लगातार तीसरे दिन काररवाई करते हुए एसओजी ने 19 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कौमर्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. महेशचंद गुप्ता को गिरफ्तार किया. उन्होंने यूनिवर्सिटी के एमकौम प्रीवियस की 13 अप्रैल को हुई एबीएसटी की परीक्षा का पेपर तैयार किया था.
इस की सूचना यूनिवर्सिटी की गोपनीय शाखा के अनुभाग अधिकारी नंदलाल सैनी ने प्रो. अशोक अग्रवाल को दी थी. प्रो. अशोक अग्रवाल ने डा. महेशचंद गुप्ता से संपर्क कर परीक्षा से एक दिन पहले पेपर हासिल कर लिया था. उसी दिन एसओजी ने राजकीय कालेज कालाडेरा के भूगोल के लेक्चरर सुरेंद्र कुमार सैनी को गिरफ्तार किया. उन्होंने यूनिवर्सिटी के एमए/एमएससी फाइनल ईयर भूगोल की एडवांस ज्योग्राफी औफ इंडिया की 17 अप्रैल को होने वाली परीक्षा का पेपर तैयार किया था.
सैनी ने यह पेपर शंकर को बता दिया था. शंकर के माध्यम से यह पेपर जगदीश प्रसाद जाट एवं अन्य लोगों तक पहुंच गया था. इस के बाद एसओजी ने 21 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कौमर्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर व चीफ वार्डन राजीव शर्मा एवं यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक के निजी सचिव सुरेंद्र मोहन शर्मा को गिरफ्तार किया.
इन में निजी सहायक सुरेंद्र मोहन शर्मा ने नंदलाल सैनी से पेपर बनाने वाले प्राध्यापकों के नाम पता कर के एसोसिएट प्रोफेसर राजीव शर्मा को बताए थे. राजीव शर्मा ने अपने परिचितों के लिए पेपर बनाने वाले उन प्राध्यापकों से संपर्क किया और परीक्षा की गोपनीयता भंग की.एसओजी ने 22 अप्रैल को यूनिवर्सिटी के डिप्टी रजिस्ट्रार एम.सी. गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया. इस के अगले दिन जयपुर के टोंक फाटक स्थित एक कौमर्स कोचिंग क्लासेज के संचालक अतिशय जैन को पकड़ा गया. इस तरह पेपर लीक प्रकरण में 17 से 23 अप्रैल तक 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया.
इन लोगों से की गई पूछताछ और एसओजी की जांच में सामने आया कि सरकारी यूनिवर्सिटी के अधिकारियों, कर्मचारियों, पेपर बनाने वाले प्रोफेसरों से ले कर उन के सहायकों, कोचिंग संचालकों, प्राइवेट कालेजों एवं बुक सेलरों का पूरा रैकेट है. ये लोग पैसों के लालच, कोचिंग संस्थानों में पढ़ाने, पासबुक (गेस पेपर) लिखने के लिए राइटर बने रहने और परिचितों एवं परिजनों को अच्छे नंबर दिलाने के लिए पेपर लीक करते थे.
एसओजी ने पेपर लीक होने की सूचना मिलने के बाद कई दिनों तक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों व अन्य लोगों के फोन सर्विलांस पर रखे. इस के बाद एक से एक कडि़यां जुड़ती गईं. 1 अप्रैल को प्रिंसिपल एन.एस. मोदी व प्रोफेसर गोविंद पारीक के बीच वाट्सऐप पर हुई वार्ता में मोदी ने पारीक से कहा था, ‘‘5 अप्रैल को एमकौम का पेपर है, सेंड करो.’’
इस पर पारीक ने कहा, ‘‘पेपर मेरे पास नहीं है. मैं ले कर देता हूं.’’
इस के बाद चौमूं के अग्रसेन कालेज के प्रो. शंभुदयाल झालानी और पारीक के बीच बातचीत सामने आई. इस में पारीक ने झालानी से कहा, ‘‘यार, एमकौम का जो पेपर बनाया था, उसे सेंड करो.’’
झालानी ने कहा, ‘‘सर, उस दिन जो सेंड किया था, वही पेपर है.’’
पारीक ने कहा, ‘‘एक बार फिर सेंड करो.’’
झालानी ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं अभी सेंड कर देता हूं.’’
पारीक ने कहा, ‘‘हां यार, मोदी को सेंड करना है. उन का बेटा एमकौम में है.’’
इस के बाद झालानी ने वाट्सऐप पर पारीक को पेपर सेंड कर दिया था.
राजस्थान यूनिवर्सिटी ने इसी साल पेपर सेटर के मानदेय बढ़ाए थे. अंडर ग्रैजुएट का प्रति पेपर मानदेय ढाई हजार रुपए एवं पोस्ट ग्रैजुएट का प्रति पेपर 3 हजार रुपए किया गया है. इस के बावजूद यूनिवर्सिटी के विभागाध्यक्ष और बोर्ड औफ स्टडीज के समन्वयक या सदस्यों के दबाव में आ कर पेपर लीक किए गए.
दरअसल, विभिन्न विषयों के विभागों में एक अध्ययन मंडल (बोर्ड औफ स्टडीज) होता है. इस में समन्वयक व 2 सदस्य होते हैं. ये ही पेपर सेटर नियुक्त करते हैं. संबंधित विषय के विभागाध्यक्ष या डीन इस से जुड़े रहते हैं. 3 प्रोफेसर 3 पेपर सेलेक्ट कर सीलबंद लिफाफे में परीक्षा नियंत्रक के पास भेजते हैं.
परीक्षा नियंत्रक एवं यूनिवर्सिटी के अन्य उच्चाधिकारी उन में से एक पेपर सेलेक्ट कर छपने के लिए प्रिंटिंग प्रैस पर भेजते हैं.
पेपर लीक करने के लिए कन्वीनर और सेलेक्टर संबंधित विभाग की गोपनीय शाखा से पता करते थे कि किस प्रोफेसर का पेपर सेलेक्ट हुआ है. जिस प्रोफेसर का पेपर सेलेक्ट होता था, उस से संपर्क कर के पेपर हासिल कर लिया जाता था. वह प्रोफेसर भी अपने परिचितों को पेपर बता देता था. कन्वीनर के पूछने पर उसे भी पेपर बता दिया जाता था.
इस घपले में लिप्त लोग बाकायदा बोर्ड औफ स्टडीज के चुनाव में अपने रसूख का प्रयोग करते थे. कुछेक तो बोर्ड औफ स्टडीज के समन्वयक भी बने हुए थे. इन्हीं के माध्यम से पेपर सेटर से पेपर पूछा जाता था. ऐसा न करने पर उन पर हटाने का दबाव डाला जाता था. दूसरी ओर कुछ पब्लिशर बोर्ड औफ स्टडीज एवं एचओडी से मिल कर मुख्य प्रश्नों की पासबुक (गेस पेपर) छापते थे.
जिस पब्लिशर की पासबुक से परीक्षा में सब से ज्यादा सवाल आते थे, उस की प्रसिद्धि रातोंरात हो जाती थी. उस की पासबुक खरीदने के लिए परीक्षार्थियों में होड़ मच जाती थी. ये पब्लिशर इस तरह चांदी काटते थे.
इस के अलावा कुछ प्रोफेसर कोचिंग संस्थानों में पढ़ाते थे. ये प्रोफेसर परीक्षार्थियों को मोस्ट इंपोर्टेंट सवाल बता कर अपनी प्रसिद्धि के लिए येन केन प्रकारेण पेपर हासिल करते थे. कोचिंग संस्थानों के संचालक भी रातोंरात प्रसिद्धि पाने और विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिए अपने विद्यार्थियों को पेपर बताते थे. ये भी अनैतिक तरीकों से पेपर हासिल करते थे.
बांदीकुई का जो कोचिंग संचालक पकड़ा गया है, उस से इसी बात के संकेत मिलते हैं. प्रोफेसर बुकसेलरों को इसलिए पेपर मुहैया कराते थे, क्योंकि पब्लिशर उन्हें लेखक बनाए रखें. अधिकांश अपनी किताबों के लेखक राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों को बनाते थे, ताकि उन की किताबों की ज्यादा से ज्यादा बिक्री हो. इस के बदले में प्रोफेसर उन्हें पेपर उपलब्ध कराते थे.
पब्लिशर इन पेपरों का उपयोग वन वीक सीरीज आदि में करते थे, ताकि उन की किताबों, पासबुक और अन्य परीक्षाओं में सहायक पुस्तकों की बिक्री होती रहे. पेपर लीक करने का मामला उजागर होने पर 18 अप्रैल को राजस्थान की उच्च शिक्षा मंत्री किरण माहेश्वरी ने राजस्थान यूनिवर्सिटी के भूगोल के विभागाध्यक्ष प्रो. जगदीश प्रसाद जाट, राजस्थान विश्वविद्यालय के कौमर्स विभाग के प्रोफेसर गोविंद पारीक, राजकीय कालेज खाजूवाला (बीकानेर) के प्राचार्य एन.एस. मोदी, राजकीय कालेज कालाडेरा के लेक्चरर शंकर चोपड़ा एवं यूनिवर्सिटी की गोपनीय शाखा के अनुभाग अधिकारी शंकरलाल सैनी को निलंबित कर दिया था.
इस के दूसरे दिन 19 अप्रैल को राजस्थान यूनिवर्सिटी के कार्यवाहक कुलपति वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजेश्वर सिंह ने प्रो. जगदीश प्रसाद जाट एवं प्रो. गोविंद पारीक को निलंबित कर दिया. यूनिवर्सिटी प्रशासन ने 24 अप्रैल को एसोसिएट प्रोफेसर डा. राजीव शर्मा, कुलसचिव परीक्षा गोपनीय एम.सी. गुप्ता एवं परीक्षा नियंत्रक के पीए सुरेंद्र मोहन शर्मा को भी निलंबित कर दिया.