नशीले कारोबार के लिए नेपाल और सिक्किम से मजदूर बुलाने की राय भी उसे लियोन ने ही दी. यहां तक कि उदयपुर में फैक्ट्री लगाने की सलाह भी उस ने यह कह कर दी थी कि यह शांत और सुरक्षित जगह है. साथ ही तुम्हारी जन्मभूमि भी. लोगों में तुम्हारा सम्मान है, कोई तुम पर शक नहीं करेगा.
ड्रग्स तस्करी की दुनिया के सब से बड़े मामले को ले कर कानूनी पेच में फंसे सुभाष दूदानी का हौसला चौंकता है. अदालत में पेश किए जाने के बाद कोर्ट के बाहर उस ने अपनी पत्नी से कहा कि मैं ही जल्दी बाहर आऊंगा. कोई कुछ भी साबित नहीं कर पाएगा. उस का यह भी कहना था कि मुझे किसी वकील की जरूरत नहीं है. अपना केस मैं खुद हैंडल करूंगा.
यह बात दो तरह से चौंकाती है. पहली यह कि अपराध की गंभीरता को ले कर उस में जो बेफिक्रापन नजर आता था, वह. और दूसरा यह कि जिस स्त्री से उस का तलाक हो चुका था, वह अदालत में क्यों मौजूद थी? मौजूद थी भी तो सुभाष दूदानी का उसे तसल्लीबख्श बात कहने का क्या मतलब?
बावजूद इस के मुंबई से उस की पैरवी करने आए एनडीपीएस मामलों के विशेषज्ञ वकील चंद्रभूषण मिश्रा का कथन भी कुछ ऐसा ही है. उन्होंने कहा, ‘अदालत में प्रस्तुत दस्तावेजों से कुछ भी साबित नहीं हो पाएगा. दूदानी को छलपूर्वक फंसाया गया है.’
बहरहाल, सूत्रों के मुताबिक अंडरवर्ल्ड की इन सरगोशियों को भी खारिज नहीं किया जा सकता कि जिस के पीछे डौन दाऊद इब्राहीम हो, उसे कौन फंसा सकता है.
तलाकशुदा जिंदगी
विज्ञान से स्नातक डिग्रीधारी सुभाष दूदानी की काबिलियत समझें तो उस ने एक किताब भी लिखी है. जानकार सूत्रों का कहना है कि उस की शादी ज्यादा दिन नहीं चली. हालांकि उस की पत्नी एक बैंक अधिकारी है और उस की 2 बच्चे भी हैं. लेकिन बाद में दोनों का तलाक हो गया. दरकता दांपत्य जीवन ही उसे गलत धंधों की राह पर ले गया. बाद में उस ने उदयपुर में ही टाटा कंपनी में कार्यरत अपने भतीजे रवि दूदानी को भी अपने धंधे में उतार दिया.
सुभाष का सामाजिक रुतबा भी कम नहीं था. अनेक धार्मिक संस्थानों का ट्रस्टी होने के अलावा उस ने अपने समुदाय के लिए भी अच्छीखासी आर्थिक मदद की थी. इस मामले का खुलासा होने से कुछ दिन पहले उस ने एक शिव मंदिर के निर्माण के लिए 8 लाख रुपए की राशि दान की थी.
रवि दूदानी कलड़वास के औद्योगिक क्षेत्र में बनी फैक्ट्री का काम संभालता था. रात को जब वह फैक्ट्री की तरफ जाता था तो सिक्किमी और नेपाली मजदूर भी उस के साथ होते थे. डीआरडीआई टीम के अधिकारियों ने इस बात पर गहरा आश्चर्य जताया है कि आखिर पुलिस ने इस भेद को क्यों नहीं टटोला कि उदयपुर की फैक्ट्री में स्थानीय श्रमिकों के बजाए बाहरी मजदूर क्यों थे.
डीआरडीआई टीम के अधिकारियों ने इस गोरखधंधे में स्थानीय रसूखदारों का हाथ होने की पूरी आशंका जताई है. उन का कहना था कि इस काम में 10 करोड़ जैसा भारीभरकम निवेश किया गया था. दुबई से करोड़ों की मशीनें आई थीं. स्थानीय मैकेनिक बायलर सरीखे उपकरण भी तैयार कर रहे थे. यहां तक कि दुबई से एंथ्रालिक सरीखा संदिग्ध एसिड भी आ चुका था. इस के बावजूद किसी को जरा भी संदेह क्यों नहीं हुआ.
एंथ्रालिक एसिड मंगवाने के लिए सुभाष दूदानी ने गुजरात के नडियाड में माल रखने के लिए एक शेड किराए पर लिया था, जहां से उसे टाइल एडिसिव की आड़ में नशीली दवाओं का जखीरा निर्यात करना था. जानकार सूत्रों के मुताबिक दूदानी कुल 8 हिस्सों में तैयारशुदा माल को बाहर भेजना चाहता था. इस लिहाज से प्रति खेप ढाई टन माल बाहर भेजा जाना था. इस के लिए नए जहाज का बंदोबस्त भी कर लिया गया था. माल किसे भेजना है, इस के लिए रेडिमिक्स एडीसन टेक्नोलौजी नाम की फरजी फर्म भी बना ली गई थी.
उधड़ रही हैं परतें
नशीली गोलियों के इस नेटवर्क से अंतरराष्ट्रीय तस्करों के साथ मुंबई के नामचीन व्यापारी भी जुड़े रहे हैं. उदयपुर में बड़ी खेप पकड़े जाने के बाद से जांच में जुटी डीआरडीआई ने सुभाष दूदानी से संपर्क रखने वाले परमेश्वर व्यास और अतुल म्हात्रे को मुंबई से गिरफ्तार कर लिया है. परमेश्वर व्यास दूदानी का वित्तीय सलाहकार भी था और उसे कच्चा माल भी सप्लाई करता था. फिलहाल डीआरडीआई टीम म्हात्रे की पूरी जन्मकुंडली खंगाल रही है कि इस काम में उस ने किसकिस से मदद ली.
इस मामले में ताजा गिरफ्तारी मलकानी की है. जयपुर स्थित प्रतापनगर से गिरफ्तार किए गए मलकानी की सुभाष दूदानी के कारोबार में 5 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी. कारोबार के मुख्य शेयरधारक के रूप में दुबई निवासी धनकानी के नाम का भी खुलासा हुआ है. मलकानी सुभाष दूदानी का दोस्त भी है. मलकानी दूदानी के बंद हुए सीडी प्रोजेक्ट से भी जुड़ा रहा था.
इस काले कारोबार का खुलासा होने के बाद से सब से ज्यादा सवाल इस बात को ले कर उठ रहे हैं कि यह गोरखधंधा उदयपुर में पिछले 7 सालों से चल रहा था, लेकिन इंडस्ट्री के लिए जिम्मेदार रीको, जिला उद्योग केंद्र, सेल्स टैक्स, ड्रग कंट्रोलर, फैक्ट्री ऐंड बायलर तथा प्रदूषण नियंत्रण महकमे को भनक क्यों नहीं लगी?
हालांकि रीको के प्रभारी अफसर एम.के. शर्मा यह कह कर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं कि किसी उद्योग पर नजर रखना या काररवाई करने का अधिकार हमें नहीं है. ड्रग कंट्रोलर का कहना है कि जब इस फैक्ट्री ने कोई लाइसेंस ही नहीं लिया तो जांच किस बात की करते.
अलबत्ता भारी मात्रा में मेंड्रेक्स और मेथाक्यूलिन का जखीरा हाथ लगने के बाद विश्व पटल पर बदनाम हुए उदयपुर के औषधि नियंत्रण विभाग की हकीकत समझें तो विभागीय नुमाइंदे ऐसे पदार्थ की प्रकृति और बिक्री से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं. इस पूरे मामले में गुजरात के 4 शीर्ष अधिकारियों के नामों का भी खुलासा हुआ है.
ड्रग्स बनाने का काम काफी जटिल और उबाऊ था. लेकिन सूत्र कहते हैं कि सुभाष दूदानी ने इस में भी कसर नहीं छोड़ी. मेथाक्यूलिन से मेंड्रेक्स बनाने के लिए उसे धोने और सुखाने तक का काम उस ने खुद किया. इस के लिए उस ने फ्लूइड बेड ड्रायर काम में लिया. दूदानी इस सूखे मेथाक्यूलिन पाउडर को स्टार्च और मैग्नीशियम स्टीरेट व डाईकैल्शियम फास्फेट मिला कर मशीनों से प्रैस कर के इसे गोलियों की शक्ल देता था. फिर उन पर मुसकराहट का चिह्न भी लगाता था.