37 सेकेंड में 35 लाख की लूट

यूंतो ज्यादातर दुकानदार कोरोना प्रोटोकाल का पालन करते हैं, लेकिन बड़े दुकानदार खासकर शोरूम मालिक अपने और ग्राहकों के नजरिए से नियमों का पूरा पालन करते हैं. इस से ग्राहकों पर भी अच्छा इंप्रेशन पड़ता है. इसी के मद्देनजर सुंदर ज्वैलर्स के मालिक सुंदर वर्मा ने यह जिम्मेदारी गेट के पास बैठने वाले सेल्समैन को सौंप रखी थी.

कोई भी ग्राहक आता तो सेल्समैन सेनेटाइजर की बोतल उठा कर पहले उसके हाथ सेनेटाइज कराता, फिर वेलकम के साथ अंदर जाने को कहता.

उस दिन शोरूम में जूलरी खरीदने वाले 2-3 ग्राहक मौजूद थे. तभी मास्क लगाए 2 युवकों ने शोरूम में प्रवेश किया. गेट के पास काउंटर पर बैठे सेल्समैन ने सेनेटाइजर से दोनों के हाथ सेनेटाइज कराए. तभी दोनों युवकों ने अपनीअपनी शर्ट के अंदर हाथ डाल कर तमंचे निकाल लिए. उसी वक्त उन का तीसरा साथी अंदर आ गया.

यह देख शोरूम में मौजूद सभी लोग दहशत में आ गए. एक युवक ने तमंचा तानते हुए काउंटर पर रखा जूलरी बौक्स उठा लिया. इतना ही नहीं, सुंदर वर्मा के बेटे यश को तमंचे के निशाने पर ले कर वह काउंटर लांघ कर तिजोरी के पास पहुंच गया.

तिजोरी में कीमती जेवर रखे हुए थे. तिजोरी से जेवरों के डिब्बे, नकदी निकाल कर वह अपने साथी को देने लगा. साथी लुटेरे के पास बैग था, वह जेवर बैग में भरता रहा. इस काम में उस का तीसरा साथी भी मदद कर रहा था.

बैग को जेवरों के डिब्बों और नकदी से भर कर वे तीनों तमंचे लहराते हुए शोरूम से बाहर निकल गए. यह सारा काम महज 37 सेकेंड में निपट गया.

शोरूम के बाहर लुटेरों की मोटरसाइकिल खड़ी थी. तीनों बाइक पर बैठ कर भाग निकले. यह 11 सितंबर, 2020 की बात है.

लुटेरों ने शोरूम में प्रवेश कर के जब अपने हाथ सैनेटाइज किए, तभी उन के हावभाव से खतरे की आशंका भांप कर शोरूम मालिक सुंदर वर्मा फुरती से शोरूम के पिछले गेट से बाहर निकल कर पीछे बने जीने से छत पर चढ़ गए थे. ऊपर जा कर वह चोरचोर चिल्लाते हुए शोर मचाने लगे.

इसी बीच लुटेरे लूट की घटना को अंजाम दे कर शोरूम से भाग निकले. सुंदर वर्मा के शोर मचाने पर आसपास के दुकानदारों और सड़क पर आतेजाते लोगों का ध्यान उन की तरफ गया, लेकिन बदमाशों के हाथों में हथियार देख कर लोग दहशत में आ गए. किसी ने भी बदमाशों को रोकने या टोकने की हिम्मत नहीं दिखाई. लुटेरे खैर रोड की ओर भाग गए.

दिनदहाड़े जूलरी शोरूम में हुई लूट की जानकारी होते ही आसपास के दुकानदारों में सनसनी फैल गई. घटना की खबर मिलने पर आईजी पीयूष मोर्डिया, एसएसपी मुनिराज, एसपी (सिटी) अभिषेक, थाना बन्नादेवी के प्रभारी निरीक्षक रविंद्र दुबे, एसओजी और सर्विलांस टीमें शोरूम पर पहुंच गईं.

पुलिस अधिकारियों ने शोरूम मालिक सुंदर वर्मा से पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली.

पुलिस पूछताछ में सुंदर वर्मा से पता चला कि 37 सेकेंड की लूट में लुटेरों ने लगभग 35 लाख की जूलरी और 50 हजार की नकदी लूट ली थी.

शोरूम में मौजूद महिला ग्राहक ने लुटेरों की नजरों से बचा कर अपना बैग पीछे छिपा कर बचा लिया था. एक पुरुष ग्राहक काउंटर पर जिस बौक्स में जूलरी देख रहा था, लुटेरे ने उस बौक्स को खींच कर बैग में डाल लिया था. इस दौरान शोरूम के बाहर बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गए थे. सुंदर वर्मा ने एसएसपी पर बिफर कर गुस्से का इजहार किया. उन्होंने कहा कि 4 साल पहले भी उन के शोरूम पर लूट हुई थी. आज तक न तो माल मिला और न ही लुटेरे पकड़े गए. इस पर इलाके के लोग भी सुंदर वर्मा के समर्थन में आ गए. दिनदहाड़े हुई इस लूट पर सभी ने नाराजगी जताई.

एसएसपी ने उन्हें भरोसा दिलाया कि संयम रखें. इलाके में पुलिस का विश्वास कायम होगा. इस में कुछ समय जरूर लग सकता है, लेकिन इस बार आप को लगेगा कि पुलिस आप के साथ है.

बहरहाल, सुंदर वर्मा की तहरीर पर 3 अज्ञात लुटेरों के विरुद्ध लूट का मुकदमा दर्ज कर लिया गया, जिस में 50 हजार रुपए नकदी और करीब 35 लाख रुपए मूल्य के आभूषण लूटने की बात कही गई. घटना के बाद जांच में जुटी पुलिस टीमों ने खैर रोड के सीसीटीवी देखे तो तीनों बदमाश नादा चौराहे से पहले गोमती गार्डन गेस्टहाउस की ओर जाते दिखे. बाद में उन के खैर रोड पर भागने का पता चला. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि बदमाश खैर या खोड़ा क्षेत्र के रहे होंगे.

इस को आधार बना कर पुलिस ने अपना ध्यान इसी क्षेत्र के बदमाशों पर लगाया. शोरूम के सीसीटीवी में पूरी घटना रिकौर्ड हुई थी. वहां से जो फुटेज मिले, वे बिलकुल साफ थे, उस से तीनों बदमाशों को पहचाना जा सकता था. इसलिए पुलिस ने उसी फुटेज से बदमाशों के फोटो निकलवा कर जारी कर दिए गए. इस के साथ ही लोगों को बदमाशों का हुलिया बता कर जानकारी जुटाने का प्रयास किया जाने लगा.

ज्वैलरी शोरूम में दिनदहाड़े लूट को अंजाम देने वाले तीनों लुटेरे बेशक मास्क पहने थे, लेकिन उन के चेहरे और कदकाठी सीसीटीवी में कैद हो गई थी, जिसे पुलिस ने सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था.

एसएसपी मुनिराज की ओर से लोगों से अपील की गई कि जो भी लुटेरों के बारे में जानकारी देगा, उस का नाम गुप्त रखा जाएगा, साथ में पुलिस स्तर से उसे पुरस्कार भी दिया जाएगा. लूट के खुलासे के लिए पुलिस ने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया था. इस के साथ ही एसएसपी ने पुलिस पैट्रोलिंग में लापरवाही को ले कर इंसपेक्टर रविंद्र दुबे को निलंबित कर दिया. लूट के दूसरे दिन यानी शनिवार को एडीजी (जोन) अजय आनंद भी घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने सुंदर वर्मा से पूरी घटना के बारे में बारीकी से जानकारी ली.

इस लूटकांड के लिए इंसपेक्टर बन्नादेवी को निलंबित किए जाने के बाद से जांच टीम से थाना पुलिस को अलग कर दिया गया था. एसपी (सिटी) अभिषेक और एसपी (क्राइम) के नेतृत्व में एसओजी, सर्विलांस के अलावा इंस्पेक्टर क्वार्सी छोटेलाल व एसओ (जवां) अभय कुमार की टीमें जांच में लगाई गईं.

बदमाशों की कदकाठी, बालों के स्टाइल से एक सवाल यह भी खड़ा हुआ कि बदमाश कहीं पुलिस मैडीकल में शामिल होने तो नहीं आए थे. इस बात की तस्दीक करने के लिए एक टीम ने पुलिस लाइन मेडीकल बोर्ड कक्ष के अंदर व बाहर लगे सीसीटीवी चैक कर के बदमाशों के हुलिया का मिलान किया, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ.

इस लूटकांड की जांच में जुटी पुलिस को अब तक की जांच में कई चौंकाने वाले सुराग हाथ लगे. इन में सब से खास यह था कि घटना के समय शोरूम में मौजूद 3 ग्राहकों में जहां एक दंपति थे, वहीं एक पुरुष ग्राहक पेशेवर लुटेरा भी था, जो अपने गिरवी जेवर छुड़ाने के लिए पहुंचा था. हालांकि ज्वैलर ने उसे पुलिस के सामने क्लीन चिट दे दी थी कि वह पुराना कस्टमर है.

मगर पुलिस ने उस से भी व्यापक पूछताछ की. वह मूलरूप से खैर क्षेत्र का रहने वाला था, जो थाना बन्नादेवी क्षेत्र में आता था. वह पहले भी देहली गेट की एक लूट में जेल गया था. पुलिस ने उस से पूछताछ की. कुछ हाथ नहीं लगा तो उसे छोड़ दिया गया.

घटना के समय शोरूम में मौजूद ग्राहक दंपति नगला कलार के रहने वाले थे, वे भी पुराने ग्राहक थे. बदमाशों के भागते समय कुछ जेवर शोरूम के फर्श पर गिर गए थे, उन्हें महिला ने बटोर कर अपने कपड़ों में छिपा लिया था. यह दृश्य सीसीटीवी में कैद हो गया था.

पुलिस ने दंपति को पूछताछ के लिए बुला लिया. पहले तो महिला ने जेवर बटोरेने की बात से इनकार किया. लेकिन जब सीसीटीवी में घटना रिकौर्ड होने की बात बताई गई तो महिला डर गई. उस ने चुपचाप जेवर वापस कर दिए.

नहीं जुड़ी टूटीफूटी कडि़यां

35 लाख के जेवरात की लूट में अभी कोई लुटेरा पुलिस के हाथ नहीं लगा था. जबकि पुलिस दावा कर रही थी कि वह लूट के खुलासे के करीब है.

शिनाख्त के बाद पुलिस लूट और लुटेरों की कडि़यां जोड़ रही थी. पुलिस टीमें लुटेरों की धरपकड़ के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाए हुए थीं. उम्मीद की जा रही थी कि जल्द ही पुलिस को बड़ी सफलता हाथ लगेगी. एक पुलिस टीम यह पता लगाने में जुटी थी कि लुटेरे किस की मुखबिरी से लूट करने आए थे. लूट के बाद कहां गए और उन्होंने लूटा हुआ माल कहां गलाया या छिपाया.

पुलिस ने उस बदमाश को भी क्लीनचिट नहीं दी थी जो मौके पर अपने गिरवी जेवरात छुड़ाने पहुंचा था. इसी बीच अचानक कुछ ऐसा हुआ कि अलीगढ़ पुलिस हैरान रह गई.

16 सितंबर बुधवार की शाम नोएडा पुलिस ने मुठभेड़ के बाद अलीगढ़ के एक ज्वैलर के यहां लूट करने वाले 3 लुटेरों को सेक्टर 38ए स्थित जीआईपी मौल के पास से गिरफ्तार कर लिया. मुठभेड़ के दौरान तीनों बदमाशों को पैर में गोली लगी.

कोतवाली सेक्टर-39 पुलिस ने तीनों घायल लुटेरों को अस्पताल में भरती कराया. पुलिस ने उन से सुंदर ज्वैलर्स शोरूम से लूटी गई 35 लाख की जूलरी में से लगभग 6 लाख की जूलरी, एक मोटरसाइकिल और 3 तंमचे, जिंदा कारतूस व खोखे बरामद किए.

गिरफ्तार बदमाशों की पहचान अलीगढ़ के गांव सोफा खेड़ा निवासी सौरव कालिया, रोहित और मोहित के रूप में हुई.

पूछताछ में तीनों ने सुंदर ज्वैलर्स शोरूम में दिनदहाड़े लूट करने का जुर्म कबूल करते हुए जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

इन बदमाशों ने सुंदर ज्वैलर्स को लूटने की योजना फरवरी महीने में ही बना ली थी. तीनों बदमाश नोएडा की एक नामचीन पान मसाला बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी करते थे और गाहेबगाहे अपराधों को भी अंजाम देते थे.

तीनों बदमाशों में से एक का चाचा अलीगड़ में खैर रोड स्थित नादा पुल के पास रहता था. बदमाश अकसर उस के पास आया करते थे. इसी दौरान इन की नजर खैर रोड स्थित सुंदर ज्वैलर्स के शोरूम पर पड़ी.

फरवरी में तीनों बदमाश सुंदर ज्वैलर्स शोरूम के सामने से हो कर गुजरे थे. लूट को अंजाम देने से पहले इन बदमाशों ने शोरूम की लोकेशन देखने के साथ आसपास के पूरे इलाके की रेकी की थी.

वारदात को अंजाम देने के बाद इन्हें वापसी के लिए यह शोरूम सब से सही लगा था, लेकिन फरवरी महीने के बाद लौकडाउन लगने से ये लोग लूट को अंजाम नहीं दे पाए. इस के बाद लौकडाउन में तीनों की नौकरी चली गई.

पैसों की जरूरत महसूस हुई तो तीनों को एक बार फिर खैर रोड स्थित सुंदर ज्वैलर्स के शोरूम की याद आई और फिर मौका मिलते ही इन्होंने वारदात को अंजाम दे दिया.

ज्वैलर लूटकांड में शामिल लुटेरे पेशेवर अपराधी हैं. खास बात यह है कि ये लोग उत्तर प्रदेश में पहली बार पकड़े गए हैं. इस से पहले इन की गिरफ्तारी गुरुग्राम में हुई थी. वहां से जमानत पर छूटने के बाद तीनों गाजियाबाद के खोड़ा में जा कर रहने लगे थे.

ये लोग वहीं से इधरउधर अपराध करने जाते थे. चूंकि तीनों बदमाश पान मसाला फैक्टरी में नौकरी करते थे, इसलिए गांव के आसपास के ज्यादा लोगों को इन पर शक नहीं होता था. बाद में जब इन के कारनामे उजागर हुए तो लोग हैरान रह गए. 11 सितंबर को अलीगढ़ स्थित जूलरी शोरूम में लूट की घटना को अंजाम के बाद तीनों मोटरसाइकिल पर सवार हो कर फरार हो गए थे.

घटना के बाद ये लोग फरीदाबाद में छिप गए. मुठभेड़ वाले दिन तीनों लुटेरे मोटरसाइकिल से खोड़ा में किराए पर लिए कमरे पर जा रहे थे. पुलिस ने जब खोड़ा स्थित इन बदमाशों के कमरे की तलाशी ली तो वैसे ही कपड़े मिले जैसे एक बदमाश घटना के समय पहने था, जो सीसीटीवी फुटेज में साफ दिखाई दे रहे थे.

लौकडाउन में आई याद ज्वैलरी शोरूम की

सुंदर ज्वैलर्स के शोरूम पर लूट करने वाले तीनों बदमाशों ने एक साल पहले 12 अक्टूबर, 2019 को अपने गांव सोफा खेड़ा की प्रधान शांतिदेवी के 53 वर्षीय पति कालीचरण की गोली मार कर हत्या कर दी थी.

कालीचरण की हत्या इन्होंने सुपारी ले कर की थी. कालीचरण पर गांव के ही हरिओम की हत्या का आरोप था. हरिओम का बेटा अमन जो जेल में है, ने इन तीनों लुटेरों को सुपारी दे कर कालीचरण की हत्या कराई थी. इस के बाद से ये तीनों गांव से फरार थे.

तीनों बदमाशों का अपराधों से गहरा संबंध रहा है. इन का गिरोह अलीगढ़ जनपद में डी श्रेणी में सौरभ गैंग के रूप में दर्ज है. अलीगढ़ के अलावा दिल्ली एनसीआर क्षेत्र, गुरुग्राम, नोएडा, सिकंदराराऊ, अतरौली और खैर आदि में भी इन पर संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज हैं. इन में सौरव कालिया पर 7, रोहित पर 8 तथा मोहित पर 9 मुकदमे लूट, चोरी, धमकी देने, आर्म्स एक्ट, हत्या और हत्या के प्रयास के मुकदमे दर्ज हैं.

सौरव और मोहित पर गैंगस्टर एक्ट में काररवाई भी हो चुकी है. लौकडाउन में भी गुरुग्राम की पुलिस खैर स्थित सोफा खेड़ा में इन बदमाशों के घर पहुंची थी और कुर्की नोटिस चस्पा कर गई थी.

बन्नादेवी पुलिस ने न्यायालय में बी वारंट के लिए आवेदन किया था, जिस पर न्यायालय ने तीनों आरोपियों को अलीगढ़ न्यायालय में पेश करने का आदेश दिया. नोएडा पुलिस ने 21 सितंबर को बी वारंट पर तीनों को अलीगढ़ न्यायालय में पेश किया. अदालत ने इन तीनों को लूट के मुकदमे में अभिरक्षा में जिला कारागार भेज दिया.

पकड़े गए बदमाशों की आजीविका का मुख्य आधार लूटपाट ही था. लूटपाट कर के ये लोग उस पैसे को अपने शौक और ऐशोआराम पर खर्च करते थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यमनोहर कहानियां, नवंबर 2020

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छोटा पाखंडी, बड़ा अपराध: पुजारी का कारनामा

 छत्तीसगढ़ के जिला बलौदा बाजार भाटापारा के पलारी थाने के अंतर्गत एक गांव है छेरकाडीह. यशवंत साहू इसी गांव में अपनी पत्नी, छोटे भाई जितेंद्र साहू व मातापिता के साथ संयुक्त परिवार में रहता था. यह परिवार धार्मिक आस्थावान था. घर में अकसर पूजापाठ, कथा का आयोजन होता रहता था. यह पूजापाठ के ये कार्यक्रम पंडित रविशंकर शुक्ला संपन्न कराता था.

पंडित रविशंकर पास के ही गांव जारा में रहता था. आसपास के कई गांवों के लोग उसी के यजमान थे. रविशंकर शुक्ला ने होश संभालने के साथ ही पुरोहित का काम करना शुरू कर दिया था.

एक बार की बात है. सुबह के 10 बजे यशवंत साहू के यहां सत्यनारायण की कथा का आयोजन था. उस दिन 32 वर्षीय रविशंकर शुक्ला यशवंत साहू के घर पहुंचा. यशवंत साहू ने उस का स्वागत किया. रविशंकर शुक्ला ने घर में इधरउधर नजरें दौड़ाने के बाद पूछा, ‘‘यजमान, देवी माहेश्वरी कहां हैं, दिखाई नहीं दे रहीं.’’

‘‘रसोई में है महराज, अभी आ जाएगी. आप बैठिए, मैं पूजा की कुछ सामग्री लाना भूल गया हूं, बाजार से ले कर आता हूं, तब तक आप चाय आदि ग्रहण करें.’’ यशवंत साहू ने कहा.

यशवंत साहू मोटरसाइकिल ले कर बाजार के लिए रवाना हुआ तो पंडित रविशंकर उठ खड़ा हुआ और रसोई की ओर दबे पांव आगे बढ़ा.

रसोई में माहेश्वरी साहू पूजा के लिए प्रसाद बना रही थी. तभी पंडित रविशंकर ने किचन में पहुंच कर पीछे से माहेश्वरी के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘अरे! कौन.’’ माहेश्वरी ने घबरा कर देखा तो पीछे पंडितजी थे. वह बोली, ‘‘अरे महाराज आप?’’

‘‘हां, साहूजी को मैं ने बाजार भेजा है. घबराने की जरूरत नहीं है.’’ कह कर पंडित रविशंकर रहस्यमय भाव से  मुसकराया .

‘‘अरे, घर में  पूजा है ,बच्चे हैं और तुम…’’

‘‘अरेअरे, क्या कहती हो… चलो.’’ पंडित अपने रंग में आने लगा.

‘‘नहीं… नहीं तुम आज पूजा कराने आए हो… तुम्हें थोड़ी भी समझ नहीं है क्या.’’ माहेश्वरी ने मीठी झिड़की दी.

‘‘मुझे तुम्हारे अलावा कुछ दिखाई नहीं देता… सच कहूं तो तुम ही मेरी भगवान हो.’’ वह बेशरमी से बोला.

‘‘छि…छि… यह क्या कह रहे हो. थोड़ी तो शर्म करो, मैं तुम्हें कितना अच्छा समझती थी.’’

‘‘क्यों, मुझे क्या हो गया है… मैं तो तुम्हें अभी भी उसी तरह चाहता हूं जैसा कि ठीक 2 साल पहले… जब तुम्हारीहमारी पहली मुलाकात हुई थी.’’

‘‘अच्छा, सब याद है,’’ अचरज से माहेश्वरी का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘हां तारीख, दिन, समय… सब कुछ… वह दिन मैं भला कैसे भूल सकता हूं. क्या तुम भूल गई हो?’’ रविशंकर शुक्ला ने पूछा .

‘‘अच्छा, अभी तुम बैठक मैं पहुंचो… मैं 2 मिनट में आती हूं…’’ कह कर माहेश्वरी ने रविशंकर को जाने को कहा तो रविशंकर इठला कर बोला, ‘‘मैं चाय पीऊंगा तुम्हारे हाथों की. इस के बाद ही यहां से टलूंगा.’’

‘‘हां, मैं बनाती हूं महाराज,’’ कह कर माहेश्वरी मुसकराई और बोली, ‘‘अब तुम मुझ से दूर रहा करो. बच्चे बड़े हैं, अच्छा नहीं लगता. कहीं किसी ने देख लिया तो मुझे जहर खा कर मरना पड़ेगा.’’

रविशंकर और माहेश्वरी अभी बातें कर ही रहे थे कि यशवंत साहू पूजा की सामग्री ले कर आ गया. पंडितजी को बैठक में न पा कर वह स्वाभाविक रूप से रसोई की ओर बढ़ा तो पंडित रविशंकर की आवाज सुन वह ठिठक कर रुक गया.

यशवंत साहू ने रविशंकर और माहेश्वरी की बातें सुनी तो उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. वह गुस्से के मारे चिल्ला कर बोला, ‘‘पंडित, यह क्या हो रहा है?’’

‘‘अरे, यजमान… भाभीजी चाय बना रही थीं, तो हम ने सोचा कि यहीं बैठ कर पी लें.’’ मीठी वाणी में रविशंकर शुक्ला ने बात बनानी चाही.

‘‘मगर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां तक घुसने की… और सुनो, मैं ने सब सुन लिया है. मुझे  तुम  पर बहुत  दिनों से  शक था, आज तू पकड़ा गया. तू पंडित नहीं, राक्षस है. चला जा, मेरे घर से.’’ यशवंत साहू ने आंखें दिखाईं तो पंडित घबराया मगर हिम्मत कर के बोला, ‘‘यजमान, तुम कहना क्या चाहते हो? तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हुई है. तुम ने मुझे  सत्यनारायण की कथा के लिए बुलाया है.’’

‘‘देखो, मैं तुम से साफसाफ कह रहा हूं… मेरे घर से अभी चले जाओ.’’

‘‘मगर मैं तो पूजा करने आया था… तुम नाराज क्यों हो रहे हो भाई?’’ रविशंकर ने बात बनाने की पूरी कोशिश की मगर यशवंत साहू की आंखों के सामने से मानो परदा उठ चुका था.

यशवंत साहू ने जलती हुई आंखों से देखते हुए कहा, ‘‘भाग जाओ, यहां से. अब तुम्हारी पोल खुल गई है.’’

मामले की गंभीरता को देखते हुए रविशंकर वहां से चले जाने में ही भलाई समझी.

इस घटना के बाद यशवंत और माहेश्वरी के वैवाहिक जीवन पर मानो ग्रहण लग गया. माहेश्वरी ने यशवंत के पैरों पर गिर कर सब कुछ स्वीकार कर लिया और फिर कभी दोबारा गलती नहीं करने की कसम खाई.

परिवार की इज्जत बचाए रखने और बच्चों के भविष्य को देखते हुए यशवंत साहू ने उसे एक तरह से खून का घूंट पी कर माफ कर दिया.

पुजारी ने दी धमकी

मगर पंडित रविशंकर शुक्ला जब कभी गांव छेरकाडीह आता और कहीं अचानक से उसे माहेश्वरी दिख जाती तो वह उस से बात करने की कोशिश करता. लेकिन माहेश्वरी उसे देख मुंह फेर लेती तो रविशंकर मनुहार करता. जब कई बार के प्रयासों से भी महेश्वरी नहीं पिघली तो अंतत: एक दिन गुस्से में आ कर उस ने कहा, ‘‘माहेश्वरी, मैं तुम्हें आसपास के सभी गांव में बदनाम कर दूंगा… तुम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी.’’

माहेश्वरी यह सुन कर घबराई फिर बोली, ‘‘तुम क्या चाहते हो, क्या यह चाहते हो कि मेरा पति और परिवार वाले मुझे अहिल्या की तरह त्याग दें. नहीं… मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. तुम चले जाओ…’’

मगर पंडित रविशंकर शुक्ला धमकी दे कर चला गया. जब यह बात यशवंत को मालूम हुई तो वह चिंता में पड़ गया. एक दिन वह अपने मित्र और गांव जारा के सरपंच नारायण दास से मिला. सरपंच को सारी बात बताते हुए यशवंत ने उस से मदद मांगी तो सरपंच ने कहा, ‘‘साहूजी, मामला घरेलू है, मगर मैं इस में तुम्हारी पूरी मदद करूंगा.’’

एक दिन सरपंच ने चुनिंदा लोगों की सभा बुलाई. वहां पुजारी रविशंकर शुक्ला को बुला कर सरपंच ने सब के सामने साफसाफ कहा, ‘‘पंडितजी, अगर तुम ने दोबारा माहेश्वरी

भाभी को देखने, धमकाने की कोशिश की तो मामला पुलिस तक पहुंच जाएगा और तुम्हारी पुरोहिती सभी  गांवों  में बंद करा दी जाएगी.’’

मामला हाथ से निकलता देख कर पुजारी रविशंकर शुक्ला ने उस दिन हाथ जोड़ कर माफी मांगी और वहां से चला गया.

यशवंत साहू और माहेश्वरी को लगा कि मामले का पटाक्षेप हो गया है, मगर ऐसा हुआ नहीं था.

यशवंत साहू का परिवार मूलत: किसान था. छेरकाडीह में रह रहे उस के संयुक्त परिवार में पिता दानसाय साहू, मां लक्ष्मी, भाई  जितेंद्र साहू जो शिक्षक थे, उन की पत्नी मीना, बेटा शशिमणि व बेटी तनिशा थे.

यह गांव का धनाढ्य परिवार था. यही कारण था कि हाल ही में घर के

पास पिछवाड़े में आलीशान घर बनवाया था, जिस में छोटा भाई  जितेंद्र साहू अपने परिवार व पिता और मां के साथ रहता था. जबकि यशवंत साहू पत्नी व बेटे देवेंद्र के साथ

पुराने मकान में ही रह रहा था. बेटी पूनम ज्यादातर दादादादी और चाचा की लड़की तनिशा के साथ रहना पसंद करती थी, वह रहती भी वहीं थी.

जब यशवंत साहू ने पंडित रविशंकर को भलाबुरा कह कर घर से निकाला था तो उस समय यशवंत का बेटा देवेंद्र साहू भी मौजूद था. बाद में जब एक बार पंडित रविशंकर गांव छेरकाडीह आया तो उस की देवेंद्र साहू से मुठभेड़ हो गई थी.

इस पर पंडित रविशंकर ने धान काटने के हंसिए से देवेंद्र को मार फेंकने की धमकी दी थी. मगर यशवंत साहू ने इसे  गंभीरता से लेते हुए बेटे देवेंद्र को समझाया कि पंडित रविशंकर से मुंह न लगा करे.

चाह कर भी रविशंकर शुक्ला माहेश्वरी को भुला नहीं पा रहा था. गांव में सभा हो जाने के बाद कुछ समय वह शरीफ बना रहा, फिर उस के भीतर का प्रेमी जागृत हो उठा. उस ने सोचा, जरूर माहेश्वरी पति के दबाव में उसे नकार रही है. वह उस से अभी भी प्यार करती है. उस ने सोचा कि क्यों न माहेश्वरी से बात करे… मिले… अंतिम बार.

यही सोच कर रविशंकर शुक्ला ने माहेश्वरी को मोबाइल पर काल की लेकिन माहेश्वरी ने उस की काल रिसीव नहीं की. कई बार काल करने पर भी काल रिसीव नहीं हो रही थी, ऐसे में पंडित के मन में कई शंकाएं जन्म ले रही थीं. वह सोच में डूबा था कि उस का मोबाइल घनघना उठा.

उस ने देखा काल माहेश्वरी की तरफ से आ रही थी, वह खुश हो कर काल रिसीव करते हुए वह बोला, ‘‘माहेश्वरी, मैं जानता था कि तुम मुझे नहीं छोड़ सकतीं… मुझे विश्वास था कि तुम्हारा फोन आएगा. सुनो, तुम मेरे पास आ जाओ.’’

तभी माहेश्वरी गुस्से में बोली, ‘‘देखो पंडितजी, पंचायत में तुम्हें हिदायत दे दी थी, अब तुम मर्यादा में रहो.’’

‘‘मैं…मैं जानता हूं, तुम दबाव, पति के प्रभाव में हो, सचसच कहो.’’ पंडित ने पूछा .

‘‘नहीं, मैं किसी दबाव में नहीं हूं. मैं ने विवाह किया है, मेरे 2 बच्चे हैं. और तुम भी शादीशुदा हो. इसलिए आगे से फोन किया तो ठीक नहीं होगा.’’ कह कर माहेश्वरी ने गुस्से से फोन बंद कर दिया.

रविशंकर शुक्ला के माथे में बल पड़ गए. वह सोचने लगा कि यह तो अलग ही सुर निकाल रही है, मैं इस को ऐसा सबक सिखाऊंगा कि इस की सात पुश्तें भी याद रखेंगी.

पुजारी ने रची खूनी साजिश

रविशंकर शुक्ला माहेश्वरी को सबक सिखाने की योजना बनाने में जुट गया. उस ने अपनी ससुराल के एक दोस्त दुर्गेश वर्मा से बात की. फिर गांव के तालाब किनारे ले जा कर उसे अपनपा दर्द बताया और सहयोग मांगा.

जब वह साथ देने और मरनेमारने पर उतारू हो गया तो रविशंकर शुक्ला बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘मैं माहेश्वरी को सबक सिखाना चाहता हूं. उस के बेटे देवेंद्र व पति का काम तमाम करते ही वह मजबूर  हो कर मेरे आगोश मे आ जाएगी.’’

दुर्गेश ने पंडित रविशंकर की दोस्ती के कारण शनिवार 11-12 अप्रैल 2020 की रात यशवंत साहू के घर में घुस कर यशवंत साहू की हत्या की योजना बनाई. दोनों रविशंकर शुक्ला की बाइक सीजी22 एसी 7453 पर गांव गातापारा से छेरकाडीह के लिए रवाना हुए.

इसी दौरान दुर्गेश वर्मा को अपने  घर के पास एक मित्र नेमीचंद धु्रव दिखाई दिया. उस ने उसे भी बाइक पर बैठा लिया और कहा, ‘‘चल, तुझे भी एक मिशन पर ले चलते  हैं.’’

रात लगभग 11 बजे छेरकाडीह पहुंच कर इन लोगों ने एक जगह बाइक खड़ी कर के नेमीचंद को वहीं खड़ा छोड़ दिया और एक टंगिया, एक फरसी ले कर दोनों  यशवंत साहू के घर की ओर बढ़े. पंडित रविशंकर जानता था कि पिछवाड़े से यशवंत के घर में आसानी से दाखिल हुआ जा सकता है. वह दुर्गेश के साथ भीतर गया.

एक कमरे में यशवंत साहू अपने बेटे देवेंद्र के साथ सोया था. रविशंकर ने नींद में सोए देवेंद्र पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. फरसे  की चोट लगते ही देवेंद्र उठ खड़ा हुआ तो दोनों ने मिल कर उसे वहीं ढेर कर दिया. इस बीच यशवंत की नींद टूट गई. वह डर से कांप रहा था. दोनों ने हमला कर के उस भी मार डाला.

दूसरे कमरे में माहेश्वरी अकेली सो रही थी. चीखपुकार सुन वह जब घटनास्थल पर पहुंची तो पति यशवंत व बेटे देवेंद्र की लाश देख कर चीख पड़ी. इस पर पंडित रविशंकर शुक्ला ने पोल खुल जाने के डर से वहां रखे  सब्बल से उस के सिर पर वार कर उसे भी मार डाला.

उसी समय  घर के पिछवाड़े में नए घर में बैठी यशवंत की बेटी पूनम ने मां के चीखने की आवाज सुनी और घबरा कर चार कदम आगे बढ़ी. मगर यह सोच कर खामोश बैठ गई कि मां का पिताजी के साथ झगड़ा हो रहा होगा.

उधर चारों तरफ खून फैला हुआ था, जिसे देख कर दुर्गेश और रविशंकर शुक्ला घबराए और वहां से भाग खड़े हुए. बाहर थोड़ी दूरी पर नेमीचंद धु्रव उन का इंतजार कर रहा था. तीनों बाइक से गातापार की तरफ चले गए.

सुबह 6 बजे यशवंत के पिता दानसाय साहू उठे और टहलते हुए जब यशवंत के घर की ओर बढ़े तो परछी में बहू माहेश्वरी को खून से लथपथ पडे़ देख घबरा कर उलटे पांव वापस लौटे और पत्नी लक्ष्मी को वहां की यह बात बताई. सुनते ही पास बैठी पूनम दौड़ कर घटनास्थल पर पहुंची.

वह मां को मृत देख रोने लगी. जब उस ने कमरे में लाइट जलाई तो वहां पिता और भाई की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं. यह देख कर वह फूटफूट कर रोने लगी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे और क्या हो गया. पूनम के रोने की आवाज सुन चाचा जितेंद्र व सारा परिवार वहां आ गया. ग्राम पंचायत छेरकाडीह के सरपंच रामलखन भी घटनास्थल पर पहुंचे और थाना पलारी फोन कर के घटना की जानकारी दी.

12 अप्रैल, 2020 को लगभग 8 बजे पलारी थानाप्रभारी प्रमोद कुमार सिंह डौग स्क्वायड टीम व स्टाफ के साथ छेरकाडीह पहुंचे और घटनास्थल का मुआयना किया. चारों तरफ खून फैला हुआ था. उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि किसी ने दुश्मनी के कारण यह नृशंस हत्याकांड किया है.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर तीनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. इसी दरम्यान थानाप्रभारी को यह खबर मिली कि हाल ही में यशवंत साहू ने सरपंच से कह कर सभा बुलाई थी, जिस में सरपंच ने पुजारी रविशंकर को हिदायत दी थी कि वह माहेश्वरी के पीछे न पड़े.

पुलिस के हत्थे चढ़े आरोपी

थानाप्रभारी प्रमोद कुमार सिंह को पूरा मामला शीशे की तरह साफ नजर आ रहा था. शक की सुई पुजारी रविशंकर की ओर घूम चुकी थी. उन्होंने एसपी प्रशांत ठाकुर बलोदाबाजार, भाटापारा  को संपूर्ण जानकारी दे कर मार्गदर्शन मांगा. तब एसपी ने इस केस को खोलने के लिए थाना गिधौरी के थानाप्रभारी ओमप्रकाश त्रिपाठी और थाना सुहेला के थानाप्रभारी रोशन सिंह को भी उन के साथ लगा दिया.

पुलिस टीम ने रविशंकर शुक्ला को शाम को ही धर दबोचा. उसे पलारी थाना ला कर पूछताछ शुरू की गई, लेकिन वह शातिराना ढंग से स्वयं को पंडित बता कर  बचना चाह रहा था मगर जब पुलिस ने कड़ाई से पूछताछ की तो वह टूट गया और तिहरे हत्याकांड को अंजाम देने की कहानी बता दी. उस ने बताया कि उस के इस काम में दुर्गेश व नेमीचंद भी साथ थे.

पुजारी रविशंकर शुक्ला ने बताया कि वह 5 वर्षों से गांवगांव घूम कर यज्ञ आदि धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराता था, 2 साल पहले यशवंत साहू ने उसे पहली बार सत्यनारायण की कथा के लिए बुलाया था, जहां उस का परिचय उस की पत्नी माहेश्वरी से हुआ और बहुत जल्द दोनों के अंतरंग संबंध बन गए.

मगर बाद में माहेश्वरी उस से दूर छिटकने की कोशिश करने लगी और वह एक बार रंगेहाथों पकड़ा भी गया था.

पंचायत में बात जाने के बाद वह माहेश्वरी से बातचीत कर उसे भगा ले जाने को तैयार था मगर जब माहेश्वरी ने साफ इंकार कर दिया तो उस ने दुर्गेश को विश्वास में ले कर यशवंत साहू को सबक सिखाने की सोची. फिर माहेश्वरी सहित उस के बेटे देवेंद्र साहू को मार डाला.

आरोपी रविशंकर शुक्ला ने जांच अधिकारी प्रमोद कुमार सिंह को अपने इकबालिया  बयान में  बताया कि वह माहेश्वरी से दिलोजान से प्रेम करता था, इसलिए प्रेम में अंधे हो कर उस के हाथों यह हत्याकांड हो गया.

पुलिस ने आरोपी पंडित रविशंकर शुक्ला और दुर्गेश वर्मा से हत्या में इस्तेमाल हथियार  टंगिया, फरसा व खून से सने कपड़े जब्त कर लिए.

प्राथमिक विवेचना के बाद पुलिस ने पलारी थाने में धारा 302 भादंवि के तहत केस दर्ज किया और मुख्य आरोपी पंडित रविशंकर शुक्ला, सहआरोपी दुर्गेश और नेमीचंद को गिरफ्तार कर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी कृष्णकुमार सूर्यवंशी की अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. द्य   —कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां, सितबंर 2020

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लौकडाउन में लुट गया बैंक: खतरनाक वारदात का अंजाम

भारत में लोगों की सुविधा के लिए अलगअलग नामों से ग्रामीण बैंकों की शाखाएं खोली गई हैं, जो किसानों और ग्रामीण कामगारों के लिए मुफीद हैं. ये शाखाएं लोगों के बचत खाते भी चलाती हैं और उन की जरूरत के हिसाब से लोन भी देती हैं. ऐसे ही एक ग्रामीण बैंक औफ आर्यावर्त की शाखा जिला मथुरा के दामोदरपुरा में है. यह शाखा कचहरी से औरंगाबाद जाने वाली रोड के किनारे बसे पूरन वाटिका की पहली मंजिल पर है.

इस बैंक में कुल जमा 5 कर्मचारी हैं. 12 मई, 2020 को तो कुल 3 ही कर्मचारी थे, क्योंकि एक महिला छुट्टी पर थी और बैंक मैनेजर प्रभात कुमार किसी काम से बाहर गए हुए थे.

दोपहर करीब ढाई बजे का समय था. चारों ओर लौकडाउन का सन्नाटा फैला था. लंच ब्रेक के बाद बैंककर्मियों को बैंक के गेट का चैनल खोले अभी 5 मिनट ही हुए थे कि 5 नकाबपोश बैंक में आए. उस समय बैंक की कैशियर सृष्टि सक्सेना, सहायक शाखा प्रबंधक नीलम गर्ग और नरेंद्र चौधरी बैंक में मौजूद थे.

तब तक तीनों बैंककर्मी अपनीअपनी सीट पर बैठ कर काम करने लगे थे. जो 5 लोग बैंक के अंदर आए थे, उन्होंने गेट में प्रवेश करने के बाद एकदो मिनट तो ग्राहक बनने का नाटक किया.

जब कैशियर सृष्टि ने उन से पूछा कि बताइए क्या काम है? तो बदमाश अपने असली रूप में आ गए और अपने तमंचे कैशियर सहित दोनों कर्मचारियों की ओर तान दिए. बदमाशों ने उन्हें धमकी देते हुए कहा, ‘‘जैसा हम कहें, वैसा करते रहो, वरना तीनों को मौत के घाट उतार दिया जाएगा.’’

बैंक में उस समय कोई ग्राहक नहीं था, इसलिए बदमाशों ने बड़ी फुरती से बैंक के तीनों कर्मचारियों के मोबाइल फोन छीन लिए. हथियार देख कर सभी बैंककर्मी डर गए. बदमाशों के तेवरों से भयभीत कैशियर सृष्टि सक्सेना ने अपने पास मौजूद कैश उन्हें दे दिया.

इस के बाद बदमाशों ने सृष्टि से स्ट्रांग रूम में चलने को कहा. आनाकानी करने पर एक बदमाश ने उन की कनपटी पर तमंचा सटा दिया. 2 बदमाश कैशियर को स्ट्रांग रूम में ले गए. तब तक बाकी बदमाश शेष 2 बैंक कर्मियों पर तमंचे ताने रहे. कैश इकट्ठा

करने के बाद कैशियर को स्ट्रांग रूम में तथा अन्य स्टाफ को बाथरूम में बंद कर लुटेरे भाग गए.

भागते समय लुटेरे लूटे गए रुपए दोनों महिला बैंककर्मियों के बैगों में भर कर ले गए. इस दौरान न तो बैंक का सायरन ही बजा और न ही किसी बैंककर्मी ने शोर मचाया. दरअसल, अलार्म केवल मैनेजर औफिस में था और मैनेजर उस समय बैंक में नहीं थे.  कुछ देर बाद 2 बैंककर्मी बाथरूम के दरवाजे को धकेल कर बाहर आए और कैशियर सृष्टि सक्सेना को स्ट्रांग रूम से निकाला.

बदमाशों के जाने के 10 मिनट बाद बैंककर्मी नरेंद्र और नीलम बैंक से बाहर निकले. नरेंद्र नीचे उतर कर आए तो उन्हें सभी के मोबाइल सीढि़यों पर रखे मिल गए. कैशियर ने घटना की खबर मैनेजर प्रभात कुमार के साथसाथ 112 नंबर पर काल कर पुलिस को दी. मैनेजर ने भी लूट की सूचना थाना सदर बाजार पुलिस को दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सत्यपाल देशवाल सहित सीओ (सिटी) आलोक दुबे, एसपी (सिटी) अशोक मीणा मौके पर पहुंच गए. बाद में एसएसपी गौरव ग्रोवर और आईजी ए. सतीश गणेश ने भी मौकामुआयना किया. फोरैंसिक टीम भी बैंक पहुंच गई थी.

बैंक लूट के प्रत्यक्षदर्शी तीनों बैंक कर्मचारियों ने बदमाशों का उग्र रूप देखा था और डर गए थे. कैशियर सृष्टि सक्सेना ने बताया कि बैंक में घुसे पांचों बदमाशों ने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था. कोरोना संक्रमण के चलते कपड़ा बंधे होने पर शक नहीं हुआ. उन लोगों के बैंक में घूमने पर जब टोका गया तो बदमाशों ने तमंचे निकाल कर सभी को निशाने पर ले लिया. उस समय बैंक में कोई कस्टमर भी नहीं था.

सहायक शाखा प्रबंधक नीलम गर्ग ने बताया कि हम सभी अपनीअपनी सीट पर काम कर रहे थे. लंच समाप्त हुए 5 मिनट ही हुए थे. लौकडाउन के चलते बैंक के नीचे की दुकानें भी बंद थीं. बदमाशों द्वारा तमंचे निकालने पर वह काफी डर गई थीं. लगा जैसे मौत सामने ही खड़ी है.

कोई मदद करने वाला भी नहीं था. इसी दौरान बदमाशों ने हम सभी के मोबाइल छीन लिए थे. लूट के बाद बदमाश धमकाते हुए चले गए. उन्होंने बताया कि बदमाश बैंक से 21 लाख 17 हजार 400 रुपए लूट कर ले गए. तमंचे के बल पर बैंक लूट को अंजाम दे कर लुटेरे पुलिस को चुनौती दे गए थे. पुलिस बदमाशों को घेरने में जुट गई.

लौकडाउन की वजह से नीचे की दुकानें भी बंद थी. सन्नाटे के चलते बदमाशों को भागने में आसानी हुई. वहां मौजूद एक ग्रामीण ने बदमाशों को आते और जाते देखा था. उस ने पुलिस को बताया कि बदमाश 2 मोटरसाइकिलों पर आए थे.

मोटरसाइकिल बैंक के नीचे खड़ी कर वे बैंक में गए थे. थाना सदर पुलिस ने मैनेजर प्रभात कुमार की तरफ से अज्ञात बदमाशों के खिलाफ लूट की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

लौकडाउन के कारण थाना सदर बाजार पुलिस ने कृष्णानगर तिराहे से औरंगाबाद तक पुलिस की 5 पिकेट लगा रखी थीं. इन के बीच में ही बैंक है. कृष्णानगर तिराहे पर पिकेट के बाद टैंक चौराहे पर पिकेट, इस के बाद कचहरी से औरंगाबाद के रास्ते में दामोदरपुरा का बैंक है.

इस के अलावा गोकुल बैराज और औरंगाबाद पर भी पुलिस पिकेट तैनात थी. बदमाशों के पुलिस से बच निकलने के 2 ही कारण थे, या तो वे पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर निकल भागे या फिर बीच के रास्तों से ही आए और वहीं से चले गए.

बताते चलें कि बैंक के निकट से ही राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर जाने के लिए आर्मी एरिया से रास्ता जाता है, जहां पर पुलिस से आमनासामना होने की आशंका नहीं थी. वहीं दूसरी ओर औरंगाबाद से पहले बैराज की तरफ कच्चा रास्ता जाता है, जहां से बदमाश जमुनापार निकल सकते थे.

इतना कुछ होने के बाद भी लुटेरे बेखौफ लूट को अंजाम दे कर पुलिस को चकमा दे भाग निकले थे. कड़ी सुरक्षा के बीच दिनदहाड़े बैंक लूट की वारदात से क्षेत्र में सनसनी फैल गई. वहीं लूट की यह घटना पुलिस के लिए चुनौती बन गई थी.

पुलिस ने जांच की तो पता चला बैंक का सीसीटीवी कैमरा पिछले 6 महीने से खराब था और बैंक में सुरक्षा गार्ड भी नहीं था. कोई बैंककर्मी अलार्म बजाने की हिम्मत नहीं कर सका.

पुलिस ने बैंक और आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगाले. बदमाशों ने मात्र 10 मिनट में ही लूट की वारदात को अंजाम दिया था. घटना के बाद पुलिस ने कई रास्तों की कड़ी नाकेबंदी कर दी.

बदमाशों ने लूट की वारदात को जिस तरह अंजाम दिया, उस से लग रहा था कि वे पहले से ही बैंक की रेकी कर चुके थे. उन्होंने पता लगा लिया था कि कब बैंक में भीड़ कम रहती है. इसीलिए लूट के लिए उन्होंने दोपहर लगभग ढाई बजे का समय तय किया.

दोपहर ढाई बजे लंच समाप्त हुआ. बैंककर्मियों ने जैसे ही गेट का चैनल खोला, 2 बज कर 35 मिनट पर बदमाश बैंक में घुस गए और फिल्मी अंदाज में लूट की वारदात को अंजाम दे कर फरार हो गए.

बदमाशों ने कोरोना वायरस को ले कर प्रशासन द्वारा किए गए लौकडाउन का भरपूर फायदा उठाया. बदमाशों ने कपड़ों से चेहरा छिपा रखा था. चूंकि मास्क लगाना अनिवार्य था, इसी वजह से बैंककर्मियों को उन पर शक नहीं हुआ.

एडीजी अजय आनंद ने दूसरे दिन ग्रामीण बैंक औफ आर्यावर्त पहुंच कर 10 मिनट के भय और आतंक के साए की हर पल की जानकारी ली, जबकि पहले दिन आईजी ए. सतीश गणेश ने पूछताछ की थी.

एडीजी ने 21.17 लाख रुपए की लूट की घटना के हर पहलू की कैशियर से ले कर प्रबंधक तक से जानकारी ली. वह बैंक कैशियर सृष्टि को ले कर स्ट्रांग रूम में भी गए और पूछा कि बदमाशों ने किस तरह तमंचों के बल पर कैश लूटा था. इस के साथ ही बदमाशों के कपड़े और कदकाठी की भी पूछताछ की.

इस तरह से उन्होंने पूरी घटना का रिहर्सल किया. इस के साथ ही बैंक प्रबंधन तथा बैंककर्मियों को विश्वास दिलाया कि वारदात का शीघ्र खुलासा करेंगे. बैंककर्मियों का दूसरा दिन पुलिस की जांच और तहकीकात में गुजरा.

आगरा के एत्मादपुर विधानसभा क्षेत्र के थाना बरहन के आंवलखेड़ा स्थित आर्यावर्त बैंक में 29 जनवरी को दिनदहाड़े 5 बदमाशों ने डकैती को अंजाम दिया था. बदमाश बैंक से लाखों की रकम लूट कर ले गए थे.

पुलिस मथुरा के आर्यावर्त बैंक में हुई इस लूट की वारदात को भी एत्मादपुर की बैंक लूट की वारदात से जोड़ कर चल रही थी. पुलिस उस लूट के आरोपियों की जानकारी जुटाने में लग गई.

इस लूट की घटना को खोलने के लिए पुलिस ने पूरी ताकत झोंक दी थी. लूट की घटना के कुछ घंटे बाद ही आईजी ए.सतीश गणेश के निर्देश पर लुटेरों तक पहुंचने के लिए सर्विलांस और स्वाट टीमों के साथसाथ 6 पुलिस टीमें तैयार कर दी गईं.

सभी टीमें अपनेअपने काम में लग गईं. पुलिस पिकेट ऐसे स्थानों पर लगाई गईं, जहां से कच्चे रास्तों से बदमाश जिले से बाहर निकल सकते थे. खुलासे में लगी टीमों ने 12 मई की रात से 13 मई की शाम तक मगोर्रा हाइवे सहित कई थाना क्षेत्रों में दबिश दे कर 10 बदमाशों को उठाया. थाने ला कर उन से गहनता से पूछताछ की गई. इस से पुलिस को काफी महत्त्वपूर्ण सुराग मिले.

40 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद पुलिस को 14 मई, 2020 को बैंक लूट कांड का परदाफाश करने में सफलता मिल गई. थाना सदर बाजार में आयोजित प्रैसवार्ता में एसपी (सिटी) अशोक मीणा ने बैंक लूट का खुलासा करते हुए जानकारी दी कि 14 मई की सुबह मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि बदमाश बैंक से लूटे गए रुपयों का बंटवारा करने के लिए जल शोधन संस्थान पर एकत्र हैं. जहां वे किसी साथी के आने का इंतजार कर रहे हैं.

सूचना पर पुलिस ने जल शोधन संस्थान यमुना के किनारे से बैंक लूट में शामिल राहुल तिवारी उर्फ रवि, निवासी सतोहा असगरपुर, गौतम गुर्जर व अमन गुर्जर निवासी नगला बोहरा, थाना हाइवे, अवनीत चौधरी निवासी ऋषिनगर निकट बजरंग चौराहा, महोली रोड, थाना कोतवाली को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में एक महिला का नाम भी सामने आया. पुलिस ने योजना में शामिल रही महिला राजो पत्नी रामवीर निवासी अमरकालोनी, थाना हाइवे को मछली फाटक फ्लाईओवर के नीचे से लूट के रुपयों के बैग के साथ गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने बदमाशों के कब्जे से 17.10 लाख रुपए, 4 तमंचे, 11 कारतूस, 2 बैगों के साथ ही कुछ बैंक दस्तावेज भी बरामद किए. ये दोनों बैग बैंककर्मी दोनों महिलाओं के थे, जिन की अन्य जेबों में महिलाओं का डेली यूज का सामान रखा मिला.

दोपहर में गोकुल बैराज के पास बाइक पर जा रहे बदमाश परविंदर, निवासी लाजपत नगर से पुलिस की मुठभेड़ हो गई. पुलिस की गोली परविंदर के पैर में लगने से वह वहीं गिर पड़ा. परविंदर बिना नंबर की बाइक पर था.

घायल बदमाश को पुलिस ने उपचार के लिए जिला अस्पताल में भरती कराया. परविंदर के कब्जे से पुलिस ने लूट के 2 लाख 51 हजार 500 रुपए, बाइक, एक तमंचा और कारतूस बरामद किए.

मुठभेड़ कर के परविंदर को गिरफ्तार करने वाली टीम में थानाप्रभारी (सदर बाजार) सत्यपाल देशवाल, स्वाट प्रभारी सदुवन राम गौतम, सर्विलांस प्रभारी इंसपेक्टर जसवीर सिंह, एसओजी प्रभारी सुलतान सिंह आदि शामिल थे. बैंक लूट का मास्टरमाइंड सम्राट गुर्जर पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा. वह हाइवे थाने का हिस्ट्रीशीटर है.

सम्राट गुर्जर ने बैंक लूट की ऐसी साजिश रची कि पुलिस घटना को खोल भी ले तो उस तक न पहुंच पाए. लूट की पटकथा रचने वाला नगला बोहरा निवासी सम्राट गुर्जर खुद घटना को अंजाम देने बैंक नहीं आया था. वह घटना के समय आसपास कहीं खड़ा हो कर टोह ले रहा था. उस के खिलाफ विभिन्न थानों में एक दरजन से ज्यादा मामले दर्ज हैं.

मास्टरमाइंड सम्राट ने खुद को बचाने के लिए मास्टर स्ट्रोक खेला था. उस ने अपने 2 भतीजों गौतम और अमन तथा 2 अन्य साथियों को ले कर बैंक लूट की पटकथा तैयार की थी. सारी योजना उस की खुद की बनाई हुई थी. लेकिन घटना को अंजाम देने वाले दूसरे लोग थे.

पकड़े गए बदमाशों ने पुलिस को बताया कि सफलतापूर्वक घटना को अंजाम देने के बाद वह अपना हिस्सा ले कर फरार हो गया. वहीं पकड़ी गई महिला राजो पकड़े गए गौतम और अमन की बुआ तथा सम्राट गुर्जर की बहन है. पुलिस के अनुसार राजो का काम लूट के माल की हिफाजत करना था. पुलिस को शक है कि एक सीसीटीवी फुटेज में लूट की घटना के बाद एक महिला बैंक के बाहर खड़ी हो कर रखवाली करती दिखी थी, वह संभवत: राजो ही थी.

बैंक लूट की इस घटना के बाद सीसीटीवी फुटेज न मिलने से पुलिस हताश हो गई थी. उसे लगा कि घटना का खुलासा मुश्किल होगा. लेकिन लूट के बाद बदमाशों को भागते देख रहे एक ग्रामीण ने पुलिस को लूट की चाबी पकड़ा दी थी. इस चाबी के बाद पुलिस चंद घंटों में ही बदमाशों तक पहुंच गई थी.

दरअसल, हुआ यह था कि घटना के बाद बैंक के बाहर मौजूद ग्रामीणों से पुलिस ने पूछताछ की तो एक ग्रामीण को बदमाशों द्वारा लूट में प्रयोग की गई एक मोटरसाइकिल का नंबर याद आ गया था. यह नंबर उस ने पुलिस को बता दिया. यहां तक कि ग्रामीण की तेज नजरों से मोटरसाइकिल के एक नंबर को घिस कर खत्म करने की चालाकी भी नहीं छिप सकी थी.

पुलिस ने जब उस नंबर की जांच की तो मोटरसाइकिल मालिक की सारी डिटेल्स मिल गई. पुलिस मोटरसाइकिल मालिक के पते पर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला, जिस से पुलिस को उस पर शक हो गया. तब पुलिस ने उस की व उस के साथियों की तलाश शुरू की. लेकिन पुलिस के हाथ कोई नहीं लगा. पुलिस भांप गई कि घटना को इसी गैंग ने अंजाम दिया है.

इस के बाद मुखबिरों को लगा दिया गया और लुटेरे पुलिस के जाल में फंस गए. दरअसल बैंक की चेस्ट में कुछ पैसा इस प्रकार का रखा जाता है, जिस का प्रयोग बैंक कभी नहीं करते हैं. यह पैसा सिर्फ इसी प्रकार की घटना में बदमाशों को फंसाने के लिए रखा जाता है.

बैट मनी के नोटों के नंबर बैंक के रिकौर्ड में दर्ज होते हैं. इस तरह की बैट मनी ग्रामीण बैंक औफ आर्यावर्त में भी थी, जिसे बदमाश लूट कर ले गए थे. पुलिस ने जब लूट की रकम बरामद की थी, उस में बैट मनी भी पुलिस को मिली थी. बैंक रिकौर्ड में यह नंबर कोर्ट में बदमाशों के खिलाफ मजबूत सबूत बनेंगे.

17 मई को पुलिस के हाथ एक और महत्त्वपूर्ण कड़ी लगी. पुलिस ने ग्रामीण बैंक औफ आर्यावर्त की सौख रोड स्थित शाखा के चपरासी शांतनु, निवासी असगरपुर सतोहा को यमुना पुल के पास से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की जानकारी में आया था कि इसी चपरासी ने बैंक की दामोदरपुरा स्थित शाखा में लूट के लिए बदमाशों की मुखबिरी की थी. उस ने दामोदरपुरा की बैंक शाखा के संबंध में सभी सूचनाएं बदमाशों को उपलब्ध कराई थीं.

शांतनु ने सम्राट गुर्जर गैंग के बदमाशों को सौंख रोड स्थित बैंक की शाखा को लूटने की सलाह दी, लेकिन बाद में योजना बदल गई और दामोदरपुरा स्थित शाखा में लूट की गई. बैंक चपरासी शांतनु के पास से 5500 रुपए की बैंक की बैट करेंसी भी बरामद हुई है. लुटेरों ने लूट की योजना घटना से 15 दिन पहले बनाई थी.

पुलिस ने बैंक  लूट के 21.18 लाख रुपयों में से लगभग 19.67 लाख रुपए बरामद कर इस घटना में शामिल महिला सहित 7 लुटेरों को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. बैंक लूट की घटना का परदाफाश करने वाली पुलिस टीम को एसएसपी गौरव ग्रोवर ने 50 हजार रुपए ईनाम देने की घोषणा की.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- मनोहर कहानियां, जून 2020

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आखिर कैसे और क्यों डाकू बनीं साधना पटेल

सन 2018 के आखिरी महीने में जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनी थी और मुख्यमंत्री कमलनाथ, तभी से डाकुओं के बुरे दिन शुरू हो गए थे, लेकिन बीहड़ों से डाकुओं को एकदम उखाड़ फेंकना कोई हंसीखेल नहीं है. चंबल में दस्युओं का आतंक कुछ थमा, लेकिन विंध्य में सिर उठाता दिखाई दिया. विंध्य का आतंक पुलिस महकमे के लिए खासी चुनौती और सिरदर्द बना हुआ था. सरकार की हरी झंडी मिलते ही पुलिस महकमे ने इस साल बारिश के बाद डकैतों के खिलाफ मुहिम छेड़ी तो उसे हैरतअंगेज तरीके से सफलताएं भी मिलीं.

रीवा, सतना ओर धार्मिक नगरी चित्रकूट में आए दिन जघन्य वारदातों को अंजाम देने वाले कुख्यात दस्यु सरगना बबुली कौल को बीती 15 सितंबर को पुलिस ने एक एनकाउंटर में मार गिराया. उस के मारे जाने से मध्य प्रदेश के साथ साथ उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी चैन की सांस ली थी.

बबुली कौल गैंग का सफाया कोई मामूली काम नहीं था, लेकिन पुलिस वालों ने उसे अंजाम दिया तो एक बार लग रहा था कि विंध्य भी अब दस्युओं से आजाद हो गया है. लेकिन पुलिस के आला अफसर पूरी तरह निश्चिंत नहीं थे. अब उन्हें जंगल की शेरनी के खिताब से नवाजी गई साधना पटेल की तलाश थी.

किसी भी डाकू और उस के गिरोह के खौफ का पैमाना केवल यह नहीं होता कि उस ने कितनी हत्याएं और अपहरण किए या लूट की कितनी वारदातों को अंजाम दिया, बल्कि यह होता है कि पुलिस ने उस के सिर पर इनाम कितने का रखा है.

बबुली कौल इस लिहाज से सब से ऊपर था, जिस पर पुलिस ने 7 लाख रुपए इनाम घोषित किया हुआ था और उस का भरोसेमंद साथी लवकेश, जो उस का साला भी था, के सिर पर 1.80 लाख का इनाम था. लंबी कवायद और मशक्कत के बाद ये दोनों एक मुठभेड़ में मारे गए. तबखासी चर्चा यह भी हुई थी कि डकैतों को पुलिस ने नहीं मारा, बल्कि ये तो लूट के पैसों के बंटवारे की आपसी लड़ाई में मारे गए हैं. सच कुछ भी हो लेकिन कामयाबी का सेहरा पुलिस के सिर ही बंधा.

बबुली कौल के खात्मे से उत्साहित पुलिस वालों ने अब महज 21 वर्षीय साधना पटेल को निशाने पर ले लिया था, जो अब तक भले ही छोटीमोटी वारदातों को अंजाम देती रही हो, लेकिन भविष्य में वह भी बड़ा खतरा बन सकती है. इस तरह की आशंका को कोई भी खारिज नहीं कर रहा था.

बबुली कौल गिरोह के इनामी और गैरइनामी डाकू एकएक कर पुलिस के हत्थे चढ़ने लगे तो पुलिस काररवाई से घबराई साधना पटेल नाम की यह कमसिन शेरनी शहर की तरफ भाग गई. साधना को समझ आ गया था कि अगर बीहड़ छोड़ कर नहीं भागी तो पुलिस कभी भी उसे धर लेगी.

लिहाजा उसे बेहतर यही लगा कि स्थिति शांत होने तक झांसी या दिगी में जा कर रहा जाए, जहां उसे कोई नहीं पहचानता और न ही पुलिस वहां तक पहुंचेगी.

हमेशा जींस का टाइट पैंट और शर्ट पहनने वाली खूबसूरत साधना पटेल अपने वर्तमान प्रेमी छोटू पटेल के साथ पहले झांसी गई और फिर दिगी. अगस्त का पहला सप्ताह था, जब साधना ने आम औरतों की तरह साड़ी पहनी और शहर की भीड़ में कहीं गुम हो गई.

इधर पूरे विंध्य इलाके खासतौर से चित्रकूट में पुलिस की रैकी और मुखबिरी किसी काम नहीं आ रही थी. पुलिस की भाषा में साधना अंडरग्राउंड तो थी लेकिन वह है कहां, उस ने इस की हवा किसी को नहीं लगने दी थी.

बबुली कौल के मारे जाने और साधना के यूं एकाएक लापता होने से इलाके में वारदातें तो नहीं हुई थीं, लेकिन पुलिस को डर था कि साधना बीहड़ों में ही कहीं छिपी हो सकती है. संभव है, वह किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की योजना बना रही हो.

दिगी और झांसी में उस की तलाश में पुलिस ने छापेमारी की थी, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लगी. हालांकि पुलिस ने साधना के गैंग के 5 नामी और इनामी डकैतों दीपक शिवहरे, मूरत कौल, रिंकू शिवहरे, धनपत उर्फ धन्नू और दादू सिंह उर्फ पट्टीदार सिंह को गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल कर ली थी.

लेकिन साधना की लोकेशन के बाबत ये लोग कुछ खास नहीं बता पाए थे. और जो बता पाए थे उसे पुलिस ने अपनी जानकारियों से जोड़ा तो साधना की कहानी कुछ इस तरह आकार लेती नजर आई.

चित्रकूट का एक गांव है रामपुर पालदेव, जो भरतपुर इलाके में आता है. इस गांव के बुद्धिविलास पटेल की 3 संतानें हैं, जिन में साधना सब से बड़ी है, उस से छोटे 2 भाई हैं.

बुद्धिविलास का याराना इस इलाके के एक खूंखार डाकू चुन्नीलाल पटेल से था, जो जबतब उन के घर देखा जाता था. साधना चुन्नीलाल को चाचा कह कर बुलाती थी और जब भी वह आता था तो उस की नाजुक अंगुलियां उस की बंदूक पर थिरकने लगती थीं.

पूतनी के पांव पालने में ही दिखने लगते हैं, लिहाजा साधना के रंगढंग और तेवर देख कर एक दिन चुन्नीलाल ने साधना के बारे में यह भविष्यवाणी कर दी कि देखना एक दिन यह पुतलीबाई से भी बड़ी डाकू बनेगी.

साधना हालांकि पढ़ाईलिखाई में ठीकठाक थी, लेकिन उस का मकसद कुछ और था, जो उस की उम्र को देख कर हैरान कर देने वाला इस लिहाज से नहीं था कि डकैती की पाठशाला तो उस के घर में ही लगती थी और साधना हर बार उस की चश्मदीद गवाह होती थी. सीधेसीधे कहा जाए तो डाकू बनने के संस्कार उसे बचपन में ही मिल गए थे.

बुद्धिविलास की चिंता जवान होती बेटी का भविष्य कम, बल्कि उस का वर्तमान ज्यादा था. दरअसल, साधना को कम उम्र में ही सैक्स का चस्का लग चुका था. गांव के कई युवकों से वह सैक्स संबंध बना चुकी थी. जाहिर है, गांवों में इस तरह की बातें दबीछिपी नहीं रहतीं. ये बातें जब बुद्धिविलास के कानों में पड़ीं, तो वह घबरा उठा. यह बात भी उसे समझ आ गई थी कि साधना अब उस के रोके से नहीं रुकने वाली.

एक दिन उन्होंने बेटी को अपनी बहन यानी उस की बुआ के पास भागड़ा गांव भेज दिया. शुरू में तो इस गांव में उस का मन नहीं लगा, लेकिन जल्द ही आदत के मुताबिक वह एक युवक से दिल लगा बैठी. कोई शक न करे, इसलिए उसे अपना भाई बना लिया.

गांवों में अभी भी ऐसे मुंहबोले रिश्तों की अहमियत होती है, इसलिए साधना की बुआ उस की तरफ से लापरवाह हो गई. वैसे भी उसे साधना से कोई खास लेनादेना नहीं था.

एक दिन साधना यह जान कर हैरान रह गई कि चुन्नी चाचा का आनाजाना यहां भी था. यह जान कर तो उस की आंखें फटी रह गईं कि चुन्नी चाचा और बुआ के नाजायज संबंध हैं और चुन्नी चाचा इसी जरूरत के लिए आता है.

सैक्सी साधना ने डाकू बनने की ठानी

साधना के लिए मर्द का यह रूप एक अलग अनुभव था कि चुन्नीलाल पटेल नाम के जिस डाकू के नाम से ही विंध्य इलाके के लोग थरथर कांपते थे, वह उस की बुआ के आगे गुलामों की तरह सिर झुकाए सैक्स के लिए मनुहार करता था.

काफी कुछ समझ चुकी साधना चुप रही और अपने प्रेमी के साथ बदस्तूर सैक्स संबंध बनाती रही, जिस के घर आनेजाने पर कोई रोकटोक नहीं थी. लेकिन ऐसे संबंध छिपाए नहीं छिपते वाली बात सच निकली. एक दिन बुआ ने उसे प्रेमी के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया.

पकड़े जाने पर साधना यह सोच कर घबरा उठी कि अब बुआ चुन्नी चाचा से शिकायत करेगी, जो उसे व उस के प्रेमी को गोली से उड़ा देने में सेकंड भर नहीं लगाएगा. इसी घबराहट में वह बीहड़ों में कूद गई.

यह तो आखिर एक दिन होना ही था कि आज नहीं तो कल डाकू बनने की ठाने बैठी साधना बीहड़ों की शरण लेगी, लेकिन इस तरह लेगी, इस की उम्मीद शायद उस ने भी कभी नहीं की होगी. कुछ दिन उस का आशिक या भैया जो भी कह लें, उस के साथ बीहड़ों में रहा.

इसी दौरान साधना की मुलाकात एक डाकू नवल धोबी से हुई, जिस के नाम और धौंस का सिक्का चुन्नीलाल पटेल के बराबर ही चलता था. चुन्नीलाल पटेल औरतों के मामले में जितना कमजोर और अय्याश था, नवल धोबी उतना ही सख्त और उसूल वाला था. उस का मानना था कि औरतें डाकू गिरोहों को बरबाद कर देती हैं. इसलिए वह न तो औरतों को गिरोह में शामिल करता था और न ही उन्हें पास फटकने देता था.

साधना का गदराया बदन और उफनती जवानी देख नवल धोबी के सारे उसूल चटचट कर टूट गए और उस ने साधना को न केवल अपने गिरोह में बल्कि जिंदगी में भी शामिल कर लिया.

साधना अब उस की रखैल बन चुकी थी. इस नाते नवल के गिरोह में उस का खासा दबदबा था. आखिरकार वह सरदार की ‘वो’ भी थी. नवल के साथ साधना ने सिर्फ सैक्स सुख ही नहीं लिया बल्कि हथियार चलाने की बाकायदा ट्रेनिंग भी उसे यहीं मिली. वह कई वारदातों में गिरोह के साथ रही.

उस ने डकैती के तमाम गुर बहुत जल्द सीख लिए, लेकिन इस दौरान उस ने नवल के अलावा किसी और मर्द की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखा. साधना समझ गई थी कि खूंखार नवल उस की बदचलनी बरदाश्त नहीं करेगा.

तकरीबन डेढ़ साल का अरसा मौजमस्ती और वारदातों में सुकून से गुजरा, लेकिन कुछ दिन बाद ही नवल को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. साधना अघोषित तौर पर उस के गिरोह की वारिस घोषित हो चुकी थी, लिहाजा उस ने इस गिरोह को तितरबितर होने से बचाया और खुद सरदार बन कर वारदातों को अंजाम देने लगी. गिरोह के सदस्य उसे इज्जत से साधना जीजी कहते थे. लेकिन अपनी मरजी और जरूरत के मुताबिक साधना उन में से किसी से भी शारीरिक संबंध बना लेती थी.

ऐसे हुई चर्चित

गिरोह और अपने गुजारे के लिए साधना छोटीमोटी वारदातों को ही अंजाम देती थी. ऐसा नहीं कि वह डरपोक थी या किसी बड़ी वारदात का मौका उसे नहीं मिल रहा था. इस की अहम वजह यह थी कि साधना के पास सीमित विकल्प थे और पुलिसिया दखल बीहड़ों में बढ़ता जा रहा था.

फिर भी उस के लिए यह जरूरी हो चला था कि वह ऐसी किसी वारदात को अंजाम दे जिस से दौलत के साथ साथ शोहरत भी मिले. उस ने अब तक जितनी भी वारदातों को अंजाम दिया था, उन में से किसी में भी उस के खिलाफ मामला दर्ज नहीं हुआ था.

साल 2018 में साधना ने पहला बड़ा कदम तब उठाया, जब उस ने नयागांव थाने के तहत आने वाले गांव पालदेव के छोटकू सेन नाम के आदमी को अगवा कर लिया. साधना को लगता था कि छोटकू गड़े धन के बारे में जानता है लेकिन उस का यह अंदाजा गलत निकला. जब छोटकू कुछ नहीं बता पाया तो उस ने उस की दसों अंगुलियां बेरहमी से काट डालीं.

छोटकू जैसेतैसे इस गिरोह की गिरफ्त से छूटा तो सीधे थाने जा पहुंचा. इस तरह पहली एफआईआर साधना के नाम दर्ज हुई, जिस से इलाके में उस की चर्चा उम्मीद के मुताबिक हुई. इस के बाद साल भर में साधना के खिलाफ आधा दर्जन और मामले दर्ज हुए, जिन्होंने उसे जंगल की शेरनी और बैंडिट क्वीन जैसे खिताबों से नवाज दिया.

एक और बड़ी वारदात को अंजाम देने की गरज से साधना ने पालदेव गांव के ही एक युवक छोटू पटेल को उठवा लिया. छोटू के पिता ने 6 अगस्त, 2019 को नयागांव थाने में बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए उस के अगवा हो जाने का शक जताया था.

लेकिन ऐसा कुछ था नहीं, छोटू साधना का एक और आशिक था, जिस के साथ वह जंगल में देह सुख लेती थी. 2-4 घंटे के मिलन के बाद छोटू गांव वापस चला जाता था. पुलिस की जानकारी में यह बात आई तो उस ने उसे भी डाकू घोषित कर के उस के सिर पर 10 हजार रुपए का इनाम रख दिया.

इस से घबराया छोटू हमेशा के लिए साधना के साथ बीहड़ों में चला गया और बाकायदा डकैत बन गया. डकैतों की दुनिया में अब छोटू पटेल और साधना पटेल के इश्क के चर्चे चटखारे ले कर सुनाए जाने लगे. यही वह वक्त था जब पुलिस ने बबुली कौल को एनकाउंटर में मार गिराया था.

डकैतियां डालतेडालते साधना अभी थकी नहीं थी क्योंकि इस पेशे में आए उसे 4 साल भी पूरे नहीं हुए थे. लेकिन वह समझने लगी थी कि न जाने पुलिस की किस गोली पर उस का भी नाम लिखा हो.

लगता ऐसा है कि कई युवकों से सैक्स संबंध बनाने के बाद वह छोटू से शादी कर घर बसाने की बात सोचने लगी थी, इसलिए अहतियात भी बरतने लगी थी. उस ने चुन्नी चाचा से ले कर बबुली कौल तक का हश्र देखा था.

50 हजार की ईनामी बनी साधना

पुलिस की बढ़ती गतिविधियां देख वह छोटू के साथ दिगी चली गई, लेकिन 3 महीनों में ही जमापूंजी खर्च हो गई तो उसे लगा एक जोखिम और उठाया जाए. यह साधना की जिंदगी की पहली बड़ी भूल साबित हुई.

सतना के पुलिस अधीक्षक रियाज इकबाल साधना को ले कर संजीदा थे. पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला रखा था. जैसे ही नवंबर के महीने में वह चित्रकूट आई तो यह खबर एसपी औफिस तक जा पहुंची.

17 नवंबर को पुख्ता तैयारियों के साथ पुलिस टीम ने साधना को कडियन मोड़ के जंगल में हथियार सहित गिरफ्तार कर लिया. इस टीम में रियाज इकबाल के अलावा अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक गौतम सोलंकी सहित आसपास के थानों के थानाप्रभारी शामिल थे.

भागने के बजाय साधना ने जान बचाने के लिए गिरफ्तार होना बेहतर समझा. इस तरह बड़ी आसानी से 50 हजार की इनामी डकैत सुंदरी साधना पटेल भी पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी 30 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर रखा था. हालांकि वहां उस के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ था, लेकिन साधना की दहशत सीमाओं की मोहताज नहीं थी.

अब पुलिस बेफिक्र है कि विंध्य से डकैतों का सफाया हो चुका है लेकिन यह उस की गलतफहमी भी साबित हो सकती है. वजह पुलिस को यह नहीं मालूम रहता कि घने बीहड़ों में कब कोई नवल, चुन्नी, बबुली या साधना डकैत बनने कूद पड़े और धीरेधीरे एक संगठित गिरोह बना कर वारदातों को अंजाम देने लगे.

आमतौर पर लोग डकैतों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के बजाय खामोश रहना पसंद करते हैं, क्योंकि उन से उन की जान को हमेशा खतरा बना रहता है और पुलिस हर वक्त उन की हिफाजत के लिए साथ नहीं रह सकती.

साधना अब जेल में है. साफ दिख रहा है कि उसे सजा कम होगी, क्योंकि उस के खिलाफ दर्ज मामले छोटे हैं और अधिकांश में कोई गवाह या सबूत भी नहीं मिलने वाला. साधना एक बहुत बड़ा खतरा बनने से पहले गिरफ्तार हो गई तो जरूरत उस के सुधार की संभावना भी है.

उस के डाकू बनने का जिम्मा पिता बुद्धिविलास पर थोपा जा सकता है, लेकिन खुद साधना सैक्स की लत का शिकार कम उम्र में हो गई थी और बीहड़ चुनने का उस का मकसद डकैती कम बल्कि स्वेच्छा से किसी भी मर्द के साथ सैक्स संबंध बनाना ज्यादा लगता है. शायद इसीलिए वह बैंडिट क्वीन के बजाय सैक्सी क्वीन बन कर रह गई.

मंदिर में बाहुबल-भाग 4 : पाठक परिवार की दबंगई

इस घटना के बाद मुलायम सिंह नाराज हो गए, लेकिन दबंग नेता की छवि बना चुके कमलेश पाठक के आगे उन की नाराजगी ज्यादा दिन टिक न सकी. सन 2007 में नेताजी ने उन्हें पुन: टिकट दे दिया, लेकिन कमलेश दिबियापुर विधानसभा सीट से हार गए.

साल 2009 में कमलेश पाठक ने जेल में रहते सपा के टिकट पर अकबरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा पर हार गए. इस के बाद उन्होंने साल 2012 में सिकंदरा विधानसभा से चुनाव लड़ा, पर इस बार भी हार गए.

हारने के बावजूद वर्ष 2013 में कमलेश पाठक को राज्यमंत्री का दरजा दे कर उन्हें रेशम विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया. इस के बाद 10 जून 2016 को समाजवादी पार्टी से उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना कर भेजा. वर्तमान में वह सपा से एमएलसी थे. सपा सरकार के रहते कमलेश पाठक ने अपनी दबंगई से अवैध साम्राज्य कायम किया.

उन्होंने ग्राम समाज के तालाबों तथा सरकारी जमीनों पर कब्जे किए. उन्होंने पक्का तालाब के पास नगरपालिका की जमीन पर कब्जा कर गेस्टहाउस बनवाया. साथ ही औरैया शहर में 2 आलीशान मकान बनवाए. अन्य जिलों व कस्बों में भी उन्होंने भूमि हथियाई. जिले का कोई अधिकारी उन के खिलाफ जांच करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था. कमलेश की राजनीतिक पहुंच से उन के भाई संतोष व रामू भी दबंग बन गए थे. दबंगई के बल पर संतोष पाठक ब्लौक प्रमुख का चुनाव भी जीत चुका था. दोनों भाइयों का भी क्षेत्र में खूब दबदबा था. सभी के पास लाइसैंसी हथियार थे.

कमलेश पाठक की दबंगई का फायदा उन के भाई ही नहीं बल्कि शुभम, कुलदीप तथा विकल्प अवस्थी जैसे रिश्तेदार भी उठा रहे थे. ये लोग कमलेश का भय दिखा कर शराब के ठेके, सड़क निर्माण के ठेके तथा तालाबों आदि के ठेके हासिल करते और खूब पैसा कमाते. ये लोग कदम दर कदम कमलेश का साथ देते थे और उन के कहने पर कुछ भी कर गुजरने को तत्पर रहते थे. कमलेश पाठक ने अपनी दबंगई के चलते धार्मिक स्थलों को ही नहीं छोड़ा और उन पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया. औरैया शहर के नारायणपुर मोहल्ले में स्थित प्राचीन पंचमुखी हनुमान मंदिर पर भी कमलेश पाठक ने अपना कब्जा जमा लिया था. साथ ही वहां अपने रिश्तेदार वीरेंद्र स्वरूप पाठक को पुजारी नियुक्त कर दिया था. कमलेश की नजर इस मंदिर की एक एकड़ बेशकीमती भूमि पर थी.

इसी नारायणपुरवा मोहल्ले में पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास शिवकुमार उर्फ मुनुवां चौबे का मकान था. इस मकान में वह परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे संजय, मंजुल और 3 बेटियां रश्मि, रुचि तथा रागिनी थीं. तीनों बेटियों तथा संजय की शादी हो चुकी थी.

मुनुवां चौबे मोहल्ले के सम्मानित व्यक्ति थे. धर्मकर्म में भी उन की रुचि थी. वह हर रोज पंचमुखी हनुमान मंदिर में पूजा करने जाते थे. पुजारी वीरेंद्र स्वरूप से उन की खूब पटती थी. पुजारी मंदिर बंद कर चाबी उन्हीं को सौंप देता था.

मुनुवां चौबे का छोटा बेटा मंजुल पढ़ाई के साथसाथ राजनीति में भी रुचि रखता था. उन दिनों कमलेश पाठक का राजनीति में दबदबा था. मंजुल ने कमलेश पाठक का दामन थामा और राजनीति का ककहरा पढ़ना शुरू किया. वह समाजवादी पार्टी के हर कार्यक्रम में जाने लगा और कई कद्दावर नेताओं से संपर्क बना लिए. कमलेश पाठक का भी वह चहेता बन गया.

मंजुल औरैया के तिलक महाविद्यालय का छात्र था. वर्ष 2003 में उस ने कमलेश पाठक की मदद से छात्र संघ का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस के बाद मंजुल ने अपनी ताकत बढ़ानी शुरू कर दी. उस ने अपने दर्जनों समर्थक बना लिए. अब उस की भी गिनती दबंगों में होने लगी. इसी महाविद्यालय से उस ने एलएलबी की डिग्री हासिल की और औरैया में ही वकालत करने लगा.

मंजुल के घर के पास ही उस के चाचा अरविंद चौबे रहते थे. उन के बेटे का नाम आशीष तथा बेटी का नाम सुधा था. मंजुल की अपने चचेरे भाईबहन से खूब पटती थी. सुधा पढ़ीलिखी व शिक्षिका थी. पर उसे देश प्रदेश की राजनीति में भी दिलचस्पी थी.

मंजुल की ताकत बढ़ी तो कमलेश पाठक से दूरियां भी बढ़ने लगीं. ये दूरियां तब और बढ़ गईं, जब मंजुल को अपने पिता से पता चला कि कमलेश पाठक मंदिर की बेशकीमती भूमि पर कब्जा करना चाहता है. चूंकि मंदिर मंजुल के घर के पास और उस के मोहल्ले में था, इसलिए मंजुल व उस का परिवार चाहता कि मंदिर किसी बाहरी व्यक्ति के कब्जे में न रहे. वह स्वयं मंदिर पर आधिपत्य जमाने की सोचने लगा. पर दबंग कमलेश के रहते, यह आसान न था.

16 मार्च, 2020 को थाना कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त कमलेश पाठक, रामू पाठक, संतोष पाठक, अवनीश प्रताप, लवकुश उर्फ छोटू तथा राजेश शुक्ला को औरैया कोर्ट में सीजेएम अर्चना तिवारी की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें इटावा जेल भेज दिया गया.

दूसरे रोज बाहुबली कमलेश पाठक को आगरा सेंट्रल जेल भेजा गया. रामू पाठक को उरई तथा संतोष पाठक को फिरोजाबाद जेल भेजा गया. लवकुश, अवनीश प्रताप तथा राजेश शुक्ला को इटावा जेल में ही रखा गया. 18 मार्च को पुलिस ने अभियुक्त कुलदीप अवस्थी, विकल्प अवस्थी तथा शुभम को भी गिरफ्तार कर लिया. उन्हें औरैया कोर्ट में अर्चना तिवारी की अदालत मे पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आसमान में दस्तक : सिरीशा के अंतरिक्ष सफर की कहानी

सिरिशा बांदला

वर्जिन गैलेक्टेटिक स्पेसशिप ने 11 जुलाई, रविवार की शाम अंतरिक्ष की दुनिया में कदम रख दिया. इसी के साथ वर्जिन गैलेक्टेटिक के मालिक निजी स्पेसशिप से अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पहले उद्योगपति बन गए हैं.

इस स्पेसशिप में उन के साथ जाने वाले 5 लोगों में भारतीय मूल की सिरिशा बांदला भी थीं. सिरिशा ने अंतरिक्ष की यह यात्रा कर के अपने परिवार का ही नहीं, एक तरह से देश का भी नाम रोशन किया है.

एक कहावत है, ‘‘मेरे अंदर हौसला अभी जिंदा है, हम वो हैं जहां मुश्किलें भी शर्मिंदा हैं.’’ कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के बाद अब इस कहावत को चरितार्थ किया है सिरिशा बांदला ने. पूरी दुनिया में भारत का लोहा मनवाने वाली और एक नया इतिहास रचने वाली सिरिशा आंध्र प्रदेश के गुंटूर की रहने वाली हैं.

सिरिशा बांदला भारत की ओर से अंतरिक्ष में गई हैं. भारत की ओर से अंतरिक्ष में जाने वाली कल्पना चावला के बाद वह दूसरी महिला हैं और भारतीय मूल की चौथी. इन से पहले राकेश शर्मा, कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष की यात्रा कर चुकी हैं.

अंतरिक्ष में जाने वाली सिरिशा बांदला का जन्म 1987 में आंध्र प्रदेश के जिला गुंटूर शहर में डा. मुरलीधर बांदला और अनुराधा बांदला के घर हुआ था. उन का एक भाई भी है गणेश बांदला. फिलहाल उन का परिवार अमेरिका में ह्यूस्टन, टेक्सास में रहता है.

उन का पालनपोषण और पढ़ाईलिखाई ह्यूस्टन टेक्सास में ही हुई थी. उन के पिता डा. मुरलीधर बांदला एक वैज्ञानिक हैं. वह अमेरिकी सरकार में सीनियर एग्जीक्यूटिव सर्विसेज के सदस्य भी हैं.

पिता अमेरिका में रहते थे, इसलिए सिरिशा का बचपन अमेरिका में ही बीता. वैज्ञानिक बाप की बेटी होने की वजह से उन्होंने राकेट और स्पेसक्राफ्ट बहुत नजदीक से देखे थे.

आसमान में राकेट को उड़ता देख कर उन के मन में स्पेस के बारे में जिज्ञासा होती थी. पर उस समय तो उन्हें यह सपना लगता था. उन्होंने तब नहीं सोचा था कि आगे चल कर उन का यह सपना पूरा भी होगा. सिरिशा ने पर्ड्यू यूनिवर्सिटी से एयरोनौटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया और उस के बाद जार्जटाउन यूनिवर्सिटी से मास्टर औफ बिजनैस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए) किया.

पढ़ाई पूरी होने के बाद वह एयरफोर्स में भरती हो कर पायलट बनना चाहती थीं. लेकिन आंख में कोई समस्या होने की वजह से उन का यह सपना अधूरा ही रह गया.

तब किसी और की छोड़ो, उन्होंने भी नहीं सोचा था कि आगे चल कर वह मांबाप का ही नहीं, देश का भी नाम रोशन करेंगीं.

वह एयरफोर्स में नहीं जा सकीं तो 2015 में टेक्सास की एक एयरस्पेस कंपनी वर्जिन गैलेक्टेटिक में इंजीनियर की नौकरी कर ली. उन्होंने कमर्शियल स्पेस फ्लाइट फेडरेशन में काम किया.

बहुत ही कम समय में वह वर्जिन गैलेक्टेटिक कंपनी में सरकारी कामों की वाइस प्रेसिडेंट हो गईं. जल्दी ही उन्होंने 747 विमान का उपयोग कर के अंतरिक्ष में एक उपग्रह भी पहुंचाया.

अपनी प्रतिभा की ही बदौलत मात्र 6 साल की नौकरी में सीनियर पद हासिल कर आज उद्योगपति रिचर्ड ब्रैनसन की स्पेस कंपनी वर्जिन गैलेक्टेटिक के अंतरिक्ष यान वर्जिन और्बिट से 11 जुलाई को वह अंतरिक्ष की यात्रा कर आईं.

रिचर्ड ब्रैनसन सहित 6 अंतरिक्ष यात्रियों में एक सिरिशा बांदला भी थीं. इस घोषणा के बाद सिरिशा बांदला ने ट्वीट किया था, ‘मुझे यूनिटी-22 क्रू और उस कंपनी का हिस्सा होने पर गर्व महसूस हो रहा है.’

फिलहाल वह वर्जिन और्बिट के वाशिंगटन औपरेशंस के पद को संभाल रही हैं. रिचर्ड ब्रैनसन ने पहली जुलाई को घोषणा की थी कि उन की अगली अंतरिक्ष यात्रा 11 जुलाई को होगी. तभी उन्होंने कहा था कि इस अंतरिक्ष यात्रा में उन्हें मिला कर कुल 6 लोग होंगे.

उन का कहना था कि अंतरिक्ष में किसी बाहरी को भेजने के बजाय पहले वह अपनी कंपनी के कर्मचारियों को मौका देंगे. इस से उन की कंपनी द्वारा तैयार किए गए अंतरिक्ष यान की अच्छी तरह जांचपरख हो जाएगी.

वर्जिन गैलेक्टेटिक कंपनी आम लोगों के लिए अंतरिक्ष यात्रा आसान बनाना चाहती है. वर्जिन और्बिट अंतरिक्ष यान को कैरियर प्लेन कास्मिक गर्ल द्वारा पृथ्वी से लगभग 35 हजार फुट की ऊंचाई पर ले जाया गया.

सिरिशा तेलुगू एसोसिएशन आफ नौर्थ अमेरिका (टीएएनए) की सदस्य भी हैं. यह उत्तरी अमेरिका का सब से बड़ा और पुराना इंडो अमेरिकन संगठन है. कुछ साल पहले ही इस संगठन ने सिरिशा को यूथ स्टार अवार्ड से नवाजा था.

इस के अलावा सिरिशा अमेरिका एस्ट्रोनौटिकल सोसायटी एंड फ्यूचर स्पेस लीडर्स फाउंडेशन के बोर्ड औफ डायरेक्टर्स में भी शामिल हैं. इस के अलावा वह पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के यंग प्रोफेशनल एडवाइजरी काउंसिल की भी सदस्य हैं.

सिरिशा बांदला मैक्सिको से विंग्ड राकेट शिप द्वारा अंतरिक्ष की यात्रा के लिए उड़ान भरेंगी. वह ह्यूमन टेंडेड रिसर्च एक्सपीरियंस की इंचार्ज भी थीं, जिस की वजह से उन्होंने अंतरिक्ष यात्रा के दौरान एस्ट्रोनौट पर होने वाले असर का अध्ययन भी किया.

यह यात्रा पूरी करने के बाद सिरिशा बांदला की कंपनी के मालिक 71 साल के रिचर्ड ब्रैनसन ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन की कंपनी वर्जिन गैलेक्टेटिक की टीम की यह 17 साल की मेहनत का परिणाम है.

अंतरिक्ष में जाने वाले स्पेसशिप के उड़ान भरने से ले कर वापस आने में कुल एक घंटे का समय लगा. इस यात्रा पर जाने वाले सभी लोगों ने अंतरिक्ष में करीब 5 मिनट तक रुक कर भारहीनता का अनुभव किया.

अंतरिक्ष की यात्रा पर जाने वाला अंतरिक्ष यान साढ़े 8 मील यानी 13 किलोमीटर की ऊंचाई पर जा कर मूल विमान से अलग हो गया और करीब 88 किलोमीटर की ऊंचाई पर जा कर अंतरिक्ष के छोर पर पहुंच गया, जहां इस यात्रा पर सभी लोगों ने भारहीनता का अनुभव किया.