कालगर्ल सहेली बनी कातिल

दोस्त को गोली मार कर की खुदकुशी

सेना में लांसनायक संतोष कुमार ने मंगलम कालोनी में किराए के मकान में अपने दोस्त रिकेश कुमार सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी. उस के बाद संतोष ने भी गोली मार कर खुदकुशी कर ली.

धायं… धायं… धायं… एक के बाद एक 3 गोलियां चलीं और आसपास के लोगों को कुछ पता ही नहीं चल सका. हैरानी की बात तो यह भी थी कि मकान में रहने वाले मकान मालिक और बाकी किराएदारों को भी गोली चलने की आवाज सुनाई नहीं पड़ी.

24 सितंबर, 2017 को पटना के दानापुर ब्लौक में हुई इस वारदात में किसी ‘तीसरे’ के होने के संकेत ने पुलिस का सिरदर्द बढ़ा दिया है. दानापुर थाने के बेली रोड पर बसी मंगलम कालोनी में सेना के 32 साला लांसनायक संतोष कुमार सिंह ने लाइसैंसी राइफल से 22 साला दोस्त रिकेश कुमार सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी और उस के बाद खुद को भी गोली मार ली.

संतोष किराए के मकान में अपने परिवार के साथ रहता था. मकान के आसपास के लोगों ने पुलिस को बताया कि हत्या वाले दिन रिकेश कुमार के अलावा एक और आदमी संतोष के घर पर था. किसी ने उस तीसरे शख्स को बाहर निकलते नहीं देखा. पुलिस को उस का कोई अतापता नहीं मिल पा रहा है. कुछ महीने पहले ही संतोष का तबादला अरुणाचल प्रदेश में हो गया था. उस के बाद दोनों फोन पर ही लंबी बातें किया करते थे. संतोष छुट्टी में घर आता, तो रिकेश से मिलता था.

24 सितंबर, 2017 को संतोष ने रिकेश को फोन कर अपने घर बुलाया. रिकेश ने आने से मना किया और कहा कि घर में काफी काम है. उस के बाद संतोष ने उस से कहा कि उस ने घर पर ही उस के लिए खाना बनवाया हुआ है. खाने के नाम पर रिकेश ने उस के घर आने के लिए हामी भरी. कुछ देर बाद रिकेश संतोष के घर पहुंच गया और कमरे में बैठ कर टैलीविजन देखने लगा. उसी दौरान वे दोनों बातचीत भी करते रहे. किसी बात को ले कर दोनों में तीखी झड़प शुरू हो गई. कुछ ही देर में संतोष चिल्लाने लगा, पर रिकेश उस की बातों को अनसुना कर टैलीविजन देखता रहा.

संतोष शादीशुदा था और रिकेश की शादी नहीं हुई थी. घर वाले उस के लिए लड़की ढूंढ़ रहे थे. संतोष कुछ महीने पहले तक बिहार में ही पोस्टैड था. वह बिहार रैजीमैंट के ट्रेनिंग सैंटर में इंस्ट्रक्टर था. रिकेश की भी सेना में सिपाही के पद पर बहाली हुई थी और वह ट्रेनिंग सैंटर में ही ट्रेनिंग ले रहा था. उसी दौरान उस की मुलाकात संतोष से हुई और कुछ ही समय में वे दोनों गहरे दोस्त बन गए. पुलिस ने उन दोनों के मोबाइल फोन का रिकौर्ड खंगाला, तो दोनों के बीच की बातचीत को सुन कर लगा कि उन की दोस्ती हदें पार कर चुकी थी. दोनों हर तरह की बातें खुल कर किया करते थे.

पुलिस के मुताबिक, रिकेश के एक दोस्त ने बताया कि रिकेश किसी को कुछ बताए बगैर ही बैरक से बाहर निकल गया था. देर तक जब वह बैरक में नहीं पहुंचा, तो उस के साथी जवानों ने रिकेश की मां को फोन कर मामले की जानकारी दी.

रिकेश की मां उस समय भोपाल में थीं. उन्होंने पटना से सटे दानापुर इलाके में रहने वाली अपनी बेटी पिंकी को रिकेश के बारे में पता करने को कहा. पिंकी अपने पति मनोज को साथ ले कर देर रात संतोष के घर पहुंची. उस ने मकान मालिक राजेंद्र सिंह से संतोष और रिकेश के बारे में पूछा. मकान मालिक ने उन को घर में नहीं घुसने दिया और सुबह आने को कहा.

दूसरे दिन सुबह पिंकी अपने ससुर जगेश्वर सिंह के साथ संतोष के घर पहुंची. पिंकी ने दरवाजा खटखटाया, पर अंदर से कोई जवाब नहीं मिला. उस के बाद उस ने जोर से चिल्ला कर आवाज लगाई. काफी कोशिश के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, तो उस ने मकान मालिक को मामले की जानकारी दी. मकान मालिक की सहमति के बाद संतोष के मकान का दरवाजा तोड़ा गया. दरवाजा टूटने के बाद जब वे लोग अंदर गए, तो सभी के मुंह से चीखें निकल पड़ीं. कमरे के अंदर संतोष और रिकेश की खून से सनी लाशें पड़ी हुई थीं.

संतोष और रिकेश के परिवार समेत पुलिस भी इस बात से हैरान है कि राइफल की 3 गोलियां चलीं, पर मकान मालिक को उस की आवाज कैसे नहीं सुनाई दी? हैरानी की बात यह भी है कि मकान में रहने वाले बाकी किराएदारों को भी आवाज नहीं सुनाई पड़ी. कमरे में संतोष की राइफल के साथ 3 जिंदा कारतूस और 3 खोखे बरामद हुए. कमरे में लगा टैलीविजन चल रहा था. कमरे से पुलिस ने संतोष और रिकेश के मोबाइल फोन बरामद किए.

22 सितंबर को संतोष अपनी बीवी रिंकी देवी और 10 साल के बेटे आयुष को सारण जिले के चकिया थाना के दुरघौली गांव में छोड़ आया था. दुरघौली उस का पुश्तैनी घर है. उस के पिता धर्मदेव सिंह किसान हैं. रिकेश आरा के दोबाहा गांव का रहने वाला था और उस के पिता का नाम विजय कुमार सिंह है. रिकेश की बहन पिंकी और बाकी घर वालों ने बताया कि संतोष अपनी बहन से रिकेश की शादी करवाना चाहता था. उस ने अपनी बहन से रिकेश को मिलवाया भी था. उस के बाद रिकेश उस से फोन पर अकसर बातें करने लगा था. रिकेश के घर वाले संतोष की बहन को पसंद नहीं करते थे और शादी के लिए राजी नहीं हो रहे थे. संतोष लगातार रिकेश पर शादी का दबाव बना रहा था और रिकेश यह कह कर शादी टाल रहा था कि उस के घर वालों को लड़की पसंद नहीं है.

संतोष की बीवी रिंकी देवी का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. उस ने किसी से किसी तरह का झगड़ा होने की बात से साफ इनकार किया. संतोष के कमरे में टंगे संतोष और रिकेश के हंसतेमुसकराते कई फोटो देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन दोनों के बीच काफी गहरी दोस्ती थी.

रिकेश का सिर बाथरूम के अंदर था और जिस्म का बाकी हिस्सा कमरे में था. ऐसा लग रहा था कि उसे मारने के बाद उस की लाश को घसीट कर बाथरूम की ओर ले जाया गया था. रिकेश के पैर के पास ही संतोष की लाश पड़ी हुई थी. उस के पेट के ऊपर राइफल रखी हुई थी और उस की नली के आगे के हिस्से में खून के दाग थे.

रिकेश के शरीर में 2 गोलियों के निशान थे और संतोष की ठुड्डी पर गोली का निशान था. उस के सिर के पिछले हिस्से में काफी गहरा जख्म था. संतोष के गले में रस्सी भी बंधी हुई थी और उस का दूसरा छोर सीलिंग पंखे से बंधा हुआ था. इस से यह पता चलता है कि संतोष ने पहले गले में फंदा डाल कर पंखे से लटक कर जान देने की कोशिश की होगी. उस में कामयाबी नहीं मिलने के बाद उस ने गोली मार कर खुदकुशी कर ली.

पेपर माफिया के निराले खेल – भाग 3

यूनिवर्सिटी के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. जगदीश प्रसाद जाट की गिरफ्तारी भी 17 अप्रैल को नाटकीय तरीके से हुई. उस दिन सुबह एसओजी के एक डिप्टी एसपी महिला पुलिसकर्मी के साथ पितापुत्री बन कर जयपुर में मौडल टाउन स्थित प्रो. जगदीश प्रसाद जाट के घर गए. वे किराएदार बन कर उन से मिले और किराए पर मकान लेने की बात कही.

प्रो. जगदीश प्रसाद जाट ने उन्हें अपना मकान दिखा दिया. किराए पर मकान लेने के बहाने एसओजी के डिप्टी एसपी ने पूरा मकान देखपरख लिया और अन्य सबूट जुटा लिए. इस के बाद डिप्टी एसपी ने बाहर खड़े एसओजी के एडिशनल एसपी को खुद का दामाद बता कर अंदर बुलाया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

एसओजी की टीम प्रो. जगदीश प्रसाद जाट को ले कर एसओजी मुख्यालय पहुंची तो वह हैरान रह गए. जो लोग किराए पर मकान लेने आए थे, वे पुलिस के अफसर निकले. दूसरी ओर प्रो. जगदीश प्रसाद जाट को एक महिला समेत 3-4 लोगों द्वारा ले जाने पर उन के घर में हड़कंप मच गया. वे समझ नहीं सके कि क्या हुआ था. उन्होंने पुलिस को प्रो. जगदीश प्रसाद जाट के अपहरण की सूचना दे दी.

उन की सूचना पर थाना मालवीयनगर पुलिस मौके पर पहुंची और जांच शुरू कर दी. करीब 3 घंटे बाद पता चला कि प्रो. जगदीश प्रसाद जाट को एसओजी ले गई थी. दिन भर की पूछताछ के बाद शाम को प्रो. जगदीश प्रसाद जाट की गिरफ्तारी की सूचना मिलने पर उन के घर वालों के चेहरे मुरझा गए थे.

यही स्थिति रमेश बुक डिपो के कर्मचारी शरद को गिरफ्तार करने के दौरान हुई थी. उस दिन सुबह सादे कपड़ों में एसओजी की टीम जयपुर में मानसरोवर के रजत पथ स्थित रमेश बुक डिपो से शरद को पकड़ कर ले गई. इस पर बुक डिपो के लोगों ने पुलिस को शरद के अपहरण की सूचना दे दी. थाना मानसरोवर पुलिस ने जांच की तो पता चला कि शरद को एसओजी ले गई थी.

पेपर लीक रैकेट में जयपुर के कई बुक डिपो की भूमिका संदिग्ध पाई गई है. ये बुक डिपो विशेषज्ञों के नाम पर वन वीक सीरीज, गेस पेपर व पासबुक प्रकाशित करते हैं. रैकेट ने जिनजिन पेपरों को आउट किए हैं, उन पेपरों के न्यूमेरिकल हूबहू पासबुक व वन वीक सीरीज में थे. दरअसल, अलगअलग कालेजों एवं यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों तथा लेक्चरर विभिन्न बुक डिपो से जुड़े हुए हैं. कोई बुक डिपो की किताबों का लेखक है तो कोई वन वीक सीरीज का विशेषज्ञ.

बांदीकुई के कोचिंग संचालक चंद्रप्रकाश ने एसओजी को पूछताछ में बताया कि उसे आमतौर पर शाम को या देर रात को अगले दिन की परीक्षा का पेपर मिल जाता था. इस पेपर के आधार पर कोचिंग सेंटर के विद्यार्थियों को रिवीजन के नाम पर कोचिंग सेंटर पर बुला कर रात भर पेपर रटवाया जाता था. इस से उस की कोचिंग को प्रसिद्धि मिल रही थी. पेपर लीक रैकेट के उजागर होने से राजस्थान यूनिवर्सिटी प्रशासन उलझन में फंस गया है.

एसओजी की जांच एवं अन्य सबूतों के आधार पर कई पेपर आउट हुए थे. एसओजी ने इस का खुलासा तो किया ही, आरोपियों ने अपनी करतूत भी स्वीकार कर ली. लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन उन पेपरों को आउट घोषित करने में देरी करता रहा. इस की वजह यह थी कि परीक्षा प्लानिंग एवं मौनिटरिंग कमेटी ही यूनिवर्सिटी की सब से पावरफुल कमेटी होती है.

प्रो. गोविंद पारीक इस कमेटी के संयोजक थे और वह पेपर लीक मामले में गिरफ्तार हो चुके थे. हालांकि उन की गिरफ्तारी के कई दिनों बाद उन के स्थान पर प्रो. एस.एल. शर्मा को इस कमेटी का संयोजक बना दिया गया था. प्रो. गोविंद पारीक ने यूनिवर्सिटी की चयन कमेटी की परीक्षाओं में पेपर लीक न हो, इस की जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन वह खुद ही पेपर लीक करने वालों में शामिल थे.

एसओजी की जांच में सामने आया है कि एमकौम का जो पेपर प्रो. गोविंद पारीक को बनाना था, वह उन्होंने चौमूं के निजी कालेज अग्रसेन कालेज के प्रोफेसर शंभुदयाल से बनवाया था और यूनिवर्सिटी में पेपर जमा करवाते समय यह शपथ पत्र दिया था कि पेपर उन्होंने खुद बनाया है. जबकि निजी कालेज के प्रोफेसर शंभुदयाल से पेपर बनाने के दौरान ही लीक हो गया था.

21 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कुलपति वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजेश्वर सिंह ने एग्जामिनेशन प्लानिंग एंड मौनिटरिंग कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 5 पेपर रद्द करते हुए उन्हें दोबारा कराने का फैसला लिया.

इन में 10 अप्रैल को होने वाला बीए फाइनल ईयर का ज्योग्राफी प्रथम का प्रश्नपत्र, 11 अप्रैल को हुआ. एमए फाइनल ईयर का ज्योग्राफी औफ वाटर रिसोर्सेज देयर मैनेजमेंट एंड यूटिलिटीज का प्रश्नपत्र, 12 अप्रैल को होने वाला बीए फाइनल ईयर  का ज्योग्राफी द्वितीय का प्रश्नपत्र, 13 अप्रैल को हुआ एमकौम प्रीवियस का एबीएसटी (एडवांस कास्ट एकाउंटिंग) का प्रश्नपत्र तथा 17 अप्रैल को आयोजित एमए फाइनल  ईयर का एडवांस ज्योग्राफी औफ इंडिया प्रश्नपत्र का पेपर रद्द कर दिया गया.

दूसरी ओर एसओजी की ओर से लगातार की जा रही गिरफ्तारियों के विरोध में राजस्थान यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ एवं राजस्थान विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने मोर्चा खोल दिया. इन का कहना था कि एसओजी मनमर्जी से काररवाई कर रही है, जबकि सारे शिक्षक गलत नहीं हैं. कुछ शिक्षकों ने गेस पेपर विद्यार्थियों को बताए हैं, लेकिन फोन रिकौर्डिंग में रुपयों के लेनदेन की कोई बात साबित नहीं हो रही है.

एसओजी ने करीब एक महीने की अपनी जांच में लगभग सौ से अधिक लोगों के फोन टेप किए. इन फोन काल्स रिकौर्डिंग में कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं. इस के बाद 17 अप्रैल को एक साथ जयपुर, बीकानेर, चौमूं, बांदीकुई, हनुमानगढ़ के भादरा आदि स्थानों पर छापे मारे गए. सब से पहले 8 लोगों को पकड़ा गया. इन से पूछताछ में कडि़यां जुड़ती गईं और 7 दिनों में 19 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया.

एसओजी की जांच में ऐसे लेक्चरर और प्रोफेसर सामने आए हैं, जिन्होंने अपना ईमान नहीं बेचा. फोन रिकौर्डिंग के अनुसार, एक दिन यूनिवर्सिटी के डिप्टी रजिस्ट्रार एम.सी. गुप्ता ने गोपनीय शाखा के अनुभाग अधिकारी नंदलाल सैनी को फोन कर के पूछा, ‘परीक्षाओं की क्या तैयारी चल रही है?’

नंदलाल ने कहा, ‘‘सर, पेपर प्रिंट हो कर आने लगे हैं.’’

‘‘अच्छा…यार ये इनकम टैक्स का पेपर किस का प्रिंट हुआ है?’’ गुप्ता ने पूछा.

नंदलाल ने बताया, ‘‘सर, कोई राम गर्ग हैं.’’

‘‘कहां का है यह?’’

‘‘सर, कूकस में आर्यन कालेज का लेक्चरर है.’’

‘‘यार, उस का कोई नंबर है तो मैसेज कर दो.’’

‘‘ठीक है सर, अभी करता हूं.’’

बाद में डिप्टी रजिस्ट्रार एम.सी. गुप्ता ने राम गर्ग को फोन किया, ‘‘राम गर्गजी बोल रहे हैं?’’

‘‘हां, बोल रहा हूं. बताओ, क्या काम है?’’ राम गर्ग ने पूछा.

‘‘मैं यूनिवर्सिटी से डिप्टी रजिस्ट्रार एम.सी. गुप्ता बोल रहा हूं.’’

‘‘जी सर, बताइए.’’

‘‘यार, आप ने जो पेपर सेट किया है, वही आएगा.’’

गर्ग, ‘‘अच्छा…’’

गुप्ता ने कहा, ‘‘यार, कौन से क्वेश्चन पेपर के लिए सेलेक्ट किए हैं, जरा बताओ.’’

‘‘पेपर..? सर मरवाओगे क्या? मैं ऐसा नहीं करूंगा.’’

‘‘अरे यार, कुछ नहीं होगा. तुम्हारे भी काम आऊंगा.’’

‘‘नहीं सर, मैं नहीं बताऊंगा. माफ करो.’’

कथा लिखे जाने तक कई प्रोफेसर फरार थे. एसओजी उन की तलाश में जुटी थी. बहरहाल, पेपर लीक प्रकरण ने उच्च शिक्षा को राजस्थान को बदनाम कर दिया है. इस समय राजस्थान में कभी किसी यूनिवर्सिटी और कालेज के पेपर आउट हो रहे हैं तो कभी किसी भर्ती परीक्षा के.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ठगों ने खोला गृह मंत्रालय का फरजी ट्रेनिंग सेंटर – भाग 3

हडक़ाया डीसीपी सतीश कुमार को…

इन में से एक युवक ट्रेनिंग हाल में 11 युवकों और एक युवती को लेक्चर देता मिला था, उस ने अपना नाम आशीष चौधरी बताया. वह बड़े रोबदार आवाज में डीसीपी सतीश कुमार को हडक़ाते हुए बोला, ‘‘आप नहीं जानते मैं कौन हूं. मैं गृह मंत्रालय के डिपार्टमेंट औफ क्रिमिनल इंटेलिजेंस में डीसीपी हूं. मुझ पर हाथ डालना आप लोगों को महंगा पड़ जाएगा.’’

एक बार को डीसीपी सतीश कुमार भी चकरा गए. यह व्यक्ति सच बोल है या झूठ, वह निर्णय कर पाते उस से पहले ही स्पैशल सीपी रविंद्र यादव ने आशीष चौधरी के गरेबान पर हाथ डाल दिया. वह आशीष चौधरी को घूरते हुए बोले, ‘‘हमारे साथ क्राइम ब्रांच के औफिस चलो… वहां बताना तुम कौन हो.’’

आशीष चौधरी चीखता रहा, तरहतरह की धमकियां देता रहा, लेकिन उस की नहीं सुनी गई. उसे इंसपेक्टर अभिजीत और एसआई इंद्रवीर सिंह ने जबरन पुलिस वैन में बिठा लिया. दूसरे लोगों को भी पुलिस वैन में बिठा कर उस जगह को ताला लगा दिया गया. यह क्राइम ब्रांच की टीम पहले इन लोगों की असलियत जान लेना चाहती थी, तभी इस ट्रेनिंग सेंटर की तलाशी का काम शुरू होता. इन्हें क्राइम ब्रांच के औफिस में लाया गया.

यहां खुद को गृह मंत्रालय में क्रिमिनल इंटेजिलेस में डीसीपी बता रहे आशीष चौधरी से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस की सारी हेकड़ी धरी की धरी रह गई. उस ने स्वीकार किया कि वह गृह मंत्रालय के नाम पर फरजी ट्रेनिंग सेंटर चला रहा था. आशीष ने बताया कि वह 7वीं क्लास तक पढ़ा है. शुरू से ही वह बहुत महत्त्वाकांक्षी था, ढेर सारा रुपया कमाना चाहता था. कम शिक्षा की बदौलत सरकारी जौब तो वह पा नहीं सकता था, लेकिन सरकारी दफ्तर खोल कर जरूर बैठ सकता था.

सेंटर खोलते ही फंसते गए बेरोजगार…

उस ने शुरूशुरू में मेहरौली में एंटी करप्शन आर्गनाइजेशन का औफिस खोला था, वहां उसे कामयाबी नहीं मिली तो एनजीओ चलाया, उस में भी सफलता नहीं मिली तो उसे बंद कर के घर बैठ गया. 2017 में उस ने अंकिता नाम की महिला से कोर्टमैरिज कर ली. उस समय उस की उम्र 27 साल थी जबकि अंकिता 40 साल की थी और 8 साल की बेटी की मां भी थी.

आशीष ने बताया कि 2014 में गोविंद कौशिक नाम के युवक से मुलाकात हुई. वह प्राइवेट जौब करता था. उस ने सलाह दी कि यदि गृह मंत्रालय के तहत अंडर कवर एजेंट ट्रेनिंग सेंटर खोला जाए तो अच्छी आमदनी की जा सकती है. वह ऐसे युवकों को जानता है, जिन्हें किसी भी कीमत पर सरकारी नौकरी चाहिए. इस के बाद आशीष ने गोविंद कौशिक को साथ मिल कर जाफरपुर कलां में किराए की जगह ले कर यह ट्रेनिंग सेंटर खोल लिया. यहां पर उसे अमित कुमार नाम का एक पार्टनर और मिल गया. अमित दिल्ली होम गार्ड में नौकरी करता था.

“ट्रेनिंग सेंटर में तुम ने युवकों को क्या कह कर जौइन करने को उकसाया था?’’ इंसपेक्टर अभिजीत ने पूछा.

“सर, हम युवकों को कहते थे कि यहां गृह मंत्रालय के अंडर में अंडर कवर एजेंटों की भरती करनी है. यहां जाफरपुर कलां में उन्हें ट्रेनिंग दी जाएगी. जैसे ही अंडर कवर एजेंटों की भरती खुलेगी, उन्हें वहां लगा दिया जाएगा. सिक्योरिटी के लिए उन्हें 5 लाख रुपया देना होगा. हम वहां सेंटर में उन्हें 9 बजे बुलाते थे और 5 बजे छुट्ïटी देते थे. सभी को यह कहा गया था कि यह गृह मंत्रालय का एक संवेदनशील डिर्पाटमेंट है, देश हित में कार्य करता है, इसलिए कोई बात लीक नहीं होनी चाहिए. हमारे सैंटर से 11 युवक और एक युवती जुड़ गए थे. अभी गोविंद कौशिक के द्वारा 8-10 नए युवक यह ट्रैनिंग सेंटर जौइन करने वाले थे, लेकिन रेड पड़ गई.’’

पूछताछ में पता चला कि इस फरजी ट्रेनिंग सेंटर को 3 लोग मिल कर चला रहे थे, जिन में आशीष चौथरी, गुरुग्राम के न्यू पालम विहार, सैक्टर 9 का रहने वाला है. दूसरा 33 साल का गोविंद कौशिक. यह अशोक नगर, बी ब्लौक का निवासी है. तीसरा 34 साल का अमित कुमार जो सूरजकुंड, फरीदाबाद का रहने वाला है.

तीनों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया तो उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. 11 बेरोजगार युवकों और एक युवती से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि वे तो नौकरी मिलने की लालसा में इन चंगुल में फंसे थे. जैसेतैसे कर के उन्होंने इन ठगों को पैसे दिए थे. पुलिस ने इन के नामपते दर्ज कर के उन्हें बुलाए जाने पर यहां आने की हिदायत दे कर घर जाने दिया.

जाफरपुर कलां के फरजी ट्रेनिंग सेंटर में जो चीजें बरामद की गईं, उन में रिक्रूटमेंट एप्लिकेशन, फेक काल लेटर, अपौइंटमेंट लेटर, 3 लाख रुपए नगद, 2 वायरलैस सेट, एक वायरलैस फोन, 16 फेक आईडी कार्ड, खाकी यूनिफार्म, 20 जोड़े खाकी मोजे, 4 जोड़ी पुलिस के जूते, 15 खाकी मास्क, डीसीआई लोगो के छपे हुए लिफाफे, औफिस स्टेशनरी, रजिस्टर फाइल कवर, 7 रबड़ स्टांप, ट्रेनिंग फाइल, डीसीआई के डीजी (डायरेक्टर जनरल) की फेक फोटो फ्रेम और राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की फोटो फ्रेम और अशोक चक्र लगे डीसीआई के झंडे, कंप्यूटर तथा लैपटाप थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. रजनी और उपेंद्र काल्पनिक नाम हैं.

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान – भाग 3

4 साल पहले मुरादाबाद के रहने वाले नंदकिशोर से कुलदीप की मुलाकात एक वैवाहिक आयोजन के दौरान हुई थी. उस के बाद से दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. वैसे नंदकिशोर उर्फ नंदू चाऊ की बस्ती लाइनपार का रहने वाला था. उस के पिता मुरादाबाद रेलवे में टैक्नीशियन के पद पर थे, जो रिटायर हो चुके थे. नंदकिशोर खुद एमटेक की पढ़ाई पूरी कर एक दवा कंपनी में मैडिकल रिप्रजेंटेटिव का काम करता था. उस ने एक दवा कंपनी की फ्रैंचाइजी भी ले रखी थी और दवाओं का कारोबार शुरू किया था.

इस काम को शुरू करने के लिए उस ने 20 लाख का गोल्ड लोन ले रखा था. संयोग से लौकडाउन में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जिस कारण वह लोन की किस्त नहीं जमा कर पाया था. इस वजह से वह काफी परेशान चल रहा था. वह अपनी सारी तकलीफें कुलदीप को बताया करता था. उस ने अपने कर्ज और किस्त नहीं जमा करने की मुसीबत भी बताई थी. उसे पता था कि कुलदीप का कारोबार अच्छी तरह से चल रहा है. इसे देखते हुए उस ने मदद के लिए उस के सामने हाथ फैला दिया.

उस से 65 हजार रुपए उधार मांगे और उसे विश्वास दिलाया कि पैसे जल्द वापस कर देगा. ज्यादा से ज्यादा 2 महीने का समय लगेगा. कुलदीप ने पैसे देने से इनकार तो नहीं किया, मगर वह कई दिनों तक उसे टालता रहा. नंदकिशोर के बारबार कहने पर कुलदीप बोला, ‘‘यार तू तो पहले से ही कर्जदार है तो मेरा 65 हजार कैसे वापस कर पाएगा? और फिर तेरी इतनी औकात अभी नहीं है.’’

यह सुन कर पहले से ही टूट चुका नंदकिशोर बहुत मायूस हो गया. उस ने केवल इतना कहा कि यदि तुम्हें नहीं देना था तो पहले दिन ही मना कर देता. यहां तक तो ठीक था. उन की दोस्ती पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा. लेकिन कुलदीप बारबार उस के जले पर नमक छिड़कता रहा. एक दिन तो कुलदीप ने हद ही कर दी. एक पार्टी में नंदकिशोर की कई लोगों के सामने बेइज्जती कर दी.

पार्टी छोटेबड़े कारोबारियों की थी. इस में शामिल लोगों की अपनीअपनी साख थी. कौन कितनी हैसियत वाला है और कौन किस कदर भीतर से खोखला, इसे कोई नहीं जानता था. कहने का मतलब यह था कि सभी एकदूसरे की नजर में अच्छी हैसियत वाले थे. पार्टी के दरम्यान कोरोना काल में कई तरह के बिजनैस में नुकसान होने की बात छिड़ी, तब कुलदीप ने नंदकिशोर पर ही निशाना साध दिया. पहले तो उस ने सब के सामने कह दिया कि वह लाखों का कर्जदार बना हुआ है. यह बात कुछ लोगों को ही मालूम थी. इस भारी बेइज्जती से नंदकिशोर तिलमिला गया. उस वक्त तो खून का घूंट पी कर रह गया.

ऐसा कुलदीप ने उस के साथ कई बार किया. नंदकिशोर ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए पुलिस को बताया कि कुलदीप पैसे के घमंड में चूर था. बड़ेबड़े दावे करना, बेइज्ज्ती करना उस के लिए मनोरंजन का साधन बन गया था. उस ने बताया कि इस से वह काफी तंग आ चुका था. तभी उस ने निर्णय लिया वह कुलदीप को सबक जरूर सिखाएगा. उस ने कसम खाई और योजना बना कर उस में अपने बुआ के लड़के कर्मवीर उर्फ भोलू और रणबीर उर्फ नन्हे को शामिल  कर लिया. कर्मवीर और रणबीर दोनों सगे भाई थे.

योजना के अनुसार, कुलदीप की हत्या से कुछ दिन पहले नन्हे को बताया कि कुलदीप ने हाल में ही अपनी पोलो कार बेची है. उस से मिले 4 लाख रुपए उस के पास हैं. पैसा हड़पने में मदद करने पर उसे भी हिस्सेदार बनाया जाएगा. नन्हे इस के लिए तैयार हो गया. नंदकिशोर ने कुलदीप को अच्छी हालत में मारुति स्विफ्ट कार दिलवाने का सपना दिखाया. उसी कार को दिखाने के बहाने से वह 4 जून, 2021 को अपनी बाइक से कुलदीप को ले कर कांठ में डेंटल हौस्पिटल के सामने पहुंच गया.

वहां पहले से ही नन्हे और भोलू एंबुलेंस ले कर उस का इंतजार कर रहे थे. एंबुलेंस भोलू चलाता था. वहां उस ने कहा कि आज ही बिजनौर जा कर पेमेंट करनी होगी. कुलदीप उस की बातों में आ गया. उस के साथ एंबुलेंस में बैठ गया. रास्ते में नंदकिशोर ने शराब की एक बोतल खरीदी. आगे चल कर स्यौहारा कस्बे में गाड़ी रोक कर तीनों ने शराब पी. कुलदीप जब शराब के नशे में धुत हो गया, तब नंदकिशोर ने उस के साथ मारपीट शुरू कर दी. उस से बोला, ‘‘अगर वह अपनी जिंदगी बचाना चाहता है तो 4 लाख रुपए मंगवा ले.’’

मरता क्या न करता, कुलदीप ने अपनी पत्नी सुनीता को फोन कर पैसे दुकान पर मंगवा लिए. इधर नंदकिशोर ने कर्मवीर उर्फ भोलू को भेज कर दुकान से वह पैसे मंगवा लिए. पैसा मिल जाने पर भी नंदकिशोर ने उसे नहीं छोड़ा. एंबुलेंस में औक्सीजन सिलेंडर का मीटर खोलने वाले औजार (स्पैनर) से उस ने कुलदीप के सिर पर कई वार कर दिए.

नशे की हालत में होने के कारण कुलदीप खुद को संभाल नहीं पाया. कुछ समय में ही उस की वहीं मौत हो गई. बाद में कुलदीप की लाश को एंबुलेंस में डाल कर धामपुर, नगीना, नजीबाबाद और भी कई जगह ले कर घूमते रहे. अगले दिन 5 जून को रात के 8 बजे उन्होंने लाश को गंगाधरपुर की सड़क पर डाल कर दोनों मुरादाबाद वापस लौट आए.

मुरादाबाद पुलिस ने नंदकिशोर और उस के साथी से साढ़े 3 लाख रुपए बरामद कर लिए. पूछताछ में नंदकिशोर ने इस योजना में शामिल 2 और लोगों के नाम बताए. उस के बताए सुराग से एक पकड़ा गया, लेकिन रणबीर उर्फ नन्हे 50 हजार रुपए ले कर फरार हो चुका था. बताते हैं कि कुलदीप के गले से हनुमान का 3 तोले का लौकेट भी गायब था. मुरादाबाद पुलिस ने 7 जून, 2021 को प्रैसवार्ता कर पूरी घटना की जानकारी दी.

ठगों ने खोला गृह मंत्रालय का फरजी ट्रेनिंग सेंटर – भाग 2

दिखने में लग रहा था सरकारी अधिकारी का औफिस…

उपेंद्र अपने कपड़े दुरुस्त कर के आगे बढ़ा तो उस का दिल धडक़ उठा. किसी तरह खुद पर नियंत्रण पाने की कोशिश करते हुए उपेंद्र ने दरवाजे पर पहुंच कर अंदर देखा. दरवाजे पर सफेद परदा पड़ा था. उपेंद्र ने परदा हटा कर शीशे में से झांका, अंदर बड़ी टेबल के पीछे व्हीलचेयर पर एक हृष्टपुष्ट कदकाठी का व्यक्ति बैठा हुआ फाइल देख रहा था. उस की टेबल पर सफेद कपड़ा बिछा हुआ था. टेबल पर ग्लोब रखा था. उस के पास बेशकीमती पैन स्टैंड, कुछ फाइल्स, पेपर वेट और ताजे फूलों का गुलदस्ता रखा हुआ था. गुलदान में गुलाब के ताजे फूल खिले हुए नजर आ रहे थे.

टेबल के दाईं ओर पीतल की नेम प्लेट रखी थी, जिस पर अमित कुमार, सीबीआई रैंक इंसपेक्टर लिखा हुआ था. जहां अमित कुमार की व्हीलचेयर थी, उस के पीछे सफेद दीवार पर महात्मा गांधी की फोटो लगी हुई थी. बाहर से ही कमरे का निरीक्षण कर लेने के बाद उपेंद्र ने धीरे से शीशे का दरवाजा खटखटाते हुए कहा, ‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’

अमित कुमार ने चौंकते हुए सिर उठाया और दरवाजे पर उपेंद्र को देख कर गंभीर लहजे में कहा, ‘‘वेलकम. आप अंदर आ सकते हैं?’’

उपेंद्र ने शीशे का दरवाजा खोला और अंदर आ गया. उस ने अमित कुमार को गुड मार्निंग कहा और उन के इशारे पर सामने रखी कुरसी पर बैठ गया.

“अपना रिज्यूमे लाए हैं आप?’’ अमित कुमार ने फाइल बंद करते हुए पूछा.

“जी सर,’’ कहते हुए उपेंद्र ने फाइल में से रिज्यूमे निकाल कर अमित कुमार के सामने रख दिया.

अमित ने नियम और शर्तों की दी जानकारी…

अमित कुमार ने रिज्यूमे पर सरसरी नजर डाली और मुसकरा कर उपेंद्र की तरफ देख कर कहा, ‘‘आप ने ग्रैजुएशन किया है, यह जान कर खुशी हुई. क्या आप यहां पर सर्विस करने के इच्छुक हैं?’’

“इसीलिए तो आया हूं सर.’’

“आप पहले यहां के रूल रेगुलेशन समझ लें तो आप के लिए बेहतर रहेगा.’’ अमित कुमार ने गंभीरता से कहा. उपेंद्र तुरंत सावधान हो कर बैठ गया, ‘‘जी सर, बताइए.’’

“देखिए उपेंद्रजी, हम यहां ग्रैजुएट युवकों को ही भरती कर रहे हैं, ऐसे युवक जो अपने देश से प्यार करते हों, जो पूरी निष्ठा से इस अंडरकवर एजेंट की ट्रेनिंग पूरी करें.’’

“मैं आप को विश्वास दिलाता हूं सर कि पूरी निष्ठा से मैं इस अंडरकवर एजेंट की ट्रेनिंग पूरी करूंगा.’’

“आप को यहां जौइनिंग मिल जाएगी, लेकिन इस के लिए सिक्योरिटी के तौर पर आप हमें 5 लाख रुपए देंगे.’’

“प… पांच लाख?’’ उपेंद्र का स्वर कांप गया, ‘‘सर, 5 लाख न हों तो…’’

“तो आप को जौब नहीं मिलेगी.’’ अमित कुमार ने सिर झटका, ‘‘वैसे 5 लाख रुपया हमें नहीं रखना. यह तो आप को सिक्योरिटी के लिए जमा करने होंगे. आप की कुछ ही साल यहां अंडरकवर एजेंट की ट्रेनिंग चलेगी. ट्रेनिंग हम इसलिए दे रहे हैं कि आप भविष्य में देश के लिए एक मंझे हुए एजेंट बन कर डिपार्टमेंट औफ क्रिमिनल इंटेलिजेंस की छत्रछाया में देश हित में काम कर सकें. आप को होम मिनिस्ट्री से यह ट्रेनिंग दिलवाई जाएगी. चूंकि अभी क्रिमिनल इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट में नियुक्तियां भर गई हैं, इसलिए यहां ट्रेनिंग सेंटर खोल कर युवकों को देश सेवा के लिए तैयार किया जा रहा है.’’

“आप से एक सवाल है सर.’’ उपेंद्र ने टोका.

“बेहिचक पूछ सकते हैं आप, जो भी मन में शंका हो.’’ अमित कुमार ने उपेंद्र की तरफ देख कर ठहरे हुए शब्दों में कहा.

“क्या ट्रेनिंग के दौरान एजेंट को सैलरी दी जाएगी?’’

“नहीं,’’ अमित कुमार ने सिर हिलाया, ‘‘आप की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद आप को यदि (डीसीआई) डिपार्टमेंट औफ क्रिमिनल इंटेलिजेंस में भरती कर लिया जाता है तो आप को होम मिनिस्ट्री से पूरी सैलरी दे दी जाएगी, जो ट्रेनिंग के वक्त को जोड़ देने पर लाखों रुपए में हो सकती है.’’

“यदि भरती नहीं किया गया तो?’’ उपेंद्र ने शंका प्रकट की.

“फिर आप को कुछ नहीं मिलेगा.’’ अमित कुमार ने स्पष्ट किया.

“ठीक है सर, मैं 5 लाख का इंतजाम करता हूं.’’ उपेंद्र ने उठते हुए कहा.

“एक बात का विशेष खयाल रखेंगे आप,’’ अमित कुमार ने टोका, ‘‘आप यहां की कोई भी बात बाहर नहीं बताएंगे. अपनी मां या पत्नी को भी नहीं. यह सुरक्षा के लिए जरूरी है मिस्टर उपेंद्र.’’

“ओके सर. मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगा.’’ उपेंद्र ने कहा और दरवाजे से बाहर आ गया. तभी उस के कदम ठिठक गए. अंदर अमित कुमार फोन पर किसी से कुछ कह रहा था. उपेंद्र ने कान लगा कर सुना. अमित किसी को बता रहा था, ‘‘मुरगा फंस गया है जनाब, चारा ही ऐसा डाला है कि वह खाएगा जरूर. अपने 5 लाख पक्के.’’

उपेंद्र को अपना सिर चकराता महसूस हुआ. वह खुद को संभाल कर तेजी से दरवाजे के पास से हट गया.

क्राइम ब्रांच को मिली फरजी सेंटर की सूचना…

राजौरी गार्डन के (डब्ल्यूआर-1) यूनिट क्राइम ब्रांच के स्पैशल सीपी रविंद्र सिंह यादव को किसी अज्ञात फोन नंबर सूचना मिली कि जाफरपुर कलां में होम मिनिस्ट्री के नाम पर एक फरजी अंडर कवर एजेंट ट्रेनिंग सेंटर बना कर बेरोजगार युवकों को बेवकूफ बनाया जा रहा है. उन से 5-5 लाख रुपए लिए जा रहे हैं.

सूचना देने वाले ने अपना नामपता नहीं बताया था. सीपी रविंद्र यादव ने फिर भी इस सूचना को गंभीरता से लिया. उन्होंने सब से पहले क्राइम ब्रांच के राजौरी गार्डन क्षेत्र के डीसीपी सतीश कुमार, एसीपी राजकुमार, इंसपेक्टर अभिजीत कुमार और एसआई इंद्रवीर सिंह को अपने औफिस में बुला लिया.

सभी अफसर उन के औफिस में आ गए. सीपी रविंद्र सिंह यादव ने सभी को बैठा कर गंभीर स्वर में कहा, ‘‘एक अज्ञात व्यक्ति की ओर से मुझे सूचना दी गई है कि जाफरपुर कलां में एक फरजी प्रशिक्षण केंद्र बना कर कुछ व्यक्ति बेरोजगार युवकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं. यह प्रशिक्षण केंद्र भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अंडर में चलाया जा रहा है. वहां युवकों को गृह मंत्रालय के तहत अंडर कवर एजेंट बना कर नौकरी देने का वादा कर के उन से 5-5 लाख रुपया लिया जा रहा है.’’

“यह तो गृह मंत्रालय के नाम पर युवकों को बेवकूफ बना कर लूटने का धंधा हुआ सर.’’ इंसपेक्टर अभिजीत कुमार हैरान स्वर में बोले.

“बेशक.’’ सीपी रविंद्र सिंह ने सिर हिलाया, ‘‘मैं खुद इस रैकेट की असलियत जानने के लिए चल रहा हूं. आप सब तैयार हो जाइए.’’

आधे घंटे बाद ही स्पैशल पुलिस कमिश्नर रविंद्र सिंह यादव के साथ डीसीपी सतीश कुमार, एसीपी राजकुमार, इंसपेक्टर अभिजीत और एसआई इंद्रवीर सिंह जाफरपुर कलां के लिए निकल गए. जाफरपुर कलां में अंडर एजेंट ट्रेनिंग सैंटर पहुंच कर क्राइम ब्रांच की टीम ने वहां अकस्मात छापा मारा तो वहां से इस फरजी ट्रेनिंग चलाने वाले 3 मुखियाओं के साथ 11 युवक और एक युवती को हिरासत में ले लिया गया.

पेपर माफिया के निराले खेल – भाग 2

लगातार तीसरे दिन काररवाई करते हुए एसओजी ने 19 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कौमर्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. महेशचंद गुप्ता को गिरफ्तार किया. उन्होंने यूनिवर्सिटी के एमकौम प्रीवियस की 13 अप्रैल को हुई एबीएसटी की परीक्षा का पेपर तैयार किया था.

इस की सूचना यूनिवर्सिटी की गोपनीय शाखा के अनुभाग अधिकारी नंदलाल सैनी ने प्रो. अशोक अग्रवाल को दी थी. प्रो. अशोक अग्रवाल ने डा. महेशचंद गुप्ता से संपर्क कर परीक्षा से एक दिन पहले पेपर हासिल कर लिया था. उसी दिन एसओजी ने राजकीय कालेज कालाडेरा के भूगोल के लेक्चरर सुरेंद्र कुमार सैनी को गिरफ्तार किया. उन्होंने यूनिवर्सिटी के एमए/एमएससी फाइनल ईयर भूगोल की एडवांस ज्योग्राफी औफ इंडिया की 17 अप्रैल को होने वाली परीक्षा का पेपर तैयार किया था.

सैनी ने यह पेपर शंकर को बता दिया था. शंकर के माध्यम से यह पेपर जगदीश प्रसाद जाट एवं अन्य लोगों तक पहुंच गया था. इस के बाद एसओजी ने 21 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कौमर्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर व चीफ वार्डन राजीव शर्मा एवं यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक के निजी सचिव सुरेंद्र मोहन शर्मा को गिरफ्तार किया.

इन में निजी सहायक सुरेंद्र मोहन शर्मा ने नंदलाल सैनी से पेपर बनाने वाले प्राध्यापकों के नाम पता कर के एसोसिएट प्रोफेसर राजीव शर्मा को बताए थे. राजीव शर्मा ने अपने परिचितों के लिए पेपर बनाने वाले उन प्राध्यापकों से संपर्क किया और परीक्षा की गोपनीयता भंग की.एसओजी ने 22 अप्रैल को यूनिवर्सिटी के डिप्टी रजिस्ट्रार एम.सी. गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया. इस के अगले दिन जयपुर के टोंक फाटक स्थित एक कौमर्स कोचिंग क्लासेज के संचालक अतिशय जैन को पकड़ा गया. इस तरह पेपर लीक प्रकरण में 17 से 23 अप्रैल तक 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया.

इन लोगों से की गई पूछताछ और एसओजी की जांच में सामने आया कि सरकारी यूनिवर्सिटी के अधिकारियों, कर्मचारियों, पेपर बनाने वाले प्रोफेसरों से ले कर उन के सहायकों, कोचिंग संचालकों, प्राइवेट कालेजों एवं बुक सेलरों का पूरा रैकेट है. ये लोग पैसों के लालच, कोचिंग संस्थानों में पढ़ाने, पासबुक (गेस पेपर) लिखने के लिए राइटर बने रहने और परिचितों एवं परिजनों को अच्छे नंबर दिलाने के लिए पेपर लीक करते थे.

एसओजी ने पेपर लीक होने की सूचना मिलने के बाद कई दिनों तक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों व अन्य लोगों के फोन सर्विलांस पर रखे. इस के बाद एक से एक कडि़यां जुड़ती गईं. 1 अप्रैल को प्रिंसिपल एन.एस. मोदी व प्रोफेसर गोविंद पारीक के बीच वाट्सऐप पर हुई वार्ता में मोदी ने पारीक से कहा था, ‘‘5 अप्रैल को एमकौम का पेपर है, सेंड करो.’’

इस पर पारीक ने कहा, ‘‘पेपर मेरे पास नहीं है. मैं ले कर देता हूं.’’

इस के बाद चौमूं के अग्रसेन कालेज के प्रो. शंभुदयाल झालानी और पारीक के बीच बातचीत सामने आई. इस में पारीक ने झालानी से कहा, ‘‘यार, एमकौम का जो पेपर बनाया था, उसे सेंड करो.’’

झालानी ने कहा, ‘‘सर, उस दिन जो सेंड किया था, वही पेपर है.’’

पारीक ने कहा, ‘‘एक बार फिर सेंड करो.’’

झालानी ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं अभी सेंड कर देता हूं.’’

पारीक ने कहा, ‘‘हां यार, मोदी को सेंड करना है. उन का बेटा एमकौम में है.’’

इस के बाद झालानी ने वाट्सऐप पर पारीक को पेपर सेंड कर दिया था.

राजस्थान यूनिवर्सिटी ने इसी साल पेपर सेटर के मानदेय बढ़ाए थे. अंडर ग्रैजुएट का प्रति पेपर मानदेय ढाई हजार रुपए एवं पोस्ट ग्रैजुएट का प्रति पेपर 3 हजार रुपए किया गया है. इस के बावजूद यूनिवर्सिटी के विभागाध्यक्ष और बोर्ड औफ स्टडीज के समन्वयक या सदस्यों के दबाव में आ कर पेपर लीक किए गए.

दरअसल, विभिन्न विषयों के विभागों में एक अध्ययन मंडल (बोर्ड औफ स्टडीज) होता है. इस में समन्वयक व 2 सदस्य होते हैं. ये ही पेपर सेटर नियुक्त करते हैं. संबंधित विषय के विभागाध्यक्ष या डीन इस से जुड़े रहते हैं. 3 प्रोफेसर 3 पेपर सेलेक्ट कर सीलबंद लिफाफे में परीक्षा नियंत्रक के पास भेजते हैं.

परीक्षा नियंत्रक एवं यूनिवर्सिटी के अन्य उच्चाधिकारी उन में से एक पेपर सेलेक्ट कर छपने के लिए प्रिंटिंग प्रैस पर भेजते हैं.

पेपर लीक करने के लिए कन्वीनर और सेलेक्टर संबंधित विभाग की गोपनीय शाखा से पता करते थे कि किस प्रोफेसर का पेपर सेलेक्ट हुआ है. जिस प्रोफेसर का पेपर सेलेक्ट होता था, उस से संपर्क कर के पेपर हासिल कर लिया जाता था. वह प्रोफेसर भी अपने परिचितों को पेपर बता देता था. कन्वीनर के पूछने पर उसे भी पेपर बता दिया जाता था.

इस घपले में लिप्त लोग बाकायदा बोर्ड औफ स्टडीज के चुनाव में अपने रसूख का प्रयोग करते थे. कुछेक तो बोर्ड औफ स्टडीज के समन्वयक भी बने हुए थे. इन्हीं के माध्यम से पेपर सेटर से पेपर पूछा जाता था. ऐसा न करने पर उन पर हटाने का दबाव डाला जाता था. दूसरी ओर कुछ पब्लिशर बोर्ड औफ स्टडीज एवं एचओडी से मिल कर मुख्य प्रश्नों की पासबुक (गेस पेपर) छापते थे.

जिस पब्लिशर की पासबुक से परीक्षा में सब से ज्यादा सवाल आते थे, उस की प्रसिद्धि रातोंरात हो जाती थी. उस की पासबुक खरीदने के लिए परीक्षार्थियों में होड़ मच जाती थी. ये पब्लिशर इस तरह चांदी काटते थे.

इस के अलावा कुछ प्रोफेसर कोचिंग संस्थानों में पढ़ाते थे. ये प्रोफेसर परीक्षार्थियों को मोस्ट इंपोर्टेंट सवाल बता कर अपनी प्रसिद्धि के लिए येन केन प्रकारेण पेपर हासिल करते थे. कोचिंग संस्थानों के संचालक भी रातोंरात प्रसिद्धि पाने और विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिए अपने विद्यार्थियों को पेपर बताते थे. ये भी अनैतिक तरीकों से पेपर हासिल करते थे.

बांदीकुई का जो कोचिंग संचालक पकड़ा गया है, उस से इसी बात के संकेत मिलते हैं. प्रोफेसर बुकसेलरों को इसलिए पेपर मुहैया कराते थे, क्योंकि पब्लिशर उन्हें लेखक बनाए रखें. अधिकांश अपनी किताबों के लेखक राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों को बनाते थे, ताकि उन की किताबों की ज्यादा से ज्यादा बिक्री हो. इस के बदले में प्रोफेसर उन्हें पेपर उपलब्ध कराते थे.

पब्लिशर इन पेपरों का उपयोग वन वीक सीरीज आदि में करते थे, ताकि उन की किताबों, पासबुक और अन्य परीक्षाओं में सहायक पुस्तकों की बिक्री होती रहे.  पेपर लीक करने का मामला उजागर होने पर 18 अप्रैल को राजस्थान की उच्च शिक्षा मंत्री किरण माहेश्वरी ने राजस्थान यूनिवर्सिटी के भूगोल के विभागाध्यक्ष प्रो. जगदीश प्रसाद जाट, राजस्थान विश्वविद्यालय के कौमर्स विभाग के प्रोफेसर गोविंद पारीक, राजकीय कालेज खाजूवाला (बीकानेर) के प्राचार्य एन.एस. मोदी, राजकीय कालेज कालाडेरा के लेक्चरर शंकर चोपड़ा एवं यूनिवर्सिटी की गोपनीय शाखा के अनुभाग अधिकारी शंकरलाल सैनी को निलंबित कर दिया था.

इस के दूसरे दिन 19 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कार्यवाहक कुलपति वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजेश्वर सिंह ने प्रो. जगदीश प्रसाद जाट एवं प्रो. गोविंद पारीक को निलंबित कर दिया. यूनिवर्सिटी प्रशासन ने 24 अप्रैल को एसोसिएट प्रोफेसर डा. राजीव शर्मा, कुलसचिव परीक्षा गोपनीय एम.सी. गुप्ता एवं परीक्षा नियंत्रक के पीए सुरेंद्र मोहन शर्मा को भी निलंबित कर दिया.

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान – भाग 2

मुस्तफा ने बताया कि दोपहर होने पर दुकान की चहलपहल थोड़ी कम हो गई. 12 बजे के बाद बगैर किसी सूचना के कुलदीप की पत्नी सुनीता जब दुकान पर पहुंची तो वह चौंक गया. उन्होंने अपने हैंडबैग से निकाल कर एक मोटा पैकेट पकड़ा दिया. पैकेट के बारे में पूछने से पहले ही सुनीता ने बताया कि उस के पति ने 4 लाख रुपए बैंक से निकलवाए हैं. इस में वही पैसे हैं. इतना कह कर सुनीता जाने की जल्दबाजी के साथ बोलीं कि उसे पास में कुछ खरीदारी करनी है और घर पर बहुत काम पसरा पड़ा है, इसलिए वह तुरंत दुकान से चली गईं.

उन के जाने के तुरंत बाद मुस्तफा के पास कुलदीप का फोन आया. उन्होंने फोन पर कहा कि एक आदमी बाइक पर पैसे लेने आएगा. सुनीता जो पैसे दे गई है वह उसे दे देना. मुस्तफा ने कुलदीप को बता दिया कि सुनीता मैडम पैसा अभीअभी दे गई हैं. इतनी मोटी रकम और उसे लेने के बारे में कुलदीप ने अधिक बातें नहीं बताईं.

दोपहर एक बजे के करीब कुलदीप के बताए अनुसार एक आदमी काले रंग की बाइक पर आया. उस में नंबर प्लेट नहीं लगी थी. मुस्तफा ने समझा कि बाइक मरम्मत के दौरान ट्रायल पर होगी. हेलमेट पहने मास्क लगाए व्यक्ति ने मुस्तफा से कहा कि उसे कुलदीप ने पैसा लेने के लिए भेजा है. मुस्तफा ने इशारे से सामने बैठने को कहा और कुलदीप को फोन लगाया. तुरंत फोन रिसीव कर कुलदीप बोले, ‘‘इस आदमी को पैसे दे दो.’’

मुस्तफा ने कुछ पूछना चाहा, किंतु कुलदीप ने फोन कट कर दिया. लग रहा था, जैसे वह काफी हड़बड़ी में थे. तब तक वह व्यक्ति अपना हेलमेट उतार चुका था और मास्क हटा रहा था. मुस्तफा ने उस से बगैर कोई सवालजवाब किए पैसे का पैकेट उसे दे दिया. पैकेट से पैसे निकाल कर वह वहीं काउंटर पर गिनने लगा. पैकेट में 2 हजार और 5 सौ के नोटों के बंडल थे. बंडल के नोट गिनते समय उस के मोबाइल पर फोन आया. उस ने फोन का स्पीकर औन कर बोला, ‘‘हां, पैसे मिल गए हैं, मैं अभी गिन रहा हूं.’’

दूसरी तरफ से डांटने की आवाज आई, ‘‘मैं ने तुम्हें पैसे लेने भेजा है या गिनने? पैसा ले और  वहां से निकल.’’ यह आवाज कुलदीप की नहीं थी. उस के बाद मुस्तफा दुकान के कामकाज में लग गया. उसे सुनीता का फोन शाम को 5 बजे के करीब आया. उन्होंने घबराई आवाज में कुलदीप का फोन बंद होने की बात बताई. यह सुन कर मुस्तफा कुछ समय में ही दुकान बंद कर कुलदीप के घर आ गया. उस दिन बिक्री का हिसाब और पैसे उन्हें दिए और कुछ देर रुक कर चला गया.

इतनी जानकारी मिलने के बाद एसपी प्रभाकर चौधरी ने मामले को अपने हाथों में ले लिया और एसओजी टीम के प्रभारी अजय पाल सिंह एवं सर्विलांस टीम के प्रभारी आशीष सहरावत के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. कुलदीप की गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर तलाशी की काररवाई की. शुरुआत फोन ट्रेसिंग से  की गई. इस जांच से संबंधित पलपल के जांच की जानकारी डीआईजी शलभ माथुर उन से ले रहे थे..

कुलदीप के फोन की आखिरी लोकेशन बिजनौर के नजीबाबाद कस्बे की मिली. मुरादाबाद पुलिस तुरंत वहां रवाना हो गई. इस की जानकारी बिजनौर पुलिस को भी दे दी गई. प्रभाकर चौधरी ने 3 अन्य टीमों का भी गठन किया. बिजनौर जनपद की सीमाओं पर कुलदीप की आखिरी लोकेशन के आधार पर छानबीन जारी थी. फोन की लोकेशन कभी चांदपुर तो कभी नूरपुर और कभी नगीना की मिल रही थी. इस तरह से 5 जून का पूरा दिन ऐसे ही निकल चुका था.

रात के 8 बजे बिजनौर में कस्बा थाना स्यौहारा के गंगाधरपुर गांव में एक शव पड़े होने की सूचना मिली. इस की जानकारी स्यौहारा के थानाप्रभारी नरेंद्र कुमार को गांव वालों ने दी थी. सूचना के आधार पर खून सनी लाश बरामद हुई. लाश सड़क के किनारे पड़ी हुई थी. उस के सिर और शरीर पर चोटों के निशान साफ दिख रहे थे.

लाश बरामदगी की सूचना और हुलिया समेत तसवीरें तुरंत मुरादाबाद पुलिस को भेज दी गईं. लाश कुलदीप गुप्ता के होने की आशंका के साथ उन के भाई संजीव गुप्ता को तुरंत शिनाख्त के लिए बुला लिया गया. संजीव ने तसवीर और हुलिए के आधार पर लाश की पहचान अपने भाई कुलदीप के रूप में कर दी. इसी के साथ उन्होंने दुखी मन से इस की सूचना अपने परिवार वालों को भी दी. कुलदीप की हत्या की सूचना से घर में कोहराम मच गया. सुनीता, इशिता, दिव्यांशु का रोरो कर बुरा हाल था. पूरे परिवार पर अचानक दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.

मुरादाबाद की पुलिस के सामने अब सब से बड़ी चुनौती हत्या के बारे में पता लगाने और हत्यारे को धर दबोचने की थी. उसी रात लाश को पंचनामे के साथ बिजनौर अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. पोस्टमार्टम के बाद लाश कुलदीप के घर वालों को सौंप दी गई. उन का मुरादाबाद के लोकोशेड मोक्षधाम में अंतिम संस्कार कर दिया गया.

उधर बिजनौर और मुरादाबाद जिले की पुलिस ने दोनों जगहों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की. कुलदीप की दुकान के कर्मचारियों से एक बार फिर डिटेल में पूछताछ हुई. पैसा लेने आए व्यक्ति के हुलिए के आधार पर छानबीन शुरू की गई. मुस्तफा ने घटना के दिन उस व्यक्ति और नंबर प्लेट के बगैर काली मोटरसाइकिल की मोबाइल से ली गई तसवीर पुलिस को उपलब्ध करवा दी. पुलिस को मृतक कुलदीप की काल डिटेल्स भी मिल चुकी थी.

जल्द ही 2 व्यक्तियों नंदकिशोर और कर्मवीर उर्फ भोलू को गिरफ्तार कर लिया. उन से कुलदीप की हत्या के कारण की जो कहानी सामने आई, वह पैसा, दोस्ती, गुमान और अपमान से पैदा हुई परिस्थितियों की दास्तान निकली—

मुरादाबाद के कस्बा पाकबाड़ा के रहने वाले कुलदीप के 2 बड़े भाई संजीव गुप्ता और राजीव गुप्ता के अलावा उन का अपना छोटा सा परिवार था. पत्नी सुनीता और 2 बच्चों में बेटा दिव्यांशु और बेटी इशिता के साथ मिलन विहार कालोनी में रह रहे थे.

फरजी थानेदारनी ने लगाया वर्दी के नाम पर चूना

हमेशा की तरह 25 जुलाई, 2016 की सुबह कंवलजीत कौर तैयार हो कर घर से निकली और कलानौर से बस पकड़ कर गुरदासपुर पहुंच गई. उस ने को फोन कर के राजीव बुला रखा था, इसलिए बसअड्डे पर बस के रुकते ही वह उतर कर सीधे उस गेट पर पहुंच गई थी, जहां वह मोटरसाइकिल लिए खड़ा था. उस के पास जा कर उस ने कहा, ‘‘जल्दी करो, पहले पुलिस लाइंस चल कर हाजिरी लगवा लूं, उस के बाद कहीं घूमने चलेंगे. अगर एब्सैंट लग गई तो बड़ी मुश्किल होगी.’’ मोटरसाइकिल स्टार्ट ही थी, कंवलजीत के पिछली सीट पर बैठते ही राजीव ने मोटरसाइकिल पुलिस लाइंस की ओर बढ़ा दी.

जिला गुरदासपुर के कस्बा कलानौर के मोहल्ला नवांकटड़ा निवासी मेहर सिंह की बेटी कंवलजीत कौर ने सब को यकीन दिला दिया था कि उसे सरकारी नौकरी मिल गई है, वह भी कोई साधारण नहीं, पंजाब पुलिस में थानेदार की यानी असिस्टैंट सबइंसपेक्टर (एएसआई) की. सितारों वाली लकदक खाकी वरदी पहन कर वह 2 सालों से शहर में घूम कर रौब जमा रही थी. पिछले 2 सालों से कंवलजीत कौर गुरदासपुर में ही तैनात थी. इधर वह लोगों से कहने लगी थी कि अब कभी भी उस का ट्रांसफर किसी दूसरे शहर में हो सकता है. अगर उस का तबादला हो गया तो उस के लिए मुश्किल हो जाएगी. अभी तो वह घर में ही है, इसलिए उस के लिए चिंता की कोई बात नहीं है.

कंवलजीत कौर ड्यूटी पर जाने के लिए घर से पैदल ही कलानौर बसअड्डे पर आती थी और वहां से बस पकड़ कर  गुरदासपुर पहुंच जाती थी. जानने वालों को उस ने बता रखा था कि गुरदासपुर में उसे सरकारी गाड़ी मिल जाती है, जिस से वह ड्यूटी करती है. उस का कहना था कि उस का इलाके में ऐसा दबदबा है कि बदमाश उस के नाम से कांपते हैं. न जाने कितने गुंडों की पिटाई कर के उस ने उन्हें जेल भिजवा दिया है. यही वजह थी कि बड़े अफसर भी उस के बारे में चर्चा करने लगे हैं कि पुलिस डिपार्टमेंट में यह लड़की काफी तरक्की करेगी.

राजेश के साथ कंवलजीत कौर पुलिस लाइंस पहुंची तो पता चला कि वहां आने वाले स्वतंत्रता दिवस पर होने वाली पुलिस परेड की जोरदार तैयारियां चल रही हैं. अंदर रिहर्सल हो रहा था. गेट पर काफी भीड़ थी. सुरक्षा की दृष्टि से पुलिसकर्मियों को भी पूरी जांचपड़ताल के बाद ही अंदर जाने दिया जा रहा था.

कंवलजीत कौर पहले भी वहां कई बार आ चुकी थी. लेकिन कभी किसी ने कोई रोकटोक नहीं की थी. इत्मीनान से अंदर जा कर पूरी पुलिस लाइंस घूम कर वह आराम से बाहर आ गई थी, लेकिन उस दिन तो वहां की स्थिति ही एकदम अलग थी. कंवलजीत कौर बाहर ही रुक कर सोचने लगी कि इस स्थिति में अंदर जाना चाहिए या नहीं?

दूसरी ओर राजीव की समझ में नहीं आ रहा था कि बसअड्डे पर पुलिस लाइंस पहुंचने की जल्दी मचाने वाली कंवलजीत कौर अब अंदर क्यों नहीं जा रही है? उस ने इस बारे में कंवलजीत कौर से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मैं सोच रही हूं कि आज अंदर न जाऊं. क्योंकि अंदर जाने पर फरलो (अनाधिकृत छुट्टी) पर मैं जल्दी बाहर नहीं निकल पाऊंगी. उस के बाद हमारा घूमनेफिरने का प्रोग्राम बेकार जाएगा.’’

‘‘कंवल, हमारा घूमनाफिरना इतना जरूरी नहीं है, जितना ड्यूटी. कहीं तुम्हारी नौकरी न खतरे में पड़ जाए. पहले भी कई बार तुम इस तरह हाजिरी लगवा कर मेरे साथ घूमने जा चुकी हो. बसस्टैंड पर तुम कह भी रही थी कि एब्सैंट लग गई तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी.’’ राजीव ने कहा.

‘‘वही तो सोच रही हूं. अगर एब्सैंट लग गई तो मुश्किल और अंदर चली गई तो बाहर आने में मुश्किल. मैं बाहर नहीं आ सकी तो मेरे इंतजार में खड़ेखड़े तुम बोर होते रहोगे. अब तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूं?’’

‘‘मेरी समझ से तो यही ठीक रहेगा कि मैं लौट जाऊं और तुम अंदर जा कर अपनी ड्यूटी करो. खाली होने के बाद फोन कर देना, मैं आ जाऊंगा.’’

‘‘अगर मैं अंदर चली गई तो शाम से पहले नहीं निकल पाऊंगी. ऐसे में आज हम ने जो घूमनेफिरने का प्रोग्राम बनाया है, वह चौपट हो जाएगा.’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम अंदर जा कर अपनी ड्यूटी करो. मैं गुरदासपुर में ही रहूंगा. तुम्हारा फोन आते ही मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा.’’

राजीव और कंवलजीत आपस में बातें कर रहे थे, तभी अधिकारियों की गाडि़यां आ गईं. उन के लिए गेट खोलने के साथ ही वहां खड़े सिपाहियों ने गेट के पास खड़े तमाम लोगों को अंदर धकेल दिया. उन में कंवलजीत और राजीव भी थे.

दोनों असमंजस की स्थिति में थे कि अब क्या करें, तभी वहां मौजूद एक थानेदार ने उन के पास आ कर कंवलजीत कौर से कहा, ‘‘मैडम, जल्दी करो, एंट्री करवा कर परेड ग्राउंड में पहुंच जाओ.’’ इस के बाद उस ने राजीव से कहा, ‘‘तुम बिना वरदी के ही आ गए. किस रैंक पर हो और क्या नाम है तुम्हारा?’’

राजीव कुछ कहता, उस से पहले ही कंवलजीत कौर ने कहा, ‘‘सर, यह मिस्टर राजीव मेरे साथ आए हैं. यह नौकरी नहीं करते. इन की बहन मेरी बैस्ट फ्रैंड है और उस की आज शादी है. इसलिए मैं इन्हें साथ ले कर आज की छुट्टी लेने आई हूं.’’

‘‘छुट्टियां तो आजकल बिलकुल नहीं मिल रही हैं मैडम. फिर जिस काम के लिए तुम्हें छुट्टी लेनी है, उस के लिए तो पहले ही सैंक्शन करवा लेना चाहिए था. वह देखिए, उस तरफ लाइंस इंसपेक्टर बैठे हैं. चलिए, मैं उन से तुम्हारी बात करवा देता हूं.’’

कंवलजीत कौर आनाकानी करने लगी तो राजीव खीझ कर बोला, ‘‘तुम तो आज एकदम बच्चों जैसा व्यवहार कर रही हो.’’ राजीव का इतना कहना था कि कंवलजीत कौर नाराज हो कर अनापशनाप बकने लगी. उस का कहना था कि उस के प्यार में पड़ कर उस ने जो कुछ किया है, वह उसे बिलकुल नहीं करना चाहिए था. क्योंकि अब वह उस की भावना की कदर न कर के उसे उसी के विभाग वालों के सामने जलील करने की कोशिश कर रहा है.

दूसरी ओर राजीव का कहना था कि उस ने जो कुछ भी कहा है, उस की भलाई के लिए कहा है. लेकिन कंवलजीत कौर का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वह राजीव को जलील करने लगी तो वहां मौजूद थानेदार उन्हें चुप कराने का प्रयास करते हुए दोनों को लाइंस इंसपेक्टर दलबीर सिंह के पास ले गया.

थानेदार की बात सुन कर दलबीर सिंह ने कंवलजीत कौर को सवालिया नजरों से घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारी पोस्टिंग कहां है?’’

‘‘जी…जी यहीं है.’’ कंवलजीत कौर ने हकलाते हुए कहा.

‘‘यहां…कहां? यहां तो मैं ने पहले कभी नहीं देखा. आज पहली बार देख रहा हूं, वह भी बदतमीजी करते हुए.’’

‘‘नहीं सर, बदतमीजी नहीं, वह तो सर यह राजीव…’’

‘‘कौन है यह? पुलिस का आदमी तो नहीं लग रहा?’’

‘‘नहीं सर, यह पुलिस में नहीं है. ये लोग तो जमींदार हैं, बहुत जमीनजायदाद है इन के पास.’’

‘‘तो फिर यहां क्या लेने आया है यह?’’

‘‘यह मेरे साथ आया है सर. इस की बहन मेरी बैस्ट फ्रैंड है. आज उस की शादी है, जिस में शामिल होने के लिए मैं छुट्टी लेने आई थी.’’

‘‘छुट्टी लेने आई थी तो वरदी पहन कर आने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘सर, इसलिए कि अगर छुट्टी नहीं मिली तो ड्यूटी कर लूंगी.’’

‘‘हां, इस तरह छुट्टी मिलने वाली नहीं, तुम्हें ड्यूटी करनी पड़ेगी. चलो, अपना आईकार्ड दिखाओ.’’

‘‘आईकार्ड, मतलब पहचानपत्र सर?’’

‘‘बड़ी अंजान बन रही हो, कह तो रही हो सीधे एएसआई भरती हुई हो?’’

दरअसल, 2-3 दिनों पहले दलबीर सिंह को उन के किसी मुखबिर ने बताया था कि एएसआई की वरदी पहन कर एक लड़की गुरदासपुर में घूम रही है. वह पैसे तो किसी से नहीं ऐंठती, पर थानेदारनी होने का रौब खूब दिखाती है. उस के रौब की वजह से कुछ दुकानदार उसे स्वेच्छा से नियमित रूप से पैसे दे रहे हैं. उस नकली थानेदारनी का हुलिया भी उस ने उन्हें बताया था. इस बारे में दलबीर सिंह काररवाई करने की योजना बना रहे थे. लेकिन कंवलजीत कौर को देख कर उन्हें लगा कि कहीं यही वह नकली थानेदारनी तो नहीं, जिस के बारे में मुखबिर ने बताया था. क्योंकि उस का हुलिया मुखबिर द्वारा बताए हुलिए से काफी हद तक मिल रहा था.

दलबीर सिंह ने कंवलजीत कौर से परिचय पत्र मांगा तो इधरउधर की बातें करते हुए अंत में उस ने कहा कि उस का आइडेंटिटी कार्ड खो गया है. इस से वह संदेह के दायरे में आ गई. दलबीर सिंह ने इस विषय पर अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा कि फिलहाल लड़की को एक किनारे कर के पहले उस के साथ आए लड़के से विस्तार से पूछताछ करो. संभव है, वह भी उस के साथ शामिल हो. वहां की बदलती स्थिति को देख कर लड़का यानी राजीव काफी घबरा गया था. पुलिस ने उसे अलग ले जा कर पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की तो वह बुरी तरह से घबरा गया, क्योंकि इस के पहले उस का पुलिस से कभी वास्ता नहीं पड़ा था.

पूछताछ में उस ने अपना नाम राजीव कुमार बताया. वह नई आबादी, कलानौर, जिला गुरदासपुर के रहने वाले सुरेश कुमार का बेटा था. उस के पिता इलाके के खातेपीते जमींदार थे. वह मांबाप की अकेली औलाद था. 3 साल पहले वह फिल्म देखने गया था, तभी उस की मुलाकात कंवलजीत कौर से हुई थी. उसी पहली मुलाकात में दोनों में प्यार हो गया था, जो जल्दी ही परवान चढ़ गया. कंवलजीत कौर ने उसे बताया था कि वह साधारण परिवार से संबंध रखती है, पर अपनी मेहनत से जिंदगी में बड़ा मुकाम हासिल करना चाहती है. उस ने बीसीए कर रखा था. वह काफी खूबसूरत थी और भाईबहनों में सब से बड़ी थी.

राजीव ने जब उस के बारे में अपने घर वालों से बात की तो पिता ने कहा कि उन के पास सब कुछ है, वह बिना दानदहेज के उस से शादी कर लेंगे. लेकिन अंतिम निर्णय उस की मां को लेना है. राजीव की मां किरनबाला ने सब कुछ तो मान लिया, लेकिन एक शर्त रख दी कि लड़की सरकारी नौकरी में होनी चाहिए. अगर पुलिस अफसर हुई तो और भी अच्छा होगा. राजीव ने सारी बात कंवलजीत कौर को बताई तो वह काफी मायूस हुई. लेकिन उस ने राजीव से संबंध बनाए रखे. फिर एक दिन उस ने राजीव को फोन कर के बताया कि उसे पंजाब पुलिस में एएसआई की नौकरी मिल गई है. उस ने अपनी तैनाती भी गुरदासपुर की ही बताई. इस के बाद वह जब भी राजीव से मिली, एएसआई की वरदी में ही मिली.

कंवलजीत कौर से उस का चक्कर चल ही रहा था कि उसी बीच उस के घर वालों ने उस की शादी कौलेज की एक लैक्चरर से तय कर दी. वह कंवलजीत कौर को धोखा नहीं देना चाहता था, इसलिए मम्मीपापा को मनाने की कोशिश में लगा था. वह कंवलजीत को दिल से पसंद करता था और उसी से शादी करना चाहता था. इसीलिए वह जब भी उसे जहां बुलाती थी, वह काम छोड़ कर उस से मिलने पहुंच जाता था.

उस दिन भी ऐसा ही हुआ था. राजीव से पूछताछ चल ही रही थी, उसी के साथ पुलिस ने कंवलजीत कौर के बारे में पता कराया तो उस का झूठ खुल कर सामने आ गया. वह कभी भी पुलिस में भरती नहीं हुई थी. पुलिस की वरदी पहन कर वह सब को बेवकूफ बना रही थी. इस के बाद उस के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर एएसआई की वरदी में ही गिरफ्तार कर के चेहरा ढांप कर उसे पत्रकारों के सामने पेश किया गया. उस ने स्वीकार किया कि प्रेमी राजीव से शादी करने के लिए वह फरजी दारोगा बनी थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने कंवलजीत कौर को अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.   कथा लिखे जाने तक उस की जमानत हो चुकी थी. पुलिस ने राजीव को बेकसूर मानते हुए इस मामले में गवाह बना लिया था. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने कंवलजीत कौर के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर के अदालत में पेश कर दिया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित