सुकेश चंद्रशेखर : सिंह बंधुओं से 200 करोड़ ठगने वाला नया नटवरलाल-भाग-2

दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने रेलिगेयर फिनवेस्ट में धोखाधड़ी के मामले में अक्तूबर 2019 में दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर लिया था. सिंह बंधुओं की गर्दिश के दिन रैनबेक्सी कंपनी बेचने के बाद ही शुरू हो गए थे. हालांकि उन्होंने फोर्टिस के 66 हौस्पिटल की शृंखला बना कर अपने पैर जमाने की कोशिश की थी, लेकिन वित्तीय गड़बडि़यों और कई गलतियों ने उन्हें जेल की सींखचों के पीछे पहुंचा दिया.

बाद में उन पर दूसरे मामले भी जुड़ते गए. इस कारण दोनों सिंह बंधु अक्तूबर 2019 से दिल्ली की जेल से बाहर नहीं निकल सके. उन की जमानत की कोशिशें बेकार हो गईं.

हालांकि गिरफ्तारी से पहले ही दोनों भाइयों में मतभेद हो गए थे. फिर भी दोनों भाइयों के परिवार अपनेअपने तरीकों से उन को जेल से बाहर निकालने की कोशिशों में जुटे हुए थे.

अरबों रुपए की संपत्तियां होने और भारत ही नहीं कई देशों में मंत्रियों, संतरियों से ले कर टौप ब्यूरोक्रेट्स से अच्छे संबंध होने के बावजूद वह पैसा उन के कोई काम नहीं आ पा रहा था.

ठग सुकेश चंद्रशेखर 2017 से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद था. उस के तिहाड़ जेल पहुंचने की कहानी आप आगे पढ़ेंगे. जेल में बंद सुकेश को जब सिंह बंधुओं की अकूत दौलत और जमानत की सारी कोशिशें बेकार होने का पता चला तो उस ने उन के घरवालों को ठगने की योजना बनाई.

इस के लिए योजनाबद्ध तरीके से ही अदिति सिंह को कानून मंत्रालय के सचिव अनूप कुमार के नाम से फोन किया गया.

कुछ दिन बाद फिर उसी शख्स का फोन अदिति सिंह के पास आया. ट्रूकालर पर फोन नंबर प्रधानमंत्री कार्यालय में सलाहकार पी.के. मिश्रा का प्रदर्शित हो रहा था.

फोन पर अनूप कुमार ने कहा कि मैं स्पीकर फोन पर हूं. मेरे साथ गृहमंत्री अमित शाह साहब हैं. अनूप ने कहा मेरे जूनियर अभिनव के टच में रहो और मुझे अपने पति के केस से जुड़े सभी दस्तावेज भेजो ताकि उन की जेल से जल्द रिहाई की व्यवस्था हो सके और वे कोविड के इस दौर में सरकार के साथ काम कर सकें.

बाद में अभिनव ने खुद को अंडर सेक्रेटरी बताते हुए अदिति सिंह से टेलीग्राम पर संपर्क किया. उस ने कहा कि सरकार उन का पूरा सपोर्ट करेगी. लेकिन वह यह बात किसी को नहीं बताएं, क्योंकि उस पर खुफिया एजेंसियों की नजर है.

इसीलिए सरकार के बड़े लोग लैंडलाइन फोन से बात करते हैं या टेलीग्राम पर संपर्क रखते हैं, क्योंकि वाट्सऐप भी अब सुरक्षित नहीं है. अभिनव ने यह भी बताया कि कई कारोबारी घराने उस के प्रोटेक्शन में हैं.

इस तरह संपर्क कर अभिनव अदिति सिंह का भरोसा जीतता गया. उसे उन की कंपनियों और तमाम कारोबार सहित घरपरिवार की पूरी जानकारी थी.

एक दिन अनूप का फोन आया. उस ने अदिति से कहा कि पार्टी फंड में 20 करोड़ रुपए जमा कराने होंगे. इस के बाद उन्हें अमित शाहजी या रविशंकर प्रसादजी से पार्टी औफिस अथवा नार्थ ब्लौक में मिलना होगा.

अनूप ने पार्टी फंड का पैसा विदेश भेजने को कहा. बाद में उस ने कहा कि हमारा आदमी आप से यह पैसा ले जाएगा.

अदिति के लिए 100-50 करोड़ रुपए बड़ी बात नहीं थी. वह अपने पति को जेल से बाहर निकालने के लिए सही या गलत तरीके से हर कीमत देने को तैयार थीं.

पैसे का इंतजाम होने पर रोहित नाम का एक युवक सेडान गाड़ी से एक महिला के साथ आया और उन से 20 करोड़ रुपए ले गया. बाद में फिर एक बार अनूप का फोन आया. उस ने कहा कि पार्टी आप से खुश है. इस बार उस ने 30 करोड़ रुपए और मांगे.

अदिति ने पूछा कि ये पैसे किस काम के लिए होंगे, तो उसे धमकाया गया कि उन के पति पर सरकार नए केस लगा देगी और उन की जमानत में ज्यादा मुश्किलें आ जाएंगी.

अदिति ने 30 करोड़ रुपए भी दे दिए. फिर एक दिन अनूप का फोन आया. उस ने कहा कि गृह सचिव अजय भल्ला आप से बात करेंगे. अजय भल्ला ने कहा कि आप के पति को आप से जल्दी ही मिलवाया जाएगा.

इस तरह कभी किसी मंत्री और कभी किसी टौप ब्यूरोक्रेट के नाम से फोन आते रहे. ये लोग अदिति को उन के पति की जेल से रिहाई की दिलासा दिलाते रहे और बदले में किसी न किसी बहाने से मोटी रकम मांगते रहे.

सरकार के भरोसे अपने पति की रिहाई की उम्मीद में अदिति ने अपनी जमापूंजी, निवेश और जेवरात आदि दांव पर लगा कर इन लोगों को एक साल में अलगअलग किस्तों में 200 करोड़ रुपए दे दिए.

इतनी रकम लेने के बाद भी ये लोग उसे धमकाते रहे और विदेश में पढ़ रहे बच्चों को देख लेने की धमकी देते रहे.

सरकार के सपोर्ट के बावजूद एक साल बाद भी कुछ नहीं होने पर अदिति ने अनूप कुमार, अभिनव, अजय भल्ला आदि से हुई बातों को याद कर उन पर गौर किया. उसे महसूस हुआ कि ये सब लोग दक्षिण भारतीय हैं. उन की बातचीत का लहजा दक्षिण भारत का था.

अदिति को ठगी होने का शक हुआ, तो उस ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के एक अधिकारी से शिकायत की. ईडी के अधिकारी ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को यह जानकारी दी.

इसी साल अगस्त के पहले सप्ताह में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को इस मामले की भी जांच सौंपी गई. जांच में पता चला कि अदिति सिंह को दिल्ली की रोहिणी जेल से फोन किए गए थे.

पुलिस ने 8 अगस्त को रोहिणी जेल में छापा मार कर सुकेश को गिरफ्तार कर लिया. उस के पास से 2 स्मार्टफोन बरामद हुए. सुकेश से पूछताछ के आधार पर दिल्ली के रहने वाले 2 भाइयों दीपक रामदानी और प्रदीप रामदानी को गिरफ्तार किया गया. वे ठगी की साजिश में भागीदार थे.

सुकेश से पूछताछ में ठगी के मामले में जेल अधिकारियों की मिलीभगत भी सामने आई. इस पर जेल प्रशासन ने 23 डिप्टी सुपरिटेंडेंट के तबादले कर दिए. और 6 जेल अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया.

पुलिस ने जेल अधिकारियों से पूछताछ के बाद एक डिप्टी सुपरिटेंडेंट सुभाष बत्रा और एक असिस्टेंट जेल सुपरिटेंडेंट धर्मसिंह मीणा को गिरफ्तार कर लिया.

सुकेश की ठगी की काली कमाई को कमीशन ले कर सफेद करने के मामले में दिल्ली के एक निजी बैंक के वाइस प्रेसीडेंट मैनेजर कोमल पोद्दार और उस के 2 सहयोगियों अविनाश कुमार व जितेंद्र नरूला को गिरफ्तार किया गया.

इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने 23 अगस्त को सुकेश और उस की फिल्म अभिनेत्री पत्नी लीना मारिया पाल सहित उन के साथियों के विभिन्न ठिकानों पर छापे मारे.

इन के चेन्नई में समुद्र के ठीक सामने बने आलीशान बंगले पर ईडी अधिकारियों ने जब छापेमारी की, तो दौलत की चकाचौंध देख कर उन की आंखें फटी रह गईं.

इन छापों में 16 लग्जरी और महंगी कारें, 82 लाख रुपए से ज्यादा नकदी और 2 किलोग्राम सोने के जेवरात के अलावा कपड़े, जूते व चश्मों सहित काफी कीमती सामान जब्त किया गया.

चेन्नई में समुद्र के ठीक सामने बना सुकेश लीना का बंगला किसी रिसौर्ट से कम नहीं है. इस बंगले में ऐशोआराम की चीजें मौजूद थीं. करोड़ों रुपए के इंटीरियर डेकोरेशन, होम थिएटर और तमाम सुखसुविधाएं थीं. बंगले में बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज, बेंटले, फैरारी, रोल्स रायस घोस्ट और रेंज रोवर जैसी करोड़ों रुपए की गाडि़यां मिलीं.

कीमती फरनीचर से सुसज्जित बंगले में दुनिया के नामी ब्रांड फरागमो, चैनल, डिओर, लुइस वुइटटो, हरमेस आदि के सैकड़ों जोड़ी जूते तथा बैग मिले.

पत्रकार दानिश सिद्दीकी : सच बोलती तस्वीरों का नायक

भारत के पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान का कंधार शहर इस वक्त तालिबान के हमले से जूझ रहा है. यही कारण है कि तालिबान भारत के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है. तालिबान चाहता है कि अफगानिस्तान में 2001 से पहले जैसे उस ने शासन किया, उसी प्रकार उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता और पहचान मिले.

अफगानिस्तान के लगभग 85 फीसदी हिस्से पर वो अपना कब्जा जमा चुका है और वह अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार और उस के सैनिकों को खत्म करने पर आमादा है. तालिबान को इस बात का पूरा यकीन हो चला है कि अब उस के रास्ते में कोई आने वाला नहीं है.

तालिबान पाकिस्तान सीमा से लगे ज्यादातर प्रमुख इलाकों पर कब्जा कर चुका है. जबकि अफगान के बाकी क्षेत्र को दोबारा हासिल करने की कोशिश में अफगान बलों और तालिबान के लड़ाकों के बीच काबुल के स्पिन बोल्डक शहर में लगातार झड़प चल रही है.

भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी इसी इलाके में युद्ध हालात को कवर कर रहे थे. वह अपने कैमरे की नजर से तालिबानी हमले से हो रही हिंसा से दुनिया को रूबरू करा  रहे थे.

हर दिन अफगान सेना और तालिबान लड़ाकों के बीच गोलाबारूद से होने वाली खूनी झड़पों में सैकड़ों मौतें हो रही हैं, उन्हीं  में 15 जुलाई, 2021 को हुई एक भारतीय फोटो पत्रकार की मौत ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है.

दानिश सिद्दीकी 15 जुलाई  को कंधार में तब अपनी जान गंवा बैठे, जब वह तालिबान और अफगान सुरक्षा बलों के बीच चल रही लड़ाई को कवर कर रहे थे.

दानिश सिद्दीकी दुनिया की सब से बड़ी समाचार एजेंसी रायटर्स के लिए बतौर फोटो जर्नलिस्ट काम करते थे और युद्धग्रस्त अफगान क्षेत्र में अफगान सुरक्षा बलों के साथ एक रिपोर्टिंग असाइनमेंट पर थे.

दानिश सिद्दीकी 13 जुलाई को भी उस समय बालबाल बचे थे, जब अफगान सेना पर तालिबानी हमला हुआ था. उस दिन वह अफगानिस्तान में मौत से पहली बार रूबरू हुए थे.

दरअसल, उस दिन वह अफगान सेना के उस वाहन में मौजूद थे, जो हिंसाग्रस्त इलाकों से लोगों को बचाने जा रहा था. उस वक्त सेना की गाड़ी पर भी गोलीबारी की गई थी, जिस में दानिश बालबाल बचे थे.

दानिश ने इस घटना के वीडियो व फोटो ट्विटर पर पोस्ट किए थे, जिस में गाड़ी पर आरपीजी की 3 राउंड फायरिंग होती नजर आई. उस दौरान दानिश ने लिखा था कि भाग्यशाली हूं कि सुरक्षित हूं.

उसी दिन उन्होंने ट्विटर पर एक तसवीर भी साझा की थी, जिस में उन्होंने लिखा था कि 15 घंटे के औपरेशन के बाद उन्हें महज 15 मिनट का ब्रेक मिला.

भारत में अफगानिस्तान के राजदूत फरीद ममुंडजे ने कंधार में भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की कवरेज के दौरान हत्या किए जाने की सूचना सार्वजनिक की.

अफगानिस्तान के राजदूत फरीद ममुंडजे ने 17 जुलाई को सुबह ट्वीट किया, ‘कल रात कंधार में एक दोस्त दानिश सिद्दीकी की हत्या की दुखद खबर से बहुत परेशान हूं. भारतीय पत्रकार और पुलित्जर पुरस्कार विजेता अफगान सुरक्षा बलों के साथ कवरेज कर रहे थे. मैं उन से 2 हफ्ते पहले उन के काबुल जाने से पहले मिला था. उन के परिवार और रायटर के प्रति संवेदना.’

पत्नी व बच्चे थे जर्मनी में

एजेंसी रायटर्स से जुड़े फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी पुलित्जर पुरस्कार विजेता थे. हालांकि तालिबान के प्रवक्ता जबिउल्लाह मुजाहिद ने सिद्दीकी की मौत पर दुख जाहिर करते हुए कहा, ‘‘हमें इस बात की जानकारी नहीं है कि किस की गोलीबारी में पत्रकार दानिश की मौत हुई. हम नहीं जानते उन की मौत कैसे हुई. लेकिन युद्ध क्षेत्र में प्रवेश कर रहे किसी भी पत्रकार को हमें सूचित करना चाहिए. हम उस व्यक्ति का खास ध्यान रखेंगे.’’

दानिश का यूं असमय चले जाना उन के पूरे परिवार को तोड़ गया है. दानिश सिद्दीकी का जन्म साल 1980 में महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में हुआ था. दानिश सिद्दीकी के पिता  प्रोफेसर अख्तर सिद्दीकी जामिया मिलिया इस्लामिया से रिटायर्ड हैं. इस के अलावा अख्तर सिद्दीकी राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के निदेशक भी रह चुके हैं.

दानिश सिद्दीकी के परिवार में उन की पत्नी और 2 बच्चे हैं. दानिश सिद्दीकी की पत्नी जर्मनी की रहने वाली हैं. उन का 6 साल का एक बेटा और 3 साल की एक बेटी है.

घटना के समय उन की पत्नी व बच्चे जर्मनी में ही थे. दानिश की मौत की खबर मिलने के बाद वे भारत के लिए रवाना हो गए.

दानिश सिद्दीकी ने दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया से पढ़ाई की थी. यहीं से उन्होंने इकोनौमिक्स में स्नातक किया था. जामिया से 2005-07 बैच में उन्होंने मास कम्युनिकेशन की मास्टर डिग्री हासिल की. पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद दानिश ने ‘आजतक’ टीवी चैनल में बतौर पत्रकार अपना करियर शुरू किया था.

इस के बाद उन का रुझान फोटो जर्नलिज्म की तरफ बढ़ता चला गया और सन 2010 में वह अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रायटर्स के साथ बतौर इंटर्न जुड़ गए. दानिश सिद्दीकी ने जब कैमरे से फोटो लेनी शुरू कीं तो उन की तसवीरें पसंद की जाने लगीं.

रिपोर्टर से की करियर की शुरुआत

क्योंकि उन की तसवीरें बोलती थीं. उन के पीछे एक सच छिपा होता था, जो पूरी व्यवस्था और घटनाक्रम को बयां करती थीं. उन की एकएक तसवीर लाखों शब्दों के बराबर होती थी, जो पूरी कहानी बयान कर देती थी.

दानिश के करियर के शुरुआती सहयोगियों में से एक वरिष्ठ पत्रकार राना अयूब बताती हैं कि उस वक्त उन लोगों की उम्र 23-24 साल थी. हम लोग मुंबई में ‘न्यूज एक्स’ में काम कर रहे थे और दानिश जामिया से नयानया निकल कर आया स्टूडेंट था.

वह था तो रिपोर्टर, लेकिन उसे कैमरे से इतना ज्यादा लगाव था कि मौका मिलते ही वह फोटोग्राफरों और वीडियोग्राफरों से उन का कैमरा ले कर खुद शूट करने लग जाता था.

हम लोग उस से कहते भी थे कि जब तुम इतनी अच्छी फोटोग्राफी करते हो, तो फोटाग्राफर क्यों नहीं बन जाते हो और बाद में वही हुआ. दानिश ने करियर में अपने हार्ड वर्क और लगन से एक ऐसी जंप लगाई कि सब को पीछे छोड़ दिया.

दानिश के फोटोग्राफर बनने की कहानी भी कम रोचक नहीं है. उन के मित्र कमर सिब्ते ने बताया कि दानिश ने पहले न्यूज एक्स और उस के बाद हेडलाइंस टुडे में बतौर पत्रकार काम किया था.

चूंकि उसे फोटोग्राफी का बहुत शौक था. उसी दौरान एक बार वह अपने काम से छुट्टी ले कर मोहर्रम की कवरेज के लिए उत्तर प्रदेश के शहर अमरोहा चला गया, जहां उस की मुलाकात रायटर्स के चीफ फोटोग्राफर से हुई.

रायटर्स के फोटोग्राफर ने जब दानिश के फोटोज देखे, तो वह उस से इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने कुछ ही समय बाद उसे अपनी एजेंसी में जौब का औफर दिया और उस के बाद दानिश की लाइफ ही बदल गई.

मुंबई में टाइम्स औफ इंडिया के स्पैशल फोटो जर्नलिस्ट एस.एल. शांता कुमार बताते हैं कि दानिश हर फोटो को स्टोरी के नजरिए से शूट करता था. हम लोग जब भी मिलते थे, उस से हमें कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता था.

जब उसे पुलित्जर पुरस्कार मिला तो मैं ने सुबहसुबह उठ कर उसे फोन पर बधाई दी और बाद में उस से मिल कर उस के साथ सेल्फी भी ली थी.

दिल्ली दंगों की भी की थी कवरेज

दानिश ने दिल्ली दंगों के दौरान भी फोटोग्राफी की थी. इस दंगे के दौरान जब दानिश एक शख्स पर हमला कर रही भीड़ का फोटो शूट कर रहे थे तो उस वक्त मारने वाले लोगों का ध्यान उन पर नहीं था.

लेकिन जैसे ही उन्होंने नोटिस किया कि कोई उन की फोटो खींच रहा है तो वो लोग दानिश को पकड़ने के लिए उन के पीछे भी भागे, लेकिन दानिश किसी तरह वहां से भाग कर अपनी जान बचाने में कामयाब रहे.

यूं कहें तो गलत न होगा कि इस वक्त भारत में दानिश से अच्छा और कोई फोटो जर्नलिस्ट नहीं था. पिछले एकडेढ़ साल के दौरान देश में जितनी भी बड़ी घटनाएं हुई थीं, उन के सब से बेहतरीन फोटो दानिश ने ही लिए थे.

चाहे वो नौर्थईस्ट दिल्ली के दंगों के दौरान खून से लथपथ एक शख्स पर हमला कर रही भीड़ की तसवीर हो या कोविड वार्ड में एक ही बैड पर औक्सीजन लगा कर लेटे 2 मरीजों की फोटो हो या फिर श्मशान घाट में जलती चिताओं की तसवीर हो, उन का काम अलग ही बोलता था और उस की खातिर वह किसी भी खतरे का सामना करने और कहीं भी जाने के लिए हर वक्त तैयार रहते थे.

2018 में दानिश को मिला पुलित्जर अवार्ड

भारतीय फोटो पत्रकार दानिश अंतिम सांस तक तसवीरों के जरिए दुनिया को अफगानिस्तान के हालातों से रूबरू कराते रहे. अब दानिश हमारे बीच नहीं हैं, मगर उन के काम हमारे बीच हमेशा जिंदा रहेंगे.

उन की तसवीरें बोलती थीं, यही वजह है कि दानिश सिद्दीकी को उन के बेहतरीन काम के लिए पत्रकारिता का प्रतिष्ठित पुलित्जर अवार्ड भी मिला था.

दानिश सिद्दीकी ने रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या को अपनी तसवीरों से दिखाया था और ये तसवीर उन तसवीरों में शामिल हैं, जिस की वजह से उन्हें 2018 में पुलित्जर अवार्ड मिला था.

दानिश सिद्दीकी अपनी तसवीरों के जरिए आम आदमी की भावनाओं को सामने लाते थे. वह इन दिनों भारत में रायटर्स की फोटो टीम के हैड थे.

कोरोना काल की वह तसवीर किसे याद नहीं होगी, जब लोग लौकडाउन में अपने घरों की ओर भागने लगे थे. तब हाथ में कपड़ों की पोटली और कंधों पर बच्चे को लादे लोगों की तसवीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थीं. ऐसी तमाम दर्दनाक तसवीरें दानिश ने ही अपने कैमरे में कैद की थीं और प्रवासी मजदूरों की व्यथा को देशदुनिया के सामने लाए थे.

दानिश की उस वायरल तसवीर को भी कोई नहीं भूला होगा, जब  12 सितंबर, 2018 को उत्तर कोरिया के प्योंगयांग में एक चिडि़याघर का दौरा करते हुए महिला सैनिक आइसक्रीम खाते हुए कैमरे में कैद हुई थी.

दानिश सिद्दीकी ने अपने करियर के दौरान साल 2015 में नेपाल में आए भूकंप, साल 2016-17 में मोसुल की लड़ाई, रोहिंग्या नरसंहार से पैदा हुए शरणार्थी संकट और हांगकांग को कवर किया.

इस के अलावा साल 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के दौरान भी दानिश सिद्दीकी की तसवीरें खासी चर्चा में रहीं. दिल्ली दंगों के दौरान जामिया के पास गोपाल शर्मा नाम के शख्स की फायरिंग करते हुए तसवीर दानिश सिद्दीकी ने ही ली थी. यह तसवीर उस समय दिल्ली दंगों की सब से चर्चित तसवीरों में से एक थी.

जामिया नगर की गफ्फार मंजिल के रहने वाले दानिश सिद्दीकी के गमजदा परिवार में 17 जुलाई की सुबह से ही मिलनेजुलने वालों और परिचितों के दुख जताने का सिलसिला जारी हो गया. पिता प्रोफेसर अख्तर सिद्दीकी को विश्वास ही नहीं हो रहा कि उन का बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा.

वे बताते हैं कि 2 दिन पहले ही दानिश से उन की फोन पर बातचीत हुई थी. उन्होंने दानिश से अपनी सुरक्षा का ध्यान रखने के लिए कहा तो दानिश ने कहा था कि वे फिक्र न करें अफगानी आर्म्ड फोर्स उन्हें पूरी सुरक्षा दे रही है. अविश्वसनीय भाव से बेटे की तसवीर को निहारते प्रोफेसर अख्तर सिद्दीकी की आंखों से आंसू टपक रहे थे.

अफगानी फोर्स की थी सुरक्षा

दूसरी तरफ दानिश की तालिबानी हमले में मौत के बाद विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने यूएनएससी की बैठक में कहा कि भारत अफगानिस्तान में पत्रकार दानिश सिद्दीकी की हत्या की कड़ी निंदा करता है.

साथ ही सशस्त्र संघर्ष के हालात में मानवीय कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा पर गंभीर चिंता व्यक्त भी की है. भारत में अधिकांश राजनेताओं ने दानिश की मौत पर दुख व्यक्त किया.

रायटर्स के अध्यक्ष माइकल फ्रिडेनबर्ग और एडिटर इन चीफ एलेसेंड्रा गैलोनी ने भी दानिश सिद्दीकी की हत्या पर शोक जाहिर किया है.

18 जुलाई, 2021 को जब एयर इंडिया के विमान से उन का पार्थिव शरीर भारत लाया गया तो एयरपोर्ट पर उन के पिता ने शव रिसीव किया.

पार्थिव शरीर आने से पहले ही सरकार ने जरूरी इंतजाम किए हुए थे, जिस की वजह से क्लीयरेंस व अन्य किसी चीज में दिक्कत नहीं आई. शव ले कर एंबुलेंस जब जामिया नगर पहुंची तो सड़क के दोनों ओर गमगीन लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा.

दिल्ली के जामिया नगर के गफ्फार मंजिल इलाके में स्थित उन के घर पर लोगों का तांता लग गया. सभी ने उन की मौत पर शोक व्यक्त किया. रविवार यानी 18 जुलाई की देर रात को उन्हें जामिया के कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया.

अब फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी भले ही हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन इन की तसवीरें हमेशा उन के साहसिक कार्य की कहानी बयां करती रहेंगी.

 

लाल सूटकेस का खौफनाक रहस्य

तिरुपति भारत के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में एक है. आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित तिरुपति शहर में हर साल लाखों की तादाद में दर्शनार्थी आते हैं. समुद्र तल से करीब 3200 फीट की ऊंचाई पर तिरुमला की पहाडि़यों पर बना श्री वेंकटेश्वर मंदिर यहां का सब से बड़ा आकर्षण है.

कई शताब्दी पहले बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है. तिरुपति आने वाले हरेक श्रद्धालु की सब से बड़ी इच्छा श्री वेंकटेश्वर के दर्शन करने की होती है. इस के अलावा भी यहां कई अन्य मंदिर हैं.

इन मंदिरों में सामान्य दिनों में देशविदेश से रोजाना हजारोंलाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. इसलिए तिरुपति को दक्षिण भारत की सब से बड़ी धार्मिक नगरी भी कहा जाता है.

इसी धार्मिक नगरी में सब से बड़ा सरकारी अस्पताल है. इस का नाम श्री वेंकटा रमाना रुईया (एसवीआरआर) है. इस 23 जून, 2021 को अस्पताल के पिछवाड़े एक जला हुआ सूटकेस पड़ा होने की सूचना पुलिस को मिली.

सूचना पर तिरुपति के अलिपिरी थाने की पुलिस मौके पर पहुंची. पुलिस ने उस बड़े से सूटकेस का मुआयना किया. सूटकेस जला हुआ था. उस में से किसी इंसान का जला हुआ शव नजर आ रहा था.

पुलिस ने सूटकेस से शव को निकलवाया. शव पूरी तरह जला हुआ था. कई जगह  से चमड़ी और मांस भी जल चुका था.  केवल हड्डियां बची हुई थीं. मामला बेहद गंभीर था.

अलिपिरी थाने की पुलिस ने अपने उच्चाधिकारियों को इस की सूचना दी. इस के बाद पुलिस के आला अफसर भी मौके पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने शव का मुआयना किया, लेकिन जला हुआ शव देख कर यह भी पता नहीं चल रहा था कि यह पुरुष का है या महिला का.

ऐसी हालत में शव की शिनाख्त होना तो दूर की बात थी. मौके से पुलिस को ऐसी कोई संदिग्ध चीज नहीं मिली, जिस से मृतक या शव फेंकने वाले के बारे में कोई सुराग मिलता.

पुलिस अधिकारियों ने विधि विज्ञान प्रयोगशाला से फोरैंसिक टीम बुलाई. फोरैंसिक वैज्ञानिकों ने कुछ साक्ष्य जुटाए. इस के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए इसी अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया गया.

डाक्टरों ने पोस्टमार्टम के बाद केवल इतना बताया कि शव किसी महिला का है और उस की उम्र 25 से 30 साल के बीच है. इस के बाद तिरुपति के अलिपिरी पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

डाक्टरों की रिपोर्ट से पुलिस को बहुत ज्यादा मदद नहीं मिली. पुलिस अधिकारी हैरान थे कि धार्मिक नगरी में ऐसा जघन्य कांड किस ने और क्यों किया? महिला का शव होने से अधिकारी इस बात पर विचार करने लगे कि कहीं यह कोई प्रेम प्रसंग का मामला तो नहीं है?

शव की शिनाख्त में जुटी पुलिस

सब से पहले यह पता करना जरूरी था कि शव किस का था? इस के लिए पुलिस अधिकारियों ने तिरुपति सहित चित्तूर जिले के सभी थानों और आसपास की पुलिस को सूचना दे कर यह पता कराया कि किसी महिला के लापता या गुमशुदा होने की कोई रिपोर्ट तो हाल ही दर्ज नहीं हुई है.

लगभग सभी थानों से पुलिस को न में ही जवाब मिला. 2-4 थानों से लापता महिलाओं की सूचना मिली, लेकिन वे उस उम्र के दायरे में नहीं आ रही थी.

पुलिस की कई टीमें मृतका की शिनाख्त करने और कातिल का पता लगाने की कोशिशों में जुटी हुई थीं, लेकिन कोई सुराग नहीं मिल रहा था. 2-3 दिन बीत गए.

पुलिस के लिए यह मर्डर मिस्ट्री बन गई थी. यह तय था कि महिला की हत्या कर सोचीसमझी साजिश के तहत सूटकेस में रख कर शव जलाया गया है ताकि कोई सबूत नहीं बचे.

मतलब कातिल जो भी हो, वह शातिर दिमाग था. जांचपड़ताल में पुलिस अधिकारियों को खयाल आया कि सूटकेस में शव जलाया गया है तो यह भारीभरकम सूटकेस किसी वाहन में रख कर लाया गया होगा.

यह खयाल आते ही अधिकारियों ने एसवीआरआर अस्पताल परिसर और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने का फैसला किया.

सीसीटीवी फुटेज खंगालने के बाद पुलिस को पता चला कि एक व्यक्ति टैक्सी से भारीभरकम सूटकेस ले कर अस्पताल आया था. उस व्यक्ति के साथ डेढ़दो साल की एक छोटी बच्ची थी. टैक्सी से लाल रंग के उस ट्रौली सूटकेस को उतारने के बाद वह व्यक्ति उसे पहियों के सहारे खींचता हुआ अस्पताल के पिछवाड़े ले गया था.

कैमरे की ये फुटेज मिलने पर इस मर्डर मिस्ट्री में उम्मीद की कुछ किरण नजर आई. पुलिस के लिए उस व्यक्ति की तलाश करना ज्यादा मुश्किल काम था. इसलिए सब से पहले उस टैक्सी वाले का पता लगाया गया. 1-2 दिन की भागदौड़ के बाद पुलिस को वह टैक्सी वाला मिल गया.

पुलिस ने उस से पूछताछ की, तो पता चला कि 22 जून की रात एक व्यक्ति उस की टैक्सी में लाल रंग का ट्रौली वाला सूटकेस रख कर लाया था. सूटकेस भारीभरकम था. उसे खींचने में उसे जोर लगाना पड़ रहा था. उस व्यक्ति के साथ डेढ़दो साल की एक बच्ची भी थी.

अस्पताल में उस व्यक्ति ने टैक्सी से सूटकेस उतारा. बच्ची उस समय सो गई थी. इसलिए उस व्यक्ति ने टैक्सी वाले से कहा कि मुझे यह सूटकेस किसी को देना है. मैं कुछ देर में आता हूं. यह बच्ची सो गई है. इसलिए इसे टैक्सी में छोड़ जाता हूं.

टैक्सी ड्राइवर से मिला सुराग

उस व्यक्ति ने टैक्सी वाले को रुकने के एवज में और बच्ची का ध्यान रखने के लिए कुछ पैसे देने का वादा किया.

टैक्सी वाले ने पैसों के लालच में हामी भर दी. इस के बाद वह व्यक्ति पहियों के सहारे उस ट्रौली बैग को खींचते हुए ले गया.

करीब आधे घंटे बाद वह व्यक्ति वापस आया. तब तक बच्ची टैक्सी में सोती हुई ही मिली. यह देख कर उस ने टैक्सी वाले को धन्यवाद दिया और वापस चलने के लिए टैक्सी में सवार हो गया. टैक्सी वाला उस व्यक्ति को जहां से लाया था, उसी जगह वापस छोड़ आया.

उस व्यक्ति ने बच्ची को गोद में उठाया और टैक्सी से उतर कर किराए का हिसाब किया. इस के बाद वह व्यक्ति लंबेलंबे डग भरता हुआ तेजी से एक तरफ चला गया. उस व्यक्ति को जाता देख कर टैक्सी वाला भी वहां से चल दिया.

टैक्सी वाले से पुलिस को काफी कुछ सुराग मिल गया था. अब उस व्यक्ति का पताठिकाना तलाश करना बाकी था. टैक्सी वाले ने उस व्यक्ति को जिस जगह छोड़ा था, पुलिस ने उस के आसपास के इलाकों में लोगों को फोटो दिखा कर उस व्यक्ति की तलाश शुरू कर दी.

इस काम में पुलिस की कई टीमें लगाई गईं. इस से परिणाम भी जल्दी ही सामने आ गए. पता चला कि उस व्यक्ति का नाम श्रीकांत रेड्डी था. यह भी पता चल गया कि सूटकेस में जिस महिला का जला हुआ शव मिला था, वह करीब 26-27 साल की उस की पत्नी भुवनेश्वरी थी.

पुलिस को अब श्रीकांत रेड्डी की तलाश थी. इस बीच भुवनेश्वरी की एक रिश्तेदार महिला पुलिस एसआई ममता ने अपने स्तर पर जुटाए कुछ सीसीटीवी फुटेज अलिपिरी थाना पुलिस को उपलब्ध करा दिए.

इन फुटेज से श्रीकांत के अपराधी होने की पुष्टि हो गई. पुलिस ने मोबाइल लोकेशन के आधार पर पता कर 30 जून को श्रीकांत रेड्डी को गिरफ्तार कर लिया.

श्रीकांत से पुलिस की पूछताछ और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर भुवनेश्वरी की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

श्रीकांत रेड्डी आंध्र प्रदेश के कडपा जिले के बडवेल का रहने वाला था और भुवनेश्वरी चित्तूर जिले के रामासमुद्रम गांव की रहने वाली थी. भुवनेश्वरी एक सौफ्टवेयर इंजीनियर थी. वह हैदराबाद शहर में टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज में नौकरी करती थी. श्रीकांत भी टेक्नो इंजीनियर था. वह भी हैदराबाद की एक कंपनी में काम करता था.

एक ही प्रोफैशन में होने के कारण दोनों में पहले यारीदोस्ती हुई. यह दोस्ती बाद में प्यार में बदल गई. दोनों ने शादी करने का फैसला किया. वर्ष 2019 के शुरू में उन्होंने शादी कर ली. दोनों हैदराबाद में रहते थे. पतिपत्नी दोनों इंजीनियर थे. वेतन भी ठीकठाक था. इसलिए किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी. भुवनेश्वरी भी खुश थी और श्रीकांत भी.

आपसी झगड़े में उड़नछू हो गया लव

दोनों की खुशियां तब और बढ़ गईं, जब 2019 के आखिर में उन के घर एक नन्ही परी ने जन्म लिया. हालांकि पतिपत्नी दोनों नौकरीपेशा थे, लेकिन फिर भी बेटी के जन्म से उन की खुशियों की दुनिया और ज्यादा रंगीन हो गई.

बेटी 4 महीने की हुई थी कि देश में कोरोना की पहली लहर आ गई. इस पहली लहर में पिछले साल श्रीकांत की नौकरी छूट गई. कुछ दिन तो घर में ठीकठाक चलता रहा, लेकिन बाद में पतिपत्नी के बीच झगड़े होने लगे. झगड़े का कारण था कि श्रीकांत अपने तमाम तरह के खर्चे के पैसे भुवनेश्वरी से लेता था.

भुवनेश्वरी उसे पैसे तो दे देती, लेकिन वह उस से कोई कामधंधा भी करने को कहती थी. स्थितियां ऐसी रहीं कि श्रीकांत को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली.

वह पत्नी पर ही आश्रित रहने लगा. भुवनेश्वरी भी आखिर कब तक उसे शौक पूरे करने के लिए पैसे देती? नतीजतन घर में रोजाना किसी न किसी बात पर झगड़े होने लगे.

इस बीच, इस साल कोरोना की दूसरी लहर आ गई. छोटीबड़ी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों से वर्क फ्रौम होम शुरू करा दिया. भुवनेश्वरी भी घर से ही कंपनी का काम करने लगी. खर्चे कम करने के लिए इसी साल भुवनेश्वरी और श्रीकांत हैदराबाद से तिरुपति आ कर रहने लगे.

तिरुपति में दोनों पतिपत्नी अपनी सवाडेढ़ साल की बेटी के साथ एक अपार्टमेंट में रहते थे. तिरुपति आने के बाद भी श्रीकांत निठल्ला बना रहा. उस के निठल्लेपन के कारण घर में झगड़े बढ़ते जा रहे थे. पत्नी उसे कई बार पैसे देने से मना कर देती थी. इस से श्रीकांत चिढ़ जाता था.

पत्नी की पाबंदियों और रोज की रोकटोक से श्रीकांत के मन में उस के प्रति घृणा बढ़ती गई. लिहाजा उस ने भुवनेश्वरी को ठिकाने लगाने का फैसला किया.

गला दबा कर मारा था पत्नी को

22 जून, 2021 को भुवनेश्वरी जब अपने फ्लैट में सो रही थी तो श्रीकांत ने तकिए से गला दबा कर उसे मौत की नींद सुला दिया.

पत्नी की सांसें थमने के बाद वह उस का शव ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. काफी सोचविचार के बाद उस ने घर में रखा एक लाल रंग का बड़ा ट्रौली सूटकेस निकाला और उस में भुवनेश्वरी की लाश बंद कर दी.

वह अपनी डेढ़ साल की बेटी के बारे में सोचने लगा. वह उस मासूम को अकेला कहीं छोड़ कर भी नहीं जा सकता था और उस को मारना भी नहीं चाहता था.

शाम का धुंधलका होने पर श्रीकांत ने बेटी को गोद में उठाया और भुवनेश्वरी की लाश वाला ट्रौली सूटकेस बाहर निकाल कर फ्लैट में ताला लगाया. वह लिफ्ट के सहारे ट्रौली सूटकेस ले कर नीचे आया और गलियारे से हो कर अपार्टमेंट से बाहर निकल गया.

बाहर सड़क पर आ कर उस ने टैक्सी ली. उस में वह सूटकेस रखा. बेटी को गोद में लिए हुए वह टैक्सी से एसवीआरआर अस्पताल पहुंचा और टैक्सी वाले को रुकने को कह कर सूटकेस ले कर चला गया. मासूम बेटी को वह टैक्सी में ही सोते हुए छोड़ गया.

सूटकेस को धकेलता हुआ वह अस्पताल के पिछवाड़े ले गया. वहां अंधेरा और घासफूस थी. सूटकेस को एक कोने में ले जा कर उस ने उस पर अपने साथ लाया हुआ पैट्रोल छिड़क दिया और आग लगा दी. आग लगाने के बाद वह छिप कर खड़ा हो गया और सूटकेस को जलता हुआ देखता रहा.

करीब आधे घंटे बाद जब उसे यह इत्मीनान हो गया कि अब पत्नी की लाश जल गई होगी और उस की पहचान नहीं हो सकेगी, तब वह वहां से चल दिया. टैक्सी के पास पहुंच कर उस ने पीछे की सीट पर सोई मासूम बेटी को संभाला. फिर उसी टैक्सी में सवार हो कर वापस उसी जगह उतर गया, जहां से सूटकेस ले कर बैठा था.

दूसरे दिन श्रीकांत ने अपने रिश्तेदारों को यह बता दिया कि भुवनेश्वरी कोरोना के डेल्टा प्लस वैरिएंट से संक्रमित थी. इस से उस की मौत हो गई ओर कोरोना संक्रमित होने के कारण अस्पताल वालों ने ही उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

भुवनेश्वरी के पीहरवालों को हालांकि इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था, लेकिन उन्होंने श्रीकांत की बात पर मजबूरी में विश्वास कर लिया. क्योंकि वे कोरोना के कहर को जानते थे. इस बीच श्रीकांत फ्लैट से फरार हो गया.

भुवनेश्वरी की एक रिश्तेदार ममता प्रशिक्षु सबइंसपेक्टर है. उसे भुवनेश्वरी की मौत का पता चला तो उसे भरोसा नहीं हुआ. चूंकि वह पुलिस अधिकारी थी, इसलिए उस ने अपने तरीके से इस की खोजबीन की और जिस अपार्टमेंट में वह रहता था, वहां की सीसीटीवी फुटेज खंगाले तो सारे सबूत मिल गए.

तमाम सबूतों के आधार पर आरोपी श्रीकांत पकड़ा गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में था.

इंजीनियर श्रीकांत ने अपने निठल्लेपन के कारण सौफ्टवेयर इंजीनियर पत्नी के खून से अपने हाथ तो रंग ही लिए. साथ ही डेढ़ साल की मासूम बेटी के सिर से ममता का आंचल भी छीन लिया.

बेखौफ गैंग्स्टर : 2 पुलिस अफसरों की हत्या

फिरोजपुर निवासी कुख्यात बदमाश जयपाल भुल्लर ने जगराओं में 2 पुलिस अधिकारियों की हत्या कर अपने आतंक का रौब दिखाने की कोशिश की थी. इस घटना ने पंजाब पुलिस के 4 सालों में 3300 से ज्यादा गैंगस्टरों को गिरफ्तार करने के दावे पर सवालिया निशान लगा दिया है.

पंजाब का लुधियाना शहर हौजरी और गर्म कपड़ों के थोक व्यापार के लिए पूरे भारत में जाना जाता है. लुधियाना और उस के आसपास गर्म कपड़े बनाने के सैकड़ों छोटेबड़े उद्योग हैं. हर साल सर्दियों की शुरुआत से पहले ही खरीदारी के लिए यहां देश भर के व्यापारी आते हैं. इसी लुधियाना शहर से करीब 45 किलोमीटर दूर एक शहर जगराओं है.

इसी साल 15 मई की बात है. पुलिस के सीआईए स्टाफ के एएसआई दलविंदर सिंह और भगवान सिंह को शाम को करीब 6 बजे सूचना मिली कि जगराओं की नई दाना मंडी में एक ट्र्रक में नशे की बड़ी खेप आई है. इस सूचना पर दोनों एएसआई एक होमगार्ड जवान राजविंदर के साथ अपनी निजी स्विफ्ट कार से मौके पर रवाना हो गए.

15-20 मिनट बाद जब वह वहां पहुंचे तो उन्होंने वहां एक कैंटर ट्र्रक खड़ा देखा. पुलिस वाले अपनी गाड़ी एक तरफ साइड में खड़ी कर उस ट्र्रक के पास पहुंचे और आसपास खड़े लोगों से पूछताछ करने लगे.

वहां मौजूद लोगों से उन्हें कुछ पता नहीं चला, तो एएसआई भगवान सिंह ट्र्रक में आगे बने ड्राइवर केबिन में चढ़ गए. भगवान सिंह ने ट्र्रक में ड्राइविंग सीट पर बैठे शख्स को पहचान लिया. उसे देखते ही बोले, ‘‘ओए पुत्तर, तू तो जयपाल भुल्लर है.’’

वह शख्स भी भगवान सिंह की बात सुन कर समझ गया कि यह पुलिसवाला है. उस ने फुरती से अपने कपड़ों में से पिस्तौल निकाली और उस की कनपटी पर गोलियां मार दीं. गोलियां लगने से भगवान सिंह ट्र्रक से नीचे गिर गए. उन के सिर से खून बह निकला. गोली की आवाज सुन कर ट्र्रक के पास खड़े दूसरे एएसआई दलविंदर सिंह तेजी से ट्र्रक में चढ़ने लगे, तो पास में खड़ी एक आई-10 कार में सवार कुछ लोग बाहर निकल आए.

वे लोग उन पुलिस वालों से मारपीट करने लगे. मारपीट के दौरान एक शख्स ने दलविंदर सिंह को भी गोली मार दी. गोली लगने से वह भी लहूलुहान हो गए. इस के बाद भी बदमाश नहीं रुके बल्कि दलविंदर और होमगार्ड जवान राजविंदर सिंह से मारपीट करते रहे. राजविंदर जैसेतैसे बदमाशों से अपनी जान बचा कर भाग निकला.

जब यह घटनाक्रम चल रहा था तो मंडी में कुछ युवक क्रिकेट खेल रहे थे. उन युवकों ने गोलियां चलने की आवाज सुनी तो वे वीडियो बनाने लगे और बदमाशों को पकड़ने के लिए दौड़े. इस पर बदमाशों ने गोलियां चला कर उन युवकों को धमकाया.

उन युवकों के डर कर रुक जाने पर बदमाशों ने ट्र्रक से सामान निकाल कर अपनी आई-10 कार में रखा. इस के बाद बदमाशों ने वहां लहूलुहान पड़े पुलिस के दोनों अधिकारियों की पिस्तौलें निकालीं और उस ट्र्रक व कार में सवार हो कर भाग गए.

पुलिस के दोनों एएसआई गोलियां लगने से तड़प रहे थे. बदमाशों के भागने के बाद वहां लोगों की भीड़ जुट गई. पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने घायल पड़े दोनों एएसआई को अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

सरेआम दिनदहाड़े पुलिस के 2 अधिकारियों की गोलियां मार कर हत्या कर देने की घटना से पूरे शहर और आसपास के इलाकों में सनसनी फैल गई. अफसरों ने पहुंच कर मौकामुआयना किया. जांच शुरू कर दी गई. बदमाशों की तलाश में शहर के सभी रास्तों पर नाके लगा दिए. पूरे पंजाब में रेड अलर्ट जारी कर दिया गया.

बदमाशों की तलाश में भागदौड़ कर रही पुलिस को कुछ ही देर बाद मोगा रोड पर एक ढाबे के बाहर वह ट्र्रक खड़ा मिल गया, जिसे बदमाश भगा ले गए थे. ट्र्रक में अफीम और चिट्टा बरामद हुआ. ट्र्रक के पिछले हिस्से में तलाशी के दौरान पुलिस को कई ब्रांडेड कपड़े मिले. इस से यह अंदाज लगाया गया कि ट्र्रक में कई लोग सवार थे. पुलिस ने वह ट्र्रक जब्त कर लिया.

ट्र्रक के नंबर की जांचपड़ताल की, तो वह फरजी निकला. यह नंबर फरीदकोट के एक जमींदार की मर्सिडीज कार का निकला. जांच में पता चला कि यह ट्र्रक मोगा के गांव धल्ले के रहने वाले एक शख्स के नाम पर था. उस ने ट्र्रक दूसरे को बेच दिया. इस के बाद भी यह ट्र्रक 2 बार आगे बिकता रहा.

पुलिस अधिकारियों ने बदमाशों के चंगुल से जान बचा कर भागे होमगार्ड जवान राजविंदर सिंह से पूछताछ की तो पता चला कि ड्रग्स की सूचना पर वे मौके पर गए थे. वहां ट्र्रक की चैकिंग के दौरान एएसआई भगवान सिंह ने जयपाल भुल्लर को पहचान लिया था. इस पर जयपाल ने उसे गोलियां मार दी थीं.

बाद में एएसआई दलविंदर आगे बढ़े तो जयपाल के साथी बदमाशों ने उन पर भी गोलियां चला दीं. होमगार्ड जवान राजविंदर सिंह के परचा बयान पर पुलिस ने जयपाल भुल्लर और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

दूसरे दिन पुलिस ने दोनों शहीद एएसआई भगवान सिंह और दलविंदर सिंह के शवों का पोस्टमार्टम कराया. इस के बाद शव उन के घरवालों को सौंप दिए. दलविंदर का शव उन के घर वाले अपने पैतृक गांव तरनतारन ले गए.

भगवान सिंह का अंतिम संस्कार जगराओं में शेरपुरा रोड पर राजकीय सम्मान से किया गया. उन के 11 साल के बेटे ने मुखाग्नि दी. भगवान सिंह के अंतिम संस्कार में डीजीपी (रेलवे) संजीव कालड़ा, आईजी नौनिहाल सिंह, डीसी वरिंदर शर्मा आदि मौजूद रहे. डीजीपी ने ट्वीट कर दोनों शहीद पुलिसकर्मियों के परिवार वालों को एकएक करोड़ रुपए और आश्रित को नौकरी देने का ऐलान किया.

पुलिस ने जांचपड़ताल के लिए मौके के आसपास और बदमाशों के भागने के रास्तों की सीसीटीवी फुटेज देखी. इन से साफ हो गया कि दोनों पुलिसकर्मियों की हत्या कुख्यात गैंगस्टर जयपाल भुल्लर और उस के साथियों ने की थी.

पुलिस ने जयपाल के 3 साथियों की पहचान खरड़ निवासी जसप्रीत सिंह जस्सी, लुधियाना के सहोली निवासी दर्शन सिंह और मोगा के माहला खुर्द निवासी बलजिंदर सिंह उर्फ बब्बी के रूप में की.

हमलावरों पर किया ईनाम घोषित

जगराओं पुलिस ने इन चारों के पोस्टर जारी कर ईनाम भी घोषित कर दिया. पंजाब के डीजीपी दिनकर गुप्ता ने जयपाल पर 10 लाख रुपए, बलजिंदर सिंह उर्फ बब्बी पर 5 लाख रुपए, जसप्रीत सिंह उर्फ जस्सी और दर्शन सिंह पर 2-2 लाख रुपए का ईनाम घोषित किया.

जयपाल भुल्लर का नाम पंजाब पुलिस के लिए नया नहीं है. पुलिस का हर नयापुराना मुलाजिम उस के नाम से परिचित है. जयपाल पर हत्या, अपहरण, डकैती, तसकरी, फिरौती आदि संगीन अपराधों के 45 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. बलजिंदर उर्फ बब्बी के खिलाफ हत्या का केस दर्ज है. जस्सी और दर्शन कुख्यात तसकर हैं. जयपाल पंजाब सहित कई राज्यों का मोस्टवांटेड अपराधी है.

जयपाल का दोनों एएसआई की हत्या की वारदात से 5 दिन पहले ही पुलिस से आमनासामना हुआ था. 10 मई को लुधियाना के दोराहा में जीटी रोड पर नाकेबंदी के दौरान पुलिस ने कार में सवार 2 युवकों को रोका था. चैकिंग के दौरान बहसबाजी होने पर दोनों युवकों ने वहां तैनात एएसआई सुखदेव सिंह और हवलदार सुखजीत सिंह को हमला कर घायल कर दिया था. बाद में दोनों युवक कार से भाग गए थे.

हुलिया बदलने में माहिर था जयपाल

भागते समय ये युवक एएसआई सुखदेव सिंह से पिस्तौल भी छीन ले गए थे. पुलिस वालों से मारपीट करने वाले दोनों युवक करीब 25-30 साल के पगड़ीधारी सिख थे. उन्होंने सफेद कुरतापायजामा पहन रखा था. हाथापाई के दौरान एक युवक का पर्स गिर गया था. इस पर्स में गुरप्रीत सिंह के नाम से ड्राइविंग लाइसैंस मिला था.

पुलिस को बाद में जांच में पता चला कि इस घटना में हमलावरों में एक युवक जयपाल था. पर्स भी उसी का गिरा था. पर्स में मिले ड्राइविंग लाइसैंस पर फोटो जयपाल की लगी थी, लेकिन फरजी नाम गुरप्रीत सिंह लिखा हुआ था.

खास बात यह थी कि जगराओं में दोनों एएसआई की हत्या की वारदात के वक्त जयपाल क्लीन शेव था. यानी उस ने 5 दिन में ही अपना हुलिया बदल लिया था. वह बारबार हुलिया बदल कर ही पुलिस को चकमा देता रहता था.

पुलिस ने जयपाल और उस के साथियों की तलाश में छापे मारे, तो पता चला कि गैंगस्टर जयपाल भुल्लर जोधां के गांव सहोली में अपने साथी कुख्यात तसकर दर्शन सिंह के खेतों में पिछले डेढ़ महीने से रहा था. दोराहा नाके पर हुई घटना से पहले वह केशधारी सरदार के रूप में रहता था. बाद में उस ने अपना रूप बदल कर चेहरा क्लीन शेव कर लिया.

जयपाल की तलाश में पुलिस ने सर्च अभियान शुरू किया. पुलिस को इनपुट मिले थे कि वारदात से पहले और बाद में जयपाल लुधियाना के आसपास के गांवों में आताजाता रहा है. इन गांवों में उस के ठिकाने हैं.

इसे देखते हुए 17 मई को एडिशनल डीपीसी जसकिरणजीत सिंह तेजा, एसीपी जश्नदीप सिंह और डेहलो थानाप्रभारी सुखदेह सिंह बराड़ के नेतृत्व में पुलिस ने करीब डेढ़ दरजन गांवों में एकएक घर की तलाशी ली. इस दौरान किराएदारों का भी रिकौर्ड जुटाया गया.

दूसरी ओर, कुछ सूचनाओं के आधार पर लुधियाना और जगराओं पुलिस ने चंडीगढ़ में छापे मारे. इन छापों में कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया. इन लोगों से पता चला कि जयपाल फरजी ड्राइविंग लाइसैंस दिखा कर कई महीने तक चंडीगढ़ में एक एनआरआई के मकान में किराए पर भी रहा था.

जयपाल के छिपने के ठिकानों का पता लगाने के लिए पुलिस की आर्गनाइज्ड क्राइम कंट्र्रोल यूनिट (ओक्कू) टीम ने उस के भाई अमृतपाल को बठिंडा जेल से प्रोडक्शन वारंट पर हासिल किया. उस से पूछताछ की, लेकिन कोई पते की बात मालूम नहीं हो सकी. बाद में पुलिस ने उसे वापस जेल भेज दिया.

बदमाशों की तलाश में पुलिस ने लुधियाना, अमृतसर और मालेरकोटला सहित कई शहरों में छापे मारे और कई लोगों से पूछताछ की. विभिन्न जेलों में बंद जयपाल के साथियों से भी पूछताछ की.

इन में पता चला कि दोनों पुलिस मुलाजिमों की हत्या की वारदात तक जयपाल करीब 6 महीने से जगराओं के गांव कोठे बग्गू में किराए के मकान में रह रहा था. वह इसी मकान से नशीले पदार्थों की तसकरी का धंधा चला रहा था.

पुलिस ने 19 मई, 2021 को जयपाल के साथी ईनामी बदमाश दर्शन सिंह के मकान की तलाशी ली. इस में जिम की एक किट बरामद हुई. इस किट में हथियार और 300 कारतूस मिले.

इस के अलावा अलगअलग वाहनों की 8-10 आरसी भी मिलीं. ये आरसी उन वाहनों की थीं, जो हाईवे पर लूटे या चोरी किए गए थे. पुलिस ने दर्शन सिंह की पत्नी सतपाल कौर को हिरासत में ले कर उस से पूछताछ की.

8 राज्यों की पुलिस जुटी तलाश में

पुलिस ने पंजाब और राजस्थान के उस के छिपने के संभावित ठिकानों पर भी छापे मारे. इस के अलावा ओक्कू टीम ने जयपाल के साथी गगनदीप जज को बठिंडा जेल से प्रोडक्शन वारंट पर हासिल किया.

गगनदीप ने जयपाल के साथ मिल कर फरवरी 2020 में लुधियाना में एक कंपनी से 32 किलोग्राम सोना लूटा था. गगनदीप को जयपाल के लगभग हर राज पता थे. इसी उम्मीद में उस से पूछताछ की गई, लेकिन पुलिस उस से भी कुछ नहीं उगलवा सकी. गगन से मिली कुछ जानकारियों के आधार पर पुलिस ने जयपाल की तलाश में उत्तर प्रदेश और राजस्थान के 8-10 गांवों में छापे मारे, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ.

2 पुलिसकर्मियों की हत्या की वारदात के एक सप्ताह बाद भी जयपाल और उस के साथियों का कोई सुराग नहीं मिलने पर पंजाब पुलिस ने अन्य राज्यों की पुलिस से संपर्क किया. इस के बाद 8 राज्यों की पुलिस की कोऔर्डिनेशन टीम बनाई गई. इस में पंजाब के अलावा हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनिंदा पुलिस अफसरों को शामिल किया गया.

जयपाल के साथ फरार उस के साथी खरड़ निवासी जसप्रीत सिंह उर्फ जस्सी की पत्नी लवप्रीत कौर को मोहाली की सोहाना थाना पुलिस ने 20 मई को गिरफ्तार कर लिया. मोहाली में पूर्वा अपार्टमेंट में उस के फ्लैट से करीब 8 बैंकों की पासबुक और दूसरे अहम दस्तावेज मिले. पुलिस ने बैंकों से स्टेटमेंट निकलवाई, तो पता चला कि इन खातों में करोड़ों रुपए का लेनदेन हो रहा था.

कहा जाता है कि लवप्रीत इस फ्लैट में अकेली रहती थी जबकि उस की ससुराल खरड़ गांव में है.

लोगों को गुमराह करने के लिए जसप्रीत उस से अलग रहता था, लेकिन असल में उस का पत्नी लवप्रीत से लगातार संपर्क था. वह इसी फ्लैट में आ कर पत्नी से मिलता था.

लगातार चल रहे तलाशी अभियान के दौरान पुलिस ने जयपाल को शरण देने और उस की मदद करने वाले 5 लोगों को 21 मई को गिरफ्तार कर लिया. इन से कई हथियार और कारतूसों के अलावा 29 वाहनों की फरजी आरसी, 8 खाली आरसी कार्ड, टेलीस्कोप, पंप एक्शन गन आदि भी बरामद हुए.

गिरफ्तार आरोपियों में कैंटर मालिक मोगा के गांव धल्ले का रहने वाला गुरुप्रीत सिंह उर्फ लक्की और उस की पत्नी रमनदीप कौर, दर्शन सिंह का दोस्त सहोली गांव निवासी गगनदीप सिंह, जगराओं के आत्मनगर का रहने वाला जसप्रीत सिंह और सहोली गांव के रहने वाले नानक चंद धोलू शामिल रहे.

इन से पूछताछ में पता चला कि जयपाल और उस के साथी गाडि़यां लूटने और चोरी करने के बाद उन की फरजी आरसी और नंबर प्लेट तैयार करते थे. फरजी आरसी तैयार करने के लिए उन्होंने एक माइक्रो मशीन ले रखी थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जयपाल और जसप्रीत सिंह के सोशल मीडिया अकाउंट ब्लौक करवा दिए. पता चला था कि ये बदमाश अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए युवाओं को जोड़ते और गैंग में शामिल होने के लिए तैयार करते थे.

फिरोजपुर निवासी जयपाल भुल्लर पंजाब ही नहीं कई राज्यों में खौफ का पर्यायवाची नाम है. जिस जयपाल के पीछे 8 राज्यों की पुलिस लगी हुई थी, उस जयपाल के पिता भूपिंदर सिंह पंजाब पुलिस में इंसपेक्टर थे. कहा जाता है कि पिता के कारण ही जयपाल के पुलिस महकमे में कई मुलाजिम अच्छे जानकार हैं. इसलिए वह पुलिस की आंखों में धूल झोंकता रहता था.

पुलिस को जांच में यह भी पता लग गया था कि इस वारदात में जयपाल और उस का साथी जस्सी शामिल था. इसी का नतीजा रहा कि जयपाल ने 5 दिन बाद ही 15 मई को जगराओं में 2 एएसआई को मौत की नींद सुला दिया.

बदमाश दर्शन सिंह कुख्यात तसकर है. उस के खिलाफ भी कई मामले दर्ज हैं. उस के नजदीकी रिश्तेदार पंजाब पुलिस में एसपी के पद पर हैं. दर्शन सिंह जेल भी जा चुका है.

करीब 5 साल पहले हत्या के मामले में अच्छा चालचलन बता कर लुधियाना की ब्रोस्टल जेल से 2 साल 4 महीने की उस की सजा माफ कर दी गई थी. जेल से बाहर आने के बाद वह जयपाल के साथ मिल कर नशा तसकरी और लूटपाट की बड़ी वारदातें करने लगा.

पंजाब पुलिस की ओक्कू टीम ने दोनों एएसआई की हत्या की वारदात में शामिल गैंगस्टर दर्शन सिंह और बलजिंदर सिंह उर्फ बब्बी को 29 मई, 2021 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले से गिरफ्तार कर लिया. इन को पनाह देने वाले हरचरण सिंह को भी पकड़ लिया गया है.

अपराध की दुनिया में जयपाल भले ही ऊंची उड़ान भर रहा था, लेकिन उस का हश्र भी वही हुआ, जो ऐसे अपराधियों का होता है. पकड़े गए उस के सहयोगियों से पुलिस को जयपाल का सुराग मिल गया. इस के बाद 9 जून, 2021 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुए एक एनकाउंटर में जयपाल भुल्लर और उस का साथी जसप्रीत जस्सी मारा गया.

ये लोग फरजी नाम से कोलकाता के पास बीरभूम के सिगुरी इलाके के शापूरजी हाउसिंग कौंप्लैक्स में छिपे हुए थे. इन के किराए के इस फ्लैट में लाखों रुपए नकद, आधुनिक हथियार, ड्रग्स के पैकेट, फरजी ड्राइविंग लाइसैंस, पासपोर्ट आदि बरामद हुए. पंजाब पुलिस को जयपाल का सुराग मध्य प्रदेश के एक टोलनाके के सीसीटीवी कैमरों से मिला था. इन बदमाशों के मारे जाने से इन के आतंक का अंत हो गया.

 

ब्यूटी पार्लर: क्वीन का मायाजाल

प्रियंका चौधरी अपनी खूबसूरती और टैलेंट से 2019 में मिसेज इंडिया राजस्थान चुनी गई थी. इस ब्यूटी क्वीन की लाइफ में आखिर ऐसी कौन सी वजह रही, जिस के कारण उसे हनीट्रैप के आरोप में जेल जाना पड़ा?

3 जून, 2021 की बात है. सरिया व्यापारी घासीराम चौधरी जब जयपुर में श्यामनगर थाने पहुंचा, तो उसे गेट पर संतरी खड़ा मिला. उस ने संतरी से पूछा, ‘‘एसएचओ मैडम बैठी हैं क्या?’’

संतरी ने उस पर एक नजर डालते हुए पूछा, ‘‘मैडम से क्या काम है?’’

‘‘भाईसाहब, एक रिपोर्ट दर्ज करानी है, इसलिए मैडम से मिलना है.’’ घासीराम ने संतरी को अपने हाथ में लिए कागज दिखाते हुए कहा.

‘‘मैडम तो अपने औफिस में बैठी हैं. अगर आप को रिपोर्ट लिखानी है तो वहां ड्यूटी औफिसर के पास चले जाओ.’’ संतरी ने हाथ से इशारा करते हुए घासीराम से कहा.

‘‘भाईसाहब, रिपोर्ट लिखाने वहां चला तो जाऊंगा, लेकिन पहले मैं एक बार मैडम से मिलना चाहता हूं.’’ घासीराम ने विनती करते हुए कहा.

‘‘ठीक है, आप की जैसी मरजी. मैडम अपने औफिस में बैठी हैं. जा कर मिल लो.’’ संतरी ने घासीराम को हाथ के इशारे से थानाप्रभारी का कमरा बता दिया.

घासीराम थानाप्रभारी के कमरे के सामने जा कर एक बार ठिठका. फिर गेट खोल कर सीधा उन के कमरे में चला गया. सामने एसएचओ संतरा मीणा किसी फाइल को पढ़ रही थीं. कमरे में आगंतुक की आहट सुन कर उन्होंने सिर उठा कर देखा तो सामने 40-45 साल का एक शख्स खड़ा था.

उन्होंने उस से पूछा, ‘‘बताएं, क्या काम है?’’

‘‘मैडम, मैं बड़ी परेशानी में फंसा हुआ हूं. एक महिला मुझ से नजदीकियां बढ़ा कर लाखों रुपए ऐंठ चुकी है और अब बलात्कार का झूठा मामला दर्ज कराने की धमकी  दे रही है.’’ घासीराम ने खड़ेखड़े ही अपनी व्यथा बताई.

‘‘आप कुरसी पर बैठ जाओ और बताओ कि आप कौन हैं और आप को ब्लैकमेल करने वाली महिला कौन है?’’ मैडम ने अपने हाथ में पकड़ी फाइल को बंद कर मेज पर रखते हुए उस से कहा.

‘‘मैडम, मेरा नाम घासीराम चौधरी है. जयपुर में निर्माण नगर की पार्श्वनाथ कालोनी में रहता हूं और सरियों का व्यापारी हूं.’’ घासीराम ने कुरसी पर बैठते हुए अपना परिचय दिया.

‘‘ठीक है, घासीरामजी, आप के साथ हुआ क्या है, वह बताएं?’’ एसएचओ ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘अगर आप को कोई ब्लैकमेल कर रहा है तो हम काररवाई करेंगे.’’

‘‘मैडम, मैं इसी उम्मीद से आप के पास आया हूं.’’ घासीराम ने चेहरे पर संतोष के भाव ला कर कहा, ‘‘मैडम, परेशानी यह है कि उस महिला का पति आप के पुलिस डिपार्टमेंट में ही हैडकांस्टेबल है. इसलिए मुझे संदेह है कि पुलिस कोई काररवाई करेगी या नहीं?’’

‘‘घासीरामजी, अपराधी कोई भी हो. अपराधी सिर्फ अपराधी होता है. पति के पुलिस डिपार्टमेंट में होने से किसी महिला को अपराध करने की छूट नहीं मिल जाती है.’’ थानाप्रभारी मीणा ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘आप के साथ क्या वाकयात पेश आए हैं, तफसील से सारी बात बताओ.’’

थानाप्रभारी के आश्वासन पर घासीराम ने प्रियंका चौधरी से मुलाकात होने और बाद में उस से किसी न किसी बहाने से लाखों रुपए ऐंठने और अब बलात्कार का झूठा मामला दर्ज करवाने की धमकी देने तक की सारी बातें विस्तार से बता दीं.

घासीराम से सारा वाकया सुनने के बाद थानाप्रभारी संतरा मीणा ने उस से कहा, ‘‘आप सारी बातें लिख कर दे दें. हम रिपोर्ट दर्ज कर लेंगे. जांच में जो भी दोषी मिलेगा, उस पर काररवाई होगी.’’

‘‘मैडम, मैं तहरीर लिख कर लाया हूं.’’ घासीराम ने कुछ कागज उन की ओर बढ़ाते हुए कहा.

थानाप्रभारी ने उन कागजों पर सरसरी नजर डाली. फिर घंटी बजा कर अर्दली को बुलाया. अर्दली कमरे में आया, तो उसे वे कागज दे कर कहा, ‘‘इन साहिबान को ड्यूटी औफिसर के पास ले जाओ और ड्यूटी औफिसर से कहना कि यह रिपोर्ट दर्ज कर लें.’’

थानाप्रभारी ने घासीराम को अर्दली के साथ जाने का इशारा किया. घासीराम कुरसी से उठ कर मैडम को धन्यवाद देता हुआ ड्यूटी औफिसर के पास चला गया. पुलिस ने उसी दिन उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

घासीराम की ओर से दर्ज कराई रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह था कि सन 2016 में प्रियंका चौधरी अपने पति रामधन चौधरी के साथ एक दिन उस के घर आई थी. प्रियंका राजस्थान के टोंक जिले की रहने वाली थी. घासीराम की ससुराल भी टोंक जिले में प्रियंका के गांव के पास ही थी. इसलिए घासीराम की पत्नी सीता उसे पहचान गई. प्रियंका को वह अच्छी तरह जानती थी. शादी होने के बाद सीता जयपुर आ गई थी.

प्रियंका उस दिन जयपुर में पहली बार सीता के घर आई थी. सीता ने अपने पति घासीराम का परिचय प्रियंका से कराते हुए कहा कि यह मेरी छोटी बहन जैसी है. प्रियंका कहां चूकने वाली थी. उस ने घासीराम की ओर मुसकरा कर देखते हुए सीता से कहा कि दीदी, अब मैं इन को जीजाजी ही कहूंगी. जीजासाली का रिश्ता बनने पर घासीराम मंदमंद मुसकरा कर रह गए.

इस दौरान प्रियंका ने भी अपने पति का परिचय कराया कि ये रामधन चौधरीजी पुलिस में हैडकांस्टेबल हैं. सीता के पीहर वालों के प्रियंका के परिवार वालों से गांव में अच्छे संबंध थे. इसलिए सीता और घासीराम ने प्रियंका और उस के पति रामधन की खूब आवभगत की.

बातों ही बातों में प्रियंका ने घासीराम से कहा, ‘‘जीजाजी, हम जयपुर में किराए का मकान तलाश कर रहे हैं, लेकिन हमें कोई अच्छा मकान नहीं मिल रहा है. आप की नजर में कोई अच्छा मकान हो तो हमें किराए पर दिलवा दीजिए.’’

प्रियंका आई घासीराम के संपर्क में

प्रियंका को किराए के मकान की जरूरत का पता लगने पर सीता ने अपने पति से कहा कि अपना गौतम मार्ग निर्माण नगर वाला फ्लैट खाली पड़ा है, वो इन्हें ही किराए पर दे दो. हमें इन से अच्छा किराएदार और कौन मिलेगा?

पत्नी से बात करने के बाद घासीराम ने प्रियंका को अपना निर्माण नगर वाला फ्लैट किराए पर दे दिया. इस के बाद प्रियंका का घासीराम के घर आनाजाना शुरू हो गया. कई बार प्रियंका पूरेपूरे दिन सीता के घर पर ही रहती और उस के साथ घर के कामों में भी हाथ बंटाती थी.

सीता के घर पर लगातार आनेजाने से प्रियंका ने उस के परिवार की तमाम जानकारियां हासिल कर लीं. घासीराम के व्यापार और कमाई वगैरह की जानकारी भी ले ली.

प्रियंका जब सीता के घर आती थी, तब अगर घासीराम मिल जाते तो वह जीजाजी जीजाजी कह कर चुहलबाजी भी कर लेती थी. घासीराम भी कभीकभी अपनी पत्नी के साथ प्रियंका के फ्लैट पर चले जाते. इस तरह दोनों परिवारों में घनिष्ठ संबंध बन गए.

आरोप है कि कुछ दिनों बाद प्रियंका ने किसी काम से घासीराम को अपने फ्लैट पर बुलाया. घर पर प्रियंका अकेली थी. घासीराम ने उस के पति रामधन के बारे में पूछा तो प्रियंका ने बताया कि वे कहीं गए हुए हैं. इस दौरान अकेली प्रियंका ने घासी से नजदीकियां बढ़ाने की बातें कीं.

नजदीकियों से हुई जेब खाली

बाद में धीरेधीरे उस ने घासी से नजदीकियां बढ़ा लीं. एक बार प्रियंका ने घासी से कहा कि जीजाजी, आप के पास पैसे की कोई कमी नहीं है. हमारा कुछ सहयोग कर दोगे तो हम भी जयपुर में एक फ्लैट या मकान ले लेंगे. इस के लिए जितना लोन मिलेगा, लेंगे और बाकी पैसे आप उधार दे देना. घासीराम ने उस समय उसे टाल दिया.

बाद में प्रियंका और उस के पति रामधन ने घासीराम के मकान के पास ही फ्लैट खरीद लिया. घासीराम ने बताया कि यह फ्लैट खरीदने और वुडन वर्क के नाम पर प्रियंका ने उस से 49 लाख रुपए ले लिए. इस रकम के बदले प्रियंका और उस के पति ने उसे ब्लैंक चैक दिए और स्टांप पेपर पर लिखित लेनदेन किया. इस फ्लैट की किस्त 28 हजार रुपए महीना थी.

इस बीच, सन 2019 में जयपुर में हुए आयोजन में प्रियंका मिसेज इंडिया राजस्थान चुनी गई. ब्यूटी पीजेंट पौश इंफोटेनमेंट के इस आयोजन में 100 से ज्यादा महिलाओं ने भाग लिया था. फाइनल के अलगअलग राउंड में 27 महिलाओं ने भागीदारी की थी. इस में प्रियंका चौधरी विनर घोषित हुई थी.

बाद में प्रियंका फ्लैट के लोन के रुपए जमा कराने की बात कह कर घासीराम से रुपए मांगने लगी और नहीं देने पर बलात्कार का मामला दर्ज कराने की धमकी देने लगी.

घासीराम डर गया. वह झूठे केस में जेल जाने और व्यापार बरबाद होने की चिंता में दबाव में आ गया. वह समयसमय पर प्रियंका को लाखों रुपए देता रहा और उस की फरमाइशें पूरी करता रहा. प्रियंका की फरमाइश पर घासी ने उसे 30 लाख रुपए के जेवर भी दिलवा दिए. उसे नई लग्जरी कार दिलवाई.

घासी के पैसों से ही प्रियंका ने अपने फ्लैट में महंगे सोफे, एसी, एलईडी और दूसरे कीमती सामान ले लिए. बच्चों की फीस के नाम पर 5 लाख रुपए लिए. प्रियंका ने अपनी बेटियों के नाम सुकन्या योजना के पैसे भी घासीराम से ही जमा करवाए.

घासीराम का आरोप है कि प्रियंका और उस के पति रामधन ने अलगअलग बहाने से उस से करीब सवा करोड़ रुपए ऐंठ लिए थे. इस के बाद प्रियंका उस से 400 गज का प्लौट मांग रही थी.

इसी साल अप्रैल में वाट्सऐप काल कर प्रियंका ने घासी से प्लौट दिलाने की बात कही थी. वह जिस प्लौट की बात कर रही थी, उस की कीमत करीब डेढ़ करोड़ रुपए के आसपास थी.

घासीराम ने प्लौट दिलाने से इनकार कर दिया तो उस ने बलात्कार का मामला दर्ज कराने की धमकी दी. प्रियंका की धमकियों से डर कर घासीराम ने उस के खाली चैक और स्टांप पेपर उसे लौटा दिए.

प्रियंका ने कराई रिपोर्ट दर्ज

बाद में पूर्व मिसेज इंडिया राजस्थान प्रियंका चौधरी ने 21 मई, 2021 को श्यामनगर थाने में घासीराम के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस में कहा कि घासीराम 20 मई को मेरे घर पर आया और गालीगलौज की. घर में घुसने से रोकने पर मारपीट करने लगा. मैं ने बचाव किया तो हाथ पर काट खाया. मेरे सीने और पेट पर लात मारी. मैं नीचे भाग कर आई. मेरी बहन और बेटियों के चिल्लाने पर आसपास के लोग बाहर आ गए, तब वह वहां से भाग गया.

बाद में मुझे और मेरे पति को जान से मारने की धमकी दी. मुझ से कहा कि तेजाब फेंक कर जला दूंगा. पुलिस ने प्रियंका की रिपोर्ट पर मामला दर्ज कर उस का मैडिकल कराया.

आरोप है कि घासीराम के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रियंका ने उसे धमकी दी कि यह तो ट्रेलर है. चाहती तो बलात्कार का मामला भी दर्ज करा सकती थी और अब भी करा सकती हूं. राजीनामा करने के लिए वह 400 गज का प्लौट और रुपए मांग रही थी.

प्रियंका की धमकियों और उस की डिमांड से परेशान हो कर घासीराम ने 3 जून, 2021 को प्रियंका और उस के पति रामधन चौधरी के खिलाफ श्यामनगर थाने में मामला दर्ज करा दिया.

डीसीपी (दक्षिण) हरेंद्र महावर ने इस हाईप्रोफाइल मामले की जांच के लिए एडिशनल डीसीपी अवनीश कुमार, सोडाला एसीपी भोपाल सिंह भाटी के निर्देशन और श्यामनगर थानाप्रभारी संतरा मीणा के नेतृत्व में पुलिस टीम गठित की. इस टीम में एएसआई जयसिंह, कांस्टेबल राजेश और महिला कांस्टेबल बीना व बाला कुमारी को शामिल किया गया.

पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद हनीट्रैप का मामला बताते हुए 12 जून, 2021 को 33 वर्षीया पूर्व मिसेज इंडिया राजस्थान प्रियंका चौधरी को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उसे रिमांड पर ले कर पूछताछ की.

पूछताछ के आधार पर पुलिस ने प्रियंका के कब्जे से 3 एसी, एलईडी और लैपटौप आदि बरामद किए. पुलिस ने 13 जून को उसे अदालत में पेश किया. अदालत ने उसे जेल भेज दिया.

लग्जरी लाइफ थी प्रियंका की

प्रियंका चौधरी के ब्यूटी क्वीन बनने से जेल जाने तक का सफर उस के लग्जरी लाइफ जीने के सपनों से भरा रहा है. टोंक जिले के एक छोटे से गांव की रहने वाली प्रियंका सरकारी स्कूल में पढ़ी थी.

वह भले ही गांव में रहती थी, लेकिन उस का रूपसौंदर्य सब से अलग था. प्रियंका को अपनी सुंदरता पर नाज था, लेकिन गांव में रहने के कारण वह अपने सपनों की उड़ान नहीं भर पा रही थी.

सन 2008 में उस की शादी रामधन से हो गई. रामधन राजस्थान पुलिस में नौकरी करता है. रामधन जैसे गबरू जवान को पति के रूप में पा कर प्रियंका मन ही मन निहाल हो उठी. रामधन भी खुश था और प्रियंका भी. समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा. प्रियंका ने 2 बेटियों को जन्म दिया.

प्रियंका के अपने सपने थे. वह महत्त्वाकांक्षी थी, इसलिए शादी के बाद भी वह पढ़ाई करती रही. पति पुलिस में नौकरी करता था, लेकिन उस की तनख्वाह से उस के शौक पूरे नहीं हो सकते थे. उस ने अपने शौक पूरे करने के लिए जयपुर में रहने का फैसला किया. वह 2016 में जयपुर आ गई.

2019 में जब उसे पता चला कि जयपुर में मिसेज इंडिया राजस्थान कांटेस्ट हो रहा है, तो उस ने इस में भाग लेने का फैसला किया. रूपसौंदर्य में वह किसी से कम नहीं थी. इसलिए उसे पूरा भरोसा था कि वह कंटेस्ट जीतेगी. हुआ भी वही. प्रियंका मिसेज इंडिया राजस्थान चुनी गई.

आरोप है कि ब्यूटी क्वीन बनने के बाद प्रियंका की दबी हुई महत्त्वाकांक्षाएं हिलोरें मारने लगीं. उस के लग्जरी लाइफ जीने के सपने उड़ान भरने लगे. पति की तनख्वाह से ऐशोआराम की जिंदगी संभव नहीं थी. इसलिए उस ने घासीराम से नजदीकियां बढ़ाईं. वह उस से समयसमय पर रुपए ऐंठती रही.

2 बेटियों के भविष्य के नाम पर जब उस ने घासीराम पर 400 गज का प्लौट दिलाने का दबाव बनाया तो बात बिगड़ गई. नतीजा यह हुआ कि प्रियंका को जेल जाना पड़ा. लग्जरी लाइफ जीने की शौकीन प्रियंका के पास लग्जरी गाड़ी, फ्लैट है. उस की 2 बेटियां महंगे स्कूलों में पढ़ती हैं.

ब्यूटी क्वीन हुई गिरफ्तार

प्रियंका कितनी पाकसाफ है, यह अदालत तय करेगी, लेकिन उस की गिरफ्तारी को ले कर पुलिस पर आरोप लग रहे हैं. पुलिस ने घासीराम की रिपोर्ट पर प्रियंका को गिरफ्तार कर लिया.

उस से न तो किसी तरह की कोई अश्लील वीडियो बरामद हुई और न ही कोई दूसरी आपत्तिजनक सामग्री मिली, जिस से यह साबित हो कि प्रियंका उस आधार पर उसे बलात्कार के झूठे मामले में फंसाने की धमकी दे रही थी. पुलिस ने घासीराम के मोबाइल में रिकौर्ड बातचीत के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया. पैसों के लेनदेन के मामले में पुलिस जांचपड़ताल कर रही है.

दूसरी तरफ, प्रियंका ने 21 मई को श्यामनगर थाने में घासीराम के खिलाफ घर आ कर मारपीट करने और तेजाब डालने की धमकी देने का जो मामला दर्ज कराया था, उस पर पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की.

पुलिस का कहना है कि इस मामले की अभी जांच चल रही है. घटनास्थल पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई हैं. उस में घासीराम कहीं नजर नहीं आ रहा है. उस आवासीय परिसर में रहने वाले लोगों ने भी मारपीट की घटना होने से इनकार किया है.

क्षेत्र में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि आखिर प्रियंका के हाथ व्यापारी घासीराम की ऐसी कौन सी कमजोर कड़ी हाथ लग गई थी, जिस से उस ने लाखों रुपए प्रियंका को आसानी से दे दिए. वरना बिना किसी लालच व स्वार्थ के कोई किसी पर इतनी बड़ी राशि खर्च नहीं कर सकता. जरूर कोई तो ऐसा राज है, जिसे केवल घासीराम और प्रियंका ही जानते हैं. अब देखना यह है कि पुलिस जांच में वह राज सामने आ सकेगा या नहीं.

बहरहाल, घासीराम की रिपोर्ट पर पुलिस ने प्रियंका के साथ उस के पति रामधन चौधरी के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है. रामधन टोंक जिले में हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात है. कथा लिखे जाने तक पुलिस को रामधन के खिलाफ इस मामले में कोई सबूत नहीं मिले थे.

मंदिर में बाहुबल-भाग 2 : पाठक परिवार की दबंगाई

हमलावरों के जाने के बाद कोतवाल आलोक दूबे ने निरीक्षण किया तो 2 लाशें घटनास्थल पर पड़ी थीं. एक लाश शिवकुमार चौबे के बेटे मंजुल चौबे की थी तथा दूसरी उस की चचेरी बहन सुधा की. घायलों में संजय चौबे, अंशुल चौबे, अंकुर शुक्ला तथा अजीत एडवोकेट थे. सभी घायलों को कानपुर के हैलट अस्पताल भेजा गया.

कोतवाल आलोक दूबे ने डबल मर्डर की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी सुनीति, एएसपी कमलेश दीक्षित, सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव तथा डीएम अभिषेक सिंह भी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा कोतवाल आलोक दूबे से जानकारी हासिल की. डीएम अभिषेक सिंह ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया जबकि एसपी सुनीति ने घटना के संबंध में जानकारी हासिल की.

चूंकि डबल मर्डर का यह मामला अति संवेदनशील था और कातिल रसूखदार थे. इसलिए एसपी सुश्री सुनीति ने घटना की जानकारी आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल तथा एडीजी जयनारायण सिंह को दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल पर आसपास के थानों की पुलिस फोर्स तथा फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जांच कर साक्ष्य जुटाए तथा फिंगरप्रिंट लिए.

डबल मर्डर से चौबे परिवार में कोहराम मचा हुआ था. शिवकुमार चौबे उर्फ मुनुवा मंदिर परिसर में बेटे की लाश के पास गुमसुम बैठे थे. वहीं संजय भाई की लाश के पास  बैठा फूटफूट कर रो रहा था. आशीष चौबे भी अपनी बहन सुधा के पास विलाप कर रहा था. संजय चौबे व उन की बहन रागिनी एसपी सुश्री सुनीति के सामने गिड़गिड़ा रहे थे कि हमलावरों को जल्दी गिरफ्तार करो वरना वे लोग इस से भी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं.

एसपी सुनीति मृतकों के घर वालों को हमलावरों की गिरफ्तारी का भरोसा दे ही रही थीं कि सूचना पा कर एडीजी जयनारायण सिंह तथा आईजी मोहित अग्रवाल घटनास्थल पर पहुंच गए.

अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर एसपी सुनीति ने घटना के संबंध में जानकारी ली. पुलिस अधिकारी इस बात से आश्चर्यचकित थे कि पुलिस की मौजूदगी में फायरिंग हुई और 2 हत्याएं हो गईं. उन्होंने सहज ही अंदाजा लगा लिया कि हमलावर कितने दबंग थे.

आईजी मोहित अग्रवाल ने घटनास्थल पर मौजूद मृतकों के घर वालों से बात की. शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे ने बताया कि बाहुबली कमलेश पाठक मंदिर की बेशकीमती जमीन पर कब्जा करना चाहता था. जबकि उन का परिवार व मोहल्ले के लोग विरोध कर रहे थे. पुजारी की मौत के बाद वह मंदिर की चाबी मांगने आए थे. इसी पर उन से विवाद हुआ और पुलिस की मौजूदगी में कमलेश पाठक, उन के भाइयों तथा सहयोगियों ने फायरिंग शुरू कर दी.

मुनुवा चौबे ने आरोप लगाया कि अगर पुलिस चाहती तो फायरिंग रोकी जा सकती थी. लेकिन शहर कोतवाल आलोक दूबे एमएलसी कमलेश पाठक के दबाव में थे. इसलिए उन्होंने न तो हमलावरों को चेतावनी दी और न ही उन के हथियार छीनने की कोशिश की. शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे का आरोप सत्य था, अत: आईजी मोहित अग्रवाल ने एसपी सुनीति को आदेश दिया कि वह दोषी पुलिसकर्मियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करें.

आदेश पाते ही सुनीति ने कोतवाल आलोक दूबे तथा चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी को निलंबित कर दिया. इस के बाद जरूरी काररवाई पूरी कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम हेतु औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. बवाल की आशंका को भांपते हुए पुलिस ने रात में ही पोस्टमार्टम कराने का निश्चय किया. इसी के मद्देनजर पोस्टमार्टम हाउस में भारी पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई थी.

इस दुस्साहसिक घटना को आईजी मोहित अग्रवाल तथा एडीजी जयनारायण सिंह ने बेहद गंभीरता से लिया था. दोनों पुलिस अधिकारियों ने औरैया कोतवाली में डेरा डाल दिया. हमलावरों को ले कर औरैया शहर में दहशत का माहौल था और मृतकों के घर वाले भी डरे हुए थे.

दहशत कम करने तथा मृतकों के घर वालों को सुरक्षा देने के लिए पुलिस अधिकारियों ने पुलिस का सख्त पहरा लगा दिया. एक कंपनी पीएसी तथा 4 थानाप्रभारियों को प्रमुख मार्गों पर तैनात किया गया. इस के अलावा 22 एसआई व 48 हेडकांस्टेबलों को हर संदिग्ध व्यक्ति पर निगाह रखने का काम सौंपा गया. घर वालों की सुरक्षा के लिए 3 एसआई और आधा दरजन पुलिसकर्मियों को लगाया गया.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. तभी एसपी सुनीति की नजर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे 2 वीडियो पर पड़ी. वायरल हो रहे वीडियो संघर्ष के दौरान हो रही फायरिंग के थे, जिसे किसी ने मोबाइल से बनाया था. एक वीडियो में एमएलसी का गनर अवनीश प्रताप सिंह एक युवक की छाती पर सवार था और पीछे खड़ा युवक उसे डंडे से पीटता दिख रहा था.

उसी जगह कमलेश पाठक गनर की कार्बाइन थामे खड़े दिख रहे थे. दूसरे वायरल हो रहे वीडियो में कमलेश पाठक के भाई संतोष पाठक व अन्य फायरिंग करते नजर आ रहे थे. वीडियो देख कर एसपी सुनीति ने गनर अवनीश प्रताप सिंह को निलंबित कर दिया. साथ ही साक्ष्य के तौर पर दोनों वीडियो को सुरक्षित कर लिया.

पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर औरैया कोतवाली में हमलावरों के खिलाफ 3 अलगअलग मुकदमे दर्ज किए गए. पहला मुकदमा मृतका सुधा के भाई आशीष चौबे की तहरीर पर भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 504, 506 के तहत दर्ज किया गया.

इस मुकदमे में एमएलसी कमलेश पाठक, उन के भाई संतोष पाठक, रामू पाठक, रिश्तेदार विकल्प अवस्थी, कुलदीप अवस्थी, शुभम अवस्थी, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू, गनर अवनीश प्रताप सिंह, कथावाचक राजेश शुक्ला तथा 2 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया. दूसरी रिपोर्ट चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी ने उपरोक्त 9 नामजद तथा 10-15 अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कराई. उन की यह रिपोर्ट 7 क्रिमिनल ला अमेडमेंट एक्ट की धाराओं में दर्ज की गई. आरोपियों के खिलाफ तीसरी रिपोर्ट आर्म्स एक्ट की धाराओं में दर्ज की गई.

आईजी मोहित अग्रवाल व एडीजी जयनारायण सिंह ने नामजद अभियुक्तों को पकड़ने के लिए एसपी सुनीति, एएसपी कमलेश दीक्षित तथा सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव की अगुवाई में 3 टीमें बनाईं. इन टीमों में तेजतर्रार इंसपेक्टर, दरोगा व कांस्टेबलों को शामिल किया गया. सहयोग के लिए एसओजी तथा क्राइम ब्रांच की टीम को भी लगाया गया. हत्यारोपी बाहुबली एमएलसी कमलेश पाठक औरैया शहर के मोहल्ला बनारसीदास में रहते थे, जबकि उन के भाई संतोष पाठक व रामू पाठक पैतृक गांव भड़ारीपुर में रहते थे जो औरैया से चंद किलोमीटर दूर था.

मंदिर में बाहुबल-भाग 1 : पाठक परिवार की दबंगई

उत्तर प्रदेश के औरैया शहर के मोहल्ला नारायणपुर में 15 मार्च, 2020 को सुबहसुबह खबर फैली कि पंचमुखी हनुमान मंदिर के पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक ब्रह्मलीन हो गए हैं. जिस ने भी यह खबर सुनी, पुजारी के अंतिम दर्शन के लिए चल पड़ा.

देखते ही देखते उन के घर पर भीड़ बढ़ गई. चूंकि पंचमुखी हनुमान मंदिर की देखरेख एमएलसी कमलेश पाठक करते थे और उन्होंने ही अपने रिश्तेदार वीरेंद्र स्वरूप को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया था, अत: पुजारी के निधन की खबर सुन कर वह भी लावलश्कर के साथ नारायणपुर पहुंच गए. उन के भाई रामू पाठक और संतोष पाठक भी आ गए.

अंतिम दर्शन के बाद एमएलसी कमलेश पाठक और उन के भाइयों ने मोहल्ले वालों के सामने प्रस्ताव रखा कि पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक इस मंदिर के पुजारी थे, इसलिए इन की भू समाधि मंदिर परिसर में ही बना दी जाए.

यह प्रस्ताव सुनते ही मोहल्ले के लोग अवाक रह गए और आपस में खुसरफुसर करने लगे. चूंकि कमलेश पाठक बाहुबली पूर्व विधायक, दरजा प्राप्त राज्यमंत्री और वर्तमान में वह समाजवादी पार्टी से एमएलसी थे. औरैया ही नहीं, आसपास के जिलों में भी उन की तूती बोलती थी, सो उन के प्रस्ताव पर कोई भी विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा सका.

नारायणपुर मोहल्ले में ही शिवकुमार चौबे उर्फ मुनुवा चौबे रहते थे. उन का मकान मंदिर के पास था. कमलेश पाठक व मुनुवा चौबे में खूब पटती थी, सो मंदिर की चाबी उन्हीं के पास रहती थी. पुजारी उन्हीं से चाबी ले कर मंदिर खोलते व बंद करते थे.

मोहल्ले के लोगों ने भले ही भय से मंदिर परिसर में पुजारी की समाधि का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था किंतु शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे व उन के अधिवक्ता बेटे मंजुल चौबे को यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था. मंजुल भी दबंग था, मोहल्ले में उस की भी हनक थी.

दरअसल, पंचमुखी हनुमान मंदिर की एक एकड़ बेशकीमती जमीन बाजार से सटी हुई थी. शिवकुमार चौबे व उन के बेटे मंजुल चौबे को लगा कि कमलेश पाठक दबंगई दिखा कर पुजारी की समाधि के बहाने जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं. चूंकि इस कीमती भूमि पर मुनुवा व उन के वकील बेटे मंजुल चौबे की भी नजर थी, सो उन्होंने भू समाधि का विरोध किया.

मंजुल चौबे को जब मोहल्ले वालों का सहयोग भी मिल गया तो कमलेश पाठक ने विरोध के कारण भू समाधि का विचार त्याग दिया. इस के बाद उन्होंने धूमधाम से पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक की शवयात्रा निकाली और यमुना नदी के शेरगढ़ घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया.

शाम 3 बजे अंतिम संस्कार के बाद कमलेश पाठक वापस मंदिर परिसर आ गए. उस समय उन के साथ भाई रामू पाठक, संतोष पाठक, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू, सरकारी गनर अवनीश प्रताप, कथावाचक राजेश शुक्ल तथा रिश्तेदार आशीष दुबे, कुलदीप अवस्थी, विकास अवस्थी, शुभम अवस्थी और कुछ अन्य लोग थे. इन में से अधिकांश के पास बंदूक और राइफल आदि हथियार थे. कमलेश पाठक ने मंदिर परिसर में पंचायत शुरू कर दी और शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे को पंचायत में बुलाया.

मुनुवा चौबे का दबंग बेटा मंजुल चौबे उस समय घर पर नहीं था. अत: वह बड़े बेटे संजय के साथ पंचायत में आ गए. पंचायत में दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान कमलेश पाठक ने मुनुवा चौबे से मंदिर की चाबी देने को कहा, लेकिन मुनुवा ने यह कह कर चाबी देने से इनकार कर दिया कि अभी तक मंदिर में तुम्हारा पुजारी नियुक्त था. अब वह मोहल्ले का पुजारी नियुक्त करेंगे और मंदिर की व्यवस्था भी स्वयं देखेंगे.

मुनुवा चौबे की बात सुन कर एमएलसी कमलेश पाठक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. दोनों के बीच विवाद होने लगा. इसी विवाद में कमलेश पाठक ने मुनुवा चौबे के गाल पर तमाचा जड़ दिया. मुनुवा का बड़ा बेटा संजय बीचबचाव में आया तो कमलेश ने उसे भी पीट दिया. मार खा कर बापबेटा घर चले गए. इसी बीच कुछ पत्रकार भी आ गए.

मंदिर परिसर में विवाद की जानकारी हुई, तो नारायणपुर चौकी के इंचार्ज नीरज त्रिपाठी भी आ गए. थानाप्रभारी एमएलसी कमलेश पाठक की दबंगई से वाकिफ थे, सो उन्होंने विवाद की सूचना औरैया कोतवाल आलोक दूबे को दे दी. सूचना पाते ही आलोक दूबे 10-12 पुलिसकर्मियों के साथ मंदिर परिसर में आ गए और कमलेश पाठक से विवाद के संबंध में आमनेसामने बैठ कर बात करने लगे.

उधर अधिवक्ता मंजुल चौबे को कमलेश पाठक द्वारा पिता और भाई को बेइज्जत करने की बात पता चली तो उस का खून खौल उठा. उस ने अपने समर्थकों को बुलाया फिर भाई संजय,चचेरे भाई आशीष तथा चचेरी बहन सुधा को साथ लिया और मंदिर परिसर पहुंच गया. पुलिस की मौजूदगी में कमलेश पाठक और मंजुल चौबे के बीच तीखी बहस होने लगी.

इसी बीच मंजुल चौबे के समर्थकों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी. एक पत्थर एमएलसी कमलेश पाठक के पैर में आ कर लगा और वह घायल हो गए. कमलेश पाठक के पैर से खून निकलता देख कर उन के भाई रामू पाठक, संतोष पाठक का खून खौल उठा.

उन्होंने पुलिस की मौजूदगी में फायरिंग शुरू कर दी. उन के अन्य समर्थक भी फायरिंग करने लगे. कमलेश पाठक का सरकारी गनर अवनीश प्रताप व ड्राइवर छोटू भी मारपीट व फायरिंग करने लगे. संतोष पाठक की ताबड़तोड़ फायरिंग में एक गोली मंजुल की चचेरी बहन सुधा के सीने में लगी और वह जमीन पर गिर कर छटपटाने लगी. चंद मिनटों बाद ही सुधा ने दम तोड़ दिया.

चचेरी बहन सुधा को खून से लथपथ पड़ा देखा तो मंजुल चौबे उस की ओर लपका. लेकिन वह सुधा तक पहुंच पाता, उस के पहले ही एक गोली उस के माथे को भेदती हुई आरपार हो गई. मंजुल भी धराशाई हो गया. फायरिंग में मंजुल गुट के कई समर्थक भी घायल हो गए थे और जमीन पर पड़े तड़प रहे थे. फिल्मी स्टाइल में हुई ताबड़तोड़ फायरिंग से इतनी दहशत फैल गई कि पुलिसकर्मी अपनी जान बचाने को भाग खड़े हुए. मीडियाकर्मी भी जान बचा कर भागे. जबकि तमाशबीन घरों में दुबक गए. खूनी संघर्ष के बाद एमएलसी कमलेश पाठक अपने भाई रामू, संतोष तथा अन्य समर्थकों के साथ फरार हो गए.

खूनी संघर्ष के दौरान घटनास्थल पर कोतवाल आलोक दूबे तथा चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी मय पुलिस फोर्स के मौजूद थे. लेकिन पुलिस नेअपने हाथ नहीं खोले और न ही किसी को चेतावनी दी.

सुकेश चंद्रशेखर : सिंह बंधुओं से 200 करोड़ ठगने वाला नया नटवरलाल : भाग-1

नटवरलाल भले ही अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उस की ठगी के किस्से आज भी मशहूर हैं. नटवरलाल को 20वीं सदी में हिंदुस्तान का सब से बड़ा ठग कहा गया. उस का असली नाम मिथलेश श्रीवास्तव था.

वह बिहार का रहने वाला था. वह अपनी बातों से ही लोगों को ऐसा प्रभावित करता था कि लोग उस की ठगी के जाल में फंस जाते थे. उस ने कभी खूनखराबा नहीं किया. अपनी बुद्धि की ताकत पर वह लोगों से ठगी करता था. और तो और, उस ने संसद भवन और ताजमहल तक का सौदा कर दिया था.

अपने ठगी के कारनामों से वह इतना मशहूर हो गया कि लोग उसे उस के असली नाम से नहीं, बल्कि नटवरलाल के नाम से जानते थे. नटवरलाल का मतलब ठगी करने वाला.

21वीं सदी में भारत में भी तरहतरह के ठग पैदा हो गए. अब रोजाना नएनए तरीकों से ठगी के किस्से सामने आते हैं. आजकल सब से ज्यादा साइबर ठग सक्रिय हैं. खास बात है कि अनपढ़ और बहुत कम पढ़ेलिखे लोग जब मंत्रियों, आईएएस/आईपीएस अफसरों और जजों के अलावा नामी उद्योगपतियों तक को अपना शिकार बनाते हैं तो ताज्जुब होता है.

इन साइबर ठगों को साइलेंट किलर कहा जा सकता है, जो बिना कोई खूनखराबा किए लोगों का पैसा हड़प लेते हैं.

अब एक नया नटवरलाल सामने आया है. नाम है सुकेश चंद्रशेखर. सिर्फ 12वीं तक पढ़ेलिखे सुकेश की ठगी के किस्से इन दिनों हिंदुस्तान की हाई सोसायटी में सब से ज्यादा मशहूर हो रहे हैं.

मासूम सा नजर आने वाला सुकेश देश के नामी उद्योगपतियों और बिजनेसमैन के परिवारों के अलावा नेताओं से अब तक सैकड़ों करोड़ रुपए की ठगी कर चुका है.

सुकेश अभी मुश्किल से 32 साल का है, लेकिन वह जवान होने से पहले से ही ठगी कर रहा है, जब वह महज 17 साल का था, तब सब से पहले उस का नाम एक करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी में सामने आया था.

इस के बाद 15 साल के अपनी ठगी के जीवन में वह करीब 5 साल का समय जेलों में बिता चुका है. उस ने जेल में रहते हुए ही 200-250 करोड़ रुपए की ठगी कर ली.

वह इतना शातिर है कि एक फिल्मी हीरोइन उस की पत्नी है. बौलीवुड के अलावा दक्षिण की कई फिल्मों में काम कर चुकी उस की हीरोइन पत्नी भी अब उस के अपराधों में भागीदार है.

सुकेश अब जेल में रहते हुए बौलीवुड की एक नामी हीरोइन पर डोरे डाल रहा था. यह नामी हीरोइन अब जांच एजेंसियों के दायरे में है.

यह कहानी हिंदुस्तान के नए महाठग सुकेश चंद्रशेखर की है. पिछले साल यानी 2020 की बात है. भारत की जनता का पहली बार कोरोना महामारी से वास्ता पड़ा था. पूरे देश में लोग संक्रमित हो रहे थे. लगातार मौतें हो रही थीं. सरकारी और गैरसरकारी इलाज के इंतजाम कम पड़ गए थे.

जून के महीने में कोरोना का तांडव चरम पर था. तभी एक दिन दिल्ली में अदिति सिंह के फोन की घंटी बजी. फोन करने वाली एक महिला थी. उस महिला ने बहुत शालीनता से अफसरी लहजे में अदिति सिंह से कहा, ‘‘कैन आइ टाक टू अदिति सिंह मैम.’’

‘‘यस, मैं अदिति बोल रही हूं.’’ अदिति सिंह ने जवाब दिया.

‘‘मैम, केंद्रीय कानून मंत्रालय के सचिव अनूप कुमार जी आप से बात करेंगे.’’ दूसरी ओर से महिला बोली.

‘‘हां, बात कराइए,’’ अदिति सिंह ने कहा.

लाइन कनेक्ट होने पर दूसरी ओर से किसी पुरुष की आवाज आई, ‘‘मैम, मैं अनूप कुमार बोल रहा हूं. ऊपर से आप की मदद करने के लिए आदेश आया है. कोविड के इस दौर में पीएम और होम मिनिस्टर चाहते हैं कि आप सरकार के साथ मिल कर काम करें, क्योंकि आप के पति हेल्थ सेक्टर के नामीगिरामी आदमी हैं.’’

‘‘ठीक है सर, आप क्या मदद कर सकते हैं और हमें इस के लिए क्या करना होगा.’’ अदिति सिंह ने फोन करने वाले अनूप कुमार से पूछा.

‘‘मैम, आप को अभी कुछ नहीं करना है. मैं मंत्रीजी और हमारे बड़े अफसरों से बात कर आप को जल्दी ही दोबारा काल करूंगा.’’ अनूप कुमार बोला.

फोन डिसकनेक्ट होने के बाद अदिति सिंह कुछ महीने पुरानी यादों में खो गईं.

कभी अरबोंखरबों के साम्राज्य की मालकिन रही अदिति सिंह रैनबेक्सी कंपनी के पूर्व प्रमोटर शिविंद्र मोहन सिंह की पत्नी हैं.

रैनबेक्सी एक समय में देश की सब से बड़ी फार्मा कंपनी थी. इस कंपनी के प्रमोटर 2 भाइयों मलविंदर मोहन सिंह और शिविंद्र मोहन सिंह की कारपोरेट जगत में अलग पहचान थी. बाद में 2008 में रैनबेक्सी को जापानी कंपनी दायची ने खरीद लिया था.

इस सौदे के बाद जापानी कंपनी ने सिंह बंधुओं पर रैनबेक्सी के बारे में गलत जानकारी दे कर महंगी कीमत वसूलने का आरोप लगा कर केस कर दिया था.

इस बीच, सिंह बंधुओं ने रैनबेक्सी कंपनी अपने हाथ से निकलने के बाद फोर्टिस हेल्थकेयर की शुरुआत की. इस कंपनी ने देशभर में शानदार अस्पतालों की शृंखला बनाई. सिंह बंधुओं ने इस के अलावा वित्तीय और दूसरे क्षेत्रों में काम करने के लिए रेलिगेयर फिनवेस्ट कंपनी शुरू की.

वर्ष 2016 में सिंह बंधुओं ने फोर्ब्स की 100 सब से अमीर भारतीयों की सूची मे 92वें नंबर पर जगह बनाई थी. उस वक्त दोनों भाइयों की संपत्ति 8 हजार 864 करोड़ रुपए बताई गई थी.

बाद में सिंह बंधुओं पर कंपनियों से धोखाधड़ी कर फंड निकालने के आरोप लगे. दोनों कंपनियां संकट में आईं तो उन के शेयर धारकों ने दोनों सिंह बंधुओं को निदेशक पद से हटा दिया. बाद में रेलिगेयर फिनवेस्ट और रेलिगेयर इंटरप्राइज ने दोनों सिंह बंधुओं के खिलाफ 237 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी.

इस से पहले अक्तूबर 2015 में सिंह बंधुओं की कहानी में अध्यात्म का ट्विस्ट आ गया. अक्तूबर 2015 में फोर्टिस की आम बैठक में शिविंद्र मोहन सिंह ने कंपनी का काम छोड़ने और अध्यात्म तथा समाज सेवा की ओर मुड़ने की घोषणा की.

फिर वे कंपनी की गतिविधियों से अलग हो कर राधास्वामी सत्संग (ब्यास) से जुड़ गए. शिविंद्र की मां निम्मी सिंह पहले से इस डेरे से जुड़ी हुई थीं.

आदित्य किडनैपिंग-मर्डर केस: 5 साल की जद्दोजहद के बाद

हाईप्रोफाइल मामला होने के कारण कोर्ट परिसर और आसपास सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. आरोपियों को न्यायालय में कड़ी सुरक्षा के बीच लाया गया था. फैसले को ले कर कोर्टरूम पत्रकारों, वकीलों व अन्य लोगों से भरा हुआ था. लेकिन जब कोर्ट की काररवाई शुरू हुई तो कोरोना के कारण अंदर आरोपी एवं पीडि़त पक्ष के वकीलों सहित कुछ अन्य वकील ही मौजूद रहे.

आने वाले फैसले पर उद्योग जगत की भी निगाहें लगीं थीं. कई उद्यमी दोपहर में फैसला आने से पहले कोर्टरूम के बाहर आ कर खड़े हो गए थे. आरोपियों के परिवार की महिलाएं भी वहां थीं.

सभी को फैसले का बड़ी बेसब्री से इंतजार था. निर्धारित समय पर अदालत के विशेष जज आजाद सिंह कोर्टरूम में आ कर अपनी कुरसी पर बैठे तो वहां मौजूद सभी लोगों की नजरें उन पर जम गईं.

आगे बढ़ने से पहले आइए हम इस चर्चित कांड को याद कर लें. यह अपहरण और हत्याकांड इतना दिल दहलाने वाला था कि इस की गूंज प्रदेश भर में सुनाई दी थी. इस घटना ने प्रदेश के कारोबारियों को स्तब्ध कर दिया था.

सुहागनगरी के नाम से प्रसिद्ध फिरोजाबाद शहर के चूड़ी कारोबारी अतुल मित्तल का 24 वर्षीय बेटा आदित्य मित्तल 22 अगस्त, 2016 को सुबह साढ़े 8 बजे हमेशा की तरह अपने घर शांति भवन से कार से थाना टूंडला क्षेत्र स्थित आर्चिड ग्रीन जिम के लिए निकला था. जिम के बाद आदित्य अपनी फैक्ट्री चला जाता था. लेकिन उस दिन जब वह फैक्ट्री नहीं पहुंचा, तब घर वालों को चिंता हुई.

आदित्य ने बेंगलुरु की क्राइस्ट यूनिवर्सिटी से एमबीए करने के बाद सन 2014 में फिरोजाबाद वापस आ कर संभाला था. वह अपने पिता के साथ ओम ग्लास का कामकाज संभाले हुए था.

आदित्य का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. कई घंटे तक जब आदित्य लौट कर नहीं आया, तब घर वालों ने उस की खोजबीन शुरू की. इस बीच आदित्य के ताऊ प्रदीप मित्तल के मोबाइल पर एक मैसेज आया. इस में लिखा था, ‘आदित्य का अपहरण हो गया है. किसी को पता नहीं चलना चाहिए, मेरे अगले फोन का इंतजार करना.’

जवान बेटे के अपहरण की सूचना पा कर घर वाले परेशान हो गए. चूंकि अपहर्त्ताओं ने किसी को सूचना न देने की धमकी दी थी, इसलिए घर वालों ने पुलिस को खबर नहीं दी और वे अपहर्त्ता के फोन का इंतजार करने लगे.

अपहर्त्ता ने उन से संपर्क किया और बताया कि आदित्य की कार थाना नारखी के नगला बीच में खड़ी है, उसे उठवा लो. उसी दिन आदित्य की कार नारखी थाना क्षेत्र से बरामद हो गई.

मांगी 10 करोड़ की फिरौती

रात में अपहर्त्ता ने फोन कर के उन से 10 करोड़ रुपए की फिरौती की मांग की. अपहर्त्ता इस से कम लेने पर राजी नहीं हुए, तब घर वालों ने इस की सूचना थाना टूंडला में दे दी. कारोबारी के बेटे के अपहरण की सूचना पर पुलिस सक्रिय हो गई. यह बात 22 अगस्त, 2016 की है.

पुलिस ने शहर की पौश कालोनी गणेश नगर निवासी आदित्य के दोस्तों बिल्डर रोहन सिंघल व कारोबारी अर्जुन से भी आदित्य के बारे में पूछा, लेकिन दोनों ने उस के बारे में कोई जानकारी होने से मना कर दिया.

घर वालों ने अपने स्तर पर आदित्य के सभी दोस्तों के साथ उसे सभी संभव जगहों पर तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. दूसरे दिन अपहर्त्ताओं का फोन आया, उन्होंने अब फिरौती के रूप में 10 करोड़ की जगह 30 किलोग्राम सोने की मांग किए जाने के साथ ही पुलिस में खबर करने पर आदित्य को मार डालने की धमकी दी.

चूंकि रोहन सिंघल आदित्य का घनिष्ठ दोस्त था, इसलिए आदित्य के घर वालों ने रोहन सिंघल को फोन कर के आदित्य के बारे में पूछताछ की तो उस ने उन से सीधे मुंह बात न कर के टालमटोल करने की कोशिश की.

रोहन को शक था कि कहीं उस का फोन रिकौर्ड न किया जा रहा हो. इसी शक के चलते उस ने फोन  को जल्दबाजी में डिसकनेक्ट कर दिया. जबकि रोहन अपहरण से एक दिन पहले 21 अगस्त की रात आदित्य के घर गया था और उस की मां के सामने सुबह जिम जाने की बात की थी.

रोहन की इस हरकत पर घर वालों को उस पर शक हुआ. आदित्य के ताऊ प्रदीप मित्तल ने घटना के 2 दिन बाद बिल्डर रोहन सिंघल, उस के भाई पवन सिंघल व कारोबारी अर्जुन के विरुद्ध थाना टूंडला में आदित्य का अपहरण करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

आरोपी चढ़े हत्थे

अपहरण के 3 दिन बाद 25 अगस्त की शाम थाना शिकोहाबाद पुलिस ने शिकोहाबाद क्षेत्र की भूड़ा स्थित नहर में आदित्य का शव बरामद किया. शव के हाथपैर रस्सी से बंधे थे. घर वालों ने शिकोहाबाद आ कर आदित्य के शव की शिनाख्त कर ली. नहर किनारे से आदित्य की चप्पलें भी बरामद हुईं.

अपहृत आदित्य का शव मिलने के बाद पुलिस ने जांच करने के बाद रईसजादे रोहन सिंघल और उस के फार्महाउस के राजमिस्त्री पवन कुमार निवासी सरजीवन नगर को गिरफ्तार कर लिया. तत्कालीन एसएसपी अशोक कुमार शर्मा ने प्रैस कौन्फ्रैंस में अपहरण व हत्याकांड का खुलासा करते हुए घटना में शामिल 2 हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

दोनों हत्यारोपियों की निशानदेही पर तत्कालीन एसपी (सिटी) संजीव वाजपेई पुलिस बल के साथ कर्मयोगी अपार्टमेंट पहुंचे और वहां से रस्सी व सीरींज आदि बरामद कीं. इस के साथ ही अन्य आरोपियों पर शिकंजा कसने के लिए जांच अधिकारी टूंडला थानाप्रभारी राजीव यादव ने जांच आगे बढ़ाई.

कई राजनैतिक दलों व विभिन्न संगठनों ने इस घटना में शामिल सभी आरोपियों की गिरफ्तारी व उन्हें कड़ी सजा दिलाए जाने की पुरजोर मांग की. इस के साथ ही नगर में कैंडिल मार्च निकालने का सिलसिला शुरू हो गया. इलैक्ट्रौनिक और पिं्रट मीडिया में भी यह घटना सुर्खियों में थी. जब यह मामला प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक पहुंचा तो अधिकारियों पर दवाब पड़ा. आखिर पुलिस ने सक्रियता दिखाई और शेष आरोपियों की गिरफ्तारी कर लिया.

पुलिस विवेचना में रोहन के दोस्त अर्जुन का नाम हट गया. तफ्तीश के दौरान पुलिस ने हत्या में शामिल राजमिस्त्री पवन कुमार के साथी गोपाल निवासी सरजीवन व फार्महाउस में काम करने वाले श्रमिक मुकेश निवासी मोतीलाल की ठार, आसफाबाद के साथ ही रोहन के भाई पवन सिंघल व उस की मां अनीता सिंघल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

आरोपियों से पूछताछ के बाद अपहरण की पूरी कहानी पुलिस के सामने आ गई.

आदित्य के बचपन का एक दोस्त था अर्जुन. उस के पिता गत्ता कारोबारी थे. बिल्डर के धंधे की वजह से कर्ज में डूबे शहर के रईसजादे रोहन सिंघल ने तब एक घिनौनी साजिश रची. उस ने कौमन फ्रैंड अर्जुन के जरिए वारदात से 3 महीने पहले आदित्य से दोस्ती की और लगातार रैकी करता रहा. साथ ही उस के घर भी आनाजाना शुरू कर दिया. आदित्य के परिवार का कारोबार देख उस ने कर्ज से मुक्ति पाने के लिए आदित्य के अपहरण की साजिश रची.

21 अगस्त को रोहन सिंघल आदित्य के घर आया और दूसरे दिन जिम जाने की प्लानिंग की. घटना के दिन 22 अगस्त को आदित्य अपनी कार से आर्चिड ग्रीन स्थित जिम जाने के लिए निकला.

लौटते समय वह आदित्य को आर्चिड ग्रीन कालोनी के गेट से अपनी रिवौल्वर से फायर कराने के बहाने अपने साथ जलेसर रोड स्थित निर्माणाधीन कालोनी कर्मयोगी अपार्टमेंट ले गया और वहां अपने राजमिस्त्री पवन कुमार की सहायता से उसे बंधक बना लिया.

डर की वजह से की हत्या

रस्सी से आदित्य के हाथपैर बांध कर उसे नशे के इंजेक्शन लगाए गए ताकि वह बेहोश रहे. जब दूसरे दिन शहर में आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर लोगों ने कैंडिल मार्च निकाला तब रोहन डर गया. गुजरते वक्त के साथ उसे अपने पकड़े जाने का खतरा सताने लगा था.

हड़बड़ी में उस ने आदित्य को लगातार कई इंजेक्शन दिए, जिस से उस की मौत हो गई. अब वह लाश को ठिकाने लगाने के प्रयास में जुट गया.

24 अगस्त की रात में अन्य आरोपियों के साथ शव को ले जा कर शिकोहाबाद नहर में फेंक दिया गया, जो 25 अगस्त को नहर किनारे बबूल के पेड़ों में अटक गया, जिसे शिकोहाबाद पुलिस ने बरामद किया. फिरौती वसूलने से पहले ही उस ने आदित्य को मार डाला और अपने ही जाल में फंस गया.

इस बीच रोहन सिंघल ने बेहद चालाकी का परिचय दिया. आदित्य के घर वालों के शक से बचने के लिए वह अपहरण के बाद भी उन के संपर्क में रहा. वह जानना चाहता था कि परिजनों द्वारा क्या काररवाई की जा रही है.

आदित्य के अपहरण से पहले शातिर दिमाग रोहन ने फरजी नामों से 3 सिम खरीदे थे. इस के बाद उस ने वायस चेंजर ऐप के माध्यम से आदित्य के घर वालों से फिरौती मांगी. पहले 10 करोड़ मांगे. बाद में कैश की जगह 30 किलोग्राम सोने की डिमांड रख दी. घर वालों ने  कहा कि वे इतनी बड़ी फिरौती देने में असमर्थ हैं.

पुलिस पूछताछ में रोहन ने जानकारी दी कि उसे पकड़े जाने का डर था. फिरौती में सोना मांग कर वह पुलिस को भटकाना चाहता था, ताकि पुलिस को लगे कि आदित्य का अपहरण किसी बाहरी गैंग द्वारा किया गया है. पुलिस ने रोहन की लाइसैंसी रिवौल्वर भी जब्त कर ली.

पुलिस ने आदित्य के अपहरण व हत्या में 6 लोगों के विरुद्ध न्यायालय में चार्जशीट  दाखिल की थी. मामला सेशन के सुपुर्द हो कर सुनवाई के लिए पहुंचा.

भादंवि की धारा 120बी के आरोपी पवन सिंघल व उस की मां अनीता सिंघल की जमानत हाईकोर्ट से मंजूर हो गई थी और वे जेल से बाहर आ गए थे.

इस बहुचर्चित मामले की सुनवाई करीब पौने 5 साल तक फिरोजाबाद जिले के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (षष्टम) एवं विशेष जज आजाद सिंह के न्यायालय में चल रही थी. सत्र न्यायाधीश द्वारा 7 अप्रैल, 2021 को इस केस का फैसला सुनाया जाना था.

सुनवाई के दौरान न्यायालय में सरकारी गवाह सहित 15 गवाहों की पेशी हुई. पीडि़त परिवार की ओर से न्यायालय के समक्ष तमाम साक्ष्य प्रस्तुत किए गए. दोषियों को जल्दी सजा दिलाने के लिए हाईकोर्ट तक दौड़ लगाई.

आरोपियों को मिली सजा

हाईकोर्ट द्वारा भी 4 बार दिशानिर्देश जारी किए गए. आरोपियों ने अदालत में खुद को बेकसूर बताया. गवाहों के बयान और दोनों पक्षों के वकीलों की जिरह सुनने के बाद विशेष जज आजाद सिंह ने सबूतों के आधार पर 7 अप्रैल, 2021 को अपना फैसला सुनाया.

जज आजाद सिंह ने आरोपियों रोहन सिंघल, पवन कुमार, मुकेश व गोपाल को अपहरण व हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

न्यायाधीश ने रोहन पर 2.40 लाख रुपए व अन्य तीनों पर 2.3-2.30 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया. जुरमाना न देने पर दोषियों को एकएक वर्ष की अतिरिक्त सजा भुगतने का ऐलान किया गया. वहीं साक्ष्य के अभाव में न्यायाधीश ने पवन सिंघल व उस की मां अनीता सिंघल को बरी कर दिया.

अभियोजन पक्ष की ओर से न्यायालय में पैरवी विशेष लोक अभियोजक अजय कुमार शर्मा ने की. फैसला सुनाए जाने के बाद उन्होंने बताया कि पवन व अनीता को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई थी, जबकि शेष चारों आरोपी तभी से जेल में बंद थे.

जैसे ही दोषियों को सजा सुनाई गई तो उन के परिवार की महिलाएं बिलखने लगीं. दोषियों को कड़ी सुरक्षा के बीच ले जाया गया. जेल ले जाते समय परिवार की महिलाएं काफी दूर तक उन के पीछेपीछे गईं.

आदित्य मित्तल के पिता अतुल मित्तल को यह खबर मिली कि बेटे की हत्या के मामले में विशेष जज ने 4 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है तो उन के दिल को सुकून मिला.

आखिर इतनी मशक्कत के बाद दोषियों को सजा मिल गई. मित्तल परिवार आरोपियों को फांसी की सजा दिलाने तक पैरवी करेगा. गलत शख्स से दोस्ती ने आदित्य की जान ले ली. दोषियों को सजा जरूर मिल गई है, लेकिन बेटे को खोने का गम आज भी परिवार के सदस्यों की आंखों में झलकता है.

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घिनौनी साजिश : क्यों घिरा रहा रामबिहारी राठौर अपने ही कुकर्म से

10 जनवरी, 2021 की सुबह 9 बजे रिटायर्ड कानूनगो रामबिहारी राठौर कोतवाली कोंच पहुंचा. उस समय कोतवाल इमरान खान कोतवाली में मौजूद थे. चूंकि इमरान खान रामबिहारी से अच्छी तरह परिचित थे. इसलिए उन्होंने उसे ससम्मान कुरसी पर बैठने का इशारा किया. फिर पूछा, ‘‘कानूनगो साहब, सुबहसुबह कैसे आना हुआ? कोई जरूरी काम है?’’

‘‘हां सर, जरूरी काम है, तभी थाने आया हूं.’’ रामबिहारी राठौर ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर बताओ, क्या जरूरी काम है?’’ श्री खान ने पूछा.

‘‘सर, हमारे घर में चोरी हो गई है. चोर एक पेन ड्राइव और एक हार्ड डिस्क ले गए हैं. हार्ड डिस्क के कवर में 20 हजार रुपए भी थे. वह भी चोर ले गए हैं.’’ रामबिहारी ने जानकारी दी.

‘‘तुम्हारे घर किस ने चोरी की. क्या किसी पर कोई शक वगैरह है?’’ इंसपेक्टर खान ने पूछा.

‘‘हां सर, शक नहीं बल्कि मैं उन्हें अच्छी तरह जानतापहचानता हूं. वैसे भी चोरी करते समय उन की सारी करतूत कमरे में लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद है. आप चल कर फुटेज में देख लीजिए.’’

‘‘कानूनगो साहब, जब आप चोरी करने वालों को अच्छी तरह से जानतेपहचानते हैं और सबूत के तौर पर आप के पास फुटेज भी है, तो आप उन का नामपता बताइए. हम उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लेंगे और चोरी गया सामान भी बरामद कर लेंगे.’’

‘‘सर, उन का नाम राजकुमार प्रजापति तथा बालकिशन प्रजापति है. दोनों युवक कोंच शहर के मोहल्ला भगत सिंह नगर में रहते हैं. दोनों को कुछ दबंगों का संरक्षण प्राप्त है.’’ रामबिहारी ने बताया.

चूंकि रामबिहारी राठौर  कानूनगो तथा वर्तमान में कोंच नगर का भाजपा उपाध्यक्ष था, अत: इंसपेक्टर इमरान खान ने रामबिहारी से तहरीर ले कर तुरंत काररवाई शुरू कर दी. उन्होंने देर रात राजकुमार व बालकिशन के घरों पर दबिश दी और दोनों को हिरासत में ले लिया. उन के घर से पुलिस ने पेन ड्राइव व हार्ड डिस्क भी बरामद कर ली. रामबिहारी के अनुरोध पर पुलिस ने उस की पेन ड्राइव व हार्ड डिस्क वापस कर दी.

पुलिस ने दोनों युवकों के पास से पेन ड्राइव व हार्ड डिस्क तो बरामद कर ली, लेकिन 20 हजार रुपया बरामद नहीं हुए थे. इंसपेक्टर खान ने राजकुमार व बालकिशन से रुपयों के संबंध में कड़ाई से पूछा तो उन्होंने बताया कि रुपया नहीं था. कानूनगो रुपयों की बाबत झूठ बोल रहा है. वह बड़ा ही धूर्त इंसान है.

इंसपेक्टर इमरान खान ने जब चोरी के बाबत पूछताछ शुरू की तो दोनों युवक फफक पड़े. उन्होंने सिसकते हुए अपना दर्द बयां किया तो थानाप्रभारी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. दोनों ने बताया कि रामबिहारी इंसान नहीं बल्कि हैवान है. वह मासूमों को अपने जाल में फंसाता है और फिर उन के साथ कुकर्म करता है.

एक बार जो उस के जाल में फंस जाता है, फिर निकल नहीं पाता. वह उन के साथ कुकर्म का वीडियो बना लेता फिर ब्लैकमेल कर बारबार आने को मजबूर करता. 8 से 14 साल के बीच की उम्र के बच्चों को वह अपना शिकार बनाता है. गरीब परिवार की महिलाओं, किशोरियों और युवतियों को भी वह अपना शिकार बनाता है.

राजकुमार व बालकिशन प्रजापति ने बताया कि रामबिहारी राठौर पिछले 5 सालों से उन दोनों के साथ भी घिनौना खेल खेल रहा है. उन दोनों ने बताया कि जब उन की उम्र 13 साल थी, तब वे जीवनयापन करने के लिए ठेले पर रख कर खाद्य सामग्री बेचते थे.

एक दिन जब वे दोनों सामान बेच कर घर आ रहे थे, तब पूर्व कानूनगो रामबिहारी राठौर ने उन दोनों को रोक कर अपनी मीठीमीठी बातों में फंसाया. फिर वह उन्हें अपने घर में ले गया और दरवाजा बंद कर लिया. फिर बहाने से कोल्डड्रिंक में नशीला पदार्थ मिला कर पिला दिया. उस के बाद उस ने उन दोनों के साथ कुकर्म किया. बाद में उन्होंने विरोध करने पर फरजी मुकदमे में फंसा देने की धमकी दी.

कुछ दिन बाद जब वे दोनों ठेला ले कर जा रहे थे तो नेता ने उन्हें पुन: बुलाया और कमरे में लैपटाप पर वीडियो दिखाई, जिस में वह उन के साथ कुकर्म कर रहा था. इस के बाद उन्होंने कहा कि मेरे कमरे में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं और मैं ने तुम दोनों का वीडियो सुरक्षित रखा है. यदि तुम लोग मेरे बुलाने पर नहीं आए तो यह वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दूंगा.

इस के बाद नेताजी ने कुछ और वीडियो दिखाए और कहा कि तुम सब के वीडियो हैं. यदि मेरे खिलाफ किसी भी प्रकार की शिकायत किसी से की, मैं उलटा मुकदमा कायम करा दूंगा. युवकों ने बताया कि डर के कारण उन्होंने मुंह बंद रखा. लेकिन नेताजी का शोषण जारी रहा. हम जैसे दरजनों बच्चे हैं, जिन के साथ वह घिनौना खेल खेलता है.

उन दोनों ने पुलिस को यह भी बताया कि 7 जनवरी, 2021 को नेता ने उन्हें घर बुलाया था, लेकिन वे नहीं गए. अगले दिन फिर बुलाया. जब वे दोनों घर पहुंचे तो नेता ने जबरदस्ती करने की कोशिश की. विरोध जताया तो उन्होंने जेल भिजवाने की धमकी दी.

इस पर उन्होंने मोहल्ले के दबंग लोगों से संपर्क किया, फिर नेता रामबिहारी का घिनौना सच सामने लाने के लिए दबंगों के इशारे पर रामबिहारी की पेन ड्राइव व हार्ड डिस्क उस के कमरे से उठा ली. यह दबंग, रामबिहारी को ब्लैकमेल कर उस से लाखों रुपया वसूलना चाहते थे.

पूर्व कानूनगो व भाजपा नेता रामबिहारी का घिनौना सच सामने आया तो इंसपेक्टर इमरान खान के मन में कई आशंकाएं उमड़ने लगीं. वह सोचने लगे, कहीं रामबिहारी बांदा के इंजीनियर रामभवन की तरह पोर्न फिल्मों का व्यापारी तो नहीं है. कहीं रामबिहारी के संबंध देशविदेश के पोर्न निर्माताओं से तो नहीं.

इस सच को जानने के लिए रामबिहारी को गिरफ्तार करना आवश्यक था. लेकिन रामबिहारी को गिरफ्तार करना आसान नहीं था. क्योंकि वह सत्ता पक्ष का नेता था और सत्ता पक्ष के बड़े नेताओं से उस के ताल्लुकात थे. उस की गिरफ्तारी से बवाल भी हो सकता था. अत: इंसपेक्टर खान ने इस प्रकरण की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी.

सूचना पाते ही एसपी डा. यशवीर सिंह, एएसपी डा. अवधेश कुमार, डीएसपी (कोंच) राहुल पांडेय तथा क्राइम ब्रांच प्रभारी उदयभान गौतम कोतवाली कोंच आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने दोनों युवकों राजकुमार तथा बालकिशन से घंटों पूछताछ की फिर सफेदपोश नेता को गिरफ्तार करने के लिए डा. यशवीर सिंह ने डीएसपी राहुल पांडेय की निगरानी में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया तथा कोंच कस्बे में पुलिस बल तैनात कर दिया.

12 जनवरी, 2021 की रात 10 बजे पुलिस टीम रामबिहारी के भगत सिंह नगर मोहल्ला स्थित घर पर पहुंची. लेकिन वह घर से फरार था. इस बीच पुलिस टीम को पता चला कि रामबिहारी पंचानन चौराहे पर मौजूद है. इस जानकारी पर पुलिस टीम वहां पहुंची और रामबिहारी को नाटकीय ढंग से गिरफ्तार कर लिया.

उसे कोतवाली कोंच लाया गया. इस के बाद पुलिस टीम रात में ही रामबिहारी के घर पहुंची और पूरे घर की सघन तलाशी ली. तलाशी में उस के घर से लैपटाप, पेन ड्राइव, मोबाइल फोन, डीवीआर, एक्सटर्नल हार्ड डिस्क तथा नशीला पाउडर व गोलियां बरामद कीं. थाने में रामबिहारी से कई घंटे पूछताछ की गई.

रामबिहारी राठौर के घर से बरामद लैपटाप, पेन ड्राइव, मोबाइल, डीवीआर तथा हार्ड डिस्क की जांच साइबर एक्सपर्ट टीम तथा झांसी की फोरैंसिक टीम को सौंपी गई. टीम ने झांसी रेंज के आईजी सुभाष सिंह बघेल की निगरानी में जांच शुरू की तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. फोरैंसिक टीम के प्रभारी शिवशंकर ने पेन ड्राइव व हार्ड डिस्क से 50 से अधिक पोर्न वीडियो निकाले. उन का अनुमान है कि हार्ड डिस्क में 25 जीबी अश्लील डाटा है.

इधर पुलिस टीम ने लगभग 50 बच्चों को खोज निकाला, जिन के साथ रामबिहारी ने दरिंदगी की और उन के बचपन के साथ खिलवाड़ किया. इन में 36 बच्चे तो सामने आए, लेकिन बाकी बच्चे शर्म की वजह से सामने नहीं आए. 36 बच्चों में से 18 बच्चों ने ही बयान दर्ज कराए. जबकि 3 बच्चों ने बाकायदा रामबिहारी के विरुद्ध लिखित शिकायत दी.

इन बच्चों की तहरीर पर थानाप्रभारी इमरान खान ने भादंवि की धारा 328/377/506 तथा पोक्सो एक्ट की धारा (3), (4) एवं आईटी एक्ट की धारा 67ख के तहत रामबिहारी राठौर के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे न्यायसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

भाजपा नेता रामबिहारी के घिनौने सच का परदाफाश हुआ तो कोंच कस्बे में सनसनी फैल गई. लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे. किरकिरी से बचने के लिए नगर अध्यक्ष सुनील लोहिया ने बयान जारी कर दिया कि भाजपा का रामबिहारी से कोई लेनादेना नहीं है. रामबिहारी ने पिछले महीने ही अपने पद व प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, जिसे मंजूर कर लिया गया था.

इधर सेवानिवृत्त कानूनगो एवं उस की घिनौनी करतूतों की खबर अखबारों में छपी तो कोंच कस्बे में लोगों का गुस्सा फट पड़ा. महिलाओं और पुरुषों ने रामबिहारी का घर घेर लिया और इस हैवान को फांसी दो के नारे लगाने लगे. भीड़ रामबिहारी का घर तोड़ने व फूंकने पर आमादा हो गई. कुछ लोग उस के घर की छत पर भी चढ़ गए. लेकिन पुलिस ने किसी तरह घेरा बना कर भीड़ को रोका और समझाबुझा कर शांत किया.

कुछ महिलाएं व पुरुष कोतवाली पहुंच गए. उन्होंने रामबिहारी को उन के हवाले करने की मांग की. दरअसल, वे महिलाएं हाथ में स्याही लिए थीं, वे रामबिहारी का मुंह काला करना चाहती थीं. लेकिन एसपी डा. यशवीर सिंह ने उन्हें समझाया कि अपराधी अब पुलिस कस्टडी में है. अत: कानून का उल्लंघन न करें. कानून खुद उसे सजा देगा. महिलाओं ने एसपी की बात मान ली और वे थाने से चली गईं.

रामबिहारी राठौर कौन था? वह रसूखदार सफेदपोश नेता कैसे बना? फिर इंसान से हैवान क्यों बन गया? यह सब जानने के लिए हमें उस के अतीत की ओर झांकना होगा.

जालौन जिले का एक कस्बा है-कोंच. तहसील होने के कारण कोंच कस्बे में हर रोज चहलपहल रहती है. इसी कस्बे के मोहल्ला भगत सिंह नगर में रामबिहारी राठौर अपनी पत्नी उषा के साथ रहता था. रामबिहारी का अपना पुश्तैनी मकान था, जिस के एक भाग में वह स्वयं रहता था, जबकि दूसरे भाग में उस का छोटा भाई श्यामबिहारी अपनी पत्नी व बच्चों के साथ रहता था.

रामबिहारी पढ़ालिखा व्यक्ति था. वर्ष 1982 में उस का चयन लेखपाल के पद पर हुआ था. कोंच तहसील में ही वह कार्यरत था. रामबिहारी महत्त्वाकांक्षी था. धन कमाना ही उस का मकसद था. चूंकि वह लेखपाल था, सो उस की कमाई अच्छी थी. लेकिन संतानहीन था. उस ने पत्नी उषा का इलाज तो कराया लेकिन वह बाप न बन सका.

उषा संतानहीन थी, सो रामबिहारी का मन उस से उचट गया और वह पराई औरतों में दिलचस्पी लेने लगा. उस के पास गरीब परिवारों की महिलाएं राशन कार्ड बनवाने व अन्य आर्थिक मदद हेतु आती थीं. ऐसी महिलाओं का वह मदद के नाम पर शारीरिक शोषण करता था. वर्ष 2005 में एक महिला ने सब से पहले उस के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया. लेकिन रामबिहारी ने उस के घरवालों पर दबाव बना कर मामला रफादफा कर लिया.

कोंच तहसील के गांव कुंवरपुरा की कुछ महिलाओं ने भी उस के खिलाफ यौनशोषण की शिकायत तहसील अफसरों से की थी. तब रामबिहारी ने अफसरों से हाथ जोड़ कर तथा माफी मांग कर लीपापोती कर ली. सन 2017 में रामबिहारी को रिटायर होना था. लेकिन रिटायर होने के पूर्व उस की तरक्की हो गई. वह लेखपाल से कानूनगो बना दिया गया. फिर कानूनगो पद से ही वह रिटायर हुआ. रिटायर होने के बाद वह राजनीति में सक्रिय हो गया. उस ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली.

कुछ समय बाद ही उसे कोंच का भाजपा नगर उपाध्यक्ष बना दिया गया. रामबिहारी तेजतर्रार था. उस ने जल्द ही शासनप्रशासन में पकड़ बना ली. उस ने घर पर कार्यालय बना लिया और उपाध्यक्ष का बोर्ड लगा लिया. नेतागिरी की आड़ में वह जायजनाजायज काम करने लगा. वह कोंच का रसूखदार सफेदपोश नेता बन गया.

रामबिहारी का घर में एक स्पैशल रूम था. इस रूम में उस ने 5 सीसीटीवी कैमरे लगवा रखे थे. घर के बाहर भी कैमरा लगा था. कमरे में लैपटाप, डीवीआर व हार्ड डिस्क भी थी. आनेजाने वालों की हर तसवीर कैद होती थी. हनक बनाए रखने के लिए उस ने कार खरीद ली थी और लाइसैंसी पिस्टल भी ले ली थी. रामबिहारी अवैध कमाई के लिए अपने घर पर जुआ की फड़ भी चलाता था. उस के घर पर छोटामोटा नहीं, लाखों का जुआ होता था. खेलने वाले कोंच से ही नहीं, उरई, कालपी और बांदा तक से आते थे. जुए के खेल में वह अपनी ही मनमानी चलाता था.

जुआ खेलने वाला व्यक्ति अगर जीत गया तो वह उसे तब तक नहीं जाने देता था, जब तक वह हार न जाए. इसी तिकड़म में उस ने सैकड़ों को फंसाया और लाखों रुपए कमाए. इस में से कुछ रकम वह नेता, पुलिस, गुंडा गठजोड़ पर खर्च करता ताकि धंधा चलता रहे.

रामबिहारी राठौर जाल बुनने में महारथी था. वह अधिकारियों, कर्मचारियों एवं सामान्य लोगों के सामने अपने रसूख का प्रदर्शन कर के उन्हें दबाव में लेने की कोशिश करता था. बातों का ऐसा जाल बुनता था कि लोग फंस जाते थे. हर दल के नेताओं के बीच उस की घुसपैठ थी. उस के रसूख के आगे पुलिस तंत्र भी नतमस्तक था. किसी पर भी मुकदमा दर्ज करा देना, उस के लिए बेहद आसान था.

रामबिहारी राठौर बेहद अय्याश था. वह गरीब परिवार की महिलाओं, युवतियों, किशोरियों को तो अपनी हवस का शिकार बनाता ही था, मासूम बच्चों के साथ भी दुष्कर्म करता था. वह 8 से 14 साल की उम्र के बच्चों को अपने जाल में फंसाता था.

बच्चे को रुपयों का लालच दे कर घर बुलाता फिर कोेल्ड ड्रिंक में नशीला पाउडर मिला कर पीने को देता. बच्चा जब बेहोश हो जाता तो उस के साथ दुष्कर्म करता. दुष्कर्म के दौरान वह उस का वीडियो बना लेता.

कोई बच्चा एक बार उस के जाल में फंस जाता, तो वह उसे बारबार बुलाता. इनकार करने पर अश्लील वीडियो वायरल करने की धमकी देता, जिस से वह डर जाता और बुलाने पर आने को मजबूर हो जाता. वह जिस बच्चे को जाल में फंसा लेता, उसे वह दूसरे बच्चे को लाने के लिए कहता. इस तरह उस ने कई दरजन बच्चे अपने जाल में फंसा रखे थे, जिन के साथ वह दरिंदगी का खेल खेलता था. अय्याश रामबिहारी सैक्सवर्धक दवाओं का सेवन करता था. वह किसी बाहरी व्यक्ति को अपने कमरे में नहीं आने देता था.

रामबिहारी राठौर के घर सुबह से देर शाम तक कम उम्र के बच्चों का आनाजाना लगा रहता था. उस के कुकृत्यों का आभास आसपड़ोस के लोगों को भी था. लेकिन लोग उस के बारे में कुछ कहने से सहमते थे. कभी किसी ने अंगुली उठाई तो उस ने अपने रसूख से उन लोगों के मुंह बंद करा दिए. किसी के खिलाफ थाने में झूठी रिपोर्ट दर्ज करा दी तो किसी को दबंगों से धमकवा दिया. बाद में उस की मदद का ड्रामा कर के उस का दिल जीत लिया.

लेकिन कहते हैं, गलत काम का घड़ा तो एक न एक दिन फूटता ही है. वही रामबिहारी के साथ भी हुआ. दरअसल रामबिहारी ने मोहल्ला भगत सिंह नगर के 2 लड़कों राजकुमार व बालकिशन को अपने जाल में फंसा रखा था और पिछले कई साल से वह उन के साथ दरिंदगी का खेल खेल रहा था.

इधर रामबिहारी की नजर उन दोनों की नाबालिग बहनों पर पड़ी तो वह उन्हें लाने को मजबूर करने लगा. यह बात उन दोनों को नागवार लगी और उन्होंने साफ मना कर दिया. इस पर रामबिहारी ने उन दोनों के अश्लील वीडियो वायरल करने तथा उन्हें जेल भिजवाने की धमकी दी.

रामबिहारी की धमकी से डर कर राजकुमार व बालकिशन प्रजापति मोहल्ले के 2 दबंगों के पास पहुंच गए और रामबिहारी के कुकृत्यों का चिट्ठा खोल दिया. उन दबंगों ने उन दोनों बच्चों को मदद का आश्वासन दिया और रामबिहारी को ब्लैकमेल करने की योजना बनाई.

योजना के तहत दबंगों ने राजकुमार व बालकिशन की मार्फत रामबिहारी के घर में चोरी करा दी. उस के बाद दबंगों ने रामबिहारी से 15 लाख रुपयों की मांग की. भेद खुलने के भय से रामबिहारी उन्हें 5 लाख रुपए देने को राजी भी हो गया. लेकिन पैसों के बंटवारे को ले कर दबंगों व पीडि़तों के बीच झगड़ा हो गया.

इस का फायदा उठा कर रामबिहारी थाने पहुंच गया और चोरी करने वाले दोनों लड़कों के खिलाफ तहरीर दे दी. तहरीर मिलते ही कोंच पुलिस ने चोरी गए सामान सहित उन दोनों लड़कों को पकड़ लिया. पुलिस ने जब पकड़े गए राजकुमार व बालकिशन से पूछताछ की तो रामबिहारी राठौर के घिनौने सच का परदाफाश हो गया.

पुलिस जांच में लगभग 300 अश्लील वीडियोे सामने आए हैं और लगभग 50 बच्चों के साथ उस ने दुष्कर्म किया था. जांच से यह भी पता चला कि रामबिहारी पोर्न फिल्मों का व्यापारी नहीं है. न ही उस के किसी पोर्न फिल्म निर्माता से संबंध हैं. रामबिहारी का कनेक्शन बांदा के जेई रामभवन से भी नहीं था. 13 जनवरी, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त रामबिहारी राठौर को जालौन की उरई स्थित कोर्ट में मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रोंं पर आधारित

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