नंदकुमार साहू का साथ पा कर चंद्रभाव और भी शातिर हो गया. मगर उन दोनों का यह काम ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाया. यात्रियों की शिकायत पर पुलिस सतर्क हुई तो दोनों ही चोरी करते पकड़े गए. इस के बाद दोनों के कुली के बैज छिन गए.
काम बंद हुआ तो दोनों के घरों में खाने के लाले पड़ गए. कमाई का कोई जरिया नहीं रहा तो दोनों पूरी तरह से अपराध की राह पर चल पड़े. अब वे ट्रेन से सफर करने वाले यात्रियों को किसी तरह अपने जाल में फंसाते और एकांत में ले जा कर उन्हें डराधमका कर लूट लेते. दोनों यह काम कुर्ला के लोकमान्य तिलक टर्मिनस से ले कर नासिक मनमाड़ रेलवे स्टेशन तक करते थे.
यात्रियों का ध्यान इधरउधर कर के चंद्रभाव और नंदकुमार महंगे मोबाइल, लैपटौप और बैग पर हाथ साफ कर देते. जब दोनों लगातार चोरियां करने लगे तो पकड़े भी गए. इस तरह नंदकुमार और चंद्रभाव के खिलाफ नासिक और मनमाड़ के जीआरपी थानों में कई मुकदमे दर्ज हो गए.
5 जनवरी, 2014 को विशाखापट्टनम एक्सपे्रस टे्रन से ईस्टर अनुह्या कुर्ला के लोकमान्य तिलक रेलवे टर्मिनस के प्लेटफार्म नंबर 5 और 6 पर उतरी. उस समय सुबह के साढ़े 4 बज रहे थे. बाहर अंधेरा और सुनसान होने की वजह से वह प्लेटफार्म पर ही बैठ कर उजाला होने का इंतजार करने लगी.
उसी बीच शिकार की तलाश में प्लेटफार्म पर घूम रहे चंद्रभाव और नंदकुमार की नजर उस पर पड़ गई. अकेली लड़की देख कर दोनों उस के पास पहुंचे. उस के महंगे मोबाइल और लैपटौप को देख कर उन के मुंह में पानी आ गया. वे उन्हें किसी भी तरह हासिल करने की योजना बनाने लगे.
लूट का इरादा बना कर चंद्रभाव और नंदकुमार ने कहा कि अगर वह चलना चाहे तो वे उसे अपनी टैक्सी से उस के हौस्टल तक पहुंचा सकते हैं, लेकिन ईस्टर अनुह्या प्रसाद ने मना कर दिया. जब चंद्रभाव और नंदकुमार लगातार आग्रह करने लगे तो ईस्टर अनुह्या उन के साथ जाने के लिए राजी हो गई. पैसा भी तय हो गया. दोनों ने उसे हौस्टल तक पहुंचाने के लिए 3 सौ रुपए मांगे थे.
किराया तय होने के बाद ईस्टर अनुह्या चंद्रभाव और नंदकुमार के साथ टर्मिनस से बाहर टैक्सी स्टैंड पर आई तो वहां उसे कोई टैक्सी दिखाई नहीं दी. वहां सिर्फ एक मोटरसाइकिल खड़ी थी. ईस्टर ने जब उन से टैक्सी के बारे में पूछा तो चंद्रभाव ने बड़ी ही विनम्रता से कहा, ‘‘मैडम, आप अकेली ही तो हैं. मैं आप को अपनी मोटरसाइकिल से आप के हौस्टल तक पहुंचा दूंगा.’’
ईस्टर अनुह्या ने मोटरसाइकिल से जाने से मना कर दिया तो चंद्रभाव ने कहा, ‘‘मैडम, आप को घबराने या डरने की जरा भी जरूरत नहीं है. हम शरीफ और बालबच्चे वाले आदमी हैं. इस पर भी आप को हमारे ऊपर विश्वास नहीं है तो आप हमारा मोबाइल नंबर ले कर अपने किसी परिचित या घर वाले को दे दीजिए.’’
उन की इस पेशकश पर ईस्टर को उन पर थोड़ा भरोसा हुआ. उस ने चंद्रभाव और नंदकुमार के मोबाइल नंबर ले तो लिए, लेकिन बदकिस्मती से मोबइल में बैलेंस न होने की वजह से वह उन के नंबर किसी को दे नहीं पाई. इस के बाद दोनों पर विश्वास कर के ईस्टर चंद्रभाव की मोटरसाइकिल पर बैठ गई. चंद्रभाव मोटरसाइकिल ले कर रवाना हो गया तो नंदकुमार वहां से चला गया.
चंद्रभाव ने ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर मोटरसाइकिल डाल दी तो ईस्टर ने टोका. तब उस ने कहा, ‘‘मैडम, यह रास्ता शौर्टकट है. आप जल्दी पहुंच जाएंगी.’’
रास्ते की जानकारी न होने की वजह से ईस्टर अनुह्या चुप हो गई. चंद्रभाव मोटरसाइकिल जरूर चला रहा था, लेकिन उस का दिमाग कहीं और ही भटक रहा था. क्योंकि उसे किसी ऐसी जगह की तलाश थी, जहां वह अपना काम आसानी से कर सके.
आखिर उसे वह स्थान मुलुंड और कांजुर मार्ग ईस्टर्न एक्सपे्रस हाईवे के किनारे बने सर्विस रोड पर मिल गया. उचित स्थान देख कर उस ने बीड़ी पीने के बहाने मोटरसाइकिल रोक दी. बीड़ी पीते हुए चंद्रभाव की नजर खूबसूरत अनुह्या पर पड़ी तो उस की नीयत खराब हो गई. उस का उस पर दिल आया तो उस ने उस के साथ जबरदस्ती करने का मन बना लिया.
चोरी के इरादे से ईस्टर को लाने वाले चंद्रभाव के मन में उस के प्रति कामवासना जागी तो सुनसान देख कर चंद्रभाव उसे समुद्री झाडि़यों में खींच ले गया. झाडि़यों में उस ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो वह पूरी तरह विरोध पर उतर आई.
ईस्टर का विरोध इतना जबरदस्त था कि चंद्रभाव अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका. इस स्थिति में अगर आदमी की इच्छा पूरी न हो तो जानवर से भी ज्यादा खूंख्वार हो जाता है. वही हाल चंद्रभाव का भी हुआ. इच्छा पूरी न होने पर चंद्रभाव भी खूंख्वार हो उठा और ईस्टर के गले में पड़ी चुन्नी को पकड़ कर पूरी ताकत से कस दिया.
नाजुक ईस्टर अनुह्या पल भर में खत्म हो गई. उस की शिनाख्त न हो सके, इस के लिए उस ने एक बड़ा सा पत्थर उठा कर उस के चेहरे को कुचल दिया. इस के बाद मोटरसाइकिल से पेट्रौल निकाल कर उसे जलाने की भी कोशिश की. शिनाख्त मिटाने के सारे उपाय करने के बाद उस ने अधजली लाश को उठा कर वहीं गहरी खाई में फेंक दिया और निश्चित हो कर अपने घर चला गया था. घर से उस ने इस घटना के बारे में नंदकुमार साहू को बताया तो वह परेशान हो उठा.
नंदकुमार साहू तुरंत चंद्रभाव के घर पहुंचा. उस से कोई गलती तो नहीं हुई, इस बात पर दोनों विचार करने लगे तो पता चला कि चंद्रभाव का मोबाइल घटनास्थल पर ही कहीं गिर गया था. दोनों मोबाइल फोन ढूंढ़ने के लिए घटनास्थल पर पहुंचे. काफी कोशिश के बाद भी उन्हें मोबाइल फोन नहीं मिला.
दोनों ने मोबाइल फोन की उम्मीद छोड़ कर ईस्टर अनुह्या का मोबाइल फोन, लैपटौप, बैग लिया और घर जाने के बजाय चंद्रभाव जहां नासिक के अपने गांव चला गया, वही नंदकुमार साहू झारखंड चला गया. नासिक पहुंच कर चंद्रभाव ने ईस्टर का कपड़ों सहित बैग एक भिखारी को दान कर दिया तो मोबाइल फोन और लैपटौप वहां की एक नदी में फेंक दिया.
जब चंद्रभाव को पता चला कि उस ने जिस लड़की की हत्या की है, उस की लाश मिल गई है और उस की हत्या की जांच चल रही है तो दाढ़ीमूंछ बढ़ा कर उस ने अपना भेष बदल लिया. वह मुंबई भी आनेजाने लगा. लेकिन उस का कोई भी नाटक पुलिस के सामने नहीं चला और पकड़ा गया. चंद्रभाव से पूछताछ के बाद उस के साथी नंदकुमार साहू को भी झारखंड के उस के गांव से गिरफ्तार कर के मुंबई लाया गया.
विस्तारपूर्वक पूछताछ के बाद क्राइम ब्रांच यूनिट-6 की पुलिस ने चंद्रभाव और नंदकुमार शाहू को थाना कांजुर मार्ग पुलिस के हवाले कर दिया. थाना पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में आर्थर रोड जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित