इस घटना से जिला पुलिस में हडक़ंप मच गया था. एसपी (सिटी) अजय सिंह और सीओ मनोज कत्याल भी मौके पर पहुंच गए थे. सभी ने यशपाल से पूछताछ की तो उन्होंने पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी. पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यशपाल टंडन को छापे के बहाने शातिराना अंदाज में ठगा गया है. प्रवर्तन निदेशालय के क्षेत्रीय प्रमुख पी.के. चौधरी ने भी स्पष्ट कर दिया कि उन की किसी टीम ने छापा नहीं डाला है.
यशपाल बुरी तरह हताश हो गए. ठग पूरी तैयारी के साथ आए थे और बड़ी चालाकी से उन्हें ठग कर चले गए थे. मामला बेहद गंभीर था. थाना कोतवाली में यशपाल द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर अज्ञात लोगों के खिलाफ अपराध संख्या- 304/2015 पर भादंवि की धारा 595, 419, 420, 120 बी, 406 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.
एसएसपी डा. सदानंद दाते को भी इस घटना की सूचना मिल गई थी. वह काफी हैरान थे. इस की वजह यह थी कि यह फिल्मी स्टाइल में किया गया अपनी तरह का एक अलग अपराध था. उन्होंने एसपी (सिटी) अजय सिंह से सलाह कर के इस मामले के खुलासे के लिए एक टीम का गठन करने का आदेश दिया.
इस स्पैशल औपरेशन ग्रुप की संयुक्त टीम में थानाप्रभारी एस.एस. बिष्ट, लक्खीबाग चौकीप्रभारी राकेश शाह, एसआई दिलबर सिंह, एएसआई सर्वेश कुमार, कांस्टेबल अरङ्क्षवद भट्ट, मनमोहन सिंह, कुलवीर, सत्येंद्र नेगी, प्रमोद, गंभीर सिंह और महिला कांस्टेबल रजनी कोहली तथा सुमन को शामिल किया गया.
इस का नेतृत्व खुद एसपी (सिटी) अजय सिंह कर रहे थे. पुलिस टीम तुरंत अपने काम में लग गई. यशपाल टंडन से हुई पूछताछ के आधार पर पुलिस ने एक्सपर्ट से एक आरोपी का स्कैच भी बनवा कर जारी कर दिया. यशपाल ने कार का जो नंबर बताया था, पुलिस ने अगले दिन उस की जांच की तो वह पंजाब प्रांत की किसी मोटरसाइकिल का निकला. 2 बातें स्पष्ट होती थीं, एक तो यह कि यशपाल को ठीक से नंबर याद नहीं था या फिर कार में फरजी नंबर प्लेट का इस्तेमाल किया गया था.
यशपाल की स्कूटी पुलिस ने उसी दिन कारगी चौक से लावारिस अवस्था में खड़ी बरामद कर ली थी. उन की कोठी के बाहर बाईं ओर एसजीआरआर स्कूल था. उस के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे थे. पुलिस ने उस की रिकौॄडग चैक की, लेकिन उस से कार का नंबर पकड़ में नहीं आ सका.
राजधानी के मुख्य चौराहों पर भी सुरक्षा की दृष्टि से हाई डैफिनेशन कैमरे लगे हैं. पुलिस ने रात 9 से साढ़े 11 बजे तक की उन की फुटेज बारीकी से चैक की तो आशारोड़ी क्षेत्र के कैमरे में वह कार दिख गई, जिस में सवार हो कर कथित ईडी टीम के सदस्य आए थे.
इस में कार का नंबर स्पष्ट नजर आ रहा था. इस तरह पुलिस को नंबर मिल गया. अब तक कई दिन बीत चुके थे. चूंकि नंबर दिल्ली का था, इसलिए एसआई राकेश शाह के नेतृत्व में एक टीम दिल्ली भेज दी गई. दिल्ली पहुंची पुलिस टीम ने आरटीओ औफिस से कार के मालिक के बारे पता किया. पुलिस आरटीओ औफिस से मिले पते पर पहुंची तो वहां जो मिला, पता चला उस ने कार बेच दी थी. जिस व्यक्ति को उस ने कार बेची थी, पुलिस उस के पास पहुंची तो वहां भी निराश होना पड़ा, क्योंकि उस ने भी किसी अन्य को कार बेच दी थी.
पुलिस टीम दिल्ली में ही डेरा डाले थी. कार आदर्शनगर निवासी पुष्पा को बेची गई थी. पुलिस खोजबीन करते हुए पुष्पा के यहां पहुंची तो उस ने बताया कि उस की कार को एक एनजीओ संचालक प्रदीप सिंह मांग कर ले गया था. प्रदीप के बारे में पूछताछ की गई तो पता चला कि वह अपने भाई बबलू और कुछ अन्य साथियों के साथ जहांगीरपुरी में एक औफिस खोल कर एनजीओ चलाता है. उस के यहां स्टाफ भी था. पुलिस ने पूछताछ कर के उस के बारे में जानकारी इकट्ठा कर ली. पुलिस को कार पुष्पा के यहां मिल गई थी.
पुलिस को जो सुराग मिले थे, वे काम के थे. 25 नवंबर को पुलिस टीम जहांगीरपुरी स्थित फ्लैट नंबर डी 268 पर पहुंची. फ्लैट में औफिस चल रहा था. पुलिस को वहां प्रदीप तो नहीं मिला, उस के यहां काम करने वाली 2 लड़कियां मिल गईं.
ईडी के छापे में चूंकि 2 लड़कियां भी शामिल थीं, इसलिए पुलिस ने उन्हें शक के दायरे में रख कर पूछताछ शुरू कर दी. उन लड़कियों में एक श्रद्धानंद कालोनी निवासी बेबी पुत्री वीरेंद्र और दूसरी राखी पुत्री कल्लू थीं. दोनों बेहद साधारण परिवारों से थीं. वे दोनों कई महीने से इस एनजीओ में काम कर रही थीं.
पुलिस ने उन से घुमाफिरा कर सवाल किए तो वे जवाब देने में उलझ गईं. उन्होंने जो सच बताया, उसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई. इस फरजी छापे की योजना किस ने तैयार की थी, यह तो वे नहीं जानती थीं, लेकिन प्रदीप के साथ छापे में वे भी गई थीं. पुलिस दोनों को हिरासत में ले कर देहरादून आ गई. पुलिस प्रदीप के जहांगीरपुरी स्थित एमसीडी में फ्लैट नंबर 306 पर भी गई थी, लेकिन वहां ताला लगा था.
पुलिस ने दोनों लड़कियों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि 2 नवंबर को प्रदीप छापा मारने की बात कह कर उन्हें अपने साथ ले गया था. उस के साथ उस का भाई बबलू और 2 दोस्त भी थे, जबकि 2 लोग उन्हें देहरादून में मिले थे. बेबी और राखी प्रदीप एवं बबलू के अलावा किसी और को नहीं पहचानती थीं.
पुलिस ने यशपाल टंडन से लड़कियों का आमनासामना कराया तो उन्होंने उन्हें पहचान लिया. लड़कियों ने हैरान करने वाली बात यह बताई कि प्रदीप ने यह छापा फिल्म ‘स्पैशल-26’ की स्टाइल में मारा था. इस के लिए उस ने खुद तो रिहर्सल किया ही था, उन्हें भी रिहर्सल कराया था. उन्हें कई बार फिल्म भी दिखाई थी.
टीम असली लगे, इस के लिए उन्होंने सफेद रंग के कपड़े सिलवाए थे. अपनी बनाई योजना के अनुसार वे छापा मार कर चले गए थे. प्रदीप के पास ही पूरी रकम थी. छापा मारने के पहले जो 2 लोग देहरादून में मिले थे, वे देहरादून में ही रह गए थे. लड़कियों ने बताया था कि यशपाल टंडन ने टीम को पूरा सहयोग दिया था. उन्होंने खुद ही बताया था कि अमुकअमुक स्थान पर तलाशी लें. इस से यशपाल की भूमिका भी संदिग्ध हो गई थी.
यशपाल कमेटी डलवाते थे. हो सकता था कि घाटा दिखाने के लिए उन्होंने ही यह योजना बनाई हो. इस मुद्दे पर उन से भी पूछताछ की गई, लेकिन इस में उन का कोई हाथ नहीं निकला. अलबत्ता लड़कियों और उन के बयानों में थोड़ा विरोधाभास जरूर बना रहा. अभी मामले का खुलासा पूरी तरह नहीं हो सका था.
एसएसपी डा. सदानंद दाते ने 26 नवंबर को अपने औफिस में प्रेसवार्ता कर के इस फरजी छापे का खुलासा किया. इस के बाद पुलिस ने दोनों लड़कियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लड़कियों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को विश्वास हो गया कि वारदात में स्थानीय लोगों का भी हाथ जरूर था.