अचानक थाने में क्यों मरा दारोगा

दरोगा पच्चालाल गौतम ने किरन से दूसरी शादी कर के अपनी जिंदगी में पत्नी की कमी तो पूरी कर ली थी, लेकिन वह यह भूल गए कि अधेड़ उम्र में 20-22 साल की लड़की को पत्नी बनाना खरतनाक होता है…   

3 जुलाई, 2018 की बात है. शाम 6 बजे थाना सजेती का मुंशी अजय पाल रजिस्टर पर दस्तखत कराने थाना परिसर स्थित दरोगा पच्चालाल गौतम के आवास पर पहुंचा. दरोगाजी के कमरे का दरवाजा बंद था, लेकिन कूलर चल रहा था. अजय पाल ने सोचा कि दरोगाजी शायद सो रहे होंगे. यही सोचते हुए उस ने बाहर से ही आवाज लगाई, ‘‘दरोगाजीदरोगाजी.’’

अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उस ने दरवाजे को अंदर की ओर धकेला. दरवाजा अंदर से बंद नहीं था, हलके दबाव से ही खुल गया. अजय पाल ने कमरे के अंदर पैर रखा तो उस के मुंह से चीख निकल गई. कमरे के अंदर दरोगा पच्चालाल की लाश पड़ी थी. किसी ने उन की हत्या कर दी थी. बदहवास सा मुंशी अजय पाल थाना कार्यालय में आया और उस ने यह जानकारी अन्य पुलिसकर्मियों को दी. यह खबर सुनते ही थाना सजेती में हड़कंप मच गया. घबराए अजय पाल की सांसें दुरुस्त हुईं तो उस ने वायरलैस पर दरोगा पच्चालाल गौतम की थाना परिसर में हत्या किए जाने की जानकारी कंट्रोल रूम को और वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

सूचना पाते ही एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह, एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव, सीओ आर.के. चतुर्वेदी, इंसपेक्टर दिलीप बिंद तथा देवेंद्र कुमार दुबे थाना सजेती पहुंच गए. पुलिस अधिकारी पच्चालाल के कमरे में पहुंचे तो वहां का दृश्य देख सिहर उठेकमरे के अंदर फर्श पर 58 वर्षीय दरोगा पच्चालाल गौतम की खून से सनी लाश पड़ी थी. अंडरवियर के अलावा उन के शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था. खून से सना चाकू लाश के पास पड़ा था. खून से सना एक तौलिया बैड पर पड़ा था. हत्यारों ने दरोगा पच्चालाल का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया था. पच्चालाल की गरदन, सिर, छाती व पेट पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किए गए थे. आंतों के टुकड़े कमरे में फैले थे और दीवारों पर खून के छींटे थे. दरोगा पच्चालाल के शरीर के घाव बता रहे थे कि हत्यारों के मन में उन के प्रति गहरी नफरत थी और वह दरोगा की मौत को ले कर आश्वस्त हो जाना चाहते थे. बैड से ले कर कमरे तक खून ही खून फैला था. 

छींटों के अलावा दीवार पर खून से सने हाथों के पंजे के निशान भी थे. इन निशानों में अंगूठे का निशान नहीं था. घटनास्थल को देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे दरोगा पच्चालाल गौतम ने हत्यारों से अंतिम सांस तक संघर्ष किया हो. पुलिस अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि आईजी आलोक सिंह तथा एसएसपी अखिलेश कुमार भी थाना सजेती गए. वह अपने साथ फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड को लाए थे. दोनों पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन के माथे पर बल पड़ गएबेरहमी से किए गए इस कत्ल को अधिकारियों ने गंभीरता से लिया. फोरैंसिक टीम ने चाकू और कमरे की दीवार से फिंगरप्रिंट उठाए. डौग स्क्वायड ने घटनास्थल पर डौग को छोड़ा. डौग लाश कमरे की कई जगहों को सूंघ कर हाइवे तक गया और वापस लौट आया. वह ऐसी कोई हेल्प नहीं कर सका, जिस से हत्यारे का कोई सूत्र मिलता.

कारण नहीं मिल रहा था बेरहमी से किए गए कत्ल का मृतक पच्चालाल के आवास की तलाशी ली गई तो पता चला, हत्यारे उन का पर्स, घड़ी मोबाइल साथ ले गए थे. किचन में रखे फ्रिज में अंडे सब्जी रखी थी. कमरे में शराब ग्लास आदि नहीं मिले, जिस से स्पष्ट हुआ कि हत्या से पहले कमरे में बैठ कर शराब नहीं पी गई थीअनुमान लगाया गया कि हत्यारा दरोगा पच्चालाल का बेहद करीबी रहा होगा, जिस से वह आसानी से आवास में दाखिल हो गया और बाद में उस ने अपने साथियों को भी बुला लिया. आईजी आलोक सिंह तथा एसएसपी अखिलेश कुमार यह सोच कर चकित थे कि थाना कार्यालय से महज 20 मीटर की दूरी पर दरोगा पच्चालाल का आवास था. कमरे में चाकू से गोद कर उन की निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गई और उन की चीखें थाने के किसी पुलिसकर्मी ने नहीं सुनीं, इस से पुलिसकर्मी भी संदेह के घेरे में थे.

लेकिन इस में यह बात भी शामिल थी कि दरोगा पच्चालाल गौतम के आवास में 2 दरवाजे थे. एक दरवाजा थाना परिसर की ओर खुलता था, जबकि दूसरा हाइवे के निकट के खेतों की ओर खुलता था. पता चला कि पच्चालाल के करीबी लोगों का आनाजाना हाइवे की तरफ खुलने वाले दरवाजे से ज्यादा होता था. हाइवे पर ट्रकों की धमाचौकड़ी मची रहती थी, जिस की तेज आवाज कमरे में भी गूंजती थी. संभव है, दरोगा की चीखें ट्रकों और कूलर की आवाज में दब कर रह गई हो और किसी पुलिसकर्मी को सुनाई दी हो. एसएसपी अखिलेश कुमार ने थाना सजेती के पुलिसकर्मियों से पूछताछ की तो पता चला कि दरोगा पच्चालाल गौतम मूलरूप से सीतापुर जिले के थाना मानपुरा क्षेत्र के रामकुंड के रहने वाले थे

उन्होंने 2 शादियां की थीं. पहली पत्नी कुंती की मौत के बाद उन्होंने किरन नाम की युवती से प्रेम विवाह किया था. पहली पत्नी के बच्चे रामकुंड में रहते थे, जबकि दूसरी पत्नी किरन कानपुर शहर में सूर्यविहार (नवाबगंज) में अपने बच्चों के साथ रहती थी. पारिवारिक जानकारी मिलते ही एसएसपी अखिलेश कुमार ने दरोगा पच्चालाल की हत्या की खबर उन के घर वालों को भिजवा दी. खबर मिलते ही दरोगा की पत्नी किरन थाना सजेती पहुंच गई. पति की क्षतविक्षत लाश देख कर वह दहाड़ मार कर रोने लगी. महिला पुलिसकर्मियों ने उसे सांत्वना दे कर शव से अलग किया. 

कुछ देर बाद दरोगा के बेटे सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र कमल भी गए. पिता का शव देख कर वे भी रोने लगे. पुलिसकर्मियों ने उन्हें धैर्य बंधाया और पंचनामा भर कर शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भेज दिया. आलाकत्ल चाकू को परीक्षण हेतु सील कर के रख लिया गया. 4 जुलाई, 2018 को मृतक पच्चालाल के शव का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम के बाद शव को पुलिस लाइन लाया गया, जहां एसएसपी अखिलेश कुमार, एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिह अन्य पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सलामी दे कर अंतिम विदाई दी

इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार, दिलीप बिंद सजेती थाने के पुलिसकर्मियों ने पच्चालाल के शव को कंधा दिया. इस के बाद पच्चालाल के चारों बेटे शव को अपने पैतृक गांव  रामकुंड, सीतापुर ले गए, जहां बड़े बेटे सत्येंद्र ने पिता की चिता को मुखाग्नि दे कर अंतिम संस्कार किया. अंतिम संस्कार में किरन उस के बच्चे शामिल नहीं हुए. दरोगा पच्चालाल की हत्या की खबर कानपुर से लखनऊ तक फैल गई थी. यह बात एडीजे अविनाश चंद्र के संज्ञान में भी थी. इसी के मद्देनजर एसएसपी अखिलेश कुमार ने दरोगा हत्याकांड को बेहद गंभीरता से लिया और इस के खुलासे के लिए एक विशेष पुलिस टीम गठित की.

जांच के लिए बनी स्पैशल टीम इस टीम में उन्होंने क्राइम ब्रांच और सर्विलांस सेल तथा एसएसपी की स्वान टीम के तेजतर्रार भरोसेमंद पुलिसकर्मियों को शामिल किया. क्राइम ब्रांच से सुनील लांबा तथा एसओजी से राजेश कुमार रावत, सर्विलांस सेल से शिवराम सिंह, राहुल पांडे, सिपाही बृजेश कुमार, मोहम्मद आरिफ, हरिशंकर और सीमा देवी तथा एसएसपी स्वान टीम से संदीप कुमार, राजेश रावत तथा प्रदीप कुमार को शामिल किया गयाइस के अलावा वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के बेहतरीन जासूस कहे जाने वाले 3 इंसपेक्टरों देवेंद्र कुमार दुबे, दिलीप बिंद, मनोज रघुवंशी तथा सीओ (घाटमपुर) आर.के. चतुर्वेदी को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. साथ ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट का भी अध्ययन किया. रिपोर्ट में पच्चालाल के शरीर पर 19 गहरे जख्म बताए गए थे जो सिर, गरदन, छाती, पेट हाथों पर थे. इस टीम ने उन मामलों को भी खंगाला, जिन की जांच पच्चालाल ने की थी. लेकिन ऐसा कोई मामला नहीं मिला, जिस से इस हत्या को जोड़ा जा सकता. इस से साफ हो गया कि क्षेत्र के किसी अपराधी ने उन की हत्या नहीं की थी. पुलिस टीम ने थाना सजेती में लगे सीसीटीवी फुटेज भी देखे, मगर उस में दरोगा के आवास में कोई भी आतेजाते नहीं दिखा. इस का मतलब हत्यारे पिछले दरवाजे से ही आए थे और हत्या को अंजाम दे कर उसी दरवाजे से चले गए

टीम ने कुछ दुकानदारों से पूछताछ की तो शराब के ठेके के पास नमकीन बेचने वाले दुकानदार अवधेश ने बताया कि 2 जुलाई को देर शाम उस ने दरोगा पच्चालाल के साथ सांवले रंग के एक युवक को देखा था. उस युवक के साथ दरोगाजी ने ठेके से अंगरेजी शराब की बोतल खरीदी थी. साथ ही उस की दुकान से नमकीन का पैकेट भी लिया था. पैसे दरोगाजी ने ही दिए थे. अवधेश ने बताया कि ऐसा पहली बार हुआ था, जब दरोगाजी ने पैसे दिए थे. इस के पहले दरोगाजी के साथ वाला व्यक्ति ही पैसे देता था. युवक की बातचीत से लगता था कि वह दरोगाजी का बेहद करीबी है. 

दुकानदार अवधेश ने जो बताया, उस से साफ हो गया कि दरोगा पच्चालाल के साथ जो युवक था, वह उन का काफी करीबी था. इस जानकारी के बाद टीम ने दरोगा के खास करीबियों पर ध्यान केंद्रित किया. इस में उस की पत्नी किरन, दरोगा के 4 बेटे और कुछ अन्य लोग शामिल थे. पच्चालाल के बेटों से पूछताछ करने पुलिस टीम रामकुंड, सीतापुर पहुंचीपूछताछ में सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र कमल ने बताया कि उन के पिता का तो किसी से विवाद था और ही जमीनजायदाद का कोई झगड़ा था. सौतेली मां किरन से भी जमीन या मकान के बंटवारे पर कोई विवाद नहीं था. सौतेली मां किरन अपने बच्चों के साथ कानपुर में रहती थी.

पच्चालाल दोनों परिवारों का अच्छी तरह पालनपोषण कर रहे थे. चारों बेटों को उन्होंने कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी थी. सत्येंद्र ने यह भी बताया कि 6 महीने पहले पिता ने उस की शादी धूमधाम से की थीशादी में सौतेली मां किरन भी खुशीखुशी शामिल हुई थीं. शादीबारात की सारी जिम्मेदारी उन्होंने ही उठाई थी. शादी में बहू के जेवर, कपड़ा अन्य सामान पिता के सहयोग से उन्होंने ही खरीदा था. किरन से उन लोगों का कोई विवाद नहीं था. जितेंद्र और किरन आए संदेह के घेरे में मृतक दरोगा पच्चालाल के बेटों से पूछताछ कर पुलिस टीम कानपुर लौट आई. इस के बाद यह टीम थाना नवाबगंज के सूर्यविहार पहुंची, जहां दरोगा की दूसरी पत्नी किरन किराए के मकान में रहती थी. पुलिस को देख कर किरन रोनेपीटने लगी. पुलिस ने उसे सांत्वना दी. बाद में उस ने बताया कि दरोगा पच्चालाल ने उस से तब प्रेम विवाह किया था, जब वह बेनीगंज थाने में तैनात थे. दरोगा से किरन को 3 संतानें हुई थीं, एक बेटा व 2 बेटियां.

किरन रो जरूर रही थी, लेकिन उस की आंखों से एक भी आंसू नहीं टपक रहा था. उस के रंग, ढंग और पहनावे से ऐसा नहीं लगता था कि उस के पति की हत्या हो गई है. घर में किसी खास के आनेजाने के संबंध में पूछने पर वह साफ मुकर गई. लेकिन पुलिस टीम ने जब किरन के बच्चों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि जितेंद्र अंकल घर आतेजाते हैं, जो पापा के दोस्त हैं. पुलिस टीम ने जब किरन से जितेंद्र उर्फ महेंद्र यादव के बारे में पूछताछ की तो उस का चेहरा मुरझा गया. उस ने घबराते हुए बताया कि जितेंद्र उस के दरोगा पति का दोस्त था. वह रोडवेज बस चालक है और रोडवेज कालोनी में रहता है. पूछताछ के दौरान पुलिस टीम ने बहाने से किरन का मोबाइल ले लिया.

पुलिस टीम में शामिल सर्विलांस सेल के प्रभारी शिवराम सिंह ने किरन के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि दरोगा की हत्या के पहले बाद में किरन की एक नंबर पर बात हुई थीउस मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला वह नंबर जितेंद्र उर्फ महेंद्र का था. पच्चालाल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स में भी जितेंद्र का नंबर था. दूसरी पत्नी बनी हत्या की वजह जितेंद्र शक के घेरे में आया तो पुलिस टीम ने देर रात उसे रोडवेज कालोनी स्थित उस के घर से हिरासत में ले लिया और थाना सजेती ले आई. उस से दरोगा पच्चालाल की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो उस ने हत्या से संबंधित कोई जानकारी होने से इनकार कर दिया

हां, उस ने दोस्ती और दरोगा के घर आनेजाने की बात जरूर स्वीकार की. जब पुलिस ने अपने अंदाज में पूछताछ की तो जितेंद्र ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया और उस ने दरोगा पच्चालाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. जितेंद्र उर्फ महेंद्र यादव ने बताया कि किरन से उस के नाजायज संबंध बन गए थे. दरोगा पच्चालाल को जानकारी हुई तो वह किरन को प्रताडि़त करने लगा. पच्चालाल प्यार में बाधक बना तो उस ने और किरन ने मिल कर उस की हत्या की योजना बनाई. योजना बनाने के बाद उन्होंने एक लाख रुपए में दरोगा की हत्या की सुपारी निजाम अली को दे दी, जो विधूना का रहने वाला है. निजाम अली ने उसे पसहा, विधूना निवासी राघवेंद्र उर्फ मुन्ना से मिलवाया. इस के बाद तीनों ने मिल कर 2 जुलाई की रात दरोगा की हत्या कर दी और फरार हो गए.

पुलिस टीम ने जितेंद्र की निशानदेही पर विधूना से निजाम अली तथा पसहा गांव से राघवेंद्र उर्फ मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों को थाना सजेती की हवालात में डाल दिया गया. इस के बाद पुलिस टीम सूर्यविहार, नवाबगंज पहुंची और यह कह कर किरन को साथ ले आई कि दरोगा पच्चालाल के हत्यारे पकड़े गए हैंकिरन थाना सजेती पहुंची तो उस ने अपने प्रेमी जितेंद्र तथा उस के साथियों को हवालात में बंद देखा. उन्हें देखते ही वह सब कुछ समझ गई. अब उस के लिए पुलिस को गुमराह करना मुमकिन नहीं था. उस ने पति की हत्या में शामिल होने का जुर्म कबूल कर लिया. जितेंद्र ने दरोगा पच्चालाल का लूटा गया पर्स, घड़ी मोबाइल भी बरामद करा दिए, जिन्हें उस ने घर में छिपा कर रखा था.

चूंकि दरोगा पच्चालाल के हत्यारों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मुंशी अजयपाल को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201, 394 तथा 120बी के तहत जितेंद्र उर्फ महेंद्र, निजाम अली, राघवेंद्र उर्फ मुन्ना तथा किरन के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. 7 जुलाई को एसएसपी अखिलेश कुमार ने प्रैस कौन्फ्रैंस की, जिस में उन्होंने हत्या का खुलासा करने वाली टीम को 25 हजार रुपए देने की घोषणा की. उन्होंने गिरफ्तार किए गए दरोगा के हत्यारों को पत्रकारों के सामने भी पेश किया, जहां हत्यारों ने अवैध रिश्तों में हुई हत्या का खुलासा किया.

पच्चालाल गौतम सीतापुर जिले के थाना मानपुरा क्षेत्र के गांव रामकुंड के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी कुंती देवी के अलावा 4 बेटे सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र कमल थे. पच्चालाल पुलिस विभाग में दरोगा के पद पर तो तैनात थे ही, उन के पास खेती की जमीन भी थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. कुल मिला कर उन की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी. पच्चालाल की पत्नी कुंती देवी घरेलू महिला थीं. वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थीं, लेकिन स्वभाव से मिलनसार थीं. कुंती पति के साथसाथ बच्चों का भी ठीक से खयाल रखती थीं. पच्चालाल भी कुंती को बेहद चाहते थे, उन की हर जरूरत को पूरा करते थे. लेकिन बीतते समय में इस खुशहाल परिवार पर ऐसी गाज गिरी कि सब कुछ बिखर गया.

सन 2001 में कुंती देवी बीमार पड़ गईं. पच्चालाल ने पत्नी का इलाज पहले सीतापुर, लखनऊ कानपुर में अच्छे डाक्टरों से कराया. पत्नी के इलाज में दरोगा ने पानी की तरह पैसा बहाया, लेकिन काल के क्रूर हाथों से वह पत्नी को नहीं बचा सके. पत्नी की मौत से पच्चालाल खुद भी टूट गए और बीमार रहने लगे. जैसेजैसे समय बीतता गया, वैसेवैसे पत्नी की मौत का गम कम होता गया. पच्चालाल ड्यूटी और बच्चों के पालनपोषण पर पूरा ध्यान देने लगे. पच्चालाल का दिन तो सरकारी कामकाज में कट जाता था, लेकिन रात में पत्नी की कमी खलने लगती थी. पत्नी के बिना वह तनहा जिंदगी जी रहे थे. अब उन्हें अहसास हो गया था कि पत्नी के बिना आदमी का जीवन कितना अधूरा होता है.

सन 2002 में दरोगा पच्चालाल को हरदोई जिले के थाना बेनीगंज की कल्याणमल चौकी में तैनाती मिली. इस चौकी का चार्ज संभाले अभी 2 महीने ही बीते थे कि पच्चालाल की मुलाकात एक खूबसूरत युवती किरन से हुई. किरन अपने पति नरेश की प्रताड़ना की शिकायत ले कर चौकी आई थी. किरन के गोरे गालों पर बह रहे आंसू, दरोगा पच्चालाल के दिल में हलचल मचाने लगे. उन्होंने सांत्वना दे कर किरन को चुप कराया तो उस ने बताया कि उस का पति नरेश, शराबी व जुआरी है. नशे में वह उसे जानवरों की तरह पीटता है. वह पति की प्रताड़ना से निजात चाहती है. खूबसूरत किरन पहली ही नजर में दरोगा पच्चालाल के दिलोदिमाग पर छा गई. उन्होंने किरन के पति नरेश को चौकी बुलवा लिया और किरन के सामने ही उस की पिटाई कर के हिदायत दी कि अब वह किरन को प्रताडि़त नहीं करेगा. दरोगा की पिटाई और जेल भेजने की धमकी से नरेश डर गया और किरन से माफी मांग ली.

इस के बाद दरोगा पच्चालाल हालचाल जानने के बहाने अकसर किरन के घर आनेजाने लगे. वह किरन से मीठीमीठी बातें करते थे. किरन भी उन की रसीली बातों में आनंद का अनुभव करने लगी थी. किरन का पति नरेश घर आने पर ऐतराज करे, यह सोच कर पच्चालाल ने उस से दोस्ती गांठ ली. दोनों की नरेश के घर पर ही शराब की महफिल जमने लगी. पच्चालाल उस की आर्थिक मदद भी करने लगे. घर आतेजाते पच्चालाल ने किरन को अपने प्रेम जाल में फंसा कर उस से नाजायज संबंध भी बना लिए. बाद में पच्चालाल ने किरन को ऐसे सब्जबाग दिखाए कि वह उस की पत्नी बनने को राजी हो गई. किरन राजी हुई तो पच्चालाल ने मंदिर में जा कर उस से प्रेम विवाह कर लिया. विवाह के समय किरन 20-22 साल की थी, जबकि पच्चालाल 43 साल के. नरेश को किरन की बेवफाई का पता चला तो उस ने माथा पीट लिया. शराबी और जुआरी नरेश इतना सक्षम नहीं था कि दरोगा का मुकाबला कर पाता, लिहाजा वह चुप हो कर बैठ गया.

प्रेम विवाह करने के बाद किरन पच्चालाल की पत्नी बन कर हरदोई में रहने लगी. कुछ समय बाद दरोगा पच्चालाल का ट्रांसफर कानपुर हो गया. कानपुर में पच्चालाल ने नवाबगंज थाना क्षेत्र के सूर्यविहार में किराए पर एक मकान ले लिया और किरन के साथ रहने लगे. बाद में दरोगा पच्चालाल और किरन एक बेटे अमन तथा 2 बेटियों अर्चना पारुल के मातापिता बने. कुंती के चारों बेटों ने पिता द्वारा किरन से प्रेम विवाह करने का कोई विरोध नहीं किया था. इस की वजह यह भी थी कि पिता के अलावा उन्हें संरक्षण देने वाला कोई नहीं था. इस तरह दरोगा पच्चालाल 2 परिवारों का पालनपोषण करने लगे. पहली पत्नी के बच्चे गांव में तथा दूसरी पत्नी किरन और उस के बच्चे कानपुर शहर में रहते रहे. पच्चालाल को जब छुट्टी मिलती तो गांव चले जाते और बच्चों से मिल कर लौट आते.

किरन 3 बच्चों की मां जरूर बन गई थी, लेकिन अब भी यौवन से भरपूर थी. वह हर रात पति का संसर्ग चाहती थी, लेकिन इस से वंचित थी. दरोगा पच्चालाल अब तक 50 की उम्र पार कर चुके थे. उन की सैक्स में रुचि भी कम हो गई थी. पहल करने पर भी वह किरन से देह संबंध नहीं बनाते थे. दरअसल, ड्यूटी करने के बाद पच्चालाल इतने थक जाते थे कि पीने और खाना खाने के बाद बैड पकड़ लेते थे. किरन रात भर तड़पती रहती थी. उन्हीं दिनों किरन की निगाह जितेंद्र यादव पर पड़ी. जितेंद्र यादव औरैया जिले के सहायल थाना क्षेत्र में आने वाले पुरवा अहिरमा का रहने वाला था. कानपुर में वह नवाबगंज की रोडवेज कालोनी में रहता था और रोडवेज की बस का ड्राइवर था. पच्चालाल और जितेंद्र यादव गहरे दोस्त थे. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. दोनों की महफिल एकदूसरे के घरों में अकसर जमती रहती थी.

किरन की निगाह थी जितेंद्र पर जितेंद्र यादव शरीर से हृष्टपुष्ट और किरन का हमउम्र था. किरन को लगा कि वह उस की अधूरी ख्वाहिशों को पूरा कर सकता है. अत: उस ने जितेंद्र को लिफ्ट देनी शुरू कर दी. दोनों के बीच देवरभाभी का नाता थाजबतब दोनों हंसीमजाक भी करने लगे. किरन अपने सुघड़ अंगों का प्रदर्शन कर के जितेंद्र को ललचाने लगी. किरन के हावभाव से जितेंद्र समझ गया कि किरन सैक्स की भूखी है, पहल की जाए तो जल्द ही उस की बांहों में समा जाएगी. जितेंद्र यादव जब भी किरन के घर आता, बच्चों के लिए फल, मिठाई ले कर जाता. किरन से वह मीठीमीठी बातें करते हुए उसे ललचाई हुई नजरों से देखता. ऐसे ही एक रोज जितेंद्र आया, तो किरन को घर में अकेली देख कर उस से पूछा, ‘‘दरोगा भैया अभी तक नहीं आए?’

किरन ने बेफिक्री से कहा, ‘‘सरकारी काम से बाहर गए हैं, 1-2 रोज बाद लौटेंगे.’’

जितेंद्र की बांछें खिल गईं. उस ने किरन के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए शरारत की, ‘‘भाभी, आप की रात कैसे कटेगी?’’

‘‘तुम जो हो.’’ किरन ने भी उसी अंदाज में जवाब दे दिया. किरन के खुले आमंत्रण से जितेंद्र का हौसला बढ़ गया. वह बोला, ‘‘तो मैं रात को आऊं?’’

 ‘‘मैं ने कब मना किया है.’’ किरन ने मादक अंगड़ाई ली. रात गहराई तो जितेंद्र किरन के दरवाजे पर पहुंच गया. उस ने दरवाजा धकेला तो खुल गया. अंदर नाइट बल्ब जल रहा था. किरन पलंग पर लेटी थी. वह फुसफुसाई, ‘‘दरवाजा बंद कर के सिटकनी लगा दो.’’

जितेंद्र ने ऐसा ही किया और पलंग पर आ कर बैठ गया. दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो तभी थमा जब दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उस दिन किरन और जितेंद्र के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. किरन और जितेंद्र एक बार देह के दलदल में समाए तो समाते ही चले गए. दोनों को जब भी मौका मिलता, एकदूसरे में सिमट जाते. एक रोज पच्चालाल ड्यूटी के लिए घर से निकले ही थे कि जितेंद्र गया. आते ही उस ने किरन को बांहों में भर लिया. दोनों अभी एकदूसरे से लिपटे ही थे कि पच्चालाल की आवाज सुन कर घबरा गए. किरन ने कपड़े दुरुस्त कर के दरवाजा खोल दिया. घर के अंदर जितेंद्र मौजूद था. बिस्तर कुछ पल पहले गुजरे तूफान की चुगली कर रहा था. पच्चालाल सब समझ गए. उन्होंने किरन को धुनना शुरू किया तो जितेंद्र चुपके से खिसक लिया.

इस घटना के बाद किरन और जितेंद्र ने दरोगा पच्चालाल से माफी मांग ली और आइंदा गलती करने का वादा किया. पच्चालाल ने दोनों को माफ तो कर दिया, लेकिन जितेंद्र के साथ शराब पीनी बंद कर दी. उस के घर आने पर भी पाबंदी लगा दी. लेकिन देह की लगी ने पाबंदियों को नहीं माना. कुछ दिन दोनों दूरदूर रहे, फिर चोरीछिपे शारीरिक रूप से मिलने लगे. जितेंद्र बना पच्चालाल की मौत का परवाना जनवरी, 2018 में दरोगा पच्चालाल का ट्रांसफर कानपुर देहात के थाना सजेती में हो गया. सजेती थाना कानपुर से 50 किलोमीटर दूर है. वहां से रोज घर आनाजाना संभव नहीं था. दरोगा पच्चालाल को थाना परिसर में ही आवास मिल गया. अब वह हफ्ता 10 दिन में ही किरन से मिलने घर जा पाते थे.

पच्चालाल जब भी घर आते थे, किरन से गालीगलौज और मारपीट जरूर करते थे. दरअसल उन्हें शक था कि जितेंद्र के अलावा भी किरन के किसी से नाजायज संबंध हैं. जैसेजैसे समय बीत रहा था, घर में कलह और प्रताड़ना बढ़ती जा रही थी. पति की प्रताड़ना से आजिज कर किरन ने अपने प्रेमी जितेंद्र की मदद से पच्चालाल को रास्ते से हटाने की योजना बनाईजितेंद्र ने किरन को पच्चालाल की हत्या से फायदे भी बताए. जितेंद्र ने कहा कि पति की हत्या के बाद तुम्हारे बेटे अमन को मृतक आश्रित कोटे से सरकारी नौकरी मिल जाएगी और तुम्हें पेंशन मिलने लगेगी. इस के अलावा प्रेम संबंध का रोड़ा भी हट जाएगा.

किरन और जितेंद्र ने पच्चालाल की हत्या के लिए रुपयों का इंतजाम किया. फिर जितेंद्र ने विधूना निवासी टेलर निजाम अली से बातचीत की. एक लाख रुपए में सौदा तय हुआ. जितेंद्र ने एक लाख रुपया निजाम अली के खाते में ट्रांसफर कर दियाइस के बाद निजाम अली ने जितेंद्र को पसहा (विधूना) निवासी राघवेंद्र उर्फ मुन्ना से मिलवाया. राघवेंद्र रिटायर दरोगा हरिदत्त सिंह का अपराधी प्रवृत्ति का बेटा था. निजाम अली ने 20 हजार रुपए एडवांस दे कर उसे इस योजना में शामिल कर लिया. 2 जुलाई, 2018 की देर शाम जितेंद्र यादव राघवेंद्र और निजाम अली को साथ ले कर सजेती पहुंचा और हाइवे से दरोगा के आवास की पहचान कराई. इस के बाद जितेंद्र यादव बाजार गया, जहां उस की मुलाकात दरोगा पच्चालाल से हो गई. जितेंद्र ने झुक कर दरोगा के पैर छुए. पच्चालाल ने उसे रात को वहीं रुक जाने को कहा

थोड़ी देर की बातचीत के बाद दरोगा पच्चालाल ने अंगरेजी शराब की बोतल और नमकीन खरीदी. दुकानदार को नमकीन के पैसे पच्चालाल ने ही दिए. इस के बाद होटल पर बैठ कर दोनों ने शराब पी और खाना खाया. इस के बाद दोनों पच्चालाल के आवास पर गए. दरोगा पच्चालाल ने कपड़े उतारे और कूलर चला कर पलंग पर पसर गए. कुछ देर बाद जब पच्चालाल सो गए तो जितेंद्र ने आवास का पीछे का दरवाजा खोल कर निजाम अली राघवेंद्र को अंदर बुला लिया, जो कुछ दूर हाइवे किनारे बैठे थे. साथियों के आते ही जितेंद्र ने पच्चालाल को दबोच लिया. दरोगाजी की आंखें खुलीं तो प्राण संकट में देख वह संघर्ष करने लगे. लेकिन नफरत से भरे जितेंद्र ने पच्चालाल के शरीर को चाकू से गोदना शुरू किया तो गोदता ही चला गया.

हत्या के दौरान खून के छींटे हाथ के पंजे का निशान एक दीवार पर भी पड़ गया. हत्या के बाद जितेंद्र उस के साथी दरोगा का मोबाइल, पर्स घड़ी लूट कर फरार हो गए. जितेंद्र ने मोबाइल से फोन कर के पच्चालाल की हत्या की जानकारी किरन को दे दी थी3 जुलाई की शाम 6 बजे मुंशी अजयपाल जब रजिस्टर पर दस्तखत कराने दरोगा पच्चालाल के आवास पर पहुंचा तो हत्या की जानकारी हुई. 7 जुलाई, 2018 को पुलिस ने हत्यारोपी किरन, जितेंद्र, निजाम अली राघवेंद्र को कानपुर देहात की माती अदालत में रिमांड पर मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से सब को जेल भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

   

पितापत्नी के अनैतिक संबंध से मजबूर होकर बेटा गया परदेस

सुबोध पिता, पत्नी और छोटी सी बेटी को छोड़ कर एक लड़की के साथ विदेश चला गया था, कभी आने के लिए. ऐसे में मां आरती और पोती अनुराधा के सशक्त सहारा बने विश्वंभर प्रसाद यानी उस के दादाजी, लेकिन एक दिन जब एक्सीडेंट ने उन की जान ले ली तो… 

राधना, जिसे घर में सभी प्यार से अरू कहते थे. सुबह जल्दी सो कर उठती या देर से, कौफी बालकनी  में ही पीती थी. आराधना कौफी का कप ले कर बालकनी में खड़ी हो जाती और सुबह की ठंडीठंडी हवा का आनंद लेते हुए कौफी पीती. इस तरह कौफी पीने में उसे बड़ा आनंद आता था. उस समय कोठी के सामने से गुजरने वाली सड़क लगभग खाली होती थी. इक्कादुक्का जो आनेजाने वाले होते थे, उन में ज्यादातर सुबह की सैर करने वाले होते थे. ऐसे लोगों को आतेजाते देखना उसे बहुत अच्छा लगता था. वह अपने दादाजी से कहती भी, ‘आई एम डेटिंग रोड. यह मेरी सुबह की अपाइंटमेंट है.’

उस दिन सुबह आराधाना थोड़ा देर से उठी थी. दादाजी अपने फिक्स समय पर उठ कर मौर्निग वाक पर चले गए थे. आराधना के उठने तक उन के वापस आने का समय हो गया था. आरती उन के लिए अनार का जूस तैयार कर के आमलेट की तैयारी कर रही थी. कौफी पी कर आराधना नाश्ते के लिए मेज पर प्लेट लगाते हुए बोली, ‘‘मम्मी, मैं ने आप से जो सवाल पूछा था, आप ने अभी तक उस का जवाब नहीं दिया.’’

‘‘कौन सा सवाल?’’ आरती ने पूछा.

‘‘वही, जो द्रौपदी के बारे में पूछा था.’’

फ्रिज से अंडे निकाल कर किचन के प्लेटफौर्म पर रखते हुए आरती ने कहा, ‘‘मुझे नाश्ते की चिंता हो रही है और तुझे अपने सवाल के जवाब की लगी है. दादाजी का फोन गया है, वह क्लब से निकल चुके हैं. बस पहुंचने वाले हैं. उन्हीं से पूछ लेना अपना सवाल. तेरे सवालों के जवाब उन्हीं के पास होते हैं.’’

आरती की बात पूरी होतेहोते डोरबेल बज गई. आराधना ने लपक कर दरवाजा खोला. सामने दादाजी खड़े थे. आराधना दोनों बांहें दादाजी के गले में डाल कर सीने से लगते हुए लगभग चिल्ला कर बोली, ‘‘वेलकम दादाजी.’’ आराधना 4 साल की थी, तब से लगभग रोज ऐसा ही होता था. जबकि आरती के लिए रोजाना घटने वाला यह दृश्य सामान्य नहीं था. ऐसा पहली बार तब हुआ था, जब अचानक सुबोध घरपरिवार और कारोबार छोड़ कर एक लड़की के साथ अमेरिका चला गया था. उस के बाद सुबोध के पिता ने बहू और पोती को अपनी छत्रछाया में ले लिया था.

आरती ने देखा, उस के ससुर यानी आराधना के दादाजी ने उस का माथा चूमा, प्यार किया और फिर उस का हाथ पकड़ कर नाश्ते के लिए मेज पर कर बैठ गए. उस दिन सुबोध को गए पूरे 16 साल हो गए थे.   जाने से पहले उस ने औफिस से फोन कर के कहा था, ‘‘आरती, मैं हमेशा के लिए जा रहा हूं. सारे कागज तैयार करा दिए हैं, जो एडवोकेट शर्मा के पास हैं. कोठी तुम्हारे और आराधना के नाम कर दी है. सब कुछ तुम्हें दे कर जा रहा हूं. पापा से कुछ कहने की हिम्मत नहीं है. माफी मांगने का भी अधिकार खो दिया है मैं ने. फिर कह रहा हूं कि सब लोग मुझे माफ कर देना. इसी के साथ मुझे भूल जाना. मुझे पता है कि यह कहना आसान है, लेकिन सचमुच में भूलना बहुत मुश्किल होगा. फिर भी समझ लेना, मैं तुम्हारे लिए मर चुका हूं.’’

आरती कुछ कहती, उस के पहले ही सुबोध ने अपनी बात कह कर फोन रख दिया था. आरती को पता था कि फोन कट चुका है. फिर भी वह रिसीवर कान से सटाए स्तब्ध खड़ी थी. यह विदाई मौत से भी बदतर थी. सुबोध बसाबसाया घर अचानक उजाड़ कर चला गया था. दादा और पोती हंसहंस कर बातें कर रहे थे. आरती को अच्छी तरह याद था कि उस दिन सुबोध के बारे में ससुर को बताते हुए वह बेहोश हो कर गिर गई थी. तब ससुर ने अपनी शक्तिशाली बांहों से उसे इस तरह संभाल लिया था, जैसे बेटे के घरसंसार का बोझ आसानी से अपने कंधों पर उठा लिया हो. ‘‘आरती, तुम ने अपना जूस नहीं पिया. आज लंच में क्या दे रही हो?’’ आरती के ससुर विश्वंभर प्रसाद ने पूछा.

‘‘पापा, आज आप की फेवरिट डिश पनीर टिक्का है.’’ आरती ने हंसते हुए कहा.

‘‘वाह! आरती बेटा, तुम सचमुच अन्नपूर्णा हो. तुम्हें पता है अरू बेटा, जब पांडवों के साथ द्रौपदी वनवास भोग रही थी, तभी एक दिन सब ने भोजन कर लिया तो…’’

‘‘बसबस दादाजी, यह बात बाद में. मेरे बर्थडे पर आप ने मुझे जो टेल्स औफ महाभारत पुस्तक गिफ्ट में दी थी, कल रात मैं उसे पढ़ रही थी, क्योंकि मैं ने आप को वचन दिया था. दादाजी उस में द्रौपदी की एक बात समझ में नहीं आई. उसी से मुझे उस पर गुस्सा भी आया.’’

‘‘द्रौपदी ने ऐसा कौन सा अपराध कर दिया था बेटा, जो तुम्हें उस पर गुस्सा गया?’’

‘‘अपने बेटे के हत्यारे को उन्होंने माफ कर दिया था. अब आप ही बताइए दादाजी, इतने बड़े अपराध को भी भला कोई माफ करता है?’’

‘‘अश्वत्थामा का सिर तो झुक गया था ?’’

‘‘व्हाट नानसैंस, जिंदा तो छोड़ दिया ? बेटे के हत्यारे को क्षमा, वह भी मां हो कर.’’ आराधना चिढ़ कर बोली.

‘‘बेटा, वह मां थी , इसलिए माफ कर दिया कि जिस तरह मैं बेटे के विरह में जी रही हूं, उस तरह का दुख किसी दूसरी मां को उठाना पड़े. बेटा, इस तरह एक मां ही सोच सकती है.’’ आराधना उठ कर बेसिन पर हाथ धोते हुए बोली, ‘‘महाभारत में बदला लेने की कितनी ही घटनाएं हैं. द्रौपदी ने भी तो किसी से बदला लेने की प्रतिज्ञा ली थी?’’  प्लेट ले कर रसोई में जाते हुए आरती ने कहा, ‘‘दुशासन से.’’

‘‘एग्जैक्टली, थैंक्स मौम. द्रौपदी ने प्रतिज्ञा ली थी कि अब वह अपने बाल दुशासन के खून से धोने के बाद ही बांधेगी. इस के बावजूद भी क्षमा कर दिया था. क्या बेटे की मौत की अपेक्षा लाज लुटने का दुख अधिक होता है? यह बात मेरे गले नहीं उतर रही दादाजी.’’ उसी समय विश्वंभर प्रसाद के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो वह फोन ले कर अंदर कमरे की ओर जाते हुए बोले, ‘‘बेटा, द्रौपदी अद्भुत औरत थी. भरी सभा में उस ने बड़ों से चीखचीख कर सवाल पूछे थे. हैलो प्लीजहोल्ड अप पर बेटा वह मां थी , मां से बढ़ कर इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं है.’’

इतना कह कर विश्वंभर प्रसाद ने एक नजर आरती पर डाली, उस के बाद कमरे में चले गए. दोनों की नजरें मिलीं, आरती ने तुरंत मुंह फेर लिया. आराधना ने हंसते हुए कहा, ‘‘लो दादाजी ने पलभर में पूरी बात खत्म कर दी.’’ इस के बाद वह बड़बड़ाती हुई भागी, ‘‘बाप रे बाप, कालेज के लिए देर हो रही है.’’

आराधना और विश्वंभर चले गए. दोपहर को ड्राइवर कर लंच ले गया. आरती ने थोड़ा देर से खाना खाया और जा कर बैडरूम में टीवी चला कर लेट गई. थोड़ी देर टीवी देख कर उस ने जैसे ही आंखें बंद कीं, जिंदगी के एक के बाद एक दृश्य उभरने लगे. सांसें लंबीलंबी चलने लगीं. हांफते हुए वह उठ कर बैठ गई. घड़ी पर नजर गई. सवा 3 बज रहे थे. 16 साल पहले आज ही के दिन इसी पलंग पर वह फफकफफक कर रो रही थी. डाक्टर सिन्हा सामने बैठे थे. दूसरी ओर सिरहाने ससुर विश्वंभर प्रसाद खड़े थे. वह सिर पर हाथ फेरते हुए कह रहे थे, ‘‘आरती, तुम्हें आज जितना रोना हो रो लो.

आज के बाद फिर कभी उस कुल कलंक का नाम ले कर तुम्हें रोने नहीं दूंगा. डाक्टर साहब, मुझे पता नहीं चला कि यह सब कब से चल रहा था. पता नहीं वह कौन थी, जिस ने मेरा घर बरबाद कर दिया. उस ने तो लड़ने का भी संबंध नहीं रखा.’’ आरती टुकुरटुकुर ससुर का मुंह ताक रही थी. आखिर सुबोध के बिना वह कैसे जिएगी. अभी तक वह उस से लिपटी बेल की तरह जी रही थी. अब वह आधार के बिना जमीन पर बिखर गई थी. अब कौन सहारा देगा. बिना किसी वजह के पति उसे बेसहारा छोड़ कर चला गया था. पता नहीं कौन उन के बीच गई थी. वह कैसी औरत थी, जो उस के पति को अपने मोहपाश में बांध कर चली गई थी. छोटी सी बिटिया, पिता जैसे ससुर, फैला कारोबार, जीवन अब एक तपती दोपहर की तरह हो गया था. नंगे पैर चलना होगा, आराम छाया.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं. ससुर विश्वंभर प्रसाद ने सहजता से घरसंसार का बोझ अपने कंधों पर उठा लिया था. उस के जीवनरथ का जो पहिया टूटा था, उस की जगह वह खुद पहिया बन गए थे, जिस से आरती के जीवन का रथ फिर से चलने ही नहीं लगा था, बल्कि दौड़ पड़ा था. विश्वंभर प्रसाद सुबह जल्दी उठ कर नजदीक के क्रिकेट क्लब के मैदान में चले जाते, नियमित टेनिस खेलते. छोटीमोटी बीमारी को तो वह कुछ समझते ही नहीं थे. उन्होंने समय के घूमते चक्र को जैसे मजबूत हाथों से थाम लिया था. वह जवानी के जोश में गए थे. सुबोध था तो वह रिटायर हो कर सेवानिवृत्ति का जीवन जी रहे थे. औफिस जाते भी थे तो थोड़े समय के लिए. लेकिन अब पूरा कारोबार वही संभालने लगे थे.

उन की भागदौड़ को देखते हुए एक दिन आरती ने कहा, ‘‘पापा, आप इतनी मेहनत करते हैं, यह मुझे अच्छा नहीं लगता. हम 3 लोग ही तो हैं. इतना बड़ा घर और कारोबार बेच कर छोटा सा घर ले लेते हैं. बाकी रकम ब्याज पर उठा देते हैं. आप इस उम्र में…’’

‘‘इस उम्र में क्या आरतीदेखो ब्याज खाना मुझे पसंद नहीं है. आराधना बड़ी हो रही है. हमें उस का जीवन उल्लास से भर देना है. वह बूढ़े दादा और अकेली मां की छाया में दिन काटे, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’’

विश्वंभर ने बाल रंगवा लिए, पहनने के लिए लेटेस्ट कपड़े ले लिए. वह फिल्म्स, पिकनिक सभी जगह आराधना के साथ जाते, जिस से उसे बाप की कमी खले. सब कुछ ठीकठाक चलने लगा था कि अचानक एक दिन आरती के मांबाप पहुंचे. वे आरती और आराधना को ले जाने आए थे. उन का कहना था कि विधुर ससुर के साथ बिना पति के बहू के रहने पर लोग तरहतरह की बातें करते हैंलोग तो यहां तक कह रहे हैं कि ससुर और बहू का पहले से ही संबंध था, इसीलिए सुबोध घर छोड़ कर चला गया. दोनों ही परिवारों की बदनामी हो रही है, इसलिए आरती को उन के साथ जाना ही होगा. उन के खर्च के लिए रुपए उस के ससुर भेजते रहेंगे.

मांबाप की बातें सुन कर आरती स्तब्ध रह गई. उस पर जैसे आसमान टूट पड़ा हो. फिर ऐसा कुछ घटा, जिस के आघात से वह मूढ़ बन गई. आरती के मांबाप की बातें सुन कर विश्वंभर प्रसाद ने तुरंत कहा था, ‘‘मैं इस बारे में कुछ भी नहीं कह सकता, जो भी निर्णय करना है, आरती को करना है. अगर वह जाना चाहती है तो खुशी से अरू को ले कर जा सकती है.’’ बस, इतना कह कर अपराधी की तरह उन्होंने सिर झुका लिया था. आराधना उस समय उन्हीं की गोद में थी. नानानानी ने उसे लेने की बहुत कोशिश की थी. पर वह उन के पास नहीं गई थी. उस ने दोनों हाथों से कस कर दादाजी की गरदन पकड़ ली थी

आराधना के पास न आने से आरती की मां ने नाराज हो कर कहा था, ‘‘आंख खोल कर देख आरती, तेरा यह ससुर कितना चालाक है. आराधना को इस ने इस तरह वश में कर रखा है कि हमारे लाख जतन करने पर भी वह हमारे पास नहीं आ रही है. देखो न ऐसा व्यवहार कर रही है, जैसे हम इस के कुछ हैं ही नहीं.’’ इतना कह कर आरती की मां उठीं और विश्वंभर प्रसाद की गोद में बैठी आराधना को खींचने लगीं. आराधना चीखी. बेटे के घर छोड़ कर जाने पर भी न रोने वाले विश्वंभर प्रसाद की आंखें छलक आईं. ससुर की हालत देख कर आरती झटके से उठी और अपनी मां के दोनों हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मम्मी, मैं और आराधना यहीं पापा के पास ही रहेंगे.’’

‘‘कुछ पता है, तू ये क्या कह रही है. तू जो पाप कर रही है, ऊपर वाला तुझे कभी माफ नहीं करेगा और इस विश्वंभर के तो रोएंरोएं में कीड़े पड़ेंगे.’’

‘‘तुम भले मेरी मां हो, पर मैं अपने पिता जैसे ससुर का अपमान नहीं सह सकती, इसलिए अब आप लोग यहां से जाइए, यही हम सब के लिए अच्छा होगा.’’

‘‘अपने ही मांबाप का अपमान…’’ आरती के पिता गुस्से में बोले, ‘‘तुझे इस नरक में सड़ना है तो सड़, पर आराधना पर मैं कुसंस्कार नहीं पड़ने दूंगा. इसलिए इसे मैं अपने साथ ले जाऊंगा.’’

आराधना जोरजोर से रो रही थी. आरती के मांबाप उसे और विश्वंभर प्रसाद को कोस रहे थे. आरती दोनों कानों को हथेलियों से दबाए आंखें बंद किए बैठी थी. अंत में वे गुस्से में पैर पटकते हुए यह कह कर चले गए कि आज से उन का उस से कोई नातारिश्ता नहीं रहा. मांबाप के जाने के बाद आरती उठी. ससुर के आंसू भरे चेहरे को देखते हुए उन के सिर पर हाथ रखा और आराधना को गले लगाया. इस के बाद अंदर जा कर बालकनी में खड़ी हो गई. उतरती दोपहर की तेज किरणें धरती पर अपना कमाल दिखा रही थीं. गरमी से त्रस्त लोग सड़क पर तेजी से चल रहे थे.

विश्वंभर प्रसाद ने जो वचन दिया था, उसे निभाया. उजड़ चुके घर को फिर से संभाल कर सजाया. आराधना को फूल की तरह खिलने दिया. पौधे को खाद, पानी और हवा मिलती रहे, उस का सही पालनपोषण होता है. आराधना बड़ी होती गई. समझदार हो गई तो एक दिन विश्वंभर प्रसाद ने उसे सामने बैठा कर कहा, ‘‘बेटा, मैं तुम्हारा दादा हूं, पर उस के पहले मित्र हूं. इसलिए मैं तुम से कुछ भी नहीं छिपाऊंगा. हम सभी के जीवन में क्याक्या घटा है, यह जानने का तुम्हें पूरा हक है.’’

आराधना दादाजी के सीने से लग कर बोली, ‘‘दादाजी, यू आर ग्रेट. आप न होते तो हमारा न जाने क्या होता.’’

‘‘अरे पगली, तुम मांबेटी न होती तो शायद मैं इस जिंदगी को इस तरह न जी पाता. इस जिंदगी पर सीनियर सिटिजन का ठप्पा लगाए निराशावादी जीवन जी रहा होता. तुम लोगों को मैं ने नहीं गढ़ा है, बल्कि तुम लोगों ने मुझे गढ़ा है. तुम्हारे कौशल का नटखट मेरी आंखों में बस गया है बेटा.’’

आरती ने तृप्ति की लंबी सांस ली. वह पिता जैसा प्यार देने वाले ससुर थे, उन्हीं के सहारे वह जी रही थी. अगर उन का सहारा होता तो मांबेटी मांबाप के यहां आश्रित बन कर बेचारी की तरह जी रही होतीं. इन्हीं की वजह से आज वे सिर ऊंचा कर के जी रही थीं वरना नदी के टापू की तरह कणकण बिखर गई होतीं. उगते सूरज की किरणों के बीच आराधना बालकनी में खड़ी हो कर कौफी पीती. विश्वंभर प्रसाद मौर्निंग वाक से वापस आते तो आराधना दरवाजा खोल कर उन के सीने से लग जाती, ‘‘गुड मौर्निंग दादू.’’

विश्वंभर प्रसाद दोनों हाथों से आराधना को गोद में उठा लेते. 80 साल के होने के बावजूद उन में अभी जवानों वाली ताकत थी. आराधना झटपट गोद से उतर कर सख्त लहजे में कहती, ‘‘दादादी, बिहैव योर एज.’’

अभी तो मैं जवान हूं. कालेज के दिनों में क्रिकेट खेलता था, मेरा हाइयेस्ट सिक्सर्स का रेकार्ड है.’’

ऐसा ही लगभग रोज होता था. सुबह जल्दी उठ कर विश्वंभर प्रसाद मौर्निंग वाक के लिए निकल जाते थे. पौने 7 बजे के फोन की घंटी बजती, जिस का मतलब था वह 10 मिनट के अंदर आने वाले हैं. आरती कहती, ‘‘अरू, जल्दी कर दादाजी के आने का समय हो गया है. जूस तैयार कर के टेबल पर प्लेट लगा.’’

आराधना जल्दी से कौफी खत्म कर के फ्रिज से संतरा, मौसमी या अनार निकाल कर जूस निकालने की तैयारी करने लगती. दूसरी ओर आरती किचन में नाश्ते की तैयारी करती. इस के बाद डोरबेल बजती तो आराधना दरवाजा खोल कर दादाजी के गले लग जाती. उस दिन किचन में नाश्ते की तैयारी कर रही आरती चिल्लाई, ‘‘आराधना जल्दी जूस निकाल कर मेज पर प्लेट लगा, 8 बज गए दादाजी आते ही होंगे. लेकिन आज उन का फोन तो आया ही नहीं.’’

आराधना जूस के गिलास मेज पर रख कर प्लेट लगाने लगी. अंदर से आरती ने कहा, ‘‘आज उठने में मुझे थोड़ी देर हो गई. लेकिन पापाजी की टाइमिंग परफेक्ट है, वह आते ही होंगे.’’ 8 से सवा 8 बज गए. न फोन आया न डोरबेल बजी. आराधना चिढ़ कर बोली, ‘‘मम्मी, दादाजी तो दिनप्रतिदिन बच्चे होते जा रहे हैं. खेलने लगते हैं तो समय का ध्यान ही नहीं रहता. आज आते हैं तो बताती हूं.’’

साढ़े 8 बज गए. दरवाजा खोले मांबेटी एकदूसरे का मुंह ताक रही थीं. मौर्निंग वाक करने वालों की तरह घड़ी का कांटा भाग रहा था. कांटा पौने 9 पर पहुंचा तो आराधना ने दादाजी के मोबाइल पर फोन किया. घंटी बजती रही, पर फोन नहीं उठा. आराधना के लिए यह हैरानी की बात थी. आरती ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘कोई पुराना दोस्त मिल गया होगा फारेनवारेन का. बहुत दिनों बाद मिला होगा इसलिए बातों में लग गए होंगे.’’

‘‘आप भी क्या बात करती हैं मम्मी. एक घंटा होने को रहा है. नो वेदादाजी इतने लापरवाह नहीं हैं. कम से कम फोन तो उठाते या खुद फोन करते.’’ आराधना बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि उस का फोन बजा. नंबर देख कर बोली, ‘‘ये लो गया दादाजी का फोन.’’

फोन रिसीव कर के आराधना धमकाते हुए बोली, ‘‘यह क्याइतनी देरमेरे का क्या…’’

‘‘एक मिनट मैडम, यह फोन आप के फैमिली मेंबर का है?’’

‘‘जी, यह फोन मेरे ग्रांडफादर का है. आप के पास कैसे आया?’’

‘‘मैडम, मुझे तो यह सड़क पर पड़ा मिला है.’’

हैरानपरेशान आरती बगल में खड़ी थी. उस ने पूछा, ‘‘अरू, कौन बात कर रहा है? पापा का फोन उसे कहां मिला, वह कहां हैं?’’

‘‘फोन ढूंढ रहे होंगे. एक तो गंवा दिया.’’

दूसरी ओर से अधीरता से कहा गया, ‘‘हैलोहैलो मैडम.’’

‘‘जी सौरी भाईसाहब, वह क्या है कि मेरे ग्रांडफादर वाक पर गए थे. उन का फोन गिर गया होगा. आप कहां हैं? मैं लेने…’’

‘‘आप मेरी बात सुनेंगी या खुद ही बकबक करती रहेंगी.’’ फोन करने वाले ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘यह फोन आप के ग्रांडफादर का है , उन का एक्सीडेंट हो चुका है. मैं यह फोन पुलिस वाले को दे रहा हूं.’’

पुलिस वाले ने बताया कि यह फोन जिस का भी है, उन का एक्सीडेंट हो चुका है. आप जल्दी आ जाइए. 

फोन कटते ही आराधना ने मां का हाथ पकड़ा और गेट की ओर भागी, ‘‘मम्मी, जल्दी चलो, दादाजी का एक्सीडेंट हो गया है.’’ एक जगह भीड़ देख कर आराधना रुक गई. आंसू पोंछते हुए भर्राई आवाज में बोली, ‘‘प्लीज मम्मी, मैं वहां नहीं जा सकती. दादाजी को उस हालत में नहीं देख सकती.’’

‘‘कलेजा कड़ा कर अरू, रोने के लिए अभी समय पड़ा है. अब जो कुछ भी करना है, हम दोनों को ही करना है.’’ आराधना का हाथ थामे आरती भीड़ के बीच पहुंची तो सड़क पर खून से लथपथ पड़ी देह आराधना के प्यारे दादाजी विश्वंभर प्रसाद की थी. आराधना के मुंह से निकली चीख वहां खड़े लोगों के कलेजे को बेध गई. वह लाश पर गिरती, उस के पहले ही क्लब के विश्वंभर प्रसाद के साथियों ने उसे संभाल लिया. आरती बारबार बेहोश हुए जा रही थी. अगलबगल की इमारतें जैसे उस के ऊपर टूट पड़ी हों और वह उस के मलबे से निकलने की कोशिश कर रही हो, इस तरह हांफ रही थी. उस में यह पूछने की भी हिम्मत नहीं थी कि यह सब कैसे हुआ. वहीं थोड़ी दूरी पर 2 कारें आपस में टकराई खड़ी थीं. कांप रहे 2 लड़कों को इंसपेक्टर डांट रहा था.

बाद के दिन इस तरह धुंध भरे रहे, जैसे पहाड़ी इलाके में कोहरा छाया हो. आरती की समझ में नहीं रहा था कि वह क्या करे. सूरज उगता, कब रक्तबिंदु बन कर डूब जाता, पता ही चलता. विश्वंभर प्रसाद का अंतिम संस्कार, शांतिपाठ सब हो गया था. चाहे बेटा समझो या पोती, जो कुछ भी थी, अरू ही थी. यह सब जो हुआ था, बाद में पता चला कि 17 साल के निनाद को कार चलाने का चस्का लग चुका था. मांबाप घर में नहीं थे, इसलिए मौका पा कर दोस्त के साथ कार ले कर निकल पड़ा था. तेज ड्राइविंग का मजा लेने के लिए वह तेज गति से कार चला रहा था. सुबह का समय था, सड़क खाली थी इसलिए वह लापरवाह भी था. अचानक सामने से कुत्ता आ गया. उस ने एकदम से ब्रेक लगाई, सड़क के किनारेकिनारे विश्वंभर प्रसाद आ रहे थे, निनाद स्टीयरिंग पर काबू नहीं रख पाया और…

यह जान कर आराधना का खून खौल उठा था. अपने मजे के लिए निनाद ने उस के दादाजी की जान ले ली थी. उस की आंखों के आगे से दादाजी की खून से लथपथ देह हट ही नहीं रही थी. उस की दुनिया जिस दादाजी के नाम के मजबूत स्तंभ पर टिकी थी, वह स्तंभ एकदम से टूट गया था, जिस से उस की हंसतीखेलती दुनिया उजड़ गई थी. आरती जानती थी कि अगर वह टूट गई तो आराधना को संभालना मुश्किल हो जाएगा. सुबोध जब उसे छोड़ कर गया था, उस की गृहस्थी के रथ का दूसरा पहिया ससुर विश्वंभर प्रसाद बन गए थे, जिस से जीवन की गाड़ी अच्छे से चल पड़ी थी. लेकिन उन के अचानक इस तरह चले जाने से अब आराधना के जीवन की डोर उस के हाथों में थी.

‘‘मम्मी, मैं प्रैस जा रही हूं. आप भी चलेंगी?’’

‘‘क्यों?’’ आरती ने पूछा.

‘‘मैं मीडिया के जरिए सब को यह बताना चाहती हूं कि एक गैरजिम्मेदार जिस लड़के की वजह से मेरा घर बरबाद हो गया, मेरे सिर का साया उठ गया, उसे थाने से ही जमानत मिल गई. इस का मतलब मेरे दादाजी के जीवन की कीमत कुछ नहीं थी. मैं उस के घर जाना चाहती हूं, उस के मांबाप से लड़ना चाहती हूं कि कैसा है उन का पुत्ररत्न? मैं उसे छोड़ूंगी नहीं, हाईकोर्ट जाऊंगी. आखिर मांबाप ने उसे कार दी ही क्यों?’’

‘‘कल मैं उस के घर गई थी अरू, उस की मां मिली थी.’’ आरती ने धीरे से कहा.

‘‘व्हाट?’’

‘‘तुम्हारी तरह मैं भी उस की मां से लड़ना चाहती थी, पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘मैं ने उस की मां को देखा. एक ही बेटा है, जो जवानी की दहलीज पर खड़ा है. नादान और गैरजिम्मेदार है, लेकिन वही उन का सहारा है. उसी पर उन की सारी उम्मीदें टिकी हैं. सर्वस्व लुट जाने का दुख मैं जानती हूं बेटाइस समय उस के मांबाप कितना दुखी, परेशान और डरे हुए हैं, यह मैं देख आई हूं. ऐसे में आग में घी डालने वाले शब्दों से उन के मन को और दुखी करना या उन्हें परेशान करने से क्या होगा अरू. मैं ने उन्हें माफ कर दिया बेटा. निनाद को भी माफ कर दिया.’’

 ‘‘मेरे दादाजी के हत्यारे को आप ने माफ कर दिया मम्मी?’’

‘‘क्या करूं बेटा, मां हूं .’’ कह कर आरती अंदर चली गई. आराधना को एक बार फिर महाभारत की द्रौपदी की याद गई.

   

    

कैटामाइन इंजेक्शन लगाकर की आईबी अधिकारी पति की हत्या

जिस तरह आईबी औफिसर चेतन प्रकाश की हत्या की गई थी, उस से हत्यारों को लगा था कि वे पकड़े नहीं जाएंगे. लेकिन पुलिस ने जब परत दर परत केस को खोलना शुरू किया तो चेतन प्रकाश की पत्नी अनीता और उस का प्रेमी प्रवीण दोनों बेनकाब हो गए…    

भारतीय खुफिया एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो यानी आईबी के सहायक तकनीकी सूचना अधिकारी चेतन प्रकाश गलाना बीती 14 फरवरी को 2 दिन की छुट्टी पर दिल्ली से अपने घर कोटा जिले की रामगंज मंडी आए थे. दिल्ली में वह अकेले रहते थे. उन के मातापिता रामगंज मंडी में और पत्नी अनीता 2 छोटे बेटों के साथ झालावाड़ में रहती थी. चेतन आमतौर पर महीने में 1-2 बार छुट्टी पर घर जाते थे. जब भी वह घर आते तो रामगंज मंडी में रहने वाले मातापिता से मिलने जरूर जाते थे. उस दिन भी वह रामगंज मंडी में अपने घर वालों से मिल कर शाम 6 बजे की ट्रेन से झालावाड़ के लिए रवाना हुए थे. उन्हें करीब एक घंटे में झालावाड़ पहुंच जाना चाहिए था. जब रात 8 बजे तक चेतन घर नहीं पहुंचे तो उन की पत्नी अनीता ने अपने रिश्तेदारों को फोन कर के चेतन के बारे में बताया.

अनीता के कहने पर झालावाड़ की गायत्री कालोनी में रहने वाले रिश्तेदार मनमोहन मीणा ने चेतन की तलाश शुरू की. इसी खोजबीन में रात करीब साढ़े 8 बजे चेतन झालरापाटन-भवानी मंडी मार्ग पर रेलवे की रलायता पुलिया के पास बेहोश पड़े मिले. मनमोहन मीणा ने अनीता को चेतन के अचेत पड़े होने की सूचना दी. इस के बाद रिश्तेदार बेहोश चेतन को एआरजी अस्पताल ले गए. जांच के बाद डाक्टरों ने चेतन को मृत घोषित कर दिया.

संदिग्ध मौत का मामला होने की वजह से अस्पताल से पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर शव का निरीक्षण किया, लेकिन शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं मिला. पुलिस ने रलायता पुलिया के पास उस जगह का भी मौका मुआयना किया, जहां चेतन अचेत पड़े मिले थे. लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से पता चलता कि चेतन की मौत कैसे हुई. रिश्तेदारों की सूचना पर रामगंज मंडी से चेतन के मातापिता और अन्य घर वाले भी झालावाड़ गए. पिता को था बेटे की हत्या का संदेह चेतन के पिता महादेव मीणा ने झालावाड़ के थाना सदर में बेटे की संदिग्ध मौत का मामला दर्ज करा दिया. पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 174 में मामला दर्ज कर जांच शुरू की. पुलिस ने 15 फरवरी को चेतन के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम के बाद चेतन का विसरा जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया.

खुफिया अधिकारी की मौत का मामला होने के कारण पुलिस हर एंगल से जांच कर रही थी. इन में 3 मुख्य बिंदु थे, पहला हार्ट अटैक, दूसरा आत्महत्या और तीसरा हत्या. चेतन के शरीर पर चोट या हाथापाई के कोई निशान नहीं मिले थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी ऐसा कुछ नहीं बताया गया, जिस से मौत का रहस्य खुलता. अब पुलिस के सामने सवाल यह था कि चेतन जब ट्रेन से झालावाड़ रहे थे तो वह रलायता पुलिया कैसे पहुंचे और उन की मौत कैसे हुई? पुलिस कई दिनों तक इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करती रही, लेकिन कोई ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारी नहीं मिली, जिस से चेतन की मौत के कारणों का पता चल पाता.

इस बीच, चेतन के पिता महादेव मीणा ने अदालत में इस्तगासा दायर कर दिया. इस्तगासे में कहा गया कि चेतन की सुनियोजित तरीके से हत्या की गई है. इस पर अदालत ने पुलिस को चेतन की हत्या का मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए. तब तक चेतन की हत्या को 3 महीने हो चुके थे. अप्रैल के दूसरे सप्ताह में झालावाड़ के सदर थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ आईबी औफिसर चेतन प्रकाश गलाना की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. एसपी आनंद शर्मा ने चेतन की हत्या के मामले का खुलासा करने के लिए एडीशनल एसपी छगन सिंह राठौड़ के नेतृत्व में सदर थानाप्रभारी संजय मीणा, एएसआई अजीत मोगा, हैडकांस्टेबल मदन गुर्जर, कुंदर राठौड़, महेंद्र सिंह, हेमंत शर्मा और कुछ कांस्टेबलों की टीम गठित की.

पत्नी को किया गिरफ्तार पुलिस की इस टीम ने चेतन प्रकाश की दिनचर्या के बारे में पता लगाया. इस के बाद उन के दोस्तों, परिचितों और दुश्मनी रखने वालों को चिह्नित कर के उन से पूछताछ की. इंटेलीजेंस ब्यूरो के दिल्ली कार्यालय में चेतन प्रकाश के साथी कर्मचारियों से भी पूछताछ की गई. पुलिस टीम ने रामगंज मंडी, झालावाड़ रेलवे स्टेशन और रलायता पुलिया के आसपास घटनास्थल का कई बार दौरा कर के तथ्यों का पता लगाने का प्रयास किया. साइबर टीम ने कई जगह के मोबाइल टावरों का रिकौर्ड निकलवाया. साथ ही चेतन के घरपरिवार की पूरी जानकारी प्राप्त कर के घर वालों से भी पूछताछ की गई.

जांचपड़ताल में यह बात सामने आई कि चेतन के अपनी पत्नी अनीता के साथ संबंध अच्छे नहीं थे. इस के बाद पुलिस ने तकनीकी जांच और मुखबिरों की मदद से चेतन की मौत की कडि़यां जोड़नी शुरू कीं. लंबी चली जांचपड़ताल के बाद 25 जून को पुलिस ने आईबी औफिसर चेतन प्रकाश की हत्या के मामले में उन की पत्नी अनीता को गिरफ्तार कर लिया. अनीता से की गई पूछताछ में चेतन की हत्या की पूरी तसवीर सामने गई. जांच में पता चला कि चेतन की हत्या पुलिस कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों के साथ मिल कर सुनियोजित तरीके से की थी. चेतन की पत्नी अनीता भी पति की हत्या में शामिल थी. कांस्टेबल प्रवीण के चेतन की पत्नी अनीता से अवैध संबंध थे. इन संबंधों को ले कर चेतन का अपनी पत्नी अनीता से कई बार विवाद भी हुआ था. 

चेतन को शक था कि छोटा बेटा उस का नहीं, बल्कि प्रवीण का है. चेतन ने छोटे बेटे का डीएनए टेस्ट कराने की बात कही थी. इस से अनीता और प्रवीण को अपने अवैध संबंधों का राज खुलने का डर था. इसी वजह से उन्होंने चेतन को रास्ते से हटाने का फैसला किया. कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों के सहयोग से चेतन को मौत के घाट उतारने के लिए 5 प्रयास किए थे. 3 बार की असफलता के बाद चौथी बार चेतन को दिल्ली में उन के घर पर मारने की योजना बनाई गई, लेकिन उस में भी कामयाबी नहीं मिली. अंतत: 5वीं बार वे चेतन को मौत की नींद सुलाने में कामयाब हो गए.

कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ पहले झालावाड़ पुलिस की स्पैशल टीम में तैनात था. बाद में वह प्रतिनियुक्ति पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो यानी एसीबी में चला गया. एसीबी में भी वह झालावाड़ में ही तैनात रहा. पुलिस कांस्टेबल होने के कारण प्रवीण को आपराधिक पैंतरों की अच्छी जानकारी थी कि हत्या के मामले को साधारण मौत में कैसे दर्शाया जाए, वह अच्छी तरह जानता था. इस के लिए उस ने चेतन का अपहरण किया और उसे कैटामाइन इंजेक्शन की हैवी डोज दे कर मौत की नींद सुला दिया. कैटामाइन इंजेक्शन प्रतिबंधित नशीली दवा है. यह बाजार में खुले तौर पर नहीं मिलती. कैटामाइन इंजेक्शन अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में ही काम आता है. खास बात यह कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी इस इंजेक्शन के बारे में पता नहीं चल पाता.

पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल के बाद चेतन की हत्या के मामले में उस की पत्नी अनीता के साथसाथ अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया. इन आरोपियों से की गई पूछताछ और पुलिस की जांच में चेतन की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह है. झालावाड़ में मंगलपुरा रोड पर रहने वाले रमेशचंद का बेटा प्रवीण राठौड़ जब पढ़ता था, तभी से अनीता उसे जानती थीबचपन के प्यार ने हिलोरें मारे तो बन गई हत्या की योजनाअनीता भी झालावाड़ में रहती थी. पढ़नेलिखने की उम्र में दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे. सन 2008 में अनीता का चयन अध्यापिका के पद पर हो गया. उसी साल प्रवीण राठौड़ की नौकरी भी राजस्थान पुलिस में लग गई.

सरकारी नौकरी मिल जाने पर प्रवीण का बचपन का प्यार हिलोरें मारने लगा. उस ने अनीता के सामने अपने प्यार का इजहार करते हुए शादी का प्रस्ताव रखा, लेकिन परिस्थितियां ऐसी रहीं कि घर वालों की रजामंदी मिलने से दोनों की शादी नहीं हो सकी. अनीता से शादी हो पाने से प्रवीण की हसरत मन में ही रह गई. अपनी अधूरी हसरतों को मन में लिए प्रवीण पुलिस की नौकरी करता रहा और अनीता सरकारी स्कूल में शिक्षिका की. बाद में जनवरी 2011 में अनीता की शादी चेतन प्रकाश गलाना से हो गई. अनीता सुंदर भी थी और पढ़ीलिखी भी. वह झालावाड़ के पास असनावर गांव के स्कूल में नियुक्त थी. परेशानी यह थी कि चेतन की नियुक्ति दिल्ली में थी और अनीता की घर के पास ही. इसलिए दोनों को अलगअलग रहना पड़ रहा था. उन के बीच झालावाड़ से दिल्ली की लंबी दूरी थी

चेतन छुट्टी मिलने पर 15-20 दिन बाद 1-2 दिन के लिए घर आते थे, तभी वह अनीता से मिल पाते थे. नईनई शादी और इतने दिनों का अंतराल दोनों को बहुत खलता था. लेकिन दोनों की ही अपनीअपनी नौकरी की मजबूरियां थीं. उन का गृहस्थ जीवन ठीकठाक चल रहा था. शादी के कुछ महीने बाद ही अनीता के पैर भारी हो गए. चेतन को पता चला तो वह बहुत खुश हुए. सन 2012 में अनीता ने बेटे को जन्म दिया. पहली संतान के रूप में बेटा पा कर चेतन का पूरा परिवार खुश था. बेटे का नाम क्षितिज रखा गया. क्षितिज समय के साथ बड़ा होने लगा.

इस बीच 2011 में ही प्रवीण राठौड़ की भी शादी हो गई. प्रवीण की पत्नी भी पढ़ीलिखी थी. दिसंबर 2014 में प्रवीण की पत्नी का भी सरकारी अध्यापिका के पद पर चयन हो गया. उस की नियुक्ति भी असनावर के उसी स्कूल में हुई, जहां अनीता नियुक्त थी. प्रवीण कई बार पत्नी को स्कूल छोड़ने या स्कूल से वापस लाने चला जाता था. उसी स्कूल में अनीता भी नियुक्त थी. फलस्वरूप अनीता और प्रवीण की फिर से मुलाकातें होने लगीं. इन मुलाकातों का असर यह हुआ कि उन का बचपन और जवानी का प्यार फिर से अपने पंख फैलाने लगा. जल्दी ही दोनों एकदूसरे के निकट आ गए.

अनीता को डर था कि उसे प्रवीण के साथ देख कर कहीं उस की पत्नी और दूसरे लोग गलत न सोचने लगें, इसलिए अगस्त 2015 में रक्षाबंधन पर अनीता ने प्रवीण को राखी बांधी और पति चेतन प्रकाश से उस का परिचय धर्मभाई के रूप में कराया. मिलने के लिए बनाया नया आशियाना प्रवीण की पत्नी और अनीता के एक ही स्कूल में अध्यापिका के पद पर तैनात होने से चेतन को किसी तरह का कोई संदेह नहीं हुआ. वह पहले की तरह ही अनीता पर भरोसा करते रहे. अपनी नौकरी की वजह से चेतन झालावाड़ में नहीं रह सकते थे. प्रवीण ने चेतन की इस मजबूरी का फायदा उठाया. 

अनीता और प्रवीण की मुलाकातें गुल खिलाने लगीं. उन दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. जनवरी, 2017 के बाद वे लगभग रोजाना ही एकदूसरे से मिलने लगे. उस समय अनीता गायत्री कालोनी, झालावाड़ स्थित अपने मातापिता के घर रह रही थी. जून, 2017 में प्रवीण ने अनीता को झालावाड़ के हाउसिंग बोर्ड में 35 लाख रुपए का नया मकान दिलवा दिया. मकान के पैसे अनीता ने दिए. चर्चा है कि प्रवीण ने अनीता को मकान दिलवाने में दलाली के 10 लाख रुपए खुद रख लिए थे. अनीता हाउसिंग बोर्ड के नए मकान में रहने लगी. प्रवीण इस मकान में बेरोकटोक आनेजाने लगा. वहां उसे रोकने वाला कोई नहीं था. बेटा 5-साढ़े 5 साल का था. चेतन प्रकाश महीने में एकदो बार ही आते थे

कभीकभार चेतन के मातापिता भी बहू के पास जाते थे. वे भी एकदो दिन रुक कर चले जाते थे. प्रवीण ने अनीता से बातें करने के लिए उसे एक मोबाइल और सिम अलग से दिलवा रखी थी, प्रवीण से वह इसी फोन पर बात करती थी. इसी दौरान अनीता गर्भवती हो गई. अकेली रह रही बहू के घर में प्रवीण का बेरोकटोक आनाजाना चेतन के मातापिता को अच्छा नहीं लगता था. उन्होंने प्रवीण को साफ कह दिया कि वह तभी आया करे, जब चेतन घर में हो. उन्होंने यह बात चेतन को भी बताई. चेतन ने भी अनीता को प्रवीण के घर आनेजाने और उस से रिश्ता रखने के लिए मना कर दिया. इस बात को ले कर चेतन और अनीता के बीच झगड़ा होने लगा.

अक्तूबर 2017 में अनीता ने एक निजी अस्पताल में बेटे को जन्म दिया. इस दौरान प्रवीण भी अस्पताल में मौजूद रहा. चेतन और उस के घर वालों को ज्यादा शक तब हुआ, जब प्रवीण ने नवजात के नैपकिन बदले. इस पर चेतन के घर वालों ने प्रवीण को फिर टोका, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. प्रसव के बाद अनीता अपने घर गई. लेकिन प्रवीण को ले कर उन के घर में आए दिन लड़ाईझगड़े होने लगे. रोजाना की कलह के कारण अनीता ने 7 नवंबर, 2017 को आत्महत्या करने का प्रयास किया, लेकिन उसे बचा लिया गया. अनीता के घर में होने वाली कलह को ले कर चेतन प्रवीण की आंखों में खटकने लगे. फलस्वरूप उस ने चेतन को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. प्रवीण की दोस्ती वाहनों की खरीदफरोख्त करने और आरटीओ एजेंट का काम करने वाले शाहरुख से थी. शाहरुख झालावाड़ के तोपखाना मोहल्ले का रहने वाला था

प्रवीण ने दिसंबर 2017 में शाहरुख को बताया कि उस की रिश्ते की बहन को उस का पति मारतापीटता है. वह दिल्ली में कंप्यूटर पर काम करता है, उस की हत्या करनी है. इस के लिए प्रवीण ने शाहरुख को 3 लाख रुपए की सुपारी दी. प्रवीण ने शाहरुख को चेतन की शक्ल भी दिखा दी. शाहरुख ने चेतन की हत्या की जिम्मेदारी ले कर इस काम के लिए अपने कुछ साथियों को शामिल कर लिया. 4 बार हत्या के प्रयास रहे विफल प्रवीण और शाहरुख ने चेतन की हत्या के प्रयास शुरू कर दिए. प्रवीण ने अनीता के जरिए पता कर लिया था कि 25 दिसंबर, 2017 को चेतन छुट्टी बिता कर ट्रेन से दिल्ली जाएंगे. यह जान कर हत्यारों ने ट्रेन में चेतन का पीछा किया, लेकिन सर्दी का मौसम होने के कारण चेतन ने मुंह पर मफलर लपेट रखा था, जिस से वे उन्हें पहचान नहीं पाए और दिल्ली जा कर वापस लौट आए

इस के बाद 4 जनवरी, 2018 को चेतन छुट्टी ले कर झालावाड़ आए तो उन्हें ट्रक से कुचल कर मारने की योजना बनाई गई. इस के लिए बदमाशों ने झालावाड़ा के नला मोहल्ला निवासी ट्रक चालक शाकिर को 20 हजार रुपए दिए थे. योजना के मुताबिक शाकिर को प्रवीण राठौड़ द्वारा उपलब्ध कराए गए ट्रक से चेतन की स्कूटी को रामगंज मंडी से झालावाड़ आते समय रास्ते में टक्कर मारनी थी, लेकिन उस दिन ट्रक पीछे ही रह गया जबकि स्कूटी आगे निकल गई. यह प्रयास विफल होने पर तय किया गया कि 5 जनवरी को चेतन जब झालावाड़ से स्कूटी से रामगंज मंडी जाएंगे, तब उन्हें ट्रक से टक्कर मार कर कुचल दिया जाएगा. 

उस दिन शाकिर ने पीछा कर के झरनिया घाटी के पास ट्रक से स्कूटी को टक्कर मार कर चेतन को कुचलने का प्रयास किया, लेकिन इस हादसे में चेतन गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद बच गए, अलबत्ता उन की स्कूटी जरूर क्षतिग्रस्त हो गई थी. 3 प्रयास विफल होने पर चेतन को दिल्ली में उन के घर में मारने की योजना बनाई गई. इस योजना के तहत झालावाड़ से आए बदमाश दिल्ली की निरंकारी कालोनी गुरु तेगबहादुर नगर स्थित चेतन के मकान पर पहुंच गए, लेकिन वहां पर कैमरे लगे होने के कारण वे वारदात को अंजाम दिए बगैर झालावाड़ वापस लौट आए.

प्रवीण को अनीता से चेतन प्रकाश के आने और जाने की सारी जानकारियां मिलती रहती थीं. अंतिम बार भी प्रवीण को पता चल गया था कि चेतन 14 फरवरी की शाम को ट्रेन से रामगंज मंडी से झालावाड़ आएंगे. उस दिन पुलिस कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों शाहरुख, फरहान और एक नाबालिग किशोर के साथ मिल कर योजना बना ली. योजना के अनुसार चेतन का झालावाड़ रेलवे स्टेशन से अपहरण करना था, फिर उन्हें कैटामाइन इंजेक्शन की हैवी डोज दे कर मौत की नींद सुलानी थी.

योजना को ऐसे दिया अंजाम योजना के तहत नाबालिग किशोर शाहरुख को बाइक से सुकेत छोड़ आया. सुकेत से शाहरुख रामगंज मंडी पहुंचा और ट्रेन से ही चेतन का पीछा करने लगा. ट्रेन के पहुंचने से कुछ समय पहले ही उस ने मोबाइल पर प्रवीण को झालावाड़ पहुंचने के बारे में बता दिया था. इस पर प्रवीण अपनी कार में फरहान और नाबालिग किशोर को साथ ले कर रेलवे स्टेशन पहुंच गया. स्टेशन पर उन्हें शाहरुख मिल गयाचेतन स्टेशन से पैदल घर जा रहे थे. हाउसिंग बोर्ड के सुनसान रास्ते में चेतन को रोक कर प्रवीण ने अपने तीनों साथियों की मदद से जबरन कार की पीछे वाली सीट पर बैठा लिया. वे लोग चेतन को कार से आकाशवाणी के पीछे की तरफ हल्दीघाटी रोड पर ले गए. वहां प्रवीण और चेतन की अनीता को ले कर नोकझोंक हुई.

प्रवीण ने कहा कि तुम अपनी प्रौपर्टी अनीता के नाम क्यों नहीं करते. उस ने यह भी कहा कि तुम यह क्यों कहते हो कि छोटा बेटा मेरा है. इस पर चेतन ने कहा कि छोटा लड़का तो तुम्हारा ही है. चेतन के यह कहते ही प्रवीण ने अपने साथियों को इशारा किया. उन्होंने चेतन के दोनों हाथ पकड़ लिएप्रवीण ने जेब से कैटामाइन के इंजेक्शन निकाले और सिरिंज में हैवी डोज भर कर चेतन की दोनों जांघों में लगा दी. इस के बाद उस ने चेतन की नाक भी दबा दी. इंजेक्शन लगने और नाक दबाए जाने से कुछ ही मिनटों में उन के प्राण निकल गए.

चेतन को मौत की नींद सुलाने के बाद प्रवीण ने उन की जेब से मोबाइल निकाला और पुलिस को गुमराह करने के लिए अनीता को मैसेज किया कि वह औटोरिक्शा से पाटन हो कर घर आ रहे हैं. इस के बाद प्रवीण और उस के साथी चेतन का शव रलायता पुलिया के पास फेंक कर वापस चले गए. रलायता रेलवे पुलिया के पास चेतन के अचेत पड़े मिलने की कहानी आप शुरू में पढ़ चुके हैं. एडीशनल एसपी छगन सिंह राठौड़ के नेतृत्व में पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल की तो सब से पहले पुलिस शाहरुख तक पहुंची. पुलिस ने उसे 20 जून को गिरफ्तार कर लिया. शाहरुख से पूछताछ में चेतन की हत्या का राज खुल गया. दूसरे ही दिन 21 जून को पुलिस ने उस ट्रक चालक शाकिर को भी गिरफ्तार कर लिया, जिस ने 5 जनवरी को चेतन को ट्रक से कुचलने का प्रयास किया था.

22 जून को पुलिस ने एक निजी अस्पताल के औपरेशन थिएटर इंचार्ज संतोष निर्मल को गिरफ्तार कर लिया. वह पहले अस्थाई रूप से राजकीय हीराकुंवर महिला अस्पताल और एक अन्य निजी अस्पताल में मेल नर्स का काम कर चुका था. उसे औपरेशन प्रक्रिया में काम आने वाली निश्चेतक दवाओं की अच्छी जानकारी थी. कांस्टेबल प्रवीण के साथ जिम जाने और क्रिकेट खेलने की वजह से दोनों में दोस्ती थी. प्रवीण ने पिछले साल 31 दिसंबर को रेव पार्टी में नशा करने के लिए संतोष निर्मल से कैटामाइन इंजेक्शन मांगा था. संतोष ने दोस्ती के नाम पर उसे अस्पताल के औपरेशन थिएटर के स्टोर से चोरी कर के 500 मिलीग्राम के 2 इंजेक्शन दे दिए थे. ये इंजेक्शन प्रवीण ने संभाल कर रखे और चेतन की हत्या के लिए इन का उपयोग किया. इस इंजेक्शन के सबूत फोरैंसिक जांच में भी नहीं मिलते हैं.

परत दर परत खुलते गए राज इस के बाद पुलिस ने 24 जून को चेतन की हत्या में शामिल एक नाबालिग किशोर को पकड़ा. उस से वारदात में इस्तेमाल की गई बाइक और मोबाइल बरामद किए गए. यह किशोर शाहरुख की आरटीओ एजेंट की दुकान पर काम करता था. चालाक कांस्टेबल प्रवीण ने वारदात के दिन खुद का मोबाइल साथ नहीं रखा था. उस ने शाहरुख से बात करने के लिए उस किशोर के मोबाइल का उपयोग किया था. यह किशोर चेतन की हत्या की योजना में 25 दिसंबर से 14 फरवरी तक शामिल रहा. शाहरुख पहले इस किशोर को 50 रुपए रोजाना देता था, लेकिन चेतन की हत्या के बाद उसे डेढ़ सौ रुपए रोजाना देने लगा था. पुलिस ने इस किशोर को मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर के बाल सुधार गृह भेज दिया.

चेतन की हत्या में पत्नी अनीता की भूमिका सामने आने पर पुलिस ने 25 जून को उसे भी गिरफ्तार कर लिया. चेतन को दिल्ली से कब किस ट्रेन से आनाजाना है और दिल्ली में उस का पताठिकाना कहां है, प्रवीण को यह जानकारी अनीता ने ही दी थी. झालावाड़ से रामगंज मंडी आनेजाने की जानकारी भी अनीता ने ही प्रवीण को दी थीपुलिस ने अनीता के मोबाइल की जांच की तो उस में चेतन और अनीता के तनावपूर्ण दांपत्य जीवन के बारे में कई वाट्सऐप मैसेज मिले. प्रवीण के कहने पर अनीता ने मोबाइल फौरमेट करवा कर पूरा डेटा नष्ट कर दिया था. चेतन की हत्या के बाद प्रवीण ने अनीता को दी हुई सिम भी वापस ले ली थी.

अनीता से पूछताछ में पता चला कि प्रवीण उस के प्यार में इतना डूब गया था कि चेतन से बेइंतहा नफरत करने लगा था. वह नहीं चाहता था कि अनीता किसी और से बात करे या संबंध रखे. उस ने अनीता से कह कर उस के पति के साथ फेसबुक पर पोस्ट किए हुए फोटो भी हटवा दिए थे. वह अनीता से कहता था कि अगर उस ने उस का साथ नहीं दिया तो वह आत्महत्या कर लेगा. ऐसे में अनीता सहीगलत का फैसला नहीं कर पाती थी और प्रवीण के कहे मुताबिक उस का साथ देती थी. चेतन की हत्या के बाद भी अनीता व प्रवीण के संबंध पहले जैसे ही बने रहे. प्रवीण उसे कहता रहा कि पोस्टमार्टम और विसरा की जांच में कुछ नहीं आएगा. इस दौरान दोनों ने कुछ कानूनविदों से भी मशविरा किया था.

अनीता ने पुलिस को बताया कि उस के पति चेतन को छोटे बेटे रिवान पर शक था कि वह उस की पैदाइश नहीं है. इस बात पर घर में कई बार लड़ाई हुई. इस पर चेतन व उस के परिजनों ने बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की बात कही थी. इस से अनीता व प्रवीण के अवैध संबंधों का राज खुलने का डर था, इसलिए उन्होंने चेतन को रास्ते से हटाने का फैसला किया. पुलिस ने 28 जून को झालावाड़ निवासी फरहान को भी गिरफ्तार कर लिया. वह वारदात के बाद से फरार चल रहा था. फरहान भी चेतन की हत्या के मामले में प्रवीण व शाहरुख के साथ था. बहुत कुछ खोया अनीता और प्रवीण ने जांच में प्रवीण के अलावा झालावाड़ के 2 अन्य पुलिस कांस्टेबलों पर भी शक की सुई घूमती रही. ये दोनों प्रवीण के करीबी थे और चेतन की हत्या में इन की भूमिका संदिग्ध थी.

इस पर एसपी आनंद शर्मा ने दोनों कांस्टेबलों रवि दुबे और आवेश मोहम्मद को 28 जून को निलंबित कर दिया. ये दोनों कांस्टेबल पुलिस की गोपनीय शाखा में कार्यरत थे. प्रवीण भी एसीबी में प्रतिनियुक्ति से पहले इसी शाखा में रहा था, इसलिए दोनों उस के करीबी थे. इन दोनों कांस्टेबलों के खिलाफ जांच की जा रही है. कथा लिखे जाने तक पुलिस चेतन की हत्या के मुख्य सूत्रधार कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ की तलाश में जुटी थी. वह 14 जून को सरकारी काम से अजमेर जाने की बात कह कर फरार हो गया था. हत्या के मामले में आरोपी होने पर एसीबी ने उस की प्रतिनियुक्ति समाप्त कर दी. एसपी ने एक जुलाई को उसे निलंबित कर दिया था. पुलिस ने सरकारी अध्यापिका अनीता के दुराचरण की रिपोर्ट शिक्षा विभाग को भेज कर विभागीय काररवाई के लिए भी लिख दिया है. चेतन की हत्या में गिरफ्तार आरोपियों को रिमांड अवधि पूरी होने पर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपी जेल में थे.

यह अनीता का त्रियाचरित्र ही था कि उस ने अपनी हंसतीखेलती दुनिया अपने ही हाथों से उजाड़ ली. चेतन की मौत से महादेव के बुढ़ापे की लाठी टूट गई. चेतन प्रकाश के 6 साल के बड़े बेटे क्षितिज के सिर से पिता का साया उठ गया. 8 महीने का छोटा बेटा रिवान भी मां के साथ जेल में हैविद्यार्थियों को अच्छा नागरिक बनने की सीख देने वाली अनीता के हाथ पति के खून से रंगे होते तो वह जल्दी ही स्कूल की प्रिंसिपल की कुरसी पर बैठी होती, क्योंकि उस की पदोन्नति हो गई थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

   

दोस्त के साथ मिलकर रेता पत्नी का गला

घर वालों के दबाव में प्रमोद ने अर्चना से शादी तो कर ली. लेकिन वह अपनी पहली प्रेमिका सरिता को कभी भुला नहीं सका. यही वजह थी कि उस ने सरिता के लिए अर्चना की जिंदगी का सूर्य अस्त कर दिया.   उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के थाना गजरौला कलां का संतरी बरामदे में खड़ा इधरउधर ताक रहा था. उसी समय एक युवक तेजी से आया और थानाप्रभारी भुवनेश गौतम के औफिस में घुसने लगा तो उस ने टोका, ‘‘बिना पूछे कहां घुसे जा रहे हो भाई?’’

युवक रुक गया. वह काफी घबराया हुआ लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘साहब से मिलना है, मेरी पत्नी को बदमाश उठा ले गए हैं.’’

‘‘तुम यहीं रुको, मैं साहब से पूछता हूं, उस के बाद अंदर जाना.’’ कह कर संतरी थानाप्रभारी के औफिस में घुसा और पल भर में ही वापस कर बोला, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

संतरी के अंदर जाने के लिए कहते ही युवक तेजी से थानाप्रभारी के औफिस में घुस गया. अंदर पहुंच कर बिना कोई औपचारिकता निभाए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं लालपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा नाम प्रमोद है. मैं अपनी पत्नी को विदा करा कर घर जा रहा था. गांव से लगभग 2 किलोमीटर पहले कुछ लोग बोलेरो जीप से आए और मेरी पत्नी को उसी में बैठा कर ले कर चले गए.’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने प्रमोद को ध्यान से देखा. उस के बाद मुंशी को बुला कर उस की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा. मुंशी ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रमोद ने थानाप्रभारी के औफिस में कर कहा, ‘‘साहब, अब मैं जाऊं?’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने उसे एक बार फिर ध्यान से देखा. प्रमोद ने उन से एक बार भी नहीं कहा था कि वह उस की पत्नी को तुरंत बरामद कराएं. उस के चेहरे के हावभाव से भी नहीं लग रहा था कि उसे पत्नी के अपहरण का जरा भी दुख है. उन्होंने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम हमें वह जगह नहीं दिखाओगे, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है? अपहर्त्ता जिस बोलेरो जीप से तुम्हारी पत्नी को ले गए हैं, उस का नंबर तो तुम ने देखा ही होगा. वह नंबर नहीं बताओगे?’’

थानाप्रभारी की बातें सुन कर प्रमोद के चेहरे के भाव बदल गए. वह एकदम से घबरा सा गया. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं गाड़ी का नंबर नहीं देख पाया था. यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ था कि गाड़ी का नंबर देखने की कौन कहे, मैं तो यह भी नहीं देख पाया कि अपहर्त्ता कितने थे.’’

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हारे साथ चल कर वह जगह देखते हैं, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है. तुम घबराओ मत, हम नंबर और अपहर्त्ताओं के बारे में भी पता कर लेंगे.’’ कह कर थानाप्रभारी ने गाड़ी निकलवाई और सिपाहियों के साथ प्रमोद को भी गाड़ी में बैठा कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. सिपाहियों के साथ बैठा प्रमोद काफी परेशान सा लग रहा था. जिस की पत्नी का अपहरण हो जाएगा, वह परेशान तो होगा ही, लेकिन उस की परेशानी उस से हट कर लग रही थी. थानाप्रभारी जब गांव के मोड़ पर पहुंचे तो प्रमोद ने कहा, ‘‘साहब, मुझे तो अब याद ही नहीं कि अपहरण कहां से हुआ था? मैं तो पत्नी के साथ पैदल ही जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से मैं वह जगह ठीक से पहचान नहीं सका.’’

‘‘तुम ने शोर मचाया था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, शोर मचाने का मौका ही कहां मिला. वह आंधी की तरह आए और मेरी पत्नी को जीप में जबरदस्ती बैठा कर ले गए.’’ प्रमोद ने कहा. थानाप्रभारी को प्रमोद की इस बात से लगा कि मामला अपहरण का नहीं, कुछ और ही है. पूछने पर प्रमोद यह भी नहीं बता रहा था कि उस की ससुराल कहां है. संदेह हुआ तो उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘सचसच बता, क्या बात है?’’ प्रमोद कांपने लगा. थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने उसे जीप में बैठाया और थाने गए. थाने ला कर उन्होंने उस से पूछताछ शुरू की. शुरूशुरू में तो प्रमोद ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि पुलिस अब सख्त होने वाली है तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, अपने दोस्त मुकेश के साथ मिल कर मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है और लाश एक गन्ने के खेत में छिपा दी है.’’

रात में तो कुछ हो नहीं सकता था, इसलिए पुलिस सुबह होने का इंतजार करने लगी. सुबहसुबह पुलिस लालपुर पहुंची तो गांव वाले हैरान रह गए. उन्हें लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. जब प्रमोद ने गन्ने के खेत से लाश बरामद कराई तो लोगों को पता चला कि प्रमोद ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. थोड़ी ही देर में वहां भीड़ लग गई. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 20 साल के करीब थी. वह साड़ीब्लाउज पहने थी. गले पर दबाने का निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा था. गांव वालों से जब प्रमोद के घर वालों को पता चला कि प्रमोद ने अर्चना की हत्या कर दी है तो वे भी हैरान रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्रमोद ऐसा भी कर सकता है. लेकिन जब वे घटनास्थल पर पहुंचे तो अर्चना की लाश देख कर सन्न रह गए. पुलिस ने मृतका अर्चना के पिता डालचंद को भी फोन द्वारा सूचना दे दी थी कि उन की बेटी अर्चना की हत्या हो चुकी है

इस सूचना से डालचंद और उन की पत्नी शारदा हैरान रह गए थे. उन की समझ में नहीं रहा था कि यह सब कैसे हो गया. कल शाम को ही तो उन्होंने बेटी को विदा किया था. उस समय तो सब ठीकठाक लगा था. रास्ते में ऐसा क्या हो गया कि अच्छीभली बेटी की हत्या हो गई. डालचंद ने सिर पीट लिया. उन के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘किस ने मेरी बेटी को मार दिया? उस ने आखिर किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘हमारी बेटी को किसी और ने नहीं, प्रमोद ने ही मारा है.’’ रोते हुए शारदा ने कहा.

पत्नी की इस बात से डालचंद हैरान रह गया, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम्हें पता नहीं है. दामाद का गांव की ही किसी लड़की से चक्कर चल रहा था. उसी की वजह से उस ने मेरी बेटी को मार डाला है.’’ शारदा ने कहा. पत्नी भले ही कह रही थी कि अर्चना की हत्या प्रमोद ने की है, लेकिन डालचंद को विश्वास नहीं हो रहा था. सूचना पाने के बाद डालचंद परिवार के कुछ लोगों के साथ थाना गजरौला कलां जा पहुंचा. अर्चना की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था. थानाप्रभारी ने जब उसे बताया कि अर्चना की हत्या उस के दामाद प्रमोद ने ही की है, तब कहीं जा कर उसे विश्वास हुआ. पूछताछ में शारदा ने बताया कि अर्चना ने उन से बताया था कि प्रमोद का गांव की ही किसी लड़की से प्रेमसंबंध है.

लेकिन उस ने बेटी की इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे लगा कि हो सकता है शादी के पहले रहे होंगे. शादी के बाद संबंध खत्म हो जाएंगे. उसे क्या पता कि उसी संबंध की वजह से प्रमोद उस की बेटी को मार डालेगा. पुलिस ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस के साथी मुकेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. प्रमोद और मुकेश के बयान से अर्चना की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस के अनुसार, निर्दोष अर्चना पति प्रमोद के प्रेमसंबंधों की भेंट चढ़ गई थी. हाईस्कूल पास करने के बाद प्रमोद ने पढ़ाई छोड़ दी थी. घर के कामों से वह कोई मतलब नहीं रखता था, इसलिए दिन भर गांव में घूमघूम कर अड्डेबाजी करता रहता था. अड्डेबाजी करने में ही उस की नजर गांव की सरिता पर पड़ी तो उस पर उस का दिल गया. फिर तो वह उस के पीछे पड़ गया. उस की मेहनत रंग लाई और सरिता का झुकाव भी उस की ओर हो गया. दोनों ही एकदूसरे को प्यार करने लगे. लेकिन इस में परेशानी यह थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी.

सरिता पढ़ रही थी, जबकि प्रमोद पढ़ाई छोड़ चुका था. उस का पिता के साथ खेतों में काम करने में मन भी नहीं लग रहा था, ही उसे कोई ठीकठाक नौकरी मिल रही थी. उसी बीच वह सरिता में रम गया तो उस का पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित हो गया. वह अपने भविष्य की चिंता करने के बजाय सरिता को सुनहरे सपने दिखाने लगा. इसी के साथ अन्य प्रेमियों की तरह साथ जीनेमरने की कसमें भी खाता रहा. लेकिन प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उस के पास तो कोई व्यवस्था थी, ही समाज उस के साथ था. सरिता और प्रमोद का मिलनाजुलना लोगों की नजरों में आया तो गांव में उन्हें ले कर चर्चा होने लगी. ऐसे में सरिता को डर सताने लगा कि उस के प्यार का क्या होगा? क्योंकि अब तक उसे लगने लगा था कि वह प्रमोद के बिना जी नहीं पाएगी. वह यह भी जानती थी कि उस का बाप किसी भी कीमत पर इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा, वह उस के साथ मनमरजी से भी शादी नहीं कर सकती थी, क्योंकि तो प्रमोद ज्यादा पढ़ालिखा था, ही वह कोई कामधाम कर रहा था. ऐसे लड़के को कौन अपनी लड़की देना चाहेगा?

यह बात सरिता प्रमोद से कहती तो वह उसे आश्वस्त करते हुए कहता, ‘‘तुम्हें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाऊंगा. लेकिन हर हालत में तुम्हें हासिल कर के रहूंगा.’’ प्रमोद सरिता को कितना भी आश्वस्त करता, लेकिन वह हर वक्त तनाव में रहती. उस के लिए परेशानी यह थी कि वह प्रमोद को छोड़ भी नहीं सकती थी, क्योंकि उस का दिल इस के लिए तैयार नहीं था. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने प्रमोद से कहा कि वह कोई नौकरी कर ले, जिस से अगर घर छोड़ कर भागना पड़े तो गृहस्थी बसाने के लिए उस के पास कुछ पैसे तो हों. लेकिन तो केवल हाईस्कूल पास था. इतने पढ़े पर भला उसे कौन सी नौकरी मिल सकती थी.

प्रमोद और सरिता जीवन के रंगीन सपने तो देख रहे थे, लेकिन उन के इन सपनों का कोई भविष्य नहीं था. गांव में प्रमोद और सरिता के प्रेमसंबंधों की चर्चा हो और उन के घर वालों को पता चले, भला ऐसा कैसे हो सकता था. सरिता के पिता जीवनराम को भी किसी ने इस बारे में बता दिया. एक तो इज्जत की बात थी, दूसरे जीवनराम की नजरों में प्रमोद ठीक लड़का नहीं था. इसलिए वह परेशान हो उठा. घर जा कर पहले तो उस ने पत्नी को डांटा कि वह जवान हो रही बेटी का ध्यान नहीं रखती. उस के बाद सरिता को बुला कर पूछा ‘‘यह प्रमोद के साथ तेरा क्या चक्कर है? वह आवारा तेरा कौन है, जो तू उस से मिलतीजुलती है.’’

बाप की इन बातों से सरिता कांप उठी. वह जान गई कि पिता को उस के संबंधों की जानकारी हो गई है. वह उन के सामने सीधेसीधे तो अपने और प्रमोद के संबंधों को स्वीकार नहीं कर सकती थी, इसलिए उस ने कहा, ‘‘पापा, प्रमोद से मेरा कोई संबंध नहीं है. कभीकभार स्कूल आतेजाते रास्ते में मिल जाता है तो पढ़ाई के बारे में पूछ लेता है.’’ जीवनराम जानता था कि बेटी झूठ बोल रही है. जवान बेटी से ज्यादा कुछ कहा भी नहीं जा सकता था. फिर उन्हें यह भी पता नहीं था कि बात कहां तक पहुंची है, इसलिए उन्होंने सरिता को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हें इसलिए पढ़ा रहे हैं कि तुम्हारी जिंदगी बन जाए, लेकिन अगर मुझे कुछ ऐसावैसा सुनने को मिलेगा तो मैं तुम्हारी पढ़ाई छुड़ा कर शादी कर दूंगा.’’

‘‘पापा, आप बिलकुल चिंता करें. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कोई परेशानी हो.’’

सरिता के इस आश्वासन पर जीवनराम को थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन वह निश्चिंत नहीं हुए. उन्होंने पत्नी से तो सरिता पर नजर रखने के लिए कहा ही, खुद भी उस पर नजर रखते थे. जब उन्हें लगा कि इस तरह बात नहीं बनेगी तो एक दिन वह प्रमोद के बाप से मिल कर उस की शिकायत करते हुए बोले, ‘‘प्रमोद सरिता का पीछा करता है. यह अच्छी बात नहीं है. आप उसे रोकें.’’ प्रमोद का बाप वैसे ही बेटे की आवारगी से परेशान था. जब उसे इस बात की जानकारी हुई तो वह बेचैन हो उठा, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कोई ऐसी स्थिति आए कि उसे मुंह छिपाना पड़े. इसलिए जीवनराम के जाते ही उस ने प्रमोद को बुला कर पूछा, ‘‘जीवनराम शिकायत ले कर आया था, सरिता से तुम्हारा क्या चक्कर है?’’

प्रमोद साफ मुकर गया. लेकिन उस का बाप अपने आवारा बेटे के बारे में जानता था, इसलिए उसे डांटफटकार कर कहा, ‘‘प्रमोद, बेहतर होगा कि तुम कोई कामधाम करो, वरना हमारा घर छोड़ दो. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी करतूतों की वजह से गांव में मेरा सिर नीचा हो.’’ प्रमोद सिर झुकाए बाप की बातें सुनता रहा. उस ने सोचा, सरिता भी कोई कामधाम करने के लिए कह रही थी. अब बाप भी घर से भगा रहा है. इसलिए अब कुछ कर लेना ही ठीक है. बाप किसी बिजनैस के लिए पैसे दे नहीं सकता था, इसलिए उस ने दिल्ली जाने का मन बना लिया. उस का एक दोस्त सुरेश दिल्ली में पहले से ही रहता था. उस ने उस से बात की और दिल्ली आ गया.

प्रमोद का विचार था कि वह काम कर के खुद को इस काबिल बनाएगा कि कोई उस का विरोध नहीं कर सकेगा. दिल्ली में सुरेश ने उसे एक जींस बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी दिला दी थी. काम भी बढि़या था और पैसे भी ठीकठाक मिल रहे थे, लेकिन कुछ ही दिनों में प्रमोद को सरिता की याद सताने लगी तो वह नौकरी छोड़ कर गांव चला गया. उस के बाहर जाने से जहां जीवनराम ने राहत की सांस ली थी, वहीं वापस आने से उस की चिंता फिर बढ़ गई थी. उसी दौरान उन्होंने सरिता को देर रात प्रमोद से मोबाइल फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो उसे लगा कि अब वह बेटी को प्रमोद से अलग नहीं कर पाएगा, क्योंकि वह सरिता के साथ मारपीट, डांटफटकार कर के हार चुका था. सरिता प्रमोद को छोड़ने को तैयार नहीं थी. हद तो तब हो गई, जब सरिता ने मां से साफ कह दिया, ‘‘मां, आखिर प्रमोद में बुराई ही क्या है, हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. आप लोगों को मेरी शादी कहीं न कहीं तो करनी ही है, उसी से कर दीजिए.’’

बेटी की बात सुन कर मां हैरान रह गई थी. बेटी के इसी इरादे से जीवनराम चिंतित था. उस ने देखा कि अब वह खुद कुछ नहीं कर सकता तो उस ने पंचायत बुलाई. पंचायत ने सलाह दी कि इस झंझट से बचने का एक ही तरीका है कि दोनों ही अपनेअपने बच्चों की शादी जल्द से जल्द कर दें. पंचायत ने प्रमोद से साफसाफ कह दिया था कि अगर उस ने कोई उल्टीसीधी हरकत की तो उसे गांव से निकाल दिया जाएगए. प्रमोद की समझ में नहीं रहा था कि वह क्या करे. सरिता का स्कूल जाना बंद करा दिया गया था. उसे घर से बिलकुल नहीं निकलने दिया जा रहा था. उन्हीं दिनों डालचंद अपनी बेटी अर्चना की शादी के लिए प्रमोद के घर पहुंचे तो प्रमोद के बाप छदामीलाल ने तुरंत यह रिश्ता स्वीकार कर लिया. इस के बाद 14 जून, 2013 को अर्चना और प्रमोद की शादी हो गई.

अर्चना ससुराल आई तो सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया. इस से अर्चना बहुत खुश हुई. लेकिन पहली रात को प्रमोद ने उस के साथ जो व्यवहार किया, वह उसे कुछ अजीब सा लगा था. एक पति पहली रात जिस तरह पत्नी से प्यार करता है, वैसा प्रमोद के प्यार में नजर नहीं आया था. अर्चना सप्ताह भर ससुराल में रही. इस बीच प्रमोद के बातव्यवहार से अर्चना ने अंदाजा लगा लिया कि पति उसे पसंद नहीं करता. लेकिन मायके आने पर यह बात उस ने किसी से नहीं कही क्योंकि अगर वह यह बात मायके में किसी से बताती तो वे काफी परेशान होते.

कुछ दिनों बाद अर्चना फिर ससुराल गई. पति का व्यवहार संतोषजनक नहीं था, इसलिए अर्चना परेशान रहने लगी थी. उस ने यह भी देखा कि प्रमोद दिनभर मटरगश्ती करता रहता है. घर का एक काम नहीं करता. पति की बेजा हरकतों से उस से रहा नहीं गया तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘तुम दिनभर इधरउधर घूमा करते हो, पापा के साथ खेतों पर काम क्यों नहीं करते?’’

‘‘मुझ से खेती के काम नहीं होते.’’ प्रमोद ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर कोई दूसरा काम करो. इस तरह आवारा की तरह घूमना ठीक नहीं है.’’ अर्चना ने कहा

पत्नी की इस सलाह पर प्रमोद को गुस्सा गया. उस ने उसे डांट कर कहा, ‘‘तू अपने काम से काम रख. मैं क्या करूं, यह मुझे तू बताएगी?’’

‘‘तुम्हारी स्थिति से तो यही लगता है कि तुम कोई कामधंधा करने वाले नहीं. पापा से तो तुम्हारे घर वालों ने बताया था कि तुम दिल्ली में नौकरी करते हो. शादी के बाद तुम मुझे दिल्ली ले जाओगे. लेकिन मैं देख रही हूं कि आवारागर्दी करने के अलावा तुम्हारे पास कोई काम नहीं है.’’ अर्चना ने गुस्से में बोली. प्रमोद ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम ने अपनी शक्ल देखी है. तुम जैसी गंवार लड़की दिल्ली में रहेगी तो यहां गांव में चूल्हाचौका कौन करेगा?’’

‘‘अगर मैं गंवार थी तो मुझ से शादी ही क्यों की.’’ अर्चना ने कहा.

‘‘बहुत हो गया, अब चुप रह. मैं फालतू की बकवास सुनना नहीं चाहता.’’

अर्चना को लगा कि कुछ ऐसा है जिस की जानकारी उसे नहीं है. लेकिन जल्दी ही उसे उस की भी जानकारी हो गई. उस ने प्रमोद के पर्स में सरिता के साथ उस की फोटो देख ली. उस ने तुरंत वह फोटो प्रमोद के सामने रख कर पूछा, ‘‘तुम्हारे साथ यह किस की फोटो है?’’ जवाब देने के बजाय प्रमोद उस के गाल पर जोरदार तमाचा मार कर बोला, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा पर्स छूने की?’’

अर्चना तड़प कर बोली, ‘‘आज तो मार दिया, लेकिन फिर कभी ऐसी गलती मत करना, वरना जिंदगीभर पछताओगे. सब के सामने मैं विवाह कर के आई हूं. इसलिए तुम पर मेरा पूरा हक है. मेरे रहते यह सब नहीं चलेगा.’’

प्रमोद चुपचाप घर से निकल गया. अर्चना जान गई कि उस के पति के जीवन में उस के अलावा भी कोई है. यह उस के लिए चिंता की बात थी. अभी उस के हाथ की मेहंदी भी नहीं छूटी थी कि उसे पता चल गया कि उसे बचाखुचा प्यार मिल रहा है. अगर यह संबंध इसी तरह चलते रहे तो अर्चना का जीवन नरक हो जाता, इसलिए रात में प्रमोद आया तो उस ने साफसाफ कह दिया, ‘‘शादी से पहले तुम्हारी जिंदगी में जो भी रही हो, मुझ से कोई मतलब नहीं है. लेकिन शादी के बाद यह सब नहीं चलेगा. मैं तुम्हारे प्रति समर्पित हूं तो तुम्हें भी मेरे प्रति समर्पित होना पड़ेगा.’’

‘‘अगर मैं समर्पित हो सका तो…?’’

…तो इस का भी इलाज है, मुझे कानून का सहारा लेना होगा.’’ अर्चना ने कहा. प्रमोद सन्न रह गया. जिसे वह सीधीसादी गंवार समझता था, वह तो उस से भी तेज निकली. अर्चना ने उसी समय अपने बाप को फोन कर के कह दिया कि वह मायके आना चाहती है. प्रमोद को लगा कि अर्चना से उस की शादी गले की हड्डी बन रही है. उस ने घर वालों के दबाव में यह शादी की थी. उस ने सोचा था कि पत्नी को जैसे चाहेगा, रखेगा, लेकिन यह तो उस के लिए मुसीबत बन रही है. अब वह इस मुसीबत से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो वह अपने दोस्त मुकेश से मिला और उस से पूरी बात बता कर कहा, ‘‘यार! मैं किसी भी तरह इस अर्चना नाम की मुसीबत से छुटकारा चाहता हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मुकेश ने पूछा.

‘‘मतलब यह कि जीतेजी तो उस से छुटकारा मिल नहीं सकता. ठिकाने लगाने के बाद ही शुकून मिल सकता है. और इस काम में तुम्हें मेरा साथ देना होगा.’’ प्रमोद ने कहा. इस के बाद दोनों कई दिनों तक योजनाएं बनाते रहे. आखिर में जब योजना फाइनल हो गई तो दोनों मौके की तलाश करने लगे. अर्चना को घर में तो मारा नहीं जा सकता था, क्योंकि घर में प्रमोद उसे मारता तो सीधे आरोप उसी पर लगता. यानी उस का फंसना तय था. इसलिए वह उसे घर के बाहर ही मारना चहाता था. उस ने ससुर को फोन किया कि पत्नी को विदा कराने रहा है.

अर्चना इस बार पिता के साथ मायके पहुंची थी तो उस ने मां से प्रमोद के गांव की किसी लड़की से संबंध होने की बात बता दी थी. बेटी की बात सुन कर शारदा स्तब्ध रह गई थी. कुछ महीने पहले ही तो उस ने बेटी की शादी की थी. अभी तो बेटी की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस ने बेटी को समझाया कि वह पति को संभाले. अब वह इस बात का जिक्र किसी और से न करे, क्योंकि अगर उस के पिता को इस बारे में पता चल गया तो मामला काफी संगीन हो जाएगा. प्रमोद ससुराल पहुंचा तो अर्चना को उस के साथ जाना ही था. उसी दिन प्रमोद ने दोपहर के बाद विदाई के लिए कहा तो डालचंद ने कहा, ‘‘यह समय विदाई करने का नहीं है. लालपुर पहुंचतेपहुंचते रात हो जाएगी. इसलिए तुम कल चले जाना.’’

‘‘नहीं पापा, जाना बहुत जरूरी है. साधन से ही तो जाना है. आराम से पहुंच जाएंगे.’’ डालचंद को क्या पता था कि उस के मन में क्या है. उन्होंने अर्चना को विदा कर दिया. प्रमोद खुश था कि सब कुछ उस के मन मुताबिक हो रहा है. अर्चना भी पति के मन की बात से बेखबर थी. वह प्रमोद के साथ गजरौला कलां पहुंची तो वहां मुकेश मिल गया. दोनों अर्चना को ले कर लालपुर की ओर चल पड़े. अंधेरा हो जाने की वजह से लालपुर जाने वाली सड़क सुनसान हो गई थी. रास्ते में खेतों के बीच प्रमोद ने अर्चना को दबोच लिया तो वह चीखी, ‘‘यह क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे.’’

लेकिन प्रमोद ने उसे छोड़ने के लिए थोड़े ही पकड़ा था. उस ने उसे जमीन पर गिरा दिया तो मुकेश ने फुरती से उस के दोनों हाथ पकड़ लिए. इस के बाद प्रमोद ने उस का गला दबा कर उसे मार डाला. इस तरह अर्चना का खेल खत्म कर के प्रमोद ने रास्ते का कांटा निकाल दिया था. इस के बाद प्रमोद ने जल्दीजल्दी अर्चना के गहने उतारे और फिर लाश को उठा कर गन्ने के खेत में फेंक दिया. फिर योजना के मुताबिक प्रमोद थाना गजरौला कलां पहुंचा, जहां उस ने अपनी पत्नी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. लेकिन उस के हावभाव से ही थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने ताड़ लिया कि यह झूठ बोल रहा है. इस के बाद तो उन्होंने उसे थाने ला कर सच्चाई उगलवा ही ली

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने प्रमोद और मुकेश को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. बाद में डालचंद ने कहा कि उन की बेटी की हत्या की साजिश में प्रमोद का बाप छदामीलाल भी शामिल था तो पुलिस ने उसे भी इस मामले में अभियुक्त बना कर जेल भेज दिया

जांच अधिकारी ने सीओ दिनेश शर्मा की देखभाल में इस मामले की चार्जशीट तैयार कर के अदालत में पेश कर दी गई है. अब देखना यह है कि इस मामले में दोषियों को सजा क्या होती है.

   — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

20 ऑपरेशन ने बदसूरत औरत को बना दिया हसीन

जिंदगी से निराश हो चुकी ततजाना के 20 औपरेशन कर के डा. फेंज ने उस की जिंदगी संवारी ही नहीं बल्कि उस से शादी कर के उसे वह सब भी दिया, जिस की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. लेकिन ततजाना ने उन के इन अहसानों के बदले क्या दिया…   

तेज होती तालियों की गूंज उसे इस बात का अहसास करा रही थी कि वहमिस जर्मनीके खिताब की हकदार है. वैसे तो 100 से ज्यादा सुंदरियां प्रतियोगिता में भाग ले रही थीं, लेकिन उन में से कोई भी उस से ज्यादा सुंदर नहीं थी. उस ने चोर निगाहों से सब को देखा. हर निगाह उसी की खूबसूरती को निहार रही थी. उस की झील सी नीली आंखें, रेशम की तरह मुलायम गाल, गुलाब की पंखुडि़यों से नाजुक होंठ, जिसे कोई होंठों से भी छू ले तो निशान पड़ जाए. चेहरा ही क्या, अंगअंग का कोई जवाब नहीं था.

आखिरी राउंड पूरा हो चुका था. सभी दिल थामे जजों के फैसले के इंतजार में बैठे थे. सभी सुंदरियों के दिल धकधक कर रहे थे. तभी स्टेज से एक आवाज उभरी, ‘‘अब सभी अपना दिल थाम लें. इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं. इस सौंदर्य प्रतियोगिता में वैसे तो हर हसीना की खूबसूरती काबिलेतारीफ है, लेकिनमिस जर्मनीका ताज जिस के सिर की शोभा बनेगा, वह खूबसूरत होने के साथसाथ खुशनसीब भी है. उस खूबसूरत हसीना का नाम है, मिस ततजाना.’’

एक बार फिर हौल तालियों से गूंज उठा. मुसकान और अदाएं बिखेरती ततजाना आगे आई तो पूर्व मिस जर्मनी के हाथों में हीरों जडि़त ताज उस के माथे को चूमने को बेताब था. खुशी के आंसू छलक आए जब ततजाना के सिर पर ताज सजाया गया. होंठ थरथरा रहे थे उस के, लेकिन चाह कर भी जुबान नहीं खुल रही थी. तभी उस के कानों में आवाज पड़ी. ‘‘तत, आज कालेज नहीं जाना क्या? देखो, कितना समय हो गया है?’’

ततजाना की आंखें खुल गईं. वह जो खूबसूरत सपना देख रही थी, टूट गया. वह फुसफुसाई, ‘‘कुदरत ने तो मेरे साथ मजाक किया ही था, अब ख्वाब भी मेरी बदसूरती का उपहास उड़ाने लगे हैं.’’

एक लंबी आह भरी ततजाना ने. ‘काश! ख्वाब सच होता.’ लेकिन काश और हकीकत की लंबी दूरी आईने तक पहुंचते ही खत्म हो गई. आईना सच कह रहा था. कुदरत ने वाकई उस के साथ नाइंसाफी की थी. चेहरा तो बदसूरत था ही, शरीर भी लड़कों की तरह सपाट. उस की आंखों से आंसू टपक पड़े. उस ने एक बार फिर पहले कुदरत को कोसा और उस के बाद जननी को. वह इतनी बदसूरत थी तो जन्म देते ही मां ने उस का गला क्यों नहीं दबा दिया? मर जाती तो अच्छा रहता. उसे ये दिन देखने के लिए जिंदा क्यों रखा? कब तक वह इस बदसूरत शरीर का बोझ ढोती रहेगी?

ततजाना की कोई सहेली तक नहीं थी. चाहने वाले किसी लड़के की बात तो उस के लिए सपने जैसी थी. कालेज हो, कोई पार्टी हो या घर, हर जगह उस के साथ तनहाई ही रहती थी. बात यहीं तक रहती तो ठीक था, उस समय ततजाना का दिल रो उठता, जब कालेज में लड़केलड़कियां उस का मजाक उड़ाते. वह खून का घूंट पी कर रह जाती. उसे जिंदगी से कोफ्त होने लगती, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. मां अकसर समझाती रहती, ‘‘बेटा, सूरत ही सब कुछ नहीं होती, सीरत अच्छी होनी चाहिए.’’

‘‘सीरत कौन देखता है मां, पूरी दुनिया खूबसूरती की गुलाम है.’’ कह कर ततजाना सिसक उठती, ‘‘कोई विरला ही सीरत देखता है. लेकिन मेरे भाग्य में वह भी नहीं है. भाग्यशाली ही होती तो बदसूरत क्यों होती?’’

मां चुप हो जाती. सच्चाई उसे भी पता थी. उसे भी चिंता खाए जा रही थी कि कौन थामेगा बेटी का हाथ? जिंदगी में वह किसी की मोहताज रहे, यही सोच कर वह ततजाना को पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स करवा रही थी. होश संभालने के बाद अखबार में छपे उस विज्ञापन को देख कर पहली बार उस के चेहरे पर उम्मीद की कुछ लकीरें उभरी थीं. वह विज्ञापन मशहूर प्लास्टिक सर्जन डा. फेंज जसेल का था. विज्ञापन के अनुसार, डा. फेंज पूरे यूरोप में विख्यात थे. उन्होंने अपने नरीम्बर्ग स्थितनरीम्बर्ग विला क्लीनिकमें जाने कितनों को नई जिंदगी दी थी प्लास्टिक सर्जरी कर के.

सन 1973 में जन्मी ततजाना 18 साल की हो गई थी. जब से वह समझदार हुई थी, बदसूरती को ले कर वह पूरी तरह निराश हो चुकी थी. लेकिन डा. फेंज का विज्ञापन पढ़ कर उस के मन में आशा की एक किरण जागी थी. कुदरत को चुनौती देने वाला कोई तो है इस धरती पर. लेकिन अगले ही पल उस की यह उम्मीद धूल में मिलती नजर आई, जब उसे खयाल आया कि डा. फेंज की फीस कितनी होगीवह शक्लसूरत ही नहीं, रुपयोंपैसों से भी गरीब थी. घर की हालत बस काम चलाऊ थी. वह इस से बेखबर नहीं थी. फिर भी खयाल आया कि एक बार मां से बात कर ले. लेकिन तुरंत ही इस खयाल को त्याग देना पड़ा, क्योंकि घर चलाने के लिए मां एक ड्राइविंग स्कूल चलाती थी. बाप भी सौतेला था, इसलिए उस से उम्मीद करना बेकार था.

बदसूरती ने वैसे तो ततजाना को तोड़ कर रख दिया था. एक तरह से जीवन से मोह खत्म सा हो गया था, इस के बावजूद आत्मविश्वास कहीं दबा बैठा था. वही ततजाना को हिम्मत दे रहा था. उस ने मां को दिल की बात बताई और बाम्बर्ग जहां वह रहती थी, उसे छोड़ कर जा पहुंची नरीम्बर्ग डा. फेंज जसेल की क्लीनिक. कारीगरी का बेहतरीन नमूना था नरीम्बर्ग विला. सफेद संगमरमर से बने भव्य महल में डा. फेंज का निवास और क्लीनिक दोनों थे. अपनी हैसियत देख कर ततजाना के पांव ठिठक रहे थे. किसी तरह साहस बटोर कर उस ने रिसेप्शन पर बैठी खूबसूरत रिसेप्शनिस्ट से डा. फेंज से मिलने का टाइम लिया. आशानिराशा में डूबती ततजाना सोफे पर बैठ गई. करीब आधे घंटे बाद उसे डा. फेंज से मिलने का मौका मिला. अधेड़ डा. फेंज के चेहरे पर जवानों सी ताजगी थी.

कहते हैं, अगर डाक्टर का व्यक्तित्व अच्छा हो तो मरीज इलाज से पहले ही आधा ठीक हो जाता है. ततजाना को कुछ ऐसा ही अहसास हुआ था. डा. फेंज जसेल ने उस की जांच के बाद कहा कि इलाज के बाद उस की खूबसूरती ऐसी निखर जाएगी कि देखते ही बनेगी. मगर इस के लिए उन्हें 20 औपरेशन करने पड़ेंगे और एक औपरेशन का खर्च 70 हजार डालर के करीब आएगा. इलाज का खर्च सुन कर ततजाना का खूबसूरत बन जाने का उत्साह तुरंत मायूसी में बदल गया. डा. फेंज ने उस के मन की बात भांप ली. उन्होंने कहा, ‘‘खर्च ज्यादा है, उठा नहीं पाओगी?’’

ततजाना कुछ कहती, उस के पहले ही डा. फेंज ने कुछ सोचते हुए गंभीरता से कहा, ‘‘इस का भी रास्ता है, अगर तुम चाहो तो…’’

नजर उठा कर ततजाना ने डा. फेंज को देखा. वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन जुबान चिपक सी गई. उस के चेहरे के भावों को पढ़ कर डा. फेंज ने आगे कहा, ‘‘घबराने या मायूस होने की जरूरत नहीं है. बस, तुम्हें मेरे क्लीनिक में नौकरी करनी होगी. वेतन के बदले मैं तुम्हारी सर्जरी कर दूंगा.’’ अपना सपना साकार होता देख ततजाना की आंखों में खुशी के आंसू भर आए. गला भर्रा उठा और होंठ थरथराए, ‘‘मुझे मंजूर है.’’ ततजाना बस इतना ही कह पाई.

सन 1986 में ततजाना अपना घर छोड़ कर नरीम्बर्ग गई, एक नए जीवन की शुरुआत की उम्मीद ले कर. वह लगन से अपनी ड्यूटी करने लगी तो डा. फेंज ने उस के शरीर की सर्जरी शुरू कर दी. पहला औपरेशन उस के सपाट स्तनों का हुआ, जो कामयाब रहा. इस के बाद आंखों के पास नाक, गाल, ठोढी और गर्दन की सर्जरी हुईसन 1992 तक बीसों औपरेशन के बाद ततजाना का कायाकल्ल्प हो गया. इस बीच ततजाना का इलाज करतेकरते डा. फेंज कब उस की चाहत के मरीज बन गए, वह जान नहीं पाए. वह खुद हैरान थे, ऐसा कैसे हो गया. वह हजारों युवतियों की सर्जरी कर चुके थे, लेकिन जो निखार ततजाना के शरीर में आया था, ऐसा किसी अन्य युवती के शरीर में उन्होंने अनुभव नहीं किया था.

अपनी सुंदरता देख कर ततजाना बेहद खुश थी. इस के बावजूद वह आईने का सामना करने से कतरा रही थी. इस दौरान डा. फेंज ने अनुभव किया था कि बदसूरती से उपजी हीनभावना की शिकार ततजाना आईने से केवल डरती है, बल्कि उस से नफरत करती है. इसीलिए इलाज के बाद वह उसे आदमकद आईने के सामने ले गए थे. ततजाना चाह कर भी आईने के सामने आंख नहीं खोल पा रही थी. खोलती भी कैसे, आखिर कितनी टीस दी थी इस आईने ने. डा. फेंज ने आगे बढ़ कर ततजाना का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘पलकें उठा कर तो देखो, आईना खुद शरमा रहा है तुम्हारी खूबसूरती को देख कर. देखो, यह कह भी रहा है, ‘मेरा जवाब तू है, तेरा जवाब कोई नहीं.’’’

डरते हुए ततजाना ने नजरें उठा कर देखा, वाकई वह हैरान रह गई थी. उस के अंधेरे अतीत की परछाई भी नहीं थी उस के चेहरे पर. उसे विश्वास नहीं हो रहा था. उस ने चेहरे को छू कर देखा. उस की नजरों में डा. फेंज के लिए एहसान और दिल में आदर तथा प्यार की तह सी जमी थी. वह अंजान तो नहीं थी. उसे अहसास हो गया था कि डा. फेंज के दिल में उस के लिए मोहब्बत का अंकुर फूट चुका है. लेकिन उस ने दिल की बात जुबान पर नहीं आने दी. वह ऐसा समय था, जब डा. फेंज अपनी शादीशुदा जिंदगी के नाजुक दौर से गुजर रहे थे. आखिर वह समय ही गया, जब पत्नी उन्हें तलाक दे कर अपने एकलौते बच्चे को ले कर सदा के लिए उन की जिंदगी से दूर चली गई

तनहाई के इस आलम में उन्हें ततजाना के प्यार के सहारे की जरूरत थी. लेकिन वह इजहार नहीं कर रहे थे. इसी तरह साल गुजर गया. दरअसल डा. फेंज जहां उम्र के ढलान पर थे, वहीं ततजाना यौवन की दहलीज पर कदम रख रही थी. वह 66 साल के थे, जबकि ततजाना मात्र 23 साल की थी. लेकिन यह भी सच है कि प्यार न सीमा देखता है न मजहब और न ही उम्र. एक दिन फेंज और ततजाना साथ बैठे कौफी पी रहे थे, तभी डा. फेंज ने कहा, ‘‘ततजाना, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. तुम्हारी इस खूबसूरती ने मुझे दीवाना बना दिया है.’’

‘‘यह खूबसूरती आप की ही दी हुई तो है. एक नई जिंदगी दी है आप ने मुझे. इसलिए इस पर पहला हक आप का ही बनता है.’’ ततजाना बोली.

 ‘‘नहीं ततजाना, मैं हक नहीं जताना चाहता. अगर दिल से स्वीकार करोगी, तभी मुझे स्वीकार होगा. मैं एहसानों का बदला लेने वालों में से नहीं हूं.’’ डा. फेंज ने कहा.

‘‘मैं इस बात को कैसे भूल सकती हूं कि आप ने मेरी अंधेरी जिंदगी को रोशनी से सराबोर किया है. आप की तनहाई में साथ छोड़ दूं, यह कैसे हो सकता है. इस तनहाई में आप मुझे तनमन से अपने नजदीक पाएंगे. आप यह समझें कि मैं यह बात एहसान का कर्ज अदा करने की गरज से नहीं, दिल से कह रही हूं.’’

सन 1999 में डा. फेंज से ततजाना ने विवाह कर लिया. शादी के बाद जहां डा. फेंज की तनहा जिंदगी में फिर से बहारें गईं, वहीं ततजाना भी एक काबिल और अरबपति पति की संगिनी बन कर खुद पर इतराने लगीअब सब कुछ था उस के पास. रहने को आलीशान महल, महंगी कारें, सोनेहीरों के गहने और कीमती लिबास. जिंदगी के मायने ही बदल गए थे उस के. अब वह बेशुमार दौलत की मालकिन थी. हाई सोसाइटियों में उसे तवज्जो मिल रही थी, जिस की उस ने कभी कल्पना तक नहीं की थी. ततजाना अपने जीवन की रंगीनियों में इस कद्र डूब गई कि अतीत की परछाई भी उस के पास नहीं फटक रही थी. डा. फेंज भी उस की खूबसूरती में खोए रहते थे. दोनों का 9 साल का दांपत्यजीवन कैसे गुजर गया, उन्हें पता ही नहीं चला. अचानक इस रिश्ते में तब दरार पड़ने लगी, जब ततजाना को तनहा छोड़ कर डा. फेंज अपने मरीजों में व्यस्त रहने लगे. बस यहीं से ततजाना के कदमों का रुख बदल गया.

उसी दौरान एक पार्टी में ततजाना की मुलाकात कारों के व्यापारी 60 वर्षीय हीलमुट बेकर से हुई. उस ने उस की आंखों में अपने प्रति चाहत देखी तो उस की ओर झुक गई. बेकर का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि ततजाना उस की ओर झुकती चली गई. मुलाकातों का दौर शुरू हुआ तो दोनों पर मोहब्बत का रंग चढ़ने लगा. जिस्मों के मिलन के बाद वह और निखर आया. अब ततजाना का अधिकतम समय बेकर की बांहों में गुजरने लगा. हद तो तब होने लगी, जब ततजाना डा. फेंज को अनदेखा कर के रातें भी बेकर के बिस्तर पर गुजारने लगी.

डा. फेंज सोच रहे थे कि ततजाना नादान है, राह भूल गई है. समझाने पर मान जाएगी. मगर ऐसा हुआ नहीं. एक रात डा. फेंज बेसब्री से ततजाना का इंतजार कर रहे थे. सारी रात बीत गई, ततजाना लौट कर नहीं आई. डा. फेंज ने कई संदेश भिजवाए लेकिन जवाब में बेरुखी ही मिली. इसी तरह एक साल गुजर गया. डा. फेंज ने यह तनहाई कैसे काटी, इस का सुबूत था उन का बिगड़ा दिमागी संतुलन. अगर हवा से खिड़कियों के परदे भी हिलते तो उन्हें लगता कि यह ततजाना के कदमों की आहट है. वह गई है. डा. फेंज 5 जनवरी, 2005 की सुबह अपनी क्लीनिक में अकेले ही खयालों में खोए बैठे थे. वह सोच रहे थे कि काश ततजाना जाती. अचानक खिड़की के शीशे जोर से खड़खड़ाए. शीशा टूट कर बाहर की तरफ गिर गया. घबरा कर उन्होंने उधर देखा तो 2 मानव आकृतियां दिखाई दीं. उन्होंने अपने चेहरे ढक रखे थे. डरेसहमे डा. फेंज ने ततजाना को फोन किया. घंटी बजती रही, पर किसी ने फोन नहीं उठाया. तभी लगा, किसी ने खिड़की को ही उखाड़ दिया है

डर के मारे वह ऊपर की ओर भागे. कमरे में रखी बड़ी सी कुरसी पर 5-6 कंबल ओढ़ कर छिप गए. कदमों की आहट उन्हें साफ सुनाई दे रही थी, जो उन्हीं की ओर बढ़ रहे थे. सन्नाटे को चीरती हुई एक मर्दाना आवाज गूंजी, ‘‘डा. फेंज गनीमत इसी में है कि तुम जहां भी छिपे हो निकल आओ वरना हम तो तुम्हें ढूंढ ही लेंगे.’’

यह आवाज थमी नहीं कि दूसरी आवाज उभरी, ‘‘आज बच नहीं पाओगे डा. फेंज.’’  खौफ से डा. फेंज की नसों का खून जम सा गया. वह सांस खींचे दुबके रहे. तभी पहले वाली आवाज फिर गूंजी, ‘‘डा. फेंज, हमें बता दो कि तुम ने नकद राशि कहां छिपा रखी है? हम तुम्हारी जान बख्श देंगे.’’

कंबलों में हलचल सी हुई. डा. फेंज में जाने कहां से हिम्मत गई कि वह झटके से बाहर गए. 2 लोग उन्हें खोज रहे थे. उन्होंने फुर्ती से एक युवक का सिर पकड़ कर खिड़की की चौखट से दे मारा. चीख के साथ उस के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. दूसरा उन की ओर लपका. उस ने डा. फेंज की कलाई पकड़ कर फर्श पर गिरा दियाइस के बाद घसीटता हुआ दीवार तक ले गया और उन का सिर पकड़ कर जोर से दीवार से मारा. इसी के साथ उस के घायल साथी ने डा. फेंज पर कुल्हाड़ी से जोरदार वार सिर पर किया. बस, एक ही वार में हलकी सी चीख के साथ वह बेहोश हो गए. इस के बाद भी दोनों युवकों ने ताबड़तोड़ कई वार उन के सिर और सीने पर किए. उन्हें लगा कि डा. फेंज खत्म हो गए हैं, लेकिन यह उन का भ्रम था.

डा. फेंज की सांसें चल रही थीं. दोनों का अगला निशाना वहां रखी अलमारी थी. अलमारी के दरवाजे को कुल्हाड़ी से तोड़ कर उसे खंगाला तो उस में 5 हजार यूरो मिले, जिन्हें ले कर दोनों भाग खड़े हुए. उन के जाने के बाद घिसटघिसट कर डा. फेंज उस टेबल तक आए, जहां फोन रखा था. किसी तरह नंबर मिला कर उन्होंने पुलिस को कराहती आवाज में घटना की सूचना दी. 10 मिनट में टौप एक्शन पुलिस फोर्स वहां पहुंच गई. गंभीर रूप से घायल डा. फेंज को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. 11 सप्ताह तक जिंदगी और मौत से जूझते हुए डा. फेंज ने आखिर 26 मार्च, 2008 को दम तोड़ दिया.

पुलिस जांच में मिले सुबूत डा. फेंज की पत्नी ततजाना के दोषी होने का इशारा कर रहे थे. ततजाना को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई. वह खुद को बेकुसूर बताती रही. उस का तर्क था कि एक साल से डा. फेंज से उस का कोई संबंध नहीं था. वह अपने प्रेमी हीलमुट बेकर के साथ रह रही थी. मगर उस की कोई भी दलील काम नहीं आई. मई, 2008 में अदालत के आदेश पर उसे डा. फेंज की हत्या और चोरी के आरोप में जेल भेज दिया गया. 16 महीने बर्लिन कोर्ट में यह मुकदमा चला. लेकिन सुबूतों और गवाहों के अभाव में अक्तूबर, 2009 को कोर्ट ने ततजाना को बेगुनाह करार देते हुए जेल से रिहा करने का आदेश दे दिया.

कहा जाता है कि ततजाना को अपनी बदसूरती के चलते पहले जीवन से खास लगाव नहीं रहा था. लेकिन जब डा. फेंज ने 20 औपरेशन कर के उसे खूबसूरती का तोहफा दिया तो उस के अंदर की दम तोड़ चुकी महत्त्वाकांक्षाएं और हसरतें फिर से उमंगे भरने लगी थीं. इसी के चलते उस ने अपने से 44 साल बड़े डा. फेंज के प्यार को स्वीकार कर के शादी कर ली थी, क्योंकि डा. फेंज के पास अरबों डौलर की दौलत थी. पुलिस के अनुसार शादी के बाद 9 सालों तक ततजाना ने ऐश की जिंदगी बसर करते हुए अपने सभी अरमान पूरे कर लिए. इस के बाद उस का मन डा. फेंज से भर गया तो वह कार व्यापारी हीलमुट बेकर के पहलू में जा गिरी. वह उस के साथ एक साल रही, लेकिन डा. फेंज को उस ने तलाक नहीं दिया. शायद उस की निगाह डा. फेंज की बेशुमार दौलत पर थी. उस पर उस का कब्जा डा. फेंज की मौत के बाद ही हो सकता था. इसी वजह से उस ने डा. फेंज की हत्या पेशेवर हत्यारों से करवा दी थी. लेकिन सुबूतों के अभाव में वह निर्दोष मानी गई.

खैर, सच्चाई चाहे जो भी रही हो, जेल से रिहा होने के बाद ततजाना डा. फेंज की बेवा होने के नाते उस की 11 मिलियन यू.एस. डौलर की एकलौती वारिस हो गई. उस की जिंदगी फिर उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ी. पार्टीक्लबों में रात रंगीन करना, पुरुष मित्रों की बांहों में बांहें डाल कर डांस करना, महंगी कारों में घूमना और भोगविलास भरा जीवन उस की दिनचर्या में शुमार हो गया. एक हाईफाई पार्टी में ही ततजाना की मुलाकात नवंबर, 2011 में जर्मनी के सेक्सोनिया राज्य के आखिरी राजा 68 वर्षीय प्रिंस वौन हौमजोर्लन से हुई तो वह उस से दिल लगा बैठी. प्रिंस वौन भी उस की खूबसूरती और जवानी के ऐसे दीवाने हुए कि बस उसी के हो कर रह गए. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन प्रिंस वौन की पत्नी और बच्चों के रहते यह संभव नहीं था. कहानी लिखे जाने तक ततजाना के प्यार में आकंठ डूबे प्रिंस वौन अपनी पत्नी से तलाक ले कर ततजाना से शादी करने का प्रयास कर रहे थे.

     

प्रेग्नेंट प्रेमिका ने बदला लेने के लिए प्रेमी की बेटी का काटा गला

शादीशुदा आदमी जब किसी अन्य लड़की या औरत के प्यार में पड़ता है तो उसे सब कुछ अच्छाअच्छा लगता है, लेकिन वह भूल जाता है कि इस सब का खामियाजा उसे उठाना पड़ेगा तो क्या होगा. संतोष के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. त्तर प्रदेश के जिला वाराणसी के रहने वाले भालचंद्र सरोज अपने परिवार के साथ महानगर मुंबई के तालुका वसई के उपनगर नालासोपारा की साईं अपर्णा बिल्डिंग में लगभग 30 सालों से रह रहे थे. अपनी रोजीरोटी के लिए उन्होंने उसी बिल्डिंग के परिसर में किराने की दुकान खोल ली थी.

परिवार में उन की पत्नी के अलावा एक बेटा संतोष सरोज था, जिस की शादी उन्होंने मालती नाम की लड़की से कर दी थी. संतोष की एक बेटी थी अंजलि. भालचंद्र सरोज का एक छोटा सा परिवार था, उन का जीवन हंसीखुशी के साथ व्यतीत हो रहा था. संतोष 10वीं जमात से आगे नहीं पढ़ सका था, इसलिए भालचंद्र ने उसे एक आटोरिक्शा खरीदवा दिया था. किराने की दुकान और आटो से जो कमाई होती थी, उस से उन की घरगृहस्थी आराम से चल रही थी.

अंजलि अपने मातापिता के अलावा दादादादी की भी लाडली थी. संतोष भले ही खुद नहीं पढ़लिख सका था, लेकिन बेटी को उच्चशिक्षा दिलाना चाहता था. इसीलिए उस ने अंजलि का दाखिला जानेमाने लोकमान्य तिलक इंगलिश स्कूल में करवा दिया था. परिवार में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. इसी दौरान एक ऐसी घटना घटी, जिस का दुख यह परिवार जिंदगी भर नहीं भुला सकेगा. बात 24 मार्च, 2018 की है. संतोष सरोज की 5 वर्षीय बेटी अंजलि हमेशा की तरह उस शाम 7 बजे बच्चों के साथ खेलने के लिए बिल्डिंग से नीचे आई तो फिर वह वापस नहीं लौटी. वह बच्चों के साथ कुछ देर तक तो अपने दादा भालचंद्र सरोज की दुकान के सामने खेलती रही. फिर वहां से खेलतेखेलते कहां गायब हो गई, किसी को पता नहीं चला.

जब वह 8 बजे तक वापस घर नहीं आई तो उस की मां मालती को उस की चिंता हुई. जिन बच्चों के साथ वह खेलने गई थी, मालती ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की. उसी दौरान संतोष घर लौटा तो मालती ने बेटी के गुम हो जाने की बात पति को बताते हुए उस का पता लगाने के लिए कहा. संतोष बिल्डिंग से उतरने के बाद अंजलि को इधरउधर ढूंढने लगा. वहीं पर उस के पिता की दुकान थी. वह पिता की दुकान पर पहुंचा और उन से अंजलि के बारे में पूछा. पोती के गायब होने की बात भालचंद्र को थोड़ी अजीब लगी. उन्होंने बताया कि कुछ देर पहले तक तो वह यहीं पर बच्चों के साथ खेल रही थी. इतनी देर में कहां चली गई.

उन्हें भी पोती की चिंता होने लगी. वह भी दुकान बंद कर के बेटे के साथ उसे ढूंढने के लिए निकल गए. संभावित जगहों पर तलाशने के बाद भी जब वह नहीं मिली तो उन की चिंता और बढ़ गई. अंजलि के गायब होने की बात जब पड़ोस के लोगों को पता चली तो वे भी उसे खोजने लगे. वहां आसपास खुले गटर और नालों को देखने के बाद भी अंजलि का कहीं पता नहीं चला. बेटी की चिंता में मां मालती की घबराहट बढ़ती जा रही थी. चैत्र नवरात्रि होने की वजह से लोग यह भी आशंका व्यक्त कर रहे थे कि कहीं उसे तंत्रमंत्र की क्रियाएं करने वालों ने तो गायब नहीं कर दिया.

सभी लोग अंजलि की खोजबीन कर के थक गए तो उन्होंने पुलिस की मदद लेने का फैसला किया. लिहाजा वे रात करीब 11 बजे तुलीज पुलिस थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी किशोर खैरनार से मिल कर उन लोगों ने उन्हें सारी बातें बताईं और अंजलि की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. अंजलि का सारा विवरण दे कर उन्होंने उस का पता लगाने का अनुरोध किया. थानाप्रभारी ने अंजलि का पता लगाने का आश्वासन दे कर उन्हें घर भेज दिया.

थाने से घर लौटे सरोज परिवार का मन अशांत था. उन का दिल अपनी मासूम बच्ची को देखने के लिए तड़प रहा था. वह रात उन के लिए किसी कालरात्रि से कम नहीं थी. सुबह होते ही संतोष सरोज का परिवार फिर से अंजलि की खोज में निकल गया. उन्होंने उस की गुमशुदगी के पैंफ्लेट छपवा कर रेलवे स्टेशनों के अलावा बसस्टैंड और सार्वजनिक जगहों पर लगवा दिए. उधर थानाप्रभारी किशोर खैरनार ने अंजलि की गुमशुदगी की जांच सहायक पीआई के.डी. कोल्हे को सौंप दी. के.डी. कोल्हे ने जब मामले पर गहराई से विचार किया, तो उन्हें लगा कि या तो बच्ची का फिरौती के लिए अपहरण किया गया है या फिर उसे किसी दुश्मनी या तंत्रमंत्र क्रिया के लिए उठा लिया गया है. 

उन्होंने सरोज परिवार से भी कह दिया कि यदि किसी का फिरौती मांगने के संबंध में फोन आए तो वह उस से प्यार से बात करें और इस की जानकारी पुलिस को जरूर दे दें. जांच के लिए पीआई के.डी. कोल्हे ने पुलिस की 6 टीमें तैयार कीं, जिस में उन्होंने एपीआई राकेश खासरकर, नितिन विचारे, शिवाजी पाटिल, एसआई भरत सांलुके, हैडकांस्टेबल सुरेश शिंदे, कांस्टेबल भास्कर कोठारी, महेश चह्वाण आदि को शामिल किया. सभी टीमें अलगअलग तरीके से मामले की जांच में जुट गईं. पुलिस ने अंजलि के फोटो सहित गुमशुदगी का संदेश अनेक वाट्सऐप गु्रप में भेजा और उसे अन्य लोगों को भी भेजने का अनुरोध किया. पीआई के.डी. कोल्हे दूसरे दिन अपनी जांच की कोई और रूपरेखा तैयार करते, इस के पहले ही उन्हें स्तब्ध कर देने वाली एक खबर मिली

खबर गुजरात के नवसारी रेलवे पुलिस की तरफ से आई थी. रेलवे पुलिस ने मुंबई पुलिस को बताया कि जिस बच्ची की उन्हें तलाश है, वह बच्ची मृत अवस्था में नवसारी रेलवे स्टेशन के बाथरूम में पड़ी मिली है. किसी ने गला काट कर उस की हत्या की है. सूचना मिलते ही पुलिस की एक टीम अंजलि के परिवार वालों को ले कर तुरंत नवसारी रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हो गई. नवसारी रेलवे पुलिस ने जब संतोष सरोज और उस के परिवार वालों को बच्ची की लाश दिखाई तो वे सभी दहाड़ मार कर रोने लगे, क्योंकि वह लाश अंजलि की ही थी.

जरूरी काररवाई पूरी कर के मुंबई पुलिस बच्ची के शव को अपने कब्जे में ले कर मुंबई लौट आई और उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया. इधर जब अंजलि की हत्या की बात उस बिल्डिंग और आसपड़ोस के रहने वालों को पता लगी तो लोगों में आक्रोश फूट पड़ा. देखते ही देखते पुलिस स्टेशन के सामने हजारों की भीड़ जमा हो गई. भीड़ पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगी. भीड़ तब तक शांत नहीं हुई, जब तक एसएसपी राजतिलक रोशन, एसपी मंजुनाथ शिंगे और एएसपी जयंत वंजवले ने पुलिस थाने कर 24 घंटे के अंदर हत्यारे को गिरफ्तार करने का आश्वासन नहीं दिया.

मामले को तूल पकड़ते देख पुलिस के बड़े अधिकारियों की आंखों से नींद गायब हो गई थी. उन्होंने जांच टीम को शीघ्र से शीघ्र अंजलि के हत्यारों को गिरफ्तार करने का निर्देश दिए. पुलिस टीम ने अंजलि के परिवार और आसपास के लोगों से गहराई से पूछताछ करने के अलावा इलाके में लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली. लोकमान्य तिलक स्कूल के एक सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में अंजलि एक महिला के साथ नालासोपारा स्टेशन की तरफ जाते हुए दिखाई दी. वह महिला कौन थी और कहां से आई थी, यह जानने के लिए पुलिस टीम ने उस का स्केच बनवा कर जब मामले की जांच की तो पता चला कि वह महिला कई बार अंजलि के स्कूल और उस के घर साईं अपर्णा बिल्डिंग के आसपास संदिग्ध अवस्था में दिखाई दी थी. जिस दिन अंजलि गायब हुई थी, उस दिन भी वह बिल्डिंग परिसर में आई थी

पुलिस जांच का चक्र तेजी से घूम रहा था. उस महिला का स्केच पूरे शहर में चिपकवाने के अलावा जनपद के सभी पुलिस थानों को भी भेज दिया गया. इस के अलावा स्केच अंजलि के पिता संतोष सरोज को भी दिखाया गया. स्केच देखते ही संतोष ने अपना सिर पीट लिया. उस ने कहा कि यह तो उस की प्रेमिका है. पुलिस ने संतोष को सीसीटीवी कैमरे में अंजलि के साथ जाने वाली उस महिला की फुटेज दिखाई तो संतोष ने कहा कि यह उस की प्रेमिका अनीता वाघेला है और यह नालासोपारा (पूर्व) के नगीनदास पाड़ा इलाके में रहती है. बिना देर किए पुलिस टीम अनीता के घर पहुंच गई. वह घर पर ही मिल गई. पुलिस उसे हिरासत में ले कर थाने लौट आई. पुलिस ने जब उस से अंजलि की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने आसानी से अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. अनीता से पूछताछ के बाद अंजलि की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह प्यार में चोट खाई नागिन के प्रतिशोध वाली निकली

22 साल की अनीता का रंग हालांकि बहुत साफ नहीं था, लेकिन कुदरत ने उसे कुछ इस तरह गढ़ा था कि जो भी उसे देखता, देखता ही रह जाता था. सांवले सौंदर्य की मालकिन अनीता के जिस्म की कसावट और फिगर देख मनचले गहरी सांसें लेते हुए फिकरे कसते थे. इस के अलावा अनीता खुले विचारों वाली महत्त्वाकांक्षी युवती थी. आमतौर पर अनीता जैसी महत्त्वाकांक्षी युवतियां जो सपने देखती हैं, उन्हें किसी भी कीमत पर या कोई भी जोखिम उठा कर पूरा करने की कोशिश करती हैं. यह अलग बात है कि इस के लिए उन्हें जो कीमत चुकानी पड़ती है, वह कभीकभी भारी पड़ जाती है. तब उन के पास हाथ मलने और अपनी नादानियों पर पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाता. यही हाल अनीता का हुआ था. वह आंख मूंद कर संतोष सरोज पर भरोसा कर के प्यार करने की भूल कर बैठी थी.

मूलरूप से गुजरात की रहने वाली अनीता वाघेला अपने मातापिता और भाईबहनों के साथ नालासोपारा (पूर्व) के नगीनदास पाड़ा इलाके में रहती थी. वह अपने और परिवार के लिए कैटरिंग का काम किया करती थी. उस की और संतोष सरोज की मुलाकात करीब 7 साल पहले नगीनदास पाड़ा के आटो स्टैंड पर हुई थीउस दिन वह अपने काम पर जाने के लिए काफी लेट हो रही थी. तब वह अपनी मंजिल तक संतोष के आटोरिक्शा से पहुंची थी. अनीता आटो से उतर कर चली तो गई लेकिन उस की शोख चंचल निगाहें, मुसकराता चेहरा संतोष के दिमाग में ही घूमता रह गया. उस की पहली ही झलक में संतोष अपना होशोहवास खो बैठा था, यह जानते हुए भी कि वह एक शादीशुदा और एक बच्ची का बाप है

लेकिन वह यह सब भूल कर अनीता का सामीप्य पाना चाहता था. इस के लिए वह अकसर नगीनदास पाड़ा के आटो स्टैंड पर अनीता के आने का इंतजार करता था. वह दिख जाती तो वह मुसकराते हुए उस से अपने आटो में चलने की बात कहता. अनीता को तो किसी किसी आटो से जाना ही था, लिहाजा वह संतोष के आग्रह पर उस के ही आटो में बैठ जाती. 2-4 बार संतोष के आटो से आनेजाने के बाद अनीता और संतोष के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया. स्वयं को अविवाहित बता कर उस ने अनीता को अपने प्रभाव में ले लिया. बातों और मिलने का सिलसिला शुरू हो गया तो दोनों एकदूसरे के करीब गए. जब भी अनीता को संतोष के साथ कहीं घूमने के लिए जाना होता तो वह संतोष को बेझिझक फोन कर बुला लेती. इस तरह दोनों में गहरी दोस्ती हो गई.

दोस्ती का दायरा बढ़ा तो अनीता के मन में संतोष के प्रति प्यार का अंकुर फूट पड़ा. वह सरोज को अपने मनमंदिर में बैठा कर गृहस्थ जीवन के सुंदर सपने देखने लगी. जिस का संतोष ने भरपूर फायदा उठाया.  उस ने अनीता को शादी का लालच दे कर उस का अपनी पत्नी की तरह इस्तेमाल किया. 7 सालों में अनीता 2 बार गर्भवती भी हुई. लेकिन संतोष ने अपनी कोई न कोई मजबूरी बता कर उस का गर्भपात करवा दिया था. 7 सालों का समय कुछ कम नहीं होता. संतोष और अनीता के संबंधों की सारी जानकारी उस के परिवार वालों को हो चुकी थी. वे लोग अब उस पर शादी करने का दबाव बनाने लगे थे. अनीता भी अब और ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहती थी. 

वह भी अपने और संतोष के प्यार को रिश्ते का नाम देने के लिए दबाव बनाए हुए थी. वह उस से शादी कर के अपना एक घर बनाना चाहती थी. इस से संतोष की परेशानी बढ़ गई थीसंतोष शादीशुदा और एक बच्ची का बाप था. वह अनीता की वजह से अपने परिवार की शांति भंग नहीं करना चाहता था. लेकिन जब पानी संतोष के गले तक गया तो मजबूरन उसे अनीता के सामने अपना मुंह खोलना पड़ा. अनीता को एक अच्छे माहौल में ले जा कर उस ने अपने शादीशुदा होने की बात बता दीउस ने कहा कि उस की शादी गांव और जाति के रस्मोरिवाज से बचपन में ही हो गई थी और अब वह एक बच्ची का पिता भी है

ऐसे में अगर वह दूसरी शादी करेगा तो उस की ब्याहता का क्या होगा. उस ने साफ कह दिया कि अब वह दूसरी शादी नहीं कर सकता. लेकिन वह चाहे तो उस के साथ जीवन भर रह सकती है. उसे किसी भी तरह की परेशानी नहीं होने देगा. यह जान कर अनीता सन्न रह गई. उसे लगा कि उस के ऊपर कोई पहाड़ गिर पड़ा. उसे लगा कि मानो उस का अस्तित्व ही खत्म हो गया. कुछ समय के लिए तो वह एक मूर्ति जैसी बन गई, लेकिन जब होश आया तो वह पागल सी हो गई थी. उस दिन अनीता और संतोष के बीच काफी कहासुनी और लड़ाईझगड़ा हुआ था. संतोष की इस बात से अनीता काफी आहत हुई थी. उस के दिल में संतोष के प्रति नफरत हो गई. जाहिर सी बात है कोई भी लड़की तलाकशुदा या विधवा हो कर रह सकती है, लेकिन रखैल बन कर रहना पसंद नहीं करेगी. 

काफी सोचनेविचारने के बाद अनीता ने यह तय किया कि बच्चे और प्यार का गम क्या होता है, अब वह संतोष को समझाएगी. जिस तरह से उस ने उस के 2-2 बच्चों का खून किया था, उस का बदला वह उसी तरह से चुकाएगी. तब उसे यह एहसास होगा कि बच्चा चाहे गर्भ में हो या गर्भ से बाहर, उसे खोने में कितना दर्द होता है. अनीता ने संतोष की बेटी अंजलि के प्रति एक खतरनाक योजना बना कर उस के घर और स्कूल का पता लगा लिया और उस की अच्छी तरह रेकी की. पहले उस की योजना अंजलि को स्कूल से उठाने की थी, लेकिन स्कूल की चाकचौबंद सुरक्षा और अकसर मां के साथ होने के कारण उस का प्लान सफल नहीं हो सका. 

इस के बाद उस ने संतोष के घर के पास से ही अंजलि को उठा लिया था. अंजलि को उठाने के पहले वह उस जगह पर कर बैठ जाती थी, जहां अंजलि बच्चों के साथ खेला करती थी. मौका देख कर वह अंजलि को अपने पास बुला कर टौफी और चौकलेट दिया करती थी. 2-4 दिनों में जब अंजलि उस के काफी करीब गई तो वह उसे अपनी मीठीमीठी बातों में बहला कर अपने साथ ले कर चली गई. अंजलि को पहले वह लोकमान्य तिलक स्कूल तक पैदल ले कर आई. फिर आटोरिक्शा से नालासोपारा रेलवे स्टेशन ले गई. वारदात को अंजाम देने के लिए उस ने अपने पास चाकू रख लिया थानालासोपारा स्टेशन से बोरीवली स्टेशन और फिर वहां से एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ कर वह गुजरात के नवसारी रेलवे स्टेशन पहुंची. वहां मौका देख कर वह अंजलि को बाथरूम में ले गई और उस 5 वर्षीय बच्ची का गला काट कर हत्या कर दी.

अपने इंतकाम का बदला लेने के बाद अनीता सुबह की गाड़ी से अपने घर लौट आई थी. वह निश्चिंत थी कि पुलिस उस के पास तक नहीं पहुंच सकेगी. लेकिन पुलिस उस तक पहुंच ही गई. अनीता वाघेला से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 362 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे तलोजा जेल भेज दिया गया. अंजलि सरोज की हत्या की कहानी जब लोगों के सामने आई तो उस के परिवार वालों को तो क्या पूरे इलाके के लोगों को एक धक्का सा लगा. एक मासूम बच्ची अपने पिता के इश्क की भेंट चढ़ गई थी.

कथा लिखे जाने तक अनीता वाघेला जेल में बंद थी. आगे की जांच पीआई के.डी. कोल्हे कर रहे थे.   

  

सीआरपीएफ में नौकरी लगने पर दिया गर्लफ्रेंड को धोखा

Love Crime : आलोक भारती ने रिंकी कुमारी से शादी का वादा कर के उस का सब कुछ लूट लिया. लेकिन जैसे ही उस की नौकरी सीआरपीएफ में लगी, शादी करने की कौन कहे उसे पहचानने से भी मना कर दिया. बिहार  (Bihar) के जिला अरवल के थाना कुर्था के गांव निगवां के रहने वाले फागूदास की 9 संतानों में रिंकी कुमारी बचपन से ही अपने बहनभाइयों में सब से अलग थी. देश के कई राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और बिहार के ऐसे तमाम ग्रामीण इलाके हैं, जहां आज भी पिछड़ी जातियों में बालविवाह होता है. इस बालविवाह के पीछे इन रूढि़वादियों का सोचना है कि अगर उन्होंने अपनी कन्या का विवाह (दान) रजस्वला होने से पहले कर दिया तो बहुत बड़ी पुण्य होगी. इसी पुण्य की लालसा में वे अपनी नादान बेटियों का भविष्य यानी जिंदगी दांव पर लगा देते हैं. जबकि उन लड़कियों को सही मायने में शादी का पता भी नहीं होता.

फागूदास की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी भले नहीं थी, लेकिन इतनी खराब भी नहीं थी कि उन्हें किसी के सामने हाथ फैलाना पड़ता. उन का गुजरबसर आराम से हो रहा था. बड़े हो कर बेटे पिता की मदद करने लगे तो फागूदास की आर्थिक स्थिति में और भी सुधार गया. फागूदास जिस जाति के थे, उस जाति में बेटियों की शादी कमउम्र में ही कर दी जाती थी. लड़की की पसंद और नापसंद का कोई मतलब नहीं था. जो कुछ करना होता था, मांबाप अपनी मर्जी से करते थे. रिंकी कुमारी 10-11 साल की हुई नहीं कि फागूदास ने तय कर लिया कि वह रिंकी की शादी उस के रजस्वला होने से पहले ही कर के पुण्य का लाभ कमा लेंगे. उन्होंने रिंकी के लिए लड़के की तलाश भी शुरू कर दी. थोड़ी भागदौड़ के बाद उन्हें रिंकी के लिए घरवर मिल गया. लड़का पड़ोसी जिला जहानाबाद के प्रखंड शर्कुराबाद के गांव रतनी फरीदपुर के रहने वाले विघ्नेश्वरदास का 23 वर्षीय बेटा अशोकदास था. बातचीत के बाद शादी तय हो गई. लेकिन शादी की तारीख उन्होंने पूरे एक साल बाद रखी.

रिंकी की शादी तय होने के बाद फागूदास तैयारी में जुट गया. एकएक दिन कर के समय बीत रहा था. रिंकी पूरे 12 साल की हो गई. महीने भर बाद ही उस की शादी होने वाली थी. लेकिन संयोग देखो, जिस पुण्य की लालसा में फागूदास नाबालिग बेटी की शादी दोगुनी उम्र के लड़के से कर रहा था, उस की यह लालसा पूरी नहीं हो सकी. विवाह के महीना भर पहले रिंकी 12 साल की उम्र में ही रजस्वला हो गई. रिंकी की मां ने जब फागूदास को बेटी के रजस्वला होने की बात बताई तो वह अपने भाग्य को कोसने लगा. लेकिन कुदरत पर इंसान का कोई वश नहीं है, इसलिए फागूदास भी सिर पीट कर रह गया.

बुझे मन से ही सही, फागूदास ने भाग्य को कोसते हुए पहले से तय तारीख पर रिंकी की शादी उस से दोगुनी उम्र के मैट्रिक पास अशोकदास के साथ कर दी. फागूदास ने रिंकी की शादी तो कर दी थी, लेकिन विदा नहीं किया था. इसलिए मांबाप के यहां रहते हुए रिंकी आगे की पढ़ाई करने लगी. वह गांव के ही मिडिल स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी. शादी के साल भर बाद सन 2000 में वादे के अनुसार फागूदास ने रिंकी को विदा कर दिया. रिंकी कुमारी विदा हो कर ससुराल पहुंची तो उस समय उस की उम्र 14 साल कुछ महीने थी. लगभग महीने भर ससुराल में रह कर रिंकी गई. रिंकी की पढ़ाई में रुचि थी, इसलिए शादी के समय ही उस ने कह दिया था कि वह अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ेगी. यही वजह थी कि शादी के बाद भी उस ने पढ़ाई जारी रखी. वह ग्रैजुएशन कर के कुछ करना चाहती थी. 

ससुराल वालों की रजामंदी से रिंकी कुमारी ने गांव से इंटरमीडिएट कर के आगे की पढ़ाई के लिए जहानाबाद के अपने एक रिश्तेदार की मदद से जहानाबाद के मुरलीधर उच्च महाविद्यालय में दाखिला ले लिया. रिंकी ने बीए फर्स्ट ईयर की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की. इस के बाद उस का पति अशोक उसे अपने साथ कोलकाता ले कर चला गया. वहां वह किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. 2 सालों तक वह पति के साथ कोलकाता में रही. इस बीच वह 1-2 बार ही जहानाबाद आई. जिस समय रिंकी कुमारी की शादी अशोकदास से हुई थी, उस समय वह बेरोजगार था. घरगृहस्थी की सारी जिम्मेदारी रिंकी के ससुर विघ्नेश्वरदास के कंधों पर थी. यही वजह थी कि शादी के बाद भी रिंकी ने पढ़ाई जारी रखी थी.

उस का सोचना था कि युवा और हट्टाकट्टा हो कर भी उस का पति कुछ नहीं करता तो अपनी जरूरतों के लिए वह कब तक सासससुर और मांबाप का मुंह ताकती रहेगी. यही वजह थी कि रिंकी ने सोच लिया था कि जैसे भी हो, वह पढ़लिख कर आत्मनिर्भर बनने (अपने पैरों पर खड़े होने) का प्रयास करेगी. मैट्रिक तक पढ़े उस के पति अशोकदास को सरकारी नौकरी तो मिल नहीं सकती थी. कोई छोटामोटा काम वह करना नहीं चाहता था. इसलिए जब उसे कोलकाता में नौकरी मिली तो उसे वह नौकरी मनमाफिक लगी, जिस से वह वहां चला गया था. कुछ दिनों बाद उस ने रिंकी को भी वहीं बुला लिया था. लेकिन वहां जा कर जल्दी ही रिंकी को लगने लगा कि जैसा कुछ उस ने सोचा था, वैसा यहां भी नहीं है.

उस ने सोचा था कि अब तो पति की नौकरी लग ही गई है, इसलिए अब वह अपनी मनमरजी का खर्च कर सकेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि अभी भी उसे अपनी कुछ खास जरूरतों के लिए दूसरों के सामने ही हाथ फैलाना पड़ रहा है. दरअसल, रिंकी कुमारी को जब पति की नौकरी के बारे में पता चला था तो उसे लगा था कि अब उसे अपनी छोटीमोटी जरूरतों के लिए मांबाप या सासससुर के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा. लेकिन जल्दी ही रिंकी का यह भ्रम टूट गया. क्योंकि अशोकदास खानेकपड़े के अलावा उस की अन्य जरूरतों के लिए पैसे नहीं देता था. 

कभी वह कोई सामान लेने की जिद करती तो अशोक उसे दिलाने के बजाय समझाबुझा कर सामान लेने से मना कर देता. अगर इस पर रिंकी मानती तो वह डांटफटकार कर या मारपीट कर उसे शांत करा देता. रिंकी ने जब भी अशोक से यह जानना चाहा कि उसे वेतन कितना मिलता है तो बताने के बजाए वह टाल देता. वह उसे यह कह कर चुप करा देता कि पति कितना कमाता है, पत्नी को इस सब से क्या मतलब. उसे अपने खानेकपडे़ से मतलब होना चाहिए. उसे यह सब मिल ही रहा है. अशोक की इन बातों से रिंकी ने महसूस किया कि नौकरी लगने के बाद उस में काफी बदलाव गया है. वह उस के साथ पति जैसा व्यवहार कर के अपने दायित्वों से भाग रहा है.

रिंकी को लगता था कि अशोक उस की उपेक्षा करने के साथ उस का शारीरिक और मानसिक शोषण भी करने लगा है. रिंकी के लिए जब यह सब बरदाश्त से बाहर होने लगा तो अपने पैरों पर खड़ी होने का निर्णय ले कर वह कोलकाता से अपनी ससुराल जहानाबाद आ गई. रिंकी को पता था कि उस के ससुर विघ्नेश्वरदास की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. अब उन का स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा था. इसलिए वह स्वयं ही कुछ करने के बारे में सोचने लगी. पहले तो उस ने दलितों के लिए सरकार से मिलने वाले लाभ के बारे में पता किया. इस के बाद उस ने जहानाबाद के अपने उसी रिश्तेदार की मदद से इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत मिलने वाले आवास के लिए आवेदन किया. महादलित समाज की गरीब महिला होने की वजह से रिंकी को जल्दी ही इंदिरा आवास योजना के तहत एक घर मिल गया.

इंदिरा आवास योजना के तहत रिंकी कुमारी को घर मिलने की जानकारी कोलकाता में रह रहे अशोक को हुई तो यह बात उसे अच्छी नहीं लगी. इस की वजह यह थी कि वह घर रिंकी ने अपने नाम से एलाट कराया था. उस का कहना था कि उसे यह मकान पिता विघ्नेश्वरदास या फिर उस के नाम से एलाट कराना चाहिए था. इस बात को ले कर पतिपत्नी में तकरार भी हुई. इसी के बाद दोनों में दूरियां बढ़ने लगीं, जो समय के साथ बढ़ती ही गईं. फिर एक समय ऐसा भी गया कि रिंकी कुमारी पति के साथ एक पल भी रहना नहीं चाहती थी. उस ने तय कर लिया कि अब वह अशोक के साथ कोई संबंध नहीं रखेगी. यह निर्णय लेने के बाद उस ने पंचायत और कुछ खास रिश्तेदारों की मौजूदगी में अशोक से संबंध खत्म कर लिए. इस तरह रिंकी कुमारी अशोक के बंधन से आजाद हो गई.

पति और ससुराल से संबंध खत्म होने के बाद रिंकी कुमारी कभी मायके में तो कभी इंदिरा आवास योजना के तहत मिले अपने घर में रहने लगी. रिंकी के ये संघर्षों भरे दिन थे. उस के इस संघर्ष में जहानाबाद के उस रिश्तेदार ने उस की पूरी मदद की. उसी ने रिंकी को सुझाव दिया कि अगर वह नर्स की टे्रनिंग कर ले तो भविष्य में उसे खर्च की कोई दिक्कत नहीं रहेगी. अपने रिश्तेदार की सलाह पर रिंकी कुमारी ने दौड़धूप की तो जहानाबाद के राजाबाजार के नया टोला की विंध्यवासिनी मार्केट स्थित मंजू सिन्हा के नर्सिंग होम में उसे प्रशिक्षु नर्स की नौकरी मिल गई.

रिंकी कुमारी जिस नर्सिंग होम में काम करती थी, उसी के सामने स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करने वाले सुनील कुमार चौधरी का 2 मंजिला मकान था. उन की नियुक्ति तो अरवल में थी, लेकिन उन का परिवार जहानाबाद के अपने इसी मकान में रहता था. उन के परिवार में श्रीमती रीता देवी के अलावा 4 बेटियां और 2 बेटे थे. बेटियों में सब से बड़ी बेटी का विवाह हो चुका था. बड़े बेटे 24 वर्षीय आलोक भारती ने ग्रैजुएशन पूरा कर लिया तो सुनील ने उसे बीएचयू से मास कम्युनिकेशन (मास मीडिया) का कोर्स करने के लिए वाराणसी भेज दिया.

आलोक का छोटा भाई मूकबधिर था, इसलिए सुनील कुमार की सारी उम्मीदें आलोक पर ही टिकी थीं. उन पर अभी 3 बेटियों की शादी की भी जिम्मेदारी थी, इसलिए वह चाहते थे कि बेटा पढ़ाई पूरी कर के कहीं नौकरी से लग जाए तो उन की जिम्मेदारी में मदद मिलेगी. लेकिन दुर्भाग्य से आलोक की नौकरी नहीं लग पाई. शायद इस की एक वजह यह भी थी कि वह खुद भी नौकरी के लिए गंभीर नहीं था. बाप के पास पैसा तो था ही, उन पैसे से वह दोस्तों के साथ मटरगश्ती कर रहा था.

आलोक भारती का घर नर्सिंग होम के ठीक सामने था, इसलिए उस की छत से नर्सिंग होम की सारी गतिविधियां दिखाई देती थीं. आलोक जब भी खाली होता, छत पर जा कर नर्सिंग होम की ओर ताकता रहता. इसी ताकझांक में आलोक ने रिंकी कुमारी में ऐसा न जाने क्या देखा कि वह उस की ओर आकर्षित होने लगा. जल्दी ही उस की हालत यह हो गई कि दिन भर में जब तक वह उसे 2-4 बार देख नहीं लेता, उसे चैन नहीं मिलता. बेचैनी ज्यादा बढ़ी तो आलोक ने निर्णय लिया कि छुट्टी के बाद जब रिंकी नर्सिंग होम से घर जाने लगेगी तो उस से मिल कर वह अपने दिल की बात कहेगा.

आलोक ने निर्णय ही नहीं लिया, बल्कि शाम को अपनी ड्यूटी पूरी कर के रिंकी घर जाने के लिए नर्सिंग होम से निकली तो उस ने थोड़ा आगे बढ़ कर जहां एकांत था, रिंकी को रोक कर कहा, ‘‘जहां तक मुझे लगता है कि आप मुझे जरूर पहचानती होंगी, क्योंकि मेरा घर आप के नर्सिंग होम के ठीक सामने है?’’

आलोक का इस तरह बीच रास्ते में रोक कर बातें करना रिंकी कुमारी को अटपटा सा लगा. फिर भी उस ने जवाब में कहा, ‘‘हां, मैं ने आप को सामने वाले घर की छत पर कई बार खड़े देखा है.’’

 ‘‘मैं आप को पसंद करता हूं, इसलिए आप से दोस्ती करना चाहता हूं. उम्मीद है कि आप को मुझ से दोस्ती करने में ऐतराज नहीं होगा.’’ आलोक ने अपने मन की बात कह दी.

आलोक ने जैसे ही अपनी बात पूरी की, रिंकी कुमारी ने तुरंत जवाब में कहा, ‘‘मुझे यह नहीं पता कि आप मुझ से दोस्ती क्यों करना चाहते हैं? लेकिन मैं आप को बता दूं कि मेरे पास आप से दोस्ती करने का समय बिलकुल नहीं है. नर्सिंग होम की ड्यूटी करने के बाद थकीमांदी अपने कमरे पर पहुंचती हूं तो खाना बनाने में लग जाती हूं. बनातेखाते ही रात 11 बज जाते हैं. उस के बाद सो जाती हूं. सुबह 8 बजे ड्यूटी पर आना होता है, इसलिए जल्दी उठना पड़ता है. क्योंकि सुबह भी नाश्ताखाना बनाना होता है. ऐसे में मेरे पास दोस्ती का समय कहां है?’’

आलोक ने रिंकी कुमारी को मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रिंकी आलोक के मनसूबों पर पानी फेरते हुए दो टूक जवाब दे कर आगे बढ़ गई. हताशनिराश आलोक उसे जाते हुए तब तक देखता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई. कोई सुनसान सड़क या गली होती तो शायद आलोक उस का पीछा कर के बात करने की कोशिश करता. लेकिन भीड़भाड़ वाली सड़क होने की वजह से पीछा नहीं कर सका. क्योंकि अगर वह शोर मचा देती तो बेकार ही उसे तमाशा बनना पड़ता.

रिंकी ने भले ही आलोक से दोस्ती के लिए मना कर दिया था, लेकिन आलोक निराश नहीं हुआ था. अब वह रोजाना नर्सिंग होम के गेट पर खड़े हो कर रिंकी का इंतजार करने लगा. लेकिन रिंकी उस की ओर देखे बगैर आगे बढ़ जाती थी. रिंकी की यह बेरुखी उसे काफी पीड़ा पहुंचा रही थी. जब काफी दिन गुजर गए और रिंकी ने उसे लिफ्ट नहीं दी तो रिंकी को अपने जाल में फांसने के लिए उस ने एक योजना बना डाली. डिलीवरी के केस के चलते एक दिन रिंकी कुमारी नर्सिंग होम से कुछ देर से निकली. देर हो जाने की वजह से उस का खाना बनाने का मन नहीं हो रहा था, इसलिए रास्ते में पड़ने वाले एक होटल में उस ने खाना खाया. इस तरह उसे और देर हो गई.

काम की अधिकता की वजह से वह काफी थक गई थी, इसलिए कमरे पर पहुंच कर उस ने कपड़े बदले और आराम करने के लिए लेट गई. लेटते ही उस की आंखें बंद होने लगीं. तभी उस के कानों में दरवाजा थपथपाने की आवाज पड़ी. अर्द्धनिद्रा में वह थी ही, इसलिए उस ने बाहर से किस ने दरवाजा खटाखटाया है, यह पूछे बगैर ही दरवाजा खोल दिया. रिंकी के दरवाजा खोलते ही गुपचुप तरीके से पीछा कर रहे आलोक ने फुरती से अंदर आ कर इस तरह दरवाजा बंद कर के कुंडी लगा दी कि रिंकी समझ ही नहीं पाई. जब तक मामला उस की समझ में आया, आलोेक अंदर आ चुका था. उतनी रात को आलोक को कमरे के अंदर देख कर रिंकी सहम उठी. उस ने डांटने वाले अंदाज में कहा, ‘‘तुम, यहां क्यों आ गए? तुरंत मेरे कमरे से बाहर निकल जाओ, वरना मैं शोर मचा कर मोहल्ले वालों को इकट्ठा कर लूंगी. उस के बाद तुम्हारी क्या गति होगी, तुम कल्पना भी नहीं कर सकते.’’

‘‘यार, तुम बेकार ही गुस्सा करती हो. हम प्यार करने के मूड में आए हैं और तुम मुझे दुत्कार रही हो. प्यार करने वाले से प्यार से बात की जाती है, इस तरह भगाया नहीं जाता.’’ आलोक ने प्यार से कहा. आलोक के यह कहने पर रिंकी का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने आगे बढ़ कर आलोक का गिरेबान पकड़ कर दरवाजे की ओर धकेलते हुए कहा, ‘‘सीधी तरह से यहां से जाते हो या बुलाऊं पड़ोसियों को?’’

रिंकी के इस गुस्से पर आलोक सहम उठा. उस ने झटके से अपना गिरेबान छुड़ाया और जेब से चाकू निकाल कर बोला, ‘‘अब एक भी शब्द बोला तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. यह चाकू देख रही हो न, यह किसी के साथ कोई रियायत नहीं करता. तुम्हारे इसी कमरे में यह चाकू अपने पेट में घुसेड़ लूंगा. उस के बाद मेरी हत्या के आरोप में तुम्हें जेल जाना पड़ेगा. तुम लाख सफाई दोगी, लेकिन तुम्हारी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा. तुम्हें तो पता ही है कि मैं तुम्हारे प्यार में पागल हूं. पागल प्रेमी के लिए ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं है.’’

रिंकी हाथ जोड़ कर कातर स्वर में बोली, ‘‘मैं तो वैसे ही बेबस और लाचार हूं. क्यों मेरी बेबसी का फायदा उठा रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हारी लाचारी का फायदा नहीं उठा रहा. मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूं. मैं तुम से शादी करूंगा रिंकी.’’ आलोक ने कहा.

‘‘यह सब कहने की बातें हैं. आज तुम प्यार की बात कह कर मुझ से शादी करने का वादा कर रहे हो. मुझे पाने के बाद अपना यह वादा भूल जाओगे. तुम्हारे घर वाले मुझ जैसी लाचार मजबूर लड़की से तुम्हारी शादी क्यों करेंगे? ये सब कहने की बातें हैं. प्यार का नाटक कर के मेरा सब लूट लोगे, उस के बाद छोड़ कर चल दोगे.’’

‘‘रिंकी, मैं ने तुम्हारे बारे में सब पता कर लिया है. मुझे तुम्हारी पिछली जिंदगी से कोई लेनादेना नहीं है. तुम अपने भविष्य के बारे में सोचो. नर्स की इस मामूली सी नौकरी में यह जीवन बीतने वाला नहीं है. अकेली औरत का इस समाज में जीना आसान नहीं है. मेरा अपना मकान है ही, मेरे घर में भी किसी चीज की कमी नहीं है. मेरे पिता भी मेरी खुशियों में आडे़ नहीं आएंगे. मैं अपनी बात कह कर जा रहा हूं. तुम मेरी बातों पर गौर करना. मैं तुम से झूठ नहीं बोल रहा हूं, यह याद रखना.’’ 

कह कर आलोक ने दरवाजा खोला और निकलने से पहले उस ने रिंकी के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों में ले कर उस के माथे को चूम कर कहा, ‘‘तुम ठंडे दिमाग से विचार करना. मैं तुम्हें सोचने के लिए पूरे 15 दिन दे रहा हूं. इस के बाद तुम अपना फैसला बता देना. अगर तुम नहीं चाहोगी तो मैं तुम्हारे रास्ते में कभी नहीं आऊंगा.’’

आलोक के जाने के बाद रिंकी ने दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर बैठ गई. अब उस की आंखों से नींद गायब हो चुकी थी. वह अपनी जिंदगी के बारे में सोचने लगी. आलोक ने उसे ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया था, जहां से उसे सूझ ही नहीं रहा था कि वह किधर जाए. उसे एक मजबूत सहारे की जरूरत तो थी ही. अगर आलोक अपने वादे पर खरा उतरता है तो वह मजबूत सहारा बन सकता है. यही सब सोचते हुए आखिर रिंकी को नींद ही गई. रिंकी सोई भले देर से थी, लेकिन सुबह अपने समय पर ही उठी. घर के सारे काम निपटा कर वह समय से नर्सिंग होम पहुंच गई. लेकिन उस पूरे दिन उस का मन काम में नहीं लगा. उसे आलोक के किए वादे याद आते रहे. इसी सोचविचार में एकएक कर के 15 दिन बीत गए. 16वें दिन नर्सिंग होम की अपनी ड्यूटी समाप्त कर के रिंकी कमरे पर पहुंची. वह खाना बनाने की तैयारी कर रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई.

रिंकी को समझते देर नहीं लगी कि कौन होगा. उस ने दरवाजा खोला, सचमुच बाहर आलोक खड़ा था. रिंकी कुछ कहती या पूछती, उस के पहले ही वह पूरे अधिकार के साथ अंदर आ गया और दरवाजा बंद कर लिया. इस के बाद चारपाई पर आराम से बैठ कर बोला, ‘‘मैं आज तुम्हारा जवाब जानने आया हूं. तुम अपना निर्णय सुनाओ, उस के पहले एक बार फिर मैं तुम्हें बता दूं कि मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं और तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूं. तुम्हारे मना करने से मैं तुम्हारे रास्ते से तो हट जाऊंगा, लेकिन शायद जी न पाऊं. इसलिए जो भी जवाब देना, खूब सोचविचार कर देना. क्योंकि अब मेरी यह जिंदगी तुम्हारे इसी निर्णय पर निर्भर है.’’

आलोक रिंकी को पूरी तरह इमोशनली ब्लैकमेल कर रहा था. यह बात रिंकी की समझ में नहीं आई. वह इस सोच में डूबी थी कि उसे क्या जवाब दे. वह नासमझ थी, तभी उस के पिता ने उस का विवाह उम्र में दोगुने आदमी के साथ कर दिया था. वह उस के प्रति समर्पित थी, इस के बावजूद वह उसे ठीक से नहीं रख सका. 22 साल की इस छोटी सी जिंदगी में वह परेशानियां ही परेशानियां उठाती रही थी. इस स्थिति में वह आलोक पर कैसे भरोसा करे.

रिंकी ने कोई जवाब नहीं दिया तो आलोक ने उस का एक हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘अभी पढ़ना चाहती हो न? तुम पढ़ो. मैं तुम्हारी मदद करूंगा. तम्हें शायद पता नहीं है कि मेरा छोटा भाई गूंगाबहरा है. इसलिए मैं अपने मांबाप का लाडला हूं. मैं अपने घर में जो कहता हूं, उसे मान लिया जाता है. मैं ने मास मीडिया की डिग्री ली है, जल्दी ही मुझे कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी. अगर मेरे घर वाले तुम्हें नहीं भी अपनाएंगे तो अपने पैरों पर खड़े होने के बाद मैं तुम्हें अपने साथ रखूंगा.’’

इतना कह कर आलोक ने जेब से सिंदूर की डिब्बी निकाली और उस में से एक चुटकी सिंदूर निकाल कर रिंकी की मांग भर दी. जिस तरह अचानक आलोक ने रिंकी की मांग भर दी थी, वह हैरान रह गई. एकबारगी उस की समझ में ही नहीं आया कि यह क्या हो गया? पल भर बाद वह गुस्से में बोली, ‘‘यह कैसा बेहूदा मजाक है. मुझे तुम्हारी यह हरकत बिलकुल अच्छी नहीं लगी. तुम ने जो किया, वह ठीक नहीं है.’’

रिंकी को इस तरह नाराज देख कर आलोक उसे मनाते हुए बोला, ‘‘रिंकी, यह बेहूदा मजाक नहीं, सच्चे प्यार की निशानी है. तुम से कितनी बार कह चुका हूं कि मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं.’’

इस के बाद आलोक जाने और क्याक्या कहता रहा. आलोक ने रिंकी को अपनी इमोशनली ब्लैकमेलिंग वाली बातों से इस तरह इमोशनल कर दिया कि उसे लगा कि आलोक सचमुच उस का सहारा बन सकता है. उस की बातों का उस ने कोई जवाब नहीं दिया तो आलोक उसे झकझोरते हुए बोला, ‘‘क्या सोच रही हो रिंकी, लगता है तुम्हें मेरे ऊपर भरोसा नहीं है? अब तुम्हीं बताओ, तुम्हें भरोसा दिलाने के लिए मैं क्या करूं? अब एक ही उपाय बचा है कि अपने पेट में चाकू घुसेड़ लूं.’’

यह कह कर आलोक एकदम से उठा और रिंकी का सब्जी काटने वाला चाकू उठा कर जैसे ही हाथों को ऊपर उठाया, रिंकी ने उस के हाथ से चाकू छीन कर दूर फेंक दिया और उसे सीने से लग कर बोली, ‘‘आप के बाद इस तरह की बात मुंह से भी मत निकालना.’’

इस के बाद रिंकी ने खाना बनाया तो दोनों ने एक साथ खाना ही नहीं खाया, बल्कि वह रात आलोक ने रिंकी के साथ ही बिताई. इस के बाद तो जैसे रास्ता ही खुल गया. आलोक का जब मन होता, रिंकी से मिलने उस के कमरे पर पहुंच जाता. पैसे की उस के पास कमी नहीं थी, वह रिंकी को शहर में घुमाता, होटल में खाना खिलाता और रात उसी के कमरे पर बिताता. यही नहीं, वह कहीं बाहर जाता तो वहां भी रिंकी को साथ ले जाता. वह जिस होटल में ठहरता, वहां रिंकी को पत्नी के रूप में दर्ज करातारिंकी के अनुसार, आलोक 9 महीने पटना और 3 महीने गया में रहा तो उसे अपने साथ रखा. जब भी कोई आलोक से उस के बारे में पूछता, वह उस का परिचय अपनी पत्नी के रूप में कराता था. गया के बेलागंज स्थित काली मंदिर में आलोक ने देवी के सामने एक बार फिर उस की मांग में सिंदूर भर कर उस के गले में माला डाल कर शादी की थी.

धीरेधीरे दोनों को साथ रहते डेढ़ साल का समय बीत गया. रिंकी आलोक के साथ लिव इन रिलेशन में इस विश्वास के साथ रहती रही कि एक एक दिन आलोक घरवालों के सामने उसे पत्नी बना कर ले जाएगा. आलोक के साथ जगहजगह घूमना और मौजमस्ती करना उसे भी अच्छा लग रहा था. इस बीच रिंकी 2 बार गर्भवती भी हुई, लेकिन दोनों ही बार आलोक ने उस का गर्भपात करा दिया. पहली बार तो उस ने आसानी से गर्भपात करा दिया था, लेकिन दूसरी बार वह गर्भपात नहीं कराना चाहती थी. तब आलोक ने कसम दिला कर उस का गर्भपात कराया था.

आलोक ने जब रिंकी का दूसरी बार गर्भपात कराया तो रिंकी को लगा कि आलोक उसे बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है. रिंकी की इस सोच के पीछे की मुख्य वजह यह थी कि आलोक उसे अब तक अपने घर नहीं ले गया था. रिंकी जब कभी घर चलने और मांबाप से मिलाने को कहती, वह ऐसा बहाना करता कि उसे चुप हो जाना पड़ता. रिंकी इसी कशमकश से जूझ रही थी कि अचानक आलोक की जिंदगी में एक नया मोड़ गया. संयोग से उसे सीआरपीएफ में क्लर्क की नौकरी मिल गई. टे्रनिंग के बाद उस की पहली पोस्टिंग हरियाणा के गुड़गांव में हुई. आलोक को नौकरी मिलने की खुशी रिंकी को भी थी. उस का सोचना था कि पोस्टिंग होते ही आलोक उसे अपने पास बुला लेगा. लेकिन नौकरी मिलते ही आलोक एकदम से बदल गया. वह रिंकी से कटने लगा. अब वह रिंकी को फोन भी नहीं करता था

रिंकी को समझते देर नहीं लगी कि आलोक बदल गया है. अब वह उस से पीछा छुड़ाना चाहता है. पोस्टिंग के बाद आलोक जहानाबाद पहुंचा तो रिंकी ने उस से मिल कर कहा, ‘‘अब तो तुम्हें नौकरी ही नहीं मिल गई, बल्कि सरकारी क्वार्टर भी मिल गया है. इसलिए मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी.’’

आलोक सचमुच उस से पिंड छुड़ाना चाहता था, इसलिए रिंकी को पट्टी पढ़ा कर लापता हो गया. उस के अचानक लापता होने से रिंकी समझ गई कि आलोक उसे बिना बताए गुड़गांव चला गया है. वहां का पता पिंकी के पास था ही, इसलिए उस के पीछेपीछे वह भी गुड़गांव गई. रिंकी के गुड़गांव पहुंचने की जानकारी आलोक को हुई तो वह परेशान हो उठा. वह खुद ही रिंकी से मिला और उसे समझाया कि वह यहां कोई बखेड़ा खड़ा करे. इस के बाद उस ने रिंकी को ले जा कर एक लौज में यह कह कर ठहरा दिया कि वह व्यवस्था कर के उसे अपने कमरे पर ले जाएगा. लेकिन 2-3 दिन बीत जाने पर भी आलोक उसे अपने कमरे पर नहीं ले गया तो चौथे दिन रिंकी खुद ही सीआरपीएफ कैंप कार्यालय जा कर वरिष्ठ अधिकारी से मिली.

उस ने उस अधिकारी से बताया कि वह यहां औफिस में काम करने वाले आलोक भारती की पत्नी है. उस ने उसे अपने साथ रखने के बजाय एक लौज में ठहरा दिया है. अधिकारी ने आलोक को बुला कर पूछताछ की तो उस ने रिंकी को पहचानने से मना कर दिया. रिंकी के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. वह वहां से तो चुपचाप चली आई, लेकिन उस ने हार नहीं मानी. वह गुड़गांव के थाना बादलपुर जा पहुंची. उस ने सारी बात थानाप्रभारी दिलबाग सिंह को बताई तो वह रिंकी को साथ ले कर सीआरपीएफ कैंप कार्यालय पहुंचे और आलोक भारती से थाने चलने को कहा.

खुद को फंसते देख आलोक घबरा गया. उस ने सीआरपीएफ के अधिकारियों और थानाप्रभारी के सामने वादा किया कि वह 1 महीने के अंदर रिंकी से शादी कर लेगा. सीआरपीएफ अधिकारियों ने आलोक को रिंकी से शादी करने के लिए एक महीने की छुट्टी भी दे दीआलोक ने रिंकी को समझाबुझा कर जहानाबाद भेज दिया और वादा किया कि 4 दिनों बाद वह घर जाएगा. इस के बाद वह वहीं घर वालों से कह कर सब के सामने पूरे रस्मोरिवाज के साथ उस से शादी करेगा. रिंकी आलोक की बातों पर विश्वास कर के जहानाबाद गई. 4 दिनों की कौन कहे, धीरेधीरे एक साल बीत गया, आलोक जहानाबाद नहीं पहुंचा.

रिंकी ने आलोक को पाने के लिए न्याय की शरण ली है. उधर आलोक का कहना है कि वह रिंकी को इसलिए जानतापहचानता है क्योंकि जहानाबाद में जहां उस का घर है, उस के ठीक सामने स्थित नर्सिंगहोम में वह नर्स के रूप में काम किया करती थी. अकसर घर से निकलते या घर में जाते समय वह दिख जाती थी. दोनों के बीच बातचीत भी होती थी, एकदो बार उस ने मुसीबत के समय उस की आर्थिक मदद भी की थी, इस से ज्यादा उस का उस से कोई संबंध नहीं है. रिंकी उस पर झूठा आरोप लगा कर उसे बदनाम कर रही है. क्योंकि उस ने उसे सरकारी अस्पताल में नर्स के रूप में काम दिलाने की बात कही थी, जो किन्हीं कारणों से पूरा नहीं हो सका.

(प्रस्तुत कथा रिंकी के बयान और मीडिया सूत्रों से प्राप्त जानकारी पर आधारित)

सच्चिदानंद सिंह/राजीव मणि

पति के होते हुए भी पत्नी ने समलैंगिक संबंध बनाए

बैडमिंटन खेलतेखेलते दीपा शादीशुदा और अपनी से दोगुनी उम्र के बबलू से इस कदर प्यार करने लगी कि अपने घर वालों की खिलाफत के बावजूद भी, उस ने बबलू से शादी कर ली. बाद में सुमन नाम की एक महिला के साथ बनी नजदीकी ने दीपा को समलैंगिक संबंधों तक पहुंचा दिया, फिर… 

‘‘मम्मी मैं जानता हूं कि आप को मेरी एक बात बुरी लग सकती है. वो यह कि सुमन आंटी जो आप की सहेली हैं, उन का यहां आना मुझे अच्छा नहीं लगता. और तो और मेरे दोस्त तक कहते हैं कि वह पूरी तरह से गुंडी लगती हैं.’’ बेटे यशराज की यह बात सुन कर मां दीपा उसे देखती ही रह गई. दीपा बेटे को समझाते हुए बोली, ‘‘बेटा सुमन आंटी अपने गांव की प्रधान है वह ठेकेदारी भी करती है. वह आदमियों की तरह कपड़े पहनती है, उन की तरह से काम करती है इसलिए वह ऐसी दिखती है. वैसे एक बात बताऊं कि वह स्वभाव से अच्छी है.’’

मां और बेटे के बीच जब यह बहस हो रही थी तो वहीं कमरे में दीपा का पति बबलू भी बैठा था. उस से जब चुप नहीं रहा गया तो वह बीच में बोल उठा,‘‘दीपा, यश को जो लगा, उस ने कह दिया. उस की बात अपनी जगह सही है. मैं भी तुम्हें यही समझाने की कोशिश करता रहता हूं लेकिन तुम मेरी बात मानने को ही तैयार नहीं होती हो.’’

‘‘यश बच्चा है. उसे हमारे कामधंधे आदि की समझ नहीं है. पर आप समझदार हैं. आप को यह तो पता ही है कि सुमन ने हमारे एनजीओ में कितनी मदद की है.’’ दीपा ने पति को समझाने की कोशिश करते हुए कहा. ‘‘मदद की है तो क्या हुआ? क्या वह अपना हिस्सा नहीं लेती है? और 8 महीने पहले उस ने हम से जो साढ़े 3 लाख रुपए लिए थे. अभी तक नहीं लौटाए.’’ पति बोला. मां और बेटे के बीच छिड़ी बहस में अब पति पूरी तरह शामिल हो गया था. ‘‘बच्चों के सामने ऐसी बातें करना जरूरी है क्या?’’ दीपा गुस्से में बोली.

‘‘यह बात तुम क्यों नहीं समझती. मैं कब से तुम्हें समझाता रहा हूं कि सुमन से दूरी बना लो.’’ बबलू सिंह ने कहा तो दीपा गुस्से में मुंह बना कर दूसरे कमरे में चली गई. बबलू ने भी दीपा को उस समय मनाने की कोशिश नहीं की. क्योंकि वह जानता था कि 2-4 घंटे में वह नारमल हो जाएगी. बबलू सिंह उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर के इस्माइलगंज में रहता था. कुछ समय पहले तक इस्माइलगंज एक गांव का हिस्सा होता था. लेकिन शहर का विकास होने के बाद अब वह भी शहर का हिस्सा हो गया है. बबलू सिंह ठेकेदारी का काम करता था. इस से उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी इसलिए वह आर्थिकरूप से मजबूत था

उस की शादी निर्मला नामक एक महिला से हो चुकी थी. शादी के 15 साल बाद भी निर्मला मां नहीं बन सकी थी. इस वजह से वह अकसर तनाव में रहती थी. बबलू सिंह को बैडमिंटन खेलने का शौक था. उसी दौरान उस की मुलाकात लखनऊ के ही खजुहा रकाबगंज मोहल्ले में रहने वाली दीपा से हुई थी. वह भी बैडमिंटन खेलती थी. दीपा बहुत सुंदर थी. जब वह बनठन कर निकलती थी तो किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. बैडमिंटन खेलतेखेलते दोनों अच्छे दोस्त बन गए. 40 साल का बबलू उस के आकर्षण में ऐसा बंधा कि शादीशुदा होने के बावजूद खुद को संभाल न सका. दीपा उस समय 20 साल की थी. बबलू की बातों और हावभाव से वह भी प्रभावित हो गई. लिहाजा दोनों के बीच प्रेमसंबंध हो गए. उन के बीच प्यार इतना बढ़ गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

दीपा के घर वालों ने उसे बबलू से विवाह करने की इजाजत नहीं दी. इस की एक वजह यह थी कि एक तो बबलू दूसरी बिरादरी का था और दूसरे बबलू पहले से शादीशुदा था. लेकिन दीपा उस की दूसरी पत्नी बनने को तैयार थी. पति द्वारा दूसरी शादी करने की बात सुन कर निर्मला नाराज हुई लेकिन बबलू ने उसे यह कह कर राजी कर लिया कि तुम्हारे मां बनने की वजह से दूसरी शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. पति की दलीलों के आगे निर्मला को चुप होना पड़ा क्योंकि शादी के 15 साल बाद भी उस की कोख नहीं भरी थी. लिहाजा न चाहते हुए भी उस ने पति को शौतन लाने की सहमति दे दी.

घरवालों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए दीपा ने अपनी उम्र से दोगुने बबलू से शादी कर ली और वह उस की पहली पत्नी निर्मला के साथ ही रहने लगी. करीब एक साल बाद दीपा ने एक बेटे को जन्म दिया जिस का नाम यशराज रखा गया. बेटा पैदा होने के बाद घर के सभी लोग बहुत खुश हुए. अगले साल दीपा एक और बेटे की मां बनी. उस का नाम युवराज रखा. इस के बाद तो बबलू दीपा का खास ध्यान रखने लगा. बहरहाल दीपा बबलू के साथ बहुत खुश थी.

दोनों बच्चे बड़े हुए तो स्कूल में उन का दाखिला करा दिया. अब यशराज जार्ज इंटर कालेज में कक्षा 9 में पढ़ रहा था और युवराज सेंट्रल एकेडमी में कक्षा 7 में. दीपा भी 35 साल की हो चुकी थी और बबलू 55 का. उम्र बढ़ने की वजह से वह दीपा का उतना ध्यान नहीं रख पाता था. ऊपर से वह शराब भी पीने लगा. इन्हीं सब बातों को देखने के बाद दीपा को महसूस होने लगा था कि बबलू से शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी. लेकिन अब पछताने से क्या फायदा. जो होना था हो चुका.

बबलू का 2 मंजिला मकान था. पहली मंजिल पर बबलू की पहली पत्नी निर्मला अपने देवरदेवरानी और ससुर के साथ रहती थी. नीचे के कमरों में दीपा अपने बच्चों के साथ रहती थी. उन के घर से बाहर निकलने के भी 2 रास्ते थे. दीपा का बबलू के परिवार के बाकी लोगों से कम ही मिलनाजुलना  होता था. वह उन से बातचीत भी कम करती थी. बबलू को शराब की लत हो जाने की वजह से उस की ठेकेदारी का काम भी लगभग बंद सा हो गया था. तब उस ने कुछ टैंपो खरीद कर किराए पर चलवाने शुरू कर दिए थे. उन से होने वाली कमाई से घर का खर्च चल रहा था.

शुरू से ही ऊंचे खयालों और सपनों में जीने वाली दीपा को अब अपनी जिंदगी बोरियत भरी लगने लगी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए दीपा ने सन 2006 में ओम जागृति सेवा संस्थान के नाम से एक एनजीओ बना लिया. उधर बबलू का जुड़ाव भी समाजवादी पार्टी से हो गया. अपने संपर्कों की बदौलत उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट दिलवाए. इसी बीच सन 2008 में दीपा की मुलाकात सुमन सिंह नामक महिला से हुई. सुमन सिंह गोंडा करनैलगंज के कटरा शाहबाजपुर गांव की रहने वाली थी. वह थी तो महिला लेकिन उस की सारी हरकतें पुरुषों वाली थीं. पैंटशर्ट पहनती और बायकट बाल रखती थी. सुमन निर्माणकार्य की ठेकेदारी का काम करती थी. उस ने दीपा के एनजीओ में काम करने की इच्छा जताई. दीपा को इस पर कोई एतराज था. लिहाजा वह एनजीओ में काम करने लगी

सुमन एक तेजतर्रार महिला थी. अपने संबंधों से उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट भी दिलवाए. तब दीपा ने उसे अपनी संस्था का सदस्य बना दिया. इतना ही नहीं वह संस्था की ओर से सुमन को उस के कार्य की एवज में पैसे भी देने लगी. कुछ ही दिनों में सुमन के दीपा से पारिवारिक संबंध बन गए. दीपा को ज्यादा से ज्यादा बनठन कर रहने और सजनेसंवरने का शौक था. वह हमेशा बनठन कर और ज्वैलरी पहने रहती थी. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी उस में गजब का आकर्षण था. उसे देख कर कोई भी उस की ओर आकर्षित हो सकता था. एनजीओ में काम करने की वजह से सुमन दीपा को अकसर अपने साथ ही रखती थी. दीपा इसे सुमन की दोस्ती समझ रही थी पर सुमन पुरुष की तरह ही दीपा को प्यार करने लगी थी.

एक बार जब सुमन दीपा को प्यार भरी नजरों से देख रही थी तो दीपा ने पूछा, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो? मैं भी तुम्हारी तरह एक महिला हूं. तुम मुझे इस तरह निहार रही हो जैसे कोई प्रेमी प्रेमिका को देख रहा हो.’’

‘‘दीपा, तुम मुझे अपना प्रेमी ही समझो. मैं सच में तुम्हें बहुत प्यार करने लगी हूं.’’ सुमन ने मन में दबी बातें उस के सामने रख दीं. सुमन की बातें सुनते ही वह चौंकते हुए बोली, ‘‘यह तुम कैसी बातें कर रही हो? कहीं 2 लड़कियां आपस में प्रेमीप्रेमिका हो सकती हैं?’’

 ‘‘दीपा, मैं लड़की जरूर हूं पर मेरे अंदर कभीकभी लड़के सा बदलाव महसूस होता है. मैं सबकुछ लड़कों की तरह करना चाहती हूं. प्यार और दोस्ती सबकुछ. इसीलिए तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुम से शादी भी करना चाहती हूं.’’

‘‘मैं पहले से शादीशुदा हूं. मेरे पति और बच्चे हैं.’’ दीपा ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘मैं तुम्हें पति और बच्चों से अलग थोड़े कर रही हूं. हम दोस्त और पतिपत्नी दोनों की तरह रह सकते हैं. सब से अच्छी बात तो यह है कि हमारे ऊपर कोई शक भी नहीं करेगा. दीपा, मैं सच कह रही हूं कि मुझे तुम्हारे करीब रहना अच्छा लगता है.’’

‘‘ठीक है बाबा, पर कभी यह बातें किसी और से मत कहना.’’ दीपा ने सुमन से अपना पीछा छुड़ाने के अंदाज में कहा.

 ‘‘दीपा, मेरी इच्छा है कि तुम मुझे सुमन नहीं छोटू के नाम से पुकारा करो.’’

‘‘समझ गई, आज से तुम मेरे लिए सुमन नहीं छोटू हो.’’ इतना कह कर सुमन और दीपा करीब आ गए. दोनों के बीच आत्मीय संबंध बन गए थे. सुमन ने रिश्ते को मजबूत करने के लिए एक दिन दीपा के साथ मंदिर जा कर शादी भी कर ली. सुमन के करीब आने से दीपा के जीवन को भी नई उमंग महसूस होने लगी थी कि कोई तो है जो उसे इतना प्यार कर रही है. इस के बाद सुमन एक प्रेमी की तरह उस का खयाल रखने लगी थी. समय गुजरने लगा. दीपा के पति और परिवार को इस बात की कोई भनक नहीं थी. वह सुमन को उस की सहेली ही समझ रहे थे. एनजीओ के काम के कारण सुमन अकसर ही दीपा के साथ उस के घर पर ही रुक जाती थी. 

सुमन को भी शराब पीने का शौक था. बबलू भी शराब पीता था. कभीकभी सुमन बबलू के साथ ही पीने बैठ जाती थी. जिस से सुमन और बबलू की दोस्ती हो गई. सुमन के लिए उस के यहां रुकना और ज्यादा आसान हो गया था. उस के रुकने पर बबलू भी कोई एतराज नहीं करता था. वह भी उसे छोटू कहने लगा. साल 2010 में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए तो सुमन ने अपने गांव कटरा शाहबाजपुर से ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा. सुमन सिंह का भाई विनय सिंह करनैलगंज थाने का हिस्ट्रीशीटर बदमाश था. उस के पिता अवधराज सिंह के खिलाफ भी कई आपराधिक मुकदमे करनैलगंज थाने में दर्ज थे. दोनों बापबेटों की दबंगई का गांव में खासा प्रभाव था. जिस के चलते सुमन ग्रामप्रधान का चुनाव जीत गई. उस ने गोंडा के पूर्व विधायक अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया की बहन सरोज सिंह को भारी मतों से हराया.

ग्राम प्रधान बनने के बाद सुमन सिंह सीतापुर रोड पर बनी हिमगिरी में फ्लैट ले कर रहने लगी. सन 2010 में प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद उस ने अपने संबंधों की बदौलत फिर से ठेकेदारी शुरू कर दी. अपनी सुरक्षा के लिए वह .32 एमएम की लाइसैंसी रिवाल्वर भी साथ रखने लगी. उस की और दीपा की दोस्ती अब और गहरी होने लगी थी. सुमन किसी न किसी बहाने से दीपा के पास ही रुक जाती थी. ऐसे में दीपा और सुमन एक साथ ही रात गुजारती थीं. यह सब बातें धीरेधीरे बबलू और उस के बच्चों को भी पता चलने लगी थीं. तभी तो उन्हें सुमन का उन के यहां आना अच्छा नहीं लगता था. 

सुमन महीने में 20-25 दिन दीपा के घर पर रुकती थी. शनिवार और रविवार को वह दीपा को अपने साथ हिमगिरी कालोनी ले जाती थी. दीपा को सुमन के साथ रहना कुछ दिनों तक तो अच्छा लगा, लेकिन अब वह सुमन से उकता गई थी. एक बार सुमन ने दीपा से किसी काम के लिए साढ़े 3 लाख रुपए उधार लिए थे. तयशुदा वक्त गुजर जाने के बाद भी सुमन ने पैसे नहीं लौटाए तो दीपा ने उस से तकादा करना शुरू कर दिया. तकादा करना सुमन को अच्छा नहीं लगता था. इसलिए दीपा जब कभी उस से पैसे मांगती तो सुमन उस से लड़ाईझगड़ा कर बैठी थी. 27 जनवरी, 2014 की देर रात करीब 9 बजे सुमन दीपा के घर अंगुली में अपना रिवाल्वर घुमाते हुए पहुंची. दीपा और बबलू में सुमन को ले कर सुबह ही बातचीत हो चुकी थी. अचानक उस के धमकने से वे लोग पशोपेश में पड़ गए.

‘‘क्या बात है छोटू आज तो बिलकुल माफिया अंदाज में दिख रहे हो.’’ दीपा बोली.

इस के पहले कि सुमन कुछ कहती. बबलू ने पूछ लिया, ‘‘छोटू अकेले ही आए हो क्या?’’

‘‘नहीं, भतीजा विपिन और उस का दोस्त शिवम मुझे छोड़ कर गए हैं. कई दिनों से दीपा के हाथ का बना खाना नहीं खाया था. उस की याद आई तो चली आई.’’

सुमन और बबलू बातें करने लगे तो दीपा किचन में चली गई. सुमन ने भी फटाफट बबलू से बातें खत्म कीं और दीपा के पीछे किचन में पहुंच कर उसे पीछे से अपनी बांहों में भर लिया. पति और बच्चोें की बातें सुन कर दीपा का मूड सुबह से ही खराब था. वह सुमन को झिड़कते हुए बोली, ‘‘छोटू ऐसे मत किया करो. अब बच्चे बड़े हो गए हैं. यह सब उन को बुरा लगता है.’’

उस समय सुमन नशे में थी. उसे दीपा की बात समझ नहीं आई. उसे लगा कि दीपा उस से बेरुखी दिखा रही है. वह बोली, ‘‘दीपा, तुम अपने पति और बच्चों के बहाने मुझ से दूर जाना चाहती हो. मैं तुम्हारी बातें सब समझती हूं.’’ दीपा और सुमन के बीच बहस बढ़ चुकी थी दोनों की आवाज सुन कर बबलू भी किचन में पहुंच गया. लड़ाई आगे बढ़े इस के लिए बबलू सिंह ने सुमन को रोका और उसे ले कर ऊपर के कमरे में चला गया. वहां दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. शराब के नशे में खाने के समय सुमन ने दीपा को फिर से बुरा भला कहा.

दीपा को भी लगा कि शराब के नशे में सुमन घर पर रुक कर हंगामा करेगी. उस की तेज आवाज पड़ोसी भी सुनेंगे जिस से घर की बेइज्जती होगी इसलिए उस ने उसे अपने यहां रुकने के लिए मना लिया. बबलू सिंह ऊपर के कमरे में सोने चला गया. दीपा के कहने के बाद भी सुमन उस रात वहां से नहीं गई बल्कि वहीं दूसरे कमरे में जा कर सो गई. 28 जनवरी, 2014 की सुबह दीपा के बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. वह उन के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी. तभी किचन में सुमन पहुंच गई. वह उस समय भी नशे की अवस्था में ही थी. उस ने दीपा से कहा, ‘‘मुझ से बेरुखी की वजह बताओ इस के बाद ही परांठे बनाने दूंगी.’’

‘‘सुमन, अभी बच्चों को स्कूल जाना है नाश्ता बनाने दो. बाद में बात करेंगे.’’ पहली बार दीपा ने छोटू के बजाय सुमन कहा था.

‘‘तुम ऐसे नहीं मानोगी.’’ कह कर सुमन ने हाथ में लिया रिवाल्वर ऊपर किया और किचन की छत पर गोली चला दी. गोली चलते ही दीपा डर गई. वह बोली, ‘‘सुमन होश में आओ.’’ इस के बाद वह उसे रोकने के लिए उस की ओर बढ़ी. सुमन उस समय गुस्से में उबल रही थी. उस ने उसी समय दीपा के सीने पर गोली चला दी. गोली चलते ही दीपा वहीं गिर पड़ी. गोली की आवाज सुन कर बच्चे किचन की तरफ आए. उन्होंने मां को फर्श पर गिरा देखा तो वे रोने लगे. बबलू उस समय ऊपर के कमरे में था. बच्चों की आवाज सुन कर वो और उस की पहली पत्नी निर्मला भी नीचे आ गए. निर्मला सुमन से बोली, ‘‘क्या किया तुम ने?’’

‘‘कुछ नहीं यह गिर पड़ी है. इसे कुछ चोट लग गई है.’’ सुमन ने जवाब दिया. निर्मला ने दीपा की तरफ देखा तो उस के पेट से खून बहता देख वह सुमन पर चिल्ला कर बोली, ‘‘छोटू तुम ने इसे मार दिया.’’ दीपा की हालत देख कर बबलू के आंसू निकल पड़े. उस ने पत्नी को हिलाडुला कर देखा. लेकिन उन की सांसें तो बंद हो चुकी थीं. वह रोते हुए बोला, ‘‘छोटू, यह तुम ने क्या कर दिया.’’ वह दीपा को कार से तुरंत राममनोहर लोहिया अस्पताल ले गया जहां डाक्टरों ने दीपा को मृत घोषित कर दिया. चूंकि घर वालों के बीच सुमन घिर चुकी थी. इसलिए उस ने फोन कर के अपने भतीजे विपिन सिंह और उस के साथी शिवम मिश्रा को वहीं बुला लिया. तभी सुमन ने अपना रिवाल्वर विपिन सिंह को दे दिया. विपिन ने रिवाल्वर से बबलू के घरवालों को धमकाने की कोशिश की लेकिन जब घरवाले उलटे उन पर हावी होने लगे वे दोनों वहां से भाग गए

तब अपनी सुरक्षा के लिए सुमन ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. बबलू के भाई बलू सिंह ने गाजीपुर थाने फोन कर के दीपा की हत्या की खबर दे दी. घटना की जानकारी पाते ही थानाप्रभारी नोवेंद्र सिंह सिरोही, एसएसआई रामराज कुशवाहा, सीटीडी प्रभारी सबइंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह, रूपा यादव, ब्रजमोहन सिंह के साथ मौके पर पहुंच गए. हत्या की सूचना पाते ही एसएसपी लखनऊ प्रवीण कुमार, एसपी(ट्रांसगोमती) हबीबुल हसन और सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

बबलू के घर पहुंच कर पुलिस ने दरवाजा खुलवा कर सब से पहले सुमन को हिरासत में लिया. उस के बाद राममनोहर लोहिया अस्पताल पहुंच कर दीपा की लाश कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम हाउस भेज दियापुलिस ने थाने ला कर सुमन से पूछताछ की तो उस ने सच्चाई उगल दी. इस के बाद कांस्टेबल अरुण कुमार सिंह, शमशाद, भूपेंद्र वर्मा, राजेश यादव, ऊषा वर्मा और अनीता सिंह की टीम ने विपिन को भी गिरफ्तार कर लिया. उन से हत्या में प्रयोग की गई रिवाल्वर और सुमन की अल्टो कार नंबर यूपी32 बीएल6080 बरामद कर ली. जिस से ये दोनों फरार हुए थे.

देवरिया जिले के भटनी कस्बे का रहने वाला शिवम गणतंत्र दिवस की परेड देखने लखनऊ आया था. वह एक होनहार युवक था. लखनऊ घूमने के लिए विपिन ने उसे 1-2 दिन और रुकने के लिए कहा. उसे क्या पता था कि यहां रुकने पर उसे जेल जाना पड़ जाएगा. दोनों अभियुक्तों के खिलाफ पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 506 के तहत मामला दर्ज कर के उन्हें 29 जनवरी, 2014 को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर जेल भेज दियाजेल जाने से पहले सुमन अपने किए पर पछता रही थी. उस ने पुलिस से कहा कि वह दीपा से बहुत प्यार करती थी. गुस्से में उस का कत्ल हो गया. सुमन के साथ जेल गए शिवम को लखनऊ में रुकने का पछतावा हो रहा था.

अपराध किसी तूफान की तरह होता है. वह अपने साथ उन लोगों को भी तबाह कर देता है जो उस से जुड़े नहीं होते हैं. दीपा और सुमन के गुस्से के तूफान में शिवम के साथ विपिन और दीपा का परिवार खास कर उस के 2 छोटेछोटे बच्चे प्रभावित हुए हैं. सुमन का भतीजा विपिन भागने में सफल रहा. कथा लिखे जाने तक उस की तलाश जारी थी.

   — कथा पुलिस सूत्रों और मोहल्ले वालों से की गई बातचीत के आधार पर

लव मैरिज की सजा देने के लिए कुल्हाड़ी से दामाद के पैर काटे

बेटी का पड़ोसी से ब्याह करना फूल सिंह को इतना खला कि गुस्से में उस ने पड़ोसी सुरेंद्र का ही नहीं, अपना भी परिवार बरबाद कर दिया.  गांवों में आज भी ज्यादातर घरों में दिन ढलते ही रात का खाना बन जाता है. शाम के यही कोई साढ़े 6 बजे खाना खा कर सुरेंद्र सोने के लिए जानवरों के बाड़े में चला गया था. उस के जाने के बाद सुरेंद्र की पत्नी ममता, बेटा कुलदीप, दीपक, रतन और बहू प्रभा खाना खाने की तैयारी करने लगी थी. सभी खाने के लिए बैठने जा रहे थे कि तभी प्रभा के पिता फूल सिंह पाल, चाचा रामप्रसाद, भाई लाल सिंह उस के मौसेरे भाई टुंडा के साथ उन के यहां पहुंचे

किसी के हाथ में कुल्हाड़ी थी तो कोई चापड़ लिए था तो कोई डंडा. उन्हें इस तरह आया देख कर घर के सभी लोग समझ गए कि इन के इरादे नेक नहीं हैं. वे कुछ कर पाते, उस से पहले ही उन्होंने प्रभा को पकड़ा और कुल्हाड़ी से उस की हत्या कर दी. प्रभा की सास ममता बहू को बचाने के लिए दौड़ी तो हमलावरों ने उसे भी कुल्हाड़ी से काट डाला. ममता प्रभा की 9 महीने की बेटी को लिए थी, हत्यारों ने उसे छीन कर एक ओर फेंक दिया था. 2 लोगों को मौत के घाट उतारने के बाद हमलावरों ने कुलदीप को पकड़ कर जमीन पर गिरा दिया. कुलदीप जान की भीख मांगने लगा तो फूल सिंह ने कहा, ‘‘कुलदीप, तुझे हम जान से नहीं मारेंगे, तुझे तो अपाहिज बना कर छोड़ देंगे, ताकि तू उम्र भर चलने को तरसे और अपनी बरबादी पर रोता रहे.’’

इतना कह कर फूल सिंह ने कुलदीप के दोनों पैर कुल्हाड़ी से काट दिए. सुरेंद्र की बुआ श्यामा और छोटेछोटे बच्चे चीखतेचिल्लाते रहे और गांव वालों से मदद की गुहार लगाते रहे, लेकिन गांव का कोई भी उन की मदद को नहीं आया. लोग अपनीअपनी छतों पर खड़े हो कर इस वीभत्स नजारे को देखते रहे. कुछ ही देर में इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दे कर जिस तरह हमलावर आए थे, उसी तरह फरार हो गए. सुरेंद्र का घर खून से डूब गया था. 2 महिलाओं की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं, जबकि कुलदीप दर्द से तड़प रहा था. हमलावरों के जाने के बाद गांव वाले जुटने शुरू हुए. खबर सुन कर सुरेंद्र और उस के मातापिता, भाई, चाचा आदि गए. लोमहर्षक नजारा देख कर वे सन्न रह गए

सुरेंद्र ने पुलिस चौकी साढ़ को फोन कर के इस घटना की सूचना दी. सूचना मिलते ही चौकीप्रभारी वीरेंद्र प्रताप यादव घटना की सूचना कोतवाली घाटमपुर को दे कर हेडकांस्टेबल अरविंद तिवारी, कांस्टेबल रईस अहमद, भीम प्रकाश, प्रवेश मिश्रा, संजय कुमार के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटना की सूचना पा कर कोतवाली घाटमपुर के प्रभारी गोपाल यादव और सीओ जे.पी. सिंह गांव ढुकुआपुर के लिए चल पड़े थे. ढुकुआपुर से पुलिस चौकी 8 किलोमीटर दूर थी इसलिए पुलिस टीम को वहां पहुंचने में पौन घंटा लग गया. 3 लोगों को खून में लथपथ देख कर पुलिस हैरान रह गई. देख कर ही लग रहा था कि कि यह सब दुश्मनी की वजह से हुआ है.

2 महिलाओं की मौत हो चुकी थी. कुलदीप दर्द से तड़प रहा था. पुलिस ने कुलदीप को स्वरूपनगर के एसएनआर अस्पताल भिजवाया. सूचना मिलने पर एसपी (देहात) अनिल मिश्रा भी वहां गए थे. पुलिस अधिकारियों ने आसपास के लोगों से घटना के बारे में जानना चाहा, लेकिन पुलिस के सामने किसी ने मुंह नहीं खोला. लोग अलगअलग बहाने बना कर वहां से खिसकने लगे. पुलिस समझ गई कि डर या किसी अन्य वजह से लोग कुछ भी बताने से कतरा रहे हैं

हमलावरों ने सुरेंद्र की पत्नी ममता और बहू प्रभा की हत्या कर दी थी, जबकि बेटे कुलदीप के दोनों पैर काट दिए थे. पुलिस ने जब सुरेंद्र से पूछताछ की तो उस ने बताया कि यह सब कुलदीप की ससुराल वालों ने किया है. पुलिस ने सुरेंद्र पाल की ओर से फूल सिंह, उस के बेटे, भाई रामप्रसाद पाल, लाल सिंह, टुंडा उर्फ मामा और रामप्रसाद उर्फ छोटे के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 307, 452, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए कानपुर भिजवा दिया था. इस लोमहर्षक कांड के बाद गांव में दहशत फैल गई थी. गांव वाले दबी जुबान से तरहतरह की बातें कर रहे थे. एसएसपी यशस्वी यादव ने सीओ जे.पी. सिंह को निर्देश दिए कि वह जल्द से जल्द हमलावरों को गिरफ्तार करें. सीओ ने तुरंत ही प्रभारी निरीक्षक गोपाल यादव और चौकीप्रभारी वीरेंद्र प्रताप यादव के नेतृत्व में 2 टीमें गठित कीं

पहली टीम में एसआई अखिलेश मिश्रा, कांस्टेबल धर्मेंद्र सिंह, प्रवेश बाबू और इरशाद अहमद को शामिल किया गया, जबकि दूसरी टीम में हेडकांस्टेबल अरविंद तिवारी, कांस्टेबल रईस अहमद, अजय कुमार यादव और भीम प्रकाश को भी शामिल किया गया. चूंकि आरोपी अपने घरों से फरार थे, इसलिए पुलिस टीमें उन की तलाश में संभावित जगहों पर छापे मारने लगीं. आखिर सुबह होतेहोते पुलिस को सफलता मिल ही गई. पुलिस ने फूल सिंह, लाल सिंह और रामप्रसाद उर्फ छोटे को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो इस खूनी तांडव की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की प्रस्तावना पर लिखी हुई थी.

उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर की एक तहसील है घाटमपुर. यहां से लगभग 50 किलोमीटर दूर बसा है एक गांव ढुकुआपुर. इस गांव में वैसे तो सभी जाति के लोग रहते हैं, लेकिन गड़रियों की संख्या कुछ ज्यादा है. इसी गांव में सुरेंद्र सिंह पाल भी अपने परिवार के साथ रहता था. वैसे सुरेंद्र पाल का पुश्तैनी मकान गांव के बीचोंबीच था, लेकिन भाइयों में जब बंटवारा हुआ तो वह गांव के बाहर खाली पड़ी जमीन पर मकान बना कर रहने लगा. सुरेंद्र के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 3 बेटे, कुलदीप, दीपक और करण थे. कुलदीप पढ़ाई के साथ पिता के काम में भी हाथ बंटाता था. सुरेंद्र के पड़ोस में ही फूल सिंह पाल का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 1 बेटी प्रभा थी. प्रभा और कुलदीप एक ही स्कूल में पढ़ते थे. दोनों आसपास ही रहते थे, इसलिए स्कूल भी साथसाथ आतेजाते थे. दोनों साथसाथ खेलते और पढ़ते हुए जवान हुए तो उन की दोस्ती प्यार में कब बदल गई, उन्हें पता ही नहीं चला.

कुलदीप और प्रभा का प्यार कुछ दिनों तक तो चोरीछिपे चलता रहा, लेकिन वह इसे ज्यादा दिनों तक लोगों की नजरों से छिपा सके. वैसे भी प्यार कहां छिप पाता है. दोनों के प्रेमसंबंधों की बात गांव के लोगों तक पहुंची तो लोग उन के बारे में चटखारे ले ले कर बातें करने लगे. गांव वालों से होते हुए यह बात किसी तरह प्रभा और कुलदीप के घर वालों के कानों तक पहुंची तो फूल सिंह ने पत्नी रानी से बात कर के प्रभा पर पाबंदी लगा दी कि वह घर के बाहर अकेली नहीं जाएगी. कहते हैं, बंदिशें लगाने से मोहब्बत और बढ़ती है. प्रभा की कुलदीप से मुलाकात भले ही नहीं हो पा रही थी, लेकिन फोन के जरिए बात होती रहती थी. चूंकि उन्होंने पहले से ही तय कर लिया था कि वे प्यार में आने वाली हर रुकावट का विरोध करेंगे, इसलिए वे बगावत पर उतर आए. जमाने की परवाह किए बगैर अपने प्यार को मंजिल तक पहुंचाने के लिए वे जनवरी, 2012 में अपनेअपने घरों को छोड़ कर हरियाणा के गुड़गांव शहर चले गए. 

गुड़गांव में कुलदीप का एक दोस्त रहता था. कुलदीप ने उसी की मदद से आर्यसमाज रीति से प्रभा के साथ विवाह भी कर लिया. दोस्त की मदद से उसे दिल्ली की एक फैक्ट्री में नौकरी भी मिल गई. इस के बाद कुलदीप दिल्ली में किराए पर कमरा ले कर प्रभा के साथ रहने लगा. प्रभा के इस तरह भाग जाने से फूल सिंह की बहुत बदनामी हुई. उस ने 16 जनवरी, 2012 को थाना घाटमपुर में कुलदीप के खिलाफ प्रभा को बरगला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. रिपोर्ट में उस ने प्रभा को नाबालिग बताया था. मामला नाबालिग लड़की का था, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र पाल और उस के परिवार वालों पर शिकंजा कसा. मजबूरन कुलदीप को वापस जाना पड़ा

चूंकि कुलदीप के खिलाफ पहले से रिपोर्ट दर्ज थी, इसलिए पुलिस ने कुलदीप को गिरफ्तार कर के पूछताछ की. प्रभा का मैडिकल परीक्षण कराया. मैडिकल में प्रभा की उम्र 18 साल से ऊपर निकली. वह संभोग की अभ्यस्त पाई गई. प्रभा ने कुलदीप की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए कहा था कि उस ने कुलदीप के साथ अपनी मरजी से जा कर शादी की थी. प्रभा ने सुबूत के तौर पर अपने और कुलदीप के शादी के फोटो भी दिखाए. लेकिन पुलिस ने उस की एक सुनी और कुलदीप को अदालत में पेश कर जेल भेज दियामजिस्ट्रेट के सामने प्रभा के बयान कराए गए तो प्रभा ने वही सब कहा जो उस ने पुलिस के सामने चीखचीख कर कहा था. प्रभा के बयान और उस के बालिग होने की रिपोर्ट के मद्देनजर मजिस्ट्रेट ने प्रभा को उस की मरजी के अनुसार जहां और जिस के साथ जाने रहने की इजाजत दे दी.

अदालत के फैसले के बाद प्रभा ने अपने घर के बजाय सासससुर के साथ जाने की इच्छा जताई तो पुलिस ने उसे कुलदीप के घर पहुंचा दिया. बेटी के इस फैसले से फूल सिंह और उस के धर वालों ने बड़ी बेइज्जती महसूस की. कुछ दिनों बाद कुलदीप भी छूट कर घर आ गया. माहौल खराब हो, इसलिए कुलदीप प्रभा को ले कर फिर से दिल्ली चला गया. जनवरी, 2013 में प्रभा ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने शिवानी रखा. समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा. शिवानी भी 9 महीने की हो गई. अपने मातापिता से भी कुलदीप के संबंध ठीक हो गए थे. वह अकसर घर वालों से फोन पर बातचीत करता रहता था. लेकिन फूल सिंह ने बेटी से हमेशा के लिए संबंध खत्म कर लिए थे. कुलदीप बेटी का मुंडन संस्कार कराना चाहता था, इसलिए घर वालों से बात कर के वह पत्नी और बेटी को ले कर 9 अक्तूबर, 2013 को अपने गांव ढुकुआपुर गया.

सुरेंद्र पाल ने मुंडन संस्कार की सारी तैयारियां पहले से ही कर रखी थीं. 10 अक्तूबर को बड़ी धूमधाम से शिवानी का मुंडन संस्कार हुआ. प्रभा के मातापिता ने कुलदीप को अपना दामाद स्वीकार नहीं किया था. वह कुलदीप से खुंदक खाए बैठा था. इसलिए सुरेंद्र ने मुंडन कार्यक्रम में फूल सिंह और उस के परिवार वालों को नहीं बुलाया था. गांव वाले मुंडन की दावत खा कर जब लौट रहे थे तो तरहतरह की बातें कर रहे थे. वे बातें फूल सिंह ने सुनीं तो उस का खून खौल उठा. उस ने उसी समय कुलदीप और उस के घर वालों को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. इस बारे में उस ने मोहद्दीपुर थाना बकेवर में रहने वाले अपने भाई रामप्रसाद से सलाहमशविरा कर के उसे भी शामिल कर लिया. अब इंतजार था, सुरेंद्र के मेहमानों के चले जाने का. 13 अक्तूबर को उस के यहां से सभी मेहमान चले गए. केवल सुरेंद्र की बुआ श्यामा रह गई थीं.

14 अक्तूबर, 2013 की शाम सुरेंद्र खाना खा कर घर से करीब 50 मीटर दूर जानवरों के बाड़े में सोने चला गया. उस की पत्नी ममता बच्चों को खाना खिलाने की तैयारी कर रही थी तभी फूल सिंह, लाल सिंह, रामप्रसाद आदि कुल्हाड़ी, चापड़ और डंडे ले कर सुरेंद्र के घर में दाखिल हुए. घर वाले कुछ समझ पाते उस से पहले उन्होंने प्रभा की हत्या की, क्योंकि उसी की वजह से समाज में उन की नाक कटी थी. ममता बहू को बचाने आई तो उन्होंने उसे भी काट डाला. उस के बाद कुलदीप के दोनों पैर काट दिए. इतना सब कर के वे फरार हो गए. पुलिस ने फूल सिंह, लाल सिंह, रामप्रसाद उर्फ छोटे पाल से पूछताछ कर के सभी को जेल भेज दिया.

पुलिस ने टुंडा उर्फ मामा से पूछताछ करने के बाद उसे छोड़ दिया. पुलिस का कहना था कि उस का एक हाथ कटा था. एक हाथ से वह किसी पर हमला नहीं कर सकता. दूसरे पुलिस जब उस के घर फरीदपुर पहुंची तो वह घर पर ही सोता मिला था. अगर वह हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल होता तो अन्य हमलावरों की तरह वह भी घर से फरार होता. वह आराम से अपने घर में नहीं सो रहा होता. उधर सुरेंद्र का कहना है कि टुंडा घटना में शामिल था. पुलिस ने जानबूझ कर उसे छोड़ दिया. सच्चाई जो भी हो, इस लोमहर्षक कांड ने यह तो साबित कर दिया है कि लोग खुद को कितना भी आधुनिक कहें, लेकिन अभी उन की सोच नहीं बदली है. अगर फूल सिंह बेटी की पसंद को स्वीकार कर लेता तो उसे इस जघन्य अपराध के आरोप में जेल जाना पड़ता. कथा लिखे जाने तक कुलदीप अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था.

   —कथा पुलिस सूत्र और जनचर्चा पर आधारित

पत्नी ने नींद की गोली देकर पति का चाकू से काटा गला

गायत्री रंजीत को प्यार करती थी, लेकिन घर वालों ने अपनी इज्जत बचाने के लिए उस की शादी संजीव से कर दी. नतीजा यह निकला कि गायत्री और रंजीत के प्यार में संजीव बलि का बकरा बन गया…   

त्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद में एक कस्बा है एका. इस कस्बे में थाना भी है. एका कस्बे से कुछ दूर एक गांव है नगलाचूड़. सोनेलाल अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. सोनेलाल के 3 बेटे थे गोपाल, कुलदीप और संजीव. इन के अलावा 2 बेटियां भी थीं. सोनेलाल के पास खेती की जमीन थी, जिस से उस के घरपरिवार का गुजारा बडे़ आराम से हो जाता था. सोनेलाल के बड़े बेटे गोपाल और एक बेटी की शादी  चुकी थी. शादी के बाद गोपाल अपने परिवार के साथ काम के लिए पंजाब गया था. वहां से वह कभीकभी ही घर आता था. सोनेलाल की एक बेटी और बेटा कुलदीप अपनी पढ़ाई कर रहे थे. जबकि संदीप अपने पिता के साथ खेती के कामों में हाथ बंटाता था.

घर की व्यवस्था सोनेलाल की पत्नी सरला के जिम्मे थी. सरला चाहती थी कि संजीव का भी घर बस जाए इसलिए वह 24 साल के संजीव के लिए कोई लड़की देखने लगी. इसी सिलसिले में रिजौर निवासी छबिराम नाम के एक रिश्तेदार ने रिजौर के ही रामबाबू शाक्य की बेटी गायत्री के बारे में बताया. छबिराम की मार्फत सोनेलाल ने रामबाबू से बात की. उन्हें रामबाबू की बेटी गायत्री अपने बेटे संजीव के लिए सही लगी. दोनों ओर से चली बातचीत के बाद संजीव और गायत्री का रिश्ता तय कर के जल्द ही दोनों की शादी कर दी गई. यह लगभग डेढ़ साल पहले की बात है.

खूबसूरत गायत्री से शादी कर के संजीव ही नहीं बल्कि उस के घर वाले भी बहुत खुश थे. लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि आगे चल कर यही खूबसूरत दुलहन कितनी बड़ी मुसीबत बनने वाली है. शादी के बाद गायत्री की शिकायत गायत्री ससुराल तो गई थी पर उस के तेवर किसी की समझ में नहीं रहे थे. संजीव की मां सरला ने सोचा था कि बहू घर जाएगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा. घर की जिम्मेदारी बहू के हवाले कर के वह आराम करेगी, क्योंकि बड़ी बहू शादी के कुछ दिनों बाद ही गोपाल के साथ पंजाब चली गई थी. पर सरला का यह सपना अधूरा रहा. क्योंकि गायत्री पूरे दिन अपने कमरे में बैठी टीवी देखती रहती थी

टीवी से फुरसत मिल जाती तो वह मोबाइल पर लग जाती. वह काफीकाफी देर तक किसी से बातें करती रहती थी. कुछ दिन तक तो सरला ने गायत्री से कुछ नहीं कहा. लेकिन जब पगफेरे के लिए उस का भाई टीटू उसे लेने आया तो सरला ने टीटू से कहा, ‘‘अपनी बहन को समझाओ. वह ससुराल में रहने का सलीका सीखे. यह इस घर की बहू है, इसे यहां बहू की तरह ही रहना होगा.’’

बहन की शिकायत सुन कर टीटू के माथे पर शिकन गई. उस ने घूर कर गायत्री की तरफ देखा लेकिन उस से कहा कुछ नहीं. टीटू के पिता बीमार रहते थे, इसलिए वह ही सब्जी की दुकान चलाता था. भाई के साथ गायत्री अपने मायके गई. घर पहुंचते ही टीटू ने अपनी मां रामश्री से कहा, ‘‘संभालो अपनी लाडली को, यह हमें जीने नहीं देगी.’’

गायत्री अपने कमरे में चली गई. इस के बाद रामश्री और टीटू देर तक बातें करते रहे. रामबाबू कुछ देर बाद घर आया तो उसे भी पता चल गया कि गायत्री के ससुराल वाले उस से खुश नहीं हैं. वह गुस्से में बोला, ‘‘हम ने तो सोचा था कि गायत्री शादी के बाद सुधर जाएगी, पर लगता है ये लड़की उन लोगों को भी नहीं जीने देगी.’’

दरअसल शादी के पहले से ही रामबाबू के घर में तनाव था. इस की वजह यह थी कि गायत्री संजीव से शादी करने से इनकार कर रही थी. पर घर वालों के सामने उस की एक नहीं चली. रामबाबू और रामश्री इस बात को ले कर बहुत चिंतित थे कि कहीं गायत्री की वजह से वह लोग किसी नई परेशानी में पड़ जाएं. रिजौर में ही रामबाबू के घर से कुछ दूरी पर किशनलाल का घर था. उस के बेटे रंजीत ने भी अपने घर वालों को परेशान कर रखा था. यूं तो किशनलाल के 4 बेटे थे, जिन में से 3 पढ़ेलिखे थे पर छोटे बेटे रंजीत का पढ़ाई में मन नहीं लगता था. वह सारे दिन गांव में अपने दोस्तों के साथ गपशप करता रहता था. वह अपने पिता के खेती के काम में भी हाथ नहीं बंटाता था.

रंजीत की जिंदगी में आई गायत्री एक दिन अचानक रंजीत की नजर गायत्री से टकराई और वह उस की ओर खिंचता चला गया. वह उस से बात करने के लिए मौके की तलाश में था. एक दिन मोबाइल की दुकान पर उसे मौका मिल गया, जहां गायत्री अपना मोबाइल रीचार्ज कराने आई थी. उस से बात की शुरुआत करने का कोई बहाना चाहिए था. लिहाजा उस ने गायत्री से कहा, ‘‘गायत्री, देखें तुम्हारा मोबाइल किस कंपनी का है.’’

गायत्री ने उस के हाथ में मोबाइल दे दिया. रंजीत हाथ में मोबाइल ले कर देखते हुए बोला, ‘‘यह मोबाइल तो तुम्हारी तरह ही स्मार्ट है.’’

गायत्री ने उसे घूर कर देखा फिर खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘तुम भी काफी स्मार्ट लगते हो.’’

सुन कर रंजीत की हिम्मत और बढ़ गई. गायत्री वहां से चलने लगी तो रंजीत ने कहा, ‘‘अगर आप बुरा न मानो तो मैं बाइक से तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा.’’ गायत्री मुसकराई और उस की बाइक पर बैठ गई. रंजीत बहुत खुश हुआ. पहली बार किसी लड़की ने उस की दोस्ती कबूल की थी.

‘‘रंजीत वैसे तुम आजकल क्या कर रहे हो.’’ गायत्री ने पूछा.

‘‘इंटरमीडिएट पास कर के घर पर ही मौज कर रहा हूं. वैसे भी तुम्हें तो पता ही है कि घर में किसी चीज की कमी तो है नहीं. जब जिम्मेदारी जाएगी, देखा जाएगा’’ रंजीत बोला, ‘‘गायत्री, क्या तुम अपना मोबाइल नंबर दे सकती हो?’’

‘‘हांहां क्यों नहीं, तुम मुझे अपना मोबाइल नंबर बताओ, मैं मिस्ड काल कर देती हूं.’’ गायत्री बिना किसी झिझक के बोली. बाइक चलातेचलाते रंजीत ने उसे अपना मोबाइल नंबर बता दिया. गायत्री ने तुरंत उस के नंबर पर मिस्ड काल दे दी. गायत्री ने अपने घर से कुछ पहले ही मोटरसाइकिल रुकवा ली और बाइक से उतर कर पैदल अपने घर चली गई ताकि कोई घर वाला उसे बाइक पर बैठे देख ले. उसे उतार कर रंजीत भी मुसकराता हुआ अपने घर चला गया. अगले दिन रंजीत ने अपने मोबाइल पर किसी अनजान नंबर की घंटी सुनी. जैसे ही उस ने हैलो कहा तो दूसरी तरफ से लड़की की आवाज सुनाई दी. वह बोला, ‘‘कौन, किस से बात करनी है.’’

  ‘‘ओह हम ने तो सोचा था कि तुम काफी स्मार्ट हो, पर तुम तो जीरो निकले मि. स्मार्ट.’’ कहते हुए लड़की हंसने लगी

 रंजीत समझ गया कि वह गायत्री है. रंजीत मन ही मन बहुत खुश हुआ. वह सफाई देते हुए वह बोला, ‘‘सौरी गायत्री, मैं समझा किसी और का फोन है. अब मैं तुम्हारा फोन नंबर मोबाइल में सेव कर लूंगा.’’

 ‘‘हां, समझदार दिखते हो. सुनो, आज मुझे 2 घंटे के बाद एटा जाना है. तुम मोड़ पर मिलो.’’ गायत्री ने कहा.

रंजीत निर्धारित समय से पहले ही वहां पहुंच गया. उस के कुछ देर बाद गायत्री भी गई. उस दिन से रंजीत और गायत्री के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. दोनों ही लोगों की नजरों से छिप कर मिलने लगे. लेकिन लाख छिपाने पर भी ऐसी बातें छिप नहीं पातीं. गांव के किसी आदमी ने गायत्री को रंजीत की बाइक पर बैठे देखा तो उस ने रामबाबू को यह बात बता दी. घर वालों की परेशानी बढ़ाई गायत्री ने रामबाबू परेशान हो गया. घर कर उस ने गायत्री से पूछताछ की तो उस ने इस बात से इनकार कर दिया. रामबाबू ने सोचा कि शायद पड़ोसी को कोई गलतफहमी हो गई होगी.

लेकिन अब गायत्री सतर्क हो गई थी. उस का और रंजीत का प्यार परवान चढ़ने लगा था. अपनी मुलाकातों के दौरान प्रेमी युगल भविष्य के सपने बुनने लगा था. हालांकि दोनों की जाति एक थी पर रंजीत तो कोई कामधंधा करता था और ही उस की छवि अच्छी थी. गायत्री अच्छी तरह जानती थी कि घर वाले उस के इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे. दूसरी ओर दोनों के इश्क की खबरें लोगों तक पहुंचने लगी थीं. लोग दोनों के बारे में खुसुरफुसुर करने लगे. कई लोगों ने रामबाबू से शिकायत की कि उसे अपनी बेटी पर कंट्रोल करना चाहिए. लोगों की बातें सुन कर वह परेशान हो गया था. जबकि गायत्री यही कहती कि लोगों को तो बातें बनाने की आदत होती है. फालतू में उसे बदनाम कर रहे हैं.

लेकिन एक दिन गायत्री और रंजीत ने रात को मिलने का फैसला किया. गायत्री के घर के सभी लोग सो चुके थे. देर रात को रंजीत उस के यहां पहुंच गया. गायत्री बाहरी गेट खोल कर उसे अंदर ले आई, पर वह दिन उन की मुलाकात के लिए ठीक नहीं रहा. उस रात गायत्री के भाई टीटू की तबीयत ठीक नहीं थी. वह टौयलेट जाने को उठा तो देखा, मेन गेट की कुंडी खुली हुई है. उसे कुछ शक हुआ तो उस ने गायत्री के कमरे में झांक कर देखा, गायत्री वहां नहीं थी. वह टौयलेट जाने के बजाए तेजी से गेट खोल कर बाहर आया. तभी कोई व्यक्ति छत से कूद कर भाग गया. टीटू भाग कर अंदर आया तो देखा, गायत्री कमरे में थी.

 ‘‘तू कहां गई थी?’’ टीटू ने उस से पूछा.

 ‘‘मैं तो यहीं थी भैया, क्यों क्या हुआ आप कुछ परेशान से दिख रहे हैं?’’ गायत्री ने कहा.

टीटू की समझ में नहीं रहा था कि सच क्या है. कुछ देर पहले गायत्री कमरे में नहीं थी. किसी के छत से कूदने की आवाज भी उस ने सुनी थी, पर देखा किसी को नहीं था. क्या उसे भ्रम हुआ था. पर बाहरी दरवाजे की कुंडी भी खुली हुई थी. उस की समझ में कुछ नहीं रहा था. वह वहां से चुपचाप चला गया. गुपचुप खेला जाने लगा खेल गायत्री ने राहत की सांस ली. वह जानती थी कि अगर भाई ने रंजीत को देख लिया होता तो उस की खैर नहीं थी. अगले दिन उस ने रंजीत को फोन पर सारी बात बताई और सतर्क रहने को कह दिया. इधर टीटू को लगने लगा था कि कुछ तो है जो वह देख नहीं पा रहा, जबकि लोग देख रहे हैं. बहन पर उस का शक पक्का होने लगा था

अब वह गायत्री पर गहरी नहर रखने लगा. गायत्री भी मन ही मन डर गई थी. इधर टीटू ने एक दिन मां से कहा कि वह बहन को ले कर काफी चिंतित है. अगर कोई ऊंचनीच हो गई तो कहीं के नहीं रहेंगे. लेकिन मां ने कहा, ऐसी कोई बात नहीं है, गायत्री ऐसी लड़की नहीं है. एक दिन टीटू ने खुद गायत्री को रंजीत के साथ देख लिया. वह उस के साथ बाइक पर थी. टीटू जब घर आया तो उस ने देखा गायत्री घर पर ही थी. उस ने उस से पूछा कि अभी कुछ देर पहले वह कहां थी. गायत्री ने कहा मैं तो अपनी सहेली के घर गई थी. टीटू को लगा कि वह झूठ बोल रही है. लिहाजा उस ने उस की पिटाई कर दी और कहा, ‘‘आइंदा अगर मैं ने तुझे किसी के साथ देखा तो जान से मार दूंगा.’’

मां को भी लगने लगा कि गायत्री कुछ तो गड़बड़ कर रही है. जब देखो तब बाहर भागने की कोशिश करती है. इसलिए मां ने भी उस से कहा, ‘‘आज से तेरा घर से बाहर जाना बंद, अब घर का काम सीख, वरना ससुराल जा कर हमारी बेइज्जती कराएगी.’’

‘‘मैं क्या कोई कैदी हूं मां, जो मुझे बांध कर रखोगी. आखिर मैं ने किया क्या है.’’ गायत्री ने कहा तो टीटू ने उसे कस कर तमाचा जड़ दिया, ‘‘तू क्या समझती है, हम अंधे हैं.’’

गायत्री रोती हुई कमरे में चली गई और उस ने मौका देख कर रंजीत को सारी बात बता दी. उस ने कहा कि जल्दी कुछ सोचो, वरना ये लोग हमें अलग कर देंगे. अगले दिन टीटू ने रंजीत को रास्ते में रोक कर कहा, ‘‘तू गायत्री का पीछा करना छोड़ दे वरना बुरा होगा.’’ रंजीत ने टीटू को समझाने की कोशिश की कि उसे शायद कोई गलतफहमी हुई है. गायत्री और रंजीत की हकीकत आई सामने इधर रंजीत ने प्रेमिका से मिलने का एक उपाय खोज लिया. उस ने कैमिस्ट से नींद की गोलियां खरीद कर गायत्री को देते हुए कहा कि वह रात के खाने में कुछ गोलियां मिला दिया करे.

फिर दोनों बेखौफ हो कर मिला करेंगे. गायत्री ने अब रात का खाना बनाने की जिम्मेदारी ले ली. इस के बाद वह जब अपने प्रेमी से मिलने का प्रोग्राम बना लेती तो खाने में नींद की गोलियां मिला देती. पूरा परिवार गोलियों के असर से गहरी नींद में सो जाता लेकिन सुबह जब वे लोग उठते तो सब का सिर भारी होता. एक दिन गायत्री की मां रामश्री की रात को नींद खुल गई. उस दिन मां ने गायत्री और रंजीत को रंगे हाथों पकड़ लिया. इस पर घर वालों ने गायत्री की पिटाई कर दी. इस के बाद गायत्री के लिए रिश्ते की तलाश होने लगी. आखिर उन्होंने गायत्री की शादी संजीव से कर के राहत की सांस ली. हालांकि गायत्री ने इस शादी का विरोध किया था लेकिन घर वालों ने उस की एक नहीं सुनी थी.

बेटी की शादी के बाद सब निश्चिंत थे, लेकिन शादी के बाद भी गायत्री के नाजायज संबंध रंजीत से बने रहे. एक दिन रंजीत उस की ससुराल भी पहुंच गया. गायत्री ने उसे अपना दूर का रिश्तेदार बताया. ससुराल वालों ने भी मान लिया, लेकिन बाद में दूर के इस रिश्तेदार का कुछ ज्यादा ही आनाजाना होने लगा तो ससुराल वालों ने आपत्ति जताई. गायत्री नहीं चाहती थी कि यह बात मायके वालों तक जाए. अत: उस ने अब अपना पुराना फारमूला अपनाया. वह ससुरालियों को भी रात के खाने में नींद की गोलियां देने लगी. इस तरह वह ससुराल में भी बेखौफ इश्क लड़ाती रही. गायत्री यह जानती थी कि ऐसा हमेशा नहीं चल सकता.

अब संजीव को भी उस पर शक होने लगा था. उस ने साफ शब्दों में कहा कि अगर अब कभी उस ने रंजीत को घर में देखा तो बुरा होगा. गायत्री पर ससुराल में भी लगाम लगनी शुरू हो गई तो वह परेशान हो उठी. उसे अपना पति ही दुश्मन लगने लगा. एक दिन गायत्री ने तय किया कि संजीव से छुटकारा पाने के बाद ही वह पे्रमी से बेखौफ मिल सकती है. इस बारे में उसे रंजीत से बात की. दोनों ने तय किया कि संजीव को ठिकाने लगा कर वे कहीं दूर जा कर दुनिया बसा लेंगे.

गायत्री को शादी के डेढ़ साल बाद भी बच्चा नहीं हुआ था. गायत्री ने एक दिन अपनी सास से कहा कि एटा में एक अच्छा डाक्टर  है. उस के इलाज से कई औरतों को बच्चा हुआ है. गायत्री ने सास से अपना इलाज उसी डाक्टर से कराने की बात कही. सास ने सोचा, अगर बच्चा हो गया तो गायत्री का मन भी घर में रमने लगेगा. अत: उस ने एटा के डाक्टर से इलाज कराने की इजाजत दे दी. गायत्री को कोई इलाज वगैरह नहीं कराना था, बल्कि यह उस का पति को ठिकाने लगाने का एक षड्यंत्र था.

लिखी जाने लगी हत्या की पटकथा अब गायत्री का खुराफाती दिमाग काम करने लगा. उस ने पति के नाम मौत का वारंट जारी कर दिया और इस के लिए 13 मई, 2018 का दिन भी तय कर दिया. मौत की इस दस्तक से पूरा परिवार बेखबर था. पूरे घटनाक्रम की कहानी मोबाइल पर तय हो गई थी. अपने इस काम में रंजीत ने रिजौर के ही रहने वाले अपने दोस्त राजेश उर्फ पप्पू को भी मिला लिया. 13 मई को गायत्री अपने पति संजीव के साथ बाइक नंबर यूपी 83एएल 6985 से एटा के लिए निकली. उस ने प्रेमी रंजीत को अपने एटा जाने की सूचना दे दी. रंजीत अपने दोस्त राजेश के साथ रिजौर से एटा पहुंच गया. इस के बाद तो बहू और ही बेटा घर वापस लौटे.

शाम तक जब दोनों घर नहीं लौटे तो पूरा परिवार चिंतित हो गया. उन्होंने एका थाने के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भदौरिया को सूचना दे दी और अपने सभी रिश्तेदारों से भी फोन द्वारा पूछा. उन्होंने गायत्री के घर वालों को भी बता दिया था. दोनों का फोन भी स्विच्ड औफ था. रोरो कर घर वालों का बुरा हाल था. इधर मायके वाले परेशान थे कि कहीं गायत्री ने ही तो कुछ नहीं कर डाला. गायत्री और संजीव के गुम होने की सूचना अन्य थानों को भी दे दी गई थी. 18 मई, 2018 को रिजौर के चौकीदार रमेश को किसी ने बताया कि कुरीना दौलतपुर मोड़ के पास जैन फार्महाउस के खेत में एक युवक की लाश पड़ी हुई है. चौकीदार ने तुरंत इस की सूचना रिजौर के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भदौरिया को दी. थानाप्रभारी तुरंत मौके पर पहुंचे

उन्हें वहां एक युवक की लाश मिली, जिस की गला रेत कर हत्या की गई थी. मौके पर काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी लेकिन शव को कोई नहीं पहचान पाया. कुछ दूरी पर पुलिस को एक मोबाइल फोन मिला जिस में मिले नंबर पर काल की गई तो पता चला कि मोबाइल रंजीत नाम के व्यक्ति का है. लेकिन उस के परिवार वालों ने जब लाश देखी तो कहा कि वह उन का बेटा नहीं है. रंजीत और गायत्री की हकीकत आई सामने जब लाश रंजीत की नहीं थी तो उस का मोबाइल वहां क्यों मिला. यह बात कोई नहीं समझ पा रहा था. इसी बीच सोशल मीडिया पर लाश का फोटो वायरल हो गया तो सोनेलाल ने एका थाने से संपर्क किया. पता चला कि जैन फार्महाउस रिजौर में मिलने वाली लाश उन के बेटे संजीव की है. संजीव के घर वाले समझ गए कि जरूर इस हत्या में गायत्री का हाथ है. उन्होंने रिजौर थानाप्रभारी को सारी बात बता दी.

गायत्री का भाई और पिता भी रिजौर आ गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि गायत्री ऐसा कर सकती है. मौके पर संजीव की बाइक भी बरामद हो गई थी, लेकिन गायत्री का कोई अतापता नहीं था. रिजौर थानाप्रभारी ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. पुलिस को गायत्री और रंजीत के प्रेम संबंधों का भी पता चल चुका था. रंजीत भी घर से गायब था. अत: अब पुलिस उन दोनों की तलाश में लग गई. अगले दिन संजीव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. जिसे देख कर पुलिस चौंक गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया कि युवक ने नशे का सेवन किया था. पूछताछ करने पर पता चला कि संजीव तो नशा करता ही नहीं था.

इसी बीच 18 मई, 2018 को मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने प्रेमी युगल को बख्शीपुर तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. दोनों किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे. थाने ला कर गायत्री और रंजीत से पूछताछ की गई. गायत्री ने बताया कि वह तो रंजीत से प्यार करती थी. उसे जबरन प्रेमी से दूर कर के संजीव के गले बांध दिया गया. इसलिए उस ने उस से छुटकारा पाने का निश्चय कर किया. उस ने बताया कि उस ने रंजीत से पूर्व में शादी कर ली थी लेकिन पुलिस को वह शादी की कोई साक्ष्य नहीं दे पाई. रंजीत ने भी अपना गुनाह कबूल करते हुए कहा कि पिछले 2-3 सालों से वह और गायत्री एकदूसरे से प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे लेकिन गायत्री के घर वाले इस के लिए राजी नहीं हुए. गायत्री की शादी के बाद भी वे दोनों अलग नहीं रह पाए और आखिर संजीव को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

गायत्री के प्यार की भेंट चढ़ा संजीव उस दिन जब गायत्री अपने पति के साथ एटा पहुंची तो रास्ते में उस ने बाइक रुकवाई. मौका पा कर वह बोतल में भरे पानी में नींद की गोलियां मिला चुकी थीं. वही पानी उस ने पति संजीव को पीने को दिया. जिस जगह पर बैठ कर उस ने पानी पिया था कुछ ही देर में वह वहीं पर बेहोश हो गया. तभी रंजीत अपने दोस्त के साथ वहां पहुंच गया. राजेश ने संजीव की बाइक संभाली और वह और गायत्री बेहोश हो चुके संजीव को आटो में डाल कर कुरीला गांव के पास दौलतपुर मोड़ पर ले आए. आटो वाले को पैसे दे कर उन्होंने वापस भेज दिया

तभी राजेश भी वहां आ गया, फिर वे लोग संजीव को जैन फार्म हाउस के खेतों में ले आए. जहां गायत्री ने खुद चाकू से अपने पति का गला रेत दिया. इस के बाद राजेश अपने घर चला गया और वह दोनों एटा घूमते रहे. दोनों दिल्ली भाग जाना चाहते थे पर पैसों का इंतजाम करना था, इस से पहले कि वे एटा छोड़ पाते पुलिस के हत्थे चढ़ गए. गायत्री के मायके वालों को जब पता चला कि उन की बेटी ने खुद अपना सुहाग मिटा डाला है तो वे हैरान रह गए. उन्होंने कहा कि अब गायत्री से उन का कोई संबंध नहीं है. उसे उस की करनी की सजा मिलनी ही चाहिए.

संजीव के घर वाले दुखी हैं, उन्होंने तो सोचा तक नहीं था कि वह अपने सीधेसादे बेटे को खो देंगे. पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी के अंतर्गत तीनों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

   — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित