मासूम की लाश पर लिखी सपनों की इबारत – भाग 1

उस दिन अक्टूबर की 9 तारीख थी. धरती पर सुरमई शाम उतर आई थी. सूरज दूर पहाड़ों की ओट में छिपने लगा था. राजस्थान में चंबल नदी के  किनारे बसे और पूरे देश में एजुकेशन हब के नाम से मशहूर शहर कोटा की पौश कालोनी तलवंडी निवासी पुनीत हांडा बैंक से अभीअभी घर लौटे थे.

दिनभर के थकेमांदे पुनीत ने घर आते ही पत्नी श्रद्धा से बेटे रुद्राक्ष के बारे में पूछा. रसोई में पुनीत के लिए चाय बनाने में व्यस्त श्रद्धा ने वहीं से हंसते हुए कहा, ‘‘आप को पता तो है, रुद्राक्ष पड़ोस के हनुमान मंदिर पार्क में खेलने जाता है, फिर भी आप रोजाना घर आते ही उस के बारे में पूछते हैं.’’

पत्नी के जवाब से संतुष्ट हो कर पुनीत फ्रेश होने के लिए बाथरूम में घुस गए. कुछ देर में वह हाथमुंह धो कर बाथरूम से निकल आए. इतनी देर में श्रद्धा चाय और एक प्लेट में बिस्किट ले कर ड्राइंगरूम में आ गई. दोनों चाय की चुस्कियां लेते हुए इधरउधर की बातें करने लगे.

इसी बीच पुनीत की नजर दीवार पर टंगी घड़ी पर पड़ी. शाम के 7 बज चुके थे, रुद्राक्ष अभी तक घर नहीं लौटा था. पुनीत ने श्रद्धा की ओर देखते हुए कहा कि रुद्राक्ष रोजाना तो ज्यादा से ज्यादा साढे़ 6 बजे तक घर लौट आता था. आज क्यों नहीं आया?

श्रद्धा साड़ी के पल्लू से चेहरे को पोंछते हुए बोलीं, ‘‘हो सकता है, वह अपने दोस्तों के साथ अभी तक खेलने में लगा हो. फिर भी पापा से कहती हूं कि अपने लाडले पोते को पार्क से ले आएं.’’

श्रद्धा ने ससुर एम.एम. हांडा को रुद्राक्ष के अब तक घर नहीं आने की बात बताई तो वह उसे पार्क से लाने के लिए जाने लगे, तभी घर के लैंडलाइन पर फोन की घंटी बजने लगी. पुनीत ने फोन उठाया. फोन पर दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘तू पुनीत बोल रहा है?’’

फोन सुन कर पुनीत को झटका सा लगा. भद्दी आवाज में कोई उन्हें तू कह कर बोल रहा था. फिर भी उन्होंने यह सोच कर कि हो न हो कोई दोस्त हो, आवाज पहचानने की कोशिश की, लेकिन कुछ याद नहीं आया.

पुनीत कुछ पूछते, इस से पहले ही फोन पर दूसरी ओर से रौबीली आवाज सुनाई दी, ‘‘तू बैंक मैनेजर है ना… तेरी बीवी का नाम श्रद्धा है और वह टीचर है. रुद्राक्ष तेरा ही बेटा है ना…?’’

पुनीत इस तरह के सवालों से झल्ला गए. फिर भी उन्होंने शांत स्वर में कहा, ‘‘हां.’’

पुनीत के हां कहते ही फोन पर दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘सुन, तेरे बेटे रुद्राक्ष का अपहरण हो गया है. हम उसे कश्मीर भेज रहे हैं. कल सुबह तक 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लेना.’’

पुनीत कुछ पूछते, इस से पहले ही फोन करने वाले ने कहा, ‘‘याद रखना, पुलिस को सूचना दी तो बच्चा जिंदा नहीं बचेगा. जितनी तेजी से फोन करने वाले ने बात की थी. उतनी ही तेजी से दूसरी तरफ से फोन कट गया.’’

फोन सुन कर पुनीत सन्न रह गए. एकाएक यह बात उन की समझ में नहीं आई कि क्या करें? उन्होंने श्रद्धा को आवाज दे कर बुलाया और उन्हें फोन पर हुई सारी बातें बताईं.

रुद्राक्ष के अपहरण और 2 करोड़ की फिरौती मांगने की बातें सुन कर श्रद्धा बेसुध हो गईं. उन की आंखों से आंसू टपकने लगे. श्रद्धा ने पुनीत से कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? हमारे बच्चे का अपहरण भला कोई क्यों करेगा? हमारी तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है.’’

पुनीत ने श्रद्धा को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘हिम्मत रखो, सब ठीक हो जाएगा. पुनीत कहीं नहीं गया होगा, चलो पार्क में ढूंढ़ते हैं.’’

बात वाकई चिंता की थी. फोन पर इस तरह का मजाक भी संभव नहीं था. रुद्राक्ष और श्रद्धा अपने घर के पड़ोस वाले पार्क में पहुंचे, लेकिन वहां कोई नहीं था. चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था. रुद्राक्ष के दोस्तों से पूछताछ के लिए वे आसपास रहने वाले बच्चों के घर गए. बच्चों से पता चला कि 3-4 दिन से रोजाना एक व्यक्ति पार्क में आता था.

निशान माइक्रा कार से आने वाला वह व्यक्ति पार्क में बच्चों से बड़े प्यार से बातें करता था, उन से स्पेलिंग वगैरह के अलावा उन के मातापिता के कामकाज के बारे में भी पूछा करता था. साथ ही बच्चों को चौकलेट भी देता था. 3-4 दिन में ही वह पार्क में आने वाले बच्चों से काफी घुलमिल गया था. रुद्राक्ष के साथ खेलने वाले बच्चों ने बताया कि वही व्यकित रुद्राक्ष को अपने साथ ले गया था.

पार्क में खेलने वाले बच्चों ने जो कुछ बताया, उस से यह बात साफ हो गई कि फोन झूठा नहीं था और न ही उन से कोई मजाक किया गया था. मतलब साफ था कि 7 साल के मासूम रुद्राक्ष का वाकई अपहरण हो गया था.

अपहरण की बात सामने आने के बाद पुनीत व श्रद्धा की रुलाई फूट पड़ी. रुद्राक्ष उन के जिगर का टुकड़ा था, लेकिन रोने से कुछ नहीं होने वाला था. पुनीत ने सोचविचार कर अपने परिचितों को फोन कर के तुरंत घर पर बुलाया.

कुछ ही देर में पुनीत के यारदोस्त व करीबी रिश्तेदार आ गए तो पुनीत ने उन्हें रुद्राक्ष के अपहरण होने और 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगने की बात बताई. रुद्राक्ष के अपहरण की बात सुन कर सभी को झटका लगा. सभी ने पुनीत और श्रद्धा को हिम्मत से काम लेने और पुलिस को सूचना देने की सलाह दी. पुनीत ने अपने कुछ परिचितों के साथ थाना जवाहरनगर पहुंच कर रुद्राक्ष के अपहरण और फोन पर 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगे जाने की सूचना दे दी. पुलिस ने तत्काल अपहरण का केस दर्ज कर लिया.

पुनीत हांडा कोटा के संभ्रांत नागरिक हैं. वे बूंदी सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक की तालेड़ा शाखा के मैनेजर हैं. उन की पत्नी श्रद्धा हांडा स्कूल में टीचर हैं. रुद्राक्ष के अपहरण और फिरौती मांगे जाने की बात पूरे शहर में रात को ही आग की तरह फैल गई. लोकल चैनलों पर खबरें आने लगीं.

कोटा के सांसद ओम बिड़ला को इस मामले की जानकारी मिली तो वह विधायक संदीप शर्मा के साथ पुनीत हांडा के घर पहुंचे और उन्हें भरोसा दिलाया कि चिंता न करें, रुद्राक्ष को सहीसलामत घर ले कर आएंगे. ओम बिड़ला दबंग सांसद हैं. उन्होंने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से फोन पर बात की और रुद्राक्ष के अपहरण के मामले की जानकारी दे कर बच्चे का तुरंत सुराग लगवाने का आग्रह किया.

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे उस दिन जयपुर में ही थीं और एक दिन बाद सिंगापुर के दौरे पर जाने की तैयारियों में लगी थीं. उन्होंने मामले की संवेदनशीलता को महसूस कर के तुरंत प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओमेंद्र भारद्वाज को तलब कर अपहृत बच्चे का पता लगाने के  निर्देश दिए. डीजीपी ने कोटा के पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि जैसे भी संभव हो, रुद्राक्ष का पता लगाएं. इस के लिए विशेष पुलिस टीमें तैनात की जाएं.

डीजीपी के निर्देश पर कोटा के आईजी डा. रविप्रकाश, एसपी ग्रामीण डा. विकास पाठक, कार्यवाहक एसपी मनीष अग्रवाल, एएसपी सिटी राजन दुष्यंत और डीएसपी हिमांशु सहित तमाम पुलिस अधिकारी रुद्राक्ष की तलाश में जुट गए. इस के साथ ही कोटा और आसपास के इलाके में कड़ी नाकेबंदी कर दी गई.

सब से पहले अपहरणकर्ताओं का पता लगाना जरूरी था. इस के लिए पुलिस ने पार्क में रुद्राक्ष के साथ खेलने वाले बच्चों, पार्क में आने वाले लोगों, पार्क में बने हनुमान मंदिर के पुजारी और अन्य लोगों से पूछताछ की. पार्क के आसपास के मकानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने के बाद निशान माइक्रा कार को चिह्नित कर लिया गया. परेशानी यह थी कि कैमरों की फुटेज में न तो कार का नंबर दिखाई दे रहा था, न ही कार चलाने वाले का चेहरा नजर आ रहा था. कार के शीशों पर काली फिल्म चढ़ी थी. फिर भी पुलिस उस निशान माइक्रा कार की तलाश में जुट गई.

पूरी रात पुलिस रुद्राक्ष के अपहरण की गुत्थी सुलझाने के प्रयास में जुटी रही. दूसरी ओर पुनीत के घर आधी रात तक लोगों का आनाजाना लगा रहा. लोग उन्हें दिलासा देते रहे. बेटे रुद्राक्ष का फोटो देखदेख कर श्रद्धा बारबार रो रही थीं. एक बार तो वह गश खा कर अचेत भी हो गईं. पुनीत व श्रद्धा समेत पूरे परिवार के लोगों ने पूरी रात जाग कर गुजारी. उन्हें उम्मीद थी कि पता नहीं कब पुलिस का फोन आ जाए कि रुद्राक्ष का पता लग गया है या अपहर्ताओं का ही दोबारा फोन आ जाए.

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 1

मैट्रीमोनियल वेबसाइटों पर दिए  फरजी विज्ञापनों के जाल में फंस कर कई लोग ठगी का शिकार भी हो जाते हैं. जब तक उन्हें हकीकत पता चलती है तब तक उन का बहुत कुछ लुट चुका होता है. जल्दबाजी में उठाए गए ऐसे कदमों की वजह से उन्हें जिंदगी भर पछताना भी पड़ जाता है.

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के गीतानगर की रहने वाली अनुष्का एक उच्चशिक्षित परिवार से ताल्लुक रखती थी. उस के यहां किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, इसलिए उस का पालनपोषण बड़े ही नाजों में हुआ था. उस की पढ़ाईलिखाई भी अच्छे स्कूल, कालेज में हुई थी. उच्च शिक्षा पूरी करतेकरते अनुष्का जवान हो चुकी थी. तब पिता ने उस की शादी अपनी ही हैसियत वाले परिवार में कर दी. शादी के बाद अनुष्का पति के घर चली गई.

कहते हैं कि शादी के बाद लड़की के नए जीवन की शुरुआत अपने पति के संग होती है. वहां उसे ससुराल के मुताबिक ही खुद को ढालना होता है. अनुष्का ने भी ऐसा ही किया. अपने गृहस्थ जीवन से वह खुश थी. इसी बीच वह एक बेटी की मां बनी. बेटी के जन्म के बाद उस की खुशी और बढ़ गई. लेकिन उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी.

पति से उस के मतभेद हो गए. हालत यह हो गए कि उस का ससुराल में रहना दूभर हो गया तो वह मायके आ गई. हर मांबाप चाहते हैं कि उन की बेटी ससुराल में हंसीखुशी के साथ रहे. अनुष्का गुस्से में जब मायके आई तो मांबाप ने उसे व दामाद को समझाया. समझाबुझा कर उन्होंने बेटी को ससुराल भेज दिया.

उन्होंने अनुष्का को ससुराल भेजा तो इसलिए था कि गिलेशिकवे दूर होने के बाद उस की गृहस्थी की गाड़ी सही ढंग से चलेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कुछ दिनों बाद ही पति के साथ उस का तलाक हो गया. यह करीब 20 साल पहले की बात है.

पति से तलाक होने के बाद अनुष्का बेटी के साथ मायके में ही रहने लगी. अनुष्का पढ़ीलिखी थी इसलिए अब अपने पैरों पर खड़े होने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि वह आत्मनिर्भर बन कर बेटी को ऊंची तालीम दिलाएगी. इधरउधर से पैसों की व्यवस्था कर के उस ने रेडीमेड गारमेंट का बिजनैस शुरू कर दिया. कुछ सालों की मेहनत के बाद उस का बिजनैस जम गया और उसे अच्छी कमाई होने लगी.

अनुष्का अपनी बेटी की पढ़ाई की तरफ पूरा ध्यान दे रही थी. वह चाहती थी कि बेटी को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाए कि उस का भविष्य उज्ज्वल बन सके. उस की बेटी इस समय मुंबई के एक नामी इंस्टीट्यूट से एमबीए कर रही है. अनुष्का भी अब 47 साल की हो चुकी थी. अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने के लिए उसे कभीकभी जीवनसाथी की जरूरत महसूस होने लगी थी. इस के लिए उस ने वैवाहिक विज्ञापनों की वेबसाइट जीवनसाथी डौटकौम पर नवंबर, 2013 में अपना रजिस्ट्रेशन भी करा दिया था.

वैवाहिक विज्ञापनों की इसी साइट पर राजीव यादव नाम के एक आदमी ने भी रजिस्ट्रेशन करा रखा था. 58 वर्षीय राजीव यादव ने अपनी पर्सनल डिटेल में खुद को आईपीएस बताया था. वह भी अपने लिए जीवनसंगिनी तलाश कर रहा था. राजीव रोजाना जीवनसाथी डौटकौम साइट पर अपनी पसंद की महिला की तलाश करने लगा. साइट सर्च के दौरान उस की नजर अनुष्का की प्रोफाइल पर ठहर गई.

उस ने जल्दी ही अनुष्का को ईमेल भेज कर बात करने की इच्छा जाहिर की. अनुष्का ने उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया. तब राजीव यादव ने उस से खुद को आईपीएस अफसर बताते हुए कहा कि उस की पोस्टिंग भारत के नार्थईस्ट इलाके मिजोरम में डीआईजी के पद पर है और वह वहां अकेला रहता है.

राजीव ने जब अपने बारे में बताया तो अनुष्का को लगा कि उस की बाकी जिंदगी राजीव के साथ ठीक से कट जाएगी. कुल मिला कर राजीव उसे अच्छा लगा. सोचविचार कर अनुष्का ने भी राजीव को अपना परिचय दे दिया और कहा कि पहले पति से उस की एक बेटी है, जो मुंबई में एमबीए की पढ़ाई कर रही है. राजीव ने उस की बेटी को भी अपनाने की हामी भर ली.

इस के बाद दोनों के बीच फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. इसी दौरान राजीव ने बताया कि जब वह छोटा था कि उस के मांबाप की मौत हो गई थी. एक छोटा भाई था जो भारतीय सेना में ब्रिगेडियर था. उस की पोस्टिंग जम्मूकश्मीर में थी. लेकिन वहां हुए एक बम विस्फोट में उस की मौत हो चुकी है.

कुछ दिनों की बातचीत के बाद राजीव और अनुष्का ने शादी की बात फाइनल कर ली. उन्होंने तय कर लिया कि वे 13 दिसंबर, 2013 को शादी कर लेंगे. राजीव यादव ने कहा कि वह मिजोरम से 13 दिसंबर को कानपुर पहुंच जाएगा और परिवार के नजदीकी लोगों के बीच एक सादे समारोह में उसी दिन शादी कर के वापस लौट आएगा.

अनुष्का की यह दूसरी शादी थी इसलिए वह भी शादी के समय कोई बड़ा दिखावा और तामझाम नहीं चाहती थी. इसलिए उसे राजीव का प्रस्ताव पसंद आ गया. शादी करने से 3 दिन पहले 10 दिसंबर को राजीव ने अनुष्का से फोन पर बात की. बातचीत के दौरान उस ने बताया कि उस का पर्स कहीं गिर गया है. उस में एटीएम कार्ड व अन्य कार्ड थे.

अनुष्का ने राजीव की इस बात को सीरियसली नहीं लिया क्योंकि आए दिन तमाम लोगों के एटीएम कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस आदि महत्त्वूपर्ण सामान चोरी होते रहते हैं या कहीं खो जाते हैं. इसलिए उस ने राजीव से यह कहा कि जो एटीएम कार्ड पर्स में थे, उन्हें लौक जरूर करा दें ताकि कोई उन का दुरुपयोग न कर सके. अनुष्का ने अपने होने वाले पति को यह सुझाव दे तो दिया लेकिन उसे यह पता नहीं था कि राजीव यह छोटी सी सूचना दे कर उसे ऐसे जाल में फांसने जा रहा है, जहां से निकलना उस के लिए आसान नहीं होगा.

दोनों की फोन पर रोजाना ही बातचीत होती थी. अनुष्का उस की बातों से इतनी प्रभावित हो गई थी कि उस पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगी थी. 13 दिसंबर की दोनों की शादी होने वाली थी इसलिए अब केवल 2 दिन ही बचे थे. 2 दिनों बाद वे एकदूसरे से पहली बार मिलने जा रहे थे. अनुष्का की खुशी बढ़ती जा रही थी. ये 2 दिन उसे 2 साल से भी ज्यादा लंबे लग रहे थे. एकएक पल का वह बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी.

इस से पहले कि अनुष्का राजीव यादव के साथ शादी के बंधन में बंध पाती, उसे ऐसी खबर मिली कि उस के पैरों तले जैसे जमीन ही खिसक गई.

षडयंत्र : पैसों की चाह में – भाग 1

सुबह के नाश्ते पर आने की कोई बात ही नहीं थी. लेकिन दोपहर का खाना खाने से पहले ज्ञान कौर काफी देर तक अपने पति अमरजीत सिंह की राह देखती रहीं. धीरे धीरे 3 बज गया और अमरजीत सिंह घर नहीं आए तो उन्हें थोड़ी चिंता हुई. यह स्वभाविक भी था.

वह सोचने लगीं, सरदारजी ने रात में न आने  की बात की थी, सुबह भी नहीं आए तो कोई बात नहीं थी. अब वह खाना खाने भी नहीं आए, जबकि फिर वह खाना समय पर खाते थे. आज वह बिना बताए कहां चले गए? कहीं कोई जमीन तो देखने नहीं चले गए या फिर किसी जमीन के कागज बनवाने तो नहीं चले गए? काम में फंसे होने की वजह से बता नहीं पाए होंगे.

ज्ञान कौर ने 3-4 बार अमरजीत सिंह के मोबाइल पर फोन किया था, लेकिन संपर्क नहीं हो सका था. तरहतरह की बातें सोचते हुए ज्ञान कौर ने खाना खाया और आराम करने के लिए लेट गईं. सरदारजी के बारे में ही सोचते हुए वह सो गई तो शाम को उठीं. उस समय भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे थे. शाम को ही नहीं, रात बीत गई और सरदारजी लौट कर नहीं आए.

कई बार ज्ञान कौर के मन में आया कि सरदारजी के घर न आने की बात वह अपने बड़े बेटे गुरचरण सिंह को बता दें. लेकिन उन के मन में आता कि बच्चे बेवजह ही परेशान होंगे. सरदारजी कोई बच्चे तो हैं नहीं कि गायब हो जाएंगे. 70 साल के स्वस्थ और समझदार आदमी हैं. वह ऐसे हैं कि खुद ही दूसरों को गायब कर दें, उन्हें कौन गायब करेगा?

इसी उहापोह और असमंजस की स्थिति में ज्ञान कौर का वह दिन भी बीत गया. जब दूसरी रात भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे तो ज्ञान कौर ने परेशान हो कर अगली सुबह यानी 27 अगस्त, 2013 को गांव में रह रहे अपने बड़े बेटे गुरचरन सिंह के पास खबर भेजने के साथ बाघा बार्डर पर ड्यूटी कर रहे छोटे बेटे गुरदीप सिंह को भी फोन द्वारा सरदार अमरजीत सिंह के 2 दिनों से घर न आने की सूचना दे दी.

गुरदीप सिंह भारतीय सेना की 69 आर्म्स बटालियन में सिपाही था. इन दिनों वह बाघा बार्डर पर तैनात था. मां से पिता के 2 दिनों से घर न आने की जानकारी मिलते ही गुरदीप सिंह छुट्टी ले कर गांव आया और सब से पहले भाई को साथ ले कर थाना सदर जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद दोनों भाई पिता की तलाश में जुट गए.

सरदार अमरजीत सिंह लुधियाना के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले गांव झांदे में रहते थे. काफी और उपजाऊ जमीन होने की वजह से गांव में उन की गिनती बड़े जमीनदारों में होती थी. गांव के बीचोबीच उन की महलनुमा शानदार कोठी थी, जिस में वह पत्नी ज्ञान कौर और 2 बेटों गुरचरन सिंह और गुरदीप सिंह के साथ रहते थे. दोनों बेटे पढ़ाई के साथसाथ खेती में भी बाप का हाथ बंटाते थे. बड़ा बेटा गुरचरन सिंह पढ़ाई पूरी कर के जमीनों की देखभाल करने लगा तो छोटा गुरदीप सिंह भारतीय सेना में भर्ती हो गया.

गुरचरन सिंह और गुरदीप सिंह कामधाम से लग गए तो सरदार अमरजीत सिंह ने उन की शादियां कर दीं. उन की भी अपनी संतानें हो गई थीं. इस तरह उन का भरापूरा खुशहाल परिवार हो गया था. वैसे भी धनदौलत की उन के पास कोई कमी नहीं थी, लेकिन जब देहातों का शहरीकरण होने लगा तो उन्होंने अपनी काफी जमीनें करोड़ो रुपए में बेच कर बरनाला में उन्होंने इस के बदले दोगुनी जमीन खरीद कर बटाई पर दे दी. बाकी पैसों से उन्होंने प्रौपर्टी डीलर का काम शुरू कर दिया.

अमरजीत की जमीनों, मंडियों और आढ़त आदि का सारा काम बड़ा बेटा गुरचरन सिंह देखता था. जबकि अमरजीत सिंह अपने प्रौपर्टी डीलर वाले काम में व्यस्त रहते थे. इस के लिए उन्होंने गांव के बाहर लगभग 5 सौ वर्गगज में एक आलीशान औफिस और कोठी बनवा रखी थी. वह अपनी पत्नी ज्ञान कौर के साथ उसी में रहते थे, जबकि परिवार के अन्य लोग गांव वाली कोठी में रहते थे.

अमरजीत सिंह का इधर ढाई, 3 सालों से बगल के गांव थरीके के रहने वाले स्वर्ण सिंह के साथ कुछ ज्यादा ही उठना बैठना था. वैसे तो स्वर्ण सिंह मोगा का रहने वाला था, लेकिन उस ने और उस के भाई गुरचरन सिंह ने मोगा की सारी जमीन बेच कर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर में काफी जमीन खरीद ली थी. जिस की देखभाल गुरचरन सिंह भाई स्वर्ण सिंह के साले कुलविंदर सिंह के साथ करता था.

जबकि स्वर्ण सिंह थरीके में रहते हुए प्रौपर्टी का काम करता था. ऐसे में जब उसे पता चला कि झांदे गांव के रहने वाले अमरजीत सिंह का प्रौपर्टी का बड़ा काम है तो वह उन के पास भी आनेजाने लगा. उस ने उन से 3-4 प्लाटों के सौदे भी करवाए, जिन से उन्हें अच्छाखासा लाभ मिला. उन्होंने स्वर्ण सिंह का पूरा कमीशन तो दिया ही, लेकिन इस के बाद से उन्हें उस पर पूरा भरोसा हो गया था. साथसाथ खानापीना होने लगा तो दोनों में मित्रता भी हो गई. इस के बाद अमरजीत सिंह का कोर्टकचहरी जा कर कागजात आदि बनवाने और प्लाट वगैरह दिखाने का ज्यादातर काम स्वर्ण सिंह ही करने लगा.

उसी बीच स्वर्ण सिंह ने अमरजीत सिंह की मुलाकात अमित कुमार से करवाई. अमित ने उन्हें बताया था कि वह गोल्ड मैडलिस्ट वकील है. लेकिन वह वकालत न कर के प्रौपर्टी का बड़ा काम करता है. वह छोटेमोटे नहीं, बड़े सौदे करता और करवाता है.

अमित कुमार ने अमरजीत सिंह से इस तरह बातें की थीं कि वह उस से काफी प्रभावित हुए थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह को 2-3 प्लाट भी खरीदवाए थे, जिन्हें बेच कर अमरजीत सिंह ने अच्छाखासा लाभ उठाया था.

स्वर्ण सिंह की ही तरह अमरजीत सिंह अमित कुमार पर भी विश्वास करने लगे थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह के साथ मिल कर करीब ढाई करोड़ रुपए का एक सौदा किया, जिस के लिए उन्होंने 50-50 लाख रुपए का 2 बार में भुगतान किया था. इस सौदे में स्वर्ण सिंह गवाह था. लेकिन इतने बड़े सौदे की अमरजीत सिंह के घर के किसी भी सदस्य को कोई जानकारी नहीं थी.

4 करोड़ बीमा क्लेम के लिए दोस्त का मर्डर

बात 19 जून, 2023 की है. पंजाब के जिला फतेहगढ़ साहिब के गांव सानीपुर का रहने वाला 28 वर्षीय सुखजीत सिंह फतेहगढ़ साहिब में ही रहने वाले अपने दोस्त गुरप्रीत सिंह के वहां गया था. लेकिन जब वह एक दिन बाद भी नहीं लौटा तो उस की पत्नी जीवनदीप कौर परेशान हो उठी. बड़ी हैरानी की बात थी कि उस का मोबाइल फोन भी बंद था.

अगले दिन जीवनदीप कौर कुछ लोगों के साथ इलाके के सरहिंद थाने में पहुंची और वहां अपने 28 वर्षीय पति सुखजीत सिंह की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस की शुरुआती जांच में सुखजीत सिंह की बाइक और चप्पलें पटियाला रोड पर नहर के किनारे मिलीं, जिन्हें देख पुलिस ने अनुमान लगाया कि हो सकता है सुखजीत ने सुसाइड कर लिया हो. लेकिन जब तक उस की लाश बरामद नहीं हो जाती, तब तक पुलिस के लिए ऐसे किसी ठोस नतीजे पर पहुंचना मुमकिन नहीं था.

पुलिस जांच चल रही थी कि इसी दौरान सुखजीत का मोबाइल फोन उस की बाइक मिलने वाली जगह से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर जमीन के नीचे दबा हुआ मिला. मोबाइल फोन का जमीन के नीचे दबा मिलना किसी षडयंत्र की ओर इशारा कर रहा था.

गुरप्रीत सिंह की पत्नी ने खोला मुंह

जब जीवनदीप कौर से उस के पति की गतिविधियों के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया पिछले कुछ दिनों से गुरप्रीत सिंह उस के पति को फोन कर के शराब पीने के लिए अपने पास बुलाता था. यह जानकारी मिलने पर पुलिस अब गुरप्रीत सिंह की तलाश में उस के घर पहुंची तो पता चला कि गुरप्रीत सिंह की मौत कल सुबह एक एक्सीडेंट में हो चुकी है.

सुखजीत सिंह का पता लगाने के लिए इलाके के डीएसपी गुरबंस सिंह बैंस के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया गया, जिस में सरहिंद थाने के एसएचओ गुरदीप सिंह और इंसपेक्टर नरेंदर पाल सिंह थे. इस टीम ने गुरप्रीत की पत्नी खुशदीप कौर से घंटों गहन पूछताछ की. खुशदीप कौर ने पहले तो पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, मगर पुलिस के सवालों की बौछार के आगे वह ज्यादा देर टिक नहीं सकी और आखिरकार उस की जुबान ने सच उगल दिया.

खुशदीप ने बताया कि उस का पति गुरप्रीत सिंह मरा नहीं बल्कि जिंदा है. इस के बाद उस के पति गुरप्रीत सिंह और अन्य आरोपियों को हिरासत में ले लिया गया. सभी आरोपियों से पूछताछ तथा पुलिस की तहकीकात के बाद इस सनसनीखेज हत्याकांड के पीछे एक हैरतअंगेज कहानी उभर कर सामने आई, जो इस प्रकार है—

44 वर्षीय गुरप्रीत सिंह पंजाब के फतेहगढ़ साहिब शहर का एक मशहूर फूडचेन व्यवसायी था. शहर में उस के कई आउटलेट थे. वह हल्दीराम एंड कंपनी का थोक डीलर था. शहर में उस के नाम की तूती बोलती थी. लेकिन इधर कुछ समय से उस का व्यापार लगातार घाटे में जा रहा था.

इस से उबरने के लिए गुरप्रीत सिंह ने एक शाम अपनी परेशानी अपने परिचित राजेश शर्मा को बताई. राजेश शर्मा एक बीमा एजेंट था. उस की कोर्टकचहरी में अच्छीखासी पैठ थी. उस ने गुरप्रीत को अपने नाम से मोटी राशि का एक एक्सीडेंटल इंश्योरेंस करवाने और अपनी जगह किसी दूसरे आदमी की हत्या कर उसे एक्सीडेंट का रूप दे कर इंश्योरेंस की राशि हड़पने का सुझाव दिया.

4 करोड़ के लालच में रची खूनी साजिश

गुरप्रीत सिंह को राजेश की बात जंच गई. इस योजना पर काम करते हुए सब से पहले उस ने 3 अलगअलग एक्सीडेंटल बीमा पौलिसी अपने नाम पर करवाई. कुल 4 करोड़ का एक्सीडेंटल बीमा करवाया गया, जिस में एक बीमा 2 करोड़ रुपए और 2 बीमे एकएक करोड़ रुपए के थे.

इस के बाद वह एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में लग गया, जिस की कदकाठी काफी हद तक उस से मिलती हो. काफी तलाश के बाद उसे 3 आदमी मिले, जिन की हत्या कर उसे दुर्घटना का रूप दिया जा सकता था. पहला आदमी मोहाली का रहने वाला था. परंतु उस के शरीर का डीलडौल उस की देह से थोड़ा अलग था. दूसरा पटियाला का निवासी था. जिस के बारे में पता चला कि उस की एक बाजू पर टैटू बना था.

एक महीने पहले गुरप्रीत सिंह की मुलाकात 28 वर्षीय सुखजीत सिंह से हुई, जिस का हुलिया काफी हद तक उसी के समान था. दोनों की मूंछों का स्टाइल भी करीब एक जैसा ही था. वह फतेहगढ़ साहिब जिले के सानीपुर गांव का निवासी था. वह शराब पीने का आदी था. जिस दिन सुखजीत सिंह को शराब पीने को नहीं मिलती, उस के पूरे बदन में अजीब सी ऐंठन और बेचैनी सी होने लगती थी. बिना शराब पिए उसे रात में भी नींद नहीं आती थी.

जब से गुरप्रीत सिंह ने सुखजीत सिंह की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, सुखजीत का उस के घर आनाजाना शुरू हो गया. सुखजीत को वहां मुफ्त की शराब मिल रही थी, इसलिए शाम ढलते ही वह बाइक से उस के घर पहुंच जाता था. इस के अलावा वह वापस अपने घर जाने के लिए निकलता तो गुरप्रीत उसे जेब खर्च के लिए कभी 500 रुपए तो कभी 2-3 सौ थमा देता था.

दोनों की दोस्ती को अभी एक महीना भी पूरा नहीं हुआ था कि 19 जून, 2023 की शाम को सुखजीत अपनी पत्नी से बोला, ‘‘गुरप्रीत का फोन आया था, इसलिए उस के घर जा रहा हूं.’’

जीवनदीप कौर को अपने पति सुखजीत और गुरप्रीत सिंह की दोस्ती फूटी आंख भी नहीं सुहाती थी. क्योंकि वह जब भी गुरप्रीत सिंह के घर से देर रात गए वापस लौटता तो नशे में बुरी तरह टल्ली होता था. नशे में बाइक चलाना बेहद खतरनाक था. कभी गलती से उस का एक्सीडेंट हो जाता तो उस के पति के हाथपैर सही सलामत नहीं बचते. लेकिन हर बार जब भी वह पति को गुरजीत सिंह के घर जाने से रोकने की कोशिश करती, सुखजीत उसे बुरी तरह झिडक़ देता था.

ट्रक से कुचलवा दिया दोस्त को

गुरप्रीत के बुलावे पर उस दिन जब सुखजीत उस के घर में पहुंचा तो गुरप्रीत ने उसे पीने के लिए बिठा दिया. शराब के कुछ दौर चलने के बाद गुरप्रीत ने उस के पैग में नशे की दवा मिला दी. थोड़ी देर में सुखजीत बेसुध हो कर लुढक़ गया तो गुरप्रीत के परिचित सुखविंदर सिंह संधा और दिनेश सिंह सुखजीत को बलेनो कार में डाल कर राजपुरा ले गए, जहां योजना के अनुसार एक्सीडेंट को अंजाम देना था.

उन का जानकार जसपाल सिंह भी ट्रक ले कर राजपुरा पहुंच गया. सुनसान सडक़ देख कर पहले तो सुखविंदर सिंह संधा ने सुखजीत सिंह के कपड़े उतारे फिर उसे गुरजीत के कपड़े पहना दिए ताकि उस की लाश को गुरप्रीत की लाश बताया जा सके.

फिर जसपाल सिंह ने एक बड़ी ट्रक के टायर के आगे सुखजीत सिंह के बेहोश जिस्म को डाल दिया. इस के बाद जसपाल सिंह ने ट्रक स्टार्ट कर सुखजीत सिंह के ऊपर कई बार चढाया, जिस से उस का शरीर तथा चेहरा इतना क्षतविक्षत हो गया कि अब किसी के लिए लाश की पहचान कर पाना मुश्किल था.

इस के बाद सुखविंदर सिंह संधा और जसपाल सिंह, सुखजीत की बाइक और चप्पलों को वहां से दूर भाखड़ा नहर के किनारे रख आए, जिस से पुलिस को ऐसा लगे जैसे किसी ने नहर में कूद कर आत्महत्या कर ली हो. सुखजीत का मोबाइल फोन वहां से एक किलोमीटर दूर मिट्टी के नीचे दबा दिया.

20 जून, 2023 राजपुरा पुलिस को सडक़ पर बुरी तरह कुचली हुई लाश मिली तो पुलिस ने अनुमान लगाया कि मृतक शायद रात में किसी बड़े वाहन की चपेट में आ गया होगा. खबर मिलने पर सुबह खुशदीप कौर लाश की शिनाख्त करने के लिए राजपुरा थाने में पहुंची और और कपड़ों के आधार पर उस ने लाश की शिनाख्त अपने पति गुरप्रीत के रूप में कर छाती पीट पीट कर रोने लगी.

चूंकि इस लाश का कोई और दावेदार नहीं आया था, इसलिए पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद इसे अंतिम संस्कार के लिए खुशदीप कौर को सौंप दिया. खुशदीप कौर ने आननफानन में दुनिया के सामने सुखजीत की लाश का अंतिम संस्कार कर दिया.

4 करोड़ के लालच में पहुंचे जेल में

यहां तक खुशदीप कौर और बाकी आरोपियों ने अपना सारा काम वैसे ही निपटाया था, जैसा पहले से तय था. उन्हें पूरी उम्मीद थी कि कुछ दिनों के बाद वे इंश्योरेंस के 4 करोड़ रुपए लेने में कामयाब हो जाएंगे. लेकिन यह मामला तब बुरी तरह उलझ गया, जब जीवनदीप कौर ने राजपुरा पुलिस के द्वारा खींचे गए फोटो की शिनाख्त अपने गुमशुदा पति सुखजीत सिंह के तौर पर कर दी.

डीएसपी गुरबंस सिंह बैंस की तेजतर्रार टीम ने 28 जून, 2023 को गुरप्रीत सिंह और उस की पत्नी खुशदीप कौर को गिरफ्तार कर लिया. बाकी आरोपियों सुखविंदर संधा, राजेश शर्मा, जसपाल सिंह तथा दिनेश कुमार के नाम सामने आने पर उन सब को भी गिरफ्तार कर लिया.

गुरप्रीत सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल ट्रक, बलेनो कार, बाइक तथा स्कूटी को बरामद कर लिया. इस तरह गुरप्रीत सिंह और उस की पत्नी खुशदीप कौर इंश्योरेंस के 4 करोड़ रुपए पाने की जगह जेल की हवा खा रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

15 दिन में सुनाया फैसला : मुजरिम को सजा ए मौत

प्यार का जूनून – भाग 4

रविवार 28 जुलाई, 2013 की सुबह ही राममूर्ति ने दामाद पवन को फोन किया, वह सुमन को ले कर गुरावली आ जाए. उस ने बहाना बनाया कि मुकेश को देखने वाले आ रहे हैं. पवन सुमन को ले कर 12 बजे के आसपास ससुराल जा पहुंचा. लेकिन उसे वहां कोई लड़की वाला नहीं दिखाई दिया. फिर भी वह शाम तक रुका रहा. शाम 6 बजे के आसपास वह अपने गांव के लिए निकल पड़ा.

लेकिन इस बीच राममूर्ति ने जिस काम के लिए सुमन और पवन को बुलाया था, वह हो गया था. दरअसल उसे सुमन के मोबाइल से उदयभान को संदेश भेजना था कि वह गुरावती आई है. रात 10 बजे वह उस से मिलने उस के घर आ जाए. उस समय वह छत पर रहेगी.

राममूर्ति ने सुमन का मोबाइल ले कर यह काम कब किया, उसे पता ही नहीं चला. वह खुशीखुशी पति के साथ आई और खुशीखुशी चली गई.

शाम को ही राममूर्ति अपने दोनों भाइयों, राजाराम, पप्पू, समधी मुन्नालाल और उस के भाई भावसिंह के साथ शराब की बोतल ले कर छत पर बैठ गया और खानापीना होने लगा. उस ने पत्नी को पहले ही राजाराम के घर सोने के लिए भेज दिया था.

दूसरी ओर सुमन का संदेश पा कर उदयभान उस से मिलने के लिए बेचैन था. प्रेमिका से मिलने के लिए ही वह घर में पिनाहट जाने का बहाना बना कर शाम को ही निकल गया. जैसे ही रात के 10 बजे, वह राममूर्ति के घर के सामने जा पहुंचा.

घर का दरवाजा खुला था, इसलिए वह दबे पांव अंदर घुस गया. उसे लगा कि सुमन ने ही दरवाजा खोल रखा है. उस ने छत पर आने को कहा था, इसलिए सीढि़यां चढ़ कर वह सीधे छत पर जा पहुंचा. लेकिन छत पर उस ने राममूर्ति, उस के भाइयों और रिश्तेदारों को देखा तो उसे काटो तो खून नहीं. वह पलट कर भागता, उस के पहले ही राममूर्ति ने लपक कर उसे पकड़ लिया.

राममूर्ति उसे खींच कर कमरे में ले गया, जहां उस के मुंह में कपड़ा ठूंस कर ऊपर से बांध दिया गया. इस के बाद लाठियों और लोहे के रौड से उस की जम कर पिटाई की गई. उदयभान छटपटाने के अलावा और कर ही क्या सकता था. उस ने हाथ जोड़े, पैर पकड़े, लेकिन किसी ने दया नहीं की. इसी मारपीट में उस का बायां पैर टूट गया. पिटतेपिटते उदयभान बेहोश हो गया तो उन लोगों ने उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

राममूर्ति के मकान की छत पर बने उस कमरे में रात को क्या हुआ, गांव वालों की छोड़ो, घर की महिलाएं तक नहीं जान सकीं. उन्होंने उदयभान का मोबाइल फोन तोड़ कर फेंक दिया था. रात 11 बजे अचानक बाहर मोटरसाइकिल आने की आवाज आई तो सभी परेशान हो उठे कि इस समय कौन आ गया. उन्होंने जल्दी से लाश छिपाई और कमरा ठीक किया. राममूर्ति ने दरवाजा खोला तो पता चला, बाहर उस की बुआ का बेटा वीर बहादुर खड़ा था. राममूर्ति उसे भीतर ले आया और सारी बातें बताईं.

उदयभान की हत्या करने के बाद सभी ने निश्चिंत हो कर आराम से शराब पी और खाना खाया. इस के बाद रात के 2 बजे के आसपास उदयभान की लाश को मोटरसाइकिल से ले जा कर गुरावली से 20 मिनट की दूरी पर गांव सड़क का पुरा के मंदिर के पास बने कुएं में फेंक आए. बाकी लोग तो घर लौट आए, जबकि मुन्नालाल और भावसिंह उतनी रात को ही अपने घर चले गए. सुबह वीर बहादुर भी अपने घर चला गया.

सुबह से ही राममूर्ति पप्पू पर नजर रखने लगा था, इसीलिए जैसे ही उसे पता चला कि उदयभान की लाश बरामद हो चुकी है और पप्पू ने शक के आधार पर उस के दोनों भाइयों और मुकेश के नाम रिपोर्ट दर्ज कराई है तो वह सभी को ले कर घर से फरार हो गया था.

राममूर्ति ने भागने से पहले फोन के जरिए अपने समधी मुन्नालाल को भी सूचना दे दी थी. उस के बाद मुन्नालाल भी अपने भाई भावसिंह के साथ वहीं जा कर छिप गया था. राममूर्ति ने अपने फुफेरे भाई वीर बहादुर को भी वहीं बुला लिया था. जबकि परिवार को उस ने राजस्थान के अपने एक रिश्तेदार के यहां भेज दिया था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने राममूर्ति के घर से वे लाठीडंडे और लोहे की रौड बरामद कर ली थी, जिन से उदयभान को मारापीटा गया था. सारे सुबूत जुटा कर पुलिस ने सभी को आगरा की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में बंद थे.

— कथा पुलिस सूत्रों के अनुसार

जिस्म के आईने में देखी तिजोरी – भाग 3

तरुण बजाज के हत्यारों को गिरफ्तार करने की बात थानाप्रभारी मनीष जोशी ने देहरादून से ही एसीपी एस.के. गिरि को बता दी थी. पुलिस तीनों अभियुक्तों को दिल्ली ले आई. वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में तीनों से तरुण बजाज की हत्या की बाबत पूछताछ की गई तो हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह लव और सैक्स से सराबोर निकली.

दिल्ली के मध्य जिला के न्यू राजेंद्रनगर के एफ ब्लौक में रहने वाला तरुण बजाज केबल आपरेटर था. राजेंद्रनगर क्षेत्र में उस का इमेज केबल नेटवर्क था. उस की शादी रितु बजाज से हुई थी. तरुण बजाज एक संपन्न आदमी था. उस की आमदनी अच्छी थी, लेकिन एक कमी उसे और उस की पत्नी को हमेशा सालती रही कि रितु मां नहीं बन सकी.

तरुण ने पत्नी का काफी इलाज कराया. इस के बावजूद भी बच्चे की किलकारी उन के आंगन में नहीं गूंजी. रितु की नौकरी दिल्ली सरकार के खाद्य आपूर्ति विभाग में लीगल मैनेजर के पद पर लग गई थी.

बजाज दंपति के पास वैसे तो हर तरह की सुखसुविधा थी, लेकिन संतान न होने का दुख उन्हें जबतब विचलित करता रहता था. कहते हैं कि दौलत बढ़ने पर कुछ लोग गलत शौक पाल लेते हैं. तरुण बजाज को भी एक शौक लग गया था. वह था महिलाओं से दोस्ती कर उन से नजदीकी संबंध बनाना. पत्नी के ड्यूटी पर जाने के बाद वह फोन कर के अपनी महिला मित्र को बुला लेता और अपने फ्लैट में ही मौजमस्ती करता.

तरुण बजाज की ऐसी ही एक महिला पूजा से नजदीकी थी. तरुण की उस से करीब डेढ़ साल पहले मुलाकात हुई थी. पूजा कर्मपुरा के रहने वाले सूरज उर्फ साहिल की पत्नी थी. साहिल आवारा किस्म का था. पूजा की तरुण बजाज जैसे कई लोगों से नजदीकी थी, इसलिए उसी के खर्चे से घर का खर्च चलता था.

पूजा जब गर्भवती हो गई तो उस ने तरुण बजाज के पास जाना कम कर दिया. तब पूजा ने तरुण की मुलाकात मुन्नी उर्फ मोनी से कराई. मोनी सुल्तानपुरी में रहती थी. पत्नी की गैरमौजूदगी में तरुण मोनी को भी फ्लैट पर बुला लेता था.

बाद में पूजा ने एक बेटे को जन्म दिया. पूजा ने अपने पुरुष मित्रों के पास जाना बंद कर दिया था. इस से घर खर्च चलाने में परेशानी होने लगी. पैसे के लिए उस का पति साहिल भी परेशान रहने लगा. पतिपत्नी बैठ कर जल्द पैसा कमाने के उपाय खोजते रहते.

पूजा तरुण बजाज की हैसियत जानती थी. तभी उस के दिमाग में एक आइडिया आया कि यदि तरुण बजाज के यहां हाथ साफ कर दिया जाए तो वहां से मोटा माल बटोरा जा सकता है.  पूजा ने इस आइडिया के बारे में पति को बताया तो साहिल को पत्नी का यह आइडिया अच्छा लगा. इस योजना में उस ने कर्मपुरा में रहने वाले अपने दोस्त मोहित शर्मा उर्फ सन्नी को शामिल कर लिया.

चूंकि अब मोनी बजाज के यहां जाती थी, इसलिए काम को आसानी से अंजाम देने के लिए मोनी को भी बजाज के घर लूट करने की योजना में शामिल कर लिया. पूजा ने उन्हें भरोसा दिया कि लूट की रकम में से उन्हें अच्छे पैसे दे दिए जाएंगे.

फिर 21 से 23 जून तक साहिल और मोहित शर्मा ने तरुण बजाज के घर की कुरियर बौय बन कर रेकी की. 25 जून, 2014 को पूजा और साहिल ने फोन कर के मोहित शर्मा और मोनी को दोपहर साढ़े 11 बजे अपने घर बुला लिया. इस से पहले उन्होंने दिल्ली की मादीपुर मार्केट से 3 चाकू खरीद लिए थे. कर्मपुरा से पूजा और मोनी बैटरी रिक्शा से राजेंद्रा प्लेस मैट्रो स्टेशन के नजदीक पहुंचीं.

साहिल और मोहित मोटरसाइकिल से उन के पीछेपीछे आ रहे थे. पूजा और मोनी मैट्रो स्टेशन के पास बैटरी रिक्शा में बैठी रहीं. तरुण बजाज से बात करने के लिए मोनी किसी अनजान आदमी के फोन से बात करना चाहती थी, ताकि वह पुलिस की पकड़ में न आ सकें.

उसी समय उन्होंने मैट्रो स्टेशन की सीढि़यों से उतर चुके एक युवक को अपने पास बुलाया. उस युवक के हाथ में मोबाइल फोन था. मोनी ने उस युवक से फोन मांग कर तरुण बजाज को फोन किया. तब तरुण ने उसे फ्लैट पर आने को कह दिया.

उस युवक का फोन लौटाने के बाद राजेंद्राप्लेस मैट्रो स्टेशन से मोनी और पूजा तरुण बजाज के घर पहुंचीं. दोनों को देख कर 50 वर्षीय तरुण बजाज खुश हो गया. उस ने दोनों को जूस पिलाया. इस के बाद वह उन के साथ मौजमस्ती करने लगा.

उसी दौरान पूजा ने अपने फोन से साहिल को मैसेज भेज दिया. वह मैसेज उस ने पहले से ही लिख रखा था. बेडरूम फ्लैट के मेनगेट से थोड़ा हट कर था, इसलिए मौका पा कर पूजा ने बेडरूम से आ कर दरवाजा खोल दिया.

उधर मैसेज मिलते ही साहिल और मोहित शर्मा बाइक से उस के फ्लैट के नजदीक पहुंच गए. फ्लैट फर्स्ट फ्लोर पर था. जब वे वहां पहुंचे तो दरवाजा पहले से खुला होने की वजह से वे फ्लैट में दाखिल हो गए.

अनजान लोगों को फ्लैट में देख कर तरुण बजाज चौंका. वह कपड़े पहनने के लिए उठने लगा तो उन्होंने चाकू दिखा कर उसे डरा दिया. इस से पहले कि वह कुछ कहता उन लोगों ने उस पर चाकुओं से वार करने शुरू कर दिए. कुछ ही देर में तरुण का शरीर चाकुओं से गोद डाला. वह जिंदा न रह जाए, इसलिए उस की सांस की नली काट दी.

उस के पुरुषांग पर भी चाकू से वार किया और पेट चीर दिया. कुछ देर तड़पने के बाद तरुण बजाज ने दम तोड़ दिया. चूंकि खून से साहिल, मोहित की कमीज सन चुकी थी और मोनी की चुन्नी और सूट पर खून लग चुका था, इसलिए उन्होंने खून सने कपड़े एक पौलीथिन में बांध कर अपने साथ लाए बैग में रख लिए. मोनी की चुन्नी भी उसी में रख ली. मोहित और साहिल ने तरुण की कमीजें अलमारी से निकाल कर पहन लीं.

तरुण को मौत के आगोश में भेजने के बाद उन्होंने अलमारी की तलाशी ली, जिस में रखे 3 लाख रुपए और ज्वैलरी निकाल कर बैग में रख ली. उन्होंने हत्या को लूट का रूप देने के लिए घर का सामान इधरउधर बिखेर दिया. बजाज की हत्या करते समय साहिल के हाथ में भी चाकू लग गया था.

अपना काम करने के बाद साहिल और मोहित मोटरसाइकिल से कर्मपुरा लौट गए. मोनी के कपड़ों पर खून के छींटे आ गए थे. वह किसी को दिखाई न दें, इसलिए पूजा ने उसे अपनी काले रंग की चुन्नी दे दी. जिसे ओढ़ कर वह पूजा के साथ कर्मपुरा पहुंच गई.

साहिल शातिर था. उसे उम्मीद थी कि पुलिस किसी न किसी सुबूत के जरिए उस के पास तक पहुंच सकती है, इसलिए उस ने मोहित और मोनी को फिलहाल 30-30 हजार रुपए दे दिए. बाकी पैसे उस ने ज्वैलरी बेचने के बाद देने को कहा. फिर वह पत्नी पूजा को ले कर हरिद्वार निकल गया. मोहित भी उस के साथ चला गया. खून सने कपड़े उन्होंने गंगा नदी में फेंक दिए.

देहरादून में साहिल का एक रिश्तेदार रहता था. वह उसी रिश्तेदार के घर पहुंच कर सुबहसुबह पत्नी और दोस्त के साथ शराब पी रहा था. उसे पता नहीं था कि दिल्ली पुलिस उस का पीछा करती हुई आ रही है. शराब पीते हुए पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

3 अभियुक्त पुलिस गिरफ्त में आ चुके थे. उन की निशानदेही पर पुलिस ने 28 जून को मुन्नी उर्फ मोनी को सुल्तानपुरी में उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. 28 जून, 2014 को चारों अभियुक्तों को तीसहजारी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी डा. जगमिंदर की कोर्ट में पेश किया, जहां से सूरज उर्फ साहिल, मोहित शर्मा उर्फ सन्नी और मुन्नी उर्फ मोनी को 4 दिनों के पुलिस रिमांड पर दे कर पूजा को न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने तीनों अभियुक्तों से कई महत्त्वपूर्ण सुबूत एकत्र किए. घटना से संबंधित कई जगहों की तसदीक भी उन से कराई. विस्तार से पूछताछ के बाद 2 जुलाई को उन्हें पुन: न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. मामले की तफ्तीश अतिरिक्त थानाप्रभारी विक्रम सिंह राठी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

प्यार का जूनून – भाग 3

उदयभान ने सुमन का मोबाइल ठीक कर के अपना नंबर डायल कर के चैक किया. ऐसा उस ने इसलिए किया था, जिस से उसे सुमन का नंबर मिल जाए. इस के बाद उदयभान ने सुमन का मोबाइल उस के हाथ पर रखा तो सुमन ने पूछा, ‘‘कितने रुपए हुए?’’

उदयभान ने सुमन के चेहरे पर नजरें जमा कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘बुरा न मानो तो एक बात कहूं सुमन?’’

‘‘अच्छी बात कहोगे तो बुरा क्यों मानूंगी?’’ सुमन ने कहा.

‘‘तुम पैसे देने के बजाय मैं जब भी तुम्हें फोन करूं, मुझ से बात कर लेना.’’ उदयभान ने आग्रह सा किया.

सुमन को भी उदयभान अच्छा लगता था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘ठीक है, लेकिन कोई ऐसीवैसी बात मत करना.’’

सुमन की इस बात से उदयभान को मानो मुहमांगी मुराद मिल गई. शाम को दुकान बंद कर के वह घर के लिए चला तो उसे सुमन की याद आ गई. उस ने तुरंत फोन मिला दिया. 2-4 बार घंटी बजने के बाद उस के कानों में सुमन की चहकती आवाज पड़ी तो वह समझ गया कि उस के फोन करने से सुमन खुश है.

इस तरह सुमन और उदयभान के बीच फोन पर बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो दिनोंदिन बढ़ता ही गया. कुछ दिनों बाद फोन पर समय तय कर के दोनों मिलने भी लगे. इस के बावजूद भी दोनों के बीच फोन पर घंटों बातें होती रहती थीं. धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि वे एकांत में मिलने के लिए बेचैन रहने लगे. आखिर इस के लिए उन्होंने मौका निकाल ही लिया.

2 साल पहले की बात है. राममूर्ति का पूरा परिवार किसी रिश्तेदार के यहां दावत में गया था. सुमन पेट दर्द का बहाना कर के घर पर ही रुक गई थी. उस की वजह से चाची को भी रुकना पड़ा था. रात का खाना खा कर सुमन की चाची सो गई तो उस ने फोन कर के उदयभान को घर पर ही बुला लिया. उस के बाद तो पूरी रात उन की अपनी थी. रात 3 बजे तक उदयभान सुमन के साथ रहा. उस रात दोनों को एकदूसरे से जो सुख मिला, उस के लिए दोनों  लालायित ही नहीं रहने लगे, बल्कि इस के लिए हमेशा मौके की तलाश में रहने लगे.

गांवों में इस के लिए वैसे भी मौकों की कमी कहां है. मोबाइल फोन अब इस में और मददगार साबित होने लगा है. सुमन का जब भी मन होता, किसी बहाने से घर से निकलती और फोन कर के कहीं एकांत में उदयभान को बुला लेती. पैसे की कमी न उदयभान के पास थी, न सुमन के पास. इसलिए दोनों एकदूसरे को महंगे महंगे गिफ्ट भी देते थे.

दोनों का प्रेमसंबंध बने अभी 4-5 महीने ही बीते थे कि राममूर्ति का भांजा शहर से उन के यहां घूमने आया. वह ममेरी बहन सुमन का मोबाइल ले कर देखने लगा तो उस में एक ही नंबर पर इनकमिंग और आउटगोइंग कालें थीं. उस ने उस नंबर का काल ड्यूरेशन चैक किया तो पता चला कि उस पर तो खूब लंबीलंबी बातें हुई थीं. हैरानी से उस ने इस बारे में सुमन से पूछा तो वह टाल गई. भांजे को संदेह हुआ तो उस ने इस बारे में अपने मामा राममूर्ति को बताया.

राममूर्ति की समझ में तुरंत सारा मामला आ गया. उस ने सुमन की पिटाई की तो उस ने बता दिया कि वह उदयभान से मोहब्बत करती है.

इज्जत का मामला था, इसलिए राममूर्ति ने होहल्ला करना उचित नहीं समझा. उस ने उदयभान, उस के बड़े भाई पप्पू और पिता छोटेलाल को खेतों पर इसलिए बुलाया, जिस से गांव वालों को पता न चल सके कि क्या हुआ था. खेतों में उस ने उदयभान के साथ मारपीट कर के धमकी दी कि अब अगर उस ने सुमन से मिलने या बात करने की कोशिश की तो वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा.

इस के बाद छोटेलाल ने भी उदयभान को लताड़ते हुए कहा, ‘‘सुमन राममूर्ति की ही नहीं, पूरे गांव की बेटी है. इसलिए तू उसे एकदम से भूल जा, वरना मैं ही तुझे काट कर रख दूंगा.’’

छोटेलाल ने अपने बेटे की इस गलती के लिए राममूर्ति से माफी मांगते हुए कहा कि अब उस का बेटा सुमन की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखेगा.

इस के बाद राममूर्ति ने दौड़धूप कर गांव विप्रावली के रहने वाले मुन्नालाल के बेटे पवन के साथ सुमन की शादी कर दी. सुमन जवान थी ही, इसलिए राममूर्ति ने उस के लिए पहले से ही लड़का देख रहा था. यही वजह थी कि बेटी के चालचलन का पता चलते ही उस ने आननफानन में उस की शादी कर दी थी.

सुमन ने पवन से शादी तो कर ली थी, लेकिन उस ने उदयभान से भी कह दिया था कि वह उस का पहला प्यार है, इसलिए उसे न तो यह शादी अलग कर सकती है और न ही उस के पिता. वह उसे पूरी जिंदगी प्यार करती रहेगी.

यही वजह थी कि सुमन मायके आने पर तो उदयभान से मिलती ही थी. मौका निकाल कर उसे अपनी ससुराल भी बुला लेती थी. पवन किसी कंपनी में सेल्समैन था. वह महीने में 5-7 दिनों के लिए घर से बाहर रहता था. लौटता था तो कई दिनों तक औफिस के कामों में व्यस्त रहता था. इसलिए वह सुमन पर ध्यान कम ही दे पाता था.

पति की इस व्यस्तता का फायदा उठाने के लिए सुमन ने एक योजना बनाई. पहले तो वह पति को ले कर सासससुर से अलग हो गई. उस ने कमरा भी वह लिया, जिस का एक दरवाजा घर के पीछे से गांव के बाहर जाने वाली पगडंडी पर खुलता था. लेकिन उसे दिक्कत तब होने लगी, जब पवन के बाहर जाने पर सास उस के साथ सोने लगी.

इस के लिए उदयभान ने एक रास्ता निकाल लिया. उस ने नींद की गोलियां ला कर सुमन को दे दीं. फिर क्या था, पवन जैसे ही बाहर जाता, सुमन खाने में सास को नींद की दवा खिला देती. सास आराम से सोती और वह प्रेमी के साथ रंगरलियां मनाती. लेकिन जैसा कि कहा गया है कि कोई भी नीतिअनीति एक न एक दिन खुल ही जाती है. ऐसा ही सुमन और उदयभान के साथ भी हुआ.

एक दिन रात को मुन्नालाल को पत्नी से किसी सामान के बारे में पूछना हुआ तो उस ने दरवाजा खटखटाया. पवन उस दिन बाहर था. दरवाजा खुलने में देर लगी तो वह पिछवाड़े की ओर चला गया. घर के पीछे कुछ दूरी पर  उसे एक मोटरसाइकिल खड़ी दिखाई दी. उसे शक हुआ तो उस ने मोटर साइकिल का नंबर देखा और छिप कर इंतजार करने लगा कि यह मोटरसाइकिल किस की है और यहां क्यों खड़ी है?

थोड़ी देर में सुमन के कमरे का पीछे वाला दरवाजा खुला और उस में से एक लड़का निकला. उस ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और चला गया.

उस समय मुन्नालाल इसलिए चुप रहा, क्योंकि अगर शोर करता तो गांव में उसी की बदनामी होती. उस समय वह भले ही चुप रहा, लेकिन अगले दिन वह राममूर्ति से मिला. सारी बात बता कर उसे चेतावनी दी कि वह अपनी बेटी को समझाए अन्यथा वह उसे नहीं रखेगा.

राममूर्ति ने जब सुना कि उदयभान सुमन से मिलने विप्रावली जाता है तो उस का खून खौल उठा. बेटी के वैवाहिक जीवन का सवाल था, इसलिए उस ने उसी समय भाइयों को बुलाया और उदयभान को खत्म करने की योजना बना डाली.

कंडोम, कत्ल और कातिल

यह घटना है उत्तर प्रदेश के फैजाबाद से लगे जिला अंबेडकर नगर की. कभी अंबेडकर नगर फैजाबाद की अकबरपुर नाम से एक तहसील थी, लेकिन मायावती ने इसे फैजाबाद से अलग कर के जिला बना दिया और नाम रख दिया अंबेडकर नगर. यहां से उन्होंने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा है.

हां तो इसी अंबेडकरनगर में 11 जून, 2023 को थाना बेवाना के अंतर्गत आने वाले गांव भीतरीडीह से करीब 500 मीटर दूर रत्नेश पाठक का कक्षा 8 तक ए.के. पब्लिक स्कूल है, जो 2 साल से बंद है. जिस से यह स्कूल खंडहर में तब्दील होता जा रहा है.

स्कूल से करीब 100 मीटरदूर रविवार की सुबह रेस लगाने आए कुछ लडक़ों ने धुआं उठते देखा. उस बंद पड़े स्कूल से धुआं उठते देख लडक़ों को हैरानी हुई. क्योंकि ठंड का महीना तो था नहीं कि कोई आग जला कर हाथ सेंक रहा हो.

यह धुआं क्यों उठ रहा है, यह देखने के लिए वे लडक़े वहां जा पहुंचे. जब वे लडक़े वहां पहुंचे तो वहां की स्थिति देख कर सन्न रह गए. क्योंकि वह आग ऐसे ही नहीं जल रही थी. उस आग में एक मानव शरीर जल रहा था, जो अब तक इतना जल चुका था कि उसे पहचाना नहीं जा सकता था.

घटनास्थल पर मिला केवल कंडोम का पैकेट

लडक़ों ने इस बात की सूचना गांव वालों को दी तो लाश देखने के लिए लगभग पूरा गांव ही उमड़ पड़ा. लाश और घटनास्थल की स्थिति देख कर ही लग रहा था कि मामला हत्या का है, इसलिए गांव के कोटेदार अमित पांडेय ने तुरंत थाना बेवाना पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी.

सूचना मिलते ही थाना बेवाना एसएचओ अभय मौर्य फोरैंसिक टीम के प्रभारी गौरव सिंह के साथ घटनास्थल भीतरीडीह गांव पहुंच गए. सूचना मिलने पर थोड़ी ही देर में सीओ (सिटी) सुरेश कुमार मिश्र भी वहां आ गए. सभी ने लाश और घटनास्थल का निरीक्षण शुरू किया. यह शव कमरा नंबर 7 में जलता मिला था.

लाश की स्थिति ऐसी थी कि वह पहचानी नहीं जा सकती थी. वह 90 फीसदी जल चुकी थी. इसलिए पुलिस ने आसपास की तलाशी लेनी शुरू की कि शायद ऐसी कोई चीज मिल जाए, जिससे मरने वाले की पहचान हो सके. इस तलाशी में पुलिस को वहां से खून सनी मिट्टी, कुछ बाल, जो शायद मरने वाले के थे, नशीली दवा सेंट्रोन और टाइमैक्स कंडोम का एक पैकेट मिला.

इन चीजों में ऐसी कोई चीज नहीं थी, जिससे मरने वाले की पहचान हो सकती. फोरैंसिक टीम ने अपना काम कर लिया तो एसएचओ अभय मौर्य ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए अंबेडकर नगर के जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद सभी पुलिस अधिकारी और थाना पुलिस वापस चली गई.

किसी भी हत्या जैसे मामले की जांच को आगे बढ़ाने के लिए मरने वाले की पहचान बहुत जरूरी होती है. थाना बेवाना पुलिस ने मरने वाले की पहचान की कोशिश शुरू की. लाश की फोटो से पहचान हो नहीं सकती थी. जिले के ही नहीं, आसपास के जिलों के सभी थानों से भी पता किया गया कि किसी थाने में किसी की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है.

पता चला कि कहीं कोई गुमशुदगी दर्ज नहीं है. थाना पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था कि इस मामले की जांच को कैसे आगे बढ़ाया जाए, क्योंकि उस के पास एक कंडोम के पैकेट के अलावा और कुछ नहीं था. एसपी अजीत कुमार सिन्हा को लगा कि शायद थाना पुलिस इस मामले में कुछ नहीं कर पाएगी तो उन्होंने इस मामले की जांच जिले की स्वाट टीम यानी स्पैशल वेपंस एंड टैक्टिक्स टीम को सौंप दी.

जांच टीम ने किया कंडोम कंपनी से संपर्क

हत्या के इस मामले की जिम्मेदारी मिलते ही स्वाट टीम के इंचार्ज वीरेंद्र बहादुर सिंह अपनी टीम एसआई अजय यादव, हैडकांस्टेबल प्रभात मौर्य, कांस्टेबल अबु हमजा, उमेश, पुनीत गुप्ता, अमरेश, विकास, सुनील, मोहित, कुलदीप और विजेंद्र यादव के साथ जांच में लग गए.

वीरेंद्र बहादुर सिंह को भी टाइमैक्स कंपनी के कंडोम का वह पैकेट सौंप दिया गया. उन के दिमाग में आया कि वह आसपास के मैडिकल स्टोरों में पता कराएं कि यह किस के यहां से खरीदा गया है. शायद इस से कोई सुराग मिल ही जाए. लेकिन उन्हें पता चला कि इस ब्रांड का कंडोम यहां मिलता ही नहीं है. तब उन्होंने टाइमैक्स कंपनी से पता किया कि उन की कंपनी का कंडोम कहां कहां बिकता है.

कंपनी से पता चला कि उन की कंपनी के ये कंडोम दिल्ली के आसपास और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक बिकता है. इस के बाद वीरेंद्र बहादुर सिंह को लगा कि मरने वाले का संबंध पश्चिमी उत्तर प्रदेश या दिल्ली के आसपास से तो नहीं है? आजकल जांच में मोबाइल नंबर भी पुलिस की बहुत मदद कर रहा है. लेकिन मोबाइल नंबर तो तब मिलता, जब कोई सुराग मिलता.

इसी क्रम में स्वाट प्रभारी वीरेंद्र बहादुर सिंह ने 10 जून और 11 जून को भीतरीडीह गांव में जितने भी मोबाइल नंबर ऐक्टिव थे, सभी की डिटेल्स यानी डंप डाटा निकलवाया. इस में इतने नंबर थे कि सभी की जांच तो की नहीं जा सकती थी. इस के अलावा ऐसे भी नंबर थे, जो आ रहे थे और जा रहे थे.

चूंकि उन्हें पता चला था कि टाइमैक्स कंडोम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादा बिकता है, इसलिए उन के दिमाग में आया कि सब से पहले यह पता किया जाए कि इन नंबरों में कोई पश्चिमी उत्तर प्रदेश का नंबर तो नहीं है. इसलिए उन्होंने इन नंबरों में से उन नंबरों के बारे में पता लगाने का निश्चय किया, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हों. क्योंकि कंडोम कंपनी ने बताया था कि उस का टाइमैक्स कंडोम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक बिकता है.

12 फोन नंबर आए शक के दायरे में

प्राप्त नंबरों में से 12 नंबर ऐसे मिले, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के थे. इन में 4 नंबर ऐसे थे, जो जिला सहारनपुर के थे. जिस तरह हत्या कर के लाश को जलाया गया था, उस से पुलिस को लगा था कि हत्यारे एक से अधिक थे. इसलिए जब सहारनपुर के 4 नंबर एक साथ मिले तो पुलिस को लगा कि कहीं हत्या का संबंध इन्हीं लोगों से न हो. इसलिए अब पुलिस का पूरा ध्यान इन्हीं नंबरों पर जम गया.

स्वाट टीम ने एक नंबर पर फोन किया तो उसे किसी महिला ने उठाया. पूछने पर उस ने बताया कि सहारनपुर से 4 लोग अंबेडकर नगर सरकस देखने गए थे. अब पुलिस ने उन 4 फोन नंबरों को रडार पर ले लिया, जो हत्या के समय भीतरीडीह में थे. इन 4 नंबरों में से एक नंबर तो बंद हो चुका था. अब बचे 3 नंबर. पुलिस को अब इन्हीं 3 नंबरों के बारे में पता करना था.

पुलिस ने नंबर देने वाली यानी ये जिन कंपनियों के सिम थे, उन कंपनियों से सभी के पते निकलवाए तो ये सभी सहारनपुर के रहने वाले थे. पता मिल जाने के बाद वीरेंद्र बहादुर सिंह इन नंबर वालों को गिरफ्तार करने के लिए अपनी टीम के साथ सहारनपुर के लिए रवाना हो गए.

सहारनपुर पहुंच कर वीरेंद्र बहादुर सिंह की टीम ने स्थानीय पुलिस की मदद से 3 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन के नाम थे इमरान, फरमान और इरफान. तीनों को गिरफ्तार कर के अंबेडकर नगर लाया गया, जहां तीनों से पूछताछ शुरू हुई.

पहले तो तीनों पुलिस को चकमा देते रहे, पर पुलिस के पास तो इस बात के सबूत थे कि हत्या वाली रात ये तीनों अंबेडकर नगर में मौजूद थे. इसलिए पुलिस ने जब सख्ती से पूछा कि वे लोग सहारनपुर से इतनी दूर यहां क्या करने आए थे और आए  4 लोग थे, जबकि चौथे का फोन बंद है.

तीनों के पास पुलिस के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था. तब मजबूर हो कर इन्हें सच्चाई उगलनी पड़ी. तीनों ने हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उन्होंने बताया कि मारा गया व्यक्ति इन का साथी अजब सिंह था. तीनों ने मिल कर उस की हत्या की थी और स्कूल के फरनीचर से जलाने की कोशिश की थी. इस के बाद तीनों ने हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

मृतक निकला सरकस कलाकार

जिस की हत्या हुई थी, उस का नाम अजब सिंह रंगीला (25 वर्ष) था. वह सरकस का कलाकार था यानी सरकस में करतब दिखाने का काम करता था. उसी के सरकस में इमरान, फरमान और इरफान भी काम करते थे.

एक साथ काम करने की वजह से इन सभी का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. अजब सिंह इमरान के घर कुछ ज्यादा ही आताजाता था. इसी आनेजाने में अजब सिंह को इमरान की बहन से प्यार हो गया. इमरान की बहन को भी अजब सिंह अच्छा लगता था, इसलिए वह भी अकसर अजब सिंह से मिलने उस का सरकस देखने के बहाने जाती रहती थी.

जब आग दोनों ओर लगी हो तो मिलन होने में कहां देर लगती है. अजब सिंह और इमरान की बहन एकांत में मिलने लगे. जब इस की जानकारी इमरान को हुई तो भला यह बात वह कैसे सहन कर सकता था. उस ने बहन को भी रोका और अजब सिंह को भी, लेकिन न अजब सिंह माना और न ही उस की बहन. तब इमरान ने बहन के बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया. अब प्रेमी से मिलना तो मुश्किल हो गया, पर फोन पर दोनों की बातें लगातार होती रहीं.

इमरान को पता था कि अजब सिंह का प्रेम प्रसंग सरकस में ही काम करने वाली एक लडक़ी से भी है, जो पहले उस के साथ सरकस में काम करती थी. वह लडक़ी कोई और नहीं, सरकस में ही काम करने वाले और हत्या में शामिल इरफान की बहन थी.

इसीलिए वह अजब सिंह से और नाराज था. क्योंकि एक ओर तो वह अंबेडकर नगर में इरफान की बहन से संबंध बनाए था, दूसरी ओर उस की बहन को भी बरगला रहा था. इमरान को जब पता चला कि उस की बहन अजब सिंह से भले नहीं मिल पा रही है, पर फोन पर उस से बातें करती रहती है तो उसे बहुत गुस्सा आया. उस ने बहन को भी रोका और अजब सिंह को भी. पर दोनों नहीं माने.

बहन से कुछ कहता तो वह कह देती कि अजब सिंह उसे फोन करता है, वह क्या करे. दूसरी ओर अजब से कुछ कहता तो वह कह देता कि वह अपनी बहन को क्यों नहीं रोकता. इन बातों से इमरान अजब सिंह बुरी तरह नाराज रहने लगा. वह मन ही मन सोच रहा था कि अजब सिंह का कुछ करना पड़ेगा. उसी बीच अजब सिंह ने एक और गलती कर दी, जिस से इमरान ही नहीं, उस के अन्य साथी फरमान और इरफान भी नाराज हो गए.

2 दोस्तों की बहनों से थे संबंध

इमरान तो ऐसे मौके की तलाश में था ही, उस ने अपने भाई फरमान को तो अजब सिंह को सबक सिखाने के लिए तैयार किया ही, साथ ही इरफान को भी तैयार कर लिया. सभी ने मिल कर योजना बनाई कि अजब सिंह को सरकस लगाने के बहाने आरती के यहां अंबेडकर नगर ले कर चला जाए और वहीं इसे सबक सिखाया जाए.

आरती की इन लोगों से जानपहचान थी. उस ने अपने भाई फरमान को तो बता दिया था कि अजब सिंह की हत्या करनी है, पर इरफान को यह पता नहीं था. वह तो सिर्फ यही जानता था कि अजब सिंह के साथ मारपीट करनी है, जिस से आगे से वह इस तरह की कोई हरकत न करे कि उन लोगों का नुकसान हो.

10 जून, 2023 की सुबह ये सभी लोग सरकस लगाने के लिए अंबेडकर नगर के थाना बेवाना के गांव भीतरीडीह आ गए और आरती के यहां रुके. क्योंकि आरती इन की परिचित थी और इन लोगों के साथ काम कर चुकी थी. पूरा दिन इन लोगों ने आराम किया. शाम को खाने में इन लोगों ने मछली बनवाई. खाना खाने के पहले इन लोगों ने शराब पीने का प्रोग्राम बनाया.

इमरान अजब सिंह की बाइक ले कर गया और 4 बोतल शराब ले आया. इस के बाद सभी ने सलाह की कि आरती के घर में बैठ कर शराब पीना ठीक नहीं होगा. उस के घर वाले बुरा मान सकते हैं, इसलिए चलो गांव के बाहर कहीं बैठ कर शराब पी जाए.

यह सलाह कर के सभी गांव के बाहर आए तो अजब सिंह ने ही कहा, “गांव के बाहर ए.के. पब्लिक स्कूल है, जो सालों से बंद पड़ा है. चलो, उसी स्कूल में बैठ कर पीते हैं. वहां कोई आएगा भी नहीं और वहां बैठने के लिए पुरानी कुरसी मेज भी हैं.”

इमरान ऐसी ही जगह चाहता था. यह तो वही हाल हुआ कि रोगी को जो भाए, वही वैद्य बताए. उस ने कहा, “चलो, वहीं बैठ कर पीते हैं.”

दोस्तों ने ही बताया हत्या का प्लान

अजब सिंह अकसर इरफान की बहन से मिलने आता रहता था, इसलिए उसे उस स्कूल के बारे में पता था. अजब सिंह सभी को स्कूल तक ले आया. सभी स्कूल के अंदर बरामदे में बैठ कर शराब पीने लगे. योजना के अनुसार सभी ने अजब सिंह को ज्यादा शराब पिलाई और खुद कम पी.

जब अजब सिंह शराब के नशे में खूब धुत हो गया यानी विरोध करने लायक नहीं रहा तो इमरान ने भाई फरमान से कहा, “पकड़ कर गला दबा दे इस का. हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए इस से, वरना यह हमारी इज्जत को दाग लगा कर ही छोड़ेगा.”

“क्या… तुम लोग इसे मारना चाहते हो क्या?” इरफान ने पूछा.

“और किसलिए इसे यहां लाए हैं. अगर यह जिंदा रहा तो हमें सुकून से जीने नहीं देगा. तुम्हें तो पता ही है कि यह मेरी बहन के ही नहीं, तुम्हारी बहन के भी पीछे पड़ा है. कब से समझा रहा हूं कि मेरी बहन का पीछा छोड़ दे. पर मेरी बात इस के भेजे में उतर ही नहीं रही है. अब मैं खुद इस से बहन का पीछा छुड़वाऊंगा. जब जिंदा ही नहीं रहेगा तो पीछा कैसे करेगा.” इमरान ने कहा.

“यह ठीक नहीं है, इस की हत्या कर दी और हम सभी पकड़े गए तो पूरी जिंदगी जेल में बीतेगी.” इरफान ने समझाया.

“जेल तो हम तब जाएंगे, जब पकड़े जाएंगे. पकड़े न जाएं, इसीलिए तो इसे यहां ले आए हैं.” इमरान ने कहा.

इरफान उसे रोकता, उस के पहले ही इमरान ने एक ईंट उठा कर अजब सिंह के सिर पर दे मारी. इरफान उस का हाथ पकड़ता, तब तक उस ने दूसरा वार कर दिया. इस दूसरे वार मे अजब सिंह चल बसा.

स्कूल के फरनीचर से जलाई लाश

अजब सिंह का खेल खत्म करने के बाद जब बात आई उस की लाश को ठिकाने लगाने की तो स्कूल के कमरा नंबर 7 में लाश ले गए और जो टूटाफूटा फरनीचर पड़ा था, तीनों ने मिल कर उसे इकट्ठा किया और उसी पर लाश को रख कर आग लगा दी. घटनास्थल पर कंडोम का जो पैकेट मिला था, उसे वे लोग पुलिस को भ्रम में डालने के लिए साथ लाए थे.

उन का सोचना था कि कंडोम का पैकेट देख कर पुलिस यही समझेगी कि कोई यहां अवैध संबंध बनाने आया था और मारा गया. इन लोगों का दुर्भाग्य देखिए कि जिस कंडोम के पैकेट को ये लोग पुलिस को भ्रम में डालने के लिए लाए थे, उसी ने पुलिस को इन लोगों तक पहुंचा दिया.

अजब सिंह की हत्या करने के बाद तीनों आरती के घर गए और वहां खाना खा कर अजब सिंह की बाइक ले कर मऊ चले गए. बाइक वहां इन्होंने एक कबाड़ी के यहां 3 हजार रुपए में गिरवी रख दी और लखनऊ होते हुए सहारनपुर चले गए.

पूरी कहानी सुनने के बाद एसपी अजीत कुमार सिन्हा की मौजूदगी में तीनों हत्यारों इमरान, फरमान और इरफान को पुलिस ने पत्रकारों के सामने पेश किया तो सभी ने पत्रकारों के सामने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद तीनों अभियुक्तों को पुलिस ने उसी दिन अदालत मे पेश किया, जहां से 2 दिन के रिमांड पर लिया गया.

रिमांड के दौरान अजब सिंह की वह बाइक मऊ से बरामद कर ली गई, जो इन्होंने कबाड़ी के यहां 3 हजार रुपए में गिरवी रख दी थी. रिमांड अवधि खत्म होने पर इन्हें दोबारा अदालत में पेश किया गया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

जब उच्च अधिकारियों को पता चला कि अंबेडकर नगर पुलिस ने कंडोम के पैकेट से जिस तरह ब्लाइंड मर्डर का खुलासा किया है, वह काबिले तारीफ है. उन्होंने अंबेडकरनगर पुलिस की प्रशंसा करते हुए कहा कि हत्याकांड की केस स्टडी अब यूपी पुलिस के मुरादाबाद में स्थित पुलिस ट्रेनिंग कालेज भेजी जाएगी, जहां ट्रेनी अफसर और पुलिस जवान ट्रेनिंग के दौरान इस का अध्ययन करेंगे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जिस्म के आईने में देखी तिजोरी – भाग 2

दिल्ली के कर्मपुरा इलाके की रहने वाली एक महिला का नाम सामने आया तो पुलिस उस महिला के घर पहुंची. लेकिन वह परिवार सहित घर से फरार मिली. पुलिस को उस के फरार होने पर शक हो गया. उस के घर पर निगरानी के लिए 2 कांस्टेबलों को लगा दिया गया.

पुलिस ने फिर से मृतक के मोबाइल फोन और लैपटाप को खंगाला. उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया तो पता चला कि घटना वाले दिन दोपहर करीब साढ़े 12 बजे एक काल आई थी. जिस नंबर से उस के मोबाइल पर काल आई थी, उस का पुलिस ने पता लगा लिया. उसे थाने बुला लिया.

उस युवक से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह तरुण बजाज नाम के किसी शख्स को नहीं जानता. उस ने कहा, ‘‘25 जून को दोपहर के समय जो आप फोन करने की बात कर रहे हैं, वह मैं ने नहीं, बल्कि एक महिला ने किया था.’’

‘‘महिला ने, कौन सी महिला ने फोन किया था?’’ एसीपी एस.के. गिरि ने पूछा.

‘‘सर, मैं राजेंद्राप्लेस मैट्रो स्टेशन से नीचे उतरा ही था कि नीचे सउ़क पर खड़े एक बैटरी रिक्शा में 2 महिलाएं बैठी दिखीं. उन में से एक ने मुझ से कहा कि उस का फोन घर पर रह गया है. किसी को काल करने के लिए उस ने मुझ से फोन मांगा. मैं ने उसे अपना फोन दे दिया तो उसी ने किसी को मेरे मोबाइल से फोन किया था.’’ उस युवक ने बताया.

‘‘क्या तुम उन महिलाओं को पहचानते हो?’’ एसीपी एस.के. गिरि ने पूछा.

‘‘नहीं सर, मैं ने उन्हें पहली बार देखा था. मगर सामने आ गईं तो जरूर पहचान लूंगा.’’ उस ने बताया.

पहले भी जांच में कर्मपुरा की एक महिला का नाम सामने आया था और जांच की दूसरी कड़ी में भी फोन करने वाली 2 महिलाएं सामने आईं. इस से पुलिस को लगा कि बजाज के मर्डर में महिलाओं के शामिल होने की संभावना हो सकती है. यानी घटना के पीछे लव और सैक्स की तसवीर साफ नजर आ रही थी. इन दोनों जांचों में पुलिस को सफलता मिलने की उम्मीद नजर आ रही थी, लेकिन जांच ऐसी जगह आ कर ठहर गई कि फिलहाल वहां से आगे बढ़ती नहीं दिख रही थी.

न्यू राजेंद्रनगर में जिस ब्लौक में दिल दहला देने वाली इस घटना को अंजाम दिया गया, वहां पर कुछ लोगों ने फ्लैट के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं. तरुण बजाज के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग से पता चला कि 25 जून, 2014 की दोपहर को 2 लड़के एक बाइक से तरुण बजाज के फ्लैट तक गए थे. जो युवक बाइक के पीछे बैठा था, उस ने एक बैग भी थाम रखा था.

बाद में वही लड़के दोपहर करीब 2 बजे फ्लैट की साइड से वापस जाते हुए दिखे, लेकिन वापस जाते समय उन की पहनी हुई कमीजें बदली हुई थीं. यानी वे कपड़े चेंज कर के आए थे.

वारदात में 2 महिलाओं के अलावा 2 युवकों के शामिल होने का शक पुलिस को हो गया, लेकिन ये सब कौन थे, पता लगाना आसान नहीं था.

उधर मृतक के घर वाले और रिश्तेदार हत्यारों का पता लगाने के लिए पुलिस पर दबाव डाल रहे थे. एसीपी एस.के. गिरि को टीम में जुटे पुलिस अधिकारियों की कार्यशैली और क्षमता पर विश्वास था, इसलिए उन्होंने पीडि़त पक्ष को भरोसा दिया कि 2 दिनों के अंदर केस को खोल दिया जाएगा. एसीपी के आश्वासन के बाद घर वाले भी पुलिस जांच में पूरा सहयोग कर रहे थे.

एसीपी ने जांच में जुटे सभी पुलिसकर्मियों को अलगअलग जिम्मेदारियां सौंप रखी थीं. सभी टीमें जांच में रातदिन एक किए हुए थीं. जांच जिस पड़ाव पर आ कर ठहर गई थी, वहां से आगे बढ़ती दिखाई नहीं दे रही थी. तब पुलिस ने तरुण बजाज के फोन की काल डिटेल्स का अध्ययन किया. हालफिलहाल में जिन लोगों से तरुण बजाज की बातें हुई थीं, पुलिस ने उन सभी से पूछताछ करनी शुरू कर दी.

जिन लोगों से पुलिस पूछताछ कर रही थी, उन्हें सीसीटीवी से बरामद उन 2 लड़कों की फुटेज भी दिखा रही थी, जो 25 जून की दोपहर को बाइक से बजाज के फ्लैट की ओर आए थे.  फुटेज साफ नहीं थी, इसलिए उस में चेहरे साफ नहीं दिखाई दे रहे थे.

पूछताछ के इसी क्रम में एक शख्स ने सीसीटीवी की वह फुटेज पहचान ली. बाइक पर पीछे बैठे युवक को उस ने पहचानते हुए कहा, ‘‘यह तो साहिल है.’’

‘‘क्या तुम इसे जानते हो?’’ एसीपी एस.के. गिरि ने पूछा.

‘‘जी सर, मैं इसे अच्छी तरह जानता हूं. यह साहिल ही है जो कर्मपुरा में रहता है. मैं ने तो इस का घर भी देखा है.’’ उस युवक ने कहा तो उन्हें केस खुलने की उम्मीद दिखाई दी.

एक पुलिस टीम को तुरंत उस युवक के साथ साहिल के घर कर्मपुरा भेजा गया. वहां पता चला कि साहिल अपनी पत्नी पूजा के साथ आज ही 26 जून को हरिद्वार चला गया है.

बजाज की हत्या के बाद साहिल के घर पुलिस एक बार पहले भी गई थी. लेकिन उस समय उस की पत्नी पूजा की तलाश में गई थी. अब साहिल का नाम सामने आने पर पुलिस को विश्वास हो गया कि पति और पत्नी दोनों ही इस मामले में शामिल रहे होंगे, तभी तो दोनों फरार हैं. वहां से पुलिस को साहिल का मोबाइल नंबर मिल गया.

साहिल के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगवा कर थानाप्रभारी मनीष जोशी, एसआई गौतम मलिक, एएसआई राजन सिंह दोनों की तलाश में हरिद्वार रवाना हो गए.

यह 26-27 जून, 2014 की रात की बात थी. वे सुबह तड़के हरिद्वार के नजदीक पहुंचे थे कि सर्विलांस टीम ने दिल्ली से खबर दी कि साहिल के फोन की लोकेशन से लग रहा है कि वह हरिद्वार से देहरादून की ओर जा रहा है. दिल्ली पुलिस की टीम ने भी हरिद्वार से देहरादून का रुख कर लिया.

सुबह तक पुलिस टीम देहरादून पहुंच गई. वह सर्विलांस टीम के संपर्क में थी. वहां से पुलिस को जानकारी मिली कि साहिल के फोन की लोकेशन देहरादून के पंडित मोहल्ले में जा कर स्थिर हो गई है. दिल्ली पुलिस टीम वहां के लोगों से पूछते हुए पंडित मोहल्ले में पहुंची. वहां की लोकल पुलिस के सहयोग से दिल्ली पुलिस ने उस मोहल्ले में घर घर सर्चिंग शुरू कर दी.

जिस युवक ने सीसीटीवी फुटेज में साहिल को पहचाना था, वह पुलिस के साथ था. तलाशी लेते हुए पुलिस एक घर में पहुंची तो वहां 2 युवक 1 महिला के साथ बैठ कर शराब पीते मिले. पुलिस को देखते ही युवक भागे, लेकिन दौड़ कर पुलिस ने उन्हें दबोच लिया.

उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम साहिल और मोहित बताए. पुलिस के साथ जो युवक था, उस ने भी साहिल को पहचान लिया. उस के साथ जो महिला शराब पी रही थी, वह उस की पत्नी पूजा थी.

साहिल के पास एक बैग था, जिस में डेढ़ लाख रुपए नकद, कुछ ज्वैलरी और एक चाकू मिला. पूछताछ में उन्होंने स्वीकार कर लिया कि तरुण बजाज की हत्या उन्होंने की थी.