कानून को तमाशा बनाने के चक्कर में

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के सुभाष रोड स्थित प्रदेश पुलिस मुख्यालय में उस दिन भी रोज की ही तरह पुलिस महानिदेशक बी.एस.  सिद्धू समेत अन्य अधिकारी अपनेअपने औफिसों में बैठे कार्य में लगे थे. पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा भी अपने औफिस में जरूरी फाइलें निपटा रही थीं, तभी ड्यूटी पर तैनात उन के पीए ने इंटरकौम से सूचना दी, ‘‘मैडम, एक लड़की आप से मिलना चाहती है.’’

‘‘ठीक है, उसे अंदर भेज दो.’’ ममता वोहरा ने कहा.

उन के कहने के पल भर बाद एक लड़की दरवाजे पर टंगा परदा हटा कर अंदर आ गई. लड़की को देखते ही वह पहचान गईं. उस का नाम गुडि़या था और वह एक बहुचर्चित दुराचार मामले की वादी थी. उन्हें लगा, लड़की अपने केस की प्रगति के बारे में जानने आई है, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘कहिए सब ठीक तो है? हमारी पुलिस उसे गिरफ्तार करने की कोशिश में लगी है. वह जल्दी ही पकड़ा जाएगा.’’

‘‘वह तो ठीक है मैडम, लेकिन…’’ लड़की ने इतना ही कहा था कि ममता वोहरा ने पूछा, ‘‘लेकिन क्या…’’

‘‘मैडम, मैं अपना बयान दोबारा देना चाहती हूं.’’ गुडि़या ने कहा.

सवालिया नजरों से उसे घूरते हुए पूछा, ‘‘मतलब?’’

‘‘मैडम, रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद मैं ने जो बयान दिया था, अब उस में मैं कुछ बदलाव करना चाहती हूं.’’

‘‘क्यों?’’ एसपी वोहरा ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैडम, उस समय मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. उलझन में पता नहीं मैं ने क्या कुछ कह दिया था. गफलत में जो कह गई, अब उस में सुधार करना चाहती हूं.’’

इतना कह कर गुडि़या ने एक कागज उन की ओर बढ़ा दिया. ममता वोहरा ने उसे ले कर गौर से पढ़ा. उस में उस ने अपना बयान बदलने के बारे में लिखा था. उसे पढ़ कर उन्हें हैरानी हुई कि आखिर यह ऐसा क्यों करना चाहती है. उस का मामला काफी गंभीर ही नहीं था, बल्कि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय भी बना हुआ था.

इसलिए विचारों से निकल कर उन्होंने गुडि़या से कहा, ‘‘देखो, मुझे इस मामले में अपने अधिकारियों से बात करनी पड़ेगी. तुम अपना यह प्रार्थना पत्र मेरे पास छोड़ जाओ.’’

गुडि़या ने अपना वह प्रार्थना पत्र उन्हीं के पास छोड़ दिया और बाहर आ गई. यह 5 मई, 2014 की बात थी.

पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा के लिए यह हैरानी की बात थी कि लगातार न्याय की मांग करती आ रही लड़की अचानक अपनी बात से पलटना क्यों चाहती है. पीडि़त होने के नाते उस के साथ उन की शुरू से ही सहानुभूति रही थी.

पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा ने गुडि़या द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र से अधिकारियों को अवगत करा दिया. इस मुद्दे पर डीजीपी बी.एस. सिद्धू ने अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) आर.एस. मीना और एसएसपी अजय रौतेला के साथ रायमशविरा किया.

अधिकारी गुडि़या के इस कदम से न केवल हैरान थे, बल्कि असमंजस की स्थिति में भी थे. मामला हाईप्रोफाइल था. इसलिए अधिकारियों को जब पता चला कि गुडि़या ने 2 दिन पहले अदालत में भी अपना बयान दोबारा कराने के लिए शपथ पत्र दिया है तो उन्हें चिंता हुई. यह बात अलग थी कि उस के उस शपथ पत्र पर अभी सुनवाई नहीं हुई थी.

गुडि़या के इस कदम से पुलिस को अनेक आशंकाएं हुईं. इस की वजह यह थी कि अभी अभियुक्त की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. जबकि पुलिस की कई टीमें उस का गैरजमानती वारंट लिए अंतरराज्यीय स्तर पर उस की तलाश कर रही थीं.

अभियुक्त रसूख, राजनीतिक पहुंच और दौलत वाला था. लड़की को बयान बदलने के लिए डराया धमकाया भी जा सकता था. कहीं इसी वजह से तो गुडि़या बयान बदलने के लिए मजबूर नहीं है? अगर सचमुच में ऐसा था तो यह कानून के लिए एक बड़ी चुनौती थी. अभियुक्त के गिरफ्तार न होने से पुलिस वैसे ही सवालों के घेरे में थी.

दरअसल 18 अप्रैल, 2014 को गुडि़या ने देहरादून के थाना राजपुर में एक मुकदमा दर्ज कराया था. जिस से पूरे उत्तराखंड राज्य में सनसनी फैल गई थी. यह मुकदमा प्रदीप सांगवान के खिलाफ दर्ज कराया गया था.

सनसनी की वजह यह थी कि मूलरूप से सोनीपत का रहने वाला प्रदीप सांगवान कोई मामूली आदमी नहीं था. उस के पिता किशनचंद सांगवान भारतीय जनता पार्टी से सांसद रह चुके थे. वह खुद भी एक राष्ट्रीय पार्टी से जुड़ा हुआ था.

उस ने देहरादून और पहाड़ों की रानी मसूरी में अपना घर बना रखा था. इस के अलावा देहरादून के सहस्रधारा स्थित पिकनिक स्थल के रूप में विकसित किए गए जौयलैंड वाटर पार्क का मालिक भी था. देहरादून में उस के रहने की यही वजहें थीं.

गुडि़या ने आरोप लगाया था कि प्रदीप सांगवान ने उस के साथ न सिर्फ दुष्कर्म किया था, बल्कि उस दौरान उस की एक वीडियो क्लिप भी बना ली थी. जिस के बल पर वह उस का यौन शोषण कर रहा था. उस वीडियो क्लिप को सार्वजनिक करने और सोशल नेटवर्किंग साइट ‘फेसबुक’ पर डालने की धमकियां दे कर वह उस का मनचाहा इस्तेमाल कर रहा था. उसे जो धमकियां दी जा रही थीं, उस के सुबूत में उस ने अपने मोबाइल फोन में पुलिस को कुछ मैसेज भी दिखाए थे.

मामला बेहद गंभीर था. ऐसे मामलों में कानून हर तरह से पीडि़ता के साथ होता है. उस की बात को गंभीरता से सुना ही नहीं जाता, बल्कि तुरंत काररवाई भी की जाती है. राजपुर के थानाप्रभारी  प्रदीप राणा ने तुरंत इस बात की उच्चाधिकारियों को जानकारी दी थी, जहां से उन्हें उचित काररवाई के निर्देश मिले थे.

गुडि़या की शिकायत व बयानों के आधार पर थानाप्रभारी ने मुकदमा अपराध संख्या 33/14 पर नामजद मुकदमा दर्ज करा दिया था और मामले की जांच इंसपेक्टर अंशू चौधरी को सौंपी गई थी. चूंकि मामला रसूखदार आदमी से जुड़ा था, इसलिए यह मीडिया वालों के लिए सुर्खियां बन गया था.

मुकदमा दर्ज होते ही एसएसपी अजय रौतेला ने पुलिस अधीक्षक (नगर) नवनीत भुल्लर, होमीसाइड सेल के प्रभारी प्रदीप टमटा और स्पेशल टास्क फोर्स की टीम को भी प्रदीप सांगवान की गिरफ्तारी के लिए लगा दिया था. पुलिस उस की तलाश में निकली तो वह गायब मिला.

प्रदीप सांगवान से मिलने से ले कर दुराचार तक की जो कहानी गुडि़या ने पुलिस को बताई थी, वह कम चौंकाने वाली नहीं थी. वह पूरी कहानी कुछ इस प्रकार थी, जिस में वह एक खूबसूरत जाल में उलझ कर रह गई थी.

गुडि़या उत्तरप्रदेश के जिला बिजनौर की रहने वाली थी. नौकरी व सुनहरे भविष्य की तलाश में वह साल 2012 में देहरादून आ गई थी. देहरादून में वह अपनी एक सहेली के पास रुकी थी. यहां कोई नौकरी कर के वह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. उस ने नौकरी की तलाश भी शुरू कर दी. कुछ जगह उसे अवसर मिले भी, परंतु काम पसंद नहीं आया.

तब उस की उस सहेली ने कहा, ‘‘तू किसी प्लेसमेंट एजेंसी का सहारा क्यों नहीं लेती?’’

‘‘मैं खुद ही कोई बढि़या नौकरी तलाश लूंगी. अखबार रोज देख ही रही हूं, कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी.’’

‘‘अरे हां, कल मैं ने देखा था, जौयलैंड वाटर पार्क में कैशियर की जगह खाली है. वहां ज्यादा काम भी नहीं है. कोशिश करो, शायद तुम्हें वहां नौकरी मिल ही जाए.’’

अगले ही दिन गुडि़या अपना बायोडाटा ले कर जौयलैंड पार्क जा पहुंची. थोड़े इंतजार के बाद वाटर पार्क के मालिक प्रदीप सांगवान से उस की मुलाकात भी हो गई. पहली नजर में प्रदीप सांगवान गुडि़या को अच्छा आदमी लगा. गुडि़या को इस से भी ज्यादा खुशी तब हुई, जब औपचारिक बातचीत के बाद उस ने उसे नौकरी पर रख लिया.

अगले दिन यानी 24 जून, 2012 से गुडि़या अपनी नौकरी पर जाने लगी. उसे कैशियर के पद पर रखा गया था, इसलिए वाटर पार्क में आनेजाने वाले पैसों का हिसाब उसे ही रखना था. बैंक के लेनदेन का हिसाब भी उसे ही देखना था, इस के अलावा पार्क से होने वाली प्रतिदिन कमाई की एंट्री भी उसे ही करनी थी.

गुडि़या मेहनत कर के जमाने की रफ्तार के साथ आगे बढ़ना चाहती थी. सोच की इसी इमारत पर नौकरी के रूप में उस ने पहली सीढ़ी पर कदम रखा. वह सुंदर भी थी और मेहनती भी. उत्तराखंड की आबोहवा उसे शुरू से ही पसंद थी. कुछ ही दिनों में अपने काम से उस ने सभी का दिल जीत लिया.

जल्दी ही वह वाटर पार्क में काम करने वाले अन्य लोगों से भी घुलमिल गई थी. उस का सोचना था कि वहां नौकरी करते हुए उस के सपने पूरे होंगे. अपवाद को छोड़ दिया जाए तो जिंदगी के सफर के रास्ते हर इंसान अपनी ओर से अच्छा ही चुनता है.

रास्ते सीधे भी होते हैं तो कई मोड़ से भी हो कर गुजरते हैं. मोड़ वाले रास्ते में कब, कौन, किस तरह की कड़वी हकीकत से रूबरू हो जाए, इस बात को कोई नहीं जानता. कभीकभी अचानक ऐसे भी मोड़ आ जाते हैं, जब इंसान को अपना अक्स भी धुंधला नजर आने लगता है. गुडि़या के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

नौकरी के उस के 2 सप्ताह बड़ी अच्छी तरह बीते. वह बहुत खुश थी. वक्त पंख लगा कर उड़ रहा था. तीसरा सप्ताह चल रहा था. एक दिन प्रदीप ने कहा, ‘‘गुडि़या आज तुम्हें मेरे साथ मसूरी चलना है.’’

‘‘क्यों सर?’’

‘‘वहां एक प्रिंसिपल हैं. मैं तुम्हें उन से मिलवाना चाहता हूं, क्योंकि उन्हें मार्केटिंग का बहुत अच्छा नौलेज है. मैं चाहता हूं कि तुम उन से कुछ सीख लो, जिस का तुम्हें भी लाभ होगा और हमें भी.’’

‘‘ओके सर.’’ गुडि़या ने हामी भर दी. वह प्रदीप के यहां नौकरी करती थी. मन में कोई आशंका थी नहीं, जिस की वजह से वह उस के साथ जाने से मना कर देती. वह जाने के लिए तैयार हो गई. उसे क्या पता था कि उसे बहाने से एक ऐसे खूबसूरत जाल में उलझाया जा रहा है, जिस में फंस कर वह छटपटा कर रह जाएगी.

शाम तक वह प्रदीप के साथ पहाड़ों की रानी मसूरी पहुंच गई. देहरादून से वहां पहुंचने में एक घंटे से भी कम समय लगा. वहां पहुंच कर प्रदीप ने कहा, ‘‘हम तो आ गए, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या सर?’’ गुडि़या ने पूछा.

‘‘प्रिंसिपिल यहां हैं ही नहीं.’’

‘‘कब आएंगी?’’

‘‘कह नहीं सकता. क्योंकि उन का मोबाइल बंद है.’’

मसूरी में भी प्रदीप का घर था. उस ने कह उस रात गुडि़या को वहीं रुकने के लिए तैयार कर लिया. फिर वह रात गुडि़या के लिए कयामत की रात साबित हुई. गुडि़या के अनुसार प्रदीप ने शराफत का नकाब उतार कर उस रात कई बार उस के साथ जबरदस्ती की. उस ने उस दौरान की वीडियो क्लिप भी बना ली.

सुबह उस ने गुडि़या से साफसाफ कह दिया कि अगर उस ने इस बारे में किसी से कुछ कहा या आगे उस की बात नहीं मानी तो उस की इस क्लिप को फेसबुक पर अपलोड कर दिया जाएगा, जिसे सारी दुनिया देखेगी.

सब कुछ गंवा कर गुडि़या अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहा कर रह गई. इस के बाद से उस के यौन शोषण का सिलसिला चल निकला. यह सब होते धीरेधीरे एक साल से ज्यादा हो गया. वह आंसू बहा कर रह जाती थी.  वहां जब भी विरोध करती, उसे धमका दिया जाता. गुडि़या को अपनी जिंदगी दोजख सी लगने लगी. जब वह कुछ ज्यादा ही परेशान हो गई तो इंसाफ के लिए पुलिस की दहलीज पर जा पहुंची और प्रदीप के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

मामला प्रकाश में आते ही चर्चा का विषय बन गया. इस की राजनीति के गलियारों में भी चर्चा हो रही थी. पुलिस ने गुडि़या का मैडिकल कराया. 22 अप्रैल को सिविल जज (तृतीय) के यहां धारा 164 के तहत उस का बयान दर्ज कराया. अगले दिन पुलिस ने गुडि़या का कलमबंद बयान दर्ज किया, जिस में उस ने अपने साथ हुई पूरी घटना को दोहरा दिया.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर अंशू चौधरी ने सुबूत जुटाने के लिए घटनास्थल मसूरी के रिहाइशी इलाके और वाटर पार्क का निरीक्षण कर के नक्शा तैयार किया. पुलिस सुबूत जुटाने में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए वाटर पार्क के कर्मचारियों समेत करीब 16 लोगों के बयान दर्ज किए.

मामला पहुंच वाले आदमी से जुड़ा था, पुलिस तथ्यों के आधार पर ही आगे की काररवाई करना चाहती थी. प्रदीप की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की टीमें गठित कर दी गई थीं, जो लगातार उसे तलाश रही थीं. कई दिन बीत गए, वह हाथ नहीं आया.

3 मई को पुलिस ने उस के देहरादून स्थित आवास पर छापा मारा. वह तो फरार था, इसलिए कहां से मिलता. पुलिस ने वहां की जांचपड़ताल के दौरान मोबाइल, लैपटौप और अन्य समान बरामद किया. इस के बाद पुलिस ने अदालत से उस का गैरजमानती वारंट हासिल कर लिया. अदालत ने प्रदीप को भगोड़ा भी घोषित कर दिया.

प्रदीप के जहांजहां मिलने की संभावना थी, वहांवहां पुलिस टीमें छापा मार रही थीं. चंडीगढ़, दिल्ली, मेरठ में संभावित ठिकानों पर उस की तलाश की गई. मामले ने काफी तूल पकड़ा तो इस की जांच पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा को सौंप दी गई. वह बिना किसी दबाव के पीडि़ता को इंसाफ दिलाना चाहती थीं. इस के लिए तमाम सामाजिक संगठन आवाज भी उठा रहे थे.

पुलिस प्रदीप सांगवान को पकड़ने के लिए जीजान से जुटी थी, तभी गुडि़या ने अचानक बयान बदलने का शपथ पत्र दिया तो पुलिस अधिकारी अजीब उलझन में पड़ गए. इस से पुलिस को आशंका हुई कि कहीं उस की जान खतरे में तो नहीं है. किसी दबाव में तो वह ऐसा नहीं कर रही है.

पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू ने अधीनस्थों को निर्देश दिए कि पहले यह सुनिश्चित किया जाए कि पीडि़ता की जान खतरे में तो नहीं है. इस के बाद यह पता लगाया जाए कि वह ऐसा कर क्यों रही है?

उसे प्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा देने से उस की पहचान उजागर हो सकती थी, इसलिए उसे प्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा न दे कर उस पर खुफिया नजर रखने के लिए एक टीम लगा दी गई. इसी के साथ उस का नंबर सर्विलांस पर लगा दिया गया कि अगर कोई उसे डराधमका रहा होगा तो यह बात भी सामने आ जाएगी.

इतना सब कर के प्रदीप की गिरफ्तारी के प्रयासों की समीक्षा कर के कोशिश और तेज कर दी गई. अधिकारियों के निर्देशानुसार पुलिस टीमें तेजी से काम में जुट गईं. इस में स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव टीम के सदस्यों को भी शामिल किया गया था. पुलिस ने अदालत से प्रदीप का कुर्की वारंट भी हासिल कर लिया था.

12 मई को गुडि़या द्वारा अदालत में बयान बदलने संबंधी शपथ पत्र पर सुनवाई हुई. अदालत ने उस की अपील को नामंजूर करते हुए कहा, ‘‘न ऐसा कोई कानूनी प्रावधान है और न ही यह विधि सम्मत है.’’

गुडि़या की बात अदालत ने नहीं मानी थी. यह उस के लिए एक बड़ा झटका था.

अगले दिन यानी 13 मई को इस मामले में अचानक चौंकाने वाला मोड़ आ गया. पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू ने आननफानन इस मामले को ले कर प्रेसवार्ता बुलाई तो सभी ने सोचा कि अभियुक्त गिरफ्तार हो गया होगा. लेकिन जो हुआ, उस की किसी ने कल्पना नहीं की थी.

दरअसल पुलिस ने गुडि़या को ही गिरफ्तार कर लिया था. उस पर पुलिस को गुमराह करने और अभियुक्त को ब्लैकमेल कर के समझौता करने का आरोप था. यह आरोप फोरैंसिक सुबूतों के साथ था, जिस में यह आरोप किसी और ने नहीं, पुलिस ने ही लगाया था.

गोपनीय रूप से गुडि़या की निगरानी कर रही पुलिस को जांच में पता चला था कि उस ने दुराचार के मामले में समझौते के लिए एक बड़ा सौदा कर लिया था.

उसी सौदे के बाद अभियुक्त प्रदीप को बचाने के लिए वह अपना बयान बदलना चाहती थी. इज्जत का यह सौदा मामूली रकम में नहीं, आधा करोड़ रुपयों से भी ज्यादा में हुआ था. रकम से गुडि़या ने मकान और सुखसुविधा के आधुनिक साधन जुटा भी लिए थे. पुलिस ने उस के पास से लाख रुपए नकद बरामद भी किए थे.

पुलिस ने गुडि़या के साथ उस के एक दोस्त सईद को भी गिरफ्तार किया था. इस सौदेबाजी में दिल्ली निवासी अजय मान ने अपने जीजा प्रदीप सांगवान को बचाने में सईद की मार्फत गुडि़या से बात की थी.

समझौता चूंकि दोनों पक्षों की रजामंदी से हुआ था, इसलिए कोई भी एकदूसरे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं करा सकता था. इसलिए गुडि़या, उस के साथी और अजय के खिलाफ थाना कोतवाली में सबइंस्पेक्टर नीलम रावत की ओर से ब्लैकमेलिंग का मुकदमा दर्ज किया गया था.

प्रदीप सांगवान पर दर्ज मुकदमों की धाराओं में सुबूतों को प्रभावित करने की धारा 201 बढ़ा दी गई थी. गुडि़या की गिरफ्तारी के पीछे चौंकाने वाली जो कहानी थी, वह इस प्रकार थी.

पुलिस ने गुडि़या पर नजर रखनी शुरू की तो उस की काल डिटेल्स में 2 संदिग्ध नंबर नजर आए. दोनों नंबरों की जांच की गई तो पता चला कि उन में से एक नंबर दिल्ली के रहने वाले अजय का था तो दूसरा सईद चौधरी का.

पुलिस को लगा कि वही दोनों गुडि़या को धमका रहे हैं. इसी शक के आधार पर गुडि़या के मोबाइल की रिकौर्डिंग शुरू की गई तो मामला कुछ दूसरा ही सामने आया. अजय प्रदीप सांगवान का साला था तो सईद गुडि़या का दोस्त. सईद उत्तराखंड के ही जिला ऊधमसिंहनगर के काशीपुर के रहने वाले इफ्तिखार हुसैन का बेटा था.

गुडि़या की उस से रोज ही बातें होती थीं. मोबाइल की काल रिकौर्डिंग से पता चला कि वे उसे धमकी नहीं देते थे, बल्कि समझौते की बात करते थे. गुडि़या की समझौते की बात हो चुकी थी.

एक दिन सईद ने फोन कर के पूछा, ‘‘क्या हाल है गुडि़या?’’

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘उस ने पैसे दिए कि नहीं?’’

‘‘अभी उस ने पैसे कहां दिए हैं?’’ गुडि़या ने कहा तो सईद बोला, ‘‘फिर भी तुम ने कोर्ट में अर्जी लगा दी.’’

‘‘हां, अर्जी तो लगा दी है, लेकिन मैं ने यह नहीं कहा है कि मैं बयान वापस ले रही हूं. मैं ने अर्जी में लिखा है कि पहले दिए गए बयान में कुछ तथ्य छूट गए हैं, जिस की वजह से मैं दोबारा बयान देना चाहती हूं. उस हिसाब से मैं कुछ भी कह सकती हूं.’’

‘‘ऐसा तो नहीं कि बयान बदल देने के बाद वह बाकी पैसे देने में दिक्कत करे?’’

‘‘कुछ कहा नहीं जा सकता. कर भी सकते हैं. इसीलिए मैं ने ऐसा लिखा है.’’

‘‘खैर, तुम दोनों तरफ से सेफ हो. मैं ने तुम्हारी हर तरह से मदद की है. पैसे के लिए क्या कह रहा था?’’

‘‘कह रहा था 5 लाख अभी ले लो, बाकी इलेक्शन के बाद दे दूंगा. मेरे नाम मकान की रजिस्ट्री तो करा दी है, कुछ पैसे भी दिए हैं, जिस से मैं ने घर का सामान खरीद लिया है.’’

‘‘वह डबल गेम तो नहीं खेल रहा?’’

‘‘मैं अजय से बात कर लूंगी. अगर वह पैसे दे देगा, तभी मैं अपना केस वापस लूंगी.’’

‘‘अभी तुम अजय से कोई बात मत करो. जब मैं कहूंगा, तभी करना. देख लेना और जैसा भी हो बता देना.’’

‘‘टेंशन मत लो, अभी गेंद मेरे ही पाले में है. ओके बाय.’’ अपनी बात पूरे आत्मविश्वास के साथ कह कर गुडि़या ने फोन काट दिया.

ये बातें सुन कर पुलिस सन्न रह गई थी. समझते देर नहीं लगी कि दुराचार के इस मामले में पुलिस और कानून को तमाशा बनाया जा रहा है.

पुलिस ने गुडि़या के खिलाफ सुबूत जुटाने शुरू कर दिए. उस ने अपने नाम मकान की रजिस्ट्री की बात की थी. इस के लिए दस्तावेजों की जांच जरूरी थी. पुलिस ने रजिस्ट्री औफिस से एक महीने के अंदर मकानों की खरीदफरोख्त करने वाले लोगों की सूची हासिल कर ली.

लेकिन इस सूची की जांच की गई तो उस में गुडि़या का नाम नहीं था. यह हैरान करने वाली बात थी. जबकि फोन टेपिंग में उस ने स्पष्ट कहा था कि उस के नाम एक मकान की रजिस्ट्री हुई थी.

पुलिस ने रजिस्ट्री औफिस जा कर जब हो चुकी रजिस्ट्री की एंट्री करने वाला रजिस्टर चेक किया तो सच्चाई का पता चल गया. क्योंकि उस रजिस्टर पर खरीदारों के फोटो चस्पा होते हैं. यह एक चौंकाने वाली जानकारी हाथ लगी. खरीदारों की सूची में फोटो तो गुडि़या का लगा था, लेकिन उस में नाम दूसरा था. शायद ऐसा उस ने चालाकी से किया था. उस ने नाम तो बदल दिया था, परंतु चेहरा कैसे बदलती.

वह मकान मोहल्ला बंजारावाला में मीनाक्षी बिष्ट से 2 मई, 2014 को 17 लाख रुपए में खरीदा गया था. पुलिस के अनुसार उस मकान की वास्तविक कीमत 35 लाख रुपए थी. शायद स्टांप ड्यूटी बचाने के लिए उस का बैनामा 17 लाख रुपए में कराया गया था.

अब तक प्राप्त सुबूतों में अभियुक्त को ब्लैकमेल करने की पुष्टि हो गई थी. सुबूत पक्के थे, इसलिए पुलिस ने गुडि़या की गिरफ्तारी की योजना बना कर अदालत से वारंट हासिल किया और छापा मार कर उसे गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में पता चला कि ब्लैकमेलिंग से मिली रकम से उस ने अपने लिए आधुनिक सुखसुविधाओं के तमाम साधन जुटा रखे थे.

ब्लैकमेलिंग में गुडि़या के दोस्त सईद ने मदद की थी, इसलिए उसे भी शिकंजे में लेना जरूरी था. गुडि़या और उस की बातचीत से पुलिस को पता चल चुका था कि अजय मान ने उसे नौकरी का औफर दिया था और साक्षात्कार के लिए देहरादून आने को कहा था. पुलिस ने इस का फायदा उठाते हुए एक कंपनी का नाम ले कर उसे नौकरी का औफर दिया और साक्षात्कार के लिए देहरादून बुलाया. नौकरी की खुशी में वह देहरादून आ गया. पुलिस पहले से उस की फिराक में ही थी. देहरादून आने पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

पुलिस ने गुडि़या और सईद को आमनेसामने बैठा कर विस्तारपूर्वक पूछताछ की. विश्वास करना मुश्किल था कि एक लड़की ने दुराचार को हथियार बना कर किस तरह अपनी किस्मत को बदलने की कोशिश की तो दुराचार के अभियुक्त ने खुद को बचाने की. उस ने पैसे ऐंठने की योजना मुकदमा दर्ज होने के बाद तब बनाई थी, जब उस के पास समझौते के लिए प्रस्ताव आए. लाखों की रकम और मकान का प्रस्ताव उसे पसंद आ गया था.

इस के बाद गुडि़या ने अपने दोस्त सईद से बात की तो उस ने उसे समझौता कर लेने की सलाह दी. उस समय वह यह भूल गई कि दुराचार का सख्त कानून महिलाओं और लड़कियों के हक में उन्हें न्याय दिलाने के लिए बनाया गया है ना कि नाजायज इस्तेमाल कर के कमाई करने के लिए.

गुडि़या को एक ही झटके में लाखों रुपए मिलते नजर आ रहे थे. समझौते की शर्तों में उस के लिए बहुत जल्दी मोहल्ला बंजारावाला में मीनाक्षी बिष्ट का मकान तलाश लिया गया.

किसी को शक न हो, इस के लिए गुडि़या ने बैनामे के समय अपना वह नाम लिखवाया, जो शैक्षिक प्रमाण पत्रों में था. जबकि रिपोर्ट उस ने घरेलू नाम से लिखवाई थी. इसीलिए रजिस्ट्री औफिस की सूची में उस का नाम न देख कर पुलिस उलझ गई थी.

मकान मिल गया और कुछ नकद भी तो गुडि़या केस वापस लेने को तैयार हो गई. इसी प्रक्रिया के तहत उस ने जांच अधिकारी पुलिस अधीक्षक ममता वोहरा और अदालत में फिर से बयान कराने का प्रार्थना पत्र भी दे दिया. पुलिस ने उस के पत्र पर जांच शुरू कर दी और अदालत ने भी उस की बात नहीं मानी. इस तरह कानून को तमाशा बनाने के चक्कर में वह अपने ही बुने जाल में फंस गई.

पुलिस ने गुडि़या और सईद से काफी लंबी पूछताछ की थी. इस पूछताछ में पुलिस ने पुख्ता सुबूत जुटा लिए. अगले दिन दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. जेल भेजे जाने से पूर्व प्रयोगशाला के विशेषज्ञों ने जांच के लिए दोनों की आवाजों के सैंपल ले लिए थे, ताकि पुष्टि हो सके कि मोबाइल पर हुई बातचीत उन्हीं दोनों की थी.

इस के बाद पुलिस ने प्रदीप सांगवान के साथ उस के साले अजय की तलाश शुरू कर दी. पुलिस ने प्रदीप का पासपोर्ट जब्त कर के लुक औफ सर्कुलर जारी करा दिया है, ताकि वह विदेश न भाग सके. अजय का गैरजमानती वारंट हासिल कर लिया गया है. प्रदीप सांगवान पर पुलिस ने ढाई हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया.

कथा लिखे जाने तक जेल गई गुडि़या और उस के साथी सईद की जमानत नहीं हो सकी थी. प्रदीप और अजय को गिरफ्तार नहीं किया जा सका था. गुडि़या ने प्रदीप पर जो आरोप लगाए थे, अब वे कितना सच साबित होंगे यह तो वक्त ही बताएगा.

लेकिन उस ने खुद की गलती से दुराचार को हथियार बना कर जिस तरह खुद को कानून के फंदे में उलझा लिया है, अब उस से निकलना मुश्किल है. ऐसे में लोग कभी खुद पर तो कभी हालात पर खीझते हैं. यह भी सच है कि कानून सुरक्षा और न्याय के लिए बने हैं, न कि मनचाहे इस्तेमाल के लिए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. गुडि़या परिवर्तित नाम है.

19 साल बाद खुला हत्या का राज

छठी क्लास में पढ़ने वाले महादेवन का स्कूल घर से कई किलोमीटर दूर था. वह पैदल ही स्कूल आताजाता था, जबकि उस के साथ पढ़ने वले कई छात्र साइकिल से आतेजाते थे. उस का मन करता था कि उस के पास भी साइकिल हो. उस ने अपने पिता विश्वनाथन आचारी से कई बार साइकिल दिलाने का अनुरोध किया, लेकिन वह अभी उसे साइकिल दिलाना नहीं चाहते थे.

इस की वजह यह थी कि महादेवन की उम्र अभी केवल 13 साल थी. 3 बेटियों के बीच वह उन का अकेला बेटा था, इसलिए वह कोई रिस्क नहीं उठाना चाहते थे. वह चाहते थे कि 2-3 साल में बेटा जब थोड़ा बड़ा और समझदार हो जाएगा तो उसे साइकिल खरीदवा देंगे.

मगर महादेवन को पिता की बात अच्छी नहीं लगी. उस ने साइकिल खरीदवाने की जिद पकड़ ली. वैसे विश्वनाथन आचारी के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. उन की केरल के चंगनाशेरी के निकट मडुमूला में उदया स्टोर्स के नाम से एक दुकान थी. दुकान से उन्हें अच्छीखासी आमदनी हो रही थी और परिवार भी उन का कोई ज्यादा बड़ा नहीं था. परिवार में पत्नी विजयलक्ष्मी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा महादेवन था.

चूंकि वह एकलौता बेटा था, इसलिए घर के सभी लोग उसे बहुत प्यार करते थे. सभी का लाडला होने की वजह से उस की हर मांग पूरी की जाती थी. विश्वनाथन ने उस के जन्मदिन पर एक तोला सोने की चेन गिफ्ट की थी, जिसे वह हर समय पहने रहता था. वह उसे साइकिल खरीदवाने के पक्ष में तो थे, लेकिन अभी उस की उम्र कम होने की वजह से फिलहाल मना कर रहे थे.

लेकिन बेटे की जिद और मायूसी के आगे विश्वनाथन को झुकना पड़ा. आखिर उन्होंने बेटे को एक साइकिल खरीदवा दी. साइकिल पा कर महादेवन की खुशी का ठिकाना न रहा. यह बात सन 1995 की है. इस के बाद महादेवन दोस्तों के साथ साइकिल चलाने लगा. जब वह अच्छी तरह से साइकिल चलाना सीख गया तो उसी से स्कूल आनेजाने लगा.

महादेवन 2 सितंबर, 1995 को भी घर से साइकिल ले कर निकला था, लेकिन तब से आज तक वह वापस नहीं लौटा. दरअसल स्कूल से लौटने के कुछ समय बाद महादेवन साइकिल ले कर निकल गया. ऐसा वह रोजाना करता था और 1-2 घंटे में घर लौट आता था.

उस दिन वह कई घंटे बाद भी घर नहीं लौटा तो मां विजयलक्ष्मी को चिंता हुई. उन्होंने उसे उन जगहों पर जा कर देखा, जहां वह साइकिल चलाता था. महादेवन नहीं मिला तो विजयलक्ष्मी ने दुकान पर बैठे पति के पास बेटे के गायब होने की खबर भिजवा दी.

बेटे के घर न लौटने की बात सुन कर विश्वनाथन आचारी दुकान से सीधे घर चले आए. उन्होंने बेटे को इधरउधर ढूंढना शुरू किया और उस के यारदोस्तों से पूछा, परंतु उन्हें बेटे के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली.

एकलौते बेटे का कोई पता न चलने से मां का रोरो कर बुरा हाल था. चारों तरफ से हताश होने के बाद विश्वनाथन पत्नी के साथ थाना चंगनाशेरी पहुंचे और थानाप्रभारी को बेटे के गुम होने की बात बताई. लेकिन थानाप्रभारी ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया. उन्होंने बस उस की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

थाने में बच्चे के गुम होने की सूचना दर्ज कराने के बाद भी आचारी अपने स्तर से बेटे को ढूंढते रहे. काफी खोजने के बाद भी उन के हाथ निराशा ही लगी. बच्चे के गायब होने के 4-5 दिनों बाद आचारी के घर पर एक चिट्ठी आई. चिट्ठी पढ़ कर वह सन्न रह गए. उस चिट्ठी में लिखा था, ‘‘तुम्हारा बेटा महादेवन हमारे कब्जे में है. अगर तुम्हें वह जिंदा चाहिए तो मोटी रकम का इंतजाम कर लो.’’

पैसे पहुंचाने के लिए चिट्ठी में एक पता लिखा था. आचारी बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. उन्होंने तय कर लिया कि अपहर्त्ता उन से चाहे जितने पैसे ले लें, लेकिन उन्हें बेटा सही सलामत मिले. मामला कहीं उलटा न हो जाए, इसलिए उन्होंने चिट्ठी वाली बात पुलिस को नहीं बताई.

पैसे इकट्ठे करने के बाद वह अकेले ही चिट्ठी में दिए पते पर नियत समय पर पहुंच गए. जिस कलर के कपड़े पहने हुए व्यक्ति को पैसे सौंपने की बात पत्र में लिखी थी, उस कलर के कपड़े पहने वहां कोई भी नहीं दिखा. आचारी ने चारों तरफ नजरें घुमा कर देखा. फिर भी उन्हें उस रंग के कपड़े पहने कोई शख्स नहीं दिखा. उन्होंने वहां कुछ देर इंतजार किया. इस के बाद भी उस कलर के कपड़े पहने कोई शख्स नहीं आया तो वह निराश हो कर घर लौट आए.

फिर आचारी ने अगले दिन अपहर्त्ताओं द्वारा भेजी गई चिट्ठी के बारे में पुलिस को बता दिया. पत्र से पुलिस को भी यकीन हो गया कि महादेवन का किसी ने पैसों के लिए अपहरण किया है. पत्र द्वारा पुलिस ने अपहर्त्ताओं तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली.

इधरउधर हाथ मारने के बाद पुलिस को कामयाबी नहीं मिली तो उस ने इस संवेदनशील मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. आचारी थाने के चक्कर लगाते रहे, लेकिन पुलिस ने उन की बातें पर तवज्जो नहीं दी.

13 वर्षीय महादेवन को घर से गए हुए महीने, साल बीत गए. बेटे की याद में रोतेरोते विजयलक्ष्मी की आंखों के आंसू सूख चुके थे तो पुलिस अधिकारियों के पास चक्कर लगाते लगाते आचारी के जूते घिस चुके थे. इस के बाद भी आचारी ने हिम्मत नहीं हारी. वह बेटे को खोजने का दबाव पुलिस पर बनाए रहे.

आचारी को जब लगा कि पुलिस बेटे को ढूंढने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही तो उन्होंने उच्च न्यायालय की शरण ली. हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और इस केस की जांच क्राइम ब्रांच से कराने के आदेश दिए. हाईकोर्ट के आदेश पर क्राइम ब्रांच के एडीजीपी विल्सन एम. पौल ने पुलिस अधीक्षक के.जी. साइमन के नेतृत्व में एक जांच टीम बनाई. इस टीम में एसआई के. एफ. जोब, ए.बी. पोन्नयम, नंगराज आदि को शामिल किया गया.

इस के बाद क्राइम ब्रांच ने महादेवन के रहस्यमय तरीके से गायब होने की तफ्तीश शुरू की. चूंकि उस को गायब हुए कई साल बीत चुके थे, इसलिए काफी मशक्कत के बाद भी क्राइम ब्रांच को ऐसा कोई सूत्र नहीं मिल सका, जिस से पता चल सकता कि महादेवन कहां गया था?

अपने एकलौते बेटे के गम में विश्वनाथन आचारी की हालत ऐसी हो गई थी कि सन 2006 में उन्होंने दम तोड़ दिया. 54 साल की उम्र में पति के गुजर जाने के बाद विजयलक्ष्मी के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. बेटे के गम में वह पहले से ही काफी कमजोर हो गई थी. बाद में उस की भी तबीयत खराब रहने लगी और सन 2009 में उस ने भी दम तोड़ दिया.

महादेवन को गायब हुए 14 साल हो चुके थे. उस की चिंता में मांबाप चल बसे थे और जो 3 बहनें थीं, वे भी भाई के गम में अकसर रोती रहती थीं. उधर क्राइम ब्रांच के लिए यह केस एक चुनौती के रूप में था. क्राइम ब्रांच ने एक बार फिर केस की जांच महादेवन के घर से ही शुरू की.

इस बार क्राइम ब्रांच की टीम ने यह जानने की कोशिश की कि आचारी की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. फिर यह पता लगाया कि महादेवन जब साइकिल ले कर घर से निकला था तो उस के साथ कौन था.

इस बारे में टीम ने उस के दोस्तों और मोहल्ले के लोगों से भी बात की. इस पर मोहल्ले के कुछ लोगों ने बताया कि उस दिन महादेवन को हरि कुमार की साइकिल की दुकान पर देखा गया था. इस बात की पुष्टि महादेवन की दुकान पर काम करने वाले एक युवक ने भी की.

इस से क्राइम ब्रांच के शक की सुई हरि कुमार की तरफ घूम गई. हरि कुमार की मडुमूला जंक्शन के पास साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. क्राइम ब्रांच टीम ने पूछताछ के लिए हरि कुमार को बुलवा लिया. लेकिन उस ने टीम को यही बताया कि महादेवन अपनी साइकिल ठीक कराने अकसर उस की दुकान पर आता रहता था. उस दिन भी उस की साइकिल खराब हो गई थी. साइकिल ठीक करा कर वह उस के यहां से चला गया था.

पुलिस टीम को लग रहा था कि हरि कुमार सही बात नहीं बता रहा था. लिहाजा उस दिन उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. इसी बीच टीम ने हरि कुमार की लिखावट का नमूना ले लिया था. आचारी के पास फिरौती का जो लैटर आया था, वह पुलिस फाइल में लगा हुआ था. क्राइम ब्रांच ने उस पत्र की राइटिंग और हरि कुमार की राइटिंग को जांच के लिए फोरैंसिक लैबोरेटरी भेजा.

फोरैंसिक जांच में दोनों राइटिंग एक ही व्यक्ति की पाई गईं. इस से स्पष्ट हो गया कि आचारी के पास फिरौती का जो पत्र आया था, वह हरि कुमार ने ही भेजा था. इस का मतलब हरि कुमार ने ही महादेवन का अपहरण किया था. हरि कुमार के खिलाफ पक्का सुबूत मिलने पर क्राइम ब्रांच ने उसे पूछताछ के लिए फिर उठा लिया.

चूंकि टीम को अब पुख्ता सुबूत मिल चुका था, इसलिए टीम ने इस बार उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार किया कि उस ने महादेवन की हत्या कर दी थी. 19 साल पहले उस ने एक नहीं, बल्कि 2-2 हत्याएं की थीं. 2-2 हत्याएं करने का राज उस ने उगल दिया था. दूसरा कत्ल उस ने अपने एक नजदीकी दोस्त का किया था. उस दोस्त की गुमशुदगी भी आज तक रहस्यमय बनी हुई थी.

महादेवन की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह हैरान कर देने वाली थी.

विश्वनाथन ने बेटे की जिद के आगे झुक कर उसे साइकिल दिला तो दी थी, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि यही साइकिल हमेशा के लिए बेटे को उन से दूर कर देगी.

महादेवन की मुराद पूरी हो चुकी थी, इसलिए वह फूला नहीं समा रहा था. स्कूल भी वह साइकिल से ही आनेजाने लगा. इस के अलावा स्कूल से लौटने के बाद वह यार दोस्तों के साथ साइकिल चलाता था. मडुमूला जंक्शन के पास हरि कुमार की साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. जब कभी महादेवन की साइकिल खराब होती, वह हरि कुमार की दुकान पर जा कर ठीक कराता था.

महादेवन एक खातेपीते परिवार से था. वह हर समय गले में सोने की चेन पहने रहता था. जबकि हरि कुमार आर्थिक परेशानी झेल रहा था. साइकिल रिपेयरिंग की दुकान से उसे कोई खास आमदनी नहीं होती थी. 13 साल के महादेवन के गले में सोने की चेन देख कर हरि कुमार के मन में लालच आ गया. उस पर अपना विश्वास जमाने के लिए हरि कुमार उस से बड़े प्यार से बात करनी शुरू कर दी.

2 सितंबर, 1995 को स्कूल से घर लौटने के बाद महादेवन ने खाना खाया और साइकिल ले कर घर से निकल गया. ऐसा वह रोजाना करता था और 1-2 घंटे बाद लौट आता था. उस दिन घर से निकलने के बाद महादेवन की साइकिल खराब हो गई. वह साइकिल ठीक कराने हरि कुमार की दुकान पर गया. चूंकि उस समय दुकान पर कई ग्राहक पहले से बैठे थे, इसलिए हरि कुमार ने साइकिल अपने यहां खड़ी कर ली और उस से थोड़ी देर बाद आने को कहा.

कुछ देर बाद महादेवन साइकिल लेने पहुंचा तो उस समय हरि कुमार दुकान पर अकेला था. महादेवन से सोने की चेन छीनने का अच्छा मौका देख कर हरि कुमार ने उसे दुकान में बुला लिया. जैसे ही महादेवन दुकान में घुसा, हरि कुमार ने उस के गले से चेन निकालने की कोशिश की. महादेवन ने इस का विरोध किया और चीखने लगा. तभी हरि कुमार ने दुकान बंद कर दी और उस का गला दबाने लगा.

गले पर दबाव बढ़ा तो महादेवन का दम घुटने लगा. कुछ ही पलों में दम घुटने से उस बच्चे की मौत हो गई. उस की हत्या करने के बाद हरि ने उस के गले से एक तोला वजन की सोने की चेन निकाल ली.

उस का मकसद पूरा हो चुका था. अब उस के सामने समस्या लाश को ठिकाने लगाने की थी. इस के लिए उस ने अपने दोस्त कोनारी सली और साले प्रमोद को दुकान पर ही बुला लिया.

महादेवन की हत्या की बात उस ने उन्हें बता दी. तीनों ने लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. योजना के बाद उन्होंने लाश को एक बोरे में भरा और आटो में रख कर उसे कोट्टायम के निकट एक तालाब में डाल आए. लाश ठिकाने लगा कर हरि कुमार निश्चिंत हो गया. लेकिन यह उस की भूल थी.

उस के दोस्त कोनारी सली ने ही उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया. पुलिस को हत्या की बात बताने की धमकी दे कर वह उस से पैसे ऐंठने लगा. हरि कुमार उस का मुंह बंद करने के लिए उस की डिमांड पूरी करता रहा.

उसी दौरान हरि कुमार ने सवा लाख रुपए में अपनी जमीन बेची. कोनारी सली को जब यह बात पता लगी तो उस ने हरि कुमार से 50 हजार रुपए की मांग की. अब हरि कुमार उसे कोई पैसा नहीं देना चाहता था. वह जानता था कि अगर उसे पैसे देने को साफ मना कर देगा तो कोलारी पुलिस के सामने हत्या का राज खोल सकता है. इस बारे में हरि ने अपने साले प्रमोद से बात की और दोनों ने कोनारी सली से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का प्लान बना लिया.

योजना के अनुसार, हरि ने वाशपल्लि में त्यौहार के दिन शाम 7 बजे कोनारी सली को शराब पीने के लिए अपनी दुकान में बुला लिया. लालच में कोनारी सली वहां पहुंच गया. दुकान में ही तीनों ने शराब पीनी शुरू की. उसी दौरान उन्होंने कोनारी सली के पैग में साइनाइड मिला दिया. जहर मिली शराब पीने से कुछ ही देर मे कोनारी सली की मौत हो गई.

दोनों उस की लाश को बोरे में भर कर एक आटो से कोट्टायम मरयपल्लि के पास ले गए. यहां पास में ही कोनारी सली का घर था. वहीं पास में स्थित एक पानी भरे गहरे तालाब में वह बोरी डाल दी. इसी तालाब में इन्होंने महादेवन की भी लाश डाली थी. इस तालाब को लोग प्रयोग नहीं करते थे.

उस की लाश ठिकाने लगाने के बाद दोनों अपनेअपने काम में जुट गए. कोनारी सली की हत्या महादेवन की हत्या के करीब डेढ़ साल बाद की गई थी.

उधर जब कोनारी सली कई दिनों बाद भी घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों ने थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई. काफी छानबीन के बाद भी जब वह घर नहीं आया तो घर वालों ने यही सोचा कि वह बिना बताए घर छोड़ कर कहीं भाग गया है. इस के कुछ दिनों बाद हरि कुमार के साले प्रमोद की भी बाथरूम में फिसल जाने के बाद मौत हो गई. उस की मौत भी एक रहस्य बन कर रह गई.

जुर्म के दोनों राजदारों की मौत के बाद हरि कुमार बेखौफ हो गया. अब उसे किसी का कोई डर नहीं रहा.

इस पूछताछ के बाद जब लोगों को पता चला कि हरि कुमार ने न केवल महादेवन की, बल्कि अपने दोस्त कोनारी सली की भी हत्या की थी, सैकड़ों की संख्या में लोग थाने पर जमा हो गए. वे हरि कुमार को सौंप देने की मांग कर रहे थे, ताकि वे अपने हाथों से उसे सजा दे सकें. लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया.

महादेवन को खोजते खोजते उस के मांबाप गुजर चुके थे. अब उस की 3 बहनें सिंघु, स्वप्ना और स्मिता ही बची थीं. भाई की हत्या का राज खुलने के बाद वे भी थाने गईं. उन्होंने पुलिस से अनुरोध किया कि उन के घर को तबाह करने वाले हत्यारे हरि कुमार के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई की जाए.

पुलिस हत्यारे हरि कुमार को उस जगह भी ले गई थी, जहां उस ने दोनों लाशें ठिकाने लगाई थीं. चूंकि हत्याएं किए हुए 18-19 साल बीत चुके थे, जिस से वहां से लाशों से संबंधित कोई चीज नहीं मिली.

अपराधी चाहे कितना भी शातिर क्यों न हो, अगर पुलिस कोशिश करे तो अपराधी तक पहुंच ही जाती है. सुबूत खत्म करने के बाद हरि कुमार भले ही पुलिस से 19 साल तक बचता रहा, लेकिन पुलिस के हाथ उस तक पहुंच ही गए. लाख कोशिश करने के बाद भी हत्यारा पुलिस से बच नहीं सका.

क्राइम ब्रांच ने उसे गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

-आर. जयदेवान/  डा. अनुराधा पी. के.

फांसी के फंदे पर लटके नोट

सलोनी से करीब 6 किलोमीटर दूर आलबरस गांव है जो दुर्ग जिले में आता है. इस गांव में हर साल 23 दिसंबर को मड़ई मेला लगता है. यह मेला आसपास के जिलों में बहुत प्रसिद्ध है.

मेले में हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं. रुद्र नारायण को उस के दूर के जीजा पंचराम देशमुख ने मेला देखने को बुलाया तो वह अपने पिता की साइकिल उठा कर आलबरस चौक पर पहुंच गया, जहां पंचराम उस का इंतजार कर रहा था.

रुद्र को देखते ही पंचराम चहका, ‘‘तुम तो बड़े होशियार निकले, बिल्कुल समय पर आ गए.’’

साइकिल खड़ी कर रुद्र नारायण पंचराम की ओर उन्मुख हुआ, ‘‘जीजा, बचपन में मैं एक बार मेला देखने आया था. कितने साल गुजर गए, फिर दोबारा नहीं आ पाया. आज आप के कहने पर आया हूं.’’

पंचराम ने उस से पूछा, ‘‘किसी को बताया है कि सीधे चले आए हो.’’

‘‘नहीं जीजा,’’ किसी को नहीं बताया. बताता तो, पिताजी अकेले आने देते क्या? देखो न कितनी दूर से साइकिल चला कर आया हूं.’’ रुद्र के स्वर में गर्व था.

यह सुन कर पंचराम ने मन ही मन खुश होते कहा, ‘‘शाबाश, तुम ने बहुत अच्छा किया, जो घर पर किसी को नहीं बताया. तुम कोई चिंता मत करना मैं हूं ना, मैं तुम्हें मड़ाई मेला घुमाऊंगा, खिलाऊंगा…और पिलाऊंगा भी?

‘‘क्या मतलब जीजा.’’ रुद्र ने पूछा.

‘‘रुद्र, अब तुम कोई बच्चे नहीं रहे…अच्छा बताओ, तुम ने कभी शराब पी है कि नहीं.’’

‘‘एक बार पी थी दोस्तों के साथ. उस के बाद फिर कभी नहीं पी.’’ रुद्र नारायाण ने आंखें नीची कर के झिझकते हुए कहा.

‘‘तो इस में शरमाने की क्या बात है, शराब पीना तो मर्दों की निशानी है.’’ पंचराम ने उसे उत्साहित किया, तो रुद्र खिल उठा.

‘‘चलो आज मैं तुम्हें दुनिया का आनंद दिलाता हूं. पहले थोड़ा मजा लेंगे फिर मड़ई घूमेंगे. आज मेरे साथ रहने पर देखना कितना आनंद आता है.’’ पंचराम ने कहा, फिर उसे ले कर वह शराब की दुकान पर गया.

शराब और पास की एक दुकान से खाने के लिए कुछ सामान ले कर दोनों एक खेत के पास बैठ गए. वहां पर दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. पंचराम देशमुख ने रुद्र नारायण को योजनानुसार ज्यादा शराब पिला दी.

न न करते भी, सोचीसमझी साजिश के तहत, रुद्र नारायण को पंचराम शराब पिलाता रहा. अबोध रुद्र नारायण मुंह बोले जीजा की इधरउधर की बातों में डूबा शराब पी कर मदमस्त हो गया. उस पर इतना नशा चढ़ा कि वह आंखें बंद कर वहीं लेट गया.

पंचराम यही चाहता था. शराब के नशे में चूर हो चुके रुद्र को अर्ध चेतना अवस्था में लेटा छोड़ कर वह अपनी साइकिल में बंधी रस्सी खोल लाया और मौके का फायदा उठा कर उस ने रुद्र के गले में रस्सी का फंदा बना कर उस का गला घोंट दिया.

गले में फंदा कसते ही रुद्र ने आंखें खोल कर पंचराम को देखा और मौत के आगोश में समा गया.

रुद्र की हत्या करने के बाद पंचराम ऐसे खुश हुआ जैसे उस की वर्षों की साध पूरी हो गई हो. रुद्र ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उस का मुंह बोला जीजा, पंचराम देशमुख उस की उस तरह बेदर्दी से हत्या कर देगा.

पंचराम ने रुद्र नारायण के गले में पड़ी रस्सी निकाल कर जोरों से अट्टहास लगाया. उसे लग रहा था कि अब उस की मुराद पूरी हो जाएगी. अब उसे लखपति बनने से कोई नहीं रोक सकता. दरअसल उस के गुरु समान मित्र और तथाकथित तांत्रिक धनराज नेताम ने बताया था कि अगर वह फांसी की रस्सी उस के पास ले कर आएगा तो वह देखते ही देखते उसे रुपयोंपैसों से मालामाल कर देगा.

पंचराम देशमुख जिला दुर्ग के आलबरस गांव का रहने वाला था. उस ने होश संभाला तो उस के पास एक ही हुनर था वाल पेंटिंग बनाने का. यही काम कर के वह जीवनयापन करने लगा.

मगर अब पेंटर का काम कम मिलने लगा था, क्योंकि प्रिंटिंग की दुनिया में फ्लेक्स प्रिंटिंग का युग आ चुका था और लोग कम दर पर फ्लेक्स प्रिंट करवा लेते थे. आमदनी कम हाने पर उस के तंगहाली में दिन कटने लगे. परिवार पालना भी मुश्किल हो गया.

पंचराम की ससुराल बलोद जिले के गांव सलोनी में थी. एक बार जब वह अपनी ससुराल गया तो वहीं पर उस की मुलाकात धनराज नेताम से हुई, जो गांव सलोनी में बंदर भगाने के लिए तांत्रिक क्रिया करने आया था. पंचराम को किसी ने धनराज के बारे में बताया कि यह बहुत बड़ा तांत्रिक है.

उस ने बताया कि गांव में बंदरों का आतंक है, जाने कहां से इतने सारे बंदर आ गए जिन से गांव वाले परेशान हैं. कई प्रयास किए गए, मगर बंदरों से छुटकारा नहीं मिला. तब तांत्रिक धनराज को विशेष रूप से बुलाया गया है. धनराज से मिलने के बाद पंचराम बहुत खुश हुआ. चूंकि पंचराम को गांव के लोग दामाद जैसा ही सम्मान देते थे. इसलिए तांत्रिक के साथ पंचराम की भी अच्छी खातिरदारी हुई.

जब एक साथ जाम छलके तो पंचराम और तांत्रिक की दोस्ती हो गई. बातोंबातों में धनराज ने उस से कहा, ‘‘मैं ने जो तंत्र क्रिया की है, उस का कमाल देखना. इस के बाद गांव में एक भी बंदर नहीं दिखेगा.’’

यह सुन कर पंचराम आश्चर्य चकित रह गया. उस ने तंत्रमंत्र के बारे में सुना था मगर किसी तांत्रिक से मुलाकात पहली बार हुई थी. धनराज ने आगे कहा, ‘‘मैं किसी को भी लखपति बना सकता हूं.’’

‘‘कैसे?’’ यह सुन कर बरबस पंचराम ने पूछा.

‘‘मुझे बस एक फांसी की रस्सी ला दो… फिर देखो, रुपए बरसेंगे.’’ धनराज नेताम ने शराब का गिलास होंठों पर लगा कर कहा.

‘‘यह कौन सी बड़ी बात है.’’ पंचराम ने बोला, ‘‘फांसी की रस्सी तो मैं ला सकता हूं.’’

‘‘तो लाओ, फिर देखना, कैसे पत्तों की तरह आकाश से नोट बरसाऊंगा.’’

धनराज नेताम की आश्चर्य मिश्रित बातें सुन कर पंचराम देशमुख उस का मुरीद बन गया. दूसरे दिन आश्चर्यजनक घटना हुई कि गांव में धनराज द्वारा की गई तांत्रिक किया के बाद किसी को एक भी बंदर देखने को नहीं मिला. यह चमत्कार नहीं, संयोग था. मगर इस से धनराज के प्रति पंचराम देखमुख की आस्था बढ़ गई.

पंचराम उस का भक्त बन गया और लखपति बनने के लिए फांसी की रस्सी ढूंढने की कोशिश तेज कर दी. एक दिन दुर्ग जिले के अंडा थाने में तैनात एक कांस्टेबल से दूर का संबंध निकाल कर पंचराम उस के पास पहुंच गया और उस से कहा, ‘‘भैया, क्या फांसी की रस्सी मिल सकती है?’’

उस की बात सुनते ही कांस्टेबल ने चौंकते हुए कहा, ‘‘क्या करोगे तुम उस का वह भला तुम्हें कैसे मिल सकती है, वह तो जल्लाद के पास मिलेगी. और जल्लाद तुम्हें वो क्यों देगा.’’

यह सारी जानकारी मिलने पर वह निराश हो गया. पंचराम का चेहरा लटक गया तो कांस्टेबल ने पूछा ‘‘अच्छा यह तो बाताओ, फांसी की रस्सी का क्या करोगे?’’

‘‘अब तुम से क्या छिपाना. सुना है कि फांसी की रस्सी मिल जाए तो रुपए बरसते हैं.’’ पंचराम ने बताया.

यह सुन कर कांस्टेबल हंसने लगा और उसे समझाया, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. यदि ऐसा होता तो सारे जल्लाद करोड़पति होते. ये सब फालतू की बातें हैं.’’

मगर पंचराम के दिमाग से यह बात इतनी आसानी से कैसे निकल सकती थी. वह तो करोड़पति बनने के सपने देख रहा था. इसलिए वह फांसी की रस्सी की ताक में लगा रहा.

जब चारों तरफ निराशा मिली तो एक दिन उस की निगाह रुद्र नारायण पर पड़ी. 15 वर्षीय रुद्र नारायण उस की ससुराल वाले गांव सलोनी में रहता था. वह उसे  जीजा कहता था. पंचराम सोचने लगा कि क्यों न उसे मार कर फांसी की रस्सी तैयार कर ले.

उस ने तांत्रिक धनराज नेताम को इस बारे में बताया तो उस ने स्वीकृति देते हुए कहा, ‘‘चलेगा, बस रस्सी फांसी की हो.’’ इस के बाद पंचराम ने पिलेश्वर देखमुख के घर आनाजाना बढ़ा दिया.

पंचराम गांव वालों की निगाह में दामाद बाबू था, पिलेश्वर देशमुख उस का सम्मान करता और अपने दुखसुख की बातें साझा करता था. इसी का फायदा उठा कर पंचराम ने 23 दिसंबर, 2019 को योजनानुसार रुद्र को मड़ई मेला घुमाने के लिए बुलाया और मौका देख कर उस के गले में रस्सी का फंदा डाल उस की हत्या कर दी.

फिर उसी दिन शाम को वह घटनास्थल पर दोबारा पहुंचा और उस की लाश के ऊपर केरोसिन डाल कर, आग लगा दी.

29 दिसंबर, 2019 शनिवार को दोपहर दुर्ग जिले के थाना अंडा के टीआई राजेश झा को किसी ने फोन कर के सूचना दी कि गांव आलबरस के पास एक खेत में लाश पड़ी है.

लाश मिलने की सूचना पा कर राजेश झा चौंके, क्योंकि साल के अंतिम दिन चल रहे थे और क्षेत्र में यह वारदात हो गई थी. खबर मिलते ही वह एक एसआई और 2 कांस्टेबलों को साथ ले कर मौके की तरफ रवाना हो गए.

साल के अंतिम महीने और अंतिम दिनों में पुलिस विभाग सारे पेंडिंग पड़े प्रकरणों का निवारण करता है, जिस की वजह से काफी व्यस्तता रहती है. व्यस्तता अंडा थाने में भी थी, मगर टीआई काम छोड़ कर तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. उन्होंने घटना स्थल का सूक्ष्मता से अवलोकन किया.

अधजली लाश के पास शराब की खाली 3 बोतलें, गिलास मिले, नीले रंग की टीशर्ट का एक जला हुआ टुकड़ा, बेल्ट और जूते भी पड़े मिले. लाश किसी बालक की थी. घटनास्थल पर मौजूद कोई भी ग्रामीण उस लाश की शिनाख्त नहीं कर सका था.

मामला संगीन दिखाई पड़ रहा था. उन्हें लग रहा था कि जरूर किसी ने बालक के साथ अनाचार किया होगा और उसे जला कर साक्ष्य छिपाने की कोशिश की है. टीआई ने उच्च अधिकारियों एएसपी (ग्रामीण) लखन पटले व एसएसपी अजय कुमार यादव को घटना की जानकारी दे दी. उच्च अधिकारियों के निर्देश पर टीआई ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

हत्या का केस दर्ज होते ही टीआई राजेश झा ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने अपने जिले के सभी थानों के अलावा सीमावर्ती जिला बालोद के थानों में भी अज्ञात बालक की लाश मिलने की सूचना भेज कर और जानना चाहा कि उन के क्षेत्र से इस आयु वर्ग का कोई बालक लापता तो नहीं है.

टीआई झा को बालोद जिले के अर्जुंदा थाने से खबर मिली कि 26 दिसंबर, 2019 को एक 15 साल के किशोर रुद्र नारायण देशमुख के लापता होने की सूचना वहां थाने में दर्ज है. पता चला कि रुद्र 23 दिसंबर को अपने गांव सलानी से कहीं गया था. गुमशुदगी की सूचना रुद्र के पिता ने दर्ज कराई थी.

टीआई राजेश झा ने रुद्र के पिता पिलेश्वर व परिजनों को अंडा थाने बुलवाया और घटनास्थल पर मिली बेल्ट, टीशर्ट का टुकड़ा आदि दिखाया. उन चीजों को देखते ही पिलेश्वर देशमुख फफक कर रो पड़ा. वह बोला, ‘‘साहब, यह मेरे बेटे रुद्र की टीशर्ट का ही टुकड़ा है, बेल्ट भी उसी की है. मुझे बच्चे की लाश दिखाई जाए.’’

टीआई ने एक एसआई के साथ पिलेश्वर व परिजनों को हास्पिटल भेजा जहां की मोर्चरी में रुद्र की लाश रखी थी. पिलेश्वर और उस के साथ आए लोगों ने लाश की शिनाख्त रुद्र नारायण देशमुख के रूप में की. इस के बाद लाश का पोस्टमार्टम कराया गया.

डाक्टरों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि रुद्र की हत्या रस्सी के फंदे से गला घोट कर की गई थी. गले पर रस्सी के रेशे भी पाए गए. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से साफ हो चुका था कि किसी ने रुद्र की हत्या गला घोट कर की और बाद में जला दी. मगर यह हत्या क्यों की गई? पुलिस के सामने यह एक बड़ा सवाल था.

टीआई राजेश झा ने मृतक के पिता पिलेश्वर जो कि एक किसान है से पूछा कि क्या आप की किसी से कोई दुश्मनी वगैरह तो नहीं है. या किसी पर कोई शक है, जो रुद्र की हत्या कर सकता है?

इस पर पिलेश्वर ने बताया कि उस की किसी से रंजिश नहीं है. साथ ही उस ने यह भी बताया कि रुद्र का दूर के जीजा पंचराम देशमुख से बहुत लगाव था. वह उस से काफीकाफी देर तक फोन पर भी बातें करता था. कल पंचराम का हमारे पास फोन आया था, वह पूछ रहा था कि क्या कोई आरोपी पकड़ा गया है? पुलिस इस केस में अब क्या कर रही है?

पिलेश्वर के मुंह से यह सुनते ही टीआई राजेश झा का ध्यान पंचराम की तरफ केंद्रित हो गया. उन्होंने पंचराम के बारे में पिलेश्वर से सारी जानकारी ली और पंचराम को फोन किया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था.

तब पुलिस टीम के साथ वह आलबरस गांव स्थित उस के घर पहुंच गए. लेकिन वह घर से गायब था. उस की पत्नी ने बताया कि वह तो 24 दिसंबर से घर नहीं आए हैं.

अब टीआई राजेश झा को इस मामले में अपराध की बू आती दिखने लगी. उन्होंने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. उस की लोकेशन धमतरी जिले के किसी गांव की मिली.

उन्होंने आरक्षक वीरनारायण, राजकुमार चंद्रा, डी. राव, अलाउद्दीन और राजकुमार दिवाकर की टीम को पंचराम की गिरफ्तारी के लिए भेजा. यह टीम 6 घंटों का सफर कर के धमतरी जिले के गांव गुटकेल पहुंची. यह टीम फोन के टावर की मदद से तांत्रिक धनराज के घर पहुंच गई. वहां पुलिस टीम को पता चला कि धनराज और पंचराम जंगल में चूहा मारने गए हुए हैं.

पुलिस टीम जाल बिछा कर पंचराम का इंतजार करने लगी. 31 दिसंबर, 2019 को जब पंचराम व धनराज जंगल से 2 बड़े चूहे पकड़ कर घर लौटे तभी पुलिस ने उन्हें दबोच लिया और हिरासत में ले कर अंडा थाने ले आई. दोनों से पूछताछ की गई तो पंचराम ने स्वीकार कर लिया कि रस्सी से गला घोट कर उस ने ही रुद्र की हत्या की थी.

उस ने बताया कि वह लखपति बनना चाहता था, तांत्रिक धनराज ने उसे बताया था कि फांसी की रस्सी, नारियल, सिंदूर ला दे तो एक सप्ताह में वह हवा में पत्तों की तरह नोटों की वर्षा कर सकता है, इसीलिए उस ने रस्सी से गला घोंट कर रुद्र की हत्या की थी.

पुलिस ने आरोपी पंचराम देशमुख और तथाकथित तांत्रिक धनराज नेताम के इकबालिया बयान दर्ज कर के उन्हें भादंवि की धारा 302, 120 बी, 34 के तहत गिरफ्तार कर प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रैट श्रीमती प्रतीक्षा शर्मा के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ड्रग माफिया की कठपुतली बनी शिवानी की कहानी

मध्य प्रदेश का शिवपुरी जिला कभी डकैतों की पनाहगाह हुआ करता था, जो ग्वालियर, भिंड और मुरैना जिलों से घिरा हुआ है. लेकिन अब वही शिवपुरी बदनाम है देह व्यापार और ड्रग्स के कारोबार के लिए. उड़ता पंजाब की तर्ज पर शिवपुरी को लोग उड़ता शिवपुरी कहने लगे हैं, क्योंकि यहां के गांव देहातों तक में जिस्म के बाद जो चीज आसानी से जरूरतमंदों के लिए मिल जाती है, वह है ड्रग.

17 वर्षीय शिवानी शर्मा बेइंतहा खूबसूरत लड़की थी, जिस पर नजर डालने के बाद लोग पलक झपकाना भूल जाते थे. भरेपूरे और गदराए जिस्म की मालकिन इस युवती की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. जब वह बहुत छोटी थी, तब उस के पिता का निधन हो गया था. विधवा हो जाने के बाद उस की युवा मां को समझ आ गया था कि एक नन्ही बच्ची के साथ स्वाभिमान और और सम्मानपूर्वक तरीके से रह पाना किसी भी लिहाज से मुमकिन नहीं है.

फिर एक दिन वह अपने जिगर के टुकड़े को सास की गोदी में डाल कर चली गई. कहां गई, इस का ठीकठाक पता किसी को नहीं, लेकिन कुछ दिन बाद उड़ती उड़ती खबर यह आई कि उस ने दूसरी शादी कर ली है.

इस तरह शिवानी अपनी दादी लक्ष्मीबाई की गोद में पलीबढ़ी, जिन के पास नाम के मुताबिक लक्ष्मी कहने भर को भी नहीं थी. क्योंकि अपनी और नन्ही पोती की गुजर के लिए उन्हें दूसरों के घरों में काम करना पड़ता था, तब कहीं जा कर दो वक्त की रोटी नसीब होती थी.

अभावों में पलती शिवानी बड़ी होती गई, लेकिन इन 17 सालों में जो कई बातें उसे समझ आई थीं, उन में अहम यह थी कि गरीबी दुनिया का सब से बड़ा अभिशाप है. लक्ष्मीबाई ने अपनी तरफ से उस की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी थी. उस ने शिवानी को शिवपुरी के सरस्वती स्कूल में दाखिला दिला दिया था. पढ़ाई में औसत रही शिवानी को यह भी समझ आ गया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, उस की दरिद्रता दूर नहीं होने वाली है.

अपने मांबाप की कहानी उस ने दादी और कुछ रिश्तेदारों के मुंह से सुनी थी, जो कभीकभार दिखावे के लिए आ जाते थे. नहीं तो किसी को न तो उन से मतलब था और न ही फुरसत थी. बड़ी होती शिवानी को कभी किसी ने अपनी बाहों में झुला कर अपनी प्रिंसेस बिटिया या नन्ही परी नहीं कहा था. वह तो बस हैरानी से अपने आसपास की दुनिया देखते हुए बड़ी होती गई थी.

बूढ़ी दादी की आंखों से शिवानी की मनोदशा छिपी नहीं थी, लेकिन इस के बाद भी उन्हें उम्मीद थी कि पोती सुंदर है, एक न एक दिन उस के भी दिन फिरेंगे और कोई अच्छे खाते पीते घर का लड़का उसे ब्याह कर ले जाएगा.

ड्रग्स से कर ली सगाई

ऐसा कुछ हुआ नहीं, उलटे लक्ष्मीबाई कुछ महीनों पहले उस वक्त सन्न रह गई, जब उन्हें यह अहसास हुआ कि शिवानी ड्रग्स का नशा करने लगी है. उन्हें अपने सपने टूटते नजर आए. लेकिन इस के आगे क्याक्या होना है, इस का अंदाजा वे नहीं लगा पाईं और अगर लगा भी लिया होगा तो बेबसी के चलते कसमसा कर रह जातीं.

दरअसल, ड्रग्स तो शिवानी कई दिनों से ले रही थी लेकिन लत उसे अभीअभी लगी थी और इस तरह लगी थी कि स्मैक की एक पुडि़या के लिए वह अपना जिस्म तक परोसने के लिए तैयार रहने लगी थी.

हकीकत यह थी कि जवानी की सीढि़यों पर पहला कदम रखते ही शिवानी एक ऐसे गिरोह के चक्कर में फंस गई थी, जो षडयंत्रपूर्वक उन लड़कियों को फंसाता था, जिन पर कोई पारिवारिक नियंत्रण नहीं होता था. शिवानी इस काम के लिए ड्रग माफिया को बहुत सौफ्ट टारगेट लगी थी.

कुछ दिन पहले ही शिवानी के यहां एक युवक का आनाजाना शुरू हुआ था, जिस का नाम चिक्की पाठक था. ब्राह्मण होने के नाते दादी ने चिक्की के आनेजाने को असहज ढंग से नहीं लिया. दादी के पास बैठ कर उन से घंटों बतियाने वाला चिक्की असल में मोहरा था, जिसे शिवानी को फंसाने के लिए भेजा गया था.

उम्मीद के मुताबिक शिवानी जल्द ही चिक्की के प्रेमजाल में फंस गई. फिर वह उस के साथ बाहर घूमने फिरने जाने लगी. आने वाली जिंदगी को ले कर वह सुनहरे सपने देखने लगी. चिक्की भी उस के सपनों को हवा देता रहा.

धीरेधीरे चिक्की उसे अपनी 2 परिचितों जूली भार्गव और रूबी जाटव के यहां ले जाने लगा. इन दोनों के घर और आजाद जिंदगी देख कर शिवानी भी ऐसी ही जिंदगी के ख्वाब देखने लगी, जिस में उस का अपना घर है, चिक्की है और रोमांस ही रोमांस है.

भोलीभाली शिवानी तब इन सब की हकीकत नहीं जानती थी. जब भी वह चिक्की के साथ इन के यहां जाती थी तो जूली और रूबी उन दोनों को एकांत में छोड़ देती थीं. आग और बारूद आमने सामने होंगे तो वर्जनाएं टूटने में देर नहीं लगती. यही शिवानी के साथ हुआ. धीरेधीरे ही सही, चिक्की ने कब उसे पूरी तरह अपना बना लिया, इस का उसे अहसास ही नहीं हुआ.

कच्चे उम्र की शिवानी ज्यादा दिनों तक खुद को रोके नहीं रख पाई और एक दिन पूरी तरह चिक्की की हो गई. फिर यह सुख रोजरोज नएनए तरीके से उसे मिलने लगा तो वह इसकी आदी हो गई. शिवानी नाम की अनछुई कली देखते ही देखते खिला हुआ फूल बन गई.

सेक्स की लत के बाद चरणबद्ध तरीके से चिक्की, रूबी और जूली ने उसे शराब और सिगरेट पिलानी शुरू कर दी. शिवानी ने महसूस किया कि ये दोनों चीजें न केवल रोमांस और सैक्स का बल्कि जिंदगी का भी असली लुत्फ देती हैं. लिहाजा वह बेहिचक शराब पीने लगी.

घर में कोई उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था और जो बूढ़ी दादी थीं, शिवानी के लिए उन के वहां होने न होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता था. वह तो एक ऐसी दुनिया में जा पहुंची थी, जहां प्यार, रोमांस और सैक्स के अलावा कुछ नहीं होता था.

इसी दौरान चिक्की ने उस का परिचय अपने और दोस्तों यानी गिरोह के सदस्यों रजक, विकास, गोलू और परमार से भी करवा दिया था. ये चारों भी उसे रूबी और जूली की तरह भले लगे. फिर एक दिन उसे दुनिया के सब से हसीन नशे स्मैक की खुराक दी गई.

शिवानी को लगा कि यह नशा बड़ा अद्भुत है, जिसे ले कर आदमी अपने सारे रंजोगम और परेशानियां भूल जाता है. एक ऐसा नशा जिस की तलब उतरने के बाद से ही लगने लगती है.

धीरेधीरे ग्रुप बना कर ये सभी लोग यह नशा करने लगे, जिस में कोई बंदिश नहीं थी. थी तो सिर्फ एक ऐसी आजादी जो हर युवा का सपना होती है. एक बार इन ड्रग्स की लत शिवानी को लगी तो फिर उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उस ने बूढ़ी दादी के बारे में भी कुछ नहीं सोचा, जिस ने अपना बुढ़ापा जला कर उसे बड़ा किया था.

आ गई देह व्यापार में ऐसा नहीं कि अनुभवी लक्ष्मीबाई को कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन शिवानी की हालत अब उस उफनती बरसाती नदी की तरह हो गई थी, जिसे बांधे रखने में कम से कम कोई जर्जर बांध तो कतई कामयाब नहीं होता.

जवान बेटे को खो चुकी लक्ष्मीबाई अब जवान होती पोती का हाल देख रही थीं. लेकिन कुछ कर पाने में असमर्थ थीं, क्योंकि बेटे की तरह वह उस की अमानत को नहीं खोना चाहती थीं.

जिस मकसद से शिवानी को चिक्की ने फंसाया था वह पूरा हो चुका था. बिना ड्रग्स के अब वह एक दिन भी नहीं रह पाती थी और तलब लगने पर खुद उस के या दूसरे साथियों की तरफ खिंची चली आती थी.

यह सब इतने जल्दीजल्दी और सुनियोजित तरीके से हुआ था कि शिवानी को कुछ सोचनेसमझने का मौका ही नहीं मिला था और कभी मिला भी होगा तो उसे यह भी समझ आ गया होगा कि अब कुछ नहीं हो सकता.

जो एक बार ड्रग्स के नशे की राह पर चल पड़ता है, वह चाह कर भी वापस नहीं लौट सकता. यही हाल शिवानी का था. फिर एक दिन उसे बताया गया कि जिस मौजमस्ती की लत उसे पड़ चुकी है, वह मुफ्त नहीं मिलती है, इस के लिए दाम भी चुकाना पड़ता है.

दाम चुकाने के लिए शिवानी के पास फूटा धेला भी नहीं था, लेकिन इन्हीं लोगों ने उसे बताया कि उस के पास जो है, वह करोड़ोंअरबों का है. अगर वह चाहे तो दौलत पैरों में लोटने लगेगी.

चूंकि चिक्की को इस पर कोई ऐतराज नहीं था, इसलिए मजबूरी की मारी शिवानी देहव्यापार के लिए भी तैयार हो गई. और सचमुच शिवानी की देह पैसा उगलने लगी. वह अब पूरी तरह कालगर्ल बन चुकी थी, जो पैसों की जरूरत पूरी करने के लिए हर उस शख्स यानी ग्राहक का बिस्तर गर्म करने को तैयार रहती थी, जिस के पास उस के गिरोह के सदस्य ले जाते थे.

देखते ही देखते शिवानी के रंगढंग बदल गए. वह महंगी ड्रेस पहनने लगी. हाथ में 30 हजार रुपए का मोबाइल आ गया और सब से बड़ी बात ड्रग्स के लिए पैसों का जुगाड़ सहूलियत से होने लगा. इस धंधे में पूरी तरह उतरने के बाद उसे पता चला कि कई पुलिस वाले भी इस गिरोह के साथ हैं, जिन में से वह कुछ का बिस्तर गर्म भी कर चुकी थी.

अब शिवानी की जिंदगी में कुछ नहीं रह गया था. वह अपनी जवानी कैश करा रही थी तो सिर्फ नशे की खुराक के लिए, जिस के बगैर उस का दिमाग सनसनाने लगता था, शरीर सुन्न पड़ने लगता था. घबराहट और उलटियां भी होने लगती थीं. अब तो वह कई कई दिन बाहर रहने लगी थी.

फिर एक दिन… देवानंद अभिनीत और निर्देशित 70 के दशक की चर्चित और हिट फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ की जीनत अमान बन चुकी शिवानी ने अपने रोल से समझौता कर लिया था कि वह सिर्फ नशे और मौजमस्ती के लिए पैदा हुई है, इस से आगे दुनिया में कोई सच नहीं है.

यह और बात है कि फिल्म की तरह उस का कोई भाई उसे गिरोह और नशे की दलदल से वापस निकालने नहीं आया क्योंकि यह हकीकत थी, फिल्म नहीं.

पूरी तरह गिरोह का हिस्सा बन जाने के बाद औरों की तरह शिवानी को भी पता नहीं चल पाया कि आखिरकार इस का कर्ताधर्ता कौन है. वह तो एक ऐसी कठपुतली बन गई थी, जो चिक्की के इशारों पर नाचती थी. उस के लिए सुकून देने वाली इकलौती बात यही थी कि चिक्की अब भी उसे चाहता था और शादी करने को भी तैयार था.

खुद फंसने के बाद उसे यह जरूर समझ आ गया था कि ये लोग कितनी चालाकी से शिकार चुनते हैं, फिर उसे फांसते हैं और उस से पैसा कमाते हैं. नशे की दुनिया के कारोबार के इस गोरखधंधे का उद्गम स्थल कहां है, यह भी उसे नहीं मालूम था और यह सब जानने की जरूरत या इजाजत उसे भी नहीं थी. उस की दुनिया तो एक खुराक में सिमट कर रह गई थी.

चिक्की खुद भी नशेड़ी था और एक बार इलाज के लिए उसे ग्वालियर के नशा मुक्ति केंद्र भी भेजा गया था, लेकिन वहां से वह भाग आया था और फिर नशे की दुनिया का हिस्सा बन गया था.

उस के पिता धर्मेंद्र पाठक शिवपुरी की जानीमानी शख्सियत हैं. जूली के बारे में उसे पता चला था कि जूली अपने पति को छोड़ चुकी है और रूबी हालांकि अपने परिवार के साथ रहती है, लेकिन यह रहना ठीक वैसा ही है, जैसा उस का दादी के साथ रहना.

इसी दौरान शिवानी को यह भी पता चला था कि ड्रग्स शिवपुरी की गलीगली में मिलती है और कई जगह तो बाकायदा इन की किट बिकती है, जिन में नशे के इंजेक्शन के साथ सीरींज वगैरह भी होती है. यह और ऐसे कई गिरोह खासतौर से युवाओं को कैसे फांसते हैं, इस की बेहतर मिसाल तो वह खुद ही थी.

पुलिस से की शिकायत लक्ष्मीबाई की बूढ़ी आंखों से अब कुछ छिपा नहीं रह गया था. वह रूबी, जूली, चिक्की और गिरोह के बारे में काफी कुछ जान चुकी थीं कि इन्होंने ही उन की पोती को फंसा कर उस की जिंदगी नर्क बना दी है.

लिहाजा वह अपनी एक नजदीकी रिश्तेदार को ले कर एक दिन थाने जा पहुंचीं और फरियाद लगाई, जिस की कोई सुनवाई नहीं हुई तो उन्हें समझ आ गया कि इस गिरोह में पुलिस वाले भी शामिल हैं.

इधर ‘दम मारो दम मिट जाए गम…’ गाने की धुन पर झूमती शिवानी बीती 5 जुलाई को घर आई तो दादी को लगा कि वह रुकेगी, लेकिन शिवानी अपना आधार कार्ड और कुछ कपड़े ले कर वापस चली गई. तब उस के साथ जूली और रूबी के अलावा एक पुलिस वाला भी था. वह बेबसी से पोती को जाते देखती रहीं.

5 जुलाई, 2019 को कोई खास बात थी, जो शिवानी खूब सजीसंवरी थी. शाम होने तक वह नशे की 2 खुराक ले चुकी थी. दरअसल इस गिरोह के हाथ एक डील के तहत बड़ी रकम हाथ लगने वाली थी, जिस के लिए शिवानी को कई सफेदपोश लोगों को खुश करना था. शिवानी कहीं बीच में कुछ ऐसावैसा न बोल दे, इसलिए उसे तीसरी खुराक भी दे दी गई थी.

रंगीन रात परवान चढ़ पाती, इस के पहले ही ड्रग्स के ओवरडोज के चलते शिवानी की हालत बिगड़ने लगी तो बाकी लोग घबरा उठे. उन्होंने पहले तो उस के चेहरे पर पानी के छींटे मार कर उसे होश में लाने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुए तो उन्हें लगा कि शिवानी का बचना अब मुश्किल है.

6 जुलाई, 2019 की सुबह जब शिवपुरी की कृष्णापुरम कालोनी में लोग बाहर आए तो यह देख सन्न रह गए कि नामी कारोबारी जगदीश मंगल के चबूतरे पर एक जवान लड़की पड़ी है. लड़की ने जींस और गुलाबी रंग का टौप पहन रखा था. उस का एक हाथ चबूतरे के नीचे हवा में झूल रहा था और मुंह से झाग निकल रहा था.

साफ समझ आ रहा था कि वह युवती जिंदा नहीं, बल्कि लाश है. जमा भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर पुलिस को खबर कर दी तो सिटी कोतवाली के टीआई बादाम सिंह यादव टीम सहित घटनास्थल पर जा पहुंचे. आग की तरह युवती की संदिग्ध मौत की खबर शहर भर में फैली तो कुछ ही देर में एएसपी गजेंद्र सिंह कंवर भी पहुंच गए.

सामने आई सच्चाई इसी बीच भीड़ में से ही किसी ने युवती की शिनाख्त भी कर दी कि वह नवाब साहब रोड  पर रहने वाली शिवानी शर्मा है. इस के बाद पुलिस को कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि जिस चबूतरे पर लाश पड़ी थी, उस घर में सीसीटीवी कैमरे लगे थे.

इन कैमरों की रिकौर्डिंग देख पता चला कि पिछली रात कोई डेढ़ बजे एक आटोरिक्शा जगदीश मंगल के घर के सामने रुका था. थोड़ी देर खड़ा रहने के बाद उस में से एकएक कर 4 युवक उतरे और इधरउधर देखने के बाद उन्होंने आटोरिक्शा की पिछली सीट के पायदान से एक युवती को बाहर निकाल कर चबूतरे पर लिटा दिया और वापस चले गए.

इधर जैसे ही लक्ष्मीबाई को पोती की मौत की खबर लगी तो उन का रोरो कर बुरा हाल हो गया. हुआ वही, जिस का उन्हें अंदेशा था. रोरो कर उन्होंने पुलिस को बताया कि पिछले कुछ दिनों से शिवानी नशेडि़यों की संगत में पड़ गई थी. वह कुछ ऐसी लड़कियों के चंगुल में फंसी थी, जो ड्रग्स का कारोबार करती थीं. उन्होंने जूली उर्फ अपर्णा भार्गव और रूबी जाटव के नाम भी बताए.

लक्ष्मीबाई ने यह भी बताया कि शिवानी का प्रेम प्रसंग चिक्की पाठक से चल रहा था और दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन चिक्की के घर वाले इस के लिए राजी नहीं थे. इस के बाद भी दोनों ने छिप कर शादी कर ली थी. शिवानी पहली जुलाई को ही घर छोड़ कर चली गई थी और 5 जुलाई को थोड़ी देर के लिए घर आई थी. उन्होंने आरोप लगाया कि शिवानी की हत्या इन्हीं लोगों ने की है.

चूंकि सीसीटीवी से सच बाहर आ चुका था, इसलिए पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 302, 201, 120बी और 34 का मामला दर्ज कर आरोपियों की धरपकड़ शुरू कर दी. इसी बीच पुलिस को एक मुखबिर ने खबर दी कि आरोपी शिवपुरी से भागने की फिराक में हैं और फतेहपुर रोड पर पुलिया के पास खड़े हैं.

मुखबिर की सूचना पर तुरंत दबिश दे कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. विकास सोनी, परमार सिंह, रूबी जाटव, गोलू रजक और जूली ने बताया कि शिवानी की मौत नशे के ओवरडोज के चलते हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी इस की पुष्टि हुई.

इस कांड से शिवपुरी में फैलते नशे और देह व्यापार के कारोबार की जम कर चर्चा हुई. कुछ पुलिस वालों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई, जिन्हें सस्पेंड कर दिया गया. चिक्की फरार हो चुका था, लेकिन 11 जुलाई, 2019 को एक पैट्रोल पंप के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

इस तरह शिवानी की जिंदगी और कहानी दोनों खत्म हुए, लेकिन एक सबक छोड़ गई कि लोग अपने बच्चों को नशे के इन सौदागारों से बचा कर रखें, नहीं तो उन का अंजाम भी शिवानी जैसा हो सकता है.  तमाम हंगामों के बाद भी पुलिस इस गिरोह के सरगनाओं के गिरेहबानों तक नहीं पहुंच पाई तो साफ दिख रहा है कि प्यादे फंसे हैं वजीर और बादशाह तो बेखौफ और बदस्तूर अपने धंधे में लगे हैं और नए शिकार ढूंढ रहे हैं.

शिकार के आरोप में गोल्फर ज्योति रंधावा

सन 2018 वन्यजीवों और वन्यजीव अभयारण्यों के लिए खतरे के रूप में सामने आया. न तो जंगल सुरक्षित रहे  और न ही जंगली जानवर. पूरे साल दोनों पर संकट मंडराता रहा.

वन्यजीवों और वनों की सुरक्षा के लिए पूरे देश में राज्यों के जंगलात महकमों में लाखों कर्मचारियों की फौज है. हर साल तरहतरह की योजनाओं के नाम पर करोड़ों अरबों रुपए खर्च किए जाते हैं, फिर भी वन्यजीव महफूज नहीं हैं. वन्यजीव अभयारण्यों में शिकार की घटनाएं बढ़ रही हैं. वन्यजीवों की प्राकृतिक और अप्राकृतिक मौत के आंकड़ों में हर साल बढ़ोत्तरी हो रही है, लेकिन राज्य सरकारें और केंद्र सरकार ऐसी घटनाओं को नहीं रोक पा रही हैं.

देश के तमाम वन्यजीव अभयारण्यों पर शिकारियों की नजरें टिकी रहती हैं. मांसाहारी लोग अपने स्वाद के लिए वन्यजीवों का शिकार करते हैं, जबकि प्रोफेशनल शिकारी वन्यजीवों के अंगों की तस्करी के लिए काम करते हैं. वन्यजीवों के विभिन्न अंगों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगे दाम मिलते हैं.

वन्यजीव अंगों के सब से बड़े खरीदार चीन ने पिछले साल बाहर से वन्यजीव अंग मंगाने से रोक हटा दी थी. नतीजतन भारत और अन्य देशों में शिकार की घटनाएं तेजी से बढ़ गईं. बाद में अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण चीन ने फिर से वन्यजीव अंगों पर रोक लगा दी.

शेर, बाघों और तेंदुओं पर छाया संकट

पिछले साल गुजरात के गिर अभयारण्य में 25 से ज्यादा एशियाई शेरों की मौत सब से ज्यादा चर्चा का विषय रही. गिर के शेरों पर अभी खतरा टला नहीं है. दूसरी ओर राजस्थान के सरिस्का अभयारण्य में भी बाघों पर संकट मंडरा रहा है. सन 2004 में शिकारियों ने सरिस्का अभयारण्य में बाघों का पूरी तरह सफाया कर दिया था. वह भी इस तरह कि सरिस्का में एक भी बाघ नहीं बचा.

आज भी हालात वैसे ही बने हुए हैं. पिछले साल सरिस्का में 3 बाघों की मौत हो गई. इन में 2 बाघों का शिकार किया गया था. मध्य प्रदेश में भी बाघों के शिकार के कई मामले सामने आए. महाराष्ट्र में अवनि बाघिन की विवादास्पद मौत ने भारत ही नहीं दुनिया भर के वन्यजीव पे्रमियों को सकते में डाल दिया था.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 में 12 दिसंबर तक देश भर में 50 बाघों की मौत हुई. इन में सब से ज्यादा 13 बाघ मध्य प्रदेश में और 10 बाघ कर्नाटक में मारे गए. पिछले साल अक्तूबर तक लेपर्ड के शिकार के 66 मामले सामने आए. इस से पहले 2015 से 17 तक 194 लेपर्ड का शिकार किया गया.

बीते साल 15 नवंबर तक 51 हाथियों की अप्राकृतिक मौत हुई. इन में शिकार, ट्रेन, हादसे और बिजली के करंट से हुई मौतें शामिल हैं. देश में 10 साल में शिकारियों ने 384 बाघों को मार डाला. इस दौरान 961 शिकारियों को पकड़ा जा सका.

भारत में वैसे तो 50 टाइगर रिजर्व हैं, लेकिन इन में खासतौर से उत्तर भारत में राजस्थान के रणथंभौर व सरिस्का, उत्तर प्रदेश का दुधवा, उत्तराखंड का कार्बेट, मध्य प्रदेश का पन्ना, कान्हा व बांधवगढ़, झारखंड का पलामू, छत्तीसगढ़ का इंद्रावती और बिहार का वाल्मिकी बाघ अभयारण्य प्रमुख हैं.

इन अभयारण्यों में खासतौर से सर्दियों के मौसम में शिकार की सब से ज्यादा घटनाएं होती हैं. इस दौरान वन विभाग के कर्मचारी और अधिकारी शिकारियों पर नजर रखने के लिए ज्यादा सतर्कता बरतते हैं. इस के बावजूद शिकारी कभी वन्यजीवों को मारने में कामयाब हो जाते हैं तो कभी नहीं हो पाते.

दिसंबर 2018 की 26 तारीख को सर्द दिन था. सूरज निकल आया था, लेकिन धूप अभी धरती तक नहीं पहुंची थी. हलके बादल छाए होने से मौसम भी साफ नहीं था. पिछले कई दिनों से पारा लगातार नीचे जाने से कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी.

मौसम के मद्देनजर भारतनेपाल सीमा से सटे दुधवा टाइगर रिजर्व के अधिकारी चौकस थे. दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर रमेश पांडेय के निर्देशन में कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग में वन अधिकारियों और कर्मचारियों की ओर से शिकारियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा था.

सुबह करीब 7 बजे वनकर्मियों को वायरलैस पर सूचना मिली कि जंगल में एक कार देखी गई है. कार में शिकारी हो सकते हैं. शिकारियों की सूचना पर वन विभाग के कर्मचारियों और स्पैशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स के जवान उस कार की तलाश में जुट गए.

वनकर्मियों ने करीब आधे घंटे बाद ही मोतीपुर रेंज की खपरा वन चौकी के पास कंपार्टमेंट 5 और 6 के बीच एक महंगी कार को जंगल से गुजरते देखा. वनकर्मियों ने घेराबंदी कर इस कार को रोक लिया. कार उस में 2 लोग सवार थे. वनकर्मियों ने पूछताछ की तो उन्होंने जंगल भ्रमण करने की बात कही.

वन कर्मचारी कार में सवार दोनों लोगों के जवाब से संतुष्ट नहीं हुए. कार की तलाशी ली गई तो उस में विदेशी राइफल, 80 जिंदा कारतूस, मैगजीन, नाइट विजन दूरबीन के अलावा सांभर की 2 खालें, मृत जंगली मुर्गा आदि चीजें बरामद हुईं.

वनकर्मियों ने कार में सवार दोनों लोगों के नामपते पूछे. इन में से एक ने अपना नाम ज्योति रंधावा और दूसरे ने महेश विराजदार बताया. संदिग्ध कार में शिकारी पकड़े जाने की सूचना पर मोतीपुर रेंज के डीएफओ जी.पी. सिंह और उन की टीम मौके पर पहुंच गई.

डीएफओ ने हथियारों और शिकार के साथ पकड़े गए ज्योति रंधावा और महेश विराजदार से पूछताछ की. ज्योति ने कार में मिली खालें सूअर की बताईं लेकिन वन अधिकारियों की नजर में वे सांभर की खालें थीं. कार में मिली विदेशी राइफल लाइसेंसी निकली.

वनकर्मियों ने आवश्यक पूछताछ के बाद ज्योति और महेश को संरक्षित वनक्षेत्र में वन्यजीवों का शिकार करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. दोनों के खिलाफ भारतीय वन अधिनियम की धारा 26, 52 व 64 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धार 9, 27, 29, 31, 32, 38, 44, 49 व 51 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया.

जिन्हें शिकारी समझा निकले ख्यातनाम गोल्फर

वन विभाग के अधिकारियों ने शिकार के दोनों आरोपियों को उसी दिन अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में बहराइच जिला कारागार भेज दिया. दूसरी ओर, वन विभाग के अधिकारियों ने कार से बरामद उन खालों को जांच के लिए नैशनल वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून भेज दिया, जो आरोपियों ने सूअर की बताई थीं, लेकिन दिखाई सांभर की दे रही थीं.

वन अधिकारियों द्वारा की गई पूछताछ में पता चला था कि ज्योति रंधावा अंतरराष्ट्रीय स्तर के नामी गोल्फर और नैशनल शूटर हैं. उन्होंने अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह से शादी की थी लेकिन दोनों का विवाह ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया था.

ज्योति रंधावा के पिता रणधीर सिंह रंधावा का उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में नानपारा-लखीमपुर हाइवे से सटी खपरा वन चौकी क्षेत्र के गांव खडि़या नौनिहा में फार्महाउस है. यह फार्महाउस करीब 80 एकड़ में फैला हुआ है. रणधीर सिंह रंधावा सेना से रिटायर्ड ब्रिगेडियर हैं.

ज्योति रंधावा हरियाणा के गुड़गांव में रहते हैं. वह 2-3 दिन पहले ही साल 2018 को अलविदा कहने के मकसद से अपने पिता रणधीर सिंह और बेटे जोरावर सिंह के अलावा अपने दोस्त महेश विराजदार के साथ फार्महाउस पर आए थे.

यह उन का दुर्भाग्य रहा कि उन्हें शिकार के आरोप में जेल जाना पड़ गया. ज्योति का पूरा नाम ज्योतिंदर सिंह रंधावा है. उन के दादा भी सेना में थे, जिन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लिया था.

नई दिल्ली में 4 मई, 1972 को जन्मे ज्योति अंतरराष्ट्रीय गोल्फर हैं. 1994 में पेशेवर गोल्फर बने ज्योति ने सन 2000 में इंडियन ओपन और सिंगापुर ओपन जीता था. वह पहले ऐसे भारतीय खिलाड़ी बने, जिन्होंने एशिया में और्डर औफ मेरिट जीता.

वर्ष 2004 से 2009 के बीच ज्योति दुनिया के शीर्ष 100 गोल्फरों में शामिल रहे. एशियाई रैंकिंग में भी वह शीर्ष स्थान हासिल कर चुके थे. वे एशियन और यूरोपीय टूर में भी अपनी काबिलियत दिखा चुके हैं. ज्योति 2002 में एशियन टूर मनी लिस्ट में शीर्ष पर रहे थे.

सन 2004 में ज्योति ने जौनी वाकर क्लासिक में संयुक्त रूप से दूसरे स्थान पर रह कर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. उन्होंने 3 बार इंडियन ओपन चैंपियनशिप अपने नाम की. एशियन टूर में उन्होंने 8 खिताब जीते. विश्व रैंकिंग में जीव मिल्खा सिंह के बाद उन की दूसरी सब से ऊंची रैंकिंग है.

गोल्फ में सफलता हासिल करने के बाद ज्योति रंधावा ने निशानेबाजी में भी हाथ आजमाए. वह कई राष्ट्रीय चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुके हैं. ज्योति देश के अच्छे निशानेबाजों में हैं. इस के अलावा वह रोमांच के शौकीन हैं. ज्योति के पास कई तरह की कारें और मोटरसाइकिलें हैं. जंगल में ट्रेकिंग और ड्राइविंग करना उन का शगल है.

पेशेवर गोल्फर और निशानेबाजी के अलावा ज्योति रंधावा डौग ट्रेनर भी हैं. उन के पास इटालियन शिकारी कुत्ते हैं. कुछ महीने पहले महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में आदमखोर घोषित की गई रालेगांव की बाघिन अवनि को पकड़ने के लिए ज्योति रंधावा को बुलाया गया था.

विवादों और विरोध की वजह से लौटना पड़ा शफात अली और ज्योति को

अदालत के आदेश पर बाघिन अवनि को पकड़ने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने पहले हैदराबाद से शार्पशूटर नवाब शफात अली खान को बुलाया था. इस के बाद शफात अली खान के सुझाव पर उन के दोस्त नामी गोल्फर ज्योति रंधावा को भी बुलाया गया. रंधावा हवाईजहाज से अपने 2 शिकारी इटालियन केन कोर्स डौग्स ले कर वहां गए भी थे.

बाद में वन्यजीव प्रेमियों के विरोध के कारण शार्पशूटर शफात अली खान और गोल्फर ज्योति रंधावा को वापस भेज दिया गया था. बाघिन अवनि पर 13 लोगों की जान लेने का आरोप था.

शिकार के मामले में पकड़े गए ज्योति रंधावा ने 2001 में बौलीवुड फिल्म ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ फेम अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह से शादी की थी. 28 मार्च, 1976 को राजस्थान के जोधपुर में जन्मी चित्रांगदा सिंह के पिता निरंजन सिंह चहल भारतीय सेना में कर्नल थे. चित्रांगदा के भाई दिग्विजय सिंह चहल गोल्फर हैं. दिल्ली के लेडी इरविन कालेज से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद चित्रांगदा ने 1994 में मौडलिंग की दुनिया में कदम रखा था.

गुलजार के म्यूजिक वीडियो सनसेट पौइंट के जरिए चित्रांगदा सिंह पहली बार दर्शकों की नजर में चढ़ीं. फिर उन्होंने अभिजीत भट्टाचार्य के म्यूजिक वीडियो में काम किया.

हिंदी फिल्मों में वह शादी के 2 साल बाद आईं. उन्हें पहला ब्रेक निर्देशक सुधीर कुमार ने सन 2003 में ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ में दिया था. बाद में चित्रांगदा ने बौलीवुड की करीब दरजन भर फिल्मों में काम किया.

ज्योति रंधावा से शादी के बाद चित्रांगदा सिंह ने 2009 में एक बेटे को जन्म दिया था. बेटे का नाम जोरावर सिंह रखा गया. कहा जाता है कि ज्योति रंधावा और उन के परिवार को चित्रांगदा का फिल्मों में काम करना पसंद नहीं था. फिल्मों में काम करने को ले कर ज्योति और चित्रांगदा में झगड़े शुरू हो गए. बाद में दोनों ने तलाक लेने का फैसला किया.

अप्रैल 2014 में अदालत ने दोनों का तलाक मंजूर कर लिया. अदालत ने उस समय 5 साल के जोरावर सिंह को मां चित्रांगदा सिंह को सौंपा था. इस तरह 13 साल पुराना ज्योति-चित्रांगदा का वैवाहिक रिश्ता टूट गया.

ज्योति के साथ शिकार के मामले में पकड़े गए सेना के पूर्व कैप्टन महेश विराजदार महाराष्ट्र के शोलापुर जिले के रहने वाले हैं. वह भारतीय नौसेना में कैप्टन रहे थे. करीब 4 साल पहले वित्तीय अनियमितता के मामले में कोर्ट मार्शल के बाद उन्हें नौसेना ने निकाल दिया था.

वन्यजीवों के शिकार के आरोप में बेटे ज्योति की गिरफ्तारी और जेल भेजे जाने की सूचना मिलने पर उन के पिता रणधीर सिंह दूसरे दिन ही बहराइच जेल पहुंच गए. बेटे को जेल में देख कर वह खूब रोए. जेल में ज्योति को आम बंदियों की तरह बैरक में रखा गया था. भोजन भी उन्हें जेल का ही दिया जाता था.

ज्योति रंधावा की गिरफ्तारी के बाद वन अधिकारियों ने कतर्निया घाट अभयारण्य की सुरक्षा बढ़ा दी थी. अन्य शिकारियों के जंगल में छिपे होने की आशंका में सघन जांच अभियान चलाया गया. कतर्निया के आसपास बने फार्महाउसों की तलाशी भी ली गई.

शिकार के मामले में गिरफ्तार किए गए ज्योति रंधावा की मुश्किलें उस समय और बढ़ गईं, जब 29 दिसंबर को वन विभाग की ओर से मोतीपुर पुलिस थाने में अलग से मुकदमा दर्ज कराया गया. लाइसेंसी राइफल के दुरुपयोग का यह मुकदमा कतर्निया रेंज के वन्यजीव प्रतिपालक अवधेश कुमार पांडेय की तहरीर पर दर्ज किया गया.

30 दिसंबर को ज्योति रंधावा से मिलने उन के बहनोई चंडीगढ़ निवासी ब्रिगेडियर के. अजय सिंह और बहन प्रिया बहराइच जिला कारागार पहुंचे. मुलाकात के दौरान भाईबहन की आंखों में आंसू टपक पड़े.

बहस के लिए मामला पहुंचा अदालत

ज्योति और उन के दोस्त महेश विराजदार की ओर से 2 जनवरी, 2019 को सीजेएम की अदालत में जमानत अरजी पेश की गई, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया. इस के बाद जिला एवं सत्र न्यायाधीश उपेंद्र कुमार की अदालत में जमानत अरजी लगाई गई. इस पर सुनवाई के लिए अदालत ने 7 जनवरी, 2019 की तारीख तय की.

7 जनवरी को जमानत की अरजी पर जिला जज के समक्ष अभियोजन और बचावपक्ष के वकीलों ने करीब 50 मिनट तक बहस की. रंधावा की जमानत याचिका पर बहस के लिए सुप्रीम कोर्ट से भी वकील पहुंचे, लेकिन उन्होंने अदालत में वकालतनामा पेश नहीं किया.

अभियोजन पक्ष के वकील ने सुनवाई के लिए अदालत से समय मांगते हुए कहा कि इस मामले में मोतीपुर रेंज कार्यालय से मूल कागजात, आपराधिक इतिहास, विसरा रिपोर्ट और विधिविज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट नहीं आई है.

बचावपक्ष ने इस का विरोध करते हुए तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष ने आरोपियों की गिरफ्तारी और बरामदगी के संबंध में जो कागजात दिए हैं, उन से स्पष्ट है कि आरोपी टाइगर रिजर्व में नहीं पकड़े गए.

वन्य जंतु की जो बरामदगी दर्शाई गई है, वह वन्यजंतु अधिनियम की अनुसूची में उल्लेखित जीव नहीं है. आरोपियों के खिलाफ 51(1) का ही अपराध है, जिस में 3 साल की सजा से दंडित किया जा सकता है.

बचावपक्ष के वकील ने दोनों आरोपियों को वन्यजीव अधिनियम 1952 के विभिन्न प्रावधानों को दृष्टिगत रख कर अंतरिम जमानत पर रिहा करने की प्रार्थना की.

अभियोजन पक्ष ने अंतरिम जमानत का विरोध किया. दोनों पक्षों के वकीलों के तर्कों को सुनने के बाद जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने अंतरिम जमानत का प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया और मूल जमानत अरजी पर सुनवाई के लिए 10 जनवरी की तारीख तय की.

10 जनवरी को वन विभाग की ओर से धारा बढ़ाने और पता सत्यापन के लिए ज्योति रंधावा को रिमांड पर लेने हेतु दाखिल की गई अरजी पर सीजेएम की अदालत में सुनवाई हुई. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सीजेएम ने ज्योति रंधावा पर वन अधिनियम की धारा 48ए व 51(1सी) बढ़ाने और पते को दुरुस्त करने के आदेश दिए.

वन विभाग के अधिवक्ता सुरेश चंद्र यादव ने बताया कि गिरफ्तारी के समय ज्योति रंधावा ने गलत पता बता कर गुमराह किया था. जांच में पता गलत पाया गया. इसे ले कर अलग से काररवाई की जाएगी. इस दिन दोनों आरोपियों के जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई नहीं हो सकी, इसलिए 14 जनवरी की तारीख निश्चित की गई.

वन का समृद्ध इलाका है कतर्निया घाट

14 जनवरी को बहराइच के जिला जज उपेंद्र कुमार ने इसे गंभीर अपराध मानते हुए ज्योति और उन के दोस्त महेश की जमानत अरजी खारिज कर दी. कथा लिखे जाने तक दोनों आरोपियों को जमानत नहीं मिली थी. वन अधिकारियों का कहना है कि इन के खिलाफ दर्ज मुकदमों में 7 साल तक की सजा का प्रावधान है. वन विभाग व पुलिस यह जांच कर रही है कि रंधावा शिकार के अन्य मामलों में तो लिप्त नहीं रहे हैं.

भारत नेपाल सीमा पर बहराइच जिले में स्थित कतर्निया घाट वन्यजीव अभयारण्य कई तरह के जंगली जानवरों और घने जंगलों से समृद्ध है. यह जंगल लंबे समय से भारत और नेपाल के शिकारियों के निशाने पर रहा है. इस अभयारण्य में बाघ, तेंदुए, हिरण, चीतल, सांभर, बारहसिंघा आदि वन्यजीवों के अलावा अजगरों व कई तरह के सरीसृपों की बहुतायत है.

कई तरह के देशीविदेशी पक्षी भी यहां डेरा डाले रहते हैं. नेपाल से बह कर कतर्निया आने वाली गेरुआ नदी में बड़ी संख्या में गैंगटिक डाल्फिन, घडि़याल व मगरमच्छ आदि जलीय जीव हैं. आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के फिल्मकारों ने यहां गैंगटिक डाल्फिन की जिंदगी पर फिल्में भी बनाई हैं.

सन 1987 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत कतर्निया घाट वन्यजीव अभयारण्य को दुधवा टाइगर रिजर्व का हिस्सा बनाया गया था. करीब 400 वर्ग किलोमीटर में फैले कतर्निया घाट अभयारण्य की स्थापना सन 1975 में हुई थी. अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव तस्कर दिवंगत संसार चंद के तार भी कतर्निया घाट अभयारण्य से जुड़े हुए थे.

इस अभयारण्य की मोतीपुर रेंज में कुछ समय पहले एक महिला तस्कर रोशनी को बाघ के खाल के साथ पकड़ा गया था. वर्ष 2018 में कतर्निया अभयारण्य में वन्यजीवों के शिकार के आरोप में नेपाली शिकारियों सहित 17 लोगों को पकड़ा गया और 15 मुकदमे दर्ज किए गए. वनकर्मियों और शिकारियों की मुठभेड़ें भी हुईं.

बहरहाल, यह बात साफ हो गई है कि सेलिब्रिटियों का शौक उन की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा देता है. शिकार के मामले में अभिनेता सलमान खान अभी तक फंसे हुए हैं. राजस्थान के जोधपुर में राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘हम साथ साथ हैं’ की शूटिंग के दौरान सलमान खान पर 2 अक्तूबर, 1998 को काले हिरण का शिकार करने का मामला दर्ज था.

कांकाणी हिरण के शिकार के आरोप वाले मुकदमे में 5 अप्रैल, 2018 को जोधपुर की अदालत ने 5 साल की सजा सुनाई थी. यह बात अभी पूरी तरह साबित नहीं हुई है कि ज्योति रंधावा और उन के दोस्त महेश विराजदार दोषी हैं.

कमाल बिल्लू बार्बर का : 32 साल के युवक को बनाया 81 साल का बूढ़ा

कुछ लोग विदेश जाने के लिए इतने लालायित रहते हैं कि इस के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. विदेश जाने के लिए उन्हें कबूतरबाजी का सहारा लेना पड़े या एजेंट के सुझाए गलत रास्तों का, तो भी उन्हें कोई चिंता या डर नहीं रहता.

उन का मकसद सिर्फ एक ही होता है कि किसी भी तरह विदेश पहुंच जाएं और वहां जा कर खूब पैसा कमाएं. अभी हाल में ही 32 साल के एक युवक ने अमेरिका जाने के लिए जो तरीका निकाला, उसे जान कर आप भी चौंके बिना नहीं रहेंगे.

बात 15 सितंबर, 2019 की है. रात करीब 8 बजे दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनैशनल एयरपोर्ट के टर्मिनल नंबर 3 पर एक बुजुर्ग व्यक्ति व्हीलचेयर पर पहुंचा. उसे रात पौने 11 बजे न्यूयार्क जाने वाली फ्लाइट में सवार हो कर अमेरिका जाना था. चैकिंग के दौरान सीआईएसएफ (केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल) के इंसपेक्टर ने उसे मेटल डिटेक्टर डोर क्रास करने को कहा तो उस ने कहा कि चलना तो दूर वह सीधा खड़ा तक नहीं हो सकता.

जांच करने वाला इंसपेक्टर अनुभवी था. उस ने जब उस बुजुर्ग से बात की तो वह भारी आवाज में बात करने की कोशिश करता नजर आया. ऐसा लग रहा था जैसे उस की आवाज बनावटी हो. इस के अलावा वह नजरें मिलाने के बजाए उन से नजरें चुरा रहा था.

इंसपेक्टर इस बात पर हैरान हुआ कि आखिर यह ऐसा क्यों कर रहा है. उस ने बुजुर्ग का पासपोर्ट चैक किया तो उस में उस का नाम अमरीक सिंह और जन्मतिथि 1 फरवरी, 1938 दर्ज थी. यानी जन्मतिथि के हिसाब से वह 81 साल का था.

81 साल के उस बुजुर्ग के चेहरे पर सफेद दाढ़ीमूंछ थी. साथ ही वह नजर का मोटा चश्मा लगाए हुए था और सिर पर पगड़ी थी. लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि उस के चेहरे पर एक भी झुर्री नहीं थी. चेहरे और आवाज से वह 81 साल का नहीं लग रहा था.

कोई भी इंसान खुद को चाहे कितना भी फिट रखे, लेकिन 80 साल की उम्र पार कर जाने के बाद बढ़ती उम्र के कुछ न कुछ लक्षण उस के चेहरे पर जरूर दिख जाते हैं. लेकिन 81 साल के अमरीक सिंह को देख कर नहीं लग रहा था कि वह इतनी उम्र का है.

जांच अधिकारियों ने जब उस से पूछताछ की तो वह हकीकत को ज्यादा देर तक नहीं छिपा सका. पता चला कि वह 81 साल का वृद्ध नहीं बल्कि 32 साल का युवक है. उस ने अपना गेटअप वृद्ध की तरह बना रखा था. उस ने अपना नाम जयेश पटेल निवासी अहमदाबाद बताया.

जांच अधिकारियों के लिए यह बात चौंकाने वाली थी. 32 साल का जयेश पटेल अपना हुलिया बदलवा कर विदेश क्यों जा रहा था और वो कौन शख्स था, जिस ने उसे 32 साल से 81 साल का बुजुर्ग बना दिया. इस बारे में जयेश ने जो कुछ बताया, वह आश्चर्यचकित कर देने वाला था.

जयेश पटेल अहमदाबाद का रहने वाला था. वह किसी भी तरह से अमेरिका जाना चाहता था ताकि वहां रह कर मोटा पैसा कमा सके. किसी के द्वारा उसे एक दलाल के बारे में जानकारी मिली, जिस का नाम सिद्धू था. सिद्धू का और भी बडे़ दलालों से संपर्क था. जयेश पटेल ने सिद्धू से संपर्क किया. सिद्धू अपने साथी गणेश के साथ मिल कर लोगों को गलत तरीके से विदेश भेजने का धंधा करता था.

जयेश ने दलाल सिद्धू से संपर्क किया. दलाल ने उसे बताया कि वह उसे अमेरिका भेज तो देगा लेकिन इस के लिए उसे 30 लाख रुपए खर्च करने होंगे. जयेश यह रकम देने को तैयार हो गया.

दलाल ने उसे 81 साल के एक बुजुर्ग का पासपोर्ट दिया, जिस पर वीजा लगा हुआ था. साथ ही यह भी कहा कि इस पासपोर्ट में जो फोटो लगा है, वह उसी तरह अपना हुलिया बदल ले.

इस के बाद दलाल ने जयेश को दिल्ली बुला लिया. उसे दिल्ली के करोलबाग स्थित एक होटल में ठहराया गया. सिद्धू ने रोहिणी के रहने वाले मेकअप आर्टिस्ट शमशेर उर्फ बिल्लू बार्बर से संपर्क किया.

शमशेर अनुभवी मेकअप आर्टिस्ट था. अपनी दुकान चलाने के साथ ही वह धारावाहिकों, पब्लिक कार्यक्रमों आदि में मेकअप आर्टिस्ट का काम करता था. वह लोगों का हुलिया बदलने में एक्सपर्ट था.

सिद्धू शमशेर को उस होटल में ले गया, जहां जयेश ठहरा हुआ था. उस ने उसे पासपोर्ट में लगा 81 साल के बुजुर्ग का फोटो दिखाया. सिद्धू ने उसे जयेश के बारे में बताया कि वह मौडल है, जो आने वाली एक फिल्म व सीरियल में इसी तरह के 80 साल के बूढ़े का रोल करेगा.

इस के लिए उसे इसी तरह का गेटअप तैयार करना है. मेकअप आर्टिस्ट ने इस काम के 20 हजार रुपए मांगे. सिद्धू यह पैसे देने को तैयार हो गया.

शमशेर ने जयेश की दाढ़ीमूंढ बड़ी कराने के बाद डाई से सफेद कर दीं. इतना ही नहीं, उस ने उस की भौंहें भी सफेद कर दीं और पगड़ी बांध कर 32 साल के जयेश को 81 साल के अमरीक सिंह का लुक दे दिया. इस के बाद दलाल ने फरजी नाम से उस का दिल्ली के कालकाजी स्थित एक मकान के पते पर पासपोर्ट बनवा दिया.

दलाल की पहुंच का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस ने 20 अगस्त, 2019 को पासपोर्ट के लिए आवेदन कराया था और 21 अगस्त को जयेश के पास पासपोर्ट पहुंच गया था, जबकि पासपोर्ट बनवाने के लिए तत्काल में भी अप्लाई नहीं किया गया था.

एक ही दिन में पुलिस की भी सभी जांच पूरी हो गई थी. पासपोर्ट बनवाने के लिए विटनेस के तौर पर 2 पड़ोसियों या वहीं आसपास रहने वाले जानकारों के हस्ताक्षर की जरूरत पड़ती है, जांच करने वाले पुलिसकर्मी ने इस प्रक्रिया को भी पूरा नहीं किया.

32 साल का जयेश पटेल अब 81 साल का अमरीक सिंह बन चुका था. उस का गेटअप देख कर कोई भी आसानी से नहीं पहचान सकता था. अमेरिका जाने के लिए 15 सितंबर, 2019 की रात पौने 11 बजे की फ्लाइट की टिकट भी बुक करा दी. इस से पहले उस ने 9 सितंबर की रात को न्यूयार्क टेकऔफ करने के लिए इमिग्रेशन समेत तमाम क्लीयरेंस ले लिए थे.

jayesh-patel-becomes-amrik-singh

दलाल की सलाह पर ही जयेश पटेल व्हीलचेयर पर बैठ कर आईजीआई एयरपोर्ट के टर्मिनल-3 पहुंचा था. लेकिन वहां पर वह पुलिस जांच में पकड़ा गया. आर्टिस्ट शमशेर ने जयेश को हूबहू अमरीक सिंह बना दिया था, लेकिन वह उस के चेहरे पर झुर्रियां नहीं बना सका. जिस की वजह से जयेश पुलिस के शक के दायरे में आ गया और पकड़ा गया.

एयरपोर्ट पुलिस ने जयेश पटेल के मामले को गंभीरता से लिया. इस के साथ ही अलगअलग 3 एजेंसियां जयेश से पूछताछ में जुट गईं. उसे कोर्ट में पेश करने के बाद 6 दिन के रिमांड पर लिया गया. उस से पूछताछ करने के बाद डीसीपी (एयरपोर्ट) संजय भाटिया ने अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए एसीपी (एयरपोर्ट) की निगरानी में एक स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम बनाई.

इस टीम ने रोहिणी से शमशेर उर्फ बिल्लू बार्बर को भी गिरफ्तार कर लिया. शमशेर ने बताया कि वह दलाल सिद्धू के कहने पर अब तक 12 लोगों का हुलिया बदल चुका है. उन में 2 लड़कियां भी थीं. ये सब विदेश जा चुके हैं.

टीम अब यह जांच कर रही है कि इस में इमिगे्रशन और पासपोर्ट का वैरीफिकेशन करने वाले कौनकौन लोग शामिल हैं. स्पैशल जांच टीम ने स्पैशल ब्रांच के उस अफसर से भी पूछताछ की, जिस ने कालकाजी के पते पर पासपोर्ट जारी होने पर जयेश का वैरीफिकेशन किया था.

इस अफसर की भूमिका जांच में संदिग्ध पाई गई, जिस से उसे सस्पेंड कर दिया गया. उस के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश भी दे दिए हैं.

स्पैशल जांच टीम ने दलाल सिद्धू और गणेश के खिलाफ भी एक्शन शुरू कर दिया है लेकिन वे पुलिस के हत्थे नहीं लग सके. इस मामले की जांच में कई गंभीर बातें सामने आईं, जिस से यह लग रहा है कि इस गैंग के संपर्क बड़े अधिकारियों तक थे.

अनुमान लगाया जा रहा है कि इस फरजीवाड़े में पासपोर्ट औफिस, स्पैशल ब्रांच और इमिग्रेशन विभाग के कुछ अफसर भी शामिल हो सकते हैं. जांच पूरी होने तक नए खुलासे के साथ कुछ और लोग भी सस्पेंड हो सकते हैं.

पुलिस ने रिमांड अवधि पूरी होने पर जयेश पटेल को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. शमशेर उर्फ बिल्लू बार्बर को भी जेल भेज दिया गया. दलाल सिद्धू और गणेश का पुलिस को सुराग नहीं लग सका. विशेष जांच टीम गंभीरता से केस की जांच में जुटी हुई थी.

ये कैसा बदला : सुनीता ने क्यों की एक मासूम की हत्या?

चीचली गांव कहने भर को ही भोपाल का हिस्सा है, नहीं तो बैरागढ़ और कोलार इलाके से लगे इस गांव में अब गिनेचुने घर ही बचे हैं. बढ़ते शहरीकरण के चलते चीचली में भी जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं. इसलिए अधिकतर ऊंची जाति वाले लोग यहां की अपनी जमीनें बिल्डर्स को बेच कर कोलार या भोपाल के दूसरे इलाकों में शिफ्ट हो गए हैं.

इन गिनेचुने घरों में से एक घर है विपिन मीणा का. पेशे से इलैक्ट्रिशियन विपिन की कमाई भले ही ज्यादा न थी, लेकिन घर को घर बनाने में जिस संतोष की जरूरत होती है वह जरूर उस के यहां था. विपिन के घर में बूढ़े पिता नारायण मीणा के अलावा मां और पत्नी तृप्ति थी. लेकिन घर में रौनक साढ़े 3 साल के मासूम वरुण से रहती थी. नारायण मीणा वन विभाग से नाकेदार के पद से रिटायर हुए थे और अपनी छोटीमोटी खेती का काम देखते हैं.

इस खुशहाल घर को 14 जुलाई, 2019 को जो नजर लगी, उस से न केवल विपिन के घर में बल्कि पूरे गांव में मातम सा पसर गया. उस दिन शाम को विपिन जब रोजाना की तरह अपने काम से लौटा तो घर पर उस का बेटा वरुण नहीं मिला. उस समय यह कोई खास चिंता वाली बात नहीं थी क्योंकि वरुण घर के बाहर गांव के बच्चों के साथ खेला करता था. कभीकभी बच्चों के खेल तभी खत्म होते थे, जब अंधेरा छाने लगता था.

थोड़ी देर इंतजार के बाद भी वरुण नहीं लौटा तो विपिन ने तृप्ति से उस के बारे में पूछा. जवाब वही मिला जो अकसर ऐसे मौकों पर मिलता है कि खेल रहा होगा यहीं कहीं बाहर, आ जाएगा.

varun-meena-murder-chichli

वरुण 

विपिन वरुण को ढूंढने अभी निकला ही था कि घर के बाहर उस के पिता मिल गए. उन से पूछने पर पता चला कि कुछ देर पहले वरुण चौकलेट खाने की जिद कर रहा था तो उन्होंने उसे 10 रुपए दिए थे.

चूंकि शाम गहराती जा रही थी और विपिन घर के बाहर ही गया था, इसलिए उस ने सोचा कि दुकान नजदीक ही है तो क्यों न वरुण को वहीं जा कर देख लिया जाए. लेकिन वह उस वक्त चौंका जब वरुण के बारे में पूछने पर जवाब मिला कि वह तो आज उस की दुकान पर आया ही नहीं.

घबराए विपिन ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे कोई बच्चा खेलता नजर नहीं आया, जिस से वह बेटे के बारे में पूछता. एक बार घर जा कर और देख लिया जाए, शायद वरुण आ गया हो. यह सोच कर वह घर की तरफ चल पड़ा.

घर आने पर भी विपिन को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि वरुण अभी भी घर नहीं आया था. लिहाजा अब पूरा घर परेशान हो उठा. उसे ढूंढने के लिए विपिन ने गांव का चक्कर लगाया तो जल्द ही उस के लापता होने की बात भी फैल गई और गांव वाले भी उसे ढूंढने में लग गए.

रात 10 बजे तक सभी वरुण को हर उस मुमकिन जगह पर ढूंढ चुके थे, जहां उस के होने की संभावना थी. जब वह कहीं नहीं मिला और न ही कोई उस के बारे में कुछ बता पाया तो विपिन सहित पूरा घर किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा.

वरुण की गुमशुदगी को ले कर तरह तरह की हो रही बातों के बीच गांव वालों ने एक क्रेटा कार का जिक्र किया, जो शाम के समय गांव में देखी गई थी. लेकिन उस का नंबर किसी ने नोट नहीं किया था.

हालांकि चीचली गांव में बड़ीबड़ी कारों का आना कोई नई बात नहीं है, क्योंकि अकसर प्रौपर्टी ब्रोकर्स ग्राहकों को जमीन दिखाने यहां लाते हैं. लेकिन उस दिन वरुण गायब हुआ था, इसलिए क्रेटा कार लोगों के मन में शक पैदा कर रही थी.

थकहार कर कुछ गांव वालों के साथ विपिन ने कोलार थाने जा कर टीआई अनिल बाजपेयी को बेटे के गुम होने की जानकारी दे दी. उन्होंने वरुण की गुमशुदगी दर्ज कर तुरंत वरिष्ठ अधिकारियों को इस घटना से अवगत भी करा दिया.

टीआई पुलिस टीम के साथ कुछ ही देर में चीचली गांव पहुंच गए. गांव वालों से पूछताछ करने पर पुलिस का पहला और आखिरी शक उसी क्रेटा कार पर जा रहा था, जिस के बारे में गांव वालों ने बताया था.

पूछताछ में यह बात उजागर हो गई थी कि मीणा परिवार की किसी से कोई रंजिश नहीं थी जो कोई बदला लेने के लिए बच्चे को अगवा करता और इतना पैसा भी उन के पास नहीं था कि फिरौती की मंशा से कोई वरुण को उठाता.

तो फिर वरुण कहां गया. उसे जमीन निगल गई या फिर आसमान खा गया, यह सवाल हर किसी की जुबान पर था. क्रेटा कार पर पुलिस का शक इसलिए भी गहरा गया था क्योंकि कोलार के बाद केरवा चैकिंग पौइंट पर कार में बैठे युवकों ने खुद को पुलिस वाला बता कर बैरियर खुलवा लिया था और दूसरा बैरियर तोड़ कर वे कार को जंगलों की तरफ ले गए थे.

चीचली और कोलार इलाके में मीणा समुदाय के लोगों की भरमार है, इसलिए लोग रात भर वरुण को ढूंढते रहे. 15 जुलाई की सुबह तक वरुण कहीं नहीं मिला और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो लोगों का गुस्सा भड़कने लगा.

यह जानकारी डीआईजी इरशाद वली को मिली तो वह खुद चीचली पहुंच गए. उन्होंने वरुण को ढूंढने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान एसपी संपत उपाध्याय को सौंपी गई. दूसरी तरफ एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम जंगलों में जा कर वरुण को खोजने लगी.

पुलिस टीम ने 15 जुलाई को जंगलों का चप्पाचप्पा छान मारा लेकिन वरुण कहीं नहीं मिला और न ही उस के बारे में कोई सुराग हाथ लगा. इधर गांव भर में भी पुलिस उसे ढूंढ चुकी थी. एक बार नहीं कई बार पुलिस वालों ने गांव की तलाशी ली लेकिन हर बार नाकामी ही हाथ लगी तो गांव वालों का गुस्सा फिर से उफनने लगा.

बारबार की पूछताछ में बस एक ही बात सामने आ रही थी कि वरुण अपने दादा नारायण से 10 रुपए ले कर चौकलेट खरीदने निकला था, इस के बाद उसे किसी ने नहीं देखा. इस से यह संभावना प्रबल होती जा रही थी कि हो न हो, बच्चे को घर से निकलते ही अगवा कर लिया गया हो.

विपिन का मकान मुख्य सड़क से चंद कदमों की दूरी पर पहाड़ी पर है, इसलिए यह अनुमान भी लगाया गया कि इसी 50 मीटर के दायरे से वरुण को उठाया गया है.

लेकिन वह कौन हो सकता है, यह पहेली पुलिस से सुलझाए नहीं सुलझ रही थी. क्योंकि पूरे गांव व जंगलों की खाक छानी जा चुकी थी इस पर भी हैरत की बात यह थी कि बच्चे को अगवा किए जाने का मकसद किसी की समझ नहीं आ रहा था.

chichli-me-police-team

अगर पैसों के लिए उस का अपहरण किया गया होता तो अब तक अपहर्त्ता फोन पर अपनी मांग रख चुके होते और वरुण अगर किसी हादसे का शिकार हुआ होता तो भी उस का पता चल जाना चाहिए था. चीचली गांव की हालत यह हो चुकी थी कि अब वहां गांव वाले कम पुलिस वाले ज्यादा नजर आ रहे थे. इस पर भी लोग पुलिसिया काररवाई से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए माहौल बिगड़ता देख गांव में डीजीपी वी.के. सिंह और आईजी योगेश देशमुख भी आ पहुंचे.

2 बड़े शीर्ष अधिकारियों को अचानक आया देख वहां मौजूद पुलिस वालों के होश उड़ गए. चंद मिनटों की मंत्रणा के बाद तय किया गया कि एक बार फिर से गांव का कोना कोना देख लिया जाए.

इत्तफाक से इसी दौरान टीआई अनिल बाजपेयी की टीम की नजर विपिन के घर से चंद कदमों की दूरी पर बंद पड़े एक मकान पर पड़ी. उन का इशारा पा कर 2 पुलिसकर्मी उस सूने मकान की दीवार लांघ कर अंदर दाखिल हो गए. दाखिल तो हो गए लेकिन अंदर का नजारा देख कर भौचक रह गए क्योंकि वहां किसी बच्चे की अधजली लाश पड़ी थी.

बच्चे का अधजला शव मिलने की खबर गांव में आग की तरह फैली तो सारा गांव इकट्ठा हो गया. दरवाजा खोलने के बाद पुलिस और गांव वालों ने बच्चे की लाश देखी तो उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. लेकिन विपिन ने उस लाश की शिनाख्त अपने साढ़े 3 साल के बेटे वरुण के रूप में कर दी.

varun-ki-mother-tripti

                           रोती बिलखती वरुण मीणा की मां तृप्ति 

सभी लोग इस बात से हैरान थे कि पिछले 2 दिनों से जिस वरुण की तलाश में लोग आकाश पाताल एक कर रहे थे, उस की लाश घर के नजदीक ही पड़ोस में पड़ी है, यह बात किसी ने खासतौर से पुलिस वालों ने भी नहीं सोची थी.

वरुण के मांबाप और दादादादी होश खो बैठे, जिन्हें संभालना मुश्किल काम था. घर वाले ही क्या, गांव वालों में भी खासा दुख और गुस्सा था. अब यह बात कहने सुनने और समझने की नहीं रही थी कि मासूम वरुण का हत्यारा कोई गांव वाला ही है, लेकिन वह कौन है और उस ने उस बच्चे को जला कर क्यों मारा, यह बात भी पहेली बनती जा रही थी.

गुस्साए गांव वालों को संभालती पुलिसिया काररवाई अब जोरों पर आ गई थी. देखते ही देखते खोजी कुत्ते और फोरैंसिक टीम चीचली पहुंच गई.

डीआईजी इरशाद वली ने बारीकी से वरुण के शव का मुआयना किया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जिस किसी ने भी उसे जलाया है, उस ने धुआं उठने के डर से तुरंत लाश पर पानी भी डाला है. वरुण के शव पर गेहूं के दाने भी चिपके हुए थे, इसलिए यह अंदाजा भी लगाया गया कि उसे गेहूं में दबा कर रखा गया होगा. यानी हत्या कहीं और की गई है और लाश यहां सूने मकान में ला कर ठिकाने लगा दी गई है.

इस मकान के बारे में गांव वाले कुछ खास नहीं बता पाए सिवाए इस के कि कुछ दिनों पहले ही इसे भोपाल के किसी शख्स ने खरीदा है. पूछताछ करने पर विपिन ने बताया कि उस की किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है.

इस के बाद पुलिस ने लाश से चिपके गेहूं के आधार पर ही जांच शुरू कर दी. अच्छी बात यह थी कि खाली पड़े उस मकान से जराजरा से अंतराल पर गेहूं के दानों की लकीर दूर तक गई थी.

डीआईजी के इशारे पर पुलिस वाले गेहूं के दानों के पीछे चले तो गेहूं की लाइन विपिन के घर के ठीक सामने रहने वाली सुनीता के घर जा कर खत्म हुई. यह वही सुनीता थी जो कुछ देर पहले तक वरुण के न मिलने की चिंता में आधी हुई जा रही थी और उस का बेटा भी गांव वालों के साथ वरुण को ढूंढने में जीजान से लगा हुआ था.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ की तो उस का चेहरा फक्क पड़ गया. वह वही सुनीता थी, जो एक दिन पहले तक एक न्यूज चैनल पर गुस्से से चिल्लाती दिखाई दे रही थी. वह चीखचीख कर कह रही थी कि हत्यारों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

इस बीच पूछताछ में उजागर हुआ था कि सुनीता सोलंकी का चालचलन ठीक नहीं है और उस के घर तरह तरह के अनजान लोग आते रहते हैं. पर यह सब बातें उसे हत्यारी ठहराने के लिए नाकाफी थीं, इसलिए पुलिस ने सख्ती दिखाई तो सच गले में फंसे सिक्के की तरह बाहर आ गया.

वरुण जब चौकलेट लेने घर से निकला तो सुनीता को देख कर उस के घर पहुंच गया. मासूमियत और हैवानियत में क्या फर्क होता है, यह उस वक्त समझ आया जब भूखे वरुण ने सुनीता से रोटी मांगी. बदले की आग में जल रही सुनीता ने उसे सब्जी के साथ रोटी खाने को दे दी, लेकिन सब्जी में उस ने चींटी मारने वाली जहरीली दवा मिला दी.

वरुण दवा के असर के चलते बेहोश हो गया तो सुनीता ने उसे मरा समझ कर उस के हाथपैर बांधे और पानी के खाली पड़े बड़े कंटेनर में डाल दिया. इधर जैसे ही वरुण की खोजबीन शुरू हुई तो वह भी भीड़ में शामिल हो गई. इतना ही नहीं, उस ने दुख में डूबे अपने पड़ोसी विपिन मीणा के घर जा कर उन्हें चाय बना कर दी और हिम्मत भी बंधाती रही.

जबकि सच सिर्फ वही जानती थी कि वरुण अब इस दुनिया में नहीं है. उस की तो वह बदले की आग के चलते हत्या कर चुकी है. हादसे की शाम सुनीता का बेटा घर आया तो उसे बिस्तर के नीचे से कुछ आवाज सुनाई दी. इस पर सुनीता ने उसे यह कहते हुए टरका दिया कि चूहा होगा, तू जा कर वरुण को ढूंढ.

बाहर गया बेटा रात 8 बजे के लगभग फिर वापस आया तो नजारा देख कर सन्न रह गया, क्योंकि सुनीता वरुण की लाश को पानी के कंटेनर से निकाल कर गेहूं के कंटेनर में रख रही थी. इस पर बेटे ने ऐतराज जताया तो उस ने उसे झिड़क कर खामोश कर दिया. सुनीता ने मासूम की लाश को पहले गेहूं से ढका फिर उस पर ढेर से कपड़े डाल दिए थे.

16 जुलाई, 2019 की सुबह तड़के 5 बजे सुनीता ने घर के बाहर झांका तो वहां उम्मीद के मुताबिक सूना पड़ा था. वरुण की तलाश करने वाले सो गए थे. उस ने पूरी ऐहतियात से लाश हाथों में उठाई और बगल के सूने मकान में ले जा कर फेंक दी.

लाश को फेंक कर वह दोबारा घर आई और माचिस के साथसाथ कुछ कंडे (उपले) भी ले गई और लाश को जला दिया. धुआं ज्यादा न उठे, इस के लिए उस ने लाश पर पानी डाल दिया. जब उसे इत्मीनान हो गया कि अब वरुण की लाश पहचान में नहीं आएगी तो वह घर वापस आ गई.

हत्या सुनीता ने की है, यह जान कर गांव वाले बिफर उठे और उसे मारने पर आमादा हो आए तो उन्हें काबू करने के लिए पुलिस वालों को बल प्रयोग करना पड़ा. इधर दुख में डूबे विपिन के घर वाले हैरान थे कि सुनीता ने वरुण की हत्या कर उन से कौन से जन्म का बदला लिया है.

दरअसल बीती 16 जून को सुनीता 2 दिन के लिए गांव से बाहर गई थी. तभी उस के घर से कोई आधा किलो चांदी के गहने और 30 हजार रुपए नकदी की चोरी हो गई थी. सुनीता जब वापस लौटी तो विपिन के घर में पार्टी हो रही थी.

इस पर उस ने अंदाजा लगाया कि हो न हो विपिन ने ही चोरी की है और उस के पैसों से यह जश्न मनाया जा रहा है. यह सोच कर वह तिलमिला उठी और मन ही मन  विपिन को सबक सिखाने का फैसला ले लिया.

सुनीता सोलंकी दरअसल भोपाल के नजदीक बैरसिया के गांव मंगलगढ़ की रहने वाली थी. उस की शादी दुले सिंह से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए. इस के बाद भी पति से उस की पटरी नहीं बैठी क्योंकि उस का चालचलन ठीक नहीं था.

इस पर दोनों में विवाद बढ़ने लगा तो दुले सिंह ने उसे छोड़ दिया. इस के बाद मंगलगढ़ गांव के 2-3 युवकों के साथ रंगरलियां मनाते उस के फोटो वायरल हुए थे, जिस के चलते गांव वालों ने उसे भगा दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उस के चक्कर में आ कर गांव के दूसरे मर्द बिगड़ें.

इस के बाद तो सुनीता की हालत कटी पतंग जैसी हो गई. उस ने कई मर्दों से संबंध बनाए और कुछ से तो बाकायदा शादी भी की लेकिन ज्यादा दिनों तक वह किसी एक की हो कर नहीं रह पाई. आखिर में वह चीचली में ठीक विपिन के घर के सामने आ कर बस गई.

चीचली में भी रातबिरात उस के घर मर्दों का आनाजाना आम बात थी. इन में उस की बेटी का देवर मुकेश सोलंकी तो अकसर उस के यहां देखा जाता था. इस से उस की इमेज चीचली में भी बिगड़ गई थी. लेकिन सुनीता जैसी औरतें समाज और दुनिया की परवाह ही कहां करती हैं. गांव में हर कोई जानता था कि सुनीता के पास पैसे कहां से आते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता था.

चोरी के कुछ दिन पहले विपिन का भाई उस के यहां घुस आया था और उस ने सुनीता को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया था. इस पर भी विपिन के घर वालों से उस की कहासुनी हुई थी. यह बात तो आईगई हो गई थी, लेकिन वह चोरी के शक की आग में जल रही थी इसलिए उस ने बदला मासूम वरुण की हत्या कर के लिया.

गांव वालों के मुताबिक यह पूरा सच नहीं है बल्कि तंत्रमंत्र और बलि का चक्कर है. गांव वाले इसे चंद्रग्रहण से जोड़ कर देख रहे हैं. गांव वालों के मुताबिक वरुण की लाश के पास से मिठाई भी मिली थी. घटनास्थल के पास से अगरबत्ती और कटे नींबू मिलने की बात भी कही गई. इस के अलावा वरुण की लाश को लाल रंग के कपड़े से ही क्यों लपेटा गया, इस की भी चर्चा चीचली में है.

गांव वालों की इस दलील में दम है कि अगर वाकई सुनीता के यहां चोरी हुई थी तो उस ने इस का जिक्र किसी से क्यों नहीं किया था और न ही पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

वरुण के नाना अनूप मीणा तो खुल कर बोले कि उन के नाती की हत्या की असली वजह तंत्रमंत्र का चक्कर है. उन्होंने घटनास्थल पर मिले नींबू के अलावा घर के बाहर पेड़ पर लटकी काली मटकी का भी जिक्र किया.

वरुण की हत्या चोरी का बदला थी या तंत्रमंत्र इस की वजह थी, इस पर पुलिस बोलने से बच रही है. लेकिन उस की लापरवाही और नकारापन लोगों के निशाने पर रहा. चीचली के लोगों ने साफसाफ कहा कि लाश एकदम बगल वाले घर में थी और पुलिस वाले यहांवहां वरुण को ढूंढ रहे थे.

गांव वालों का यह भी कहना है कि अगर डीजीपी और आईजी गांव में नहीं आते तो ये लोग उस सूने मकान में भी नहीं झांकते और वरुण की लाश पता नहीं कब मिलती. उम्मीद के मुताबिक इस हत्याकांड पर राजनीति भी खूब गरमाई. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हादसे पर अफसोस जाहिर किया तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बिगड़ती कानूनव्यवस्था को ले कर सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे.

हैरानी तो इस बात की भी है कि गुमशुदगी का बवाल मचने के बाद भी सुनीता ने वरुण की लाश बड़े इत्मीनान से जला दी और किसी को खबर भी नहीं लगी. सुनीता को अपने किए का कोई पछतावा नहीं है. इस से लगता है कि बात कुछ और भी हो सकती है.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ करने के बाद उस के नाबालिग बेटे को भी हिरासत में ले लिया. उस का कसूर यह था कि हत्या की जानकारी होने के बाद भी उस ने पुलिस को नहीं बताया था. पुलिस ने सुनीता को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया जबकि उस के नाबालिग बेटे को बालसुधार गृह भेजा गया.

कोचांग गैंगरेप केस : वो 6 घंटे हैवानियत के

15 मई, 2019 की दोपहर को झारखंड के जनपद खूंटी के जिला एवं सत्र न्यायाधीश (प्रथम) राजेश कुमार की अदालत के बाहर भारी भीड़ थी. अदालत परिसर में खाकी वरदी ही वरदी नजर आ रही थीं. परिसर के अंदर और बाहर सशस्त्र पुलिस किसी भी स्थिति से निबटने के लिए तैयार थी. हालात देख कर लग रहा था कि अदालत किसी बड़े केस का फैसला सुनाने वाली है.

सचमुच उस दिन एक बड़े और संगीन जुर्म का फैसला सुनाया जाने वाला था. दरअसल, खूंटी जिले के अड़की थाना क्षेत्र में एक दिल दहला देने वाली घटना घटी.

इस घटना में दरिंदों ने सोची समझी साजिश के तहत 3 युवकों और 5 युवतियों का अपहरण कर के पहले उन के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और फिर उन के गुप्तांगों को सिगरेट से दाग दिया. इस कांड से न केवल झारखंड की बुनियाद हिल गई थी. बल्कि इस दरिंदगी की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी थी. इसी केस में 6 आरोपियों को सजा सुनाई जानी थी.

दोपहर के करीब 2 बजे न्यायाधीश राजेश कुमार ने अदालत में आ कर न्याय का आसन संभाला. अदालत में सरकारी अधिवक्ता सुशील जायसवाल और बचाव पक्ष के दोनों अधिवक्ता के.बी. सांगा और सुभाशीष सोरेन सावधान मुद्रा में खड़े थे.

न्यायाधीश के सामने दाईं ओर बने कटघरे में 7 आरोपियों स्कौटमैन मेमोरियल मिडिल स्कूल के प्रधानाचार्य फादर अल्फोंस आइंद, छुटभैया नेता जौन जोनास तिडु, बलराम समद, जुनास मुंडा,बांदी समद उर्फ टकला, आशीष लुंगा एवं अजूब सांडी पूर्ती खड़े थे.

दोनों पक्षों के वकीलों ने घटना से संबंधित बहस 8 मई, 2019 को पूरी कर ली थी. बहस के दौरान बचाव पक्ष के वकीलों के.बी. सांगा और सुभाशीष सोरेन अपने मुवक्किलों को बचाने में असफल रहे थे. सरकारी वकील सुशील जायसवाल ने अदालत के सामने कई ठोस सबूत और केस से संबंधित 19 अहम गवाहों को पेश कर के बचाव पक्ष को धूल चटा दी थी.

8 मई को दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद न्यायाधीश राजेश कुमार ने फैसला सुनाने के लिए 15 मई, 2019 की तारीख मुकर्रर की थी. न्यायाधीश ने सातों आरोपियों के विरुद्ध फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘तमाम गवाहों और सबूतों के आधार पर अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि इस गैंगरेप में जौन जोनास तिडु, बलराम समद, जूनास मुंडा, बांदी समद उर्फ टकला, आशीष लुंगा, और अजूब सांडी पूर्ती दोषी पाए गए हैं. एक अभियुक्त को नाबालिग पाया गया है. उस के खिलाफ अनुसंधान जारी है.’’

अपने फैसले को जारी रखते हुए न्यायाधीश ने आगे कहा, ‘‘फादर अल्फोंस आइंद, जो पहले से जमानत पर थे, उन की जमानत रद्द की जाती है, क्योंकि वह इस केस में मुख्य षडयंत्रकारी साबित हुए हैं. साथ ही 4 अभियुक्तों जौन जोनास तिडु, बलराम समद, आशीष लुंगा और बांदी समद उर्फ टकला का जुर्म साबित हुआ है.

फादर अल्फोंस आइंद था साजिशकर्ता

जौन जोनास तिडु, बांदी समद उर्फ टकला, आशीष लुंगा और बलराम समद जो पत्थरगढ़ी के समर्थक थे, की इस मामले में संलिप्तता पाई गई है.

‘‘इस मामले में 19 लोगों की अहम गवाही दर्ज हुई. स्थितियों के अनुरूप यह मामला रेयरेस्ट औफ रेयर की श्रेणी में आता है. इसलिए अदालत सभी आरोपियों को दोषी करार देते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाती है. सभी अभियुक्तों को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया जाए.’’

न्यायाधीश राजेश कुमार फैसला सुनाने के बाद न्याय के आसन से उठ कर अपने कक्ष में चले गए. अदालत के आदेश के बाद पुलिस ने सभी दोषियों को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया.

दिल दहला देने वाली इस लोमहर्षक घटना की बुनियाद फैसला सुनाए जाने के 11 महीने पहले 19 जून, 2018 को पड़ी थी. इसलिए घटनाक्रम जानने के लिए हमें 11 महीने पहले जाना होगा.

झारखंड की राजधानी रांची से 80-90 किलोमीटर दूर ऊंची पहाडि़यों और जंगलों के बीच है जिला खूंटी. इस जिले के कुछ हिस्सों में आदिवासियों के बसेरे हैं. ये आदिवासी अशिक्षा, गरीबी, अज्ञानता के शिकार हैं और आज भी गुलामों जैसी जिंदगी जीते हैं.

खूंटी के एक सामाजिक संगठन आशा किरण की संस्थापिका सिस्टर जेम्मा ओएसयू ने आदिवासियों को अज्ञानता से आजादी दिलाने और मानव तस्करी जैसे घृणित कार्यों के खिलाफ जागरूकता अभियान चला रखा था. अपने नाम आशा किरण के अनुरूप यह संगठन अच्छा काम कर रहा था.

आशा किरण के युवक और युवतियां जगहजगह नुक्कड़ नाटक कर के जागरूकता का संदेश देते थे. संगठन के जोशीले कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे नुक्कड़ नाटकों से समाज पर गहरा असर हो रहा था. परिणामस्वरूप आदिवासी समाज में काफी बदलाव आने लगा था.

जो मांबाप अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते थे, वे पुरानी दकियानूसी परंपराओं को दरकिनार कर बच्चों को स्कूल भेजने लगे थे. स्कूली बच्चे घने जंगलों के बीच से हो कर कोसों दूर विद्यालय में पढ़ने जाते थे.

बात 19 जून, 2018 की है. जिले के अड़की थानाक्षेत्र के कोचांग स्थित स्टौकमैन मेमोरियल मिडिल स्कूल में सामाजिक संगठन आशा किरण की ओर से सरकारी योजनाओं के प्रचारप्रसार और मानव तस्करी के खिलाफ नुक्कड़ नाटक का आयोजन होना था.

यह आयोजन स्कूल के फादर अल्फोंस आइंद, स्कूल के 2 शिक्षकों मोटाई मुंडू, रौबर्ट हस्सा पूर्ती और 2 महिला शिक्षकों रंजीता किंडो और अनीता नाग की देखरेख में शुरू हुआ. नाटक में आशा किरण की ओर से 3 युवक रोशन, विकास, राजन और 5 युवतियां सीमा, रीना, गीता, बिपाशा और वंदना शामिल थे.

ये कलाकार अपनी कला के माध्यम से सरकारी योजनाओं के बारे में बता रहे थे. इस कार्यक्रम को शुरू हुए करीब एक घंटा बीत चुका था. नाटक के दौरान एक शख्स स्कूल की सिस्टर रंजीता किंडो से मिला. उस ने कहा कि वह कोचांग के बुरुडीहा गांव का मुखिया है. उसे उन का कार्यक्रम पसंद है और वह चाहता है कि बुरुडीह में भी ऐसा कार्यक्रम कराया जाए.

सिस्टर रंजीता किंडो ने पहले तो मना कर दिया, फिर कुछ सोच कर कहा कि इस की इजाजत फादर अल्फोंस आइंद से लेनी पड़ेगी. अगर वह कलाकारों को ले जाने की परमिशन दे देते हैं तो ये लोग वहां जा सकते हैं.

उस शख्स ने सिस्टर रंजीता से कहा कि वह उसे फादर अल्फोंस आइंद से मिला दे. रंजीता उसे ले कर फादर के दफ्तर पहुंची, जो स्कूल के पीछे था. उस शख्स के साथ 3 और भी युवक थे. जिन की उम्र 25 से 35 साल के बीच रही होगी. ये चारों युवक मोटरसाइकिल से आए थे.

नुक्कड़ नाटक बना मुसीबत

रंजीता किंडो वहां से मंच की ओर लौट आई. नाटक खत्म हो चुका था और कलाकार वापस लौटने की तैयारी करने लगे थे. तभी फादर अल्फोंस ने सिस्टर अनीता नाग को भेज कर आठों कलाकारों को अपने औफिस में बुला लिया.

फादर अल्फोंस ने एक व्यक्ति की ओर इशारा कर के कलाकारों से कहा कि ये कोचांग के मुखिया हैं और बुरुडीह गांव में नुक्कड़ नाटक कराना चाहते हैं. 2 घंटे की बात है. आप सब वहां जा कर नाटक कर दें. नाटक खत्म होते ही मुखियाजी अपने आदमियों के साथ आप सभी को सम्मान के साथ यहां पहुंचा देंगे.

फादर अल्फोंस आइंद की बात सुन कर सभी कलाकारों ने उन युवकों के साथ जाने से मना कर दिया. उन युवकों ने सिस्टर रंजीता किंडो और सिस्टर अनीता नाग को भी साथ चलने के लिए कहा था. लेकिन फादर ने यह कह कर दोनों सिस्टर्स को उन के साथ भेजने से मना कर दिया कि वे नन हैं, इसलिए वहां नहीं जा सकतीं.

कलाकारों के मना करने पर मोटर साइकिलों पर आए चारों व्यक्ति जोरजबरदस्ती पर उतर आए. उन्होंने बंदूक की नोंक पर आठों कलाकारों को आशा किरण के वाहन में बैठा लिया और बुरुडीह की ओर चलने को कहा. वाहन के पीछेपीछे चारों युवक 3 मोटरसाइकिलों पर चल रहे थे.

आशा किरण के आठों कलाकार रोशन, विकास, राजन और 5 युवतियां सीमा, रीना, गीता, बिपाशा और वंदना को बुरुडीह गए करीब 6 घंटे बीत गए थे, शाम ढलने वाली थी. लेकिन वे स्कूल लौट कर नहीं आए थे.

फादर अल्फोंस को उन की चिंता हो रही थी. थोड़ी देर बाद यानी शाम साढ़े 6 बजे आशा किरण के वाहन ने स्कूल में प्रवेश किया तो उसे देख कर फादर की जान में जान आई. क्योंकि सारे कलाकार उन्हीं की जिम्मेदारी पर बुरुडीह गए थे.

वाहन स्कूल परिसर के बीच खड़ा कर के चालक तेजी से मुख्यद्वार से बाहर की ओर भाग गया. यह देख कर फादर आइंद को कुछ शक हुआ. उन्होंने वाहन के पास जा कर उस के भीतर झांका. वाहन में आठों कलाकार मरणासन्न स्थिति में पड़े थे. उनके कपडे़ फटे हुए थे. शरीर पर जगहजगह चोट के निशान थे.

फादर अल्फोंस ने खेला खेल

लड़कों और लड़कियों की हालत देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उन के साथ कुछ बहुत बुरा हुआ था. वे इस स्थिति में नहीं थे कि कुछ बोल पाते. फादर के बहुत कुरेदने पर लड़कों ने जो आपबीती बताई, उसे सुन कर फादर के रोंगटे खड़े हो गए.

फादर अल्फोंस आइंद की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें. इलाके में फादर का बहुत दबदबा था. राजनीति के गलियारों में ऊंची पहुंच थी. इसी का फायदा उठाते हुए फादर आइंद ने आठों कलाकारों को धमकाया कि जो होना था, सो हो गया. यह बात तुम सब के अलावा किसी को पता नहीं चलनी चाहिए. अन्यथा इस का बहुत बुरा परिणाम होगा.

फादर ने कहा तुम्हारे मुंह खोलने पर तुम्हारे मांबाप की हत्या भी हो सकती है. फादर के धमकाने से आठों कलाकार बुरी तरह डर गए. वे लोग इतना डर गए कि अपने साथ हुई घटना के बारे में अपने मांबाप तक को नहीं बताया.

आठों कलाकारों के साथ घटना घटे 24 घंटे बीत गए थे. खूंटी की रहने वाली सीमा को भीतर ही भीतर बुरी तरह घुटन महसूस हो रही थी. उन लोगों द्वारा दी गई यातना उस से बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने अपने मांबाप से आपबीती सुना दी और फफक फफक कर रोने लगी.

बेटी के साथ हुई घटना को मांबाप ने सुना तो सन्न रह गए. बात कोई छोटीमोटी नहीं थी. बेटी की मानमर्यादा को तारतार कर के उस के गुप्तांगों को सिगरेट से जलाया गया था. उन दरिंदों ने यातना की सारी सीमाएं लांघ दी थीं. सीमा और उस के बाकी साथियों के साथ क्या क्या हुआ था, उस ने मांबाप को पूरी बात विस्तार से बता दी.

दरअसल, बीते 19 जून को खुद को बुरुडीह का मुखिया बता कर जो युवक गांव में नुक्कड़ नाटक कराने की बात कह कर आठों कलाकारों को अपने साथ ले गया था, वह उन्हें गांव न ले जा कर एक घने जंगल में ले गया था. वाहन चला रहे आशा किरण संगठन के चालक संजय शर्मा को मारपीट कर बीच रास्ते में उतार दिया गया था.

गाड़ी के पीछे चल रहे मोटरसाइकिल सवारों में से एक नीचे उतरा और संजय की जगह ड्राइविंग सीट पर सवार हो कर वाहन चलाने लगा. वे लोग जिस जंगल के बीच वाहन को ले गए, वहां पहले से ही कई लोग मौजूद थे. उन के पास खतरनाक हथियार थे.

मुखिया ने सभी युवक और युवतियों को वाहन से निकलने का आदेश दिया. फरमान जारी होते ही सभी एकएक कर के वाहन से नीचे उतर आए और एक कतार में खडे़ हो गए. उन के कतार में खड़े होते ही हथियारबंद युवकों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया.

उन लोगों के हाथों में हथियार देख कर आठों कलाकार कांपने लगे. मुखिया आगे बढ़ा और पांचों युवतियों में से सीमा के नजदीक पहुंचा. पहले तो उस ने सीमा को खा जाने वाली नजरों से घूरा, फिर एकाएक उस के बालों को अपनी मुट्ठी में भर कर खींचा. सीमा दर्द के मारे बिलबिला उठी. वह चिल्लाया, ‘‘हरामजादी कुतिया, और चिल्ला.’’

मुखिया की आंखों से क्रोध के अंगारे बरसने लगे, ‘‘तुम्हारा चीखना चिल्लाना सुन कर मेरे दिल को सुकून मिला.’’

‘‘पर आप हो कौन?’’ सीमा ने साहस जुटा कर सवाल किया, ‘‘और इस तरह हमारे साथ जंगली जानवरों जैसा व्यवहार क्यों कर रहे हो? आखिर हम ने किया क्या है?’’

‘‘बहुत नाटक करती है हरामजादी और मुझ से पूछती है कि तेरा दोष क्या है?’’ मुखिया दांत भींचते हुए बोला.

‘‘लेकिन हमारे नाटक से आप का क्या संबंध है?’’

‘‘है. तुम्हारे नाटक करने से हमारा बहुत गहरा संबंध है. तुम जो नाटक कर के समाज के लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रहे हो, वही तुम्हारा सब से बड़ा दोष है. तुम्हें और तुम्हारे साथियों को इस दोष की ऐसी सजा दी जाएगी, जो जीवन भर नासूर बन कर तुम्हारे जमीर को चुभेगी.’’

‘‘प्लीज हमें छोड़ दीजिए, हमें हमारे घर जाने दीजिए.’’ सीमा दोनों हाथ जोड़ कर उस के सामने गिड़गिड़ाई, ‘‘अगर हमारे नाटक करने से आप को परेशानी है तो आज के बाद हम नाटक नहीं करेंगे. प्लीज, हमें छोड़ दीजिए.’’

‘‘हम तुम्हें और तुम्हारे बाकी साथियों को छोड़ भी देंगे, घर भी जाने देंगे लेकिन सजा देने के बाद, समझी?’’ इतना कह कर मुखिया ने उस के बाल छोड़ दिए. फौरी तौर पर सीमा को थोड़ी राहत मिली.

दरिंदगी की इंतहा

सीमा को यातना देते देख बाकी साथियों की सांस गले में अटक गई थी. उन के मुंह से एक बोल तक नहीं फूटा. इस के बाद मुखिया ने अपने साथियों को इशारा किया.

उस का इशारा पाते ही 5 युवक, जिस में मुखिया भी शामिल था, पांचों लड़कियों को खींच कर वहां से थोड़ी दूर जंगल के भीतर ले गए और एकएक कर के उन के साथ अपना मुंह काला किया. उन के साथ एक युवक और भी था, जो अपने और लड़कियों के मोबाइल से दुष्कर्म के समय की वीडियो बना रहा था.

इन दरिंदों का जब इतने पर भी दिल नहीं भरा तो उन्होंने उन के गुप्तांगों को सिगरेट से दाग दिया. सिगरेट की जलन से वे बुरी तरह बिलबिला उठीं. वे दरिंदों के सामने हाथ जोड़ कर भीख मांग रही थीं कि वीडियो न बनाएं लेकिन उन हैवानों पर उन की याचनाओं का कोई असर नहीं हुआ.

दरिंदे सिगरेट से गुप्तांग के जलाए जाने का भी नजदीक से वीडियो बना रहे थे. हैवानों ने उन के साथ कई बार अपना मुंह काला किया. इतना ही नहीं, उन्होंने लड़कों को भी नहीं छोड़ा. लड़कों के साथ भी अप्राकृतिक दुष्कर्म किया गया. इतना ही उन्हें अपना पेशाब  पिलाया और इस कृत्य की भी वीडियो बनाई.

उन नरपिशाचों ने 6 घंटों तक आठों युवकयुवतियों के साथ यातनाओं का घिनौना खेल खेला. जब शाम ढलने लगी तो सभी युवकयुवतियों को उन्हीं के वाहन में डाल कर स्कूल पहुंचा दिया गया. स्कूल पहुंच कर उन्होंने फादर अल्फोंस आइंद से आपबीती सुनाई. लेकिन फादर आइंद ने मदद करने की बजाए उन्हें डराधमका कर चुप करा दिया.

बहरहाल, सीमा की दिलेरी से दिल दहला देने वाली घटना सामने आई तो उस के मांबाप ने आशा किरण की संस्थापिका जेम्मा ओएसयू को पूरी बात बताई, जिन की जिम्मेदारी पर बच्चियां नुक्कड़ नाटक करने गई थीं. बच्चियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी संगठन की थी, लेकिन उन की सुरक्षा नहीं की गई थी.

सिस्टर जेम्मा ने दिल दहला देने वाली घटना सुनी तो भौचक रह गईं. उन्हें ताज्जुब तो इस बात पर हो रहा था कि 24 घंटे बीत जाने के बाद भी मामला पुलिस तक नहीं पहुंचा, बल्कि उसे दबा दिया गया था. लेकिन वे खुद चुप बैठने वालों में से नहीं थीं.

21 जून, 2018 की दोपहर को सिस्टर जेम्मा अड़की थाने पहुंचीं और पुलिस को घटना की लिखित तहरीर दी. तहरीर पढ़ कर एसओ विपिन सिंह के होश उड़ गए. इतनी बड़ी और शर्मनाक घटना की पुलिस को सूचना तक नहीं मिली थी.

सिस्टर जेम्मा की तहरीर पर आननफानन में अड़की पुलिस ने अज्ञात बदमाशों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. एसओ विपिन सिंह जानते थे, जेम्मा कोई ऐसीवैसी महिला नहीं हैं, उन की पहुंच ऊपर तक है. सो उन्होंने त्वरित काररवाई की.

अज्ञात बदमाशों के खिलाफ भादंवि की धारा 341, 342, 323, 363, 365, 328, 506, 201, 120बी के तहत केस दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होते ही इस घटना की जानकारी पूरे जिले में फैल गई. यह बात जब शहर के एसपी अश्विनी कुमार सिन्हा तक पहुंची तो आननफानन में वे अड़की थाना पहुंचे और मामले की पूरी जानकारी ली.

घटना छोटीमोटी नहीं थी. साथ ही मानवाधिकार से भी जुड़ी हुई थी. एसपी अश्विनी ने अपनी गरदन बचाते हुए यह सूचना आईजी नवीन कुमार और डीआईजी अमोल वी. होमकर को दे दी. हकीकत सुन कर पुलिस अधिकारी सकते में आ गए. उसी दिन शाम होतेहोते यह मामला पुलिस महानिदेशक डी.के. पांडेय, एडीजी आर.के. मल्लिक से होते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास तक जा पहुंचा.

22 जून को मुख्यमंत्री रघुबर दास ने प्रदेश के पुलिस प्रमुख डी.के. पांडेय को अपने औफिस बुला कर उन के साथ आपात बैठक की. बैठक में उन्होंने मामले की गहन जांच के आदेश दिए और साजिश का परदाफाश करने को कहा. यही नहीं, उन्होंने दोषियों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी सुनिश्चित करने के भी आदेश दिए.

मुख्यमंत्री के आदेश के बाद डीजीपी डी.के. पांडेय ने आईजी नवीन कुमार को निर्देश दिया कि अविलंब सभी पीडि़तों की सुरक्षा बढ़ा दी जाए और उन से आरोपियों के बारे में पूछताछ की जाए. उन से जानकारी जुटा कर आरोपियों के स्कैच बनवाए जाएं.

आईजी नवीन कुमार का फरमान जारी होते ही एसपी अश्विनी कुमार ने आठों पीडि़तों को पूछताछ के लिए सुरक्षा घेरे में ले लिया. उन के रहने की व्यवस्था थाना अड़की में की गई. सुरक्षा की दृष्टि से उन से किसी की भी बात कराने पर पाबंदी लगा दी गई थी, ऐसा इसलिए किया गया था कि इस मामले की जानकारी बाहर न जा सके.

थाने में हुई पीडि़तों से पूछताछ के आधार पर 3 आरोपियों के स्कैच बनवा कर शहर में जगहजगह चस्पा करा दिए गए. उन पर ईनाम भी घोषित किया गया. उस के बाद सभी पीडि़तों का चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया. मैडिकल रिपोर्ट में उन सभी के साथ दुष्कर्म की पुष्टि हुई.

खैर, 5 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस को कोई खास सफलता नहीं मिली. लेकिन छठे दिन अचानक ही पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिल गई. शहर में लगाए गए पोस्टरों में से स्कैच वाले 2 युवकों की पहचान हो गई. दोनों आरोपियों के नाम अजूब सांडी पूर्ती और आशीष लुंगा थे. वे खूंटी जिले के पश्चिम सिंहभूम गांव के रहने वाले थे.

पुलिस को किस का डर था

पुलिस ने दोनों आरोपियों को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए अड़की थाने ले आई.

थाने ला कर पुलिस ने जब अजूब सांडी और आशीष लुंगा से सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए. उन्होंने अपने साथियों के नाम भी बता दिए.

घटना में इन के अलावा पत्थलगढ़ी समुदाय का मुखिया जौन जोनास तिडु, बलराम समद, बांदी समद उर्फ टकला और जुनास मुंडा के अलावा पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट औफ इंडिया (उग्रवादी संगठन) के लोग शामिल थे.

अजूब सांडी और आशीष लुंगा की निशानदेही पर उसी रात चारों साथियों को पश्चिम सिंहभूम से गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन उन्होंने अपने जुर्म कबूलने से इनकार कर दिया.

इस पर पुलिस ने इन चारों और पहले गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपियों की अलग कमरे में बैठे पीडि़तों के सामने परेड कराई तो पीडि़तों ने आरोपियों को पहचान लिया. ये वही दरिंदे थे, जिन्होंने 19 जून को उन्हें 6 घंटे तक मौत से बदतर यातनाएं दी थीं.

पीडि़तों द्वारा शिनाख्त किए जाने के बाद पुलिस ने चारों आरोपियों जौन जोनास तिडु, बलराम समद, बांदी समद उर्फ टकला और जुनास मुंडा से अलगअलग कड़ाई से पूछताछ की तो चारों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. ये लोग ही लड़के लड़कियों को स्कूल से जबरन अगवा कर के ले गए थे

इन लोगों ने उन के साथ बदले की भावना से बलात्कार किया था ताकि भविष्य में फिर कोई उन के और उन के उसूलों के खिलाफ न जा सके. यानि गुलामों सी जिंदगी जी रहे आदिवासियों को उन के अधिकारों का पाठ पढ़ाने की कोशिश न करे.

सामूहिक दुष्कर्म के सभी आरोपियों की गिरफ्तारी की सूचना मिलने पर एडीजी आर.के. मल्लिक, आईजी नवीन कुमार, डीआईजी अमोल वी. होमकर को मिली, तो वे भी थाने आ गए.

एडीजी आर.के. मल्लिक शहर में रह कर घटना की पलपल की मौनिटरिंग कर रहे थे और पूरी जानकारी पुलिस प्रमुख डी.के. पांडेय और मुख्यमंत्री रघुबर दास को दे रहे थे. पुलिसिया जांचपड़ताल में पूरी घटना के पीछे स्कौटमैन मेमोरियल मिडिल स्कूल के फादर अल्फोंस आइंद द्वारा रची गई साजिश का परदाफाश हुआ.

आरोपियों से की गई पूछताछ, पीडि़तों के मजिस्ट्रैट के समक्ष दिए गए बयानों और मौके से जुटाए गए साक्ष्यों के आधार पर पुलिस ने घटना के मुख्य साजिशकर्ता फादर अल्फोंस आइंद को 27 जून को स्कूल परिसर से गिरफ्तार कर लिया.

फादर अल्फोंस आइंद के गिरफ्तार होते ही क्रिश्चियन मिशनरी में खलबली मच गई. ईसाई समुदाय के लोग पुलिस का विरोध करने लगे तो विवश हो कर अगले दिन एडीजी आर.के. मल्लिक को प्रैस कौन्फ्रैंस करनी पड़ी.

एडीजी आर.के. मल्लिक ने प्रैसवार्ता के दौरान पत्रकारों को बताया कि खूंटी में घटी घटना में पत्थलगढ़ी के नेता जौन जोनास तिडु और अन्य अपराधी शामिल थे.

उन्होंने दावा किया कि अपराधी 5 युवतियों और उन के 3 पुरुष साथियों को उन्हीं की गाड़ी में जबरदस्ती बैठा कर 7-8 किलोमीटर दूर छोटाली के जंगल में ले गए थे. वहां पहले से ही पीएलएफआई समूह के नक्सली मौजूद थे. इन लोगों ने नुक्कड़ नाटक करने वाले समूह को सबक सिखाने के लिए उन के साथ सुनियोजित तरीके से बलात्कार किया.

मल्लिक ने आगे बताया कि पुलिस ने पश्चिम सिंहभूम के रहने वाले अजूब सांडी पूर्ती और आशीष लुंगा को गिरफ्तार कर मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. गिरफ्तार दोनों अपराधियों ने अपना अपराध कबूल लिया और पीडि़त युवतियों के समक्ष उन की परेड करा कर उन की पहचान भी करा ली गई.

जांच के दौरान पाया गया कि खूंटी में हुई सामूहिक बलात्कार की इस घटना में कम से कम 7 लोगों ने 5 युवतियों का अपहरण कर उन के साथ बलात्कार किया था. साथ ही उन के 3 पुरुष सहकर्मियों के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म भी किया था. आरोपियों ने इस पूरे कृत्य की वीडियो बना कर उसे सोशल मीडिया पर भी डाल दिया था.

प्रैस कौन्फ्रैंस के बाद पुलिस ने फादर अल्फोंस आइंद को अदालत के सामने पेश किया, जहां से अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

बहरहाल, आशा किरण संगठन समाज को जागरूक करने के लिए समय समय पर सरकारी योजनाओं के बारे में बताने के लिए नुक्कड़ नाटक कराती रहती थी. आशा किरण द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले ये नाटक पत्थलगड़ी के कोचांग इलाके के छुटभैये नेता जौन जोनास तिडु को पसंद नहीं आ रहे थे. उसे लगता था कि उन के द्वारा किए जाने वाले नुक्कड़ नाटक पत्थलगढ़ी समाज के खिलाफ हैं.

उन नाटकों में काम करने वाले लड़के और लड़कियां उन्हीं के समुदाय के थे. जोनास ने लड़कियों से मना किया था कि तुम सब ऐसे नाटकों में भाग मत लिया करो, जिस से हमारे समाज को नुकसान पहुंचे. लेकिन लड़कियों ने जोनास की बात मानने से साफ इनकार कर दिया था.

पूरे कृत्य का मास्टरमाइंड था जोनास तिडु

जोनास तिडु ने लड़कियों से बदला लेने की ठान ली और मौके की तलाश में रहने लगा. छुटभैया नेता जोनास तिडु का जो चेहरा सब के सामने था, उस के पीछे एक और चेहरा छिपा था. उस का संबंध झारखंड के प्रतिबंधित कट्टर उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट औफ इंडिया से था. उग्रवादी संगठन के साथ मिल कर वह समाज विरोधी गतिविधियों में संलिप्त था.

खैर, जिस मौके की तलाश में जोनास तिडु जुटा था, आखिरकार वह मौका उसे मिल ही गया. जोनास तिडु को पता चला था कि फादर अल्फोंस आइंद के स्कूल में 19 जून को आशा किरण की लड़कियां नुक्कड़ नाटक करने वाली हैं.

उस से 2 दिन पहले जोनास तिडु अपने ग्रुप के साथियों बलराम समद, अजूब सांडी पूर्ती, बांदी समद उर्फ टकला, जुनास मुंडा और आशीष लुंगा के साथ स्कूल जा कर फादर आइंद से मिला. फादर आइंद जानता था कि जोनास अपराधी प्रवृत्ति का इंसान है, अगर उस की बात नहीं मानी तो वह कुछ भी कर सकता है.

योजना के अनुसार, जौन जोनास तिडु ने अपने साथ उग्रवादी संगठन पीएलएफआई के कई साथियों को भी मिला लिया था. लड़कियों के साथ क्या करना है, इस की भी रूपरेखा तैयार कर ली गई.

19 जून को आशा किरण के लड़के और लड़कियां जब फादर आइंद के स्कूल में नाटक करने पहुंचे तो फादर ने इस की सूचना जौन जोनास को दे दी. सूचना मिलते ही दिन के करीब 12 बजे जौन जोनास तिडु अपने 3 साथियों बलराम समद, अजूब सांडी पूर्ति और आशीष लुंगा के साथ 3 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर स्कूल पहुंच गया. उस समय नाटक समाप्त होने वाला था.

जौन जोनास नाटक मंच के पास मौजूद सिस्टर रंजीता किंडो से मिला और अपने इलाके बुरुडीह में नाटक कराने की इच्छा जाहिर की. रंजीता ने उसे फादर से मिला दिया. सिस्टर रंजीता और सिस्टर अनीता नाग को देख कर उस का दिल दोनों ननों पर आ गया था.

जब वह फादर के पास पहुंचा, तो फादर समझ गए कि कोई बड़ा अनर्थ होने वाला है. जोनास ने जब नाटक मंडली को अपने इलाके में ले जाने की बात कही तो वह फौरन तैयार हो गए.

नाटक मंडली के 3 लड़के और 5 लड़कियों के अलावा जब उस ने दोनों ननों सिस्टर रंजीता किंडो और अनीता नाग को भेजने के लिए कहा तो फादर ने यह कह कर मना कर दिया कि वे नन हैं और हमारे विद्यालय की हैं.

जोनास फादर की बात मान गया. इस पर नाटक मंडली के सभी कलाकारों ने विरोध किया तो जोनास और उस के साथी आठों को जबरन अपहरण कर के उन्हीं के वाहन में बिठा कर ले गए. ये लोग स्कूल से 7-8 किलोमीटर दूर जंगल में पहुंचे, जहां पहले से पीएलएफआई के नक्सलियों के साथ उन के अन्य साथी मौजूद थे. आगे क्या हुआ, ऊपर कहानी में बताया जा चुका है.

खूंटी में हुए गैंगरेप की घटना के करीब ढाई महीने बाद मानवाधिकारों के हनन के मामले की जांच के लिए 17-18 अगस्त, 2018 को डब्ल्यूएसएस और सीडीआरओ की 10 सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम फैक्ट फाइंडिंग के लिए स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ खूंटी गई.

टीम ने अपनी जांच के बाद बताया कि पुलिस को गैंगरेप की घटना की जानकारी तो मिली, लेकिन एफआईआर से यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें घटना की जानकारी कहां से मिली.

फैक्ट फाइंडिंग टीम को पुलिस अधिकारियों से पूछताछ करने पर पता चला कि महिला थाने को भी घटना की जानकारी एसपी औफिस से मिली थी. एसपी से इस के बारे में पूछने पर उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. 20 जून की रात से ही पुलिस ने पीडि़तों से संपर्क साधने की कोशिश की पर वे पीडि़तों तक 21 जून को पहुंच पाई.

जांच टीम ने आगे बताया कि गैंगरेप की 5 पीडि़ताओं को पुलिस द्वारा उन की सुरक्षा करने के नाम पर गैरकानूनी रूप से 3 हफ्ते तक हिरासत में रखा गया. पुलिस की हिरासत में 3 हफ्ते तक उन्हें किसी से मिलने तक नहीं दिया जा रहा था. केवल एनसीडब्ल्यू की टीम उन से मिल पाई थी.

एक पीडि़ता के परिजनों ने बताया कि उन्हें भी पीडि़ता से घटना के 2-3 दिन बाद थाने में पुलिस वालों की मौजूदगी में केवल 5-10 मिनट के लिए मिलने दिया गया था. प्रशासन की इस काररवाई को एसपी अश्विनी कुमार सिन्हा ने दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए सही बताया.

मुख्यमंत्री रघुबर दास के आदेश पर दिल दहला देने वाले खूंटी गैंगरेप कांड की रोजाना सुनवाई शुरू हुई. घटना में लिप्त सातों आरोपी जेल में बंद थे. घटना के करीब 6 महीने बाद पटना हाईकोर्ट से फादर अल्फोंस आइंद को जमानत मिल गई थी. लेकिन अदालत ने उसे शहर छोड़ कर कहीं भी जाने पर पाबंदी लगा कर उस का पासपोर्ट जब्त कर लिया था.

7 मई, 2019 को खूंटी के जिला एवं सत्र न्यायाधीश (प्रथम) राजेश कुमार की अदालत ने 4 आरोपियों के खिलाफ चार्ज फ्रेम किया. कोर्ट ने फादर अल्फोंस को षडयंत्रकारी मानते हुए उस की जमानत रद्द कर दी. उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. बाद में इसी कोर्ट ने 15 मई, 2019 को सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

—कथा में रोशन, विकास, राजन, सीमा, रीना, गीता, बिपाशा और वंदना परिवर्तित नाम हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

संतान प्राप्ति के लिए नरबलि, दोषियों को उम्रकैद

उस दिन कानपुर देहात की माती अदालत में आम दिनों से कुछ ज्यादा ही भीड़ थी. सर्दी होने के बावजूद लोग 10 बजे से पहले ही कचहरी पहुंच गए थे. अपर जिला जज-13 पोक्सो वाकर शमीम रिजवी की अदालत के बाहर सब से ज्यादा भीड़ मौजूद थी. भीड़ में आम लोगों के अलावा वकील भी शामिल थे.

अदालत में भीड़ जुटने का कारण यह था कि उस दिन कानपुर देहात के बहुचर्चित मासूम मानसी अपहरण हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. इसलिए मानसी के मातापिता के अलावा उन के कई परिचित भी अदालत में आए हुए थे.

भीड़ में इस बात को ले कर खुसरफुसर हो रही थी कि अदालत क्या फैसला सुनाएगी. कोई कह रहा था कि आरोपियों को फांसी होगी तो कोई उम्रकैद होने का अनुमान लगा रहा था. दरअसल, इस मामले से कानपुर देहात की जनता का भावनात्मक जुड़ाव रहा था. इसलिए कानपुर देहात की जनता की नजरें फैसले पर टिकी हुई थीं.

अपर जिला जज वाकर शमीम रिजवी नियत समय पर कोर्टरूम आ कर अपनी कुरसी पर बैठ गए. उन के कुरसी पर बैठते ही अदालत में सन्नाटा छा गया. आरोपी परशुराम, सुनैना, अंकुल व वीरन अदालत के कटघरे में मौजूद थे. जज ने बारीबारी से उन पर नजर डाली. मृतका मानसी के घर वाले, शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय तथा विपक्ष के वकील ताराचंद्र व रवि तिवारी भी अदालत में मौजूद थे.

ghatampur-narbali-case

अदालत में शांति बनाए रखने का आदेश देने के बाद अपर जिला जज वाकर शमीम रिजवी ने दंड के रूप में दी जाने वाली सजा पर दोनों पक्षों को ध्यान से सुना. अभियुक्तों के वकीलों का तर्क था कि इस से पहले अभियुक्तों ने कोई भी अपराध नहीं किया है. उन के खिलाफ अपराध भी पहली बार सिद्ध हुआ है, जो जघन्य से जघन्यतम नहीं है. इसलिए उन के करिअर, उम्र व भविष्य को देखते हुए उन्हें दिए जाने वाले दंड में नरमी बरती जानी चाहिए.

जबकि अभियोजन पक्ष की तरफ से जिला शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय ने उन की बात का विरोध करते हुए कहा कि 6 वर्षीय बच्ची की हत्या कर उस का कलेजा निकाल कर खाना बेहद क्रूरतम अपराध है.

उस की हत्या के पीछे तंत्रमंत्र बड़ा कारण था. इसलिए पैरों पर महावर लगाई गई थी. यह रेयरेस्ट औफ रेयर मामला है. इसलिए आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए, इन्हें कम से कम फांसी की सजा दी जानी चाहिए.

वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जज साहब ने शाम 4 बजे दोषियों को सजा सुनाने की बात कही. इस के बाद वह अपने चैंबर में चले गए. यह बात 16 दिसंबर, 2023 की है.

मासूम मानसी कौन थी? उस का अपहरण व हत्या क्यों की गई? यह सब जानने के लिए हमें करीब 3 साल पीछे जाना होगा.

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर एक बड़ा कस्बा है-घाटमपुर. इस कस्बे से कुछ दूरी पर स्थित है-भदरस गांव. कमल कुरील इसी दलित बाहुल्य गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी जयश्री के अलावा 2 बेटियां थीं, जिन में मानसी बड़ी थी. कमल कुरील किसान था. खेतीबाड़ी से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. मानसी 6 वर्ष की थी, जबकि छोटी बेटी 4 वर्ष की.

किस ने दी बच्ची की बलि

14 नवंबर, 2020 को दीपावली का त्योहार था. शाम को नए कपड़े पहनकर मानसी व दया घर के बाहर अपनी सहेली के साथ खेल रही थीं. कुछ देर बाद दया तो घर वापस आ गई, लेकिन मानसी घर वापस नहीं आई. कमल व उस की पत्नी जयश्री तब मानसी की खोज में जुट गए.

अड़ोसपड़ोस के लोगों को मासूम मानसी के गायब होने की जानकारी हुई तो वे भी उस के मातापिता के साथ उस की खोज में जुट गए. उन्होंने गांव की हर गली, कोना छान मारा. खेतखलिहान, बागबगीचा भी खंगाला, तालाब, कुआं भी देखा, लेकिन मानसी का कुछ भी पता न चला.

सुबह 5 बजे कुछ लोग गांव के बाहर स्थित भद्रकाली मंदिर की तरफ गए तो उन्होंने मासूम मानसी की लाश भद्रकाली मंदिर के पास पड़ी देखी. हालात देख कर लग रहा था कि वहां उस की बलि दी गई थी. कमल व उस की पत्नी जयश्री को खबर लगी तो दोनों नंगे पांव ही भागे.

इसी बीच गाँव के किसी व्यक्ति ने दीपावली की रात गांव के कमल कुरील की 6 वर्षीय बेटी मानसी की बलि देने की सूचना थाना घाटमपुर के इंसपेक्टर राजीव सिंह को दे दी.

ghatampur-ghatnasthal

खबर पाते ही एसएचओ पुलिस टीम के साथ भदरस गांव पहुंच गए. भद्रकाली मंदिर गांव के बाहर था. वहां भारी भीड़ जुटी थी. दरअसल, मासूम बच्ची की बलि चढ़ाए जाने की बात भदरस ही नहीं, बल्कि अड़ोस पड़ोस के गांवों तक फैल गई थी. अत: सैकड़ों लोगों की भीड़ वहां जमा थी.

भीड़ देख कर राजीव सिंह के हाथपांव फूल गए. क्योंकि वहां मौजूद लोगों में गुस्सा भी था. लोगों ने साफ कह दिया था कि जब तक एसएसपी घटनास्थल पर नहीं आएंगे, तब तक वह बच्ची के शव को नहीं उठने देंगे. इंसपेक्टर राजीव सिंह ने यह जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी, फिर जांच में जुट गए.

मानसी की नग्न लाश भद्रकाली मदिर के पास नीम के पेड़ के नीचे गन्नू तिवारी के खेत में पड़ी थी. शव के पास मृत बच्ची का पिता कमल कुरील बदहवास खड़ा था और उस की पत्नी जयश्री कुरील दहाड़ मार कर रो रही थी. घर की महिलाएं उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं.

मासूम का पेट किसी नुकीले व धारदार औजार से चीरा गया था और पेट के अंदर के अंग दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें तथा किडनी गायब थीं. बच्ची के गुप्तांग पर चोट के निशान थे. माथे पर तिलक लगा था और पैरों पर महावर लगी थी. देखने से ऐसा लग रहा था कि नरपिशाचों ने बलि देने से पहले मासूम के साथ दुराचार भी किया था. शव के पास ही मृतका की चप्पलें, जींस तथा अन्य कपड़े पड़े थे. नमकीन का एक खाली पैकेट भी वहां पड़ा मिला.

इंसपेक्टर सिंह ने वहां पड़ी चीजों को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. उसी दौरान एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (ग्रामीण) ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव तथा सीओ (घाटमपुर) रवि कुमार सिंह भी वहां आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा कई थानों की फोर्स बुलवा ली. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित भीड़ को आश्वासन दिया कि जिन्होंने भी दिल को झकझोर देने वाली इस घटना को अंजाम दिया है, वे जल्द ही पकड़े जाएंगे और उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाई जाएगी.

अधिकारियों के इस आश्वासन पर लोग नरम पड़ गए, उस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. बालिका का शव देख कर पुलिस अधिकारी भी सिहर उठे.

एसएसपी के बुलावे पर डौग स्क्वायड भी घटनास्थल पर पहुंची. डौग स्क्वायड प्रभारी अवधेश सिंह ने जांच शुरू की. उन्होंने नीम के पेड़ के नीचे पड़ी बालिका के खून के अंश व उस की चप्पलें खोजी कुतिया यामिनी को सुंघाई. उसे सूंघने के बाद यामिनी खेत की पगडंडी से होते हुए गांव की ओर दौड़ पड़ी.

कई जगह रुकने के बाद वह सीधे मृतक बच्ची के घर पहुंची. यहां से बगल के घर से होते हुए गली के सामने बने एक घर पर पहुंची. 4 घरों में जाने के बाद गली के कोने में स्थित एक मंदिर पर जा कर वह रुक गई.

टीम ने पड़ताल की, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. इस के बाद यामिनी गांव का चक्कर लगा कर घटनास्थल पर वापस आ गई. यामिनी हत्यारों तक नहीं पहुंच सकी.

मुख्यमंत्री योगी के आदेश पर एक पैर पर दौड़ी पुलिस

निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका मानसी के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. मोर्चरी के बाहर भी भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया था.

उधर नरबलि की खबर न्यूज चैनलों तथा इंटरनेट मीडिया पर वायरल होते ही कानपुर से ले कर लखनऊ तक सनसनी फैल गई.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद इस दुस्साहसिक वारदात को संज्ञान में लिया. मुख्यमंत्री ने मंडलायुक्त, डीएम व एसएसपी से वार्ता की और तुरंत आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई करने का आदेश दिया.

GHARWALO KO CHEK DETE VIDHAYAK UPENDRA PASWAN

उन्होंने दुखी परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की और 5 लाख रुपए आर्थिक मदद देने की घोषणा की. उन्होंने कहा, ”सरकार इस प्रकरण की फास्टट्रैक कोर्ट में सुनवाई करा कर अपराधियों को जल्द सजा दिलाएगी.’’

मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई तो प्रशासन एक पैर पर दौडऩे लगा. आननफानन में 3 डाक्टरों का पैनल गठित किया गया और शव का पोस्टमार्टम कराया गया. मासूम के शव का परीक्षण करते समय पोस्टमार्टम करने वाली टीम के हाथ भी कांप उठे थे.

मासूम के पेट के अंदर कोई अंग था ही नहीं. दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें, किडनी, स्प्लीन और इन अंगों को आपस में जोड़े रखने वाली मेंब्रेंन तक गायब थी. मासूम के निजी अंगों में चोट के निशान थे, जिस से दुष्कर्म की पुष्टि हुई थी.

बच्ची के पेट में कुछ था या नहीं, आंतें गायब होने से इस की पुष्टि नहीं हो सकी. पोस्टमार्टम के बाद मानसी का शव उस के पिता कमल कुरील को सौंप दिया गया.

इधर रात 10 बजे एसडीएम (नर्वल) रिजवाना शाहिद के साथ तत्कालीन विधायक (घाटमपुर क्षेत्र) उपेंद्र पासवान भदरस गांव पहुंचे और मृतका मानसी के पिता कमल कुरील को 5 लाख रुपए का चैक सौंपा. उन्हें 2 बीघा कृषि भूमि का पट्टा दिलाने का भी भरोसा दिया गया.

चैक लेते समय कमल व उन की पत्नी जयश्री की आंखों में आंसू थे. उन्होंने नरपिशाचों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की.

चूंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले को वर्कआउट करने में देरी पर नाराजगी जताई थी, इसलिए एसएसपी प्रीतिंदर सिंह व एसपी (ग्रामीण) ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव ने थाना घाटमपुर में डेरा डाल दिया और डीएसपी रवि कुमार सिंह के निर्देशन में खुलासे के लिए पुलिस टीम गठित कर दी.

इस टीम ने भदरस गांव पहुंच कर अनेक लोगों से गहन पूछताछ की. गांव के एक झोलाछाप डाक्टर ने गांव के गोंगा के मझले बेटे अंकुल कुरील पर शक जताया. पड़ोसी परिवार की एक बच्ची ने भी बताया कि शाम को उस ने मानसी को अंकुल के साथ जाते हुए देखा था.

अंकुल कुरील पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस टीम ने उसे घर से उठा लिया. उस समय वह ज्यादा नशे में था. उसे थाना घाटमपुर लाया गया. उस से कई घंटे तक पूछताछ की, लेकिन अंकुल नहीं टूटा.

आधी रात के बाद जब नशा कम हुआ, तब उस से सख्ती के साथ दूसरे राउंड की पूछताछ की गई. इस बार वह पुलिस की सख्ती से टूट गया और मासूम मानसी की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

अंकुल ने जो बताया, उस से पुलिस अधिकारियों के रोंगटे खड़े हो गए और मामला ही पलट गया. अंकुल ने बताया कि उस के चाचा परशुराम व चाची सुनयना ने 1,500 रुपए में मासूम बच्ची का कलेजा लाने की सुपारी दी थी.

aropi-ankul-aur-beeran

                           आरोपी अंकुल कुरील और बीरन

उस के बाद उस ने अपने दोस्त वीरन के साथ मिल कर कमल की बेटी मानसी को पटाखा देने के बहाने फुसलाया. उसे वे गांव से एक किलोमीटर दूर भद्रकाली मंदिर के पास ले गए. वहां दोनों ने पहले उस बच्ची के साथ दुराचार किया फिर अंगौछे से उस का गला घोंट दिया.

उस के बाद चाकू से उस का पेट चीर कर अंगों को निकाल लिया गया. उस ने कलेजा पौलीथिन में रख कर चाची सुनयना को ले जा कर दे दिया. सुनयना और परशुराम ने कलेजे के 2 टुकड़े किए और कच्चा ही खा गए, ऐसा उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए किया था. इस के बाद वादे के मुताबिक चाची ने 500 रुपए मुझे तथा हजार रुपए वीरन को दिए. फिर हम लोग घर चले गए.

16 नवंबर, 2020 की सुबह 7 बजे पुलिस टीम ने पहले वीरन, फिर परशुराम तथा उस की पत्नी सुनयना को गिरफ्तार कर लिया. सुनयना के घर से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त अंगौछा तथा 2 चाकू बरामद कर लिए. चाकू को सुनयना ने भूसे के ढेर में छिपा दिया था.

उन तीनों को थाने लाया गया. यहां तीनों की मुलाकात हवालात में बंद अंकुल से हुई तो वे समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. अत: उन तीनों ने भी पूछताछ में सहज ही मानसी की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया.

aropi-parshuram-sunayna

पुलिस ने जब परशुराम कुरील से कलेजा खाने की वजह पूछी तो उस के चेहरे पर पश्चाताप की जरा भी झलक नहीं थी. उस ने कहा कि सभी जानते हैं कि किसी बच्ची का कलेजा खाने से निस्संतानों के भी बच्चे हो जाते हैं. वह भी निस्संतान था. उस ने बच्चा पाने की चाहत में कलेजा खाया था.

चूंकि सभी ने जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था. इसलिए इंसपेक्टर राजीव सिंह ने मृतका के पिता कमल कुरील की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. अंकुल व वीरन के खिलाफ दुराचार तथा पोक्सो ऐक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया.

पुलिस पूछताछ में आरोपियों ने दिल कंपा देने वाली घटना का खुलासा किया.

बच्चा पैदा होने की लालसा में दी थी बलि

परशुराम कुरील भदरस गांव में ही कमल कुरील के घर के पास ही रहता था. परशुराम की शादी सुनयना के साथ लगभग 15 साल पहले हुई थी. परशुराम के पास कृषि भूमि नाममात्र की थी. वह साबुन का व्यवसाय करता था. वह गांव कस्बे में फेरी लगा कर साबुन बेचता था. इसी व्यवसाय से वह अपने घर का खर्च चलाता था.

भदरस और उस के आसपास के गांवों में अंधविश्वास की बेल खूब फलतीफूलती है, जिस का फायदा ढोंगी तांत्रिक उठाते हैं. भदरस गांव भी तांत्रिकों के मकडज़ाल में फंसा है. यहां घरघर कोई न कोई तांत्रिक पैठ बनाए हुए है.

बीमारी में तांत्रिक अस्पताल नहीं मुरगे की बलि, पैसा कमाने को मेहनत नहीं, बकरे की बलि, दुश्मन को ठिकाने लगाने के लिए शराब और बकरे की बलि, संतान के लिए नरबलि की सलाह देते हैं. इन तांत्रिकों पर पुलिस भी काररवाई करने से बचती है. कोई जघन्य कांड होने पर ही पुलिस जागती है.

परशुराम और उस की पत्नी सुनयना भी तांत्रिकों के मकडज़ाल में फंसे हुए थे. महीने में एक या 2 बार उन के घर तंत्रमंत्र व पूजापाठ करने कोई न कोई तांत्रिक आता रहता था.

दरअसल, सुनयना की शादी को 15 वर्ष से अधिक का समय बीत गया था. लेकिन उस की गोद सूनी थी. पहले तो उस ने इलाज पर खूब पैसा खर्च किया, लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो वह अंधविश्वास में उलझ गई और तांत्रिकों और मौलवियों के यहां माथा टेकने लगी.

तांत्रिक उसे मूर्ख बना कर पैसे ऐंठते. धीरेधीरे 5 साल और बीत गए, लेकिन सुनयना की गोद सूनी की सूनी ही रही.

सामाजिक तिरस्कार से टूट गई थी सुनयना

सुनयना की जातिबिरादरी के लोग उसे बांझ समझने लगे थे और उस का सामाजिक बहिष्कार करने लगे थे. समाज का कोई भी व्यक्ति परशुराम को सामाजिक कार्य में नहीं बुलाता था. कोई भी औरत अपने बच्चे को उस की गोद में नहीं देती थी, क्योंकि उसे जादूटोना करने का शक रहता था.

परिवार के लोग उसे अपने बच्चे के मुंडन, जन्मदिन आदि में भी नहीं बुलाते थे, जिस से उसे पीड़ा होती थी. सामाजिक तिरस्कार से सुनयना टूट जरूर गई थी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी थी.

10 सालों से उस का तांत्रिकों के पास आनाजाना बना हुआ था. एक रोज वह विधनू कस्बे के एक तांत्रिक के पास गई और उसे अपनी पीड़ा बताई. तांत्रिक ने उसे आश्वासन दिया कि वह अब भी मां बन सकती है, यदि वह एक उपाय कर सके.

” कौन सा उपाय?’’ सुनयना ने उत्सुकता से पूछा.

”यही कि तुम्हें दीपावली की रात 10 साल से कम उम्र की एक बालिका की पूजापाठ कर बलि देनी होगी. फिर उस का कलेजा निकाल कर पतिपत्नी दोनों को आधाआधा खाना होगा. बलि देने तथा कलेजारूपी प्रसाद चखने से मां काली प्रसन्न होंगी और तुम्हें संतान प्राप्ति होगी.’’

”ठीक है बाबा, मैं उपाय करने का प्रयत्न करूंगी. अपने पति से भी रायमशविरा करूंगी.’’ सुनयना ने तांत्रिक से कहा.

उन्हीं दिनों परशुराम के हाथ ‘कलकत्ता का काला जादू’ नामक तंत्रमंत्र की एक किताब हाथ लगी. इस किताब में भी संतान प्राप्ति के लिए उपाय लिखा था और मासूम बालिका का कलेजा कच्चा खाने का जिक्र किया गया था.

परशुराम ने यह बात पत्नी सुनयना को बताई तो वह बोली, ”विधनू के तांत्रिक ने भी उसे ऐसा ही उपाय करने को कहा था.’’

अब परशुराम और सुनयना के मन में यह अंधविश्वास घर कर गया कि मासूम बच्ची का कच्चा कलेजा खाने से उन को संतान हो सकती है. इस पर उन्होंने गंभीरता से सोचना शुरू किया तो उन्हें लगा अंकुल उन की मदद कर सकता है. अंकुल परशुराम के बड़े भाई गोंगा कुरील का बेटा था. 3 भाइयों में वह मंझला था. वह नशेबाज और निर्दयी था, गंजेड़ी भी. अपने भाईबहनों के साथ मारपीट और हंगामा भी करता रहता था.

अपने स्वार्थ के लिए परशुराम ने भतीजे अंकुल को मोहरा बनाया. अब वह उसे घर बुलाने लगा और मुफ्त में शराब पिलाने लगा. गांजा फूंकने को पैसे भी देता. अंकुल जब हां में हां मिलाने लगा, तब एक रोज सुनयना ने उस से कहा, ”अंकुल, तुम्हें तो पता ही है कि हमारे पास बच्चा नहीं है. लेकिन तुम चाहो तो मैं मां बन सकती हूं.’’

”वह कैसे चाची?’’

”इस के लिए तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. आने वाली दीपावली की रात तुम्हें किसी बच्ची का कलेजा ला कर देना होगा. देखो ‘न’ मत करना. यदि तुम मेरा काम कर दोगेे तो हमारे घर में भी खुशी आ सकती है.’’

”ठीक है चाची, मैं तुम्हारे लिए यह काम कर दूंगा.’’

अंकुल राजी हो गया तो उन लोगों ने मासूम बच्ची पर मंथन किया. मंथन करते करते उन के सामने मानसी का चेहरा आ गया. मानसी कमल कुरील की बेटी थी. उस की उम्र 7 साल थी. कमल परशुराम के घर के पास रहता था.

वीरन कुरील अंकुल का दोस्त था. पारिवारिक रिश्ते में वह उस का भाई था. वीरन भी नशेड़ी था, सो उस की अंकुल से खूब पटती थी. अंकुल ने वीरन को सारी बात बताई और उसे भी अपने साथ मिला लिया था. अब अंकुल के साथ वीरन भी परशुराम के घर जाने लगा और नशेबाजी करने लगा.

14 नवंबर, 2020 को दीपावली थी. अंकुल और वीरन शाम 5 बजे परशुराम के घर पहुंच गए. परशुराम ने दोनों को खूब शराब पिलाई. सुनयना ने दोनों को कलेजा लाने की एवज में 1500 रुपए देने का भरोसा दिया.

इस के बाद उस ने अंकुल व वीरन को गोश्त काटने वाले 2 चाकू दिए. इन चाकुओं को पत्थर पर घिस कर दोनों ने धार बनाई. सुनयना ने महावर की एक शीशी अंकुल को दी और कुछ आवश्यक निर्देेश दिए.

शाम 6 बजे अंकुल और वीरन परशुराम के घर से निकले, तब तक अंधेरा घिर चुका था. वे दोनों जब कमल के घर के सामने आए तो उन की निगाह मासूम मानसी पर पड़ी. वह नए कपड़े पहने पेड़ के नीचे एक बच्ची के साथ खेल रही थी. अंकुल ने मानसी को बुलाया और पटाखों का लालच दिया.

मानसी पर मौत का साया मंडरा रहा था. वह मान गई और अंकुल के साथ चल दी. दोनों मानसी को ले कर गांव के बाहर आए और फिर भद्रकाली मंदिर की ओर चल पड़े. मानसी को आशंका हुई तो उस ने पूछा, ”भैया, कहां ले जा रहे हो?’’

यह सुनते ही अंकुल ने उस का मुंह दबा दिया और वीरन ने चाकू चुभो कर उसे डराया, जिस से उस की घिग्घी बंध गई. फिर वे दोनों मानसी को भद्रकाली मंदिर के पास ले गए और नीम के पेड़ के नीचे पटक दिया.

उन दोनों ने मानसी के शरीर से कपड़े अलग किए तो उन के अंदर का शैतान जाग उठा. उन्होंने बारीबारी से उस के साथ दुराचार किया. इस बीच मासूम चीखी तो उन्होंने अंगौछे से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

इस के बाद सुनयना के निर्देशानुसार अंकुल ने मानसी के पैरों में लाल रंग लगाया तथा माथे पर टीका किया. फिर चाकू से उस का पेट चीर डाला. अंदर से अंग काट कर निकाल लिए और कलेजा पौलीथिन में रख कर वहां से निकल लिए. रास्ते में पानी भरे एक गड्ढे में बाकी अंग फेंक दिए और कलेजा ला कर परशुराम को दे दिया.

शराब से धो कर दोनों ने खाया कलेजा

परशुराम ने कलेजे को शराब से धोया फिर चाकू से उस के 2 टुकड़े किए. उस ने एक टुकड़ा स्वयं खा लिया तथा दूसरा टुकड़ा पत्नी सुनयना को खिला दिया. सुनयना ने खुश हो कर 500 रुपए अंकुल को और 1,000 रुपए वीरन को दिए. उस के बाद वे दोनों अपनेअपने घर चले गए.

इधर दीया जलाते समय कमल को मानसी नहीं दिखी तो उस ने खोज शुरू की. कमल व उस की पत्नी जयश्री रात भर बेटी की खोज करते रहे. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला. सुबह गांव के कुछ लोगों ने उसे बेटी की हत्या की जानकारी दी. तब वह वहां पहुंचा. इसी बीच किसी ने घटना की जानकारी थाना घाटमपुर पुलिस को दे दी थी.

17 नवंबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

जेल जाने के बाद आरोपियों ने अपने वकीलों के माध्यम से जमानत पाने का प्रयास किया, लेकिन उन के खिलाफ ठोस सबूत मिल जाने से उन को जमानत नहीं मिली. इस चर्चित कांड में मुकदमे के विवेचना अधिकारी इंसपेक्टर राजीव सिंह ने विवेचना कर के सबूतों सहित सभी साक्ष्य जुटा कर आरोपियों के खिलाफ गैंगरेप, हत्या, शव गायब करने तथा पोक्सो एक्ट सहित अन्य धाराओं में 37 दिन में अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया.

अदालत में करीब 3 साल तक इस बहुचर्चित मामले की काररवाई चलती रही, जिस में 10 गवाहों के बयान भी दर्ज किए गए. इन गवाहों में अदालत ने गांव के झोलाछाप डाक्टर रवि तथा मृतका के साथ खेल रही पड़ोस की लड़की का बयान अहम माना. इन दोनों ने ही आरोपी अंकुल का नाम पुलिस को बताया था.

पोस्टमार्टम करने वाले 2 डाक्टरों की गवाही को भी अदालत ने अहम माना. शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय ने भी केस की जम कर पैरवी की. न्यायालय में पेश हुए साक्ष्यों के आधार पर ही अपर जिला जज वाकर शमीम रिजवी ने आरोपियों को दोषी ठहराया.

सजा सुनाने के लिए अपर जिला जज साहब शाम 4 बजे कोर्ट में पहुंच गए. उस समय आरोपियों के अलावा मामले से जुड़े सभी वकील व मानसी के मातापिता तथा अन्य लोग भी कोर्टरूम में मौजूद थे.

अपर जिला जज वाकर शमीम रिजवी ने बिना कोई भूमिका बनाए सीधे फैसला सुनाते हुए कहा, ”अभियुक्त अंकुल व वीरन ने अमानवीय तथा हृदयविदारक जघन्य अपराध किया था. अपराध प्रवृत्ति को देखते हुए दोनों समाज के लिए खतरा हैं. ऐसे हालात में उन के साथ नरमी का रुख अपनाए जाने का कोई औचित्य नहीं हो सकता.

”6 साल की मासूम बच्ची का अपहरण कर गैंगरेप करना फिर हत्या कर कलेजा निकालना जघन्य अपराध माना जाना न्यायोचित प्रतीत होता है. इसलिए अभियुक्त अंकुल व वीरन को उम्रकैद की सजा दी जाती है. सजा के साथ दोनों को 45-45 हजार रुपए के अर्थदंड से भी दंडित किया जाता है. अर्थदंड न देने पर 6 माह की सजा और भुगतनी होगी.’’

कुछ क्षण रुकने के बाद जज साहब ने कहा, ”आरोपी दंपति परशुराम व सुनयना ने नियोजित तरीके से षडयंत्रपूर्वक अपराध किया था. उन दोनों ने संतान पाने के लिए 7 साल की बच्ची का कलेजा सहयोगियों के मार्फत मंगवाया और फिर खाया. उन का यह अपराध अतिगंभीर व हृदयविदारक है.

उन के खिलाफ नरमी का रुख अपनाया जाना न्यायोचित नहीं होगा. अत: उन्हें उम्रकैद की सजा दी जाती है. सजा के साथ दोनों को 20-20 हजार रुपए के अर्थदंड से भी दंडित किया जाता है. अर्थदंड न देने पर 6 माह की सजा और भुगतनी होगी.’’

अदालत का फैसला आते ही कमल व उस की पत्नी जयश्री की आंखें छलक पड़ीं. शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय के साथ मौजूद कमल ने रुंधे गले से कहा कि हमें सजा से संतोष तो है, लेकिन दोषियों को फांसी होती तो हमारे कलेजे को और ठंडक मिल जाती.

शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय ने कहा कि उन्होंने कोर्ट से केस के रेयरेस्ट औफ द रेयर होने की बात कह कर फांसी की सजा की मांग की थी, लेकिन कोर्ट का फैसला उम्रकैद आया. हम अध्ययन करेंगे और यदि कुछ बिंदु निकलते हैं तो फांसी के लिए हाईकोर्ट में अपील भी करेंगे.

सजा सुनाए जाने के बाद चारों दोषियों परशुराम, सुनयना, अंकुल व वीरन को कानपुर देहात की माती जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक चारों दोषी माती जेल में बंद थे.

—कथा अदालत के फैसले पर आधारित. कथा में मानसी, कमल और जयश्री परिवर्तित नाम हैं.

गलत राह के राही : पूरे इंदौर को हिला कर रख दिया था इस पुलिस वाली ने

जितेंद्र एक दिन अपनी पत्नी लीना के साथ एक दोस्त के परिवार में आयोजित शादी समारोह में शामिल होने आया था. समारोह में वह पत्नी के साथ औपचारिकता भर निभा रहा था, क्योंकि उस की पत्नी से बनती नहीं थी. उसी दौरान जितेंद्र की नजर समारोह में मौजूद एक युवती पर पड़ी तो वह उसे देखता रह गया, मानो किसी दूसरी दुनिया में खो गया हो.

जितेंद्र उस की खूबसूरती पर ऐसा फिदा हुआ कि कुलांचें भरता मन बस उसी के इर्दगिर्द घूम रहा था. जितेंद्र ने उसे पहले कभी नहीं देखा था. वह उस युवती से बात करने के लिए उतावला हुए जा रहा था.

पत्नी लीना को सहेलियों के बीच छोड़, वह आत्ममुग्ध हो कर उस युवती की ओर बढ़ चला. जब तक वह उस के पास पहुंचा, तब तक युवती उस के दोस्त राजेश के साथ खड़ी बातें करने लगी. जितेंद्र इस मौके को खोना नहीं चाहता था. वह राजेश के पास पहुंच गया.

बातें करतेकरते उस ने युवती की तरफ इशारा करते हुए राजेश से पूछा, ‘‘यह कौन है भाई?’’

‘‘अरे यार यह मेरी मुंह बोली बहन संगीता है.’’ कहते हुए राजेश ने जितेंद्र का परिचय संगीता से करवाया. जितेंद्र यही चाहता भी था. जितेंद्र ने संगीता से बातचीत करनी शुरू कर दी. संगीता ने उस से पूछा, ‘‘आप क्या करते हैं?’’

यह सुन कर जितेंद्र मुसकराया और कंधे उचकाते हुए बोला, ‘‘मैं पुलिस का दामाद हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ कह कर संगीता हंस पड़ी.

राजेश ने बताया, ‘‘जितेंद्र की पत्नी लीना मध्य प्रदेश पुलिस में है. जब बीवी पुलिस में है तो इस का तो कहना ही क्या, इस की तो मौज ही मौज है, हरफरनमौला आदमी है यह.’’

संगीता कुछ समझी, कुछ नहीं समझी. मगर जितेंद्र के व्यक्तित्व और पुलिसिया दामाद होने की बातें सुन कर वह उस से प्रभावित हो गई. दोनों बातें करने लगे.

इसी बीच राजेश वहां से हटा तो जितेंद्र ने संगीता को इंप्रेस करने की हर कोशिश करनी शुरू कर दी. लच्छेदार बातें कर उसे वह मानो एक ही पल में अपने आगोश में लेने को आतुर हो उठा. वह बोला, ‘‘संगीताजी, मैं आप से एक बात कहूं.’’

‘‘जरूर कहिए, आप बड़े दिलचस्प व्यक्ति हैं, ऐसा लगता है कि आप से आज अभी की नहीं, वर्षों पहले की मुलाकात हो.’’ संगीता ने कहा.

जितेंद्र के सामने सुनहरा मौका था, उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, संगीता के लिए उसे सारे संसार से लड़ना भी पड़ा तो लड़ेगा. उस ने थोड़ा झिझकने का नाटक करते हुए कहा, ‘‘आप से एक बात कहनी है, बुरा तो नहीं मानेंगी?’’

संगीता उस की बातों और नजरों से कुछकुछ भांप चुकी थी कि वह क्या कहना चाहता है. उस ने सहजता से कहा, ‘‘आप कहिए, मैं बुरा नही मानूंगी.’’

जितेंद्र को हिम्मत मिली तो उस ने पहली मुलाकात में ही इश्क का इजहार कर दिया. उस की बात सुन कर संगीता की आंखें फटी रह गईं. मगर वह नाराज नहीं हुई. तभी जितेंद्र ने कहा, ‘‘संगीता जी, मैं आप की खातिर सारे संसार को छोड़ने को तैयार हूं.’’

संगीता आ गई जितेंद्र की बातों में

संगीता को यह पता चल चुका था कि जितेंद्र शादीशुदा है. वह खुद भी किसी की अमानत थी. उस वक्त उस की मांग में सिंदूर, और गले में मंगलसूत्र था. संगीता ने जितेंद्र की बातें सुन आत्मीय स्वर में कहा, ‘‘आप तो शादीशुदा हैं न?’’

‘‘हां, मगर मैं ने आप को देखते ही अलग तरह का आकर्षण महसूस किया. रही बात मेरी पत्नी लीना की, तो उस के साथ मैं कैदी जैसी जिंदगी जी रहा हूं.’’ जितेंद्र बोला. उस की आंखों में आंसू झिलमिलाने लगे थे.

संगीता भी कम नहीं थी. उस से बिना मौका छोड़े तत्काल कहा, ‘‘अभी तो खुद को सरकारी दामाद बता कर खुश भी थे और गर्व भी महसूस कर रहे थे. इतनी सी देर में क्या हो गया?’’

‘‘दिल का दर्द हर किसी के सामने नहीं छलकता. पता नहीं दिल ने आप में ऐसा क्या देखा कि…’’

जितेंद्र की बात सुन और उस की आंखों में आंसू देख संगीता को महसूस हआ कि वह मन का सच्चा आदमी है. संगीता भी अपने पति राकेश से कहां खुश थी. उस ने सुन रखा था कि दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो वैवाहिक जीवन में खुश नहीं होते. शायद जितेंद्र भी उन्हीं में हो.

राकेश का गुस्सैल चेहरा संगीता की आंखों के आगे घूमने लगा. बातबात में प्रताड़ना, मारपीट, गालीगलौज उस के लिए आम बात थी. वह राकेश से भीतर ही भीतर नफरत करती थी, फिर भी पत्नी धर्म का निर्वहन कर रही थी.

उस ने जितेंद्र की ओर आत्मीय दृष्टि डालते हुए कहा, ‘‘आप जल्दबाजी मत कीजिए. अभी मेरी तरफ से हां भी है और ना भी, मुझे सोचने का कुछ वक्त दीजिए.’’

जितेंद्र संगीता की बातें सुन मन ही मन खुश हुआ, उस ने कहा, ‘‘बिलकुल, लेकिन हम जल्दी ही मिलेंगे न?’’

सुन कर संगीता मुसकराई. दोनों ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए. जितेंद्र राय और संगीता सुसनेर की यह पहली मुलाकात लगभग 5 साल पहले सन 2014 में हुई थी.

दोनों के बीच फोन पर बातें होने लगीं. दोनों को अपने जीवनसाथियों से परेशानियां थीं, इसलिए अपना  अपना दुखड़ा सुनाते सुनाते एकदूसरे के करीब आ गए.

जल्दी ही दोनों का इंदौर के मोती गार्डन में मिलना तय हुआ. जितेंद्र समय से पहले पहुंच गया. समय बीत रहा था और संगीता का कहीं अतापता नहीं था. वह बेचैन हो उठा. तभी संगीता सामने आ कर खड़ी हो गई. दोनों एकदूसरे को देख कर खुश थे. एक बेंच पर बैठ कर दोनों ने बातचीत शुरू की.

जितेंद्र ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘संगीता, मैं तो घबरा गया था. अगर तुम नहीं आती तो…’’

संगीता ने मुसकरा कर उस पर तिरछी नजर डाली फिर कहा, ‘‘ओह, फिर तो मुझ से बड़ी भूल हो गई.’’

चाहत का कर दिया इजहार

इस के बाद दोनों खिलखिला कर हंस पडे़. कुछ देर तक इधरउधर की बातें होती रहीं. दोनों के बीच मुलाकात का सिलसिला शुरू हुआ तो दोनों एकदूसरे से मिलने लगे.

एक दिन जितेंद्र ने उस से कहा, ‘‘मैं ने आज एक निर्णय लिया है, मुझे बस तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘हांहां, कहो.’’ संगीता ने कहा.

‘‘मैं लीना को छोड़ रहा हूं, मैं आज ही उस से संबंध खत्म कर दूंगा.’’

‘‘क्यों?’’ संगीता ने मासूमियत से पूछा.

‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं. आखिर हम कब तक अलग रहेंगे. तुम्हारे लिए मैं दुनिया से भी टकरा जाऊंगा.’’ जितेंद्र ने संगीता की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

यह सुन कर संगीता मन ही मन खुश थी कि कोई तो है संसार में जो उसे इतना चाहता है. उस ने बचपन से ही दुख झेले थे. पति के घर आई तो वहां भी लड़ाईझगड़ा और अवसाद भरी जिंदगी. उस ने जितेंद्र के हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारे साथ हूं जितेंद्र. मैं भी तुम्हें चाहने लगी हूं. तुम्हारी खातिर सब कुछ छोड़ दूंगी.’’

संगीता का समर्थन मिला तो जितेंद्र की बांछें खिल गईं, वह बोला, ‘‘लेकिन तुम्हें एक काम करना होगा, मेरे पास हमारे सुनहरे दिनों की प्लानिंग है.’’

‘‘वह क्या?’’ संगीता ने सहजता से पूछा.

‘‘आज शाम को मैं एक चीज ले कर आऊंगा, उसे तुम्हें पहननना होगा.’’ जितेंद्र ने रहस्यमय स्वर में कहा.

‘‘क्या, मंगलसूत्र?’’ संगीता ने भोलेपन से पूछा.

जितेंद्र हंस पड़ा, ‘‘नहीं, वह तो मैं पहनाऊंगा ही, लेकिन एक चीज और है.’’

‘‘क्या, बताओ भी न.’’ संगीता इठलाई.

‘‘तुम्हें लीना की वरदी पहननी है?’’ जितेंद्र ने दिल की बात बता दी.

‘‘क्यों, इस से क्या होगा?’’ संगीता ने आश्चर्य पूछा.

‘‘मैं तुम्हें ऐसी दुनिया दिखाऊंगा कि तुम सोच में पड़ जाओगी. जानती हो, एक पुलिसवाली जब डंडा ले कर निकलती है तो तमाम लोग उसे सलाम ठोकते हैं.’’

‘‘तुम यह सब मेरे लिए क्यों कर रहे हो और फिर मैं लीना की वरदी कैसे पहन सकती हूं?’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा, तुम वरदी पहनना, मैं फोटो ले लूंगा, तुम्हारा आईडी कार्ड भी बन जाएगा.’’ जितेंद्र ने कहा.

‘‘अच्छा ठीक है, अगर तुम कह रहे हो तो… पर मुझे कुछ अटपटा लग रहा है.’’

जितेंद्र ने संगीता पर फेंका जाल

उस शाम जब जितेंद्र राय संगीता से मिलने आया तो उस के बैग में लीना की पुलिस की वरदी थी. उस ने वरदी निकाल कर संगीता के सामने रख दी और आत्मविश्वास से लबरेज स्वर में बोला, ‘‘संगीता इसे पहन कर दिखाओ, देखूं तो कैसी दिखती हो.’’

संगीता ने उस के सामने ही लीना राय की लाई पुलिस वरदी पहन ली. जितेंद्र ने प्रसन्न भाव से कहा, ‘‘तुम बहुत सुंदर लग रही हो, मानो इस वरदी के लिए ही बनी हो.’’

संगीता वरदी पहन कर इठला रही थी. जितेंद्र ने उस के कुछ फोटो लिए और बताया, ‘‘जल्द ही तुम्हारा आईडी कार्ड बन जाएगा, फिर हमारी तकदीर खुल जाएगी.’’

संगीता विस्मय से जितेंद्र की ओर देखने लगी, उसे अच्छा भी लग रहा था और बुरा भी.

जितेंद्र के प्यार में पड़ कर संगीता ने किसी और की पुलिस वरदी पहन तो ली लेकिन आगे चल कर वह एक ऐसे भंवर जाल में फंसती चली गई जो उस की जिंदगी को तबाह करने के लिए काफी था.

जितेंद्र राय और लीना राय का विवाह हुए 8 साल हो चुके थे. जितेंद्र एक ट्रैवल कंपनी में ट्रैवल एजेंट था उस की पत्नी लीना राय मध्य प्रदेश पुलिस में प्रधान आरक्षक थी. फिलहाल उस की ड्यूटी पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में थी. लेकिन दोनों के विचार नहीं मिलते थे, जिस की वजह से उन के बीच खटास बनी रहती थी.

जितेंद्र के बड़ेबड़े ख्वाब थे जिन्हें वह साकार करना चाहता था. आनन फानन में लखपति बनने के बारे में वह पत्नी को बताता रहता था. वह लीना को पुलिस वरदी की महत्ता बताता और कहता, इस वरदी में बड़ी ताकत है. अगर इस वरदी का सही इस्तेमाल किया जाए तो उन की मुफलिसी दूर हो जाएगी.

मगर लीना राय वरदी की मर्यादा समझती थी. इसलिए वह नहीं चाहती थी कि पैसों के लिए वह किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल हो. इसलिए वह प्यार से पति को समझाती कि वह ऐसी बातें न तो सोचे, और न ही उसे करने के लिए कहे.

जितेंद्र तरहतरह के तर्क देता कुछ पुलिस वालों के उदाहरण भी बताता, लेकिन लीना ने उस की बात नहीं मानी. जितेंद्र का मन लीना से उचट गया तो वह संगीता के प्यार की नैय्या में बैठ कर आगे की योजना बनाने लगा.

जितेंद्र ने अपना घर छोड़ा और संगीता ने अपने पति का घर छोड़ा. दोनों इंदौर महानगर के मूसाखेड़ी कस्बे में किराए के एक मकान में रहने लगे. जितेंद्र ने टै्रवल एजेंट का काम छोड़ दिया और अपनी वर्षों की कल्पना को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए. उस ने निश्चय कर लिया कि संगीता को फरजी पुलिसवाली बना कर आगे की जिंदगी खुशहाली से व्यतीत करेगा.

asli-or-nakli-leena-rai-indore-case

जितेंद्र ने पत्नी लीना के आईडी कार्ड पर संगीता का फोटो लगा कर फरजी आईडी कार्ड भी बनवा दिया.  जितेंद्र ने लीना को नजदीक से देखा था, उस के हर गुणधर्म को वह जज्ब कर चुका था. उस ने संगीता को एकएक बात प्रेम से समझानी शुरू की. उसे बताया कि लीना कैसे चलती है कैसे बातें करती है. जितेंद्र ने संगीता को कुछ फिल्में भी दिखाईं ताकि पुलिस का रौब पैदा करना आ जाए. पुलिस वाली बन कर वह लोगों को डराधमका कर उन से मोटी रकम ऐंठ सके.

जितेंद्र जब पत्नी लीना को छोड़ कर संगीता के साथ रहने लगा तो लीना मन मसोस कर रह गई. उस ने एक दिन जितेंद्र से बात की और कहा, ‘‘तुम जो कर रहे हो, क्या यह ठीक है. जानते हो, लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा और मेरा क्या होगा?’’

ठगी के लिए छोड़ा पत्नी को

लीना की बातें सुन जितेंद्र कुछ क्षण मौन रहा फिर कहा, ‘‘लीना, कितना अच्छा होता तुम मेरी जिंदगी में नहीं आती. अब मुझे भूल जाओ.’’

लीना तड़प कर बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो, क्या शादी विवाह गुड्डे गुडि़यों का खेल है, जो भूलने की बात कह रहे हो.’’

‘‘जब हमारे आचार विचार नहीं मिलते तो हम एक साथ क्यों रहें. तुम्हारे साथ रहने पर मुझे घुटन होती है.’’ जितेंद्र ने कहा.

जितेंद्र को लीना ने समझाने का पूरा प्रयास किया, घर परिवार की दुहाई दी मगर उस ने उस की एक नहीं सुनी. वह संगीता के साथ मूसाखेड़ी में रहने लगा. लीना एकाकी जीवन यापन करने लगी. जबकि जितेंद्र संगीता के साथ खुश था क्योंकि संगीता लीना से ज्यादा सुंदर थी. इतना ही नहीं वह उस की एकएक बात मानती थी. साथ ही उस की अवैध और गैरकानूनी गतिविधियों में उस की सहभागी भी बन गई थी.

दोनों ने महानगर इंदौर के लोगों को ठगना शुरू कर दिया. संगीता पुलिस की वरदी पहन कर जितेंद्र के साथ कहीं भी पहुंच जाती और धौंस दे कर लोगों से रुपए वसूल करती. इस तरह दोनों मोटी कमाई कर के ऐश की जिंदगी जीने लगे.

दोनों ने थोड़े समय में ही पुलिस की वरदी की आड़ में लाखों रुपए की कमाई कर ली. जितेंद्र अवैध काम करने वालों पर पैनी निगाह रखता, उस ने कुछ ऐसे लोग से मित्रता कर रखी थी जो उसे अवैध काम करने वालों के ठिकाने बताते थे. इस के बदले में वह उन्हें अवैध वसूली में से कमीशन देता था.

नकली घी बनाने वाले एक व्यापारी से संगीता ने पुलिसिया रौब झाड़ कर 2 लाख रुपए की रकम वसूल की थी. कई जगह से अवैध वसूली के बाद संगीता की हिम्मत बढ़ गई थी. अब वह और भी निर्भीक हो कर अवैध काम करने वालों को धमकाती थी.

जितेंद्र को एक दिन पता चला कि शहर के एक इलाके में नामी कंपनी के नाम का नकली कोल्ड ड्रिंक बनाने की फैक्ट्री चल रही है. संगीता वरदी पहन कर जितेंद्र के साथ उस जगह पहुंच गई. फैक्ट्री संचालक को हड़का कर दोनों ने उस से 2 लाख रुपए ऐंठ लिए.

जितेंद्र और संगीता की गतिविधियां बढ़ती जा रही थीं. यह सब करतेकरते संगीता यह तक भूल गई कि वह फरजी पुलिस वाली है. लेकिन वरदी और आईडी कार्ड होने की वजह से वह खुद को असली पुलिसकर्मी ही समझती थी.

वह समझती थी कि इंदौर इतना बड़ा महानगर है कि वह जितेंद्र के साथ इसी तरह लोगों को ब्लैकमेल कर के आनंदपूर्वक जीवन यापन करती रहेगी.

एक दिन लीना राय अपने औफिस में थी कि एक शख्स उसे बारबार देखता और चला जाता, 2-3 बार जब उस ने ऐसा ही किया तो लीना ने उसे पास बुला कर पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम बारबार मुझे इतने गौर से क्यों देख रहे हो?’’

उस ने डरते हुए पूछा, ‘‘मैडम क्या आप ही लीना राय हैं?’’

लीना ने उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘हां, कहो क्या बात है?’’

‘‘मैडम, मैं ने एकांत नगर में लीना राय नाम की जो महिला देखी थी, वह तो कोई दूसरी थी.’’ उस ने बताया.

‘‘क्या मतलब?’’ लीना ने पूछा.

उस व्यक्ति ने बताया कि उस का नाम रमन गुप्ता है और वह गल्ले किराने का थोक व्यापारी है. रमन गुप्ता ने लीना को जो कुछ बताया, उसे सुन कर लीना राय चौंकी. उस ने बताया कि पिछले महीने  लीना राय नाम की एक महिला पुलिस वरदी में उस के पास आई थी और उस से एक लाख रुपए ले गई थी. उस पुलिस वाली ने उसे बताया था कि वह पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में बैठती है. कोई भी काम हो तो वहां आ जाना. इसलिए उन्हें ढूंढता हुआ यहां चला आया.

खबर पहुंच गई लीना तक

रमन गुप्ता की बात सुन कर लीना समझ गई कि जरूर यह काम उस के पति जितेंद्र के साथ रहने वाली संगीता का होगा, क्योंकि उसे और भी कई लोगों ने बताया था कि संगीता पुलिस वरदी पहन कर जितेंद्र के साथ घूमती है.

रमन गुप्ता के जाने के बाद लीना ने तय कर लिया कि कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा. नहीं तो जितेंद्र की गतिविधियां उस के गले की फांस बन सकती है.

लीना उसी शाम जितेंद्र को ढूंढती हुई मूसाखेड़ी पहुंच गई. मगर घर में ताला लगा था. उस ने उस के मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की तो भी बातचीत नहीं हो सकी. उस दिन वह घर लौट आई. लेकिन एक दिन फिर से उस के यहां गई तो जितेंद्र घर पर मिल गया.

जितेंद्र ने अपनी ब्याहता लीना को देखा तो चौंका, ‘‘अरे लीना तुम.’’

लीना मुसकराई, ‘‘जितेंद्र तुम मुझे भूल सकते हो मगर मैं तुम्हें कैसे भूल सकती हूं.’’ लीना ने प्रेम भरे अल्फाजों में कहा तो जितेंद्र की सांस में सांस आई.

कुछ बातचीत करने के बाद लीना ने घर में इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो संगीता नहीं दिखी. उस ने जितेंद्र से पूछा, ‘‘वह कहां है?’’

‘‘कौन, संगीता!’’ जितेंद्र ने कहा, ‘‘संगीता बाजार गई है सब्जी लाने.’’

‘‘यह तो बड़ा अच्छा हुआ. हम आराम से बैठ कर बातें कर सकते हैं.’’ लीना ने प्यार जताते हुए जितेंद्र से कहा, ‘‘क्या तुम मुझे चाय नहीं पिलाओगे.’’ लीना जानती थी कि जितेंद्र रसोई के काम भलीभांति कर लेता है और वह उसे अकसर चाय बना कर पिलाया करता था.

जितेंद्र मुसकरा कर उठा और चाय बनाने चला गया. जितेंद्र का मोबाइल वहीं रखा था. लीना ने झट से मोबाइल उठा लिया और फोन की गैलरी देखने लगी. गैलरी में संगीता के कुछ फोटो मिले, जिस में वह पुलिस की वरदी पहने हुई थी.

लीना ने उन फोटो को तुरंत अपने वाट्सएप में सेंड कर लिया. इस तरह उसे एक बड़ा सबूत मिल गया. वह समझ गई संगीता पुलिस वाली बन कर क्या कर रही है. इस का मतलब रमन गुप्ता सही कह रहा था. जितेंद्र के कमरे में रखे सामान देख कर वह समझ गई कि फरजी पुलिस वाली बन कर संगीता मोटा पैसा कमा रही है.

जितेंद्र चाय ले कर आया तो लीना वहां से जा चुकी थी. लीना सीधे एएसपी अमरेंद्र सिंह के पास पहुंची और उस ने संगीता द्वारा फरजी पुलिस बन कर लोगों से पैसे ऐंठने वाली बात उन्हें बता दी.

एएसपी अमरेंद्र सिंह ने आजाद नगर के टीआई संजय शर्मा को मामले की जांच कर सख्त काररवाई करने के आदेश दिए. टीआई संजय शर्मा ने 13 जुलाई, 2019 को जितेंद्र राय और संगीता के घर दबिश डाल कर दोनों को ही गिरफ्तार कर लिया.

fake-police-wali-in-custody

                        आरोपी संगीता सुसनेर और जितेंद्र राय 

थाने ला कर दोनों से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन्होंने तमाम लोगों से मोटी रकम ऐंठने की बात स्वीकार कर ली. उन्होंने संगीता सुसनेर और जितेंद्र राय के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 467, 468, 469, 471, 380, 120बी के तहत केस दर्ज कर के दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने पुलिस की वरदी, कैप, आईडी कार्ड बरामद कर लिया. 14 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.