इंसाफ चाहिए इस निर्भया को – भाग 3

नाबालिग निर्भया की हालत देख कर जोट्टा सिंह द्रवित हो उठे. उस की हालत काफी गंभीर थी. उसे तत्काल मैडिकल सहायता की जरूरत थी. मामला संगीन था, इसलिए पुलिस को भी सूचना देना जरूरी था. उन्होंने तुरंत एसपी भुवन भूषण यादव को मामले की जानकारी दे दी.

एसपी के निर्देश पर महिला थाने की थानाप्रभारी सहयोगियों के साथ सरदारी बुआ के घर पहुंच गईं. अब तक मंजू परिवार के साथ फरार हो चुकी थी. बाल संरक्षण कमेटी के संरक्षण में निर्भया को हनुमानगढ़ के जिला चिकित्सालय में भरती कराया गया.

शुरुआती पूछताछ में पुलिस को पता चला कि निर्भया दिल्ली के अमन विहार की रहने वाली थी. हनुमानगढ़ पुलिस ने दिल्ली के थाना अमन विहार पुलिस से संपर्क किया तो पता चला कि निर्भया के पिता कुंदन (बदला हुआ नाम) ने फरवरी महीने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

सूचना पा कर थाना अमन विहार पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ दर्ज मुकदमे में गोलू, मंजू, निशा, सुनील बागड़ी आदि को नामजद कर लिया. इस के बाद दिल्ली पुलिस की सबइंसपेक्टर मनीषा शर्मा पुलिस टीम के साथ हनुमानगढ़ पहुंची और निर्भया का बयान ले कर लौट गई.

पुलिस टीम के साथ आए निर्भया के पिता ने बेटी की हालत देखी तो गश खा कर गिर गए. मामला मीडिया द्वारा जगजाहिर हुआ तो शहर में भूचाल सा आ गया. निर्भया को न्याय दिलाने के लिए हनुमानगढ़ में भी मुकदमा दर्ज करने की मांग करते हुए लोग सड़कों पर उतर आए. श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में कैंडल मार्च निकाला गया.

हनुमानगढ़ पुलिस दिल्ली में मुकदमा दर्ज होने की बात कह कर मुकदमा दर्ज करने से कतरा रही थी. लेकिन लोग मैदान में उतर आए. लोगों का कहना था कि यहां के आरोपियों से दिल्ली पुलिस को कोई सरोकार नहीं रहेगा. निर्भया का बुरा करने वालों को किए की सजा दिलाने के लिए यहां भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए.

लोगों के गुस्से को देखते हुए हनुमानगढ़ पुलिस बेबस हो गई. तीसरे दिन महिला पुलिस थाने में मंजू, गोलू, निशा, मुकेश, सोनू आदि के खिलाफ भादंवि की धारा 370, 372, 373, 376 (डी), 377, 3/4 पौक्सो एक्ट व हरिजन उत्पीड़न अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस के बाद डीएसपी वीरेंद्र जाखड़ को मामले की जांच सौंप दी गई.

जानकारी मिलने पर 30 मार्च, 2017 को राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्षा मनन चतुर्वेदी हनुमानगढ़ आईं और स्वास्थ्य केंद्र जा कर उपचाराधीन निर्भया से मिलीं. बच्ची की हालत देख कर वह रो पड़ीं. इस मामले में एक भी गिरफ्तारी न होने से उन्होंने पुलिस को आड़े हाथों लिया और शीघ्र गिरफ्तारी के आदेश दिए. 10वीं कक्षा में पढ़ने वाली निर्भया को अपनी पढ़ाई जारी रखने और वरिष्ठ अधिकारी बनने के लिए प्रेरित करते हुए हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया. कुछ संस्थाओं ने ही नहीं, जन साधारण ने भी निर्भया की आर्थिक मदद की.

आखिर कौन थी निर्भया, वह कैसे चकलाघर संचालिका मंजू अग्रवाल के पास पहुंची? पुलिस जांच में पता चला कि सुरेशिया में ही किराएदार के रूप में मंजू के पड़ोस में सुनील बागड़ी रहता था. इस के पहले वह पश्चिमी दिल्ली के अमन विहार में रहता था. सुनील मंजू का राजदार था और एक दो बार उस के लिए बाहर से लड़की ला चुका था.

एक दिन सुनील मंजू के पास बैठा था तो उस ने कहा, ‘‘अरे सुनील बाबू, आजकल मेरा धंधा बड़ा मंदा है. कोई बढि़या सी लड़की की व्यवस्था कर देते तो धंधा चमक उठता. ऐसे माल के लिए मैं लाख, डेढ़ लाख रुपए खर्च करने को तैयार हूं.’’

‘‘मैडम, यह कौन सा मुश्किल काम है. मैं आज ही अपने साथी से कहे देता हूं.’’ सुनील ने कहा.

दिल्ली में सुनील के पड़ोस में ही गोलू और निशा रहते थे. निशा का पति ट्रक चलाता था, जबकि गोलू टैंपो चलाता था. निशा और उस के पति में किसी बात को ले कर खटपट हो गई तो निशा पति से अलग हो कर गोलू के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगी. सुनील ने मंजू की मंशा गोलू और निशा को बताई तो लाखों मिलने की उम्मीद में उन के मुंह में पानी आ गया.

निशा के पड़ोस में ही रहती थी निर्भया. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी और दसवीं कक्षा में पढ़ रही थी. पिता मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार की गाड़ी खींच रहे थे. आकर्षक कदकाठी और मनमोहक नयननक्श वाली निर्भया गोलू और निशा की निगाह में चढ़ गई. दोनों ने उसे मंजू के अड्डे पर पहुंचाने का मन बना लिया.

बस फिर क्या था. निशा और गोलू निर्भया पर डोरे डालने लगे. निशा को गोलू ने अपनी भाभी बताया था. जानपहचान बढ़ी तो निशा और गोलू निर्भया को गिफ्ट के साथ नकदी भी देने लगे. निशा ने निर्भया से कहा था कि वह गोलू से उस की शादी करा कर उसे अपनी देवरानी बनाना चाहती है.

फिसलन भरी राह पर आखिर एक दिन निर्भया फिसल ही गई और निशा तथा गोलू के साथ भाग गई. उसे ले जा कर पहले गोलू ने उस से शादी की. फिर 4-5 दिनों बाद वे उसे ले कर हनुमानगढ़ पहुंचे और सुनील बगड़ी के माध्यम से मंजू को सौंप दिया गया. निर्भया के गायब होने पर कुंदन ने थाना अमन विहार में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

हनुमानगढ़ पुलिस जब मुख्य अपराधियों को 3-4 दिनों तक गिरफ्तार नहीं कर सकी तो लोग नाराजगी व्यक्त करने गले. मीडिया भी पुलिस की भद्द पीट रही थी. साइबर क्राइम एक्सपर्ट हैडकांस्टेबल गुरसेवक सिंह ने मंजू के परिवार की लोकेशन पता कर रहे थे, पर शातिर मंजू पुलिस के पहुंचने से पहले ही उड़नछू हो जाती थी.

आखिर पांचवें दिन मंजू की आंख मिचौली खत्म हो गई. वह अपने बेटे मुकेश और बहू सोनू के साथ हरियाणा के ऐलनाबाद में पुलिस के हत्थे चढ़ गई. अदालत में पेश किए जाने पर अदालत ने तीनों को विस्तृत पूछताछ के लिए 10 दिनों  की पुलिस रिमांड पर सौंप दिया था.

मंजू से पूछताछ के बाद स्थानीय पुलिस ने पहले ग्राहक अख्तर खान सहित, 15 सौ रुपए में कमरा उपलब्ध कराने वाले संगम होटल के मैनेजर कृष्णलाल घूडि़या, दलाल गुड्डी मेघवाल और निर्भया का बुरा करने वाले विजय (रावतसर), नवीन खां, मंजूर खां (मोधूनगर) पूर्णचंद सिंधी (हनुमानगढ़) बिजली मैकेनिक जगदीश काला उर्फ अमरजीत आदि 15 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

अब दिल्ली पुलिस मंजू सोनू, मुकेश आदि को प्रोटक्शन वारंट पर अपनी सुपुर्दगी में लेने की कोशिश कर रही है. दिल्ली के दोनों आरोपी गोलू और निशा तिहाड़ जेल पहुंच गए हैं. हनुमानगढ़ पुलिस के लिए वे दोनों भी वांटेड हैं.

स्वास्थ्य लाभ के बाद निर्भया दिल्ली लौट गई थी. जिंदगी बरबाद करने वाले आरोपियों को फांसी की सजा की मांग करने वाली निर्भया की पुकार अब अदालत के फैसले पर निर्भर करेगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंसाफ चाहिए इस निर्भया को – भाग 2

सालों पहले मंजू खुद भी देहधंधा करती थी, वह थी भी काफी आकर्षक. लेकिन उस के चहेतों में निर्भया के दीवानों जैसी दीवानगी नहीं थी. विचारों के भंवर में फंसी मंजू अपने 30-35 साल पुराने अतीत में खो गई थी.

तहसील टिब्बी के एक गांव में जन्मी मंजू के युवा होते ही घर वालों ने सूरतगढ़ निवासी इंद्रचंद अग्रवाल से उस की शादी कर दी थी. स्वच्छंद और आजाद खयालों वाली मंजू को ससुराल की परदा प्रथा और रोकटोक कतई पसंद नहीं आई. 7 सालों में मंजू ने 3 बेटों को जन्म दिया.

बच्चे पैदा होने के बाद मंजू की सुंदरता कम होने के बजाए और बढ़ गई थी. आखिर एक दिन ससुराल की बंदिशों से ऊब कर मंजू ने अपने दांपत्य को अलविदा कह दिया. तीनों बेटे कभी मां के पास तो कभी दादादादी के पास रह कर दिन काट रहे थे. मंजू की ज्यादातर रातें अपने आशिकों के साथ गुजर रही थीं.

मंजू का एक आशिक था बबलू. उस की दबंगई से प्रभावित हो कर मंजू उस के साथ लिवइन रिलेशन में हनुमानगढ़ के हाऊसिंग बोर्ड में रहने लगी थी. बबलू मारपीट, कब्जे करना, देहव्यापार कराना, लूटपाट और हत्या के प्रयास जैसे अपराध कर के डौन बन गया था.

मंजू भी हाऊसिंग बोर्ड इलाके में मजबूर युवतियों  से धंधा करवाने लगी तो पड़ोसियों ने उस का पुरजोर विरोध किया. इस के बाद मंजू सुरेशिया में शिफ्ट हो गई.

कहा जाता है कि सन 2006 में नारी सुख का एक तलबगार मंजू के घर पहुंचा. मंजू और उस के गुंडों ने उस दिन उस ग्राहक के लगभग 30 हजार रुपए छीन लिए थे. उस आदमी ने अपने खास दोस्त को आपबीती बताई तो वह एक नामी बदमाश को ले कर मंजू के घर  पहुंच गया.

बदमाश ने 2 दिनों में पूरी रकम लौटाने को कहा और न लौटाने पर परिणाम भुगतने की धमकी दी. अगले दिन मंजू अपनी बहू को ले कर हनुमानगढ़ के तत्कालीन एसपी के पास पहुंची और सोनू की ओर से उस आदमी और उस के साथी बदमाश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराने का आदेश करा दिया.

लेकिन दोनों लड़के इलाके के विशिष्ट लोगों को साथ जा कर सारी सच्चाई एसपी को बताई तो मंजू का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ.

मंजू के 2 बेटे युवा होने से पहले ही चल बसे थे. बड़े बेटे सुरेश की शादी सोनू से हुई थी. मंजू ने अपनी बहू सोनू को भी धंधे में उतार दिया था. सन 2001 में बबलू डौन पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. उस के बाद मंजू ने उस की जगह ले ली. जल्दी ही वह लेडीडौन के रूप में कुख्यात हो गई.

कारण कोई भी रहा हो, मंजू ने पुलिस वालों, छुटभैये राजनेताओं से संबंध बना लिए थे. उस बीच मंजू के खिलाफ पीटा एक्ट, ब्लैकमेलिंग, देहव्यापार, कब्जा करने आदि के मुकदमे दर्ज हुए. पर उसे सजा एक में भी नहीं हुई.

उन दिनों मंजू के सैक्स रैकेट की तूती बोलती थी. उस के यहां राजस्थान की ही नहीं, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार आदि से दलालों के माध्यम से देहव्यापार के लिए लड़कियां मंगाई जाती थीं.

‘‘मैडम, कमरे में कोई ग्राहक आप का इंतजार कर रहा है.’’ गुड्डी के कहने पर मंजू की तंद्रा टूटी. मंजू कमरे में बैठे ग्राहक के पास पहुंची. चायपानी के बाद ग्राहक ने कहा, ‘‘मैडम, आप के यहां दिल्ली से कोई माल आया है, उस के बड़े चर्चे सुने हैं. मैं उस के साथ कुछ समय बिताना चाहता हूं.’’

‘‘हां, हां क्यों नहीं, उस का रेट 10 हजार रुपए हैं.’’ मंजू ने कहा.

‘‘मैं उस के साथ पूरी रात बिताऊं तो…?’’ ग्राहक ने कहा.

‘‘जरूर बिताइए, पर रात के डबल पैसे 20 हजार रुपए लगेंगे.’’ मंजू ने कहा.

ग्राहक ने 15 हजार रुपए मंजू की हथेली पर रख दिए और निर्भया के साथ विशिष्ट कमरे में घुस गया. निर्भया के लिए वह रात बहुत ही पीड़ादायक साबित हुई. उस ग्राहक ने एक ही रात में निर्भया को जैसे रौंद डाला. हवस में पागल उस आदमी ने निर्भया को जगहजगह काट खाया था. उस के साथ कुकर्म भी किया था. उस की हैवानियत से निर्भया के संवेदनशील अंगों में रक्तस्राव शुरू हो गया था.

वह गिड़गिड़ाती रही, पर शराब के नशे में मस्त ग्राहक को उस पर दया नहीं आई. निर्भया अस्तव्यस्त हालत में बैड पर पसरी पड़ी रही. उस की पीड़ा से मंजू को कोई सरोकार नहीं था. अगली रात को उस का सौदा एक ग्राहक से पुन: कर दिया गया. वह ग्राहक भी शराब पी कर निर्भया के कमरे में पहुंचा तो उस से कपड़े उतारने को कहा.

निर्भया ने कपड़े उतारे तो उस की हालत देख कर वह पीछे हट गया. बाहर आ कर उस ने मंजू से कहा, ‘‘तू ने मेरे साथ धोखा किया है. मेरे पैसे लौटा दे अन्यथा काट कर फेंक दूंगा.’’

हकीकत जान कर मंजू के बेटे मुकेश ने कहा, ‘‘मम्मी, इन के पैसे लौटा दो.’’

‘‘अरे भई इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो? अगर वह पसंद नहीं है तो सोनू के साथ टाइम पास कर लो.’’ मंजू ने बहू की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘और अगर पैसा ही चाहिए तो सुबह आ कर ले लेना.’’

शराबी ग्राहक बड़बड़ाता हुआ चला गया. यह 27 मार्च, 2017 की बात है.

अगले दिन रात वाला ग्राहक किसी भी समय पैसे लेने आ सकता था. मंजू नहीं चाहती थी कि घर में बखेड़ा हो. इसलिए उसे लगा कि निर्भया को कहीं दूसरी जगह पहुंचा देना चाहिए. उस के पड़ोस में सरदारी बुआ (बदला हुआ नाम) रहती थीं. उसे उन का घर सुरक्षित लगा, इसलिए वह निर्भया को साथ ले कर उन के घर जा पहुंची.

सरदारी बुआ से उस ने कहा, ‘‘बुआ, यह मेरी भांजी है. मेरी कोलकाता वाली बहन की बेटी. आज इस की मम्मी आ रही है. मैं उन्हें लेने रेलवे स्टेशन जा रही हूं. घर में अकेली बोर हो जाएगी, इसलिए आप मेरे लौटने तक इसे अपने यहां रख लो.’’

इतना कह कर मंजू चली गई. उस के जाने के बाद निर्भया लड़खड़ाते हुए सरदारी बुआ के पास पहुंची तो उसे इस तरह से चलते देख सरदारी बुआ ने उस के सिर पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘क्या बात है बिटिया, तेरी तबीयत ठीक नहीं क्या? तेरे पैरों में चोट लगी है क्या?’’

ममत्व भरे स्पर्श से निर्भया बिलख पड़ी. सरदारी बुआ के सीने पर सिर रख कर उस ने कहा, ‘‘आंटी, जख्म पैरों में ही नहीं, पूरे बदन पर हैं. हृदय घावों से छलनी हो चुका है. मंजू मेरी मौसी नहीं, इस ने मुझे खरीदा है. आंटी मुझे बचा लो.’’

सरदारी बुआ ने दुनिया देखी थी. निर्भया ने जितना कहा था, उतने में ही वह पूरा माजरा समझ गई. उस बच्ची की पीड़ा को उन्होंने गंभीरता से लिया. उन का मन निर्भया को बचाने के लिए तड़प उठा. उन्होंने तुरंत बाल संरक्षण कमेटी के जिलाध्यक्ष एडवोकेट जोट्टा सिंह को फोन कर के अपने घर बुला लिया. नाबालिग बच्ची से जुड़ा मामला था, इसलिए वह अकेले नहीं आए थे, उन के साथ उन के साथी भी आए थे.

 

इंसाफ चाहिए इस निर्भया को – भाग 1

फोन की घंटी बजी तो अख्तर खान ने स्क्रीन पर नंबर देखा. नंबर जानापहचाना था, इसलिए उस ने तुरंत फोन रिसीव किया. तब दूसरी ओर से पूछा गया कि कौन, अख्तर खान बोल रहे हैं तो अख्तर खान ने कहा, ‘‘हां…हां गुड्डी, मैं अख्तर खान ही बोल रहा हूं. कहो, क्या आदेश है?’’

‘‘अरे खान साहब, आदेश कोई नहीं है. एक अच्छी सी बात है. एक बड़ा ही प्यारा सा माल आया है. आप शौकीन आदमी हैं, इसलिए उसे सब से पहले आप के सामने ही पेश करना चाहती हूं. आप पहले आदमी होंगे, जिस के साथ वह हमबिस्तर होगी.’’ गुड्डी ने मनुहार सा करते हुए कहा.

‘‘अरे गुड्डी, पहले माल तो दिखाओ. माल देखने के बाद ही आने, न आने के बारे में सोचूंगा.’’ अख्तर खान ने कहा.

गुड्डी ने तुरंत वाट्सऐप पर एक लड़की का फोटो भेज दिया. फोटो देख कर अख्तर खान की आंखें चमक उठीं. उस ने तुरंत पूछा, ‘‘मैडम, इस का रेट क्या होगा?’’

‘‘पूरे 10 हजार लगेंगे.’’ गुड्डी ने कहा.

‘‘गुड्डी, 10 हजार में तो किसी बिकाऊ हीरोइन को खरीदा जा सकता है. यह मुंबई से लाई गई कोई हीरोइन थोड़े ही है?’’ अख्तर खान ने कहा.

‘‘अख्तर साहब, यह हीरोइन भले नहीं है, पर हीरोइन से कम भी नहीं है. इसे दिल्ली से लाया गया है. एक बार चखोगे, तो गुलाम बन जाओगे. उस के बाद इस लड़की को ही नहीं, गुड्डी को भी नहीं भूल पाओगे. खान साहब, रेट की बात छोड़ो, अगर लड़की पसंद है तो आ जाओ. फाइनल डील तो मैडम मंजू ही करेंगी.’’ गुड्डी ने कहा.

‘‘गुड्डी मैं इस समय रावतसर ही हूं. तुम कह रही हो तो आधे घंटे में पहुंच रहा हूं. सीधे मैडम मंजू के घर ही पहुंचूंगा.’’

आधे घंटे बाद अख्तर खान हनुमानगढ़ जंक्शन के मोहल्ला सुरेशिया स्थित मंजू मैडम के घर पर था. चायनाश्ते के बाद अख्तर खान को बैडरूम में सजीधजी बैठी लड़की दिखाई गई तो उस की आंखें चमक उठीं. उस ने कुरते की जेब में हाथ डाला और 7 हजार रुपए निकाल कर मंजू के हाथों पर रख दिए. बिना किसी हीलहुज्जत के रुपए मुट्ठी में दबा कर मंजू बैडरूम से बाहर निकल गई. यह मार्च, 2017 के पहले सप्ताह की बात है.

तहसील रावतसर के गांव कल्लासर के रहने वाले सुमेरदीन का बेटा अख्तर खान रंगीनमिजाज युवक था. देहव्यापार का कारोबार करने वाली मंजू अग्रवाल और उस की सहायिका गुड्डी मेघवाल से उस की कई सालों पुरानी जानपहचान थी. अख्तर खान की खेती की जमीन में ‘जिप्सम’ के रूप में प्रचुर मात्रा में खनिज पाया गया है, जिस की वजह से इलाके में उस की गिनती धनी लोगों में होती है.

मंजू के बैडरूम में उस कमसिन लड़की के साथ घंटे, डेढ़ घंटे गुजार कर अख्तर खान संतुष्ट हो कर अपने घर लौट गया. जातेजाते उस ने मंजू और गुड्डी के प्रति आभार भी व्यक्त किया था. इस के बाद मंजू और गुड्डी द्वारा बुलाए गए कई ग्राहकों को उस लड़की ने संतुष्ट किया था.

रात हो गई थी. थक कर चूर हो चुकी उस लड़की ने लगभग रोते हुए कहा, ‘‘आंटी, अब और नहीं सह पाऊंगी शरीर का पोरपोर दर्द कर रहा है.’’

‘‘बस बेटा, आखिरी ग्राहक बचा है. वह एक बड़ा अफसर है. उस के लिए तुझे एक होटल में जाना होगा. जगतार तुझे वहां ले जाएगा. बस आधे घंटे की बात है.’’ मंजू ने सख्त लहजे में प्यार से कहा.

लड़की में मना करने की हिम्मत नहीं थी. इसलिए आधे घंटे में फ्रेश हो कर वह तैयार हो गई. जगतार उसे मोटरसाइकिल से संगम होटल ले गया. लड़की को बताए गए कमरे में पहुंचा कर वह स्वागत कक्ष में आ कर बैठ गया. आधे घंटे बाद लड़की रिशेप्शन पर आई तो जगतार उसे ले कर मंजू के घर आ गया.

2 दिन पहले ही मंजू के घर जबरदस्ती लाई गई यह लड़की बीते एक सप्ताह के हर लम्हे को याद कर के आंसुओं के सागर में गोते लगा रही थी. वहीं उस से देहव्यापार कराने वाली मंजू अग्रवाल पहले ही दिन की कमाई से निहाल हो उठी थी. एक ही दिन में उस की 22 हजार रुपए की कमाई हो चुकी थी.

लड़की, जिसे निर्भया कह सकते हैं, उसे दिल्ली से ला कर मंजू के हाथों बेचा गया था. वह मंजू के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हुई थी. 2 दिन पहले ही मंजू ने उसे दिल्ली के दलाल सुनील बागड़ी के माध्यम से गोलू और निशा से एक लाख रुपए में खरीदा था.

लेकिन मंजू ने अभी उन्हें 30 हजार रुपए ही दिए थे. बाकी के 70 हजार 15 दिनों बाद देने थे, अब तक की कमाई को देख कर मंजू को यही लगा कि उस ने जो पैसे इस लड़की पर लगाए हैं, वे 5-7 दिनों में ही निकल आएंगे. उस के बाद तो उस के घर रुपयों की बरसात होगी.

घर में निर्भया के कदम पड़ते ही मंजू के दिन फिर गए थे. उस के घर ग्राहकों की लाइन लग गई थी. एक बार जो निर्भया के साथ मौज कर लेता था, उस का दीवाना बन जाता था. उसे बाहर ले जाने के लिए मंजू ग्राहकों से मुंह मांगी रकम लेती थी. निर्भया कहीं मुंह ना खोल दे या भाग न जाए, इस के लिए 2-3 लड़के हमेशा उस पर नजर रखते थे. अगर वह ग्राहक के पास जाने से मना करती तो उसे डरायाधमकाया जाता.

मासूम और नाबालिग निर्भया शरीर के साथसाथ मानसिक रूप से भी मंजू ही नहीं, उस के गुर्गों की दासी बन चुकी थी. उस की शारीरिक कसावट और रूपलावण्य में गजब का आकर्षण था. उसे होटल में ले जाने वाला आदमी ग्राहक से पहले खुद उस के साथ मौज करता था. कमाई के चक्कर में मंजू ने उसे मशीन बना दिया था.

मंजू ने तमाम लड़कियों को अपने घर में रख कर धंधा करवाया था, लेकिन बरकत तो निर्भया के आने पर ही हुई थी. सुरेशिया इलाके में मंजू के 2 मकान थे. गुड्डी उस के पड़ोस में ही रहती थी. पहले वह मंजू के यहां देहधंधा करती थी. उम्र ज्यादा हो गई तो वह मंजू के लिए दलाली करने लगी थी. मंजू अपने ग्राहकों की हर सुखसुविधा का खयाल रखती थी.

उस ने अपने मकान के एक कमरे को फाइव स्टार होटल के कमरे की तरह सजा रखा था. वह ग्राहकों के लिए शबाब के साथसाथ शराब भी उपलब्ध कराती थी. बीते एक महीने में मंजू ने निर्भया से अपनी रकम तो वसूल कर ही ली थी, अच्छाखासा फायदा भी कमा लिया था.

निर्भया के चहेतों ने उस से शादी करने के लिए मंजू के सामने मुंहमांगी रकम देने की भी बात कही थी. मंजू तैयार भी थी, पर निर्भया का आईडी प्रूफ नहीं था, इसलिए वह शादी नहीं करवा पा रही थी. मंजू यह भी जानती थी कि एक तो निर्भया नाबालिग है, इस के अलावा वह दलित समुदाय से भी है. लेकिन अंधाधुंध कमाई के चक्कर में उस की आंखों पर परदा पड़ा हुआ था.

नापाक नाता : गुरु ने की सीमा पार

इसी साल 18 मार्च की बात है. शाम का समय था. करीब 6-साढ़े 6 बज रहे थे. छत्तीसगढ़ के शहर बिलासपुर में रहने वाली सरिता  श्रीवास्तव मंदिर जाने की तैयारी कर रही थीं. बेटा ओम प्रखर घर पर अपने कमरे में पढ़ रहा था. इसी दौरान डोर बेल बजी. सरिता ने बाहर आ कर गेट खोला. गेट पर 25-30 साल की एक युवती खड़ी थी.

सरिता ने युवती की ओर देख कर सवाल किया, ‘‘हां जी, बताओ क्या काम है?’’

युवती ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर सरिता से कहा, ‘‘मैम नमस्ते. ओम घर पर है क्या?’’

‘‘हां, ओम घर पर ही है.’’ सरिता ने युवती को जवाब दे कर सवाल किया, ‘‘आप को उस से क्या काम है?’’

‘‘मैम, मेरा नाम आराधना एक्का है. मैं ओम के स्कूल में टीचर हूं. इधर से जा रही थी, तो सोचा ओम से मिलती चलूं.’’ युवती ने बताया.

बेटे की टीचर होने की बात जान कर सरिता ने आराधना को अंदर बुलाते हुए ओम को आवाज दे कर कहा, ‘‘ओम, आप की मैम मिलने आई हैं.’’

ओम बाहर आया, तो टीचर उसे देख कर मुसकरा दी.

सरिता को मंदिर जाने को देर हो रही थी. इसलिए उन्होंने ओम से कहा, ‘‘ओम, अपनी टीचर को चायपानी पिलाओ. मुझे मंदिर के लिए देर हो रही है.’’

‘‘ठीक है मम्मी, आप मंदिर जाइए.’’ ओम ने मम्मी को आश्वस्त किया और अपनी टीचर से कहा, ‘‘मैम, आ जाओ, कमरे में बैठते हैं.’’

‘‘हां बेटे, तुम बातें करो. मैं मंदिर हो कर आती हूं.’’ कह कर सरिता घर से निकल गईं.

मंदिर सरिता के घर से दूर था. जब वह मंदिर से घर लौटीं, तो रात के करीब 8 बज गए थे. घर का गेट खुला देख कर सरिता को थोड़ा ताज्जुब हुआ, ओम की लापरवाही पर खीझ भी हुई. वह ओम को आवाज देती हुई घर में घुसीं.

ओम का जवाब नहीं आने पर उन्होंने कमरे में जा कर देखा, तो उन के मुंह से चीख निकल गई. ओम अपने कमरे में पंखे के हुक से लटक रहा था.

सरिता पढ़ीलिखी हैं. वह निजी स्कूल चलाती हैं. अपने 16-17 साल के बेटे ओम को फंदे पर लटका देख कर वह कुछ समझ नहीं पाईं. उन्होंने रोते हुए तुरंत घर से बाहर आ कर जोर से आवाज दे कर पड़ोसियों को बुलाया. पड़ोसियों की मदद से पंखे से लटके ओम को नीचे उतारा गया.

ओम को फंदे से उतार कर उस की नब्ज देखी, तो सांस चलती हुई नजर आई. सरिता पड़ोसियों की मदद से बेटे को तुरंत बिलासपुर के अपोलो हौस्पिटल ले गईं. डाक्टरों ने बच्चे की जांचपड़ताल करने के बाद उसे मृत घोषित कर दिया.

अस्पताल वालों ने इस की सूचना तोरवा थाना पुलिस को दी. मामला सुसाइड का था, इसलिए पुलिस अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने सरिता से पूछताछ के बाद ओम का शव पोस्टमार्टम के लिए अपने कब्जे में ले लिया.

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इस के बाद पुलिस देवरीखुर्द हाउसिंग बोर्ड इलाके में सरिता के घर पहुंची. उस समय तक रात के करीब 10 बज गए थे. इसलिए पुलिस ने वह कमरा सील कर दिया, जिस में ओम ने फांसी लगाई थी.

दूसरे दिन तोरवा थाना पुलिस ने ओम के शव का पोस्टमार्टम कराया. एक पुलिस टीम ने सरिता के मकान पर पहुंच कर ओम के कमरे की जांचपड़ताल की. कमरे में पुलिस को ओम का मोबाइल स्टैंड पर लगा हुआ मिला. मोबाइल का डिजिटल कैमरा चालू था. पुलिस ने मोबाइल की जांच की, तो उस में ओम के फांसी लगाने का पूरा वीडियो मिला.

ओम ने अपना मोबाइल स्टैंड पर इस तरह सेट किया था कि उस के फांसी लगाने की प्रत्येक गतिविधि कैमरे में कैद हो गई थी. पुलिस ने मोबाइल जब्त कर लिया. पुलिस ने ओम की किताब, कौपियां भी देखीं, लेकिन कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. उस के कमरे से दूसरी कोई संदिग्ध चीज भी नहीं मिली.

पुलिस ने सरिता श्रीवास्तव से ओम के फांसी लगाने के कारणों के बारे में पूछा, लेकिन उन्हें कुछ पता ही नहीं था, तो वे क्या बतातीं. उन्होंने मंदिर जाने से पहले ओम की टीचर आराधना के घर आने और मंदिर से वापस घर आने तक का सारा वाकया पुलिस को बता दिया.

लेकिन इस से ओम के आत्महत्या करने के कारणों का पता नहीं चला.

तोरवा थाना पुलिस ने ओम की आत्महत्या का मामला दर्ज कर लिया. जब्त किए उस के मोबाइल पर कुछ चीजों में लौक लगा हुआ था. मोबाइल का लौक खुलवाने के लिए उसे साइबर सेल में भेज दिया गया. पुलिस जांचपड़ताल में जुट गई, लेकिन यह बात समझ नहीं आ रही थी कि ओम ने सुसाइड क्यों किया और सुसाइड का वीडियो क्यों बनाया?

ओम प्रखर एक निजी स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ता था. इस के साथ ही एक इंस्टीट्यूट में कोचिंग भी कर रहा था. ओम सरिता का एकलौता बेटा था. पति सुनील कुमार से अनबन होने के कारण सरिता बेटे के साथ घर में अकेली रहती थीं. सरिता परिजात स्कूल की प्राचार्य थीं. यह स्कूल वह खुद चलाती थीं.

पुलिस ओम के सुसाइड मामले की जांचपड़ताल कर रही थी, इसी बीच उस के कुछ दोस्तों के मोबाइल पर डिजिटल फौर्मेट में कुछ सुसाइट नोट पहुंचे. पता चलने पर पुलिस ने ये सुसाइड नोट जब्त कर लिए. इन सुसाइड नोट में ओम ने कई तरह की बातें लिखी थीं, जिन में वह जीने की इच्छा जाहिर कर रहा था और अपने व अपनों के लिए कुछ करने की बात भी कह रहा था.

सुसाइड नोट में ओम ने किसी लड़की का जिक्र करते हुए लिखा था कि वह उस का मोबाइल नंबर कभी ब्लौक तो कभी अनब्लौक कर देती है. उस ने सुसाइड नोट में अपनी मौत से उसे दर्द पहुंचाने की बात भी लिखी थी.

यह सुसाइड नोट सामने आने से पुलिस को यह आभास हो गया कि यह मामला प्रेम प्रसंग का हो सकता है. इसलिए पुलिस ने सुसाइड नोट के आधार पर जांच आगे बढ़ाई. इस दौरान ओम के दोस्तों के पास उस के सुसाइड से जुड़े मैसेज आते रहे.

जांच में पता चला कि ओम ने सुसाइड से पहले मोबाइल में 2-3 सुसाइड नोट रिकौर्ड किए थे. इस के अलावा कुछ अन्य मैसेज भी लिखे थे.

ये मैसेज और सुसाइड नोट दोस्तों को अलगअलग समय पर मिलें, इस के लिए उस ने टाइम सेट किया था. टाइम सेट किए जाने के कारण ही ओम के दोस्तों को उस के सुसाइड नोट और मैसेज अलगअलग समय पर मिले.

सुसाइड नोट और मैसेज के आधार पर पुलिस ने 23 मार्च को ओम को आत्महत्या के लिए उकसाने और पोक्सो ऐक्ट के तहत मामला दर्ज कर शिक्षिका आराधना एक्का को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की ओर से एकत्र किए सबूतों के आधार पर जो कहानी सामने आई है, वह 16-17 साल के किशोर ओम प्रखर को उस की टीचर आराधना एक्का द्वारा अपने प्रेमजाल में फंसाने और उस का दैहिक शोषण करने की कहानी थी.

30 साल की आराधना एक्का बिलासपुर के सरकंडा इलाके में एक निजी स्कूल में कैमिस्ट्री की टीचर थी. ओम भी इसी स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ता था. ओम अपनी क्लास का होशियार विद्यार्थी था.

पढ़ातेपढ़ाते आराधना का झुकाव ओम की ओर होने लगा. वह गुरुशिष्य का रिश्ता भूल कर ओम को प्यार करने लगी. आराधना ने ओम का मोबाइल नंबर भी ले लिया. वह कभी ओम को क्लास में रोक कर उसे छूती और प्यार भरी बातें करती, तो कभी घर पर बुला लेती.

ओम जवानी की दहलीज पर खड़ा था. वह प्रेम प्यार का ज्यादा मतलब तो नहीं समझता था, लेकिन इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ जाना स्वाभाविक है.

आराधना जब उसे छूती और उस के नाजुक अंगों को सहलाती, तो ओम को अच्छा लगता. किशोरवय ओम जल्दी ही अपनी टीचर के प्यार की गिरफ्त में आ गया. आराधना उस का शारीरिक शोषण भी करने लगी.

इसी बीच आराधना का अपने स्कूल के एक शिक्षक से प्रेम प्रसंग शुरू हो गया. इस के बाद आराधना ने ओम की तरफ ध्यान देना कम कर दिया. इस से ओम बेचैन रहने लगा.

आराधना ने उसे प्यार की ऐसी गिरफ्त में ले लिया था कि ओम को उस के बिना सब कुछ सूनासूना सा लगता था. ओम जब आराधना को फोन करता, तो कई बार वह फोन नहीं उठाती थी. इस पर ओम को कोफ्त होती थी.

ओम ने पता किया, तो मालूम हुआ कि आराधना का एक टीचर से चक्कर चल रहा है. यह बात जान कर ओम परेशान हो उठा. एक दिन आराधना ने ओम को बिलासपुर के एक मौल में बुलाया. ओम वहां गया, तो उस ने बहाने से आराधना का मोबाइल ले लिया. ओेम ने आराधना की आंख बचा कर उस के मोबाइल को हैक कर लिया.

इस के बाद आराधना जब भी अपने प्रेमी टीचर से बातें करती या सोशल मीडिया पर कोई मैसेज भेजती, तो सारी बातें ओम को पता चल जातीं. आराधना की बेवफाई की बातें सुन और पढ़ कर ओम ज्यादा परेशान रहने लगा.

18 मार्च को आराधना जब ओम के घर आई, तब उस की मम्मी सरिता श्रीवास्तव मंदिर जा रही थीं. मां के मंदिर जाने के बाद ओम ने आराधना से उस की बेवफाई के बारे में पूछा, तो आराधना ने उसे फटकार दिया और अपनी मनमर्जी की मालिक होने की बात कहते हुए चली गई.

आराधना की बातों से किशोरवय ओम के दिल को गहरी ठेस पहुंची. नासमझी में उस ने सुसाइड करने का फैसला कर लिया. उस ने किसी खास ऐप की मदद से कोड लैंग्वेज में कुछ सुसाइड नोट लिखे. एकदो सुसाइड नोट उस ने हिंदी में भी लिखे. ये सुसाइड नोट लिख कर उस ने टाइम सेट कर दिया और अपने दोस्तों को भेज दिए.

इस के बाद घर में अकेले ओम ने एक रस्सी से फांसी का फंदा बनाया और कमरे में लगे पंखे से लटक कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली.

सुसाइड नोट के टाइम सेट किए जाने के कारण ओम के दोस्तों को उस के सुसाइड नोट अलगअलग तय समय पर मिले. दोस्तों को सुसाइड नोट मिलने पर ओम के सुसाइड करने के कारणों का पता चला.

पुलिस ने ओम के मोबाइल का लौक खुलवा कर जांचपड़ताल की, तो उस में कोड वर्ड में लिखा सुसाइड नोट मिला. पुलिस ने साइबर विशेषज्ञों की मदद से सुसाइड नोट के कोड वर्ड को डिकोड कराया.

सुसाइड नोट में आराधना के लिए एक जगह लिखा था कि उसे पता था कि मैं बेस्ट हूं लेकिन उस ने मुझे बरबाद कर दिया. मैं जिंदा रहना चाहता हूं, अपने लिए, अपने घर वालों के लिए. जो मुझ से प्यार करते हैं, उन के लिए बहुत कुछ करना चाहता हूं. मैं जिंदगियां बचाना चाहता हूं, लेकिन मुझे कोई नहीं बचा सकता.

आराधना की बेवफाई का जिक्र करते हुए ओम ने सुसाइड नोट में लिखा कि वह मुझे अकसर ब्लौक कर देती थी और खुद की जरूरत पड़ने पर अनब्लौक. मैं ने उस से पूछा था कि वास्तविक जीवन में कैसे ब्लौक करोगी?

मैं ने उस से मजाक में यह भी पूछा था कि क्या कोई और मिल गया है, तो उस ने कहा था, क्या मेरा एक साथ 10 के साथ चक्कर चलेगा? फिर बोली थी कि कभी शक मत करना.

पहले उस ने मुझे प्यार में फंसाया. फिर जब मुझे गहराई से प्यार हो गया, तो वह मुझे छोड़ने की बात करने लगी. मैं मनाता था, तो मान भी जाती थी. वह मुझे इस्तेमाल करती थी. मैं ने उसे सब कुछ दे दिया.

आरोपी टीचर आराधना ने पुलिस से बताया कि ओम ही उसे परेशान करता था. वह कम उम्र का था, इसलिए उस ने कभी उस की शिकायत उस के घर वालों से नहीं की.

पुलिस ने आरोपी टीचर को गिरफ्तार करने के बाद अदालत में पेश किया. अदालत के आदेश पर उसे 24 मार्च को जेल भेज दिया गया. पुलिस ने उस का मोबाइल भी जब्त कर लिया.

बहरहाल, आराधना ने अपनी काम इच्छा की पूर्ति के लिए किशोर उम्र के ओम का इस्तेमाल किया. हवस में अंधी आराधना की बेवफाई ने ओम को तोड़ दिया. उस ने सुसाइड कर लिया.

बेटे ओम की मौत से सरिता श्रीवास्तव पर दोहरा वज्रपात हुआ. एक तो वह पति से पहले ही अलग रहती थीं. अब बेटे की मौत ने उन की जिंदगी की रहीसही खुशियां भी छीन लीं.

4 करोड़ की चोरी का रहस्य

हरियाणा और पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ के सेक्टर 34 में एक्सिस बैंक का करेंसी चेस्ट है. इस में हर समय करोड़ों रुपए रहते हैं. इस चेस्ट से बैंक की ट्राइसिटी के अलावा हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब व जम्मूकश्मीर की शाखाओं को पैसा भेजा जाता है और वहां से आता भी है. हर समय करोड़ों रुपए रखे होने के कारण यहां सुरक्षा के भी काफी बंदोबस्त हैं. बैंक ने अपने सिक्योरिटी गार्ड तो लगा ही रखे हैं. साथ ही पंजाब पुलिस के जवान भी वहां हर समय तैनात रहते हैं.

इसी 11 अप्रैल की बात है. सुबह हो गई थी. कोई साढ़े 5-6 बजे के बीच का समय रहा होगा. सूरज निकल आया था, लेकिन अभी चहलपहल शुरू नहीं हुई थी. चेस्ट पर तैनात पंजाब पुलिस के जवानों को वहां रात में उन के साथ तैनात रहने वाला बैंक का सिक्योरिटी गार्ड सुनील नजर नहीं आ रहा था.

पुलिसकर्मियों ने एकदूसरे से पूछा, लेकिन किसी को भी सुनील के बारे में पता नहीं था. उन्हें बस इतना ध्यान था कि वह रात को ड्यूटी पर था. रात के 3-4 बजे के बाद से वह दिखाई नहीं दिया था. पुलिस के उन जवानों को चिंता हुई कि कहीं सुनील की तबीयत तो खराब नहीं हो गई? तबीयत खराब होने पर वह बैंक की चेस्ट में ही कहीं इधरउधर सो नहीं गया हो? यह बात सोच कर उन्होंने चेस्ट में चारों तरफ घूमफिर कर सुनील को तलाश किया, लेकिन न तो वह कहीं पर सोता मिला और न ही उस का कुछ पता चला.

सुनील की ड्यूटी रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक थी, लेकिन वह 2-3 घंटे से गायब था. वह किसी को कुछ बता कर भी नहीं गया था. एक पुलिस वाले ने उस के मोबाइल नंबर पर फोन किया, लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. पुलिस वालों को पता था कि सुनील रोजाना अपनी पलसर बाइक से आता था. वह बैंक की चेस्ट के पीछे अपनी बाइक खड़ी करता था. उन्होंने उस जगह जा कर बाइक देखी, लेकिन वहां उस की बाइक भी नहीं थी.

अब पुलिस वालों की चिंता बढ़ गई. चिंता का कारण वहां रखी करोड़ों रुपए की रकम थी. उन्होंने बैंक के अफसरों को फोन कर सारी बात बताई. कुछ देर में बैंक के अफसर आ गए. उन्होंने चेस्ट में रखे रुपयों से भरे लोहे के बक्सों की जांचपड़ताल की. पहली नजर में नोटों के इन बक्सों में कोई हेराफेरी नजर नहीं आई. नोटों से भरे सभी बक्सों पर ताले लगे हुए थे. सरसरी तौर पर कोई गड़बड़ी नजर नहीं आ रही थी. दूसरी तरफ सुनील का पता नहीं चल रहा था. उस का मोबाइल बंद होना और बाइक बैंक के बाहर नहीं होने से संदेह पैदा हो रहा था कि कोई न कोई बात जरूर है. वरना सुनील ऐसे बिना बताए कैसे चला गया?

काफी सोचविचार के बाद अफसरों के कहने पर नोटों से भरे बक्सों को हटा कर जांच की गई. एक बक्से को हटा कर चारों तरफ से देखा तो उस का ताला लगा हुआ था, लेकिन वह बक्सा पीछे से कटा हुआ था. बक्से को काट कर नोट निकाले गए थे. सवाल यह था कि कितने नोट निकाले गए हैं? क्या ये नोट सुनील ने ही निकाले हैं? इस की जांचपड़ताल जरूरी थी. इसलिए बैंक अफसरों ने सेक्टर-34 थाना पुलिस को इस की सूचना दी.

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पुलिस ने आ कर जांचपड़ताल शुरू की. यह तो साफ हो गया कि बैंक की चेस्ट से बक्से को पीछे से काट कर नोट निकाले गए हैं. कितनी रकम निकाली गई है, इस सवाल पर बैंक वालों ने पुलिस के अफसरों से कहा कि सारे नोटों की गिनती करने के बाद ही इस का पता लग सकेगा.

पुलिस ने बैंक वालों से सुनील के बारे में पूछताछ की. बैंक के रिकौर्ड में सुनील के 2 पते लिखे थे. एक पता पंचकूला में मोरनी के गांव बाबड़वाली भोज कुदाना का था और दूसरा पता मोहाली के पास सोहाना गांव का. वह 3 साल से बैंक में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहा था. पुलिस अफसरों ने 2 टीमें सुनील के दोनों पतों पर भेज दीं.

सुरक्षा के लिहाज से बैंक की चेस्ट में भीतरबाहर कैमरे लगे हुए थे. पुलिस ने कैमरों की फुटेज देखी. इन फुटेज में सामने आया कि सुनील रात को बारबार बैंक के अंदर और बाहर आजा रहा था.

उस की चालढाल और हाथों के ऐक्शन से अंदाजा लग गया कि वह बैंक के अंदर से अपने कपड़ों के नीचे कोई चीज छिपा कर बारबार बाहर आ रहा था. कपड़ों के नीचे छिपे शायद नोटों के बंडल होंगे. बाहर वह इन नोटों के बंडलों को कहां रख रहा था, इस का पता नहीं चला. यह भी पता नहीं चला कि बैंक के बाहर उस का कोई साथी खड़ा था या नहीं. एक फुटेज में वह हाथ में एक बैग ले कर बाहर निकलता नजर आया.

सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद यह बात साफ हो गई थी कि सुनील ने योजनाबद्ध तरीके से बैंक की चेस्ट से रुपए चोरी किए थे. फुटेज में 10-11 अप्रैल की दरम्यानी रात 3 बजे के बाद वह नजर नहीं आया. इस का मतलब था कि रात करीब 3 बजे वह बैंक से रकम चोरी कर फरार हो गया था.

बैंक वालों ने 5-6 घंटे तक सारी रकम की गिनती करने के बाद पुलिस अफसरों को बताया कि 4 करोड़ 4 लाख रुपए गायब हैं. यह सारी रकम 2-2 हजार रुपए के नोटों के रूप में थी. 4 पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में बैंक से 4 करोड़ रुपए से ज्यादा चोरी होने का पता चलने पर पुलिस भी हैरान रह गई.

शुरुआती जांच में यह अनुमान लगाया गया कि सुनील ने अपने किसी साथी के सहयोग से यह वारदात की है. अनुमान यह भी लगाया गया कि इतनी बड़ी रकम ले कर वह किसी चारपहिया वाहन से भागा होगा. फिर सवाल आया कि सुनील अगर चारपहिया वाहन से भागा था तो उस की बाइक बैंक के पीछे मिलनी चाहिए थी, लेकिन उस की बाइक वहां नहीं मिली थी. इस से यह बात स्पष्ट हो गई कि बाइक या तो वह खुद या उस का कोई साथी चला कर ले गया.

पुलिस ने बैंक की चेस्ट में उस रात ड्यूटी पर मौजूद पंजाब पुलिस के चारों जवानों के बयान लिए. बैंक वालों के भी बयान लिए. बैंक वालों से सुनील के यारदोस्तों और उस के आनेजाने के ठिकानों के बारे में पूछताछ की गई. तमाम कवायद के बाद भी पुलिस को ऐसी कोई बात पता नहीं चली, जिस से उस के बारे में कोई सुराग मिलता.

सुनील की बाइक का पता लगाने के लिए पुलिस ने खोजी कुत्ते की मदद ली. पुलिस का स्निफर डौग उस के बाइक खड़ी करने की जगह पर चक्कर लगाने के बाद कुछ दूर गया. इस के बाद लौट आया. इस से पुलिस को कुछ भी पता नहीं लग सका. पुलिस ने सुनील की बाइक का पता लगाने के लिए बसस्टैंड के आसपास और दूसरी जगहों की पार्किंग पर तलाश कराई, लेकिन पता नहीं चला. उस के मोबाइल की आखिरी लोकेशन भी बैंक की आई.

सुनील के गांव भेजी गई पुलिस की टीमें शाम को चंडीगढ़ लौट आईं. मोरनी के पास स्थित गांव बाबड़वाली भोज कुदाना में पता चला कि सुनील को गंदी आदतों के कारण उस के मांबाप ने कई साल पहले ही घर से बेदखल कर दिया था. इस के बाद सुनील ने भी गांव आनाजाना कम कर दिया था.

पिता राममूर्ति ने पुलिस को बताया कि सुनील 2011-12 में पढ़ने के लिए कालेज जाता था. उसी दौरान वह एक लड़की को भगा ले गया था और बाद में उस से शादी कर ली थी. सुनील की इस हरकत के बाद ही मांबाप ने उसे घर से निकाल दिया था. बाद में पता चला कि सुनील ने पत्नी को तलाक दे दिया था. बैंक में चोरी की वारदात से करीब 3 महीने पहले वह किसी काम से गांव जरूर आया था.

पुलिस जांचपड़ताल में जुट गई. सुनील के दोस्तों और जानपहचान वालों की सूची बनाई गई. उन से पूछताछ की गई. पता चला कि वह मोहाली में एक दोस्त के साथ पेइंगगेस्ट के तौर पर पीजी में रहता था. पीजी पर जांच में सामने आया कि वह रात को बैंक में ड्यूटी करने के बाद कई बार सुबह पीजी पर नहीं आता था. वारदात के बाद भी वह कमरे पर नहीं आया था.

सुनील का सुराग हासिल करने के लिए पुलिस ने वारदात वाली रात बैंक के आसपास चालू रहे मोबाइल नंबरों का डेटा जुटाया. इन नंबरों की जांच की गई, लेकिन इन में से किसी भी नंबर से सुनील के मोबाइल पर बात नहीं हुई थी.

इस से पहले पुलिस यह मान रही थी कि वारदात में अगर सुनील के साथ दूसरे लोग भी शामिल हैं तो उन की मोबाइल पर आपस में कोई न कोई बात जरूर हुई होगी. इसी का पता लगाने के लिए बैंक के आसपास के मोबाइल टावरों से उस रात जुड़े रहे मोबाइल नंबरों की जांच की गई थी, लेकिन पुलिस का यह तीर भी खाली निकल गया.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज से ही क्लू हासिल करने के मकसद से कई बार फुटेज देखी, लेकिन इस से भी ऐसी कोई बात सामने नहीं आई, जिस से सुनील का पता लगता या जांच का नया सिरा मिलता. पुलिस सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर जांच में जुटी रही.

अधिकारी यह मान रहे थे कि सुनील ने इतनी बड़ी वारदात करने के लिए पूरी योजना जरूर बनाई होगी. ऐसा नहीं हो सकता कि अचानक ही उस रात उस ने चोरी की हो. इस नजरिए से पुलिस को यह संदेह भी हुआ कि अगर उस ने योजनाबद्ध तरीके से इतनी बड़ी वारदात की है, तो वह भारत से बाहर भी जा सकता है. इस शक की बुनियाद पर पुलिस ने सुनील का लुकआउट नोटिस जारी करवा कर एयरपोर्ट और बंदरगाहों को सतर्क कर दिया.

इस के साथ ही पुलिस इस बात की जांचपड़ताल में भी जुट गई कि क्या सुनील ने कोई पासपोर्ट बनवाया है या उस के पास पहले से पासपोर्ट तो नहीं है. 2 दिन तक जांच में प्रारंभिक तौर पर यही पता चला कि सुनील के नाम का कोई पासपोर्ट नहीं है.

जांचपड़ताल में जुटी पुलिस को 14 अप्रैल को पता चला कि सुनील को 2-3 दिन के दौरान पंचकूला के पास रायपुररानी में देखा गया है. पुलिस ने रायपुररानी पहुंच कर सूचनाएं जुटाईं. इस के बाद उसी दिन चंडीगढ़ पुलिस की क्राइम ब्रांच ने चंडीगढ़ आते समय मनीमाजरा शास्त्रीनगर ब्रिज के पास सुनील को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली.

बाद में पुलिस ने उस की निशानदेही पर 4 करोड़ 3 लाख 14 हजार रुपए बरामद कर लिए. पुलिस के लिए यह बड़ी सफलता थी. चोरी हुए 4 करोड़ 4 लाख रुपए में केवल 86 हजार रुपए ही कम थे. पुलिस ने सुनील से पूछताछ की. पूछताछ में बैंक से इतनी बड़ी चोरी करने और उस के पकड़े जाने की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

मोरनी इलाके के गांव बाबड़वाली भोज कुदाना का रहने वाला 32 साल का सुनील एक्सिस बैंक में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता था. इस नौकरी से उस के शौक पूरे नहीं होते थे. घर वालों से उस के ज्यादा अच्छे संबंध नहीं थे. पत्नी से भी तलाक हो चुका था. वह शराब पीता था और महिलाओं से दोस्ती रखने के साथ दूसरे शौक भी करता था. उस के पास दूसरा कोई कामधंधा था नहीं, इसलिए पैसों के लिए हमेशा उस का हाथ तंग ही रहता था.

उसे पता था कि एक्सिस बैंक की जिस चेस्ट में वह नौकरी करता है, वहां हर समय करोड़ों रुपए बक्सों में भरे रहते हैं. वह सोचता था कि इन बक्सों से 20-30 लाख रुपए निकाल ले, तो उस की लाइफ बदल जाएगी. लेकिन बक्सों से नोट निकालना कोई आसान काम नहीं था. बैंक की चेस्ट में कड़ी सुरक्षा में नोटों के बक्से रहते थे. बक्सों पर ताले लगे होते थे. हर समय पुलिस का पहरा रहता था. चारों तरफ कैमरे लगे थे. वह यही सोचता रहता कि बक्सों से रुपए कैसे निकाले जाएं?

सुरक्षा के इतने तामझाम देख कर वह अपना मन मसोस कर रह जाता था. उसे लगता था कि सारे सपने अधूरे ही रह जाएंगे. तरहतरह की बातें सोच कर भले ही वह डर जाता था, लेकिन उस ने उम्मीदें नहीं छोड़ी थीं. वह मौके की तलाश में लगा रहता था. वह रात को कई बार शराब पी कर ड्यूटी देता था. 10 अप्रैल की रात भी वह शराब पी कर बैंक में ड्यूटी करने पहुंचा. रोजाना की तरह पंजाब पुलिस के जवान भी ड्यूटी पर आ गए. इन जवानों की ड्यूटी चेस्ट के बाहर रहती थी जबकि सुनील की ड्यूटी चेस्ट के अंदर तक रहती थी.

सुनील ने उस रात बैंक की चेस्ट में आनेजाने के दौरान देखा कि एक बक्सा पीछे से कुछ टूटा हुआ था. उस में से नोटों के पैकेट दिख रहे थे. यह देख कर सुनील को अपना सपना साकार होता नजर आया. उस ने तैनात पुलिसकर्मियों की नजर बचा कर उस बक्से का टूटा हुआ हिस्सा इतना तोड़ दिया कि उस में से नोटों के पैकेट आसानी से निकल सकें.

इस के बाद वह 2-3 बार बाहर तक आया और पुलिस वालों पर नजर डाली. उसे यह भरोसा हो गया कि ये पुलिस वाले उस पर किसी तरह का शक नहीं करेंगे. पूरी तरह यकीन हो जाने के बाद सुनील ने बक्से से नोटों के पैकेट निकाले और उन्हें अपने कपड़ों में छिपा कर बाहर आ गया. बाहर आ कर उस ने अपनी बाइक के पास वह नोटों के बंडल रख दिए.

करीब 20-30 मिनट के अंतराल में वह 5-6 चक्कर लगा कर 10-12 नोटों के बंडल बाहर ले आया. इस के बाद वह अपने पास रखे बैग में नोटों के बंडल रख कर बाहर ले आया. एक बंडल में 2-2 हजार के नोटों की 10 गड्डियां थीं. मतलब एक बंडल में 20 लाख रुपए थे. बैग में रख कर और कपड़ों में छिपा कर वह नोटों के 20 बंडल और 2 गड्डियां बाहर ला चुका था. ये सारे रुपए उस ने चेस्ट के बाहर छिपा दिए थे. तब तक रात के 3 बज चुके थे. अब वह जल्द से जल्द वहां से भाग जाना चाहता था.

उस ने मौका देखा. चेस्ट के बाहर पंजाब पुलिस के जवान सुस्ताते हुए बैठे थे. वह उन्हें बिना कुछ बताए चेस्ट के पीछे गया और छिपाए नोटों के बंडल बैग में रख कर अपनी बाइक ले कर चल दिया. कुछ दूर चलने के बाद उसने अपना मोबाइल तोड़ कर फेंक दिया ताकि पुलिस उस तक नहीं पहुंच सके.

बाइक से वह हल्लोमाजरा गया. वहां जंगल में एक गड्ढा खोद कर उस ने एक प्लास्टिक की थैली में रख कर 4 करोड़ रुपए दबा दिए. बाकी के 4 लाख रुपए ले कर वह बाइक से पंचकूला के पास रायपुररानी पहुंचा. वहां एक होटल में जा कर रुक गया.

होटल के कमरे में नरम बिस्तरों पर भी उसे नींद नहीं आई. वह बेचैनी से करवटें बदलता रहा. उसे 2 चिंताएं सता रही थीं. पहली अपने पकड़े जाने की और दूसरी जंगल में छिपाए 4 करोड़ रुपए की.

बेचैनी में वह होटल से निकल कर रायपुररानी के बसस्टैंड पर आ गया. उस ने पहले अपनी मनपसंद का नाश्ता किया. फिर 24 हजार रुपए का नया मोबाइल फोन खरीदा. उसे सब से ज्यादा चिंता 4 करोड़ रुपए की थी. इसलिए वह बाइक से वापस हल्लोमाजरा गया. वहां जंगल में जा कर उस ने वह जगह देखी, जहां रुपए छिपाए थे. रुपए सुरक्षित थे. वह बाइक से वापस रायपुररानी आ गया. बाजार में घूमफिर कर उस ने नए कपड़े खरीदे और नशा किया.

सुनील अपनी पत्नी से तलाक ले चुका था. वह महिलाओं से दोस्ती रखता था और शादी की एक औनलाइन साइट पर ऐक्टिव रहता था. वह लगातार तलाकशुदा महिलाओं से बातचीत करता रहता था.

जांचपड़ताल के दौरान पुलिस को जब इन बातों का पता चला तो पुलिस ने उस के सोशल मीडिया अकाउंट को खंगाला. सोशल मीडिया अकाउंट से ही पुलिस को उस की लोकेशन का सुराग मिला और पता चला कि वह रायपुररानी में है.

पुलिस ने उसे 14 अप्रैल, 2021 को गिरफ्तार कर उस के पास से 3 लाख 14 हजार रुपए बरामद किए. इस के बाद उस की निशानदेही पर हल्लोमाजरा के जंगल में गड्ढा खोद कर छिपाए गए 4 करोड़ रुपए बरामद कर लिए. पुलिस ने उसे अदालत से एक दिन के रिमांड पर लेने के बाद 16 अप्रैल को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया.

पूछताछ में सामने आया कि सुनील ने अकेले ही चोरी की वारदात की. पहले इस तरह के बड़े अपराध नहीं करने के कारण वारदात के बाद वह काफी डर गया. डर की वजह से वह न तो सो सका और न ही कहीं भाग सका. वह 4 करोड़ रुपयों की सुरक्षा की चिंता में चंडीगढ़, मोहाली और पंचकूला के आसपास ही घूमता रहा.

प्रोफेशनल अपराधी नहीं होने के कारण वह न तो चोरी के रुपयों को ठिकाने लगा पाया और न ही अपने बचाव के बारे में सोच सका. दरअसल, चोरी की वारदात में उसे अपनी उम्मीद से बहुत ज्यादा एक साथ 4 करोड़ रुपए मिलने पर वह इतना बेचैन हो गया कि अपने शौक भी पूरे नहीं कर सका.

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22 जनवरी, 2021 की बात है. 12 साल की मानसी पास की दुकान से चिप्स लेने गई थी. जब वह काफी देर बाद भी घर नहीं लौटी तो घर वालों को उस की चिंता हुई. घर वाले उस दुकानदार के पास पहुंचे, जिस के पास वह अकसर खानेपीने का सामान लाती थी. उन्होंने उस दुकानदार से मानसी के बारे में पूछा तो दुकानदार ने  बताया कि मानसी तो काफी देर  पहले ही चिप्स का पैकेट ले कर जा चुकी है.

जब वह चिप्स ले कर जा चुकी है तो घर क्यों नहीं पहुंची, यह बात घर वालों की समझ में नहीं आ रही थी. उन्होंने आसपास के बच्चों से उस के बारे में पूछा, लेकिन उन से भी मानसी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

घर वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मानसी गई तो गई कहां. उन्होंने उसे इधरउधर तमाम संभावित जगहों पर ढूंढा लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. तब उन्होंने इस की सूचना पश्चिमी दिल्ली के थाना राजौरी गार्डन में दे दी. चूंकि मामला एक नाबालिग लड़की के लापता होने का था, इसलिए पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लिया. पुलिस ने मानसी के पिता की तरफ से गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली.

डीसीपी (पश्चिमी दिल्ली) उर्विजा गोयल को जब 12 वर्षीय मानसी के गायब होने की जानकारी मिली तब उन्होंने थाना पुलिस को इस मामले में तीव्र काररवाई करने के आदेश दिए. डीसीपी का आदेश पाते ही थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच के लिए एएसआई विनती प्रसाद के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी.

एएसआई विनती प्रसाद ने सब से पहले लापता बच्ची के घर वालों से उस के बारे में विस्तार से जानकारी ली. इतना ही नहीं, उन्होंने घर वालों से यह भी जानना चाहा कि उन की किसी से कोई रंजिश तो नहीं है. घर वालों ने उन से साफ कह दिया कि उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं है. इस के बाद पुलिस अपने स्तर से मानसी को तलाशने लगी.

जिस जगह से मानसी गायब हुई थी, पुलिस ने उस क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस के अलावा स्थानीय लोगों से भी बच्ची के बारे में जानकारी हासिल की. पुलिस ने सोशल मीडिया पर भी निगरानी कर दी, लेकिन कहीं से भी मानसी के बारे में कोई सुराग नहीं मिला.

पुलिस टीम को जांच करतेकरते करीब 2 महीने बीत चुके थे. जब बच्ची कहीं नहीं मिली तो पुलिस ने ह्यूमन ट्रैफिकिंग के एंगल को ध्यान में रखते हुए केस की जांच शुरू कर दी. यानी पुलिस को यह शक होने लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बच्ची जिस्मफरोशी गैंग के चंगुल में फंस गई हो.

इस बिंदु पर जांच करते करते पुलिस टीम ने कई जगहों पर दबिशें दीं, लेकिन लापता बच्ची का सुराग नहीं मिला.

करीब 2 महीने बाद पुलिस को सूचना मिली कि मानसी का अपहरण करने के बाद उसे दिल्ली के मजनूं का टीला इलाके में रखा गया है और वहीं पर उस से जिस्मफरोशी का धंधा कराया जा रहा है. यह सूचना रोंगटे खड़े कर देने वाली थी. क्योंकि मानसी की उम्र केवल 12 साल थी और इस उम्र में उस बच्ची के साथ जिस तरह का कार्य कराने की जानकारी मिली, वह मानवता को शर्मसार करने वाली ही थी.

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जांच अधिकारी विनती प्रसाद ने यह खबर अपने उच्चाधिकारियों को दी फिर उन्हीं के दिशानिर्देश पर पुलिस टीम ने 17 मार्च, 2021 को मजनूं का टीला इलाके में एक घर पर दबिश दी. मुखबिर की सूचना सही निकली. मानसी वहीं पर मिल गई.

पुलिस ने मानसी को सब से पहले अपने कब्जे में लिया. इस के बाद पुलिस ने वहां 2 महिलाओं सहित 4 लोगों को गिरफ्तार किया.

पुलिस ने उन सभी से पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार किया कि वे बड़े स्तर पर एस्कौर्ट सर्विस मुहैया कराते थे और उन का धंधा ज्यादातर वाट्सऐप ग्रुप और इंटरनेट के माध्यम से चलता है. उन के पास से पुलिस ने 5 मोबाइल फोन बरामद किए. फोनों की जांच की गई तो तमाम वाट्सऐप ग्रुप में ऐसी लड़कियों के अनेक फोटो मिले, जिन से वे जिस्मफरोशी कराते थे.

पुलिस ने गिरफ्तार किए हुए उन चारों लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि उन में से संजय राजपूत और कनिका राय मजनूं का टीला के रहने वाले थे जबकि अंशु शर्मा  मुरादाबाद का और सपना गोयल मुजफ्फरनगर की.

ये सभी औनलाइन सैक्स रैकेट चलाते थे. जांच में पता चला कि इन लोगों के काम करने का तरीका एकदम अलग था. यह गिरोह सोशल साइट पर ज्यादा सक्रिय था. गैंग के लोग 150 से ज्यादा वाट्सऐप ग्रुप में सक्रिय थे. एस्कौर्ट सर्विस मुहैया कराने वाली लड़की के फोटो ये वाट्सऐप ग्रुप में शेयर करते थे. इस के बाद ग्रुप से जो कस्टमर इन के संपर्क में आता था, उस से यह पर्सनल चैटिंग करने के बाद पैसों की डील फाइनल करते थे. फिर औनलाइन ही पेमेंट अपने खाते में ट्रांसफर कराने के बाद कस्टमर के बताए गए स्थान पर ये लड़की को सप्लाई करते थे.

इस तरह यह गैंग देश के अलगअलग बड़े शहरों में लड़कियों की सप्लाई करते था. इतना ही नहीं, फाइव स्टार होटलों में भी इन के पास से लड़कियां सप्लाई की जाती थीं.

आरोपियों ने बताया कि उन के गैंग के सदस्य अलगअलग जगहों से लड़कियां उन के पास लाते थे. मानसी का भी गैंग के 2 लोगों ने अपहरण उस समय किया था, जब वह दुकान पर गई थी. उस का अपहरण करने के बाद वह उसे अपने घर पर ले गए थे.

उन्होंने मानसी से कहा था कि आज उन के यहां पर जन्मदिन है इसलिए वह बच्चों को इकट्ठा कर के केक काटेंगे. उन्होंने मानसी को केक खाने को दिया. केक खाते ही मानसी को नशा हो गया. इस के बाद दोनों मानसी को मजनूं का टीला ले गए, वहां पर संजय राजपूत, अंशु शर्मा, सपना गोयल और कनिका राय मिली. 12 साल की बच्ची को देख कर ये चारों खुश हो गए कि अब इस से मोटी कमाई की जा सकती है. क्योंकि वह तो उसे सोने का अंडा देने वाली मुरगी समझ रहे थे.

जब मानसी पर हल्का नशा सवार था, तभी उस के साथ रेप किया गया. होश आने पर मानसी दर्द से कराहती रही. इस के बाद भी इन लोगों को उस पर दया नहीं आई. उन्होंने उसी रात उसे किसी दूसरे ग्राहक के सामने पेश किया.

इस तरह वह मानसी का शारीरिक शोषण करते रहे. जब वह विरोध करती तो ये लोग उसे प्रताडि़त करते थे. इस तरह मानसी इन लोगों के चंगुल में बुरी तरह फंस चुकी थी. वहां से निकलने का उस के पास कोई उपाय नहीं था.

आरोपियों के 2 अन्य साथी फरार हो चुके थे. पुलिस ने उन की तलाश में अनेक स्थानों पर दबिश दी, लेकिन उन का पता नहीं चला. आरोपी 35 वर्षीय संजय राजपूत, 21 वर्षीय अंशु शर्मा, 24 साल की सपना गोयल और 28 साल की कनिका राय से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

अभियुक्तों के पास से बरामद की गई 12 वर्षीय मानसी को पुलिस ने उपचार के लिए अस्पताल में भरती करा दिया. मानसी ने अपने साथ घटी सारी घटना पुलिस को बता दी.

आरोपियों को जेल भेजने के बाद पुलिस गंभीरता से इस बात की जांच करने में जुट गई. इस गैंग के तार देश में किनकिन लोगों से जुड़े थे और इन्होंने अब तक कितनी लड़कियों का अपहरण किया था.

(कथा में मानसी परिवर्तित नाम है)

मजबूत इरादों वाली श्रेष्ठा सिंह

यूपी के बुलंदशहर में आयरन लेडी के नाम से मशहूर श्रेष्ठा सिंह का लक्ष्य एकदम स्पष्ट था और उसे पाने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत भी की थी. जिस की चमक उन के व्यक्तित्व में बखूबी झलकती थी. इसीलिए प्रशिक्षण के बाद जब उन की पहली पोस्टिग स्याना में बतौर सीओ हुई तो उन का कानून का पालन करने का लक्ष्य इरादों की मजबूती बन गया.

23 जून, 2017 को स्याना में चेकिंग के दौरान भाजपा, नेता प्रमोद लोधी को पुलिस ने बिना हेलमेट और बिना कागजात की बाइक चलाते हुए रोक लिया. जब चालान करने की बात आई तो नेता जी श्रेष्ठा सिंह से उलझ बैठे.

प्रमोद लोधी जिला पंचायत सदस्या प्रवेश के पति थे और स्वयं भी नेता थे. लेकिन श्रेष्ठा सिंह ने उन की किसी भी धमकी की परवाह नहीं की. उन्होंने सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई जिस के बाद प्रमोद लोधी को गिरफ्तार कर लिया गया.

उन्हें कोर्ट में पेशी के लिए ले जाया गया तो वहां बड़ी संख्या में भाजपा समर्थक पहुंच कर नारेबाजी करने लगे. तब श्रेष्ठा सिंह ने हंगामा कर रहे नेताओं और समर्थकों से कहा कि वे लोग मुख्यमंत्री जी के पास जाएं और उन से लिखवा कर लाएं कि पुलिस को चेकिंग का कोई अधिकार नहीं है. वो गाडि़यों की चेकिंग न करें.

इस मामले के 8 दिन बाद ही श्रेष्ठा ठाकुर का तबादला स्याना से बहराइच (नेपाल बौर्डर से सटे) कर दिया गया था. जिस की जानकारी उन्होंने अपने एएस ठाकुर नाम के फेसबुक अकाउंट पर देते हुए लिखा,‘मैं खुश हूं. मैं इसे अपने अच्छे कामों के पुरस्कार के रूप से स्वीकार कर रही हूं.’

आगे की लाइन में उन्होंने अपना लक्ष्य भी स्पष्ट करते हुए लिखा, ‘जहां भी जाएगा, रोशनी लुटाएगा. किसी चराग का अपना मकां नहीं होता.’

कानपुर में पलीबढ़ी श्रेष्ठा ने कानून की अहमियत शिक्षा प्राप्ति के दौरान ही समझ ली थी. जब उन के साथ 2 बार छेड़छाड़ की घटना हुई थी. पुलिस ने मदद के नाम पर औपचारिकता भर निभा दी थी.

तभी श्रेष्ठा ठाकुर ने अपना लक्ष्य तय कर लिया था, एक पुलिस अधिकारी बनने का और अधिकारी बनने के बाद उन्होंने जता दिया कि कानून की धाराएं आम से ले कर खास व्यक्ति तक के लिए एक जैसी हैं. जो उन में भेदभाव करता है, कानून का वह रक्षक अपनी वर्दी के साथ इंसाफ नहीं करता.