Murder Story : प्यार के लिए दोस्त को जिंदा जलाया

Murder Story : सतपाल ने अपने लंगोटिया यार को खत्म करने का ऐसा खौफनाक प्लान बनाया कि रुह तक कांप जाए. उस ने नरेंद्र को जम कर शराब पिलाने के बाद उसी की कार में डाल कर जिंदा जला दिया. आखिर एक दोस्त क्यों बना गद्दार? पढ़ें, यह दिलचस्प कहानी.

एक दिन जब नरेंद्र टैक्सी ले कर चला गया और तीनों बच्चे स्कूल चले गए तो रीना ने अपने प्रेमी सतपाल को फोन कर दिया, ”हैलो सतपाल, कैसे हो?’’ रीना ने पूछा.

”ये मत पूछो मुझे कि मैं कैसा हूं रीना. तुम्हारी याद से तो मेरा एकएक पल गुजारना मुश्किल हो रहा है.’’ सतपाल ने कहा.

”सतपाल, आज तुम से मिल कर कुछ जरूरी बात करनी है. तुम गोहाना चौराहे पर आ जाना. मैं घर का सामान खरीदने का बहाना बना कर वहां पर आ जाऊंगी. बहुत जरूरी काम है, अच्छा फोन रखती हूं.’’ कहते हुए रीना ने फोन काट दिया. सतपाल अपनी बाइक से जैसे ही गोहाना के चौराहे पर पहुंचा तो उस ने रीना को फोन कर दिया. रीना के बच्चे उस समय स्कूल गए हुए थे. वह तुरंत चौराहे पर पहुंची तो सतपाल उसे अपनी बाइक पर बिठा कर एक रेस्टोरेंट में ले गया, जहां पर दोनों एक केबिन में बैठ गए. सतपाल ने चाय पकौड़ी का आर्डर दे दिया.

”हां रीना, बताओ, क्या विशेष काम है? क्या बात करना चाहती हो मुझ से?’’ सतपाल ने पूछा.

”ये देखो, आजकल नरेंद्र मेरी किसी तरह से रोजरोज जानवरों की तरह कुटाई कर रहा है.’’ कहते हुए रीना ने अपनी पीठ दिखाई.

सतपाल ने देखा कि उस की पीठ पर डंडे के नीले निशान बने हुए थे. उस के चेहरे और होंठों पर भी पिटाई के निशान साफसाफ दिखाई दे रहे थे.

”रीना, अब तो पानी सिर से ऊपर जा रहा है. बोलो, मैं क्या मदद कर सकता हूं.’’ सतपाल ने रीना के हाथों को सहलाते हुए कहा.

”देखो सतपाल, अब मैं नरेंद्र के साथ एक पल भी रहना नहीं चाहती हूं. तुम अपनाओगे मुझे?’’ रीना ने उस की आंखों में देखते हुए कहा.

”रीना, मैं तुम्हारे लिए सब कुछ कर सकता हूं. तुम्हारे लिए तो मैं अपनी बीवी को भी छोड़ सकता हूं.’’ सतपाल ने रीना की आंखों में देखते हुए कहा.

”तो फिर ठीक है, अब तुम्हें नरेंद्र नामक कांटे को हमारी जिंदगी से दूर करना होगा. बोलो, क्या तुम तैयार हो? या फिर ऐसे ही आशिकी का दम भर रहे हो?’’ रीना ने साफसाफ कह डाला.

”इस में यदि हम फंस गए तो फिर हम दोनों ही जेल चले जाएंगे.’’ सतपाल ने आशंकित होते हुए कहा.

”मुझे पता था कि तुम केवल नाम के ही शेर हो. अरे मेरे पास ऐसा प्लान है कि हमारे ऊपर कोई रत्ती भर का शक भी नहीं कर सकेगा. फिर हम दोनों आराम से साथ रह सकेंगे.’’ यह कहते हुए रीना ने सतपाल के कान में अपना गोपनीय प्लान बता दिया.

”रीना यार, वाकई में तुम्हारा प्लान तो बड़ा सटीक है. ऐसे में हम दोनों के ऊपर कभी आंच तक नहीं आ पाएगी.’’ सतपाल ने खुशी के मारे रीना के दोनों हाथ पकड़ लिए.

”अच्छा, अब काफी देर हो चुकी है, आजकल नरेंद्र कभी भी घर पर आ धमकता है. बस तुम अब उस से दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दो.’’ यह कहते हुए रीना वहां से चली गई.

साजिश के तहत एक दिन सतपाल नरेंद्र से जा कर मिला और उस के पैरों पर गिर कर माफी मांगते हुए बोला, ”नरेंद्र भाई, मैं अपनी भूल स्वीकार करता हूं, तुम मेरे बचपन के दोस्त हो, तुम्हारे बगैर मुझे एक पल काटना भी दूभर हो गया है. मुझ पर विश्वास रखो, मैं अब दोबारा रीना भाभी से कभी कोई ऐसी बात नहीं करूंगा.’’ यह कह कर माफी मांगते हुए सतपाल नाटकीय ढंग से नरेंद्र के सीने से लग कर फूटफूट कर रोने लगा था.

नरेंद्र ने भी अब सतपाल पर विश्वास करते हुए उसे अपने दिल से माफ कर दिया था. उस के बाद वे दोनों फिर अकसर बैठ कर शराब पीने लगे थे.

…और लंगोटिया यार को जला दिया जिंदा

29 सितंबर, 2024 को रीना ने सतपाल के साथ मिल कर प्लान बनाया. प्लान के मुताबिक सतपाल ने नरेंद्र को शाम के समय एक जगह शराब पार्टी के बहाने बुला लिया. उस ने जानबूझ कर नरेंद्र को खूब शराब पिला दी और उस की शराब में नींद की गोलियां भी मिला दीं. शराब पी कर जब नरेंद्र बेहोश हो गया तो सतपाल ने नरेंद्र की स्विफ्ट डिजायर कार में ही नरेंद्र को डाल दिया और कार को गोहाना के बुटाना माइनर की पटरी पर ग्रीनफील्ड हाइवे के पास एक सुनसान जगह पर ले गया. वहां उस ने पेट्रोल डाल कर नरेंद्र को टैक्सी में ही जला दिया और फिर पैदल ही चल कर अपने घर आ गया. इस वारदात की खबर उस ने रीना को भी दे दी कि काम हो गया है.

30 सितंबर को लोगों ने गोहाना में सड़क किनारे वह जली हुई कार देखी, जिस में एक व्यक्ति की डैडबौडी भी थी. फिर यह बात आसपास के गांवों में फैली तो उसे देखने के लिए लोगों का हुजूम जुट गया. कार की नंबर प्लेट के आधार पर पता चला कि वह कार गोहाना सोनीपत के बिचपड़ी गांव के नरेंद्र सिंह की है. वहां मौजूद अनिरुद्ध सिंह ने उस डैडबौडी की शिनाख्त अपने चचेरे भाई 38 वर्षीय नरेंद्र के रूप में की. सूचना पा कर गोहाना (सदर) थाने के एसएचओ महीपाल सिंह भी वहां पहुंच गए. उन्होंने मौकामुआयना कर फोरैंसिक टीम को बुला लिया.

मौके की जांचपड़ताल करने के बाद एसएचओ ने अनिरुद्ध से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का चचेरा भाई नरेंद्र उम्र 38 वर्ष करीब एक साल से कंवल किशोर के पास ड्राइवर का काम कर रहा था. वह 29 सितंबर, 2024 की रात घर पर नहीं लौटा. हम ने उस के मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की, मगर उस का फोन नंबर भी बंद आ रहा था. बाद में उसे किसी के द्वारा इस जली हुई कार के बारे में सूचना मिली तो वह अपने फेमिली वालों के साथ यहां पहुंचा तो कार पूरी तरह से जल चुकी थी और कार के अंदर पिछली सीट पर नरेंद्र का शव अधजली हालत में पड़ा था.

उस ने आगे बताया कि उस के भाई नरेंद्र की किसी ने हत्या कर शव को उसी की स्विफ्ट डिजायर कार में डाल कर उस की सुनियोजित ढंग से हत्या कर दी, लिहाजा आरोपियों के खिलाफ तुरंत काररवाई की जानी चाहिए और मेरे भाई के हत्यारों को सजा दी जानी चाहिए. पुलिस ने मौके की जांच करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और अज्ञात के खिलाफ हत्या कर लाश ठिकाने लगाने की रिपोर्ट दर्ज कर ली. गोहाना (सदर) थाने में केस दर्ज होते ही एसीपी (गोहाना) के सुपरविजन में एक विशेष टीम का गठन किया गया, जिस में एसएचओ थाना गोहाना (सदर) महीपाल सिंह और एएसआई जगदीश व अन्य को शामिल किया गया. पुलिस गहनता से इस केस की छानबीन में जुट गई थी.

पुलिस टीम ने डैडबौडी का पोस्टमार्टम कराने के बाद वह उस के फेमिली वालों को सौंप दी. इस घटना के सबूत जुटाते हुए पुलिस ने जब जांच की तो पुलिस को मृतक की पत्नी रीना और नरेंद्र के दोस्त सतपाल के बीच अवैध संबंधों के बारे में जानकारी मिली. उस के बाद जब पुलिस ने रीना के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस पर शक और भी पक्का हो गया. पता चला कि रीना और उस के प्रेमी सतपाल के बीच रोज लंबीलंबी बातचीत होती थी. वाट्सऐप पर भी दोनों की काफी अश्लील चैटिंग होती थी. घटना की रात 29 सितंबर, 2024 को भी बातचीत और मैसेज किए जाने का पता चला. उस के बाद पुलिस ने रीना और सतपाल को हिरासत में ले कर जब उन दोनों से अलगअलग कड़ाई से पूछताछ की तो उन्होंने नरेंद्र के मर्डर का खुलासा कर दिया.

रीना और उस के प्रेमी सतपाल ने बताया कि उन्होंने बड़े ही सुनियोजित तरीके से नरेंद्र की हत्या की थी. पुलिस पूछताछ में दोनों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद नरेंद्र की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

नरेंद्र हरियाणा के सोनीपत जिले की गोहाना तहसील के गांव बिचपड़ी का रहने वाला था. इस गांव को फै्रक्चर के उपचार के लिए भी जाना जाता है. यहां अनेक लोग हड्डी फ्रैक्चर का घरेलू इलाज करते हैं. नरेंद्र अपने घर पर सब से बड़ा था. उस की 2 शादीशुदा बहनें हैं. नरेंद्र का विवाह भी हो चुका था. नरेंद्र का विवाह 9 साल पहले रीना से हुआ था. वह पहले अपने घर पर ही खेती का काम देखा करता था. धीरेधीरे उस का परिवार बढ़ा और उस का एक बेटा व 3 बेटियां भी हो गए. समय गुजरने के साथसाथ नरेंद्र के मम्मीपापा भी काफी बुजुर्ग हो चुके थे. घर का खर्च बढऩे पर नरेंद्र की पत्नी बारबार उसे गांव से कहीं बाहर जा कर नौकरी करने का उलाहना देती रहती थी, लेकिन नरेंद्र बारबार अपने मम्मीपापा की सेवा की बात कह कर रीना को समझा लिया करता था.

लेकिन कुछ समय बाद एकाएक नरेंद्र के पापा की तबीयत खराब हो गई और हार्ट अटैक के कारण उन की मृत्यु हो गई. उस के 2 महीने बाद ही उस की मम्मी की भी मृत्यु हो गई. इस के बाद रीना नरेंद्र को बारबार बाहर नौकरी करने के लिए कहने लगी. नरेंद्र को कार और ट्रक चलाना आता था. उस के पास ड्राइविंग लाइसेंस भी था, इसलिए वह अपने परिचितों और दोस्तों से नौकरी की बात करने लगा था. तभी एक दिन अपने एक दोस्त से नरेंद्र को गोहाना के एक व्यवसायी कंवल किशोर के बारे में पता चला, जिन्हें एक अच्छे चालचलन वाले ड्राइवर की जरूरत थी. नरेंद्र गोहाना जा कर कवल किशोर से मिला और उन्होंने नरेंद्र के ड्राइविंग लाइसेंस और उस के अच्छे व्यवहार को देखा तो उन्होंने उसे ड्राइवर की नौकरी पर रख लिया.

कंवल किशोर की अपनी कुछ टैक्सियां किराए पर भी चलती थीं. जब कहीं बुकिंग से लौटते समय कोई सवारी मिल जाती तो नरेंद्र की भी कुछ एक्स्ट्रा इनकम हो जाया करती थी. जब अच्छे पैसे हाथ में आने लगे तो नरेंद्र ने गोहाना के विष्णु नगर में किराए पर 2 कमरे ले लिए और अपनी पत्नी रीना और तीनों बच्चों को ले कर आ गया. उस ने एक स्कूल में बच्चों का दाखिला भी करा दिया. एक दिन बुकिंग के बाद सवारी को छोड़ कर नरेंद्र सोनीपत के रेलवे स्टेशन पर जा कर चाय पीने लगा. उसे लगा कि यदि कोई गोहाना या आसपास की सवारी होगी तो वह सवारी को बैठा लेगा.

चाय पी कर नरेंद्र अपनी ड्राइविंग सीट पर बैठा ही था कि तभी एक युवक लगभग भागते हुए अपने हाथों में 2 बैग उठाए उस के पास आया. वह उस से बोला, ”भाई साहब, मुझे गोहाना से आगे एक गांव में जाना है, ले चलोगे?’’

”ठीक है, बैठो.’’ नरेंद्र ने कहा

”भाई साहब, मेरे पीछेपीछे एक कुली मेरा सामान ले कर आ रहा है. थोड़ी देर रुक जाइए,’’ युवक ने कहा.

नरेंद्र को जल्दी थी, इसलिए युवक की ओर अधिक ध्यान न देते हुए उस का सारा सामान कार की डिक्की और छत पर रखवा दिया. युवक तसल्ली से पीछे की सीट पर बैठ गया. नरेंद्र ने गाड़ी स्टार्ट की और चल पड़ा.

जब भीड़भाड़ समाप्त हुई और टैक्सी सुनसान रास्ते पर चलने लगी तो नरेंद्र ने युवक से पूछा, ”भाई साहब, आप को किस गांव में जाना है.’’

”मुझे गोहाना तहसील के गांव बिचपड़ी जाना है.’’ युवक ने कहा.

नरेंद्र के कानों में जब अपने गांव का नाम सुनाई दिया तो उस ने टैक्सी की स्पीड कम करते हुए पूछा, ”भाई साहब, बिचपड़ी गांव में आप को किस के घर जाना है?’’

”किस के घर पर जाने का मैं मतलब समझा नहीं भाई. किस के घर का क्या मतलब? जब मैं उसी गांव में रहता हूं तो अपने ही घर जाऊंगा. वैसे ड्राइवर साहब, आप ने बिचपड़ी गांव का नाम सुना है? क्या आप वहां पहले कभी गए हैं?’’ युवक ने पूछा.

”अरे भाई साहब, सही बात तो यह है कि मैं खुद बिचपड़ी का रहने वाला हूं. अब आप मुझे अपना परिचय तो दीजिए.’’ नरेंद्र ने सामने के मिरर से पीछे देखते हुए कहा.

”मेरा नाम सतपाल है और आप का?’’ युवक ने अपना परिचय देते हुए कहा.

जैसे ही नरेंद्र के कानों में सतपाल का नाम सुनाई दिया, उस ने झटके से कार के ब्रेक लगा दिए और गाड़ी से उतर कर पीछे का गेट खोल दिया और फिर चिल्ला कर बोला, ”अरे सतपाल, आज पूरे 8 साल के बाद तुझे देख रहा हूं. अरे भाई, मैं नरेंद्र हूं तेरे बचपन का दोस्त!’’ यह कहते हुए उस ने अपनी दोनों बाहें फैला दीं. उधर जब सतपाल को नरेंद्र के बारे में पता चला तो वह तुरंत कार से बाहर निकल कर नरेंद्र की छाती से चिपट गया. दोनों में काफी देर तक बचपन की बातें होती रहीं, ”देख सतपाल, इतने सालों के बाद आज मिला है तू मुझे, इसलिए आज तुझे मेरे घर पर रुकना होगा. कल में तुझे गांव छोड़ क र आ जाऊंगा. तेरी पत्नी और बच्चे कहां हैं?’’ नरेंद्र ने पूछा.

”नरेंद्र भाई, मैं तो परसों दिल्ली पहुंच गया था, वहां से अपनी पत्नी के मायके में रहा. वह 2-4 दिन वहीं रहेगी, फिर उस का भाई उसे और बच्चों को गांव ले कर आ जाएगा. यार, तेरी शादी में मैं आ नहीं पाया था, इसलिए आज तुम्हारे घर पर ही रुक जाऊंगा. इसी बहाने भाभीजी से मुलाकात हो जाएगी.’’ सतपाल ने कहा.

दोस्त को घर ले जाना नरेंद्र की हुई सब से बड़ी भूल असल में सतपाल और नरेंद्र ने ड्राइविंग भी साथसाथ सोनीपत में सीखी थी. सतपाल को विदेश जाना था, इसलिए वह बड़ी गाडिय़ों को चलाने का लाइसेंस लेने और सीखने दिल्ली चला गया था. उस के बाद सतपाल दुबई चला गया और फिर बीच में वह एकाएक छुट्टी पर आया और शादी कर के अपनी पत्नी को भी दुबई ले कर चला गया था. इसलिए न तो सतपाल और न ही नरेंद्र एकदूसरे की शादी में शामिल हो पाए थे.

नरेंद्र सतपाल को अपने कमरे पर ले गया. सतपाल का सारा सामान एक कमरे में रखने के बाद नरेंद्र सतपाल को ले कर अपने कमरे में चला गया. कमरे में सतपाल को कुरसी पर बिठाने के बाद नरेंद्र ने अपनी पत्नी रीना को आवाज दी, ”रीना, जरा यहां तो आओ, तुम से मिलने को आज मैं किसे ले कर आया हूं.’’

अगले ही पल रीना एक लंबा सा घूंघट काढ़े, सकुचातेशरमाते हुए कमरे में आ कर एक ओर खड़ी हो गई.

”रीना, देखो तो सही, यह मेरे बचपन का दोस्त सतपाल है. हम साथसाथ पढ़े, साथसाथ खेलकूदे और आज पूरे 8 साल बाद इस से मुलाकात हुई तो मैं इसे रेलवे स्टेशन से सीधे घर ले आया. हमारी शादी में भी ये शामिल नहीं हो पाया था, इसलिए आज तुम से मिलने आ गया.’’ नरेंद्र ने रीना से उस का परिचय कराते हुए कहा.

”देख भाई नरेंद्र, तुम ने मेरा पूरा परिचय भाभीजी से तो करा दिया, पर मेरी भाभीजी तो इतना लंबा सा घूंघट काढ़े मेरे सामने खड़ी है. ऐसे में भला परिचय कैसे हो सकता है? घूंघट के भीतर से इन्होंने मेरी शक्ल तो देख ली, लेकिन मुझे भाभी का दीदार नहीं हो पाया. अब तुम्हीं बताओ कि यदि भविष्य में कभी हमारा मिलना होगा तो हम दोनों एकदूसरे को कैसे पहचान पाएंगे.’’ सतपाल ने मुसकराते हुए कहा.

इस बात पर नरेंद्र भी सहमत था. उस ने तुरंत पत्नी से कहा, ”रीना, देखो यह मेरा बचपन का जिगरी दोस्त सतपाल है, रिश्ते में यह तो तुम्हारा देवर ही है न. इसलिए देवर के सामने तुम घूंघट हटा कर अपना चेहरा दिखा दोगी तो कोई हर्ज भी नहीं होगा. देखो रीना, देवर को तो अपनी भाभी को देखने का अधिकार भी होता है न.’’ नरेंद्र ने रीना से मनुहार करते हुए कहा. अब जब पति का आदेश हो तो पत्नी उस के आदेश की अवहेलना भला कैसे कर सकती है. रीना ने जैसे ही घूंघट हटाया तो सतपाल की आंखें फटी सी रह गई थीं. उसे सचमुच अपने दोस्त नरेंद्र की किस्मत पर जलन सी होने लगी थी.

रीना सचमुच में ही सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थी. रीना के माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी, गालों पर गुलाब सी सुर्खी, कलाइयों में हरीहरी चूडिय़ां, बालों में महकती सी सुगंध, पैरों में महावर, यह सब देख कर एकबारगी सतपाल तो ठगा सा रह गया. इस स्थिति में न चाहते हुए भी उस के मुंह से एकाएक निकल पड़ा, ”नरेंद्र भाई, बहुत ही खुशकिस्मत हो तुम कि तुम्हें इतनी सुंदर पत्नी मिली है. यार, मेरी भाभीजी तो इतनी खूबसूरत हैं कि उन्हें मेरी नजर ही न लग जाए. देख भाई नरेंद्र, तू तो मेरा जिगरी यार रहा है, भाभीजी से कह न कि अपना घूंघट एक बार फिर से डाल लें, कहीं मेरी नीयत ही न डोल जाए,’’ कह कर सतपाल जोरों से हंस पड़ा था.

रीना और सतपाल आए एकदूसरे के करीब अब सतपाल नरेंद्र का बचपन का दोस्त था तो उसे अपने दोस्त की इस बात का तनिक भी बुरा नहीं लगा. वह भी मजाकमजाक में बोल पड़ा, ”यार सतपाल, तू तो मेरा बचपन का लंगोटिया यार ठहरा, याद तेरी नीयत खराब भी हो गई तो मुझे तो कोई आपत्ति नहीं. क्योंकि जैसे मैं हूं, वैसे ही तू भी तो है. अब तू अपनी भाभीजी से पूछ ले कि उसे कोई ऐतराज तो नहीं है न?’’

अपने पति के मुंह से खुल्लमखुल्ला ऐसी बात सुन कर तो रीना पर जैसे घड़ों पानी पड़ गया था. वह शरम से लाल हो गई. शरम के मारे उस ने वहां पर रहना अब उचित भी नहीं समझा और वह दोनों के लिए चाय बनाने का बहाना करते हुए अपना मुंह छिपाते हुए रसोई का ओर बढ़ गई थी. सतपाल ने जब से रीना को देखा था, तब से वह उस के दिलोदिमाग में इस तरह से छा गई थी कि वह अब दिनरात उसी के सपने देखने लगा था. उधर दूसरी तरफ रीना भी सतपाल से काफी प्रभावित थी. भले ही वह 3 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन उस की उम्र, मन सतपाल की नजरों से बंध सा गया था. सतपाल की आकर्षक पर्सनैलिटी, उस की अमीरी और उस का बात करने का अंदाज यह सब कुछ रीना को रिझाने लगा था.

अब कभी भी सतपाल जब सामान आदि खरीदने गोहाना आता था तो रीना के पास जरूर जाता था. रीना भी उसे खास तरजीह देती थी. दोनों में अब हंसीमजाक और छेडख़ानी भी होने लगी थी. एकदूसरे का मामूली सा स्पर्श भी उन्हें रोमांच की गहरी अनुभूति से भर देता था. प्यार की यह चिंगारी दोनों के दिलों में दबी रही. वक्त आगे गुजरता रहा, लेकिन यह चिंगारी धीरेधीरे सुलगती रही. अब तो सतपाल खासकर उस समय रीना से मिलने आता था, जब नरेंद्र घर पर नहीं रहता था. सतपाल ने अपने गांव मैं एक जनरल स्टोर खोल लिया था, जिस के लिए सामान लेने वह अकसर गोहाना आनेजाने लगा था.

एक दिन सतपाल अपनी बाइक से रीना के घर पहुंच गया, उसे पता था कि आज सुबह नरेंद्र बुकिंग पर दिल्ली गया हुआ है. उस दिन रीना के बच्चे स्कूल जा चुके थे और वह सजसंवर कर जरूरी खरीदारी करने बाजार जाने की तैयारी करने लगी, तभी वहां पर सतपाल आ गया. बाइक खड़ी कर के जैसे ही वह घर के भीतर गया तो वह रीना का खिला हुआ रूप देख कर ठगा सा खड़ा रह गया था. उस के मुंह से एकाएक निकल पड़ा, ”भाभीजी, आज आप को देख कर दिल खुश हो गया. आप बहुत ही खूबसूरत लग रही हैं. आज मुझे सचमुच उस दिन की याद आ गई, जिस दिन मैं ने इसी घर पर आप के चांद से चेहरे का दीदार किया था.’’

अपनी तारीफ हर औरत को अच्छी लगती है, वह भी उलाहना देते हुए बोल पड़ी, ”देवरजी, उस दिन आज की तरह तुम आंखें फाडफ़ाड़ कर बस मुझे ही देखे जा रहे थे. बड़े बेशरम हो तुम देवरजी!’’ कहते हुए रीना मुसकरा पड़ी थी.

”आप एकदम सही कह रही हैं भाभीजी, मैं ने जब पहली बार आप को देखा था तो मुझे नरेंद्र के भाग्य से जलन भी होने लगी थी. उस समय मैं सोच रहा था कि काश! अगर आप मुझे पहले मिल जातीं तो मैं आप को अपनी पत्नी जरूर बना लेता.’’ सतपाल ने रीना की आंखों में आंखे डालते हुए कहा.

”देखो देवरजी, आप कुछ ज्यादा ही रोमांटिक हो रहे हो. ये बात ठीक नहीं है, आप की शिकायत करनी पड़ेगी.’’  रीना ने कहा.

”हां भाभी, मैं तो आप के रूपसौंदर्य का पुजारी हो गया हूं. दिनरात सपने में बस मुझे केवल आप ही दिखाई देती हैं. वैसे एक बात कहूं…’’ सतपाल ने उस के नजदीक आते हुए कहा.

”हां बोलो देवरजी, अब आप से क्या परदा? आप खुल कर अपने दिल की बात अब कह ही डालो.’’ रीना ने अपना बायां होंठ दबाते हुए कहा.

”आप मुझ में अभी भी काफी फर्क महसूस करती हैं. आप ने तो अब तक मुझे समझा ही नहीं है और न ही कभी मुझे समझने की कोशिश भी की है.’’ सतपाल ने कहा.

”ऐसी बात बिलकुल भी नहीं है देवरजी. मैं ने उन में और आप में कभी कोई फर्क न तो समझा है और न ही किया.’’ रीना ने कहा.

”भाभीजी, उस दिन नरेंद्र ने कहा था कि मुझ में और उस में कुछ भी फर्क नहीं है, बस अगर तुम्हारी भाभी मान जाए तो…’’ कहते हुए सतपाल ने रीना की आंखों में झांका तो वह भीतर तक सिहर उठी थी. वह बस चुपचाप ही रही.

एकाएक सतपाल की हिम्मत कुछ बढ़ी और वह रीना के एकदम पास चला गया और उस के गालों पर अपनी हथेलियां रखते हुए बोला, ”भाभीजी, सच बात तो यह है कि आप मुझे अपना मानती ही कब हैं, तभी तो मुझे अब तक आप ने अपने से इतना दूर रखा है.’’

रीना ने जब सतपाल की आंखों में झांका तो सतपाल की आंखों में प्यार का समंदर हिलोरें ले रहा था. वह भी प्यार से सतपाल की नशीली आंखों को देखती रही.

”भाभीजी, बस एक बार आप को पाना चाहता हूं. देखो न, उस दिन भी तो आप ने मेरे लिए अपना घूंघट उठाया था, याद होगा न आप को या बिलकुल ही भूल गई हो!’’ सतपाल ने रीना के गालों को चूमते हुए कहा.

सतपाल की इस हरकत से रीना किसी नईनवेली दुलहन की तरह शरमान लगी. उस की आंखें शरम से नीचे झुकने लगीं तो सतपाल ने उस के कान में धीरे से कह दिया, ”भाभीजी, उस दिन तो आप ने मेरे कहने पर अपना घूंघट हटा दिया था, आज मैं जो कुछ भी हटाना चाहूं तो हट सकता है क्या?’’ कहते हुए उस ने रीना के सीने से दुपट्टा खींच लिया और अब उस की दोनों हथेलियां रीना के सीने को स्पर्श करने लगी थीं. सतपाल के इस मादक स्पर्श ने रीना के दिल में दबी हुई चिंगारी को हवा दे डाली थी, इसलिए रीना के मुंह से न तो ‘हां’ निकला और न ही ‘न’ निकला. उस ने तो बस चुपचाप अपना दुपट्टा सतपाल के हाथ से सरक जाने दिया और अब वह सतपाल की हर हरकत का मजा भी लेने लगी थी.

उधर दूसरी तरह सतपाल पूरे 4 महीने से उस मादक रूप को अपनी बांहों में झूलते देख रहा था, जिस को पाने की वह पुरजोर कोशिशों में लगा हुआ था. उस दिन तो रीना की प्यासी देह भी सतपाल से पनाह चाह रही थी, रीना तो बस एक कठपुतली की तरह सतपाल के हाथों और उस के मादक स्पर्श का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. इसी बेचैनी में रीना ने अब सतपाल को कस कर पकड़ लिया और अपने बैडरूम में ले कर आ गई और उस के बाद दोनों एकदूसरे के जिस्म में खोते चले गए.

रीना और सतपाल का रिश्ता एक बार अमर्यादित हुआ तो फिर यह लव अफेयर पूरे डेढ़ साल तक बिना किसी रोकटोक से चलता रहा. एक दिन जब नरेंद्र अपनी बुकिंग पर टैक्सी ले कर चला गया तो रीना ने सतपाल को फोन कर के अपने घर पर बुला लिया और दोनों बैडरूम में चले गए. इधर दूसरी तरफ, जब नरेंद्र बुकिंग पर पहुंचा तो पता चला कि उस घर में अचानक किसी की डैथ हो गई थी, इसलिए बुकिंग करने वालों ने उस दिन की बुकिंग ही कैंसिल कर दी थी.

ऐसे अचानक खुली पोल

उस दिन नरेंद्र ने सुबहसुबह जल्दी में जाने के कारण नाश्ता भी नहीं किया था. इसलिए उस ने सोचा कि पहले घर जा कर नाश्ता कर के फिर अपने मालिक के घर पर चला जाएगा. नरेंद्र जब घर पर पहुंचा तो उसे अपने घर के सामने सतपाल की बाइक खड़ी दिखाई दी. नरेंद्र ने सोचा कि सतपाल कुछ सामान लेने गोहाना आया होगा, साथ में अपनी पत्नी को अपनी भाभी से मिलाने घर आ गया होगा. इसलिए नरेंद्र ने टैक्सी खड़ी की और घर के अंदर आ गया. घर खुला हुआ था, मगर वहां पर कोई नहीं था. नरेंद्र ने देखा कि बैडरूम का दरवाजा बंद था, मगर उस में अंदर से चिटकनी नहीं लगाई हुई थी.

नरेंद्र ने किवाड़ों को धकेला और जब उस की नजर अपने बैडरूम पर पड़ी तो उस ने देखा कि उस की पत्नी रीना और उस के बचपन का दोस्त सतपाल आपत्तिजनक अवस्था में एकदूसरे से गुंथे हुए वासना के समंदर में गोते लगा है. उस की आंखें ये सब देख कर खुली की खुली रह गईं. उसे अपनी पत्नी और अपने बचपन के दोस्त सतपाल की इस शर्मनाक हरकत पर बहुत गुस्सा आया. सतपाल ने जब नरेंद्र को देखा तो वह फटाफट अपने कपड़े उलटेपुलटे पहन कर अपनी बाइक ले कर वहां से निकल भागा. अब नरेंद्र के हाथ में रीना आई तो उस ने रीना की लातघूसों से जम कर पिटाई की. इस के साथ ही उस ने रीना के बाहर जाने और सतपाल से घर पर या बाहर मिलने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी.

इस प्रतिबंध का किसी तरह एक महीना गुजर गया था. दरअसल, रीना और सतपाल तो एकदूसरे के दीवाने हो चुके थे. अब न तो सतपाल को अपनी पत्नी की फिक्र थी और न ही रीना को अपने पति नरेंद्र की. नरेंद्र को ठिकाने लगाने के बाद सतपाल बेफिक्र हो गया था कि हत्या में अब उस का नाम नहीं आ पाएगा, लेकिन कानून के लंबे हाथ उस की गरदन तक पहुंच ही गए.

सतपाल और उस की प्रेमिका रीना से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया.

 

 

 

चक्रव्यूह में फंसा गैंगस्टर दीपक मान

पहली अक्तूबर, 2023 रविवार की देर शाम हरियाणा के जिला सोनीपत के गांव हरसना निवासी किसान सतबीर सिंह अपने खेतों की सिंचाई करने के लिए गए हुए थे. उसी दौरान उन्हें रजबाहे के पास कच्चे रास्ते पर एक व्यक्ति पड़ा हुआ नजर आया.

उन्होंने सोचा कि शायद कोई शराबी रहा होगा. लेकिन जैसे ही उन्होंने उस के पास जा कर देखा तो वह मृत पड़ा हुआ था. लाश देखते ही सतबीर सिंह अपने खेतों की सिंचाई करना भूल गए. वह उसी वक्त उल्टे पैर अपने गांव वापस चले आए. गांव में आते ही उन्होंने यह बात गांव वालों को बताई तो गांव वाले भी वह लाश देखने के लिए चल पड़े. उसी दौरान किसी ने इस बात की जानकारी थाना सदर पुलिस को दे दी.

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सूचना मिलते ही सदर थाने के एसएचओ कर्मजीत सिंह तुरंत पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. मृत व्यक्ति का शरीर पूरी तरह से रक्तरंजित था. घटनास्थल पर पहुंचते ही कर्मजीत सिंह ने लाश के आसपास निरीक्षण किया तो वहां कारतूस के कई खाली खोखे मिले. मृतक की कलाई में एक कड़ा था, जिस में गुरमुखी में नाम लिखा था. उस के दूसरे हाथ में ‘मान’ शब्द गुदा हुआ था.

घटनास्थल से सारी जानकारी जुटाने के बाद कर्मजीत सिंह ने इस की सूचना एसपी जीत सिंह, एसपी (क्राइम) राहुल देव, एसटीएफ डीएसपी इंडीवर को भी दी. एक युवक की हत्या की खबर पा कर कई अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे. सभी अधिकारियों ने घटनास्थल का जायजा लिया.

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मृतक के हाथ में मिले कड़े पर गुरमुखी में मान लिखा हुआ था. पहले तो पुलिस ने वहां पर मौजूद लोगों से उस की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लेकिन जब उस युवक की शिनाख्त नहीं हो पाई तो पुलिस को लगा कि मृतक शायद पंजाब का रहा हो. उस के बाद पुलिस ने पंजाब पुलिस को उस का फोटो भेज कर संपर्क साधा. जहां से उस मृतक की शिनाख्त पंजाब के जिला फरीदकोट के गांव जैतो निवासी दीपक मान के रूप में हुई.

पंजाब पुलिस ने उस व्यक्ति के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वह पंजाब पुलिस का हिस्ट्रीशीटर था. उस पर पंजाब के अलावा चंडीगढ़, हरियाणा और दिल्ली में हत्या के कई संगीन केस दर्ज थे. इस सूचना के पाते ही एंटी गैंगस्टर यूनिट प्रभारी अजय धनखड़ भी मौके पर पहुंच गए.

गोल्डी बराड़ ने ली हत्या की जिम्मेदारी

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पुलिस ने घटनास्थल से सारे सबूत इकट्ठा किए. दीपक मान के सिर व सीने पर कई गोलियां दागी गई थीं. पुलिस ने अपनी काररवाई को पूरा करने के बाद दीपक मान की लाश पोस्टमार्टम हेतु नागरिक अस्पताल भिजवा दिया था. इस मामले में पुलिस ने सतबीर सिंह के बयान पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

इस से पहले कि इस मामले में पुलिस कोई आगे की काररवाई कर पाती, तभी फेसबुक पर एक पोस्ट वायरल हुई.

पोस्ट जिस फेसबुक अकाउंट से वायरल हुई थी वह अमेरिका में बैठे कुख्यात गैंगस्टर एवं लारेंस बिश्नोई गैंग के सदस्य गोल्डी बराड़ की थी, जिस में गुरमुखी भाषा में लिखा गया था, ‘‘हां जी सतश्री अकाल, रामराम जी सब को. बंबीहा गैंग के एक गैंगस्टर नशेड़ी मान जैतो को लंबे समय के बाद हम ने मार दिया. वह मेरे भाई गुरलाल बराड़ की हत्या के मामले में फरार था. उस को उस के किए की सजा दे दी गई है. उस ने हमारे भाई को सोते हुए गोली मारी थी. हम ने उसे कुत्ते की मौत भजा भजा कर मारा.

वह फेसबुक पर बहुत चैलेंज करता था कि हमारा क्या कर लिया. अब जो रह गए हैं वह भी तैयारी कर लें. सुक्खा दूनके की हत्या भी हम ने कराई है. वह टायलेट में हेरोइन का नशा कर रहा था. उस की हत्या की जिम्मेदारी लेने वालों को शर्म आनी चाहिए.’’

इस पोस्ट के वायरल होते ही पुलिस समझ गयी थी कि गैंगवार के चक्कर में ही उस की हत्या की गई थी. उस की हत्या करने वाला गोल्डी बराड़ भले ही परदेश में बैठा था फिर भी उस ने उस की हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए पुलिस महकमे में तहलका मचा दी थी.

उस के बाद पुलिस ने इस मामले में गहन छानबीन की तो पता चला कि दीपक मान की हत्या करने वाला शूटर मनी चस्का बंबीहा गैंग को आर्मेनिया से चला रहे लक्की पटियाल का करीबी था.

इस मामले में पुलिस की कई टीमें जांच में लगी हुई थीं. पुलिस फेसबुक की पोस्ट की भी जांचपड़ताल कर रही थी, लेकिन पुलिस पूरी तरह से नहीं समझ पा रही थी कि पंजाब के फरीदकोट का हिस्ट्रीशीटर दीपक मान सोनीपत कैसे पहुंचा. अनुमान लगाया गया कि दीपक मान को पहले किडनैप किया गया होगा, फिर उसे टौर्चर करने के बाद ही गोलियां मारी होंगी.

पंजाब के जिला फरीदकोट के छोटे से गांव जैतो निवासी दीपक मान ने जुर्म की दुनिया में कैसे कदम रखा? कौन है बंबीहा गैंग का सरगना? उस की गैंगस्टर लारेंस गैंग से क्या दुश्मनी थी? इस की तह में पुलिस पहुंची तो हैरतअंगेज जानकारी सामने आई.

हैंडसम गैंगस्टर है लारेंस विश्नोई

अपराध की दुनिया में एक नाम है गैंगस्टर लारेंस विश्नोई का. राजस्थान से लारेंस विश्नोई का पुराना नाता रहा है. जिस का नेटवर्क पूरे राजस्थान में फैला है. लारेंस विश्नोई पंजाब प्रांत के फाजिल्का (अबोहर) का रहने वाला है. लारेंस के पिता पंजाब पुलिस में एक कांस्टेबल थे. देखने में स्मार्ट होने के साथसाथ उस की रुचि स्पोर्ट्स में थी.

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अच्छी पढ़ाई के लिए वह चंडीगढ़ आ गया और वहां पर डीएवी कालेज में दाखिला लिया. उस की अच्छी पर्सनैलिटी और पैसे वाला होने के कारण उस के दोस्तों ने उसे कालेज के छात्रसंघ का चुनाव लडऩे के लिए प्रेरित किया. उस ने छात्रसंघ का चुनाव लड़ा, लेकिन उस में कामयाब नहीं हुआ. उस से हार बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने जीतने वालों से बदला लेने के लिए एक अलग ही रास्ता चुना.

उस ने अपमान का बदला लेने के लिए एक रिवौल्वर खरीदी. फिर दंबगई दिखाते हुए अन्य गुटों से भिड़ंत शुरू कर दी. उसी दौरान उस पर पहला मामला दर्ज हुआ. उस के बाद उस ने विरोधी गुटों को सबक सिखाने के लिए एक बड़े गैगस्टर जग्गू भगवानपुरिया से हाथ मिला लिया, जिस ने उसे जुर्म की दुनिया के सारे पैंतरे सिखाए.

हालाकि लारेंस विश्नोई इस वक्त दिल्ली की तिहाड़ जेल में है. लेकिन जेल में रहने के बाद भी उस के अपराधों में कमी नहीं आई. वह आज भी एक ही इशारे पर किसी की भी हत्या करवा देता है. इस वक्त लारेंस विश्नोई पर अलग अलग अपराधों के लगभग 50 मुकदमे दर्ज हैं.

लारेंस विश्नोई ने जिस बड़े गैंगस्टर से हाथ मिलाया था, उस का नाम था जग्गू भगवानपुरिया. एक समय था जब पंजाब की राजनीति और अपराध की दुनिया में जग्गू के नाम से ही कई काम हो जाते थे. जुर्म की दुनिया की सारी कला जग्गू से सीख कर लारेंस विश्नोई ने हथियारों के दम पर उगाही का नेटवर्क पूरे देश में फैला दिया था. जिस के बल पर आज भी वह जेल में रहते हुए देश भर में फैले अपने नेटवर्क के दम पर गुंडागर्दी कर पा रहा है.

कई शहरों में उस के शार्पशूटर हैं, जो बस इशारे मात्र से किसी भी बड़ी घटना को अंजाम दे डालते हैं. लारेंस न सिर्फ देखने का हैंडसम गैंगस्टर है, बल्कि वह जेल में रह कर स्मार्ट तरीके से फोन चलाने में भी माहिर है.

बंबीहा गैंग से जुड़ा था दीपक मान

बंबीहा गैंग का गैंगस्टर दीपक मान उर्फ जैतो भी पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्र संगठन सोपू के स्टूडेंट लीडर गुरलाल बराड़ की हत्या का आरोपी था. 10 अक्तूबर, 2020 को गुरलाल की उस वक्त हत्या कर दी गई थी, जब वह इंडस्ट्रियल एरिया चंडीगढ़ में अपनी गाड़ी में बैठा किसी के आने का इंतजार कर रहा था.

गुरलाल गोल्डी बराड़ का चचेरा भाई था. गुरलाल की हत्या होने के बाद ही गोल्डी ने अपराध की दुनिया चुन ली थी. लारेंस विश्नोई और गोल्डी बराड़ की दोस्ती पहले से ही काफी गहरी थी.

गोल्डी बराड़ का जन्म वर्ष 1994 में पंजाब के श्री मुक्तसर साहिब गांव में हुआ था. उस के पिता पुलिस में सबइंस्पेक्टर थे. लेकिन उस ने अपना जुर्म का रास्ता चुना और अपराध के दलदल में उतर गया. उस के बाद उस ने कई घटनाओं को अंजाम दिया और कनाडा भाग गया. वह आज भी वहीं से गैंग औपरेट करता है. उस पर पंजाब में कई मामले दर्ज हैं. उस के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस भी जारी हो चुका है.

29 मई, 2020 में पंजाब के सिंगर सिद्धू मूसेवाला की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी, जो एक कांगे्रसी राजनेता होने के साथसाथ मशहूर गायक भी थे. हमलावरों ने सिद्धू मूसेवाला की गाड़ी पर 30 राउंड फायरिंग की थी, जिस में 10 गोलियां मूसेवाला को लगी थीं. उन की मौके पर ही मौत हो गई थी. उस घटना के कुछ घंटे बाद ही लारेंस और उस के गुर्गे गोल्डी बराड़ ने ही फेसबुक पर मूसेवाला की हत्या की जिम्मेदारी ली थी.

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तभी से बंबीहा गैंग लारेंस विश्नोई गैंग से खार खाए बैठा था. पिछले साल ही बंबीहा गैंग ने विश्नोई गैंग को धमकी दी थी. बताया जाता है कि उस के लिए बंबीहा गैंग ने पाकिस्तान से भी मदद ली थी. बंबीहा गैंग का सरगना कौन है जो लारेंस बिश्नोई से टकराने की कोशिश कर रहा है. विस्तार से एक नजर डालते हैं.

कबड्डी का खिलाड़ी था गैंगस्टर दविंदर सिद्धू

भारत के पंजाब राज्य के अंतरगत पड़ता है एक जिला मोगा. मोगा जिले के बंबीहा गांव में रहता था दविंदर सिंह सिद्धू. दविंदर कभी कबड्डी का जानामाना प्लेयर हुआ करता था. वर्ष 2010 में ग्रैजुएशन की पढ़ाई के दौरान ही एक हत्याकांड में उस का नाम उभर कर सामने आया था. यह वारदात उसी के गांव के 2 ग्रुपों के बीच हुई थी. उस मामले में दविंदर को जेल जाना पड़ा.

जेल में रहते ही उस का संपर्क गैंगस्टरों से हुआ. उस के बाद जब वह जेल से निकला तो शार्पशूटर बन कर सामने आया. अपराध की दुनिया में पैर पसारते ही वह जेल में बंद गैंगस्टर के लिए शूटर का काम करने लगा था.

9 सितंबर, 2016 को बठिंडा के रामपुरा के पास गिल कलां में अचानक वह पुलिस के सामने पड़ गया. उसी मुठभेड़ में वह अपने को पुलिस से बचा नहीं पाया. वह पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. दविंदर सिंह के खत्म होते ही उस के गैंग की कमान गौरव उर्फ लकी पटियाल ने संभाली.

लकी पटियाल धनास चंडीगढ़ का रहने वाला था. वह पंजाब का बड़ा गैंगस्टर था, जो हत्या और हत्या की कोशिश और एक्सटौर्शन जैसे मामले में जेल में बंद था. उस के बाद वह आर्मेनिया भाग गया था. लकी पटियाल गैंग में 300 से ज्यादा शूटर शामिल हैं, जो हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं. दीपक मान भी उसी गैंग के लिए काम कर रहा था.

पंजाब के जिला फरीदकोट के गांव जैतो निवासी दीपक मान 4 बहनभाइयों में सब से छोटा था. वर्ष 2017 में उस ने घर छोड़ दिया था. 2021 में उस की मां का निधन हो गया. वह अपने मां के निधन में भी गांव नहीं गया था. उस के बाद उस ने पूरी तरह से गांव से नाता खत्म कर दिया था.

पुलिस ने दीपक मान के घर वालों को पहली अक्तूबर को साढ़े 9 बजे फोन कर उस की हत्या की जानकारी दी थी. सोमवार को पोस्टमार्टम करवाने के लिए पहुंचे दीपक मान के घर वालों ने बताया कि गांव में अमन नाम का उस का एक दोस्त था, जिस के जरिए ही दीपक मान के दविंदर बंबीहा के साथ संबंध बने थे. उस के घर से चले जाने के बाद उन्हें उस के काम के बारे में भी कुछ मालूम नहीं था. बाहर रह कर वह क्या करता है और कहां रहता था? उन्हें पता नहीं.

सोमवार को छुट्टी होने के कारण फोरेंसिक चिकित्सक नहीं आने की वजह से दीपक मान के शव का पोस्टमार्टम नहीं हो पाया था, जिस के कारण उस के शव को खानपुर भेज दिया गया था. जहां पर मंगलवार को पोस्टमार्टम कराया गया.

दीपक की हत्या कर दिया विरोधियों को मैसेज

हालांकि इस मर्डर केस की जिम्मेदारी कनाडा में बैठे गोल्डी बराड़ ने ली थी, फिर भी पुलिस उस के शूटरों तक अतिशीघ्र ही पहुंचना चाहती थी. यही कारण रहा कि इस केस के घटते ही पंजाब पुलिस ने उन को गिरफ्तार करने के लिए चारों ओर घेराबंदी कर चक्रव्यूह की रचना की. उस के लिए पंजाब पुलिस ने स्पैशल एंटी गैंगस्टर गतिविधि यूनिट को लगा दिया था.

उसी का नतीजा रहा कि 24 घंटे के अंदर ही स्पैशल एंटी गैंगस्टर यूनिट के प्रभारी अजय धनखड़ ने पुलिस टीम के सहयोग से दीपक मान के 4 हत्यारोपियों को पकडऩे में सफलता हासिल कर ली थी. पुलिस को सूचना मिली थी कि दीपक मान की हत्या में संलिप्त आरोपी रोहतक खरखौदा रोड पर सिसाना के पास मौजूद हैं.

इस सूचना के मिलते ही स्पैशल एंटी गैंगस्टर यूनिट तुरंत ही मौके पर पहुंची. पुलिस को देखते ही बदमाशों ने फायरिंग चालू कर दी. बदमाशों की तरफ से फायरिंग होते ही जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की. इस दौरान 3 बदमाशों के पैर में गोली लगी. जबकि चौथा बदमाश भागने लगा. फिर बाद में वह भी पुलिस मुठभेड़ में घायल हो गया. उस के बाद पुलिस ने चारों बदमाशों को जख्मी हालत में गिरफ्तार कर लिया था.

चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस सोनीपत थाने ले आई. पुलिस पूछताछ में चारों ने दीपक मान की हत्या करने की बात कुबूल की. पुलिस ने आरोपियों के पास से 3 पिस्तौल व एक बाइक बरामद की थी. चारों ही आरोपी सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड के आरोपित प्रियव्रत फौजी के गांव सिसाना के रहने वाले थे.

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पुलिस मुठभेड़ में गढ़ी सिसाना के रहने वाले मंजीत, चेतन और ओजस्वी को गोली लगी थी. ओजस्वी मूलरूप से रोहतक के गांव बलंबा का रहने वाला था. वह हाल में गढ़ी सिसाना में अपनी ननिहाल में रह रहा था. जबकि पुलिस ने जसबीर उर्फ बंटी को भागने के दौरान गिरफ्तार किया था.

पुलिस पूछताछ में जसबीर उर्फ बंटी ने बताया कि वह दीपक मान को गोली मारने में शामिल नहीं था. उस गोलीबारी में उस का ही दोस्त कुंडली थाना क्षेत्र का छोटू शामिल था. जसबीर ने पुलिस को बताया कि दीपक मान को विश्वास में ले कर हथियर बेचने के बहाने सोनीपत बुलाया गया था.

वह हाईवे से 4-5 किलोमीटर दूर किसी ढाबे पर मिला, जहां से आरोपी उसे बाइक पर बैठा कर हरसाना के खेतों में ले गए थे. वहां पर जाते ही सभी ने एक साथ बैठ कर शराब पी और उस के बाद ही उन्होंने उसे दौड़ा दौड़ा कर गोलियों से भून डाला.

हालांकि पुलिस दीपक मान की हत्या में चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी थी. लेकिन पुलिस ने आरोपियों के लारेंस गैंग से जुड़े होने की पुष्टि नहीं की थी. लारेंस गैंग का शूटर प्रियव्रत फौजी गांव सिसाना का ही रहने वाला था. इस वक्त जेल की सलाखों के पीछे है.

इस मामले में आए पांचवें अभियुक्त छोटू को पुलिस तलाश कर रही थी. पुलिस हर पहलू को ले कर जांच कर रही थी. पुलिस का कहना था कि इस मामले में ठोस सबूत जुटा कर ही आगे की कार्यवाई करेगी. सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार का ऐसा भयानक अंजाम

नींद न आने की वजह से सुशीला बेचैनी से करवट बदल रही थी. जिंदगी ने उसे एक ऐसे मुकाम पर ला खड़ा किया था, जहां वह पति प्रदीप से जुदा हो सकती थी. चाहत हर किसी की कमजोरी होती है और जब कोई इंसान किसी की कमजोरी बन जाता है तो वह उस से बिछुड़ने के खयाल से ही बेचैन हो उठता है. सुशीला और प्रदीप का भी यही हाल था.

प्रदीप उसे कई बार समझा चुका था, फिर भी सुशीला उस के खयालों में डूबी रातरात भर बेचैनी से करवट बदलती रहती थी. उस रात भी कुछ वैसा ही था. रात में नींद न आने की वजह से सुबह भी सुशीला के चेहरे पर बेचैनी और चिंता साफ झलक रही थी. उसे परेशान देख कर प्रदीप ने उसे पास बैठाया तो उस ने उसे हसरत भरी निगाहों से देखा. उस की आंखों में उसे बेपनाह प्यार का सागर लहराता नजर आया.

कुछ कहने के लिए सुशीला के होंठ हिले जरूर, लेकिन जुबान ने साथ नहीं दिया तो उस की आंखों में आंसू उमड़ आए. प्रदीप ने गालों पर आए आंसुओं को हथेली से पोंछते हुए कहा, ‘‘सुशीला, तुम इतनी कमजोर नहीं हो, जो इस तरह आंसू बहाओ. हम ने कसम खाई थी कि हर पल खुशी से बिताएंगे और एकदूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे.’’

‘‘साथ ही छूटने का तो डर लग रहा है मुझे.’’ सुशीला ने झिझकते हुए कहा.

‘‘सच्चा प्यार करने वालों की खुशियां कभी अधूरी नहीं होतीं सुशीला.’’

‘‘मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती प्रदीप. तुम मेरी जिंदगी हो. यह जिस्म मेरा है, दिल मेरा है, लेकिन मेरे दिल की हर धड़कन तुम्हारी नजदीकियों की मोहताज है.’’

सुशीला के इतना कहते ही प्रदीप तड़प उठा. अपनी हथेली उस के होंठों पर रख कर उस ने कहा, ‘‘मुझे कुछ नहीं होगा सुशीला. मैं तुम्हें सारे जहां की खुशियां दूंगा. तुम्हारे चेहरे पर उदासी नहीं, सिर्फ खुशी अच्छी लगती है, इसलिए तुम खुश रहा करो. इस फूल से खिलते चेहरे ने मुझे हमेशा हिम्मत दी है, वरना हम कब के हार चुके होते.’’

‘‘मैं ने सुना है कि मेरे घर वालों ने धमकी दी है कि वे हमें जिंदा नहीं छोड़ेंगे?’’ सुशीला ने चिंतित हो कर पूछा.

‘‘अब तक कुछ नहीं हुआ तो आगे भी कुछ नहीं होगा, इसलिए तुम बेफिक्र रहो. अब तो हमारे प्यार की एक और निशानी जल्द ही दुनिया में आ जाएगी. हम हमेशा इसी तरह खुशी से रहेंगे.’’ प्रदीप ने कहा.

पति के कहने पर सुशीला ने बुरे खयालों को दिल से निकाल दिया. नवंबर के पहले सप्ताह की बात थी यह. अगर सुशीला ने प्रदीप से प्यार न किया होता तो उसे यह डर कभी न सताता. प्यार के शिखर पर पहुंच कर दोनों खुश थे. यह बात अलग थी कि इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने काफी विरोध का सामना किया था.

उन्होंने ऐसी जगह प्यार का तराना गुनगुनाया था, जहां कभी सामाजिक व्यवस्था तो कभी गोत्र तो कभी झूठी शान के लिए प्यार को गुनाह मान कर अपने ही खून के प्यासे बन जाते हैं.

प्रदीप हरियाणा के सोनीपत जिले के खरखौदा कस्बे के बरोणा मार्ग निवासी धानक समाज के सुरेश का बेटा था. वह मूलरूप से झज्जर जिले के जसौर खेड़ी के रहने वाले थे, लेकिन करीब 17 साल पहले आ कर यहां बस गए थे. उन के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा 2 बेटे एवं एक बेटी थी. बच्चों में प्रदीप बड़ा था. सुरेश खेती से अपने इस परिवार को पाल रहे थे.

3 साल पहले की बात है. प्रदीप जिस कालेज में पढ़ता था, वहीं उस की मुलाकात नजदीक के गांव बिरधाना की रहने वाली सुशीला से हुई. सुशीला जाट बिरादरी के किसान ओमप्रकाश की बेटी थी. दोनों की नजरें चार हुईं तो वे एकदूसरे को देखते रह गए. इस के बाद जब भी सुशीला राह चलती मिल जाती, प्रदीप उसे हसरत भरी निगाहों से देखता रह जाता.

सुशीला खूबसूरत थी. उम्र के नाजुक पायदान पर कदम रख कर उस का दिल कब धड़कना सीख गया था, इस का उसे खुद भी पता नहीं चल पाया था. वह हसीन ख्वाबों की दुनिया में जीने लगी थी. प्रदीप उस के दिल में दस्तक दे चुका था.

सुशीला समझ गई थी कि खुद उसी के दिल की तरह प्रदीप के दिल में भी कुछ पनप रहा है. दोनों के बीच थोड़ी बातचीत से जानपहचान भी हो गई थी. यह अलग बात थी कि प्रदीप ने कभी उस पर कुछ जाहिर नहीं किया था. वक्त के साथ आंखों से शुरू हुआ प्यार उन के दिलों में चाहत के फूल खिलाने लगा था.

एक दिन सुशीला बाजार गई थी. वह पैदल ही चली जा रही थी, तभी उसे अपने पीछे प्रदीप आता दिखाई दिया. उसे आता देख कर उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. वह थोड़ा तेज चलने लगी. प्रदीप के आने का मकसद चाहे जो भी रहा हो, लेकिन सामाजिक लिहाज से यह ठीक नहीं था.

प्रदीप ने जब सुशीला का पीछा करना काफी दूरी तक नहीं छोड़ा तो वह रुक गई. उसे रुकता देख कर प्रदीप हिचकिचाया जरूर, लेकिन वह उस के निकट पहुंच गया. सुशीला ने नजरें झुका कर शोखी से पूछा, ‘‘मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?’’

‘‘तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है?’’ प्रदीप ने सवाल के जवाब में सवाल ही कर दिया.

‘‘इतनी देर से पीछा कर रहे हो, इस में लगने जैसा क्या है.’’

‘‘तुम से बातें करने का दिल हो रहा था मेरा.’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘इस तरह मेरे पीछे मत आओ, किसी ने देख लिया तो…’’ सुशीला ने कहा.

प्रदीप उस दिन जैसे ठान कर आया था, इसलिए इधरउधर नजरें दौड़ा कर उस ने कहा, ‘‘अगर किसी से 2 बातें करने की तड़प दिल में हो तो रहा नहीं जाता सुशीला. तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. तुम पहली लड़की हो, जिसे मैं प्यार करने लगा हूं.’’

सुशीला ने उस की बातों का जवाब नहीं दिया और मुसकरा कर आगे बढ़ गई. हालांकि प्रदीप की बातों से वह मन ही मन खुश हुई थी. वह भी प्रदीप को चाहने लगी थी. उस रात दोनों की ही आंखों से नींद गायब हो गई थी.

इस के बाद उन की मुलाकात हुई तो सुशीला प्रदीप को देख कर नजरों में ही इस तरह मुसकराई, जैसे दिल का हाल कह दिया हो. इस तरह प्यार का इजहार होते ही उन के बीच बातों और मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. प्यार के पौधे को रोपने में भले ही वक्त लगता है, लेकिन वह बढ़ता बहुत तेजी से है.

यह जानते हुए भी कि दोनों की जाति अलगअलग हैं, वे प्यार के डगर पर चल निकले. सुशीला प्रदीप के साथ घूमनेफिरने लगी. प्यार अगर दिल की गहराइयों से किया जाए तो वह कोई बड़ा गुला खिलाता है. दोनों का यह प्यार वक्ती नहीं था, इसलिए उन्होंने साथ जीनेमरने की कसमें भी खाईं.

समाज प्यार करने वालों के खिलाफ होता है, यह सोच कर उन के दिलों में निराशा जरूर काबिज हो जाती थी. यही सोच कर एक दिन मुलाकात के क्षणों में सुशीला प्रदीप से कहने लगी, ‘‘मैं हमेशा के लिए तुम्हारी होना चाहती हूं प्रदीप, लेकिन शायद ऐसा न हो पाए.’’

‘‘क्यों?’’ कड़वी हकीकत को जानते हुए भी प्रदीप ने अंजान बन कर पूछा.

‘‘मेरे घर वाले शायद कभी तैयार नहीं होंगे.’’

‘‘बस, तुम कभी मेरा साथ मत छोड़ना, मैं तुम्हारे लिए हर मुश्किल पार करने को तैयार हूं.’’

‘‘यह साथ तो अब मरने के बाद ही छूटेगा.’’ सुशीला ने प्रदीप से वादा किया.

प्यार उस शय का नाम है, जो कभी छिपाए नहीं छिपता. सुशीला के घर वालों को जब बेटी के प्यार के बारे में पता चला तो घर में भूचाल आ गया. ओमप्रकाश के पैरों तले से यह सुन कर जमीन खिसक गई कि उन की बेटी किसी अन्य जाति के लड़के से प्यार करती है. उन्होंने सुशीला को आड़े हाथों लिया और डांटाफटकारा, साथ ही उस की पिटाई भी की. उन्होंने जमाना देखा था, इसलिए उस पर पहरा लगा दिया.

शायद उन्हें पता नहीं था कि सुशीला का प्यार हद से गुजर चुका है. इस से पहले कि कोई ऊंचनीच हो, ओमप्रकाश ने उस के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी. सुशीला ने दबी जुबान से मना किया कि वह शादी नहीं करना चाहती, लेकिन उस की किसी ने नहीं सुनी.

प्यार करने वालों पर जितने अधिक पहरे लगाए जाते हैं, उन की चाहत का सागर उतना ही उफनता है. सुशीला के साथ भी ऐसा ही हुआ. एक दिन किसी तरह मौका मिला तो उस ने प्रदीप को फोन किया. उस से संपर्क न हो पाने के कारण वह भी परेशान था.

फोन मिलने पर सुशीला ने डूबे दिल से कहा, ‘‘मेरे घर वालों को हमारे प्यार का पता चल गया है प्रदीप. अब शायद मैं तुम से कभी न मिल पाऊं. वे मेरे लिए रिश्ता तलाश रहे हैं.’’

यह सुन कर प्रदीप सकते में आ गया. उस ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता सुशीला. तुम सिर्फ मेरा प्यार हो. तुम जानती हो, अगर ऐसा हुआ तो मैं जिंदा नहीं रहूंगा.’’

‘‘उस से पहले मैं खुद भी मर जाना चाहती हूं. प्रदीप जल्दी कुछ करो, वरना…’’ सुशीला ने कहा और रोने लगी.

प्रदीप ने उसे हौसला बंधाते हुए कहा, ‘‘मुझे सोचने का थोड़ा वक्त दो सुशीला. पहले मैं अपने घर वालों को मना लूं.’’

दोनों के कई दिन चिंता में बीते. प्रदीप ने अपने घर वालों को दिल का राज बता कर उन्हें सुशीला से विवाह के लिए मना लिया. जबकि सुशीला का परिवार इस रिश्ते के सख्त खिलाफ था. उन्होंने उस पर पहरा लगा दिया था. मारपीट के साथ उसे समझाने की भी कोशिश की गई थी, लेकिन वह प्रदीप से विवाह की जिद पर अड़ी थी.

सुशीला बगावत पर उतर आई थी, क्योंकि प्रदीप के बिना उसे जिंदगी अधूरी लग रही थी. कई दिनों की कलह के बाद भी जब वह नहीं मानी तो उसे घर वालों ने अपनी जिंदगी से बेदखल कर के उस के हाल पर छोड़ दिया.

प्रदीप ने भी सुशीला को समझाया, ‘‘प्यार करने वालों की राह आसान नहीं होती सुशीला. हम दोनों शादी कर लेंगे तो बाद में तुम्हारे घर वाले मान जाएंगे.’’

एक दिन सुशीला ने चुपके से अपना घर छोड़ दिया. पहले दोनों ने कोर्ट में, उस के बाद सादे समारोह में शादी कर के एकदूसरे को जीवनसाथी चुन लिया. इसी के साथ परिवार से सुशीला के रिश्ते खत्म हो गए.

सुशीला और प्रदीप ने प्यार की मंजिल पा ली थी. इस बीच प्रदीप ने एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. एक साल बाद प्यार की निशानी के रूप में सुशीला ने बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने प्रिया रखा. वह 3 साल की हो चुकी थी. अब एक और खुशी उन के आंगन में आने वाली थी.

इतने दिन हो गए थे, फिर भी एक अंजाना सा डर सुशीला के दिल में समाया रहता था. इस की वजह थी उस के परिवार वाले. उन से उसे धमकियां मिलती रहती थीं. उस दिन भी सुशीला इसीलिए परेशान थी. सुशीला के घर वालों की नाराजगी बरकरार थी.

अपने रिश्ते को उन्होंने सुशीला से पूरी तरह खत्म कर लिया था. एक बार प्रदीप की होने के बाद सुशीला भी कभी अपने मायके नहीं गई थी. उसे मायके की याद तो आती थी, लेकिन मजबूरन अपने जज्बातों को दफन कर लेती थी. उस ने सोच लिया था कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा.

प्रदीप और सुशीला अपने घर में नए मेहमान के आने की खुशी से खुश थे, लेकिन जिंदगी में खुशियों का स्थाई ठिकाना हो, यह जरूरी नहीं है. कई बार खुशियां रूठ जाती हैं और वक्त ऐसे दर्दनाक जख्म दे जाता है, जिन का कोई मरहम नहीं होता. सुशीला और प्रदीप की भी खुशियां कितने दिनों की मेहमान थीं, इस बात को कोई नहीं जानता था.

18 नवंबर की रात की बात है. प्रदीप के घर के सभी लोग सो रहे थे. प्रदीप और सुशीला बेटी के साथ अपने कमरे में सो रहे थे, जबकि उस के मातापिता सुरेश और सुनीता, भाई सूरज अलग कमरे में सो रहे थे. बहन ललिता अपने ताऊ के घर गई थी. समूचे इलाके में खामोशी और सन्नाटा पसरा था. तभी किसी ने प्रदीप के दरवाजे पर दस्तक दी. प्रदीप ने दरवाजा खोला तो सामने कुछ हथियारबंद लोग खड़े थे.

प्रदीप कुछ समझ पाता, उस से पहले ही उन्होंने उस पर गोलियां चला दीं. गोलियां लगते ही प्रदीप जमीन पर गिर पड़ा. सुशीला बाहर आई तो उसे भी गोली मार दी गई. प्रदीप के पिता सुरेश और मां सुनीता के बाहर आते ही हमलावरों ने उन पर भी गोलियां चला दीं. सूरज की भी आंखें खुल गई थीं. खूनखराबा देख कर उस के होश उड़ गए. हमलावरों ने उसे भी नहीं बख्शा.

गोलियों की तड़तड़ाहट से वातावरण गूंज उठा था. आसपास के लोग इकट्ठा होते, उस के पहले ही हमलावर भाग गए थे. घटना की सूचना स्थानीय थाना खरखौदा को दी गई. थानाप्रभारी कर्मबीर सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर आ पहुंचे. पुलिस आननफानन घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गई. तीनों की हालत गंभीर थी, लिहाजा प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें रोहतक के पीजीआई अस्पताल रेफर कर दिया गया.

उपचार के दौरान सुरेश, सुनीता और प्रदीप की मौत हो गई, जबकि डाक्टर सुशीला और सूरज की जान बचाने में जुट गए. सूरज के कंधे में गोली लगी थी और सुशीला की पीठ में. डाक्टरों ने औपरेशन कर के गोलियां निकालीं. सुरक्षा के लिहाज से अस्पताल में पुलिस तैनात कर दी गई थी. सुशीला गर्भ से थी. उस के शिशु की जान को भी खतरा हो सकता था.

डाक्टरों ने उस की सीजेरियन डिलीवरी की. उस ने स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. डाक्टरों ने दोनों को खतरे से निकाल लिया था. पति और सासससुर की मौत ने उसे तोड़ कर रख दिया था. सुशीला बहुत दुखी थी. अचानक हुई घटना ने उस के जीवन में अंधेरा ला दिया था. वह दर्द और आंसुओं की लकीरों के बीच उलझ चुकी थी.

घायल सूरज ने पुलिस को जो बताया था, उसी के आधार पर अज्ञात हमलावरों के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास का मुकदजा दर्ज किया गया. एसपी अश्विन शैणवी ने अविलंब आरोपियों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए. 3 लोगों की हत्या से क्षेत्र में दहशत फैल गई थी.

अगले दिन एसपी अश्विन शैणवी और डीएसपी प्रदीप ने भी घटनास्थल का दौरा किया. उन के निर्देश पर पुलिस टीमों का गठन किया गया. एसआईटी इंचार्ज राज सिंह को भी टीम में शामिल किया गया. पुलिस ने जांच शुरू की तो सुशीला और प्रदीप के प्रेम विवाह की बात सामने आई.

पुलिस ने सुशीला से पूछताछ की, लेकिन वह सही से बात करने की स्थिति में नहीं थी. फिर भी उस ने हमले का शक मायके वालों पर जताया. मामला औनर किलिंग का लगा. पुलिस ने सुशीला के पिता के घर दबिश दी तो वह और उन के बेटे सोनू एवं मोनू फरार मिले.

इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि हत्याकांड को इन्हीं लोगों के इशारे पर अंजाम दिया गया था. पुलिस के हाथ सुराग लग गया कि खूनी खेल खेलने वाले कोई और नहीं, बल्कि सुशीला के घर वाले ही थे. पुलिस सुशीला के पिता और उस के बेटों की तलाश में जुट गई.

उन की तलाश में झज्जर, बेरी, दादरी, रिवाड़ी और बहादुरगढ़ में दबिशें दी गईं. पुलिस ने उन के मोबाइल नंबर हासिल कर के जांच शुरू कर दी. 22 नवंबर को पुलिस ने सुशीला के एक भाई सोनू को गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ की गई तो नफरत की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

दरअसल, सुशीला के अपनी मरजी से अंतरजातीय विवाह करने से पूरा परिवार खून का घूंट पी कर रह गया था. सोनू और मोनू को बहन के बारे में सोच कर लगता था कि उस ने उन की शान के खिलाफ कदम उठाया है. उन्हें सब से ज्यादा इस बात की तकलीफ थी कि सुशीला ने एक पिछड़ी जाति के लड़के से शादी की थी.

उन के दिलों में आग सुलग रही थी. मोनू आपराधिक प्रवृत्ति का था. उस की बुआ का बेटा हरीश भी आपराधिक प्रवृत्ति का था. हरीश पर हत्या का मुकदमा चल रहा था और वह जेल में था. समय अपनी गति से बीत रहा था. समाज में भी उन्हें समयसमय पर ताने सुनने को मिल रहे थे. जब भी सुशीला का जिक्र आता, उन का खून खौल उठता था.

मोनू ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपनी बहन को उस के किए की सजा दे कर रहेगा. उस के इरादों से परिवार वाले भी अंजान नहीं थे. जुलाई में मोनू की बुआ का बेटा हरीश पैरोल पर जेल से बाहर आया तो वह मोनू का साथ देने को तैयार हो गया. मोनू लोगों के सामने धमकियां देता रहता था कि वह बहन को तो सजा देगा ही, प्रदीप से भी अपनी इज्जत का बदला ले कर रहेगा.

मोनू शातिर दिमाग था. वह योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम देना चाहता था. उस ने छोटे भाई सोनू को सुशीला के घर भेजना शुरू कर दिया. इस के पीछे उस का मकसद यह जानना था कि वे लोग कहांकहां सोते हैं, कोई हथियार आदि तो नहीं रखते. इस बीच जबजब सुशीला को पता चलता कि मोनू प्रदीप और उस के घर वालों को मारने की धमकी दे रहा है, वह परेशान हो उठती थी.

मोनू का भाई सोनू और पिता भी इस खतरनाक योजना में शामिल थे. जब मोनू पहली प्लानिंग में कामयाब हो गया तो उस ने वारदात को अंजाम देने की ठान ली. हरीश के साथ मिल कर उस ने देशी हथियारों के साथ एक कार का इंतजाम किया. इस के बाद वह कार से अपने साथियों के साथ रात में सुशीला के घर जा पहुंचा और वारदात को अंजाम दे कर फरार हो गया.

एक दिन बाद पुलिस ने सुशीला के षडयंत्रकारी पिता ओमप्रकाश को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद दोनों आरोपियों को पुलिस ने अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. इस बीच खरखौदा थाने का चार्ज इंसपेक्टर प्रदीप के सुपुर्द कर दिया गया. वह मुख्य आरोपी मोनू की तलाश में जुटे हैं.

सुशीला ने सोचा भी नहीं था कि उसे प्यार करने की इतनी बड़ी सजा मिलेगी. ओमप्रकाश और उस के बेटे ने सुशीला के विवाह को अपनी झूठी शान से न जोड़ा होता तो शायद ऐसी नौबत न आती. सुशीला का सुहाग उजाड़ कर वे सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं. कथा लिखे जाने तक आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी और पुलिस मोनू और उस के अन्य साथियों की सरगर्मी से तलाश कर रही थी.

कनाडा से बुला कर शादी, फिर हत्या

कनाडा से बुला कर शादी, फिर हत्या – भाग 2

दूसरी तरफ सुनील मोनिका की खुबसूरती, स्वभाव, आचरण और व्यवहारिकता पर मर मिटा था. वह गांव की हो कर भी शहरी वातावरण में आसानी से फिट हो जाती थी. धाराप्रवाह अंगरेजी बोलना सीख गई थी. कंप्यूटर, इंटरनेट सर्फिंग, सोशल साइटों से संबंधित बारीकियां और दूसरी टेक्निकल जानकारियां भी हासिल कर चुकी थी. मोनिका अगर अपने करिअर के प्रति महत्त्वाकांक्षी बनी हुई थी तो सुनील उसे लाइफ पार्टनर बनाने का मन बना चुका था. दोनों का प्रेम प्रसंग बढ़ता जा रहा था.

पढ़ाई के लिए कनाडा पहुंची मोनिका

समय अपनी गति से चल रहा था तो वहीं मोनिका भी अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही थी. उस ने बीए की पढ़ाई पूरी करने के अलावा आइलेट्स की परीक्षा भी पास कर ली. उसे 2 सफलताएं एक साथ मिल गई थीं, जिस से उस के विदेश जाने की राह और आसान हो गई थी.

हालांकि इस के लिए उस के मौसेरे भाई विकास ने भी तैयारी की थी, लेकिन वह आइलेट्स की परीक्षा पास नहीं कर पाया था, जिस से उसे कनाडा का वीजा नहीं मिल पाया. फिर भी उसे खुशी इस बात की थी कि बहन मोनिका को स्टूडेंट वीजा मिल गया था. उसे वहां बिजनैस मैनेजमेंट यानी एमबीए की पढ़ाई करनी थी.

उन की इस खुशी में सुनील भी शामिल था, लेकिन उस के मन में एक टीस भी थी कि मोनिका कनाडा चली जाएगी और जब उसे उस की याद सताएगी तब क्या करेगा? वह एक तरह से उस की गैरमौजूदगी में अपनी तन्हाई को ले कर चिंतित हो गया था. उस ने भारी मन से 5 जनवरी, 2022 को दिल्ली के अंतराष्ट्रीय एयरपोर्ट से मोनिका को कनाडा के लिए विदा कर दिया था.

मोनिका के परिवार वालों के लिए संतोष और बेहद खुशी की बात थी कि कनाडा में उस की पढ़ाई का सारा इंतजाम हो गया था. उस के सुनहरे भविष्य को ले कर उस का भाई विकास समेत मौसामौसी और मम्मीपापा सभी खुश थे. इसे वे गर्व की बात समझते थे और परिचितों को बताने से नहीं चूकते थे. इस से उन की सामाजिक मानमर्यादा बढ़ गई थी. गांव के लोगों के बीच उन की प्रतिष्ठा भी बढ़ गई थी.

अगर कोई उदास था तो वह था सुनील. मोनिका के जाने के बाद वह उस के प्रेम की रूमानियत और रोमांस में खोया रहने लगा था. मोनिका की यादें उसे सताती रहती थीं. वैसे वह उस से फोन पर बातें कर लिया करता था, लेकिन वहां मोनिका पढ़ाई की व्यस्तता और रातदिन में समय के फर्क के कारण ज्यादा समय तक बात नहीं कर पाती थी. जबकि सुनील चाहता था कि वह उस से लंबी बातें करे. अपने दिल की बात उसे सुनाए. उस की यादों में खोए हुए अपने गम के हाल बताए.

कुछ ऐसा ही मोनिका के घर वालों के साथ भी था, लेकिन वे उस की पढ़ाई और व्यस्तता को समझते हुए कुछ सेकेंड के लिए ही सही, हर रोज हालसमाचार ले लिया करते थे. समय बीतता रहा और मोनिका से फोन पर संपर्क होने का समय भी बढ़ता चला गया. घर वालों की उस से 2-3 दिन में बातें होने लगीं. धीरेधीरे कर हफ्ते में और फिर 2 हफ्ते में बात होने लगी.

एक समय ऐसा भी आया, जब मोनिका की घर वालों से 2-2 हफ्ते तक बात नहीं हो पाई. यह सिलसिला हफ्ते से महीने में बदल गया. लेकिन जून, 2022 के बाद घर के किसी भी सदस्य से मोनिका की बात नहीं हो पाई. जबकि इस से पहले परिवार में किसी न किसी सदस्य से मोनिका की थोड़ी ही सही, मगर हालचाल, पढ़ाई या जरूरतें आदि की बात हो जाती थी. इस तरह से उस की कुशलता की खबर पूरे परिवार को मिल जाती थी.

अचानक बंद हो गया मोनिका से संपर्क

जून, 2022 के बाद जब मोनिका की कोई काल नहीं आई और उस के घर वालों द्वारा काल किए जाने पर भी उस से बात नहीं हो पाई, तब वे चिंतित हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक क्या हो गया, जो कनाडा गई मोनिका से भारत में किसी से बात नहीं हो पा रही है. न तो फोन काल और न ही वाट्सऐप मैसेज. उस से संपर्क एकदम से खत्म गया था.

इस तरह 5 महीने निकल गए थे और मोनिका का भारत में किसी से संपर्क नहीं हो पा रहा था. आखिरकार, उस के घर वालों ने गन्नौर थाने में 26 अक्तूबर, 2022 को मोनिका के अपहरण की शिकायत दर्ज करवा दी. पुलिस द्वारा अपहरण के लिए किसी पर संदेह की बात पूछे जाने पर घर वालों ने सुनील का नाम ले लिया था, जिस से कुछ महीने में अच्छी दोस्ती हो चुकी थी.

मोनिका के घर वाले 2 दिनों तक गन्नौर पुलिस की काररवाई से संतुष्ट नहीं हुए. वे 28 अक्तूबर, 2022 को एसपी से मिले. फिर भी उन्हें मोनिका के बारे में कोई सूचना नहीं मिल पाई. दूसरी तरफ मोनिका के अपहरण में सुनील का नाम आने से वह नाराज हो गया था. गुस्से में उस ने मोनिका के मौसामौसी के गुमड़ी गांव स्थित घर पर 2 नवंबर, 2022 को काफी हंगामा किया. यहां तक कि उस के आदमियों ने परिवार के सदस्यों पर हमले भी किए. यह सब सीसीटीवी कैमरे में रिकौर्ड हो चुका था.

काफी प्रयास के बाद 16 नवंबर, 2022 को सुनील के खिलाफ मोनिका के अपहरण का केस दर्ज हो पाया. फिर भी उस के खिलाफ पुलिस ने कोई सख्त काररवाई नहीं की, गिरफ्तारी तो दूर की बात थी. आखिरकार मोनिका के परिजनों ने हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज से मिल कर न्याय की गुहार लगाई.

इस का असर यह हुआ कि मोनिका के गायब होने की जांच रोहतक रेंज के आईजी को सौंप दी गई. उन्होंने तुरंत मामले की गंभीरता को देखते हुए मोनिका की तलाशी के लिए सीआईए-2 की टीम को इस मामले की जांच के निर्देश दिए.

घर वालों ने सुनील पर जताया शक

मोनिका की तलाशी के सिलसिले में पुलिस के लिए एकमात्र संदिग्ध सुनील ही था. उस के घर वालों के अलावा गांव के कुछ लोगों ने बताया की मोनिका को अकसर सुनील के साथ देखा गया था. वह उस की गाड़ी से ही कालेज या कोचिंग के लिए दिल्ली जाती थी. वापस भी उसी के साथ आती थी. गांव वालों की निगाह में सुनील उस के साथ बहन का रिश्ता बनाए हुए था. सुनील की लंबी चमकती गाड़ी वीआईपी नंबर की थी, जिसे हर कोई पहचानता था.

पूछताछ से पहले पुलिस ने उस के आपराधिक रिकौर्ड की छानबीन की. पता चला कि सुनील पहले भी आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त पाया गया था. उस के खिलाफ थाना गन्नौर में मारपीट, अवैध हथियार, जान से मारने का प्रयास आदि के 7 मुकदमे दर्ज थे. उस के खिलाफ नया मामला मोनिका के अपहरण का दर्ज हो चुका था, जिस के लिए उसे भादंवि की धारा 365 का आरोपी बनाया गया था.

 

कनाडा से बुला कर शादी, फिर हत्या – भाग 1

मूलरूप से हरियाणा के रोहतक की रहने वाली मोनिका बेहद खूबसूरत थी. लेकिन फिलहाल अपने मम्मीपापा के साथ सोनीपत के गांव गुमड़ी में रह रही थी. वह दिल्ली विश्वविद्यालय में बीए की छात्रा थी. क्लास के लिए वह गुमड़ी से बस से दिल्ली आतीजाती थी.

छुट्टी के दिनों को छोड़ कर करीब 40 किलोमीटर का सफर वह अकेली तय करती थी. उस पर पढ़ाई का भूत सवार था. वह फाइनल ईयर में थी. आगे वह सीधे विदेश में जा कर पढ़ाई करने का मन बना चुकी थी. वहां मैनेजमेंट का कोई अच्छा कोर्स करने की महत्त्वाकांक्षा थी. उस की तमन्ना पूरी करने के लिए 2 परिवारों का साथ भी मिला हुआ था.

उन में एक उस के अपने मम्मीपापा का परिवार था और दूसरा परिवार उस के मौसामौसी का भी था, जहां वह रहती थी. वह 2 मौसेरे भाइयों की दुलारी, प्यारी इकलौती बहन थी. उस की मौसी ने उस की मां से मांग कर अपनी बेटी का नाम दे दिया था.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. मोनिका बीए की पढ़ाई के साथसाथ आइलेट्स अर्थात इंटरनैशनल इग्लिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम कंप्यूटर के लिए कोचिंग भी कर रही थी. इस तरह से उस पर पढ़ाई का काफी बोझ था. ऊपर से बस से थका देने वाला सफर भी तय करना होता था.

एक बार कालेज जाते समय उसे अमीर नौजवान सुनील ने देख लिया था. वह बस में थी, जबकि सुनील अपनी महंगी गाड़ी में था. दोनों की मंजिल दिल्ली की तरफ ही थी. दरअसल, सुनील उस की मौसी का पड़ोसी था और वह अपनी भाभी की बदौलत उसे जानतापहचानता था. उसे अपने बिजनैस के सिलसिले में गुडग़ांव और दिल्ली नियमित जाना होता था.

उस के बारे में पड़ोसी भाभी सोनिया ने बताया था. साथ ही सुझाव दिया था कि वह चाहे तो बस के बजाय उस की गाड़ी से दिल्ली जा सकती है. उसे कोई आपत्ति नहीं होगी. हालांकि मोनिका ने इस तरह से किसी का एहसान लेना ठीक नहीं समझते हुए बस से ही आनाजाना रखा. एक दिन सुनील उर्फ शिल्ला अपनी गाड़ी से जाते हुए मोनिका से टकरा गया.

संयोग से उस दिन मोनिका जिस बस में सवार थी, उस में कुछ खराबी आ गई थी और सभी यत्रियों के साथ वह भी सडक़ के किनारे दूसरी बस के इंतजार में थी. बेचैन और चिंतित मोनिका से एक सहयात्री महिला कंधे पर हाथ रख कर बताया कि उधर पीछे की गाड़ी से कोई आवाज दे कर उसे बुलाने का इशारा कर रहा है.

मोनिका ने उस ओर देखा, तब तक एक कार उस के पास आ कर ही रुक गई थी. दूसरी तरफ ड्राइविंग सीट पर बैठे युवक ने अपना परिचय सुनील के रूप में दिया और उसे गाड़ी में बैठने को कहा. मोनिका हिचकिचाई. उस के कुछ बोलने से पहले ही सुनील ने मोबाइल फोन का स्पीकर औन कर उस के सामने कर दिया. दूसरी तरफ से आवाज आ रही थी. ‘‘हैलो, सुनील, बोलो क्या बात है?’’

“भाभीजी, मोनिका से बात कीजिए…’’

“मोनिका…तुम्हारे पास?’’ उधर से चिंतातुर आवाज आई.

“जी भाभी, उस की बस खराब हो गई है, दूसरी बस का इंतजार कर रही है. मैं उसे अपनी गाड़ी में लिफ्ट देने के लिए बोल रहा हूं, लेकिन वह हिचकिचा रही है. शायद मुझे नहीं पहचानती है.’’ सुनील बोला.

दूसरी तरफ से उस की भाभी सोनिया की आवाज आई, ‘‘अरे उसे फोन तो दो, मैं बात करती हूं. तुम्हारे बारे में बताती हूं.’’

“फोन का स्पीकर औन है, आप बोलिए वह सुन रही है.’’ सुनील बोला. तब तक मोनिका भी सोनिया की आवाज पहचान चुकी थी. वह बोली, ‘‘भाभीजी नमस्ते, आप ने इन के बारे में ही बताया था क्या?’’

“अरे हां मोनिका. यही तो मेरा प्यारा देवर है. बहुत अच्छा लडक़ा है. तुम्हें अपनी गाड़ी से कालेज तक छोड़ देगा. साथ चली जाओ. कोई चिंता की बात नहीं है. समझो, जैसा तुम्हारा भाई विकास वैसा ही सुनील.’’ सोनिया उसे समझाती हुई बोली. तब तक सुनील गाड़ी का गेट खोल चुका था. एक हाथ से साथ वाली सीट पर रखी फाइल और डायरी को आगे डैशबोर्ड पर रखते हुए बैठने के लिए इशारा कर दिया. मोनिका तब तक आश्वस्त हो चुकी थी और पीठ से अपना बैग उतार कर गाड़ी में बैठ गई.

पहली मुलाकात का हुआ दिल पर असर

इस तरह से मोनिका और सुनील की पहली मुलाकात हुई थी. कुछ समय तक दोनों शांत बैठे रहे. थोड़ी देर में बातचीत का सिलसिला सुनील ही शुरू करते हुए बोला, ‘‘मोनिकाजी, मैं आप को अच्छी तरह जानता हूं. शायद आप मुझे नहीं पहचानती हैं, इसलिए गाड़ी में बैठने से झिझक रही थीं. मैं आप के मौसामौसी के पड़ोस में रहता हूं. सुबहसुबह ही काम के सिलसिले में दिल्ली एनसीआर को निकल पड़ता हूं. आप को मैं ने कई बार पैदल जाते हुए और बस का इंतजार करते देखा था. सोचता था कि आप को साथ लेता चलूं, लेकिन मैं यही सोच कर नहीं बोल पाता था कि आप कुछ गलत न समझ लें…’’

मौन बनी मोनिका सुनील की बात सुन रही थी. गाड़ी अपनी गति से सडक़ पर अपनी लेन में चल रही थी. सुनील बोला, ‘‘आप चाहें तो लौटते वक्त मुझे फोन कर दीजिएगा. मैं उधर से भी आप को साथ ले लूंगा. मेरा फोन नंबर नोट कीजिए 97xxxxxxxx’’ सुनील फोन नंबर बोलने लगा.

मोनिका बगैर कुछ बोले, अपने मोबाइल पर उस का नंबर टाइप करने लगी. तुरंत उसी नंबर पर उस ने काल भी कर दी. सुनील के मोबाइल पर इनकमिंग काल आ चुकी थी.

“आप का नंबर है? लास्ट डिजिट 34 है न?’’ सुनील ने कहा.

“जी…मुझे हुडा सिटी सेंटर मेट्रो पर उतार दीजिएगा. वहां से यूनिवर्सिटी की मेट्रो ले लूंगी.’’ मोनिका बोली.

“ठीक है, वापसी भी वहीं से होगी न? मुझे काल कर देना मैं मेट्रो के पास आ जाऊंगा.’’

“देखती हूं…’’

इस तरह से मोनिका और सुनील की पहली जानपहचान से अच्छी दोस्ती में बदलने में ज्यादा देर नहीं लगी. उन की अकसर मुलाकातें होने लगीं. मोनिका और सुनील साथ गाड़ी में आनेजाने लगे. समय बचता तो वे गुडग़ांव के किसी काफी होम या रेस्टोरेंट में कुछ समय साथ भी गुजारने लगे थे.

यह कहना गलत नहीं होगा कि दोनों के दिल में प्रेम अगन सुलग चुकी थी. कुंवारे और अमीर सुनील को पा कर मोनिका अच्छे भविष्य के सपने देखने लगी थी. उसे एहसास होने लगा था कि उस ने विदेश में पढ़ाई करने के जो सपने देखे हैं, उसे पूरा करने में सुनील की मदद उसे अवश्य मिलेगी.

 

कनाडा से बुला कर शादी, फिर हत्या – भाग 4

सुनील ने बताया कि वह अपनी हर बात मोनिका पर थोप देता था. अपनी बात मानने का उस पर दबाव डालता था. भावनात्मत्क उत्पीडऩ करने के साथसाथ शारीरिक तकलीफें भी देने लगा था. यहां तक कि उस की बात नहीं मानने पर अपनी लाइसेंसी पिस्तौल भी दिखा चुका था. पूछताछ के सिलसिले में उस ने कुबूल कर लिया कि मोनिका के कनाडा जाने के अगले रोज से ही वह उसे पाने के लिए बेचैन हो गया था.

वह एक विक्षिप्त प्रेमी की तरह बन चुका था. ठीक उसी तरह जैसे प्यार में लोग कभीकभी सारी हदें पार कर देते हैं. उस ने भी वही सब किया. उस ने मोनिका के प्यार में जीनेमरने की कसमें खाई थीं और उस से हर हाल में शादी रचाना चाहता था.

इस के चलते ही मोनिका के कनाडा जाने के कुछ दिनों बाद ही उस ने परिवार में एक हादसा होने का बहाना बना कर उसे वापस भारत बुलवा लिया. वहां से उस ने उसे अपने परिजनों के पास जाने नहीं दिया. जबरन अपने बनाए ठिकाने पर ले कर चला गया.

सुनील और मोनिका ने कर ली थी शादी

मोनिका 5 जनवरी, 2022 को कनाडा बिजनैस मैनेजमेंट का कोर्स करने गई थी, लेकिन सुनील ने 22 जनवरी को ही कनाडा से उसे वापस भारत बुला लिया था. इस के बाद उन्होंने 29 जनवरी, 2022 को गाजियाबाद के आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली थी.

शादी के बाद 30 जनवरी को मोनिका फिर कनाडा चली गई थी, लेकिन सुनील ने उसे फिर भारत बुला लिया और कनाडा वापस जाने नहीं दिया. इस दौरान मोनिका के कनाडा आनेजाने का सारा खर्च सुनील ने ही उठाया था. सुनील मोनिका को अपने साथ ले गया था, दोनों अलगअलग जगहों पर रहने लगे थे. कुछ दिनों बाद उन के बीच अनबन होने लगी.

सुनील ने पुलिस को बताया कि मोनिका कहती कि उस ने अगर शादी की है, तब इसे सार्वजनिक करे और लोगों के सामने पतिपत्नी की तरह रहे. इस पर सुनील अपनी पहली पत्नी का हवाला देता था और उस से तलाक लेने का आश्वान देता रहा. जबकि मोनिका अलग रहते हुए सुनील के बदले तेवर से परेशान हो चुकी थी. उस की कोई वैध शादी नहीं थी, जो वह कानून का सहारा लेती. सुनील उस पर मानसिक दबाव बनाए हुए था.

विरोध करने पर उस के घर वालों को जान से मारने की धमकी दे कर उसे चुप करा देता था. जिस के चलते उन के बीच झगड़ा होने लगा था. जून में ही जब सुनील मोनिका को अपने साथ कार में बैठा कर गड़ी झंझारा स्थित फार्महाउस की तरफ जा रहा था तो रास्ते में उन का फिर किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया. इस पर सुनील ने तैश में आ कर मोनिका की कार में ही अवैध पिस्तौल से 2 गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

गोली मार कर मोनिका की हत्या करने के बाद शाम को सुनील उस के शव को कार में ही ले कर फार्महाउस पहुंच गया था. जिस के बाद उस ने मोनिका के शव को फार्महाउस में ही गड्ïढा खोद कर उस में दबाने की योजना बनाई, लेकिन अकेला वह गड्ढा खोदने में असमर्थ था. इस कारण उस ने मोनिका के शव को कार में छोड़ कर उसे पूरी तरह से ढंक दिया.

फार्महाउस में दफना दी गई मोनिका

अगली सुबह उस ने मजदूरों को बुलाया और सेफ्टी टैंक का निर्माण करवाने की बात कह कर उन से कई फीट गहरा गड्ढा खुदवा दिया. मजदूरों के चले जाने के बाद शाम के समय उस ने मोनिका के शव को कार से निकाल कर उसे गड्ढे में दबा दिया. गड्ढे की मिट्टी को पूरी तरह से समतल करने के बाद सुनील ने उस के ऊपर घास भी लगवा दी, ताकि किसी को इस बारे में शक न हो. इस तरह सुनील बेफिक्र हो गया था.

सुनील द्वारा मोनिका के अपहरण और उस की हत्या की बात कुबूल करने के बाद मोनिका मर्डर केस का खुलासा हो चुका था. भिवानी सीआईए-2 प्रभारी रविंद्र कुमार ने उस के बयान को कलमबद्ध करने के बाद अदालत में पेश कर दिया. वहां से उसे 10 दिन के रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस सुनील से वारदात में इस्तेमाल अवैध हथियार और कार को भी बरामद करने के प्रयास में जुट गई.

मोनिका हत्याकांड के मामले में आरोपी सुनील ने मोनिका की हत्या की असली वजह बता दी थी. शादी के बाद वह मोनिका के साथ कनाडा जा कर वहीं शिफ्ट होना चाहता था, लेकिन वह गन्नौर में ही रहने की जिद पर अड़ गई थी. मोनिका उसे उस की पहली पत्नी सोनिया को छोडऩे के लिए मजबूर कर रही थी.

मोनिका उस के बच्चों के साथ उस के घर में ही रहना चाहती थी. सुनील ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह दूसरा घर खरीद लेंगे और उस में रहेंगे, लेकिन वह नहीं मानी. इसी बात पर उन का झगड़ा हो गया और विवाद इतना बढ़ गया कि उस ने उस की हत्या कर दी.

वह मोनिका की हत्या करने के बाद समालखा, उत्तर प्रदेश में अलगअलग ठिकाने बदलता रहा. मोनिका की लाश को गड्ढा खुदवा कर निकाल लिया गया. पोस्टमार्टम के दौरान मोनिका की खोपड़ी में फंसी गोली मिल गई. पुलिस ने गड्ढे से बरामद युवती के अवशेषों का डीएनए का सैंपल भी जांच के लिए भिजवा दिया.

जांच में पाया गया कि उस की कार गन्नौर अथारिटी में रजिस्टर्ड है. पुलिस ने सुनील से वह देशी पिस्तौल भी बरामद कर ली, जिस से उस ने मोनिका की हत्या की थी. उस के बारे में उस ने बताया कि उस ने पिस्तौल सहारनपुर में रहने वाले अपने एक दोस्त से ली थी. इस जानकारी के बाद पुलिस अब उस के दोस्त के बारे में भी पता लगाने में जुट गई थी.

कथा लिखे जाने तक मोनिका का पासपोर्ट, लैपटाप, सोने की अंगूठी, कपड़ों से भरे बैग, सोने की चेन बरामद नहीं हो पाई थी. मृतका के मौसेरे भाई प्रदीप ने बताया कि उन्होंने भिवानी की सीआईए-2 को जिन संदिग्ध व्यक्तियों के नाम दिए हैं, उन से उन्हें जान का खतरा है. उन्हें उन व्यक्तियों द्वारा उसे व उस के घर वालों पर हमला होने का डर सता रहा है. इसे ले कर उस ने पुलिस आयुक्त से मिल कर सुरक्षा की मांग की.

कनाडा से बुला कर शादी, फिर हत्या – भाग 3

पहली पूछताछ में सुनील ने मोनिका के साथ गहरी जानपहचान होने की बात स्वीकार कर ली. साथ ही उस ने यह भी बताया कि वह उस से प्रेम करता है. उस के कनाडा से लौटने का उसे इंतजार है. उस से पूछताछ करते समय कई बातें जांच अधिकारी को संदिग्ध लगीं, जिस से जांच अधिकारी को शक हुआ कि वह मोनिका के बारे में बहुत सी बातें छिपा रहा है.

उस ने अपने बारे में जो कुछ बताया था, उस में भी कई बातें गलत निकली थीं. जैसे उस ने खुद को अविवाहित बताया था. पुलिस को ग्रामीणों से मालूम हुआ था कि सुनील न केवल विवाहित है, बल्कि उस के बच्चे भी हैं. यहीं से पुलिस को उस पर संदेह गहरा गया.

मोनिका के बारे में कई बार पूछताछ हुई. उस से आखिरी मुलाकात से ले कर आखिरी बार फोन पर हुई बातचीत को ले कर सवाल किए गए. उस के जवाब के संदर्भ में जब तहकीकात की गई और मोनिका के परिजनों से पूछताछ की गई, तब कई विरोधाभासी जवाब मिले. हर बार वह यही कहता रहा कि उस के कनाडा जाने के बाद उस की काफी समय से बात नहीं हुई थी.

मोनिका के घर वालों को लगता था कि उन की बेटी कनाडा में है, लेकिन उस से होने वाली फोन पर बातचीत के बारे में पुलिस को दिए बयान की सच्चाई कुछ और थी. मोनिका के मौसेरे भाई ने बताया कि उस ने अप्रैल में मोनिका से वीडियो काल पर बात की थी, तब उसे पंखा चलता दिखाई दिया. उस समय कनाडा में कड़ाके की ठंड थी. उस ने जब मोनिका से पंखा चलने के बारे में पूछा तो मोनिका ने फोन काट दिया और उस का नंबर भी ब्लैकलिस्ट में डाल दिया.

इस के बाद भी घर वाले मोनिका के कनाडा में होने की ही बात मान कर उस से बात करते रहे. बाद में जब मोनिका ने घर वालों के फोन उठाने बंद किए, तब उन्हें शक हुआ. खैर, पुलिस ने जांच प्रक्रिया को नया मोड़ देते हुए सुनील और मोनिका के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. उस के अनुसार भी सुनील की कई बातें गलत निकलीं, जो उस ने पूछताछ में बताई थी.

उस ने मोनिका से आखिरी काल की जो तारीख बताई थी, वह दोनों के काल डिटेल्स से मैच नहीं करती थी. साथ ही पुलिस के कान तब खड़े हो गए, जब उस ने बताया कि दोनों की फोन पर जनवरी से जून 2022 के बाद कोई बात नहीं हुई थी.

यह बात भी पुलिस के लिए संदेह पैदा करने वाली थी कि जब मोनिका 5 जनवरी को कनाडा चली गई थी, तब उस के बाद के काल इंटरनैशनल क्यों नहीं थे? साथ ही जून, 2022 के बाद सुनील ने पहले की तरह मोनिका को कोई काल क्यों नहीं किया? या फिर मोनिका द्वारा भी कोई काल क्यों नहीं की गई?

इन सवालों के साथ पुलिस ने मोनिका के घर वालों से भी पूछताछ की. उन्होंने बताया कि मोनिका उन के साथ बहुत कम समय के लिए बात करती थी, लेकिन जून 2022 के बाद उस के फोन ही बंद हो गए थे.

सुनील पुलिस को देता रहा गच्चा

अपना संदेह दूर करने के लिए पुलिस ने सुनील को थाने बुलवाया, किंतु उस ने थाने आने में असमर्थता जताई. उस ने बहाना बना दिया और कहा कि वह अपने काम के सिलसिले में पंजाब जा चुका है. वैसे पुलिस को बाद में आने का आश्वासन दिया. पुलिस को भरोसा देने के लिए उस ने मोनिका के बारे में भी तहकीकात की और कहा कि उस की कोई जानकारी मिलने पर वह पुलिस को सूचित किया जाए.

उस के बाद पुलिस द्वारा सुनील को कई बार थाने बुलाया गया, लेकिन वह नहीं आया और हर बार कोई न कोई बहाना बना दिया. तब तक जांच अधिकारी समझ चुके थे कि वह पूछताछ से बचना चाह रहा है और अपने झूठ के जाल में फंस चुका है.

उस के गांव में दबिश दी गई तो पता चला कि वह कई हफ्ते से अपने घर आया ही नहीं है. ग्रामीणों ने बताया कि उस की खास नंबर की गाड़ी भी नहीं नजर आई. इस का मतलब साफ था कि वह फरार हो चुका था. फिर क्या था, पुलिस उसे एक फरार अभियुक्त की तरह तलाश करने लगी. उस की पत्नी से भी पूछताछ हुई. इस में कुछ और महीने निकल गए. मोनिका के साथसाथ उस की भी खोजखबर लेने के लिए मुखबिर लगा दिए थे.

जांच अधिकारी को अनुमान था कि उस के पकड़े जाने पर मोनिका का पता चल सकता है. उस के द्वारा मोनिका को कहीं छिपाए ठिकाने का पता लगने की उम्मीद थी. फिर भी न मोनिका का कोई सुराग मिल पा रहा था और न ही सुनील का. उस का मोबाइल नंबर भी ट्रैकिंग में नहीं आ पा रहा था.

जबकि मामला भिवानी सीआईए-2 के पास पहुंचने के बाद से सीआईए पुलिस लगातार सुनील का पता लगाने का प्रयास कर रही थी. वारदात को अंजाम देने के बाद सुनील उर्फ शिल्ला लगातार फरार चल रहा था. आखिरकार सीआईए पुलिस ने 2 अप्रैल, 2023 को सुनील को मुजफ्फरनगर से गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तारी के बाद उस से सख्ती से पूछताछ की जाने लगी. साथ ही उस पर मोनिका की गुमशुदगी के मामले में पुलिस का साथ नहीं देने और फरार हो जाने का भी आरोप लगा दिया. जैसे ही पुलिस ने गन्नौर थाने में दर्ज उस के सभी 7 पुराने आपराधिक रिकौर्ड का हवाला दिया, जब पुलिस ने बताया उस के कुछ मामले गैरजमानती हैं और उन की जांच होने पर तुरंत जेल जा सकता है.

सुनील आपराधिक प्रवृत्ति का है. उस के पास एक लाइसेंसी पिस्तौल भी थी, लेकिन जून में ही खुद की लाइसेंसी पिस्तौल से अचानक गोली चलने से घायल हो गया था. इस के बाद उस की लाइसेंसी पिस्तौल पुलिस ने जब्त कर ली थी. इतना सुनते ही वह डर गया और मोनिका जांच में पूरी तरह से सहयोग करने को राजी हो गया.

लंबी चली कड़ी पूछताछ में सुनील ने अपने सारे राज खोल दिए. मोनिका से दोस्ती गांठने, समाज की नजर में उस का भाई बने रहने और अंदर ही अंदर उस से मोहब्बत करने के साथ उस के साथ शादी रचाने के सपने देखने की बात स्वीकार कर ली. उस ने यह भी बताया कि वह यह सब विवाहित होने के बावजूद कर रहा था, जिसे ले कर पत्नी और मोनिका को भी अपत्ति थी.