कलयुगी गुरु जो खेलता था बच्चों की इज्ज्त से

फरवरी, 2017 के पहले सप्ताह में जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल से कुछ लोगों ने जो बताया, सुन कर वह दंग रह गए. उन से मिलने आए उन लोगों में से एक अधेड़ ने चिंतित स्वर में कहा था, ‘‘सर, रामगंज इलाके का एक टीचर काफी समय से उन बच्चों का यौनशोषण कर रहा है, जो उस के पास ट्यूशन पढ़ने आते थे. उस ने बच्चों की वीडियो क्लिपिंग भी बना रखी थी. वह बच्चों को धमकी देता था कि अगर उन्होंने किसी को यह बात बताई तो वह वीडियो सार्वजनिक कर देगा.’’

संजय अग्रवाल कुछ कहते, उस के पहले ही उस ने आगे कहा, ‘‘सर, उस टीचर ने वाट्सऐप के एक ग्रुप पर एक अश्लील वीडियो डाल दी है, जो वायरल हो रही है.’’

उस अधेड़ ने इतना कहा था कि उस के साथ आए एक अन्य आदमी ने कहा, ‘‘जिस बच्चे की वीडियो वायरल हो रही है, वह हमारे परिवार का है. उस वीडियो को देख कर बच्चे की मानसिक स्थिति काफी खराब हो गई है. बच्चा घर से बाहर नहीं निकल रहा है. साहब, हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह गए हैं.’’

इस के बाद उस आदमी ने जेब से स्मार्ट फोन निकाल कर कमिश्नर साहब को वह अश्लील वीडियो दिखा दी. वीडियो देख कर संजय अग्रवाल ने पूछा, ‘‘वह टीचर इस तरह की गंदी हरकतें कब से कर रहा है?’’

‘‘सर, हमारे खयाल से यह गंदा खेल करीब 3 सालों से चल रहा है. इस की जानकारी हमें तब हुई, जब इस वीडियो के वायरल होने के बाद बच्चे से पूछा गया.’’ उसी आदमी ने कहा.

संजय अग्रवाल ने उन लोगों से टीचर का नामपता आदि पूछ कर डायरी में नोट करते हुए कहा, ‘‘यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील मामला है. अगर ऐसा हुआ है तो हम ऐसी हैवान मानसिकता वाले टीचर को कतई नहीं छोड़ेंगे. आप लोग थाना रामगंज जा कर रिपोर्ट दर्ज कराइए. मैं रामगंज थानाप्रभारी को आप की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए कहे देता हूं.’’

इसी के साथ उन्होंने इंटरकौम पर पीए से कहा, ‘‘रामगंज एसएचओ से बात कराओ.’’

पीए ने पलभर बाद लाइन मिला कर कहा, ‘‘सर, रामगंज थानाप्रभारी लाइन पर हैं.’’

इस के बाद संजय अग्रवाल ने थाना रामगंज के थानाप्रभारी से कहा, ‘‘कुछ लोग आप के पास जा रहे हैं. इन की रिपोर्ट दर्ज कर के तुरंत काररवाई करें और मुझे रिपोर्ट करें.’’

संजय अग्रवाल ने उन लोगों को अपना मोबाइल नंबर दे कर थाना रामगंज भेज दिया और कहा कि अगर कोई परेशानी हो तो वे सीधे उन से बात कर लें. उस पीडि़त बच्चे के चाचा ने थाना रामगंज में बच्चों का यौनशोषण करने वाले टीचर रमीज के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने यह मामला पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज कर लिया. यह 7 फरवरी, 2017 की बात है.

रिपोर्ट दर्ज कर के थाना रामगंज के थानाप्रभारी अशोक चौहान ने इस बात की जानकारी पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल को दी तो मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त उत्तर (प्रथम) समीर कुमार दुबे, सहायक पुलिस आयुक्त रामगंज बाघ सिंह राठौड़ तथा थानाप्रभारी अशोक चौहान के नेतृत्व में 6 पुलिस टीमें बना कर आरोपी टीचर को गिरफ्तार करने का आदेश दिया.

पुलिस ने आरोपी टीचर रमीज के घर दबिश दी तो वही नहीं, उस का पूरा परिवार घर से फरार मिला. घर पर ताला लगा था. पड़ोसी भी रमीज तथा उस के घर वालों के बारे में कुछ नहीं बता सके. इस से पुलिस ने यही अनुमान लगाया कि वाट्सऐप पर वीडियो के वायरल होने के बाद रमीज और उस के घर वाले फरार हो गए हैं.

रमीज की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने उस के साथी टीचरों तथा अन्य लोगों से पूछताछ की. इस के अलावा पीडि़त बच्चे से भी मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई. शुरुआती जांच में पता चला कि टीचर रमीज ने कई अन्य बच्चों को भी उसी बच्चे की तरह शिकार बनाया था. उन बच्चों की भी रमीज ने वीडियो क्लिपिंग बना रखी थी. इसी के साथ यह भी पता चला कि उन्हीं वीडियो क्लिपिंग्स की बदौलत रमीज बच्चों से पैसे भी ऐंठता था.

मामला बेहद गंभीर था. इस तरह का शर्मनाक और हैवानियत भरा काम मानसिक रूप से विकृत आदमी ही कर सकता है. रमीज ने गुरु और शिष्य के रिश्ते को तारतार किया था, इसलिए पुलिस ऐसे टीचर को पकड़ने के लिए जीजान से जुट गई.

आखिर 9 फरवरी की शाम पुलिस ने उसे जयपुर से ही दिल्ली बाइपास रोड से पकड़ लिया. रमीज को थाना रामगंज ला कर सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्कूली बच्चों के यौनशोषण का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस पूछताछ में बच्चों के यौनशोषण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

26 साल के रमीज का पूरा नाम रमीज राजा था. एमए, बीएड रमीज सन 2011 में जयपुर के रामगंज के 12वीं कक्षा तक के एक नामचीन प्राइवेट स्कूल में टीचर के रूप में नियुक्त हुआ तो उसे जल्दी ही स्कूल का वाइस प्रिंसिपल बना दिया गया था. कोएजुकेशन वाले इस स्कूल में वह अंगरेजी पढ़ाता था.

स्कूल में पढ़ाते हुए रमीज बच्चों को फेल करने की धमकी दे कर ट्यूशन पढ़ने का दबाव डालता था. फेल होने के डर से बच्चे उस के घर ट्यूशन पढ़ने आते थे. रामगंज में रहने वाला रमीज बच्चों को अपने घर के एक कमरे में अंदर से दरवाजा बंद कर के ट्यूशन पढ़ाता था. कुछ देर पढ़ाने के बाद वह उन्हें अश्लील वीडियो दिखाता था. इस के बाद वह बच्चों से कुकर्म करता था. खासतौर से वह 5 से 15 साल तक के बच्चों को अपना शिकार बनाता था.

पिछले 4-5 सालों से रमीज यह घृणित काम कर रहा था. वह बच्चे का यौनशोषण करते हुए मोबाइल फोन से वीडियो बना लेता था. इस के बाद वह वीडियो दिखा कर उसे सार्वजनिक करने की धमकी दे कर बच्चों का यौनशोषण तो करता ही था, साथ ही पैसे भी मंगवाता था. यही नहीं, वह उस बच्चे से दूसरे बच्चे के साथ यौनशोषण की वीडियो भी बनवाता था. बदनामी के डर से कई बच्चों ने घर से पैसे चोरी कर के उसे दिए तो कुछ ने सामान बेच कर दिए.

जनवरी, 2017 में कुछ पीडि़त बच्चों ने रमीज के कंप्यूटर की वह हार्डडिस्क निकाल ली, जिस में उन के कारनामे कैद थे. उस हार्डडिस्क को बच्चों ने स्कूल प्रशासन को सौंप दिया. स्कूल प्रशासन ने हार्डडिस्क में कैद उस के कारनामे को देख कर उसे 23 जनवरी को स्कूल से निकाल दिया. उन्होंने इस मामले की पुलिस को सूचना देने के बजाए दबा दिया.

रमीज की हरकतों से परेशान छात्र कई दिनों तक स्कूल प्रशासन से उस की शिकायतें करते रहे, लेकिन स्कूल प्रशासन ने उस के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की. तब कुछ बच्चे अपने घर वालों के साथ घोड़ा निकास रोड स्थित रमीज के घर पहुंचे, जहां इस बात को ले कर रमीज के घर वालों से उन लोगों का झगड़ा हो गया.

पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी गई तो थाना रामगंज पुलिस मौके पर पहुंची. इस बीच रमीज भाग गया. पुलिस मामला शांत करा कर सभी को थाने ले आई. बच्चों और उन के घर वालों ने मामला दर्ज कराना चाहा, पर पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया. जांच की बात कह कर सभी को घर भेज दिया गया. इस के बाद लोग पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल से मिले थे.

जांच में पता चला है कि इस से पहले रमीज को 2 स्कूलों से निकाला जा चुका था. उस के पिता प्रौपर्टी डीलिंग और नगीनों का काम करते थे. रमीज की गिरफ्तारी के बाद कई बच्चों ने हिम्मत कर के अपने घर वालों से अपने साथ हुए कुकर्म के बारे में बताया तो वे पुलिस थाने पहुंचे और रमीज के कुकृत्य की शिकायत की. 10 फरवरी की रात उस के खिलाफ दूसरा मुकदमा दर्ज किया गया था.

पुलिस ने रमीज से एक मोबाइल फोन और 2 पैन ड्राइव बरामद किए. उस के मोबाइल फोन से 76 क्लिपिंग्स बरामद हुई थीं. इस से पता चला है कि उस ने 5 से 15 साल के करीब 25 बच्चों का यौनशोषण किया था. उन में से कई बच्चे अब वयस्क होने वाले हैं. वैसे उस ने 11 बच्चों के यौनशोषण की बात स्वीकार की थी.

रमीज के मोबाइल में मिली क्लिपिंग्स देखने से साफ लग रहा था कि वे किसी अन्य व्यक्ति की मदद से बनाई गई थीं. ऐसे में पुलिस को इस बात की भी आशंका है कि रमीज का संबंध किसी पोर्नसाइट से हो सकता है. पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि वह अश्लील क्लिपिंग्स बेचता तो नहीं था.

इस मामले में पुलिस की ओर से कोताही बरतने और स्कूल प्रशासन की ओर से मामला दबाए जाने के विरोध में 11 फरवरी को स्कूली बच्चों के घर वालों ने अन्य लोगों के साथ मिल कर थाना रामगंज पर प्रदर्शन किया. इन लोगों का आरोप था कि बच्चों के यौनशोषण का खुलासा होने के बाद भी पुलिस ने समय पर काररवाई नहीं की थी, इसलिए आरोपी टीचर ने तमाम सबूत नष्ट कर दिए हैं.

प्रदर्शनकारी मांग कर रहे थे कि अब इस मामले की जांच एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. से कराई जाए. उन का कहना था कि बच्चों ने जनवरी में ही रमीज के कंप्यूटर से हार्डडिस्क निकाल कर स्कूल प्रशासन को सौंप दी थी, लेकिन स्कूल प्रबंधन ने मामले की सूचना पुलिस या बच्चों के घर वालों को देने के बजाए मामले को दबा दिया था. स्कूल से निकाले जाने के बाद 20 दिनों में आरोपी रमीज ने सबूतों को नष्ट कर दिया.

लोगों के आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने बच्चों का यौनशोषण करने वाले टीचर रमीज की करतूतों को छिपाने के मामले में 11 फरवरी को स्कूल के डायरेक्टर सरवर आलम को गिरफ्तार कर लिया था. इसी के साथ रमीज के कंप्यूटर से बच्चों ने जो हार्डडिस्क निकाल कर स्कूल प्रशासन को सौंपी थी, उसे बरामद करने के साथ स्कूल से कंप्यूटर, सीपीयू और डीवीडी बरामद की गई थी.

पुलिस ने रमीज से बरामद मोबाइल, पैन ड्राइव तथा स्कूल से बरामद हार्डडिस्क और स्कूल से जब्त कंप्यूटर, सीपीयू और डीवीडी को जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया. पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि रमीज की करतूतों की जानकारी उस के घर वालों को थी या नहीं? इस बारे में पीडि़त बच्चों का कहना था कि रमीज के घर वालों को उस की इस करतूत की जानकारी थी.

पुलिस ने रमीज को कई बार रिमांड पर ले कर पूछताछ की. अंत में 20 फरवरी, 2017 को अदालत ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया था. डायरेक्टर सरवर आलम को भी पुलिस ने 14 फरवरी तक रिमांड पर रखा था. फिर उसी दिन उसे जमानत मिल गई थी.

इस मामले में आरोपी रमीज और सरवर आलम को कानून क्या सजा देगा, यह तो समय बताएगा. लेकिन चिंता की बात यह है कि जिस टीचर पर भरोसा कर के लोग अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए उसे सौंप देते हैं, अगर वही इस तरह की हरकत करे तो लोग बच्चों को कहां ले जाएं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बच्चे हों या औरतें, बलात्कार क्यों?

8 सितंबर, 2017 की सुबह भोंडसी, गुड़गांव में श्याम कुंज इलाके की गली नंबर 2 में रहने वाले वरुण ठाकुर अपने बच्चों प्रद्युम्न और विधि को सुबह के 7 बज कर 50 मिनट पर रयान इंटरनैशनल स्कूल के गेट पर छोड़ गए थे. प्रद्युम्न दूसरी क्लास में पढ़ता था, जबकि विधि 5वीं क्लास में. 8 बजे स्कूल का एक माली दौड़ कर प्रद्युम्न की टीचर अंजू डुडेजा के पास गया और उन का हाथ पकड़ कर खींचते हुए बोला, ‘‘देखो,?टौयलेट में क्या हो गया है…’’

अंजू डुडेजा जब वहां पहुंचीं, तो उन्होंने देखा कि टौयलेट के बाहर गैलरी की दीवार के पास प्रद्युम्न का स्कूल बैग पड़ा था और टौयलेट के भीतर वह लहूलुहान हालत में. 8 बज कर 10 मिनट पर?स्कूल मैनेजमैंट ने प्रद्युम्न के पिता को उस की तबीयत खराब होने की सूचना दी. इसी बीच प्रद्युम्न को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक उस की मौत हो चुकी थी.

इस हत्याकांड में बस कंडक्टर को जिम्मेदार ठहराया गया. उस ने बच्चे के साथ यौन शोषण करने की कोशिश की थी या किसी और को बचाने के लिए बस कंडक्टर को बलि का बकरा बनाया जा रहा है, ऐसे सवालों के जवाब तो समय आने पर ही पता चलेंगे, लेकिन सब से अहम बात यह है कि एक परिवार ने अपने मासूम बच्चे को खो दिया, वह भी इस तरह से कि जीतेजी तो उन के दिलोदिमाग से प्रद्युम्न की यादें नहीं जा पाएंगी.

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प्रद्युम्न के पिता ने इस हत्याकांड की तह तक पहुंचने के लिए कानून का सहारा लिया और सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए खुद सभी प्राइवेट स्कूलों में सिक्योरिटी की जांच करने का फैसला लिया. लेकिन सवाल उठता?है कि ऐसी नौबत ही क्यों आती है कि कोई बालिग आदमी किसी बच्चे को अपनी हवस का शिकार बनाता है, क्योंकि इस वारदात के तुरंत बाद दिल्ली के एक निजी स्कूल में 5 साल की एक बच्ची के साथ रेप की वारदात सामने आई थी.

गुड़गांव के ही एक पड़ोसी जिले फरीदाबाद में भी ऐसा ही शर्मनाक वाकिआ हो गया था. नैशनल हाईवे के पास सीकरी गांव के सरकारी स्कूल में 7वीं क्लास में पढ़ने वाले एक बच्चे को 24 अगस्त, 2017 को सीकरी गांव का रहने वाला 19 साला सूरज अपने साथ स्कूल के पीछे उगी झाडि़यों में ले गया था. वह उस के साथ गलत काम करना चाहता था. बच्चे ने विरोध किया, तो सूरज ने उस का गला दबाया और जबरदस्ती की. बाद में पहचान मिटाने के लिए पत्थर से वार कर के बच्चे का चेहरा कुचल दिया.

हाल ही में मुंबई में अपने सौतेले पिता द्वारा कथित तौर पर बलात्कार किए जाने के बाद पेट से हुई 12 साल की एक लड़की ने एक सरकारी अस्पताल में बच्चे को जन्म दिया. आरोपी को इसी साल जुलाई महीने में गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने बताया कि लड़की के पेट से होने के बारे में बहुत देर से, तकरीबन 7 महीने बाद पता चला था. लड़की ने अपनी मां को बताया था कि उस के सौतेले पिता ने उस के साथ कथित तौर पर कई बार बलात्कार किया था.

बड़े दुख की बात है कि भारत में साल 2010 से साल 2015 तक यानी 5 साल में ही बच्चों के बलात्कार के मामलों में 151 फीसदी की शर्मनाक बढ़ोतरी हुई थी. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2010 में दर्ज 5,484 मामलों से बढ़ कर यह तादाद साल 2014 में 13,366 हो गई थी. इस के अलावा बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम (पोक्सो ऐक्ट) के तहत देशभर में ऐसे 8,904 मामले दर्ज किए गए.

साल 2013 की बात है. छत्तीसगढ़ राज्य के कांकेर जिले में कन्या छात्रावास में प्राइमरी क्लास की 9 आदिवासी छात्राओं के साथ यौन शोषण का एक मामला सामने आया था. इस वारदात की जानकारी मिलते ही पुलिस ने छात्रावास के चौकीदार दीनाराम और शिक्षाकर्मी मन्नूराम गोटर को गिरफ्तार कर लिया था. तब छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता व सांसद रमेश बैस ने सवाल उठाया था कि बराबरी या बड़े लोगों के साथ बलात्कार समझ में आता है, लेकिन बच्चों के साथ ऐसा अपराध क्यों होता?है?

औरतें और बच्चे हो रहे  शिकार… 

सच तो यह है कि औरतों और बच्चों से बलात्कार करने का इतिहास बहुत पुराना है. जब कभी राजामहाराजा किसी पड़ोसी देश को लड़ाई में जीतते थे, तो हारे हुए राजा की जनता में से औरतों के साथ अपने सैनिकों को बलात्कार करने की छूट दे देते थे. वे सैनिक बच्चियों और औरतों में कोई फर्क नहीं करते थे. जो औरतें अपनी इज्जत बचाना चाहती थीं, उन्हें खुदकुशी करना सब से आसान रास्ता लगता था.

भारत और पाकिस्तान के बंटवारे में भी न जाने कितनी औरतों और बच्चियों ने अपनी इज्जत गंवाई थी. वैसे, जब हवस हावी होती है, तो फिर छोटे लड़के भी बलात्कारी के शिकार बन जाते हैं. भारत में जिन राज्यों में सेना की चलती है, वहां की लोकल औरतों की सब से बड़ी समस्या यह रहती है कि उन की व उन के बच्चों की इज्जत सुरक्षित नहीं है. जम्मू व कश्मीर में बहुत से सैनिकों पर बलात्कार करने के आरोप लगते रहे हैं.

फिलीपींस देश के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते ने तो एक चौंकाने वाला बयान दे डाला था. जब वे दक्षिणी फिलीपींस में मार्शल ला लगाने के 3 दिन बाद सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए वहां पहुंचे, तो उन्होंने कहा कि सैनिकों को 3 औरतों के साथ बलात्कार करने की इजाजत है.

ऐसी क्या वजह?है कि कोई राष्ट्रपति अपने ही देश की औरतों के साथ बलात्कार करने की इजाजत देता है? क्या कोई सैनिक जब उन के आदेश को मानेगा, तो वह सामने औरत है या बच्ची, इस बात का ध्यान रखेगा? चलो, एक बालिग लड़की या औरत के साथ जबरदस्ती करने की बात समझ में आती?है, हालांकि यह भी गलत?है, लेकिन किसी बच्ची को लहूलुहान करने में किसी मर्द को कौन सा सुख हासिल होता है?

जब कोई मर्द किसी औरत या बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाता है, तब उस की सोच क्या रहती?है? भारत की बात करें, तो यहां ऐसा मर्दवादी समाज है, जहां मर्दों को अपना हुक्म चलाने की आदत होती है. वे चाहते हैं कि औरतें उन के पैरों की जूती बन कर रहें. जब कोई बाहरी औरत उन की बात नहीं मानती है, तो वे उस की इज्जत से खेल कर उस के अहम को चोट पहुंचाते?हैं. जब औरत हाथ नहीं आती, तो बच्ची ही सही.

क्या आप ने कभी सोचा है कि जितनी भी गालियां बनी हैं, उन में औरतों के नाजुक अंगों को ही क्यों निशाना बनाया जाता है? इस में भी मर्दवादी सोच ही पहले नंबर पर रहती है. कुछ लोगों के दिमाग में 24 घंटे हवस सवार रहती है. वे जब अपनी जिस्मानी जरूरत घर में बीवी से पूरी नहीं कर पाते?हैं, तो आसपड़ोस में झांकते हैं. जब कभी कोई बड़ी औरत फंस जाए तो ठीक, नहीं तो कम उम्र की बच्ची को भी नहीं छोड़ते हैं. फिर उन के लिए यह बात कोई माने नहीं रखती है कि मजा मिला या नहीं.

जब किसी बड़े संस्थान या मैट्रो शहर में ऐसे बलात्कार होते हैं, तो अपराध सामने आ जाते हैं, लेकिन छोटे इलाकों में तो पता भी नहीं चल पाता है. समाज का डर दिखा कर घर वाले ही पीडि़त को चुप करा देते हैं, जिस से बलात्कारी के हौसले बढ़ जाते हैं. लेकिन बलात्कारी खासकर छोटे बच्चों को शिकार बनाने वाले समाज में खुले घूमने नहीं चाहिए? क्योंकि वे अपनी घिनौनी हरकत से पीडि़त बच्चे के दिलोदिमाग पर ऐसी काली छाप छोड़ देते हैं, जो उस के भविष्य पर बुरा असर डालती है.

ऐसा पीडि़त बच्चा बड़ा हो कर अपराधी बन सकता है. यह सभ्य समाज के लिए कतई सही नहीं. लेकिन एक कड़वा सच यह भी है कि बलात्कारी आतंकवादियों के ‘स्लीपर सैल’ की तरह समाज में ऐसे घुलेमिले होते?हैं कि जब तक वे पकड़ में न आएं, तब तक उन की पहचान करना मुश्किल होता है. इस के लिए कानून से ज्यादा लोगों की जागरूकता काम आती है.

सैक्स ऐजुकेशन जरूरी…

बच्चों के हकों के प्रति लोगों को जागरूक करने वाले और नोबल अवार्ड विजेता कैलाश सत्यार्थी का मानना है कि बच्चे सैक्स हिंसा का शिकार न बनें, इस के लिए पूरे समाज को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा. साथ ही, स्कूलों में सैक्स ऐजुकेशन से बच्चों को इस जानकारी से रूबरू कराना चाहिए.

कैलाश सत्यार्थी की सब से बड़ी चिंता यह है कि बच्चों को उन के?घरों व स्कूलों में मर्यादा, इज्जत, परंपरा वगैरह की दुहाई दे कर इस तरह के बोल्ड मामलों पर बोलने ही नहीं दिया जाता है. अगर वे कुछ पूछना चाहते हैं, तो उन्हें ‘गंदी बात’ कह कर वहीं रोक दिया जाता है. अगर कोई बच्चा यौन शोषण का शिकार होता है, तो उस के जिस्मानी घाव तो वक्त के साथ फिर भी भर जाते?हैं, पर मन पर लगी चोट उम्रभर दर्द देती है. हिंदी फिल्म ‘हाईवे’ की हीरोइन आलिया भट्ट के साथ बचपन में उन्हीं के परिवार के एक सदस्य ने यौन शोषण किया था, जिस की तकलीफ से वे पूरी फिल्म में जूझती दिखाई देती हैं.

जहां तक इस समस्या से जुड़े कानून की बात?है, तो हमारे यहां बाल यौन शोषण को ले कर पोक्सो जैसे कानून हैं तो, पर उन का भी ठीक ढंग से पालन नहीं किया जाता है. पिछले साल इस कानून के तहत तकरीबन 15 हजार केस दर्ज हुए थे, जिन में से महज 4 फीसदी मामलों में सजा हो पाई. 6 फीसदी आरोपी बरी हो गए और बाकी 90 फीसदी मामले अदालत में अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. ऐसी ही लचर चाल रही, तो उन का फैसला आने में कई साल लग जाएंगे.

बच्चों को करें होशियार…

सच तो यह है कि जब कोई छोटा बच्चा यौन शोषण का शिकार होता है, तो उस में इतनी समझ नहीं होती कि उस के साथ हो क्या रहा है. अपराधी उन की इसी बालबुद्धि का फायदा उठाते हैं. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि बच्चों को उन की सिक्योरिटी के मद्देनजर जानकारी न दी जाए. कभीकभी कुछ टिप्स ऐसे होते हैं, जो मौके पर काम कर जाते हैं या फिर बच्चे को उस के साथ कोई अनहोनी होने का डर हो तो वह वक्त रहते किसी अपने को बता सकता है. कुछ जरूरी बातें इस तरह हैं.

* मातापिता बच्चे को अपना दोस्त समझें, ताकि वह अपने मन की बात खुल कर कह सके.

* हालांकि बहुत बार जानकार आदमी भी बच्चे के साथ यौन शोषण कर सकता है, लेकिन फिर भी बच्चों को किसी के गलत तरीके से उन के बदन के खास हिस्सों को छूने के प्रति आगाह कर देना चाहिए.

* अगर बच्चा डराडरा सा रहता है या चुप रहता है, तो खुल कर इस की वजह पूछें. आप की बात नहीं सुनता है, तो किसी काउंसलर की मदद भी ली जा सकती है.

* स्कूल में टीचर का भी फर्ज बनता है कि वह अपने हर स्टूडैंट पर कड़ी नजर रखे. कुछ भी गलत होने की खबर लगे, तो फौरन मांबाप को इस की जानकारी दी जाए.

* अगर बच्चे के साथ कुछ गलत हो भी रहा है, तो वह शर्मिंदगी महसूस न करे, बल्कि अपने मातापिता को जानकारी दे.

कानपुर में मांबेटी को जिंदा जलाया, अफसर बने भस्मासुर

सनकियों की साजिश : हत्या की अनोखी कहानी

ब्रिटेन के पूर्वी क्षेत्र लिंकनशायर स्थित उपनगरीय इलाके स्पालडिंग में एक पौश कालोनी है डा. वसन एवेन्यू. इसी कालोनी में स्थित एक 2 मंजिले मकान से 15 अप्रैल, 2016 की दोपहर को मांबेटी की खून से लथपथ लाशें मिलने से कालोनी में सनसनी फैल गई थी. लोगों को इस बात पर हैरानी हो रही थी कि किस ने मांबेटी की हत्या कर दी?

उन्हें तब और हैरानी हुई, जब पुलिस ने मकान से एक किशोर प्रेमी जोड़े को हिरासत में लिया. पुलिस को पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि मरने वाली महिला 49 वर्षीया एलिजाबेथ एडवर्ट उर्फ लिज और उन की 13 साल की बेटी केटी थी, जो एक स्कूल में खाना परोसती थी. मांबेटी इस मकान में लंबे समय से रह रही थीं.

लिज के पति पीटर एडवर्ट उस से अलग रहते थे. उन की विवाहिता बड़ी बेटी मैरी काट्टिंघम भी दूसरे इलाके में अपने परिवार के साथ रहती थी. 15 अप्रैल, 2016 को जब पुलिस उस 2 मंजिला मकान का दरवाजा तोड़ कर अंदर दाखिल हुई तो निचले तल पर एक किशोर जोड़ा गद्दे पर आराम फरमाते मिला. पुलिस ने उस से पूछा, ‘‘एलिजाबेथ कहां है?’’

लड़के के साथ मौजूद लड़की ने बगैर किसी हड़बड़ाहट और डर के हाथ से सीढि़यों की तरफ इशारा करते हुए धीमे से कहा, ‘‘ऊपर.’’

पुलिस ने लड़के से पूछा, ‘‘उन के साथ क्या हुआ है?’’

लड़के ने भी लड़की की तरह शांत भाव से कहा, ‘‘ऊपर जा कर देख क्यों नहीं लेते?’’

पुलिस को उन का व्यवहार कुछ अटपटा सा लगा. कुछ पुलिसकर्मी सीढि़यों के जरिए ऊपरी मंजिल पर पहुंचे तो वहां एलिजाबेथ उर्फ लिज और उन की बेटी केटी की लाश उन के कमरों में पड़ी मिलीं. लिज के शरीर पर तेजधार हथियार के गहरे निशान थे, जो गले के अतिरिक्त शरीर के दूसरे ऊपरी हिस्से पर भी थे. इसी तरह के जख्म केटी के भी शरीर पर थे. ऐसा लग रहा था, जैसे उन पर हत्यारे ने चाकू से ताबड़तोड़ वार किए हों.

पुलिस ने मकान में मौजूद लड़की और लड़के को हिरासत में ले लिया था. दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने मां बेटी की हत्या का अपराध आसानी से स्वीकार कर लिया था. वह पुलिस से इतने इत्मीनान से बात कर रहे थे, जैसे इन्होंने कोई अपराध किया ही न हो. उन्होंने अपने बारे में बताया कि उन का इरादा नींद की ज्यादा गोलियां खा कर आत्महत्या करने का था.

पुलिस ने उन के पास से एक डायरी बरामद की थी, जिस में उन्होंने एक स्यूसाइड नोट भी लिखा था. उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की थी कि खुदकुशी के बाद उन की लाशों को जला कर उस की राख उन के पसंदीदा जगहों पर बिखेर दी जाए. लिखे गए कुछ अन्य वाक्यों से लग रहा था कि उन्हें न तो जीवन से प्यार था और न ही भविष्य की कोई योजना थी. न जीने की तमन्ना थी और न ही कोई महत्त्वाकांक्षा. दोनों लाशों को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया था कि उन की हत्या धारदार चाकू से गला रेत कर की गई थी.

पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले कर अदालत में उन के बयान कराए तो लड़के ने तो अपना अपराध स्वीकार कर लिया, लेकिन लड़की हत्या में शामिल होने से इनकार कर रही थी. वारदात के समय उन की उम्र महज 14 साल थी. पुलिस के सामने लड़की की भूमिका काफी अस्पष्ट होने से तहकीकात करना एक चुनौती बन गई थी.

पुलिस को उन पर जघन्य हत्या का दोष लगाने के साथसाथ उन के नाबालिग होने का भी खयाल रखना था. उन के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उन की पहचान भी पुलिस छिपा रही थी. जांच करने वाली टीम ने पाया था कि दोनों एक किस्म के मनोरोगी और जीवन से हताश प्रेमीयुगल थे. उन की हरकतें जितनी बचकानी थीं, उतने ही वे इस उम्र में ही सब कुछ हासिल करने की तमन्ना रखते थे.

इस मनोविज्ञान की गुत्थी के साथ दोहरे हत्याकांड को सुलझाने में जासूसी और फोरैंसिक जांचकर्ताओं की खास टीम के अतिरिक्त मनोचिकित्सक तक की मदद ली गई. पुलिस ने छानबीन में पाया कि लिज और आरोपी लड़की के बीव किसी बात को ले कर कोई पुराना विवाद चल रहा था.

उसी विवाद ने उस लड़की को इस कदर सनकी बना दिया था कि उस ने मांबेटी की हत्या की साजिश रच डाली. उस ने अपने साथ पढ़ने वाले प्रेमी को हत्या के लिए राजी कर लिया. इस संबंध में कुल 12 विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों में 7 पुरुष और 5 महिलाओं द्वारा जुटाए गए तथ्यों और तर्कों की मदद से मामले की तह तक पहुंचना संभव हो सका था.

पुलिस की प्राथमिक रिपोर्ट और अदालत में दिए गए उन के बयानों के आधार पर लड़के को 8 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में ले कर ट्रायल पर भेज दिया गया था. बाद में पूरी तहकीकात की जिम्मेदारी मुख्य जांचकर्ता इंसपेक्टर मार्टिन हैल्वे को सौंप दी गई थी. जांच जब आगे बढ़ी तो नाबालिग लडकी को भी आरोपी बना दिया गया. इस के बाद लड़की के बयान के आधार पर हत्याओं की गुत्थी परतदरपरत उधड़ने लगी. यह जान कर सभी को हैरानी हुई कि हत्याएं बहुत ही साधारण अपमान का बदला लेने के लिए की गई थीं. इस से पहले हम उन परिस्थितियों पर गौर करना चाहेंगे, जिन की वजह से हत्यारा लडका और उस की प्रेमिका कू्रर बनी.

बात सितंबर, 2013 की है. हायर सैकेंडरी स्कूल की एक 12 वर्षीया छात्रा एक दिन अपनी कक्षा में काफी आक्रामक थी. उस ने स्कूल के अनुशासन को नजरअंदाज करते हुए आक्रोश में एक कुरसी इस कदर धकेली कि उस से एक सहपाठी छात्र को जोर की टक्कर लग गई. इस से लड़का तमतमाया हुआ उस पर उबल पड़ा.

लड़की साथियों के बीच तमाशा बन गई. स्थिति को भांप कर उस ने झट से सौरी बोल दिया. लड़का भी दूसरे सहपाठियों के समझानेबुझाने पर शांत हो गया. बात आईगई हो गई, लेकिन इस घटना ने दोनों के बीच आकर्षण के बीज अंकुरित कर दिए. बाद में उन के बीच दोस्ती हो गई, जो जल्द ही एकदूसरे पर अथाह विश्वास करने वाली गहराई तक पहुंच गई.

इसी बीच वे एकदूसरे से प्रेम करने लगे, जिस का अहसास उन्हें जल्द हो गया. वे साथसाथ घूमनेफिरने लगे. हालांकि लड़का जितना गंभीर और शांत स्वभाव का था, लड़की उतनी ही चुलबुली और अपनी मनमर्जी की मालकिन थी. अपनी बातें मनवाना और इच्छा पूरी करना वह भलीभांति जानती थी. आगे बढ़े कदम को पीछे हटाना तो जैसे उस ने सीखा ही नहीं था. यही कारण था कि जल्द ही उस ने लड़के को अपने रंग में रंग लिया. उन के बीच प्रेम पनपा तो वे पढ़ाई के प्रति असहज और लापरवाह हो गए. स्कूल परिसर में उन की अनुशासनहीनता की कई शिकायतें आईं. जिस ने भी उन्हें समझाने की कोशिश की, वे उस से उलझ पडे़. लड़का भी अपनी प्रेमिका के प्रभाव में आ कर आक्रामक तेवर वाला बन गया.

यही वजह थी कि एक दिन लड़का अनियंत्रित हिंसक प्रवृत्ति दिखाने और अनुशासनहीनता के आरोप में स्कूल से निकाल दिया गया. यह बात लड़की के दिल में चुभ गई, क्योंकि उसे लड़के से मिलनेजुलने में परेशानी होने लगी थी. लड़की 6 साल की उम्र से ही अपने परिवार के लिए सिरदर्द बनी रहती थी. तब उस के असामान्य व्यवहार को देखते हुए उस का मनोचिकित्सक से इलाज भी कराया गया था. डाक्टर ने उस की अच्छी देखभाल की सलाह दी थी.

हत्याकांड की घटना से ठीक एक साल पहले भी उसे मानसिक उपचार के लिए स्थानीय मानसिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र में भरती कराया गया था. कुछ महीने तक उस का उपचार चला. उस में सुधार होने के बावजूद मनोचिकित्सक ने उस की मनोस्थिति के स्तर को 10 में से 2 अंक दे कर चिंता का विषय बताया था. अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उस की अच्छी देखभाल और विशेषज्ञ की मदद लेने की सलाह दी गई. उस के पिता वेल्डर थे. वह ड्रग लेता था और इस कारण वह पत्नी और 2 साल की बेटी को छोड़ कर कहीं चला गया था. बड़ी होने पर वही लड़की अकेलेपन की भावना से भर गई थी, जिस से उस में आक्रामक तेवर आ गए थे.

लड़के की परवरिश भी असामान्य तरीके से हुई थी और उस का बचपन काफी अशांत किस्म का था. उस की मां की आकस्मिक मौत हो गई थी. तब वह मात्र 5 साल का था और उस ने अपने पिता को घर में रहते हुए शायद ही कभी भरी नजरों से देखा हो. उस के पिता हमेशा काम के सिलसिले में यात्राओं पर रहते थे, जिस से उस का बचपन भी एकाकीपन में गुजरा था. अदालत में केस चला तो वकीलों ने भी इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि के 2 मुख्य कारणों की ओर संकेत किए.

पहले कारण में सामाजिक और पारिवारिक संस्कार के साथ मानवीयता को पोषित करने वाले मनोवैज्ञानिक विकास की समस्या को रेखांकित किया. जबकि दूसरा कारण नाबालिग लड़की के मन में गहराई तक बैठ चुकी डिनर लेडी लिज के साथ पुराने विवाद से संबंधित था.

पूछताछ में आरोपी लड़की ने बताया था कि एक बार उस की लिज के साथ जबरदस्त बहस हो गई थी. लड़की का व्यवहार और स्कूल में अनुशासनहीनता लिज को पसंद नहीं थी. उस ने उसे कड़ी फटकार लगाई थी. तभी लड़की ने खुद को बेहद अपमानित महसूस किया था और उस ने लिज से हर कीमत पर बदला लेने की ठान ली थी.

जांच और हत्यारे द्वारा अदालत में दिए गए बयान के मुताबिक प्रेमी युगल ने हत्या की योजना मैकडोनाल्ड के एक आउटलेट में बैठ कर 11 अप्रैल, 2016 को बनाई थी. उसी दिन उन्होंने हत्या के बाद खुदकुशी करने की शपथ भी ली थी. योजना को अंजाम देने के लिए दोनों 13 अप्रैल की रात को लिज के घर के एक अलग हिस्से में चोर की भांति जा घुसे थे.

लड़के ने पीठ पर टांगने वाले बैग में एक टीशर्ट में लपेट कर तेज धार के 4 चाकू रख लिए थे. उन में 8 इंच के 2 चाकुओं में काला हत्था लगा था, जबकि 2 मध्यम आकार के चाकू थे. लड़की ने बताया था कि उस का प्रेमी जब लिज की हत्या को अंजाम दे रहा था, तब अपने बचाव के लिए वह काफी संघर्ष कर रही थी. वह शोर मचा रही थी.

लड़के ने उस की आवाज को रोकने के लिए चाकू से गले की नली काट दी ताकि दूसरे कमरे में सो रही उस की बेटी तक उस की आवाज न पहुंचे. लिज की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की बेटी केटी को भी मौत की नींद सुला दिया था. विशेषज्ञों ने इसे उस की अपरिपक्व मानसिकता और मन में दबे आक्रोश को दर्शाने वाला मनोविज्ञान बताया था.

उस के बारे में जांच करने वालों ने पाया था कि उसे बचपन से ही किसी भी तरह की रोकटोक पसंद नहीं थी. वह हमेशा अपनी मनमरजी की मालकिन बनी रहना चाहती थी. वह लिज से बदला लेना चाहती थी. इस के लिए उस ने अपने सहपाठी को उकसाया. जांच के बाद लड़की भी हत्या की आरोपी करार दे दी गई थी. जबकि पक्ष के वकीलों द्वारा उसे विक्षिप्त और सनकी साबित करने की भी कोशिश की गई थी.

इस के बावजूद फोरैंसिक मनोचिकित्सक के एक सलाहकार डा. फिलिप जोसेफ ने अदालत में तर्क दिया था कि उस के दावे के मुताबिक वे मानसिक विकार से पीडि़त नहीं थे. अगर वे अपने मन में जहरीले रिश्ते, भावना और विचार नहीं रखते तो बहुत संभव था कि ये हत्याएं नहीं होतीं. पर कुटिल मन वाले 2 व्यक्ति एक साथ होते हैं, तब ऐसी घटनाओं को बढ़ावा मिलता है.

अदालत ने विभिन्न बयानों के आधार पर पाया था कि लड़की और लड़का सितंबर, 2013 से गाहेबगाहे मिलतेजुलते रहे, लेकिन मई 2015 तक उन के संबंधों में मधुरता नहीं बन पाई थी. इस दौरान वे बातबात पर उलझते भी रहते थे, जो एक तरह से नाबालिगों में होता है. उन के व्यवहार में हमेशा आक्रोश बना रहता था. लड़की ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा था कि उसी ने लड़के को हत्या के लिए प्रेरित किया था.

उस ने यह भी माना था कि लड़के के साथ उस ने केवल एक बार यौनसंबंध बनाया था, वह भी हत्या के बाद. उस का कहना था कि हत्या की रात वह उस से बहुत प्रभावित हुई थी, क्योंकि उस ने उस की इच्छा पूरी कर दी थी. न्यायाधीशों की बेंच ने पाया था कि दोनों के संबंधों में एकदूसरे के प्रति विश्वास की भावना नवंबर, 2015 से मार्च 2016 के बीच पनपी थी.

यह भी स्पष्ट हुआ था कि हत्या में उस की भूमिका पूरी तरह से बदले की भावना से ग्रसित थी. तमाम गवाहों के बयान, तहकीकात के सभी जांच बिंदुओं, तर्कों, तथ्यों और आरोपियों के बयानों के आधार पर 18 अक्तूबर, 2016 को नाटिंघम क्राउन कोर्ट में ढाई घंटे तक लंबी बहस चली. कोर्ट में न्यायाधीशों की बेंच द्वारा इसे बहुत ही असाधारण मामला बताया गया.

न्यायाधीश जस्टिस हड्डन ने प्रेमी युगल को हत्या का दोषी ठहराते हुए उन्हें आजीवन कैद की सजा सुनाई थी. वे 9 नवंबर, 2016 को 20 साल के लिए जेल भेज दिए गए. फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने यह भी कहा कि इस मामले में कई पहलू एकदूसरे से अलग थे और यह असाधारण ढंग से एक सुनियोजित साजिश के तहत की गई हत्या थी. दोनों हत्यारे सजा के वक्त भले ही नाबालिग थे, लेकिन जब वे जेल से छूटेंगे, तब उन की उम्र 35 साल हो जाएगी.

बाबाओं के वेश में ठग

पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, नागौर व पाली जिलों में भगवा कपड़े पहने बाबा दानदक्षिणा लेते दिख जाएंगे. पश्चिमी जिलों के हजारों गांवढाणियों में अकसर ऊपर वाले या दुखदर्द दूर करने के नाम पर ये भगवाधारी ठगी करते फिरते हैं. 4-5 के समूह में ये बाबा गांवकसबों में घूम कर लोगों के हाथ देख कर उन की किस्मत चमकाने के नाम पर मनका या अंगूठी देते हैं और बदले में 2-3 हजार रुपए तक ऐंठ लेते हैं. गांवदेहात के लोग इन बाबाओं की मीठीमीठी बातों में आ कर ठगे जा रहे हैं.

अचलवंशी कालोनी, जैसलमेर में रहने वाले दिनेश के पास नवरात्र में 4-5 बाबा पहुंचे. उन बाबाओं ने दुकानदार दिनेश को चारों तरफ से घेर लिया. एक बाबा दिनेश का हाथ पकड़ कर देखने लगा. उस बाबा ने हाथ की लकीरों को पढ़ते हुए कहा, ‘‘बच्चा, किस्मत वाला है तू. मगर कुछ पूजापाठ करनी होगी. पूजापाठ कराने से धंधे में जो फायदा नहीं हो रहा, वह बाधा दूर हो जाएगी. तुम देखना कि पूजापाठ के बाद किस्मत बदल जाएगी.’’

बाबा एक सांस में यह सब कह गया. दिनेश कुछ बोलता, उस से पहले ही दूसरे बाबा ने फोटो का अलबम आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बेटा, ये फोटो देख. ये पुलिस सुपरिंटैंडैंट और कलक्टर हैं. ये हमारे चेले हैं. अब तो तुम मान ही गए होगे कि हम ऐरेगैरे भिखारी नहीं हैं.’’ दिनेश ने अलबम देखा, तो उस की आंखें फटी रह गईं. उन फोटो में वे बाबा पुलिस अफसरों, नेताओं व दूसरे बड़े सरकारी अफसरों के साथ खड़े थे. बाबा उन्हें अपना चेला बता रहे थे. दिनेश का धंधा चल नहीं रहा था. इस वजह से वह ठग बाबाओं की बातों में आ गया.

उन बाबाओं ने 25 सौ रुपए नकद, 5 किलो देशी घी, 10 किलो शक्कर, 5 किलो तेल, 5 किलो नारियल और अगरबत्ती, धूप, कपूर, सिंदूर, मौली व चांदी के 5 सिक्के पूजा के नाम पर लिए और तकरीबन 8 हजार रुपए का चूना लगा कर चलते बने. दिनेश अब पछता रहा है कि उस ने क्यों उन ठग बाबाओं पर भरोसा किया. छोटी सी दुकान से महीनेभर में जो मुनाफा होता था, वह बाबा ले गए. अब दिनेश औरों से कह रहा है कि वे बाबाओं के चंगुल में न फंसें.

दिनेश की तरह महेंद्र भी बाबाओं की ठगी के शिकार हो चुके हैं. वे पोखरण में अपनी पत्नी सुनीता के साथ रहते हैं. उन की शादी को 10 साल हो चुके हैं, मगर उन्हें अब तक औलाद का सुख नहीं मिला है. दोनों ने खूब मंदिरों के चक्कर काटे और तांत्रिकओझाओं की शरण में गए, मगर कहीं से उन्हें औलाद का सुख नहीं मिला. ऐसे में एक दिन जब बाबा उन के पास पहुंचे और महेंद्र से कहा कि उन की किस्मत में औलाद का सुख तो है, मगर कुछ पूर्वजों की आत्माएं इस में रोड़ा अटका रही हैं. उन आत्माओं की शांति के लिए पूजा करनी होगी.

महेंद्र अपने जानने वालों और आसपड़ोस के लोगों के तानों से परेशान थे. बाबाओं ने मोबाइल फोन में बड़े अफसरों व मंत्रियों के साथ अपने फोटो दिखाए, तो महेंद्र को लगा कि जब इतने बड़े अफसर इन बाबाओं के चेले हैं, तो जरूर ये बाबा पहुंचे हुए हैं. महेंद्र बाबा से बोला, ‘‘मैं मंदिरों के चक्कर में लाखों रुपए उड़ा चुका हूं. आप लोगों पर मुझे भरोसा है. मुझे पूजापाठ के लिए कितना खर्च करना होगा?’’

तब एक बाबा ने कहा, ‘‘आप हमें 11 हजार रुपए दे दें. इन रुपयों से हम पूजापाठ का सामान खरीद कर पूजा कर देंगे. अगली बार जब हम आएंगे, तो तुम औलाद होने की खुशी में हमें 51 हजार रुपए दोगे. यह हमारा वादा है.’’ बस, उस बाबा की बातों में आ कर महेंद्र 11 हजार रुपए गंवा बैठे. ऐसे बाबाओं की ठगी के हजारों किस्से हर रोज होते हैं.

बाड़मेर जिले की पचपदरा थाना पुलिस ने ऐसे ही 6 ठग बाबाओं को 18-19 सितंबर, 2017 को पचपदरा कसबे से अपनी गिरफ्त में लिया. किसी ने फोन कर के थाने में सूचना दी थी कि बाबाओं ने लोगों को ठगने का धंधा चला रखा है. ये लोग पीडि़तों को झूठे आश्वासन दे कर उन से जबरदस्ती रुपए ऐंठ रहे हैं. पचपदरा थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने पुलिस टीम के साथ दबिश दे कर 6 बाबाओं को पकड़ लिया. उन ठग बाबाओं को थाने ला कर पूछताछ की गई. जो बात सामने आई, उसे सुन कर हर कोई हैरान रह गया.

दरअसल, वे लोग नागा बाबा के वेश में दिनभर लोगों को नौकरी दिलाने, घरों में सुखशांति, औलाद का सुख हासिल करने के साथ ही कई तरह के झांसे दे कर नगीने, अंगूठी व मनका वगैरह बेच कर ठगी करते थे. कई लोगों के हाथ देख कर उन्हें किस्मत बताते थे. दिन में लोगों से ठगी कर के जो रकम ऐंठते थे, रात में उसे शराब पार्टी, नाचगाने में उड़ाते थे. पचपदरा पुलिस ने जिन 6 ठग बाबाओं को गिरफ्तार किया, वे सभी सीकरी गोविंदगढ़ के रहने वाले सिख परिवार से थे.

पूछताछ में ठग बाबाओं ने पुलिस को बताया कि सीकरी गोविंदगढ़ के तकरीबन ढाई सौ परिवार इसी तरह साधुसंत बन कर ठगी का काम करते हैं. अलगअलग जगहों पर घूम कर ये बड़े अफसरों को धार्मिक बातों में उलझा कर उन के साथ फोटो खिंचवाते हैं और फिर वे इन फोटो को दिखा कर गांव वालों को बताते हैं कि ये सब उन के भक्त हैं और इस तरह भोलेभाले लोगों को ठग कर रुपए ऐंठ लेते थे. शाम को वे शराब पार्टियां करते थे.

पुलिस ने उन बाबाओं के कब्जे से मोबाइल फोन बरामद किए, जिन में कई बेहूदा नाचगाने और शराब पार्टी के फोटो थे. साथ ही, कई अश्लील क्लिपें भी बरामद हुईं. इन बाबाओं ने खुद को गुजरात में जूना अखाड़े का साधु बताया. थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने कवाना मठ के महंत परशुरामगिरी महाराज, जो जूना अखाड़ा में पदाधिकारी भी हैं, को थाने बुलवा कर इन गिरफ्तार बाबाओं के बारे में पूछा, तो इन बाबाओं के फर्जीवाड़े की पोल खुल गई.

इस के बाद बाबाओं ने मुकरते हुए कहा कि वे तो उदासीन अखाड़े से हैं. इस पर महंत परशुरामगिरी ने बाबाओं से उदासीन अखाड़े के बारे में पूछताछ की, तो वे जवाब न दे सके. इस के बाद पुलिस ने इन्हें हिरासत में ले लिया. ये ठग बाबा पूरे राजस्थान में घूमते थे और लोगों को झांसे में ले कर शिकार बनाते थे. महंगी गाडि़यों और शानदार महंगे कपड़ों में इन बाबाओं के फोटो देख कर पुलिस भी हैरान रह गई.

ये सब बाबा इतने अमीर हैं. इन के घर पक्के हैं. इन के पास गाडि़यां भी हैं. इन को बगैर कोई काम किए लोगों के अंधविश्वास के चलते लाखों रुपए की महीने में कमाई हो जाती थी. पचपदरा थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने इन ठग बाबाओं के बारे में कहा, ‘‘इन के बरताव से पता चला कि ये फर्जी पाखंडी संत हैं. ऐसे लोगों से बच कर रहना चाहिए.’’

जब मौत बन गया साध्वी का शौक

हरियाणा के जिला करनाल के ब्रास गांव  स्थित एक बड़ी इमारत के बीच बने उस हाल की भव्यता देखते ही बनती थी. उस में डिजाइन वाले महंगे कालीन बिछे थे तो दोनों तरफ आरामदायक सोफे और बीच में मेजें लगी थीं. नीचे बैठने के लिए भी गद्दे बिछे थे. उस हाल में कुछ खास था तो वह थी एक सिंहासननुमा रखी ऊंची कुरसी, जिस के सामने एक छोटी सी मेज थी, जिस पर पारदर्शी शीशा लगा था.

रोज की तरह 15 नवंबर, 2016 की भी रात करीब 9 बजे कई लोग सोफे पर बैठे थे. उसी बीच हथियारों से लैस कुछ युवक पिछले दरवाजे से हौल में दाखिल हुए. उन के पीछे एक महिला भी आई, जिस पर नजर पड़ते ही सभी लोग हाथ जोड़ कर उस के सम्मान में खड़े हो गए. महिला ऊपर से नीचे तक गेरुआ वस्त्र पहने थी और सिर पर वैसे ही रंग की पगड़ी भी बांधे थी. उस के गले में बेशकीमती सोने की मोटी चेन झूल रही थी. इस के अलावा हाथों में रत्नजडि़त सोने के कंगन और अंगुलियों में हीरेजडि़त अंगूठियां अपनी चमक बिखेर रही थीं.

महिला के माथे पर लाल तिलक लगा था और चेहरे पर गर्वपूर्ण मुसकान तैर रही थी. वह सधे कदमों से चलते हुए सिंहासननुमा कुरसी पर जा कर बैठ गई तो उस की चरणवंदना करने वालों की कतार लग गई. लोग झुकते तो वह उन के सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देती. बीचबीच में वह लोगों से बातें भी कर रही थी. करीब एक घंटे तक यही सिलसिला चलता रहा. लगभग रोज ही ऐसा नजारा उस हाल में होता था. वह कोई मामूली शख्सियत नहीं थी. वह खुद को धर्मरक्षक बताती थी. अपने राष्ट्रवादी होने का गुणगान करती थी. लोग उसे अनोखी शक्तियों की वारिस और ज्योतिष विद्या की बाजीगर समझ कर पूजते थे.

कट्टरपंथी विचारधारा की उस महिला का नाम था साध्वी देवा ठाकुर. ब्रास गांव स्थित जिस इमारत में वह रहती थी, उसे लोग श्रीमाता बालासुंदरी देवाजी धाम के नाम से जानते थे. उसे डेरा भी कहा जाता था. साध्वी का इलाके में खासा रसूख था. तमाम लोग उस के मुरीद थे. उस के पास न धनदौलत की कमी थी और न ही शोहरत की. भगवा चोले में सोने के बेशकीमती आभूषणों से लद कर देवा जब चेलों के साथ शान से चलती थी तो उस का रुतबा देखते ही बनता था.

धर्म के नाम पर उस की तीखी बयानबाजियां सुर्खियां बन जाती थीं. उस रात कुछ और लोग उस से मिलने के लिए आए तो एक शख्स ने उन्हें रोक दिया, ‘‘माफ कीजिएगा, साध्वीजी से अब आप कल मिल सकते हैं. अभी वह कहीं और के लिए प्रस्थान करेंगी.’’

उसी बीच एक आदमी ने देवा के सामने जा कर कहा, ‘‘साध्वीजी, आप को समारोह में भी जाना है.’’

‘‘हां, चलते हैं.’’ कह कर देवा ने हाथ उठा कर सामूहिक आशीर्वाद दिया और हाल से बाहर आ गई. उस के बाहर आते ही कुछ और हथियारधारी वहां आ गए. यह सब देख कर कोई चौंका नहीं, क्योंकि यह रोज की बात थी. साध्वी को हथियारधारी चेलों को अपने साथ रखने का बहुत पहले से शौक था. हालांकि न उन की जान को खतरा था और न ही किसी से रंजिश. बावजूद इस के वह राइफल, बंदूक, पिस्टलधारी युवकों के घेरे में रहती थी.

इतना ही नहीं, देवा ने खुद भी एक पिस्तौल का लाइसैंस लिया हुआ था, जिसे वह कभी होलेस्टर के साथ गले में लटकाती थी तो कभी पर्स में रखती थी. सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर वह बेहद सक्रिय रहती थी और हथियारों के साथ के अलावा विभिन्न क्रियाकलापों के फोटो व वीडियो पोस्ट करती रहती थी.

हौल के बाहर एक लग्जरी फौर्च्युनर कार नंबर एचआर 54डी 0021 खड़ी थी, जो उसी के नाम से रजिस्टर्ड थी. देवा उस कार में सवार हो गई. कार ने फर्राटे भरे और कुछ देर बाद करनाल शहर के रेलवे स्टेशन के नजदीक बने सावित्री मैरिज लौन के बाहर जा कर रुकी. देवा के पहुंचते ही वहां मौजूद लोग उस की आवभगत में जुट गए. कोई झुक कर पैर छू रहा था तो कोई हाथ जोड़ रहा था. देवा के चेहरे पर भी अनोखी मुसकान थी. दरअसल यह सैक्टर-6 निवासी विक्की मेहता का सगाई समारोह था. मेहता परिवार भी देवा का भक्त था, इसलिए विशेष आग्रह कर उन्हें आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया गया था.

लौन में अनेक लोग मौजूद थे. खानापीना चल रहा था, साथ ही एक मंच सजा हुआ था. मंच पर व उस के सामने डीजे की धुनों पर लोग नृत्य कर रहे थे. दरजनों लोग सामने पड़ी कुरसियों पर बैठ कर पार्टी का आनंद ले रहे थे. कई लोगों से मिलतेमिलाते देवा अपने चेलों के साथ मंच के सामने पहुंच कर रुक गई. इसी बीच उस का चेला डीजे का संचालन कर रहे युवक के पास पहुंच कर बोला, ‘‘यह सब बंद कर के हमारी पसंद का गाना बजा.’’

‘‘कौन सा सर?’’ युवक ने पूछा.

‘‘मितरां नू शौक गोलियां चलाउण दा…’’ उस ने बताया.

हथियारधारी के इतना कहते ही चंद सेकेंड बाद मनचाहा गाना बज गया. इस गाने पर देवा के चेले हथियार लहरा कर नाचने लगे. गाने के बोलों की तर्ज पर उन्होंने हवाई फायरिंग शुरू कर दी. इन में 2-3 लोग मंच पर चढ़ कर गोलियां चलाने लगे तो कुछ नीचे ही रहे. पलक झपकते ही गोलियों की तड़तड़ाहट से वातावरण गूंज उठा.

देवा को भी उन के एक चेले ने दोनाली बंदूक लोड कर के दी तो उस ने भी गोलियां दाग दीं. देवा ने अपनी पिस्तौल से भी कई फायर किए. यह खुशी थी या शान दिखाने की कुंठित मानसिकता, यह तो कोई नहीं जानता था, पर कानून की नजर में यह सब करना अपराध की श्रेणी में आता था. लेकिन कानून को ठेंगा दिखा कर वहां जम कर फायरिंग की जा रही थी.

देवा और उन के चेले इतने जोश में थे कि हथियारों को बारबार लोड कर के हवाई फायर कर रहे थे. अचानक पैदा हुए ऐसे माहौल से वहां मौजूद लोग सकते में आ गए. हर कोई फटी नजरों से नजारा देख रहा था. बच्चों में भी दहशत कायम हो गई. मंच पर व उस के सामने अब देवा व उस के चेलों का कब्जा था. दृश्य ऐसा फिल्मी हो गया था, जैसे डाकू हथियारों के साथ बेखौफ हो कर जश्न मना रहे हों. दरजनों राउंड फायर हो चुके थे. इसी बीच एक बंदूक से फायर मिस होने पर बंदूक की नाल कुरसी पर बैठे लोगों की तरफ घूम गई. बंदूक की एक गोली सुखविंदर सिंह नामक व्यक्ति के कंधे पर जा लगी, दूसरी गोली ने 50 वर्षीय महिला सुनीता का सीना भेद दिया. गोली लगते ही खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह नीचे गिर पड़ी.

इन के अलावा गोली के छर्रे लगने से अमरजीत सिंह, अनिल, विनोद व 11 वर्षीया बच्ची मनस्वी घायल हो गई. पलक झपकते ही वहां की खुशियां मातम में तब्दील हो गईं. किसी को भी ऐसी अप्रत्याशित घटना की उम्मीद नहीं थी. लोगों में चीखपुकार मच गई और अफरातफरी का माहौल पैदा हो गया. वहां के माहौल व खतरे को भांप कर देवा हथियारों के शौक के चक्कर में मातम का आशीर्वाद दे कर चेलों के साथ रफूचक्कर हो गई.

आननफानन में सभी घायलों को उपचार के लिए अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने सुनीता को मृत घोषित कर दिया. कइयों के अंधविश्वास को भी झटका लगा, क्योंकि ज्योतिष की जानकार जो देवा लोगों का भविष्य बताती थी, वह इतनी बड़ी घटना का आकलन आखिर कैसे नहीं कर सकी.

इस सनसनीखेज घटना की सूचना पुलिस को मिली तो वह हरकत में आ गई. कुछ ही देर में सिटी थानाप्रभारी मोहनलाल मय पुलिस बल के वहां पहुंच गए. वारदात बड़ी थी लिहाजा एसपी पंकज नैन भी मौकाएवारदात पर आ गए. पुलिस ने लोगों से पूछताछ की तो उन्होंने देवा व उस के चेलों का कारनामा बयान कर दिया. कुछ लोगों ने देवा व उस के साथियों की गोलियां चलाते हुए बनाई गई वीडियो भी पुलिस को दे दी. पुलिस ने मुआयना किया तो कारतूस के दरजनों खोखे वहां से बरामद हुए.

पुलिस ने उन्हें अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस ने साध्वी व उस के साथियों के खिलाफ भादंवि की धारा-302 हत्या, 307 हत्या के प्रयास व आर्म्स एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया. मामला गंभीर था. एसपी पंकज नैन ने देवा के खिलाफ सख्त काररवाई करने के निर्देश दिए. उधर मृतका सुनीता के परिवार के लोगों में कोहराम मचा था. सुनीता सैक्टर-6 की रहने वाली थी और भावी दूल्हे विक्की की मौसी थी. घायलों का उपचार किया जा रहा था. पुलिस ने सुनीता के शव का पंचनामा कर पोस्टमार्टम हेतु कल्पना चावला मैडिकल कालेज भेज दिया.

देवा व उस के चेलों की गिरफ्तारी के लिए 4 पुलिस टीमों का गठन किया गया. अगली सुबह पुलिस बल आरोपी देवा के डेरे पर पहुंचा, लेकिन वह फरार हो चुकी थी. पुलिस ने वहां की तलाशी ली. डेरे की भव्यता देख कर पुलिस भी हैरान रह गई. देवा भले ही साध्वी थी, लेकिन डेरे में वे तमाम अत्याधुनिक सुविधाएं थीं, जिन के आम आदमी सिर्फ ख्वाब देखता है.

पुलिस ने संभावित ठिकानों पर छापेमारी शुरू कर दी, साथ ही देवा का इतिहास खंगाला तो पता चला कि वह एक मामूली लड़की थी. एक मामूली लड़की किस तरह लोगों के लिए देखते ही देखते देवी बन गई.  दरअसल जिसे लोग साध्वी देवा ठाकुर के नाम से जानते थे. उस का बचपन का नाम ममता था. कई सालों पहले प्रचारित होना शुरू हुआ कि ममता का व्यवहार आम बच्चों से अलग है. वह दूसरों के मन की बात जान लेती है और बैठेबैठे ध्यान मुद्रा में चली जाती है. बाद में कहा जाने लगा कि ममता के पास अपार शक्तियां हैं और उस का साक्षात्कार सीधे ईश्वर से होता है. यह चर्चाएं कुछ ऐसी फैलीं कि लोग उसे देवी मानने लगे.

लोग उस के पास अपनी समस्याएं ले कर आने लगे. इस के बाद ममता ने गेरुआ वस्त्र पहन लिए और नाम भी बदल कर साध्वी देवा ठाकुर रख लिया. 11 जनवरी, 1998 को माला बालासुंदरी देवा धाम से डेरे का शिलान्यास कर के वहां पूजास्थल भी बना दिया गया. धीरेधीरे देवा के मुरीदों की संख्या बढ़ती गई. देवा महत्त्वाकांक्षी थी. शाही अंदाज में जीना अच्छा लगता था. कमाई हुई तो उस ने डेरे को आलीशान तरीके से विस्तार दे दिया. देवा ने सन 2010 में देवा इंडिया फाउंडेशन नाम से एक संस्था रजिस्टर्ड करा ली और खुद उस की चेयरपरसन बन गई. डेरे पर आने वाले लोग खुल कर दान देते थे. ऐसे भक्तों के दान ने ही देवा को राजसी ठाठबाट वाली महिला बना दिया.

देवा को हथियारों से प्रेम था, इसलिए उस ने अपने साथ हथियारबंद लोग रखे. इस से रौब भी जमता था और शौक भी पूरा होता था. कुछ ही सालों में देवा ने अपनी अलग पहचान बना ली. देवा ने अपने प्रचार के लिए सोशल साइट्स को भी जरिया बनाया. हथियारों के लाइसैंस देने की वह पैरवी करती थी.

एक बार वह तब सुर्खियों में आई, जब उस ने बयान जारी कर के कहा कि देश को आधार कार्ड से ज्यादा जरूरत हथियारों के लाइसैंस की है. अगर सरकार देश के नागरिकों की हत्या आतंकवादियों के हाथों होने से नहीं रोक सकती तो सभी भारतीयों को हथियारों के लाइसैंस दे दिए जाएं, ताकि वे अपनी सुरक्षा खुद कर सकें.

कुछ महीने पहले देवा ने एक जनसभा में यह कह कर सनसनी फैला दी थी कि गैरहिंदुओं की जबरन नसबंदी की जाए, ताकि उन की आबादी को बढ़ने से रोका जा सके. इस मामले में जम्मूकश्मीर के श्रीनगर में एक याचिका के बाद अदालत ने देवा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे. इस सब के बीच फायरिंग से हुई मौत का मामला देवा पर भारी पड़ गया.

पुलिस उस की तलाश में जुटी रही. उस की तलाश में अन्य जनपदों के अलावा राजस्थान जा कर भी छापेमारी की गई, पर वह नहीं मिली. लोगों में देवा को ले कर गुस्सा था. एक संगठन के पदाधिकारी ललित भारद्वाज ने बयान जारी किया कि धर्म की आड़ में देवा को ऐसी घिनौनी हरकत नहीं करनी चाहिए थी. देवा की फायरिंग की वीडियो वायरल हो रही थी. पुलिस को इस वारदात से पहले की भी एक वीडियो मिली, जिस में पानीपत जिले में आयोजित एक समारोह में देवा व उस के चेलों ने जम कर फायरिंग की थी.

2 दिन बीत चुके थे, लेकिन देवा का कोई सुराग नहीं लग रहा था. घटना के बाद से ही उस के दोनों मोबाइल बंद थे. पुलिस उस तक पहुंच पाती कि इसी बीच 18 नवंबर को उस ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. इस दौरान देवा का हुलिया ही बदला हुआ था. न उस के बदन पर कोई आभूषण था और न ही भगवा वस्त्र. वह गुलाबी छींटदार सलवारसूट पहन कर आई थी.

पता चलते ही पुलिस वहां पहुंच गई और माननीय न्यायाधीश हरीश सब्बरवाल की अदालत में देवा को पेश कर के हथियारों की बरामदगी और उस के साथियों की गिरफ्तारी का हवाला दे कर रिमांड मांगा. अदालत ने उसे 5 दिनों के रिमांड पर पुलिस के हवाले कर दिया.

पुलिस देवा का कस्टडी रिमांड ले कर बाहर निकली तो उस ने मीडिया के सामने कोरे झूठ का हास्यास्पद जाल फेंका कि वह निर्दोष है और उसे षडयंत्र के तहत फंसाया जा रहा है. वह इस बात को भी झुठला गई कि उस ने गोलियां चलाई थीं. देवा के चेहरे पर मायूसी का डेरा था. उस ने खुद को बीमार भी बताया.

इस दौरान अदालत के बाहर गहमागहमी का माहौल रहा. देवा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे साथ ले कर कई स्थानों पर दबिशें दीं. उस रात उसे महिला थाने की हवालात में रखा गया तो उसे नींद नहीं आई. रात में वह कई बार रोई. अगले दिन पुलिस उसे ले कर राजस्थान रवाना हो गई. वहां उस की निशानदेही पर न तो हथियार मिल सके और न उस के चेले. पुलिस खाली हाथ लौट आई.

23 नवंबर को पुलिस ने देवा के 3 आरोपी चेलों शुभम, देवेंद्र व मलकीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया. इन के कब्जे से फायरिंग में इस्तेमाल की गई 2 बंदूकें व 2 माउजरों के साथ 4 दरजन से अधिक कारतूस बरामद किए गए. पुलिस ने नीलोखेड़ी से देवा की फौर्च्युनर कार भी बरामद कर ली. पुलिस ने चारों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस देवा के फरार अन्य 3 साथियों राजीव, बलजीत व महमल की सरगरमी से तलाश कर रही थी. देवा ने धर्म की आड़ में हथियारों का शौक रख कर उन के प्रदर्शन का जानलेवा खेल नहीं खेला होता तो शायद ऐसी नौबत कभी न आती.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कार सवार महिला की गोली मारकर हत्या

राजधानी की सड़कों पर लगातार तीसरे दिन सरेआम गोली मारकर हत्या करने की घटना सामने आयी है. ब्रहमपुरी, कृष्णापुरी और भजनपुरा में हत्याओं के बाद शालीमार बाग में बुधवार तड़के बदमाशों ने कार सवार दंपति पर गोलियां चला दीं. इसमें 34 वर्षीय प्रिया मेहरा की मौत हो गई, जबकि उनके पति पंकज मेहरा और दो वर्षीय बच्च बाल-बाल बच गए.

सूदखोर पर शक जताया

पंकज ने 40 लाख रुपयों के कर्ज की वसूली के लिए सूदखोर द्वारा हत्या कराने का आरोप लगाया है. शालीमार बाग पुलिस हत्या का मामला दर्ज करके छानबीन कर रही है. पुलिस उपायुक्त मिलिंद डुमरे के अनुसार, पंकज मेहरा रोहिणी सेक्टर 15 में परिवार सहित रहते हैं. पहाड़गंज इलाके में उनका रेस्तरां हैं. मंगलवार रात वह हडसन लेन स्थित अपने भाई के रेस्तरां में गए थे. वहां से देर रात वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ गुरुद्वारा बंगला साहिब गए. इसके बाद परिवार तड़के अपनी रिट्ज कार में सवार होकर घर लौट रहा था.

पीड़ित की कार को रुकवाकर वारदात की

तड़के 4.20 बजे बादली लालबत्ती के निकट स्विफ्ट कार ने ओवरटेक कर उनकी कार को रुकवा लिया. स्विफ्ट से निकले युवक ने उनकी कार का शीशा तोड़ दिया. पंकज जब अपनी कार से उतरे तो युवक पिस्तौल दिखाकर उन्हें धमकाने लगा. इसे लेकर उनके बीच हाथापाई भी हुई. इसी बीच युवक ने पिस्तौल से दो गोलियां चलाईं.

दो गोलियां लगने से मौत हुई

एक गोली प्रिया के गले और दूसरी चेहरे पर जा लगी. इसके बाद पिस्तौल में गोली फंस गई. यह देख हमलावर युवक अपनी कार से दूसरा हथियार लाने के लिए दौड़ा. इसी बीच मौका पाकर पंकज कार लेकर वहां से भाग निकले और सीधे पास के एक अस्पताल पहुंचे.

डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया

अस्पताल में डॉक्टरों ने प्रिया को मृत घोषित कर दिया. इसके बाद पुलिस को मामले की सूचना दी गई. हत्या की सूचना से पुलिस में हड़कंप मच गया.सूचना मिलते ही तत्काल पुलिस मौके पर पहुंच गईऔर छानबीन शुरू की. थोड़ी ही देर में जिले के आला अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस की कईटीमों और अधिकारियों ने अस्पताल में पहुंचकर पीड़ित पति से भी बातचीत की.

शव पोस्टमार्टम के लिए भेजा

पुलिस ने प्रिया के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है. पंकज ने जिस शख्स पर शक जताया है, वह फिलहाल फरार है. कई पुलिस टीमें उसकी तलाश में छापेमारी कर रही हैं. उसके मिलने के बाद ही हमलावरों की पहचान हो पाएगी. पुलिस का कहना है कि आरोपी की तलाश में कईटीमों को लगाया गया है. यह भी पता लगाया जा रहा है कि कई उसका कोईआपराधिक इतिहास तो नहीं है. इसके साथ ही पुलिस टीमें इलाके के बदमाशों के बारे में भी पता लगा रही है, कहीं किसी का इस वारदात से संबंध तो नहीं है. घटना के समय वहां पर सक्रिय मोबाइल नंबरों के बारे में भी पुलिस छानबीन कर जानकारी जुटा रही है. पुलिस ने कईसंदिग्ध नंबरों के बारे में जानकारी भी जुटाई है.

रेस्तरां भी दो माह से बंद कर रखा था

पंकज को बीते कई माह से कर्ज देने वाला शख्स धमका रहा था. धमकियों से पंकज का पूरा परिवार काफी डरा हुआ था. इसी वजह से पंकज ने पहाड़गंज स्थित अपने रेस्तरां को भी बीते दो माह से बंद कर रखा था. पंकज का कहना हैकि वह घर से निकलने से भी कतराता था. आरोपी उसे कई बार धमकी दे चुका था.

बच्चे के सामने ही मां ने दम तोड़ा

बच्चे को माता-पिता के साथ कार में घूमना बेहद पसंद था, इसलिए पंकज पत्नी और बेटे को रात के समय घूमाने ले गए थे. वापसी में जब बदमाशों ने प्रिया को गोली मारी तो बच्च भी उनकी गोद में ही था. बच्चे के सामने ही उसकी मां तड़पड़ी रही और अस्पताल जाने के बाद उसने दम तोड़ दिया. परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल है.

रुपये लौटाने को सूदखोर धमकी दे रहा था

मामले को लेकर की गई पूछताछके दौरान पीड़ित पति पंकज मेहरा ने पुलिस को बताया कि उसने सोनीपत निवासी एक युवक से 5 लाख रुपये उधार लिए थे. वह इसका मोटा ब्याज वसूलता था. ब्याज और मूलधन मिलाकर अब सूदखोर उससे 40 लाख रुपये मांग रहा था. आरोप है कि सूदखोर युवक रकम की वसूली के लिए पिछले कुछ दिनों से लगातार उसे धमकी दे रहा था. पंकज ने उसी शख्स द्वारा हत्या करवाने की आशंका जताई है. इस मामले में पुलिस पीड़ित के बयान के आधार पर जांच कर रही है.

दिल्ली 55 घंटे में छह हत्याओं से दहली

गैंगवार और आपसी रंजिश में बीते 55 घंटों में ब्रहमपुरी, भजनपुरा, जैतपुर, उस्मानपुर, कृष्णा नगर और शालीमार बाग में हुई एक के बाद एक ताबड़तोड़ छह हत्याओं से राजधानी दहल उठी. हैरानी की बात है कि दिल्ली पुलिस को चुनौती देते हुए बेखौफ बदमाश सरेआम छह हत्याएं करके आसानी से फरार हो गए. 55 घंटे में पुलिस इनमें से महज एक ही मामला सुलझा सकी है.

कई वारदातों के बाद भी पुलिस नहीं चेती

बीते रविवार को भजनपुरा में आरिफ हुसैन रजा और ब्रह्मपुरी में हुई वाजिद की हत्याओं को पुलिस यमुनापार में चल रही गैंगवार का नतीजा मान रही है. इस गैंगवार में पहले भी कई हत्याएं को चुकी हैं, फिर भी पुलिस इन पर लगाम लगाने में पूरी तरह से नाकाम रही है. वहीं, मंगलवार सुबह उस्मानपुर में हुई रोहित की हत्या को भी पुलिस गैंगवार से जोड़कर देख रही है. जांच अधिकारियों का कहना है कि करीब ढाई माह पूर्व नासिर गैंग से जुड़े बदमाशों ने छेनू के करीबी इमरान और कमर की हत्या कर दी थी. माना जा रहा है कि उसी का बदला लेने के लिए छेनू के इशारे पर वाजिद और आरिफ को मौत के घाट उतार दिया गया. स्थानीय पुलिस का कहना है कि इरफान उर्फ छेनू पहलवान जेल में बंद है.

प्यार ऐसे तो नहीं हासिल होता

18 अक्तूबर, 2016 की सुबह साढ़े 5 बजे के करीब पुणे शहर की केतन हाइट्स सोसायटी की इमारत के नीचे एक्टिवा सवार एक महिला और एक आदमी के बीच कहासुनी होते देख उधर से गुजर रहे लोग ठिठक गए थे. औरत से कहासुनी करने वाले आदमी की आवाज धीरेधीरे तेज होती जा रही थी. लोग माजरा समझ पाते अचानक उस आदमी ने जेब से चाकू निकाला और एक्टिवा सवार औरत पर हमला कर दिया. औरत जमीन पर गिर पड़ी और बचाव के लिए चिल्लाने लगी. हमलावर के पास चाकू था, जबकि वहां खड़े लोग निहत्थे थे. फिर भी वहां खड़े लोग उस की ओर बढ़े, लेकिन वे सब उस तक पहुंच पाते, उस के पहले ही वह आदमी महिला पर ताबड़तोड़ चाकू से वार कर के उसी की स्कूटी से भाग निकला था.

महिला जमीन पर पड़ी तड़प रही थी. उस की हालत देख कर किसी ने कंट्रोल रूम को फोन कर के घटना की सूचना दे दी थी. चूंकि घटनास्थल थाना अलंकार के अंतर्गत आता था, इसलिए कंट्रोल रूम ने घटना की जानकारी थाना अलंकार पुलिस को दे दी थी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर बी.जी. मिसाल ने घटना की सूचना अपने अधिकारियों को दी और खुद एआई विजय कुमार शिंदे एवं कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश और घटनास्थल के निरीक्षण में पुलिस वालों ने देखा कि घायल महिला सलवारसूट पहने थी. उस की उम्र 30-31 साल रही होगी. उस के शरीर पर तमाम गहरे घाव थे, जिन से खून बह रहा था. पुलिस को लगा कि अभी वह जीवित है, इसलिए उसे तत्काल पुलिस वैन में डाल कर इलाज के लिए सेसून अस्पताल ले जाया गया. लेकिन अस्पताल पहुंच कर पता चला कि उस की मौत हो चुकी है. इंसपेक्टर बी.जी. मिसाल अपने सहायकों के साथ घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि डीएसपी सुधीर हिरेमठ और एएसपी भी फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे.

फोरैंसिक टीम ने जरूरी साक्ष्य जुटा लिए तो अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. उस के बाद बी.जी. मिसाल को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. बी.जी. मिसाल ने सहयोगियों की मदद से घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कीं और उस के बाद अस्पताल जा पहुंचे. डाक्टरों से पता चला कि महिला के शरीर पर कुल 21 घाव थे. अधिक खून बहने की वजह से ही उस की मौत हुई थी. उन्होंने काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए रखवा दिया और थाने आ कर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर इस मामले की जांच इंसपेक्टर (क्राइम) विजय कुमार शिंदे को सौंप दी.

विजय कुमार शिंदे ने मामले की जांच के लिए अपनी एक टीम बनाई और हत्या के इस मामले की जांच शुरू कर दी. घटनास्थल पर पुलिस को मृतका का पर्स और मोबाइल फोन मिला था. मोबाइल फोन के दोनों सिम गायब थे, इसलिए मृतका की शिनाख्त में उस से कोई मदद नहीं मिल सकी. लेकिन पर्स से उस का ड्राइविंग लाइसैंस मिल गया, जिस से उस की शिनाख्त हो गई. मृतका का नाम शुभांगी खटावकर था और वह कर्वेनगर के श्रमिक परिसर की गली नंबर-5 में रहती थी. उस के पति का नाम प्रकाश खटावकर था. इस के बाद विजय कुमार शिंदे ने लाइसैंस में लिखे पते पर एक सिपाही को भेजा तो वहां मृतका का पति प्रकाश खटावकर मिल गया. सिपाही ने उसे पूरी बात बताई तो वह सिपाही के साथ थाने आ गया.

विजय कुमार शिंदे ने अस्पताल ले जा कर उसे लाश दिखाई तो लाश देख कर वह खुद को संभाल नहीं सका और जोरजोर से रोने लगा. विजय कुमार शिंदे ने किसी तरह उसे चुप कराया तो उस ने एकदम से कहा, ‘‘शुभांगी की हत्या किसी और ने नहीं, मेरे ही परिसर में रहने वाले विश्वास कलेकर ने की है. वह उसे एकतरफा प्रेम करता था. वह उसे राह चलते परेशान किया करता था.’  प्रकाश खटावकर के इसी बयान के आधार पर विजय कुमार शिंदे ने विश्वास कलेकर को नामजद कर के उस की तलाश शुरू कर दी. उस के घर में ताला बंद था. आसपड़ोस वालों से पूछताछ में पता चला कि घटना के बाद से ही वह दिखाई नहीं दिया था.  पुलिस को प्रकाश खटावकर से उस का नागपुर का जो पता मिला था, जांच करने पर वह फरजी पाया गया था.

इस के बाद उस की तलाश के लिए पुलिस की 2 टीमें बनाई गईं. एक टीम नागपुर भेजी गई तो दूसरी टीम वहां जहां वह रहता और काम करता था. पुलिस ने वहां के लोगों से उस के बारे में पूछताछ की. दूसरी टीम द्वारा पूछताछ में पता चला कि विश्वास नागपुर का नहीं, बल्कि कोल्हापुर का रहने वाला था. वहां के थाना राजारामपुरी में उस के खिलाफ हत्या का एक मुकदमा दर्ज हुआ था, जिस में वह साल भर पहले बरी हो चुका था. बरी होने के बाद ही वह पुणे आ गया था. इंसपेक्टर विजय कुमार शिंदे के लिए यह जानकारी काफी महत्त्वपूर्ण थी. कोल्हापुर जा कर वह थाना राजारामपुरी पुलिस की मदद से विश्वास को गिरफ्तार कर पुणे ले आए और उसे अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया.

थाने में अधिकारियों की उपस्थिति में विश्वास कलेकर से शुभांगी की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू ही हुई थी कि वह फर्श पर गिर कर छटपटाने लगा. उस के मुंह से झाग भी निकल रहा था. अचानक उस का शरीर अकड़ सा गया. पूछताछ कर रहे सारे पुलिस वाले घबरा गए. उन्हें लगा कि पूछताछ से बचने के लिए विश्वास ने जहर खा लिया है. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया.डाक्टरों ने उसे चैक कर के बताया कि इस ने जहर नहीं खाया है, बल्कि इसे मिर्गी का दौरा पड़ा है. यह जान कर पुलिस अधिकारियों की जान में जान आई. इलाज के बाद विश्वास को थाने ला कर पूछताछ की जाने लगी तो उस से सख्ती के बजाय मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में एकतरफा प्रेम में शुभांगी की हत्या करने की उस ने जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार से थी—

शुभांगी महाराष्ट्र के नागपुर के रहने वाले प्रकाश मधुकर खटावकर की पत्नी थी. जिस समय शुभांगी की शादी प्रकाश से हुई थी, उस समय वह बीकौम कर रहा था. शुभांगी जैसी सुंदर, संस्कारी और समझदार पत्नी पा कर वह बहुत खुश था. पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ दिनों तक वह गांव में पिता मधुकर खटावकर के साथ खेती के कामों में उन की मदद करता रहा. खेती की कमाई से किसी तरह परिवार का खर्च तो चल जाता था, पर भविष्य के लिए कुछ नहीं बच पाता था. ऐसे में जब प्रकाश और शुभांगी को एक बच्चा हो गया तो उस के भविष्य को ले कर उन्हें चिंता हुई. दोनों ने इस बारे में गहराई से विचार किया तो उन्हें लगा कि बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें गांव छोड़ कर शहर जाना चाहिए.

इस के बाद प्रकाश और शुभांगी घर वालों से इजाजत ले कर पहले मुंबई, उस के बाद पुणे जा कर स्थाई रूप से बस गए थे. पुणे के जेल रोड पर किराए का मकान ले कर उन्होंने रोजीरोटी की शुरुआत की. प्रकाश को एक प्राइवेट कोऔपरेटिव बैंक में नौकरी मिल गई थी तो पति की मदद के लिए शुभांगी कुछ घरों में खाना बनाने का काम करने लगी थी. इस काम से शुभांगी को अच्छे पैसे मिल जाते थे. इस के अलावा वह घर से भी टिफिन तैयार कर के सप्लाई करती थी. इस तरह कुछ ही दिनों में उन की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई. शुभांगी के पास पैसा आया तो इस का असर उस के रहनसहन पर तो पड़ा ही, उस के शरीर और बातव्यवहार पर भी पड़ा. अब वह पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी.

जल्दी ही शुभांगी और प्रकाश ने कर्वेनगर के श्रमिक परिसर की गली नंबर-5 में अपना खुद का मकान खरीद लिया था. बच्चे का भी उन्होंने एक बढि़या अंगरेजी स्कूल में दाखिला करा दिया था. शुभांगी को मेहनत ज्यादा करनी पड़ती थी और उस के पास समय कम होता था. उस की भागदौड़ को देखते हुए प्रकाश ने इस के लिए स्कूटी खरीद दी थी. शुभांगी घर और बाहर के सारे काम कुशलता से निपटा रही थी. इस के अलावा वह अपने शरीर का भी पूरा खयाल रखती थी. बनसंवर कर वह स्कूटी से निकलती तो देखने वाले देखते ही रह जाते थे. उस का शरीर सांचे में ढला ऐसा लगता था कि वह कहीं से भी 13 साल के बच्चे की मां नहीं लगती थी. उस की यही खूबसूरती उस के लिए खतरा बन गई.

शुभांगी जिस परिसर में रहती थी, उसी परिसर में 40 साल का विश्वास कलेकर भी एक साल पहले कोल्हापुर से आ कर रहने लगा था. रोजीरोटी के लिए वह वड़ापाव का ठेला लगाता था. एक ही परिसर में रहने की वजह से अकसर उस की नजर शुभांगी पर पड़ जाती थी. खूबसूरत शुभांगी उसे ऐसी भायी कि वह उस का दीवाना बन गया. इस की एक वजह यह थी कि उस की शादी नहीं हुई थी. शायद मिर्गी की बीमारी की वजह से वह कुंवारा ही रह गया था. और जब उसे घर बसाने का मौका मिला तो उस में भी कामयाब नहीं हुआ. जिस लड़की से वह प्यार करता था, उस की हत्या हो गई थी. उस की हत्या का आरोप भी उसी पर लगा था, लेकिन अदालत से वह बरी हो गया था.

बरी होने के बाद वह पुणे आ गया था और उसे शुभांगी से प्यार हुआ तो वह हाथ धो कर उस के पीछे पड़ गया. शुभांगी तक पहुंचने के लिए पहले उस ने उस के पति प्रकाश से यह बता कर दोस्ती कर ली कि वह भी उस के गांव के पास का रहने वाला है. इस के बाद जल्दी ही वह शुभांगी के परिवार में घुलमिल गया. शुभांगी के घर आनेजाने में ही उस ने शुभांगी से यह कह कर अपना टिफिन भी लगवा लिया कि दिन भर काम कर के वह इस तरह थक जाता है कि रात को उसे अपना खाना बनाने में काफी तकलीफ होती थी. शुभांगी को भला इस में क्या ऐतराज होता, उस का तो यह धंधा ही था. वह उस का भी टिफिन बना कर पहुंचाने लगी.

समय अपनी गति से सरकता रहा. शुभांगी विश्वास का टिफिन देने आती तो इसी बहाने वह उसे एक नजर देख लेता, साथ ही उसे प्रभावित करने के लिए उस के बनाए खाने की खूब तारीफ भी करता. अपनी तारीफ सुन कर शुभांगी कुछ कहने के बजाय सिर्फ हंस कर रह जाती. इस से विश्वास को लगने लगा कि वह उस के मन की बात जान गई है. शायद इसी का परिणाम था कि एक दिन उस ने अपने मन की बात शुभांगी से कह दी. उस की बातें सुन कर शुभांगी सन्न रह गई.

वह संस्कारी और समझदार महिला थी, इसलिए नाराज होने के बजाय उस ने उसे समझाया, ‘‘मैं शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे की मां भी हूं. मेरा अच्छा सा पति है, जिस के साथ मैं खुश हूं. तुम हमारे गांव के पास के हो, इसलिए हम सब तुम्हारी इज्जत करते हैं. तुम अपने मन में कोई ऐसा भ्रम मत पालो, जो आगे चल कर तुम्हें तकलीफ दे.’’ लेकिन शुभांगी के लिए पागल हुए विश्वास पर शुभांगी के समझाने का कोई असर नहीं हुआ. उस ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘शुभांगी, तुम्हारी वजह से मेरी रातों की नींद और दिन का चैन लुट गया है. हर घड़ी तुम मेरी आंखों के सामने रहती हो. मुझे तुम से सचमुच प्यार हो गया है. तुम पति और बच्चे को छोड़ कर मेरे पास आ जाओ. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें कोई काम नहीं करने दूंगा.’’

विश्वास कलेकर की इन बातों से शुभांगी का धैर्य जवाब दे गया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें इतना समझाया, फिर भी तुम्हारी समझ में नहीं आया. अगर फिर कभी इस तरह की बातें कीं तो ठीक नहीं होगा. मैं तुम्हारी शिकायत प्रकाश से कर दूंगी. जरूरत पड़ी तो पुलिस से भी कर दूंगी.’’ शुभांगी की इस धमकी से कुछ दिनों तक तो विश्वास शांत रहा. लेकिन एक दिन मौका मिलने पर वह शुभांगी के सामने आ कर खड़ा हो गया और पहले की ही तरह गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘शुभांगी, तुम मेरे साथ चलो. मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना मैं जिंदा नहीं रह सकता.’’

शुभांगी ने नाराज हो कर उसे खरीखोटी तो सुनाई ही, उस की इस हरकत की शिकायत प्रकाश से भी कर दी. प्रकाश ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो उस की बात को समझने के बजाय वह उलटा उसे ही समझाने लगा. इस के बाद दोनों में कहासुनी हो गई. परेशानी की बात यह थी कि इस के बाद भी विश्वास अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. अब वह शुभांगी को परेशान करने लगा. जब इस की जानकारी शुभांगी के भाई को हुई तो उस ने विश्वास की पिटाई कर के चेतावनी दी कि अगर उस ने फिर कभी शुभांगी को परेशान किया तो ठीक नहीं होगा.

शुभांगी के भाई द्वारा पिटाई करने से विश्वास इतना आहत हुआ कि उस ने अपनी इस पिटाई और अपमान का बदला लेने के लिए शुभांगी के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया. उसे शुभांगी के सारे कामों और आनेजाने की पूरी जानकारी थी ही, इसलिए 18 अक्तूबर, 2016 की सुबह 5 बजे जा कर वह केतन हाइट्स सोसायटी के पास खड़े हो कर उस का इंतजार करने लगा. शुभांगी अपने समय पर वहां पहुंची तो उस की स्कूटी के सामने आ कर उस ने उसे रोक लिया. उस की इस हरकत से नाराज हो कर शुभांगी ने कहा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है. अभी तुम्हें या हमें चोट लग जाती तो?’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम तो जानती ही हो, आशिक मरने से नहीं डरते. अपनी मंजिल पाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं.’’ विश्वास ने बेशर्मी से मुसकराते हुए कहा, ‘‘आखिर तुम मेरी बात मान क्यों नहीं लेती?’’

‘‘तुम्हारी बकवास सुनने का मेरे पास समय नहीं है, तुम मेरे सामने से हटो और मुझे काम पर जाने दो.’’

‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?’’ विश्वास ने कहा.

‘‘मुझे तुम्हारी किसी बात का जवाब नहीं देना.’’ शुभांगी ने गुस्से में कहा.

‘‘तो क्या तुम्हारा यह आखिरी फैसला है?’’ विश्वास ने पूछा.

‘‘हां…हां,’’ शुभांगी ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘हां, यह मेरा आखिरी फैसला है. तुम मुझे इस जन्म में तो क्या, अगले 7 जन्मों तक नहीं पा सकोगे.’’

शुभांगी के चेहरे पर अपने लिए नफरत और दृढ़ता देख कर विश्वास को गुस्सा आ गया. लंबी सांस लेते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितना समझाया कि तुम मेरी हो जाओ, लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं मानी. अब मैं तुम्हारा 7 जन्मों तक इंतजार करूंगा.’’ कह कर विश्वास ने जेब से चाकू निकाला और ताबड़तोड़ वार कर के शुभांगी की हत्या कर दी. इस के बाद जल्दी से उस के मोबाइल फोन के दोनों सिम निकाल कर उसी की स्कूटी से भाग निकला. स्कूटी उस ने पुणे के रेलवे स्टेशन पर पार्किंग में खड़ी कर दी और ट्रेन से कोल्हापुर चला गया.

विस्तृत पूछताछ के बाद विजय कुमार शिंदे ने उस के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह एकतरफा प्यार करने वाला विश्वास अपनी सही जगह पर पहुंच गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अंकुश पर अंकुश लगाना पड़ गया भारी

पृथ्वी हांडा परिवार के साथ पंजाब प्रांत के जालंधर शहर के मौडल टाउन में अपनी विशाल कोठी में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुजाता के अलावा एकलौता बेटा जतिन था. कोठी से कुछ दूरी पर मेनमार्केट में उन की 2 दुकानें थीं. एक में हांडा डेयरी थी, जिस में शुद्ध देसी घी का थोक कारोबार होता था तो दूसरी में रेडीमेड गारमेंट्स का. क्वालिटी के लिए उन की दोनों ही दुकानें शहर भर में प्रसिद्ध थीं. दोनों दुकानें घर से ज्यादा दूर नहीं थीं, इसलिए बापबेटा कोठी से दुकानों तक पैदल टहलते हुए चले जाते थे. हांडा डेयरी का काम पृथ्वी हांडा खुद देखते थे, जबकि हांडा कलेक्शन यानी गारमेंट्स की दुकान उन का बेटा जतिन संभालता था. बापबेटे के दुकानों पर चले जाने के बाद घर में सुजाता हांडा के अलावा 17 साल का नौकर हरीश ही रह जाता था. शरीर भारी होने की वजह से सुजाता को चलनेफिरने में दिक्कत होती थी, इसलिए घर के कामों में मदद के लिए उन्होंने हरीश को रखा हुआ था. 20 सितंबर, 2016 की शाम 5 बजे पृथ्वी हांडा ने जतिन की दुकान पर जा कर कहा, ‘‘बेटा, आज मंगलवार है. थोड़ी देर में तुम घर चले जाना और घर में रखा प्रसाद ले जा कर हनुमान मंदिर में चढ़ा देना.’’

‘‘ठीक है पिताजी, मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊंगा.’’ जतिन ने कहा, इस के बाद पौने 6 बजे वह घर के लिए निकला तो करीब 15 मिनट बाद 6 बजे के करीब वह कोठी पर पहुंच गया. उस ने कोठी का मेन गेट अंदर से बंद देखा तो उसे हैरानी हुई, क्योंकि कोठी का मुख्य गेट केवल रात को ही बंद होता था.

बहरहाल, कुछ सोचनेविचारने के बजाय जतिन ने डोरबैल बजाई. कई बार डोरबैल बजाने के बावजूद अंदर से कोई आहट सुनाई नहीं दी तो उसे चिंता हुई. पड़ोसी मि. कपूर ने जतिन को लगातार बैल बजाते देखा तो पास आ कर कहा, ‘‘बेटा, यह गेट लगभग आधे घंटे से बंद है और कुछ देर पहले कोठी के अंदर से चीखने की आवाज आई थीं. अंदर क्या हो रहा है, यह पता करने के लिए मैं ने भी खूब बैल बजाई थी, पर गेट नहीं खुला था.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है ’’ जतिन बुदबुदाया.

वह मि. कपूर से बातें कर ही रहा था कि तभी कोठी के अंदर खड़ी इनोवा कार के स्टार्ट होने की आवाज आई. जतिन चौंका. उसे लगा कि अंदर जरूर कुछ गड़बड़ है. समय न गंवा कर वह कोठी के 15 फुट ऊंचे मुख्यगेट पर चढ़ गया. जब वह अंदर कूदा तो 2 लड़के इनोवा कार से उतर कर कोठी के अंदर भागते दिखाई दिए.

वे लड़के इतनी तेजी से अंदर की ओर भागे थे कि वह उन्हें देख नहीं पाया. सिर्फ एक लड़के के कपड़े दिखाई दिए थे. वह नीली जींस और पीली शर्ट या टीशर्ट पहने था. लड़कों को कोठी के अंदर जाते देख जतिन उन के पीछे भागा, पर ड्राइंगरूम की ओर जाने वाली गैलरी में उसे नौकर हरीश खून से लथपथ पड़ा मिल गया तो वह उस के पास रुक गया. वह उसे झुक कर देखने लगा, तभी उसे छत पर जाने वाली सीढि़यों पर किसी की आवाज सुनाई दी.

हरीश को छोड़ कर जतिन सीढि़यों की ओर बढ़ा तो उस ने देखा कि जो लड़के कार से निकल कर अंदर आए थे, वे सीढि़यों से छत पर जा रहे थे. उन का पीछा करने के बजाय उस ने सीढि़यों का दरवाजा बंद कर के अंदर से कुंडी लगा दी और भाग कर हरीश के पास आया और उस की नब्ज टटोली तो पता चला कि उस की मौत हो चुकी है.

जतिन घबरा गया. मां को आवाज देते हुए वह ड्राइंगरूम में पहुंचा तो वहां मां को खून से लथपथ पड़ी देख कर वह उस से चिपट कर रोने लगा. तभी उसे लगा कि मां की सांसें चल रही हैं. अब तक उस के रोने की आवाज सुन कर कई पड़ोसी आ गए थे. जतिन ने खुद को संभाला और पड़ोसियों से पिता को फोन करवाने के साथ उन्हीं की मदद से मां को नजदीक के एक अस्पताल ले गया.

वहां के डाक्टरों ने सुजाता का प्राथमिक उपचार कर के उन्हें पटेल अस्पताल ले जाने को कहा. लेकिन पटेल अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन की मौत हो गई. उस समय तक पृथ्वी हांडा भी अस्पताल पहुंच गए थे. जब उन्हें पत्नी की मौत का पता चला तो दुखी हो कर वह बेहोश हो गए.

सूचना पा कर थाना डिवीजन नंबर-6 के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सतेंद्र चड्ढा भी अस्पताल पहुंच गए थे. उन्होंने जरूरी काररवाई कर सुजाता की लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद उन्होंने पृथ्वी हांडा की कोठी पर आ कर नौकर हरीश की लाश को भी पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

दिनदहाड़े हुई इन हत्याओं से शहर में सनसनी तो फैल ही गई थी, खबर पा कर शहर के तमाम व्यापारी पृथ्वी हांडा की कोठी पर जमा हो गए थे. सभी में दहशत का माहौल था. एसीपी, डीसीपी, एडीसीपी (क्राइम) तथा पुलिस कमिश्नर अर्पित शुक्ला भी आ गए थे. फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ, डौग स्क्वायड, क्राइम टीम अधिकारियों के साथ ही एवं फोटोग्राफर ने भी आ कर अपना काम शुरू कर दिया था.

घटनास्थल यानी कोठी की जांच में पुलिस ने हांडा की कोठी के कंपाउंड में खड़ी इनोवा कार से एक सेफ बरामद की थी, जो कोठी के अंदर से ला कर कार में रखी गई थी. इस का मतलब था सुजाता और नौकर हरीश की हत्या लूटपाट के लिए की गई थी. जाहिर है, हत्यारे सेफ को कार से अपने साथ ले जाना चाहते थे.

कोठी के अंदर जिस कमरे में सेफ रखी थी, उस में एक अलमारी भी थी, जिस का सारा सामान कमरे में बिखरा पड़ा था. अलमारी को देख कर पृथ्वी हांडा ने बताया कि अलमारी से ढाई, पौने 3 लाख रुपए नकद और करीब 10 लाख रुपए के गहने गायब हैं. इस के अलावा वे सुजाता के पहने गहने भी उतार ले गए थे.

पूछताछ में पुलिस को ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से लुटेरों तक पहुंचा जा सकता. लेकिन पुलिस ने इतना जरूर अंदाजा लगा लिया था कि जिस ने भी वारदात को अंजाम दिया था, उसे हांडा परिवार की दिनचर्या और कोठी के कोनेकोने की जानकारी थी.

पुलिस कमिश्नर अर्पित शुक्ला ने पुलिस अधिकारियों की मीटिंग कर के थानाप्रभारी सतेंद्र चड्ढा के नेतृत्व में एसआई नरेंद्र सिंह, जसवंत कौर, एएसआई महावीर सिंह, लखविंदर सिंह, हैडकांस्टेबल जागीरी लाल, सुखविंदर सिंह, संदीप कौर तथा स्पैशल स्टाफ के एएसआई सुरजीत सिंह और सुनीत को मिला कर एक टीम बनाई और जरूरी निर्देश दे कर टीम को इस मामले की जांच सौंप दी.

घटनास्थल के निरीक्षण के दौरान पुलिस को एक्टिवा स्कूटर की एक चाबी और टोपी मिली, जो शायद लुटेरों से हड़बड़ी में छूट गई थी. गली में लगे सीसीटीवी कैमरों से पुलिस को कोई मदद नहीं मिल सकी. चाबी मिलने से यह अंदाजा लगाया गया कि हो सकता है कोठी के आसपास कोई एक्टिवा स्कूटर खड़ी हो.

सतेंद्र चड्ढा ने कोठी के आसपास तलाश की तो हांडा की कोठी से कुछ दूरी पर एक एक्टिवा स्कूटर लावारिस हालत में खड़ी मिल गई. उन्होंने कोठी में मिली चाबी उस में लगाई तो वह स्टार्ट हो गई. इस का मतलब वह एक्टिवा स्कूटर लुटेरों की थी. पुलिस ने रजिस्ट्रेशन नंबर के आधार पर उस के मालिक के बारे में पता किया तो पता चला कि एक्टिवा मिट्ठापुर के रहने वाले विजय कुमार के नाम रजिस्टर्ड थी.

विजय कुमार से जब स्कूटर के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि एक्टिवा को ज्यादातर उस का 20 साल का बेटा अंकुश चलाता था. एक दिन पहले उस ने बताया था कि बाजार से उस की स्कूटर चोरी हो गई थी, जिस की उस ने रिपोर्ट लिखवा दी थी.

सतेंद्र चड्ढा ने अंकुश के बारे में पूछा तो विजय कुमार ने बताया कि वह पिछली रात से घर नहीं आया था. उन्होंने अंकुश की फोटो और मोबाइल नंबर ले लिया. पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा कर उस की फोटो की कौपी बनवा कर पुलिस वालों के अलावा मुखबिरों को भी दे दीं ताकि वे उस के बारे में पता कर सकें.

2 दिनों बाद यानी 25 सितंबर को मुखबिर की सूचना पर बसअड्डे के पास से अंकुश को एक लड़के के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. थाने ला कर पूछताछ की गई तो पता चला उस के साथ पकड़े गए लड़के का नाम सतीश था. उन दोनों ने ही अन्य 2 साथियों अजय और मलकीत के साथ मिल कर सुजाता हांडा और नौकर हरीश को हौकी और स्टिकपैन से जख्मी कर के लूटपाट को अंजाम दिया था.

इस के बाद दोनों की निशानदेही पर अजय और मलकीत को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पकड़े गए चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के पूछताछ एवं सामान बरामद करने के लिए 4 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड अवधि के दौरान अंकुश की निशानदेही पर रुपए तो अजय और मलकीत की निशानदेही पर गहने बरामद कर लिए गए. पूछताछ में पृथ्वी हांडा की पत्नी सुजाता और नौकर हरीश की हत्या तथा लूट की जो वजह सामने आई, वह मात्र बेइज्जती का बदला लेने के लिए किया गया अपराध था.

मिट्ठापुर के रहने वाले विजय कुमार की कपड़ों की सिलाई की दुकान थी, जो खास नहीं चलती थी. फिर भी रातदिन मेहनत कर के उस ने अपने दोनों बेटों अंकुश और विशाल को पढ़ाने की पूरी कोशिश की थी कि वे पढ़लिख कर कुछ बन जाएं. लेकिन उस का यह सपना पूरा नहीं हुआ. अंकुश तो आवारा निकला ही, उस ने छोटे भाई को भी अपने सांचे में ढालने की कोशिश की. लेकिन इस मामले में वह पूरी तरह सफल नहीं हुआ. इस की वजह यह थी कि विशाल थोड़ीबहुत बुद्धि का इस्तेमाल कर लेता था.

अंकुश अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए छोटेमोटे काम कर लिया करता था. इसी क्रम में वह पृथ्वी हांडा के यहां काम करने गया था. शुरू में उस ने मेहनत और ईमानदारी से काम किया, जिस से पृथ्वी हांडा को उस पर विश्वास हो गया. इस के बाद अंकुश ने घर की कोई जरूरत बता कर पृथ्वी हांडा से 10 हजार रुपए उधार ले लिए. उस ने 2 महीना बाद से 2 हजार रुपए महीना तनख्वाह से कटवाने को कहा था, लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी उस ने न तो रुपए लौटाए और न ही वेतन से रुपए काटने दिए.

हर महीने वह कोई न कोई बहाना कर के रुपए काटने से रोक देता था. इसी बीच पृथ्वी हांडा को अंकुश के बारे में पता चला कि वह जैसा दिखाई देता है, वैसा है नहीं. अंकुश की सच्चाई जान कर उन्हें बड़ा दुख हुआ और उन्होंने तय कर लिया कि वह उन के रुपए दे या न दे, अब वह उसे अपने यहां काम पर नहीं रखेंगे.

वेतन वाले दिन पृथ्वी हांडा ने वेतन देते समय अंकुश से पूछा, ‘‘तुम उधार के 10 हजार रुपए लौटा रहे हो या तुम्हारे वेतन से काट लूं ’’

‘‘इस महीने रहने दीजिए, क्योंकि भाई का एडमीशन कराना है और पिताजी भी बीमार हैं.’’

पृथ्वी हांडा को पता था कि अंकुश झूठ बोल रहा है, इसलिए उन्होंने गुस्से में अंकुश की तनख्वाह उस के मुंह पर मार कर नफरत से देखते हुए कहा, ‘‘झूठा कहीं का, यहां से दफा हो जा. तू कभी नहीं सुधर सकता.’’

पृथ्वी हांडा ने अंकुश को जो भी कहा था, दुकान के सभी नौकरों के सामने कहा था, जिस से ये बातें उसे बहुत बुरी लगी थीं. उन की इन बातों से नाराज हो कर उस ने उन्हें सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. उसी दिन से वह हांडा परिवार का ऐसा दुश्मन बन गया, जिस के बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था.

अंकुश पृथ्वी हांडा को सबक सिखाने की योजना बनाने लगा. लेकिन यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने सहपाठियों सतीश, मलकीत और अजय को यह कह कर अपनी योजना में शामिल कर लिया कि हांडा के घर लूट में करोड़ों रुपए मिलेंगे. सभी नादान उम्र कि युवक थे, इसलिए बिना सोचेसमझे वे अंकुश की बातों में आ गए. अंकुश ने अपने भाई विशाल को भी योजना में शामिल कर लिया. इस के बाद अंकुश ने 28 मई, 2016 को अपने इन्हीं साथियों के साथ मिल कर पृथ्वी हांडा की दुकानों में आग लगा दी. उस ने सोचा था कि आग से ताले और शटर पिघल जाएंगे तो वे अंदर जा कर लूट कर लेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

इस योजना में असफल होने के बाद 20 सितंबर को अंकुश ने साथियों के साथ पृथ्वी हांडा की कोठी पर लूट की योजना बनाई. लेकिन इस में विशाल शामिल नहीं हुआ. योजना के अनुसार, अंकुश मलकीत के साथ ठीक साढ़े 5 बजे पृथ्वी हांडा की कोठी में दाखिल हुआ.

कोठी में दाखिल होने से पहले उस ने अपनी एक्टिवा स्कूटर कोठी से थोड़ी दूरी पर खड़ी कर दी थी. सतीश को उस ने बाहर खड़ा कर दिया था ताकि कोई खतरा दिखाई दे तो वह उसे आगाह कर सके. अंकुश अपने साथ एक हौकी ले कर आया था. कोठी के अंदर जाने से पहले उन्होंने मुख्य गेट को अंदर से बंद कर के ताला लगा दिया था.

कोठी में दाखिल होते ही अंकुश का सामना नौकर हरीश से हुआ तो बिना कोई बातचीत किए उस ने हरीश के सिर पर हौकी से अंधाधुंध वार कर किए. हरीश का सिर फट गया, जिस से खून बहने लगा. वह चीख कर फर्श पर गिर पड़ा था. उसी बीच मलकीत रसोई में से स्टिकपैन उठा लाया और उस ने भी उस के सिर पर कई वार किए. इस मारपीट से हरीश बेहोश हो गया.

हरीश चीखा तो उस की चीख सुन कर ड्राइंगरूम में बैठी सुजाता उठ कर उसे देखने आईं. उसी वक्त अंकुश और मलकीत उन पर भी टूट पड़े. वह भी खून से लथपथ हो कर फर्श पर गिर पड़ीं.

इस के बाद अंकुश ने फटाफट सुजाता के शरीर के गहने उतारे और अंदर अलमारी में रखा कैश और आभूषण अपने कब्जे में ले लिए. वहां रखी सेफ को उठा कर वे बाहर ले आए और इनोवा कार में रख दिया. कार की चाबी कहां रखी रहती है, यह अंकुश को पता था. सेफ में काफी दौलत रखी है, यह भी उसे पता था.

उन्होंने सेफ रख कर जैसे ही कार स्टार्ट की, उसी समय जतिन कोठी के अंदर कूदा. उसे देख कर अंकुश और उस के साथी कार छोड़ कर कोठी के अंदर गए और सीढि़यों से छत पर जा कर पीछे से कूद कर भाग गए. भागने में अंकुश की एक्टिवा स्कूटर की चाबी गिर गई, जिस से वे पकड़े गए. रिमांड अवधि समाप्त होने पर इंसपेक्टर सतेंद्र चड्ढा ने अंकुश, मलकीत, सतीश और अजय को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित