विश्वास का खून : मोमिता अभिजीत हत्याकांड – भाग 1

पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के रहने वाले मृणाल कृष्णा दास उन खुशहाल लोगों में से थे जो अपने बच्चों को पढ़ालिखा कर किसी काबिल बना देते हैं. वह एक सरकारी बैंक में नौकरी करते थे. कुछ साल पहले मिली सेवानिवृत्ति के बाद उन का अधिकांश समय घर पर ही बीतता था. उन के परिवार में पत्नी काजोल दास के अलावा 2 बच्चे थे, मोमिता दास और बेटा मृगांक दास.

मोमिता को चित्रकारी का शौक था. स्कूलकालेजों में होने वाली आर्ट प्रतियोगिताओं में वह हमेशा अव्वल आती थी. इसी के मद्देनजर उस ने एमए तक की पढ़ाई आर्ट से ही की.

प्राकृतिक फोटोग्राफी भी उस के शौक में शामिल थी. मोमिता की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. इसलिए 2 साल पहले घर वालों की सलाह पर वह कैरियर बनाने के लिए नदिया से दिल्ली आ गई. वह चूंकि समझदार थी इसलिए उस के अकेले दिल्ली आने पर मातापिता को ज्यादा चिंता नहीं थी. मोमिता का छोटा भाई मृगांक भी पढ़ाई के लिए बेंगलुरु चला गया.

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दिल्ली आ कर मोमिता ने अपने एक परिचित के माध्यम से दक्षिणी दिल्ली के लाडोसराय इलाके में किराए पर एक कमरा ले लिया और अपने लिए नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी. थोड़ी कोशिश के बाद उसे गुडगांव, हरियाणा के एक निजी स्कूल में आर्ट टीचर की नौकरी मिल गई. 28 वर्षीय मोमिता स्वभाव से मिलनसार व खुशमिजाज थी.

कुछ दिनों बाद मोमिता की दोस्ती ग्राफिक डिजाइनर अभिजीत पौल से हो गई. अभिजीत भी पश्चिमी बंगाल के कोलकाता शहर का रहने वाला था और दिल्ली में रह कर अपना कैरियर बनाने की कोशिश कर रहा था. दोनों की आदतें, विचार और शौक एक जैसे थे. लिहाजा उन की दोस्ती बदलते वक्त के साथ प्यार में बदल गई थी.

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उन की इस दोस्ती की खबर उन के परिजनों तक भी पहुंच गई थी. मोमिता के मातापिता ने इस बात पर कोई ऐतराज नहीं किया. वे जानते थे कि बेटी ने जो कदम उठाया है वह कुछ सोच कर ही उठाया होगा.

मोमिता को प्राकृतिक सौंदर्य से बहुत प्यार था. वह जब भी कहीं घूमने के लिए जाती थी, तो अकसर वहां की फोटोग्राफी किया करती थी. कुछ पत्र पत्रिकाओं में उस के द्वारा खींचे गए फोटो छपने भी लगे थे. बेटी की उपलब्धियों से मृणाल बहुत खुश थे. वह लगातार उस के संपर्क में रहते थे.

22 अक्तूबर, 2004 की सुबह का वक्त था. मृणाल कृष्णदास के पास मोमिता का फोन आया. उस ने बताया, ‘‘पापा, मैं आज उत्तराखंड जा रही हूं.’’

‘‘क्यों?’’ मृणाल ने पूछा.

‘‘बस घूमने और अच्छे फोटोग्राफ के लिए.’’

‘‘अकेली जाओगी?’’

‘‘नहीं पापा मेरे साथ अभिजीत है. हम दोनों जा रहे हैं.’’ बेटियां भले ही कितनी भी समझदार क्यों न हो जाएं, मातापिता को हमेशा उन की फिक्र लगी ही रहती है. मृणाल को भी उस की फिक्र रहती थी. इसलिए उन्होंने उसे सफर की सावधानियों के बारे में समझा दिया.

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मृणाल ने शाम को मोमिता को फोन किया तो उस ने बताया कि वे लोग देहरादून पहुंच गए हैं और कल से घूमने का प्रोग्राम बनाएंगे. अगले दिन उन की बात हुई, तो मोमिता ने बताया, ‘‘पापा, आज हम लोग चकराता जाएंगे. यहां की बहुत खूबसूरत जगह है.’’ मोमिता की बातों से ही झलक रहा था कि उत्तराखंड पहुंच कर वह बहुत खुश थी.

24 अक्तूबर को मृणाल बहुत परेशान थे. उन की परेशानी की वजह मोमिता थी. 23 अक्तूबर की शाम से उन का मोमिता से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था. बारबार मिलाने पर भी मोबाइल स्विच औफ आ रहा था. कृष्णा समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर मोमिता का मोबाइल अचानक क्यों बंद हो गया. वह सैकड़ों मील दूर थे. उन की परेशानी पत्नी काजोल से भी नहीं छिपी रह सकी.

‘‘क्यों परेशान हैं आप?’’ काजोल ने पूछा.

‘‘मोमिता का नंबर नहीं लग रहा है.’’ मृणाल ने कहा.

‘‘नेटवर्क में नहीं होगी या मोबाइल की बैटरी वीक हो गई होगी.’’

‘‘वह तो मैं भी समझता हूं. लेकिन बहुत वक्त हो गया.’’ इस बात से वह भी परेशान हो गईं. इस के बाद इंतजार का सिलसिला शुरू हो गया. लेकिन न तो मोमिता का नंबर मिला और न उस का फोन आया. इस से पतिपत्नी को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. देखतेदेखते 4 दिन बीत गए. अगर मोमिता का मोबाइल खो गया था तो भी उसे संपर्क करना चाहिए था. ऐसा कभी नहीं होता था कि वह उन लोगों से बात न करें. नाते रिश्तेदारों की सलाह पर मृणाल कृष्णा दिल्ली आ गए.

अपने बेटे को भी उन्होंने बेंगलुरु से बुलवा लिया. मृणाल कृष्णा ने दिल्ली के थाना साकेत जा कर पुलिस को बेटी से संबंधित अपनी चिंता बताई. चिंता की बात यह थी कि मोमिता का अपने घर वालों से सपंर्क नहीं हो पा रहा था. पुलिस ने गुमशुदगी संख्या 33 ए पर मोमिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. दूसरी तरफ कोलकाता में अभिजीत के घर वाले भी परेशान थे, उस का भी कुछ पता नहीं चल रहा था. उस के घर वालों ने कोलकाता में ही उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

गुमशुदगी दर्ज कर के मोमिता के मामले की जांच सबइंसपेक्टर दुर्गादास सिंह के हवाले कर दी गई. मामला एक युवक युवती के लापता होने का था. इस मामले में अपनी मरजी से गायब हो जाने की आशंकाएं भी नहीं थीं क्योंकि मोमिता व अभिजीत के रिश्ते उन के परिजनों से छिपे नहीं थे.

पुलिस ने कुछ दिन इंतजार किया. जब कोई पता नहीं चला तो दिल्ली पुलिस की एक टीम उत्तराखंड के लिए रवाना हो गई. इस बीच पुलिस ने मोमिता के मोबाइल की काल डिटेल्स हासिल कर ली थी. उस के मोबाइल की अंतिम लोकेशन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 98 किलोमीटर दूर पर्यटनस्थल चकराता में पाई गई थी. इस से पहले उस के मोबाइल की लोकेशन देहरादून और विकासनगर में थी. यह भी पता चला कि मोमिता ने 23 अक्तूबर को अंतिम बार एक स्थानीय नंबर पर बात की थी.

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दिल्ली पुलिस ने देहरादून के डीआईजी संजय गुंज्याल और एसएसपी अजय रौतेला से संपर्क किया. पुलिस ने उस नंबर की जांचपड़ताल कराई जिस पर मोमिता की बात हुई थी. वह नंबर एक टैक्सी चालक राजू दास पुत्र मोहन दास का निकला. राजू चकराता के गांव टुंगरौली का रहने वाला था. वह विकासनगर और चकराता के बीच टैक्सी चलाता था. दिल्ली पुलिस राजू तक पहुंच गई.

पुलिस ने मोमिता का फोटो दिखा कर उस से पूछताछ की, तो उस ने बताया, ‘‘हां सर, यह लड़की एक लड़के के साथ विकासनगर से मेरी टैक्सी में चकराता तक गई थी.’’

‘‘उस के बाद?’’

‘‘उस के बाद मुझे नहीं पता सर. मुझे लड़की ने फोन कर के बुलाया था कि उन्हें चकराता जाना है. उस दिन हम लोग दोपहर में विकासनगर से चले थे. चकराता पहुंच कर उन्होंने मुझे मेरा भाड़ा दे दिया और मैं वापस आ गया.’’

‘‘तुम्हें उन्होंने कुछ बताया. मतलब आगे का कोई प्रोग्राम?’’

‘‘नहीं सर, लेकिन हां दोनों काफी खुश थे और पूरा उत्तराखंड घूमने की बात कर रहे थे.’’ टैक्सी चालक राजू देखने में सीधासादा युवक लगता था. उस की बातों में सच्चाई झलक रही थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे छोड़ दिया. उस से पूछताछ के बाद दिल्ली पुलिस वापस आ गई. मोमिता व अभिजीत के इस तरह गायब होने की वजह पुलिस भी नहीं समझ पा रही थी. पुलिस को जांच के लिए कोई ऐसा सिरा नहीं मिल पा रहा था जिस से दोनों के लापता होने का राज खुल सके.

40 महीने कैद में रहा कंकाल

प्यार करने की खौफनाक सजा

सुबह करीब साढ़े 5 बजे आगरा के पुलिस नियंत्रण कक्ष को सूचना मिली कि आगरा-ग्वालियर की अपलाइन रेल पर शाहगंज और  सदर बाजार के बीच में एक युवक ने ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली है. सूचना शाहगंज और सदर बाजार के बीच होने की मिली थी. यह बात मौके पर जा कर ही पता चल सकती थी कि घटना किस थाने में आती है, इसलिए नियंत्रणकक्ष द्वारा इत्तला शाहगंज व सदर बाजार दोनों थानों को दे दी गई.

खबर मिलने के बाद दोनों थानों की पुलिस के साथसाथ थाना राजकीय रेलवे पुलिस आगरा छावनी की पुलिस टीम भी वहां पहुंच गई. पुलिस को रेलवे लाइनों के बीच एक युवक की लाश 2 टुकड़ों में पड़ी मिली. यह 25 जुलाई, 2014 की बात है.

सब से पहले पुलिस ने यह देखा कि जिस जगह पर लाश पड़ी है, वह क्षेत्र किस थाने में आता है. जांच के बाद यह पता चला कि वह क्षेत्र थाना सदर की सीमा में आता है.

रेलवे लाइनों में लाश पड़ी होने की सूचना पा कर आसपास के गांवों के तमाम लोग वहां पहुंच गए. लोगों ने उस की शिनाख्त करते हुए कहा कि मरने वाला युवक शिवनगर के रहने वाले नत्थूलाल का बेटा मनीष है. लोगों ने जल्द ही मनीष के घर वालों को खबर कर दी तो वे भी रोते बिलखते वहां पहुंच गए. जवान बेटे की मौत पर वे फूटफूट कर रो रहे थे.

सदर बाजार के थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह ने एएसपी डा. रामसुरेश यादव, एसपी सिटी समीर सौरभ व एसएसपी शलभ माथुर को भी घटना की जानकारी दे दी तो वे भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

जिस तरीके से वहां लाश पड़ी थी, देख कर पुलिस अधिकारियों को मामला आत्महत्या का नहीं लगा बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे उस की हत्या कहीं और कर के लाश ट्रैक पर डाल दी हो ताकि उस की मौत को लोग हादसा या आत्महत्या समझें.

कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट और कमीज की जेबें खाली निकलीं. मनीष के घर वालों ने बताया कि उस के पास 2 मोबाइल फोनों के अलावा पर्स में पैसे व वोटर आईडी कार्ड व जेब में छोटी डायरी रहती थी जिस में वह लेबर का हिसाब किताब रखता था. इस से इस बात की पुष्टि हो रही थी कि किसी ने हत्या करने के बाद उस की ये सारी चीजें निकाल ली होंगी ताकि इस की शिनाख्त नहीं हो पाए.

पुलिस ने नत्थूलाल से प्रारंभिक पूछताछ  कर मनीष की लाश का पंचनामा तैयार कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी और नत्थूलाल की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के जांच थानाप्रभारी सुनील कुमार ने संभाल ली. एसएसपी शलभ माथुर ने जांच में क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मनीष के घर वालों से बात कर के यह जानने की कोशिश की कि उस का किसी से कोई झगड़ा या दुश्मनी तो नहीं थी. इस पर नत्थूलाल ने बताया कि मनीष पुताई के काम का ठेकेदार था. वह बहुत शरीफ था. मोहल्ले में वह सभी से हंसता बोलता था.

उन से बात करने के बाद पुलिस को यह लगा कि उस की हत्या के पीछे पुताई के काम से जुड़े किसी ठेकेदार का तो हाथ नहीं है या फिर प्रेमप्रसंग के मामले में किसी ने उस की हत्या कर दी. इसी तरह कई दृष्टिकोणों को ले कर पुलिस चल रही थी.

अगले दिन पुलिस को मनीष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. पुलिस को शक हो रहा था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से वह सही साबित हुआ. यानी मनीष ने सुसाइड नहीं किया था, बल्कि उस की हत्या की गई थी. रिपोर्ट में बताया गया कि उस की सभी पसलियां टूटी हुई थीं, उस के दोनों फेफड़े फट गए थे. गुप्तांगों पर भी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था. इस के अलावा उस के शरीर पर घाव के अनेक निशान थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो गई कि मनीष की हत्या कहीं और की गई थी और हत्यारे उस से गहरी खुंदक रखते थे तभी तो उन्होंने उसे इतनी बेरहमी से मारा.

मनीष के पास 2 महंगे मोबाइल फोन थे जो गायब थे. पुलिस ने उस के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उन की की अंतिम लोकेशन सोहल्ला बस्ती की थी.

इस बारे में उस के पिता नत्थू सिंह से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सोहल्ला बस्ती में मनीष का कोई खास यारदोस्त तो नहीं रहता. उन्होंने यह जरूर बताया कि मनीष के 2 कारीगर मुन्ना और बंडा इस बस्ती में रहते हैं. वह उन के पास अकसर जाता रहता था.

मनीष की कालडिटेल्स पर नजर डाल रहे एएसपी डा. रामसुरेश यादव को एक ऐसा नंबर नजर आया था जिस से अकसर रात के 12 बजे से ले कर 2 बजे के बीच लगातार बातचीत की जाती थी. जिस नंबर से उस की बात होती थी, बाद में पता चला कि वह नंबर माधवी नाम की किसी लड़की की आईडी पर लिया गया था.

जांच में लड़की का नाम सामने आते ही पुलिस को केस सुलझता दिखाई दिया. क्योंकि मुन्ना और बंडा उस के भाई थे. एसएसपी को जब इस बात से अवगत कराया तो उन्होंने माधवी और उस के भाइयों से पूछताछ करने के निर्देश दिए. एक पुलिस टीम फौरन माधवी के घर दबिश देने निकल गई. लेकिन घर पहुंच कर देखा तो मुख्य दरवाजे पर ताला बंद था. यानी घर के सब लोग गायब थे.

माधवी के पिता भूपाल सिंह, भाई और अन्य लोग कहां गए, इस बारे में पुलिस ने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जता दी. पूरे परिवार के गायब होने से पुलिस का शक और गहरा गया.

किसी तरह पुलिस को भूपाल सिंह का मोबाइल नंबर मिल गया. उसे सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन आगरा के नजदीक धौलपुर गांव की मिली. पुलिस टीम वहां रवाना हो गई. फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने माधवी, उस के पिता भूपाल सिंह, 3 भाइयों कुंवरपाल सिंह, बंडा और मुन्ना को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर उन सब से मनीष की हत्या के बारे में पूछताछ की तो भूपाल सिंह ने स्वीकार कर लिया कि मनीष की हत्या उस ने ही कराई है. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.

मनीष के पिता और दादा दोनों ही रेलवे कर्मचारी थे. इसलिए उस का जन्म और परवरिश आगरा की रेलवे कालोनी में हुई थी. उस की 3 बहनें और एक छोटा भाई था. पिता नत्थूलाल रेलवे कर्मचारी थे ही, साथ ही मां विमलेश ने भी घर बैठे कमाई का अपना जरिया बना रखा था. वह आगरा कैंट रेलवे स्टेशन पर आनेजाने वाले ट्रेन चालकों व गार्डों के लिए खाने के टिफिन पैक कर के उन तक पहुंचाती थी. इस से उन्हें भी ठीक आमदनी हो जाती थी.

मनीष समय के साथ बड़ा होता चला गया. इंटरमीडिएट करने के बाद वह रेलवे के ठेकेदारों के साथ कामकाज सीखने लगा. फिर रेलवे के एक अफसर की मदद से उसे मकानों की पुताई के छोटेमोटे ठेके मिलने लगे. देखते ही देखते उस ने रेलवे की पूरी कालोनी में रंगाई पुताई का ठेका लेना शुरू कर दिया. वह ईमानदार था इसलिए उस के काम से रेलवे अधिकारी भी खुश रहते थे.

मोटी कमाई होने लगी तो मनीष के हावभाव, रहनसहन, खानपान सब बदल गया. महंगे कपड़े, ब्रांडेड जूते, नईनई बाइक पर घूमना मनीष का जैसे शौक था. 2-3 सालों में उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई थी.

वह जिस तरह कमा रहा था, उसी तरह दान आदि भी करता. गांव में गरीब लड़कियों की शादी में वह अपनी हैसियत के अनुसार सहयोग करता था. मोहल्ले में भी वह अपने बड़ों को बहुत सम्मान करता था. इन सब बातों से वह गांव में सब का चहेता बना हुआ था.

करीब 4-5 साल पुरानी बात है. मनीष का कामकाज जोरों पर चल रहा था. उसे रंगाई पुताई के कारीगरों की जरूरत पड़ी तो वह पास की ही बस्ती सोहल्ला पहुंच गया. वहां पता चला कि बंडा और मुन्ना नाम के दोनों भाई यह काम करते हैं.

वह इन दोनों के पास पहुंचा और बातचीत कर के अपने काम पर ले गया. मनीष को दोनों भाइयों का काम पसंद आया तो उन से ही अपने ठेके का काम कराने लगा. वह उन्हें अच्छी मजदूरी देता था इसलिए वे भी मनीष से खुश थे.

धीरेधीरे मनीष का मुन्ना के घर पर भी आनाजाना शुरू हो गया. इसी दौरान मनीष की आंखें मुन्ना की 17-18 साल की बहन माधवी से लड़ गईं. माधवी उन दिनों कक्षा-9 में पढ़ती थी. यह ऐसी उम्र होती है जिस में युवत युवती विपरीतलिंगी को अपना दोस्त बनाने के लिए आतुर रहते हैं. माधवी और मनीष के बीच शुरू हुई बात दोस्ती तक और दोस्ती से प्यार तक पहुंच गई. फिर जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी कायम हो गए.

इस तरह करीब 4 सालों तक उन के बीच प्यार और रोमांस का खेल चलता रहा. माधवी भी अब इंटरमीडिएट में आ चुकी थी. प्यार के चक्कर में पड़ कर वह अपनी पढ़ाई पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दे रही थी, जिस से वह इंटरमीडिएट में एक बार फेल भी हो गई. उस के घर वालों को यह बात पता तक नहीं चली कि उस का मनीष के साथ चक्कर चल रहा है.

माधवी सुबह साइकिल से स्कूल के लिए निकलती लेकिन स्कूल जाने की बजाय वह एक नियत जगह पहुंच जाती. मनीष भी अपनी बाइक से वहां पहुंच जाता. मनीष किसी के यहां उस की साइकिल खड़ी करा देता था. इस के बाद वह मनीष की बाइक पर बैठ कर फुर्र हो जाती.

स्कूल का समय होने से पहले वह वापस साइकिल उठा कर अपने घर चली जाती. उधर मनीष भी अपने कार्यस्थल पर पहुंच जाता. वहां माधवी के भाइयों को पता भी नहीं चल पाता कि उन का ठेकेदार उन की ही बहन के साथ मौजमस्ती कर के आ रहा है.

माधवी के पिता भूपाल सिंह गांव से दूध खरीद कर शहर में बेचते थे. वह बहुत गुस्सैल थे. आए दिन मोहल्ले में छोटीछोटी बातों पर लोगों से झगड़ना आम बात थी. झगड़े में उन के तीनों बेटे भी शरीक  हो जाते थे, जिस से मोहल्ले में एक तरह से भूपाल सिंह की धाक जम गई थी.

लेकिन इतना सब होने के बाद भी मनीष के साथ इस परिवार के संबंध मधुर थे. मुन्ना और बंडा भी मनीष के घर जाने लगे.

मनीष और माधवी एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. उन्होंने शादी कर के साथसाथ रहने का फैसला कर लिया था. लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि उन की जातियां अलगअलग थीं. दूसरे माधवी के पिता और भाई गुस्सैल स्वभाव के थे इसलिए वे डर रहे थे कि घर वालों के सामने शादी की बात कैसे करें. लेकिन बाद में उन्होंने तय कर लिया कि उन के प्यार के रास्ते में जो भी बाधा आएगी, उस का वह मिल कर मुकाबला करेंगे.

माधवी जब घर पर अकेली होती तो मनीष को फोन कर के घर बुला लेती थी. एक बार की बात है. उस के पिता ड्यूटी गए थे भाई भी अपने काम पर चले गए थे और मां ड्राइवरों के टिफिन पहुंचाने के बाद खेतों पर गई हुई थी. माधवी के लिए प्रेमी के साथ मौजमस्ती करने का अच्छा मौका था. उस ने उसी समय मनीष को फोन कर दिया तो वह माधवी के घर पहुंच गया.

मनीष माधवी के घर तक अपनी बाइक नहीं लाया था वह उसे रेलवे फाटक के पास खड़ी कर आया था. उस समय घर में उन दोनों के अलावा कोई नहीं था इसलिए वे अपनी हसरत पूरी करने लगे. इत्तफाक से उसी समय घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया. दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनते ही दोनों के होश उड़ गए. उन के जहन से मौजमस्ती का भूत उड़नछू हो गया. वे जल्दीजल्दी कपड़े पहनने लगे.

तभी माधवी का नाम लेते हुए दरवाजा खोलने की आवाज आई. यह आवाज सुनते ही माधवी डर से कांपने लगी क्योंकि वह आवाज उस के पिता की थी. वही उस का नाम ले कर दरवाजा खोलने की आवाज लगा रहे थे.

माधवी पिता के गुस्से से वाकिफ थी. इसलिए उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए. कमरे में भी ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां मनीष को छिपाया जा सके. दरवाजे के पास जाने के लिए भी उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. उधर उस के पिता दरवाजा खोलने के लिए बारबार आवाजें लगा रहे थे.

दरवाजा तो खोलना ही था इसलिए डरते डरते वह दरवाजे तक पहुंची. दरवाजा खुलते ही मनीष वहां से भाग गया. मनीष के भागते ही भूपाल सिंह को माजरा समझते देर नहीं लगी. वह गुस्से से बौखला गया. घर में घुसते ही उस ने बेटी से पूछा कि मनीष यहां क्यों आया था.

डर से कांप रही माधवी उस के सामने मुंह नहीं खोल सकी. तब भूपाल सिंह ने उस की जम कर पिटाई की और सख्त हिदायत दी कि आइंदा वह उस से मिली तो वह दोनों को ही जमीन में जिंदा गाड़ देगा.

शाम को जब भूपाल के तीनों बेटे कुंवर सिंह, मुन्ना व बंडा घर आए तो उस ने उन्हें पूरा वाकया बताया. बेटों ने मनीष की करतूत सुनी तो वे उसी रात उसे जान से मारने उस के घर जाने के लिए तैयार हो गए. लेकिन भूपाल सिंह ने उन्हें गुस्से पर काबू कर ठंडे दिमाग से काम लेने की सलाह दी.

इस के बाद बंडा व मुन्नालाल ने मनीष के साथ काम करना बंद कर दिया था. 15 दिनों बाद माधवी की बोर्ड की परीक्षाएं थीं इसलिए उन्होंने माधवी पर भी पाबंदी लगाते हुए उस का स्कूल जाना बंद करा दिया.

4 महीने बीत गए. माधवी ने सोचा कि घर वाले इस बात को भूल गए होंगे. इसलिए उस ने मनीष से फिर से फोन पर बतियाना शुरू कर दिया. लेकिन अब वह बड़ी सावधानी बरतती थी. लेकिन माधवी की यही सोच गलत निकली. उसे पता नहीं था कि उस के घर वाले मनीष को ठिकाने लगाने के लिए कितनी खौफनाक साजिश रच चुके हैं.

योजना के अनुसार 28 जून, 2014 को सुबह के समय बंडा ने मेज पर रखा माधवी का फोन फर्श पर गिरा कर तोड़ डाला. माधवी को यह पता न था कि वह फोन जानबूझ कर तोड़ा गया है. घंटे भर बाद बंडा उस के फोन को सही कराने की बात कह कर घर से निकला.

इधर भूपाल सिंह ने यह कह कर अपनी पत्नी को मायके भेज दिया कि उस के भाई का फोन आया था कि वहां पर उस की बेटी को देखने वाले आ रहे हैं. पिता के कहने पर मां के साथ माधवी भी अपने मामा के यहां चली गई. जाते समय भूपाल सिंह ने पत्नी से कह दिया था कि मायके में वह माधवी पर नजर रखे.

उन दोनों के घर से निकलते ही बंडा घर लौट आया. उस ने तब तक माधवी का सिम कार्ड निकाल कर अपने फोन में डाल लिया. उस ने माधवी के नंबर से मनीष को एक मैसेज भेज दिया. उस ने मैसेज में लिखा कि आज घर पर कोई नहीं है. रात 8 बजे वह घंटे भर के लिए घर आ जाए.

पे्रमिका का मैसेज पढ़ते ही मनीष का दिल बागबाग हो गया. उस ने माधवी को फोन करना भी चाहा लेकिन उस ने इसलिए फोन नहीं किया क्योंकि माधवी ने उसे मैसेज के अंत में मना कर रखा था कि वह फोन न करे. केवल रात में जरूर आ जाए, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.

रात 8 बजे मनीष दबेपांव माधवी से मिलने उस के घर पर पहुंच गया. घर का मुख्य दरवाजा भिड़ा हुआ था. दरवाजा खोल जैसे ही वह सामने वाले कमरे में गया, उसे पीछे से माधवी के भाइयों ने दबोच लिया.

माधवी के भाइयों ने उस का मुंह दबा कर उस के सिर पर चारपाई के पाए से वार कर दिया. जोरदार वार से मनीष बेहोश हो कर गिर पड़ा. उस के गिरते ही उस पर उन्होंने लातघूंसों की बरसात शुरू कर दी. उन्होंने उस के गुप्तांग को पैरों से कुचल दिया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

हत्या करने के बाद लाश को ठिकाने भी लगाना था. आपस में सलाह करने के बाद उस के शव को तलवार से नाभि के पास से 2 हिस्सों में काट डाला. करीब 4 घंटे तक मनीष की लाश उसी कमरे में पड़ी रही.

लाश के टुकड़ों से खून निकलना बंद हो गया तो रात करीब 1 बजे जूट की बोरी में दोनों टुकड़े भर लिए. उन्हें रेलवे लाइन पर फेंकने के लिए मुन्ना और बंडा बाइक से निकल गए. हत्या करने के बाद उस की सभी जेबें खाली कर ली गई थीं ताकि पहचान न हो सके. उस के महंगे दोनों मोबाइल स्विच्ड औफ कर के घर पर ही रख लिए.

मुन्ना और बंडा जब लाश ले कर घर से निकल गए तो घर पर मौजूद भूपाल और उस के बेटे कुंवरपाल ने कमरे से खून के निशान आदि साफ किए. इस के बाद उन्होंने हत्या में प्रयुक्त हथियार, मनीष के दोनों मोबाइल आदि को एक मालगाड़ी के डिब्बे में फेंक दिया. वह मालगाड़ी आगरा से कहीं जा रही थी. मनीष की जेब से मिले कागजों और पर्स को भी उन्होंने जला दिया.

मुन्ना और बंडा लाश को सोहल्ला रेलवे फाटक से करीब आधा किलोमीटर दूर आगरा-ग्वालियर रेलवे ट्रैक पर ले गए. बाइक रोक कर ये लोग मनीष के शव को बोरे से निकाल कर मुख्य लाइन पर फेंकना चाह रहे थे तभी उन्हें सड़क पर अपनी ओर कोई वाहन आता दिखाई दिया.

तब तक वे शव को बोरे से निकाल चुके थे. उन्होंने तुरंत लाश के दोनों टुकड़े लाइन पर डाल दिए और बोरी उठा कर वहां से भाग निकले.

दोनों भाइयों ने रास्ते में एक खेत में वह बोरी जला दी और घर आ गए. घर आ कर मुन्ना व बंडा ने खून के निशान वाले कपड़े नहाधो कर बदल लिए. जब उन्होंने शव को पास की ही रेलवे लाइन पर फेंकने की बात अपने पिता को बताई तो भूपाल ने माथा पीट लिया.

वह समझ गया कि लाश पास में ही डालने की वजह से उस की शिनाख्त हो जाएगी और पुलिस उन के घर पहुंच जाएगी. इसलिए सभी लोग घर का ताला लगा कर रात में ही 2 बाइकों पर सवार हो कर वहां से भाग निकले.

घर से भाग कर वे चारों माधवी व उस की मां के पास पहुंचे. वहां पर भूपाल सिंह ने पत्नी को सारा वाकया बताया तो वह भी डर गई. उसे पति व बेटों पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन अब होना भी क्या था अब तो बस पुलिस से बचना था.

वे चारों वहां से भाग कर आगरा के पास धौलपुर स्थित एक परिचित के यहां पहुंचे. लेकिन पुलिस के लंबे हाथों से बच नहीं सके. सर्विलांस टीम की मदद से वे पुलिस के जाल में फंस ही गए. हत्या में माधवी का कोई हाथ नहीं था इसलिए उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया.

पूछताछ के बाद सभी हत्यारोपियों को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी हत्यारोपी जेल की सलाखों के पीछे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों व मनीष के घर वालों के बयानों पर आधारित. माधवी परिवर्तित नाम है.

अंधविश्वास में दी मासूम बच्ची की बलि

खूनी नशा : एक गलती ने खोला दोहरे हत्याकांड का राज

गुरुवार 31 जनवरी को थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी, इसलिए ठंड बढ़ गई थी. रात 8 बजते बजते ठंड से ठिठुरता भीमगंज मंडी कुहासे की चादर में लिपट गया था. इस के बावजूद बाजारों की चहलपहल में कोई कमी नहीं आई थी. इलाके में जैन मंदिर, राम मंदिर और गुरुद्वारा होने की वजह से आम दिनों की तरह उस दिन भी लोगों की अच्छीखासी आवाजाही थी.

सर्राफा कारोबारी राजेंद्र विजयवर्गीय का दोमंजिला मकान जैन मंदिर के सामने ही था. उन के परिवार में पिता चांदमल के अलावा 45 वर्षीय पत्नी गायत्री और 18 वर्षीय बेटी पलक थी. स्टेशन रोड पर उन की विजय ज्वैलर्स के नाम से सर्राफे की दुकान थी. राजेंद्र विजयवर्गीय के पिता चांदमल का रोजाना का नियम था कि शाम 7 बजे जब जैन मंदिर में आरती होती थी. वे घर से राम मंदिर जाने के लिए निकल जाते थे. मंदिर से वह स्कूटर से दुकान पर पहुंचते और दुकान बंद करने के बाद घर लौट आते थे, तब तक साढ़े 8 बज जाते थे.

पितापुत्र दोनों अकसर साथ ही घर लौटते थे. उस दिन राजेंद्र कुछ जरूरी काम निपटाने की वजह से दुकान पर ही रुक गए थे. जबकि चांदमल लगभग साढ़े 8 बजे नौकर के साथ घर लौट आए थे. नौकर को बाहर से ही रुखसत कर चादंमल ऊपरी मंजिल स्थित अपने निवास पर पहुंचे. उन्होंने गेट पर लगी कालबेल बजाई.

लेकिन रोजाना फौरन खुल जाने वाले दरवाजे पर कोई हलचल नहीं हुई. जबकि कालबेल की आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी. उन्होंने दरवाजे पर दस्तक देने की कोशिश की तो यह देख कर हैरान रह गए कि दरवाजा अंदर से लौक्ड नहीं था. वह एक ही धक्के में खुल गया. ऐसा पहली बार ही हुआ था.

चांदमल ने बहू गायत्री के कमरे की तरफ बढ़ते हुए आवाज लगाई तो वहीं खड़े रह गए. गायत्री के कमरे के बाहर खून बिखरा पड़ा था. बहू की खामोशी और फर्श पर बिखरे खून ने उन्हें इस कदर डरा दिया कि वे बुरी तरह चीख पड़े.

चांदमल के चिल्लाने की आवाज ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली किराएदार रश्मि ने सुनी तो चौंकी. वह तभी मंडी से सब्जी ले कर लौटी थी. वह हड़बड़ाई सी सीढि़यों की तरफ दौड़ी. बदहवास से खड़े चांदमल ने कमरे में बिखरे खून की तरफ इशारा किया तो रश्मि ने पहले चांदमल को संभाला. फिर गायत्री की तलाश में कमरे की तरफ बढ़ी.

वहां का दृश्य देख कर चांदमल और रश्मि दोनों की आंखें फटी रह गईं. ड्राइंगरूम के फर्श पर गायत्री की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. चांदमल को संभालने की कोशिश में रश्मि को थोड़ा आगे पलक पड़ी दिखाई दी. उस के आसपास खून का दरिया सा बना हुआ था. साफ लगता था कि दोनों मर चुकी हैं.

चांदमल ने इस वीभत्स दृश्य को देखा तो उन के रहे सहे होश भी उड़ गए. सन्नाटे में खड़े चांदमल समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर ये सब कैसे हो गया. अंतत: उन्होंने जैसेतैसे रश्मि की मदद से खुद को संभाला और मोबाइल से बेटे राजेंद्र को इत्तला दी. इस के बाद उन्होंने रश्मि को फोन दे कर पुलिस को सूचना देने को कहा.

पुलिस को खबर देने के बाद रश्मि ने मोहल्ले के लोगों को आवाज दी. जरा सी देर में पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. जैन मंदिर से भीमगंज मंडी पुलिस स्टेशन का फासला बमुश्किल एक किलोमीटर का है. थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह ने फोन कर के उच्चाधिकारियों को घटना के बारे में बताया.

पुलिस अधिकारी पहुंचे घटनास्थल पर

इस के बाद श्रीचंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ 15-20 मिनट में राजेंद्र विजयवर्गीय के मकान पर पहुंच गए. दोहरे हत्याकांड ने कोटा के पुलिस महकमे को हिला दिया था. आईजी विपिन कुमार पांडे, एसपी दीपक भार्गव, एडीएम पंकज ओझा सहित आधा दरजन थानों की पुलिस मौके पर पहुंच गई. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. विजयवर्गीय परिवार के घर के बाहर भारी भीड़ जुट गई थी.

पुलिस अधिकारियों ने देखा कि खून तो बैडरूम में फैला था, लेकिन गायत्री और पलक दोनों के शव ड्राइंगरूम में पड़े थे. पुलिस को लगा कि हत्यारों ने मांबेटी दोनों को उन के कमरों में मारा होगा और फिर शवों को घसीटते हुए ड्राइंगरूम में ला कर पटक दिया होगा.

दोनों के कमरों से ड्राइंगरूम तक खिंची खून की लकीर भी इसी ओर इशारा कर रही थी. जिस दरिंदगी से मांबेटी की हत्या की गई थी, उस से लगता था कि दोनों की हत्याएं किसी रंजिश की वजह से गई थीं.

इस बारे में राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि हम लोग तो सीधी सच्ची जिंदगी जी रहे थे. दुश्मनी या रंजिश का तो कोई सवाल ही नहीं है. लेकिन एसपी दीपक भार्गव राजेंद्र के जवाब से संतुष्ट नहीं थे. क्योंकि घटनास्थल का वीभत्स दृश्य साफ साफ रंजिश की ओर इशारा कर रहा था. हत्यारों ने किसी वजनी हथियार से दोनों के सिर, गरदन और हाथों पर इतने घातक वार किए थे कि उन का भेजा तक बाहर आ गया था.

मौका मुआयना करने के दौरान पुलिस को बैड पर 2 सरिए पड़े नजर आए. खून सना चाकू बैड के नीचे पड़ा था. चाकू पर लगा खून बता रहा था कि मांबेटी के गले उस चाकू से ही रेते गए होंगे. बैडरूम में रखी अलमारियों के टूटे हुए ताले बता रहे थे कि वारदात को चोरी डकैती के लिए अंजाम दिया गया था.

लेकिन राजेंद्र विजयवर्गीय सदमे की वजह से कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थे. पुलिस ने भी उन पर दबाव नहीं बनाया. एसपी भार्गव का मानना था कि हत्यारे 2 या 2 से ज्यादा रहे होंगे. प्रारंभिक जांच और मौकामुआयना के बाद पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए एमबीएस अस्पताल भिजवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दोनों की मौत हैड इंजरी से होनी बताई गई. गायत्री के सिर पर 5 चोटें थीं, साथ ही सिर में मल्टीपल फ्रैक्चर भी थे. सिर की कई हड्डियां टूट गई थीं. जबकि पलक के सिर में 2 चोटें थीं. इन में एक चोट इतनी घातक थी कि भेजा ही बाहर आ गया था.

हथियार सरियों के रूप में सामने आ चुके थे. गायत्री और पलक दोनों के हाथों पर भी गहरी खरोंचें और चोटें थीं.

मौके पर टूटी हुई चूडि़यों के टुकड़े भी पाए गए थे. इस का मतलब उन्होंने अपने बचाव के लिए बदमाशों से काफी संघर्ष किया था. मांबेटी के नाखूनों में त्वचा और मांस के अंश थे, जो हत्यारों के हो सकते थे. इस का पता लगाने के लिए नेल स्क्रैपिंग का सैंपल भी लिया गया. पुलिस की फोरैंरिक टीम ने भी मौके से फिंगरप्रिंट और फुटप्रिंट उठाए.

विजयवर्गीय के घर से एक सड़क सीधी स्टेशन की तरफ जाती थी और दूसरी हटवाड़े से होते हुए शहर की ओर. यही सड़क शहर के अलावा सैन्य क्षेत्र की तरफ भी जाती थी. यही वजह रही होगी कि हत्यारे बिना किसी की नजर में आए वारदात कर के आसानी से फरार हो गए थे.

नहीं मिल रहा था कोई क्लू

पुलिस यह सोच कर भी चल रही थी कि वारदात को अंजाम देने के लिए हत्यारों ने कम से कम 5-7 दिन तक रैकी की होगी. खोजी कुत्ते भी इसीलिए भटक कर रह गए थे. वारदात को जिस तरह अंजाम दिया गया था, उस से लगता था कि आरोपी विजयवर्गीय परिवार के अच्छे खासे परिचित रहे होंगे.

जिस घर में वारदात हुई, उस का मुख्यद्वार लोहे का था. लेकिन कुंडी ऐसी थी जो अंदर बाहर दोनों तरफ से आसानी से खोली जा सकती थी. ऐसे में घर में किसी के घुसने की खबर लगने का कोई मतलब ही नहीं था. राजेंद्र विजयवर्गीय की पत्नी गायत्री और ससुर चांदमल सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए थे. इसलिए उन के यहां लोग अकसर आतेजाते रहते थे.

राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि घर में 5 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. जब कोई घर में ऊपर आता था तो गायत्री या पलक कैमरे में देख कर ही दरवाजा खोलती थीं. जाहिर है, इस का मतलब था आने वाले परिचित ही रहे होंगे.

दरअसल पुलिस को सभी कैमरे टूटे हुए मिले थे. उन की हार्डडिस्क भी गायब थी. इस का मतलब हत्यारे घर के चप्पेचप्पे से वाकिफ थे. घर की दोनों तिजोरियों के ताले तोड़े गए थे. मतलब बदमाशों को पता रहा होगा कि घर की दौलत उन्हीं तिजोरियों में है.

पोस्टमार्टम के बाद जब मांबेटी का अंतिम संस्कार किया गया. उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों लोग एकत्र हुए. व्यापारी संघ के लोगों में इस वारदात को ले कर अच्छाभला रोष था. उन्होंने पुलिस पर दबाव बनाने के लिए धरनेप्रदर्शन की चेतावनी भी दी.

अगले दिन यानी पहली फरवरी को एसपी दीपक भार्गव ने राजेंद्र से घर से चोरी गए सामान की बाबत पूछा तो उन्होंने बताया कि तिजोरियों में करीब एक करोड़ रुपए की नकदी और जेवर गायब हैं. इस का मतलब वारदात को धन के लालच में अंजाम दिया गया था. इस बात को राजेंद्र ने भी स्वीकार किया. इस से पुलिस को तफ्तीश की एक दिशा मिल गई. निस्संदेह इस वारदात में विजयवर्गीय परिवार का कोई करीबी ही शामिल रहा होगा.

10 टीमें जुटीं जांच में

दोहरे हत्याकांड का खुलासा करने के लिए डीजीपी विपिन पांडे के निर्देशन में एसपी दीपक भार्गव ने 10 टीमों का गठन किया. हत्या और लूट के मामले से जुड़े संदिग्ध और आदतन अपराधियों से पूछताछ का काम डीएसपी भंवर सिंह हाड़ा को सौंपा गया. उन की मदद के लिए हर थाने से 10 जवानों की टीम बनाई गई.

सीसीटीवी कैमरों को खंगालने की जिम्मेदारी उद्योगनगर पुलिस इंसपेक्टर विजय शंकर शर्मा और उन की टीम ने संभाली. इस के अलावा मामले से जुड़ी हर सूचना के एकत्रीकरण और पुलिस प्रशासनिक बंदोबस्त का प्रभारी थाना भीमगंज मंडी के इंसपेक्टर श्री चंद्र सिंह को बनाया गया.

पुलिस ने इलाके में वारदात के उस एक घंटे में किए गए सभी मोबाइल काल्स को राडार पर ले लिया. सौ से डेढ़ सौ कैमरों से सीसीटीवी फुटेज भी ली गई.

कैमरे खंगालने के लिए एडीशनल एसपी राजेश मील और प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन पूरी मुस्तैदी से लगे रहे. पुलिस की अलगअगल टीमों ने अपराधियों की तलाश में होटलों और धर्मशालाओं को भी खंगाला. एसपी दीपक भार्गव ने तो भीमगंज मंडी थाने में ही पड़ाव डाल दिया. वह पुलिस टीमों से पलपल की जानकारी लेते रहे. इस बीच पुलिस ने पूरी रेंज में हाई अलर्ट जारी कर दिया था. शहर की सीमाओं पर पूरी तरह नाकेबंदी कर दी गई थी ताकि अपराधी शहर छोड़ कर भागना चाहे तो धर लिया जाए.

अंगौछा बना सूत्र

इस दोहरे हत्याकांड की जांच में एक मोड़ शनिवार 2 फरवरी को उस समय आया जब पुलिस को घटनास्थल से सफेद रंग का एक अंगौछा मिला. संभवत: हत्यारे अफरातफरी में अंगौछा छोड़ गए थे.

पुलिस ने अंगौछे की पहचान को ले कर जब राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा, तो वे कुछ नहीं बता सके. अलबत्ता मुखबिरों में से एक ने संदेह जताया कि यह अंगौछा राजेंद्र की दुकान पर मुनीमी करने वाले मस्तराम का हो सकता है.

पुलिस जांच में मस्तराम जैसे सैकड़ों लोग राडार पर थे. रविवार 3 फरवरी की शाम पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि राजेंद्र विजयवर्गीय परिवार का एक पुराना कर्मचारी आजकल जम कर पैसे उड़ा रहा है. उस ने 70 हजार का मोबाइल और महंगे कपड़े खरीदे हैं.

कहावत है कि अपराधी वारदात करने के बाद किसी न किसी बहाने मौकाएवारदात पर जरूर आता है. कई बार यही चूक उस के पकड़े जाने का सबब बनती है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. 3 फरवरी को गायत्री और  पलक की शोकसभा थी. शोकसभा में मातमपुर्सी के लिए आया एक व्यक्ति फूटफूट कर रोने लगा. वह बारबार कह रहा था, ‘‘यह सब कैसे हो गया?’’

राजेंद्र को दिलासा देने के लिए जब वह उन के पास गया तो उस के मुंह से निकलती शराब की बदबू विजय की नाक तक पहुंच गई. उन्होंने उसे वहां से जबरन हटाने का प्रयास किया लेकिन वह और ज्यादा जोरों से रोने लगा.

शोकसभा में सादे कपड़ों में भीमगंज मंडी थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह भी मौजूद थे. उन्हें यह सब कुछ अटपटा लगा तो उन्होंने राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा कि वह कौन है. राजेंद्र ने बताया कि उस का नाम मस्तराम मीणा है और वह बूंदी के बड़ा तीरथ गांव का रहने वाला है. उन्होंने यह भी बताया कि मस्तराम उन का बहुत विश्वस्त नौकर था. 3 साल पहले वह उन की दुकान पर मुनीम था.

नतीजतन मस्तराम पुलिस की नजर में चढ़ गया. पुलिस उसे उठा कर थाने ले आई. जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो पूरी कहानी पता चल गई. पता चला कि इस वारदात को मस्तराम ने अपने एक साथी लोकेश मीणा, जो उसी के गांव का रहने वाला था, के साथ मिल कर अंजाम दिया था.

मस्तराम मीणा और लोकेश मीणा एक ही गांव के रहने वाले थे और दोनों दोस्त थे. बूंदी जिले की केशोराय पाटन तहसील के बड़ा तीरथ गांव के रहने वाले 3 भाइयों के परिवार में 28 साल का मस्तराम अविवाहित था. उस के पिता किसान प्रभुलाल मीणा की 3 साल पहले मौत हो गई थी.

इस के बाद तीनों भाइयों ने पुश्तैनी जमीन 18 लाख में बेच दी थी और रकम का बंटवारा कर लिया था. मस्तराम को बंटवारे में 6 लाख रुपए मिले. उस ने यह रकम अय्याशी में उड़ा दी. मस्तराम ने केशवराय पाटन इंस्टीट्यूट से इलेक्ट्रिशियन ट्रेड में आईटीआई की परीक्षा पास की थी. शराब के नशे में हुड़दंग करने पर वह गांव वालों से कई बार पिट चुका था.

इस वारदात में मस्तराम का सहयोगी रहा लोकेश मीणा 10वीं में फेल होने के बाद से ही आवारागर्दी करने लगा था. उस ने आरसीसी पाइप्स की ठेकेदारी भी की थी. लेकिन झगड़ा फसाद करने के कारण धंधा नहीं चल पाया. केशोराय पाटन थाने में उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे.

कुछ समय पहले वह अपनी भाभी को भी ले कर भाग गया था. तभी से उस के घर वालों ने उस से किनारा कर लिया था. मस्तराम और लोकेश मीणा दोनों सोचते थे कि किसी बड़ी लूट को अंजाम दें और ऐशोआराम की जिंदगी जिएं.

मक्कारी में 2 कत्ल कर डाले

मस्तराम मीणा सर्राफ राजेंद्र विजयवर्गीय की दुकान पर नौकरी कर चुका था. उसे पता था कि घर का कौन सदस्य कब आताजाता है, नकदी जेवर कहां रखे हैं. उस ने लोकेश को अपनी योजना बताई कि एकदो को मारना तो पड़ेगा लेकिन मोटा माल मिलेगा. लोकेश इस के लिए तैयार हो गया.

कह सकते हैं कि इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड मस्तराम ही था. पूछताछ में उस ने बताया कि दोनों ने वारदात से पहले दुकान और घर दोनों जगहों की रेकी की. रेकी के बाद वारदात का वक्त शाम के 7 बजे का रखा गया. उस समय राजेंद्र विजयवर्गीय दुकान पर होते थे और उन के पिता चांदमल को राम मंदिर में दर्शन करते हुए दुकान पर पहुंचना होता था.

रात साढ़े 8-9 बजे से पहले दोनों में से कोई नहीं लौटता था. ग्राउंड फ्लोर की किराएदार रश्मि अकेली रहती थी और उस वक्त सब्जी मंडी चली जाती थी. लूट के लिए हत्या करना पहले ही तय था, इसलिए दोनों सरिए और चाकू साथ ले कर आए थे. मांबेटी गायत्री और पलक दोनों उन्हें जानती थीं, इसलिए कालबेल बजाने पर दरवाजा खुलवाने में कोई दिक्कत नहीं थी.

दरवाजा खोलते ही गायत्री सामने नजर आई. दोनों को बैठने को कह कर जैसे ही वह अपने कमरे की तरफ बढ़ी, दोनों ने मौका दिए बगैर सरिए से उन के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर दिए. फिर भीतर जा कर पलक का भी यही हाल किया. दोनों में जान न रह जाए, यह सोच कर मस्तराम और केशव ने चाकू से दोनों का गला रेत कर उन की मौत की तसल्ली कर ली.

बाद में दोनों ने मांबेटी की लाशों को घसीट कर ड्राइंगरूम में डाल दिया. मस्तराम को पता था कि जेवर और नकदी गायत्री के कमरे की तिजोरी में रखे होते हैं. मस्तराम और लोकेश अपने साथ बैग ले कर आए थे. तिजोरी तोड़ कर जितनी भी रकम और जेवर मिले, उन्होंने बैग में भरे और वहां से फुरती से निकल गए. बस पकड़ कर दोनों सीधे गांव पहुंचे और गहने व रकम का बड़ा हिस्सा घर में छिपा दिया.

फिर दोनों ने रात में ही बूंदी से रोडवेज की बस पकड़ी और जयपुर चले गए. जयपुर में दोनों बसस्टैंड के पास ही एक होटल में रुके. अगले दिन दोनों ने जम कर खरीदारी की और शराब पी. दोनों ने अपने लिए 70-70 हजार के महंगे मोबाइल फोन, कपड़े और अन्य सामान खरीदा. शनिवार 2 फरवरी को दोनों वापस कोटा आ गए.

मस्तराम को अपने पकड़े जाने का डर नहीं था. फिर भी अपनी इस तसल्ली के लिए कि किसी को उस पर शक न हो, वह शोक जताने का दिखावा करने चला गया. बस उस की यही सोच उसे ले डूबी. राजेंद्र विजयवर्गीय ने पुलिस को बताया कि हत्यारों ने करीब एक करोड़ की लूट की थी.

पुलिस ने दोनों आरोपियों के कब्जे से लूटे गए 37 लाख में से 21.70 लाख रुपए और 2 किलो 26 ग्राम सोना, साढ़े 13 किलो चांदी के जेवर बरामद कर लिए. मस्तराम ने बताया कि गायत्री और पलक जो गहने पहने थी, उन्होंने वे भी उतार लिए थे. सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि आरोपियों के कब्जे से सोने की चेन और कंगन भी बरामद कर लिए गए.

लोकेश ने वारदात करने के बाद 8 लाख रुपए, कंगन और चेन अपने गांव जा कर खेत में गाड़ दिए. लूट की रकम का बंटवारा करने के बाद मस्तराम पाटन के एक गांव में अपने रिश्तेदारों के पास गया था. उस ने उन्हें 8 लाख रुपए यह कह कर रखने को दिए कि रकम जमीन बेच कर मिली है, थोड़े दिन रख लो फिर आ कर ले जाऊंगा.

वारदात खुलने के बाद मस्तराम के रिश्तेदारों ने यह रकम पुलिस को यह कहते हुए सौंप दी कि उन्हें इस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

इस मामले में भीमगंज मंडी के थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही. शोकसभा में मस्तराम मीणा के हावभाव उन्हें खटके तो उन्होंने पूरा ध्यान उसी पर लगा दिया. इस कोशिश में उन्हें उस की कलाइयों पर खरोंचों के निशान नजर आए, जिस से उन का शक पुख्ता हो गया. उन्होंने कांस्टेबल शिवराज को उसे फौरन उठाने को कहा.

सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि जयपुर में अच्छीखासी खरीदारी के बाद दोनों हत्यारे वापस होटल नहीं पहुंचे थे. अगले दिन होटल मालिक ने कमरे की सफाई करवाई तो प्लास्टिक की थैली में कपड़े मिले, जिन्हें स्टोर में रखवा दिया गया था. श्रीचंद्र सिंह ने वह थैली भी बरामद कर ली.

इस मामले को केस औफिसर स्कीम में लिया गया है और 15 दिन में कोर्ट में चालान पेश किया जाएगा. इस केस को सुलझाने में एएसपी राकेश मील, उमेश ओझा, प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन, डीएसपी भंवर सिंह, राजेश मेश्राम, सीआई महावीर सिंह, मुनींद्र सिंह, मदनलाल और विजय शंकर शर्मा सहित 200 पुलिसकर्मी शामिल रहे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हनी ट्रैप से बुझी बदले की आग

40 महीने कैद में रहा कंकाल – भाग 3

प्रदेश भर में गूंजा रीता हत्याकांड

इस के बाद तो मामले की गूंज प्रदेश भर में गूंजने लगी थी. कंकाल की खबर इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी. 3 साल से इटावा के अस्पताल की मोर्चरी के डीप फ्रीजर में कैद एक युवती की लाश (कंकाल) जिस का 2-2 बार डीएनए टेस्ट कराने के बाद भी मामला अधर में लटका हुआ था.

इटावा के जिला चिकित्सालय की मोर्चरी में पिछले 3 साल से डीप फ्रीजर में बंद कंकाल के लावारिस हालत में पड़े होने की जानकारी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया.

26 अक्तूबर, 2023 को हाईकोर्ट ने समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लेते हुए अपना निर्णय देते हुए मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर, न्यायमूर्ति अजय भनोट की खंडपीठ ने सरकार और पुलिस अधिकारियों से पूछा कि आमतौर पर शव गृहों में रखे गए शवों के अंतिम संस्कार की क्या प्रथा है? इटावा के इस मामले में इतना विलंब होने की क्या वजह है? क्या ऐसा कोई नियम है, जिस के तहत सरकार को निश्चित समय में शवों का अंतिम संस्कार करना होता है?

कोर्ट ने प्रकरण में विवेचना की स्थिति और शव संरक्षित करने की स्थिति, शव संरक्षित करने की पूरी टाइम लाइन बताने का निर्देश दिया. इस के साथ ही केस डायरी और डीएनए जांच के लिए भेजे गए सैंपल और उस की रिपोर्ट के बारे में भी जानकारी मांगी.

मृतका की मम्मी भगवान देवी व घर वालों की भावनाओं को देखते हुए न्यायालय ने पुलिस को हैदराबाद की लैब में डीएनए टेस्ट कराने का निर्देश दिया. इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 31 अक्तूबर, 2023 निश्चित कर दी.

उच्च न्यायालय ने बार एसोसिएशन के महासचिव नितिन शर्मा को इस प्रकरण में न्याय मित्र नियुक्त करते हुए उन से न्यायालय का सहयोग करने के लिए कहा.

मामले का स्वत:संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और इटावा के पुलिस अधिकारियों से विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराने के लिए कहा है. कोर्ट ने कहा कि कानूनव्यवस्था का मूल्यांकन न केवल जीवित लोगों के साथ उस के व्यवहार के तरीके से किया जाना चाहिए, बल्कि मृतकों को देने वाले सम्मान से भी किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि मृतकों की प्रतिष्ठा और जीवितों की प्रतिष्ठा जैसा कोई भी विभाजन प्रतिष्ठा को उस के अर्थ से वंचित कर देगा. मृत्यु जीवन की तुच्छता को दर्शाती है. प्रतिष्ठा जीवन की सार्थकता की गवाही देती है. यदि मृतकों की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं है तो जीवित लोगों की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं है.

यदि मृतकों की प्रतिष्ठा को महत्त्व नहीं दिया जाता है तो जीवित लोगों की प्रतिष्ठा को भी महत्त्व नहीं दिया जाता है. संविधान मृतकों का संरक्षक है, कानून उन का सलाहकार है और अदालतें उन के अधिकारों की प्रहरी हैं.

बारबार क्यों कराया गया डीएनए टेस्ट

कोर्ट के आदेश के बाद इटावा पुलिस ने कंकाल के साथ ही रीता के मम्मीपापा के सैंपल ले कर दिसंबर, 2023 में सेंट्रल फोरैंसिक साइंस लैबोरेटरी, हैदराबाद को भेजा गया.

इस लैब से जनवरी, 2024 को जो रिपोर्ट पुलिस को प्राप्त हुई, वह पौजीटिव थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि कंकाल व मम्मीपापा के सैंपल की जांच से स्पष्ट हो गया कि कंकाल के मम्मीपापा भगवान देवी व कुंवर सिंह ही हैं.

कंकाल बेटी रीता का ही है, इस बात की जानकारी मिलते ही घर वालों ने राहत की सांस ली. डीप फ्रीजर में कैद रीता का कंकाल, जो पिछले 40 महीने से अंतिम संस्कार का इंतजार कर रहा था, को घर वालों द्वारा लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कैद से मुक्त करा लिया गया.

31 जनवरी, 2024 को पुलिस ने रीता की मम्मी भगवान देवी को तहसील बुलाया. वह घर के अन्य सदस्यों के साथ तहसील पहुंची तो उन सब से तहसील अधिकारियों ने कहा कि बेटी का कंकाल ले जाओ और खामोशी से इसे दफना दो. इस के बाद कंकाल उन को सौंप दिया गया.

डीएम इटावा के निर्देश पर 4 सदस्यीय टीम जिस में एसडीएम दीपशिखा, तहसीलदार भूपेंद्र सिंह, एसएचओ कपिल दुबे, क्राइम इंसपेक्टर रमेश सिंह शामिल थे, रीता के परिवार के चक सलेमपुर स्थित खेत पर पहुंचे, जहां उन की देखरेख में भाई राजीव व उस के चचेरे भाई ने गड्ढा खोदने के बाद खामोशी से कंकाल को दफना दिया.

पुलिस शुरू से ही क्यों रही लापरवाह

मृतका के बड़े भाई राजीव व छोटे भाई सौरभ उर्फ बंटी ने बताया कि पुलिस शुरू से ही मामले में ढील डाले रही. शुरू में गुमशुदगी दर्ज कराई थी, उस में किसी को नामजद नहीं किया गया था, लेकिन लाश (कंकाल) मिलने के बाद पुलिस पूछताछ में आरोपियों के नाम बताए थे.

लेकिन तत्कालीन पुलिस अधिकारियों  के ढुलमुल रवैए के चलते किसी भी आरोपी को हिरासत में नहीं लिया गया. नामजद किए गए आरोपी भनक लगते ही घटना के 11वें दिन अपने घर ताला लगा कर रात में ही फरार हो गए.

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                                                                        आरोपी रामकुमार

यदि पुलिस मुख्य आरोपी रामकुमार को हिरासत में ले कर पूछताछ करती तो हत्या का राज उसी समय खुल जाता, लेकिन तत्कालीन पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ करना भी जरूरी नहीं समझा और आरोपियों को हत्या के सबूत नष्ट करने का समय दे दिया.

यहां तक कि आरोपी रामकुमार ने साल 2021 में अपना जसवंतनगर का प्लौट व सिरसा में खेती की जमीन भी बेच दी. यह सब उन लोगों ने षडयंत्र के तहत ही किया है.

45 वर्षीय रामकुमार मूलरूप से इटावा जिले के सिरसा का रहने वाला है. लगभग 20-22 साल पहले वह गांव चक सलेमपुर में आ कर मकान बना कर पत्नी के साथ रहने लगा था. वह शटरिंग का काम करता था.

एसएसपी संजय कुमार शर्मा ने बताया कि इस मामले की जांच नए सिरे से शुरू की गई है. जांच के लिए सर्विलांस सहित 3 टीमों को लगाया गया है. जल्द ही हत्या के आरोपियों की गिरफ्तारी कर मामले का परदाफाश किया जाएगा. रिपोर्ट में जो लोग नामजद हैं, उन के बारे में भी गहराई से छानबीन की जाएगी. गुनहगारों को उन की सही जगह पहुंचाया जाएगा.

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                                                     आरोपी मिथिलेश कुमारी

इसी बीच मृतका रीता के कंकाल का डीएनए उस के मम्मीपापा से मैच हो जाने की जानकारी मिलते ही हत्या के आरोपी रामकुमार व उस की पत्नी मिथलेश ने 2 फरवरी, 2024 को इटावा की अदालत में आत्मसमर्पण के लिए प्रार्थनापत्र दिया, लेकिन इसी दौरान मिथिलेश को चोट लग गई, जिस के चलते केवल रामकुमार ही आत्मसमर्पण कर सका.

न्यायालय ने उसे न्यायायिक हिरासत में लेने के बाद जेल भेज दिया. जबकि 28 फरवरी, 2024 को आरोपी रामकुमार के बेटे मोहित गौतम ने भी आत्मसमर्पण के साथ जमानत के लिए प्रार्थनापत्र दिया. न्यायालय ने जमानत प्रार्थनापत्र पर 4 मार्च, 2024 को सुनवाई करते हुए जमानती प्रार्थनापत्र अस्वीकार करते हुए मोहित को जेल भेज दिया.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर रमेश सिंह ने बताया कि इस सोशल क्राइम के 2 आरोपियों रामकुमार और मोहित ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया है. दोनों इस समय जेल में हैं. तीसरी आरोपी रामुकमार की पत्नी मिथिलेश कुमारी फरार चल रही है. पुलिस सरगर्मी से उसे तलाश रही है. मुखबिर भी लगा दिए गए हैं, उसे शीघ्र गिरफ्तार कर जेल भेजा जाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों और मृतका के घर वालों से हुई बातचीत पर आधारित

40 महीने कैद में रहा कंकाल – भाग 2

कोर्ट के आदेश पर जागी पुलिस

सभी तरफ से निराश होने के बाद भी भगवान देवी चुप नहीं बैठी. अपनी बेटी के लापता होने के बाद उस की हत्या होने के कारण वह दुखी थी. लगभग 2 साल तक थाने व पुलिस के उच्चाधिकारियों के चक्कर काटने के बाद भगवान देवी की हिम्मत जबाव दे गई.

जब अपनी बेटी के शव (कंकाल) को प्राप्त करने के लिए घर वाले परेशान हो गए, तब मां भगवान देवी ने न्याय के लिए साल 2022 में हाईकोर्ट, इलाहाबाद का दरवाजा खटखटाया.

रीता की मां भगवान देवी ने अपनी रिट याचिका में पुलिस पर आरोप लगाया कि पुलिस को कई बार प्रार्थनापत्र देने के बाद भी अब तक आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई है, साथ ही डीएनए रिपोर्ट भी नहीं दी गई है. भगवान देवी ने न्यायालय से इस संबंध में एसएसपी, इटावा को निर्देश जारी करने की अपील की.

इस पर न्यायालय ने भगवान देवी की रिट पर सुनवाई करते हुए 11 जुलाई, 2022 के अपने आदेश  में एसएसपी इटावा को भगवान देवी द्वारा 22 सितंबर, 2020 को गुमशुदगी की जो सूचना थाना जसवंतनगर में दर्ज कराई थी. पुलिस पूछताछ में आरोपियों के नाम भी बताए थे.

इस के बाद 26 सितंबर को जब बाजरा के खेत में कंकाल मिला, तब कपड़ों व अन्य चीजों से कंकाल की पहचान बेटी रीता के रूप में की थी. इसी गुमशुदगी को प्रथम सूचना रिपोर्ट के रूप में आरोपियों के खिलाफ परिवर्तित करने तथा दोबारा डीएनए टेस्ट कराने और 2 माह में डीएनए रिपोर्ट और जांच प्रगति रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल करने के आदेश दिए.

कोर्ट के आदेश के बाद सोई हुई पुलिस सक्रिय हुई और घटना के लगभग 2 साल बाद 22 जुलाई, 2022 को गांव चक सलेमपुर निवासी शटङ्क्षरग का काम करने वाले रामकुमार, उस की पत्नी मिथिलेश कुमारी, बेटा मोहित व थाना बलरई के गांव ज्वालापुर निवासी सत्येंद्र कुमार के खिलाफ पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी, 506, 3(2)बी एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

क्षतविक्षत कंकाल और एक परिवार के दावों के बीच फंसी पुलिस ने कोर्ट के आदेश के बाद कंकाल का दोबारा डीएनए कराने का फैसला किया. भगवान देवी व उस के पति कुंवर सिंह का ब्लड सैंपल फोरैंसिक टीम द्वारा लेने के बाद लखनऊ लैब 18 अगस्त, 2022 को डीएनए जांच के लिए भेजा गया.

पुलिस द्वारा कई रिमाइंडर देने पर 11 महीने बाद 10 जुलाई, 2023 को दूसरी बार मिले डीएनए रिपोर्ट इस आधार पर बेनतीजा रही कि शव का नमूना मैच नहीं हो रहा. लैब की इस रिपोर्ट ने पुलिस को चकित और भगवान देवी को परेशान कर दिया. क्योंकि लाश (कंकाल) भगवान देवी के परिवार से जुड़ी नहीं थी.

सामान रीता का, कंकाल किसी और का                            

पुलिस का कहना था कि 11 महीने बाद जो दूसरी रिपोर्ट प्राप्त हुई है, वह मृतका के मम्मीपापा के डीएनए से मैच नहीं हो रही है. पुलिस ने मृतका का मातापिता न मानते हुए कंकाल देने से इंकार कर दिया. 2-2 बार डीएनए की रिपोर्ट सही न आने के बाद मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया.

जांचकर्ताओं ने यह संदेह करते हुए कि कंकाल के पास से मिले सामान जरूरी नहीं हैं कि मृतक रीता के ही हों. हो सकता है कि हत्यारों ने पुलिस को चकमा देने के लिए रीता के कपड़ों व पहने गहनों के साथ किसी दूसरे का शव वहां ला कर डाल दिया हो. इस बात की भी आशंका व्यक्त की गई कि कहीं रीता का अपहरण तो नहीं कर लिया गया?

जांचकर्ताओं ने शव (कंकाल) को डीएनए मैच न होने पर इन्हीं आशंकाओं के चलते सौंपने से इंकार कर दिया. चंूकि हत्या के संभावित मामले में क्षतविक्षत मानव अवशेष ही एकमात्र सुराग थे, इसलिए पुलिस ने यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव सावधानी बरती कि सबूत प्रभावित न हों और अच्छी तरह से सुरक्षित हों.      

भगवान देवी ने आरोप में कहा कि रामकुमार की रीता के साथ दोस्ती थी. वह अकसर उस के मोबाइल पर फोन कर के उस से बात करता था. दोनों चोरीछिपे मिलते भी थे. हम लोगों को इस बात की जानकारी रीता का कंकाल मिलने के बाद उस समय हुई, जब पुलिस ने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि उस की आखिरी बार रामकुमार से ही बात हुई थी.

जब रामकुमार की पत्नी मिथलेश को इन संबंधों की जानकारी हुई तो सभी आरोपियों ने षडयंत्र के तहत रीता को फोन कर के 19 सितंबर, 2020 को अपने घर बुलाया और मिल कर उस की हत्या कर दी. रात के समय वे उसे बाजरा के खेत में डाल आए. शव को कैमिकल डाल कर जलाया गया था, ताकि उस की पहचान न हो सके.

पुलिस ने आरोपियों को क्यों नहीं किया गिरफ्तार

रीता के मोबाइल की काल डिटेल्स से भी स्पष्ट हो गया कि आखिरी बार रीता के पास रामकुमार के बेटे का ही फोन आया था. उस के पास अधिकतर रामकुमार के ही फोन आते थे.

रीता के बड़े भाई राजीव का कहना था कि यदि कंकाल उस की बहन रीता का नहीं है, तो रीता का क्या हुआ? वह कहां है? पुलिस अब तक उस का पता क्यों नहीं लगा सकी?

दूसरी ओर अपने दावे में दम दिखाने के लिए भगवान देवी ने भी इटावा के एसएसपी को एक प्रार्थना पत्र दे कर नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की.

इस पर तत्कालीन जांच अधिकारी संजय कुमार सिंह ने कहा कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि कंकाल तुम्हारी बेटी रीता का है, तब तक कैसे किसी को आरोपी मान लिया जाए?

भगवान देवी ने तत्कालीन पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाया कि गिरफ्तारी न होने का फायदा उठा कर बेटी के हत्यारे खुलेआम गांव में घूमते रहे, बाद में मौका पा कर वे फरार हो गए.

इसी बीच गांव में भी इस बात की चर्चा चलने लगी कि रीता और रामकुमार के बीच प्रेम संबंध थे. वे चोरीछिपे मुलाकात करने लगे. धीरेधीरे मुलाकात दोस्ती में बदल गई. कहने को दोनों की उम्र में दोगुने का फर्क था. रामकुमार 45 साल का और रीता 22 साल की थी, लेकिन रामकुमार की मीठीमीठी बातों में आ कर रीता बहक गई थी.

दोनों के बीच प्रेम संबंधों की किसी को भनक तक नहीं लगी. दोनों अकसर एकदूसरे से फोन पर बात कर लेते थे. जब दोनों के प्रेम संबंधों की जानकारी रामकुमार की पत्नी मिथिलेश को हुई तो उस ने सुनियोजित ढंग से अंजाम दे कर रीता की हत्या करवा दी. इस के लिए घटना वाले दिन उस ने बेटे मोहित के मोबाइल से रीता को फोन कर के बुला लिया.

इस बात को भगवान देवी ने भी बातचीत के दौरान स्वयं स्वीकार किया है. उस ने बताया कि कंकाल मिलने के बाद रामकुमार ही हमदर्द बन कर खड़ा रहा, यहां तक कि कंकाल मिलने से पहले रीता की तलाश में भी वह उन के साथ रहा. लेकिन बाद में रामकुमार की भूमिका को ले कर जब सवाल खड़े होने लगे, तब रामकुमार पर शक जाहिर करते उस के खिलाफ प्रार्थनापत्र दिए और कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने नामजद रिपोर्ट दर्ज की.

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पुलिस गोपनीय तरीके से क्यों कर रही थी अंतिम संस्कार

कोर्ट के आदेश पर दूसरी बार कराए गए डीएनए टेस्ट का मैच न होने के बाद पुलिस ने अदालत को रिपोर्ट भेज दी और गुपचुप तरीके से कंकाल की अंत्येष्टि की योजना बनाई. श्मशान में पुलिस ने 5 फीट गहरा तथा 6 फीट लंबा गड्ढा खुदवा कर तैयार कर लिया.

इस की भनक जैसे ही भगवान देवी को हुई तो उस ने पुलिस के सामने हंगामा कर दिया. उस ने पुलिस को चेतावनी दी कि यदि उस की बेटी के संबंध में पूरी काररवाई से पहले कंकाल का अंतिम संस्कार लावारिस की तरह किया गया तो वह इसी गड्ढे में आत्महत्या कर लेगी. भगवान देवी के उग्र तेवर देख कर पुलिस को अपने कदम पीछे करने पड़े.

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इटावा के मुख्य चिकित्साधिकारी डा. गीताराम ने बताया कि डीएनए जांच के लिए सैंपल भेजा गया था. लखनऊ लैब की रिपोर्ट स्पष्ट न आने पर पूरा कंकाल मंगाया गया. इस के बाद भी 2 बार सैंपल भेजे. अभी तक डीएनए रिपोर्ट नहीं आई है. फिर से डीएनए सैंपल न लेना पड़े, इसलिए कंकाल को पुलिस ने डीप फ्रीजर में सुरक्षित रखा है.

40 महीने कैद में रहा कंकाल – भाग 1

बाजरे के खेत में शव मिलने की खबर पूरे गांव में फैल गई. शव को कैमिकल डाल कर इस कदर जला दिया गया था कि लाश कंकाल में बदल गई थी. मृतक की पहचान होनी नामुमकिन थी. लाश के नाम पर शरीर के कुछ भाग की हड्डियां मात्र थीं. कंकाल के पास चप्पलें, कपड़े व अन्य सामान पड़े थे. सामान से लग रहा था कि यह कंकाल किसी महिला का है.

भगवान देवी ने कंकाल के पास मिली चप्पलें, पीले रंग का हेयर क्लिप, हाथ में बंधा कलावा, चांदी की 2 अंगूठियां, लाल रंग का कंगन, सलवार कुरता व अन्य सामान को देख कर कंकाल की पहचान अपनी बेटी रीता उर्फ मोनी के रूप में की.

भगवान देवी और उन के पति कुंवर सिंह थाने से ले कर पुलिस के उच्चाधिकारियों, यहां तक कि अदालत तक की दौड़ लगा रहे थे. लेकिन उन्हें बेटी रीता कुमारी उर्फ मोनी की हत्या के बाद उस का कंकाल (लाश) अंतिम संस्कार के लिए पिछले 40 महीनों से पुलिस नहीं दे रही थी.

वे चाहते थे कि बेटी की लाश जो कंकाल के रूप में बरामद हुई थी, मिल जाए तो वे उस का विधिविधान से अंतिम संस्कार कर दें. वह कंकाल उन की बेटी की है, इस के उन्होंने पुलिस को सबूत भी जुटा दिए थे. फिर भी पुलिस कंकाल उन की बेटी का नहीं मान रही थी.

उत्तर प्रदेश का एक जिला है (Eetawah) इटावा.  यहीं स्थित डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त चिकित्सालय की मोर्चरी में रखे एक डीप फ्रीजर में बेटी की लाश कंकाल (Imprisoned Skeleton) के रूप में पिछले 40 महीने से कैद थी. ऐसा पुलिस के लापरवाह रवैए की वजह से हो रहा था.

पोस्टमार्टम और 2 बार डीएनए टेस्ट के बाद भी पुलिस जांच अधूरी रह गई थी. क्योंकि डीएनए के लिए जो नमूने 2 बार भेजे गए थे, वह सही तरीके से नहीं लिए गए थे. इस के बाद भगवान देवी ने एसएचओ के साथ ही एसएसपी (इटावा) को  22 अक्तूबर, 2020 तथा 22 फरवरी, 2021 व 26 अगस्त, 2021 को प्रार्थनापत्र दिए. इन में आरोपियों के नाम का खुलासा भी किया गया था.

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डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त चिकित्सालय 

लेकिन बारबार प्रार्थनापत्र देने के बावजूद न तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और न डीएनए रिपोर्ट ही दी गई. भगवान देवी लगातार बेटी का कंकाल देने की गुहार लगाती रही, लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ रखे बैठी रही. उस के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.

मोर्चरी के डीप फ्रीजर में 40 माह से कैद रीता उर्फ मोनी के कंकाल के साथ एक ऐसी घटना हुई, जिस से सभी चौंक गए. उस का कंकाल एक ही झटके में डीप फ्रीजर की कैद से मुक्त हो गया और घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया.

2 बार डीएनए टेस्ट से पहचान न होने के बाद अचानक ऐसा क्या चमत्कार हुआ कि मरने वालीे लड़की के कंकाल की पहचान होने के बाद उसे उस के वास्तविक मम्मीपापा को सौंप दिया गया.

आइए, पूरी घटना आप को सिलसिलेेवार बताते हैं. यह खौफनाक घटना आज से लगभग 40 महीने पहले शुरू हुई थी.

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के जसवंतनगर थाना क्षेत्र का एक गांव है चक सलेमपुर. इसी गांव का निवासी है कुंवर सिंह. उस के परिवार में पत्नी भगवान देवी के अलावा 5 बच्चे थे. इन में 3 बेटियां व 2 बेटों में सब से बड़ी बेटी अंजलि, राजीव, ज्योति की शादी हो चुकी है. चौथे नंबर की रीता कुमारी उर्फ मोनी थी. सब से छोटा सौरभ उर्फ बंटी है, जो बीएससी कर चुका है. पिता के पास जमीन थी, जिस पर वह अपने बेटों राजीव व सौरभ की मदद से खेती करते थे.

कुंवर सिंह की 22 वर्षीय बेटी रीता कुमारी उर्फ मोनी की एक सप्ताह बाद सगाई होनी थी. घर में खुशी का माहौल था. घर वाले शादी की तैयारी में व्यस्त थे. 19 सितंबर, 2020 को मोनी की तबियत ढीली थी. वह दोपहर 12 बजे अपनी दवा लेने घर से जसवंतनगर की कह कर गई थी. उसे गए हुए 3 घंटे बीत चुके थे, मगर वह वापस घर नहीं आई थी. इस पर घर वालों को चिंता होने लगी. उन्होंने उसे तलाशना शुरू कर दिया.

गांव में उस के साथ पढऩे वाली सहेलियों के घर के अलावा गांव में जिस स्थान पर वह सिलाई सीखती थी, वहां भी पता लगाया. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला और रात हो गई, वह लौट कर घर नहीं आई. रीता अपना मोबाइल, जिस में 2 सिम कार्ड थे, ले कर घर से गई थी. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था.

रीता जसवंतनगर के एक कालेज में 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी. उस के लापता होने पर उसे तलाशने में उस के घर वालों से ले कर गांव के लोगों ने अपनी पूरी कोशिश की. शुरुआती कोशिश में उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली. इस तरह कई दिन गुजर गए.

रीता उर्फ मोनी के गायब होने के बाद गांव में तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गईं. जितने मुंह उतनी बातें. कोई कह रहा था कि रीता अपने प्रेमी के साथ भाग गई है. कोई कह रहा था कि वह इस रिश्ते से खुश नहीं थी, इसलिए कहीं और चली गई है.

थकहार कर रीता उर्फ मोनी की मम्मी भगवान देवी ने थाना जसवंतनगर में बेटी की गुमशुदगी की सूचना 22 सितंबर, 2020 को लिखा दी. गुमशुदगी दर्ज होने के साथ ही इस की जांच तत्कालीन एसआई संजय कुमार सिंह को सौंपी गई.

खेत में मिला बेटी का कंकाल

रीता के लापता होने के सातवें दिन 26 सितंबर को अचानक रीता का सुराग मिला. रीता के घर से लगभग 300 मीटर की दूरी पर बाजरे के एक खेत में मानव कंकाल मिला. घास लेने गए कुछ लोगों ने खेत में पड़े कंकाल को देख कर शोर मचाया, इस पर गांव वाले एकत्र हो गए.

गांव वालों से खेत में कंकाल मिलने की जानकारी होते ही रीता के घर वाले दौड़ेदौड़े खेत में पहुंचे. उन्होंने वहां मिले कपड़ों और अन्य सामान से उस की शिनाख्त रीता के रूप में कर ली.

रीता की मम्मी भगवान देवी ने बताया कि घर से जाते समय रीता यही सब पहने हुए थी. बेटी की लाश को इस अवस्था में देखते ही भगवान देवी बेहाल हो गई. उस के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उस ने रोते हुए पुलिस को बताया कि उस की बेटी की हत्या कैमिकल डाल कर हत्यारों ने की है.

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     मृतका रीता के ग़मगीन परिजन

उस ने बताया कि उस की गांव में किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है फिर बेटी का यह हाल किस ने और क्यों किया? बेटी की हत्या से परिवार में कोहराम मच गया. रीता के सामान तो मिले थे, लेकिन उस का मोबाइल फोन नहीं मिला.

खेत में कंकाल मिलने की सूचना पर घटनास्थल पर पुलिस, फोरैंसिक टीम के साथ पहले ही पहुंच गई थी. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. कंकाल की हालत देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि कंकाल के कुछ हिस्से को कुत्ते या जंगली जानवर खींच कर ले गए होंगे. लाश को किसी कैमिकल से जलाया गया था. इस से उस की पहचान होनी भी मुश्किल हो गई थी.

कंकाल के पास मिले सामान इस बात की गवाही दे रहे थे कि एक सप्ताह पहले लापता हुई गांव की युवती रीता का ही कंकाल है. गांव के जितेंद्र कुमार, बेबी, राजीव आदि ने भी इन चीजों को देख कर रीता के रूप में कंकाल की शिनाख्त की.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सबूत इकट्ठे किए. पुलिस ने पंचनामा भरने के बाद कंकाल को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय की मोर्चरी भिजवा दिया.

कंकाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हत्या का कारण न आने तथा पहचान न होने पर पुलिस ने कंकाल का डीएनए टेस्ट कराने का निर्णय लिया. पुलिस कंकाल व मातापिता के सैंपल ले कर रीता के बड़े भाई राजीव के साथ 29 सितंबर, 2020 को विधि विज्ञान प्रयोगशाला, लखनऊ गई थी.

लखनऊ लैब के अधिकारियों ने उन्हें यह कह कर लौटा दिया कि पूरे कंकाल की जरूरत नहीं है. केवल कंकाल से सैंपल ले कर व कंकाल के रंगीन फोटो विधिवत भिजवाएं. 2 दिन बाद वापस ला कर कंकाल को वहीं रख दिया गया. राजीव ने बताया कि गाड़ी किराए पर ले जाने में उस के 8 हजार रुपए खर्च हो गए थे.

इस के 4-5 दिनों बाद पुलिस ने डीएनए टेस्ट के लिए कंकाल व मम्मीपापा के सैंपल ले कर लखनऊ लैब भिजवाए, जिस की रिपोर्ट 26 मार्च, 2022 को कई रिमाइंडर भेजने के बाद मिली, जो सैंपल सही तरीके से न भेजने के कारण स्पष्ट (क्लीयर) नहीं थी.

मां भगवान देवी इस बात की जिद पर अड़ी थी कि कंकाल उस की बेटी का ही है. सैंपल सही से नहीं लिए जाने से लखनऊ लैब की रिपोर्ट स्पष्ट नहीं आई है.

इस पर पुलिस से आगरा की लैब में टेस्ट कराने की बात हुई. छोटा भाई सौरभ आगरा की लैब कंकाल व मातापिता के सैंपल ले कर 4 अगस्त, 2022 को पुलिस के साथ गया. आगरा फोरैंसिक लैब वालों ने यह कह कर सैंपल लौटा दिया कि यह हमारे क्षेत्र का मामला नहीं है. जिस क्षेत्र से संबंधित हो, वहां की लैब में जांच कराओ.

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