वह पुलिस अधिकारी जिसे रोबोट कहा गया

 दिल्ली पुलिस में इंसानी रोबोट के नाम से मशहूर बलजीत राणा पिछले 20 सालों से बिना कोई छुट्टी लिए रोजाना 16 घंटे काम करते हैं. 66 साल की उम्र में बने हुए उन के जुनून का आखिर राज क्या है…  

धिकांश वेतनभोगी कर्मचारी छुट्टियां पाने के लिए लालायित रहते हैं. विभाग से मिलने वाली हर तरह की छुट्टी का लाभ वे लेने की कोशिश करते हैं. यानी वे किसी भी छुट्टी को जाया नहीं करना चाहतेइस के विपरीत दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ऐसे भी हैं जिन्होंने पिछले 20 सालों से कोई भी छुट्टी नहीं ली. अर्जित अवकाश, आकस्मिक अवकाश, चिकित्सा अवकाश आदि की बात तो छोडि़ए, उन्होंने शनिवार, रविवार के साप्ताहिक अवकाश भी नहीं लिए

पिछले 20 सालों से वह सुबह 7 बजे से रात 11 बजे की ड्यूटी लगातार करते आ रहे हैं. और तो और रिटायर होने के बाद भी वह पहले की तरह अपनी ड्यूटी को अंजाम दे रहे हैं. विभाग में इस अधिकारी को इंसानी रोबोट के नाम से जाना जाता है. इस इंसानी रोबोट का नाम है बलजीत सिंह राणा. बलजीत सिंह राणा मूलरूप से हरियाणा के सोनीपत जिले के कुंडल गांव के रहने वाले श्रीराम राणा के बेटे हैं. उन का जन्म 14 अगस्त, 1952 को हुआ था. श्रीराम राणा आसपास के गांवों में नंबरदार के नाम से जाने जाते थे. उन के 3 बच्चे थे. बेटी शकुंतला, बलजीत सिंह और जगदीश सिंह. इन में बलजीत सिंह मंझले नंबर के थे.

बलजीत सिंह ने 1971 में गांव के ही सरकारी स्कूल से हाईस्कूल की परीक्षा पास की. बलजीत बताते हैं कि उन की दिल्ली पुलिस में भरती मौजमजे में ही हो गई थी. वह दोस्तों के साथ दिल्ली घूमने आए थे. वहां कर पता चला कि किंग्सवे कैंप में दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल की भरती चल रही हैबलजीत भी जा कर कतार में खड़े हो गए. शारीरिक रूप से वह हृष्टपुष्ट थे, इसलिए शारीरिक नापतौल में फिट पाए गए. बाद में उन्होंने दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भरती की सूचना अपने घर वालों को दे दी. यह बात पहली सितंबर, 1972 की है.

कांस्टेबल की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद 1973 में उन की पहली पोस्टिंग राष्ट्रपति भवन में हुई. वहां 4 साल नौकरी करने के बाद उन का ट्रांसफर नई दिल्ली के संसद मार्ग थाने में कर दिया गया. यहां पर इन की ड्यूटी डिप्लायमेंट सेल में लगा दी. इस सेल में काम करने वालों के साथ चौबीसों घंटे सिरदर्दी बनी रहती है. वीआईपी, वीवीआईपी मूवमेंट, विदेशी मेहमानों की सुरक्षा, रूट निर्धारण, विभिन्न धरनाप्रदर्शनों को शांतिपूर्वक संपन्न कराना, फोर्स का इंतजाम करना आदि जिम्मेदारी इसी सेल की होती है. यहां काम करने वालों की ड्यूटी हर वक्त तलवार की धार पर टिकी रहती है.

बलजीत सिंह ने यहां मन लगा कर काम किया. तत्कालीन पुलिस उपायुक्त बी.के. गुप्ता ने सन 1982 में बलजीत सिंह का प्रमोशन कर हैडकांस्टेबल बना कर उन्हें डिप्लायमेंट सेल का इंचार्ज बना दिया. इंचार्ज बन जाने के बाद उन की जिम्मेदारियां बढ़ गईंइस पद पर रहने से जरा सी गलती का होना दिल्ली और देश में बवाल मचाने वाली खबरों को जन्म देना था. डीसीपी बी.के. गुप्ता ने उन्हें इसी संवेदनशील पद की जिम्मेदारी दे दी. उन्होंने अपनी इस जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन किया.

सन 1992 में तत्कालीन डीसीपी कंवलजीत देओल ने बलजीत सिंह का प्रमोशन कर एएसआई बना दिया. अपनी मेहनत के बलबूते वह प्रमोट हो कर सन 1998 में एएसआई से एसआई बन गए. उस समय नई दिल्ली जिले के डीसीपी टी.एन. मोहन और पुलिस कमिश्नर वी.एन. सिंह थे. सबइंसपेक्टर बनने के बाद तो वह एक तरह से दिल्ली पुलिस के ही बन कर रह गए. उन की पोस्टिंग संसद मार्ग थाने में ही डिप्लायमेंट सेल के इंचार्ज के रूप में रही. वह सुबह 7 बजे अपनी ड्यूटी पर पहुंच जाते और रात 11 बजे तक ड्यूटी पर रहते. घर जाने से पहले वह स्टाफ का अरेंजमेंट कर के जाते थे. 

इस के बाद उन का ड्यूटी का यही सिलसिला चलता रहा. उन्होंने किसी भी तरह की कोई छुट्टी नहीं ली. साप्ताहिक अवकाश हो या कोई त्यौहार, वह उस दिन भी अपनी ड्यूटी बखूबी पूरी करते. कहने का मतलब साल के 365 दिन बड़ी ही जिम्मेदारी से अपनी ड्यूटी करते रहे. बारहों महीने लगातार रोजाना 16 घंटे तक ड्यूटी पूरी करने वाले इस पुलिस अधिकारी की विभाग में चर्चा होने लगी. अन्य पुलिस वाले इस बात पर आश्चर्यचकित होने लगे कि लगातार इतनी कठिन ड्यूटी करने के बाद यह कभी बीमार नहीं होते. वास्तव में वह कभी बीमार नहीं हुए.

अपनी ड्यूटी पर पूरी तरह समर्पित रहने वाले बलजीत राणा के सामने कई समस्याएं भी आईं. वह अपने रिश्तेदार या परिचित के शादी समारोह या अन्य सामाजिक कार्यों में भाग नहीं ले पाते. वह अपने बच्चों तक को पर्याप्त समय नहीं दे पाते थे. ऐसे में इन की पत्नी सुशीला ने उन की यह जिम्मेदारी निभाई. वही घर और समाज की सभी जिम्मेदारियां पूरी करती थीं. सरकारी विभागों में डिपार्टमेंटल सर्विस रिकौर्ड शीट में लिखी गई टिप्पणी बहुत कुछ कैरियर पर निर्भर करती है. बलजीत सिंह ने बताया कि नई दिल्ली जिले के तत्कालीन एडीशनल पुलिस कमिश्नर केशव द्विवेदी ने जैसी उन की एसीआर लिखी, वैसी कम ही मिलती है. उन्होंने लिखा था, ‘मैं ने अपनी सर्विस में ऐसा कोई कर्मचारी नहीं देखा, जिस ने छुट्टी ली हो. मैं हैरान हूं. राणा ने 24 घंटे और 365 दिन नौकरी को दिए हैं.’

अपनी ड्यूटी के लिए समर्पित रहने वाले बलजीत सिंह राणा विभाग में एक चलतेफिरते बोलने वाले इंसानी रोबोट के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे. वह सन 2012 में सेवानिवृत्त हो गए. यानी उन्होंने 7454 दिन बिना किसी छुट्टी के रोजाना सुबह 7 बजे से रात 11 बजे तक ड्यूटी की. इसे इत्तफाक ही कहा जाएगा कि जिन आईपीएस अधिकारी बी.के. गुप्ता ने उन्हें नई दिल्ली जिले के डिप्लायमेंट सेल का इंचार्ज बनाया था, उन्हीं बी.के. गुप्ता के पुलिस कमिश्नर के कार्यकाल में बलजीत राणा रिटायर हुए. तत्कालीन पुलिस कमिश्नर बी.के. गुप्ता बलजीत राणा के काम से बहुत खुश थे. उन के रिटायरमेंट के बाद भी वह उन्हें इसी पद पर बनाए रखना चाहते थे. इसलिए वह खुद बलजीत राणा को तत्कालीन उपराज्यपाल के पास ले गए

कमिश्नर ने उपराज्यपाल से बलजीत राणा को कंसलटेंट पद पर बने रहने की अनुमति देने की सिफारिश की तो उपराज्यपाल ने पुलिस कमिश्नर की सिफारिश पर मोहर लगाते हुए बलजीत राणा को कंसलटेंट के पद पर अस्थाई रूप से बने रहने की अनुमति दे दी. साथ ही उन की 10,570 रुपए प्रतिमाह की सैलरी भी निर्धारित कर दी. लेकिन बलजीत ने बिना सैलरी लिए काम करने की इच्छा जाहिर की. पिछले 6 सालों से वह लगातार अपने पुराने रूटीन पर ही संसद मार्ग थाने में बिना कोई पैसे लिए ड्यूटी कर रहे हैं. 66 साल के बलजीत राणा का शरीर अभी भी बहुत फुरतीला है. अभी भी उन के अंदर पहले की तरह ऊर्जा है. 

जब उन से उन के स्वस्थ रहने का राज पूछा तो उन्होंने बताया कि वह रोजाना 5-6 किलोमीटर की दौड़ पूरी कर के योगा करते हैं. इस के बाद हैवी नाश्ता करते हैं. नाश्ते में ड्राईफ्रूट्स के अलावा रोटी, दाल आदि शामिल रहती है. लंच में वह छाछ या एक किलोग्राम दही लेते हैं और शाम को केवल फ्रूट्स. बलजीत सिंह राणा ने अपने 35-36 साल की नौकरी में दिल्ली के नौकरशाही सिस्टम को भी बदलते देखा. सन 1970 में जब वह भरती हुए तो उस समय दिल्ली में आईजी सिस्टम था. उस समय लीली सिंह बिष्ट दिल्ली के आईजी थे. कश्मीरी गेट के रिट्ज सिनेमा के पीछे पुलिस मुख्यालय था. जब कमिश्नर सिस्टम शुरू हुआ तो जे.एन. चतुर्वेदी दिल्ली के पहले पुलिस कमिश्नर बने. तब से अब तक 19 पुलिस कमिश्नरों को उन्होंने विदा होते देखा.

बलजीत भले ही अपने परिवार को समय नहीं दे पाए, लेकिन उन की पत्नी सुशीला ने अपने तीनों बच्चों की जिम्मेदारी पूरी करते हुए बच्चों को काबिल बना दिया. उन की बड़ी बेटी नीलम एक एयरलाइंस में है. वह अपने परिवार के साथ नोएडा में रहती हैं तो वहीं छोटी बेटी आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में टीचर हैं. वह भी पति और बच्चों के साथ आस्ट्रेलिया में रह रही है. बेटा संजीव राणा चंडीगढ़ में स्थित एबीएन एमरो बैंक में अधिकारी है. अपने काम के प्रति निष्ठावान और समर्पित रहने वाले बलजीत राणा को इस उपलब्धि पर कई सम्मान भी मिल चुके हैं. सन 2001 और 2012 में उन्हें राष्ट्रपति मेडल, 2015 में दिल्ली पुलिस का एक्सीलेंस अवार्ड के अलावा कई विदेशी सम्मान भी उन्हें मिल चुके हैं. रिटायर होने के बाद 2 हजार दिनों से ज्यादा वह काम कर चुके हैं. बलजीत राणा का कहना है कि वह अपने अंतिम समय तक दिल्ली पुलिस में फ्री में सेवा करते रहेंगे.

 

ससुर ने बहु के नाजुक अंगों को नोंचा, जला डाला

नीतू के साथ जो हुआ था, वह निस्संदेह अच्छा नहीं था, लेकिन उस के ससुर बाबूलाल ने कोई सही समाधान खोजने के बजाए जो किया, वह और भी बुरा था. बाबूलाल को अब अपनी गलती का अहसास हो भी तो क्या फायदा. अब तो उसे…    

ला की हालत देख कर पुलिस वाले तो दूर की बात कोई भी आम आदमी बता देता कि हत्यारा या हत्यारे मृतका से किस हद तक नफरत करते होंगे. साफ लग रहा था कि हत्या प्रतिशोध के चलते पूरी नृशंसता से की गई थी और युवती के साथ बेरहमी से बलात्कार भी किया गया था. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को जोड़ते जिला शहडोल के ब्यौहारी थाने के इंचार्ज इंसपेक्टर सुदीप सोनी को भांपते देर नहीं लगी कि मामला उम्मीद से ज्यादा गंभीर है. 25 मार्च की सुबहसुबह ही उन्हें नजदीक के गांव खामडांड में एक युवती की लाश पड़ी होने की खबर मिली थी. वक्त गंवा कर सुदीप सोनी ने तुरंत इस वारदात की खबर शहडोल से एसपी सुशांत सक्सेना को दी और पुलिस टीम ले कर खामडांड घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

गांव वाले जैसे उन के आने का ही इंतजार कर रहे थे. पुलिस टीम के आते ही मारे उत्तेजना और रोमांच के उन्होंने सुदीप को बताया कि लाश गांव से थोड़ी दूर आम के बगीचे में पड़ी है. पुलिस टीम जब आम के बाग में पहुंची तो लाश देखते ही दहल उठी. ऐसा बहुत कम होता है कि लाश देख कर पुलिस वाले ही अचकचा जाएं. लाश लगभग 24 वर्षीय युवती की थी, जिस की गरदन कटी पड़ी थी. अर्धनग्न सी युवती के शरीर पर केवल ब्लाउज और पेटीकोट थे. ब्लाउज इतना ज्यादा फटा हुआ था कि उस के होने न होने के कोई माने नहीं थे. दोनों स्तनों पर नाखूनों की खरोंच के निशान साफसाफ दिखाई दे रहे थे. 

पेटीकोट देख कर भी लगता था कि हत्यारे चूंकि उसे साथ नहीं ले जा सकते थे इसलिए मृतका की कमर पर फेंक गए थे. युवती के गुप्तांग पर जलाए जाने के निशान भी साफसाफ नजर आ रहे थे. गाल पर दांतों से काटे जाने के निशान देख कर शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी कि मामला बलात्कार और हत्या का था. खामडांड छोटा सा गांव है जिस में अधिकतर पिछडे़ और आदिवासी रहते हैं इसलिए पुलिस को लाश की शिनाख्त में दिक्कत पेश नहीं आई. लाश के मुआयने के बाद जैसे ही सुदीप सोनी गांव वालों से मुखातिब हुए तो पता चला कि मृतका का नाम नीतू राठौर है और वह इसी गांव के किसान बाबूलाल राठौर की बहू और रामजी राठौर की पत्नी है.

सुदीप ने तुरंत उपलब्ध तमाम जानकारियां सुशांत सक्सेना को दीं और उन के निर्देशानुसार जांच की जिम्मेदारी एसआई अभयराज सिंह को सौंप दी. चूंकि लाश की शिनाख्त हो चुकी थी इसलिए पुलिस के पास करने को एक ही काम रह गया था कि जल्द से जल्द कातिल का पता लगाए. कागजी काररवाई पूरी कर  के नीतू की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. नीतू की हत्या की खबर उस के मायके वालों को भी दे दी गई थी जो मऊ गांव में रहते थे.

मौके पर अभयराज सिंह को कोई सुराग नहीं लग रहा था. अलबत्ता यह बात जरूर उन की समझ में गई थी कि कातिल उन की पहुंच से ज्यादा दूर नहीं है. छोटे से गांव में मामूली पूछताछ में यह उजागर हुआ कि नीतू के घर में उस के ससुर बाबूलाल और पति रामजी के अलावा और कोई नहीं हैनीतू और रामजी की शादी अब से कोई 4 साल पहले हुई थी. बाबूलाल का अधिकांश वक्त खेत में ही बीतता था और इन दिनों तो फसल पकने को थी इसलिए दूसरे किसानों की तरह वह खाना खाने ही घर आता था. फसल की रखवाली के लिए वह रात में सोता भी खेत पर ही था.

इसी पूछताछ में जो अहम जानकारियां पुलिस के हाथ लगीं उन में से पहली यह थी कि रामजी एक कम बुद्धि वाला आदमी है और आए दिन नीतू से उस की खटपट होती रहती थी. दूसरी जानकारी भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं थी कि 2 साल पहले 2016 में इन पतिपत्नी के बीच जम कर झगड़ा हुआ था. झगड़े के बाद नीतू मायके चली गई थी और उस ने ससुर पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया था, पर बाद में सुलह हो जाने पर नीतू वापस ससुराल गई थी.

ब्यौहारी थाने में पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया और नीतू का शव उस के ससुराल वालों को सौंप दिया. दूसरे दिन ही उस का अंतिम संस्कार भी हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की हत्या धारदार हथियार से गला काट कर की गई थी. ये जानकारियां अहम तो थीं लेकिन हत्यारों तक पहुंचने में कोई मदद नहीं कर पा रही थीं. गांव वाले भी कोई ऐसी जानकारी नहीं दे पा रहे थे जिस से कातिल तक पहुंचने में कोई मदद मिलती.

नीतू के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने उस के मायके वालों से पूछताछ की तो उन्होंने सीधेसीधे हत्या का आरोप बाबूलाल और रामजीलाल पर लगाया. उन का कहना था कि शादी के बाद से ही बापबेटे दोनों नीतू को दहेज के लिए मारतेपीटते रहते थे. लेकिन नीतू की हत्या जिस तरह हुई थी उस से साफ उजागर हो रहा था कि हत्या बलात्कार के बाद इसलिए की गई थी कि हत्यारा अपनी पहचान छिपा सके. वैसे भी आमतौर पर दहेज के लिए हत्याएं इस तरह नहीं की जातीं.

रामजी राठौर के बयानों से पुलिस वालों को कुछ खास हासिल नहीं हुआ, क्योंकि बातचीत करने पर ही समझ गया था कि यह मंदबुद्धि आदमी कुछ भी बोल रहा है. पत्नी की मौत का उस पर कोई खास असर नहीं हुआ था. अभयराज सिंह को वह कहीं से झूठ बोलता नहीं लगा. मंदबुद्धि लोगों को गुस्सा जाए तो वे हिंसक भी हो उठते हैं पर इतने योजनाबद्ध तरीके से हत्या करने की बुद्धि उन में होती तो वे मंदबुद्धि क्यों कहलाते.

बाबूलाल से पूछताछ की गई तो उस ने अपने खेत पर व्यस्त होने की बात कही. लेकिन हत्या का शक बेटे रामजी पर ही जताया. इशारों में उस ने पुलिस को बताया कि रामजी चूंकि पागल है इसलिए गुस्से में कर पत्नी की हत्या कर सकता है. बाबूलाल ने अपनी बात में दम लाते हुए यह भी कहा कि मुमकिन है कि नीतू रामजी के साथ सोने से इनकार कर रही हो, इसलिए रामजी को उसे मारने की हद तक गुस्सा गया हो और इसी पागलपन में उस ने नीतू की हत्या कर डाली हो.

यह एक अजीब सी बात इस लिहाज से थी कि हत्या के मामले में किसी भी पिता की कोशिश बेटे को बचाने की रहती है. लेकिन बाबूलाल इस का अपवाद था. हालांकि संभावना इस बात की भी थी कि वह वाकई सच बोल रहा हो क्योंकि रामजी घोषित तौर पर मंदबुद्धि वाला था और गुस्सा जाने पर ऐसा कर भी सकता था. लेकिन इस थ्यौरी में आड़े यही बात रही थी कि कोई मंदबुद्धि इतनी प्लानिंग से हत्या नहीं कर सकता.

अभयराज सिंह ने नीतू के बारे में जानकारियां इकट्ठी करने के लिए एक लेडी कांस्टेबल को काम पर लगा दिया था. अलबत्ता अभी तक की जांच में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई थी जिस से यह लगे कि नीतू के चालचलन में कोई खोट थी. ये सब बातें अभयराज ने जब आला अफसरों से साझा कीं तो उन्होंने बाबूलाल को टारगेट करने की सलाह दी. महिला कांस्टेबल की दी जानकारियों ने मामला सुलझाने में बड़ी मदद की. पता यह चला कि नीतू दूसरी महिलाओं के साथ मजदूरी करने ब्यौहारी जाती थी और शाम तक लौट आती थी. 25 मार्च को यानी हादसे के दिन भी वह मजदूरी करने गई थी. लेकिन लौटते वक्त वह गांव के बाहर से ही अपने ससुर बाबूलाल से मिलने खेत की तरफ चली गई थी

बाबूलाल शक के दायरे में तो पहले से ही था पर इस खुलासे से उस पर शक और गहरा गया था. चूंकि उसे धर दबोचने के लिए कोई पुख्ता सबूत या गवाह नहीं था. इसलिए पुलिस ने बारबार पूछताछ करने का अपना परंपरागत तरीका आजमाया. इस पूछताछ में उस के साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं की गई और ही कोई यातना दी गई. पुलिस ने तरहतरह से उसे धर्मग्रंथों का हवाला दिया कि जो जैसे कर्म करता है उसे वैसा ही फल भुगतना पड़ता है. फिर चाहे वह नीचे धरती पर मिले या ऊपर कहीं मिले.

धर्मगुरुओं  की तरह प्रवचन दे कर जुर्म कबूलवाने का शायद यह पहला मामला था. कर्म फल और पाप पुण्य की पौराणिक कहानियों का बाबूलाल पर वाजिब असर पड़ा और उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. यह डर था या ग्लानि थी यह तो शायद बाबूलाल भी बता पाए, लेकिन नीतू की हत्या की जो वजह उस ने बताई वह वाकई अनूठी थी. कहानी सुनने से पहले पुलिस ने उस की निशानदेही पर खेत में छिपाई गई चप्पलें व साड़ी बरामद करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई.

बहू नीतू की हत्या की वजह बताते हुए बाबूलाल का चेहरा सपाट था. बाबूलाल तब किशोरावस्था में था जब उस के पिता संतोषी राठौर की मौत हो गई थी. शादी के बाद पत्नी भी ज्यादा साथ नहीं निभा पाई, लेकिन इन तकलीफों से बड़ी उस की तकलीफ मंदबुद्धि बेटा रामजी था. जवान होते रामजी को देख बाबूलाल का कलेजा मुंह को आता था कि उस के बाद यह लड़का किस के भरोसे रहेगा. कम अक्ल रामजी को पालतेपोसते बाबूलाल ने कई जगह उस की शादी की बात चलाई लेकिन जिस ने भी रामजी की मंदबुद्धि के चर्चे सुने उस ने बाबूलाल के सामने हाथ जोड़ लिए

खेतीकिसानी बहुत ज्यादा भी नहीं थी, इसलिए बाबूलाल ज्यादा पैसों के लिए खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करता था, जिस के चलते 54 साल की उम्र भी उस पर हावी नहीं हो पाई थी. फिर एक दिन पागल कहे जाने वाले रामजी की तब मानो लाटरी लग गई, जब बात चलाने पर नीतू के घर वाले रामजी से उस की शादी करने तैयार हो गए. नीतू गठीले बदन की चंचल लड़की थी, जिसे पत्नी बनाने का सपना आसपास के गांवों के कई युवक देख रहे थे. 

गोरीचिट्टी नीतू की खूबसूरती के चर्चे हर कहीं थे पर लोग यह जानकर हैरान रह गए कि उस की शादी रामजी से हो रही है, जिसे गांव की भाषा में पागल, सभ्य लोगों की भाषा में मंदबुद्धि और आजकल सरकारी जुबां में मानसिक रूप से दिव्यांग कहा जाता है. जब नीतू के घर वालों ने रिश्ते के बाबत हां भर दी तो बाबूलाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. घर में बहू के पांव पड़ेंगे, अरसे बाद छमछम पायल बजेगी और जल्द ही पोता उस की गोद में होगा जैसी बातें सोच कर वह अपनी गुजरी और मौजूदा जिंदगी के दुख भूलता जा रहा था.

उधर रामजी पर इस का कोई असर नहीं पड़ा था, वह तो अपनी दुनिया में मस्त था, जैसे कुछ हो ही नहीं रहा हो. शादी के नए कपड़े, धूमधड़ाका, बैंडबाजा बारात वगैरह उस के लिए बच्चों के खेल जैसी बातें थीं. पर बाबूलाल का मन कह रह था कि बहू के आते ही वह सुधर भी सकता है. खुशी से फूले नहीं समा रहे बाबूलाल को आने वाली परेशानियों और दुश्वारियों का अहसास तक नहीं था. नीतू बहू बन कर आई तो वाकई घर में रौनक गई. पर यह रौनक चार दिन की चांदनी सरीखी साबित हुई.

सुहागरात के वक्त नीतू शर्माती लजाती कमरे में बैठी पति का इंतजार कर रही थी कि वह आएगा, रोमांटिक और प्यार भरी बातें करेगा, फिर मन की बातों के बाद धीरे से तन की बात करेगा और फिर… फिल्मों और टीवी सीरियलों में देखे सुहागरात के दृश्य नीतू की जवानी और सपनों को पर लगा रहे थे जिन्हें सोच कर ही वह रोमांचित हुई जा रही थी. रामजी कमरे में आया और बगैर कुछ कहे सुने बिस्तर पर गया तो नीतू एकदम से कुछ समझ नहीं पाई. उस रात रामजी ने कुछ नहीं किया तो यह सोच कर नीतू ने खुद के मन को तसल्ली दी कि होगी कोई वजह और आजकल के मर्द भी शर्माने में औरतों से कम नहीं हैं.

यह सिलसिला लगातार चला तो शर्म छोड़ते खुद नीतू ने पहल की लेकिन यह जानसमझ कर वह सन्न रह गई कि रामजी मानसिक ही नहीं बल्कि शारीरिक तौर पर भी अक्षम है. एक झटके में आसमान से जमीन पर गिरी नीतू की हालत काटो तो खून नहीं जैसी हो गई थी. घर के कामकाज करती नीतू को लगने लगा था कि उस की हैसियत एक नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं है और बाबूलाल रामजी ने उसे धोखा दिया है. यह सोच कर वह चोट खाई नागिन की तरह फुंफकारने लगी. इस पर रामजी ने उसे मारना पीटना शुरू कर दिया तो वह मायके चली गई और दहेज की रिपोर्ट भी लिखा दी. बेटेबहू के बीच अनबन की असल वजह जब बाबूलाल को पता चली तो वह अवाक रह गया

अब उसे समझ आया कि क्यों बातबात पर नीतू गुस्सा होती रहती है. इधर दहेज की रिपोर्ट तलवार बन कर उस के सिर पर लटक रही थी. रामजी को तो कोई फर्क नहीं पड़ता था लेकिन पुलिस काररवाई से उस का नप जाना तय था. एक समझदार ससुर की तरह बाबूलाल मऊ नीतू के मायके पहुंचा और दुनिया की ऊंच नीच और इज्जत दुहाई देते उसे मना कर वापस ले आया. यह पिछले साल नवरात्रि की बात है. नीतू दोबारा ससुराल गई. पत्नी क्यों मायके चली गई थी और फिर वापस क्यों गई और सेक्स से अंजान रामजी को इन बातों से कोई सरोकार नहीं था.

हालात देख बाबूलाल के मन में पाप पनपा और उस ने नीतू से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. किसी नएनवेले आशिक की तरह बाबूलाल नीतू की हर पसंदनापसंद का खयाल रखने लगा तो नीतू भी उस की तरफ झुकने लगी. आखिर उसे भी पुरुष सुख की जरूरत थी, जिसे वह कहीं बाहर से हासिल करती तो बदनामी भी होती और गलत भी वही ठहराई जाती. देहसुख का अघोषित अनुबंध तो बाबूलाल और नीतू के बीच हो गया लेकिन पहल कौन और कैसे करे, यह दोनों को समझ नहीं आ रहा था. मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी वाली बात इन दोनों पर इसलिए लागू नहीं हो रही थी कि दोनों के बीच कोई काजी था ही नहीं. दोनों भीतर ही भीतर सुलगने लगे थे पर शायद लोकलाज का झीना सा परदा अभी बाकी था.

यह परदा भी एक दिन टूट गया जब आंगन में नहाती नीतू को बाबूलाल ने देखा. उस के दुधिया और भरे मांसल बदन को देखते ही बाबूलाल के जिस्म में चीटियां सी रेंगी तो सब्र ने जवाब दे दिया. एकाएक उस ने नीतू को जकड़ लिया. नीतू ने कोई एतराज नहीं जताया. वह तो खुद पुरुष संसर्ग के लिए बेचैन थी. उस दिन जो हुआ नीतू के लिए किसी मनोकामना के पूरी होने से कम नहीं था. बाबूलाल को भी सालों बाद स्त्री सुख मिला था, सो वह भी निहाल हो गया.

अब यह रोजरोज का काम हो गया था. दोनों को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. रामजी जैसे ही बिस्तर पर कर सोता था, नीतू सीधे बाबूलाल के कमरे में जा पहुंचती थी. उम्र और रिश्तों का लिहाज नाजायज संबंधों में नहीं होता और आमतौर पर उन का अंत में किसी तीसरे का रोल जरूर रहता है. पर इन दोनों पर यह बात लागू नहीं थी. ससुर की मर्दानगी पर निहाल हो चली नीतू ने एक दिन बाबूलाल से साफ कह दिया कि अब मुझ से शादी करो नहीं तो

इसनहीं तोमें छिपी धमकी बाबूलाल को समझ रही थी और मजबूरी भी, लेकिन जो जिद नीतू कर रही थी उसे वह पूरी नहीं कर सकता था. अब जा कर बाबूलाल को समाज और रिश्तों के मायने समझ आए. समझाने और मना करने पर नीतू झल्लाने लगी थी, जिस से बाबूलाल घबराया हुआ रहने लगा था. नीतू की लत तो उसे भी लग गई थी पर उस पर लदी शर्त उस से पूरी करते नहीं बन रही थी.

साफ है बाबूलाल बहू के जिस्म को तो भोगना चाहता था लेकिन समाज को ठेंगा बता कर उसे पत्नी बनाने की बात सोचते ही उस के पैरों तले से जमीन खिसकने लगती थी. जितना वह समझाता था नीतू उसी तादाद में एक बेतुकी जिद पर अड़ती जा रही थी. अब बाबूलाल नीतू से बचने के बहाने ढूंढने लगा था, जिन में से एक उसे मिल भी गया था कि फसल पक रही है, इसलिए उसे चौकीदारी के लिए खेत पर सोना पड़ेगा. इस के लिए उस ने खेत में झोपड़ी भी डाल ली थी.

नीतू जब शहर से मजदूरी कर लौटती थी तब तक बाबूलाल खेत पर जा चुका होता था. कुछ दिन ऐसे ही बिना मिले गुजरे तो नीतू का सब्र जवाब देने लगा. वैसे भी वह महसूस रह रही थी कि बाबूलाल अब उस में पहले जैसी दिलचस्पी नहीं लेता. 25 मार्च को नीतू जब सहेलियों के साथ लौटी तो उसे याद आया कि अगले दिन उसे मायके जाना है. मायके जाने से पहले वह अपनी प्यास बुझा लेना चाहती थी. इसलिए सीधे खेत पर पहुंच गई और बाबूलाल को इशारा किया कि आज रात वह यहीं रुकेगी तो बाबूलाल के हाथ के तोते उड़ गए, क्योंकि रात में दूसरे किसान तंबाकू और बीड़ी के लिए उस के पास आते रहते थे.

समझाने की कोशिश बेकार थी फिर भी बाबूलाल ने दूसरे किसानों के आनेजाने की बात बताई तो नीतू ने खुद अपने हाथों से अपने कपड़े उतार लिए और धमकी देते हुए बोली, ‘‘खुले तौर पर मुझ से बीवी की तरह पेश आओ नहीं तो पुलिस में रिपोर्ट लिखा दूंगी.’’ उस दिन सुबह वह बाबूलाल से कह भी रही थी कि रात में घर पर ही मिलना. रोजरोज की धमकियों और परेशानियों से तंग आ गए बाबूलाल को कुछ नहीं सूझा तो उस ने बेरहमी से नीतू की हत्या कर दी और स्तनों को खरोंचा, जिस से मामला सामूहिक बलात्कार का लगे. नीतू का गुप्तांग भी उस ने इसी वजह के चलते जलाया था.

नीतू की हत्या पर वह उस की लाश को कंधे पर उठा कर ले गया और आम के बाग में फेंक आया. पुलिस को दिए शुरुआती बयान में वह रामजी को फंसा देना चाहता था जिस से खुद साफ बच निकले. पर ऐसा नहीं हो पाया. ससुर बहू के अवैध संबंधों का यह मामला अजीब इस लिहाज से है कि इसे और ज्यादा ढोने की हिम्मत नीतू में नहीं बची थी और वह अधेड़ ससुर को ही पति बनाने पर उतारू हो आई थी यानी राजकुमार, हेमामालिनी, कमल हासन और पद्मिनी कोल्हापुरे अभिनीत फिल्मएक नई पहेलीकी तर्ज पर वह अपने ही पति की मां बनने तैयार थी.

बड़ी गलती बाबूलाल की है जिस की सजा भी वह भुगत रहा है. उस ने पहले पागल बेटे की शादी करा दी और जब बेटा बहू की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं कर पाया तो खुद पाप की दलदल में उतर गयानीतू रखैल की तरह नहीं रहना चाह रही थी. साथ ही वह दुनियादारी की परवाह भी नहीं कर रही थी, इसलिए उस से छुटकारा पाने के लिए बाबूलाल को उस की हत्या ही आसान रास्ता लगा पर कानून के हाथों से वह भी नहीं बच पाया.

सिख महिला ने भारत में तीन बच्चों को छोड़ा पाकिस्तान में किया निकाह

किरनबाला धार्मिक जत्थे के साथ पाकिस्तान गई तो थी धार्मिक यात्रा पर, लेकिन वहां जा कर उस ने केवल इसलाम धर्म कबूला बल्कि निकाह भी कर लिया. आईएसआई की गतिविधियों के चलते उस की भूमिका संदेह के घेरे में है…   

साल बैसाखी के पर्व पर भारत से सिख हिंदू श्रद्धालुओं का एक जत्था पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब ननकाना साहिब जाता है. वैसे समय समय पर गुरुओं के प्रकाशपर्व या गुरुपर्व पर श्रद्धालु पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारों के दर्शन, सेवा आदि करने जाते रहते हैं. पर 13 अप्रैल, 2018 की बैसाखी के पर्व का अपना एक विशेष महत्त्व होता है.

 वहां जाने वाले श्रद्धालुओं में उस समय एक अजीब सा उत्साह होता है. जो जत्था पाकिस्तान जाता है, उस की तैयारियां और श्रद्धालुओं की बुकिंग का काम कई महीने पहले से ही शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की देखरेख में किया जाता है और जत्थे को सहीसलामत पाकिस्तान ले कर जाने और दर्शन करवा कर वहां से वापस भारत आने तक की जिम्मेदारी एसजीपीसी की ही होती है. इस साल 12 अप्रैल को एसजीपीसी के कार्यकारी सदस्य गुरमीत सिंह की अगुवाई में 717 सदस्यों का जत्था गुरुद्वारा पंजा साहिब में बैसाखी का जश्न मनाने के लिए भारत से पाकिस्तान के लिए रवाना हुआ.

पाकिस्तान के पवित्र मंदिरों, गुरुद्वारों की यात्रा करने के बाद यात्री जत्था जब 21 अप्रैल को वापस भारतपाक बौर्डर पर पहुंचा तो पता चला कि जत्थे में एक यात्री कम है. इस मामले में जब छानबीन की गई तो पंजाब के होशियारपुर जिले के गढ़शंकर की एक सिख महिला किरनबाला जत्थे में नहीं थी. वह तीर्थयात्रा के दौरान गायब हो गई थी. उस समय ऐसा संभव नहीं था कि किरनबाला की तलाश की जाए, अत: जत्था किरनबाला के बिना ही अमृतसर लौट आया. 

किरनबाला हुई लापता बाद में पता चला कि जत्थे से अलग हो कर किरनबाला ने 16 अप्रैल, 2018 को लाहौर में एक मुसलमान युवक से विवाह कर लिया था. यात्रियों से पूछताछ के बाद पता चला कि पंजा साहिब से लाहौर लौटते समय रावी नदी के निकट से ही किरनबाला अचानक बस से गायब हा गई थी. वह अपना सामान भी बस में ही छोड़ गई थी. उस समय इस बात की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया था कि उस के मन में क्या खिचड़ी पक रही है.

किरनबाला एसजीपीसी के प्रतिनिधिमंडल की ओर से बतौर तीर्थयात्री 12 अपैल को पाकिस्तान रवाना हुई थी. वह भारतीय पासपोर्ट पर पाकिस्तानी वीजा के साथ गई थी, जो 21 अप्रैल तक वैध थाबाद में उस ने इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को चिट्ठी लिख कर अनुरोध किया कि मैं ने लाहौर के दारुल उलूम जामिया नईमिया में अपनी मरजी से इसलाम धर्म अपनाया है और लाहौर के हंजरवाल मुलतान रोड निवासी मोहम्मद आजम से निकाह कर लिया है. इसलिए मेरे वीजा की अवधि बढ़ाई जाए ताकि मैं अपने शौहर के साथ पाकिस्तान में रह सकूं.

आवेदन में उस का नाम आमना बीबी लिखा था. मंत्रालय ने उस की अरजी स्वीकार कर वीजा की अवधि 30 दिन के लिए बढ़ा दी. यह मामला पाकिस्तानी मीडिया में भी चर्चित हो गया. यह जानकारी मिलने के बाद एसजीपीसी और भारतीय सुरक्षा एजेंसियों में हड़कंप मच गया. सुरक्षा एजेंसियों को जांच के बाद पता चला कि किरनबाला को सिख जत्थे के साथ श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे के मैनेजर की सिफारिश पर जत्थे के साथ पाकिस्तान भेजा गया था. जब मैनेजर के बारे में पता किया गया तो जानकारी मिली कि वह छुट्टी ले कर कनाडा जा चुका है.

खुफिया एजेंसियों ने मैनेजर का भी रिकौर्ड खंगालना शुरू कर दिया कि उस की ओर से अब तक पाकिस्तान गए सिख श्रद्धालुओं के जत्थे में किनकिन लोगों की सिफारिश की गई है. कुछ केंद्रीय एजेंसियों और राज्य की खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों ने भी एसजीपीसी के कर्मचारियों से बात कर के तथ्य जुटाने की कोशिश की. खुफिया एजेंसियों का अलर्ट खुफिया एजेंसियां यह पता लगाने की कोशिश कर रही थीं कि किरनबाला ने जत्थे के साथ जाने के लिए अपने क्षेत्र के एसजीपीसी के सदस्यों से सिफारिश करवा कर अमृतसर जिले के रहने वाले उस मैनेजर से ही क्यों सिफारिश करवाई. यह मैनेजर एक पूर्वमंत्री के पीए का अतिकरीबी था.

किरनबाला पंजाब में अपने 3 बच्चे छोड़ गई थी, जिन में 2 बेटे और एक बेटी है. लेकिन पाकिस्तान में मोहम्मद आजम से शादी करने के बाद वह अपने 3 बच्चों के होने से भी मुकर गई. उस ने पाकिस्तानी मीडिया से कहा कि उस के कोई बच्चा नहीं है. अपने तीनों बच्चों को उस ने अपनी मौसी के बच्चे बताया. जबकि उस की सास और ससुर ने बताया कि किरनबाला वैसे तो 5 बच्चों की मां है. उस के एक बच्चे की मौत उस के जन्म के 4 दिन बाद ही हो गई थी, जबकि दूसरा बच्चा मृत पैदा हुआ था.

अपनी बात को साबित करने के लिए उस के ससुर तरसेम सिंह ने किरनबाला का आधार कार्ड, राशन कार्ड और किरनबाला के तीनों बच्चों के जन्म प्रमाणपत्र, बीपीएल कार्ड और बेटी के साथ खोले गए बैंक खाते की प्रतियां भी दिखाईं. पाकिस्तान जाते समय किरनबाला 12 साल की अपनी बड़ी बेटी को यह समझा कर गई थी कि वह 21 तारीख को लौट आएगी. तब तक वह अपने छोटे भाइयों का ध्यान रखे. उस ने बच्चों को यह भी समझाया था कि वह दादादादी की बात मानें और घर में किसी को तंग करें.

किरनबाला की पृष्ठभूमि किरनबाला का परिवार मूलरूप से पठानकोट के गांव शेरपुर का निवासी था. लेकिन उस के पिता मनोहरलाल लंबे समय से उत्तरी दिल्ली के मुखर्जीनगर इलाके में रहने लगे थे. किरन का जन्म पंजाब के होशियारपुर  के गढ़शंकर गांव में हुआ था. मातापिता के अलावा मायके में उस की एक छोटी बहन और छोटा भाई है. बहन की शादी हो चुकी है, जबकि भाई दिल्ली में पुरानी गाडि़यों की खरीदफरोख्त का काम करता है.

किरनबाला के ससुर तरसेम सिंह के मुताबिक, वह सन 1971 की जंग में भारतीय सेना में सेवा के दौरान जख्मी हो गए थे. इस के बाद वह वीआरएस ले कर घर लौट आए थे. सन 2005 में वह अपने बेटे को फौज में भरती कराने के लिए दिल्ली गए थे. दिल्ली प्रवास के दौरान उन के बेटे नरिंदर की किरनबाला से मुलाकात हो गई. किरन का घर भरती केंद्र के पास ही था. उस वक्त किरनबाला 10वीं कक्षा में पढ़ती थी. इस दौरान कब उन के बेटे और किरन के बीच प्यार परवान चढ़ा, इस का पता परिजनों को भी नहीं लगा और फिर एक दिन उन का बेटा नरिंदर किरनबाला को साथ ले कर घर आ गया.

उस ने बताया कि किरन अपना घर छोड़ कर उस के साथ घर बसाने के लिए आई है और अब वह इस घर की बहू बन कर यहां रहेगी. उस समय किरन की उम्र 18 साल थी. शादी के बाद किरन ने 5 बच्चों को जन्म दिया, जिन में से 2 बच्चों की मौत हो गई थी और 3 बच्चे मौजूद हैंनरिंदर की सेना में भरती तो नहीं हो सकी पर उस ने एक गैस एजेंसी में डिलीवरीमैन का काम करना शुरू कर दिया था. वह थोड़ेथोड़े समय बाद दिल्ली जाया करता था. इसी बीच नवंबर, 2013 को एक दुर्घटना में नरिंदर की मौत हो गई.

बेटे की मौत के बाद नवंबर, 2013 में ही किरन घर छोड़ कर अपने मायके दिल्ली चली गई थी. अपने पोतीपोतों के बिना तरसेम का मन नहीं लग रहा था तो वह बहू और बच्चों को लेने के लिए दिल्ली चले गए और बाकायदा एग्रीमेंट कर के किरनबाला को अपने यहां ले आए. उन्होंने कई बार किरनबाला से दूसरी शादी करने की भी बात कही और कहा कि वह खुद अपनी बेटी की तरह उस का कन्यादान करेंगे, लेकिन वह दूसरी शादी के लिए राजी नहीं हुई. लिहाजा अब उस का इस तरह घर छोड़ कर पाकिस्तान जाना और निकाह करना तरसेम सिंह की समझ में नहीं रहा था.

वहीं किरनबाला की सास कृष्णा कौर के मुताबिक, बेटे की मौत के बाद किरनबाला का चालचलन कुछ अच्छा नहीं रहा था. कई बार उन्होंने उसे रंगेहाथ पकड़ भी लिया था. इस बीच साल डेढ़ साल के लिए उस ने नंगल के करीब टाहलीवाल में एक फैक्ट्री में भी काम किया, लेकिन जब लोग उस के बारे में तरहतरह की बातें बनाने लगे तो उन्होंने उसे काम करने से मना कर दिया था. किरन की बदल गई पहचान तरसेम सिंह का कहना है कि अगर उन्हें जरा भी पता होता कि किरन के मन में ऐसा कुछ चल रहा है तो वह उसे किसी भी कीमत पर पाकिस्तान नहीं जाने देते. पाकिस्तान जाने के बाद 15 तारीख तक तो वह लगातार उन्हें फोन कर के बच्चों और परिवार का हाल जानती रही थी लेकिन एकाएक उस ने बच्चों परिवार से मुंह मोड़ लिया

इस के बाद 16 तारीख को उस ने तरसेम सिंह को फोन कर के कहा, ‘‘पिताजी, अब मैं लौट कर नहीं आऊंगी. मैं ने यहां इसलाम धर्म कबूल कर के मोहम्मद आजम नाम के शख्स से निकाह कर लिया है. और अब मेरा नाम आमना बीबी हो गया है.’’ तरसेम सिंह को लगा कि किरन मजाक कर रही है. इस पर उन्होंने उस से कहा, ‘‘क्यों मजाक करती हो बेटा. छोड़ो कोई बात नहीं, तुम यात्रा पूरी कर के जल्दी घर आ जाओ. बच्चे और हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

इस के बाद किरन का कोई फोन नहीं आया और ही उस से कोई संपर्क हो सका था. 18 अप्रैल, 2018 को जब तरसेम सिंह को एक अंतरराष्ट्रीय संवाद एजेंसी के पत्रकार का फोन आया और उस ने भी वही बात दोहराई तो वह चकित रह गए. तरसेम का मानना है कि किरन शायद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई या आतंकी संगठनों की साजिश का शिकार हो सकती है. जिस तरह वह बात कर रही है और जो बोल रही है, उस से जाहिर है कि उस का ब्रेनवाश किया गया है. अब वह वही बोल रही है जो आईएसआई या आईएसआईएस के लोगों ने उसे सिखाया होगा.

लेकिन इतना सब होने के बावजूद अब भी वह बच्चों की खातिर किरनबाला को वापस लाना चाहते हैं ताकि वह किसी साजिश का शिकार हो कर नारकीय जीवन जीने को मजबूर हो सके और बच्चे भी मां की देखभाल से महरूम रहें. तरसेम सिंह ने अंदेशा जताया कि शायद सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए वह पाकिस्तान के लोगों के संपर्क में आई होगी. इस के बाद वह शायद आईएसआई के हाथों में पड़ गई हो. यह भी हो सकता है कि उसे धर्म परिवर्तन या फिर से शादी करने के लिए मजबूर किया गया हो.

किरनबाला ने फैक्ट्री में काम कर के बचाए अपने पैसों को अपने पास ही रखा था. पति की मौत के बाद मुआवजे के तौर पर मिले 25 हजार रुपए भी उसी के पास थे. इन्हीं पैसों से साल भर पहले उस ने एक स्मार्टफोन खरीदा था, जिस के बाद वह सोशल नेटवर्किंग साइटों से जुड़ी और सोशल नेटवर्क पर चैटिंग और वाइस काल में ऐसी डूबी कि ये कारनामा कर डाला. वह घंटों तक फोन पर बातें करती रहती थी. जब उस के ससुर उस पूछते तो वह अपनी मां, भाई या किसी अन्य रिश्तेदार से बात करने की बात कह कर टाल देती थी.

तरसेम सिंह उसे फोन पर ज्यादा बात करने को ले कर टोकते थे, लेकिन उस ने कभी उन की एक नहीं सुनी और फोन पर उस की यह बातचीत लगातार बढ़ती ही चली गई. सोशल नेटवर्किंग से जुड़ी मोहम्मद आजम से किरनबाला की पड़ोसन और सहेली रही गिस्टी ने बताया था, ‘‘पति की मौत के बाद अपने मायके दिल्ली रहने के दौरान ही वह मोहम्मद आजम के संपर्क में आई थी.’’ किरन ने मुझे बताया था कि आजम दुबई में रहता है. पाकिस्तान जाने से पहले किरन ने अपने बैंक खाते से साढ़े 14 हजार रुपए निकलवाए थे. किरन फेसबुक पर ज्यादा सक्रिय थी. वह बिग लाइव, एक वीडियो आधारित सोशल नेटवर्क साइट पर भी बहुत सक्रिय थी.

किरन ने नरिंदर के साथ प्रेम विवाह करने के लिए हिंदू धर्म से सिख धर्म अपनाया था और अब मोहम्मद आजम से निकाह करने के लिए इसलाम धर्म को कबूल कर लिया. पाकिस्तान जाने से पहले वह दिल्ली के अस्पताल में अपने बीमार पिता को भी देखने गई थी. किरन द्वारा यह कदम उठाने के बाद उस के बच्चे भी डरने लगे हैं. किरन की बेटी अपनी मां के धर्म परिवर्तन कर पुनर्विवाह करने पर काफी शर्मिंदा है. वह स्कूल जाना नहीं चाहती. वह कहती है कि बच्चे उसे तंग करते हैं और उस का मजाक उड़ाते हैं. किरन की भूमिका संदेह के घेरे में इस बीच होशियारपुर, महिलपुर और गढ़शंकर के सभी निर्वाचित और चुने गए एसजीपीसी सदस्यों ने किरन के लिए वीजा की सिफारिश करने से इनकार कर दिया. सुरिंदर सिंह भुलेवाल राथन, जंगबहादुर सिंह, रणजीत कौर और चरनजीत सिंह ने कहा कि उन्हें बैसाखी तीर्थयात्रा के लिए उस का कोई आवेदन नहीं मिला था.

तरसेम सिंह ने अब इस मामले में एसजीपीसी की भूमिका पर सवाल उठाए हैं. उन का कहना है कि इस मामले में एसजीपीसी उन की लगातार अनदेखी कर रही है. लिहाजा, इस की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए. उन्होंने मांग की है कि किरन को वीजा दिलाने के लिए मदद करने वालों, उस के नाम की सिफारिश करने वाले एसजीपीसी के अधिकारियों और अन्य लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया जाना चाहिए. तरसेम सिंह ने होशियारपुर के एसएसपी को दी गई शिकायत में देश को बदनाम करने और धोखा देने के आरोप में किरनबाला के खिलाफ भी मामला दर्ज किए जाने की मांग की. उन्होंने आरोप लगाया है कि इस पूरे प्रकरण में पाकिस्तानी पुलिस भी शामिल रही है. किरन पाकिस्तानी पुलिस के संपर्क में थी.

तरसेम सिंह ने बताया कि नंगल के रहने वाले और पाकिस्तान जत्थे में गए नछत्तर सिंह से उन की फोन पर बात हुई थी. तरसेम के मुताबिक, नछत्तर ने उन्हें बताया था कि पाकिस्तान में प्रवेश करने के बाद से ही पाकिस्तानी पुलिस किरन के आसपास मंडरा रही थी. पाकिस्तानी पुलिस के अधिकारी और कर्मचारी थोड़ीथोड़ी देर में उस से बातचीत कर रहे थे.

नछत्तर का कहना था कि लाहौर पहुंचने के बाद जब जत्थे में शामिल महिलाओं पुरुषों को अलगअलग कमरों में भेजा गया तो भी पाकिस्तानी पुलिस के कर्मचारी किरन से मिलते रहे थे. इस के बाद 15 अप्रैल तक लगातार किरन जत्थे के साथ रही और पाकिस्तान पुलिस ने उस से संपर्क बनाए रखा था. इस के बाद 16 अप्रैल को वह रुमाला लाने के बहाने से जत्थे से अलग हो कर गायब हो गई थी. इस मामले की होनी  चाहिए उच्चस्तरीय जांच तरसेम सिंह ने एसएसपी को शिकायती पत्र दे कर किरन के वहां जाने, जत्थे में शामिल होने और वहां से गायब होने के मामले में एसजीपीसी के अधिकारियों और पदाधिकारियों पर संदेह जताते हुए मामले की जांच कराए जाने और संबंधित लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर कड़ी काररवाई किए जाने की मांग की है.

तरसेम सिंह ने किरनबाला को पाकिस्तान सरकार से तालमेल कर वापस लाए जाने की मांग को ले कर भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अविनाश राय खन्ना से भी मुलाकात की. खन्ना को दिए पत्र में तरसेम सिंह ने कहा है कि किरनबाला को पाकिस्तान से वापस ला कर परिवार को सौंपा जाए, ताकि उस के बच्चों की परवरिश सही ढंग से हो सके. दूसरी ओर, किरनबाला उर्फ आमना बीबी ने पति मोहम्मद आजम के साथ लाहौर हाईकोर्ट में अब याचिका दायर की है. इस में बताया गया है कि उस ने दिल्ली में रहते हुए पहले फेसबुक के माध्यम से लाहौर निवासी मोहम्मद आजम से दोस्ती की थी और अब पाकिस्तान आ कर रजामंदी से इसलाम धर्म कबूल कर के उस ने निकाह भी कर लिया है. इसलिए पाकिस्तान सरकार उसे यहां की नागरिकता दे, यह उस का अधिकार है.

इस सब के बीच आमना बीबी बनने के बाद उस के पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने के वायरल वीडियो ने खुफिया एजेंसियों को सकते में डाल दिया है. इस से उस के ससुर तरसेम सिंह की इस बात को बल मिल रहा है कि कहीं वह आईएसआई की एजेंट तो नहीं बन गई. वीडियो फुटेज में किरनबाला अपने नए पाकिस्तानी पति मोहम्मद आजम के साथ कोर्ट के बाहर खड़ी दिखाई दी. बहरहाल, यह दिल का मामला है या कोई बड़ी साजिश, कहा नहीं जा सकता. परंतु किरनबाला से आमना बीबी बनी पाकिस्तान की नई दुलहन के बारे में अब ताजा बात यह सामने आई है कि अपने फेसबुक के प्रेम और इसलाम धर्म के साथ वफादारी निभाते हुए उस ने लाहौर स्थित अपने घर में रोजे रखे. किरन वहां पर बच्चों से उर्दू भी सीख रही है और कुरआन शरीफ की आयतें भी याद कर रही है.

इन दिनों उस का पति काम के सिलसिले में सऊदी अरब चला गया है. पंजाब पुलिस और अन्य खुफिया एजेंसियां अब किरन के फेसबुक एकाउंट को स्कैन कर के गहनता से इस मामले की जांच कर रही हैं.

  

जादुई चश्मा जिससे समुद्र के अंदर तेल और दिखता था यूरेनियम का भंडार

गुजरात में कारोबार करने गए कारोबारी भानुप्रताप को बंधक बना कर बदमाशों ने 21 लाख रुपए ठगे थे. इस के बाद भानुप्रताप ने भी गुजरात के कारोबारियों को जादुई चश्मा के नाम पर ऐसा ठगना शुरू किया कि…   

लालच बुरी बला होती है. यह समझते हुए भी गुजरात के कुछ कारोबारी बदमाशों के चंगुल में फंस करजादुई चश्माऔर नेपाल की महारानी केहीरों का हारलेने के लिए बदमाशों के चंगुल में फंस जाते थे. बदमाशों ने अपना जाल गुजरात, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे 3 प्रदेशों में फैला रखा थागुजरात से शिकार को फंसा कर लखनऊ बुलाया जाता था, फिर उन्हें लखनऊ में रखा जाता था. लाखों की फिरौती देने के बाद भी कारोबारी बदमाशों की पकड़ से आजाद नहीं हो पाता था. बदमाश फिरौती लेने के लिए अमानवीय व्यवहार करते थे. लखनऊ पुलिस ने इन लोगों को पकड़ कर 3 राज्यों में फैले इस ठगी के कारोबार का परदाफाश कर दिया.

‘‘मोटा भाई, यह बात केवल खास लोगों को ही बताता हूं. आप मेरे लिए बहुत खास हो और यह जादुई चश्मा आप के लिए बहुत खास है. आप जैसे लोगों के लिए ही इसे बनाया गया है.’’

भानु ने गुजरात के जूनागढ़ में रहने वाले कारोबारी सुरेशभाई से कहा. ‘‘तुम्हारी बात सही है भाया, पर यह तो बताओ कि तुम्हारे इस खास जादुई चश्मे का राज क्या है? क्याक्या दिखता है इस से?’’ सुरेश ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मोटा भाई, यह पूछो क्या नहीं दिखता. समुद्र के अंदर कहां तेल और यूरेनियम हो सकता है, किसी पुरानी हवेली में कहां खजाना हो सकता है, हीरे की खदानें कहां हैं, यह सब इस जादुई चश्मे से दिख जाता है.’’ भानु ने जादुई चश्मे की खासियत बताते हुए कहा.

‘‘बहुत करामाती चश्मा है यह तो.’’ जादुई चश्मे के गुण सुन कर सुरेश चकित रह गया.

 ‘‘और नहीं तो क्या मोटा भाई. सालों की मेहनत का नतीजा है. सरकार इसे बाजार में बेचना थोड़े ही चाहती है. इसलिए नजर बचा कर बेचना पड़ रहा है.’’ जादुई चश्मा के बारे में भानु ने ज्यादा जानकारी देते हुए कहा.

‘‘कितनी गहराई तक देख लेता है?’’ सुरेशभाई की उत्सुकता लगातार बढ़ती जा रही थी.

‘‘मोटा भाई, 7 फीट गहराई में तो यह साफ देख लेता है. अगर उस से गहरा कुछ है तो यह सिगनल भेज देता है.’’ भानु ने उस की दूसरी खासियत भी बताई.

‘‘तब तो यह कपड़ों के आरपार भी देख लेता होगा?’’ सुरेशभाई का लालच बढ़ गया था.

‘‘मोटा भाई, एक रुपए में 6 चवन्नी करना चाहते हो तो जादुई चश्मा ले लो फिर देखना क्याक्या दिखता है.’’ सुरेश की उत्सुकता को देख कर भानु ने कहा.

‘‘इस की कीमत तो बताई नहीं?’’

‘‘इस की कीमत तो माटी के भाव जैसी है. केवल एक करोड़ रुपए.’’

‘‘यह तो बहुत ज्यादा है.’’

‘‘ज्यादा नहीं है. एक बार भी इसे लगा कर वह दिख गया जो सब को नहीं दिखता तो कीमत से कई गुना मिल जाएगा.’’

‘‘कुछ भी हो पर एक करोड़ होता तो ज्यादा ही है. कैसे देखने को मिलेगा?’’

‘‘मोटा भाई, ज्यादा लग रहा है तो 2 लोग मिल कर ले लो. आप दोनों को लखनऊ आने का हवाई टिकट करा देता हूं. यहां होटल में रुको, चश्मा देखो और फिर पैसे दे कर ले जाओ.’’ भानु ने मछली फंसती देखी और उसे यकीन हो गया कि अब सौदा हो जाएगा.

‘‘ठीक है भाया, हम और साथी केतनभाई लखनऊ आएंगे, तुम जादुई चश्मा तैयार रखना.’’

भानुप्रताप सिंह बहराइच के केवलपुर का रहने वाला था. सूरत से कपड़े ले जा कर वह नेपाल में बेचने का धंधा करता था. गुजरात में 3 साल पहले काम शुरू करने वाले भानुप्रताप ने सोचा था कि कपड़े बेच कर वह बड़ा कारोबारी बन जाएगा. पर उस की यह धारणा जल्द ही गलत साबित हुई थी. गुजरात में कारोबार करने गए भानुप्रताप सिंह को खुद ठगी का शिकार होना पड़ा था. ठगी करने वाले बदमाशों ने उसे बंधक बना कर 21 लाख रुपए ऐंठ लिए. इतना पैसा देने से उस का पूरा कारोबार डूब गया. यह पैसा उसे कई लोगों से कर्ज ले कर देना पड़ा था.

इस घटना से भानुप्रताप को पता चल गया कि ईमानदारी से कारोबार करना बहुत मुश्किल है. ऐसे में उस ने अब पैसा कमाने के लिए ठगी का धंधा शुरू कर दिया. जिस तरह से वह फंसा था, वैसे ही उस ने भी दूसरों को फंसाना शुरू किया. भानुप्रताप ने बहराइच के रहने वाले जितेंद्र सोनी को अपने साथ लिया और वापस गुजरात पहुंच गया. यहां उस ने कई बेरोजगारों को अपने साथ मिलाया. ये युवक बिना किसी मेहनत के लाखों रुपया कमाना चाहते थे. इन का काम गुजरात में रहने वालों से संपर्क कर उन्हें जादुई चश्मा बेचने का था. 

गांधीनगर के रहने वाले कैमिकल कारोबारी भूपेंद्र पटेल को भी इन लोगों ने संपर्क कर जादुई चश्मा खरीदने के लिए कहा. इस के लिए 6 जनवरी को उन्हें लखनऊ बुलाया और बंधक बना कर रख लिया. इस के बाद फिरौती के 15 लाख रुपए वसूल किए. बंधक बना कर भूपेंद्र को कई तरह से यातनाएं दी गईं. बेल्ट से पिटाई और नाखून उखाड़ने तक की यातना दी गई. वह जान बख्श देने की दुहाई देते रहे.

भूपेंद्र घर वालों के संपर्क में थे. किसी तरह से 14 जनवरी को बंधकों के चंगुल से आजाद हो कर अपने घर पहुंचे. लगातार मिली प्रताड़ना से उन का जिस्म बुखार से तप रहा था. अगले ही दिन उन की मौत हो गई. घर वालों को पहले लगा कि बुखार की वजह से मौत हुई है. जब उन का अंतिम संस्कार की तैयारी हो रही था तो घर वालों ने देखा कि उन के नाखून गायब थे. शरीर पर डंडे की पिटाई के निशान दिख रहे थे. भूपेंद्र का मोबाइल खंगालने के बाद पता चला कि वह एक सप्ताह लखनऊ में थे. उन के बैंक खातों से लाखों रुपए निकाले गए थे. पुलिस की छानबीन से पता चला कि जादुई चश्मा लेने के लिए भूपेंद्र ने कई लोगों से ले कर पैसे दिए थे. भानु का गैंग जादुई चश्मा बेचने में लगा हुआ था.

भानु ने खुद को कारोबारी बता कर जानकीपुरम कालोनी में रहने वाले आफाक अहमद से उन के साढ़ू नियाज अहमद का मकान किराए पर लिया, जो सऊदी में रहते हैं. इस के बाद बदमाशों ने जूनागढ़ के दवा कारोबारी सुरेश भाई और सूरत के मयंक भाई और केतन जरीवाला को जादुई चश्मे का झांसा दे कर बुलाया. ये लोग 21 फरवरी को हवाईजहाज से लखनऊ गए. पहले उन्हें रेलवे स्टेशन के पास चारबाग इलाके में होटल में ठहराया गया. यहां पर होटल सस्ते मिल जाते हैं.

यहां से इन्हें बंधक बना कर अड्डे पर ले गए. वहां इन लोगों को प्रताडि़त कर के पैसे वसूल करने शुरू किए. बदमाशों ने तीनों से 20 लाख रुपए वसूले. 28 फरवरी को जब इन्हें दूसरे ठिकाने पर ले जाया जा रहा था तो तीनों व्यापारी औटो से कूद कर भाग निकले. सुरेश ने पुलिस में मुकदमा दर्ज कराया. केतनभाई की लखनऊ के मैडिकल कालेज में 9 मार्च को मौत हो गई. जादुई चश्मा लेने के झांसे में फंसने के बाद व्यापारी को बंधक बना लिया जाता था. इस के बाद रिहाई के लिए उस के रिश्तेदारों से फिरौती मांगी जाती थी. पैसे देने के बाद भी उन्हें रिहा नहीं किया जाता था. जब मुंहमांगी रकम नहीं मिलती थी तो बदमाश कहते थे कि अगर पैसा नहीं मिला तो 20 से 50 लाख रुपए में उन के गुर्दे का सौदा हो रहा है.

इस से घबरा कर कारोबारी खुद पैसे का इंतजाम करने लगता था. फिरौती की रकम हवाला के जरिए वसूल होती थी. ये लोग खुद को व्यापारी बता कर किराए पर पूरा मकान लेते थे. लोगों को वहीं पर बंधक बना कर रखा जाता था. एक माह में 4 से 6 कारोबारियों से वसूली करने के बाद ये लोग मकान छोड़ देते थे. लखनऊ के जानकीपुरम में गुजरात के 6-7 कारोबारियों को लूटने के बाद इन लोगों ने राजस्थान के राजसमंद जिले में अपना ठिकाना बनाया था. वहां भी 3 लोगों से 15 लाख रुपए वसूल चुके थे. धमकी और यातना से परेशान कारोबारी पैसा दे देते थे

लखनऊ पुलिस ने इन बदमाशों की तलाश शुरू कर दी थी. एसपी (ट्रांसगोमती) हरेंद्र कुमार की अगुवाई में यह टीम काम कर रही थी. इस टीम को बदमाशों तक पहुंचना आसान काम नहीं था. सब से अहम भूमिका सर्विलांस सेल की थी. कई नंबरों को सामने रख कर छानबीन शुरू हुई. सर्विलांस और स्वाट टीम के एसआई अजय प्रकाश त्रिपाठी, कांस्टेबल विद्यासागर, रामनरेश कनौजिया, मोहम्मद आजम खां और सुधीर सिंह ने लोकेशन ट्रेस करने का काम शुरू किया.

जानकीपुरम थाने के एसआई दयाशंकर सिंह, कांस्टेबल जितेंद्र प्रताप सिंह को राजसमंद के काकरौली थाने की पुलिस को साथ ले कर उदयपुर जाना पड़ा. वहां इन के ठिकाने पर दबिश दी गई. राजस्थान पुलिस को अपनी नाक के नीचे हो रहे अपराध का पता तक नहीं था. जैसे ही लखनऊ पुलिस ने इन्हें पकड़ा, वहां पुलिस ने खुद के गुडवर्क की खबर फैला दी. वहां दबिश देने पर पुलिस को गुजरात के भावनगर के रहने वाले रामजीभाई, आरिफ, राजकोट के भावेश, दिलीपभाई और बहराइच के भानुप्रताप सिंह को पकड़ा गया. इन लोगों ने गुजरात के कच्छ निवासी इरफान, विनोद, सरफराज को पकड़ रखा था

ये लोग कमरे में रस्सी से जकड़े पड़े थे. इन तीनों को बेरहमी से पीटा गया था. ये लोग बंधकों से 16 लाख रुपए वसूल कर चुके थे. पिटाई से तीनों की चमड़ी उधेड़ी गई थी. इन तीनों ने राजस्थान के राजसमंद जिले के काकरौली थाने में मुकदमा लिखाया. बदमाशों ने सरफराज को गैराज का मालिक समझ कर उठा लिया था. लेकिन वह मैकेनिक निकला. सरफराज को बताया कि उन के पास नेपाल की महारानी का चुराया हुआ हीरों का हार है, जबकि इरफान और विनोद को जादुई चश्मे के झांसे में बुलाया गया था. 

इस गिरोह की सफलता पर बात करते हुए पुलिस ने बताया कि पकड़े गए 5 बदमाशों को काकरौली थाने की पुलिस ने मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया. जानकीपुरम थाने में दर्ज एफआईआर की विवेचना कर रहे एसएसआई दयाशंकर सिंह ने पांचों बदमाशों को अपनी कस्टडी में लेने के लिए रिमांड की अरजी दी, लेकिन उन्हें लखनऊ लाने की अनुमति नहीं दी गई. अब बदमाशों को वारंट बी बना कर लखनऊ लाया जाएगा, जिस से आगे की पूछताछ की जा सके.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

होटल में सीबीएसई प्रश्नपत्र हल कर रहे थे नकल माफिया

सीबीएसई और राजस्थान सिपाही भरती घोटाले के बाद अब एफसीआई द्वारा आयोजित वाचमैन पद की परीक्षा में भी घोटाले की पोल खुल गई है. ऐसा लगता है कि नकल माफिया सरकार और प्रशासन को मात देने में माहिर हो चुका है. क्या इस के पीछे सारा खेल पैसे का है?   

2 अप्रैल, 2018 को दलितों के भारत बंद आह्वान के चलते ग्वालियर शहर में कुछ ज्यादा ही तनाव था, जो जातिगत रूप से बेहद संवेदनशील माना जाता है. मार्च के आखिरी सप्ताह से पुलिस कुछ ज्यादा ही सतर्क थी और मुखबिरों के जरिए लगातार इलाके की टोह ले रही थी. सावधानी बरतते हुए वह रात की गश्त में भी कोई ढील नहीं दे रही थी. 31 मार्च की रात जब एक पुलिस दल पड़ाव इलाके के गांधीनगर स्थित नामी होटल सिद्धार्थ पैलेस पहुंचा तो होटल में अफरातफरी मच गई. आमतौर पर देर रात मारे जाने वाले ऐसे छापों का मकसद देहव्यापार में लिप्त लोगों को पकड़ना होता है, पर इस रात बात कुछ और थी

सिद्धार्थ होटल ग्वालियर का एक नामी होटल है, जिस की गिनती बजट होटलों में होती है. मोलभाव करने पर इस होटल में डेढ़ हजार रुपए वाला एसी कमरा एक हजार रुपए में मिल जाता है, जिस में वे तमाम सुविधाएं मिल जाती हैं जिन की दरकार ठहरने वालों को होती है. गरमियों में रात के करीब साढ़े 9 बजे पड़ाव इलाके में चहलपहल शवाब पर होती है. ऐसे में पुलिस की गाडि़यों का काफिला देख राहगीर ठिठक कर देखने लगे कि आखिरकार माजरा क्या है. कोई देहव्यापार का अंदाजा लगा रहा था तो कोई 2 अप्रैल के बंद के मद्देनजर सोच रहा था कि जरूर यहां कोई गुप्त मीटिंग चल रही होगी.

लेकिन दोनों ही अंदाजे गलत थे और जो सच था, वह दूसरे दिन विस्तार से लोगों के सामने आ गया. दरअसल इस होटल में एक और लीक पेपर की स्क्रिप्ट लिखी जा रही थी. यह पेपर किसी स्कूलकालेज का न हो कर एफसीआई (भारतीय खाद्य निगम) का था. यह जानकारी मिलने के बाद लोगों ने दांतों तले अंगुलियां दबा लीं कि देश में यह हो क्या रहा है. लीक पर लीक… यह तो भ्रष्टाचार की हद है.

छापे की काररवाई देर रात तक चली जिस में पूरे 50 लोगों को पुलिस की एसटीएफ ने गिरफ्तार किया. दरअसल, एसटीफ के एसपी सुनील कुमार शिवहरे को मुखबिर से जो खबर मिली थी, वह एकदम सच निकली. एफसीआई की यह परीक्षा मध्य प्रदेश में रविवार पहली अप्रैल को होनी थी, जिस में 217 वाचमैन पदों के लिए रिकौर्ड 50 हजार से भी ज्यादा आवेदन आए थे. ग्वालियर के अलावा वाचमैन भरती परीक्षा भोपाल, इंदौर, उज्जैन, सागर, जबलपुर और सतना शहरों में होनी थी. इन शहरों में अनेक परीक्षा केंद्र बनाए गए थे. वाचमैन के पद के लिए शैक्षणिक योग्यता 8वीं पास होना रहती है, इसलिए भी आवेदन उम्मीद से ज्यादा आए थे.

अब तमाम छोटे पदों की भरती के लिए भी लिखित परीक्षाएं होने लगी हैं, जिन का मकसद योग्य उम्मीदवारों का चयन करना होता है. वाचमैन भरती परीक्षा में भी मौखिक परीक्षा यानी इंटरव्यू के पहले लिखित परीक्षा ली जाने लगी है. इस की वजह यह है कि नाकाबिल उम्मीदवारों की छंटनी हो जाती है और तयशुदा पैमाने और पदों की संख्या के अनुपात में वे उम्मीदवार इंटरव्यू के लिए बुलाए जाते हैं जो लिखित परीक्षा पास कर चुके होते हैं

वाचमैन भरती परीक्षा में ज्यादा कठिन सवाल नहीं पूछे जाते, क्योंकि इस का मकसद केवल उम्मीदवार का सामान्य ज्ञान, गणित और तर्कशक्ति को आंकना होता है. सिद्धार्थ होटल में मौजूद 48 उम्मीदवारों को 2 दलाल अगले दिन होने वाला परचा हल कर के दे रहे थे और उम्मीदवारों को परीक्षा का अभ्यास करा रहे थे कि किस सवाल का सही जवाब क्या है. एसटीएफ की टीम ने जब होटल के एकएक कमरे में जा कर उम्मीदवारों को पकड़ा तो सब के सब बड़ी शांति से प्रश्नपत्र हल करने की प्रैक्टिस कर रहे थे. 

अचानक पुलिस को आया देख सभी हड़बड़ा उठे. दरअसल, उन्हें आश्वस्त किया गया था कि परीक्षा देने में उन्हें कोई झंझट नहीं होगा, फिर भी झंझट हो ही गया. वह भी कुछ इस तरह कि ये लोग शायद जिंदगी भर चौकीदारी के नाम से भी कांपते रहेंगे. थोड़ी देर पहले तक वातानुकूलित कमरों में बैठ कर परीक्षा की तैयारी करना तो ज्यादती होगी, घोटाला करने जा रहे ये लड़के पुलिस को देख कर होटल के हौल में खड़े थरथर कांप रहे थे. इन का रहनसहन देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि इन में से शायद पहले कभी कोई इतने बड़े होटल में गया होगा. और जेल तो शायद ही कभी कोई गया होगा.

एफसीआई में वाचमैन पदों के लिए परीक्षा देश भर में होनी थी. अलगअलग राज्यों में इस की तारीखें अलगअलग रखी गई थीं. मध्य प्रदेश की परीक्षा की जानकारी सिर्फ उन्हीं युवाओं को लगी थी, जो जागरूक हैं और 8वीं या इस से आगे तक पढ़ेलिखे हो कर सरकारी नौकरी की तलाश में रहते हैं. ऐसे राज्यों में बिहार का नाम सब से ऊपर आता है, जहां के युवा सरकारी नौकरी वाला विज्ञापन देखते ही फौर्म भर देते हैं और परीक्षा की तैयारियां भी शुरू कर देते हैं. जो 48 लोग परचा हल करते पकड़े गए, उन में 35 बिहार के थे और 13 अन्य राज्यों के थे, मध्य प्रदेश का उन में कोई नहीं था. मध्य प्रदेश का इसलिए नहीं था कि परचा बेचने वाला गिरोह कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था. इस गिरोह को डर था कि अगर मध्य प्रदेश के उम्मीदवारों को पेपर बेचा गया तो जरूर पकड़े जाएंगे

क्योंकि होता यह है कि जिसे पेपर बेचो, वह या तो उस का ढिंढोरा साथियों से पीट देता है या फिर अपने पैसे वसूलने के लिए किसी और को भी बेच देता है, जिस से पेपर लीक होने की संभावनाएं ज्यादा हो जाती हैं. गिरफ्तार 48 उम्मीदवारों से एसटीएफ ने पूछताछ की तो उन्होंने बिना किसी लागलपेट के सच उगल दिया. यह सच था कि उन्होंने इस पेपर के बाबत गिरोह से 5-5 लाख रुपए में सौदा किया था, लेकिन अभी पूरा भुगतान नहीं किया था. अपनी हैसियत के मुताबिक उम्मीदवारों ने 10 हजार से ले कर एक लाख रुपए तक एडवांस दिए थे. बाकी की राशि चयन हो जाने के बाद देनी तय हुई थी.

बाहरी राज्यों के ये उम्मीदवार कैसे इस गिरोह के संपर्क या चंगुल में आए, यह बात भी कम दिलचस्प नहीं, जिस का खुलासा अगर हो पाया तो उस से केवल असली मुलजिमों के चेहरे बेनकाब होंगे, बल्कि यह भी साबित होगा कि भ्रष्टाचार की जड़ें पाताल से भी नीचे पांव पसार चुकी हैं. 48 उम्मीदवारों को पेपर हल कराते जो 2 दलाल पकड़े गए, उन के नाम हरीश कुमार और आशुतोष कुमार हैं. ये दोनों ही दिल्ली के रहने वाले हैं. पूछताछ में इन दोनों ने भी माना कि उन्होंने हल किया पेपर इन लोगों को दिया था और वे कल होने वाली परीक्षा की तैयारी करा रहे थे.

इन दोनों ने बताया कि वे तो सिर्फ निचली कड़ी हैं, जिन का काम उम्मीदवारों को इकट्ठा कर उन्हें पेपर हल कराना था. इस बाबत गिरोह से उन्हें 30-30 हजार रुपए मिले थे. इन दोनों की एक जिम्मेदारी उम्मीदवारों को परीक्षा केंद्र तक रवाना करने की भी थी. सभी उम्मीदवारों के मोबाइल फोन इन्होंने अपने पास रख लिए थे. केवल मोबाइल फोन ही नहीं, बल्कि उम्मीदवार कहीं परीक्षा के बाद बाकी के पैसे देने से मुकर जाए, इसलिए उन्होंने उन के आधार कार्ड और मार्कशीट जैसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों की मूल प्रतियां भी अपने पास रख ली थीं. तय यह हुआ था कि परीक्षा पास कर लेने के बाद उन्हें इन दस्तावेजों की मूल प्रतियां वापस कर दी जाएंगी.

हल की गई आंसरशीट तो एसटीएफ को मिल गई लेकिन उम्मीदवारों के दस्तावेजों की मूल प्रतियां नहीं मिलीं. आशुतोष और हरीश के मुताबिक, वे दस्तावेज और इकट्ठा किए गए पैसे तो गिरोह का मास्टरमाइंड किशोर कुमार अपने साथ दिल्ली ले गया था. बीकौम सेकेंड ईयर के छात्र आशुतोष और अपनी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी चलाने वाले हरीश कुमार पुलिस को झूठ बोलते नहीं लगे. लेकिन असली अपराधी या वह कड़ी जिस से असली अपराधी तक पहुंचा जा सकता था, वह किशोर कुमार छापे के कुछ घंटों पहले ही ग्वालियर से निकल चुका था.

यह साफ जरूर हो गया था कि पेपर मध्य प्रदेश से नहीं बल्कि दिल्ली से लीक हुआ था और यह सिर्फ किशोर कुमार के पास था. शुरुआती पूछताछ से इतना ही पता चल पाया कि किशोर दिल्ली में कोचिंग क्लासेज चलाता है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक किशोर कुमार की गिरफ्तारी नहीं हुई थी, लेकिन यह जरूर उस के बारे में पता चला कि श्योपुर में उस का एक बीएड कालेज भी है और उस के औफिसों में कई नामी नेताओं के साथ फोटो लगे हुए हैं. केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों में भी उस की खासी घुसपैठ है.

किशोर कुमार को अंदेशा था कि छापा पड़ सकता है, इसलिए उस ने खिसक लेने में ही भलाई और सलामती समझी. दरअसल, एसटीएफ को काफी पहले से खबरें मिल रही थीं कि यह पेपर लीक होने वाला हैइस की जिम्मेदारी सुनील कुमार शिवहरे को सौंपी गई तो उन्होंने अपनी टीम में इंसपेक्टर एजाज अहमद, चेतन सिंह बैंस और जहीर खान सहित 2 दरजन पुलिसकर्मियों को शामिल किया. इस टीम के कुछ सदस्यों ने भनक लगने पर इस गिरोह के सदस्यों से उम्मीदवार बन कर संपर्क भी किया था. गिरोह की तरफ से टीम के सदस्यों को यह जवाब दिया गया था कि अभी उन का काम भोपाल और मध्य प्रदेश में नहीं चल रहा है

इस जवाब के मायने बेहद साफ हैं कि यह गिरोह कंस्ट्रक्शन कंपनियों और ठेकेदारों की भाषा बोल रहा था, जिस से लगता है कि इस का काम देश भर में कहीं कहीं चल रहा होता है और अब इस तरह के पेपर भी सोचसमझ कर सावधानी से बेचे जाते हैं. ग्वालियर में पकड़े गए इस का मतलब यह नहीं कि दूसरे शहरों या राज्यों में इन का काम नहीं चलता होगा. इस फूलप्रूफ तैयारी में अगर पुलिस सेंधमार पाई तो उसे अपने मुखबिरों के साथसाथ खुद की मुस्तैदी पर भी फख्र होना स्वाभाविक बात है. सिद्धार्थ होटल में पहले आरोपियों ने 10 कमरे बुक कराए थे, लेकिन जब उन्हें लगा कि होटल के दूसरे कमरों में ठहरे लोग अड़ंगा बन सकते हैं तो उन्होंने पूरा होटल ही बुक करा लिया था. होटल बुक कराने की वजह उम्मीदवारों द्वारा बीएड की परीक्षा का प्रैक्टिकल देना बताई गई थी.

होटल बुक कराते वक्त इन्होंने मैनेजर शैलेंद्र सिंह को 10 हजार रुपए एडवांस दिए थे और जब पूरा होटल बुक कराया तो 5 हजार रुपए और दिए थे. उम्मीदवारों के आने का सिलसिला 30 मार्च की रात से ही शुरू हो गया था जो 31 मार्च की शाम 6 बजे तक चला. एसटीएफ की 31 मार्च की कामयाबी मिट्टी में मिलती दिख रही है, क्योंकि दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके में स्कूल और कोचिंग सेंटर चलाने वाला किशोर कुमार गिरफ्तार नहीं हो पाया था. छापे के बाद जो हुआ, वह सीबीएसई के 10वीं और 12वीं के पेपर लीक होने जैसा था, जिस से लगता है इस फ्रौड और करप्शन में एफसीआई का रोल भी कमतर शक वाला नहीं है. 

किशोर कुमार को पेपर कहां से मिला होगा, फौरी तौर पर तो हर किसी का जवाब यही होगा कि जाहिर है एफसीआई से. क्योंकि परीक्षा तो उस की ही थी. लेकिन ऐसा है नहीं, जिस में कई नए पेच सामने आए. एसटीएफ ने छापेमारी के बाद जब इस अहम मामले से एफसीआई के अधिकारियों को अवगत कराया तो उन की प्रतिक्रिया बेहद निराशा भरी लेकिन चौंकाने वाली निकली. एफसीआई के मध्य प्रदेश के महाप्रबंधक अभिषेक यादव को यह जानकारी मिल चुकी थी कि विभाग में वाचमैन की परीक्षा के लिए जो 50 हजार से ज्यादा अभ्यर्थी शामिल होने वाले हैं, उस का प्रश्नपत्र लीक हो चुका है

इस के बावजूद भी उन्होंने परीक्षा रद्द करने की कोई बात नहीं की. बल्कि उन्होंने कहा कि एसटीएफ की काररवाई की रिपोर्ट मिल जाने के बाद अगर जरूरी हुआ तो परीक्षा रद्द कर देंगे. यानी अभिषेक यादव यह मानने से इनकार कर रहे हैं कि पेपर किसी दूसरे शहर में लीक नहीं हुआ होगा. यह उतनी ही बेहूदा बात थी जितनी यह कि पहली बार एफसीआई ने खुद परीक्षा आयोजित कराने के बजाए किसी एजेंसी को यह जिम्मेदारी सौंप दी थी.

परीक्षा के बाद जब सिद्धार्थ होटल में हल कराए गए पेपरों का मिलान कराया गया तो साबित हो गया कि 80 फीसदी प्रश्न मेल खा रहे थे. यह बात गिरफ्तारी के बाद अभिषेक और हरीश बता चुके थे कि प्रश्नपत्र में बीचबीच में दूसरे सवाल डाल दिए गए थे. जाहिर है ऐसा बाद के बचाव के लिए किया गया था जो खरीदफरोख्त की बात के चलते बेमानी ही है. एफसीआई के भोपाल कार्यालय के पर्सनल डिपार्टमेंट के डीजीएम जी.पी. यादव भी यह कहते पल्ला झाड़ने की कोशिश करते रहे कि परीक्षा की जिम्मेदारी एक निजी एजेंसी को दी थी, इसलिए गड़बड़ी की वही जिम्मेदार है.

बात बेहद चिंताजदक है कि तमाम कायदेकानूनों को ताक में रखते हुए भोपाल एफसीआई के अधिकारियों ने कोलकाता की एक एजेंसी को परीक्षा का ठेका दे दिया था. जबकि यह परीक्षा अब तक एसएससी कराती रही है. क्या सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए किसी प्राइवेट एजेंसी की सेवाएं लेनी चाहिए, इस सवाल का साफसाफ जवाब कोई नहीं दे पा रहा. यह ठेका देने का ही नतीजा था कि परीक्षा के लिए जिन लोगों ने आवेदन किए थे, उन में से कोई 2 हजार के डाटा लीक हो गए और मय नामपते व मोबाइल नंबरों के जादुई तरीके से इस गुमनाम गिरोह तक पहुंच गए. गिरोह ने आवेदकों से मिल कर सौदेबाजी की, जिस में 135 आवेदक 5-5 लाख रुपए दे कर 15 हजार रुपए महीने वाली यह नौकरी हासिल करने को तैयार हो गए.

सीधेसीधे गिरोह ने 7 करोड़ रुपए का सौदा कर डाला, जिस से एफसीआई को कोई मतलब नहीं था. शायद ही एफसीआई के ये होनहार अफसर यह बता पाएं कि क्या एजेंसी को यह ठेका भी दिया गया था कि वह आवेदकों का डाटा लीक कर पैसे बनाए? इस से तो बेहतर होता कि एफसीआई इन पदों की खुलेआम नीलामी ही कर डालता, जिस से उसे करोड़ों की आमदनी होती. लेकिन इस काम को ही अंजाम देने के लिए उस ने एक एजेंसी की सेवाएं लीं. गौर करने वाली बात यह है कि इस एजेंसी को सरकारी नौकरियों में भरती का कोई तजुरबा भी नहीं था.

केंद्र सरकार के इस अहम सार्वजनिक उपक्रम की साख पर आए दिन बट्टा लगता रहा है पर परीक्षा के मामले में पहली बार बट्टा लगा है. इस पर भी नीचे से ले कर ऊपर तक सब खामोश हैं तो लगता है कि लीक अब बड़ा धंधा बन चुका है, जिसे मोहरों के जरिए खेला जाता है. केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने भी बेरोजगार युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करते इस घोटाले से कोई वास्ता नहीं रखा, मानो यह कोई छोटामोटा मामला हो. अब होगा यह कि आशुतोष और हरीश कुमार जैसे प्यादे कानून की बलि चढ़ जाएंगे और असली गुनहगार कहीं और अगले लीक की तैयारी में जुटे होंगे.

एसटीएफ के मुताबिक लीक पेपरों का सौदा ग्वालियर के अलावा इंदौर, भोपाल और उज्जैन में भी हुआ था, लेकिन गिरफ्तार सिर्फ 48 हुए. 135 में से 87 का पैसा गिरोह डकार गया और अपराधी मौज कर रहे हैं. कथा लिखे जाने तक एफसीआई दोबारा परीक्षा कराने का फैसला नहीं ले पाया थाएसटीएफ ने हालांकि एफसीआई से जवाब मांगा है, जो जाहिर है गोलमोल ही होगा. परीक्षा कराने वाली एजेंसी के एक कोऔर्डिनेटर संदीप मोगा के मुताबिक, हम डिटेल नहीं दे सकते क्योंकि हम गोपनीयता की शपथ से बंधे हुए हैं. यह गोपनीयता वही थी, जिस के चिथड़े 31 मार्च के छापे में उड़ चुके हैं.

  

रोग दूर करने वाला बाबा खुद कर लिया सुसाइड

भय्यूजी महाराज मौडर्न संत थे, लग्जरी लाइफस्टाइल वाले. इस के बावजूद उन के करोड़ों भक्त थे और वह उन की समस्याएं सुलझाते थे. लेकिन यह कितने आश्चर्य की बात है कि वह अपने घर की समस्या को नहीं सुलझा पाए और आत्महत्या कर ली. आखिर क्यों… 

पारिवारिक जिम्मेदारी संभालने के लिए यहां कोई होना चाहिए, मैं बहुत तनाव में हूं. थक चुका हूं

इसलिए जा रहा हूं.’ विनायक मेरे विश्वासपात्र हैं, सब प्रौपर्टी इन्वेस्टमेंट वही संभाले. किसी को तो परिवार की ड्यूटी करनी है तो वही करेगा. मुझे उस पर विश्वास है. मैं कमरे में अकेला हूं और सुसाइड नोट लिख रहा हूं. किसी के दबाव में कर नहीं लिख रहा हूं, कोई इस के लिए जिम्मेदार नहीं है.’

बीती 12 जून की दोपहर इंदौर के पौश रिहायशी इलाके सिलवर स्प्रिंग स्थित अपने घर में आत्महत्या करने वाले मशहूर संत भय्यूजी महाराज के 2 सुसाइड नोट मिले थे. दोनों में कोई खास फर्क नहीं है. सिवाए इस के कि दूसरे को एक कुशल संपादक की तरह संपादित कर छोटा कर दिया है और भाव बिलकुल नहीं बदले हैं. डायरी के पन्नों पर लिखे ये सुसाइड नोट बयां करते हैं कि भय्यूजी महाराज किस भीषण तनाव और द्वंद्व से गुजर रहे होंगे. अंतिम समय में उन्हें सिर्फ 2 चीजों परिवार और प्रौपर्टी की चिंता थी. उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा भक्तों और बाद के परिणामों पर अगर सोचा होगा तो तय है कि उन्हें अपनी समस्या का कोई हल नहीं सूझ रहा होगा.

12 जून की दोपहर जैसे ही 50 वर्षीय भय्यूजी महाराज की आत्महत्या की खबर आई तो लोग स्तब्ध रह गए. अपना जीवन फिल्मी स्टाइल में गुजार चुके इस संत ने आत्महत्या भी फिल्मी स्टाइल में की. फोरैंसिक रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने गोली अपनी दाईं कनपटी पर मारी थी लेकिन वह सिर के बीचोंबीच लगी और आरपार हो गई थी. उस वक्त उन के आलीशान घर में बुजुर्ग मां के अलावा कुछ वफादार सेवादार ही थे जिनमें से एक का जिक्र उन्होंने अपने सुसाइड नोट में किया है. धमाके की हल्की सी आवाज आई, लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह हल्का सा धमाका किस चीज का है. कुछ देर बाद उधर भय्यूजी महाराज की पत्नी डा. आयुषि आईं और भय्यूजी महाराज को ढूंढने लगीं.

आमतौर पर अपने कमरे में रहने वाले भय्यूजी महाराज वहां नहीं दिखे तो आयुषी ने एक एक कर सारे कमरे और टौयलेट बाथरूम तक में उन्हें देखा. बेटी कुहू का कमरा अंदर से बंद था जो खटखटाने पर नहीं खुला तो आयुषि ने सेवादारों को आवाज लगाई. विनायक और दूसरा वफादार सेवादार योगेश भागेभागे आए और दरवाजा तोड़ डाला. अंदर का दृश्य देख कर तीनों हतप्रभ रह गए, पलंग पर भय्यूजी महाराज की लाश पड़ी थी. सिर से रिसा खून चेहरे और बिस्तर पर बह रहा था

वक्त सवालजवाब या सोचविचारी का नहीं था, इसलिए तुरंत एंबुलेंस बुलाई गई और भय्यूजी महाराज को इंदौर के नामी बौंबे हौस्पिटल ले जाया गया. अस्पताल में डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया तो आयुषि दहाड़े मार कर रोतेरोते बेसुध हो गईं और दोनों सेवादार जड़ हो कर रह गए. अस्पताल से खबर मिलने पर पुलिस वहां आई और भय्यूजी महाराज की मौत की पुष्टि के बाद खबर आम हो गई. इस हाईप्रोफाइल संत की आत्महत्या से देश भर में सनाका खिंच गया.

सवालों के ढेर पर भय्यूजी महाराज की आत्महत्या कौन थे भय्यूजी महाराज और कैसे देखते ही देखते करोड़ों भक्तों के आदर्श बन गए? और वह प्रौपर्टी कितनी थी, जिस की जिम्मेदारी वह विनायक को सौंपना चाहते थे, इन सवालों के जवाबों के अलावा उस तनाव और पारिवारिक कलह की वजहें जानना जरूरी है. इससे भी पहले यह जानना जरूरी है कि मौत के दिन क्याक्या हुआ था.

जो हुआ था उस से साफ लग रहा है कि भय्यूजी महाराज का खुदकुशी करने का फैसला और वजह तात्कालिक नहीं थे. वे वाकई लंबे समय से भीषण तनाव में थे. 12 जून को तो उन्होंने इस तनाव से मुक्ति पाने का आखिरी फैसला लिया था. दोपहर कोई सवा 12 बजे भय्यूजी महाराज अपने कमरे से निकले और सीधे बेटी कुहू के कमरे में चले गए थे. इस के पहले उन्होंने अपने कमरे से 3 ट्वीट किए थे. कुहू इसी दिन पुणे से इंदौर आने वाली थी जिसे ले कर भय्यूजी महाराज कुदरती तौर पर खुश थे क्योंकि उन की लाडली करीब 3 महीने बाद घर आ रही थी. 

कुहू के कमरे को अस्तव्यस्त देख उन्हें गुस्सा आया तो उन्होंने नौकरों को फटकार लगाई कि आज कुहू आने वाली है और अभी तक उस के कमरे की साफ सफाई नहीं हुई है. गुस्सा उतारने के बाद उन्होंने शेखर को बुला कर अब तक आई फोन काल की डिटेल्स लीं. उन्होंने उस से कहा कि सभी को कह दो कि कुछ देर बाद बात करूंगा. तब तक उन्हें डिस्टर्ब किया जाए. गौरतलब है कि अपने लिए आई फोन काल्स खुद भय्यूजी महाराज रिसीव नहीं करते थे. यह जिम्मेदारी बीते कई सालों से शेखर उठा रहा था.

डीआईजी हरिनारायणचारी मिश्रा और आईजी (इंटेलीजेंस) मकरंद देउस्कर इस खुदकुशी की जांच में जुट गए, जिन के पास बताने को कुछ नहीं था और जो था वह पुलिस जांच के पहले ही आम हो गया था. हादसे के बाद घर में मौजूद लोगों के बयान लेने के बाद पुलिस इन बातों की पुष्टि भर कर पाई कि हां, भय्यूजी महाराज पारिवारिक कलह की वजह से तनाव में थे और इसी के चलते उन्होंने खुदकुशी की. भय्यूजी महाराज का वास्तविक नाम उदय सिंह देशमुख था. उदय सिंह मालवांचल के पुराने शहर शुजालपुर में एक जमींदार घराने में 1968 में पैदा हुए थे. उदय सिंह केवल खूबसूरत थे बल्कि बेइंतहा प्रतिभाशाली और महत्त्वाकांक्षी भी थे. किशोरावस्था तक तो उन्होंने खेती किसानी में दिलचस्पी ली लेकिन फिर पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई चले गए और वहां एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर नौकरी कर ली.

मुंबई वाकई मुंबई है जो एक बार जिसे अपने मायाजाल में फंसा लेती है उसे आसानी से नहीं छोड़ती. छोटे से पिछड़े कस्बे से आए उदय सिंह को मुंबई की रंगीनियां भा गईं. अपने खूबसूरत चेहरेमोहरे के दम पर उन्होंने मौडलिंग की दुनिया में भी किस्मत आजमाई. सियाराम जैसी नामी सूटिंग कंपनी ने उन्हें मौका दिया लेकिन उदय सिंह प्रोफेशनल मौडल नहीं बन पाए. कामयाबी फिल्मी सी मुंबई में नौकरी करते उदय सिंह को लगा था कि दौलत और शोहरत ही सब कुछ है. बाकी सब मिथ्या है. बस इतना सोचना भर था कि उन्होंने संन्यास लेने का फैसला ले लिया. हैरत की बात यह है कि उन का कोई धार्मिक या आध्यात्मिक गुरु नहीं था अलबत्ता वे दत्तात्रेय को अपना आदर्श मानते थे

दत्तात्रेय एक पौराणिक पात्र हैं जिन के बारे में कहा और माना जाता है कि वे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त अवतार थे. दत्तात्रेय हर किसी से कुछ कुछ सीखने के लिए उसे अपना गुरु मान लेते थे, जिन में पशुपक्षी तक शामिल होते थे. सूर्य की उपासना करने वाले भय्यूजी महाराज संत जीवन की शुरुआत में कभी जल समाधि लेने के लिए भी मशहूर थे. हिंदी के अलावा धाराप्रवाह अंग्रेजी, मराठी, मालवी और निमाड़ी भाषा बोलने वाले उदय सिंह के प्रवचनों को लेक्चर कहा जाता था. उन का आध्यात्मिक सफर छोटे से स्तर से शुरू हो कर बड़े मुकाम तक जा पहुंचा. जिस के चलते वह इतने कम वक्त में अपार दौलत और शोहरत के मालिक बन गए थे. इस सब की कल्पना खुद उदय सिंह ने भी नहीं की थी जो भय्यूजी महाराज के नाम से विख्यात हो गए थे.

नाम के लिहाज से देखें तो भय्यूजी महाराज के भक्तों और अनुयायियों की संख्या करोड़ों में जा पहुंची थी. और दाम के लिहाज से आंकें तो मौत के दिन तक उन के पास एक हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा की संपत्ति थी. मालवांचल और महाराष्ट्र के सभी प्रमुख शहरों में उन के आश्रम खुल चुके थे. मध्य प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर को अपना ठिकाना भय्यूजी महाराज ने बनाया था तो इस की एक बड़ी वजह उन की महाराष्ट्र से जुड़े रहने की इच्छा थी. क्योंकि उन के भक्तों में खासी संख्या महाराष्ट्रियनों की है

मौडर्न संत थे भय्यूजी महाराज भय्यूजी महाराज के शौक शाही भी थे और कलात्मक भी. घुड़सवारी और तीरंदाजी के शौकीन भय्यूजी महाराज भजन अच्छा गाते थे और लिखते भी सरल भाषा में थे. सुसाइड नोट को संपादित उन्होंने शायद इसी वजह के चलते किया था कि बात अनावश्यक रूप से बड़ी लगे. भय्यूजी महाराज के लेक्चर दरअसल ब्रह्म या ईश्वर आधारित हो कर मनोवैज्ञानिक ज्यादा होते थे. वे भक्तों को उत्साहित करते, उन में जोश भर देते थे. जब वे बोलते थे यानी लेक्चर देते थे तो ऐसा लगता था मानो साक्षात डेल कार्नेगी या स्वेट मार्टन की आत्मा उन में गई है.

उन्हें बस करना इतना होता था कि इन दो अहम दार्शनिकों के विचारों को हिंदू धर्म और संस्कृति से जोड़ना और उन्हें उस क्षेत्रीय भाषा में प्रस्तुत करना होता था, जहां वे लेक्चर दे रहे होते थे.सीधेसीधे कहा जाए तो भय्यूजी महाराज एक तरह से मेंटर थे, जो आमआदमी की नब्ज पकड़ कर बात करते थे. आप परेशान क्यों हैं, यह बात अगर कोई धर्मगुरु मंच से बता दे और समस्याओं का गैरईश्वरीय हल भी सुझाए तो लोगों का नैराश्य भाव स्वाभाविक रूप से दूर हो जाएगा. यही भय्यूजी महाराज करते थे. सनातन धर्म और धार्मिक कर्मकांडों पर उन का ज्यादा जोर कभी नहीं रहा. अलबत्ता बातबात में वे दत्तात्रेय को जरूर घसीट लाते थे.

जादूटोना, तंत्रमंत्र और ज्योतिष से परे भी समस्याओं का कोई हल होता है, यह बात हमेशा से ही जिज्ञासा का विषय रही है. लोगों की इसी कमजोरी को भय्यूजी महाराज ने खूब भुनाया और देखते ही देखते छा गए. जहां से वे गुजरते थे वहां उन के पैर छूने वालों की लाइन लग जाती थी. लोगों की तकलीफें दूर करने वे शहरशहर प्रवचन शिविर लगाने लगे थे. इंदौर के बापट चौराहे पर उन्होंने सद्गुरु दत्त परमार्थिक ट्रस्ट बनवाया था. आश्रम चौबीसों घंटे खुला रहता था. इंदौर आने वाली हर बस या ट्रेन से उन का कोई कोई भक्त उतरता था. उसे देख आटोरिक्शा वाले तुरंत ताड़ लेते थे कि यह भय्यूजी महाराज का भक्त है.

भय्यूजी महाराज का नाम लोग इज्जत से लेते थे तो इस की वजह सिर्फ इतनी नहीं थी कि उन्होंने अकूत दौलत कमा ली थी बल्कि यह भी थी कि कमाए गए पैसे का बड़ा हिस्सा वे गरीबों और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे. इस से हालांकि उन का कारोबार और बढ़ता था, लेकिन उन के जज्बे को इस से नहीं तौला जा सकता. कुछ हट कर काम किए भय्यूजी ने इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पंढरपुर इलाके की वेश्याओं के 51 बच्चों को बतौर पिता अपना नाम दिया था. आमतौर पर संत और धर्मगुरु वेश्याओं से परहेज ही करते हैं, लेकिन समाज के इस जरूरी तबके की अनिवार्यता की अहमियत समझते हुए उन्होंने यह अनूठी पहल कर एक तरह से जोखिम ही उठाया था.

महाराष्ट्र के ही बुलढाना जिले के खामगांव में उन्होंने एक आवासीय स्कूल भी बनवाया था, जिस में करीब 700 आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं. मुमकिन है इस के पीछे उन की एक मंशा ग्राहकों की भीड़ बढ़ाना भी रही हो लेकिन इस से कुछ गरीब आदिवासी बच्चों की जिंदगी तो संवरी और संभली, इस में कोई शक नहीं. बुलढाना में पारधी जाति के आदिवासी रहते हैं जो चोरी और अपराधी प्रवृत्ति के लिए कुख्यात हैं. ये लोग न तो कभी मुख्यधारा से जुड़े और न ही मुख्यधारा हांकने वालों ने चाहा कि यह तिरस्कृत जाति उन से जुड़े.

पारधी सहसा ही किसी बाहरी आदमी पर विश्वास नहीं करते, यही भय्यूजी महाराज के साथ भी हुआ. जब उन्होंने स्कूल खोलने की घोषणा की और निर्माण कार्य भी शुरू हो गया तो उन्हें पारधियों का विरोध भी झेलना पड़ा. लेकिन भय्यूजी महाराज घबराए नहीं. एक बार तो पारधियों ने पथराव कर उन्हें भगा दिया था लेकिन वे अपनी जिद पर अड़े रहे और इस में उन्हें कामयाबी भी मिली. कृषक परिवार से ताल्लुक रखने के कारण वह किसानों की परेशानियां अच्छी तरह समझते थे लिहाजा उन्होंने मध्यप्रदेश के धार और देवास जिलों में लगभग एक हजार तालाब खुदवाए और हर जगह गरीब किसानों को खादबीज वगैरह भी बंटवाए थे. पूजने के लिए इतने काम काफी थे, लेकिन भय्यूजी महाराज का एक अलग चेहरा उस वक्त सामने आया, जब उन्होंने इंदौर में आयोजित हुई धर्मसंसद की आलोचना की थी.

मठों और व्यक्ति पूजा के आलोचक भय्यूजी महाराज का दूसरा चेहरा और दोहरा व्यक्तित्व उस वक्त भी सामने आया था, जब उन्हें उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ मेले में आमंत्रित नहीं किया गया था. इस से वह दुखी थे. जाहिर है लीक से हट कर वे इसलिए चल रहे थे कि नाम मिले और उन की चरचा हो और ऐसा हुआ भी. व्यक्ति पूजा को अपराध मानने वाले भय्यूजी महाराज हर गुरु पूर्णिमा पर अपनी पूजा धूमधड़ाके से करवाते थे. जिंदगी शानोशौकत की इस खूबसूरत और हैंडसम युवा संत की व्यक्तिगत जिंदगी शानोशौकत और शौकों से भरी रही.

भय्यू जी महाराज नएनए मौडल की कारों और महंगी स्विस घडि़यों के शौकीन थे. मर्सिडीज और औडी जैसी कारों में चलने वाले इस संत के हाथ में हमेशा रोलेक्स घड़ी जरूर होती थी.भक्तों और अनुयायियों के लिए वे इसी लिहाज से अजूबे थे कि जब वह उन के बीच होते थे तो खालिस संत होते थे, लेकिन लग्जरी लाइफ जीते थे. परंपरागत संतों की छवि तोड़ने वाले भय्यूजी महाराज कभी कभी ट्रैक सूट, पैंट शर्ट में भी नजर आते थे. अच्छे और महंगे कपड़ों का शौक भी उन्हें था.उन के घर और आश्रम में भी आधुनिक सुखसुविधाओं के तमाम गैजेट्स मौजूद थे. भक्तों की सहूलियत का वे उसी तरह ध्यान रखते थे जैसे दुकानदार ग्राहकों का रखता है यानी वे ग्राहक ही भगवान हैं, के सिद्धांत पर चलते थे.

करोड़ोंअरबों की आमदनी का हिसाब भय्यू जी महाराज को मुंह जुबानी याद रहता था और इस से ज्यादा उन्हें यह याद रहता था कि मीडिया को यह गिनाना कि वे संत के रूप में समाजसेवी और पर्यावरणविद हैं जो भक्त से गुरु दक्षिणा में एक पेड़ लगाने को जरूर कहता हैब्रांडिंग के इन अनूठे तरीकों ने भय्यूजी महाराज को कामयाबी के आसमान तक पहुंचा दिया, जहां उस के पास वह सब कुछ होता है जिस की ख्वाहिश हर कोई करता है. महत्त्वाकांक्षी भय्यूजी महाराज को संन्यास लेते ही ज्ञान की एक बात जरूर समझ गई थी कि अगर ब्रांडेड बाबा बनना है तो राजनेताओं और फिल्मी हस्तियों से जरूर संपर्क बढ़ाओ, नहीं तो जिंदगी भर पंडाल लगा कर उपदेश देते रहने से खास कुछ हासिल नहीं होने वाला.

संतों और नेताओं का समीकरण बेहद संतुलित है कि जिस संत के पीछे जितनी ज्यादा भीड़ नजर आती है, उसे भुनाने के लिए नेता भी उस के आगेपीछे दौड़ने लगते हैं. जब संन्यास के 3-4 सालों में ही भय्यूजी महाराज ने अपने दम पर अनुयायियों की खासी भीड़ जुटा ली तो साल 2000 के आसपास महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की नजर उन पर पड़ी.

दोनों की नजरें मिलीं और विलासराव उन पर मेहरबान हो गए. फलस्वरूप सियासी गलियारों में भय्यूजी महाराज का नाम और इज्जत से लिया जाने लगा. उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने राज्य अतिथि का दरजा दे दिया. फिर देखते ही देखते उन के पीछे महाराष्ट्र कांग्रेस के तमाम छोटेबड़े नेता नजर आने लगे, जिन में पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, केंद्रीय मंत्री शरद पवार और पृथ्वीराज चह्वाण जैसे बड़े नाम शामिल थे.

लेकिन भय्यूजी महाराज को अहसास था कि अगर उन पर एक बार कांग्रेसी संत होने का ठप्पा लग गया तो दुकान चलाना मुश्किल हो जाएगा, लिहाजा उन्होंने कांग्रेस से इतर और पींगें बढ़ानी शुरू कीं. अपने घर और आश्रम के दरवाजे उन्होंने भाजपा और शिवसेना के अलावा अछूतों की पार्टी मानी जाने वाली आरपीआई के लिए भी खोल दिए. महाराष्ट्र के शेर कहे जाने वाले शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार में भय्यूजी महाराज परिवार सहित सक्रिय दिखे थे, तब यह स्पष्ट हुआ था कि वे सभी राजनैतिक दलों के हैं. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे से उन की नजदीकियां कभी किसी सबूत की मोहताज नहीं रहीं. 

मिला राज्यमंत्री का दरजा इस का यह मतलब नहीं था कि भय्यूजी महाराज कांगे्रस, भाजपा या शिवसेना की विचारधारा से सहमत हो गए थे, बल्कि इस का मतलब यह था कि उन के भक्तों को वोटों की शक्ल में बदलते हुए हर कोई देखना चाहता था.जल्द ही भाजपाई नेता भी उन से जुड़ने लगे. इन में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, स्मृति ईरानी, पंकजा मुंडे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नाम प्रमुख हैं. अपनी अलग पार्टी एनसीपी बना लेने के बाद भी शरद पवार भय्यूजी महाराज के दरबार में हाजिरी लगाते रहे. अलबत्ता रामदास अठावले इकलौती राजनैतिक हस्ती थे, जो उन के अंतिम संस्कार में शामिल होने इंदौर पहुंचे थे.

फिल्मी हस्तियों में मशहूर गायिका लता मंगेशकर उन की मुरीद थीं तो अभिनेता मिलिंद गुणाजी और गायक बप्पी लहरी भी उन के अनुयाई हो गए थे.राजनीतिक स्तर पर पहली दफा भय्यूजी महाराज उस वक्त सुर्खियों में आए थे, जब अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी उपवास तुड़वाने के लिए यूपीए सरकार ने उन्हें भी आमंत्रित किया था. तब मंच पर वे अलग ही चमक रहे थे. गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी का सद्भावना उपवास तोड़ने की भी जिम्मेदारी उन्हें ही सौंपी गई थी.

इसी साल अप्रैल में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिन 5 बाबाओं को राज्यमंत्री का दरजा दिया था, उन में से एक भय्यूजी महाराज भी थे, लेकिन उन्होंने इस पेशकश को ठुकरा दिया था. उन की मौत के बाद कांग्रेसी यह कह कर हमलावर हुए थे कि भय्यूजी महाराज ने मध्य प्रदेश सरकार के दबाव में कर आत्महत्या की है. यह दांव ज्यादा चला नहीं, क्योंकि उन की खुदकुशी की वजह कुछ और ही थी. दूसरी शादी के बाद शुरू हुआ बुरा वक्त

कुल मिला कर भय्यूजी महाराज काफी कुछ हासिल कर चुके थे और आम भक्तों की परेशानियां सुलझाने का अपना काम बखूबी कर रहे थे. लेकिन उन के इर्द गिर्द रहने वाले चुनिंदा लोग ही जानते थे कि दुनियाभर की समस्याएं सुलझाने वाले भय्यूजी महाराज से खुद अपने घर की कलह लाख कोशिशों के बाद भी नहीं सुलझ रही है. अपनी कामयाबी के दिनों में भय्यूजी महाराज ने जो दौलत और शोहरत हासिल की, वह कभी किसी सबूत की मोहताज नहीं रही. लेकिन उन का बुरा वक्त दूसरी शादी के बाद शुरू हुआ, जब  उन्होंने अप्रैल 2017 में आयुषि शर्मा से शादी की थी. उन की पहली पत्नी माधवी निंबालकर का निधन पुणे में 22 जनवरी, 2015 को हुआ था, जिन से उन्हें एक बेटी हुई थी

अपनी बेटी कल्याणी का घर का नाम उन्होंने प्यार से कुहू रखा था. एक साधारण पिता की तरह वे कुहू को बहुत चाहते थे और कुहू भी उन्हें इतना चाहती थी कि पिता की दूसरी शादी बरदाश्त नहीं कर पाई. आयुषि शर्मा मूलत: शिवपुरी के धनियारवाना कस्बे की रहने वाली हैं और उन के पिता अतुल शर्मा कुंडोली नदनबारा मिडिल स्कूल में शिक्षक हैं. पढ़ाई पूरी करने के बाद आयुषि ने कुछ दिन बैंक में नौकरी की और फिर कैरियर संवारने की गरज से पीएच.डी. करने लगीं. 

इसी शोध के सिलसिले में उन का भय्यूजी महाराज के घर और आश्रम में आनाजाना शुरू हुआ था. इंदौर में वह एक हौस्टल में रहती थीं और उन की दोस्ती कई लड़कों से भी थी, जिन की जन्मकुंडली पुलिस खंगाल रही हैभय्यूजी महाराज व्यस्तता के चलते ऐसे शोधार्थियों को ज्यादा वक्त नहीं दे पाते थे, लिहाजा आयुषि की मां और बहन के संपर्क में आई और घंटों उन से बतियाती रहती थीं. इसी दौरान वह भय्यूजी महाराज की बहनों रेणुका और अनुराधा के संपर्क में आईं.

इधर परिजन देख रहे थे कि माधवी की मौत के बाद भय्यूजी महाराज का दिल दुनियादारी से उचटने लगा है तो वे चिंतित हो उठे. भय्यूजी महाराज की एक बहन जिन्हें आयुषि अक्का कहती हैं, ने एक दिन आयुषि के सामने यह प्रस्ताव रख उसे चौंका दिया कि क्या वह उन के भाई से शादी करेंगी. उम्र में भय्यूजी महाराज से आधी यानी 24 साल की आयुषि के लिए यह फैसला लेना कोई कठिन काम नहीं था. भय्यूजी महाराज का साम्राज्य और वैभव वह पहले ही देख चुकी थीं. प्रस्ताव कुछकुछ ऐसा ही था जैसे किसी झोपड़ी में रहने वाली गरीब कन्या को राजकुमार से शादी करने का मौका मिल रहा हो

आयुषि तैयार हो गईं तो भय्यूजी महाराज भी उसे देख कर इनकार नहीं कर पाए. वह थी ही इतनी कमसिन और चंचल कि किसी भी विश्वामित्र की तपस्या भंग करने की क्षमता रखती थींकुहू इस शादी के लिए जरा भी तैयार नहीं थी. यहां भय्यूजी महाराज ने जिंदगी में पहला गच्चा खाया, जो यह सोच रहे थे कि 15 साल की कुहू आज नहीं तो कल आयुषि को मां मान ही लेगी, पर हुआ उलटा. जब शादी के बाद पहली दफा आयुषि घर आई तो गुस्साई कुहू ने पूजा का सामान फेंक दिया.

इस के बाद तो इंदौर बाईपास स्थित सिलवर स्प्रिंग फेज स्थित बंगला नंबर एक किसी पारिवारिक टीवी धारावाहिक का स्टूडियो बन गया, जहां सौतेली मां और बेटी में जम कर कलह होती थी. दोनों एकदूसरे से शक्ल न देखने की हद तक नफरत करती थीं. इन 2 पाटों के बीच पिस रहा था, वह शख्स जिस के आगे करोड़ों लोग श्रद्धा से सिर झुकाते थे और मानते थे कि भय्यूजी महाराज के पास हर परेशानी के ताले की चाबी है. 

निस्संदेह भय्यूजी महाराज आयुषि को चाहते थे, लेकिन कुहू पर तो वे जान छिड़कते थे. उन्होंने बहुत कोशिश की कि मांबेटी झगड़े नहीं करें. इस बाबत वे कुछ भी करने तैयार थे लेकिन ऐसा क्या करें जिससे बिल्लियों की तरह लड़ती मांबेटी मान जाएं यह बताने वाला कोई नहीं था. पुणे में रह कर पढ़ाई कर रही कुहू का खून हर वक्त यह सोचतेसोचते जल रहा होता था कि बाबा आयुषि के साथ घूमफिर रहे होंगे, यह कर रहे होंगे, वह कर रहे होंगे. कोई दूसरी औरत आ कर उस की मां माधवी की जगह ले और रानियों सा हुक्म चलाए, यह उसे किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था. 

इस बाबत वह सेवादारों की सेवाएं लेती थी, यह बात पुलिस पूछताछ में उजागर हुई थी. लेकिन आयुषि भी कम नहीं थी, उस ने भी एक सेवादार को इस काम के लिए नियुक्त कर रखा था कि वह भय्यूजी महाराज और आयुषि की फोन पर हुई बातचीत का ब्यौरा उसे दे. शुरूशुरू में तो आयुषि यह सोच कर अपमान के घूंट पीती रही कि बच्ची है, भड़ास निकल जाएगी तो ठीक हो जाएगी. इस बाबत भय्यूजी महाराज भी उसे समझाते रहते थे, जिन की एक बड़ी परेशानी यह थी कि उन की दूसरी शादी को भक्तों और परिवारजनों ने भी सहज नहीं स्वीकारा था. कई परिवारजन तो उन के इस फैसले से इतने नाराज थे कि उन्होंने भय्यूजी महाराज से कन्नी काटनी शुरू कर दी थी.

घरेलू कलह बढ़ी तो भय्यू जी महाराज घबरा उठे. आखिरकार उन्होंने बीच का रास्ता यह निकाला कि कुहू को पढ़ाई के लिए विदेश भेज दिया जाए. इस सिलसिले में वे खुदकुशी वाले दिन इंदौर के एक होटल में एक महिला से मिले भी थे, जो अपने बेटे को पढ़ाई के लिए विदेश भेजने वाली थी.हादसे के एक दिन पहले वे पुणे भी जाने वाले थे, लेकिन बीच रास्ते से ही उन्हें लौटना पड़ा था. क्योंकि बारबार उन के पास किसी का फोन रहा था, जिसे सुन कर वह परेशान हो रहे थे. ये फोन किस के थे, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुलिस ने यह उजागर नहीं किया था. पुलिस टीम भय्यूजी महाराज का कंप्यूटर, लैपटाप, टैबलेट और मोबाइल जांच के लिए जब्त कर चुकी थी

उन का फोन अटैंड करने वाले शेखर ने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया था कि ऐसा पहली बार हुआ था, जब गुरुजी ने फोन खुद अटैंड किए और जब भी काल आई तो कार में मौजूद हम सब लोगों को नीचे उतार कर अकेले में बात की. अगर यह वाकई खुदकुशी है तो संभावना इस बात की भी ज्यादा है कि ये फोन आयुषि और कुहू के ही रहे होंगे. इन तीनों के बीच क्या खिचड़ी पक रही थी, यह खुलासा भी इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं हो पाया था. पुलिसिया पूछताछ में ही सेवादारों ने यह बात बताई थी कि भय्यूजी महाराज कुछ दिनों से पैसों की तंगी से इतने जूझ रहे थे कि कुछ दिन पहले उन्होंने अपनी औडी कार 20 लाख रुपये में बेची थी और अपने एक मालदार भक्त से 10 लाख रुपए उधार मांगे थे.

अलबत्ता पुलिस को दिए बयानों में आयुषी और कुहू के बीच खटास और भड़ास खुले तौर पर उजागर हुई. दोनों भय्यूजी महाराज के पार्थिव शरीर के पास 3 फीट के अंतर से बैठी थीं और एकदूसरे की तरफ देख भी नहीं रही थीं. दोनों के बीच किसी तरह की बातचीत का तो कोई सवाल ही नहीं था. कुहू ने जोर दे कर यह कहा कि उस के बाबा की मौत की जिम्मेदार आयुषि ही है, उसे जेल में डाल देना चाहिए. दूसरी ओर आयुषि ने बताया कि कुहू ने उसे कभी मां नहीं माना और हमेशा उस से और उस की 5 महीने की बेटी से नफरत करती रही. यहां गौरतलब है कि आयुषि से पैदा हुई भय्यूजी महाराज की बेटी की बात आश्रम के विश्वसनीय लोग और परिवारजन ही जानते थे.

कलह की समस्याएं इतनी उलझीं कि भय्यूजी को करना पड़ा सुसाइड आखिरकार 12 जून को पत्नी और बेटी की कलह से तंग आकर उन्होंने खुदकुशी कर ली. कुहू और आयुषी दोनों अलगअलग भय्यूजी महाराज की लाश पर विलाप करती रहीं. इस बीच जम कर अफवाहें उड़ीं और भक्तों का इंदौर आने का सिलसिला शुरू हो गया. 13 जून को भय्यूजी महाराज का विधिविधान से अंतिम संस्कार हो गया, जिस की सारी रस्में कुहू ने पूरी कीं. इस दिन राजनेताओं का दोगलापन भी उजागर हुआ. उन का कोई दिग्गज भक्त उन के अंतिम संस्कार में शामिल होने इंदौर नहीं आया. अब चर्चा शुरू हुई कि भय्यूजी महाराज की बेशुमार दौलत की, जिस के बारे में वफादार सेवादार विनायक ने कह कर खुद को विवाद से दूर कर लिया कि जैसा परिवार कहेगा, वह वैसा ही करेगा.

भय्यूजी महाराज के परिवारजनों की एक मीटिंग में यह तय हुआ कि आयुषि को गुरुजी की जायदाद का 30 और कुहू को 70 फीसदी मिलेगा. लेकिन जल्द ही सूर्योदय आश्रम के प्रवक्ता तुषार पाटिल ने इस अफवाह को यह कहते खारिज कर दिया कि अभी ऐसा कोई फैसला नहीं हुआ है.

पुलिस जांच जारी थी, जिस में कुछ नया निकलने की उम्मीद किसी को नहीं दिख रही, सिवाय इस के कि दुनिया भर के लोगों की परेशानियां सुलझाने वाले भय्यूजी महाराज अपने ही घर की कलह नहीं सुलझा पाए तो ऐसे धर्म और अध्यात्म के माने क्या जिस के दम पर उन्होंने अपना एक अलग साम्राज्य स्थापित किया था.                          

    

आश्रम में खूबसूरत महिला को बुलाकर कई बार किया दुष्कर्म

फलाहारी बाबा, वीरेंद्र बाबा, आसाराम और रामरहीम के बाद अब नंबर आया है दाती महाराज का, जिन पर यौनशोषण का आरोप लगा है. आसाराम और रामरहीम को सजा हो चुकी है, जबकि फलाहारी बाबा जेल में हैं. दाती महाराज का क्या होगा, कोई नहीं जानता.   

दिल्ली में छतरपुर स्थित शनिधाम मंदिर के संस्थापक मदनलाल मेघवाल उर्फ दाती महाराज उर्फ मदनलाल राजस्थानी एक युवती के यौनशोषण के आरोपों से घिरे हुए हैं. टीवी चैनलों परशनि शत्रु नहीं मित्रका स्लोगन दे कर पिछले करीब 15 साल से ज्यादा समय से दिल्ली ही नहीं पूरे देश में अपने आभामंडल का प्रभाव फैला कर ख्याति पाने वाले दाती महाराज के खिलाफ एक युवती ने जून के पहले सप्ताह में दिल्ली के फतेहपुर बेरी पुलिस थाने में शिकायत दी. इस शिकायत का मजमून इस प्रकार था

मदनलाल राजस्थानी ने अपने सहयोगियों श्रद्धा उर्फ नीतू, अशोक, अर्जुन आदि के साथ मिल कर 9 जनवरी, 2016 को दिल्ली स्थित आश्रम श्री शनि तीर्थ असोला फतेहपुर बेरी में मेरे साथ दुष्कर्म किया. यह तब हुआ, जब मुझे श्रद्धा उर्फ नीतू ‘चरण सेवा’ के लिए दाती मदनलाल राजस्थानी के पास ले गई. मैं चीखती रही, लेकिन किसी ने मेरी आवाज नहीं सुनी.

इस के बाद 26 से 28 मार्च, 2016 तक राजस्थान के पाली जिले में सोजत शहर स्थित आश्रम में दाती महाराज ने फिर मुझ से वही सब किया, जो दिल्ली के आश्रम में किया था. इस में अनिल और श्रद्धा ने दाती महाराज का साथ दिया. इन 3 दिनों में अनिल ने भी वही सब किया. चरण सेवा के नाम पर इन लोगों ने मेरे शरीर को जानवरों की तरह रौंदा.

इस घृणित कार्य के दौरान श्रद्धा ने कहा कि इस से तुम्हें मोक्ष प्राप्त होगा, यह भी सेवा ही है. तुम बाबा की हो और बाबा तुम्हारे. तुम कोई नया काम नहीं कर रही हो, सब करते आए हैं. कल हमारी बारी थी, आज तुम्हारी बारी है. कल जाने किस की बारी होगी, बाबा समंदर है और हम सब उस की मछलियां हैं. इसे कर्ज समझ कर चुका दो. ये 3 रातें मेरी जिंदगी की सब से भयानक रातें थीं. इन 3 रातों में मेरे साथ जाने कितनी बार दुष्कर्म किया गया. यह सब करते हुए दाती महाराज ने एक बात कही, ‘‘तुम्हारी सेवा पूरी हुई.’’

 इस घटना के बाद मेरी सोचनेसमझने की शक्ति जैसे खत्म हो गई थी. घुटघुट कर जीने से अच्छा है कि एक बार लड़ कर मरूं ताकि इस राक्षस की सच्चाई सब के सामने ला सकूं. जाने कितनी ही लड़कियां यहां मेरी तरह बेबस और लाचार हैं. मुझे नहीं पता कि इस शिकायत के बाद मेरा क्या होगा. शायद मैं आप लोगों के बीच रहूं, पर मेरी पुकार आप सभी के बीच रहेगी. सिर्फ इसी उम्मीद के सहारे ये पत्र लिख रही हूं. शायद मुझे न्याय मिले और दूसरी लड़कियों की जिंदगियां बरबाद होने से बच सके. दाती महाराज को जीने का अधिकार नहीं है.

मेरी एक ही इच्छा है कि इस के कर्मों की सजा फांसी होनी चाहिए. आप से प्रार्थना है कि मेरा नाम, मेरी पहचान और मेरा पता गुप्त रखा जाए. वरना उस के द्वारा दी गई धमकियां तू रहेगी तेरा अस्तित्वसच हो जाएगी. इन्हीं धमकियों की वजह से आज तक मैं चुप रही. मुझे और मेरे परिवार को सुरक्षा प्रदान की जाए. अगर मुझे सुरक्षा नहीं दी गई तो यह तय है कि मैं रहूंगी और मेरा परिवार. सब खत्म हो जाएगा. दाती महाराज बहुत खतरनाक आदमी है. अब तक इसलिए चुप रही कि मुझे नहीं लगता था कि मेरा कोई साथ देगा लेकिन अब बरदाश्त के बाहर हो गया तो इस बारे में अपने मम्मीपापा को बताया. उन्होंने वचन दिया कि आखिरी सांस तक तुम्हारा साथ देंगे.

दाती महाराज के खिलाफ दर्ज हुआ मुकदमा युवती की इस शिकायत पर दिल्ली के फतेहपुर बेरी पुलिस थाने में 10 जून, 2018 को दाती महाराज उर्फ मदनलाल राजस्थानी और अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस में दुष्कर्म की धारा 376, अप्राकृतिक संबंध की धारा 377, छेड़छाड़ की धारा 354 और धमकी देने की धारा 506 लगाई गई. पुलिस ने इस मामले में दाती महाराज के अलावा 2 महिलाओं और 2 पुरुषों को नामजद किया. इन में एक महिला श्रद्धा उर्फ नीतू और दूसरी नीमा जोशी शामिल थीं. 2 पुरुष दाती महाराज के भाई हैं.

आमतौर पर टीवी चैनलों पर छाए रहने वाले और दिल्ली के फतेहपुर बेरी स्थित शनिधाम मंदिर के संस्थापक दाती महाराज कौन हैं, यह जानने के लिए हमें राजस्थान से शुरुआत करनी होगी. दाती महाराज का असली नाम मदनलाल मेघवाल है. मदनलाल का जन्म 10 जुलाई 1950 को राजस्थान के पाली जिले के आलावास गांव में हुआ था. उस के पिता देवाराम मेघवाल ढोलक बजाने का काम करते थे. मदनलाल के जन्म के कुछ महीने बाद ही उस की मां का निधन हो गया था. पिता ने दूसरी शादी कर ली. इस के बाद गांव के एक आदमी के साथ मदनलाल दिल्ली गया था.

दिल्ली में उस ने कई दिनों तक दिहाड़ी मजदूरी की. फिर चाय की दुकानों पर छोटामोटा काम किया. इस के बाद वह टेंट की दुकान पर काम करने लगा. अपना खुद का काम करने के लिए उस ने कैटरिंग का काम सीखा और बर्थडे एवं छोटीमोटी अन्य पार्टियों में कैटरिंग करने लगा. 1996 में मदन की मुलाकात राजस्थान के एक ज्योतिषी से हुई. उस ज्योतिषी से उस ने जन्मपत्री और कुंडली वगैरह देखना सीख ली. इस के बाद मदनलाल ने कैटरिंग का काम छोड़ कर दिल्ली की कैलाश कालोनी में ज्योतिष केंद्र खोल लिया. साथ ही उस ने अपना नाम मदनलाल से बदल कर दाती महाराज कर लिया. उस ने अपना हुलिया और चोला भी बदल लिया था. 

मदनलाल ने लोगों की कमजोर नस पकड़ी और अपना ज्योतिष ज्ञान शनि ग्रह के आसपास कें्रदित रखा. ऐसा इसलिए कि धर्मभीरु लोग सब से ज्यादा शनि से ही घबराते हैं. दाती महाराज लोगों की जन्मपत्री देख कर शनि की चाल का खौफ दिखाने लगा. साथ ही शनि के खौफ से बचने के ऐसे उपाय भी बताने लगा, जिस से उसे लाभ हो. सन 1998 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने थे. इस दौरान एक नेता की जन्मपत्री देख कर दाती ने कह दिया कि वह चुनाव जीत जाएगा. परिस्थितियां ऐसी बनीं कि वह नेता चुनाव जीत गया. इस खुशी में उस नेता ने फतेहपुर बेरी के अपने पुश्तैनी मंदिर का काम दाती मदनलाल को सौंप दिया.

बस फिर क्या था दाती महाराज के सितारे चमक उठे. वह राजनीतिक और कई तरह की भविष्यवाणी करने लगा. संयोग ऐसा रहा कि उन में से कुछ भविष्यवाणियां सच हो गईं. इस से दाती महाराज चर्चा में रहने लगा और उस की पूछ बढ़ गई. न्यूज चैनलों के माध्यम से टीवी तक 

पहुंचे दाती महाराज इस बीच दाती महाराज ने फतेहपुर बेरी में नेताजी द्वारा दिए गए मंदिर में शनिधाम मंदिर की स्थापना कर दी थी. मंदिर में आश्रम भी बना लिया था. साथ ही पाली के आलावास गांव से अपने 3 सौतेले भाइयों अशोक, अर्जुन और अनिल को भी दिल्ली बुला लिया था. आरोप है कि दाती ने अपने भाइयों अन्य सहयोगियों के साथ मिल कर शनिधाम मंदिर के आसपास की जमीनों पर कब्जा कर लिया. दाती के सारे कामकाज, दिल्ली पाली स्थित आश्रम, कालेज अस्पताल का प्रबंधन तीनों सौतेले भाई देखते थे. वे ही रुपएपैसे का भी हिसाबकिताब रखते थे. दाती महाराज के सितारे बुलंदी पर पहुंच गए तो उस ने टीवी चैनलों परशनि शत्रु नहीं मित्र हैके नाम से कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू करवा दिया. साथ ही दाती ने खुद का यूट्यूब चैनल भी शुरू किया. टीवी कार्यक्रमों के जरिए दाती देश भर में मशहूर हो गया. वह शनि महाराज के नाम से ही पहचाना जाने लगा

सांवला रंग, माथे पर तिलक, सिर पर लंबे बाल, चेहरे पर संवरी हुई काली दाढ़ी के बीच ठोढ़ी पर सफेद रंग और गले में रुद्राक्ष की माला, यही पहचान बनी दाती महाराज की. दाती महाराज केवल शनि ग्रह को शांत रखने के उपाय बताता था. दरअसल, ग्रहनक्षत्रों में केवल शनि ही ऐसा ग्रह है, जो सब से ज्यादा समय तक मानव जीवन को प्रभावित करता हैमिली महामंडलेश्वर की उपाधि कहा जाता है कि शनि के प्रभाव से इंसान रंक से राजा और राजा से रंक बन सकता है. दाती ने शनि ग्रह को भुनाने की कोशिश की और इसी के मद्देनजर अपने संस्थान का नाम शनिधाम रखा, जहां वह केवल शनि ग्रह पर ही चर्चा करता था.

सन 2010 में हरिद्वार में आयोजित महाकुंभ में श्री पंचायती महानिर्वाण अखाड़े की ओर से दाती महाराज को महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई. इस के बाद उस ने अपना नाम श्रीश्री 1008 महामंडलेश्वर परमहंस दाती महाराज रख लिया. इस से पहले दाती महाराज दिल्ली के छतरपुर इलाके के फतेहपुर बेरी में शनिधाम मंदिर का निर्माण करा चुके थे. इस मंदिर को उस ने श्री सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम पीठाधीश्वर नाम दिया. मंदिर में 2003 में शनिदेव की प्रतिमा स्थापित की गई. इस मंदिर में बने आश्रम में अस्पताल, गौशाला अनाथालय भी हैं. बाद में दाती ने पाली के आलावास गांव में भी आश्रम बनवाया. इस के अलावा उन्होंने उज्जैन में भी अपने आश्रम की स्थापना की.

दुष्कर्म के मामले में जिस महिला श्रद्धा को भी आरोपी बनाया गया है, वह दिल्ली और पाली के आश्रम का कामकाज संभालती थी. ट्रस्ट में दाती महाराज के बाद दूसरे नंबर का स्थान श्रद्धा का ही था.दाती महाराज के तमाम प्रमुख राजनेताओं और नौकरशाहों से संबंध हैं. उन्होंने कई प्रमुख नेताओं के साथ अपनी फोटो के फ्लैक्स आश्रम सहित पूरी दिल्ली में लगवा रखे थे. इन के जरिए वह अपना राजनीतिक रसूख दिखाते थे. फतेहपुर बेरी स्थित आश्रम पर शनि अमावस्या पर होने वाले कार्यक्रम में देश भर से कई प्रमुख नेता और दिग्गज हस्तियां आती थीं. बेटियों का जन्मदिन मनाने, अनाथ बेटियों की शादी करवाने और कंबल बांटने जैसे कामों से दाती महाराज ने सुर्खियां बटोरीं.

डरी हुई थी पीडि़ता अब बात करते हैं पीडि़ता की. मूलरूप से उत्तर प्रदेश की रहने वाली यह लड़की आजकल दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहती है. उस के परिवार में मातापिता, 2 बहनें और एक भाई है. दोनों बहनों की शादी हो चुकी है. करीब 25 साल की पीडि़ता दाती महाराज के उपदेश सुनने नियमित तौर पर उन के आश्रम जाती थी. दाती के एक सहयोगी ने उस की मुलाकात दाती से कराई. इस के बाद 2007 से 2016 तक वह सेवादार के तौर पर दाती के आश्रम में रही. उस ने दाती के आश्रम के सहयोग से अजमेर से एमसीए किया था

बाद में वह अपने परिवार के साथ रहने लगी थी. लेकिन इस बीच उस का आश्रम में आनाजाना लगा रहा. इसी दौरान फरवरी 2016 में पहली बार दिल्ली के शनि मंदिर में उस से दुष्कर्म किया गया. फिर मार्च 2016 में उसे राजस्थान के पाली ले जा कर दुष्कर्म किया गया. पीडि़ता का कहना है कि दाती महाराज ने उसे पुलिस में शिकायत नहीं करने के लिए धमकाया था. युवती ने पुलिस को बताया कि डर के मारे वह इतने समय तक चुप रही. परिवार की बदनामी का भी डर था.

पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होने पर दाती महाराज ने कहा कि उन्हें बदनाम करने की साजिश के तहत उन के खिलाफ झूठा मामला दर्ज कराया गया है. दाती ने दावा किया कि पीडि़ता अपनी 2 अन्य बहनों के साथ आश्रम में रहती थी. वह खुद 2 साल पहले अपनी मरजी से आश्रम छोड़ने से पहले खुद शपथपत्र दे कर गई थी. कुछ लोगों ने इस लड़की और उस के पिता को प्रलोभन दिया, जिस से ये लोग मुझ पर आरोप लगाने को तैयार हो गए. दाती का कहना था कि 2015 में अभिषेक नाम का आदमी शनिधाम में आता था. उस ने सेवादारों से मेलमिलाप बढ़ाया. इस में कई लोग शामिल थे, इन्होंने पैसे का लेनदेन किया. विवाद होने पर अभिषेक ने उन्हें बताया कि उस ने सारा पैसा दाती महाराज को दिया है. दाती ने कहा कि अभिषेक ने उन्हें कोई पैसा नहीं दिया. इस के बाद उन लोगों ने यह साजिश रची.

पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होने पर दाती महाराज गायब हो गए. वह बिना किसी को बताए दिल्ली छोड़ कर राजस्थान के पाली स्थित अपने आश्रम में चले गए. आश्रम में पुलिस की काररवाई इस के दूसरे दिन 11 जून को पीडि़ता ने दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल से मुलाकात कर अपनी आपबीती सुनाई. पीडि़ता से मुलाकात के बाद स्वाति ने ट्वीट कर कहा कि पीडि़ता गहरे सदमे में है. साथ ही उस की जान को खतरा भी है. इसलिए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर तत्काल उसे सुरक्षा मुहैया कराने और दाती महाराज को गिरफ्तार करने को कहा गया है. पुलिस ने सफदरजंग अस्पताल में पीडि़ता की मैडिकल जांच कराई.

पुलिस ने 12 जून को पीडि़ता के साकेत कोर्ट में धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराए. इस में पीडि़ता ने बताया कि 9 फरवरी, 2016 को दाती की सेवादार श्रद्धा उसे असोला स्थित शनिधाम आश्रम में चरण सेवा के लिए दाती के पास ले गई. मुझे गुफानुमा अंधेरे कमरे में सफेद रंग के कपड़े पहना कर भेजा गया. वहां दाती ने कहा, ‘मैं तुम्हारा प्रभु हूं. इधरउधर क्यों भटकना. मैं सब वासना खत्म कर दूंगा.’ फिर दाती व उस के सहयोगियों ने मेरे साथ दुष्कर्म किया. मार्च में पाली में यही कहानी दोहराई गई.

दाती महाराज ने 12 जून को विभिन्न समाचार चैनलों को मोबाइल से वीडियो बना कर भेजा और खुद पर लगे आरोपों को खारिज करते हुए पुलिस जांच में शामिल होने की बात कही. उन्होंने कहा कि वह फरार नहीं है. इसी दिन पाली जिले के आलावास स्थित आश्रम की निदेशिका श्रद्धा ने दावा किया कि बाबा पाली स्थित आश्रम में हैं. फिलहाल पुलिस ने उन से कोई संपर्क नहीं किया है. जांच में पूरा सहयोग किया जाएगा. मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण दिल्ली के पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने इस मामले की जांच 12 जून को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दी. इसी के साथ पुलिस ने पीडि़ता और उस के परिवार को जान का खतरा देखते हुए सुरक्षा मुहैया करा दी.

दाती ने दावा किया कि वह फरार नहीं है 13 जून को दाती महाराज पाली जिले के आलावास स्थित श्री आश्वासन बालग्राम में दिन भर रहे. इस दौरान वह साधकों और मीडियाकर्मियों से मिलते रहे. मीडिया के समक्ष उन्होंने फिर दोहराया कि वह निर्दोष है. उन्हें झूठा फंसाया जा रहा है. दाती महाराज पर यौनशोषण का आरोप लगने के बाद पाली जिले में सोजत रोड पर स्थित आलावास आश्रम में रहने वाली 500 से ज्यादा बच्चियों के घरवाले वहां पहुंचने लगे. ये लोग अपनी बच्चियों की खैरखबर लेने आए थे.

14 जून को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने सर्चवारंट ले कर असोला स्थित शनिधाम मंदिर पर छापा मारा. इस दौरान पीडि़ता भी पुलिस दल के साथ मौजूद रही. पुलिस ने पीडि़ता के साथ उस जगह की पहचान की, जहां उस से दुष्कर्म किया गया था. सर्च अभियान के दौरान क्राइम ब्रांच टीम ने मंदिर में सेवादारों सहित अन्य लोगों से पूछताछ की और सबूत जुटाए. पुलिस ने कहा कि बाबा की गिरफ्तारी को ले कर कोई जल्दबाजी नहीं है. पहली कोशिश पर्याप्त सबूत जुटाने की है, ताकि बाद में अदालत में केस कमजोर पड़े.

दुष्कर्म के आरोपों में फंसने पर दाती के विदेश भागने की आशंका को देखते हुए 14 जून को दिल्ली पुलिस ने दाती का लुकआउट नोटिस जारी कर दिया. साथ ही सभी हवाईअड्डों को दाती के मामले की सूचना दे दी गई. एयरपोर्ट अथौरिटी से कहा गया कि दाती विदेश जाते हैं तो पहले दिल्ली पुलिस को सूचना दी जाए. इस बीच दाती महाराज ने आलावास आश्रम से ही मीडिया से कहा कि वह 18 जून, 2018 को दिल्ली पुलिस के सामने पेश होंगे. उन्होंने कहा कि उन्हें 18 जून तक का समय दिया जाए ताकि वह गुरुकुल में रहने वाली बच्चियों के लिए आवश्यक व्यवस्था कर सकें. दूसरी ओर, दिल्ली महिला आयोग ने दाती की गिरफ्तारी होने पर नाराजगी जताते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस दे कर जवाब मांगा.

दिल्ली के असोला स्थित शनिधाम मंदिर में क्राइम ब्रांच का सर्च अभियान 15 जून को भी चला. इस दौरान पुलिस ने कई सबूत जुटाए. मौके से डीवीआर हार्डडिस्क, पैनड्राइव आदि जब्त किए. मंदिर की तलाशी के दौरान क्राइम ब्रांच की टीम के साथ पीडि़ता भी रही, उस ने मंदिर में बने आश्रम के वे 2 कमरे पुलिस को दिखाए, जिन में उस से दुष्कर्म किया गया था. दिल्ली के आश्रम की तलाशी का काम पूरा होने के बाद 15 जून को ही क्राइम ब्रांच की एक टीम पीडि़ता को साथ ले कर पाली के लिए रवाना हो गई. इसी के साथ दिल्ली पुलिस ने दाती महाराज को नोटिस जारी कर के पूछताछ के लिए 16 जून को दिल्ली तलब किया. हालांकि पुलिस के नोटिस पर दाती ने जांच में शामिल होने के लिए 18 जून तक का समय मांगा.

16 जून को क्राइम ब्रांच की टीम जब पाली जिले के आलावास स्थित उन के आश्रम में पहुंची तो इस से पहले ही वह वहां से फरार हो गए. उन के साथ आश्रम की संचालिका श्रद्धा और अन्य सहयोगी भी भाग गए. दाती ने अपना मोबाइल भी स्विच्ड औफ कर लिया. दूसरी ओर दिल्ली स्थित आश्रम से बाबा के भाई भी भूमिगत हो गए. एसीपी जसवीर मलिक के नेतृत्व में पहुंची क्राइम ब्रांच टीम ने आलावास आश्रम में 3 घंटे तक जांचपड़ताल की. इस दौरान पीडि़ता भी पुलिस टीम के साथ रही. पीडि़ता ने पूरे आत्मविश्वास के साथ उन 6 कमरों की तसदीक कराई, जहां उस के साथ यौनाचार हुआ था

 पुलिस टीम ने आश्रम से कई सबूत जुटाए. जांच काररवाई की वीडियोग्राफी भी कराई गई. पुलिस ने आश्रम के सीसीटीवी कैमरे भी खंगाले और उन की डीवीआर हार्डडिस्क जब्त कर ली. कई रजिस्टर दस्तावेज भी जब्त किए गएइस दौरान आश्रम के उपमुख्य संचालक सहित करीब 20 सेवादारों से पूछताछ कर उन के बयान लिए गए. पीडि़ता के साथ रही बालिकाओं युवतियों के भी बयान दर्ज किए गए. सर्च वारंट से ली गई आश्रम की तलाशी के दौरान वहां पुलिस बल तैनात रहा.

पुलिस टीम को आलावास आश्रम में उस समय हैरानी हुई, जब वहां लगभग 100 बालिकाएं ही मिलीं. अधिकांश कमरे खाली मिले, जबकि दाती कई दिनों से दावा कर रहे थे कि इस आश्रम में 700 से अधिक बालिकाएं हैं. पुलिस को संदेह है कि आश्रम में रहने वाली बालिकाओं को दाती ने जबरन घर या अन्यत्र भेज दिया, क्योंकि दाती को डर था कि क्राइम ब्रांच की टीम बालिकाओं के बयान लेगी और उन से पूछताछ करेगी तो उस की पोल खुल सकती है. दिल्ली पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है क्योंकि आश्रम में दाती की बिना अनुमति कोई आजा नहीं सकता था.

16 जून को क्राइम ब्रांच टीम दिल्ली में दाती महाराज का इंतजार करती रही लेकिन वह नहीं पहुंचे. दाती ने पुलिस से 18 जून तक का समय पहले ही मांग लिया था. दाती के पाली आश्रम में भी नहीं मिलने पर पुलिस ने नोटिस जारी कर उन से 18 जून को पेश होने को कहा. बाबा पर दुष्कर्म का आरोप लगने के बाद पहली बार 16 जून शनिवार को दिल्ली स्थित शनिधाम मंदिर में दाती महाराज की गैरमौजूदगी में पूजा की गई. सुबह साढ़े 5 बजे होने वाली पूजा आश्रम के सेवादारों ने की. इस से पहले प्रत्येक शनिवार को होने वाली इस पूजा को दाती महाराज ही करते थे. दाती पर आरोपों के कारण इस दौरान उन के सेवादार श्रद्धालुओं पर नजर रखे हुए थे.

16 जून को पाली स्थित आश्रम से फरार हुए दाती और आश्रम संचालिका श्रद्धा 17 जून को भी पुलिस या मीडिया के सामने नहीं आए. पुलिस 17 जून को दिल्ली एवं पाली स्थित आश्रमों पर नजर रखे रही, लेकिन दाती दोनों जगह ही नहीं पहुंचे. पुलिस को उम्मीद थी कि दाती 18 जून को दिल्ली में पुलिस के सामने पेश हो जाएंगे. इस बीच क्राइम ब्रांच को दाती के खिलाफ ठगी की कई शिकायतें मिलीं. इन में धन दोगुना करने का झांसा दे कर रकम हड़पने की शिकायत भी शामिल रही. क्राइम ब्रांच ने इन शिकायतों को भी जांच के दायरे में ले लिया. दाती महाराज समेत पांचों आरोपी 18 जून को भी दिल्ली में क्राइम ब्रांच के समक्ष पेश नहीं हुए. दाती की ओर से उन के वकील ने क्राइम ब्रांच में पेश हो कर दाती के स्वास्थ्य कारणों का हवाला दे कर पूछताछ को पेश होने के लिए एक सप्ताह की मोहलत मांगी

इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने कानूनविदों से सलाह कर दूसरा नोटिस जारी किया और दाती समेत सभी 5 आरोपियों को पेश होने के लिए 20 जून, 2018 तक का समय दे दिया. साथ ही यह भी कह दिया गया कि 20 जून तक हाजिर नहीं हुए तो उन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाएगा. इस के बाद पुलिस ने जांच काररवाई तेज कर सभी आरोपियों के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. वहीं जयपुर से सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा बाल अधिकार विभाग की एक टीम उपनिदेशक के नेतृत्व में पाली स्थित आश्रम पहुंची और गायब बच्चियों के बारे में जानकारी जुटाई. इस के अलावा आश्रम के पंजीयन का नवीनीकरण कई साल से नहीं होने के मामले की भी जांच की.

इस बीच, योगगुरु स्वामी रामदेव ने 18 जून को कोटा में यह कह कर इस पूरे मामले में उबाल ला दिया कि जिन साधुओं का चरित्र ठीक नहीं है, उन्हें फांसी पर लटका देना चाहिए. केवल भगवा वस्त्र पहनने से साधु नहीं बनते, उन का आचरण चरित्र भी ठीक होना चाहिए. धर्माचार्यों को भी चाहिए कि वे ऐसे संन्यासियों की गारंटी लें. दबाव बढ़ने पर हाजिर होना पड़ा क्राइम ब्रांच के सामने 19 जून की दोपहर दाती महाराज दिल्ली में चाणकयपुरी स्थित क्राइम ब्रांच के औफिस में हाजिर हो गए. दरअसल, दाती के अचानक हाजिर होने के पीछे की कहानी यह रही कि दिल्ली की साकेत कोर्ट ने 21 जून तक दिल्ली पुलिस से स्टेटस रिपोर्ट मांगी. इस पर पुलिस ने दाती के वकील के जरिए उन पर तुरंत हाजिर होने का दबाव बनाया.

इस बीच पुलिस को पता चला कि दाती महाराज दिल्ली में ही एक पांचसितारा होटल में ठहरे हुए हैं. पुलिस के भारी दबाव के चलते दाती 3 दिनों तक भूमिगत रहने के बाद 19 जून की दोपहर अपने वकील के साथ क्राइम ब्रांच के औफिस पहुंचेक्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने दाती से 7 घंटे तक पूछताछ कर करीब डेढ़ सौ सवाल किए. दाती के कुछ जवाबों से पुलिस अधिकारी संतुष्ट नहीं थे. बाद में उन्हें रात 10 बजे छोड़ दिया गया और 22 जून को फिर हाजिर होने के निर्देश दिए.

अब सवाल दाती की गिरफ्तारी का नहीं, बल्कि इस बात का है कि दाती को अपनी बेगुनाही के सबूत खुद देने होंगे. अगर दाती ने गुनाह किया है तो पुलिस गिरफ्तार भी करेगी और अदालत में मुकदमा भी चलेगा. गुनहगारों को कानून सजा देगा. यह तय है कि इस मामले से लोगों का बाबाओं से भरोसा और कम हुआ है.

देखना यह है कि खुद को निर्दोष बताने वाले दाती महाराज पर शनि की कृपा होती है या उन के सिर पर शनि की ढैय्या गिरती है

देवर ने रेता भाभी का गला, काटा सीना

दूरदराज से रोजीरोटी के लिए महानगरों में कर रहने वाले लोग जरूरत पड़ने पर अपने रिश्तेदार, करीबी और अपने गांव के लोगों की यह सोच कर मदद कर देते हैं कि उन की भी रोजीरोटी का साधन बन जाएगा. लेकिन कई बार उन्हीं में कोई आस्तीन का सांप भी निकल आता है. हितेश कर्तकपांडी ऐसा ही सांप था…  

54 वर्षीय धनंजय नारायण तांडेल दक्षिण मुंबई के समुद्र किनारे बसी पौश कालोनी कोलाबा की सुंदर नगर बस्ती में अपने परिवार के साथ रहते थे. परिवार में उन के अलावा 2 बेटे और एक सुंदर सी बहू थी. उन की पत्नी का काफी समय पहले देहांत हो चुका था. उन का छोटा सा परिवार था, जहां सभी लोग सुखचैन से रह रहे थेधनंजय नारायण सुंदर नगर में करीब 30 सालों से रहते रहे थे. उन के प्रेमिल स्वभाव की वजह से बस्ती के सारे लोग उन के परिवार को खूब मानसम्मान देते थे.

धनंजय नारायण का बड़ा बेटा महेंद्र तांडेल मुंबई की एक प्रतिष्ठित कंपनी में काम करता था, जबकि छोटा बेटा चेतन कोलाबा के एक शोरूम में नौकरी करता था. तांडेल भी एक शोरूम में चपरासी थे. सभी लोग सुबह को अपनेअपने काम पर निकल जाने के बाद सब शाम को ही घर लौटते थे. महेंद्र की पत्नी श्वेता सुबह जल्दी उठ कर सब के लिए टिफिन और चायनाश्ता तैयार करती और उन के जाने के बाद घर के रोजमर्रा के कामों में जुट जाया करती थी.

घटना 10 मई, 2017 की है. हमेशा की तरह घर के सभी लोग अपनेअपने काम पर निकल गए थे. दोपहर लंच के बाद महेंद्र तांडेल ने अपनी आदत के अनुसार पत्नी श्वेता को फोन किया. यह उन का रोजाना का नियम था. काफी देर तक घंटी बजती रही. लेकिन श्वेता ने उस की काल रिसीव नहीं की. बारबार नंबर मिलाने के बाद भी जब श्वेता ने फोन रिसीव नहीं किया तो महेंद्र के दिल की धड़कनें तेज हो गईं, क्योंकि इस से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था.

वह हमेशा महेंद्र के फोन की राह देखा करती थी. श्वेता कहां है और क्या कर रही है, यह जानने के लिए महेंद्र ने अपने पड़ोसी को फोन कर के श्वेता के बारे में पूछा. कुछ समय बाद पड़ोसी ने महेंद्र को जो खबर दी, उस से वह चौंक गया. पड़ोसी ने बताया कि श्वेता ने घर का मुख्य दरवाजा बंद कर रखा है और घर के अंदर तेज आवाज में टीवी चल रहा है. दरवाजा थपथपाने और आवाज देने पर भी वह दरवाजा नहीं खोल रही. ऐसी क्या बात हो गई जो श्वेता दरवाजा बंद कर के तेज आवाज में टीवी देख रही है.

महेंद्र ने बिना देर किए अपने पिता धनंजय को सारी बातें बता कर उन्हें घर पहुंचने को कहा. बेटे की बात सुन कर धनंजय घर की तरफ निकल गए. किसी अनहोनी के खयाल से वह रास्ते भर परेशान रहे. घर पहुंचने के बाद उन्होंने जैसेतैसे कर के दरवाजा खोला तो अंदर का जो नजारा था,उसे देख कर उन के होश उड़ गए. बहू श्वेता की बाथरूम में लहूलुहान लाश पड़ी थी. उन्होंने यह जानकारी अपने दोनों बेटों को दी तो वे भी थोड़ी देर में रोतेपीटते घर पहुंच गए.

पड़ोसियों ने पूरे परिवार को धीरज बंधाते हुए मामले की खबर पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. कोलाबा के थानाप्रभारी विजय धोपावकर को जब पुलिस कंट्रोल रूम से यह जानकारी मिली तो वह पीआई इमाम शिंदे, सुभाष दुधगांवकर, एपीआई विजय जाधव, सुदर्शन चव्हाण, अमोल ढोले, महिला एसआई प्रियंका देवकर, कांस्टेबल प्रवीण भालेराव, निकम पाटिल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने इस की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी.

घटनास्थल कोलाबा थाने से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था, इसलिए पुलिस टीम करीब 10 मिनट में वहां पहुंच गई. तब तक धनंजय के मकान के पास मोहल्ले के तमाम लोग जमा हो चुके थे. पुलिस जब मकान में पहुंची तो घर का सारा सामान बिखरा पड़ा था. कांच के कई बरतन टूटे हुए थे. श्वेता का शव बाथरूम के अंदर पड़ा हुआ था. उस के गले और छाती पर चाकू के कई गहरे घाव थे. उस के बदन पर सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज था, जो कई जगह से फटा हुआ था, जिस से यह संभावना लग रही थी कि अभियुक्त उस के साथ मनमानी करना चाहता था. कमरे की स्थिति देख कर ऐसा लग रहा था जैसे मृतका और अभियुक्त के बीच काफी हाथापाई वगैरह हुई थी.

थानाप्रभारी अभी घटनास्थल का निरीक्षण और पूछताछ कर ही रहे थे कि डीसीपी मनोज कुमार शर्मा, एसीपी राजेंद्र चव्हाण भी वहां पहुंच गए. मौकामुआयना करने के बाद अधिकारियों ने वहां मौजूद लोगों से बात की. इस के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए जे.जे. अस्पताल भेज दी. डीसीपी के दिशानिर्देश के बाद थानाप्रभारी विजय धोपावकर ने जांच की एक रूपरेखा तैयार की, जिस की जिम्मेदारी उन्होंने पीआई इमाम शिंदे और सुभाष दुधगांवकर को सौंप दी थी

घटनास्थल कोलाबा जैसे पौश इलाके में था, जहां सेना के तीनों अंगों के अधिकारियों की कालोनियां हैं. मामला कहीं तूल पकड़ ले, इसलिए डीसीपी ने कोलाबा पुलिस की सहायता के लिए माता रमाबाई अंबेडकर पुलिस थाने के तेजतर्रार थानाप्रभारी सुखलाल बर्पे को भी लगा दिया. थानाप्रभारी सुखलाल बर्पे ने मामले की समानांतर रूप से जांच शुरू कर दी. कोलाबा थाने की पुलिस टीम मृतक के ससुराल वालों से बातचीत कर परिजनों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन कर ही रही थी कि समानांतर जांच कर रहे पीआई सुखलाल बर्पे ने एक गुप्त सूचना के आधार पर श्वेता के कातिल का पता लगा कर उसे हिरासत में ले लिया

पीआई सुखलाल बर्पे ने अपने सहायकों के साथ अपनी जांच का मुख्य केंद्र मृतक श्वेता के परिवार को ही बनाया था, क्योंकि वह यह जानते थे कि इस तरह की घटना अधिकतर अपनी जानपहचान वालों के बीच ही घटती है. इसलिए उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से अध्ययन किया थाइस विषय में उन्हें अधिक से अधिक जानकारी मृतका के परिवार वालों से ही मिल सकती थी. उन्होंने श्वेता के साथ रहने वालों की जन्मकुंडली को खंगाला. उन्हें अपनी इस मुहिम में कामयाबी भी मिली. तांडेल परिवार का करीबी और चेतन तांडेल का जिगरी दोस्त हितेश कर्तकपांडी उन के रडार पर गया.

14 मई, 2017 को पीआई सुखलाल बर्पे की जांच टीम ने उसे फोर्ट इलाके के एक शोरूम से हिरासत में ले लिया. पुलिस टीम के अनुसार, जिस दिन यह घटना घटी थी, उस दिन वह सब के साथ काम पर गया जरूर था लेकिन कुछ ही समय बाद वापस घर लौट आया. इस के अलावा वह पुलिस के एक भी सवाल का जवाब सही ढंग से नहीं दे पाया थाकोलाबा पुलिस और माता रमाबाई अंबेडकर थाने की संयुक्त टीम ने हितेश से पूछताछ शुरू की तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उस ने श्वेता की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

23 वर्षीय हितेश कर्तकपांडी महाराष्ट्र के जिला पालघर के उसी गांव का रहने वाला था, जिस गांव के धनंजय नारायण तांडेल मूल निवासी थे. पारिवारिक स्थिति ठीक होने के कारण धनंजय तांडेल रोजीरोटी की तलाश में महानगर मुंबई गए थेवह कोई ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे, इसलिए उन्हें कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने एक शोरूम में चपरासी की नौकरी कर ली. फिर वह सुंदर नगर बस्ती में किराए पर रहने लगे. बाद में वह अपने बीवीबच्चों को भी ले आए

उन के बीवीबच्चों को मुंबई आए अभी कुछ ही साल हुए थे कि अचानक उन की पत्नी की मृत्यु हो गई. पत्नी की मौत के बाद वह टूट से गए थे, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को नहीं टूटने दिया. दोनों बेटों को उन्होंने पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दिया कि उन की नौकरी लग गई. परिवार में आमदनी बढ़ी तो उन्होंने सुंदरनगर में ही खुद का एक मकान खरीद लिया. धनंजय तांडेल की पत्नी के गुजर जाने के बाद घर सूनासूना सा हो गया था. ऐसे में उन्होंने अपने बड़े बेटे महेंद्र तांडेल का विवाह श्वेता से कर दिया. श्वेता देखने में जितनी सुंदर थी, उतनी ही पढ़ीलिखी और घर के काम में होशियार थी. 

श्वेता और महेंद्र के विचार आपस में खूब मिलते थे, इसलिए दोनों ही एकदूसरे को बहुत चाहते थे. औफिस पहुंचने के बाद भी महेंद्र को जब भी समय मिलता, वह श्वेता को फोन कर लेता था. उन की शादी के 2 साल कैसे बीत गए, पता ही नहीं चलाधनंजय अपने दोनों बेटों के साथ कभीकभी अपने पैतृक गांव भी जाते रहते थे. उन के छोटे बेटे चेतन की गांव के ही हितेश कर्तकपांडी से दोस्ती हो गई थी. दोनों ही हमउम्र थे. चेतन जब कभी अपने गांव जाता तो हितेश के साथ सैरसपाटा करता था.

जब हितेश कामधंधे की तलाश में मुंबई आया तो तांडेल परिवार ने उस की काफी मदद की. इतना ही नहीं, महेंद्र ने कोशिश कर के उस की कोलाबा के प्यूमा शोरूम में नौकरी भी लगवा दी. उस के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, उस के रहने का बंदोबस्त भी उस ने अपने घर में ही कर दिया था. पहली मंजिल पर धनंजय, उन का बेटा चेतन और चेतन का दोस्त हितेश रहता था, जबकि नीचे के भाग में महेंद्र अपनी पत्नी श्वेता के साथ रहता था.

कुछ दिनों तक तो हितेश कर्तकपांडी ठीक रहा, लेकिन जैसेजैसे वह महेंद्र के परिवार में घुलता गया, उस की झिझक भी दूर हो गई. वह श्वेता से कुछ ज्यादा ही घुलनेमिलने लगा. देवर का रिश्ता होने की वजह से दोनों के बीच हंसीमजाक भी चलती रहती थी. हितेश श्वेता को अपने रंग में रंगने की कोशिश करने लगा. यानी वह श्वेता को मन ही मन चाहने लगा था, जबकि श्वेता केवल चेतन की तरह हितेश को अपना देवर ही मानती थी. इस से आगे और कुछ नहीं. पति और देवर की तरह वह हितेश का भी टिफिन तैयार कर देती थी.

घटना के दिन हितेश काम पर तो सब के साथ गया, लेकिन कुछ देर बाद वह घर वापस आ गया. श्वेता के पूछने पर उस ने सिरदर्द का बहाना बनाया. श्वेता ने उसे चाय के साथ सिरदर्द की गोली दे कर उसे ऊपर के कमरे में जा कर आराम करने को कहा और फिर वह घर के कामों में लग गई. उसे क्या मालूम था कि उस की मौत का वारंट निकल चुका था. हितेश ऊपर के कमरे में न जा कर कुछ देर तक श्वेता के सौंदर्य को निहारता रहा. इस के बाद जब श्वेता बाथरूम में चली गई तो उठ कर हितेश ने अपनी योजना के अनुसार टीवी की आवाज तेज कर दी, साथ ही एसी का टेंपरेचर भी हाई कर दिया. फिर वह श्वेता के साथ मनमानी करने के उद्देश्य से बाथरूम की तरफ गया.  

बाथरूम का दरवाजा खुलते ही वह श्वेता से मनमानी करने पर उतर आया. उस ने श्वेता को दबोच लिया और बोला, ‘‘भाभी, आज मुझे अपने मन की मुराद पूरी कर लेने दो. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, तब से तड़प रहा हूं. दिन का चैन और रातों की नींद हराम हो गई है.’’

हितेश की यह बात सुन कर श्वेता बुरी तरह घबरा गई थी. अपने आप को उस से बचाने के लिए वह पूरे कमरे में इधरउधर भागने लगी. वह अपने बचाव के लिए चीखचिल्ला भी रही थी लेकिन टीवी की तेज आवाज में उस की आवाज दब गई थी. हितेश के सिर पर वासना का भूत कुछ इस तरह सवार था कि उस के सोचनेसमझने की सारी शक्ति खत्म हो गई थी. वह श्वेता के जिस्म के लिए पागल सा हो गया था. हितेश की इस हरकत से श्वेता भी अपना आपा खो बैठी थी. वह कमरे में रखा सामान तोड़ने लगी ताकि आवाज सुन कर पड़ोसी जाएं.   

मुख्य दरवाजे पर आधुनिक लौक लगा था,जिसे वह जल्दबाजी में खोल नहीं सकी. उस समय श्वेता की ऐसी स्थिति थी, जैसे एक पिंजरे में बाघ के सामने बकरी की होती है. इस दौरान उस के कपड़े भी फट गए थे. अपने मकसद में कामयाब न होते देख हितेश को श्वेता पर गुस्सा आ गया. वह किचन में गया और वहां से सब्जी काटने वाला चाकू उठा लाया. उस चाकू से उस ने श्वेता के गले और सीने पर कई वार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया और उस की लाश को बाथरूम के पास डाल दिया.

श्वेता की हत्या के बाद वह बुरी तरह डर गया था. कुछ समय तक वह वहीं बैठा रहा. इस के बाद उस ने बाथरूम में जा कर अपने हाथमुंह साफ किए, कपड़े बदले और कमरे को उसी स्थिति में छोड़ कर अपने काम पर चला गया. दरवाजा भिड़ते ही आधुनिक लौक फिर से बंद हो गया था. पुलिस टीम ने हितेश कर्तकपांडी से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उस के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 452 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे पुलिस हिरासत में आर्थर रोड जेल भेज दिया.

जांच अधिकारी पीआई इमाम शिंदे और सुभाष दुधगांवकर ने अपनी जांच पूरी कर मामले का आरोपपत्र अदालत में दाखिल कर दिया. कथा लिखने तक मामला अदालत में विचाराधीन था.

 

लाशों के टुकड़ों से भरी 7 अटैचियां किसकी निकली

सीरियल किलर जगरूप ने केवल अपनी अय्याशी के लिए 7 कत्ल किए. मजे की बात यह कि 23 सालों तक पुलिस उसे पकड़ना तो दूर उस के बारे में कोई जानकारी तक नहीं जुटा पाई. आखिर…  

मार्च 2015 के अंतिम सप्ताह की 24 तारीख को पटियाला की विकास कालोनी में एक युवक की लाश मिली  थी. लाश के टुकड़े कर के एक अटैची में बंद कर के अटैची को सुनसान जगह पर फेंक दिया गया था. मृतक के कई टुकड़े करने के बाद उस के चेहरे पर ईंटें मार कर कुचला गया थापुलिस ने मुकदमा दर्ज कर के लाश की शिनाख्त करवाई तो पता चला कि अटैची में मिली लाश अनिल कुमार नामक युवक की थी. इस हत्या ने पूरे शहर में दहशत पैदा कर दी थी.

दहशत का एक कारण यह भी था कि पुलिस को इस तरह लाश कोई पहली बार नहीं मिली थी. सन 1995 से ले कर अब तक इसी तरह पुलिस ने पंजाब के अलगअलग शहरों से करीब 8 लाशें बरामद की थीं और ये सभी अनसुलझे मामले फाइलों में बंद हो चुके थे. यह ताजा मामला भी पहले मिली लाशों की फेहरिस्त में शामिल कर लिया गया था, क्योंकि अब से पहले मिली लाशें और अब मिली लाश को देख कर ऐसा लगता था जैसे इन सब का कातिल एक ही रहा हो.

इन सभी हत्याओं की कार्यप्रणाली एक जैसी ही थी. अब तक मिली सभी लाशें टुकड़ों में मिली थीं और उन सब के चेहरे पर ईंटें मार कर चेहरा बिगाड़ा गया था. इस तरह की हत्याओं का पहला मामला सन 1995 में लुधियाना में सामने आया था. मृतक का नाम नंदलाल था और उस की लाश भी पुलिस को अटैची में बंद टुकड़ों के रूप में मिली थी.अनिल की तरह नंदलाल के चेहरे को भी ईंटें मार कर बिगाड़ा गया था. बाद में पुलिस की काफी मशक्कत के बाद मृतक की पहचान नंदलाल के रूप में हुई थी, पर पुलिस की दिनरात की मेहनत के बाद भी वह कातिल तक नहीं पहुंच पाई थी. अंतत: इस केस को अनसुलझा करार देने के बाद इस की फाइल बंद कर दी गई थी. इस के बाद साल, 6 महीने में लुधियाना और पटियाला में इसी तरह लाशें मिलती रहीं और उन हत्याओं की जांच भी होती रही, पर कातिल को पकड़ना तो दूर की बात पुलिस उस का पता तक नहीं लगा पाई. समय के साथसाथ हत्याओं के ये सारे केस फाइलों में बंद हो कर रह गए थे. 

लेकिन अनिल की इस ताजा हत्या ने एसपी (देहात) हरविंदर सिंह विर्क का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और उन्होंने इस तरह हुई हत्याओं की सभी फाइलें मंगवा कर उन का बारीकी से अध्ययन करने के बाद हत्यारे को पकड़ने का काम डीएसपी सौरभ जिंदल को सौंप दियाडीएसपी सौरभ जिंदल ने अपने विश्वसनीय पुलिसकर्मियों की टीम बना कर इस मामले की जांच शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने पटियाला के टैगोर सिनेमा के पीछे मिली राजिंदर कुमार नामक युवक की लाश से अपनी जांच शुरू की. राजिंदर की लाश भी 2015 में मिली थी और अब तक मिली अन्य लाशों की तरह उस की लाश के भी टुकड़े कर अटैची में बंद कर के टैगोर सिनेमा के पिछवाड़े फेंके गए थे. उस का चेहरा भी ईंट मार कर बिगाड़ा गया था. 

डीएसपी सौरभ जिंदल ने जब राजिंदर की फाइल का बारीकी से निरीक्षण किया तो पता चला कि राजिंदर की लाश के टुकड़ों के साथ उस के कपड़े भी मिले थे और उन कपड़ों में एक विजिटिंग कार्ड भी था, जो किसी सुरजीत नामक कौंटैक्टर का था. डीएसपी सौरभ जिंदल ने सुरजीत को बुलवाया और मृतक राजिंदर की फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछा. फोटो देख कर उस ने झट से बता दिया कि राजिंदर उसी मकान मेंअपनी पत्नी के साथ किराए पर रहता था, जिस में वह खुद रह रहा था. आगे की पूछताछ में पता चल कि वह मकान किसी रीना नाम की औरत का था

यह जानकारी भी मिली कि रीना का चालचलन ठीक नहीं था. रीना के अवैध संबंध एक आदमी से थे और वह अकसर रीना के घर आया करता था. पड़ोसियों के अनुसार, रीना उस आदमी की रखैल थी और वह उस के इशारों पर नाचती थी. रीना के पास आने वाला आदमी कौन था, उस का नाम क्या था और वह कहां का रहने वाला था, रीना के अलावा यह बात और कोई नहीं जानता था. बहरहाल, डीएसपी सौरभ जिंदल ने सब से पहले राजिंदर के बारे में उस की पत्नी से पूछताछ की

उस की पत्नी का कहना था कि उस का पति सिंचाई विभाग में कार्यरत था और कई दिनों से घर से लापता था. आश्चर्यजनक बात यह थी कि राजिंदर की पत्नी ने उस के गायब होने की कहीं रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करवाई थी. जांच में यह भी पता चला कि राजिंदर कुमार भी रीना पर गलत नजर रखता था. डीएसपी सौरभ जिंदल ने मामले की गहनता से जांचपड़ताल की तो कई बातें बड़ी विचित्र और रहस्यमयी दिखाई दीं. इसलिए जिंदल ने रीना से ही पूछताछ करना उचित समझा. रीना को अपने औफिस बुला कर जब उस से उस के प्रेमी के बारे में पूछा गया तो रीना ने अपने प्रेमी के बारे में कई रहस्य उजागर किए

उस ने बताया कि उस के प्रेमी का नाम जगरूप सिंह था और वह पिछले काफी समय से अपनी मजबूरी के कारण उस के साथ रह रही थी, क्योंकि जगरूप उसे ब्लैकमेल कर रहा था और वह उसे धमकी दे कर कई बार कह चुका था कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी या उस के बारे में किसी से कुछ कहा तो अन्य लोगों की तरह वह उस की भी हत्या कर देगा और उस की लाश के टुकड़ेटुकड़े कर चीलकौवों को खिला देगा. इन सब बातों के अलावा रीना से यह भी पता चला कि 45 वर्षीय जगरूप सिंह बदोवाल, लुधियाना का रहने वाला है. बदोवाल में जगरूप कहां रहता था, इस बात का रीना को पता नहीं था. डीएसपी सौरभ जिंदल के आदेश पर उन की पुलिस टीम ने बड़ी मेहनत करने के बाद लुधियाना के बदोवाल में जगरूप का घर ढूंढ निकाला, पर इतनी मेहनत के बाद यहां भी पुलिस के हाथ निराशा ही लगी.

दरअसल, जगरूप को किसी तरह से यह सूचना मिल गई थी कि पुलिस ने अब तक हुए ब्लाइंड मर्डर्स की फाइलों को खोल कर नए सिरे से जांच शुरू कर दी है और जल्द ही पुलिस उस तक पहुंचने वाली है. इसीलिए वह अपने घर बदोवाल से फरार हो गया था. जगरूप की गिरफ्तारी को ले कर पुलिस ने रेड अलर्ट घोषित कर जगहजगह उस की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी. इस बीच पुलिस को पता चला कि जगरूप लुधियाना के जालंधर बाईपास इलाके में कहीं रह रहा है. दिनरात मेहनत कर के पुलिस ने उस का ठिकाना ढूंढ तो लिया, लेकिन पुलिस के वहां पहुंचने से पहले ही वह वहां से भी फरार हो गया. पुलिस खाली हाथ पटियाला लौट आई.

अगली बार पुलिस ने रीना से पुन: पूछताछ कर जगरूप के उन सभी ठिकानों को घेर लिया, जहां उस के छिपने की संभावना हो सकती थी. अंत में अपने आप को चारों ओर से घिरा देख कर 4 जनवरी, 2018 को जगरूप सिंह ने एक व्यक्ति के जरिए सिविललाइंस थाने में कर सरेंडर कर दिया. इसी के साथ पिछले कई महीनों से जगरूप और पुलिस के बीच चल रहे चूहेबिल्ली के खेल का अंत हो गया. जगरूप सिंह के पिता की मृत्यु उस के बचपन में ही हो गई थी. जगरूप बचपन से ही अय्याश प्रवृत्ति का था और ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहता था. बचपन से ही वह स्कूल में हमउम्र और अपनी उम्र से बड़ी लड़कियों से छेड़छाड़ करता रहता था. इसी के चलते उसे स्कूल से निकाल दिया गया था. उम्र के साथसाथ उस का अय्याशी वाला शौक भी बढ़ता गया.

लेकिन अय्याशी के लिए ढेर सारे पैसों की जरूरत थी, जो उस के पास नहीं थे. अंतत: अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उस ने एक रास्ता खोज निकाला. अपने आप को शरीफ और पैसे वाला दिखा कर वह लड़कियों से पहले दोस्ती करता था और बाद में उन की अश्लील फोटो खींच कर उन्हें ब्लैकमेल करते हुए देहव्यापार के धंधे में धकेल देता था. उन की कमाई से वह खुद ऐश करने लगा. इस तरह जगरूप ने अनेकों लड़कियों की जिंदगी बरबाद की थी. उस के चंगुल में फंसने वाली लड़की का उस से बच निकलना असंभव था. सन 1994 में जगरूप का बड़ा भाई आस्ट्रेलिया चला गया. वह वहां टैक्सी चलाने का काम करने लगा. इस काम में उसे अच्छी कमाई होने लगी. जब धंधा जम गया तो उस ने अपनी मां को भी हमेशा के लिए अपने पास आस्ट्रेलिया बुला लिया

आस्ट्रेलिया जाने से पहले जगरूप की मां ने एक लड़की देख कर उस की शादी यह सोच कर करवा दी थी कि एक तो उन के आस्ट्रेलिया चले जाने के बाद जगरूप का खयाल कौन रखेगा और दूसरे उन का सोचना था कि शादी के बाद शायद जगरूप की जिंदगी में कोई ठहराव जाए, पर यह उन का मात्र भ्रम था. जगरूप को सुधरना था और ही वह सुधरा. बल्कि दिनप्रतिदिन उस की अय्याशियां बढ़ती गईं. नईनवेली पत्नी के सामने जब जगरूप का घिनौना चेहरा आया तो समझदारी दिखाते हुए वह चुपचाप घर छोड़ कर अपने मायके चली गई और उस ने दोबारा मुड़ कर पति की तरफ नहीं देखा.

जगरूप के बताए अनुसार, उस ने अपनी जिंदगी का पहला कत्ल 22 साल की उम्र में मई 1995 में लुधियाना निवासी नंदलाल का किया था. नंदलाल की पत्नी जगरूप की प्रेमिका थी. नंदलाल को जब जगरूप के साथ अपनी पत्नी के संबंध होने का पता चला तो वह अपनी पत्नी को उस से संबंध तोड़ने के लिए कहने लगा. इसी बात को ले कर घर में क्लेश होने लगा था. अपनी प्रेमिका के माध्यम से जगरूप को जब नंदलाल के क्लेश करने का पता चला तो उस ने बड़ी बेरहमी से उस की हत्या करने के बाद उस की लाश के कई टुकड़े कर दिए और चेहरे पर ईंटें मारमार कर उस का चेहरा बिगाड़ दिया. जगरूप के आत्मसमर्पण करने से पहले बीते 23 सालों में भी लुधियाना पुलिस नंदलाल की हत्या की गुत्थी को नहीं सुलझा पाई थी.

इस बीच नंदलाल की हत्या के बाद पुलिस को या किसी अन्य व्यक्ति को उस के कार्यकलापों पर संदेह हो, इस के लिए दिखावे के तौर पर जगरूप ने औटोरिक्शा चलाना शुरू कर दिया था. पर उस का असली धंधा वही रहा. नाजायज संबंधों के चलते साल 1995 से अब तक 7 कत्ल करने वाला सीरियल किलर ऐश और आराम की जिंदगी जीने के लिए लड़कियों से गलत काम करवाता रहा. जगरूप के पकड़े जाने से कई ब्लाइंड मर्डर केस जो पुलिस की फाइलों में बंद हो चुके थे, खुल गए.

जगरूप ने अब तक लुधियाना और पटियाला में 7 हत्याएं करने का अपराध स्वीकार कर लिया. एसपी (डी) हरविंदर सिंह विर्क के सामने जगरूप ने यह भी स्वीकार किया कि वह 2 कत्ल के केसों में 4-5 साल तक जेल में भी रहा है. पुलिस जगरूप के इस बयान की जांच करेगी कि वह किनकिन केसों में जेल गया था, गया भी था या नहीं.  इस के अलावा पुलिस इस बात की भी जांच करेगी कि इन 7 हत्याओं के अतिरिक्त उस ने और कितनी हत्याएं की हैं. इन केसों के बारे में फिलहाल जानकारी जुटाई जा रही है. पुलिस के मुताबिक जगरूप सिंह महिलाओं के साथ संबंध बनाने के लिए उतावला रहता था.

उस का शिकार अधिकतर खूबसूरत विधवा या तलाकशुदा महिलाएं ही बनती थीं. अपने शिकार को जाल में फांसने के बाद वह धीरेधीरे उसे हलाल कर के अय्याशी के लिए रकम जुटाता था. अब तक जगरूप ने कितनी महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बना कर उन्हें देहव्यापार के धंधे में झोंका, पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है. हालांकि जगरूप को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया है, फिर भी समयसमय पर पुलिस पूछताछ के लिए उस का रिमांड ले कर वास्तविकता तक पहुंचने का प्रयास कर रही है. अब तक की गई पूछताछ से यह बात सामने आई कि आरोपी पहले महिलाओं को अपने प्रेमजाल में फंसाता था और फिर जबरदस्ती उन से धंधा करवा कर पैसे बनाता था. अगर कोई उस के बीच में आता था, तो वह उसे बड़ी बेरहमी के साथ मार देता था. अब तक उस ने जितने भी लोगों को मौत के घाट उतारा था, सभी हत्याएं उस ने बड़ी निर्ममता के साथ की थीं.

दुपट्टे से कस दिया गला, तड़पती रही रेखा

अनैतिक संबंध कभी भी विस्फोटक बन सकते हैं, यह बात ऐसे संबंधों को प्रेम का नाम देने वालों को पता होनी चाहिए. रेखा और वीरेंद्र के साथ भी यही हुआ. नतीजा एक को मौत मिली और दूसरे को जेल.    

रेखा ने वीरेंद्र को प्यार से समझाते हुए कहा था, ‘‘देखो वीरेंद्र, बात को समझने की कोशिश करो. जो तुम कह रहे हो वह संभव नहीं है. मेरा अपना एक घरसंसार है, पति है, 2 बच्चे हैं, अच्छीखासी गृहस्थी है हमारी. और तुम कहते हो मैं सब कुछ छोड़छाड़ कर तुम्हारे साथ भाग चलूं. नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. हम दोनों अच्छे दोस्त हैं और हमेशा दोस्त ही रहेंगे. हमारे बीच जो रिश्ता है, जो संबंध है, वह हमेशा बना रहेगा. हां, एक बात का मैं वादा करती हूं कि जो रिश्ता हम दोनों के बीच है, उसे तोड़ने में मैं पहल नहीं करूंगी.’’

 ‘‘तुम मेरी बात समझने की कोशिश नहीं कर रही हो.’’ वीरेंद्र हताश सा बोला.

 ‘‘मैं सब समझ रही हूं वीरेंद्र, मैं कोई दूधपीती बच्ची नहीं हूं. तुम चाहते हो मैं अपने पति को, अपने बच्चों को हमेशा के लिए छोड़ कर तुम्हारे साथ चली आऊं. यह मुझे मंजूर नहीं है.’’

 ‘‘तुम मेरी बात सुनोगी भी या नहीं. तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं, तुम्हारे बिना एक पल रहने की कल्पना भी नहीं कर सकता. इसीलिए कह रहा हूं कि पति और बच्चों का मोह त्याग कर मेरे साथ चली चलो, हम अपनी एक नई दुनिया बसाएंगे, जहां सिर्फ मैं रहूंगा और तुम होगी. रहा सवाल बच्चों का तो हम दोनों के और बच्चे पैदा हो जाएंगे. तुम नहीं जानती, तुम मेरी कल्पना हो, तुम्हें पाना ही मेरा एकमात्र सपना है.’’

‘‘वाह वीरेंद्र बाबू, वाह.’’ रेखा ने वीरेंद्र का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे सपने और कल्पनाओं को पूरा करने के लिए मैं अपने परिवार की बलि चढ़ा दूं? ऐसा हरगिज नहीं होगा.’’

‘‘अच्छी तरह सोच लो रेखा रानी. मैं तुम्हें बदनाम और बरबाद कर दूंगा.’’ अपनी बात मानते देख वीरेंद्र ने रेखा को धमकी दी.

‘‘बदनाम करने की धमकी किसे दे रहे हो?’’ रेखा भी गुस्से में आ गई, ‘‘बरबाद तो मैं उसी दिन हो गई थी, जिस दिन मैं ने अपने सीधेसादे पति को धोखा दे कर तुम्हारे साथ संबंध बनाए थे. रहा बदनामी का सवाल तो तुम्हारे साथ संबंधों को ले कर पूरा मोहल्ला मुझ पर थूकता है, यहां तक कि मेरे पति को भी मेरे और तुम्हारे संबंधों के बारे में पता है. 

 ‘‘उन की जगह कोई और होता तो मुझे अपने घर से कब का निकाल कर बाहर कर दिया होता. यह उन की शराफत है कि उन्होंने कभी मुझे तुम्हारे नाम का ताना दे कर जलील तक नहीं किया. अरे ऐसे पति के तो पैर धो कर पीने चाहिए और तुम कहते हो कि मैं पति को छोड़ कर तुम्हारे साथ भाग जाऊं.’’

‘‘वाह क्या कहने, नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली है. पतिव्रता और सती सावित्री होने का ढोंग कर के दिखा रही है मुझे. वह दिन भूल गई, जब अपने उसी पति की आंखों में धूल झोंक कर मुझ से मिलने आया करती थी.’’

 ‘‘अपनी जिंदगी की इस भयानक भूल को मैं कैसे भूल सकती हूं, जब तुम्हारे सपनों के झूठे मायाजाल में फंस कर मैं ने अपना सब कुछ तुम्हें सौंप दिया था. आज मैं अपनी उसी गलती की सजा भुगत रही हूं.’’ कहते हुए एकाएक रेखा क्रोध से भड़क उठी और उस ने गुस्से में वीरेंद्र से कहा, ‘‘जाओ, निकल जाओ मेरे घर से. अपनी मनहूस शक्ल दोबारा मत दिखाना. तुम्हें जो करना है कर लेना, अब दफा हो जाओ.’’

लोकेश की बैकग्राउंड रेखा का पति लोकेश मूलत: जिला सहारनपुर, उत्तर प्रदेश के गांव कंबोह माजरा का रहने वाला था. साल 2006 में उस की शादी देहरादून, उत्तराखंड के गांव दंदोली निवासी ठेपादास की मंझली बेटी रेखा के साथ हुई थी. लोकेश साधारण शक्लसूरत का सीधासादा युवक था, जबकि रेखा खूबसूरत थी. रेखा जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर लोकेश अपने आप को बड़ा भाग्यशाली समझता था. वह रेखा से बहुत प्यार करता था और रेखा भी उसे प्यार करने लगी थी. कुल मिला कर पतिपत्नी दोनों एकदूसरे से संतुष्ट थे. वक्त के साथ लोकेश और रेखा अब तक 2 बच्चों 10 वर्षीय कार्तिक और 7 वर्षीय कृष के मातापिता बन गए थे.

लोकेश के मातापिता के पास थोड़ी सी खेती थी, जिस से घर खर्च भी बड़ी मुश्किल से चल पाता था, इसलिए 7 साल पहले लोकेश काम की तलाश में लुधियाना चला आया था. अपने पैर जमाने के लिए शुरू में वह छोटीमोटी नौकरियां करता रहा. साथ ही किसी अच्छे काम की तलाश में भी जुटा रहा. आखिर उसे सन 2014 में भारत की प्रसिद्ध साइकिल कंपनी हीरो में नौकरी मिल गई थी. वेतन भी अच्छा था और अन्य सुखसुविधाएं भी थीं.

हीरो साइकिल में नौकरी लगने के बाद लोकेश ने रहने के लिए सुरजीतनगर, 33 फुटा रोड, गली नंबर-1 ग्यासपुरा स्थित एक वेहड़े में किराए पर कमरा ले लिया और गांव से अपनी पत्नी रेखा और बच्चों को भी लुधियाना ले आया. लुधियाना आने के बाद लोकेश ने अपने दोनों बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिल करवा दिया था. पतिपत्नी दोनों मजे में रहने लगे थे कि अचानक एक दिन वीरेंद्र सिंह उर्फ चाचा की नजर रेखा पर पड़ी. वीरेंद्र भी उसी गली नंबर-1 में लोकेश के घर के सामने ही रहता था.

वीरेंद्र की कामयाब चाल शातिर वीरेंद्र की नजर जब खूबसूरत रेखा पर पड़ी तो वह उसे पाने के लिए छटपटाने लगा. उस ने रेखा को भी देखा था और उस के पति लोकेश को भी. साधारण शक्लसूरत वाले लोकेश की इतनी खूबसूरत बीवी देख वीरेंद्र के कलेजे पर सांप लोटने लगा था. वह हर हाल में रेखा से संबंध बनाना चाहता था.

इस के लिए 2-4 बार उस ने रेखा को छेड़ने की कोशिश भी की थी, पर रेखा ने उसे घास नहीं डाली तो शातिर दिमाग वीरेंद्र ने रेखा के निकट आने का एक दूसरा रास्ता अपनाया. उस ने रेखा के पति लोकेश के साथ दोस्ती कर ली और दोस्ती की आड़ ले कर वह लोकेश के घर आनेजाने लगा. जबकि दूसरी ओर वीरेंद्र के नापाक इरादों से अनजान भोलाभाला लोकेश उसे अपना हितैषी समझ रहा था. रेखा को अपने जाल में फंसाने के लिए उस ने लोकेश और उस के बीच ऐसी दरार पैदा की कि घर में अकसर झगड़ा रहने लगा.

लोकेश की अधिकांश नाइट ड्यूटी होती थी, जिस का वीरेंद्र ने जम कर फायदा उठाया. शातिर वीरेंद्र ने रेखा को अपने प्रेम जाल में फंसा कर उस के साथ अवैध संबंध बना लिए. दोनों के बीच बने अवैध संबंधों ने उस समय गंभीर मोड़ ले लिया, जब वीरेंद्र ने रेखा पर पति बच्चों को छोड़ कर साथ भागने का दबाव बनाना शुरू किया

उस की बात सुन कर रेखा को अपनी गलती का अहसास हुआ कि उस ने अपने पति और बच्चों को धोखा दे कर अच्छा नहीं किया. लेकिन अब क्या हो सकता था, अब तो वह शैतान के जाल में फंस चुकी थीपहले तो रेखा उसे टालती रही, परंतु जब वह उसे अधिक परेशान करने लगा तो रेखा ने पति बच्चों को छोड़ कर उस के साथ भागने से साफ इनकार कर दिया था. रेखा के स्पष्ट इनकार करने से वीरेंद्र तड़प कर रह गया. हर तरह के हथकंडे अपनाने के बाद भी जब वह नाकाम रहा तो उस ने रेखा को सबक सिखाने की ठान ली.

रेखा द्वारा किए इनकार से गुस्साया वीरेंद्र 2 अप्रैल की सुबह मौका पा कर तब रेखा के घर पहुंचा, जब वह घर में अकेली थी. उस का पति लोकेश ड्यूटी पर बच्चे स्कूल गए हुए थे. वीरेंद्र ने रेखा से साफ शब्दों में पूछा कि वह उस के साथ भागेगी या नहीं? रेखा के इनकार करने पर वीरेंद्र भाग कर रसोई से चाकू उठा लाया और रेखा के पेट में वार कर दिया. 

वीरेंद्र ने खुद भी कोशिश की मरने की अचानक हुए वार से रेखा घबरा गई. उसे वीरेंद्र से ऐसी उम्मीद नहीं थी. उस ने वीरेंद्र के वार से बचने की कोशिश की, लेकिन बचाव करते समय रेखा की एक अंगुली कट गई. इस के बाद वीरेंद्र ने उसे धक्का दे कर बैड पर गिरा दिया और उस के गले में चुनरी डाल गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. वारदात को अंजाम देने के बाद वह अपने घर चला गया. अपने घर पर रखी चूहे मारने की दवा निगल कर उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की.

इसी दौरान संदेह होने पर मोहल्ले के लोगों ने तुरंत पुलिस को फोन किया. सूचना मिलते ही एसीपी अमन बराड़ डाबा थाने के प्रभारी इंसपेक्टर गुरविंदर सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने वीरेंद्र को काबू कर के जब लोकेश के घर जा कर देखा तो बिस्तर पर रेखा का शव पड़ा हुआ था. पुलिस ने शव कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया.

लोकेश की तहरीर पर इंसपेक्टर गुरविंदर सिंह ने रेखा की हत्या के अपराध में वीरेंद्र के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया, जहां अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया था. रेखा ने जो किया, उस का नतीजा उसे भोगना पड़ा. अपने पति से बेवफाई की सजा रेखा को अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी, पर इस सारे प्रकरण में लोकेश और उस के बच्चों का क्या दोष था, जिस की सजा वे आजीवन भोगते रहेंगे.

यह सच है कि लोकेश के मुकाबले उस की पत्नी रेखा कहीं अधिक खूबसूरत थी. पतिपत्नी के मजबूत रिश्ते में दरार डालने के लिए शातिर वीरेंद्र ने इसी फर्क को मुख्य वजह बनाते हुए हंसतेखेलते परिवार में जहर घोल दिया.

   —पुलिस सूत्रों पर आधारित