जतिन उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी के माउंट एवरेस्ट स्कूल में पांचवीं में पढ़ता था. 21 सितंबर, 2013 को दोपहर बाद वह बुराड़ी में ही रहने वाले अपने एक दोस्त से कौपी लेने के लिए घर से निकलने लगा तो अपनी मां राज ढींगरा से बोला, ‘‘मम्मी कौपी ले कर मैं अभी थोड़ी देर में आ रहा हूं.’’
थोड़ी देर में आने के लिए कह कर गया जतिन जब काफी देर तक नहीं लौटा तो घरवाले परेशान होेने लगे. उन्हें यह भी पता नहीं था कि जतिन जिस दोस्त के यहां जाने को कह कर गया है, वह बुराड़ी के किस ब्लौक या गली में रहता है?
घर वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर जतिन को ढूंढा कहां जाए. उन्होंने मौहल्ले में तलाशने के साथसाथ उस के दोस्तों से भी पता किया, लेकिन जतिन के बारे में कुछ पता नहीं चला. कई घंटे बीत जाने के बाद भी जतिन के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उस के पिता किशनलाल ढींगरा ने थाना बुराड़ी की राह पकड़ी.
थाना बुराड़ी के थानाप्रभारी शेरसिंह को किशनलाल ने बेटे के गायब होने की पूरी बात बताई तो उन्होंने 13 साल के जतिन ढींगरा की गुमशुदगी दर्ज करा कर उस के हुलिया की जानकारी दिल्ली के सभी थानों को वायरलैस द्वारा प्रसारित करा दी.
किशनलाल थाने से लौट कर अपने स्तर से बेटे को तलाश करने लगा. उस की समझ नहीं आ रहा था कि जतिन गया तो गया कहां. वह उसी की चिंता में डूबा था कि शाम सवा 5 बजे उस के मोबाइल पर एक फोन आया. नंबर अनजान था, फिर भी उस ने फोन रिसीव कर लिया.
उस के ‘हैलो’ करते ही कहा गया, ‘‘तुम्हारा बेटा जतिन इस समय हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा वापस चाहते हो तो 40 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. पैसे कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बता दिया जाएगा. और हां, एक बात का ध्यान रखना. अगर पुलिस के पास जाने की गलती की तो जिंदगी भर पछताओगे.’’
‘‘नहीं, मेरे बेटे को कुछ मत कहना. मैं किसी से कुछ नहीं बताऊंगा. मुझे मेरा बेटा चाहिए.’’ किशनलाल घबरा कर बोला.
दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. फोन पर हुई बात से किशनलाल समझ गया कि बेटे का किसी ने अपहरण कर लिया है. अपहर्त्ता ने उन्हें पुलिस के पास जाने से मना किया था. इसलिए वह असमंजस में था कि क्या करे? वह पुलिस के पास जाए या नहीं?
पुलिस से शिकायत करने पर अपहर्त्ता बच्चे को नुकसान पहुंचा सकते थे, इसलिए राज ढींगरा ने भी पति को थाने जाने से मना किया. लेकिन फिरौती देने के बाद भी अपहर्त्ता जतिन को छोड़ देंगे, इस बात की क्या गारंटी थी? यह बात उस के मन में अचानक उठी. इस बारे में उस ने अपने परिचितों से बात की तो सब ने उसे थाने जाने की सलाह दी.
किशनलाल ने थाने जा कर थानाप्रभारी शेरसिंह को फिरौती के लिए आए फोन के बारे में बताया तो उन्होंने किशनलाल से वह नंबर ले कर फोन किया. लेकिन वह नंबर बंद था. इस से थानाप्रभारी को यकीन हो गया कि जतिन का अपहरण हुआ है. उन्होंने किशनलाल को कुछ दिशानिर्देश दे कर घर भेज दिया और अज्ञात लोगों के खिलाफ जतिन के अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.
बच्चे को सकुशल बरामद करने के लिए पुलिस अपहर्त्ताओं का सुराग लगाने लगी. इस के लिए तुरंत एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में इंसपेक्टर परमजीत सिंह, सबइंसपेक्टर राजेश कुमार, रोमिल सिंह, रवि कुमार, हेड कांस्टेबल एच.आर. रहमान, पवन कुमार आदि को शामिल किया गया. जानकारी मिलने पर उत्तरी जिला की डीसीपी सिंधू पिल्लै ए. ने स्पेशल स्टाफ के इंसपेक्टर नरेश कुमार को भी टीम में शामिल कर दिया.
अपहर्त्ता ने जिस मोबाइल नंबर से फोन किया था, उस की लोकेशन और वह नंबर किस के नाम से लिया गया था, यह सब पता लगाने के लिए थानाप्रभारी शेरसिंह ने हेडकांस्टेबल पवन कुमार को उस कंपनी के औफिस भेजा, जिस कंपनी का वह नंबर था.
दूसरी ओर किशनलाल के घर पहुंचते ही पौने 6 बजे उस के मोबाइल पर अपहर्त्ता ने उसी नंबर से फिर फोन किया, ‘‘तुम्हें पुलिस के पास जाने से मना किया गया था, इस के बावजूद तुम थाने चले गए. लगता है, तुम्हें अपने बेटे से प्यार नहीं है.’’
‘‘मैं पुलिस के पास नहीं गया था. मैं तो तुम्हें देने वाले पैसों के इंतजाम में लगा हूं. मैं तुम्हें पूरे पैसे दूंगा, लेकिन बेटे को…’’ किशनलाल की बात पूरी होती, उस के पहले ही फोन कट गया.
अपहर्त्ता के रुख से किशनलाल डर गया कि कहीं वे नाराज हो कर उस के बेटे को नुकसान न पहुंचा दें. मन में यही चिंता लिए वह फिर से थानाप्रभारी के पास जा पहुंचा.
किशनलाल की अपहर्त्ता से जो बात हुई थी, वह उस ने थानाप्रभारी को बता दी. थानाप्रभारी इस बात से हैरान थे कि अपहर्त्ता को किशनलाल के थाने जाने की बात कैसे पता लगी. यानी अपहर्त्ता का कोई आदमी ऐसा है जो किशनलाल के साथ रह कर उस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए है.
अगले दिल पुलिस के पास अपहर्त्ता के नंबर की काल डिटेल्स आ गई, जिस से पता चला कि वह नंबर दक्षिणपूर्वी दिल्ली के तिगड़ी निवासी मनोज के नाम से था, जिसे कुछ दिनों पहले ही लिया गया था. इसी के साथ यह भी पता चला कि फिरौती के लिए जो फोन किए गए थे, वे दिल्ली के वजीराबाद इलाके से किए गए थे.
दूसरी ओर बेटे के अपहरण से किशनलाल और उस की पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. दोनों इस बात को ले कर परेशान थे कि जतिन न जाने किस हाल में है.
पुलिस को मनोज का पता मिल गया था, इसलिए पुलिस टीम तिगड़ी स्थित मनोज के घर जा पहुंची. संयोग से मनोज घर पर ही मिल गया. घर पर पुलिस को देख कर वह चौंका. पुलिस ने उस से जतिन के अपहरण के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि वह न किसी जतिन को जानता और न ही उसे किसी अपहरण के बारे में जानकारी है. बहरहाल पुलिस उसे साथ ले कर थाने आ गई.
थाने में मनोज से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह पहले कही गई बातों को ही दोहराता रहा. उस की बातों से पुलिस को लगा कि वह सही बोल रहा है. उस का जतिन के अपहरण से कोई मतलब नही है. जिस नंबर से फिरौती के लिए फोन किए गए थे, वह उसी के नाम था. फार्म पर मनोज का फोटो लगा होने के साथ पता भी सही था. अब पुलिस के सामने सवाल यह था कि उस की आईडी और फोटो से वह नंबर लिया किस ने? पुलिस ने मनोज से पूछा कि उस ने कभी अपनी आईडी और फोटो किसी को दिए तो नहीं थे?
काफी देर सोचने के बाद मनोज ने कहा, ‘‘सर, जहांगीरपुरी में मेरा एक दोस्त गौतम जैन रहता है. वह एक फाइनेंस कंपनी में नौकरी करता है. सन 2009 में मैं ने नौकरी के लिए उसे अपनी आईडी और एक फोटोग्राफ दिया था.’’
पुलिस मनोज को साथ ले कर गौतम जैन के घर गई तो वह घर पर नहीं मिला. लेकिन घर से पुलिस को उस का फोन नंबर मिल गया. उसी नंबर के सहारे पुलिस ने 23 सितंबर, 2013 को जीटी करनाल रोड बस डिपो के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया.