जब मौत बन गया साध्वी का शौक

हरियाणा के जिला करनाल के ब्रास गांव  स्थित एक बड़ी इमारत के बीच बने उस हाल की भव्यता देखते ही बनती थी. उस में डिजाइन वाले महंगे कालीन बिछे थे तो दोनों तरफ आरामदायक सोफे और बीच में मेजें लगी थीं. नीचे बैठने के लिए भी गद्दे बिछे थे. उस हाल में कुछ खास था तो वह थी एक सिंहासननुमा रखी ऊंची कुरसी, जिस के सामने एक छोटी सी मेज थी, जिस पर पारदर्शी शीशा लगा था.

रोज की तरह 15 नवंबर, 2016 की भी रात करीब 9 बजे कई लोग सोफे पर बैठे थे. उसी बीच हथियारों से लैस कुछ युवक पिछले दरवाजे से हौल में दाखिल हुए. उन के पीछे एक महिला भी आई, जिस पर नजर पड़ते ही सभी लोग हाथ जोड़ कर उस के सम्मान में खड़े हो गए. महिला ऊपर से नीचे तक गेरुआ वस्त्र पहने थी और सिर पर वैसे ही रंग की पगड़ी भी बांधे थी. उस के गले में बेशकीमती सोने की मोटी चेन झूल रही थी. इस के अलावा हाथों में रत्नजडि़त सोने के कंगन और अंगुलियों में हीरेजडि़त अंगूठियां अपनी चमक बिखेर रही थीं.

महिला के माथे पर लाल तिलक लगा था और चेहरे पर गर्वपूर्ण मुसकान तैर रही थी. वह सधे कदमों से चलते हुए सिंहासननुमा कुरसी पर जा कर बैठ गई तो उस की चरणवंदना करने वालों की कतार लग गई. लोग झुकते तो वह उन के सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देती. बीचबीच में वह लोगों से बातें भी कर रही थी. करीब एक घंटे तक यही सिलसिला चलता रहा. लगभग रोज ही ऐसा नजारा उस हाल में होता था. वह कोई मामूली शख्सियत नहीं थी. वह खुद को धर्मरक्षक बताती थी. अपने राष्ट्रवादी होने का गुणगान करती थी. लोग उसे अनोखी शक्तियों की वारिस और ज्योतिष विद्या की बाजीगर समझ कर पूजते थे.

कट्टरपंथी विचारधारा की उस महिला का नाम था साध्वी देवा ठाकुर. ब्रास गांव स्थित जिस इमारत में वह रहती थी, उसे लोग श्रीमाता बालासुंदरी देवाजी धाम के नाम से जानते थे. उसे डेरा भी कहा जाता था. साध्वी का इलाके में खासा रसूख था. तमाम लोग उस के मुरीद थे. उस के पास न धनदौलत की कमी थी और न ही शोहरत की. भगवा चोले में सोने के बेशकीमती आभूषणों से लद कर देवा जब चेलों के साथ शान से चलती थी तो उस का रुतबा देखते ही बनता था.

धर्म के नाम पर उस की तीखी बयानबाजियां सुर्खियां बन जाती थीं. उस रात कुछ और लोग उस से मिलने के लिए आए तो एक शख्स ने उन्हें रोक दिया, ‘‘माफ कीजिएगा, साध्वीजी से अब आप कल मिल सकते हैं. अभी वह कहीं और के लिए प्रस्थान करेंगी.’’

उसी बीच एक आदमी ने देवा के सामने जा कर कहा, ‘‘साध्वीजी, आप को समारोह में भी जाना है.’’

‘‘हां, चलते हैं.’’ कह कर देवा ने हाथ उठा कर सामूहिक आशीर्वाद दिया और हाल से बाहर आ गई. उस के बाहर आते ही कुछ और हथियारधारी वहां आ गए. यह सब देख कर कोई चौंका नहीं, क्योंकि यह रोज की बात थी. साध्वी को हथियारधारी चेलों को अपने साथ रखने का बहुत पहले से शौक था. हालांकि न उन की जान को खतरा था और न ही किसी से रंजिश. बावजूद इस के वह राइफल, बंदूक, पिस्टलधारी युवकों के घेरे में रहती थी.

इतना ही नहीं, देवा ने खुद भी एक पिस्तौल का लाइसैंस लिया हुआ था, जिसे वह कभी होलेस्टर के साथ गले में लटकाती थी तो कभी पर्स में रखती थी. सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर वह बेहद सक्रिय रहती थी और हथियारों के साथ के अलावा विभिन्न क्रियाकलापों के फोटो व वीडियो पोस्ट करती रहती थी.

हौल के बाहर एक लग्जरी फौर्च्युनर कार नंबर एचआर 54डी 0021 खड़ी थी, जो उसी के नाम से रजिस्टर्ड थी. देवा उस कार में सवार हो गई. कार ने फर्राटे भरे और कुछ देर बाद करनाल शहर के रेलवे स्टेशन के नजदीक बने सावित्री मैरिज लौन के बाहर जा कर रुकी. देवा के पहुंचते ही वहां मौजूद लोग उस की आवभगत में जुट गए. कोई झुक कर पैर छू रहा था तो कोई हाथ जोड़ रहा था. देवा के चेहरे पर भी अनोखी मुसकान थी. दरअसल यह सैक्टर-6 निवासी विक्की मेहता का सगाई समारोह था. मेहता परिवार भी देवा का भक्त था, इसलिए विशेष आग्रह कर उन्हें आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया गया था.

लौन में अनेक लोग मौजूद थे. खानापीना चल रहा था, साथ ही एक मंच सजा हुआ था. मंच पर व उस के सामने डीजे की धुनों पर लोग नृत्य कर रहे थे. दरजनों लोग सामने पड़ी कुरसियों पर बैठ कर पार्टी का आनंद ले रहे थे. कई लोगों से मिलतेमिलाते देवा अपने चेलों के साथ मंच के सामने पहुंच कर रुक गई. इसी बीच उस का चेला डीजे का संचालन कर रहे युवक के पास पहुंच कर बोला, ‘‘यह सब बंद कर के हमारी पसंद का गाना बजा.’’

‘‘कौन सा सर?’’ युवक ने पूछा.

‘‘मितरां नू शौक गोलियां चलाउण दा…’’ उस ने बताया.

हथियारधारी के इतना कहते ही चंद सेकेंड बाद मनचाहा गाना बज गया. इस गाने पर देवा के चेले हथियार लहरा कर नाचने लगे. गाने के बोलों की तर्ज पर उन्होंने हवाई फायरिंग शुरू कर दी. इन में 2-3 लोग मंच पर चढ़ कर गोलियां चलाने लगे तो कुछ नीचे ही रहे. पलक झपकते ही गोलियों की तड़तड़ाहट से वातावरण गूंज उठा.

देवा को भी उन के एक चेले ने दोनाली बंदूक लोड कर के दी तो उस ने भी गोलियां दाग दीं. देवा ने अपनी पिस्तौल से भी कई फायर किए. यह खुशी थी या शान दिखाने की कुंठित मानसिकता, यह तो कोई नहीं जानता था, पर कानून की नजर में यह सब करना अपराध की श्रेणी में आता था. लेकिन कानून को ठेंगा दिखा कर वहां जम कर फायरिंग की जा रही थी.

देवा और उन के चेले इतने जोश में थे कि हथियारों को बारबार लोड कर के हवाई फायर कर रहे थे. अचानक पैदा हुए ऐसे माहौल से वहां मौजूद लोग सकते में आ गए. हर कोई फटी नजरों से नजारा देख रहा था. बच्चों में भी दहशत कायम हो गई. मंच पर व उस के सामने अब देवा व उस के चेलों का कब्जा था. दृश्य ऐसा फिल्मी हो गया था, जैसे डाकू हथियारों के साथ बेखौफ हो कर जश्न मना रहे हों. दरजनों राउंड फायर हो चुके थे. इसी बीच एक बंदूक से फायर मिस होने पर बंदूक की नाल कुरसी पर बैठे लोगों की तरफ घूम गई. बंदूक की एक गोली सुखविंदर सिंह नामक व्यक्ति के कंधे पर जा लगी, दूसरी गोली ने 50 वर्षीय महिला सुनीता का सीना भेद दिया. गोली लगते ही खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह नीचे गिर पड़ी.

इन के अलावा गोली के छर्रे लगने से अमरजीत सिंह, अनिल, विनोद व 11 वर्षीया बच्ची मनस्वी घायल हो गई. पलक झपकते ही वहां की खुशियां मातम में तब्दील हो गईं. किसी को भी ऐसी अप्रत्याशित घटना की उम्मीद नहीं थी. लोगों में चीखपुकार मच गई और अफरातफरी का माहौल पैदा हो गया. वहां के माहौल व खतरे को भांप कर देवा हथियारों के शौक के चक्कर में मातम का आशीर्वाद दे कर चेलों के साथ रफूचक्कर हो गई.

आननफानन में सभी घायलों को उपचार के लिए अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने सुनीता को मृत घोषित कर दिया. कइयों के अंधविश्वास को भी झटका लगा, क्योंकि ज्योतिष की जानकार जो देवा लोगों का भविष्य बताती थी, वह इतनी बड़ी घटना का आकलन आखिर कैसे नहीं कर सकी.

इस सनसनीखेज घटना की सूचना पुलिस को मिली तो वह हरकत में आ गई. कुछ ही देर में सिटी थानाप्रभारी मोहनलाल मय पुलिस बल के वहां पहुंच गए. वारदात बड़ी थी लिहाजा एसपी पंकज नैन भी मौकाएवारदात पर आ गए. पुलिस ने लोगों से पूछताछ की तो उन्होंने देवा व उस के चेलों का कारनामा बयान कर दिया. कुछ लोगों ने देवा व उस के साथियों की गोलियां चलाते हुए बनाई गई वीडियो भी पुलिस को दे दी. पुलिस ने मुआयना किया तो कारतूस के दरजनों खोखे वहां से बरामद हुए.

पुलिस ने उन्हें अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस ने साध्वी व उस के साथियों के खिलाफ भादंवि की धारा-302 हत्या, 307 हत्या के प्रयास व आर्म्स एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया. मामला गंभीर था. एसपी पंकज नैन ने देवा के खिलाफ सख्त काररवाई करने के निर्देश दिए. उधर मृतका सुनीता के परिवार के लोगों में कोहराम मचा था. सुनीता सैक्टर-6 की रहने वाली थी और भावी दूल्हे विक्की की मौसी थी. घायलों का उपचार किया जा रहा था. पुलिस ने सुनीता के शव का पंचनामा कर पोस्टमार्टम हेतु कल्पना चावला मैडिकल कालेज भेज दिया.

देवा व उस के चेलों की गिरफ्तारी के लिए 4 पुलिस टीमों का गठन किया गया. अगली सुबह पुलिस बल आरोपी देवा के डेरे पर पहुंचा, लेकिन वह फरार हो चुकी थी. पुलिस ने वहां की तलाशी ली. डेरे की भव्यता देख कर पुलिस भी हैरान रह गई. देवा भले ही साध्वी थी, लेकिन डेरे में वे तमाम अत्याधुनिक सुविधाएं थीं, जिन के आम आदमी सिर्फ ख्वाब देखता है.

पुलिस ने संभावित ठिकानों पर छापेमारी शुरू कर दी, साथ ही देवा का इतिहास खंगाला तो पता चला कि वह एक मामूली लड़की थी. एक मामूली लड़की किस तरह लोगों के लिए देखते ही देखते देवी बन गई.  दरअसल जिसे लोग साध्वी देवा ठाकुर के नाम से जानते थे. उस का बचपन का नाम ममता था. कई सालों पहले प्रचारित होना शुरू हुआ कि ममता का व्यवहार आम बच्चों से अलग है. वह दूसरों के मन की बात जान लेती है और बैठेबैठे ध्यान मुद्रा में चली जाती है. बाद में कहा जाने लगा कि ममता के पास अपार शक्तियां हैं और उस का साक्षात्कार सीधे ईश्वर से होता है. यह चर्चाएं कुछ ऐसी फैलीं कि लोग उसे देवी मानने लगे.

लोग उस के पास अपनी समस्याएं ले कर आने लगे. इस के बाद ममता ने गेरुआ वस्त्र पहन लिए और नाम भी बदल कर साध्वी देवा ठाकुर रख लिया. 11 जनवरी, 1998 को माला बालासुंदरी देवा धाम से डेरे का शिलान्यास कर के वहां पूजास्थल भी बना दिया गया. धीरेधीरे देवा के मुरीदों की संख्या बढ़ती गई. देवा महत्त्वाकांक्षी थी. शाही अंदाज में जीना अच्छा लगता था. कमाई हुई तो उस ने डेरे को आलीशान तरीके से विस्तार दे दिया. देवा ने सन 2010 में देवा इंडिया फाउंडेशन नाम से एक संस्था रजिस्टर्ड करा ली और खुद उस की चेयरपरसन बन गई. डेरे पर आने वाले लोग खुल कर दान देते थे. ऐसे भक्तों के दान ने ही देवा को राजसी ठाठबाट वाली महिला बना दिया.

देवा को हथियारों से प्रेम था, इसलिए उस ने अपने साथ हथियारबंद लोग रखे. इस से रौब भी जमता था और शौक भी पूरा होता था. कुछ ही सालों में देवा ने अपनी अलग पहचान बना ली. देवा ने अपने प्रचार के लिए सोशल साइट्स को भी जरिया बनाया. हथियारों के लाइसैंस देने की वह पैरवी करती थी.

एक बार वह तब सुर्खियों में आई, जब उस ने बयान जारी कर के कहा कि देश को आधार कार्ड से ज्यादा जरूरत हथियारों के लाइसैंस की है. अगर सरकार देश के नागरिकों की हत्या आतंकवादियों के हाथों होने से नहीं रोक सकती तो सभी भारतीयों को हथियारों के लाइसैंस दे दिए जाएं, ताकि वे अपनी सुरक्षा खुद कर सकें.

कुछ महीने पहले देवा ने एक जनसभा में यह कह कर सनसनी फैला दी थी कि गैरहिंदुओं की जबरन नसबंदी की जाए, ताकि उन की आबादी को बढ़ने से रोका जा सके. इस मामले में जम्मूकश्मीर के श्रीनगर में एक याचिका के बाद अदालत ने देवा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे. इस सब के बीच फायरिंग से हुई मौत का मामला देवा पर भारी पड़ गया.

पुलिस उस की तलाश में जुटी रही. उस की तलाश में अन्य जनपदों के अलावा राजस्थान जा कर भी छापेमारी की गई, पर वह नहीं मिली. लोगों में देवा को ले कर गुस्सा था. एक संगठन के पदाधिकारी ललित भारद्वाज ने बयान जारी किया कि धर्म की आड़ में देवा को ऐसी घिनौनी हरकत नहीं करनी चाहिए थी. देवा की फायरिंग की वीडियो वायरल हो रही थी. पुलिस को इस वारदात से पहले की भी एक वीडियो मिली, जिस में पानीपत जिले में आयोजित एक समारोह में देवा व उस के चेलों ने जम कर फायरिंग की थी.

2 दिन बीत चुके थे, लेकिन देवा का कोई सुराग नहीं लग रहा था. घटना के बाद से ही उस के दोनों मोबाइल बंद थे. पुलिस उस तक पहुंच पाती कि इसी बीच 18 नवंबर को उस ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. इस दौरान देवा का हुलिया ही बदला हुआ था. न उस के बदन पर कोई आभूषण था और न ही भगवा वस्त्र. वह गुलाबी छींटदार सलवारसूट पहन कर आई थी.

पता चलते ही पुलिस वहां पहुंच गई और माननीय न्यायाधीश हरीश सब्बरवाल की अदालत में देवा को पेश कर के हथियारों की बरामदगी और उस के साथियों की गिरफ्तारी का हवाला दे कर रिमांड मांगा. अदालत ने उसे 5 दिनों के रिमांड पर पुलिस के हवाले कर दिया.

पुलिस देवा का कस्टडी रिमांड ले कर बाहर निकली तो उस ने मीडिया के सामने कोरे झूठ का हास्यास्पद जाल फेंका कि वह निर्दोष है और उसे षडयंत्र के तहत फंसाया जा रहा है. वह इस बात को भी झुठला गई कि उस ने गोलियां चलाई थीं. देवा के चेहरे पर मायूसी का डेरा था. उस ने खुद को बीमार भी बताया.

इस दौरान अदालत के बाहर गहमागहमी का माहौल रहा. देवा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे साथ ले कर कई स्थानों पर दबिशें दीं. उस रात उसे महिला थाने की हवालात में रखा गया तो उसे नींद नहीं आई. रात में वह कई बार रोई. अगले दिन पुलिस उसे ले कर राजस्थान रवाना हो गई. वहां उस की निशानदेही पर न तो हथियार मिल सके और न उस के चेले. पुलिस खाली हाथ लौट आई.

23 नवंबर को पुलिस ने देवा के 3 आरोपी चेलों शुभम, देवेंद्र व मलकीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया. इन के कब्जे से फायरिंग में इस्तेमाल की गई 2 बंदूकें व 2 माउजरों के साथ 4 दरजन से अधिक कारतूस बरामद किए गए. पुलिस ने नीलोखेड़ी से देवा की फौर्च्युनर कार भी बरामद कर ली. पुलिस ने चारों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस देवा के फरार अन्य 3 साथियों राजीव, बलजीत व महमल की सरगरमी से तलाश कर रही थी. देवा ने धर्म की आड़ में हथियारों का शौक रख कर उन के प्रदर्शन का जानलेवा खेल नहीं खेला होता तो शायद ऐसी नौबत कभी न आती.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कार सवार महिला की गोली मारकर हत्या

राजधानी की सड़कों पर लगातार तीसरे दिन सरेआम गोली मारकर हत्या करने की घटना सामने आयी है. ब्रहमपुरी, कृष्णापुरी और भजनपुरा में हत्याओं के बाद शालीमार बाग में बुधवार तड़के बदमाशों ने कार सवार दंपति पर गोलियां चला दीं. इसमें 34 वर्षीय प्रिया मेहरा की मौत हो गई, जबकि उनके पति पंकज मेहरा और दो वर्षीय बच्च बाल-बाल बच गए.

सूदखोर पर शक जताया

पंकज ने 40 लाख रुपयों के कर्ज की वसूली के लिए सूदखोर द्वारा हत्या कराने का आरोप लगाया है. शालीमार बाग पुलिस हत्या का मामला दर्ज करके छानबीन कर रही है. पुलिस उपायुक्त मिलिंद डुमरे के अनुसार, पंकज मेहरा रोहिणी सेक्टर 15 में परिवार सहित रहते हैं. पहाड़गंज इलाके में उनका रेस्तरां हैं. मंगलवार रात वह हडसन लेन स्थित अपने भाई के रेस्तरां में गए थे. वहां से देर रात वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ गुरुद्वारा बंगला साहिब गए. इसके बाद परिवार तड़के अपनी रिट्ज कार में सवार होकर घर लौट रहा था.

पीड़ित की कार को रुकवाकर वारदात की

तड़के 4.20 बजे बादली लालबत्ती के निकट स्विफ्ट कार ने ओवरटेक कर उनकी कार को रुकवा लिया. स्विफ्ट से निकले युवक ने उनकी कार का शीशा तोड़ दिया. पंकज जब अपनी कार से उतरे तो युवक पिस्तौल दिखाकर उन्हें धमकाने लगा. इसे लेकर उनके बीच हाथापाई भी हुई. इसी बीच युवक ने पिस्तौल से दो गोलियां चलाईं.

दो गोलियां लगने से मौत हुई

एक गोली प्रिया के गले और दूसरी चेहरे पर जा लगी. इसके बाद पिस्तौल में गोली फंस गई. यह देख हमलावर युवक अपनी कार से दूसरा हथियार लाने के लिए दौड़ा. इसी बीच मौका पाकर पंकज कार लेकर वहां से भाग निकले और सीधे पास के एक अस्पताल पहुंचे.

डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया

अस्पताल में डॉक्टरों ने प्रिया को मृत घोषित कर दिया. इसके बाद पुलिस को मामले की सूचना दी गई. हत्या की सूचना से पुलिस में हड़कंप मच गया.सूचना मिलते ही तत्काल पुलिस मौके पर पहुंच गईऔर छानबीन शुरू की. थोड़ी ही देर में जिले के आला अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस की कईटीमों और अधिकारियों ने अस्पताल में पहुंचकर पीड़ित पति से भी बातचीत की.

शव पोस्टमार्टम के लिए भेजा

पुलिस ने प्रिया के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है. पंकज ने जिस शख्स पर शक जताया है, वह फिलहाल फरार है. कई पुलिस टीमें उसकी तलाश में छापेमारी कर रही हैं. उसके मिलने के बाद ही हमलावरों की पहचान हो पाएगी. पुलिस का कहना है कि आरोपी की तलाश में कईटीमों को लगाया गया है. यह भी पता लगाया जा रहा है कि कई उसका कोईआपराधिक इतिहास तो नहीं है. इसके साथ ही पुलिस टीमें इलाके के बदमाशों के बारे में भी पता लगा रही है, कहीं किसी का इस वारदात से संबंध तो नहीं है. घटना के समय वहां पर सक्रिय मोबाइल नंबरों के बारे में भी पुलिस छानबीन कर जानकारी जुटा रही है. पुलिस ने कईसंदिग्ध नंबरों के बारे में जानकारी भी जुटाई है.

रेस्तरां भी दो माह से बंद कर रखा था

पंकज को बीते कई माह से कर्ज देने वाला शख्स धमका रहा था. धमकियों से पंकज का पूरा परिवार काफी डरा हुआ था. इसी वजह से पंकज ने पहाड़गंज स्थित अपने रेस्तरां को भी बीते दो माह से बंद कर रखा था. पंकज का कहना हैकि वह घर से निकलने से भी कतराता था. आरोपी उसे कई बार धमकी दे चुका था.

बच्चे के सामने ही मां ने दम तोड़ा

बच्चे को माता-पिता के साथ कार में घूमना बेहद पसंद था, इसलिए पंकज पत्नी और बेटे को रात के समय घूमाने ले गए थे. वापसी में जब बदमाशों ने प्रिया को गोली मारी तो बच्च भी उनकी गोद में ही था. बच्चे के सामने ही उसकी मां तड़पड़ी रही और अस्पताल जाने के बाद उसने दम तोड़ दिया. परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल है.

रुपये लौटाने को सूदखोर धमकी दे रहा था

मामले को लेकर की गई पूछताछके दौरान पीड़ित पति पंकज मेहरा ने पुलिस को बताया कि उसने सोनीपत निवासी एक युवक से 5 लाख रुपये उधार लिए थे. वह इसका मोटा ब्याज वसूलता था. ब्याज और मूलधन मिलाकर अब सूदखोर उससे 40 लाख रुपये मांग रहा था. आरोप है कि सूदखोर युवक रकम की वसूली के लिए पिछले कुछ दिनों से लगातार उसे धमकी दे रहा था. पंकज ने उसी शख्स द्वारा हत्या करवाने की आशंका जताई है. इस मामले में पुलिस पीड़ित के बयान के आधार पर जांच कर रही है.

दिल्ली 55 घंटे में छह हत्याओं से दहली

गैंगवार और आपसी रंजिश में बीते 55 घंटों में ब्रहमपुरी, भजनपुरा, जैतपुर, उस्मानपुर, कृष्णा नगर और शालीमार बाग में हुई एक के बाद एक ताबड़तोड़ छह हत्याओं से राजधानी दहल उठी. हैरानी की बात है कि दिल्ली पुलिस को चुनौती देते हुए बेखौफ बदमाश सरेआम छह हत्याएं करके आसानी से फरार हो गए. 55 घंटे में पुलिस इनमें से महज एक ही मामला सुलझा सकी है.

कई वारदातों के बाद भी पुलिस नहीं चेती

बीते रविवार को भजनपुरा में आरिफ हुसैन रजा और ब्रह्मपुरी में हुई वाजिद की हत्याओं को पुलिस यमुनापार में चल रही गैंगवार का नतीजा मान रही है. इस गैंगवार में पहले भी कई हत्याएं को चुकी हैं, फिर भी पुलिस इन पर लगाम लगाने में पूरी तरह से नाकाम रही है. वहीं, मंगलवार सुबह उस्मानपुर में हुई रोहित की हत्या को भी पुलिस गैंगवार से जोड़कर देख रही है. जांच अधिकारियों का कहना है कि करीब ढाई माह पूर्व नासिर गैंग से जुड़े बदमाशों ने छेनू के करीबी इमरान और कमर की हत्या कर दी थी. माना जा रहा है कि उसी का बदला लेने के लिए छेनू के इशारे पर वाजिद और आरिफ को मौत के घाट उतार दिया गया. स्थानीय पुलिस का कहना है कि इरफान उर्फ छेनू पहलवान जेल में बंद है.

प्यार ऐसे तो नहीं हासिल होता

18 अक्तूबर, 2016 की सुबह साढ़े 5 बजे के करीब पुणे शहर की केतन हाइट्स सोसायटी की इमारत के नीचे एक्टिवा सवार एक महिला और एक आदमी के बीच कहासुनी होते देख उधर से गुजर रहे लोग ठिठक गए थे. औरत से कहासुनी करने वाले आदमी की आवाज धीरेधीरे तेज होती जा रही थी. लोग माजरा समझ पाते अचानक उस आदमी ने जेब से चाकू निकाला और एक्टिवा सवार औरत पर हमला कर दिया. औरत जमीन पर गिर पड़ी और बचाव के लिए चिल्लाने लगी. हमलावर के पास चाकू था, जबकि वहां खड़े लोग निहत्थे थे. फिर भी वहां खड़े लोग उस की ओर बढ़े, लेकिन वे सब उस तक पहुंच पाते, उस के पहले ही वह आदमी महिला पर ताबड़तोड़ चाकू से वार कर के उसी की स्कूटी से भाग निकला था.

महिला जमीन पर पड़ी तड़प रही थी. उस की हालत देख कर किसी ने कंट्रोल रूम को फोन कर के घटना की सूचना दे दी थी. चूंकि घटनास्थल थाना अलंकार के अंतर्गत आता था, इसलिए कंट्रोल रूम ने घटना की जानकारी थाना अलंकार पुलिस को दे दी थी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर बी.जी. मिसाल ने घटना की सूचना अपने अधिकारियों को दी और खुद एआई विजय कुमार शिंदे एवं कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश और घटनास्थल के निरीक्षण में पुलिस वालों ने देखा कि घायल महिला सलवारसूट पहने थी. उस की उम्र 30-31 साल रही होगी. उस के शरीर पर तमाम गहरे घाव थे, जिन से खून बह रहा था. पुलिस को लगा कि अभी वह जीवित है, इसलिए उसे तत्काल पुलिस वैन में डाल कर इलाज के लिए सेसून अस्पताल ले जाया गया. लेकिन अस्पताल पहुंच कर पता चला कि उस की मौत हो चुकी है. इंसपेक्टर बी.जी. मिसाल अपने सहायकों के साथ घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि डीएसपी सुधीर हिरेमठ और एएसपी भी फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे.

फोरैंसिक टीम ने जरूरी साक्ष्य जुटा लिए तो अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. उस के बाद बी.जी. मिसाल को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. बी.जी. मिसाल ने सहयोगियों की मदद से घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कीं और उस के बाद अस्पताल जा पहुंचे. डाक्टरों से पता चला कि महिला के शरीर पर कुल 21 घाव थे. अधिक खून बहने की वजह से ही उस की मौत हुई थी. उन्होंने काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए रखवा दिया और थाने आ कर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर इस मामले की जांच इंसपेक्टर (क्राइम) विजय कुमार शिंदे को सौंप दी.

विजय कुमार शिंदे ने मामले की जांच के लिए अपनी एक टीम बनाई और हत्या के इस मामले की जांच शुरू कर दी. घटनास्थल पर पुलिस को मृतका का पर्स और मोबाइल फोन मिला था. मोबाइल फोन के दोनों सिम गायब थे, इसलिए मृतका की शिनाख्त में उस से कोई मदद नहीं मिल सकी. लेकिन पर्स से उस का ड्राइविंग लाइसैंस मिल गया, जिस से उस की शिनाख्त हो गई. मृतका का नाम शुभांगी खटावकर था और वह कर्वेनगर के श्रमिक परिसर की गली नंबर-5 में रहती थी. उस के पति का नाम प्रकाश खटावकर था. इस के बाद विजय कुमार शिंदे ने लाइसैंस में लिखे पते पर एक सिपाही को भेजा तो वहां मृतका का पति प्रकाश खटावकर मिल गया. सिपाही ने उसे पूरी बात बताई तो वह सिपाही के साथ थाने आ गया.

विजय कुमार शिंदे ने अस्पताल ले जा कर उसे लाश दिखाई तो लाश देख कर वह खुद को संभाल नहीं सका और जोरजोर से रोने लगा. विजय कुमार शिंदे ने किसी तरह उसे चुप कराया तो उस ने एकदम से कहा, ‘‘शुभांगी की हत्या किसी और ने नहीं, मेरे ही परिसर में रहने वाले विश्वास कलेकर ने की है. वह उसे एकतरफा प्रेम करता था. वह उसे राह चलते परेशान किया करता था.’  प्रकाश खटावकर के इसी बयान के आधार पर विजय कुमार शिंदे ने विश्वास कलेकर को नामजद कर के उस की तलाश शुरू कर दी. उस के घर में ताला बंद था. आसपड़ोस वालों से पूछताछ में पता चला कि घटना के बाद से ही वह दिखाई नहीं दिया था.  पुलिस को प्रकाश खटावकर से उस का नागपुर का जो पता मिला था, जांच करने पर वह फरजी पाया गया था.

इस के बाद उस की तलाश के लिए पुलिस की 2 टीमें बनाई गईं. एक टीम नागपुर भेजी गई तो दूसरी टीम वहां जहां वह रहता और काम करता था. पुलिस ने वहां के लोगों से उस के बारे में पूछताछ की. दूसरी टीम द्वारा पूछताछ में पता चला कि विश्वास नागपुर का नहीं, बल्कि कोल्हापुर का रहने वाला था. वहां के थाना राजारामपुरी में उस के खिलाफ हत्या का एक मुकदमा दर्ज हुआ था, जिस में वह साल भर पहले बरी हो चुका था. बरी होने के बाद ही वह पुणे आ गया था. इंसपेक्टर विजय कुमार शिंदे के लिए यह जानकारी काफी महत्त्वपूर्ण थी. कोल्हापुर जा कर वह थाना राजारामपुरी पुलिस की मदद से विश्वास को गिरफ्तार कर पुणे ले आए और उसे अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया.

थाने में अधिकारियों की उपस्थिति में विश्वास कलेकर से शुभांगी की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू ही हुई थी कि वह फर्श पर गिर कर छटपटाने लगा. उस के मुंह से झाग भी निकल रहा था. अचानक उस का शरीर अकड़ सा गया. पूछताछ कर रहे सारे पुलिस वाले घबरा गए. उन्हें लगा कि पूछताछ से बचने के लिए विश्वास ने जहर खा लिया है. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया.डाक्टरों ने उसे चैक कर के बताया कि इस ने जहर नहीं खाया है, बल्कि इसे मिर्गी का दौरा पड़ा है. यह जान कर पुलिस अधिकारियों की जान में जान आई. इलाज के बाद विश्वास को थाने ला कर पूछताछ की जाने लगी तो उस से सख्ती के बजाय मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में एकतरफा प्रेम में शुभांगी की हत्या करने की उस ने जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार से थी—

शुभांगी महाराष्ट्र के नागपुर के रहने वाले प्रकाश मधुकर खटावकर की पत्नी थी. जिस समय शुभांगी की शादी प्रकाश से हुई थी, उस समय वह बीकौम कर रहा था. शुभांगी जैसी सुंदर, संस्कारी और समझदार पत्नी पा कर वह बहुत खुश था. पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ दिनों तक वह गांव में पिता मधुकर खटावकर के साथ खेती के कामों में उन की मदद करता रहा. खेती की कमाई से किसी तरह परिवार का खर्च तो चल जाता था, पर भविष्य के लिए कुछ नहीं बच पाता था. ऐसे में जब प्रकाश और शुभांगी को एक बच्चा हो गया तो उस के भविष्य को ले कर उन्हें चिंता हुई. दोनों ने इस बारे में गहराई से विचार किया तो उन्हें लगा कि बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें गांव छोड़ कर शहर जाना चाहिए.

इस के बाद प्रकाश और शुभांगी घर वालों से इजाजत ले कर पहले मुंबई, उस के बाद पुणे जा कर स्थाई रूप से बस गए थे. पुणे के जेल रोड पर किराए का मकान ले कर उन्होंने रोजीरोटी की शुरुआत की. प्रकाश को एक प्राइवेट कोऔपरेटिव बैंक में नौकरी मिल गई थी तो पति की मदद के लिए शुभांगी कुछ घरों में खाना बनाने का काम करने लगी थी. इस काम से शुभांगी को अच्छे पैसे मिल जाते थे. इस के अलावा वह घर से भी टिफिन तैयार कर के सप्लाई करती थी. इस तरह कुछ ही दिनों में उन की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई. शुभांगी के पास पैसा आया तो इस का असर उस के रहनसहन पर तो पड़ा ही, उस के शरीर और बातव्यवहार पर भी पड़ा. अब वह पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी.

जल्दी ही शुभांगी और प्रकाश ने कर्वेनगर के श्रमिक परिसर की गली नंबर-5 में अपना खुद का मकान खरीद लिया था. बच्चे का भी उन्होंने एक बढि़या अंगरेजी स्कूल में दाखिला करा दिया था. शुभांगी को मेहनत ज्यादा करनी पड़ती थी और उस के पास समय कम होता था. उस की भागदौड़ को देखते हुए प्रकाश ने इस के लिए स्कूटी खरीद दी थी. शुभांगी घर और बाहर के सारे काम कुशलता से निपटा रही थी. इस के अलावा वह अपने शरीर का भी पूरा खयाल रखती थी. बनसंवर कर वह स्कूटी से निकलती तो देखने वाले देखते ही रह जाते थे. उस का शरीर सांचे में ढला ऐसा लगता था कि वह कहीं से भी 13 साल के बच्चे की मां नहीं लगती थी. उस की यही खूबसूरती उस के लिए खतरा बन गई.

शुभांगी जिस परिसर में रहती थी, उसी परिसर में 40 साल का विश्वास कलेकर भी एक साल पहले कोल्हापुर से आ कर रहने लगा था. रोजीरोटी के लिए वह वड़ापाव का ठेला लगाता था. एक ही परिसर में रहने की वजह से अकसर उस की नजर शुभांगी पर पड़ जाती थी. खूबसूरत शुभांगी उसे ऐसी भायी कि वह उस का दीवाना बन गया. इस की एक वजह यह थी कि उस की शादी नहीं हुई थी. शायद मिर्गी की बीमारी की वजह से वह कुंवारा ही रह गया था. और जब उसे घर बसाने का मौका मिला तो उस में भी कामयाब नहीं हुआ. जिस लड़की से वह प्यार करता था, उस की हत्या हो गई थी. उस की हत्या का आरोप भी उसी पर लगा था, लेकिन अदालत से वह बरी हो गया था.

बरी होने के बाद वह पुणे आ गया था और उसे शुभांगी से प्यार हुआ तो वह हाथ धो कर उस के पीछे पड़ गया. शुभांगी तक पहुंचने के लिए पहले उस ने उस के पति प्रकाश से यह बता कर दोस्ती कर ली कि वह भी उस के गांव के पास का रहने वाला है. इस के बाद जल्दी ही वह शुभांगी के परिवार में घुलमिल गया. शुभांगी के घर आनेजाने में ही उस ने शुभांगी से यह कह कर अपना टिफिन भी लगवा लिया कि दिन भर काम कर के वह इस तरह थक जाता है कि रात को उसे अपना खाना बनाने में काफी तकलीफ होती थी. शुभांगी को भला इस में क्या ऐतराज होता, उस का तो यह धंधा ही था. वह उस का भी टिफिन बना कर पहुंचाने लगी.

समय अपनी गति से सरकता रहा. शुभांगी विश्वास का टिफिन देने आती तो इसी बहाने वह उसे एक नजर देख लेता, साथ ही उसे प्रभावित करने के लिए उस के बनाए खाने की खूब तारीफ भी करता. अपनी तारीफ सुन कर शुभांगी कुछ कहने के बजाय सिर्फ हंस कर रह जाती. इस से विश्वास को लगने लगा कि वह उस के मन की बात जान गई है. शायद इसी का परिणाम था कि एक दिन उस ने अपने मन की बात शुभांगी से कह दी. उस की बातें सुन कर शुभांगी सन्न रह गई.

वह संस्कारी और समझदार महिला थी, इसलिए नाराज होने के बजाय उस ने उसे समझाया, ‘‘मैं शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे की मां भी हूं. मेरा अच्छा सा पति है, जिस के साथ मैं खुश हूं. तुम हमारे गांव के पास के हो, इसलिए हम सब तुम्हारी इज्जत करते हैं. तुम अपने मन में कोई ऐसा भ्रम मत पालो, जो आगे चल कर तुम्हें तकलीफ दे.’’ लेकिन शुभांगी के लिए पागल हुए विश्वास पर शुभांगी के समझाने का कोई असर नहीं हुआ. उस ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘शुभांगी, तुम्हारी वजह से मेरी रातों की नींद और दिन का चैन लुट गया है. हर घड़ी तुम मेरी आंखों के सामने रहती हो. मुझे तुम से सचमुच प्यार हो गया है. तुम पति और बच्चे को छोड़ कर मेरे पास आ जाओ. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें कोई काम नहीं करने दूंगा.’’

विश्वास कलेकर की इन बातों से शुभांगी का धैर्य जवाब दे गया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें इतना समझाया, फिर भी तुम्हारी समझ में नहीं आया. अगर फिर कभी इस तरह की बातें कीं तो ठीक नहीं होगा. मैं तुम्हारी शिकायत प्रकाश से कर दूंगी. जरूरत पड़ी तो पुलिस से भी कर दूंगी.’’ शुभांगी की इस धमकी से कुछ दिनों तक तो विश्वास शांत रहा. लेकिन एक दिन मौका मिलने पर वह शुभांगी के सामने आ कर खड़ा हो गया और पहले की ही तरह गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘शुभांगी, तुम मेरे साथ चलो. मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना मैं जिंदा नहीं रह सकता.’’

शुभांगी ने नाराज हो कर उसे खरीखोटी तो सुनाई ही, उस की इस हरकत की शिकायत प्रकाश से भी कर दी. प्रकाश ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो उस की बात को समझने के बजाय वह उलटा उसे ही समझाने लगा. इस के बाद दोनों में कहासुनी हो गई. परेशानी की बात यह थी कि इस के बाद भी विश्वास अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. अब वह शुभांगी को परेशान करने लगा. जब इस की जानकारी शुभांगी के भाई को हुई तो उस ने विश्वास की पिटाई कर के चेतावनी दी कि अगर उस ने फिर कभी शुभांगी को परेशान किया तो ठीक नहीं होगा.

शुभांगी के भाई द्वारा पिटाई करने से विश्वास इतना आहत हुआ कि उस ने अपनी इस पिटाई और अपमान का बदला लेने के लिए शुभांगी के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया. उसे शुभांगी के सारे कामों और आनेजाने की पूरी जानकारी थी ही, इसलिए 18 अक्तूबर, 2016 की सुबह 5 बजे जा कर वह केतन हाइट्स सोसायटी के पास खड़े हो कर उस का इंतजार करने लगा. शुभांगी अपने समय पर वहां पहुंची तो उस की स्कूटी के सामने आ कर उस ने उसे रोक लिया. उस की इस हरकत से नाराज हो कर शुभांगी ने कहा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है. अभी तुम्हें या हमें चोट लग जाती तो?’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम तो जानती ही हो, आशिक मरने से नहीं डरते. अपनी मंजिल पाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं.’’ विश्वास ने बेशर्मी से मुसकराते हुए कहा, ‘‘आखिर तुम मेरी बात मान क्यों नहीं लेती?’’

‘‘तुम्हारी बकवास सुनने का मेरे पास समय नहीं है, तुम मेरे सामने से हटो और मुझे काम पर जाने दो.’’

‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?’’ विश्वास ने कहा.

‘‘मुझे तुम्हारी किसी बात का जवाब नहीं देना.’’ शुभांगी ने गुस्से में कहा.

‘‘तो क्या तुम्हारा यह आखिरी फैसला है?’’ विश्वास ने पूछा.

‘‘हां…हां,’’ शुभांगी ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘हां, यह मेरा आखिरी फैसला है. तुम मुझे इस जन्म में तो क्या, अगले 7 जन्मों तक नहीं पा सकोगे.’’

शुभांगी के चेहरे पर अपने लिए नफरत और दृढ़ता देख कर विश्वास को गुस्सा आ गया. लंबी सांस लेते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितना समझाया कि तुम मेरी हो जाओ, लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं मानी. अब मैं तुम्हारा 7 जन्मों तक इंतजार करूंगा.’’ कह कर विश्वास ने जेब से चाकू निकाला और ताबड़तोड़ वार कर के शुभांगी की हत्या कर दी. इस के बाद जल्दी से उस के मोबाइल फोन के दोनों सिम निकाल कर उसी की स्कूटी से भाग निकला. स्कूटी उस ने पुणे के रेलवे स्टेशन पर पार्किंग में खड़ी कर दी और ट्रेन से कोल्हापुर चला गया.

विस्तृत पूछताछ के बाद विजय कुमार शिंदे ने उस के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह एकतरफा प्यार करने वाला विश्वास अपनी सही जगह पर पहुंच गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अंकुश पर अंकुश लगाना पड़ गया भारी

पृथ्वी हांडा परिवार के साथ पंजाब प्रांत के जालंधर शहर के मौडल टाउन में अपनी विशाल कोठी में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुजाता के अलावा एकलौता बेटा जतिन था. कोठी से कुछ दूरी पर मेनमार्केट में उन की 2 दुकानें थीं. एक में हांडा डेयरी थी, जिस में शुद्ध देसी घी का थोक कारोबार होता था तो दूसरी में रेडीमेड गारमेंट्स का. क्वालिटी के लिए उन की दोनों ही दुकानें शहर भर में प्रसिद्ध थीं. दोनों दुकानें घर से ज्यादा दूर नहीं थीं, इसलिए बापबेटा कोठी से दुकानों तक पैदल टहलते हुए चले जाते थे. हांडा डेयरी का काम पृथ्वी हांडा खुद देखते थे, जबकि हांडा कलेक्शन यानी गारमेंट्स की दुकान उन का बेटा जतिन संभालता था. बापबेटे के दुकानों पर चले जाने के बाद घर में सुजाता हांडा के अलावा 17 साल का नौकर हरीश ही रह जाता था. शरीर भारी होने की वजह से सुजाता को चलनेफिरने में दिक्कत होती थी, इसलिए घर के कामों में मदद के लिए उन्होंने हरीश को रखा हुआ था. 20 सितंबर, 2016 की शाम 5 बजे पृथ्वी हांडा ने जतिन की दुकान पर जा कर कहा, ‘‘बेटा, आज मंगलवार है. थोड़ी देर में तुम घर चले जाना और घर में रखा प्रसाद ले जा कर हनुमान मंदिर में चढ़ा देना.’’

‘‘ठीक है पिताजी, मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊंगा.’’ जतिन ने कहा, इस के बाद पौने 6 बजे वह घर के लिए निकला तो करीब 15 मिनट बाद 6 बजे के करीब वह कोठी पर पहुंच गया. उस ने कोठी का मेन गेट अंदर से बंद देखा तो उसे हैरानी हुई, क्योंकि कोठी का मुख्य गेट केवल रात को ही बंद होता था.

बहरहाल, कुछ सोचनेविचारने के बजाय जतिन ने डोरबैल बजाई. कई बार डोरबैल बजाने के बावजूद अंदर से कोई आहट सुनाई नहीं दी तो उसे चिंता हुई. पड़ोसी मि. कपूर ने जतिन को लगातार बैल बजाते देखा तो पास आ कर कहा, ‘‘बेटा, यह गेट लगभग आधे घंटे से बंद है और कुछ देर पहले कोठी के अंदर से चीखने की आवाज आई थीं. अंदर क्या हो रहा है, यह पता करने के लिए मैं ने भी खूब बैल बजाई थी, पर गेट नहीं खुला था.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है ’’ जतिन बुदबुदाया.

वह मि. कपूर से बातें कर ही रहा था कि तभी कोठी के अंदर खड़ी इनोवा कार के स्टार्ट होने की आवाज आई. जतिन चौंका. उसे लगा कि अंदर जरूर कुछ गड़बड़ है. समय न गंवा कर वह कोठी के 15 फुट ऊंचे मुख्यगेट पर चढ़ गया. जब वह अंदर कूदा तो 2 लड़के इनोवा कार से उतर कर कोठी के अंदर भागते दिखाई दिए.

वे लड़के इतनी तेजी से अंदर की ओर भागे थे कि वह उन्हें देख नहीं पाया. सिर्फ एक लड़के के कपड़े दिखाई दिए थे. वह नीली जींस और पीली शर्ट या टीशर्ट पहने था. लड़कों को कोठी के अंदर जाते देख जतिन उन के पीछे भागा, पर ड्राइंगरूम की ओर जाने वाली गैलरी में उसे नौकर हरीश खून से लथपथ पड़ा मिल गया तो वह उस के पास रुक गया. वह उसे झुक कर देखने लगा, तभी उसे छत पर जाने वाली सीढि़यों पर किसी की आवाज सुनाई दी.

हरीश को छोड़ कर जतिन सीढि़यों की ओर बढ़ा तो उस ने देखा कि जो लड़के कार से निकल कर अंदर आए थे, वे सीढि़यों से छत पर जा रहे थे. उन का पीछा करने के बजाय उस ने सीढि़यों का दरवाजा बंद कर के अंदर से कुंडी लगा दी और भाग कर हरीश के पास आया और उस की नब्ज टटोली तो पता चला कि उस की मौत हो चुकी है.

जतिन घबरा गया. मां को आवाज देते हुए वह ड्राइंगरूम में पहुंचा तो वहां मां को खून से लथपथ पड़ी देख कर वह उस से चिपट कर रोने लगा. तभी उसे लगा कि मां की सांसें चल रही हैं. अब तक उस के रोने की आवाज सुन कर कई पड़ोसी आ गए थे. जतिन ने खुद को संभाला और पड़ोसियों से पिता को फोन करवाने के साथ उन्हीं की मदद से मां को नजदीक के एक अस्पताल ले गया.

वहां के डाक्टरों ने सुजाता का प्राथमिक उपचार कर के उन्हें पटेल अस्पताल ले जाने को कहा. लेकिन पटेल अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन की मौत हो गई. उस समय तक पृथ्वी हांडा भी अस्पताल पहुंच गए थे. जब उन्हें पत्नी की मौत का पता चला तो दुखी हो कर वह बेहोश हो गए.

सूचना पा कर थाना डिवीजन नंबर-6 के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सतेंद्र चड्ढा भी अस्पताल पहुंच गए थे. उन्होंने जरूरी काररवाई कर सुजाता की लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद उन्होंने पृथ्वी हांडा की कोठी पर आ कर नौकर हरीश की लाश को भी पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

दिनदहाड़े हुई इन हत्याओं से शहर में सनसनी तो फैल ही गई थी, खबर पा कर शहर के तमाम व्यापारी पृथ्वी हांडा की कोठी पर जमा हो गए थे. सभी में दहशत का माहौल था. एसीपी, डीसीपी, एडीसीपी (क्राइम) तथा पुलिस कमिश्नर अर्पित शुक्ला भी आ गए थे. फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ, डौग स्क्वायड, क्राइम टीम अधिकारियों के साथ ही एवं फोटोग्राफर ने भी आ कर अपना काम शुरू कर दिया था.

घटनास्थल यानी कोठी की जांच में पुलिस ने हांडा की कोठी के कंपाउंड में खड़ी इनोवा कार से एक सेफ बरामद की थी, जो कोठी के अंदर से ला कर कार में रखी गई थी. इस का मतलब था सुजाता और नौकर हरीश की हत्या लूटपाट के लिए की गई थी. जाहिर है, हत्यारे सेफ को कार से अपने साथ ले जाना चाहते थे.

कोठी के अंदर जिस कमरे में सेफ रखी थी, उस में एक अलमारी भी थी, जिस का सारा सामान कमरे में बिखरा पड़ा था. अलमारी को देख कर पृथ्वी हांडा ने बताया कि अलमारी से ढाई, पौने 3 लाख रुपए नकद और करीब 10 लाख रुपए के गहने गायब हैं. इस के अलावा वे सुजाता के पहने गहने भी उतार ले गए थे.

पूछताछ में पुलिस को ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से लुटेरों तक पहुंचा जा सकता. लेकिन पुलिस ने इतना जरूर अंदाजा लगा लिया था कि जिस ने भी वारदात को अंजाम दिया था, उसे हांडा परिवार की दिनचर्या और कोठी के कोनेकोने की जानकारी थी.

पुलिस कमिश्नर अर्पित शुक्ला ने पुलिस अधिकारियों की मीटिंग कर के थानाप्रभारी सतेंद्र चड्ढा के नेतृत्व में एसआई नरेंद्र सिंह, जसवंत कौर, एएसआई महावीर सिंह, लखविंदर सिंह, हैडकांस्टेबल जागीरी लाल, सुखविंदर सिंह, संदीप कौर तथा स्पैशल स्टाफ के एएसआई सुरजीत सिंह और सुनीत को मिला कर एक टीम बनाई और जरूरी निर्देश दे कर टीम को इस मामले की जांच सौंप दी.

घटनास्थल के निरीक्षण के दौरान पुलिस को एक्टिवा स्कूटर की एक चाबी और टोपी मिली, जो शायद लुटेरों से हड़बड़ी में छूट गई थी. गली में लगे सीसीटीवी कैमरों से पुलिस को कोई मदद नहीं मिल सकी. चाबी मिलने से यह अंदाजा लगाया गया कि हो सकता है कोठी के आसपास कोई एक्टिवा स्कूटर खड़ी हो.

सतेंद्र चड्ढा ने कोठी के आसपास तलाश की तो हांडा की कोठी से कुछ दूरी पर एक एक्टिवा स्कूटर लावारिस हालत में खड़ी मिल गई. उन्होंने कोठी में मिली चाबी उस में लगाई तो वह स्टार्ट हो गई. इस का मतलब वह एक्टिवा स्कूटर लुटेरों की थी. पुलिस ने रजिस्ट्रेशन नंबर के आधार पर उस के मालिक के बारे में पता किया तो पता चला कि एक्टिवा मिट्ठापुर के रहने वाले विजय कुमार के नाम रजिस्टर्ड थी.

विजय कुमार से जब स्कूटर के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि एक्टिवा को ज्यादातर उस का 20 साल का बेटा अंकुश चलाता था. एक दिन पहले उस ने बताया था कि बाजार से उस की स्कूटर चोरी हो गई थी, जिस की उस ने रिपोर्ट लिखवा दी थी.

सतेंद्र चड्ढा ने अंकुश के बारे में पूछा तो विजय कुमार ने बताया कि वह पिछली रात से घर नहीं आया था. उन्होंने अंकुश की फोटो और मोबाइल नंबर ले लिया. पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा कर उस की फोटो की कौपी बनवा कर पुलिस वालों के अलावा मुखबिरों को भी दे दीं ताकि वे उस के बारे में पता कर सकें.

2 दिनों बाद यानी 25 सितंबर को मुखबिर की सूचना पर बसअड्डे के पास से अंकुश को एक लड़के के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. थाने ला कर पूछताछ की गई तो पता चला उस के साथ पकड़े गए लड़के का नाम सतीश था. उन दोनों ने ही अन्य 2 साथियों अजय और मलकीत के साथ मिल कर सुजाता हांडा और नौकर हरीश को हौकी और स्टिकपैन से जख्मी कर के लूटपाट को अंजाम दिया था.

इस के बाद दोनों की निशानदेही पर अजय और मलकीत को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पकड़े गए चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के पूछताछ एवं सामान बरामद करने के लिए 4 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड अवधि के दौरान अंकुश की निशानदेही पर रुपए तो अजय और मलकीत की निशानदेही पर गहने बरामद कर लिए गए. पूछताछ में पृथ्वी हांडा की पत्नी सुजाता और नौकर हरीश की हत्या तथा लूट की जो वजह सामने आई, वह मात्र बेइज्जती का बदला लेने के लिए किया गया अपराध था.

मिट्ठापुर के रहने वाले विजय कुमार की कपड़ों की सिलाई की दुकान थी, जो खास नहीं चलती थी. फिर भी रातदिन मेहनत कर के उस ने अपने दोनों बेटों अंकुश और विशाल को पढ़ाने की पूरी कोशिश की थी कि वे पढ़लिख कर कुछ बन जाएं. लेकिन उस का यह सपना पूरा नहीं हुआ. अंकुश तो आवारा निकला ही, उस ने छोटे भाई को भी अपने सांचे में ढालने की कोशिश की. लेकिन इस मामले में वह पूरी तरह सफल नहीं हुआ. इस की वजह यह थी कि विशाल थोड़ीबहुत बुद्धि का इस्तेमाल कर लेता था.

अंकुश अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए छोटेमोटे काम कर लिया करता था. इसी क्रम में वह पृथ्वी हांडा के यहां काम करने गया था. शुरू में उस ने मेहनत और ईमानदारी से काम किया, जिस से पृथ्वी हांडा को उस पर विश्वास हो गया. इस के बाद अंकुश ने घर की कोई जरूरत बता कर पृथ्वी हांडा से 10 हजार रुपए उधार ले लिए. उस ने 2 महीना बाद से 2 हजार रुपए महीना तनख्वाह से कटवाने को कहा था, लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी उस ने न तो रुपए लौटाए और न ही वेतन से रुपए काटने दिए.

हर महीने वह कोई न कोई बहाना कर के रुपए काटने से रोक देता था. इसी बीच पृथ्वी हांडा को अंकुश के बारे में पता चला कि वह जैसा दिखाई देता है, वैसा है नहीं. अंकुश की सच्चाई जान कर उन्हें बड़ा दुख हुआ और उन्होंने तय कर लिया कि वह उन के रुपए दे या न दे, अब वह उसे अपने यहां काम पर नहीं रखेंगे.

वेतन वाले दिन पृथ्वी हांडा ने वेतन देते समय अंकुश से पूछा, ‘‘तुम उधार के 10 हजार रुपए लौटा रहे हो या तुम्हारे वेतन से काट लूं ’’

‘‘इस महीने रहने दीजिए, क्योंकि भाई का एडमीशन कराना है और पिताजी भी बीमार हैं.’’

पृथ्वी हांडा को पता था कि अंकुश झूठ बोल रहा है, इसलिए उन्होंने गुस्से में अंकुश की तनख्वाह उस के मुंह पर मार कर नफरत से देखते हुए कहा, ‘‘झूठा कहीं का, यहां से दफा हो जा. तू कभी नहीं सुधर सकता.’’

पृथ्वी हांडा ने अंकुश को जो भी कहा था, दुकान के सभी नौकरों के सामने कहा था, जिस से ये बातें उसे बहुत बुरी लगी थीं. उन की इन बातों से नाराज हो कर उस ने उन्हें सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. उसी दिन से वह हांडा परिवार का ऐसा दुश्मन बन गया, जिस के बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था.

अंकुश पृथ्वी हांडा को सबक सिखाने की योजना बनाने लगा. लेकिन यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने सहपाठियों सतीश, मलकीत और अजय को यह कह कर अपनी योजना में शामिल कर लिया कि हांडा के घर लूट में करोड़ों रुपए मिलेंगे. सभी नादान उम्र कि युवक थे, इसलिए बिना सोचेसमझे वे अंकुश की बातों में आ गए. अंकुश ने अपने भाई विशाल को भी योजना में शामिल कर लिया. इस के बाद अंकुश ने 28 मई, 2016 को अपने इन्हीं साथियों के साथ मिल कर पृथ्वी हांडा की दुकानों में आग लगा दी. उस ने सोचा था कि आग से ताले और शटर पिघल जाएंगे तो वे अंदर जा कर लूट कर लेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

इस योजना में असफल होने के बाद 20 सितंबर को अंकुश ने साथियों के साथ पृथ्वी हांडा की कोठी पर लूट की योजना बनाई. लेकिन इस में विशाल शामिल नहीं हुआ. योजना के अनुसार, अंकुश मलकीत के साथ ठीक साढ़े 5 बजे पृथ्वी हांडा की कोठी में दाखिल हुआ.

कोठी में दाखिल होने से पहले उस ने अपनी एक्टिवा स्कूटर कोठी से थोड़ी दूरी पर खड़ी कर दी थी. सतीश को उस ने बाहर खड़ा कर दिया था ताकि कोई खतरा दिखाई दे तो वह उसे आगाह कर सके. अंकुश अपने साथ एक हौकी ले कर आया था. कोठी के अंदर जाने से पहले उन्होंने मुख्य गेट को अंदर से बंद कर के ताला लगा दिया था.

कोठी में दाखिल होते ही अंकुश का सामना नौकर हरीश से हुआ तो बिना कोई बातचीत किए उस ने हरीश के सिर पर हौकी से अंधाधुंध वार कर किए. हरीश का सिर फट गया, जिस से खून बहने लगा. वह चीख कर फर्श पर गिर पड़ा था. उसी बीच मलकीत रसोई में से स्टिकपैन उठा लाया और उस ने भी उस के सिर पर कई वार किए. इस मारपीट से हरीश बेहोश हो गया.

हरीश चीखा तो उस की चीख सुन कर ड्राइंगरूम में बैठी सुजाता उठ कर उसे देखने आईं. उसी वक्त अंकुश और मलकीत उन पर भी टूट पड़े. वह भी खून से लथपथ हो कर फर्श पर गिर पड़ीं.

इस के बाद अंकुश ने फटाफट सुजाता के शरीर के गहने उतारे और अंदर अलमारी में रखा कैश और आभूषण अपने कब्जे में ले लिए. वहां रखी सेफ को उठा कर वे बाहर ले आए और इनोवा कार में रख दिया. कार की चाबी कहां रखी रहती है, यह अंकुश को पता था. सेफ में काफी दौलत रखी है, यह भी उसे पता था.

उन्होंने सेफ रख कर जैसे ही कार स्टार्ट की, उसी समय जतिन कोठी के अंदर कूदा. उसे देख कर अंकुश और उस के साथी कार छोड़ कर कोठी के अंदर गए और सीढि़यों से छत पर जा कर पीछे से कूद कर भाग गए. भागने में अंकुश की एक्टिवा स्कूटर की चाबी गिर गई, जिस से वे पकड़े गए. रिमांड अवधि समाप्त होने पर इंसपेक्टर सतेंद्र चड्ढा ने अंकुश, मलकीत, सतीश और अजय को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कालगर्ल सहेली बनी कातिल

दोस्त को गोली मार कर की खुदकुशी

सेना में लांसनायक संतोष कुमार ने मंगलम कालोनी में किराए के मकान में अपने दोस्त रिकेश कुमार सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी. उस के बाद संतोष ने भी गोली मार कर खुदकुशी कर ली.

धायं… धायं… धायं… एक के बाद एक 3 गोलियां चलीं और आसपास के लोगों को कुछ पता ही नहीं चल सका. हैरानी की बात तो यह भी थी कि मकान में रहने वाले मकान मालिक और बाकी किराएदारों को भी गोली चलने की आवाज सुनाई नहीं पड़ी.

24 सितंबर, 2017 को पटना के दानापुर ब्लौक में हुई इस वारदात में किसी ‘तीसरे’ के होने के संकेत ने पुलिस का सिरदर्द बढ़ा दिया है. दानापुर थाने के बेली रोड पर बसी मंगलम कालोनी में सेना के 32 साला लांसनायक संतोष कुमार सिंह ने लाइसैंसी राइफल से 22 साला दोस्त रिकेश कुमार सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी और उस के बाद खुद को भी गोली मार ली.

संतोष किराए के मकान में अपने परिवार के साथ रहता था. मकान के आसपास के लोगों ने पुलिस को बताया कि हत्या वाले दिन रिकेश कुमार के अलावा एक और आदमी संतोष के घर पर था. किसी ने उस तीसरे शख्स को बाहर निकलते नहीं देखा. पुलिस को उस का कोई अतापता नहीं मिल पा रहा है. कुछ महीने पहले ही संतोष का तबादला अरुणाचल प्रदेश में हो गया था. उस के बाद दोनों फोन पर ही लंबी बातें किया करते थे. संतोष छुट्टी में घर आता, तो रिकेश से मिलता था.

24 सितंबर, 2017 को संतोष ने रिकेश को फोन कर अपने घर बुलाया. रिकेश ने आने से मना किया और कहा कि घर में काफी काम है. उस के बाद संतोष ने उस से कहा कि उस ने घर पर ही उस के लिए खाना बनवाया हुआ है. खाने के नाम पर रिकेश ने उस के घर आने के लिए हामी भरी. कुछ देर बाद रिकेश संतोष के घर पहुंच गया और कमरे में बैठ कर टैलीविजन देखने लगा. उसी दौरान वे दोनों बातचीत भी करते रहे. किसी बात को ले कर दोनों में तीखी झड़प शुरू हो गई. कुछ ही देर में संतोष चिल्लाने लगा, पर रिकेश उस की बातों को अनसुना कर टैलीविजन देखता रहा.

संतोष शादीशुदा था और रिकेश की शादी नहीं हुई थी. घर वाले उस के लिए लड़की ढूंढ़ रहे थे. संतोष कुछ महीने पहले तक बिहार में ही पोस्टैड था. वह बिहार रैजीमैंट के ट्रेनिंग सैंटर में इंस्ट्रक्टर था. रिकेश की भी सेना में सिपाही के पद पर बहाली हुई थी और वह ट्रेनिंग सैंटर में ही ट्रेनिंग ले रहा था. उसी दौरान उस की मुलाकात संतोष से हुई और कुछ ही समय में वे दोनों गहरे दोस्त बन गए. पुलिस ने उन दोनों के मोबाइल फोन का रिकौर्ड खंगाला, तो दोनों के बीच की बातचीत को सुन कर लगा कि उन की दोस्ती हदें पार कर चुकी थी. दोनों हर तरह की बातें खुल कर किया करते थे.

पुलिस के मुताबिक, रिकेश के एक दोस्त ने बताया कि रिकेश किसी को कुछ बताए बगैर ही बैरक से बाहर निकल गया था. देर तक जब वह बैरक में नहीं पहुंचा, तो उस के साथी जवानों ने रिकेश की मां को फोन कर मामले की जानकारी दी.

रिकेश की मां उस समय भोपाल में थीं. उन्होंने पटना से सटे दानापुर इलाके में रहने वाली अपनी बेटी पिंकी को रिकेश के बारे में पता करने को कहा. पिंकी अपने पति मनोज को साथ ले कर देर रात संतोष के घर पहुंची. उस ने मकान मालिक राजेंद्र सिंह से संतोष और रिकेश के बारे में पूछा. मकान मालिक ने उन को घर में नहीं घुसने दिया और सुबह आने को कहा.

दूसरे दिन सुबह पिंकी अपने ससुर जगेश्वर सिंह के साथ संतोष के घर पहुंची. पिंकी ने दरवाजा खटखटाया, पर अंदर से कोई जवाब नहीं मिला. उस के बाद उस ने जोर से चिल्ला कर आवाज लगाई. काफी कोशिश के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, तो उस ने मकान मालिक को मामले की जानकारी दी. मकान मालिक की सहमति के बाद संतोष के मकान का दरवाजा तोड़ा गया. दरवाजा टूटने के बाद जब वे लोग अंदर गए, तो सभी के मुंह से चीखें निकल पड़ीं. कमरे के अंदर संतोष और रिकेश की खून से सनी लाशें पड़ी हुई थीं.

संतोष और रिकेश के परिवार समेत पुलिस भी इस बात से हैरान है कि राइफल की 3 गोलियां चलीं, पर मकान मालिक को उस की आवाज कैसे नहीं सुनाई दी? हैरानी की बात यह भी है कि मकान में रहने वाले बाकी किराएदारों को भी आवाज नहीं सुनाई पड़ी. कमरे में संतोष की राइफल के साथ 3 जिंदा कारतूस और 3 खोखे बरामद हुए. कमरे में लगा टैलीविजन चल रहा था. कमरे से पुलिस ने संतोष और रिकेश के मोबाइल फोन बरामद किए.

22 सितंबर को संतोष अपनी बीवी रिंकी देवी और 10 साल के बेटे आयुष को सारण जिले के चकिया थाना के दुरघौली गांव में छोड़ आया था. दुरघौली उस का पुश्तैनी घर है. उस के पिता धर्मदेव सिंह किसान हैं. रिकेश आरा के दोबाहा गांव का रहने वाला था और उस के पिता का नाम विजय कुमार सिंह है. रिकेश की बहन पिंकी और बाकी घर वालों ने बताया कि संतोष अपनी बहन से रिकेश की शादी करवाना चाहता था. उस ने अपनी बहन से रिकेश को मिलवाया भी था. उस के बाद रिकेश उस से फोन पर अकसर बातें करने लगा था. रिकेश के घर वाले संतोष की बहन को पसंद नहीं करते थे और शादी के लिए राजी नहीं हो रहे थे. संतोष लगातार रिकेश पर शादी का दबाव बना रहा था और रिकेश यह कह कर शादी टाल रहा था कि उस के घर वालों को लड़की पसंद नहीं है.

संतोष की बीवी रिंकी देवी का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. उस ने किसी से किसी तरह का झगड़ा होने की बात से साफ इनकार किया. संतोष के कमरे में टंगे संतोष और रिकेश के हंसतेमुसकराते कई फोटो देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन दोनों के बीच काफी गहरी दोस्ती थी.

रिकेश का सिर बाथरूम के अंदर था और जिस्म का बाकी हिस्सा कमरे में था. ऐसा लग रहा था कि उसे मारने के बाद उस की लाश को घसीट कर बाथरूम की ओर ले जाया गया था. रिकेश के पैर के पास ही संतोष की लाश पड़ी हुई थी. उस के पेट के ऊपर राइफल रखी हुई थी और उस की नली के आगे के हिस्से में खून के दाग थे.

रिकेश के शरीर में 2 गोलियों के निशान थे और संतोष की ठुड्डी पर गोली का निशान था. उस के सिर के पिछले हिस्से में काफी गहरा जख्म था. संतोष के गले में रस्सी भी बंधी हुई थी और उस का दूसरा छोर सीलिंग पंखे से बंधा हुआ था. इस से यह पता चलता है कि संतोष ने पहले गले में फंदा डाल कर पंखे से लटक कर जान देने की कोशिश की होगी. उस में कामयाबी नहीं मिलने के बाद उस ने गोली मार कर खुदकुशी कर ली.

पेपर माफिया के निराले खेल – भाग 3

यूनिवर्सिटी के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. जगदीश प्रसाद जाट की गिरफ्तारी भी 17 अप्रैल को नाटकीय तरीके से हुई. उस दिन सुबह एसओजी के एक डिप्टी एसपी महिला पुलिसकर्मी के साथ पितापुत्री बन कर जयपुर में मौडल टाउन स्थित प्रो. जगदीश प्रसाद जाट के घर गए. वे किराएदार बन कर उन से मिले और किराए पर मकान लेने की बात कही.

प्रो. जगदीश प्रसाद जाट ने उन्हें अपना मकान दिखा दिया. किराए पर मकान लेने के बहाने एसओजी के डिप्टी एसपी ने पूरा मकान देखपरख लिया और अन्य सबूट जुटा लिए. इस के बाद डिप्टी एसपी ने बाहर खड़े एसओजी के एडिशनल एसपी को खुद का दामाद बता कर अंदर बुलाया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

एसओजी की टीम प्रो. जगदीश प्रसाद जाट को ले कर एसओजी मुख्यालय पहुंची तो वह हैरान रह गए. जो लोग किराए पर मकान लेने आए थे, वे पुलिस के अफसर निकले. दूसरी ओर प्रो. जगदीश प्रसाद जाट को एक महिला समेत 3-4 लोगों द्वारा ले जाने पर उन के घर में हड़कंप मच गया. वे समझ नहीं सके कि क्या हुआ था. उन्होंने पुलिस को प्रो. जगदीश प्रसाद जाट के अपहरण की सूचना दे दी.

उन की सूचना पर थाना मालवीयनगर पुलिस मौके पर पहुंची और जांच शुरू कर दी. करीब 3 घंटे बाद पता चला कि प्रो. जगदीश प्रसाद जाट को एसओजी ले गई थी. दिन भर की पूछताछ के बाद शाम को प्रो. जगदीश प्रसाद जाट की गिरफ्तारी की सूचना मिलने पर उन के घर वालों के चेहरे मुरझा गए थे.

यही स्थिति रमेश बुक डिपो के कर्मचारी शरद को गिरफ्तार करने के दौरान हुई थी. उस दिन सुबह सादे कपड़ों में एसओजी की टीम जयपुर में मानसरोवर के रजत पथ स्थित रमेश बुक डिपो से शरद को पकड़ कर ले गई. इस पर बुक डिपो के लोगों ने पुलिस को शरद के अपहरण की सूचना दे दी. थाना मानसरोवर पुलिस ने जांच की तो पता चला कि शरद को एसओजी ले गई थी.

पेपर लीक रैकेट में जयपुर के कई बुक डिपो की भूमिका संदिग्ध पाई गई है. ये बुक डिपो विशेषज्ञों के नाम पर वन वीक सीरीज, गेस पेपर व पासबुक प्रकाशित करते हैं. रैकेट ने जिनजिन पेपरों को आउट किए हैं, उन पेपरों के न्यूमेरिकल हूबहू पासबुक व वन वीक सीरीज में थे. दरअसल, अलगअलग कालेजों एवं यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों तथा लेक्चरर विभिन्न बुक डिपो से जुड़े हुए हैं. कोई बुक डिपो की किताबों का लेखक है तो कोई वन वीक सीरीज का विशेषज्ञ.

बांदीकुई के कोचिंग संचालक चंद्रप्रकाश ने एसओजी को पूछताछ में बताया कि उसे आमतौर पर शाम को या देर रात को अगले दिन की परीक्षा का पेपर मिल जाता था. इस पेपर के आधार पर कोचिंग सेंटर के विद्यार्थियों को रिवीजन के नाम पर कोचिंग सेंटर पर बुला कर रात भर पेपर रटवाया जाता था. इस से उस की कोचिंग को प्रसिद्धि मिल रही थी. पेपर लीक रैकेट के उजागर होने से राजस्थान यूनिवर्सिटी प्रशासन उलझन में फंस गया है.

एसओजी की जांच एवं अन्य सबूतों के आधार पर कई पेपर आउट हुए थे. एसओजी ने इस का खुलासा तो किया ही, आरोपियों ने अपनी करतूत भी स्वीकार कर ली. लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन उन पेपरों को आउट घोषित करने में देरी करता रहा. इस की वजह यह थी कि परीक्षा प्लानिंग एवं मौनिटरिंग कमेटी ही यूनिवर्सिटी की सब से पावरफुल कमेटी होती है.

प्रो. गोविंद पारीक इस कमेटी के संयोजक थे और वह पेपर लीक मामले में गिरफ्तार हो चुके थे. हालांकि उन की गिरफ्तारी के कई दिनों बाद उन के स्थान पर प्रो. एस.एल. शर्मा को इस कमेटी का संयोजक बना दिया गया था. प्रो. गोविंद पारीक ने यूनिवर्सिटी की चयन कमेटी की परीक्षाओं में पेपर लीक न हो, इस की जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन वह खुद ही पेपर लीक करने वालों में शामिल थे.

एसओजी की जांच में सामने आया है कि एमकौम का जो पेपर प्रो. गोविंद पारीक को बनाना था, वह उन्होंने चौमूं के निजी कालेज अग्रसेन कालेज के प्रोफेसर शंभुदयाल से बनवाया था और यूनिवर्सिटी में पेपर जमा करवाते समय यह शपथ पत्र दिया था कि पेपर उन्होंने खुद बनाया है. जबकि निजी कालेज के प्रोफेसर शंभुदयाल से पेपर बनाने के दौरान ही लीक हो गया था.

21 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कुलपति वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजेश्वर सिंह ने एग्जामिनेशन प्लानिंग एंड मौनिटरिंग कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 5 पेपर रद्द करते हुए उन्हें दोबारा कराने का फैसला लिया.

इन में 10 अप्रैल को होने वाला बीए फाइनल ईयर का ज्योग्राफी प्रथम का प्रश्नपत्र, 11 अप्रैल को हुआ. एमए फाइनल ईयर का ज्योग्राफी औफ वाटर रिसोर्सेज देयर मैनेजमेंट एंड यूटिलिटीज का प्रश्नपत्र, 12 अप्रैल को होने वाला बीए फाइनल ईयर  का ज्योग्राफी द्वितीय का प्रश्नपत्र, 13 अप्रैल को हुआ एमकौम प्रीवियस का एबीएसटी (एडवांस कास्ट एकाउंटिंग) का प्रश्नपत्र तथा 17 अप्रैल को आयोजित एमए फाइनल  ईयर का एडवांस ज्योग्राफी औफ इंडिया प्रश्नपत्र का पेपर रद्द कर दिया गया.

दूसरी ओर एसओजी की ओर से लगातार की जा रही गिरफ्तारियों के विरोध में राजस्थान यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ एवं राजस्थान विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने मोर्चा खोल दिया. इन का कहना था कि एसओजी मनमर्जी से काररवाई कर रही है, जबकि सारे शिक्षक गलत नहीं हैं. कुछ शिक्षकों ने गेस पेपर विद्यार्थियों को बताए हैं, लेकिन फोन रिकौर्डिंग में रुपयों के लेनदेन की कोई बात साबित नहीं हो रही है.

एसओजी ने करीब एक महीने की अपनी जांच में लगभग सौ से अधिक लोगों के फोन टेप किए. इन फोन काल्स रिकौर्डिंग में कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं. इस के बाद 17 अप्रैल को एक साथ जयपुर, बीकानेर, चौमूं, बांदीकुई, हनुमानगढ़ के भादरा आदि स्थानों पर छापे मारे गए. सब से पहले 8 लोगों को पकड़ा गया. इन से पूछताछ में कडि़यां जुड़ती गईं और 7 दिनों में 19 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया.

एसओजी की जांच में ऐसे लेक्चरर और प्रोफेसर सामने आए हैं, जिन्होंने अपना ईमान नहीं बेचा. फोन रिकौर्डिंग के अनुसार, एक दिन यूनिवर्सिटी के डिप्टी रजिस्ट्रार एम.सी. गुप्ता ने गोपनीय शाखा के अनुभाग अधिकारी नंदलाल सैनी को फोन कर के पूछा, ‘परीक्षाओं की क्या तैयारी चल रही है?’

नंदलाल ने कहा, ‘‘सर, पेपर प्रिंट हो कर आने लगे हैं.’’

‘‘अच्छा…यार ये इनकम टैक्स का पेपर किस का प्रिंट हुआ है?’’ गुप्ता ने पूछा.

नंदलाल ने बताया, ‘‘सर, कोई राम गर्ग हैं.’’

‘‘कहां का है यह?’’

‘‘सर, कूकस में आर्यन कालेज का लेक्चरर है.’’

‘‘यार, उस का कोई नंबर है तो मैसेज कर दो.’’

‘‘ठीक है सर, अभी करता हूं.’’

बाद में डिप्टी रजिस्ट्रार एम.सी. गुप्ता ने राम गर्ग को फोन किया, ‘‘राम गर्गजी बोल रहे हैं?’’

‘‘हां, बोल रहा हूं. बताओ, क्या काम है?’’ राम गर्ग ने पूछा.

‘‘मैं यूनिवर्सिटी से डिप्टी रजिस्ट्रार एम.सी. गुप्ता बोल रहा हूं.’’

‘‘जी सर, बताइए.’’

‘‘यार, आप ने जो पेपर सेट किया है, वही आएगा.’’

गर्ग, ‘‘अच्छा…’’

गुप्ता ने कहा, ‘‘यार, कौन से क्वेश्चन पेपर के लिए सेलेक्ट किए हैं, जरा बताओ.’’

‘‘पेपर..? सर मरवाओगे क्या? मैं ऐसा नहीं करूंगा.’’

‘‘अरे यार, कुछ नहीं होगा. तुम्हारे भी काम आऊंगा.’’

‘‘नहीं सर, मैं नहीं बताऊंगा. माफ करो.’’

कथा लिखे जाने तक कई प्रोफेसर फरार थे. एसओजी उन की तलाश में जुटी थी. बहरहाल, पेपर लीक प्रकरण ने उच्च शिक्षा को राजस्थान को बदनाम कर दिया है. इस समय राजस्थान में कभी किसी यूनिवर्सिटी और कालेज के पेपर आउट हो रहे हैं तो कभी किसी भर्ती परीक्षा के.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ठगों ने खोला गृह मंत्रालय का फरजी ट्रेनिंग सेंटर – भाग 3

हडक़ाया डीसीपी सतीश कुमार को…

इन में से एक युवक ट्रेनिंग हाल में 11 युवकों और एक युवती को लेक्चर देता मिला था, उस ने अपना नाम आशीष चौधरी बताया. वह बड़े रोबदार आवाज में डीसीपी सतीश कुमार को हडक़ाते हुए बोला, ‘‘आप नहीं जानते मैं कौन हूं. मैं गृह मंत्रालय के डिपार्टमेंट औफ क्रिमिनल इंटेलिजेंस में डीसीपी हूं. मुझ पर हाथ डालना आप लोगों को महंगा पड़ जाएगा.’’

एक बार को डीसीपी सतीश कुमार भी चकरा गए. यह व्यक्ति सच बोल है या झूठ, वह निर्णय कर पाते उस से पहले ही स्पैशल सीपी रविंद्र यादव ने आशीष चौधरी के गरेबान पर हाथ डाल दिया. वह आशीष चौधरी को घूरते हुए बोले, ‘‘हमारे साथ क्राइम ब्रांच के औफिस चलो… वहां बताना तुम कौन हो.’’

आशीष चौधरी चीखता रहा, तरहतरह की धमकियां देता रहा, लेकिन उस की नहीं सुनी गई. उसे इंसपेक्टर अभिजीत और एसआई इंद्रवीर सिंह ने जबरन पुलिस वैन में बिठा लिया. दूसरे लोगों को भी पुलिस वैन में बिठा कर उस जगह को ताला लगा दिया गया. यह क्राइम ब्रांच की टीम पहले इन लोगों की असलियत जान लेना चाहती थी, तभी इस ट्रेनिंग सेंटर की तलाशी का काम शुरू होता. इन्हें क्राइम ब्रांच के औफिस में लाया गया.

यहां खुद को गृह मंत्रालय में क्रिमिनल इंटेजिलेस में डीसीपी बता रहे आशीष चौधरी से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस की सारी हेकड़ी धरी की धरी रह गई. उस ने स्वीकार किया कि वह गृह मंत्रालय के नाम पर फरजी ट्रेनिंग सेंटर चला रहा था. आशीष ने बताया कि वह 7वीं क्लास तक पढ़ा है. शुरू से ही वह बहुत महत्त्वाकांक्षी था, ढेर सारा रुपया कमाना चाहता था. कम शिक्षा की बदौलत सरकारी जौब तो वह पा नहीं सकता था, लेकिन सरकारी दफ्तर खोल कर जरूर बैठ सकता था.

सेंटर खोलते ही फंसते गए बेरोजगार…

उस ने शुरूशुरू में मेहरौली में एंटी करप्शन आर्गनाइजेशन का औफिस खोला था, वहां उसे कामयाबी नहीं मिली तो एनजीओ चलाया, उस में भी सफलता नहीं मिली तो उसे बंद कर के घर बैठ गया. 2017 में उस ने अंकिता नाम की महिला से कोर्टमैरिज कर ली. उस समय उस की उम्र 27 साल थी जबकि अंकिता 40 साल की थी और 8 साल की बेटी की मां भी थी.

आशीष ने बताया कि 2014 में गोविंद कौशिक नाम के युवक से मुलाकात हुई. वह प्राइवेट जौब करता था. उस ने सलाह दी कि यदि गृह मंत्रालय के तहत अंडर कवर एजेंट ट्रेनिंग सेंटर खोला जाए तो अच्छी आमदनी की जा सकती है. वह ऐसे युवकों को जानता है, जिन्हें किसी भी कीमत पर सरकारी नौकरी चाहिए. इस के बाद आशीष ने गोविंद कौशिक को साथ मिल कर जाफरपुर कलां में किराए की जगह ले कर यह ट्रेनिंग सेंटर खोल लिया. यहां पर उसे अमित कुमार नाम का एक पार्टनर और मिल गया. अमित दिल्ली होम गार्ड में नौकरी करता था.

“ट्रेनिंग सेंटर में तुम ने युवकों को क्या कह कर जौइन करने को उकसाया था?’’ इंसपेक्टर अभिजीत ने पूछा.

“सर, हम युवकों को कहते थे कि यहां गृह मंत्रालय के अंडर में अंडर कवर एजेंटों की भरती करनी है. यहां जाफरपुर कलां में उन्हें ट्रेनिंग दी जाएगी. जैसे ही अंडर कवर एजेंटों की भरती खुलेगी, उन्हें वहां लगा दिया जाएगा. सिक्योरिटी के लिए उन्हें 5 लाख रुपया देना होगा. हम वहां सेंटर में उन्हें 9 बजे बुलाते थे और 5 बजे छुट्ïटी देते थे. सभी को यह कहा गया था कि यह गृह मंत्रालय का एक संवेदनशील डिर्पाटमेंट है, देश हित में कार्य करता है, इसलिए कोई बात लीक नहीं होनी चाहिए. हमारे सैंटर से 11 युवक और एक युवती जुड़ गए थे. अभी गोविंद कौशिक के द्वारा 8-10 नए युवक यह ट्रैनिंग सेंटर जौइन करने वाले थे, लेकिन रेड पड़ गई.’’

पूछताछ में पता चला कि इस फरजी ट्रेनिंग सेंटर को 3 लोग मिल कर चला रहे थे, जिन में आशीष चौथरी, गुरुग्राम के न्यू पालम विहार, सैक्टर 9 का रहने वाला है. दूसरा 33 साल का गोविंद कौशिक. यह अशोक नगर, बी ब्लौक का निवासी है. तीसरा 34 साल का अमित कुमार जो सूरजकुंड, फरीदाबाद का रहने वाला है.

तीनों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया तो उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. 11 बेरोजगार युवकों और एक युवती से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि वे तो नौकरी मिलने की लालसा में इन चंगुल में फंसे थे. जैसेतैसे कर के उन्होंने इन ठगों को पैसे दिए थे. पुलिस ने इन के नामपते दर्ज कर के उन्हें बुलाए जाने पर यहां आने की हिदायत दे कर घर जाने दिया.

जाफरपुर कलां के फरजी ट्रेनिंग सेंटर में जो चीजें बरामद की गईं, उन में रिक्रूटमेंट एप्लिकेशन, फेक काल लेटर, अपौइंटमेंट लेटर, 3 लाख रुपए नगद, 2 वायरलैस सेट, एक वायरलैस फोन, 16 फेक आईडी कार्ड, खाकी यूनिफार्म, 20 जोड़े खाकी मोजे, 4 जोड़ी पुलिस के जूते, 15 खाकी मास्क, डीसीआई लोगो के छपे हुए लिफाफे, औफिस स्टेशनरी, रजिस्टर फाइल कवर, 7 रबड़ स्टांप, ट्रेनिंग फाइल, डीसीआई के डीजी (डायरेक्टर जनरल) की फेक फोटो फ्रेम और राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की फोटो फ्रेम और अशोक चक्र लगे डीसीआई के झंडे, कंप्यूटर तथा लैपटाप थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. रजनी और उपेंद्र काल्पनिक नाम हैं.

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान – भाग 3

4 साल पहले मुरादाबाद के रहने वाले नंदकिशोर से कुलदीप की मुलाकात एक वैवाहिक आयोजन के दौरान हुई थी. उस के बाद से दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. वैसे नंदकिशोर उर्फ नंदू चाऊ की बस्ती लाइनपार का रहने वाला था. उस के पिता मुरादाबाद रेलवे में टैक्नीशियन के पद पर थे, जो रिटायर हो चुके थे. नंदकिशोर खुद एमटेक की पढ़ाई पूरी कर एक दवा कंपनी में मैडिकल रिप्रजेंटेटिव का काम करता था. उस ने एक दवा कंपनी की फ्रैंचाइजी भी ले रखी थी और दवाओं का कारोबार शुरू किया था.

इस काम को शुरू करने के लिए उस ने 20 लाख का गोल्ड लोन ले रखा था. संयोग से लौकडाउन में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जिस कारण वह लोन की किस्त नहीं जमा कर पाया था. इस वजह से वह काफी परेशान चल रहा था. वह अपनी सारी तकलीफें कुलदीप को बताया करता था. उस ने अपने कर्ज और किस्त नहीं जमा करने की मुसीबत भी बताई थी. उसे पता था कि कुलदीप का कारोबार अच्छी तरह से चल रहा है. इसे देखते हुए उस ने मदद के लिए उस के सामने हाथ फैला दिया.

उस से 65 हजार रुपए उधार मांगे और उसे विश्वास दिलाया कि पैसे जल्द वापस कर देगा. ज्यादा से ज्यादा 2 महीने का समय लगेगा. कुलदीप ने पैसे देने से इनकार तो नहीं किया, मगर वह कई दिनों तक उसे टालता रहा. नंदकिशोर के बारबार कहने पर कुलदीप बोला, ‘‘यार तू तो पहले से ही कर्जदार है तो मेरा 65 हजार कैसे वापस कर पाएगा? और फिर तेरी इतनी औकात अभी नहीं है.’’

यह सुन कर पहले से ही टूट चुका नंदकिशोर बहुत मायूस हो गया. उस ने केवल इतना कहा कि यदि तुम्हें नहीं देना था तो पहले दिन ही मना कर देता. यहां तक तो ठीक था. उन की दोस्ती पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा. लेकिन कुलदीप बारबार उस के जले पर नमक छिड़कता रहा. एक दिन तो कुलदीप ने हद ही कर दी. एक पार्टी में नंदकिशोर की कई लोगों के सामने बेइज्जती कर दी.

पार्टी छोटेबड़े कारोबारियों की थी. इस में शामिल लोगों की अपनीअपनी साख थी. कौन कितनी हैसियत वाला है और कौन किस कदर भीतर से खोखला, इसे कोई नहीं जानता था. कहने का मतलब यह था कि सभी एकदूसरे की नजर में अच्छी हैसियत वाले थे. पार्टी के दरम्यान कोरोना काल में कई तरह के बिजनैस में नुकसान होने की बात छिड़ी, तब कुलदीप ने नंदकिशोर पर ही निशाना साध दिया. पहले तो उस ने सब के सामने कह दिया कि वह लाखों का कर्जदार बना हुआ है. यह बात कुछ लोगों को ही मालूम थी. इस भारी बेइज्जती से नंदकिशोर तिलमिला गया. उस वक्त तो खून का घूंट पी कर रह गया.

ऐसा कुलदीप ने उस के साथ कई बार किया. नंदकिशोर ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए पुलिस को बताया कि कुलदीप पैसे के घमंड में चूर था. बड़ेबड़े दावे करना, बेइज्ज्ती करना उस के लिए मनोरंजन का साधन बन गया था. उस ने बताया कि इस से वह काफी तंग आ चुका था. तभी उस ने निर्णय लिया वह कुलदीप को सबक जरूर सिखाएगा. उस ने कसम खाई और योजना बना कर उस में अपने बुआ के लड़के कर्मवीर उर्फ भोलू और रणबीर उर्फ नन्हे को शामिल  कर लिया. कर्मवीर और रणबीर दोनों सगे भाई थे.

योजना के अनुसार, कुलदीप की हत्या से कुछ दिन पहले नन्हे को बताया कि कुलदीप ने हाल में ही अपनी पोलो कार बेची है. उस से मिले 4 लाख रुपए उस के पास हैं. पैसा हड़पने में मदद करने पर उसे भी हिस्सेदार बनाया जाएगा. नन्हे इस के लिए तैयार हो गया. नंदकिशोर ने कुलदीप को अच्छी हालत में मारुति स्विफ्ट कार दिलवाने का सपना दिखाया. उसी कार को दिखाने के बहाने से वह 4 जून, 2021 को अपनी बाइक से कुलदीप को ले कर कांठ में डेंटल हौस्पिटल के सामने पहुंच गया.

वहां पहले से ही नन्हे और भोलू एंबुलेंस ले कर उस का इंतजार कर रहे थे. एंबुलेंस भोलू चलाता था. वहां उस ने कहा कि आज ही बिजनौर जा कर पेमेंट करनी होगी. कुलदीप उस की बातों में आ गया. उस के साथ एंबुलेंस में बैठ गया. रास्ते में नंदकिशोर ने शराब की एक बोतल खरीदी. आगे चल कर स्यौहारा कस्बे में गाड़ी रोक कर तीनों ने शराब पी. कुलदीप जब शराब के नशे में धुत हो गया, तब नंदकिशोर ने उस के साथ मारपीट शुरू कर दी. उस से बोला, ‘‘अगर वह अपनी जिंदगी बचाना चाहता है तो 4 लाख रुपए मंगवा ले.’’

मरता क्या न करता, कुलदीप ने अपनी पत्नी सुनीता को फोन कर पैसे दुकान पर मंगवा लिए. इधर नंदकिशोर ने कर्मवीर उर्फ भोलू को भेज कर दुकान से वह पैसे मंगवा लिए. पैसा मिल जाने पर भी नंदकिशोर ने उसे नहीं छोड़ा. एंबुलेंस में औक्सीजन सिलेंडर का मीटर खोलने वाले औजार (स्पैनर) से उस ने कुलदीप के सिर पर कई वार कर दिए.

नशे की हालत में होने के कारण कुलदीप खुद को संभाल नहीं पाया. कुछ समय में ही उस की वहीं मौत हो गई. बाद में कुलदीप की लाश को एंबुलेंस में डाल कर धामपुर, नगीना, नजीबाबाद और भी कई जगह ले कर घूमते रहे. अगले दिन 5 जून को रात के 8 बजे उन्होंने लाश को गंगाधरपुर की सड़क पर डाल कर दोनों मुरादाबाद वापस लौट आए.

मुरादाबाद पुलिस ने नंदकिशोर और उस के साथी से साढ़े 3 लाख रुपए बरामद कर लिए. पूछताछ में नंदकिशोर ने इस योजना में शामिल 2 और लोगों के नाम बताए. उस के बताए सुराग से एक पकड़ा गया, लेकिन रणबीर उर्फ नन्हे 50 हजार रुपए ले कर फरार हो चुका था. बताते हैं कि कुलदीप के गले से हनुमान का 3 तोले का लौकेट भी गायब था. मुरादाबाद पुलिस ने 7 जून, 2021 को प्रैसवार्ता कर पूरी घटना की जानकारी दी.

ठगों ने खोला गृह मंत्रालय का फरजी ट्रेनिंग सेंटर – भाग 2

दिखने में लग रहा था सरकारी अधिकारी का औफिस…

उपेंद्र अपने कपड़े दुरुस्त कर के आगे बढ़ा तो उस का दिल धडक़ उठा. किसी तरह खुद पर नियंत्रण पाने की कोशिश करते हुए उपेंद्र ने दरवाजे पर पहुंच कर अंदर देखा. दरवाजे पर सफेद परदा पड़ा था. उपेंद्र ने परदा हटा कर शीशे में से झांका, अंदर बड़ी टेबल के पीछे व्हीलचेयर पर एक हृष्टपुष्ट कदकाठी का व्यक्ति बैठा हुआ फाइल देख रहा था. उस की टेबल पर सफेद कपड़ा बिछा हुआ था. टेबल पर ग्लोब रखा था. उस के पास बेशकीमती पैन स्टैंड, कुछ फाइल्स, पेपर वेट और ताजे फूलों का गुलदस्ता रखा हुआ था. गुलदान में गुलाब के ताजे फूल खिले हुए नजर आ रहे थे.

टेबल के दाईं ओर पीतल की नेम प्लेट रखी थी, जिस पर अमित कुमार, सीबीआई रैंक इंसपेक्टर लिखा हुआ था. जहां अमित कुमार की व्हीलचेयर थी, उस के पीछे सफेद दीवार पर महात्मा गांधी की फोटो लगी हुई थी. बाहर से ही कमरे का निरीक्षण कर लेने के बाद उपेंद्र ने धीरे से शीशे का दरवाजा खटखटाते हुए कहा, ‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’

अमित कुमार ने चौंकते हुए सिर उठाया और दरवाजे पर उपेंद्र को देख कर गंभीर लहजे में कहा, ‘‘वेलकम. आप अंदर आ सकते हैं?’’

उपेंद्र ने शीशे का दरवाजा खोला और अंदर आ गया. उस ने अमित कुमार को गुड मार्निंग कहा और उन के इशारे पर सामने रखी कुरसी पर बैठ गया.

“अपना रिज्यूमे लाए हैं आप?’’ अमित कुमार ने फाइल बंद करते हुए पूछा.

“जी सर,’’ कहते हुए उपेंद्र ने फाइल में से रिज्यूमे निकाल कर अमित कुमार के सामने रख दिया.

अमित ने नियम और शर्तों की दी जानकारी…

अमित कुमार ने रिज्यूमे पर सरसरी नजर डाली और मुसकरा कर उपेंद्र की तरफ देख कर कहा, ‘‘आप ने ग्रैजुएशन किया है, यह जान कर खुशी हुई. क्या आप यहां पर सर्विस करने के इच्छुक हैं?’’

“इसीलिए तो आया हूं सर.’’

“आप पहले यहां के रूल रेगुलेशन समझ लें तो आप के लिए बेहतर रहेगा.’’ अमित कुमार ने गंभीरता से कहा. उपेंद्र तुरंत सावधान हो कर बैठ गया, ‘‘जी सर, बताइए.’’

“देखिए उपेंद्रजी, हम यहां ग्रैजुएट युवकों को ही भरती कर रहे हैं, ऐसे युवक जो अपने देश से प्यार करते हों, जो पूरी निष्ठा से इस अंडरकवर एजेंट की ट्रेनिंग पूरी करें.’’

“मैं आप को विश्वास दिलाता हूं सर कि पूरी निष्ठा से मैं इस अंडरकवर एजेंट की ट्रेनिंग पूरी करूंगा.’’

“आप को यहां जौइनिंग मिल जाएगी, लेकिन इस के लिए सिक्योरिटी के तौर पर आप हमें 5 लाख रुपए देंगे.’’

“प… पांच लाख?’’ उपेंद्र का स्वर कांप गया, ‘‘सर, 5 लाख न हों तो…’’

“तो आप को जौब नहीं मिलेगी.’’ अमित कुमार ने सिर झटका, ‘‘वैसे 5 लाख रुपया हमें नहीं रखना. यह तो आप को सिक्योरिटी के लिए जमा करने होंगे. आप की कुछ ही साल यहां अंडरकवर एजेंट की ट्रेनिंग चलेगी. ट्रेनिंग हम इसलिए दे रहे हैं कि आप भविष्य में देश के लिए एक मंझे हुए एजेंट बन कर डिपार्टमेंट औफ क्रिमिनल इंटेलिजेंस की छत्रछाया में देश हित में काम कर सकें. आप को होम मिनिस्ट्री से यह ट्रेनिंग दिलवाई जाएगी. चूंकि अभी क्रिमिनल इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट में नियुक्तियां भर गई हैं, इसलिए यहां ट्रेनिंग सेंटर खोल कर युवकों को देश सेवा के लिए तैयार किया जा रहा है.’’

“आप से एक सवाल है सर.’’ उपेंद्र ने टोका.

“बेहिचक पूछ सकते हैं आप, जो भी मन में शंका हो.’’ अमित कुमार ने उपेंद्र की तरफ देख कर ठहरे हुए शब्दों में कहा.

“क्या ट्रेनिंग के दौरान एजेंट को सैलरी दी जाएगी?’’

“नहीं,’’ अमित कुमार ने सिर हिलाया, ‘‘आप की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद आप को यदि (डीसीआई) डिपार्टमेंट औफ क्रिमिनल इंटेलिजेंस में भरती कर लिया जाता है तो आप को होम मिनिस्ट्री से पूरी सैलरी दे दी जाएगी, जो ट्रेनिंग के वक्त को जोड़ देने पर लाखों रुपए में हो सकती है.’’

“यदि भरती नहीं किया गया तो?’’ उपेंद्र ने शंका प्रकट की.

“फिर आप को कुछ नहीं मिलेगा.’’ अमित कुमार ने स्पष्ट किया.

“ठीक है सर, मैं 5 लाख का इंतजाम करता हूं.’’ उपेंद्र ने उठते हुए कहा.

“एक बात का विशेष खयाल रखेंगे आप,’’ अमित कुमार ने टोका, ‘‘आप यहां की कोई भी बात बाहर नहीं बताएंगे. अपनी मां या पत्नी को भी नहीं. यह सुरक्षा के लिए जरूरी है मिस्टर उपेंद्र.’’

“ओके सर. मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगा.’’ उपेंद्र ने कहा और दरवाजे से बाहर आ गया. तभी उस के कदम ठिठक गए. अंदर अमित कुमार फोन पर किसी से कुछ कह रहा था. उपेंद्र ने कान लगा कर सुना. अमित किसी को बता रहा था, ‘‘मुरगा फंस गया है जनाब, चारा ही ऐसा डाला है कि वह खाएगा जरूर. अपने 5 लाख पक्के.’’

उपेंद्र को अपना सिर चकराता महसूस हुआ. वह खुद को संभाल कर तेजी से दरवाजे के पास से हट गया.

क्राइम ब्रांच को मिली फरजी सेंटर की सूचना…

राजौरी गार्डन के (डब्ल्यूआर-1) यूनिट क्राइम ब्रांच के स्पैशल सीपी रविंद्र सिंह यादव को किसी अज्ञात फोन नंबर सूचना मिली कि जाफरपुर कलां में होम मिनिस्ट्री के नाम पर एक फरजी अंडर कवर एजेंट ट्रेनिंग सेंटर बना कर बेरोजगार युवकों को बेवकूफ बनाया जा रहा है. उन से 5-5 लाख रुपए लिए जा रहे हैं.

सूचना देने वाले ने अपना नामपता नहीं बताया था. सीपी रविंद्र यादव ने फिर भी इस सूचना को गंभीरता से लिया. उन्होंने सब से पहले क्राइम ब्रांच के राजौरी गार्डन क्षेत्र के डीसीपी सतीश कुमार, एसीपी राजकुमार, इंसपेक्टर अभिजीत कुमार और एसआई इंद्रवीर सिंह को अपने औफिस में बुला लिया.

सभी अफसर उन के औफिस में आ गए. सीपी रविंद्र सिंह यादव ने सभी को बैठा कर गंभीर स्वर में कहा, ‘‘एक अज्ञात व्यक्ति की ओर से मुझे सूचना दी गई है कि जाफरपुर कलां में एक फरजी प्रशिक्षण केंद्र बना कर कुछ व्यक्ति बेरोजगार युवकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं. यह प्रशिक्षण केंद्र भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अंडर में चलाया जा रहा है. वहां युवकों को गृह मंत्रालय के तहत अंडर कवर एजेंट बना कर नौकरी देने का वादा कर के उन से 5-5 लाख रुपया लिया जा रहा है.’’

“यह तो गृह मंत्रालय के नाम पर युवकों को बेवकूफ बना कर लूटने का धंधा हुआ सर.’’ इंसपेक्टर अभिजीत कुमार हैरान स्वर में बोले.

“बेशक.’’ सीपी रविंद्र सिंह ने सिर हिलाया, ‘‘मैं खुद इस रैकेट की असलियत जानने के लिए चल रहा हूं. आप सब तैयार हो जाइए.’’

आधे घंटे बाद ही स्पैशल पुलिस कमिश्नर रविंद्र सिंह यादव के साथ डीसीपी सतीश कुमार, एसीपी राजकुमार, इंसपेक्टर अभिजीत और एसआई इंद्रवीर सिंह जाफरपुर कलां के लिए निकल गए. जाफरपुर कलां में अंडर एजेंट ट्रेनिंग सैंटर पहुंच कर क्राइम ब्रांच की टीम ने वहां अकस्मात छापा मारा तो वहां से इस फरजी ट्रेनिंग चलाने वाले 3 मुखियाओं के साथ 11 युवक और एक युवती को हिरासत में ले लिया गया.