Family Story : तीन बेटियों का गला दबाया और फिर मां ने खुद भी अपनी जान ले ली

Family Story : बेटे के चक्कर में सास विमला, पति कुलदीप और उन के घर वाले भूल गए थे कि 4 प्राणियों की जिंदगी को नरक बनाने से बेटा नहीं मिल जाएगा. साधना का गुनाह यह था कि उस ने 3 बेटियां जनी थीं. आखिर साधना कब तक सहती. उस ने…

उस दिन सितंबर, 2020 की 10 तारीख थी. साधना ने फैसला कर रखा था कि मां का बताया व्रत जरूर रखेगी. मां के अनुसार, इस व्रत से सुंदर स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति होती है. लेकिन व्रत रखने से पहले ही लेबर पेन शुरू हो गया. इस में उस के अपने वश में कुछ नहीं था, क्योंकि उसे 2 दिन बाद की तारीख बताई गई थी. निश्चित समय पर वह मां बनी, लेकिन पुत्र नहीं पुत्री की. तीसरी बार भी बेटी आई है, सुन कर सास विमला का गुस्से से सिर भन्ना गया. वह सिर झटक कर वहां से चली गई. बच्ची के जन्म पर मां बिटोली आ गई थी. उस ने साधना को समझाया, ‘‘जी छोटा मत कर. बेटी लक्ष्मी का रूप होती है. क्या पता इस की किस्मत से मिल कर तेरी किस्मत बदल जाए.’’

बेटी के मन पर छाई उदासी पर पलटवार करने के लिए मां बिटोली बोली, ‘‘आजकल बेटेबेटी में कोई फर्क नहीं होता. तेरी सास के दिमाग में पता नहीं कैसा गोबर भरा है जो समझती ही नहीं या जानबूझ कर समझना नहीं चाहती.’’

साधना क्या कर सकती थी. 2 की तरह तीसरी को भी किस्मत मान लिया. उसे भी बाकी 2 की तरह पालने लगी. वह भी बहनों की तरह बड़ी होने लगी. उस दिन अक्तूबर 2020 की पहली तारीख थी. सेहुद गांव निवासी कुलदीप खेतों से घर लौटा, तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजा खुलवाने के लिए कुंडी खटखटाई, पर पत्नी ने दरवाजा नहीं खोला. घर के अंदर से टीवी चलने की आवाज आ रही थी. उस ने सोचा शायद टीवी की तेज आवाज में उसे कुंडी खटकने की आवाज सुनाई न दी हो. उस ने एक बार फिर कुंडी खटखटाने के साथ आवाज भी लगाई.

पर अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. कुलदीप का माथा ठनका. मन में घबराहट भी होने लगी. उस के घर के पास ही भाई राहुल का घर था तथा दूसरी ओर पड़ोसी सुदामा का घर. भाई घर पर नहीं था. वह सुदामा के पास पहुंचा और बोला, ‘‘चाचा, साधना न तो दरवाजा खोल रही है और न ही कोई हलचल हो रही है. मेरी मदद करो.’’

कुलदीप पड़ोसी सुदामा को साथ ले कर भाई राहुल के घर की छत से हो कर अपने घर में घुसा. वह कमरे के पास पहुंचे तो दोनों के मुंह से चीख निकल गई. कमरे के अंदर छत की धन्नी से लोहे के कुंडे के सहारे चार लाशें फांसी के फंदे पर झूल रही थीं. लाशें कुलदीप की पत्नी साधना और उस की बेटियों की थीं. कुलदीप और सुदामा घर का दरवाजा खोल कर बाहर आए और इस हृदयविदारक घटना की जानकारी पासपड़ोस के लोगों को दी. उस के बाद तो पूरे गांव में सनसनी फैल गई और लोग कुलदीप के घर की ओर दौड़ पड़े. देखते ही देखते घर के बाहर भीड़ उमड़ पड़ी. जिस ने भी इस मंजर को देखा, उसी का कलेजा कांप उठा.

कुलदीप बदहवास था, लेकिन सुदामा का दिलोदिमाग काम कर रहा था. उस ने सब से पहले यह सूचना साधना के मायके वालों को दी, फिर थाना दिबियापुर पुलिस को. पुलिस आने के पहले ही साधना के मातापिता, भाई व अन्य घर वाले टै्रक्टर पर लद कर आ गए. उन्होंने साधना व उस की मासूम बेटियोें को फांसी के फंदे पर झूलते देखा तो उन का गुस्सा फूट पड़ा. उन्होंने कुलदीप व उस के पिता कैलाश बाबू के घर जम कर उत्पात मचाया. घर में टीवी, अलमारी के अलावा जो भी सामान मिला तोड़ डाला. साधना के सासससुर, पति व देवर के साथ हाथापाई की.

साधना के मायके के लोग अभी उत्पात मचा ही रहे थे कि सूचना पा कर थानाप्रभारी सुधीर कुमार मिश्रा पुलिस टीम के साथ आ गए. उन्होंने किसी तरह समझाबुझा कर उन्हें शांत किया. चूंकि घटनास्थल पर भीड़ बढ़ती जा रही थी, अत: थानाप्रभारी मिश्रा ने इस घटना की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी और घटनास्थल पर अतिरिक्त पुलिस बल भेजने की सिफारिश की. इस के बाद वह भीड़ को हटाते हुए घर में दाखिल हुए. घर के अंदर आंगन से सटा एक बड़ा कमरा था. इस कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही डरावना था. कमरे की छत की धन्नी में एक लोहे का कुंडा था. इस कुंडे से 4 लाशें फांसी के फंदे से झूल रही थीं.

मरने वालो में कुलदीप की पत्नी साधना तथा उस की 3 मासूम बेटियां थीं. साधना की उम्र 30 साल के आसपास थी, जबकि उस की बड़ी बेटी गुंजन की उम्र 7 साल, उस से छोेटी अंजुम थी. उस की उम्र 5 वर्ष थी. सब से छोेटी पूनम की उम्र 2 माह से भी कम लग रही थी. साड़ी के 4 टुकड़े कर हर टुकड़े का एक छोर कुंडे में बांध कर फांसी लगाई गई थी. कमरे के अंदर लकड़ी की एक छोटी मेज पड़ी थी. संभवत: उसी मेज पर चढ़ कर फांसी का फंदा लगाया गया था. थानाप्रभारी सुधीर कुमार मिश्रा अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी सुनीति तथा एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित कई थानों की पुलिस ले कर घटनास्थल आ गए.

उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने तनाव को देखते हुए सेहुद गांव में पुलिस बल तैनात कर दिया. उस के बाद घटनास्थल का निरीक्षण किया. मां सहित मासूमों की लाश फांसी के फंदे पर झूलती देख कर एसपी सुनीति दहल उठीं. उन्होंने तत्काल लाशों को फंदे से नीचे उतरवाया. उस समय माहौल बेहद गमगीन हो उठा. मृतका साधना के मायके की महिलाएं लाशों से लिपट कर रोने लगीं. सुनीति ने महिला पुलिस की मदद से उन्हें समझाबुझा कर शवों से दूर किया.

इधर फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. घटनास्थल पर मृतका का भाई बृजबिहारी तथा पिता सिपाही लाल मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने उन से पूछताछ की तो बृजबिहारी ने बताया कि उस की बहन साधना तथा मासूम भांजियों की हत्या उस के बहनोई कुलदीप तथा उस के पिता कैलाश बाबू, भाई राहुल तथा मां विमला देवी ने मिल कर की है. जुर्म छिपाने के लिए शवों को फांसी पर लटका दिया है. अत: जब तक उन को गिरफ्तार नहीं किया जाता, तब तक वे शवों को उठने नहीं देंगे. बेटे की बात का सिपाही लाल ने भी समर्थन किया.

बृजबिहारी की इस धमकी से पुलिस के माथे पर बल पड़ गए. लेकिन माहौल खराब न हो, इसलिए पुलिस ने मृतका साधना के पति कुलदीप, ससुर कैलाश बाबू, सास विमला देवी तथा देवर राहुल को हिरासत में ले लिया तथा सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें थाना दिबियापुर भिजवा दिया. सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस अधिकारियों ने कुलदीप के पड़ोसी सुदामा से पूछताछ की. सुदामा ने बताया कि कुलदीप जब खेत से घर आया था, तो घर का दरवाजा बंद था. दरवाजा पीटने और आवाज देने पर भी जब उस की पत्नी साधना ने दरवाजा नहीं खोला, तब वह मदद मांगने उस के पास आया. उस के बाद वे दोनों छत के रास्ते घर के अंदर कमरे में गए, जहां साधना बेटियों सहित फांसी पर लटक रही थी.

सुदामा ने कहा कि कुलदीप ने पत्नी व बेटियों को नहीं मारा बल्कि साधना ने ही बेटियों को फांसी पर लटकाया और फिर स्वयं भी फांसी लगा ली. निरीक्षण और पूछताछ के बाद एसपी सुनीति ने मृतका साधना व उस की मासूम बेटियों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए औरैया जिला अस्पताल भिजवा दिया. डाक्टरों की टीम ने कड़ी सुरक्षा के बीच चारों शवों का पोस्टमार्टम किया, वीडियोग्राफी भी कराई गई. इस के बाद रिपोर्ट पुलिस को सौंप दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर मासूम गुंजन, अंजुम व पूनम की हत्या गला दबा कर की गई थी, जबकि साधना ने आत्महत्या की थी. रिपोर्ट से स्पष्ट था कि साधना ने पहले अपनी तीनों मासूम बेटियों की हत्या की फिर बारीबारी से उन्हें फांसी के फंदे पर लटकाया. उस के बाद स्वयं भी उस ने फांसी के फंदे पर लटक कर आत्महत्या कर ली. उस ने ऐसा शायद इसलिए किया कि वह मरतेमरते भी अपने जिगर के टुकड़ो को अपने से दूर नहीं करना चाहती थी. थाने पर पुलिस अधिकारियों ने कुलदीप तथा उस के मातापिता व भाई से पूछताछ की.

कुलदीप के पिता कैलाश बाबू ने बताया कि कुलदीप व साधना के बीच अकसर झगड़ा होता था, जिस से आजिज आ कर उन्होंने कुलदीप का घर जमीन का बंटवारा कर कर दिया था. वह छोटे बेटे राहुल के साथ अलग रहता है. उस का कुलदीप से कोई वास्ता नहीं था. पूछताछ के बाद पुलिस ने कैलाश बाबू उस की पत्नी विमला तथा बेटे राहुल को थाने से घर जाने दिया, लेकिन मृतका साधना के भाई बृजबिहारी की तहरीर पर कुलदीप के खिलाफ भादंवि की धारा 309 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली और उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में घर कलह की सनसनीखेज घटना सामने आई.

गांव अमानपुर, जिला औरेया का सिपाही लाल दिबियापुर में रेलवे ठेकेदार के अधीन काम करता था. कुछ उपजाऊ जमीन भी थी, जिस से उस के परिवार का खर्च आसानी से चलता था. सिपाही लाल की बेटी साधना जवान हुई तो उस ने 12 फरवरी, 2012 को उस की शादी सेहुद गांव निवासी कैलाश बाबू के बेटे कुलदीप के साथ कर दी. लेकिन कुलदीप की मां विमला न बहू से खुश थी, न उस के परिवार से. साधना और कुलदीप ने जैसेतैसे जीवन का सफर शुरू किया. शादी के 2 साल बाद साधना ने एक बेटी गुंजन को जन्म दिया. गुंजन के जन्म से साधना व कुलदीप तो खुश थे, लेकिन साधना की सास विमला खुश नहीं थी, क्योंकि वह पोते की आस लगाए बैठी थी. बेटी जन्मने को ले कर वह साधना को ताने भी कसने लगी थी.

घर की मालकिन विमला थी. बापबेटे जो कमाते थे, विमला के हाथ पर रखते थे. वही घर का खर्च चलाती थी. साधना को भी अपने खर्च के लिए सास के आगे ही हाथ फैलाना पड़ता था. कभी तो वह पैसे दे देती थी, तो कभी झिड़क देती थी. तब साधना तिलमिला उठती थी. साधना पति से शिकवाशिकायत करती, तो वह उसे ही प्रताडि़त करता. गुंजन के जन्म के 2 साल बाद साधना ने जब दूसरी बेटी अंजुम को जन्म दिया तो लगा जैसे उस ने कोई गुनाह कर दिया हो. घर वालों का उस के प्रति रवैया ही बदल गया. सासससुर, पति किसी न किसी बहाने साधना को प्रताडि़त करने लगे.

सास विमला आए दिन कोई न कोई ड्रामा रचती और झूठी शिकायत कर कुलदीप से साधना को पिटवाती. विमला को साधना की दोनों बेटियां फूटी आंख नहीं सुहाती थीं. वह उन्हें दुत्कारती रहती थी. बेटियों के साथसाथ वह साधना को भी कोसती, ‘‘हे भगवान, मेरे तो भाग्य ही फूट गए जो इस जैसी बहू मिली. पता नहीं मैं पोते का मुंह देखूंगी भी या नहीं.’’

धीरेधीरे बेटियों को ले कर घर में कलह बढ़ने लगी. कुलदीप और साधना के बीच भी झगड़ा होने लगा. आजिज आ कर साधना मायके चली गई. जब कई माह तक वह ससुराल नहीं आई, तो विमला की गांव में थूथू होने लगी. बदनामी से बचने के लिए उस ने पति कैलाश बाबू को बहू को मना कर लाने को कहा. कैलाश बाबू साधना को मनाने उस के मायके गए. वहां उन्होंने साधना के मातापिता से बातचीत की और साधना को ससुराल भेजने का अनुरोध किया, लेकिन साधना के घर वालों ने प्रताड़ना का आरोप लगा कर उसे भेजने से साफ मना कर दिया.

मुंह की खा कर कैलाश बाबू लौट आए. उन्होंने वकील से कानूनी सलाह ली और फिर साधना को विदाई का नोटिस भिजवा दिया. इस नोटिस से साधना के घर वाले तिलमिला उठे और उन्होंने साधना के मार्फत कुलदीप तथा उस के घर वालों के खिलाफ थाना सहायल में घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के अलावा औरैया कोर्ट में कुलदीप के खिलाफ भरणपोषण का मुकदमा दाखिल कर दिया. जब कुलदीप तथा उस के पिता कैलाश बाबू को घरेलू हिंसा और भरणपोषण के मुकदमे की जानकारी हुई तो वह घबरा उठे. गिरफ्तारी से बचने के लिए कैलाश बाबू समझौते के लिए प्रयास करने लगे. काफी मानमनौव्वल के बाद साधना राजी हुई. कोर्ट से लिखापढ़ी के बाद साधना ससुराल आ कर रहने लगी.

कुछ माह बाद कैलाश बाबू ने घर, जमीन का बंटवारा कर दिया. उस के बाद साधना पति कुलदीप के साथ अलग रहने लगी. साधना पति के साथ अलग जरूर रहने लगी थी, लेकिन उस का लड़नाझगड़ना बंद नहीं हुआ था. सास के ताने भी कम नहीं हुए थे. वह बेटियों को ले कर अकसर ताने मारती रहती थी. कभीकभी साधना इतना परेशान हो जाती कि उस का मन करता कि वह आत्महत्या कर ले. लेकिन बेटियों का खयाल आता तो इरादा बदल देती.

10 सितंबर, 2020 को साधना ने तीसरी संतान के रूप में भी बेटी को ही जन्म दिया, नाम रखा पूनम. पूनम के जन्म से घर में उदासी छा गई. सब से ज्यादा दुख विमला को हुआ. उस ने फिर से साधना को ताने कसने शुरू कर दिए. छठी वाले दिन साधना की मां विटोली भी आई. उस रोज विमला और विटोली के बीच खूब नोंकझोंक हुई. सास के ताने सुनसुन कर साधना रोती रही. विटोली बेटी को समझा कर चली गई. उस के बाद साधना उदास रहने लगी. वह सोचने लगी क्या बेटी पैदा होना अभिशाप है? अब तक साधना सास के तानों और पति की प्रताड़ना से तंग आ चुकी थी. अत: वह आत्महत्या करने की सोचने लगी. लेकिन खयाल आया कि अगर उस ने आत्महत्या कर ली तो उस की मासूम बेटियों का क्या होगा.

उस का पति शराबी है, वह उन की परवरिश कैसे करेगा. वह या तो बेटियों को बेच देगा या फिर भूखे भेडि़यों के हवाले कर देगा. सोचविचार कर साधना ने आखिरी फैसला लिया कि वह मासूम बेटियों को मार कर बाद में आत्महत्या करेगी. 1 अक्तूबर, 2020 की सुबह 7 बजे कुलदीप खेत पर काम करने चला गया. उस के जाने के बाद साधना ने मुख्य दरवाजा बंद किया और टीवी की आवाज तेज कर दी. फिर उस ने साड़ी के 4 टुकड़े किए और इन के एकएक सिरे को मेज पर चढ़ कर छत की धन्नी में लगे लोहे के कुंडे में बांध दिया.

दूसरे सिरे को फंदा बनाया. उस समय गुंजन और अंजुम चारपाई पर सो रही थीं. साधना ने कलेजे पर पत्थर रख कर बारीबारी से गला दबा कर उन दोनों को मार डाला फिर उन के शवों को फांसी के फंदे पर लटका दिया. 21 दिन की मासूम पूनम का गला दबाते समय साधना के हाथ कांपने लगे और आंखों से आंसू टपकने लगे. लेकिन जुनून के आगे ममता हार गई और उस ने मासूम को भी गला दबा कर मार डाला और फांसी के फंदे पर लटका दिया. इस के बाद वह स्वयं भी गले में फंदा डाल कर झूल गई. घटना की जानकारी तब हुई जब कुलदीप 11 बजे घर वापस आया. पड़ोसी सुदामा ने घटना की सूचना मोबाइल फोन द्वारा थाना दिबियापुर पुलिस को दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी सुधीर कुमार मिश्रा आ गए. उन्होंने शवों को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो घर कलह की घटना प्रकाश में आई. 2 अक्टूबर, 2020 को थाना दिबियापुर पुलिस ने अभियुक्त कुलदीप को औरैया कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Family Dispute : आखिर पत्नी ने नींद में सोए पति को क्यों गला दबा कर मार डाला

Family Dispute : निकाह के 18 दिन में ही मुसकान यह समझ बैठी थी कि शौहर शाहनवाज के साथ उस के सपने कभी पूरे नहीं होंगे. इसलिए उस से छुटकारा पाने के लिए उस ने ऐसी खौफनाक साजिश रची कि…

अहसान मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला शामली के कैराना का रहने वाला था. वह कामधंधे के सिलसिले में काफी साल पहले हरिद्वार के कस्बा झबरेड़ा के मोहल्ला नूरबस्ती आ कर रहने लगा था. 6 नवंबर, 2020 को सुबह के करीब 6 बज रहे थे. अहसान अपने बीवीबच्चों के साथ गहरी नींद सोया था. तभी अचानक घर के बाहर मोहल्ले वालों के शोरशराबे की आवाजों से उस की आंखें खुल गईं. इन्हीं आवाजों में उसे अपने साले शाहनवाज की बीवी मुसकान के रोनेचिल्लाने की आवाज सुनाई दी. अहसान को मुसकान के रोने की आवाज कुछ अजीब लगी, क्योंकि शाहनवाज व मुसकान उस के बगल वाले कमरे में ही रहते थे तथा 18 दिन पहले ही उन का निकाह हुआ था.

वह जल्दी में कमरे से बाहर निकला तो उस ने मोहल्ले वालों के ‘लाश… लाश’ चिल्लाने की मिलीजुली आवाज सुनी. अहसान तुरंत मौके पर पहुंचा. उस ने देखा कि उस के घर के पास बिजलीघर के बराबर वाले खाली प्लौट में एक लाश पड़ी थी. लाश पौलिथीन से ढकी हुई थी. वहां आसपास खडे़ दरजनों लोग लाश के बारे में तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे. तभी भीड़ से निकल कर मुसकान अहसान के पास आई और बोली कि कुछ अज्ञात हत्यारों ने शाहनवाज को मार डाला है.

‘‘शाहनवाज तो रात को घर में ही था?’’ अहसान ने कहा.

‘‘नहीं जीजाजी, वह रात को खाना खा कर 10 बजे चले गए थे.’’ मुसकान बोली.

‘‘वह बाहर किसलिए गया था?’’ अहसान ने पूछा.

‘‘कह कर गए थे कि किसी से मिल कर थोड़ी देर में वापस आ जाएंगे, मगर पूरी रात वापस नहीं आए और मैं सुबह तक जाग कर उन का इंतजार करती रही.’’ मुसकान ने बताया.

‘‘तुम ने यह बात रात को ही मुझे क्यों नहीं बताई, मैं उसे कहीं ढूंढता.’’ अहसान बोला

‘‘मैं ने यह बात इसलिए नहीं बताई थी कि आप दिन भर के थके हुए थे और सो रहे थे. मुझे उम्मीद थी कि थोड़ी देर में वापस लौट आएंगे.’’ मुसकान बोली.

इसी दौरान भीड़ में से किसी ने शाहनवाज की लाश मिलने की सूचना झबरेड़ा के थानाप्रभारी रविंद्र कुमार को दे दी. हत्या की सूचना पा कर थानाप्रभारी रविंद्र कुमार अपने साथ एसआई चिंतामणि सकलानी, महेंद्र पुंडीर व हैडकांस्टेबल राजेंद्र को ले कर घटनास्थल की ओर निकल पड़े. घटनास्थल थाने से मात्र 4 किलोमीटर दूर था, अत: वे 15 मिनट में मौके पर पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शाहनवाज के बारे में पूछताछ की. उन्होंने मृतक के बहनोई अहसान से भी पूछताछ की.

अहसान ने बताया कि शाहनवाज सहारनपुर के थाना कोतवाली देहात के अंतर्गत मोहल्ला शेखपुरा का रहने वाला था. वह एक ईंट भट्ठे पर नौकरी करता था. पिछली रात 10 बजे खाना खाने के बाद घर से बीवी को यह कह कर निकला था कि वह थोड़ी देर में वापस लौट आएगा. लेकिन रात भर नहीं आया और सुबह यहां उस की लाश मिली. अभी रविंद्र कुमार इस हत्या का बाबत अहसान से पूछताछ कर ही रहे थे कि सूचना पा कर सीओ (मंगलौर) अभय प्रताप सिंह व एसपी (देहात) एस.के. सिंह भी मौके पर आ गए.

दोनों अधिकारियों ने भी शाहनवाज की लाश का निरीक्षण किया. सीओ अभय प्रताप सिंह को मृतक शाहनवाज के गले पर कुछ ऐसे निशान दिखाई दिए, जिस से लग रहा था कि हत्यारों ने शायद शाहनवाज का कुछ देर तक गला दबाया था. इन अधिकारियों ने अहसान से पूछा कि शाहनवाज से किसी की दुश्मनी या लेनदेन संबंधी कोई विवाद तो नहीं था? अहसान ने साफ मना करते हुए बताया कि साहब ऐसा कुछ भी नहीं था. शाहनवाज काफी मिलनसार व मेहनत करने वाला युवक था. बस उस में एक कमी थी कि वह कभीकभार शराब जरूर पी लेता था.

मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए जे.एन. सिन्हा स्मारक संयुक्त चिकित्सालय रुड़की भेज दी. इस के बाद अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद एसपी (देहात) एस.के. सिंह ने शाम को शाहनवाज हत्याकांड का परदाफाश करने के लिए थाना झबरेडा में एक मीटिंग बुलाई, जिस में सीओ (मंगलौर) अभय प्रताप सिंह व थानाप्रभारी रविंद्र कुमार शामिल हुए. इस बैठक में शाहनवाज के हत्यारों के बारे में मंथन किया गया. सीओ अभय प्रताप सिंह ने थाना झबरेडा के 2 सिपाहियों नूर हसन व नरेश को सादे कपड़ों में शाहनवाज के घर जा कर उस के व उस की बीवी मुसकान के बारे में सुरागरसी करने के निर्देश दिए.

थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने भी शाहनवाज व मुसकान के मोबाइल फोन नंबरों की पिछले एक महीने की काल डिटेल्स निकलवा ली थी. अगले दिन 7 नवंबर, 2020 की सुबह को पुलिस को मुसकान के बारे में काफी जानकारियां प्राप्त हो गईं. पुलिस को पता चला कि मुसकान के पिता शहीद का कई साल पहले इंतकाल हो गया था. मुसकान उन की 9 बेटियों में 8वें नंबर की थी. अहसान की बीवी सायरा शहीद की दूर की रिश्तेदार थी, इसलिए सायरा ने अपने भाई शाहनवाज के लिए शहीद से मुसकान का हाथ मांग लिया था.

गत 18 अक्तूबर, 2020 को कांधला में एक सादे समारोह में शाहनवाज व मुसकान का निकाह हो गया था. निकाह के बाद मुसकान का पारिवारिक जीवन ज्यादा सुखद नहीं रहा. इस का कारण यह था कि शाहनवाज शराबी किस्म का युवक था. शाहनवाज शराब पीने के बाद अकसर मुसकान से मारपीट पर उतारू हो जाता था. इस के अलावा पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि मुसकान अकसर खाड़ी देश में नौकरी करने वाले एक युवक से बात करती थी. ये जानकारियां मिलने के बाद पुलिस को मुसकान पर शक हो गया. सीओ अभय प्रताप सिंह व थाना प्रभारी रविंद्र कुमार को लगा कि शाहनवाज की हत्या का राज मुसकान ही खोल सकती है. उसे शाहनवाज के हत्यारों के बारे में जरूर कोई न कोई जानकारी रही होगी.

मुसकान ने पुलिस को अभी तक यही बताया था कि शाहनवाज घटना वाले दिन रात को 10 बजे खाना खाने के बाद घर से निकल गया था. जाते वक्त वह थोड़ी देर में लौटने की बात कह कर गया था. लेकिन यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. सीओ अभय प्रताप सिंह ने मुसकान के बारे में मिली जानकारी से एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. को अवगत कराया. एसएसपी ने एसपी (देहात) एस.के. सिंह व सीओ अभय प्रताप सिंह को निर्देश दिए कि मुसकान को थाने बुला कर उस से गहन पूछताछ करें.

इस के बाद थानाप्रभारी रविंद्र सिंह ने महिला कांस्टेबल पूजा को मुसकान के घर भेज कर पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. एसपी (देहात) एस.के. सिंह व सीओ अभय प्रताप की मौजूदगी में मुसकान से शाहनवाज की हत्या की बाबत पूछताछ शुरू की गई. पूछताछ के दौरान मुसकान आधे घंटे तक पुलिस को बरगलाती रही. जब एसपी एस.के. सिंह ने मुसकान से सख्त लहजे में कहा कि जब रात से तुम्हारा शौहर लापता था, तो तुम ने पास में ही रहने वाले उस के बहनोई और बहन सायरा को क्यों नहीं बताया? हो सकता है वे लोग रात को ही शाहनवाज को ढूंढ लाते और उस की जान बच जाती.

एस.के. सिंह के इस सवाल पर मुसकान खामोश हो गई. इस के बाद सीओ अभय प्रताप सिंह ने सख्त लहजे में मुसकान से कहा कि तेरी चुप्पी बता रही है कि शाहनवाज की हत्या का सच कुछ और है जिसे तू अच्छी तरह से जानती है, मगर पुलिस से छिपा रही है. या तो तू शाहनवाज की हत्या का सच सीधी तरह बता दे, नहीं तो हमें दूसरे तरीके भी आते हैं. अभय प्रताप सिंह के इस कथन का मुसकान पर गहरा असर हुआ और वह रोने लगी. मुसकान ने पुलिस के सामने अपने शौहर शाहनवाज की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि जब उस का निकाह हुआ था तो वह बड़ी खुश थी और उस ने अपने भविष्य के सतरंगी सपने संजोए थे.

लेकिन जब वह ससुराल झबरेडा आई, तो उस के सपने बिखर गए. यहां आ कर उस ने पाया कि उस का शौहर शाहनवाज एक नंबर का शराबी है. इस के अलावा वह उस के साथ अकसर मारपीट भी करता था. घटना वाले दिन यानी 5 नवंबर, 2020 को शाहनवाज नशे में धुत हो कर घर आया था. उस के नशे में होने के कारण वह क्रोध से भर गई. शाहनवाज ने घर में आते ही उस के साथ पहले मारपीट की. इस के बाद वह सो गया. मुसकान ने बताया कि उस वक्त रात के साढ़े 10 बजे थे. उस के ननदोई का परिवार बराबर वाले कमरे में गहरी नींद में सो रहा था. वह अपने शौहर शाहनवाज से पहले से ही परेशान थी.

उस वक्त वह गुस्से से भर गई और गुस्से में आ कर उस ने नशे में बेसुध सो रहे शाहनवाज का गला घोंट दिया. कुछ देर में जब उस की मौत हो गई तो उस ने उस की लाश घसीट कर घर से थोड़ी दूर एक खाली प्लौट में डाल दी. लाश को उस ने एक ठेली पर रखी प्लास्टिक की पौलीथिन से ढक दिया था, जिस से कोई उसे देख न सके. इस के बाद घर आ कर वह सो गई थी. थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने मुसकान के बयान दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद एसपी (देहात) एस.के. सिंह ने कोतवाली रुड़की में एक प्रैसवार्ता कर के मीडिया के सामने शाहनवाज हत्याकांड का परदाफाश किया.

निकाह के महज 18 दिनों में ही शौहर की हत्या करने वाली बीवी का यह समाचार कई दिनों तक अखबारों व टीवी चैनलों की सुर्खियां बना रहा. 2 दिनों बाद पुलिस को शाहनवाज की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शाहनवाज की मौत का कारण उस का गला घोंटा जाना बताया गया. पुलिस ने मुसकान को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

family Crime : बेवफा पत्नी ने बिजली के तार से घोंटा पति का गला

family Crime : दंपति के बीच आपसी विवाद होना एक आम बात होती है. लेकिन समझदार लोग पहल कर के खुद ही विवादों को निपटा लेते हैं. अवतार सिंह और अंजना यादव भी अगर अपना अहंकार छोड़ कर घरेलू विवाद निपटाने की कोशिश करते तो शायद…

यह झांसी डिवीजन के तहत आता है. महाराजा सोमेश सिंह ने अपनी पत्नी ललिता देवी की यादगार में इस का नाम ललितपुर रखा था. साल 1974 में यह जिले के रूप में अस्तित्व में आया. जिले की सीमाएं झांसी व दतिया से जुड़ी हैं. झांसी जहां ऐतिहासिक क्रांति के लिए मशहूर है तो दतिया दूधदही व खोया व्यापार के लिए. जबकि ललितपुर उधार व्यापार के लिए चर्चित है. इन 3 जिलों को मिला कर एक कहावत बहुत मशहूर है ‘झांसी गले की फांसी, दतिया गले का हार. ललितपुर न छोडि़ए, जब तक मिले उधार.’

ललितपुर जिला ऐतिहासिक तथा धर्मस्थलों के लिए भी मशहूर है. यहां कई प्रसिद्ध मंदिर हैं. भारत के 3 बांधों में प्रमुख गोविंद सागर बांध इसी ललितपुर में स्थित है. इस बांध को लव पौइंट के नाम से भी जाना जाता है. इसी ललितपुर शहर में एक गांव है जिजयावन. यादव बाहुल्य इस गांव में शेर सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कमला के अलावा एक बेटी रामरती और बेटा अवतार सिंह था. शेर सिंह की आजीविका खेती थी. उसी की आय से उस ने बेटी का ब्याह कर उसे ससुराल भेजा था. शेर सिंह यादव खुद तो जीवन भर खेत जोतता रहा, लेकिन वह अपने बेटे अवतार सिंह को पढ़ालिखा कर अच्छी नौकरी दिलवाना चाहता था. लेकिन उस की यह तमन्ना अधूरी ही रह गई.

क्योंकि अवतार सिंह का मन पढ़ाई में नहीं लगा. हाईस्कूल में फेल होने के बाद उस ने पढ़ाई बंद कर दी और खेती के काम में पिता का हाथ बंटाने लगा. अवतार सिंह का मन खेतीकिसानी में लग गया तो शेर सिंह ने उस का विवाह भसौरा गांव निवासी राजकुमार यादव की बेटी अंजना उर्फ सुखदेवी के साथ कर दिया. अंजना थी तो सांवली, लेकिन उस का बदन भरा हुआ और नाकनक्श सुंदर थे. अवतार सिंह उस की अदाओं पर फिदा था, इसी कारण वह धीरधीरे जोरू का गुलाम बन गया. दोनों की शादी को 5 साल बीत गए. इस बीच अंजना 2 बेटियों की मां बन गई.

अंजना की सास कमला की दिली तमन्ना थी कि उस का एक पोता हो. लेकिन जब अंजना ने एक के बाद एक 2 बेटियों को जन्म दिया तो कमला गम में डूब गई. इसी गम से वह बीमार रहने लगी और फिर एक दिन उस की मृत्यु हो गई. पत्नी छोड़ कर चली गई तो शेर सिंह को भी संसार से मोह नहीं रह गया. उस ने साधु वेश धारण कर लिया और तीर्थस्थानों के भ्रमण करने लगा. वह महीने दो महीने में घर आता, हफ्तादस दिन रहता, उस के बाद फिर भ्रमण पर निकल जाता. ससुर के घर छोड़ने से जहां अंजना खुश थी, वहीं अवतार सिंह को इस बात का गहरा सदमा लगा था. अवतार सिंह का मानना था कि मां की मौत की जिम्मेदार उस की पत्नी अंजना ही है.

पिता भी उसी के कारण घर छोड़ कर गए हैं. कभीकभी वह अंजना को इस बात का ताना भी देता था. इसे ले कर दोनों में झगड़ा होता, फिर अंजना रूठ कर मायके चली जाती. अवतार सिंह के मनाने पर ही वह घर वापस आती थी. पतिपत्नी के बीच तनाव बढ़ा, तो उन के अंतरंग संबंधों पर भी असर पड़ने लगा. जब मन में दूरियां पैदा हो जाएं तो तन अपने आप दूर हो जाते हैं. अब महीनों तक दोनों देह मिलन से भी दूर रहते. अंजना चाहती थी कि प्रणय की पहल अवतार सिंह करे, जबकि अवतार सिंह चाहता था कि अंजना खुद उस के पास आए. इसी जिद पर दोनों अड़े रहते. तनाव पैदा होने से, घर में एक बुराई और घुस आई. अवतार सिंह को शराब पीने की आदत पड़ गई. वह शराब पी कर आने लगा. इस से मनमुटाव और बढ़ गया.

अवतार सिंह की जानपहचान कल्याण उर्फ काले कुशवाहा से थी. कल्याण पड़ोस के गांव मिर्चवारा का रहने वाला था और काश्तकार था. अवतार और कल्याण के खेत मिले हुए थे सो दोनों की खेतों पर अकसर मुलाकात हो जाती थी. कल्याण की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उस के पास बुलेरो कार भी थी, जिसे मोहन कुशवाहा चलाता था. बोलेरो कार बुकिंग पर चलती थी, जिस से कल्याण को अतिरिक्त आय होती थी. मोहन कुशवाहा ड्राइवर ही नहीं बल्कि उस का दाहिना हाथ था. कल्याण उर्फ काले कुशवाहा शराब व शबाब का शौकीन था. अवतार सिंह को भी शराब पीने की लत थी, सो उस ने कल्याण से दोस्ती कर ली. अब दोनों की महफिल साथसाथ जमने लगी. चूंकि अवतार सिंह को पैसा खर्च नहीं करना पड़ता था सो वह उस के बुलावे पर तुरंत उस के पास पहुंच जाता था.

एक रोज कल्याण शराब की बोतल ले कर अवतार सिंह के घर आ पहुंचा. उस रोज पहली बार कल्याण की नजर अवतार की पत्नी अंजना पर पड़ी. पहली ही नजर में अंजना उस के दिल में रचबस गई. अंजना भी हृष्टपुष्ट कल्याण को देख कर प्रभावित हुई. दरअसल अंजना अपने पति अवतार सिंह से संतुष्ट नहीं थी. उस का जिस्मानी रिश्ता खत्म सा हो गया था. अत: उस ने मन ही मन कल्याण को अपने प्यार के जाल में फंसाने का निश्चय कर लिया. कल्याण कुशवाहा का अंजना के घर आनाजाना शुरू हुआ, तो दोनों के बीच नजदीकियां भी बढ़ने लगीं. 2 बेटियों की मां बन जाने के बाद भी अंजना का यौवन अभी ढला नहीं था. अंजना की आंखों में जब उसे मूक निमंत्रण दिखने लगा, तो कामना की प्यास भी बढ़ गई.

अंजना की नजदीकियां पाने के लिए कल्याण ने अवतार सिंह को ज्यादा भाव देना शुरू कर दिया. वह उसे मुफ्त में शराब तो पिलाता ही था, अब उस की आर्थिक मदद भी करने लगा. कल्याण का घर आना बढ़ा तो अंजना समझ गई कि कल्याण पर उस के हुस्न का जादू चल गया है. वह अपने हावभाव से उस की प्यास और भड़काने लगी. बेताबी दोनों ओर बढ़ती गई. अब उन्हें मौके का इंतजार था. एक रोज कल्याण ने अंजना को पाने का मन बनाया और दोपहर को अवतार सिंह के घर पहुंच गया. अंजना उस समय घर में अकेली थी. बच्चे स्कूल गए थे और अवतार सिंह खेतों पर. मौका अच्छा था. कल्याण को देख अंजना के होंठों पर शरारती मुसकान बिखरी और उस ने पूछा, ‘‘तुम तो शाम को अंगूर की बेटी को होंठों पर लगाने यहां आते थे, आज दिन में रास्ता कैसे भूल गए?’’

‘‘अंजना, अंगूर की बेटी से होंठों की प्यास कहां बुझती है, उल्टा और भड़क जाती है. सोचा कि आज शराब से भी ज्यादा नशीली, उस से ज्यादा मादक अपनी अंजना का नशा कर लूं.’’ कहते हुए कल्याण ने उस के कंधे पर हाथ रख दिए.

‘‘तुम ने न मुझे हाथ लगाया, न होंठ लगाए. फिर कैसे कह सकते हो कि मैं शराब से ज्यादा मादक और नशीली हूं.’’ अंजना ने अपनी अंगुलियों से कल्याण की छाती सहलानी शुरू कर दी. यह मिलन का साफ आमंत्रण था.

कल्याण का हौसला बढ़ा. उस ने अंजना को अपनी बांहों में भर लिया. इस के बाद दोनों ने हसरतें पूरी कीं. उस रोज के बाद कल्याण तथा अंजना के बीच अकसर यह खेल खेला जाने लगा. दोनों को न मर्यादा की परवाह थी, न रिश्तेनातों की. अंजना अब खूब बन संवर कर रहने लगी. अकसर दोपहर को कल्याण का अवतार सिंह के घर आना, लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय बनना ही था. धीरेधीरे पासपड़ोस वाले समझ गए कि दोनों के बीच कौन सी खिचड़ी पक रही है. चर्चा फैली तो बात अवतार सिंह के कानों तक पहुंची. उस ने पत्नी से जवाबतलब किया तो अंजना बोली, ‘‘कल्याण तो तुम्हारे साथ पीनेखाने के लिए आता है. इसी बात की जलन लोगों को होती है. तुम्हें अगर उस के आने से परेशानी है, तो तुम ही उसे मना कर देना. मैं बेकार में क्यों बुरी बनूं.’’

पत्नी की बातों से अवतार सिंह को लगा कि गांव वाले बिना वजह बातें कर रहे हैं. अंजना गलत नहीं है. वह शांत हो कर चारपाई पर जा लेटा. अवतार सिंह ने अंजना की बात पर यकीन तो कर लिया, लेकिन मन का शक दूर नहीं हुआ. इधर अंजना ने सारी बात कल्याण को बताई. इस के बाद दोनों मिलन में बेहद सतर्कता बरतने लगे. अब जब अंजना फोन पर उसे सूचना देती, तभी कल्याण घर आता. उस रोज अवतार सिंह ललितपुर जाने की बात कह कर घर से निकला, लेकिन किसी वजह से 2 घंटे बाद ही घर वापस आ गया. वह घर के अंदर कमरे के पास पहुंचा तभी उसे कमरे के अंदर से खुसरफुसर की आवाज सुनाई दी.

आवाज सुन कर वह समझ गया कि कमरे में अंजना के साथ कोई मर्द भी है. उस की आंखों में खून उतर आया. उस ने पूरी ताकत से दरवाजे पर लात मारी. भड़ाक से दरवाजा खुला, सामने बिस्तर पर कल्याण और अंजना आपत्तिजनक हालत में थे. अवतार सिंह पूरी ताकत से दहाड़ा, ‘‘हरामजादे तेरी यह हिम्मत कि तू मेरे ही घर में घुस कर मेरी इज्जत लूटे. मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा.’’

गुस्से से आग बबूला अवतार सिंह आंगन के कोने में रखा डंडा लेने लपका. तब तक कल्याण और अंजना संभल चुके थे. कल्याण तो भाग गया, लेकिन अंजना कहां जाती. अवतार सिंह ने उस की जम कर पिटाई की, और गालियां बकता रहा. फिर वह सीधा देशी शराब के ठेके पर चला गया. वहां से वह धुत हो कर लौटा, फिर पत्नी की खबर लेनी शुरू कर दी. उस रोज पूरा गांव जान गया कि अंजना का कल्याण से गलत रिश्ता है. अंजना तो कल्याण की दीवानी बन चुकी थी. अत: पिटाई के बावजूद भी उस ने कल्याण का साथ नहीं छोड़ा. अब वह घर के बजाए खेतखलिहान व बागबगीचे में प्रेमी से मिलने लगी.

इस की जानकारी जब अवतार सिंह को हुई तो उस ने फिर अंजना को पीटा और चेतावनी दी कि आज के बाद जिस दिन वह उसे रंगे हाथ पकड़ लेगा, उस दिन बहुत बुरा होगा. पति की इस चेतावनी से अंजना बुरी तरह डर गई थी. 11 अगस्त, 2020 को अचानक अवतार सिंह लापता हो गया. कई दिन बीत जाने के बाद जब गांव वालों को अवतार सिंह नहीं दिखा तो लोगों ने अंजना से उस के बारे में पूछा. उस ने लोगों को बताया कि उस के पति मथुरा वृंदावन गए हैं. हफ्तादस दिन में वापस आ जाएंगे. अंजना का जवाब पा कर लोग संतुष्ट हो गए. लगभग एक हफ्ते बाद अंजना का ससुर शेर सिंह तीर्थ स्थानों का भ्रमण कर घर लौटा तो अंजना ने उसे भी बता दिया कि अवतार सिंह मथुरा गया है.

इधर 15 अगस्त, 2020 को वानपुर थानाप्रभारी राजकुमार यादव को सूचना मिली कि खिरिया छतारा गांव के पास नहर की पटरी के किनारे झाडि़यों में एक आदमी की लाश पड़ी है. जिस से दुर्गंध आ रही है. सूचना से राजकुमार यादव ने अपने अधिकारियों को अवगत कराया फिर चौकी इंचार्ज कृष्ण कुमार, एसआई दया शंकर, सिपाही रजनीश चौहान और देवेंद्र कुमार को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उस समय वहां गांव वालों की भीड़ जुटी थी. थानाप्रभारी ने झाडि़यों से शव बाहर निकलवाया, जो एक चादर में लिपटा था. चादर से शव निकाला तो वह 34-35 साल के युवक का था.

शव की हालत देख कर अनुमान लगाया जा सकता था कि उस की हत्या 4-5 दिन पहले की गई होगी. बरसात के कारण शव फूल भी गया था. देखने से प्रतीत हो रहा था कि युवक की हत्या गला घोंट कर की गई थी. थानाप्रभारी राजकुमार यादव अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी एस.एस. बेग, एएसपी बृजेश कुमार सिंह तथा डीएसपी केशव नाथ घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पता चला कि युवक की हत्या कहीं और की गई थी और शव को नहर किनारे झाडि़यों में फेंका गया था.

पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में सैकड़ों लोग शव को देख चुके थे. पर कोई भी उसे पहचान नहीं पा रहा था. इस से अधिकारियों ने अंदाजा लगाया कि मृतक आसपास के गांव का नहीं बल्कि कहीं दूरदराज का है. तब अधिकारियों ने शव का फोटो खिंचवा कर पोस्टमार्टम के लिए ललितपुर के जिला अस्पताल भिजवा दिया. एसपी एम.एम. बेग ने इस ब्लाइंड मर्डर का परदाफाश करने की जिम्मेदारी थानाप्रभारी राजकुमार यादव को सौंपी. सहयोग के लिए एसओजी व सर्विलांश टीम को भी लगाया. पूरी टीम की कमान एएसपी बृजेश कुमार सिंह को सौंपी गई. थानाप्रभारी राजकुमार यादव ने इस केस को खोलने के लिए पूरी ताकत झोंक दी. मुखबिरों को गांवगांव भेजा.

पासपड़ोस के कई थानों से गुमशुदा लोगों की जानकारी जुटाई पर उस अज्ञात शव की किसी ने शिनाख्त नहीं की. तब यादव को शक हुआ कि मृतक किसी दूरदराज गांव का हो सकता है. इस पर थानाप्रभारी ने दूरदराज के गांवों में अज्ञात युवक की लाश बरामद करने की मुरादी कराई. जिजयावन गांव का शेर सिंह यादव उस समय खेत पर जा रहा था. अपने गांव में डुग्गी पिटती देख वह रुक गया. ऐलान सुना तो वह अंदर से कांप सा गया. क्योंकि उस का बेटा अवतार सिंह भी 11 अगस्त से घर से लापता था. खेत पर जाना भूल कर शेर सिंह ने पड़ोसी रामसिंह को साथ लिया और थाना वानपुर पहुंच कर थानाप्रभारी राजकुमार यादव से मिला.

थानाप्रभारी ने जब शेर सिंह को लाश के फोटो, कपड़े, चादर आदि दिखाई तो उन दोनों ने उस की शिनाख्त अवतार सिंह के तौर पर कर दी. पड़ोसी रामसिंह ने थानाप्रभारी राजकुमार यादव को यह भी जानकारी दी कि अवतार सिंह के घर मिर्चवारा गांव के कल्याण उर्फ काले का आनाजाना था. काले तथा अवतार सिंह की बीवी अंजना के बीच नाजायज रिश्ता था. अवतार सिंह इस का विरोध करता था. संभव है, इसी विरोध के कारण उस की हत्या की गई हो. अवतार सिंह की हत्या का सुराग मिला तो पुलिस टीम अंजना से पूछताछ करने उस के घर पहुंच गई. अंजना ने पूछताछ में बताया कि उस के पति मथुरा गए हैं. वहां से कहीं और चले गए होंगे.

2-4 दिन बाद आ जाएंगे. लेकिन जब पुलिस ने बताया कि उस के पति की हत्या हो गई है और उस के ससुर शेर सिंह ने फोटो चादर से उस की शिनाख्त भी कर ली है. तब अंजना ने जवाब दिया कि उस के ससुर वृद्ध हैं. बाबा बन गए हैं. उन की अक्ल कमजोर हो गई, इसलिए उन्होंने हत्या की बात मान ली और उन की गलत शिनाख्त कर दी. पर सच्चाई यह है कि पति तीर्थ करने गए हैं. आज नहीं तो कल आ ही जाएंगे. बिना सबूत के पुलिस टीम ने अंजना को गिरफ्तार करना उचित नहीं समझा. पुलिस ने पूछताछ के बहाने उस का मोबाइल फोन जरूर ले लिया तथा उस की निगरानी के लिए पुलिस का पहरा बिठा दिया.

पुलिस ने अंजना का मोबाइल फोन खंगाला तो पता चला कि अंजना एक नंबर पर ज्यादा बातें करती है. पुलिस ने उस नंबर का पता किया तो जानकारी मिली कि वह नंबर अंजना के प्रेमी कल्याण उर्फ काले का है और वह हर रोज उस से बात करती है. फिर क्या था, पुलिस टीम ने 3 सितंबर, 2020 की सुबह अंजना को उस के घर से हिरासत में ले लिया और थाना वानपुर ले आई. फिर अंजना की ही मदद से पुलिस टीम ने कल्याण उर्फ काले को भी भसौरा तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. उस समय वह अपनी बोलेरो यूपी94एफ 4284 पर सवार था और ड्राइवर मोहन कुशवाहा का इंतजार कर रहा था. उसे मय बोलेरो थाना वानपुर लाया गया.

थाने पर जब उस ने अंजना को देखा तो समझ गया कि अवतार सिंह की हत्या का राज खुल गया है. जब पुलिस ने कल्याण से अवतार सिंह की हत्या के बारे में पूछा तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया और अपनी बोलेरो से तार का वह टुकड़ा भी बरामद करा दिया जिस से उस ने अवतार सिंह का गला घोंटा था. कल्याण के टूटते ही अंजना भी टूट गई और पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. कल्याण उर्फ काले कुशवाहा ने पुलिस को बताया कि अवतार सिंह की पत्नी अंजना से उस के नाजायज संबंध हो गए थे. इस रिश्ते की जानकारी अवतार को हुई तो वह विरोध करने लगा और अंजना को पीटने लगा.

अंजना की पिटाई उस से बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसलिए उस ने अंजना और अपने ड्राइवर मोहन कुशवाहा के साथ मिल कर अवतार की हत्या की योजना बनाई और सही समय का इंतजार करने लगा. 11 अगस्त, 2020 की रात 8 बजे अंजना ने फोन कर के कल्याण को जानकारी दी कि अवतार सिंह फसल की रखवाली के लिए खेत पर गया है. वह रात को ट्यूबवैल वाली कोठरी में सोएगा. यह पता चलते ही वह अपनी बोलेरो यूपी94एफ 4284 से ड्राइवर मोहन कुशवाहा के साथ जिजयावन गांव के बाहर पहुंचा. वहां योजना के तहत अंजना उस का पहले से ही इंतजार कर रही थी. उस के बाद वह तीनों खेत पर पहुंचे. जहां अवतार सिंह कोठरी में जाग रहा था.

वहां पहुंचते ही तीनों ने अवतार सिंह को दबोच लिया, फिर बिजली के तार से अवतार सिंह का गला घोंट दिया. हत्या के बाद तीनों ने शव चादर में लपेटा और बोलेरो गाड़ी में रख कर वहां से 20 किलोमीटर दूर खिरिया छतारा गांव के बाहर नहर की पटरी वाली झाडि़यों के बीच फेंक दिया. शव ठिकाने लगाने के बाद सभी लोग अपनेअपने घर चले गए. चूंकि कल्याण उर्फ काले ने ड्राइवर मोहन कुशवाहा को भी हत्या में शामिल होना बताया था, अत: पुलिस ने तुरंत काररवाई करते हुए 4 सितंबर की दोपहर 12 बजे मोहन कुशवाहा को भी ललितपुर बस स्टैंड के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाना वानपुर की हवालात में जब उस ने कल्याण को देखा तो सब कुछ समझ गया. पूछताछ में उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने हत्यारोपित कल्याण उर्फ काले, मोहन कुशवाहा तथा अंजना यादव के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें 5 सितंबर 2020 को ललितपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से तीनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Crime News : फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर करोड़ों कमाने वाले नाइजीरियन गैंग का पर्दाफाश

Crime News : नाइजीरिया के कई गिरोह दिल्ली में रह कर लोगों से पहले फेसबुक के माध्यम से दोस्ती करते हैं और फिर मोटा गिफ्ट भेजने के नाम पर ठगी करते हैं. ऐसे गिरोह में लड़कियां भी होती हैं. यह सारा लालच का खेल है. जो लालच में फंसा, समझो उस के 5-10 लाख रुपए गए. आश्चर्य की बात यह कि इस के शिकार पढ़ेलिखे लोग होते हैं. डाक्टर साधना भी…

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पीजीआई अस्पताल के पास फ्लैट में रहने वाली डाक्टर साधना कुमार अस्पताल में काम करने के साथसाथ प्राइवेट अस्पताल में भी मरीजों को देखने का काम करती थीं. उन के मन में था कि अगर यूएसए यानी अमेरिका में उन की जौब लग जाए तो वहां जाने से जिंदगी संवर सकती है. तमाम महिलाओं की तरह डाक्टर साधना फेसबुक और इंस्टाग्राम पर बहुत एक्टिव रहती थीं. कई बार रात को जब समय मिलता तो फेसबुक और मैसेंजर पर फ्रैंडलिस्ट में शामिल लोगों से बातचीत भी करती थीं. अगस्त माह की बात होगी. एक दिन उन्होंने देखा कि उन के फेसबुक पर अमेरिका में रहने वाले डेविड एलेक्स नाम के अमेरिकी युवक की फ्रैंड रिक्वेस्ट आई हुई थी.

डाक्टर साधना के मन में अमेरिका में रहने और किसी अमेरिकी से करीबी संबंध बनाने की इच्छा बलवती हुई. डेविड एलेक्स की प्रोफाइल देखने से लग रहा था कि वह युवा है. एलेक्स अमेरिका की कई मैडिकल संस्थाओं से भी जुड़ा था. ऐसे में डाक्टर साधना को लगा कि उस के साथ परिचय और फेसबुक पर जानपहचान करने में कोई बुराई नहीं है. साधना ने डेविड एलेक्स की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार करते ही 5 मिनट में उधर से फेसबुक मैसेंजर पर ‘हेलो’ का मैसेज आया. साधना ने भी ‘हेलो’ कहा. इस के बाद दोनों के बीच फेसबुक मैसेंजर पर चैटिंग का सिलसिला शुरू हो गया. धीरेधीरे उन की आपस में तमाम तरह की बातें होने लगीं.

हो गई दोस्ती साधना व्यस्तता के चलते आमतौर पर रात में ही अपना फेसबुक खोल पाती थी. वह जब भी अपना फेसबुक खोलती तो मैसेजर पर कोई ना कोई मैसेज पड़ा होता था. साधना और डेविड एलेक्स के बीच बातचीत शुरू हुए एक महीने से अधिक का समय बीत गया था. अक्तूबर महीने में दशहरे और नवरात्रि का त्यौहार आया. इस दौरान साधना ने दोनों फेस्टिवल की तैयारियों के अपने फोटो फेसबुक पर पोस्ट किए. डेविड एलेक्स ने बधाई दी और इस के बाद मैसेंजर पर दोनों त्यौहारों के बारें में बातें भी कीं. अंत में डेविड एलेक्स ने साधना को लिखा, ‘दोस्त, मैं तुम्हें कुछ उपहार भेजना चाहता हूं.’

साधना ने लिखा, ‘इस की जरूरत नहीं है. बिना उपहार के भी दोस्ती चलती है. जब हम मिलेंगे तब उपहार लेंगे. आप को जब इंडिया आना हो तो लखनऊ भी आना, आप से मिल कर अच्छा लगेगा.’ डेविड एलेक्स ने साधना की बात नहीं मानी और उन्हें उपहार देने के लिए मना लिया और उन का पोस्टल एड्रैस और फोन नंबर भी ले लिया. अब दोनों के बीच फेसबुक के साथसाथ वाट्सऐप पर भी बातचीत होने लगी. बातचीत में डेविड एलेक्स बहुत सज्जन सीधा लग रहा था. साधना उस पर अब पूरी तरह से भरोसा करने लगी थीं. डेविड एलेक्स ने कहा था कि वह यूएस में उन्हें जौब दिलाने में मदद करेगा.

15 अक्तूबर की बात है. साधना को फोन आया, जिस में कहा गया कि दिल्ली एयरपोर्ट पर आप का एक कोरियर आया है, जो यूएसए के डेविड एलेक्स ने भेजा है. उन्होंने अमेरिका का टैक्स भुगतान कर दिया है पर भारत में लगने वाले टैक्स का भुगतान आप को करना है. इस एवज में आप 82 हजार रुपए बैंक खाते में जमा करा दें. साधना ने मैसेज कर के एलेक्स को पूछा तो उस ने कहा, ‘दोस्त, इंडियन मनी आप दे दो. मै आप के खाते में पैसा भेज दूंगा.’ डेविड एलेक्स ने जिस शालीनता के साथ जवाब दिया, साधना मना नहीं कर पाईं. उन्होंने 82 हजार रुपए बैंक खाते में जमा करा दिए.

डाक्टर साधना फंस गईं जाल में एक दिन बाद ही दिल्ली एयरपोर्ट कस्टम विभाग के नाम से दूसरा फोन आया. साधना ने ‘ट्रूकालर’ पर चैक किया तो दिल्ली एयरपोर्ट दिखा रहा था. यह फोन करने वाली महिला ने बताया, ‘मैम, पार्सल में 56 हजार पाउंड कैश है. यह सीधा आपराधिक मामला है. मनी लौंड्रिंग का केस बनता है. आप ने इस के लिए 82 हजार रुपए बैंक में जमा भी कराए हैं. इस से साफ है कि मामला गंभीर है. अब इस की जांच ईडी को दी जाएगी.’

यह सुन कर साधना घबरा गईं. इस के बाद बातचीत में दोबारा काल करने के लिए कहा गया. साधना ने फिर डेविड एलेक्स को मैसेज भेजा और उसे सारी बात बताई. उस ने कहा कोई बात नहीं तुम्हारे यहां के लोग रिश्वत चाहते हैं. तुम कुछ पैसे रिश्वत में दे कर पार्सल छुड़ा लो, वरना वे लोग दिक्कत कर सकते हैं. पैसा तो तुम को मिल ही रहा है.’

साधना को बात तो अच्छी नहीं लगी. पर अनमने मन से उन्होंने बताए गए खाते में 4 लाख 30 हजार रुपए और जमा करा दिए. इस तरह साधना के पास से करीब 5 लाख रुपए चले गए. अब यह चिंता की बात बन गई थी. साधना ने यह बात अपनी एक मित्र से बताई. उस ने कहा, ‘साधना तुम किसी फ्रौड में उलझ गई हो.’ इस के बाद भी साधना को डेविड एलेक्स पर यकीन बना हुआ था. 17 अक्तूबर को दिल्ली का आयकर विभाग दिखा रहे फोन नंबर से काल आई. उस में साधना को आयकर का डर दिखाते हुए 5 लाख और जमा कराने को कहा गया. साधना ने डेविड एलेक्स को जब गुस्से में मैसेज किया तो उस ने उन के किसी मैसेज का जबाव नहीं दिया.

परेशान साधना ने फेसबुक पर जा कर मैसेज किया तो डेविड एलेक्स ने साधना को फेसबुक और वाट्सऐप से ब्लौक कर दिया. पूरी जानकारी साधना ने अपनी दोस्त को बताई तो उस ने कहा, ‘साधना, यह पूरी तरह फ्रौड था. उस ने तुम से ठगी कर ली है.’ ठगी गई साधना साधना को कुछ बोलते नहीं बन रहा था. दोस्तों ने सभी नंबर पर काल करनी शुरू की तो सभी नंबर बंद हो चुके थे. बैंक से पता करने पर बैंक खाते का कोई पता नहीं चला. 19 अक्तूबर को साधना ने पीजीआई थाने में डेविड एलेक्स के खिलाफ धारा 420 और आईटीएक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया. मामला दिल्ली और साइबर क्राइम से जुड़ा था तो लखनऊ के पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने जांच के लिए यह मामला स्पैशल टास्क फोर्स को सौंप दिया.

प्रभारी पुलिस अधीक्षक एसटीएफ विशाल विक्रम सिंह ने अपनी टीम के लोगों को मामले की छानबीन का काम सौंप दिया. एसटीएफ ने जब जांच शुरू की तो पता चला कि डेल्टा एगबोर नाइजीरिया के रहने वाले थियाम बालदे और अशातु नाम की युवती ने डेविड एलेक्स के नाम पर फेसबुक प्रोफाइल बना कर इस पूरे खेल को अंजाम दिया था. थियाम ने यूएसए के युवक डेविड एलेक्स की प्रोफाइल फोटो लगा कर फरजी फेसबुक आईडी बनाई थी. इस के बाद थियाम ने पीजीआई क्षेत्र में रहने वाली महिला डाक्टर साधना प्रसाद को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी थी. इस के बाद थियाम और साधना के बीच चैटिंग शुरू हो गई. थियाम ने बातों में उलझा कर डाक्टर साधना को महंगा गिफ्ट भेजने का झांसा दिया.

यह कोई नई बात नहीं थी,ठगी के ऐसे मामले होते रहते हैं और खूब होते हैं. खास बात यह कि ठगी के ऐसे मामलों में पढ़ेलिखे लोग ही फंसते हैं. बात यह कि इस तरह की ठगी ज्यादातर इंडिया में बैठे नाइजीरियन करते हैं. डाक्टर साधना भी ऐसे ही लोगों के चक्कर में फंस गई थीं. आखिर पकड़े गए ठग ठगी का एहसास होने पर डाक्टर साधना ने पुलिस से शिकायत की. जांच के बाद एसटीएफ ने ठगी का खुलासा किया. थियाम बालदे व अशातु दिल्ली के निलोठी निहालपुर में रहते थे. यहीं रह कर ये दोनों इस तरह की ठगी करते थे.

जांच में पता चला कि थियाम वर्ष 2018 में भारत आया था. फरवरी, 2020 में उस का वीजा समाप्त हो गया था. इस के बाद उस के पास पैसे भी कम होने लगे तो उस ने अपनी प्रेमिका अशातु के साथ मिल कर यूएसए के लोगों के फोटो लगा कर 6 लोगों की फरजी फेसबुक प्रोफाइल बनाई थी. इस गिरोह में कई भारतीय भी शामिल थे, जिन के खातों में रुपए मंगाए जाते थे. थियाम महिलाओं को प्रेमजाल में फंसाता था और उस की प्रेमिका अशातु युवकों को झांसे में लेती थी. एसटीएफ की टीम ने सर्विलांस की मदद से दोनों आरोपियों थियाम बालदे व अशातु को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने दोनों के पास से 2 लैपटौप, 2 पासपोर्ट, 8 मोबाइल फोन और 17 सौ रुपए नकद आदि सामान बरामद किया. एसटीएफ की जांच में पता चला कि इन लोगों ने केवल डाक्टर साधना को ही अपने जाल में नहीं फंसाया, बल्कि लखनऊ के साथसाथ दिल्ली, चेन्नई और मुंबई जैसे बड़े शहरों के तमाम लोगों को ठगा था. इन्होंने करीब 10 करोड़ रुपए से अधिक की ठगी की थी. इन लोगों ने कुछ स्थानीय खाताधारकों को अपने जाल में फंसा रखा था, जिन के खाते में पैसा जमा कराया जाता था. इस के बदले में उन्हें अच्छाभला पैसा मिलता था. थियाम बालदे ने बताया कि ‘पहले हम लोग दिल्ली में इस तरह की छोटीछोटी ठगी करते थे. धीरेधीरे दिल्ली के बाहर के शहरों के लोगों को निशाने पर लिया. मेरी प्रेमिका अशातु इस में साथ देती थी.

अशातु युवकों को अपने जाल में फंसाती थी. हम लोग अमेरिका और सऊदी अरब के लोगों के नाम पर फेसबुक बनाते थे. क्योंकि वहां के लोग पैसे वाले भी होते है और शौकीनमिजाज भी. लोगों से ठगी करने के लिए उपहार देने के अलावा किसी को शादी कर विदेश ले जाने और किसी को विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर फंसाया जाता था. उपहार भेजने वाले लोगों को फरजी नंबरों से कस्टम, इनकम टैक्स और एयरपोर्ट के अधिकारी बन कर ठगी की जाती थी. ऐसे लोग फंसने के बाद जेल जाने के डर से पैसा दे देते थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. डाक्टर साधना कुमार का नाम बदल दिया गया है.

 

UP Crime News : 5 लाख की सुपारी देकर कराई पति की हत्या

UP Crime News : मौडर्न और महत्त्वाकांक्षी विनीता ने प्रवक्ता पति के होते 2-2 प्रेमी बना लिए थे. जब वह चेन मार्केटिंग कंपनी ‘वेस्टीज’ से जुड़ने के बाद तो वह अवधेश को 2 कौड़ी का समझने लगी थी. आखिर उस ने अपने मन की करने के लिए…

42 वर्षीय अवधेश सिंह जादौन फिरोजाबाद जिले के भीतरी गांव के निवासी थे. वह बरेली जिले के सहोड़ा में स्थित कुंवर ढाकनलाल इंटर कालेज में हिंदी लेक्चरर के पद पर तैनात थे. नौकरी के चलते ढाई वर्ष पहले उन्होंने बरेली के कर्मचारीनगर की निर्मल रेजीडेंसी में अपना निजी मकान ले लिया था, जिस में वह अपनी पत्नी विनीता और 6 वर्षीय बेटे अंश के साथ रहते थे. 12 अक्तूबर, 2020 को अवधेश से फोन पर गांव में रह रही उन की मां अन्नपूर्णा देवी ने बात की थी. अवधेश उस समय काफी परेशान थे. मां ने उन्हें दिलासा दी कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा.

इस के बाद उन्होंने अवधेश से बात करनी चाही, लेकिन बात न हो सकी. उन का मोबाइल बराबर स्विच्ड औफ आ रहा था. अन्नपूर्णा को चिंता हुई तो वह 16 अक्तूबर को बरेली पहुंच गईं. जब वह बेटे के मकान पर पहुंची, तो वहां मेनगेट पर ताला लगा मिला. पड़ोसियों से पूछताछ की तो पता चला कि 12 अक्तूबर, 2020 को कुछ लोग कार से अवधेश के मकान में आए थे. तब से उन्हें नहीं देखा. अन्नपूर्णा का दिल किसी अनहोनी की आशंका से धड़कने लगा. वह वहां से स्थानीय थाना इज्जतनगर पहुंच गईं और थाने के इंसपेक्टर के.के. वर्मा को पूरी बात बताई. यह भी बताया कि अवधेश को अपने ससुरालीजनों से खतरा था. यह बात अवधेश ने 12 अक्तूबर को फोन पर बात करते समय मां को बताई थी.

उस की पत्नी विनीता भी अपने बच्चे के साथ गायब थी. इस पर अन्नपूर्णा से लिखित तहरीर ले कर इंसपेक्टर वर्मा ने थाने में अवधेश सिंह जादौन की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. फिरोजाबाद के फरिहा में 4/5 दिसंबर, 2019 की रात एक ज्वैलर्स की दुकान में हुई चोरी के मामले में पुलिस के एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह ने नारखी थाना क्षेत्र के धौकल गांव निवासी हिस्ट्रीशीटर शेर सिंह उर्फ चीकू को पकड़ा. 25 अक्तूबर, 2020 की शाम शेर सिंह को उठा कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बरेली के हिंदी प्रवक्ता अवधेश सिंह की हत्या करना स्वीकार किया. अवधेश की पत्नी विनीता ने अवधेश की हत्या के लिए उसे 5 लाख की सुपारी दी थी.

इस में विनीता के पिता थाना नारखी के खेरिया खुर्द गांव निवासी रिटायर्ड फौजी अनिल जादौन, भाई प्रदीप जादौन, बहन ज्योति, विनीता का आगरा निवासी प्रेमी अंकित और शेर सिंह के 2 साथी भोला और एटा निवासी पप्पू जाटव शामिल थे. हत्या में कुल 8 लोग इस शामिल थे. शेर सिंह ने बताया कि बरेली में हत्या करने के बाद लाश को सभी लोग फिरोजाबाद ले कर आए और यहां नारखी में रामदास नाम के व्यक्ति के खेत में गड्ढा खोद कर दफना दिया था. अवधेश मिला पर जीवित नहीं इस खुलासे के बाद फिरोजाबाद पुलिस ने बरेली की इज्जतनगर पुलिस को सूचना दी.

अवधेश की मां अन्नपूर्णा को बुला कर 26 अक्तूबर, 2020 को फिरोजाबाद पुलिस ने तहसीलदार की उपस्थिति में उस खेत में बताई गई जगह पर खुदाई करवाई तो वहां से अवधेश की लाश मिल गई. चेहरा बुरी तरह जला हुआ था. शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. अवधेश की लाश मिलने के बाद उसी दिन इज्जतनगर थाने में विनीता, ज्योति, अनिल जादौन, प्रदीप जादौन, अंकित, शेर सिंह उर्फ चीकू, भोला सिंह और पप्पू जाटव के विरुद्ध भादंवि की धारा 147/302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस के बाद हत्याभियुक्तों की तलाश में ताबड़तोड़ दबिश दी गई, लेकिन सभी अपने घरों से लापता थे.

उन सब के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए गए. सभी के मोबाइल बंद थे. बीच में किसी से बात करने के लिए कुछ देर के लिए खुलते तो फिर बंद हो जाते. उन की लोकेशन जिस शहर की पता चलती, वहां पुलिस टीम भेज दी जाती. लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही हत्यारे वहां से निकल जाते थे. 31 अक्तूबर, 2020 को एक हत्यारोपी पप्पू जाटव उर्फ अखंड प्रताप को इंसपेक्टर के.के. वर्मा ने गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी बयान में वहीं कहा, जो शेर सिंह ने कहा था. इस बीच 5 नवंबर को इज्जतनगर पुलिस ने सभी आरोपियों के गैरजमानती वारंट हासिल कर लिए.

अगले ही दिन इस से डर कर अवधेश की पत्नी विनीता ने अपने वकील के माध्यम से थाने में आत्मसमर्पण कर दिया. पूछताछ में वह अपने मृतक पति अवधेश को ही गलत साबित करने पर तुल गई. जबकि उस की सारी हकीकत सब के सामने आ गई. जब उस से क्रौस क्वेशचनिंग की गई. कई सवालों पर वह चुप्पी साध गई. अनिल जादौन परिवार के साथ फिरोजाबाद के गांव खेरिया खुर्द में रहते थे. वह सेना से रिटायर थे. परिवार में पत्नी रेखा और 3 बेटियां विनीता, नीतू और ज्योति व एक बेटा प्रदीप था. अनिल के पास पर्याप्त कृषियोग्य भूमि थी. तीनों बेटियां काफी खूबसूरत थीं और सभी ने स्नातक तक पढ़ाई पूरी कर ली थी.

2010 में नीतू का अफेयर गांव के ही पूर्व प्रधान के बेटे के साथ हो गया. जिस पर काफी बवाल हुआ. इस पर अनिल ने जल्द से जल्द अपनी बेटियों का विवाह करने का फैसला कर लिया. नारखी थाना क्षेत्र के ही गांव भीतरी में बाबू सिंह का परिवार रहता था. परिवार में पत्नी अन्नपूर्णा और 2 बेटे रमेश और अवधेश थे. रमेश का विवाह हो चुका था और वह परिवार के साथ जयपुर में रह कर नौकरी कर रहा था. अविवाहित अवधेश हिंदी प्रवक्ता के पद पर नौकरी कर रहा था. नौकरी के चक्कर में उस की उम्र अधिक हो गई थी. अवधेश विनीता से 12 साल बड़ा था. फिर भी अनिल विनीता की शादी उस से करने को तैयार हो गए.

अनिल ने विनीता से बात की तो वह मना करने लगी कि 12 साल बड़े लड़के से शादी नहीं करेगी. अनिल ने जब समझाया कि वह सरकारी नौकरी में है, उस के पास पैसों की कमी नहीं है तो वह शादी के लिए तैयार हो गई. 2011 में अवधेश का विनीता से विवाह हो गया. उसी दिन ज्योति का भी विवाह हुआ. विनीता मायके से ससुराल आ गई. विनीता पढ़ीलिखी आजाद खयालों वाली युवती थी. जबकि अवधेश सीधेसादे सरल स्वभाव का था. दोनों एक बंधन में तो बंध गए थे लेकिन उन के विचार, उन की सोच बिलकुल एकदूसरे से अलग थी.

पति सीधा था पत्नी मौडर्न विनीता को ठाठबाट से रहना पसंद था. जबकि अवधेश को साधारण तरीके से जीवन जीना अच्छा लगता था. दोनों की सोच और खयाल एक नहीं थे तो उन में आए दिन मनमुटाव और विवाद होने लगा. विनीता की अपनी सास अन्नपूर्णा से भी नहीं बनती थी. अवधेश अपनी मां की बात मानता था. विनीता इस बात को ले कर भी चिढ़ती थी. दोनों के बीच विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहे थे. 6 साल पहले विनीता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने अंश रखा. ढाई वर्ष पहले बरेली के इज्जतनगर थाना क्षेत्र के कर्मचारी नगर की निर्मल रेजीडेंसी में अवधेश ने अपना निजी मकान ले लिया. पहले वह मकान विनीता के नाम लेना चाहता था. लेकिन उस की बातें और हरकतों से उस का मन बदल गया.

वह विनीता व बेटे के साथ अपने नए मकान में आ कर रहने लगा. बढ़ते आपसी विवादों में विनीता अवधेश से नफरत करने लगी थी. उस ने शादी से पहले सोचा था कि अवधेश उस के कहे में चलेगा, उस की अंगुलियों के इशारे पर नाचेगा, लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ. पैसों के लिए उसे अवधेश का मुंह देखना पड़ता था. अवधेश अपनी सैलरी से विनीता को उस के खर्च के लिए 3 हजार रुपए महीने देता था. उस में विनीता का गुजारा नहीं होता था. अपने खर्चे को देखते हुए विनीता ने घर में ही ‘रिलैक्स जोन’ नाम से एक ब्यूटीपार्लर खोल लिया. विनीता अपनी छोटी बहन ज्योति की ससुराल जाती थी. वहीं पर उस की मुलाकात सिपाही अंकित यादव से हो गई. अंकित यादव बिजनौर का रहने वाला था.

उस समय उस की पोस्टिंग मैनपुरी में थी. अंकित अविवाहित था और काफी स्मार्ट था. विनीता से उस की बात हुई तो वह उस के रूपजाल में उलझ कर रह गया. फिर दोनों मोबाइल पर बातें करने लगे. एक दिन अंकित विनीता से मिलने बरेली आया. दोनों एक होटल में मिले. उस दिन से दोनों के बीच प्रेम संबंध बन गए. विनीता से मिलने वह अकसर बरेली आने लगा. विनीता का भाई प्रदीप एक मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनी में नौकरी करता था. उस ने विनीता से कहा कि वह मल्टीलेवल मार्केटिंग से जुड़ी कंपनी ‘वेस्टीज’ से जुड़ जाए. इस में कम समय में ज्यादा पैसा कमाने का मौका मिलता है.

चेन मार्केटिंग कंपनियां कंपनी से जुड़ने वाले लोगों को बड़ेबडे़ सपने दिखाती हैं. विनीता ने भी कंपनी से जुड़ने का फैसला कर लिया. वह कई मीटिंग में गई और मीटिंग में जाने के बाद उस पर चेन मार्केटिंग के जरिए जल्द से जल्द पैसा कमा कर रईस बनने का नशा सवार हो गया. इस के लिए उस ने इसी साल की शुरुआत में कंपनी जौइन कर ली. इस के लिए विनीता ने किसी बड़ी महिला अधिकारी की तरह अपनी वेशभूषा बनाई. शानदार सूटबूट में चश्मा लगा कर जब वह इंग्लिश में बड़े विश्वास के साथ अपनी बात किसी भी व्यक्ति के सामने रखती तो वह उस का मुरीद हो जाता और उस के कहने पर कंपनी जौइन कर लेता.

भाई प्रदीप की लाल टीयूवी कार विनीता अपने पास रखने लगी. वह इसी कार से लोगों से मिलने जाती थी. लग्जरी कार से सूटेडबूटेड महिला को उतरता देख कर लोगों पर इस का काफी गहरा प्रभाव पड़ता. घर की चारदीवारी से विनीता बाहर निकली तो उस ने अपने लिए पैसों का इंतजाम करना शुरू कर दिया. अब लोग विनीता से मिलने घर पर भी आने लगे. विनीता की चल पड़ी दुकान अवधेश तो दिन में कालेज में होता था और शाम को ही लौटता था. उसे पड़ोसियों से पता चलता तो अवधेश और विनीता में विवाद होता. विनीता पहले जब अवधेश से नहीं डरीदबी तो अब तो वह खुद का काम कर रही थी. ऐसे में अवधेश को ही शांत होना पड़ता था.

दोनों  के बीच की दूरियां गहरी खाई में तब्दील होती जा रही थीं. दूसरी ओर विनीता की बहन ज्योति का अपनी ससुरालवालों से मनमुटाव हो गया था. वह काफी समय से मायके में रह रही थी. विनीता ने उसे अपने पास रहने के लिए बुला लिया. इस से भी अवधेश खफा था. लौकडाउन के दौरान फेसबुक पर विनीता की दोस्ती अमित सिसोदिया उर्फ अंकित से हुई. अमित आगरा का रहने वाला था और वेस्टीज कंपनी से ही जुड़ा था, जिस से विनीता जुड़ी थी. अमित विवाहित था और एक बेटे का पिता भी था. दोनों की फेसबुक पर बातें हुईं तो पता चला कि अमित विनीता के भाई प्रदीप का दोस्त है.

इस के बाद दोनों खुल कर बातें करने लगे और मिलने भी लगे. दोनों अलगअलग शहरों में होने वाले कंपनी के सेमिनार में भी साथ जाने लगे. अमित और विनीता की सोच और विचार काफी मिलते थे. एक साथ रहने के दौरान विनीता को यह बात महसूस हो गई थी. दोनों ही जिंदगी में खूब पैसा कमाना चाहते थे. दोनों साथ बैठते तो कल्पनाओं की ऊंची उड़ान भरते. एक दिन अमित ने विनीता का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘विनीता, हम दोनों बिलकुल एक जैसे है. एक जैसा सोचते हैं, एक जैसा काम करते है और एक ही उद्देश्य है, एकदूसरे का साथ भी हमें भाता है. क्यों न हम हमेशा के लिए एक हो जाएं.’’

विनीता पहले हलके से मुसकराई, फिर गंभीर मुद्रा में बोली, ‘‘हां अमित, मैं भी ऐसा ही सोच रही थी. यह भी सोच रही थी कि तुम मेरी जिंदगी में पहले क्यों नहीं आए, आ जाते तो मुझे कष्टों से न गुजरना पड़ता.’’ कुछ पलों के लिए रुकी, फिर बोली, ‘‘खैर अब भी हम एक हो सकते हैं ठान लें तो.’’

विनीता की स्वीकृति मिलते ही अमित खुश हो गया, ‘‘तुम ने कह दिया तो अब हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता.’’ कह कर अमित ने विनीता को बांहों में भर लिया. विनीता भी उस से लिपट गई. अमित को पा कर जैसे विनीता ने राहत की सांस ली. उसे ऐसे ही युवक की तलाश थी जो उस के जैसा हो, उसे समझता हो और उस के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए. दूसरी ओर वह अंकित यादव से भी संबंध बनाए हुए थी. विनीता दिनरात एक कर के अपने मार्केटिंग के बिजनैस में सफल होना चाहती थी. इसलिए वह इस में लगी रही. कुछ महीनों में ही उस ने अपने अंडर में एक हजार लोगों की टीम खड़ी कर दी. कंपनी ने उसे कंपनी का ‘सिलवर डायरेक्टर’ घोषित कर दिया.

विनीता खुशी से फूली नहीं समाई. कंपनी ने उसे एक स्कूटी भी इनाम में दी. विनीता अपनी कंपनी के कार्यक्रमों और उस के रिकौर्डेड संदेशों को अपने फेसबुक अकाउंट पर डालती रहती थी. कंपनी से जुड़ने के लिए लोगों से अपील भी करती थी कि उस के पास बिजनैस करने का एक अनोखा आइडिया है, जिस में महीने में 5 से 50 हजार तक कमा सकते हैं. जो कमाना चाहते हैं, उस से मिलें. विनीता की जिंदगी में सब कुछ अब अच्छा ही अच्छा हो रहा था. बस खटकता था तो अवधेश. उस के साथ होने वाली कलह. अब विनीता अवधेश से छुटकारा पाने की सोचने लगी थी. उस की जिंदगी में अमित आ चुका था, वह उस के साथ जिंदगी बिताने का सपना देखने लगी थी. अमित भी उस से कई बार कह चुका था कि वह कहे तो अवधेश को ठिकाने लगा दिया जाए. वह ही मना कर देती थी.

अवधेश के मरने से उसे हमेशा के लिए छुटकारा तो मिलता ही साथ ही अवधेश का मकान और सरकारी नौकरी भी मिल जाती. यही सोच कर उस ने आगे की योजना बनानी शुरू कर दी. इस में उस ने अपने पिता व भाई से साफ कह दिया कि वह अवधेश के साथ नहीं रहना चाहती. उसे मारने से उसे मकान और उस की सरकारी नौकरी भी मिलेगी. विनीता के पिता अनिल ने एक बार कहा भी कि वह अपना बसा हुआ घर न उजाड़े, लेकिन विनीता नहीं मानी. विनीता की जिद और लालच के लिए वे सभी उस का साथ देने को तैयार हो गए. विनीता का एक मुंहबोला चाचा था शेर सिंह उर्फ चीकू. वह उस के पिता अनिल का खास दोस्त था. शेर सिंह नारखी थाने का हिस्ट्रीशीटर था, उस पर वर्तमान में 16 मुकदमे दर्ज थे.

विनीता ने शेर सिंह से कहा कि उसे उस के पति अवधेश की हत्या करनी है. शेर सिंह ने उस से 5 लाख रुपए का इंतजाम करने को कहा तो विनीता ने हामी भर दी. अवधेश ने कार खरीदने के लिए घर में रुपए ला कर रखे थे. सोचा था कि नवरात्र में बुकिंग करा देगा और धनतेरस पर गाड़ी खरीद लेगा. उन पैसों पर विनीता की नजर पड़ गई. उन रुपयों में से 70 हजार रुपए निकाल कर विनीता ने शेर सिंह को दे दिए, बाकी पैसा बाद में देने को कहा. इस के बाद शेर सिंह ने अपने गांव के ही भोला सिंह और एटा के पप्पू जाटव को हत्या में साथ देने के लिए तैयार कर लिया. शेर सिंह ने विनीता, विनीता के पिता अनिल, भाई प्रदीप और प्रेमी अमित सिसोदिया के साथ मिल कर अवधेश की हत्या की योजना बनाई. विनीता ने बाद में ज्योति को इस बारे में बता कर उसे भी अपने साथ शामिल कर लिया.

12 अक्तूबर, 2020 की रात अवधेश रोज की तरह टहलने के लिए निकले. उस के जाने के बाद विनीता ने हत्या के उद्देश्य से पहुंचे शेर सिंह, भोला, पप्पू जाटव, अनिल, प्रदीप और अमित को घर के अंदर बुला लिया. सभी घर में छिप कर बैठ गए. कर दी हत्या कुछ देर बाद जब अवधेश लौटे तो घर में घुसते ही सब ने मिल कर उसे दबोच लिया. विनीता अपने बेटे अंश को ले कर ऊपरी मंजिल पर चली गई. नीचे सभी ने अवधेश को पकड़ कर उस का गला घोंट दिया. अवधेश के मरने के बाद विनीता नीचे उतर कर आई. अवधेश की लाश को बड़ी नफरत से देख कर गाली देते हुए उस में कस के पैर की ठोकर मार दी.

देर रात अमित ने लाश को सभी के सहयोग से अपनी आल्टो कार में डाल लिया. इस के बाद प्रदीप की टीयूवी कार जो विनीता के पास रहती थी, सब उस में सवार हो गए. प्रदीप कार चला रहा था. उस के पीछे थोड़ी दूरी पर अंकित चल रहा था. लगभग साढ़े 3 घंटे का सफर तय कर के अवधेश की लाश को ले कर वे फिरोजाबाद में नारखी पहुंचे. लेकिन तब तक उजाला हो चुका था. इसलिए लाश को कहीं दफना नहीं सकते थे. इन लोगों ने पूरा दिन ऐसे ही निकाला. इस बीच लाश को जलाने के लिए बाजार से तेजाब खरीद कर लाया गया.

अंधेरा होने पर नारखी में रामदास के खेत में गड्ढा खोद कर अवधेश की लाश को उस में डाल दिया गया. फिर लाश पर तेजाब डाल दिया गया, जिस से लाश का चेहरा व कई हिस्से जल गए. लाश को दफनाने के बाद सभी वहां से लौट आए. विनीता बराबर वीडियो काल के जरिए उन लोगों के संपर्क में थी. 14 अक्तूबर, 2020 को वह भी बेटे अंश को ले कर घर से भाग गई. शेर सिंह पकड़ा गया तो घटना का खुलासा हुआ. उस ने विनीता के प्रेमी अंकित का नाम लिया. घटना की खबर अखबारों की सुर्खियां बनीं तो विनीता के प्रेमी सिपाही अंकित यादव ने देखा. अंकित ने अपना नाम समझा. उसे लगा कि पुलिस को विनीता की काल डिटेल्स से उस के बारे में पता लग गया है. अब वह भी इस हत्याकांड की जांच में फंस जाएगा.

दूसरी ओर अंकित नाम आने पर विनीता के शातिर दिमाग ने खेल खेला. अपने प्रेमी अमित सिसोदिया को बचाने के लिए वह अंकित को ही फंसाने में लग गई. 26 अक्तूबर, 2020 को वह अंकित यादव से मिलने संभल गई. 2 महीने से अंकित संभल की हयातनगर चौकी पर तैनात था. वहां वह उस से मिली. कुछ सिपाहियों ने उसे उस के साथ देखा भी. विनीता उस से मिल कर चली गई. अंकित भयंकर तनाव में आ गया. 27 अक्तूबर, 2020 को उस ने अपने साथी सिपाही की राइफल ले कर उस से खुद को गोली मार ली. अंकित के आत्महत्या कर लेने की बात विनीता को पता चल गई थी. इसलिए जब उस ने आत्मसमर्पण किया तो वह सारा दोष अंकित यादव पर डालती रही.

वह अपने प्रेमी अमित सिसोदिया उर्फ अंकित को बचाना चाहती थी. समर्पण से पहले विनीता ने अपना मोबाइल भी तोड़ दिया था, ताकि पुलिस उस मोबाइल से कोई सुराग हासिल न कर सके. गैरजमानती वारंट जारी होने के बाद से सभी आरोपियों में इस बात का खौफ है कि पुलिस उन की संपत्तियों को तोड़फोड़ सकती है, कुर्क कर सकती है. इसलिए बारीबारी से सभी आत्मसमर्पण करने की तैयारी में लग गए. फिलहाल कथा लिखे जाने तक पुलिस शेष आरोपियों की तलाश में जुटी हुई थी. शेर सिंह की रिमांड 20 नवंबर को मिलनी थी.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों व मीडिया में छपी रिपोर्टों के आधा

Love Crime : प्रेमिका ने शादी का दबाव डाला तो प्रेमी ने दुपट्टे से घोंट दिया गला

Love Crime : आलोक की प्रेमिका राधा भले ही दूसरी जाति की थी, लेकिन उस ने उसे भरोसा दिया था कि वह जीवन भर उस का साथ निभाएगा. लेकिन अपने घर वालों के दबाव में उस ने राधा से दूरी बना ली. इस के बाद आलोक ने प्रेमिका के साथ ऐसा छल किया कि…

कानपुर (देहात) जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर रसूलाबाद- बिल्हौर मार्ग पर एक कस्बा है ककवन. इसी कस्बे से सटा एक गांव है नदीहा धामू. यहीं पर रामदयाल गौतम अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कुसुमा के अलावा 2 बेटे सर्वेश, उमेश तथा 2 बेटियां राधा व सुधा थीं. रामदयाल गांव का संपन्न किसान था. उस का बेटा सर्वेश गांव में डेयरी चलाता था. संपन्न होने के कारण जातिबिरादरी में रामदयाल की हनक थी. रामदयाल की छोटी बेटी सुधा 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी, जबकि बड़ी बेटी ने 12वीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी.

रामदयाल उसे पढ़ालिखा कर मास्टर बनाना चाहता था, लेकिन राधा के पढ़ाई छोड़ देने से उस का यह सपना पूरा नहीं हो सका. पढ़ाई छोड़ कर वह मां के साथ घरेलू काम में मदद करने लगी थी. गांव के हिसाब से राधा कुछ ज्यादा ही सुंदर थी. जवानी में कदम रखा तो उस की सुंदरता में और निखार आ गया. उस का गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें और कंधों तक लहराते बाल, हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे. अपनी इस खूबसूरती पर राधा को भी नाज था. यही वजह थी कि जब कोई लड़का उसे चाहत भरी नजरों से देखता तो वह इस तरह घूरती मानो खा जाएगी. उस की इन खा जाने वाली नजरों से ही लड़के डर जाते थे.

लेकिन आलोक राजपूत राधा की इन नजरों से जरा भी नहीं डरा था. वह राधा के घर से कुछ ही दूरी पर रहता था. आलोक के पिता राजकुमार राजपूत प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे. लेकिन रिटायर हो चुके थे. उन की एक बेटी तथा एक बेटा आलोक था. बेटी का वह विवाह कर चुके थे. पिता के रिटायर हो जाने के बाद घरपरिवार की जिम्मेदारी आलोक पर आ गई थी. बीए करने के बाद वह नौकरी की तलाश में था. लेकिन जब नौकरी नहीं मिली तो उस ने अपनी खेती संभाल ली थी. इस के अलावा उस ने घर में किराने की दुकान भी खोल ली थी. इस से उसे अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.

राधा के भाई सर्वेश की आलोक से खूब पटती थी. आसपड़ोस में रहने की वजह से दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. आलोक जब भी सर्वेश के घर आता था, राधा उसे घर के कार्यों में लगी नजर आती थी. वैसे तो वह उसे बचपन से देखता आया था, लेकिन पहले वाली राधा में और अब की राधा में काफी फर्क आ गया था. पहले जहां वह बच्ची लगती थी, अब वही जवान होने पर ऐसी हो गई थी कि उस पर से नजर हटाने का मन ही नहीं होता था.

एक दिन आलोक राधा के घर पहुंचा तो सामने वही पड़ गई. उस ने पूछा, ‘‘सर्वेश कहां है?’’

‘‘मम्मी और भैया तो कस्बे में गए हैं. कोई काम था क्या?’’ राधा बोली.

‘‘नहीं, कोेई खास काम नहीं था. बस ऐसे ही आ गया था. सर्वेश आए तो बता देना कि मैं आया था.’’

‘‘बैठो, भैया आते ही होंगे.’’ राधा ने कहा तो आलोक वहीं पड़ी चारपाई पर बैठ गया.

आलोक बैठा तो राधा रसोई की ओर बढ़ी. उसे रसोई की ओर जाते देख आलोक ने कहा, ‘‘राधा, चाय बनाने की जरूरत नहीं है. मैं चाय पी कर आया हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं ने अपने लिए चाय भी चढ़ा रखी है. उसी में थोड़ा दूध और डाल देती हूं.’’ कह कर राधा रसोेई में चली गई.

थोड़ी देर बाद वह 2 गिलासों में चाय ले आई. एक गिलास उस ने आलोक को थमा दिया, तो दूसरा खुद ले कर बैठ गई. चाय पीते हुए आलोक ने कहा, ‘‘राधा, बुरा न मानो तो मैं एक बात कहूं.’’

‘‘कहो.’’ उत्सुक नजरों से देखते हुए राधा बोली.

‘‘अगर तुम जैसी खूबसूरत और ढंग से घर का काम करने वाली पत्नी मुझे मिल जाए तो मेरी किस्मत ही खुल जाए.’’ आलोक ने कहा.

आलोक की इस बात का जवाब देने के बजाय राधा उठी और रसोई में चली गई. उसे इस तरह जाते देख आलोक को लगा, वह उस से नाराज हो गई है, इसलिए उस ने कहा, ‘‘राधा लगता है मेरी बात तुम्हें बुरी लग गई. मेरी बात का कोई गलत अर्थ मत लगाना. मैं ने तो यूं ही कह दिया था.’’

इतना कह आलोक वहां से चला गया. लेकिन इस के बाद वह जब भी सर्वेश के घर जाता, मौका मिलने पर राधा से 2-4 बातें जरूर करता. उन की इस बातचीत पर घरवालों को कोई ऐतराज भी न था. क्योंकि मोहल्ले के नाते रिश्ते में दोनों भाईबहन लगते थे. गांवों में तो वैसे भी रिश्तों को काफी अहमियत दी जाती है. लेकिन आलोक और राधा रिश्तों की मर्यादा निभा नहीं पाए. मेलमुलाकात और बातचीत से आलोक के दिलोदिमाग पर राधा की खूबसूरती और बातव्यवहार का ऐसा असर हुआ कि वह उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने के सपने देखने लगा. लेकिन अपने मन की बात वह राधा से कह नहीं पाता था.

वह सोचता था कि कहीं राधा बुरा मान गई और उस ने यह बात घर वालों से बता दी तो वह मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगा. लेकिन यह उस का भ्रम था. राधा के मन में भी वही सब था, जो उस के मन में था. जब दोनों ओर ही चाहत के दीए जल रहे हों तो मौका मिलने पर उस का इजहार भी हो जाता है. ऐसा ही राधा और आलोक के साथ भी हुआ. फिर एक दिन उन्होंने अपने मन की बात जाहिर भी कर दी. दोनों के बीच प्यार का इजहार हो गया तो उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. आए दिन होने वाली मुलाकातों ने दोनों को जल्द ही करीब ला दिया. वे भूल गए कि उन का रिश्ता नाजुक है. आलोक राधा के प्यार के गाने गाने लगा. इस तरह दोनों मोहब्बत की नाव में सवार हो कर काफी आगे निकल गए.

राधा और आलोक के बीच नजदीकियां बढ़ीं तो मनों में शारीरिक सुख पाने की कामना भी पैदा होने लगी. इस के बाद मौका मिला तो दोनों सारी मर्यादाएं तोड़ कर एकदूसरे की बांहों में समा गए. इस के बाद तो उन्हें जब भी मौका मिलता, अपनी हसरतें पूरी कर लेते. इस का नतीजा यह निकला कि कुछ दिनों बाद ही दोनों गांव वालों की नजरों में आ गए. उन के प्यार के चर्चे पूरे गांव में होने लगे. उड़तेउड़ते यह खबर राधा के पिता रामदयाल के कानों में पड़ी तो सुन कर उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे एकाएक विश्वास नहीं हुआ कि आलोक उस की इज्जत पर हाथ डाल सकता है. वह तो उसे अपने बेटों की तरह मानता था.

यह सब जान कर उस ने राधा पर तो पाबंदी लगा ही दी, साथ ही आलोक से भी कह दिया कि वह उस के घर न आया करे. बात इज्जत की थी, इसलिए राधा के भाई सर्वेश को दोस्त की यह हरकत अच्छी नहीं लगी. उस ने आलोक को समझाया ही नहीं, धमकी भी दी कि अगर उस ने अब उस की बहन पर नजर डाली तो वह भूल जाएगा कि वह उस का दोस्त है. इज्जत के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है. इस के बाद उस ने राधा की पिटाई भी की और उसे समझाया कि उस की वजह से गांव में सिर उठा कर चलना दूभर हो गया है. वह ठीक से रहे अन्यथा अनर्थ हो जाएगा.

रामदयाल जानता था कि बात बढ़ाने पर उसी की बदनामी होगी, इसलिए बात बढ़ाने के बजाय वह पत्नी व बेटों से सलाह कर के राधा के लिए लड़के की तलाश करने लगा. इस बात की जानकारी राधा को हुई तो वह बेचैन हो उठी. एक शाम वह मौका निकाल कर आलोक से मिली और रोते हुए बोली, ‘‘घर वाले मेरे लिए लड़का ढूंढ रहे हैं. जबकि मैं तुम्हारे अलावा किसी और से शादी नहीं करना चाहती.’’

‘‘इस में रोने की क्या बात है? हमारा प्यार सच्चा है, इसलिए दुनिया की कोई ताकत हमें जुदा नहीं कर सकती.’’ राधा को रोते देख आलोक भावुक हो उठा. वह राधा के आंसू पोंछ उस का चेहरा हथेलियों में ले कर उसे विश्वास दिलाते हुए बोला, ‘‘तुम मुझ पर भरोसा करो, मैं तुम्हारे साथ हूं. मेरे रोमरोम में तुम्हारा प्यार रचा बसा है. तुम्हें क्या लगता है कि तुम से अलग हो कर मैं जी पाऊंगा, बिलकुल नहीं.’’

उस की आंखों में आंखें डाल कर राधा बोली, ‘‘मुझे पता है कि हमारा प्यार सच्चा है, तुम दगा नहीं दोगे. फिर भी न जाने क्यों मेरा दिल घबरा रहा है. अच्छा, अब मैं चलती हूं. कोई खोजते हुए कहीं आ न जाए.’’

‘‘ठीक है, मैं कोई योजना बना कर तुम्हें बताता हूं.’’ कह कर आलोक अपने घर की तरफ चल पड़ा तो मुसकराती हुई राधा भी अपने घर चली गई.

रामदयाल राधा के लिए लड़का ढूंढढूंढ कर थक गया, लेकिन कहीं उपयुक्त लड़का नहीं मिला. इस से राधा के घर वाले परेशान थे, वहीं राधा और आलोक खुश थे. इस बीच घर वाले थोड़ा लापरवाह हो गए तो वे फिर से चोरीछिपे मिलने लगे थे. एक दिन सर्वेश ने खेतों पर राधा और आलोक को हंसीमजाक करते देख लिया तो उस ने राधा की ही नहीं, आलोक की भी पिटाई की. इसी के साथ धमकी भी दी कि अगर फिर कभी उस ने दोनों को इस तरह देख लिया तो अंजाम अच्छा न होगा.

सर्वेश ने आलोक की शिकायत उस के घर वालों से की तो घर वालों ने उसे भरोसा दिया कि वे आलोक को समझाएंगे. इस के बाद सर्वेश घर आ गया. इधर शाम को आलोक घर पहुंचा तो पिता राजकुमार ने टोका, ‘‘सर्वेश उलाहना देने आया था. तुम्हारी शिकायत कर रहा था कि तुम उस की बहन के पीछे पड़े हो. सच्चाई क्या है?’’

‘‘पिताजी, मैं और राधा एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग फिर गया है क्या? जो उस लड़की से शादी करना चाहते हो. क्या तुम्हें मालूम नहीं कि राधा दूसरी जाति की है और हम राजपूत हैं. यदि तुम ने उस से ब्याह रचाया तो समाज में हम मुंह दिखाने लायक नहीं बचेंगे. बिरादरी के लोग हमारा हुक्कापानी बंद कर देंगे. इसलिए कान खोल कर सुन लो, उस लड़की से तुम्हारा रिश्ता हरगिज नहीं हो सकता. भूल जाओ उसे.’’ राजकुमार ने कहा. पिता की फटकार और स्पष्ट चेतावनी से आलोक परेशान हो उठा. उस का एक दोस्त छोटू उर्फ नीलू था. उस ने इस बारे में छोटू से बात की तो उस ने उस के पिता की बात को जायज ठहराया और राधा से संबंध तोड़ लेने का सुझाव दिया.

आलोक ने अपनी मां का दिल टटोला तो उस ने भी साफ कह दिया कि जिस दिन राधा की डोली उस के घर आएगी, उसी दिन उस की अर्थी उठेगी. मां की इस धमकी से आलोक कांप उठा. उस पर सवार राधा के प्यार का भूत उतरने लगा. मातापिता और दोस्त की नसीहत उसे भली लगने लगी. अत: उस ने निश्चय किया कि वह राधा से दूरी बनाएगा और प्यारमोहब्बत की बात नहीं करेगा. अब उस ने राधा से ब्याह रचाने की बात दिमाग से निकाल दी. इस के बाद जब कभी आलोक का सामना राधा से होता, तो वह उस से बेमन से मिलता. बेरुखी से बात करता. न होंठों पर मुसकराहट, न चेहरे पर दमक होती. राधा नजदीकियां बढ़ाने की पहल करती, तो वह मना कर देता.

फोन पर भी उस ने बात करना एक तरह से बंद ही कर दिया था. राधा दस बार फोन करती तो वह मुश्किल से एक बार रिसीव करता, उस पर भी ज्यादा बात न करता और फोन कट कर देता. आलोक के इस रूखे व्यवहार से राधा परेशान हो उठी. उसे शक होने लगा कि आलोक किसी दूसरी लड़की के चक्कर में तो नहीं पड़ गया. अत: वह आलोक पर शादी के लिए दबाव डालने लगी. वह जब भी मिलती या फोन पर बात करती तो शादी की ही बात करती. इधर कुछ समय से राधा आलोक को धमकाने भी लगी थी कि यदि उस ने शादी नहीं की तो वह पुलिस में उस की शिकायत कर देगी, तब उसे जेल भी हो सकती है.

24 अगस्त, 2020 की शाम 4 बजे राधा घर से गायब हो गई. वह देर शाम तक घर वापस नहीं लौटी तो रामदयाल को चिंता हुई. उस ने अपने बेटे सर्वेश व उमेश को साथ लिया और रात भर उस की खोज करता रहा. लेकिन राधा का कुछ भी पता न चला. रामदयाल को शक हुआ कि कहीं आलोक उसे भगा तो नहीं ले गया. वह आलोक के घर पहुंचा, तो आलोक घर पर ही मिला. 26 अगस्त की सुबह गांव का ही किसान विमल अपने खेत पर पानी लगाने पहुंचा तो उस ने अपने खेत की मेड़ के पास पीपल के पेड़ के नीचे राधा का शव देखा. उस ने खबर राधा के घर वालों को दी. उस के बाद तो रामदयाल के घर में रोनापीटना शुरू हो गया.

घर के सभी लोग घटनास्थल पहुंच गए. लाश मिलते ही आलोक का परिवार घर से गुपचुप तरीके से फरार हो गया. रामदयाल गौतम ने थाना ककवन पुलिस को सूचना दी तो थानाप्रभारी अमित कुमार मिश्रा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन की सूचना पर एसपी केशव कुमार चौधरी तथा एएसपी अनूप कुमार आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. उस के गले में दुपट्टा था. इस से अंदाजा लगाया गया कि राधा की हत्या दुपट्टे से गला घोंट कर की गई होगी. उस की उम्र 19 वर्ष के आसपास थी.

घटनास्थल पर मृतका का पिता रामदयाल तथा भाई सर्वेश मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने उन दोनों से पूछताछ की तो सर्वेश ने उन्हें बताया कि उस की बहन की हत्या गांव के आलोक व उस के दोस्त छोटू ने की है. पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने राधा के शव को पोेस्टमार्टम हेतु माती स्थित अस्पताल भिजवा दिया तथा थानाप्रभारी अमित मिश्रा को आदेश दिया कि वह मुकदमा दर्ज कर आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार करें. आदेश पाते ही अमित कुमार मिश्रा ने मृतका के भाई सर्वेश की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत आलोक व छोटू के खिलाफ रिपोेर्ट दर्ज कर ली और उन्हें गिरफ्तार करने में जुट गए. इस के लिए उन्होंने मुखबिरों को भी लगा दिया.

29 अगस्त, 2020 की रात 10 बजे अमित कुमार मिश्रा ने मुखबिर की सूचना पर आलोक व छोटू को ककवन मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें थाना ककवन लाया गया. थाने पर जब दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने राधा की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. पूछताछ में आलोक ने बताया कि राधा उस पर शादी का दबाव बना रही थी, जबकि वह राधा से शादी नहीं करना चाहता था. उस ने जब पुलिस में शिकायत दर्ज करने की धमकी दी, तो उस ने राधा को ही मिटाने की योजना बनाई. इस में उस ने अपने दोस्त छोटू को शामिल कर लिया. योजना के तहत उस ने 24 अगस्त की शाम 4 बजे राधा को खेतों पर बुलाया फिर उसी के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

30 सितंबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त आलोक राजपूतछोटू को कानपुर देहात की माती कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तीन बहनों ने रची साजिश : जानें क्यों मरवाया छोटी बहन के सिपाही प्रेमी को

UP News : सिपाही मंदाकिनी का अपने ही थाने में तैनात सिपाही योगेश कुमार पर दिल आ गया लेकिन योगेश ने उस से साफ कह दिया कि वह उसे केवल दोस्त मानता है. तब जिद्दी मंदाकिनी ने अपनी 2 बहनों के जरिए योगेश को शादी के जाल में फांसने की कोशिश की. इस कोशिश में असफल होने के बाद तीनों बहनों ने जो किया वह…

इटावा जिले का एक गांव है बहादुरपुर. यादव व ठाकुर बाहुल्य इस गांव में सुलतान सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सीमा सिंह के अलावा 3 बेटियां मीना, ममता और मंदाकिनी उर्फ संगीता थीं. सुलतान सिंह गांव के दबंग ठाकुर थे. उन की पहचान लंबरदार के नाम से थी. वह संपन्न किसान थे. छोटे किसानों की वह भरपूर मदद करते थे. सुलतान सिंह स्वयं भी पढ़ेलिखे थे, इसलिए उन्होंने अपनी बेटियों को भी खूब पढ़ाया था. बड़ी बेटी मीना पढ़लिख कर पुलिस विभाग में नौकरी करने लगी थी. वह मथुरा में सिपाही के पद पर तैनात थी.

मीना जब नौकरी करने लगी तब सुलतान सिंह ने उस का विवाह आगरा निवासी रमेश चंद्र के साथ कर दिया. मीना पति के साथ आगरा में रहती थी और मथुरा में नौकरी करती थी. मीना से छोटी ममता थी. वह बीए की पढ़ाई कर रही थी. वह पिता के साथ गांव में रहती थी. बहनों में सब से छोेटी मंदाकिनी उर्फ संगीता थी. वह अपनी अन्य बहनों से कुछ ज्यादा ही खूबसूरत थी. वह जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही तेजतर्रार भी थी और पढ़ने में तेज भी. इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उस ने बड़ी बहन मीना की तरह पुलिस की नौकरी करने की ठान ली. इस के लिए वह अभ्यास भी करने लगी. उस की लगन और मेहनत रंग लाई और सन 2019 में वह भी सिपाही के पद पर भरती हो गई.

इटावा में ट्रेनिंग के बाद उस की पहली तैनाती अयोध्या के राम जन्मभूमि थाने में हुई. व्यवहारकुशल व तेज होने के कारण वह जल्द ही थाने में चर्चित हो गई. अपनी कार्यप्रणाली से वह अधिकारियों की नजर में भी आ गई थी. इसी राम जन्मभूमि थाने में योगेश कुमार चौहान सिपाही के पद पर तैनात था. मंदाकिनी की तरह योगेश भी 2019 बैच का था और इस थाने में उस की भी पहली तैनाती थी. योगेश कुमार मूलरूप से मथुरा शहर के बालाजीपुरम मोहल्ले का रहने वाला था. उस के पिता मुकेश सिंह चौहान व्यापारी थे. बड़ा भाई सुनील कुमार चौहान पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाता था. परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

चूंकि योगेश व मंदाकिनी एक ही बैच व एक ही क्षेत्र के रहने वाले थे, अत: उन दोनों में जल्द ही दोस्ती हो गई. दोस्ती हुई तो बातचीत भी खुल कर होने लगी. बातचीत से आकर्षण बढ़ा तो दोनों एकदूसरे की बातों में रुचि लेने लगे. मंदाकिनी को जहां योगेश की लच्छेदार बातें पसंद थीं तो योगेश को उस की मुसकान और भावभंगिमा पसंद थी. जल्दी ही दोनों की नजदीकियों की चर्चा थाने के स्टाफ में होने लगी थी. योगेश कुमार स्मार्ट युवक था. वह जब आंखों पर काला चश्मा लगाता, तो हीरो जैसा दिखता था. मंदाकिनी मन ही मन उसे प्यार करने लगी थी. उस के मन ने योगेश को पति के रूप में स्वीकार कर लिया था. वह योगेश को पति के रूप में पाने के सपने भी संजोने लगी थी.

अपना सपना पूरा करने के लिए मंदाकिनी योगेश से नजदीकियां बढ़ाने लगी तथा उस से प्यार भरी बातें करने लगी. उसे लगता भी था कि योगेश उस से उतना ही प्यार करता है जितना वह उस से करती है. लेकिन कभी लगता कि योगेश उस से दूर भाग रहा है. मंदाकिनी योगेश के प्यार में आकंठ डूब चुकी थी, लेकिन अपने प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी. आखिर जब मंदाकिनी से नहीं रहा गया, तो उस ने एक रोज एकांत में योगेश से कहा, ‘‘योगेश, कुछ दिनों से मैं अपनी बात तुम से कहना चाहती हूं. लेकिन कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हूं.’’

‘‘ऐसी क्या बात है जिस के लिए तुम हिम्मत नहीं जुटा पा रही हो?’’ योगेश ने मंदाकिनी से पूछा.

‘‘योगेश, मैं तुम से प्यार करती हूं और मैं ने तुम्हें अपने दिल में बसा लिया है. मैं तुम से शादी रचाना चाहती हूं. तुम्हें पति के रूप में पा कर मेरा सपना साकार हो जाएगा.’’ मंदाकिनी ने खुल कर प्यार का इजहार कर दिया.

मंदाकिनी की बात सुन कर योगेश चौंका, ‘‘मंदाकिनी, आज तुम्हें क्या हो गया है, जो बहकीबहकी बातें कर रही हो. यह बात सच है कि हम दोनों दोस्त हैं और दोस्ती के नाते ही हम दोनों की बातचीत और हंसीमजाक होती है. इस में प्यारमोहब्बत की बात कहां से आ गई. तुम मुझ से भले ही प्यार करती हो लेकिन मैं तुम से प्यार नहीं करता. इसलिए मुझ से शादी रचाने की बात दिल से निकाल दो. तुम केवल मेरी दोस्त हो और दोस्त ही रहोगी. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता.’’ योगेश ने दोटूक जवाब दिया.

‘‘क्यों नहीं कर सकते शादी? आखिर मुझ में कमी क्या है. पढ़ीलिखी हूं. सरकारी सर्विस कर रही हूं. तुम्हारी बिरादरी की हूं.’’ मंदाकिनी ने तमतमाते हुए पूछा.

‘‘तुम में कोई कमी भले न हो. लेकिन फिर भी मैं तुम से शादी नहीं कर सकता. मैं शादी अपने मांबाप की मरजी से करूंगा. उन की मरजी के खिलाफ नहीं.’’ योगेश ने स्पष्ट शब्दों में जवाब दिया. योगेश ने शादी से इनकार किया तो मंदाकिनी मन ही मन दुखी हुई. लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी. गाहेबगाहे वह योगेश को प्यार से समझाती और शादी करने का दबाव डालती. लेकिन योगेश हर बार उसे मना कर देता. इस से मंदाकिनी के मन में प्यार का प्रतिशोध पनपने लगा. उस ने ठान लिया कि यदि योगेश उस से शादी नहीं करेगा तो वह किसी और से भी उस की शादी नहीं होने देगी. इस के लिए अगर उसे अनर्थ करना पड़ा तो वह भी करेगी.

कुछ दिनों बाद मंदाकिनी छुट्टी ले कर अपनी बड़ी बहन मीना के घर आगरा पहुंची. वहां उस समय मंझली बहन ममता भी आई हुई थी. मंदाकिनी ने अपनी प्रेम कहानी दोनों बहनों को बताई और यह भी बताया कि योगेश उस से शादी करने को राजी नहीं है. इस पर दोनों बहनों ने मंदाकिनी को समझाया कि वह ज्यादा परेशान न हो. वह योगेश से बात करेंगी और उसे शादी के लिए हर हाल में राजी करेंगी. मीना की तैनाती मथुरा में थी. उस ने गुपचुप तरीके से योगेश और उस के परिवार के संबंध में जानकारी जुटाई तो सब ठीक लगा. उस के बाद मीना ने योगेश चौहान से बात की और मंदाकिनी से शादी करने की बात कही.

लेकिन योगेश ने शादी करने से साफ मना कर दिया. इस के बाद तो यह सिलसिला ही शुरू हो गया. कभी ममता उस से फोेन पर बात करती तो कभी मीना. दोनों का एक ही मकसद होता, किसी तरह योगेश को बातों में उलझा कर मंदाकिनी से शादी करने को राजी करना. लेकिन योगेश उन की बातों में आने वाला कहां था, वह उन्हें हर बार मना कर देता था. एक दिन तो योगेश और मीना की मंदाकिनी से शादी को ले कर तीखी झड़प हो गई. योगेश ने गुस्से में मीना और उस की बहन ममता के चरित्र को ले कर ऐसी बात कह दी जो मीना और ममता के कलेजे में तीर की तरह चुभ गई.

उस के बाद उन्होंने योगेश से बात करनी बंद कर दी. अब तीनों बहनें प्यार के प्रतिशोध में जलने लगीं. उन्होंने योगेश को सबक सिखाने की ठान ली. 7 अक्तूबर, 2020 को दोपहर 12 बजे योगेश कुमार चौहान ने अपने बड़े भाई सुनील कुमार चौहान से मोबाइल फोन पर बात की और बताया कि उसे 7 दिन की छुट्टी मिल गई है और वह बस द्वारा घर आ रहा है. इस समय वह अयोध्या से निकल चुका है. इस के बाद उस ने फोन बंद कर लिया. शाम 7 बजे वह बस से लखनऊ पहुंचा और फिर 10 बजे औरैया. औरैया पहुंचने पर उस ने बड़े भाई सुनील से फिर बात की और बताया कि वह औरैया पहुंच गया है. इटावा से सवारी मिल गई तो रात 2 बजे तक वह घर पहुंच जाएगा. फिर फोन बंद हो गया.

योगेश चौहान सुबह 8 बजे तक मथुरा स्थित अपने घर नहीं पहुंचा तो भाई सुनील को चिंता हुई. उस ने योगेश को फोन मिलाया तो वह बंद था. इस के बाद तो ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों घर वालों की चिंता बढ़ती जा रही थी. औरैया, इटावा और आगरा के बीच जहांजहां रिश्तेदारियां थीं, सुनील ने फोन कर पता किया, लेकिन योगेश की कोई जानकारी नहीं मिली. सुनील कुमार ने अपने चचेरे भाई राहुल को साथ लिया और कार से योगेश की खोज में निकल पड़ा. उस ने आगरा-इटावा के बीच पता किया कि वहां कोई वाहन दुर्घटनाग्रस्त तो नहीं हुई. पर कोई गंभीर दुर्घटना की जानकारी नहीं मिली.

9 अक्तूबर की सुबह 10 बजे सुनील भाई की खोज करता हुआ अयोध्या के राम जन्मभूमि थाना पहुंचा और योगेश की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थाने से ही उसे पता चला कि सिपाही मंदाकिनी भी 3 दिन की छुट्टी ले कर अपने गांव गई है. संभवत: दोनों साथ ही गए हैं. मंदाकिनी इटावा के लवेदी थाने के गांव बहादुरपुर की रहने वाली थी. वहां एक बात और चौंकाने वाली पता चली कि योगेश और मंदाकिनी दोस्त थे. मंदाकिनी योगेश से प्यार करती थी और शादी करना चाहती थी. लेकिन योगेश शादी को राजी नहीं था. प्रेम संबंध की जानकारी पा कर सुनील का माथा ठनका. उस के मन में तरहतरह के विचार आने लगे. वह सोचने लगा कि कहीं साथी महिला सिपाही मंदाकिनी ने कोई खेल खेल कर योगेश के साथ विश्वासघात तो नहीं कर दिया. लवेदी थाने जा कर पता करना होगा. अगर कोई वारदात हुई होगी तो थाने में दर्ज होगी.

10 अक्तूबर को सुनील कुमार चचेरे भाई राहुल के साथ थाना लवेदी पहुंचा. उस समय थानाप्रभारी बृजेश कुमार थाने में मौजूद थे. सुनील ने उन्हें योगेश के गुम होने की जानकारी दी तो थानाप्रभारी ने उसे बताया कि 8 अक्तूबर को बहादुरपुर गांव के बाहर सूखे बंबा में उन्हें एक जवान युवक की नग्नावस्था में लाश मिली थी. उस के सिर पर प्रहार कर तथा गला कस कर हत्या की गई थी. उस का चेहरा बिगाड़ने की भी कोशिश की गई थी. शव की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. शव का फोटो मेरे पास है. आप उसे देख कर बताएं कहीं वह लाश आप के भाई की तो नहीं है.

सुनील और राहुल ने फोटो गौर से देखा तो दोनों रो पड़े और बताया कि शव का फोटो उस के भाई योगेश कुमार का है जो अयोध्या के राम जन्मभूमि थाने में सिपाही था. उस के साथ महिला सिपाही मंदाकिनी उर्फ संगीता बस में सफर कर रही थी, जो उसी थाने में तैनात है. वह लवेदी के बहादुरपुर गांव की रहने वाली है. संभवत: उसी ने योगेश की हत्या अन्य लोगों के साथ मिल कर की है. आप उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करें. लेकिन थानाप्रभारी बृजेश कुमार ने सुनील के अनुरोध को ठुकरा दिया और हत्या की रिपोर्ट दर्ज करने से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने हत्या की रिपोर्ट राम जन्मभूमि थाने में दर्ज कराने की सलाह दी.

इस के बाद सुनील कुमार चकरघिन्नी बन गया. लवेदी पुलिस कहती कि रिपोर्ट राम जन्मभूमि थाने में दर्ज होगी. जबकि राम जन्मभूमि थाने की पुलिस कहती कि रिपोर्ट लवेदी थाने में दर्ज होगी. परेशान सुनील तब राहुल व अन्य घर वालों के साथ इटावा के एसएसपी आकाश तोमर से मिला और रिपोर्ट दर्ज करने की गुहार लगाई. मामले की गंभीरता को समझते हुए एसएसपी आकाश तोमर ने लवेदी के थानाप्रभारी बृजेश को महिला सिपाही मंदाकिनी उर्फ संगीता तथा अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दिया. आदेश पाते ही उन्होंने रिपोर्ट दर्ज कर ली.

एसएसपी आकाश तोमर ने हत्या के इस केस की जांच के लिए 2 टीमें बनाईं. एक टीम सीओ (भरथना) चंद्रपाल की अगुवाई में तथा दूसरी टीम लवेदी थानाप्रभारी बृजेश कुमार की अगुवाई में बनी. दोनों टीमों की कमान एसपी (देहात) ओमवीर सिंह को सौंपी गई. सहयोग के लिए क्राइम ब्रांच प्रभारी सत्येंद्र सिंह यादव तथा सर्विलांस प्रभारी वी.के. सिंह को भी लगाया गया. पुलिस ने मंदाकिनी और उस की बहनों के फोन नंबर हासिल कर लिए. गठित टीमों ने सब से पहले मोबाइल डिटेल्स तथा मोबाइल फोन की लोकेशन की छानबीन शुरू की. छानबीन से पता चला कि मंदाकिनी उर्फ संगीता तथा उस की बहनें मीना व ममता 7 अक्तूबर की रात घटनास्थल पर मौजूद थीं.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने मंदाकिनी के बहादुरपुर गांव स्थित घर पर दबिश दी. लेकिन वह घर पर नहीं मिली. पता चला कि वह आगरा में अपनी बड़ी बहन मीना के घर है. यह पता चलते ही पुलिस टीम ने आगरा से मीना के घर से मंदाकिनी व ममता को हिरासत में ले लिया. मीना सहित तीनों बहनों को थाना लवेदी लाया गया. पुलिस टीम ने तीनों बहनों से योगेश चौहान की हत्या के संबंध में पूछताछ की. पहले तो वे तीनों मुकर गईं, लेकिन सख्ती करने पर टूट गईं और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन्होंने बताया कि मथुरा के अपराधी महेश, विनोद शर्मा तथा उन के साथी को योगेश की हत्या के लिए एक लाख रुपए की सुपारी दी गई थी.

ये अपराधी मथुरा के गांव दूधाधारी जमुना पार के रहने वाले हैं. इन्हें 10 हजार रुपए एडवांस दिया गया था. बाकी के रुपए लेने ये लोग कल 19 अक्तूबर को स्टेशन रोड इटावा आएंगे. इस जानकारी पर पुलिस की दोनों टीमों ने जाल बिछा कर महेश व विनोद शर्मा को पकड़ लिया. तीसरा साथी पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया. उन दोनों को थाना लवेदी लाया गया. वहां उन का सामना मीना, ममता व मंदाकिनी से हुआ तो वे समझ गए कि हत्या का राज खुल गया है. अत: उन दोनों ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस ने भादंवि की धारा 302/201 के तहत मीना, ममता, मंदाकिनी, महेश, विनोद शर्मा आदि के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस टीम ने हत्यारोपियों की निशानदेही पर आलाकत्ल रौड, नान चाक, घटना में प्रयुक्त मारुति स्विफ्ट कार तथा एक तमंचा बरामद कर लिया. इस के अलावा मृतक के जले कपड़े, जूते, उस का परिचय पत्र तथा आधार कार्ड बरामद किया गया. कार के अलावा सारा सामान साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया गया. पुलिस पूछताछ में मंदाकिनी उर्फ संगीता ने बताया कि योगेश ने जब शादी से इनकार किया तो तीनों बहनें प्यार के प्रतिशोध में जल उठीं और योगेश की हत्या की योजना बनाई. फिर मथुरा के महेश व विनोद शर्मा को एक लाख की सुपारी दे दी.

योजना के तहत वह 7 अक्तूबर को योगेश के साथ अयोध्या से घर के लिए रवाना हुई. बस से वे दोनों इटावा बसस्टैंड पहुंचे. बड़ी बहन मीना मथुरा से सुपारी किलर के साथ कार से इटावा आ गई थी. ममता भी गांव से आ गई थी. इस के बाद उन्होंने योगेश को सवारी के बहाने अपनी कार में बिठा लिया और मानिकपुर मोड़ की ओर ले जाते समय रास्ते में कार में ही रौड से उस के सिर पर वार किया. फिर नानचाक से गला दबा कर हत्या कर दी. हत्या के बाद योगेश के कपड़े उतार कर शव बहादुरपुर के सूखे बंबे में फेंक दिया. पहचान छिपाने के लिए उस के चेहरे पर हारपिक (टायलेट क्लीनर) डाल दिया.

फिर आगे जा कर कपड़े व अन्य सामान जला कर मिट्टी में दबा दिया. इस के बाद वे कार से मथुरा चले गए. दूसरे रोज मीना, ममता व मंदाकिनी आगरा चली गईं. 2 दिन बाद शव की पहचान तब हुई, जब मृतक का भाई थाना लवेदी आया और फोटो देख कर शव की पहचान अपने भाई योगेश के रूप में की. उस ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई तब कहीं जा कर हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए. 20 अक्तूबर, 2020 को थाना लवेदी पुलिस ने हत्यारोपियों को इटावा की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन को जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक एक आरोपी फरार था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hindi Story : जिंदा प्रेमिका के कत्ल के इल्जाम में 14 महीने जेल में रहा प्रेमी

Hindi Story : श्रद्धा के रहस्यमय ढंग से गायब हो जाने के बाद उस के पति योगेंद्र ने अपने दोस्त प्रमोद के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. जिस से प्रमोद 14 महीने तक जेल में रहा. फिर एक दिन पुलिस ने श्रद्धा को जीवित बरामद कर लिया. श्रद्धा से पूछताछ करने के बाद इस कहानी का ऐसा रहस्य सामने आया कि…

उन्नाव शहर का एक मोहल्ला है—जुराखन खेड़ा. हिंदूमुसलिम की मिलीजुली आबादी वाले इस मोहल्ले में राजेंद्र अवस्थी का परिवार रहता था. उन की पत्नी कमला अवस्थी घरेलू महिला थी, जबकि राजेंद्र अवस्थी सामाजिक कार्यकर्ता थे. वह दौलतमंद तो न थे, लेकिन समाज में उन की अच्छी छवि थी. शहर में उन का निजी मकान था और उन के  3 बच्चों में योगेंद्र कुमार सब से बड़ा था. राजेंद्र अवस्थी की तमन्ना थी कि उन का बेटा योगेंद्र कुमार उच्चशिक्षा हासिल कर अफसर बने और उन का नाम रोशन करे. लेकिन उन की यह तमन्ना अधूरी रह गई.

योगेंद्र कुमार ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी और नौकरी की तलाश में लग गया. कई महीने की दौड़धूप के बाद उसे उन्नाव की एक निजी कंपनी में नौकरी मिल गई. योेगेंद्र कुमार नौकरी करने लगा तो राजेंद्र को उस के ब्याह की फिक्र होने लगी. उन के पास कई रिश्ते आए भी, लेकिन बात नहीं बनी. दरअसल वह सीधीसादी सामाजिक व संस्कारवान लड़की चाहते थे, लेकिन ऐसी लड़की उन्हें मिल नहीं रही थी. इस तरह कई साल गुजर गए और योगेंद्र कुंवारा ही रहा. उन्हीं दिनों योगेंद्र कुमार की मुलाकात श्रद्धा से हुई. श्रद्धा स्टेशन रोड, उन्नाव में रहती थी और एक फर्म में जौब करती थी. मुलाकातों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर वक्त के साथ बढ़ता चला गया.

आकर्षण दोनों ही तरफ था, सो वे जल्द ही एकदूसरे से मन ही मन प्यार करने लगे. छुट्टी वाले दिन दोनों साथसाथ घूमते, हंसते बतियाते और प्यार भरी बातें करते. एक रोज योगेंद्र और श्रद्धा गंगा बैराज गए. वहां वे कुछ देर घूमते रहे और गंगा की लहरों का आनंद उठाते रहे फिर एकांत में बैठ कर बातें करने लगे. बातचीत के दौरान ही अचानक योगेंद्र श्रद्धा का हाथ अपने हाथ में ले कर बोला, ‘‘श्रद्धा, मैं तुम से कुछ कहना चाह रहा हूं. मेरी बात का बुरा तो नहीं मानोगी.’’

‘‘ऐसी क्या बात है, जिसे कहने के लिए तुम सकुचा रहे हो. जो भी दिल में हो, साफसाफ कहो. मैं जरा भी बुरा नहीं मानूंगी.’’

‘‘श्रद्धा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

श्रद्धा थोड़ा लजाई, शरमाई फिर मंदमंद मुसकराते हुए बोली, ‘‘योगेंद्र तुम्हारे मुंह से यह सब सुनने के लिए मैं बेकरार थी. मैं भी तुम से उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम मुझ से करते हो. लेकिन मुझे डर लग रहा है.’’

‘‘कैसा डर?’’ योगेंद्र ने श्रद्धा के चेहरे पर नजर गड़ाते हुए पूछा.

‘‘यही कि हमारे तुम्हारे घर वाले हम दोनों के प्यार को स्वीकार करेंगे क्या?’’ उस ने मन की शंका जाहिर की.

‘‘क्यों नहीं करेंगे? यदि मना करेंगे तो हम उन्हें मनाएंगे.’’ योगेंद्र ने समझाया.

‘‘तब ठीक है.’’ श्रद्धा संतुष्ट हो गई.

उस दिन के बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. लेकिन एक दिन योगेंद्र कुमार ने अपने मातापिता से श्रद्धा के बारे में बताया तो वे भड़क गए. उन्होंने उसे अपने घर की बहू बनाने से साफ मना कर दिया. योगेंद्र ने जब उन्हें प्यार से समझाया तो वह किसी तरह से राजी हो गए. इधर श्रद्धा के मातापिता भी बेटी की जिद के आगे झुक गए. इस के बाद योगेंद्र और श्रद्धा ने सामाजिक रीतिरिवाज से शादी कर ली. श्रद्धा योगेंद्र की दुलहन बन कर ससुराल आ तो गई थी किंतु राजेंद्र व कमला अवस्थी ने उसे मन से बहू के रूप मे स्वीकार नहीं किया था. उन्होंने जिस संस्कारवान बहू के सपने संजोए थे, श्रद्धा वैसी नहीं थी.

वह तो खुले विचारों वाली आधुनिक थी. वह न तो सासससुर के नियमों को मानती थी और न ही उन के रीतिरिवाजों को. वह न तो ससुर से परदा करती थी और न ही सास का सम्मान करती थी. शादी के 2 साल बाद श्रद्धा ने एक बेटी को जन्म दिया. जिस का नाम गौरी रखा. गौरी के जन्म से जहां श्रद्धा और योगेंद्र खुश थे, वहीं राजेंद्र और कमला अवस्थी का चेहरा उतर गया था. गौरी के जन्म के बाद कमला को उम्मीद थी कि बहू की चालढाल में सुधार आ जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बल्कि वह पहले से ज्यादा स्वच्छंद हो गई. आधुनिक कपड़े पहन वह बनसंवर कर घर से निकलती और फिर कई घंटे बाद लौटती. रोकनेटोकने पर वह सास से बहस करती.

गौरी के जन्म के बाद श्रद्धा ने नौकरी छोड़ दी थी, जिस से वह आर्थिक संकट से जूझने लगी थी. उस के पति योगेंद्र की इतनी कमाई नहीं थी कि घर का खर्च ठीक से चल सके. इस आर्थिक संकट के कारण श्रद्धा और योगेंद्र में झगड़ा होने लगा था. श्रद्धा की जुबान ज्यादा खुली तो योगेंद्र उस की पिटाई भी करने लगा. योगेंद्र कुमार का एक दोस्त प्रमोद कुमार वर्मा था. वह उस के मोहल्ले में ही रहता था. प्रमोद का योगेंद्र के घर गाहेबगाहे आनाजाना होता था. वह योगेंद्र को भैया और श्रद्धा को भाभी कहता था. इस आनेजाने में प्रमोद की नीयत श्रद्धा पर खराब हुई. वह उसे पाने के सपने देखने लगा. प्रमोद पहले तो जबतब ही आता था, लेकिन जब से नीयत खराब हुई थी तब से उस के चक्कर बढ़ गए थे.

वह जब भी घर आता, गौरी तथा श्रद्धा के लिए कुछ न कुछ उपहार जरूर लाता. नानुकुर के बाद श्रद्धा उस के लाए उपहार स्वीकार कर लेती. हालांकि सास कमला को प्रमोद का घर आना अच्छा नहीं लगता था. कभीकभी वह उसे टोक भी देती थी. कहते हैं, औरत को मर्द की नजर की परख होती है. श्रद्धा भी जान गई थी कि प्रमोद की नजर में खोट है. वह उस पर लट्टू है. श्रद्धा उस से बातचीत और हंसीठिठोली तो करती थी, लेकिन उसे सीमा पार नहीं करने देती थी. श्रद्धा को जब कभी पैसों की जरूरत होती थी, तो वह उस से मांग लेती थी. दरअसल, श्रद्धा जानती थी कि न प्रमोद पैसा मांगेगा और न ही उसे उधारी चुकानी पड़ेगी.

कुछ समय बाद गौरी बीमार पड़ी, तो उस के इलाज हेतु योगेंद्र और श्रद्धा ने प्रमोद से 10 हजार रुपए उधार मांगा. प्रमोद ने पहले तो मना कर दिया, लेकिन जब श्रद्धा ने विशेष अनुरोध किया तो उस ने योगेंद्र को रुपया दे दिया. उचित समय पर इलाज मिल गया तो उस की बेटी गौरी स्वस्थ हो कर घर आ गई. प्रमोद ने कुछ माह तक पैसों का तगादा नहीं किया. उस के बाद पैसे मांगने के बहाने वह अकसर श्रद्धा के घर आने लगा और श्रद्धा से नजदीकियां बढ़ाने लगा. वह हंसीमजाक में सामाजिक मर्यादाएं भी तोड़ने लगा था. श्रद्धा उस के अहसानों तले दबी थी तो उस की हरकतों का ज्यादा विरोध भी नहीं कर पाती थी.

एक शाम कमला किसी काम से पड़ोस में गई थी. तभी प्रमोद आ गया. उस ने श्रद्धा को घर में अकेले पाया तो वह उस से अश्लील हंसीमजाक व छेड़छाड़ करने लगा. उसी समय योगेंद्र काम से घर वापस आ गया. उस ने दोनों को हंसीमजाक करते देखा तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने प्रमोद को जलील कर वहां से भगा दिया फिर पत्नी पर कहर बन कर टूट पड़ा. उस ने श्रद्धा की जम कर पिटाई की. घर में कलह बढ़ी तो बढ़ती ही गई. योगेंद्र कभी प्रमोद के बहाने तो कभी आर्थिक तंगी के बहाने श्रद्धा को प्रताडि़त करने लगा. घर में श्रद्धा की कोई सुनने वाला न था. सासससुर अपने बेटे का पक्ष लेते और उसे ही दोषी ठहराते थे. पति की प्रताड़ना से श्रद्धा बहुत परेशान थी. वह अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी.

8 मार्च, 2018 की शाम 4 बजे श्रद्धा अपनी बेटी गौरी को सास कमला को थमा यह कह कर घर से निकली कि वह बाजार से कुछ सामान खरीदने जा रही है. 2 घंटे में वापस आ जाएगी. लेकिन जब वह रात 8 बजे तक वापस नहीं आई तो घर वालों को चिंता हुई. श्रद्धा का पति योगेंद्र उस की खोज में जुट गया. वह सारी रात उन्नाव शहर की गलियों की खाक छानता रहा, लेकिन श्रद्धा का पता नहीं चला. एक कहावत है कि नेकी जाए नौ कोस और बदी जाए सौ कोस. अच्छी खबर देर से पता चलती है, लेकिन बुरी खबर जल्दी फैलती है. जुराखन खेड़ा मोहल्ले में भी यह खबर बहुत जल्द फैल गई कि राजेंद्र अवस्थी की बहू श्रद्धा घर से भाग गई है.

बदनामी से बचने के लिए राजेंद्र व उन के बेटे योगेंद्र ने श्रद्धा को हर संभावित जगह पर तलाश किया. लेकिन उस के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली. लगभग 2 हफ्ते तक योगेंद्र कुमार अपनी पत्नी श्रद्धा की तलाश में जुटा रहा, जब वह नहीं मिली तो आखिर 22 मार्च, 2018 को वह उन्नाव कोतवाली जा पहुंचा. उस ने कोतवाल सियाराम वर्मा को बताया कि उस की पत्नी श्रद्धा 8 मार्च, 2020 से घर से गायब है. उसे शक है कि उस की पत्नी को उस का दोस्त प्रमोद कुमार भगा ले गया है. रिपोर्ट दर्ज कर पत्नी को बरामद करने की कृपा करें. योगेंद्र की तहरीर पर कोतवाल ने भादंवि की धारा 366 के तहत प्रमोद कुमार वर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और श्रद्धा को बरामद करने के प्रयास में जुट गए.

प्रमोद को रिपोर्ट दर्ज होने की जानकारी हुई तो वह घबरा गया और डर की वजह से अपने घर से फरार हो गया. इधर 2 अप्रैल, 2018 की सुबह उन्नाव जिले के शेरपुर कलां गांव के लोगों ने सड़क किनारे एक महिला की अधजली लाश देखी. ग्रामप्रधान किशन पाल ने इस की सूचना थाना असीवन पुलिस को दी. प्रधान की सूचना पर पुलिस ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा शिनाख्त न होने पर शव को पोस्टमार्टम हेतु उन्नाव भेज दिया. इस अज्ञात लाश की जानकारी उन्नाव के कोतवाल सियाराम वर्मा को हुई तो उन्होंने योगेंद्र कुमार को थाना कोतवाली बुलवाया और लाश शिनाख्त हेतु थाना असीवन चलने को कहा. योगेंद्र अपनी मां तथा परिवार की 2 अन्य महिलाओं को साथ ले कर असीवन पहुंचा.

योगेंद्र तथा महिलाओं ने लाश की फोटो, कपड़े तथा चूडि़यां देख कर लाश की शिनाख्त श्रद्धा के रूप में की. योगेंद्र ने आरोप लगाया कि उस की पत्नी की हत्या प्रमोद कुमार वर्मा ने की है. कोतवाली पुलिस ने इस मामले को भादंवि की धारा 366/302/201 के तहत दर्ज कर प्रमोद वर्मा की तलाश तेज कर दी. सियाराम वर्मा इस मामले में प्रमोद कुमार वर्मा को गिरफ्तार कर पाते, उस के पहले ही उन का तबादला हो गया. नए कोतवाल जयशंकर ने इस मामले में तेजी दिखाई और आरोपी प्रमोद कुमार वर्मा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. प्रमोद गुहार लगाता रहा कि वह निर्दोष है. लेकिन पुलिस ने उस की एक न सुनी.

हत्यारोपी प्रमोद कुमार लगभग 14 महीने तक जेल में रहा, उस के बाद हाईकोेर्ट से उस की जमानत स्वीकृत हुई. जेल से बाहर आने के बाद प्रमोद ने नए कोतवाल राजेश सिंह से गुहार लगाई कि वह निर्दोष है. उस के दोस्त योगेंद्र ने उसे पत्नी की हत्या के आरोप में गलत फंसाया है. राजेश सिंह ने श्रद्धा की फाइल का निरीक्षण किया तो उन्हें भी शक हुआ. अत: उन्होंने माननीय न्यायालय में मृतक महिला श्रद्धा, उस की बेटी गौरी तथा परिवार के अन्य जनों का डीएनए टेस्ट कराने के लिए प्रार्थनापत्र दिया. अनुमति मिलने के बाद टेस्ट कराया गया तो डीएनए रिपोर्ट परिवार के सदस्यों से मेल नहीं खाई. इस से कोतवाल राजेश सिंह समझ गए कि परिवार वालों ने जिस मृत महिला की शिनाख्त श्रद्धा के रूप में की थी, वह श्रद्धा नहीं थी. लेकिन सवाल यह भी था कि आखिर श्रद्धा है कहां?

इधर सितंबर, 2020 के आखिरी सप्ताह में योगेंद्र के घर रजिस्टर्ड डाक से एक पत्र आया. पत्र पर श्रद्धा अवस्थी का नाम, पता तथा मोबाइल नंबर अंकित था. पत्र देख कर योगेंद्र चौंका. उस ने पोस्टमैन को श्रद्धा को अपनी पत्नी बता कर पत्र रिसीव कर लिया. उस ने लिफाफा खोल कर देखा तो उस में एक्सिस बैंक का एटीएम कार्ड था, जिसे अहमद नगर स्थित एक्सिस बैंक से भेजा गया था. एटीएम कार्ड देख कर योगेंद्र का माथा ठनका. वह सोचने लगा कि क्या श्रद्धा जीवित है? घबराया योगेंद्र कोतवाली पहुंचा और सारी जानकारी कोतवाल राजेश सिंह को दी. राजेश सिंह ने यह बात एसपी आनंद कुलकर्णी को बताई और आशंका जताई कि श्रद्धा अवस्थी जीवित है. आनंद कुलकर्णी ने सर्विलांस टीम को मामले की जांच में लगाया.

सर्विलांस टीम ने जांच शुरू की तो श्रद्धा की लोकेशन महाराष्ट्र के अहमद नगर शहर में ट्रेस हुई. पुलिस ने श्रद्धा की निगरानी शुरू कर दी. 13 अक्तूबर, 2020 की शाम 4 बजे श्रद्धा की लोकेशन झांसी की मिली. थानाप्रभारी समझ गए कि श्रद्धा एटीएम कार्ड लेने आ रही है. अत: वह योगेंद्र को साथ ले कर पुलिस टीम सहित कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंच गए. क्योंकि यहीं श्रद्धा को ट्रेन से उतरना था. उस के बाद उसे बस से उन्नाव रवाना होना था. शाम 6 बजे ट्रेन कानपुर स्टेशन पहुंची. ट्रेन से उतरते ही पति योगेंद्र ने उसे पहचान लिया, तभी पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. श्रद्धा को उन्नाव कोतवाली लाया गया. श्रद्धा के जीवित होने की सनसनी उन्नाव शहर में फैली तो कोतवाली में उसे देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी.

मीडिया का भी जमावड़ा लग गया. पीडि़त प्रमोद कुमार वर्मा का परिवार भी कोतवाली आ गया. पुलिस कप्तान आनंद कुलकर्णी भी वहां पहुंचे और उन्होंने भी श्रद्धा से पूछताछ की. श्रद्धा ने पुलिस व मीडिया को जानकारी दी कि वह पति की प्रताड़ना से परेशान हो कर खुद ही घर से गई थी. घर से भाग कर वह उन्नाव स्टेशन पहुंची. उस समय लखनऊ से मुंबई जाने वाली ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी थी. वह उसी में सवार हो गई. झांसी से एक युवक ट्रेन में सवार हुआ. वह महाराष्ट्र के अहमद नगर शहर का रहने वाला था. उस से परिचय हुआ तो उस ने उसे आपबीती बताई. वह युवक उसे अहमद नगर ले गया. उसी की मदद से वह एक अस्पताल में काम करने लगी और महिला हौस्टल में रहने लगी.

अस्पताल से उस की सैलरी बैंक एकाउंट में ट्रांसफर होनी थी, जिस के लिए श्रद्धा ने सितंबर, 2020 में अहमदनगर स्थित एक्सिस बैंक शाखा में अपना खाता खुलवाया था. बैंक ने उस का एटीएम कार्ड आधार कार्ड के पते पर भेज दिया. जिस पर ससुराल (उन्नाव) का पता दर्ज था. उसे जब बैंक से जानकारी हुई तो वह 11 अक्तूबर, 2020 को अहमद नगर से उन्नाव के लिए रवाना हुई. जहां 13 अक्तूबर को पुलिस ने उसे कानपुर सैंट्रल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. हत्यारोपी प्रमोद कुमार ने मीडिया को जानकारी दी कि उस का तो कैरियर ही चौपट हो गया. पढ़ाई बंद हो गई, धंधा चौपट हो गया तथा निर्दोष होते हुए भी 14 माह जेल में रहना पड़ा.

जिन लोगों ने उसे झूठे मामले में फंसाया उन के खिलाफ वह धारा 169 आईपीसी के तहत काररवाई करेगा. उस ने पुलिस कप्तान को फूलों का गुलदस्ता भेंट कर बधाई दी. अब पुलिस श्रद्धा के जीवित होने के सारे सबूत कोर्ट में पेश करेगी. श्रद्धा तो जीवित मिल गई, लेकिन यक्ष प्रश्न फिर भी है कि आखिर वह अधजली लाश किस महिला की थी, जिस की पहचान योगेंद्र और उस के घर वालों ने श्रद्धा के रूप में की थी. क्या उस की पहचान पुलिस करा पाएगी? क्या उस के कातिलों को सजा मिल पाएगी?

हालांकि पुलिस कप्तान आनंद कुलकर्णी उस मामले की दोबारा जांच की बात कह रहे हैं. यह तो समय ही बताएगा कि उस मृत महिला की मौत का रहस्य खुलता भी है या फिर पुलिस लीपापोती कर फाइल बंद कर देगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Story : कर्जदारों से बचने के लिए व्यापारी ने रची अपने अपहरण की साजिश

UP Story : रोशनी बेगम से शादी हो जाने के बाद भी व्यवसायी सुलेमान अली अपनी प्रेमिका परवीन को नहीं भुला सका. अपने ऊपर चढ़े लाखों रुपए के कर्ज और अपने फर्ज से बचने के लिए सुलेमान ने अपने अपहरण की ऐसी झूठी कहानी गढ़ी कि…

शाम का समय था. मैनपुरी जिले के गांव दिहुली में रहने वाले शौकीन अली के मोबाइल पर इमरान का फोन आया. इमरान शौकीन अली के बेटे सुलेमान का ड्राइवर था. इमरान ने उन्हें बताया कि 4 हथियारबंद बदमाशों ने मैनपुरी बरनाहल मार्ग पर गांगसी नहर पुल के पास सुलेमान भाई का अपहरण कर लिया है. वह उन्हें अपनी स्कौर्पियो में डाल कर ले गए. ड्राइवर इमरान ने यह सूचना थाना दन्नाहार में भी फोन कर के दे दी. यह बात 21 सितंबर, 2020 की है. सुलेमान के अपहरण की बात सुनते ही उस के घर वाले परेशान हो गए. शौकीन अली अपने छोटे बेटे सद्दाम हुसैन के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

इस से पहले सूचना मिलने पर दन्नाहार थानाप्रभारी ओमहरि वाजपेयी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच चुके थे. थानाप्रभारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी व्यापारी सुलेमान के अपहरण की सूचना दे दी थी. थानाप्रभारी ने ड्राइवर इमरान से घटना के बारे में पूछताछ की. इमरान घायल था. उस के सिर से खून निकल रहा था. उस ने बताया कि सुलेमान अली जीएसटी जमा करने मैनपुरी अपनी बोलेरो से आए थे. पंजाब नैशनल बैंक में जीएसटी जमा करने के बाद वह गांव लौट रहे थे. शाम करीब 6 बजे जब उन की कार मैनपुरी बरनाहल मार्ग पर गांगसी नहर पुल के पास पहुंची तो बिना नंबर की सफेद रंग की स्कौर्पियो, जो शायद उन की बोलेरो का मैनपुरी से ही पीछा कर रही थी, ने ओवरटेक कर हमारी गाड़ी रुकवा ली.

ड्राइवर ने बताया कि गाड़ी रुकते ही हथियारबंद 4 बदमाशों ने बोलेरो के साइड के दोनों शीशे तोड़ दिए. विरोध करने पर उन्होंने हम दोनों के साथ मारपीट भी की. फिर सुलेमान को बोलेरो से खींच कर अपनी गाड़ी में डाल लिया और मैनपुरी की ओर भाग गए. चारों बदमाश मास्क लगाए हुए थे. बदमाशों ने हम दोनों के मोबाइल भी छीन लिए थे. ड्राइवर से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस का मैडिकल कराया. फिर सुलेमान के छोटे भाई सद्दाम हुसैन की तरफ से 4 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ भादंवि की धारा 364 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस ने बदमाशों की तलाश भी की, लेकिन उन का कोई सुराग नहीं मिला.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एसपी अजय कुमार पांडेय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अपहृत कारोबारी व बदमाशों की तलाश व घटना के खुलासे के लिए तेजतर्रार पुलिसकर्मियों की 4 टीमें लगाईं. इतना ही नहीं, पुलिस ने देर शाम पूरे क्षेत्र में नाकाबंदी कर दी, ताकि बदमाश अगर अभी शहर में छिपे हों तो व्यवसाई को ले कर रात में शहर से बाहर भाग न सकें. दूसरे दिन मंगलवार को पुलिस ने अपहृत कारोबारी सुलेमान के वकील प्रखर दीक्षित के मैनपुरी शहर स्थित औफिस के सीसीटीवी फुटेज चैक किए. फुटेज में सोमवार घटना वाले दिन सुलेमान दोपहर एक बजे उन के औफिस पहुंचा था और 1 बज कर 52 मिनट पर वहां से बाहर निकलता दिखाई दिया.

इस के बाद शहर स्थित पंजाब नैशनल बैंक अपने ड्राइवर इमरान के साथ गया था. पुलिस ने वकील व बैंककर्मियों से भी पूछताछ की. जहांजहां सीसीटीवी कैमरे लगे थे, पुलिस ने उन की फुटेज देखी. पुलिस इस की जानकारी जुटाने में लग गई कि कारोबारी के बारे में पुख्ता जानकारी जुटाई जा सके. ड्राइवर से भी पुलिस लगातार पूछताछ कर रही थी. क्योंकि केवल वही घटना का चश्मदीद था. इमरान पिछले 2 साल से सुलेमान की गाड़ी चला रहा था. पुलिस सारे दिन अपहृत व्यापारी के बारे में जानकारी जुटाती रही.

अपहरण से पहले व बाद में सुलेमान किस से मिला था, इस पर ड्राइवर इमरान ने बताया कि बैंक से निकलने के बाद उसे गाड़ी में बैठा छोड़ कर सुलेमान किसी जरूरी काम की कह कर कहीं चला गया था. फिर वह करीब डेढ़दो घंटे बाद लौटा था. इस के बाद हम लोग गांव के लिए रवाना हुए. पुलिस यह पता करने में जुट गई कि सुलेमान अपने ड्राइवर को गाड़ी में छोड़ कर कहां और किस काम के लिए गया था. सरेशाम हुए सनसनीखेज अपहरण कांड के 24 घंटे बीतने के बाद भी पुलिस को व्यापारी व अपहर्त्ताओं का कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. इस से पुलिस परेशान थी. घटना के बाद सर्विलांस टीम की भी मदद ली गई, लेकिन समस्या यह थी कि अपहर्त्ताओं ने अभी तक सुलेमान के घर वालों को फिरौती के लिए फोन नहीं किया था.

कारोबारी और उस के ड्राइवर के मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहे थे. पुलिस ने रात में आसपास के जिलों में कुछ स्थानों पर दबिश डाल कर संदिग्ध लोगों को उठाया, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ. व्यापारी सुलेमान के अपहरण की खबर पूरे गांव व मैनपुरी शहर में फैल चुकी थी. अपहरण की घटना के बाद व्यापारी वर्ग में हलचल व्याप्त हो गई. उधर सुलेमान के घर पर घटना के बाद बड़ी संख्या में गांव वाले, रिश्तेदार व व्यापारी जुटने लगे. सभी सुलेमान की सकुशल बरामदगी के लिए प्रार्थना कर रहे थे. सुलेमान की पत्नी व दोनों बच्चों का रोरो कर बुरा हाल था.

थानाप्रभारी ओमहरि वाजपेयी ने सुलेमान के गांव पहुंच कर उस के पिता शौकीन अली से पूछा, ‘‘आप की या सुलेमान की किसी से रंजिश तो नहीं है? या किसी पर शक है तो बताओ.’’

शौकीन अली के इनकार करने पर थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘आप के या बेटों के पास अपहर्त्ताओं का कोई फोन आए तो जरूर बताना.’’

गांव में सुलेमान के अपहरण के बाद तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गई थीं. 3 भाइयों में सुलेमान सब से बड़ा था. उस की शादी सन 2013 में रोशनी बेगम उर्फ रश्मि से हुई थी. सुलेमान के एक बेटी इरम व एक बेटा आदिल है. पुलिस ही नहीं लोगों को भी डर सता रहा था कि फिरौती की रकम न मिलने पर कहीं अपहर्त्ता सुलेमान की हत्या न कर दें.  सुलेमान के घरवालों की पूरी रात आंखों में कटी. पुलिस की नजर व्यापारिक प्रतिस्पर्धा पर भी थी. एसपी अजय कुमार पांडेय ने इस संबंध में संदिग्धों से भी पूछताछ की. इस के साथ ही ऐसे लोगों को चिह्नित भी किया गया, जो सुलेमान से व्यापारिक रंजिश रखते थे. बरनाहल के एक युवक को पुलिस ने हिरासत में भी लिया.

जांच के दौरान पुलिस को ड्राइवर से पता चला कि व्यवसाई सुलेमान पत्ती (कमेटी) का काम भी करता था. पत्ती के तहत कई दुकानदार रोजाना या सप्ताहवार रुपए उस के पास जमा करते थे. इस के बाद प्रति माह या तिमाही ड्रा के माध्यम से रुपए उठाए जाते थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस इस काम में किसी तरह का लेनेदेन व रंजिश को ले कर भी गहनता से जांच में जुट गई. पुलिस के लिए कारोबारी का अपहरण चुनौती साबित हो रहा था. व्यापारी के सरेशाम अपहरण की खबर इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी, जिस से पुलिस पर दबाव बढ़ता जा रहा था. लेकिन पुलिस अपने काम में जुटी रही.

इसी बीच व्यवसाई के अपहरण मामले में पुलिस के हाथ कई अहम सूत्र लगे. पुलिस को व्यापारी पर लाखों रुपए का कर्ज होने का पता चला ही, साथ ही उस की एक प्रेमिका के बारे में जानकारी मिली. इस से पुलिस को अपहरण पर संदेह हुआ. प्रेमिका की जानकारी मिलने पर शक और गहरा गया. पुलिस को सुलेमान के मोबाइल की काल डिटेल्स से यह पता चला कि वह आगरा के शाहगंज की महिला के संपर्क में था. तब पुलिस ने ड्राइवर इमरान से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. इस के बाद उस ने पूरा राज खोल दिया.  इधर पुलिस को अपने मुखबिर से सूचना मिली कि अपहृत व्यापारी को भिवाड़ी में देखा गया है. इस सूचना पर पुलिस टीम तुरंत भिवाड़ी रवाना हो गई.

मुखबिर के बताए स्थान पर पुलिस ने दबिश दी तो वहां व्यवसाई सुलेमान अपनी प्रेमिका परवीन व उस के 2 बच्चों के साथ मिला. जब पुलिस सुलेमान को हिरासत में ले कर जाने लगी तो परवीन भी अपने दोनों बच्चों के साथ चलने की बात कहने लगी. इस के बाद पुलिस सभी को मैनपुरी ले आई. थाने ला कर सुलेमान से उस के अपहरण के बारे में कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने अपहरण को नाटक बताते हुए अपना जुर्म कबूल कर लिया. सुलेमान ने पुलिस को बताया कि अपहरण के इस नाटक में उस का भाई सद्दाम हुसैन, ड्राइवर इमरान निवासी बिरथुआ व जिगरी दोस्त जाहिद निवासी भिवाड़ी भी शामिल था. पुलिस ने व्यापारी सुलेमान सहित चारों को गिरफ्तार कर लिया.

24 सितंबर को पुलिस लाइन सभागार में आयोजित प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी अजय कुमार पांडेय ने व्यवसाई सुलेमान के कथित अपहरण कांड का परदाफाश करते हुए अभियुक्तों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. पत्रकारों को बताया कि व्यापारी का अपहरण तो हुआ ही नहीं था, बल्कि उस ने शादीशुदा प्रेमिका के साथ रहने व कर्जदारों से बचने के लिए योजनाबद्ध ढंग से स्वयं के अपहरण का सनसनीखेज ड्रामा रचा था.

इस झूठे अपहरण कांड के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह चाैंकाने वाली निकली—

उत्तर प्रदेश का एक जिला है मैनपुरी. जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित गांव दिहुली में सुलेमान अली अपने परिवार के साथ रहता था. गांव में ही उस का बिल्डिंग मैटीरियल का बड़ा काम था, जबकि कुछ दूर चौराहे पर ही उस के पिता शौकीन अली की गिट्टीबालू की दुकान थी. सुलेमान अली गांव की परवीन नाम की एक लड़की से पिछले 8 साल से प्यार करता था. उन दोनों की शादी भी होने वाली थी. लेकिन किसी कारणवश नहीं हो सकी. तब परवीन की शादी आगरा निवासी खुशाल नाम के युवक से हो गई, वह बैंडबाजे का काम करता था. लेकिन शादी के बाद भी परवीन और सुलेमान दोनों एकदूसरे के लगातार संपर्क में रहे.

परवीन को जब भी कोई परेशानी होती, वह सुलेमान को फोन करती थी. इस बात की जानकारी पति खुशाल को भी थी. 16 सितंबर, 2020 को प्रेमिका परवीन का सुलेमान के पास फोन आया. उस ने बताया उस के पति ने उस की काफी पिटाई की है. अब वह उस के साथ नहीं रहना चाहती थी. क्या तुम मुझे व मेरे दोनों बच्चों को अपने पास रखोगे? इस पर सुलेमान ने उसे अपनी रजामंदी दे दी. सुलेमान ने प्रेमिका को तसल्ली देते हुए कहा कि वह जल्दी ही उसे जालिम पति के चंगुल से आजाद करा देगा. वह प्रेमिका को परेशान नहीं देख सकता.

सुलेमान ने प्रेमिका व बच्चों को 18 सितंबर को सिरसागंज बुला लिया. सुलेमान अपने ड्राइवर इमरान के साथ सिरसागंज जा कर परवीन से मिला. सुलेमान ने प्रेमिका को एक नया मोबाइल फोन व सिम कार्ड दिलाया. उस ने भिवाड़ी में रहने वाले अपने जिगरी दोस्त जाहिद को फोन कर प्रेमिका परवीन के रुकने की व्यवस्था करने के लिए कह दिया. इस के बाद परवीन को 10 हजार रुपए देते हुए टैक्सी से अपने दोस्त जाहिद के पास भेज दिया. उसे तसल्ली देते हुए कहा कि वह भी जल्दी ही भिवाड़ी पहुंच जाएगा. प्रेमिका को भेजने के बाद सुलेमान अपने गांव आ गया. उधर परवीन के घर से बच्चों सहित चले जाने पर उस का पति खुशाल परेशान हो गया. उसे शक था कि वह जरूर सुलेमान के पास गई होगी.

खुशाल व उस के घर वाले सुलेमान के बारे में जानकारी करने लगे कि वह गांव में है या कहीं चला गया है. उधर परवीन के भिवाड़ी में रहने व खानेपीने का दोस्त जाहिद ने इंतजाम करा दिया था. लेकिन परवीन बारबार सुलेमान को फोन कर के भिवाड़ी आने को कहने लगी. इस से सुलेमान परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस ने अपने भाई सद्दाम से इस संबंध में बात कर सारी बात समझाई. सुलेमान पर लाखों रुपए की उधारी थी. कर्ज वालों को पैसे भी नहीं देने पड़ेंगे और प्रेमिका की बात रखते हुए वह नया परिवार बसा लेगा. इस के साथ ही इन दिनों सुलेमान अपनी पत्नी रोशनी से भी तंग आ चुका था. वह उस से छुटकारा पाना चाहता था. उस के एक कदम से सारे काम पूरे होते दिख रहे थे. यानी सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

भाई सद्दाम ने हौसला बढ़ाते हुए कहा कि वह घर वालों को किसी तरह समझा लेगा. योजना के तहत 21 सितंबर को सुलेमान जीएसटी जमा करने के लिए घर से बोलेरो ले कर ड्राइवर इमरान के साथ मैनपुरी गया. काम निपटाने के बाद ईशन नदी पुल महाराजा तेज सिंह की प्रतिमा के पास बोलेरो रोक कर उस ने इमरान को पूरी योजना समझाई और योजनानुसार उस ने उस का भी मोबाइल ले लिया. ईशन नदी पुल पर बोलेरो से उतर कर सुलेमान पैदल बस स्टैंड पहुंचा. वहां से टैक्सी ले कर भिवाड़ी में अपनी प्रेमिका के पास चला गया.

योजना के मुताबिक इमरान बोलेरो ले कर गांगसी नहर पुल के पास पहुंचा. गाड़ी खड़ी कर घटना को सच दिखाने के लिए इमरान को अपने सिर में चोट पहुंचाने के लिए रुपयों का लालच दे कर सुलेमान ने पहले ही तैयार कर लिया था. उस ने बदमाशों का आना दिखाने के लिए बोलेरो के शीशे भी रिंच (स्पैनर) से तोड़ दिए. और स्पैनर से ही अपने माथे पर चोट मार कर उस ने स्वयं को घायल कर लिया. इस के बाद आगे नवाटेड़ा गांव पहुंच कर एक व्यक्ति से उस का मोबाइल फोन ले कर सुलेमान के पिता शौकीन अली व पुलिस को सुलेमान का अपहरण हो जाने की सूचना दी.

पिता ने सद्दाम को भाई सुलेमान के अपहरण के बारे में बताया. भाई सद्दाम को तो सब पता था ही. वह अपने अब्बू के साथ मौके पर पहुंचा. इस के बाद उस ने थाने पहुंच कर अज्ञात बदमाशों के विरुद्ध सुलेमान के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. भिवाड़ी में रह रहे सुलेमान को उस के दोस्त जाहिद ने बताया कि पुलिस तुम्हें तलाशते हुए कभी भी यहां आ सकती है. तुम अपनी प्रेमिका व बच्चों को ले कर नेपाल चले जाओ. नेपाल में उस के परिचित हैं, वे वहां तुम्हारे रहने का इंतजाम कर देंगे. सुलेमान नेपाल भागने की फिराक में था, लेकिन उस से पहले ही पुलिस ने उसे दबोच लिया.

जाहिद सुलेमान के गांव का ही रहने वाला है, वह पिछले 5 साल से भिवाड़ी में रह कर रेडीमेड कपड़े का काम करता है. सुलेमान ने कमेटी की रकम में से आधी रकम जाहिद को देने का वादा किया था. दोस्ती व रुपयों के लालच में आ कर जाहिद भी षडयंत्र में शामिल हो गया था. पुलिस के आगे सुलेमान व सहयोगियों की सारी चालाकी धरी रह गई. इमरान के सच कुबूल करते ही सुलेमान के नाटक का परदाफाश हो गया. फिर पुलिस ने सुलेमान और उस के मददगारों को गिरफ्तार करने में देर नहीं लगाई. चारों आरोपी पुलिस के हत्थे चढ़ गए. गिरफ्तारी के साथ ही पुलिस ने इस मुकदमे में चारों आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 364 के साथ 211/182/417/420/469/120बी/108 भी बढ़ा दी.

पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से 4 मोबाइल फोन, इन में एक मोबाइल इमरान का भी था, एक बोलेरो गाड़ी, घटना में प्रयुक्त टूल रिंच (स्पैनर) तथा 2 लाख 69 हजार 500 रुपए की नकदी बरामद की. इस सनसनीखेज फरजी अपहरण कांड का पुलिस ने 24 घंटों के अंदर खुलासा कर दिया. इस के लिए आईजी ए. सतीश गणेश ने मैनपुरी पुलिस टीम को 40 हजार रुपए का तथा एसपी अजय कुमार पांडेय ने 25 हजार का इनाम दिया. आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम में थानाप्रभारी ओमहरि वाजपेई, एसआई सर्विलांस प्रभारी जोगिंद्र, अमित सिंह, कांस्टेबल राजवीर सिंह, अमित, संदीप कुमार, जुगेंद्र सिंह, हरेंद्र सिंह, रोबिन सिंह, ललित छोकर, तरन सिंह व महिला कांस्टेबल निधि मिश्रा शामिल थीं.

इस मामले में कोई भूमिका न पाए जाने पर पुलिस ने सुलेमान की प्रेमिका परवीन व बच्चों को घर वालों को बुला कर उन के सुपुर्द कर दिया. व्यापारी सुलेमान सहित चारों आरोपियों को 24 सितंबर, 2020 को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से चारों को जेल भेज दिया गया. प्यार में सुना है लोग अंधे हो जाते हैं और कुछ भी कर सकते हैं. ऐसा ही सुलेमान व्यापारी ने इस मामले में किया. सुलेमान अब अपने भाई सद्दाम, दोस्त जाहिद व ड्राइवर इमरान के साथ जेल की सलाखों के पीछे है. उधर परवीन के पति खुशाल निवासी शाहगंज ने मैनपुरी में सुलेमान की गिरफ्तारी की जानकारी होने के बाद 25 सितंबर को अपनी पत्नी व 2 बच्चों के अपहरण की रिपोर्ट आगरा के थाना शाहगंज में खिलाफ दर्ज करा दी.

एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन प्रमोद ने बताया कि खुशाल की तरफ से सुलेमान के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया. अब इस मामले में सुलेमान के खिलाफ काररवाई की जाएगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. परवीन परिवर्तित नाम है

Bareilly Crime News : तोहफा देकर फंसाया दोस्त की पत्नी को फिर बनाया संबंध

Bareilly Crime News : पति रामऔतार की आंखों में धूल झोंक कर नन्ही पति के दोस्त नरेंद्र के साथ हसरतें पूरी करती रही. उसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि नन्ही ने प्रेमी नरेंद्र के साथ मिल कर खुद अपना ही सिंदूर मिटा दिया…

के गांव पचैमी की रहने वाली नन्ही रामऔतार की पत्नी थी. उस का विवाह रामऔतार से करीब 15 साल पहले हुआ था. उस के 6 बच्चे थे. रामऔतार का गांव के ही इतवारी और उस के 2 बेटों से जमीन को ले कर विवाद हुआ तो वह पत्नी व बच्चों के साथ बदायूं के कलौरा गांव में परिवार के साथ आ कर रहने लगा. यहां वह एक ईंट भट्ठे पर काम करने लगा. काम करते रामऔतार की दोस्ती कलौरा गांव के ही नरेंद्र से हो गई. नरेंद्र भी उस के साथ ही काम करता था.

35 वर्षीय नरेंद्र अविवाहित था. वह अपने भाइयों में सब से बड़ा था. उस के पास खेती की कुछ जमीन थी, जिस पर वह खेती करता था. खेती करने से बचे समय में वह ईंट भट्ठे पर काम करता था. रामऔतार और नरेंद्र में दोस्ती करीब 2 साल पहले हुई थी. दोस्ती हुई तो नरेंद्र का रामऔतार के घर आनाजाना शुरू हो गया. आनेजाने के दौरान ही कुंवारे नरेंद्र को नन्ही का रूपरंग भा गया था. रामऔतार की गैरमौजूदगी में भी वह नन्ही का हालचाल जानने के बहाने उस के घर चला आता था. नन्ही उस की खूब आवभगत करती थी. नरेंद्र मंझे हुए खिलाड़ी की तरह अपना हर कदम आगे बढ़ा रहा था. जब भी वह रामऔतार के घर जाता, उस की नजरें नन्ही के इर्दगिर्द ही घूमा करती थीं. वह उस पर दिलोजान से लट्टू था. 6 बच्चों की मां बनने के बाद भी नन्ही में आकर्षण था. उस के इकहरे बदन में मादकता का बसेरा था.

नरेंद्र दोस्त की गैरमौजूदगी में नन्ही को कभीकभी तोहफा दे आता तो कभी रुपए दे कर खुश कर देता. उस के इस आत्मीय व्यवहार से नन्ही उस का खूब सत्कार करती और उस से खुल कर बातें करती थी. एक दिन दोपहर को जब नन्ही घर में अकेली थी, अचानक नरेंद्र उस के यहां पहुंच गया. हमेशा की तरह नन्ही ने उस का स्वागत किया और चाय बना कर दी. फिर हंसते हुए बोली, ‘‘आज आप की दोस्त से मुलाकात नहीं हो पाएगी. क्योंकि वह काम से बाहर गए हैं.’’

नरेंद्र के होंठों के कोनों पर शैतानी मुसकान आ बैठी, ‘‘कोई बात नहीं भाभी, असल में आज मैं तुम से ही मिलने आया था.’’

‘‘ऐसी क्या बात है कि आप को खास मुझ से मिलने की जरूरत आ पड़ी. बताओ, मैं किस काम आ सकती हूं.’’ वह बोली.

नन्ही का मन टटोलने के लिए नरेंद्र बोला, ‘‘वक्तबेवक्त अपनों का फर्ज बनता है कि अपनों की मदद करें. तुम्हें पता है कि मैं ने तुम्हारे लिए कभी अपना हाथ नहीं खींचा. आज उसी मदद का प्रतिदान मांगने आया हूं.’’

नरेंद्र ने बढ़ाया कदम नन्ही समझ नहीं पाई कि नरेंद्र कहना क्या चाहता है. वह बस इतना कह पाई, ‘‘आप कहिए तो, मैं आप के किस काम आ सकती हूं.’’

जवाब में नरेंद्र ने उस का हाथ पकड़ कर उसे अपनी बगल में बैठा लिया. फिर उस की जांघ पर हाथ रखते हुए उस के कान में बोला, ‘‘मैं ने मन से तुम्हारी मदद की, अब तुम तन से मेरी मदद कर दो.’’ कहने के साथ ही उस ने हाथ नन्ही की कमर में डाल कर उसे खुद से सटा लिया और उसे चूमते हुए बोला, ‘‘सच कहता हूं, मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं. तुम्हें कसम है मेरे प्यार की, इनकार मत करना.’’

नन्ही हतप्रभ रह गई. उस ने नरेंद्र से हटने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे दोस्त की बीवी हूं. वह तुम पर बहुत विश्वास करते हैं. यह विश्वास टूटा तो दिल टूट जाएगा.’’

‘‘मैं तुम्हारे पति के विश्वास को कभी टूटने नहीं दूंगा. यकीन करो, हमारे बीच जो होगा, उसे मैं छिपा कर रखूंगा.’’ नरेंद्र ने कहा.

नन्ही के होंठ एक बार फिर बुदबुदाए, ‘‘कल जब यह भेद खुलेगा तो हम कहीं के नहीं रहेंगे.’’

‘‘भेद खुलेगा कैसे? मैं तुम्हें अपना समझता हूं. अब न मत करो.’’ उस के बाद नरेंद्र के हाथ नन्ही के बदन पर रेंगने लगे.

उस की हरकतों से नन्ही के विवेक पर भी परदा पड़ गया. नन्ही भी सारी मानमर्यादा भूल कर नरेंद्र के साथ अनैतिक रिश्ता बना बैठी. अपने स्त्री धर्म पर दाग लगा चुकी नन्ही को यह सब करने का पछतावा इसलिए अधिक नहीं हुआ क्योंकि अविवाहित नरेंद्र का साथ उसे बहुत अच्छा लगा था. औरत एक बार जब फिसलती है तो फिर फिसलन की राह पर जाने से अपने कदमों को रोक नहीं पाती. फिर नरेंद्र जैसा बहकाने वाला मर्द हो तो नन्ही जैसी औरतें कहां खुद को रोक पाती हैं. लिहाजा नन्ही और नरेंद्र के संबंधों का सिलसिला चल निकला.

नरेंद्र नन्ही को तोहफेऔर पैसे दे कर खुश रखता तो बदले में वह भी उसे खुश रखती. लेकिन अवैध संबंध कायम रखने में चाहे कितनी सावधानी क्यों न बरती जाए, एक दिन उन की पोल खुल ही जाती है. इन दोनों का राज भी खुल गया. दरअसल, एक दिन रामऔतार अपने काम से जल्दी लौट आया, उसे कुछ अपनी तबियत ठीक नहीं लग रही थी. घर का मेनगेट खुला होने के कारण वह सीधा अंदर चला आया. उस ने अंदर का जो दृश्य देखा, वह जड़वत खड़ा रह गया. उस की बीवी नरेंद्र की बांहों में झूल रही थी. यह देखते ही रामऔतार की आंखों में खून उतर आया. वह चीखा तो दोनों हड़बड़ा कर अलग हो गए.

नरेंद्र तो तुरंत वहां से भाग खड़ा हुआ, नन्ही भला कहां भागती. वह अपराधबोध से नजरें झुकाए सामने खड़ी थी. रामऔतार ने लातघूंसों से उस की पिटाई करनी शुरू कर दी, ‘‘हरामजादी, मैं तेरी सुखसुविधाओं के लिए बाहर खट रहा हूं और तू गैरमर्द के साथ घर में गुलछर्रे उड़ा रही है. तूने एक बार मर्यादा के बारे में नहीं सोचा. कल जब तेरा कलंक गलीमोहल्ले वालों को पता लगेगा तो मैं सिर उठाने लायक रह पाऊंगा?’’

पति को गुस्से में जलता देख नन्ही ने त्रियाचरित्र दिखाया, ‘‘मैं ने बहुत विरोध किया लेकिन तुम्हारी गैरमौजूदगी में तुम्हारा दोस्त मेरे साथ जबरदस्ती पर आमादा हो गया था. घर में मुझे अकेला पा कर उस के हौसले और भी बढ़ गए. मोहल्ले वालों की मदद इसलिए नहीं ली कि बात गांव में फैलती तो और बदनामी हो जाती. मैं कसम खा कर कहती हूं कि मैं मजबूर थी.’’

नन्ही ने चालाकी से अपने आप को बचा लिया. उस दिन के बाद से नरेंद्र काफी दिनों तक रामऔतार के सामने नहीं पड़ा और न ही उस के घर गया. लेकिन जिस्म की आग भला कहां चैन लेने देती है. फिर से नरेंद्र रामऔतार के घर उस की गैरमौजूदगी में जाने लगा. लेकिन अब दोनों ही सावधानी बरतने लगे थे. 20 अगस्त, 2020 की रात रामऔतार छत पर सो रहा था. नन्ही नीचे कमरे में सो रही थी. रात सवा 11 बजे कुछ लोगों ने घर में घुस कर रामऔतार को गोली मार दी. रामऔतार की हुई हत्या गोली की आवाज सुन कर गांव के लोग घरों से जब तक बाहर निकलते, तब तक हमलावार वहां से भाग गए.

गोली की आवाज सुन कर नन्ही कमरे से बाहर निकली और छत की तरफ देखा तो उसे अनहोनी की आशंका हुई. वह सीढि़यां चढ़ कर छत पर गई तो अपने पति रामऔतार को मृत पाया. वह रोनेचिल्लाने लगी. गोली की आवाज सुन कर घर से निकले आसपड़ोस के लोगों ने रामऔतार के घर से रोने की आवाजें सुनीं तो वहां पहुंच गए. छत पर खून से लथपथ रामऔतार की लाश पड़ी हुई थी, वहीं पास बैठी नन्ही रो रही थी. उसी दौरान किसी ने 112 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को दे दी. घटनास्थल दातागंज थाने में आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से इस की सूचना दातागंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर थानाप्रभारी अजीत कुमार सिंह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. रामऔतार के सीने में गोली लगने का घाव था. छत व आसपास की लोकेशन को देखने के बाद उन्होंने नन्ही से पूछताछ की. नन्ही ने बताया कि वह नीचे कमरे में सो रही थी. गोली चलने की आवाज सुन कर बाहर आई तो यहां कोई नहीं था, न किसी को उस ने वहां से भागते देखा. छत पर आई तो पति की लाश पड़ी मिली. किसी पर शक होने के बारे में पूछने पर उस ने बताया कि वह अपने पति के साथ बरेली के फरीदपुर के पचैमी गांव में रहती थी. वहां गांव के ही इतवारी और उस के बेटों कलट्टर और अर्जुन से उस के पति का जमीनी विवाद चल रहा था.

उस विवाद की वजह से ही वह पति के साथ यहां आ कर रह रही थी. नन्ही ने आरोप लगाया कि उन तीनों ने ही उस के पति को मारा है. आसपास के लोगों से पूछताछ करने पर पुलिस को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जो केस खोलने के काम आए. पूछताछ के बाद थानाप्रभारी अजीत कुमार सिंह ने लाश मोर्चरी भेज दी. फिर नन्ही को सुबह थाने आने को कह कर वापस थाने लौट गए. सुबह थाने पहुंच कर नन्ही ने इतवारी, कलट्टर और अर्जुन के खिलाफ भादंवि की धारा 302/34 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. थानाप्रभारी सिंह ने जांच शुरू की. सब से पहले उन्होंने तीनों नामजद लोगों के बारे में पता किया.

उन के फोन नंबर ले कर घटना की रात की लोकेशन की जांच की तो घटनास्थल तो क्या दूरदूर तक उन की लोकेशन नहीं मिली. इस से थानाप्रभारी को लगा कि दुश्मनी की आड़ में कोई और ही काम को अंजाम दे गया है. थानाप्रभारी अजीत सिंह की सोच यह थी कि गांव के या आसपास के ही किसी परिचित ने इस घटना को अंजाम दिया होगा. इसलिए थानाप्रभारी सिंह ने रामऔतार के दोस्तों और उस के घर आनेजाने वाले लोगों के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि गांव के नरेंद्र नाम के युवक से रामऔतार की अच्छी दोस्ती थी. वह दिन में उस के घर के कई चक्कर लगाता था.

आरोपियों ने स्वीकारा अपराध यह जानकारी मिली तो उन्होंने 26 अगस्त को नरेंद्र को शक के आधार पर हिरासत में ले लिया. जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए हत्या में साथ देने वालों के नाम भी बता दिए. हत्या में उस का साथ मृतक की पत्नी नन्ही, नरेंद्र के सगे भाई मुकेश, मौसेरे भाई रिंकू, दोस्त रामनिवास और मुकेश ने दिया था. पुलिस ने उसी दिन नन्ही और रामनिवास व मुकेश को गिरफ्तार कर लिया. उन सभी से पूछताछ करने पर पता चला कि नन्ही और नरेंद्र रामऔतार की गैरमौजूदगी में सावधानी से मिल तो रहे थे लेकिन कई बार पकड़े जाने से बालबाल बचे थे. अब पकड़े जाने पर उन्हें रामऔतार की ओर से कोई खतरनाक कदम उठाए जाने का भी अंदेशा था.

वैसे भी जब से रामऔतार ने नन्ही को नरेंद्र के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देखा था, तब से वह वक्तबेवक्त घर आ धमकता था. उस के घर आने का खौफ दोनों के दिमाग पर हावी रहने लगा. ऐसे में वे दोनों ठीक से मिल भी नहीं पाते थे. इसलिए रामऔतार नाम के खौफ को हमेशा के लिए अपनी जिंदगी से मिटाने का उन दोनों ने फैसला कर लिया. रामऔतार की हत्या में साथ देने के लिए नरेंद्र ने अपने सगे भाई मुकेश, मौसरे भाई रिंकू, दोस्त रामनिवास निवासी गांव मलौथी थाना दातागंज और दोस्त मुकेश निवासी गांव छेदापट्टी, जिला शाहजहांपुर को तैयार कर लिया. सब के साथ मिल कर नरेंद्र ने हत्या की योजना बनाई. योजना बना कर नन्ही को नरेंद्र ने पूरी योजना के बारे में बता दिया.

20 अगस्त की रात जब रामऔतार छत पर सो रहा था. नन्ही नीचे कमरे में जागी हुई उस का इंतजार कर रही थी. रात सवा 11 बजे नरेंद्र अपने साथियों के साथ रामऔतार के घर पहुंच गया और नन्ही द्वारा रामऔतार के छत पर सोने की बात बताने पर सभी छत पर पहुंच गए और सोते हुए रामऔतार के सीने पर गोली मार दी. गोली लगते ही रामऔतार ने दम तोड़ दिया. इस से पहले कि कोई वहां आए, वे लोग वहां से फरार हो गए. नन्ही योजना के अनुसार कुछ देर बाद छत पर जा कर रोनेचिल्लाने लगी. वे हत्या करने की अपनी योजना में तो सफल हो गए, लेकिन अपने आप को बचाने में सफल नहीं हो पाए और पकड़े गए. थानाप्रभारी अजीत कुमार सिंह ने मुकदमे में धारा 120बी और बढ़ा दी. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त तमंचे के साथ एक और तमंचा बरामद कर लिया.

कागजी खानापूर्ति करने के बाद चारों अभियुक्तों नन्ही, नरेंद्र, रामनिवास और मुकेश को सक्षम न्यायालय में पेश करने के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक नरेंद्र का भाई मुकेश और मौसेरा भाई रिंकू फरार थे, पुलिस सरगर्मी से उन की तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित