भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 2

भांजी ने बनवारी के खिलाफ दी गवाही

लाडो कटघरे में आ कर खड़ी हो गई. उस ने बड़ी निर्भीकता से कहना शुरू किया, “उस रात दिव्या की मां ने दिव्या को लाला की दुकान पर सुई लाने भेजा था. उसे मैं मिल गई तो वह मेरे साथ लाला की दुकान पर गई थी. वहां बनवारी जो मेरा मामा लगता है और डहरुआ में ही रहता है, हमें मिल गया. उस ने हमें पास बुला कर कहा, ‘कोल्डड्रिंक पिओगी तुम दोनों.’

“हम ने हां कर दी तो वह लाला से कोल्डड्रिंक ले आया. उस ने गिलास, नमकीन, सौस और प्लेट खरीदी. बनवारी मामा हम दोनों को बाइक पर बिठा कर एक गांव मावली में बाजरे के खेत में ले गया. हम ने वहां लाने के बारे में पूछा तो बोला कि तुम यहां आराम से कोल्डड्रिंक पीना, मैं दारू पी लूंगा. वहां बनवारी ने हमें गिलास में कोल्डड्रिंक भर कर पीने को दी. हम कोल्डड्रिंक पी रही थीं, मामा दारू पी रहा था.

“जब वह दारू पी चुका तो उस ने अचानक दिव्या को दबोच लिया. दिव्या चीखी तो उसे थप्पड़ मार कर जमीन पर गिरा दिया, उस की पाजामी उतार कर यह उस के साथ गंदा काम करने लगा. दिव्या रोती चीखती रही, मैं भी बदहवास हो कर चीखती रही. इस ने दिव्या को लहूलुहान कर के छोड़ा. वह दर्द से रोने लगी थी. कहने लगी मां को बताऊंगी. इस  पर मामा ने उस का गला पकड़ कर दबाया तो वह छटपटा कर मर गई. इस ने मुझे धमकाया कि किसी से गांव में कहा तो मेरा भी गला दबा देगा.

“मैं बहुत डर गई थी. यह मुझे बाइक पर बिठा कर मेरी मां कंचन के नौगांव ले गया और जब मेरी मां ने मेरे लिए परेशान हो रहे छोटे मामा को बताया कि मुझे बनवारी घर ले आया है तब मेरे छोटे मामा भोला हमें दिव्या के पिता और चाचा के साथ गांव में ढूंढ रहे थे. दिव्या के दोनों चाचा संतोष और दाजू ने कहा कि वेनौगांव आ रहे हैं तो मां को मामा बनवारी यह कह कर भाग गया कि उसे कोई जरूरी काम है. मैं ने सब अपनी आंखों से देखा है.”

एडवोकेट किशन बेधडक़ गहरी सांस भर कर कुरसी पर आ बैठे. अब उन के पास कहने को कुछ नहीं बचा था. पूरी कहानी समझने के लिए हमें घटना के अतीत में जाना होगा.

बनवारी की नीयत हुई खराब

रात के 8 बजने को आए थे. परचून की दुकान पर दाल लेने गई दिव्या अभी तक वापिस नहीं आई थी.

“कहां मर गई यह लडक़ी. आधा घंटे से ऊपर हो गया दुकान पर गए, अभी तक नहीं लौटी.” दिव्या की मां अपने आप में बड़बड़ाने लगी.

“अरी क्या हुआ, क्यों बड़बड़ा रही हो?” दिव्या के पिता ने हाथ का थैला खूंटी पर टांगते हुए पूछा.

“आप की लाडली को आधा घंटा पहले लाला की दुकान पर दाल लेने भेजा था, अभी तक वापस नहीं आई है.”

“आधा घंटा हो गया?” दिव्या का पिता हैरानी से बोला, “तुम ने देखा नहीं जा कर?”

“मैं मसाला पीसने बैठी थी… अब जा कर देखती हूं.”

“ठहरो, मैं देख कर आता हूं.” दिव्या के पिता ने कहा और तेजी से वह बाहर निकल गया.

मथुरा के यमुनापार की इस बस्ती में लाला की परचून की दुकान थी. दिव्या का पिता दुकान पर पहुंचा तो लाला दुकान बंद करने के लिए सामान अंदर रख रहा था. वहां लाला के अलावा कोई और नहीं था. दिव्या के पिता की धडक़नें बढ़ गईं. वह अपनी बेटी को वहां न देख कर घबरा गया.

उस ने लाला से पूछा, “मेरी बेटी दिव्या आधा घंटा पहले यहां दाल लेने आई थी लाला, वह घर नहीं पहुंची है.”

“दाल लेने आई थी? नहीं, दिव्या बेटी ने तो मुझ से दाल नहीं मांगी, वह तो यहां अपनी सहेली लाडो के साथ आई थी. फिर मुझे नहीं पता, मैं सामान देने में व्यस्त था.”

“कहां चली गई यह लडक़ी,” बड़बड़ाते हुए वह घर लौट आया. उस ने अपनी पत्नी को बताया कि दिव्या दुकान पर और रास्ते में कहीं नहीं दिखाई दी है तो उस की पत्नी घबरा गई. वह तेजी से घर से निकली, पीछे उस का पति भी था. बेटी को ले कर मांबाप हुए परेशान दोनों अपनी बेटी को बस्ती में तलाश करने लगे.

दिव्या की मां लाडो के घर भी गई. मालूम हुआ वह भी घर पर नहीं है. वह भी अपनी बेटी के लिए परेशान हो गए. अब दोनों ही अपनीअपनी बेटी को तलाश करने लगे. दिव्या और लाडो साथ ही थीं. दोनों में से कोई एक भी मिल जाती तो मालूम हो जाता दूसरी कहां पर है.

पूरी बस्ती छान डाली गई, लेकिन दोनों लड़कियों का कुछ पता नहीं चला. एक घंटे से ऊपर होने को आया, तब लाडो की अच्छी खबर फोन द्वारा मिली. लाडो की ममेरी बहन कंचन ने फोन कर पापा को बताया कि लाडो अपने मामा बनवारी के साथ उस के घर आई है. बनवारी अच्छा आदमी नहीं था. उस का नाम सुनते ही दिव्या के पिता और मां घबरा गए.

“कंचन से पूछो लाडो वहां आई है तो दिव्या कहां पर है?” दिव्या की मां ने परेशान स्वर में कहा.

“कंचन… लाडो के साथ दिव्या भी थी. दिव्या भी वहां आई होगी?”

“नहीं, दिव्या तो यहां नहीं आई है.” कंचन ने बताया, “बनवारी केवल लाडो को ही साथ लाया है.”

“तुम बनवारी को रोक कर रखो, हम तुम्हारे घर आ रहे हैं.” लाडो के पिता ने कहा और फोन काट कर बोला, “बनवारी बुरा आदमी है. मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है. अभी बनवारी कंचन के यहां ही है. उस से मालूम होगा, दिव्या कहां पर है. आओ.”

सभी लगभग भागते हांफते हुए कंचन के घर पहुंचे जो उसी बस्ती में था. वहां कंचन और लाडो ही मिली. बनवारी वहां से नौ दो ग्यारह हो चुका था.

“तुम ने बनवारी को क्यों जाने दिया?” दिव्या के पिता ने गुस्से से पूछा.

“मैं ने रोका, लेकिन वह एक जरूरी काम की कह कर चला गया.” कंचन ने बताया.

उन लोगों ने लाडो से दिव्या के विषय में पूछा तो वह कुछ भी नहीं बता पाई. वह बहुत डरी हुई और सदमे में नजर आ रही थी.

पहली सितंबर, 2020 को थाना यमुनापार में दिव्या का पिता रोते हुए पहुंचा. एसएचओ महेंद्र प्रताप चतुर्वेदी उस वक्त अपने कक्ष में आ कर सुबह का अखबार पढ़ रहे थे. उस ने एसएचओ को बेटी के गायब होने की पूरी बात बता दी.

एसएचओ ने दिव्या की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. एक कांस्टेबल ने आ कर एसएचओ को बताया, “साहब, कंट्रोल रूम से एक संदेश हमारे लिए फ्लैश किया जा रहा है. हमारे थाना क्षेत्र के गांव मावली में एक लडक़ी की क्षतविक्षत लाश पड़ी हुई है. हमें तुरंत वहां पहुंचने के लिए कहा गया है.”

एसएचओ चतुर्वेदी के जेहन में तुरंत खयाल आया. कहीं वह लाश दिव्या की न हो. कुछ सोच कर उन्होंने दिव्या के पिता से कहा, “कंचन से हम बाद में मिल लेंगे. पास के मावली गांव में किसी लडक़ी की लाश पड़ी होने की सूचना मिल रही है. आओ, पहले मावली गांव चलते हैं.”

कुछ ही देर में यमुना पार थाने की पुलिस मावली गांव की ओर रवाना हो गई थी.

बच्ची के साथ बलात्कार के मिले संकेत

मावली गांव के एक खेत में 9 साल की मासूम लडक़ी का क्षतविक्षत शव पड़ा हुआ था. उस के शरीर पर नोंचखसोट के चिह्न थे. उस के नीचे के कपड़े फटे हुए थे और खून के धब्बे उस पर दिखाई दे रहे थे. पहली नजर में लग रहा था कि उस मासूम के साथ दुष्कर्म हुआ है.

लाश देख कर दिव्या का पिता दहाड़ मार कर रोने लगा. एसएचओ को उस के रोने से ही पता चल गया कि यह बच्ची उस की बेटी दिव्या है, जिस की गुमशुदगी की वह रिपोर्ट लिखवाने आया था. एसएचओ ने फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुलवा लिया और उच्चाधिकारियों को इस लाश की जानकारी दे दी.

मौके पर आसपास के खेत वाले इकट्ठा हो गए थे. आवश्यक काररवाई निपटा लेने के बाद एसएचओ फोरैंसिक टीम का कार्य पूरा होने का इंतजार करते रहे. फिर उन्होंने दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

थाने में आ कर उन्होंने अज्ञात बलात्कारी और हत्यारे के खिलाफ एफआईआर 287/2020 में आईपीसी की धाराएं 363, 366, 302, 376 और 201 लगा कर उस पर पोक्सो एक्ट की धारा-6 भी लगा दी.

अब उन्हें दिव्या के हत्यारे तक पहुंचना था. सुखिया के अनुसार दिव्या के साथ लाडो भी थी और लाडो अपने मामा के साथ रात को 11 बजे अपनी मौसी कंचन के घर आ गई थी. दिव्या लापता थी जिस के विषय में वह कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी.

कैसे पकड़ा गया मासूम दिव्या का अपराधी? पढ़िए कहानी के अगले अंक में.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 1

मथुरा के यमुनापार की पोक्सो कोर्ट में एडीजे विशेष न्यायाधीश राम किशोर यादव-3 की अदालत में आज दिनांक 25 जुलाई, 2023 दिन मंगलवार को लोगों की भारी भीड़ थी. इस की वजह यह थी कि उस दिन कोर्ट में 3 साल पहले 9 साल की नाबालिग बेटी दिव्या का बलात्कार कर हत्या करने के दोषी 42 साल के बनवारी लाल और उस की बहन कंचन को सजा सुनाई जानी थी.

सुबह से ही मीडिया जगत के लोग, वकील, पुलिस अधिकारी और डहरुआ गांव के पीडि़ता के परिजन, पड़ोसी और अन्य लोग दोषी बनवारी लाल को मिलने वाली सजा को सुननेजानने के लिए कोर्टरूम में आ चुके थे.

ठीक 10 बजे न्यायाधीश राम किशोर यादव अपने चैंबर कोर्ट रूम में अपनी कुरसी के पास आए तो सभी उन के सम्मान में उठ कर खड़े हो गए. राम किशोर यादव अपने स्थान पर बैठ गए.

अभियुक्त बनवारी लाल और उस की बहन कंचन को कटघरे में ला कर खड़ा कर दिया गया था. दोनों सिर झुका कर खड़े हुए थे. माननीय न्यायाधीश ने एक सरसरी नजर दोनों अभियुक्तों पर डालने के बाद सामने बड़ी मेज के ऊपर अपने दस्तावेजों का अवलोकन कर रहे बचाव पक्ष के वकील किशन सिंह बेधडक़ और सरकारी वकील (अभियोजन पक्ष) स्पैशल डीजीसी अलका उपमन्यु की ओर देखा.

न्यायाधीश ने उन्हें इशारा कर के कहा, “मिस्टर बेधडक़, आप आखिरी बहस के लिए तैयार हैं न. मैं पहला मौका आप को दे रहा हूं. आप अपनी दलील रखिए. सुश्री अलका उपमन्यु आप भी तैयार रहिए.”

“मैं तैयार हूं सर,” अलका उपमन्यु ने उठ कर आदर से सिर झुकाते हुए कहा.

वकीलों में जम कर हुई बहस

बचाव पक्ष के एडवोकेट किशन सिंह बेधडक़ अपनी जगह से उठ कर जज साहब के सामने आ गए. अपने कोट की कौलर ठीक करते हुए बेधडक़ ने बड़े जोश भरे स्वर में कहा, “जनाब, मैं पहले भी यह कह चुका हूं कि मेरा मुवक्किल बनवारी निर्दोष है.

उस 31 अगस्त, 2020 की रात को वह अपने घर पर ही था. वह मृतका दिव्या और अपनी भांजी लाडो को ले कर मावली गांव गया ही नहीं, क्योंकि इस का कोई सबूत मेरी अजीज दोस्त अलका उपमन्यु कोर्ट में पेश नहीं कर पाई हैं. मेरे मुवक्किल को फंसाया जा रहा है, वह निर्दोष है.”

अलका उपमन्यु मुसकराती हुई अपनी जगह से उठीं और बोलीं, “माननीय जज साहब, मैं ने 15 दिन पहले ही वे सभी साक्ष्य जो मावली गांव के बाजरे के खेत में घटनास्थल पर फोरैंसिक टीम और यमुनापार थाने के पुलिस इंसपेक्टर को जांच के दौरान मिले थे, कोर्ट के सामने रख दिए थे. मैं मिस्टर बेधडक़ की कमजोर याद्दाश्त के लिए फिर से सभी साक्ष्यों का ब्यौरा दे देती हूं.

“घटनास्थल से मृतका दिव्या की खून सनी पाजामी बरामद हुई थी, रक्त के नमूने की विधि विज्ञान प्रयोगशाला द्वारा जांच रिपोर्ट. वैजाइनल स्लाइड व स्वैब. नेल क्रीपिंग, स्कैल्प हेअर, टी शर्ट, पांव में बांधा गया काला धागा, राखी, रबर बैंड, मौके से एकत्र की गई खून आलूदा मिट्टी और सीएमओ साहब की ओर से जारी पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जिस में 9 साल की अबोध नाबालिग बालिका के साथ हैवानियत से किए गए बलात्कार होने की पुष्टि हुई है. ये सभी चीजें मैं ने कोर्ट को पहले ही सौंप दी थीं.

“इस के अलावा घटनास्थल से बनवारी लाल द्वारा प्रयोग किया गया शराब का पौआ, बीयर की कैन, पानी के 3 पाउच, 2 खाली और एक भरा हुआ. नमकीन, खाली प्लेट, 3 सौस के पाउच और एक रौयल स्टेग क्वार्टर का खाली पौआ और प्लास्टिक के 2 खाली गिलास बरामद हुए थे.

“इन के अलावा बनवारी द्वारा घटना के वक्त पहने हुए कपड़ों का पुलिंदा, जिन पर दिव्या की वैजाइना से निकले खून के धब्बे मिले थे. ये सभी पुख्ता सबूत मैं ने कोर्ट को पहले ही दे दिए थे. इन के अलावा मैं ने इस घटना से जुड़े 11 गवाहों की पेशी कोर्ट में करवा दी है. मैं इन के नाम फिर से कोर्ट के सामने रख देती हूं. इस से पहले आप यह भी जान लें कि इस घटना के वादी दिव्या के पिता ने 31 अगस्त, 2020 को अपनी बेटी और उस के साथ गई बनवारी की भांजी लाडो की घर वापसी न होने पर पूरी रात दोनों लड़कियों को तलाश किया था.

“उस के 2 भाई सोनू और संतोष गांव नौगांव भी उसी रात गए थे, क्योंकि यह सभी लोग जब दिव्या और लाडो को गांव में और आसपास के खेतों में ढूंढ रहे थे, तब बनवारी की बहन कंचन द्वारा अपने छोटे भाई भोला को फोन द्वारा बताया गया था कि वह लाडो की चिंता न करे. लाडो को बनवारी अपनी बाइक पर बिठा कर उस के घर नौगांव, छाता (मथुरा) में ले कर आया है.

“यह सुन कर वादी संतोष और सोनू उसी रात नौगांव गए थे. वहां लाडो तो मिल गई थी, लेकिन बनवारी को कंचन ने अपने घर से भगा दिया था, इसलिए इस घटना में कंचन भी शामिल हो गई थी. इसे मालूम हो गया था कि बनवारी क्या कुछ कर के उस के घर आया है. सब जान कर भी इस ने बनवारी को भाग जाने में मदद की थी, इसलिए यह भी पूरी तरह दोषी है.”

कुछ क्षण रुकने के बाद अलका उपमन्यु बोलीं, “मैं उन 11 गवाहों के नाम दोहरा रही हूं, जो मृतका दिव्या की तलाश और तहकीकात से जुड़े हुए हैं. वादी दिव्या के पिता जिस ने पहली सितंबर, 2020 को यमुनापार थाने में अपनी बेटी दिव्या के अपहरण और बलात्कार होने की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. उस ने बनवारी पर दिव्या के अपहरण और बलात्कार करने का संदेह जाहिर किया था.

“संतो उर्फ सत्य प्रकाश, अशोक, डा. करीम अख्तर कुरैशी, सोनू, भोला, संतोष कुमार, डा. विपिन गौतम, इंसपेक्टर महेंद्र प्रताप चतुर्वेदी, रिटायर्ड हैडकांस्टेबल कैलाशचंद, विजय सिंह और घटना के समय वहां मौजूद रही लाडो.

“ये सब गवाह और साक्ष्य पुलिस द्वारा तैयार किए गए थे मी लार्ड,” किशन सिंह बेधडक़ ने टोका, “पुलिस झूठे गवाह और ऐसे साक्ष्य तैयार कर के मेरे मुवक्किल को फंसाना चाहती है. ऐसा एक भी गवाह अलकाजी के पास नहीं है, जो चश्मदीद हो, जिस ने मावली गांव में बनवारी को दिव्या के साथ बलात्कार करते हुए देखा हो.”

“है मी लार्ड,” अलका उपमन्यु जोश में बोली, “मैं जानती थी कि मेरे अजीज दोस्त बेधडक़ साहब ऐसी ही बात कह कर बनवारी को निर्दोष साबित करने की कोशिश करेंगे. मैं ने एक चश्मदीद गवाह को बचा कर रखा हुआ था. मैं उसे बुला रही हूं.” अलका उपमन्यु ने पेशकार को इशारा किया तो वह बाहर जा कर 12 साल की एक लडक़ी को कोर्ट रूम में ले आया.

“यह बनवारी की भांजी लाडो है मी लार्ड. मृतका दिव्या की सहेली है. यही 31 अगस्त, 2020 की शाम 8 बजे के आसपास गांव में लाला की दुकान पर दिव्या के साथ कुछ सामान लेने गई थी. बेटी लाडो, तुम इस गवाह के कटघरे में आ जाओ और कोर्ट को बताओ कि 31 अगस्त, 2020 की रात को क्या हुआ था.”

क्या बताया लाडो ने अपनी गवाही में? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

कोटा में मौत को गले लगाते होनहार

कोटा में मौत को गले लगाते होनहार – भाग 3

बच्चे के मन में क्या चल रहा होता है, जो वह ऐसा करता है? उस के दिमाग में यह जो उथलपुथल चल रही होती है, इस के बारे में उस ने कभी अपने घर वालों या दोस्तों को बताया था? क्या कोई उपाय है कि बच्चों को सुसाइड करने से रोका जा सके?

इन सवालों के जवाब हम सभी को जानना जरूरी है, क्योंकि हम सभी के बच्चे हैं और हम सब अपने बच्चों को कुछ न कुछ बनाना चाहते हैं. इस के लिए हम अपने बच्चों पर प्रेशर भी डालते हैं. यही प्रेशर उन्हें परेशान करता है और वे कुछ उल्टासीधा कदम उठा लेते हैं. जो बच्चे कोटा पढऩे के लिए जाते हैं, उन पर कोचिंग संस्थान की पढ़ाई का बहुत ज्यादा प्रेशर होता है, वे हर वक्त इस बात के तनाव में रहते हैं कि वे पिछड़ न जाएं.

दरअसल, पढ़ाई का जो प्रेशर है, जिसे कंपटीशन कहा जाता है, कोटा में वह क्रेजी कंपटीशन बन गया है और यह क्रेजी कंपटीशन का जो स्ट्रेप है, उस के लिए यहां के बच्चे मात्र 16, 17, या 18 साल के होते हैं, जो अभी मेच्योर नहीं हैं, इसलिए वे इस कंपटीशन को झेल नहीं पाते और निराश हो जाते हैं.

धीरेधीरे उन की यह निराशा डिप्रेशन बन जाती है. दूसरे शहरों या गांवों से आए बच्चे अपनी पढ़ाई कवर नहीं कर पाते और पढ़ाई में अन्य बच्चों से पीछे रह जाते हैं. टेस्ट में नंबर कम पाते हैं. परीक्षा में सेलेक्शन नहीं होता, जो निराशा को और ज्यादा बढ़ाता है.

कोटा कोचिंग के लिए जाने वाले ज्यादातर बच्चों की अधिक से अधिक उम्र 18 साल होती है. यह ऐसी उम्र होती है, जिस में शरीर में भी बदलाव आता है और सोच में भी. बच्चा इसे समझ नहीं पाता. कोटा में वह अकेला होता है, वहां कोई समझाने या सहारा देने वाला नहीं होता. जिस की वजह से प्रेशर भी बढ़ता और तनाव भी.

प्रेशर बन जाता है जानलेवा

कुछ बच्चे इस बात को दिमाग में बैठा लेते हैं. साथ में लड़कियां भी पढ़ती हैं, इसलिए इस का कारण प्रेम प्रसंग भी हो सकता है. बच्चे पर पढऩे के लिए परिवार का दबाव होता है और कोचिंग संस्थान का भी. क्योंकि हर संस्थान अपने बेहतर रिजल्ट के लिए बच्चों पर दबाव डालता है. उस का रिजल्ट बेहतर होगा, तभी उस के यहां ज्यादा बच्चे आएंगे और वह फीस भी ज्यादा ले सकेगा.

मांबाप और परिवार के साथ 16-17 साल तक रहने वाला बच्चा अचानक मांबाप और परिवार से दूर अकेला पड़ जाता है. इस के साथ उस पर अचानक पढ़ाई का काफी प्रेशर पड़ जाता है. परिवार से इमोशनली जुड़े बच्चे अचानक परिवार की दूरी सहन नहीं कर पाते, जिस का असर उन की पढ़ाई पर भी पड़ता है और दिमाग पर भी. परिवार से दूर होने पर न तो उन के मनपसंद का खाना मिलता है और न कोई प्यार से खिलाने वाला होता है.

इन्हीं कारणों से बच्चा पढ़ाई में पिछडऩे लगता है. टेस्ट में नंबर कम आते हैं तो कोचिंग संस्थान वाले प्रेशर बनाते हैं, जिस का असर सीधे उन के दिमाग पर पड़ता है और स्थिति खतरनाक हो जाती है.

इस के अलावा कोटा में कोचिंग कराने वाले हर पैरेंट्स संपन्न हों, यह जरूरी नहीं है. सामान्य और गरीब परिवारों के बच्चे भी कोटा आते हैं, जो संपन्न परिवारों के बच्चों का रहनसहन और शानोशौकत देखते हैं तो इस का असर भी उन के दिमाग पर पड़ता है और वे खुद को उन के सामने तुच्छ समझने लगते हैं. तब उन का मन पढऩे में नहीं लगता. दूसरी ओर वे यह भी सोचते हैं कि उन के मांबाप गरीबी में भी उन्हें पढ़ा रहे हैं. अगर वे सफल न हुए तो उन के मांबाप क्या सोचेंगे, वे कौन सा मुंह ले कर उन के सामने जाएंगे?

अकेलापन हो जाता है खतरनाक

इस तरह की सोच वाले बच्चे जब पढ़ाई और जीवन से निराश हो जाते हैं तो बारबार खुद को ही कोसने लगते हैं. उन के दिमाग में बारबार यही बात आती है कि वह किसी काम के नहीं हैं. वे दुनिया यानी संस्थान या लोगों से परेशान हो चुके हैं. लोगों से कहने लगते हैं कि अब वे जीना नहीं चाहते मतलब कि वह इशारे से अपनी नकारात्मकता जाहिर करने लगते हैं.

सोशल मीडिया पर नकारात्मक पोस्ट डालते हैं या नकारात्मक स्टेटस लगाते हैं. डायरी में सुसाइड के बारे में लिखते हैं. कुछ बच्चे न लिख कर कुछ कह पाते हैं न बोल कर. उन का व्यवहार बदल जाता है. वे खाना नहीं खाते, किसी से बात नहीं करते, अकेले रहते हैं. ऐसे में इशारों को भांपना चाहिए. इसे न मजाक में लिया जाना चाहिए और न अवाइड करना चाहिए.

बच्चे सुसाइड न करें, इस के लिए कोचिंग संस्थान और प्रशासन काउंसिलिंग कराते हैं, लेकिन वह नाकाफी है. इस के लिए ऐसा सिस्टम तैयार होना चाहिए कि बच्चे एकदूसरे से जुड़े रहें, एकदूसरे के सहायक बनें. बच्चे इस तरह का गलत कदम न उठाएं, इस के लिए उन में आत्मविश्वास बढ़ाना जरूरी है.

कुछ बच्चों की रुचि मातापिता की अपेक्षा के विपरीत होती है. ऐसे बच्चे पेरेंट्स के दबाव में कोटा आ तो जाते हैं, लेकिन टेस्ट में उन के नंबर कम आते हैं, तब बच्चे तनाव में आ जाते हैं. पढ़ नहीं पाते. ऐसे में बच्चे को विश्वास दिलाना चाहिए कि वह अपनी पढ़ाई अपने हिसाब से करे, उस का मैडिकल या इंजीनियरिंग में हो गया तो अच्छा है, वरना दूसरा भी बहुत कुछ करने को है. इसलिए उस की जो इच्छा हो, वह वही करे.

कोटा में बच्चा अकेला रहता है. उस पर कोई रोकटोक करने वाला नहीं होता, जिस से वह अकेलेपन का शिकार हो जाता है और गलत रास्ते पर चला जाता है. ऐसे में बच्चे को संस्कार और समाज के नियमकायदे से जोड़ कर रखना जरूरी है. बड़ों की बात मानने और समाज के रीतिरिवाज मानने की बात सिखाने से बच्चे का चरित्र विकसित होता है.

सब से जरूरी है कम्युनिकेशन. कोटा आने पर बच्चे पेरेंट्स से तो दूर होते ही हैं, यार दोस्तों से भी दूर हो जाते हैं. एक साथ 2 बच्चों के रहने वाला कल्चर खत्म हो रहा है. पेरेंट्स खुद बच्चे के लिए सिंगल रूम की डिमांड करते हैं, ताकि उन का बच्चा डिस्टर्ब न हो.

बच्चे के साथ क्या हो रहा है, उसे क्या परेशानी हो रही है, वह अपनी परेशानी किसी से साझा नहीं कर पाता. इसलिए कम्युनिकेशन बहुत जरूरी है. अकेले रह रहे बच्चे के साथ इमोशनली कनेक्ट होना बहुत जरूरी है, जिस से वह अपने मन की बात शेयर कर सके. वहां बीमार होने पर उसे डाक्टर के पास ले जाने वाला कोई नहीं होता. ऐसे में वह परेशान होता है, तब बच्चे को केयर की बहुत जरूरत होती है.

परिवार से अलग रह कर कभीकभी बच्चे को लगता है कि किसी को उस की चिंता नहीं है, केवल उस के नंबरों की चिंता है. ऐसे में नंबर कम आते हैं तो उसे लगता है कि वह जी कर क्या करेगा. अगर बच्चे के मुंह से कभी ऐसी बात निकलती है तो इसे अवाइड नहीं किया जाना चाहिए. बच्चे को समझाना चाहिए कि इस जीवन का बहुत महत्त्व है. वह देश और समाज के लिए बहुत कुछ कर सकता है.

कोटा में मौत को गले लगाते होनहार – भाग 2

घर वालों के पहुंचने पर जब पुलिस कमरे में घुसी तो मनजोत की लाश बैड पर पड़ी थी. उस के दोनों हाथ पीछे बंधे थे. उस के मुंह पर पौलीथिन बंधी थी. कमरे में पीले रंग की 3 पर्चियों पर अंगरेजी में सुसाइड नोट लिखा था.

एक परची पर केवल ‘सौरी’ लिखा था तो दूसरी परची पर ‘हैप्पी बर्थडे पापा’ लिखा था और तीसरी परची पर लिखा था कि ‘मैं ने जो भी किया है, अपनी मरजी से किया है तो प्लीज मेरे दोस्तों और पेरेंट्स को परेशान न करें.’

घर वालों के सामने पुलिस ने मनजोत की लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए कोटा के एमबीएस अस्पताल भिजवा दी. इस के बाद घर वालों ने मोर्चरी पर जा कर हंगामा शुरू कर दिया.

दबाव में दर्ज करना पड़ा हत्या का केस

मनजोत के घर वालों ने कोचिंग संस्थान, हौस्टल के केयरटेकर और उस के एक क्लासमेट पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि मनजोत ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है. क्योंकि जिस तरह मनजोत की लाश पड़ी थी, उस तरह कोई आत्महत्या नहीं करता. उस के दोनों हाथ पीछे की ओर कस कर बंधे थे. कोई अपने हाथों को खुद ही इतना कस कर कैसे बांध सकता है. उस की मुट्ठियां इतने जोर से जकड़ी थीं कि उस के नाखून हथेलियों में घुस गए थे. लाश औंधे मुंह पड़ी थी.

मनजोत के कमरे का दरवाजा अंदर से जरूर बंद था, लेकिन उस के कमरे की खिडक़ी के दरवाजे टूटे हुए थे और जाली कटी हुई थी. इसी वजह से घर वाले कह रहे थे कि मनजोत ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है. घर वालों ने स्पष्ट कहा था कि जब तक उस की हत्या की रिपोर्ट नहीं दर्ज की जाएगी, तब तक वे मनजोत की लाश नहीं उठाएंगे.

घर वालों के हंगामा करने के बाद थाना विज्ञाननगर में मनजोत की हत्या का मुकदमा कोचिंग संचालक, हौस्टल के केयरटेकर और मनजोत के एक दोस्त के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. डीएसपी धर्मवीर का कहना है कि पुलिस इस मामले की जांच करेगी. अगर इस मामले में कोई दोषी पाया जाता है तो उस के खिलाफ अवश्य काररवाई की जाएगी.

3 अगस्त, 2023 की रात जहां मनजोत ने आत्महत्या की, वहीं इसी कोटा में 4 अगस्त को भार्गव मिश्रा, 10 अगस्त को मनीष प्रजापति और 15 अगस्त को वाल्मीकि प्रसाद जांगिड़ यानी कुल 11 दिनों में 4 मासूमों ने मौत को गले लगा लिया.

18 साल के मनजोत के बारे में तो बताया ही जा चुका है कि वह उत्तर प्रदेश के रामपुर का रहने वाला था और नीट की तैयारी करने कोटा आया था तो 5 अगस्त को सुसाइड करने वाला 17 साल का भार्गव मिश्रा बिहार के जिला चंपारण का रहने वाला था. वह कोटा के महावीर नगर में रहने वाले महेश गुप्ता के मकान के ऊपरी हिस्से में किराए पर रह कर संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) की तैयारी कर रहा था.

उस दिन सुबह जब उस ने पिता का फोन नहीं उठाया तो उस के पिता को शक हुआ. उन्होंने मकान मालिक महेश गुप्ता को फोन किया. इस के बाद जब उन्होंने ऊपर जा कर खिडक़ी से भार्गव के कमरे में झांका तो वह पानी की मोटी पाइप से लटका हुआ था. महेश गुप्ता ने इस घटना की सूचना थाना महावीर नगर पुलिस को दी. पुलिस ने आ कर शव उतारा और पोस्टमार्टम के लिए न्यू मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

इस साल 21 बच्चे कर चुके आत्महत्या

इस के बाद 10 अगस्त को सुसाइड करने वाला 17 साल का मनीष प्रजापति उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ का रहने वाला था. कोटा में वह भी संयुक्त प्रवेश परीक्षा यानी जेईई की तैयारी कर रहा था. वह 6 महीने पहले ही कोटा आया था.

इस के बाद जिस दिन पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था, उस दिन यानी 15 अगस्त को सुसाइड करने वाला 18 साल का वाल्मीकि प्रसाद जांगिड़ बिहार का रहने वाला था. उस के पिता सेना में सूबेदार थे, जो पिछले साल ही रिटायर हुए थे. 2 बहनों का एकलौता भाई वाल्मीकि पिछले साल जिद कर के कोटा आईआईटी की तैयारी करने आया था.

कोटा में वह थाना महावीर नगर इलाके में किराए के मकान में रहता था. 15 अगस्त को जब कई घंटे वह कमरे से बाहर नहीं आया तो अगलबगल रहने वाले उस के साथियों ने उस का दरवाजा खटखटाया. जब दरवाजा नहीं खुला तो छात्रों ने मकान मालिक को सूचना दी. मकान मालिक ने पुलिस को सूचना दी.

पुलिस ने आ कर दरवाजा तोड़ा तो अंदर वाल्मीकि का शव कमरे की खिडक़ी से लटका हुआ था. इस के बाद पुलिस ने घर वालों को सूचना दी और लाश को उतार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. उस के कमरे से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था, इसलिए पता नहीं चला कि उस ने आत्महत्या क्यों की.

इस तरह कोटा में एक ही महीने में यानी अगस्त महीने में केवल 11 दिनों के अंदर 4 मासूमों ने मौत को गले लगा लिया. जबकि इस के पहले 17 बच्चे सुसाइड कर चुके थे यानी कुल मिला कर जनवरी से अब तक इसी साल 21 बच्चों ने सुसाइड कर लिया.

जबकि कोटा शहर में अपने सपने पूरा करने आए बच्चों में से पिछले एक साल में 29 बच्चों ने तो पिछले 10 सालों में 160 से ज्यादा बच्चे जिंदगी से हार चुके हैं यानी उन्होंने इसी तरह मौत को गले लगा लिया है. अब सोचने वाली बात यह है कि जिस कोटा में बच्चे कामयाब जवानी का सपना ले कर आते हैं, आखिर क्यों जवान होने से पहले ही मुर्दा बचपन उन के हिस्से में आता है.

उन की 16, 17 या 18 साल की उम्र होती है, जब 12वीं पास कर के कुछ कर दिखाने का सपना ले कर वे कोटा पहुंचते हैं और डाक्टर या इंजीनियर बनने की तैयारी शुरू करते हैं. लेकिन यहां तो जैसे आत्महत्या करने का सिलसिला ही चल पड़ा है. इसलिए अब इस से हर मांबाप को डर लगने लगा है.

बच्चों का मनोविज्ञान समझने की जरूरत

यह सोचने वाली बात है कि वहां पहुंचने पर ऐसा कौन सा डर है, जिस से बच्चा जिंदगी से लडऩे के बजाय हार जाता है. हम कहते भी हैं कि जिंदगी एक इम्तहान है, पर कोटा में बच्चे इम्तिहान से ही हार रहे हैं और जीने के लिए मिले जीवन को फंदे से लटक कर गंवा रहे हैं.

आखिर इस के पीछे वजह क्या है? क्या इसे रोका जा सकता है? इस में गलती किस की है, घर वालों की या बच्चों की या कोचिंग संस्थानों की है या फिर सिस्टम की और सरकार इस के लिए कर क्या रही है?

इस के लिए हमें इस का हल जरूर जानना और समझना चाहिए. क्योंकि जब भी कोई बच्चा सुसाइड करता है तो अनेक सवाल उठते हैं. आखिर उस की क्या परेशानी होती है, जो उसे यह आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर करती है?

अगले भाग में पढ़िए, कैसे इन होनहारों का जीवन बचाया जा सकता है?

कोटा में मौत को गले लगाते होनहार – भाग 1

दरवाजा नहीं खुला तो उस ने अन्य दोस्तों को बुला लिया. सभी ने वार्डन यानी हौस्टल के इंचार्ज को सूचना दी. अनहोनी के बारे में सोच कर वार्डन ने हौस्टल प्रशासन और थाना विज्ञान नगर पुलिस को सूचना दी. सभी ने आ कर दरवाजा तोड़ा तो अंदर 18 साल के मासूम मनजोत सिंह की लाश पड़ी थी.

मनजोत सिंह की मौत की खबर उस के दोस्त ने घर वालों को बता दी. घर वालों के पहुंचने पर जब पुलिस कमरे में घुसी तो मनजोत की लाश बैड पर पड़ी थी. उस के दोनों हाथ पीछे बंधे थे. उस के मुंह पर पौलीथिन बंधी थी.

कमरे में पीले रंग की 3 पर्चियों पर अंगरेजी में सुसाइड नोट लिखा था. एक परची पर केवल ‘सौरी’ लिखा था तो दूसरी परची पर ‘हैप्पी बर्थडे पापा’ लिखा था और तीसरी परची पर लिखा था कि ‘मैं ने जो भी किया है, अपनी मरजी से किया है तो प्लीज मेरे दोस्तों और पेरेंट्स को परेशान न करें.’

घर वालों के सामने पुलिस ने मनजोत की लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए कोटा के एमबीएस अस्पताल भिजवा दी. इस के बाद घर वालों ने मोर्चरी पर जा कर हंगामा शुरू कर दिया. मनजोत के घर वालों ने कोचिंग संस्थान, हौस्टल के केयरटेकर और उस के एक क्लासमेट पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि मनजोत ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है.

यह कहानी है उत्तर प्रदेश के शहर रामपुर के रहने वाले मनजोत सिंह की, जो कोटा में रह कर कोचिंग कर रहा था. 10वीं में अच्छे नंबर आते ही हरजोत सिंह छाबड़ा ने तय कर लिया था कि वह अपने बेटे मनजोत सिंह को डाक्टर बनाएंगे. इस के लिए उन्होंने बेटे से कह भी दिया था कि वह 12वीं में खूब मेहनत करे.

मनजोत भी डाक्टर बनना चाहता था, इसलिए उस ने 12वीं में जम कर मेहनत की. बेटे को पढ़ाई में कोई दिक्कत न हो, इस के हरजोत सिंह ने उस का दाखिला एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में भी करा दिया था.

अब मनजोत सुबह स्कूल जाता. स्कूल से लौट कर खापी कर होमवर्क करने बैठ जाता. जितना होमवर्क हो पाता, उतना करता. होमवर्क करतेकरते ही कोचिंग जाने का समय हो जाता. कभी होमवर्क कम रहता तो कभी पूरा हो जाता. जिस दिन होमवर्क ज्यादा होता, छोड़ कर कोचिंग चला जाता था.

 

अब मनजोत सुबह स्कूल जाता. स्कूल से लौट कर खापी कर होमवर्क करने बैठ जाता. जितना होमवर्क हो पाता, उतना करता. होमवर्क करतेकरते ही कोचिंग जाने का समय हो जाता. कभी होमवर्क कम रहता तो कभी पूरा हो जाता. जिस दिन होमवर्क ज्यादा होता, छोड़ कर कोचिंग चला जाता था. रात 8 बजे कोचिंग से लौटता तो खापी कर फिर पढऩे बैठ जाता, क्योंकि कोचिंग का भी होमवर्क करना रहता. होमवर्क के साथसाथ साप्ताहिक टेस्ट की तैयारी भी करनी होती थी.

इस तरह उसे सोने में रात के 11, साढ़े 11 या 12 तक बज जाते थे. सुबह जल्दी उठना भी होता था, क्योंकि 7 बजे स्कूल जाने के लिए घर से निकलना होता था. उसे आराम करने के लिए सिर्फ 6, साढ़े 6 घंटे ही मिलते थे. बाकी उस की जिंदगी एक मशीन बन कर रह गई थी. न घर वालों के पास बैठ कर बातचीत करने का समय था, न दोस्तों के साथ घूम टहल कर मन हलका करने का.

हरजोत सिंह ने बेटे की कोटा में पढ़ाई की करा दी व्यवस्था

इसी तरह 2 साल बीत गए. 12वीं में उस के 94 प्रतिशत नंबर आए तो हरजोत सिंह ने इस खुशी में मोहल्ले वालों को मिठाई खिलाई. इस के बाद बेटे को डाक्टर बनाने के लिए अप्रैल, 2023 में उन्होंने उस का दाखिला राजस्थान के शिक्षा यानी कोचिंग का हब कहे जाने वाले सपनों के शहर कोटा में स्थित एक प्रतिष्ठित कोचिंग इंस्टीट्यूट में करा दिया. मनजोत कोटा आ कर नैशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेस टेस्ट (नीट) की तैयारी करने लगा.

हरजोत सिंह ने उस के रहने की व्यवस्था यहां कोचिंग के ही एक हौस्टल में कर दी थी. बेटे का सपना पूरा करने के लिए उसे कोटा में छोड़ कर वह रामपुर वापस आ गए. मनजोत भी धीरेधीरे वहां की दिनचर्या में रम गया. क्योंकि उसे डाक्टर बनना था. अपना ही नहीं, मांबाप का भी सपना पूरा करना था.

3 अगस्त, 2023 दिन गुरुवार को हरजोत सिंह का जन्मदिन था. घर में वह अपना जन्मदिन मना रहे थे. छोटीमोटी पार्टी का भी आयोजन था. सभी ने उन्हें जन्मदिन विश किया, लेकिन मनजोत ने उन्हें जन्मदिन विश नहीं किया था. जबकि उस ने एक दिन पहले कहा था कि वह रात को ही पापा को जन्मदिन की बधाई देगा. घर में सभी को लगा कि वह सो गया होगा. अगले दिन भी उस ने फोन नहीं किया.

हरजोत और उन की पत्नी को लगा कि दिन में वह कोचिंग में व्यस्त रहा होगा, शाम को विश करेगा. शाम को अपने लोगों के बीच बैठे हरजोत का ध्यान बारबार फोन की ओर ही जा रहा था. लेकिन बेटे का फोन नहीं आया. तब उन्होंने खुद ही मनजोत को फोन किया, लेकिन मनजोत ने फोन नहीं उठाया. उन्हें थोड़ी फिक्र हुई, पर लोगों से घिरे होने की वजह से इसे वह चेहरे पर नहीं ला सके. उन्हें लगा कि मनजोत बाथरूम वगैरह में होगा, मिस्ड काल देख कर खुद ही फोन करेगा. पर उस का फोन नहीं आया.

पार्टी खत्म हुई तो उन्होंने पत्नी से कहा, “क्या बात है, आज मनजोत ने मुझे फोन कर के बर्थडे विश नहीं किया?”

“आप ही कर लेते फोन. हो सकता है वह कहीं फंसा हो.” पत्नी ने कहा.

“मैं ने किया था फोन, पर उस ने फोन ही नहीं उठाया और पलट कर भी नहीं किया.” हरजोत सिंह ने कहा.

“अब तो सब चले गए हैं. फिर से कीजिए फोन,” पत्नी ने कहा.

हरजोत सिंह ने बेटे का नंबर डायल किया. घंटी जाने लगी. पूरी की पूरी घंटी गई, मनजोत ने फोन नहीं उठाया. दोबारा फिर फोन लगाया, इस बार भी फोन नहीं उठा. पतिपत्नी को चिंता तो हुई कि बेटा फोन क्यों नहीं उठा रहा. पर दोनों ने यह कह कर संतोष कर लिया कि दिन भर का थका रहा होगा, फोन म्यूट कर के सो गया होगा.

रात भर मांबाप बेटे की चिंता में ठीक से सो नहीं पाए, क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था, जब न तो बेटे का फोन आया था और न उस ने फोन उठाया था.

सवेरा होते ही हरजोत सिंह ने बेटे को फोन मिला दिया. यह ऐसा समय था, जब वह कमरे में होता था, लेकिन मनजोत ने फोन नहीं उठाया. हरजोत सिंह ने बेटे को कई बार फोन किया. जब मनजोत ने फोन नहीं उठाया तो इस बार हरजोत सिंह घबरा गए. उन्होंने तुरंत बेटे के एक दोस्त को फोन किया, जो उस के साथ ही पढ़ता था और उसी हौस्टल में दूसरे कमरे में रहता था.

उस ने कहा, “अंकल आप परेशान मत होइए, मैं देखता हूं कि मनजोत फोन क्यों नहीं उठा रहा. उस के बाद आप को फोन करता हूं.”

मनजोत के उस दोस्त ने पहले मनजोत को फोन किया. जब मनजोत ने फोन नहीं उठाया तो वह घबरा गया. तुरंत वह उस के कमरे पर पहुंचा तो पता चला कि उस का कमरा अंदर से बंद है. उस ने आवाज दी, दरवाजा खटखटाया, पर न तो दरवाजा खुला और न ही अंदर से कोई आवाज ही आई.

संदिग्ध अवस्था में मिली मनजोत की लाश

दरवाजा नहीं खुला तो उस ने अन्य दोस्तों को बुला लिया. सभी ने वार्डन यानी हौस्टल के इंचार्ज को सूचना दी. अनहोनी के बारे में सोच कर वार्डन ने हौस्टल प्रशासन और थाना विज्ञान नगर पुलिस को सूचना दी गई. सभी ने आ कर दरवाजा तोड़ा तो अंदर 18 साल के मासूम मनजोत सिंह की लाश पड़ी थी.

मनजोत सिंह की मौत की खबर उस के दोस्त ने घर वालों को बता दी. बेटे की मौत की सूचना मिलते ही हरजोत सिंह के घर में हाहाकार मच गया. पल भर में यह जानकारी पूरे मोहल्ले भर को हो गई. सभी हरजोत के घर इकट्ठा हो गए और सलाह करने लगे कि अब क्या किया जाए?

सलाहमशविरा कर के तत्काल कोटा स्थित हौस्टल प्रशासन से कहा गया कि जब तक वे लोग न आ जाएं, तब तक लाश बिलकुल न उठाई जाए. इसी के साथ हरजोत सिंह पत्नी और कुछ खास लोगों के साथ कोटा के लिए निकल पड़े. घर वालों के कहे अनुसार पुलिस ने भी लाश नहीं उठाई. वह घर वालों के आने का इंतजार करती रही. पुलिस का कहना था कि लाश घर वालों को दिखाने के बाद ही हौस्टल के कमरे से उठाई जाएगी.

ये हत्या थी या आत्महत्या ? पढ़िए कहानी के अगले भाग में.

दोस्ती, प्यार और अपहरण

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 3

प्यारेलाल को जब पता चला कि रचना नाराज हो कर उन की बेटी के पास नवादा चली गई है तो उन्हें ज्यादा चिंता नहीं हुई. उन्होंने सोचा कि 2-4 दिन में गुस्सा शांत हो जाएगा तो वह लौट आएगी. बहन के यहां रह कर रचना अपने लिए नौकरी तलाशने लगी. थोड़ी कोशिश करने के बाद नांगलोई में एक होम्योपैथी फार्मेसी में उस की नौकरी भी लग गई.

रचना स्वच्छंद विचारों की थी, इसलिए नवादा में अपनी बहन से भी उस की नहीं बनी तो बहन का मकान छोड़ कर वह द्वारका सेक्टर-7 में किराए पर रहने लगी. अब द्वारका में उस से कोई कुछ कहनेसुनने वाला नहीं था. उस का जहां मन करता, घूमतीफिरती थी. फेसबुक और अन्य सोशल साइटों के जरिए नएनए दोस्त बनाना उसे अच्छा लगता था. सोशल साइट के जरिए उस की दोस्ती नाइजीरियन युवक चिनवेंदु अन्यानवु से हुई.

चिनवेंदु जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी से आईटी की पढ़ाई कर रहा था. धीरेधीरे उन की दोस्ती बढ़ती गई तो वह रचना से मिलने दिल्ली आने लगा. इस का नतीजा यह हुआ कि उन के बीच प्यार हो गया. यह प्यार शारीरिक संबंधों तक भी पहुंच गया. इस के बाद तो रचना उस की ऐसी दीवानी हुई कि अपनी नौकरी छोड़ कर उस के साथ जयपुर में लिव इन रिलेशन में रहने लगी. वह जयपुर में करीब एक साल रही.

चिनवेंदु का एक दोस्त था जेम्स विलियम. वह भी नाइजीरिया का ही रहने वाला था. वह ग्रेटर नोएडा के किसी इंस्टीट्यूट से पढ़ाई कर रहा था. जेम्स अकसर चिनवेंदु से मिलने जयपुर जाता रहता था, इसलिए वह रचना को भी जान गया था.

जयपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद चिनवेंदु रचना को ले कर ग्रेटर नोएडा पहुंच गया. वे दोनों जानते थे कि रचना सोशल साइट पर लोगों से दोस्ती करने में माहिर है. इसलिए दोनों युवकों ने लोगों से पैसे ऐंठने का नया आइडिया रचना को बताया तो रचना ने तुरंत हामी भर दी. फिर योजना बना कर किसी पैसे वाली पार्टी को फांसने का फैसला किया गया.

रचना ने सोशल साइट टैग्ड डौटकाम के जरिए नोएडा के मनीष नाम के युवक से दोस्ती की. मनीष को अपने जाल में पूरी तरह फांसने के बाद रचना ने उसे अपने कमरे पर बुलाया. बातचीत के बाद रचना और मनीष जब आपत्तिजनक स्थिति में पहुंच गए तो चिनवेंदु ने किसी तरह उन के फोटो खींच लिए. फिर क्या था, उन फोटोग्राफ के जरिए वह मनीष को ब्लैकमेल करने लगा. मगर मनीष ने पैसे देने के बजाय पुलिस को सूचना देने की धमकी दी.

इस से वे लोग डर गए और उन्होंने उसे कमरे से भगा दिया. पहला वार खाली जाने के बाद उन्होंने अब नया शिकार तलाशना शुरू किया. फिर रचना ने अगला शिकार गुड़गांव के रहने वाले जोगिंद्र को बनाया. जोगिंद्र से दोस्ती गांठने के बाद रचना ने उसे भी अपने कमरे पर बुलाया. उन्होंने जोगिंद्र को भी ब्लैकमेल करने की कोशिश की. लेकिन जोगिंद्र भी रचना और उस के साथियों की धमकी में नहीं आया. लिहाजा उन्होंने जोगिंद्र को भी कमरे से भगा दिया.

इस के बाद रचना और उस के साथियों ने दिल्ली के चित्तरंजन पार्क में एक कमरा किराए पर लिया. रचना और उस के साथियों के 2 वार खाली जा चुके थे. अब वे मोटे आसामी की फिराक में थे. टैग्ड डौटकाम के जरिए अब रचना नया मुर्गा फांसने में जुट गई. रचना ने अरुण वाही से दोस्ती कर ली. अरुण वाही लुधियाना के सुंदरनगर के रहने वाले थे. वह चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. 46 साल के अरुण वाही भी रचना के जाल में फंस गए. दोनों ने एकदूसरे को नेट के जरिए अपने फोटो भी भेज दिए.

अरुण वाही उस पर एक तरह से मोहित हो गए थे. सोशल साइट के जरिए वह एकदूसरे से बात करते रहते थे. रचना ने अरुण वाही को दिल्ली मिलने के लिए बुलाया. 18 दिसंबर की रात को अरुण वाही की रचना से फोन पर 3 बार बात भी हुई थी. वह रचना से मिलने के लिए बेचैन थे, इसलिए 18 दिसंबर को सुबह 4 बजे लुधियाना से ट्रेन द्वारा दिल्ली के लिए निकल पड़े.

अरुण वाही को लेने रचना दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई थी. वह स्टेशन से उन्हें कमरे पर ले गई. वाही ने सोचा कि वह उस से एकांत में मन की बात करेंगे, इसलिए किराए की कार से रचना के साथ चित्तरंजन पार्क स्थित उस के कमरे पर पहुंचे. वहां भी चिनवेंदु ने रचना के साथ आपत्तिजनक हरकतें करते हुए वाही के फोटो खींच लिए. फिर उन का मोबाइल जब्त करने के बाद उन से 4 लाख रुपए की मांग की.

अरुण वाही एक इज्जतदार परिवार से थे, इसलिए उन्होंने मामले को दबाने के लिए पैसे देने की हामी भी भर ली. फिर पैसे हासिल करने के लिए वाही ने लुधियाना में रहने वाले अपने दोस्त राजेंदर सिंह का नंबर उन लोगों को बता दिया. चिनवेंदु भारत में रह कर हिंदी सीख गया था. उस ने ही वाही के फोन से राजेंदर सिंह से बात कर के अरुण वाही के बदले 4 लाख रुपए देने की मांग की. बाद में उन्होंने जब राजेंदर सिंह को बैंक एकाउंट नंबर भेजा तो वाही के बजाए अपना फोन नंबर प्रयोग किया. उसी के जरिए वे लोग पुलिस के चंगुल में फंस गए.

पुलिस ने 20 दिसंबर, 2013 को अभियुक्त रचना नायक राजपूत, चिनवेंदु अन्यानवु और जेम्स विलियम को गिरफ्तार कर तीसहजारी कोर्ट में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के यहां पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन के पास से विभिन्न कंपनियों के 46 सिमकार्ड, 2 लैपटौप, 5 मोबाइल फोन, एक कैमरा, 3 लाख 98 हजार 5 सौ रुपए नकद बरामद किए. उन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना एसआई घनश्याम किशोर कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. राजेंदर सिंह और मनीष परिवर्तित नाम हैं.

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 2

सोनिया वाही को पति की चिंता खाए जा रही थी. जब उन्हें पता चला कि बैंक में पैसे डलवाने के लिए अपहर्त्ताओं ने बैंक एकाउंट नंबर दे दिए हैं तो वह राजेंदर सिंह पर दबाव बनाने लगीं कि जल्द से जल्द एकाउंट में पैसे जमा करा दें, ताकि पति जल्द घर आ जाएं.

राजेंदर सिंह दिल्ली पुलिस को बताए बिना उन के एकाउंट में पैसे जमा कराने के पक्ष में नहीं थे, इसलिए उन्होंने थानाप्रभारी राजकुमार से बात की. उन्होंने पुलिस को यह भी बता दिया कि अपहर्त्ता ने इस बार फोन अरुण वाही के नंबर से नहीं, बल्कि नए नंबर 8860103333 से किया था, इसी नंबर से मैसेज भी भेजा था.

पुलिस ने अपहर्त्ता के इस फोन नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगा दिया. पुलिस नहीं चाहती थी कि अपहर्त्ता अरुण वाही को कोई क्षति पहुंचाएं, इसलिए उन्होंने राजेंदर सिंह से कह दिया कि वह अपहर्त्ताओं द्वारा भेजे गए दोनों बैंक खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दें. पुलिस के कहने पर राजेंदर सिंह ने आईसीआईसीआई के दोनों खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दिए.

पुलिस ने अपहर्त्ताओं द्वारा दिए गए खातों की जांच की तो पहला खाता इंफाल के रहने वाले किसी थांगन राकी नाम के व्यक्ति का और दूसरा इंफाल के ही लाइस रान थांबा का था. दिल्ली पुलिस ने इंफाल की पुलिस से जब इन के पते की जांच कराई तो पता चला कि इस पते पर इन नामों के लोग नहीं हैं. इस से यह पता चला कि दोनों बैंक खाते फरजी आईडी से खुलवाए गए थे.

अपहर्त्ताओं के जिस फोन को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया था, उस की लोकेशन भी दिल्ली के चित्तरंजन पार्क स्थित मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. इस के अलावा पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पुलिस को एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर ज्यादा बात होती थी. वह नंबर था 8130973333. उधर पुलिस ने अरुण वाही के फोन की जो काल डिटेल्स निकलवाई थी, उस में इसी नंबर से 18 दिसंबर की रात को ढाई बजे, साढ़े 3 बजे और पौने 4 बजे बात हुई थी.

8130973333 नंबर अब पुलिस के शक के दायरे में आ गया था. पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक नंबर और मिला, जिस पर लगातार कई बार बातें हुई थीं. वह नंबर गुड़गांव के जोगिंद्र नाम के व्यक्ति का था. एक पुलिस टीम गुड़गांव रवाना कर दी गई. जोगिंद्र पुलिस टीम को मिल गया.

पुलिस ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि यह नंबर रचना नाम की एक लड़की का है. वह लड़की बड़ी शातिर है. वह सोशल साइट के जरिए पहले लोगों से दोस्ती करती है, उस के बाद उन्हें ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठने की कोशिश करती है. जोगिंद्र ने बताया कि वह भी रचना का शिकार बन चुका है. उस ने पुलिस को रचना का फोटो भी उपलब्ध करा दिया.

जोगिंद्र से बात करने के बाद पुलिस के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. पुलिस ने रचना का मोबाइल फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. जांच के बाद पता चला कि उस ने फोन का सिम भी फरजी आईडी से लिया था. अब पुलिस के पास उस तक पहुंचने का जरिया केवल फोटो ही था.

2 दिन बीत गए थे, अरुण वाही के घर वालों को उन के बारे में कुछ पता नहीं लग रहा था. सोनिया वाही इस बात को सोचसोच कर परेशान थीं कि पता नहीं वह किस हाल में होंगे. इस मामले में लगी पुलिस भी उन के पास जल्द से जल्द पहुंचने का जरिया ढूंढ़ रही थी.

पुलिस को ध्यान आया कि अपहर्त्ताओं ने जब राजेंदर सिंह को फोन किए थे तो उन की लोकेशन चित्तरंजन पार्क में मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. पुलिस टीम रचना का फोटो ले कर दिल्ली के चित्तरंजन पार्क इलाके में पहुंच गई. मंदाकिनी इनक्लेव में पहुंच कर पुलिस ने कोठियों के बाहर तैनात सुरक्षा गार्डों को रचना का फोटो दिखा कर उन से पूछताछ की.

काफी मशक्कत के बाद एक सुरक्षा गार्ड ने लड़की का फोटो पहचान लिया. उस ने यह भी बता दिया कि यह लड़की 52/76 नंबर के मकान में रहती है. पुलिस जब वहां पहुंची तो उस मकान की तीसरी मंजिल पर रचना नाम की वही लड़की मिल गई, जिस का फोटो उन के पास था. उस के साथ 2 नाइजीरियन युवक भी थे.

उसी कमरे के एक कोने में अरुण वाही भी बैठे मिले. पुलिस के पास अरुण वाही का भी फोटो था, जो उन के बेटे निखिल ने दिया था. पुलिस ने सब से पहले अरुण वाही को अपने कब्जे में लिया. इस के बाद रचना सहित दोनों नाइजीरियन युवकों को हिरासत में ले लिया.

अरुण वाही को सकुशल बरामद कर के पुलिस खुश थी, क्योंकि पुलिस का पहला मकसद उन्हें सकुशल बरामद करना था. पुलिस तीनों को पूछताछ के लिए थाना जनकपुरी ले आई. रचना से जब पूछताछ की गई तो उस ने सारा सच उगल दिया. फिर उस ने सोशल साइट के जरिए लोगों को फांसने से ले कर उन्हें ब्लैकमेल करने तक की जो कहानी बताई, वह बड़ी दिलचस्प निकली.

रचना का पूरा नाम रचना नायक राजपूत था. वह मूलरूप से हरियाणा के शहर फरीदाबाद के रहने वाले प्यारेलाल की बेटी थी. प्यारेलाल की 7 बेटियां थीं, जिन में से रचना चौथे नंबर की थी. प्यारेलाल प्रौपर्टी डीलर थे. उसी से होने वाली आमदनी से वह घर का खर्च चलाते थे. अन्य बेटियों की तरह वह रचना को भी पढ़ाना चाहते थे, लेकिन रचना ने नौवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी.

वह अति महत्त्वाकांक्षी थी. कुछ दिन घर बैठने के बाद उस ने फरीदाबाद के ही एक प्रौपर्टी डीलर के यहां रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. यह नौकरी रचना ने अपने शौक पूरे करने के लिए की थी. लेकिन प्यारेलाल को यह बात अच्छी नहीं लगी. उन्होंने उसे डांटा और उस की नौकरी छुड़वा दी. रचना को अपने पिता का यह तुगलकी फरमान अच्छा नहीं लगा. उन के दबाव में उस ने नौकरी तो छोड़ दी, लेकिन घर वालों से नाराज हो कर वह पश्चिमी दिल्ली के नवादा क्षेत्र में रहने वाली अपनी बहन के घर चली गई. यह करीब 5 साल पहले की बात है.

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 1

पंजाब के शहर लुधियाना के रहने वाले अरुण वाही पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. उन का काम ही ऐसा था कि उन्हें औडिट करने के लिए विभिन्न कंपनियों, फर्मों में जाना पड़ता था. कभीकभी तो उन्हें औडिट के लिए लुधियाना से बाहर भी जाना पड़ता था.

18 दिसंबर, 2013 को भी वह लुधियाना से सुबह 4 बजे की ट्रेन पकड़ कर दिल्ली की किसी कंपनी का औडिट करने के लिए निकले. घर से निकलते समय उन्होंने पत्नी सोनिया वाही को बता दिया था कि वह दिल्ली से 1-2 दिन में लौटेंगे.

जिस दिन अरुण वाही दिल्ली के लिए निकले थे, उसी दिन दोपहर करीब 12 बजे लुधियाना में रहने वाले उन के एक दोस्त राजेंदर सिंह के पास फोन आया. राजेंदर सिंह पंजाब नेशनल बैंक में नौकरी करते थे. चूंकि फोन अरुण के नंबर से आया था, इसलिए उन्होंने काल रिसीव करते ही कहा, ‘‘पहुंच गए दिल्ली?’’

‘‘हां, यह दिल्ली पहुंच गए और अब हमारे कब्जे में हैं.’’ दूसरी तरफ से आई इस आवाज को सुन कर राजेंदर सिंह चौंके, क्योंकि वह आवाज अरुण की नहीं, किसी और की थी. राजेंदर सिंह ने उन से पूछा, ‘‘आप कौन हैं और कहां से बोल रहे हैं?’’

‘‘हम आबिद एंटरप्राइजेज, जनकपुरी दिल्ली से बोल रहे हैं. हम ने अरुण वाही को अपने पास ही रोक रखा है. अगर इन्हें छुड़ाना हो तो हमारे खाते में 4 लाख रुपए जमा करा दें, अन्यथा…’’

‘‘नहीं, आप अरुण को कुछ नहीं कहना. आप ने जितने पैसे मांगे हैं, मिल जाएंगे. लेकिन इस से पहले आप हमारी अरुण से बात तो करा दीजिए.’’ राजेंदर सिंह ने कहा.

‘‘हां, कर लीजिए उन से बात.’’ कहते हुए अपहर्त्ता ने फोन अरुण वाही को दे दिया. कुछ बातें कर के राजेंदर सिंह को जब यकीन हो गया कि जिन से वह बात कर रहे हैं, वह अरुण वाही ही हैं तो उन्होंने कहा, ‘‘देखो अरुण, मैं तुम से शौर्ट में बात करूंगा. अगर तुम्हें वहां कोई परेशानी न हो तो तुम न कहना और परेशानी हो तो हां में जवाब देना.’’

तब अरुण ने हां में जवाब दिया. इतना सुन कर वह समझ गए कि उन का दोस्त इस समय गहरे संकट में है. मामला गंभीर था, इसलिए राजेंदर सिंह ने अरुण वाही की पत्नी सोनिया वाही को फोन कर के पूरी बात बता दी.

पति के किडनैप हो जाने की खबर सुन कर सोनिया भी हैरान रह गईं कि पता नहीं किस ने यह किया होगा. वह राजेंदर सिंह से ही पूछने लगीं कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? अरुण वाही का एक बेटा निखिल वाही भी चार्टर्ड एकाउंटेंट है. वह दिल्ली में ही था. सोनिया ने पति के किडनैपिंग की बात बेटे को बताई. निखिल उस समय नई दिल्ली एरिया में गोल डाकघर के पास स्थित एक कंपनी का औडिट कर रहा था. पिता के अपहरण की बात सुन कर वह घबरा गया.

चूंकि अपहरण की पहली काल पिता के दोस्त राजेंदर के मोबाइल पर आई थी, इसलिए उस ने सब से पहले उन्हीं से बात की. बातचीत में उसे जब पता चला कि अपहर्त्ताओं ने उस के पिता को दिल्ली में ही बंधक बना कर रखा है तो उस ने तुरंत दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन किया.

गोल डाकखाना क्षेत्र नई दिल्ली जिले में आता है, इसलिए अपहरण कर फिरौती मांगने की खबर पर नई दिल्ली जिला के थाना कनाट प्लेस की पुलिस हरकत में आ गई. पुलिस तुरंत निखिल के पास पहुंची तो निखिल को राजेंदर सिंह और अपनी मां से जो जानकारी मिली थी, दिल्ली पुलिस को बता दी.

पुलिस को निखिल से यह पता लगा कि उस के पिता को जनकपुरी स्थित आबिद एंटरप्राइजेज में बंधक बना कर रखा गया है. कनाट प्लेस के थानाप्रभारी ने जनकपुरी के थानाप्रभारी राजकुमार से फोन पर बात की और निखिल वाही को थाना जनकपुरी भेज दिया. वहां पर निखिल वाही की तरफ से अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण कर फिरौती मांगने का मामला दर्ज कर लिया गया.

अपहरण का मामला बेहद संवेदनशील होता है. इस में पुलिस पर इस बात का दबाव रहता है कि किसी भी तरह अपहृत व्यक्ति को सहीसलामत बरामद किया जाए. थानाप्रभारी ने सीए के अपहरण की बात उपायुक्त रणवीर सिंह को बताई तो उन्होंने थानाप्रभारी राजकुमार के नेतृत्व में एक पुलिस पार्टी का गठन कर दिया, जिस में एसआई घनश्याम किशोर, हेडकांस्टेबल बिजेंद्र सिंह, ओमबीर सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम को बताया गया था कि अरुण वाही को जनकपुरी के आबिद एंटरप्राइजेज नाम की फर्म में बंधक बना कर रखा गया है, इसलिए पुलिस टीम इस नाम की फर्म को खोजने में लग गई. जनकपुरी कोई छोटामोटा इलाका नहीं है. पुलिस की जो एक टीम बनी थी, उस के लिए यह काम आसान नहीं था. फर्म का जल्द पता लगाने के लिए डीसीपी ने 6 टीमें और बनाईं और सभी को इस मामले में लगा दिया.

सभी पुलिस टीमें अलगअलग तरीकों से आबिद एंटरप्राइजेज नाम की फर्म को ढूंढ़ने लगीं, लेकिन इस नाम की फर्म कहीं नहीं मिली. अब पुलिस के पास अपहर्त्ताओं तक जाने के लिए कोई रास्ता भी नहीं था. उन्होंने राजेंदर सिंह के पास फिरौती का जो फोन किया था, वह अरुण वाही के फोन से किया गया और उस की लोकेशन दिल्ली के चित्तरंजन पार्क की आ रही थी. एक पुलिस टीम चित्तरंजन पार्क भेजी गई.

इसी बीच राजेंदर सिंह के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं ने फोन कर के फिरौती की रकम 4 लाख से बढ़ा कर 6 लाख कर दी. दरअसल इस से पहले फोन करने पर राजेंदर सिंह ने 4 लाख रुपए देने में कोई आनाकानी नहीं की थी. अपहर्त्ताओं को लगा कि पार्टी मोटी है, इसलिए उन्होंने फिरौती की रकम बढ़ा दी.

इस पर राजेंदर सिंह ने कहा, ‘‘अभी हमारे पास 6 लाख रुपए नहीं हैं. हम 4 लाख रुपए भी इधरउधर से जुगाड़ कर के दे सकते हैं. अब आप यह बता दीजिए कि पैसे कहां पहुंचाने हैं?’’

‘‘आप को आने की जरूरत नहीं है. हम आप को बैंक का एकाउंट नंबर मैसेज कर देंगे, उसी में आप पैसे जमा करा देना. एकाउंट में पैसे जमा होते ही हम वाही को छोड़ देंगे.’’ कहने के बाद अपहर्त्ता ने आईसीआईसीआई बैंक के 2 एकाउंट नंबर राजेंदर सिंह के फोन पर मैसेज कर दिए. ये नंबर थे 246301500161 और 264301500653. राजेंदर सिंह को यह जानकारी मिल चुकी थी कि निखिल ने दिल्ली के थाना जनकपुरी में रिपोर्ट दर्ज करा दी है और दिल्ली पुलिस इस मामले में तेजी से काररवाई कर रही है. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी राजकुमार राजेंदर सिंह से बात भी कर चुके थे.