ठगों ने खोला गृह मंत्रालय का फरजी ट्रेनिंग सेंटर – भाग 1

दिल्ली के तालकटोरा गार्डन में फव्वारे के पास बैठी रजनी की आंखें पार्क के मुख्य गेट पर टिकी हुई थीं. उस के चेहरे पर बेचैनी साफ झलक रही थी, इस का कारण था पलपल आगे बढ़ता हुआ समय. रजनी ने मां से कहा था कि वह सहेली प्रीति से नोटबुक लेने जा रही है और वह 7 बजे तक घर लौट आएगी. लेकिन वह सहेली का बहाना कर प्रेमी उपेंद्र से मिलने गई थी.

वह इस पार्क में साढ़े 5 बजे आ गई थी. उसे आधा घंटा बीत गया था, उपेंद्र का इंतजार करते हुए. उपेंद्र ने 5 बजे पार्क में उस से मिलने का वादा किया था, लेकिन जब रजनी यहां आई थी तो उपेंद्र पार्क में नहीं पहुंचा था. उपेंद्र को रजनी दिल से प्यार करती थी. उपेंद्र भी उसे दिलोजान से चाहता था. वे दोनों एक ही कोचिंग सेंटर से एसएससी की तैयारी कर रहे थे. सेंटर में उन का रोज ही मिलना होता था, लेकिन वहां मौजूद अन्य युवकयुवतियों के बीच दिल की बात करना मुमकिन नहीं था, इसलिए सप्ताह में एक बार वे इस पिकनिक पार्क में अवश्य आ कर मिलते थे.

समय पलपल आगे सरक रहा था. उपेंद्र हर बार दिए गए समय से आधा घंटा पहले ही पहुंच जाता था. आज न जाने वह क्यों नहीं आया था. यदि वह किसी जरूरी काम में फंस गया है तो उसे फोन कर के बता देना चाहिए था. अभी तक उपेंद्र ने फोन भी नहीं किया था. रजनी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. जब साढ़े 6 बज गए तो रजनी ने उपेंद्र को फोन करने का मन बना कर मोबाइल सामने किया तो उसे पार्क की गेट में प्रवेश करता उपेंद्र नजर आ गया.

रजनी की बेचैनी पलक झपकते ही गायब हो गई. वह अपनी जगह उठ कर खड़ी हो गई. उस ने देखा उपेंद्र का चेहरा बुझाबुझा सा है, वह बहुत ज्यादा परेशान भी दिखाई यह रहा है. कुछ ही देर में उपेंद्र उस के पास आ गया. रजनी ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया.

“आज तुम पूरा एक घंटा लेट आए हो उपेंद्र, सब ठीक तो है न?’’ रजनी ने उस का हाथ थाम कर शिकायत करते हुए पूछा.

“सब ठीक है,’’ उपेंद्र ने जबरन मुसकराने का प्रयत्न करते हुए कहा और रजनी के साथ पार्क की घास पर बैठ गया. रजनी ने उस की आंखों में झांका. आंखों में गहरी उदासी के भाव थे. चेहरा भी बयां कर रहा था कि वह काफी परेशान है.

प्रेमिका से मिली जानकारी…

“क्या हुआ है उपेंद्र, तुम्हारी आंखें और तुम्हारा चेहरा चुगली कर रहे हैं कि तुम परेशान हो. सचसच बताओ, क्यों परेशान हो तुम?’’

उपेंद्र ने गहरी सांस ली और उदास स्वर में बोला, ‘‘मैं अपने प्यार को ले कर परेशान हूं रजनी. तुम्हें मालूम है कि मैं तुम्हें अपने दिल की गहराइयों से प्यार करता हूं, तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं.’’

“अरे! तो इस में परेशान होने की क्या बात है, हमारे घर वाले बहुत सीधे हैं. वे हमारा प्यार स्वीकार कर लेंगे और हमारी शादी कर देंगे. यदि नहीं करेंगे तो हम दोनों कोर्ट में शादी कर लेंगे. हमारे बीच यह सब पहले ही तय हो चुका है.’’

“मैं इस से इंकार कब कर रहा हूं रजनी.’’ उपेंद्र गंभीर हो गया, ‘‘बात शादी की नहीं है, बात मेरी नौकरी की है. मैं पेपर बांट कर अपना खर्च चलाता हूं, तुम्हारा खर्च कैसे उठाऊंगा.’’

“तुम नौकरी के लिए कोशिश तो कर ही रहे हो. नौकरी लग ही जाएगी, इसक े लिए इतना परेशान मत होओ.’’

“रजनी, मैं आज भी एक कंपनी में इंटरव्यू के लिए गया था, वहां भी बात नहीं बनी.’’ उपेंद्र ने निराशा भरे स्वर में कहा. रजनी को एकाएक कुछ याद आया हो जैसे. वह उपेंद्र का हाथ प्यार से अपने हाथ में ले कर बोली, ‘‘उपेंद्र, हमारे एरिया में सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से अंडरकवर एजेंटों का एक ट्रेनिंग सेंटर खुला है. उस में ग्रैजुएट युवकों की भरती की जा रही है, तुम वहां ट्राई कर के देखो.’’

“क्या तुम ने उस ट्रेनिंग सेंटर का बोर्ड वगैरह देखा है?’’

“हां, मैं कुछ दिन पहले जाफरपुर कलां के बाजार में शापिंग करने गई थी. मैं ने आटो में से वह बोर्ड पढ़ा था. चूंकि तुम नौकरी के लिए परेशान हो, यही सोच कर शापिंग से लौटते वक्त वहां उतर गई थी और वहां बैठे गार्ड से मैं ने यह सब मालूम कर लिया था.’’

“अरे, तो तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?’’

“मैं भूल गई. क्योंकि जब मैं जाफरपुर कलां के उस ट्रेनिंग सेंटर पर खड़ी थी तो मुझे प्रीति का फोन आ गया था. उस के यहां जागरण था, उस ने मुझे शाम को घर बुलाया तो मैं उस ट्रेनिंग सैंटर की बात गूल गई.’’

उपेंद्र ने प्यार से रजनी का हाथ चूम लिया और उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘यह जानकारी देने के लिए धन्यवाद रजनी. मैं कल ही जाफरपुर कलां के उस ट्रेनिंग सेंटर पर जा कर देखूंगा.’’

रजनी ने उस का कंधा थपथपाया, ‘‘तुम्हें कामयाबी मिलेगी उपेंद्र, मेरा दिल इस बात की गवाही दे रहा है. अब चलो, मुझे 7 बजे तक घर पहुंचना था, लेकिन साढ़े 7 तो यहीं बज रहे हैं.’’

“चलो. मैं तुम्हें बाहर से रिक्शा करवा देता हूं,’’ उपेंद्र ने उठते हुए कहा. दोनों पार्क के गेट की तरफ बढ़ गए. रजनी को बैटरी रिक्शा में बिठाने के बाद उपेंद्र पैदल ही एक ओर चल पड़ा.

उपेंद्र पहुंच गया ट्रेनिंग सेंटर…

जाफरपुर कलां में अंडरकवर एजेंट ट्रेनिंग सेंटर का 250 गज एरिया में बना वह औफिस देख कर उपेंद्र को हैरानी हुई. वह भी रजनी से मिलने के लिए कई बार इस सडक़ से गुजरा था, लेकिन उस की नजर में यह औफिस नहीं आया था. उस औफिस के गेट पर अंडर कवर एजेंट ट्रेनिंग सेंटर का छोटा सा बोर्ड लगा हुआ था. गेट खुला हुआ था.

अंदर गहरी खामोशी थी. अंदर कोई नजर भी नहीं आ रहा था. गेट के पास ही एक लंबातगड़ा वरदीधारी गार्ड बैठा हुआ था. उस गार्ड के हाथ में वायरलैस सेट था. उस के पास में एक छोटी मेज रखी थी, जिस पर एंट्री रजिस्टर रखा दिखाई दे रहा था. उपेंद्र उस गार्ड के पास गया.

“गुड मौर्निंग गार्ड साहब.’’ उपेंद्र ने शब्दों में चाशनी घोली, ‘‘क्या यहां ट्रेनिंग के लिए भरती चल रही है?’’

“खुली भरती नहीं है मिस्टर. हर एक को जांचनेपरखने के बाद ट्रेनिंग के लिए चुना जाता है.’’ गार्ड ने बताया.

“उस जांचपरख का तरीका क्या है साहब?’’ उपेंद्र ने जिज्ञासा प्रकट करते हुए पूछा.

“आप यदि इच्छुक हैं तो आप को श्रीमान अमित कुमार से मिलना होगा. वह भरती इंचार्ज हैं.’’

“मैं इच्छुक हूं.’’ उपेंद्र उत्साह भरे स्वर में बोला, ‘‘उन से मिलने के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा?’’

“आप अपना रिज्यूमे लाए हैं?’’ गार्ड ने पूछा.

“जी हां.’’

गार्ड ने मेज पर रखे रजिस्टर में उपेंद्र का नामपता और मोबाइल नंबर नोट कर लिया और उसे अंदर एक कमरा दिखाते हुए बोला, ‘‘आप उस कमरे में जाइए. अमित सर वहीं मिलेंगे.’’

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान – भाग 1

मुरादाबाद के रहने वाले कुलदीप गुप्ता की पत्नी सुनीता, बेटी इशिता और बेटे दिव्यांशु के लिए खुशी का दिन था. क्योंकि उस दिन यानी 4 जून, 2021 को कुलदीप गुप्ता का जन्मदिन था, इसलिए घर के सभी लोगों ने अपनेअपने तरीके से उन के जन्मदिन पर विश करने की योजना बना ली थी.

पत्नी सुनीता शाम के वक्त इस मौके पर आने वाले मेहमानों की खातिरदारी के इंतजाम में जुटी हुई थी, जबकि बेटी इशिता और बेटा दिव्यांशु सजावट और केक के इंतजाम का जिम्मा उठाए हुए थे. सभी उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं और उपहार देने के सरप्राइज एकदूसरे से छिपाए हुए थे.

दिन के ठीक 12 बजे सुनीता के पास पति कुलदीप का अचानक फोन आया. उन्होंने फोन पर कहा कि वह घर का सब काम छोड़ कर तुरंत बैंक जाए और 4 लाख रुपए निकाल कर दुकान में मुस्तफा को दे आए. सुनीता अभी इतने पैसे के बारे में पति से कुछ पूछती कि इस से पहले ही कुलदीप ने गंभीरता से कहा कि बहुत ही अर्जेंट है, वह देरी न करे.

मुस्तफा घर से महज 500 मीटर की दूरी पर उन की आटो स्पेयर पार्ट्स हार्डवेयर की दुकान का विश्वस्त सेल्समैन था. सुनीता को पता था कि कारोबार के सिलसिले में पैसे की जरूरत पड़ती रहती थी, फिर भी कैश में इतनी बड़ी रकम ले कर सोच में पड़ गई. फिर भी उस ने पैसे को ले कर अपने दिमाग पर जोर नहीं डाला, क्योंकि अचानक उसे ध्यान आया कि कुलदीप कुछ दिनों से एक सेकेंडहैंड कार खरीदने की बात कर रहे थे. उस ने सोचा शायद उन्होंने उस के लिए पैसे मंगवाए हों.

सुनीता को भी जन्मदिन का गिफ्ट खरीदने के लिए जाना था, तय किया कि वह दोनों काम एक साथ कर लेगी और दोपहर डेढ़-दो बजे तक वापस घर लौट कर बाकी की तैयारियों में लग जाएगी. सुनीता ने पति के कहे अनुसार ठीक साढ़े 12 बजे मुस्तफा को पैसे का थैला पकड़ाया और जाने लगी. मुस्तफा सिर्फ इतना बता पाया कि कोई पैसा लेने आएगा, उसे देने हैं. सुनीता ने कहा, ‘‘ठीक है, पैसे संभाल कर रखना. मैं चलती हूं मुझे बहुत काम है.’’

उस के बाद सुनीता ने पास ही एक शोरूम से कुछ शौपिंग की और घर आ कर बाकी का काम निपटाने में जुट गई. सुनीता के पास दिन में ढाई बजे के करीब कुलदीप का फोन आया. उन्होंने पैसे मिलने जानकारी दी थी. सुनीता ने शाम को जल्द आने के लिए कहा. लेकिन इस का कुलदीप ने कोई जवाब नहीं दिया. सुनीता से इसे अन्यथा नहीं लिया और अपना अधूरा काम पूरा करने लगी.

शाम के 4 बज गए थे. दिव्यांशु ने अपने पिता को फोन किया, लेकिन फोन बंद था. वह मां से बोला, ‘‘मम्मी, पापा का फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘क्यों फोन करना है पापा को?’’ सुनीता बोली.

‘‘4 बज गए हैं. उन को जल्दी आने के लिए बोलना है.’’ दिव्यांशु कहा.

‘‘अरे आ जाएंगे समय पर… मैं मुस्तफा को बोल आई हूं जल्दी घर आने के लिए.’’ सुनीता बोली.

‘‘मगर मम्मी, पापा का फोन बंद क्यों है?’’ दिव्यांशु ने सवाल किया.

‘‘बंद है? अरे नहीं, बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी. थोड़ी देर बाद फोन करना.’’ सुनीता बोली.

दिव्यांशु ने मां के कहे अनुसार 10 मिनट बाद पापा को फिर फोन लगाया. अभी भी उन का फोन बंद आ रहा था. उस ने मां को फोन लगाने के लिए कहा. सुनीता ने भी फोन लगाया. उसे भी कोई जवाब नहीं मिल पाया. उस ने 2-3 बार फोन मिलाया मगर फोन नहीं लगा.

उसे अब पति की चिंता होने लगी. वह 4 लाख रुपए को ले कर चिंतित हो गई. अनायास मन में नकारात्मक विचार आ गए. कहीं पैसे के कारण कुलदीप के साथ कुछ हो तो नहीं गया. देरी किए बगैर सुनीता ने फोन न लगने की बात अपने जेठ संजीव गुप्ता और दूसरे रिश्तेदारों को बताई. उन्हें भी चिंता हुई और कुलदीप के हर जानपहचान वाले को फोन लगाया गया. कहीं से उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

परिवार के लोग परेशान हो गए. जैसेजैसे समय बीतने लगा, वैसेवैसे उन की चिंता और गहरी होने लगी. सभी किसी अनहोनी से आशंकित हो गए. इशिका और दिव्यांशु रोनेबिलखने लगे. घर में खुशी के जन्मदिन की तैयारी का माहौल गमगीन हो गया.

रात के 11 बज गए थे. कुलदीप के बड़े भाई संजीव गुप्ता ने कुलदीप के लापता होने की जानकारी थाना पाकबड़ा के थानाप्रभारी योगेंद्र यादव को दी. सुनीता ने उन्हें दिन भर की सारी बातें बताई कि किस तरह से कुलदीप ने अचानक पैसे मंगवाए और उन के अलावा किसी की भी कुलदीप से फोन पर बात नहीं हो पाई. पैसे की बात सुन कर पुलिस ने इस बात का अंदाजा लगा लिया कि लेनदेन के मामले में कुलदीप कहीं फंसा होगा या फिर उस की हत्या हो गई होगी. इस की सूचना थानाप्रभारी योगेंद्र ने अपने उच्चाधिकारियों को दी और आगे की काररवाई में जुट गए.

अगले दिन पुलिस ने कुलदीप की दुकान के खास कर्मचारी मुस्तफा से पूछताछ शुरू की. मुस्तफा ने बताया कि दुकान खोलने के कुछ समय बाद ही वह किसी के साथ एक मरीज देखने के लिए अस्पताल जाने की बात कहते हुए चले गए थे. उस वक्त साढ़े 9 बजे का समय था. मुस्तफा ने बताया कि जाते समय कुलदीप ने लौटने में देर होने की स्थिति में बाइक को वहीं किनारे लगा कर दुकान की चाबियां घर दे आने को कहा था.

थानाप्रभारी ने मुस्तफा से उस रोज की पूरी जानकारी विस्तार से बताने को कहा. मुस्तफा ने 4 जून, 2021 को दुकान खोले जाने के बाद की सभी जानकारियां इस प्रकार दी—

सुबह के 9 बजे हर दिन की तरह कुलदीप पाकबाड़ा के डींगरपुर चौराहे पर स्थित अपनी आटो स्पेयर पार्ट्स की दुकान पर पहुंच गए थे. उन्होंने कर्मचारियों को चाबियां दे कर दुकान खोलने को कहा था. उन का अपना मकान करीब आधे किलोमीटर दूरी पर मिलन विहार मोहल्ले में था. उन के भाई संजीव गुप्ता का मकान भी वहां से 500 मीटर की दूरी पर था.

चाबियां सौंपने के बाद कुलदीप ने अपने खास कर्मचारी मुस्तफा को अलग बुला कर बताया कि वह एक परिचित को देखने के लिए अस्पताल जा रहे हैं. इसी के साथ उन्होंने हिदायत भी दी कि उन्हें वहां से लौटने में देर हो सकती है, इसलिए आज दुकान की पूरी जिम्मेदारी उसी के ऊपर रहेगी. कुलदीप गुप्ता ऐसा पहले भी कर चुके थे. इस कारण मुस्तफा ने उस रोज की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

उसी वक्त सड़क के दूसरी ओर बाइक पर एक आदमी आया. वह हेलमेट पहने हुए था. कुलदीप उस की बाइक पर बैठ कर चले गए. यह सब 5-7 मिनट में ही हो गया. दुकान के कर्मचारी अपनेअपने काम में लग गए. सेल्समैन का काम संभालने वाला मुस्तफा काउंटर पर आ गया. इस तरह दुकान की दिनचर्या शुरू हो गई.

अगले भाग में पढ़ें- कुलदीप की हत्या की सूचना से घर में कोहराम मच गया

पेपर माफिया के निराले खेल – भाग 1

इसी साल 22 मार्च की सुबह के करीब 10 बजे जयपुर में कुछ पत्रकारों को सूचना मिली कि टोंक फाटक के पास किताबों की कुछ दुकानों पर राजस्थान विश्वविद्यालय का बीएससी द्वितीय वर्ष का फिजिकल कैमिस्ट्री का प्रश्नपत्र बेचा जा रहा है. यह पेपर उसी दिन दोपहर 3 बजे होने वाला था. किसी परीक्षार्थी ने दुकानों पर बिक रहे उस पेपर की कौपी वाट्सऐप द्वारा एक पत्रकार को भेज दी थी. उस पत्रकार ने इस मामले की जानकारी अपने एक साथी को दी.

उन दिनों जयपुर में राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था. दोनों पत्रकारों ने सावधानी के तौर पर विधानसभा पहुंच कर कुछ विधायकों को इस मामले के बारे में बताया ही नहीं, वह पेपर भी दिखाया. दोनों पत्रकारों ने उस प्रश्नपत्र पर 4 विधायकों से हस्ताक्षर करवा कर समय भी दर्ज करवा लिया. उन में सत्तापक्ष भाजपा के वरिष्ठ विधायक घनश्याम तिवाड़ी, कांग्रेस के घनश्याम मेहर, श्रवण कुमार और निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल शामिल थे.

शाम 6 बजे जब पेपर समाप्त हुआ तो उस पेपर का मिलान किया गया. हूबहू वही पेपर आया था, जो उन के पास था. उस में न कोई सवाल बदला था और न ही सवालों का क्रम. ओरिजिनल पेपर और बाजार में बिक रहे पेपर की भाषा और छपाई का फोंट भी एक ही था.

जब यह मामला सामने आया तो राजस्थान यूनिवर्सिटी के कार्यवाहक कुलपति वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजेश्वर सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन इस की जांच कराएगा. यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक बी.एल. गुप्ता ने कहा कि परीक्षाओं में पूरी गोपनीयता बरती जा रही है, फिर भी मामला कमेटी के पास जांच के लिए भेजा जाएगा.

जांच के बाद आखिर यूनिवर्सिटी ने वह पेपर निरस्त कर दिया. राजस्थान यूनिवर्सिटी की पूरे देश में बहुत अच्छी साख है. पेपर आउट होने की इस घटना से यूनिवर्सिटी की छवि पर विपरीत असर पड़ सकता था. निस्संदेह यह बेहद गंभीर मामला था, इसलिए उच्चाधिकारियों ने राजस्थान पुलिस के स्पैशल औपरेशन ग्रुप (एसओजी) को इस मामले की जांच करने को कहा.

एसओजी ने सूचनाएं जुटानी शुरू कीं तो जानकारी मिली कि राजस्थान के विभिन्न शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों की ओर से आयोजित होने वाली विभिन्न परीक्षाओं के प्रश्नपत्र परीक्षा से पहले ही कई माध्यमों से लीक हो रहे हैं.

गहराई से जांच की गई तो पता चला कि बीकानेर यूनिवर्सिटी की ओर से इसी साल 5 अप्रैल को होने वाली एमकौम फाइनल की परीक्षा, राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा 10 अप्रैल को कराई गई बीए तृतीय वर्ष के भूगोल के प्रथम प्रश्नपत्र की परीक्षा और 12 अप्रैल को होने वाली द्वितीय प्रश्नपत्र और 13 अप्रैल को होने वाली एमए प्रीवियस एवं एबीएसटी द्वितीय के प्रश्नपत्र परीक्षा से पहले ही लीक हो गए थे.

इस से परीक्षाओं की गोपनीयता भंग हुई थी. जांच के बाद एसओजी ने पेपर माफिया के विरुद्ध 3 मामले दर्ज किए. एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. के निर्देश पर एसओजी के एसपी संजय श्रोत्रिय के निर्देशन में करीब एक दर्जन टीमों का गठन किया गया. इन टीमों ने पेपर लीक होने के मामले में तकनीकी जांच कर संदिग्ध लोगों की गतिविधियों पर नजर रखनी शुरू कर दी.

इस के बाद 17 अप्रैल को सब से पहले राजस्थान यूनिवर्सिटी के एक विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर सहित 8 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इन में राजस्थान यूनिवर्सिटी के भूगोल के विभागाध्यक्ष जगदीश प्रसाद जाट, राजस्थान विश्वविद्यालय के वाणिज्य विभाग के प्रोफेसर गोविंद पारीक, भूगोल के सेवानिवृत्त प्रोफेसर बी.एल. गुप्ता थे.

इस के अलावा राजकीय कालेज खाजूवाला (बीकानेर) के प्राचार्य एन.एस. मोदी और बीकानेर निवासी उन के बेटे निपुण मोदी, एसएसजी पारीक गर्ल्स कालेज चौमूं (जयपुर) के प्रोफेसर शंभुदयाल झालानी, अग्रसेन कालेज भादरा (हनुमानगढ़़) के लेक्चरर कालीचरण शर्मा, रमेश बुक डिपो, मानसरोवर, जयपुर का कर्मचारी शरद शामिल थे.

इन लोगों से पूछताछ में पता चला कि बीकानेर यूनिवर्सिटी की ओर से 5 अप्रैल को एमकौम फाइनल वर्ष के ओआर एंड क्यूटी की परीक्षा आयोजित की गई थी. लेकिन इस परीक्षा के प्रश्नपत्र के सवालों को 4 दिन पहले यानी 1 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गोविंद पारीक ने एसएसजी पारीक गर्ल्स कालेज चौमूं के प्रोफेसर शंभुदयाल झालानी से नोट कर के बीकानेर यूनिवर्सिटी के खाजूवाला कालेज के प्राचार्य एन.एस. मोदी को बता दिया.

मोदी ने उन सवालों को अपने बेटे निपुण मोदी को बता दिया. वह इस पेपर की परीक्षा दे रहा था. यही पेपर रमेश बुक डिपो के कर्मचारी शरद ने परीक्षा से पहले ही अग्रसेन कालेज भादरा (हनुमानगढ़) के व्याख्याता कालीचरण शर्मा के जरिए फोन पर हासिल कर लिया और अन्य लोगों को वितरित कर दिया.

इसी तरह राजस्थान यूनिवर्सिटी में 10 अप्रैल को होने वाली बीए फाइनल ईयर की परीक्षा में भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र का पेपर 8 अप्रैल को ही राजस्थान यूनिवर्सिटी के भूगोल के विभागाध्यक्ष जगदीश प्रसाद जाट ने पेपर सैटर बी.एल. गुप्ता से नोट किया और परीक्षार्थियों को वितरित कर दिया.

राजस्थान यूनिवर्सिटी की 12 अप्रैल को होने वाली बीए तृतीय वर्ष का भूगोल द्वितीय प्रश्नपत्र का पेपर 11 अप्रैल को ही जगदीश प्रसाद जाट ने हासिल कर विद्यार्थियों में बांट दिया था. इस तरह यह पेपर भी आउट कर दिया गया था.

राजस्थान यूनिवर्सिटी की 13 अप्रैल को होने वाली एबीएसटी द्वितीय प्रश्नपत्र (एडवांस्ट कोस्ट एकाउंटिंग) की परीक्षा का पेपर एक दिन पहले 12 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी की गोपनीय शाखा के कर्मचारी नंदलाल सैनी, अशोक अग्रवाल एवं महेश गुप्ता तथा अन्य लोगों ने आउट कर दिया था.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में पता चला कि 17 अप्रैल को हो रहे बीकौम फाइनल ईयर के इनकम टैक्स का पेपर भी परीक्षा से पहले लीक हो चुका था. इस सूचना पर 17 अप्रैल को ही एसओजी की एक टीम ने दौसा जिले के बांदीकुई कस्बे में छापा मारा. अगले दिन यानी 18 अप्रैल को एसओजी ने पेपर लीक प्रकरण में 3 अन्य मुकदमे दर्ज कर 5 लोगों को गिरफ्तार किया.

इन में राजस्थान यूनिवर्सिटी की गोपनीय शाखा का अनुभाग अधिकारी नंदलाल सैनी, राजकीय कालेज कालाडेरा (जयपुर) का लेक्चरर शंकर चोपड़ा, बांदीकुई (दौसा) का कोचिंग संचालक चंद्रप्रकाश सिंधी तथा फाइनल ईयर के छात्र अखिल रावत एवं अजय कुमार सैनी शामिल थे. इन में कालाडेरा कालेज के लेक्चरर शंकर चोपड़ा ने राजस्थान यूनिवर्सिटी के एमए फाइनल ईयर के वाटर रिसोर्स एवं एडवांस ज्योग्राफी औफ इंडिया के पेपर परीक्षा से पहले 8 अप्रैल को ही यूनिवर्सिटी के भूगोल के विभागाध्यक्ष जगदीश प्रसाद जाट को बता दिए थे.

पैसा बेईमान नहीं, हत्यारा भी बनाता है – भाग 3

भोपाल सहित पूरे देश में रिटायर्ड एयरफोर्स अधिकारी की हत्या पर चर्चाएं होने लगी थीं. हर कोई पुलिस को कोस रहा था कि वह शहर में रह रहे अकेले बुजुर्गों की हिफाजत के लिए कोई इंतजाम नहीं करती. और तो और, पुलिस के पास अकेले रह रहे बूढ़ों का कोई डाटा या रिकौर्ड तक नहीं है. इन सब आलोचनाओं से परे पुलिस के हाथ हत्यारे के गिरेहबान तक पहुंच चुके थे. देर बस गिरफ्तारी की थी, जो 10 मार्च को हो भी गई और राजू ने अपना जुर्म भी कबूल कर लिया.

दरअसल, पुलिस राजू और आरती के मोबाइल काल्स पर ध्यान रखे हुए थी. दोनों में बातचीत हो रही थी और नायर दंपति की हत्या की खबर सुन कर आरती इंदौर से भोपाल आ गई थी. पुलिस ने आरती को रडार पर लिया तो उस ने बताया कि राजू जरूर उस से मिलने आएगा. भोपाल आ कर आरती गोपालनगर झुग्गी इलाके में रुकी थी.

राजू को कतई अंदाजा या अहसास नहीं था कि भोपाल में पुलिस उस का स्वागत करने को तैयार है. वह तो अपने मालिक की हत्या पर शोक प्रकट करने इसलिए आ रहा था ताकि पुलिस उस पर शक न करे. जैसे ही वह भोपाल आया, सादे कपड़ों में तैनात पुलिसकर्मियों ने उसे स्टेशन से धर दबोचा. पहले तो वह हत्या की वारदात से नानुकुर करता रहा, लेकिन जल्द ही टूट भी गया. उस ने हत्या का सच उगल दिया.

राजू ने मांबाप सरीखे दंपति को पैसे के लिए लगाया ठिकाने 

32 वर्षीय राजू धाकड़ मूलत: ग्वालियर के हीरापुर गांव का रहने वाला था. उस ने वाकई जी.के. नायर से लगभग 2 लाख रुपए उधार ले रखे थे और उस की नीयत पैसे देने की नहीं थी. इस बात पर नायर उसे कभीकभी डांटा भी करते थे, जो उसे नागवार गुजरता था. इतना ही नहीं, राजू को यह शक भी था कि भेल के ठेका श्रमिक की नौकरी से उसे नायर ने ही निकलवाया है.

घटना की रात हत्या के इरादे से राजू कोई 9 बजे ग्वालियर से भोपाल आया. इस बाबत उस ने चाकू भी ग्वालियर से खरीद लिया था. भोपाल आ कर वह एसओएस बालग्राम स्टाप पर उतरा और वहां से पैदल ही नायर के घर तक गया. उस समय नायर दंपति टीवी देख रहे थे. राजू को देखते ही नायर की भौंहे तन गईं. उन्होंने उसे दरवाजे से ही वापस कर दिया. इस पर राजू ने गिड़गिड़ाते हुए उन्हें पुराने संबंधों का वास्ता दिया तो नरम दिल नायर पिघल उठे और उन्होंने उसे अंदर आने दिया.

उन की यह इजाजत भारी भूल साबित हुई. आदतन नायर ने फिर पैसों का तकादा किया तो राजू हमेशा की तरह बेशर्मी से नानुकुर करने लगा. बात करतेकरते दोनों पहली मंजिल पर आ गए, जहां नायर इत्मीनान से बैठ गए और राजू की खिंचाई करने लगे. इस बार राजू तय कर आया था, इसलिए जानबूझ कर विवाद को हवा दे रहा था.

पुराने पैसे लौटाने की बात तो दूर राजू ने नायर से और पैसे मांगे तो वे झल्ला उठे और तेज आवाज में उसे डांटने लगे. डांट सुन कर राजू को भी गुस्सा आ गया. वह हाथ धोने के बहाने बाथरूम में चला गया और मुड़ कर नायर के पीछे आ कर खड़ा हो गया. जेब से चाकू निकाल कर राजू ने नायर की गरदन पर 1-2 नहीं बल्कि गिन कर पूरे 10 प्रहार किए और 11वीं वार में उन का गला रेत डाला.

ताबड़तोड़ हमलों से घबराए और तड़पते जी.के. नायर पत्नी का नाम ले कर चिल्लाए. उन की चीख सुन कर गोमती पहली मंजिल की तरफ दौड़ीं. पैरों में तकलीफ होने के कारण गोमती कभी पहली मंजिल पर नहीं जाती थीं. मालिक का काम तमाम कर के राजू अभी उठा ही था कि मालकिन सामने आ गईं. गोमती को भी उस ने नहीं बख्शा और उसी चाकू से उन का गला रेत दिया.

चीखें भी रहीं बेअसर

यही वे चीखें थीं, जो रत्ना मिस्त्री ने सुनी थीं. लेकिन रोजमर्रा की आम बातचीत समझ कर उन्होंने उन्हें इसे नजरअंदाज कर दिया था. जी.के. नायर ने बचाव की कोशिश की थी, जिस में हाथापाई के दौरान चाकू उलट कर राजू की जांघ में भी लग गया था. लेकिन उसे ज्यादा चोट नहीं आई थी.

2 हत्याएं कर के राजू ने किचन में जा कर खून से सना चाकू साफ किया और पूरा किचन साफ कर दिया. खून के धब्बे लगी अपनी पैंट उतार कर उस ने घर से उठा कर नीले रंग का लोअर पहना और जाने से पहले सोने के जेवरों पर हाथ साफ कर दिया.

उस ने अलमारी में सोने की 8 चूडि़यां चुराईं और फिर मृत गोमती के गले में पड़ी चेन भी उतार ली. बाथरूम जा कर उस ने खून से सने कपड़े भी धोए और फिर एक नजर घर पर डाल कर बालकनी के रास्ते कूद कर चला गया. स्टेशन तक वह पैदल ही गया और ग्वालियर जाने वाली ट्रेन में बैठ गया. सुबह ही वह वापस भोपाल के लिए रवाना हो गया, जिस का अंदेशा आरती पुलिस वालों के सामने जता चुकी थी.

राजू के मन में लालच और हैवानियत दोनों आ गए थे. नायर दंपति की मेहरबानियों का बदला उस ने बजाय नमक हलाली के नमक हरामी से चुकाया. लगता यही है कि नौकरों पर जरूरत से ज्यादा मेहरबानियां और दयानतदारी जानलेवा भी हो सकती है. इन दोनों के कत्ल की उस की हिम्मत इसलिए भी पड़ी कि दोनों अकेले रहते थे और राजू के बारे में सब कुछ जानता था.

आरती के मन में अपने मालिकों के उपकारों के प्रति कृतज्ञता थी, जिस के चलते उस ने अपने हत्यारे पति को बचाने की कोशिश नहीं की. हालांकि इस दोहरे हत्याकांड में इस बात का कलंक भी लगा कि जी.के. नायर की हत्या की एक वजह उन के आरती से कथित अवैध संबंध भी थे.

भोपाल के डीआईजी धर्मेंद्र चतुर्वेदी के मुताबिक, राजू ने अपने बचाव में हत्या की वजह रुपयों के लेनदेन के अलावा व्यक्तिगत वजह भी बताई है. लेकिन स्पष्ट रूप से इन निजी कारणों का खुलासा पुलिस ने जाने क्यों नहीं किया. अपने बचाव की कोशिश में राजू ने 24 घंटों में ग्वालियर भोपाल अपडाउन किया, लेकिन वह खुद का गुनाह छिपा नहीं पाया.

पैसा बेईमान नहीं, हत्यारा भी बनाता है – भाग 2

सुबहसुबह जी.के. नायर के घर के बाहर जमा भीड़ देख कर एक और पड़ोसी पी.वी.आर. रामादेव भी जिज्ञासावश वहां पहुंच गए. रामादेव खुद आर्मी में सूबेदार रह चुके थे, इसलिए नायर दंपति से उन की अच्छी पटरी बैठती थी. पूछने पर पता चला कि नायर दंपति के घर का दरवाजा नहीं खुल रहा है और वे फोन भी नहीं उठा रहे हैं. इस पर उन्होंने पहल की और नायर के बंगले से सटे हरिदास मिस्त्री के बंगले की बालकनी से नायर के घर जा पहुंचे.

जी.के. नायर के घर का दृश्य देख कर रामादेव हतप्रभ रह गए. जी.के. नायर और गोमती नायर की लाशें फर्श पर पड़ी थीं. यह बात उन्होंने वहां मौजूद लोगों को बताई तो मानो सन्नाटा फैल गया. कालोनी में ऐसी किसी वारदात की उम्मीद किसी ने सपने में भी नहीं सोची थी. एक व्यक्ति ने इस की सूचना 100 नंबर पर दी और  लोग पुलिस के आने का इंतजार करने लगे. मोहनबाई भी सहमी सी एक तरफ खड़ी थी.

आधे घंटे से कम में अवधपुरी पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. चूंकि नायर के घर का दरवाजा अंदर से बंद था, इसलिए पुलिस वालों को भी नायर के एक और पड़ोसी आदित्य मिश्रा के घर से हो कर अंदर जाना पड़ा. पुलिस बल को यह बात भीड़ में से कोई बता चुका था कि नायर साहब छत का दरवाजा हमेशा बंद रखते थे.

मामला चूंकि एयरफोर्स के रिटायर अफसर की हत्या का था, इसलिए देखते ही देखते अवधपुरी इलाके के अलावा गोविंदपुरा और अयोध्यानगर थानों से भी पुलिस वाले पहुंच गए. पुलिस बल के साथ डीआईजी धर्मेंद्र चौधरी और एसपी राहुल लोढ़ा भी थे.

रिश्तेदारों की मौजूदगी में हुई पुलिस जांच

नायर दंपति की लाशें पहली मंजिल के बैडरूम में आमनेसामने पड़ी थीं. गले से बहता खून बयां कर रहा था कि हत्या गला रेत कर की गई थी. पुलिस वालों ने जब बारीकी से पूरे घर का मुआयना किया तो मामला कहीं से भी चोरी या लूटपाट का नहीं लगा. घर का सारा सामान व्यवस्थित तरीके से रखा हुआ था.

अब तक मातापिता की हत्या की खबर बेटियों को भी लग चुकी थी, लिहाजा प्रियंका और प्रतिभा जिस हालत में थीं, उसी हालत में नर्मदा वैली कालोनी की तरफ निकल पड़ीं. पुलिस छानबीन और पूछताछ में जुट गई थी. मोहनबाई, रत्ना मिस्त्री और पी.वी.आर. रामादेव के बयानों से केवल घटना की जानकारी मिल रही थी, हत्यारे की नहीं.

रत्ना मिस्त्री के इस बयान से जरूर पुलिस को कुछ उम्मीद बंधी थी कि रात कोई 12 बजे के आसपास नायर दंपति के घर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आई थीं, पर उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया था क्योंकि तेज आवाज में बातचीत करना मृतक दंपति की आदतों में शुमार था.

जी.के. नायर की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी और घर में कोई लूटपाट या चोरी भी नहीं हुई थी. इस का सीधा सा मतलब यह निकल रहा था कि हत्यारा जो भी था, बेहद नजदीकी था, जिस के रात में आने पर मृतकों को कोई ऐतराज नहीं था. न ही उस पर कोई पाबंदी थी.

हत्या के ऐसे मामलों, जिन में मृतक पैसे वाले हों, में उन की जमीनजायदाद और पैसा खास मायने रखता है. इस तरफ भी पुलिस का ध्यान गया. पूरा घर और आसपास का इलाका छानने के बाद भी हत्यारे का कोई सुराग और हथियार नहीं मिला तो पुलिस की जांच का दायरा नायर दंपति के रिश्तेदारों की तरफ बढ़ गया.

इसी बीच प्रियंका आई तो हत्या की गुत्थी सुलझती नजर आई. प्रियंका से पुलिस को पता चला कि दीवाली के दिनों में पटाखे चलाए जाने पर उस के पिता का विवाद सोसायटी के मौजूदा अध्यक्ष अशोक मनोज से हुआ था. अवधपुरी थाने में इस की शिकायत भी दर्ज हुई थी. दूसरी अहम बात यह सामने आई कि प्रियंका ही मांबाप का एकाउंट्स देखती थी.

पुलिस को संदेह का एक नया आधार मिला लेकिन पुलिस वालों को तीसरी बात ज्यादा महत्त्वपूर्ण लगी. दरअसल प्रियंका ने बताया कि इसी साल जनवरी तक आरती नाम की नौकरानी और उस का पति राजू धाकड़ उस के मातापिता के यहां काम किया करते थे. राजू ने अपनी बहन की शादी के लिए उस के पिता से करीब 2 लाख रुपए भी उधार ले रखे थे.

प्रियंका ने बताया कि आरती जब 8 साल की थी, तभी मम्मीपापा ने उसे अपने साथ रख लिया था और उन्होंने ही उस की शादी राजू से करवाई थी. भोपाल आते समय नायर दंपति उन्हें भी साथ ले आए थे. इतना ही नहीं, जी.के. नायर ने अपने एक परिचित हरिदास से कह कर भोपाल के भेल कारखाने में राजू की नौकरी ठेका श्रमिक के रूप में लगवा दी थी.

आरती और राजू पर जी.के. नायर इतने मेहरबान थे कि उन्होंने इन दोनों को खजूरीकलां में रहने के लिए किराए का मकान भी दिलवा रखा था. प्रियंका ने यह भी बताया कि राजू का विवाद अकसर गोमती से हुआ करता था. वह लिए गए पैसे लौटाना तो दूर की बात, जी.के. नायर के नाम पर कुछ दूसरे लोगों से भी पैसे ले चुका था.

प्रियंका के मुताबिक, अकसर उस के पिता राजू से अपना पैसा वापस मांगा करते थे, लेकिन वह हर बार देने से मना कर देता था. अब आरती और राजू कहां हैं, इस पर प्रियंका ने बताया कि वे दोनों इसी साल जनवरी में काम छोड़ कर चले गए और इंदौर में उन्होंने ब्यूटीपार्लर खोल लिया है, जिस का किराया साढ़े 8 हजार रुपए महीना है.

यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. लेकिन हत्या राजू ने ही की थी तो वह है कहां? इस सवाल का जवाब हासिल करने के लिए पुलिस ने राजू का फोन नंबर ले कर उसे फोन लगाया तो उस ने खुद के ग्वालियर में होने की बात कही.

हत्यारा राजू ही है, इस पर पुलिस का शक गहराने लगा था क्योंकि अब तक यह स्पष्ट हो चुका था कि नायर दंपति के अपने रिश्तेदारों से संबंध अच्छे थे और पटाखा विवाद बेहद मामूली था. एक राजू ही था जो घर के सदस्य की तरह नायर दंपति के यहां बेरोकटोक आजा सकता था. लेकिन ग्वालियर में होते हुए वह दोहरे कत्ल की वारदात को कैसे अंजाम दे सकता था, यह बात किसी सस्पेंस से कम नहीं थी.

हालांकि यह मुमकिन था कि कोई भी शख्स भोपाल में हत्या कर के ग्वालियर जा सकता है, क्योंकि वहां का रास्ता महज 5 घंटे का था. अब तक की काररवाई में यह तो उजागर हो गया था कि हत्याएं रात साढ़े 9 से 12 बजे के बीच हुई थीं. यानी राजू के हत्या कर के ग्वालियर भाग जाने की बात संभव थी. भोपाल से ग्वालियर के लिए रात में ट्रेनों की भी कमी नहीं थी.

पैसा बेईमान नहीं, हत्यारा भी बनाता है – भाग 1

70 वर्षीय जी.के. नायर एयरफोर्स की सिविल विंग से रिटायर हो कर चाहते तो अपने गृह राज्य केरल वापस जा सकते थे, लेकिन लंबा वक्त एयरफोर्स में गुजारने के बाद उन्होंने मध्य प्रदेश में ही बस जाने का फैसला ले लिया था. इन दिनों वह अपनी 68 वर्षीय पत्नी गोमती नायर सहित भोपाल खजूरीकलां स्थित नर्मदा ग्रीन वैली कालोनी में डुप्लेक्स बंगले में रह रहे थे. इस कालोनी की गिनती भोपाल की पौश कालोनियों में होती है, जिस में संपन्न और संभ्रांत लोग रहते हैं.

दूसरे रिटायर्ड मिलिट्री अफसरों की तरह जी.के. नायर का स्वभाव भी अनुशासनप्रिय था, जो आम लोगों को सख्त लगता था. उन के चेहरे पर छाया रौब और बातचीत का लहजा ही उन के एयरफोर्स अधिकारी होने का अहसास करा देता था. साल 2014 में जब वे पत्नी सहित नर्मदा ग्रीन वैली में आ कर रहने लगे थे, तभी से इस कालोनी के अधिकांश लोग उन के स्वभाव से परिचित हो गए थे.

गोमती नायर ग्वालियर के मुरार अस्पताल में नर्स पद से रिटायर हुई थीं. पतिपत्नी दोनों को ही पेंशन मिलती थी. नौकरी में रहते ही नायर दंपति अपनी तीनों बेटियों की शादियां कर के अपनी इस जिम्मेदारी से मुक्त हो चुके थे. लिहाजा उन के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी.

ग्वालियर से नायर दंपति का खास लगाव था, क्योंकि गोमती वहीं से रिटायर हुई थीं और इन की बड़ी बेटी प्रशुंभा नायर की शादी भी ग्वालियर में ही हुई थी. गोमती की एक बहन भी ग्वालियर में ही रहती थीं. जब भी इन दोनों का मन भोपाल से कहीं बाहर जाने का होता था तो उन की प्राथमिकता ग्वालियर ही होती थी.

पुरसुकून थी नायर दंपति की जिंदगी

भोपाल में बसने की बड़ी वजह उन की यहां फैली रिश्तेदारी थीं. मंझली बेटी प्रियंका नायर की शादी भोपाल में हुई थी और वह अवधपुरी इलाके की फर्स्ट गार्डन कालोनी में रहती थीं. प्रियंका एक नामी प्राइवेट स्कूल में टीचर थीं. छोटी बेटी प्रतिभा की भी शादी भोपाल में हुई थी, जो मिसरोद इलाके की राधाकृष्ण कालोनी में रहती थी. गोमती के बड़े भाई का बेटा प्रमोद नायर भी भोपाल में रहता था.

उन की और 2 बहनें भी भोपाल में रहती थीं. इतने सारे नजदीकी रिश्तेदारों के भोपाल में होने के चलते जी.के. नायर का भोपाल में बस जाने का फैसला स्वाभाविक था, जो उन्हें एक सामाजिक सुरक्षा का अहसास कराता था. हर रविवार कोई न कोई मिलने के लिए उन के घर आ जाता था. इस से बुजुर्ग दंपति का अपनों के बीच अच्छे से वक्त कट जाता था. जी.के. नायर के बैंक खातों का काम और पैसों का हिसाबकिताब प्रियंका के हाथ में था.

नर्मदा ग्रीन वैली कालोनी में शिफ्ट होने के कुछ दिन बाद ही जी.के. नायर सोसायटी के अध्यक्ष चुन लिए गए थे. लेकिन इस पद पर वे सभी की पसंद नहीं थे. कालोनियों की सोसाइटियों की अपनी एक अलग राजनीति होती है, जिस का अंदाजा या तजुर्बा जी.के. नायर को नहीं था. अध्यक्ष रहते उन्होंने कालोनी के पार्क में बेंच लगवाने की पहल की तो कई सदस्यों ने इस पर असहमति जताई थी, जिस से खिन्न हो कर उन्होंने पद छोड़ दिया था.

वजह यह कि काम कम होता था और रोजाना की चिखचिख ज्यादा होती थी. 70 साल की बड़ी और लंबी जिंदगी में हालांकि इन छोटीमोटी बातों के कोई खास मायने नहीं होते, लेकिन यह साबित हो गया था कि मिलिट्री से रिटायर्ड अधिकारी आमतौर पर समाज में फिट नहीं होते.

पतिपत्नी खाली समय ज्यादातर टीवी देख कर गुजारते थे. गोमती को अपराध से संबंधित धारावाहिक पसंद थे. इन्हें वे बड़े चाव से देखा करती थीं और अपराध और अपराधी की मानसिकता को समझने की कोशिश करती रहती थीं. कई बार ये धारावाहिक देख कर उन्हें अपनी सुरक्षा का ध्यान आता था, पर यह सोच कर वे निश्चिंत हो जाया करती थीं कि उन की कालोनी कवर्ड है और मकान भी सुरक्षित है. बुढ़ापे में सुरक्षा की चिंता एक आम बात है लेकिन जी.के. नायर बहादुर होने के कारण यह चिंता नहीं करते थे.

अचानक कैसे आई कालरात्रि

8 मार्च की रात टीवी देखते समय जी.के. नायर ने गोमती से कुछ बातें की थीं, फिर लगभग साढ़े 9 बजे उन्होंने प्रियंका को फोन किया. वैसे तो सभी रिश्तेदारों खासतौर से बेटियों से उन की रोजाना फोन पर बात हो जाती थी, लेकिन प्रियंका को उन्होंने इस वक्त एक खास मकसद से फोन किया था.

उन्होंने बेटी से कहा कि वह अगले दिन या फिर जब भी बर्थ खाली मिले, उन दोनों का ग्वालियर जाने का रिजर्वेशन करवा दे. क्योंकि उन्हें प्रियंका की मौसी यानी गोमती की बहन को देखने जाना था, जो इन दिनों बीमार चल रही थीं.

9 मार्च की सुबह रोजाना की तरह जब नायर दंपति के यहां काम करने वाली नौकरानी  मोहनबाई आई तो कई बार कालबेल बजाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला. इस पर मोहनबाई ने पहले उन्हें आवाजें लगाईं और फिर जी.के. नायर के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं मिला. दरवाजे पर खड़ेखड़े मोहनबाई को ध्यान आया कि पिछली रात ही गोमती ने उस से जल्द आने को कहा था और 5 के बजाय 10 रोटियां बनवाई थीं, जिस से उस ने अंदाजा लगाया था कि शायद रात को कोई आने वाला है.

जब फोन नहीं उठा तो मोहनबाई पड़ोस में रहने वाली रत्ना मिस्त्री के पास गई और उन्हें यह बात बताई. इस पर रत्ना ने भी नायर साहब का मोबाइल फोन लगाया पर दूसरी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. यह एक चिंता की बात थी. नायर दंपति द्वारा फोन न उठाए जाने की बात रत्ना ने दूसरे पड़ोसियों को बताई तो धीरेधीरे कालोनी के लगभग सभी लोग इकट्ठा हो गए. किसी अनहोनी की आशंका सभी के दिमाग में थी, पर कोई खुल कर नहीं बोल पा रहा था.

कानपुर में मांबेटी को जिंदा जलाया, अफसर बने भस्मासुर – भाग 4

चूंकि पीडि़त परिवार की मांगें तत्काल मान लेना संभव न था, अत: अधिकारियों ने पीडि़त परिवार को समझाया और उनकी मांगों को शासन तक पहुंचाने की बात कही, लेकिन परिजन अपनी बात पर अड़े रहे. उन्होंने राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला की भी बात नहीं मानी. लाचार अधिकारी मौके पर ही डटे रहे और मानमनौवल करते रहे.

14 फरवरी, 2023 की सुबह कानपुर नगर/देहात से प्रकाशित समाचार पत्रों में जब मांबेटी की जल कर मौत होने की खबर सुर्खियों में छपी तो पूरे प्रदेश में राजनीतिक भूचाल आ गया. कांग्रेस पार्टी प्रमुख राहुल गांधी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव तथा बसपा प्रमुख मायावती ने जहां ट्वीट कर योगी सरकार की कानूनव्यवस्था पर तंज कसा तो दूसरी ओर इन पार्टियों के नेता घटनास्थल पर पहुंचने को आमादा हो गए. लेकिन सतर्क पुलिस प्रशासन ने इन नेेताओं को घटनास्थल तक पहुंचने नहीं दिया. किसी विधायक को उन के घर में नजरबंद कर दिया गया तो किसी को रास्ते में रोक लिया गया.

एसआईटी के हाथ में पहुंची जांच…

इधर 24 घंटे बीत जाने के बाद भी जब घर वालों तथा गांववालों ने मांबेटी के शवों को नहीं उठने दिया तो कमिश्नर डा. राजशेखर ने प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से वीडियो काल कर पीडि़तों की बात कराई. उपमुख्यमंत्री ने मृतका के बेटे शिवम दीक्षित से कहा कि आप हमारे परिवार के सदस्य हो. पूरी सरकार आप के साथ खड़ी है. दोषियों के खिलाफ केस दर्ज हो गया है और कड़ी से कड़ी काररवाई होगी. उन्हें ऐसी सख्त सजा दिलाएंगे कि पुश्तें याद रखेंगी.

डिप्टी सीएम बात करतेकरते भावुक हो गए. उन्होंने शिवम से कहा कि आप कतई अकेला महसूस न करें, जिन्होंने तुम्हारी मांबहन को तुम से छीना है, उन्हें इस का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इस घटना से हम सभी द्रवित है. इस के बाद उन्होंने शिवम की पत्नी शालिनी तथा भाई अंशु से भी बात की और उन्हें धैर्य बंधाया. डिप्टी सीएम से बात करने के बाद पीडि़त परिवार शव उठाने को राजी हो गया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मांबेटी के शवों के पोस्टमार्टम हेतु माती भेज दिया. शाम साढ़े 6 से साढ़े 7 बजे के बीच 3 डाक्टरों (डा. गजाला अंजुम, डा. शिवम तिवारी तथा डा. मुनीश कुमार) के पैनल ने वीडियोग्राफी के बीच पोस्टमार्टम किया.

मांबेटी के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने आरोपी अशोक दीक्षित के घर रात 2 बजे छापा मारा, लेकिन घर पर महिलाओं के अलावा कोई नहीं मिला. पुलिस टीम ने महिलाओं से पूछताछ की तो गौरव की पत्नी रुचि दीक्षित ने बताया कि उन के परिवार का इस केस से कोई लेनादेना नहीं है. उन के पति गौरव दीक्षित फौज में है. वह श्रीनगर में तैनात है. उन का देवर अभिषेक दीक्षित राजस्थान में फौज में है. छोटा देवर अखिल 29 जुलाई से घर से लापता है. उन के ससुर अशोक दीक्षित खेती करते हैं. रुचि ने पुलिस टीम की अपने पति गौरव से फोन पर बात भी कराई.

आरोपी अशोक दीक्षित की पत्नी सुधा दीक्षित ने पुलिस को बताया कि उन के पति व बेटों को इस मामले में साजिशन फंसाया जा रहा है. इधर शासन ने भी मांबेटी की मौत को गंभीरता से लिया और जांच के लिए अलगअलग 2 विशेष जांच टीमों (एसआईटी) का गठन किया. पहली टीम का गठन डीजीपी हाउस लखनऊ द्वारा किया गया.5 सदस्यीय इस टीम में हरदोई के एसपी राजेश द्विवेदी को अध्यक्ष, हरदोई सीओ (सिटी) विकास जायसवाल को विवेचक बनाया गया. जबकि हरदोई के कोतवाल संजय पांडेय, हरदोई महिला थाने की एसएचओ राम सुखारी तथा क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर रमेश चंद्र पांडेय को शामिल किया गया.

दूसरी विशेष जांच टीम (एसआईटी) का प्रमुख कमिश्नर डा. राजशेखर व एडीजी आलोक सिंह को बनाया गया और विवेचक कन्नौज के एडीएम (वित्त एवं राजस्व) राजेंद्र कुमार को बनाया गया. इस टीम को भी तत्काल प्रभाव से जांच के आदेश दिए. एसआईटी की दोनों टीमें मड़ौली गांव पहुंची और जांच शुरू की. एसपी राजेश द्विवेदी की टीम ने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पीडि़त परिवार के लोगों से पूछताछ कर बयान दर्ज किए. टीम ने गांव के प्रधान व कुछ अन्य लोगों से भी जानकारी जुटाई. टीम ने थाना अकबरपुर व रूरा में पीडि़तों के खिलाफ दर्ज रिपोर्ट का भी अध्ययन किया. टीम ने उन 15 लोगों को भी नोटिस जारी किया जो गवाह के रूप में दर्ज थे.

दूसरी विशेष जांच टीम ने भी जांच शुरू की. डा. राजशेखर की टीम ने लगभग 60 लोगों की लिस्ट तैयार की और उन्हें जिला मुख्यालय पर शिविर कार्यालय निरीक्षण भवन में बयान दर्ज कराने को बुलाया. टीम ने कुछ मोबाइल फोन नंबर भी जारी किए, जिस पर कोई भी व्यक्ति घटना से संबंधित बयान दर्ज करा सके.

बहरहाल, कथा लिखने तक एसआईटी की जांच जारी थी. रूरा पुलिस ने गिरफ्तार आरोपी लेखपाल अशोक सिंह चौहान व चालक दीपक चौहान को माती कोर्ट में पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. आरोपी एसएचओ दिनेश गौतम व एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भूमिगत हो चुके थे. अन्य आरोपियों को पकडऩे के लिए पुलिस प्रयासरत थी. मृतका प्रमिला के दोनों बेटों शिवम व अंशु को 5-5 लाख रुपए की सहायता राशि शासन द्वारा प्रदान कर दी गई थी तथा उन्हें सुरक्षा भी मुहैया करा दी गई थी.

-कथा पुलिस सूत्रों तथा पीडि़त परिवार से की गई बातचीत पर आधारित

कानपुर में मांबेटी को जिंदा जलाया, अफसर बने भस्मासुर – भाग 3

कृष्ण गोपाल व उन का बेटा शिवम मां व बहन को बचाने किसी तरह झोपड़ी में घुस तो गए. लेकिन वे उन दोनों तक नहीं पहुंच पाए. आग की लपटों ने उन दोनों को भी झुलसा दिया था. शिवम बाहर खड़ा चीखता रहा, ‘‘हाय दइया, कोउ हमरी मम्मी बहना को बचा लेऊ.’’ पर उस की चीख अफसरों ने नहीं सुनी. वे आंखें मूंदे खतरनाक मंजर देखते रहे.

इधर मड़ौली गांव के लोगों ने कृष्ण गोपाल के बगीचे में आग की लपटें देखीं तो वे उस ओर दौड़ पड़े. वहां का भयावह दृश्य देख कर ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा और वे पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों पर पथराव करने लगे. ग्रामीणों का गुस्सा देख कर पुलिस व अफसर किसी तरह जान बचा कर वहां से भागे. ग्रामीणों का सब से ज्यादा गुस्सा लेखपाल पर था. उन्होंने उस की कार पलट दी और तोड़ डाली. वे कार को फूंकने जा रहे थे, लेकिन कुछ समझदार ग्रामीणों ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया.

सूर्यास्त होने से पहले ही मांबेटी के जिंदा जलने की खबर जंगल की आग की तरह मड़ौली व आसपास के गांवों में फैल गई. कुछ ही देर बाद सैकड़ों की संख्या में लोग घटनास्थल पर आ पहुंचे. लोगों में भारी गुस्सा था और वह शासनप्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे थे. शिव चबूतरा तोड़े जाने से लोगों में कुछ ज्यादा ही रोष था. इस बर्बर घटना की जानकारी पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को हुई तो चंद घंटों बाद ही एसपी (देहात) बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति, एएसपी घनश्याम चौरसिया, एडीजी आलोक सिंह, आईजी प्रशांत कुमार, कमिश्नर डा. राजशेखर तथा डीएम (कानपुर देहात) नेहा जैन आ गईं और उन्होंने घटनास्थल पर डेरा जमा लिया.

कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस अधिकारियों ने भारी संख्या में पुलिस व पीएसी बल बुलवा लिया. कमिश्नर डा. राजशेखर, एडीजी आलोक सिंह तथा आईजी प्रशांत कुमार ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा कृष्ण गोपाल व उन के बेटों को धैर्य बंधाया. निरीक्षण के बाद अधिकारियों ने मृतक मांबेटी के घर वालों से पूछताछ की. मृतका प्रमिला के पति कृष्ण गोपाल ने अफसरों को बताया कि एसडीएम (मैथा), कानूनगो व लेखपाल बुलडोजर ले कर आए थे. उन के साथ गांव के अशोक दीक्षित, अनिल, निर्मल व बड़े बउआ और गांव के कई अन्य लोग भी थे. ये लोग अधिकारियों से बोले कि आग लगा दो तो अफसरों ने आग लगा दी. हम और हमारा बेटा उन दोनों को बचाने में झुलस गए. लेकिन उन्हें बचा नहीं पाए और वे आग में जल कर खाक हो गईं. कृष्ण गोपाल के बेटे शिवम दीक्षित ने भी इसी तरह का बयान दिया.

दोषियों को बचाने में जुटा प्रशासन…

अधिकारियों ने कुछ ग्रामीणों से भी पूछताछ की. राजीव द्विवेदी नाम के व्यक्ति ने बताया कि अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में है. वह दबंग है. उसी ने पूरी साजिश रची. उस के साथ गांव के कुछ लोग हैं. इस में एसडीएम, एसएचओ और लेखपाल भी मिले हैं. डीएम साहिबा अपने कर्मचारियों को बचा रही हैं. ग्रामीणों ने बताया कि इस पूरे मामले में प्रशासन दोषी है. अफसरों ने पैसा लिया है. वह जबरदस्ती कब्जा हटाने पर अड़े हुए थे. उन्होंने कहा मृतका प्रमिला की बेटी नेहा की शादी तय हो गई थी. उस की अब डोली की जगह अर्थी उठेगी. प्रमिला भी समझदार महिला थी. उस ने कभी किसी का अहित नहीं सोचा.

ग्रामीण व मृतका के परिजन जहां अफसरों को दोषी ठहरा रहे थे, वहीं प्रशासनिक अफसर उन का बचाव कर रहे थे. जिलाधिकारी नेहा जैन ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि अतिक्रमण हटाने के लिए राजस्व टीम पुलिस के साथ मौके पर पहुंची थी. महिलाएं आईं और रोकने का प्रयास किया. लेखपाल पर हंसिया से अटैक भी किया. इस के बाद मांबेटी ने झोपड़ी के अंदर जा कर आग लगा ली.

कानपुर (देहात) के एसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति ने कहा, ‘‘एसडीएम व अन्य कर्मचारी अवैध कब्जा हटाने गए थे. इस दौरान कुछ लोग विरोध कर रहे थे. महिला व उन की बेटी भी विरोध में शामिल थी. विरोध करतेकरते उन दोनों ने खुद को झोपड़ी के अंदर बंद कर लिया. थोड़ी देर बाद झोपड़ी के अंदर आग लग गई. इस में महिला व उन की बेटी की मौत हो गई. आग लगी या लगाई गई, इस की जांच होगी.’’

पूछताछ के बाद रूरा पुलिस थाने में मृतका प्रमिला के बेटे शिवम दीक्षित की तहरीर के आधार पर मुअसं 38/2023 पर भादंवि की धारा 302/307/429/436/323 व 34 के तहत 11 नामजद, 15 पुलिसकर्मियों व 13 अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई. नामजद आरोपियों में एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, लेखपाल अशोक कुमार सिंह चौहान, रूरा प्रभारी निरीक्षक दिनेश गौतम, कानूनगो नंद किशोर, जेसीबी चालक दीपक चौहान, मड़ौली गांव के अशोक दीक्षित, अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदन लाल, गौरव दीक्षित व बढ़े बउआ के नाम थे. मामले की जांच थाना अकबरपुर के इंसपेक्टर प्रमोद कुमार शुक्ला को सौंपी गई.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद शासन ने एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद को सस्पेंड कर दिया तथा 2 आरोपियों जेसीबी चालक दीपक चौहान व लेखपाल अशोक सिंह चौहान को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. सस्पेंड एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद व थाना रूरा के एसएचओ दिनेश गौतम भूमिगत हो गए. अन्य आरोपियों की धरपकड़ के लिए 5 पुलिस टीमें लगा दी गईं.  इधर जल कर खाक हुई मांबेटी का मामला प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक पहुंचा तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भावुक हो उठे. उन्होंने पीडि़त परिवार को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया तथा अपनी टीम को लगा दिया. यही नहीं, उन्होंने पूरे घटनाक्रम की जानकारी अफसरों से ली और सख्त काररवाई का आदेश दिया.

इसी कड़ी में भाजपा की क्षेत्रीय विधायक व राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला देर रात घटनास्थल मड़ौली गांव पहुंचीं. उन्होंने पीडि़त परिवार को धैर्य बंधाया फिर कहा, ‘‘मैं इस क्षेत्र की विधायक हूं और यहां ऐसी बर्बर घटना घट गई. महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ. ऐसे में मेरा कल्याण विभाग में होना बेकार है. जब हम अपनी बेटी और मां को नहीं बचा पा रहे. पहले घर के बाहर निकालते फिर गिराते. जमीन तो यूं ही पड़ी है. आगे भी पड़ी रहेगी. कोई कहीं नहीं ले जा रहा है.’’

गांव वालों का फूटा आक्रोश…

पुलिस अधिकारी मांबेटी के शवों को रात में ही पोस्टमार्टम हाउस भेजने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन पीडि़त घर वालों व गांव वालों ने शव नहीं उठाने दिए. उन्होंने एक मांग पत्र कमिश्नर डा. राजशेखर को सौंपा और कहा कि जब तक उन की मांगें पूरी नहीं होती वह शव नहीं उठने देंगे. उन्होंने मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री को भी घटनास्थल पर आने की शर्त रखी. पीडि़त परिजनों ने जो मांग पत्र कमिश्नर को सौंपा था, उन में 5 मांगें थी.

1- मृतक परिवार को 5 करोड़ रुपए का मुआवजा,

2-मृतका के दोनों बेटों को सरकारी नौकरी,

3-मृतका के दोनों बेटों को आवास,

4- परिवार को आजीवन पेंशन तथा

5- दोषियों को कठोर सजा.

कानपुर में मांबेटी को जिंदा जलाया, अफसर बने भस्मासुर – भाग 2

लेखपाल अशोक सिंह चौहान घूसखोर था. वह कोई भी काम बिना घूस के नहीं करता था. उस की निगाह अवैध कब्जेदारों पर ही रहती थी. जो उसे पैसा देता, उस का कब्जा बरकरार रहता, जो नहीं देता उन को धमकाता. मड़ौली के ग्राम प्रधान मानसिंह की भी उस से कहासुनी हो चुकी थी. उन्होंने उस की शिकायत भी डीएम साहिबा से की थी. लेकिन उस का बाल बांका नहीं हुआ. उस ने अधिकारियों को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा कर लिया था. मैथा ब्लाक में एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भी उस के जायजनाजायज काम में लिप्त रहते थे.

13 जनवरी, 2023 को बिना किसी नोटिस के एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद की अगुवाई में राजस्व विभाग की एक टीम कृष्ण गोपाल के यहां पहुंची और ग्राम समाज की भूमि पर बना उस का कमरा ढहा दिया. कमरा ढहाए जाने के पहले कृष्ण गोपाल ने एसडीएम (मैथा) के पैरों पर गिर कर ध्वस्तीकरण रोकने की गुहार लगाई, लेकिन वह नहीं पसीजे. लेखपाल अशोक सिंह चौहान तो उन्हें बेइज्जत ही करता रहा. एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद ने कृष्ण गोपाल से कहा कि 5 दिन के अंदर वह अपनी झोपड़ी भी हटा ले, वरना इसे भी ढहा दिया जाएगा. काररवाई के दौरान एक मैमो भी बनाया गया, जिस में गवाह के तौर पर 15 ग्रामीणों के हस्ताक्षर कराए गए.

14 जनवरी, 2023 को पीडि़त कृष्ण गोपाल दीक्षित व उन के घर के अन्य लोग लोडर से बकरियां ले कर माती मुख्यालय धरना देने पहुंच गए. समर्थन में विहिप नेता आदित्य शुक्ला व गौरव शुक्ला भी पहुंच गए. पीडि़त परिजनों ने आवास की मांग की तो अफसरों ने उन्हें माफिया बताया. माफिया बताने पर विहिप नेताओं का पारा चढ़ गया. उन्होंने सर्दी में गरीब का घर ढहाने व प्रशासन की संवेदनहीनता पर नाराजगी जताई. उन की एडीएम (प्रशासन) केशव गुप्ता से झड़प भी हुई.

दूसरे दिन पीडि़तों की आवाज दबाने के लिए तहसीलदार रणविजय सिंह ने अकबरपुर कोतवाली में शांति भंग की धारा में कृष्ण गोपाल दीक्षित, उन की पत्नी प्रमिला, बेटों शिवम व अंशु, बेटी नेहा व बहू शालिनी तथा सहयोग करने वाले विहिप नेता आदित्य व गौरव शुक्ला के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

14 जनवरी, 2023 को ही लेखपाल अशोक सिंह चौहान ने थाना रूरा में कृष्ण गोपाल व उन के दोनों बेटों के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कराया, जिस में उस ने लिखा, ‘13 जनवरी को प्रशासन अवैध कब्जा हटाने गया था. उस वक्त कृष्ण गोपाल व उन के बेटे शिवम व अंशु प्रशासन से गालीगलौज करते हुए मारपीट पर उतारू हो गए थे. जोरजोर से झगड़ा करने लगे थे. गांव के लोगों को सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने के लिए उकसाने लगे थे. वह कहने लगे कि यहां से भाग जाओ वरना बिकरू वाला कांड अपनाएंगे.’

लेखपाल की तहरीर के आधार पर रूरा पुलिस ने रिपोर्ट तो दर्ज कर ली थी, लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया. दूसरी तरफ इस मामले के खिलाफ पीडि़त कृष्ण गोपाल ने तहसील अकबरपुर में वाद दायर किया, जिस की सुनवाई की तारीख 20 फरवरी निर्धारित की गई.

बदले की भावना से चलाया बुलडोजर…

मड़ौली गांव में दरजनों लोग ग्रामसमाज की भूमि पर काबिज थे, उन की भूमि पर प्रशासन का बुलडोजर नहीं चला, लेकिन बदले की भावना से तथा मुट्ïठी गर्म होने पर कृष्ण गोपाल को निशाना बनाया गया. पर कृष्ण गोपाल भी जिद्ïदी था. उस ने कमरा ढहाए जाने के बाद उसी जगह पर ईंटों का पिलर खड़ा कर उस पर घासफूस की झोपड़ी बना ली थी. यही नहीं, उस ने हैंडपंप को ठीक करा लिया था और शिव चबूतरे को भी नया लुक दे दिया था.

कृष्ण गोपाल दीक्षित को 5 दिन में जगह को कब्जामुक्त करने का अल्टीमेटम प्रशासनिक अधिकारियों ने दिया था, लेकिन 2 सप्ताह बीत जाने के बावजूद भी उस ने जगह खाली नहीं की थी. दरअसल, कृष्ण गोपाल ने तहसील में वाद दाखिल किया था और सुनवाई 20 फरवरी को होनी थी. इसलिए वह निश्चिंत था और जगह खाली नहीं की थी. लेखपाल अशोक सिंह चौहान व अन्य प्रशासनिक अधिकारी जमीन कब्जा मुक्त न होने से खफा थे. लेखपाल उन के कान भी भर रहा था और उन्हें गुमराह भी कर रहा था. अत: प्रशासनिक अधिकारियों ने कृष्ण गोपाल की झोपड़ी भी ढहाने का मन बना लिया.

13 फरवरी, 2023 की शाम 3 बजे एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, कानूनगो नंदकिशोर, लेखपाल अशोक सिंह चौहान और एसएचओ दिनेश कुमार गौतम बुलडोजर ले कर मड़ौली गांव पहुंचे. साथ में 15 महिला, पुरुष पुलिसकर्मी भी थे. लोडर चालक दीपक चौहान था. अचानक इतने अधिकारियों और पुलिस को देख कर झोपड़ी में आराम कर रहे कृष्ण गोपाल और उन की पत्नी प्रमिला बाहर निकले. प्रशासनिक अधिकारियों ने जमीन पर अवैध कब्जा बताते हुए उन से तुरंत जगह खाली करने को कहा.

इस पर प्रमिला, उन के बेटे शिवम व बेटी नेहा ने कहा कि कोर्ट में उन का वाद दाखिल है और सुनवाई 20 फरवरी को है. लेकिन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी नहीं माने. उन्होंने जगह को तुरंत खाली करने की चेतवनी दी. इस के बाद शिवम अपने पिता के साथ झोपड़ी का सामान निकाल कर बाहर रखने लगा. इसी समय एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद ने बुलडोजर चालक दीपक चौहान को संकेत दिया कि वह काररवाई शुरू करे. बुलडोजर शिव चबूतरा ढहाने आगे बढ़ा तो एसएचओ (रूरा) दिनेश गौतम ने उसे रोक दिया. वह चबूतरे पर चढ़े. उन्होंने शिवलिंग व नंदी को प्रणाम कर माफी मांगी फिर चबूतरे से उतर आए. उन के उतरते ही बुलडोजर ने चबूतरा ढहा दिया और मार्का हैंडपंप को उखाड़ फेंका.

जीवित भस्म हो गईं मांबेटी…

अब तक प्रमिला के सब्र का बांध टूट चुका था. उन्हें लगा कि अधिकारी उन की झोपड़ी नेस्तनाबूद कर देंगे. वह पुलिस व लेखपाल से भिड़ गईं. उस ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान के माथे पर हंसिया से प्रहार कर दिया. फिर वह बेटी नेहा के साथ चीखती हुई बोली, ‘‘मर जाऊंगी, लेकिन कब्जा नहीं हटने दूंगी.’’

इस के बाद वह नेहा के साथ झोपड़ी के अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. महिला पुलिसकर्मियों ने दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. इधर प्रशासनिक अधिकारियों को लगा कि मांबेटी ध्वस्तीकरण रोकने के लिए नाटक कर रही हैं. उन्होंने झोपड़ी गिराने का आदेश दे दिया. बुलडोजर ने छप्पर ढहाया तो झोपड़ी में आग लग गई. हवा तेज थी. देखते ही देखते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया.

आग की लपटों के बीच मांबेटी धूधू कर जलने लगी. कृष्ण गोपाल चिल्लाता रहा कि पत्नी और बेटी झोपड़ी के अंदर है. परंतु अफसरों ने नहीं सुनी और जलता छप्पर जेसीबी से और दबवा दिया. इस से उन का निकल पाना तो दूर, दोनों को हिलने तक का मौका नहीं मिला और दोनों जल कर भस्म हो गईं.

कानपुर में मांबेटी को जिंदा जलाया, अफसर बने भस्मासुर – भाग 1

उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जनपद के रूरा थाने से 5 किलोमीटर दूर मैथा ब्लौक के अंतर्गत एक बड़ी आबादी वाला गांव है मड़ौली. अकबरपुर और रूरा 2 बड़े कस्बों के बीच लिंक रोड से जुड़े ब्राह्मण बाहुल्य इसी गांव में कृष्ण गोपाल दीक्षित सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी प्रमिला के अलावा 2 बेटे शिवम, अंश तथा एक बेटी नेहा थी. कृष्ण गोपाल दीक्षित के पास मात्र 2 बीघा जमीन थी. इसी जमीन पर खेती कर और बकरी पालन से वह अपना परिवार चलाते थे. बेटे जवान हुए तो वह भी पिता के काम में सहयोग करने लगे.

कृष्ण गोपाल के घर के ठीक सामने अशोक दीक्षित का मकान था. अशोक दीक्षित के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा 3 बेटे गौरव, अखिल व अभिषेक थे. अशोक दीक्षित दबंग व संपन्न व्यक्ति थे. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. इस के अलावा उन के 2 बेटे गौरव व अभिषेक फौज में थे. संपन्नता के कारण ही गांव में उन की तूती बोलती थी. उन के बड़े बेटे गौरव का विवाह रुचि दीक्षित के साथ हो चुका था. रुचि खूबसूरत थी. वह अपनी सास सुधा के सहयोग से घर संभालती थी.

घर आमनेसामने होने के कारण अशोक व कृष्ण गोपाल के बीच बहुत नजदीकी थी. दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. अशोक की पत्नी सुधा व कृष्ण गोपाल की पत्नी प्रमिला की खूब पटती थी, लेकिन दोनों के बीच अमीरीगरीबी का बढ़ा फर्क था. कृष्ण गोपाल व उस के परिवार के मन में सदैव गरीबी की टीस सताती रहती थी.

मड़ौली गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर सडक़ किनारे ग्राम समाज की भूमि पर कृष्ण गोपाल दीक्षित का पुश्तैनी कब्जा था. सालों पहले इस वीरान पड़ी भूमि पर कृष्ण गोपाल के पिता चंद्रिका प्रसाद दीक्षित व बाबा ने पेड़ लगा कर कब्जा किया था. बाद में पेड़ों ने बगीचे का रूप ले लिया. इसी बगीचे में कृष्ण गोपाल ने एक कमरा बना लिया था और सामने झोपड़ी डाल ली थी. इसी में वह रहते थे और पशुपालन करते थे.

भू अभिलेखों में ग्राम समाज की यह जमीन गाटा संख्या 1642 में 3 बीघा दर्ज है, जिस में से एक बीघा भूमि पर कृष्ण गोपाल का कब्जा था. लेकिन जो 2 बीघा जमीन थी, उस पर कृष्ण गोपाल किसी को भी कब्जा नहीं करने देता था. उस पर भी वह अपना अधिकार जमाता था. कृष्ण गोपाल ही नहीं, गांव के दरजनों लोग ग्राम समाज की जमीन पर काबिज हैं. किसी ने खूंटा गाड़ कर कब्जा किया तो किसी ने कूड़ाकरकट डाल कर. किसी ने कच्चापक्का निर्माण करा कर कब्जा किया तो किसी ने सडक़ किनारे दुकान बना ली. इस काबिज ग्राम समाज की भूमि पर किसी ने अंगुली नहीं उठाई और आज भी काबिज हैं.

सिपाही लाल ने शुरू किया विवाद…

लेकिन कृष्ण गोपाल की काबिज भूमि पर आंच तब आई, जब गांव के ही सिपाही लाल दीक्षित ने गाटा संख्या 1642 की 2 बीघा में से एक बीघा जमीन अपनी बेटी रानी के नाम तत्कालीन ग्रामप्रधान के साथ मिलीभगत कर पट्टा करा दी. रानी का विवाह रावतपुर (कानपुर) निवासी रामनरेश के साथ हुआ था. लेकिन उस की अपने पति से नहीं पटी तो वह मायके आ कर रहने लगी थी. उस का पति से तलाक हुआ या नहीं, यह तो पता नहीं चला, पर उस का पति से लगाव खत्म हो गया था.

यह बात सन 2005 की है. सिपाही लाल ने बेटी के नाम पट्ïटा तो करा दिया, लेकिन वह कृष्ण गोपाल के विरोध के कारण उस पर कब्जा नहीं कर पाया. बस यही बात कृष्ण गोपाल के पड़ोसी अशोक दीक्षित को चुभने लगी. दरअसल, रानी रिश्ते में अशोक की बहन थी. वह चाहते थे कि रानी पट्टे वाली जमीन पर काबिज हो. इस मामले को ले कर अशोक दीक्षित ने परिवार के अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदनलाल व बढ़े बउआ को भी अपने पक्ष में कर लिया. अब ये लोग कृष्ण गोपाल के विपक्षी बन गए और मन ही मन रंजिश मानने लगे.

अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में था. उसे भी इस बात का मलाल था कि उस के पिता रानी बुआ को पट्टे वाली जमीन पर काबिज नहीं करा पाए. वह जब भी छुट्टी पर गांव आता, वह कृष्ण गोपाल के परिवार को नीचा दिखाने की कोशिश करता. एक बार उस ने शिवम की बहन नेहा के फैशन को ले कर भद्दी टिप्पणी कर दी. इस पर नेहा और उस की मां प्रमिला ने उसे तीखा जवाब दिया, जिस से वह तिलमिला उठा.

कृष्ण गोपाल दीक्षित के दोनों बेटे शिवम व अंशु भी दबंगई में कम न थे. दोनों विश्व हिंदू परिषद के सक्रिय सदस्य थे. विहिप के धरनाप्रदर्शन में दोनों भाग लेते रहते थे. दोनों भाई आर्थिक रूप से भले ही कमजोर थे, लेकिन खतरों के खिलाड़ी थे. अब तक शिवम की शादी शालिनी के साथ हो गई थी. वह पुश्तैनी मकान में रहता था. दिसंबर, 2022 में गौरव छुट्टी पर आया तो एक रोज सडक़ किनारे एक दुकान पर किसी बात को ले कर उस की अंशु से तकरार होने लगी. तकरार बढ़ती गई और दोनों एकदूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे.

इस घटना के बाद गौरव ने फैसला कर लिया कि वह कृष्ण गोपाल व उस के बेटों को सबक जरूर सिखाएगा और उन की अवैध कब्जे वाली ग्राम समाज की भूमि को मुक्त करा कर ही दम लेगा. इस के बाद गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित व परिवार के अन्य लोगों के साथ कान से कान जोड़ कर सलाह की और पूरी योजना बनाई.  योजना के तहत गौरव ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान से मुलाकात की. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए. कारण, अशोक सिंह चौहान भी पहले फौज में था. रिटायर होने के बाद उसे लेखपाल की नौकरी मिल गई थी.

चूंकि दोनों फौजी थे, अत: जल्द ही उन की दोस्ती हो गई. इस के बाद गौरव ने लेखपाल को पैसों का लालच दे कर उसे अपनी मुट्ठी में कर लिया. योजना के तहत ही गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित के मार्फत परिवार के एक व्यक्ति गेंदनलाल दीक्षित को उकसाया और उसे शिकायत करने को राजी कर लिया. गेंदन लाल ने तब दिसंबर के अंतिम सप्ताह में एक प्रार्थनापत्र कानपुर (देहात) की डीएम नेहा जैन को दिया. इस प्रार्थना पत्र में उस ने लिखा कि मड़ौली गांव के निवासी कृष्ण गोपाल दीक्षित व उस के बेटों ने ग्राम समाज की भूमि पर अवैध कब्जा कर कमरा बना लिया है व झोपड़ी भी डाल ली है. इस जमीन को खाली कराया जाए.

गेंदन लाल को बनाया मोहरा…

गेंदन लाल के इस शिकायती पत्र पर डीएम नेहा जैन ने काररवाई करने का आदेश एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद को दिया. ज्ञानेश्वर प्रसाद ने इस संबंध में जानकारी लेखपाल अशोक सिंह चौहान से जुटाई तो पता चला कि कृष्ण गोपाल जिस जमीन पर काबिज है, वह जमीन ग्राम समाज की है.