गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण – भाग 2

जैसे ही फ्लाइट ने एयरपोर्ट पर लैंड किया, पुलिस ने डौग स्क्वायड, बम स्क्वायड के साथ प्लेन को घेर लिया. इस के बाद सारे यात्रियों को उतार कर एक जगह इकट्ठा कर लिया गया और जहाज की तलाशी ली गई. जहाज में कहीं कोई बम नहीं मिला.

इस के बाद सारे यात्रियों की सूची निकाली गई. इन 116 यात्रियों में 12 हाइजैकर कौन हो सकते हैं, उन की शिनाख्त की जाने लगी. पता चला कि इन 116 यात्रियों में से कोई भी व्यक्ति संदिग्ध नहीं था. सभी के टिकट या आईडी पर जो डाटा था, वह सही और जैनुइन था.

इस से यह साफ हो गया कि यह फेक काल थी यानी मजाक था. फिर सवाल उठा कि इस तरह का खतरनाक मजाक किया किस ने, अब इस की जांच शुरू हुई.

प्लेन का जो क्रू स्टाफ था, उस से पूछताछ शुरू हुई. इस पूछताछ में शिवानी मल्होत्रा जिस ने सब से पहले देखा था कि बिजनैस क्लास के टायलेट में टिश्यू पेपर खत्म हो गए हैं, उस ने बताया कि जब प्लेन ने टेकआफ किया यानी लाइट बंद हो गई और अब टायलेट यूज किया जा सकता था तो बिजनैस क्लास में बैठे एक आदमी ने उस से ब्लैंकेट मांगा था. वह उस का कंबल लेने गई फिर लौट कर देखा, वह सीट पर नहीं था.

करीब 5 मिनट बाद वह लौटा. इस पर उस ने ध्यान दिया कि उतने समय में उस आदमी के अलावा बिजनैस क्लास के किसी दूसरे आदमी ने टायलेट का यूज नहीं किया था.

शिवानी के बताए अनुसार, टेकआफ के बाद उस टायलेट का उपयोग सिर्फ उसी एक यात्री ने किया था. इस के बाद उस यात्री को बुलाया गया. वह यात्री सामने आया. पूछताछ में पता चला कि उस यात्री का नाम था बिरजू सल्ला उर्फ अमर सोनी पुत्र किशोर सोनी है. उस की उम्र 37 साल थी.

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जब उस से टायलेट जाने के बारे में पूछा गया तो उस ने स्वीकार किया कि हां वह टायलेट गया था. लेकिन इस के आगे उस ने कुछ नहीं बताया.

अरबपति व्यापारी निकला बिरजू सल्ला

इस के बाद मुंबई पुलिस को सूचना दे कर सल्ला के बारे में जानकारी जुटाई गई. मुंबई पुलिस से जो जानकारी मिली, उस से पता चला कि बिरजू सल्ला कोई छोटी मोटी हस्ती नहीं है. सल्ला सोनेचांदी, हीरे जवाहरातों के जाने माने बिजनेसमैन हैं. वह बहुत ही सम्मानित परिवार से हैं.

वह मूलरूप से गुजरात के रहने वाले हैं. मुंबई के दादर बाजार में ज्वैलरी की उन की बहुत बड़ी दुकान है. इस के अलावा भी उन के कई बिजनैस हैं. कुल मिला कर वह अरबपति आदमी हैं और मुंबई के पौश इलाके में उन की विशाल कोठी है.

बिरजू सल्ला के बारे में जान कर पुलिस को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ हो रहा है. इतना बड़ा बिजनैसमैन और सम्मानित आदमी इस तरह का काम क्यों करेगा? फिर भी पुलिस की एक टीम इस मामले की जांच में लग गई. पुलिस के पास सबूत के तौर पर 2 लेटर थे, एक अंगरेजी में और दूसरा उर्दू में.

इस के अलावा जांच में यह भी साबित हो गया कि सल्ला के अलावा और दूसरा कोई अदमी टायलेट गया नहीं था. अगर वे लेटर बिरजू ने नहीं रखे तो फिर किस ने रखे? उस के बाद एयरहोस्टेस गई थीं टायलेट. वे ऐसा कर नहीं सकती थीं. इसलिए जो सबूत थे, वे बिरजू सल्ला की ओर ही इशारा कर रहे थे कि उसी ने यह काम किया है.

बाकी यात्री जो रुके थे, उन्हें दूसरी फ्लाइट से दिल्ली भेज दिया गया. बिरजू सल्ला को संदिग्ध मान कर अहमदाबाद में ही रोक लिया गया. उन से पूछताछ की जाने लगी. पर वह लगातार मना करते रहे कि उन्होंने यह काम नहीं किया.

उसी बीच पुलिस की एक टीम उन के घर गई. इसी के साथ यह भी पता किया जाने लगा कि जो दोनों लेटर टायलेट से मिले थे, वह कहां टाइप किए गए थे और इन का प्रिंट कहां निकाला गया था?

बिरजू सल्ला के घर में जो प्रिंटर था, उस का सैंपल लिया गया. इस के बाद लेटर से उस सैंपल को मैच कराया गया तो वह मैच कर गया. जिस प्रिंटर से वह बाकी के काम करते थे, उसी प्रिंटर से वह लेटर प्रिंट किए गए थे.

अब 2 चीजें बिरजू सल्ला के खिलाफ थीं. एक वह चश्मदीद एयरहोस्टेस, जिस ने बताया था कि एकलौते वही थे, जिन्होंने टायलेट का उपयोग किया था और दूसरा वह प्रिंटर, जिस से वह धमकी भरे लेटर प्रिंट किए गए थे.  इस के बाद लैपटाप और कंप्यूटर को खंगाला गया, इस से पता चला कि लेटर उसी में टाइप किए गए थे. जो लेटर उर्दू में था, उस के बारे में पता चला कि अंगरेजी वाले लेटर को गूगल से ट्रांसलेट किया गया था.

पुलिस के लिए इतने सबूत काफी थे बिरजू को घेरने के लिए. इस के बाद अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच पुलिस ने जब तसल्ली से बिरजू को सवालों के जाल में उलझाया तो मजबूरन बिरजू को अपना अपराध स्वीकार करना पड़ा. उन्होंने कहा कि ये दोनों लेटर टायलेट में उन्होंने ही रखे थे, लेकिन बम की खबर फेक थी. न तो प्लेन में कोई हाइजैकर थे और न ही बम था.

हर हालत में गर्लफ्रेंड को मुंबई बुलाना चाहते थे बिरजू सल्ला

अब इस के बाद यह सवाल उठा कि आखिर उन्होंने ऐसा किया क्यों? पुलिस ने कहा कि अगर कोई फेक काल करता या इस तरह का लेटर रखता तो वह बाहर रह कर ऐसा करता. जबकि वह तो इसी प्लेन में बैठे थे, तब उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्या उन्हें अहमदाबाद आना था या कोई और काम था?

इस के बाद बिरजू सल्ला ने ऐसा करने के पीछे जो कहानी सुनाई, उस पर अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच को विश्वास ही नहीं हो रहा था, लेकिन जब पुलिस ने आगे जांच की तो पता चला कि बिरजू ने जो भी बताया था, वह पूरी तरह सच था. बिरजू ने यह सब करने के पीछे जो कहानी सुनाई थी, वह इस प्रकार थी.

बिरजू सल्ला एक अरबपति कारोबारी थे. वह मुंबई के एक पौश इलाके में शानदार कोठी में परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी, 2 बच्चे और 70 साल के पिता किशोरभाई थे. बिजनैस के लिए अकसर वह देश के अन्य शहरों में आयाजाया करते थे. वह दिल्ली भी आतेजाते रहते थे.

दिल्ली आनेजाने के दौरान ही जेट एयरवेज की एक ग्राउंड स्टाफ से उन की दोस्ती हो गई. दोस्ती होने के बाद अकसर दोनों का मिलनाजुलना होने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि 35-36 साल के बिरजू को उस युवती से प्यार हो गया.

बिरजू को ही उस युवती से प्यार नहीं हुआ, वह युवती भी बिरजू से प्यार करने लगी थी. क्योंकि उस युवती को यह पता नहीं था कि वह जिस से प्यार कर रही है, वह शादीशुदा है. जब प्यार गहराया तो बात विवाह करने की होने लगी. बिरजू चाहते थे कि वह युवती नौकरी छोड़ कर मुंबई चले और उन का घर संभाले. जबकि युवती न नौकरी छोडऩा चाहती थी और न मुंबई ही जाना चाहती थी. वह इन दोनों चीजों से मना कर रही थी.

जबकि बिरजू उस युवती से बहुत ज्यादा प्यार करते थे. बिरजू ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, बारबार मनाया, कई बार ऐसा भी हुआ कि वह केवल उस से मिलने दिल्ली आए. कई बार वह कहती कि इस समय तो उस की ड्यूटी है. फ्लाइट की ड्यूटी होती थी, जिसे अटेंड करना ही होता था. इस तरह वह बिरजू को समय नहीं दे पाती थी.

इस सब को ले कर बिरजू के मन में आता कि यह सब क्या है, आखिर यह कैसी नौकरी है? उस ने प्रेमिका से कहा कि वह यहां के बजाय मुंबई में नौकरी जौइन कर ले या किसी दूसरी एयरलाइंस में नौकरी कर ले, पर वह न तो नौकरी छोडऩे को तैयार थी और न ही कहीं दूसरी जगह जाने को. उस का कहना था कि वह नौकरी करेगी तो यहीं दिल्ली में ही करेगी.

गर्लफ्रेंड की बातों ने कुछ ऐसा कर दिया कि बिरजू को एयरलाइंस की नौकरी से ही नफरत हो गई. साथ ही वह यह भी सोचने लगे कि वह ऐसा क्या करें कि उन की गर्लफ्रेंड उन के पास मुंबई आ जाए.

उसी दौरान 2017 में बिरजू के एक दोस्त की बेटी की शादी थी. उस ने बिरजू से कहा कि उस के कुछ गेस्ट आ रहे हैं. उन्हें ले आने और ले जाने के लिए 2 चार्टर्ड प्लेन किराए पर चाहिए. इस के लिए बिरजू दिल्ली आए और गल्फ की एक कंपनी से करीब सवा करोड़ में 2 चार्टर्ड की डील कर ली.

इसी बात से बिरजू को खयाल आया कि गर्लफ्रेंड मुंबई नहीं चल रही और नौकरी नहीं छोड़ रही तो क्यों न वह अपनी इस गर्लफ्रेंड के लिए एक एयरलाइंस कंपनी खोल दें. प्लेन डील करने में उन्हें एयरलाइंस के बारे में काफी जानकारी हो गई थी.

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण – भाग 1

8 अगस्त, 2023 को गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और एम.आर. मेंगडे की डिवीजन बेंच में बिरजू सल्ला उर्फ अमर सोनी बनाम गुजरात सरकार की सुनवाई चल रही थी. 2019 में बिरजू सल्ला को एनआईए की स्पैशल कोर्ट से आजीवन कारावास एवं 5 करोड़ रुपए के जुरमाने की सजा सुनाई गई थी. इस के अलावा उन की तमाम प्रौपर्टी भी जब्त करने का आदेश दिया गया था. इस के बाद बिरजू सल्ला ने इस सजा के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में अपील की थी.

बिरजू सल्ला ने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए हाईकोर्ट के सीनियर वकीलों की पूरी फौज खड़ी कर दी थी. उन की ओर से सीनियर एडवोकेट हार्दिक मोध अपने सहयोगियों के साथ बहस के लिए खड़े थे. उन के सहायक भी उन के साथ खड़े थे.

एडवोकेट हार्दिक मोध ने कहा, ”माई लार्ड, मेरा मुवक्किल एक बहुत बड़ा बिजनैसमैन है, जिसकी समाज में ही नहीं, व्यापार जगत में बड़ी इज्जत है. जैसा कि उस के बारे में कहा गया है कि उस ने एक लड़की के लिए जेट एयरवेज को बदनाम करने के लिए जेट एयरवेज के हवाई जहाज के टायलेट में एक धमकी भरा पत्र रखा था कि अगर हवाई जहाज को पीओके यानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर नहीं ले जाया गया तो उसे उड़ा दिया जाएगा.

सबूत के तौर पर वह पत्र अदालत में पेश किया गया था. अब सवाल यह उठता है कि पुलिस ने यह कैसे साबित कर दिया कि टायलेट में वह पत्र हमारे मुवक्किल ने ही रखा था?’’

फाइल पलट रहे दोनों न्यायाधीशों ने एक बार सीनियर एडवोकेट हार्दिक मोध की ओर देखा, उस के बाद सरकारी वकील की ओर देखा तो सरकार की ओर से मुकदमे की पैरवी करने के लिए खड़ी सीनियर एडवोकेट सुश्री वृंदा सी शाह ने कहा, ”माई लार्ड, उस पत्र को भले ही किसी ने बिरजू सल्ला को रखते नहीं देखा, पर क्रू मेंबर की एक एयरहोस्टेस शिवानी मल्होत्रा ने उन्हें टायलेट की ओर जाते देखा था. उस का कहना था कि बिरजू सल्ला के अलावा उस समय तक और कोई दूसरा बिजनैस क्लास के उस टायलेट में नहीं गया था.’’

न्यायाधीश श्री सुपेहिया ने कहा, ”आप यह दावे के साथ कैसे कह सकती हैं कि बिरजू सल्ला के पहले बिजनैस क्लास से कोई और टायलेट नहीं गया था.’’

”माई लार्ड एयरहोस्टेस का यही कहना है,’’ एडवोकेट वृंदा शाह ने कहा.

”किसी एक आदमी के कह देने से आप ने उसे दोषी मान लिया और आजीवन कारावास की सजा दे दी यानी उस की पूरी जिंदगी बरबाद कर दी.’’ न्यायाधीश श्री मेंगड़े ने कहा.

”नहीं सर, टायलेट में जो पत्र मिला था, वह बिरजू सल्ला के ही कंप्यूटर से टाइप किया गया था और उन्हीं के प्रिंटर से प्रिंट हुआ था,’’ एडवोकेट वृंदा शाह ने कहा.

जवाब में बिरजू सल्ला के एडवोकेट हार्दिक मोध ने कहा, ”माई लार्ड, इस का क्या सबूत है कि वह पत्र बिरजू सल्ला के कंप्यूटर में ही टाइप किया गया था और उन के प्रिंटर से ही प्रिंट किया गया था.’’

”माई लार्ड पत्र की जो स्याही थी, वह बिरजू सल्ला के प्रिंटर से मेल खा रही थी,’’ वृंदा शाह बोलीं.

”तो क्या वह स्याही केवल बिरजू सल्ला के प्रिंटर के लिए ही बनाई गई थी?’’ न्यायाधीश श्री सुपेहिया ने पूछा.

”जी नहीं माई लार्ड, कंपनी ने केवल बिरजू सल्ला के लिए स्याही नहीं बनाई थी.’’ वृंदा शाह ने कहा.

”तब यह क्यों मान लिया गया कि वह पत्र बिरजू सल्ला के ही प्रिंटर से प्रिंट हुआ था? यह तो कोई इस तरह का साक्ष्य नहीं है कि उस के आधार पर किसी को दोषी मान लिया जाए.’’

”माई लार्ड, बिरजू सल्ला ने खुद स्वीकार किया है कि उस ने कंपनी को बदनाम करने के लिए यह सब किया था, जिस से जेट एयरवेज का दिल्ली का औफिस बंद हो जाए और उस की गर्लफ्रेंड की नौकरी छूट जाए, जिस से वह मुंबई चली जाए.’’ एडवोकेट वृंदा शाह बोलीं.

इस पर बिरजू सल्ला के एडवोकेट हार्दिक मोध ने कहा, ”माई लार्ड, यह भी कोई बात हुई. किसी के द्वारा अपहरण का धमकी भरा एक पत्र रख देने से भला इतनी बड़ी कंपनी का औफिस बंद हो जाएगा. माई लार्ड इस मामले में मेरा मुवक्किल निर्दोष है. पुलिस ने इस मामले में कायदे से जांच नहीं की और एक इज्जतदार बिजनैसमैन को फंसा दिया.

”पुलिस की लापरवाही की वजह से मेरे मुवक्किल को 8 साल जेल में बिताने पड़े. उसे 5 करोड़ रुपए जुरमाना भी भरना पड़ा, साथ ही उस की तमाम संपत्ति भी जब्त कर ली गई. माई लार्ड, मेरी आप से यही विनती है कि बिरजू सल्ला को बाइज्जत बरी किया जाए.’’

इस बहस के बाद डिवीजन बेंच के न्यायाधीश श्री सुपेहिया और श्री मेंगड़े ने अपना जो फैसला सुनाया, वह जानने से पहले आइए यह पूरी कहानी जान लेते हैं.

हाइजैक की सूचना पर प्लेन की हुई इमरजेंसी लैंडिंग

बात 30 अक्तूबर, 2017 की है. जेट एयरवेज की उड़ान मुंबई से दिल्ली जा रही थी. इस के उडऩे का समय दोपहर 2 बज कर 55 मिनट था. इस हवाई जहाज में कुल 116 यात्री सवार थे. मुंबई से दिल्ली की लगभग 2 घंटे की दूरी थी. इस का मतलब 5 बजे इस हवाई जहाज को दिल्ली में लैंड करना था. इस प्लेन में बिजनैस क्लास भी था और इकोनामी क्लास भी. प्लेन ने अपने निश्चित समय 2 बज कर 55 मिनट पर उड़ान भरी.

करीब 25 मिनट बाद 3 बज कर 20 मिनट पर यानी प्लेन को हवा में 25 मिनट बीत चुके थे, तभी एक केबिन रूम एयरहोस्टेस शिवानी मल्होत्रा बिजनैस क्लास के टायलेट में गई. टायलेट में जा कर उस ने देखा कि वहां रखे सारे टिश्यू पेपर लगभग खत्म हो गए हैं.

यह देख कर वह दंग रह गई. क्योंकि प्लेन को उड़े अभी 25 मिनट ही हुए थे. ज्यादा पैसेंजर टायलेट गए भी नहीं थे, तब भी टिश्यू पेपर खत्म गया था.

टायलेट से निकल कर उस ने यह बात अपनी सहयोगी निकिता जुनेजा से बता कर कहा कि बिजनैस क्लास के टायलेट में टिश्यू पेपर खत्म हो गए हैं, इसलिए जा कर फिर से टिश्यू पेपर रिफिल कर दे.

निकिता ने टिश्यू पेपर का दूसरा बंडल निकाला और टायलेट में जा कर उसे रखने लगी तो उसे लगा कि अंदर कुछ फंसा हुआ है. जब तक वह निकलेगा नहीं, तब तक दूसरा पेपर अंदर जा नहीं सकता. उस ने पेपर अंदर डालने की काफी कोशिश की, पर जब किसी भी तरह पेपर अंदर नहीं गया तो उस ने उस के अंदर हाथ डाला तो उसे लगा कि अंदर पेपर जैसा कुछ फंसा हुआ है.

निकिता ने उसे बाहर निकाला तो उस ने देखा कि उन पेपरों में कुछ लपेट कर अंदर डाला गया था. उस ने उसे खोल कर देखा तो उस में 2 पत्र थे. दोनों पत्रों में एक अंगरेजी में था तो दूसरा उर्दू में. वे दोनों पत्र कंप्यूटर द्वारा टाइप किए हुए थे.

निकिता को उर्दू तो आती नहीं थी, इसलिए उस ने अंगरेजी वाला लेटर पढ़ा. लेटर पढ़ कर उस के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगीं. उस लेटर में अंगरेजी में जो लिखा था, उस का हिंदी में अर्थ यह था, ‘फ्लाइट नंबर 9डब्ल्यू 339 में हाइजैकर हैं और प्लेन को हाइजैक कर लिया गया है.’

‘इस प्लेन में इस समय यात्रियों के बीच कुल 12 हाइजैकर हैं. इस प्लेन को यहां से सीधे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके ले चलें और अगर ऐसा नहीं किया गया तो थोड़ी देर में इसे उड़ा दिया जाएगा. आप इसे मजाक मत समझिए, क्योंकि कार्गो एरिया में एक बम रखा गया है और अगर आप ने इसे पीओके के बजाय दिल्ली में लैंड करने की कोशिश की तो धमाका हो जाएगा और प्लेन उड़ जाएगा.’

लेटर पढऩे के बाद निकिता ने उस लेटर को सीधे ला कर कैप्टन जय जरीवाला को थमा दिया. इस लेटर को देखने के बाद कैप्टन को लगा कि मामला तो बहुत ही संवेदनशील है. उस समय प्लेन गुजरात के अहमदाबाद के नजदीक था. उन्होंने तुरंत अहमदाबाद के (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) एटीसी से संपर्क किया और कहा कि इमरजेंसी के तहत वह अपना हवाई जहाज अहमदाबाद में लैंड करना चाहते हैं.

जब अहमदाबाद एयरपोर्ट के अधिकारियों ने पूछा कि ऐसी क्या इमरजेंसी है कि उन्हें अपना प्लेन अहमदाबाद में लैंड करने की जरूरत पड़ गई तो उन्होंने बताया कि दरअसल प्लेन में धमकी भरे लेटर मिले है. प्लेन में हाइजैकर हैं और उन्होंने कार्गो में बम रखा है.

इतना सुन कर अहमदाबाद एयरपोर्ट के अधिकारी तुरंत हरकत में आ गए. मैनेजर ने बड़े अधिकारियों से बात की. इस के बाद कैप्टन को इजाजत दी गई कि वह अहमदाबाद एयरपोर्ट के रनवे पर अपना हवाई जहाज लैंड कर सकते हैं.

अहमदाबाद एयरपोर्ट पर हुई सख्त जांच

इसी के बाद अहमदाबाद एयरपोर्ट पर तैयारी शुरू हो गई, क्योंकि कैप्टन के बताए अनुसार प्लेन में बम भी था और हाइजैकर भी. इसलिए लोकल पुलिस को भी सूचना दे गई थी और फायरब्रिगेड को भी बुला लिया गया था.

सूचना पा कर थाना एयरपोर्ट की पुलिस तो मौके पर पहुंच ही गई थी, क्राइम ब्रांच की भी पूरी टीम एयरपोर्ट पर पहुंच गई थी. थोड़ी देर में फ्लाइट नंबर 9डब्ल्यू 339 ने सहीसलामत एयरपोर्ट पर लैंड किया.

नाइट्रोजन गैस से सजा ए मौत

केनिथ स्मिथ को नाइट्रोजन हाईपौक्सिया के जरिए मृत्युदंड दिया जाना तय था. इस के तहत व्यक्ति को  नाइट्रोजन के एक सिलिंडर से जोड़ कर एक मास्क पहनाया जाता है, जो धीरेधीरे उसे औक्सीजन से वंचित कर देता है.

इसे एक तरह की यातना भी कह सकते हैं. यह नाइट्रोजन हाइपौक्सिया से मृत्युदंड देने की पहली कोशिश होगी. इस से भारी पीड़ा हो सकती है और मुमकिन है कि इस से यातना और सजा के दूसरे क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक तरीकों पर प्रतिबंध का उल्लंघन भी हो सकता है यानी नाइट्रोजन हाइपौक्सिया की वजह से एक दर्दनाक और अपमानजनक मौत मिलनी तय थी.

अमेरिका के रहने वाले 58 वर्षीय केनिथ स्मिथ को साल 1996 में एक धर्म उपदेशक की पत्नी की हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा हुई थी. कुछ समय बाद उस के जुर्म की क्रूरता का आकलन करने के बाद उम्रकैद की सजा ‘मृत्युदंड’ में बदल दी गई थी. वह तभी से अमेरिका में अलबामा के हौलमैन जेल के सुधार गृह में कैद था.

उसे इस सजा के लिए 23 जनवरी, 2024 की सुबह ठीक सवा 7 बजे सुधार गृह के भीतर बने ‘डेथ सेल’ में ले जाया गया था. इसे जेल प्रशासन होल्डिंग यूनिट कहता है. यहां मृत्युदंड के सजायाफ्ता कैदी की सजा को अंजाम देने से 2 दिन पहले रखा जाता है.

यानी कि स्मिथ को अच्छी तरह से मालूम हो गया था कि वह मृत्युकक्ष से लगभग 20 फीट की दूरी पर है, जहां 48 घंटे के बाद आखिरी मिनट पर 25 जनवरी, 2024 को हथकड़ी और पैरों में बेडिय़ों से बांध कर ले जाया जाएगा. और फिर वैसी नई तकनीक का उपयोग कर न्यायिक रूप से मौत की नींद सुला दिया जाएगा, जिस का प्रयोग पहली बार होगा.

वह तकनीक नाइट्रोजन गैस सुंघाने की थी. हालांकि पहले भी एक अन्य तकनीक के तौर पर उसे जहर की सुइयां चुभो कर इस सजा को अंजाम देने का प्रयास किया गया था.

केनिथ की मानसिक स्थिति सामान्य थी. वह जानता था कि उस की मौत निकट चंद घंटों में सुनिश्चित है. वह पहले भी नवंबर 2022 में डेथ सेल या कहें मृत्युकक्ष में रह चुका था. तब उसे जहरीले इंजेक्शन द्वारा मौत देने की तैयारी की गई थी. उसे मौत की नींद सुलाने के लिए नस नहीं खोजी जा सकी थी. वह 4 घंटे तक रस्सी से बंधा रहा. उस दौरान उस के हाथ और पैर में छेद कर दिए थे.

केनिथ उस दौर की प्रक्रिया को याद कर सिहर गया था. कारण, जब वह होल्डिंग यूनिट में था, तब उस ने अपनी मां और अपने पोते को अलविदा कहा था. अपना अंतिम भोजन किया था. फिर उसे मृत्युकक्ष में ले जाया गया था. वहां उस ने 4 घंटे तक कूड़ेदान में बिताए थे, क्योंकि जेल अधिकारियों ने नस ढूंढने की असफल कोशिश की थी. उसे ‘हौलमैन करेक्शनल फैसिलिटी’ नाम की जेल के एक ‘डेथ चैंबर’ में ले जा कर जहरीले रसायन के इंजेक्शन लगाए जाने थे.

नस न मिल पाने की वजह से इंजेक्शन नहीं दिए जा सके और उसी रोज यानी नवंबर 2022 को रात के 12 बजे डेथ वारंट निरस्त हो गया. यहां तक कि उसे कुछ मिनट तक उलटा लटकाया गया था. वह तब तक उलटा झूलता रहा, जब तक कि मौत देने वाले अधिकारियों ने हार नहीं मानी और फांसी बंद नहीं की. तब तक उस के शरीर में कई छेद किए जा चुके थे. वह मौत के काफी करीब जा कर लौट आया था.

इस के 14 महीने बाद उसे फिर से मृत्युकक्ष में डालने की तैयारी शुरू हो चुकी थी. वह फिर से इन सब से गुजरने वाला था. अब नई तकनीक से उस की मौत कितनी सहज, सुखद और दर्दरहित होगी, इस बारे में कहना मुश्किल था. सिर्फ तरहतरह के वैज्ञानिक दावे किए जा रहे थे.

हालांकि इस बार प्रोटोकाल अलग था. फिर भी उसे एक ऐसी विधि से फांसी का सामना करना था, जिस का उपयोग अमेरिका के मृत्युदंड में पहले कभी नहीं किया गया था. यह एक ऐसी तकनीक है, जिसे सुअरों के अलावा अधिकांश जानवरों की इच्छामृत्यु के लिए पशु चिकित्सकों द्वारा नैतिक आधार पर खारिज कर दिया गया था.

पहली मौत के तरीके से कैसे बचा केनिथ

होल्डिंग यूनिट में केनिथ को बाहरी फोन काल करने के लिए 15 मिनट का समय मिल गया था. इस समय में उस की बात घर वालों के अलावा मीडियाकर्मियों से भी हुई थी. हालांकि स्मिथ ने हौलमैन जेल से अमेरिका के बड़े अखबार ‘गार्जियन’ से भी संपर्क किया था. उस ने उन्हें अपनी असली स्थिति का वर्णन करते हुए कहा था कि वह एक फांसी से बच गया था, किंतु उसे दूसरी बार जिस प्रक्रिया से गुजरना है वह बिलकुल ही प्रयोग में नहीं है.

”क्या वह इस के लिए तैयार है?’’ इस सवाल के जवाब में उस ने साफतौर पर कहा, ”मैं इस के लिए किसी भी तरह से तैयार नहीं हूं. मैं अभी तैयार नहीं हूं, भाई..!’’

दरअसल, वह पहले का मृत्युदंड असफल होने पर काफी मानसिक तनाव से भर गया था. इस दौरान जेल मनोचिकित्सक ने पाया था कि वह अनिद्रा, चिंता और अवसाद से पीडि़त है. इसे ध्यान में रखते हुए इसे दूर करने के लिए उस का उपचार किया गया, दवाइयां दी गईं. उस की शरीरिक क्षमता संतुलित बनाए रखने और माइग्रेन को नियंत्रित करने के लिए कई दवाओं का एक काकटेल दिया गया था.

इस बारे में उस ने बताया कि उसे बारबार बुरे सपने आते थे, इस कारण सो नहीं पाता था. फांसी के पहले प्रयास के बाद उसे मृत्युकक्ष से वापस ले जाने का बुरा सपना बारबार आता था. उस ने कहा, ‘मुझे बस सपने में कमरे में चलना फिरना था, मैं बिलकुल डरा हुआ था,  नहीं चाहते हुए भी बुरे सपने आते ही रहे.’

इसी के साथ उस ने यह भी कहा, ”जब 25 जनवरी को दूसरी बार फांसी की तारीख दी गई, तब से बुरे सपनों का एक नया दौर शुरू हो गया था. मुझे सपना आने लगा कि वे मुझे लेने आ रहे हैं.’’

अब फांसी के कक्ष से उस की दूसरी मुलाकात होनी थी. जैसेजैसे वह उस के करीब आ रही थी, वैसेवैसे उस की बेचैनी बढऩे लगी थी. उस ने महसूस किया कि उस की शारीरिक और मानसिक स्थिति बिगड़ रही है.

उस ने पेट खराब होने की शिकायत की, साथ ही बताया कि उसे उल्टी भी होती रहती थी. यानी वह कई तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियों के दौर से गुजर रहा था. हालांकि अस्पताल की नर्स ने भी उसे तनाव में डाल दिया था. वह आघात पर आघात झेलते हुए एक असामान्य दौर में था.

उस ने कहा, ”अस्पताल के पुरुष नर्स ने मुझे संभलने का मौका ही नहीं दिया. मैं अभी भी पहली फांसी से पीडि़त हूं और अब हम इसे दोबारा कर रहे हैं. वह मुझे बीते हुए बुरे सपने, पुरानी यादों की अनुभूतियों और सदमे से वापस आने नहीं दे रहे हैं, जिस से मेरी व्याकुलता बढ़ जाती है. मूड खराब हो जाता है. आप सभी जानते हैं कि यह निरंतर चलने वाला तनाव है.’’

केनिथ ने इसे ले कर कल्पना करने को कहा, ”क्या होगा यदि दुव्र्यवहार के शिकार व्यक्ति के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया जाए? या फिर उस तरह के माहौल में वापस जाने के लिए मजबूर किया जाए, जिस से उसे आघात पहुंचा हो. जिस व्यक्ति ने ऐसा किया, उसे एक राक्षस के रूप में देखा जाएगा.’’

इस हाल में क्यों पहुंचा केनिथ

बात 18 मार्च, 1988 ही है. अलबामा के कोलबर्ट काउंटी में एक पादरी की पत्नी एलिजाबेथ डोरलीन थार्न सेनेट की उन के घर में चाकू मार कर हत्या कर दी गई थी. एक हफ्ते बाद उस के पति चाल्र्स सेनेट, जोकि चर्च औफ क्राइस्ट में मंत्री थे, ने खुदकुशी कर ली थी.

इस की जांच शुरू हुई और मामला अदालत में गया. वहां मालूम हुआ कि चाल्र्स सेनेट कर्ज में डूबा हुआ था. उस की पत्नी के नाम पर बीमा था. हालांकि जांच में यह भी पाया गया कि चाल्र्स के किसी के साथ अवैध संबंध थे.

एलिजाबेथ डोरलीन सेनेट अमेरिका के क्लीवलैंड, कुयाहोगा काउंटी, ओहियो की रहने वाली थी. उस के जन्म की तरीख 10 दिसंबर, 1942 थी और 45 वर्ष की उम्र में उस की अलबामा के शेफील्ड, कोलबर्ट काउंटी में हत्या कर दी गई थी. उसे डेंपसी कब्रिस्तान, रेड बे, फ्रैंकलिन काउंटी, अलबामा में दफनाया गया था.

उस की मौत की जांच में पाया गया कि वह पति के द्वारा ही मार डाली गई थी. इस के लिए पति ने भाड़े के हत्यारे की मदद ली थी. उस के सीने में 8 और गरदन के दोनों तरफ एकएक बार चाकू से वार किया गया था. शरीर पर कई खरोंचें और कट के निशान थे. दोनों भाड़े के हत्यारों ने पहले उसे चाकू मारा और फिर पीटपीट कर मार डाला था.

जांच में इस हत्या का दोषी केनिथ स्मिथ ठहराया गया. उसे भाड़े का हत्यारा साबित कर दिया गया था. बदले में चाल्र्स सेनेट ने उसे और एक अन्य व्यक्ति फोरेस्ट पार्कर को 1,000 डालर दिए थे. हालांकि जब संदेह की सुई उस की ओर घूमी, तब उस ने अपनी ही जान ले ली.

पार्कर को दोषी पाए जाने के बाद 2010 में जहरीला इंजेक्शन दे कर मौत की सजा दे दी गई थी. स्मिथ ने दावा किया था कि वह उस जगह मौजूद जरूर था, जहां हत्या हुई, लेकिन उस का हत्या में कोई हाथ नहीं था. इस के बाद जांच की लंबी प्रक्रिया में साल 1996 में उसे मौत की सजा सुना दी गई थी.

शुरुआती जांच के सिलसिले में सेनेट ने दावा किया कि उस की पत्नी एलिजाबेथ सेनेट कोलबर्ट काउंटी में कून डौग कब्रिस्तान रोड पर अपने घर में मृत पड़ी थी. उसे चाकू मार दिया गया था और उस की पिटाई की गई थी. जांचकर्ताओं ने घटनास्थल की गहनता से जांच की. अपनी जांच में उन्होंने पाया कि पादरी ने घटनास्थल पर आक्रमण और चोरी की तरह दिखाने वाले दृश्य बना रखे थे.

तमाम नाटकीय घटनाक्रमों के तहत की गई पूछताछ और जांच प्रक्रिया में आखिरकार  केनिथ स्मिथ ने अंत में जौन फारेस्ट पार्कर और इस की व्यवस्था करने वाले एक तीसरे व्यक्ति के साथ अपनी भूमिका कुबूल कर ली. केनिथ को शुरू में 1989 में दोषी ठहराया गया था और एक जूरी ने मौत की सजा की सिफारिश करने के लिए 10-2 से वोट दिया था, जिसे एक न्यायाधीश ने लगाया था. 1992 में अपील पर उन की सजा को पलट दिया गया था.

उस पर दोबारा मुकदमा चलाया गया और 1996 में उसे फिर से दोषी ठहरा दिया गया. इस बार जूरी ने 11-1 के वोट से आजीवन कारावास की सिफारिश की, लेकिन एक न्यायाधीश ने जूरी की सिफारिश को खारिज कर दिया और उसे मौत की सजा सुना दी.

मामला अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. केनिथ ने फांसी रोकने का अनुरोध किया, जो खारिज कर दिया गया.

क्या हुआ मौत को करीब से देख कर

मौत को एक बार फिर करीब आता देख कर केनिथ की आखिरी प्रतिक्रिया थी, ”काश! मैं ने चीजें अलग तरीके से की होतीं.’’

उस ने 35 साल जेल में बिताए थे. जेल में उस के व्यवहार में कोई आक्रामकता नहीं देखी गई. न अधिकारियों के साथ और न ही किसी अन्य के साथ… एक भी लड़ाई नहीं, एक भी विवाद नहीं. फिर भी अलबामा और पूरे अमेरिका में कई लोगों का मानना था कि उस ने जो किया, वह कतई माफी के लायक नहीं.

केनिथ के वकीलों ने भी कहा है कि इस तरीके का अभी तक परीक्षण नहीं हुआ है और यह अमेरिकी संविधान के ‘क्रूर और असामान्य सजाओं’ के प्रतिबंध का उल्लंघन कर सकता है. उन्होंने यह भी कहा है कि किसी भी तरीके से दूसरी बार मृत्युदंड देने की कोशिश भी असंवैधानिक है.

हालांकि अमेरिका में मृत्युदंड के अधिकांश मामलों में बारबिटुरेत नाम की दवा की घातक डोज दी जाती है, लेकिन कुछ राज्यों को यूरोपीय संघ के एक प्रतिबंध की वजह से यह दवा हासिल करने में दिक्कत आने के कारण संघ ने दवा कंपनियों को जेलों में मृत्युदंड देने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं बेचने से प्रतिबंधित कर दिया है.

केनिथ स्मिथ को डेथ सेल में तय कार्यक्रम के मुताबिक 25 जनवरी की शाम को ले जाया गया, जबकि नाइट्रोजन गैस से मौत की सजा को ले कर पूरे अमेरिका में विरोध हो रहा था. इस दौरान केनिथ के आध्यात्मिक सलाहकार रेवरेंड जेफ हुड वहां मौजूद थे.

उन्होंने केनिथ को मौत के आगोश में समाते हुए देखा और जो महसूस किया. फिर उस बारे में मीडिया से जिक्र किया. पहली प्रतिक्रिया के रूप में वह बोले, ”यह डरावनी फिल्म जैसा था. मरने में 22 मिनट लगे, तब तक तड़पता रहा शख्स.’’

जैफ हुड ने बताया, ”इस दौरान केनिथ स्मिथ ने अपनी मुट्ठियां भींच रखी थीं और उस के पैर कांप रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे वह सांस लेने के लिए तड़प रहा हो.

”उसे देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे वह एक मछली है, जिसे पानी से निकाल दिया गया है. वहां मौजूद सभी लोगों के चेहरे पर डर था. नाइट्रोजन गैस देते ही वह करीब 4 मिनट तक छटपटाता रहा. हम ने जो देखा वह कुछ मिनटों में किसी को अपने जीवन के लिए संघर्ष करते हुए देखना था.’’

अलबामा के जेल अधिकारियों के मुताबिक सब से पहले केनिथ को एक चैंबर में ले जा कर स्ट्रेचर पर बांध दिया था. उस के मुंह पर एक इंडस्ट्रियल मास्क पहनाया गया था. इस में नाइट्रोजन गैस छोड़ी गई. इसे सूंघते ही यह गैस पूरे शरीर में फैल गई और उस के बाद पूरे शरीर ने काम करना बंद कर दिया. इस से स्मिथ की मौत हो गई.

हालांकि मास्क पहना कर नाइट्रोजन गैस सुंघाने से उल्टी भी हो सकती थी, इस से मौत की सजा देने की प्रक्रिया बाधित हो सकती थी. ऐसा स्मिथ के वकील ने दलील दी थी. इस से बचने के लिए जेल अधिकारियों ने केनिथ को सुबह 10 बजे के बाद से खाली पेट रखा था. उसे कुछ भी खाने को नहीं दिया गया था.

स्थानीय समयानुसार शाम 7.57 बजे से रात 8.01 बजे के बीच, केनिथ को दर्द और ऐंठन होने लगी. उस ने गहरी सांसें लीं, उस का शरीर जोरजोर से कांपने लगा और उस की आंखें घूम रही थीं.

केनिथ की मौत हो जाने के बाद अलबामा के सुधार आयुक्त जौन हैम ने बाद में एक संवाददाता सम्मेलन बुलाया. उस में उन्होंने बताया कि ऐसा प्रतीत हुआ कि केनिथ स्मिथ जब तक संभव हो सका, अपनी सांसें रोके हुए था.

इस अनोखी सजा पर क्या थीं प्रतिकियाएं

सीएनएन के जरिए सामान्य लोगों तक अलबामा के अटौर्नी जनरल स्टीव मार्शल का यह संदेश पहुंचाया गया कि नाइट्रोजन गैस से मौत की सजा दिए जाने के तरीके की टेस्टिंग हो चुकी है. यह सही साबित हुआ है. राज्य में 43 और लोगों को इसी तरह मौत की सजा दी जाएगी. कई और राज्य भी इस पर विचार कर रहे हैं. हम इस में मदद करने के लिए भी तैयार हैं.

दूसरी तरफ यूनाइटेड नैशन, यूरोपीय यूनियन और वाइट हाउस ने भी इसे ले कर चिंता जताई. वाइट हाउस प्रवक्ता कैरीन जीन पियरे का कहना था कि मौत की सजा देने के लिए नाइट्रोजन गैस का इस्तेमाल परेशान करने वाला है. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इसे ले कर चिंता जताई.

ईयू के  प्रवक्ता के अनुसार यह खासतौर पर क्रूर और असामान्य सजा है. इस में ह्यूमन राइट्स चीफ वोल्कर टर्क ने प्रतिक्रिया दी कि नाइट्रोजन गैस से मौत की सजा को ले कर कोई टेस्टिंग नहीं हुई है. यह मुमकिन है कि ऐसा किया जाना टौर्चर और अमानवीय ट्रीटमेंट भी.

नाइट्रोजन से ही क्यों दी मौत?

जिस नई विधि से केनिथ को मृत्युदंड देने की योजना बनाई गई, नाइट्रोजन हाइपौक्सिया के रूप में जाना जाता है. इस में कैदी को शुद्ध नाइट्रोजन गैस सांस लेने के लिए मजबूर करना शामिल है, एक गैस जो प्राकृतिक रूप से हवा में इतनी उच्च सांद्रता में मौजूद होती है कि इस से औक्सीजन की कमी हो जाती है और अंत में मृत्यु हो जाती है. नाइट्रोजन एक प्राकृतिक रूप से  पाई जाने वाली गंधहीन और रंगहीन गैस है.

यह प्रचुर मात्रा में है. पृथ्वी के वायुमंडल और मिट्टी में पाई जाती है और इस का उपयोग भोजन को तरल रूप में तेजी से जमा करने के लिए किया जा सकता है. इसे भी रसायनशास्त्र के सूत्र के रूप में औक्सीजन (ह्र२) की तरह (हृ२) लिखा जाता है.

इसी गैस को एक उचित मात्रा में औक्सीजन के साथ मिलाए बगैर सांस के साथ अंदर लेने पर शरीर के भीतर प्रतिकूल प्रभाव देती है, जिस से असामान्य थकान, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है.

इस के इसी गुण को देखते हुए नाइट्रोजन गैस को मृत्युदंड के एक तरीके के तौर पर चुना गया. डाक्टर की सलाह के अनुसार अलबामा जेल के अधिकारियों ने औक्सीजन के साथ मिश्रण किए बिना शुद्ध नाइट्रोजन गैस देने की योजना बनाई.

नाइट्रोजन को किसी भी मात्रा में औक्सीजन या कहें किसी भी मात्रा में हवा के साथ मिलाए जाने की स्थिति में इस से मौत होने में समय लगता है.

यह कहें कि यह कभी भी मृत्यु का कारण नहीं बन सकती है.  इसे देखते हुए ही केनिथ की कानूनी टीम ने एक संघीय न्यायाधीश के सामने तर्क दिया था कि नाइट्रोजन हाइपौक्सिया का उपयोग क्रूर होने के साथ साथ असामान्य सजा पर संवैधानिक प्रतिबंध का उल्लंघन होगा.

स्मिथ की ओर से गवाही देने वाले एक एनेस्थीसियोलौजिस्ट ने तब कहा था कि उसे उल्टी हो सकती है, जिस से उस का दम घुट सकता है, दम घुटने की अनुभूति हो सकती है या उस के बेहोश होने की आशंका बन भी सकती है. बहरहाल, केनिथ स्मिथ को नाइट्रोजन गैस से मौत की सजा देने की दुनिया भर में चर्चा हो रही है.

फर्जी डाक्टर नकली शादियां

अपने बारे में पूर्णव शंकर शिंदे ने लोगों को बताया कि उस ने आस्ट्रेलिया से एमबीबीएस कर रखा है. उस की मुलाकात डा. पूजा से हुई तो उस ने खुद को अविवाहित बताया जबकि वह शादीशुदा था. उस से नजदीकी बढ़ा ली फिर जल्द शादी भी कर ली.

पूजा की डाक्टर की डिग्री शिंदे के लिए लौटरी लगने जैसी थी. उस ने पहली पत्नी प्राजक्ता के नाम डा. पूजा बदल कर फरजी डिग्री बना ली. इस तरह से बीएएमएस प्राजक्ता नकली एमबीबीएस डिग्रीधारी डा. पूजा बन गई.

ऐसा कर शिंदे ने एकएक कर 2 अन्य युवतियों से भी शादी रचा ली थी. उस की जालसाजी यहीं नहीं रुकी थी, बल्कि उन लड़कियों से शादी के बाद उन के पहचानपत्र में अहम बदलाव करवा दिया था. नए नाम के एफीडेविट और अखबारों में नाम बदलने का विज्ञापन दे कर सब के नाम डा. पूजा करा दिए थे. उस के बाद सभी की फरजी एमबीबीएस की डिग्री भी बनवा ली थीं.

इस के पीछे उस ने एक खास योजना बना रखी थी, लेकिन उसे अंजाम तक पहुंचाने से पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ चुका था. हालांकि इस की उस ने बुनियाद रख ली थी.

दिल्ली एनसीआर का ग्रेटर नोएडा पिछले एक दशक में तेजी से विकसित होने वाला उपनगर बन चुका है. वहां न केवल रिहायशी मल्टीस्टोरी बिल्डिंगों में लोगों ने रहना शुरू कर दिया है, बल्कि उन की हर जरूरी सुविधाओं के लिए नएनए संसाधन और सुविधाएं भी मिलने लगी हैं. उन्हीं में एक अतिआवश्यक जरूरत मैडिकल सुविधा की भी है. डाक्टर की निजी क्लीनिक से ले कर सुपरस्पैशलिटी अस्पताल तक खोले जा रहे हैं.

बात अगस्त 2023 की है. ग्रेटर नोएडा के घोड़ी बछेड़ा गांव के पास एक 35-36 साल का दिखने वाला व्यक्ति अस्पताल खोलने के लिए जगह तलाश रहा था. वह एक बड़ी गाड़ी में सवार था, जिस के नंबर प्लेट के पास ही भाजपा के महामंत्री की चमकती हुई बड़ी प्लेट भी लगी हुई थी.

उसी समय उस की कार के पास उत्तर प्रदेश पुलिस की गाड़ी आ कर रुकी. उस में बैठेबैठे पुलिस अधिकारी ने आवाज लगाई, ”अरे भाई, यह गाड़ी किस की है? कौन है इस का मालिक?’’

”मेरी है, क्या बात है?’‘ भाजपा नेमप्लेट वाली गाड़ी से उतरने वाला व्यक्ति बोला.

”क्या नाम है?…और कहां के महामंत्री हो भाई!’‘ पुलिसकर्मी ने पूछा.

”मैं पूर्णव शंकर शिंदे हूं. डाक्टर हूं, महाराष्ट्र के जलगांव जिले का भाजपा का महामंत्री भी हूं.’‘

”आप को पता नहीं है यूपी का नियम? नंबर प्लेट से बड़ी महामंत्री की इतनी बड़ी किसी भी तरह की प्लेट लगानी मना है.’‘ पुलिसकर्मी ने कहा.

”इस में क्या गलत है? प्रदेश में भाजपा सरकार है, केंद्र में भी वही है, मैं उस का एक सिपाही हूं.’‘ शिंदे बोला.

”नेम प्लेट कहीं और लगा लो…और हां, यहां क्या करने आए हो?’‘

”मुझे यहां पर एक बड़ा अस्पताल खोलना है. उस के लिए जगह तलाश रहा हूं.’‘ शिंदे बोला.

इसी बीच सवालजवाब करने वाले उस पुलिस वाले के कान में पास बैठे दूसरे पुलिसकर्मी ने कुछ कहा.

पुलिस को शिंदे पर क्यों हुआ शक

दरअसल, शिंदे से सवाल जवाब करने वाले दादरी कोतवाली इंसपेक्टर सुजीत उपाध्याय थे. उन के बगल में बैठे साइबर सेल प्रभारी आशीष यादव को शिंदे की गतिविधियों पर कुछ संदेह हुआ था और इसी संदेह के चलते उन्होंने एसएचओ को धीमे से कुछ कहा था.

अभी तक नरमी से पूछताछ करते हुए उपाध्याय के तेवर अचानक बदल गए थे. उन्होंने सख्ती के साथ आदेश के अंदाज में कहा, ”अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाओ और गाड़ी के सभी कागज ले कर आओ.’‘

”क्या हुआ जो आप गुस्से में बोल रहे हैं… आप लोग जानते नहीं मैं कौन हूं?’‘ शिंदे भी थोड़ा रौब से बोला.

”तू जो भी है, पहले यहां आ.’‘ इस बार यादव बोले.

”अभी आता हूं.’‘ कहता हुआ शिंदे अपनी ड्राइविंग सीट के सामने के लौकर से गाड़ी के कागजात निकाल कर 4 कदम दूरी पर खड़ी यूपी पुलिस की गाड़ी के पास चला गया.

उस के कागजात ले कर दोनों पुलिसकर्मी उलटपुलट कर देखने लगे. कुछ सेकेंड बाद ही उपाध्याय पूछने लगे, ”तू नेता है या डाक्टर? गाड़ी जलगांव, महाराष्ट्र की है और तू यहां नोएडा में डाक्टरी करता है. गाड़ी भी महाराष्ट्र की है…माजरा क्या है?’‘

”कुछ भी नहीं, मैं तो…’‘

”…तू सेक्टर म्यू-दो में रहता है न! वहां भी तूने एक अस्पताल का बोर्ड लगा रखा है, लेकिन क्लिनिक कहां है?’‘ यादव ने बीच में ही कई सवाल दाग दिए.

”आप लोग तो मेरे साथ बहुत गलत बरताव कर रहे हैं…’‘

”मुझे लगता है कि गलत तो तुम कर रहे हो. और ये क्या है? तुम्हारे ड्राइविंग डाक्यूमेंट के साथ शादी का सर्टिफिकेट! वह भी 2-2…’‘ यादव 2 पेपर लहराते हुए बोले. यह सुनते ही शिंदे बोल पड़ा, ”ऐंऽऽ शादी सर्टिफिकेट! नहीं तो!’‘

”मैं गलत बोल रहा हूं. दोनों आर्यसमाज मंदिर के हैं. उन पर नंबर एक ही है. चलो मेरे साथ थाने, आगे की पूछताछ वहीं होगी.’‘ यादव सख्ती से बोले.

”नहीं नहीं, आप को कुछ गलतफहमी हो गई है. एक असली और दूसरा उस की ही फोटोकापी है.’‘ शिंदे ने सफाई दी.

”फिर दोनों में नाम अलगअलग कैसे हैं? एक में डा. पूजा कुशवाहा लिखा है और दूसरे में प्राजक्ता शिंदे!’‘ यादव बोले.

”चलोचलो, तुम्हारी गाड़ी मेरा कांस्टेबल ले आएगा, तुम मेरे साथ पुलिस गाड़ी में बैठो.’‘ इस बार उपाध्याय बोले.

शिंदे ने किस तरह की 4 शादियां

थाने में शिंदे से पूछताछ के बाद उस के बारे में जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी. बल्कि वह एक फरजी डाक्टर पाया गया. उस ने जालसाजी से 4 शादियां रचा रखी थीं. सभी में पत्नियों का नाम संयोग से पूजा था. बरामद 2 विवाह प्रमाणपत्र भी फरजी पाए गए. एक पर नाम डा. प्राजक्ता शिंदे दर्ज था, जबकि दूसरे पर डा. पूजा कुशवाहा का नाम लिखा था.

उस ने बताया कि डा. प्राजक्ता शिंदे उस की पहली पत्नी है. वह बीएएमएस है. वह उसे छोड़ चुकी है. नोएडा आने से पहले वह दिल्ली के वसंत विहार में रहता था. वहीं उस की मुलाकात साल 2019 में दिल्ली की एमबीबीएस डा. पूजा कुशवाहा से हुई थी, जिस के बाद में उस ने शादी कर ली.

कुछ दिन बाद ही पूजा को पता चला कि शिंदे शादीशुदा है. उस के साथ डा. प्राजक्ता रहती थी. इस पर डा. पूजा ने आरोपी के खिलाफ कानूनी काररवाई करने की धमकी दे डाली. तभी वह दिल्ली से प्राजक्ता को ले कर नोएडा चला आया. अपने साथ डा. पूजा की डिग्री और उस के दूसरे दस्तावेज भी ले आया, जिन के आधार पर उस ने पहली पत्नी प्राजक्ता की फरजी एमबीबीएस की डिग्री बना ली.

दरअसल, बीएएमएस आयुर्वेद के डाक्टर की पढ़ाई का एक हिस्सा है. साढ़े 5 साल का स्नातक कोर्स करने के बाद बैचलर औफ आयुर्वेदिक मैडिसिन एंड सर्जरी (बीएएमएस) की डिग्री दी जाती है. दूसरा फरजीवाड़ा उस ने यह किया कि 2-2 बीवियां होने के बावजूद उस ने वैवाहिक वेबसाइट से वर तलाशने वाली युवतियों से नंबर ले कर उन से संपर्क करना शुरू कर दिया. उन्हें अपने बारे में डाक्टर बताता था.

डाक्टरी की डिग्री की वजह से युवतियां असानी से उस के झांसे में फंस जाती थीं. युवतियों को प्रेमजाल में फांसने में माहिर पूर्णव शंकर शिंदे खुद को विदेशी शिक्षा प्राप्त एक प्रतिभाशाली और अमीर डाक्टर बताता था.

वह ग्रेटर नोएडा के एक गांव शाहबेरी में किराए पर रहने लगा था. वहीं उस ने अश्वपूर्व फाउंडेशन और अश्वपूर्व मल्टी हौस्पिटल के नाम का एक आकर्षक बोर्ड लगा दिया था.

बोर्ड पर अपना और पहली पत्नी को एमबीबीएस डाक्टर दर्शाते हुए नाम लिखवा लिया था. साथ ही फाउंडेशन का जीएसटी रजिस्ट्रैशन भी करवा लिया था. पहली पत्नी उस के साथ रहती थी. जब कोई मरीज आता था, तब उस का पहली पत्नी डा. प्राजक्ता ही उपचार करती थी.

शिंदे ने राजनीतिक पहुंच का रुतबा दिखा कर न केवल फाउंडेशन व अस्पताल के नाम पर लोन लिया, बल्कि 2-2 जीएसटी रजिस्ट्रैशन नंबर जारी करवा लिए थे. यही नहीं, वह जीएसटी रिफंड का धंधा भी करता था. ऐसा कर वह सरकार के राजस्व में लाखों रुपए का चूना लगा चुका था.

उस ने पत्नी प्राजक्ता को पूजा कुशवाहा के नाम पर पेश कर फाइनैंस कंपनी से लोन लिया था. गाड़ी और स्कूटी को भी फाइनैंस करवा रखा था. एसबीआई और दूसरे बैंक समेत अन्य फाइनैंस कंपनियों से लोन व क्रेडिट कार्ड ले रखे थे. उस के नाम आदित्य बिरला कैपिटल फाइनैंस से 5 लाख का लोन था, जो अश्वपूर्वा मल्टी स्पैशलिटी हौस्पिटल के नाम पर ले रखा था.

उस ने एक कंपनी प्राजक्ता के साथ पार्टनरशिप में बना रखी थी. यहां तक कि अपना ड्राइविंग लाइसैंस भी कपिल त्यागी के नाम से बना रखा था. यह कहना गलत नहीं होगा कि वह जालसाजी का पूरा लबादा ओढ़े हुए था.

अपनी पहचान पत्र को बदलने के लिए जनप्रतिनिधियों के फरजी हस्ताक्षर भी कर लेता था. उस के पास से एक पैन कार्ड करेक्शन का फार्म भी बरामद किया गया, जिस पर पूजा शिंदे नाम लिखा था. उस के द्वारा दादरी विधायक तेजपाल नागर के फरजी हस्ताक्षर दुरुपयोग करने की बात भी सामने आई.

क्यों बनवाए नेताओं के लेटर पैड

पुलिस ने जांच में पाया कि शिंदे ने 5 महीने पहले ही महाराष्ट्र की एक युवती के साथ धोखा दे कर शादी की थी. फिलहाल वह गर्भवती है. उस युवती को धोखा होने के बारे में थोड़ी सी भी आशंका नहीं थी.

मामले की तहकीकात पूरी होने के बारे में एडिशनल डीसीपी अशोक कुमार ने बताया कि  मुंबई के जुहू निवासी पूर्णव शंकर शिंदे खुद को एमबीबीएस डाक्टर बताता था. इस के पास एक एंबुलेंस भी है, जिस पर अश्वपूर्वा हौस्पिटल लिखा है. यही नहीं वह एक एसेंट गाड़ी चलाता था और फरजी हौस्पिटल बना कर लोन ले लेता था. पकड़ में न आए, इसलिए आयकर भी दाखिल करता था.

आरोपी शिंदे पहली बार 2015 में एक मैडिकल छात्रा पूजा से मिला था. तब वह आगरा से मैडिकल की पढ़ाई कर रही थी. उसे उस ने अपने आप को बिजनैसमैन बताया था. उस ने उस से आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली थी. उन का विवाह कुछ दिनों तक ही चला था. उस के बाद उस ने अपने राज्य की लड़की से शादी रचा ली थी.

कुछ समय बाद ही डा. पूजा कुशवाहा को पता चला कि पूर्णव शंकर शिंदे की एक पत्नी पहले से है. इस के बाद दोनों में अनबन हो गई. शातिर पूर्णव शंकर शिंदे पुत्र सर्वानंद शंकर को गैलेक्सी गोलचक्कर अजायबपुर से गिरफ्तार किया गया था. उस के पास से विधायक के लैटर पैड बरामद किए गए, जिन का इस्तेमाल दस्तावेज बनाने के लिए करता था. उस ने बताया कि उस ने शादी के बाद पत्नी का नाम पूजा पुत्री चंद्रपाल रखा था.

इस बारे में उस ने बताया कि उसे पूजा नाम से लगाव हो गया था, फिर इसी के अनुसार वह आधार कार्ड में संशोधन करवा लेता था. तीसरी शादी करने के बाद युवती का नाम पूजा पुत्री चंद्रपाल रखने के लिए उसी ने विधायक के लेटर पैड का प्रयोग किया था.

साथ ही उस ने अन्य महिलाओं के आधार कार्ड व पैन कार्ड को अपने हिसाब से अपडेट कराने के लिए आर्यसमाज मंदिर के विवाह प्रमाणपत्र का प्रयोग किया था. उस के पास से 2 महिलाओं के विवाह प्रमाणपत्र भी मिले. साथ ही उस के पास से 6 कोरे प्रमाणपत्र भी मिले.

एक के बाद क्यों कर रहा था फरजीवाड़ा

आरोपी शिंदे ने हौस्पिटल का प्रमाण देने के लिए सभी चीजों का प्रयोग किया था. जिन में से एक एंबुलेंस आरोपी के कब्जे से बरामद कर ली गई. एंबुलेंस पर चारों तरफ अश्वपूर्वा मल्टी स्पेशलिटी हौस्पिटल बड़े लाल रंग के अक्षरों में लिखा गया था.

इस एंबुलेंस के नंबर को चैक करने पर पता चला कि वह किसी लीलावती मल्टीस्पैशलिटी हौस्पिटल के नाम पर रजिस्टर्ड है, जिस की 2017 में वैधता खत्म हो चुकी थी. इस के साथ ही आरोपी द्वारा अपना रौब जमाने के लिए एक कार का प्रयोग किया जाता था. उस पर बड़े अक्षरों में जिला महामंत्री भारतीय जनता पार्टी, जिला जलगांव, महाराष्ट्र लिखा था.

यही नहीं, आरोपी द्वारा एक अन्य फरजी कंपनी भी बना रखी थी. जिस का नाम अश्वपूर्वा एक्सरे एमेजिंग सेंटर प्राइवेट लिमिटेड रखा गया था. उस के 2 पार्टनरों में एक शिंदे की पत्नी प्राजक्ता पूर्णव शिंदे थी.

इस प्रकार कंपनी बना कर अभियुक्त द्वारा फाउंडेशन और हौस्पिटल के फरजी बिल बनाए जाते थे. उन को प्रस्तुत कर जीएसटी रिफंड प्राप्त किया जाता था. इस से सरकार को राजस्व की हानि होती थी. आरोपी द्वारा बनाए गए हौस्पिटल के स्थान पर असल में बरतनों की दुकान है.

पूर्णव शंकर शिंदे का मकसद डा. पूजा के एजुकेशनल डाक्यूमेंट का प्रयोग कर अलगअलग महिलाओं के दस्तावेजों को अपडेट कर उन का नाम डा. पूजा करना तथा उन के आधार कार्ड व पैन कार्ड के सिबिल स्कोर के आधार पर लोन लेना व उन को वापस नहीं करना था.

सभी आरोपी महिलाओं के नाम को पूजा के नाम पर इसलिए करना चाहता था कि उस के पास एक ही सैट एजुकेशनल दस्तावेज थे. जिन को चैक करने पर वह असली पाए जाते थे. इस कारण से वह अन्य सभी महिलाओं, जिन को वह शादी के लिए झांसे में लेता था, के आधार व पैन कार्ड मे पूजा पुत्री चंद्रपाल की जन्मतिथि अपडेट करवा लेता था.

पुलिस ने आरोपी पूर्णव शंकर शिंदे से पूछताछ कर उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अजनाला नरसंहार : कौन थे वो अनजान शहीद?

पंजाब के अजनाला के गुरुद्वारा  शहीदगंज के कुएं की खुदाई में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के वक्त हेनरी कूपर द्वारा  कराए गए विद्रोही सैनिकों के कत्लेआम (Ajnala Massacre) की जो हड्डियां मिली हैं, उन्हें देख कर यही कहा जा सकता है कि अंग्रेजों में सिर्फ एक ही जनरल डायर नहीं था.

सन 1857 में पंजाब के अजनाला कस्बे में हुए कत्लेआम के बारे में जब वहां से प्रकाशित होने वाली  फुलवाड़ी पत्रिका में विस्तार से छपा तो पढ़ने वालों की आंखें नम हो गईं. क्योंकि एक अंगे्रज अफसर ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थीं. फुलवाड़ी उस समय की मशहूर पत्रिका थी, इसलिए उस के तमाम पाठक थे. इस के संपादक थे हीरा सिंह दर्द. उन्हें भारतीय सैनिकों के इस कत्लेआम की कहानी एक बुजुर्ग जगत सिंह ने सुनाई थी. जगत सिंह कत्लेआम की उस घटना के चश्मदीद गवाह थे. उन का जन्म 1833 में अजनाला कस्बे में हुआ था.

जगत सिंह ने यह कहानी हीरा सिंह दर्द को सुनाई तो वह इसे छापे बिना नहीं रह सके. उन्होंने इसे एक लेख के रूप में अपनी पत्रिका फुलवाड़ी में छापा तो इस के छपते ही हेनरी कूपर द्वारा  किए गए भारतीय सैनिकों के कत्लेआम की चर्चा लोगों में होने लगी थी. लेकिन यह चर्चा ज्यादा तूल नहीं पकड़ सकी, क्योंकि हेनरी कूपर द्वारा  नृशंसतापूर्वक मौत के घाट उतारे गए सभी विद्रोही सैनिक पंजाब के न हो कर बाहरी (बंगाली) थे.

इसलिए चर्चा में आने के बावजूद उन का मामला जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार की तरह गंभीरता से नहीं लिया गया. फिर भी कुछ लोग विद्रोही भारतीय सैनिकों के कत्लेआम के सुबूत सामने लाने और उन्हें शहीदों वाला दरजा दिलाने के प्रयास में लग गए थे.

कत्लेआम के बाद अमृतसर के उस समय के डिप्टी कमिश्नर हेनरी कूपर (Henry Cooper) ने जिस कुएं में विद्रोही सैनिकों की लाशों को दफनाया था, बाद में उस के ऊपर शहीदगंज नाम का भव्य गुरुद्वारा  बन गया था. इस तरह हेनरी कूपर द्वारा  मौत के घाट उतारे गए उन अभागे सैनिकों की कहानी उस शहीदगंज गुरुद्वारे के नीचे शहीद हो गई थी.

भले ही पंजाब में इस घटना को ज्यादा महत्त्व नहीं दिया जा रहा था, लेकिन कुछ लोग इस कोशिश में लगे थे कि हेनरी कूपर द्वारा  मौत के घाट उतारे गए विद्रोही सैनिकों की अस्थियां कुएं से निकाल उन का धार्मिक विधिविधान से अंतिम संस्कार तो किया ही जाए, उन्हें सार्वजनिक रूप से शहीद का दरजा भी दिलवाया जाए. इस के लिए अमृतसर के एक इतिहासकार सुरेंद्र कोछड़ पिछले 2 दशक से पूरी कोशिश कर रहे थे.

आखिर सुरेंद्र कोछड़ की कोशिश रंग लाई और अजनाला के कुछ प्रतिष्ठित लोगों ने गुरुद्वारा  शहीदगंज कमेटी का गठन किया. इसी कमेटी की कोशिश पर 2 मार्च, 2014 यानी घटना के पूरे 157 साल बाद गुरुद्वारा  शहीदगंज में मौजूद उस कुएं की खुदाई मंत्रों के उच्चारण और गुरुवाणी के पवित्र पाठ के साथ शुरू हुई, जिस में हेनरी कूपर ने कत्लेआम करा कर लगभग 237 विद्रोही भारतीय सैनिकों को दफना दिया था और बाद में उस के ऊपर मिट्टी डलवा दी थी. इस खुदाई के काम में पचासों की संख्या में स्त्रीपुरुषों और स्कूली बच्चों ने भाग लिया था.

इस खुदाई में क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा उस घटना यानी हेनरी कूपर द्वारा  किए गए उस कत्लेआम के बारे में जान लें.

ब्रिटिश शासन के खिलाफ सैनिक विद्रोह की पहली चिंगारी मेरठ छावनी से उठी थी. इस चिंगारी को पैदा करने वाला कोई और नहीं, ब्रिटिश सेना का ही एक साधारण सा सिपाही मंगल पांडे था.

मेरठ छावनी से फूटी सैनिक विद्रोह की इस चिंगारी ने स्वतंत्रता संग्राम की शक्ल ले ली थी, जिसे बाद में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम कहा गया. आजादी की इस लड़ाई में अंगे्रजों से लड़ते हुए हजारों देशभक्त भारतीयों ने अपनी जानें कुर्बान कर दी थीं. फिर भी इस स्वतंत्रता संग्राम का मकसद पूरा नहीं हो सका था. फिर भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अंगे्रजी शासन की चूलें हिला दी थीं.

इस में दो राय नहीं कि अंगे्रजों ने 1857 के इस स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने के लिए बेरहमी और क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थीं. आजादी के सिपाहियों को चुनचुन कर मौत के घाट उतारा गया था.

ऐसा फिर कभी न हो, भारतीय जनता के दिलों में खौफ पैदा करने के लिए आजादी के सिपाहियों को खुलेआम सड़कों के दोनों ओर के पेड़ों पर फांसी पर लटका दिया गया था. यही नहीं, उन की लाशों को कई दिनों तक उसी तरह लटकाए रखा गया था.

बेरहम अंगे्रजों ने 1857 में कितने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को मौत के घाट उतारा, इस का हिसाब नहीं लगाया जा सकता. लेकिन यह साफ है कि उस समय जो भी हुआ था, वह बहुत ही भयानक और क्रूरतम था. तब अंगे्रजों ने कुछ ऐसे नरसंहार कराए थे, जो अमृतसर के जलियांवाला बाग से भी खौफनाक थे. भले ही उन खौफनाक नरसंहारों का कोई लिखित इतिहास नहीं मिलता, मगर कभीकभी सच बयान करने के लिए इतिहास खुद ही बोल पड़ता है.

उस स्वतंत्रता संग्राम के 5 सौ सैनिकों की नृशंस हत्या के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. उन भारतीय सैनिकों की नृशंस हत्या की कहानी के सुबूत सामने आने के बाद लोग यह कहने को मजबूर हो गए हैं कि अंगे्रजों में न जाने कितने जनरल डायर थे.

विद्रोह की शुरुआत भले ही मेरठ की सैनिक छावनी से हुई थी, मगर यह बड़ी तेजी से पूरे देश में फैल गया था. देखतेदेखते देश की लगभग सभी छावनियों के सैनिक सिर पर कफन बांध कर स्वतंत्रता संग्राम के इस यज्ञ में आहुति देने के लिए कूद पड़े थे.

लाहौर की सैनिक छावनी में भी विद्रोह की आग भड़क उठी थी. बंगाल नेटिव इंफेन्ट्री 26 रेजीमेंट के लगभग 5 सौ जवान विद्रोह कर के लाहौर की सैनिक छावनी को छोड़ कर आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए बुलंद जज्बे के साथ मेरठ की ओर चल पड़े थे. इन 5 सौ जवानों की विडंबना यह थी कि इन के पास लड़ने के लिए कोई हथियार नहीं थे.

उन दिनों अमृतसर में जो अंगे्रज डिप्टी कमिश्नर था, वह भारतीयों से घोर नफरत करता था. उस का नाम था हेनरी कूपर. उसे सूचना मिल चुकी थी कि लाहौर छावनी से विद्रोह कर के भागे सैनिक अमृतसर हो कर ही मेरठ जाएंगे. उस ने उन सैनिकों को रास्ते में घेरने की योजना बना डाली.

हेनरी कूपर बेहद मक्कार और क्रूर था. उस के हृदय में जरा भी दया नहीं थी. वह भारतीयों से वैसे ही नफरत करता था, इस पर जब उन्होंने विद्रोह कर दिया तो उस की नफरत और बढ़ गई. वह चाहता तो लाहौर छावनी से भागे निहत्थे जवानों को घेर कर आसानी से गिरफ्तार कर सकता था. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. शायद वह उन जवानों के ही नहीं, भारत में सैनिक फिर ऐसा कर सकें, इस की सीख देने के लिए उस ने उन का बेरहमी से कत्ल करने का इरादा बना लिया था.

हेनरी कूपर ने सैकड़ों हथियारबंद सिपाहियों की मदद से लाहौर से भागे सैनिकों को अजनाला से कुछ दूरी पर पहले ही घेर लिया. उन निहत्थे सैनिकों को पता नहीं था कि हेनरी कूपर उन्हें खत्म करने के इरादे से आया है. उन का सोचना था कि वह उन्हें गिरफ्तार कर के जेल में डाल देगा. अगर उन्हें पता होता कि यह क्रूरअधिकारी उन्हें मरवा देगा तो वे इतनी आसानी से उस के हाथ न आते. सैनिक कुछ समझ पाते, उस के पहले ही हेनरी कूपर ने अपने साथ आए सिपाहियों को गोलियां चलाने का आदेश दे दिया.

आदेश मिलते ही सिपाही गोली चलाने लगे. इस गोलीबारी में लगभग सवा 2 सौ सैनिक मारे गए. बाकी बचे सिपाहियों को रस्सियों में बांध कर अजनाला लाया गया. अजनाला के थाने में इतने सैनिकों को बंद करने की जगह नहीं थी, इसलिए हेनरी कूपर ने बंदी सिपाहियों को करीब के एक बुर्ज में कैद करा दिया.

नियम और कानून के अनुसार, गिरफ्तार किए गए सभी सैनिकों को कोर्ट में पेश करना चाहिए था, जहां उन की सजा मुकर्रर की जाती. लेकिन हेनरी कूपर ने ऐसा नहीं किया. सारे कायदेकानूनों को ताक पर रख कर उस ने खुद ही गिरफ्तार किए गए सैनिकों को सजा देने का निश्चय किया. पहले उस ने सभी सैनिकों को फांसी देने का विचार किया. लेकिन उसे लगा कि इतने सैनिकों को फांसी देने में काफी समय लगेगा. उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि पता चलने पर कहीं विद्रोही सैनिक अजनाला आ कर उन सैनिकों को छुड़ाने के लिए हमला न कर दें.

इसी डर की वजह से हेनरी कूपर ने फांसी देने के बजाय उन सैनिकों को गोली मार कर मौत के घाट उतारने का फैसला किया. उस समय अजनाला थाने के सामने एक काफी बड़ा खुला मैदान था. मैदान के किनारे एक काफी बड़ा और गहरा कुआं था. मैदान और उस कुएं को ले कर हेनरी कूपर के शैतानी दिमाग में जो योजना आई, उस के अनुसार उस ने करीब 50 फिरंगी बंदूकधारी सैनिकों को थाने के सामने के उस मैदान में तैनात कर दिया.

इस के बाद हेनरी कूपर ने 10-10 बंदी विद्रोही सैनिकों को वहां लाने का आदेश दिया. उन विद्रोही सिपाहियों को जैसे ही फिरंगी सैनिकों के सामने ला कर खड़ा किया गया, फिरंगी सैनिकों ने उन निहत्थे और भूखेप्यासे सैनिकों पर गोलियां दाग कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया.

यह खूनी सिलसिला तब तक चलता रहा, जब तक पकड़े गए सभी भारतीय सैनिकों को मार नहीं दिया गया. इस तरह मैदान खून से लथपथ शहीद सिपाहियों की लाशों से पट गया. वह बड़ा ही दिल दहलाने वला मंजर रहा होगा. बात आई लाशों को ठिकाने लगाने की तो राक्षस हेनरी कूपर ने उन शहीद सैनिकों की लाशों को मैदान से सटे उसी बड़े कुएं में डलवा दिया. जबकि उन में कुछ सैनिक जिंदा भी थे. हेनरी कूपर ने उन पर भी दया नहीं की. लाशों के साथ जिंदा सैनिकों को भी उस ने उसी कुएं में फेंकवा दिया था.

जिंदा और मुर्दा सैनिकों को कुएं में फेंकवा कर हेनरी कूपर ने उसे मिट्टी से भरवा दिया. ऐसा कर के हेनरी कूपर ने सोचा था कि उस का यह भयानक गुनाह हमेशा हमेशा के लिए वक्त की परतों में दफन हो जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

आज से 157 साल पहले कू्रर हेनरी ने जिन सैनिकों का कत्लेआम कराया था, उस का कोई लिखित दस्तावेज न होने की वजह से यह इतिहास के पन्नों से गायब था. ज्यादातर भारतीय इस बात से बेखबर थे कि 13 अप्रैल, 1919 में बैशाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में जनरल डायर द्वारा  सैंकड़ों निर्दोष भारतीयों का कत्लेआम कराने से पहले भी एक अन्य अंगे्रज हेनरी कूपर ने भी उसी तरह का एक कत्लेआम कराया था.

हेनरी कूपर द्वारा  कराए गए इस कत्लेआम के निश्चित ही तमाम चश्मदीद रहे होंगे, लेकिन शायद डर की वजह से उन लोगों ने तब जुबान नहीं खोली होगी. लेकिन कोई भी गुनाह छिपा नहीं रहता. उसी तरह इस गुनाह के साथ भी हुआ. जगत सिंह से इस घटना का जिक्र फुलवाड़ी पत्रिका के संपादक हीरा सिंह दर्द से किया तो उन्होंने इसे अपनी पत्रिका में छाप कर इस रहस्य को उजागर कर दिया.

जैसेजैसे खुदाई होती गई, बेरहम हेनरी कूपर द्वारा  डेढ़ सदी पहले कराए गए कत्लेआम के सुबूत के रूप में इंसानी हड्डियां, खोपडि़यां, ब्रिटिश काल के सिक्के और विक्टोरिया काल के सैनिकों के तमगे सामने आने लगे. हर चीज हेनरी कूपर की क्रूर और कत्लेआम की लोमहर्षक कहानी बयान कर रही थी. उस की दरिंदगी के आगे जनरल डायर की निर्दयता भी फीकी पड़ गई थी. खुदाई होती गई और इंसानी हड्डियां और खोपडि़यां निकलती गईं. जब खुदाई समाप्त हुई तो इंसानी हड्डियों और खोपडि़यों के ढेर को देख कर लोगों की आंखें भीग गईं.

भले ही किसी को यह पता नहीं था कि 157 साल पहले हेनरी कूपर द्वारा  मरवाए गए सैनिक कौन थे? लेकिन यह तो निश्चित था कि वे भारतीय थे. कुएं से 40 खोपडि़यां सहीसलामत निकली थीं. जबकि हड्डियों और दांतों की संख्या हजारों में थी. इन के साथ कुछ ताबीजें भी मिली थीं, जिस से अंदाजा लगाया गया कि मारे गए सैनिकों में मुसलमान भी थे.

पंजाब सरकार ने हेनरी कूपर द्वारा  मौत के घाट उतारे गए सभी सैनिकों को शहीद का दर्जा दे कर उन का स्मारक बनवाने की घोषणा की, जिस में इन सैनिकों की कुछ अस्थियां भी रखी जाएंगी. वे सभी अस्थियां पुरातत्व विभाग के हवाले की गयी. पुरातत्व विभाग ने बंगाल नेटिव इफेन्ट्री 26 से संपर्क कर के मारे गए सैनिकों के बारे में पता लगाने की कोशिश की. उस के बाद पारंपरिक रीतिरिवाज से उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

इस से भी बड़ी विडंबना तो यह है कि जिस हेनरी कूपर ने 157 साल पहले इतने भारतीय सैनिकों की बेरहमी से हत्या कराई थी,  उस के नाम की कूपर रोड आज भी अमृतसर में मौजूद है और वह वहां का पौश एरिया है. अब कूपर रोड का नाम बदलने की मांग उठ रही है. देखिए यह संयोग कब आता है.

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा

बड़े गुनाह की छोटी सजा : मासूम को नहीं मिला इंसाफ

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा – भाग 3

आयुष्मान कार्ड किसी से न करें शेयर

डा. राकेश बोहरे  (चीफ मैडिकल एंड हेल्थ औफिसर) नरसिंहपुर

सरकार जरूरतमंद लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिन के जरिए मरीज को हौस्पिटल में एडमिट कर कैशलेस इलाज किया जाता है, लेकिन सरकारी योजनाओं में बड़े पैमाने पर धांधली भी कुछ प्राइवेट हौस्पिटलों द्वारा की जा रही है.

नैशनल हेल्थ अथौरिटी (एनएचए) आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य स्कीम को ले कर पहले ही एंटी फ्रौड गाइडलाइंस जारी कर चुका है. इस के अलावा विभाग ने राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों में भी नैशनल एंटी फ्रौड यूनिट (एनएएफयू) गठित की है, जो इस योजना से संबंधित फरजीवाड़े की राज्य स्तर पर निगरानी कर सकें. सरकार इस स्कीम को जीरो टेलरेंस अप्रोच के तहत लागू कर रही है.

इस योजना का लाभ उठाने वाले लाभार्थियों को जरूरी दस्तावेजों को जमा करना पड़ता है और साथ ही उन्हें रोगी की औनबेड फोटो भेजनी पड़ती है. इस के अलावा इस स्कीम का फायदा उठाने के लिए आधार बेस्ड वेरिफिकेशन भी किया जाता है.

गांवों में रहने वाली देश की बड़ी आबादी अभी भी इतनी शिक्षित नहीं है कि वह सरकारी योजनाओं की जानकारी को पूरी तरह से समझ सके. जब किसी परिवार का कोई सदस्य गंभीर बीमारी का शिकार हो जाता है तो घर वाले उसे उन प्राइवेट हौस्पिटल में ले जाते हैं, जहां उसे मुफ्त इलाज मिलता है.

मरीज का इलाज शुरू होते ही फारमेलिटी के नाम पर सभी दस्तावेज जमा करवा लिए जाते हैं. रोगी की गंभीर हालत का खतरा दिखा कर कई बार जांच और दवाइयों के नाम पर कुछ रुपए भी जमा करवा लिए जाते हैं. बाद में पता चलता है कि प्राइवेट हौस्पिटल ने इलाज पर खर्च रुपयों से अधिक रुपए सरकारी खजाने से निकाल लिए.

आयुष्मान भारत योजना के तहत सरकार इलाज के लिए 5 लाख रुपए तक की मदद करती है. रोगी इस योजना के तहत रजिस्टर्ड किसी भी अस्पताल में अपना इलाज करा सकते हैं. इस के लिए सरकार के द्वारा 5 लाख रुपए तक की मदद की जाती है. कई दफा ठग रोगी की निजी जानकारियां चुरा कर इस स्कीम के तहत जालसाजी कर लेते हैं. इस के लिए उन की अस्पताल के साथ भी सांठगांठ रहती है.

इस से बचने के लिए अपनी निजी जानकारियों समेत इलाज से संबंधित जानकारियों को किसी के साथ शेयर नहीं करनी चाहिए. साथ ही यदि कोई प्राइवेट हौस्पिटल सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का मुफ्त लाभ देने में कोताही बरते या मरीज के परिवार से रुपए वसूले तो इस की शिकायत जरूर करनी चाहिए.

जिस तरह एटीएम कार्ड के जरिए साइबर फ्रौड की घटनाएं देश में बढ़ रही हैं, उसी तरह आजकल कुछ जालसाज भी लोगों को आयुष्मान कार्ड की आड़ में भी लूट रहे हैं.

ऐसे लोग प्राइवेट हौस्पिटल के डाक्टर्स के साथ मिल कर या कोई अन्य तरीकों से बीमा के पैसे निकालने की कोशिश कर रहे हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ मैडिकल काउंसिल ने 5 ऐसे डाक्टरों को पकड़ा, जो कार्डधारकों की झूठी मैडिकल रिपोर्ट बनाते थे और फिर उन के आयुष्मान कार्ड से इलाज के नाम का बिल लगा कर मोटी रााशि निकाल लिया करते थे.

इन सभी डाक्टरों को निलंबित कर दिया गया है. ऐसे में आप के लिए भी जरूरी है कि आप कुछ बातों का ध्यान रखें, ताकि आप धोखाधड़ी से बच सकें.

अगर आप आयुष्मान योजना के कार्डधारक हैं तो आप को भूल कर भी किसी के साथ अपने इस कार्ड की डिटेल्स शेयर नहीं करनी चाहिए. आप के इस कार्ड का गलत इस्तेमाल कर के कोई भी इस से उपचार के बहाने पैसे निकाल सकता है.

कोशिश करें कि कार्ड को अपने पास ही रखें और जरूरत पड़ने पर अधिकारियों को ही इसे दें. अन्यथा आप के कार्ड की जानकारी ले कर कोई भी इस का गलत इस्तेमाल कर सकता है.

अगर आप आयुष्मान कार्ड बनवा चुके हैं और आप को कस्टमर केयर बन कर कोई काल करता है और फिर आप से आप की बैंकिंग जानकारी अपडेट करने के लिए मांगता है तो आप को ऐसे काल्स से सावधान रहना है, क्योंकि ये जालसाज के काल्स होते हैं और ये आप को ठग सकते हैं.

जालसाज केवाईसी करवाने के नाम पर भी लोगों को ठग रहे हैं. इसलिए आप को ऐसे लोगों से सावधान रहना है, ये लोग आप को मैसेज, वाट्सऐप या ईमेल पर फरजी लिंक भेज कर भी चपत लगा सकते हैं.

आयुष्मान योजना में फरजीवाड़ा – भाग 2

पुलिस को क्यों दर्ज करनी पड़ी रिपोर्ट

जानकारी में पता चला कि मैक्सकेयर हौस्पिटल द्वारा 2 बार में उस के कार्ड से लगभग 75 हजार रुपए निकाले गए हैं. यह जानकारी मिलते ही खालिद ने 2 अगस्त, 2022 को एसपी (भोपाल) से मिल कर मैक्सकेयर हौस्पिटल की धोखाधड़ी की शिकायत की, मगर कोई काररवाई नहीं हुई. हौस्पिटल संचालक डा. अल्ताफ मसूद  (Dr. Altaf Masood) के रसूख के चलते खालिद की शिकायत नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर दब गई.

तभी खालिद ने भोपाल के प्रसिद्ध वकील शारिक चौधरी (Advocate Shariq Choudhry) के बारे में सुना था कि वह लोगों की मदद करते हैं. एक दिन खालिद ने एडवोकेट शारिक चौधरी से मुलाकात कर अपने साथ हुई धोखाधड़ी की जानकारी उन्हें विस्तार से दी.

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तब एडवोकेट शारिक चौधरी ने सीआरपीसी की धारा 156 के तहत माननीय न्यायाधीश संदीप कुमार नामदेव प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट भोपाल की अदालत में परिवाद दायर किया. तब कोर्ट ने 8 नवंबर, 2023 को एसपी को आदेश दे कर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए.

भोपाल के टीला जमालपुरा स्थित हाउसिंग बोर्ड कालोनी निवासी 28 साल के खालिद अली की शिकायत पर भोपाल की तलैया पुलिस ने फतेहगढ़ स्थित मैक्सकेयर चिल्ड्रन अस्पताल के संचालक अल्ताफ मसूद पर धोखाधड़ी,  फरजी दस्तावेज तैयार करने के मामले में केस दर्ज कर लिया.

एफआईआर के बाद तलैया पुलिस थाने के एसआई कर्मवीर सिंह जब जांच के लिए अस्पताल पहुंचे तो अस्पताल संचालक वहां से गायब हो गया. एसआई शर्मा ने मौजूद स्टाफ से जोहान के इलाज संबंधी फाइल की जांच कर बयान दर्ज किए. जांच के दौरान इलाज करने वाला डाक्टर अस्पताल से नदारद मिला.

3 महीने तक मासूम को हौस्पिटल में भरती रखा गया, जिस में कई बार में दवाइयों और इलाज के नाम पर 3 लाख से अधिक रुपए वसूल लिए. खालिद जब भी बिल मांगता, अस्पताल प्रबंधन उसे टके सा जबाव दे देता, ”मरीज के डिस्चार्ज होने के समय पूरे बिल दे दिए जाएंगे, आप चिंता न करें.’‘

आखिरकार मासूम जोहान की मौत हो गई और बाद में पता लगा कि अस्पताल की ओर से आयुष्मान कार्ड से भी बच्चे के इलाज के नाम पर रकम सरकारी खजाने से ली गई है, जबकि खालिद के परिवार को इस की जानकारी नहीं दी गई थी. खालिद ने सब से पहले इस फरजीवाड़े की शिकायत पुलिस थाने में की तो सुनवाई नहीं हुई. तब जा कर कोर्ट में परिवाद दायर किया.

धोखाधड़ी का पता चलते ही खालिद ने सभी संबंधित सरकारी विभागों में इस की शिकायत की और आयुष्मान योजना के भोपाल औफिस से आए वेरीफिकेशन काल वालों को भी बताया कि उस ने अपने बेटे के इलाज का पूरा भुगतान कर दिया है. इस के बाद भी कहीं से कोई काररवाई नहीं हुई.

आखिरकार खालिद ने एडवोकेट शारिक चौधरी के माध्यम से धोखाधड़ी का परिवाद कोर्ट में दायर कर दिया. इस पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए पुलिस को धारा 120बी, 420, 468 और 471 के तहत एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए. इस के बाद भोपाल की तलैया पुलिस थाने में अस्पताल के संचालक डा. अलताफ मसूद के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर लिया.

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खालिद अली ने बताया कि डा. अल्ताफ मसूद सरकारी योजनाओं में जम कर भ्रष्टाचार कर रहा है और उस के खिलाफ शिकायतें भी हो रही हैं, मगर अपनी राजनीतिक पहुंच के चलते उस पर कोई काररवाई नहीं होती है.

भोपाल की तलैया पुलिस ने आयुष्मान भारत योजना के औफिस को पत्र लिख कर जानकारी चाही है कि इस योजना का लाभ हासिल करने और इलाज के दौरान भुगतान के कौन से नियम हैं. कथा लिखे जाने तक डा. अल्ताफ मसूद पर कोई काररवाई नहीं हुई थी.

आयुष्मान कार्ड धारकों में मध्य प्रदेश अव्वल

‘आयुष्मान भारत योजना’ के सब से ज्यादा आयुष्मान कार्डधारक मध्य प्रदेश में ही हैं. यहीं पर सब से ज्यादा लापरवाही देखी जा रही है. कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मध्य प्रदेश में आयुष्मान के लिए जिला स्तर पर शिकायत निराकरण समितियों का गठन नहीं किया गया है.

आयुष्मान योजना में सूचना शिक्षा और संवाद का प्लान तो बनाया, लेकिन उसे लागू नहीं किया गया. कैग की पैन इंडिया औडिट रिपोर्ट में अनियमितताओं के सब से ज्यादा मामले मध्य प्रदेश में ही हैं. मध्य प्रदेश में कई संदिग्ध कार्ड और मृत लोगों को भी लाभार्थी के रूप में रजिस्ट्रैशन की जानकारी पाई गई है.

कैग की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में करीब 25 अस्पताल ऐसे हैं, जिन्होंने क्षमता से अधिक बैड आक्यूपेंसी दिखाई. यानी कि इन अस्पतालों ने एक दिन में बैड क्षमता से ज्यादा मरीजों की भरती दिखा कर क्लेम लिया है. भोपाल के जवाहरलाल नेहरू कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में 20 मार्च, 2023 तक 100 बैड थे, लेकिन इस में 233 मरीजों को दिखाया गया.

कैग की रिपोर्ट में सरकारी अस्पताल समेत कुल 24 अस्पतालों के नाम शामिल हैं. कैग की रिपोर्ट में कहा गया डिफाल्टिंग अस्पतालों से होने वाली रिकवरी के मामले में मध्य प्रदेश के आंकड़े सब से खराब हैं.

आयुष्मान भारत योजना में 2022 में जबलपुर के एक निजी अस्पताल ने फरजीवाड़ा कर के सरकार को साढ़े 12 करोड़ का चूना लगाया था. इस अस्पताल ने मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म की तरह 4 हजार मरीजों को होटल में भरती कर के फरजी इलाज किया. अस्पताल ने कथित मरीजों के साथ उन्हें लाने वालों तक को कमीशन बांटा था.

जबलपुर पुलिस की टीम ने स्वास्थ्य विभाग के साथ मिल कर 26 अगस्त, 2022 को सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल में छापा मारा था. उस समय अस्पताल के अलावा बाजू में होटल वेगा में भी छापा मारा गया था. जांच के दौरान होटल वेगा और अस्पताल में आयुष्मान कार्डधारी मरीज भरती पाए गए थे.

अस्पताल संचालक डा. दुहिता पाठक और उस के पति डा. अश्विनी कुमार पाठक ने कई लोगों को फरजी मरीज बना कर यहां रखा था. होटल के कमरे में 3-3 लोग भरती पाए गए थे. अस्पताल ने फरजीवाड़ा कर के सरकार को साढ़े 12 करोड़ रुपए का चूना लगाया था.

अस्पताल ने कथित मरीजों के साथ उन्हें लाने वालों तक को कमीशन बांटा था. इस के बाद पुलिस ने डाक्टर दंपति के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था और डाक्टर दंपति को जेल की हवा खानी पड़ी थी.

इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया था. एसआईटी जांच में यह खुलासा हुआ था कि आयुष्मान भारत योजना के तहत सेंट्रल इंडिया किडनी हौस्पिटल में 2 से ढाई साल में लगभग 4 हजार मरीजों का इलाज हुआ था, जिस के एवज में सरकार द्वारा तकरीबन साढ़े 12 करोड़ रुपए का भुगतान अस्पताल को किया गया था.

इस के साथ ही इस बात के भी दस्तावेज मिले हैं कि दूसरे राज्यों के मरीजों का उपचार भी सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल में हुआ था, जोकि गैरकानूनी है.

एसआईटी ने सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल में कार्यरत कर्मचारियों से भी पूछताछ की, जिस में कई कर्मचारियों ने बताया कि वह अस्पताल में आयुष्मान योजना का लाभ लेने वाले लोगों को भरती करवाते थे तो अस्पताल संचालक दुहिता पाठक और उस के पति डा. अश्विनी पाठक बतौर कमीशन 5 हजार रुपए देते थे.

कमीशन लेने के लिए कर्मचारियों ने कई बार एक ही परिवार के लोगों को अलगअलग तारीखों में भरती किया था. उन के नाम पर आयुष्मान योजना का फरजी बिल लगा कर लाखों रुपए की वसूली की गई थी.

—कथा c, पीड़ित परिवार से बातचीत और पुलिस सूत्रों पर आधारित

बड़े गुनाह की छोटी सजा : मासूम को नहीं मिला इंसाफ – भाग 3

पुलिस ने मुन्ना को दिल दहला देने वाली यातनाएं दे कर जुर्म कबूल करवा लिया कि उस के सोनू व उस की 10 वर्षीय बेटी दिव्या से नाजायज संबंध थे. दिव्या के रेप व मर्डर की बात कबूल करा कर उसे कानपुर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. लेकिन पुलिस की इस कहानी को सोनू भदौरिया ने सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि मुन्ना बेगुनाह है. पुलिस ने उसे झूठा फंसाया है. मीडिया वालों ने मुन्ना लोध की गिरफ्तारी पर संदेह जता कर छापा तो पुलिस तिलमिला उठी.

सोनू भदौरिया व उस की बेटी दिव्या के चारित्रिक हनन तथा मुन्ना लोध को झूठा फंसाने को ले कर शहर की जनता में फिर से गुस्सा फूट पड़ा. उन्होंने पुलिस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

महिला मंच की नीलम चतुर्वेदी, अनीता दुआ, पार्षद आरती दीक्षित, गीता निषाद, श्रम संगठन के ज्ञानेश मिश्रा तथा स्कूली बच्चों ने जगहजगह धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिए. बड़े प्रदर्शन से पुलिस बौखला गई और उस ने प्रदर्शन कर रही महिलाओं पर लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. पुलिस ने उन पर शांति भंग करने का मुकदमा भी दर्ज कर दिया.

एसपी (ग्रामीण) लालबहादुर व सीओ लक्ष्मीनारायण की शासन में पकड़ मजबूत थी. इसी का लाभ उठा कर उन्होंने पुलिस बर्बरता कायम रखी. सोनू भदौरिया की मदद को जो भी आगे आया, पुलिस अफसरों ने उसे प्रताडि़त किया और झूठे मुकदमे में फंसा दिया. पुलिस रात में दरवाजा खटखटा कर लोगों को डराने लगी.

महिला दरोगा शालिनी सहाय सोनू भदौरिया को धमकाती कि वह केस वापस ले ले. साथ ही सोनू को शहर छोड़ कर गांव चली जाने का भी दबाव बनाया गया. वह उस की बेटी दीक्षा से कहती थी कि वह मां से कहे कि उसे शहर में नहीं गांव में जा कर रहना है.

सोनू के मकान मालिक राजन शुक्ला को भी पुलिस ने धमकाया कि वह सोनू को मकान से निकाल दे. पुलिस ने राजन शुक्ला, उन के भतीजे तथा अन्य किराएदारों को भी पूछताछ के नाम पर प्रताडि़त किया.

समाचार पत्रों ने भी निभाई भूमिका

स्थानीय समाचार पत्रों ने पुलिस की इस दमन नीति को सुर्खियों में छापना शुरू किया तो पुलिस अफसरों की भृकुटि तन गईं. उन्होंने अखबारनवीसों को चेताया कि पुलिस की छवि खराब न करें अन्यथा परिणाम अच्छा नहीं होगा.

लेकिन पुलिस की धमकी से अखबारनवीस डरे नहीं, बल्कि उन्होंने दिव्या कांड व पुलिस की दमन नीति को ले कर कानपुर शहर व प्रदेश की कानूनव्यवस्था बिगड़ने के खतरे का समाचार प्रकाशित किया.

इस के बाद यह मामला सड़क से संसद तथा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक गूंजा. सांसद राजाराम पाल ने दिव्या कांड का मामला संसद में उठाया तो कानपुर शहर के विधायकों ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को इस मामले से अवगत कराया.

राज्यपाल ने प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को चिट्ठी लिखी. इस के बाद जब यह मामला मायावती के संज्ञान में आया तो उन्होंने त्वरित काररवाई करते हुए 23 अक्तूबर, 2010 को यह मामला लखनऊ सीबीसीआईडी को सौंप दिया. यही नहीं मायावती ने दिव्या कांड को उलझाने वाले तथा आरोपियों की मदद करने वाले पुलिस अफसरों पर भी बड़ी काररवाई की.

डीआईजी प्रेम प्रकाश का शासन ने स्थानांतरण कर दिया और उन के खिलाफ जांच बैठा दी गई. एसपी (ग्रामीण) लाल बहादुर, सीओ लक्ष्मीनारायण मिश्र तथा इंसपेक्टर अनिल कुमार को तत्काल निलंबित कर उन के खिलाफ साक्ष्य छिपाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.

आखिर ऊंट आया पहाड़ के नीचे

मामला सीबीसीआईडी के हाथ में आया तो इंसपेक्टर ए.के. सिंह ने अपनी टीम के साथ बारीकी से जांच शुरू की. उन्होंने स्कूल जा कर छानबीन की और खून आदि के नमूने एकत्र किए. इस के बाद मृतका दिव्या के आंतरिक वस्त्र और स्कर्ट में मिले स्पर्म का नमूना लिया. स्पर्म ब्लड के मिलान के लिए जांच अधिकारी ए.के. सिंह ने सीएमएम कोर्ट में 13 लोगों का नमूना लेने की अरजी डाली.

अरजी मंजूर होने पर 9 नवंबर, 2010 को सीबीसीआईडी ने अदालत के आदेश पर चंद्रपाल वर्मा, मुकेश वर्मा, पीयूष वर्मा, संतोष व मुन्ना सहित 13 संदिग्धों के रक्त के नमूने सीएमएम अदालत में लिए. पीयूष, मुकेश, संतोष व चंद्रपाल का स्पर्म नमूना ले कर लखनऊ स्थित एफएसएल लैब भेजा गया. जांच में पीयूष वर्मा के स्पर्म का नमूना दिव्या के स्कर्ट से मिले स्पर्म से मेल हो गया.

सीबीसीआईडी ने अपनी जांच में पीयूष वर्मा, मुकेश वर्मा, चंद्रपाल वर्मा तथा संतोष वर्मा को मामले में दोषी ठहराया, जिस में पीयूष वर्मा को मुख्य आरोपी तथा 3 अन्य को साक्ष्य छिपाने तथा गैरइरादतन हत्या का ठहराया, जबकि मुन्ना लोध को निर्दोष बताया गया. विवेचना के दौरान सीबीसीआईडी को मुन्ना के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला.

सीबीसीआईडी ने धारा 196 (अपराध का होना न पाया जाना) के तहत कोर्ट में अरजी दी. जिस के आधार पर मुन्ना के वकील शिवाकांत दीक्षित ने कोर्ट में बहस की. अदालत ने उसे दोषमुक्त करार दे कर जेल से छोड़ने का आदेश दिया.

11 जनवरी, 2011 को सीबीसीआईडी ने डीएनए टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर पीयूष वर्मा के खिलाफ भादंवि की धारा 377, 302, 201, 109, 376(2)(एफ), 202, 511 के तहत कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की. वहीं चंद्रपाल वर्मा, मुकेश वर्मा और संतोष के विरुद्ध भादंवि की धारा 304ए, 201 के तहत कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई.

आरोपियों ने अपने बचाव व जमानत के लिए कानपुर कोर्ट के चर्चित अधिवक्ता गुलाम रब्बानी को नियुक्त किया, जबकि सोनू भदौरिया ने केस को मजबूती से लड़ने के लिए अधिवक्ता अजय सिंह भदौरिया व संजीव सिंह सोलंकी को नियुक्त किया.

अजय सिंह ने आर्थिक रूप से कमजोर सोनू का केस नि:शुल्क लड़ा. गुलाम रब्बानी ने आरोपियों की जमानत हेतु कोर्ट में जम कर बहस की. दूसरी ओर अभियोजन पक्ष के वकील अजय सिंह ने उन के तर्कों का विरोध किया. दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद कोर्ट ने आरोपियों को जमानत देने से इनकार कर दिया.

इस के बाद चंद्रपाल वर्मा, मुकेश वर्मा, पीयूष व संतोष ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

हाईकोर्ट ने अंतत: 2 साल जेल में रहने के बाद 19 अप्रैल, 2012 को चंद्रपाल वर्मा, मुकेश व संतोष को जमानत दे दी. लेकिन पीयूष को जमानत नहीं मिली.

इस के बाद इस मामले की कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. सीबीसीआईडी के अधिवक्ता नागेश कुमार दीक्षित ने कोर्ट के सामने मामले को रेयरेस्ट औफ रेयर बताया और आरोपियों के लिए फांसी की सजा की मांग की.

अदालत ने खूब निभाई अपनी भूमिका

अभियोजन पक्ष ने इस मामले में 39 गवाह पेश किए. बचावपक्ष की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता गुलाम रब्बानी ने कोर्ट में 39 गवाहों से 115 पेज की लिखित बहस पेश की. वहीं जवाब में पीडि़त पक्ष (अभियोजन) की ओर से सीबीसीआईडी के वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी नागेश कुमार दीक्षित व पीडि़ता के अधिवक्ता अजय सिंह भदौरिया व संजीव सिंह सोलंकी ने मात्र 12 पेज की संक्षिप्त बहस में सभी तर्कों को खारिज कर दिया.

एडीजे द्वितीय ज्योति कुमार त्रिपाठी ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद कहा, ‘‘बचाव पक्ष के सभी तर्क निराधार हैं. यह एक गंभीर अपराध है. ऐसे अपराध रेयरेस्ट औफ रेयर की ही श्रेणी में आते हैं. ऐसे अपराध और कुकृत्य से समाज में दहशत फैलती है, इसलिए इस अपराध के अभियुक्तों को किसी भी सूरत में राहत नहीं दी जा सकती.’’

इसी के साथ ही उन्होंने दुष्कर्म और हत्या के आरोपी पीयूष वर्मा को आजीवन कारावास की सजा तथा 75 हजार रुपए का जुरमाना भरने की सजा सुनाई.

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सहअभियुक्त मुकेश वर्मा व संतोष कुमार उर्फ मिश्राजी को गैर इरादतन हत्या व अपराध की सूचना न देने का दोषी मानते हुए एक साल 3 महीने की सजा तथा 21 हजार रुपए के जुरमाने की सजा दी गई. साक्ष्य के अभाव में अदालत ने चंद्रपाल वर्मा को बरी कर दिया गया. माननीय जज ने जुरमाने की आधी रकम पीडि़त पक्ष को देने का आदेश दिया.

दिव्या रेप मर्डर में फैसला आने में 8 साल का समय लगा. इस का कारण गवाहों का अधिक होना था. कभी गवाह के न आने तो कभी आने पर भी गवाही न होने के कारण तारीख पर तारीख लगती रही. यह मुकदमा 4 कोर्टों में ट्रांसफर हुआ. सुनवाई के दौरान 7 जज बदले.

अंत में 5वीं कोर्ट के एडीजे द्वितीय ज्योति कुमार त्रिपाठी ने अंतिम बहस पूरी की और फैसला सुनाया. फैसले के बाद पीयूष वर्मा को जेल भेज दिया गया.

कोर्ट के फैसले से दिव्या की मां सोनू भदौरिया खुश नहीं है. उस का कहना है कि पीयूष वर्मा को फांसी की सजा मिलनी चाहिए थी. अन्य आरोपियों को भी कम सजा मिली है. वह कोर्ट के फैसले के खिलाफ आरोपियों को अधिक सजा दिलाने के लिए हाईकोर्ट की शरण लेगी और अपने अधिवक्ता अजय सिंह भदौरिया के मार्फत अपील करेगी.

—कथा कोर्ट के फैसले तथा लेखक द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर आधारित