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

 

Murder Stories : मंहगा फोन खरीदने के लिए युवक ने ली महिला की जान

Murder Stories : युवा गांव के हों या शहर के, सभी के लिए कीमती और ज्यादा से ज्यादा फीचर्स वाले मोबाइल फोन जरूरत नहीं बल्कि शौक बनते जा रहे हैं. कई युवा तो ऐसे फोनों को प्रस्टेज इशू बनाने लगे हैं. गौरव भी ऐसे ही युवाओं में था उस की इस चाहत ने एक ऐसी युवती की जान ले ली जो…

18 अक्तूबर, 2019 को दिन के 12 बजे का वक्त रहा होगा. एक मोबाइल फोन शोरूम के मालिक मनीष चावला ने काशीपुर कोतवाली में जो सूचना दी, उसे सुन कर पुलिस के जैसे होश ही उड़ गए. मनीष चावला ने पुलिस को बताया कि उन के शोरूम पर काम करने वाली युवती पिंकी की किसी ने हत्या कर दी है. शहर में दिनदहाड़े एक युवती की हत्या वाली बात सुनते ही कोतवाल चंद्रमोहन सिंह हैरान रह गए. उन्होंने इस की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और खुद घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. मनीष चावला का मोबाइल शोरूम कोतवाली से कुछ ही दूर गिरीताल रोड पर था, वह थोड़ी देर में ही वहां पहुंच गए.

तब तक वहां काफी भीड़भाड़ जमा हो गई थी. शव शोरूम से सटे स्टोर में पड़ा था. वहां पहुंचते ही कोतवाल चंद्रमोहन सिंह ने पिंकी के शव का जायजा लिया. वहां पर खून ही खून फैला था. उस के शरीर पर धारदार हथियार के कई घाव थे. देखने से लग रहा था जैसे शोरूम में लूटपाट भी हुई हो. कोतवाल का ध्यान सब से पहले शोरूम के सीसीटीवी कैमरों की ओर गया. पूछताछ में मनीष चावला ने बताया कि कुछ दिन पहले ही उस के सीसीटीवी कैमरे खराब हो गए थे, जिन्हें वह अभी तक सही नहीं करा पाए. सूचना मिलने पर एसएसपी बरिंदरजीत सिंह, एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज कुमार ठाकुर, ट्रेनी सीओ अमित कुमार भी वहां पहुंच गए. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि हत्यारे ने पिंकी के पेट पर चाकू से 8 वार किए थे, जिन के निशान साफ दिख रहे थे.

फर्श व शोरूम के काउंटर पर खून के निशान देख कर लग रहा था कि मरने से पहले पिंकी ने हत्यारों का डट कर मुकाबला किया था. एसएसपी के निर्देश पर डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम भी घटना स्थल पर पहुंच गईं. लेकिन इस मामले में डौग स्क्वायड कोई मदद नहीं कर सका. फोरैंसिक टीम ने शोरूम के अंदर कई जगहों से फिंगर प्रिंट उठाए. प्राथमिक जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने शोरूम के मालिक मनीष चावला से पूछताछ की. चावला ने बताया कि करीब पौने 12 बजे पिंकी ने उन्हें फोन पर बताया था कि दुकान पर कोई ग्राहक आया है और पावर बैंक का रेट पूछ रहा है. पावर बैंक का रेट बताने के बाद उन्होंने पिंकी से कह दिया था कि वह कुछ देर में शोरूम पहुंचने वाले हैं.

उस के लगभग 20 मिनट बाद जब वह शोरूम पहुंचे तो वहां के हालात देख कर उन के होश उड़ गए. उन्होंने बताया कि बदमाश पिंकी की हत्या कर के शोरूम से लगभग डेढ़ लाख रुपए के मोबाइल भी लूट कर ले गए थे. पुलिस समझ नहीं पा रही थी कि पिंकी को किस ने मारा एसएसपी ने पुलिस अफसरों को इस मामले का जल्दी से जल्दी खुलासा करने के निर्देश दिए. साथ ही साथ उन्होंने जांच के लिए तुरंत पुलिस टीम गठित करने को कहा. पुलिस ने उसी वक्त शोरूम के आसपास सीसीटीवी कैमरों की तलाश की, लेकिन वहां कहीं भी सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा था. घटना स्थल से सारे तथ्य जुटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. जैसेजैसे शहर में पिंकी हत्याकांड की खबर फैलती गई लोग घटना स्थल पर जमा होते गए. हत्या के बाद पर्वतीय समाज में जबरदस्त आक्रोश पैदा हो गया.

बेटी पिंकी की हत्या के सदमे में उस के पिता मनोज बिष्ट तो सुधबुध ही खो बैठे. पिंकी के परिजनों का दुकानदार मनीष चावला के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. उसी दिन देर शाम को काफी लोग एकत्र हो कर एएसपी डा. जगदीश चंद्र के पास पहुंचे और इस मामले का जल्दी खुलासा करने की मांग की. मृतका पिंकी के पिता ने इस घटना के लिए शोरूम मालिक मनीष चावला को जिम्मेदार ठहराते हुए उस के खिलाफ काररवाई करने की मांग की. एएसपी को सौंपी गई तहरीर में उन्होंने कहा कि शोरूम मालिक मनीष चावला ने अपने शोरूम में सुरक्षा के कोई ठोस इंतजाम नहीं किए थे. शोरूम में सीसीटीवी कैमरे तक नहीं लगाए गए थे.

पिंकी वहां काम करने पर स्वयं भी असुरक्षित महसूस कर रही थी. उस ने कई बार इस बात का जिक्र अपने घरवालों से किया था. पिंकी ने उन्हें बताया था कि उस के मालिक ने शोरूम में लगे सभी कैमरे हटवा दिए थे. जिस के कारण उसे वहां पर अकेले काम करते हुए डर लगता है. वह वहां से नौकरी छोड़ देना चाहती थी, लेकिन मनीष चावला उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. उन्हें शक है कि मनीष चावला ने ही उन की बेटी की हत्या कराई है. पुलिस प्रशासन पर बढ़ते दवाब के कारण एएसपी ने उन की तहरीर के आधार पर केस दर्ज करने का आदेश दिया. उसी वक्त युवा पर्वतीय महासभा के पूर्व अध्यक्ष पुष्कर सिंह बिष्ट ने घोषणा की कि अगले दिन शनिवार साढ़े 5 बजे मृतका पिंकी की आत्मा की शांति तथा इस केस के शीघ्र खुलासे के लिए नगर निगम से सुभाष चौक तक कैंडल मार्च निकाला जाएगा.

अगले दिन सुबह ही पूर्व योजनानुसार कई सामाजिक संगठन सड़क पर उतर गए. सड़कों पर जन शैलाब उमड़ा तो पुलिस प्रशासन के पसीने छूटने लगे. क्योंकि इस से अगले दिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का काशीपुर आने का प्रोग्राम था. रावत के आगमन से एक दिन पहले ही नगर में हुए जाम और प्रदर्शन को ले कर पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस जाम को हटवाने के लिए रुद्रपुर से एसएसपी बरिंदरजीत सिंह, एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज ठाकुर, ट्रेनी सीओ अमित कुमार, दीपशिखा अग्रवाल, कोतवाल चंद्रमोहन सिंह, कुंडा थाना प्रभारी राजेश यादव और आईटीआई थानाप्रभारी कुलदीप सिंह अधिकारी आदि जनसैलाब को समझाने में जुट गए.

पिंकी हत्याकांड के विरोध में सैकड़ों नागरिकों और डिगरी कालेज के छात्रों ने महाराणा प्रताप चौक तक कैंडल मार्च निकाला और शोक सभा आयोजित कर मृतका को श्रद्धांजलि दी. साथ ही हत्यारों की तुरंत गिरफ्तारी की मांग भी की. पर्वतीय महासभा के पदाधिकारियों ने पीडि़त परिवार को 40 लाख रुपए का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिलाने की मांग की. उसी दौरान मृतका का पोस्टमार्टम होने के दौरान जनाक्रोश भड़क उठा. सैकड़ों लोग पोस्टमार्टम हाउस पर एकत्र हो गए और केस का खुलासा होने पीडि़त परिवार को मुआवजा मिलने तक शव का अंतिम संस्कार करने से इनकार करने लगे.

लोगों ने पुलिस पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हुए नारेबाजी शुरू कर दी. लोग नारेबाजी करते हुए चीमा चौराहे पर जा पहुंचे. वहां पहुंच कर भी भीड़ ने काफी उत्पात मचाया. पुलिस अधिकारियों के काफी समझाने के बाद भी लोग टस से मस न हुए. यह देख एसडीएम ने लोगों को आश्वासन दिया कि 48 घंटे में इस केस का खुलासा कर दिया जाएगा. एसडीएम के आश्वासन के बाद वहां लगा जाम खुल सका. लेकिन इस के बावजूद भी पुलिस प्रशासन ने सतर्कता में ढील नहीं दी. मृतका का अंतिम संस्कार होने तक पुलिस प्रशासन चौकन्ना बना रहा. जाम हटाने के बाद प्रदर्शनकारी पोस्टमार्टम हाउस के लिए रवाना हुए तो पुलिस भी उन के पीछेपीछे रही. पोस्टमार्टम के बाद मृतका के परिजन उस के शव को सीधे श्मशान ले गए, जहां पर उस का दाह संस्कार कर दिया गया. दाहसंस्कार के बाद पुलिस ने राहत की सांस ली.

मृतका के पिता मनोज बिष्ट मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल जिले के गांव धुमाकोट के रहने वाले थे. परिवार में मियांबीवी और बच्चों को मिला कर कुल 5 सदस्य थे. बच्चों में 2 बेटियां और उन से छोटा एक बेटा प्रवीण कुमार था. घरपरिवार के लिए नौकरी करती थी पिंकी खेती में गुजरबजर न होने के कारण करीब 2 साल पहले पिंकी अपने भाई प्रवीण को साथ ले कर रोजगार की तलाश में काशीपुर आ गई थी. काशीपुर की सैनिक कालोनी में उस की बुआ आशा रावत रहती थी. जिस के सहारे दोनों भाईबहन यहां आए थे. बुआ ने उन्हें मानपुर रोड स्थित आर.के.पुरम निवासी चंदन सिंह बिष्ट के यहां पर किराए का कमरा दिला दिया था. वहीं रहते हुए पिंकी को गिरीताल रोड स्थित मनीष चावला के मोबाइल फोन शोरूम में नौकरी मिल गई थी. पिंकी उस मोबाइल शोरूम पर अकेली ही रहती थी.

इस घटना से एक दिन पहले ही उस के पिता मनोज बिष्ट काशीपुर से दवा लेने आए थे. उस दिन वह अपनी बहन आशा रावत के घर पर ही रुके हुए थे. लेकिन उन्हें दिन के 3 बजे तक अपनी बेटी की हत्या वाली बात पता नहीं चली थी. 18 अक्तूबर, 2019 को ही दोपहर लगभग साढ़े 3 बजे फरीदाबाद से पिंकी की दूसरी बुआ मीना ने अपने भाई की खबर लेने के लिए पिंकी के मोबाइल पर फोन किया तो वह काल कोतवाल चंद्रमोहन सिंह ने रिसीव की. उन्होंने पिंकी की बुआ को बताया कि पिंकी की किसी ने हत्या कर दी है. उस के बाद मीना ने काशीपुर में अपनी बहन आशा को फोन पर उस की हत्या वाली बात बताई. बेटी की हत्या की बात सुनते ही इलाज के लिए काशीपुर आए मनोज रावत अपनी सुधबुध खो बैठे.

शनिवार की देर शाम पूर्व सीएम हरीश रावत भी मृतका के परिजनों को सांत्वना देने उन के घर पहुंचे. उन्होंने पीडि़त परिवार को सांत्वना दी. रावत ने जल्दी ही अपराधियों को पकड़ने के साथसाथ परिवार को आर्थिक सहायता दिलाने और भाई को सरकारी नौकरी दिलाने का प्रयास करने का आश्वासन दिया. रावत ने उसी वक्त डीजी (कानून व्यवस्था) अशोक कुमार से फोन पर बात कर घटना की जानकारी दी और पीडि़त परिवार की स्थिति से अवगत कराया. इन सब स्थितियों से निपटने के बाद पुलिस प्रशासन पूरी तरह से पिंकी के हत्यारों की तलाश में जुट गया. घटना स्थल से पुलिस ने मृतका का मोबाइल फोन कब्जे में लिया था. पुलिस अपनी हर काररवाई को इस हत्याकांड से जोड़ कर देख रही थी.

पिंकी की उम्र ऐसी थी जहां बच्चों के कदम बहकना कोई नई बात नहीं होती. पुलिस को शंका थी कि हत्या का कारण किसी युवक के साथ पिंकी के संबंध होना तो नहीं है. यह जानने के लिए पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाकर जांच की. लेकिन मोबाइल से कोई ऐसी जानकारी नहीं मिली जिस से उस की हत्या की गुत्थी सुलझ पाती. इस बहुचर्चित हत्याकांड के खुलासे के लिए आईजी अशोक कुमार के निर्देश पर एसएसपी बरिंदरजीत सिंह ने एएसपी डा. जगदीश चंद्र के निर्देशन में 6 पुलिस टीमें गठित कीं. इन टीमों में एक सीओ 2 ट्रेनी सीओ, 2 इंसपेक्टर, एक एसओ के अलावा 9 एसआई और 50 कांस्टेबलों के साथसाथ एसटीएफ और एसओजी की टीमों को भी लगाया गया था.

इस केस को खोलने के लिए पुलिस प्रशासन ने दिनरात एक करते हुए 5 दिनों तक नगर के अलगअलग इलाकों में लगे मोबाइल टावरों से डंप डाटा प्राप्त किए. पुलिस अधिकारी सादा कपड़ों में बाइकों से दिनभर संदिग्धों की टोह लेते नजर आए. एएसपी डा. जगदीश चंद्र, सीओ मनोज ठाकुर, कोतवाल चंद्रमोहन सिंह आदि सभी अधिकारी सादा कपड़ों में संदिग्धों की तलाश में बाजपुर रोड, मुरादाबाद, रामनगर रोड पर कई जगह वीडियो फुटेज चेक करने में जुटे रहे. इस दौरान लगभग 5 हजार संदिग्ध मोबाइल नंबरों की पड़ताल की गई. साथ ही शहर के अलगअलग वार्डों में लगे लगभग 300 सीसीटीवी कैमरों से फुटेज ली गईं. उन्हीं सीसीटीवी फुटेज के दौरान पुलिस टीम को एक संदिग्ध बाइक नजर आई. पुलिस ने उस बाइक की पहचान करने के लिए उस के मालिक के बारे में जानकारी जुटाना चाही तो उस में भी एक अड़चन सामने आ खड़ी हुई.

उस बाइक का नंबर अधूरा था. जिस का पता लगाने के लिए पुलिस को काफी माथापच्ची करनी पड़ी. इस के लिए पुलिस ने बाइक के नंबर की 3 सीरिज में पड़ताल की और तीनों बाइक मालिकों के बारे में जानकारी जुटाई. तफ्तीश रंग लाने लगी सीसीटीवी फुटेज से प्राप्त जानकारी के अनुसार पुलिस बाइक नंबर यूके18जे0431 ट्रेस करने के बाद बाइक मालिक के पास पहुंची. पुलिस ने इस बाइक के मालिक कचनालगाजी निवासी मनोज उर्फ मोंटी से पूछताछ की. अपने घर पुलिस को आई देख मनोज उर्फ मोंटी के हाथपांव फूल गए. पुलिस पूछताछ में मोंटी ने बताया कि उस की बाइक मुरादाबाद के थाना भगतपुर क्षेत्र के गांव मानपुरदत्ता निवासी गौरव ले गया था. उस ने आगे बताया कि गौरव उस का रिश्तेदार है.

18 अक्तूबर को गौरव एक युवक के साथ उस के यहां आया था. उसी दिन वह उस की बाइक मांग कर ले गया था. लेकिन जब वे दोनों एक घंटे बाद घर लौटे तो दोनों के कपड़ों पर खून लगा था. उन की हालत देख डर की वजह से उस का भाई विनोद उर्फ डंपी दोनों को उन के गांव मानपुरदत्ता छोड़ आया था. यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने मनोज और उस के भाई विनोद को अपनी हिरासत में ले लिया. उस के बाद पुलिस उन दोनों को ले कर गांव मानपुरदत्ता पहुंची. जहां से पुलिस ने गौरव और उस के दोस्त रोहित को हिरासत में ले लिया. मनोज और विनोद को पुलिस जिप्सी में बैठे देख गौरव और रोहित समझ गए कि अब पुलिस के सामने अपनी सफाई पेश करने से कोई लाभ नहीं. क्योंकि मनोज और विनोद पुलिस को सबकुछ उगल कर ही यहां आए होंगे. सभी को ले कर पुलिस टीम सीधे काशीपुर कोतवाली आ गई.

पुलिस ने चारों आरोपियों से एक साथ कड़ी पूछताछ की. पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल करने के बाद उन में से कोई भी नहीं मुकर सका. चारों आरोपियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने ही मोबाइल लूट के लिए पिंकी की जान ली थी. उन की निशानदेही पर पुलिस ने पिंकी की हत्या में इस्तेमाल किए गए चाकू, शोरूम से लूटे गए 10 महंगे मोबाइल फोन, खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. पुलिस पूछताछ में पता चला कि इस हत्याकांड को अंजाम देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका गौरव की थी. थाना भगतपर, मुरादाबाद निवासी गौरव कुमार बीकौम द्वितीय वर्ष का छात्र था. वह पढ़ाई के प्रति गंभीर था. लेकिन पढ़ाई के साथसाथ उसे महंगे मोबाइल रखने का भी शौक था. जिस के लिए वह पढ़ाई के साथसाथ कोई भी काम करने में शर्म नहीं करता था.

इस वारदात को अंजाम देने से 6 माह पूर्व उस ने दिनरात पेंटिंग का काम किया. उसी कमाई से उस ने एक महंगा मोबाइल खरीदा. लेकिन एक महीने बाद ही उस का मोबाइल कहीं पर गिर गया. वह मोबाइल उस ने कड़ी मेहनत कर के खरीदा था. मोबाइल खो जाने का उसे जबरदस्त झटका लगा. उस के पास इतने पैसे इकट्ठा नहीं हो पा रहे थे कि वह उन पैसों से एक दूसरा नया एंड्रोयड मोबाइल फोन खरीद सके. गौरव काशीपुर से ही सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग कर रहा था. उस का काशीपुर आनाजाना लगा रहता था. आतेजाते कई बार उस की नजर गिरीताल रोड पर स्थित मनीष चावला के मोबाइल फोन शोरूम पर पड़ी थी, जहां पर उस ने कई बार एक अकेली युवती को बैठे देखा था. उस युवती से उस ने मोबाइलों के रेट भी मालूम करने की कोशिश की थी. उसी दौरान उसे पता चला कि इस शोरूम में महंगे से महंगे मोबाइल मौजूद हैं.

हत्यारा बन गया मोबाइल की चाह में उस के बाद गौरव ने उसी शोरूम से मोबाइल लूटने की साजिश रची. उस ने इस बात का जिक्र अपने साथ कोचिंग कर हरे 2 साथियों से किया. यह जानकारी मिलते ही उस के दोनों साथियों ने 17 अक्तूबर को गिरीताल रोड पर जा कर मोबाइल शोरूम की रेकी की. लेकिन उस के साथ आए दोनों साथी इस काम में उस का साथ देने से पीछे हट गए. उस के बाद उस ने अपने ही गांव के रहने वाले किशोर कुमार को इस काम के लिए राजी कर लिया. 18 अक्तूबर को किशोर अपने घर से स्कूल बैग ले कर निकला. लेकिन स्कूल न जा कर वह गौरव के बहकावे में आ कर उस के साथ सीधा काशीपुर आ गया. किशोर कक्षा 10 में पढ़ रहा था. किशोर हेकड़ था. इसीलिए वह उस दिन घर से ही पूरी तरह तैयार हो चाकू ले कर निकला था.

इसी दौरान रास्ते में उन दोनों की मुलाकात रोहित से हुई. रोहित जागरण मंडली में काम करता था. वह भी महंगा मोबाइल खरीदना चाहता था. लेकिन वह पैसे की तंगी की वजह से खरीद न पाया था. गौरव ने उसे भी महंगा मोबाइल दिलाने का झांसा दिया तो वह भी उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. पूर्व नियोजित योजनानुसार गौरव जिस वक्त अपने साथियों के साथ मोबाइल शोरूम पर पहुंचा, उस वक्त पिंकी शोरूम में अकेली थी. वहां पहुंचते ही गौरव ने पिंकी से पावर बैंक और महंगा मोबाइल दिखाने की बात कही. तभी गौरव ने पिंकी से पीने के लिए पानी मांगा. जैसे ही पिंकी वाटर कूलर से पानी निकालने के लिए झुकी, उसी दौरान गौरव ने साथ लाया बेहोश करने वाला स्प्रे छिड़क कर उसे बेहोश करने की कोशिश की.

स्प्रे करते ही गौरव ने पिंकी को अपने कब्जे में ले लिया. उस के बाद पिंकी ने चिल्लाने की कोशिश की तो सामने खड़े किशोर ने हाथ से उस का मुंह बंद कर दिया. पिंकी पूरी तरह से बेहोश नहीं हुई थी, इसलिए वह बुरी तरह चिल्लाने लगी तो रोहित ने चाकू से उस पर वार करने शुरू कर दिए, जिस से वह फर्श पर गिर गई. रोहित पिंकी पर तब तक चाकू से वार करता रह

Social Crime : मजेमजे में सेक्स करने गया और हो गया एड्स

Social Crime : मजेमजे में कई लोग देह व्यापार करने वाली औरतों के पास चले जाते हैं, जबकि ऐसी औरतों से संबंध बनाना बड़े खतरे को दावत देने जैसा है. इस की वजह है सैक्स शिक्षा का अभाव…

देह के धंधे का अहम पहलू ग्राहक होता है. ज्यादातर मामलों में यह साबित हुआ है है कि देह का धंधा केवल इस धंधे में शामिल लड़कियों या औरतों के लिए ही घातक होता है. जबकि हकीकत यह है कि देह का यह धंधा, इस धंधे में शामिल लड़कियों से अधिक ग्राहकों के लिए नुकसानदायक होता है. कुछ पल के मानसिक सुख के बदले ग्राहक को केवल अपना आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. इस के साथसाथ वह अपनी सेहत के साथ भी खिलवाड़ करता है. जिस शारीरिक सुख की कल्पना में वह कालगर्ल या वेश्या के पास जाता है, उस में भी वह ठगा ही महसूस करता है. इस शौक में फंसे लोग बताते हैं कि जब तक वह उन के पास रहते हैं तब तक एक अनजाना सा डर लगा रहता है. पुलिस जब भी ऐसे धंधा करने वालों को पकड़ती है तो सब से खराब हालत ग्राहक की ही होती है.

एक तो ग्राहक पहले ही देहधंधा करने वालों की लूट का शिकार बनता है. उस के बाद अगर पुलिस ने उसे पकड़ लिया तो वह भी कुछ वसूले बिना नहीं छोड़ती. आजकल होटलों में ऐसे धंधे खूब होने लगे हैं. जिस में होटल में कमरा पहले से बुक होता है. लड़की वहां पहले से होती है. ग्राहक वहां जाता है और 2 से 4 घंटे बिता कर चला आता है. देहधंधा कराने वाले 24 घंटे के लिए बुक कमरे में शिफ्ट के अनुसार 3 ग्राहकों तक का इंतजाम कर लेते हैं. ऐसे ही एक होटल में जाने वाले ग्राहक ने बताया, ‘‘जब मैं कमरे से निकल कर होटल से बाहर जाने लगा तो होटल के वेटर और मैनेजर ने रोक कर कहा कि असली सेवक तो वही हैं. उन का भी कुछ हक बनता है. उन्होंने मुझ से 500 रुपए टिप के नाम पर ले लिए.’’

यही लोग ऐसे लोगों के बारे में पुलिस को भी बता देते हैं, तब पुलिस भी कुछ न कुछ नजराना ले लेती है. इस तरह ग्राहक कई जगह ठगा जाता है. पुलिस जब ऐसे किसी रैकेट को पकड़ती है तो समाचारपत्रों में जो फोटो छपती है, उस में लड़कियों के मुंह तो छिपा दिए जाते हैं लेकिन लड़कों के फोटो के साथ ऐसा नहीं किया जाता. इसी तरह खबर में भी लड़कों के वास्तविक नाम छापे जाते हैं, जबकि लड़कियों के नाम बदल दिए जाते हैं. पुरुषों के नाम और फोटो छप जाने से समाज में जो बदनामी होती है, उसे कम कर के नहीं देखा जाना चाहिए. यानी देहधंधे में पकड़े जाने पर लड़कियों से ज्यादा नुकसान लड़कों का होता है. अगर गहराई से देखा जाए तो नुकसान और भी हैं.

लगभग 3 महीने पहले लखनऊ पुलिस ने इसी तरह जिस्मफरोशी के धंधे का रैकेट पकड़ा था. गिरफ्तार की गई लड़कियों को तो थाने से ही जमानत दे दी गई थी, लेकिन लड़कों को अदालत तक जाना पड़ा था. गिरफ्तार किए गए रमेश नाम के एक युवक ने अपनी कहानी बताते हुए कहा कि मेरी शादी होने वाली थी.  एक दोस्त ने कहा शादी के पहले कुछ जानकारी बढ़ा लेनी चाहिए. चलो, आज तुम्हें एक ऐसी ही लड़की से मिलवाता हूं जो इस बारे में सारी जानकारी दे देगी. मैं दोस्त के साथ चला गया. वह उस अड्डे पर पहले से ही आताजाता था. उस ने मुझे एक लड़की के हवाले कर दिया.

मैं शरमातेशरमाते उस लड़की से बात कर रहा था. इसी बीच वहां पर पुलिस का छापा पड़ गया. पुलिस ने मुझे भी पकड़ लिया. मैं कहता ही रह गया कि पहली बार आया हूं, पर पुलिस ने मेरी एक बात नहीं मानी. अगले दिन अखबारों में मेरी फोटो छपी. खबर और फोटो से मेरी समाज में बदनामी तो हुई ही साथ ही शादी भी टूट गई. यह अकेली परेशानी नहीं है. धंधा करने वाली लड़कियों के साथ पकड़े गए एक और युवक दीपक ने अपने बारे में बताया कि मेरी नौकरी में मुझे टूर पर रहना पड़ता था. एक बार मैं इलाहाबाद के एक होटल में रुका हुआ था. होटल में ही काम करने वाले एक वेटर ने मुझे एक लड़की के बारे में बताया कि यह लड़की बहुत जरूरतमंद है.

इस की मां बीमार रहती है. उस के इलाज के लिए यह कभीकभी किसी ग्राहक के पास जाती है. आज इसे 2 हजार रुपए की जरूरत है. अगर आप मदद कर देंगे तो अच्छा रहेगा. बदले में यह एक रात आप की सेवा में रहेगी. लड़की की मदद की बात सुन कर मेरा दिल भर आया और मैं ने उसे बुला लिया. मैं रात भर उस लड़की और उस की मां के बारे में पूछताछ की. लड़की अपनी दर्दभरी कहानी सुनाती रही. सुबह होने के पहले ही वह पैसा ले कर चली गई. मैं ने उस का पता लगाया तो जानकारी मिली कि वह एक बदनाम गली की रहने वाली थी. इस के बाद भी पता नहीं क्यों मैं उस लड़की को प्यार करने लगा था. उस से मिलने मैं उस के घर भी जाने लगा. वहां कई लड़कियां मिल कर धंधा करती थीं.

कुछ होटलों के साथ उन का तालमेल था, जहां से मेरे जैसे लोगों को फंसाया जाता था पर मैं इस दलदल से बाहर निकलना ही चाहता था कि पुलिस ने पकड़ लिया. लड़कियों को तो थाने से ही छोड़ दिया गया पर मुझे अदालत से जमानत करानी पड़ी. इस बदनामी के कारण मेरी नौकरी चली गई. घरखानदान की इज्जत गई सो अलग. कुछ लोग तो इन धंधेवालियों के चक्कर में पड़ कर जीवन भर के लिए रोग ले बैठते हैं. ऐसे ही एक आदमी से हमारी मुलाकात हुई. साधूप्रसाद नाम का वह आदमी नौकरी करने मुंबई गया था. बीवीबच्चों से दूर रहने के कारण उस का मन दूसरी औरत से लग गया. राधा नामक एक औरत उस के करीब आई. दोनों के बीच जल्द ही नजदीकी संबंध बन गए.

राधा दूसरी धंधा करने वाली औरतों से अलग थी. जहां दूसरी औरतें कंडोम लगा कर संबंध बनाने के लिए कहती थीं, वहीं राधा बिना कंडोम के ही संबंध बनाती थी. एक दिन बातबात में मैं ने राधा से इस बारे में पूछा तो वह कुछ बताने के बजाए हंसीमजाक कर के बात को टालने लगी. अभी कुछ समय ही बीता था कि वह बीमार रहने लगी उसे तेज बुखार आने लगा था. मैं ने उस से अस्पताल चलने के लिए कहा तो वह बोली कि कोई फायदा नहीं है. यह बीमारी अब मेरी जान ले कर जाएगी.

मैं ने उस से पूछा कि ऐसी क्या बीमारी है जिस का कोई इलाज नहीं है, तो वह बिना किसी संकोच के बोली, ‘‘एड्स, मुझे एड्स हो गया है.’’

मैं अब भी कुछ नहीं समझ पाया और बोला, ‘‘इस के बाद भी तुम बिना कंडोम के यह धंधा करती हो?’’

वह गहरी सांस ले कर कहने लगी, ‘‘मुझे यह बीमारी एक आदमी ने जबरदस्ती दी थी. मैं उस से बारबार कंडोम लगाने के लिए कहती थी लेकिन वह नहीं माना. जब मुझे यह रोग लगा ही गया, तब से मैं ने भी कंडोम लगाना छोड़ दिया.’’

यह सुन कर मैं चक्कर खा गया और अपने गांव लौट आया. बीवीबच्चों को मारपीट कर मैं ने अपने से दूर कर दिया. फिर गांव के बाहर कुटिया बना कर रहने लगा. किसी को नहीं बताया कि मुझे क्या रोग लगा है. मैं नहीं चाहता था कि मेरी बीवी इस रोग की शिकार बने. इसलिए अपनी करनी खुद ही भुगत रहा हूं. अगर एक धंधे वाली के झांसे में नहीं आया होता तो यह दिन नहीं देखना पड़ता. समाज लड़कियों के प्रति सहानुभूति का रुख रखता है लेकिन लड़कों को वह अपराधी मान लेता है. उसे लगता है कि देह के इस धंधे के लिए पुरुष ही दोषी होता है. इसलिए लड़कों की परेशानियों पर कोई ध्यान नहीं देता. बदनामी तो हर किसी को मिलती है. चूंकि इस धंधे में काम करने वाली लड़की पहले से ही बदनाम होती है, इसलिए उस की बदनामी के बारे में कोई विचार नहीं किया जाता.

इन के साथ पकड़ा गया लड़का सभ्य समाज का हिस्सा होता है, इसलिए उस की बदनामी ज्यादा मायने रखती है. सामाजिक पहलू के अलावा अगर हम रोगों की बात करें तो पता चलेगा कि पुरुषों को होने वाले ज्यादातर यौन रोग इस तरह के शारीरिक संबंधों के कारण ही होते हैं. थोड़ी सी असावधानी जिंदगी भर के लिए नासूर बन जाती है. देह का यह धंधा सेहत, जेब और सामाजिक हैसियत तीनों को नुकसान पहुंचाता है. इस के बाद भी लोग अनजान औरत पर पैसा क्यों खर्च करते हैं? इस बारे में अलगअलग बातें सामने आईं. साधूप्रसाद ने कहा कि वह अपनी पत्नी से दूर रहता था. इसलिए शरीर की इच्छा को दबा नहीं पाया और एक औरत के पास चला गया. उसे यह नहीं पता था कि यह काम इतना खतरनाक साबित होगा.

इस के विपरीत दीपक ने कहा कि वह लड़की की मदद करने के चक्कर में फंस गया था और लड़की से देह संबंध का लालच ही उस का दुश्मन बन गया. जबकि रमेश ने कहा कि वह गलत स्वभाव के दोस्त के चलते देहधंधा करने वाली लड़की के पास जा पहुंचा. अगर उस की सोहबत गलत लोगों की नहीं होती तो शायद यह नहीं होता. इन सब की बड़ी वजह यौन शिक्षा का अभाव है. अगर सब को यह मालूम हो कि इस तरह के सैक्स संबंधों से कितना नुकसान होगा तो शायद वे इन बातों का खयाल रखेंगे.

 

Social Crime : मसाज सर्विस के नाम पर कारोबारियो को जाल में फंसाया जाता

Social Crime :  दिल्ली और एनसीआर में मसाज के नाम पर लोगों को ब्लैकमेल करने का धंधा जोरों पर है. नीरज नारंग को भी एक ब्लैकमेलिंग गैंग ने अपना शिकार बना कर कई लाख रुपए ऐंठ लिए थे. शिकायत पर क्राइम ब्रांच ने गिरोह का परदाफाश किया तो…

नीरज नारंग जिस समय दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी राम गोपाल नाइक के औफिस में पहुंचे तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. क्योंकि वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि उन के साथ जो हुआ था, उसे डीसीपी को किस तरह बताएं. औफिस में घुसने के बाद उन्होंने जैसे ही डीसीपी का अभिवादन किया तो डीसीपी ने उन्हें सामने पड़ी चेयर पर बैठने का इशारा किया. नीरज नारंग की तरफ देखने के बाद डीसीपी ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है, आप बड़े परेशान लग रहे हो. बताओ क्या समस्या है.’’

‘‘सर, मैं अपनी गलती के कारण कुछ बदमाशों के चक्कर में फंस गया हूं. मुझे उन से बचा लीजिए. वो लोग मुझे ब्लैकमेल कर के मुझ से 3 लाख रुपए ऐंठ चुके हैं और साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक ले चुके हैं. अब वो मुझ से फिर एक बड़ी रकम की डिमांड कर रहे हैं. सर, इस तरह से तो मैं बरबाद हो जाऊंगा.’’ नीरज नारंग ने बताया.

‘‘कौन हैं वो लोग. आप घटना विस्तार से बताइए.’’ डीसीपी ने उन से कहा. इस के बाद नीरज नारंग ने उन्हें एक लिखित शिकायत देते हुए अपने साथ घटी घटना बता दी. उसे सुन कर डीसीपी राम गोपाल नाइक को मामला गंभीर लगा. उन्होंने इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच की शाखा शकरपुर के इंसपेक्टर विनय त्यागी को सौंप दी और उन्होंने पीडि़त नीरज नारंग को शकरपुर क्राइम ब्रांच औफिस भेज दिया. यह बात 19 सितंबर, 2018 की है. नीरज नारंग क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर विनय त्यागी के औफिस पहुंच गए. उन्होंने उन्हें अपने साथ घटी जो कहानी बताई वह इस प्रकार थी.

नीरज नारंग दिल्ली के एक बिजनैसमैन हैं. पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया में उन की अपनी फैक्ट्री है. एक दिन वह अपने औफिस में लैपटौप पर नेट सर्फिंग कर रहे थे. इस दौरान वह एक गे वेबसाइट देखने लगे. उस साइट को देखने में उन की रुचि बढ़ने लगी. साइट पर उन्होंने एक फोन नंबर देखा. नीरज की उत्सुकता बढ़ी तो उन्होंने उसी समय वह नंबर अपने फोन से मिलाया. कुछ देर घंटी बजने के बाद दूसरी तरफ से एक युवक की आवाज आई. उस युवक ने अपना नाम अरमान शर्मा बताया. उस से कुछ देर बात कर ने के बाद नीरज नारंग ने उस से उसी दिन शाम को पूर्वी दिल्ली के निर्माण विहार में स्थित वीथ्रीएस मौल में मिलने का कार्यक्रम निश्चित कर लिया. निर्धारित समय पर नीरज नारंग वहां पहुंच गए. कुछ देर में अरमान शर्मा भी वहां पहुंच गया.

वहां स्थित मैकडोनाल्ड रेस्टोरेंट में दोनों की मुलाकात हुई. उस ने नीरज को बताया कि वह आधुनिक तरीके की मसाज सर्विस चलता है. उस के पास अलगअलग कैटेगरी की मसाज करने के पैकेज हैं और यह सुविधा अच्छे होटल में उपलब्ध कराई जाती है. नीरज नारंग एक अलग ही मिजाज वाले थे. इसलिए उन्होंने 8 हजार रुपए के पैकेज का चयन कर लिया. मसाज कराने के लिए वह वैशाली में स्थित एक होटल में पहुंच गए. अरमान शर्मा भी वहां पहुंच गया. अरमान ने जिस तरह से नीरज की मसाज की थी वह तरीका नीरज को बहुत पसंद आया. जिस से उन्होंने होटल के खर्च के अलावा 8 हजार रुपए अरमान को खुशीखुशी दे दिए. अरमान शर्मा ने अपनी कुछ मजबूरियां उन्हें बताईं. फिर अरमान के आग्रह करने पर नीरज नारंग ने उसे 3 हजार रुपए अलग से दे दिए.

इस के 10 दिन बाद नीरज नारंग का मन फिर से मसाज कराने का हुआ. वह अरमान को फोन करने के मूड में थे. तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. फोन स्क्रीन पर जो नंबर उभरा उसे देख कर उन की आंखों में अनोखी चमक उभर आई. यह नंबर अरमान शर्मा का था. अरमान ने उन्हें मसाज के लिए उसी होटल में आने के लिए कहा तो शाम के 5 बजे नीरज नारंग वहां पहुंच गए. करीब आधे घंटे के बाद जब होटल के बंद कमरे में नीरज नारंग निर्वस्त्र हो कर अरमान से मसाज करवा रहे थे तभी कमरे के दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई. दस्तक के बाद अरमान ने नीरज को कपड़े पहनने का मौका दिए बिना झट से कमरे का दरवाजा खोल दिया.

दरवाजा खुलते ही धड़धड़ाते हुए 2 युवतियां कमरे में घुस गईं. उन में से एक ने सोफे पर रखे नीरज नारंग के सभी कपड़े अपने कब्जे में ले लिए तो दूसरी अपने मोबाइल फोन से उन का वीडियो बनाने लगी. अरमान शर्मा जो कुछ देर पहले नीरज नारंग की इच्छा के अनुसार तरहतरह से उन की मसाज कर रहा था. उस ने गिरगिट की तरह रंग बदला और वह भी उन युवतियों के पास जा कर खड़ा हो गया. उन में से एक युवती नीरज नारंग को गालियां बकते हुए उन के नग्न वीडियो को सोशल साइट्स पर सार्वजनिक करने की धमकी देने लगी और कहने लगी कि यदि ऐसा नहीं चाहते तो बदले में 10 लाख रुपए देने होंगे.

कहां तो नीरज नारंग अरमान शर्मा के हाथों से मसाज लेते हुए आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे और कहां पलक झपकते ही परिस्थितियां उन के विपरीत हो गईं. खुद को इस तरह बेबस पा कर नीरज नारंग सकते में रह गए. उस समय उन के पर्स में एक लाख रुपए थे, जो उन्होंने उस युवती को सौंप दिए और गिड़गिड़ाते हुए अपने कपड़े लौटा देने की गुहार करने लगे. मगर दोनों युवतियां उन्हें प्रताडि़त करते हुए 10 लाख रुपए देने का दबाव बनाती रहीं. उसी समय अरमान ने कमरे में रखी लोहे की रौड से नीरज नारंग को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया.

मरता क्या नहीं करता. बचने का कोई चारा नहीं देख कर नीरज नारंग ने युवती को बताया कि उन की कार पार्किंग में खड़ी है. उन्होंने युवती को कार का नंबर बताते हुए उसे कार की चाबी सौंपी और उस में रखा ब्रीफकेस लाने के लिए कहा. युवती कार की चाबी ले कर होटल की पार्किंग में पहुंची और उस में रखा उन का ब्रीफकेस ले कर कमरे में लौट आई. नीरज नारंग ने उस में रखे 2 लाख रुपए निकाल कर उसे सौंपे तथा साढ़े 4 लाख रुपए के 3 पोस्ट डेटेड चेक उसे दे दिए. नीरज ने इंसपेक्टर विनय त्यागी को बताया कि वह लोग अब फिर से पैसों की डिमांड कर रहे हैं.

इंसपेक्टर विनय त्यागी ने बुरी तरह परेशान दिख रहे नीरज नारंग को ढांढस बंधाया फिर उन का मसाज करने वाले अरमान शर्मा और दोनों युवतियों का हुलिया वगैरह पूछ कर अपनी डायरी में दर्ज कर लिया. इस घटना के बारे में पूरी बात जान लेने के बाद उन्होंने उन्हें सतर्क रहने की हिदायत दे कर घर जाने की इजाजत दे दी. इस के बाद नीरज नारंग अपने औफिस की ओर निकल गया. इंसपेक्टर विनय त्यागी ने इस केस के बारे में एसीपी अरविंद कुमार मिश्रा को बताया. एसीपी ने इस रैकेट का परदाफाश करने के लिए इंसपेक्टर विनय त्यागी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसआई बलविंदर, दिनेश, हवा सिंह, अर्जुन, एएसआई रमेश कुमार, सत्यवान, राजकुमार, मो. सलीम, सतीश पाटिल, हैड कांस्टेबल श्यामलाल, शशिकांत, सुनील कुमार, बाबूराम, दिग्विजय, कांस्टेबल कुलदीप, समीर आदि को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर त्यागी ने अपनी टीम के साथ केस के सभी पहलुओं पर विस्तार पूर्वक विचारविमर्श करने के बाद आरोपियों को पकड़ने की एक फूलप्रूफ योजना तैयार की. उन्होंने नीरज नारंग को एक बार फिर अपने औफिस में बुला कर पूरी योजना समझा दी. उन्होंने उन से यह भी कहा कि उन के पास ब्लैकमेलर का जब भी कोई फोन आए तो वह उन्हें सूचित कर दें. इत्तेफाक से अगले ही दिन नीरज नारंग के पास ब्लैकमेलर अरमान शर्मा का फोन आया. उस ने 2 लाख रुपए मांगे थे. उस ने पैसे ले कर दक्षिणी दिल्ली के साकेत में स्थित सेलेक्ट सिटी वाक मौल में शाम को बुलाया था. ऐसा नहीं करने पर उस ने परिणाम भुगतने को धमकी दी थी. नीरज ने इंसपेक्टर विनय त्यागी को फोन कर के यह सूचना दे दी.

नीरज नारंग की बात सुन कर विनय त्यागी ने एसीपी अरविंद मिश्रा को इस जानकारी से अवगत करा दिया. इस के बाद वह उन से आगे की योजना पर विचार करने लगे. थोड़ी देर बाद इंसपेक्टर विनय त्यागी ने नीरज नारंग को फोन कर के आगे की पूरी योजना समझा दी. निर्धारित समय पर नीरज नारंग एक बैग में 2 लाख रुपए ले कर साकेत सेलेक्ट वाक सिटी मौल पहुंच गए और अरमान के वहां आने का इंतजार करने गले. थोड़ी देर बाद अरमान अपनी एक गर्लफ्रैंड के साथ नीरज नारंग के पास पहुंच गया. बातचीत होने के बाद नीरज ने उसे पैसों वाला बैग सौंप दिया. जैसे ही अरमान ने नीरज नारंग से पैसों का बैग लिया सादे वेश में वहां मौजूद क्राइम ब्रांच की टीम ने अरमान और उस की गर्लफ्रैंड को अपने काबू में कर लिया.

उन्होंने उन के पास बैग से 2 लाख रुपए भी बरामद कर लिए. इस के बाद क्राइम ब्रांच टीम उन दोनों को ले कर शकरपुर स्थित औफिस लौट आई. यह बात 20 सितंबर, 2018 की है. हिरासत में लिए गए युवक से पूछताछ की गई तो पता चला कि उस का असली नाम अरमान शर्मा नहीं बल्कि शादाब गौहर है. उस के साथ वाली युवती ने अपना नाम मनजीत कौर बताया. दोनों ने पूछताछ के दौरान अपना अपराध स्वीकार करते हुए ब्लैकमेलिंग के धंधे की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली. 25 साल का शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा मूलरूप से श्रीनगर, कश्मीर के कुमो पदशेनी बाग का रहने वाला था. वहां से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उस का रुझान बौडी बिल्डिंग की तरफ हो गया. वह बेहद फैशनेबल युवक था इसलिए खुद के मैनटेन पर बहुत ध्यान देता था.

उस ने जिम जाना शुरू कर दिया. एकदो साल तक तो घर वालों ने उस की बौडी फिटनेस पर पैसे खर्च किए लेकिन बाद में उन्होंने कह दिया कि वह खुद कमाकर अपने ऊपर खर्च करे. शादाब ऐसा कोई काम नहीं जानता था जिस के बूते वह कमाई कर सके. लिहाजा उस ने मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीखना शुरू कर दिया. यह काम सीखने के बाद उस ने श्रीनगर में ही मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान खोल ली. थोड़े ही दिनों में उस का काम चल निकला और इस काम में उसे अच्छी कमाई होने लगी. जेब में पैसे आए तो वह खुद की फिटनैस पर और ज्यादा ध्यान देने लगा. शादाब बहुत खूबसूरत था. अच्छे खानपान और ब्रांडेड कपड़ों के कारण उस की पर्सनैलिटी और भी निखर गई. लेकिन जब कश्मीर के हालात ज्यादा बिगड़े और घाटी में आए दिन उस की दुकान बंद रहने लगी तो वह परेशान हो उठा.

दुकान बंद रहने के कारण उस की आमदनी बंद हो जाती. यानी उसे फिर से रुपयों की किल्लत रहने लगी.  वह परेशान चल रहा था कि एक दिन पत्थरबाजी के दौरान लोगों ने उस की दुकान को आग लगा दी. दुकान के उजड़ जाने के कारण उस की माली हालत बेहद खराब हो गई तो वह काम की तलाश में चंडीगढ़ आ गया और वहां के एक जिम में ट्रेनर की नौकरी कर ली. चंडीगढ़ के जिम में काम करने के दौरान उस की बहुत से ऐसे लड़केलड़कियों से जानपहचान हो गई जो रोजाना वहां एक्सरसाइज के लिए आया करते थे. चूंकि शादाब गौहर एक हैंडसम युवक था इसलिए खूबसूरत लड़कियों से दोस्ती होते देर नहीं लगती थी. मनजीत कौर नाम की एक युवती से उस की अच्छी दोस्ती थी.

गोरीचिट्टी और आकर्षक मनजीत कौर बेहद खूबसूरत युवती थी. वह मूलरूप से दिल्ली की रहने वाली थी और उन दिनों चंडीगढ़ में रह कर पढ़ाई कर रही थी. शादाब मनजीत को अपने साथ चंडीगढ़ के महंगे रेस्टोरेंट में ले जाने लगा. कुछ दिनों में उन के बीच का फासला खत्म हो गया और फिर वह दोनों लिव इन रिलेशन में रहने लगे.  शादाब गौहर ने चंडीगढ़ के सेक्टर-56 में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था. अब मनजीत कौर उस के साथ बतौर उस की पत्नी बन कर रहने लगी. अभी दोनों को साथ रहते हुए ज्यादा दिन नहीं गुजरे थे कि इसी बीच उन्हें महसूस होने लगा कि केवल जिम की कमाई भर से उन के वे सपने पूरे नहीं हो सकते जिन की ख्वाहिश वे अपने दिलों में पाले हुए थे.

इस के लिए उन्होंने नएनए उपाय खोजने शुरू कर दिए. दोनों यही योजना बनाते कि कम समय में अमीर कैसे हुआ जाए. इसी बीच एक शाम मनजीत कौर की मुलाकात जिम में आने वाली एक अन्य लड़की शीबा से हुई. जो न केवल उस की ही तरह खूबसूरत और आजाद खयालों वाली थी, बल्कि उस की हसरतें भी जल्द अमीर बनने की थीं. बातों के दौरान मनजीत ने शीबा के मन की बात जानी तो उस के चेहरे पर रौनक आ गई. उस ने शीबा को अपने लिव इन पार्टनर शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा से मिलवाया और अपनी योजनाओं के बारे में बता कर उसे अपने रैकेट में शामिल कर लिया.

अब ये तीनों मुसाफिर एक ही कश्ती में सवार थे. जिस की मंजिल एक थी. जिसे पाने के लिए वे किसी भी हद से गुजरने के लिए तैयार थे. तीनों ने चंडीगढ़ के बजाए दिल्ली चल कर अपनी योजना को अंजाम देने का फैसला किया. 2018 के जुलाई महीने में वे तीनों दिल्ली आ गए और पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर के जवाहर पार्क में एक मकान किराए पर ले कर रहने लगे. यहां के मकान मालिक को शादाब ने बताया कि वे एक इंटरनैशनल काल सेंटर में नौकरी करते हैं. मकान मालिक को अपने किराए से मतलब था. दूसरे इन तीनों की पर्सनेलिटी इतनी प्रभावशाली थी कि उस ने इन से ज्यादा कुछ पूछ ने की जरूरत ही नहीं समझी.

दिल्ली आ कर शादाब गौहर ने एक गे वेबसाइट पर अपना प्रोफाइल अरमान शर्मा के नाम से अपलोड कर के मसाज सर्विस उपलब्ध कराने का विज्ञापन देना शुरू कर दिया. उस की नजर मालदार क्लाइंट पर रहती थी. जिस से वह अधिक से अधिक रुपए ऐंठ सके.  इस के अलावा उस ने अपने रैकेट में 8 कमसिन लड़कों और एक लड़की को भी शामिल कर लिया, जो उस के कहने पर क्लाइंट को मसाज सर्विस देने के लिए दिल्ली और एनसीआर में बताए गए ठिकानों पर जाते थे. ये लड़के अपनेअपने क्लाइंट को मसाज सर्विस दे कर जो भी कमाते थे उन में प्रत्येक सर्विस पर शादाब गौहर अपना कमीशन वसूल करता था. और बीचबीच में मनजीत कौर और शीबा मसाज के दौरान क्लाइंट की वीडियो बना कर उस से मोटी रकम वसूल करती थीं.

सितंबर के पहले हफ्ते में नीरज नारंग वेबसाइट पर दिए गए नंबर पर फोन कर के शादाब उर्फ अरमान के संपर्क में आए और मसाज करवाने के चक्कर में उस के जाल में फंस गए.  3 लाख रुपए नकद और साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक लेने के बावजूद भी शादाब ने नीरज नारंग का पीछा नहीं छोड़ा. वह उन से 2 लाख रुपए की और मांग करने लगा. फिर मजबूर हो कर नारंग ने इस की शिकायत क्राइम ब्रांच के डीसीपी से कर दी. शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा और मनजीत कौर से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस दौरान दोनों आरोपियों के कब्जे से नीरज नारंग से लिए गए पौने 2 लाख रुपए तथा साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक बरामद कर लिए.

रिमांड अवधि खत्म होने के बाद पुलिस ने शादाब गौहर और मनजीत कौर को कोर्ट में पेश किया और वहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. गिरोह में शामिल तीसरी शातिर लड़की शीबा कथा लिखे जाने तक फरार थी.

— कथा में दिए गए कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं.

 

Social Crime : सट्टे का सही नंबर नहीं बताया तो सिर काट डाला

Social Crime :  हाफिज मुबीन ने सट्टेबाजों में झूठमूठ का जो भ्रम फैलाया था कि वह सट्टे का सटीक नंबर बता सकता है, वह उस के भांजे जीशान को बहुत भारी पड़ा. वह तो जान से गया ही…

उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद से 15 किलोमीटर दूर हाइवे से सटा एक गांव है चमरौआ. यह गांव थाना मूंडापांडे के अंतर्गत आता है. इसी गांव में हाफिज मुबीन का परिवार रहता था. हाफिज मुबीन गांव की दरगाह पर बैठते थे. दरगाह पर जायरीनों का आनाजाना लगा रहता था. लोग यहां मन्नतें मांगने आते थे. इस के अलावा हाफिज मुबीन गंडाताबीज से लोगों की समस्याएं भी सुलझाते थे, जिस के लिए लोगों का उन के पास आनाजाना लगा रहता था. हाफिज मुबीन का 12 साल का भांजा उन के पास रह कर पढ़ाई कर रहा था. वह मामा के घर पिछले 2 सालों से रह रहा था. वैसे जीशान मूलरूप से सहसपुर अलीनगर, अमरोहा का निवासी था. सहसपुर अलीनगर भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी का गांव है.

16 अगस्त, 2018 को जीशान मामा के घर के पास खड़ा था, तभी एक युवक मोटरसाइकिल से वहां पहुंचा. उस ने जीशान से उस के मामा हाफिज मुबीन के बारे में पूछा. जीशान ने बताया कि वह दरगाह पर बैठे हैं. इस पर युवक बोला, ‘‘मैं ने दरगाह नहीं देखी, क्या तुम वहां तक मेरे साथ चल सकते हो. मैं तुम्हें वापस यहीं छोड़ दूंगा.’’

‘‘आप 2 मिनट रुकिए, मैं घर में बता कर आता हूं.’’ कह कर 12 साल का जीशान घर में चला गया. उस वक्त घर पर उस की मामी व अन्य महिलाएं थीं. जीशान ने उन से कहा, ‘‘कंजी आंखों वाला एक आदमी मुबीन मामा को पूछ रहा है. उस के पास मोटरसाइकिल है. मैं उसे दरगाह तक छोड़ कर आता हूं.’’

महिलाओं ने सोचा कि कोई जरूरतमंद होगा, इसलिए उन्होंने जीशान से कह दिया कि उसे छोड़ कर जल्द आ जाना.

‘‘ठीक है, अभी आता हूं.’’ कह कर जीशान मोटरसाइकिल वाले के पास आ गया. वह जीशान को बाइक पर बिठा कर वहां से चल दिया. कुछ दूर आगे जा कर जीशान ने दरगाह की ओर जाने वाली सड़क की तरफ इशारा कर के कहा, ‘‘इधर मोड़ लो.’’

लेकिन बाइक  वाले ने कहा कि मेरा एक साथी दलपतपुर पुलिस चौकी के पास इंतजार कर रहा है, उसे भी साथ ले लें. युवक बाइक को दलपतपुर की तरफ ले गया. दलपतपुर पुलिस चौकी से 500 मीटर आगे उस ने अपनी बाइक रोक दी. वहां एक युवक खड़ा मिला. बाइक चलाने वाले ने उस से कहा, ‘‘हाफिज मुबीन दरगाह पर नहीं हैं. वह मुरादाबाद गए हुए हैं.’’

उस का साथी भी उसी बाइक पर बैठ गया. जीशान बीच में बैठा था. वे दोनों जीशान को ले कर मुरादाबाद की तरफ चले गए. उस समय शाम के साढ़े 4 बज रहे थे. उधर जब जीशान रात 8 बजे तक घर नहीं पहुंचा तो घर में सब उस की चिंता करने लगे. उन्होंने गांव का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन जीशान का कुछ पता नहीं चल पाया. घर वाले रात भर उस का इंतजार करते रहे लेकिन वह नहीं लौटा. सभी घर वालों की आंखों से नींद गायब थी. वे लोग बैठे हुए उसी के बारे में बात कर रहे थे, तभी मुबीन के मोबाइल पर एक काल आई. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘जीशान हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा देखना चाहते हो तो तुम्हें सट्टे का सही नंबर बताना होगा. नंबर लगते ही हम जीशान को आजाद कर देंगे. और हां, अगर पुलिस को बताया तो बहुत बुरा अंजाम होगा.’’

जीशान मामा के घर ननिहाल में रह रहा था. उस के मांबाप सहसपुर अलीनगर में रहते थे. उस के पिता इश्तेखार अहमद को इस बात की जानकारी मिली तो वह चमरौआ पहुंच गए. मामला गंभीर था, इसलिए घर के सभी लोगों ने इस की सूचना पुलिस को देने का फैसला किया. हाफिज मुबीन इश्तेखार अहमद व गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर थाना मूंडापांडे पहुंच गए. उन्होंने एसओ अजय कुमार गौतम से मुलाकात कर पूरे घटनाक्रम के बारे में बता दिया. लेकिन एसओ ने इस शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया. इस की जगह पीडि़त पक्ष से कह दिया कि बच्चा है, कहीं चला गया होगा, उसे ढूंढ लें.

जीशान ने अपनी मामी से जाते समय कहा था कि कंजी आंखों वाला कोई आदमी मामा को पूछ रहा है. इस से मुबीन को शक हो गया कि उस के भांजे का अपहरण मुरादाबाद के चक्कर की मिलक में रहने वाले आमिर और मुर्सलीन ने किया होगा, क्योंकि ये दोनों उस के पास सट्टे का नंबर पूछने के लिए आते थे. इन में से एक की आंखें कंजी थीं. 2 दिन बाद 18 अगस्त, 2018 को हाफिज मुबीन और उस का भाई यामीन थाने जा पहुंचे गए. उन्होंने आमिर और मुर्सलीन के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी. मुबीन ने बताया कि सट्टे का नंबर पूछने को ले कर उन लोगों से उस का कई बार झगड़ा भी हो चुका था.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद जब मामला मीडिया में उछला तो पुलिस की नींद उड़ गई. उच्चाधिकारियों के आदेश पर थाना मूंडापांडे के एसओ ने नामजद आरोपियों के घर दबिश दे कर दोनों को पूछताछ के लिए उठा लिया. थाने ला कर जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने खुद को निर्दोष बताया. उन्होंने कहा कि घटना वाले दिन वे दोनों अपनेअपने घरों पर थे. दोनों ने इतना जरूर बताया कि वे अकसर हाफिज मुबीन से सट्टे का नंबर पूछने जाया करते थे. पुलिस ने उन के मोहल्ले के कुछ लोगों से पूछताछ की तो उन की बात की पुष्टि हो गई. इस से पुलिस को लगा कि ये निर्दोष हैं. अत: उन्हें इस हिदायत के साथ छोड़ दिया गया कि पुलिस को बिना बताए मुरादाबाद से बाहर न जाएं और पुलिस बुलाए, थाने आ जाएं.

अब पुलिस ने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस नंबर से हाफिज मुबीन के पास काल आई थी. उस डिटेल्स से पता चला कि वह नंबर मुरादाबाद के ही चक्कर की मिलक निवासी इरफान उर्फ राजू का था. इरफान को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. इरफान ने बताया कि 18 दिन पहले उस का मोबाइल गुम हो गया था, जिस की सूचना उस ने थाना सिविललाइंस को दे दी थी. उस ने सूचना की रिसीविंग कौपी भी दिखा दी. उस ने बताया कि वह गुम हुए मोबाइल को बंद करवाना भूल गया था. पुलिस जांच जहां से शुरू हुई थी, घूमफिर कर वहीं आ कर रुक गई. आखिर मुरादाबाद के एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ ने जीशान अपहरण कांड को सौल्व करने के लिए 2 टीमों का गठन किया.

पहली टीम का नेतृत्व सीओ (हाइवे) राजेश कुमार कर रहे थे. उन के साथ थाना मूंडापांडे के एसओ अजय कुमार थे. जबकि दूसरी टीम में सर्विलांस सेल प्रभारी राजीव कुमार थे. इस टीम का नेतृत्व सीओ सुदेश कुमार गुप्ता को सौंपा गया था. 19 अगस्त, 2018 को रविवार था. उस दिन मुरादाबाद शहर के थाना मुगलपुरा क्षेत्र में आने वाली रामगंगा नदी के किनारे एक बच्चे की सिरकटी लाश मिली. मौके पर एसपी (सिटी) अंकित मित्तल भी आ गए थे. मृत बच्चा नीले रंग की लोअर व टीशर्ट पहने हुए था. पुलिस ने आसपास के लोगों को बुला कर शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

लाश की शिनाख्त न होने पर पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि बच्चे की हत्या 2-3 दिन पहले की गई थी. 20 अगस्त, 2018 को अखबारों में जब एक बच्चे की सिर कटी लाश मिलने की खबर छपी तो जीशान के पिता इश्तेखार अहमद और मामा यामीन पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए. कपड़ों और कदकाठी के आधार पर उन्होंने लाश की पहचान जीशान के रूप में की. बकरा ईद से पहले जीशान की मौत की खबर से उस की ननिहाल और पैतृक गांव सहसपुर अलीनगर में मातम सा छा गया था. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. शिनाख्त हो जाने के बाद बच्चे का सिर ढूंढना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी. अब तक यह मामला आईजी विनोद कुमार और एडीजी प्रेम प्रकाश के संज्ञान में आ चुका था.

बकरा ईद का त्यौहार आने वाला था. मुरादाबाद जिला वैसे भी अति संवेदनशील की श्रेणी में आता है. त्यौहार पर कोई बवाल न हो जाए, इसलिए एडीजी प्रेम प्रकाश ने मुरादाबाद के एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ को निर्देश दिए थे कि जीशान के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए. जांच में पहले से जुटी दोनों टीमों ने जांच और तेज कर दी. अपहर्त्ताओं ने जिस फोन नंबर से हाफिज मुबीन को फोन किया था, वह स्विच्ड औफ आ रहा था और उस की अंतिम लोकेशन मुरादाबाद के रामगंगा पुल, जामा मसजिद के पास की आ रही थी. पुलिस ने इस नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि इस नंबर से और भी कई जगह काल की गई थीं.

इस फोन पर आई काल वाले नंबरों की जांच के बाद पुलिस ने मुरादाबाद के जामा मसजिद, चामुंडा वाली गली में दबिश दे कर रशीद और उस के बेटे सुहैल को गिरफ्तार कर लिया. पहले तो वे खुद को निर्दोष बताते रहे, लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे वे टूट गए. उन से पूछताछ के बाद उन के 2 सहयोगियों फैजान निवासी मुगलों वाली मसजिद, मुरादाबाद, फराज खान निवासी वारसी नगर (हाथी वाला मंदिर) को भी गिरफ्तार कर लिया गया. चारों अभियुक्तों ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही जीशान का अपहरण कर के उस का गला रेता था. उन की निशानदेही पर पुलिस ने 24 अगस्त की रात को थाना गलशहीद के कब्रिस्तान से जीशान का सिर बरामद कर लिया.

पुलिस ने जीशान के सिर का पोस्टमार्टम करवा कर उसे उस के परिवार वालों के सुपुर्द कर दिया और चारों अभियुक्तों रशीद, सुहैल, फैजान और फराज खान से पूछताछ की तो जीशान की हत्या की कहानी कुछ इस तरह पता चली—

जिला मुरादाबाद के चमरौआ गांव निवासी हाफिज मुबीन गांव की एक दरगाह पर बैठते हैं. ये चारों आरोपी पिछले 3 सालों से उन के पास सट्टे का नंबर पूछने आते रहते थे. शुरूशुरू में हाफिज मुबीन ने उन्हें सट्टे के जो नंबर बताए, वे इत्तफाक से सही निकले, जिस से इन लोगों ने अच्छा पैसा कमाया. उन पैसों में से इन्होंने हाफिज मुबीन को भी अच्छी दक्षिणा दी. इस के बाद हाफिज मुबीन इस इलाके में मशहूर हो गए. लोग कहने लगे कि हाफिज मुबीन के बताए नंबर पर ही सट्टा खुलता है. इस से मुबीन के पास दूरदूर से सट्टेबाज आने लगे. मुबीन की भी अच्छी कमाई होने लगी. आरोपियों ने बताया कि कुछ दिन तक हाफिज मुबीन द्वारा बताए गए सट्टे के नंबर सही निकले, लेकिन उस के बाद हाफिज मुबीन ने जो नंबर दिए, उन पर सट्टा नहीं खुला.

उन्होंने सट्टे से जो कुछ कमाया, वह तो गंवा ही दिया साथ ही अपनी जमापूंजी भी गंवा दी. इस के अलावा उन्होंने अपना गंवाया हुआ पैसा पाने के चक्कर में लोगों से उधार लेले कर भी सट्टे में लगा दिया. यह बात उन्होंने हाफिज मुबीन से कही तो उस ने टका सा जवाब दे दिया कि अगर मेरे बताए नंबर से आप लोग संतुष्ट नहीं हैं तो किसी दूसरे तांत्रिक को ढूंढो. विश्वास नहीं है तो मेरे पास मत आना. इस के बाद हाफिज मुबीन ने इन चारों को भाव देना बंद कर दिया था. इस की एक वजह यह भी थी कि उन के पास सट्टे का नंबर जानने के लिए लोग लग्जरी गाडि़यों से आने लगे थे, जो मोटी रकम दे कर जाते थे.

हाफिज मुबीन ने इन चारों से बात करनी भी बंद कर दी थी. जब ये लोग ज्यादा जिद करने लगे तो वह फिर आने की बात कह कर टाल देते थे. बरबाद हो चुके ये चारों लोग बहुत परेशानी में थे. आखिर चारों ने मिल कर योजना बनाई कि क्यों न हाफिज मुबीन के भांजे जीशान का अपहरण कर लिया जाए. जीशान भी खाली समय में मामा के साथ दरगाह पर बैठता था. फिरौती के बदले उस से सट्टे का नंबर मालूम करेंगे. भांजे की वजह से हाफिज सट्टे का सही नंबर बता देगा. योजना के अनुसार, रशीद का बेटा मोहम्मद सुहैल, फराज के साथ 16 अगस्त, 2018 को अपनी बाइक से हाफिज मुबीन के गांव चमरौआ पहुंचा. योजना के अनुसार, फराज चमरौआ से पहले दलपतपुर पुलिस चौकी के पास बाइक से उतर गया था.

दिन के करीब सवा 4 बजे अभियुक्त सुहैल बाइक से चमरौआ गांव पहुंचा. उस समय हाफिज मुबीन दरगाह पर नहीं था. सुहैल ने हाफिज मुबीन के बारे में पता किया तो लोगों ने बताया कि वह किसी काम से मुरादाबाद गए हैं. उस के बाद सुहैल हाफिज मुबीन के घर पहुंचा. घर के बाहर जीशान मिला. सुहैल ने जीशान से पूछा कि हाफिज जी हैं तो जीशान ने बताया कि वह दरगाह पर गए हुए हैं. सुहैल ने जीशान से कहा कि मुझे दरगाह तक छोड़ दो, मैं ने दरगाह नहीं देखी. मैं फिर तुम्हें यहीं छोड़ जाऊंगा. जीशान घर पर मौजूद महिलाओं से पूछ कर उस की बाइक पर बैठ कर चला गया. सुहैल को दरगाह जाना ही नहीं था. उस ने अपने साथियों के साथ पहले से जो योजना बना रखी थी, उस योजना को अंजाम देना था, इसलिए दरगाह के बजाए सुहैल किसी बहाने से हाइवे की तरफ मुड़ कर दलपतपुर की तरफ ले गया. क्योंकि वहां पहले से ही उस का साथी फराज उस का इंतजार कर रहा था.

वह जीशान को फराज के पास ले गया. फराज ने जीशान से कहा कि हाफिज जी चंदर के ढाबे पर हैं, तो वहीं बुला रहे हैं. चंदर का ढाबा भी वहां से करीब एक किलोमीटर दूर था. इलाके में वह ढाबा मशहूर था, जीशान भी कई बार वहां जा चुका था. सुहैल बाइक चला रहा था. बीच में जीशान बैठा था, उस के पीछे फराज बैठा था. वे बाइक को मुरादाबाद की तरफ ले गए. जब चंदर का ढाबा निकला तो जीशान ने कहा कि ढाबा तो पीछे छूट गया. उसी समय फराज ने जानवर काटने वाली छुरी निकाल कर जीशान को दिखाते हुए कहा कि चुपचाप बैठा रह, नहीं तो एक ही बार में गरदन अलग हो जाएगी. तू हमारे साथ चल. हमें तेरे मामू से सट्टे का नंबर पूछना है. उस के बाद तुझे छोड़ देंगे.

सुहैल और फराज जीशान को रामपुर तिराहे से हो कर रामगंगा नदी पुल पार कर के जामा मसजिद के पास बरबलान चामुंडा वाली गली में ले गए. वहीं पर सुहैल का घर था. जीशान के हाथपैर बांध कर सुहैल के घर में डाल दिया गया. 16 अगस्त, 2018 की रात 9 बजे सुहैल के पिता रशीद ने हाफिज मुबीन को फोन कर के बताया कि तेरा भांजा जीशान हमारे पास है. तू पैसे वाले और लोगों को सट्टे का ठीक नंबर बताता है और हमें गलत नंबर बता कर तूने हमें बरबाद कर दिया है. अगर अपने भांजे को सहीसलामत देखना चाहता है, तो सट्टे का सटीक नंबर बता दे. हम इंतजार कर रहे हैं.

फोन आने के बाद हाफिज मुबीन व उन का परिवार सकते में आ गया. हाफिज मुबीन ने फोन करने वालों को समझाया कि अब मैं सट्टे का नंबर नहीं दे सकता क्योंकि मैं दरगाह से घर आ गया हूं. कल बता दूंगा. जीशान के अपहरण की बात सुन कर मुबीन के परिवार में रोनाधोना शुरू हो गया. पूरे गांव में जीशान के अपहरण की खबर फैल चुकी थी. उधर अपहर्त्ताओं के चंगुल में फंसे जीशान का बुरा हाल था. वह कह रहा था कि अगर आप ने मेरे मामा से सट्टे का नंबर पूछ लिया हो तो मुझे गांव छोड़ दो. अपहर्त्ताओं ने उसे बताया कि अभी तेरे मामा ने सट्टे का नंबर नहीं बताया है. जीशान का धैर्य जवाब दे रहा था. उस ने रशीद से कहा कि अंकल मैं आप को पहचानता हूं, आप कई बार दरगाह पर सट्टे का नंबर लेने आते रहे हैं. मैं ने आप का क्या बिगाड़ा है? मैं आप के बारे में हाफिज जी को बता दूंगा कि आप मुझे पकड़ कर ले यहां आए हैं.

इस के बाद उन चारों ने आपस में सलाह किया कि अगर जीशान ने मुंह खोल दिया तो सभी सलाखों के पीछे होंगे. उसी समय उन्होंने फैसला कर लिया कि इस का काम तमाम कर देना चाहिए. फिर 16 अगस्त की रात करीब 10 बजे रशीद घर में रखी मांस काटने वाली छुरी ले आया. उस के आते ही सुहैल, फराज और फैजान ने जीशान के हाथपैर, बाल पकड़े और रशीद ने छुरे से उस का गला रेत दिया. रशीद जीशान के गले पर तब तक छुरी चलाता रहा, जब तक सिर शरीर से अलग नहीं हो गया था. फिर चारों जीशान का धड़ बोरे में रख कर पास बह रही रामगंगा नदी के किनारे डाल आए. उस के बाद सुहैल ने हाफिज मुबीन को फिर फोन किया और सट्टे का सही नंबर मांगा.

19 अगस्त, 2018 को थाना मुगलपुरा की पुलिस ने रामगंगा नदी के किनारे एक बोरे में सिरकटी लाश बरामद की, जिस की उस दिन शिनाख्त नहीं हो सकी. पुलिस ने अभियुक्तों के पास से जीशान के जूते, घड़ी, वारदात में इस्तेमाल की गई छुरी और बाइक बरामद कर ली. चारों मुलजिमों को 26 अगस्त, 2018 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Uttar Pradesh Crime : कामोत्तेजक दवा खा कर बहन के साथ रेप किया और ईट से कुचल डाला

Uttar Pradesh Crime : इरफान और सादिया अपने 3 बच्चों के साथ चैन की जिंदगी गुजार रहे थे. तभी जहरीली हवा का झोंका आया, जिस ने इरफान के घर में 3 लाशें बिछा दीं. पुलिस जांच में पता चला कि जहरीली हवा का वह झोंका नसीरुद्दीन का हमराही बन कर आया था…

उस दिन नवंबर, 2019 की 25 तारीख थी. सुबह के 10 बज रहे थे. आजमगढ़ के गांव इब्राहीमपुर भलवारिया का रहने वाला अनीस अहमद गांव के बाहर अपने खेतों पर पहुंचा. फसल व ट्यूबवेल पर नजर डालने के बाद वह खेत के नजदीक ही मछलियां पकड़ने तालाब पर जा पहुंचा. उस ने तालाब में जाल डाला ही था कि उसे अपने दोस्त इरफान की याद आ गई. उस के खेत के पास ही इरफान का घर था. वह अकसर इरफान के साथ ही मछलियां पकड़ता था. अत: उस ने इरफान को बुलाने के लिए फोन किया. लेकिन काल रिसीव नहीं हुई. बारबार रिडायल करने पर भी जब इरफान ने उस की काल रिसीव नहीं की तो अनीस का माथा ठनका.

उस ने तालाब से जाल निकाल कर वहीं किनारे पर रख दिया और तेज कदम बढ़ाता हुआ इरफान के दरवाजे पर पहुंच गया. उस ने इरफान को कई आवाज लगाईं पर कोई जवाब नहीं मिला. इस से अनीस की धड़कनें तेज हो गईं. वह सोचने लगा कि इरफान जवाब क्यों नहीं दे रहा, अनीस ने उस के मकान के चारों तरफ बनी बाउंड्री से झांक कर देखा तो कमरे का दरवाजा थोड़ा सा खुला था. वहीं से उसे दरवाजे के पास जमीन पर पड़ी इरफान की पत्नी सादिया का हाथ दिखा. किसी अनहोनी की आशंका भांप कर अनीस ने इस मामले की जानकारी गांव के प्रधान सलाहुद्दीन तथा इरफान के भाइयों को दे दी. सूचना मिलते ही प्रधान सलाहुद्दीन इरफान के घर आ गए. उन के साथ इरफान के भाई इमरान, इरशाद तथा इकबाल भी थे.

तीनों भाई घर के अंदर जा कर हकीकत जानना चाहते थे लेकिन प्रधान ने उन्हें रोक दिया और उसी समय मोबाइल से थाना मुबारकपुर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी अखिलेश मिश्रा पुलिस टीम के साथ इब्राहीमपुर भलवारिया गांव पहुंच गए. इरफान का घर गांव के बाहर खेत पर था. तब तक वहां काफी भीड़ जुट गई थी. मिश्रा पुलिसकर्मियों के साथ घर के अंदर गए तो वहां का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. कमरे के अंदर 3 लाशें पड़ी थीं. एक मासूम बालक और बालिका घायल अवस्था में पडे़ थे. पूछताछ से पता चला कि मरने वालों में घर का मुखिया इरफान, उस की पत्नी सादिया तथा 4 माह की मासूम बेटी नूर थी. घायलों में इरफान का 5 वर्षीय बेटा अमन तथा 10 वर्षीया बेटी अमायरा थी.

दोनों को किसी भारी वस्तु से सिर व माथे पर प्रहार कर चोट पहुंचाई गई थी. दोनों घायल बच्चे इस हालत में नहीं थे कि पुलिस को कुछ बता सकें. उन्हें तत्काल इलाज के लिए मुबारकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भेजा गया. थानाप्रभारी अखिलेश मिश्रा ने घटना स्थल का निरीक्षण शुरु किया. सादिया की लाश दरवाजे के पास नग्नावस्था में पड़ी थी. उस के सिर व चेहरे पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था. उस की उम्र 32 वर्ष के आसपास थी और ऐसा लग रहा था जैसे उस के साथ बलात्कार किया गया हो. क्योंकि शव के पास ही प्रयोग में लाया गया कंडोम भी पड़ा था. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर उस कंडोम को सुरक्षित कर लिया.

एक साथ 3 कत्ल सादिया के पति इरफान का शव उस के बगल में जमीन पर पड़ा था. उस का सिर फटा हुआ था जिस से खून रिसा हुआ था. उस की मौत हो चुकी थी. इरफान की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. इरफान की 4 माह की बेटी नूर का शव चारपाई पर पड़ा था. उस के शरीर पर चोट का निशान नहीं था. उस की मौत संभवत: दम घुटने से हुई थी. इस तिहरे हत्याकांड की खबर जंगल की आग की तरह आसपास के गांवों में फैली तो सैकड़ों लोगों की भीड़ घटनास्थल पर जमा हो गई. भीड़ बढ़ती देख थानाप्रभारी अखिलेश मिश्रा ने सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी और मौके पर अतिरिक्त पुलिस फोर्स भेजने का अनुरोध किया.

कुछ ही देर बाद आजमगढ़ के एसपी प्रो. त्रिवेणी सिंह, एसपी (सिटी) पंकज कुमार पांडेय तथा सीओ (सदर) अकमल खां पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए. एसपी प्रो. त्रिवेणी सिंह ने मौकाएवारदात पर डौग स्क्वायड तथा फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटना स्थल का बारीकी से निरीक्षण कर मृतक के भाइयों से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. डौग स्क्वायड टीम ने खोजी कुत्ते श्वान फैंटम को घटनास्थल पर छोड़ा गया तो वह वहां की गंध सूंघ कर मकान के आसपास चक्कर लगाते हुए भीड़ में मौजूद एक युवक की ओर लपका. डर की वजह से वह युवक गांव की ओर भाग गया. वह गांव का ही था. पुलिस ने उस की पहचान तो कर ली, पर बिना किसी ठोस सबूत के उसे गिरफ्तार नहीं किया.

लोग हो गए आक्रोशित घटना स्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारी जब तीनों शवों को पोस्टमार्टम हाउस भेजने की तैयारी करने लगे तो वहां मौजूद भीड़ उत्तेजित हो उठी. भीड़ ने मांग की कि जब तक आईजी (जोन), डीआईजी या क्षेत्रीय प्रतिनिधि आ कर काररवाई का आश्वासन नहीं देते तब तक शवों को नहीं उठने देंगे. इस पर एसपी (सिटी) पंकज कुमार पांडेय तथा सीओ (सदर) अकमल खां ने भीड़ को काफी समझाया. पुलिस अधिकारियों के समझाने का उत्तेजित लोगों पर कोई असर नहीं पड़ा. वह अपनी मांग पर डंटे रहे. कानूनव्यवस्था न बिगड़ जाए, इसलिए एसपी (सिटी) पंकज कुमार पांडेय ने डीआईजी तथा क्षेत्रीय विधायक गुड्डू जमाली से फोन पर बात की और वस्तुस्तिथि से अवगत कराया.

कुछ देर बाद डीआईजी मनोज तिवारी तथा क्षेत्रीय विधायक गुड्डू जमाली घटनास्थल आ गए. डीआईजी मनोज तिवारी ने उत्तेजित लोगों को समझाया कि आप का गुस्सा जायज है, हम आप की भावनाओं की कद्र करते हैं. लेकिन आप लोग पुलिस की काररवाई में बाधा न पहुंचाएं. हम आप को आश्वासन देते हैं कि हत्यारा भले ही जमीन में छिपा हो, उसे खोज निकालेंगे और इस जघन्य हत्याकांड के लिए उसे कड़ी से कड़ी सजा दिलाएंगे. क्षेत्रीय विधायक गुड्डू जमाली ने मृतक के घरवालों को भरोसा दिया कि जो भी मदद संभव होगी वह मृतक के परिजनों को दिलाएंगे. साथ ही मृतक के बच्चों के पालनपोषण व पढ़ाई का खर्चा वह स्वयं उठाएंगे. विधायक के आश्वासन का भी लोगों ने स्वागत किया.

डीआईजी व विधायक के आश्वासन के बाद उत्तेजित लोग शांत हो गए. इस के बाद पुलिस ने तीनों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए. चूंकि पुलिस अधिकारियों को उपद्रव की आशंका थी. इसलिए उन्होंने गांव में भारी मात्रा में पुलिस फोर्स तैनात कर दी. रात में ही पोस्टमार्टम करा कर शव उन के भाइयों को सौप दिए गए. शवों को भारी पुलिस सुरक्षा के बीच दफन करा दिया गया. एसपी प्रो. त्रिवेणी सिंह के सेवा काल का यह जघन्यतम हत्याकांड था. उन्होंने इस तिहरे हत्याकांड के खुलासे के लिए एक विशेष टीम का गठन किया. इस टीम को एसपी (सिटी) पंकज कुमार पांडेय की निगरानी में काम करना था. टीम में मुबारकपुर थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा, एसआई ए.के. सिंह, सीओ (सदर) अकमल खां और सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

गठित टीम ने सब से पहले घटना स्थल का निरीक्षण किया, फिर तीनों मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का गहन अध्ययन किया. रिपोर्ट के मुताबिक सादिया की मौत सिर में घातक चोट लगने व ज्यादा खून बहने से हुई थी. उस के साथ दुष्कर्म भी किया गया था. जबकि उस के पति इरफान की मौत सिर तथा दिमाग की नशें फटने  से हुई थी. 4 माह की नूर की मौत दम घुटने से हुई थी.सोचविचार के बाद पुलिस टीम को लगा कि मामला अवैध रिश्तों का है. अत: टीम ने इस बाबत मृतक इरफान के भाई इरशाद व इमरान से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सादिया मिलनसार थी. उस के घर किसी बाहरी व्यक्ति का आनाजाना नहीं था. वह अपने शौहर के अलावा किसी और को पसंद नहीं करती थी.

भाइयों के बयान से साफ  हो गया कि सादिया पाकसाफ औरत थी. उस के किसी गैर मर्द के साथ नाजायज ताल्लुकात नहीं थे. इस से लगने लगा कि किसी वहशी दरिंदे ने सादिया को अपनी हवस का शिकार बनाया और विरोध करने पर मार डाला. यह दरिंदा कौन हो सकता है? इस विषय पर जब टीम के सदस्यों ने मृतक के भाइयों से पूछताछ की तो इमरान ने बताया कि नटबस्ती का एक युवक ऐसा कुकृत्य कर सकता है. शक के आधार पर पुलिस टीम ने नटबस्ती के उस युवक को हिरासत में ले लिया और उस से कड़ाई से पूछताछ की, लेकिन उस ने जुर्म कबूल नहीं किया. उस ने कहा कि उसे रंजिशन फंसाया जा रहा है. वह बेकसूर है. पुलिस टीम किसी निर्दोष को नहीं फंसाना चाहती थी. चूंकि वह शक के दायरे में था इसलिए उसे छोड़ा भी नहीं गया.

अब तक अस्पताल में भरती मासूम अमन और अमायरा के स्वास्थ्य में काफी सुधार आ गया था. वह बयान दर्ज कराने की स्थिति में थे. पुलिस उन दोनों का बयान दर्ज करने स्वास्थ्य केंद्र पहुंची. उन का इलाज कर रहे डा. प्रदीप ने पुलिस को बताया कि दोनों के सिर पर चोट थी, जो अब काफी हद तक ठीक है. डाक्टर ने एक चौंकाने वाली बात यह बताई कि 10 वर्षीया अमायरा के साथ कुकर्म किया गया है. यह जान कर पुलिस सोच में पड़ गई. पुलिस ने दोनों बच्चों से पूछताछ की तो अमायरा ने बताया कि उस रात कोई चोर घर में घुसा था. वह उठी और मां से पानी मांगा तो उसे चोर ने दबोच लिया. उस ने माथे पर ईंट से प्रहार किया, जिस से वह बेहोश सी हो गई. इस के बाद चोर ने उस के साथ गंदा काम किया.

वह चीखी तो भाई अमन रोने लगा. तब उस ने उस के माथे पर भी ईंट से चोट पहुंचाई, जिस से दोनों बेहोश हो गए.

‘‘अगर उस चोर को तुम्हारे सामने लाया जाए तो तुम उसे पहचान लोगी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां, पहचान लूंगी.’’ अमायरा ने जवाब दिया.

पुलिस हिरासत में लिए गए नट बस्ती के संदिग्ध युवक की पहचान कराने अस्पताल लाई. अमायरा ने उसे गौर से देखा फिर कुछ देर मौन रहने के बाद बोली, ‘‘शायद यही था.’’ पहचान होने पर पुलिस ने उस युवक से फिर सख्ती से पूछताछ की लेकिन वह नहीं टूटा. उस ने कहा, ‘‘बच्ची के पहचानने में चूक हुई होगी. मैं निर्दोष हूं.’’ पुलिस टीम को भी लगा कि शायद वह निर्दोष है, इसलिए उसे जाने दिया. पुलिस टीम ने अब अपनी जांच की दिशा बदल दी. सर्विलांस टीम ने घटना वाली रात इलाके में लगे मोबाइल टावर के संपर्क में आए डंप फोन नंबरों में से एक ऐेसे मोबाइल नंबर का पता लगाया जो वारदात के समय वहां 3 घंटे तक मौजूद रहा था. इस मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि वह मोबाइल नंबर नसीरुद्दीन उर्फ अउवापउवा का था, जो इब्राहीमपुर भलवारियां गांव का रहने वाला था.

नसीरुद्दीन था वह हैवान नसीरुद्दीन शक के घेरे में आया तो पुलिस टीम ने उस के पीछे महिला मुखबिर लगा दी, जो उस के परिवार की ही थी. उस ने पुलिस को 2 रोज बाद चौंकाने वाली जानकारी दी. उस ने बताया कि नसीरुद्दीन दिन में तो घर में पड़ा रहता है लेकिन रात को वह घर से निकलता है. घर से वह सीधे कब्रिस्तान जाता है, जहां सादिया, उस के शौहर और बेटी की कब्र के पास बैठ कर रोता है और अपने गुनाहों की तौबा करता है. यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने 2 दिसंबर, 2019 को नसीरुद्दीन उर्फ  अउवापउवा को सुबह 5 बजे उस के घर से हिरासत में ले लिया और शिनाख्त हेतु अस्पताल ले गई, जहां मासूम अमन और अमायरा का इलाज चल रहा था.

नसीरुद्दीन को देखते ही अमायरा चीख पड़ी, ‘‘यही, वह चोर है जिस ने मेरे साथ गंदा काम किया था और ईंट मार कर घायल कर दिया था. इसे छोड़ना नहीं. इसे फांसी पर लटका देना.’’

पुलिस टीम नसीरुद्दीन को साथ ले कर थाना मुबारकपुर आ गई. थाने पर जब उस से तिहरे हत्याकांड के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने अपराध कबूल कर लिया. इस के बाद उस ने हत्या की पूरी कहानी पुलिस को बता दी. पुलिस ने तिहरे हत्याकांड का खुलासा करने तथा हत्यारे को पकड़ने की जानकारी एसपी प्रो. त्रिवेणी सिंह को दी. जानकारी मिलते ही त्रिवेणी सिंह थाना मुबारकपुर आ गए. उन्होंने प्रैसवार्ता में कातिल को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. उन्होंने केस का खुलासा करने वाली टीम की पीठ थपथपाई और 25 हजार रुपए नकद पुरस्कार की घोषणा की.

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के थाना मुबारकपुर के अंतर्गत एक गांव है इब्राहीमपुर भलवारिया. मुसलिम बाहुल्य इस गांव में अब्दुल कय्यूम अपने परिवार के साथ रहता था. उस के 4 बेटे इमरान, इरशाद, इकबाल तथा इरफान थे. इन सभी के विवाह हो चुके थे. उन्होंने चारों बेटों में घर जमीन का बंटवारा कर दिया था. उन के 3 बेटे इमरान, इरशाद और इकबाल बीवीबच्चों के साथ गांव में पैतृक मकान में रहते थे लेकिन सब से छोटे बेटे इरफान ने इब्राहीमपुर भलवरिया गांव के बाहर अपने खेत में टिन शेड वाला मकान बनवा लिया था. वह बीवीबच्चों के साथ वहीं रहता था. लगभग 10 साल पहले इरफान की शादी इसी गांव की सादिया से हुई थी. दरअसल, सादिया एक गरीब परिवार की खूबसूरत बेटी थी. इरफान का सादिया के घर आनाजाना था. आतेजाते इरफान की नजर सादिया पर पड़ी.

पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल बैठे. दोनों की मोहब्बत परवान चढ़ने लगी तो घरवालों को जानकारी हुई. दोनों के परिवार वालों ने आपस में विचारविमर्श कर सादिया और इरफान का निकाह कर दिया. सादिया जैसी खूबसूरत और नेक दिल वाली बीवी पा कर इरफान खुश था. पतिपत्नी के दिन हंसीखुशी से बीतने लगे. हंसतेबतियाते शादी के 5 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. इन 5 सालों में सादिया ने बेटी अमायरा और बेटे अमन को जन्म दिया. बेटीबेटा के जन्म से उन की खुशियां दोगुनी हो गईं.

वक्त बीतता गया. वक्त के साथ सादिया के बच्चे बड़े हुए तो गांव के ही मदरसे में तालीम हासिल करने जाने लगे. इरफान खेतीकिसानी के साथसाथ दरी बुनाई का काम भी करता था, ताकि अतिरिक्त आमदनी हो.  अमन के जन्म के 4 साल बाद सादिया ने एक बेटी नूर को जन्म दिया. नन्हीं सी नूर इरफान और सादिया की आंखों की नूर बन गई थी. इरफान अपने बीवीबच्चों के साथ खुश था. लेकिन उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम न रह सकी. दरअसल इरफान के गांव में ही अजीज अहमद रहते थे. उन के 2 बेटे अजरुद्दीन और नसीरुद्दीन थे. अजरुद्दीन तो सीधासादा और व्यावहारिक था. वह पिता के साथ किसानी करता था. उस की शादी भी हो चुकी थी. लेकिन छोटा बेटा नसीरुद्दीन झगड़ालू और बददिमाग था.

वह गांव के आवारा लड़कों के साथ घूमता, बातबेबात लोगों से उलझता और उन के साथ मारपीट करता. वह आवारा लड़कों के साथ शराब पीता और गांव की लड़कियों से छेड़खानी करता था. नौकरी छोड़ कर लौट आया घर नसीरुद्दीन के कारनामों की शिकायत जब अजीज अहमद के पास आने लगी तो उन्होंने उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं सुधरा. बल्कि ज्यादा शराब पी कर सड़क, नाली में गिरता रहता था, जिस से गांव के लोगों ने उस का नाम अउवापउवा रख दिया था. बिगडै़ल बेटे को सुधारने के लिए अजीज के पास एक ही उपाय बचा था कि उस की शादी कर दी जाए. लेकिन आवारा लड़के से कोई भी अपनी बेटी ब्याहने को तैयार नहीं था. काफी दौड़धूप के बाद उन्होंने एक गरीब परिवार की रेहाना से उस की शादी कर दी.

रेहाना कम पढ़ीलिखी साधारण रंगरूप की युवती थी. उस ने शौहर को अपने प्रेम बंधन में बांधने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह असफल रही. नसीरुद्दीन की आवारागर्दी से तंग आ कर रेहाना ने उसे कई बार फटकारा और जलील भी किया. साथ ही परिवार का बोझ उठाने के लिए उसे कुछ कामधंधा करने की सलाह भी दी. नसीरुद्दीन ने पहले तो बीवी की बात को अनसुना कर दिया पर जब रेहाना आए दिन उस से झगड़ा करने लगी तो उस ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया. नसीरुद्दीन उर्फ  अउवापउवा के कुछ दोस्त फरीदाबाद (हरियाणा) में रहते थे और मशीनों के पार्ट्स बनाने वाली किसी कंपनी में काम करते थे. उस ने अपने दोस्तों से बात की और गांव छोड़ कर फरीदाबाद चला गया.

दोस्तों ने उस के रहने का बंदोबस्त कर उस की वहां नौकरी लगवा दी. नसीरुद्दीन के हाथ में पैसे आने लगे तो वह शराब के साथसाथ दूसरे नशे भी करने लगा. यही नहीं वह अय्याशी के लिए दिल्ली के रेडलाइट एरिया में भी जाने लगा. नसीरुद्दीन कमाता जरूर था, पर वह सारा पैसा नशे और अय्याशी में खर्च कर देता था. वह 3-4 महीने में जब भी घर आता, खाली हाथ ही आता. रेहाना, शौहर से अपने खर्च को पैसा मांगती तो वह उसे दुत्कार देता था. वह रेहाना के शरीर को रौंदता तो था पर उस की चाहत को वह पूरा नहीं कर पाता था. इतना ही नहीं रेहाना को वह अपने साथ भी नहीं रखना चाहता था.

नसीरुद्दीन उर्फ  अउवापउवा जून 2019 में नौकरी छोड़ कर गांव आ गया. इस के बाद वह जलालपुर स्थित एक बुनाई कारखाने में काम करने लगा. रेहाना की अपने शौहर से नहीं पटती थी. इस के 2 कारण थे. एक तो वह कमाई का एकचौथाई हिस्सा भी उस के हाथ पर नहीं रखता था. दूसरे वह कामवर्धक दवाओं का प्रयोग कर उस के साथ संबंध बनाता था. झगड़ा तब ज्यादा होता था जब वह उस के ऊपर अप्राकृतिक संसर्ग के लिए दबाव बनाता था. धीरेधीरे झगड़ा बढ़ता गया और रेहाना, शौहर की गंदी हरकतों से आजिज आ कर अक्तूबर में अपने मायके चली गई.

रेहाना रूठ कर मायके चली गई तो अय्यास नसीरुद्दीन उर्फ अउवापउवा सेक्स के लिए परेशान रहने लगा. उस का दिन तो कामधाम में कट जाता, लेकिन रात में औरत की कमी सताने लगती. उस के मन में अपनी भाभी जुनैदा के प्रति भी खोट था, पर भाई के डर से वह उस की तरफ कदम नहीं बढ़ा पा रहा था. यद्यपि वह भाभी के साथ हंसीमजाक तथा अश्लील हरकतें कर देता था. जुनैदा उसे डांटफटकार देती थी. एक रोज अपने काम पर जाते समय नसीरुद्दीन की नजर इरफान की खूबसूरत पत्नी सादिया पर पड़ी. 30 वर्ष की उम्र पार कर चुकी 3 बच्चों की मां सादिया की खूबसूरती में कमी नहीं आई थी. नसीरुद्दीन ने उसे अपनी हवस का शिकार बनाने का निश्चय कर लिया.

उस ने सोचा कि सादिया अपने शौहर और बच्चों के साथ गांव के बाहर खेत पर बने मकान पर रहती है, इसलिए उसे आसानी से शिकार बनाया जा सकता है. अगर उस ने शोर मचाया भी तो उस की चीखपुकार गांव तक सुनाई नहीं देगी. जिस से उसे कोई बचाने भी नहीं आएगा. सादिया पर जम गईं निगाहें इस के बाद वह सादिया व उस के शौहर की रेकी करने लगा. 20 नवंबर, 2019 को वह रात 9 बजे सादिया के दरवाजे पर पहुंचा. उसने बाउंड्री से झांका तो सादिया मोबाइल पर किसी से बात कर रही थी. अत: वह वापस घर आ गया. नसीरुद्दीन वापस जरूर आ गया था पर उस की सेक्स की भूख बढ़ गई थी. वह सादिया के शरीर से हर हाल में खिलवाड़ करना चाहता था.

24 नवंबर, 2019 की शाम नसीरुद्दीन अपने गांव के मैडिकल स्टोर से कामोत्तेजक दवा तथा कंडोम खरीद लाया. दवा खाने के बाद उस ने निश्चय कर लिया था कि चाहे जो भी हो, वह आज सादिया के साथ संबंध बना कर ही रहेगा. रात 10 बजे वह घर से निकला और घूमतेफिरते रात साढ़े 10 बजे इरफान के घर जा पहुंचा. उस ने बाउंड्री से झांक कर देखा तो पूरा परिवार टिन शेड के नीचे सो रहा था. दरवाजे में अंदर से कुंडी नहीं लगी थी. बांस का डंडा लगा था, जो दरवाजे को खुलने से रोके हुए था. नसीरुद्दीन ने आहिस्ता से डंडे को सरकाया और दरवाजे को अंदर की ओर धकेला, इस से दरवाजा खुल गया. लेकिन इसी बीच डंडा जमीन पर गिर पड़ा. डंडे के गिरने की आवाज से इरफान की आंखें खुल गईं.

वह जैसे ही उठ कर खड़ा हुआ, नसीरुद्दीन ने लपक कर बाउंड्री से ईंट उठाई और इरफान के सिर पर भरपूर प्रहार किया. इरफान का सिर फट गया. खून की धार बह निकली और वह कराहता हुआ जमीन पर धराशायी हो गया. शौहर के कराहने की आवाज सुन कर तख्त पर अपनी 4 महीने की बच्ची नूर के साथ लेटी सादिया की आंखें खुल गईं. वह उठने को हुई तो नसीरुद्दीन ने उस के सिर पर भी ईंट का प्रहार कर दिया. सादिया का सिर फट गया. वह तड़पने लगी. नसीरुद्दीन को इस सब से कोई लेनादेना नहीं था. उस ने सादिया को दबोच लिया और उस के शरीर से एकएक कपड़ा उतार फेंका. इस के बाद उस ने सादिया के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए. सादिया विरोध करती रही और नसीरुद्दीन उस के जिस्म को रौंदता रहा. इसी बीच वह बेहोश हो गई.

इसी दौरान दूसरी चारपाई पर अपने 5 वर्षीय भाई अमन के साथ लेटी 10 वर्षीया अमायरा की आंखें खुल गईं. उस ने मां से पानी मांगा. तभी नसीरुद्दीन अमायरा के पास जा पहुंचा. उसे देख कर अमायरा को लगा कि घर में चोर घुस आया है. वह शोर मचाने लगी. नसीरुद्दीन ने उस के माथे पर ईंट से प्रहार कर दिया. अमायरा अर्द्धबेहोश हो गई. नसीरुद्दीन कामोत्तेजक दवा खा कर आया था, वह दरिंदा बना हुआ था. उस ने अपने साथ लाए कंडोम का उपयोग किया और मासूम अमायरा को दबोच कर उस के साथ अप्राकृतिक मैथुन किया. इस दौरान वह बच्ची असहनीय दर्द से छटपटाती रही. पर उस दरिंदे को जरा भी दया नहीं आई. उसी समय मासूम अमन भी जाग गया. वह रोने लगा तो वहशी अउवापउवा ने उस के माथे पर ईंट से प्रहार कर दिया. वह डर व भय से कांपने लगा और फिर बेहोश हो गया.

अब तक नसीरुद्दीन पस्त पड़ गया था. वह कुछ देर सुस्ताता रहा तभी नग्नावस्था में पड़ी सादिया के कराहने की आवाज उस के कानों में पड़ी. उस के नग्न शरीर को देख कर एक बार फिर उस की कामेच्छा भड़क उठी. उस ने फिर सादिया के जिस्म को रौंदा, साथ ही उस ने अपने मोबाइल से वीडियो भी बनाया. सादिया की 4 माह की मासूम बेटी नूर कंबल से ढंकी उस के साथ ही लेटी थी. संबंध बनाने के दौरान वह दब गई और उस का दम घुट गया. संबंध बनाने के बाद नसीरुद्दीन ने सादिया का चेहरा ईंट से कुचल दिया, जिस से उस की मौत हो गई. उस का शौहर पहले ही दम तोड़ चुका था. नसीरुद्दीन ने 3 घंटे तक वहशी खेल खेला फिर सादिया का मोबाइल ले कर वापस घर आ गया.

जुनैदा के कहने पर फेंके मोबाइल सुबह को उस ने अपनी भाभी जुनैदा को सादिया की अश्लील वीडियो दिखाई. जिसे देख कर जुनैदा भड़क गई और बोली, ‘‘पउवा तू ने यह क्या कुकर्म कर डाला. तू ने जिस सादिया को हवस का शिकार बनाया है वह इसी गांव की बेटी है और रिश्ते में तेरी बहन थी. तू ने जो गुनाह किया है उस के लिए कोई भी तुझे माफ नहीं करेगा. तू अभी जा और इस मोबाइल को किसी नदीनाले में फेंक आ.’’

भाभी की बात सुन कर नसीरुद्दीन को पछतावा हुआ. वह गांव के बाहर गया और नदी में दोनों मोबाइल फोन फेंक दिए. घर आ कर कमरे में पड़ गया. रात को मृतकों की कब्र पर जा कर शांत कब्रों से वह अपने गुनाहों की माफी मांगता. बाद में जब पुलिस ने जुनैदा को अपना गवाह बना लिया तो उस ने सारी बातें सचसच बता दीं. इधर सुबह 10 बजे घटना का खुलासा तब हुआ, जब अनीस अहमद अपने खेत पर गया और मछली पकड़ने के लिए इरफान को बुलाना चाहा. पुलिस की अथक मेहनत पर आरोपी एक सप्ताह बाद पकड़ा गया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त खून से सनी ईंट एक खेत से बरामद कर ली. मोबाइल फोन बरामद करने के लिए पुलिस ने गोताखोरों को तालाब में उतारा, लेकिन फोन बरामद नहीं हो सके.

हत्यारोपी नसीरुद्दीन से पूछताछ करने के बाद थानाप्रभारी ने 3 दिसंबर, 2019 को उसे आजमगढ़ कोर्ट में पेश किया. जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. मृतक के मासूम बच्चों अमन और अमायरा की जिम्मेदारी बड़े भाई इमरान ने ले ली थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, अमन व अमायरा परिवर्तित नाम है

 

Crime news : लेडी डाक्टर के साथ गैंगरेप किया और जला डाला

Crime news : दुर्दांत दरिंदों के जाल में फंस कर जान गंवा चुकी दिल्ली की निर्भया के गुनहगारों को सजा मिलने से पहले, हैदराबाद में भी एक लेडी डाक्टर के साथ बर्बरतापूर्ण ऐसी ही दरिंदगी हुई. फर्क बस इतना रहा कि दिल्ली के गुनहगारों को सजा नहीं मिली पर हैदराबाद के दरिंदों ने अपनी सजा खुद चुन ली…

अगर कोई युवती या महिला शिक्षित होने के साथसाथ खूबसूरत, हंसमुख, मृदुभाषी, शालीन और आत्मनिर्भर हो तो उसे सर्वगुण संपन्न माना जाता है. हैदराबाद की 27 वर्षीय डा. प्रियांशी रेड्डी ऐसी ही युवती थी. पेशे से पशु चिकित्सक प्रियांशी रेड्डी 27 नवंबर, 2019  को औफिस जाने के लिए सुबह 8 बजे घर से निकली. उस का औफिस घर से काफी दूर था, इसलिए उसे घर से जल्दी निकलना पड़ता था. वह शमशाबाद स्थित टोल प्लाजा के नजदीक एक जगह अपनी स्कूटी पार्क करती थी और फिर कैब से कोल्लुरु स्थित पशु चिकित्सालय जाती थी. छुट्टियों को छोड़ कर डा. प्रियांशी का यह रोजमर्रा का काम था. शाम को औफिस से लौटते वक्त वह पार्किंग से स्कूटी ले कर घर आती थी.

27 नवंबर, 2019 को हौस्पिटल से घर लौटने में उसे थोड़ी देर हो गई थी. साढ़े 7 बजे जब वह टोल प्लाजा पार्किंग पहुंची तो देखा उस की स्कूटी का पिछला पहिया पंक्चर था. रात का अंधेरा गहरा चुका था. प्रियांशी यह सोच कर परेशान हो गई कि घर कैसे जाएगी. इतनी रात गए पंक्चर लगना मुश्किल था. दूरदूर तक पंक्चर बनाने वाला कोई नहीं था. स्कूटी को ले कर प्रियांशी काफी परेशान हुई. पार्किंग में जहां स्कूटी खड़ी थी, उस के पास ही एक लोडेड ट्रक खड़ा था. जैसेजैसे रात गहरा रही थी, प्रियांशी की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. परेशानी स्वाभाविक ही थी. वजह यह कि एक तो वह अकेली महिला थी, ऊपर से सुनसान इलाका. वैसे भी वहां सब अजनबी थे.

वहां से थोड़ी दूर अंधेरे में खडे़ 4 लोगों की आंखें प्रियांशी पर जमी थीं. उस की परेशानी को समझ कर वे खुश थे. जब उन्हें लगा कि वह कुछ ज्यादा ही परेशान है तो वे प्रियांशी के पास आए. उन 4 अजनबियों को देख वह और ज्यादा डर गई. उन चारों में से एक हट्टाकट्टा युवक बोला, ‘‘काफी देर से देख रहे हैं कि आप काफी परेशान हैं. क्या हम आप की कोई मदद कर सकते हैं?’’

प्रियका ने सहम कर उन चारों को देखा और कुछ सोच कर दबी जुबान में बोली, ‘‘पता नहीं कैसे मेरी स्कूटी का पहिया पंक्चर हो गया. आसपास कोई दुकान भी नहीं दिख रही, जहां इसे ठीक करा लूं.’’

‘‘इस में परेशानी की क्या बात है मैडम?’’ वह युवक उतावला हो कर बोला, ‘‘आप कहें तो हम आप की परेशानी दूर कर सकते हैं. मैं एक पंक्चर बनाने वाले को जानता हूं, जो देर रात तक पंक्चर बनाता है.’’

‘‘प्लीज, आप मेरी मदद कीजिए, किसी भी तरह मेरी स्कूटी ठीक करा दीजिए. आप लोगों का बहुत अहसान होगा मुझ पर.’’

‘‘अरे मैडम, इस में अहसान की क्या बात है. हम भी तो इंसान हैं. इंसान एकदूसरे के काम न आए तो धिक्कार है इंसानियत पर.’’ उस युवक की भावनात्मक बातें सुन कर प्रियांशी का डर थोड़ा कम हुआ. उस ने चारों युवकों को स्कूटी ठीक कराने को कह दिया. प्रियांशी की स्वीकृति मिलते ही चारों युवकों ने स्कूटी का पिछला पहिया खोल कर निकाल लिया और पंक्चर बनवाने के लिए वहां से चले गए. युवकों के वहां से जाने के बाद प्रियांशी ने अपनी छोटी बहन रुचिका को फोन कर के सारी स्थिति बता दी. साथ ही कहा कि उसे घर पहुंचने में देर हो सकती है. स्कूटी ठीक होते ही वह घर के लिए निकल जाएगी. दोनों बहनों के बीच करीब 15 मिनट तक बातें होती रहीं. आखिर में प्रियांशी ने थोड़ी देर बाद बात करने के लिए कहा. प्रियांशी ने जब अपनी ओर से फोन डिसकनेक्ट किया, तब 9 बज कर 22 मिनट हो रहे थे.

कहीं नहीं मिली प्रियांशी कुछ देर रुक कर रुचिका ने यह जानने के लिए प्रियांशी को फोन किया कि स्कूटी ठीक हुई या नहीं. लेकिन दूसरी ओर से फोन स्विच्ड औफ बताया गया. इस के बाद रुचिका प्रियांशी का नंबर लगातार मिलाती रही, लेकिन उस का फोन बंद ही मिला. इस से रुचिका परेशान हो गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि जिस नंबर पर उस ने थोड़ी देर पहले बात की थी, वह बंद कैसे हो गया. घबराहट के मारे उस की धड़कनें बढ़ गईं. तब तक रात के करीब 10 बज गए थे. रुचिका ने जब यह बात मातापिता को बताई तो वे भी घबरा गए. उस के पिता पी.एस. रेड्डी बगैर समय गंवाए रुचिका और बेटे समीर को साथ ले कर प्रियांशी की तलाश में टोल प्लाजा जा पहुंचे, जहां प्रियांशी ने अपनी मौजूदगी बताई थी.

पी.एस. रेड्डी और उन के दोनों बच्चों ने आसपास सब जगह छान मारीं, लेकिन न तो प्रियांशी कहीं दिखी और न ही उस की स्कूटी. टोल प्लाजा के पास लोडेड ट्रक खड़ा था. यह देख कर वे लोग और भी ज्यादा परेशान हुए. प्रियांशी ने फोन पर रुचिका को वहीं होने की बात कही थी. जब प्रियांशी कहीं नहीं मिली तो वह यह सोच कर डर गए कि कहीं उस के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई है. ऐसे में पी.एस. रेड्डी के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे. वह मन ही मन फरियाद करने लगे कि उन की बेटी जहां भी हो, सहीसलामत और सुरक्षित हो. रेड्डी के मन में खयाल आ रहा था कि क्यों न घर फोन कर के पत्नी से पूछ लें कि बेटी कहीं घर तो नहीं पहुंच गई.

रेड्डी ने पत्नी को फोन कर के बेटी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि प्रियांशी अभी घर नहीं पहुंची है. जवाब सुन कर रेड्डी और भी ज्यादा परेशान हो गए. परेशानी के आलम में रात गहराती जा रही थी. जब कुछ भी समझ में नहीं आया तो रुचिका, पिता और भाई को ले कर साइबराबाद थाने पहुंच गई. उस समय रात के करीब 12 बज रहे थे. थाने पहुंच कर उस ने दीवान को अपनी परेशानी बताई और आवश्यक काररवाई करने के लिए बहन की गुमशुदगी की तहरीर दी. साइबराबाद पुलिस ने काररवाई करने के बजाए कहा कि यह मामला उन के थाना क्षेत्र का नहीं है. वहां की पुलिस ने उन्हें थाना शमशाबाद भेज दिया. जिस जगह से प्रियांशी गुम हुई थी, वह इलाका थाना शमशाबाद में आता था.

शमशाबाद पुलिस ने उन की बात सुनी और प्रियांशी की तलाश में रेड्डी परिवार के साथ कई सिपाही लगा दिए. रेड्डी परिवार और पुलिस ने मिल कर सुबह 4 बजे तक तलाशी अभियान चलाया, लेकिन प्रियांशी का कहीं पता नहीं चला. उस के अचानक गुम हो जाने से रेड्डी परिवार के अड़ोसपड़ोस वाले भी हैरानपरेशान थे. प्रियांशी को तलाश करतेकरते सुबह हो गई थी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. परिवार वालों ने अपने परिचितों और नातेरिश्तेदारों को भी फोन कर के पता किया लेकिन प्रियांशी का कोई पता नहीं चला. उस की गुमशुदगी से नातेरिश्तेदार भी परेशान थे. रेड्डी परिवार समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे.

परेशान हो कर रेड्डी बच्चों के साथ घर लौट आए. तब तक सुबह के 7 बज गए थे. थकेहारे रेड्डी अपने बरामदे में चिंतातुर कुरसी पर बैठे थे. तभी करीब 8 बजे उन के मोबाइल पर फोन आया, फोन शमशाबाद थाने से आया था. उन्हें तत्काल शमशाबाद थाने पहुंचने को कहा गया था. फोन पर आई काल सुनते ही पी.एस. रेड्डी का कलेजा धक से रह गया. रुचिका और समीर को साथ ले कर वह थाना शमशाबाद पहुंच गए. थाने पर उन्हें बताया गया कि करीब 40 किलोमीटर दूर हैदराबाद-बेंगलुरु हाइवे पर चत्तनपल्ली पुलिया के नीचे एक महिला की जली हुई लाश मिली है, आप हमारे साथ चल कर शिनाख्त कर लें.

लाश बरामद होने की बात सुन कर भाईबहन और पिता सन्न रह गए. रेड्डी साहब को तो ऐसा झटका लगा कि वह घुटनों में सिर रख कर पास पड़ी कुरसी पर बैठ गए. रुचिका ने पिता को संभाला और उन्हें पुलिस के साथ ले कर घटनास्थल जा पहुंची. हैदराबाद-बेंगलुरु राष्ट्रीय राजमार्ग की पुलिया के नीचे एक युवती की बुरी तरह जली लाश पड़ी थी. लाश इतनी ज्यादा जल गई थी कि पहचानना मुश्किल था. उत्सुकतावश रुचिका लाश के पास पहुंची और ध्यान से देखने लगी. लाश के गले में लौकेट पड़ा था. प्रियांशी ऐसा ही लौकेट पहनती थी. गले में पड़े लौकेट को देख रुचिका दहाड़ मार कर रोने लगी.

इस से यह बात साफ हो गई कि लाश डा. प्रियांशी रेड्डी की थी. यह देख पुलिस समझ गई कि मृतका डा. प्रियांशी रेड्डी ही है. वही प्रियांशी जो कोल्लुरु स्थित पशु चिकित्सालय में बतौर डाक्टर तैनात थी. डा. प्रियांशी रेड्डी की लाश बरामद होते ही यह मामला हाईप्रोफाइल बन गया. यह खबर तेजी से फैली. प्रियांशी की हत्या की सूचना मिलते ही लोग उग्र और आक्रोशित हो गए. शहरी नागरिकों के आक्रोश को देख पुलिस के हाथपांव फूल गए. शहर के लोगों में इस बात को ले कर आक्रोश था कि हत्यारों ने प्रियांशी की हत्या क्यों की और हत्या के बाद उसे जलाया क्यों?

जिले की कानूनव्यवस्था गड़बड़ाती, इस से पहले ही पुलिस सक्रिय हो गई. पुलिस फोर्स को यहांवहां मुस्तैदी से तैनात कर दिया गया. बात बढ़े, इस से पहले ही पुलिस ने चतुराई से लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. 29 नवंबर, 2019 को मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस के हाथपांव फूल गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि पहले मृतका के साथ बलात्कार किया गया और बाद में उस का गला घोंटा गया. मतलब मामला बलात्कार और कत्ल का था. प्रियांशी के साथ बलात्कार के बाद हत्या की पुष्टि होेते ही हाहाकार मच गया. न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से यह खबर देश भर में फैल गई.

इस घटना को ले कर देश भर में गुस्सा फूटने लगा. सोशल मीडिया से ले कर आम नागरिक तक सड़क पर उतर आए. लोग दरिंदों के लिए फांसी की मांग कर रहे थे. इस घटना ने करीब 7 साल पहले दिल्ली के धौला कुआं में निर्भया के साथ घटी घटना की यादें ताजा कर दी थीं. दरिंदों ने निर्भया के साथ हद दरजे की दरिंदगी की थी. दरिंदगी और बर्बरता की वजह से निर्भया की मौत हो गई थी. प्रियांशी का परिवार ही नहीं देश भर के लोग सरकार से दुष्कर्मियों को मार डालने की गुहार लगा रहे थे. डा. प्रियांशी रेड्डी के रेप और हत्या की हर तबके, हर धर्म के लोगों ने न केवल निंदा की बल्कि हत्यारों को तुरंत फांसी पर चढ़ाने को कहा. घटना में पुलिस की घोर लापरवाही को ले कर लोग उस पर तमाम तरह के आरोप लगा रहे थे.

जब देश भर में बेंगलुरु पुलिस की किरकिरी होने लगी तो प्रदेश के पुलिस महानिदेशक और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आदेश दिया. डीजीपी का आदेश मिलते ही साइबराबाद के पुलिस कमिश्नर वी.सी. सज्जनार ने इस मामले को गंभीरता से लिया. उन के आदेश पर पुलिस गुनहगारों की सघन तलाशी में जुट गई. सज्जनार के आदेश पर पुलिस ने जांच वहीं से शुरू की, जहां से डा. प्रियांशी गुम हुई थी. सज्जनार ने सब से पहले खुद टोल प्लाजा के आसपास के सीसीटीवी फुटेज देखे. सीसीटीवी ही ऐसा चश्मदीद हो सकता था, जो पुलिस को बलात्कारी हत्यारों तक पहुंचा सकता था.

टोल प्लाजा पर पूछताछ करने पर पता चला था कि बीती रात एक लोडेड ट्रक वहां रुका था, जिस में केवल 4 युवक सवार थे. टोल प्लाजा के पास एक कैमरे में 4 युवक, जिन की उम्र 22 से 27 साल के बीच थी, चहलकदमी करते हुए दिखाई दिए. पहनावे से वे चारों ड्राइवर जैसे दिख रहे थे. पुलिस कमिश्नर वी.सी. सज्जनार ने टोल प्लाजा के आसपास के लोगों से पूछताछ की तो उन से भी यही पता चला कि काफी देर तक खड़ी रहे लोडेड ट्रक के आसपास 4 युवक देखे गए थे. सीसीटीवी फुटेज में चारों युवक संदिग्ध दिख रहे थे. सीसीटीवी कैमरे और लोगों से की गई पूछताछ से यह बात तय हो गई थी कि संदिग्ध दिखने वाले चारों युवक ही दोषी थे.

ट्रक वाले युवक आए संदेह के दायरे में पूछताछ में पुलिस ने जैसेतैसे चारों युवकों के नाम खोज निकाले. उन में से एक का नाम मोहम्मद पाशा उर्फ आरिफ, जोलू नवीन, जोलू शिवा और चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलू उर्फ चेन्ना था. इन में से 26 साल का पाशा और 20 साल का जोलू शिवा लौरी ड्राइवर थे, जबकि 23 वर्षीय जोलू नवीन और 20 साल का चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलू क्लीनर थे. यह बात सज्जनार के लिए काफी काम की साबित हुई. निर्दयी हत्यारों तक पहुंचने के लिए शादनगर पुलिस और शमशाबाद पुलिस को साथ काम करने को कहा गया. पुलिस ने चारों हत्यारों तक पहुंचने के लिए मुखबिरों का जाल बिछा दिया. जांचपड़ताल में मोहम्मद पाशा उर्फ आरिफ के बारे में जानकारी मिली. वह महबूबनगर जिले के नारायणपेट का रहने वाला था.

पाशा के बारे में सूचना मिलते ही पुलिस ने उसे उस के घर से धर दबोचा. पुलिस उसे थाना शादनगर ले आई. कमिश्नर सज्जनार की देखरेख में थाने में उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने जुबान खोल दी. पाशा ने प्रियांशी की स्कूटी से ले कर उसे जलाने तक की कहानी बता दी. उस ने कमिश्नर के सामने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि उस ने अपने 3 साथियों जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना के साथ मिल कर प्रियांशी रेड्डी के साथ बलात्कार किया था. राज छिपाने के लिए बाद में चारों ने मिल कर उस की हत्या कर दी थी और लाश को जला दिया था. उस ने इस से आगे की सारी बातें विस्तार से बता दीं कि क्याक्या और कैसे हुआ था. पाशा का बयान दिल दहलाने वाला था.

खैर, सज्जनार ने काफी समझदारी से काम लेते हुए पाशा उर्फ आरिफ की निशानदेही पर तीनों दरिंदों जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. ये तीनों भी महबूबनगर के नारायणपेट के रहने वाले थे, जिन में नवीन और शिवा सगे भाई थे. इन तीनों ने भी अपनाअपना जुर्म कबूल कर लिया. 30 नवंबर, 2019 को डा. प्रियांशी रेड्डी केस के चारों मुलजिमों की गिरफ्तारी की खबर लगते ही स्थानीय लोग आक्रोशित हो गए और उन्होंने शादनगर थाने पर धावा बोल दिया. लोगों का कहना था कि चारों दरिंदों को उन के हवाले कर दिया जाए. जिस तरह इन दरिंदों ने मिल कर प्रियांशी के साथ बर्बरता की, उसी तरह उन के साथ भी किया जाएगा.

काफी मशक्कत के बाद जैसतैसे सज्जनार ने स्थिति को संभाला और भीड़ को भरोसा दिया कि प्रियांशी का बलिदान बेकार नहीं जाएगा. उस के चारों गुनहगारों को कड़ी सजा दिलाने में वह पीछे नहीं रहेंगे. उन के आश्वासन पर लोगों का आक्रोश शांत हुआ. लोगों के आक्रोश को देख कर मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने पहली बार कहा कि प्रियांशी के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए मुकदमा फास्टट्रैक कोर्ट में चलेगा और मुलजिमों को 6 महीने के अंदर कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी. इस के बाद पुलिस कमिश्नर सज्जनार ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. उन से की गई पूछताछ के बाद दुष्कर्म, हत्या और वहशत से जुड़ी दुर्दांत हत्यारों की हकीकत पता चली.

27 वर्षीय प्रियांशी रेड्डी मूलरूप से हैदराबाद के साइबराबाद की रहने वाली थी. पी.एस. रेड्डी की 3 संतानों में प्रियांशी बड़ी थी. जबकि भाई समीर और रुचिता छोटे थे. प्रियांशी अपनी मेहनत के बूते पर पशु चिकित्सक बनी थी. प्रियांशी रेड्डी का औफिस घर से करीब 30-35 किलोमीटर दूर नवाबपेट मंडल के कोल्लुर में था. ड्यूटी के लिए वह रोजाना सुबह लगभग 8 बजे अपनी स्कूटी से घर से निकलती थी. स्कूटी को वह शमशाबाद टोल प्लाजा के नजदीक पार्क कर के वहां से कैब ले कर कोल्लुर जाती थी. फिर शाम 5 बजे के करीब वह कोल्लुर से कैब ले कर टोल प्लाजा आती और वहां से अपनी स्कूटी ले कर घर पहुंच जाती थी.

घटना से कुछ दिनों पहले उसी टोल प्लाजा पर महबूबनगर के नारायणपेट का रहने वाला मोहम्मद आरिफ उर्फ पाशा अपनी लौरी ट्रक ले कर रुका था. उस की लौरी में हेल्पर के रूप में उसी के गांव के 3 युवक जोलू नवीन, जोलू शिवा और चिंताकुंता चेन्नाकेशवुलू सवार थे. आरिफ जब भी लौरी ले कर बाहर निकलता था, ये तीनों उस के साथ रहते थे. मोहम्मद आरिफ उर्फ पाशा शादीशुदा था. उस की पत्नी ससुराल में पति और सासससुर के साथ रहती थी. आरिफ अपने गांव और घर में किसी से कोई खास मेलजोल नहीं रखता था. वह अपने काम से काम रखता था, जबकि जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना खुराफाती दिमाग के थे.

गांव में हमेशा सब से झगड़ा करते थे, झगड़ालू प्रवृत्ति के तीनों युवकों से गांव वाले अलगथलग रहते थे, ताकि अपना सम्मान बचाए रखें. कम पढ़ेलिखे तीनों युवक बातबात पर भद्दीभद्दी गालियां देने से भी नहीं चूकते थे. कैसे आई प्रियांशी हैवानों के निशाने पर बहरहाल, जिस समय आरिफ लौरी ले कर टोल प्लाजा पर रुका था, उसी समय प्रियांशी भी टोल प्लाजा अपनी स्कूटी लेने पहुंची थी. प्रियांशी की खूबसूरती देख कर आरिफ के मन में पाप जाग उठा. वह तब तक प्रियांशी को देखता रहा, जब तक उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई. प्रियांशी के जाने के बाद आरिफ होंठों ही होंठों में बुदबुदाया, ‘‘क्या माल है यार.’’

आरिफ को बुदबुदाता देख जोलू पूछ बैठा, ‘‘क्या बात है पाशा उस्ताद, किस की बात कर रहे हो?’’

आरिफ ने जवाब दिया, ‘‘कुछ नहीं यार, बस ऐसे ही कह रहा था. कोई बात नहीं है. चलो, चायशाय पीते हैं. फिर अपनी धन्नो को आगे बढ़ाएंगे.’’

आरिफ ने जोलू की बात टाल दी और चाय की दुकान की ओर बढ़ गया. चारों चाय पी कर लौरी से आगे चले गए. आरिफ माल की डिलिवरी दे कर जब 2 दिनों बाद शाम को उसी रास्ते पर लौटा तो उस ने टोल प्लाजा पर फिर अपनी लौरी रोक दी. उसे चाय की जोरों से तलब लगी थी. जब उस ने लौरी सड़क किनारे लगाई, तभी उस की नजर प्रियांशी पर पड़ी. प्रियांशी पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाल रही थी. वह उसे तब तक खा जाने वाली नजरों से घूरता रहा, जब तक वह दिखती रही. डा प्रियांशी रेड्डी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया और वह अपनी स्कूटी ले कर घर चली गई.

उस दिन के बाद आरिफ जब भी लौरी ले कर माल की डिलिवरी करने जाता, टोल प्लाजा के पास अपनी लौरी खड़ी कर के चाय की चुस्की लेने के बहाने प्रियांशी की स्कूटी देखता और चाय पी कर चला जाता. उसे यकीन हो गया था कि प्रियांशी रोज अपनी स्कूटी यहीं खड़ी करती है और फिर कहीं जाती है. आरिफ को बस इतना पता था कि उस के दिमाग में कुछ हलचल सी हुई है. उस के जिस्म में अय्याशी के कीड़े कुलबुलाने लगे. उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर एक खरतनाक योजना बना ली थी और उस दिन के बाद वह प्रियांशी पर नजर रखने लगा था. वह सही मौके की तलाश में जुट गया. आखिरकार वह मौका उसे 27 सितंबर, 2019 को मिल ही गया.

उस दिन शाम करीब 5 बजे आरिफ लौरी ट्रक ले कर टोल प्लाजा पहुंचा और लौरी को एक ओर खड़ी कर के चाय की दुकान पर चाय पीने चला गया. उस के साथ तीनों हेल्पर जोलू शिवा, जोलू नवीन और चेन्ना भी थे. आरिफ को पता था कि प्रियांशी के आने का समय हो रहा है. चाय पीने के बाद उस ने अपने साथियों को वहां से उठने का इशारा किया. योजनानुसार प्रियांशी को किसी भी तरह रात 9 बजे तक रोकना था. इस के लिए आरिफ ने नुकीली कील से प्रियांशी की स्कूटी का पिछला पहिया पंक्चर कर दिया और चारों वहां से थोड़ी दूर हट कर उस पर नजर रखने लगे. रात करीब 7 बजे प्रियांशी टोल प्लाजा पहुंची. वहां से वह पार्किंग में गई, जहां उस ने अपनी स्कूटी पार्क की थी. स्कूटी पंक्चर देख कर उस का माथा चकरा गया कि वह घर कैसे पहुंचेगी? स्कूटी को ले कर वह परेशान हो गई.

योजना के अनुसार, तभी आरिफ तीनों साथियों के साथ प्रियांशी के पास पहुंचा और परेशानी का सबब पूछा तो उस ने बता दिया कि उस की स्कूटी पंक्चर है और इतनी रात गए कहीं पंक्चर लग नहीं सकता. आरिफ और उस के तीनों साथी मन ही मन खुश हुए. शिकार जाल में फंस गया था. बस चोट करने की देरी थी. तभी आरिफ ने उस के सामने पंक्चर लगवा देने की पेशकश की तो प्रियांशी ने सकुचाते हुए हां कर दी. प्रियांशी की ओर से हरी झंडी मिलते ही आरिफ ने पिछला पहिया खोल कर जोलू शिवा को सौंप दिया कि वह पंक्चर लगवा कर ले आए. इसी बीच प्रियांशी ने छोटी बहन रुचिका को फोन कर के बता दिया कि उस की स्कूटी पंक्चर है. कुछ लोग उस की मदद के लिए तैयार हैं. लेकिन पता नहीं क्यों उसे डर सा लग रहा है. उस ने आगे कहा कि वह तब तक बात करती रहे, जब तक कि पंक्चर लग कर आ न जाए.

प्रियांशी की आखिरी फोन काल इस पर रुचिका ने उसे सलाह दी कि डर लग रहा है तो पुलिस को फोन कर दे या आसपास कोई ओर हो तो उस की मदद ले ले. या फिर स्कूटी वहीं छोड़ कर कैब ले कर घर चली आए. उस समय रात के 9 बज कर 22 मिनट हो रहे थे और चारों ओर सन्नाटा फैल चुका था. रात के सन्नाटे में प्रियांशी तीनों लड़कों के बीच अकेली डरीसहमी खड़ी थी. छोटी बहन से बात करने के बाद प्रियांशी को उस की बात जंच गई और कैब ले कर घर जाने का मन बना लिया. उसी समय आरिफ ने देखा कि शिकार उस के हाथ से निकल रहा है. फिर क्या था, अचानक आरिफ, चेन्ना और नवीन फुरती से प्रियांशी पर झपट पड़े और उसे अपनी मजबूत बांहों में जकड़ लिया.

सब से पहले आरिफ ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर स्विच्ड औफ किया ताकि वह किसी से बात न कर पाए. उस के बाद तीनों उस का मुंह दबा कर घसीटते हुए पीछे खेत में ले गए. तीनों ने बारीबारी से अपनी हवस मिटाई. उसी समय पंक्चर लगवा कर जोलू शिवा भी वहां पहुंचा. बाद में उस ने भी अपनी जिस्मानी भूख मिटाई. अंत में एक बार फिर आरिफ ने प्रियांशी के साथ मुंह काला किया. उस समय उस के मजबूत हाथ की पकड़ प्रियांशी के मुंह और नाक पर बनी रही, जिस से दम घुटने से उस की मौत हो गई. प्रियांशी की मौत होते ही चारों के सिर से हवस का जुनून उतर गया. डर के मारे वे चारों थरथर कांपने लगे थे. आरिफ ने सुझाया कि लाश यहां छोड़ी तो पकड़े जाएंगे.

इसे ठिकाने लगाना होगा. उस के बाद चारों ने पहले प्रियांशी की लाश लौरी में लादी फिर उस की स्कूटी. उस के बाद उस ने शिवा को एक कैन दे कर पैट्रोल पंप से पैट्रोल मंगवाया. पैट्रोल लेते शिवा की तसवीर पैट्रोल पंप के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई थी. शिवा पैट्रोल ले कर आया और चारों वहां से लौरी ले कर करीब 40 किलोमीटर दूर हैदराबाद-बेंगलुरु हाइवे के चत्तनपल्ली पहुंचे. इन लोगों ने हाइवे के नीचे स्थित पुलिया के अंदर लौरी खड़ी कर दी. फिर चारों ने मिल कर लौरी से प्रियांशी की डेडबौडी और स्कूटी नीचे उतारी. स्कूटी एक ओर खड़ी कर दी. फिर उस की लाश पर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. आग लगाने के बाद चारों वहां से अपनेअपने घर पहुंच गए.

वहीं मिली सजा, जहां प्रियांशी की लाश जलाई गई रात 2 बजे के करीब आरिफ अपने घर पहुंचा तो उस की मां ने उस से इतनी देर से आने का कारण पूछा. वह कुछ बोला नहीं बस इतना ही कहा कि मुझे सोने दो, सुबह बात करेंगे. फिर वह अपने कमरे में चला गया. उस समय वह बुरी तरह घबराया हुआ था. उस की मां भी उससे कुछ पूछ नहीं पाई थी. इधर प्रियांशी के घर वाले उस से बात न होने और मोबाइल स्विच्ड औफ आने के बाद टोल प्लाजा पहुंचे तो वहां न तो प्रियांशी दिखाई दी और न ही उस की स्कूटी. वह दिखाई तो तब देती जब वह वहां होती. दरिंदे तो उस का काम तमाम कर के वहां से भाग चुके थे. घर वाले रात भर उस की तलाश में मारेमारे यहांवहां फिरते रहे. अगली सुबह जब उस की जली हुई लाश बरामद हुई तो उस की तपिश से पूरा देश धधक उठा. फिर क्या हुआ, कहानी में ऊपर वर्णित है.

बहरहाल, गिरफ्तार किए गए चारों आरोपियों मोहम्मद पाशा उर्फ आरिफ, जोलू नवीन, जोलू शिवा और चेन्ना को 5 दिसंबर, 2019 को पुलिस ने अदालत से रिमांड पर लिया. उन्हें ले कर पुलिस क्राइम सीन रीक्रिएट करने के लिए उसी घटनास्थल पर पहुंची, जहां डा. प्रियांशी को जलाया था. उसी दौरान अंधेरे का लाभ उठा कर अभियुक्तों ने पुलिस के हथियार छीन कर उलटे पुलिस पर ही हमला बोल दिया और भागने की कोशिश की. इस का नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने चारों मार गिराए. हैदराबाद के चारों हैवानों के किस्से 10 दिनों में ही खत्म हो गए.

कुछ सफेदपोशों ने इसे जानबूझ कर बदले की भावना में की गई हत्या करार दिया. उस के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मामले की जांच के लिए मैजिस्ट्रियल जांच बैठा दी गई. अब सच्चाई जो भी निकले, लेकिन देश का हर तबका उन के मारे जाने पर खुश हुआ.

—कथा में मृतका और उस के परिजनों के नाम  परिवर्तित हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

 

 

Police Story : SP सुरेंद्र दास ने आत्महत्या करने के लिए जहर क्यों खाया

Police Story : सुरेंद्र कुमार दास कानपुर के एसपी पद पर थे. उन के जीवन में किसी भी चीज का अभाव नहीं था. इस के बावजूद भी ऐसी क्या वजह रही जो उन्हें खुदकुशी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. 5 सितंबर की बात है. कानपुर के एसपी (पूर्वी) सुरेंद्र कुमार दास अपनी पत्नी डा. रवीना सिंह के साथ सरकारी आवास में थे. पतिपत्नी के बीच काफी दिन से तनाव चल रहा था. एसपी सुरेंद्र दास तनाव में थे. वह अपनी परेशानी किसी से बता भी नहीं पा रहे थे. उन के दिल की बात किसी को पता नहीं थी. डा. रवीना को भी हालत की गंभीरता का अंदाजा नहीं था. सुबह का समय था. सुरेंद्र दास ने पत्नी को आवाज दी.

वह आई तो एसपी सुरेंद्र दास ने बिना हावभाव बदले रवीना के हाथ में एक कागज का टुकड़ा देते हुए बोले, ‘‘मैं ने जहर खा लिया है. मैं ने इस के लिए तुम्हें या किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया है.’’

पति की बात सुन कर रवीना अवाक रह गई. उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं रहा था कि क्या करे? वह बोली, ‘‘आप नहीं होंगे तो इस लेटर का हम क्या करेंगे?’’

रवीना ने लेटर को बिना पढ़े, बिना देखे मरोड़ कर कमरे में एक तरफ फेंक दिया. बिना वक्त गंवाए रवीना ने पुलिस आवास पर तैनात पुलिसकर्मियों को एसपी साहब की तबीयत खराब होने की जानकारी दे दीपुलिसकर्मियों की मदद से वह पति को प्राइवेट अस्पताल में ले गई. 5 बज कर 20 मिनट पर वहां से उन्हें उर्सला अस्पताल और 6 बज कर 20 मिनट पर रीजेंसी अस्पताल ले जाया गया. पुलिस अफसर के जहर खाने की बात तेजी से फैलने लगी. कानपुर से ले कर राजधानी लखनऊ के पुलिस मुख्यालय तक अफसरों में हड़कंप मच गया. सुरेंद्र कुमार दास के बेहतर इलाज के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने लगे

कानपुर के रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों ने एम्स दिल्ली और मुंबई के बड़े अस्पतालों के डाक्टरों से संपर्क साधा ताकि एसपी साहब को बेहतर इलाज दिया जा सके. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के शरीर के अंदरूनी अंगों पर जहरीले पदार्थ का असर पड़ने लगा था, जिस से शरीर के दूसरे अंगों के फेल होने का खतरा बढ़ता जा रहा था. स्वास्थ्य में सुधार और बेहतर इलाज के लिए मुंबई से हवाई जहाज से इलाज में सहायक एक्मो नाम का एक उपकरण मंगाया गया. यह उपकरण लखनऊ और कानपुर में उपलब्ध नहीं था. एक्मो के द्वारा शरीर के अंगों को काम करने के लिए मदद दी जाती है.

एसपी सुरेंद्र कुमार दास 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. मूलरूप से वह बलिया जिले के रहने वाले थे. उन के पिता लखनऊ के रायबरेली रोड स्थित पीजीआई कालोनी में रहते थे. कानपुर शहर में वह एसपी (पूर्वी) के पद पर तैनात थे. उन की पत्नी रवीना डाक्टर थी. दोनों की शादी 9 अप्रैल, 2017 को हुई थी. यह शादी अखबार के वैवाहिक विज्ञापन के माध्यम से हुई थी. रवीना के पिता भी सरकारी डाक्टर हैं. शादी के बाद सुरेंद्र दास अंबेडकर नगर में बतौर सीओ तैनात थे. उस समय रवीना भी उन के साथ रहती थी. रवीना वहां अंबेडकर नगर मैडिकल कालेज में बतौर डाक्टर संविदा पर तैनात थी

रवीना ने जुलाई माह में ही नौकरी जौइन की थी और एक महीने बाद अगस्त में ही नौकरी छोड़ दी. सुरेंद्र दास जब कानपुर में एसपी (पूर्वी) के रूप में तैनात किए गए तो रवीना उन के साथ रहने लगी थी. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के जहर खाने की सूचना उन के कल्ली, लखनऊ स्थित घर पहुंची तो सुरेंद्र की मां इंदु देवी, बड़ा भाई नरेंद्र दास, भाभी सुनीता कानपुर के लिए रवाना हो गएमुंबई और रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों की टीम ने सुरेंद्र दास को बचाए रखने का प्रयास जारी रखा, लेकिन 5 दिन के संघर्ष के बाद रविवार 9 सितंबर की दोपहर 12 बज कर 20 मिनट पर सुरेंद्र दास का निधन हो गया. उन के शव को कानपुर से लखनऊ उन के एकता नगर स्थित निवास पर लाया गया. पूरी कालोनी सदमे में थी.

सुरेंद्र दास के पिता रामचंद्र दास सेना से रिटायर हुए थे. उन्होंने करीब डेढ़ दशक पहले एकता नगर में पंचवटी नाम से मकान बनाया था. सुरेंद्र दास 2 भाई थे. उन के बड़े भाई नरेंद्र दास अपने मकान में ही हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. सुरेंद्र दास की 5 बहनें पुष्पा, आरती, सुनीता, अनीता और सावित्री थीं. सभी बहनों की शादी हो चुकी थी. सुरेंद्र दास पढ़ाई में तेज थे. उन के पिता रामचंद्र दास ने सुरेंद्र की पढ़ाई के लिए अलग जमीन पर कमरा बनवा दिया था, जिस से उन की पढ़ाई में व्यवधान आए. यहीं रह कर सुरेंद्र पढ़ाई करने लगे. दिन भर वह कमरे में रह कर पढ़ाई करते थे. वहां से वह घर केवल खाना खाने आते थे.

जब उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ तो पूरी कालोनी में खुशियां मनाई गईं. कालोनी में रहने वाले सभी मातापिता अपने बच्चों को सुरेंद्र दास जैसा बनने का उदाहरण देते थे. कालोनी के कुछ बच्चे सुरेंद्र दास के संपर्क में रहते थे. वे उन बच्चों को कंपटीशन की तैयारी की सलाह देते थे. 10 साल पहले सुरेंद्र दास के पिता नरेंद्र दास की मौत हो गई थी. सुरेंद्र दास की खुदकुशी पर किसी को यकीन नहीं हो रहा था. इस का कारण यह था कि वह संस्कारी स्वभाव के थे. कालोनी में रहने वाले किसी भी बुजुर्ग से वह ऊंची आवाज में बात नहीं करते थे, हमेशा अंकल कह कर उन्हें इज्जत देते थे. उन की मौत के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस प्रमुख ओमप्रकाश सिंह सहित सभी अफसरों ने उन के घर जा कर शोक जताया.

सुरेंद्र दास के परिवार ने उन की मौत के लिए पत्नी डा. रवीना सिंह को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया था. सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने कहा कि वह रवीना के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की रिपोर्ट दर्ज कराएंगे. नरेंद्र दास ने कहा कि सुरेंद्र दास की मौत के लिए रवीना ही हिम्मेदार है. रवीना उन्हें परिवार से अलग रखना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र परिवार से दूर नहीं रहना चाहते थे. वह भावुक और संवेदनशील इंसान थे. जबकि रवीना उन पर शक करती थी, जब वह गश्त पर जाते थे तो वह उन के साथ ही जाती थीवैसे भी रवीना का अपने मायके की तरफ झुकाव ज्यादा था. पुलिस लाइन में जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल के कपड़े खरीदने को ले कर दोनों में विवाद हुआ था. सुरेंद्र उन के साथ जाना चाहते थे, जबकि वह अकेले जाना चाहती थी.

सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास का आरोप था कि रवीना ने पति को इतना प्रताडि़त किया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली. इस के अलावा उन के पास कोई रास्ता नहीं थावह पूरी तरह से टूट गए थे और बिना सोचेसमझे आत्महत्या कर ली. नरेंद्र ने कहा कि सुसाइड नोट में हैंड राइटिंग की जांच कराएंगे. नरेंद्र ने बताया कि रवीना नानवेज खाती थी, जबकि सुरेंद्र पूरी तरह से शाकाहारी थेकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भी रवीना ने नानवेज खाया था, जिस की वजह से दोनों में तनाव था. नरेंद्र दास का कहना था कि मानसिक तनाव में ही सुरेंद्र दास यह सोच रहे थे कि आत्महत्या कैसे की जाए. कानपुर के एसएसपी .के. तिवारी के अनुसार सुरेंद्र दास के सुसाइड नोट में पारिवारिक कलह, पत्नी से छोटीछोटी बातों में तनाव और कई बातें भी लिखी थीं. सुरेंद्र ने सीधे तौर पर अपनी आत्महत्या के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया था.

एसपी सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने भले ही उन की पत्नी रवीना को आत्महत्या का जिम्मेदार बताया हो, पर खुद सुरेंद्र ने अपने सुसाइड नोट में पत्नी रवीना को जिम्मेदार नहीं माना. सुरेंद्र दास ने अपने 7 लाइन के पत्र में अंगरेजी और हिंदी दोनों में लिखा था. अंगरेजी में उन्होंने लिखा था कि वह पिछले एक सप्ताह से आत्महत्या करने के तरीके खोज रहे थे. गूगल पर आत्महत्या करने का सब से आसान तरीके को समझने के लिए पढ़ा और वीडियो देखी. इस के बाद 2 तरीकों पर ध्यान दिया. पहला ब्लेड से शरीर की नस काटनी थी. दूसरा जहर खाने का तरीका था

नस काटने में दर्द होने की संभावना ज्यादा थी. ऐसे में मुझे जहर खाने का तरीका सब से अच्छा लगा. इस के लिए उन्होंने सल्फास लाने के लिए अपने एक कर्मचारी को कहा कि उन्हें चूहे और सांप भगाने हैं. 4 सितंबर को जहर खाने से पहले सुरेंद्र दास ने सल्फास मंगवा कर रख ली थी. इन तमाम आरोपों पर सुरेंद्र दास की पत्नी डा. रवीना की तरफ से कोई भी बात नहीं कही गई. रवीना ने केवल इतना कहा कि मेरा सब कुछ चला गया है. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी है. मैं हाथ जोड़ कर कह रही हूं कि मुझे किसी से कुछ नहीं कहना हैरवीना के परिजनों ने हर आरोप को गलत बताते हुए कहा कि सच्चाई सुरेंद्र दास के परिवार को पता है. वह अपने परिवार से परेशान थे और 4 महीने से वह अपने परिवार के संपर्क में नहीं थे. सुरेंद्र की मौत की फाइल अभी बंद नहीं हुई है. ऐसे में संभव है कि कुछ दिनों के बाद कोई सुराग मिले तो फिर से नए तथ्य सामने आएं

एक बात साफ है कि सुरेंद्र अपने जीवन में बेहद तनाव के दौर में गुजर रहे थे. इस बारे में उन्होंने अपने घरपरिवार और पत्नी से भी किसी तरह की कोई चर्चा नहीं की थी. अगर वह अपने करीबी लोगों से अपने तनाव के बारे में चर्चा कर लेते तो शायद वह ऐसा कदम नहीं उठाते. एसपी सुरेंद्र दास की आत्महत्या को ले कर जब आरोपों का दौर चला तो उन की पत्नी डा. रवीना के मातापिता ने सामने कर प्रैस कौन्फ्रैंस की. रवीना के पिता रावेंद्र ने कई कथित सबूतों के साथ आरोप लगाया कि सुरेंद्र का परिवार नहीं चाहता था कि सुरेंद्र रवीना के साथ रहे. उन्होंने यह भी कहा कि सुरेंद्र की शादी की बात पहले तूलिका नाम की लड़की से हुई. बात नहीं बनी तो मोनिका से सगाई हुई, लेकिन वह भी टूट गई

अगस्त 2016 में सुरेंद्र की पहली मुलाकात रवीना से हुई. बात आगे बढ़ी तो सुरेंद्र का परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था. लेकिन सुरेंद्र ने किसी तरह अपनी मां को मना लिया. शादी से पहले सुरेंद्र के बड़े भाई नरेंद्र ने शादी का सामान रवीना के एटीएम कार्ड से खरीदा. अप्रैल, 2017 में रवीना अपनी ससुराल पहुंची तो वहां उस से अभद्रता की गई. भद्दे कमेंट्स किए गए. यहां तक कि उसे खाना भी नहीं दिया गया. रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र का बड़ा भाई नरेंद्र एक व्यावसायिक प्लौट खरीदने के लिए सुरेंद्र से पैसे मांग रहा था. एकता नगर का प्लौट बेचने के चक्कर में दोनों भाइयों में झगड़ा होता था

रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र की मां इंदु अपने बेटे के पास नहीं जाती थीं. सुरेंद्र दास जब सहारनपुर में तैनात थे तो लखनऊ आते थे लेकिन अपने परिवार को सूचना देने से मना कर देते थे. बाद में अंबेडकर नगर ट्रांसफर के समय सुरेंद्र ने दहेज का सामान लाने के लिए ट्रक भेजा था, लेकिन नरेंद्र ने सामान देने से मना कर दिया. बहरहाल, दोनों पक्षों की ओर से आरोपप्रत्यारोप चल रहे हैं. कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ कहा नहीं जा सकता. हां, यह तय है कि सुरेंद्र दास ने मानसिक द्वंद के चलते ही आत्महत्या की. दुख यह जान कर होता है कि जो व्यक्ति कानून का रखवाला था, आत्महत्या कर के वह खुद ही कानून से खेल कर दुनिया से दूर चला गया. आखिर कोई तो ऐसी बात रही होगी जो उन से बरदाश्त नहीं हुई. इस बात का पता लगाया जाना जरूरी है.    

Rajasthan Crime : ठेकदारों को पैसा नहीं दिया तो कर लिया अपहरण

Rajasthan Crime : नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को बाड़मेर के गांव उत्तरलाई में सोलर प्लांट लगाना था. इस के लिए नैचुरल पावर कंपनी ने बंगलुरु की सबलेट कंपनी को ठेका दिया, जो काम अधूरा छोड़ कर भाग गई. प्लांट की स्थिति जानने के लिए जब हैदराबाद से कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी अपने दोस्त सुरेश रेड्डी के साथ बाड़मेर आए तो…    

हैदराबाद निवासी के. श्रीकांत रेड्डी नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर थे. हैदराबाद की यह कंपनी भारत के विभिन्न राज्यों में सरकारी कामों का ठेका ले कर काम करती है. इस कंपनी को राजस्थान के जिला बाड़मेर के अंतर्गत आने वाले उत्तरलाई गांव के पास सोलर प्लांट के निर्माण कार्य का ठेका मिला था. बड़ी कंपनियां प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए छोटीछोटी कंपनियों को अलगअलग काम का ठेका दे देती हैं. नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी ने भी इस सोलर प्लांट प्रोजेक्ट का टेंडर सबलेट कर दिया था

बंगलुरू की इस सबलेट कंपनी ने बाड़मेर और स्थानीय ठेकेदारों को प्लांट का कार्य दे दिया. ठेकेदार काम करने में जुट गएतेज गति से काम चल रहा था कि इसी बीच नैचुरल पावर एवं सबलेट कंपनी के बीच पैसों को ले कर विवाद हो गया. ऐसे में सबलेट कंपनी रातोंरात काम अधूरा छोड़ कर स्थानीय ठेकेदारों का लाखों रुपयों का भुगतान किए बिना भाग खड़ी हुई. स्थानीय ठेकेदारों को जब पता चला कि सबलेट कंपनी उन का पैसा दिए बगैर भाग गई है तो उन के होश उड़ गए क्योंकि सबलेट कंपनी ने इन ठेकेदारों से करोड़ों का काम करवाया था, मगर रुपए आधे भी नहीं दिए थे. स्थानीय ठेकेदार नाराज हो गए. उन्होंने एमइएस के अधिकारियों से मिल कर अपनी पीड़ा बताई. एमइएस को इस सब से कोई मतलब नहीं था.

मगर जब काम बीच में ही रुक गया तो एमईएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. से कहा कि वह रुके हुए प्रोजेक्ट को पूरा करे. तब कंपनी ने अपने एमडी के. श्रीकांत रेड्डी को हैदराबाद से उत्तरलाई (बाड़मेर) काम देखने पूरा करने के लिए भेजा. के. श्रीकांत रेड्डी अपने मित्र सुरेश रेड्डी के साथ उत्तरलाई (बाड़मेर) पहुंच गए. यह बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. वे दोनों राजस्थान के उत्तरलाई में पहुंच चुके थे. जब ठेकेदारों को यह जानकारी मिली तो उन्होंने अपना पैसा वसूलने के लिए दोनों का अपहरण कर के फिरौती के रूप में एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बनाई.

ठेकेदारों ने अपने 3 साथियों को लाखों रुपए का लालच दे कर इस काम के लिए तैयार कर लिया. यह 3 व्यक्ति थे. शैतान चौधरी, विक्रम उर्फ भीखाराम और मोहनराम. ये तीनों एक योजना के अनुसार 22 अक्तूबर को के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी से उन की मदद करने के लिए मिलेश्रीकांत रेड्डी एवं सुरेश रेड्डी मददगारों के झांसे में गए. तीनों उन के साथ घूमने लगे और उसी शाम उन्होंने के. श्रीकांत और सुरेश रेड्डी का अपहरण कर लिया. अपहर्त्ताओं ने सुनसान रेत के धोरों में दोनों के साथ मारपीट की, साथ ही एक करोड़ रुपए की फिरौती भी मांगी

अपहर्त्ताओं ने उन्हें धमकाया कि अगर रुपए नहीं दिए तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा. अनजान जगह पर रेड्डी दोस्त बुरे फंस गए थे. ऐसे में क्या करें, यह बात उन की समझ में नहीं रही थी. दोनों दोस्त तेलुगु भाषा में एकदूसरे को तसल्ली दे रहे थेचूंकि अपहर्त्ता केवल हिंदी और राजस्थान की लोकल भाषा ही जानते थे, इसलिए रेड्डी बंधुओं की भाषा नहीं समझ पा रहे थे. यह बात रेड्डी बंधुओं के लिए ठीक थी. इसलिए वे अपहर्त्ताओं के चंगुल से छूटने की योजना बनाने लगेअपहर्त्ता मारपीट कर के दिन भर उन्हें इधरउधर रेत के धोरों में घुमाते रहे. इस के बाद एक अपहर्त्ता ने के. श्रीकांत रेड्डी से कहा, ‘‘एमडी साहब अगर आप एमडी हो तो अपने घर वालों के लिए हो, हमारे लिए तो सोने का अंडा देने वाली मुरगी हो.

इसलिए अपने घर पर फोन कर के एक करोड़ रुपए हमारे बैंक खाते में डलवा दो, वरना आप की जान खतरे में पड़ सकती है.’’ कह कर उस ने फोन के श्रीकांत रेड्डी को दे दिया. श्रीकांत रेड्डी बहुत होशियार और समझदार व्यक्ति थे. वह फर्श से अर्श तक पहुंचे थे. उन्होंने गरीबी देखी थी. गरीबी से उठ कर वह इस मुकाम तक पहुंचे थेश्रीकांत करोड़पति व्यक्ति थे. वह चाहते तो करोड़ रुपए अपहर्त्ताओं को फिरौती दे कर खुद को और अपने दोस्त सुरेश रेड्डी को मुक्त करा सकते थे, मगर वह डरपोक नहीं थे. वह किसी भी कीमत पर फिरौती दे कर अपने दोस्त और खुद की जान बचाना चाहते थे

अपहत्ताओं ने अपने मोबाइल से के. श्रीकांत रेड्डी के पिता से उन की बात कराई. श्रीकांत रेड्डी ने तेलुगु भाषा में अपने पिताजी से बात कर कहा, ‘‘डैडी, मेरा और सुरेश का उत्तरलाई (बाड़मेर) के 3 लोगों ने अपहरण कर लिया है और एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग रहे हैं. आप इन के खाते में किसी भी कीमत पर रुपए मत डालना

‘‘जिस बैंक में मेरा खाता है, वहां के बैंक मैनेजर से मेरी बात कराना. आप चिंता मत करना, ये लोग हमारा बाल भी बांका नहीं करेंगे. हमें मारने की सिर्फ धमकियां दे सकते हैं ताकि रुपए ऐंठ सकें. आप बैंक जा कर मैनेजर से मेरी बात कराना. बाकी मैं देख लूंगा.’’

इस स्थिति में भी उन्होंने धैर्य और साहस से काम लिया. उन्होंने नैचुरल पावर कंपनी के अन्य अधिकारियों को भी यह बात बता दी. इस के बाद वह कंपनी के अधिकारियों के साथ हैदराबाद की उस बैंक में पहुंचे, जहां श्रीकांत रेड्डी का खाता थाश्रीकांत रेड्डी ने बैंक मैनेजर को मोबाइल पर सारी बात बता कर कहा, ‘‘मैनेजर साहब, मैं अपने दोस्त के साथ बाड़मेर में कंपनी का काम देखने आया था, लेकिन मददगार बन कर आए 3 लोगों ने हमारा अपहरण कर लिया और एक करोड़ की फिरौती मांग रहे हैं. आप से मेरा निवेदन है कि आप 25 लाख रुपए का आरटीजीएस करवा दो

‘‘लेकिन ध्यान रखना कि यह धनराशि जारी करते ही तुरंत रद्द हो जाए. ताकि अपहर्त्ताओं को धनराशि खाते में आने का मैसेज उन के फोन पर मिल जाए लेकिन बदमाशों को रुपए नहीं मिले.’’ उन्होंने यह बात तेलुगु और अंग्रेजी में बात की थी, जिसे अपहर्त्ता नहीं समझ सके. बैंक मैनेजर ने ऐसा ही किया. बदमाशों से एमडी के पिता और कंपनी के अधिकारी लगातार बात करते रहे और झांसा देते रहे कि जैसे ही 75 लाख रुपए का जुगाड़ होता है, उन के खाते में डाल दिए जाएंगे. चूंकि एक अपहर्त्ता के फोन पर खाते में 25 लाख रुपए जमा होने का मैसेज गया था इसलिए वह मान कर चल रहे थे कि उन्हें 25 लाख रुपए तो मिल चुके हैं और बाकी के 75 लाख भी जल्द ही मिल जाएंगे

अपहर्त्ताओं ने के. श्रीकांत रेड्डी से स्टांप पेपर पर भी लिखवा लिया था कि वह ये पैसा ठेके के लिए दे रहे हैं. अपहर्त्ता अपनी योजना से चल रहे थे, वहीं एमडी, उन के पिता और कंपनी मैनेजर अपनी योजना से चल रहे थे. उधर नैचुरल पावर कंपनी के अधिकारी ने 24 अक्तूबर, 2019 को हैदराबाद से बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम को कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी के अपहरण और अपहत्ताओं द्वारा एक करोड़ रुपए फिरौती मांगे जाने की जानकारी दे दी. कंपनी अधिकारी ने वह मोबाइल नंबर भी पुलिस को दे दिया, जिस से अपहर्त्ता उन से बात कर रहे थे

बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम ने यह जानकारी बाड़मेर के एसपी शरद चौधरी को दी. एसपी शरद चौधरी ने उसी समय बाड़मेर एएसपी खींव सिंह भाटी, डीएसपी विजय सिंह, बाड़मेर थाना प्रभारी राम प्रताप सिंह, थानाप्रभारी (सदर) मूलाराम चौधरी, साइबर सेल प्रभारी पन्नाराम प्रजापति, हैड कांस्टेबल महीपाल सिंह, दीपसिंह चौहान आदि की टीम को अपने कार्यालय बुलायाएसपी शरद चौधरी ने पुलिस टीम को नैचुरल पावर कंपनी के एमडी और उन के दोस्त का एक करोड़ रुपए के लिए अपहरण होने की जानकारी दी उन्होंने अतिशीघ्र उन दोनों को सकुशल छुड़ाने की काररवाई करने के निर्देश दिए. उन्होंने टीम के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी एएसपी खींव सिंह भाटी को.

इस टीम ने तत्काल अपना काम शुरू कर दिया. साइबर सेल और पुलिस ने कंपनी के मैनेजर द्वारा दिए गए मोबाइल नंबरों की काल ट्रेस की तो पता चला कि उन नंबरों से जब काल की गई थी, तब उन की लोकेशन सियाणी गांव के पास थीबस, फिर क्या था. बाड़मेर पुलिस की कई टीमों ने अलगअलग दिशा से सियाणी गांव की उस जगह को घेर लिया जहां से अपहत्ताओं ने काल की थी. पुलिस सावधानीपूर्वक आरोपियों को दबोचना चाहती थी, ताकि एमडी और उन के साथी सुरेश को सकुशल छुड़ाया जा सके

पुलिस के पास यह जानकारी नहीं थी कि अपहर्त्ताओं के पास कोई हथियार वगैरह है या नहीं? पुलिस टीमें सियाणी पहुंची तो अपहर्ता सियाणी से उत्तरलाई होते हुए बाड़मेर पहुंच गए. आगेआगे अपहर्त्ता एमडी रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को गाड़ी में ले कर चल रहे थे. उन के पीछेपीछे पुलिस की टीमें थींएसपी शरद चौधरी के निर्देश पर बाड़मेर शहर और आसपास की थाना पुलिस ने रात से ही नाकाबंदी कर रखी थी. अपहर्त्ता बाड़मेर शहर पहुंचे और उन्होंने बाड़मेर शहर में जगहजगह पुलिस की नाकेबंदी देखी तो उन्हें शक हो गया. वे डर गए. वे लोग के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी को ले कर सीधे बाड़मेर रेलवे स्टेशन पहुंचे. बदमाशों ने दोनों अपहर्त्ताओं को बाड़मेर रेलवे स्टेशन पर वाहन से उतारा. तभी पुलिस ने घेर कर 3 अपहर्त्ताओं शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम एवं मोहनराम को गिरफ्तार कर लिया.

शैतान चौधरी और भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी दोनों सगे भाई थे. पुलिस तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आई. अपहरण किए गए हैदराबाद निवासी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को भी थाने लाया गयापुलिस ने आरोपी अपहरण कार्ताओं के खिलाफ अपहरण, मारपीट एवं फिरौती का मुकदमा कायम कर पूछताछ कीश्रीकांत रेड्डी ने बताया कि उत्तरलाई के पास सोलर प्लांट निर्माण का ठेका उन की नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हैदराबाद को मिला था

उन की कंपनी ने यह काम सबलेट कंपनी बंगलुरु को दे दिया. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को पावर प्लांट का कार्य ठेके पर दिया. कार्य पूरा होने से पूर्व सबलेट कंपनी और नैचुरल पावर एशिया कंपनी में पैसों के लेनदेन पर विवाद हो गया. सबलेट कंपनी ने जितने में ठेका नैचुरल कंपनी से लिया था, उतना पेमेंट नैचुरल कंपनी ने सबलेट कंपनी को कर दिया. मगर काम ज्यादा था और पैसे कम थे. इस कारण सबलेट कंपनी ने और रुपए मांगेनैचुरल पावर कंपनी ने कहा कि जितने रुपए का ठेका सबलेट को दिया था, उस का पेमेंट हो चुका है. अब और रुपए नैचुरल कंपनी नहीं देगी

तब सबलेट कंपनी सोलर प्लांट का कार्य अधूरा छोड़ कर भाग गई. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को जो ठेके दिए थे, उस का पेमेंट भी सबलेट ने आधा दिया और आधा डकार गई. तब एमइएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. के एमडी को बुलाया. मददगार बन कर शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी और मोहनराम उन से मिलेउन के लिए यह इलाका नया था. इसलिए उन्हें लगा कि वे अच्छे लोग होंगे, जो मददगार के रूप में उन्हें साइट वगैरह दिखाएंगे. मगर ये तीनों ठेकेदारों के आदमी थे, जो दबंग और आपराधिक प्रवृत्ति के थे

इन्होंने ही उन का अपहरण कर एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. एमडी रेड्डी ने इस अचानक आई आफत से निपटने के लिए अपनी तेलुगु और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर के सिर्फ स्वयं को बल्कि अपने दोस्त को भी बचा लिया. पुलिस अधिकारियों ने थाने में तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ की. पूछताछ में आरोपियों ने अपने अन्य साथियों के नाम बताए, जो इस मामले में शामिल थे और जिन के कहने पर ही इन तीनों ने एमडी और उन के दोस्त का अपहरण कर एक करोड़ की फिरौती मांगी थी. तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ के बाद पुलिस ने 25 अक्तूबर, 2019 को अर्जुनराम निवासी बलदेव नगर, बाड़मेर, कैलाश एवं कानाराम निवासी जायड़ु को भी गिरफ्तार कर लिया. इस अपहरण में कुल 6 आरोपी गिरफ्तार किए गए थे. आरोपियों को थाना पुलिस ने 26 अक्तूबर 2019 को बाड़मेर कोर्ट में पेश कर के उन्हें रिमांड पर ले लिया.

पूछताछ में आरोपियों ने स्वीकार किया कि उन लोगों का ठेकेदारी का काम है. कुछ ठेकेदार थे और कुछ ठेकेदारों के मुनीम कमीशन पर काम ले कर करवाने वाले. अर्जुनराम, कैलाश एवं कानाराम छोटे ठेकेदार थे, जो ठेकेदार से लाखों रुपए का काम ले कर मजदूर और कारीगरों से काम कराते थेसबलेट कंपनी ने जिन बड़े ठेकेदारों को ठेके दिए थे. बड़े ठेकेदारों से इन्होंने भी लाखों रुपए का काम लिया था. मगर सबलेट कंपनी बीच में काम छोड़ कर बिना पैसे का भुगतान किए भाग गई तो इन का पैसा भी अटक गया. मजदूर और कारीगर इन ठेकेदारों से रुपए मांगने लगे, क्योंकि उन्होंने मजदूरी की थी. जब ठेकेदारों ने पैसा नहीं दिया तो ये लोग परेशान हो गए

ऐसे में इन लोगों ने जब नैचुरल पावर कंपनी के एमडी के आने की बात सुनी तो इन्होंने उस का अपहरण कर के फिरौती के एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बना लीइन लोगों ने सोचा था कि एक करोड़ रुपए वसूल लेंगे तो मजदूरों एवं कारीगरों का पैसा दे कर लाखों रुपए बच जाएंगेसभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.