शक्की पति से तंग आकर पत्नी ने इमारत से कूदकर दी जान

एयर होस्टेस अनीशिया और मयंक दोनों ही प्रतिष्ठित परिवारों से थे और उन के वेतन भी लाखों में थे. लेकिन ईगो के चलते सामंजस्य बैठने से उन के बीच तनाव रहने लगा. संदेह के कीड़े ने दोनों के बीच की दूरियां भी बढ़ाईं. नतीजा यह निकला कि…    

13जुलाई, 2018 की बात है. एयर होस्टेस अनीशिया अपने कमरे में बैठी हुई थी. उस समय वह अपनी मां से वाट्सऐप पर चैटिंग कर रही थी. उसी समय उस का पति मयंक सिंघवी उस के पास पहुंच गया. पति के पहुंचने के बाद भी अनीशिया ने मां से चल रही चैटिंग जारी रखीमयंक पास खड़े हो कर फोन पर चल रही पत्नी की चैटिंग के मैसेज पढ़ने लगा. इसी दौरान अनीशिया की मां यानी मयंक की सास नीलम बत्रा द्वारा भेजे गए एक मैसेज को पढ़ कर मयंक को गुस्सा गया. वैसे भी पतिपत्नी के बीच अकसर किसी किसी बात को ले कर नोंकझोंक चलती रहती थी.

अनीशिया की मां ने मैसेज में कुछ ऐसी बात कही थी जो मयंक को बहुत बुरी लगी. मयंक ने पत्नी से जब इस बात की शिकायत की तो वह उलटे मयंक पर भड़क गई. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों के बीच फिर से झगड़ा बढ़ गया. अनीशिया और मयंक के बीच वैसे ही इतने मतभेद रहते थे कि बातबेबात कभी भी झगड़ा शुरू हो जाता था. इस की वजह यह भी थी कि अनीशिया थोड़े जिद्दी स्वभाव की थी. उन के झगड़े की बात दोनों के घर वालों के अलावा उन के दोस्तों को भी पता थीं. सभी उन्हें समझाते रहते थे. दोपहर के समय जब दोनों के बीच झगड़ा हो रहा था, उसी समय अनीशिया के मोबाइल पर एक कौमन फ्रैंड का फोन आया. अनीशिया ने काल रिसीव की और उस से बातें करने लगी. उस की बातों से फ्रैंड को आभास हो गया कि उन दोनों के बीच झगड़ा हुआ है. फ्रैंड ने पहले अनीशिया को और बाद में मयंक को समझाया

बहरहाल, उस दिन अनीशिया इतने गुस्से में थी कि उस ने लंच तक नहीं किया. बाद में मयंक ने भी उसे खाना खाने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी तो अकेले मयंक ने ही खाना खा लिया. बाद में मयंक अपने कमरे में चला गया. अनीशिया मूलरूप से चंडीगढ़ की रहने वाली थी. उस के पिता भारतीय सेना में अधिकारी थे, जो अब रिटायर हो चुके हैं जबकि मां नीलम बत्रा गृहिणी हैं. अनीशिया की पढ़ाईलिखाई चंडीगढ़ में ही हुई थी. बाद में उस की नौकरी लुफ्थांसा एयरलाइंस में एयर होस्टेस के रूप में लग गई थीऊंचाई पर उड़ने के साथसाथ उस की महत्त्वाकांक्षाएं भी बढ़ने लगी थीं. वह अपने सपनों के राजकुमार के बारे में भी सोचने लगी. वह चाहती कि उसे ऐसा जीवनसाथी मिले जो धनवान होने के साथसाथ उस की भावनाओं की कद्र करते हुए उसे प्यार करे.

शादी के बंधन में बंधी अनीशिया घर वाले उस के लिए उपयुक्त लड़का देख रहे थे. उन की देखभाल के चलते दक्षिणी दिल्ली के पंचशील पार्क के रहने वाले मयंक सिंघवी से बात बन गई. मयंक के पिता राजेंद्र सिंघवी वकील हैं और मां सुषमा सिंघवी गृहिणी. मयंक गुड़गांव स्थित चीन की एक कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर था, जिसे करीब 4 करोड़ रुपए सालाना का पैकेज मिलता था. अनीशिया और उस के घर वालों को मयंक सिंघवी पसंद गया. एयर होस्टेस अनीशिया बेहद खूबसूरत थी, जिसे मयंक ने पहली बार देखते ही पसंद कर लिया. दोनों तरफ से हुई बातचीत के बाद रिश्ता तय हो गया. फिर 16 फरवरी, 2016 को दिल्ली कैंट एरिया में आयोजित एक भव्य समारोह में दोनों की शादी भी हो गई.

मन में ढेरों उमंगें लिए अनीशिया अपनी ससुराल पहुंची. खूबसूरत बहू पा कर मयंक के घर वाले भी खुश थे. हनीमून के लिए मयंक और अनीशिया ने दुबई का कार्यक्रम बनाया. मयंक ने पत्नी को एक बीएमडब्ल्यू कार भी गिफ्ट की. शादी के एक सप्ताह बाद मयंक और अनीशिया दुबई चले गए. हनीमून एंजौय करने के लिए होता है लेकिन दूसरे दिन ही किसी बात को ले कर इस नवदंपति के बीच तकरार हो गई. तकरार इतनी बढ़ी कि मयंक को अपनी नवविवाहिता पर हाथ तक उठाना पड़ गया. अनीशिया को पति से ऐसी उम्मीद नहीं थी. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि खुशी के बदले उसे यह तोहफा मिलेगा. अनीशिया कमरे में बैठ कर खूब रोई. उस ने होटल से ही मां नीलम बत्रा को मैसेज भेज कर सारी बात बता दी. मां ने उसे होटल का कमरा छोड़ने की सलाह दी. तब अगले दिन अनीशिया होटल से दुबई में ही मौजूद अपने एक दोस्त के यहां चली गई और वहां से अकेली ही भारत लौटी.

नीलम बत्रा का आरोप है कि अनीशिया ने इस बात की शिकायत अपने सासससुर से की तो उन्होंने उलटे उन की बेटी को ही दोषी ठहराते हुए अपने बेटे का पक्ष लिया. मयंक और अनीशिया की घरगृहस्थी ठीक से चले, इस के लिए दोनों के ही घर वालों ने उन्हें बहुत समझाया. जिस दंपति में किसी एक जीवनसाथी के अंदर ईगो होगी, वहां कभी शांति नहीं रह सकती. ऐसे दंपति के बीच कलह जन्म ले लेती है. यही बात मयंक और अनीशिया के बीच भी थी. अनीशिया ने आरोप लगाया कि मयंक शराब पीता है और नशा चढ़ जाने के बाद एक तरह से तानाशाह सा बन जाता है. घर वालों ने समझाया तो मयंक ने वादा कर लिया कि वह शराब नहीं पिएगा. इस बात पर मयंक ने कुछ दिनों तक तो अमल किया, लेकिन बाद में वह अपने पुराने ढर्रे पर उतर आया. लिहाजा दोनों में फिर से झगड़ा रहने लगा.

दोनों के बिगड़ते रिश्तों को देखते हुए अनीशिया की मां नीलम बत्रा बीती 14 अप्रैल को दिल्ली में बेटी के पास आ गईं. वह करीब एक महीने तक बेटी के पास दिल्ली में रहीं. इस दौरान वह बेटी और दामाद को समझाती रहती थीं. मां हमेशा तो बेटी के पास रुक नहीं सकती थीं, लिहाजा महीने भर बाद चंडीगढ़ लौट गईं. नीलम के जाने के बाद दोनों फिर से झगड़ने लगे. मयंक चीन की जिस कंपनी में नौकरी करता था, उस कंपनी में वह उच्च पद पर था, जिस से उस की जिम्मेदारियां भी बहुत थीं. कभीकभी वह घर पर देर रात तक लैपटौप पर काम करता रहता था. इस वजह से वह पत्नी को उस के मनमुताबिक समय नहीं दे पाता था. 

इस से अनीशिया को शक हुआ कि मयंक का जरूर किसी युवती के साथ चक्कर चल रहा है. उस के मन में बैठा यही शक दोनों के बीच की खाई को चौड़ा करने में लग गया. मयंक ने पत्नी को कई बार समझाया कि उस का किसी से कोई चक्कर नहीं है. लिहाजा वह इस तरह का फितूर दिमाग से निकाल दे, लेकिन यह इतना आसान नहीं था. अनीशिया भी देर तक किसी से बातें करती थी. वह पता नहीं किस से चैटिंग करती थी. मयंक इस बारे में उस से पूछता तो वह टाल जाती थी. जब भी मयंक उस के मोबाइल को देखने की कोशिश करता तो वह गुस्से में भर कर उस से झगड़ने लगती. उस के इस व्यवहार से मयंक को भी शक हो गया कि जरूर उस का किसी से चक्कर चल रहा है, जिस से वह फोन पर लगी रहती है और अपना फोन छूने तक नहीं देती.

कुल मिला कर बात यह थी कि उन का झगड़ा सुलझने के बजाए उलझता जा रहा था. 5 जून को फिर से अनीशिया की मां नीलम बत्रा बेटी के पास आईं. उस वक्त मयंक के मातापिता घूमने के लिए लंदन गए हुए थे. नीलम के सामने ही मयंक और अनीशिया के बीच फिर से झगड़ा हुआ. नीलम का आरोप है कि उस दिन मयंक ने उस के ऊपर हाथ भी उठाया था. राजेंद्र सिंघवी और सुषमा जब विदेश से लौटे तो नीलम ने मयंक की शिकायत उन से की. नीलम का कहना था कि उन के बीच झगड़े की एक वजह यह भी है कि मयंक तलाकशुदा था. जबकि यह बात शादी के समय उन से छिपाई गई थी. बहरहाल, 13 जुलाई को जब मयंक और अनीशिया के बीच झगड़ा हुआ था तो मयंक अपने कमरे में मोबाइल फोन पर कुछ कर रहा था, तभी अनीशिया छत की तरफ चली गई. मयंक उसे खाना खाने के लिए मनाने की कोशिश कर चुका था, पर उस ने उस के कहने से भी खाना नहीं खाया था. मयंक ने सोचा कि थोड़ी देर में गुस्सा उतर जाएगा तो छत से नीचे जाएगी. तब फिर से उसे खाना खाने के लिए मनाएगा.

अंतिम यात्रा पर निकली अनीशिया मयंक अपने फोन के वाट्सऐप मैसेज देखने लगा, तभी उस के मोबाइल पर अनीशिया का वाट्सऐप मैसेज आया, ‘वाच मी जंप औफ द बिल्डिंग’ यह मैसेज पढ़ते ही मयंक घबरा गया. वह तेजी से छत पर गया तो उसे वहां अनीशिया नहीं दिखी. उस के घर के सामने ही एक इमारत बन रही थी. वहां काम कर रहे मजदूरों ने बताया कि अभी बिल्डिंग के नीचे कोई कूदा है. तब मयंक ने तीसरी मंजिल से नीचे की ओर देखा तो नीचे उस की पत्नी अनीशिया पड़ी थी. मयंक तुरंत नीचे आया तो लहूलुहान पत्नी को देखते ही उस की चीख निकल गई. उस के रोने की आवाज सुन कर आसपास के तमाम लोग नीचे आ गए. मयंक पत्नी को अस्पताल ले गया लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल से पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी गई तो दक्षिणी दिल्ली के हौजखास थाने की पुलिस अस्पताल पहुंच गई.

मामला एक उच्चस्तरीय परिवार का था, लिहाजा थानाप्रभारी ने यह सूचना डीसीपी रोमिल बानिया को भी दे दी. डीसीपी भी अस्पताल पहुंच गए. जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने अनीशिया की लाश एम्स की मोर्चरी में रखवा कर सूचना मृतका के घर वालों को भी दे दी. अनीशिया की मां नीलम बत्रा अपने सगेसंबंधियों के साथ दिल्ली पहुंची तो उन्होंने आरोप लगाया कि उन की बेटी ने खुदकुशी नहीं की बल्कि उस के पति ने उसे धक्का दे कर गिराया है. नीलम ने हौजखास थानाप्रभारी को शिकायत दे कर यह भी कहा कि मयंक के मातापिता भी उस की मौत के लिए जिम्मेदार हैं. मयंक उन के कहने पर ही अनीशिया को दहेज के लिए प्रताडि़त करता था, जिस से अनीशिया की उन्होंने हत्या कर दी.

मां की शिकायत पर काररवाई नीलम की शिकायत पर पुलिस मामले की जांच में जुट गई. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने लाश घर वालों को सौंपनी चाही तो नीलम बत्रा ने लाश लेने से मना कर दिया. उन्होंने बेटी का पोस्टमार्टम वीडियोग्राफी के साथ कराने की मांग की. तब पुलिस ने डाक्टरों के एक पैनल से अनीशिया का फिर से पोस्टमार्टम कराया और उस की वीडियोग्राफी भी कराई. पुलिस ने एफएसएल के वैज्ञानिकों के साथ मौके का निरीक्षण किया. इतना ही नहीं, उन्होंने घटना को डमी के साथ फिर से रिक्रिएट किया. धक्का देने और खुद नीचे छलांग लगाने की दोनों घटनाओं को रिक्रिएट किया गया.

पुलिस ने सामने की निर्माणाधीन इमारत में काम करने वाले मजदूरों से भी पूछताछ की. पुलिस को एक चश्मदीद गवाह भी मिल गया. पुलिस यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही थी कि कहीं मयंक ने पत्नी के मोबाइल से खुद के मोबाइल पर मैसेज भेजने के बाद उसे बिल्डिंग से धक्का तो नहीं दिया. 16 जुलाई को पुलिस ने मयंक सिंघवी को पूछताछ के लिए बुलाया. उस से अलगअलग तरह के 25 सवाल पूछे गए, जिन में से वह कई सवालों के जवाब नहीं दे सका. तब पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर साकेत न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी अनुज कुमार के सामने पेश किया, जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने मयंक द्वारा पत्नी को दी गई बीएमडब्ल्यू कार, डायमंड रिंग और मोबाइल फोन जांच के लिए अपने कब्जे में ले लिए हैं. पुलिस मयंक और अनीशिया के मोबाइल फोन की जांच कर रही है. इस के अलावा पुलिस मयंक सिंघवी के मातापिता को भी पूछताछ के लिए थाने बुलाएगी. अगर उन के खिलाफ कोई साक्ष्य मिलता है तो कानूनी काररवाई की जाएगी. कथा संकलन तक पुलिस मामले की जांच कर रही थी.

  

क्या प्यार में अंधी सिपाही पत्नी ने फैमिली के 5 लोगों का किया कत्ल

प्रेमी पंकज से विवाह करने के बाद नीतू ठाकुर खुश थी, लेकिन बिहार पुलिस में सिपाही की नौकरी मिल जाने के बाद वह घमंडी हो गई. इसी दौरान उस का सिपाही सूरज ठाकुर के साथ चक्कर चल गया. वासना की आग में वह इतनी अंधी हो गई कि खूनी खेल के नतीजे में 5 मौतों का मंजर सामने आया…

बिहार पुलिस की कांस्टेबल नीतू ठाकुर रात होने पर औफिस से अपने क्वार्टर पर आई थी. उस के 2 बच्चे, सास और पति काफी समय से उस का इंतजार कर रहे थे. छोटी बेटी श्रेया तो सो गई थी. सास आशा कुंवर रसोई में खाना पका रही थीं, पति पंकज कुमार सिंह साढ़े 4 साल के बेटे शिवांश के साथ बैडरूम में था. बाहर खिड़की से कमरे में बाइक की जैसे ही तेज रोशनी आई, शिवांश बोल उठा, ”मम्मी आ गइल…आ गइल.’’

भागता हुआ वह घर के मेन दरवाजे पर जा पहुंचा. मम्मी को देख कर उसे दोनों हाथों से पकड़ लिया. नीतू उसे गोद में उठाते हुए बोली, ”शिब्बू, खाना खइल!’’

ना मम्मी!’’ प्यार से शिकायती लहजे में शिवांश बोला.

ना खइल अभी तक, दादी ने कुछ देले बिया… आ पापा कहां बाडऩ हो बेटा!’’ नीतू गोद में लिए बेटे को पुचकारने लगी.

का हो कनिया, आज फिर देर से अइलू? देख तो श्रेया दूध पीए खातिर तोहरा के इंतजार करतेकरते सुत गइल बिया!’’

काहे, दूध नइखे देवलो होकरा के!’’ नीतू बोली.

कहत रही, महतारी से दूध पीयब!’’ 

सास रसोई में रोटी बेलती हुई बोली.

पंकज का करत रहुवें? हम औफिसो में ड्यूटी करीं और घर संभालीं…आ उहां के घर में खाली पलंग तोडि़हें…कोई काम करत नइखे तो कम से कम बचवन के तो संभाले के चाही!’’

उल्टा! तू रोजरोज देर से घर आवतारु, आ हमरे के ताना मारतारु…आज केकरा साथ अइलू ह! आफिस में तहार ड्यूटी तो सांझे के खत्म हो जा ला!’’ नीतू का पति पंकज नाराजगी के साथ बोला.

तू सरकारी नौकरी करब तबे न पता चली कि केतना काम करे पड़े ला…सीनियर के बात माने पड़े ला… ओकरा के बात नइखे मानब, तब हमार नौकरिए खतरा में पड़ जाई…’’

हमरा के मूरख बनवा तारु? हम नइखे जानत तहरा के काम और आफिस में ड्यूटी!’’ पंकज बोला.

का जान तर हो! जरा हमहूं तो सुनीं? …पुलिस के नौकरी बा कोने प्राइवेट नइखे! पचहत्तर गो काम करे पड़ेला…’’ नीतू बिफरती हुई बोली.

हांहां पचहत्तर गो काम में घूमेफिरे के भी बा… दोस्तयार संगे!’’ पंकज ने ताना मारा.

नीतू ठाकुर (30) बिहार में भागलपुर एसएसपी औफिस के आरटीआई सेक्शन में कांस्टेबल थी. वह रहने वाली भोजपुर जिलांतर्गत बक्सर की थी. उस ने  पुलिस में नौकरी लगने के बाद सवर्ण जाति के युवक पंकज कुमार सिंह (32 वर्ष) से प्रेम विवाह किया था. हालांकि दोनों का प्रेम संबंध काफी पहले से चल रहा था. नीतू की पहली जौइनिंग 2015 में सिपाही के तौर पर नवगछिया में हुई थी. उस के 7 साल बाद 2022 में उस की पोस्टिंग भागलपुर के एसएसपी औफिस स्थित आरटीआई सेक्शन में हो गई थी. इस तैनाती के बाद नीतू पूरे परिवार के साथ भागलपुर पुलिस लाइन के क्वार्टर नंबर सीबी-38 में आ गई थी. 

पंकज पहले अपने पैतृक शहर बक्सर के एक माल में काम करता था. वह भी पत्नी के साथ भागलपुर आ गया था और प्राइवेट जौब करने लगा था. साथ में नीतू की 65 वर्षीया सास और 2 बच्चे भी रहते थे. 

कैसे आगे बढ़ी नीतू की प्रेम कहानी

पंकज ने जब नीतू से शादी करने का फैसला लिया था, तब उसे परिवार के काफी विरोध का सामना करना पड़ा था. उन की प्रेम कहानी भी कुछ कम अनोखी नहीं थी. वे पहली बार बक्सर के एक माल में मिले थे. नीतू की मां शांति देवी जनवरी 2003 में अपने पति के निधन के बाद 4 बेटियों और एक बेटे को ले कर सारण के हरपुर जान गांव से बक्सर आ गई थीं. उन का बक्सर के नई बाजार स्थित तातो मोहल्ले में मायका था. मायके में पिता गणेश ठाकुर और भाई नागेंद्र ठाकुर के परिवार के साथ आ कर अपने पांचों बच्चों की परवरिश के लिए रहने लगी थी. इस तरह से नीतू का बक्सर ननिहाल है. उस की 2 बहनों की शादी हो चुकी थी, जबकि एक कुंवारी थी और भाई सेना में नौकरी करता था.

नीतू ने बक्सर में ही ग्रैजुएशन किया. पंकज कुमार सिंह भोजपुर जिले के मझियांव गांव का रहने वाला था. उस ने भी बक्सर कालेज से पढ़ाई की थी और बक्सर के एक माल में काम करता था. वहीं घरेलू खर्च में सहयोग देने के लिए नीतू भी काम करने आई थी, जहां उस की मुलाकात पंकज से हुई. जल्द ही वे एकदूसरे से प्यार करने लगे. जबकि वे यह जानते थे कि उन की जातियां अलगअलग हैं. पंकज नीतू से प्यार जरूर करता था और शादी भी करना चाहता था, लेकिन उसे आशंका थी कि उस के घर वाले नीतू को पसंद नहीं करेंगे. इस का मुख्य कारण नीतू का पिछड़ी जाति से होना था, जबकि पंकज सवर्ण था.

नीतू का ध्यान प्रेम संबंध को ले कर जितना था, उस से कहीं अधिक वह अपने करिअर को ले कर गंभीर थी. वह बिहार सरकार की प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होती रहती थी. पढ़ाई में अव्वल थी. दिखने में भी सुंदर और कदकाठी भी मजबूत थी. बातचीत का लहजा एकदम से स्पष्ट और ठोस था. बातें बनाना उसे नहीं आता था, लेकिन हर बात का जवाब वह तर्क के साथ देती थी. यह कहना गलत नहीं होगा कि वह एक समझदार और सुलझी हुई युवती थी और किसी को भी अपनी पहली मुलाकात में मोह लेती थी. यह बात पंकज को पसंद थी. पंकज भी कुछ इसी मिजाज का था. घर से सुखीसंपन्न था. खेतीबाड़ी थी. उस ने ठान रखा था कि सरकारी नौकरी मिले न मिले, वह एक दिन अपने पैरों पर खड़ा हो कर कुछ अलग काम करेगा. अपनी पहचान बनाएगा. 

उस के दिमाग में नई योजनाओं का आइडिया चलता रहता था. उस की यह बात नीतू को पसंद थी और उसे अपना दिल दे बैठी थी.

सिपाही बन कर नीतू क्यों हो गई घमंडी

एक दिन नीतू के लिए खुशी की वह घड़ी आ गई, जब उस ने बिहार पुलिस की प्रतियोगिता परीक्षा पास कर ली और कांस्टेबल की नौकरी मिल गई. यह जान कर पंकज भी बहुत खुश हुआ और उस ने ठान लिया कि चाहे जो अड़चन आए, वह उस से शादी जरूर करेगा. पंकज की जिंदगी में एक तरफ खुशी आई थी तो दूसरी तरफ वह तनाव से भी घिर गया था. पत्नी के ड्ïयूटी जाने पर घर संभालने की सारी जिम्मेदारी उस पर आ गई थी. न चाहते हुए उसे वह सब काम करने पड़े जो घरेलू महिलाएं करती हैं. यहां तक कि बच्चों की देखभाल में उन्हें नहलानाधुलाना, उन के कपड़ेलत्ते धोना, मलमूत्र साफ करना आदि जैसे काम भी करने पड़े. 

वह नीतू के लिए महज अपने कामधंधे के खयालों में डूबा रहने वाला एक बेरोजगार पति बन कर रह गया था. हालांकि उस के साथ उस की 65 वर्षीय मां आशा कुंवर भी रहती थीं. जैसेजैसे नीतू पर नौकरी का रंग चढऩे लगा, वैसेवैसे वह खुद को एक रुतबे वाली समझने लगी और पंकज के प्रति उस के व्यवहार में भी रूखापन आने लगा. छोटीछोटी बातों पर पंकज के काम में मीनमेख निकालने लगी थी. कई बार तो वह घर के काम में कोई गलती हो जाने पर पंकज से काफी उलझ जाती थी और बेरोजगारी का ताना मारने लगती थी.

पंकज उस के बदले हुए बरताव को समझ नहीं पा रहा था कि वह अपना बचाव कैसे करे? वह भीतर ही भीतर घुटने लगा था. उस की भावनाएं आहत होने लगी थीं. पुलिस असोसिएशन चुनाव के बाद जब से नीतू डेलिगेट्स बनी, तब से उस के व्यवहार में काफी फर्क आ गया था. उस के प्रति प्रेम में कमी आने लगी थी. इसी बीच कोरोना का दौर भी आ गया. लौकडाउन में नीतू की ड्यूटी सख्त हो गई. पंकज पर भी जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ गया. इस दौरान नीतू पंकज पर और अधिक हुकुम जताने लगी. उस के प्रति जरा भी प्यार के बोल नहीं निकलते थे. वह उसे आदेश देने लगी, जिस से वह चिड़चिड़ा हो गया. 

वह भीतरी पीड़ा से आहत था. जब भी समय मिलता, वह अपने दोनों बच्चों संग समय बिता कर या फिर खास दोस्त को दिल की बात बता कर मन हलका कर लिया करता था. नीतू के साथ खराब होते रिश्तों के कारण बच्चों पर भी असर पडऩे लगा था. तब नीतू का तबादला भागलपुर हो गया था. शिवांश की पढ़ाई को ले कर वह चिंतित रहता था. वहीं बेटे के लिए पंकज ने घर पर महिला ट्यूटर को लगा दिया था. बाद में ट्यूशन बंद करने के बाद बेटे का टेक्नो मिशन में एडमिशन करवा दिया था.

भागलपुर के पुलिस लाइन क्वार्टर में रहते पंकज और भी परेशान हो गया था. नीतू के बदले मनमिजाज और घरपरिवार के प्रति लापरवाही को ले कर पंकज ने एक दोस्त अवध को बताया था कि वह किस हद तक बेपरवाह हो गई है. घर आते ही एसी औन कर देती है और बैड पर लेट कर मोबाइल देखने लगती है. मानो उसे किसी से कोई लेनादेना ही न हो. वह बात करते हुए भाव खाती और बातबात पर उसे दुत्कार देती थी. वह उसे कमाने के लिए शहर जाने को कहती और उस की बेरोजगारी पर तंज कसती थी. वह उसे क्वार्टर से जाने के लिए भी दबाव देने लगी थी.

इसी बीच उसे नीतू के चालचलन को ले कर भी संदेह हो गया था. कारण, नीतू का पुलिस विभाग में ही काम करने वाले सूरज ठाकुर से मेलजोल काफी बढ़ गया था. उस के साथ काम करने वाला सूरज बक्सर का ही रहने वाला था. ड्यूटी खत्म होने के बाद नीतू सूरज के साथ समय गुजारने के लिए शहर में घूमने निकल जाती थी. दोनों क्लब, पार्क आदि में घंटों साथ उठतेबैठते थे. देर से क्वार्टर पर आना उस की नियमित आदत बन गई थी. वह अकसर जब सूरज के साथ बाइक पर आती थी, तब आसपास के लोग उसे गलत निगाहों से देखते थे. कई बार पड़ोसियों ने पंकज को टोका भी था और पत्नी को गैरमर्द के साथ अधिक समय तक रहने से मना करने के लिए भी कहा था.

नवगछिया में रहते हुए पंकज नीतू के रूखेपन से आहत था, जबकि भागलपुर में उस के सामने एक नई समस्या उस की बदचलनी की आ गई थी. इस की जानकारी बहुतों को थी. भोजपुर जिले के पीरो का रहने वाला उस का दोस्त अवध भी सब कुछ जानता था. उस ने जब पंकज से कोई कदम उठाने की बात कही. तब वह मायूस हो कर अपनी भाषा में बोला, ”का बोलीं अवध… बहुते प्रयास करनी कि नीतू पहिले जेंखां हो जास, लेकिन कुछो सुने के तैयारे नइखे… अब त हमरा मारे के भी उठ जा तारी… हमरे पर हाथ देत बिया… का करी दोस्त! हम नीतू के खातिर आपन गांवजवार, रिश्तानाता सभे छोड़ देहलीं, इन का के कुछो असरे ना होता…’’

जा एक बार फिर ओकरा के प्यार से समझाव… बालबच्चे के भविष्य की खातिर बोल… शायद मन बदल जाय!!’’ अवध ने सुझाव दिया.

तू कहा तार त, जा तानी आज ड्यूटी खतम होखे समय. सूरजो से बात करब, ओकरा के समझाइब.’’ पंकज बोला.

हां, यही ठीक रही.’’

और घर में मिलीं 5 लाशें

तारीख 12 अगस्त, 2024 की सोमवार का दिन था. पंकज अपने दोस्त के कहने पर शाम के वक्त नीतू के औफिस गया. दोनों वहां नहीं मिले. पता चला कि उन दोनों को साथसाथ क्लब में जाते देखा गया है. पंकज भी वहां जा पहुंचा और सूरज को नीतू के साथ हंसहंस कर बातें करते देखा. उस के इस रोमांस को देख कर पंकज और भी चिढ़ गया. उस ने नीतू को सूरज के साथ रंगेहाथों पकड़ा था. उन्हें देखते ही पंकज आगबबूला हो गया. सूरज को समझाना तो दूर वह नीतू संग ही उलझ गया. जबरदस्त बहस होने लगी. नीतू उसे गालियां देने लगी थी. उसे बेरोजगार और नामर्द तक कह डाला था. दोनों वहीं लडऩेझगडऩे लगे. उन का झगड़ा सड़क पर आ गया.

दोनों के बीच धक्कामुक्की की नौबत आ गई. पंकज नीतू को घर चलने के लिए घसीटने लगा, इस पर नीतू ने उस पर थप्पड़ जड़ दिए थे. अचानक नीतू के इस हमले से पंकज लडख़ड़ा कर गिर पड़ा था. नीतू उस पर पैर चलाने लगी थी. वहां भीड़ जुट गई थी, जबकि मौके की नजाकत को देख कर सूरज वहां से चला गया था. थोड़ी देर बाद नीतू और पंकज अपनेअपने रास्ते चले गए थे. अगले रोज 13 अगस्त, 2024 की सुबह करीब 9 बजे नीतू के घर दूध पहुंचाने वाला दूधिया आया था. काफी देर तक आवाज लगाने के बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला, तब तक वहां आसपास के क्वार्टरों में रहने वाले पुलिसकर्मी और उस के परिवार के लोग पहुंच गए. जैसे ही उन में से एक पड़ोसी कादिर ने दरवाजे पर पैर मारा तो वह टूट गया. 

क्वार्टर के पहले कमरे में जहां नीतू की सास आशा कुंवर का गला रेता हुआ शव पड़ा था. वहीं, उस कमरे के भीतर की ओर जाने वाले बरामदे की छत से लगी लकड़ी में नायलौन की रस्सी के फंदे से पंकज का शव लटका हुआ था. बरामदे के साथ के एक दूसरे कमरे में नीतू और उस के दोनों बच्चों के भी गला रेते हुए शव पड़े थे. घटना की जानकारी मिलने पर भागलपुर (पूर्वी क्षेत्र) के डीआईजी विवेकानंद, एसएसपी आनंद कुमार, एसपी (सिटी) राज, डीएसपी (सिटी) अजय कुमार चौधरी, डीएसपी (लाइन) संजीव कुमार सहित कई पुलिस पदाधिकारी मौके पर पहुंच गए. 

घटनास्थल पर पुलिस को महिला कांस्टेबल नीतू ठाकुर (30 वर्ष), उस के 2 बच्चे यानी बेटा शिवांश उर्फ शिब्बू (साढ़े 4 वर्ष) और बेटी श्रेया (साढ़े 3 वर्ष) सहित सास आशा कुंवर (65 वर्ष) का गला रेता हुआ मिला. जबकि, नीतू के पति पंकज कुमार सिंह (32 वर्ष) का शव क्वार्टर के कमरे के बाहर फंदे से लटका हुआ मिला था. पुलिस को मौके से एक सुसाइड नोट भी मिला, जिस में पंकज ने इस बात का उल्लेख किया था कि उस की पत्नी नीतू ने पहले बच्चों और उस की मां आशा कुंवर की गला रेत कर हत्या कर दी थी. इसलिए नीतू की हत्या कर वह खुद फांसी लगा कर खुदकुशी कर रहा है.

पुलिस को घटनास्थल से घटना में प्रयुक्त चाकू और खून से सनी ईंट भी मिली. इस से यह स्पष्ट हो गया था कि नीतू की सास और उस के दोनों बच्चों का गला रेता गया होगा. जबकि नीतू की गला रेतने के बाद ईंट से कूच कर हत्या किए जाने के सबूत मिले. पुलिस इस बात की जांच में जुट गई थी सुसाइड नोट के मुताबिक पहले नीतू ने बच्चों और अपनी सास की हत्या की या फिर सभी की हत्या पंकज ने ही कर के खुदकुशी कर ली. या फिर घर में घुसे किसी अन्य व्यक्ति ने घटना को अंजाम दिया और घर के पीछे आंगन से हो कर वहां से फरार हो गया. यानी कि 4 हत्याएं और एक आत्महत्या का मामला काफी गंभीर था.

सिपाही सूरज ठाकुर के प्यार से परिवार में क्यों घुला जहर

बरामद सुसाइड नोट में पंकज ने क्राइम शाखा में कार्यरत कांस्टेबल सूरज ठाकुर को इस के लिए जिम्मेदार ठहराया था. उस ने पत्नी नीतू का अवैध संबंध होने का जिक्र भी किया था. इस कारण उस पर ही वारदात का संदेह हो गया था. उसी रोज घटना की सूचना में नीतू के मामा नागेंद्र ठाकुर को सूचना दे दी गई. उन्होंने इशाकचक थाने में केस दर्ज करवा दिया. उन्होंने दर्ज शिकायत में पंकज कुमार सिंह को ही सब का हत्यारा बताया. कांस्टेबल सूरज ठाकुर को भी इस मामले में आरोपी बनाया गया. पुलिस इस हत्याकांड की जांच में जुट गई. 

पुलिस ने बीएनएस की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज करते हुए 14 अगस्त, 2024 को आरोपी सूरज ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया. उस के बारे में पता चला कि वह उस दिन दोपहर से ड्यूटी से गायब था. किशनगंज जिले के ठाकुरगंज थाना क्षेत्र में भातढाला का रहने वाला आरोपी सिपाही सूरज ठाकुर ने बिना किसी झिझक के नीतू से अपने प्रेमसंबंध कुबूल कर लिए. उस से शारीरिक संबंध की बात स्वीकार कर ली, लेकिन इस बात से इनकार किया कि इस सामूहिक हत्याकांड में उस का कोई हाथ है. सूरज के अनुसार नीतू से उस की जानपहचान भागलपुर में ही तब हुई थी, जब वह नवगछिया से ट्रांसफर हो कर एसएसपी कार्यालय के आरटीआई विभाग में आई थी. सूरज भी उसी कार्यालय के डीसीबी शाखा में तैनात था. दोनों शाखाएं एक ही कमरे में थीं. इस कारण उन की जानपहचान जल्द हो गई. उन के बीच एक संयोग और था कि दोनों एक ही बिरादरी के थे. इस कारण वे जल्द ही एकदूसरे के दोस्त बन गए थे.

सूरज सरकारी क्वार्टर में रहने के बजाय भागलपुर के सुरखीलाल मोहल्ले में किराए पर अकेले रहता था. सितंबर 2023 में सूरज कई दिनों से औफिस नहीं आया था. उसे डेंगू हो गया था. यह जान कर नीतू चिंतित हो गई थी. उन्हीं दिनों वह सूरज के कमरे पर गई. वहां उस की हालत देख कर और भी चिंतित हो गई. उस ने वहां जा कर कुछ घरेलू कामकाज निपटाए, दवाइयां दीं. इस आत्मीयता को पा कर सूरज के मन को काफी संतोष मिला. नीतू का सूरज के घर आनेजाने का सिलसिला कई दिनों तक बना रहा. वह औफिस से छुट्टी होने के बाद सूरज के पास चली जाती थी. सूरज भी उस की तीमारदारी से स्वस्थ होने लगा था. 

इस बीच इधरउधर की बातें कर एकदूसरे का मन बहला लिया करते थे. बातों ही बातों में एक दिन सूरज ने टोक दिया, ”यदि तुम पहले मिली होती तो मैं तुम से शादी कर लेता.’’  इस का जवाब नीतू ने हंसते हुए दिया था, ”अभी भी मैं जवान हूं, कहो तो पंकज को तलाक दे दूं?’’  उस के बाद दोनों हंसने लगे. सूरज बोला, ”और पंकज क्या करेगा?’’

कुछ भी करे, मुझे उस से क्या? कोई अच्छी नौकरी तो कर नहीं रहा.’’ नीतू तुनकती हुई बोली.

सूरज ने उस का हाथ थाम लिया था. धीरे से दबाता हुआ बोला, ”आई लव यू नीतू!’’

सेम टू’’ नीतू शरमाती हुई बोली.

कौन था 4 हत्याओं का जिम्मेवार

उस रोज नीतू और सूरज ने अपनेअपने दिल की बात कह डाली थी. बातों ही बातों में सूरज ने कहा था कि वह तो उसी की बिरादरी का है, चाहे तो वह उस से शादी कर सकता है. यहां तक कि उस ने नीतू और पंकज के बच्चों को अपनाने के लिए भी स्वीकृति दे दी. उस रोज एक तरह से दोनों ने विवाह करने की शपथ ले ली थी. मई 2024 में आम चुनाव होने के दरम्यान नीतू और सूरज को साथ रहने के कई मौके मिले. इसी बीच वे कामाख्या मंदिर भी घूमने गए और मौका मिलते ही दोनों ने शारीरिक संबंध भी बना लिए.

इसी साल दोनों घूमने के लिए जुलाई में दार्जिलिंग गए थे. पति पंकज से नीतू ने झूठ बोला था कि उसे वहां विशेष प्रशिक्षण के लिए बुलाया गया है. वहां भी उन्होंने शारीरिक संबंध बनाए. वारदात के दिन 12 अगस्त को नीतू ने शाम को 6 बजे सूरज को काल कर बताया कि वह पूजा करने मंदिर जा रही है. वहां से लौट कर दोबारा काल करेगी. फिर रात के करीब 8 बजे नीतू का सूरज को काल आया, लेकिन व्यस्तता की वजह से काल रिसीव नहीं कर पाया. अगले रोज जब सूरज औफिस पहुंचा, तब उसे नीतू के परिवार समेत आकस्मिक मौत की खबर मिली. वह भागाभागा नीतू के क्वार्टर पर गया. वहां बहुत भीड़ लगी थी. उस के पहुंचते ही पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

लव क्राइम की इस लोमहर्षक वारदात का एकमात्र आरोपी कांस्टेबल सूरज ठाकुर ही था, जिस के खिलाफ कथा लिखे जाने तक इशाकचक एसएचओ उत्तम कुमार की जांच जारी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह संशय बना हुआ था कि किस की मौत कब हुई और किस ने किसे मारा? रेंज डीआइजी विवेकानंद के निर्देश पर एसपी (सिटी) मिस्टर राज के नेतृत्व में गठित एसआईटी इस दिशा में तेजी से काम कर रही थी. एसएसपी आनंद कुमार स्वयं मामले की मौनिटरिंग कर रहे थे. फोरैंसिक जांच टीम ने घटनास्थल पर मिले खून लगे चाकू, तौलिया के अलावा क्वार्टर के दोनों कमरों के बैड से भी फिंगर प्रिंट के नमूने ले लिए थे.

कथा लिखने तक पुलिस नीतू के प्रेमी कांस्टेबल सूरज से पूछताछ कर रही थी. बहरहाल, नीतू के घमंड और अवैध संबंधों से एक हंसताखेलता परिवार खत्म हो गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

हर महीने 500 करोड़ का फ्रॉड

दिल्ली के व्यवसायी एक अनजान फोन काल रिसीव करते ही साइबर ठगों के जाल में फंसते चले गए. इस का अहसास उन्हें तब हुआ, जब वह उन्हें 33 लाख रुपए अपनी मरजी से दे चुके थे. आप भी जानें कि साइबर ठगों ने उन से कैसे की लाखों रुपए की ठगी?

व्यवसायी कमल हांडा टीवी पर न्यूज देख रहे थे, तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर नया नंबर था, इसलिए पहली बार में कमल हांडा ने फोन नहीं उठाया. जब दोबारा उसी नंबर से काल आई तो उन्होंने काल रिसीव करते हुए कहा, ”हैलो, मैं कमल हांडा बोल रहा हूं, आप कौन हैं?’’

दूसरी तरफ से एक महिला की आवाज आई, ”हमें कमल हांडा से ही बात करनी है.’’

”आप ने अपना परिचय नहीं दिया मैडम. आप…’’

”मेरा परिचय पूछ कर क्या मुझ से शादी करेगा? सुन मेरा नाम सीमा चौहान है और मैं लखनऊ के आरामबाग थाने से बोल रही हूं.’’

”थाने से…’’ कमल हांडा घबरा कर पलंग पर उठ कर बैठ गए, ”म…मेरा थाने से क्या लेनादेना मैडम…’’

”तेरा नहीं, हमारा तो है हांडा.’’ सीमा चौहान का स्वर उभरा, ”तेरे खिलाफ यहां थाने में 17 एफआईआर दर्ज हैं.’’

क्या कह रही हैं मैडम, मैं तो कभी लखनऊ गया भी नहीं.’’ कमल हांडा बुरी तरह घबरा गए, ”आप को अवश्य कोई गलतफहमी हुई है. आप…’’

सीमा चौहान ने उस की बात काट दी, ”तुम लखनऊ गए या नहीं गए, इस से हमें कुछ लेनादेना नहीं है. यहां तुम्हारी 17 एफआईआर दर्ज हैं और यही बताने के लिए मैं ने तुम्हें फोन किया है. ले तू एसआई महीपाल सिंह से बात कर.’’ कमल हांडा का सारा बदन पसीने से भीग गया… उन्हें अपनी सांसें गले में अटकती महसूस हुईं. उन के कान में कुछ ही क्षण बाद एक रौबदार आवाज पड़ी, ”कमल हांडा बोल रहा है न तू?’’ 

ज… जी हां साहब.’’ कमल हांडा थूक गटक कर जल्दी से बोला. 

आरामबाग थाने में तेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज है. तेरी हमें कई दिनों से तलाश थी, तुझे हम ने कई बार काल की, लेकिन तूने कभी काल अटेंड नहीं की…’’

मुझे कोई काल नहीं आई साहब. आज पहली बार मैडम ने फोन किया है.’’

यानी मैं झूठ बोल रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से एसआई महीपाल सिंह ने डपट कर कहा.

नहीं साहब… आप कह रहे हैं तो ठीक ही होगा. मैं ने ही नया नंबर देख कर फोन नहीं उठाया होगा.’’ अपनी उखड़ती सांसों पर काबू पाने का भरसक प्रयास करते हुए व्यवसायी कमल हांडा बोले, ”मैं सच कह रहा हूं साहब… मैं कभी लखनऊ नहीं गया. फिर मेरे खिलाफ 17 एफआईआर… कुछ समझ नहीं आ रहा है.’’

तू लखनऊ आ जा हांडा… किसी को कैसे समझाते हैं, वह यहां हम बता देंगे.’’

मैं बालबच्चेदार आदमी हूं साहब, मुझे लखनऊ मत बुलाइए.’’ कमल हांडा कहतेकहते रोने लगे.

तो इन 17 एफआईआर का दंड क्या तेरा बाप भुगतेगा.’’ एसआई ने घुड़क कर कहा, ”लखनऊ तो तुझे आना ही पड़ेगा, तू नहीं आएगा तो हमें तेरे घर आना पड़ेगा.’’

”साहब, मैं मर जाऊंगा. मुझ पर रहम कीजिए.’’ कमल हांडा जोरजोर से रोने लगे.

”रोना बंद कर हांडा, पहले यह जान ले कि तेरे खिलाफ 17 एफआईआर किस बात की हैं.’’

”बता दीजिए साहब…’’ कमल हांडा अपने आंसू पोंछते हुए धीरे से बोला, ”मैं फिर भी कहूंगा, मैं लखनऊ कभी नहीं गया हूं.’’ 

किसी ने तुम्हारे नाम से कोई मोबाइल सिम इश्यू करवाई होगी हांडा, उस ने उन नंबरों से हवाला और मानव तस्करी जैसे अपराध किए हैं. वह कौन है, यह हमें नहीं पता, लेकिन आधार कार्ड तुम्हारा इस्तेमाल हुआ होगा और कई सिम इश्यू करवा ली गईं. इस में अपराधी तो तुम ही हुए. हवाला और मानव तस्करी जैसा अपराध तुम्हें पूरी जिंदगी जेल में सड़ा सकता है.’’

नहीं साहब…’’ कमल हांडा जेल के नाम से थरथर कांपने लगे, ”अब बताओ, तुम लखनऊ आओगे या हम दिल्ली आएं.’’ एसआई ने गंभीर स्वर में पूछा.

मैं शरीफ आदमी हूं साहब… आप मुझे बचा लीजिए. मैं ने यह गुनाह नहीं किए हैं.’’

”देखो, इस मामले में एसपी साहब खुद दिलचस्पी ले रहे हैं. तुम उन से बात कर के देख लो. वह बताएंगे क्या कुछ हो सकता है. तुम हांडा अपनी ओर से वीडियो काल कर के एसपी साहब से आमनेसामने बात कर लो.’’ कमल हांडा ने कांपते हाथ से मोबाइल की वीडियो काल चालू की. दूसरी ओर उसे एक कमरे में लंबी मेज नजर आई, मेज पर ग्लोब, कुछ रजिस्टर और पुलिस कैप रखी दिखाई दी. उस मेज के पीछे एक चेयर पर लंबाचौड़ा वरदीधारी पुलिस अफसर बैठा दिखा. यह वरदी यूपी पुलिस की थी और ठीक ऐसी ही थी, जो एसपी पहनते हैं. उस लंबे पुलिस अफसर का रौबदार चेहरा बड़ीबड़ी सफेद मूछों से और रौबदार लग रहा था. उस के हाथ में मोबाइल फोन था. 

एसपी ने क्यों कही सेटलमेंट की बात

तुम्हीं कमल हांडा हो.’’ एसपी ने कमल हांडा के चेहरे पर तीखी नजर डालते हुए पूछा.

जी साहब,’’ कमल हांडा ने सिसकते हुए कहा, ”आप मुझे बचा लीजिए साहब, किसी ने मेरे आधार का मिसयूज किया है.’’ 

तुम अपराधी हो हांडा और तुम्हारे खिलाफ हम ने ठोस सबूत भी इकट्ठे कर लिए हैं. तुम्हें कम से कम 10-15 साल की सजा होगी.’’ 

मैं ने गुनाह नहीं किया है साहब. मुझे किसी ने फंसाया है…’’ 

तुम मामला रफादफा करवाना चाहोगे क्या हांडा?’’ 

जी हां, साहब…’’

तुम्हें मैं बचा लूंगा, लेकिन इस के लिए हमें दूसरे केस रजिस्टर में शो करने पड़ेंगे. कागज तैयार करने और कोर्ट में केस लडऩे के लिए वकील खड़ा करना पड़ेगा. वह वकील उन केसों में तुम्हें साफ बरी करवा देगा.’’

जी, आप कुछ भी कीजिए… मैं खर्चा दे दूंगा.’’

ठीक है.’’ एसपी ने अपने पास खड़े एसआई की ओर देखा, ”आप कमल हांडा से कोर्ट फीस, वकील का खर्च ले लीजिए, मामला 420 का बनाइए. कमल हांडा को बचाना है.’’

”ओके सर.’’ एसआई महीपाल सिंह ने कहा और एसपी से मोबाइल ले कर कमल हांडा से बात करने लगा, ”हांडा, मैं तुम्हें वाट्सऐप पर एक बैंक अकाउंट भेज रहा हूं, तुम इस में 2 लाख रुपए डाल दो. मैं तुम्हारे केस को रफादफा कराता हूं.’’

”बहुत मेहरबानी साहब.’’ कमल हांडा ने अपने आंसू पोंछते हुए जल्दी से कहा, ”मैं 2 लाख रुपए ट्रांसफर कर दूंगा. आप अकाउंट नंबर भेज दीजिए.’’

हां.’’ एसआई महीपाल सिंह ने कहा और थोड़ी देर में उस ने वाट्सऐप पर एक अकाउंट नंबर भेज दिया.

व्यवसायी कमल हांडा ने उस अकाउंट में 2 लाख रुपए तुरंत ट्रांसफर कर दिए. अब वह कुरसी पर बैठ कर अपनी उखड़ी सांसों को दुरुस्त करने लगा था. यह 13 जुलाई, 2024 की बात है. 

साइबर क्राइम पुलिस ने शुरू की जांच

18 जुलाई, 2024 को सेंट्रल दिल्ली के कमला मार्किट साइबर थाने के एसएचओ खेमेंद्र पाल सिंह को वाट्सऐप द्वारा एक साइबर ठगी की शिकायत मिली. शिकायतकर्ता था दिल्ली का करोल बाग निवासी कमल हांडा. कमल हांडा ने शिकायत की थी कि ठगों ने उसे डराधमका कर 31 लाख 55 हजार रुपए का चूना लगा दिया है. कमल हांडा ने करोल बाग में स्थित अपने घर का पता भी लिखा था और अपना मोबाइल नंबर भी. इतनी बड़ी ठगी उस के साथ हो गई थी, लेकिन वह सामने नहीं आया था. उस ने अपनी शिकायत वाट्सऐप द्वारा साइबर थाने में की थी. 

यह इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह को थोड़ा विचित्र लगा, लेकिन यह सोच कर कि कुछ लोग पुलिस थानों के नाम से ही डरते हैं. उन की हिम्मत बेकुसूर होने के बाद भी पुलिस से आंख मिलाने की नहीं होती है. शायद यह कमल हांडा भी इन्हीं लोगों में से एक होगा. बहरहाल, उस से बात तो करनी ही थी, तभी पूरा मामला समझ में आता. कुछ सोच कर इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह ने कमल हांडा का मोबाइल नंबर मिला लिया. दूसरी ओर घंटी बजती रही, लेकिन किसी ने फोन अटेंड नहीं किया. इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल चौंके, ‘बंदा क्या चीज है जो पुलिस की काल अटेंड नहीं कर रहा है.’ 

इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह ने दोचार बार कमल हांडा का नंबर मिलाया और दूसरी तरफ से उसे उठाया नहीं गया तो इंसपेक्टर झल्ला गए. उन्होंने घंटी बजा कर अर्दली से कहा कि वह हैडकांस्टेबल सतीश को बुला कर लाए. कुछ ही देर में हैडकांस्टेबल सतीश उन के सामने खड़े थे. 

गुड आफ्टरनून सर. आप ने मुझे बुलाया है?’’

इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह ने हैडकांस्टेबल को कमल हांडा के फ्लैट का एड्रैस नोट करवा कर आदेश दिया कि कमल हांडा को साइबर थाने में साथ ले कर आएं. ध्यान रहे, इन्हें इज्जत के साथ यहां लाना है. हैडकांस्टेबल सतीश अपनी मोटरसाइकिल से उसी वक्त करोल बाग के लिए निकल लिए. आधा घंटे में वह दिए गए एड्रैस पर पहुंच गए. उन्हें कमल हांडा घर पर ही मिल गया. कमल हांडा दरवाजे पर पुलिस हैडकांस्टेबल को देख कर चौंक पड़े. 

कहिए! आप को किस से मिलना है?’’ शिष्टाचार दिखाते हुए उन्होंने हैडकांस्टेबल से पूछा.

कमल हांडा यहीं रहते हैं.’’

जी, मेरा ही नाम कमल हांडा है.’’

आप को मेरे साथ थाने में चलना है, साहब ने आप को बुलाया है.’’ हैडकांस्टेबल ने कहा. कमल हांडा को समझते देर नहीं लगी कि उन की वाट्सऐप शिकायत पर उन्हें साइबर थाने बुलाया गया है. वह तैयार हो कर हैडकांस्टेबल के साथ कमला मार्किट के साइबर थाने में पहुंच गए. हैडकांस्टेबल सतीश ने उसे इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह के कमरे में पहुंचा दिया. कमल हांडा ने दोनों हाथ जोड़ कर इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह को नमस्ते की.

आप ही कमल हांडा हैं?’’ कमल हांडा को उपर से नीचे तक देखते हुए इंसपेक्टर सिंह ने पूछा.

जी हां.’’

”बैठिए.’’ इंसपेक्टर सिंह ने कुरसी की ओर इशारा कर के कहा. कमल हांडा बैठ गए. कुछ क्षण वह मौन रहे. इस मौन को इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह ने तोड़ा, ”आप के साथ लाखों रुपए की ठगी कर ली गई. आप थाने नहीं आए, अपनी शिकायत आप वाट्सऐप से मुझे भेज रहे हैं.’’

”जी सर, मैं थानाकचहरी से बहुत डरता हूं, इसलिए मैं ने वाट्सऐप से साइबर थाने को शिकायत भेजी थी.’’

आप को कैसे ठगा गया, मैं विस्तार से जानना चाहता हूं.’’ इंसपेक्टर सिंह गंभीर हो गए, ”मैं समझता हूं, बस आप ही नहीं ठगे गए होंगे. उन ठगों ने और भी लोगों को ठगा होगा.’’

32 लाख की ऐसे हुई ठगी

इस के बाद कमल हांडा ने अपने साथ की गई ठगी की सारी दास्तान इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह को सुना दी. उन्होंने बताया कि एसआई महीपाल सिंह नाम के व्यक्ति ने जो अकाउंट नंबर दिया था, उस में मैं ने 2 लाख रुपए डाल दिए. इस के बाद एसआई महीपाल सिंह ने 2-3 दिन तक मुझ से नएनए बहानों से अलगअलग अकाउंट्स में पैसा डलवाए. मैं 4 दिन में उन्हें 31 लाख 55 हजार रुपया दे चुका था. मैं तब चौंका जब मैं ने लखनऊ पहुंच कर एसआई महीपाल सिंह से मिलने की बात की. उस ने मुझ से कहा कि मैं सामने न आऊं, मेरी जगह वह दूसरा आदमी कोर्ट में खड़ा कर लेंगे.

हांडा ने बताया कि इस के बाद से उस एसआई ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर लिया है. मैं ने अपने दोस्त को सारी बात बताई तो उस ने कहा कि अवश्य ही मुझे ठग लिया गया है. मुझे साइबर पुलिस को इस ठगी की शिकायत करनी चाहिए. कमल हांडा ने गहरी सांस ली, ”सर, आप मालूम कीजिए, क्या लखनऊ के आरामबाग में कोई सीमा चौहान, एसआई महीपाल सिंह और सफेद मूंछें रखने वाला एसपी है.’’

नहीं है.’’ इंसपेक्टर खेमेंद्र सिंह गंभीर स्वर में बोले, ”यह इसलिए कह रहा हूं कि किसी भी जिले में ऊंचे पद पर बैठे एसपी 17 एफआईआर जो संगीन अपराधों में दर्ज की गई हैं, दूसरे केसों में नहीं बदलेंगे. ऐसे मामलों में उन की भी जवाबदेही होती है. अवश्य ही आप को फरजी पुलिस वालों ने डरा कर आप से मोटी रकम हड़प ली है.’’

अब क्या होगा सर, मेरे 31 लाख 55 हजार रुपए क्या वापस नहीं मिलेंगे?’’

”पहले हमें उन साइबर ठगों तक पहुंचने तो दीजिए. देखते हैं, उन्होंने आप की तरह और कितने लोगों को चूना लगाया है.’’ इंसपेक्टर सिंह ने डायरी उठा कर कहा, ”आप ने जिन अकाउंट्स में रुपया डाला है, उन की रसीद या नंबर तो होंगे आप के पास?’’

”मैं ने पेटीएम से उन अकाउंट में रुपया भेजा है. मैं आप को वह सभी अकाउंट नंबर नोट करवा देता हूं.’’ कमल हांडा ने कह कर अपने मोबाइल से अकाउंट नंबर निकाल कर इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह को नोट करवा दिए.

”अब आप अपने घर जाइए, हम इन अकाउंट्स की जांच कर मालूम करते हैं कि यह किन लोगों के अकाउंट हैं.’’

ठीक है सर.’’ कमल हांडा कुरसी से खड़े हो गए, ”मैं आप के संपर्क में रहूंगा सर. मेरी जहां जरूरत हो आप मुझे काल कर देना, मेरा मोबाइल नंबर है आप के पास.’’

मेरे पास है.’’ इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह ने सिर हिलाया. कमल हांडा उन्हें नमस्ते कर के उन के कक्ष से बाहर निकल गया कमल हांडा से 31 लाख 55 हजार की साइबर ठगी की वारदात को इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह ने गंभीरता से लिया. कमल हांडा के जाने के बाद उन्होंने डीसीपी एम. हर्षवर्धन को फोन पर सारा मामला बताने के बाद उन से सलाह मांगी. 

साइबर ठगों तक इस तरह पहुंची पुलिस

डीसीपी एम. हर्षवर्धन ने खेमेंद्र पाल सिंह को इस ठगी के मामले में तुरंत काररवाई करने का आदेश दे कर उन के नेतृत्व में साइबर थाने से एक टीम का गठन कर दिया. इस में एसआई अली अकरम, धीरेंद्र, हैडकांस्टेबल सतीश आदि को शामिल किया गया. इंसपेक्टर खेमेंद्र पाल सिंह ने इस टीम के साथ उन बैंक अकाउंट नंबरों को खंगाला तो उन के होश उड़ गए. जिन अकाउंट्स में ठगों ने कमल हांडा से रुपए डलवाए थे, वह करंट अकाउंट थे, उन में 2 दिन में ही करोड़ों रुपए आए थे, फिर इन्हें तुरंत दूसरे अकाउंट्स में ट्रांसफर कर दिया गया था.

साइबर टीम ने ऐसे 150 खातों को खंगाला, जिन में करोड़ों रुपए डाले गए और उन्हें तुरंत इधर से उधर दूसरे खातों में घुमा दिया गया. यह गोरखधंधा साइबर टीम की समझ में नहीं आया. इसे तभी समझा जा सकता था, जब इस ठग गिरोह का कोई व्यक्ति पुलिस की पकड़ में आता. ये खाते विभिन्न नामों की कंपनियों से खोले गए थे. जांच में साइबर टीम को पी-2 फिटनैस कंपनी का पता चला, जो किसी देव भाटी नाम के शख्स की थी. इस में देव भाटी का पता भी लिखा हुआ था. साइबर टीम ने 26 जुलाई, 2024 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में दबिश दे कर 36 वर्षीय देव भाटी को गिरफ्तार कर लिया.

देव भाटी को साइबर थाना कमला मार्किट ला कर सख्ती से पूछताछ की गई. देव भाटी ने बताया कि उस ने पी-2 फिटनैस कंपनी नाम से फर्म बना कर इस का बैंक खाता अपने रिश्तेदार रौबिन सोलंकी के कहने पर खुलवाया था. इस में काफी मोटी रकम विदेश से आती थी, जिसे वही लोग दूसरे बैंक खातों में ट्रांसफर कर लेते हैं. उसे अपना बैंक खाता विदेशी लोगों को यूज करने देने की एवज में मोटा कमीशन मिलता था. देव भाटी की निशानदेही पर 28 जुलाई, 2024 को 20 वर्षीय रौबिन सोलंकी को दिल्ली के अशोक नगर से पकड़ा गया. रौबिन सोलंकी ने अपने एक साथी विष्णु के कहने पर अपना बैंक अकाउंट खोला था. 

रौबिन ने अशोक नगर से 25 वर्षीय विष्णु को गिरफ्तार करवा दिया. ये दोनों भी मूलरूप से बुलंदशहर के निवासी निकले. तीनों से कड़ी पूछताछ में पता चला कि इस पूरे गैंग का सरगना आकाश जैन है, जो दिल्ली के महिपालपुर में रहता है. साइबर पुलिस टीम ने 31 जुलाई, 2024 को महिपालपुर से आकाश जैन को भी गिरफ्तार कर लिया. आकाश जैन से पूछताछ में खुलासा हुआ कि वह गोरेगांव, नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) का रहने वाला है. जबलपुर यूनिवर्सिटी से उस ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. 

उस ने टेलीग्राम ऐप द्वारा चीन के आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से मेलजोल किया. वह लोग दुनिया भर के लोगों को विभिन्न रूप से ठगते थे. आकाश जैन लोगों को बैंक अकाउंट खोलने के लिए उकसाता था, इन लोगों को मोटा कमीशन का लालच दिया जाता था. जो भी व्यक्ति उस के कहने पर बैंक अकाउंट खुलवाता था, उस अकाउंट में काफी मोटी रकम जमा होती थी, जिसे तुरंत दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर कर लिया जाता था. जब इन बैंक अकाउंट्स में मोटी रकम आती थी, अकाउंट धारक को होटल में ठहरा दिया जाता था. वहां उस की तब तक निगरानी की जाती थी, जब तक उस के अकाउंट में आई मोटी रकम को दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर नहीं कर लिया जाता था. 

अकाउंट खाली होने पर उस अकाउंट धारक को मोटा कमीशन दे कर छोड़ दिया जाता था. एक प्रकार से बहुत होशियारी से यह साइबर ठगी का गोरखधंधा चलाया जा रहा था. बैंक अकाउंट में जमा पैसा यूएस डालर, क्रिप्टो करेंसी अथवा हवाला के जरिए चीन समेत दूसरे देशों में भेजा जाता था. इन खातों में करोड़ों रुपए आता था. आकाश जैन और खाताधारक को मोटा कमीशन मिलता था. इन की गिरफ्तारी के बाद इन के पास से 7 मोबाइल फोन व लैपटाप बरामद किए गए. पुलिस ने चारों आरोपियों को सक्षम न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. कथा लिखने तक पुलिस इस ठगी के गैंग में शामिल उन लोगों के पास भी पहुंचने की कोशिश कर रही थी, जो फरजी पुलिस अधिकारी बन कर शिकार को फांसते थे.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

फिल्म ‘स्पैशल 26’ की तर्ज पर बनाया Special 9 और की करोड़ों की ठगी

फिल्म स्पैशल 26’ की तर्ज पर जबलपुर के बैंक अधिकारियों ने स्पैशल 9’ गैंग बनाई. गैंग के सदस्यों का काम फरजी रजिस्ट्रियों के जरिए बैंकों से लाखों रुपए का लोन लेना होता था. आप भी जानिए कि इस गैंग ने फरजी रजिस्ट्रियां कैसे तैयार कीं और उन के जरिए बैंकों को करोड़ों का चूना कैसे लगाया?

गैंग के सदस्यों ने शुरुआत में सरकारी बैंकों को टारगेट किया, लेकिन सफलता नहीं मिली. औनलाइन केवाईसी के सर्च के दौरान बैंक अधिकारियों को पता चल जाता था कि ये डाक्यूमेंट्स सही नहीं हैं और लोन एप्लिकेशन रिजेक्ट हो जाती थी. इस वजह से गैंग ने प्राइवेट बैंकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. मकसद पूरा हो जाने के बाद स्पैशल 9’ गैंग में पैसों का बंटवारा काम के आधार पर होता था. किस का क्या काम है, कितना कठिन है, उस हिसाब से पैसा बांटा जाता था. 

चूंकि प्रवीण पांडे अकाउंट होल्डर था और लोन के लिए फरजी रजिस्ट्री लगाने के बाद जो पैसा खाते में आता था, वह प्रवीण पांडे के नाम पर आता था. खाते में पैसा आने के बाद गिरोह के सभी 9 सदस्य किसी होटल में इकट्ठा होते और फिर अनुभव, संदीप और विकास के इशारे पर रुपयों का बंटवारा होता था. उस दिन अगस्त महीने की 5 तारीख थी और सुमित घर पर खाना खा कर अपने काम से निकलने ही वाला था कि हिंदुजा बैंक के कुछ कर्मचारी उस के घर पहुंचे. परिचय के बाद बैंक कर्मचारियों में से एक कर्मचारी ने सुमित से कहा, ”आप ने अभी तक अपने लोन की एक भी किस्त जमा नहीं की है और न ही बैंक से संपर्क किया. आप ने अपना मोबाइल भी बंद कर रखा है.’’

बैंक कर्मचारी की बात सुन कर सुमित अचरज में पड़ गया, उस ने बैंक कर्मचारियों से कहा, ”आप शायद गलत पते पर आ गए हैं, मैं ने तो बैंक से अभी कोई लोन नहीं लिया है. हां, लोन के लिए प्लौट की रजिस्ट्री की फोटोकापी जरूर एक कर्मचारी को दी थी.’’

देखिए, आप के नाम से हिंदुजा बैंक में 20 लाख रुपए का लोन लिया गया है, जिस की एक भी किस्त आप के द्वारा नहीं भरी गई है. अगर आप किस्त जमा नहीं करेंगे तो आप का यह प्लौट बैंक बंधक रख लेगी.’’ बैंक कर्मचारी ने कहा. सुमित ने बैंक कर्मचारियों को समझाने की लाख कोशिश की, मगर वह सुमित की बात पर भरोसा करने को तैयार नहीं थे. दूसरे दिन सुमित ने हिंदुजा बैंक जा कर बैंक अधिकारियों से मुलाकात की तो बैंक अधिकारियों ने उसे लोन के सारे कागजात दिखा दिए. सुमित यह देख कर दंग रह गया कि उस के नाम के कागजात जमा कर के किसी ने लोन ले लिया था.

मध्य प्रदेश के शहर जबलपुर के गढ़ा फाटक इलाके में रहने वाले सुमित काले ने इस मामले की शिकायत स्थानीय पुलिस और वरिष्ठ अधिकारियों से की, मगर उसे आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला. सुमित ने किसी से सुना था कि स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को जटिल से जटिल मामलों को सुलझाने में महारथ हासिल है. इसलिए सुमित ने 10 अगस्त, 2024 को एसटीएफ का दरवाजा खटखटाया. सुमित अपनी लिखित शिकायत ले कर एसटीएफ के जबलपुर औफिस पहुंचा और एक कमरे के बाहर लगी हुई नेम प्लेट को उस ने ध्यान से पढ़ा. नेम प्लेट पर संतोष तिवारी, डीएसपी, एसटीएफ पढ़ कर उस ने बाहर बैठे अर्दली को बताया कि वह डीएसपी सर से मिलना चाहता है. 

अर्दली ने डीएसपी संतोष तिवारी को जा कर बताया, ”सर, एक युवक किसी काम से आप से मिलना चाहता है.’’ उन्होंने परमिशन देते हुए उसे अंदर भेजने को कह दिया.

अंदर की आवाज सुमित को साफ सुनाई दे रही थी. अर्दली बाहर आ कर उस से कुछ कहता, इस के पहले ही सुमित डीएसपी के केबिन में दाखिल हो गया. सुमित ने उन्हें एक लिखित शिकायत देते हुए कहा, ”सर, मेरा नाम सुमित काले है. मैं एक बिल्डर की कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करता हूं. किसी ने मेरे प्लौट की फरजी रजिस्ट्री बैंक में दे कर मेरे नाम से लोन लिया है.’’

”लेकिन यह कैसे संभव है, बैंक में रजिस्ट्री के अलावा दूसरे कागजात भी तो लिए जाते हैं.’’ डीएसपी संतोष तिवारी बोले.

सर, यही तो मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मेरे नाम के फरजी आधार कार्ड, पैन कार्ड बना कर हिंदुजा बैंक में किसी और को सुमित काले बना कर खड़ा कर एक प्लौट की रजिस्ट्री जमा कर कैसे लाखों रुपए का लोन लिया गया है,’’ सुमित बोला.

जालसाजी में क्यों शामिल हुए बैंक अधिकारी

सुमित ने डीएसपी संतोष तिवारी को बताया कि उस ने कुछ महीने पहले एक बैंक कर्मचारी को लोन के लिए रजिस्ट्री की फोटोकापी दी थी, लेकिन उस ने लोन नहीं लिया था.सुमित की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए डीएसपी संतोष तिवारी ने सुमित को जांच करने का भरोसा दिलाया. डीएसपी ने इस पूरे मामले की जांच का जिम्मा इंसपेक्टर निकिता शुक्ला को सौंपा. उन्होंने जांच के लिए एसटीएफ टीम को हिंदुजा बैंक भेजा. एसटीएफ टीम ने बैंक पहुंच कर सुमित के लोन पेपर खंगाले तो बैंक में भी हड़कंप मच गया. एसटीएफ टीम ने लोन के लिए जमा रजिस्ट्री को जब्त कर रजिस्ट्री कार्यालय से सत्यापन करवाया तो चौंकाने वाला खुलासा हुआ. 

रजिस्ट्री औफिस के कर्मचारियों ने बताया कि जमीन की रजिस्ट्री तो सुमित काले की है, लेकिन उस पर फोटो किसी और की लगी थी. पुलिस टीम ने रजिस्ट्री पेपर पर लगी फोटो की तहकीकात की तो जांच में पता चला कि यह फोटो किसी विकास तिवारी की है. एसटीएफ को अब यह समझने में जरा भी देर नहीं लगी कि यह काम फरजी रजिस्ट्री के नाम पर बैंक से लोन लेने वाले किसी गिरोह का है. एसटीएफ ने सब से पहले विकास तिवारी को हिरासत में लिया और जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो पूछताछ में विकास ने अपने गिरोह के सभी सदस्यों के नामों को उजागर कर दिया. 

उस ने एसटीएफ को बताया कि इस काम में 9 लोगों की पूरी एक गैंग का हाथ है. इस ‘स्पैशल 9’ गैंग को एक्सिस बैंक का पूर्व मैनेजर अनुभव दुबे और संदीप चौबे लीड करते थे. दोनों ही बैंक के अधिकारी हैं. एसटीएफ के एसपी राजेश सिंह भदौरिया के निर्देश पर डीएसपी संतोष तिवारी और इंसपेक्टर निकिता शुक्ला ने जब इस केस से जुड़े लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि बैंक में फरजी रजिस्ट्री जमा कर लोन लेने वाला यह बड़ा गिरोह है, जिस के तार न सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि अन्य राज्यों से भी जुड़े हुए  हैं. गैंग ने अभी तक लोन के नाम पर करीब 6 करोड़ रुपए शहर के अलगअलग बैंकों से ठगे हैं. गिरोह के सदस्यों ने इतनी चालाकी से काम किया कि न तो बैंक अधिकारियों को जानकारी लगी और न ही उस व्यक्ति को, जिस के नाम की फरजी रजिस्ट्री लगा कर लोन लिया गया. 

इस मामले में एसटीएफ में बीएनएस  धारा के तहत अपराध दर्ज किया गया. एसटीएफ ने 22 अगस्त को सभी 9 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और प्रैस कौन्फ्रैंस में मामले का खुलासा किया. स्पैशल 9’ गैंग के लोग बेहद शातिर थे और इस काम के लिए ऐसे निजी बैंकों का चुनाव करते थे, जिन में औनलाइन केवाईसी नहीं होती है. जबलपुर के तिलहरी इलाके में रहने वाला 27 साल का अनुभव दुबे और अनमोल सिटी निवासी 34 साल का संदीप चौबे स्पैशल 9 गैंग के लीडर थे. दोनों ही बैंक में अधिकारी थे और अधिकारी होने की वजह से दोनों जानते थे कि राष्ट्रीयकृत बैंकों में केवाईसी कराने में बहुत परेशानी होती है, इसलिए उन बैंकों को चुना जाए, जहां ईकेवाईसी नहीं होती है.

प्राइवेट बैंकों को ही क्यों बनाया निशाना

एसटीएफ की जांच में पता चला है कि इस शातिर गैंग के सदस्यों द्वारा अभी तक एक्सिस बैंक से करीब 50 लाख रुपए, हिंदुजा बैंक से करीब 3 करोड़ रुपए, जना बैंक से करीब एक करोड़ रुपए और ग्रामीण सहकारी बैंक से करीब 50 लाख रुपए का लोन फरजी रजिस्ट्री लगा कर लिया गया है. जिस तरह तेलगी ने नकली स्टांप छाप कर करोड़ों रुपए का घोटाला किया था, ठीक उसी तर्ज पर इस गैंग ने फरजी रजिस्ट्री बना कर करोड़ों रुपए का गोलमाल कर बैंकों को चूना लगाया है और भोलेभाले लोगों के नाम पर लोन ले कर उन को मुसीबत में डाल दिया है.

एसटीएफ इंसपेक्टर निकिता शुक्ला और उन की टीम ने काफी मशक्कत कर इस गैंग से जुड़े लोगों को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. ‘स्पैशल 9’ गैंग का एक सदस्य 41 साल का प्रवीण पांडे जबलपुर के वीएफजे एस्टेट का रहने वाला है, जो लोन पास होने के बाद अकाउंट होल्डर बनता था. वह अलगअलग नामों से बैंकों में अकाउंट खुलवाता था. प्रवीण ने कभी शेख सलीम तो कभी प्रवीण काले बन कर शहर के एक नहीं बल्कि कई बैंकों में अपने खाते खुलवाए और दूसरे साथियों की मदद से फिर फरजी रजिस्ट्री जमा कर लोन हासिल कर लिया. जबलपुर के एक्सिस बैंक में अनुभव दुबे और हिंदुजा बैंक में संदीप चौबे की मदद से प्रवीण द्वारा अलगअलग नाम की फरजी रजिस्ट्री लगा कर लाखों रुपए के लोन लिए गए.

गिरोह का एक और सदस्य 31 साल का पुनीत उर्फ राहुल पांडे है, जो टीआईटी बिल्डिंग, पुलिस लाइन का निवासी है और जबलपुर के माढोताल इलाके में स्थित जना बैंक का कर्मचारी है. इस की मदद से प्रवीण ने जना बैंक में भी 6 फरजी रजिस्ट्री पेपर लगा कर करीब एक करोड़ रुपए का लोन ले लिया. इस के अलावा प्रवीण ने एक्सिस बैंक, जना बैंक, हिंदुजा बैंक, इंडिया शेल्टर हाउसिंग फाइनैंस से भी अच्छाखासा लोन लिया था. एसटीएफ की जांच में इस बात की पुष्टि हुई है कि स्पैशल 9’ गैंग ने अभी तक करीब 6 करोड़ का लोन ले कर फ्राड किया है. जांच में एसटीएफ को और भी लोगों के शामिल होने की जानकारी मिली है, जिस की जांच अभी चल रही है.

कैसे तैयार करते थे फरजी रजिस्ट्री

गोकुलपुर का रहने वाला 30 साल का विकास तिवारी लोगों से लोन के लिए संपर्क करता था और लोन चाहने वालों से उन की रजिस्ट्री की फोटोकापी ले लिया करता था. इस के बाद अनुभव, पुनीत और संदीप रजिस्ट्री को चैक करने के बाद लालमाटी इलाके में फोटोकापी की दुकान चलाने वाले 34 साल के लकी उर्फ लखन प्रजापति की दुकान में ले कर जाते थे, जहां पर लकी द्वारा फरजी रजिस्ट्री तैयार की जाती थी. लकी इस काम में इतना माहिर था कि रजिस्ट्री में लगाए गए स्टांप भी कलर फोटोकापी मशीन से ऐसे तैयार कर देता था कि वे असली लगते थे.

फरजी रजिस्ट्री तैयार होने के बाद उस में रजिस्ट्रार, सब रजिस्ट्रार के सील, साइन करवाने की जिम्मेदारी अनवर उर्फ अन्नू निभाता था. जबलपुर के मोती नाला में रहने वाला 49 साल का अनवर पिछले 15 सालों से जबलपुर कलेक्ट्रेट में काम कर रहा है. वह अच्छे से जानता था कि रजिस्ट्री में कितने का स्टांप लगता है और किस पेज में कहां पर किस तरह की मुहर लगाई जाती है. अनवर ने इस काम के लिए नकली मुहर भी तैयार कर रखी थी. फरजी रजिस्ट्री तैयार होने के बाद प्रवीण का काम होता था कि वह अलगअलग नामों से बैंकों में जा कर लोन के लिए आवेदन करे. 

इस गैंग में उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के शिवपुरी मऊ निवासी 38 साल का मोहम्मद अनीस भी शामिल था. वह कुछ समय पहले से जबलपुर के अनमोल सिटी में रहने लगा था, यहीं उस की पहचान संदीप चौबे से हुई थी. मोहम्मद अनीस का काम होता था कि सभी लोगों से फरजी रजिस्ट्री इकट्ठा कर अपने पास रखे और समय आने पर उस रजिस्ट्री को प्रवीण पांडे को सौंप दे. एसटीएफ ने एक साथ गिरोह के सभी 9 सदस्यों के ठिकानों पर जब छापा मारा तो उन के यहां 50 से ज्यादा फरजी रजिस्ट्री, अलगअलग नामों के पैन और आधार कार्ड, कंप्यूटर, फोटोस्टेट मशीन, मोबाइल और कई इलेक्ट्रौनिक उपकरण भी मौके से बरामद किए गए. एसटीएफ के मुताबिक, ये लोग एक साथ फरजी रजिस्ट्रियां तैयार कर रख लेते थे, फिर जरूरत के हिसाब से शहर के अलगअलग बैंकों में लोन के लिए फाइल लगा देते थे.

कहां से आई बैंक अधिकारी के पास इतनी संपत्ति

2 साल पहले प्लानिंग मैनेजर के रूप में एक्सिस बैंक जौइन करने वाला अनुभव दुबे लक्जरी लाइफ जी रहा था. अनुभव की सैलरी 35 हजार रुपए महीना होने के बावजूद शहर के सब से पौश इलाके नर्मदा एवेन्यू में उस ने 4 फ्लैट ले रखे थे. एसटीएफ टीम को जांच में अभी तक एकएक करोड़ के 2 फ्लैट के दस्तावेज ही मिले हैं. एक फ्लैट में अनुभव अपनी पत्नी के साथ रहता था, जबकि दूसरे फ्लैट में उस की सास रह रही थी. अनुभव के ससुर की गोरखपुर में गैस एजेंसी है. अनुभव अपनी काली कमाई अपनी पत्नी और अन्य रिश्तेदारों के बैंक खातों में ट्रांसफर करता था. इसी पैसे से अलगअलग नामों से उस ने प्रौपर्टी खरीदी.  अनुभव ने 2022 में जबलपुर में ही लव मैरिज की थी. इस के बाद पत्नी और सास के साथ विदेश यात्रा पर घूमने गया था. वहां परिवार के साथ 12 दिन तक रुका था, इस के अलावा वह 2023 में घूमने के लिए दुबई भी गया था.

वह हर 6 महीने में पत्नी और रिश्तेदारों के साथ हौलीडे टूर पर विदेश जाता था. अनुभव और उस की पत्नी को लग्जरी गाडिय़ों का भी शौक है. अनुभव के अलावा उस की पत्नी, सास और ससुर सभी के पास अलगअलग लग्जरी कारें हैं. गोरखपुर के नर्मदा एवेन्यू में रहने वाले अनुभव दुबे ने सितंबर 2023 में सफाई कर्मचारी रवि कुमार के साथ जम कर मारपीट की थी, जिस के बाद अनुभव और उस के ससुर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई थी, तब कोर्ट से उसे जमानत मिल गई थी. अनुभव कम समय में ज्यादा से ज्यादा पैसे कमा कर जल्द अमीर होना चाहता था, इसी वजह से उस ने एक औनलाइन एप्लीकेशन भी तैयार कर रखी थी. इस ऐप के जरिए वह लोगों को अधिक से अधिक पैसा कमाने की औनलाइन ट्रिक बताया करता था. अनुभव एमएमएम एक्स्ट्रा कंपनी से जुड़ा था.

कंपनी का स्लोगन थाएक्स्ट्रा मनी अप 100 प्रतिशत. गैंग में शामिल लोगों ने लोन लेने के लिए मृत लोगों को भी नहीं छोड़ा. गैंग का एक सदस्य राजेश डेहरिया लोगों को लोन दिलाने के नाम पर उन की रजिस्ट्री अपने पास रखता था. राजेश ने जबलपुर के अधारताल में रहने वाले प्रमोद शर्मा का फरजी मृत्यु प्रमाण पत्र तैयार करा कर उस की जमीन के खसरे से नाम हटाया और राजेश डेहरिया का नाम बदल कर खुद प्रमोद शर्मा का फरजी बेटा राजेश शर्मा बन गया. इस के बाद राजेश ने प्रमोद शर्मा की जमीन का नामांतरण भी इन दस्तावेजों के आधार पर अपने नाम करा लिया. राजेश डेहरिया ने राजेश शर्मा के आधार कार्ड और पैन कार्ड की भी इतनी सफाई से नकल की थी कि सब चकमा खा गए. एसटीएफ भी प्रमोद शर्मा को तलाश रही थी, जिस के नाम का राजेश ने उपयोग किया और जमीन के मार्फत लोन ले लिया. आशंका यह भी जताई जा रही है कि स्पैशल-9’ गैंग ने मिल कर प्रमोद शर्मा को गायब करवा दिया है.

राजेश डेहरिया ने कई लोगों के नाम से फरजी विक्रय पत्र भी बनवाए हैं. उस ने जनवरी 2003 में गुलाम हुसैन पिता खलील अहमद निवासी गाजी नगर, चितरंजन वार्ड, रद्ïदी चौकी की जमीन के कुल रकबे 0.648 हेक्टेयर में से 0.210 हेक्टेयर हिस्सा बेच दिया. जमीन के एक हिस्से को टाटा कैपिटल बैंक में गिरवी रख कर 3 करोड़ का लोन ले लिया. यह लोन कौन चुकाएगा, यह किसी को पता नहीं है. मामले की जांच कर रही एसटीएफ के डीएसपी संतोष तिवारी ने बताया कि 9 आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद 15 फरजी रजिस्ट्रियां बरामद की गई थीं. इन की संख्या अब बढ़ कर 60 से अधिक हो गई है. इस गोरखधंधे में पहले 4 बैंकों से फ्राड का खुलासा हुआ था, अब कुछ और बैंकों के नाम भी सामने आए हैं.

कथा लिखे जाने तक स्पैशल 9’ गैंग के 9 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जबलपुर जेल भेज दिया गया. एसटीएफ का कहना है कि फ्राड के इस गोरखधंधे में शामिल गैंग के सदस्यों की संख्या 10 से 15 हो सकती है.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

पंजाबी सिंगर रंजीत बाथ ने किया मैरिड प्रेमिका के पापा का मर्डर

पंजाबी सिंगर रंजीत बाथ को आस्ट्रेलिया में रहने वाली किरणदीप कौर से सोशल मीडिया के द्वारा प्यार हो गया था. दोनों ने शादी करने का भी फैसला कर लिया. इसी दौरान ऐसा क्या हो गया कि रंजीत बाथ ने लुधियाना में रह रहे प्रेमिका के पिता रविंदर पाल सिंह की न सिर्फ हत्या कर दी बल्कि इस की सूचना प्रेमिका को भी दे दी?

पंजाबी सिंगर रणजीत सिंह कहलों उर्फ रंजीत बाथ अपनी प्रेमिका किरणदीप कौर के पिता रविंदर पाल सिंह की हर हाल में हत्या करना चाहता था. वह यही सोचता कि अपनी योजना को किस तरह अंजाम दे. रणजीत सिंह कहलों एक जानामाना सिंगर था, इसलिए वह यही चाहता था कि उस का काम भी हो जाए और किसी को इस का पता भी न चले. हत्या को आसानी से अंजाम देने के लिए उस ने जालंधर के ही नकोदर निवासी अपने भतीजे बलजिंदर सिंह उर्फ गुल्ली उर्फ मोना से बात की. गुल्ली अपने चाचा का साथ देने को तैयार हो गया.

हत्या की योजना बनाने के बाद रणजीत सिंह कहलों 25 अगस्त, 2024 को अपने भतीजे को ले कर लुधियाना में रहने वाले प्रेमिका के पिता रविंदर पाल सिंह के घर पहुंचा. वह वहां अकेले ही रहते थे. उन का बेटा विक्रम सिंह सग्गड़ लुधियाना के ही दुर्गी गांव में रहता था और बेटी किरणदीप कौर आस्ट्रेलिया रहती थी. रविंदर पाल सिंह रंजीत बाथ को पहले से जानते थे, इसलिए रंजीत बाथ ने उन से एक जरूरी बात कहने का बहाना बना कर पार्टी की बात कही. रविंदर पाल उस की बातों में आ गए. उन्होंने अपनी कार निकाली और घर का ताला बंद कर वह उन दोनों के साथ चल दिए. गाड़ी रणजीत कहलों चला रहा था, रणजीत और बलजिंदर अपने साथ एक छोटा थैला भी लाए थे, जिस में रस्सी और चाकू रखा था. 

उस के बाद रणजीत रात को कार को एक सुनसान इलाके की ओर ले गया और फिर रणजीत सिंह और बलजिंदर ने मिल कर रस्सी से 78 वर्षीय रविंदर पाल की हत्या कर दी. बाद में उन के शव को मुल्लांपुर दाखा के पास मैरिज विला रिजौर्ट के पास झाडिय़ों में फेंक दिया. शव ठिकाने लगाने के बाद रणजीत ने उन की कार दुरंगी के पास एक पेट्रोल पंप के सामने खड़ी कर दी. अपनी योजना को अंजाम देने के बाद रणजीत सिंह ने अपने भतीजे बलजिंदर को कुछ दिनों के लिए शहर और गांव से बाहर रहने की हिदायत दी और फिर वे दोनों अलगअलग रास्ते चले गए.

28 अगस्त, 2024 की रात पुलिस को सूचना मिली कि मुल्लांपुर दाखा के पास पंडोरी गांव में जीटी रोड पर किसी बुजुर्ग की लाश पड़ी है. पुलिस मौके पर पहुंची. शिनाख्त न हो पाने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश को लुधियाना के सरकारी अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया. बात 29 अगस्त की है. लुधियाना के एसएसपी (ग्रामीण) नवनीत सिंह बैंस अपने कार्यालय में बैठे थे, तभी उन के मोबाइल फोन पर एक काल आई. काल किसी अंजान नंबर से आ रही थी.

हैलो, मैं एसएसपी नवनीत सिंह बोल रहा हूं, कहिए मैं आप की क्या सहायता कर सकता हूं?’’ एसएसपी नवनीत ने कहा. 

सर, मेरा नाम विक्रम सग्गड़ है, मैं अभीअभी लुधियाना के सिविल अस्पताल से आ रहा हूं, जो लाश कल रात पंडोरी गांव में जीटी रोड पर मिली थी, वह मेरे पापा की लाश है,’’ कहतेकहते विक्रम रोने लगा.

हां विक्रमजी, हमें कल रात एक लाश मिली थी, शिनाख्त न होने के कारण वह सिविल अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी गई थी. यह सुन कर बड़ा दुख हुआ कि यह लाश आप के पापा की है. आप दुखी न हों, हम इस का पता जरूर लगाएंगे कि आप के पापा के साथ आखिर हुआ क्या था. आप हम पर विश्वास रखें!’’ एसएसपी ने कहा. 

एसएसपी साहब, मुझे यह पता है कि मेरे पापा का मर्डर किस ने किया है? मेरे पास इस बात का पुख्ता सबूत भी है, इसलिए मैं आप से पर्सनली मिलना चाहता हूं.’’ विक्रम ने कहा.

विक्रमजी, आप ने तो बहुत बड़ी और अच्छी बात कह डाली है. आप हमें इस बारे में जरूर बताएं, मगर इस वक्त आप कहां हैं?’’ एसएसपी ने कहा.

सर, मैं आप के औफिस के बाहर ही खड़ा हूं. बस एक ही इंतजार है कि मैं अपनी बात आप से रूबरू कर सकूं, यदि आप की इजाजत हो!’’ विक्रम ने कहा.

ठीक है, आप संतरी को कह कर तुरंत मेरे पास आ सकते हैं.’’ एसएसपी ने कहा.

पिता का मर्डर करने के बाद प्रेमिका को क्यों दी सूचना

अगले 2 मिनट के बाद विक्रम सग्गड़ एसएसपी नवनीत सिंह बैंस के सामने की कुरसी पर बैठा था.

सर! मुझे आप के बारे में पता है कि आप हर केस में पूरी ईमानदारी और सच्चाई के साथ काम करते हैं. लुधियाना के सभी लोग आप की बहुत प्रशंसा करते हैं, इसलिए मैं सीधे आप के पास अपने दिल की बात कहने के लिए आया हूं. मुझे पूरी उम्मीद है कि आप मुझे निराश नहीं करेंगे,’’ विक्रम ने एसएसपी का अभिनंदन करते हुए कहा.

आप बेफिक्र हो कर अपनी बात करें, हम आप के साथ हैं.’’ एसएसपी ने कहा.

सर, मेरे पापा का मर्डर किसी और ने नहीं बल्कि रणजीत सिंह कहलों उर्फ रंजीत बाथ ने अपने भतीजे के साथ मिल कर किया है,’’ विक्रम ने कहा.

यह रंजीत बाथ वही है न, जो पंजाबी सिंगर है?’’ एसएसपी ने पूछा.

जी, यह वही मशहूर पंजाबी सिंगर रंजीत बाथ है, जिस ने मेरी बहन का जीना हराम कर रखा है और जिस ने मेरे पापा का मर्डर किया है. सर, आप इस को बिलकुल छोडऩा मत.’’ कहते हुए विक्रम रो पड़ा था. 

देखिए विक्रमजी, किसी के ऊपर आरोप लगाने के लिए हमारे पास पुख्ता सबूतों का होना बहुत जरूरी होता है. क्या आप के पास इस बात के कोई पुख्ता सबूत हैं कि रंजीत बाथ ने ही आप के पिता का मर्डर किया है?’’ एसएसपी ने पूछा.

”जी सर ! मेरे पास पूरे सबूत हैं. यह देखिए, उस ने वाट्सऐप पर मेरी बहन को साफसाफ लिखा कि शादी से इंकार किए जाने पर उस ने मेरे पापा का मर्डर कर दिया है. उस ने यह भी लिखा है कि उस ने मेरे पापा का मर्डर अपने भतीजे बलजिंदर के साथ मिल कर किया है. वे दोनों मेरे पापा को उन की गाड़ी में ले गए और फिर उन की हत्या कर दी. 

रंजीत ने यह भी लिखा है कि मर्डर करने के बाद उन्होंने लाश किस जगह पर फेंकी थी. मेरे पापा की कार इस समय पर कहां है, यह बात भी उस ने मेरी बहन को लिखी है. मर्डर करने के बाद उस ने मेरी बहन से माफी भी मांगी है.’’ 

कहते हुए विक्रम ने अपना मोबाइल फोन एसएसपी को दे दिया, जिस में पूरे वाट्सऐप के स्क्रीन शौट मौजूद थे. एसएसपी नवनीत सिंह बैंस ने मोबाइल के मैसेज पढऩे के बाद तुरंत इस बात की सूचना अपने उच्च अधिकारियों को दे दी और उच्च अधिकारियों के निर्देश मिलने के बाद एक पुलिस टीम गठित कर दी. थोड़ी ही देर में यह खबर आग की तरह पूरे पंजाब में फैल गई कि पंजाब का मशहूर सिंगर रंजीत बाथ अपनी प्रेमिका के पिता की हत्या कर फरार हो गया है. एसएसपी नवनीत सिंह बैंस द्वारा गठित की गई पुलिस टीम में एसपी (डी) परमिंदर सिंह, डीएसपी (मुल्लांपुर दाखा) फतेह सिंह, डीएसपी (डी) संदीप वडेरा, सीआईए स्टाफ के प्रमुख इंसपेक्टर किकर सिंह और थाना मुल्लांपुर दाखा के एसएचओ इंसपेक्टर कुलविंदर सिंह धालीवाल को शामिल किया गया. 

पुलिस टीम ने इस मामले की गहनता से जांच की तो पता चला कि रविंदर पाल सिंह मूलरूप से लुधियाना के दुर्गी गांव के रहने वाले थे. वह एलआईसी के एजेंट थे. उन के 2 ही बच्चे थे. बेटी किरणदीप कौर थी, जो शादीशुदा थी और आस्ट्रेलिया में रहती थी और बेटा विक्रम सिंह सग्गड़ गांव में रहता था. वह अपनी खेती का काम भी संभालता था. कोरोना के दौरान रविंदर पाल की पत्नी की मृत्यु होने के कारण वह अकेले रह गए थे. उन का लुधियाना में भी अपना मकान था. उन्हें अपने मकान से बड़ा लगाव था, इसलिए वह अधिकतर समय लुधियाना में ही रहते थे. कभीकभी वह अपनी बेटी से मिलने उस के पास आस्ट्रेलिया चले जाते थे तो कभी अपने बेटे विक्रम के पास गांव चले जाते थे. एलआईसी से उन्हें अच्छीखासी इनकम हो जाती थी, इसलिए उन की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी.

प्रेमी की सूचना पर किरणदीप क्यों हुई परेशान

26 अगस्त, 2024 की सुबह किरणदीप कौर ने आस्ट्रेलिया से पंजाब में रह रहे अपने छोटे भाई विक्रम को फोन कर के पूछा कि वह कल से पापा को फोन कर रही है, मगर उन का फोन नहीं लग रहा है. किरणदीप रोज दिन में 2 बार आस्ट्रेलिया से अपने पापा के साथ बातचीत करती थी. क्योंकि जब से उस की मम्मी का निधन हो गया था, तब से पापा एकदम अकेले रह गए थे. इसलिए किरणदीप उन से रोज फोन पर बात कर लेती थी. जब किरणदीप का फोन विक्रम के पास आया तो वह तुरंत अपने पापा के घर लुधियाना गया, लेकिन उस के पापा वहां पर नहीं मिले. घर के बाहर ताला लटका हुआ था. यहां तक कि विक्रम को अपने पापा की कार भी घर में कहीं नजर नहीं आई. 

विक्रम सिंह ने पापा को फोन करने की कोशिश की, मगर उन का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. पूरे दिन और पूरी रात विक्रम पापा को तलाश करता रहा, परंतु वे कहीं नहीं मिले. 27 अगस्त, 2024 की सुबह से विक्रम ने फिर से अपने दोस्त विनोद कुमार के साथ फिर अपने पिता की तलाश शुरू की तो उन्हें दुरंगी में पेट्रोल पंप के पास पापा की कार लावारिस हालत में मिली. विक्रम ने उसी दिन 27 अगस्त को थाना मुल्लांपुर दाखा में पापा की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी. अगले दिन पुलिस को पंडोरी गांव में जीटी रोड पर एक व्यक्ति की लाश मिली, जिस की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. तब पुलिस ने लाश अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दी थी. अगले दिन एसएचओ कुलविंदर सिंह ने फोन कर के विक्रम को अस्पताल बुला लिया, क्योंकि एक दिन पहले ही विक्रम ने पापा की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

विक्रम अपने दोस्त विनोद के साथ सरकारी अस्पताल पहुंच गया और उस ने लाश की पहचान अपने पापा रविंदर पाल सिंह के रूप में की. फिर विक्रम ने इस सब की जानकारी अपनी बड़ी बहन किरणदीप को आस्ट्रेलिया में फोन कर के दे दी. उस के बाद किरणदीप ने भाई को बताया कि इस बात की पूरी जानकारी तो सिंगर रणजीत कहलों उर्फ रंजीत बाथ ने उसे वाट्सऐप मैसेज कर के पहले ही दे दी थी. लेकिन किरणदीप ने विक्रम को बताया कि पहले तो उस ने इसे मजाक समझा था कि रणजीत शायद उस को डरा रहा है, परंतु जब उस ने पापाजी से बात करने की कोशिश की तो उन का फोन ही नहीं लग पा रहा था. इस के बाद उस ने उस से पापा को ढूंढने के लिए कहा था. 

किरणदीप कौर आस्ट्रेलिया में जौब करती थी और मनोरंजन के लिए वह कभीकभी टिकटौक पर अपने वीडियो भी अपलोड करती रहती थी. किरणदीप अपने पति से काफी लंबे समय से अलग रह रही थी, क्योंकि दोनों के विचार आपस में बिलकुल भी नहीं मिलते थे. किरणदीप का एक बेटा था, जो 13-14 साल का था. पति अपनी दुनिया में मस्त था तो किरणदीप अपनी दुनिया में मस्त थी. बस बेटे के कारण महीने-2 महीने में पतिपत्नी की केवल मुलाकात हो जाया करती थी.

किरणदीप का एक टिकटौक वीडियो काफी पौपुलर हो गया था, उस में एक दिन रंजीत बाथ नाम से एक कमेंट किरणदीप ने देखा, जिस में किरणदीप की काफी तारीफें लिखी हुई थीं. कमेंट भेजने वाले ने अपना परिचय पंजाबी सिंगर के रूप में दिया था और अपने कुछ वीडियो भी भेजे थे. किरणदीप ने जब रणजीत उर्फ रंजीत बाथ के गाने के वीडियो देखे तो उस ने भी अपने कमेंट में उस की तारीफों के पुल बांध दिए थे. 

किरणदीप और रंजीत बाथ की इस तरह बढ़ीं नजदीकियां

इस के बाद धीरेधीरे दोनों में अकसर वीडियो काल भी होने लगी थी. ऐसे ही एक दिन एक टिकटौक वीडियो को देख कर रणजीत ने लिख दिया, ”किरणदीपजी, मैं तो आप की आवाज और आप की सुंदरता का कायल हो गया हूं. आप जो भी वीडियो डालती हैं, वह सब से अलग और दिल को अंदर तक प्रभावित करने वाला होता है. सुंदरता और प्रतिभा का ऐसा मेल बहुत ही कम देखने को मिलता है.’’

प्रशंसा तो एक ऐसी चीज है, जो किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती है. स्त्री को तो प्रशंसा एकदम से लुभा देती है. रणजीत के कमेंट्स किरणदीप को अब काफी अच्छे लगने लगे थे, लिहाजा अब दोनों ने अपनेअपने मोबाइल नंबर भी आपस में एक्सचेंज कर लिए थे. धीरेधीरे दोनों में खुल कर बातें भी होने लगी थीं. रणजीत की बातों में न जाने कैसी अजीब सी कशिश थी कि वह बहुत तेजी से किरणदीप के मनमस्तिष्क पर छाने लगी थी. सोतेजागते, चलतेफिरते, खातेपीते किरणदीप अब रणजीत के खयालों में ही गुम रहने लगी थी. एक दिन रंजीत बाथ ने उस से अपने दिल की बात कह ही डाली, ”किरणदीप ऊपर वाले ने आप को चांद सा हसीन चेहरा दिया है. जाहिर है, आप के भीतर भी इतना ही खूबसूरत चांदनी की तरह जिस्म भी और दिल भी बेदाग होगा. मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं.’’ 

रंजीतजी, आप एक अच्छेभले सिंगर हैं. समाज में आप की प्रतिष्ठा और शोहरत भी है. मगर मैं आप के ख्वाबों की तरह बेदाग नहीं हूं. मैं एक विवाहित महिला हूं और मेरा एक बेटा भी है, इसलिए अच्छा यही रहेगा कि आप मुझे भूल कर कोई ऐसी दिलरुबा ढूंढ लें, जो बेदाग हो,’’ किरणदीप ने भी अपनी हकीकत बयां कर दी थी.

”किरणदीपजी, यह प्यार भी एक बड़ी अजीब चीज होती है, यह प्यार जब एक बार किसी से हो जाता है तो फिर इस के लिए किसी भी हद तक आगे बढ़ा जा सकता है. देखिए, यदि आप का आप के पति से तलाक हो चुका है तो यह अच्छी बात है. अगर तलाक नहीं हुआ है तो आप पति से तलाक ले सकती हैं. मैं आप को तो तहेदिल से स्वीकार करूंगा ही, साथ ही आप के बेटे को भी मैं पिता का प्यार दूंगा.’’ रंजीत ने वादा किया.

अपने दिल की पूरी बात खोलते हुए रंजीत ने आगे कहा, ”अब तुम्हारे बगैर एक पल भी नहीं रह सकता. मैं तुम्हें अब जल्द से जल्द पा कर अपनी जिंदगी में शामिल कर लेना चाहता हूं. तुम्हारे बगैर तो अब मैं एक पल भी अपनी जिंदगी नहीं जी सकता. मैं ने तो तुम्हें कब से अपना बना लिया है. मैं अब अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे नाम कर चुका हूं.’’

रंजीतजी, मैं आप की भावनाओं की कद्र करती हूं, लेकिन मैं एक बार धोखा खा चुकी हूं, इसलिए मैं अब भावनाओं में बहती नहीं, वैसे यदि आप मुझे पसंद करते हैं तो मैं यही चाहूंगी कि एक बार आप मुझ से यहां आस्ट्रेलिया आ कर मिल लें. जब हम दोनों कुछ दिन एकदूसरे के आसपास रहेंगे तो हमें एकदूसरे को समझने में काफी आसानी रहेगी. 

यदि हमें ऐसा लगेगा कि हम दोनों इस शादी से खुश रह सकते हैं तो फिर हम आगे का प्लान बना सकते हैं. मेरा तो यही विचार है कि मैं शादी करने से पहले आप को अच्छी तरह से समझ लूं. बाकी अब आगे आप की मरजी, आप जैसा सोचें.’’ किरणदीप ने भी अपने दिल की भावनाएं रंजीत के सामने रख दीं.

रणजीत कहलों उर्फ रंजीत बाथ तो किरणदीप की खूबसूरती पर मर मिटा था, उस का पासपोर्ट तो पहले से ही बना था. क्योंकि वह अकसर स्टेज शो करने के लिए विदेश आताजाता रहता था. उस ने अपना आस्ट्रेलिया का वीजा तुरंत बनवा लिया और 4 मार्च, 2024 को किरणदीप के पास आस्ट्रेलिया पहुंच गया.  वहां पर किरणदीप ने उस के ठहरने की व्यवस्था किसी दूसरी जगह पर की थी, क्योंकि वह पहले उसे अच्छी तरह से परखना चाहती थी. उस के बाद अपने पापा व भाई के साथ इस बारे मैं सलाहमशविरा करने के बाद ही रंजीत से शादी करना चाहती थी.

भाई और पापा क्यों हुए शादी के खिलाफ

किरणदीप कौर ने यह बात सब से पहले अपने भाई विक्रम सग्गड़ को बताई तो विक्रम बहन के इस फैसले पर सहमत नहीं हुआ. उस ने बहन को उस के फैसले पर बहुत बुराभला भी कहा. उस के बाद विक्रम ने रणजीत कहलो उर्फ रंजीत बाथ के बारे में जब जानकारियां मालूम करनी शुरू कीं तो उसे पता चला कि रंजीत बाथ अच्छे चरित्र का इंसान नहीं है. इस के अलावा पता चला कि वह शराबी है और कहीं भी किसी से भी गालीगलौज व मारपीट भी करने लगता है. फिर विक्रम ने अपने पापा रविंदर पाल को बहन किरणदीप के फैसले के बारे में सारी बातें बता दीं और इस के साथ ही उस ने पापा को किरणदीप के पास आस्ट्रेलिया भेज दिया ताकि वह उसे रंजीत के साथ शादी करने से रोक सकें

रविंदर पाल ने भी अपनी बेटी किरणदीप को आस्ट्रेलिया जा कर रंजीत बाथ के बारे में सारी सच्चाई बता कर उसे रंजीत से दूर रहने की सलाह दी. पहले तो किरणदीप कुछ दिन रंजीत की बातों से प्रभावित रही, मगर फिर धीरेधीरे रंजीत की हकीकत जब उस के सामने आने लगी तो उस ने उस से दूरी बनाने का फैसला कर लिया. रंजीत तो किरणदीप पर अब अपना अधिकार ही जताने लगा था. वह अब उस से मिलने जब आता तो शराब के नशे में होता था और अकसर उस के साथ गालीगलौज भी करने लगा था. उस की इन हरकतों से अब किरणदीप भी काफी परेशान हो चुकी थी.

एक दिन जब रंजीत उस से शराब के नशे में धुत हो कर मिलने आया तो किरणदीप ने उस से साफसाफ कह दिया, ”रंजीत, तुम्हारे साथ दोस्ती करना मेरी एक बहुत बड़ी भूल थी. अच्छा होगा कि तुम अब मेरी जिंदगी से दूर चले जाओ, मैं तुम्हारे साथ किसी भी हालत में शादी नहीं कर सकती. इस के बाद तुम मुझ से न तो कभी मिलना और न ही कभी बात करने की कोशिश भी करना.’’ किरणदीप के पिता रविंदर पाल ने भी रंजीत को खूब खरीखोटी सुनाई और उस से अपनी बेटी की जिंदगी से दूर रहने को कहा. इतना ही नहीं, उन्होंने रंजीत बाथ को वहां से भगा दिया. 

किरणदीप ने सोचा था कि रंजीत अब उस की जिंदगी से चला जाएगा, मगर उस का अंदेशा गलत निकला और अगले ही दिन शाम को रंजीत नशे में धुत हो कर मेलबर्न के पश्चिमी उपनगर स्थित किरणदीप के घर के बाहर गालीगलौज व हंगामा करने लगा. नशे में धुत हो कर उस ने किरणदीप को चेतावनी देते हुए कहा कि वह जल्द से जल्द अपने पति से तलाक ले कर उस से शादी कर ले. यदि उस ने ऐसा नहीं किया तो वह उसे व उस के परिवार को जान से मार डालेगा. किरणदीप ने इस की शिकायत तुरंत मेलबर्न की विक्टोरिया पुलिस से कर दी, जिस के फलस्वरूप विक्टोरिया पुलिस ने रणजीत कहलों उर्फ रंजीत बाथ को गिरफ्तार कर लिया और जून 2024 के प्रथम सप्ताह में उसे आस्ट्रेलिया से निर्वासित कर भारत वापस भेज दिया.

जब रंजीत बाथ भारत वापस आया तो वह अकसर फोन पर किरणदीप को धमकी देता रहता था. रंजीत बाथ अगस्त के दूसरे सप्ताह में एक बार फिर किरणदीप से मिलने आस्ट्रेलिया गया, लेकिन उस के ऊपर गंभीर केस दर्ज होने के कारण उसे मेलबर्न हवाई अड्ïडे से ही वापस भेज दिया गया. उस के बाद रंजीत एक घायल शेर की तरह हिंसक हो गया और उस ने अपने भतीजे बलजिंदर सिंह के साथ रविंदर पाल की हत्या कर डाली. दरअसल, रणजीत किरणदीप के ऊपर उस से शादी के लिए दबाव बना रहा था कि यदि किरणदीप ने अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी नहीं करेगी तो वह किरणदीप के परिवार वालों को मार डालेगा. किरणदीप ने इसे कोरी धमकी समझा और रणजीत की बात को कोई तवज्जो नहीं दी, लेकिन रणजीत ने अपने भतीजे के साथ मिल कर रविंदर पाल की गला घोंट कर हत्या कर दी और फिर वाट्सऐप पर किरणदीप को मैसेज भेज कर मर्डर की बात कुबूली और उस से माफी भी मांगी. 

किरणदीप ने अपने भाई विक्रम को बताया कि उस ने आस्ट्रेलिया में भी रणजीत के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया है. उस ने विक्रम को वाट्सऐप के रणजीत के सभी मैसेज के स्क्रीन शौट भेज दिए थे और रणजीत के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के लिए कहा. इस के बाद विक्रम 29 अगस्त, 2024 को लुधियाना के एसएसपी (ग्रामीण) नवनीत सिंह बैंस से पर्सनली मिला था और फिर रणजीत सिंह कहलों उर्फ रंजीत बाथ और उस के भतीजे बलजिंदर सिंह के खिलाफ मुल्लांपुर दाखा में हत्या का मामला 120 बीएनएस की धारा 103 (1), 3 (5) के तहत दर्ज करा दिया.

रविंदर पाल की हत्या का मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस हत्यारों की तलाश में लगातार छापेमारी करने में लग गई थी. जिस के फलस्वरूप मुकदमा दर्ज होने के 24 घंटे के अंदर ही 30 अगस्त, 2024 को पंजाब पुलिस ने रविंदर पाल की हत्या में शामिल पंजाबी सिंगर रंजीत बाथ के भतीजे बलजिंदर सिंह उर्फ गुल्ली उर्फ मोना को उस की स्कोडा कार सहित गिरफ्तार कर लिया. लेकिन रंजीत बाथ फरार हो चुका था.

कहानी लिखे जाने तक पंजाब पुलिस हत्या के आरोपी रणजीत सिंह कहलों उर्फ रंजीत बाथ को सरगर्मी से तलाश कर रही थी. दाखा मुल्लांपुर पुलिस पंजाबी सिंगर के कई ठिकानों पर छापेमारी भी कर चुकी थी, मगर आरोपी पुलिस के हाथ नहीं आ पाया. यह शक भी जताया जा रहा है कि रंजीत बाथ कहीं विदेश तो नहीं भाग गया.

कहानी पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

 

मंडप से पहले श्मशान पहुंची काजल

ब्यूटी पार्लर में मेकअप करा रही 22 वर्षीय काजल अहिरवार के दिलोदिमाग में तरहतरह के विचार घूम रहे थे, क्योंकि कुछ घंटों बाद उस की शादी होने जा रही थी. दुलहन की पोशाक में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. इसी दौरान ब्यूटी पार्लर में पहुंचे एक युवक ने काजल की गोली मार कर हत्या कर दी. इस के बाद तो मंडप स्थल पर मातम छा गया. आखिर गोली मारने वाला वह युवक कौन था और उस ने काजल को गोली क्यों मारी?

जैसेजैसे 22 वर्षीय काजल के विवाह की तारीख नजदीक आ रही थी, दीपक अहिरवार की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे. दीपक की बेचैनी को उस के घर वाले भी समझ रहे थे, इसलिए उन्होंने दीपक को बहुत समझाने की कोशिश की, परंतु दीपक पर उन की समझाइश का कोई असर नहीं हुआ. काफी सोचविचार के बाद दीपक ने एक फैसला कर लिया. उस ने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए कहीं से .315 बोर के एक तमंचा व गोलियों का इंतजाम कर लिया.

23 जून, 2024 को काजल की बारात आने वाली थी. झांसी के खोडन में स्थित निशा गार्डन में विवाह की सारी तैयारियां चल रही थीं. भव्य समारोह स्थल पर मेहमानों का आना जारी थी. वधू पक्ष के लोग सारी व्यवस्थाओं में जुटे हुए थे. शादी के मंडप में खूब चहलपहल थी. लोग खानेपीने और नाचगाने में लगे थे. उसी दिन शाम 5 बजे काजल अपनी चचेरी बहनों नेहा, मुसकान, वंदना और अनुष्का के साथ विवाहस्थल से करीब 200 मीटर दूर स्थित वेलनैस ब्यूटी पार्लर में मेहंदी लगवाने और मेकअप कराने के लिए गई थी. दीपक को इस बात की जानकारी थी कि काजल मेकअप के लिए वेलनैस ब्यूटी पार्लर जा चुकी है. वह भी रात करीब 10 बजे वहां पहुंच गया. उस समय वह बहुत गुस्से में था.

वह पार्लर का दरवाजा खोल कर सीधे अंदर आ गया, जहां पर काजल का मेकअप हो रहा था. कमरे के अंदर घुसते ही उस ने काजल को अपने साथ चलने के लिए कहा, मगर जब काजल ने उस के साथ जाने से साफसाफ इंकार कर दिया तो वह काजल के साथ बहस करने लगा. तभी वहां पर मौजूद ब्यूटी पार्लर की संचालिका जाह्नïवी और काजल की बहनों ने दीपक को यह कहते हुए ब्यूटी पार्लर से बाहर कर दिया कि यहां पर मर्दों का आना मना है. उस के बाद दीपक बाहर चला गया.

पार्लर से निकलने के बाद दीपक अहिरवार कुछ देर तक बाहर खड़ा रहा. फिर उसे न जाने कैसा जुनून सा सवार हो गया कि उस ने अपने मुंह पर रुमाल बांधा और बाहर से ब्यूटी पार्लर का दरवाजा जोर से खींचा और दनदनाते हुए एक बार फिर पार्लर के उसी कमरे में पहुंच गया, जहां पर काजल का मेकअप हो रहा था. इस बार उस ने अपने दिमाग में एक खूनी मंसूबा बना लिया था. वहां पहुंच कर उस ने चीखते हुए सुर्ख जोड़े में दुलहन बनी काजल से कहा, ”काजल, तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. तुम ने मेरे साथ कुछ भी ठीक नहीं किया है.’’ 

उस के बाद उस ने धमकी देते हुए कहा, ”काजल, तुम मेरी आखिरी बात ध्यान से सुन लो, यदि तुम अभी भी मेरे साथ नहीं चलोगी तो तुम्हें किसी और का भी नहीं होने दूंगा.’’ इस धमकी के बावजूद भी जब काजल उस के साथ जाने को तैयार नहीं हुई तो उस ने अचानक अपनी कमर से तमंचा निकाला और काजल की छाती से सटा कर गोली मार दी. गोली लगते ही काजल जमीन पर गिर कर वहीं ढेर हो गई. गोली की आवाज सुन कर आसपास के लोग भी दौड़े, लेकिन तब तक पलक झपकते ही दीपक तमंचा लहराता हुआ वहां से भाग गया था.

घटना की सूचना तुरंत पुलिस को दे दी गई. सूचना मिलते ही झांसी के एसएसपी राजेश एस., एसपी (सिटी) ज्ञानेंद्र कुमार सिंह शिप्री बाजार थाने के एसएचओ  घटनास्थल पर पहुंच गए.

और मंडप में छा गया मातम

दुलहन काजल को गोली मारने की खबर जैसे ही शादी के हाल में पहुंची तो वहां पर सब अचंभित हो कर रह गए थे. घर वाले तुरंत ब्यूटी पार्लर पहुंचे. पता चला कि उसे मैडिकल कालेज ले जाया गया है तो वह भी वहां पहुंच गए. लेकिन वहां उन्हें काजल की मौत की जानकारी मिली. घर वालों से प्रारंभिक पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराया, फिर शव को घर वालों को सौंप दिया. जिस दुलहन की शादी होने वाली थी, उस की अब अर्थी सज रही थी. राज जाटव नाम का जो युवक बाजेबारातियों के साथ आया था, उसे भी मायूस हो कर बिना दुलहन के लौटना पड़ा. पूछताछ में पुलिस को यह जानकारी मिल चुकी थी कि आरोपी दीपक मृतका काजल के पड़ोस में ही रहता था.

बेटी की मौत की खबर मिलते ही काजल की मां रानी का रोरो कर बेहाल हो गया था. पुलिस ने इस मामले की जांच की तो पता चला कि दतिया जिले के बरगांव के रहने वाले राजकुमार अहिरवार के परिवार में पत्नी रानी के अलावा 2 बेटे विकास व विशाल और बेटी काजल थी. 5 सदस्यों के इस परिवार की जिंदगी हंसीखुशी से गुजर रही थी. राजकुमार खेतीकिसानी कर के परिवार का गुजरबसर कर रहा था.

राजकुमार के पड़ोस में ही धनीराम अहिरवार रहता था. पड़ोसी होने की वजह से धनीराम की पत्नी ऊषा अहिरवार और बच्चों का भी राजकुमार के घर आनाजाना था. धनीराम का बेटा दीपक अहिरवार बहुत होनहार था. उसे सब लोग किताबी कीड़ा कहते थे. उस का सपना संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर के आईएएस अफसर बनना था. दीपक अहिरवार और काजल अहिरवार हमउम्र थे. दोनों में अच्छी दोस्ती थी. समय के अनुसार यह दोस्ती प्यार में बदल गई थी. फिर उन्होंने जनमजनम तक साथ निभाने की कसमें भी खा लीं. दोनों बालिग थे, इसलिए उन्होंने अपने घर वालों को प्यार का हवाला देते हुए शादी करने की इच्छा जताई.

बताते हैं कि दोनों की शादी के लिए काजल के पापा राजकुमार के अलावा सभी की सहमति बन गई, लेकिन राजकुमार तैयार नहीं हो रहा था. फिर दीपक ग्वालियर में रह कर सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी के लिए चला गया. वह वहां कई साल रहा, लेकिन उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो वह वापस घर लौट आया. दीपक और काजल का प्यार पहले की तरह ही मजबूत था. वे प्यार की खातिर कुछ भी करने को तैयार थे. अपने रिश्ते को ले कर दोनों ही गंभीर थे.

योजना बना कर 9 जून, 2024 को दीपक और काजल घर से चले गए थे. काजल ने अपने घर वालों के लिए घर छोड़ते समय एक चिट्ठी भी छोड़ी थी, जिस में लिखा था, ‘मम्मीपापा, आप की बेटी काजल अपनी मरजी से दीपक के संग जा रही है. आप से मेरी बस एक विनती है कि आप की पसंद मेरी पसंद नहीं हो सकती, इसलिए मुझे, मेरे होने वाले पति दीपक और उस के घरवालों को परेशान नहीं करना. क्योंकि मेरी खुशी दीपक में है और किसी में नहीं.’

उस ने आगे यह भी लिखा था, ‘मैं और दीपक अपनी मरजी से शादी करेंगे. आप कृपा कर के हमें खुश रहने दो, नहीं तो हम दोनों आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाएंगे. आप मुझे और मेरे होने वाले पति दीपक को माफ कर देना.’ काजल 22 साल की थी. दोनों बालिग होने के कारण कोर्ट मैरिज करने ग्वालियर पहुंचे थे, लेकिन उस दिन रविवार होने के कारण छुट्टी थी, इसलिए वे दोनों शादी नहीं कर पाए थे. उस के बाद काजल के पापा पुलिस की मदद से उसे ग्वालियर से अपने साथ घर ले आया.

आननफानन में क्यों हो रही थी काजल की शादी

राजकुमार अहिरवार उस समय काजल को अपने गांव ले कर नहीं गया. किसी तरह काजल को राजी कर के वह झांसी में रहने वाले काजल के मामा के घर ले गया. जिस लड़के राज जाटव से झांसी में काजल की शादी हो रही थी, वह झांसी के चिरगांव थाना क्षेत्र के सिमथरी गांव का निवासी था. राज जाटव से साल भर पहले काजल की सगाई तय हो चुकी थी. 

काजल दीपक को पसंद करती थी, चाहती थी, इसलिए काजल ने राज जाटव से शादी करने के लिए साफ मना कर दिया था. इस कारण काजल के घर वालों को उस समय रिश्ते को तोड़ देना पड़ा था. राजकुमार को लग रहा था कि काजल दीपक का साथ नहीं छोड़ेगी, इसलिए उस ने उसी लड़के राज जाटव से काजल की बात चलाई और आननफानन में शादी की तारीख भी निकाल दी और शादी के कार्ड भी छपवा दिए.  काजल की शादी की बात का पता जब दीपक को लगा तो वह बुरी तरह से टूट गया था. उसी दिन से उस ने खानापीना भी छोड़ दिया. वह हमेशा गुमसुम सा रहने लगा था. वह काजल को चाह कर भी भुला नहीं पा रहा था.  दीपक ने मम्मी ऊषा से कहा कि मम्मीजी भले ही काजल के पापा उस की शादी किसी से भी करा दें, लेकिन मैं उसे किसी और की नहीं होने दूंगा. 

इस बारे में ऊषा ने भी उसे काफी समझाया और उसे काजल को भूल जाने की सलाह भी दी, लाख समझाने के बाद भी वह काजल को भूलने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं था. केवल दीपक ही नहीं बल्कि काजल भी दीपक से बहुत प्यार करती थी. वह अकसर कहती थी कि न मैं दीपक के बगैर रह सकती हूं, न वह मेरे बगैर जीवित रह सकता है.

काजल ने मंगेतर से साझा किया अपना दर्द

काजल ने अपनी हत्या से 24 घंटे पहले अपने मंगेतर राज जाटव से फोन पर अपना दर्द साझा किया था. राज जाटव ने पुलिस को बताया कि बारात से एक दिन पहले काजल ने उसे फोन कर के बताया था कि उस के पड़ोस में रहने वाला दीपक उसे और उस के घर वालों को धमका रहा है. उस की धमकी के कारण ही वे लोग झांसी आ कर शादी कर रहे हैं. राज जाटव के मुताबिक काजल के पिता राजकुमार अहिरवार ने आखिर तक यह असली बात मुझ से और मेरे घर वालों से छिपाए रखी. 

राजकुमार अहिरवार ने सिर्फ पड़ोसी से विवाद की बात हमें बताई थी, लेकिन किस बात को ले कर विवाद था, यह बात हमें कभी भी नहीं बताई गई. झांसी के पीतांबरा पीठ में राज और काजल के परिजनों ने मिलने के बाद आननफानन में शादी की तारीख भी तय कर दी थी. इस के बाद काजल अपने गांव नहीं गई. उसे सीधे उस के मामा के घर झांसी भेज दिया गया था. 

काजल की शादी की बात उस के पापा राजकुमार ने अपने गांव में किसी को नहीं बताई थी. लेकिन किसी तरह काजल की शादी की भनक उस के प्रेमी दीपक को लग चुकी थी. 21 जून को राजकुमार ने फलदान किया था. 22 जून, 2024 को सिमथरी में वरपक्ष की ओर से खाना चल रहा था. उसी दौरान काजल ने मंगेतर राज जाटव को फोन पर पूरी बात बताई थी. सगाई तय होने के बाद राजकुमार अहिरवार ने अपना खेत बेच अपने होने वाले दामाद को कार दी थी. यह बात दीपक को नागवार गुजरी और वह अपने अंतिम फैसले के साथ शादी वाले दिन झांसी पहुंच गया और उस ने काजल की हत्या कर दी.

अब पुलिस काजल की हत्या के आरोपी दीपक अहिरवार की खोज में जुट गई. एसएसपी (झांसी) राजेश एस. ने आननफानन में 5 पुलिस टीमों का गठन कर दिया. पुलिस ने ब्यूटीपार्लर के आसपास गली के सीसीटीवी कैमरे खंगाले, उन में दीपक नजर आ रहा था. उस के साथ 2 युवक भी दिखाई दिए, हालांकि यह साफ नहीं हुआ कि इन 2 युवकों को वह अपने साथ ले कर आया था अथवा ये दोनों युवक झांसी के ही रहने वाले थे. पुलिस टीम हत्यारे के साथ दिखे युवकों को भी तलाशने में जुट गई थी.

उत्तर प्रदेश पुलिस की 2 पुलिस टीमें दीपक को गिरफ्तार करने के लिए दतिया (मध्य प्रदेश) भेज दी गई थीं. पुलिस की एक टीम हत्या वाले दिन से ही सीसीटीवी कैमरे खंगालने में जुट गई थी. कैमरों की मदद से हत्यारे को ट्रैस करने की कोशिश की जा रही थी. इस के अतिरिक्त पुलिस इस बात का भी पता लगाने में जुटी थी कि इस वारदात में हत्यारे दीपक के साथ कौनकौन लोग शामिल थे. सोमवार 24 जून, 2024 को पुलिस की टीमें फरार हत्यारे की तलाश में दबिश देने में जुटी रहीं. दीपक की तलाश में सोमवार देर रात पुलिस ने दतिया स्थित उस के गांव में दबिश दी. लेकिन उस का सुराग नहीं लग सका. उस के घर वाले भी घर में ताला बंद कर के भाग निकले थे. घर वालों के मोबाइल नंबर भी बंद आ रहे थे.

इधर झांसी में रहने वाले दीपक के रिश्तेदारों के घरों पर भी पुलिस ने दबिश दी लेकिन रिश्तेदार इस बारे में कुछ नहीं बता पाए. इस संबंध में पुलिस ने 5 लोगों को हिरासत में भी ले लिया था. 23 जून रविवार के दिन दीपक ने अपनी प्रेमिका काजल की गोली मार कर हत्या कर दी थी और वहां से फरार हो गया था. सोमवार पूरा दिन वह कहां रहा, यह किसी को पता नहीं चला. उस के बाद दीपक 25 जून मंगलवार की सुबह ही मुरैना पहुंचा. 

सुबह 5 बज कर 30 मिनट पर उस ने मुरैना के स्टेशन रोड स्थित स्टेट बैंक औफइंडिया के एटीएम से 1000 रुपए निकाले. एटीएम से रुपए निकालते ही पुलिस को उस की लोकेशन मिल गई. उत्तर प्रदेश की 2 पुलिस टीमें अभी दतिया जिले में ही उस की खोज कर रही थीं. उत्तर प्रदेश पुलिस की टीम ने इस संबंध में मध्य प्रदेश पुलिस से संपर्क कर आरोपी की डिटेल्स और लोकेशन मध्य प्रदेश पुलिस के साथ साझा की और यूपी पुलिस की दोनों टीमें अब दतिया से मुरैना की ओर चल पड़ी थीं.

एटीएम से रुपए निकालने के बाद दीपक मुरैना में स्टेशन के पास काशीबाई धर्मशाला में पहुंचा. वहां पर उस ने अपना आधार कार्ड और मोबाइल नंबर दे कर एक कमरा बुक करा लिया. कमरा लेते वक्त उस ने धर्मशाला के मैनेजर को बताया कि वह आगरा से ग्वालियर जा रहा है, लेकिन सफर के दौरान वह काफी थक गया, इसलिए अब मुरैना में आराम करेगा. धर्मशाला में रुकने के लिए दीपक ने 600 रुपए एडवांस भी जमा किए थे. दीपक को पहले रूम नं. 7 अलौट किया गया, मगर उसे एसी वाला रूम चाहिए था, इसलिए उस का रूम बदल कर उसे फिर एसी वाला रूम नंबर 5 अलौट कर दिया गया.

कमरे में जाने के बाद दीपक अपने कमरे से बाहर नहीं निकला था. कमरे से दोपहर के खाने का और्डर नहीं आया तो धर्मशाला के कर्मचारियों ने उस के कमरे का दरवाजा बाहर से खटखटाया. काफी देर तक जब दरवाजा खटखटाने के बाद भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो धर्मशाला के कर्मचारियों ने कमरे के पीछे की खिड़की से झांक कर देखा तो दीपक पंखे से लटका हुआ था. दीपक ने पंखे पर गमछे से फंदा बनाया था. धर्मशाला के कर्मचारियों ने तुरंत मुरैना पुलिस को फोन किया. इस बीच आरोपी का पता लगाते हुए झांसी पुलिस की टीम भी काशीबाई धर्मशाला पहुंच चुकी थी. झांसी पुलिस टीम ने स्थानीय पुलिस को इस संबंध में सूचना दी. 

दोनों पुलिस टीमों ने जब मृत व्यक्ति की शिनाख्त की तो वह शव दीपक अहिरवार का ही निकला. दीपक के शव को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया गया. इस की जानकारी एसपी (मुरैना) डा. अरविंद ठाकुर ने पत्रकारों को दी. 26 जून, 2024 को दीपक अहिरवार का शव पोस्टमार्टम के बाद दतिया जिले के अंतर्गत बरगांव पहुंचा तो अपने बेटे का शव देख मां ऊषा अहिरवार का रोरो कर बुरा हाल हो गया था. हत्या और फिर आत्महत्या के इस सनसनीखेज केस के बारे में झांसी के एसपी (सिटी) ज्ञानेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि हत्यारे दीपक के आत्महत्या कर लेने के बाद यह केस एक तरह से क्लोज ही हो गया है. अब तक की जांच में सामने आया है कि दीपक उस रात अकेले ही ब्यूटी पार्लर गया था, दीपक के सुसाइड के बाद हत्या में प्रयुक्त हथियार को खोजना अब काफी मुश्किल काम है. हालांकि जांचपड़ताल अभी भी चल रही है. 

लोगों के गले से एक बात नहीं उतर रही है कि काजल की हत्या के बाद हत्यारा दीपक अहिरवार उत्तर प्रदेश पुलिस से बच कर दिल्ली तक भाग गया था, लेकिन फिर रात में ही वह वापस मुरैना आ गया. पुलिस को अब तक भी इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया कि आखिर सुसाइड करने के लिए उस ने मुरैना को ही क्यों चुनासंभावना जताई जा रही है कि किसी भावनात्मक लगाव की वजह से दीपक ने मुरैना आ कर अपनी जान दी. 

पुलिस को अब तक इस बात का भी जबाब नहीं मिला कि काजल के ब्यूटी पार्लर जाने की सटीक जानकारी दीपक को आखिर किस ने दी? हत्या में इस्तेमाल किया गया तमंचा भी पुलिस बरामद करने में कामयाब नहीं हो सकी. इस सनसनीखेज वारदात में एक इश्क ने न केवल एक युवती की जान ले ली बल्कि युवक भी जान की बाजी खुद भी हार गया. साथ ही दूल्हा राज जाटव, जिस ने काजल के साथ जिंदगी गुजारने की आस में, बारात ले कर आया था और शादी के सुनहरे सपने पाल रखे थे, वह भी केवल खाली हाथ मलता रह गया. 

जिस दुलहन (काजल) के ऊपर फूलमालाओं की बरसात होने वाली थी, जिसे लोग आशीर्वाद और बधाइयां देने वाले थे. बस इस के पहले ही सारा खेल खराब हो गया. इस सनकी आशिक ने 2 परिवारों की खुशियां उजाड़ीं और वहां से फरार हो गया. इस से भी ज्यादा हैरानी की बात तो यह थी कि उस ने खुद अपनी भी जीवनलीला समाप्त कर दी. यानी कि एक सनकी आशिक ने 3 घरों को पूरी तरह से बरबाद कर दिया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

संगीत सुनाकर वैज्ञानिक करता था मर्डर

डा. सैम फ्रांसिस अपनी साउंडप्रूफ लैबोरेटरी में किसी भी व्यक्ति को इतनी तेज आवाज में म्यूजिक सुनाता था कि उस व्यक्ति की हार्टअटैक से मौत हो जाती थी. एकएक कर वह लोगों को अपना शिकार बनाता जा रहा था. वैज्ञानिक होने के बावजूद आखिर वह ऐसा क्यों कर रहा था?

पुलिस कप्तान ए.के. समीर अपने कार्यालय में बैचेनी से चहलकदमी कर रहे थे. उन की बेचैनी का कारण अखबार में छपी एक खबर थी. हालांकि अखबार स्थानीय स्तर का ही था और आसानी से दबाया भी जा सकता था, मगर फिर भी कप्तान साहब पूरी चौकसी रखना चाहते थे. इसी कारण उन्होंने संबंधित क्षेत्र के डीएसपी आशीष चौबे और एसएचओ अविनाश मलिक को तुरंत अपने औफिस में तलब किया. संबंधित दोनों अधिकारी कप्तान साहब का आदेश पाते ही उन के औफिस में पहुंच गए.

क्या आप को पता है कि मैं ने आप दोनों को यहां क्यों बुलाया है?’’ एसपी साहब ने दोनों से प्रश्न किया.

मेरे विचार से किसी लीडर के आकस्मिक आने की सूचना आदरणीय कलेक्टर साहब ने दी होगी और उन की सुरक्षा के लिए प्रोटोकाल ड्यूटी की व्यवस्था करनी होगी. आजकल नेता लोग इतने भड़काऊ भाषण जो दे रहे हैं.’’ डीएसपी चौबे ने अनुमान लगाया.

आजकल सड़क पर कोई कुत्ता भी मर जाए तो लोग समझते हैं कि उस की मौत की जांच करवाने के लिए चक्का जाम कर देंगे.’’ इंसपेक्टर मलिक थोड़े जोश में बोले.

मैं ने कोई फिक्शन या कहानी बताने के लिए नहीं बुलाया है. और हां, यहां मौत एक कुत्ते की नहीं बल्कि 3 आदमियों की हुई है.’’ एसपी साहब बोले.

”3 आदमी?’’ दोनों अधिकारी चौंक कर बोले.

मगर अभी तक ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है सर,’’ एसएचओ बोले. 

परसों आप के क्षेत्र में उस हैंडपंप के पास पीपल के पेड़ के नीचे एक आदमी की लाश मिली थी. उस के बारे में क्या खबर है?’’ एसपी साहब ने पूछा. उन के स्वर में गंभीरता थी.

जी सर, उस की रिपोर्ट मैं ने आप को भेजी थी. उस लाश के बारे में स्पष्ट उल्लेख है कि उस आदमी की मौत हार्ट अटैक से स्वाभाविक परिस्थितियों में हुई थी. इस संदर्भ में पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला भी दिया गया था.’’ इंसपेक्टर मलिक ने अपना स्पष्टीकरण दिया.

हां और उस रिपोर्ट के आधार पर ही मैं ने केस को खत्म करने की अनुशंसा भी की थी,’’ डीएसपी चौबे ने अपना पक्ष रखा.

”आप लोग नया केस आने के बाद पुराने केस को भूल जाते हो क्या?’’ एसपी साहब ने पूछा.

”बिलकुल नहीं सर,’’ इंसपेक्टर ने कहा.

क्या मरा हुआ व्यक्ति हमारे विभाग से संबंधित था? हमारे पास उस मृतक से संबंधित कोई सूचना है क्या?’’ डीएसपी चौबे ने पूछा. 

मेरे सामने यह स्थानीय अखबार योद्धारखा है, इसे पढ़ा आप लोगों ने?’’ एसपी साहब ने पूछा.

अरे सर, यह तो 2 कौड़ी का अखबार है. इसे तो वैसे भी कोई नहीं पढ़ता.’’ इंसपेक्टर ने मुसकराते हुए कहा.

सर, इस पेपर को तो रद्ïदी वाले भी नहीं खरीदते हैं. ऐसी क्या खबर छाप दी उस ने कि आप इतने गंभीर हो गए?’’ डीएसपी आशीष चौबे बोले.

”खबर छोटी, मगर महत्त्वपूर्ण है. पुलिस की नजर ऐसी ही छोटीछोटी खबरों पर होनी चाहिए. इस अखबार ने छापा है कि उस पीपल के पेड़ के नीचे पिछले 6 महीनों में यह तीसरी मौत है, जो हार्टअटैक से हुई है. उस ने प्रश्न उठाया है कि क्या उस पेड़ के नीचे कोई भूत रहता है जो राहगीरों की जान ले लेता है?’’ एसपी साहब ने पेपर में छपी खबर का विवरण दिया.

लेकिन सर, अगर कोई स्वाभाविक मौत मरता है तो हम क्या कर सकते हैं? ‘‘ इंसपेक्टर ने कहा. 

एसपी ए.के. समीर ने कहा, ”एक जगह पर 6 महीनों में 3 लोगों की स्वाभाविक मौत एक ही बिंदु पर होती है तो वह अस्वाभाविक जरूर हो जाती है और फिर पुलिस का काम ही शक करना है. एक बात और है, सभी मौतें उस समय पर हुई हैं, जब लोग मौर्निंग वाक के लिए निकलते हैं. इसलिए शक लाजिमी है.’’ 

यह एक संयोग भी हो सकता है सर.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”अगर यह कोई प्राकृतिक संयोग है तब तो ठीक है, लेकिन लगातार इस तरह की घटनाएं होने से लोगों में भूतप्रेत के प्रति अंधविश्वास बढ़ सकता है, जिस की आड़ में असामाजिक तत्त्व अपनी गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं. इसलिए जांच जरूरी है.’’  एसपी साहब निर्णयात्मक स्वर में बोले.

ठीक है सर, मैं उस इलाके में अपने मुखबिर छोड़ देता हूं.’’ इंसपेक्टर मलिक बोले. 

देखो, जो भी मुखबिर छोड़ो, वह पूरी तरह विश्वसनीय होना चाहिए. क्योंकि एक ही स्थान पर 3 एक जैसी मौतें किसी बड़े षडयंत्र का हिस्सा भी हो सकती हैं. और अगर यह षडयंत्र है तो इस के पीछे जरूर किसी मास्टरमाइंड का दिमाग होगा. साधारण हत्यारे इस तरह सफाई से अपने काम को अंजाम नहीं देते.’’ एसपी साहब अपना अंतिम निर्देश देते हुए बोले.

जी, मैं किसी खास मुखबिर को ही वहां पर तैनात करूंगा.’’ इंसपेक्टर ने जवाब दिया.

क्या था 3 मौतों का राज

इंसपेक्टर मलिक ने कप्तान साहब के आदेशों का पालन किया और एक खास मुखबिर को काम पर लगा दिया. इस घटना को 3 महीने गुजर चुके थे, मगर वहां कोई घटना नहीं हुई, न ही कोई संदेहास्पद व्यक्ति दिखाई दिया.

सर, मुखबिर को काम पर लगाए 3 महीने हो चुके हैं. अभी तक कोई ऐसी घटना न ही कोई व्यक्ति दिखाई पड़ा, जिस पर शक किया जा सके. क्या हम अपने मुखबिर को वहां से हटा लें?’’ इंसपेक्टर मलिक ने एसपी साहब से पूछा.

नहीं, अभी नहीं. अगर ये घटनाएं किसी अपराध के तहत हुई हैं तो अपराधी एक बार फिर उस जगह जरूर आएगा, यह पुलिस की क्राइम साइकोलौजी कहती है. हमें उस समय तक इंतजार करना चाहिए.’’ एसपी साहब बोले.

जैसा आप का आदेश सर.’’ कह कर इंसपेक्टर बाहर निकल गए. कुछ समय गुजर जाने के बाद एक दिन. 

”सर, उस स्थान पर पिछले 2 घंटे से एक कार 3 चक्कर काट चुकी है और हर बार कुछ पलों के लिए रुकी भी है.’’ मुखबिर ने फोन लगा कर इंसपेक्टर को सूचना दी.

”मामला कुछ गड़बड़ लगता है. उस कार का नंबर नोट करो और उस की गतिविधियों पर नजर रखो.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

सर, गाड़ी का नंबर एससी 02 बीबी 2222 है.’’ मुखबिर ने बताया 

इंसपेक्टर मलिक की दिलचस्पी बढ़ गई. वह बोले, ”ठीक है, तुम वहीं रहो मैं एसपी साहब को सूचित कर वहां पहुंचता हूं.’’ कह कर इंसपेक्टर ने अपने स्टाफ को गाड़ी के नंबर की जानकारी निकालने के आदेश दे दिए और एसपी साहब को फोन लगाया. 

हां, कहिए इंसपेक्टर मलिक,’’ एसपी साहब ने फोन उठाते ही कहा.

सर, एक सस्पेक्टेड गाड़ी उस इलाके में देखी गई है.’’ इंसपेक्टर ने कहा. 

आप ने गाड़ी के नंबर की जानकारी निकलवाई? किस की है वो गाड़ी? क्या एक्टिविटी है गाड़ी के ड्राइवर की?’’ एसपी साहब ने प्रश्नों की बौछार लगा दी.

इंसपेक्टर मलिक ने पूरा विवरण देते हुए कहा, ”जी सर, गाड़ी का नंबर साइंटिस्ट प्रोफेसर सैम फ्रांसिस का है. स्वयं सैम फ्रांसिस 3 बार गाड़ी उस स्थान पर ला कर मुआयना कर चुका है. गाड़ी की रफ्तार उस स्थान पर आ कर बहुत ही कम हो जाती है. शक करने का एक कारण और भी है कि ड्राइवर के होने के बावजूद सैम फ्रांसिस खुद गाड़ी ड्राइव कर रहा है.’’

ओह! मुझे पहले से ही शक था कि यह काम किसी प्रोफेशनल किलर का न हो कर किसी पढ़ेलिखे व्यक्ति का हो सकता है. आप तुरंत सर्च वारंट जारी करवाइए और सैम फ्रांसिस के घरदफ्तर की जांच कीजिए.’’ एसपी साहब ने आदेश दिया. 

यस सर,’’ कह कर इंसपेक्टर मलिक आदेश को तामील करने के लिए निकल पड़े. 

वैज्ञानिक ने क्यों की थीं 3 हत्याएं

कुछ ही देर में पुलिस पार्टी सैम फ्रांसिस के घर व दफ्तर में थी, जोकि मुख्य शहर से लगभग 5 किलोमीटर दूर सड़क से 200 मीटर अंदर की तरफ था. सैम फ्रांसिस का घर क्या था, वह तो एक किलेनुमा रचना थी.  यह किला काफी बड़े इलाके में फैला हुआ था और सुरक्षा की दृष्टिकोण से चारों तरफ से चौड़ी बाउंड्री वाल से घिरा हुआ था. बाहर नेमप्लेट लगी हुई थी— ‘डा. सैम फ्रांसिसऔर नीचे छोटेछोटे अक्षरों में लिखा था— ‘न्यू एक्सपेरिमेंटल लैब’. मतलब सैम फ्रांसिस का घर और दफ्तर एक ही जगह पर है. मन ही मन इंसपेक्टर ने सोचा.

सर, सैम फ्रांसिस के दादाजी अंगरेजों के जमाने में बहुत बड़े अधिकारी थे. ब्रिटेन से भारत नियुक्त होने पर उन्हें इस स्थान की आबोहवा इतनी पसंद आई कि इन्होंने कभी ब्रिटेन वापस जाने के बारे में सोचा ही नहीं. अपने प्रभाव से अपने पुत्र मतलब सैम फ्रांसिस के पिताजी को भी भारत सरकार में ऊंचे ओहदे पर नौकरी लगवा दी.

यह सब जमीनजायदाद उसी समय खरीदी हुई है. सैम भी पढऩे में बहुत अच्छा था और उस ने उच्च शिक्षा ग्रहण की है. अभी सैम गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कालेज में प्रोफेसर है और खाली समय में कुछकुछ प्रयोग भी करता रहता है. इसी कारण घर में एक प्रयोगशाला भी खोली हुई है.’’ एक स्थानीय सिपाही ने जानकारी दी.

किस तरह के प्रयोग करता है डा. सैम फ्रांसिस?’’ इंसपेक्टर ने पूछा. 

सर, इस के बारे में जानकारी तो अंदर काम करने वाले लोग ही दे सकते हैं.’’ सिपाही  ने जवाब दिया. 10 मीटर के अंतराल से लगे 2 सिक्युरिटी गेट से गुजरने के बाद पुलिस पार्टी की गाड़ी सैम फ्रांसिस के पोर्टिको में खड़ी थी. 

आइए इंसपेक्टर.’’ पोर्टिको में स्वागत करने के लिए खुद सैम फ्रांसिस खड़ा था. 

जी, डा. फ्रांसिस, आप से ही मिलना था.’’ इंसपेक्टर अविनाश मलिक ने सीधेसीधे विषय पर आते हुए कहा.

मैं जानता हूं इंसपेक्टर, आप मुझ से मिलना और बहुत कुछ जानना चाहते हैं.’’ डा. फ्रांसिस मुसकराते हुए बोला. 

फिर तो आप यह भी जानते होंगे कि मैं आप से क्यों मिलना चाहता हूं?’’ इंसपेक्टर ने कहा. 

बेशक मैं जानता हूं कि आप उन 3 नैचुरल डेथ के बारे में जानना चाहते हैं, जिन की मौतें उस पीपल के पेड़ के नीचे हुई हैं. वैसे आप के डिपार्टमेंट का शक सही है. वे सभी मौतें नैचुरल नहीं, बल्कि इंड्यूस्ड हैं.’’ डा. सैम फ्रांसिस ने बताया.

जी हां डा. सैम, हम यह जानना चाहते हैं कि ये हत्याएं प्राकृतिक मौत में तब्दील कैसे हुईं?’’ इंसपेक्टर मलिक ने पूछा. 

हत्या? हां साहब, वह सौ प्रतिशत हत्याएं ही थीं और उन हत्याओं को मैं ने प्राकृतिक रूप में कैसे बदला, यह जानना हो तो आप को मेरी लैब में चलना होगा. वैसे कुल कितने लोग हैं इस पुलिस टीम मेंïï?’’ डा. सैम फ्रांसिस ने पूछा.

ड्राइवर समेत हम कुल 9 लोग हैं.’’ इंसपेक्टर ने जवाब दिया. डा. फ्रांसिस बोला, ”लैब यहां से 200 मीटर पीछे इसी बाउंड्री में है. ड्राइवर सहित आप सभी उस लैब में पहुंचिए. चूंकि विज्ञान की बातें है, अत: यदि एक को समझ में नहीं आए तो दूसरा समझा दे.’’ 

जी नहीं, मेरी पार्टी जीप से वहां जाएगी, मगर मैं आप के साथ ही वहां जाऊंगा. मैं आप को अकेला भागने के लिए नहीं छोड़ सकता.’’ इंसपेक्टर ने दृढ़ता से कहा. 

यह भी ठीक है. यदि मुझे भागना ही होता तो मैं कब का भाग चुका होता.’’ डा. फ्रांसिस बोला. 

बातें करते हुए दोनों सैम फ्रांसिस की प्रयोगशाला में पहुंच गए. वैसे इंसपेक्टर मलिक डा. फ्रांसिस के ज्ञान के आगे अपने आप को बौद्धिक रूप से बौना समझ रहे थे तथा डा. फ्रांसिस के ज्ञान का सम्मान करते हुए सम्मोहित रूप से उस का अनुसरण कर रहे थे. 

म्यूजिक के साथ मौत का क्या था कनेक्शन

डा. सैम फ्रांसिस की प्रयोगशाला किसी आडिटोरियम से कम नहीं थी. एक बहुत बड़ा हाल था, जिस में बैठने के लिए लगभग 50 आरामदायक कुरसियां लगी हुई थीं. एक छोटा सा स्टेजनुमा प्लेटफार्म बना हुआ था, जिस के पीछे एक ब्लैकबोर्डनुमा बोर्ड लगा हुआ था.

डा. फ्रांसिस लेक्चर देगा क्या हम लोगों को?’’ एक सिपाही ने पूछा. 

पता नहीं?’’ दूसरा बोला. 

सुनिए, आप लोग ध्यान से,’’ सैम फ्रांसिस स्टेज पर चढ़ कर बोला, ”मैं आप को अपने नए प्रयोगों के बारे में कुछ बताऊंगा और शायद आप भी साक्षी बनें इस लैबोरेटरी में होने वाले पहले एक्सपेरिमेंट का. जी हां, आज इस लैबोरेटरी का उद्ïघाटन आप लोगों के द्वारा ही होगा.

”प्रयोग शुरू करने से पहले मैं आप लोगों को इस हाल की रचना के बारे में बता दूं. यह हाल पूरी तरह से साउंडप्रूफ है. इस हाल को बनाने के लिए 2 परतों वाली दीवार बनाई गई है और इन दोनों परतों के बीच का गैप 2 इंच का रखा गया है. इस गैप को भरने के लिए 6 एमएम मोटी ग्लास फाइबर की शीट तथा थर्मोकोल डाला गया है.’’

सैम फ्रांसिस ने आगे बताया, ”पूरी तरह से साउंडप्रूफ बनाने के लिए सौ प्रतिशत सुरक्षा बरती गई है. इसी कारण इस हाल के अंदर और बाहर विशेष तरह के मटीरियल का प्लास्टर किया गया है, जो चावल की भूसी से बना होता है और एक बेहतरीन साउंडप्रूफ एजेंट का काम करता है.

”अब अगर इस प्रयोगशाला में 10 डीजे भी एक साथ बजाए जाएं तो रत्ती भर भी आवाज इस हाल के बाहर नहीं जाएगी. साउंड के वाइब्रेशन से इस बिल्डिंग को नुकसान न पहुंचे, इसलिए हाल की छत को डोमनुमा बनाया गया है और एक 12 इंच डक्ट निकालते हुए उसे जमीन में ले जा कर गाड़ दिया गया. इस से यहां ध्वनि से पैदा की गई छोटी से  छोटी तरंग जमीन में समाहित हो जाएगी और बिल्डिंग सुरक्षित रहेगी.’’

लेकिन यह सब आप हमें क्यों बता रहे हैं? इस का हमारे केस से क्या संबंध है?’’ इंसपेक्टर मलिक ने सैम फ्रांसिस को बीच में टोकते हुए कहा. 

इंसपेक्टर साहब, इन सब बातों का सीधा और गहरा संबंध है इस केस से. मैं प्रयोग कर रहा था कि आदमी को कैसे मारा जाए कि उस की मौत प्राकृतिक लगे, जबकि वह हो सुनियोजित हत्या. और सब से बड़ी बात उस तकनीक को मास यानी कई लोगों पर एक साथ आजमाया जा सके.

जिस तरह निर्जीव रबर एक सीमा तक ही तनाव सह सकती है, उस के बाद टूट जाती है. उसी प्रकार आदमी भी एक स्तर तक ही तनाव सह सकता है, उस के बाद उस के शारीरिक अवयव जैसे दिमाग और दिल इसे सहने की क्षमता खो देते हैं और परिणामस्वरूप या तो उसे ब्रेन हैमरेज हो जाता है फिर सिवियर हार्ट अटैक आ जाता है. 

अपनी स्टडी के दौरान मैं ने पाया कि एक स्वस्थ आदमी 60 डेसिबल तक का साउंड आसानी से सह सकता है. उस के बाद का साउंड कुछ सीमा तक असहनीय होने लगता है और शरीर पर प्रतिकूल असर डालने लगता है. 

यद्यपि कुछ म्यूजिक कांसट्र्स में साउंड 120 डेसिबल तक का होता है. इसे इंसान का शरीर इसलिए सहन करता है, क्योंकि यह उस की पसंद का होता है तथा सब से बड़ी बात यह खुले आसमान के नीचे कुछ सीमित समय के लिए ही होता है. अत: इस का हानिकारक प्रभाव तुलनात्मक रूप से कम होता है.

मधुर लगने वाले और पेड़ पौधों तक को जीवन देने वाले संगीत को मैं मौत के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहता था. इसी कारण मैं ने इस लैबोरेटरी का निर्माण किया.’’ डा. सैम फ्रांसिस कह रहा था. सस्पेंस बढऩे पर इंसपेक्टर मलिक ने पूछा, ”मगर तुम तो कह रहे थे कि आज इस लैब का उद्ïघाटन है तो इस से पहले जिन 3 आदमियों पर तुम ने प्रयोग किए, वह कैसे और कहां पर किए?’’

”वो यहीं मेरे घर के ऊपरी मंजिल वाले हाल में किए थे. पहला आदमी बेचारा कई दिनों से भूखा इधरउधर घूम रहा था. मुझे अपने प्रयोग के परीक्षण के लिए आदमी की जरूरत थी. मैं ने नौकरी का झांसा दे कर अपने पास रख लिया. 2 दिन भर पेट खाने के बाद वह स्वस्थ हो गया. फिर उसे तेज संगीत सुना कर मार डाला.’’ सैम फ्रांसिस ने बताया.

लेकिन उस ने इतनी आसानी से मौत को गले लगाना स्वीकार कैसे कर लिया?’’ इंसपेक्टर ने पूछा. 

”आसानी से कहां? उसे तो पता ही नहीं था कि वह मरने जा रहा है. मैं ने उसे समझाया कि मैं संगीत के जरिए ऐसा प्रयोग करने जा रहा हूं, जिस से आदमी अपनी शक्ति बिना खोए और बिना खायपिए एक बरस तक जिंदा रह सकता हैं.’’ सैम ने बताया.

”क्या ऐसा संभव है?’’ उस आदमी ने पूछा. 

बिलकुल संभव है और मुझे खुशी है कि मैं ने अपने इस प्रयोग को पूरा करने के लिए पहले आदमी के रूप में तुम्हें चुना है.’’ सैम बोला, ”मैं जानता था कि खुले हाल में इतना तेज संगीत लगातार नहीं बजाया जा सकता है, अत: मैं ने उस के कानों में उच्च तकनीकी क्षमता वाले ईयर फोंस लगा दिए.

”इतना निश्चित था कि ध्वनि की तीव्रता बढऩे पर वह उन ईयर फोंस को निकाल कर फेंक देता. अत: मैं ने उसे समझाया कि एक साल के लिए शक्ति संचय करने के लिए उस का निश्चल रहना जरूरी है और यह तभी संभव होगा जबकि शक्ति संचय के लिए उस के शरीर को अच्छे से बांध दिया जाए. 

”बांधने का कोई निशान नहीं आए, इस के लिए पहले उसे मोटी बैडशीट में रैप किया गया, फिर ऊपर से एक ब्लैंकेट से लपेटा गया और सब से आखिर में चौड़े पैकिंग टेप से कस कर इस तरह से पैक किया गया कि वह हिलडुल भी न सके. 

”अब उस के ईयरफोन को एक डीजे से कनेक्ट कर दिया. यह डीजे से 150 डेसिबल का शोर उत्पन्न कर सकता था. उस की इच्छा थी कि उसे धार्मिक ग्रंथों का पाठ सुनाया जाए.

”उस के ईयरफोन में वाल्यूम बढऩे के साथ ही वह तड़पने लगा और छोड़ देने की विनती करने लगा. मगर मैं अपने प्रयोग को अधूरा कैसे छोड़ सकता था. मैं ने साउंड को फुल वाल्यूम तक बढ़ाया.

”लगभग 6 घंटे बाद बाद वह बेहोश हो गया और जैसे ही होश आने को हुआ मैं ने उसे मौत का संगीत उसी तीव्रता के साथ फिर से सुनाना शुरू कर दिया. बेचारा 2 घंटों में ही मौत की नींद सो गया. यह एक प्लांड मर्डर था, जिसे मैं ने स्वाभाविक मौत का जामा पहना दिया था. मैडिकल की भाषा में इसे इंड्यूस्ड हार्ट अटैक कहते हैं.

इसी तरह मैं ने दूसरे और तीसरे प्रयोग भी किए, जो सफल रहे. अब इस प्रयोग को मैं एकएक आदमी पर अलगअलग करना नहीं चाहता. इसीलिए मैं जानबूझ कर उस पेड़ के सामने रुका था. वह तो शिकार को फंसाने के लिए फेंका चारा था, जिस में 9 बकरियां फंस गईं.

बताइए इंसपेक्टर, आप कौन सा संगीत सुनते हुए मरना पसंद करेंगे?’’ सैम फ्रांसिस ने पूछा.

देखिए डाक्टर साहब, आप बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं. मैं ने अपने मोबाइल पर आप के बयान रिकौर्ड कर लिए हैं. मैं अभी इसे अपने सीनियर्स को फारवर्ड कर देता हूं.’’ इंसपेक्टर यह कह कर अपनी कुरसी से उठने लगे.

लेकिन वह कुरसी से उठ नहीं पाए, क्योंकि उन की कलाइयां और बाहें किसी नर्म कुशन वाले रबर की बेल्ट से बंध गई थीं. सभी 9 पुलिसकर्मी अपनीअपनी कुरसियों से बंध गए थे.

”हाहाहा…’’ हंसते हुए सैम फ्रांसिस बोला, ”इतना मूर्ख समझते हो क्या साइंटिस्ट को? मैं इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकता था इंसपेक्टर? तुम ने इस हाल में घुसने से पहले अपने मोबाइल की रिकौर्डिंग औन जरूर की थी, मगर इस में घुसते ही मैं ने अपने फ्रीक्वेंसी कंट्रोलर से सभी के मोबाइल आटो औफ मोड में डाल दिए हैं. अब किसी को तुम्हारी लोकेशन की भनक तक नहीं लगेगी.

कुरसियों पर जो बेल्ट बंधी हैं, उन के अंदर एक विशेष तरह के फोम का कुशन लगा हुआ है. इस से आप लोगों को किसी तरह की तकलीफ नहीं  होगी और आप लोगों के शरीर पर किसी तरह का निशान तक नहीं आएगा. और यह लीजिए, मैं आप लोगों को कमर के ऊपर के हिस्से को भी जकड़ देता हूं. अब आप लोग चैन की मौत मर सकते हैं. एंजौय द म्यूजिकल डेथ. हाहाहा…’’ सैम फ्रांसिस ने कुटिलता से हंसते हुए पूछा, ”कोई आखिरी इच्छा?’’

आखिर तुम यह सब क्यों कर रहे हो? क्या उद्ïदेश्य  है तुम्हारा?’’ इंसपेक्टर ने पूछा. 

मरते दम तक भी अपनी कर्तव्यनिष्ठा नहीं छोड़ रहे हो इंसपेक्टर.’’ सैम फ्रांसिस शब्दों को चबा कर बोला, ”ठीक कहते हो इंसपेक्टर, हर काम के पीछे एक मोटिव होना तो जरूरी है और मेरा मोटिव है बदला सिर्फ बदला.’’ 

अगर बदला लेना ही मोटिव है तो उन 3 लोगों के बारे में तो पता नहीं, मगर हम 9 लोगों में से तो किसी ने भी तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया. फिर बदला किस बात का?’’ इंसपेक्टर ने बात को लंबा करने के लिहाज से पूछा.

बदला… बदला तो मुझे भारत में रहने वाले हर व्यक्ति से लेना है. सोच रहे होगे क्यों? मैं बताता हूं. हम अंगरेज तो कुछ घूमने कुछ ढूंढने के मकसद से यहां आए थे. मगर तुम्हारे पूर्वजों की मूर्खता के कारण हमें यहां अपने पर शासन करने का अवसर दिया. 

अच्छा बताओ अंगरेजों के आने से पहले तुम क्या थे? अनपढ़, जाहिल और गंवार न? हम अंगरेजों ने तुम्हें सभ्य लोगों की तरह रहना, बोलना, पढऩा और व्यवहार करना सिखाया.

मगर उन सब बातों का अहसान न मानते हुए तुम लोगों ने हमारे ही खिलाफ विद्रोह कर दिया. मेरे दादाजी पता नहीं क्या सोच  कर यहीं रुक गए. उन के इस निर्णय से हम न तो भारतीय हो पाए और न ही अपने देश के हो पाए. लेकिन मेरी रगों में अभी भी ब्रिटिश हुकूमत दौड़ रही है.

इसी कारण सम्मेलनों में, साहित्य में या फिल्मों में जब किसी अंगरेज का अपमान किया जाता है तो मेरा खून खौल उठता है और मैं हर भारतीय से बदला लेने को बेचैन हो जाता हूं. 

बहुत अहिंसा…अहिंसा का पाठ पढ़ते हो न? इसी कारण बदला लेने के लिए यह अहिंसात्मक हत्याएं करता हूं. इस में न कोई हथियार उठता है और न कोई खूनखराबा होता है. कोई सबूत भी नहीं रहता है तो कोई मुझ पर आरोप नहीं लगा सकता. न ही कोई शक कर सकता है.

आज तुम 9 लोग अपनी मौत की ध्वनि सुनोगे. इस के बाद इस प्रयोगशाला में 50 ऐसे लोग आएंगे, जो लकी ड्रा के माध्यम से बुलाए जाएंगे. मरने के बाद लाशों को यहां से बहुत दूर अलगअलग जगहों पर फेंका जाएगा. अगर मैं हजार पांच सौ को मारने के बाद पकड़ा भी जाऊं तो मैं समझूंगा कि मेरा बदला पूरा हो गया.’’

देखो डाक्टर, ऐसा मत करो. हम ने कई अंगरेज विद्वानों का सम्मान भी किया है. अगर तुम्हारी नजर में हम ने कुछ गलती की भी है तो उसे माफ कर देने में तुम्हारा बड़प्पन ही दिखाई देगा.’’ इंसपेक्टर ने एक बार फिर अनुरोध किया.

चलो बातें बहुत हो गईं. अब इस प्रयोग को शुरू करते हैं. इस में संगीत की आवृत्ति धीरेधीरे बढ़ते हुए अपने चरम पर जाएगी और तुम लोगों को मौत की नींद सुलाएगी. फाइनली गुडबाय टू एवरीवन. इट्स टाइम टू प्ले म्यूजिक फौर मर्डर. हैव अ नाइस जर्नी टू हेवन.’’ कहता हुआ सैम फ्रांसिस म्यूजिक चालू कर के लैबोरेटरी से बाहर निकल गया.

एसपी ने कैसे बचाई 9 पुलिसकर्मियों की जान

उधर पुलिस मुख्यालय में एसपी ए.के. समीर ने डीएसपी आशीष चौबे को फोन किया, ”हैलो डीएसपी चौबे?’’

यस सर, बोल रहा हूं.’’ डीएसपी ने जवाब दिया.

इंसपेक्टर को सैम फ्रांसिस के यहां गए 3 घंटे से भी ज्यादा गुजर चुके हैं, मगर कोई फीडबैक नहीं मिला. आप के पास कोई सूचना है क्या?’’ एसपी ने पूछा.

नहीं सर, अभी तक कोई नहीं.’’ उधर से जवाब आया. 

”तुरंत दूसरी टीम तैयार करो, हमें अभी वहां के लिए निकलना पड़ेगा, शायद वे लोग किसी परेशानी में हों.’’ एसपी समीर ने कहा. 

कुछ ही देर में लगभग 15 लोगों की दूसरी टीम सैम फ्रांसिस के घर पर थी. एसपी ए.के. समीर ने सैम फ्रांसिस से सीधे और कड़क लहजे में पूछा, ”इंसपेक्टर सहित हमारी पुलिस पार्टी कहां है?’’ 

वे लोग तो काफी समय पहले ही यहां से निकल चुके हैं.’’ सैम को पुलिस पार्टी से इतनी त्वरित प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी, अत: उस ने झूठ बोला, जबकि उस की घबराहट चेहरे से झलक रही थी.

यह झूठ बोल रहा है, इसे पुलिस की भाषा में अच्छा सबक सिखाओ. शायद इंसपेक्टर मलिक कुछ नरमी कर गया, इसी कारण मुसीबत में फंस गया लगता है.’’ एसपी साहब ने साथ आए जवानों को आदेश दिया.

कप्तान साहब का आदेश मिलते ही पुलिसकर्मियों ने डा. सैम फ्रांसिस को हिरासत में ले लिया. पुलिस की थोड़ी सी पिटाई के बाद सैम ने पीछे वाली लैब का पता बता दिया. फिर एसपी टीम के साथ वहां पहुंचे तो लैबोरेटरी में इंसपेक्टर सहित पूरी पुलिस पार्टी लगभग बेहोशी की अवस्था में मिली. सभी को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. 2-3 घंटे बाद इंसपेक्टर मलिक और अन्य पुलिसकर्मी होश में आ गए. फिर इंसपेक्टर मलिक ने सारी बात एसपी साहब को बता दी. इस के बाद पुलिस ने सैम फ्रांसिस को कई धाराओं के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

काश! इस वैज्ञानिक ने अपने ज्ञान का प्रयोग जन उपयोगी कार्यों के लिए किया होता तो समाज का कितना भला होता.’’ घटना सुनाने वाला हर शख्स यही कह रहा था.

 

5 हजार लोगों से कोऔपरेटिव सोसाइटी के नाम पर ठगा 250 करोड़

अनूप चौधरी ने अपने गैंग के साथ मिल कर कोई एकदो नहीं बल्कि 5 राज्यों के करीब 5 हजार लोगों के साथ कई सौ करोड़ रुपए का फ्राड किया था. आप भी जानें कि आखिर गैंग के सदस्य किस तरह लोगों को अपने जाल में फांसते थे?

जेकेवी मल्टीस्टेट क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी द्वारा जारी किए गए ब्रोशर और पैंफ्लेट में यह दावा किया गया था कि वह भारतीय रिजर्व बेंक (आरबीआई) के नियमों के मुताबिक न केवल पैसा फिक्स या आरडी के जरिए निवेश करती है, बल्कि एलआईसी की तरह इंश्योरेंस की सेवा भी देती है. उन के निवेश किए गए पैसों का दूसरा लाभ उन्हें सोसायटी द्वारा बनाए जाने वाले मकान का मिल सकता है. सोसाइटी का पहला साइन बोर्ड साल 2012 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के फैजाबाद रोड स्थित सहारा शौपिंग सेंटर में लग चुका था, हालांकि उस के रजिस्टर्ड औफिस का पता वह नहीं था.

बड़े बोर्ड पर बना लोगो एलआईसी से मिलताजुलता बनाया गया था. ठीक उस जैसा ही. फर्क सिर्फ इतना था कि 2 हथेलियों से सुरक्षा देने वाले दीपक की जगह मकान की झलक देने वाली रेखांकन में बनाई तसवीर की थी. उस डिजाइन के साथ मल्टीस्टेट लिख दिया गया था. इस के जरिए कंपनी का मकसद यह बताने की कोशिश थी कि वह मकान के लिए निवेश का काम करती है और बदले में रकम दोगुनीतिगुनी भी कर देती है. सोसाइटी का जबरदस्त प्रचारप्रसार किया जाने लगा. इंटरनेट मीडिया, छोटेबड़े होर्डिंग, हैंडबिल, पोस्टर, स्थानीय अखबारों में विज्ञापन और खबरों आदि से ले कर जस्ट डायल तक में सोसाइटी को प्रचारित कर दिया गया.

इसी क्रम में एजेंट नियुक्त कर दिए गए और छोटेछोटे शहरों में ब्रांच औफिस खोल दिए गए. साल 2014 में ही उत्तराखंड के जनपद ऊधमसिंह नगर स्थित काशीपुर में भी एक ब्रांच खोली गई. उस में स्थानीय व्यक्ति सलेम अहमद को डायरेक्टर बना दिया गया. अहमद ने कंपनी द्वारा बनाए गए नियमों के मुताबिक स्थानीय लोगों को निवेश के लिए प्रेरित किया. उस के प्रचारप्रसार के तरीके, वाकपटुता, इलाके में पहचान और कम समय में ही रकम दोगुनी होने के वादे से आरडी और फिक्स डिपौजिट स्कीम परवान चढऩे लगीं. 

कुछ ही दिनों में गांव के 400 लोगों से कंपनी में एक करोड़ 50 लाख रुपए जमा हो गए. इस से मिली कमीशन की मोटी रकम से सलीम की लाइफस्टाइल बदल गई. वह बड़ी गाड़ी में घूमने लगा. शानोशौकत की जिंदगी गुजारने लगा. कुछ निवेशकों ने 5 साल पूरे होने पर अहमद से पौलिसी का भुगतान मांगा. संयोग से उन दिनों कोरोना वायरस को ले कर लौकडाउन के हालात बनने लगे थे. निवेशक जब अपनी पौलिसी के भुगतान के लिए अहमद पर दबाव बनाने लगे, तब उस ने निर्धारित समय पर भुगतान का आश्वासन देते हुए उन के पौलिसी बौंड जमा करवा लिए. लौकडाउन के नियमों के तहत सोसाइटी के औफिस में भी ताला लगा दिया गया और फिर अहमद से भी निवेशकों का संपर्क टूट गया. 

इन 5 सालों में सोसाइटी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान में पांव फैला लिए थे. इन राज्यों के तमाम छोटेबड़े शहरों में अपना ब्रांच औफिस खोल लिया था. सभी जगह सोसायटी ने दूसरे बैंकों से अधिक ब्याज देने और जमा रकम की एवज में मकान दिए जाने का वादा किया था. इस का लोगों पर जबरदस्त असर हुआ और सोसाइटी के एजेंटों के निवेश करवाने में सफलता मिलती चली गई.

अलगअलग थानों में दर्ज होने लगीं रिपोर्ट

इस तरह निवेशकों की संख्या हजारों में हो गई. उन्हीं में एक निवेशक नरेश भी था, जिस ने उत्तर प्रदेश के संभल जिले में संचालित सोसाइटी की ब्रांच में अच्छीखासी रकम जमा की थी. उस ने भी पौलिसी के पैसे की मांग की. सोसाइटी के ब्रांच से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. इस बारे में उस ने ब्रांच के कई चक्कर लगाए. सोसाइटी के कई अधिकारियों से मुलाकात की. जब हर जगह शिकायत अनसुनी हो गई, तब उस ने प्रिंट मीडिया को मेल लिख कर अपनी पीड़ा सुनाई और सोसाइटी द्वारा धोखाधड़ी की शिकायत की.

नरेश ने अपने बारे में बताया कि उस ने अलगअलग तारीखों में कुल 11,92,428 रुपए जमा किए थे, जिन में 5 वर्षों के लिए आरडी में 31,428 रुपए, 3 वर्षों के लिए एफडी में 3,70,000 रुपए और साढ़े 5 वर्षों के लिए एफडी में 7,91,000 रुपए जमा किए थे. नरेश के सामने समस्या तब पैदा हो गई, जब उस ने अपनी पौलिसी के मैच्योर यानी परिपक्वता की रकम लेने के लिए आवेदन किया. सोसाइटी द्वारा उस के आवेदन को अनसुना कर दिया गया. इस पर भी बात बनती नजर नहीं आई, तब नरेश ने गुन्नौर थाने में आईपीसी की धारा 420 के तहत सोसाइटी के अधिकारियों खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी.

इस रिपोर्ट और विभिन्न लिखित शिकायतों का असर इतना भर हुआ कि सोसाइटी ने उस के कुछ पैसे वापस किए. इस के बाद भी मोटी रकम बची रही. इसी के साथ नरेश ने मेल में अपना पूरा पता नरेश पाल सिंह पुत्र स्व. चक्खन लाल और फर्टिलाइजर प्राइवेट लिमिटेड/टीसीएल टाउनशिप, बबराला निवासी बताया. नरेश पाल की इस शिकायत पर गुन्नौर थाने के इंसपेक्टर रविंद्र प्रताप सिंह ने भादंवि की धारा 420, 468 और 120बी के तहत सोसाइटी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. इस की सूचना संभल के तत्कालीन एसपी आर.एम. भारद्वाज को दे दी. इस शिकायत को भारद्वाज ने गंभीरता से लेते हुए आवश्यक काररवाई के लिए दिशानिर्देश जारी कर दिए.

एक तरफ सोसाइटी के खिलाफ शिकायतों की जांच होने लगी तो दूसरी तरफ मीडिया में भी पीडि़तों की शिकायतों की खबरें प्रसारित होने लगीं. इस का असर सोसाइटी के दूसरे शहरों में खुली शाखाओं पर भी हुआ. वहां पौलिसी मैच्योर होने पर निवेशकों की कतार लगने लगी. लोग अपना पैसा वापस मांगने लगे. जबकि ब्रांच के अधिकारी उन से जैसेतैसे कर अपना पिंड छुड़ाने की कोशिश करते. उत्तराखंड के हल्द्वानी में भी सैकड़ों निवेशकों की पौलिसी मैच्योर हो चुकी थी. वे लोग भी सोसाइटी की ब्रांच का चक्कर काट रहे थे. मार्च 2020 में हल्द्वानी स्थित सोसाइटी का कार्यालय बंद हो चुका था. कारण कोरोना का लौकडाउन बताया गया था, लेकिन 2 साल बाद भी ब्रांच औफिस नहीं खुला था. 

उस ब्रांच में साल 2014 से निवेश का काम शुरू हो गया था, जो 2015 में तेजी से बढ़ गया था. साल 2017 में कुछ निवेशकों की जमा अवधि पूरी होने पर भुगतान समय पर हो गया, किंतु 2018 में सैकड़ों निवेशकों की जमा राशि वापस नहीं मिल पाई. साल 2020 आतेआते भुगतान मांगने वाले निवेशकों की संख्या काफी बढ़ गई. ब्रांच में उन का तांता लग गया. वे गुहार करने लगे और ब्रांच मैनेजर के खिलाफ नारेबाजी भी करने लगे. हल्द्वानी के कुछ निवेशकों ने 27 अप्रैल, 2022 को कोतवाली में सोसाइटी के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई. शिकायत करवाने वाले निवेशक वार्ड नंबर 15 निवासी थे विनय कुमार राठौर, हेमंत अधिकारी, नीलम अधिकारी, नूतन बिष्ट, चंद्रकला, राधा और शिल्पी.

हल्द्वानी कोतवाल ने इस तहरीर के आधार पर जांचपड़ताल शुरू की. इस क्रम में लखनऊ निवासी ज्ञानेश पाठक, बागेश मिश्र, डी.सी. मिश्रा, प्रबल कौशिक, अनूप चौधरी, शिवानी गुप्ता, हाफिज सलीम, हाजी अली मोहम्मद और अर्चना पाठक के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. ये सभी सोसाइटी के डायरेक्टर और मैनेजर थे. सोसाइटी के खिलाफ मुकदमों का सिलसिला यहीं नहीं थमा, बल्कि एक अन्य मुकदमा उत्तर प्रदेश में बरेली के इज्जतनगर थाने में दर्ज किया गया. शिकायत करने वाले मोहम्मद सलीम ने भी सोसाइटी से जुड़े 11 लोगों पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए. उन पर निवेश के नाम पर पैसे दोगुना करने और उतनी ही रकम का प्लौट देने का झांसा दिया. 

इस झांसे में आने वाले बरेली के कई लोग थे. इन आरोपियों में भी ज्ञानेश पाठक और सलीम अहमद थे. इन के अलावा अनूप कुमार चौधरी, समीर कुमार श्रीवास्तव, शिवकांत त्रिपाठी, प्रबल कौशिक, विनोद कुमार, विकास नाथ त्रिपाठी, सुरेंद्र सिंह, दिनेश चंद्र शर्मा और आशुतोष थे. इन पर लगे ठगी के आरोप के बाद ब्रांच में ताला लग गया और वे फरार हो गए. इस बारे में मोहम्मद सलीम ने पुलिस को बताया कि जब वह कंपनी के औफिस गए, तब उन की कई और पीडि़तों से मुलाकात हुई. उन में मोहम्मद इरफान, वलीउद्ïदीन, मनोज कुमार, चोखेलाल, सुरेंद्र सिंह रावत, मोहम्मद मुश्ताक समेत सैकड़ों लोग थे.

इन की शिकायत से पहले एक ही गांव के 400 लोगों ने सोसाइटी पर पहली अगस्त, 2022 को भी धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करवाई थी. मुरादाबाद जिले के मलकपुर गांव के लोगों ने जिला मुख्यालय जा कर अपनी शिकायत दर्ज करवाई थी. उन की शिकायत पर मुरादाबाद के एसएसपी हेमंत कुटियाल ने डिलारी पुलिस को मामले की जांच सौंपी. सोसाइटी के खिलाफ कई शिकायतों में उत्तराखंड पुलिस को पहली सफलता तब मिली, जब वहां के डीजीपी ने प्रदेश में ठगी और जालसाजी के बढ़ते मामले को ले कर एक विशेष अभियान चलाया. जगहजगह छापेमारी की जाने लगी. राज्य के सभी पुलिस थाने इस मामले को ले कर सतर्क हो गए.

सब से पहले हुई सलीम की गिरफ्तारी

6 मई, 2023 को खटीमा पुलिस को एक बड़ी सफलता मिली. पुलिस ने सलीम अहमद को काशीपुर से गिरफ्तार कर लिया. वह काफी समय से फरार चल रहा था. सलीम पर क्षेत्र के 956 लोगों से ठगी कर एक करोड़ 27 लाख रुपए वसूलने का मुकदमा दर्ज किया गया. उस से पूछताछ के बाद अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह सोसाइटी द्वारा जालसाजी के खिलाफ फ्राड करने वालों के खिलाफ पहली बड़ी काररवाई थी. उस के बाद जल्द ही दूसरे आरोपी सचिन कुमार द्विवेदी का नंबर आ गया. वह खटीमा ब्रांच में प्रधान लेखाकार था. पुलिस की विशेष जांच टीम ने उसे 31 अगस्त, 2023 को बिजनौर के शारदा नगर से गिरफ्तार कर लिया.

उस के खिलाफ 23 दिसंबर, 2021 को ही महीपाल गिरि द्वारा नौगांवा थाने में शिकायत दर्ज कराई गई थी. उस के बाद से वह फरार चल रहा था, जबकि उस पर 15 हजार रुपए का इनाम भी घोषित था. आरोपियों में एक नाम अनूप चौधरी का भी था. उस के बारे में निवेशकों ने तरहतरह के किस्से सुन रखे थे. जैसे वह कंपनी का एक वीआईपी अधिकारी था. उसे सुरक्षा में सरकारी गनर मिला हुआ था. इस के लिए उस ने खुद को रेल मंत्रालय का सलाहकार सदस्य बताया था. अनूप चौधरी की गिरफ्तारी एसटीएफ द्वारा 25 अक्तूबर, 2023 को हुई थी. उस पर कंपनी की जालसाजी में शामिल होने से ले कर कई फरजी प्रोटोकाल की धौंस दिखाने का भी आरोप लगाया गया. वह मीडिया में खुद को बीजेपी नेता बन कर इंटरव्यू देता था, जबकि उस के खिलाफ उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान में 10 से अधिक मामले दर्ज थे.

उस की गिरफ्तारी नाटकीय ढंग से तब हुई, जब वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों को जनजन तक पहुंचाने के कार्यक्रमों में लगा हुआ था. एसटीएफ को मिली सूचना के अनुसार वह पीएम कार्यक्रमों के नाम पर लोगों से सरकारी काम करवाने के नाम पर पैसे की उगाही करता था. इसी दरम्यान उस के बारे में यह सूचना मिली थी वह खुद को रेल मंत्रालय का सलाहकार समिति का सदस्य बता कर लोगों से ठगी कर रहा है. इस के लिए उस ने अपने लिए बाकायदा एक विशेष कार्य अधिकारी यानी ओएसडी नियुक्त कर रखा है. उसे गाजियाबाद पुलिस से एक गनर मिला हुआ था. 

उस के खिलाफ एसटीएफ के इंसपेक्टर प्रमोद कुमार वर्मा द्वारा 25 अक्तूबर, 2023 को एफआईआर दर्ज करवाई गई थी. उस पर तथाकथित वीआईपी नेता बन कर प्रोटोकाल हासिल करने का आरोप लगा था. उस ने एक पत्र भेज कर अयोध्या सर्किट हाउस बुक किया था. इस की सूचना एसटीएफ को मिल गई थी.  उस के वहां पहुंचते ही एसटीएफ की टीम ने अयोध्या के कैंट थाना क्षेत्र में सर्किट हाउस के पास खड़ी सफेद स्कौर्पियो के ड्राइवर से पूछताछ की. उस ने अपना नाम अनूप चौधरी बताया. धौंस के साथ वह खुद को क्षेत्रीय रेल उपयोगकर्ता परामर्शदात्री समिति उत्तर रेलवे एवं भारतीय खाद्य निगम लखनऊ का सदस्य बताया.

उस से जब सदस्य होने के नाते उस के अधिकार क्षेत्र और गाड़ी के कागजात की बात की गई, तब उन का जवाब देने में लडख़ड़ा गया और पुलिस की गिरफ्त में आने से नहीं बच पाया. उस की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की. उस ने खुद को पिलखुआ निवासी बताया. उस ने अपने सारे कारनामों का भेद परत दर परत खोल दिया. उस ने बताया कि किस तरह से उस ने अपने वाहन चालक का फरजी आधार कार्ड बनवाया और गाजियाबाद से गनर पवन कुमार को अपने साथ ले लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि अपने फरजी ओएसडी श्रीनिवास नारला के माध्यम से प्रोटोकाल हासिल किया था. 

इस के लिए उस ने कई फरजीवाड़े कर सरकारी प्रारूप पर पत्र और ईमेल अधिकारियों को भिजवाए थे. सरकारी अधिकारी को एक कंपनी बना कर अयोध्या समेत अन्य धार्मिक स्थलों पर हेलीकौप्टर सेवा के जरिए घुमाने का झांसा दिया था. चौधरी के इस कबूलनामे के बाद यूपी एसटीएफ ने अयोध्या के कैंट थाने में उस के खिलाफ धोखाधड़ी, कूटचाल चलने और साजिश रचने की धाराओं का मामला दर्ज कर लिया गया. साथ ही उस के पास से वाहन, 5 मोबाइल फोन, एक टैबलेट, 3 चैकबुक, विभिन्न बैंकों के 20 चैक, 3 आधार कार्ड और 2200 रुपए कैश जमा बरामद कर लिए. उस ने अपना मौजूदा पता गाजियाबाद में वैशाली अपार्टमेंट का बताया, जबकि उस के साथ वाहन चालक फिरोज आलम ऊधमसिंह नगर का रहने वाला था.

राकेश से हुई अलग तरह से ठगी

दोनों पर 5 फरवरी, 2024 को अयोध्या पुलिस ने गैंगस्टर ऐक्ट के तहत काररवाई शुरू कर दी. कई केंद्रीय सरकारी एजेंसियों और विभागों का सदस्य होने का सबूत देने वाले अनूप चौधरी के खिलाफ दर्ज कई मामलों में सीबीआई की एंटी करप्शन शाखा जयपुर की भी थी. यह एफआईआर एक्सपोर्ट कारोबारी राकेश कुमार खंडेलवाल ने दर्ज करवाई थी, जिस में बिजनैस के लिए 3 प्रतिशत सालाना ब्याज दर पर 5 साल के लिए 25 करोड़ रुपए लोन दिलवाने का वादा किया था. इस एवज में 6 प्रतिशत सर्विस चार्ज और एक प्रतिशत एडवांस कमीशन के रूप में मांगा गया था. बात बनने के बाद अनूप को 25 लाख रुपए खाते में ट्रांसफर करवा दिए गए थे. इस के बाद खंडेलवाल ने 58 लाख रुपए दिए थे. इतनी रकम चुकाने के बावजूद अनूप चौधरी ने लोन नहीं दिलाया.

5 हजार लोगों से ठगे 250 करोड़

कंपनी से जुड़े अनूप चौधरी की गिरफ्तारी भले ही एक बड़े फरजीवाड़े की थी, लेकिन कंपनी के डायरेक्टर आशुतोष चतुर्वेदी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ पाया था. वह भी एक इनामी आरोपी था, जिस के खिलाफ रिपोर्ट नैनीताल में दर्ज की गई थी. उस पर भादंवि की धाराएं 420, 406, 120बी लगाई गई थीं. उस की गिरफ्तारी 25 जून, 2024 को उत्तराखंड की एसटीएफ द्वारा संभव हो पाई थी, जो सीओ आर.बी. चमोला के द्वारा इंसपेक्टर एम.पी. सिंह के नेतृत्व में गठित की गई थी. काशीपुर में वार्ड नंबर 4 के मूल निवासी आशुतोष चतुर्वेदी को एसटीएफ ने रुद्रपुर से गिरफ्तार किया था. उस पर संगठित अपराध की शिकायत थी, जिस ने अंतरराज्यीय फ्राड किया था.

इस तरह से पुलिस की काररवाई के क्रम में मास्टरमाइंड ज्ञानेश पाठक भी निशाने पर था. उस पर बरेली से 25 हजार और उत्तराखंड से 50 हजार रुपए का इनाम घोषित था. उसी ने कुल 5 राज्यों में सोसाइटी का कारोबार फैलाया था. सोसाइटी के खिलाफ पुलिस की छानबीन और दर्ज रिपोर्टों से 5 हजार लोगों के साथ 250 करोड़ से अधिक की रकम ठगी का एक बड़ा मामला सामने आ चुका था. इस मामले में 5 राज्यों की पुलिस उसे 5 सालों से तलाश रही थी. जून 2024 में यूपी एसटीएफ को उस के मुंबई में होने का सुराग मिला था. पुलिस वहां गई, वह वहां से जा चुका था. उस की गिरफ्तारी नागपुर के हड़केश्वर इलाके में घेराबंदी के बाद 11 जुलाई को हो पाई. उस का नागपुर कोर्ट से 72 घंटे का ट्रांजिट रिमांड लिया गया. 

पुलिस टीम उसी रात उसे बरेली के किला थाने ले आई, जहां अगले रोज 12 जुलाई को किला थाने में पुलिस ने अपने मुकदमों के सिलसिले में ज्ञानेश से पूछताछ की. उस के बारे में बताया जाता है कि वह पुलिस को चकमा देने में माहिर था. ठगी करने वालों का एक तरह से सरदार था. एसटीएफ के अुनसार उस पर कई शहरों सिद्धार्थ नगर, हाथरस, बरेली, बाराबंकी, अमरोहा, बिजनौर, सहारनपुर, शामली, एटा, आगरा, बस्ती, संभल और मुरादाबाद जिले के थानों के अलावा उत्तराखंड के नैनीताल, हरिद्वार, देहरादून, ऊधमसिंह नगर, राजस्थान के करावली, गुमानपुरा, मध्य प्रदेश के अमाहिया, मुरैना, जबलपुर समेत कई अन्य जिले में कुल 39 केस दर्ज थे.

एसटीएफ इंसपेक्टर जे.पी. राय ने उस से पूछताछ की. पूछताछ में उस ने धोखाधड़ी की पूरी कहानी बयां की. ज्ञानेश ने बताया कि उस ने वर्ष 2012 में अपने 8 साथियों के साथ मिल कर जेकेवी मल्टीस्टेट क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी लिमिटेड और जेकेवी रियल एस्टेट डेवलपर लिमिटेड का पंजीकरण कराया था. 

लखनऊ से शुरू हुई थी फ्राड की शुरुआत

इस सोसाइटी का मुख्य कार्यालय लखनऊ में खोला गया था, जिस का अध्यक्ष ज्ञानेश बना था. इस के बाद वह अपने सहयोगियों के साथ धन दोगुना करने का झांसा दे कर आम लोगों से पैसा जमा करवाने लगा. धीरेधीरे कर उस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार में सोसाइटी की 100 से अधिक शाखाएं खोल लीं. वर्ष 2018-19 में उस ने सोसाइटी में पैसा जमा करने वाले लोगों को करीब 20 से 25 करोड़ रुपए का भुगतान किया, लेकिन बाकी रकम का गबन कर लिया. पैसा मांगने वालों को सोसाइटी से जुड़े लोग झूठा आश्वासन देते रहे, लेकिन किसी का पैसा वापस नहीं मिला.

धोखाधड़ी के शिकार लोगों ने अलगअलग पुलिस थानों में रिपोर्ट दर्ज कराईं तो मुकदमा पंजीकृत होने के बाद ज्ञानेश यूपी छोड़ कर महाराष्ट्र भाग गया था. उस के बारे में एसटीएफ को सुराग मिलने पर एसआई रणेंद्र कुमार सिंह, सिपाही अमित शर्मा, संतोष कुमार, किशन व अखंड प्रताप की टीम मुंबई भेजी गई. ज्ञानेश ने बताया कि उस ने वर्ष 2005 में उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई की थी. इस के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई की. फिर वह यमुनापार के कुछ लोगों के संपर्क में आया और सोसाइटी बना कर धोखाधड़ी शुरू कर दी थी.

उस के आकर्षक ब्याज और मकान देने के बिछाए जाल में गरीब, मध्य, अमीर सभी वर्ग के लोग फंसते चले गए. उन्होंने अच्छाखासा निवेश कर दिया. कुछ सालों में ही उस ने एक गिरोह बना लिया. उस की गिरफ्तारी के कुछ सदस्य पहले ही गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके थे. पुलिस को ज्ञानेश के मोबाइल से उस के कई साथियों की जानकारी मिली. इज्जतनगर के परतापुर चौधरी निवासी सलीम ज्ञानेश पाठक का खास गुर्गा बना हुआ था. पुलिस को उस की तलाश जारी थी. 

करीब 250 करोड़ के इस फ्राड में शामिल ज्ञानेश के अन्य साथी मुरादाबाद निवासी मोहम्मद सलीम, लखनऊ के प्रबल कौशिक, विकासनाथ, दिल्ली के मनीष कौशल काशीपुर के रविंद्र चौहान और गाजियाबाद के बागेश मिश्रा को भी एसटीएफ कथा लिखने तक तलाश रही थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

हत्या के बाद दोस्त की पहचान मिटाने के लिए लपेटा नमक में

बड़े मार्बल कारोबारी बनवारीलाल का एकलौता बेटा विशाल कोटा के एक पौलीटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था. उस के 3 दोस्तों की आंखों पर लालच की ऐसी पट्टी बंधी कि उन्होंने उस की हत्या कर के मोटी फिरौती वसूलनी चाही, लेकिन वे ऐसा कर पाते इस से पहले ही…    

बुधवार 2 मई की रात के लगभग 9 बजे कोटा के पुलिस अधिकारियों की बैठक चल रही थी. मुख्य मुद्दा था मार्बल व्यवसाई परिवार के बेटे विशाल मेवाड़ा के अपहरण और फिरौती का. कोटा में नित नए अपराधों से सकपकाई पुलिस के लिए यह गंभीर चुनौती थीदरअसल, वाकया कुछ ऐसा था जो ढाई साल पहले घटित रुद्राक्ष हांडा कांड के अंदेशों को बल दे रहा था, जिस में फिरौती के लिए किए गए अपहरण में बच्चे की हत्या भी कर दी गई थी. पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया ने एक पल अपने अधीनस्थ अफसरों पर सरसरी नजर दौड़ाने के बाद कहना शुरू किया, ‘‘आप के सामने फिर एक नया इम्तिहान है. हमें एकएक कदम बहुत सोचसमझ कर उठाना होगा.’’

बुधवार 2 मई की शाम करीब 7 बजे बोरखेड़ा के थानाप्रभारी महावीर सिंह जिस समय अपने थाने में बैठे थे, तभी लगभग 45-46 साल की रुआंसी औरत कमरे में दाखिल हुई. कुलीन और संपन्न परिवार की लगने वाली उस महिला के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. महावीर सिंह ने उसे सांत्वना देते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है, आप कौन हैं और इस तरह परेशान और घबराई हुई क्यों हैं?’’

‘‘परेशानी की तो बात यह है थानेदार साहब, मेरा बेटा गायब है, उस का अपहरण कर लिया गया है.’’ महिला ने अपनी बात सिलसिलेवार बतानी शुरू की, ‘‘साहब, मेरा नाम भूलीबाई है. मैं मार्बल कारोबारी बनवारी लाल मेवाड़ा की पत्नी हूं. मेरा 19 साल का बेटा विशाल मेवाड़ा कोटा के योगीराज पौलीटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था. वह वहां से गायब हो गया.’’ महावीर सिंह ने उन्हें पानी का गिलास थमाते हुए कहा, ‘‘आप निश्चिंत हो कर पूरी बात बताइए.’’

एक ही बार में पानी का गिलास खाली कर के महिला ने कहना शुरू किया, ‘‘हम खैराबाद कस्बे में रहते हैं. मेरा बेटा विशाल कोटा में रह कर पौलीटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था. पति बनवारीलाल कारोबार के सिलसिले में सूरत गए हुए हैं. अपहर्त्ताओं ने मंगलवार पहली मई को मेरे पति को मोबाइल पर फोन कर के 15 लाख की फिरौती मांगी है.’’ पलभर रुकने के बाद भूलीबाई ने कहना शुरू किया, ‘‘पति को मोबाइल पर पहला फोन दोपहर बाद 4 बजे आया, जिस में एक आदमी ने विशाल के अपहरण करने की इत्तिला देते हुए 15 लाख की रकम का इंतजाम करने को कहा और इस के साथ ही फोन काट दिया. करीब 15 मिनट बाद फिर उसी आवाज में धमकी भरा फोन आया कि पुलिस को खबर की तो विशाल को जान से मार दिया जाएगा. इस के साथ ही फोन बंद हो गया.’’

‘‘फिर उस के बाद कोई फोन आया?’’ थानाप्रभारी महावीर सिंह के स्वर में हैरानी का भाव स्पष्ट था.

‘‘रात 11 सवा 11 बजे मेरे पति का फोन आया. उन्होंने बताया कि 11 बज कर 1 मिनट पर उन के पास आए फोन काल में कहा गया था कि रकम कहां ले कर आना है, इस बाबत अगले दिन शाम 4 बजे बताएंगे और इस के साथ ही फोन बंद कर दिया.’’

 ‘‘आप के पति ने उन्हें क्या जवाब दिया?’’

‘‘क्या कहते,’’ भूलीबाई ने सुबकते हुए कहा, ‘‘मेरे पति ने तो बड़ी आजिजी के साथ कहा कि तुम को जो रकम चाहिए, हम देंगे. बस हमारे बेटे को कुछ नहीं होना चाहिए.’’ लेकिन अगले ही पल भूलीबाई ने जो कहा, वह चौंकाने वाला था. उन्होंने बताया, ‘‘मेरे पति इस बात को ले कर हैरान थे कि फोन करने वाला जो कोई भी था, हमारे बेटे के मोबाइल से ही फोन कर रहा था.’’ इस के साथ ही भूलीबाई फूटफूट कर रोने लगी. गहरी सांस लेते हुए महावीर सिंह ने कहा, ‘‘कोई और बात जो आप कहना चाहें.’’

‘‘हां साहब,’’ भूलीबाई ने जैसे याद करते हुए कहा, ‘‘साहब, मुझे फोन करने से पहले मेरे पति ने विशाल के मामा को फोन कर के विशाल के अपहरण की खबर देने के साथ उस के कमरे पर जा कर उसे तलाश करने को कहा था. उस का मामा दिनेश कोटा में ही रहता है. दिनेश ने विशाल के कमरे पर जा कर देखा तो वह वहां नहीं मिला. दिनेश ने मेरे पति को तो यह बात बताई ही, मुझे भी फोन कर के कोटा आने को कहा.’’ बोरखेड़ा थानाप्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज करने के साथ ही फौरन इस घटना और घटनाक्रम के बारे में पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया को जानकारी दी. इस के बाद तत्काल पुलिस सक्रिय हो गई. आननफानन में पुलिस अधिकारियों की बुलाई गई बैठक की वजह यही थी

भोमिया साहब को मालूम था कि इतने संपन्न परिवार के बेटे के अपहरण की बाबत जब लोगों को पता चलेगा तो लोग पुलिस को आड़े हाथों लेने से पीछे नहीं हटेंगे. अपहरण के इस मामले में किसी बड़े गिरोह का हाथ हो सकता है, यह सोच कर पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया ने क्षेत्राधिकारी नरसीलाल मीणा और राजेश मेश्राम के अलावा सर्किल इंसपेक्टर श्रीचंद सिंह, महावीर सिंह, आनंद यादव, मुनींद्र सिंह, लोकेंद्र पालीवाल, विजय शंकर शर्मा और एसआई महेश कुमार, एएसआई दिनेश त्यागी, कमल सिंह और प्रताप सिंह के नेतृत्व में 7 टीमों का गठन किया और विशाल के अपहर्त्ताओं का पता लगाने की जिम्मेदारी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार को सौंप दी.

अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार के निर्देश पर स्पैशल स्टाफ ने बड़ी संख्या में लोगों से गहनता से पूछताछ की. करीब 100 से अधिक टीवी फुटेज निकाले, लेकिन कोई काम की बात मालूम नहीं हो सकीपुलिस को तब हैरानी हुई, जब विशाल के कुछ दोस्तों ने बताया कि उन के पास विशाल का फोन आया था. उस ने हम से 2-3 सौ रुपए की जरूरत बताते हुए पैसों की मांग की थी. लेकिन इस से पहले कि उस से इतनी छोटी रकम मांगने की वजह पूछते, उस का फोन संपर्क टूट गया. पुलिस ने अंडरवर्ल्ड को भी खंगाला लेकिन लाख सिर पटकने के बावजूद पुलिस ऐसे किसी शातिर गिरोह का पता नहीं लगा सकी, जिस से इस मामले में कोई जानकारी मिल पाती. इस मामले में पुलिस ने फिरौती के लिए कुख्यात गिरोहों का पुलिस रिकौर्ड भी टटोला.

तमाम पुलिस रिकौर्ड जांचने के बाद अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार इस नतीजे पर पहुंचे कि विशाल के अपहरण में कम से कम किसी नामी गिरोह का हाथ नहीं है. पौलीटेक्निक की पढ़ाई करते हुए विशाल बोरखेड़ा के इलाके की आकाश नगर कालोनी में उसी कालेज में पढ़ने वाले मनोज मीणा के साथ किराए के कमरे में रहता था. पुलिस ने मनोज की गतिविधियों को पूरी तरह टटोला, लेकिन कहीं कोई संदिग्ध बात नजर नहीं आई. जिस समय पुलिस विशाल के रूम पार्टनर मनोज मीणा समेत अन्य दोस्तों से गहनता से पूछताछ कर रही थी, तभी इस बात का पता चला कि विशाल के दोस्ताना रिश्ते विक्रांत उर्फ हिमांशु, प्रदीप और विजेंद्र भाटी उर्फ लकी से कुछ ज्यादा ही गहरे थे. 

विशाल के मकान मालिक के मुताबिक इन तीनों लड़कों का विशाल के पास वक्तबेवक्त कुछ ज्यादा ही आनाजाना था. यह सूचना मिलते ही पुलिस ने उन्हें पूछताछ के घेरे में ले लिया, लेकिन हर सवाल पर तीनों पुलिस को छकाते रहे. पुलिस को लगा भी कि कहीं यह उस का भ्रम तो नहीं, फिर भी पुलिस ने अपनी जांच की दिशा नहीं बदली. अब तक विशाल के पिता बनवारी लाल मेवाड़ा सूरत से कोटा लौट आए थे. उन्होंने पुलिस की जानकारी में इजाफा करते हुए बताया कि उन्हें मंगलवार को दोपहर बाद 4 बजे, फिर सवा 4 बजे तथा बाद में रात को 11 बज कर एक मिनट पर फोन आए थे

रात को आने वाले फोन काल में अपहर्त्ताओं का कहना था कि फिरौती की रकम ले कर उन्हें दरा के निकट रेलवे क्रौसिंग पर पहुंचना होगा. कब, यह बाद में बताएंगे. अपहर्त्ता का यह भी कहना था कि रकम मिलने के एक घंटे बाद ही विशाल को छोड़ दिया जाएगा. बनवारी लाल ने यह सब बताते हुए पुलिस से यह शंका भी जाहिर की कि फोन काल जब विशाल के मोबाइल से की जा रही थीं तो क्या उसे सुरक्षित मान लिया जाना चाहिए. गुरुवार 3 मई की सुबह जब पुलिस इसी मुद्दे पर मंथन कर रही थी, तभी एक ग्रामीण की सूचना ने अधिकारियों को स्तब्ध कर दिया. सूचना बोरखेड़ा से करीब 20 किलोमीटर दूर नोताड़ा और मानस गांव के वन क्षेत्र के बीच बहने वाली नदी की कराइयों में एक लाश पड़ी होने की थी. 

हजार अंदेशों में घिरी पुलिस के लिए यह सूचना चौंकाने वाली थी. पुलिस टीम तुरंत वहां के लिए रवाना हो गई. पुलिस के साथ विशाल के पिता बनवारीलाल भी थे. चंद्रलोई नदी का यह तटीय क्षेत्र हालांकि कुदरती रूप से मनोहारी था, जहां शहरी कोलाहल से ऊबे लोगों या फिर सैलानियों का आनाजाना था. क्षेत्राधिकारी राजेश मेश्राम चंद्रलोई नदी की कराइयों के पास जीप रुकवा कर अपनी टीम के साथ नीचे उतर गए. तभी उन की नजर 3-4 फुट ऊंची झाडि़यों की कतार की तरफ चली गई. वहां पर एक युवक औंधा पड़ा नजर आया. पुलिस के जवानों ने शव को सीधा किया तो बनवारीलाल वहीं पछाड़ खा कर गिर गए. शव विशाल का ही था. उस का चेहरा कुचल दिया गया था. लाश नमक की परत में लिपटी हुई थी. राजेश मेश्राम लाश पड़ी होने की स्थिति देख कर एक पल में ही भांप गए कि हत्या कहीं और की गई थी, लेकिन पुलिस को भटकाने के लिए लाश को यहां ला कर फेंका गया होगा.

विशाल की हत्या बहुत ही निर्ममतापूर्वक की गई थी. उस की गरदन किसी तेजधार हथियार से रेती गई थी. संघर्ष का कोई चिह्न नहीं था. घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद राजेश मेश्राम ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद लाश मृतक के पिता को सौंप दी गई. यह अजीब इत्तफाक था कि अभी शव के पंचनामे की काररवाई हो ही रही थी कि राजेश मेश्राम को एएसपी से सूचना मिली कि पूछताछ में अपराधी टूट गए हैं और उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया है. अपराध का यह तानाबाना 3 सनकी और खुराफाती लड़कों ने बुना था. आईटीआई डिप्लोमा कर चुका विक्रांत उर्फ हिमांशु बोरखेड़ा का ही रहने वाला था. आईटीआई में डिप्लोमा कर चुका विक्रांत इस हद तक सनकी था कि सनक में वह अपनी कलाइयों में ब्लेड मार कर खुद ही कई जगह अपने हाथों को जख्मी कर चुका था.

बृजेंद्र सिंह भाटी उर्फ लकी कोटा के नजदीकी कस्बे कैथून का रहने वाला था. वह औटोमोबाइल से जुड़ी एक कंपनी में काम करता था और बोरखेड़ा में ही किराए पर कमरा ले कर रह रहा था. तीसरा साथी प्रदीप उर्फ बिन्नी रोजीरोजगार के लिए गोलगप्पों का ठेला लगाता था. बिन्नी भिंड का बाशिंदा था और कोटा की मन्ना कालोनी में रह रहा था. सनक में तीनों एक से बढ़ कर एक थे. तीनों लगभग 18 से 20 साल की उम्र के थे. पूछताछ में पता चला कि तीनों की हसरतों के पखेरू आसमानी उड़ान भरते रहे, नतीजतन मौजमस्ती और अय्याशी के शौक के लिए जितना भी कमाते थे, पूरा नहीं पड़ता था. तीनों की इस मंडली में विशाल शामिल हुआ तो बोरखेड़ा में ही रहने वाले विक्रांत उर्फ हिमांशु की बदौलत. 

दारूबाजी के महंगे शौक में संपन्न बाप का बेटा विशाल उन के लिए काफी काम का था. विक्रांत, बृजेंद्र और प्रदीप की साझा ख्वाहिश थी तो एक ही कि कोई ऐसा शख्स हाथ चढ़ जाए, जिस से इतना पैसा मिल सके कि मौजममस्ती के लिए तरसना पड़े. नशे के सुरूर में एक दिन विशाल का काल ही उस की जुबान पर बैठ गया और वह कह बैठा, ‘‘आज की पार्टी मेरी तरफ से.’’

‘‘किस खुशी में?’’ पूछने पर विशाल ने कह दिया, ‘‘आज ही मेरे पिता को एक बड़े सौदे में भारीभरकम रकम मिली है. इसलिए जश्न होना चाहिए.’’ फिर क्या था, तीनों की आंखों में लालच चमक उठा. पार्टी खत्म होने के बाद तीनों सनकी सिर जोड़ कर बैठे तो बदनीयती जुबान पर गई. तीनों की जुबान पर एक ही बात थी, ‘अगर यह बड़ी रकम हमारे हाथ जाए तो मजे ही मजे हैं.’ लेकिन सवाल था कि कैसे? कैसे का आइडिया भी अनायास ही मिल गया. उन के लिए संयोग था और विशाल के लिए दुर्भाग्य कि इत्तफाक से तीनों आपराधिक घटना पर आधारित क्राइम पैट्रोल सीरियल देखते थे. एक कहानी ऐसी ही एक घटना पर आधारित थी, जिस में पैसों की खातिर 3 सिरफिरे अपने दोस्त से ही दगा करते हैं और उस की हत्या कर देते हैं.

फिरौती की घटना पर बुनी गई इस कहानी ने इन तीन तिलंगों को भी दगाबाजी की राह दिखा दी. योजना बनाई गई कि शराब की पार्टी में विशाल को इतनी पिला दी जाए कि वह होश खो बैठे. फिर उसे काबू में कर के उस के पिता से 15 लाख की फिरौती मांगी जाए. तीनों का मानना था कि एकलौती औलाद के लिए एक दौलतमंद बाप 15 लाख क्या 15 करोड़ भी दे सकता है. सवाल था कि विशाल बुलाने पर तयशुदा ठिकाने पर आ भी जाए और अपना मोबाइल भी इस्तेमाल न करना पड़े. यह योजना मंगलवार को कामयाब भी हो गई.  इन लोगों ने सुबह 10 बजे बोरखेड़ा पहुंच कर एक सब्जी वाले के मोबाइल से फोन कर के विशाल को बुलाया और वहां से उसे बृजेंद्र के रामराजपुरा स्थित खेत पर ले गए. 

सब्जी वाले को यह कह कर विश्वास में लिया कि भैया, हमारे मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई है, इसलिए एक जरूरी फोन कर लेने दो. सब्जी वाला झांसे में गया. दोपहर 12 बजे रामराजपुरा पहुंच कर दारू का दौर चला तो विशाल को जम कर दारू पिलाई गई, ताकि वह होश खो बैठे. ऐसा ही हुआ भी. नशे में बेसुध विशाल के मोबाइल से बृजेंद्र ने पहले विशाल को अपने कब्जे में होने की बात की, फिर 15 लाख की मांग करते हुए धमकी दी कि पुलिस को इत्तला दी तो बेटा जिंदा नहीं बचेगा. असहाय पिता बनवारीलाल ने सहमति जता दी तो उसे पैसे पहुंचाने का निर्धारित स्थान भी बता दिया गया.

एसपी भोमिया साहब ने पूछा, ‘‘जब बाप ने फिरौती की रकम देने का भरोसा दे दिया था तो बेटे को क्यों मारा?’’ एसपी ने आंखें तरेरते हुए हड़काया तो विक्रांत ने उगल दिया, ‘‘हमें डर था कि रकम देने के बाद विशाल हमारा भेद खोलने से नहीं चूकेगा. इसलिए उसे मारना पड़ा.’’

‘‘कैसे और कब?’’ एसपी ने पूछा, ‘‘दरिंदे बन गए तुम लोग? कैसे मारा?’’

‘‘हत्या तो हम ने चाकुओं से कर दी थी. बाद में पहचान मिटाने के लिए उस पर नमक भी लपेट दिया. लेकिन…’’ उस ने बिन्नी और लक्की की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘ये दोनों संतुष्ट नहीं थे, इसलिए लोहे की रौड से उस के चेहरे पर इतने वार किए कि लाश पहचान में न आ सके. साहब, विशाल की हत्या तो हम ने 2 बजे ही कर दी थी.’’

‘‘फिर?’’ 

‘‘फिर…’’ अटकते हुए विक्रांत ने बताया, ‘‘इस के बाद लाश को बोरे में भरा और बाइक पर लाद कर नार्दर्न बाईपास के पास चंद्रलोई नदी की कराइयों में डाल आए और घर कर सो गए.’’

‘‘नींद गई तुम्हें?’’ एसपी भोमिया उन्हें नफरत भरी नजर से देखते हुए बुरी तरह बरस पड़े, ‘‘तुम ने तो शैतान को भी मात दे दी. लानत है तुम पर.’’ एसपी भोमिया ने मामले का रहस्योद्घाटन करते हुए मीडिया से कहा, ‘‘कैसी विचित्र बात है, ऐसे सीरियल से लोग जागरूक कम होते हैं लेकिन अपराधियों को अपराध के नए तरीके सीखने का मौका मिल जाता है.’’

  कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपी न्यायिक अभिरक्षा में थे.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

परिवार के चार लोगों का कातिल निकला प्रेमी

रोशनलाल ने रुपए दे कर रमित की मदद की थी लेकिन रुपए पाते ही वह रोशनलाल का ही नहीं, पूरे परिवार का दुश्मन बन बैठा और एकएक कर के सब को ठिकाने लगा दिया. 22अगस्त, 2010 की सुबह 10 बजे पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना मिली कि हैबोवाल की दुर्गापुरी कालोनी की गली नंबर 5 के मकान नंबर– 7187/1 में 2 लोगों की हत्या हो गई है. सूचना मिलते ही थाना सलेम टाबरी के थानाप्रभारी इंसपेक्टर निर्मल सिंह, सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर हरपाल सिंह, इंसपेक्टर दविंद्र कुमार, एसएचओ डिवीजन नंबर 4 तथा दुर्गापुरी पुलिसचौकी इंचार्ज सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार मेरे पहुंचने से पहले ही घटनास्थल पर पहुंच गए थे. जिस मकान में हत्याएं हुई थीं, उस के बाहर लोगों की काफी भीड़ लगी थी

पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने सुबह लगभग साढ़े 9 बजे मकान के भीतर तेज चीखों की आवाजें सुनी थीं. चूंकि उस वक्त अंदर तेज आवाज में टीवी चल रहा था, इसलिए यह समझना मुश्किल था कि आवाजें टीवी की थीं या मकान में रहने वालों की. मकान का दरवाजा अंदर से बंद था. थोड़ी देर बाद जब पड़ोसियों को लगा कि चीखें टीवी की नहीं, बल्कि उस में रहने वालों की थीं तो उन्होंने मुख्य द्वार तोड़ कर भीतर जा कर देखाअंदर अलगअलग कमरों में 2 लाशें पड़ी थीं. इस के बाद घटना की सूचना पुलिस को दी गई थी. मैं ने मकान के भीतर जा कर देखा. एक कमरे में अधेड़ उम्र की महिला की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उस के शरीर पर तेजधार हथियार के कई घाव थे, जिस में से खून रिस रहा था.

दूसरे कमरे में लगभग 40 वर्षीय एक व्यक्ति की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उस के शरीर पर भी तेजधार हथियार के घाव थे. वह विकलांग था. उस की व्हीलचेयर वहीं पास में उलटी पड़ी थी. देखने से ही लग रहा था कि विकलांग होने के बावजूद उस ने हत्यारों का विरोध किया था. दोनों को ही बड़ी बेरहमी से मारा गया था. मैं ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में रखा टीवी अभी भी चल रहा था. मेरे इशारे पर सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने टीवी बंद कर दिया. क्राइम टीम और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को भी बुलाया गया था, साथ ही डौग स्क्वायड को भी. जासूस कुत्ते लाश को सूंघ कर मकान के पिछवाड़े जा कर रुक गए. संभवत: हत्यारे वहां से किसी सवारी में बैठ कर गए थे. 

मकान की अच्छी तरह छानबीन की गई. लूटपाट के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे. हत्याएं शायद आपसी रंजिश के कारण हुई थीं. टीवी के पास खून सना एक खंजरनुमा चाकू पड़ा था. मैं ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को उसे संभाल कर रखने के लिए कहा. हत्याएं शायद चाकू से की गई थीं. मैं पुलिस टीम के साथ मुआयना कर रहा था कि पड़ोसियों से पता चला कि यहां सिर्फ हत्याएं ही नहीं हुई थीं, बल्कि इस परिवार के 2 अन्य लोग लापता भी थे. इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने पूछताछ के आधार पर मुझे बताया कि इस परिवार के मुखिया का नाम रोशनलाल था और वह रेलवे से रिटायर्ड था. इस के पहले यह परिवार चंद्रनगर में रहता था. रोशनलाल की पत्नी का नाम शकुंतला था. दोनों की 4 संतानें थीं, जिन में सब से बड़ी 47 वर्षीया बेटी स्वीटी शादीशुदा थी और इंग्लैंड में रहती थी. दूसरे नंबर का बेटा राजेश कुमार उर्फ राजू अपाहिज था, लेकिन घर में काम कर के लगभग 10 हजार रुपए महीना कमा लेता था

तीसरे नंबर की बेटी सीमा भी शादीशुदा थी, लेकिन 3 साल पहले पीलिया से उस की मृत्यु हो चुकी थी. सब से छोटी 36 वर्षीया निशा थी. बीए पास निशा किसी प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थी. लगभग 2 महीने पहले इन लोगों ने अपना चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख रुपए में बेचा था. लगभग डेढ़ महीने पहले ही यह परिवार इस मकान में रहने आया था. यह मकान उन्होंने 40 लाख रुपए में खरीदा था. कत्ल शकुंतला और राजेश कुमार उर्फ राजू का हुआ था. जबकि रोशनलाल और निशा गायब थे. मैं ने इंसपेक्टर निर्मल सिंह को आदेश दिया कि लाशों का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दें. साथ ही इंसपेक्टर हरपाल सिंह से कहा कि पड़ोसियों से पूछताछ कर के बापबेटी की तलाश में संभावित जगहों पर छापे मारें.

जबकि सबइंस्पेक्टर बिट्टन कुमार को मैं ने अस्पतालों, बसस्टैंड, रेलवे स्टेशन पर बापबेटी की तलाश करवाने तथा जिले के अन्य सभी थानों में उन का हुलिया बता कर वायरलैस मैसेज भिजवाने की जिम्मेदारी सौंपी. चूंकि यह केस पुलिस कमिश्नर की नजर में गया था, इसलिए इन कामों से फारिग हो कर उन्हें रिपोर्ट देने मैं उन के औफिस पहुंच गया. मैं ने अपनी परेशानी बता कर उन से कहा, ‘‘सर, समस्या यह है कि यह परिवार मोहल्ले में नया है. पड़ोसियों को इन के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं है.’’

‘‘ठीक है, जैसा भी हो हर नजरिए से जांच करो. इस के लिए कई टीमें बना कर लगाओ. और हां, सब से जरूरी है बापबेटी का पता लगाना.’’

कमिश्नर साहब के पास से लौट कर मैं ने एक बार फिर घटनास्थल पर जा कर पड़ोसियों से पूछताछ की. काफी लंबी छानबीन के बाद काम की एक बात पता चली. मैं ने जब रोशनलाल के घर पर आनेजाने वाले लोगों की लिस्ट बनाई तो पता चला कि रमित कुमार भंडारी उर्फ रिकी नाम का एक युवक रोशनलाल के घर कुछ ज्यादा ही आताजाता था. मैं ने हरपाल सिंह से रमित के बारे पता लगाने को कहा. हरपाल सिंह ने पता लगा कर बताया कि रमित कुमार भंडारी जस्स्यिं रोड, तरसेम कालोनी के मकान नंबर बी34/6614 में रहता था. वह रमित का मोबाइल नंबर भी ले आए थे. मेरे कहने पर सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने रमित को फोन किया, पर उस ने फोन नहीं उठाया. जब उसे कई बार फोन किया गया तो उधर से कंप्यूटराइज्ड आवाज आने लगी कि यह नंबर पहुंच के बाहर है.

काफी कोशिशों के बावजूद हमें तफ्तीश को आगे बढ़ाने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था. कह सकते हैं कि हम अंधेरे में तीर मार रहे थे. ऐसे में जांच आगे बढ़ाने के लिए हमें केवल रमित भंडारी ही एकमात्र सहारा नजर रहा था. हमारी सारी उम्मीदें उसी पर टिकी थीं. इसलिए हम उस का नंबर मिलाते रहेआखिर उस ने फोन उठा लिया. सबइंस्पेक्टर बिट्टन कुमार ने उसे मेरे औफिस आने को कहा. उस ने बताया था कि उस समय वह जालंधर में है और आधे घंटे में हाजिर हो जाएगा. मैं अपने औफिस में बैठा उस का इंतजार करता रहा.

इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने कहीं से मृतका शकुंतला के मायके का पता ढूंढ़ निकाला था. उस के पिता जगतराम की फगवाड़ा में टेलरिंग की दुकान थी. पता मिल गया तो इस घटना की सूचना मृतका के भाइयों अशोक, सुखविंदर और जसविंदर को दे दी गई थीपोस्टमार्टम रिपोर्ट भी गई थी, जिस के अनुसार मौत का कारण अधिक खून बह जाना था. फगवाड़ा से शकुंतला के मायके वाले गए थे. पोस्टमार्टम के बाद लाशें उन्हें सौंप दी गई थीं. मृतका के भाइयों ने दोनों लाशों का अंतिम संस्कार कर दिया था. मैं ने उन से भी पूछताछ की. उन्होंने केवल इतना ही बताया था कि रोशनलाल ने रिटायर होने के बाद चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख में बेचा था. नया मकान उन्होंने 35-40  लाख रुपए में खरीदा था

कुछ पैसा उन्हें रिटायर होने पर मिला था. कुल मिला कर उन के पास करीब 35 लाख रुपए थे. रुपए उन्होंने कहां रखे थे या किसी को दिए थे, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. फलस्वरूप बात वहीं की वहीं रह गई. मैं ने सोचा था कि शायद मृतका के मायके वालों से काम की कोई बात पता चल जाएगी, पर मायूस ही होना पड़ा. घूमफिर कर हमारी नजर फिर रमित भंडारी पर ही जा कर टिक गई थी. रमित ने आधा घंटे बाद आने को कहा था. मैं ने घड़ी देखी. अब तक पौन घंटा हो चुका था. मैं ने सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार से कहा कि वह रमित को फोन कर के पूछे. बिट्टन कुमार ने बताया कि उस ने 10 मिनट में आने को कहा है, लेकिन वह दस मिनट बाद भी नहीं आया. इस प्रकार 10-10 मिनट करतेकरते उस ने 2 घंटे बरबाद कर दिए. उधर पुलिस के सिर पर उच्च अधिकारियों की तलवार लटक रही थी

मेरी टीम की जान सांसत में थी. मुझे रमित भंडारी पर गुस्सा रहा था. जब बात बरदाश्त के बाहर हो गई तो मैं ने भंडारी से मोबाइल पर खुद बात की. मैं ने उसे डांटते हुए कहा कि वह तुरंत मेरे औफिस पहुंचे. उस ने मुझ से भी 10 मिनट का समय मांगा. जब वह 10 मिनट तक नहीं आया तो मैं ने फिर फोन किया. लेकिन इस बार उस के फोन का स्विच बंद मिला. इस के बाद उस के फोन का स्विच हमेशा के लिए बंद हो गया. रमित के इस व्यवहार से मुझे उस पर संदेह हुआ. मैं समझ गया कि वह जानबूझ कर पूछताछ से बचना चाहता था. मैं ने हरपाल सिंह से उस के फोन की लोकेशन पता करने को कहा. इंसपेक्टर हरपाल ने रमित के फोन की लोकेशन चैक करवाई तो उस की लोकेशन जस्सियां रोड, लुधियाना की मिली. इस से यह बात साफ हो गई कि वह हम से झूठ बोल रहा था. इस से उस पर हमारा संदेह और बढ़ गया.

अभी मैं और हरपाल सिंह इस मुद्दे पर बातें कर ही रहे थे कि सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने कर बताया कि रमित भंडारी अपनी मौसी की फैक्ट्री नैना क्वायर प्रोडक्ट्स में कहने को तो मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव था, लेकिन एक तरह से उस गद्दा फैक्ट्री का सर्वेसर्वा वही था. बिट्टन कुमार ने यह भी बताया कि रिटायर्ड स्टेशन मास्टर रोशनलाल की छोटी बेटी निशा से उस के मधुर संबंध थे. वह उस के घर खूब आताजाता था. रोशनलाल ने उसे अपना बेटा बना रखा था. मेरे लिए यह जानकारी काफी थी. इस से मुझे पक्का यकीन हो गया था कि वह इस दोहरे हत्याकांड का रहस्य जरूर जानता होगा. इसीलिए पुलिस के सामने आने से कतरा रहा था. मुझे समय बेकार करना उचित नहीं लगा. इसलिए मैं ने इंसपेक्टर हरपाल सिंह को तुरंत पुलिस टीम के साथ घाघरा रोड पहुंचने को कहा

एक टीम मैं ने एसीपी परमजीत सिंह पन्नू की अगुवाई में तैयार करवाई. रमित भंडारी हमें फैक्ट्री के पास ही मिल गया. उस से वहीं पूछताछ की गई. वह हमें बहकाने की कोशिश करने लगा. वह हर सवाल का जवाब घुमाफिरा कर दे रहा था. उस के चेहरे पर काफी उलझन और घबराहट के मिलेजुले भाव थे. बात करते हुए वह हकला भी रहा थातभी अचानक मेरा ध्यान उस के हाथ की ओर चला गया. उस के हाथ पर ताजी पट्टी बंधी थी. मैं ने इस बारे में पूछा तो वह बोला, ‘‘ऐसे ही मामूली सी खरोंच गई थी. सावधानी के तौर पर मैं ने पट्टी बंधवा ली.’’ 

खरोंच कैसे और किस चीज से आई, यह वह नहीं बता सका. इस बातचीत के बाद मेरा शक विश्वास में बदलने लगा. मैं ने उसे अपने औफिस चलने को कहा. औफिस कर इंसपेक्टर हरपाल सिंह और बिट्टन कुमार ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने शकुंतला और राजेश की हत्या की बात स्वीकार कर ली. मैं ने कारण पूछा तो उस ने कोई कारण नहीं बताया. लेकिन जब थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने बताया कि रिटार्यड स्टेशन मास्टर रोशनलाल की बेटी निशा उसे ब्लैकमेल कर रही थी. उस के अनुसार निशा के साथ उस के तीन सालों से अवैध संबंध थे. वह शादीशुदा था, जबकि निशा तलाकशुदा थी.

निशा बहुत ही खूबसूरत थी. पहली मुलाकात में ही दोनों एकदूसरे पर फिदा हो गए थे. दोनों के संबंध इतनी तेजी से परवान चढ़े कि रमित आए दिन उस के घर आनेजाने लगा. परिवार के लोगों को भी उस का आनाजाना अच्छा लगता था. शकुंतला तो उसे बेटाबेटा कहते नहीं थकती थी. निशा के साथ रमित के संबंधों की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. वे लोग अपने घर के छोटे से ले कर बडे़ कामों तक में रमित की सलाह लेने लगे थेरमित के अनुसार पिछले कुछ समय से निशा उसे ब्लैकमेल कर रही थी. वह कई बार उस की मांग पूरी भी कर चुका था. उस के घर वाले भी इस बात का फायदा उठा रहे थे. कुछ ही दिनों पहले निशा ने उस से 50 हजार रुपए की मांग की थी, लेकिन उस ने इतना पैसा देने से मना कर दिया था. शनिवार को निशा ने रमित की मां को फोन कर के कहा था कि वह उन्हें कुछ राज बताना चाहती है.

उसी दिन निशा ने फोन पर रमित को भी धमकी दी थी कि उस ने दोनों के निजी संबंधों की सीडी बनवा रखी है. अगर उस ने 50 हजार रुपए नहीं दिए तो वह उस सीडी को उस की मां और पत्नी को दे देगी. इसी बात से गुस्से में उस ने निशा से बदला लेने के लिए उस की मां और भाई की हत्या कर दी थी. रमित की यह बात हमारे गले नहीं उतर रही थी. इस में कई ऐसे पेंच थे, जो समझ से बाहर थे. मैं ने रमित से पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ कि इस वक्त निशा कहां है?’’  मेरे सवाल पर वह बौखला उठा और झल्ला कर बोला, ‘‘मैं क्या जानूं, भाग गई होगी अपने किसी यार के साथ.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’ मैं ने पूछा तो रमित बोला, ‘‘जनाब ऐसी औरतें यही तो करती हैं. एक से दिल भर गया तो दूसरे के पास और दूसरे से भर गया तो तीसरे के पास.’’

‘‘वाह रमित कुमार.’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं ने तो तुम से केवल निशा के बारे में पूछा था और तुम ने पूरी रामायण सुना दी. खैर छोड़ो, यह बताओ कि तुम्हें ब्लैकमेल तो निशा कर रही थी, फिर तुम ने उस की मां और भाई की हत्या क्यों की?’’ मेरे इस सवाल पर वह बगले झांकने लगा. मैं ने उसे चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘देखो, हमें सब पता है. अच्छा यही है कि तुम हमें पूरी बात सचसच बता दो, वरना तुम्हें फांसी के फंदे से कोई नहीं बचा सकता.’’

मेरी बात सुन कर उस ने गर्दन झुका ली. मैं इंसपेक्टर हरपाल सिंह, निर्मल सिंह और बिट्टन कुमार को साथ ले कर उस की मौसी की फैक्ट्री पहुंचा. वहां रमित की कार बाहर ही खड़ी थी. कार का बारीकी से मुआयना किया गया तो उस में कई जगह खून के धब्बे दिखाई दिए. ठीक वैसे ही खून के धब्बे फैक्ट्री के औफिस में भी मिले. फैक्ट्री की अच्छी तरह तलाशी लेने पर हमें एक लेडीज सैंडिल भी मिली. फैक्ट्री में 2 कर्मचारी मिले, जिन के नाम विजय प्रसाद और कुमार थे. विजय प्रसाद गहरी कोठी, थाना नोतन, जिला पश्चिमी चंपारण (बिहार) का रहने वाला था तो कुमार गांव मुकार, जिला प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था

दोनों से पूछताछ करने पर इस दोहरे हत्याकांड के साथसाथ रिटायर्ड स्टेशन मास्टर रोशनलाल और उस की बेटी निशा की गुमशुदगी का रहस्य भी खुल गया. मेरे आदेश पर इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने विजय प्रसाद और कुमार को पुलिस हिरासत में ले लिया. रमित भंडारी को हम ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. अब तक की तफ्तीश, रमित भंडारी और फैक्ट्री से दबोचे गए दोनों कर्मचारियों से की गई पूछताछ के बाद इस जघन्य हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह स्वार्थ के रिश्तों और विश्वास की नींव पर झूठ का महल खड़ा करने जैसी थी.

36 वर्षीया निशा काफी खूबसूरत, मिलनसार हंसमुख स्वभाव की युवती थी. संभवत: उस का यही स्वभाव उस की और उस के परिवार की हत्या का कारण बना था. सीधीसादी निशा की बीए पास करने के बाद शादी हो गई थी. लेकिन पति से उस की नहीं बनी, जिस से जल्दी ही उस का तलाक हो गया था. निशा ने इसे भाग्य मान कर चुपचाप स्वीकार कर लिया और मन ही मन तय कर लिया कि अब वह कभी शादी नहीं करेगी. गुजरबसर के लिए उस ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली.

सन 2008 में जब निशा का परिवार चंद्रनगर, सुंदरनगर में रहता था, तभी अचानक एक दिन निशा की मुलाकात रमित भंडारी से हुई. रमित महत्त्वाकांक्षी, चतुरचालाक युवक था. उस ने शादीशुदा होते हुए भी अपनी शादी की बात निशा से छिपा ली थी. हालांकि निशा ने कभी शादी न करने का फैसला किया था. लेकिन रमित ने उस की सोई कामनाओं को जगा कर उस से शादी करने का वादा कर लिया. न चाहते हुए भी निशा धीरेधीरे रमित के आकर्षण में बंधती चली गई. जल्दी ही दोनों के बीच आंतरिक संबंध बन गए. एक दिन निशा ने रमित को अपने घर ले जा कर उस का परिचय अपने मातापिता से करवा दिया.

रोशनलाल के परिवार की समस्या यह थी कि उस के परिवार में कोई भी युवा पुरुष नहीं था. बेटा राजेश था भी तो अपाहिज था. इसीलिए पूरा परिवार रमित से खुश रहता था और उसे बेटे की तरह मानता था. निशा का भी सोचना था कि उस की अन्य बहनें दूर रहती थीं, अगर शादी के बाद रमित उस के मातापिता और अपाहिज भाई का खयाल रखेगा तो इस से अच्छा और क्या हो सकता थासमय के साथ निशा और रमित के आपसी संबंध बन गए थे. सन् 2009 के अंत में रोशनलाल स्टेशन मास्टर से रिटायर हो गए थे. उन्हें रिटायरमेंट पर काफी रुपए मिले थे. कुछ दिनों बाद उन्होंने चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख रुपए में बेच दिया था. नया मकान लेने के बाद भी उन के पास 35-40 लाख रुपया बच गया था.

एक दिन जब रमित रोशनलाल के घर आया तो बहुत परेशान था. पूरे परिवार ने उस की परेशानी का कारण पूछा, पर उस ने कुछ नहीं बताया. बाद में उस ने निशा को अलग ले जा कर बताया, ‘‘निशा, मुझे बिजनैस में बहुत बड़ा घाटा हो गया है. बाजार का लाखों रुपया देना है. अगर मैं ने रुपए नहीं दिए तो मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाऊंगा.’’

‘‘तुम्हें कितने रुपए चाहिए?’’ निशा ने पूछा तो रमित बोला, ‘‘यही कोई 40-45 लाख…’’

रमित की बात सुन कर निशा हतप्रभ रह गई. पल भर बाद वह कुछ सोच कर बोली, ‘‘रमित, पापा के पास 30-35 लाख रुपए होंगे, वे तुम्हें इनकार नहीं करेंगे. जब तुम्हारा बिजनैस ठीक हो जाए तो पापा के पैसे लौटा देना.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, पर मैं तुम्हारे पापा से रुपए नहीं मांगूगा. मुझे शर्म आती है.’’ रमित ने अभिनय करते हुए कहा तो निशा बोली, ‘‘ठीक है, तुम रुपए मत मांगना. रुपए मैं मांग लूंगी, पर तुम साथ तो चलो.’’

निशा के समझाने पर रमित उस के साथ चलने को तैयार हो गया. निशा ने जब अपने पिता रोशनलाल को रमित की परेशानी का कारण बताया तो वे हंसते हुए बोले, ‘‘तुम भी कमाल करते हो बेटा, यह घर तुम्हारा है. यहां की हर चीज पर तुम्हारा अधिकार है. रुपए मेरे पास बढ़ तो रहे नहीं हैं. तुम अपना काम निपटा लो. जब जाएं तो मुझे लौटा देना.’’

अगले दिन ही रोशनलाल ने रमित को 35 लाख रुपए कैश दे दिए. रुपए लेते समय उस ने वादा किया था कि वह एक महीने में रुपए लौटा देगा. लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी जब उस ने तो पैसे लौटाए और कभी इस विषय में बात की तो रोशनलाल और निशा को चिंता होने लगी. उसी बीच कहीं से निशा को पता चल गया कि रमित शादीशुदा है. उस ने उस से झूठ बोला थाइस बात से निशा के दिल को बहुत ठेस पहुंची. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि पिता का पैसा वापस मिलने के बाद वह रमित से संबंध तोड़ लेगी. यह बात उस ने रमित से कह भी दी थी, लेकिन समस्या यह थी कि रमित पैसा लौटाने का नाम नहीं ले रहा था. इस पर निशा ने उसे धमकी देते हुए कहा कि अगर उस ने शराफत से उस के पिता का पैसा नहीं लौटाया तो वह अपने और उस के संबंधों की बात उस की मां और पत्नी को बता देगी.

इस से रमित बुरी तरह डर गया. उस ने अपना पीछा छुड़ाने के लिए निशा के पिता को चैक काट कर दे दिए. उस ने चैक तो दे दिए, लेकिन चैक देने के बाद वह परेशान रहने लगा. क्योंकि उस के खाते में पैसे नहीं थे. उसे पता था कि अगर चेक बाउंस हो गए तो एक और नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. इसलिए उस ने इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने के लिए एक भयानक योजना बना डाली. रोशनलाल के परिवार में गहरी पैठ होने की वजह से रमित उन के परिवार की हर गतिविधियों को जानता था. वह यह भी जानता था कि हर रविवार की सुबह रोशनलाल और निशा हैबोवाल स्थित राधास्वामी सत्संग भवन में सत्संग सुनने जाते हैं. रविवार को साप्ताहिक अवकाश होने की वजह से लुधियाना के सारे बाजार और उद्योग बंद रहते हैं.

रमित की फैक्ट्री भी उस दिन बंद थी. इन्हीं बातों के मद्देनजर रमित ने शनिवार शाम यानी 21 अगस्त को रोशनलाल को फोन कर के कहा, ‘‘पापा, मैं कल सुबह एटीएम से रुपए निकाल कर आप को दे दूंगा. आप चैक बैंक में मत डालना.’’ अगले दिन सुबह जब रोशनलाल और निशा सत्संग के लिए जा रहे थे तो रास्ते में ही रमित ने उन्हें अपनी कार में बिठा लिया. हालांकि रोशनलाल ने बहुत कहा कि रुपए निकालने ही तो हैं, सत्संग के बाद निकाल लेंगे. लेकिन रमित ने यह कह कर उन्हें खामोश कर दिया कि वह पैसे दे देगा तो उस के सिर से बोझ उतर जाएगा. रमित की गाड़ी दुगड़ी स्थित एटीएम पर रुकी. उस ने यह कह कर रोशनलाल को वहीं उतार दिया कि वह 10 मिनट वहीं रुकें, एटीएम कार्ड वह घर भूल आया है. झूठ बोल कर वह निशा को साथ ले कर सीधा फैक्ट्री पहुंचा. फैक्ट्री ले जा कर उस ने निशा को केबिन में बिठा दिया और पहले से खरीद कर रखा चाकू निकाल कर उस पर चाकू से ताबड़तोड़ वार कर उस की हत्या कर दी

निशा की हत्या कर के उस ने अपने 2 कर्मचारियों विजय व कुमार की मदद से निशा की लाश प्लास्टिक के एक बोरे में भरी और उन्हीं की मदद से वह बोरा कार की डिग्गी में रख कर जस्सियां के एक खाली प्लाट में फेंक आया. इस के बाद वह दुगड़ी स्थित एटीएम पर पहुंचा, जहां रोशनलाल खड़ा था. वह उसे भी कार में बैठा कर फैक्ट्री ले आया. निशा की तरह उस ने उस की भी हत्या कर दी और उस की लाश भी प्लास्टिक के बोरे में भर कर दोराहा नहर में फेंक दी.

बापबेटी की हत्या करने के बाद रमित कार से सीधा रोशनलाल के घर पहुंचा. कार उस ने मकान के पीछे वाली गली में खड़ी कर दी. इस के बाद वह मकान के भीतर गया. पहले वाले कमरे में शकुंतला बैठी थी. रमित ने चाकू निकाल कर उस पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. वह ढेर हो गई. इस के बाद वह भीतर वाले कमरे में पहुंचा, जहां राजेश टीवी देख रहा था. कमरे में पहुंचते ही उस ने सब से पहले टीवी की आवाज तेज की और फिर राजेश पर अचानक हमला बोल दिया. अचानक हमला हुआ था, फिर भी अपाहिज राजेश चीखाचिल्लाया. उस ने रमित का विरोध करते हुए आखिरी क्षणों तक उस के साथ संघर्ष किया.

राजेश की हत्या करने के बाद रमित बाथरूम में हाथमुंह धोना चाहता था, लेकिन उसी समय मोहल्ले वालों ने बाहर का दरवाजा तोड़ना शुरू कर दिया. हड़बड़ाहट में वह चाकू वहीं छोड़ कर मकान के पिछले दरवाजे से भाग निकला. पूरे परिवार की हत्या करने के बाद वह पुन: फैक्ट्री आया, जहां उस ने हाथमुंह धोया. चार लोगों की हत्याएं करने में चाकू की कुछ खरोंचे उस के हाथ पर भी लग गई थीं. उस ने दुगड़ी की एक डिस्पेंसरी में जा कर हाथ पर पट्टी करवाई और फिर आगे के बारे में सोचने लगा. पर वह कुछ सोचता या करता, इस से पहले ही वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

पुलिस ने रमित भंडारी के साथ उस के दोनों कर्मचारियों को भी हिरासत में ले कर अगले दिन मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट परमिंदर कौर की अदालत में पेश कर के 5 दिनों के रिमांड पर ले लिया. रिमांड की अवधि में रमित की निशानदेही पर जस्सियां से निशा की तथा दोराहा नहर के किनारे से रोशनलाल की लाश बरामद कर ली. पुलिस ने रमित की 2 कारें भी जब्त कर लीं. पुलिस ने 7-7 लाख रुपए के वे 2 चैक भी बरामद किए, जो रमित ने रोशनलाल को दिए थे. तलाशी लेने पर निशा के पर्स से डेढ़ लाख कैश भी मिला था. इस तरह यह हत्याकांड पुलिस कमिश्नर ईश्वर सिंह की देखरेख में एसीपी नरेंद्र रूबी अन्य अधिकारियों की सूझबूझ से 24 घंटे के भीतर ही सुलझा लिया गया. एक तरह से इस में रुपए दे कर दुश्मन बनाने वाली बात हुई थी. रोशनलाल रमित को रुपए दे कर उस की सहायता करता और ही उस का परिवार यूं बेमौत मारा जाता. शायद सांप को दूध पिलाने का यही अंजाम होता है.