पूरे परिवार को लील गया सूदखोरों का आतंक

समस्तीपुर जिले में विद्यापति नगर थाना क्षेत्र के मऊ धनेशपुर दक्षिण गांव में मनोज झा के परिवार में थोड़ी चहलपहल थी. कई दिनों बाद परिवार में खुशी का माहौल बना था. क्योंकि मनोज झा की 2 महीने पहले ब्याही गई बेटी निभा अपने पति आशीष के साथ मायके आई थी.

उन के लिए साधारण दिनों से अच्छा अलग खाना पकाया जाना था. शाम होने से पहले मनोज झा मछली ले कर आए थे. मछली देख कर उन की पत्नी सुंदरमणी देवी तुनकती हुई बोली, ‘‘ई मछली पकतई कैसे?’’

‘‘काहे की भेलई?’’ मनोज झा ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘की भेलई! गैस सिलेंडर ले गेलई हरामजादा!’’ सुंदरमणी बोली.

‘‘के ले गेलई, अहां के बुझौव्वल काहे बुझाव छियय हो सत्यम के माई.’’ मनोज बोले.

‘‘अरे मनोज, हम बताव छियय. सहुकरवा के दूगो आदमी आइल छियय. खूब गोस्सा में गारीगलौज कैलकय. हम केतनो समझैलियय, लेकिन नय मानलौ औ सिलेंडर उठा के लो गेलौ.’’ मनोज झा की विधवा मां सीता देवी दुखी मन से बोलीं.

‘‘ओक्कर ई मजाल, किश्त के सूद लेवे के बाद ई हरकत कईलकय. अच्छा, कल्हे जा के ओकरा से फरिया लेव. लकड़ी पर पकावे के इंतजाम कअर्.’’ सुंदरमणी की ओर मुंह कर मनोज बोले.

अपने पिता, मां और बाबूजी की बातें निभा भी सुन रही थी. वह जानती थी कि उस के पिता पिछले 5 साल से कर्ज में डूबे हैं. कर्ज की किश्तें नहीं चुकाने के चलते घर की आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ी हुई है. उन्होंने बड़ी दीदी किरण की शादी में जो कर्ज लिया था, वह अभी तक नहीं चुक पाया था. वह उदास मन से मछली का थैला ले कर आंगन में धोने चली गई.

निभा के दिमाग में अचानक किरण की शादी का वह दृश्य घूम गया. बारात आने वाली थी. सब कुछ ठीक से चल रहा था, लेकिन मनोज झा एक कोने में उदास बैठे थे. उन के सामने गांव का एक आदमी भी बैठा था. वह एकदम से झकाझक कुरता पायजामे में दबंग की तरह दिख रहा था.

उस ने पिता मनोज का हाथ पकड़ रखा था. निभा उन के लिए एक गिलास पानी और प्लेट में नाश्ता ले कर गई थी. दरअसल, वह संभ्रांत व्यक्ति चौधरी था. गांव का ही था और गांव में किसी की भी मदद के लिए तत्पर रहता था. राजनीति करता था. किसानों और छोटेछोटे काम करने वालों के लिए जरूरी पूंजी का कर्ज देता था.

निभा ने उसे बोलते हुए सुना, ‘‘देख मनोज, तेरा दुख मुझ से छिपा नहीं है. बाबूजी के कर्ज का तू मेरा कर्जदार है, वह आज नहीं तो कल चुका ही देगा. लेकिन शादीब्याह के मौके पर तुम्हें अकेला कैसे छोड़ सकता हूं….अरे मेरा भी फर्ज है कि नहीं. गांव की बेटी है. अच्छे से शादी संपन्न हो जानी चाहिए. बराती के स्वागत में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए. बाजाबत्ती के लिए हम ने इंतजाम कर दिया है. गांव वालों को भी लगना चाहिए कि ब्राह्मण परिवार की शादी है.’’

‘‘बाबूजी, ई नाश्ता और पानी,’’ निभा बोली.

‘‘हांहां, लाओ बेटी.’’ चौधरी हाथ बढ़ा कर निभा के हाथ से प्लेट लेते हुए बोला, ‘‘पानी यहीं नीचे रख दे. और तू जा! मम्मी दादी की मदद कर.’’

‘‘अरे निभा इतना धीमेधीमे क्यों साफ कर रही है, जरा तेजी से हाथ चला. अंधेरा होने से पहले मछली तल लेना है. लाइट भी कट गई है.’’ मम्मी की आवाज सुन कर पुरानी यादों में खोई निभा हड़बड़ाहट में बोली, ‘‘हां मम्मी, अभी करती हूं.’’

‘‘क्या हुआ बेटी, लगता है तू कहीं खोई हुई थी,’’ मां सुंदरमणी बोली.

‘‘हां मम्मी, चौधरी का आदमी किस्त लेने आया था न?’’ निभा ने सवाल किया.

‘‘अरे बेटी तू क्यों इन बातों को याद करती हो… तू और दामादजी तो 1-2 दिन की हमारे मेहमान हो. अपने परिवार के बारे सोचो.’’ मां ने समझाया.

‘‘नहीं मां, बताओ न दीदी की शादी का कर्ज ही अभी तक चला आ रहा है न?’’ निभा ने जानने की जिद की.

‘‘क्या करोगी जान कर, वह एक कर्ज थोड़े है. कर्ज पर कर्ज लद चुका है. कोरोना में काम खत्म हो गया तो कर्ज और बढ़ गया. अब तो क्या बताऊं…’’ मां मायूस हो गई और आंचल के पल्लू से नम हो चुकी आंखें पोछती हुई चली गई.

आर्थिक तंगी से जूझते हुए एक परिवार की यह बात 5 जून, 2022 की है. उस परिवार के मुखिया 45 वर्षीय मनोज झा थे, लेकिन परिवार की सब से बड़ी सदस्या 66 वर्षीया सीता देवी थीं. उन के पति की साल भर पहले आकस्मिक मौत हो गई थी. बताते हैं कि वह भी कर्ज में डूबे थे और उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.

परिवार के दूसरे सदस्यों में मनोज झा की 42 वर्षीया पत्नी सुंदरमणी के अलावा 2 बेटे सत्यम (8) और शिवम (7) थे. मनोज की दोनों बेटियों किरण और निभा की शादी हो चुकी थी और वे अपनीअपनी ससुराल में रह रही थीं. हालांकि दोनों बेटियां अपने मायके का हालसमाचार लेती रहती थीं और बीचबीच में उन से मिलने आतीजाती रहती थी.

इसी सिलसिले में निभा अपने पति के साथ मायके आई थी. उस के आने की सूचना मां ने फोन पर पति को देते हुए चावल और आटा लाने को भी कहा था. यह सब निभा ने भी सुन लिया था. मायके में अपने मातापिता, दादी, छोटेछोटे भाइयों की हालत देख कर उसे बहुत दुख हुआ था.

अपने घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद मनोज झा अपने दामाद की खातिरदारी में कोई कमी नहीं रहने देना चाहते थे. उन को स्पैशल खाना खिलाने के लिए मछली ले कर आए थे. घर के आंगन में मछली और चावल पकते हुए रात के करीब 9 बज गए थे. सीता देवी और सुंदरमणी को छोड़ कर सभी ने मछली भात खाया था. शिवम और सत्यम के लिए उस दिन का बेहद ही मजेदार खाना था, लेकिन रात को लालटेन की रोशनी में मछली खाने में उसे काफी समय लग गया था.

रात के साढ़े 10 बज चुके थे. छोटे से घर में सभी के लिए सोने का इंतजाम भी करना था. उस काम में निभा ने अपनी मां की मदद की. उस दिन गरमी अधिक थी. सोने के इंतजाम के तौर पर मनोज झा ने अपने छोटे बेटे को ले कर गेट पर अपना बिस्तर लगा लिया, जबकि सासबहू और सत्यम एक कमरे में चले गए. निभा ने अपने पति के साथ उस के ठीक बगल के कमरे में अपना बिछावन लगा ली.

अगले दिन निभा की नींद शोरगुल के साथ टूटी. सूरज निकल चुका था और बाहर गेट पर कई लोग उस के पापा को पुकार रहे थे. उन में एक आवाज उस के चचेरे भाई की भी थी. उस ने तुरंत अपने पति को जगाया और कमरे से बाहर आई. बाहर आते ही उस की नजर बगल के कमरे में खुले दरवाजे पर गई. उस के बाहर ही कुछ लोग खड़े थे. दरवाजे से उस के पिता, मां और दादी फंदे से झूलते दिख रहे थे. उन के बाद पीछे की ओर उस के दोनों भाई भी फंदे में लटके थे.

इस दृश्य को देख कर निभा वहीं धड़ाम से गिर पड़ी. उसे पति ने किसी तरह संभाला. उस समय सुबह के करीब 6 बज चुके थे. उस दृश्य को देख कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने कहा उन्हें मार कर फांसी पर लटका दिया गया है. तो कोई कहने लगा मनोज ने सभी को जहर दे कर मार डाला, फिर उन्हें फांसी पर लटका दिया होगा.

इस घटना ने दिल्ली में बुराड़ी की सामूहिक आत्महत्या की घटना की याद ताजा कर दी. घर और गांव में कोहराम मच गया. एक परिवार के सामूहिक मौत की खबर जंगल में आग की तरह पूरे गांव से हो कर जिला मुख्यालय तक जा पहुंची.

घटना की सूचना पा कर दलसिंह सराय के एसडीपीओ दिनेश पांडेय समेत विद्यापति नगर थाने की पुलिस पूरे फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गई. इसी बीच मनोज झा की बड़ी बेटी किरण और परिवार के दूसरे सदस्यों को इस की सूचना मिल गई. वे लोग भी तुरंत वहां पहुंच गए.

राजधानी पटना से फोरैंसिक विभाग की 5 सदस्यीय टीम भी पहुंच गई. सभी ने घटनास्थल का जायजा लिया. निरीक्षण के बाद टीम के सदस्यों ने शवों को फांसी के फंदे से उतार कर समस्तीपुर सदर अस्पताल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए. इसी के साथ मनोज झा के घर को जांच के लिए सील कर दिया गया.

घटना के बाद से मऊ धनेशपुर दक्षिण गांव में मीडिया, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं समेत गैर राजनीतिक संस्थाओं के लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया, जो कई दिनों तक जारी रहा. मनोज झा के परिजनों से उस रोज की पारिवारिक गतिविधियों के बारे में जुटाई गई जानकारी के मुताबिक सीता देवी ने एक दिन पहले ही अपनी बेटी यानी मनोज की बहन रीना झा से बात की थी. उन्होंने उस से अपने घर की माली हालत का दुख सुनाया था.

यहां तक कहा था कि सूदखोर घर का गैस सिलेंडर तक ले जा चुके हैं. गांव में रहने की इच्छा अब नहीं होती है. हर दूसरे दिन साहूकार का आदमी कर्ज की किश्त मांगने आ धमकता है. उसी दिन उन की बात पोती किरण से भी उस की ससुराल में हुई थी. गांव में सीता देवी सहायता समूह का संचालन करती थी. वह ‘जीविका दीदी’ का भी काम संभालती थी. जबकि मनोज खैनी की दुकान चला कर परिवार का पेट भरता था.

मनोज झा की एकलौती बहन रीना ने भी पुलिस को बताया कि उस के भाई मनोज ने लोन पर गाड़ी ले कर काम शुरू किया था, लेकिन लोगों ने उस गाड़ी को भी सही से चलने नहीं दिया. फिर उस ने गांव में ही छोटी सी खैनी की दुकान खोली थी. वह भी गांव के दबंगों ने बंद करवा दी थी. दबंगों द्वारा भतीजे को मारने की धमकी दी जाती थी. भाई ने अपनी बड़ी बेटी किरण कुमारी की शादी के लिए गांव के साहूकार से 3 लाख रुपए कर्ज लिया था. उस की शादी 28 जून, 2017 को धूमधाम से हुई थी.

साहूकार 5 वर्ष पहले लिए गए 3 लाख रुपए कर्ज का सूद सहित 17 लाख रुपए मांग रहा था, जिस से वह परेशान था. उस की किश्त चुकाता था, जिसे वह किश्त को सूद के रूप में रख लेता था और उस का कर्ज बढ़ता ही जा रहा था. किरण के पति गोविंद झा ने बताया कि साहूकार ने कई किश्तों में 3 लाख रुपए का कर्ज दिया था, जिस में कुछ पैसा उन के ससुर ने साहूकार को कई किश्तों में लौटाया भी था. इस की जानकारी डायरी में लिखी मिली है.

इस मामले के तूल पकड़ने पर घटना के दूसरे दिन राजग सरकार के केंद्रीय गृह राज्यमंत्री एवं स्थानीय सांसद नित्यानंद राय पहुंचे. मृतक मनोज झा की बेटियों से मिले. उन्होंने उन से गुहार लगाई कि कर्ज देने वालों ने उन के जमीन के कागज ले लिए हैं. और अब उन्हें भी अपनी जान का खतरा लग रहा है.

मनोज झा की बेटी किरण ने बताया कि साहूकार के आतंक के चलते उस के दादा रतिकांत झा ने भी मौत को गले लगा लिया था. उन की मृत्यु 16 अगस्त, 2021 को हुई थी. लेकिन उस वक्त गांव वालों ने मामला सलटाने की बात कह कर चुप करा दिया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उन की मौत का कारण नहीं मालूम हो पाया था. सभी का मऊ गांव में ही प्रशासन की देखरेख में गंगा की सहायक नदी वाया के तट अखाड़ा घाट पर दाह संस्कार करवा दिया गया. इस मौके पर परिजनों, रिश्तेदारों व ग्रामीणों की मौजूदगी में सभी शवों की मुखाग्नि मनोज झा के छोटे दामाद पटना जिले के खुसरूपुर निवासी आशीष मिश्रा ने दी. इस मौके पर अंचलाधिकारी अजय कुमार व थानाप्रभारी प्रसुंजय कुमार सहित अन्य लोग मौजूद थे.

इस मामले को ले कर किरण ने विद्यापतिनगर थाने में एक रिपोर्ट लिखवाई, जिस में गांव के श्रवण झा, उस के बेटे मुकुंद कुमार झा और अर्जुन सिंह के बेटे बच्चा सिंह पर कर्ज का रुपया वापस करने के लिए हमेशा प्रताडि़त करने और घर में घुस कर हत्या करने का आरोप लगाया.

वहीं घटना के विभिन्न पहलुओं पर नजर रखते हुए पुलिस जांच में जुट गई थी. कथा लिखे जाने तक घटना में आरोपी बनाए गए श्रवण झा और उस के बेटे मुकुंद कुमार झा ने दलसिंहसराय कोर्ट में 14 जून को आत्मसमर्पण कर दिया था. जबकि बच्चा सिंह फरार था. थानाप्रभारी प्रसुंजय कुमार ने कहा कि पुलिस आगे की काररवाई पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर करेगी. उन्होंने मनोज झा के खानदान में बची बेटियों की सुरक्षा का भी आश्वासन दिया.

तंत्र मंत्र: पैसों के लिए दी इंसानी बलि

अमीर बनने की चाहत – भाग 4

29 नवंबर को रविवार था. जयकरन को मैच खेलने जरूर आना था. इसी दिन उन्होंने जयकरन का अपहरण करने का फैसला कर लिया. उन्होंने सोच लिया कि जयकरन को वे अपने किड्स स्कूल के क्वार्टर में ही ले जाएंगे. उस दिन किड्स स्कूल भी बंद था, इसलिए जयकरन को उन्होंने वहां रखने की सोची. रोजाना की भांति वे जयकरन से मिले. जयकरन दोपहर में क्रिकेट खेल कर घर जाने लगा तो दीपक ने उसे अपने पास बुलाया, “जयकरन, आओ हमारे साथ. अभी 20 मिनट में वापस आते हैं.”

“कहां जा रहे हो भैया?”

“अभी थोड़ा घूम कर आते हैं. हमें किसी से पैसे लेने हैं. साथ ही घूमना भी हो जाएगा. आज तो वैसे भी संडे है. तुम भी फ्री हो.” संदीप ने बात घुमाते हुए कहा.

जयकरन उन पर भरोसा करता था. वैसे भी वह बच्चा था. आने वाले खतरे से अनजान जयकरन उन के साथ कार में बैठ गया. इत्तफाक से उन्हें किसी ने नहीं देखा. दीपक उसे ले कर सीधे स्कूल के अंदर क्वार्टर पर पहुंचा. कमरे में पहुंचते ही दीपक व संदीप अपनी असलियत पर आ गए.

जयकरन को दहशतजदा करने के लिए उन्होंने उसे पीटना शुरू कर दिया और उसे बता दिया कि पैसे के लिए उन्होंने उस का अपहरण किया है. जयकरन ‘भैया…भैया’ करता रहा, लेकिन उन्होंने डरेसहमे जयकरन के हाथपैर बांध दिए. उस का मोबाइल छीन कर उन्होंने स्विच्ड औफ कर दिया. अनीता घर पहुंची तो यह देख कर उन्होंने विरोध किया.

तब दीपक मां से दुव्र्यवहार पर उतर आया, “इस मामले में बहस मत करो मां, वरना इस के साथ तुम्हें भी गोली मार दूंगा. मैं यह सब करने के लिए मजबूर हूं. बस तुम लोग एक 2 दिन चुपचाप रहो.”

बेटे के इस रवैए से अनीता भी घबरा गई. दीपक ने सब से छोटे भाई आयुष को डरधमका दिया. जयकरन को घर में छोड़ कर दोनों सोसाइटी चले गए. वहां जयकरन की ढूंढ़ मची तो वे भी ङ्क्षचतित हो कर उसे खोजने का ढोंग करने लगे. उधर रात में बिट्टू ने जयकरन को खाना खिलाया. जयकरन का मन तो नहीं था, लेकिन डर की वजह से उस ने खाना खा लिया.

अगली सुबह संदीप व दीपक स्कूल स्थित घर आ गए. दीपक ने जयकरन को धमकाते हुए समझाया, “एकदो दिन में हम तुम्हारी बात तुम्हारे पापा से कराएंगे.”

“ज…ज…जी भैया.” दहशत में आए जयकरन ने डर से हां में हां मिलाई.

“पता है क्या कहोगे?ï” दीपक ने पूछा तो जयकरन ने इनकार में गरदन हिलाई. इस पर दीपक ने उसे समझाया, “तुम कहना कि पापा अगर तुम मुझ से प्यार करते हो तो इन लोगों को 2 करोड़ रुपए दे दो, वरना ये लोग मुझे मार डालेंगे.”

“भैया, जैसा आप कहोगे, मैं वैसा ही कह दूंगा.” जयकरन ने डर कर जवाब दिया.

उस दिन सोमवार था. स्कूल भी खुलना था. जयकरन शोर न मचाए, इस के लिए दीपक ने नाश्ता करा कर उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. यह इंजेक्शन दीपक ने अपने एक दोस्त के माध्यम से 500 रुपए में खरीदा था. पुलिस मोबाइल के जरिए उन्हें पकड़ न सके, इसलिए उन्होंने अपने मोबाइल का इस्तेमाल नहीं किया.

बिट्टू को फिरौती के लिए फोन करने के लिए जयकरन का मोबाइल ले कर 15 किलोमीटर दूर भेजा गया. वहां से 2 करोड़ की फिरौती का फोन कर के वह वापस आ गया. बिट्टू से फोन कराना इसलिए जरूरी था, क्योंकि जयकरन के घर वाले दीपक व संदीप की आवाज पहचानते थे. तीनों ने तय कर लिया था कि उन्होंने फिरौती की रकम की शुरुआत 2 करोड़ से की है तो सौदेबाजी होने पर करोड़ तो मिल ही जाएंगे.

इस से भी ज्यादा खतरनाक योजना उन्होंने यह बनाई कि रकम मिलते ही वे जयकरन की हत्या के बाद लाश को हरिद्वार ले जा कर ठिकाने लगा देंगे. जयकरन चूंकि उन्हें पहचानता था, इसलिए उसे जिन्दा छोडऩा उन के लिए खतरनाक था. हरिद्वार में दीपक का एक चाचा रहता था. दीपक ने उसे भी फोन कर के इशारों से अपनी बात समझा दी थी.

रकम मिलने तक वह जयकरन को इसलिए जिन्दा रखना चाहते थे, ताकि विश्वास दिलाने के लिए उस के घर वालों से उस की बात कराई जा सके. उन्होंने यह भी सोच लिया था कि यदि रकम नहीं मिली तो भी जयकरन को मार देंगे. दोनों ही सूरतों में जयकरन का मरना तय था.

उधर फिरौती का फोन पहुंचते ही सोसायटी में पुलिस की गतिविधियां बढ़ गईं. शाम तक उन्होंने मौके की नजाकत परखने का निर्णय लिया. उन्हें दोबारा शाम को फोन करना था, इसलिए इंतजार करने लगे. इन लोगों ने अपनेअपने मोबाइल औफ कर लिए थे. उन्हें उम्मीद थी कि पुलिस जयकरन का मोबाइल दूसरी जगह इस्तेमाल करने की वजह से धोखा खा कर दिशा भटक जाएगी, लेकिन उन तक नहीं पहुंच पाएगी, यह उन की अपनी सोच थी. शक की बिनाह पर वह शिकंजे में आ गए.

उधर पूछताछ के बाद स्कूल संचालिका व आरोपियों की मां को छोड़ दिया गया. स्कूल में क्या कुछ चल रहा था, रिचा सूद वाकई इस से पूरी तरह अंजान थीं. पुलिस ने अपहरण में प्रयुक्त कार भी बरामद कर ली. अगले दिन यानी 1 दिसंबर को प्राथमिक उपचार के बाद पुलिस ने संदीप को डिस्चार्ज करा लिया.

पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अपने से बड़ी उम्र के युवकों से दोस्ती करने की आदत ही जयकरन को भारी पड़ गई थी. वहीं दीपक, संदीप व बिट्टू ने राह से भटकने के बजाय मेहनत की राह अपना कर जिंदगी को संवारने की कोशिश की होती तो उन का भविष्य चौपट होने से बच जाता.

कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपी जेल में थे और उन की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस दीपक के चाचा की तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ज़रा सी भूल ने खोला क़त्ल का राज – भाग 3

मयंकमोहन ने इंसपेक्टर से कह कर आसपास के 2 प्रतिष्ठित लोगों को बुला लिया. कोठारी से सब के सामने उस का बयान पढ़वा कर उस पर हस्ताक्षर करा लिए.

‘‘आज की तारीख भी लिखिए,’’ मयंकमोहन ने कहा तो कोठारी ने ताव में आ कर तारीख भी लिख दी.

‘‘बस कोठारी साहब,’’ मयंकमोहन ने इंसपेक्टर की ओर देख कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘अब आप खुद अपने खिलाफ सबूत दे चुके हैं. इसलिए अपनेआप को हत्या के जुर्म में गिरफ्तार समझें.’’

कोठारी हक्काबक्का सा रह गया. दूसरे लोग भी कुछ नहीं समझ सके.

‘‘बात यह है,’’ मयंकमोहन ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा, ‘‘कि मगन लाल कोठारी ने अपने पार्टनर की योजना बना कर हत्या की है. योजना अच्छी तो थी, लेकिन घबराहट और हड़बड़ी में ये एक गलती कर गए. यह इन का बैडलक था कि मैं इधर आ निकला, नहीं तो ये बेदाग बच निकलते. यहां आ कर मैं ने चैंबर के अंदर रामलाल जी का मृत शरीर देखा तो मैं देखते ही समझ गया कि उन्हें सोते समय गोली मारी गई है. कोठारी के पास हलकी पिस्तौल रही होगी, जिस की वजह से इस बंद जगह में मामूली सी आवाज हुई होगी.

‘‘इतने इतमीनान से इस तरह दरवाजा खोल कर कौन अंदर आ कर गोयल को गोली मार सकता था? चपरासी उस वक्त लंच पर गया हुआ था. इंसपेक्टर साहब मि. कोठारी से पूछताछ कर चुके हैं. औफिस की 2 ही चाबियां थीं, एक गोयल जी के पास रहती थी, दूसरी मि. कोठारी के पास. मैं ने दरवाजे की चाभी के छेद की जांच की है. ताला जोरजबरदस्ती से नहीं खोला गया था. यानी दरवाजा सही चाबी से ही खोला गया था.’’

मयंकमोहन ने सिगरेट के कई कश लिए. कोठारी पसीने से तर था. वह चिल्ला कर बोला, ‘‘महज इसी सुबूत पर आप मुझे खूनी करार देना चाहते हैं?’’

‘‘हरगिज नहीं,’’ मयंकमोहन ने कहा, ‘‘यह तो मैं ने मामूली सी बातें बयान की हैं. सुबूत तो अलग हैं जो आप ने खुद ही अपने खिलाफ बयान किए हैं. दरअसल, मि. कोठारी ने किया यह होगा कि इन्होंने प्लाजा में कल या परसों ‘सुनहरा तीर’ फिल्म देखी होगी और आज अपने बचाव के लिए अपनी मौजूदगी दर्ज कराई होगी. मि. कोठारी, मैं जहां कुछ गलत कहूं, प्लीज मुझे टोक देना.’’

एक पल रुक कर मयंक मोहन ने कहना शुरू किया, ‘‘जहां तक मैं समझता हूं, आज ये अपनी योजनानुसार सिनेमा हाल गए होंगे. इन की हत्या की योजना तो थी ही सो ये नर्वस रहे होंगे. इसलिए मैनेजर और गेटकीपर से 2 बातें कर के या कहें कि उन्हें अपनी सूरत दिखा कर ये जनाब सीधे हाल में जा घुसे होंगे. उस समय परदे पर कास्टिंग चल रही होगी, लेकिन ये वहां रुके नहीं और छिपते हुए तुरंत वापस सीधे यहां चले आए. यहां आ कर उन्होंने अपने पार्टनर की हत्या की, फिर औफिस बंद कर के लौट गए.

शो के बीच में जाना और गेटकीपर की निगाहों में पड़ना इन्हें खतरनाक लगा होगा. इसलिए काफी देर ये इधरउधर ही रहे होंगे. बाद में ये शो के बाद सिनेमा हाल से बाहर आती भीड़ में शामिल हो कर मैनेजर से मिल आए होंगे जिस से लगे कि हाल से शो देख कर निकले हैं. फिर ये दोबारा यहां आ गए होंगे. इस के बाद की कहानी तो आप लोग जानते ही हैं. अब इंसपेक्टर साहब का काम है इन से वह रिवाल्वर बरामद करना जिसे इन्होंने कहीं छिपा दिया है.’’

कोठारी गुस्से में गरजा, ‘‘इन सारी बातों का सुबूत क्या है आप के पास?’’

‘‘बात यह है कोठारी साहब,’’ मयंकमोहन ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘वास्तव में ‘सुनहरा तीर’ फिल्म तो प्लाजा सिनेमा से कल ही उतर चुकी है. आज तो ‘मासूम अदा’ लगी है. आप के दुर्भाग्य से मैं ने आज उसी शो में वह फिल्म देखी है जिस में आप देखने की बात कर रहे हैं.

उस की कहानी ‘सुनहरा तीर’ की उस कहानी से एकदम अलग है जो आप ने इतने गवाहों के सामने सुनाई है. दरअसल, अपने हड़बड़ी और मानसिक तनाव में न तो सिनेमा हाल के बाहर लगा नया पोस्टर देखा और न परदे पर कास्टिंग शुरू होने पर नाम पर ध्यान दिया. बस, हाल से जल्द से निकल आए.’’

कोठारी ने हथियार डाल दिए. निढाल हो कर उस ने टेबल पर सिर टिका दिया. एक जरा सी भूल ने उसे फंसा दिया था.

अमीर बनने की चाहत – भाग 3

इंसान की ख्वाहिशें आसमान को छूती हों तो उसे अपनी प्रगति बहुत छोटी नजर आती है. दीपक के साथ भी ऐसा ही था. वह अपने काम से संतुष्ट नहीं था. उस के पास अपनी एक सैकेंड हैंड कार थी. इसी दौरान उस की दोस्ती संदीप से हो गई. संदीप मूलरूप से मेरठ जनपद के कस्बा लावड़ का रहने वाला था और गाजियाबाद में किराए पर रहता था. वह एक इंस्टीट्यूट में बच्चों को कोङ्क्षचग देता था. वह भी अमीर बनने के सपने देखता था.

2 इंसानों की सोच यदि समान हों तो उन के ताल्लुकात गहरे होते देर नहीं लगती. दीपक व संदीप की दोस्ती भी वक्त के साथ गहरा गई. दोनों जब भी साथ बैठते, अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की बात करते. दीपक अपनी प्लेसमेंट एजेंसी खोलना चाहता था. जबकि संदीप की ख्वाहिश थी कि उस का अपना कोङ्क्षचग सैंटर हो. इन कामों के लिए मोटी रकम चाहिए थी, लेकिन दोनों में से किसी के पास पैसा नहीं था. कमउम्र में ही वे बड़ी महत्वाकांक्षाओं के शिकार थे.

एक दिन दोनों साथ बैठे तो दीपक बोला, “कभी हमारे भी सुनहरे दिन आएंगे क्या?”

“इतना सीरियस क्यों है भाई, यह तो इंसान के अपने हाथ में है.” संदीप ने शांत लहजे में कहा तो दीपक मन मसोसते हुए बोला, “अपने हाथ में होता तो कब का बड़ा आदमी बन जाता. कभीकभी मन करता है कि कोई बड़ा हाथ मार कर एक ही झटके में जिंदगी संवार दूं.”

“अब की है तूने काम की बात. सोचता तो मैं भी यही हूं. तू कहे तो कुछ ऐसा करें, जिस से सारे संकट जड़ से मिट जाएं.”

संदीप ने कहा तो दीपक बोला, “दोनों मिल कर कुछ बड़ा प्लान करते हैं. इस शहर में बड़ेबड़े रईस हैं, वे किस काम आएंगे.”

“वे क्या हमें आ कर पैसा देंगे?” संदीप ने पूछा.

“बिलकुल देंगे, लेने का हुनर आना चाहिए.”

“मतलब?”

“इतना भोला भी मत बन, अरे जब हम किसी के जिगर के टुकड़े को कब्जे में लेंगे, तो वह खुद ही तो आ कर पैसा देगा.”

दीपक का आशय समझते ही संदीप की आंखों में चमक आ गई.

“ठीक है, कुछ ऐसा प्लान करते हैं कि किसी का अपहरण कर के मोटी रकम वसूल कर ली जाए.”

“इस के लिए हमें बहुत सोचना होगा.” संदीप ने कहा.

उस दिन के बाद दोनों का फितरती दिमाग सरपट दौडऩे लगा. अगले कुछ दिनों में ही दोनों ने किसी रईस आदमी के बच्चे का अपहरण करने की योजना बना ली. दोनों इस काम को बेहद चतुराई से करना चाहते थे. वे क्राइम के सीरियलों और ऐसी फिल्मों के शौकीन थे, जिन की पटकथा पुलिस को चौंका देने वाली होती थी. शहर के बारे में उन्हें अच्छी जानकारी थी.

उन दोनों ने अपने शिकार की तलाश के लिए वीवीआईपी सोसाइटी का चुनाव कर लिया. योजना के तहत उन्होंने अगस्त महीने में वहां फ्लैट किराए पर ले लिया. इस दौरान दोनों अपना कामधंधा छोड़ कर भविष्य के सपने बुनने लगे. उन के पास अब आमदनी का कोई जरिया नहीं था. दोनों कमउम्र में ही अंजाम की परवाह किए बिना गलत राह पर चल निकले थे.

संदीप अपने घर से आजाद था, जबकि दीपक अपनी मां के नियंत्रण से बाहर था. सोसायटी में रहते हुए उन्होंने अपने सौफ्ट टारगेट की तलाश शुरू कर दी. वे घूमतेफिरते और मैदान में जा कर बच्चों का क्रिकेट देखते और उन के साथ खुद भी क्रिकेट खेलते. जयकरन को क्रिकेट का जुनून था. पढ़ाई के बाद उस का ज्यादातर वक्त क्रिकेट में ही बीतता था. जयकरन किशोर था, लेकिन वह अपने से बड़ी उम्र के लडक़ों से भी दोस्ती करने का इच्छुक रहता था.

क्रिकेट के मैदान में ही उस की मुलाकात दीपक व संदीप से हुई. इस के बाद उन की अकसर बातेंमुलाकातें होने लगीं. कुछ ही दिनों में बातोंबातों में दोनों ने जयकरन का फैमिलीग्राउंड जान लिया. उम्र का बड़ा फांसला होने के बावजूद तीनों दोस्त बन गए.

दीपक व संदीप को जयकरन सब से अच्छा शिकार लगा. उन्हें लगा कि उस के पिता शेयर कारोबारी हैं और मां डाक्टर, इसलिए वे मुंहमांगी मोटी रकम दे देंगे. इस बात को दिमाग में रख कर उन्होंने जयकरन से मेलजोल बढ़ाया और बाद में उस के सहारे उस के घर में भी एंट्री कर ली.

अपनी मीठीमीठी बातों और भोलेपन के नाटक से उन्होंने विवेक व अमिता से भी मुलाकात कर ली. कालोनी के अन्य लोगों से भी वे घुलमिल कर रहते थे. वे नहीं चाहते थे कि उन पर किसी को जरा भी शक हो. दरअसल वे अपना काम पूरी प्लानिंग के साथ करना चाहते थे. कुछ इस तरह की पुलिस उन की परछाईं भी न छू सके.

दीपक व संदीप की नजरों में सोसाइटी के यूं तो कई बच्चे थे. लेकिन उन्होंने मन ही मन सोच लिया कि जयकरन को विश्वास में ले कर आसानी से उस का अपहरण किया जा सकता है. दोनों ने विचारविमर्श कर के तय कर लिया कि एक दिन वे जयकरन का अपहरण कर के उस के पिता से फिरौती की मोटी रकम वसूल करेंगे. वे इस बारे में दिनरात सोचते रहते थे.

बड़ा भाई किसी आदर्श की तरह होता है. दीपक को भी मेहनत, लगन और ईमानदारी की ङ्क्षजदगी से अपने छोटे भाइयों के सामने आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए था, लेकिन हुआ इस का उलटा. उस ने बिट्टू को भी अपनी प्लानिंग बता कर उसे अपने साथ मिला लिया.

इस दौरान उन्होंने एक बदमाश के माध्यम से 3 अवैध पिस्तौलों का इंतजाम भी कर लिया. दीपक ने अपने मोबाइल पर वाट्सएप का एक ग्रुप बना रखा था, जिस में जयकरन व कालोनी के कुछ अन्य किशोर भी शामिल थे. दीपक ने यह सब भावनात्मक जुड़ाव बनाए रखने के लिए किया था.

जब प्यार बना व्यापार

रिमझिम चतुर्वेदी पटना के जानेमाने दंत चिकित्सक विश्वजीत चतुर्वेदी की पत्नी थी. धनाढ्य और उच्चशिक्षित होते हुए भी वह तंत्र विद्या का धंधा करती थी. डा. विश्वजीत चतुर्वेदी के चेहरे पर परेशानियों की लकीरें साफ झलक रही थीं. वह कमरे में चहलकदमी कर रहे थे, वहीं से वह बारबार मुख्यद्वार की ओर झांक रहे थे. जैसे किसी के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हों.

इस की वजह यह थी कि रात के करीब 10 बज रहे थे और उन की पत्नी रिमझिम चतुर्वेदी अब तक घर लौटी नहीं थी. उन का मोबाइल फोन भी नहीं लग रहा था. बारबार वह स्विच्ड औफ बताया जा रहा था. इस से विश्वजीत चतुर्वेदी परेशान हो गए थे. ऐसा उन के साथ पहली बार हुआ था, जब पत्नी का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा हो.

रात काफी गहरा चुकी थी. ऐसे में उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह करें तो क्या करे. जबकि सभी परिचितों और रिश्तेदारों के पास फोन कर के पत्नी के वहां आने के बारे में पूछ रहे थे. वहां से उन्हें पता चला कि रिमझिम उन में से किसी के भी घर नहीं पहुंची थी. इस से उन का दिल और बैठा जा रहा था. यह 23 नवंबर, 2021 की घटना है.

बहरहाल, डा. विश्वजीत ने पूरी रात आंखों में काटी और सुबह होते ही श्रीकृष्णपुरी थाने पहुंचे. उन के साथ बहनोई संजय पाठक भी थे. थानाप्रभारी एस.के. सिंह ने संजय से तहरीर ले ली और रिमझिम चतुर्वेदी की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर आगे की काररवाई शुरू कर दी थी. रिमझिम चतुर्वेदी कोई मामूली महिला नहीं थी. वह पटना के जानेमाने डेंटिस्ट विश्वजीत चतुर्वेदी की पत्नी थी. यानी मामला हाईप्रोफाइल था. यह बात 24 नवंबर, 2021 की है.

खैर, उसी दिन पटना के ही नौबतपुर थाने के डीहरा शेखपुरा गांव स्थित पुनपुन सुरक्षा बांध के किनारे सुनसान इलाके में एक खूबसूरत युवती की लाश मिली. किसी ने गोली मार कर उस की हत्या कर दी थी. शक्लोसूरत और पहनावे से वह किसी अच्छेभले घर की लग रही थी.

लाश मिलने की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी दीपक सम्राट टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और काररवाई में जुट गए. उन्होंने लाश की बारीकी से जांच की तो देखा हत्यारों ने युवती के मुंह में गोली मार कर हत्या की थी. युवती का सिर खून में तरबतर था. पहनावे से वह अच्छेभले घर की लग रही थी. पैरों में उस के हाईहील वाली सफेद रंग की कीमती सैंडल थीं. दाहिनी जांघ के पास आसमानी रंग का मास्क गिरा हुआ था. जांचपड़ताल करने पर मौके से एक फायरशुदा खोखा बरामद हुआ.

मौके से बरामद सभी सामानों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया और इस की जानकारी दीपक सम्राट ने डीएसपी और एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा को दे दी. मौके की प्रारंभिक काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए एम्स पटना भिजवा दी.

थानाप्रभारी दीपक सम्राट ने पटना के सभी थानों में लाश की फोटो भिजवा दी ताकि किसी थाने में किसी युवती के गायब होने का मुकदमा तो दर्ज नहीं है. लाश की तसवीर श्रीकृष्णपुरी थाने में भी पहुंची. फोटो देख कर थानाप्रभारी एस.के. सिंह चौंक गए. वह तसवीर गुमशुदा रिमझिम चतुर्वेदी से काफी हद तक मेल खा रही थी. फौरन उन्होंने फोन कर के वादी संजय पाठक को थाने बुलवाया. उन के साथ उन की पत्नी श्वेता पाठक भी थाने पहुंची.

थानाप्रभारी एस.के. सिंह ने मोबाइल में आई वह तसवीर उन्हें दिखाई, जो नौबतपुर थाना पुलिस ने उन्हें भेजी थी. खून में सने फोटो को देखते ही ननद श्वेता पाठक पहचान गई. लाश उन की भाभी रिमझिम चतुर्वेदी की थी. फिर क्या था, रिमझिम की हत्या की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया और रोनापीटना शुरू हो गया.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मृतका रिमझिम के फोन नंबर की की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पहले सहदेव महतो मार्ग बोरिंग रोड स्थित रिमझिम के ब्यूटीपार्लर पहुंच कर वहां के कर्मचारी राजू से पूछताछ की. राजू ने बताया कि शाम करीब 4 बजे मैडम के मोबाइल पर किसी का काल आया. काल रिसीव करने के बाद वह पार्लर से यह कहते हुए निकलीं कि थोड़ी देर बाद लौटती हूं फिर पार्लर बढ़ा कर घर चली जाऊंगी. लेकिन काफी देर बीत जाने के बाद भी मैडम घर नहीं लौटी थी. अब उन की हत्या की खबर आई. राजू से पूछताछ करने के बाद थानाप्रभारी थाने वापस लौट आए थे.

बहरहाल, एस.के. सिंह ने रिमझिम के फोन की काल डिटेल्स का गहन अध्ययन किया. 23 नवंबर, 2021 की शाम 4 बज कर 23 मिनट पर उन के फोन पर एक काल आई थी. फिर 6 बजे के बाद रिमझिम का फोन बंद हो गया था.

आखिरी काल का नंबर जांचने पर पता चला कि वह नंबर किसी रोहित सिंह के नाम था, जो पटना के पालीगंज थाना क्षेत्र के जलपुरा का रहने वाला था. पुलिस रोहित सिंह को उस के घर जलपुरा से पूछताछ के लिए श्रीकृष्णपुरी थाने ले आई. थाने ला कर थानाप्रभारी एस.के. सिंह ने उस से कड़ाई से घंटों तक पूछताछ की.

रोहित कोई आदतन अपराधी तो था नहीं जो पुलिस को यहांवहां घुमाता. वह तो पुलिस के सवालों से टूट गया था और रोते हुए कहा, ‘‘क्या करता सर, रिमझिम से मैं हार चुका था. उस से छुटकारा पाना चाहता था. पर उस ने मुझे बरबाद करने की बारबार धमकी दे कर मेरा जीना मुहाल कर दिया था, इसलिए उसे रास्ते से हटाने की योजना बनाई और 4 लाख की सुपारी दे कर उसे मौत के घाट उतरवा दिया.’’ और फिर विस्तार से उस ने पूरी कहानी पुलिस के सामने उगल दी.

हैरान कर देने वाली कहानी सुन कर पुलिस ने दांतों तले अंगुली दबा ली कि मृतका रिमझिम ऐसा भी कर सकती थी. रोहित की निशानदेही पर पुलिस ने रिमझिम चतुर्वेदी हत्याकांड में शामिल 5 और आरोपियों कमल शर्मा, सूरज कुमार, पवन कुमार, रंजीत और राहुल यादव को गिरफ्तार कर लिया. इन सभी में राहुल यादव और रंजीत शार्पशूटर थे. सभी आरोपियों ने अपनेअपने जुर्म कुबूल कर लिए थे.

हत्या में रोहित सिंह का नाम सामने आते ही मृतका के घर वाले हैरान रह गए थे. क्योंकि रोहित सिंह रिमझिम का मुंहबोला भाई था. जिस मुंहबोले भाई की कलाई पर वह 2 साल से राखी बांध रही थी, वही उस का कातिल कैसे हो सकता है, वह यही सोच रहे थे.

हाईप्रोफाइल रिमझिम चतुर्वेदी हत्याकांड का खुलासा होने के बाद 29 नवंबर, 2021 की दोपहर में एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा ने पुलिस लाइन में एक पत्रकारवार्ता आयोजित कर इस केस के खुलासे की जानकारी दी. उस के बाद सभी को अदालत के समक्ष पेश किया, जहां से अदालत ने सभी आरोपियों को बेउर जेल भेजने का आदेश दिया.

पुलिस की पूछताछ में इस हत्याकांड की कहानी कुछ ऐसे सामने आई. 40 वर्षीय खूबसूरत रिमझिम चतुर्वेदी मूलरूप से बिहार के बक्सर जिले की रहने वाली थी. संपन्न घराने की रिमझिम ने सन 2001 में डा. विश्वजीत चतुर्वेदी से प्रेम विवाह किया था. विश्वजीत चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के रहने वाले थे.

डाक्टरी पढ़ाई के दौरान दोनों के बीच में प्यार हुआ. फिर उन्होंने एकदूसरे को जीवनसाथी बनाने का फैसला कर लिया. इन के इस फैसले पर इन के घर वालों ने भी स्वीकृति की मोहर लगा दी थी.कालांतर में रिमझिम और विश्वजीत दोनों ही पटना, बिहार आ कर रहने लगे. तब उन की प्रैक्टिस कोई खास नहीं चल रही थी. बाद में दोनों की ही मैडिको केयर की दुकानें अच्छीभली चल निकलीं. शहर के मानेजाने दांत के डाक्टरों में से एक डा. विश्वजीत को गिना जाने लगा था.

उन की पत्नी रिमझिम ने हेल्थकेयर ब्यूटीपार्लर खोल लिया था और दुकान चलाती थी. इस प्रोफेशन में बेशुमार पैसे हैं, वह अच्छी तरह जानती थी. थोड़ी सी मेहनत के बाद रिमझिम का भी पार्लर अच्छा चल निकला था और उस की उम्मीद से कहीं ज्यादा पैसे घर में आने लगे थे. दोनों पतिपत्नी अपनी कमाई से खुश थे. फिर बाद के दिनों में श्रीकृष्णपुरी इलाके में कृष्णकुंज अपार्टमेंट में रहने लगे थे.

रिमझिम खुद को तंत्र विद्या में पारंगत समझती थी. इस बात को उस की पक्की सहेली पूनम बखूबी जानती थी. बताया जाता है कि रिमझिम ने तंत्रविद्या की शक्ति से कइयों की डूबती नैया पार लगाई थी और उस की बातें जो नहीं मानता था, उसे सबक सिखाने से भी वह नहीं चूकती थी.

बात 2019 की है. पूनम भुटेडा रोहित सिंह नाम के एक युवक को रिमझिम से मिलवाया. बताया कि वह काफी परेशान रहता है. इस की कमाई में कोई बरकत नहीं होती है. कोई ऐसा उपचार कर दो, जिस से इस की माली हालत में सुधार हो जाए और वह भी सुख की नींद सोए.

पूरी तन्मयता के साथ रिमझिम ने रोहित की कहानी सुनी और सहेली पूनम को यकीन दिलाते हुए कहा, ‘‘भरोसा रखो, जब तुम इसे साथ ले कर आई हो तो काम अच्छा क्यों नहीं होगा भला. अब यह मेरा मरीज है, मैं इसे खुद ही देख लूंगी. तुम मुझ पर आंख बंद कर के यकीन कर सकती हो.’’

इस के बाद दोनों हंस पड़ीं. ठगा सा रोहित खिलखिला कर हंसती हुई सुंदर रिमझिम को अपलक निहारता रह गया था. रिमझिम की नजरें रोहित की नजरों से टकराईं तो रोहित ने घबरा कर अपनी नजरें दूसरी ओर घुमा लीं. रिमझिम को समझते देर न लगी कि इश्किया नजरों से रोहित उसे ही देख रहा था. यह देख हौले से वह मुसकराई. फिर अपनी आपबीती रोहित ने रिमझिम को सुना दी.

करीब 35 वर्षीय रोहित सिंह मूलरूप से पटना के पालीगंज थानाक्षेत्र के जलपुरा का रहने वाला था. उस के परिवार में मांबाप, भाई और बहन थे. बहनों की शादियां हो चुकी थीं. अपने परिवार के साथ वे ससुराल में खुश थीं. खूबसूरत रोहित भी कुछ कम नहीं था. वह मेहनतकश और कर्मठी किस्म का इंसान था.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रोहित ने पटना में ही एक प्राइवेट फर्म में 50 हजार रुपए महीने की नौकरी जौइन कर ली थी. मनचाही मिली नौकरी से रोहित बेहद खुश था. लेकिन उस की किस्मत में यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिकी रह सकी. जिस काम में भी वह हाथ डालता था, काम बनने की बजाय बिगड़ जाता था. जिस से रोहित कर्ज में डूब गया. ऐसे में उस की प्रेमिका पूनम भुटेडा सहारा बनी थी. 50 हजार रुपयों में से 40 हजार रुपए तो कर्ज के बंट जाते थे, बाकी बचे 10 हजार रुपए में घर चलाना होता था. इस से रोहित बहुत परेशान रहता था.

दरअसल, रोहित ने अपने क्रेडिट पर एक बड़ी रकम बालू कारोबारी अपने बहनोई को दिलवा दी थी. बहनोई का कारोबार रफ्तार भी नहीं पकड़ पाया था कि एक सड़क हादसे में उन की मौत हो गई. बहनोई की मौत से रोहित बुरी तरह टूट गया. इस चिंता में वह डूब गया था कि इतनी बड़ी रकम आखिर वह कहां से भरेगा.

बताया जाता है कि रिमझिम तंत्र साधना के लिए एक कब्रिस्तान में जा कर अपनी कलाई काट कर खून भी चढ़ाती थी. इस बात को उस की सहेली पूनम जानती थी, तभी तो वह अपने प्रेमी रोहित को उस के पास ले कर आई थी. रिमझिम ने रोहित की परेशानियों को सुन कर उसे चांदी का कड़ा दाहिनी कलाई में धारण करने का मशविरा दिया. साथ ही 4 अलगअलग रंगों की शर्ट भी पहनने की सलाह दी.

रोहित ने रिमझिम के कहे अनुसार काम किया. पहले दाहिनी कलाई में चांदी का कड़ा धारण किया और फिर चारों शर्ट को बारीबारी से पहना. कल तक परेशान रहने वाले रोहित के चेहरे पर कुछ ही दिनों में खुशियां झलकने लगीं. रिमझिम के टोटके और तंत्रमंत्र ने अपना असर दिखाया. उस दिन से रिमझिम के प्रति रोहित की आस्था बढ़ गई और दोनों के बीच में मधुर संबंध बन गए थे.

भले ही रोहित और रिमझिम के बीच में मधुर संबंध बन गए थे लेकिन पैसों के मामले में रिमझिम किसी से समझौता करने वाली नहीं थी. रोहित से पूजापाठ के नाम पर वह कभी 10 हजार तो कभी 20 हजार तो कभी 40 हजार रुपए मांगती रहती थी. जबकि रोहित की माली हालत पहले से ही खराब थी. रिमझिम द्वारा आए दिन रुपए मांगने से वह परेशान रहने लगा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह रुपए कहां से लाए.

रुपयों की मांग से रोहित और रिमझिम के रिश्तों में खटास आने लगी. रोहित अब रिमझिम से हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहता था, इसलिए वह चुपके से उस से अलग हो गया. लेकिन रिमझिम भी कम शातिर नहीं थी. वह रोहित को इतनी आसानी से अपनी गिरफ्त से जाने नहीं देना चाहती थी.

रिमझिम ने उसे धमकाया. उस के देवर की हाल ही में मौत हो गई थी. रिमझिम ने रोहित को बताया कि देवर ने उस की बात नहीं मानी थी तो उस ने उसे दुनिया से ही रुखसत कर दिया. तुम भी गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो जाओ. रिमझिम की बात सुन कर रोहित बुरी तरह डर गया. रोहित रिमझिम और उस के काले जादू से छुटकारा पाना चाहता था. पर कैसे? रोहित डिप्रेशन में रहने लगा था.

घटना से कई दिनों पहले की बात है. रोहित चाय की दुकान पर बैठा कुछ सोच रहा था. तभी वहां उस के दोस्त कमल शर्मा, सूरज कुमार और पवन आ गए. तीनों को अपने पास देख कर रोहित चौंका. फिर कुछ देर तक वे आपस में गप्पें हांकने लगे थे लेकिन रोहित के चेहरे पर वह चमक नहीं थी, जो पहले हुआ करती थी. कमल शर्मा दोस्त रोहित को देख कर भांप गया था कि जरूर कोई न कोई बात है. फिर उस ने उस की परेशानियों के बारे में पूछा. परेशान रोहित ने आखिर आपबीती दोस्तों से बता दी.

सचमुच मामला काफी गंभीर था और जीवन से जुड़ा था. फिर क्या था? उसी समय रिमझिम का काम तमाम करने का फैसला उन सभी ने ले लिया. इस के लिए कमल शर्मा ने 2 शूटरों रंजीत कुमार और राहुल यादव को 4 लाख की सुपारी दे कर तैयार कर लिया. रिमझिम की हत्या की सुपारी का पैसा खुद रोहित ने रिमझिम से जमीन खरीदने के बहाने धोखे से लिया था और उसी पैसे से उसी की सुपारी दे डाली थी.

योजना के अनुसार, 23 नवंबर, 2021 की शाम 4 बज कर 23 मिनट पर रोहित ने रिमझिम को फोन कर के पूछा कि वह कहां है. इस पर रिमझिम ने बताया कि पार्लर में है. राहुल ने कहा, ‘‘एक जमीन देख रखी है. वहां चल कर के देखना कि बिजनैस के लिए अच्छी होगी या नहीं. आप भी साथ चलतीं तो मेरा काम बन जाता.’’

रोहित ने अपनी बात कुछ इस अंदाज में कही कि रिमझिम चाह कर भी मना नहीं कर सकी और साथ चलने के लिए हामी भर दी. यही रोहित चाहता भी था. उस के जाल में रिमझिम फंस चुकी थी. उसे क्या पता था कि मौत उस का इंतजार कर रही है. ब्यूटीपार्लर से निकली रिमझिम फिर कभी लौट कर नहीं आई.

इधर रिमझिम के हां करते ही रोहित के चेहरे पर कुटिल मुसकान तैर गई. उस ने यह बात दोस्तों को बता दी और योजना पर अमल करने के लिए तैयार हो जाने के लिए कह दिया.

योजना के मुताबिक, रिमझिम को उस के पार्लर से लाने के लिए कमल शर्मा को कार ले कर उस के पास भेजा और दोनों शूटरों रंजीत और राहुल यादव को नौबतपुर थाने के सुनसान पुनपुन सुरक्षा बांध भेज दिया था. घंटे भर बाद कमल शर्मा रिमझिम को साथ ले कर पुनपुन सुरक्षा बांध के पास पहुंचा, जहां रोहित और उस के 2 दोस्त सूरज व पवन बेसब्री से उस का इंतजार कर रहे थे. उसे देख कर चारों चौंकन्ने हो गए.

नवंबर का महीना था. 5 बजते ही अंधेरा घिर चुका था. मौके पर कई लोगों को देख कर रिमझिम घबरा गई. मानो उस ने खतरे को भांप लिया हो. रिमझिम ने रोहित से उस जमीन के बारे में पूछा जिसे देखने के लिए उस ने बुलाया था. फिर रोहित ने एक जमीन दिखाई और जांचने के लिए उस की थोड़ी सी मिट्टी उठा कर रिमझिम को दी. मिट्टी देख कर रिमझिम ने कहा कि बिजनैस के लिए अच्छी है.

इतना कह कर वह कार की ओर लौटने लगी. तभी अचानक वहां 2 और युवकों को देख कर वह घबरा गई. दोनों में से एक युवक राहुल यादव के हाथ में पिस्टल थी. इस से पहले रिमझिम कुछ समझ पाती, पिस्टल उस के मुंह में डाल कर ट्रिगर दबा दिया. गोली गले को चीरती हुई दूसरी ओर से निकल गई. वह जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ी. कुछ ही देर में उस का जिस्म ठंडा पड़ने लगा.

रिमझिम मर चुकी थी. शूटर रंजीत और राहुल यादव उसी बाइक पर सवार हो कर फरार हो गए जिस से आए थे. जबकि रोहित सिंह, कमल शर्मा, सूरज कुमार और पवन कमल के कार में सवार हो कर भाग निकले. आखिर पुलिस ने रिमझिम चतुर्वेदी के कातिलों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. लेकिन मृतका की ननद डा. श्वेता पाठक ने आरोपियों के तंत्रमंत्र और काला जादू वाले कथन को सिरे से नकार दिया.

उस ने कहा कि पूनम ने रिमझिम से 35 लाख 30 हजार रुपए का कर्ज ले लिया था तो वहीं रोहित ने 30 लाख 90 हजार रुपए उधार लिए थे. इस के अलावा अन्य आरोपियों ने भी उस से कर्ज ले रखा था. श्वेता पाठक ने कहा कि इन लोगों ने रिमझिम से लगभग 83 लाख रुपए कर्ज ले रखा था. रिमझिम इन लोगों से अपना पैसा वापस मांग रही थी. श्वेता ने बताया कि रिमझिम जिस किसी को पैसे देती थी, उस का विवरण अपनी डायरी में दर्ज करती थी और स्टांप पेपर भी तैयार कराती थी. पुलिस श्वेता पाठक के बयान की भी जांच कर रही है.

इस पर पुलिस का कहना है कि डा. श्वेता पाठक ने पुलिस को एक स्टांप पेपर की फोटोकौपी दी थी, जिस पर पूनम भुटेडा को 5 लाख रुपए दिए जाने की बात लिखी थी. लेकिन उस पर रिमझिम के दस्तखत नहीं थे. कथा लिखे जाने तक पुलिस डा. श्वेता पाठक के बयानों की जांच कर रही थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

स्पा के दाम में फाइव स्टार सेक्स – भाग 3

महाराजपुर पुलिस चौकी में कार्यरत जितने भी पुलिसकर्मी थे, उन्हें तुरंत वहां से पुलिस लाइंस में जा कर अपनी उपस्थिति दर्ज करने का आदेश दे दिया. पर फरार हुए स्पा मैनेजर और मालिकों की गिरफ्तारी के लिए टीमें नियुक्त कर के छापेमारी कर रही थीं.

समाज में गंदगी फैलाने वाले ऐसे लोगों को कानून के कटघरे में खड़ा कर के जेल पहुंचाना ही पुलिस का उद्ïदेश्य था. देखना है ये फरार हुए अभियुक्त कब तक पुलिस से लुकाछिपी का खेल खेलते हैं.

यह मामला अभी चल ही रहा था, ताजा भी था कि उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद में एक और सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ हो गया. हुआ यूं कि सीओ (सिटी) संजय मिश्रा अपने औफिस में बैठे. तभी उन्होंने अपने एक मुखबिर को फोन लगा लिया, “हैलो करीम, क्या कह रहे हो?”

“गुड मार्निंग साहब.” दूसरी ओर से करीम की आवाज उभरी, “आजकल खाली हूं साहब, जेब से कडक़ा हो गया हूं, कोई काम बताइए न?”

“करीम, कुछ दिनों से मुझे होटल राधाकृष्णा के विषय में उलटीसीधी बातें सुनने को मिल रही हैं.”

करीम ने तुरंत कहा, “हां साहब, सुना तो मैं ने भी है कि राधाकृष्णा में गरम गोश्त का धंधा होता है. आप कहें तो मैं पता लगाऊं?”

“खाली हो तो यही काम कर लो, खर्चापानी निकल जाएगा तुम्हारा.” संजय मिश्रा ने कहा.

“मैं आज शाम को ही मालूम कर लूंगा.” करीम चहक कर बोला, “आप को अच्छी खबर ही दूंगा साहब.”

“ठीक है.” कह कर संजय मिश्रा ने बात खत्म की.

उधर करीम शाम होने का इंतजार करने लगा. करीम 25-26 साल का युवक था. वह स्मार्ट था, रंगत भी गोरी थी. वह पुलिस के लिए मुखबिरी करता था. सीओ सिटी से बात होने के बाद उस ने शाम को व्हाइट शर्ट और ब्राऊन रंग की जींस पहनी. बालों को संवारा और पैदल ही होटल राधाकृष्णा की तरफ चल पड़ा.

राधाकृष्णा होटल में पहुंच कर वह बार काउंटर पर पहुंच गया, वहां मौजूद सर्विस बौय से उस ने लार्ज व्हिस्की का पैग मांगा. सर्विस बौय पैग बनाने लगा तो करीम धीरे से बोला, “यार, यहां शराब ही मिलती है क्या, उस के साथ कुछ चटपटा माल नहीं मिलता?”

“मिलता है जनाब.” सर्विस बौय पैग उस की तरफ बढ़ाते हुए बोला, “भुने काजू हैं, चटपटी नमकीन है, बौयल एग्स हैं.”

करीम मुसकराया, “यह नहीं यार, तनमन को तृप्त कर दे. कुछ ऐसा चटपटा सामान जो…”

“ओह समझा!” सर्विस बौय आगे को झुक कर मुसकराया, “आप गरम गोश्त की बात कर रहे हैं.”

“ठीक समझे, शराब के साथ शबाब हो तो तबियत फडक़ा फाइट हो जाती है.”

“आप रिसैप्शन काउंटर पर जाइए, वहां रंगीन एलबम है. उस में आप को एक से बढ़ कर एक फुलझडिय़ां मिल जाएंगी.”

“वाह!” करीम ने दोनों हाथ कंधे पर ले जा कर अंगड़ाई ली, “रेट वेट मालूम है तुम्हें?”

“नहीं, यह मैनेजर ही बता देंगे.” सर्विस बौय ने हंस कर कहा, “ऐसी गरम आइटम की कीमत नहीं पूछी जाती, दिल को भा जाए तो दिलफेंक लोग लाखों लुटा देते हैं.”

करीम हंसा, “आदमी दिलचस्प हो तुम.”

सर्विस बौय मुसकराने लगा. करीम ने पैग का बिल दिया और गिलास ले कर वह रिसैप्शन पर आ गया.

रिसैप्शन पर बैठे मोटे से व्यक्ति ने आंखों पर चढ़ा चश्मा ऊंचा कर के करीम को देखा, “फरमाइए जनाब, रूम चाहिए क्या?”

“अकेला हूं,” करीम ने होंठों को गोल किया, “शादी भी नहीं हुई है. रूम ले कर क्या करूंगा. कोई पार्टनर दिलवाएंगे तो रूम लेने का मजा है.”

“पार्टनर भी मिल जाएगा सर.” मैनेजर ने दाईं आंख दबा कर कहा, “एलबम देखेंगे आप.”

“दिखाइए, कोई पसंद आ जाएगी तो रात यहीं गुजार लूंगा.”

मैनेजर ने एलबम निकाल कर दिखाई, उस में अनेक खूबसूरत महिलाओं के फोटो लगे थे. करीम ने एक फोटो पर अंगुली रख कर उस का रेट पूछा.

“3 हजार चार्ज है इस हसीना का, हमारे होटल की शान इसी नगीना से है. यह रूबी है. पसंद हो तो बुलाऊंï?”

“रूम का चार्ज इसी में शामिल है या अलग से देना होगा?”

“यह आधा घंटे का चार्ज है, इस में कमरा हम देंगे आप को. यदि आप पूरी रात मौज करना चाहते हैं तो 7 हजार रुपया लगेगा. 5 लडक़ी के, 2 रूम चार्ज.”

“मैं रात भर रुकूंगा, लेकिन आज नहीं. आप कल के लिए रुबी को कहीं बुक नहीं करेंगे. यह एडवांस हजार रुपया रखिए.”

करीम ने कहने के बाद पर्स से 5-5 सौ के 2 नोट निकाल कर रिसैप्शन पर रख दिए. फिर वह होटल से बाहर आ गया. उस ने तुरंत सीओ संजय मिश्रा को फोन कर के सारी जानकारी दे दी.

संजय मिश्रा ने दूसरे दिन शनिवार 27 मई, 2023 को सुबह ही दक्षिण टोला सराय लखसी थाना और महिला थाने की पुलिस को कोतवाली में लिया. उन्हें यहां बुलाने का मकसद समझाने के बाद वह पुलिस बल, जिन में महिला कांस्टेबल भी थी, को साथ ले कर रोडवेज बस अड्ïडे के पास स्थित होटल राधाकृष्णा में छापा डाल दिया.

पुलिस को देख वहां भगदड़ मच गई. होटल मैनेजर को काबू कर लिया गया. ऊपर के फस्र्ट फ्लोर पर बने बहुत से कमरे अंदर से बंद थे. उन्हें खटखटा कर महिला पुलिस को आगे कर दिया गया. सीओ संजय मिश्रा ने ऊंची आवाज में आदेश दिया, “यहां पुलिस ने रेड डाली है. बंद कमरों में मौजूद महिलाएं पुरुष अपने कपड़े ठीक कर के बाहर आ जाएं.”

थोड़ी देर में बंद कमरों से महिलाएं मुंह ढंक कर बाहर आ गईं. हर महिला के साथ एक पुरुष भी था. टोटल 14 महिलाएं और मैनेजर सहित 16 पुरुष वहां से हिरासत में लिए गए. कमरों की तलाशी में आपत्तिजनक सामान भी बरामद हुआ, उसे सीलमोहर कर के कब्जे में ले लिया गया.

सभी पकड़े गए अनैतिक देह में लिप्त पुरुष और महिलाओं को कोतवाली में लाया गया. पुलिस उन से विस्तार से पूछताछ कर के कानूनी काररवाई में लग गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में करीम व जगदीश उर्फ जग्गी परिवर्तित नाम हैं.

रिश्तों की कब्र खोदने वाला क्रूर हत्यारा

ज़रा सी भूल ने खोला क़त्ल का राज – भाग 2

मुश्किल से एक मिनट लगा होगा. कोठारी रामलाल के चैंबर से बाहर आ गया. उस वक्त उस का चेहरा पसीने से तर था, सांस फूली हुई थी. रूमाल से पसीना पोंछते हुए वह बाहर के गलियारे में निकल आया. औफिस का मुख्य दरवाजा डुप्लिकेट चाबी से खोल कर वह बाहर चला आया और दरवाजा बंद कर दिया. बाहर आते ही उसे टैक्सी मिल गई. टैक्सियां बदलते हुए वह दोपहर का शो खत्म होने के समय सिनेमाहाल के पास पहुंच गया. शो छूटा तो वह हाल से निकली भीड़ में शामिल हो गया और फिर भीड़ से निकल कर मैनेजर के चैंबर में जा पहुंचा. कुछ इस तरह जैसे फिल्म देख कर बाहर आया हो.

मैनेजर के केबिन में बैठ कर उस ने एक सिगरेट पी और फिर उस से विदा ले कर अपने औफिस आ पहुंचा. उस ने टैक्सी ड्राइवर से कहा, ‘‘तुम जरा ठहरो, मैं अभी लौटता हूं.’’

पल भर बाद कोठारी बदहवास दौड़ता हुआ बाहर आया और चिल्ला कर बोला, ‘‘खून, किसी ने उसे मार डाला. ड्राइवर, जल्दी चलो… थाने…’’

थाने पहुंच कर कोठारी ने बदहवासी के आलम में इंसपेक्टर को कत्ल की बात बताई, इंसपेक्टर कोठारी और 2 सिपाहियों के साथ तुरंत जिप्सी ले कर चल दिया.

औफिस में आते ही कोठारी निढाल भाव से एक कुरसी पर गिरते हुए बोला, ‘‘आप चैंबर में खुद जा कर देख लें. मुझ में उस भयानक दृश्य को दोबारा देखने की हिम्मत नहीं है.’’

इंसपेक्टर ने जा कर देखा. रामलाल गोयल का निर्जीव शरीर आराम कुरसी पर पड़ा हुआ था. उस की कनपटी पर गोली का निशान था और कनपटी से ले कर फर्श तक खून फैला था. गोली शायद अंदर ही रह गई थी. पुलिस का डाक्टर, फोटोग्राफर आदि आए. औफिस की तलाशी से कोई खास चीज नहीं मिली. जरूरी काररवाई के बाद इंसपेक्टर ने फोन कर के एंबुलेंस बुलवाई. साथ ही कोठारी से कहा, ‘‘मि. कोठारी, आप अपना बयान लिखवा दें. आगे की काररवाई आप की रिपोर्ट पर निर्भर करेगी.’’

कोठारी ने अटकअटक कर बदहवासी के आलम में अपना बयान लिखवाना शुरू किया, हवलदार उस का बयान नोट करता जा रहा था. कोठारी ने दिन भर की कहानी, मैटनी शो में सिनेमा जाने की बात और लौट कर यह भयानक दृश्य देख कर थाने जाने वगैरह की सारी बातें बयान में लिखवा दीं. हवलदार उस के बयान को पढ़ कर इंसपेक्टर को सुना ही रहा था कि औफस के आगे एक मोटरसाइकिल आ कर रुकी. मोटरसाइकिल खड़ी कर के एक छरहरे, मजबूत शरीर वाले व्यक्ति ने अंदर कदम रखा. कोठारी उसे जानता था.

वह मयंकमोहन था, पत्रकार और शौकिया जासूस. उसे देख कर कोठारी को फिर से पसीना आने लगा. वह सोचने लगा, यह बिना टांग अड़ाए नहीं मानेगा.

इंसपेक्टर ने पूछा, ‘‘कहां से आ रहे हैं मि. मयंक? यहां की गंध आप की नाक तक भी पहुंच गई क्या?’’

‘‘एक खास सिलसिले में थाने गया था, आप मिले नहीं. वहां पता लगा तो इधर आ गया. क्या मामला है?’’

मयंक ने बैठ कर सिगरेट सुलगाई. इंसपेक्टर ने कोठारी के मुंह से सुनी कहानी उसे सुना दी. फिर चैंबर में ले जा कर गोयल की लाश भी दिखाई. वह जानता था कि कई बार मयंक बड़े काम का साबित होता है. मयंक ने चेंबर, मेज पर रखे कागजात, नोटबुक और गोयल की लाश वगैरह का सूक्ष्म निरीक्षण किया. फिर वापस औफिस में आ गया.

इंसपेक्टर ने कोठारी का लिखवाया हुआ बयान खुद मयंक को पढ़ कर सुनाया. इस बीच मयंक चुपचाप सिगरेट के कश लेते हुए सुनता रहा. बीचबीच में वह कोठारी को देख रहा था. कोठारी बेचैन सा नजर आ रहा था. जब इंसपेक्टर बयान पढ़ चुका, तो कोठारी ने पूछा, ‘‘मुझे यहां कब तक बैठना होगा? मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मैं घर जा कर आराम करना चाहता हूं.’’

‘‘बस, ऐंबुलेंस को आने दीजिए, आ ही रही होगी. हम डैड बौडी को भिजवा कर औफिस में ताला लगा कर सील कर देंगे. अभी आप को औफिस बंद रखना पड़ेगा,.’’

चपरासी लंच कर के कभी का लौट आया था. पुलिस ने उस का भी बयान लिया था. कोठारी ने उस की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘ताले सील की क्या जरूरत है? यह रहेगा यहां.’’

‘‘नहीं मि. कोठारी, मर्डर हुआ है यहां. जब तक हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच जाते हमें औफिस सील करना पड़ेगा. थोड़ी काररवाई और हो जाए तो आप चले जाइएगा. लेकिन आप शहर के बाहर नहीं जा पाएंगे.’’

कोठारी चुपचाप बैठा रहा.

मयंकमोहन इस बीच घूमघूम कर औफिस के ताले की चाबी के छेद, दरवाजे आदि को देख रहा था. इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘मि. कोठारी, आप के बयान की पुष्टि हो ही जाएगी. कौन सी फिल्म देखी थी आप ने?’’ आप दोपहर वाले शो में प्लाजा सिनेमा में थे न?

‘‘जी हां, प्लाजा में मैं ने ‘सुनहरा तीर’ फिल्म देखी थी. यह क्या पता था कि आज ही यह मनहूस घटना घटेगी.’’

औफिस की बारीकी से छानबीन कर रहे मयंकमोहन ने कोठारी की बात सुनी तो उसे स्थिर दृष्टि से देखने लगा.

इंसपेक्टर ने पूछा, ‘‘आप के पास कोई सुबूत है कि आप ने आज ही वह फिल्म देखी है?’’

‘‘जी, मेरे पास आधा टिकट है,’’ कोठारी ने आधा टिकट निकाल कर दिखाते हुए इतमीनान से जवाब दिया, ‘‘सिनेमा का मैनेजर और वहां के गेटकीपर्स वगैरह मुझे जानते हैं. इत्तेफाक से आज मैं मैनेजर से भी मिला था.’’

मयंकमोहन के होंठों पर हलकी सी मुसकराहट उभर आई. उस ने इंसपेक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर तो देख कर गया है, उस के विचार से हत्या कब हुई होगी.’’

‘‘डाक्टर का अंदाजा है कि हत्या 12 से डेढ़ या 2 बजे के बीच हुई होगी.’’ वैसे आटोप्सी के बाद ठीक पता तो कल ही लगेगा.’’

एंबुलेंस आ गई. अटेंडेंटों ने बौडी को एंबुलेंस में रख दिया. एंबुलेंस चली गई.

इंसपेक्टर ने सिपाहियों से कहा, ‘‘औफिस में ताला और सील लगा दो.’’

मयंकमोहन ने टोका, ‘‘थोड़ा ठहरें, इंसपेक्टर साहब.’’

कोठारी ने इंसपेक्टर से कहा, ‘‘तो, मैं अब जा सकता हूं? यहां तो आप सील लगाएंगे.’’

‘‘जरा आप भी ठहरें मि. कोठारी, मुझे आप से कुछ बातें करनी हैं,’’ मयंक ने कहा.

अनिच्छा दिखाते कोठारी ने पूछा, ‘‘क्या बातें?’’

‘‘मि. कोठारी, आप आज दिन के 12 बजे से 3 बजे तक सिनेमा हाल में ही थे न?’’

‘‘बेशक,’’ कोठारी ने तपाक से जवाब दिया.

‘‘क्या आप मुझे फिल्म की कहानी संक्षेप में सुनाएंगे? फिल्म का नाम भी दोहराने की कृपा करें.’’

‘‘वह सब मैं इंसपेक्टर साहब को बता चुका हूं.’’ कोठारी बोला, तो मयंक ने अनुरोध किया, ‘‘बस, एक बार और. इंसपेक्टर साहब, प्लीज आप एक कागज पर इन का बयान दोबारा नोट कर लें.’’

कोठारी ने बताया, ‘‘फिल्म का नाम था ‘सुनहरा तीर.’ उस की कहानी भी दिलचस्प है.’’ वह संक्षेप में कहानी का सारांश बता कर बोला, ‘‘खास कर वह सीन, जब अंत में हीरो तीरों की बौछार में हीरोइन को घोड़े पर बैठा कर भागता है, बेजोड़ है.’’

‘‘कोठारी साहब, आप यह सब सचसच बता रहे हैं?’’ मयंक ने पूछा.

मगनलाल कोठारी का चेहरा लाल हो गया. वह कुछ बिगड़ कर बोला, ‘‘तो क्या आप को झूठ लग रहा है? आप तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे मैं ने ही खून किया हो?’’

‘‘नहीं, मैं ने ऐसा कब कहा,’’ मयंकमोहन ने इतमीनान से कहा, ‘‘मैं आप की बात पर पूरा विश्वास कर रहा हूं. बस, आप को गवाहों के सामने अपने इस बयान पर हस्ताक्षर करने होंगे.’’

‘‘मुझे कोई ऐतराज नहीं है.’’ कोठारी ने जोश में कहा.

                                                                                                                                                क्रमशः

अमीर बनने की चाहत – भाग 2

इस सनसनीखेज मामले की जांच में तत्परता दिखाना बहुत जरूरी था. क्योंकि अपहर्ता जयकरन को नुकसान पहुंचा सकते थे. दोपहर होतेहोते पुलिस को जयकरन के मोबाइल की काल डिटेल्स भी मिल गई. उस से पता चला कि उस की अंतिम लोकेशन दिल्ली-मेरठ रोड स्थित औद्योगिक क्षेत्र में थी. इस के बाद मोबाइल बंद हो गया था.

जबकि जयकरन के मोबाइल से फिरौती के लिए जो काल की गई थी, वह वहां से करीब 15 किलोमीटर दूर गालंद क्षेत्र से की गई थी. मोबाइल से सिर्फ एक वही काल हुई थी. इस के बाद मोबाइल बंद कर दिया गया था. इस का मतलब अपहर्ता बेहद चालाक थे. उन्होंने फिरौती के लिए न सिर्फ जयकरन के फोन का इस्तेमाल किया था, बल्कि स्थान भी बदल दिया था. संदिग्ध गतिविधियों के चलते पुलिस ने दीपक को रडार पर ले लिया.

उस के मोबाइल की जांच से पता चला कि वह मोदीनगर क्षेत्र का रहने वाला था. जांच के दौरान यह बात भी पता चली कि वह अपनी मां के साथ राजनगर स्थित छोटे बच्चों के रौयल किड्स प्ले स्कूल में रहता था. उस की मां चूंकि स्कूल में ही कर्मचारी थी, इसलिए इस परिवार को स्कूल में रहने के लिए जगह मिली हुई थी.

पुलिस को दीपक के 2 और नजदीकियों के ठिकाने पता चले. इन में एक था संदीप. उस के मोबाइल की लोकेशन जयकरन के मोबाइल की लोकेशन से मैच हो रही थी. संदीप के बारे में पुलिस तत्काल कोई खास जानकारी नहीं जुटा सकी. शक में मजबूती आते ही पुलिस सतर्क हो गई. अगर दीपक ही अपहर्ता था तो यह भी संभव था कि उस ने जयकरन को स्कूल स्थित घर पर ही छिपा कर रखा हो.

पुलिस अधिकारियों ने आपस में विचारविमर्श कर के अविलंब स्कूल में दबिश डालने का निर्णय लिया. एसपी अजयपाल शर्मा के नेतृत्व वाली टीम रौयल किड्स स्कूल पहुंची. उस वक्त दोपहर के 3 बजे थे. स्कूल के बच्चों की छुट्टी हो चुकी थी. अचानक पुलिस को वहां आया देख स्कूल की संचालिका रिचा सूद सकते में आ गईं. पुलिस को दीपक की मां अनीता भी वहीं मिल गईं. दीपक के बारे में पूछताछ करने पर वह बुरी तरह घबरा गईं.

“दीपक कहां है?” पुलिस ने पूछा.

“घर पर.” बताते हुए उस ने स्कूल कैंपस में पीछे की तरफ इशारा कर के बताया. वहां क्वार्टर बना हुआ था. पुलिस दनदनाती हुई वहां पहुंची तो वहां पहुंचते ही वह हुआ, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. घर के अंदर से अचानक गोलियां चलनी शुरू हो गईं.

संभवत: क्वार्टर में मौजूद लोगों को अपनी घेराबंदी का अंदाजा हो गया था. इस पर पुलिसकॢमयों ने भी हथियार थाम कर पोजीशन ले ली. कुछ मिनटों तक दोनों तरफ से रुकरुक कर कई राउंड गोलियां चलीं. इस से आसपास के क्षेत्र में दहशत फैल गई और लोग एकत्र हो गए. पुलिसकॢमयों की निगाहें क्वार्टर पर जमी थीं. तभी ट्रैक सूट पहने एक युवक ने तेजी से क्वार्टर का दरवाजा खोला और बिजली जैसी फुरती से फायरिंग करता हुआ भागा. पुलिस ने उसे चेतावनी दी, “रुक जाओ, वरना गोली मार देंगे.”

युवक ने एक पल के लिए पीछे पलट कर देखा और फिर भागने लगा. इस पर पुलिस ने एक गोली उस के बाएं पैर पर दाग दी. गोली लगते ही वह नीचे गिर गया. उस के गिरते ही पुलिसकॢमयों ने उसे घेर लिया. पुलिस को उम्मीद थी कि वह दीपक होगा, लेकिन उस ने अपना नाम संदीप बताया.

“जयकरन कहां है?” जवाब में उस ने घर की तरफ इशारा कर दिया. पुलिस हथियार तान कर घर के अंदर दाखिल हुई, तो भौचक्की रह गई. पिस्टल से लैश 2 और युवक वहां मौजूद थे. लेकिन वह घबराए हुए थे. जयकरन एक कोने में बैठा थरथर कांप रहा था. उस के हाथपैर बंधे हुए थे.

पुलिस ने दोनों युवकों को गिरफ्त में ले कर जयकरन को बंधनमुक्त कराया. अपहर्ताओं को गिरफ्तार कर के जयकरन को सकुशल बरामद करना पुलिस के लिए बड़ी कामयाबी थी. मौके से गिरफ्तार किए गए दोनों युवकों में एक दीपक व दूसरा उस का छोटा भाई बिट्टू था. उन के कब्जे से पुलिस ने तीन पिस्टल, उन के मोबाइल व जयकरन का मोबाइल भी बरामद कर लिया. बेटे की बरामदगी की सूचना पर विवेक महाजन और उन की पत्नी भी मुठभेड़स्थल पर आ गए. जयकरन बहुत डरासहमा था. इस बीच पुलिस घायल युवक संदीप को अस्पताल ले गई.

पुलिस दीपक व बिट्टू को थाने ले आई. पुलिस ने डरीसहमी स्कूल संचालिका रिचा सूद, दीपक की मां अनीता और उस के सब से छोटे भाई आयुष को भी पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. पुलिस द्वारा गिरफ्तार युवकों व घायल संदीप से विस्तृत पूछताछ की गई तो राह से भटके युवाओं द्वारा रचित अपराध की चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

दीपक का प्लेसमेंट एजेंसी का कमीशन पर आधारित काम था. उस के परिवार में मां अनीता के अलावा उस के छोटे भाई बिट्टू व आयुष थे. दीपक के पिता की वर्षों पहले मृत्यु हो गई थी. अनीता मेहनती और हिम्मती महिला थीं. उन्होंने परिवार को चलाने के लिए छोटीमोटी नौकरियां कर के बेटों को इस उम्मीद में पढ़ायालिखाया कि वे जिम्मेदारियां उठा कर घर को संभाल लेंगे. लेकिन इंसान सोचता कुछ है और होता कुछ और है.

अनीता ने आॢथक तंगियां भी देखी थीं और जमाने की कठोरता भी. वह मोदीनगर की भूपेंद्र कालोनी में रहती थीं. बाद में उन्होंने रौयल किड्स स्कूल में नौकरी कर ली थी. स्कूल परिसर में ही बने क्वार्टर में उन के रहने का भी इंतजाम हो गया तो वह तीनों बेटों के साथ वहां चली आईं. वहां आ कर दीपक ने एक कंपनी में कमीशन के आधार पर काम करना शुरू कर दिया था, लेकिन यह काम उसे छोटा लगता था.