अब पुलिस टीमों ने दूसरी दिशा में जांच शुरू की. जिस तांगा स्टैंड के पास लूट की गई थी, वहां पर मार्केट एसोसिएशन की ओर से 3 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. पुलिस को उम्मीद थी कि उन कैमरों में लुटेरों की फोटो जरूर कैद हो गई होगी. लेकिन पुलिस ने उन कैमरों की फुटेज के लिए मार्केट एसोसिएशन से सपंर्क किया तो पता चला कि 31 दिसंबर की रात 8 बजे से किसी वजह से सीसीटीवी सिस्टम बंद हो गया था. पुलिस को यहां भी शक हुआ कि यह सिस्टम इस घटना से कुछ घंटे पहले ही क्यों बंद हुआ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि इस सिस्टम की देखरेख करने वाले की लुटेरों से कोई सांठगांठ रही हो? लुटेरों के कहने पर उस ने सिस्टम को बंद कर दिया हो. पुलिस टीम ने इस बिंदु पर भी जांच की. मार्केट एसोसिएशन की तरफ से जो व्यक्ति सीसीटीवी सिस्टम को देखता था, उस से भी पुलिस ने पूछताछ की. उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स भी खंगाली, पर कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस को जांच में जिस बिंदु पर सफलता की उम्मीद नजर आती, उस पर भी जांच आगे नहीं बढ़ पा रही थी.
जांच का अगला पड़ाव पुलिस ने काल डिटेल्स पर केंद्रित किया. पुलिस टीम ने पता किया कि घटना वाले दिन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड तांगा स्टैंड तक सुबह 6 बजे से 9 बजे तक कौनकौन से फोन नंबर सक्रिय रहे. यानी उस रूट पर उस दौरान कितने लोगों की फोन पर बातें हुईं.
मोबाइल फोन कंपनियों के सहयोग से पुलिस ने यह डाटा इकट्ठा किया. इस डाटा को डंप डाटा कहा जाता है. इस डाटा में कई हजार नंबर निकले. उन हजारों फोन नंबरों से संदिग्ध नंबरों को छांटना आसान नहीं था. यह जिम्मेदारी उत्तरी जिला पुलिस मुख्यालय में कंप्यूटर औपरेटर हेडकांस्टेबल ए.के. वालिया को दी गई. ए.के. वालिया को डंप डाटा खंगालने का एक्सपर्ट माना जाता है. उन्होंने उस डाटा से करीब 300 संदिग्ध नंबर निकाले.
इस के अलावा पुलिस ने अरविंदभाई की फर्म में जितने भी कर्मचारी काम करते थे, उन सभी के फोन नंबर ले कर यह जानने की कोशिश की कि उन में से किसी की डंप डाटा के नंबरों से किसी पर उस समय बात नहीं हुई थी. लेकिन कर्मचारियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला. उन हजारों फोन नंबरों में जो 3 सौ संदिग्ध नंबर निकाले गए थे, उन में से भी कोई ऐसा सूत्र नहीं मिला, जिस से लुटेरों तक पहुंचा जा सकता. यह जांच भी जहां से चली थी, वहीं ठहर गई.
भरतभाई ने पुलिस को बताया था कि बदमाश पल्सर और अपाचे मोटर- साइकिलों से आए थे. इन के बारे में पता करने के लिए पुलिस ने यह पता लगाया कि घटनास्थल से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के बीच कहांकहां सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. पता चला कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर, स्टेशन के बाहर स्थित कई दुकानों पर और उसी रोड पर रास्ते में पडऩे वाले थाना नबी करीम के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं.
लुटेरों ने घटना को अचानक अंजाम नहीं दिया होगा. इस से पहले उन्होंने इस रूट पर रेकी की होगी. इसी बात को ध्यान में रख कर पुलिस ने सभी कैमरों की 15 दिन पुरानी फुटेज देखी. फुटेज में घटना वाले दिन एक औटो के पीछे पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिल जाती दिखाई दी. उस दिन से एक दिन पहले भी वे दोनों मोटरसाइकिलें उसी रूट पर जाती दिखाई दीं, लेकिन फुटेज में उन के नंबर स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहे थे.
4-5 दिन पहले तक दोनों मोटरसाइकिलें उस रूट में कई बार आतीजाती दिखीं. उन मोटरसाइकिलों पर जो लोग बैठे थे, उन की कदकाठी भरतभाई और प्रवीण द्वारा बताए गए हुलिए से मेल खा रही थी. इस के बाद पुलिस ने अपना ध्यान पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिलों पर लगा दिया. दिल्ली परिवहन विभाग की सभी अथौरिटियों में जितनी भी पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिलें रजिस्टर्ड थीं, पुलिस ने उन की जानकारी निकलवाई. पता चला कि दिल्ली में 40 हजार पल्सर और 20 हजार अपाचे मोटरसाइकिलें रजिस्टर्ड हैं.
इतनी मोटरसाइकिलों की जांच करना आसान बात नहीं है. लिहाजा पुलिस ने अपने जिले की अथौरिटी से उक्त दोनों ब्रांड की मोटरसाइकिलों की डिटेल्स निकलवाई. यहां 400 पल्सर और 150 अपाचे मोटरसाइकिलें रजिस्टर्ड थीं. इन सभी की डिटेल्स हासिल कर पुलिस ने जिन लोगों के नाम से गाडिय़ां थीं, उन का उम्र के हिसाब से वर्गीकरण किया. ज्वैलरी का बैग लूटने वाले बदमाशों की जो उम्र थी, उस उम्र के मोटरसाइकिल वालों को छांटा गया. इस तरह के करीब 42 मोटरसाइकिल मालिक मिले.
इन सभी के पतों पर जा कर पुलिस ने पता किया कि 2 जनवरी, 2016 को वे सुबह 7 से 9 बजे के बीच वे अपनी मोटरसाइकिल ले कर कहां थे. इस जांच में भी पुलिस के हाथ लुटेरों तक नहीं पहुंच सके. उधर जिला पुलिस मुख्यालय में कंप्यूटर औपरेटर ए.के. वालिया डंप डाटा को खंगालने में जुटे थे. उस में से वोडाफोन के एक नंबर पर उन की नजर जम गई. वह नंबर उन्होंने एसीपी राजेंद्र प्रसाद गौतम को दिया. वह नंबर पश्चिमी दिल्ली के रघुवीरनगर की रहने वाली गुड्डी के नाम था.
सबइंसपेक्टर संजय कुमार सिंह उस नंबर की जांच के लिए गए तो पता चला कि उस पते पर गुड्डी नाम की कोई महिला नहीं रहती. इस से साफ हो गया कि वह नंबर किसी फरजी आईडी पर लिया गया था. जब किसी भी कंपनी का नया मोबाइल नंबर लिया जाता है तो कंपनियां फार्म पर ग्राहक का एक अल्टरनेट नंबर मांगती हैं.
वोडाफोन कंपनी का जो नंबर लिया गया था, उस पर अल्टरनेट नंबर के रूप में रिलायंस कंपनी का एक नंबर लिखा था. वह नंबर महेंद्र सिंह का था, जो बी-492, मीतनगर, ज्योतिनगर, नंदनगरी, दिल्ली का रहने वाला था. एसआई संजय कुमार सिंह हैडकांस्टेबल अवधेश और अशोक को ले कर उस पते पर पहुंचे.
वहां महेंद्र सिंह मिल गया. पुलिस को देखते ही वह घबरा गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर सदर बाजार में हुए गहनों की लूट के बारे में पूछा तो उस ने इस लूट से मना करते हुए बताया कि वह तो नंदनगरी की ईएसआई डिसपेंसरी में नौकरी करता है. उसे किसी लूट की कोई जानकारी नहीं है.
उस ने भले ही खुद को ईएसआईसी डिसपेंसरी का कर्मचारी बताया था, पर उस के हावभाव से साफ लग रहा था कि वह कुछ छिपा रहा है. पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो आखिर उस ने मुंह खोल दिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि 2 जनवरी को उसी ने अपने साथियों के साथ लूट की उस घटना को अंजाम दिया था.
पुलिस टीम पूछताछ के लिए उसे थाने ले आई. डीसीपी मधुर वर्मा को जब पता चला कि लूट वाला मामला खुल गया है तो वह भी थाने आ गए. उन के सामने जब महेंद्र सिंह से पूछताछ की गई तो गहनों के बैग की लूट का पूरा रहस्य उजागर हो गया. पता चला, उस में सवा करोड़ के गहने थे. गहनों के बैग की लूट की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी.
महेंद्र सिंह दिल्ली के ज्योतिनगर के रहने वाले तेजू सिंह का बेटा था. वह नंदनगरी स्थित कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) की डिसपेंसरी में अस्थाई सफाई कर्मचारी था. उसे वहां से जो वेतन मिलता था, उस से उस के परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था. इसलिए वह हमेशा मोटी कमाई के बारे में सोचा करता था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था.