वो ऐसा साइबर क्राइम जिसने भाजपा और कांग्रेस दोनों को हिला दिया

 फेसबुक डाटा के आधार पर क्या कोई कंपनी मतदाताओं की सोच और मन बदल सकती है? इस मामूली से सवाल का जवाब अगरहांहै तो यह लोकतंत्र के लिए भी घातक है और देश के लिए भी. अमेरिका में चूंकि ऐसा हो चुका है, इसलिए अगले साल होने वाले चुनाव के मद्देनजर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही डरी हुई हैं. आखिर क्यों?    

प्राइवेट कंपनी में एकाउंटेंट सचिन अरोड़ा की उस दिन छुट्टी थी, इसलिए उस ने सोचा क्यों कुछ देर फेसबुक में ही समय गुजारा जाए. अभी उस ने  फेसबुक खोला ही था कि सामने एक खूबसूरत तसवीर के साथ एक आकर्षक इबारत चमकी, ‘जानिए आप की शक्ल देशविदेश के किस महान एक्टर से मिलती है.’

सचिन को हमेशा यह खुशफहमी रही थी कि उस की शक्ल विनोद खन्ना से मिलती है, इसलिए उस ने यह पढ़ते ही सोचा क्यों आजमा कर देख लिया जाए कि उस का अनुमान सही भी है या नहीं. अत: उस ने तुरंत उस पौइंट पर क्लिक कर दिया, जहां से यह जानने के लिए कदम दर कदम आगे बढ़ना था.

पहली क्लिक के बाद ही बारीक अक्षरों में लिखी यह बात सामने आई कि अगर आप इस मनोरंजक क्विज में भाग लेते हैं तो इस ऐप को, जिस ने यह क्विज डेवलप की है, क्या मिलेगा? साथ ही जवाब में लिखा था, आप की सार्वजनिक प्रोफाइल, तसवीरें और आप के कमेंट.

सचिन ने सोचा ऐसी कौन सी खास चीजें हो सकती हैं. इसलिए वह नेक्स्ट के बाद नेक्स्ट बटन क्लिक करता गया. हालांकि उसे बाद में निराशा हुई, क्योंकि ऐप ने उसे हौलीवुड के एक्टर टौम हैंक जैसा बताया था, जिसे वह जानता तक नहीं था.

बहरहाल, इस पहेली में टाइम पास कर के सचिन यह सब भूल गया था, लेकिन कुछ महीनों बाद उसे तब आश्चर्य हुआ जब एक असहिष्णुता संबंधी औनलाइन वोटिंग में उस ने अपने आप को उन लोगों के विरुद्ध मोर्चाबंदी करते हुए पाया, जो सरकार की सांस्कृतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप कर रहे थे

सचिन को तो शायद यह पूरा मामला पता ही नहीं चलता, अगर उस के एक दोस्त ने व्यंग्य करते हुए यह कहा होता कि आजकल कलाकारों का बहुत विरोध कर रहे हो. सचिन को इस से ही पता चला कि उस के नाम और तसवीरों का किसी ने दुरुपयोग किया है.

दरअसल, हाल के सालों में हम ने भले ही ध्यान दिया हो, लेकिन फेसबुक में इस तरह के खेलों की बाढ़ गई है, जिस में कहा जाता है कि जानिए आप किस हीरो की तरह लग रहे हैं? पिछले जन्म में क्या थे? या आप उद्योगपति होते तो किस के जैसे होते? या फिर आप खिलाड़ी के रूप में किस खेल के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं?

ऐसी तमाम पहेलियों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने वाले कार्यक्रमों की इंटरनेट में बाढ़ गई है. इन में लोग रुचि से भाग भी लेते हैं. सब से पहले इस तरह के सवाल आने शुरू हुए थेआप 60 साल बाद कैसे दिखेंगे? आप की जोड़ी किस हीरोइन या हीरो के साथ जमती है? मनोवैज्ञानिक रूप से आकर्षित करने वाले टाइमपास खेलों की यह शृंखला लगातार बढ़ती गई तो ऐसा यूं ही नहीं हुआ, बल्कि इस के पीछे एक पूरी साजिश थी.

दरअसल, आम लोग भले ही न जानते हों लेकिन इन खेलों के जरिए पर्सनल डाटा चुराने का बहुत ही सोचासमझा खेल चल रहा था. इस डाटा चोरी की बात शायद इतनी डरावनी नहीं लगती, अगर पिछले दिनों इस बात का खुलासा न होता कि इसी तरह डाटा चुरा कर कुछ कंपनियों ने डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका का राष्ट्रपति बनवा दिया है.

जी हां, ये सब उन साइको प्रोफाइल विकसित करने वाली कंपनियों का खेल है, जिस को लेकर आज पूरी दुनिया में हंगामा है. वास्तव में ये कंपनियां आम लोगों को सोशल मीडिया में विशेषकर फेसबुक जैसे लोकमंच में मनोवैज्ञानिक रूप से फांसती हैं

अपने सहज मानवीय आकर्षण वाले सवालों के जरिए ये कंपनियां लोगों को अपने जाल में फांस कर उन का प्रकट रूप में तो मनोरंजन करती हैं, लेकिन इस मनोरंजन के पीछे उन का असली मकसद इन लोगों की मेल आईडी, तसवीरें और तमाम पर्सनल जानकारियां हासिल करना होता है

बाद में एकत्र की गई इन प्रोफाइल जानकारियों को ये कंपनियां कारपोरेट सेक्टर से ले कर विभिन्न मार्केटिंग एजेंसियों तक को बेच देती हैं. अब यह खुलासा इसलिए खौफनाक लगने लगा है, क्योंकि पता चला है कि ये अपना डाटा राजनीतिक पार्टियों को भी बेचती हैं और वे इस डाटा के जरिए मतदाताओं का ब्रेनवाश कर के मनपसंद नतीजे हासिल करने की कोशिश करती हैं.

2 बड़े अखबारों के स्टिंग से  घबराई भाजपा, कांग्रेस गत 17 मार्च, 2018 को अमेरिका और ब्रिटेन के 2 अखबारों ने जब इस बात का खुलासा किया कि अमेरिकी चुनावों में मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप के पक्ष में इस तरह के खेल का किस तरह से इस्तेमाल किया गया तो पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया. इस खुलासे के बाद भारत में भी हंगामा मचा हुआ है. 

देश की दोनों मुख्य राजनीतिक पार्टियां भाजपा और कांग्रेस डर रही हैं कि कहीं अमेरिका की तरह यहां भी अगले साल होने वाले चुनाव में राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह के तथ्यों का इस्तेमाल किया जाए. इसीलिए दोनों पार्टियां एकदूसरे पर आरोप लगा रही हैं कि वे देश के आम मतदाताओं का निजी डाटा हासिल कर के उन का राजनीतिक ब्रेनवाश कर रही हैं. हालांकि चुनाव आयुक्त .के. रावत ने साफतौर पर इनकार करते हुए कहा है कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा, हो सकता है

लेकिन अमेरिका में घटी घटना ने साबित कर दिया है कि जब अमेरिकी मतदाताओं का ब्रेनवाश हो सकता है तो हिंदुस्तानी मतदाताओं का क्यों नहीं?  कांग्रेस ने तो भाजपा पर आरोप भी लगा दिया है कि भाजपा ने 2014 का चुनाव फेसबुक के जरिए इसी तरह से मतदाताओं का ब्रेनवाश कर के जीता था. हालांकि इस के लिए डाटा चोरी का आरोप नहीं लगाया गया. बहरहाल, डर की यह पूरी कहानी कहां और कैसे सामने आई, इस पर हम आगे बात करेंगे. फिलहाल अमेरिका में डाटा लीक के दुरुपयोग के जरिए जो डर पूरी दुनिया के सामने आया है, वह यह है कि इस साल और अगले साल दुनिया के 2 दरजन देशों में होने जा रहे आम चुनावों में इंटरनेट कंपनियां हारजीत का फैसला कर सकती हैं.

कुल मिला कर यह डर वैसा ही है, जैसा 1970 के दशक में हुआ करता था. तब राजनीतिक पार्टियों को लगता था कि उन के धाकड़ विरोधी जीतने के लिए बूथ कैप्चरिंग कर लेंगे. यह भी एक किस्म से कैप्चरिंग की ही आशंका हैफर्क बस यह होगा कि तब भौतिक रूप से लठैतों और हथियारों की बदौलत यह काम होता था और अब आशंका है कि सोशल मीडिया के मनोवैज्ञानिक कब्जे के जरिए यह खेल खेला जाएगा. बहरहाल, यह आशंका कहां से पैदा हुई और कैसे कदम दर कदम आगे बढ़ी, इस का सिलसिला कुछ यूं शुरू होता है.

वाट्सऐप के कोफाउंडर ब्रायन एक्टन ने फैलाई सनसनी 21 मार्च, 2018 को शाम 5 बज कर 18 मिनट पर किए गए अपने एक ट्वीट से मैसेजिंग ऐप वाट्सऐप के कोफाउंडर ब्रायन एक्टन ने तब हड़कंप मचा दिया, जब उन्होंने सभी से अपना फेसबुक एकाउंट डिलीट करने को कहा. एक्टन ने ट्वीट किया, ‘यह प्तडिलीट फेसबुक का वक्त है.’एक्टन का यह ट्वीट ऐसे समय में आया, जब पौलिटिकल डाटा एनालिस्ट कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका पर अमेरिका के 5 करोड़ फेसबुक यूजर्स का डाटा चुरा कर, उस का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगा था. 

अमेरिकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स और ब्रिटेन के अखबार औब्जर्वर के एक संयुक्त स्टिंग से यह खुलासा हुआ है कि ब्रिटेन की कैंब्रिज एनालिटिका नामक कंपनी ने फेसबुक के 5 करोड़ यूजर्स के बारे में विस्तृत जानकारियां एकत्र कर के उन की अनुमति के बिना उन का दुरुपयोग किया.

यह सब 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के समय हुआ और माना जाता है कि डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति बनवाने के लिए किया गया. स्टिंग के मुताबिक कंपनी ने एक ऐप बनाया और उस के जरिए इन जानकारियों का कई किस्म से दुरुपयोग किया. मालूम हो कि इस कंपनी ने ऐप के जरिए वोटरों के व्यवहार की भविष्यवाणी की थी, जिस में डोनाल्ड ट्रंप को जीतता हुआ बताया गया था.इस खुलासे के बाद से माना जा रहा है कि फेसबुक मुश्किल में है. चूंकि कैंब्रिज एनालिटिका ने यह डाटा फेसबुक से हासिल किया था, इस वजह से यह आशंका जताई जा रही है कि फेसबुक में किसी का भी डाटा सुरक्षित नहीं है.

इस आशंका का एक कारण यह भी है कि स्टिंग से यह भी पता चलता है कि कंपनी के पास 5 और देशों के फेसबुक यूजर्स का डाटा है, जिस में से एक देश भारत भी है. इस असुरक्षा के बाद अब बड़ा सवाल यह पैदा हो गया है कि क्या फेसबुक जिंदा भी रहेगा या बंद हो जाएगा?

लेकिन सवाल यह भी है कि अगर फेसबुक बंद हो गया तो इस प्लेटफार्म में मौजूद असंख्य अनंत डाटा का क्या होगा? लोगों के एकाउंट में मौजूद अपार जानकारियों, तसवीरों और वीडियोज का क्या होगा? क्या फेसबुक का हश्र भी सोशल मीडिया वेबसाइट माईस्पेस डौटकौम जैसा होगा

गौरतलब है कि माईस्पेस डौटकौम पर भी साल 2011 में इसी तरह डाटा बेचने का आरोप लगा था. माना गया था कि उस ने भी अपने यूजर्स के डाटा को चोरीछिपे एक एजेंसी को बेच दिया थाक्या होगा फेसबुक का और उस के यूजर्स के डाटा का इस आरोप के बाद जिस माईस्पेस डौटकौम को साल 2005 में रूपर्ट मर्डोक ने 58 करोड़ डालर में खरीदा था, उसे साल 2011 में महज 3.5 करोड़ डालर में बेचना पड़ा. क्योंकि इस खुलासे के बाद साइट की विश्वसनीयता बिलकुल खत्म हो गई थी. नतीजतन उस की सदस्य संख्या नहीं बढ़ रही थी. यही कारण था कि रूपर्ट की कंपनी न्यूज कारपोरेशन को मजबूरी में अपनी इस कंपनी को औनलाइन विज्ञापन कंपनी स्पेसिफिक मीडिया को बेचना पड़ा था.

लेकिन माईस्पेस डौटकौम को तो फिर भी ग्राहक मिल गया था, मगर क्या फेसबुक को भी कोई ग्राहक मिल पाएगा? यह इसलिए भी संभव नहीं है, क्योंकि दोनों के आकार में जमीनआसमान का फर्क हैजब माईस्पेस डौटकौम को बेचना पड़ा था, उस समय उस की सदस्य संख्या महज 3 करोड़ के आसपास थी, जबकि फेसबुक के सदस्यों की संख्या इस समय करीब 2.1 अरब है. इस में इस के सक्रिय उपभोक्ताओं की संख्या 1 अरब 40 करोड़ है. ये फेसबुक के वे सदस्य हैं, जो हर दिन फेसबुक का चक्कर काटते हैं.

यही वजह है कि दुनिया की कोई भी कारपोरेट कंपनी फिलहाल फेसबुक के अधिग्रहण की नहीं सोच पा रही. लेकिन स्टिंग औपरेशन से हुए खुलासे ने फेसबुक की नींव हिला कर रख दी है. इस खुलासे के  बाद फेसबुक के शेयरों में भारी गिरावट आई है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यह गिरावट 8 फीसदी से ज्यादा हो चुकी थी, जिस के कारण मार्क जकरबर्ग को 350 अरब रुपए से ज्यादा का नुकसान हो चुका है, जबकि कंपनी को अब तक इस से 600 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हो चुका है. इस वजह से भी कारपोरेट दुनिया में फेसबुक के भविष्य को ले कर हड़कंप मचा हुआ है.

बहरहाल, फेसबुक के अस्तित्व की आशंकाओं और अनुमानों वाले सवालों के जवाब हम बाद में जानेंगे, पहले हम इस विषय पर बात करते हैं कि आखिर हम इस सब पर बात ही क्यों कर रहे हैंअमेरिका और ब्रिटेन के इन 2 अखबारों के इस साझा स्टिंग से आखिर हमारा क्या लेनादेना? लेनादेना है, जैसा कि पहले ही लिखा जा चुका है कि इस स्टिंग से पता चलता है कि कैंब्रिज एनालिटिका ने सिर्फ अमेरिका के फेसबुक यूजर्स का ही डाटा नहीं चुराया है, बल्कि उस ने ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया और भारत सहित 5 देशों के फेसबुक यूजर्स के डाटा की चोरी की है.

हकीकत पर परदा डालने की कोशिश हालांकि कैंब्रिज एनालिटिका ने इस का खंडन किया है, लेकिन इस स्टिंग के प्रकाश में आने के बाद भारत के कानून और सूचना मंत्री रविशंकर प्रसाद ने साफसाफ कहा है कि यदि फेसबुक डाटा का दुरुपयोग भारतीय चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश में किया गया तो यह कतई सहन नहीं किया जाएगा. उन्होंने 17 मार्च, 2018 को इस खुलासे के बाद फेसबुक को कड़ी चेतावनी दी, जिस में यहां तक कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो भारत सरकार फेसबुक के विरुद्ध कड़े से कड़ा कदम उठाएगी.

हालांकि कैंब्रिज एनालिटिका ने कहा है कि उस ने फेसबुक के भारतीय उपभोक्ताओं का कोई डाटा नहीं चुराया है और ही उस का चुनाव को प्रभावित करने का कोई इरादा है. फेसबुक के मालिक जकरबर्ग ने तो इस संबंध में भारत से स्पष्ट तौर पर माफी भी मांगी है और फेसबुक में डाटा संबंधी सुरक्षा को और मजबूत करने की बात भी कही हैफिर भी अगर इस सब से भारत के राजनीतिक गलियारों में एकदूसरे के विरुद्ध आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला थम नहीं रहा तो इस के पीछे बड़ी वजह यही है कि सभी राजनीतिक पार्टियां डरी हुई हैं कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के मतों का अपहरण करने की कोशिश की जा सकती है.

इस आशंका की वजह से देश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियोंकांग्रेस और भाजपा का एकदूसरे पर यह आरोप लगाना है कि उस का कैंब्रिज एनालिटिका से संबंध है. भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सवाल उठाया है कि आखिर कांग्रेस का कैंब्रिज एनालिटिका से इस कदर प्रेम क्यों हैभाजपा की तरफ से कांग्रेस पर यह भी आरोप लगाया गया है कि राहुल गांधी की सोशल मीडिया प्रोफाइल में कैंब्रिज एनालिटिका की क्या भूमिका है? क्या कांग्रेस अब चुनाव जीतने के लिए डाटा चोरी का इस्तेमाल करेगी, जैसा कि इस कंपनी ने अमेरिका में किया. चूंकि हाल ही में राहुल गांधी के ट्विटर पर फालोअर्स की संख्या काफी बढ़ी है तो भाजपा का आरोप यह भी है कि ये फरजी फालोअर्स हैं, जिन्हें ऐसे ही डाटा जगलरी के जरिए हासिल किया गया है.

कांग्रेस की सफाई और आरोप में दम है इस पर कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भाजपा की खबर ली है. उन्होंने भाजपा को इन आरोपों के बदले खूब खरीखोटी सुनाई है. सुरजेवाला के मुताबिक भाजपा फेक न्यूज की फैक्ट्री है, वही इस तरह की कंपनियों का सहारा लेती है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने या कांग्रेस के अध्यक्ष ने कभी भी इस कंपनी की किसी भी तरह की कोई मदद नहीं ली है. अगर स्वतंत्र रूप से कैंब्रिज एनालिटिका के दावों की बात करें तो उस का कहना है कि साल 2010 में बिहार विधानसभा चुनाव में उस ने काम किया था.

कैंब्रिज एनालिटिका की वेबसाइट में मौजूद विवरण में एक जगह यह दावा किया गया है कि हमारे प्रयासों से हमारे ग्राहक की बड़ी जीत हुई. हम ने जितना टारगेट किया, उस की 90 फीसदी सीटें हमारे क्लाइंट को मिलीं. अगर इतिहास में पीछे मुड़ कर जाने की कोशिश करें कि साल 2010 में बिहार विधानसभा में किस को जीत मिली थी तो निश्चित रूप से वह भाजपा और जेडीयू का गठबंधन था, जिसे भारी बहुमत मिला था

जनता दल यूनाइटेड ने तब 141 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 115 सीटें जीती थी जबकि भारतीय जनता पार्टी जिस ने सिर्फ 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उस ने 91 सीटें जीती थीं. इस तरह देखा जाए तो तथ्यात्मक रूप से यह भारतीय जनता पार्टी है, जिस ने 2010 के विधानसभा चुनाव में 90 फीसदी सीटें जीती थीं. इस तरह कैंब्रिज एनालिटिका के दावे में वही फिट हो रही है.

यही नहीं, रणदीप सुरजेवाला का यह भी कहना है कि साल 2010 में कैंब्रिज एनालिटिका की इंडियन पार्टनर ओवलेनो बिजनैस नाम की कंपनी वास्तव में भाजपा की साथी पार्टी के सांसद के बेटे की थी और तब ओबीआई की सेवाओं का राजनाथ सिंह ने अपने लिए इस्तेमाल किया था

रणदीप सुरजेवाला भाजपा पर आरोप लगाते हैं कि भाजपा फेक स्टेटमेंट, फेक कौन्फ्रैंस के साथसाथ फेक डाटा का सहारा लेने वाली पार्टी है. इसी क्रम में कांग्रेस आईटी सेल की प्रभारी दिव्या स्पंदना का कहना है कि कैंब्रिज एनालिटिका राइट विंग पार्टियों के साथ मिल कर काम करती है, लिबरल्स के साथ नहीं और सब को पता है कि राइट विंग कौन है.

कुल मिला कर अब यह डाटा लीक इतना डरावना क्यों है, इसे समझ लेते हैं. दरअसल, भारत में फेसबुक के करीब 20 करोड़ सक्रिय उपभोक्ता हैं, जिस में ज्यादातर की उम्र 18 से 35 साल के बीच हैसमाजशास्त्रियों और मनोविदों का मानना है कि ये लोग राजनीतिक दलों द्वारा फैलाई गई अफवाहों को सच मान लेते हैं और उसी के मुताबिक उन के बारे में अपनी राय बना लेते हैंकहने का मतलब यह है कि ये लोग तात्कालिक माहौल के प्रभाव में कर अपना मतदान करते हैं. ऐसे में आशंका है कि परदे के पीछे रहने वाली ये डाटा विश्लेषक कंपनियां चोरी से हासिल किए गए डाटा के जरिए आगामी चुनावों में अपनी सेवा लेने वाली राजनीतिक पार्टियों को कृत्रिम माहौल बना कर जिताने की कोशिश करेंगी, जैसा कि आरोप है कि 2 साल पहले अमेरिका में ट्रंप के लिए ऐसा माहौल बनाया गया.

क्या भारतीय वोटरों को भ्रमित कर के मतदान कराया जाएगा? चूंकि भारत में 20 करोड़ से ज्यादा फेसबुक के सक्रिय उपभोक्ता हैं और उन में से 90 फीसदी 35 साल से कम उम्र के हैं. ये उपभोक्ता आमतौर पर हमेशा अपने जैसे तमाम दूसरे लोगों के साथ जुड़े रहते हैं और इस तरह एकदूसरे की बातों से प्रभावित होते हैं. इसलिए आशंका है कि ऐसी जानकारियों को व्यक्तिगत स्तर पर प्रसारित किया जाएगा, जिस से कि इन लोगों का दिमाग बदल जाए

चूंकि लोगों का वास्तविक इंटरैक्शन बहुत कम हो गया है, जबकि आभासी मेलमिलाप बहुत बढ़ गया है, इसलिए यह माना जा रहा है कि उपभोक्ता एकदूसरे को प्रभावित करेंगे. लब्बोलुआब यह है कि साल 2019 में राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं के बीच अपने लोकप्रिय समर्थन के बजाय आंकड़ों के जोड़तोड़ और भ्रामक माहौल से उपजी भावनात्मक स्थितियों के जरिए चुनाव जीतने की कोशिश करेंगी

यह भी माना जा रहा है कि साल 2016 में अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप ऐसे ही चुनाव जीते थे. यही वजह है कि कैंब्रिज एनालिटिका के डाटा चोरी संबंधी खबर के खुलासे से भारत में हड़कंप मच गया है. इंटरनेट के जानकारों का मानना है कि यह आशंका पूरी तरह से हवाहवाई नहीं है. कैंब्रिज एनालिटिका या कोई भी कंपनी जिस के पास किसी समुदाय विशेष का बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत डाटा हो, वह ऐसा माहौल रच सकती है, जिस के मनोविज्ञान में उलझ कर मतदाता वैसा ही निर्णय ले जैसा कि कोई शातिर कंपनी उन से निर्णय लिवाने की कोशिश करे

स्टिंग औपरेशन के दौरान यह बात सामने आई है कि कैंब्रिज एनालिटिका लोगों के डाटा से उन की साइकोलौजिकल प्रोफाइलिंग करती है और उसी प्रोफाइलिंग के आधार पर किसी उम्मीदवार के समर्थन में या उस के विरोधी के खिलाफ सूचनाएं प्लांट की जाती हैं. कुल मिला कर नतीजा यह होता है कि मत देने वाले मतदाता का मन बदल जाता है और वह अपना वोट उसे दे देता है, जिसे वह इस तरह के प्रभाव में आने के पहले अपना वोट नहीं देना चाहता हो.

मतदाता का मन बदलने का षडयंत्र यह पूरा किस्सा शायद महज एक अनुमान ही होता, अगर ब्रिटेन के चैनल-4 ने कैंब्रिज एनालिटिका कंपनी के बड़े अधिकारियों का स्टिंग औपरेशन प्रसारित किया होता. इस प्रसारण के बाद ही पूरी दुनिया को पता चला कि यह कंपनी दुनिया के तमाम राजनीतिक दलों के लिए सोशल मीडिया में कैंपेन चलाती है और अपने क्लाइंट या ग्राहकों को जितवाने के लिए हर वह हथकंडा अपनाती है, जिस से कि मतदाता का मूड बदला जा सके.

फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया पर जो लोग ज्यादा से ज्यादा समय बिताते हैं और अपने दिलदिमाग की तमाम बातों को यहां दर्ज करते हैं. ये कंपनियां इन्हीं बातों से इन के मनोविज्ञान का अध्ययन करती हैं. फिर उसी अध्ययन के आधार पर इन्हें भावनात्मक बाहुपाश में कैद करने के लिए चक्रव्यूह रचती हैं. देश की 2 सब से बड़ी राजनीतिक पार्टियां अगर इस डाटा लीक से डरी हुई हैं और एकदूसरे पर गंभीर से गंभीरतम आरोप लगा रही हैं तो इस के पीछे बहुत बड़ा कारण लोगों की साइकोलौजिक प्रोफाइलिंग करने वाली कैंब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनियों के कामकाज का तौरतरीका भी है

इस तरह की कंपनियां सोशल मीडिया प्लेटफार्म से डाटा चुरा कर मनोवैज्ञानिक कैंपेन विकसित करती हैं. यही नहीं, ये कंपनियां नेताओं के भाषण, राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्रों तक को अपने इन्हीं सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषणों के आधार पर तैयार करवाती हैं

कहने का मतलब यह है कि अगर भाजपा यह घोषणा करे कि वह अगले साल, इस महीने, इस तारीख तक अयोध्या में मंदिर बनवा देगी तो हो सकता है यह भाजपा के नेताओं के बजाए मतदाताओं का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने वाली कंपनी का निष्कर्ष हो और जो किसी पार्टी के नेता विशेष के मुंह से जारी हुआ हो. द्य

                               

लड़की ने लड़के को दी निर्वस्त्र फोटो वायरल करने की धमकी

दिन पर दिन साइबर क्राइम बढ़ता जा रहा है. ज्योंज्यों टेक्नोलौजी आगे बढ़ती जाएगी, साइबर क्राइम और भी बढ़ेगा. यह एक ऐसा अपराध है जो हजारों किलोमीटर दूर बैठा आदमी किसी को भी शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हानि पहुंचा सकता है. पढि़ए और जानिए साइबर क्राइम के बारे में…

पु घटना -1

कपड़ों के शोरूम के मालिक प्रशांत कुमार दोपहर में ग्राहक न होने की वजह से शोरूम के सेल्समैनों से बात कर रहे थे कि उन के मोबाइल की घंटी बजी. अनजान नंबर था, इसलिए उन्होंने लापरवाही से फोन रिसीव कर जैसे ही कान से लगाया, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘जी, मैं स्टेट बैंक से बोल रहा हूं.’’

प्रशांत कुमार का सारा लेनदेन भारतीय स्टेट बैंक से ही होता था इसलिए उन्हें लगा कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है. इसलिए सचेत होते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जी कहिए, क्या बात है.’’

‘‘दरअसल आप के डेबिट कार्ड का पिन ब्लौक हो गया है इसलिए आप उस का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर बता देते तो उस का नया पिन नंबर जेनरेट कर देते.’’ दूसरी ओर से कहा गया. प्रशांत कुमार को पता था कि बैंक की ओर से अकसर इस तरह के मैसेज आते रहते हैं कि ‘आप किसी को अपने डेबिट/के्रडिट कार्ड का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर न बताएं, क्योंकि बैंक किसी से यह सब नहीं पूछता.’ प्रशांत कुमार तुरंत जान गए कि फोन करने वाला कोई ठग है. उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘भाई साहब, बेवकूफ समझते हो क्या?’’

उनका इतना कहना था कि दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. दरअसल, फोन करने वाला ठग था. अगर प्रशांत कुमार उस के द्वारा मांगी गई जानकारी बता देते तो वह ठग समझ जाता कि यह आदमी बेवकूफ है. इसके बाद वह ओटीपी नंबर पूछ कर उन के खाते से पैसे निकाल लेता.

प्रशांत कुमार समझदार आदमी थे, इसलिए बच गए. लेकिन ये ठग इसी तरह न जाने कितने लोगों से कार्ड नंबर, एक्सपायरी डेट, सीवीवी नंबर, पूछ कर रोजाना ठगते हैं. लोगों को ठगी से बचने के लिए ही बैंक अब मैसेज भेजने लगे हैं कि आप किसी को अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर न बताएं. इस के बावजूद लोग ठगी का शिकार बन रहे हैं.

घटना-2

प्रशासनिक नौकरी की तैयारी करने वाले राजेश शर्मा को सोशल मीडिया इसलिए पसंद था, क्योंकि इस से उसे थोड़ीबहुत जानकारी तो मिलती ही थी, पढ़ाई करतेकरते थक जाने पर फेसबुक या चैट साइट खोल कर दोस्तों से थोड़ीबहुत चैट कर के मूड फ्रैश हो जाता था. राजेश युवा तो था ही कुंवारा भी था, दूसरे घर वालों से दूर अकेला रह रहा था. राजेश के ऐसे दोस्त भी थे, जिन से वह हर तरह की चैट कर लेता था. इस में अश्लील चैट भी शामिल था. इस तरह की चैट करने वालों में ज्यादातर अधेड़ उम्र के लोग थे.

अधेड़ लोगों से अश्लील चैट कर के राजेश अपना मूड जरूर फ्रैश कर लेता था. लेकिन इसमें उसे वह आनंद नहीं आता था, जो वह चाहता था. उस का मन करता था कि कोई लड़की हो, जिस से वह इस तरह का चैट करे. इस के लिए उस ने चैट साइट ऐप टिंडर डाउनलोड किया और लड़कियों को मैसेज भेजने लगा. मैसेज का किसी ने जवाब दिया तो किसी ने टाल दिया. किसी का जवाब आता तो उसे खुशी होती कि शायद अब बात बन जाएगी. क्योंकि ज्यादातर लड़कियों के जवाब नकारात्मक होते थे.

राजेश भी हिम्मत हारने वालों में नहीं था. उस की कोशिश जारी थी. जो लड़कियां जवाब देतीं थीं, वे भी 2-4 दिन जवाब दे कर शांत हो जाती थीं. किसी ने बात आगे बढ़ाई भी तो बाद में कहने लगती थी कि अब बात तभी होगी, जब उस का फोन रिचार्ज कराओगे. चैट करने के लालच में राजेश ने एक बार एक लड़की का फोन रिचार्ज कराया भी. लेकिन फोन रिचार्ज होते ही उस लड़की ने राजेश को ब्लौक कर दिया. इस से राजेश को निराशा तो हुई लेकिन एक सीख यह मिल गई कि दुनिया बहुत चालाक है.

इस घटना के बाद कुछ दिनों तक तो राजेश शांत रहा, लेकिन उस का मन नहीं माना और वह फिर पहले की ही तरह लड़कियों को मैसेज भेजने लगा. आखिर उस की कोशिश रंग लाई और उसे एक लड़की मिल गई, जो उस के मैसेज के वैसे ही जवाब देने लगी, जैसा वह चाहता था. राजेश रोज रात में उस लड़की से चैटिंग करने लगा. दोनों के मैसेज ऐसे होते थे, जिन्हें पतिपत्नी या प्रेमीप्रेमिका ही भेज सकते थे. कुछ ही दिनों में मैसेज के आदानप्रदान के साथ एकदूसरे को फोटो भी भेजे जाने लगे. फिर एक दिन लड़की ने राजेश से अपने निर्वस्त्र यानी नग्न फोटो भेजने को कहा. राजेश को उस लड़की पर इतना भरोसा हो चुका था कि उस ने बिना कुछ सोचे लड़की को अपने नग्न फोटो भेज दिए. राजेश ने जब लड़की से उसी तरह के अपने फोटो भेजने को कहा तो उस ने बहाना बना कर फोटो भेजने से मना कर दिया. राजेश ने उस की बात पर विश्वास कर के उस पर दबाव भी नहीं डाला.

लड़की ने राजेश को अपनी बातों के जाल में फंसा कर उस के कई नग्न फोटो मांग लिए. इस के बाद एक दिन लड़की ने जो रंग दिखाया, उसे देख राजेश परेशान हो उठा. लड़की ने राजेश के फोटो सोशल मीडिया पर डालने की धमकी दे कर उस से पैसे मांगे. राजेश को अपनी इज्जत बचानी थी, सो किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया. जब वह लड़की को रुपए देने पहुंचा तो पता चला वह लड़की नहीं, 45-46 साल का आदमी था. राजेश ने अपने वे फोटो डिलीट कराने के लिए अपनी हैसियत के हिसाब से रुपए तो दिए ही उसे उस की मनमानी भी सहनी पड़ी.

अच्छा यह हुआ कि वह आदमी एक बार में ही मान गया, वरना पता नहीं राजेश को कब तक उस की दुर्भावना का शिकार होना पड़ता. हो सकता है, उस ब्लैकमेलर ने सोचा हो कि जो मिलता है, लेकर किनारे हो जाओ. क्योंकि उसे यह डर भी था कि ज्यादा लालच करने पर राजेश पुलिस के पास भी जा सकता है. मजे लेने के चक्कर में राजेश ने इधरउधर से इंतजाम कर के पैसे तो दिए ही, उस आदमी की मनमानी भी झेली. उस के साथ जो हुआ शायद ही वह जीवन में इसे भूल पाए. अब वह मोबाइल देख कर डर जाता है. राजेश ही नहीं सोशल मीडिया के नाम से सुष्मिता भी घबराने लगी है क्योंकि उस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. लेकिन उस का मामला राजेश के मामले से कुछ अलग है.

घटना-3

सुष्मिता भी सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय थी. लेकिन फेसबुक हो या चैटसाइट टिंडर, उस की फ्रैंडलिस्ट में जो भी लोग थे, सभी उस की जानपहचान वाले थे. इन में ज्यादातर उस के कालेज के मित्र थे. फालतू लोगों को न तो वह फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजती थी और न ही रिक्वेस्ट आने पर स्वीकार करती थी. चैटिंग भी वह कुछ ही दोस्तों से करती थी, जिस में पढ़ाई से संबंधित बातें ज्यादा होती थीं. किसी वजह से वह 15-20 दिन सोशल मीडिया से दूर रही. एक दिन उस ने अपनी चैट साइट खोली तो उस में एक दोस्त का मैसेज पढ़ कर दंग रह गई. उस ने दोस्त को लताड़ना चाहा तो उस ने कहा कि उसी ने तो इस तरह की फूहड़ चैटिंग की थी. उस ने तो केवल उस के मैसेज के जवाब भर दिए थे.

इस से सुष्मिता की हैरानी और बढ़ गई, क्योंकि 15-20 दिनों से उस ने किसी से चैटिंग की ही नहीं थी. उस ने दोस्त को झूठा साबित करना चाहा तो उस ने चैटिंग के स्क्रीन शौट ले कर भेज दिए. चैटिंग के फोटो देख कर सुष्मिता परेशान ही नहीं हुई बल्कि डिप्रेस हो गई. क्योंकि वह चैटिंग इतनी अश्लील थी कि उस तरह की चैटिंग करने की कौन कहे, सुष्मिता सोच भी नहीं सकती थी. इस डिप्रेशन से उबरने में उसे काफी समय लगा. सुष्मिता ने सचमुच वह चैटिंग नहीं की थी. उस के चैटरूम में घुस कर किसी ने उस के दोस्त से उस की ओर से चैटिंग की थी. पहले तो सुष्मिता के उस दोस्त को भी हैरानी हुई थी कि सुष्मिता को यह क्या हो गया है?

लेकिन उस ने सोचा कि जब वह ही इस तरह की फूहड़ चैटिंग कर रही है तो उसे क्यों परेशानी होगी. मजे लेने के लिए उस ने भी उसी तरह के जवाब देने शुरू कर दिए थे. लेकिन जब असलियत खुली कि वह चैटिंग सुष्मिता ने नहीं, बल्कि उस की ओर से किसी और ने की थी तो वह काफी शर्मिंदा हुआ था.

घटना-4

ऐसा ही कुछ हुआ प्रदीप के साथ. 15 साल का प्रदीप भी सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय था. मौका मिलते ही वह फेसबुक खोल कर बैठ जाता और यह देखता कि उस के फोटो और पोस्ट को कितने लोगों ने लाइक किया और उस पर किस ने क्या कमेंटस लिखे. उसकी अपने कुछ दोस्तों से चैटिंग भी होती थी. प्रदीप सोशल मीडिया पर सक्रिय जरूर था. लेकिन अपनी उम्र को देखते हुए वह सावधानी भी बरतता था. उस की फ्रैंडलिस्ट में ज्यादा लोग नहीं थे, जो थे वे पढे़लिखे और समझदार लोग थे.

इतनी सावधानी बरतने के बावजूद प्रदीप के साथ गड़बड़ हो गई. एक दिन उस के साथ पढ़ने वाली एक लड़की अपनी मम्मी के साथ उस के घर आई और अपने फोन पर मैसेंजर में उस का मैसेज दिखाते हुए बोली, ‘‘प्रदीप, मैं तो तुम्हें बहुत अच्छा लड़का समझती थी, पर तुम ने मुझे यह कैसा मैसेज भेजा है?’’  प्रदीप उस मैसेज को देख कर हैरान रह गया, क्योंकि उस ने वैसा मैसेज भेजा ही नहीं था. उस ने लाख सफाई दी, लेकिन न तो लड़की ने उस की बात पर विश्वास किया न ही उस की मां ने. दरअसल वह मैसेज था, ‘आई लव यू’. लड़की और उस की मां इसी मैसेज से खफा थीं.

उन से जो बना, वह तो उन्होंने कहा है, जातेजाते धमकी भी दे गईं कि फिर कभी ऐसा मैसेज भेजा तो प्रिंसिपल से उस की शिकायत कर देंगी. इस बार वे उसे इसलिए छोड़ रही हैं, क्योंकि उस की मां ने उन से हाथ जोड़ कर उस की गलती के लिए माफी मांगी है.

इस मामले में भी कुछ वैसा ही हुआ था, जैसे ऊपर की घटनाओं में हुआ था. प्रदीप ही नहीं उस की मां को भी इस गलती के लिए शर्मिंदा ही नहीं होना पड़ा था, बल्कि हाथ जोड़ कर माफी भी मांगनी पड़ी. दरअसल किसी और ने प्रदीप की ओर से वह मैसेज उस के साथ पढ़ने वाली उस लड़की को भेज दिया था.

इस बात को न वह लड़की समझ पाई थी, न ही उस की मां. उन्हें ही नहीं, इस बात का पता तो प्रदीप और उस की मां को भी नहीं चला था. प्रदीप सिर्फ इतना जानता था कि उस ने यह मैसेज नहीं भेजा था. यह सब कैसे हुआ, उसे पता भी नहीं था.

दरअसल, यह सब एक तरह का साइबर अपराध है, जो धीरेधीरे आम होता जा रहा है. लेकिन इस के बारे में बहुत कम लोगों को पता है. इंटरनेट के तेजी से हो रहे प्रचारप्रसार के साथ अब साइबर अपराध भी उसी तेजी से बढ़ रहा है. युवा और महिलाएं ही नहीं, बच्चे भी औनलाइन चैटिंग, डेटिंग ऐप के चक्कर में फंस कर प्रभावित हो रहे हैं. बैंकिंग, इनफोर्मेशन, बीमा कंपनियां और शेयर मार्केट ही नहीं, सरकारें तक इस अपराध से खासा प्रभावित हैं.

 

एक लिंक से ठगी किसी की निजी जानकारी प्राप्त कर के धोखाधड़ी, डेबिट/के्रडिट कार्ड का ब्यौरा पता कर के चूना लगाना तो आम हो गया. लगभग रोज ही अखबारों में इस तरह की ठगी की खबरें आती रहती हैं. इस साइबर क्राइम से आम लोगों के साथसाथ कारपोरेट जगत और सरकारें भी परेशान हैं. क्योंकि इस की वजह से अन्य लोग ही नहीं, बड़ीबड़ी कंपनियों के साथ सरकारें भी लुट रही हैं.

अभी पिछले दिनों आम लोगों के लुटने की बड़ी खबर आई थी, जिस में क्लिक से पैसा कमाने की ललक ने लाखों लोगों को चूना लगा दिया. ऐसा करने वाली ‘सोशलट्रेड डौट बिज’ अकेली कंपनी नहीं थी. इसी तरह की एक कंपनी और थी ऐडकैश. दोनों ही कंपनियों के कारोबार का पैटर्न एक जैसा था. पहले इन्होंने विज्ञापन दिया कि ‘घर बैठे लाइक करें और पैसे कमाएं.’ इस तरह का विज्ञापन देख कर फटाफट पैसा कमाने की होड़ में लाखों लोग इन कंपनियों के झांसे में आ गए.

 

दरअसल, सोशल मीडिया के बढ़ते क्रेज में सभी चाहते हैं कि उन के फालोअर्स की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़े. इसी बात को ध्यान में रखकर पहले इन कंपनियों ने नेताओं और सेलिब्रेटी को जोड़ा यानी ग्राहक बनाया. उनके साथ ईमानदारी से डील हुई. इस तरह कंपनियों ने फालोअर्स बढ़ाए और बदले में फीस ली. लेकिन असली खेल तो आम लोगों के साथ शुरू हुआ.

सेलिब्रिटी को जोड़ने के बाद कंपनियों ने लिंक्स को अपना मार्केटिंग हथियार बनाया. आम लोगों को नेता और सेलिब्रिटी के लिंक दिखा कर कंपनियों ने उन्हें जोड़ा. इस स्कीम के तहत लोगों को मेंबर बनाया गया. यहीं से शुरू हुआ असली खेल. 10 हजार रुपए फीस ले कर उन्हें मेंबर बनाया गया और बिजनैस मौडल के अनुसार, उस के लिंक को बूस्ट किया गया. मेंबरशिप के लिए ग्राहक को अपना पैन नंबर देना पड़ता था.

जबकि परदे के पीछे दूसरी डील हो रही थी, जिस के तहत कंपनियां मेंबरशिप लेने वाले ग्राहक से 5 लिंक क्लिक करवाती थीं और एक क्लिक का 5 रुपए देती थीं. अगर कोई मेंबर 2 नए मेंबर जोड़ता था तो उस के लिंक डबल हो जाते थे. लिंक डबल होने का मतलब मिलने वाला पैसा भी डबल. इस तरह मेंबर जितने मेंबर जोड़ता था, उस के लिंक बढ़ते जाते थे.

ये कंपनियां खुद को कानूनी रूप से सही साबित करने के लिए 10 प्रतिशत टीडीएस काट कर पैसे देती थीं. शुरूशुरू में ये कंपनियां रोज के हिसाब से पैसे देती थीं. कंपनी के सदस्यों की संख्या लाखों में होने की वजह से बैंक सवाल उठाने लगे कि आखिर इन्हें इतने अधिक पैसे क्यों दिए जा रहे हैं. इस के बाद कंपनियां हफ्ते में, फिर महीने में पैसे देने लगीं. बैंकों ने फिर सवाल उठाया तो कंपनियां रुपए के बदले प्वाइंट देने लगीं. मेंबर जब चाहे प्वाइंट के बदले पैसे ले सकता था.

घर बैठे कमाई का मौका देख कर लोगों ने एक पैन कार्ड पर कईकई आईडी बना लीं. इस के लिए उन्हें सालाना 11 हजार रुपए की फीस देनी पड़ती थी. लेकिन बदले में उन्हें ज्यादा लिंक्स मिल रहे थे. बाद में कपंनियां सख्ती बरतते हुए एक पैन कार्ड पर एक ही मेंबर बनाने लगीं. इस पर लोगों ने अपने घर के अन्य लोगों के नाम आईडी बना डालीं. अगर ऐडकैश कंपनी की बात की जाए तो उस से करीब 6-7 लाख लोग जुड़ चुके थे. एडकैश का विज्ञापन तो व्हाट्सऐप पर भी धड़ल्ले से चल रहा था.

शुरूशुरू में वे कंपनियां वादे के अनुसार लाइक करने के लिए लिंक्स और बदले में नियमित पैसे देती रहीं. शनिवार और रविवार छुट्टी होती थी. इन दोनों दिन लिंक्स नहीं मिलते थे. धीरेधीरे सर्वर खराब होने का बहाना बना कर लिंक्स देना कम कर दिया गया, जिस से लोग नाराज हुए. जबकि नए मेंबर बनाने का काम उसी तरह चलता रहा. कंपनी फीस तो जमा कर लेती थी, लेकिन आईडी बनाने में आनाकानी करने लगी थी. बात यहीं तक सीमित नहीं रही, आगे चल कर कंपनियां पौइंट पर पैसे देने से आनाकानी करने लगीं. इस के बाद लोगों ने पुलिस में शिकायत की तो पता चला कि यह एक तरह की साइबर ठगी थी, जिस में इन कंपनियों ने लोगों को खरबों का चूना लगाया था. यह तो रही आम लोगों की ठगी की बात, जो यह नहीं जानते कि ऐसा भी हो सकता है.

डेबिट कार्ड के पिन की चोरी इसका सब से बड़ा उदाहरण है 4 महीने पहले हुई आम आदमी के डेबिट कार्ड के पिन की चोरी. बैंक को इस बात की जानकारी हो गई थी, इस के बावजूद बैंकों ने यह बात ग्राहकों को नहीं बताई. एक तरह से देखा जाए तो साइबर क्राइम से बड़ा अपराध वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक और बैंकिंग प्रबंधन ने किया. डेबिट कार्ड की ही बात क्यों की जाए, आम आदमी के तमाम तथ्य आधार नंबर से चुराए जा चुके हैं. देश भर में करीब 65 लाख डेबिट कार्डों का डाटा चुराए जाने की आशंका है. लेकिन संबंधित बैंकों ने अपना कारोबार बचाने की गरज से इस का खुलासा नहीं किया.

भारतीय स्टेट बैंक तो अब किसी तरह खुलासा कर रहा है. जबकि निजी बैंकों में उस से कहीं बड़ा संकट होने के बावजूद वे अपने व्यावसायिक हितों को देखते हुए जब तक संभव है, कोई जानकारी देने से बचेंगे. फिलहाल बैंकों ने अपने ग्राहकों से पिन बदलवाने या फिर पुराना कार्ड ब्लौक कर नया कार्ड देना शुरू कर दिया है. ताज्जुब की बात तो यह है कि अभी तक किसी बैंक ने इस मामले में एफआईआर तक दर्ज नहीं कराई है. यही नहीं, इस मामले में सरकार को भी कोई सूचना नहीं दी गई है. जबकि महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सेल ने बैंकों को पत्र लिखा है.

4 महीने से आम आदमी के डेबिट कार्ड के पिन चोरी हो रहे थे, बैंकों को इस बात की जानकारी भी थी, लेकिन वे चुप्पी साधे थे. एक तरह से देखा जाए तो यह साइबर अपराध से बड़ा अपराध हमारे वित्त मंत्रालय रिजर्व बैंक और बैंकिंग प्रबंधन का है. जबकि बैंकिंग के नियमों और आरबीआई के ड्राफ्ट के अनुसार, खाताधारकों द्वारा धोखाधड़ी की सूचना दिए जाने पर बैंक को 10 कार्य दिवसों के अंदर ग्राहक के खाते से गायब हुआ पैसा वापस करना होता है. इस के लिए ग्राहक को 3 दिन के अंदर धोखाधड़ी की सूचना देनी होगी और उसे यह दिखाना होगा कि उस की तरफ से कोई लेनदेन नहीं किया गया और बिना उस की जानकारी के पैसा गलत तरह से गायब हुआ है.

संकट सिर्फ यही नहीं है कि 32 लाख डेबिट कार्ड साइबर अपराधियों के कब्जे में हैं, बल्कि वीसा, मास्टर कार्ड समेत विदेश से संचालित एटीएम और डिजिटल लेनदेन में वायरस संक्रमण से जमापूंजी भी खतरे में है. भारतीय स्टेट बैंक ने लाखों डेबिट कार्ड बदल दिए हैं. अन्य बैंकों ने सुरक्षित लेनदेन के लिए ग्राहकों को निर्देश जारी कर दिए हैं, लेकिन क्या एटीएम या नेट बैंकिंग से पिन बदल देने से आप की जमापूंजी की सुरक्षा की गारंटी है. क्योंकि पुराना पिन लीक हो सकता है तो नया पिन भी तो लीक हो सकता है.

इंटरनेट औफ थिंग्स और साइबर क्राइम इंटरनेट नित नई तरक्की कर रहा है, जिस से यह जिंदगी का एक जरूरी अंग बन गया है. इस से न सिर्फ संचार जगत में क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं, बल्कि जीवनशैली ही बदल गई है. शिक्षा, मैडिकल, हेल्थ, मनोरंजन, सभी क्षेत्रों में इंटरनेट अपने कारनामे दिखा रहा है. इंटरनेट औफ थिंग्स के जरिए ऐसे कारनामे करने को तैयार हैं, जिस के बारे में हम सोच भी नहीं सकते. वैसे यह कंप्यूटर आधारित तकनीक रही है, लेकिन स्मार्ट फोन के आने से यह धारणा खत्म हो गई है.

स्मार्ट फोन के आने से इंटरनेट के वे सारे काम अब फोन पर किए जा सकते हैं, जो पहले कंप्यूटर पर किए जाते थे. स्मार्ट फोन से कई मूलभूत बदलाव आए हैं. अब फोन ही नहीं, घर गाड़ी और किचन भी स्मार्ट होंगे. मसलन घर के बाहर रहते हुए भी घर की देखभाल की जा सकेगी. आप घर पहुंचने से पहले ही एसी चला सकते हैं. यानी जो काम पहले हम मैनुअली करते थे, अब वही काम औटो मोड पर होंगे. इस के लिए वहां किसी के मौजूद रहने की जरूरत नहीं होगी और यह सब होगा इंटरनेट औफ थिंग्स के जरिए. लेकिन जिस तरह हर मांबाप को बच्चों की अच्छाईबुराई का डर होता है, उसी तरह फादर आफ इंटरनेट कहे जाने वाले विंट सर्फ भी इंटरनेट औफ थिंग्स (आईओटी) को ले कर थोड़ा डरे हुए हैं. चूंकि आईओटी अप्लायंसेज और साफ्टवेयर से मिल कर बना है, इसलिए साफ्टवेयर को ले कर उन्हें डर है, क्योंकि साफ्टवेयर को हैक किया जा सकता है. यही एक तरह का साइबर अपराध होगा.

साइबर क्राइम आज एक बढ़ती हुई वैश्विक समस्या है. इस में किसी व्यक्ति की निजी जानकारी पता कर के धोखाधड़ी करना, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के बारे में पता कर के चूना लगाना, अहम सूचनाओं की चोरी करना, ब्लैकमेलिंग, कौपीराइट और ट्रेडमार्क फ्रौड, पोर्नोग्राफी डिटेल या अन्य एकाउंट हैक करना, वायरस भेज कर धमकी भरे मैसेज भेजना शामिल है. इस तरह के अपराध कोई अकेले नहीं, बल्कि संगठित गिरोह बना कर किए जाते हैं. पिछले साल साइबर क्राइम से लगभग एक खरब डौलर का चूना लगाया गया है. जबकि इस के शिकार हुए लोगों को पता नहीं कि वे खुद को कैसे सुरक्षित बनाएं. पुलिस के पास भी कोई ऐसी आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं कि वह कुछ मदद कर सकें. जबकि दिनोंदिन साइबर अपराध बढ़ता ही जा रहा है.

साइबर आतंकवाद और साइबर युद्ध साइबर आतंकवाद का मतलब आतंकवादी गतिविधियों में इंटरनेट आधारित हमले यानी कंप्यूटर वायरस जैसे साधनों के माध्यम से कंप्यूटर नेटवर्क में जानबूझ कर बडे़ पैमाने पर किया गया व्यवधान, विशेष रूप से इंटरनेट से जुड़े निजी कंप्यूटर पर. इसी तरह साइबर युद्ध भी इंटरनेट और कंप्यूटर के माध्यम से लड़ा जाता है. अनेक विकासशील देश लगातार साइबर आतंकवाद या युद्ध चलाते हैं, यही नहीं वे किसी संभावित साइबर हमले के लिए तैयार भी रहते हैं. लगातार तकनीक पर बढ़ती जा रही निर्भरता के कारण अब लगभग सभी देशों को साइबर हमले की चिंता सताने लगी है. ऐसे हमलों में वायरस की मदद से वेबसाइटें ठप कर दी जाती हैं और सरकार एवं उद्योग जगत को पंगु बना दिया जाता है.

साइबर युद्ध में तकनीकी उपकरणों एवं अवसंरचना को भारी नुकसान होता है. कुशल साइबर योद्धा किसी भी देश की विद्युत ग्रिडों में हैकिंग द्वारा घुस कर अत्यधिक गोपनीय सैन्य और अन्य जानकारियां प्राप्त कर सकता है. यही नहीं, हैकर किसी कंपनी के कंप्यूटरों पर वायरस द्वारा कब्जा कर के तमाम डाटा एनक्रिप्ट (कूटरचित) कर देते हैं. बाद में डाटा को वापस काम लायक बनाने यानी डीक्रिप्ट करने के लिए ये कंपनी की हैसियत के हिसाब से फिरौती वसूलते हैं. कंपनियां अपनी साख बचाने के लिए चुपचाप फिरौती दे भी देती हैं. यह फिरौती हैकर डालर में नहीं, बल्कि बिटकौइन में लेते हैं. बिटकौइन साइबर जगत की पसंदीदा डिजिटल क्रिप्टोकरेंसी है. इंटरनेट पर लेनदेन के लिए पूरी तरह सुरिक्षत, गुप्त और अनामी रूप से रह कर लेनदेन हेतु ही इस

करेंसी को डिजाइन किया गया है. इस का कोई भौतिक रूप नहीं है, इसलिए इसे डिजिटल करेंसी कहा जाता है. इस करेंसी की कीमत मांग और सप्लाई के आधार पर रोज निर्धारित होती है. इस पर किसी का अधिकार नहीं है. एक बार साइबर संसार में आ जाने के बाद जिस के पास जितनी बिटकौइन होती है, वही उस का मालिक होता है. संक्षेप में यह समझ लें कि बिटकाइन के जरिए किया गया इंटरनेटी व्यापार, खरीदबिक्री, भुगतान का किसी को पता नहीं चलता. इसीलिए हैकर बिटकौइन में भुगतान मांगते हैं, ताकि उन तक पहुंचना किसी भी सूरत में संभव न हो. हैकर पूरी दुनिया को अपना शिकार मानते हैं. इसलिए पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय होते हुए भी विविध क्षेत्रों में क्षेत्रीय भाषाओं में बातचीत करते हैं. इस के लिए ये स्वचालित गूगल अनुवादक का उपयोग करते हैं.

दुनिया में बढ़ते साइबर खतरे इंटरनेट की व्यापकता और आम लोगों तक इस की आसान पहुंच के कारण औनलाइन कारोबार या कामकाज का दायरा दुनिया भर में तेजी से बढ़ा है. लेकिन इस सुगमता के साथ साइबर अपराध में आई नई चुनौती भी लगातार विकराल हो रही है. अन्य अपराधों की तरह साइबर अपराधों में अपराधी अपराध स्थल पर खुद मौजूद नहीं होता.

इस में मुख्य रूप से तकनीक का इस्तेमाल होता है. भारत में जहां ज्यादातर इंटरनेट उपयोगकर्ता नए हैं, उन्हें आसानी से शिकार बनाया जा सकता है. कभी लुभावने विज्ञापनों से तो कभी आकर्षक उपहारों और इनामी योजनाओं के ईमेल या वेबसाइट पर भड़कीले विज्ञापन डाल कर. चूंकि इस्तेमाल करने वाला इन की बारीकियों को ज्यादा नहीं जानता, इसलिए आसानी से शिकार बन जाता है.

छोटीछोटी कंपनियां व्यवसाय बढ़ाने के लिए औनलाइन गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं, पर लागत खर्च को कम करने के लिए औनलाइन सुरक्षा पर ध्यान नहीं देतीं. ऐसे में उन के लिए हमेशा खतरा बना रहता है. साइबर अपराध अब सोशल नेटवर्किंग हैकिंग तक ही नहीं रह गया है, इस ने भी अपना बिजनैस बढ़ा लिया है. अब यह बिजनैस सिर्फ बैडरूम और एक सिस्टम तक नहीं रहा, इस का भी दायरा काफी बड़ा है.

सरकारें भी शामिल हैं इस अपराध में क्योंकि इस अपराध में अब कई देशों की सरकारें, औनलाइन गैंग और बड़े अपराधी शामिल हैं, जिन का साथ दे रहे हैं औनलाइन फोरम. दरअसल, औनलाइन फोरम एक तरह का बाजार है, जहां पर अपराधी चोरी किया हुआ डेटा खरीद या बेच सकते हैं.

भारत के किसी भी शहर से लेकर विदेशों तक साइबर क्राइम करवाने में एक कम्युनिटी मदद कर रही है. बस एक क्लिक में कहीं का भी डेटा आप के पास हाजिर हो जाएगा. इतना ही नहीं, कई ऐसी भी साइट्स हैं, जो ऐसे कामों को अंजाम देने की ट्रेनिंग देती हैं. माना जा रहा है कि देश में चलने वाले काल सेंटर भी भीतरी धोखाधड़ी में लगे हैं. भारत समेत चीन, रूस और ब्राजील जैसे देश इस साइबर अपराध से परेशान हैं.

हालांकि भारत में इस मामले में जागरूकता बढ़ी है और सरकार ने सन 2000 में आईटी एक्ट बनाया और सन 2008 में उसे संशोधित भी किया, लेकिन साइबर अपराध पर इस से कुछ खास फर्क नहीं पड़ा. देश में साइबर अपराध से निपटने के लिए जो आईटी एक्ट बना है, उस में वेबसाइट ब्लौक करने तक का प्रावधान है, लेकिन यह एक्ट देश के अंदर भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पा रहा है.

कानूनी प्रावधानों के बावजूद अकसर लोग किसी के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट कर देते हैं. लगातार डेबिट/क्रेडिट कार्डों से धोखाधड़ी हो रही है. नियमानुसार पुलिस आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले से पोस्ट हटाने को कहती है, अगर वह हटा लेता है तो ठीक, नहीं तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है. कंप्यूटर द्वारा किया गया कोई भी अपराध साइबर क्राइम में आता है. जिस में 7 साल की जेल हो सकती है. लेकिन इंटरनेट से धोखा देने और रकम उड़ाने की खबरें रोज आ रही हैं. क्योंकि यहां डेबिट/क्रेडिट कार्ड की डिटेल्स को हैक करना आसान है.

भारत में साइबर क्राइम से निपटने के लिए कानून तो बने हैं, लेकिन साइबर अपराध से जुड़े कानून ज्यादा कारगर नहीं हैं. क्योंकि एक तो जल्दी लोग शिकायत नहीं करते, अगर करते भी हैं, तो सबूत नहीं दे पाते. फिर कड़ी सजा न होने की वजह से अपराधी डरते भी नहीं हैं. इस की एक वजह यह भी है कि इस में तुरंत जमानत मिल जाती है. इसलिए साइबर अपराध से बचने के लिए खुद ही ऐहतियात बरतें तो ज्यादा ठीक रहेगा.

इस की एक वजह यह भी है कि पुलिस वालों को खुद ही पता नहीं कि जिस अपराध की शिकायत उन से की जा रही है, वह किस धारा के अंतर्गत आता है. इस के अलावा उन के पास साइबर अपराध करने वाले तक पहुंचने का कोई उपाय भी नहीं है. इस के लिए उन्हें दूसरों का ही सहारा लेना पड़ता है.

माया को 26 साल बाद पता चला क्यों थी बीमार

महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी ऐसी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिन के बारे में वे किसी से चर्चा तक नहीं कर पातीं. पैडवूमन के नाम से मशहूर हो चुकी माया विश्वकर्मा ऐसी ही महिलाओं को इस तरह से जागरूक कर
रही हैं कि…

अभिनेता अक्षयकुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ ने उन्हें पैडमैन के रूप में ख्याति दिलाई है तो देश में अब एक एनआरआई माया विश्वकर्मा पैडवूमन के किरदार में तेजी से उभर कर सामने आई हैं. उन्होंने मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाके में न केवल सैनिटरी पैड बनाने की यूनिट लगाई है, बल्कि वह इस बारे में गांवगांव जा कर महिलाओं को जागरूक भी कर रही हैं. दूरदराज के सरकारी स्कूल कालेजों में माया छात्राओं की क्लास लगा कर उन से माहवारी में उपयोग किए जाने वाले सैनिटरी पैड के इस्तेमाल पर खुलेआम चर्चा करती हैं.

ऐसे में छात्राएं भी बेहिचक उन से सवाल पूछ कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान खोजती हैं. जागरूकता फैलाने के लिए फरवरी माह में माया ने ग्रामीण इलाकों की सैकड़ों महिलाओं एवं किशोरियों को नरसिंहपुर के सिनेमा हाल में पैडमैन फिल्म दिखाई. उन के प्रयास का ही नतीजा है कि महिलाएं जिस समस्या पर पहले खुल कर बात नहीं करती थीं अब खुलेआम बेहिचक बातचीत करती नजर आने लगी हैं. माया ने 45 दिनों में 22 आदिवासी जिलों में जनजागरूकता यात्रा निकालकर एक साहसिक काम किया है.

देश के ग्रामीण इलाकों की करीब 80 फीसदी महिलाएं आज भी अपनी माहवारी के कठिन दिनों में होने वाली परेशानियों को किसी से साझा नहीं कर पातीं. हालात ये हैं कि बेटी अपनी मां, पत्नी अपने पति से भी इस विषय पर बात करने से कतराती है. पिछले 2 वर्ष से मासिक धर्म के दौरान साफसफाई पर कार्य कर रही अप्रवासी भारतीय माया विश्वकर्मा ने महिलाओं की इसी झिझक को दूर करने एवं सैनिटरी नैपकिन के उपयोग के प्रति महिलाओं को जागरूक करने का एक अभियान चलाया है. यही कारण है कि अब माया को पैडवूमन के नाम से जाना जाता है.

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मेहरा गांव में जन्मी माया विश्वकर्मा की कहानी महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है. साईंखेड़ा कस्बे के सरकारी स्कूल से हायर सेकेंडरी स्कूल की पढ़ाई करने के बाद माया के घर के हालात ऐसे नहीं थे कि वह आगे की पढ़ाई कर सकें. ऐसे में उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपनी कालेज की पढ़ाई पूरी की. ऐसे हालात में पोस्टग्रैजुएट कर के माया ने आर्थिक रूप से कमजोर उन छात्राओं के लिए एक उदाहरण पेश किया जो किसी वजह से कालेज तक नहीं पहुंच पातीं. माया एक डाक्टर बनना चाहती थीं. उन्होंने मैडिकल की प्रवेश परीक्षा पास की और दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्हें मैडिकल की पढ़ाई पूरी करने का मौका मिला. एमबीबीएस करने के बाद माया ब्लड कैंसर पर रिसर्च के लिए अमेरिका के कैलिफोर्निया पहुंच गईं. इस के साथसाथ वह समाजसेवा से भी जुड़ी रहीं.

माया अरविंद केजरीवाल से परिचित थीं. राजनीतिक पार्टी बनाने के बाद सन 2014 में अरविंद केजरीवाल ने उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने का औफर दिया तो माया ने होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. वह यह चुनाव तो नहीं जीत सकीं, लेकिन इस चुनाव ने माया का कार्यक्षेत्र ही नहीं, बल्कि सोच जरूर बदल दी.

चुनाव प्रचार के दौरान माया को गांव में भी ठहरना पड़ता था. इसी दौरान औरतों से मुलाकात के दरम्यान उन्होंने यह बात महसूस की कि पीरिएड्स को लेकर उन्हें काफी परेशानियों से गुजरना पड़ता है. बस उसी समय उन्होंने ठान लिया कि वह इस दिशा में कुछ ठोस काम करेंगी.

माया ने राजनीति से तौबा कर लिया और वह गांवों में जा कर महिलाओं के समूह से मिल कर पीरियड्स और दूसरी समस्याओं पर बात करने लगीं. तब उन्होंने महसूस किया कि जिस तरह से पीरियड्स संबंधी समस्याएं आ रही हैं उन के मूल में साफसफाई और जागरूकता की कमी है. इसलिए ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं को जागरूक करने की दिशा में माया ने कदम उठाया.
माया अपनी आपबीती बताते हुए कहती हैं कि ‘26 साल की उम्र तक मैंने भी कभी सैनिटरी पैड का इस्तेमाल नहीं किया. न तो इस के लिए मेरे पास पैसे थे और ना ही मुझे इस की जानकारी थी. उन दिनों में अनुपयोगी कपड़ों के इस्तेमाल से सेहत संबंधी परेशानियों का भी सामना किया.’

 

उन्हें पहली बार उन की मामी ने कपड़े के इस्तेमाल के बारे में बताया था. लेकिन कपड़े के उपयोग से उन्हें कई प्रकार के इंफेक्शन से शारीरिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ा था. दिल्ली के एम्स में पढ़ाई के दौरान माया को पता चला कि उन के इंफेक्शन की वजह यही कपड़े थे.

मध्य प्रदेश के स्कूलकालेजों में जा कर माया सेमिनार कर छात्राओं के बीच सैनिटरी पैड की चर्चा ही नहीं करतीं बल्कि पैड के इस्तेमाल करने के तरीके भी सिखाती हैं. नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक 15 से 24 साल की लड़कियों में केवल 42 फीसदी ही सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं. इस वजह से माया का यह अभियान प्रदेश के 22 आदिवासी विकासखंडों को फोकस कर के चलाया जा रहा है.

पैडवूमन के नाम से मशहूर हो चुकीं माया का लंबे समय से यह सपना था कि वह सैनिटरी पैड बनाने की मशीन लगा कर अपने अभियान को आगे बढ़ाएं. इस के लिए वह बाकायदा भारत में पैडमैन के नाम से मशहूर अरुणाचलम मुरुगनंथम से मुलाकात करने तमिलनाडु गईं तो पता चला कि जिस मशीन से पैड बनाने का कार्य किया जाता है, उस में हाथ का काम ज्यादा होता है. माया को इस से बेहतर मशीन की दरकार थी. माया ने पैडमैन के अनुभवों का लाभ लिया.

माया ने अपने दोस्तों से पैसे उधार लेकर और सुकर्मा फाउंडेशन के जरिए नरसिंहपुर के झिरना रोड पर छोटे से गांव में 2 कमरों के मकान में सैनिटरी पैड बनाने की मशीनें लगा लीं. मशीनों पर काम करने के लिए उन्होंने 10 महिलाओं को इस में रोजगार दिया.

उन के यहां रोजाना करीब एक हजार पैड बनाए जाते हैं. पैड के बारे में जानकारी देते  हुए माया कहती हैं, ‘हम 2 तरह के पैड बनाते हैं एक तो वुड पल्प जिस में काटन का इस्तेमाल होता है और दूसरा पालीमर शीट के साथ बनाया जाता है. इस दौरान काम करने वाली महिलाओं और दूसरों की हाइजीन संबंधी जरूरतों का भी ध्यान रखा जाता है.’

फिल्म पैडमैन के संबंध में पूछे जाने वाले सवाल पर माया कहती हैं कि इस तरह की फिल्में पीरिएड्स जैसे विषयों पर जागरूकता पैदा करती हैं, लेकिन मैं उन इलाकों में काम करती हूं जहां न तो थिएटर हैं और न ही इंटरनेट. ऐसे इलाकों में काम करने के लिए पैडवूमन की जरूरत है और इसे मैं ने पूरा करने का संकल्प लिया है. उन का कहना है कि लोग मुझे किसी भी नाम से बुलाएं इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. परंतु मैं चाहती हूं कि महिलाएं पीरिएड्स और पैड के बारे में जानें और समझें.
बहरहाल यह कदम माया को पैडवूमन के तौर पर लोकप्रिय तो बना ही रहा है साथ ही ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य सुधार में उपयोगी सिद्ध हो रहा है.
— लेख माया विश्वकर्मा से हुई
बातचीत पर आधारित

परीक्षा के दिन कहां गायब हुआ बिजनैसमैन का बेटा अर्णव

 

संतोष लखनऊ के एक बड़े बिजनैसमैन अनूप अग्रवाल के यहां ड्राइवर था. मोटी फिरौती पाने के लालच में संतोष ने अपने 2 दोस्तों के साथ मिलकर अपने मालिक के बेटे अर्णव का अपहरण कर लिया था. लेकिन पुलिस की तत्पर काररवाई की वजह से उन के मंसूबे पूरे नहीं हो सके.

‘‘संतोष तुम्हारे पास पैसे तो बहुत होते हैं, फिर भी तुम पैसों की चिंता में रहते हो, क्यों भाई? तुम्हारा मालिक भी तुम पर कितना भरोसा करता है. पैसा, गाड़ी सब तुम्हारे भरोसे पर रखा है.’’ प्रिंटिंग प्रैस में काम करने वाले अजय ने अपने दोस्त संतोष को समझाते हुए कहा.

‘‘यार तुम लोगों को लगता है कि जो पैसा, गाड़ी है, वह मेरे लिए है. तुम लोग बहुत भोले और नासमझ हो. तुम्हें पता होना चाहिए कि हर मालिक अपने काम से काम रखता है. जब तक उस का काम रहता है, तब तक गाड़ी और पैसा सब देगा. काम निकलने के बाद न गाड़ी देगा और न पैसा. हम जैसों को कुत्ता समझते हैं. एक गलती करो तो 10 गाली मिलती हैं और नौकरी से निकालने की धमकी अलग.’’ संतोष पर शराब का नशा चढ़ चुका था. वह अपने मन की भड़ास निकालते हुए बोला.

‘‘संतोष, तुम अजय भाई की बात को समझो कि वह कहना क्या चाहते हैं? हम तीनों में सब से ज्यादा खुशहाल तुम्हारा ही मालिक है. तुम ही कुछ कर सकते हो.’’ संतोष और अजय के तीसरे दोस्त सर्वेश ने दोनों के बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा.

‘‘बात तो हम समझते हैं अजय भाई, पर करें क्या. यह नहीं समझ आ रहा है. हम उस से कैसे पैसे निकालें. तुम लोग बताओ, हम हर काम करने को तैयार हैं.’’ संतोष ने कहा.
‘‘संतोष भाई, तुम्हारा मालिक मोटी मुरगी है. बस तुम उस की कमजोर नस दबा दो, वह खुद मुंहमांगी रकम दे देगा.
फिल्में नहीं देखते, मालिकों से कैसे पैसा लिया जाता है.’’ अजय ने संतोष को समझाया.
‘‘बात समझ में आ गई अजय भाई, हम रोजाना उस के बेटे को स्कूल छोड़ने जाते हैं. एक दिन हम यही तोता अपने पिंजरे में पाल लेंगे और तभी आजाद करेंगे, जब पैसा मिलेगा नहीं तो तोते को दुनिया से आजाद कर देंगे.’’

शराब के नशे में संतोष यह सोच ही नहीं पा रहा था कि उस के कदम अपराध की तरफ बढ़ रहे हैं. बातों में उस के दोस्त अजय और सर्वेश उसे उकसा रहे थे. बातोंबातों में तीनों ने एक ही झटके में मोटा पैसा कमाने की योजना बना ली. असल में संतोष राणा प्रताप मार्ग स्थित सूर्योदय कालोनी में रहने वाले अनूप अग्रवाल के घर में गाड़ी चलाने का काम करता था. अनूप अग्रवाल लखनऊ के बड़े बिजनैसमैन थे. उन की बेटी मुंबई में पढ़ रही थी. बेटा अर्णव लामार्टीनियर कालेज में पढ़ता था.

लामार्टीनियर कालेज लखनऊ का सब से मशहूर कालेज है और सब से सुरिक्षत इलाके में बना है. जहां से कुछ ही दूरी पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का आवास है. सूर्योदय कालोनी से लामार्टीनियर कालेज की दूरी बामुश्किल 3 किलोमीटर है. अनूप रोज अपने ड्राइवर संतोष के साथ अपनी कार से उसे स्कूल भेजते थे, वही दोपहर में अर्णव को लेने भी जाता था.

अनूप ने 10 माह पहले ही संतोष को अपने यहां ड्राइवर रखा था. संतोष मूलरूप से सीतापुर जिले के खैराबाद का रहने वाला था. वह अनूप के बिजनैस से जुड़े लेनदेन के काम भी करता था. उसे पूरे व्यापार के बारे में पता था. संतोष अनूप के घर से कुछ ही दूरी पर किराए का कमरा लेकर रहता था.

ऐसे में जरूरत पड़ने पर वह जल्दी ही अनूप के घर आ जाता था. अपने दोस्तों के साथ नशे में हुई बातचीत के बाद संतोष अब कुछ ऐसा करना चाहता था, जिस से उसे बहुत सारा पैसा मिल जाए. अनूप की अच्छी कमाई देख कर उसे लालच आ चुका था.

19 मार्च, 2018 की सुबह करीब 9 बजे थे. संतोष अर्णव को एसयूवी कार से स्कूल के लिए घर से निकला. साढ़े 9 बजे से उस की परीक्षा थी. वह जल्दी से जल्दी स्कूल पहुंचना चाहता था. रोजाना वह अपने घर से हजरतगंज होते स्कूल जाता था. लेकिन उस दिन संतोष ने कार 1090 चौराहे से गोमती नगर की तरफ मोड़ दी. अर्णव ने कारण पूछा तो संतोष बोला, ‘‘हजरतगंज में जाम है. स्कूल के लिए देर हो जाएगी.’’ अर्णव कक्षा 9 में पढ़ता था. उसे परीक्षा की टेंशन थी, इसलिए वह चुपचाप अपनी बुक्स देखने लगा.

अर्णव को लेकर कार 1090 चौराहे पहुंची तो संतोष का दोस्त अजय गाड़ी के सामने आ गया. संतोष दरवाजा खोल कर गाड़ी के नीचे उतरा तो उसे डांटने लगा. जब तक अर्णव कुछ समझ पाता, तब तक संतोष अपनी सीट पर बैठ गया और अजय अर्णव की बगल बैठ गया.

अजय ने बैठते ही उस की कमर से तमंचा लगा कर उसे चुप रहने के लिए कहा. गाड़ी वापस मुड़ कर सीतापुर रोड की तरफ जाने लगी. इस बीच अर्णव को नशे का इंजेक्शन देकर बेहोश कर दिया गया था. अर्णव को इन लोगों ने बोरे में भर कर पिछली सीट पर डाल दिया. गाड़ी अब सीतापुर रोड से होते हुए आगे निकल गई थी.

अर्णव को स्कूल छोड़ कर जब संतोष घर नहीं आया तो पहले घर वालों को लगा कि वह कहीं किसी काम से चला गया होगा. लेकिन स्कूल से फोन आ गया कि अर्णव की आज परीक्षा थी, वह स्कूल नहीं आया. इस पर घर वालों से संतोष के मोबाइल नंबर पर फोन करना शुरू किया तो वह बंद मिला.
कुछ देर में यह बात साफ हो गई कि ड्राइवर संतोष अर्णव को लेकर गायब हो गया है. इसके बाद घर, परिवार के लोग और रिश्तेदार एकत्र हो गए. मोहल्ले में कोहराम मच गया. तत्काल लखनऊ पुलिस को सूचना दी गई.

उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक के अग्रवाल परिवार से करीबी रिश्ते थे, उन से यह बात बताई गई. उन्होंने लखनऊ के एसएसपी से कहा. लखनऊ के एसएसपी दीपक कुमार ने तुरंत पुलिस की एक टीम बना कर एएसपी (पूर्वी) सर्वेश कुमार मिश्रा को इस मामले को संभालने को कहा.
लामार्टिनियर कालेज लखनऊ का प्रतिष्ठित कालेज है. वहां के बच्चे के अपहरण की सूचना से उत्तर प्रदेश पुलिस के आला अफसर भी चौकन्ने हो गए. डीजीपी ओ.पी. सिंह ने आईजी सुजीत पांडे को मामले में त्वरित काररवाई करने के लिए कहा.

स्थानीय पुलिस के साथ उत्तर प्रदेश की स्पैशल टास्क फोर्स को भी इस में लगा दिया गया. एसटीएफ के आईजी अमिताभ यश छुट्टी पर थे. उन की छुट्टी रद्द कर के उन्हें भी मामले में लगा दिया गया. अनूप अग्रवाल का घर हजरतगंज थाना क्षेत्र में आता है. वहां के इंसपेक्टर आनंद शाही भी छुट्टी पर थे. उन्हें भी तुरंत बुलाया गया. पूरे लखनऊ की पुलिस एक घंटे में अलर्ट हो गई. गाड़ी नंबर सभी थानों को भेज दिया गया. टोल प्लाजा पर कार का नंबर चेक किया गया तो यह बात साफ हो गई कि कार सीतापुर जिले की तरफ गई है.

इंटौला थाने के इंसपेक्टर शिवशंकर सिंह ने बताया कि अनूप की गाड़ी टोल प्लाजा से 9 बज कर 29 मिनट 52 सेकेंड पर गुजरी है. इस में 3 लोग दिख रहे थे. सीसीटीवी फुटेज में ड्राइवर का चेहरा साफ नहीं दिखा, पर पुलिस को यह पता चल चुका था कि कार अर्णव को ले कर सीतापुर की तरफ गई है. यह सूचना मिलते ही लखनऊ पुलिस ने सीतापुर पुलिस से संपर्क किया. उन्होंने एसपी आनंद कुलकर्णी को इस घटना की सूचना दे दी.

इस के बाद सीतापुर पुलिस ने घेराबंदी तेज कर दी. लखनऊ पुलिस ने संतोष का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा रखा था. सीओ हजरतगंज अभय कुमार मिश्रा, इंसपेक्टर आनंद शाही और इंसपेक्टर कृष्णानगर अंजनी पांडेय ड्राइवर संतोष की काल डिटेल्स खंगाल रहे थे. इस में 3 फोन नंबर ऐसे मिले, जिन की सुबह 10 बजे से आपस में बातचीत हुई थी. इन में एक नंबर बंद हो गया था,

जबकि बाकी के 2 नंबरों की लोकेशन सीतापुर के मानपुर गांव में दिख रही थी. मानपुर गांव खैराबाद पुलिस थाना क्षेत्र में आता है. वहां की पुलिस को एलर्ट किया गया. खैराबाद की पुलिस जब मानपुर पहुंची तो पुलिस को मोड़ पर ही कुछ लोग मिल गए उन्होंने बताया कि एक लाल रंग की कार खेत की तरफ गई है. पुलिस वहां गई तो ड्राइवर संतोष और अर्णव खेत में ही मिल गए. सीतापुर पुलिस ने जब इन लोगों को पकड़ा, तब तक अर्णव के पिता अनूप को लेकर लखनऊ पुलिस भी वहां पहुंच चुकी थी.

पूछताछ में संतोष ने बताया कि अपहरण की साजिश उस ने अपने मौसेरे भाई कासिमपुर सीतापुर निवासी सर्वेश यादव और पारा रोड निवासी दोस्त अजय के साथ मिल कर रची थी. लखनऊ से अर्णव को अगवा करने में संतोष और अजय शामिल थे.

सर्वेश ने उन के छिपने की व्यवस्था की थी. कार को खेत में खड़ा कर के संतोष और अर्णव को वहीं छोड़ कर सर्वेश और अजय टोह लेने लखनऊ चले गए थे. पुलिस ने जब अर्णव को बरामद किया तो उस ने बताया कि ड्राइवर संतोष ने उसे बताया था कि बदमाशों ने दोनों को अगवा कर लिया है. उस ने मुझे भी चुपचाप खेत में छिपे रहने को कहा था. अगवा करने वाले कुछ भी कर सकते हैं,इसलिए हम ने शोर नहीं मचाया. कार में ही अर्णव का बैग मिला. पुलिस संतोष और अर्णव को लेकर लखनऊ चली आई जिस ने भी अपहरण की घटना में ड्राइवर संतोष का नाम सुना हैरान था कि वह ऐसा कैसे कर सकता है.

पुलिस के साथ पिता को देख कर अर्णव उन से लिपट कर रोने लगा था. उसे पिता ने बताया कि संतोष ने ही यह सारा काम किया है. तब अर्णव को भरोसा हुआ कि संतोष कितना बुरा आदमी है. अर्णव को सकुशल बरामद कर के पुलिस ने राहत की सांस ली. लखनऊ के एसएसपी दीपक कुमार का अगला प्रयास 2 अपहर्त्ताओं अजय और सर्वेश को गिरफ्तार करना था. पुलिस ने उन की तलाश शुरू कर दी. 20 मार्च की शाम को पुलिस को पता चला कि दोनों फरार अभियुक्त बैकुंठ धाम के पास गोमती नदी के किनारेहैं. पुलिस ने वहां पर घेराबंदी की तो खुद को फंसता देख अभियुक्तों ने पुलिस टीम पर फायर कर दिया.

इसके जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की तो अजय के पैर में गोली लग गई. वह घायल हो गया. दूसरा अभियुक्त फरार हो गया. अजय के पिता सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं. उन के साथ ही वह रहता था. पिता को यह पता भी  नहीं था कि बेटा अपहरण में लिप्त है.

मुठभेड़ में शामिल पुलिस टीम के सीओ (हजरतगंज) अभय कुमार मिश्रा, इंसपेक्टर आनंद कुमार शाही, अंजनी कुमार पांडेय, शिवशंकर सिंह, एसआई आशीष द्विवेदी, कांस्टेबल सुदीप, राम निवास, अनीस, यशकांत, सुधीर, वीर सिंह के कार्य की एसएसपी ने भी सराहना करते हुए उन्हें पुरस्कृत किया. डीजी ओ.पी. सिंह ने पुलिस टीम को चाय पार्टी दी.

डीजीपी ने आईजी सुजीत पांडेय, एसएसपी दीपक कुमार, सीतापुर के एसपी आनंद कुलकर्णी की भी तारीफ की. जिस तरह से पुलिस ने केवल 4 घंटे में बच्चे को बरामद कर बदमाशों को पकड़ा उस से लगता है कि अगर पुलिस सही तरह से तालमेल मिला कर काम करे तो अपराधियों के हौसले पस्त होते देर नहीं लगेगी.
कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित कथा में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं.

डायन निकालने के नाम पर लड़कियों के प्राइवेट पार्ट्स से खिलवाड़ करता था अघोरी

आज के कंप्यूटर युग में टेक्नोलौजी भले ही कितनी भी उन्नत हो गई हो, भारत में कहींकहीं अंधविश्वास का अंधेरा इतना गहरा है कि बदलाव की किरणें वहां पहुंच ही नहीं सकतीं. यही वजह है कि राजस्थान में आज भी औरतों को डायन बता कर जुल्म ढाए जाते हैं.

जून की दहकती दोपहर का दहला देने वाला दृश्य था. बीहड़ सरीखे सघन जंगल के बीच बने विशाल मंदिर के बाहर लंबेचौड़े दालान में एकत्र सैकड़ों स्त्रीपुरुषों की भीड़ टकटकी लगाए उस लोमहर्षक मंजर को देख रही थी. सुर्ख अंगारों की तरह दहकती आंखों और शराब के नशे में धुत अघोरी जैसे लगने वाले 2 भोपे (ओझा) बेरहमी के साथ 4 युवतियों की जूतों से पिटाई कर रहे थे.

अंगारे सी बरसती धूप की चुभन और दर्द से बेहाल युवतियां चीखती चिल्लाती तपते आंगन में लोटपोट हुई जा रही थीं. धूप से बचने के लिए तमाशाई आंगन के ओसारों की छाया में सरक आए थे. जिस निर्विकार भाव से लोग इस जल्लादी जुल्म का नजारा देख रहे थे, उस से लगता था कि यह सब उन के लिए नया नहीं था. लगभग एक घंटे तक अनवरत चलने वाली इस दरिंदगी से युवतियां बुरी तरह लस्तपस्त और निढाल हो चुकी थीं. उन पर गुर्राते और गंदी गालियों की बौछार करते भोपे उन्हें बालों से घसीटते हुए फिर से खड़ा करने की मशक्कत में जुट गए.

नारकीय यातना का यह सिलसिला यहीं नहीं थमा, अब उन्हें पीठ के बल रेंगतेघिसटते मंदिर की तपती सुलगती 200 सीढि़यां तय करनी थी. जल्लादी जुल्म ढाने वाले आतताइयों को भी मात करने वाले इन दरिंदों की चाबुक सरीखी फटकार के आगे बेबस युवतियों ने यह काम भी किया. तब तक उन के कपड़े तारतार हो चुके थे, पीठ और कोहनियां छिलने के साथ बुरी तरह लहूलुहान हो गई थीं. हांफती, कराहती, बिलखती युवतियों पर कहर अभी थमा नहीं था.

यातना का दुष्चक्र उन्हें मारे जाने वाले जूतों के साथ आगे बढ़ता रहा. पांव उठाने तक में असमर्थ इन युवतियों को जूते सिर पर रख कर और मुंह में दबा कर 2 किलोमीटर नंगे पांव चलते देखना तो और भी भयावह था. और इस से भी कहीं ज्यादा दर्दनाक और दयनीय दृश्य था, उन जूतों में भर कर पीया जाने वाला जलकुंड का गंदा पानी.

आतंक और भय से थर्राई हुई युवतियों को जूतों में भर कर पानी पिलाया जाने वाला पानी कैसा था, इस की कल्पना मात्र ही विचलित करने वाली थी. बांक्याराणी मंदिर परिसर में ही बना है हनुमान मंदिर. इस के निकट बने जलकुंड में दिन भर में लगभग 300 से ज्यादा महिलाएं स्नान करती हैं.

समझा जा सकता है कि कुंड का पानी कितना मैला रहा होगा. इसी गंदे पानी को युवतियों को जूतों में भर कर पीने को बाध्य किया गया और वह भी एक बार नहीं लगातार 7 बार. मंदिर की जिन सीढि़यों पर महिलाओं को पीठ के बल रेंग कर उतरना होता है, वह सफेद संगमरमर की है, जो गर्मियों में भट्ठी की तरह सुलगती हैं. नतीजतन औरतों की पीठ न केवल छिल जाती है, बल्कि उस पर फफोले भी पड़ जाते हैं.

जुल्म की इंतहा तो तब होती है, जब सीढि़यां उतर चुकने के बाद भोपा उन्हें अपने सामने ज्वाला मंदिर में बिठाता है और लहूलुहान और निढाल युवतियों पर एक बार फिर जूते बरसाता है. पीड़ा से रोतीबिलखती युवतियों की दहला देने वाली चीखपुकार जब वहां मौजूद उन के परिजन ही नहीं सुनते तो और कौन सुनेगा?

भोपों के रूप में अंधविश्वास का क्रूर चेहरा राजस्थान में अंधविश्वास का यह वीभत्स और क्रूर चेहरा सिर्फ भीलवाड़ा जिले के बांक्याराणी मंदिर का ही नहीं है, बल्कि राजसमंद, बांसवाड़ा और चित्तौड़गढ़ भी महिलाओं को डायन घोषित कर के उन के कथित निवारण के नाम पर असहनीय अत्याचार के अड्डे बन गए हैं. अंधविश्वास की वजह से किसी को डायन बता कर भयानक यातनाएं देना और मार डालना सिद्ध करता है कि राजस्थान के पूर्वोत्तर समाज का एक बड़ा हिस्सा आदिम युग में जी रहा है.

इस सूबे का आदिवासी समुदाय आज भी आधुनिकता और बर्बरता के बीच असहज अस्तित्व में फंसा हुआ है. आदिवासी बहुल इलाकों में स्त्रियों को डायन घोषित कर उन्हें प्रताडि़त करना, यहां तक कि मार डालना सदियों पुराना चलन है. प्रेत निवारण की परंपरा का मूल स्वरूप क्या था और उस की शुरुआत कैसे हुई? यह जानने के लिए हमें राजस्थान के आदिवासी बहुल बांसवाड़ा के गांवों में अपने दिवंगत पूर्वजों के नाम पर पत्थर गाड़ने की परंपरा को जानना होगा,

जिसे ‘चीरा’ कहा जाता है. गाजेबाजे के साथ गाड़े गए ‘चीरे’ पर लोकदेवता की तसवीर उकेरी जाती है और विधिवत परिवार के पूर्वज का नाम अंकित किया जाता है. ये चीरे आमतौर पर खुली जगहों में होते हैं, लेकिन कहींकहीं टापरों में स्थापित किए जाते हैं. चीरे मृत स्त्रियों के नाम पर भी गाड़े जाते हैं, लेकिन बहुत कम. इन को ‘मातोर’ कह कर पूजा जाता है. ऐसे कई शिलाखंडों पर तो साल, नाम आदि भी खुदे होते हैं. जिस गांव में चीरा स्थापित किया जाना होता है, उस स्थान पर गांव की कुंवारी कन्या दूध, जल आदि से ‘बावजी’ को स्नान कराती है और कुमकुम आदि से पूजा करती है.

संभवत: ‘बावजी’ शब्द लोक देवता के लिए इस्तेमाल किया जाता है. गांव के बाहर निर्धारित स्थल ‘गोदरा’, जहां चीरे स्थापित किए जाने होते हैं, उस जगह के जानकार को खत्री कहा जाता है. खत्री चीरे के भूतवंश की पूरी जानकारी कवितामय लहजे में सुनाता है. शिलाखंडों में कथित रूप से रह रही आत्मा के आह्वान की अलग प्रक्रिया है.

खत्री ही मृतात्माओं से संवाद स्थापित करता है. उस समय खत्री के हावभाव और बोली असामान्य हो जाती है, फिर शुरू होता है भविष्य कथन और कष्ट निवारण का क्रम. मृतात्मा, जिसे खाखरिया देव माना जाता है, खत्री उस का इन शब्दों के साथ आह्वान करता है, ‘कूंकड़ो बोल्यो, नेकालू साल्यो, कालू देवती, सोनावाला ने भला, वैसे हैं भाई कारूदेव, जोड़ी रा हुंकार है…’

इस अवसर पर निकट बैठे भोपों द्वारा कांसे की थाली और ढोलमजीरों से विशेष तरह का संगीत पैदा किया जाता है, जिस की सम्मिलित ध्वनि वातावरण को अजीब माहौल में बदल देती है. आदिवासियों की प्रचलित परंपराओं को समझें तो इन देवरों के भोपे अपनी जानकारी के मुताबिक लोगों की समस्याओं के निवारण के लिए विशेष गणित का सहारा लेते हैं. यही है आदिवासियों की अपने पुरखों को ‘देव स्वरूप’ में सम्मानित करने की परंपरा. लेकिन अब ये सारी परंपराएं नष्ट हो चुकी हैं और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों ने भोपों का रूप धारण कर नशे के उन्माद में लूटखसोट और यौनाचार को अपना कारोबार बना लिया है. अन्यथा आदिवासियों में चीरा प्रथा व्याधियों का उपचार करने, समस्याओं का निवारण करने और पूर्वजों की मृत आत्माओं का आह्वान करने की है.

बावजी आदिवासियों के लोकदेवता को कहाडायन के नाम पर मौत का नंगा नाच आदिवासी जिलों में अब तक 105 स्त्रियों को डायन का बाना पहना कर अभिशप्त घोषित किया जा चुका है, जबकि 8 महिलाओं की पीटपीट कर हत्या की जा चुकी है. साथ ही 2 दरजन महिलाओं को मारपीट कर गांवों से निकाला जा चुका है. जाता है. कुछ अरसा पहले बांसवाड़ा के पड़ारिया गांव में तैनात एक शिक्षक ने चीरे की परंपरा को वृक्षारोपण से जोड़ दिया था, लेकिन यह सब तभी तक चला, जब तक शिक्षक का दूसरी जगह स्थानांतरण नहीं हो गया. चीरों के निकट काफी संख्या में दरख्त बन चुके फलदार पेड़ इस बात की तसदीक करते हैं. दूसरी ओर सरकार ने यहां कुछ भी संवारने की पहल तक नहीं की.

स्वस्थ महिलाओं को डायन बनाने के ये आंकड़े पिछले 4 साल के हैं, लेकिन क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़े 4 तक भी नहीं पहुंचते. काला जादू के नाम पर भोपे आज भी आदिवासी इलाकों में अपना सिक्का जमाए हुए हैं. आस्था यहां अकसर बदला लेने का हथियार बन चुकी है.

प्रेतों से मुक्ति पाने की कहानी जहां से शुरू होती है, उसे देखना ही दहशत पैदा करता है. पीडि़त महिलाओं के परिजन ही मंदिर पहुंच कर उन्हें भोपों के हवाले कर देते हैं. भोपा इन्हें उलटे पांवों चला कर मंदिर परिसर में ले आता है. महिला को पीठ मंदिर की तरफ रखनी होती है तथा हथेलियों को प्रणाम की मुद्रा में रखना होता है.

महिला को सुलगती जमीन पर नंगे पांव चलना होता है. भोपों के बारे में कहा जाता है कि निर्दयता और दुर्दांतता में इन का कोई सानी नहीं होता. अपने जल्लादी काम में ये प्रोफेशनल की तरह पारंगत होते हैं. इन की फीस कोई निश्चित नहीं होती, हालांकि 5 सौ से हजार रुपए में ये अपनी सेवाएं उपलब्ध कराते हैं. इन भोपों को नकदी के साथ दारू भी देनी होती है, अपना काम ये नशे में धुत्त हो कर ही करते हैं. भोपों के कारोबार में मर्द और औरतें दोनों शामिल होते हैं.

बांक्याराणी मंदिर एक ट्रस्ट के अधीन है, लेकिन इस वीभत्स कारोबार में ट्रस्ट के अध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं होती. अलबत्ता ट्रस्ट के अध्यक्ष नारायणलाल गुर्जर की मजबूरी चौंकाती है. उन का कहना है, ‘भोपों की मनमानी मंदिर ट्रस्ट के लिए मुसीबत बनी हुई है.’
नारायणलाल कहते हैं, ‘महिलाओं को इतनी दारूण यातना देना पूरी तरह अमानवीय और शैतानी कृत्य है. ट्रस्ट पूरी तरह इस के खिलाफ है. लेकिन फिर भी ये लोग डराधमका कर मनमानी पर उतारू हैं.’

बांक्याराणी मंदिर में प्रेत बाधा निवरण के नाम पर स्त्रियों के भयावह उत्पीड़न की खबरें मीडिया में सुर्खियां बनीं तो राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा बांक्याराणी मंदिर पहुंचीं भी, लेकिन पुलिस अधिकारियों को फटकार लगाने के अलावा वह कुछ नहीं कर सकीं. भोपों की भयावह कारस्तानियों का खुलासा होने पर हाईकोर्ट ने संज्ञान ले कर पुलिस प्रशासन को फटकार लगाते हुए जवाब मांगा कि बताएं कितने भोपों पर काररवाई की गई.

हाईकोर्ट की जोधपुर खंडपीठ के न्यायाधीश गोपालकृष्ण व्यास ने इस बात पर हैरानी जताई कि महिलाओं को कोई डायन कैसे बता सकता है? कानून होने के बाद भी इस तरह के मामले क्यों हो रहे हैं?
विद्वान न्यायाधीश ने तो यहां तक कहा, ‘भोपे किसी महिला को डायन न बना पाएं और उन्हें प्रताडि़त न कर सकें, इस के लिए जागरुकता अभियान चलाया जाए.’ लेकिन हाईकोर्ट की इस हिदायत पर अमल नहीं हुआ.

नतीजतन भोपों के हौसले आज भी बुलंद हैं और महिलाएं आज भी जूते मुंह में दबाए उत्पीड़न का दर्द सहने को मजबूर हैं. घिनौनी आस्था के मल कुंड में डूबे लोगों का रूझान तब बुरी तरह चौंकाता है, जब नवरात्रों में भोपों के दरबार में लोगों की भीड़ का सैलाब उमड़ने लगता है. हाईकोर्ट की सख्ती और पुलिस की दबिश का भोपों की मनमानी पर कोई असर तो क्या होता, इस के उलट वे और बेलगाम हो गए. अब तक प्रदेश के आदिवासी इलाकों में ही अंधविश्वास की परत मोटी करने वाले इन भोपों को फिल्म ‘पद्मावत’ विवाद से उफान में आए चेतन मृत्यु प्रकरण ने शहरी इलाकों में घुसपैठ करने का अवसर दे दिया.

खबरिया चैनलों ने टीवी स्क्रीन पर जो फुटेज दिखाए, उस का वर्णन करें तो नशे की तरंग और उन्माद में डूबे उन्मत्त भोपे पूरे दबदबे के साथ लोगों को डरा रहे थे और सूबे पर अंधविश्वास की काली चादर फैलाने में जुटे थे. तांत्रिकों का उत्पात और हवा में तलवारें भांजते हुए उन का डरावना अट्टहास. बदहवास लोग खबरिया चैनलों पर चकित भाव से देख रहे थे. इशारा साफ था कि भोपों को चेतन की घटना ने मौत का नाच दिखाने का अवसर दे दिया था.

भोपे अपना उन्मादी चेहरा तब दिखा रहे थे, जब तत्कालीन पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह यह कह कर हटे ही थे कि हम ने भोपों के गिर्द शिकंजा सख्त कर दिया है. लेकिन कथित तांत्रिक चेतन के आत्मघात की घटना पर उन्मत्त भोपों ने भयाक्रांत करने वाली उछलकूद मचा कर इस बात को हवा में उड़ा दिया.
सवाल है कि भीलवाड़ा जिले के गांव निंबाहेड़ा जाटान की महिला भोपी झूमरी जीभ लपलपाते हुए कैसे तलवार चमकाने का दुस्साहस कर रही थी? सिगरेट के धुआंधार कश लगाती हुई झूमरी अपने आप को 9 देवियों का अवतार बता रही थी. कांता भोपी तो निरंतर भाला घुमाते हुए अपना दरबार लगाए हुए थी. जाहिर है कि कानून इन के ठेंगे पर था.

आतंक का गहराता साया डायन बता कर उत्पीड़न की ज्यादातर घटनाएं भीलवाड़ा और राजसमंद जिलों में हुई हैं. भीलवाड़ा के भोली गांव के दबंगों की बेटी बीमार हुई तो रामकन्या को डायन घोषित कर दिया गया. लगभग एक महीने तक दबंगों की कैद में रहने के बाद बमुश्किल छुड़ाई गई रामकन्या को 6×4 फीट की अंधेरी कोठरी में बंद कर के रखा गया था. गांव के दबंग जाट शिवराज की 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटी पूजा बीमार हुई तो भोपे के कहने पर नजला रामकन्या पर गिरा.

भोपे का कहना था, ‘इसे डायन खा रही है.’ भोपे की बात पर शिवराज का शक रामकन्या पर गया, जिस का घर पूजा के स्कूल के पास ही था. नतीजतन रामकन्या को डायन करार दे दिया गया. जिस बदतर हालत में रामकन्या को दबंगों की कैद से छुड़ाया गया, उसे देख कर डाक्टर का कहना था कि ये जिंदा कैसे बच गई? इस की हालत तो बहुत खराब है.

भीलवाड़ा में महिलाओं की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां 20 साल में डायन प्रताड़ना के 87 मामले आ चुके हैं और इन में एक दरजन से ज्यादा महिलाओं की मौत हो चुकी है. तंत्रमंत्र की ओट में इन भोपों की व्यभिचारी मानसिकता को समझें तो चित्तौड़गढ़ जिले के पुरोली गांव का बाबा सिराजुद्दीन महिलाओं के शरीर से डायन निकालने के करतबी तरीकों में निर्लज्जता के साथ उन के प्राइवेट पार्ट्स को टटोलता है.

भीलवाड़ा जिले के भुवास गांव के भोपा देवकिशन की दरिंदगी तो देखने वालों के शरीर में सिहरन पैदा कर देती है. यह भोपा महिलाओं की पीठ पर पूरी निर्ममता से कोड़े बरसाता है और देखने वाले उफ्फ भी नहीं करते. भीलवाड़ा जिले की सुहाणा तहसील के आगरपुरा गांव की विधवा महिला रामगणी के पति और 2 बेटों की मौत के बाद उस की पुश्तैनी जमीन हथियाने के लिए पड़ोसियों ने रामगणी समेत परिवार की सभी महिलाओं को डायन घोषित कर दिया था.

कितने ही मामले संपत्ति के लिए राजसमंद जिले के रणका गांव के दबंग परिवार में एक मौत क्या हुई, डोलीबाई को डायन बता कर उसे जगहजगह गरम सलाखों से दागा गया. राजसमंद के थाली का तलागांव की केशीबाई को डायन बता नंगा कर के गधे पर बिठा कर पूरे गांव में घुमाया गया. दबंगों की नजर उस की संपत्ति पर थी.

भीलवाड़ा जिले के बालवास गांव की नंदू देवी का पूरा परिवार पिछले साढ़े 4 साल से गांव के बाहर रहने को मजबूर है. पड़ोसी डालू का बेटा क्या बीमार हुआ, भोपे ने इस का इलजाम नंदू देवी पर डाल दिया. इस के बाद तो पूरे गांव ने मिल कर उसे पीटा और गांव से बाहर कर दिया. नंदू देवी गांव आने वाले हर अजनबी से पूछती है, ‘मैं डायन होती तो क्याआज मेरा पूरा परिवार जीवित रहता?’

भीलवाड़ा की करेड़ा तहसील के ऊदलपुरा गांव की गीता बलाई की जिंदगी उसी के परिजनों ने छीन ली. पति के मंदबुद्धि होने के कारण घर और खेती का सारा काम गीता ही संभाल रही थी, जो उस की जेठानी को बरदाश्त नहीं हुआ. गीता पर डायन होने का आरोप लगा कर जेठानी उसे घनोप माता मंदिर ले गई, जहां नवरात्रों में उसे 11 दिनों तक भूखाप्यासा रखा गया. बाद में गीता जब कुएं से पानी निकाल रही थी तो जेठानी ने उसे धक्का दे दिया. कुएं में एक पेड़ पर गीता का शव 10 दिनों तक लटका रहा.

चाहे भोपा हो या भोपी, शराब के नशे में धुत्त ये डरावने चेहरे डायन निकालने के नाम पर पूरी हैवानियत पर उतारू रहते हैं. भोपों के ठौरठिकानों को अंधविश्वास की अदालतों का नाम दिया जाए तो गलत नहीं होगा.
अंधविश्वास की परत दर परत दबे इन आदिवासी इलाकों में यह सवाल आज भी अनुत्तरित है कि आखिर महिलाएं ही डायन क्यों बनती हैं? और ऐसी कौन सी वजह होती है कि महिलाओं को सामान्य जीवनयापन करतेकरते एकाएक डायन करार दे दिया जाता है? सूत्र बताते हैं कि डायन प्रताड़ना के अधिकांश मामलों में संपत्ति और जमीन हड़पने के लिए उन के नातेरिश्तेदार ही ऐसी साजिश रचते हैं. कई मामलों में लोगों ने अदावत और रंजिश के चलते महिलाओं को डायन करार दे दिया.

अलबत्ता यह एक कड़वी सच्चाई यह है कि डायन बनने का नजला अधिकांशत: उन्हीं महिलाओं पर गिरता है, जो गरीब, निराश्रित या दलित वर्ग से होती हैं. स्वाभाविक रूप से प्रश्न उठता है कि आखिर क्यों इन आदिवासी इलाकों में अंधविश्वास का अंधेरा इतना घना हो गया है कि डायन से निजात पाने के लिए आने वाली महिलाओं की कतार नहीं

थमती और न ही उन के परिजन उन्हें दहशत के तंदूर में धकेलने से बाज आते हैं?
एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि कुछ मामलों में तो डायन बता कर की गई हत्याएं भूमाफिया का काम है. बेइंतहा दर्द की ऐसी ढेरों अंतहीन कथाएं हैं, जिन में भोपों का कहर टूटा और सामान्य जीवनयापन करने वाली औरतों को यातनाएं भुगतने के लिए छोड़ दिया गया. वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मीचंद पंत कहते हैं, ‘इन घटनाओं से अगर हमारी नसें नहीं चटखीं और दिल बेचैन नहीं हुआ तो मानवीय रिश्तों की बंदिशें कैसे बच पाएंगी?’

भाजीतरकरी के भाव कैसे बिके लीक पेपर

28 लाख छात्रों के भविष्य निर्धारित करने वाले 10वीं और 12वीं के प्रश्नपत्र लीक होना कोई छोटी बात नहीं है. गलती सरकार भी मान रही है और सीबीएसई भी. लेकिन तो अभी पेपर लीक करने वाला मास्टरमाइंड सामने आया और ही इस बात का खुलासा हुआ कि ऐसा हुआ कैसे?     

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक से डाटा लीक होने की खबर के बाद भारत सरकार ने फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग को एक नोटिस भेजा था. आईटी मंत्रालय के इस नोटिस के जवाब में जकरबर्ग ने 7 दिन की मियाद खत्म होने का इंतजार न कर के 3 अप्रैल को ही जवाब दे दिया था. यह जवाब था— मोदी सेठ, जिन के घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते. पहले अपने यहां के सीबीएसई पेपर संभाल लो, फिर मुझ से डाटा लीक पर जवाब लेना.

हर कोई जानता है कि बी.आर. चोपड़ा निर्देशित अपने वक्त की हिट फिल्मवक्तमें यह डायलौग अक्खड़ स्वभाव के अभिनेता राजकुमार ने खलनायक रहमान के सामने बोला था. दरअसल, यह सोशल मीडिया पर हुआ अभिजात्य किस्म का हंसीमजाक था, जिस ने एक गंभीर संदेश दिया था कि लीक के मामले में हम पहले खुद के गिरहबान में झांक लें फिर किसी और पर अंगुली उठाना सही है.

सीबीएसई पेपर लीक मामले को फिल्मी अंदाज में ही समझने की कोशिश करें तो 70 के दशक के हिंदी फिल्मों के बैंक डकैती के वे दृश्य सहज याद हो आते हैं, जिन में खलनायक बैंक लूटने के लिए बैंक में घुस कर धांयधांय नहीं करता था, बल्कि वह उस वैन के नीचे छिप जाता था, जिस में नकदी ले जाई जाती थी.

जैसे ही वैन स्टार्ट होती थी, खलनायक नीचे से सेंध लगा कर तिजोरी तक पहुंचता था और वैन में रखी तिजोरी पर ऐसे हाथ साफ करता था कि किसी को कानोंकान खबर तक नहीं होती थी. वैन का ड्राइवर वैन चलाता रहता था और सिक्योरिटी गार्ड हाथ में राइफल लिए यूं ही इधरउधर ताकते हुए सतर्कता दिखाने की एक्टिंग करते रहते थे. फिर कोई पुल या रेलवे फाटक आता था, जहां वैन के रुकते ही खलनायक नीचे के रास्ते से ही छूमंतर हो जाता था.

वैन के मुकाम पर पहुंचने के बाद डकैती का हल्ला मचता. पुलिस कर जांच करती थी और मीटिंग में आला अफसर झल्लाते हुए कड़क आवाज में हिदायत देता रहता था कि दिनदहाड़े कैश वैन लुट गई. यह हमारे डिपार्टमेंट के लिए शरम की बात है. जल्दी से जैसे भी हो डकैतों को पकड़ो. आम पब्लिक और मीडिया वाले हमारी हंसी उड़ा रहे हैं.

रहस्य बनती लीक डकैती फिल्मों में विलेन को पकड़ना मजबूरी होती थी, इसलिए लुटेरे किसी तरह धर लिए जाते थे. लेकिन सीबीएसई पेपर लीक मामले की बात जरा अलग है. यह एक ऐसा अहिंसक अपराध है, जिस में शक की सुई कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक घूम रही है लेकिन वह खलनायक पकड़ में नहीं रहा है, जिस ने पेपर उड़ाने में सेंधमारी की थी. देश भर की पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां इधरउधर छापे मार कर तथाकथित पेपर लीक करने वालों को खोज रही हैं, लेकिन यह पता नहीं कर पा रही हैं कि आखिर पेपर लीक कब, कैसे और कहां से हुआ था.

सेंट्रल बोर्ड औफ सेकेंडरी एजूकेशन यानी सीबीएसई हर साल 10वीं और 12वीं बोर्ड के इम्तहान आयोजित करता है. इस साल यह परीक्षा 8 मार्च से शुरू हुई थी. 1952 से इस बोर्ड की स्थापना का एक खास मकसद एक ऐसे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम को आकार देना था, जिस से उन सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को सहूलियत रहे जिन के तबादले होते रहते हैं

राज्यों के माध्यमिक शिक्षा मंडलों और सीबीएसई में काफी अंतर होता है. सीबीएसई सिलेबस से पढ़ना प्रतिष्ठा की बात समझी जाती है, इसलिए बीते 2 दशकों से बड़ी तादाद में प्राइवेट स्कूलों ने इस से संबंद्धता लेनी शुरू कर दी थी

एफिलिएशन मिलने के बाद प्राइवेट स्कूल वाले बड़ी शान से लिखने और बताने लगे कि उन का स्कूल सीबीएसई से संबद्ध या मान्यताप्राप्त है. इन स्कूलों में पढ़ना फैशन की बात हो चली है. देखते ही देखते अभिभावकों में भी होड़ लगने लगी कि बच्चे को सीबीएसई वाले स्कूल में पढ़ाएं. नर्सरी क्लास से ही बच्चों को ऐसे स्कूलों में दाखिला दिलाया जाने लगा जिन में सीबीएसई का पाठ्यक्रम हो.

जब काम बढ़ने लगा और छात्रों की संख्या भी लाखों की तादाद में जाने लगी तो सीबीएसई को 4 जोनों में बांट दिया गया. इस से कार्यालयीय और दीगर कामों में सहूलियत होने लगी. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले सीबीएसई की साख और पूछपरख दिनोंदिन बढ़ने लगी.

हर साल की तरह इस साल भी सीबीएसई ने बोर्ड परीक्षाओं का टाइमटेबल वक्त रहते घोषित कर दिया था. देश भर के केंद्रों पर इम्तहान परंपरागत ढंग से शुरू हुए और शुरुआत ठीकठाक रही. हालांकि इस साल बोर्ड ने अपनी कार्यशैली में कई अहम बदलाव किए थे, लेकिन इन की जानकारी हर किसी को नहीं थी

शिक्षा जगत से जुड़े लोग ही इन बदलावों से वाकिफ थे. आम लोगों को इतना जरूर मालूम था कि कुछ राजनैतिक वजहों के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय स्मृति ईरानी से छीन कर प्रकाश जावड़ेकर को दे दिया था और पिछले साल दिसंबर में सीबीएसई का चेयरमैन अनीता करवाल को बनाया था, जो गुजरात कैडर की 1988 बैच की तेजतर्रार और खूबसूरत आईएएस अधिकारी हैं

अनीता करवाल के बारे में भी हर कोई जानता है कि वह नरेंद्र मोदी की पसंदीदा अधिकारी हैं, लिहाजा उन की नियुक्ति पर किसी को हैरानी नहीं हुई थी. क्योंकि हर एक प्रधानमंत्री अहम पदों पर अपने पसंद और भरोसे के अधिकारियों की नियुक्ति करता है.

परीक्षाएं सुचारू रूप से शुरू हुई थीं लेकिन 23 मार्च, 2018 को एक अफवाह दिल्ली से उड़ी कि 12वीं कक्षा का अर्थशास्त्र का पेपर लीक हो गया है. इस खबर या अफवाह पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था, क्योंकि खुद सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग जानतेसमझते हैं कि यह अफवाहों और गपशप का अड्डा है. दूसरे अर्थशास्त्र की परीक्षा 26 को होनी थी और भरोसा न करने की तीसरी खास वजह यह थी कि इस के साथ कोई प्रमाण नहीं थे. लिहाजा यह पोस्ट तूल नहीं पकड़़ पाई, लोगों ने इसे शरारत समझ कर खारिज कर दिया.

पर यह अफवाह या शरारत नहीं थी. यह बात 26 मार्च को अर्थशास्त्र की परीक्षा के दिन ही उजागर हुई, जब वाकई यह पुष्टि हो गई कि सोशल मीडिया पर ही 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर लीक हो कर लाखों मोबाइल फोनों में कैद है. कई वाट्सऐप ग्रुप में इस परचे के स्क्रीन शौट और हाथ से लिखी आंसरशीट तक वायरल हुई थी.

पेपर लीक हो जाने के बाद भी लोग इस पर यकीन नहीं कर रहे थे तो इस की वजह लोगों का यह मानना था कि सीबीएसई एक विश्वसनीय संस्था है और मुमकिन है पेपर हो जाने के बाद इसे महज तूल पकड़ाने की गरज से वायरल किया गया हो, जिस से बेवजह का हड़कंप मचे. न्यूज चैनल्स ने इस खबर को चलाना शुरू किया तो लोगों का ध्यान इस तरफ गया कि बात में सच्चाई है. और यह कोई मामूली बात नहीं है

26 मार्च की शाम होतेहोते देश की राजधानी दिल्ली गरमा उठी थी और अब तरहतरह की नईनई बातें सामने आने लगी थीं, जिन का सार यह था कि वाकई अर्थशास्त्र का पेपर परीक्षा से पहले बाजार में आ चुका था. लेकिन इस गोरखधंधे की जड़ें कहां हैं, यह अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा था. सीबीएसई की तरफ से यह बयान आया कि अर्थशास्त्र का पेपर लीक नहीं हुआ है, यह अफवाह भर है. यह दावा भी बोर्ड ने किया कि उस ने सभी परीक्षा केंद्रों की जांच कराई है और कहीं से पेपर लीक होने के प्रमाण नहीं मिले हैं. इस के बाद लोग एक बार फिर असमंजस में घिरते नजर आए.

प्रधानमंत्री का दखल जो लोग पेपर लीक होने के प्रति आश्वस्त थे, वे धीरेधीरे गुस्साने लगे थे. ये वे अभिभावक थे, जिन के बच्चों ने यह परीक्षा दी थी. यह दिन खासतौर से दिल्ली और एनसीआर में काफी गहमागहमी वाला था

हरियाणा और पंजाब की तरफ से भी पेपर लीक होने की बातें सामने आने लगी थीं. अब तक सीबीएसई की चेयरपरसन अनीता करवाल और मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कोई बयान सामने नहीं आया था. इसी गफलत में 28 मार्च, 2018 को 10वीं का गणित पेपर भी लीक हो गया. और इस तरह हुआ कि इस कड़वी सच्चाई को हर किसी को हजम करना पड़ा कि देश में बोर्ड के वे पेपर भी लीक होने लगे हैं जिन के लीक होने से छात्रों का भविष्य, मेहनत और कैरियर प्रभावित होता है.

28 मार्च की शाम होतेहोते यह बात आम हो गई थी कि पेपर लीक हुए हैं और भाजीतरकारी के भाव बिके भी हैं. 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर लगभग 8 लाख छात्रों ने और 10वीं गणित का इम्तहान 16.38 लाख छात्रों ने दिया था

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोर्ड पेपर लीक जैसे गंभीर मसले पर खामोश बैठे मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की जम कर क्लास लगाई तो प्रशासनिक और राजनैतिक गलियारों में खासी हलचल मच गई. नरेंद्र मोदी ने सख्त नाराजगी दिखाते हुए प्रकाश जावड़ेकर से केवल सफाई मांगी बल्कि उचित काररवाई करने को भी कहा.

दरअसल, नरेंद्र मोदी की नाराजगी की वजह जायज थी. बीती 25 फरवरी, 2018 को वह अपने पसंदीदा रेडियो कार्यक्रममन की बातमें बोर्ड के छात्रों से रूबरू हुए थे. दूसरी कई बातों के साथ उन्होंने उन्हें परीक्षा के बाबत तनावमुक्त और बेफिक्र रहने को भी कहा था

यह वाकई अफसोस की बात थी कि जिस देश में प्रधानमंत्री छात्रों को चिंतामुक्त रहने का आश्वासन दें, उस में ही परीक्षा के पेपर कुछ इस तरह लीक हो जाएं कि छात्रों की चिंता कई गुना बढ़ जाए. इस के अलावा वे तरहतरह की अनिश्चितताओं से घिर जाएं. नरेंद्र मोदी की दूसरी चिंता सरकार की गिरती साख है. यह उन के कार्यकाल में पहला उजागर मामला था, जिस का दोष वे किसी और पार्टी  खासतौर से कांग्रेस के सर नहीं मढ़ सकते थे.

इस फटकार से हड़बड़ाए प्रकाश जावडे़कर ने सब से पहले तो पेपर लीक होने की बाबत खेद व्यक्त किया और फिर परंपरागत ढर्रे वाली बातें कह डालीं कि जांच होगी, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. मैं भी अभिभावक हूं, इसलिए अभिभावकों का दर्द समझता हूं और लीक हुए दोनों पेपर रद्द किए जाते हैं. जल्द ही दूसरी तारीखों का ऐलान भी किया जाएगा वगैरहवगैरह.

 इधर छात्रों और अभिभावकों ने जगहजगह विरोध प्रदर्शन करने शुरू कर दिए थे, जिस की शुरुआत दिल्ली के जंतर मंतर, सीबीएसई के औफिस और प्रकाश जावडे़कर के घर से हुई. जैसे ही दोबारा परीक्षा का ऐलान किया गया तो छात्रों और अभिभावकों का गुस्सा और बढ़ गया कि अब नए सिरे से सारी कवायद करनी पड़ेगी. ऐसे में बोर्ड परीक्षाओं के माने क्या रह गए और सीबीएसई इस की जिम्मेदारी क्यों नहीं ले रहा.

अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो रहा था कि प्रश्नपत्र लीक कैसे और कहां से हुए, लेकिन मीडिया के जरिए ये बातें जरूर सामने आने लगी थीं कि लीक हुए पेपर 35 हजार रुपए से ले कर 200 रुपए तक में बिके थे, जिस की शुरुआत दिल्ली के बवाना इलाके के एक स्कूल से हुई थी. इन सच्चाइयों या खबरों से छात्रों का गुस्सा और बढ़ने लगा था. अब पहली बार सीबीएसई की चेयरपरसन अनीता करवाल सामने आईं और वही रटेरटाए बयान दे कर गायब हो गईं कि जांच होगी, दोषी जेल जाएंगे.

शक की सुई सीबीएसई की तरफ मुड़ना स्वाभाविक बात थी, क्योंकि पेपर सेट करने से ले कर परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उस की ही होती है. इन परीक्षाओं की विश्वसनीयता और गोपनीयता अगर भंग हुई थी तो इस की जिम्मेदारी भी सीबीएसई की ही बनती थी, जिस से वह बचने और मुकरने की कोशिश तब से ले कर अब तक कर रहा है.

कहां से लीक सीबीएसई को पाकसाफ बताने में प्रकाश जावड़ेकर और अनीता करवाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी. इन दोनों ने पेपर लीक होने को दिल्ली के कुछ कोचिंग सेंटरों को दोषी ठहराया, इस से इन की जगहंसाई ही हुई. क्योंकि मामूली सी अक्ल रखने वाला भी इस बात को समझ रहा था कि जब पेपर सीबीएसई बनाता है तो उसे कोई कोचिंग वाला कैसे लीक कर सकता है. हां, वह अपना धंधा चमकाने के लिए इन्हें बेच जरूर सकता है. लेकिन इस के लिए जरूरी है कि सीबीएसई का कोई अफसर उसे पेपर बेचे.

कोई भी अपराध तब तक अपराध नहीं माना जाता, जब तक कि पुलिस एफआईआर दर्ज कर ले. चूंकि कुछ करना था इसलिए सीबीएसई की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 420, 468 और 471 के तहत मामला दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी. जल्द ही एक एसआईटी (स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम) का भी गठन कर डाला, जिस की कमान पुलिस अधिकारी आर.पी. उपाध्याय को सौंप दी गई.

 इधर 29 मार्च, 2018 को पेपर लीक होने के विरोध में देश भर में प्रदर्शन होने लगे थे. दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने आरोप लगाया कि अकेले अर्थशास्त्र या गणित का ही नहीं, बल्कि 10वीं और 12वीं के सारे पेपर लीक हुए हैं. लिहाजा पूरी परीक्षा दोबारा होनी चाहिए.

 जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों में से एक छात्र राहुल ने बताया कि पेपर सीबीएसई के अधिकारियों की मिलीभगत से लीक हुए हैं और 2-2 हजार रुपए में बिके हैं. यह हमारे भविष्य से खिलवाड़ है. हरकत में आई पुलिस काररवाई के नाम पर दिल्ली के कोचिंग सेंटरों पर ही छापामारी कर के यह जताने की कोशिश कर रही थी कि पेपर यहीं से लीक हुए हैं. पुलिस ने दिल्ली के द्वारका, रोहिणी और राजेंद्रनगर इलाकों के कोचिंग सेंटरों पर छापे मारे और कोचिंग सेंटर संचालकों सहित छात्रों से भी पूछताछ की.

 पुलिस वाले छात्रों और कोचिंग संचालकों के मोबाइल फोन खंगाल रहे थे जैसे लीक का राज उन्हीं में छिपा हो. हो यह रहा था कि पुलिस वाले उन छात्रों को तंग कर रहे थे, जिन्हें कहीं से लीक पेपर मिला था. एक के बाद एक कइयों के मोबाइल खंगाले गए, लेकिन लीक सोर्स पुलिस को नहीं मिलना था सो नहीं मिला.

प्रकाश जावड़ेकर जोर इस बात पर दे रहे थे कि लीक सोर्स ढूंढा जा रहा है. छात्रों और अभिभावकों का बढ़ता विरोध प्रदर्शन देख कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मौका ताड़ कर हमलावर हो उठे. उन्होंने ताना माराकितने लीक, डाटा लीक, आधार लीक, चुनाव की तारीखें लीक, एसएससी के पेपर लीक और अब सीबीएसई के पेपर लीक. लेकिन हमारा चौकीदार वीक.’

छात्रों की परेशानियों को कम करने के बजाय और बढ़ाते सीबीएसई की तरफ से कहा गया कि लीक हुए पेपरों की परीक्षा दोबारा होगी, जिन की तारीखों की घोषणा जल्द कर दी जाएगी

दिल्ली के एक अभिभावक पेशे से वकील अलख श्रीवास्तव ने तुक की बात यह कही कि लीक प्रभावित छात्रों को एकएक लाख रुपए का मुआवजा दिलाया जाए.

31 मार्च को एक सनसनी भरी खबर यह आई कि दरअसल सीबीएसई के पेपर दिल्ली से नहीं बल्कि पटना से लीक हुए थे. झारखंड के चतरा जिले के एसपी .बी. वारियार ने दावा किया कि लीक हुआ प्रश्नपत्र पटना से चतरा आया था. इस बाबत बिहार और झारखंड से कोई दरजन भर लोगों को गिरफ्तार किया गया है. एसआईटी ने पटना के कृष्णनगर से गया स्थित शेरधारी निवासी अमित कुमार छपरा के आकाश कुमार को गिरफ्तार कर लिया.

पेपर लीक के तार जुड़े थे दिल्ली से बताया यह गया कि इन दोनों के तार दिल्ली से जुड़े हैं और ये दिल्ली के शिक्षा माफिया की मदद से सीबीएसई के पेपर लीक कर पैसों के बदले छात्रों को प्रश्नपत्र मुहैया कराते हैं. पुलिस ने चतरा के एक कोचिंग इंस्टीट्यूट स्टडी विजन के संचालक सतीश पांडेय सहित 3 लोगों को गिरफ्तार किया

सतीश पांडेय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का जिला संयोजक भी है. इन कथित आरोपियों ने 28 मार्च का पेपर 27 मार्च को ही उपलब्ध करा दिया था. इस दिन एसआईटी ने 9 नाबालिग छात्रों को भी गिरफ्तार कर उन्हें हजारीबाग स्थित बाल सुधार गृह भेजा.

यह निहायत ही हास्यास्पद और बचकानी बात थी. पुलिस जड़ तक पहुंचने के बजाय पत्तियां तोड़ रही थी. पेपर अगर पटना में लीक हुए थे तो आरोपियों तक कहां से और कैसे आए, इस बात का कोई संतोषजनक जवाब पुलिस के पास नहीं था. सुधार गृह भेजे गए जब नाबालिग कोई पेशेवर या आदतन मुजरिम नहीं थे तो उन्हें सुधार गृह क्यों भेजा गया?

 पेपर लीक होने की बात अब गंभीर चिंता के बजाय मजाक का विषय बन गई, यह बात एक बार फिर 7 अप्रैल, 2018 को साबित हुई. इस दिन दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने हिमाचल प्रदेश के ऊना के डीएवी स्कूल के एक शिक्षक राकेश कुमार को लीक मामले का आरोपी मानते हुए गिरफ्तार कर लिया.

डीएवी स्कूल ऊना की अपनी साख है. यह सीबीएसई का परीक्षा केंद्र नहीं था, बल्कि इस बार वहां के जवाहर नवोदय विद्यालय को परीक्षा केंद्र बनाया गया था. सीबीएसई ने डीएवी स्कूल के प्रिंसिपल अमित महाजन को परीक्षा के लिए अधीक्षक बनाया था. अमित महाजन ने परीक्षा की जिम्मेदारी एक शिक्षक राकेश कुमार को सौंप दी थी.

 राकेश कुमार दूसरे कई लाख शिक्षकों की तरह पढ़ाने के साथसाथ कोचिंग सेंटर भी चलाता था. सीबीएसई के प्रश्नपत्र बैंक लौकर में रखे जाते हैं. 23 मार्च को जब राकेश कुमार 12वीं का कंप्यूटर साइंस का पेपर निकाल कर केंद्र तक पहुंचाने बैंक गया तो उस ने वहां रखा 28 मार्च को होने वाले अर्थशास्त्र के पेपर का बंडल भी उठा लिया. फिर उसे गायब कर लीक कर दियाइस काम में उस का साथ देने वाले अमित और अशोक भी धर लिए गए. दरअसल राकेश की कोचिंग का एक छात्र अर्थशास्त्र में कमजोर था, जिस के लिए राकेश ने यह पेपर उड़ाया था. बाद में उस ने यह पेपर चंडीगढ़ में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार को भी वाट्सऐप के जरिए भेजा था.

लीक के बाद हर कहीं से खबरें आने लगी थीं कि पेपर यहां से लीक हुआ. इन छापों की पुलिसिया काररवाई से लोग जरूर कंफ्यूज हो रहे थे कि पेपर बना कहां था और लीक कहां से हुआ. मान लिया जाए कि ऊना के राकेश कुमार ने 12वीं का अर्थशास्त्र का पेपर लीक किया तो 10वीं का गणित का पेपर लीक होने का जिम्मेदार कौन है? ऐसे ही कई सवालों का जवाब किसी को नहीं मिल रहा और ही मिलने की उम्मीद है.

पेपर कहांकहां से और कैसे लीक हो सकते हैं, यह समझने के लिए सीबीएसई की प्रक्रिया को समझना जरूरी है. प्रक्रिया को देख कर लगता है कि सीबीएसई के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना पेपर लीक होना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन सी बात हैसीबीएसई के बारे में कहा जाता है कि प्रश्नपत्र बना कर उन्हें परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाने की उस की पूरी प्रक्रिया इतनी फूलप्रूफ है कि पेपर कहीं से लीक हो ही नहीं सकते. लेकिन इस के बाद भी हो गए तो जाहिर है यह वही मिलीभगत और साजिश थी, जिस ने 28 लाख छात्रों की मेहनत पर पानी फेर दिया

सभी छात्र अब तक शक कर रहे हैं कि सारे पेपर लीक हुए थे यानी इस परीक्षा प्रणाली को अविश्सनीय बनाने का मास्टरमाइंड हिंदी फिल्मों के खलनायक जैसा है, जिस तक पुलिस कथा लिखने तक नहीं पहुंच पाई थी. ऐसा भी नहीं है कि पुलिस ने सीबीएसई को एकदम बख्श दिया हो या क्लीन चिट दे दी हो. उस ने कुछ अधिकारियों से पूछताछ की, खासतौर से परीक्षा नियंत्रक से जिन्होंने सीबीएसई की परीक्षा प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया. इस जानकारी का कोई खास उपयोग पुलिस वालों ने क्यों नहीं किया, यह जरूर शक पैदा करने वाली बात है.

प्रश्नपत्र बनाने की प्रक्रिया सामान्यत: अगस्त महीने से शुरू हो जाती है. जिस के तहत सीबीएसई देश भर के शिक्षकों में से कुछ को छांट कर उन्हें विषयवार प्रश्नपत्र बनाने की जिम्मेदारी देती है. इन शिक्षकों की योग्यता के अलग पैमाने होते हैं. ये शिक्षक प्रश्नपत्रों के 3 से 4 सेट सीबीएसई को भेजते हैं

इन में से कोई एक सेट सीबीएसई लेती है, पर यह शिक्षकों को नहीं मालूम रहता कि परीक्षा के लिए उन का बनाया प्रश्नपत्र ही लिया जाएगा. सीबीएसई यह सुनिश्चित करती है कि पेपर बनाने वाले शिक्षक कहीं कोचिंग या ट्यूशन पढ़ाते हों और उन का कोई नजदीकी रिश्तेदार बोर्ड के इम्तहान में शामिल हो रहा हो.

अलगअलग विषयों के प्रश्नपत्र जब छांट लिए जाते हैं तो उन्हें छपाई के लिए भेजा जाता है. इन प्रिंटिंग प्रेसों की जानकारी बेहद गोपनीय रहती है, जो देश भर में कहीं भी हो सकती है. सीबीएसई में नोटिफाइड प्रेसों में से किस प्रेस को काम दिया गया है, यह जानकारी महत्त्वपूर्ण और गिने हुए अधिकारियों को ही रहती है. जिस प्रिंटिंग प्रेस में पेपर छपते हैं, उस में सीसीटीवी कैमरे लगे होना जरूरी होता है.

कड़ी प्रक्रिया से गुजरने के बाद छात्रों तक पहुंचते हैं प्रश्नपत्  पेपर उतने ही छपवाए जाते हैं, जितने छात्र परीक्षा में शामिल हो रहे होते हैं. छपाई के बाद से प्रश्नपत्र सीधे परीक्षा केंद्र नहीं पहुंचाए जाते बल्कि उन्हें परीक्षा केंद्रों के नजदीक किसी बैंक के लौकर में रखा जाता है. ऐसे बैंकों को कस्टोडियन बैंक या कलेक्शन सेंटर कहा जाता है. यह जानकारी बैंक मैनेजर के अलावा परीक्षा केंद्र अधीक्षक को ही रहती है.

 जिस दिन परीक्षा होती है, उस दिन एक बैंक कर्मचारी, सीबीएसई का एक प्रतिनिधि और परीक्षा केंद्र यानी स्कूल का प्रतिनिधि मौजूद रहता है. ये तीनों जब सुनिश्चित कर लेते हैं कि रखे हुए पेपरों के बंडल सीलबंद हैं और उन से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है, इस के बाद ही पेपर के बंडल बैंक से सीधे परीक्षा केंद्र पहुंचाए जाते हैं. जिस वाहन में प्रश्नपत्र जाते हैं, उस में एक सिक्योरिटी गार्ड भी रहता है

परीक्षा केंद्र पर प्रश्नपत्र पेपर शुरू होने के आधे घंटे पहले खोले जाते हैं और ड्यूटी दे रहे शिक्षकों को कमरों में मौजूद छात्रों की संख्या के हिसाब से दिए जाते हैं. फिर ड्यूटी दे रहे शिक्षक प्रश्नपत्र वितरित करते हैं.

देखा जाए तो प्रक्रिया वाकई फूलप्रूफ है लेकिन इस में कई छेद हैं, जिन से हो कर कोई भी प्रश्नपत्र लीक हो सकता है या किया जा सकता है. पहला झोल तो यही है कि छपाई के प्रश्नपत्र जब सीबीएसई मुख्यालय में रखे रहते हैं, तब वहां के अधिकारी ही इन्हें उड़ा सकते हैं. ऐसा साल 2004 और 2011 में हो भी चुका है.

दूसरा छेद बैंक लौकर हैं, जहां प्रश्नपत्र लंबे समय तक रखे रहते हैं. बैंक अधिकारी कभी भी ताला खोल कर प्रश्नपत्र लीक कर सकते हैं. साल 2006 में 12वीं का बिजनैस स्टडीज का पेपर बैंक से ही लीक हुआ था

यह मामला बड़ा दिलचस्प है. हरियाणा के पानीपत शहर में पुलिस ढूंढ तो रही थी वाराणसी बम ब्लास्ट के आरोपियों को, लेकिन जगहजगह की छापेमारी में पुलिस के हाथ ये प्रश्नपत्र लग गए थे, जिन में 6 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उन में बैंक मैनेजर कैशियर भी शामिल थे. यानी बैंक लौकर में रखे प्रश्नपत्रों के लीक होने की गारंटी नहीं है.

 बैंक से परीक्षा केंद्र तक के रास्ते में पेपर के लीक होने की गुंजाइश काफी कम है क्योंकि उस वक्त पेपर उड़ाने का कोई खास फायदा नहीं होता. उस समय तक छात्र परीक्षा केंद्र पहुंच चुके होते हैं. दूसरे इतनी जल्द बंडल को सील पैक नहीं किया जा सकता. इस में वाहन में मौजूद तीनों लोगों की मिलीभगत जरूरी है.

इस साल के पेपर लीक से एक नई बात या तरीका यह उजागर हुआ कि पेपर लेने गया स्कूल का प्रतिनिधि अगले पेपर का भी बंडल उठा सकता है. यह जरूर चिंता वाली बात है कि सीबीएसई का कोई जोर इन बैंकों पर नहीं है और सारे पेपर एक साथ इस तरह क्यों रखे जाते हैं कि आने वाली परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों का बंडल भी शिक्षक उठा ले जाए.

साफ दिख रहा है कि ऊना और पटना की सनसनी सिर्फ लीपापोती थी, जिस से लोग भ्रमित हों और ऐसा हो भी रहा है. लोग इस लीक कांड को दूसरे कांडों की तरह भूलने लगे हैं. सीबीएसई ने बवाल से बचने के लिए गणित का पेपर दोबारा कराने का फैसला ले कर कोई बुद्धिमानी का काम नहीं किया है, बल्कि यह संदेशा दिया है कि अगर कोई पेपर सीमित स्थान में लीक हुआ है तो उसे लीक हुआ नहीं माना जाएगा.

जाह्नवी की अनदेखी क्यों पुलिसिया काररवाई कितनी खोखली और बनावटी थी, इस बात का अंदाजा लगाने कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं. परीक्षा के 9 दिन पहले ही लुधियाना की रहने वाली एक 17 वर्षीय छात्रा जाह्नवी बहल ने इस कांड का पहले ही परदाफाश कर दिया था, पर अफसोस इस बात का है कि तब भी उस की बात पर ध्यान नहीं दिया गया था और अब भी नहीं दिया जा रहा. जाह्नवी लुधियाना के बसंत सिटी इलाके में रहती है और पक्खोवाल रोड स्थित डीएवी स्कूल की 12वीं की कौमर्स की छात्रा है. जाह्नवी के पिता अश्विनी बहल नौकरीपेशा हैं और मां नंदिनी गृहिणी हैं.

17 मार्च को ही जाह्नवी ने पेपर लीक का ब्यौरा अपनी शिकायत के साथ लुधियाना के पुलिस कमिश्नर आर.एन. ढोके को भेजा था. कमिश्नर ने जांच की जिम्मेदारी एडीसीपी रतन बराड़ को सौंप दी थी. पुलिस ने कोई जांच की हो, ऐसा लग नहीं रहा बावजूद इस के कि जाह्नवी ने पेपर लीक कराने वाले का फोन नंबर भी दिया था.

जाह्नवी ने अकेले पुलिस को ही नहीं बल्कि समझदारी दिखाते हुए उस ने शिकायत की प्रतियां सीबीएसई के औफिस और प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजी थींइस के बावजूद काररवाई होना इस शक को यकीन में बदल रहा है कि पेपर लीक कांड के तार बहुत लंबे हैं. अगर वक्त रहते पुलिस काररवाई करती तो होता यह कि दोनों पेपर तुरंत रद्द करने पड़ते जिस में घाटा या नुकसान उन लोगों का होता जो इन का कारोबार कर रहे थे.

पेपर वक्त रहते रद्द हो जाते तो बिकते नहीं, इसलिए काररवाई का होना बड़े घपले की तरफ इशारा कर रहा है. जिस किसी ने भी पेपर लीक किए, उसे पैसे बनाने का मुकम्मल मौका मुहैया कराया गया. पर लाख टके का सवाल यह है कि वह कौन है, जिस ने पेपर बेचे? अब जब भी वह पकड़ा जाएगा, तभी राज से परदा उठ पाएगा.

अकेली जाह्नवी ने ही नहीं बल्कि एक और अज्ञात जागरूक नागरिक जिसे व्हिसल ब्लोअर करार दिया गया, पेपर लीक होने के मामले में सीबीएसई औफिस को आगाह करता रहा थासीबीएसई इस बात को मान चुकी है कि इस व्हिसल ब्लोअर ने मेल के जरिए पेपर लीक होने की बात बताई थी. जाने यह कोई क्यों नहीं बता रहा कि इस शिकायत या जानकारी पर समय से कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया था. सांप निकल जाने के बाद अब लकीर क्यों पीटी जा रही है.

मुमकिन है देरसबेर पुलिस असल अपराधी तक पहुंच जाए, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होगी और छात्रों के नुकसान की भरपाई तो किसी भी सूरत में नहीं हो पाएगी. साल 2018 जिन अपराधों के लिए याद किया जाएगा, उन में से एक सीबीएसई पेपर लीक मामला भी होगा. द्य

           

एकतरफा प्यार में प्रधान के बेटे से गरदन काट डाली

ताकतवर पिता के बिगड़ैल बेटे कोई कोई गुल खिलाते ही हैं, क्योंकि उन्हें पिता और परिवार का संरक्षण मिलता है. प्रधान कृपाशंकर के बेटे प्रिंस ने भी यही किया. लेकिन रागिनी को मार कर उसे क्या मिला?  

खुशमिजाज रागिनी दुबे सुबह तैयार हो कर अपनी छोटी बहन सिया के साथ घर से पैदल ही स्कूल के लिए निकली थी. वह बलिया जिले के बांसडीह की रहने वाली थी. दोनों बहनें सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. रागिनी 12वीं कक्षा में थी तो सिया 11वीं में

उस दिन रागिनी महीनों बाद स्कूल जा रही थी. स्कूल जा कर उसे अपने बोर्ड परीक्षा फार्म के बारे में पता करना था कि परीक्षा फार्म कब भरा जाएगा. वह कुछ दिनों से स्कूल नहीं जा पाई थी, इसलिए परीक्षा फार्म के बारे में उसे सही जानकारी नहीं थी.

दोनों बहनें पड़ोस के गांव बजहां के काली मंदिर के रास्ते हो कर स्कूल जाती थीं. उस दिन भी वे बातें करते हुए जा रही थीं, जब दोनों काली मंदिर के पास पहुंची तभी अचानक उन के सामने 2 बाइकें कर रुक गईं. दोनों बाइकों पर 4 लड़के सवार थे. अचानक सामने बाइक देख रागिनी और सिया सकपका गईं, वे बाइक से टकरातेटकराते बचीं.

‘‘ये क्या बदतमीजी है, तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका?’’ रागिनी लड़कों पर गुर्राई.

‘‘एक बार नहीं, हजार बार रोकूंगा.’’ उन चारों में से एक लड़का बाइक से नीचे उतरते हुए बोला. उस का नाम प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी था. प्रिंस आगे बोला, ‘‘जाओ, तुम्हें जो करना हो कर लेना. तुम्हारी गीदड़भभकी से मैं डरने वाला नहीं, समझी.’’

 ‘‘देखो, मैं शराफत से कह रही हूं, हमारा रास्ता छोड़ो और स्कूल जाने दो.’’ रागिनी बोली.

 ‘‘अगर रास्ता नहीं छोड़ा तो तुम क्या करोगी?’’ प्रिंस ने अकड़ते हुए कहा.

‘‘दीदी, छोड़ो इन लड़कों को. मां ने क्या कहा था कि इन के मुंह मत लगना. इन के मुंह लगोगी तो कीचड़ के छींटे हम पर ही पड़ेंगे. चलो हम ही अपना रास्ता बदल देते हैं.’’ सिया ने रागिनी को समझाया.

‘‘नहीं सिया नहीं, हम बहुत सह चुके इन के जुल्म. अब और बरदाश्त नहीं करेंगे. इन दुष्टों ने हमारा जीना हराम कर रखा है. इन से जितना डरोगी, उतना ही ये हमारे सिर पर चढ़ कर तांडव करेंगे. इन्हें इन की औकात दिखानी ही पड़ेगी.’’

‘‘ झांसी की रानी,’’ प्रिंस गुर्राया,  ‘‘किसे औकात दिखाएगी तू, मुझे. तुझे पता भी है कि तू किस से पंगा ले रही है. प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा हूं, मिनट में छठी का दूध याद दिला दूंगा. तेरी औकात ही क्या है. मैंने तुझे स्कूल जाने से मना किया था ना, पर तू नहीं मानी.’’

‘‘हां, तो.’’ रागिनी डरने के बजाए प्रिंस के सामने तन कर खड़ी हो गई. ‘‘तुम मुझे स्कूल जाने से रोकोगे, ऐसा करने वाले तुम होते कौन हो?’’

‘‘दीदी, क्यों बेकार की बहस किए जा रही हो,’’ सिया बोली, ‘‘चलो यहां से.’’

‘‘नहीं सिया, तुम चुप रहो.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई, ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी यहां से. रोजरोज मर के जीने से तो अच्छा होगा कि एक ही दिन मर जाएं. कम से कम जिल्लत की जिंदगी तो नहीं जिएंगे. इन दुष्टों को इन के किए की सजा मिलनी ही चाहिए.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई.

  ‘‘तूने किसे दुष्ट कहा?’’ प्रिंस गुस्से से बोला.

  ‘‘तुझे और किसे…’’ रागिनी भी आंखें दिखाते हुए बोली.

आतंक पहुंचा हत्या तक इस तरह दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. विवाद बढ़ता देख कर प्रिंस के सभी दोस्त अपनी बाइक से नीचे उतर कर उस के पास जा खड़े हुए. सिया रागिनी को समझाने लगी कि लड़कों से पंगा मत लो, यहां से चलो. लेकिन उस ने बहन की एक नहीं सुनी. गुस्से से लाल हुए प्रिंस ने आव देखा ताव उस ने रागिनी को जोरदार धक्का मारा

रागिनी लड़खड़ाती हुई जमीन पर जा गिरी. अभी वह संभलने की कोशिश कर ही रही थी कि वह उस पर टूट पड़ा. पहले से कमर में खोंस कर रखे चाकू से उस ने रागिनी के गले पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. कुछ देर तड़पने के बाद रागिनी की मौत हो गई. उस की हत्या कर वे चारों वहां से फरार हो गए.

घटना इतने अप्रत्याशित तरीके से घटी थी कि तो रागिनी ही कुछ समझ पाई थी और ही सिया. आंखों के सामने बहन की हत्या होते देख सिया के मुंह से दर्दनाक चीख निकल पड़ी. उस की चीख इतनी तेज थी कि गांव वाले अपनेअपने घरों से बाहर निकल आए और जहां से चीखने की आवाज रही थी, वहां पहुंच गए. उन्होंने मौके पर पहुंच कर देखा तो रागिनी खून से सनी जमीन पर पड़ी थी. वहीं उस की बहन उस के पास बैठी दहाड़ें मार कर रो रही थी

दिनदहाड़े हुई दिन दहला देने वाली इस घटना से सभी सन्न रह गए. लोग आपस में चर्चा कर रहे थे कि समाज में कानून नाम की कोई चीज नहीं रह गई है. बदमाशों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि राह चलती बहूबेटियों का जीना तक मुश्किल हो गया है. इस बीच किसी ने फोन द्वारा घटना की सूचना बांसडीह रोड थानाप्रभारी बृजेश शुक्ल को दे दी थी. 

गांव वाले रागिनी को पहचानते थे. वह पास के गांव बांसडीह के रहने वाले जितेंद्र दुबे की बेटी थी, इसलिए उन्होंने जितेंद्र दुबे को भी सूचना दे दी. बेटी की हत्या की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया, रोनापीटना शुरू हो गया. उन्हें जिस अनहोनी की चिंता सता रही थी आखिरकार वो हो गई.

जितेंद्र दुबे जिस हालत में थे, उसी हालत में घटनास्थल की तरफ दौडे़. वह बजहां गांव के काली मंदिर के पास पहुंचे तो वहां उन की बेटी की लाश पड़ी थी

लाश के पास ही छोटी बेटी सिया दहाड़े मार कर रो रही थी. बेटी की रक्तरंजित लाश देख कर जितेंद्र भी फफकफफक कर रोने लगे. उन्हें 2-3 दिन पहले ही कुछ शरारती तत्व घर पर धमकी दे कर गए थे कि रागिनी स्कूल गई तो वह दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. आखिरकार वे अपने मंसूबों में कामयाब हो गए.

सूचना पा कर एसआई बृजेश शुक्ल फोर्स के साथ मौके पे पहुंच चुके थे. उन्होंने शव का मुआयना किया. मृतका के गले पर अनेक घाव थे. चूंकि पूरी वारदात मृतका की छोटी बहन सिया के सामने घटित हुई थी, इसलिए उस ने एसआई बृजेश शुक्ल को सारी बातें बता दीं. उस ने बताया कि बजहां गांव के रहने वाले ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी, प्रधान का ही भतीजा सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव ने दीदी की हत्या की है

मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पुलिस ने जितेंद्र दुबे की तहरीर पर ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी, उस के बेटे आदित्य उर्फ प्रिंस, सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव के खिलाफ हत्या और छेड़छाड़ की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया

पुलिस ने मामले की जांच की तो पता चला कि ग्रामप्रधान कृपाशंकर का बेटा प्रिंस सालों से रागिनी को तंग किया करता था. वह रागिनी से एकतरफा प्यार करता था. कई बार वह रागिनी से अपने प्यार का इजहार कर चुका था लेकिन रागिनी न तो उस से प्यार करती थी और न ही उस ने उस के प्रेम पर अपनी स्वीकृति की मोहर ही लगाई थी. 

पहले तो रागिनी उस की हरकतों को नजरअंदाज करती रही. लेकिन जब पानी सिर के ऊपर जाने लगा तो उस ने अपने घर वालों को प्रिंस की हरकतों के बारे में बता दिया.

बेटी की परेशान जान कर जितेंद्र को दुख भी हुआ और गुस्सा भी आया. बात बेटी के मानसम्मान से जुड़ी हुई थी, भला वह इसे कैसे सहन कर सकते थे. वह उसी समय शिकायत लेकर ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी के घर जा पहुंचे. संयोग से कृपाशंकर घर पर ही मिल गए. जितेंद्र ने उन के बेटे की हरकतों का पिटारा उन के सामने खोल दिया. लेकिन कृपाशंकर ने उन की शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया. प्रधानी के घमंड में चूर कृपाशंकर तिवारी ने जितेंद्र को डांटडपट कर भगा दिया.

जितेंद्र दुबे ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि प्रधान से उस के बेटे की शिकायत करनी उन्हें भारी पड़ जाएगी. अगर उन्हें इस बात का खयाल होता तो वह शिकायत कभी नहीं करते.

बाप ने दी बेटे को शह शिकायत का परिणाम उल्टा यह हुआ कि शाम के समय जब प्रिंस कहीं से घूम कर घर लौटा तो कृपाशंकर ने उस से पूछा, ‘‘बांसडीह के पंडित जितेंद्र तुम्हारी शिकायत ले कर यहां आए थे. वे कह रहे थे कि उन की बेटी को आतेजाते तंग करते हो, क्या बात है?’’ 

इस पर प्रिंस ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘पापा, यह सब गलत है, झूठ है. मैं ने उस की बेटी के साथ कभी बदसलूकी नहीं की. मैं तो उस की बेटी को जानता तक नहीं, छेड़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. मुझे बदनाम करने के लिए पंडितजी झूठ बोल रहे होंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं जानता हूं बेटा. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है कि तू ऐसावैसा कोई काम नहीं करेगा. वैसे मैं ने पंडितजी को डांट कर भगा दिया है.’’

‘‘ठीक किया पापा,’’ प्रिंस के होंठों पर जहरीली मुसकान उभर आई.प्रिंस ने उस समय तो पिता की आंखों में धूल झोंक कर खुद को बचा लिया. पुत्रमोह में अंधे कृपाशंकर को भी बेटे की करतूत दिखाई नहीं दी. नतीजा यह हुआ कि प्रिंस की आंखों में दुबे की बेटी रागिनी के लिए नफरत और गुस्से का लावा फूट पड़ा. उसे लगा कि पंडित की हिम्मत कैसे हुई कि उस के घर शिकायत करने गया. प्रिंस ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली. आखिर उस ने वही किया, जो उस ने मन में ठान लिया था.

दिनदहाड़े रागिनी की हत्या के बाद आसपास के इलाके में दहशत फैल गई थी. मामला बेहद गंभीर था, इसलिए एसपी सुजाता सिंह ने अपराधियों को गिरफ्तार करने के सख्त आदेश दिए. कप्तान का आदेश पाते ही एसआई बृजेश शुक्ल अपनी पुलिस टीम के साथ आरोपियों को तलाशने में जुट गए

8 अगस्त, 2017 को पुलिस ने जिले से बाहर जाने वाले सभी रास्तों को सील कर दिया. पुलिस को इस का लाभ भी मिला. बलिया से हो कर गोरखपुर जाने वाली रोड पर 2 आरोपी प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी और दीपू यादव उस समय पुलिस के हत्थे चढ़ गए जब वह जिला छोड़ कर गोरखपुर जा रहे थे.

दोनों को गिरफ्तार कर के पुलिस उन्हें थाना बांसडीह रोड ले आई. दोनों आरोपियों से रागिनी दुबे की हत्या के बारे में गहनता से पूछताछ की गई. पहले तो प्रिंस ने पुलिस को अपने पिता की ताकत की धौंस दिखाई लेकिन कानून के सामने उस की अकड़ ढीली पड़ गई. आखिर दोनों ने पुलिस के सामने घुटने टेकने में ही भलाई समझी. उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया. बाकी के 3 आरोपी मौके से फरार हो गए थे.

 दोनों आरोपियों से की गई पूछताछ और बयानों के आधार पर दिल दहला देने वाली जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

55 वर्षीय जितेंद्र दुबे मूलत: बलिया जिले के बांसडीह में 6 सदस्यों के परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 1 बेटा अमन था. निजी व्यवसाय से वह अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. उन का परिवार संस्कारी था

बेटियों पर गर्व था दुबेजी को उन की तीनों बेटियां गांव में मिसाल के तौर पर गिनी जाती थीं, क्योंकि तीनों ही अपने काम से काम रखती थीं. वे न तो अनर्गल किसी दूसरे के घर उठतीबैठती थीं और न ही फालतू की गप्पें लड़ाती थीं. वे पढ़ाई के साथ घर के काम में भी हाथ बंटाती थीं. दुबेजी बेटियों को बेटे से कम नहीं आंकते थे. तभी तो उन की पढ़ाई पर पानी की तरह पैसा बहाते थे. बेटियां भी पिता के विश्वास पर हमेशा खरा उतरने की कोशिश करती थीं.

तीनों बेटियों में नेहा बीए में पढ़ती थी, रागिनी 11वीं पास कर के 12वीं में गई थी जबकि सिया 11वीं में थी. स्वभाव में रागिनी नेहा और सिया दोनों से बिलकुल अलग थी. रागिनी पढ़ाईलिखाई से ले कर घर के कामकाज तक सब में अव्वल रहती थीं. वह शरमीली और भावुक किस्म की लड़की थी. जरा सी डांट पर उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकलती थी.

बात 2015 के करीब की है. रागिनी और सिया दोनों सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. उस समय रागिनी 10वीं में थी और सिया 9वीं में. दोनों बहनें घर से रोजाना बजहां गांव हो कर पैदल ही स्कूल के लिए जातीआती थीं. बजहां गांव के ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य उन्हें स्कूल आतेजाते बड़े गौर से देखा करता था.

प्रिंस पहली ही नजर में रागिनी पर फिदा हो गया था. थी तो रागिनी साधारण शक्लसूरत की, मगर उस में गजब का आकर्षण था. रागिनी और सिया जब भी स्कूल जाया करती, वह उन के इंतजार में गांव के बाहर 2-3 दोस्तों के साथ खड़ा रहता था

वह उन्हें तब तक निहारता रहता था जब तक रागिनी और सिया उस की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थीं. जबकि दोनों बहनें उस की बातों को नजरअंदाज कर के बिना कोई प्रतिक्रिया किए स्कूल के लिए निकल जाती थीं.

ऐसा नहीं था कि दोनों बहनें उन के इरादों से अंजान थीं, वे उन के मकसद को भलीभांति जान गई थीं. रागिनी प्रिंस से जितनी दूर भागती थी, प्रिंस उतना ही उस की मोहब्बत में पागल हुआ जा रहा था.

17 वर्षीय आदित्य उर्फ प्रिंस उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के बजहां गांव का रहने वाला था. उस का पिता कृपाशंकर तिवारी गांव का प्रधान था. प्रधान तिवारी की इलाके में तूती बोलती थी. उस से टकराने की कोई हिमाकत नहीं करता था. जो उस से टकराने की जुर्रत करता भी था, वह उसे अपनी पौवर का अहसास करा देता था. उस की सत्ता के गलियारों में अच्छी पहुंच थी. ऊंची पहुंच ने प्रधान तिवारी को घमंडी बना दिया था.

ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस भी उसी के नक्शेकदम पर चल रहा था. पिता की ही तरह प्रिंस भी अभिमानी स्वभाव का था. जिसे चाहे वह उस से उलझ जाता था और मारपीट पर आमादा हो जाता था. वह जब भी चलता था उस के साथ 5-7 लड़कों की टोली चलती थीउस की टोली में नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दीपू यादव खासमखास थे. ये तीनों प्रिंस के लिए किसी भी हद तक जाने को हमेशा तैयार रहते  थे. इसीलिए वह इन पर पानी की तरह पैसा बहाता था.

घातक बनी एकतरफा मोहब्बत प्रिंस रागिनी से एकतरफा मोहब्बत करता था. उसे पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार था जबकि रागिनी उस से प्यार करना तो दूर उस से बात तक करना उचित नहीं समझती थी.

रागिनी के प्यार में प्रिंस इस कदर पागल था कि उस ने खुद को कमरे में कैद कर लिया था. न तो यारदोस्तों से पहले की तरह ज्यादा मिलता था और न ही उन से बातें करता था. प्रिंस की हालत देख कर उस के दोस्त नीरज और दीपू परेशान रहने लगे थे. यार की जिंदगी की सलामती के खातिर तीनों दोस्तों ने फैसला किया कि चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, वह उस का प्यार यार के कदमों में ला कर डालेंगे.

नीरज, सोनू और दीपू तीनों ने मिल कर एक दिन रागिनी और सिया को स्कूल जाते समय रास्ते में रोक लिया. तीनों के अचानक से रास्ता रोकने से दोनों बहनें बुरी तरह से डर गईं, ‘‘ये क्या बदतमीजी है? तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका? हटो हमें स्कूल जाने दो.’’ रागिनी हिम्मत जुटा कर बोली. ‘‘हम तुम्हारे रास्ते से भी हट जाएंगे और तुम्हें स्कूल भी जाने देंगे, बस तुम्हें हमारी कुछ बातें माननी होंगी.’’ नीरज बोला.

‘‘न तो मैं तुम्हारी कोई बात मानूंगी और न ही सुनूंगी. बस तुम हमारा रास्ता छोड़ दो. हमें स्कूल के लिए देर हो रही है.’’ रागिनी नाराजगी भरे लहजे में बोली.

‘‘देखो रागिनी, ये किसी की जिंदगी और मौत की सवाल है. मेरी बात सुन लो, फिर चली जाना.’’ नीरज ने कहा.

‘‘मैंने कहा , मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनने वाली. क्या मुझे ऐसीवैसी लड़की समझ रखा है. जो राह चलते आवारा किस्म के लड़के के मुंह लगे.’’ रागिनी बोली.

 ‘‘देखो रागिनी, तुम्हारा गुस्सा अपनी जगह जायज है. मैं जानता हूं कि तुम ऐसीवैसी लड़की नहीं, खानदानी लड़की हो. लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं सुनी तो मेरा भाई जो तुम से प्यार करता है, मर जाएगा. तुम उसे बचा लो.’’ नीरज रागिनी के सामेन गिड़गिड़ाया.

‘‘तुम्हारा भाई मरता है तो मेरी बला से. मैं उसे प्यार नहीं करती. एक बात कान खोल कर सुन लो कि आज के बाद इस तरह की वाहियात बात फिर मेरे सामने मत दोहराना, वरना इन का परिणाम बहुत बुरा होगा, समझे.’’ नीरज को खरीखोटी सुनाती हुई रागिनी और सिया चली गईं.

रागिनी की बातें नीरज के दिल को लग गई थी. उसे कतई उम्मीद नहीं थी कि रागिनी उसे ऐसा जवाब दे सकती है. रागिनी की बातों से उसे काफी गहरा आघात पहुंचा था. चूंकि मामला उस के भाई के प्यार से जुड़ा हुआ था इसलिए उस ने रागिनी के अपमान को अमृत समझ कर पी लिया था. उस समय तो नीरज और उस के दोस्तों ने उसे कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन नीरज ये बात अपने तक सीमित नहीं रख सका.

उस ने घर जा कर यह बात प्रिंस से बता दी. भाई की बात सुन कर प्रिंस गुस्से से उबल पड़ा कि रागिनी की ऐसी मजाल जो उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया. अगर वो मेरे प्यार को ठुकरा सकती है तो मैं भी उसे जीने नहीं दूंगा. अगर वो मेरी नहीं हो सकती तो मैं किसी और की भी नहीं होने दूंगा.

प्रिंस के गुस्से को नीरज और उस के दोस्तों ने और हवा दे दी थी. रागिनी के प्यार में मर मिटने वाला जुनूनी आशिक प्रिंस ठुकराए जाने के बाद एकदम फिल्मी खलनायक बन गया था

उस दिन के बाद से रागिनी जब भी कहीं आतीजाती दिखती थी, प्रिंस चारों दोस्तों के साथ मिल कर अश्लील शब्दों की फब्तियां कस कर उसे जलील करता, उसे छेड़ता रहता था. और तो और वह दोस्तों को लेकर उस के घर तक धमकाने के लिए पहुंच जाता था.

लिख दिया मौत का परवाना प्रिंस के इस रवैये से उस के घर वाले परेशान हो गए थे. डर के मारे रागिनी ने घर से बाहर निकलना छोड़ दिया था. उस ने स्कूल जाना भी  बंद कर दिया था. प्रिंस का खौफ रागिनी के दिल में बैठ गया था. जब बात हद से आगे बढ़ गई तो रागिनी ने पिता जितेंद्र दुबे ने बांसडीह रोड थाने में प्रिंस और उस के दोस्तों के खिलाफ लिखित शिकायत की

लेकिन प्रधान कृपाशंकर की राजनैतिक पहुंच की वजह से मामला वहीं रफादफा हो गया था. इस के बाद प्रिंस और भी उग्र हो गया. वह सोचता था कि जितेंद्र दुबे ने उस के खिलाफ थाने में शिकायत करने की जुर्रत कैसे की.

बात अप्रैल, 2017 की है. प्रिंस अपने तीनों दोस्तों नीरज, सोनू और दीपू यादव को लेकर जितेंद्र दुबे के घर गया और उन्हें धमकाया कि आज के बाद तुम्हारी बेटी रागिनी अगर स्कूल पढ़ने गई तो वो दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. इस की धमकी के बाद रागिनी के घर वाले डर गए. उन्होंने उसे स्कूल भेजना बंद कर दिया. वह कई महीनों तक स्कूल नहीं गई

इस वर्ष उस का इंटरमीडिएट था. स्कूल में परीक्षा फार्म भरे जा रहे थे. परीक्षा फार्म भरने के लिए वह 8 अगस्त, 2017 को छोटी बहन सिया के साथ स्कूल जा रही थी. पता नहीं कैसे प्रिंस को रागिनी के आने की खबर मिल गई और उस ने उस का गला रेत कर हत्या कर दी.

बहरहाल, पुलिस ने रागिनी हत्याकांड के नामजद 5 आरोपियों में से 2 आरोपियों प्रिंस और दीपू यादव को तो गिरफ्तार कर लिया. बाकी के 3 आरोपी प्रधान कृपाशंकर, नीरज तिवारी और सोनू फरार होने में कामयाब हो गए. आरोपियों को गिरफ्तार करने को ले कर मृतका की बड़ी बहन नेहा तिवारी सैकड़ों छात्रछात्राओं के साथ कलेक्टे्रट परिसर पहुंची और धरने पर बैठ गई

उन लोगों ने परिवार के सदस्यों को मिल रही धमकी के लिए पुलिस प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया. कांग्रेस के नेता सागर सिंह राहुल ने भी लापरवाही बरतने के लिए पुलिस प्रशासन को कोसा. तब कहीं जा कर बाकी के आरोपियों प्रधान कृपाशंकर तिवारी, सोनू तिवारी और नीरज तिवारी ने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया.

कथा लिखे जाने तक पांचों में से किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. होनहार बेटी की मौत से पिता जितेंद्र दुबे काफी दुखी हैं. उन्होंने शासनप्रशासन से गुहार लगाई है कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकारें यदि बेटियों की सुरक्षा नहीं कर सकतीं तो उन्हें पैदा होने से पहले ही कोख में मार देने की इजाजत दे दें, ताकि बेटियों को ऐसी जिल्लत और जलालत की मौत रोजरोज मरना पड़े.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

                                           

विधायक ने क्यों किया बलात्कार

कविता के परिवार और विधायक कुलदीप सेंगर के परिवार के बीच क्या दुश्मनी थी, यह अलग बात है, लेकिन बलात्कार का मामला गंभीर है. अगर कुलदीप सेंगर विधायक होते तो क्या पुलिस ऐसा ही व्यवहार करती. हकीकत तो यह है कि कुरसी पर बैठने के बाद नेता खुद को बादशाह से कम नहीं समझता…   

राजनीति में किसी तरह के षडयंत्र से लाभ लेने वाले लोगों की कभी कमी नहीं रही. नेता को अपना विरोध कभी पसंद नहीं आता. ऐसे में  करीबी से करीबी लोग भी दुश्मन बन जाते हैं. राजनैतिक लोगों पर आरोप भी लगते रहते हैं. कभीकभी इन आरोपों में सच्चाई भी होती है. अपनी पावर के गुरूर में कुछ नेता ऐसे काम कर बैठते हैं, जो उन के गले की फांस बन जाता है.

बलात्कार जैसे मुद्दे बेहद संवेदनशील होते हैं. अगर ऐसी घटनाएं साजिशन होने लगें तो असल घटनाओं पर यकीन करना भी मुश्किल हो जाएगा. उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में लड़की के बलात्कार और उस के पिता की हत्या से राजनीति का क्रूर चेहरा बेनकाब होता है. जरूरत इस बात की है कि साजिश का परदाफाश हो और पीडि़त को न्याय मिले. सच्चाई साबित होने से षडयंत्र बेनकाब होगा और आगे ऐसे मामलों को रोकने में मदद मिलेगी.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से यही कोई 56 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के माखी गांव का मामला कुछ ऐसा ही है. कविता के पिता और दोनों चाचा 15 साल पहले विधायक कुलदीप सेंगर के बेहद करीबी हुआ करते थे. गांव में कुलदीप के घर से कुछ घर छोड़ कर उन का भी मकान है.

कविता की 3 बहनें और एक भाई है. एक ही जाति के होने के कारण आपसी तालमेल भी अच्छा था. दोनों परिवार एकदूसरे के सुखदुख में शामिल होते थे. आपस में घनिष्ठ संबंध थे. दोनों ही परिवार माखी गांव के सराय थोक के रहने वाले थे. कविता के ताऊ सब से दबंग थे.

कुलदीप सेंगर ने युवा कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू की. चुनावी सफर में कांग्रेस का सिक्का कमजोर था तो वह सन 2002 में विधानसभा का पहला चुनाव बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लड़े और उन्नाव की सदर विधानसभा सीट से विधायक बन गए.

कुलदीप के विधायक बनने के बाद कविता के घर वालों के साथ कुलदीप का व्यवहार बदलने लगा. अब वह उस परिवार से दूरी बनाने लगे थे. इस की अपनी वजहें भी थीं, जहां पूरा समाज कुलदीप को विधायकजी कहने लगा था, वहीं कविता के ताऊ कुलदीप को नाम से बुलाते थे.

कुलदीप ने अपनी छवि को बचाने के लिए इस परिवार से दूरी बनानी शुरू की. कविता के पिता और उन के दोनों भाइयों को लगा कि कुलदीप के भाव बढ़ गए हैं. उस में घमंड गया है. वह किसी किसी तरह से उन को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहे

इस का नतीजा यह हुआ कि उन के बीच मनमुटाव बढ़ता गया. जब आपस में दुश्मनी बढ़ने लगी तो विरोधी भी इस दरार को चौड़ा करने में लग गए. एक तरफ जहां कविता का परिवार कुलदीप का विरोध कर रहा था, वहीं कुलदीप अपना राजनीतिक सफर आगे बढ़ाते गए. कुलदीप सिंह सेंगर का नाम उन्नाव जिले की राजनीति से उठ कर राजधानी लखनऊ तक पहुंचने लगा.

बारबार की जीत ने बढ़ाए विधायक कुलदीप सेंगर के हौसले सत्ता के साथ संतुलन बनाए रखना कुलदीप भी सीख गए थे. अपने स्वभाव और ताकत से वह चुनाव जीतने का पर्याय बन चुके थे. ऐसे में वह दल बदल भी करने लगे. कुलदीप ने सन 2007 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्र से जीता और 2012 में इसी पार्टी से भगवंतनगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए. कुलदीप की पत्नी संगीता सेंगर भी उन्नाव में जिला पंचायत की अध्यक्ष बन गईं.

उस समय उन्नाव जिले को महिला सशक्तिकरण की मिसाल कहा जाता था, क्योंकि वहां जिला पंचायत अध्यक्ष ही नहीं डीएम और एसपी की कुरसी को भी महिला अधिकारियों ने संभाल रखा था. 3 बार के विधायक कुलदीप सिंह को उम्मीद थी कि अखिलेश सरकार में उन्हें मंत्री पद मिलेगा, पर ऐसा नहीं हुआ

इतना ही नहीं, कुलदीप सेंगर को जब लगा कि उन्हें पार्टी में दरकिनार किया जाने लगा है तो व्यथित हो कर उन्होंने सपा छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. 2017 का विधानसभा चुनाव उन्होंने भाजपा के टिकट पर लड़ा और विधायक बने. बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्र से विधायक बन जाने के बाद उन की भाजपा के वरिष्ठ नेताओं तक अच्छी पहुंच हो गई. अब उन का कद भी बढ़ गया था.

उधर विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और कविता के परिवार की रंजिश गहरी होती गई. उन्नाव जिले की पहचान दबंगों वाली है. अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की वहां बहुतायत है. माखी गांव को आसपास क्षेत्र के गांवों से संपन्न समझा जाता है. यहां कारोबार भी दूसरों की अपेक्षा अच्छा चलता है. कविता के ताऊ पर करीब एक दरजन मुकदमे माखी और दूसरे थानों में कायम थे. करीब 10 साल पहले उन्नाव शहर में भीड़ ने ईंटपत्थरों से हमला कर के कविता के ताऊ को मार दिया था.

कविता के परिवार के लोगों ने इस घटना का जिम्मेदार विधायक कुलदीप को ही माना था. तब से दोनों परिवारों के बीच दूरी और बढ़ गई. कविता के ताऊ की मौत के बाद उस के चाचा उन्नाव छोड़ कर दिल्ली चले गए थे. वहां उन्होंने अपना इलैक्ट्रिक वायर का बिजनैस शुरू किया. उन पर करीब 10 मुकदमे थे. गांव में अब कविता के पिता अकेले रह गए. उन के ऊपर भी 2 दरजन मुकदमे कायम थे. नशा और मुकदमों का बोझ उन्हें बेहाल कर चुका था.

बलात्कार के आरोप के बावजूद पुलिस ने पूछताछ तक नहीं की विधायक से कविता और विधायक कुलदीप सेंगर के परिवार में दुश्मनी का खतरनाक मोड़ जून, 2017 में तब आया, जब कविता और उस के परिवार ने विधायक कुलदीप सेंगर पर बलात्कार का आरोप लगाया. जानकारी के अनुसार जून, 2017 में राखी नामक महिला कविता को ले कर विधायक कुलदीप के पास गई. जहां विधायक ने उसे बंधक बना कर उस के साथ बलात्कार किया. बलात्कार का आरोप विधायक के भाई और साथियों पर भी लगा.

घटना के 8 दिन बाद कविता औरैया जिले के पास मिली. कविता और उस के पिता ने इस बात की शिकायत थाने में की. तब पुलिस ने 3 आरोपी युवकों को जेल भेज दिया. पुलिस ने घटना में विधायक का नाम शामिल नहीं किया. कविता और उस का परिवार विधायक का नाम भी मुकदमे में शामिल कराना चाहते थे.

एक साल तक कविता और उस का परिवार विधायक के खिलाफ गैंगरेप का मुकदमा लिखाने के लिए उत्तर प्रदेश के गृह विभाग से लेकर उन्नाव के एसपी तक भटकता रहा. इस के बाद भी विधायक के खिलाफ एफआईआर नहीं हुई

विधायक के खिलाफ मुकदमा लिखे जाने के कारण कविता और उस के परिवार के लोगों ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत कोर्ट से मुकदमा लिखाए जाने की अपील की.

इस के बाद 3 अप्रैल, 2018 को विधायक के छोटे भाई ने कविता के पिता के साथ मारपीट की और मुकदमा वापस लिए जाने को कहा. कविता और उस के परिवारजनों ने पुलिस में मुकदमा लिखाया. इस के साथ विधायक के लोगों की तरफ से भी मुकदमा लिखाया गया

पुलिस ने क्रौस एफआईआर लिखी पर एकतरफा काररवाई करते हुए केवल कविता के पिता को ही जेल भेज दिया. विधायक पक्ष के लोगों से पुलिस ने पूछताछ तक नहीं की.

कविता का आरोप है कि जेल में विधायक के लोगों ने उस के पिता की खूब पिटाई की. 8 अप्रैल, 2018 को कविता अपने परिवार के लोगों के साथ राजधानी लखनऊ आई और सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास कालीदास मार्ग पहुंच गई. वहां उस ने आत्मदाह करने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया और गौतमपल्ली थाने ले गई.

डीजीपी ने इस पूरे मामले की जांच उन्नाव की एसपी पुष्पांजलि को करने के निर्देश दिए. इस बीच जेल में ही कविता के पिता की मौत हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक के शरीर पर चोट के 14 निशान मिलेउन्नाव के सीएमओ डा. एस.पी. चौधरी की अगुवाई में 3 डाक्टरों के पैनल ने पोस्टमार्टम किया. मृतक के पैर, हाथ, कमर, पीठ और पिंडली में चोट मिली. पेट में डंडे या किसी चीज से ताबड़तोड़ प्रहार होने पर आंत में घाव हो गया था. इस से वह सेप्टिसेमिया का शिकार हो गए, जो उन की मौत का कारण बना.

एक ओर बलात्कार का दर्द, दूसरी ओर पिता की मौत का गम किसी लड़की के लिए इस से दर्दनाक क्या हो सकता है कि जिस समय वह न्याय की मांग ले कर मुख्यमंत्री से मिले, उसी समय उस का पिता मौत के मुंह में चला जाए. कविता के पिता की मौत के बाद सरकार भी हरकत में गई. एसपी पुष्पांजलि ने एकतरफा काररवाई करते हुए कविता के पिता को जेल भेजने के दोषी माखी थाने के थानाप्रभारी अशोक सिंह भदौरिया सहित 6 पुलिस वालों को तुरंत सस्पेंड कर दिया. इतना ही नहीं, मामले की जांच एसआईटी और क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई

सत्ता में रहने वाले विधायक की हनक अलग होती है. उस के खिलाफ पुलिस में मुकदमा कायम करना आसान नहीं होता. कुलदीप सिंह सेंगर के मामले को देखें तो पूरी बात साफ हो जाती है. अपना विरोध करने वालों के साथ सत्ता की हनक में विधायक कुलदीप सेंगर ने जो कुछ किया, अब वह योगी सरकार के गले की फांस बन गया

उन्नाव से ले कर राजधानी लखनऊ तक केवल पुलिस ही नहीं, जेल और अस्पताल तक में जिस तरह से विधायक के विरोधी के साथ बर्ताव हुआ, वह किसी कबीले की घटना से कम नहीं है.

आप ने ऐसे दृश्य फिल्मों में देखे होंगे जिन में अपने विरोधी की पिटाई पानी डाल कर की जाती थी. मरणासन्न अवस्था में पीडि़त के ही खिलाफ मुकदमा कायम करा कर पुलिस की मिलीभगत से जेल भेज दिया जाता था. घायल को ले कर पुलिस सरकारी अस्पताल जाती, जहां उस का इलाज करने के बजाए जेल भेज दिया जाता. घायल को जेल में सही इलाज नहीं मिलता, जिस से वह तड़पतड़प कर मर जाता है.

यहां हकीकत में भी ऐसा ही हुआ. पुलिस से लेकर जेल और अस्पताल तक के लोग विधायक कुलदीपफिर सेंगर की धौंस के आगे नतमस्तक बने रहे.

जेल में जाने के दूसरे ही दिन घायल की मौत हो गई. मौत के बाद जागी सरकार के दबाव में पुलिस विभाग ने अपने कर्मचारियों को भले ही सस्पेंड कर दिया, पर जिला जेल और अस्पताल के लोगों को कोई सजा नहीं दी गई.

अपना दामन बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे मामले की जांच के लिए एसआईटी बना दी है. विधायक के भाई अतुल सिंह सेंगर को मारपीट के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है

मामला मीडिया द्वारा उछालने के बाद 12 अप्रैल, 2018 को विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और सहयोग देने वाली महिला राखी के खिलाफ भादंवि की धारा 363, 366, 376, 505 और पोक्सो एक्ट में मुकदमा लिखा गया. कविता के पिता की मौत के बाद पूरा मामला हाईवोल्टेज ड्रामा में बदल गया. हाईकोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया.

पूरे घटनाक्रम को देखें तो इस में विधायक की धौंस पता चलती है. रेप कांड की शिकार कविता ने जिस राखी नाम की महिला के साथ विधायक के घर जाने की बात कही थी, उस ने नया खुलासा करते हुए बताया कि यह कविता विधायक से पहले उस के बेटे पर भी रेप का आरोप लगा कर जेल भिजवा चुकी है. कविता के साथ रेप की सच्चाई जो भी हो, पर उस के पिता की पिटाई और मौत के मामले में विधायक और उन के करीबी लोगों के खिलाफ तमाम सबूत मिल रहे हैं.

कविता के पिता की जेल में मौत के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति गरमा गई. विपक्षी दलों में समाजवादी पार्टी से लेकर कांग्रेस तक ने सरकार पर आरोप लगाने शुरू कर दिए. खुद विधायक कुलदीप सेंगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने आए. मुख्यमंत्री ने विधायक से मुलाकात नहीं कर के विधायक को यह संदेश दिया कि वह पुलिस जांच में सहयोग करें.

सरकार की सख्ती के बाद कविता के पिता से मारपीट के आरोपी विधायक के भाई अतुल सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. कविता ने इस के बाद भी अपनी लड़ाई जारी रखी है. कविता का कहना है कि पूरे मामले में विधायक भी दोषी है, उन की भी गिरफ्तारी होनी चाहिए.

सरकारी अधिकारी पूरे मामले में विधायक की भूमिका की भी जांच कर रहे हैं. सरकार ने एसआईटी गठित कर दी है. एसआईटी की जांच टीम के अधिकारी राजीव कृष्ण ने माखी गांव जा कर पूरा मामला समझा और अपनी जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दी. इस के आधार पर पुलिस के साथ ही जिला अस्पताल के डाक्टर के खिलाफ भी कड़ी काररवाई करने के संकेत दिए.उत्तर प्रदेश सरकार ने सीबीआई को पूरे मामले की जांच सौंप दी है, जिस से उन्नाव कांड को ले कर हो रही राजनीति के प्रभाव को दबाया जा सके और सरकार की छवि भी बची रहे.

विधायक कुलदीप सेंगर ने खुद एसएसपी लखनऊ के सामने पेश हो कर अपनी सफाई दी. दूसरी तरफ विधायक की पत्नी संगीता सेंगर उत्तर प्रदेश के डीजीपी .पी. सिंह से मिलीं और उन्हें बताया कि पूरा मामला राजनीतिक षडयंत्र से प्रेरित है. ऐसे में कविता और उन के पति का नारको टेस्ट कराया जाएसंगीता ने यह भी दावा किया कि उन के पति और कविता की कभी मुलाकात ही नहीं हुई. भारी दबाव के कारण आखिर सीबीआई को आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को गिरफ्तार करना पड़ा. सीबीआई ने 13 अप्रैल, 2018 रात 10 बजे विधायक को गिरफ्तार कर लिया. अब इलाहाबाद हाईकोर्ट इस पूरे मामले की जांच की निगरानी करेगा.

चीफ जस्टिस डी.बी. भोसले की बेंच ने सीबीआई से 2 मई को जांच की स्टेटस रिपोर्ट मांगी है. कोर्ट ने आदेश दिया है कि सीबीआई कानून के तहत सख्ती से जांच करे. घटना के बाद से लड़की को ले कर तमाम तरह के औडियो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे, जिन से पता चलता है कि घटना के पीछे दुश्मनी की वजह को रख कर एक राजनीतिक रंग भी दिया जा रहा है. सत्ता में शामिल खुद भाजपा 2 खेमों में बंट गई है. इन वजहों से जांच का सही पक्ष सामने आना मुश्किल लग रहा है. ऐसे में अब कोर्ट के फैसले से ही सच का पता चल सकेगा. द्य

बलात्कार कानून के मद्देनजर पीडि़त और उस के पक्ष की हर पहचान छिपाने के लिए नाम नहीं लिखा गया है और कविता राखी परिवर्तित नाम हैं.

 

कमरे का सीन देखकर पुलिस शौक्ड

गुलशबा जिस स्थिति में मनोज को मिली थी, वह चाहता तो उस का फायदा उठाकर भटकने के लिए छोड़ देता. लेकिन उसने न केवल गुलशबा से शादी की, बल्कि उस के लिए धर्म बदल कर कैफ भी बन गया. इस के बावजूद उसे मिली मौत. वह भी गुलशबा और उस के प्रेमी रिजवान कुरैशी के हाथों. 6 जनवरी, 2018 को महानगर मुंबई से सटे ठाणे जनपद के तालुका भिवंडी स्थित कसाईवाड़ा का रहने वाला

शादाब कुरैशी अपना धंधा बंद कर जब घर पहुंचा तो उसे जो खबर मिली, उसे सुन कर उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. फोन पर उस की बुआ के बेटे रिजवान कुरैशी ने बताया कि 3-4 दिन पहले 4-5 लोगों ने उस के बहन बहनोई के घर में घुस कर उन के साथ मारपीट की और उस के बहनोई की हत्या कर के उस की बहन गुलशबा को अगवा कर ले गए.

मैं मौके पर मौजूद था. मैंने जब उन का विरोध किया तो उन्होंने मारपीट कर मुझे भी घायल कर दिया. गुलशबा अपने पति मनोज सोनी उर्फ कैफ के साथ नायगांव परिसर स्थित बिट्ठलनगर के फ्लैट में रहती थी. इस के पहले कि शादाब कुरैशी रिजवान से इस बारे में कोई बात पूछता, फोन कट गया. कई बार कोशिश के बाद भी जब रिजवान से संपर्क नहीं हो पाया तो सच्चाई जानने के लिए शादाब बहन के फ्लैट पर पहुंच गया.

फ्लैट के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी, अंदर से थोड़ी बदबू भी आ रही थी. पड़ोसियों ने बताया कि यह फ्लैट 3-4 दिनों से बंद पड़ा है. उन्होंने फोन कर के उस फ्लैट के मालिक को बुला लिया था. मामला संदिग्ध था, इसलिए मकान मालिक ने मामले की जानकारी स्थानीय पुलिस थाने को दे दी थी.

रात करीब एक बजे थाना शांतिनगर के थानाप्रभारी किशोर जाधव अपने सहायक पीआई मनजीत सिंह बग्गा, एसआई जी.के. वाघ, दिनेश लोखंडे, एएसआई डी.के. सोनवणे, सिपाही सुनील इंथापे, टी.बी. वड़ को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने देखा कि गुलशबा के फ्लैट पर ताला लटका हुआ था. चूंकि उस ताले की चाबी किसी के पास नहीं थी, इसलिए पुलिस ने ताले को तोड़ दिया. दरवाजा खुलते ही अंदर से तेज बदबू का झोंका आया, जिस से वहां खड़े लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया.

नाक पर रूमाल रख कर पुलिस टीम जब कमरे में गई तो वहां का नजारा देख कर स्तब्ध रह गई. फर्श पर खून के जमे हुए धब्बे नजर आ रहे थे, जो सूख कर काले पड़ गए थे.

दरवाजे के पीछे कपड़ों का एक पुलिंदा रखा हुआ था, जिस से ढेर सारा खून निकल कर बाहर आ गया था. उस पुलिंदे को खोला गया तो उस में एक आदमी की लाश थी. लाश का धड़ और सिर दोनों अलगअलग थे. शादाब कुरैशी ने उस लाश की शिनाख्त अपने बहनोई मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ के रूप में की.

लाश देखकर लग रहा था कि उस की हत्या 3-4 दिन पहले की गई होगी,जिस से शव में सड़न पैदा हो गई थी. थानाप्रभारी किशोर जाधव ने इस की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. खबर पाते ही ठाणे जिले के डीसीपी मनोज पाटिल, एसीपी मुजावर तत्काल मौकाएवारदात पर आ गए. उन्होंने भी मृतक के साले शादाब और अन्य लोगों से पूछताछ की.

घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिवंडी के आईजीएस अस्पताल भेज दिया. इसके बाद पुलिस ने शादाब कुरैशी की तरफ से हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर के मामले की जांच सहायक पीआई मंजीत सिंह बग्गा को सौंप दी. शादाब ने शक अपनी बुआ के बेटे रिजवान पर ही जताया था. फुफेरे भाई के अलावा रिजवान रिश्ते में शादाब का साला भी था.

संदेह के दायरे में रिजवान कुरैशी शुरुआती जांच में रिजवान कुरैशी पुलिस के रडार पर आ गया था. उस ने जिस प्रकार से मामले की जानकारी शादाब कुरैशी को दी थी, वह आधीअधूरी थी. इस के अलावा मृतक के तीनों बच्चे अपने नानी के घर सहीसलामत थे. बच्चों की मां गुलशबा खुद उन्हें बच्चों को मायके छोड़ कर आई थी. ऐसे में गुलशबा के अपहरण का तो सवाल नहीं उठता था. एपीआई मंजीत सिंह बग्गा के निर्देशन में पुलिस टीम उस के घर गई तो वह घर से गायब मिला.

पुलिस ने जब रिजवान कुरैशी के बारे में गहराई से जांचपड़ताल की तो पता चला कि रिजवान कुरैशी का चरित्र ठीक नहीं है. मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने गुलशबा को भी जांच के घेरे में शामिल कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने रिजवान के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में यह जानकारी मिल गई कि रिजवान की किनकिन लोगों से बात होती थी. पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ शुरू कर दी. इस पूछताछ के बाद पुलिस को रिजवान के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचना मिल गई.

इसके बाद एपीआई मंजीत सिंह बग्गा ने एसआई दिनेश लोखंडे, कांस्टेबल सुनील इंथापे, टी.बी. वड़, के.टी. मोहिते की एक टीम बना कर उन्हें रिजवान कुरैशी और गुलशबा की गिरफ्तारी के लिए रवाना कर दिया.

10 जनवरी, 2018 को यह टीम उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली पहुंच गई. वहां दबिश दे कर पुलिस ने रिजवान और गुलशबा को गिरफ्तार कर लिया. वे दोनों अपने एक जानकार के यहां छिपे हुए थे. पुलिस उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर ले कर थाना शांतिनगर ले आई.

थानाप्रभारी किशोर जाधव ने उन दोनों से मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने थोड़ी सख्ती के बाद कैफ की हत्या करने की बात स्वीकारते हुए जो कहानी बताई वह एहसान फरामोशी की सारी हदें पार कर देने वाली थी—

इंसानियत का तकाजा करीब 10 साल पहले 28 वर्षीय गुलशबा कुरैशी मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ को उत्तर प्रदेश के आगरा दिल्ली हाईवे पर काफी दयनीय हालत में भटकती हुई मिली थी. मनोज उस हाइवे पर कटलरी की दुकान लगाता था. उस समय गुलशबा की स्थिति बहुत खराब थी, उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकल पा रही थी. लग रहा था जैसे वह कई दिनों से भूखी है.

वह मनोज कुमार सोनी के पास आ कर ऐसे गिर गई, जैसे बेहोश हो गई हो. उस की हालत देख मनोज कुमार घबरा गया. उस ने उसे अपनी दुकान के पास ही लिटाया और उस के मुंह पर पानी के छींटे मारे. कुछ देर बाद गुलशबा को होश आया तो उस ने उसे पानी पिलाया. पानी पीते ही उस की चेतना धीरेधीरे लौट आई.

इसके बाद गुलशबा ने मनोज को अपनी आपबीती बताई. गुलशबा ने उसे बताया कि वह मुंबई की रहने वाली है और वहीं के एक युवक से प्यार करती थी. वह युवक उसे घुमाने के लिए दिल्ली लाया था. दिल्ली के एक होटल में वे दोनों कई दिनों तक साथ रहे.

फिर वह युवक उसे होटल में छोड़ कर कहीं चला गया. होटल वालों ने उसे धक्के मार कर निकाल दिया. किसी तरह वह भटकती हुई यहां तक पहुंची है. अब वह अपने घर वापस नहीं लौट सकती क्योंकि घर वाले उस से बहुत नाराज हैं.

गुलशबा की आपबीती सुनने के बाद मनोज कुमार को उस से सहानुभूति हो गई. उस ने उसे धीरज बंधाया और अपनी दुकान बंद कर के खाना खिलाने के लिए एक होटल पर ले गया. बाद में वह उसे ले कर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आया और कहा, ‘‘देखो, अब तुम जहां जाना चाहती हो, चली जाओ. मैं तुम्हारी टिकट का बंदोबस्त कर दूंगा. अच्छा यही होगा कि तुम अपने मांबाप के पास लौट जाओ. उन से माफी मांग लेना. मुझे यकीन है कि वे तुम्हें माफ कर देंगे.’’

लेकिन गुलशबा ने मनोज कुमार सोनी की बात नहीं मानी. वह बोली, ‘‘मैं अब क्या मुंह ले कर उन के पास जाऊंगी. शायद वे मुझे माफ कर भी दें लेकिन समाज में हमारी क्या इज्जत रहेगी. ऐसी स्थिति में मैं वहां नहीं जाऊंगी.’’

गुलशबा की यह बात सुन कर मनोज कुमार थोड़ा गंभीर हो गया. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, अगर तुम वहां नहीं जाना चाहती हो तो यह बताओ कि तुम्हारा और कोई रिश्तेदार है, जिस के यहां तुम जाना चाहोगी. मैं वहां जाने का बंदोबस्त कर दूंगा.’’

‘‘अब मेरा कोई नहीं है. मैं कहीं नहीं जाना चाहती. मेरे नसीब में जो लिखा है, वह होगा.’’ कहते हुए गुलशबा ने अपना सिर झुका लिया.

गुलशबा के इस उत्तर से मनोज कुमार सोनी एक अजीब स्थिति में फंस गया था. अगर वह कहीं जाना नहीं चाहती तो उस का क्या होगा. एक अकेली अंजान औरत के लिए शहर सुरक्षित नहीं था. उस के साथ कुछ भी हो सकता था.

काफी समझाने के बाद भी जब गुलशबा कहीं जाने के लिए राजी नहीं हुई तो मजबूरन मनोज कुमार यह सोच कर उसे अपने घर ले आया कि मौका देख कर उसे उस के मातापिता के पास भेज देगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

मनोज कुमार के घर आने के बाद गुलशबा कुछ दिनों तक तो उदास रही फिर धीरेधीरे उस के चेहरे की उदासी घटने लगी. वक्त के साथ मनोज कुमार के साथ घुलमिल गई. मनोज कुमार अपने घर में अकेला रहता था. गुलशबा ने मनोज के घर के सारे कामकाज संभाल लिए थे.

30 वर्षीय मनोज कुमार सोनी राजस्थान के रहने वाले जगदीश प्रसाद सोनी का बेटा था. रोजीरोटी के लिए वह दिल्लीआगरा हाइवे पर कटलरी की दुकान चलाता था. वह दुकान का सारा सामान मुंबई से लाता था और आगरा घूमने आने वाले सैलानियों को बेचता था, जिस से उसे अच्छीखासी कमाई हो जाया करती थी.

गुलशबा को अपने प्रति समर्पित देख कर अविवाहित मनोज कुमार सोनी का भी झुकाव उस की तरफ हो गया. वे दोनों अब एकदूसरे की जरूरतें महसूस करने लगे थे, जिस के चलते उन के दिलों में एकदूसरे के प्रति चाहत पैदा हो गई. मन के साथसाथ तन का भी मिलन हो जाने के बाद दोनों अब सोतेजागते अपने जीवन के सतरंगी सपने सजाने लगे. मनोज गुलशबा से शादी करना चाहता था. लेकिन उन के बीच समाज और धर्म की दीवार खड़ी थी.

गुलशबा की तरफ से तो रास्ता साफ था लेकिन मनोज कुमार सोनी के घर वालों को यह रिश्ता पसंद नहीं था. उन की भी समाज में इज्जत थी. मनोज ने घर वालों की बातों को दरकिनार करते हुए खुद मुसलिम धर्म अपना कर गुलशबा से निकाह कर लिया. उस ने अपना नाम बदल कर कैफ रख लिया था.

गुलशबा से शादी कर के मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ खुश था. गुलशबा को भी अचानक में ही सही, पर एक ऐसा पति मिल गया था जो उस का हर तरह से पूरा ध्यान रख रहा था. मनोज रातदिन मेहनत कर के पत्नी को अपनी क्षमता के अनुसार सुखसुविधाएं दे रहा था.

पति के प्यार में गुलशबा भी अपनी बीती जिंदगी के पलों को भुला कर अपनी गृहस्थी में रम गई थी. दोनों के जीवन के 8 साल कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला. इस बीच गुलशबा 2 बच्चों की मां बन गई. कुल मिला कर उस की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी.

समय अपनी गति से चल रहा था. मनोज के कहने पर गुलशबा ने अपने मायके वालों से भी बातचीत करनी शुरू कर दी थी, जिससे उस के उन से भी संबंध सामान्य हो गए थे. बेटी खुश थी, उस का जीवन सुखी था, इस से ज्यादा एक मातापिता को और क्या चाहिए. मायके वालों का उस के पास आनाजाना शुरू हो गया.

8 सालों तक एक ही जगह पर रह कर जब गुलशबा का मन भर गया तो वह कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली गई. गुलशबा चाहती थी कि उस का पति मुंबई में ही अपना धंधा शुरू कर के वहीं रहे तो वह मायके वालों के करीब आ जाएगी.

यही सोच कर उस ने एक दिन कैफ को समझाते हुए कहा, ‘‘जो काम तुम आगरा में करते हो, वही काम मुंबई में भी कर सकते हो. और फिर तुम सामान तो मुंबई से ही लाते हो. सामान लाने में खर्च भी होता है. मुंबई में काम करने से यह खर्चा भी बचेगा.’’ मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ को पत्नी का सुझाव अच्छा लगा. फिर वह सन 2016 में आगरा वाली दुकान किराए पर दे कर अपने परिवार के साथ मुंबई चला गया और अपनी ससुराल के नजदीक नायगांव में किराए का घर ले कर रहने लगा.

बेटी के नजदीक आने पर मायके वाले भी खुश हुए क्योंकि उन का जब भी मन होता गुलशबा से मिलने के लिए आते रहते थे. मुंबई में गुलशबा ने एक बच्ची को जन्म दिया, जिस का नामकरण काफी धूमधाम से हुआ. जहां गुलशबा अपने मायके वालों के करीब रह कर खुश थी, वहीं मनोज उर्फ कैफ थोड़ा चिंतित और परेशान था. इस की वजह यह थी कि मुंबई में उस का कारोबार ठीक नहीं चल पा रहा था. आगरा की दुकान भी बंद हो चुकी थी.

मनोज चाहता था लौटना पर गुलशबा नहीं मानी यह सब सोच कर मनोज ने आगरा वापस लौटने का फैसला कर लिया पर गुलशबा मुंबई छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. उस ने पति को कह दिया कि वह अपने तीनों बच्चों के साथ अकेली ही मुंबई में रह लेगी, क्योंकि उस के मायके वाले पास में हैं. मनोज ने भी उस की बात मान ली. पत्नी और बच्चों की तरफ से चिंतामुक्त हो कर मनोज आगरा लौट आया. वापस लौट कर उस ने अपना व्यवसाय फिर से जमा लिया.

कुछ दिनों बाद उस का धंधा पहले की तरह चलने लगा. वह अपने धंधे में व्यस्त हो गया तो गुलशबा अपनी गृहस्थी में. लेकिन वक्त का पहिया कुछ इस प्रकार से घूमा कि उन का सुखमय परिवार तिनके की तरह बिखर गया. अपने कारोबार में मनोज कुमार उर्फ कैफ कुछ इस तरह उलझा कि अपनी पत्नी गुलशबा के लिए वक्त ही नहीं निकाल पाता था. वह साल में 2-4 बार ही गुलशबा को वक्त दे पाता था, जिस के कारण उस के और पत्नी के बीच की दूरियां बढ़ गई थीं.

मनोज कुमार का समय तो उस के कामों में निकल जाता था, लेकिन गुलशबा को उस की याद आती थी. वह अधिक दिनों तक पति की इन दूरियों को बरदाश्त नहीं कर पाई, लिहाजा 27 वर्षीय रिजवान कुरैशी से उस के नाजायज संबंध बन गए. रिजवान गुलशबा के भाई शादाब कुरैशी का साला था, जिस का गुलशबा के यहां आनाजाना लगा रहता था.

रिजवान से अवैध संबंध बन जाने के बाद गुलशबा ने पति की चिंता करनी बंद कर दी. बल्कि जब कभी पति से फोन पर बात होती तो वह उस से कह देती कि यहां की कोई चिंता मत करो और अपने काम पर ध्यान दो. पत्नी की चहकती बातों से मनोज को लगता कि गुलशबा खुश है. इस तरह गुलशबा पति के भरोसे का खून करती रही.

पत्नी के अवैध संबंधों की खबर किसी तरह मनोज के पास पहुंची तो उस के होश उड़ गए. उस ने सोचा भी न था कि जिस गुलशबा को वह रोड से उठा कर अपने घर लाया, जिस की खातिर उस ने अपना धर्म बदला, अपने घर वालों तक से बगावत की, जिसे उस ने जीने का सहारा दिया, उसे सारे ऐशोआराम दिए, वह उस के एहसानों का बदला इस प्रकार से चुकाएगी.

इस बात की सच्चाई की तह में जाने के लिए मनोज कुमार जब मुंबई गया तो उसे पत्नी का व्यवहार कुछ अजीब सा लगा. उस के पहुंचने पर पत्नी जिस तरह खुश हो जाती थी, उसे उस के चेहरे पर वह खुशी देखने को नहीं मिली. पत्नी के हावभाव से वह इतना तो समझ ही गया था कि उस के पास पत्नी और रिजवान कुरैशी के बारे में जो खबर पहुंची थी, वह कोई कोरी अफवाह नहीं थी.

इस के बाद वह खबर की पुष्टि में लग गया. इस के लिए वह सूत्र तलाशने लगा. उस ने पड़ोसियों और अपने बच्चों से बात की तो इस बात की पुष्टि हो गई कि रिजवान गुलशबा से मिलने अकसर आता रहता है. कभीकभी तो वह उस के फ्लैट पर भी रुक जाता था.

इस बारे में उस ने गुलशबा से बात की तो वह सरासर झूठ बोल गई. उस ने कहा कि उस की पड़ोसियों से बनती नहीं है, इसलिए वे सब उसे बदनाम कर रहे हैं. रिजवान तो उस का भाई जैसा है.

अपनी नौटंकी से कुछ समय के लिए तो गुलशबा ने पति को अपने झांसे में ले लिया. लेकिन 2-4 दिन में ही उस की हकीकत मनोज के सामने आ गई. मनोज ने पत्नी को रिजवान के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया. तब मनोज ने गुलशबा की जम कर पिटाई की.

पोल खुल जाने के बाद गुलशबा को बेइज्जती महसूस हुई. यह बात उस के मायके वालों को भी पता लग गई. इस सच्चाई का पता लग जाने के बाद मनोज पत्नी को मुंबई में अकेले नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने गुलशबा और बच्चों को आगरा ले जाने का फैसला कर लिया.

उस ने पत्नी से कहा कि अब हम आगरा में रहेंगे. पर गुलशबा ने मुंबई छोड़ कर जाने से मना कर दिया. इस बात पर दोनों में झगड़ा भी हुआ. मनोज उसे ले जाने की जिद पर अड़ा था. गुलशबा ने रिजवान को फोन कर बता दिया कि मनोज उसे आगरा ले जाने की जिद कर रहा है और वह यहां से जाना नहीं चाहती. इस बारे में वह कुछ करे. रिजवान भी नहीं चाहता था कि गुलशबा वहां से जाए, इसलिए गुलशबा को ले कर वह परेशान हो उठा.

लिखी गई हत्या की पटकथा  किसी तरह से उस ने गुलशबा से मुलाकात की और मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ को अपने बीच से हटाने की योजना तैयार कर ली. फिर अपनी योजना के अनुसार 2 जनवरी, 2018 की दोपहर में वह मनोज कुमार सोनी के फ्लैट पर पहुंच गया. जिस समय वह फ्लैट में आया, उस समय मनोज खाना खा कर सो रहा था. बच्चे घर के बाहर खेलने के लिए गए हुए थे.

मौका अच्छा था. वह गुलशबा के साथ उस के कमरे में गया और उस पर हमला कर दिया. लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका. अपनी जान बचाने के लिए मनोज रिजवान से भिड़ गया, जिस में रिजवान कुरैशी जख्मी हो गया.

अपने पति को रिजवान कुरैशी पर भारी होते देख गुलशबा ने रिजवान कुरैशी की मदद की. उस ने पति के दोनों हाथ पकड़ लिए, तभी झट से रिजवान ने मनोज का गला रेत दिया. मनोज नीचे गिर गया तो रिजवान ने उस का सिर काट कर धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद दोनों ने उस के धड़ और सिर को कपड़ों के पुलिंदे में बांध कर दरवाजे के पीछे छिपा दिया. फिर उन्होंने कमरे की सफाई की.

शाम होतेहोते गुलशबा अपने तीनों बच्चों को अपने मायके में छोड़ कर फ्लैट पर आ गई. फिर घर के दरवाजे पर ताला लगा कर वह रिजवान कुरैशी के साथ उत्तर प्रदेश निकल गई, जहां पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस के पहले रिजवान कुरैशी ने पुलिस और घर वालों का ध्यान भटकाने के लिए शादाब कुरैशी और अपने सारे रिश्तेदारों को एक मनगढ़ंत कहानी सुना दी थी.

थानाप्रभारी किशोर जाधव और एपीआई मंजीत सिंह बग्गा ने गिरफ्तार रिजवान कुरैशी और गुलशबा से विस्तृत पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें तलोजा जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्त न्यायिक हिरासतऌ में थे. आगे की जांच एपीआई मंजीत सिंह बग्गा कर रहे थे.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चीखती रही बेटी अम्मी दबाती रही गला

चित्रकूट में खंभे पर लटकी मिली लाश को देख कर लोग ही नहीं, पुलिस भी हैरान थी. मकर संक्रांति के मेले के चलते मृतका लड़की की पहचान होना संभव नहीं लग रहा था, लेकिन पुलिस की मेहनत रंग लाई और हत्यारे पकड़े गए.

ध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमाओं को जोड़ने वाली धार्मिक नगरी चित्रकूट में यों तो साल भर श्रद्धालुओं की आवाजाही बनी रहती है, लेकिन तीजत्यौहार के दिनों में भक्तों का जो रेला यहां उमड़ता है, उसे संभालने में पुलिस प्रशासन के पसीने छूट जाते हैं. ऐसे में यदि व्यवस्था में जरा सी चूक हो जाए तो पुलिस प्रशासन के लिए समस्या खड़ी कर सकती है. लिहाजा पुलिस प्रशासन भीड़भाड़ वाले दिनों में अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं कि व्यवस्था और सुविधाओं में कोई कमी रह जाए.

 इस साल भी जनवरी के दूसरे सप्ताह से ही चित्रकूट में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया था, जिन का इंतजार पंडेपुजारियों के अलावा स्थानीय व्यापारी भी करते हैं. कहा जाता है कि मकर संक्रांति की डुबकी श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक लाभ पहुंचाती है और यदि डुबकी सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के समय लगाई जाए तो हजार गुना ज्यादा पुण्य मिलता है.

14 जनवरी, 2018 को मकर संक्रांति की डुबकी लगाने के लिए लाखों लोग चित्रकूट पहुंच चुके थे. श्रद्धालु अपनी हैसियत के मुताबिक लौज, धर्मशाला मंदिर प्रांगणों में ठहरे हुए थे. वजह कुछ भी हो पर यह बात दिलचस्प है कि चित्रकूट आने वालों में बहुत बड़ी तादाद मामूली खातेपीते लोगों यानी गरीबों की रहती है. उन्हें जहां जगह मिल जाती है, ठहर जाते हैं और डुबकी लगा कर अपने घरों को वापस लौट जाते हैं.

चित्रकूट में दरजनों प्रसिद्ध मंदिर और घाट हैं, जिन का अपना अलगअलग महत्त्व है. हर एक मंदिर और घाट की कथा सीधे राम से जुड़ी है. कहा यह भी जाता है कि चित्रकूट में राम और तुलसीदास की मुलाकात हुई थी. इन्हीं सब बातों की वजह से यहां लगने वाले मेले में देश के दूरदराज के हिस्सों से श्रद्धालु आते हैं.

मेले में आए लोग श्री कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा भी जरूर करते हैं. लगभग 7 किलोमीटर की यह पदयात्रा करीब 4 घंटे में पूरी हो जाती है. 14 जनवरी को भी श्रद्धालु श्री कामदगिरि की परिक्रमा कर रहे थे, तभी कुछ ने यूं ही जिज्ञासावश पहाड़ी के नीचे झांका तो उन की आंखें फटी की फटी रह गईं. इसकी ह यह थी कि पहाड़ी के नीचे की तरफ लगे बिजली के एक खंभे पर एक लड़की की लाश लटकी थी. शोर हुआ तो देखते ही देखते परिक्रमा करने वाले लोग वहां रुक कर लाश देखने लगे.

वजह  पुलिस को बुलाने या सूचना देने के लिए किसी को कहीं दूर नहीं जाना पड़ा. क्योंकि भीड़ जमा होने पर परिक्रमा पथ पर तैनात पुलिस वाले खुद ही वहां पहुंच गए. पुलिस वालों ने जब खंभे पर लटकी लड़की की लाश देखी तो उन्होंने तुरंत इस की खबर आला अफसरों को दी. कुछ ही देर में थाना नयापुरा के थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. पुलिस लाश उतरवाने में लग गई.

पुलिस काररवाई के चलते भीड़ यह निष्कर्ष निकाल चुकी थी कि लड़की अपने घर वालों के साथ आई होगी और खाईं में गिर गई होगी. लेकिन पुलिस ने जब खंभे से लाश उतारी तो न केवल पुलिस वाले बल्कि मौजूद भीड़ भी हैरान रह गई. क्योंकि तकरीबन 11-12 साल की लग रही उस लड़की के मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था.

मुंह में कपड़ा ठूंसा होने पर मामला सीधेसीधे हत्या का लगने लगा. पुलिस भी यह मानने लगी कि हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेंकी होगी. क्योंकि अभी तक आसपास के किसी थाने से किसी लड़की की गुमशुदगी की खबर नहीं आई थी.

चित्रकूट में लड़की की लाश मिलने की खबर आग की तरह फैली तो लोग तरहतरह की बातें करने लगे. पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट गई, जिस में बताया गया कि उस लड़की की हत्या गला घोंट कर की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302 और 201 के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

उस वक्त चित्रकूट में बाहरी लोगों की भरमार थी. इसी वजह से लाश की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. फिर भी पुलिस कोशिश में लग गई कि शायद कोई सुराग मिल जाए. अब तक की जांच से यह स्पष्ट हो गया था कि मृतका चित्रकूट की हो कर कहीं बाहर की रही होगी.

इस तरह के ब्लाइंड मर्डर पुलिस के लिए केवल चुनौती बल्कि सरदर्द भी बन जाते हैं. इस मामले में भी यही हो रहा था. हत्यारों तक पहुंचने के लिए लाश की शिनाख्त जरूरी थी

पुलिस वालों ने सब से पहले सीसीटीवी फुटेज देखने का फैसला लिया, लेकिन यह भी आसान काम नहीं था, क्योंकि मकर संक्रांति के वक्त चित्रकूट में सैकड़ों कैमरे लगे हुए थे. यह जरूरी नहीं था कि सभी फुटेज देखने के बाद भी इतनी भीड़भाड़ में वह लड़की दिख जाए. पर सीसीटीवी फुटेज देखने के अलावा पुलिस के पास कोई और रास्ता भी नहीं था.

चित्रकूट में इस हत्या की चर्चा तेज होने लगी तो सतना के एसपी राजेश हिंगणकर ने मामला अपने हाथ में ले लिया. उन्होंने जांच में जुटी पुलिस के साथ बैठक की और कुछ दिशानिर्देश दिए. पुलिस टीम के लिए यह काम भूसे के ढेर से सुई ढूंढने जैसा था. पुलिस टीम सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने में जुट गई. पुलिस की मेहनत रंग लाई.

12 जनवरी, 2018 की एक फुटेज में एक युवक और युवती के साथ वह लड़की दिखी तो पुलिस वालों की आंखें चमक उठीं

उत्साहित हो कर पुलिस ने और फुटेज खंगालीं तो इस बात की पुष्टि हो गई कि जिस लड़की की लाश पुलिस ने बरामद की थी, वह वही थी जो फुटेज में युवकयुवती के साथ थी. यह फुटेज जानकीकुंड अस्पताल की थी, जहां युवक युवती मरीजों वाली लाइन में लगे थे.

उस दिन स्नान के लिए वहां लाखों लोग आए थे. इसलिए यह पता लगाना आसान नहीं था कि वह युवक और युवती कहां के रहने वाले थे, इसलिए पुलिस ने ये फुटेज सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिए, जिस से उन तक जल्द से जल्द पहुंचा जा सके

फुटेज सोशल मीडिया पर डालने के बाद भी पुलिस को उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर हत्यारे का सुराग देने पर 10 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया गया. इसी दौरान पुलिस वालों ने जानकीकुंड अस्पताल के रजिस्टर की जांच भी शुरू कर दी थी.

अस्पताल में आए मरीज का नामपता जरूर लिखा जाता है लेकिन हजारों की भीड़ में यह पता लगा पाना मुश्किल काम था कि जो चेहरे कैमरे में दिख रहे थे, उन के नाम क्या थे. इस के बाद भी पुलिस वाले नामपते छांटछांट कर अंदाजा लगाने में लगे रहे कि वे कौन हो सकते हैं. इस प्रक्रिया में 25 दिन निकल चुके थे और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस के हाथ कामयाबी नहीं लग रही थी.

चित्रकूट के लोगों की दिलचस्पी भी अब मामले में बढ़ने लगी थी. उन्हें सस्पेंस इस बात को ले कर था कि देखें पुलिस कैसे हत्यारों तक पहुंचती है और पहुंच भी पाती है या नहीं.

अस्पताल के रजिस्टर में दर्ज जिन नामों पर पुलिस ने शक किया और जांच की, उन में एक नाम उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के विजय और उस की पत्नी आरती का भी था. एसपी के निर्देश पर एक पुलिस टीम विजय के गांव ऐंझी पहुंच गई.

विजय से सीधे पूछताछ करने के बजाय पुलिस ने पहले उस के बारे में जानकारी हासिल की तो एक जानकारी यह मिली कि उस की 10-11 साल की एक बेटी नेहा भी थी, जो लगभग एक महीने से नहीं दिख रही है.

पुलिस ने चित्रकूट से लड़की की जो लाश बरामद की थी, उस की उम्र भी 10-12 साल थी. यह समानता मिलने पर पुलिस की जिज्ञासा बढ़ गई. इस के बाद पुलिस विजय के घर पहुंच गई. उस समय उस की पत्नी आरती भी घर पर मौजूद थी. पुलिस ने जब उन दोनों से उन की बेटी नेहा के बारे में पूछा तो वह बोले कि उन की कोई बेटी नहीं थी, केवल एक बेटा ही है. 

उन की बातों से लग रहा था कि वह झूठ बोल रहे हैं क्योंकि उनके पड़ोसियों ने बता दिया था कि इन की 10-11 साल की एक बेटी नेहा थी, जो पता नहीं कहां चली गई है. इसी शक के आधार पर पुलिस विजय और उस की पत्नी आरती को चित्रकूट ले आई.

थाने में उन दोनों से जब पूछताछ शुरू हुई तो दोनों साफ मुकर गए कि उन की कोई बेटी भी है. तब पुलिस ने उन्हें सीसीटीवी फुटेज दिखाई, जिस में उन के साथ 10-11 साल की बच्ची थी. फुटेज देखते ही दोनों बगले झांकने लगे. उसी समय दोनों ने आंखों ही आंखों में कुछ बात की और चंद मिनटों में ही बेटी की हत्या का राज उगल दिया.

पुलिस वाले यह जान कर आश्चर्यचकित रह गए कि आरती का असली नाम सबीना शेख है और वह मुसलमान है. सबीना की शादी सन 2006 में उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के ही निवासी जाहिद अली से हुई थी. जाहिद से उसे 2 बच्चे हुए, पहली बेटी सिमरन और दूसरा बेटा साजिद जो 5 साल का है

सबीना जाहिद के साथ रह जरूर रही थी, लेकिन उस के साथ उस की कभी पटरी नहीं बैठी, क्योंकि सबीना किसी और को चाहती थी.

दरअसल सबीना और विजय एकदूसरे को बचपन से चाहते थे, लेकिन सबीना की शादी घर वालों ने उस की मरजी के खिलाफ जाहिद से कर दी थी, इसलिए सबीना जाहिद के साथ रह जरूर रही थी, लेकिन उसे वह दिल से नहीं चाहती थी

उस ने तो अपने दिल में विजय को बसा रखा था. जब दिल नहीं मिले तो उन के बीच बातबेबात झगड़ा रहने लगा. अपनी कलह भरी जिंदगी सुकून से गुजारने की गरज से सबीना ने शादी के 9 साल बाद विजय को टटोला. उसे यह जान कर खुशी हुई कि विजय उसे आज भी पहले की तरह चाहता है और उसे बच्चों सहित अपनाने को तैयार है.

बस फिर क्या था बगैर कुछ सोचेसमझे एक दिन वह पति को बिना बताए विजय के साथ भाग गई. यह सन 2015 की बात है.  योजनाबद्ध तरीके से दोनों भाग कर ऐंझी गांव आ कर रहने लगे. सबीना अपने बच्चों को भी साथ ले आई थी, जिस पर विजय को कोई ऐतराज नहीं था. 

अपने पुराने और पहले आशिक के साथ रह कर सबीना खुश थी. उधर जाहिद ने भी बीवी के गायब होने पर कोई भागदौड़ नहीं की, क्योंकि वह तो खुद सबीना से छुटकारा पाना चाहता था. सबीना अब हिंदू के साथ रह रही थी, इसलिए उस ने खुद का नाम आरती सिंह, बेटी सिमरन का नाम नेहा सिंह और बेटे साजिद का नाम बदल कर आशीष सिंह रख लिया था.

नए पति के साथ खुशीखुशी रह रही सबीना को थोड़ाबहुत डर अपने मायके वालों से लगता था कि अगर उन्हें पता चला तो वे जरूर फसाद खड़ा कर सकते हैं. साजिद उर्फ आशीष ने तो विजय को पापा कहना शुरू कर दिया था, लेकिन सिमरन विजय को पिता मानने को तैयार नहीं थी. सिमरन उर्फ नेहा चूंकि 10-11 साल की हो चुकी थी, इसलिए वह दुनियाजहान को समझने लगी थी. उस का दिल और दिमाग दोनों विजय को पिता मानने को तैयार नहीं थे.

आरती की बड़ी इच्छा थी कि नेहा विजय को पापा कहे. इस बाबत शुरू में तो आरती और विजय ने उसे बहुत बहलायाफुसलाया, लेकिन इस्लामिक माहौल में पली सिमरन हमेशा विजय को मामू ही कहती थी. जब इस संबोधन पर सबीना ने सख्ती से पेश आना शुरू किया तो वह सिमरन के इस मासूमियत भरे सवाल का कोई जवाब वह नहीं दे पाई कि आप ही तो कहती थीं कि ये मामू हैं, अब इन्हें पापा कैसे कह दूं. मेरे अब्बू तो दूसरे गांव में रहते हैं. चीखती रही बेटी मां दबीती रही गला

इस से विजय और सबीना की परेशानी बढ़ने लगी थी. वजह मामू और अब्बा के मुद्दे पर सिमरन बराबरी से विवाद और तर्क करने लगी थी. दोनों को डर था कि यह उजड्ड और बातूनी लड़की कभी भी उन का राज खोल सकती है क्योंकि गांव में कोई इन की असलियत नहीं जानता था. अगर गांव वाले सच जान जाएंगे तो धर्म के ठेकेदार इन का रहना और जीना मुहाल कर देते.

जब लाख समझाने और धमकाने से भी बात नहीं बनी यानी सिमरन विजय को पिता मानने को तैयार नहीं हुई तो खुद सबीना ने विजय को इशारा किया कि इस से तो अच्छा है कि सिमरन का मुंह हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए. विजय भी इस के लिए तैयार हो गया.

दोनों ने मकर संक्रांति पर चित्रकूट जाने की योजना बनाई और सिमरन से कहा कि वहां तुम्हारी आंखों की जांच भी करा देंगे. सिमरन जिद्दी जरूर थी, पर इतनी समझदार अभी नहीं हुई थी कि सगी मां के मन में पनप रही खतरनाक साजिश को भांप पाती.

12 जनवरी, 2018 को चित्रकूट कर दोनों ने जानकीकुंड अस्पताल में सिमरन उर्फ नेहा की आंखों की फ्री जांच करवाई और उस दिन उन्होंने विभिन्न मंदिरों में दर्शन किए. 13 जनवरी, 2018 को इस अंतरधर्मीय परिवार ने चित्रकूट में परिक्रमा की और रात में नरसिंह मंदिर के प्रांगण में कर सो गए

2 दिन घूमनेफिरने के बाद थकेहारे दोनों बच्चे तो जल्द सो गए, लेकिन दुनिया के सामने दोहरी जिंदगी जीते विजय और आरती उर्फ सबीना की आंखों में नींद नहीं थी. रात 12 बजे के लगभग दोनों ने गहरी नींद में सोई नेहा उर्फ सिमरन का गला मफलर से घोंट डाला. 

उस के मर जाने की तसल्ली होने के बाद दोनों यह सोच कर लाश को झाडि़यों में फेंक आए कि सिमरन की लाश को जल्द ही चीलकौए और जानवर नोचनोच कर खा जाएंगे और उन के जुर्म की भनक किसी को भी नहीं लगेगी. लाश खाईं में गिराने के बाद वे दोनों बेटे को ले कर गाजियाबाद भाग गए और कुछ दिन इधरउधर भटकने के बाद ऐंझी पहुंच गए.

पहाड़ी से लाश गिराते समय इत्तफाक से नेहा की लाश का बायां पांव खंभे में उलझ गया और लाश लटकी रह गई. 9 फरवरी, 2018 को जब सारे राज खुले तो हर किसी ने इसे वासना के लिए ममता का गला घोंटने वाली शर्मनाक वारदात कहा. बात सच भी थी, जिस का दूसरा पहलू सबीना और विजय की यह बेवकूफी थी कि वे नाम बदल कर चोरीछिपे रह रहे थे

सबीना जाहिद से तलाक ले कर सीना ठोंक कर विजय से शादी करती तो शायद सिमरन भी विजय को पिता के रूप में स्वीकार कर लेती, पर इसे इन दोनों की बुजदिली ही कहा जाएगा कि धर्म और समाज के दबाव से लड़ने के बजाय उन्होंने एक मासूम की हत्या कर के अपनी जिंदगी खुशहाल बनने का ख्वाब देख डाला. कथा संकलन तक दोनों जेल में थे. द्य