मारवाड़ के लुटेरों पर पुलिस का दांव – भाग 3

टी.वी. पेरियापांडियन दीवार फांदने के बजाय जब लोहे के गेट पर चढ़ कर कूदने का प्रयास कर रहे थे, तब गेट के बाहर खड़े इंसपेक्टर मुनिशेखर अपनी पिस्टल को अनलौक कर रहे थे कि अचानक एक्सीडेंटल गोली चल गई, जो टी.वी. पेरियापांडियन को लगी. वह गेट से गिर गए और उन की मौत हो गई. इसी बीच मौका पा कर नाथूराम फरार हो गया था.

दरअसल, चेन्नै पुलिस को अनुमान नहीं था कि वहां 9-10 लोग होंगे. उस का मानना था कि नाथूराम 1-2 लोगों के साथ छिपा होगा. चेन्नै के थाना मदुरहोल थाने के इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन दबंग और बहादुर पुलिस अफसर थे.  यह दुर्भाग्य ही था कि उन की मौत अपने ही साथी की गोली से हो गई.

पाली के एसपी दीपक भार्गव के अनुसार, चेन्नै पुलिस के इंसपेक्टर मुनिशेखर को चार्जशीट में भादंवि की धारा 304ए का आरोपी बनाया जाएगा. तथ्यात्मक जांच रिपोर्ट चेन्नै पुलिस को भेजी जाएगी. चेन्नै पुलिस इंसपेक्टर मुनिशेखर पर विभागीय काररवाई करेगी.

17 दिसंबर को पुलिस ने चेन्नै में हुई ज्वैलरी लूट की वारदात के मुख्य आरोपी नाथूराम जाट की पत्नी मंजू देवी को गिरफ्तार कर लिया था. वह जोधपुर के पीपाड़ शहर के पास मालावास गांव में अपने धर्मभाई के घर छिपी हुई थी. मंजू को चेन्नै से आई पुलिस टीम पर हमले के आरोप में पकड़ा गया था.

कथा लिखे जाने तक नाथूराम और अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस लगातार छापे मार रही थी. नाथूराम के खिलाफ पाली के थाना जैतारण में मारपीट के 4 और जोधपुर के थाना बिलाड़ा में एक मुकदमा पहले से दर्ज है. वह कई सालों से अपने गांव में नहीं रहा था. वह चेन्नै बेंगलुरु आदि शहरों में रहता था.

नाथूराम और दीपाराम के पकड़े जाने के बाद चेन्नै में महालक्ष्मी ज्वैलर्स के शोरूम में हुई सवा करोड़ रुपए के गहनों की लूट का मामला भले ही सुलझ जाए, लेकिन चेन्नै पुलिस के लिए माल की बरामदगी चुनौती रहेगी. जोधपुर में गिरफ्तार चोरी के आरोपी दिनेश जाट को चेन्नै पुलिस प्रोडक्शन वारंट पर चेन्नै ले गई.

इसी तरह 29 अगस्त, 2017 को विशाखापट्टनम में एक ज्वैलर से 3 किलोग्राम सोना लूट लिया गया था. लूट की इस वारदात में ज्वैलर के पास काम करने वाला राकेश प्रजापत शामिल था.

वह राजस्थान के जिला पाली के रोहिट के पास धींगाणा का रहने वाला था. लूट के बाद वह पाली आ गया था. यहां बाड़मेर रोड पर होटल चलाने वाले हनुमान प्रजापत से उस की पुरानी जानपहचान थी. हनुमान के मार्फत राकेश ने लूट का सारा सोना श्रवण सोनी को बेच दिया.

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मामले की जांच करते हुए आंध्र प्रदेश पुलिस जोधपुर पहुंची और 3 नवंबर को झालामंड मीरानगर निवासी रामनिवास जाट को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद जोधपुर जिले के थाना बोरानाड़ा के गांव खारडा भांडू के रहने वाले ज्वैलर श्रवण सोनी को पकड़ा गया.

श्रवण सोनी को ले जाने पर उस के घर वालों ने थाना बोरानाड़ा में उस के अपरहण का मामला दर्ज करा दिया था. बोरानाड़ा पुलिस ने जांचपड़ताल की तो श्रवण सोनी के आंध्र प्रदेश पुलिस की कस्टडी में होने की बात पता चली.

आंध्र प्रदेश पुलिस ने रामनिवास, श्रवण सोनी, हनुमान प्रजापत और राकेश प्रजापत को हिरासत में ले कर सोना बरामद कर लिया था. लेकिन कागजों में न तो उन्हें गिरफ्तार दिखाया गया था और न ही सोने की बरामदगी दिखाई गई थी, जबकि राकेश प्रजापत को बाकायदा हथकड़ी लगा कर रखा गया था. लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं दिखाया गया था.

आंध्र प्रदेश की पुलिस टीम द्वारा रामनिवास को लूट के मामले में आरोपी न बनाने और उस की कार जब्त न करने के लिए डेढ़ लाख रुपए मांगे गए थे, साथ ही मौजमस्ती के लिए लड़कियों का इंतजाम करने को भी कहा गया था. पुलिस टीम का कहना था कि उस ने यह कार विशाखापट्टनम से लूटे गए 3 किलोग्राम सोने को बेच कर खरीदी थी.

आंध्र प्रदेश पुलिस ने 5 नवंबर को रामनिवास और श्रवण सोनी को कुछ शर्तों पर छोड़ दिया था और श्रवण सोनी से 6 नवंबर को 2 लाख रुपए लाने को कहा था. इस से पहले आंध्र प्रदेश पुलिस ने रामनिवास के एटीएम से 20 हजार रुपए निकलवा कर रख लिए थे.

छूटते ही रामनिवास सीधे भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के कार्यालय पहुंचा और आंध्र प्रदेश पुलिस द्वारा रिश्वत मांगने की शिकायत कर दी. एसीबी ने 80 हजार रुपए दे कर रामनिवास को आंध्र प्रदेश पुलिस के पास भेज कर शिकायत की पुष्टि की. इस के बाद 6 नवंबर को विशाखापट्टनम, आंध्र प्रदेश से आई 4 लोगों की पुलिस टीम को 80 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों गिरफ्तार कर लिया गया.

इन में विशाखापट्टनम जिले की क्राइम ब्रांच के सबडिवीजन नौर्थ के इसंपेक्टर आर.वी.आर.के. चौधरी, विशाखापट्टनम के थाना परवाड़ा के एसआई एस.के. शरीफ, थाना एम.आर. पेटा के एसआई गोपाल राव और थाना वनटाउन के कांस्टेबल एस. हरिप्रसाद शामिल थे. ये चारों जोधपुर में बाड़मेर रोड पर बोरानाड़ा स्थित एक होटल में रुके हुए थे.

गिरफ्तारी के अगले दिन 7 नवंबर को चारों लोगों को अदालत में पेश किया गया, जहां से अदालत के आदेश पर सभी को जेल भेज दिया गया. पूरी टीम के गिरफ्तार होने की सूचना मिलने पर 3 किलोग्राम सोने की लूट के मामले की जांच के लिए विशाखापट्टनम से दूसरी टीम भेजी गई. यह टीम 7 नवंबर को जोधपुर पहुंची. इस टीम ने सोने की लूट के सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

अतीक अहमद : खूंखार डौन की बेबसी – भाग 3

एक विधायक की हत्या के बाद भी अतीक सत्ताधारी सपा में बने रहा. इस हत्या के बाद बसपा के समर्थकों ने इलाहाबाद शहर में जम कर हंगामा किया और खूब तोड़फोड़ की.

2005 में इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर फिर उपचुनाव हुआ, जिस में राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को बसपा की ओर से टिकट दिया गया. इस बार भी पूजा के सामने अतीक का भाई अशरफ ही था. उस समय तक पूजा के हाथ की मेहंदी भी नहीं उतरी थी.

कहा जाता है कि चुनाव प्रचार के दौरान पूजा मंच से अपने हाथ दिखा कर रोने लगती थी. लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला और वह चुनाव हार गई.

अतीक का टूटा किला

इस बार अतीक का भाई अशरफ चुनाव जीत गया. ऐसा शायद अतीक के खौफ के कारण हुआ था. इस तरह एक बार फिर अतीक की धाक जम गई. वह खुद सांसद था ही, भाई भी विधायक हो गया था. उसी समय उस पर सब से ज्यादा आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए.

अतीक अहमद पर 83 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज हो चुके थे. परंतु हैरानी की बात यह थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस अतीक अहमद को गिरफ्तार करने के बारे में सोच भी नहीं रही थी.

2007 के विधानसभा के चुनाव में एक बार फिर इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर बसपा ने राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को चुनाव में उतारा. इस बार भी सामने अतीक का भाई अशरफ ही उम्मीदवार था. इस बार पहली दफा इलाहाबाद पश्चिमी  का अतीक अहमद का किला टूटा. पूजा पाल चुनाव जीत गई.

उत्तर प्रदेश में मायावती की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी तो मायावती ने अतीक अहमद को पहला टारगेट बनाया. मायावती के जहन में गेस्टहाउस कांड के जख्म हरे थे. इस मामले में बसपा सरकार के रहते मुलायम सिंह के इशारे पर अतीक ने गेस्टहाउस में ठहरी मायावती को बेइज्जत किया था.

एक के बाद एक कर सारे मामले खुलने लगे और मायावती सरकार ने एक ही दिन में अतीक अहमद पर सौ से अधिक मामले दर्ज करा कर औपरेशन अतीक शुरू कर दिया. अतीक भूमिगत हो गया तो उसे मोस्टवांटेड घोषित कर दिया गया और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया गया.

देश के इतिहास में एक सांसद मोस्टवांटेड घोषित हो गया हो और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम घोषित किया गया हो, यह शायद देश का पहला मामला था. इस से पार्टी की बदनामी होने लगी तो मुलायम सिंह ने उसे पार्टी से बाहर कर दिया.

गिरफ्तारी के डर से अतीक फरार था. उस के घर, औफिस सहित 5 संपत्ति को कोर्ट के आदेश पर कुर्क कर लिया गया.

जिस इलाहाबाद में अतीक की तूती बोलती थी, पूजा पाल ने चुनाव जीतते ही बसपा सरकार में उस की नाक में ऐसा दम किया कि जिस सीट से वह 5 बार विधायक बना था, उस सीट को ही नहीं, उसे इलाहाबाद जिले को ही छोड़ कर भागना पड़ा.

अतीक अहमद समझ गया था कि उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना खतरे से खाली नहीं होगा, इसलिए उस ने दिल्ली पुलिस के सामने योजना के तहत आत्मसमर्पण कर दिया. अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश पुलिस दिल्ली से इलाहाबाद ले आई. अतीक के बुरे दिन शुरू हो चुके थे. पुलिस और विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने अतीक की ड्रीम निर्माण परियोजना अलीना सिटी को अवैध घोषित कर ध्वस्त कर दिया.

औपरेशन अतीक के ही तहत 5 जुलाई, 2007 को राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ धूमनगंज थाने में अपहरण और जबरन बयान दिलाने का मुकदमा दर्ज कराया.

इस के बाद 4 अन्य गवाहों की ओर से भी उस के खिलाफ मामले दर्ज कराए गए. 2 महीने में ही अतीक के खिलाफ इलाहाबाद, कौशांबी और चित्रकूट में कई मुकदमे दर्ज हो गए. पर सपा की सरकार बनते ही उस के दिन बहुरने लगे.

2012 का साल था. अतीक अहमद जेल में था और विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी. उस ने जेल में रहते हुए ही अपना दल की ओर से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की. चुनाव का पर्चा दाखिल करने के बाद अतीक अहमद ने जमानत पर छूटने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. उसे जमानत मिल गई और वह जेल से बाहर आ गया.

बहुजन समाज पार्टी ने एक बार फिर पूजा पाल को अतीक के सामने खड़ा किया. संयोग से इस बार भी अतीक चुनाव हार गया. वह चुनाव भले ही हार गया, पर उस का अपराध का कारखाना बंद नहीं हुआ.

मुलायम सिंह ने एक बार फिर उसे अपनी पार्टी में सहारा दिया. इस बार उसे श्रावस्ती जिले से टिकट दिया गया. इस चुनाव में भी अतीक अहमद हार गया.

2016 में फिर एक बार मुलायम सिंह ने कानपुर कैंट से उसे उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव का फार्म भरने के लिए अतीक 5 सौ गाडि़यों का काफिला ले कर कानपुर पहुंचा. जबकि वह खुद 8 करोड़ की विदेशी कार हमर में सवार था.

पूरे कानपुर में अतीक के इस काफिले ने चक्का जाम कर दिया था. मीडिया में उस के खिलाफ खूब लिखा गया. तब तक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव बन गए थे. उन्होंने अतीक अहमद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

एक बार फिर हुआ गिरफ्तार

फरवरी, 2017 में पुलिस ने उसे इलाहाबाद कालेज में तोड़फोड़ करने के आरोप में गिरफ्तार किया. उस के बाद से वह जेल में ही है. अतीक पर अब तक लगभग 250 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. मायावती के शासनकाल में एक ही दिन में उस पर 100 मुकदमे दर्ज हुए थे. बाद में जिन्हें हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. अधिकतर मामलों में सबूत के अभाव और गवाहों के मुकरने से अतीक बरी हो गया था.

अतीक भले ही आतंक का पर्याय है, वह नेकदिल भी है. उस के पास जो भी मदद के लिए जाता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता.

उस पर 35 मुकदमे अभी भी चल रहे हैं. इन में कुछ अदालत में पैंडिंग हैं तो कुछ की अभी जांच ही पूरी नहीं हुई है. मजे की बात यह है कि अभी तक उसे किसी भी मामले में सजा नहीं हुई है. यह सब देख कर यही लगता है कि अतीक की जिंदगी कभी इस जेल में तो कभी उस जेल में कटती रहेगी. लेकिन विकास दुबे कांड के बाद योगी सरकार अतीक के आर्थिक साग्राज्य को पूरी तरह से ध्वस्त करने में लगी है.

2017 में उत्तर प्रदेश में जब से भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी है, तब से अतीक अहमद पर शिकंजा कसता गया. गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के तमाम डौनों पर काररवाई करने की छूट दे देने से अब सरकार और पुलिस अतीक अहमद के गुंडों और उस की संपत्ति के पीछे पड़ गई है. रोज उस की कोई न कोई संपत्ति तोड़ी जा रही है.

मारवाड़ के लुटेरों पर पुलिस का दांव – भाग 2

पुलिस घबरा गई और हमलावरों का मुकाबला करने के बजाय वहां से भागने लगी. इसी बीच लोहे के गेट पर चढ़ रहे इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन को गोली लग गई, जिस से वह वहीं गिर गए. जबकि उन के साथी भाग गए थे. मौका पा कर हमला करने वाले सभी लोग वहां से भाग निकले. इस हमले में टीम के कुछ अन्य लोग भी घायल हो गए थे.

थोड़ी दूर जा कर जब पुलिस टीम को पता चला कि टी.वी. पेरियापांडियन साथ नहीं हैं तो सभी वापस लौटे. भट्ठे पर जा कर देखा तो टी.वी. पेरियापांडियन घायल पड़े थे.

उन्हें जैतारण के अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. अभी तक स्थानीय पुलिस को इस घटना की कोई जानकारी नहीं थी. स्थानीय पुलिस को जैतारण अस्पताल प्रशासन से इस घटना की जानकारी मिली. इस घटना की जानकारी एसपी दीपक भार्गव को भी मिल गई.

सूचना पा कर सारे पुलिस अधिकारी अस्पताल पहुंचे और चेन्नै पुलिस से घटना के बारे में पूछताछ की. पता चला कि छापा मारने के दौरान नाथूराम ने अपने 8-10 साथियों के साथ उन पर हमला किया था. इस हमले में इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन उन के बीच फंस गए थे. इन्होंने उन की सरकारी पिस्टल छीन ली और उसी से उन्हें गोली मार दी, जिस से उन की मौत हो गई.

पाली के पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो चेन्नै से आई पुलिस ने उन्हें जो कुछ बताया, वह उन के गले नहीं उतरा. फिर भी थाना जैतारण में चेन्नै पुलिस की ओर से नाथूराम जाट, दीपाराम जाट और दिनेश चौधरी व अन्य लोगों के खिलाफ हत्या, जानलेवा हमला करने और सरकारी काम में बाधा डालने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

पाली पुलिस को घटनास्थल पर गोली का एक खोखा मिला था, जो पुलिस की पिस्टल का था. एफएसएल टीम ने भी घटनास्थल पर जा कर जरूरी साक्ष्य जुटाए. पुलिस के लिए जांच का विषय यह था कि गोली किस ने और कितनी दूरी से चलाई. वह गोली एक्सीडेंटल चली थी या डिफेंस में चलाई गई थी. जैतारण पुलिस ने हमलावरों में से कुछ को पकड़ लिया, लेकिन नाथूराम नहीं पकड़ा जा सका था. पुलिस उस की तलाश में सरगर्मी से जुटी थी.

जोधपुर के मथुरादास माथुर अस्पताल में इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन की लाश का पोस्टमार्टम मैडिकल बोर्ड द्वारा कराया गया. इस के बाद 14 दिसंबर को हवाई जहाज द्वारा उन के शव को चेन्नै भेज दिया गया. चेन्नै में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी, उपमुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम, डीजीपी टी.के. राजेंद्रन, पुलिस कमिश्नर ए.के. विश्वनाथन और विपक्ष के नेता एम.के. स्टालिन सहित तमाम राजनेताओं और पुलिस अफसरों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी.

इस मौके पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी ने दिवंगत इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन के घर वालों को 1 करोड़ रुपए की राशि बतौर मुआवजा और घायल पुलिसकर्मियों को एकएक लाख रुपए देने की घोषणा की. इस के बाद टी.वी. पेरियापांडियन के शव को उन के पैतृक गांव जिला तिरुनलवेली के मुवेराथली ले जाया गया, जहां राजकीय सम्मान के साथ उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

14 दिसंबर को चेन्नै पुलिस के जौइंट पुलिस कमिश्नर संतोष कुमार जैतारण पहुंचे और डीएसपी वीरेंद्र सिंह तथा चेन्नै के पुलिस इंसपेक्टर मुनिशेखर से घटना के बारे में जानकारी ली. घटनास्थल का भी निरीक्षण किया गया. इस के बाद एसपी दीपक भार्गव ने भी पाली जा कर घटना के बारे में तथ्यात्मक जानकारी ली और आरोपियों की गिरफ्तारी और लूटी गई ज्वैलरी की बरामदगी के बारे में चर्चा की.

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इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन की मौत की जांच के लिए पाली पुलिस के बुलाने पर जयपुर से पहुंचे बैलेस्टिक एक्सपर्ट ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने चेन्नै पुलिस के दोनों इंसपेक्टरों की पिस्टल, घटनास्थल तथा लाश के फोटोग्राफ और वीडियो फुटेज आदि राज्य विधिविज्ञान प्रयोगशाला जयपुर पर मंगवाए.

गोली की बरामदगी के लिए पाली पुलिस ने मेटल डिटेक्टर से घटनास्थल के आसपास जांच कराई, लेकिन गोली नहीं मिली. जबकि मृतक इंसपेक्टर की लाश में भी गोली नहीं मिली थी.

इस बीच 14 दिसंबर, 2017 को जोधपुर के थाना रातानाड़ा की पुलिस ने चेन्नै के महालक्ष्मी ज्वैलर्स के शोरूम में हुई सवा करोड़ रुपए के गहनों की लूट के मुख्य आरोपी नाथूराम के साथी जोधपुर के बिलाड़ा निवासी दिनेश जाट को गिरफ्तार कर लिया था. दिनेश जाट बिलाड़ा थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए स्टैंडिंग वारंट भी जारी कर रखा था.

15 दिसंबर को जोधपुर रेंज के आईजी हवा सिंह घुमारिया भी जैतारण पहुंचे और घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस बीच पाली पुलिस ने घटनास्थल पर जा कर मृतक इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन की मौत का क्राइम सीन दोहराया.

चेन्नै एवं राजस्थान के पुलिस अधिकारियों और एफएसएल विशेषज्ञों की उपस्थिति में दोहराए गए क्राइम सीन में सामने आया कि जब टी.वी. पेरियापांडियन ने लोहे के गेट पर चढ़ कर भागने की कोशिश की थी, तब पहले गेट से बाहर निकल चुके चेन्नै पुलिस के इंसपेक्टर मुनिशेखर की पिस्टल से एक्सीडेंटल गोली चल गई थी. इसी गोली से पेरियापांडियन की मौत हुई थी.

चेन्नै पुलिस के इंसपेक्टर की मौत का सच सामने आने के बाद थाना जैतारण पुलिस ने 15 दिसंबर को हमलावर तेजाराम जाट, उस की पत्नी विद्या देवी और बेटी सुगना को गिरफ्तार कर लिया.

लेकिन उन्हें हत्या का आरोपी न बना कर भादंवि की धारा 307, 331 व 353 के तहत गिरफ्तार किया गया था. चूना भट्ठे के उस कमरे में तेजाराम का परिवार रहता था.

हमलावर तेजाराम और चेन्नै पुलिस टीम से की गई पूछताछ में पता चला कि 12 दिसंबर की रात चेन्नै पुलिस ने जब चूना भट्ठे पर छापा मारा था, तब दोनों इंसपेक्टरों ने अपनी पिस्टल लोड कर रखी थीं.

पुलिस टीम जैसे ही अंदर हाल के पास पहुंची, पदचाप सुन कर तेजाराम जाग गया. पुलिस वालों को चोर समझ कर वह चिल्लाया तो हाल में सो रही उस की पत्नी, बेटियां व अन्य लोग जाग गए और उन्होंने लाठियों से पुलिस पर हमला कर दिया.

उस समय नाथूराम भी वहां मौजूद था. वह समझ गया कि ये चोर नहीं, चेन्नै पुलिस है, इसलिए वह भागने की युक्ति सोचने लगा. अचानक हुए हमले से घबराई चेन्नै पुलिस भागने लगी. इंसपेक्टर मुनिशेखर और अन्य पुलिस वाले तो दीवार फांद कर बाहर निकल गए.

अतीक अहमद : खूंखार डौन की बेबसी – भाग 2

उस के बाद पुलिस ने उसे छोड़ दिया. लेकिन ऐसे ही नहीं. अतीक भेष बदल कर अपने एक साथी के साथ बुलेट से कचहरी पहुंचा. उस ने एक पुराने मामले की जमानत तुड़वा कर आत्मसमर्पण कर दिया और जेल चला गया. उस के जेल जाते ही पुलिस उस पर टूट पड़ी. उस पर एनएसए लगा दिया. इस से लोगों को लगा कि अतीक बरबाद हो गया है.

एक साल बाद वह जेल से बाहर आ गया. उसे कांग्रेसी सांसद का साथ मिल ही रहा था, जिस की वजह से वह जिंदा बचा था. इस बात से अतीक को पता चल गया था कि उसे अब राजनीति ही बचा सकती है. फिर उस ने किया भी यही.

1989 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होना था. अतीक अहमद ने इलाहाबाद पश्चिमी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भर दिया. सामने उम्मीदवार के रूप में था चांदबाबा. चांदबाबा और अतीक में अब तक कई बार गैंगवार हो चुकी थी.

अपराध जगत में अतीक की तरक्की चांदबाबा को खल रही थी. चांदबाबा के आतंक से छुटकारा पाने के लिए आम लोगोें ने ही नहीं, पुलिस और राजनीतिक पार्टियों ने भी अतीक अहमद का समर्थन किया. परिणामस्वरूप चांदबाबा चुनाव हार गया. इस तरह अतीक अहमद पहली बार विधायक बन गया.

विधायक चुने जाने के कुछ ही महीनों बाद अतीक अहमद ने चांदबाबा की भरे बाजार हत्या करा दी. इस के बाद चांदबाबा के पूरे गैंग का सफाया हो गया. कुछ मारे गए तो कुछ भाग गए. जो बचे वे अतीक के साथ मिल गए.

अब इलाहाबाद पर एकलौते डौन अतीक अहमद का राज हो गया. अतीक अहमद ने अपना एक पूरा गैंग बना लिया. उसे राजनीतिक सपोर्ट भी मिल रहा था. विधायक बनने के बाद तो व्यापारियों का अपहरण, रंगदारी की वसूली, सरकारी ठेके लेना अतीक अहमद का धंधा बन गया.

अतीक अहमद का इलाहाबाद में ऐसा आतंक छा गया था कि इलाहाबाद पश्चिमी सीट से लोग चुनाव में विधायकी का टिकट लेने से खुद ही मना कर देते थे.

राजनीति में आने के बाद ज्यादातर अपराधी धीरेधीरे अपराध करना छोड़ देते हैं, पर अतीक के मामले में इस का उल्टा था. अतीक भले ही नेता बन गया था, लेकिन उस ने अपनी माफिया वाली छवि नहीं बदली.

सफेदपोश बनने के बाद उस के द्वारा किए जाने वाले अपराध और बढ़ गए थे. राजनीति की आड़ में वह अपना आपराधिक साम्राज्य और मजबूत करता रहा. यही वजह है कि उस पर दर्ज होने वाले ज्यादातर आपराधिक मुकदमे विधायक, सांसद रहते हुए ही दर्ज हुए.

वह अपने विरोधियों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ता था. कोई एक अपराध नहीं था उस का. 1999 में चांदबाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी बताए जाने वाले भाजपा नेता अशरफ की हत्या, 2005 में राजू पाल की हत्या उस के खाते में दर्ज हुईं.

जो भी अतीक के खिलाफ सिर उठाता था, वह मारा जाता था. इलाहाबाद के कसारी मसारी, बेली गांव, चकिया, मरियाडीह और धूमनगंज इलाके में उस की अक्सर गैंगवार होती रहती थी.

विधायक बनने के बाद अतीक ने अपराध करना और बढ़ा दिया था. 1991 और 1993 के विधानसभा के चुनाव में भी अतीक अहमद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुना गया.

1996 के विधानसभा के चुनाव में मुलायम सिंह ने अतीक अहमद को अपनी समाजवादी पार्टी से टिकट दिया. इस तरह चौथी बार अतीक अहमद समाजवादी पार्टी से फिर विधायक चुना गया.

बाद में किसी वजह से अतीक अहमद के समाजवादी पार्टी से संबंध बिगड़ गए तो 1999 में अतीक अहमद अपना दल में शामिल हो गया. सोनेलाल पटेल द्वारा बनाई गई पार्टी अपना दल में अतीक अहमद 1999 से 2003 तक इलाहाबाद का पार्टी का जिला अध्यक्ष रहा. 1999 में उस ने अपना दल से चुनाव लड़ा, परंतु हार गया. उस के बाद 2003 में फिर एक बार अपना दल के टिकट से अतीक अहमद पांचवीं बार विधायक बना.

विदेशी गाडि़यों और हथियारों का शौक

जिस सांसद ने अतीक पर हाथ रखा था, वह इलाहाबाद के बड़े कारोबारी थे. कहते हैं कि उस समय शहर में सिर्फ उन्हीं के पास निसान और मर्सिडीज जैसी विदेशी गाडि़यां थीं. लेकिन जल्दी ही अतीक को भी इस का चस्का लग गया. विधायक बनने के कुछ ही दिनों बाद उस ने भी विदेशी गाड़ी खरीद ली. जल्दी ही उस का नाम सांसद से भी बड़ा हो गया.

सांसद को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने विदेशी गाडि़यां रखनी ही छोड़ दीं. गाडि़यों के बाद नंबर था हथियारों का. इस तरह के आदमी को तो वैसे भी हथियारों की जरूरत होती है. उस ने विदेशी हथियार खरीदने शुरू किए. उस ने विदेशी गाडि़यों का तो पूरा काफिला ही खड़ा कर दिया था.  अतीक चकिया तक ही सीमित नहीं रहना चाहता था. इसलिए वह विरोधियों को खत्म कर देता था.

अतीक अहमद का एक रहस्य और भी दिलचस्प है. वह चुनाव के दौरान चंदा किसी को फोन कर के या डराधमका कर नहीं मांगता था. वह शहर के पौश इलाके में बैनर लगवा देता था कि आप का प्रतिनिधि आप से सहयोग की अपेक्षा रखता है. इस के बाद लोग खुद ही अतीक के औफिस में चंदा पहुंचा देते थे.

अगर अतीक को अपने गुर्गों को कोई संदेश देना होता तो वह बाकायदा अखबारों में विज्ञापन निकलवा देता कि क्या करना है और क्या नहीं करना.

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. 2004 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई. मुलायम सिंह को बाहुबली नेताओं की जरूरत थी. मुलायम सिंह के कहने पर अतीक अहमद फिर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गया तो इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट से सपा ने अतीक अहमद को उम्मीदवार बनाया. अतीक अहमद चुनाव जीत गया और सांसद बन गया.

अतीक अहमद के सांसद बन जाने पर इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा की सीट खाली हो गई. इस पर अतीक अहमद ने अपने भाई अशरफ को चुनाव लड़ाया. अशरफ के सामने एक समय अतीक अहमद का ही दाहिना हाथ रहे राजू पाल को बहुजन समाज पार्टी ने उम्मीदवार बनाया. उस समय राजू पाल पर 25 मुकदमे दर्ज थे. इस चुनाव में अतीक का भाई अशरफ 4 हजार वोटों से चुनाव हार गया और राजू पाल चुनाव जीत गया.

राजू पाल की यह जीत अतीक अहमद से हजम नहीं हुई और परिणाम आने के महीने भर बाद यानी नवंबर, 2004 में राजू पाल के औफिस के पास बमबाजी और फायरिंग हुई. दिसंबर में उस की गाड़ी पर फायरिंग हुई. पर इन दोनों हमलों मे वह बच गया.

25 जनवरी, 2005 को राजू पाल की कार पर एक बार फिर हमला हुआ. इस में राजू पाल को कई गोलियां लगीं. हमलावर फरार हो गए. गोलीबारी में घायल राजू पाल के साथी उसे टैंपो से अस्पताल ले जा रहे थे तो हमलावरों को लगा कि राजू पाल अभी जिंदा है तो उस पर दोबारा हमला किया गया. इस बार उस पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं. जब तक राजू जीवनज्योति अस्पताल पहुंचता, उस की मौत हो चुकी थी. उसे 19 गोलियां लगी थीं.

इस हत्या का एक कारुणिक पहलू यह था कि हत्या के 9 दिन पहले ही राजू पाल की शादी हुई थी. उस की पत्नी पूजा पाल ने अतीक, उस के भाई अशरफ, फरहान और आबिद समेत कई लोगों पर नामजद हत्या का मुकदमा दर्ज कराया.

मर्द से औरत बनने का अधूरा ख्वाब

30 अगस्त, 2021 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार होने के कारण पुलिस स्टाफ ने सुबह भोर होने तक सुरक्षा इंतजामों में ड्यूटी दी थी. इसीलिए तरुण मन्ना 31 अगस्त की सुबह 9 बजे जब साउथ ईस्ट दिल्ली के सरिता विहार थाने में अपने भाई अरुण की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने गया तो उसे थानाप्रभारी अनंत गुंजन से मिलने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ा. जब थानाप्रभारी अपने रेस्टरूम से तैयार हो कर औफिस में आए तो तरुण ने उन्हें अपने भाई के गायब होने की जानकारी दी. तब अनंत गुंजन ने तरुण से पूछा, ‘‘क्या हुआ तुम्हारे भाई को क्या घर में किसी से झगड़ा हो गया था.’’

‘‘नहीं सर, कोई झगड़ा नहीं हुआ था कल शाम को 5 बजे वह यह कह कर घर से बाहर गया था कि 10 मिनट में वापस लौट आएगा अपने दोस्त जस्सी से मिलने जा रहा है.

‘‘जब करीब एक घंटा हो गया और वह लौट कर नहीं आया तो हमें चिंता होने लगी. हम ने उस का फोन भी मिलाया लेकिन वह स्विच्ड औफ था. इसी दौरान उस के दोस्त जस्सी का फोन मेरी मां शांति देवी के फोन पर आया और उस ने कहा मीशा से बात करा दो.’’

तरुण मन्ना ने जब यह बताया कि अरुण के दोस्त जस्सी ने उस की मां शांति देवी से मीशा से बात कराने के लिए कहा था तो थानाप्रभारी अनंत गुंजन चौंक पड़े. क्योंकि बात तो अरुण के बारे में हो रही थी, लेकिन अचानक बीच में मीशा का जिक्र कहां से आ गया.

इसलिए उन्होंने तरुण को रोक कर पूछा, ‘‘एक मिनट ये मीशा कौन है? क्या यह तुम्हारे घर की कोई सदस्य है?’’

‘‘नहीं सर, अरुण ने ही अपना नाम बदल कर मीशा रख लिया था, इसलिए अब उसे मीशा कहते हैं.’’

एसएचओ अनंत गुंजन का दिमाग घूम गया. भला कोई लड़का लड़कियों वाला नाम क्यों रखेगा. अचानक पूरे मामले में उन की दिलचस्पी बढ़ गई.

तरुण मन्ना ने अरुण के मीशा बनने की जो कहानी बताई, वह भी दिलचस्प थी. लेकिन इस समय उन के लिए यह जानना जरूरी था कि अरुण उर्फ मीशा आखिर क्यों और कैसे लापता हो गया. तरुण ने बताया कि जस्सी का फोन आने के बाद उस की मां चौंक पड़ीं. क्योंकि मीशा तो उन से यह कह कर गई थी कि वह जस्सी से मिलने जा रही है और जस्सी पूछ रहा था कि मीशा कहां है?

तरुण के मुताबिक उस की मां ने जस्सी को बता दिया मीशा तो उस से मिलने की बात कह कर करीब एक घंटा पहले घर से निकली थी और अभी तक घर नहीं लौटी है.

यह बात सुन कर जस्सी भी हैरान रह गया क्योंकि मीशा तो उस से मिलने आई ही नहीं. फिर उस ने अपने परिवार वालों से झूठ क्यों बोला.

इसी तरह कई घंटे बीत गए, लेकिन मीशा घर नहीं लौटी. जैसेजैसे वक्त गुजरता रहा, घर वालों की चिंता बढ़ती गई. परिवार वालों को यह भी समझ नहीं आ रहा था कि कभी झूठ न बोलने वाला अरुण उर्फ मीशा ने घर से बाहर जाने के लिए जस्सी का नाम क्यों लिया था.

हैरानी वाली बात यह भी थी कि मीशा का फोन भी लगातार बंद आ रहा था. इस वजह से घर वालों को लग रहा था कि कहीं उस के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई.

तरुण मन्ना, उस की मां और पिताजी ने एक के बाद एक शाम से रात तक अरुण उर्फ मीशा के सभी दोस्तों को फोन किए, लेकिन उस का कहीं कोई सुराग नहीं लगा.

पूरी रात उन की आंखों में ही बीत गई. मीशा पूरी रात घर नहीं लौटी. तरुण मन्ना और उस के पिता ने आसपड़ोस के लोगों से भी मीशा के लापता होने का जिक्र किया तो सब ने सलाह दी कि उस की थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी जाए.

इसी सलाह को मान कर तरुण मन्ना अपने एकदो पड़ोसियों को ले कर दक्षिणपूर्वी दिल्ली के सरिता विहार थाने पहुंचा था. सारी बात सुन कर थानाप्रभारी अनंत गुंजन ने तत्काल ड्यूटी अफसर को बुला कर अरुण उर्फ मीशा (26) के लापता होने की सूचना दर्ज करवा दी और उस की जांच का जिम्मा तेजतर्रार एएसआई सत्येंद्र सिंह को सौंप दिया.

उन्होंने तरुण मन्ना को भरोसा दिया कि पुलिस इस मामले में अरुण उर्फ मीशा के दोस्त जस्सी की भी जांच करेगी कि कहीं इस मामले में उस की तो कोई मिलीभगत नहीं है.

जांच का काम हाथ में लेते ही एएसआई सत्येंद्र ने गुमशुदगी के मामलों में की जाने वाली सारी औपचारिकताएं करनी शुरू कर दीं. उन्होंने दिल्ली के सभी थानों और पड़ोसी राज्यों को मीशा का हुलिया और उस की फोटो भेज कर लापता होने की सूचना दे दी. साथ ही उन्होंने गुमशुदगी के लिए बने नैशनल पोर्टल पर भी जानकारी डाल दी.

एएसआई सत्येंद्र सिंह ने मीशा की गुमशुदगी से जुड़े पैंफ्लेट और पोस्टर छपवा कर सभी थानों में भिजवा दिए. उन्होंने अरुण उर्फ मीशा के भाई तरुण व परिवार के दूसरे सदस्यों से भी पूछताछ की. मसलन, उस की किनकिन लोगों से दोस्ती थी, वह कहां नौकरी करता था, किन लोगों के साथ उस का मिलनाजुलना था और किसी से उस की दुश्मनी या कोई विवाद तो नहीं था, आदि.

जांच की इस काररवाई व पूछताछ में 2-3 दिन का वक्त गुजर गया. चूंकि घर वाले बारबार मीशा के लापता होने में जस्सी का हाथ होने की बात कह रहे थे. लिहाजा एएसआई सत्येंद्र ने मीशा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ जस्सी का फोन नंबर ले कर उस के फोन की भी काल डिटेल्स निकलवा ली.

उन्होंने तरुण मन्ना से जस्सी का पता ले कर जस्सी को पूछताछ के लिए सरिता विहार थाने बुलवा लिया.

एएसआई सत्येंद्र ने जब जस्सी से पूछताछ शुरू की तो उस ने बिना लागलपेट के बता दिया कि जिस शाम मीशा अपने घर से लापता हुई, उस ने उसी समय मीशा को फोन जरूर किया था. उस वक्त वह घर पर ही थी.

जस्सी ने बताया, ‘‘सर उस वक्त मैं सरिता विहार इलाके में था. मैं ने मीशा को फोन कर के पूछा था कि अगर वह फ्री है और घर में कोई जरूरी काम नहीं है तो वह आली बसस्टैंड पर आ कर मिल ले. क्योंकि उस दिन जन्माष्टमी थी और मैं उस के साथ मंदिर घूमना चाहता था.’’

‘‘मीशा कितनी देर बाद आई?’’ एएसआई सत्येंद्र ने पूछा.

‘‘नहीं आई सर, मैं करीब एक घंटे तक वहां खड़ा रहा लेकिन मीशा नहीं आई. फिर मैं ने सोचा चलो घर तो पास में ही है, वहीं जा कर मीशा से मिल लेता हूं.’’

एक क्षण के लिए सांस लेने के लिए रुक कर जस्सी ने बताना शुरू किया, ‘‘सर, इसीलिए मैं ने मीशा का फोन लगा कर पूछना चाहा कि अगर वह नहीं आ सकती तो मैं खुद उस से मिलने के लिए घर आ जाता हूं. लेकिन सर उस का फोन भी स्विच्ड औफ मिला.

‘‘मैं ने कई बार फोन लगाया, लेकिन हर बार स्विच्ड औफ मिला तो हार कर मैं ने मीशा की मम्मी को फोन कर लिया और उन से पूछा कि मीशा कहां है. लेकिन सर, मुझे यह जान कर हैरानी हुई कि मीशा घर पर नहीं थी. पता चला कि वह मेरा फोन आने के कुछ देर बाद ही घर में यह बता कर कहीं चली गई थी कि वह जस्सी से यानी मुझ से मिलने जा रही है.’’

जस्सी ने पूरी कहानी साफ कर दी. और फिर एएसआई की तरफ सवालिया नजरों से देखते हुए कहने लगा, ‘‘सर, आप ही बताइए कि जब मीशा मेरी इतनी अच्छी दोस्त थी, हमारे बीच किसी तरह का कोई विवाद भी नहीं था. 2-4 दिन से नहीं करीब डेढ़दो साल से हम एकदूसरे के दोस्त हैं. मैं उस के घर भी आताजाता था. उस का मेरा कोई पैसे का लेनदेन भी नहीं था. कारोबारी दुश्मनी भी नहीं थी. तो फिर भला मैं उसे लापता या किडनैप क्यों करूंगा. और उस का किडनैप कर के क्या करूंगा. मैं तो खुद ही उस के लापता होने के बाद से बहुत परेशान हूं.’’ कहते हुए जस्सी की आंखें भर आईं.

पूछताछ करते हुए एएसआई सत्येंद्र लगातार जस्सी की आंखों को पढ़ रहे थे. उन्हें कहीं भी उस की बातों में झूठ नजर नहीं आया.

एएसआई सत्येंद्र ने जस्सी से मीशा के बारे में और भी कई तरह की जानकारी ली. मसलन दोनों की दोस्ती कब हुई. दोनों के बीच में किस तरह के रिश्ते थे.

जस्सी ने एएसआई सत्येंद्र को अपने और मीशा के बारे में सब कुछ बता दिया. कुल मिला कर एएसआई सत्येंद्र जस्सी से पूछताछ में संतुष्ट नजर आए.

एएसआई सत्येंद्र ने जस्सी को थानाप्रभारी अनंत गुंजन तथा अतिरिक्त थानाप्रभारी दिनेश कुमार तेजवान के सामने भी पेश किया. उन्होंने भी जस्सी से पूछताछ की, जिस में उस ने वही जवाब दिया जो उस ने एएसआई सत्येंद्र को दिया था.

इस दौरान एएसआई सत्येंद्र ने मीशा के फोन की काल डिटेल्स निकाल कर उस की जांचपड़ताल शुरू कर दी थी. जिस में एक बात की पुष्टि तो हो गई कि शाम के वक्त जस्सी ने मीशा को फोन किया था. फिर उस के आधा घंटे बाद मीशा का फोन बंद हो गया था.

अब तक की जांच में जस्सी के ऊपर शक करने की कोई वजह सामने नहीं आ रही थी.॒ लेकिन मीशा को फोन करने वाला आखिरी शख्स जस्सी ही था, इसलिए उसे आसानी से शक के दायरे से बाहर नहीं किया जा सकता था.

एएसआई सत्येंद्र ने मीशा के फोन की काल डिटेल्स में उस के फोन की आखिरी लोकेशन देखनी शुरू की तो पता चला कि फोन की लोकेशन करीब आधे घंटे बाद फरीदाबाद के सराय अमीन इलाके में थी. इस के बाद मीशा के फोन की लोकेशन बंद हो गई थी.

मतलब साफ था कि फरीदाबाद के सराय अमीन में मीशा के फोन को या तो तोड़ दिया गया या कहीं फेंक दिया गया.

मीशा के फोन की काल डिटेल्स के बाद एएसआई सत्येंद्र ने जस्सी के फोन की काल डिटेल्स की पड़ताल शुरू तो वह यह देख कर दंग रह गए कि जस्सी के फोन की लोकेशन भी वहांवहां थी, जहां मीशा के फोन की लोकेशन थी.

जिस वक्त मीशा के फोन की आखिरी लोकेशन फरीदाबाद के सराय अमीन में थी, ठीक उसी वक्त जस्सी के फोन की लोकेशन भी वहीं थी.

एएसआई सत्येंद्र को न जाने क्यों अचानक मीशा के साथ अनर्थ की आशंका होने लगी. वह समझ गए कि जस्सी पुलिस के साथ खेल खेल रहा है.

मीशा के परिवार वालों ने उस के खिलाफ जो शक जाहिर किया था, वह एकदम सही था. एएसआई सत्येंद्र ने अब तक हुई विवेचना के बारे में तत्काल थानाप्रभारी अनंत गुंजन को बताया तो वह भी समझ गए कि मीशा के परिजनों ने जस्सी पर अपहरण का जो शक जाहिर किया था एकदम सही था.

किडनैपिंग की पुष्टि हो चुकी थी. लिहाजा अनंत गुंजन ने मीशा के भाई तरुण मन्ना को थाने बुलवा लिया और उस की शिकायत के आधार पर उसी दिन यानी 5 सितंबर को सरिता विहार थाने में अपहरण 365 आईपीसी का मामला दर्ज कर लिया.

अब इस मामले की जांच एडीशनल एसएचओ दिनेश कुमार तेजवान को सौंपी गई. अपराध की गंभीरता को समझते हुए अनंत गुंजन ने दक्षिणपूर्वी जिले के डीसीपी आर.पी. मीणा और सरिता विहार के एसीपी बिजेंद्र सिंह को पूरे मामले से अवगत करा दिया.

थानाप्रभारी अनंत गुंजन ने जांच अधिकारी इंसपेक्टर तेजवान के सहयोग के लिए एएसआई सत्येंद्र के साथ हैडकांस्टेबल मनोज और अनिल को भी टीम में शामिल कर लिया.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर तेजवान ने एएसआई सत्येंद्र से पूरे मामले की एकएक जानकारी ली और एक टीम को जस्सी को पकड़ने के लिए फरीदाबाद की शिव कालोनी रवाना किया, जहां वह रहता था.

लेकिन जस्सी को शायद तब तक इस बात का अहसास हो चुका था कि पुलिस उसे कभी भी गिरफ्तार कर सकती है. इसलिए जब पुलिस वहां पहुंची तो वह नहीं मिला. इंसपेक्टर तेजवान ने एएसआई सत्येंद्र को जस्सी की गिरफ्तारी के काम पर लगा दिया और खुद यह पता लगाने में जुट गए कि मीशा आखिर कहां है. वैसे अब तक पुलिस को यकीन हो चुका था कि हो न हो जस्सी ने शायद उस की हत्या कर दी है.

चूंकि मीशा के फोन की लास्ट लोकेशन फरीदाबाद के सराय अमीन इलाके की थी, इसलिए उन्होंने वहीं पर अपना सारा ध्यान केंद्रित कर दिया.

दिल्ली से लगते फरीदाबाद के सभी थानों में इस बात की जांचपड़ताल शुरू कर दी कि कहीं 30 तारीख से अब तक किसी लड़की का शव बरामद तो नहीं हुआ है. एनसीआर के सभी शहरों को जोड़ कर दिल्ली पुलिस के कुछ वाट्सऐप ग्रुप हैं, जिस में पुलिस अपराधियों से संबंधित किसी भी तरह की सूचना लेनेदेने का काम करती है.

इंसपेक्टर तेजवान ने इसी वाट्सऐप ग्रुप पर अरुण उर्फ मीशा की गुमशुदगी की जानकारी डाल कर फरीदाबाद पुलिस से जब जानकारी एकत्र करनी शुरू की तो पता चला की फरीदाबाद के सेक्टर-17 थाना क्षेत्र में पुलिस को एक नाले से 4 सितंबर, 2021 की सुबह एक लाश मिली थी.

वह लाश पूरी तरह सड़ चुकी थी. हालांकि वह लाश तो किसी पुरुष की थी, लेकिन उस के शरीर पर जो कपड़े थे वह महिलाओं वाले थे. तेजवान समझ गए कि हो न हो, ये लाश मीशा की ही होगी. उन्होंने मीशा के परिजनों को बुलवा लिया और उन्हें ले कर फरीदाबाद के सेक्टर-17 थाने पहुंच गए.

वहां सेक्टर-17 पुलिस ने उन्हें बताया कि 4 सितंबर को नाले से जो अज्ञात लाश मिली थी, उस को अभी अस्पताल में प्रिजर्व कर के रखा गया है. सेक्टर-17 थाना पुलिस के साथ इंसपेक्टर तेजवान और मीशा के परिजन जब सिटी हौस्पिटल पहुंचे तो वहां पोस्टमार्टम के बाद मुर्दाघर में जो लाश रखी थी, वह इतनी सड़गल चुकी थी कि उस की पहचान करना मुश्किल था.

लेकिन लाश के पहने हुए कपड़े देख कर मीशा की मां ने पहचान कर ली कि वह लाश मीशा की ही थी. इस के बाद पुलिस ने लाश की शिनाख्त की औपचारिकता पूरी कर ली.

फरीदाबाद पुलिस ने मीशा का शव उस के परिजनों को सौंप दिया, जिस का उन्होंने अंतिम संस्कार कर दिया गया.

चूंकि मीशा की लाश बरामद हो चुकी थी, अत: अब ये मामला हत्या का बन चुका था. इसलिए उन्होंने मुकदमे में हत्या की धारा 302 जोड़ दी.

अब पुलिस सरगरमी से जस्सी की तलाश कर रही थी, क्योंकि उसी के बाद साफ हो सकता था कि मीशा की हत्या क्यों और कैसे की गई.

पुलिस टीम लगातार जस्सी के फोन को सर्विलांस पर लगा कर यह पता लगा रही थी कि उस की लोकेशन कहां है.

आखिर पुलिस को सफलता मिल ही गई. 12 सितंबर को पुलिस टीम ने जस्सी को फरीदाबाद के पलवल शहर से गिरफ्तार कर लिया, वहां वह अपने एक रिश्तेदार के घर छिपा था.

पुलिस ने जब जस्सी से पूछताछ की तो मीशा हत्याकांड की चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

जस्सी (24) का पूरा नाम सुमित पाठक है. बिहार के रहने वाले जस्सी के परिवार में मातापिता और एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन है. पिता और भाई दोनों प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं.

साधारण परिवार का जस्सी शुरू से एक खास तरह की आदत का शिकार था. उसे बचपन से ही लड़कियों के बजाय लड़कों में दिलचस्पी थी. उस का सैक्स करने का तो मन करता, लेकिन लड़कियों के साथ नहीं बल्कि लड़कों के साथ. यही कारण था कि कई ट्रांसजेंडर से उस की दोस्ती हो गई थी. 12वीं तक पढ़ाई के बाद जस्सी ने फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा कर के फरीदाबाद के एक फैशन से जुड़े एनजीओ में नौकरी कर ली.

एनजीओ में नौकरी के कारण जस्सी को अकसर कई फैशन शो और प्रोग्राम में एनजीओ की तरफ से जाना पड़ता था. करीब 2 साल पहले जस्सी की मुलाकात अरुण से हुई. उम्र में अरुण उस से 2 साल बड़ा था. पहली बार हुई मुलाकात में ही जस्सी को पता चल गया कि अरुण जन्म से लड़का जरूर है, लेकिन हारमोंस से वह पूरी तरह लड़की है.

लड़कियों जैसे हावभाव, चलनेफिरने और बात करने में लड़कियों की तरह अदाएं दिखाना. पहनावा और मेकअप भी अरुण ऐसा करता कि देखने वाला पहली नजर में लड़की समझने की भूल कर लेता.

अरुण के परिवार में मातापिता और एक छोटे भाई तरुण के अलावा कोई नहीं था. पिता आली गांव में ही पान का खोखा लगाते थे, जबकि मां और भाई बदरपुर स्थित प्राइवेट कंपनियों में नौकरी करते थे.

अरुण के बचपन से ही लड़कियों की तरह व्यवहार करने और बदलते हारमोन को ले कर परिवार वाले भी परेशान थे. उन्होंने कई जगह उस का इलाज भी कराया, लेकिन जवान होते होते डाक्टरों ने जवाब दे दिया कि उस के हारमोन पूरी तरह बदल चुके हैं.

अरुण ने बड़े होने के बाद अपना नाम मीशा रख लिया और वह फरीदाबाद की ‘पहल’ एनजीओ में नौकरी करने लगा. मीशा और जस्सी की मुलाकात हुई तो जल्दी ही दोनों की दोस्ती घनिष्ठता में बदल गई.

क्योंकि जस्सी को तो लड़कों में ही अधिक रुचि थी. वहीं मीशा को भी किसी ऐसे दोस्त की तलाश थी, जिस को लड़की में नहीं बल्कि लड़कों या लड़की के भेष में छिपी आधीअधूरी लड़की में रुचि हो.

दोनों में जल्द ही जिस्मानी संबध भी बन गए. मीशा की ख्वाहिश थी कि वह अपना सैक्स परिवर्तन करवा कर पूरी तरह लड़की बन जाए. एक दिन उस ने अपनी यह ख्वाहिश अपने पार्टनर जस्सी से बताई तो जस्सी ने मेहनत से जो पैसे जोड़े थे, उस में से 50 हजार रुपए खर्च कर के अरुण के ऊपरी भाग यानी ब्रेस्ट का औपरेशन करवा दिया.

औपरेशन के बाद सीने पर लड़कियों जैसे उभार निकलते ही मीशा की खूबसूरती में चारचांद लग गए. इस के बाद तो अरुण ने खुद को सार्वजनिक रूप से मीशा के रूप में परिचित कराना शुरू कर दिया. मीशा और और जस्सी के सबंध इस के बाद और भी प्रणाढ़ हो गए. दोनों साथ घूमते, साथ फिल्में देखते. इतना ही नहीं, जस्सी का मीशा के घर पर भी बेरोकटोक आनाजाना शुरू हो गया था. मीशा के परिवार वालों ने भी इसे नियति मान लिया था. मीशा अब अपने लिंग का औपरेशन करवा कर पूरी तरह लड़की बनना चाहती थी.

हालांकि औपरेशन के बाद लड़कियों जैसे यौनांग तो एकदम तैयार नहीं हो पाते, लेकिन लिंग का औपरेशन करवा कर उस से अपने पुरुष होने की सजा से मुक्ति मिल जाती.

मीशा जस्सी से जिद करने लगी कि वह अपने निचले हिस्से का भी औपरेशन करवा कर पूरी तरह एक लड़की बनना चाहती है. वैसे जस्सी को उस के औपरेशन में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन मीशा की जिद और खुशी के लिए जस्सी ने हां कर दी.

जस्सी ने उस से कहा कि अगले कुछ महीनों में जब उस के पास पैसे इकट्ठा हो जाएंगे तो वह औपरेशन करवा देगा. क्योंकि इस में करीब एक लाख रुपए का खर्च डाक्टरों ने बताया था.

जस्सी मीशा के ऊपर दिल खोल कर पैसा खर्च करता था. जस्सी के परिवार को भी यह बात पता थी कि वह एक ऐसी लड़की से प्यार करता है जो न तो पूरी तरह लड़का है और न ही लड़की.

परिवार वालों ने ऐसा रिश्ता जोड़ने के लिए उसे मना भी किया, लेकिन उस ने परिवार की एक नहीं सुनी.

इसी दौरान पिछले कुछ महीनों से धीरेधीरे मीशा के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा. वह क्लबों में जाने लगी. ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के बहुत सारे लोगों से उस की दोस्ती हो गई. वह उन के साथ नाइट पार्टियों में जाती. कुछ लोगों के साथ उस के घनिष्ठ संबध भी बन गए.

जब जस्सी को इस बात का अहसास होने लगा और उसे भनक लगी तो उस ने मीशा को रोकनाटोकना चाहा. लेकिन मीशा जिंदगी के जिस रास्ते पर चल पड़ी थी, वहां उस की मंजिल जस्सी नहीं था.

लिहाजा उस ने जस्सी से साफ कह दिया कि वह उसे अपनी प्रौपर्टी न समझे. वह किस के साथ घूमेगी, किस के साथ जाएगी, ये वह खुद तय करेगी.

जस्सी ने भी उस से एकदो बार कहा कि उस ने अपनी मेहनत की कमाई उस के औपरेशन और खर्चों पर इसलिए लुटाई थी ताकि वह उस की बन कर रहे. जस्सी ने उस से एक दिन गुस्से में यह तक कह दिया कि अगर वह उस की नहीं रहेगी तो किसी की नहीं रहेगी. लेकिन मीशा ने उस की बात हवा में उड़ा दी.

लेकिन यह बात मीशा ने अपनी मां को जरूर बता दी थी. जब जस्सी ने देखा कि मीशा पूरी तरह काबू से बाहर हो चुकी है. ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लोगों से मिलना देर रात तक उन के साथ पार्टी करना और मस्ती करना उस की आदत बन चुकी है तो उस ने तय कर लिया कि वह उस की हत्या कर देगा. इस के लिए उस ने पूरी साजिश रची. 30 अगस्त, 2021 को उस ने 4 बजे मीशा को फोन कर के उसे 10 मिनट के लिए घर के पास ही मिलने के लिए बुलाया.

मीशा जब उस से मिलने पहुंची तो वह उसे तुरंत मोटरसाइकिल पर बैठा कर यह कह कर अपने साथ ले गया कि अभी आधे घंटे में आते हैं. तुम्हारी किसी दोस्त से मुलाकात करानी है, जो तुम्हारे जैसा ही है. इसी उत्सुकता में मीशा विरोध न कर सकी.

वह 15 मिनट में ही मीशा को मोटरसाइकिल से दिल्ली से सटे फरीदाबाद के सराय अमीन इलाके में नाले के किनारे एक सुनसान जगह ले गया. वहां उस ने मीशा की गोली मार कर हत्या कर दी. मीशा का मोबाइल उस ने अपने हाथ में ले कर पहले ही बंद कर दिया था. हत्या करने के बाद उस ने शव को नाले में फेंक दिया. इस के बाद उस ने मीशा के मोबाइल का सिम निकाल कर तोड़ दिया और फोन तोड़ कर नाले में फेंक दिया. मीशा का शव नाले में बहते हुए 5 किलोमीटर दूर सेक्टर-17 थाने की सीमा में पहुंच गया, जिसे 5 सितंबर को वहां की पुलिस ने बरामद कर लिया.

मीशा की हत्या करने के बाद जस्सी फिर से मोटरसाइकिल से आली गांव पहुंचा, जहां से उस ने मीशा की मां को फोन कर के मीशा से बात कराने के लिए कहा. फिर वह घर चला गया. पुलिस ने पूछताछ के बाद जस्सी की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा और मोटरसाइकिल बरामद कर ली. पुलिस ने मीशा का मोबाइल बरामद करने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मिला.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जस्सी को 13 सितंबर, 2021 को अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस की जांच, पीडि़त परिवार के कथन और आरोपी के बयान पर आधारित

मारवाड़ के लुटेरों पर पुलिस का दांव – भाग 1

राजस्थान का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है. मेवाड़ और मारवाड़ की धरती शूरवीरता के लिए जानी जाती है. रेतीले धोरों और अरावली पर्वतमालाओं से घिरे इस सूबे के लोगों को भले ही जान गंवानी पड़ी, लेकिन युद्ध के मैदान में कभी पीठ नहीं दिखाई. इस के इतर राजस्थान की कुछ जनजातियां अपराध के लिए भी जानी जाती रही हैं.

लेकिन अब समय बदल गया है. ऐसे तमाम लोग हैं, जो कामयाब न होने पर अपने सपने पूरे करने के लिए जनजातियों की तरह अपराध की राह पर चल निकले हैं. अन्य राज्यों के लोगों की तरह राजस्थान के भी हजारों लोग भारत के दक्षिणी राज्यों में रोजगार की वजह से रह रहे हैं.

मारवाड़ के रहने वाले कुछ लोगों ने अपने विश्वस्त साथियों का गिरोह बना कर तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में करोड़ों की चोरी, लूट और डकैती जैसे संगीन अपराध किए हैं. ये वहां अपराध कर के राजस्थान आ जाते हैं और अपने गांव या रिश्तेदारियों में छिप जाते हैं. कुछ दिनों में मामला शांत हो जाता है तो फिर वहां पहुंच जाते हैं. उन्हें वहां किसी तरह की परेशानी भी नहीं होती, क्योंकि वहां रहतेरहते ये वहां की भाषा भी सीख गए हैं. स्थानीय भाषा की वजह से ये जल्दी ही वहां के लोगों में घुलमिल जाते हैं.

मारवाड़ के इन लुटेरों ने जब वहां कई वारदातें कीं तो वहां की पुलिस इन लुटेरों की खोजबीन करती हुई उन के गांव तक पहुंच गई. लेकिन राजस्थान पहुंचने पर दांव उल्टा पड़ गया. इधर 3 ऐसी घटनाएं घट गईं, जिन में लुटेरों को पकड़ने आई तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की पुलिस खुद अपराधी बन गई. यहां तक कि चेन्नै के एक जांबाज इंसपेक्टर को जान से भी हाथ धोना पड़ा.

चेन्नै के थाना मदुरहोल के लक्ष्मीपुरम की कडप्पा रोड पर गहनों का एक काफी बड़ा शोरूम है महालक्ष्मी ज्वैलर्स. यह शोरूम मुकेश कुमार जैन का है. वह मूलरूप से राजस्थान के जिला पाली के गांव बावरा के रहने वाले हैं. वह रोजाना दोपहर के 1 बजे के करीब शोरूम बंद कर के लंच के लिए घर चले जाते थे. कुछ देर घर पर आराम कर के वह शाम करीब 4 बजे शोरूम खोलते थे.

16 नवंबर, 2017 को भी मुकेश कुमार जैन अपना जवैलरी का शोरूम बंद कर के लंच करने घर चले गए थे. शाम करीब 4 बजे जब उन्होंने आ कर शोरूम खोला तो उन के होश उड़ गए. शोरूम की छत में सेंध लगी हुई थी. अंदर रखे डिब्बों से सोनेचांदी के सारे गहने गायब थे. 2 लाख रुपए रकद रखे थे, वे भी नहीं थे. मुकेश ने हिसाब लगाया तो पता चला कि साढ़े 3 किलोग्राम सोने और 5 किलोग्राम चांदी के गहने और करीब 2 लाख रुपए नकद गायब थे.

दिनदहाड़े ज्वैलरी के शोरूम में छत में सेंध लगा कर करीब सवा करोड़ रुपए के गहने और नकदी पार कर दी गई थी. चोरों ने यह सेंध ड्रिल मशीन से लगाई थी. उन्होंने गहने और नकदी तो उड़ाई ही, शोरूम में लगे सीसीटीवी कैमरे भी उखाड़ ले गए थे.

मुकेश ने वारदात की सूचना थाना मदुरहोल पुलिस को दी. पुलिस ने घटनास्थल पर आ कर जांच की. जांच में पता चला कि शोरूम की छत पर बने कमरे से ड्रिल मशीन द्वारा छेद किया गया था.

society

शोरूम के ऊपर बने कमरे में कपड़े की दुकान थी. वह दुकान नाथूराम जाट ने किराए पर ले रखी थी. वह भी राजस्थान के जिला पाली के गांव रामावास का रहने वाला था. उसी के साथ दिनेश और दीपाराम भी रहते थे. दिनेश थाना बिलाड़ा का रहने वाला था तो दीपाराम पाली के खारिया नींव का रहने वाला था. ये तीनों पुलिस को कमरे पर नहीं मिले. पुलिस ने शोरूम के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तो पता चला कि मुकेश के ज्वैलरी शोरूम में नाथूराम और उस के साथियों ने ही लूट की थी.

लूट के 2 दिनों बाद चेन्नै पुलिस ने शोरूम के मालिक मुकेश जैन को साथ ले कर अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए राजस्थान के जिला पाली आ कर डेरा डाल दिया. पुलिस ने पूछताछ के लिए कुछ लोगों को पकड़ा भी, लेकिन नाथूराम जाट और उस के साथियों के बारे में कुछ पता नहीं चला तो चेन्नै पुलिस लौट गई.

11 दिसंबर, 2017 को एक बार फिर चेन्नै पुलिस पाली आई. इस टीम में इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन और इंसपेक्टर टी.एम. मुनिशेखर के अलावा 2 हैडकांस्टेबल अंबरोस व गुरुमूर्ति और एक कांस्टेबल सुदर्शन शामिल थे. यह टीम पाली के एसपी दीपक भार्गव से मिली तो उन्होंने टीम की हर तरह से मदद मरने का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि जब भी उन्हें काररवाई करनी हो, बता दें. स्थानीय पुलिस हर तरह से उन की मदद करेगी.

इस के बाद चेन्नै से आई पुलिस अपने हिसाब से आरोपियों की तलाश करती रही. पुलिस ने नाथूराम के 2 नजदीकी लोगों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि नाथूराम पाली में जैतारण-रामवास मार्ग पर करोलिया गांव में खारिया नींव के रहने वाले दीपाराम जाट के बंद पड़े चूने के भट्ठे पर मिल सकता है.

इस सूचना पर चेन्नै पुलिस ने पाली पुलिस को बिना बताए 12 दिसंबर की रात करीब ढाई-तीन बजे करोलिया गांव स्थित दीपाराम के चूने के भट्ठे पर बिना वर्दी के छापा मारा. पुलिस की यह टीम सरकारी गाड़ी के बजाय किराए की टवेरा कार से गई थी.

टीम की अगुवाई कर रहे इंसपेक्टर पेरियापांडियन और इंसपेक्टर मुनिशेखर के पास सरकारी रिवौल्वर थी. पुलिस टीम के पहुंचते ही भट्ठे पर बने एक कमरे में सो रहे लोग जाग गए. उस समय वहां 3 पुरुष, 6 महिलाएं और कुछ लड़कियां थीं. उन सब ने मिल कर लाठीडंडों से पुलिस पर हमला बोल दिया.

अतीक अहमद : खूंखार डौन की बेबसी – भाग 1

उत्तर प्रदेश के माफिया डौन अतीक अहमद की 300 करोड़ की 27 से अधिक संपत्तियों पर योगी सरकार ने बुलडोजर चलवा दिया है. जबकि अतीक अहमद इस समय गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद है.

यह माफिया डौन 5-5 बार उत्तर प्रदेश विधानसभा का इलाहाबाद पश्चिमी सीट से चुनाव जीत कर विधायक, तो एक बार इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट से सांसद रह चुका है. अतीक अहमद पर इस समय हत्या, अपहरण, वसूली, मारपीट सहित 188 मुकदमे दर्ज हैं. जून, 2019 से अतीक अहमद गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में हाई सिक्युरिटी जोन में बंद है.

माफिया डौन अतीक अहमद का इतना आतंक है कि उत्तर प्रदेश की 4-4 जेलें उसे संभाल नहीं सकीं. इन जेलों के जेलरों ने स्वयं सरकार से कहा कि हम इस डौन को नहीं संभाल सकते.

इस का कारण यह था कि अतीक जब उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की जेल में बंद था, तब उस ने अपने गुंडों से लखनऊ के एक बिल्डर मोहित जायसवाल को जेल में बुला कर बहुत मारापीटा था और उस से उस की प्रौपर्टी के कागजों पर दस्तखत करा लिए थे.

अतीक अहमद ने अपना आतंक फैलाने के लिए इस मारपीट का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था, जिस से लोगों में उस की दहशत बनी रहे. इस वीडियो को देखने के बाद राज्य में हड़कंप मचा तो अतीक अहमद को देवरिया की जेल से बरेली जेल भेजा गया. पर बरेली जेल के जेलर ने स्पष्ट कह दिया कि इस आदमी को वह नहीं संभाल सकते.

लोकसभा के चुनाव सामने थे. अतीक को कड़ी सुरक्षा में रखना जरूरी था. इसलिए इस के बाद उसे इलाहाबाद की नैनी जेल में शिफ्ट किया गया. उधर देवरिया जेल कांड का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. कोर्ट ने सीबीआई को मुकदमा दर्ज कर जांच के आदेश दिए.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अतीक अहमद, उस के बेटे के अलावा 4 सहयोगियों सहित 10-12 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ. जब अतीक के सारे कारनामों की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल, 2019 को यूपी सरकार को अतीक अहमद को राज्य के बाहर किसी अन्य राज्य की जेल में शिफ्ट करने का आदेश दिया.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भेजा गुजरात

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 3 जून, 2019 को उत्तर प्रदेश सरकार ने गुजरात सरकार के नाम 3 लाख रुपए का ड्राफ्ट जमा करा कर अतीक को फ्लाइट से अहमदाबाद भेजा. फिलहाल वह गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद है.

यह 3 लाख रुपए का ड्राफ्ट अतीक अहमद को जेल में रखने का मात्र 3 महीने का खर्च था. उस के बाद हर 3 महीने पर अतीक अहमद को अहमदाबाद की जेल में रखने का खर्च उत्तर प्रदेश का कारागार विभाग गुजरात सरकार को भेजता है.

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पिछले 40 सालों में अतीक अहमद ने अपनी धाक राजनीतिक पहुंच के बल पर ऐसी बनाई है कि उस के सामने कोई आंख मिला कर बात करने का साहस नहीं कर सकता. 5 फुट 6 इंच की ऊंचाई और जबरदस्त शरीर वाले अतीक अहमद की आंखें ही इतनी खूंखार हैं कि किसी को उस के सामने देख कर बात करने का साहस ही नहीं होता.

अतीक अहमद के सामने जो भी सीना तान कर आया, उस की हत्या करा दी गई. उस पर 6 से अधिक हत्या के मामले चल रहे हैं. इस डौन के गैंग में 120 से भी अधिक शूटर हैं. पुलिस ने अतीक अहमद के गैंग का नाम आईएस (इंटर स्टेट) 227 रखा है. इस के गैंग का मुख्य कारोबार इलाहाबाद और आसपास के इलाके में फैला है. अतीक अहमद ने साबित कर दिया है कि पुलिस गुलाम है और सरकार के नेता वोट के लालच में कुछ भी कर सकते हैं. किसी भी डौन को नेता बना सकते हैं. अतीक अहमद की कहानी में मोड़ 1979 से आया.

10 अगस्त, 1962 को पैदा हुए अतीक अहमद के पिता इलाहाबाद में तांगा चलाते थे. इलाहाबाद के मोहल्ला चकिया के रहने वाले फारुक तांगे वाले के रूप में मशहूर पिता के संघर्ष को अतीक ने करीब से देखा था. हाईस्कूल में फेल हो जाने के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी थी. 17 साल की उम्र में उस पर कत्ल का पहला इल्जाम लगा था. उस के बाद वह अपराध की दुनिया में कूद पड़ा.

यह तब की बात है, जब इलाहाबाद में नए कालेज बन रहे थे, उद्योग लग रहे थे. जिस की वजह से खूब ठेके बंट रहे थे. तभी कुछ नए लड़कों में अमीर बनने का ऐसा चस्का लगा कि वे अमीर बनने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. कुछ भी यानी हत्या, अपहरण और रंगदारी की वसूली.

अमीर बनने का चस्का अतीक को भी लग चुका था. 17 साल की उम्र में ही उस पर एक कत्ल का इल्जाम लग चुका था, जिस की वजह से लोगों में उस की दहशत बैठ गई थी. उस का भी धंधा चल निकला. वह ठेके लेने लगा, रंगदारी वसूली जाने लगी.

उस समय इलाहाबाद का डौन चांदबाबा था. पुराने शहर में उस का ऐसा खौफ था कि उस के सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती थी. चौक और रानीमंडी के उस के इलाके में पुलिस भी जाने से डरती थी. कहा जाता है कि उस के इलाके में अगर कोई खाकी वर्दी वाला चला जाता था तो बिना पिटे नहीं आता था.

तब तक अतीक 20-22 साल का ठीकठाक गुंडा माना जाने लगा था. चांदबाबा का खौफ खत्म करने के लिए नेता और पुलिस एक खौफ को खत्म करने के लिए दूसरे खौफ को शह दे रहे थे. इसी का नतीजा था कि अतीक बड़े गुंडे के रूप में उभरने लगा. परिणाम यह निकला कि वह चांदबाबा से ज्यादा पुलिस के लिए खतरा बनता गया.

अतीक ने बना लिया अपना गैंग

अतीक अहमद ने इलाहाबाद में अपना गैंग बना लिया था. अपने इसी गैंग की मदद से वह इलाहाबाद के लिए ही नहीं, अगलबगल के कस्बों के लिए भी आतंक का पर्याय बन गया था. केवल गैंग बना लेना ही बहादुरी नहीं होती, गैंग का खर्च, उन के मुकदमों का खर्च, हथियार खरीदने के लिए पैसे आदि की भी व्यवस्था करनी होती है. इस के लिए अतीक गैंग की मदद से इलाहाबाद के व्यापारियों का अपहरण कर फिरौती तो वसूलता ही था, शहर में रंगदारी भी वसूली जाने लगी थी.

इस तरह अतीक अहमद पुलिस के लिए चांदबाबा से भी ज्यादा खतरनाक बन गया था. पुलिस उसे और उस के गैंग के लड़कों को गलीगली खोज रही थी.

आखिर एक दिन पुलिस बिना लिखापढ़ी के अतीक को उठा ले गई. उसे कहां ले जाया गया, कुछ पता नहीं था. यह सन 1986 की बात है.

उस समय राज्य में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी तो केंद्र में राजीव गांधी की. अतीक को पुलिस कहां ले गई, इस की किसी को खबर नहीं थी. सभी को लगा कि अब उस का खेल खत्म हो चुका है.

काफी खोजबीन की गई. जब कहीं उस का कुछ पता नहीं चला तो इलाहाबाद के ही एक कांग्रेसी सांसद को सूचना दी गई. कहा जाता है कि वह सांसद राजीव गांधी के बहुत करीबी थे. उन्होंने राजीव गांधी से बात की. दिल्ली से लखनऊ फोन आया और लखनऊ से इलाहाबाद.

रूठी रानी उमादे : क्यों संसार में अमर है जैसलमेर की रानी

रेतीले राजस्थान को शूरवीरों की वीरता और प्रेम की कहानियों के लिए जाना जाता है. राजस्थान के इतिहास में प्रेम रस और वीर रस से भरी तमाम ऐसी कहानियां भरी पड़ी हैं, जिन्हें पढ़सुन कर ऐसा लगता है जैसे ये सच्ची कहानियां कल्पनाओं की दुनिया में ढूंढ कर लाई गई हों.

मेड़ता के राव वीरमदेव और राव जयमल के काल में जोधपुर के राव मालदेव शासन करते थे. राव मालदेव अपने समय के राजपूताना के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक थे. शूरवीर और धुन के पक्के. उन्होंने अपने बल पर  जोधपुर राज्य की सीमाओं का काफी विस्तार किया था. उन की सेना में राव जैता व कूंपा नाम के 2 शूरवीर सेनापति थे.

यदि मालदेव, राव वीरमदेव व उन के पुत्र वीर शिरोमणि जयमल से बैर न रखते और जयमल की प्रस्तावित संधि मान लेते, जिस में राव जयमल ने शांति के लिए अपने पैतृक टिकाई राज्य जोधपुर की अधीनता तक स्वीकार करने की पेशकश की थी, तो स्थिति बदल जाती. जयमल जैसे वीर, जैता कूंपा जैसे सेनापतियों के होते राव मालदेव दिल्ली को फतह करने में समर्थ हो जाते.

राव मालदेव के 31 साल के शासन काल तक पूरे भारत में उन की टक्कर का कोई राजा नहीं था. लेकिन यह परम शूरवीर राजा अपनी एक रूठी रानी को पूरी जिंदगी नहीं मना सका और वह रानी मरते दम तक अपने पति से रूठी रही.

जीवन में 52 युद्ध लड़ने वाले इस शूरवीर राव मालदेव की शादी 24 वर्ष की आयु में वर्ष 1535 में जैसलमेर के रावल लूनकरण की बेटी राजकुमारी उमादे के साथ हुई थी. उमादे अपनी सुंदरता व चतुराई के लिए प्रसिद्ध थीं. राठौड़ राव मालदेव की शादी बारात लवाजमे के साथ जैसलमेर पहुंची. बारात का खूब स्वागतसत्कार हुआ. बारातियों के लिए विशेष ‘जानी डेरे’ की व्यवस्था की गई.

ऊंट, घोड़ों, हाथियों के लिए चारा, दाना, पानी की व्यवस्था की गई. राजकुमारी उमादे राव मालदेव जैसा शूरवीर और महाप्रतापी राजा पति के रूप में पाकर बेहद खुश थीं. पंडितों ने शुभ वेला में राव मालदेव की राजकुमारी उमादे से शादी संपन्न कराई.

चारों तरफ हंसीखुशी का माहौल था. शादी के बाद राव मालदेव अपने सरदारों व सगेसंबंधियों के साथ महफिल में बैठ गए. महफिल काफी रात गए तक चली.

इस के बाद तमाम घराती, बाराती खापी कर सोने चले गए. राव मालदेव ने थोड़ीथोड़ी कर के काफी शराब पी ली थी.

उन्हें नशा हो रहा था. वह महफिल से उठ कर अपने कक्ष में नहीं आए. उमादे सुहाग सेज पर उन की राह देखतीदेखती थक गईं. नईनवेली दुलहन उमादे अपनी खास दासी भारमली जिसे उमादे को दहेज में दिया गया था, को मालदेव को बुलाने भेजने का फैसला किया. उमादे ने भारमली से कहा, ‘‘भारमली, जा कर रावजी को बुला लाओ. बहुत देर कर दी उन्होंने…’’

भारमली ने आज्ञा का पालन किया. वह राव मालदेव को बुलाने उन के कक्ष में चली गई. राव मालदेव शराब के नशे में थे. नशे की वजह से उन की आंखें मुंद रही थीं कि पायल की रुनझुन से राव ने दरवाजे पर देखा तो जैसे होश गुम हो गए. फानूस तो छत में था, पर रोशनी सामने से आ रही थी. मुंह खुला का खुला रह गया.

जैसे 17-18 साल की कोई अप्सरा सामने खड़ी थी. गोरेगोरे भरे गालों से मलाई टपक रही थी. शरीर मछली जैसा नरमनरम. होंठों के ऊपर मौसर पर पसीने की हलकीहलकी बूंदें झिलमिला रही थीं होठों से जैसे रस छलक रहा हो.

भारमली कुछ बोलती, उस से पहले ही राव मालदेव ने यह सोच कर कि उन की नवव्याहता रानी उमादे है, झट से उसे अपने आगोश में ले लिया. भारमली को कुछ बोलने का मौका नहीं मिला या वह जानबूझ कर नहीं बोली, वह ही जाने.

भारमली भी जब काफी देर तक वापस नहीं लौटी तो रानी उमादे ने जिस थाल से रावजी की आरती उतारनी थी, उठाया और उस कक्ष की तरफ चल पड़ीं, जिस कक्ष में राव मालदेव का डेरा था.

उधर राव मालदे ने भारमली को अपनी रानी समझ लिया था और वह शराब के नशे में उस से प्रेम कर रहे थे. रानी उमादे जब रावजी के कक्ष में गई तो भारमली को उन के आगोश में देख रानी ने आरती का थाल यह कह कर ‘अब राव मालदेव मेरे लायक नहीं रहे,’ पटक दिया और वापस चली गईं.

अब तक राव मालदेव के सब कुछ समझ में आ गया था. मगर देर हो चुकी थी. उन्होंने सोचा कि जैसेतैसे रानी को मना लेंगे. भारमली ने राव मालदेव को सारी बात बता दी कि वह उमादे के कहने पर उन्हें बुलाने आई थी. उन्होंने उसे कुछ बोलने नहीं दिया और आगोश में भर लिया. रानी उमादे ने यहां आ कर यह सब देखा तो रूठ कर चली गईं.

सुबह तक राव मालदेव का सारा नशा उतर चुका था. वह बहुत शर्मिंदा हुए. रानी उमादे के पास जा कर शर्मिंदगी जाहिर करते हुए कहा कि वह नशे में भारमली को रानी उमादे समझ बैठे थे.

मगर उमादे रूठी हुई थीं. उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि वह बारात के साथ नहीं जाएंगी. वो भारमली को ले जाएं. फलस्वरूप एक शक्तिशाली राजा को बिना दुलहन के एक दासी को ले कर बारात वापस ले जानी पड़ी.

रानी उमादे आजीवन राम मालदेव से रूठी ही रहीं और इतिहास में रूठी रानी के नाम से मशहूर हुईं. जैसलमेर की यह राजकुमारी रूठने के बाद जैसलमेर में ही रह गई थीं. राव मालदेव दहेज में मिली दासी भारमली बारात के साथ बिना दुलहन के जोधपुर आ गए थे. उन्हें इस का बड़ा दुख हुआ था. सब कुछ एक गलतफहमी के कारण हुआ था.

राव मालदेव ने अपनी रूठी रानी उमादे के लिए जोधपुर में किले के पास एक हवेली बनवाई. उन्हें विश्वास था कि कभी न कभी रानी मान जाएगी.

जैसलमेर की यह राजकुमारी बहुत खूबसूरत व चतुर थी. उस समय उमादे जैसी खूबसूरत महिला पूरे राजपूताने में नहीं थी. वही सुंदर राजकुमारी मात्र फेरे ले कर राव मालदेव की रानी बन गई थी. ऐसी रानी जो पति से आजीवन रूठी रही.

जोधपुर के इस शक्तिशाली राजा मालदेव ने उमादे को मनाने की बहुत कोशिशें कीं मगर सब व्यर्थ. वह नहीं मानी तो नहीं मानी. आखिर में राव मालदेव ने एक बार फिर कोशिश की उमादे को मनाने की. इस बार राव मालदव ने अपने चतुर कवि आशानंदजी चारण को उमादे को मना कर लाने के लिए जैसलमेर भेजा.

चारण जाति के लोग बुद्धि से चतुर व वाणी से वाकपटुता व उत्कृष्ट कवि के तौर पर जाने जाते हैं. राव मालदेव के दरबार के कवि आशानंद चारण बड़े भावुक थे. निर्भीक प्रकृति के वाकपटु व्यक्ति.

जैसलमेर जा कर आशानंद चारण ने किसी तरह अपनी वाकपटुता के जरिए रूठी रानी उमादे को मना भी लिया और उन्हें ले कर जोधपुर के लिए रवाना भी हो गए. रास्ते में एक जगह रानी उमादे ने मालदेव व दासी भारमली के बारे में कवि आशानंदजी से एक बात पूछी.

मस्त कवि समय व परिणाम की चिंता नहीं करता. निर्भीक व मस्त कवि आशानंद ने भी बिना परिणाम की चिंता किए रानी को 2 पंक्तियों का एक दोहा बोल कर उत्तर दिया—

माण रखै तो पीव तज, पीव रखै तज माण.

दोदो गयंदनी बंधही, हेको खंभु ठाण.

यानी मान रखना है तो पति को त्याग दे और पति को रखना है तो मान को त्याग दे. लेकिन दोदो हाथियों को एक ही खंभे से बांधा जाना असंभव है.

आशानंद चारण के इस दोहे की दो पंक्तियों ने रानी उमादे की सोई रोषाग्नि को वापस प्रज्जवलित करने के लिए आग में घी का काम किया. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे ऐसे पति की आवश्यकता नहीं है.’’ रानी उमादे ने उसी पल रथ को वापस जैसलमेर ले चलने का आदेश दे दिया.

आशानंदजी ने मन ही मन अपने कहे गए शब्दों पर विचार किया और बहुत पछताए, लेकिन शब्द वापस कैसे लिए जा सकते थे. उमादे जो इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध है, अपनी रूपवती दासी भारमली के कारण ही अपने पति राजा मालदेव से रूठ गई थीं और आजीवन रूठी ही रहीं.

जैसलमेर आए कवि आशानंद चारण ने फिर रूठी रानी को मनाने की लाख कोशिश की लेकिन वह नहीं मानीं. तब आशानंदजी चारण ने जैसलमेर के राजा लूणकरणजी से कहा कि अपनी पुत्री का भला चाहते हो तो दासी भारमली को जोधपुर से वापस बुलवा लीजिए. रावल लूणकरणजी ने ऐसा ही किया और भारमली को जोधपुर से जैसलमेर बुलवा लिया.

भारमली जैसलमेर आ गई. लूणकरणजी ने भारमली का यौवन रूप देखा तो वह उस पर मुग्ध हो गए. लूणकरणजी का भारमली से बढ़ता स्नेह उन की दोनों रानियों की आंखों से छिप न सका. लूणकरणजी अब दोनों रानियों के बजाय भारमली पर प्रेम वर्षा कर रहे थे. यह कोई औरत कैसे सहन कर सकती है.

लूणकरणजी की दोनों रानियों ने भारमली को कहीं दूर भिजवाने की सोची. दोनों रानियां भारमली को जैसलमेर से कहीं दूर भेजने की योजना में लग गईं. लूणकरणजी की पहली रानी सोढ़ीजी ने उमरकोट अपने भाइयों से भारमली को ले जाने के लिए कहा लेकिन उमरकोट के सोढ़ों ने रावल लूणकरणजी से शत्रुता लेना ठीक नहीं समझा.

तब लूणकरणजी की दूसरी रानी जो जोधपुर के मालानी परगने के कोटड़े के शासक बाघजी राठौड़ की बहन थी, ने अपने भाई बाघजी को बुलाया. बहन का दुख मिटाने के लिए बाघजी शीघ्र आए और रानियों के कथनानुसार भारमली को ऊंट पर बैठा कर मौका मिलते ही जैसलमेर से छिप कर भाग गए.

लूणकरणजी कोटड़े पर हमला तो कर नहीं सकते थे क्योंकि पहली बात तो ससुराल पर हमला करने में उन की प्रतिष्ठा घटती और दूसरी बात राव मालदेव जैसा शक्तिशाली शासक मालानी का संरक्षक था. अत: रावल लूणकरणजी ने जोधपुर के ही आशानंद कवि को कोटडे़ भेजा कि बाघजी को समझा कर भारमली को वापस जैसलमेर ले आएं.

दोनों रानियों ने बाघजी को पहले ही संदेश भेज कर सूचित कर दिया कि वे बारहठजी आशानंद की बातों में न आएं. जब आशानंदजी कोटड़ा पहुंचे तो बाघजी ने उन का बड़ा स्वागतसत्कार किया और उन की इतनी खातिरदारी की कि वह अपने आने का उद्देश्य ही भूल गए.

एक दिन बाघजी शिकार पर गए. बारहठजी व भारमली भी साथ थे. भारमली व बाघजी में असीम प्रेम था. अत: वह भी बाघजी को छोड़ कर किसी भी हालत में जैसलमेर नहीं जाना चाहती थी.

शिकार के बाद भारमली ने विश्रामस्थल पर सूले सेंक कर खुद आशानंदजी को दिए. शराब भी पिलाई. इस से खुश हो कर बाघजी व भारमली के बीच प्रेम देख कर आशानंद जी चारण का भावुक कवि हृदय बोल उठे—

जहं गिरवर तहं मोरिया, जहं सरवर तहं हंस

जहं बाघा तहं भारमली, जहं दारू तहं मंस.

यानी जहां पहाड़ होते हैं वहां मोर होते हैं, जहां सरोवर होता है वहां हंस होते हैं. इसी प्रकार जहां बाघजी हैं, वहीं भारमली होगी. ठीक उसी तरह से जहां दारू होती है वहां मांस भी होता है.

कवि आशानंद की यह बात सुन बाघजी ने झठ से कह दिया, ‘‘बारहठजी, आप बड़े हैं और बड़े आदमी दी हुई वस्तु को वापस नहीं लेते. अत: अब भारमली को मुझ से न मांगना.’’

आशानंद जी पर जैसे वज्रपात हो गया. लेकिन बाघजी ने बात संभालते हुए कहा कि आप से एक प्रार्थना और है आप भी मेरे यहीं रहिए.

और इस तरह से बाघजी ने कवि आशानंदजी बारहठ को मना कर भारमली को जैसलमेर ले जाने से रोक लिया. आशानंदजी भी कोटड़ा गांव में रहे और उन की व बाघजी की इतनी घनिष्ठ दोस्ती हुई कि वे जिंदगी भर उन्हें भुला नहीं पाए.

एक दिन अचानक बाघजी का निधन हो गया. भारमली ने भी बाघजी के शव के साथ प्राण त्याग दिए. आशानंदजी अपने मित्र बाघजी की याद में जिंदगी भर बेचैन रहे. उन्होंने बाघजी की स्मृति में अपने उद्गारों के पिछोले बनाए.

बाघजी और आशानंदजी के बीच इतनी घनिष्ठ मित्रता हुई कि आशानंद जी उठतेबैठे, सोतेजागते उन्हीं का नाम लेते थे. एक बार उदयपुर के महाराणा ने कवि आशानंदजी की परीक्षा लेने के लिए कहा कि वे सिर्फ एक रात बाघजी का नाम लिए बिना निकाल दें तो वे उन्हें 4 लाख रुपए देंगे. आशानंद के पुत्र ने भी यही आग्रह किया.

कवि आशानंद ने भरपूर कोशिश की कि वह अपने कविपुत्र का कहा मान कर कम से कम एक रात बाघजी का नाम न लें, मगर कवि मन कहां चुप रहने वाला था. आशानंदजी की जुबान पर तो बाघजी का ही नाम आता था.

रूठी रानी उमादे ने प्रण कर लिया था कि वह आजीवन राव मालदेव का मुंह नहीं देखेगी. बहुत समझानेबुझाने के बाद भी रूठी रानी जोधपुर दुर्ग की तलहटी में बने एक महल में कुछ दिन ही रही और फिर उन्होंने अजमेर के तारागढ़ दुर्ग के निकट महल में रहना शुरू किया. बाद में यह इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई.

राव मालदेव ने रूठी रानी के लिए तारागढ़ दुर्ग में पैर से चलने वाली रहट का निर्माण करवाया. जब अजमेर पर अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के आक्रमण की संभावना थी, तब रूठी रानी कोसाना चली गई, जहां कुछ समय रुकने के बाद वह गूंदोज चली गई. गूंदोज से काफी समय बाद रूठी रानी ने मेवाड़ में केलवा में निवास किया.

जब शेरशाह सूरी ने मारवाड़ पर आक्रमण किया तो रानी उमादे से बहुत प्रेम करने वाले राव मालदेव ने युद्ध में प्रस्थान करने से पहले एक बार रूठी रानी से मिलने का अनुरोध किया.

एक बार मिलने को तैयार होने के बाद रानी उमादे ने ऐन वक्त पर मिलने से इनकार कर दिया.

रूठी रानी के मिलने से इनकार करने का राव मालदेव पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और वह अपने जीवन में पहली बार कोई युद्ध हारे.

वर्ष 1562 में राव मालदेव के निधन का समाचार मिलने पर रानी उमादे को अपनी भूल का अहसास हुआ और कष्ट भी पहुंचा. उमादे ने प्रायश्चित के रूप में उन की पगड़ी के साथ स्वयं को अग्नि को सौंप दिया.

ऐसी थी जैसलमेर की भटियाणी उमादे रूठी रानी. वह संसार में रूठी रानी के नाम से अमर हो गईं.

सुकेश चंद्रशेखर : सिंह बंधुओं से 200 करोड़ ठगने वाला नया नटवरलाल-भाग-3

फर्श पर वर्साचे जैसे महंगे ब्रांड के कारपेट और इटालियन संगमरमर बिछा था. ईडी को शक है कि यह बंगला सुकेश व लीना की बेनामी संपत्ति का हिस्सा है.

इस छापे के कुछ दिन बाद ईडी ने मनी लांड्रिंग के मामले में पुलिस से मिली सूचनाओं के आधार पर बौलीवुड अभिनेत्री जैकलीन फर्नांडीज से भी पूछताछ की. श्रीलंकाई मूल की जैकलीन ने कुछ महीने पहले ही मुंबई में जुहू इलाके में महंगा बंगला खरीदा था. इस बंगले की कीमत 175 करोड़ रुपए बताई जाती है.

कहा जाता है कि दिल्ली की जेल में बंद सुकेश की जैकलीन से दोस्ती थी. वह जेल में रहते हुए भी अपने संपर्कों के जरिए उसे महंगे गिफ्ट, चौकलेट और फूल भिजवाता था.

अदिति सिंह से 200 करोड़ की ठगी मामले की जांचपड़ताल चल ही रही थी कि इसी बीच उन की जेठानी यानी मलविंदर मोहन सिंह की पत्नी जपना सिंह ने भी सुकेश के खिलाफ 4 करोड़ रुपए ठगने की शिकायत अगस्त के अंतिम सप्ताह में दिल्ली पुलिस में दर्ज कराई.

जपना सिंह से भी जेल में बंद उस के पति की जमानत कराने के नाम पर रकम ठगी गई थी. यह रकम हांगकांग के एक खाते में ट्रांसफर कराई गई थी.

दिल्ली पुलिस ने 5 सितंबर को सुकेश की ठगी के मामले में उस की अभिनेत्री पत्नी लीना मारिया पाल को गिरफ्तार कर लिया.

बौलीवुड फिल्म ‘मद्रास कैफे’ में जौन अब्राहम के साथ काम कर चुकी लीना मूलरूप से केरल की रहने वाली है. उस की स्कूली पढ़ाई दुबई में हुई. वह बीडीएस ग्रैजुएट है.

भारत में आने के बाद वर्ष 2009 में मोहनलाल स्टारर फिल्म ‘रेड चिलीज’ से अपना करियर शुरू करने वाली लीना बौलीवुड फिल्म ‘बिरयानी’, ‘हसबैंड इन गोवा’ और ‘कोबरा’ के अलावा कई भाषाई फिल्मों में भी काम कर चुकी है.

ईडी की जांच में सामने आया कि लीना अपने पति सुकेश की बेईमानी की कमाई से ऐशोआराम की जिंदगी जी कर रही थी.

लीना 2009 में जब तमिल और मलयालम फिल्मों के लिए स्ट्रगल कर रही थी, तब सुकेश ने उसे अपने झांसे में लिया और उसे कुछ फिल्मों में काम दिलवाया. यहीं से दोनों की प्रेम कहानी शुरू हुई. इस के बाद इन की प्रेम कहानी परवान चढ़ती रही और ये पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

सुकेश से मुलाकात के बाद लीना की लाइफस्टाइल भी बदल गई. वह उस के सभी गलत सही कामों में साथ देने लगी. यही कारण रहा कि वह भी सुकेश के साथ जेल जाती रही.

लीना से पूछताछ के आधार पर इन के 4 साथियों अरुण मुथू, मोहन राज, कमलेश कोठारी और जोएल डेनियल को भी दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. ये चारों चेन्नई के रहने वाले हैं. ये लोग भी सुकेश और लीना के उगाही रैकेट में शामिल थे.

अभिनेत्री लीना को 2013 में भी सुकेश के साथ चेन्नई के एक बैंक में 19 करोड़ की धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया गया था. वर्ष 2015 में भी करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी के मामले में उस की गिरफ्तारी हुई थी.

बाद में दिसंबर 2018 में लीना पाल अपने ब्यूटीपार्लर में शूटआउट के बाद सुर्खियों में आई थी. कहा गया कि गैंगस्टर रवि पुजारी ने उस से करोड़ों रुपए की रंगदारी मांगी थी. नहीं देने पर उस के ब्यूटीपार्लर पर फायरिंग कराई थी.

इस मामले में लीना ने अदालत में याचिका दायर कर पुलिस सुरक्षा दिलाने की मांग की थी. इसे अदालत ने खारिज कर कहा था कि वह सुरक्षा के लिए निजी गार्ड रख सकती हैं.

कर्नाटक के रहने वाले सुकेश चंद्रशेखर उर्फ बालाजी के अपराधों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. अभी उस के खिलाफ 20 से ज्यादा मामले चल रहे हैं. वह कई बार पकड़ा जा चुका है. कभी अकेला, तो कभी अभिनेत्री पत्नी लीना के साथ.

अभी वह 2017 से जेल में है. हालांकि इस दौरान वह बीचबीच में पैरोल पर जाता रहा. पिछले साल भी वह चेन्नई गया था.

अय्याश जिंदगी जीने के शौक ने उसे शातिर ठग बना दिया. सुकेश के पिता रबर कौन्ट्रेक्टर थे. उस ने 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी और अपराध की दुनिया में कदम रख लिया.

जब उस की उम्र महज 17 साल थी, तब उस ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के बेटे का दोस्त बन कर एक परिवार से एक करोड़ 14 लाख रुपए की ठगी की थी.

बेंगलुरु पुलिस ने तब उसे पहली बार पकड़ा था. जमाने पर आने के बाद वह चेन्नई चला गया. उसे अप्रैल 2017 में चुनाव आयोग घूसकांड के मामले में दिल्ली के एक पांच सितारा होटल से एक करोड़ से ज्यादा की नकदी सहित गिरफ्तार किया था.

आरोप था कि उस ने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के बाद पार्टी के चुनाव चिह्न को ले कर हुए विवाद में एआईएडीएमके के डिप्टी चीफ टी.टी.वी. दिनाकरण को चुनाव आयोग के अधिकारियों को रिश्वत के रूप में 50 करोड़ रुपए दे कर सिंबल दिलवाने का वादा किया था.

इसी मामले में गिरफ्तारी के बाद दिल्ली की तिहाड़ जेल में उस ने जेल अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर देश के नामी लोगों से ठगी का काम शुरू कर कर दिया था.

बाद में उसे तिहाड़ से दिल्ली की ही रोहिणी जेल में शिफ्ट कर दिया गया था. सुकेश पर तेलगूदेशम पार्टी के पूर्व सांसद रायपति संबाशिव राव से वसूली करने के लिए सीबीआई के शीर्ष अधिकारियों के नाम का दुरुपयोग करने का भी आरोप लगा था.

उस ने पूर्व सांसद से सीबीआई व गृह मंत्रालय के अधिकारियों के नाम पर 100 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगी थी.

संबाशिव राव पर अपनी कंपनी के माध्यम से 7 हजार 926 करोड़ रुपए की बैंक धोखाधड़ी करने और फरजी फर्मों को धन देने का आरोप है.

वर्ष 2013 में सुकेश और उस की पत्नी लीना को चेन्नई के केनरा बैंक से 19 करोड़ की ठगी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उस समय इन के दिल्ली स्थित फार्महाउस से 20 करोड़ रुपए कीमत की 9 लग्जरी गाडि़यां जब्त की गई थीं.

वह राजनेताओं के रिश्तेदार के रूप में खुद को पेश करता था. इस के अलावा केंद्रीय मंत्रियों, सीबीआई व गृह मंत्रालय के अधिकारियों या सुप्रीम कोर्ट के जज के नाम पर लोगों से ठगी करता था.

जेल से बाहर आने पर वह ठगी के पैसों से महंगी कारें खरीदता और ऐशोआराम की जिंदगी जीता था.

कभी उस ने एम. करुणानिधि का पोता बन कर तो कभी कर्नाटक के पूर्व मंत्री करुणाकर रेड्डी का सहयोगी बन कर तो कभी बी.एस. येदियुरप्पा का सचिव बन कर लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी की.

उस ने लोगों को नौकरियों का झांसा दे कर भी 75 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम ठगी.

दिल्ली की जेल में रहते हुए उस ने एक बड़े बिजनैसमैन से 50 करोड़ रुपए ठग लिए थे. वह खुद या अपने सहयोगी से मोबाइल से स्पूफिंग के जरिए लोगों को काल कराता था.

स्पूफिंग के जरिए वह जिस अधिकारी या राजनेता के नाम से फोन करता था, उसी का नंबर फोन रिसीव करने वाले के स्क्रीन या ट्रूकालर पर प्रदर्शित होता था. इसी कारण लोगों को यह विश्वास हो जाता था कि उस से बात कर रहा शख्स सही है.

देशभर में अनेक लोगों से सैकड़ों करोड़ रुपए की ठगी करने के आरोपी सुकेश और लीना अभी जेल में हैं. अपराधों में भागीदार उन के साथी, बैंक वाले और जेल अफसर भी जेल में हैं. दिल्ली पुलिस के अलावा प्रवर्तन निदेशालय इस मामले की जांच कर रहा है.

बहरहाल, जेल से इतने बड़े पैमाने पर हुई ठगी गंभीर जरूर है, लेकिन इस तरह की वारदातें रोकने के लिए सरकार के स्तर पर कोई भी ठोस प्रयास नहीं किए जाते. इसलिए जेल और जेल से बाहर रोजाना नएनए ठग पैदा होते हैं.