कालगर्ल सहेली बनी कातिल – भाग 3

“मैं चुपचाप सुनती रही, धीरेधीरे कर उस की बातें दिमाग में बैठ ही गईं. मैं उस के कहे अनुसार कर बैठी. उस रोज एकएक कर 4 लोगों के साथ मुझे सुला दिया. शाम होने पर उस ने मेरी हथेली पर 12 हजार रुपए रख दिए और बोली, ‘कल आना.’

…मेरी एक नजर पैसे पर गई और दूसरी बार भरी नजर से वंदना को देखा और बगैर कुछ कहे देवास लौट गई.’’

“यानी कि वंदना और तुम्हारे बारे में मुझे मिली जानकारी गलत नहीं थी. तुम्हारे बयान से सबूत मिल गया…लेकिन वंदना की हत्या किस ने की? वह तुम्हारी पक्की सहेली थी, तुम दोनों एक ही धंधे में उतर आई थी, फिर उसे किस ने मार डाला, उस के पति ने या फिर कोई और? सचसच बताना.’’ शुक्ला ने नैना की बातों की और तह में जाने के लिए प्यार से पूछा.

“वह मैं नहीं जानती साहब, मैं सिर्फ अपने बारे में बता सकती हूं. उस की किस से क्या नाराजगी थी, कौन उस का दुश्मन था, मुझे क्या मालूम? मैं तो उस के इशारे पर रूम सर्विस दिया करती थी और शाम को अपने घर लौट जाती थी. “हां, उस ने इस धंधे में ग्राहक की जेब से पैसे निकालने के नुस्खे बता दिए थे. सैक्स के विदेशी तौरतरीके सिखा दिए थे. जिस से मैं मर्दों के सैक्स की भूख और उन की चाहत को अच्छी तरह जान गई थी. कई बार बिना सैक्स किए ही कुछ समय बिताने के पैसे मिल जाते थे. जिस से अच्छी आमदनी होने लगी थी और उस का कमीशन भी अच्छा बन जाता था.’’

“तुम्हारे अलावा और कौन थी इस धंधे में जो वंदना के लिए काम करती थी, उस की और तुम्हारी महीने में कितनी कमाई हो जाती थी?’’ शुक्ला ने अलग सवाल किया.

“उस के साथ एक और युवती इंदौर की ही पूजा थी, उस की कमाई के बारे ठीकठीक नहीं बता सकती हूं. लेकिन हां, मेरे ग्राहकों से वंदना को अच्छा कमीशन मिल जाता था. मेरी डिमांड पूजा से अधिक थी. कई ग्राहक रेगुलर बन गए थे, वे मुझे ही पसंद करते थे. वे मेरे संपर्क में भी थे. मेरे साथ घूमनेफिरने और बिजनैस टूर पर दूसरी जगह ले जाने के बदले में अधिक पैसा देने की भी बात करते थे.’’ नैना बोली.

“तुम्हारे कहने का अर्थ यह हुआ कि तुम्हारी डिमांड अधिक थी और अलग से धंधा जमाने का मौका मिलने लगा था. फिर तो वंदना ही तुम्हारी दुश्मन बन गई थी?’’ शुक्ला बोले.

‘‘नहीं साहबजी, मुझे ग्राहक कहते जरूर थे, लेकिन सच तो यह है कि मैं इस धंधे से बाहर निकलने की सोच रही थी. कुछ पैसे जोड़ लिए थे, जिस से देवास या इंदौर में अपना कोई बुटीक खोलना चाहती थी. लेकिन यह बात जब वंदना को मालूम हुई, तब वह मुझ से नाराज हो गई. पूजा ने उसे समझाया फिर उस ने माफी मांग ली.’’

“फिर क्या हुआ?’’ शुक्ला ने आगे की बात जाननी चाही.

“फिर क्या साहबजी! एक ग्राहक ने कालगर्ल वंदना को बता दिया कि मैं उस से प्राइवेट में मिलना चाहती हूं और उस की कमीशन का पैसा नहीं देना चाहती हूं… अगले रोज वंदना ने छोटा सा वीडियो वाट्सऐप किया. उसे खोल कर देखा तो दंग रह गई. वह मेरा ही ग्राहक के साथ का एक वीडियो था. अगले पल ही एक मैसेज आ गया, जिस में लिखा कि अगर उस की मरजी के बगैर वह किसी ग्राहक के पास गई, तब यह वीडियो उस की मां को भेज देगी.

“मुझे जरा भी अंदाजा नहीं लग पाया कि कब उस ने मेरा सैक्स वीडियो बनाए थे और उसे मां को दिखाने की धमकी दे कर मुझे ब्लैकमेल करने लगी थी.’’

“ब्लैकमेल से बचने के लिए तुम ने क्या किया?’’

“मैं क्या कर सकती थी. परेशान रहने लगी. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. मैं वंदना की एक तरह से कठपुतली बन कर रह गई थी. कई बार दिमाग काम नहीं करता था. घर जाती थी, तब डर बना रहता था कि मां कुछ पूछ न बैठे. मैं उन की इकलौती संतान हूं, मेरी कमाई से घर का खर्च चलता है. मां मेरी शादी के सपने देख रही थीं. कोई लडक़ा नहीं मिल रहा था. शादी की उम्र निकल गई थी.’’ कहतेकहते नैना सुबकने लगी. शुक्ला ने लेडी कांस्टेबल को बुलाया. उस के लिए चाय और पानी लाने का आदेश दिया.

टीआई के पास भी थी न्यूड वीडियो…

नैना जब थोड़ी सामान्य हुई तब शुक्ला ने नैना को एक वीडियो दिखाई, जो सीसीटीवी फुटेज थी. उस में वह 2 युवकों के साथ थी. उन्होंने पूछा, ‘‘इस में तुम्हारे साथ जो दिख रहे हैं वे कौन हैं? यह सीसीटीवी की वीडियो उसी रात की है, जिस रात वंदना की हत्या हुई थी.’’

वीडियो देखते ही नैना के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. शुक्ला समझ गए कि उन की पूछताछ सही दिशा में जा रही है. उन्होंने मेज पर रखा टिश्यू पेपर निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया और बोले, ‘‘वीडियो देख कर सर्दी में पसीना आ गया न!

अब तुम सचसच वह सब बता दो, जो अभी तक छिपाए हुए हो, वरना मां के पास जाने वाले वीडियो से मैं भी नहीं बचा पाऊंगा, वह न्यूड वीडियो मेरे पास भी है.’’

उन्हें अब सैक्स वर्कर वंदना रघुवंशी मर्डर केस की गुत्थी सुलझती दिख रही थी. साफ दिख रहा था कि कालगर्ल नैना परमार ने ही सहेली वंदना रघुवंशी की हत्या कराई थी. पुलिस की लंबी पूछताछ से नैना परेशान हो गई. उस ने वाशरूम जाने की इजाजत मांगी. शुक्ला ने उसे लेडी कांस्टेबल के साथ वाशरूम जाने की इजाजत दे दी. कुछ मिनट में ही वापस आने के बाद शुक्ला के सामने बैठ गई. शुक्ला ने पूछा, ‘‘हां तो नैना परमार, सचसच बताओ कि ये दोनों कोन हैं? इन का वंदना की हत्या से क्या कनेक्शन है?’’

“जी साहब, सब कुछ बताऊंगी, एकदम सच बोलूंगी. ये दोनों अशोक रघुवंशी और गोलू रघुवंशी हैं. देवास के रहने वाले हैं. हमारे साथ ही इंदौर आते रहे हैं. लौटते भी साथ ही हैं. कहने को दोनों मुंहबोले भाई हैं, लेकिन वे मेरे दीवाने हैं. हमारे बीच हंसीमजाक भी चलता रहता है. उन्हें लगता है कि आज नहीं तो कल मैं उन के साथ संबंध बना लूंगी. हम सभी एकदूसरे से काफी खुले हुए हैं. गांवमोहल्ले में किस के साथ कैसा रिश्ता चल रहा है, इस की बेझिझक चर्चा करते रहे हैं. यही कारण रहा है कि ये दोनों मेरे एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो जाते थे.  मैं ने वंदना द्वारा अपनी ब्लैकमेल की समस्या उन्हें बताई थी और इस का समाधान भी उन्होंने ही बताया था.’’

“समाधान क्या था? वंदना की हत्या!’’ शुक्ला ने डांट लगाई. डांट खा कर नैना डर गई.

“जी साहब! योजना के मुताबिक मेरे इशारे पर उन दोनों ने 27 नवंबर, 2022 की रात को सैक्स वर्कर वंदना रघुवंशी की गला रेत कर हत्या कर दी.’’ नैना ने यह कह कर चुप्पी साध ली. कुछ समय बाद शुक्ला ने अशोक और गोलू की डिटेल्स मांगी और अगले रोज उन्हें भी हिरासत में ले कर पूछताछ की. दोनों ने हत्या की बात स्वीकार कर ली. उन के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार शुक्ला ने हत्या में इस्तेमाल किया गया दोपहिया वाहन और आरी भी बरामद कर ली.

कालगर्ल नैना परमार वारदात के दिन रविवार को दोनों के साथ इंदौर आई थी. उस वक्त शाम का धुंधलका छाने लगा था. उस ने दूर से ही दोनों भाइयों को वंदना का घर बता दिया और खुद नाश्ता लेने चली गई.  शोक और गोलू रघुवंशी अपने साथ मिर्च पाउडर भी ले गए थे. उन्होंने वंदना को बताया कि वे नैना के भाई हैं. यह जान कर वदंना उन दोनों को चायपानी देने लगी, तभी उन्होंने मौका मिलने पर वंदना की आंखों में मिर्च पाउडर झोंक कर उस का आरी से गला काट दिया. हत्या करने के बाद वे दोनों वहां से फरार हो गए. करीब आधे घंटे के बाद लौटी और वंदना के घर पर गई. तब उस ने वंदना को खून से लथपथ जमीन पर पड़ा पाया. वह दम तोड़ चुकी थी. उस ने पुलिस को फोन कर सूचना दे दी और देवास लौट गई.

पुलिस ने नैना परमार, अशोक रघुवंशी और गोलू रघुवंशी से पूछताछ करने के बाद उन के खिलाफ वंदना की हत्या का मामला दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश कर दिया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कालगर्ल सहेली बनी कातिल – भाग 2

पता चला कि मृतका अपनी 2 सहेलियों के साथ कुछ रोज पहले ही वहां रहने आई थी. वंदना के साथ रहने वाली दोनों युवतियों के नाम नैना और पूजा थे. मकान मालिक के अनुसार वे अकसर वहां आती रहती थीं, लेकिन दोनों वहां ठहरती नहीं थी. घटना के समय दोनों बाजार गई हुई थीं. बाजार से लौट कर नैना ने ही पहले कमरे में वंदना की लाश पड़ी देखी थी और उसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को घटना की जानकारी दी थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए टीआई शुक्ला ने वंदना रघुवंशी मर्डर केस की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के साथसाथ उस के घर वालों को भी इस की सूचना भेज दी गई.

वंदना एक विवाहित महिला थी. सूचना पा कर उस का पति थाने पहुंचा. पुलिस ने उस से भी वंदना के बारे में पूछताछ की. पोस्टर्माटम हो जाने के बाद पुलिस ने वंदना का शव उस के पति को सौंप दिया. पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच की शुरुआत वंदना के पति से की. उस से वंदना के बारे में कुछ व्यक्तिगत जानकारियां मिलीं. उस के अनुसार वंदना की 2 शादियां हुई थीं. पहली शादी भोपाल के एक युवक से हुई थी, जिस से तलाक के बाद उस ने 2014 में दूसरी शादी की थी.

वंदना का पति इंदौर में ही रेलवे में हाउसकीपिंग का काम करता है. उस ने पुलिस को बताया कि वंदना पिछले 4 साल से रोज दोपहर में यह कह कर घर से निकलती थी कि वह एक टिफिन सेंटर में काम करती है और उसे टिफिन पहुंचाना होता है. वह शाम 6 बजे के आसपास घर वापस लौट आती थी. वंदना के काम के बारे में उस के पति ने अधिक जानकारी लेने की कोशिश नहीं की थी. वह खुद रात 10 बजे के करीब घर लौटता था. वंदना के 3 बच्चे भी हैं.

इस के उलट पुलिस को मकान मालिक से मालूम हुआ कि वंदना की ससुराल में नहीं पटती थी, इसलिए अलग रहने चली आई थी. किराए का पैसा पूरा करने के लिए उस ने अपने साथ 2 और युवतियों को रख लिया था. मकान मालिक को यह पता ही नहीं चल पाता था कि वहां रात में कौन रहता है और कौन नहीं. उसे बस इतना मालूम था कि उस के मकान में 3 युवतियां रहती थीं, जो अपनेअपने कामकाज के सिलसिले में आतीजाती रहती थीं. उन्हीं में एक नैना थी, जो देवास से दिन में आती थी और शाम को चली जाती थी. उस के बाद रात को तीसरी युवती वहां ठहरती थी. हालांकि वह भी घटना के कुछ दिन पहले से नहीं आई थी.

पुलिस ने मकान मालिक, वंदना के पति और पासपड़ोस वालों के अलावा कुल 45 लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की, लेकिन वंदना की हत्या के संबंध में कोई खास सुराग नहीं मिल पाया था. इन दिनों सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल फोन नंबर की ट्रैकिंग अपराध की जड़ तक और अपराधी के गिरेबान तक पहुंचने का आसान जरिया बन चुका है. वंदना मर्डर केस की जांच के लिए पुलिस सैकड़ों सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने लगी. साथ ही वंदना के मोबाइल फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई. उस में जिस नंबर से हर रोज उस की लगातार बातें हुई थीं, वह नंबर नैना परमार का था.पुलिस के शक की सुई नैना की ओर घूम गई थी. इस का एक कारण सीसीटीवी की 30 मिनट की फुटेज भी थी, जिस में नैना कई बार आतीजाती दिखाई दी थी. उस के साथ 2 युवक भी दिखाई दिए थे.

टीआई ने की व्यापक पूछताछ…

टीआई संजय शुक्ला ने नैना को पूछताछ के लिए थाने बुलवाया. उस की वंदना से होने वाली जानपहचान और दोस्ती के बारे में पूछने से पहले सीधा सवाल किया, ‘‘तुम क्या काम करती हो?’’

अचानक इस सवाल को सुन कर नैना अकचका गई. वह चुपचाप बैठी रही.

“मैं ने पूछा कि तुम इंदौर में क्या काम करती हो? सुनाई नहीं दिया क्या?’’ शुक्ला ने तेज आवाज में वही सवाल दोबारा पूछा.

“जी…जी! वही काम जो वंदना करती थी.’’ नैना थोड़ी घबराई हुई बोली.

“झूठ मत बोलो… मुझे तो कुछ और ही पता चला है तुम्हारे बारे में…’’ शुक्ला ने फिर तेवर तीखे किए.

“नहीं साहब, आप ने गलत सुना है… मैं भी वही काम करती थी, जो वह करती थी,’’ नैना बोली.

“अच्छा छोड़ो, यह बताओ कि कहां तुम देवास की रहने वाली औैर वंदना इंदौर की, तुम दोनों की दोस्ती कैसे हुई?’’ शुक्ला ने मूड बदलते हुए पूछा.

“ऐसे ही चलतेफिरते पहले जानपहचान हुई, फिर हमारे बातविचार मिले और हम दोस्त बन गए.’’ नैना ने बताया.

“वंदना तुम से कब मिली थी?’’

“जब पहले लौकडाउन में थोड़ी ढील मिली थी. अगस्त, 2020 की बात है. काम की तलाश में इंदौर आई थी. पहले जहां काम करती थी कंपनी बंद हो चुकी थी. मैं देवास जाने के लिए बसअड्डे पर निराश बैठी थी, वहीं पहली बार वंदना से मुलाकात हुई थी.’’

“फिर क्या हुआ?’’

“हमारे बीच जब बातचीत होने लगी, तब पता चला कि उस की वही समस्या है, जो मेरी थी. वह भी किसी कामधंधे की तलाश में थी और मैं भी. मेरी तरह वह भी अपनी ससुराल वालों से खुश नहीं थी. कोई सवारी नहीं मिलने के कारण मैं उस के कहने पर उस के साथ चली गई. उस ने कहा था कि हम लोग मिल कर कोई अच्छा काम कर सकते हैं.’’ नैना बोली.

“और तुम पहली मुलाकात में ही उस के साथ चली गई?’’ शुक्ला बोले.

“क्या करती साहब? मुझे काम की गरज थी, मुझ पर कर्ज जो हो गया था. लेकिन साहबजी, उस ने जो काम बताया वह मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगा. सो मैं ने मना कर दिया.’’ नैना ने कहा.

“क्यों, क्या काम बताया?’’ शुक्ला ने जिज्ञासा से पूछा.

“काम नहीं साहबजी, धंधा करती थी, धंधा. देह का धंधा.’’ नैना मुंह बनाती हुई बोली. टीआई यह सुन कर हैरान हो गए. मुंह से निकल गया, ‘‘अच्छा, आगे क्या हुआ?’’

“आगे क्या, मैं ने साफसाफ मना कर दिया कि वह जो रूम सर्विस के नाम पर करती है, मुझ से नहीं होगा. परिवार वालों से झूठ बोलने और पैसे की तंगी का मतलब यह नहीं कि वह दूसरे मर्द के साथ सोने लगे.’’

“लेकिन तुम ने तो बताया कि तुम वंदना वाला काम ही करती थी, तो फिर यह कैसे हुआ?’’ शुक्ला ने सवाल किया.

“मैं ने मना तो कर दिया, लेकिन गलती यह हो गई कि मैं उस से दोस्ती नहीं तोड़ पाई. उस से फोन पर बातें होती रहीं. काम की तलाश में घर वालों से झूठ बोल कर देवास से इंदौर आने पर मिलती भी रही. किराने की बड़ी दुकानों में कुछ काम मिले, लेकिन उस में मेहनत बहुत थी और पैसा कम. काम में मन नहीं लगता था. काम छूट जाता था.’’

“इसलिए तुम ने भी सैक्स सर्विस का धंधा अपना लिया?’’ शुक्ला ने व्यंग्य किया.

“नहीं साहब, इस कारण नहीं, मैं एक बार बहुत मजबूर हो गई थी. वह मुझ से जब भी मिलती थी, समझाने लगती थी ‘सुंदर हो, बहुत सैक्सी हो, तुम रूम सर्विस दे कर अच्छा पैसा कमा सकती हो. तुम से ग्राहक जल्द ही खुश हो जाएंगे, मालामाल हो जाओगी. खूबसूरती के साथ देह की सुंदरता और थोड़ा सैक्स बेचने में क्या बुराई है. तुम्हें रेडलाइट एरिया वाली रंडियों की तरह काम करने को नहीं कह रही हूं, सम्मान के साथ सैक्स वर्कर की तरह काम करो. कोई जानेगा भी नहीं कि तुम क्या करती हो.’’

नैना की बात टीआई सुनते रहे. वह कुछ सेकेंड के लिए रुकी और पास में रखे गिलास से पानी पी कर फिर बोलने लगी, ‘‘एक बार मुझे कुछ पैसों की सख्त जरूरत पड़ गई थी. मैं ने उसे फोन किया. उधार मांगे. अगले रोज उस ने अपने पास बुला लिया. मैं उस के पास पैसे लेने चली गई, लेकिन फिर वही बात समझाने लगी… मेरे साथ चलो तुम्हें 5 नहीं 10 हजार दिलवाऊंगी. तुम भी क्या याद करोगी. और पूरे पैसे तुम्हारे होंगे, लौटाने भी नहीं पड़ेंगे.

कालगर्ल सहेली बनी कातिल – भाग 1

नैना परमार को देवास जंक्शन से इंदौर जाने वाली लोकल ट्रेन छूट गई थी. वह प्लेटफार्म की बेंच पर बैठ गई थी. तभी उसेपीछे से एक युवक ने आवाज लगाई, ‘‘दीदी, तुम ने भी ट्रेन मिस कर दी?’’

“अरे अशोक तुम!’’ नैना उस की तरफ देख कर बोली, ‘‘अरे क्या करूं, आजकल मेरे दिन खराब चल रहे हैं.’’

“क्यों क्या हुआ? तुम परेशान दिख रही हो, कोई समस्या है तो बताओ न!’’ अशोक बोला.

“अब यहां तुम से क्या बोलूं… बस इतना समझो कि मुझ पर मुसीबत आने वाली है.’’

“अरे दीदी, जब तुम्हें पता है कि मुसीबत क्या है, तब तो उसे दूर करना और भी आसान है. हमें बताओ न, हम 2 भाई किस काम के हैं.’’ उस के पास अभीअभी आया गोलू बोल पड़ा.

“अरे गोलू तुम्हारी भी ट्रेन छूट गई?’’ नैना आश्चर्य से बोली.

“अब जब हम लोगों के इंदौर का सफर साथसाथ होता है, तब सभी का ट्रेन मिस होना जरूरी है न,’’ बोल कर गोलू हंसने लगा.

“गोलू हंसने की बात नहीं है, दीदी की मुसीबत का कोई समाधान हमें ही निकालना होगा.’’

“क्या बात है दीदी, तुम कहो तो मैं तुम्हारे लिए अपनी जान तक दे सकता हूं और किसी की जान ले भी सकता हूं.’’ गोलू बोला.

“फिर वही मजाक की बात, हर घड़ी मजाक अच्छी नहीं लगती है.’’ अशोक गोलू से बोला.

“तो बताओ न…दीदी तुम्हीं बताओ तुम्हारी प्राब्लम क्या है?’’ गोलू नैना से बोला.

“अब तुम्हें क्या बताऊं? कैसे बताऊं? तुम लोगों ने मुझ से इतनी हमदर्दी दिखाई, यही कम है क्या?’’

“दीदी, हम लोग भले ही तुम्हारे सगे भाई न हों, लेकिन एक ही शहर के होने के नाते तुम्हारी समस्या हमारी समस्या मानता हूं. कल को कोई जरूरत पड़ेगी, तब तुम से मदद मांग लूंगा,’’ अशोक बोला.

“लेकिन यहां बताने लायक बात नहीं है सब के सामने.’’

“तो चलो न, कैंटीन में चलते हैं. अभी ट्रेन आने में आधे घंटे से अधिक का समय है.’’ गोलू बोला.

“चलो, तुम लोगों से बात कर थोड़ा अच्छा लग रहा है. क्या पता, तुम्हीं मेरी समस्या का कोई हल निकाल लो!’’ नैना धीरे से बोली और हैंडबैग के साथ शाल संभालते हुए दोनों मुंहबोले भाइयों के साथ चलने को तैयार हो गई.

मुंहबोले भाइयों को बता दी समस्या…

नैना ने अपनी जिस मुसीबत के बारे में अशोक और गोलू को बताया, वह उस पर लटकी किसी तलवार से कम नहीं थी. उस की समस्या सुन कर गोलू का चेहरा तमतमा गया था, जबकि अशोक भोलीभाली सीधीसादी दिखने वाली नैना के एक और रूप के बारे में जान कर हैरान हो गया था. उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था कि नैना के असली चेहरे के पीछे एक और चेहरा है. नैना परमार पूरी बात बताने के बाद वाशरूम चली गई थी.

“अरे, क्या हुआ अशोक? ज्यादा मत सोच… यह समझ कि हमें अपने शहर की बड़ी मुसीबत में फंसी उस औरत की मदद करनी है, जिस ने अब तक जो भी किया है, उस में जरूर कोई मजबूरी रही होगी.’’

“हां गोलू, हमें कुछ करना होगा. अगर इस हालत में कोई अपनी होती तो उसे छोड़ देते क्या?’’

नैना वाशरूम से आ गई थी. उसे आया देख अशोक और गोलू ने अचानक बातें करना बंद कर दीं. नैना ही बोली, ‘‘देखो, तुम लोग मुझे गलत मत समझना. मैं जो कुछ करती रही, उस में मजबूरी थी.’’

“मैं समझता हूं सब कुछ…’’ अशोक बोला.

“और हां, मैं ने जो बताया है, वह अपने तक ही रखना. किसी को बताना मत, प्लीज.’’

“हां दीदी,’’ दोनों साथसाथ बोल पड़े. फिर तीनों अगली ट्रेन के लिए प्लेटफार्म पर आ गए. यह नवंबर, 2022 महीने की बात थी. अशोक और गोलू ने इशारोंइशारों में बात की. थोड़ी देर में ट्रेन भी आ गई. तीनों एक डब्बे में सवार हो गए. आसपास सीटें भी मिल गईं. उस के बाद इंदौर तक उन के बीच कोई बात नहीं हुई. तीनों अकसर एक साथ ही देवास से इंदौर का सफर करते थे. नैना के बारे में अशोक और गोलू को सिर्फ इतना मालूम था कि वह किसी बुटीक में काम करती है. साथ ही वे यह भी जानते थे कि वह मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर की कंपनियों, माल, बड़े शौपिंग के शोरूम आदि में काम कर चुकी थी.

नैना स्वभाव से एकदम बिंदास थी. बातूनी और तुरंत किसी से भी दोस्ती बना लेने वाली लगभग 30 साल की भरेपूरे बदन वाली युवती थी. चेहरे से चंचलता और शोखी साफ झलकती थी. रोजाना ट्रेन यात्रा के दरम्यान ही अशोक और गोलू से जानपहचान हो गई थी. उन्हें वह एक बार रक्षाबंधन के मौके पर प्लेटफार्म पर ही राखी बांध कर मुंहबोला भाई बना चुकी थी. किंतु उस रोज ट्रेन में एकदम शांत बैठी थी. दरअसल, नैना ने पहली बार अशोक और गोलू के सामने अपनी आपबीती सुनाते हुए दिल की बात बताई थी. साथ ही उस ने अपनी मुसीबत के बारे में बता कर उन से मदद मांगी थी.

अशोक और गोलू नैना की समस्या सुन कर और उस की हकीकत जान कर हैरान थे, लेकिन उन्होंने हरसंभव मदद का आश्वासन दिया था. उस ने बताया था कि उसे उस की 3 साल पुरानी सहेली वंदना पिछले हफ्ते से ब्लैकमेल कर रही है. हालांकि वह उस के साथ काम नहीं करती है. नैना ने यह भी बताया कि उस के पास उस की अश्लील वीडियो है. वह उन वीडियो को उस की मां को दिखाने की धमकी देती है. नैना ने अपनी मां से भी अपने काम की हकीकत छिपा रखी है. मां जानती है कि नैना किसी बुटीक में काम करती है. मां को उस सहेली के बारे कुछ नहीं मालूम है.

बात 27 नवंबर, 2022 की है. भीषण ठंड की रात थी. मध्य प्रदेश के शहर इंदौर के एरोड्रम थाने के टीआई संजय शुक्ला समेत थाने में मौजूद सभी पुलिसकर्मी नाइट ड्यूटी के कामकाज को निपटाने में लगे हुए थे. उसी दौरान कंट्रोल रूम से एक मैसेज आया, जिस से उन के बीच थोड़ी हलचल बढ़ गई. टीआई संजय शुक्ला सूचना पा कर भुनभुनाए, ‘‘इस सर्दी में हत्या की वारदात… कुछ और उपाय करने होंगे.’’

सैक्स वर्कर वंदना की मिली लाश…

सूचना विद्यानगर मोहल्ले से आई थी. वहां एक मकान में किसी की हत्या हो गई थी. इंदौर में रोज की तरह रात के समय में कानून व्यवस्था को संभालना कोई आसान नहीं था. घर में लाश होने की सूचना पा कर घटनास्थल पर जाने में देरी करना टीआई ने मुनासिब नहीं समझा. पूरे दलबल के साथ कुछ मिनट में वह विद्यानगर में रहने वाले श्रीराम महाराज के मकान पर जा पहुंचे. वहां एक युवती की लाश मिली. उस का नाम पाटनीपुरा निवासी वंदना रघुवंशी था. उस की उम्र 34 साल थी. उस का गला रेता हुआ था और आंखों में लाल मिर्च का पाउडर झोंका गया था. गले में 4 गहरे घाव थे. कमरे का दृश्य देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि मौत से पहले मृतका ने जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया होगा.

स्टीकर से खुला हत्या का राज- भाग 4

“चलिए सर, अंकल के हत्यारों को पकड़वाने में मैं आप की मदद करूंगा.’’ सूरज ने उठते हुए कहा. पुलिस टीम के साथ एसएचओ कोडिया कालोनी की मच्छी मार्किट में आ गए. वहां पर सीसीटीवी लगे हुए थे. उन्हें चैक किया गया तो परशुराम के साथ वे 2 लडक़े 2-3 सीसीटीवी फुटेज में नजर आ गए.

“हां सर,’’ वह फुटेज देख कर सूरज जोश में भर कर बोला, ‘‘यही दोनों लडक़े उस शाम अंकल के साथ में थे.’’

एसएचओ ने वह फुटेज ले कर उन दोनों लडक़ों की फोटो अपने खास मुखबिरों के फोन पर भेज कर उन्हें उन की तलाश में लगा दिया. पुलिस टीम भी टिकरी बौर्डर कालोनी, रेलवे ट्रैक और मच्छी मार्किट में फैल कर उन लडक़ों की तलाश करने लगी. काफी भागदौड़ के बाद भी वे लडक़े पुलिस को नहीं मिले.30 अगस्त, 2022 को एसएचओ को एक मुखबिर की काल आई. मुखबिर ने बताया कि उन्हें जो फोटो भेजे गए हैं, वे दोनों लडक़े बाबा हरिदास नगर में प्लौट नंबर 104 खसरा नंबर 31/14/1 में बैठ कर शराब पी रहे हैं.

एसएचओ बाला शंकर मणि उपाध्याय के साथ बाबा हरिदास नगर के लिए रवाना हो गए. जब वह वहां पहुंचे तो उन्हें वे लडक़े वहां बैठ कर शराब पीते हुए मिल गए. पुलिस ने घेराबंदी कर के दोनों लडक़ों को पकड़ लिया. वे दोनों घबरा गए. उन्हें पूछताछ के लिए थाने लाया गया. उन से सख्ती से पूछताछ शुरू हुई तो परशुराम की हत्या का राज खुल गया. हत्या इन्हीं लडक़ों ने की थी.

इन के नाम सोमदत्त उर्फ रवि (24 साल) बाबा हरिदास नगर, टिकरी बौर्डर, दिल्ली. दूसरे का नाम सिंहासन पासवान उर्फ सिंघम (22 साल), निवासी गांव शहबाजपुर, थाना चंदौती, जिला गया, बिहार था.

शराब बनी हत्या की वजह…

सिंहासन पासवान उर्फ सिंघम ने बताया कि वह कम पढ़ालिखा है. गलत लडक़ों की संगत में शराब की लत लग गई. 5 महीने पहले वह दिल्ली आया था, वह यहां टिकरी बौर्डर पर एक शू फैक्ट्री में नौकरी करने लगा. उस का परिवार यहां बाबा हरिदास नगर कालोनी में किराए पर रहने लगा था. 2-3 महीने पहले दोस्त संतोष ने उस की दोस्ती सोमदत्त से करवाई थी. वह कुछ दिनों से फैक्ट्री नहीं जा रहा था. सोमदत्त बोलेरो चलाता था. वह उस के साथ बोलेरो में घूमने लगा. दोनों शराब पीने लगे थे, इसलिए उन्हें पैसों की जरूरत पडऩे लगी.

उन्हें पता था कि कुछ लोग रेलवे लाइन के पास खाली प्लौट में बैठ कर शराब पीते हैं और नशा होने पर वहीं लुढक़ जाते हैं. सोमदत्त और सिंहासन ने उन नशे में धुत लोगों की जेबें टटोलनी शुरू कर दीं. ऐसा कर के जो पैसा हाथ आता, उस से नशा कर लेते.

24 अगस्त की शाम को उन्हें परशुराम अंकल मिले. वह नशे में थे. उन के पास बैग भी था. मोटी मुरगी जान कर हम अंकल के पीछे लग गए. जब वह नशा कर के लेट गए तो उन की जेब टटोलने के लिए सिंहासन ने उन की जेब में हाथ डाल दिया. परशुराम को होश था, उस ने उस का हाथ पकड़ कर उठते हुए कहा, ‘‘शराब पीनी है क्या?’’

दोनों ने हां कहा तो परशुराम ने सूरज नाम के लडक़े को फोन कर के बुलाया और उसे 5 सौ का नोट दे कर शराब मंगवा ली. फिर चारों ने शराब पी. शराब पी कर सूरज चला गया तो अंकल ने हमें मच्छी बाजार में ले जा कर मच्छी के पकौड़े खिलाए और बताया कि यदि वह गोलू नाम के व्यक्ति को पीटेंगे तो उन्हें पैसे मिलेंगे. गोलू ने परशुराम को काम से निकलवाया था. गोलू को पीटने की उन दोनों ने हामी भर दी.

फिर वे दोनों परशुराम के साथ हम फैक्ट्री एरिया में आए और अरुण के ढाबे पर रुक कर गोलू का इंतजार करने लगे. गोलू 6 बजे दिखाई दिया. सोमदत्त और सिंहासन ने उस का पीछा किया लेकिन वह भीड़ में न जाने कहां गुम हो गया. इस के बाद परशुराम उन्हें फिर मच्छी बाजार ले गया. वहां ठेके से परशुराम ने शराब की बोतल खरीदी. रेलवे लाइन के पास तीनों ने शराब पी. परशुराम के नशे में होते ही सोमदत्त उर्फ रवि ने उस की जेब में हाथ डाल दिया. परशुराम ने रवि को धक्का दे दिया तब सिंहासन ने परशुराम को पकड़ कर गिरा दिया.

रवि ने उस की जेब से मोबाइल और एटीएम निकाल लिया. परशुराम से एटीएम का पिन पूछने पर उस ने नहीं बताया तो सिंहासन ने उन का गला पकड़ लिया. तब उस ने 3 नंबर 549 बताए. पूरा नंबर नहीं बताने पर सिंहासन ने उस का गला जोर से दबा दिया, जिस से उस की मौत हो गई. उस के सिर पर गिरने से चोट आ गई थी, खून बहने लगा था. दोनों युवकों ने एटीएम और बैग ले लिया. बैग में पासबुक, एक कौपी और कपड़े थे.

परशुराम के पर्स में 1020 रुपए थे और वोटर कार्ड भी. बैग उन्होंने कपड़ों सहित झाडिय़ों में फेंक दिया और पासबुक व कौपी में एटीएम का पिन तलाश किया. पिन नहीं मिलने पर उन्होंने ये चीजें और फोन चारा मंडी के पास गंदे नाले में फेंक दिया. उन दोनों ने टोल टैक्स टिकरी बौर्डर पर पंजाब नैशनल बैंक के एटीएम से रुपए निकालने की कोशिश की, लेकिन पिन पूरा न होने पर रुपए नहीं निकले. तब दोनों घर आ गए. परशुराम का सिर फटने से खून के कुछ छींटे दोनों के कपड़ों पर भी आ गए थे. घर पर उन्होंने खून लगे कपड़े धो दिए.

पुलिस ने दोनों से पूछताछ कर उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 394, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के उन को कोर्ट में पेश कर के एक दिन की रिमांड पर ले लिया गया. उन के घरों से खून सने कपड़े, झाडिय़ों से परशुराम का बैग और कपड़े तथा चारामंडी के गंदे नाले में एक व्यक्ति को उतार कर परशुराम का मोबाइल, आधार कार्ड, पैन कार्ड ढूंढ कर कब्जे में ले लिया. परशुराम का एटीएम कार्ड, बैंक की पासबुक रवि के पास घर से बरामद की गई. मृतक के पर्स में मिले 1020 रुपए दोनों ने आपस में बांट कर खर्च कर दिए थे.

दोनों की रिमांड अवधि खत्म होने के बाद कोर्ट में पेश कर दिया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

स्टीकर से खुला हत्या का राज- भाग 3

गोलू चिढ़ गया. उस ने जेब में से पर्स निकाला और एक हजार रुपए निकाल कर परशुराम के ऊपर फेंकते हुए कहा, ‘‘ले तेरी शराब के पैसे. मैं आज के बाद यहां नहीं आऊंगा.’’

“मत आ, तुझ से मेरी कौन सी दालरोटी चल रही है. अपना कमाता हूं, अपना खाता हूं.’’

“अब तू न कमाएगा, न खाएगा. मैं तुझे दानेदाने को मोहताज कर दूंगा.’’ गोलू गुस्से से चीखा.

“तू मुझे मोहताज करेगा?’’ परशुराम चिल्लाया और गोलू पर झपट पड़ा. थोड़ी देर में दोनों गुत्थमगुत्था हो गए. यदि वहां मौजूद लोगों ने बीचबचाव न किया होता तो एकदूसरे का लहूलुहान होना लाजिमी था. गोलू गुस्से में पांव पटकता हुआ वहां से चला गया. इस के बाद वह महफिल नहीं जमी. माहौल गरम हो गया था, सभी वहां से चले गए.

उस दिन के बाद गोलू और परशुराम की बोलचाल बंद हो गई. गोलू परशुराम से खार खाने लगा था, वह मौके की ताक में था. यदि परशुराम कोई गलती करे तो वह उस से बदला ले सके. यह मौका गोलू को मिला, तब जब शराब का आदी बन गया परशुराम नशे में डूब कर कामधंधे से मुंह मोड़ कर इधरउधर पड़ा रहने लगा. वह कंपनी में कई दिनों तक काम पर नहीं गया तो गोलू ने उस के खिलाफ सुपरवाइजर को भडक़ाना शुरू कर दिया. इस का नतीजा यह निकला कि परशुराम को काम से निकाल दिया गया.

कंपनी से भी मिली खास जानकारी…

एसआई बनवारी लाल ने एसएचओ को अभी तक की गई परशुराम हत्या केस की रिपोर्ट दे दी थी. परशुराम की हत्या किस ने की और क्यों की? अभी तक यह मालूम नहीं हो सका था. एसएचओ ने अपनी जांच की शुरुआत श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी से की. एसएचओ बाला शंकर मणि उपाध्यायाय अपने साथ एएसआई सुंदर, हैडकांस्टेबल सीताराम, विनोद, सुरेंद्र और कांस्टेबल अनूप को ले कर श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी में पहुंच गए. वहां वह गोपीनाथ से मिले.  उन्होंने उन से परशुराम की हत्या हो जाने की बात बता कर पूछा कि परशुराम क्या हत्या वाले दिन काम पर आया था?

गोपीनाथ ने चौंकते हुए कहा, ‘‘सर, आप से ही मुझे मालूम चल रहा है कि परशुराम की हत्या हो गई है. जबकि परशुराम को मैं ने अपनी कंपनी से 22 अगस्त को ही पूरा हिसाब कर के काम से निकाल दिया था.’’

“क्यों?’’ एसएचओ ने हैरानी से पूछा.

“सर, परशुराम हमारे यहां हेल्पर का काम करता था. पिछली 27 जुलाई, 2022 से वह मैनेजर को बिना बताए, बिना सूचना दिए अपनी ड्ïयूटी से गैरहाजिर था. उसे पहले भी इस संबंध में हिदायत दी गई थी और उसे 16 अगस्त, 2022 को एक  लिखित पत्र दिया गया था कि पत्र मिलने के बाद अगर तुम 48 घंटे में काम पर नहीं आए तो तुम्हारे ऊपर अनुशासनात्मक कानूनी काररवाई की जाएगी और नौकरी से भी निकाल दिया जाएगा.

“यह पत्र मिलने के बाद भी परशुराम काम पर नहीं आया तो मैं ने 22 अगस्त को उस का पूरा हिसाब 1,01,995 रुपए का कर के ये रुपए उस के यूनियन बैंक एकाउंट में ट्रांसफर कर दिए. यह बैंक टिकरी कलां बौर्डर पर स्थित है.’’

“उस का एकाउंट नंबर आप के पास था?’’ एसएचओ ने पूछा.

“जी हां, हम अपने सभी वर्कर्स का एकाउंट नंबर अपने पास रखते हैं, ताकि ऐसी परिस्थितियों में उन का हिसाब बैंक द्वारा कर दिया जाए.’’

“मुझे परशुराम का वह एकाउंट नंबर नोट करवाइए. मैं देखना चाहूंगा कि कहीं इन्हीं रुपयों के लिए तो उस की हत्या नहीं कर दी गई.’’ गोपीनाथ ने परशुराम का एकाउंट नंबर एसएचओ को लिख कर दे दिया.

एसएचओ वहां से लौट कर थाने पहुंचे तो परशुराम के पिता बिहारीलाल और बेटा मुकेश कुमार थाने में मिले. एसआई बनवारी लाल दोनों को सब्जीमंडी की मोर्चरी में ले कर गए. दोनों को परशुराम की लाश दिखाई गई तो उन्होंने उस की पहचान कर दी. इस के बाद परशुराम की लाश पोस्टमार्टम के लिए डाक्टर को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम होने के बाद परशुराम की लाश को उस के पिता बिहारीलाल व बेटे मुकेश के हवाले कर दिया गया ताकि वे उस का अंतिम संस्कार कर सकें.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हुई हत्या की पुष्टि…

पोस्टमार्टम में परशुराम की मौत का कारण गला दबाना, उस के सिर में मारी गई चोट को दर्शाया गया. साक्ष्य के तौर पर परशुराम का विसरा, ब्लड सैंपल, उस के हाथों के नाखून, उस के पहने हुए कपड़े को सीलमोहर कर के पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया था. एसएचओ बाला शंकर मणि उपाध्याय ने परशुराम के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस से पता चला कि उस के द्वारा 840934xxxx पर 24 जुलाई, 2022 को आखिरी काल की गई थी. यह नंबर मिला कर बात की गई तो किसी सूरज कुमार ने काल अटेंड कर के अपना नाम पता बताया. थानाप्रभारी ने उसे थाने में आने का आदेश दे दिया. सूरज कुमार थाने में आ गया.

“तुम परशुराम सिंह को पहचानते हो?’’ एसएचओ ने सूरज कुमार के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

“जी हां, मैं उन्हें अंकल कहता हूं.’’

“उन के फोन से तुम्हें 24 जुलाई को शाम को काल की गई थी. परशुराम ने तुम्हें क्यों काल की थी?’’

“सर, उन्होंने मुझ से पूछा था कि मैं क्या कर रहा हूं तो मैं ने बताया था कि क्रिकेट खेलने जा रहा हूं. उन्होंने मुझे आ कर मिलने को कहा तो मैं मिलने चला गया. उन के साथ 2 लडक़े थे. अंकल ने मुझे शराब, पानी और गिलास लाने के लिए 500 रुपए दिए. मैं 4 गिलास, पानी और शराब ले कर आया तो हम ने रेलवे लाइन पर बैठ कर शराब पी. इस के बाद अंकल उन लडक़ों के साथ कोडिय़ा कालोनी मच्छी मार्किट की तरफ चले गए. फिर रात को करीब 8 बजे फिर अंकल की काल आई तो मैं ने काल रिसीव की. उन्होंने कहा कि काल गलती से लग गई है. मैं फिर अपने पिता, भाई के साथ खाना खा कर सो गया.’’

“परशुराम यानी तुम्हारे अंकल की किसी ने हत्या कर दी है, क्या यह बात तुम जानते हो?’’ सूरज के चेहरे पर नजरें जमा कर थानाप्रभारी ने पूछा. सूरज चौंक कर बोला, ‘‘क्या अंकल को किसी ने मार डाला?’’

“हां, हमें उन 2 लडक़ों पर शक है जो 24 अगस्त की शाम को तुम्हारे अंकल के साथ थे. क्या तुम उन्हें जानते हो?’’

“नहीं सर. मैं ने उन्हें पहले कभी नहीं देखा, लेकिन वे सामने आ जाएं तो मैं उन्हें पहचान सकता हूं.’’

“तुम हमारे साथ मच्छी मार्किट चलो, वहां पर सीसीटीवी कैमरे लगे होंगे. उन्हें हम चैक करेंगे. हो सकता है, वे उन कैमरों में कैद हो गए हों?’’

पुलिस के सामने काम न आईं शिखा की अदाएं – भाग 3

शिखा ने डा. सोनी को बारबार फोन कर बताया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मैं डिप्रेशन में हूं. यहां अकेली रहूंगी तो कुछ भी हो सकता है. शिखा ने डाक्टर को इस तरह छोड़ कर चले जाने पर कई तरह के उलाहने भी दिए, साथ ही कहा भी कि अभी पुष्कर आ कर उसे वापस ले चले. शिखा के उलाहनों से तंग आ कर डा. सोनी उसी रात अपनी गाड़ी ले कर पुष्कर गए. वहां रिसौर्ट के कमरे में ठहरी शिखा ने डा. सोनी पर ऐसा जादू चलाया कि वह रात को उसी के कमरे में ठहर गए. इस के अगले दिन डा. सोनी जयपुर आ गए.

2 दिन बाद अक्षत शर्मा व विजय उर्फ सोनू शर्मा डा. सुनीत सोनी के पास पहुंचे. दोनों ने खुद को मीडियाकर्मी बताया और टीवी चैनलों पर खबर चलाने की धमकी दी. उन्होंने शिखा से उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर एक करोड़ रुपए मांगे. लेकिन डा. सोनी ने उन्हें रुपए देने से इनकार कर दिया. इस पर गिरोह के सरगना वकीलों ने शिखा से डा. सुनीत सोनी के खिलाफ अजमेर जिले के पुष्कर थाने में भादंसं की धारा 376 के अंतर्गत बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

पुष्कर थाना पुलिस ने इस मामले में डा. सुनीत सोनी को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद गिरोह ने शिखा से समझौता करने के नाम पर डा. सोनी के पिता व भाई से एक करोड़ रुपए वसूल लिए. रकम लेने के बाद गिरोह के सदस्यों ने अदालत में शिखा के बयान बदलवा दिए. डा. सुनीत सोनी को बलात्कार के इस झूठे मुकदमे में 78 दिनों तक जेल में रहना पड़ा. उस समय डा. सुनीत सोनी ने जयपुर के वैशालीनगर थाने में लिखित शिकायत भी दी थी, लेकिन पुलिस  ने उस समय कुछ नहीं किया था.

बाद में जब एसओजी को जयपुर में हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह के सक्रिय होने की जानकारी मिली तो इस गिरोह से पीडि़त डा. सुनीत सोनी ने एसओजी में लिखित शिकायत दी. डा. सोनी की शिकायत पर जांचपड़ताल के बाद एसओजी ने 24 दिसंबर, 2016 को इस हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करने वाले गिरोह का खुलासा किया. एसओजी ने उस दिन सब से पहले 2 लोगों को गिरफ्तार किया. गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में ही एसओजी को गिरोह में शामिल युवतियों के बारे में पता चला. इन में शिखा तिवाड़ी के अलावा एनआरआई युवती रवनीत कौर उर्फ रूबी, उत्तराखंड की युवती कल्पना और अजमेर की आकांक्षा आदि के नाम सामने आए.

गिरोह की पकड़धकड़ शुरू होेने पर शिखा तिवाड़ी जयपुर से भाग कर मुंबई चली गई. मुंबई में वह डीजे अदा के नाम से म्यूजिकल ग्रुप बना कर होटल, नाइट क्लब व बार में प्रोग्राम करने लगी. मुंबई पहुंच कर उस ने अपने पुराने मोबाइल नंबर बंद कर दिए थे और फेसबुक आईडी भी बदल ली थी.

मुंबई में वह अपने बौयफ्रैंड के साथ लोखंडवाला बैंक रोड, अंधेरी (वेस्ट) की एक बिल्डिंग में किराए के फ्लैट में रहती थी. मुंबई में रहते हुए उस के बौयफ्रैंड के इवेंट मैनेजर दोस्त ने शिखा से यह कह कर ढाई लाख रुपए ऐंठ लिए थे कि जयपुर में पुलिस अफसरों से उस की सेटिंग है, वह उस का नाम ब्लैकमेलिंग मामले में नहीं आने देगा.

बाद में जब शिखा को पता चला कि उस का नाम एसओजी थाने में दर्ज मुकदमे में है तो उस ने उस इवेंट मैनेजर से संपर्क किया. इस के बाद इवेंट मैनेजर भूमिगत हो गया. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह ने शिखा तिवाड़ी को डा. सुनीत सोनी को ब्लैकमेल करने के लिए पहले 10 लाख रुपए दिए थे, लेकिन बाद में उस से 5 लाख रुपए वापस ले लिए थे. बाकी रकम गिरोह के सदस्यों ने आपस में बांट ली थी.

गिरोह के पुरुष सदस्यों के अलावा महिला सदस्यों में सब से पहले एसओजी के हाथ कल्पना लगी. इस के बाद एनआरआई युवती रवनीत कौर उर्फ रूबी भी एसओजी की गिरफ्त में आ गई. शिखा तिवाड़ी उर्फ डीजे अदा की मुंबई से हुई गिरफ्तारी के समय तक हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करने वाले 4 गिरोहों के 32 अभियुक्तों को एसओजी गिरफ्तार कर चुकी थी. इन में कई वकील, फर्जी पत्रकार, पुलिसकर्मी व बिचौलिए भी शामिल थे.

शिखा के पकड़े जाने के बाद उस से पूछताछ में ब्लैकमेलिंग गिरोह की एक और महिला सदस्य आकांक्षा का पता चला. एसओजी ने 16 मई को अजमेर के क्रिश्चियन गंज, माली मोहल्ला की रहने वाली 25 वर्षीया आकांक्षा को गिरफ्तार कर लिया. एसओजी के एसपी संजय श्रोत्रिय का कहना है कि आकांक्षा ब्लैकमेलिंग की कई वारदातों में शामिल रही है.

आकांक्षा ने जयपुर से एमबीए की पढ़ाई की थी. एमबीए की पढ़ाई के दौरान वह जयपुर में सिरसी रोड पर एक अपार्टमेंट में रहने लगी थी, तभी उस की पहचान अक्षत शर्मा से हुई थी. अक्षत ब्लैकमेलिंग के मामलों में आकांक्षा का भी सहयोग लेता था. अक्षत शर्मा पहले ही गिरफ्तार हो चुका था. अक्षत ने अपने साथियों की मदद से एक सैन्यकर्मी के फ्लैट पर भी कब्जा कर लिया था. करणी विहार में सिरसी रोड पर स्थित एक फ्लैट का सौदा 45 लाख रुपए में हुआ था, लेकिन अक्षत ने केवल 5 लाख रुपए दे कर अपने साथियों की मदद से उस फ्लैट पर कब्जा कर लिया था.

शिखा व आकांक्षा की गिरफ्तारी के बाद एसओजी ने अक्षत के सामने दोनों को बैठा कर पूछताछ की. पूछताछ में पता चला कि अक्षत व आकांक्षा ने करीब 20 लोगों को अपने जाल में फंसा कर ब्लैकमेल किया था. अक्षत ही आकांक्षा का खर्चा उठाता था. अक्षत ने आकांक्षा को एक फ्लैट व कार गिफ्ट की थी. एसओजी थाने में अक्षत के खिलाफ पांचवां मामला सैन्यकर्मी के फ्लैट पर कब्जे का दर्ज किया गया. आकांक्षा भी गिरोह की गिरफ्तारी शुरू होने पर जयपुर छोड़ कर अजमेर चली गई थी.

एसओजी की जांच में सामने आया है कि जयपुर में चल रहे हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोहों ने ढाई साल में 45 लोगों से करीब 20 करोड़ रुपए वसूले थे.

कथा पुलिस सूत्रों व अन्य रिपोर्ट्स पर आधारित

स्टीकर से खुला हत्या का राज- भाग 2

दुकान का मालिक नित्यानंद ठाकुर था. एसआई ने उसे मृतक के फोटो और उस के कपड़ों पर लगे स्टीकर के फोटो दिखा कर पूछा, ‘‘ये कपड़े तुम्हारी दुकान से सिलवाए गए हैं. बता सकते हो यह व्यक्ति कौन है?’’

“साहब, मेरी दुकान पर कितने ही लोग कपड़े सिलवाने आते हैं. मैं हर किसी का चेहरा याद नहीं रख सकता. कुछ खास लोग मेरी पहचान के होते हैं, उन के बारे में बता सकता हूं.’’

“कपड़े तो तुम्हारे यहां ही सिले गए हैं.’’

“हां साहब, स्टीकर मेरा लगा है तो जाहिर है, ये कपड़े मेरी दुकान से ही सिले गए हैं. ठहरिए साहब.’’ एकाएक कुछ याद आने पर ठाकुर ने कहा, ‘‘मैं ग्राहक को दी गई बिल का रिकौर्ड चैक कर लेता हूं, शायद इस पैंटशर्ट की डुप्लीकेट बिल मिल जाए.’’

“देखो,’’ एसआई ने कहा.

टेलर नित्यानंद ने रिकौर्ड में रखी बिलबुकें निकाल कर उन्हें चैक करना शुरू किया तो एक बिल के साथ मृतक की पहनी पैंटशर्ट की कपड़े की कतरन अटैच्ड की हुई मिल गई. उस बिल पर पैंटशर्ट सिलवाने वाले व्यक्ति का फोन नंबर लिखा हुआ था. नित्यानंद ने वह नंबर 7838937929 एसआई को नोट करवा दिया.

फोन नंबर से मिली सफलता…

एसआई ने यह नंबर अपने मोबाइल से डायल किया लेकिन दूसरी ओर से फोन के स्विच्ड औफ होने का रिकौर्ड सुनाई दिया. एसआई बनवारी लाल ने इस नंबर की काल डिटेल्स हासिल की. उस का अध्ययन करने के बाद इस में दिल गए एक नंबर 906099xxxx पर काल लगाया.

दूसरी ओर से किसी महिला की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलो, कौन?’’

“मैं सराय रोहिल्ला थाने से एसआई बनवारी लाल बात कर रहा हूं, मुझे एक नंबर की जांच करनी है. मैं वह नंबर बता रहा हूं, नोट कर के बताओ यह नंबर किसका है?’’

“ज…जी,’’ दूसरी ओर वह महिला पुलिस का नाम सुन कर घबरा गई थी. वह डरते हुए बोली, ‘‘आप नंबर बताइए.’’

एसआई ने टेलर नित्यानंद से मिला नंबर उस महिला को बताया तो वह तुरंत बोली, ‘‘साहब, यह नंबर तो मेरे पति का है.’’

“ठीक है,’’ बनवारी लाल इस मिली सफलता पर खुश होते हुए बोले, ‘‘मुझे अपना नामपता बताओ, तुम से मिलना मेरे लिए बहुत जरूरी है.’’

“साहब, मेरा नाम रिंकू है. मैं इस समय अपनी ससुराल गांव सामरी, जिला रोहताश, बिहार में हूं. मेरे पति दिल्ली में टिकरी बौर्डर की बाबा हरिदासनगर कालोनी में रहते हैं. उन का पता मैं नहीं जानती.’’

“अपने पति का नाम बताओ.’’

“परशुराम सिंह है उन का नाम,’’ रिंकू ने बताते हुए पूछा, ‘‘लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं साहब?’’

एसआई बनवारी लाल ने रिंकू को परशुराम की लाश रेलवे ट्रैक पर मिलने और इस समय उस का शव सब्जीमंडी, दिल्ली की मोर्चरी में रखे होने की जानकारी दे कर तुरंत फोन काट दिया. वह जानते थे कि पति की मौत की खबर सुन कर रिंकू रोने लगेगी. वह किसी स्त्री का रुदन जो किसी भी मजबूत इंसान के दिल को भी झकझोर सकता है, इसलिए नहीं सुनना चाहते थे.

मृतक के नाम और उस के पैतृक गांव का पता एसआई बनवारी लाल को लग गया था. अभी यह मालूम नहीं हो सका था कि परशुराम टिकरी बौर्डर की बाबा हरिदास कालोनी में कहां रहता है, यह मालूम करने के बाद ही जांच को सही दिशा मिल सकती थी. एसआई बनवारी लाल हैडकांस्टेबल सोनू के साथ परशुराम मर्डर केस की सच्चाई जानने के लिए बाबा हरिदास नगर कालोनी में पहुंच गए.

उन्होंने वहां चाय की दुकान और ढाबों पर परशुराम सिंह की डेडबौडी के फोटो दिखा कर उस का सही ठिकाना मालूम करना शुरू किया. एक ढाबे पर उन्हें 2 व्यक्ति मिले, जिन्होंने परशुराम की डेडबौडी की फोटो देख कर उस की पहचान परशुराम सिंह पुत्र बिहारी सिंह, गांव सामरी, टोला कवाई, जिला रोहताश, बिहार के रूप में कर दी. एसआई बनवारी लाल को इन्होंने यह भी बताया कि परशुराम सिंह की उम्र लगभग 40 साल की थी और यह टिकरी कलां बौर्डर एरिया में श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी में हेल्पर का काम करता था.

इन के नाम कमलेश गांव सामरी, टोला कवाई, जिला रोहताश, बिहारी और विद्यासागर गांव कल्याणी, थाना दिसपुरा, जिला रोहताश, बिहार थे, इन्हें एसआई बनवारी लाल ने जांच में शामिल कर के इन के बयान सीआरपीसी की धारा 161 में दर्ज कर के इन्हें बुलाए जाने पर हाजिर होने को कह कर जाने दिया.

दिल्ली में मिल गई नौकरी…

बिहार के रोहताश जिले का एक गांव है सामरी, टोला कवाई. इस का थाना दवात पड़ता है. इसी गांव में बिहारी सिंह रहता था. परशुराम सिंह उसी का बेटा था. गांव में खेलकूद कर परशुराम जवान हुआ तो गांव के कुछ युवकों के साथ वह काम की तलाश में दिल्ली चला आया. यहां बिहार के बहुत सारे लोग आ कर कोई न कोई काम कर रहे थे. उन के सहयोग से परशुराम को श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी में काम मिल गया.

यह कंपनी टिकरी कलां बौर्डर एरिया में थी. परशुराम ने इस कंपनी में हेल्पर की नौकरी मिल जाने के बाद उस ने छोटूराम नगर, रेल लाइनपार, बहादुरगढ़ में एक कमरा किराए पर ले लिया. वह बहुत पैसों वालों के घर से नहीं था, पिता गांव में मजदूरी करते थे. परशुराम दिल्ली में रह कर ज्यादा से ज्यादा रुपया कमाना चाहता था ताकि मांबापको उस का सहारा मिल सके.

वह कंपनी में मन लगा कर काम करने लगा. तनख्वाह मिलती तो उस में से अपने खाने और कमरे का किराया निकाल कर शेष रुपए वह गांव भेज देता. यहां वह एक ढाबे में खाना खाता था, उस के पिता बिहारीलाल ने बेटे की परेशानी भांप कर उस की शादी रिंकू नाम की सजातीय युवती से कर दी. शादी के लिए परशुराम गांव गया और शादी के बाद पत्नी के साथ 10-12 दिन बिता लेने के बाद वापस दिल्ली लौट आया.

अब वह महीने में एकदो दिन के लिए गांव जाता और खर्च दे कर वापस लौट आता था. पत्नी रिंकू उस के साथ चलने की जिद करती तो उसे समझा देता, ‘मां बूढ़ी हो गई हैं, मुझ से ज्यादा उन्हें तुम्हारी जरूरत है. सही मौका आएगा तो मैं तुम्हें साथ ले चलूंगा.’ रिंकू मन मार कर रह जाती.

समय गुजरता गया. परशुराम की धीरेधीरे आसपड़ोस और कंपनी में अच्छी पहचान बन गई, कुछ दोस्त ऐसे भी बन गए तोखानेपीने का शौक रखते थे. परशुराम की उन के साथ बैठकें जमने लगीं. इन्हीं में एक दोस्त था गोलू, यह भी श्री गोपीनाथ फास्टनर कंपनी में काम करता था. गोलू कभी दारू के लिए अपना पैसा खर्च नहीं करता था. परशुराम ही शराब और खाने का खर्च उठाता था. एक दिन इसी बात पर गोलू से परशुराम उलझ गया. उस दिन महफिल जमी तो परशुराम ने 3 दोस्तों के गिलास भरे, गोलू का गिलास नहीं भरा.

“ऐ, मेरे गिलास में शराब क्यों नहीं डाल रहे हो तुम?’’ गोलू ने हैरानी से पूछा.

“यहां मुफ्त की शराब नहीं मिलती,’’ परशुराम ने व्यंग्य कसा.

“क्या कहा?’’ गोलू गुर्राया, ‘‘तुम मुझे मुफ्तखोर समझ रहे हो. बोल, तुम ने कितने की बोतल मंगवाई है?’’

“इस बोतल की बात मत कर, आज तक तू मुफ्त में ही पीता आया है, तूने कब पैसे खर्च किए हैं. हिसाब करना है तो उन सभी बोतलों का कर.’’ परशुराम ने कहा.

पुलिस के सामने काम न आईं शिखा की अदाएं – भाग 2

दरअसल, मई के पहले सप्ताह में राजस्थान की एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन को सूचना मिली थी कि दुष्कर्म के झूठे मुकदमे दर्ज कराने की धमकी दे कर लोगों से करोड़ों रुपए ऐंठने वाले हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह की सदस्या शिखा तिवाड़ी उर्फ अंकिता उर्फ डीजे अदा आजकल मुंबई में है. मुंबई में वह बड़े होटलरेस्त्राओं में डिस्को जौकी (डीजे) का काम करते हुए लाइव कंसर्ट देती है.

जयपुर में हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह का खुलासा होने के बाद शिखा तिवाड़ी दिसंबर, 2016 में फरार हो गई थी. एसओजी लगातार उस की तलाश कर रही थी. लेकिन उस का कोई पता नहीं चल रहा था. एक दिन एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. को फेसबुक के माध्यम से पता चला कि शिखा तिवाड़ी ने आजकल डीजे अदा के नाम से मुंबई में अपना म्यूजिकल ग्रुप बना रखा है. वह डीजे अदा के नाम से ही मुंबई में रह रही है.

एसओजी को डीजे अदा की ओर से फेसबुक पर पोस्ट की गई उस की लाइव कंसर्ट की फोटो भी मिल गई. इन फोटो से तय हो गया कि शिखा तिवाड़ी ही डीजे अदा है. इस के बाद आईजी ने डीजे अदा की तलाश में जयपुर से अपने तेजतर्रार मातहतों की एक टीम मुंबई भेजी. इस टीम ने कई होटलरेस्त्राओं में पूछताछ के बाद पता लगाया कि डीजे अदा कहांकहां प्रोग्राम करती है. इस के बाद जयपुर से गई एसओजी की टीम ने 14 मई की रात मुंबई से अदा उर्फ शिखा तिवाड़ी को पकड़ लिया.

शिखा तिवाड़ी को एसओजी की टीम जयपुर ले आई. शिखा से की गई पूछताछ और दिसंबर, 2016 में जयपुर में उजागर हुए हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह की जांचपड़ताल के बाद जो कहानी उभर कर सामने आई, वइ इस तरह थी—

दिसंबर 2016 में एसओजी को हत्या के एक मामले में गिरफ्तार आरोपी से पूछताछ में पता चला था कि जयपुर में एक ऐसा गिरोह सक्रिय है, जो हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करता है. इस गिरोह में कुछ वकील, पुलिस वाले, प्रौपर्टी व्यवसाई और फर्जी पत्रकार शामिल हैं. यह गिरोह खूबसूरत युवतियों की मदद से रईस लोगों को ब्लैकमेल करता है.

इस गिरोह के लोग पहले रईस लोगों को चिह्नित करते हैं, फिर उन्हें फांसने के लिए उन की दोस्ती गिरोह की खूबसूरत लड़कियों से कराते हैं. इस दोस्ती के लिए ये लोग फार्महाउस पर सेलीब्रेशन के नाम पर पार्टियां आयोजित करते हैं. इन छोटी पार्टियों में पीनेपिलाने का दौर भी चलता है. गिरोह की लड़कियां इन पार्टियों में अपना मोबाइल नंबर दे कर अपने शिकार का नंबर लेती हैं. इस के बाद उन का मुलाकातों का दौर शुरू होता है.

जल्दीजल्दी की कुछ मुलाकातों में ये युवतियां अपने शिकार को अपनी सुंदरता के मोहपाश में इस तरह बांध लेती हैं कि वह उस के साथ हमबिस्तर होने के लिए तड़पने लगते हैं. शिकार को तड़पा कर ये युवतियां हमबिस्तर होने का कार्यक्रम तय करती हैं. इस के लिए वे कई बार जयपुर से बाहर भी जाती हैं. रईसों के साथ हमबिस्तर होते समय गिरोह के सदस्य युवती की मदद से या तो गुप्त कैमरे से या मोबाइल से क्लिपिंग बना लेते हैं. अगर इस में वे सफल नहीं होते तो युवतियां हमबिस्तर होने के बाद अपने अंतर्वस्त्र सुरक्षित रख लेती हैं. इस के बाद उस रईस को धमकाने का काम शुरू होता है. सब से पहले युवतियां अपने उस रईस शिकार को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की धमकी देती हैं.

अधिकांश मामलों में युवतियां पुलिस में शिकायत दे भी देती हैं. इस के बाद फर्जी पत्रकार व वकील का काम शुरू होता है. वे उस रईस को बदनामी का डर दिखा कर समझौता कराने की बात करते हैं. जरूरत पड़ने पर बीच में पुलिस वाले भी आ जाते हैं. रईस अपनी इज्जत बचाने के लिए उन से सौदा करता है. रईस की हैसियत देख कर 10-20 लाख रुपए से ले कर एक करोड़ रुपए तक मांगे जाते हैं. गिरोह के लोग उस शिकार पर दबाव बनाए रखते हैं. आखिर शिकार बने व्यक्ति को सौदा करना पड़ता है.

यह गिरोह खासतौर से जयपुर सहित राजस्थान के बड़े शहरों के नामचीन प्रौपर्टी व्यवसायियों व बिल्डरों, मोटा पैसा कमाने वाले डाक्टरों, ज्वैलर्स, होटल-रिसौर्ट संचालक और ठेकेदार आदि को अपना शिकार बनाता है. इस काले धंधे में एक एनआरआई युवती भी शामिल है.

ये लोग गिरोह की युवती को प्लौट या फ्लैट खरीदने के बहाने प्रौपर्टी व्यवसाई अथवा बिल्डर के पास भेजते हैं और उसे फंसा लेते हैं. इसी तरह लड़कियों को होटल और रिसौर्ट संचालकों के पास नौकरी के बहाने भेजा जाता है. डाक्टर के पास इलाज कराने के बहाने युवतियों को भेजा जाता था. सौदा होने के बाद युवती और उस के गिरोह के सदस्य स्टांप पर लिख कर दे देते थे कि दुष्कर्म नहीं हुआ था.

शिखा तिवाड़ी जयपुर में गुरु की गली, सीताराम बाजार, ब्रह्मपुरी के रहने वाले आदित्य प्रकाश तिवाड़ी की बेटी थी. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह के सदस्य अक्सर डिस्को बार में जाते थे. वहीं शिखा की मुलाकात अक्षत शर्मा से हुई. अक्षत ने शिखा को अपने गिरोह में शामिल कर लिया. इस गिरोह ने जयपुर के वैशालीनगर में मेडिस्पा नाम से हेयर ट्रांसप्लांट क्लीनिक चलाने वाले डा. सुनीत सोनी को अपने शिकार के रूप में चिह्नित किया. योजनाबद्ध तरीके से शिखा तिवाड़ी को हेयर ट्रीटमेंट कराने के बहाने डा. सुनीत सोनी के पास उन के क्लीनिक पर भेजा गया.

अप्रैल, 2016 में 2-4 बार इलाज के नाम  पर आनेजाने के दौरान शिखा ने डा. सोनी को अपने रूप के जाल फांस लिया. एक दिन उस ने डा. सोनी को बताया कि वह डिप्रेशन में आ गई है. शिखा ने डा. सोनी से कहा कि वह पुष्कर जा कर 2-4 दिन घूमना चाहती है, ताकि डिप्रेशन से बाहर आ सके. शिखा ने डाक्टर से कहा कि वह डिप्रेशन की स्थिति में अकेली पुष्कर नहीं जाना चाहती. जबकि साथ जाने के लिए कोई नहीं है. उस ने डा. सोनी पर घूमने के लिए पुष्कर चलने का दबाव डाला.

डा. सोनी जाना तो नहीं चाहते थे, लेकिन अपने डाक्टरी पेशे में पेशेंट की भावनाओं का खयाल रखते हुए वह शिखा के साथ पुष्कर घूमने जाने को तैयार हो गए. डा. सोनी के तैयार हो जाने के बाद शिखा ने गिरोह के सरगना की सलाह पर डा. सुनीत सोनी से पुष्कर के एक रिसौर्ट में कमरा बुक करवा लिया. तय कार्यक्रम के अनुसार, शिखा व डा. सोनी कार से पुष्कर चले गए. डा. सोनी शिखा को पुष्कर के रिसौर्ट में छोड़ कर उसी शाम जयपुर लौट आए. उन के जयपुर लौट जाने से शिखा को अपना मकसद पूरा होता नजर नहीं आया.

स्टीकर से खुला हत्या का राज- भाग 1

रात के करीब सवा 11 बजे थे. उत्तरी दिल्ली के सराय रोहिला थाने के रिसैप्शन काउंटर पर रखे फोन की घंटी बजी, जिसे वहां मौजूद हैडकांस्टेबल राजेश कुमार ने उठाया. यह फोन कंट्रोलरूम से किया गया था. कंट्रोलरूम से बताया गया कि आरपीएफ के कंट्रोलरूम से पुलिस को यह बताया गया है कि बहादुरगढ़ और घेवरा रेलवे लाइन के बीच में एक व्यक्ति की डेडबौडी पड़ी हुई है. यह डेडबौडी पोल नंबर 26/8-10 डाउन लाइन रेलवे ट्रैक निजामपुर फाटक के आसपास में है, जा कर मुआयना किया जाए.

सूचना लाश के संबंध में थी, इसलिए इसे केस डायरी में दर्ज करने के बाद ड्ïयूटी पर मौजूद एसआई बनवारी लाल को घटना की जानकारी दी गई. वह तुरंत घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. उन्होंने औन ड्यूटी हैडकांस्टेबल सोनू को फोन कर के निजामपुर फाटक पहुंचने की हिदायत दे दी. निजामपुर फाटक पहुंचने पर एसआई बनवारी लाल को हैडकांस्टेबल सोनू और आरपीएफ नागलोई के एएसआई सूरजभान मिल गए. तीनों पोल नंबर 26/8 के पास पहुंचे तो वहां से 12-13 फुट पहले एक व्यक्ति की लाश रेलवे लाइन के बीच में पड़ीहुई मिल गई.

लाश का सिर बहादुरगढ़ साइड में और उस के पैर दिल्ली साइड पर थे. उस व्यक्ति की उम्र करीब 40-45 साल के आसपास थी. एएसआई सूरजभान आरपीएफ ने लाश की फोटो अपने मोबाइल से खींचने के बाद दिल्ली पुलिस के हैडकांस्टेबल सोनू की मदद से लाश को रेलवे ट्रैक से हटा कर वहां से थोड़ी दूर जमीन पर रख दिया ताकि ट्रैक पर रेलगाडिय़ों को सुचारू रूप से चलाया जा सके.

एसआई बनवारी लाल ने उस लाश का निरीक्षण किया. मृतक के शरीर पर ग्रीन ब्राउन रंग की चैकदार फुल बाजू की शर्ट थी और उस ने काले रंग की पैंट पहन रखी थी, जिस पर एसएनटी का टैग लगा हुआ था. शर्ट के नीचे अमूल कोंफी की बनियान और माइक्रोमैन मार्का का अंडरवियर था.शव के पैरों में काले रंग की सैंडल थी, जिन पर लाल रंग से एसएस लिखा हुआ था. उस के दाहिने हाथ में स्टील का कड़ा और लाल रंग का कलावा था. मृतक का मुंह खुला हुआ था, उस के ललाट पर और गले पर चोट के निशान थे.

एसआई ने लाश को पलट कर देखा, उस के सिर के पिछले हिस्से में घाव था, वहां से खून रिस रहा था. ऐसा लग रहा था कि इसी घातक चोट की वजह से इस की मौत हो गई है. यह स्पष्ट था कि इस व्यक्ति की किसी ने हत्या कर दी है.

एसआई बनवारी लाल ने इस हत्या की सूचना फोन द्वारा एसएचओ सराय रोहिल्ला बाला शंकर मणि उपाध्याय को दे दी. उन्होंने डीसीपी (रेलवे) हरिंदर कुमार और एसीपी (रेलवे) प्रवीण कुमार को इत्तला देने के बाद थाने में अपनी रवानगी दर्ज की और घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. वह अपने स्टाफ के साथ मौके पर पहुंचे. एसआई बनवारी लाल ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट टीम और फोटोग्राफर घटनास्थल पर बुलवा लिए थे. यह क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम रोहिणी से आई थी.

दुर्घटना दिखाने के लिए डाला रेल लाइनों में…

प्रारंभिक जांच में ऐसा लग रहा था कि इस व्यक्ति को कहीं दूसरी जगह मारा गया है, और लाश को यहां रेलवे ट्रैक पर ला कर इस मकसद से डाला गया है कि यहां से गुजरने वाली ट्रेन से लाश कट जाए तो देखने वालों को यही लगे कि यह व्यक्ति रेल से कट कर मर गया है. अब लाश की पहचान करना शेष थी. रात होने के कारण यहां पुलिस और क्राइम टीम के अलावा आरपीएफ के एसआई सूरजभान ही मौजूद थे. इन में से कोई भी इस व्यक्ति को नहीं पहचानता था. जगह सुनसान थी, आसपास कोई बस्ती नजर नहीं आ रही थी.

फोटोग्राफर एएसआई रणवीर व क्राइम टीम रोहिणी जिले के एसआई राजेश कुमार को इस तफ्तीश में शामिल दिखा कर एक एफआईआर कापी तैयार की गई. इस के बाद इन्हें वहां से वापस भेज कर हैडकांस्टेबल हनुमान की कस्टडी में लाश को सब्जीमंडी की मोर्चरी में भिजवा दिया गया. यह बात 24 अगस्त, 2022 की है. दूसरे दिन एसएचओ बाला शंकर मणि उपाध्याय ने पुलिस टीम के साथ दोबारा घटनास्थल पर जा कर वहां का बारीकी से निरीक्षण किया. वहां कोई ऐसा साक्ष्य मौजूद नहीं था, जिस से मृत व्यक्ति की पहचान हो पाती.

थोड़ी दूरी पर बाबा हरीदास नगर कालोनी, कोडिय़ा कालोनी चौक व एमआईए टिकरी कलां एरिया पड़ता था. एसएचओ के साथ आए एसआई बनवारी लाल, हैडकांस्टेबल राजेश, सोनू व हनुमान सहाय ने बाबा हरीदास नगर कालोनी, कोडिय़ा कालोनी चौक व एमआईए टिकरी कलां एरिया में मृतक की फोटो दिखा कर उस की पहचान करने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. उस व्यक्ति को वहां कोई पहचान नहीं सका. पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ाने के लिए सब से पहले मृतक की पहचान कर लेना जरूरी होता है.

इस के बाद पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ाने में आसानी होती है. एसएचओ साहब ने उच्चाधिकारियों को इस ब्लाइंड मर्डर केस की जानकारी दे दी थी. डीसीपी (रेलवे) हरिंदर कुमार ने यह मामला सुलझाने के लिए एसीपी (रेलवे) प्रवीण कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में एसएचओ बाला शंकर मणि उपाध्याय, एसआई बनवारी लाल, एएसआई सुंदरलाल, हैडकांस्टेबल राजेश कुमार, सोनू, हनुमान सहाय, सीताराम, विनोद, सुंदर और अनूप को शामिल किया गया. सभी इस ब्लाइंड केस की गुत्थी सुलझाने में लग गए. एसआई बनवारी लाल को जांच आगे बढ़ाने के लिए एक युक्ति सुझाई दे गई.

शर्ट के स्टीकर से शुरू की जांच…

मृतक के कपड़ों का उन्होंने मुआयना किया था. उन्होंने उस के शरीर पर पहनी शर्ट के कालर पर लगा हुआ टेलर के नाम का स्टीकर भी देखा था. पहने हुए कपड़े पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए थे. एसआई ने वह कपड़े मंगवा कर शर्ट पर लगे टेलर के नाम का स्टीकर ध्यान से देखा. स्टीकर एस.एन. टेलर, डी-41 टिकरी बार्डर के नाम से था. एसआई बनवारी ने इस केस की जांच इसी स्टीकर से आगे बढ़ाने का निश्चय कर लिया. अपने साथ हैडकांस्टेबल सोनू को ले कर वह टिकरी बौर्डर में टेलर की दुकान की खोज में निकले. डी-41 के पते पर उन्हें एस.एन. टेलर की दुकान मिल गई.

पुलिस के सामने काम न आईं शिखा की अदाएं – भाग 1

मुंबई के बारे में कहावत है कि यह शहर कभी नहीं सोता. दिन हो या रात, लोग अपने कामों मे लगे रहते हैं. लोग भी लाखों और काम भी लाखों. लेकिन एक सच यह भी है कि मुंबई दिन के बजाय रात की बांहों में ज्यादा हसीन हो जाती है. इस की वजह यह है कि ज्यादातर फिल्मों, सीरियल्स की शूटिंग तो रात में होती ही है, यहां के होटल, रेस्तरां और पब भी रात को खुले रहते हैं.

इस के अलावा  फिल्मी और टीवी के सितारों तथा बडे़ लोगों की पार्टियां भी रात को ही होती हैं. बड़ीबड़ी पार्टियां हों या शूटिंग, उन में ग्लैमर न हो, ऐसा नहीं हो सकता. मध्यमवर्गीय लोगों के लिए पब हैं, जहां नाचगाने और शराब के साथ ग्लैमर भी होता है. यही वजह है कि मुंबई के लाखोंलाख लोग सुबह नहीं, बल्कि शाम का इंतजार करते हैं.

मुंबई की हर शाम समुद्र की लहरों को चूम कर धीरेधीरे रात की बांहों में सिमटने लगती है और समुद्र ढलती शाम का मृदुरस पी कर जवान होती रात में मादकता भर देता है. 14 मई, 2017 की रात का भी कुछ ऐसा ही हाल था. उस रात मुंबई के एक मशहूर होटल के पब में एक पार्टी चल रही थी. गीतसंगीत ऐसी पार्टियों की जान होता है. ऐसी पार्टियों में फोनोग्राम रिकौर्ड्स पर म्यूजिक प्ले करने वालों को डिस्को जौकी यानी डीजे कहा जाता है. ये लोग संगीत की धड़कन होते हैं.

विभिन्न संगीत उपकरणों माइक्रोफोन, सिंथेसाइजर्स, इक्वलाइजर्स, सिक्वेंसर, कंट्रोलर व इलेक्ट्रौनिक म्यूजिक की-बोर्ड्स व डीजे म्यूजिक सौफ्टवेयर की मदद से ऐसी पार्टियों में गीतसंगीत का ऐसा समां बंध जाता है कि डांस फ्लोर पर युवाओं के हाथपैर ही नहीं, पूरा शरीर थिरकने लगता है. डांस फ्लोर पर हिपहौप, रागे, सनरौक, यूनिक फ्यूजन की आवाजें आती रहती हैं. मुंबई में डीजे अनुबंध के आधार पर अपना प्रोग्राम करते हैं.

मुंबई के होटलरेस्त्रां ने अपने पब में गीतसंगीत की हसीन शाम सजाने के लिए विभिन्न डीजे से अनुबंध किए हैं. मायानगरी में ऐसे डीजे की तादाद सैकड़ों में होगी, लेकिन इन में 20-30 डीजे ही ऐसे हैं, जिन की वजह से होटलरेस्त्रां के पब म्यूजिकल ईवनिंग के नाम पर हसीन और जवान होते हैं. डीजे के इस पेशे में अधिकांश महिलाएं हैं.

डिस्को जौकी की भीड़ में डीजे अदा ने कुछ ही महीनों में अपनी धाक जमा ली थी. वह मुंबई के युवा वर्ग में संगीत की धड़कन के रूप में उभर कर सामने आई थी. अदा अनुबंध के आधार पर अलगअलग होटलों और रेस्त्राओं के पब में प्रोग्राम करती थी. उस के लाइव कंसर्ट में डांस फ्लोर पर युवा झूम उठते थे. पुराने फिल्मी गीतों से ले कर क्लासिकल, रीमिक्स व वेस्टर्न संगीत में डीजे अदा ने महारथ हासिल कर ली थी. उस ने अपनी अदाओं से हजारों फैंस बना लिए थे, जो संगीत से ज्यादा उस के दीवाने थे.

डीजे अदा के कार्यक्रम में अभी कुछ देर बाकी थे, लेकिन डांस फ्लोर पर संगीत व डांस प्रेमी जुटना शुरू हो गए थे. संगीत प्रेमियों की इस भीड़ में जयपुर से आए कुछ युवाओं की टोली भी शामिल थी. जयपुर की इस टोली के युवा डांस फ्लोर पर अलगअलग हिस्सों पर खड़े हो कर आनेजाने वाले पर नजर रखे हुए थे.

इस टोली की महिला सदस्य डांस फ्लोर पर आगे की ओर उस जगह खड़ी थीं, जहां म्यूजिक उपकरण लगे हुए थे. यह टोली भी दूसरे संगीत प्रेमियों की तरह डीजे अदा का इंतजार कर रही थी. हालांकि इस टोली के सदस्यों ने डीजे अदा को ना तो पहले कभी किसी प्रोग्राम में देखा था ना ही कहीं और. इस टोली के सदस्यों के पास डीजे अदा की फोटो मोबाइलों में सेव थी. इसी फोटो के आधार पर वे अदा को पहचान सकते थे.

खैर, इंतजार खत्म हुआ. पब में डीजे के साथी कलाकारों ने अपने उपकरण बजा कर लाइव कंसर्ट की तैयारी शुरू की. इस का मतलब था कि डीजे अदा अब परफौरमेंस देने के लिए फ्लोर पर आने वाली थी. म्यूजिकल ड्रम की तेज आवाजों के बीच हैडफोन लगाए हुए डीजे अदा फ्लोर पर आई और अपना दायां हाथ मिला कर दर्शकों से हैलो कहा. इसी के साथ तेज म्यूजिक बजने लगा और डीजे अदा अपनी अदाओं पर संगीत प्रेमियों के साथ थिरकने लगी. अदा को देख कर जहां कुछ युवा उस की खूबसूरती पर आहें भरने लगे, वहीं संगीत प्रेमी अपनी फरमाइशें करने लगे.

dj ada

जयपुर की टोली ने अपने मोबाइल में सेव डीजे अदा का फोटो देख कर यह निश्चित कर लिया कि वे सही ठिकाने पर आए हैं. अदा का प्रोग्राम जैसेजैसे आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे डांस फ्लोर पर जयपुर की टोली का शिकंजा कसता चला गया. करीब डेढ़, दो घंटे बाद जब अदा का प्रोग्राम खत्म हुआ तो उस ने होंठों पर अपनी हथेली ले जा कर हवा में प्यार बिखेरते हुए श्रोताओं को गुडनाइट कहा. जब वह डांस फ्लोर से जाने लगी, तभी जयपुर की टोली ने उसे चारों ओर से घेर लिया. उस टोली में महिलाएं भी थीं.

एकाएक इस तरह कुछ लोगों के घेरे जाने से अदा ने समझा कि वे लोग संभवत: संगीत के रसिया होंगे, जो उस के प्रोग्राम को देख कर खुश हुए होंगे और उसे धन्यवाद कहने आए होंगे या किसी पार्टी में डीजे के लिए बात करने आए होंगे. अदा की उम्मीद के विपरीत उस टोली में  से एक जवान ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘शिखा…शिखा तिवाड़ी, तुम्हारा खेल खत्म हो गया है.’’

इस के साथ ही उस जवान के साथ खड़ी महिला ने डीजे अदा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘शिखा हम लोग जयपुर के एसओजी (स्पेशल औपरेशन ग्रुप) के लोग हैं. तुम यहां कोई तमाशा खड़ा मत करना, वरना तुम्हारी पोल खुल जाएगी और जो लोग अब तक तुम्हारी अदाओं पर थिरक रहे थे, वे तुम पर थूकेंगे.’’

अदा उर्फ शिखा तिवाड़ी समझ गई कि जिस एसओजी से बचने के लिए वह जयपुर से भाग कर मुंबई आई थी, वह अब उसे छोड़ने वाली नहीं है. उस ने कोई विरोध नहीं किया. वह चुपचाप जयपुर से आई एसओजी टीम के अफसरों के साथ चल दी. जयपुर की एसओजी टीम ने मुंबई के संबंधित पुलिस अधिकारियों को मामले की जानकारी दी और शिखा को पकड़ कर ले जाने की बात बताई. यह बात इसी साल 14 मई की रात की है.