पेपर माफिया के निराले खेल – भाग 2

लगातार तीसरे दिन काररवाई करते हुए एसओजी ने 19 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कौमर्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. महेशचंद गुप्ता को गिरफ्तार किया. उन्होंने यूनिवर्सिटी के एमकौम प्रीवियस की 13 अप्रैल को हुई एबीएसटी की परीक्षा का पेपर तैयार किया था.

इस की सूचना यूनिवर्सिटी की गोपनीय शाखा के अनुभाग अधिकारी नंदलाल सैनी ने प्रो. अशोक अग्रवाल को दी थी. प्रो. अशोक अग्रवाल ने डा. महेशचंद गुप्ता से संपर्क कर परीक्षा से एक दिन पहले पेपर हासिल कर लिया था. उसी दिन एसओजी ने राजकीय कालेज कालाडेरा के भूगोल के लेक्चरर सुरेंद्र कुमार सैनी को गिरफ्तार किया. उन्होंने यूनिवर्सिटी के एमए/एमएससी फाइनल ईयर भूगोल की एडवांस ज्योग्राफी औफ इंडिया की 17 अप्रैल को होने वाली परीक्षा का पेपर तैयार किया था.

सैनी ने यह पेपर शंकर को बता दिया था. शंकर के माध्यम से यह पेपर जगदीश प्रसाद जाट एवं अन्य लोगों तक पहुंच गया था. इस के बाद एसओजी ने 21 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कौमर्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर व चीफ वार्डन राजीव शर्मा एवं यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक के निजी सचिव सुरेंद्र मोहन शर्मा को गिरफ्तार किया.

इन में निजी सहायक सुरेंद्र मोहन शर्मा ने नंदलाल सैनी से पेपर बनाने वाले प्राध्यापकों के नाम पता कर के एसोसिएट प्रोफेसर राजीव शर्मा को बताए थे. राजीव शर्मा ने अपने परिचितों के लिए पेपर बनाने वाले उन प्राध्यापकों से संपर्क किया और परीक्षा की गोपनीयता भंग की.एसओजी ने 22 अप्रैल को यूनिवर्सिटी के डिप्टी रजिस्ट्रार एम.सी. गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया. इस के अगले दिन जयपुर के टोंक फाटक स्थित एक कौमर्स कोचिंग क्लासेज के संचालक अतिशय जैन को पकड़ा गया. इस तरह पेपर लीक प्रकरण में 17 से 23 अप्रैल तक 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया.

इन लोगों से की गई पूछताछ और एसओजी की जांच में सामने आया कि सरकारी यूनिवर्सिटी के अधिकारियों, कर्मचारियों, पेपर बनाने वाले प्रोफेसरों से ले कर उन के सहायकों, कोचिंग संचालकों, प्राइवेट कालेजों एवं बुक सेलरों का पूरा रैकेट है. ये लोग पैसों के लालच, कोचिंग संस्थानों में पढ़ाने, पासबुक (गेस पेपर) लिखने के लिए राइटर बने रहने और परिचितों एवं परिजनों को अच्छे नंबर दिलाने के लिए पेपर लीक करते थे.

एसओजी ने पेपर लीक होने की सूचना मिलने के बाद कई दिनों तक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों व अन्य लोगों के फोन सर्विलांस पर रखे. इस के बाद एक से एक कडि़यां जुड़ती गईं. 1 अप्रैल को प्रिंसिपल एन.एस. मोदी व प्रोफेसर गोविंद पारीक के बीच वाट्सऐप पर हुई वार्ता में मोदी ने पारीक से कहा था, ‘‘5 अप्रैल को एमकौम का पेपर है, सेंड करो.’’

इस पर पारीक ने कहा, ‘‘पेपर मेरे पास नहीं है. मैं ले कर देता हूं.’’

इस के बाद चौमूं के अग्रसेन कालेज के प्रो. शंभुदयाल झालानी और पारीक के बीच बातचीत सामने आई. इस में पारीक ने झालानी से कहा, ‘‘यार, एमकौम का जो पेपर बनाया था, उसे सेंड करो.’’

झालानी ने कहा, ‘‘सर, उस दिन जो सेंड किया था, वही पेपर है.’’

पारीक ने कहा, ‘‘एक बार फिर सेंड करो.’’

झालानी ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं अभी सेंड कर देता हूं.’’

पारीक ने कहा, ‘‘हां यार, मोदी को सेंड करना है. उन का बेटा एमकौम में है.’’

इस के बाद झालानी ने वाट्सऐप पर पारीक को पेपर सेंड कर दिया था.

राजस्थान यूनिवर्सिटी ने इसी साल पेपर सेटर के मानदेय बढ़ाए थे. अंडर ग्रैजुएट का प्रति पेपर मानदेय ढाई हजार रुपए एवं पोस्ट ग्रैजुएट का प्रति पेपर 3 हजार रुपए किया गया है. इस के बावजूद यूनिवर्सिटी के विभागाध्यक्ष और बोर्ड औफ स्टडीज के समन्वयक या सदस्यों के दबाव में आ कर पेपर लीक किए गए.

दरअसल, विभिन्न विषयों के विभागों में एक अध्ययन मंडल (बोर्ड औफ स्टडीज) होता है. इस में समन्वयक व 2 सदस्य होते हैं. ये ही पेपर सेटर नियुक्त करते हैं. संबंधित विषय के विभागाध्यक्ष या डीन इस से जुड़े रहते हैं. 3 प्रोफेसर 3 पेपर सेलेक्ट कर सीलबंद लिफाफे में परीक्षा नियंत्रक के पास भेजते हैं.

परीक्षा नियंत्रक एवं यूनिवर्सिटी के अन्य उच्चाधिकारी उन में से एक पेपर सेलेक्ट कर छपने के लिए प्रिंटिंग प्रैस पर भेजते हैं.

पेपर लीक करने के लिए कन्वीनर और सेलेक्टर संबंधित विभाग की गोपनीय शाखा से पता करते थे कि किस प्रोफेसर का पेपर सेलेक्ट हुआ है. जिस प्रोफेसर का पेपर सेलेक्ट होता था, उस से संपर्क कर के पेपर हासिल कर लिया जाता था. वह प्रोफेसर भी अपने परिचितों को पेपर बता देता था. कन्वीनर के पूछने पर उसे भी पेपर बता दिया जाता था.

इस घपले में लिप्त लोग बाकायदा बोर्ड औफ स्टडीज के चुनाव में अपने रसूख का प्रयोग करते थे. कुछेक तो बोर्ड औफ स्टडीज के समन्वयक भी बने हुए थे. इन्हीं के माध्यम से पेपर सेटर से पेपर पूछा जाता था. ऐसा न करने पर उन पर हटाने का दबाव डाला जाता था. दूसरी ओर कुछ पब्लिशर बोर्ड औफ स्टडीज एवं एचओडी से मिल कर मुख्य प्रश्नों की पासबुक (गेस पेपर) छापते थे.

जिस पब्लिशर की पासबुक से परीक्षा में सब से ज्यादा सवाल आते थे, उस की प्रसिद्धि रातोंरात हो जाती थी. उस की पासबुक खरीदने के लिए परीक्षार्थियों में होड़ मच जाती थी. ये पब्लिशर इस तरह चांदी काटते थे.

इस के अलावा कुछ प्रोफेसर कोचिंग संस्थानों में पढ़ाते थे. ये प्रोफेसर परीक्षार्थियों को मोस्ट इंपोर्टेंट सवाल बता कर अपनी प्रसिद्धि के लिए येन केन प्रकारेण पेपर हासिल करते थे. कोचिंग संस्थानों के संचालक भी रातोंरात प्रसिद्धि पाने और विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिए अपने विद्यार्थियों को पेपर बताते थे. ये भी अनैतिक तरीकों से पेपर हासिल करते थे.

बांदीकुई का जो कोचिंग संचालक पकड़ा गया है, उस से इसी बात के संकेत मिलते हैं. प्रोफेसर बुकसेलरों को इसलिए पेपर मुहैया कराते थे, क्योंकि पब्लिशर उन्हें लेखक बनाए रखें. अधिकांश अपनी किताबों के लेखक राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों को बनाते थे, ताकि उन की किताबों की ज्यादा से ज्यादा बिक्री हो. इस के बदले में प्रोफेसर उन्हें पेपर उपलब्ध कराते थे.

पब्लिशर इन पेपरों का उपयोग वन वीक सीरीज आदि में करते थे, ताकि उन की किताबों, पासबुक और अन्य परीक्षाओं में सहायक पुस्तकों की बिक्री होती रहे.  पेपर लीक करने का मामला उजागर होने पर 18 अप्रैल को राजस्थान की उच्च शिक्षा मंत्री किरण माहेश्वरी ने राजस्थान यूनिवर्सिटी के भूगोल के विभागाध्यक्ष प्रो. जगदीश प्रसाद जाट, राजस्थान विश्वविद्यालय के कौमर्स विभाग के प्रोफेसर गोविंद पारीक, राजकीय कालेज खाजूवाला (बीकानेर) के प्राचार्य एन.एस. मोदी, राजकीय कालेज कालाडेरा के लेक्चरर शंकर चोपड़ा एवं यूनिवर्सिटी की गोपनीय शाखा के अनुभाग अधिकारी शंकरलाल सैनी को निलंबित कर दिया था.

इस के दूसरे दिन 19 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कार्यवाहक कुलपति वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजेश्वर सिंह ने प्रो. जगदीश प्रसाद जाट एवं प्रो. गोविंद पारीक को निलंबित कर दिया. यूनिवर्सिटी प्रशासन ने 24 अप्रैल को एसोसिएट प्रोफेसर डा. राजीव शर्मा, कुलसचिव परीक्षा गोपनीय एम.सी. गुप्ता एवं परीक्षा नियंत्रक के पीए सुरेंद्र मोहन शर्मा को भी निलंबित कर दिया.

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान – भाग 2

मुस्तफा ने बताया कि दोपहर होने पर दुकान की चहलपहल थोड़ी कम हो गई. 12 बजे के बाद बगैर किसी सूचना के कुलदीप की पत्नी सुनीता जब दुकान पर पहुंची तो वह चौंक गया. उन्होंने अपने हैंडबैग से निकाल कर एक मोटा पैकेट पकड़ा दिया. पैकेट के बारे में पूछने से पहले ही सुनीता ने बताया कि उस के पति ने 4 लाख रुपए बैंक से निकलवाए हैं. इस में वही पैसे हैं. इतना कह कर सुनीता जाने की जल्दबाजी के साथ बोलीं कि उसे पास में कुछ खरीदारी करनी है और घर पर बहुत काम पसरा पड़ा है, इसलिए वह तुरंत दुकान से चली गईं.

उन के जाने के तुरंत बाद मुस्तफा के पास कुलदीप का फोन आया. उन्होंने फोन पर कहा कि एक आदमी बाइक पर पैसे लेने आएगा. सुनीता जो पैसे दे गई है वह उसे दे देना. मुस्तफा ने कुलदीप को बता दिया कि सुनीता मैडम पैसा अभीअभी दे गई हैं. इतनी मोटी रकम और उसे लेने के बारे में कुलदीप ने अधिक बातें नहीं बताईं.

दोपहर एक बजे के करीब कुलदीप के बताए अनुसार एक आदमी काले रंग की बाइक पर आया. उस में नंबर प्लेट नहीं लगी थी. मुस्तफा ने समझा कि बाइक मरम्मत के दौरान ट्रायल पर होगी. हेलमेट पहने मास्क लगाए व्यक्ति ने मुस्तफा से कहा कि उसे कुलदीप ने पैसा लेने के लिए भेजा है. मुस्तफा ने इशारे से सामने बैठने को कहा और कुलदीप को फोन लगाया. तुरंत फोन रिसीव कर कुलदीप बोले, ‘‘इस आदमी को पैसे दे दो.’’

मुस्तफा ने कुछ पूछना चाहा, किंतु कुलदीप ने फोन कट कर दिया. लग रहा था, जैसे वह काफी हड़बड़ी में थे. तब तक वह व्यक्ति अपना हेलमेट उतार चुका था और मास्क हटा रहा था. मुस्तफा ने उस से बगैर कोई सवालजवाब किए पैसे का पैकेट उसे दे दिया. पैकेट से पैसे निकाल कर वह वहीं काउंटर पर गिनने लगा. पैकेट में 2 हजार और 5 सौ के नोटों के बंडल थे. बंडल के नोट गिनते समय उस के मोबाइल पर फोन आया. उस ने फोन का स्पीकर औन कर बोला, ‘‘हां, पैसे मिल गए हैं, मैं अभी गिन रहा हूं.’’

दूसरी तरफ से डांटने की आवाज आई, ‘‘मैं ने तुम्हें पैसे लेने भेजा है या गिनने? पैसा ले और  वहां से निकल.’’ यह आवाज कुलदीप की नहीं थी. उस के बाद मुस्तफा दुकान के कामकाज में लग गया. उसे सुनीता का फोन शाम को 5 बजे के करीब आया. उन्होंने घबराई आवाज में कुलदीप का फोन बंद होने की बात बताई. यह सुन कर मुस्तफा कुछ समय में ही दुकान बंद कर कुलदीप के घर आ गया. उस दिन बिक्री का हिसाब और पैसे उन्हें दिए और कुछ देर रुक कर चला गया.

इतनी जानकारी मिलने के बाद एसपी प्रभाकर चौधरी ने मामले को अपने हाथों में ले लिया और एसओजी टीम के प्रभारी अजय पाल सिंह एवं सर्विलांस टीम के प्रभारी आशीष सहरावत के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. कुलदीप की गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर तलाशी की काररवाई की. शुरुआत फोन ट्रेसिंग से  की गई. इस जांच से संबंधित पलपल के जांच की जानकारी डीआईजी शलभ माथुर उन से ले रहे थे..

कुलदीप के फोन की आखिरी लोकेशन बिजनौर के नजीबाबाद कस्बे की मिली. मुरादाबाद पुलिस तुरंत वहां रवाना हो गई. इस की जानकारी बिजनौर पुलिस को भी दे दी गई. प्रभाकर चौधरी ने 3 अन्य टीमों का भी गठन किया. बिजनौर जनपद की सीमाओं पर कुलदीप की आखिरी लोकेशन के आधार पर छानबीन जारी थी. फोन की लोकेशन कभी चांदपुर तो कभी नूरपुर और कभी नगीना की मिल रही थी. इस तरह से 5 जून का पूरा दिन ऐसे ही निकल चुका था.

रात के 8 बजे बिजनौर में कस्बा थाना स्यौहारा के गंगाधरपुर गांव में एक शव पड़े होने की सूचना मिली. इस की जानकारी स्यौहारा के थानाप्रभारी नरेंद्र कुमार को गांव वालों ने दी थी. सूचना के आधार पर खून सनी लाश बरामद हुई. लाश सड़क के किनारे पड़ी हुई थी. उस के सिर और शरीर पर चोटों के निशान साफ दिख रहे थे.

लाश बरामदगी की सूचना और हुलिया समेत तसवीरें तुरंत मुरादाबाद पुलिस को भेज दी गईं. लाश कुलदीप गुप्ता के होने की आशंका के साथ उन के भाई संजीव गुप्ता को तुरंत शिनाख्त के लिए बुला लिया गया. संजीव ने तसवीर और हुलिए के आधार पर लाश की पहचान अपने भाई कुलदीप के रूप में कर दी. इसी के साथ उन्होंने दुखी मन से इस की सूचना अपने परिवार वालों को भी दी. कुलदीप की हत्या की सूचना से घर में कोहराम मच गया. सुनीता, इशिता, दिव्यांशु का रोरो कर बुरा हाल था. पूरे परिवार पर अचानक दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.

मुरादाबाद की पुलिस के सामने अब सब से बड़ी चुनौती हत्या के बारे में पता लगाने और हत्यारे को धर दबोचने की थी. उसी रात लाश को पंचनामे के साथ बिजनौर अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. पोस्टमार्टम के बाद लाश कुलदीप के घर वालों को सौंप दी गई. उन का मुरादाबाद के लोकोशेड मोक्षधाम में अंतिम संस्कार कर दिया गया.

उधर बिजनौर और मुरादाबाद जिले की पुलिस ने दोनों जगहों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की. कुलदीप की दुकान के कर्मचारियों से एक बार फिर डिटेल में पूछताछ हुई. पैसा लेने आए व्यक्ति के हुलिए के आधार पर छानबीन शुरू की गई. मुस्तफा ने घटना के दिन उस व्यक्ति और नंबर प्लेट के बगैर काली मोटरसाइकिल की मोबाइल से ली गई तसवीर पुलिस को उपलब्ध करवा दी. पुलिस को मृतक कुलदीप की काल डिटेल्स भी मिल चुकी थी.

जल्द ही 2 व्यक्तियों नंदकिशोर और कर्मवीर उर्फ भोलू को गिरफ्तार कर लिया. उन से कुलदीप की हत्या के कारण की जो कहानी सामने आई, वह पैसा, दोस्ती, गुमान और अपमान से पैदा हुई परिस्थितियों की दास्तान निकली—

मुरादाबाद के कस्बा पाकबाड़ा के रहने वाले कुलदीप के 2 बड़े भाई संजीव गुप्ता और राजीव गुप्ता के अलावा उन का अपना छोटा सा परिवार था. पत्नी सुनीता और 2 बच्चों में बेटा दिव्यांशु और बेटी इशिता के साथ मिलन विहार कालोनी में रह रहे थे.

फरजी थानेदारनी ने लगाया वर्दी के नाम पर चूना

हमेशा की तरह 25 जुलाई, 2016 की सुबह कंवलजीत कौर तैयार हो कर घर से निकली और कलानौर से बस पकड़ कर गुरदासपुर पहुंच गई. उस ने को फोन कर के राजीव बुला रखा था, इसलिए बसअड्डे पर बस के रुकते ही वह उतर कर सीधे उस गेट पर पहुंच गई थी, जहां वह मोटरसाइकिल लिए खड़ा था. उस के पास जा कर उस ने कहा, ‘‘जल्दी करो, पहले पुलिस लाइंस चल कर हाजिरी लगवा लूं, उस के बाद कहीं घूमने चलेंगे. अगर एब्सैंट लग गई तो बड़ी मुश्किल होगी.’’ मोटरसाइकिल स्टार्ट ही थी, कंवलजीत के पिछली सीट पर बैठते ही राजीव ने मोटरसाइकिल पुलिस लाइंस की ओर बढ़ा दी.

जिला गुरदासपुर के कस्बा कलानौर के मोहल्ला नवांकटड़ा निवासी मेहर सिंह की बेटी कंवलजीत कौर ने सब को यकीन दिला दिया था कि उसे सरकारी नौकरी मिल गई है, वह भी कोई साधारण नहीं, पंजाब पुलिस में थानेदार की यानी असिस्टैंट सबइंसपेक्टर (एएसआई) की. सितारों वाली लकदक खाकी वरदी पहन कर वह 2 सालों से शहर में घूम कर रौब जमा रही थी. पिछले 2 सालों से कंवलजीत कौर गुरदासपुर में ही तैनात थी. इधर वह लोगों से कहने लगी थी कि अब कभी भी उस का ट्रांसफर किसी दूसरे शहर में हो सकता है. अगर उस का तबादला हो गया तो उस के लिए मुश्किल हो जाएगी. अभी तो वह घर में ही है, इसलिए उस के लिए चिंता की कोई बात नहीं है.

कंवलजीत कौर ड्यूटी पर जाने के लिए घर से पैदल ही कलानौर बसअड्डे पर आती थी और वहां से बस पकड़ कर  गुरदासपुर पहुंच जाती थी. जानने वालों को उस ने बता रखा था कि गुरदासपुर में उसे सरकारी गाड़ी मिल जाती है, जिस से वह ड्यूटी करती है. उस का कहना था कि उस का इलाके में ऐसा दबदबा है कि बदमाश उस के नाम से कांपते हैं. न जाने कितने गुंडों की पिटाई कर के उस ने उन्हें जेल भिजवा दिया है. यही वजह थी कि बड़े अफसर भी उस के बारे में चर्चा करने लगे हैं कि पुलिस डिपार्टमेंट में यह लड़की काफी तरक्की करेगी.

राजेश के साथ कंवलजीत कौर पुलिस लाइंस पहुंची तो पता चला कि वहां आने वाले स्वतंत्रता दिवस पर होने वाली पुलिस परेड की जोरदार तैयारियां चल रही हैं. अंदर रिहर्सल हो रहा था. गेट पर काफी भीड़ थी. सुरक्षा की दृष्टि से पुलिसकर्मियों को भी पूरी जांचपड़ताल के बाद ही अंदर जाने दिया जा रहा था.

कंवलजीत कौर पहले भी वहां कई बार आ चुकी थी. लेकिन कभी किसी ने कोई रोकटोक नहीं की थी. इत्मीनान से अंदर जा कर पूरी पुलिस लाइंस घूम कर वह आराम से बाहर आ गई थी, लेकिन उस दिन तो वहां की स्थिति ही एकदम अलग थी. कंवलजीत कौर बाहर ही रुक कर सोचने लगी कि इस स्थिति में अंदर जाना चाहिए या नहीं?

दूसरी ओर राजीव की समझ में नहीं आ रहा था कि बसअड्डे पर पुलिस लाइंस पहुंचने की जल्दी मचाने वाली कंवलजीत कौर अब अंदर क्यों नहीं जा रही है? उस ने इस बारे में कंवलजीत कौर से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मैं सोच रही हूं कि आज अंदर न जाऊं. क्योंकि अंदर जाने पर फरलो (अनाधिकृत छुट्टी) पर मैं जल्दी बाहर नहीं निकल पाऊंगी. उस के बाद हमारा घूमनेफिरने का प्रोग्राम बेकार जाएगा.’’

‘‘कंवल, हमारा घूमनाफिरना इतना जरूरी नहीं है, जितना ड्यूटी. कहीं तुम्हारी नौकरी न खतरे में पड़ जाए. पहले भी कई बार तुम इस तरह हाजिरी लगवा कर मेरे साथ घूमने जा चुकी हो. बसस्टैंड पर तुम कह भी रही थी कि एब्सैंट लग गई तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी.’’ राजीव ने कहा.

‘‘वही तो सोच रही हूं. अगर एब्सैंट लग गई तो मुश्किल और अंदर चली गई तो बाहर आने में मुश्किल. मैं बाहर नहीं आ सकी तो मेरे इंतजार में खड़ेखड़े तुम बोर होते रहोगे. अब तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूं?’’

‘‘मेरी समझ से तो यही ठीक रहेगा कि मैं लौट जाऊं और तुम अंदर जा कर अपनी ड्यूटी करो. खाली होने के बाद फोन कर देना, मैं आ जाऊंगा.’’

‘‘अगर मैं अंदर चली गई तो शाम से पहले नहीं निकल पाऊंगी. ऐसे में आज हम ने जो घूमनेफिरने का प्रोग्राम बनाया है, वह चौपट हो जाएगा.’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम अंदर जा कर अपनी ड्यूटी करो. मैं गुरदासपुर में ही रहूंगा. तुम्हारा फोन आते ही मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा.’’

राजीव और कंवलजीत आपस में बातें कर रहे थे, तभी अधिकारियों की गाडि़यां आ गईं. उन के लिए गेट खोलने के साथ ही वहां खड़े सिपाहियों ने गेट के पास खड़े तमाम लोगों को अंदर धकेल दिया. उन में कंवलजीत और राजीव भी थे.

दोनों असमंजस की स्थिति में थे कि अब क्या करें, तभी वहां मौजूद एक थानेदार ने उन के पास आ कर कंवलजीत कौर से कहा, ‘‘मैडम, जल्दी करो, एंट्री करवा कर परेड ग्राउंड में पहुंच जाओ.’’ इस के बाद उस ने राजीव से कहा, ‘‘तुम बिना वरदी के ही आ गए. किस रैंक पर हो और क्या नाम है तुम्हारा?’’

राजीव कुछ कहता, उस से पहले ही कंवलजीत कौर ने कहा, ‘‘सर, यह मिस्टर राजीव मेरे साथ आए हैं. यह नौकरी नहीं करते. इन की बहन मेरी बैस्ट फ्रैंड है और उस की आज शादी है. इसलिए मैं इन्हें साथ ले कर आज की छुट्टी लेने आई हूं.’’

‘‘छुट्टियां तो आजकल बिलकुल नहीं मिल रही हैं मैडम. फिर जिस काम के लिए तुम्हें छुट्टी लेनी है, उस के लिए तो पहले ही सैंक्शन करवा लेना चाहिए था. वह देखिए, उस तरफ लाइंस इंसपेक्टर बैठे हैं. चलिए, मैं उन से तुम्हारी बात करवा देता हूं.’’

कंवलजीत कौर आनाकानी करने लगी तो राजीव खीझ कर बोला, ‘‘तुम तो आज एकदम बच्चों जैसा व्यवहार कर रही हो.’’ राजीव का इतना कहना था कि कंवलजीत कौर नाराज हो कर अनापशनाप बकने लगी. उस का कहना था कि उस के प्यार में पड़ कर उस ने जो कुछ किया है, वह उसे बिलकुल नहीं करना चाहिए था. क्योंकि अब वह उस की भावना की कदर न कर के उसे उसी के विभाग वालों के सामने जलील करने की कोशिश कर रहा है.

दूसरी ओर राजीव का कहना था कि उस ने जो कुछ भी कहा है, उस की भलाई के लिए कहा है. लेकिन कंवलजीत कौर का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वह राजीव को जलील करने लगी तो वहां मौजूद थानेदार उन्हें चुप कराने का प्रयास करते हुए दोनों को लाइंस इंसपेक्टर दलबीर सिंह के पास ले गया.

थानेदार की बात सुन कर दलबीर सिंह ने कंवलजीत कौर को सवालिया नजरों से घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारी पोस्टिंग कहां है?’’

‘‘जी…जी यहीं है.’’ कंवलजीत कौर ने हकलाते हुए कहा.

‘‘यहां…कहां? यहां तो मैं ने पहले कभी नहीं देखा. आज पहली बार देख रहा हूं, वह भी बदतमीजी करते हुए.’’

‘‘नहीं सर, बदतमीजी नहीं, वह तो सर यह राजीव…’’

‘‘कौन है यह? पुलिस का आदमी तो नहीं लग रहा?’’

‘‘नहीं सर, यह पुलिस में नहीं है. ये लोग तो जमींदार हैं, बहुत जमीनजायदाद है इन के पास.’’

‘‘तो फिर यहां क्या लेने आया है यह?’’

‘‘यह मेरे साथ आया है सर. इस की बहन मेरी बैस्ट फ्रैंड है. आज उस की शादी है, जिस में शामिल होने के लिए मैं छुट्टी लेने आई थी.’’

‘‘छुट्टी लेने आई थी तो वरदी पहन कर आने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘सर, इसलिए कि अगर छुट्टी नहीं मिली तो ड्यूटी कर लूंगी.’’

‘‘हां, इस तरह छुट्टी मिलने वाली नहीं, तुम्हें ड्यूटी करनी पड़ेगी. चलो, अपना आईकार्ड दिखाओ.’’

‘‘आईकार्ड, मतलब पहचानपत्र सर?’’

‘‘बड़ी अंजान बन रही हो, कह तो रही हो सीधे एएसआई भरती हुई हो?’’

दरअसल, 2-3 दिनों पहले दलबीर सिंह को उन के किसी मुखबिर ने बताया था कि एएसआई की वरदी पहन कर एक लड़की गुरदासपुर में घूम रही है. वह पैसे तो किसी से नहीं ऐंठती, पर थानेदारनी होने का रौब खूब दिखाती है. उस के रौब की वजह से कुछ दुकानदार उसे स्वेच्छा से नियमित रूप से पैसे दे रहे हैं. उस नकली थानेदारनी का हुलिया भी उस ने उन्हें बताया था. इस बारे में दलबीर सिंह काररवाई करने की योजना बना रहे थे. लेकिन कंवलजीत कौर को देख कर उन्हें लगा कि कहीं यही वह नकली थानेदारनी तो नहीं, जिस के बारे में मुखबिर ने बताया था. क्योंकि उस का हुलिया मुखबिर द्वारा बताए हुलिए से काफी हद तक मिल रहा था.

दलबीर सिंह ने कंवलजीत कौर से परिचय पत्र मांगा तो इधरउधर की बातें करते हुए अंत में उस ने कहा कि उस का आइडेंटिटी कार्ड खो गया है. इस से वह संदेह के दायरे में आ गई. दलबीर सिंह ने इस विषय पर अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा कि फिलहाल लड़की को एक किनारे कर के पहले उस के साथ आए लड़के से विस्तार से पूछताछ करो. संभव है, वह भी उस के साथ शामिल हो. वहां की बदलती स्थिति को देख कर लड़का यानी राजीव काफी घबरा गया था. पुलिस ने उसे अलग ले जा कर पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की तो वह बुरी तरह से घबरा गया, क्योंकि इस के पहले उस का पुलिस से कभी वास्ता नहीं पड़ा था.

पूछताछ में उस ने अपना नाम राजीव कुमार बताया. वह नई आबादी, कलानौर, जिला गुरदासपुर के रहने वाले सुरेश कुमार का बेटा था. उस के पिता इलाके के खातेपीते जमींदार थे. वह मांबाप की अकेली औलाद था. 3 साल पहले वह फिल्म देखने गया था, तभी उस की मुलाकात कंवलजीत कौर से हुई थी. उसी पहली मुलाकात में दोनों में प्यार हो गया था, जो जल्दी ही परवान चढ़ गया. कंवलजीत कौर ने उसे बताया था कि वह साधारण परिवार से संबंध रखती है, पर अपनी मेहनत से जिंदगी में बड़ा मुकाम हासिल करना चाहती है. उस ने बीसीए कर रखा था. वह काफी खूबसूरत थी और भाईबहनों में सब से बड़ी थी.

राजीव ने जब उस के बारे में अपने घर वालों से बात की तो पिता ने कहा कि उन के पास सब कुछ है, वह बिना दानदहेज के उस से शादी कर लेंगे. लेकिन अंतिम निर्णय उस की मां को लेना है. राजीव की मां किरनबाला ने सब कुछ तो मान लिया, लेकिन एक शर्त रख दी कि लड़की सरकारी नौकरी में होनी चाहिए. अगर पुलिस अफसर हुई तो और भी अच्छा होगा. राजीव ने सारी बात कंवलजीत कौर को बताई तो वह काफी मायूस हुई. लेकिन उस ने राजीव से संबंध बनाए रखे. फिर एक दिन उस ने राजीव को फोन कर के बताया कि उसे पंजाब पुलिस में एएसआई की नौकरी मिल गई है. उस ने अपनी तैनाती भी गुरदासपुर की ही बताई. इस के बाद वह जब भी राजीव से मिली, एएसआई की वरदी में ही मिली.

कंवलजीत कौर से उस का चक्कर चल ही रहा था कि उसी बीच उस के घर वालों ने उस की शादी कौलेज की एक लैक्चरर से तय कर दी. वह कंवलजीत कौर को धोखा नहीं देना चाहता था, इसलिए मम्मीपापा को मनाने की कोशिश में लगा था. वह कंवलजीत को दिल से पसंद करता था और उसी से शादी करना चाहता था. इसीलिए वह जब भी उसे जहां बुलाती थी, वह काम छोड़ कर उस से मिलने पहुंच जाता था.

उस दिन भी ऐसा ही हुआ था. राजीव से पूछताछ चल ही रही थी, उसी के साथ पुलिस ने कंवलजीत कौर के बारे में पता कराया तो उस का झूठ खुल कर सामने आ गया. वह कभी भी पुलिस में भरती नहीं हुई थी. पुलिस की वरदी पहन कर वह सब को बेवकूफ बना रही थी. इस के बाद उस के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर एएसआई की वरदी में ही गिरफ्तार कर के चेहरा ढांप कर उसे पत्रकारों के सामने पेश किया गया. उस ने स्वीकार किया कि प्रेमी राजीव से शादी करने के लिए वह फरजी दारोगा बनी थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने कंवलजीत कौर को अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.   कथा लिखे जाने तक उस की जमानत हो चुकी थी. पुलिस ने राजीव को बेकसूर मानते हुए इस मामले में गवाह बना लिया था. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने कंवलजीत कौर के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर के अदालत में पेश कर दिया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ठगों ने खोला गृह मंत्रालय का फरजी ट्रेनिंग सेंटर – भाग 1

दिल्ली के तालकटोरा गार्डन में फव्वारे के पास बैठी रजनी की आंखें पार्क के मुख्य गेट पर टिकी हुई थीं. उस के चेहरे पर बेचैनी साफ झलक रही थी, इस का कारण था पलपल आगे बढ़ता हुआ समय. रजनी ने मां से कहा था कि वह सहेली प्रीति से नोटबुक लेने जा रही है और वह 7 बजे तक घर लौट आएगी. लेकिन वह सहेली का बहाना कर प्रेमी उपेंद्र से मिलने गई थी.

वह इस पार्क में साढ़े 5 बजे आ गई थी. उसे आधा घंटा बीत गया था, उपेंद्र का इंतजार करते हुए. उपेंद्र ने 5 बजे पार्क में उस से मिलने का वादा किया था, लेकिन जब रजनी यहां आई थी तो उपेंद्र पार्क में नहीं पहुंचा था. उपेंद्र को रजनी दिल से प्यार करती थी. उपेंद्र भी उसे दिलोजान से चाहता था. वे दोनों एक ही कोचिंग सेंटर से एसएससी की तैयारी कर रहे थे. सेंटर में उन का रोज ही मिलना होता था, लेकिन वहां मौजूद अन्य युवकयुवतियों के बीच दिल की बात करना मुमकिन नहीं था, इसलिए सप्ताह में एक बार वे इस पिकनिक पार्क में अवश्य आ कर मिलते थे.

समय पलपल आगे सरक रहा था. उपेंद्र हर बार दिए गए समय से आधा घंटा पहले ही पहुंच जाता था. आज न जाने वह क्यों नहीं आया था. यदि वह किसी जरूरी काम में फंस गया है तो उसे फोन कर के बता देना चाहिए था. अभी तक उपेंद्र ने फोन भी नहीं किया था. रजनी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. जब साढ़े 6 बज गए तो रजनी ने उपेंद्र को फोन करने का मन बना कर मोबाइल सामने किया तो उसे पार्क की गेट में प्रवेश करता उपेंद्र नजर आ गया.

रजनी की बेचैनी पलक झपकते ही गायब हो गई. वह अपनी जगह उठ कर खड़ी हो गई. उस ने देखा उपेंद्र का चेहरा बुझाबुझा सा है, वह बहुत ज्यादा परेशान भी दिखाई यह रहा है. कुछ ही देर में उपेंद्र उस के पास आ गया. रजनी ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया.

“आज तुम पूरा एक घंटा लेट आए हो उपेंद्र, सब ठीक तो है न?’’ रजनी ने उस का हाथ थाम कर शिकायत करते हुए पूछा.

“सब ठीक है,’’ उपेंद्र ने जबरन मुसकराने का प्रयत्न करते हुए कहा और रजनी के साथ पार्क की घास पर बैठ गया. रजनी ने उस की आंखों में झांका. आंखों में गहरी उदासी के भाव थे. चेहरा भी बयां कर रहा था कि वह काफी परेशान है.

प्रेमिका से मिली जानकारी…

“क्या हुआ है उपेंद्र, तुम्हारी आंखें और तुम्हारा चेहरा चुगली कर रहे हैं कि तुम परेशान हो. सचसच बताओ, क्यों परेशान हो तुम?’’

उपेंद्र ने गहरी सांस ली और उदास स्वर में बोला, ‘‘मैं अपने प्यार को ले कर परेशान हूं रजनी. तुम्हें मालूम है कि मैं तुम्हें अपने दिल की गहराइयों से प्यार करता हूं, तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं.’’

“अरे! तो इस में परेशान होने की क्या बात है, हमारे घर वाले बहुत सीधे हैं. वे हमारा प्यार स्वीकार कर लेंगे और हमारी शादी कर देंगे. यदि नहीं करेंगे तो हम दोनों कोर्ट में शादी कर लेंगे. हमारे बीच यह सब पहले ही तय हो चुका है.’’

“मैं इस से इंकार कब कर रहा हूं रजनी.’’ उपेंद्र गंभीर हो गया, ‘‘बात शादी की नहीं है, बात मेरी नौकरी की है. मैं पेपर बांट कर अपना खर्च चलाता हूं, तुम्हारा खर्च कैसे उठाऊंगा.’’

“तुम नौकरी के लिए कोशिश तो कर ही रहे हो. नौकरी लग ही जाएगी, इसक े लिए इतना परेशान मत होओ.’’

“रजनी, मैं आज भी एक कंपनी में इंटरव्यू के लिए गया था, वहां भी बात नहीं बनी.’’ उपेंद्र ने निराशा भरे स्वर में कहा. रजनी को एकाएक कुछ याद आया हो जैसे. वह उपेंद्र का हाथ प्यार से अपने हाथ में ले कर बोली, ‘‘उपेंद्र, हमारे एरिया में सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से अंडरकवर एजेंटों का एक ट्रेनिंग सेंटर खुला है. उस में ग्रैजुएट युवकों की भरती की जा रही है, तुम वहां ट्राई कर के देखो.’’

“क्या तुम ने उस ट्रेनिंग सेंटर का बोर्ड वगैरह देखा है?’’

“हां, मैं कुछ दिन पहले जाफरपुर कलां के बाजार में शापिंग करने गई थी. मैं ने आटो में से वह बोर्ड पढ़ा था. चूंकि तुम नौकरी के लिए परेशान हो, यही सोच कर शापिंग से लौटते वक्त वहां उतर गई थी और वहां बैठे गार्ड से मैं ने यह सब मालूम कर लिया था.’’

“अरे, तो तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?’’

“मैं भूल गई. क्योंकि जब मैं जाफरपुर कलां के उस ट्रेनिंग सेंटर पर खड़ी थी तो मुझे प्रीति का फोन आ गया था. उस के यहां जागरण था, उस ने मुझे शाम को घर बुलाया तो मैं उस ट्रेनिंग सैंटर की बात गूल गई.’’

उपेंद्र ने प्यार से रजनी का हाथ चूम लिया और उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘यह जानकारी देने के लिए धन्यवाद रजनी. मैं कल ही जाफरपुर कलां के उस ट्रेनिंग सेंटर पर जा कर देखूंगा.’’

रजनी ने उस का कंधा थपथपाया, ‘‘तुम्हें कामयाबी मिलेगी उपेंद्र, मेरा दिल इस बात की गवाही दे रहा है. अब चलो, मुझे 7 बजे तक घर पहुंचना था, लेकिन साढ़े 7 तो यहीं बज रहे हैं.’’

“चलो. मैं तुम्हें बाहर से रिक्शा करवा देता हूं,’’ उपेंद्र ने उठते हुए कहा. दोनों पार्क के गेट की तरफ बढ़ गए. रजनी को बैटरी रिक्शा में बिठाने के बाद उपेंद्र पैदल ही एक ओर चल पड़ा.

उपेंद्र पहुंच गया ट्रेनिंग सेंटर…

जाफरपुर कलां में अंडरकवर एजेंट ट्रेनिंग सेंटर का 250 गज एरिया में बना वह औफिस देख कर उपेंद्र को हैरानी हुई. वह भी रजनी से मिलने के लिए कई बार इस सडक़ से गुजरा था, लेकिन उस की नजर में यह औफिस नहीं आया था. उस औफिस के गेट पर अंडर कवर एजेंट ट्रेनिंग सेंटर का छोटा सा बोर्ड लगा हुआ था. गेट खुला हुआ था.

अंदर गहरी खामोशी थी. अंदर कोई नजर भी नहीं आ रहा था. गेट के पास ही एक लंबातगड़ा वरदीधारी गार्ड बैठा हुआ था. उस गार्ड के हाथ में वायरलैस सेट था. उस के पास में एक छोटी मेज रखी थी, जिस पर एंट्री रजिस्टर रखा दिखाई दे रहा था. उपेंद्र उस गार्ड के पास गया.

“गुड मौर्निंग गार्ड साहब.’’ उपेंद्र ने शब्दों में चाशनी घोली, ‘‘क्या यहां ट्रेनिंग के लिए भरती चल रही है?’’

“खुली भरती नहीं है मिस्टर. हर एक को जांचनेपरखने के बाद ट्रेनिंग के लिए चुना जाता है.’’ गार्ड ने बताया.

“उस जांचपरख का तरीका क्या है साहब?’’ उपेंद्र ने जिज्ञासा प्रकट करते हुए पूछा.

“आप यदि इच्छुक हैं तो आप को श्रीमान अमित कुमार से मिलना होगा. वह भरती इंचार्ज हैं.’’

“मैं इच्छुक हूं.’’ उपेंद्र उत्साह भरे स्वर में बोला, ‘‘उन से मिलने के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा?’’

“आप अपना रिज्यूमे लाए हैं?’’ गार्ड ने पूछा.

“जी हां.’’

गार्ड ने मेज पर रखे रजिस्टर में उपेंद्र का नामपता और मोबाइल नंबर नोट कर लिया और उसे अंदर एक कमरा दिखाते हुए बोला, ‘‘आप उस कमरे में जाइए. अमित सर वहीं मिलेंगे.’’

पैसे का गुमान : दोस्त ने ली जान – भाग 1

मुरादाबाद के रहने वाले कुलदीप गुप्ता की पत्नी सुनीता, बेटी इशिता और बेटे दिव्यांशु के लिए खुशी का दिन था. क्योंकि उस दिन यानी 4 जून, 2021 को कुलदीप गुप्ता का जन्मदिन था, इसलिए घर के सभी लोगों ने अपनेअपने तरीके से उन के जन्मदिन पर विश करने की योजना बना ली थी.

पत्नी सुनीता शाम के वक्त इस मौके पर आने वाले मेहमानों की खातिरदारी के इंतजाम में जुटी हुई थी, जबकि बेटी इशिता और बेटा दिव्यांशु सजावट और केक के इंतजाम का जिम्मा उठाए हुए थे. सभी उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं और उपहार देने के सरप्राइज एकदूसरे से छिपाए हुए थे.

दिन के ठीक 12 बजे सुनीता के पास पति कुलदीप का अचानक फोन आया. उन्होंने फोन पर कहा कि वह घर का सब काम छोड़ कर तुरंत बैंक जाए और 4 लाख रुपए निकाल कर दुकान में मुस्तफा को दे आए. सुनीता अभी इतने पैसे के बारे में पति से कुछ पूछती कि इस से पहले ही कुलदीप ने गंभीरता से कहा कि बहुत ही अर्जेंट है, वह देरी न करे.

मुस्तफा घर से महज 500 मीटर की दूरी पर उन की आटो स्पेयर पार्ट्स हार्डवेयर की दुकान का विश्वस्त सेल्समैन था. सुनीता को पता था कि कारोबार के सिलसिले में पैसे की जरूरत पड़ती रहती थी, फिर भी कैश में इतनी बड़ी रकम ले कर सोच में पड़ गई. फिर भी उस ने पैसे को ले कर अपने दिमाग पर जोर नहीं डाला, क्योंकि अचानक उसे ध्यान आया कि कुलदीप कुछ दिनों से एक सेकेंडहैंड कार खरीदने की बात कर रहे थे. उस ने सोचा शायद उन्होंने उस के लिए पैसे मंगवाए हों.

सुनीता को भी जन्मदिन का गिफ्ट खरीदने के लिए जाना था, तय किया कि वह दोनों काम एक साथ कर लेगी और दोपहर डेढ़-दो बजे तक वापस घर लौट कर बाकी की तैयारियों में लग जाएगी. सुनीता ने पति के कहे अनुसार ठीक साढ़े 12 बजे मुस्तफा को पैसे का थैला पकड़ाया और जाने लगी. मुस्तफा सिर्फ इतना बता पाया कि कोई पैसा लेने आएगा, उसे देने हैं. सुनीता ने कहा, ‘‘ठीक है, पैसे संभाल कर रखना. मैं चलती हूं मुझे बहुत काम है.’’

उस के बाद सुनीता ने पास ही एक शोरूम से कुछ शौपिंग की और घर आ कर बाकी का काम निपटाने में जुट गई. सुनीता के पास दिन में ढाई बजे के करीब कुलदीप का फोन आया. उन्होंने पैसे मिलने जानकारी दी थी. सुनीता ने शाम को जल्द आने के लिए कहा. लेकिन इस का कुलदीप ने कोई जवाब नहीं दिया. सुनीता से इसे अन्यथा नहीं लिया और अपना अधूरा काम पूरा करने लगी.

शाम के 4 बज गए थे. दिव्यांशु ने अपने पिता को फोन किया, लेकिन फोन बंद था. वह मां से बोला, ‘‘मम्मी, पापा का फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘क्यों फोन करना है पापा को?’’ सुनीता बोली.

‘‘4 बज गए हैं. उन को जल्दी आने के लिए बोलना है.’’ दिव्यांशु कहा.

‘‘अरे आ जाएंगे समय पर… मैं मुस्तफा को बोल आई हूं जल्दी घर आने के लिए.’’ सुनीता बोली.

‘‘मगर मम्मी, पापा का फोन बंद क्यों है?’’ दिव्यांशु ने सवाल किया.

‘‘बंद है? अरे नहीं, बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी. थोड़ी देर बाद फोन करना.’’ सुनीता बोली.

दिव्यांशु ने मां के कहे अनुसार 10 मिनट बाद पापा को फिर फोन लगाया. अभी भी उन का फोन बंद आ रहा था. उस ने मां को फोन लगाने के लिए कहा. सुनीता ने भी फोन लगाया. उसे भी कोई जवाब नहीं मिल पाया. उस ने 2-3 बार फोन मिलाया मगर फोन नहीं लगा.

उसे अब पति की चिंता होने लगी. वह 4 लाख रुपए को ले कर चिंतित हो गई. अनायास मन में नकारात्मक विचार आ गए. कहीं पैसे के कारण कुलदीप के साथ कुछ हो तो नहीं गया. देरी किए बगैर सुनीता ने फोन न लगने की बात अपने जेठ संजीव गुप्ता और दूसरे रिश्तेदारों को बताई. उन्हें भी चिंता हुई और कुलदीप के हर जानपहचान वाले को फोन लगाया गया. कहीं से उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

परिवार के लोग परेशान हो गए. जैसेजैसे समय बीतने लगा, वैसेवैसे उन की चिंता और गहरी होने लगी. सभी किसी अनहोनी से आशंकित हो गए. इशिका और दिव्यांशु रोनेबिलखने लगे. घर में खुशी के जन्मदिन की तैयारी का माहौल गमगीन हो गया.

रात के 11 बज गए थे. कुलदीप के बड़े भाई संजीव गुप्ता ने कुलदीप के लापता होने की जानकारी थाना पाकबड़ा के थानाप्रभारी योगेंद्र यादव को दी. सुनीता ने उन्हें दिन भर की सारी बातें बताई कि किस तरह से कुलदीप ने अचानक पैसे मंगवाए और उन के अलावा किसी की भी कुलदीप से फोन पर बात नहीं हो पाई. पैसे की बात सुन कर पुलिस ने इस बात का अंदाजा लगा लिया कि लेनदेन के मामले में कुलदीप कहीं फंसा होगा या फिर उस की हत्या हो गई होगी. इस की सूचना थानाप्रभारी योगेंद्र ने अपने उच्चाधिकारियों को दी और आगे की काररवाई में जुट गए.

अगले दिन पुलिस ने कुलदीप की दुकान के खास कर्मचारी मुस्तफा से पूछताछ शुरू की. मुस्तफा ने बताया कि दुकान खोलने के कुछ समय बाद ही वह किसी के साथ एक मरीज देखने के लिए अस्पताल जाने की बात कहते हुए चले गए थे. उस वक्त साढ़े 9 बजे का समय था. मुस्तफा ने बताया कि जाते समय कुलदीप ने लौटने में देर होने की स्थिति में बाइक को वहीं किनारे लगा कर दुकान की चाबियां घर दे आने को कहा था.

थानाप्रभारी ने मुस्तफा से उस रोज की पूरी जानकारी विस्तार से बताने को कहा. मुस्तफा ने 4 जून, 2021 को दुकान खोले जाने के बाद की सभी जानकारियां इस प्रकार दी—

सुबह के 9 बजे हर दिन की तरह कुलदीप पाकबाड़ा के डींगरपुर चौराहे पर स्थित अपनी आटो स्पेयर पार्ट्स की दुकान पर पहुंच गए थे. उन्होंने कर्मचारियों को चाबियां दे कर दुकान खोलने को कहा था. उन का अपना मकान करीब आधे किलोमीटर दूरी पर मिलन विहार मोहल्ले में था. उन के भाई संजीव गुप्ता का मकान भी वहां से 500 मीटर की दूरी पर था.

चाबियां सौंपने के बाद कुलदीप ने अपने खास कर्मचारी मुस्तफा को अलग बुला कर बताया कि वह एक परिचित को देखने के लिए अस्पताल जा रहे हैं. इसी के साथ उन्होंने हिदायत भी दी कि उन्हें वहां से लौटने में देर हो सकती है, इसलिए आज दुकान की पूरी जिम्मेदारी उसी के ऊपर रहेगी. कुलदीप गुप्ता ऐसा पहले भी कर चुके थे. इस कारण मुस्तफा ने उस रोज की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

उसी वक्त सड़क के दूसरी ओर बाइक पर एक आदमी आया. वह हेलमेट पहने हुए था. कुलदीप उस की बाइक पर बैठ कर चले गए. यह सब 5-7 मिनट में ही हो गया. दुकान के कर्मचारी अपनेअपने काम में लग गए. सेल्समैन का काम संभालने वाला मुस्तफा काउंटर पर आ गया. इस तरह दुकान की दिनचर्या शुरू हो गई.

अगले भाग में पढ़ें- कुलदीप की हत्या की सूचना से घर में कोहराम मच गया

पेपर माफिया के निराले खेल – भाग 1

इसी साल 22 मार्च की सुबह के करीब 10 बजे जयपुर में कुछ पत्रकारों को सूचना मिली कि टोंक फाटक के पास किताबों की कुछ दुकानों पर राजस्थान विश्वविद्यालय का बीएससी द्वितीय वर्ष का फिजिकल कैमिस्ट्री का प्रश्नपत्र बेचा जा रहा है. यह पेपर उसी दिन दोपहर 3 बजे होने वाला था. किसी परीक्षार्थी ने दुकानों पर बिक रहे उस पेपर की कौपी वाट्सऐप द्वारा एक पत्रकार को भेज दी थी. उस पत्रकार ने इस मामले की जानकारी अपने एक साथी को दी.

उन दिनों जयपुर में राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था. दोनों पत्रकारों ने सावधानी के तौर पर विधानसभा पहुंच कर कुछ विधायकों को इस मामले के बारे में बताया ही नहीं, वह पेपर भी दिखाया. दोनों पत्रकारों ने उस प्रश्नपत्र पर 4 विधायकों से हस्ताक्षर करवा कर समय भी दर्ज करवा लिया. उन में सत्तापक्ष भाजपा के वरिष्ठ विधायक घनश्याम तिवाड़ी, कांग्रेस के घनश्याम मेहर, श्रवण कुमार और निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल शामिल थे.

शाम 6 बजे जब पेपर समाप्त हुआ तो उस पेपर का मिलान किया गया. हूबहू वही पेपर आया था, जो उन के पास था. उस में न कोई सवाल बदला था और न ही सवालों का क्रम. ओरिजिनल पेपर और बाजार में बिक रहे पेपर की भाषा और छपाई का फोंट भी एक ही था.

जब यह मामला सामने आया तो राजस्थान यूनिवर्सिटी के कार्यवाहक कुलपति वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजेश्वर सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन इस की जांच कराएगा. यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक बी.एल. गुप्ता ने कहा कि परीक्षाओं में पूरी गोपनीयता बरती जा रही है, फिर भी मामला कमेटी के पास जांच के लिए भेजा जाएगा.

जांच के बाद आखिर यूनिवर्सिटी ने वह पेपर निरस्त कर दिया. राजस्थान यूनिवर्सिटी की पूरे देश में बहुत अच्छी साख है. पेपर आउट होने की इस घटना से यूनिवर्सिटी की छवि पर विपरीत असर पड़ सकता था. निस्संदेह यह बेहद गंभीर मामला था, इसलिए उच्चाधिकारियों ने राजस्थान पुलिस के स्पैशल औपरेशन ग्रुप (एसओजी) को इस मामले की जांच करने को कहा.

एसओजी ने सूचनाएं जुटानी शुरू कीं तो जानकारी मिली कि राजस्थान के विभिन्न शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों की ओर से आयोजित होने वाली विभिन्न परीक्षाओं के प्रश्नपत्र परीक्षा से पहले ही कई माध्यमों से लीक हो रहे हैं.

गहराई से जांच की गई तो पता चला कि बीकानेर यूनिवर्सिटी की ओर से इसी साल 5 अप्रैल को होने वाली एमकौम फाइनल की परीक्षा, राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा 10 अप्रैल को कराई गई बीए तृतीय वर्ष के भूगोल के प्रथम प्रश्नपत्र की परीक्षा और 12 अप्रैल को होने वाली द्वितीय प्रश्नपत्र और 13 अप्रैल को होने वाली एमए प्रीवियस एवं एबीएसटी द्वितीय के प्रश्नपत्र परीक्षा से पहले ही लीक हो गए थे.

इस से परीक्षाओं की गोपनीयता भंग हुई थी. जांच के बाद एसओजी ने पेपर माफिया के विरुद्ध 3 मामले दर्ज किए. एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. के निर्देश पर एसओजी के एसपी संजय श्रोत्रिय के निर्देशन में करीब एक दर्जन टीमों का गठन किया गया. इन टीमों ने पेपर लीक होने के मामले में तकनीकी जांच कर संदिग्ध लोगों की गतिविधियों पर नजर रखनी शुरू कर दी.

इस के बाद 17 अप्रैल को सब से पहले राजस्थान यूनिवर्सिटी के एक विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर सहित 8 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इन में राजस्थान यूनिवर्सिटी के भूगोल के विभागाध्यक्ष जगदीश प्रसाद जाट, राजस्थान विश्वविद्यालय के वाणिज्य विभाग के प्रोफेसर गोविंद पारीक, भूगोल के सेवानिवृत्त प्रोफेसर बी.एल. गुप्ता थे.

इस के अलावा राजकीय कालेज खाजूवाला (बीकानेर) के प्राचार्य एन.एस. मोदी और बीकानेर निवासी उन के बेटे निपुण मोदी, एसएसजी पारीक गर्ल्स कालेज चौमूं (जयपुर) के प्रोफेसर शंभुदयाल झालानी, अग्रसेन कालेज भादरा (हनुमानगढ़़) के लेक्चरर कालीचरण शर्मा, रमेश बुक डिपो, मानसरोवर, जयपुर का कर्मचारी शरद शामिल थे.

इन लोगों से पूछताछ में पता चला कि बीकानेर यूनिवर्सिटी की ओर से 5 अप्रैल को एमकौम फाइनल वर्ष के ओआर एंड क्यूटी की परीक्षा आयोजित की गई थी. लेकिन इस परीक्षा के प्रश्नपत्र के सवालों को 4 दिन पहले यानी 1 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गोविंद पारीक ने एसएसजी पारीक गर्ल्स कालेज चौमूं के प्रोफेसर शंभुदयाल झालानी से नोट कर के बीकानेर यूनिवर्सिटी के खाजूवाला कालेज के प्राचार्य एन.एस. मोदी को बता दिया.

मोदी ने उन सवालों को अपने बेटे निपुण मोदी को बता दिया. वह इस पेपर की परीक्षा दे रहा था. यही पेपर रमेश बुक डिपो के कर्मचारी शरद ने परीक्षा से पहले ही अग्रसेन कालेज भादरा (हनुमानगढ़) के व्याख्याता कालीचरण शर्मा के जरिए फोन पर हासिल कर लिया और अन्य लोगों को वितरित कर दिया.

इसी तरह राजस्थान यूनिवर्सिटी में 10 अप्रैल को होने वाली बीए फाइनल ईयर की परीक्षा में भूगोल प्रथम प्रश्नपत्र का पेपर 8 अप्रैल को ही राजस्थान यूनिवर्सिटी के भूगोल के विभागाध्यक्ष जगदीश प्रसाद जाट ने पेपर सैटर बी.एल. गुप्ता से नोट किया और परीक्षार्थियों को वितरित कर दिया.

राजस्थान यूनिवर्सिटी की 12 अप्रैल को होने वाली बीए तृतीय वर्ष का भूगोल द्वितीय प्रश्नपत्र का पेपर 11 अप्रैल को ही जगदीश प्रसाद जाट ने हासिल कर विद्यार्थियों में बांट दिया था. इस तरह यह पेपर भी आउट कर दिया गया था.

राजस्थान यूनिवर्सिटी की 13 अप्रैल को होने वाली एबीएसटी द्वितीय प्रश्नपत्र (एडवांस्ट कोस्ट एकाउंटिंग) की परीक्षा का पेपर एक दिन पहले 12 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी की गोपनीय शाखा के कर्मचारी नंदलाल सैनी, अशोक अग्रवाल एवं महेश गुप्ता तथा अन्य लोगों ने आउट कर दिया था.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में पता चला कि 17 अप्रैल को हो रहे बीकौम फाइनल ईयर के इनकम टैक्स का पेपर भी परीक्षा से पहले लीक हो चुका था. इस सूचना पर 17 अप्रैल को ही एसओजी की एक टीम ने दौसा जिले के बांदीकुई कस्बे में छापा मारा. अगले दिन यानी 18 अप्रैल को एसओजी ने पेपर लीक प्रकरण में 3 अन्य मुकदमे दर्ज कर 5 लोगों को गिरफ्तार किया.

इन में राजस्थान यूनिवर्सिटी की गोपनीय शाखा का अनुभाग अधिकारी नंदलाल सैनी, राजकीय कालेज कालाडेरा (जयपुर) का लेक्चरर शंकर चोपड़ा, बांदीकुई (दौसा) का कोचिंग संचालक चंद्रप्रकाश सिंधी तथा फाइनल ईयर के छात्र अखिल रावत एवं अजय कुमार सैनी शामिल थे. इन में कालाडेरा कालेज के लेक्चरर शंकर चोपड़ा ने राजस्थान यूनिवर्सिटी के एमए फाइनल ईयर के वाटर रिसोर्स एवं एडवांस ज्योग्राफी औफ इंडिया के पेपर परीक्षा से पहले 8 अप्रैल को ही यूनिवर्सिटी के भूगोल के विभागाध्यक्ष जगदीश प्रसाद जाट को बता दिए थे.

पैसा बेईमान नहीं, हत्यारा भी बनाता है – भाग 3

भोपाल सहित पूरे देश में रिटायर्ड एयरफोर्स अधिकारी की हत्या पर चर्चाएं होने लगी थीं. हर कोई पुलिस को कोस रहा था कि वह शहर में रह रहे अकेले बुजुर्गों की हिफाजत के लिए कोई इंतजाम नहीं करती. और तो और, पुलिस के पास अकेले रह रहे बूढ़ों का कोई डाटा या रिकौर्ड तक नहीं है. इन सब आलोचनाओं से परे पुलिस के हाथ हत्यारे के गिरेहबान तक पहुंच चुके थे. देर बस गिरफ्तारी की थी, जो 10 मार्च को हो भी गई और राजू ने अपना जुर्म भी कबूल कर लिया.

दरअसल, पुलिस राजू और आरती के मोबाइल काल्स पर ध्यान रखे हुए थी. दोनों में बातचीत हो रही थी और नायर दंपति की हत्या की खबर सुन कर आरती इंदौर से भोपाल आ गई थी. पुलिस ने आरती को रडार पर लिया तो उस ने बताया कि राजू जरूर उस से मिलने आएगा. भोपाल आ कर आरती गोपालनगर झुग्गी इलाके में रुकी थी.

राजू को कतई अंदाजा या अहसास नहीं था कि भोपाल में पुलिस उस का स्वागत करने को तैयार है. वह तो अपने मालिक की हत्या पर शोक प्रकट करने इसलिए आ रहा था ताकि पुलिस उस पर शक न करे. जैसे ही वह भोपाल आया, सादे कपड़ों में तैनात पुलिसकर्मियों ने उसे स्टेशन से धर दबोचा. पहले तो वह हत्या की वारदात से नानुकुर करता रहा, लेकिन जल्द ही टूट भी गया. उस ने हत्या का सच उगल दिया.

राजू ने मांबाप सरीखे दंपति को पैसे के लिए लगाया ठिकाने 

32 वर्षीय राजू धाकड़ मूलत: ग्वालियर के हीरापुर गांव का रहने वाला था. उस ने वाकई जी.के. नायर से लगभग 2 लाख रुपए उधार ले रखे थे और उस की नीयत पैसे देने की नहीं थी. इस बात पर नायर उसे कभीकभी डांटा भी करते थे, जो उसे नागवार गुजरता था. इतना ही नहीं, राजू को यह शक भी था कि भेल के ठेका श्रमिक की नौकरी से उसे नायर ने ही निकलवाया है.

घटना की रात हत्या के इरादे से राजू कोई 9 बजे ग्वालियर से भोपाल आया. इस बाबत उस ने चाकू भी ग्वालियर से खरीद लिया था. भोपाल आ कर वह एसओएस बालग्राम स्टाप पर उतरा और वहां से पैदल ही नायर के घर तक गया. उस समय नायर दंपति टीवी देख रहे थे. राजू को देखते ही नायर की भौंहे तन गईं. उन्होंने उसे दरवाजे से ही वापस कर दिया. इस पर राजू ने गिड़गिड़ाते हुए उन्हें पुराने संबंधों का वास्ता दिया तो नरम दिल नायर पिघल उठे और उन्होंने उसे अंदर आने दिया.

उन की यह इजाजत भारी भूल साबित हुई. आदतन नायर ने फिर पैसों का तकादा किया तो राजू हमेशा की तरह बेशर्मी से नानुकुर करने लगा. बात करतेकरते दोनों पहली मंजिल पर आ गए, जहां नायर इत्मीनान से बैठ गए और राजू की खिंचाई करने लगे. इस बार राजू तय कर आया था, इसलिए जानबूझ कर विवाद को हवा दे रहा था.

पुराने पैसे लौटाने की बात तो दूर राजू ने नायर से और पैसे मांगे तो वे झल्ला उठे और तेज आवाज में उसे डांटने लगे. डांट सुन कर राजू को भी गुस्सा आ गया. वह हाथ धोने के बहाने बाथरूम में चला गया और मुड़ कर नायर के पीछे आ कर खड़ा हो गया. जेब से चाकू निकाल कर राजू ने नायर की गरदन पर 1-2 नहीं बल्कि गिन कर पूरे 10 प्रहार किए और 11वीं वार में उन का गला रेत डाला.

ताबड़तोड़ हमलों से घबराए और तड़पते जी.के. नायर पत्नी का नाम ले कर चिल्लाए. उन की चीख सुन कर गोमती पहली मंजिल की तरफ दौड़ीं. पैरों में तकलीफ होने के कारण गोमती कभी पहली मंजिल पर नहीं जाती थीं. मालिक का काम तमाम कर के राजू अभी उठा ही था कि मालकिन सामने आ गईं. गोमती को भी उस ने नहीं बख्शा और उसी चाकू से उन का गला रेत दिया.

चीखें भी रहीं बेअसर

यही वे चीखें थीं, जो रत्ना मिस्त्री ने सुनी थीं. लेकिन रोजमर्रा की आम बातचीत समझ कर उन्होंने उन्हें इसे नजरअंदाज कर दिया था. जी.के. नायर ने बचाव की कोशिश की थी, जिस में हाथापाई के दौरान चाकू उलट कर राजू की जांघ में भी लग गया था. लेकिन उसे ज्यादा चोट नहीं आई थी.

2 हत्याएं कर के राजू ने किचन में जा कर खून से सना चाकू साफ किया और पूरा किचन साफ कर दिया. खून के धब्बे लगी अपनी पैंट उतार कर उस ने घर से उठा कर नीले रंग का लोअर पहना और जाने से पहले सोने के जेवरों पर हाथ साफ कर दिया.

उस ने अलमारी में सोने की 8 चूडि़यां चुराईं और फिर मृत गोमती के गले में पड़ी चेन भी उतार ली. बाथरूम जा कर उस ने खून से सने कपड़े भी धोए और फिर एक नजर घर पर डाल कर बालकनी के रास्ते कूद कर चला गया. स्टेशन तक वह पैदल ही गया और ग्वालियर जाने वाली ट्रेन में बैठ गया. सुबह ही वह वापस भोपाल के लिए रवाना हो गया, जिस का अंदेशा आरती पुलिस वालों के सामने जता चुकी थी.

राजू के मन में लालच और हैवानियत दोनों आ गए थे. नायर दंपति की मेहरबानियों का बदला उस ने बजाय नमक हलाली के नमक हरामी से चुकाया. लगता यही है कि नौकरों पर जरूरत से ज्यादा मेहरबानियां और दयानतदारी जानलेवा भी हो सकती है. इन दोनों के कत्ल की उस की हिम्मत इसलिए भी पड़ी कि दोनों अकेले रहते थे और राजू के बारे में सब कुछ जानता था.

आरती के मन में अपने मालिकों के उपकारों के प्रति कृतज्ञता थी, जिस के चलते उस ने अपने हत्यारे पति को बचाने की कोशिश नहीं की. हालांकि इस दोहरे हत्याकांड में इस बात का कलंक भी लगा कि जी.के. नायर की हत्या की एक वजह उन के आरती से कथित अवैध संबंध भी थे.

भोपाल के डीआईजी धर्मेंद्र चतुर्वेदी के मुताबिक, राजू ने अपने बचाव में हत्या की वजह रुपयों के लेनदेन के अलावा व्यक्तिगत वजह भी बताई है. लेकिन स्पष्ट रूप से इन निजी कारणों का खुलासा पुलिस ने जाने क्यों नहीं किया. अपने बचाव की कोशिश में राजू ने 24 घंटों में ग्वालियर भोपाल अपडाउन किया, लेकिन वह खुद का गुनाह छिपा नहीं पाया.

पैसा बेईमान नहीं, हत्यारा भी बनाता है – भाग 2

सुबहसुबह जी.के. नायर के घर के बाहर जमा भीड़ देख कर एक और पड़ोसी पी.वी.आर. रामादेव भी जिज्ञासावश वहां पहुंच गए. रामादेव खुद आर्मी में सूबेदार रह चुके थे, इसलिए नायर दंपति से उन की अच्छी पटरी बैठती थी. पूछने पर पता चला कि नायर दंपति के घर का दरवाजा नहीं खुल रहा है और वे फोन भी नहीं उठा रहे हैं. इस पर उन्होंने पहल की और नायर के बंगले से सटे हरिदास मिस्त्री के बंगले की बालकनी से नायर के घर जा पहुंचे.

जी.के. नायर के घर का दृश्य देख कर रामादेव हतप्रभ रह गए. जी.के. नायर और गोमती नायर की लाशें फर्श पर पड़ी थीं. यह बात उन्होंने वहां मौजूद लोगों को बताई तो मानो सन्नाटा फैल गया. कालोनी में ऐसी किसी वारदात की उम्मीद किसी ने सपने में भी नहीं सोची थी. एक व्यक्ति ने इस की सूचना 100 नंबर पर दी और  लोग पुलिस के आने का इंतजार करने लगे. मोहनबाई भी सहमी सी एक तरफ खड़ी थी.

आधे घंटे से कम में अवधपुरी पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. चूंकि नायर के घर का दरवाजा अंदर से बंद था, इसलिए पुलिस वालों को भी नायर के एक और पड़ोसी आदित्य मिश्रा के घर से हो कर अंदर जाना पड़ा. पुलिस बल को यह बात भीड़ में से कोई बता चुका था कि नायर साहब छत का दरवाजा हमेशा बंद रखते थे.

मामला चूंकि एयरफोर्स के रिटायर अफसर की हत्या का था, इसलिए देखते ही देखते अवधपुरी इलाके के अलावा गोविंदपुरा और अयोध्यानगर थानों से भी पुलिस वाले पहुंच गए. पुलिस बल के साथ डीआईजी धर्मेंद्र चौधरी और एसपी राहुल लोढ़ा भी थे.

रिश्तेदारों की मौजूदगी में हुई पुलिस जांच

नायर दंपति की लाशें पहली मंजिल के बैडरूम में आमनेसामने पड़ी थीं. गले से बहता खून बयां कर रहा था कि हत्या गला रेत कर की गई थी. पुलिस वालों ने जब बारीकी से पूरे घर का मुआयना किया तो मामला कहीं से भी चोरी या लूटपाट का नहीं लगा. घर का सारा सामान व्यवस्थित तरीके से रखा हुआ था.

अब तक मातापिता की हत्या की खबर बेटियों को भी लग चुकी थी, लिहाजा प्रियंका और प्रतिभा जिस हालत में थीं, उसी हालत में नर्मदा वैली कालोनी की तरफ निकल पड़ीं. पुलिस छानबीन और पूछताछ में जुट गई थी. मोहनबाई, रत्ना मिस्त्री और पी.वी.आर. रामादेव के बयानों से केवल घटना की जानकारी मिल रही थी, हत्यारे की नहीं.

रत्ना मिस्त्री के इस बयान से जरूर पुलिस को कुछ उम्मीद बंधी थी कि रात कोई 12 बजे के आसपास नायर दंपति के घर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आई थीं, पर उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया था क्योंकि तेज आवाज में बातचीत करना मृतक दंपति की आदतों में शुमार था.

जी.के. नायर की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी और घर में कोई लूटपाट या चोरी भी नहीं हुई थी. इस का सीधा सा मतलब यह निकल रहा था कि हत्यारा जो भी था, बेहद नजदीकी था, जिस के रात में आने पर मृतकों को कोई ऐतराज नहीं था. न ही उस पर कोई पाबंदी थी.

हत्या के ऐसे मामलों, जिन में मृतक पैसे वाले हों, में उन की जमीनजायदाद और पैसा खास मायने रखता है. इस तरफ भी पुलिस का ध्यान गया. पूरा घर और आसपास का इलाका छानने के बाद भी हत्यारे का कोई सुराग और हथियार नहीं मिला तो पुलिस की जांच का दायरा नायर दंपति के रिश्तेदारों की तरफ बढ़ गया.

इसी बीच प्रियंका आई तो हत्या की गुत्थी सुलझती नजर आई. प्रियंका से पुलिस को पता चला कि दीवाली के दिनों में पटाखे चलाए जाने पर उस के पिता का विवाद सोसायटी के मौजूदा अध्यक्ष अशोक मनोज से हुआ था. अवधपुरी थाने में इस की शिकायत भी दर्ज हुई थी. दूसरी अहम बात यह सामने आई कि प्रियंका ही मांबाप का एकाउंट्स देखती थी.

पुलिस को संदेह का एक नया आधार मिला लेकिन पुलिस वालों को तीसरी बात ज्यादा महत्त्वपूर्ण लगी. दरअसल प्रियंका ने बताया कि इसी साल जनवरी तक आरती नाम की नौकरानी और उस का पति राजू धाकड़ उस के मातापिता के यहां काम किया करते थे. राजू ने अपनी बहन की शादी के लिए उस के पिता से करीब 2 लाख रुपए भी उधार ले रखे थे.

प्रियंका ने बताया कि आरती जब 8 साल की थी, तभी मम्मीपापा ने उसे अपने साथ रख लिया था और उन्होंने ही उस की शादी राजू से करवाई थी. भोपाल आते समय नायर दंपति उन्हें भी साथ ले आए थे. इतना ही नहीं, जी.के. नायर ने अपने एक परिचित हरिदास से कह कर भोपाल के भेल कारखाने में राजू की नौकरी ठेका श्रमिक के रूप में लगवा दी थी.

आरती और राजू पर जी.के. नायर इतने मेहरबान थे कि उन्होंने इन दोनों को खजूरीकलां में रहने के लिए किराए का मकान भी दिलवा रखा था. प्रियंका ने यह भी बताया कि राजू का विवाद अकसर गोमती से हुआ करता था. वह लिए गए पैसे लौटाना तो दूर की बात, जी.के. नायर के नाम पर कुछ दूसरे लोगों से भी पैसे ले चुका था.

प्रियंका के मुताबिक, अकसर उस के पिता राजू से अपना पैसा वापस मांगा करते थे, लेकिन वह हर बार देने से मना कर देता था. अब आरती और राजू कहां हैं, इस पर प्रियंका ने बताया कि वे दोनों इसी साल जनवरी में काम छोड़ कर चले गए और इंदौर में उन्होंने ब्यूटीपार्लर खोल लिया है, जिस का किराया साढ़े 8 हजार रुपए महीना है.

यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. लेकिन हत्या राजू ने ही की थी तो वह है कहां? इस सवाल का जवाब हासिल करने के लिए पुलिस ने राजू का फोन नंबर ले कर उसे फोन लगाया तो उस ने खुद के ग्वालियर में होने की बात कही.

हत्यारा राजू ही है, इस पर पुलिस का शक गहराने लगा था क्योंकि अब तक यह स्पष्ट हो चुका था कि नायर दंपति के अपने रिश्तेदारों से संबंध अच्छे थे और पटाखा विवाद बेहद मामूली था. एक राजू ही था जो घर के सदस्य की तरह नायर दंपति के यहां बेरोकटोक आजा सकता था. लेकिन ग्वालियर में होते हुए वह दोहरे कत्ल की वारदात को कैसे अंजाम दे सकता था, यह बात किसी सस्पेंस से कम नहीं थी.

हालांकि यह मुमकिन था कि कोई भी शख्स भोपाल में हत्या कर के ग्वालियर जा सकता है, क्योंकि वहां का रास्ता महज 5 घंटे का था. अब तक की काररवाई में यह तो उजागर हो गया था कि हत्याएं रात साढ़े 9 से 12 बजे के बीच हुई थीं. यानी राजू के हत्या कर के ग्वालियर भाग जाने की बात संभव थी. भोपाल से ग्वालियर के लिए रात में ट्रेनों की भी कमी नहीं थी.

पैसा बेईमान नहीं, हत्यारा भी बनाता है – भाग 1

70 वर्षीय जी.के. नायर एयरफोर्स की सिविल विंग से रिटायर हो कर चाहते तो अपने गृह राज्य केरल वापस जा सकते थे, लेकिन लंबा वक्त एयरफोर्स में गुजारने के बाद उन्होंने मध्य प्रदेश में ही बस जाने का फैसला ले लिया था. इन दिनों वह अपनी 68 वर्षीय पत्नी गोमती नायर सहित भोपाल खजूरीकलां स्थित नर्मदा ग्रीन वैली कालोनी में डुप्लेक्स बंगले में रह रहे थे. इस कालोनी की गिनती भोपाल की पौश कालोनियों में होती है, जिस में संपन्न और संभ्रांत लोग रहते हैं.

दूसरे रिटायर्ड मिलिट्री अफसरों की तरह जी.के. नायर का स्वभाव भी अनुशासनप्रिय था, जो आम लोगों को सख्त लगता था. उन के चेहरे पर छाया रौब और बातचीत का लहजा ही उन के एयरफोर्स अधिकारी होने का अहसास करा देता था. साल 2014 में जब वे पत्नी सहित नर्मदा ग्रीन वैली में आ कर रहने लगे थे, तभी से इस कालोनी के अधिकांश लोग उन के स्वभाव से परिचित हो गए थे.

गोमती नायर ग्वालियर के मुरार अस्पताल में नर्स पद से रिटायर हुई थीं. पतिपत्नी दोनों को ही पेंशन मिलती थी. नौकरी में रहते ही नायर दंपति अपनी तीनों बेटियों की शादियां कर के अपनी इस जिम्मेदारी से मुक्त हो चुके थे. लिहाजा उन के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी.

ग्वालियर से नायर दंपति का खास लगाव था, क्योंकि गोमती वहीं से रिटायर हुई थीं और इन की बड़ी बेटी प्रशुंभा नायर की शादी भी ग्वालियर में ही हुई थी. गोमती की एक बहन भी ग्वालियर में ही रहती थीं. जब भी इन दोनों का मन भोपाल से कहीं बाहर जाने का होता था तो उन की प्राथमिकता ग्वालियर ही होती थी.

पुरसुकून थी नायर दंपति की जिंदगी

भोपाल में बसने की बड़ी वजह उन की यहां फैली रिश्तेदारी थीं. मंझली बेटी प्रियंका नायर की शादी भोपाल में हुई थी और वह अवधपुरी इलाके की फर्स्ट गार्डन कालोनी में रहती थीं. प्रियंका एक नामी प्राइवेट स्कूल में टीचर थीं. छोटी बेटी प्रतिभा की भी शादी भोपाल में हुई थी, जो मिसरोद इलाके की राधाकृष्ण कालोनी में रहती थी. गोमती के बड़े भाई का बेटा प्रमोद नायर भी भोपाल में रहता था.

उन की और 2 बहनें भी भोपाल में रहती थीं. इतने सारे नजदीकी रिश्तेदारों के भोपाल में होने के चलते जी.के. नायर का भोपाल में बस जाने का फैसला स्वाभाविक था, जो उन्हें एक सामाजिक सुरक्षा का अहसास कराता था. हर रविवार कोई न कोई मिलने के लिए उन के घर आ जाता था. इस से बुजुर्ग दंपति का अपनों के बीच अच्छे से वक्त कट जाता था. जी.के. नायर के बैंक खातों का काम और पैसों का हिसाबकिताब प्रियंका के हाथ में था.

नर्मदा ग्रीन वैली कालोनी में शिफ्ट होने के कुछ दिन बाद ही जी.के. नायर सोसायटी के अध्यक्ष चुन लिए गए थे. लेकिन इस पद पर वे सभी की पसंद नहीं थे. कालोनियों की सोसाइटियों की अपनी एक अलग राजनीति होती है, जिस का अंदाजा या तजुर्बा जी.के. नायर को नहीं था. अध्यक्ष रहते उन्होंने कालोनी के पार्क में बेंच लगवाने की पहल की तो कई सदस्यों ने इस पर असहमति जताई थी, जिस से खिन्न हो कर उन्होंने पद छोड़ दिया था.

वजह यह कि काम कम होता था और रोजाना की चिखचिख ज्यादा होती थी. 70 साल की बड़ी और लंबी जिंदगी में हालांकि इन छोटीमोटी बातों के कोई खास मायने नहीं होते, लेकिन यह साबित हो गया था कि मिलिट्री से रिटायर्ड अधिकारी आमतौर पर समाज में फिट नहीं होते.

पतिपत्नी खाली समय ज्यादातर टीवी देख कर गुजारते थे. गोमती को अपराध से संबंधित धारावाहिक पसंद थे. इन्हें वे बड़े चाव से देखा करती थीं और अपराध और अपराधी की मानसिकता को समझने की कोशिश करती रहती थीं. कई बार ये धारावाहिक देख कर उन्हें अपनी सुरक्षा का ध्यान आता था, पर यह सोच कर वे निश्चिंत हो जाया करती थीं कि उन की कालोनी कवर्ड है और मकान भी सुरक्षित है. बुढ़ापे में सुरक्षा की चिंता एक आम बात है लेकिन जी.के. नायर बहादुर होने के कारण यह चिंता नहीं करते थे.

अचानक कैसे आई कालरात्रि

8 मार्च की रात टीवी देखते समय जी.के. नायर ने गोमती से कुछ बातें की थीं, फिर लगभग साढ़े 9 बजे उन्होंने प्रियंका को फोन किया. वैसे तो सभी रिश्तेदारों खासतौर से बेटियों से उन की रोजाना फोन पर बात हो जाती थी, लेकिन प्रियंका को उन्होंने इस वक्त एक खास मकसद से फोन किया था.

उन्होंने बेटी से कहा कि वह अगले दिन या फिर जब भी बर्थ खाली मिले, उन दोनों का ग्वालियर जाने का रिजर्वेशन करवा दे. क्योंकि उन्हें प्रियंका की मौसी यानी गोमती की बहन को देखने जाना था, जो इन दिनों बीमार चल रही थीं.

9 मार्च की सुबह रोजाना की तरह जब नायर दंपति के यहां काम करने वाली नौकरानी  मोहनबाई आई तो कई बार कालबेल बजाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला. इस पर मोहनबाई ने पहले उन्हें आवाजें लगाईं और फिर जी.के. नायर के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं मिला. दरवाजे पर खड़ेखड़े मोहनबाई को ध्यान आया कि पिछली रात ही गोमती ने उस से जल्द आने को कहा था और 5 के बजाय 10 रोटियां बनवाई थीं, जिस से उस ने अंदाजा लगाया था कि शायद रात को कोई आने वाला है.

जब फोन नहीं उठा तो मोहनबाई पड़ोस में रहने वाली रत्ना मिस्त्री के पास गई और उन्हें यह बात बताई. इस पर रत्ना ने भी नायर साहब का मोबाइल फोन लगाया पर दूसरी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. यह एक चिंता की बात थी. नायर दंपति द्वारा फोन न उठाए जाने की बात रत्ना ने दूसरे पड़ोसियों को बताई तो धीरेधीरे कालोनी के लगभग सभी लोग इकट्ठा हो गए. किसी अनहोनी की आशंका सभी के दिमाग में थी, पर कोई खुल कर नहीं बोल पा रहा था.