खुद ही बनाया बर्बादी का रास्ता – भाग 1

जतिन उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी के माउंट एवरेस्ट स्कूल में पांचवीं में पढ़ता था. 21 सितंबर, 2013 को दोपहर बाद वह बुराड़ी में ही रहने वाले अपने एक दोस्त से कौपी लेने के लिए घर से  निकलने लगा तो अपनी मां राज ढींगरा से बोला, ‘‘मम्मी कौपी ले कर मैं अभी थोड़ी देर में आ रहा हूं.’’

थोड़ी देर में आने के लिए कह कर गया जतिन जब काफी देर तक नहीं लौटा तो घरवाले परेशान होेने लगे. उन्हें यह भी पता नहीं था कि जतिन जिस दोस्त के यहां जाने को कह कर गया है, वह बुराड़ी के किस ब्लौक या गली में रहता है?

घर वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर जतिन को ढूंढा कहां जाए. उन्होंने मौहल्ले में तलाशने के साथसाथ उस के दोस्तों से भी पता किया, लेकिन जतिन के बारे में कुछ पता नहीं चला. कई घंटे बीत जाने के बाद भी जतिन के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उस के पिता किशनलाल ढींगरा ने थाना बुराड़ी की राह पकड़ी.

थाना बुराड़ी के थानाप्रभारी शेरसिंह को किशनलाल ने बेटे के गायब होने की पूरी बात बताई तो उन्होंने 13 साल के जतिन ढींगरा की गुमशुदगी दर्ज करा कर उस के हुलिया की जानकारी दिल्ली के सभी थानों को वायरलैस द्वारा प्रसारित करा दी.

किशनलाल थाने से लौट कर अपने स्तर से बेटे को तलाश करने लगा. उस की समझ नहीं आ रहा था कि जतिन गया तो गया कहां. वह उसी की चिंता में डूबा था कि शाम सवा 5 बजे उस के मोबाइल पर एक फोन आया. नंबर अनजान था, फिर भी उस ने फोन रिसीव कर लिया.

उस के ‘हैलो’ करते ही कहा गया, ‘‘तुम्हारा बेटा जतिन इस समय हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा वापस चाहते हो तो 40 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. पैसे कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बता दिया जाएगा. और हां, एक बात का ध्यान रखना. अगर पुलिस के पास जाने की गलती की तो जिंदगी भर पछताओगे.’’

‘‘नहीं, मेरे बेटे को कुछ मत कहना. मैं किसी से कुछ नहीं बताऊंगा. मुझे मेरा बेटा चाहिए.’’ किशनलाल घबरा कर बोला.

दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. फोन पर हुई बात से किशनलाल समझ गया कि बेटे का किसी ने अपहरण कर लिया है. अपहर्त्ता ने उन्हें पुलिस के पास जाने से मना किया था. इसलिए वह असमंजस में था कि क्या करे? वह पुलिस के पास जाए या नहीं?

पुलिस से शिकायत करने पर अपहर्त्ता बच्चे को नुकसान पहुंचा सकते थे, इसलिए राज ढींगरा ने भी पति को थाने जाने से मना किया. लेकिन फिरौती देने के बाद भी अपहर्त्ता जतिन को छोड़ देंगे, इस बात की क्या गारंटी थी? यह बात उस के मन में अचानक उठी. इस बारे में उस ने अपने परिचितों से बात की तो सब ने उसे थाने जाने की सलाह दी.

किशनलाल ने थाने जा कर थानाप्रभारी शेरसिंह को फिरौती के लिए आए फोन के बारे में बताया तो उन्होंने किशनलाल से वह नंबर ले कर फोन किया. लेकिन वह नंबर बंद था. इस से थानाप्रभारी को यकीन हो गया कि जतिन का अपहरण हुआ है. उन्होंने किशनलाल को कुछ दिशानिर्देश दे कर घर भेज दिया और अज्ञात लोगों के खिलाफ जतिन के अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.

बच्चे को सकुशल बरामद करने के लिए पुलिस अपहर्त्ताओं का सुराग लगाने लगी. इस के लिए तुरंत एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में इंसपेक्टर परमजीत सिंह, सबइंसपेक्टर राजेश कुमार, रोमिल सिंह, रवि कुमार, हेड कांस्टेबल एच.आर. रहमान, पवन कुमार आदि को शामिल किया गया. जानकारी मिलने पर उत्तरी जिला की डीसीपी सिंधू पिल्लै ए. ने स्पेशल स्टाफ के इंसपेक्टर नरेश कुमार को भी टीम में शामिल कर दिया.

अपहर्त्ता ने जिस मोबाइल नंबर से फोन किया था, उस की लोकेशन और वह नंबर किस के नाम से लिया गया था, यह सब पता लगाने के लिए थानाप्रभारी शेरसिंह ने हेडकांस्टेबल पवन कुमार को उस कंपनी के औफिस भेजा, जिस कंपनी का वह नंबर था.

दूसरी ओर किशनलाल के घर पहुंचते ही पौने 6 बजे उस के मोबाइल पर अपहर्त्ता ने उसी नंबर से फिर फोन किया, ‘‘तुम्हें पुलिस के पास जाने से मना किया गया था, इस के बावजूद तुम थाने चले गए. लगता है, तुम्हें अपने बेटे से प्यार नहीं है.’’

‘‘मैं पुलिस के पास नहीं गया था. मैं तो तुम्हें देने वाले पैसों के इंतजाम में लगा हूं. मैं तुम्हें पूरे पैसे दूंगा, लेकिन बेटे को…’’ किशनलाल की बात पूरी होती, उस के पहले ही फोन कट गया.

अपहर्त्ता के रुख से किशनलाल डर गया कि कहीं वे नाराज हो कर उस के बेटे को नुकसान न पहुंचा दें. मन में यही चिंता लिए वह फिर से थानाप्रभारी के पास जा पहुंचा.

किशनलाल की अपहर्त्ता से जो बात हुई थी, वह उस ने थानाप्रभारी को बता दी. थानाप्रभारी इस बात से हैरान थे कि अपहर्त्ता को किशनलाल के थाने जाने की बात कैसे पता लगी. यानी अपहर्त्ता का कोई आदमी ऐसा है जो किशनलाल के साथ रह कर उस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए है.

अगले दिल पुलिस के पास अपहर्त्ता के नंबर की काल डिटेल्स आ गई, जिस से पता चला कि वह नंबर दक्षिणपूर्वी दिल्ली के तिगड़ी निवासी मनोज के नाम से था, जिसे कुछ दिनों पहले ही लिया गया था. इसी के साथ यह भी पता चला कि फिरौती के लिए जो फोन किए गए थे, वे दिल्ली के वजीराबाद इलाके से किए गए थे.

दूसरी ओर बेटे के अपहरण से किशनलाल और उस की पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. दोनों इस बात को ले कर परेशान थे कि जतिन न जाने किस हाल में है.

पुलिस को मनोज का पता मिल गया था, इसलिए पुलिस टीम तिगड़ी स्थित मनोज के घर जा पहुंची. संयोग से मनोज घर पर ही मिल गया. घर पर पुलिस को देख कर वह चौंका. पुलिस ने उस से जतिन के अपहरण के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि वह न किसी जतिन को जानता और न ही उसे किसी अपहरण के बारे में जानकारी है. बहरहाल पुलिस उसे साथ ले कर थाने आ गई.

थाने में मनोज से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह पहले कही गई बातों को ही दोहराता रहा. उस की बातों से पुलिस को लगा कि वह सही बोल रहा है. उस का जतिन के अपहरण से कोई मतलब नही है. जिस नंबर से फिरौती के लिए फोन किए गए थे, वह उसी के नाम था. फार्म पर मनोज का फोटो लगा होने के साथ पता भी सही था. अब पुलिस के सामने सवाल यह था कि उस की आईडी और फोटो से वह नंबर लिया किस ने? पुलिस ने मनोज से पूछा कि उस ने कभी अपनी आईडी और फोटो किसी को दिए तो नहीं थे?

काफी देर सोचने के बाद मनोज ने कहा, ‘‘सर, जहांगीरपुरी में मेरा एक दोस्त गौतम जैन रहता है. वह एक फाइनेंस कंपनी में नौकरी करता है. सन 2009 में मैं ने नौकरी के लिए उसे अपनी आईडी और एक फोटोग्राफ दिया था.’’

पुलिस मनोज को साथ ले कर गौतम जैन के घर गई तो वह घर पर नहीं मिला. लेकिन घर से पुलिस को उस का फोन नंबर मिल गया. उसी नंबर के सहारे पुलिस ने 23 सितंबर, 2013 को जीटी करनाल रोड बस डिपो के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया.

शाम किडनैपिंग सुबह अरेस्टिंग

रात 9 बज कर 12 मिनट पर नवनीत के मोबाइल पर दूसरी काल आई, उस में काल करने वाले ने उसे धमकी दी कि उस ने पुलिस से शिकायत क्यों की? वह पुलिस के पास क्यों गया? यह भी धमकी दी कि अगर सुबह तक पैसे नहीं मिले तो वह बच्चा जिंदा नहीं रहेगा.

पैसे सुबह को किस जगह देने हैं, इस बारे में थोड़ी देर में फोन पर बता दिया जाएगा. यहां तक कि अपहर्ता ने नवनीत को भरोसा दिलाने के लिए वैदिक से बात भी करवाई. वैदिक ने पिता से फोन पर कहा, “पापा, ये लोग मुझे दिल्ली की तरफ ले जा रहे हैं. उस के बाद अपहर्ता नवनीत को डांटते हुए बोला कि उस की डिमांड को वह हलके में कतई न ले.

इस की सूचना भी नवनीत ने एसएसपी मीणा को दे दी. उन्होंने अपनी टीम को तुरंत रिएक्ट करने से मना किया. इस सूचना के बाद उन्होंने रणनीति बनाई. सीसीटीवी से यह पता चल चुका था कि बच्चा अपहर्ताओं के साथ सफेद वैगनआर कार में ही है.

अब जरूरी था सीसीटीवी फुटेज की मदद से कार की लोकेशन का पता लगाना. वह भी हो गया. लोकेशन भी मिल गई, अपहर्ता का फोन कभी औन तो कभी बंद होता था. उस की लोकेशन भी बारबार बदल रही थी. अलगअलग लोकेशनों पर पुलिस कार की तलाश कर रही थी. फोन नंबर बंद होते ही लोकेशन भी बंद हो जाती थी. पुलिस यह समझ गई थी कि अपहर्ता ऐसा चकमा देने के लिए कर रहे हैं, ताकि बच्चे को कहीं छिपाया जा सके.

यह बात 5 अगस्त, 2023 की है. शाम हो चुकी थी, अंधेरा होने में अभी वक्त था. सूरज की गरमी भी कम होने लगी थी. मुरादाबाद दिल्ली हाईवे से सटी पौश कालोनियों में बुद्धि विहार सेक्टर 9बी के बच्चे खेलने के लिए खुले में निकलने लगे थे. उन्हीं में 7 साल का वैदिक भी था. पिछले कई दिनों से उस पर साइकिल चलाने का जुनून सवार था, जबकि उसे भूख भी लगी थी. जब तक वह अपने खास दोस्त के साथ साइकिल की रेस नहीं लगा लेता था, तब तक उसे चैन नहीं आता था.

वह अपनी मम्मी वैदिका से आलू के परांठे बना कर रखने को बोल आया था. इधर वैदिक का साथी भी अपनी साइकिल के साथ आ गया था. वैदिक उस के साथ साइकिल की रेस लगाने लगा था. उधर घर में उस की मम्मी परांठा बनाने की तैयारी कर रही थी. उस के लिए खास तरह का परांठा बनाने वाली थी. आलू उबालने के लिए प्रेशर कुकर में डाल गैस औन कर चुकी थी. प्याज, धनिया पत्ती, मटर के साथ पनीर का एक बड़ा टुकड़ा थाली में ले कर डाइनिंग टेबल के साथ की कुरसी पर बैठ गई थी.

बेटे के अपहरण पर नवनीत के उड़े होश

अभी वह प्याज काटने ही वाली थी कि उस ने देखा कि किचन से चाकू लाना ही भूल गई है. वह उठी और किचन की ओर जाने लगी. इसी बीच उस की निगाह बाहर के खुले दरवाजे की ओर चली गई. छोटा वाला मेनगेट खुला था.

“मैं ने उसे कितनी बार कहा है कि जब भी बाहर जाओ, जाते वक्त मेनगेट की कुंडी जरूर लगा दो. लेकिन उस पर तो साइकिल की धुन सवार हो गई है.’’ बड़बड़ाती हुई खुद गेट बंद करने चली गई. …लेकिन यह क्या वैदिक का दोस्त दौड़ता हुआ उस के पास आ रहा था.

जब तक वह कुछ समझ पाती, हांफता हुआ उस के पास आ चुका था. वह घबराया हुआ था. उस के कुछ बोलने से पहले ही वैदिका बोल पड़ी, “क्या हुआ समीर, तू इतना घबराया हुआ क्यों है? पानी पीना है? चल अंदर आ!’’

“नहीं, नहीं! आंटी, उधर 2 लोग सफेद कार में वैदिक को बिठा कर कहीं ले गए.’’ बोलता हुआ वह हांफने लगा. जोरजोर से सांसें लेने लगा.

वैदिका ने जो कुछ सुना, उसे विश्वास ही नहीं हुआ. फिर से पूछने लगी, “ठीकठीक बताओ वैदिक कहां है? क्या हुआ उस के साथ?’’

“आंटी, जब हम लोग साइकिल रेस लगा रहे थे, तब सफेद मारुति वैगनआर कार से 2 आदमी बाहर निकले और वैदिक को रोक लिया. मैं भी वहीं रुक गया. एक आदमी उस से कोई पता पूछने लगा. वह इशारे से पता के बारे बताने लगा, लेकिन दूसरे आदमी ने पीछे से उस का मुंह दबा कर जबरन गेट खुली वैगनआर में बिठा लिया.’’ समीर बोला.

“गाड़ी का नंबर देखा? दोनों आदमियों को पहले कभी इधर देखा है?’’ वैदिका पूछने लगी.

“नहीं आंटी, गाड़ी पर कोई नंबर ही नहीं था. गाड़ी तेजी से चल पड़ पड़ी. उस में किसी को पहचान नहीं पाया.’’ समीर बोला.

वैदिका समीर को घर के अंदर ले आई. उस ने अपने पति नवनीत गुप्ता को तुरंत फोन किया. वह मुरादाबाद में एक मोबाइल कंपनी में टेक्नीशियन के पद पर नौकरी करते थे. उस वक्त शाम के साढ़े 6 बज चुके थे.

नवनीत फोन सुनते ही घर आ गए. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उन के बेटे का फिरौती के लिए बदमाशों ने अपहरण कर लिया है. उन्होंने ठंडे दिमाग से काम लिया. जबकि वैदिका का रोरो कर बुरा हो रहा था. वह बेहद घबराई हुई थी. नवनीत ने अपने बेटे के अपहरण की सूचना मझोला थाने को दी.

सूचना पाते ही एसएचओ विप्लव शर्मा घटनास्थल पर जा पहुंचे. उन्होंने वहां की तमाम जानकारियां जुटाईं. लोगों से पूछताछ की. उन्हें वैदिक के दोस्त से भी कई जानकारियां मिलीं. एसएचओ शर्मा ने अपहरण के इस मामले की सूचना अपने उच्च अधिकारियों को भी दे दी. सूचना पाते ही मुरादाबाद के एसएसपी हेमराज मीणा, एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया, सीओ अर्पित कपूर और एएसपी आकाश कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

अपहर्ताओं की तलाश में जुटीं 5 पुलिस टीमें

सब से पहले एसएसपी ने सघन चेकिंग के निर्देश दिए और मुरादाबाद की सभी सीमाओं पर बैरिकेडिंग लगवा दिए. बगैर नंबर प्लेट की सफेद वैगनआर को अपने कब्जे में करने के आदेश के बाद पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. कारण, मीणा ने इस वारदात की सूचना मुरादाबाद रेंज के डीआईजी मुनिराज को भी दे दी थी. उन्होंने सूचना पाते ही आसपास के जिलों में अलर्ट जारी कर दिया था.

अपहरण के लगभग एक घंटे बाद वैदिक गुप्ता के पिता नवनीत गुप्ता को एक अनजान नंबर से फोन आया. फोन करने वाले ने सीधेसीधे 40 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी. वैदिक गुप्ता मुरादाबाद स्थित आर्यंस इंटरनैशनल स्कूल में कक्षा 2 में पढ़ रहा था. शायद इस की जानकारी अपहर्ताओं को थी और वे परिवार की अच्छी आर्थिक स्थिति को अच्छी तरह जानते थे.

मुरादाबाद की पुलिस पूरी मुस्तैदी से वैदिक को बरामद करने के प्रयास में जुट गई थी. हेमराज मीणा द्वारा कुल 5 पुलिस टीमों का गठन किया गया था. उन्हें अलगअलग काम सौंप दिए गए थे. नवनीत की किसी से दुश्मनी या मतभेद के बारे में भी पूछताछ की गई. उन्होंने पुलिस से मिली हिदायत के मुताबिक फिरौती की रकम मांगने वाले का अनजान नंबर पुलिस को दे दिया.

सर्विलांस के लिए बनाई गई टीम घटनास्थल के सीसीटीवी फुटेज की जांच में जुट गई थी. सर्विलांस किसी भी वारदात की जांच की शुरुआत का आधुनिक तरीका बन चुका है. उस से सफेद रंग की वैगनआर कार के जाने की दिशा का पता चल गया था. उस में सवार बदमाशों के साथ वैदिक के होने की संभावना इसलिए भी बनी थी, क्योंकि कार पर नंबर प्लेट नहीं लगी थी. यह सूचना दूसरी जांच टीम के लिए महत्त्वपूर्ण थी.

उसी रात 9 बज कर 12 मिनट पर नवनीत के मोबाइल पर दूसरी काल आई, उस में काल करने वाले ने उसे धमकी दी कि उस ने पुलिस से शिकायत क्यों की? वह पुलिस के पास क्यों गया? यह भी धमकी दी कि अगर सुबह तक पैसे नहीं मिले तो वह बच्चा जिंदा नहीं रहेगा.

पैसा सुबह को किस जगह देने हैं, इस बारे में थोड़ी देर में बताएगा. यहां तक कि अपहर्ता ने नवनीत को भरोसा दिलाने के लिए वैदिक से बात भी करवाई. वैदिक ने पिता से फोन पर कहा कि वह दिल्ली जा रहा है. उस के बाद अपहर्ता उसे डांटते हुए बोला कि उस की डिमांड को वह हलके में कतई न ले.

इस की सूचना भी नवनीत ने एसएसपी मीणा को दे दी. उन्होंने अपनी टीम को तुरंत रिएक्ट करने से मना किया. इस सूचना के बाद उन्होंने रणनीति बनाई. सीसीटीवी से यह पता चल चुका था कि बच्चा अपहर्ताओं के साथ सफेद वैगनआर कार में ही है.

अब जरूरी था सीसीटीवी फुटेज की मदद से कार की लोकेशन का पता लगाना. वह भी हो गया. लोकेशन भी मिल गई, अपहर्ता का फोन कभी औन तो कभी बंद होता था. उस की लोकेशन भी बारबार बदल रही थी. अलगअलग लोकेशनों पर पुलिस कार की तलाश कर रही थी. फोन नंबर बंद होते ही उन की लोकेशन भी बंद हो जाती थी. पुलिस यह समझ गई थी कि अपहर्ता ऐसा चकमा देने के लिए कर रहे हैं, ताकि बच्चे को कहीं छिपाया जा सके.

पुलिस को चकमा दे रहे थे अपहर्ता

इसी बीच उस ने 2 बार नंबर प्लेट भी बदल डाली थी, लेकिन पुलिस की नाकेबंदी सख्त थी और दूसरी टीमें लगी हुई थीं. जिस से वे जिले से बाहर नहीं निकल पाए थे. पूरी रात पुलिस और अपहर्ता के बीच चूहेबिल्ली की लुकाछिपी का खेल चलता रहा.

सुबह करीब 4 बजे वे बिलारी क्षेत्र के हजरत नगर गढ़ी कुंदरकी मार्ग पर जा पहुंचे. वहां वे जंगल में जा छिपे थे. जबकि इस की सटीक लोकेशन पुलिस को मिल गई थी. इस तरह से मिले तकनीकी सुराग की दिशा में काररवाई की बारी आ गई थी. एसएसपी ने 2 पुलिसकर्मियों को किसान बना कर वहां तक जाने का आदेश दिया.

आदेश के मुताबिक 2 पुलिसकर्मी सादे कपड़ों में लोकेशन की दिशा में कुछ दूर आगे बढ़े, तब उन्हें वैगनआर कार नजर आ गई. लेकिन उस तक छिपछिप कर पहुंच गए और कार के भीतर की गतिविधियों पर नजर गड़ा दी. इस तरह उन्होंने सुबह साढ़े 5 बजे तक इंतजार किया.

जब कार में किसी तरह की हरकत नजर नहीं आई, तब दोनों पुलिसकर्मी उस के काफी करीब जा पहुंचे. उस में बच्चा सोया हुआ दिखा. तब तक बाकी पुलिसकर्मी खेत को चारों तरफ से घेर चुके थे. कुछ पुलिसकर्मी किसान बने पुलिसकर्मियों के पीछे भी खड़े हो गए थे.

इसी बीच उन पर अपहर्ता ने गोली चला दी, जिस से एक पुलिसकर्मी जख्मी हो गया. पुलिसकर्मियों ने भी जिधर से गोली चली थी, उस दिशा में फायरिंग कर दी. जवाबी फायरिंग से अपहर्ता भागने लगे, लेकिन एक के पैर में गोली लग गई और वह वहीं गिर गया. उस के बाद पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया.

बच्चे की सकुशल बरामदगी हो गई. उन्हें सुबह थाने ले आया गया. इस अपहरण कांड में गिरफ्तार 2 बदमाश शामिल थे. पहला आरोपी शशांक मेहता उर्फ विक्की मेहता (35 वर्ष) और दूसरा आरोपी उस का साथी अंकुश शर्मा बुद्धि विहार निवासी था. अंकुश शर्मा वैदिक का पड़ोसी ही निकला.

पड़ोसी ने ही किया अपहरण

पुलिस ने जब उन का रिकौर्ड खंगाला तब मालूम हुआ कि उन में एक नामी हिस्ट्रीशीटर अंकुश शर्मा था. उस के साथ शंशाक मेहता भागीदार था. दोनों मूलरूप से थाना छजलैट क्षेत्र के हैं, लेकिन वे 20 सालों से मुरादाबाद शहर की आशियाना कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहे थे. हिस्ट्रीशीटर अंकुश शर्मा टेंपो चलाता था और वह बड़े व्यापारियों से ब्याज पर रुपए दिलाने का काम भी करता था.

उस ने ही शशांक मेहता को ब्याज पर रुपए दे कर अपने गैंग में शामिल कर लिया था. जांच में अंकुश की मां की भूमिका भी इस मामले में बताई गई है. पुलिस कथा लिखे जाने तक एक हिस्ट्रीशीटर, एक आरोपी की मां सहित 3 लोगों की भूमिका की जांच कर रही थी.

हालांकि अंकुश शर्मा और शशांक मेहता को पुलिस ने 7 अगस्त, 2023 को कोर्ट में पेश कर दिया था. कोर्ट ने दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. अपहर्ताओं ने पुलिस को पूछताछ में बताया कि पड़ोस में रहने वाले नवनीत गुप्ता से उन की अच्छी तरह जानपहचान है. पैसों की जरूरत को पूरा करने की गरज से उन के बेटे वैदिक का अपहरण कर 40 लाख रुपए की फिरौती वसूलने की साजिश रची थी, लेकिन उस से पहले ही पुलिस ने उन की सारी प्लानिंग पर पानी फेर दिया.

पुलिस ने घटना में प्रयुक्त एक वैगनआर कार (यूपी-21 सीएन 2464 नंबर प्लेट लगी) बरामद की. साथ ही 2 देशी तमंचे .315 बोर तथा 3 जिंदा कारतूस बरामद किए. एसएसपी हेमराज मीणा ने बच्चे को सहीसलामत बरामद करने वाली पुलिस टीम को 25 हजार रुपए का पुरस्कार दिए जाने की भी घोषणा की.

कोटा में मौत को गले लगाते होनहार

कोटा में मौत को गले लगाते होनहार – भाग 3

बच्चे के मन में क्या चल रहा होता है, जो वह ऐसा करता है? उस के दिमाग में यह जो उथलपुथल चल रही होती है, इस के बारे में उस ने कभी अपने घर वालों या दोस्तों को बताया था? क्या कोई उपाय है कि बच्चों को सुसाइड करने से रोका जा सके?

इन सवालों के जवाब हम सभी को जानना जरूरी है, क्योंकि हम सभी के बच्चे हैं और हम सब अपने बच्चों को कुछ न कुछ बनाना चाहते हैं. इस के लिए हम अपने बच्चों पर प्रेशर भी डालते हैं. यही प्रेशर उन्हें परेशान करता है और वे कुछ उल्टासीधा कदम उठा लेते हैं. जो बच्चे कोटा पढऩे के लिए जाते हैं, उन पर कोचिंग संस्थान की पढ़ाई का बहुत ज्यादा प्रेशर होता है, वे हर वक्त इस बात के तनाव में रहते हैं कि वे पिछड़ न जाएं.

दरअसल, पढ़ाई का जो प्रेशर है, जिसे कंपटीशन कहा जाता है, कोटा में वह क्रेजी कंपटीशन बन गया है और यह क्रेजी कंपटीशन का जो स्ट्रेप है, उस के लिए यहां के बच्चे मात्र 16, 17, या 18 साल के होते हैं, जो अभी मेच्योर नहीं हैं, इसलिए वे इस कंपटीशन को झेल नहीं पाते और निराश हो जाते हैं.

धीरेधीरे उन की यह निराशा डिप्रेशन बन जाती है. दूसरे शहरों या गांवों से आए बच्चे अपनी पढ़ाई कवर नहीं कर पाते और पढ़ाई में अन्य बच्चों से पीछे रह जाते हैं. टेस्ट में नंबर कम पाते हैं. परीक्षा में सेलेक्शन नहीं होता, जो निराशा को और ज्यादा बढ़ाता है.

कोटा कोचिंग के लिए जाने वाले ज्यादातर बच्चों की अधिक से अधिक उम्र 18 साल होती है. यह ऐसी उम्र होती है, जिस में शरीर में भी बदलाव आता है और सोच में भी. बच्चा इसे समझ नहीं पाता. कोटा में वह अकेला होता है, वहां कोई समझाने या सहारा देने वाला नहीं होता. जिस की वजह से प्रेशर भी बढ़ता और तनाव भी.

प्रेशर बन जाता है जानलेवा

कुछ बच्चे इस बात को दिमाग में बैठा लेते हैं. साथ में लड़कियां भी पढ़ती हैं, इसलिए इस का कारण प्रेम प्रसंग भी हो सकता है. बच्चे पर पढऩे के लिए परिवार का दबाव होता है और कोचिंग संस्थान का भी. क्योंकि हर संस्थान अपने बेहतर रिजल्ट के लिए बच्चों पर दबाव डालता है. उस का रिजल्ट बेहतर होगा, तभी उस के यहां ज्यादा बच्चे आएंगे और वह फीस भी ज्यादा ले सकेगा.

मांबाप और परिवार के साथ 16-17 साल तक रहने वाला बच्चा अचानक मांबाप और परिवार से दूर अकेला पड़ जाता है. इस के साथ उस पर अचानक पढ़ाई का काफी प्रेशर पड़ जाता है. परिवार से इमोशनली जुड़े बच्चे अचानक परिवार की दूरी सहन नहीं कर पाते, जिस का असर उन की पढ़ाई पर भी पड़ता है और दिमाग पर भी. परिवार से दूर होने पर न तो उन के मनपसंद का खाना मिलता है और न कोई प्यार से खिलाने वाला होता है.

इन्हीं कारणों से बच्चा पढ़ाई में पिछडऩे लगता है. टेस्ट में नंबर कम आते हैं तो कोचिंग संस्थान वाले प्रेशर बनाते हैं, जिस का असर सीधे उन के दिमाग पर पड़ता है और स्थिति खतरनाक हो जाती है.

इस के अलावा कोटा में कोचिंग कराने वाले हर पैरेंट्स संपन्न हों, यह जरूरी नहीं है. सामान्य और गरीब परिवारों के बच्चे भी कोटा आते हैं, जो संपन्न परिवारों के बच्चों का रहनसहन और शानोशौकत देखते हैं तो इस का असर भी उन के दिमाग पर पड़ता है और वे खुद को उन के सामने तुच्छ समझने लगते हैं. तब उन का मन पढऩे में नहीं लगता. दूसरी ओर वे यह भी सोचते हैं कि उन के मांबाप गरीबी में भी उन्हें पढ़ा रहे हैं. अगर वे सफल न हुए तो उन के मांबाप क्या सोचेंगे, वे कौन सा मुंह ले कर उन के सामने जाएंगे?

अकेलापन हो जाता है खतरनाक

इस तरह की सोच वाले बच्चे जब पढ़ाई और जीवन से निराश हो जाते हैं तो बारबार खुद को ही कोसने लगते हैं. उन के दिमाग में बारबार यही बात आती है कि वह किसी काम के नहीं हैं. वे दुनिया यानी संस्थान या लोगों से परेशान हो चुके हैं. लोगों से कहने लगते हैं कि अब वे जीना नहीं चाहते मतलब कि वह इशारे से अपनी नकारात्मकता जाहिर करने लगते हैं.

सोशल मीडिया पर नकारात्मक पोस्ट डालते हैं या नकारात्मक स्टेटस लगाते हैं. डायरी में सुसाइड के बारे में लिखते हैं. कुछ बच्चे न लिख कर कुछ कह पाते हैं न बोल कर. उन का व्यवहार बदल जाता है. वे खाना नहीं खाते, किसी से बात नहीं करते, अकेले रहते हैं. ऐसे में इशारों को भांपना चाहिए. इसे न मजाक में लिया जाना चाहिए और न अवाइड करना चाहिए.

बच्चे सुसाइड न करें, इस के लिए कोचिंग संस्थान और प्रशासन काउंसिलिंग कराते हैं, लेकिन वह नाकाफी है. इस के लिए ऐसा सिस्टम तैयार होना चाहिए कि बच्चे एकदूसरे से जुड़े रहें, एकदूसरे के सहायक बनें. बच्चे इस तरह का गलत कदम न उठाएं, इस के लिए उन में आत्मविश्वास बढ़ाना जरूरी है.

कुछ बच्चों की रुचि मातापिता की अपेक्षा के विपरीत होती है. ऐसे बच्चे पेरेंट्स के दबाव में कोटा आ तो जाते हैं, लेकिन टेस्ट में उन के नंबर कम आते हैं, तब बच्चे तनाव में आ जाते हैं. पढ़ नहीं पाते. ऐसे में बच्चे को विश्वास दिलाना चाहिए कि वह अपनी पढ़ाई अपने हिसाब से करे, उस का मैडिकल या इंजीनियरिंग में हो गया तो अच्छा है, वरना दूसरा भी बहुत कुछ करने को है. इसलिए उस की जो इच्छा हो, वह वही करे.

कोटा में बच्चा अकेला रहता है. उस पर कोई रोकटोक करने वाला नहीं होता, जिस से वह अकेलेपन का शिकार हो जाता है और गलत रास्ते पर चला जाता है. ऐसे में बच्चे को संस्कार और समाज के नियमकायदे से जोड़ कर रखना जरूरी है. बड़ों की बात मानने और समाज के रीतिरिवाज मानने की बात सिखाने से बच्चे का चरित्र विकसित होता है.

सब से जरूरी है कम्युनिकेशन. कोटा आने पर बच्चे पेरेंट्स से तो दूर होते ही हैं, यार दोस्तों से भी दूर हो जाते हैं. एक साथ 2 बच्चों के रहने वाला कल्चर खत्म हो रहा है. पेरेंट्स खुद बच्चे के लिए सिंगल रूम की डिमांड करते हैं, ताकि उन का बच्चा डिस्टर्ब न हो.

बच्चे के साथ क्या हो रहा है, उसे क्या परेशानी हो रही है, वह अपनी परेशानी किसी से साझा नहीं कर पाता. इसलिए कम्युनिकेशन बहुत जरूरी है. अकेले रह रहे बच्चे के साथ इमोशनली कनेक्ट होना बहुत जरूरी है, जिस से वह अपने मन की बात शेयर कर सके. वहां बीमार होने पर उसे डाक्टर के पास ले जाने वाला कोई नहीं होता. ऐसे में वह परेशान होता है, तब बच्चे को केयर की बहुत जरूरत होती है.

परिवार से अलग रह कर कभीकभी बच्चे को लगता है कि किसी को उस की चिंता नहीं है, केवल उस के नंबरों की चिंता है. ऐसे में नंबर कम आते हैं तो उसे लगता है कि वह जी कर क्या करेगा. अगर बच्चे के मुंह से कभी ऐसी बात निकलती है तो इसे अवाइड नहीं किया जाना चाहिए. बच्चे को समझाना चाहिए कि इस जीवन का बहुत महत्त्व है. वह देश और समाज के लिए बहुत कुछ कर सकता है.

कोटा में मौत को गले लगाते होनहार – भाग 2

घर वालों के पहुंचने पर जब पुलिस कमरे में घुसी तो मनजोत की लाश बैड पर पड़ी थी. उस के दोनों हाथ पीछे बंधे थे. उस के मुंह पर पौलीथिन बंधी थी. कमरे में पीले रंग की 3 पर्चियों पर अंगरेजी में सुसाइड नोट लिखा था.

एक परची पर केवल ‘सौरी’ लिखा था तो दूसरी परची पर ‘हैप्पी बर्थडे पापा’ लिखा था और तीसरी परची पर लिखा था कि ‘मैं ने जो भी किया है, अपनी मरजी से किया है तो प्लीज मेरे दोस्तों और पेरेंट्स को परेशान न करें.’

घर वालों के सामने पुलिस ने मनजोत की लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए कोटा के एमबीएस अस्पताल भिजवा दी. इस के बाद घर वालों ने मोर्चरी पर जा कर हंगामा शुरू कर दिया.

दबाव में दर्ज करना पड़ा हत्या का केस

मनजोत के घर वालों ने कोचिंग संस्थान, हौस्टल के केयरटेकर और उस के एक क्लासमेट पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि मनजोत ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है. क्योंकि जिस तरह मनजोत की लाश पड़ी थी, उस तरह कोई आत्महत्या नहीं करता. उस के दोनों हाथ पीछे की ओर कस कर बंधे थे. कोई अपने हाथों को खुद ही इतना कस कर कैसे बांध सकता है. उस की मुट्ठियां इतने जोर से जकड़ी थीं कि उस के नाखून हथेलियों में घुस गए थे. लाश औंधे मुंह पड़ी थी.

मनजोत के कमरे का दरवाजा अंदर से जरूर बंद था, लेकिन उस के कमरे की खिडक़ी के दरवाजे टूटे हुए थे और जाली कटी हुई थी. इसी वजह से घर वाले कह रहे थे कि मनजोत ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है. घर वालों ने स्पष्ट कहा था कि जब तक उस की हत्या की रिपोर्ट नहीं दर्ज की जाएगी, तब तक वे मनजोत की लाश नहीं उठाएंगे.

घर वालों के हंगामा करने के बाद थाना विज्ञाननगर में मनजोत की हत्या का मुकदमा कोचिंग संचालक, हौस्टल के केयरटेकर और मनजोत के एक दोस्त के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. डीएसपी धर्मवीर का कहना है कि पुलिस इस मामले की जांच करेगी. अगर इस मामले में कोई दोषी पाया जाता है तो उस के खिलाफ अवश्य काररवाई की जाएगी.

3 अगस्त, 2023 की रात जहां मनजोत ने आत्महत्या की, वहीं इसी कोटा में 4 अगस्त को भार्गव मिश्रा, 10 अगस्त को मनीष प्रजापति और 15 अगस्त को वाल्मीकि प्रसाद जांगिड़ यानी कुल 11 दिनों में 4 मासूमों ने मौत को गले लगा लिया.

18 साल के मनजोत के बारे में तो बताया ही जा चुका है कि वह उत्तर प्रदेश के रामपुर का रहने वाला था और नीट की तैयारी करने कोटा आया था तो 5 अगस्त को सुसाइड करने वाला 17 साल का भार्गव मिश्रा बिहार के जिला चंपारण का रहने वाला था. वह कोटा के महावीर नगर में रहने वाले महेश गुप्ता के मकान के ऊपरी हिस्से में किराए पर रह कर संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) की तैयारी कर रहा था.

उस दिन सुबह जब उस ने पिता का फोन नहीं उठाया तो उस के पिता को शक हुआ. उन्होंने मकान मालिक महेश गुप्ता को फोन किया. इस के बाद जब उन्होंने ऊपर जा कर खिडक़ी से भार्गव के कमरे में झांका तो वह पानी की मोटी पाइप से लटका हुआ था. महेश गुप्ता ने इस घटना की सूचना थाना महावीर नगर पुलिस को दी. पुलिस ने आ कर शव उतारा और पोस्टमार्टम के लिए न्यू मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

इस साल 21 बच्चे कर चुके आत्महत्या

इस के बाद 10 अगस्त को सुसाइड करने वाला 17 साल का मनीष प्रजापति उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ का रहने वाला था. कोटा में वह भी संयुक्त प्रवेश परीक्षा यानी जेईई की तैयारी कर रहा था. वह 6 महीने पहले ही कोटा आया था.

इस के बाद जिस दिन पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था, उस दिन यानी 15 अगस्त को सुसाइड करने वाला 18 साल का वाल्मीकि प्रसाद जांगिड़ बिहार का रहने वाला था. उस के पिता सेना में सूबेदार थे, जो पिछले साल ही रिटायर हुए थे. 2 बहनों का एकलौता भाई वाल्मीकि पिछले साल जिद कर के कोटा आईआईटी की तैयारी करने आया था.

कोटा में वह थाना महावीर नगर इलाके में किराए के मकान में रहता था. 15 अगस्त को जब कई घंटे वह कमरे से बाहर नहीं आया तो अगलबगल रहने वाले उस के साथियों ने उस का दरवाजा खटखटाया. जब दरवाजा नहीं खुला तो छात्रों ने मकान मालिक को सूचना दी. मकान मालिक ने पुलिस को सूचना दी.

पुलिस ने आ कर दरवाजा तोड़ा तो अंदर वाल्मीकि का शव कमरे की खिडक़ी से लटका हुआ था. इस के बाद पुलिस ने घर वालों को सूचना दी और लाश को उतार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उस के कमरे से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था, इसलिए पता नहीं चला कि उस ने आत्महत्या क्यों की.

इस तरह कोटा में एक ही महीने में यानी अगस्त महीने में केवल 11 दिनों के अंदर 4 मासूमों ने मौत को गले लगा लिया. जबकि इस के पहले 17 बच्चे सुसाइड कर चुके थे यानी कुल मिला कर जनवरी से अब तक इसी साल 21 बच्चों ने सुसाइड कर लिया.

जबकि कोटा शहर में अपने सपने पूरा करने आए बच्चों में से पिछले एक साल में 29 बच्चों ने तो पिछले 10 सालों में 160 से ज्यादा बच्चे जिंदगी से हार चुके हैं यानी उन्होंने इसी तरह मौत को गले लगा लिया है. अब सोचने वाली बात यह है कि जिस कोटा में बच्चे कामयाब जवानी का सपना ले कर आते हैं, आखिर क्यों जवान होने से पहले ही मुर्दा बचपन उन के हिस्से में आता है.

उन की 16, 17 या 18 साल की उम्र होती है, जब 12वीं पास कर के कुछ कर दिखाने का सपना ले कर वे कोटा पहुंचते हैं और डाक्टर या इंजीनियर बनने की तैयारी शुरू करते हैं. लेकिन यहां तो जैसे आत्महत्या करने का सिलसिला ही चल पड़ा है. इसलिए अब इस से हर मांबाप को डर लगने लगा है.

बच्चों का मनोविज्ञान समझने की जरूरत

यह सोचने वाली बात है कि वहां पहुंचने पर ऐसा कौन सा डर है, जिस से बच्चा जिंदगी से लडऩे के बजाय हार जाता है. हम कहते भी हैं कि जिंदगी एक इम्तहान है, पर कोटा में बच्चे इम्तिहान से ही हार रहे हैं और जीने के लिए मिले जीवन को फंदे से लटक कर गंवा रहे हैं.

आखिर इस के पीछे वजह क्या है? क्या इसे रोका जा सकता है? इस में गलती किस की है, घर वालों की या बच्चों की या कोचिंग संस्थानों की है या फिर सिस्टम की और सरकार इस के लिए कर क्या रही है?

इस के लिए हमें इस का हल जरूर जानना और समझना चाहिए. क्योंकि जब भी कोई बच्चा सुसाइड करता है तो अनेक सवाल उठते हैं. आखिर उस की क्या परेशानी होती है, जो उसे यह आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर करती है?

अगले भाग में पढ़िए, कैसे इन होनहारों का जीवन बचाया जा सकता है?

कोटा में मौत को गले लगाते होनहार – भाग 1

दरवाजा नहीं खुला तो उस ने अन्य दोस्तों को बुला लिया. सभी ने वार्डन यानी हौस्टल के इंचार्ज को सूचना दी. अनहोनी के बारे में सोच कर वार्डन ने हौस्टल प्रशासन और थाना विज्ञान नगर पुलिस को सूचना दी. सभी ने आ कर दरवाजा तोड़ा तो अंदर 18 साल के मासूम मनजोत सिंह की लाश पड़ी थी.

मनजोत सिंह की मौत की खबर उस के दोस्त ने घर वालों को बता दी. घर वालों के पहुंचने पर जब पुलिस कमरे में घुसी तो मनजोत की लाश बैड पर पड़ी थी. उस के दोनों हाथ पीछे बंधे थे. उस के मुंह पर पौलीथिन बंधी थी.

कमरे में पीले रंग की 3 पर्चियों पर अंगरेजी में सुसाइड नोट लिखा था. एक परची पर केवल ‘सौरी’ लिखा था तो दूसरी परची पर ‘हैप्पी बर्थडे पापा’ लिखा था और तीसरी परची पर लिखा था कि ‘मैं ने जो भी किया है, अपनी मरजी से किया है तो प्लीज मेरे दोस्तों और पेरेंट्स को परेशान न करें.’

घर वालों के सामने पुलिस ने मनजोत की लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए कोटा के एमबीएस अस्पताल भिजवा दी. इस के बाद घर वालों ने मोर्चरी पर जा कर हंगामा शुरू कर दिया. मनजोत के घर वालों ने कोचिंग संस्थान, हौस्टल के केयरटेकर और उस के एक क्लासमेट पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि मनजोत ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है.

यह कहानी है उत्तर प्रदेश के शहर रामपुर के रहने वाले मनजोत सिंह की, जो कोटा में रह कर कोचिंग कर रहा था. 10वीं में अच्छे नंबर आते ही हरजोत सिंह छाबड़ा ने तय कर लिया था कि वह अपने बेटे मनजोत सिंह को डाक्टर बनाएंगे. इस के लिए उन्होंने बेटे से कह भी दिया था कि वह 12वीं में खूब मेहनत करे.

मनजोत भी डाक्टर बनना चाहता था, इसलिए उस ने 12वीं में जम कर मेहनत की. बेटे को पढ़ाई में कोई दिक्कत न हो, इस के हरजोत सिंह ने उस का दाखिला एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में भी करा दिया था.

अब मनजोत सुबह स्कूल जाता. स्कूल से लौट कर खापी कर होमवर्क करने बैठ जाता. जितना होमवर्क हो पाता, उतना करता. होमवर्क करतेकरते ही कोचिंग जाने का समय हो जाता. कभी होमवर्क कम रहता तो कभी पूरा हो जाता. जिस दिन होमवर्क ज्यादा होता, छोड़ कर कोचिंग चला जाता था.

 

अब मनजोत सुबह स्कूल जाता. स्कूल से लौट कर खापी कर होमवर्क करने बैठ जाता. जितना होमवर्क हो पाता, उतना करता. होमवर्क करतेकरते ही कोचिंग जाने का समय हो जाता. कभी होमवर्क कम रहता तो कभी पूरा हो जाता. जिस दिन होमवर्क ज्यादा होता, छोड़ कर कोचिंग चला जाता था. रात 8 बजे कोचिंग से लौटता तो खापी कर फिर पढऩे बैठ जाता, क्योंकि कोचिंग का भी होमवर्क करना रहता. होमवर्क के साथसाथ साप्ताहिक टेस्ट की तैयारी भी करनी होती थी.

इस तरह उसे सोने में रात के 11, साढ़े 11 या 12 तक बज जाते थे. सुबह जल्दी उठना भी होता था, क्योंकि 7 बजे स्कूल जाने के लिए घर से निकलना होता था. उसे आराम करने के लिए सिर्फ 6, साढ़े 6 घंटे ही मिलते थे. बाकी उस की जिंदगी एक मशीन बन कर रह गई थी. न घर वालों के पास बैठ कर बातचीत करने का समय था, न दोस्तों के साथ घूम टहल कर मन हलका करने का.

हरजोत सिंह ने बेटे की कोटा में पढ़ाई की करा दी व्यवस्था

इसी तरह 2 साल बीत गए. 12वीं में उस के 94 प्रतिशत नंबर आए तो हरजोत सिंह ने इस खुशी में मोहल्ले वालों को मिठाई खिलाई. इस के बाद बेटे को डाक्टर बनाने के लिए अप्रैल, 2023 में उन्होंने उस का दाखिला राजस्थान के शिक्षा यानी कोचिंग का हब कहे जाने वाले सपनों के शहर कोटा में स्थित एक प्रतिष्ठित कोचिंग इंस्टीट्यूट में करा दिया. मनजोत कोटा आ कर नैशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेस टेस्ट (नीट) की तैयारी करने लगा.

हरजोत सिंह ने उस के रहने की व्यवस्था यहां कोचिंग के ही एक हौस्टल में कर दी थी. बेटे का सपना पूरा करने के लिए उसे कोटा में छोड़ कर वह रामपुर वापस आ गए. मनजोत भी धीरेधीरे वहां की दिनचर्या में रम गया. क्योंकि उसे डाक्टर बनना था. अपना ही नहीं, मांबाप का भी सपना पूरा करना था.

3 अगस्त, 2023 दिन गुरुवार को हरजोत सिंह का जन्मदिन था. घर में वह अपना जन्मदिन मना रहे थे. छोटीमोटी पार्टी का भी आयोजन था. सभी ने उन्हें जन्मदिन विश किया, लेकिन मनजोत ने उन्हें जन्मदिन विश नहीं किया था. जबकि उस ने एक दिन पहले कहा था कि वह रात को ही पापा को जन्मदिन की बधाई देगा. घर में सभी को लगा कि वह सो गया होगा. अगले दिन भी उस ने फोन नहीं किया.

हरजोत और उन की पत्नी को लगा कि दिन में वह कोचिंग में व्यस्त रहा होगा, शाम को विश करेगा. शाम को अपने लोगों के बीच बैठे हरजोत का ध्यान बारबार फोन की ओर ही जा रहा था. लेकिन बेटे का फोन नहीं आया. तब उन्होंने खुद ही मनजोत को फोन किया, लेकिन मनजोत ने फोन नहीं उठाया. उन्हें थोड़ी फिक्र हुई, पर लोगों से घिरे होने की वजह से इसे वह चेहरे पर नहीं ला सके. उन्हें लगा कि मनजोत बाथरूम वगैरह में होगा, मिस्ड काल देख कर खुद ही फोन करेगा. पर उस का फोन नहीं आया.

पार्टी खत्म हुई तो उन्होंने पत्नी से कहा, “क्या बात है, आज मनजोत ने मुझे फोन कर के बर्थडे विश नहीं किया?”

“आप ही कर लेते फोन. हो सकता है वह कहीं फंसा हो.” पत्नी ने कहा.

“मैं ने किया था फोन, पर उस ने फोन ही नहीं उठाया और पलट कर भी नहीं किया.” हरजोत सिंह ने कहा.

“अब तो सब चले गए हैं. फिर से कीजिए फोन,” पत्नी ने कहा.

हरजोत सिंह ने बेटे का नंबर डायल किया. घंटी जाने लगी. पूरी की पूरी घंटी गई, मनजोत ने फोन नहीं उठाया. दोबारा फिर फोन लगाया, इस बार भी फोन नहीं उठा. पतिपत्नी को चिंता तो हुई कि बेटा फोन क्यों नहीं उठा रहा. पर दोनों ने यह कह कर संतोष कर लिया कि दिन भर का थका रहा होगा, फोन म्यूट कर के सो गया होगा.

रात भर मांबाप बेटे की चिंता में ठीक से सो नहीं पाए, क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था, जब न तो बेटे का फोन आया था और न उस ने फोन उठाया था.

सवेरा होते ही हरजोत सिंह ने बेटे को फोन मिला दिया. यह ऐसा समय था, जब वह कमरे में होता था, लेकिन मनजोत ने फोन नहीं उठाया. हरजोत सिंह ने बेटे को कई बार फोन किया. जब मनजोत ने फोन नहीं उठाया तो इस बार हरजोत सिंह घबरा गए. उन्होंने तुरंत बेटे के एक दोस्त को फोन किया, जो उस के साथ ही पढ़ता था और उसी हौस्टल में दूसरे कमरे में रहता था.

उस ने कहा, “अंकल आप परेशान मत होइए, मैं देखता हूं कि मनजोत फोन क्यों नहीं उठा रहा. उस के बाद आप को फोन करता हूं.”

मनजोत के उस दोस्त ने पहले मनजोत को फोन किया. जब मनजोत ने फोन नहीं उठाया तो वह घबरा गया. तुरंत वह उस के कमरे पर पहुंचा तो पता चला कि उस का कमरा अंदर से बंद है. उस ने आवाज दी, दरवाजा खटखटाया, पर न तो दरवाजा खुला और न ही अंदर से कोई आवाज ही आई.

संदिग्ध अवस्था में मिली मनजोत की लाश

दरवाजा नहीं खुला तो उस ने अन्य दोस्तों को बुला लिया. सभी ने वार्डन यानी हौस्टल के इंचार्ज को सूचना दी. अनहोनी के बारे में सोच कर वार्डन ने हौस्टल प्रशासन और थाना विज्ञान नगर पुलिस को सूचना दी गई. सभी ने आ कर दरवाजा तोड़ा तो अंदर 18 साल के मासूम मनजोत सिंह की लाश पड़ी थी.

मनजोत सिंह की मौत की खबर उस के दोस्त ने घर वालों को बता दी. बेटे की मौत की सूचना मिलते ही हरजोत सिंह के घर में हाहाकार मच गया. पल भर में यह जानकारी पूरे मोहल्ले भर को हो गई. सभी हरजोत के घर इकट्ठा हो गए और सलाह करने लगे कि अब क्या किया जाए?

सलाहमशविरा कर के तत्काल कोटा स्थित हौस्टल प्रशासन से कहा गया कि जब तक वे लोग न आ जाएं, तब तक लाश बिलकुल न उठाई जाए. इसी के साथ हरजोत सिंह पत्नी और कुछ खास लोगों के साथ कोटा के लिए निकल पड़े. घर वालों के कहे अनुसार पुलिस ने भी लाश नहीं उठाई. वह घर वालों के आने का इंतजार करती रही. पुलिस का कहना था कि लाश घर वालों को दिखाने के बाद ही हौस्टल के कमरे से उठाई जाएगी.

ये हत्या थी या आत्महत्या ? पढ़िए कहानी के अगले भाग में.