Extramarital Affair : पत्नी के प्रेमी की हत्या कर लाश संदूक में छिपाई

Extramarital Affair : रौंग काल से पैदा हुआ प्यार शादीशुदा नरगिस और महबूब को उस मुकाम तक ले गया जिस की दोनों ने कल्पना तक नहीं की थी. फिर एक दिन ऐसा क्या हुआ कि नरगिस के घर संदूक में महबूब की लाश मिली…

18 सितंबर, 2020 को देर रात थाना कांठ के थानाप्रभारी अजय कुमार गौतम के मोबाइल पर किसी अंजान व्यक्ति का फोन आया. फोन करने वाले ने बताया, ‘‘सर, मैं ऊमरी कलां के पास पाठंगी गांव के प्रधान शहजाद का छोटा भाई नौशाद बोल रहा हूं. सर, हमारे घर में एक युवक की मौत हो गई है. आप जल्द आ जाइए.’’

‘‘मौत कैसे हो गई, क्या हुआ था उसे?’’ अजय कुमार गौतम ने उस युवक से पूछा.

‘‘सर, संदूक में दम घुटने से…’’ युवक ने जबाव दिया. यह जानकारी देने के बाद नौशाद ने काल डिसकनेक्ट कर दी. नौशाद की बात सुनते ही थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि मामला कुछ गड़बड़ है. लिहाजा कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर वह पाठंगी गांव जा पहुंचे. जिस वक्त गांव में पुलिस पहुंची, अधिकांश लोग सो चुके थे. फिर भी गांव में देर रात पुलिस की गाड़ी देख कर कुछ लोग एकत्र हो गए. पुलिस की जिप्सी रुकते ही सब से पहले नौशाद पुलिस के सामने हाजिर हुआ. वह बोला, ‘‘सर, मेरा नाम ही नौशाद अली है. मैं ने ही आप को फोन किया था. आइए सर, मैं आप को युवक की लाश दिखाता हूं.’’ कह कर नौशाद अली पुलिसकर्मियों को अपने घर के अंदर ले गया.

घर के अंदर जाते ही नौशाद ने अपने घर में रखा संदूक खोला. संदूक खुलते ही बदबू का गुबार निकला. जिस की वजह से पुलिस का वहां रुकना मुश्किल हो गया. बदबू कम हुई तो पुलिस ने मृतक की लाश देखी. फिर लोगों की मदद से लाश को संदूक से बाहर निकलवाया. मृतक हृष्टपुष्ट युवक था. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि उस के शरीर पर तमाम चोटों के निशान थे. उस के सिर से काफी खून भी निकल कर जम गया था. संभवत: ज्यादा खून बहने से ही उस की मौत हुई थी. थानाप्रभारी गौतम ने इस मामले की जानकारी सीओ बलराम सिंह को भी दे दी थी. सूचना मिलते ही सीओ साहब भी पाठंगी गांव पहुंच गए और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर साक्ष्य एकत्र किए.

नौशाद के घर से ही पुलिस को मृतक का एक बैग भी मिला, जिस में से पुलिस को शराब की एक बोतल के साथसाथ 2 बीयर की बोतलें, मृतक का आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज भी मिले. आधार कार्ड पर नाम महबूब आलम पुत्र शमशाद, निवासी मोड़ा पट्टी, कांठ लिखा था. पुलिस ने नौशाद से मृतक युवक के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मैं पानीपत में काम करता हूं. घर पर मेरे बीवीबच्चे रहते हैं. इसलिए मैं इस के बारे में नहीं जानता. लेकिन पत्नी नरगिस ने बताया कि यह उस का दूर का रिश्तेदार है. मैं पानीपत में था तो आज सुबह मेरी बीवी नरगिस का फोन आया. उस ने फोन पर बताया कि घर पर कुछ अनहोनी हो गई है. इसलिए जितनी जल्दी हो सके, फौरन घर पहुंचो.’’

नौशाद ने बताया कि बीवी की बात सुनते ही वह अपना कामधंधा छोड़ कर तुरंत घर चला आया था. घर आने पर पत्नी ने बताया कि महबूब उस का दूर का रिश्तेदार था. 17 सितंबर, 2020 की देर रात वह हमारे घर पहुंचा. उस वक्त तीनों बच्चे सो चुके थे. लेकिन बड़ा बेटा अचानक जाग गया. बेटे के डर की वजह से महबूब घर में रखे संदूक में छिप कर बैठ गया. बेटा 2 घंटे बाद सोया तो मैं ने संदूक खोल कर देखा. तब तक दम घुटने से वह मर चुका था. नौशाद ने पुलिस को बताया कि घर में किसी व्यक्ति की मौत हो जाने की बात सुनते ही उस के हाथपांव फूल गए. संदूक में पड़ी लाश के बारे में सोचसोच कर उस का सिर फटा जा रहा था.

उसे अपनी बीवी पर भी कुछ शक हुआ. वह समझ नहीं पा रहा था कि अगर लड़का सोते से उठ गया तो उसे संदूक में छिपने की क्या जरूरत थी. इस घटना से उसे बीवी पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन घर में जो बला पड़ी थी, पहले उस से कैसे निपटा जाए, वह उसे ले कर परेशान था. दोपहर से शाम तक उस ने कई बार उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई, लेकिन वह किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. घर की बदनामी को देखते हुए वह न तो इस बात का जिक्र अपने घर वालों से कर सकता था और न ही खुद कोई निर्णय ले पा रहा था. जब इस मामले में उस के दिमाग ने बिलकुल काम करना बंद कर दिया तो उस ने पुलिस को सूचना देने का फैसला लिया. उस के बाद ही उस ने पुलिस को फोन कर घटना की जानकारी दी.

जब पुलिस इस मामले की जांचपड़ताल में लगी थी, नरगिस घर के आंगन में ही डरीसहमी सी बैठी थी. नौशाद की बताई कहानी से पुलिस को मामला समझने में देर नहीं लगी. लेकिन हैरत की बात यह थी कि 2 घंटे संदूक में बंद रहने से उस की मौत कैसे हो गई. क्योंकि बक्सा काफी बड़ा भी था और खाली भी था. सवाल यह था कि मृतक के शरीर पर चोटों के निशान कहां से आए. पुलिस को मृतक की जेब से एक मोबाइल मिला, जो उस वक्त बंद था. पुलिस ने उसे औन कर के उस की जांच की तो पता चला कि उस के फोन पर नरगिस ने ही आखिरी काल की थी.

इस मामले को ले कर पुलिस ने नरगिस से भी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ के दौरान नरगिस ने अपने पति की बताई रटीरटाई बात दोहरा दीं. उस वक्त तक रात के 12 बज चुके थे. पुलिस युवक की मौत की जांच में लगी थी. उसी दौरान मृतक के मोबाइल पर शमशाद नामक व्यक्ति का फोन आया.

फोन थानाप्रभारी गौतम ने रिसीव किया. जैसे ही उन्होंने हैलो कहा तभी दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘अरे बेटा, मैं तुम्हारा अब्बू बोल रहा हूं. तुम कहां हो? कल से तुम्हारा फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘शमशाद जी, आप कहां से बोल रहे हैं और आप का बेटा कहां गया हुआ है?’’ अजय कुमार गौतम ने शमशाद से प्रश्न किया. आवाज उन के बेटे की नहीं थी. मोबाइल किसी और के रिसीव करने से शमशाद हुसैन चिंतित हो उठे. वह तुरंत बोले, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं? यह नंबर तो मेरे बेटे महबूब आलम का है. आप के पास कहां से आया?’’

‘‘मैं कांठ थाने का थानेदार अजय कुमार गौतम बोल रहा हूं.’’

पुलिस का नाम सुनते ही शमशाद अहमद घबरा गए. उन के दिमाग में तरहतरह शंकाएं घूमने लगीं. जब उन्हें यह जानकारी मिली कि बेटे का मोबाइल पुलिस के पास है तो वे किसी अनहोनी की आशंका से परेशान हो गए. तभी अजय कुमार गौतम ने शमशाद हुसैन को बताया कि उन के बेटे के साथ एक अनहोनी हो गई है. वह तुरंत पाठंगी गांव आ जाएं. पुलिस द्वारा जानकारी मिलने पर शमशाद हुसैन अपने घर वालों के साथ पाठंगी गांव जा पहुंचे. वहां पहुंचने पर उन्हें जानकारी मिली कि उन का बेटा महबूब अब इस दुनिया में नहीं रहा. उस की संदूक में बंद होने के कारण दम घुटने से मौत हो गई है.

यह जानकारी मिलते ही शमशाद हुसैन के परिवार में मातम छा गया. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की गला घोंट कर हत्या करने की बात सामने आई. मृतक के शरीर पर भी चोटों के काफी निशान पाए गए थे, जिन से साफ जाहिर था कि मृत्यु से पहले उस के साथ मारपीट की गई थी और मृतक ने हमलावरों से काफी संघर्ष किया था. इस केस में मृतक के पिता शमशाद हुसैन की तहरीर पर पुलिस ने नरगिस, उस के पति नौशाद, ग्रामप्रधान शहजाद और दिलशाद के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने आरोपी नरगिस को उस के घर से ही गिरफ्तार कर लिया. नरगिस को थाने लाते ही पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. नरगिस और महबूब के घर वालों से पूछताछ के बाद इस केस की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

जिला मुरादाबाद में कांठ मिश्रीपुर रोड पर स्थित है गांव मोड़ा पट्टी. शमशाद हुसैन इसी गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. शमशाद हुसैन पेशे से कारपेंटर था. उस की आर्थिक स्थिति शुरू से ही मजबूत थी. उस के 6 बच्चों में महबूब आलम तीसरे नंबर का था. इस समय उस के पांचों बेटे कामधंधा कर कमाने लगे थे. महबूब ने कांठ में ही स्टील वेल्ंडिग का काम सीख लिया था. काम सीखने के बाद उस ने ठेके पर काम करना शुरू किया. धीरेधीरे शहर के आसपास उस की अच्छी जानपहचान हो गई थी. लगभग 3 साल पहले की बात है. नरगिस अपने पति नौशाद को फोन मिला रही थी. लेकिन गलती से फोन किसी और के नंबर से कनेक्ट हो गया. बातों में पता चला कि वह नंबर गांव मोड़ा पट्टी निवासी महबूब का है. महबूब से बात करना उसे अच्छा लगा.

महबूब को भी उस की बातें अच्छी लगीं. बात खत्म हो जाने के बाद महबूब ने उसी वक्त नरगिस के नंबर को अपने मोबाइल में सेव कर लिया था. उस के कई दिन बाद महबूब ने फिर से वही नंबर ट्राई किया तो फोन नरगिस ने ही उठाया. उस के बाद महबूब ने नरगिस को विश्वास में लेते हुए उस के घर की पूरी हकीकत जान ली. एक बार दोनों के बीच मोबाइल पर बात करने का सिलसिला चालू हुआ तो दोस्ती पर ही जा कर रुका. दोनों के बीच प्रेम कहानी शुरू हुई तो महबूब नरगिस के घर तक पहुंच गया. महबूब पहली बार नरगिस के घर जा कर उस से मिला तो उस ने उस का परिचय अपने बच्चों व ससुराल वालों से अपने दूर के खालू के लड़के के रूप में कराया. उस के बाद महबूब का नौशाद की गैरमौजूदगी में आनाजाना बढ़ गया. उसी आनेजाने के दौरान महबूब और नरगिस के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

नौशाद अकसर काम के सिलसिले में घर से बाहर ही रहता था. उस के तीनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे. वैसे भी महबूब का घर नरगिस के गांव से करीब 7 किलोमीटर दूर था. जब कभी नरगिस घर पर अकेली होती तो वह महबूब को फोन कर के बुला लेती. फिर दोनों मौके का लाभ उठाते हुए अपनी हसरतें पूरी करते. दोनों के बीच यह सिलसिला काफी समय तक चलता रहा. इसी दौरान महबूब कांठ छोड़ कर काम करने गोवा चला गया. महबूब के गोवा जाते ही नरगिस खोईखोई सी रहने लगी. इस के बाद भी दोनों के बीच मोबाइल पर प्रेम कहानी चलती रही. गोवा में स्टील वेल्डिंग का काम कर के महबूब ने काफी पैसे कमाए. उस कमाई का अधिकांश हिस्सा वह नरगिस पर खर्च करता.

महबूब जब कभी गोवा से अपने घर कांठ आता तो वह नरगिस के साथसाथ उस के बच्चों के लिए भी काफी गिफ्ट ले कर आता था. वह सारी रात उसी के पास सोता और फिर दिन निकलते ही अपने गांव मोड़ा पट्टी चला जाता था. महबूब का नरगिस के साथ करीब 3 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था, लेकिन उस ने इस बात की भनक अपने परिवार वालों को नहीं लगने दी थी. लेकिन नरगिस के ससुराल वाले जरूर महबूब और नरगिस के रिश्ते को ले कर शक करने लगे थे. नौशाद का भाई शमशाद ग्रामप्रधान था. नरगिस के क्रियाकलापों की वजह से गांव में उस की बहुत बदनामी हो रही थी. उस के सभी भाई परेशान थे.

नौशाद का परिवार अलग घर में रहता था. उस के भाई अपनेअपने घरों में रहते थे. जिस के कारण वह महबूब और नरगिस को रंगेहाथों पकड़ने में असफल हो रहे थे. महबूब अगस्त के महीने में घर आया और फिर गोवा वापस चला गया था. गोवा जाते ही घर पर उस की शादी की बात चली. बात तय हो जाने के बाद 18 सितंबर को रिश्ता होने की बात पक्की हो गई. जिस के लिए मजबूरी में उसे फिर से गोवा से गांव आना पड़ा. 15 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने भाई शकील के मोबाइल पर बात कर कहा था कि 18 सितंबर की सुबह वह घर पहुंच जाएगा. 16 सितंबर को वह गोवा से चल कर देर रात दिल्ली पहुंचा. दिल्ली के कीर्ति नगर में उस के जीजा गुड्डू रहते थे. वह सीधे अपने जीजा के पास चला गया.

16 सितंबर की रात को उस ने नरगिस से फोन पर बात की तो उसे पता चला कि उस का पति पानीपत, हरियाणा काम करने गया हुआ है. यह जानकारी मिलने पर उस ने सीधे नरगिस के घर जाने की योजना बना ली. उसी योजना के मुताबिक महबूब 17 सितंबर की देर रात दिल्ली से नरगिस के गांव पाठंगी पहुंचा. उस वक्त तक उस के बच्चे सो चुके थे. लेकिन नौशाद के बड़े भाई ग्राम प्रधान शहजाद को इस बात का पता चल गया था. भले ही नरगिस ने महबूब को अपना रिश्तेदार बता रखा था. लेकिन उस का वक्तबेवक्त आनाजाना ससुराल वालों को खलने लगा था. गांव में हो रही बदनामी से बचने के लिए ग्राम प्रधान शहजाद और उस का छोटा भाई दिलशाद महबूब को सबक सिखाने का मौका तलाश रहे थे.

17 सितंबर की रात नरगिस के ससुराल वालों को महबूब के आने का पता चल गया था. वे देर रात तक नरगिस के बच्चों के सोने का इंतजार करते रहे. जैसे ही उन्हें आभास हुआ कि बच्चे सो चुके हैं, दोनों भाई मौका पाते ही नौशाद के घर में घुस कर छिप गए. रात में उन्होंने नरगिस और महबूब को आपतिजनक स्थिति में देख लिया. दोनों को उस स्थिति में देखते ही शहजाद और दिलशाद का खून खौल उठा. नरगिस को उन्होंने बुरी तरह से मारापीटा. उस के बाद दोनों ने महबूब को डंडों से मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ ही देर में महबूब की मौत हो गई. इस के बाद उन्होंने उस की लाश छिपाने के उद्देश्य से घर में रखे संदूक में डाल दी. फिर वे उस की लाश ठिकाने लगाने की जुगत मे लग गए.

लेकिन उन्हें लाश ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला तो नरगिस को वही पाठ पढ़ा कर घर से गायब हो गए, जो उस ने अपने पति और पुलिस वालों को बताया था. उधर 17 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने घर फोन कर जानकारी दी थी कि वह गोवा से दिल्ली गुड्डू जीजा के घर आ गया है और कल सुबह गांव पहुंच जाएगा. उस के बाद उस का मोबाइल फोन बंद हो गया था. घर वालों ने सोचा कि शायद उस के मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी. फिर भी उन्हें तसल्ली इस बात की थी कि वह गोवा से ठीकठाक दिल्ली पहुंच गया था. उस के बाद भी उस के परिवार वाले बीचबीच में उस का नंबर मिलाते रहे. लेकिन उस से बात नहीं हो पा रही थी.

जब काफी समय बाद भी महबूब से बात नहीं हो सकी. तो शमशाद हुसैन ने अपने दामाद गुड्डू को फोन किया. गुड्डू ने बताया कि महबूब उन के घर 16 सितंबर की रात पहुंचा था और 17 सितंबर की दोपहर में ही वह घर जाने की बात कह कर चला गया था. यह सुन कर घर वाले परेशान थे. पुलिस द्वारा फोन करने पर ही उन्हें हत्या की जानकारी हुई. इस केस के खुलते ही पुलिस ने शमशाद की तहरीर पर मृतक महबूब की प्रेमिका नरगिस, उस के पति नौशाद, जेठ शहजाद तथा दिलशाद के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया. हालांकि नरगिस और उस के पति नौशाद ने स्वयं स्वीकार किया था कि हत्या से उन का कोई लेनादेना नहीं है. नौशाद ने बताया कि हत्या वाली रात वह पानीपत में था. जांच में बेकुसूर पाए जाने पर पुलिस ने नौशाद को छोड़ दिया.

18 सितंबर को पुलिस ने नरगिस को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. अन्य अभियुक्तों की तलाश जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime : प्रेमिका के पहले प्रेमी ने दूसरे प्रेमी को बेरहमी से मार डाला

UP Crime : उस का नाम था मायरा बानो, लेकिन उस की सूरत और सीरत की वजह से सब उसे चांदनी कहने लगे थे. चांदनी का पहला प्यार था इमरान और इमरान का पहला प्यार थी चांदनी. डाक्टर संजय भदौरिया ने जब चांदनी पर नजर डाली तो…

पेशे से डाक्टर संजय सिंह भदौरिया बरेली के धनेटा-शीशगढ़ मार्ग से सटे आनंदपुर गांव में रहते थे. उन के पिता राजेंद्र सिंह गांव के संपन्न किसान थे. परिवार में मां और पिता के अलावा एक छोटा भाई हरिओम और एक बहन पूनम थी. पूनम का विवाह हो चुका था. संजय डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद 1999 में बरेली के एक अस्पताल में अपनी सेवाएं देने लगे. सन 2000 में नीलम से उन का विवाह हो गया. लेकिन काफी समय बाद भी उन्हें संतान सुख नहीं मिला. छोटे भाई हरिओम का विवाह बाद में हुआ. हरिओम के 3 बेटे हुए. संजय ने उन्हीं में से एक बेटे को गोद ले लिया था. कई अस्पतालों में अपनी सेवाएं देने के बाद डा. संजय ने अपना अस्पताल खोलने का निश्चय किया.

5 साल पहले उन्होने गौरीशंकर गौडि़या में किराए पर एक इमारत ले कर अस्पताल खोला. उन्होंने अस्पताल का नाम रखा ‘आनंद जीवन हौस्पिटल’. अस्पताल अच्छा चलने लगा. लेकिन घर से काफी दूर होने के कारण आनेजाने में दिक्कत होती थी. इसलिए डा. संजय कहीं घर के नजदीक अस्पताल खोलने पर विचार करने लगे. 6 महीने तक गौडि़या में अस्पताल चलाने के बाद संजय ने अपने गांव आनंदपुर से 2 किलोमीटर की दूरी पर विकसित गांव दुनका में एक इमारत किराए पर ले ली. इमारत दुनका गांव निवासी नत्थूलाल की थी, जिसे संजय ने 8 हजार रुपए मासिक किराए पर लिया था. संजय ने इमारत में बने हाल को 2 हिस्सों में बांट दिया.

एक हिस्से में बैठ कर वह मरीजों को देखते थे. जबकि दूसरा हिस्सा एडमिट किए गए मरीजों के लिए था. मरीजों को दवा भी वहीं दी जाती थी, जबकि यह काम उन के छोटे भाई हरिओम सिंह भदौरिया करते थे. हरिओम बड़े भाई के अन्य कामों में भी सहयोग करते थे. संजय और हरिओम के मामा नत्थू सिंह भी उन के साथ लगे रहते थे. संजय कई सालों से हिंदू युवा वाहिनी से भी जुडे़ थे. पिछले 5 सालों में संजय का अस्पताल अच्छा चल निकला था. रात में वह अधिकतर अस्पताल में ही रुकते थे. घर जाते तो कुछ ही देर में वापस लौट आते थे. रात में वह अस्पताल परिसर में चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सोते थे. इमारत के बाहर लोहे का एक बड़ा सा गेट था, जो दिन में खुला रहता था लेकिन रात में बंद कर दिया जाता था. रात में कोई मरीज आता तो गेट खोल दिया जाता था.

16/17 सितंबर की रात डा. संजय अस्पताल परिसर में चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सो गए. उन के भाई हरिओम अस्पताल के अंदर मामा नत्थू सिंह के साथ सोए थे. 17 सितंबर की सुबह 6 बजे हरिओम उठ कर बाहर आए तो बड़े भाई संजय को मृत पाया. किसी ने बड़ी बेरहमी से उन की हत्या कर दी थी. हरिओम के मुंह से चीख निकल गई. चीख की आवाज सुन कर मामा नत्थू सिंह भी वहां आ गए. भांजे को मरा पाया तो वह भी सकते में आ गए. हरिओम ने अपने घर वालों को सूचना देने के बाद शाही थाना पुलिस को घटना के बारे में बता दिया. थोड़ी देर में शाही थाना इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह राणा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

हत्यारा इमरान था हिंदू युवा वाहिनी के तहसील अध्यक्ष डा. संजय भदौरिया की हत्या की खबर फैलते देर नहीं लगी. हिंदू नेता की हत्या से पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया. कई थानों की पुलिस और फील्ड यूनिट के साथ एसएसपी रोहित सिंह सजवान स्वयं मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के गले, चेहरे, पेट व आंख पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे. हत्या इतनी बेदर्दी से की गई थी जैसे हत्यारे को मृतक से बेइंतहा नफरत रही हो. अस्पताल की इमारत के मालिक दुनका में रहने वाले नत्थूलाल थे. पीछे की ओर उन के भाई की दुकानों के टीन शेड में सीसीटीवी कैमरे लगे थे. पुलिस ने उन कैमरों की रिकौर्डिंग की जांच की.

रिकार्डिंग में रात साढ़े 3 बजे के करीब एक युवक अस्पताल में खड़ी टाटा मैजिक के पीछे से निकलते दिखा. वह संजय की चारपाई के नजदीक आया. फिर उस ने मच्छरदानी हटाते ही धारदार छुरे से संजय पर वार करने शुरू कर दिए. एक मिनट के अंदर उस ने संजय का काम तमाम कर दिया और जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से वापस लौट गया. हत्यारे युवक को हरिओम ने पहचान लिया. वह दुनका का ही रहने वाला इमरान था. हत्यारे की पहचान होते ही पुलिस अधिकरियों ने उस की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए. पुलिस की कई टीमें इमरान की तलाश में लग गईं. इंसपेक्टर वीरेंद्र राणा की टीम ने दोपहर पौने एक बजे इमरान को रतनपुरा के जंगल में खोज निकाला. पुलिस को आया देख इमरान ने 315 बोर के तमंचे से पुलिस पर फायर कर दिया, जिस से कोई पुलिसकर्मी हताहत नहीं हुआ.

जवाब में पुलिस ने उस के पैर को निशाना बना कर गोली चला दी, जो सीधे इमरान के पैर में लगी. गोली लगते ही इमरान के हाथ से तमंचा छूट गया और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. पुलिस ने उसे दबोच लिया. इमरान के पास से पुलिस ने एक तमंचा, एक खोखा कारतूस, 2 जिंदा कारतूस और आलाकत्ल छुरा बरामद कर लिया. थाने ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो पूरा मामला आइने की तरह साफ हो गया. इमरान शाही थाना क्षेत्र के गांव दुनका में रहता था. वह भाड़े पर टाटा मैजिक चलाता था. इस से पहले वह संजय के अस्पताल के मालिक नत्थूलाल के यहां ड्राइवर था. इमरान की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. उस के पिता छोटे तांगा चलाते थे. इमरान 3 भाइयों में सब से बड़ा था.

इमरान के घर से कुछ दूरी पर चांदनी उर्फ मायरा बानो (परिवर्तित नाम) रहती थी. नाम के अनुसार उस के रूप की चांदनी भी लोगों को लुभाती थी. उम्र के 18वें बसंत में चांदनी का यौवन अपने चरम पर था. खूबसूरत देहयष्टि वाली चांदनी युवकों से बात करने में हिचकती थी, वह बातबात में शरमा जाती थी. यौवन द्वार पर आते ही उस में कई परिवर्तन आ गए थे, शारीरिक रूप से भी और सोच में भी. कई युवक उस के आगेपीछे मंडराते थे, लेकिन चांदनी इमरान को पसंद करती थी. इमरान काफी स्मार्ट था, वह उस की नजरों से हो कर दिल में उतर गया था. इमरान भी उस के आगेपीछे मंडराता था. दोनों एकदूसरे से परिचित थे. घर वाले भी एकदूसरे के घर आतेजाते थे.

ऐसे में उन के बीच बातचीत होती रहती थी. लेकिन जब से उन के बीच प्यार के अंकुर फूटने लगे थे, तब से उन के बीच संकोच की दीवार सी खड़ी हो गई थी. जब भी इमरान उस की आंखों के सामने होता तो उस की निगाहें उसी पर जमी रहतीं. चेहरे पर इस की खुशी साफ झलकती थी. इमरान को भी उस का इस तरह से देखना भाता था, क्योंकि उस का दिल तो वैसे भी चांदनी के प्यार का मरीज था. दोनों की आंखों से एकदूसरे के लिए प्यार साफ झलकता था. दोनों इस बात को महसूस भी करते थे, लेकिन बात जुबां पर नहीं आ पाती थी. शुरू हो गई प्रेम कहानी एक दिन चांदनी जब इमरान के घर गई तो उस समय वह घर में अकेला था. चांदनी को देखते ही इमरान का दिल तेजी से धड़कने लगा.

उसे लगा कि दिल की बात कहने का इस से अच्छा मौका नहीं मिलेगा. इमरान ने उसे कमरे में बैठाया और फटाफट 2 कप चाय बना लाया. चाय का घूंट भर कर चांदनी उस से दिल्लगी करती हुई बोली, ‘‘चाय तो बहुत अच्छी बनी है. बेहतर होगा कहीं चाय की दुकान खोल लो. खूब बिक्री होगी.’’

‘‘अगर तुम रोजाना दुकान पर आ कर चाय पीने का वादा करो तो मैं दुकान भी खोल लूंगा.’’ इमरान ने चांदनी की बात का जवाब उसी अंदाज में दिया तो चांदनी लाजवाब हो गई.

दोनों इसी बात पर काफी देर हंसते रहे, फिर इमरान गंभीर हो कर बोला, ‘‘चांदनी, मुझे तुम से एक बात कहनी थी.’’

‘‘हां, कहो न.’’

‘‘सोचता हूं कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

‘‘जब तक कहोगे नहीं कि बात क्या है तो मुझे कैसे पता चलेगा कि अच्छा मानना है कि बुरा.’’

‘‘चांदनी, मैं तुम से दिलोजान से प्यार करता हूं. ये प्यार आज का नहीं बरसों का है जो आज जुबां पर आया है. ये आंखें तो बस तुम्हें ही देखना पसंद करती हैं, तुम्हारे पास रहने से दिल को करार आता है. तुम्हारे प्यार में मैं इतना दीवाना हो चुका हूं कि अगर तुम ने मेरा प्यार स्वीकार नहीं किया तो मैं पागल हो जाऊंगा.’’

इमरान के दिल की बात जुबां पर आ गई. सुन कर चांदनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. पलकें झुक गईं, होंठों ने कुछ कहना चाहा लेकिन जुबां ने साथ नहीं दिया. चांदनी की यह हालत देख कर इमरान बोला, ‘‘कुछ तो कहो चांदनी. क्या मैं इस लायक नहीं कि तुम से प्यार कर के तुम्हारा साथ पा सकूं.’’

‘‘क्या कहना ही जरूरी है, तुम अपने आप को दीवाना कहते हो और मेरी आंखों में बसी चाहत को नहीं देख सकते. सच पूछो तो जो हाल तुम्हारा है, वही हाल मेरा भी है. मैं ने भी तुम्हें बहुत पहले से दिल में बसा लिया था. पर डरती थी कि कहीं यह मेरा एकतरफा प्यार न हो.’’ चांदनी ने अपनी चाहत का इजहार कर दिया तो इमरान खुशी से झूम उठा. उसे लगा जैसे सारी दुनिया की दौलत चांदनी के रूप में उस की झोली में आ समाई हो. एक बार दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो फिर उन के मिलनेजुलने का सिलसिला बढ़ गया. अब दोनों रोज गांव के बाहर एक सुनसान जगह पर मिलने लगे. वहां दोनों एकदूसरे पर जम कर प्यार बरसाते और हमेशा एकदूसरे का साथ निभाने की कसमें खाते. जैसेजैसे समय बीतता गया, दोनों की चाहत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई.

इसी बीच चांदनी को पेट दर्द की समस्या हुई तो उस ने इमरान को बताया. इमरान डा. संजय भदौरिया से परिचित था. इसलिए वह चांदनी को इलाज के लिए संजय के अस्पताल में ले आया. डा. संजय ने चांदनी का चैकअप किया, फिर कुछ दवाइयां लिख दीं, जोकि उन के हौस्पिटल के मैडिकल स्टोर में उपलब्ध थीं, हरिओम ने पर्चे में लिखी दवाइयां दे दीं. चांदनी को देखते और उसे छूते समय संजय को एक सुखद अनूभूति हुई थी. चांदनी की खूबसूरती को देख संजय की आंखें चुंधिया गई थीं, दिल में भी उमंगें उठने लगी थीं. उस दिन के बाद चांदनी संजय के पास दवा लेने के लिए अकेले ही आने लगी. संजय उसे अकेले में देखता और उस से खूब बातें करता. बातोंबातों में उस ने चांदनी को अपने प्रभाव में लेना शुरू कर दिया. उस ने चांदनी से दवा के पैसे लेना भी बंद कर दिया था.

डा. संजय ने छीना इमरान का प्यार चांदनी भी संजय से खुल कर बातें करती थी. एक दिन संजय ने उस से कहा, ‘‘चांदनी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. लगता है मैं तुम्हें चाहने लगा हूं.’’

यह कह कर संजय ने चांदनी के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं. यह सुन कर चांदनी पल भर के लिए चौंकी, फिर बोली, ‘‘आप मुझ से उम्र में बहुत बड़े हैं और शादीशुदा भी. ऐसे में प्यार मुझ से…’’

‘‘पगली, प्यार उम्र और बंधन को कहां देखता है, जिस से होना होता है, हो जाता है. तुम मुझे अब मिली हो, अगर पहले मिल जाती तो मैं तुम से ही शादी करता. खैर अब वह तो हो नहीं सकता, उस की क्या बात करें. मैं तुम्हारा पूरा ख्याल रखूंगा, तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

‘‘मैं इमरान से प्यार करती हूं और हम दोनों शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘इमरान से प्यार कर के तुम्हें क्या मिलेगा? वह एक मामूली इंसान है. तुम्हारी खुशियों का खयाल नहीं रख पाएगा. मेरे पास पैसा है, शोहरत है. मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. हर तरह से…’’

‘‘आप की बात तो सही है लेकिन…’’ दुविधा में पड़ी चांदनी इस से आगे कुछ नहीं बोल पाई.

‘‘सोच लो, विचार कर लो, वैसे भी जिंदगी के अहम फैसले जल्दबाजी में नहीं लिए जाते. कोई जल्दी नहीं, आराम से सोच कर बता देना.’’

इस के बाद चांदनी अस्पताल से घर लौट आई. उस के दिमाग में तरहतरह के विचार घुमड़घुमड़ रहे थे. इमरान उस का प्यार था लेकिन उस के सिर्फ प्यार से अच्छी जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती थी. अच्छी जिंदगी के लिए पैसों की जरूरत होती है, वह जरूरत संजय से पूरी हो सकती थी. संजय के प्यार को स्वीकार कर के वह अच्छी जिंदगी गुजार सकती थी. आगे चल कर वह उसे शादी के लिए भी मना सकती थी, नहीं तो वह उस की दूसरी बीवी की तरह ताउम्र गुजार सकती थी. चांदनी का मन बदल गया और उस का फैसला संजय के हक में गया था. अगले ही दिन चांदनी संजय के अस्पताल पहुंच कर उस से मिली. उस के चेहरे की खुशी देख कर संजय जान गया था कि चांदनी ने उस का होने का फैसला कर लिया है. फिर भी अंजान बनते हुए उस ने चांदनी से पूछ लिया, ‘‘तो चांदनी, तुम ने क्या सोचा…इमरान या मैं?’’

‘‘जाहिर है आप, आप को न चुनती तो मैं यहां वापस आती भी नहीं.’’ चांदनी ने बड़ी अदा से मुसकराते हुए कहा. संजय उस का फैसला सुन कर खुश हो गया. उस दिन के बाद से संजय और चांदनी का मिलनाजुलना बढ़ गया. दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए. इन नजदीकियों के बाद चांदनी ने इमरान से दूरी बनानी शुरू कर दी. चांदनी का अपने प्रति रूखा व्यवहार देख कर इमरान को उस पर शक हो गया. वह उस पर नजर रखने लगा. जल्द ही उसे सारी सच्चाई पता चल गई. इमरान ने बदले की ठान ली  इस बात को ले कर वह चांदनी से तो झगड़ा ही, संजय से भी लड़ा. संजय ने उसे डांटडपट कर वहां से भगा दिया. अपनी प्रेमिका को अपने से दूर जाते देख कर इमरान बौखला गया. वह उस दिन को कोसने लगा जब वह चांदनी को इलाज के लिए संजय के पास ले गया था.

संजय ने उस की पीठ में छुरा घोंपा था. इसलिए उस ने संजय की जिंदगी छीन लेने का फैसला कर लिया. 16/17 सितंबर की रात साढ़े 3 बजे के करीब वह संजय के अस्पताल में घुसा. उस ने संजय को बाहर चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर सोते देखा. वह चारपाई के नजदीक पहुंचा और मच्छरदानी हटा कर साथ लाए छुरे से संजय पर ताबड़तोड़ प्रहार करने शुरू कर दिए. सोता हुआ संजय चीख तक न सका और उस की मौत हो गई. संजय को मौत के घाट उतारने के बाद इमरान जिस रास्ते से आया था, उसी रास्ते से अस्पताल से बाहर निकल गया. वहां से जाने के बाद वह रतनपुरा के जंगल में जा कर छिप गया. लेकिन उस का गुनाह तीसरी आंख में कैद हो गया था, जिस के बाद पुलिस को उस तक पहुंचने में देर नहीं लगी.

इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह राणा ने हरिओम को वादी बना कर इमरान के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस के अलावा मुठभेड़ के दौरान पुलिस पर जानलेवा हमला करने पर भी उस के खिलाफ धारा 307 का भी मुकदमा दर्ज किया गया. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद इमरान को न्यायालय में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधा

Love Story : प्रेमी कपल को गेहूं के खेत बुलाकर गला दबाया और शव को कुएं में फेंका

Love Story : एक ही गांव में रहने वाले अंकित और सुलेखा साथसाथ पढ़ते थे. नाबालिग होते हुए भी दोनों को एकदूसरे से प्यार हो गया. धीरेधीरे उन के प्यार के चर्चे कालेज से होते हुए गांव तक पहुंच गए. फिर एक दिन उन के प्यार का ऐसा हश्र हुआ कि…

इटावा जिले के दिवरासई गांव का रहने वाला मेवाराम यादव अपनी गेहूं की पकी फसल काट रहा था. साथ में कई मजदूर भी कटाई कर रहे थे. दोपहर करीब 12  बजे प्यास लगी तो मेवाराम ने मजदूर सुदामा को पानी लाने प्रदीप कुमार के कुएं पर भेजा. सुदामा कुएं पर पहुंचा तो उसे कुएं से बदबू आती महसूस हुई. जिज्ञासावश उस ने कुएं में झांका तो उस के मुंह से चीख निकल गई. कुएं में लाश पड़ी थी. सुदामा की चीख सुन कर मेवाराम और मजदूर भी कुएं के पास पहुंच गए. इस के बाद तो पूरे गांव में शोर मच गया. यह बात 2 अप्रैल, 2020 की है.

अपने कुएं में लाश पड़ी होने की जानकारी प्रदीप कुमार शाक्य को हुई तो उस का माथा ठनका. क्योंकि उस का 17 वर्षीय बेटा अंकित 30 मार्च की शाम 7 बजे घर से निकला था और वापस नहीं लौटा था. उस ने घर वालों के साथ गांव का कोनाकोना छान मारा था, लेकिन अंकित का कुछ भी पता नहीं चला. वह बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराने पुलिस के पास भी गया था लेकिन पुलिस ने उसे टरका दिया था. प्रदीप के मन में तमाम आशंकाओं के बादल उमड़ने लगे. इन्हीं आशंकाओं के बीच उस ने पत्नी दिलीप कुमारी तथा घर के अन्य लोगों को साथ लिया और खेत पर स्थित अपने कुएं पर जा पहुंचा. उस समय वहां दरजनों लोग थे, जो कुएं में झांकझांक कर लाश को देख रहे थे.

प्रदीप कुमार और उस के घर के अन्य लोगों ने भी कुएं में झांक कर लाश देखी, पर यह सुनिश्चित कर पाना मुश्किल था कि लाश किस की है. इस बीच गांव के चौकीदार ने भरथना थाने में फोन कर यह जानकारी दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी बलिराज शाही पुलिस टीम के साथ दिवरासई गांव स्थित उस कुएं पर पहुंच गए, जहां लाश पड़ी थी. गांव के 2 युवकों सूरज और राजू को कुएं में उतारा गया. दोनों अच्छे तैराक थे. कुएं में उतरते ही सूरज चिल्लाया, ‘‘सर, कुएं में एक नहीं 2 लाशें हैं.’’ यह सुन कर पुलिस के साथसाथ गांव वालों की भी सांसें अटक गईं. उन युवकों के सहयोग से पुलिस ने रस्सी के सहारे खींच कर दोनों शव कुएं से बाहर निकलवाए. शवों को देख कर वहां मौजूद लोगों ने उन की शिनाख्त कर ली. एक शव प्रदीप कुमार शाक्य के बेटे अंकित का था और दूसरा 16 वर्षीया सुलेखा का, जो गांव के ही रामप्रसाद की बेटी थी.

रामप्रसाद तथा उस के घर का कोई सदस्य वहां मौजूद नहीं था. थानाप्रभारी ने उस के घर सूचना भिजवाई. पर सूचना के बाद भी उस के घर से कोई नहीं आया. घटनास्थल पर मौजूद प्रदीप कुमार व उस की पत्नी दिलीप कुमारी अपने 17 वर्षीय बेटे अंकित के शव को देख कर दहाड़ें मार कर रो रहे थे. परिवार के अन्य लोगों का भी रोरो कर बुरा हाल था. इसी बीच थानाप्रभारी बलिराज शाही ने कुएं से युवकयुवती के शव मिलने की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में एसएसपी आकाश तोमर तथा सीओ (भरथना) आलोक प्रसाद आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर मृतक के घर वालों तथा अन्य लोगों से घटना के संबंध में जानकारी जुटाई. जिस से पता चला कि अंकित और सुलेखा एक ही कालेज में पढ़ते थे, दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. दोनों के घर वाले इस का विरोध करते थे. 2 दिन पहले ही दोनों देर शाम घर से निकले थे.

जामातलाशी में उन के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. पुलिस अधिकारियों को यह जान कर आश्चर्य हुआ कि सुलेखा के घर वाले वहां नहीं आए थे. लोगों ने बताया कि मृतका के घर पर केवल महिलाएं हैं. पुरुष फरार हैं. सूचना के बावजूद घर की महिलाएं भी मृतका का शव देखने नहीं आईं, यह बात पुलिस की समझ से बाहर थी. इस से पुलिस अधिकारियों को लगा कि यह मामला औनर किलिंग का हो सकता है. अंकित की मां दिलीप कुमारी भी चीखचीख कर कह रही थी कि उस के बेटे की हत्या सुलेखा के घर वालों ने की है. हत्या कर के शव कुएं में फेंक दिया ताकि लोग समझें कि दोनों ने आत्महत्या की है. मामला हत्या का था या आत्महत्या का, यह बात तो पोस्टमार्टम के बाद ही पता चल सकती थी. पुलिस ने अंकित व सुलेखा के शव पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल इटावा भिजवा दिए.

3 अप्रैल, 2020 को 3 डाक्टरों के पैनल ने दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया. थानाप्रभारी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ी तो चौंके. क्योंकि मामला आत्महत्या का नहीं, हत्या का था. उन की मौत पानी में डूबने से नहीं बल्कि दम घुटने से हुई थी. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसएसपी आकाश तोमर को दे दी. एसएसपी ने प्रेमी युगल हत्याकांड को गंभीरता से लिया और कातिलों को पकड़ने के लिए सीओ आलोक प्रसाद की निगरानी में एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में थानाप्रभारी बलिराज शाही, एसआई अनिल कुमार, महिला सिपाही सरिता सिंह, एसओजी प्रभारी सत्येंद्र सिंह तथा सर्विलांस प्रभारी बेचैन सिंह को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक अंकित के घर वालों से पूछताछ की. मृतक की मां दिलीप कुमारी ने बताया कि 30 मार्च को 7 बजे अंकित के मोबाइल पर एक काल आई थी. उस ने काल रिसीव कर बात की फिर घर से चला गया. उस के बाद वापस नहीं लौटा. 2 दिन बाद उस की लाश मिली. उस ने अंकित की हत्या का आरोप सुलेखा के घर वालों पर लगाया. अंकित का मोबाइल घर पर ही था, जिसे वह चार्जिंग पर लगा गया था. पुलिस टीम ने मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस ने जब उस का मोबाइल खंगाला तो पता चला कि उस के मोबाइल पर अंतिम काल 30 मार्च की शाम 7 बजे आई थी. पुलिस ने उस नंबर की जानकारी जुटाई तो पता चला वह नंबर सुलेखा के चचेरे भाई सौरभ का है. पर सौरभ सहित घर के अन्य सदस्य फरार थे.

पुलिस टीम सुलेखा के घर पहुंची तो उस की मां सीता देवी और बहनें फूटफूट कर रोने लगीं. उन्होंने बताया कि सुलेखा की हत्या अंकित के घर वालों ने की है. घर के पुरुष बदनामी और पुलिस के डर से फरार हो गए हैं. सीता देवी ने यह बात स्वीकार की कि सुलेखा अंकित से प्यार करती थी और परिवार के लोग विरोध करते थे. सुलेखा का मोबाइल फोन भी घर पर ही था. पुलिस ने उस का मोबाइल अपने पास सुरक्षित रख लिया. प्रेमी युगल की हत्या का इलजाम दोनों परिवार एकदूसरे पर लगा रहे थे. पुलिस परेशान थी कि आखिर अंकित और सुलेखा का कातिल कौन सा परिवार है. इस का पता लगाने के लिए पुलिस ने सुलेखा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि सुलेखा 2 नंबरों पर दिन में कईकई बार बात करती थी.

इन में एक नंबर अंकित का था और दूसरा अंकित की चचेरी बहन आरती का था, जो उस की सहेली थी और उस के साथ ही पढ़ती थी. पुलिस को लगा कि आरती से सच्चाई पता चल सकती है. 4 अप्रैल की रात 11 बजे पुलिस टीम अंकित के चाचा रामकुमार के घर पहुंची और पूछताछ के बहाने उस की बेटी आरती को जीप में बिठा लिया. घर वालों ने रात में बेटी को थाने ले जाने का विरोध किया तो पुलिस ने कहा कि उस से कुछ पूछताछ करनी है. थाने में पुलिस ने आरती को प्रताडि़त कर पूछताछ शुरू की. दरअसल पुलिस चाहती थी कि आरती यह स्वीकार कर ले कि प्रेमी युगल की हत्या अंकित के घर वालों ने की है. इस बीच आरती के पिता और भाई थाने पहुंच गए तो उन दोनों को भी जम कर पीटा गया. जब आरती नहीं टूटी तो पुलिस उसे उस के घर छोड़ गई.

आरती एवं उस के घर वालों ने एसएसपी आकाश तोमर से प्रताड़ना की शिकायत की. इस पर एसएसपी ने थानाप्रभारी बलिराज शाही को फटकार लगाई, साथ ही सीओ से भी बात की. उन्होंने कहा कि वह केस को वर्कआउट करें, लेकिन किसी को अनावश्यक प्रताडि़त न करें. एसएसपी की हिदायत के बाद पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाते हुए मृतका सुलेखा के पिता, भाई, चाचा और चचेरे भाई पर शिकंजा कस दिया. पुलिस टीम ने उन के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही उन की टोह के लिए मुखबिरों को भी लगा दिया. यही नहीं, पुलिस ने घर जा कर मृतका सुलेखा की बहन बरखा से भी मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की.

बरखा ने बताया कि पिता, चाचा व भाई सुलेखा को बहलाफुसला कर गेहूं के खेत पर ले गए थे. उस के बाद वह घर वापस नहीं आई. बरखा के बयान से स्पष्ट हो गया कि सुलेखा व उस के प्रेमी अंकित की हत्या उस के घर वालों ने ही की थी, अत: पुलिस ने सुलेखा के पिता रामप्रसाद, भाई सनी कुमार, चाचा राजीव उर्फ राजी तथा चचेरे भाई सौरभ को गिरफ्तार करने के लिए कई जगह ताबड़तोड़ दबिश डालीं, लेकिन वे लोग पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े. हालांकि उन की लोकेशन भरथना के आसपास के गांवों की मिल रही थी. 7 अप्रैल की सुबह करीब 6 बजे पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि इटावा कन्नौज हाइवे पर स्थित झिझुआ मोड़ गेट के पास रामप्रसाद अपने भाई राजीव, बेटे सनी और भतीजे सौरभ के साथ मौजूद है.

यह सूचना मिलते ही पुलिस टीम झिझुआ मोड़ गेट के पास पहुंच गई और घेराबंदी कर चारों को गिरफ्तार कर लिया. उन सभी को थाना भरथना लाया गया. थाने में उन से सुलेखा और अंकित की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो वे टूट गए. उन चारों से गहन पूछताछ के बाद पता चला कि प्रेमी युगल की हत्या का मास्टरमाइंड सुलेखा का चाचा राजीव उर्फ राजी था. उस ने ही पूरा षडयंत्र रचा था और घर के अन्य लोगों को उकसाया था. चूंकि हत्यारोपियों ने जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी बलिराज शाही ने मृतका के पिता प्रदीप शाक्य की ओर से भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत रामप्रसाद, राजीव उर्फ राजी, सनी कुमार तथा सौरभ कुमार के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस जांच में नादान प्रेमियों की हत्या की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के थाना भरथना क्षेत्र में एक गांव है दिवरासई. इसी गांव में रामप्रसाद अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सीता के अलावा 2 बेटे सनी और मनी तथा 4 बेटियां थीं. जिन में सुलेखा तीसरे नंबर की थी. रामप्रसाद के पास 10 बीघा जमीन थी. रामप्रसाद का एक अन्य भाई राजीव प्रसाद था, जिसे गांव के लोग राजी कहते थे. दोनों भाइयों के बीच जमीन व मकान का बंटवारा हो चुका था. राजीव दबंग था, पढ़ालिखा भी. किसानी के साथ वह किराने की दुकान भी चलाता था. दुकान पर उस का बेटा सौरभ बैठता था. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. सुलेखा और बरखा के अलावा सभी बहनों की शादी हो चुकी थी. बरखा 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. घर के कामों के साथसाथ वह पढ़ती भी थी.

रामप्रसाद के पड़ोस में प्रदीप कुमार शाक्य का मकान था. उस के परिवार में पत्नी दिलीप कुमारी के अलावा 2 बेटे अमन और अंकित थे. प्रदीप कुमार शाक्य खेतीकिसानी के अलावा गल्ले का व्यवसाय भी करता था. इस से उसे अच्छी कमाई हो जाती थी. उन का 17 वर्षीय बेटा अंकित 11वीं में पढ़ रहा था. पढ़ाई के साथसाथ वह पिता के गल्ले के काम में हाथ बंटाता था. रामप्रसाद व प्रदीप कुमार हालांकि अलगअलग जातिबिरादरी के थे, लेकिन पड़ोसी होने के नाते दोनों परिवारों में मधुर संबंध थे. एकदूसरे के सुखदुख में बराबर शरीक होते थे. सुलेखा और अंकित हमउम्र थे. बचपन से ही दोनों साथ खेलेबढ़े थे. उन में खूब पटती थी.

दोनों अब जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे. इसलिए वे साथसाथ खेल तो नहीं पाते थे पर आंखों से एकदूसरे को मूक संदेश देने लगे थे. अंकित की शरारत पर सुलेखा शरमा जाती तो अंकित उसे छूते ही मदहोशी के आलम में पहुंच जाता था. हकीकत यह थी कि सुलेखा उस के दिल की गहराइयों तक समा चुकी थी. वह रातदिन उसी के ख्वाब देखता था. सुलेखा और अंकित एक ही कालेज में पढ़ते थे. सुलेखा अंकित की चचेरी बहन आरती के साथ कालेज जाती थी. वह उस की प्रिय सहेली थी और उसी की कक्षा में पढ़ती थी. एक दिन सुलेखा कालेज जा रही थी तभी अंकित उसे रास्ते में मिल गया. अंकित ने इशारे से उसे पेड़ की ओट में बुलाया. दोनों की आंखें चार हुईं और दिल धड़कने लगे.

अंकित ने अनायास ही सुलेखा का हाथ थामते हुए कहा, ‘‘सुलेखा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारा खूबसूरत चेहरा हर समय मेरी आंखों के सामने घूमता रहता है.’’

सुलेखा नजरें नीची कर के मंदमंद मुसकराती हुई पैर के अंगूठे से मिट्टी खुरचती रही. उस की खामोशी से अंकित को उस के दिल की बात पता चल गई. वह समझ गया कि जो हाल उस का है, वही सुलेखा का भी है. अंकित ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘कुछ तो बोलो, मैं तुम्हारा जवाब सुनने को बेचैन हूं. अगर तुम्हें मेरी बात अच्छी नहीं लगी तो मुझे डांट दो. लेकिन एक बात जान लो सुलेखा कि अगर तुम ने इनकार किया तो तुम्हारी कसम मैं जान दे दूंगा. तुम्हारे बिना अब मैं जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता.’’

सुलेखा ने आंखें फाड़ कर अंकित को देखा और मुसकराते हुए बोली, ‘‘अंकित, मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूं जितना तुम मुझे करते हो. मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी कि तुम मुझ से यह बात कहो, लेकिन तुम तो निरे बुद्धू हो.’’ अपनी बात कह कर वह घर की तरफ चल दी. जवाब में अंकित ने कहा, ‘‘सुलेखा, सचमुच मैं बुद्धू हूं, डरपोक हूं. तभी तो सब कुछ जानते हुए भी तुम्हारे सामने नहीं आ पाता था.’’

इस के बाद अंकित और सुलेखा का प्यार परवान चढ़ने लगा. सुलेखा और अंकित घर से कालेज जाने को निकलते लेकिन वे कालेज न जा कर बागबगीचे में बैठ कर प्यारभरी बातें करते. एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ा तो दोनों शारीरिक मिलन के लिए लालायित रहने लगे. और एक दिन उन की यह हसरत भी पूरी हो गई. समय बीतता रहा. धीरेधीरे दोनों के प्यार की खुशबू स्कूलकालेज के साथसाथ गांव की गलियों में फैलने लगी. एक कान से दूसरे कान होती हुई यह बात रामप्रसाद के कानों तक पहुंची तो वह सन्न रह गया. उस ने बेटी को डांटने के बजाए प्यार से समझाया, ‘‘सुलेखा, जब तक तेरा बचपन रहा, मैं ने तुझ पर कोई पाबंदी नहीं लगाई. लेकिन अब तू सयानी हो गई है, इसलिए अंकित के साथ चोरीछिपे बतियाना छोड़ दे. तुझे और अंकित को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. इसलिए मेरी इज्जत की खातिर तू उस का साथ छोड़ दे. इसी में हम सब की भलाई है.’’

‘‘पापा, लोग यूं ही बातें बनाते हैं. हमारे बीच कोई गलत संबंध नहीं हैं. मैं अंकित से पढ़ाई के बारे में बातचीत कर लेती हूं.’’ सुलेखा ने झूठ बोला. रामप्रसाद ने सुलेखा की बातों पर विश्वास कर लिया. इस के बाद कुछ रोज सुलेखा अंकित से कटी रही. हालांकि चोरीछिपे दोनों मोबाइल पर बतिया लेते थे. उस के बाद वह पुराने ढर्रे पर आ गई. एक दिन सुलेखा घर में अकेली थी, तभी अंकित आ गया. उसे देखते ही सुलेखा चहक उठी. सूना घर देख कर अंकित ने उसे अपने आगोश में भर लिया, ‘‘लगता है, तुझे मेरा ही इंतजार था.’’

‘‘क्यों, तुम्हें मेरा इंतजार नहीं रहता क्या?’’ सुलेखा ने आंखें नचाते हुए कहा, ‘‘छोड़ो मुझे, दरवाजा खुला है.’’

अंकित को लगा मौका अच्छा है. सुलेखा भी मूड में थी. उस ने फौरन दरवाजा बंद किया और लौट कर जैसे ही सुलेखा का हाथ पकड़ा, वह अमरबेल की तरह उस से लिपट गई. फिर दोनों सुधबुध खो बैठे. अवैध संबंधों का सिलसिला इसी तरह चलता रहा. लेकिन यह रिश्ता कब तक छिपा रहता. एक दिन सुलेखा की मां सीता अपनी बड़ी बेटी बरखा के साथ पड़ोसी के घर गई थी. कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम था. एकांत मिलते ही दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उसी समय अचानक सीता आ गई.  सुलेखा और अंकित को आलिंगनबद्ध देख कर सीता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. अंकित को खरीखोटी सुनाते हुए वह उसे थप्पड़ जड़ कर बोली, ‘‘आस्तीन के सांप, मैं ने तुझे बेटा समझा था. तुझ पर भरोसा किया था, लेकिन तूने मेरी ही इज्जत पर डाका डाल दिया.’’

अंकित सिर झुकाए वहां से चला गया तो सीता सुलेखा पर टूट पड़ी. उसे लातघूंसों से मारते हुए बोली, ‘‘आज के बाद अगर तू कभी अंकित से मिली तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

सीता देवी ने सुलेखा के गलत राह पर जाने की जानकारी पति रामप्रसाद व बेटे सनी कुमार को दी तो उन दोनों ने सुलेखा को मारापीटा तथा घर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी. जब पाबंदियां सुलेखा को बेचैन करने लगीं तब उस ने अंकित की चचेरी बहन आरती का सहारा लिया. चूंकि आरती सुलेखा की सहेली थी, सो वह उस की मदद को राजी हो गई. आरती अपने फोन पर अंकित और सुलेखा की बात कराने लगी. मां या बहन बरखा जब कभी सुलेखा का फोन चैक करतीं तो पता चलता कि फोन पर आरती से बात हुई थी. सुलेखा का चाचा राजीव उर्फ राजी गांव का दबंग आदमी था. जब उसे पता चला कि उस की भतीजी सुलेखा गैरजाति के लड़के अंकित के प्यार में दीवानी है तो उसे बहुत बुरा लगा.

उस ने अंकित और उस के घर वालों से मारपीट की. साथ ही हिदायत दी कि वह सुलेखा से दूर रहे वरना अंजाम ठीक नहीं होगा. राजीव ने सुलेखा को भी प्रताडि़त किया तथा उस पर पाबंदी बढ़ा दी. अंकित और सुलेखा प्यार के उस मुकाम पर पहुंच चुके थे, जहां से वापस लौटना नामुमकिन था. पाबंदी के बावजूद वे एकदूसरे से मिल लेते थे. ऐसे ही एक रोज जब अंकित की मुलाकात सुलेखा से हुई तो वह बोला, ‘‘सुलेखा, तुम्हारी जुदाई मुझ से बरदाश्त नहीं होती और घर वाले मिलने में बाधक बने हुए हैं. इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम मेरे साथ भाग चलो. हम दोनों कहीं दूर जा कर अपना आशियाना बना लेंगे.’’

अंकित की बात सुन कर सुलेखा गंभीर हो गई, ‘‘तुम्हारे साथ भागने से मेरे परिवार की बदनामी होगी. मेरी एक गलती चाचा, पापा और परिवार पर भारी पड़ेगी. मेरी सगी बहन बरखा व चचेरी बहनें भी कुंवारी रह जाएंगी. इस के लिए मजबूर मत करो.’’

‘‘सोच लो सुलेखा, यह हमारी जिंदगी का सवाल है. मैं तुम्हें कुछ वक्त देता हूं. इतना जान लो कि तुम मुझे नहीं मिली तो मैं कुछ भी कर गुजरूंगा.’’ अंकित ने कहा और चला गया. पर इस के पहले कि सुलेखा कुछ निर्णय कर पाती, मार्च के अंतिम सप्ताह में देश में लौकडाउन की घोषणा हो गई. ऐसी स्थिति में घर से भागना खतरे से खाली न था, अत: अंकित ने इंतजार करना ही उचित समझा. इधर न जाने कैसे सुलेखा के चाचा राजीव उर्फ राजी को यह पता चल गया कि अंकित और सुलेखा घर से भागने की फिराक में हैं.

इस के पहले कि सुलेखा घर से भागे और उस के परिवार पर दाग लगे, राजीव ने दोनों को ही मिटाने की ठान ली. इस के बाद उस ने अपने भाई रामप्रसाद, बेटे सौरभ कुमार और भतीजे सनी के साथ एक योजना बनाई. योजना के तहत सौरभ ने 30 मार्च, 2020 की शाम 7 बजे सुलेखा के प्रेमी अंकित को फोन कर के अपनी दुकान पर बुलाया. जब अंकित दुकान पर पहुंचा तो वह दुकान बंद कर रहा था. सौरभ अंकित को सुलेखा के संबंध में कुछ जरूरी बात करने के बहाने गांव के बाहर अपने गेहूं के खेत पर ले गया. वहां राजीव, रामप्रसाद और सनी पहले से घात लगाए बैठे थे. अंकित के पहुंचते ही उन सब ने मिल कर उसे दबोच लिया और मुंह दबा कर मार डाला.

अंकित को मौत की नींद सुलाने के बाद राजीव अपने भतीजे सनी के साथ घर पहुंचा. सुलेखा उस समय अपनी बहन बरखा के साथ बतिया रही थी. उन दोनों ने सुलेखा से बात की और फिर अंकित और सुलेखा को आमनेसामने बैठा कर बात करने और कोई ठोस निर्णय लेने की बात कही. सुलेखा इस के लिए राजी हो गई. इस के बाद वे उसे बहला कर गेहूं के खेत पर ले आए. सुलेखा ने पूछा, ‘‘अंकित कहां है?’’

‘‘वह वहां पड़ा सो रहा है. उसे जगा कर बात करो.’’ राजीव के होठों पर कुटिल मुसकान तैर रही थी. चंद कदम चल कर सुलेखा अंकित के पास पहुंची और उसे हिलायाडुलाया, पर वह तो मर चुका था. सुलेखा को समझते देर नहीं लगी कि घर वालों ने उस के प्रेमी अंकित को मार डाला है. अब वे उसे भी नहीं छोडेंगें. वह बदहवास हालत में घर की ओर भागी. लेकिन अभी वह खेत की मेड़ भी पार नहीं कर पाई थी कि रामप्रसाद और सौरभ ने उसे सामने से घेर लिया, ‘‘भागती कहां है कुलच्छिनी. अब तुझे भी नहीं छोडेंगे.’’

इसी के साथ रामप्रसाद, राजीव, सनी और सौरभ ने मिल कर सुलेखा को जमीन पर पटक दिया. फिर रामप्रसाद ने मुंह दबा कर बेटी की सांसें बंद कर दीं. हत्या करने के बाद उन लोगों ने बारीबारी से दोनों के शव अंकित के ही कुएं में डाल दिए. ऐसा उन्होंने इसलिए किया ताकि लोगों को लगे कि दोनों ने आत्महत्या की है. इधर जब अंकित देर रात तक घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों ने उस की खोज शुरू की. अंकित को खोजते हुए उस की मां दिलीप कुमारी रामप्रसाद के घर गई तो उस ने इलजाम लगाया कि अंकित उस की बेटी को भगा ले गया है. दिलीप कुमारी ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही तो रामप्रसाद अपने बेटे सनी कुमार, भाई राजीव व भतीजे सौरभ के साथ घर से गायब हो गया.

दिलीप कुमारी रिपोर्ट लिखाने गई थी, पर पुलिस ने उस की रिपोर्ट दर्ज नहीं की. 2 अप्रैल, 2020 को घटना का खुलासा तब हुआ जब सुदामा नाम का मजदूर पानी लेने कुएं पर गया. पुलिस ने 8 अप्रैल, 2020 को अभियुक्त राजीव उर्फ राजी, सौरभ कुमार, रामप्रसाद तथा सनी से पूछताछ के बाद इटावा कोर्ट में पेश किया, जहां से चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Agra Crime : प्रेमिका ने प्रेमी संग मिलकर पति को पत्थर से कुचलकर मार डाला

Agra Crime : अनीता की घरगृहस्थी ठीक चल रही थी, लेकिन उस ने पड़ोसी युवक सनी की तरफ अनीति के कदम बढ़ा दिए. यही कदम उसे और उस के प्रेमी सनी को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा देंगे, ऐसा उन्होंने सोचा तक न था…

ताजनगरी आगरा के सिकंदरा क्षेत्र के नगला सोहनलाल में अपने पति व बच्चों के साथ रहती थी 30 वर्षीय अनीता. उस का विवाह करीब 14 साल पहले गुलाब सिंह से हुआ था. उस के 3 बच्चे थे. गुलाब सिंह घर के पास ही जूते बनाने की एक फैक्ट्री में काम करता था. उस दिन गुलाब सुबह फैक्ट्री चला गया. बच्चे स्कूल चले गए. फिर अनीता ने आराम से बैठ कर चायनाश्ता किया. चाय पी कर जब उस ने दोपहर के खाने का इंतजाम करना चाहा  तो बनाने के लिए घर पर कोई सब्जी नहीं थी. इसलिए वह दोपहर व शाम के लिए बाजार से सब्जी खरीदने चली गई. घंटे भर बाद जब वह बाजार से वापस लौट रही थी, तभी उसे पीछे से बाइक के हौर्न की आवाज सुनाई दी. अनीता ने मुड़ कर देखा तो उसे अपनी बगल में बाइक पर सवार एक युवक दिखाई दिया. उसे देखते ही अनीता पहचान गई.

वह उस के पड़ोस में रहने वाला सनी था. 22 वर्षीय सनी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अनीताजी, इतना सारा सामान ले कर पैदल क्यों जा रही हो? मैं भी घर ही जा रहा हूं, आइए आप को छोड़ दूंगा.’’

‘‘आप बेवजह परेशान होंगे?’’ अनीता ने मुसकरा कर कहा. हालांकि वह मन ही मन सनी की पेशकश पर राहत महसूस कर रही थी.

‘‘देखिए, आप मुझ से गैरों की तरह व्यवहार कर रही हैं. मैं आप का पड़ोसी हूं. पड़ोसी होने के नाते आप की मदद करना मेरा फर्ज है.’’ कह कर सनी ने बाइक रोकी और अनीता के हाथ से सामान के थैले ले कर बाइक में लगे हुक में फंसा दिए. फिर बाइक पर बैठते हुए अनीता से बोला, ‘‘आइए बैठिए.’’

अनीता सकुचाते हुए बाइक पर उस के पीछे बैठ गई. कुछ ही देर में दोनों नगला सोहनलाल पहुंच गए. अनीता बाइक से उतरी और थैले हुक से निकालने लगी तो सनी ने उसे टोका, ‘‘आप नाहक परेशान हो रही हैं, मैं सामान अंदर रख देता हूं. इस बहाने कम से कम आप एक कप चाय तो पिलाओगी.’’

‘‘अरे, आप कैसी बातें कर रहे हैं? चाय तो मैं आप को पिलाऊंगी ही.’’ अनीता सनी की बात से झेंप गई थी.

अनीता ने अपने घर के मेन गेट का ताला खोला और सनी के साथ अंदर आ गई. सनी को कमरे में बैठा कर अनीता चाय बनाने चली गई. सनी कागारौल में रहता था. लेकिन नगला सोहनलाल के पास एक फैक्टरी में काम करने के कारण उस ने नगला सोहनलाल में ही किराए पर एक कमरा ले लिया था. सनी अविवाहित था और काफी खूबसूरत नौजवान था. जब उस की नजर पड़ोस में रह रही अनीता पर पड़ी तो उस के हुस्न से उस की आंखें चुंधिया गईं. उस के पड़ोस में ही रहती थी, इसलिए उसे अनीता के बारे में जानने में देर नहीं लगी. वह जान गया था कि अनीता विवाहित है और 3 बच्चों की मां है. 3 बच्चों की मां होने वाली बात जानने के बाद तो सनी हैरत में पड़ गया. क्योंकि देखने से किसी तरह भी नहीं लगता था कि वह 3 बच्चों की मां है. इस का मतलब यह था कि अनीता का खूबसूरत हुस्न सदाबहार था, ऐसे हुस्न पर उम्र का कोई असर नहीं पड़ता.

सनी उसे किसी भी तरह अपना बनाना चाहता था. इसी वजह से वह जानबूझ कर उस के सामने पड़ता और राह चलते पड़ोसी होने का एहसास कराते हुए उस के हालचाल पूछ लेता. नजरें टकरातीं तो वह अनीता को देख कर मुसकरा देता. उस दिन संयोग ही था कि जब वह बाजार से घर लौट रहा था तो उस की नजर अनीता पर पड़ गई. मौका अच्छा देख कर वह उस के पास पहुंच गया और मदद के बहाने उस के साथ उस के घर तक पहुंच गया. चाय पीने के बाद सनी जाने के लिए उठ खड़ा हुआ, ‘‘अनीताजी, अपने हाथों से बढि़या टेस्टी चाय पिलाने का शुक्रिया. अगर आप को कभी किसी चीज की जरूरत हो या मेरी मदद की आवश्यकता पड़े तो आप मुझे तुरंत बुला लेना.’’

कह कर उस ने अनीता को अपना मोबाइल नंबर नोट करा दिया और अनीता ने भी उसे अपना नंबर दे दिया. उस दिन के बाद उन दोनों में गाहेबगाहे फोन पर बातचीत होने लगी. कभी सुबह कभी दोपहर के समय सनी अनीता के पास आ कर बैठ जाता था. दोनों काफी देर वे बातें करते रहते थे. सनी उस से मीठीमीठी बातें करता था, अत: अनीता को भी उस से अपना वक्त बांटना अच्छा लगने लगा. धीरेधीरे दोनों की मित्रता गहराने लगी. उस रोज शाम को तेज बरसात हो रही थी. अपने कमरे के बाहर खड़ा सनी बादल की गरज और बरसते पानी को देख रहा था. ऐसे मौसम में उसे अकेलापन बहुत साल रहा था. तभी अचानक उस की निगाह सामने सड़क पर पानी में भीगती हुई आ रही अनीता पर पड़ी. अनीता के हाथ में एक बैग भी था.

पानी से पूरी तरह भीग जाने से अनीता का पीला कुरता उस के बदन से चिपक गया था, जिस से उस का हुस्न उस भीगे कुरते में नुमाया हो रहा था. उस के भीगे अप्रतिम सौंदर्य को सनी एकटक देखता रह गया. एकाएक उस के तनमन में चाहत की एक अनोखी बरसात होने लगी.  फिर एकाएक उस ने कमरे में जा कर छतरी उठाई और अनीता की तरफ दौड़ा. उस ने अनीता को छतरी की ओट में लेते हुए पूछा, ‘‘आप तो बारिश में बुरी तरह भीग गई हैं?’’

‘‘जब मैं घर से निकली थी, तब अनुमान नहीं था कि इतनी तेज बारिश हो जाएगी. मुझे उम्मीद थी कि मैं बारिश होने से पहले ही घर पहुंच जाऊंगी.’’ अनीता अपने आप में सिमट गई. अपनी हालत पर उसे शर्म आ रही थी.

सनी अनीता को छतरी की ओट में उस के घर तक लाया. अनीता ने उसे कमरे में बैठने का संकेत करते हुए कहा, ‘‘आप दो मिनट बैठो. मैं कपड़े बदल कर आती हूं.’’

सनी के दिमाग में अजीब सी उथलपुथल मची हुई थी. वह अनीता का भीगा सौंदर्य देखने के बाद अपनी सुधबुध खो बैठा था. वह सोच भी नहीं सकता था कि अनीता की खूबसूरती इस तरह कयामत ढाने वाली होगी. रहरह कर अनीता का भीगा बदन उस के हवास पर ठोकर मार रहा था.

‘‘ये लीजिए चाय.’’ आवाज सुन कर सनी की तंद्रा टूटी. उस ने चौंक कर अनीता की तरफ देखा. भीगे खुले बालों में अनीता उस समय अनिंद्य रूपसी नजर आ रही थी. सनी ने कांपते हाथों से चाय का प्याला पकड़ा. अनीता उस के सामने एक कुरसी पर बैठ कर तौलिए से अपने गीले बालों को सुखाने लगी. सनी नजरें झुका कर चाय पीने की कोशिश करने लगा. लेकिन कनखियों से वह अनीता के सौंदर्य को निहार रहा था. अनीता ने भी उस की इस चोरी को पकड़ लिया था. वह मुसकराते हुए सनी से बोली, ‘‘तुम्हारी शादी हो गई?’’

‘‘अभी नहीं हुई,’’ सनी मुसकराया, ‘‘रिश्ते तो बहुत आ रहे हैं, लेकिन मुझे कोई लड़की पसंद नहीं आ रही.’’

‘‘लगता है तुम्हारी कोई खास पसंद है?’’

‘‘हां, ऐसा ही कुछ समझ लो. जिस के सामने रूप का खजाना फैला हो, उसे सामान्य लड़की कैसे पसंद आ सकती है.’’ सनी ने यह बात अनीता की तरफ देखते हुए कुछ इस ढंग से कही कि अनीता एक क्षण के लिए सकुचा गई.

उस ने अपने आप को संभाल कर कहा, ‘‘कम से कम कुछ हिंट तो दो कि तुम्हें कैसी दुलहन चाहिए. अगर तुम मुझे अपनी पसंद बताओगे तो मैं कोशिश करूंगी कि तुम्हारी पसंद की लड़की ढूंढ सकूं.’’

सनी कुछ क्षणों के लिए चुपचाप अनीता को निहारता रहा, ‘‘मुझे बिलकुल आप जैसी दुलहन चाहिए.’’

सनी ने यह बात कही तो कुछ देर के लिए अनीता चुप रही, फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘तुम मजाक बहुत अच्छा कर लेते हो.’’

‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा हूं. अगर ऊपर वाले ने आप जैसी कोई और लड़की बनाई हो तो मुझे दिखाना. वैसे मेरा खयाल है कि वह ऐसा नायाब हीरा एक ही बनाता है.’’

तारीफ की यह इंतहा थी. ऐसी इंतहा औरतों को अच्छी लगती है. फिर भी अनीता ने बनते हुए कहा, ‘‘आखिर मुझ में ऐसा क्या खास है कि आप को मेरे जैसी बीवी की आस है.’’

‘‘यह तो मेरा दिल और मेरी आंखें जानती हैं कि आप में ऐसा क्या खास है. जो कुछ भी मैं कह रहा हूं, वह एकदम सच है.’’ सनी ने जब यह बात कही तो अनीता के मुंह से बोल नहीं फूटे. सनी के जाने के बाद भी अनीता के कानों में सारी रात उस के कहे शब्द गूंजते रहे. यह हकीकत है कि तारीफ हर नारी की कमजोरी है. सनी की बातों ने उस रात उस की आंखों से नींद छीन ली थी. अगले दिन जब सनी अनीता के घर आया तो उसे ही देखता रहा. अनीता ने उस से नजरें चुराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें और कोई काम नहीं है क्या, जो मुझे ही देखते रहते हो?’’

‘‘जी हां, आप सही कह रही हैं. मुझे आप के सिवा कुछ भी नहीं दिखता. आप नहीं जानतीं, आप ने मेरा सुखचैन छीन लिया है. आप की वजह से मैं कोई काम नहीं कर पाता. मैं हर वक्त केवल आप के बारे में ही सोचता रहता हूं.’’ सनी अपनी ही रौ में कहता चला गया. अनीता ने उसे झिड़कते हुए कहा, ‘‘मुझे परेशान मत करो.’’

यह सुन कर सनी वहां से चला गया. सनी अपने कमरे पर पहुंच गया. वह कुछ देर चुपचाप बैठा रहा और अनीता के बारे में सोचता रहा. फिर उस ने मोबाइल उठाया और अनीता के मोबाइल पर मैसेज भेज दिया. मैसेज में उस ने ‘सौरी’ लिखा था. अनीता ने अपने मोबाइल पर आए सनी के मैसेज को देखा तो कुछ देर तक मैसेज को देखती रही, फिर उस ने सनी को काल किया. सनी ने जैसे ही फोन उठाया, अनीता ने कहा, ‘‘तुम तुरंत मेरे  घर आओ.’’

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. सनी हड़बड़ा गया. उसे कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन उसे इस बात की खुशी थी कि अनीता ने खुद उसे अपने घर बुलाया है. वह समझ गया कि अनीता उस से नाराज नहीं है. वह लगभग दौड़ता हुआ अनीता के कमरे पर पहुंच गया. अनीता ने उसे बैठने का इशारा किया. सनी कुरसी पर बैठ गया. अनीता ने उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम ने कल जो भी कहा था, वह तुम्हें नहीं कहना चाहिए था.’’

‘‘आप ऐसा क्यों कह रही हैं, मैं ने कुछ भी गलत नहीं कहा था. मैं अब भी अपनी बात पर कायम हूं.’’ सनी एकएक शब्द सोच कर कह रहा था, ‘‘आप मेरी बातों का गलत मतलब मत निकालिए. मेरे दिल में कोई पाप नहीं है. मुझे आप बेहद सुंदर लगती हैं, इसलिए मैं ने अपने दिल की बात ईमानदारी से आप से कह दी थी. यदि यह बात मैं छिपा कर रखता तो यह अच्छा नहीं होता.’’

सनी की बात सुन कर अनीता मुसकरा दी, ‘‘तुम से बातों में कोई नहीं जीत सकता.’’

सनी को महसूस होने लगा कि अनीता के दिल में उस के लिए कुछ जगह जरूर है. इस के बाद दोनों की नजदीकियां और भी बढ़ गईं. जब भी दोनों बैठते तो घंटों बातें करते रहते. सर्दियों के दिन आ गए थे. एक दिन दोनों बाइक पर सवार हो कर काफी दूर निकल गए थे. खुली सड़क पर बाइक चलाते हुए सनी को सर्दी लगने लगी थी. यह देख कर पीछे बैठी अनीता ने उसे अपनी शौल में ढकने की कोशिश की. इस कोशिश में वह सनी से चिपक कर बैठ गई. अनीता के बदन का स्पर्श पा कर सनी की कनपटियां गरम होने लगीं. वह फंसेफंसे स्वर में बोला, ‘‘प्लीज, आप मुझ से इतना सट कर मत बैठिए.’’

‘‘क्यों? मैं तो तुम्हें ठंड से बचाना चाहती हूं.’’

‘‘लेकिन मैं ठीक से गाड़ी नहीं चला पाऊंगा, मुझे कुछकुछ हो रहा है.’’ सनी कांपती हुई आवाज में बोला.

‘‘क्यों जनाब! ऐसा क्या हो रहा है?’’ अनीता ने यह बात कुछ इस अदा से कही कि सनी ने बाइक रोक दी और पीछे पलट कर शरारत से अनीता की आंखों में देखते हुए बोला, ‘‘मैं बता दूं कि मुझे क्या हो रहा है?’’

‘‘तुम्हें जो कुछ बताना है, वह यहां खुली सड़क पर नहीं, मेरे घर चल कर बताना.’’ अनीता ने प्यार से उस के चेहरे को आगे घुमाया तो सनी को कुछ और समझने की जरूरत नहीं रह गई थी. अनीता सनी को ले कर घर पहुंच गई. उस ने कमरा बंद किया तो वह अनीता का हाथ पकड़ कर शरारत से बोला, ‘‘अब बता दूं, क्या हो रहा था?’’

‘‘मुझे पता है तुम कांप रहे थे,’’ अनीता ने अपना हाथ उस के सीने पर रख दिया, ‘‘और तुम्हारा दिल भी तेजतेज धड़क रहा है.’’

‘‘जब तुम सब कुछ जानती हो तो तरसा क्यों रही हो, मेरी धड़कनों को समझा दो न.’’ कहते हुए सनी ने उस की कमर में बांहें डाल कर उसे खुद से चिपका लिया.

‘‘मैं कैसे समझाऊं?’’ अनीता ने हया से सिर झुका लिया.

‘‘ऐसे.’’ अनीता की चिबुक उठा कर उस के लरजते होंठ अपने सामने कर लिए. फिर अपने दहकते होंठों से चूमा तो अनीता के बदन में चिंगारियां सी उठने लगीं. इस के बाद जो दोनों उन के बीच हुआ, वह दुनिया की नजर में नाजायज रिश्ता कहलाता है. हवस की जो आग उस दिन दोनों के जिस्म में उतरी थी, उसे बुझाने के लिए अब दोनों प्राय: दिन में एकदूसरे के जिस्म में खुशियां ढूंढने लगे. 12 सितंबर, 2020 को तड़के 4 बजे नगला सोहनलाल गांव के कुछ लोगों ने गांव के पास ही एनएच-2 के सामने निर्माणाधीन पुल के नीचे किसी युवक की लाश पड़ी देखी. पास जा कर गांव वालों ने देखा तो वह लाश गांव की ही रहने वाली अनीता के पति गुलाब सिंह की निकली. गांव के लोगों ने घटना की सूचना पत्नी अनीता के अलावा गुलाब सिंह के भाई बच्चू सिंह को दी जोकि गुलाब सिंह के घर के पास में ही रहता था. बच्चू सिंह अपने पिता मवासीराम के साथ मौके पर पहुंच गया.

अनीता भी वहां पहुंच गई. गुलाब सिंह की लाश देख कर सभी बिलखबिलख कर रोने लगे. किसी ने 112 नंबर पर काल कर के घटना की सूचना दे दी थी. घटनास्थल सिकंदरा थाने के अंतर्गत आता था. सिकंदरा थाने के इंसपेक्टर अरविंद कुमार पुलिस टीम के साथ तत्काल मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के सिर पर चोट के निशान थे, साथ में पैरों में भी चोट थी. देखने से मामला एक्सीडेंट का लग रहा था. किसी तेज वाहन से टकरा कर मृतक गंभीर रूप से घायल हुआ और उस की मौत हो गई. इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने मृतक गुलाब सिंह के पिता मवासीराम से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि गुलाब कल रात में 8 बजे फैक्ट्री से आया था. रात 9 बजे खाना खाने के बाद सो गया था. रात में या सुबह कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता.

बेटे का रोड एक्सीडेंट नहीं हुआ, बल्कि उस की हत्या उस की पत्नी अनीता ने कराई है. उस का किसी युवक से प्रेम संबंध है. अनीता ने अपने ससुरालीजनों पर हत्या का शक जताया. पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर अनीता ने खुद को बेकुसूर बताया. फिलहाल मामला फौरी तौर पर एक्सीडेंट का लग रहा था. इसलिए इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दी. थाने आ कर उन्होंने एक्सीडेंट का मुकदमा दर्ज करा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर में लगी गंभीर चोट से मौत होना बताया गया. एसएसपी बबलू कुमार ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर विशेषज्ञों की राय ली. उन की राय के बाद उन्होंने इंसपेक्टर अरविंद कुमार को मामले की जांच के आदेश दिए.

इंसपेक्टर कुमार ने गुलाब सिंह के घर आनेजाने वालों के बारे में पता किया तो बाहरी लोगों में सनी का नाम था. वह पड़ोस में किराए पर रहता था. इंसपेक्टर कुमार ने सनी का मोबाइल नंबर पता किया और उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो घटना की रात सनी की अनीता के नंबर पर बात करने की पुष्टि हो गई. 17 सितंबर को इंसपेक्टर कुमार ने सनी को हिरासत में ले कर कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया. उस से पूछताछ के बाद अनीता को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. गुलाब सिंह शराब का शौकीन था. फैक्ट्री से जब भी रात में लौटता तो अपनी थकान उतारने के लिए शराब पी कर आता था और घर आ कर अनीता से झगड़ा करता था. उसे मारतापीटता था.

इसी बीच जब सनी से अनीता की मुलाकात हुई तो वह उस की ओर खिंचने लगी. सनी अनीता से 8 साल छोटा था और काफी खूबसूरत था. अनीता ने कुंवारे जवान युवक का अपने से लगाव देखा तो वह भी उस की ओर खिंचती चली गई. दिनप्रतिदिन वह सनी में खोती चली गई. सनी से संबंध बने तो वह जीजान से उसे चाहने लगी. सनी ने भी गुलाब से दोस्ती गांठ ली. गुलाब की अनुपस्थिति में वह अकसर अनीता से मिलने आता था. उन की चाहत इस कदर बढ़ गई कि एक साथ जिंदगी जीने का सपने देखने लगे. यह सपना हकीकत में तभी बदल सकता था, जब गुलाब कोई अड़चन न डाले. इसलिए दोनों ने गुलाब सिंह को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया और इस के लिए योजना भी बना ली.

11/12 सितंबर, 2020 की रात गुलाब सिंह शराब पी कर घर आया था. खाना खाने के बाद वह सो गया. योजनानुसार रात में अनीता ने सनी को फोन कर के बुला लिया. रात डेढ़ बजे के करीब सनी अनीता के घर आया तो अनीता ने चुपके से मेन गेट खोल दिया. सनी अंदर आ गया. दोनों कमरे में सो रहे गुलाब सिंह के पास पहुंचे. अनीता ने पति के पैर पकड़े तो सनी ने हाथों से उस का गला दबा दिया, जिस से वह बेहोश हो गया. दोनों उसे उठा कर घर से कुछ दूरी पर निर्माणाधीन पुल के नीचे ले गए. वहां पत्थर से गुलाब के सिर पर कई प्रहार किए. उस की मौत हो जाने के बाद पत्थर से उस के पैरों को भी कुचल दिया, जिस से मामला रोड एक्सीडेंट का लगे. इस के बाद दोनों अपने घर लौट गए.

लेकिन तमाम चालाकियों के बाद भी उन दोनों का गुनाह छिप न सका और पकड़े गए. सनी की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त पत्थर बरामद कर लिया. कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रें पर आधारित

 

UP Crime News : पति का गला काट रहा था प्रेमी, पत्नी मोबाइल देखकर हंसती रही

UP Crime News : 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी कुसुम की हसरतें उफान पर थीं. ऐसे में उस के पैर बहक गए और उस का झुकाव कलंदर नाम के युवक की ओर हो गया. इस बात का गांव, समाज में विरोध हुआ तो कुसुम ने पति मुकेश को रास्ते से हटाने की ऐसी चाल चली कि…

उस रोज सुबह से ही कुसुम का मन उल्लास से भरा हुआ था. उस की एक खास वजह थी. उस सुबह नाश्ता करने के बाद मुकेश आंगन में हाथ धोने, कुल्ला करने के बाद रोज की तरह सीधे काम पर नहीं गया था. बल्कि अंगोछे से हाथमुंह पोंछते हुए वह रसोई में चला आया था. पास में पति के आते ही रोटी बेल रही कुसुम के हाथ रुक गए. सिर उठा कर उस ने पति को देखा, फिर पूछा, ‘‘कुछ चाहिए?’’

मुकेश कुसुम के पास बैठ गया. वह इतनी धीमी आवाज में बोला कि कोई तीसरा न सुन सके, ‘‘हां चाहिए, लेकिन अभी नहीं रात को.’’

इस के बाद वह सीधा खड़ा हुआ, मुसकरा कर दाहिनी आंख दबाई और चला गया. पति की यह शरारत देख कर कुसुम के मन की कलियां खिल गईं. किसी भी पत्नी के लिए समझना बहुत आसान होता है कि रात को पति उस से क्या चाहता है. कुसुम का दिल बागबाग हो गया कि देर से ही सही, पतिदेव की कामनाएं तो जागीं. पूरे दिन कुसुम प्रफुल्लित रही. दौड़दौड़ कर उत्साह से सारे काम करती रही. पड़ोसन ने उस का यह जोश देखा तो पूछा, ‘‘क्या बात है कुसुम, आज बहुत जोश में हो और तुम्हारी खुशी भी छलक रही है.’’

नहाधो कर कुसुम ने सुर्ख साड़ी पहनी, फिर शृंगार किया. उस के बाद शाम होने पर आंगन में बैठ कर अपने पति के आने का इंतजार करने लगी. कुछ देर में मुकेश आ गया. पानी गरम हो गया तो मुकेश नहा लिया. इस के बाद कुसुम ने उसे खाना परोस कर दिया. खाना खाने के बाद मुकेश ने अपनी मासूम बेटी दीक्षा को गोद में उठाया और अपने कमरे में चला गया. कुसुम ने निखरे हुए अपने रूप का बहाने से पति के सामने प्रदर्शन भी किया लेकिन मुकेश के मुख से तारीफ के दो मीठे बोल भी न निकले. खैर, कुसुम ने झटपट जूठे बरतन मांजे और कमरे में पहुंच गई. आजमगढ़ जिले का एक गांव है असाढ़ा. यहीं रहता था मुक्खू. उस के परिवार में पत्नी सुखवती देवी के अलावा 4 बेटियां और इकलौता बेटा मुकेश था.

मुक्खू ने अपनी सभी बेटियों का विवाह कर दिया था, वे सभी अपनी ससुराल में हंसीखुशी से रह रही थीं. इस के बाद इकलौते बेटे मुकेश के विवाह की बारी आई. तो 14 साल पहले करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित गोढाव गांव निवासी सुभाष की बेटी कुसुम से मुकेश का विवाह हो गया. कुसुम मायके से ससुराल आ गई. कालांतर में कुसुम ने 3 बेटियों और एक बेटे को जन्म दिया. परिवार बढ़ा तो खर्च भी बढ़े. खेती के नाम पर मुकेश के पास केवल 4 विसवा जमीन थी, उस से कुछ होने वाला नहीं था. मुकेश बढ़ईगिरी का काम भी करता था. लेकिन उसे रोजरोज काम नहीं मिलता था तो वह मनरेगा में मजदूरी का काम करने लगा. काम में व्यस्तता अधिक होने के कारण अगले 2-3 साल में हाल यह हो गया कि थकान और जीवन की एकरसता ने मुकेश को उत्साहहीन कर दिया.

रासरंग में भी उस की रुचि नहीं रह गई. खाना खाने के कुछ देर बाद ही वह गहरी नींद में सो जाता. कुसुम की ख्वाहिशें मचलती रह जातीं. कामनाओं को काबू में रख पाना कठिन हो जाता. देर रात तक वह गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहती. कुसुम असंतोष भरा जीवन जीने लगी थी. कुसुम की उमंगों को एक बार फिर तब पर लगे, जब उस दिन नाश्ता करने के बाद मुकेश रसोई में उस के पास आया था. कुसुम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने सोचा कि वह आज पिछली कसर भी पूरी कर लेगी. उमंगों के हिंडोले में झूलती कुसुम कमरे में पहुंची तो पिताबेटी को सोते हुए देखा. उस रात पति को सोया देख कर कुसुम को झुंझलाहट नहीं हुई बल्कि होंठों पर मुसकान खेलने लगी कि बेटी परेशान न करे, इसलिए उसे सुलातेसुलाते वह खुद भी सो गए. बाकी बच्चे भी दूसरे कमरे में सो चुके थे.

कुसुम ने पति के पास सो रही बेटी को उठा कर अलग सुला दिया. इस के बाद वह स्वयं मुकेश की बगल में आ कर लेट गई और उसे जगाने के लिए प्यार से छेड़ने लगी. मुकेश कच्ची नींद में था. वह कुनमुनाया, ‘‘क्या है…?’’

‘‘और क्या होना है,’’ कुसुम धीमी आवाज में बोली, ‘‘आज रतजगा है.’’

मुकेश ने आंखें खोल कर पत्नी की ओर देखा, उस के बाद फिर से आंखें बंद कर लीं. कुसुम ने हलके से उसे फिर हिलाया, ‘‘मुझे ठीक से देख कर बताओ, कैसी लग रही हूं.’’

‘‘जब से शादी हुई है, तब से देख ही तो रहा हूं.’’

‘‘पहले की छोड़ो, आज की बात करो,’’ कुसुम अपनी सांसों से पति के चेहरे को गरमाने लगी, ‘‘आज मैं ने तुम्हारे लिए विशेष रूप से शृंगार किया है. देख कर बताओ न कि मैं कैसी लग रही हूं.’’

मुकेश ने ऐसे हावभाव से आंखें खोलीं, मानो कोई आफत टूट पड़ी हो. कुसुम को देखा, फिर टालने के अंदाज में बोला, ‘‘अच्छी लग रही हो.’’

‘‘अच्छी लग रही हूं तो सो क्यों रहे हो,’’ कुसुम ने उसे उकसाया, ‘‘नींद भगाओ और तुम भी कुछ अच्छा करो. इतना अच्छा कि मुझे भी फौरन नींद आ जाए.’’

‘‘क्या करूं…’’

‘‘वही, जो सुबह नाश्ता करने के बाद रात को करने को कह गए थे.’’

‘‘यार, सुबह मन था, अब नहीं है. बहुत थका हूं, मैं सोना चाहता हूं. आज का प्रोग्राम फिर कर लेंगे. तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो.’’

‘‘रात होने का मैं ने भी पूरा इंतजार किया है, इसलिए कैसे सो जाऊं,’’ कुसुम शरारत पर उतारू हो गई. वह उसे बेतहाशा चूमने लगी. मुकेश के तेवर तीखे हो गए. उस ने झल्ला कर पत्नी को कुछ गालियां दीं और उस की ओर पीठ कर ली. पति के व्यवहार से कुसुम की हसरतों पर तो मानो बर्फ पड़ गई. उस ने भी पति की ओर पीठ कर ली. उस रात कुसुम का विश्वास मजबूत हो गया कि वास्तव में उस की किस्मत फूट गई थी. उसी रात कुसुम के विद्रोही मन ने फैसला कर लिया कि यदि उसे यौवन का सुख पाना है तो मुकेश के भरोसे नहीं रहा जा सकता. खुद ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी.

अतृप्ति एवं असंतोष के पलों में कुसुम ने जो निर्णय लिया, रात बीतने के बाद उसे भूली नहीं. सुबह होते ही उस की आंखों ने ऐसे साथी को तलाशना आरंभ कर दिया जो उस की हसरतें पूरी कर सके. नियति ने कुसुम को यह अवसर भी दे दिया. असाढ़ा गांव से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर गांव उबारसेपुर है. इसी गांव में 30 वर्षीय कलंदर रहता था. वह अविवाहित था और आटो चलाता था. कलंदर का मुकेश के घर आनाजाना था. एक दिन चबूतरे पर बैठ कर कलंदर मुकेश से बातें कर रहा था. कुसुम को न जाने क्या सूझा कि खिड़की के पास खड़े हो कर वह उन दोनों की बातें सुनने लगी. खिड़की की ओर मुकेश और कलंदर की पीठ थी. इसलिए दोनों को पता नहीं था कि कुसुम उन की बातें सुन रही है. वे दोनों रसीली बातें कर रहे थे.

कुसुम का यह सोच कर जी जल गया कि रात होते ही मुकेश रूखाफीका हो जाता है और बाहर रसीली बातें करता है, लानत है ऐसे पति पर. बातोंबातों में कलंदर मुकेश से बोला, ‘‘मुकेश, सच कहूं तो तुम मुकद्दर के सिकंदर हो. क्या पटाखा बीवी पाई है, जो देखे देखता रह जाए.’’

यह सुन कर कुसुम का दिमाग कलंदर में उलझ गया. वह सोचने लगी कि निश्चित रूप से कलंदर उस पर दिल रखता होगा, इसीलिए तो वह उसे पटाखा नजर आती है. उस दिन हंसीमजाक में कलंदर का पटाखा कहना कुसुम के मन में एक नई सोच को जन्म दे गया. कुसुम को भी कलंदर अच्छा लगता था. कलंदर कुसुम को भाभी कह कर बुलाता था. देवरभाभी का रिश्ता बनने के कारण कुसुम से हंसीमजाक भी कर लेता था. अलबत्ता उस का दिल कुसुम के लिए बेईमान हो गया. कलंदर को ले कर कुसुम की सोच बदली तो उस के हावभाव भी बदल गए. वह चुपकेचुपके कलंदर से आंखें लड़ाने लगी. कलंदर को कुसुम अपनी तरफ आकर्षित होती हुई महसूस हुई तो वह ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब कुसुम घर में अकेली हो.

एक दिन अश्लील मजाक करतेकरते एकाएक कलंदर ने कुसुम की कलाई पकड़ ली, ‘‘भाभी बहुत तरसा चुकीं, अब तो रहम करो.’’

कुसुम ने नारीसुलभ नखरा किया, ‘‘कलंदर, यह पाप है. इस पाप में न खुद गिरो और न मुझे गिराओ.’’

‘‘भाभी, मुझे आज मत रोको.’’ कहते हुए उस ने कुसुम को बांहों में समेट कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. अपेछा के अनुरूप कुसुम ने मामूली विरोध किया, कुछ नखरे दिखाए. फिर मन का काम होते देख उस ने विरोध और नखरे छोड़ दिए. कलंदर के बाजुओं में कसमसाते हुए बोली, ‘‘जरा ठहरो, दरवाजा तो बंद कर लूं.’’

‘‘तुम्हें छोड़ दिया तो फिर हाथ नहीं आने वाली.’’

‘‘विश्वास करो मैं कहीं भागूंगी नहीं, लौट कर तुम्हारे पास आऊंगी.’’

कलंदर ने कुसुम को बांहों के बंधन से मुक्त कर दिया. कुसुम ने जल्दी से दरवाजा बंद किया और कलंदर के पास लौट आई. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. एक बार सीमाएं टूटीं फिर तो उन का यह रोज का यह नियम बन गया. कुसुम के दिल और तन पर कलंदर के जोश की ऐसी छाप पड़ी कि कलंदर के आगे वह सब कुछ भूल गई. अब जो कुछ था उस के लिए कलंदर ही था. वह भी कुसुम की भावनाओं का पूरा खयाल रखता था. किसी चीज की जरूरत होती तो वह झट से ला देता. कलंदर के लिए दिल में प्यार बढ़ रहा था तो मुकेश के लिए मन में नफरत. 7 मई, 2020 की शाम को कुसुम ने मुकेश से सब्जी लाने को कहा तो मुकेश सब्जी लेने चला गया. लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी मुकेश घर नहीं लौटा तो कुसुम को चिंता हुई. उस ने गांव के प्रधान को सूचना दी. मुकेश को तलाशा गया लेकिन उस का कोई पता नहीं चला.

अगले दिन 8 मई को कुसुम सरायमीर थाने गई और इंसपेक्टर अनिल सिंह को अपने पति के गायब होने की सूचना दी. उस ने पति के गायब होने का आरोप गांव के कुछ लोगों पर लगाया. साथ ही पति के गायब होने की सूचना मीडिया को भी दे दी. मीडिया में मामला तूल पकड़ा तो पुलिस भी सक्रिय हो कर मुकेश को तलाशने लगी. 9 मई को लोगों ने मुकेश की लाश नरईपुर पुल के पास पड़ी देखी. कुसुम को इस की सूचना दे दी गई. प्रधान मौके पर पहुंचा तो उस ने घटना की सूचना सरायमीर थाने को दे दी. सूचना पर इंसपेक्टर अनिल सिंह दलबल के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश झाडि़यों में औंधे मुंह पड़ी थी. मृतक की गरदन पर तेज धारदार हथियार से काटने के निशान मौजूद थे. डौग स्क्वायड को मौके पर बुलाया गया. इंसपेक्टर सिंह ने कुसुम और मृतक की मां सुखवती से जरूरी पूछताछ की.

इस के बाद उन्होने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी और सुखवती की ओर से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. केस की जांच शुरू करते हुए इंसपेक्टर अनिल सिंह ने कुसुम से पूछताछ की तो उस ने गांव के कुछ लोगों पर आरोप लगाया कि वे लोग उस के पति से दुश्मनी मानते थे. इस के बाद इंसपेक्टर सिंह ने गांव के लोगों व प्रधान से पूछताछ की तो केस की गुत्थी सुलझने लगी. इंसपेक्टर अनिल सिंह को पता चला कि कुसुम के उबारसेपुर गांव के कलंदर के साथ अवैध संबंध थे. यह भी पता चला कि इस मामले को ले कर गांव में पंचायत भी हुई थी. गांव के जिन लोगों ने पंचायत में कुसुम और कलंदर का विरोध किया था, कुसुम ने उन पर ही मुकेश की हत्या का आरोप लगाया था. इस का मतलब यह था कि सारा रचारचाया खेल कुसम और कलंदर का है, मुकेश की हत्या में इन दोनों का ही हाथ है.

इस के बाद इंसपेक्टर अनिल सिंह ने कुसुम और कलंदर के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में दोनों की रोज घंटों बात करने के साक्ष्य मिले. घटना की रात भी कलंदर के नंबर से कुसुम के नंबर पर काल की गई थी. जिस समय कलंदर ने काल की थी उस के नंबर की लोकेशन भी घटनास्थल की थी. पुख्ता साक्ष्य मिलते ही इंसपेक्टर अनिल सिंह ने 11 मई को कुसुम और कलंदर को गिरफ्तार कर लिया. थाने में ला कर जब उन से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए घटना में शामिल साथियों के नाम भी बता दिए. घटना में साथ देने वालों में कलंदर की बहन शकुंतला, रविंद्र उर्फ छोटू, बिरेंद्र उर्फ करिया व धीरेंद्र निवासी गांव ऊदपुर और मिथिलेश उर्फ पप्पू निवासी महराजपुर थे.

इन सभी को भी उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद मुकेश की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार निकली—

कुसुम से संबंध बन गए तो कलंदर का मुकेश के घर आनाजाना भी बढ़ गया. इस से उन के संबंध गांव वालों से छिपे न रह सके. गांव वालों ने इस का विरोध करना शुरू कर दिया. इतने पर भी ये दोनों नहीं माने तो गांव में इस को ले कर पंचायत बुलाई गई. पंचायत में कलंदर के गांव आने पर पाबंदी लगा दी गई. इस से कुसुम बिफर पड़ी. मुकेश ने उस की लानतमलानत की तो उस की नफरत ने विद्रोह का रूप ले लिया. कुसुम वैसे भी कलंदर की हो चुकी थी और शादी कर के उस के साथ घर बसाना चाहती थी. ऐसे में कुसुम और कलंदर ने मुकेश की हत्या करने का फैसला कर लिया.

4 फरवरी, 2020 को कुसुम के मायके में शादी थी. वहां पर कलंदर और कलंदर की बहन शकुंतला भी मौजूद थी, वहीं पर मुकेश को मारने का प्लान बना. इस के बाद शकुंतला के घर पर कुसुम और कलंदर बैठे. वहीं पर शकुंतला ने अपने देवरों रविंद्र, वीरेंद्र, धीरेंद्र और उन के साथी मिथलेश को बुला लिया. ये सभी कुछ पैसों के लालच में उन का साथ देने को तैयार हो गए थे. सभी ने साथ बैठ कर यह समझा कि प्लान को कैसे अमल में लाना है. 5 मई को मुकेश की हत्या करने के इरादे से सभी निकले लेकिन अचानक आंधीबारिश आने के कारण प्लान टल गया. फिर 7 मई की शाम को प्लान के मुताबिक कुसुम ने मुकेश को सब्जी लाने के लिए भेज दिया.

शाम साढ़े 6 बजे मुकेश पोखरा पहुंचा तो वहां कलंदर, शकुंतला और उस के साथी एक टैंपो में पहले से बैठे थे. कलंदर ने तेरही खाने के लिए चलने की बात कह कर मुकेश को टैंपो में बैठा लिया. मुकेश को सभी के साथ ले कर छित्तेपुर गया. वहां शराब खरीद कर मुकेश को पिलाई और खुद पी. सभी अंधेरा होने का इंतजार कर रहे थे. योजना के मुताबिक सभी लोग अपने मोबाइल अपने घरों में ही रख कर आए थे, केवल कलंदर ही अपना मोबाइल साथ लाया था. अपने मोबाइल से वह कुसुम को लगातार काल कर रहा था. कुसुम अपने पति को मौत के मुंह में भेजने को बहुत आतुर थी. वह कलंदर के साथ में तो नहीं थी. लेकिन उस से फोन पर पलपल की जानकारी ले रही थी. उन के बीच क्या बात हो रही है, यह भी कुसुम सुन रही थी. एक बीवी अपने ही पति के मर्डर का लाइव ब्राडकास्ट सुन रही थी.

रात साढे़ 8 बजे सभी मुकेश को टैंपो से ले कर तेजपुर में मघई नदी पर नरईपुर पुल के पास पहुंचे. मुकेश को नीचे उतारा और मुकेश की गले में गमछा डाल कर दबाने में सभी टूट पड़े. नशे की हालत में मुकेश की आंखें बंद हो गईं और वह बेसुध हो गया. सभी उसे मरा हुआ समझ कर झाडि़यों में छिपा आए. इस के बाद कलंदर ने कुसुम से बात की तो कुसुम ने कहा कि वह मुकेश का चाकू से गला काटे, जिस से वह उस के चीखने की आवाजें सुन सके. इस पर वापस पहुंच कर कलंदर ने जैसे ही मुकेश की गरदन पर चाकू रखा. मुकेश चिल्ला उठा. सभी ने उस को दबोचा तो कलंदर कसाई की तरह मुकेश का गला चाकू से रेतने लगा, इस से मुकेश की चीखें निकलने लगीं, जिसे मोबाइल पर सुन कर कुसुम ठहाके मार कर हंसती रही.

मुकेश को मौत के घाट उतारने के बाद कलंदर ने मुकेश का मोबाइल फोन उस की जेब से निकाल लिया और उसे ले कर काफी देर तक इधरउधर घूमता रहा. इस के बाद कुसुम अपने मोबाइल से बात न हो पाने का बहाना बना कर आसपड़ोस के लोगों से मोबाइल ले कर मुकेश के मोबाइल पर फोन मिलाती, दूसरी ओर से कलंदर मुकेश बन कर उस से बात करता. बात करने के बाद कुसुम उन्हें मोबाइल वापस कर देती और कह देती कि मेरे पति कह रहे हैं कि कुछ देर में वापस आ जाएंगे. कुसुम पड़ोसियों को दिखाने के लिए यह नाटक कर रही थी. देर रात योजनानुसार कुसुम प्रधान के पास गई और पति के गायब होने की सूचना दी. अगले दिन थाने जा कर उस ने पति की गुमशुदगी लिखाई लाश मिलने पर वह बराबर पंचायत में कलंदर और उस का विरोध करने वालों पर मुकेश की हत्या का आरोप लगाती रही.

वह एक तीर से 2 शिकार करना चाहती थी. मुकेश को रास्ते से हटाने के बाद उस की हत्या करने के आरोप में अपने विरोधियों को जेल भेजना चाहती थी. लेकिन उस की चाल धरी की धरी रह गई. पति की हत्या के समय चीखें सुनना उसे भारी पड़ गया. इंसपेक्टर अनिल सिंह ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू व टैंपो और कुसुम, कलंदर और मुकेश का मोबाइल बरामद कर लिए. मुकदमे में धारा 147/404/34 और बढ़ा दी गईं. सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सातों अभियुक्तों को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.द

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Suicide : प्रेमी संग मिलकर पुलिस की गाड़ी में विवाहिता ने खाई कीटनाशक की चार गोलियां

Suicide : पारुल और विकास का अपने जीवनसाथियों से मोहभंग हो गया था, इसलिए दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. उन्हें क्या पता था कि उन का प्यार इतना जहरीला है कि उस का जहर…

पारुल और विकास के बीच नईनई जानपहचान हुई थी. दोनों ही ठाकुरगंज के होम्योपैथी अस्पताल में साफसफाई का काम करते थे. वैसे तो दोनों की मुलाकात कम ही होती थी, क्योंकि दोनों के काम करने का समय अलगअलग था. जब से दोनों के बीच एकदूसरे के प्रति लगाव बढ़ा था, समय निकाल कर दोनों मिलने और बातचीत करने की कोशिश करते थे. पारुल ने विकास को अपने बारे में सच बता दिया था. विकास के साथ उस का ऐसा लगाव था कि वह उस से कोई बात छिपाना नहीं चाहती थी. एक दिन पारुल अपने बारे में बता रही थी और विकास उस की बातें सुन रहा था. पारुल बोली, ‘‘मेरी शादी को 14 साल हो गए. कम उम्र में शादी हो गई थी. मेरे 3 बच्चे भी हैं. मैं सोचती हूं कि जब हम दोस्ती कर रहे हैं तो एकदूसरे की हर बात को समझ लें.

‘‘मेरे पति तो जेल में हैं. ससुराल वालों से मेरा कोई संपर्क नहीं रह गया है. मैं अपने 3 बच्चों का पालनपोषण अपनी मां के पास रह कर करती हूं.’’

शाम का समय था. विकास और पारुल ठाकुरगंज से कुछ दूर गुलालाघाट के पास गोमती के किनारे बैठे थे. दोनों ही एकदूसरे से बहुत सारी बातें करने के मूड में थे. दोनों को कई दिनों बाद आपस में बात करने का मौका मिला था.

‘‘तुम्हारी शादी हो चुकी है तो मैं भी कुंवारा नहीं हूं. मैं बरेली से यहां नौकरी करने आया था. मेरी शादी 8-9 महीने पहले हुई है. शादी के कुछ महीने बाद से ही पत्नी के साथ मेरे संबंध ठीक नहीं रहे. मैं 5 महीने से अलग रह रहा हूं.

‘‘मेरी पत्नी की भी मेरे साथ रहने की कोई इच्छा नहीं है. ऐसे में मैं उस के साथ रहूं या नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता.’’ पारुल की बातें सुन कर विकास ने कहा.

‘‘आप की शादी तो पिछले साल ही हुई है, फिर भी आप पत्नी को छोड़ मुझे पसंद करते हैं. ऐसा क्यों?’’ पारुल ने विकास से पूछा.

‘‘शादी के बाद से ही पत्नी से मेरे आत्मिक संबंध नहीं रह सके. पतिपत्नी होते हुए भी ऐसा लगता था जैसे हम एकदूसरे से अनजान हैं. जब से आप मिलीं, आप से अपनापन लगने लगा. मैं अपनी पत्नी के साथ खुश नहीं हूं. हम दोनों ही अलग हो जाना चाहते हैं.’’ विकास ने पारुल की बात का जबाव दिया. विकास बरेली जिले के प्रेम नगर का रहने वाला था. वह नौकरी करने लखनऊ आया था. रश्मि के साथ उस की शादी 2018 के जून में हुई थी. 4-5 महीने दोनों साथ रहे, पर इस के बाद वह पत्नी से अलग रहने लगा. पारुल और विकास की मुलाकात साल 2019 के जून में हुई थी. शुरुआती कई महीनों तक दोनों में बातचीत नहीं होती थी. दोनों बस एकदूसरे को देखते रहते थे.

जब बातचीत होने लगी और एकदूसरे की पंसद नापसंद पर बात हुई तो पहले पारुल ने खुद को शादीशुदा बताया. तब विकास ने हंसते हुए कहा, ‘‘शादीशुदा तो मैं भी हूं. लेकिन बच्चे नहीं हैं. हमारी शादी पिछले साल हुई थी.’’

जब पता चला कि दोनों ही शादीशुदा हैं तो वे निकट आने लगे. दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी के साथ खुश नहीं थे. पारुल का पति रिंकू आटोरिक्शा चलाता था. शादी के 7 साल बाद परिवार में हुई हत्या में रिंकू को जेल हो गई. उस समय तक पारुल के 3 बच्चे मुसकान, पवन और गगन हो चुके थे. पति के जेल जाने के बाद उस की सुसराल वालों ने उस से संबंध नहीं रखे. पारुल अपने बच्चों को ले कर अपनी मां सुषमा के साथ रहने लगी. वहीं पर पारुल ने अपने बच्चों का स्कूल में एडमिशन करा दिया. अब पारुल पर मां का दबाव रहता था. वह उस की एकएक गतिविधि पर पूरी नजर रखती थी. इधर धीरेधीरे पारुल और विकास के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. सही मायनों में दोनों ही एकदूसरे की जरूरतों को पूरा करने लगे थे. एकदूसरे के साथ दोनों का पूरी तरह से तालमेल बैठ गया था. कभी साथ घूमने जाते तो कभी एक साथ फिल्म देखते.

जब पारुल की मां को जानकारी मिली तो उस ने पारुल को समझाया और ऐसे संबंधों से दूर रहने को कहा. पर पारुल मानने को तैयार नहीं थी.  कुछ दिन बाद दोनों फिर मिलने लगे. पारुल की मां सुषमा को लग रहा था कि विकास उन की बेटी को बहका कर अपने साथ रखता है. पारुल और विकास के संबंधों को ले कर मोहल्ले के लोगों और नातेरिश्तेदारों में भी चर्चा होने लगी थी. दूसरी ओर पारुल को विकास के साथ संबंधों की लत लग चुकी थी. वह किसी भी स्थिति में विकास से दूर नहीं रहना चाहती थी. विकास भी पूरी तरह पारुल का दीवाना हो चुका था. जब पारुल की मां और करीबी रिश्तेदारों का दबाव पड़ने लगा तो दोनों ने लखनऊ छोड़ने का फैसला कर लिया.

पारुल के सामने सब से बड़ी परेशानी उस के बच्चे थे. प्यार के लिए पारुल ने उन का मोह भी छोड़ दिया. उस ने विकास से कहा, ‘‘अब हम साथ रहेंगे. हमारे बच्चे भी हमारे बीच में नहीं आएंगे. हम लोग यहां से कहीं दूर चलेंगे. बच्चे यहीं रहेंगे. जब समय ठीक होगा, तब हम वापस आ कर बच्चों को अपने साथ रख लेंगे.’’

विकास ने फैसला किया कि वह पारुल को ले कर अपने घर बरेली चला जाएगा. दिसंबर, 2019 की बात है. पारुल और विकास लखनऊ छोड़ कर बरेली चले आए. यहां दोनों साथ रहने लगे. पारुल के लखनऊ छोड़ने का सारा ठीकरा उस की मां सुषमा ने विकास के ऊपर फोड़ दिया. सुषमा ने लखनऊ की कृष्णानगर कोतवाली में जा कर एक प्रार्थनापत्र दिया और विकास पर अपनी बेटी पारुल को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का आरोप लगाया. पुलिस ने प्रार्थनापत्र रख लिया. पुलिस ने रिपोर्ट लिखने की जगह एनसीआर दर्ज की. पुलिस का मानना था कि पारुल बालिग है, 3 बच्चों की मां है और अपना भलाबुरा समझती है. वह जहां भी गई होगी, अपनी मरजी से गई होगी.

कई माह बीत जाने के बाद भी जब पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो पारुल की मां सुषमा ने कोर्ट की शरण ली. 14 अगस्त, 2020 को कोर्ट ने पुलिस को धारा 498 और 506 के तहत मुकदमा कायम करने का आदेश दिया. पुलिस ऐसे मामलों की विवेचना 155 (2) के तहत करती है. इस में किसी तरह का कोई वारंट जारी नहीं होता. पुलिस दोनों को कोर्ट के सामने पेश करती है, जहां दोनों कोर्ट के सामने बयान देते हैं. कोर्ट अपने विवेक से फैसला देती है. 20 सितंबर, 2020 की रात लखनऊ के थाना कृष्णानगर के दरोगा भरत पाठक एक सिपाही और विकास व पारुल के 2 रिश्तेदारों को साथ ले कर बरेली गए. पुलिस रात में ही पारुल और विकास को कार से ले कर लखनऊ वापस लौटने लगी.

पुलिस द्वारा लखनऊ लाए जाने की बात पारुल और विकास को पता चल चुकी थी. उन के मन में भय था कि लखनऊ ले जा कर पुलिस दोनों को अलग कर देगी, जेल भी भेज सकती है. पारुल ने अपने पति को देखा था. हत्या के आरोप में 8 साल बाद भी वह जेल से बाहर नहीं आ सका था. विकास सीधासादा था, उसे भी पुलिस, जेल और कचहरी के चक्कर से डर लग रहा था. ऐसे में दोनों ने फैसला किया कि वे साथ रह नहीं सकते तो साथ मर तो सकते हैं. रात के समय जब पुलिस ने लखनऊ चलने के लिए कहा तो दोनों ने तैयार होने का समय मांगा. पारुल ने अपने पास कीटनाशक दवा की 4 गोली वाला पैकेट रख रखा था. दोनों कपड़े पहन कर वापस आए तो पुलिस ने पारुल की तलाशी नहीं ली.

पुलिस की दिक्कत यह थी कि वह अपने साथ कोई महिला सिपाही ले कर नहीं आई थी, जिस से उस की तलाशी नहीं ली जा सकी. पुलिस ने पारुल विकास को अर्टिगा गाड़ी में बैठाया और बरेली से लखनऊ के लिए निकल गई. आगे की सीट पर दारोगा भरत पाठक और एक सिपाही बैठा था. पीछे वाली सीट पर विकास और पारुल को बैठाया गया था, जबकि बीच की सीट पर दोनों के रिश्तेदार बैठे थे. गाड़ी बरेली से चली तो रात का समय था. ड्राइवर को छोड़ कर सभी लोग सो गए. अपनी योजना के मुताबिक पारुल और विकास ने कीटनाशक की 2-2 गोलियां खा लीं. कुछ ही देर में दोनों को उल्टी होने लगी. पुलिस वालों को लगा कि गाड़ी में बैठ कर अकसर कई लोगों को उल्टी होेने लगती है, शायद वैसा ही कुछ होगा.

जब गाड़ी सीतापुर पहुंची तो सो रहे लोगों की नींद खुली. पीछे की सीट से उल्टी की बदबू आ रही थी. आगे की सीट पर बैठे लोगों ने पारुल और विकास को आवाज दी, पर दोनों में से कोई नहीं बोला. पास से देखने पर पता चला दोनों बेसुध हैं. दोनों की तलाशी ली गई. उन के पास कीटनाशक दवा का एक पैकेट मिला, जिस में 2 गोलियां शेष बची थीं. इस से पता चल गया कि दोनों ने वही दवा खाई है. लखनऊ पहुंच कर पुलिस दोनों को ले कर लखनऊ मैडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर पहुंची, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. दो प्रेमियों के आत्महत्या करने का मसला पूरे लखनऊ में चर्चा का विषय बन गया. शुरुआत में विकास और पारुल के घर वालों ने पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाया. बाद में उन्हें भी लगा कि पुलिस, कचहरी और कानून के डर से पारुल और विकास ने आत्महत्या की है.

विकास और पारुल दोनों ही बालिग थे. अपना भलाबुरा समझते थे. परिवार वालों ने अगर आपसी सहमति से समझाबुझा कर फैसला लिया होता तो दोनों को यह कदम नहीं उठाना पड़ता. इस तरह की घटनाएं नई नहीं हैं. ऐसे मामलों में पुलिस की प्रताड़ना प्रेमीजनों के मन में भय पैदा कर देती है. पुलिस, समाज और कचहरी के भय से प्रेमी युगल ऐसे कदम उठा लेते हैं. ऐसे में समाज और कानून दोनों को संवेदनशीलता से काम लेना चाहिए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Family Crime : दामाद ने संपत्ति हड़पने के लिए सास, ससुर और सालियों की डंडे से पीट कर की हत्या

Family Crime : नरेंद्र गंगवार बेहद शातिर इंसान था. सब से पहले उस ने हीरालाल की बड़ी बेटी लीलावती को फांस कर उस से लवमैरिज की. फिर ससुर की संपत्ति हड़पने के लिए ससुराल के सभी लोगों की हत्या कर उन्हें घर में ही दफना दिया. 15 महीने बाद जब इस सनसनीखेज राज से परदा…

25 अगस्त, 2020 को नरेंद्र गंगवार अपने ससुर हीरालाल के पैतृक गांव पैगानगरी पहुंचा. यह गांव बरेली जिले की तहसील मीरगंज के अंतर्गत आता है. गांव पहुंचते ही वह हीरालाल के नाती दुर्गा प्रसाद से मिला. उस ने दुर्गा प्रसाद को बताया कि वह अपने ससुर की जमीन की पैदावार की बंटाई का हिस्सा लेने आया है. दरअसल, इस गांव में हीरालाल की 16 बीघा जमीन थी जो उन्होंने बंटाई पर दे रखी थी. वह खेती की पैदावार का हिस्सा लेने गांव आते रहते थे. दुर्गा प्रसाद नरेंद्र को अच्छी तरह जानते थे. हीरालाल दुर्गा प्रसाद के रिश्ते के नाना लगते थे. नरेंद्र कई बार अपने ससुर के साथ गांव आया था. दुर्गा प्रसाद ने उस से नाना की कुशलक्षेम पूछी.

इस पर नरेंद्र ने कहा, ‘‘दुर्गा प्रसादजी, बहुत ही दुखद खबर है. आप के नाना हीरालालजी अब इस दुनिया में नहीं रहे. 22 अप्रैल, 2020 को उन की मंझली बेटी दुर्गा और हीरालालजी ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी. लौकडाउन के चलते हम किसी को उन की मृत्यु की खबर तक नहीं दे पाए. कोरोना महामारी के चलते मैं ने अपनी बीवी लीलावती, किराएदार विजय व कुछ अन्य लोगों के सहयोग से नारायण नंगला किचा नदी में उन का दाहसंस्कार करा दिया था. पति के वियोग में उन की पत्नी हेमवती भी अपनी बेटी पार्वती को ले कर अचानक कहीं चली गईं. मैं ने और लीलावती ने उन्हें सब जगह ढूंढा, लेकिन उन का भी कहीं पता न चल सका.’’

हीरालाल की मृत्यु की खबर सुन कर दुर्गा प्रसाद को झटका लगा. वहां बैठे गांव के कई लोग भी हैरत में पड़ गए. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि जो इंसान अपनी औलाद के सुनहरे भविष्य का सपना ले कर गांव छोड़ शहर जा बसा था, उस का परिवार इस तरह टूट कर बिखर जाएगा. हीरालाल के मरने की खबर सुन कर गांव के लोग तरहतरह की बातें करने लगे. दुर्गा प्रसाद को बहुत दुख हुआ. लेकिन एक बात उन की समझ में नहीं आ रही थी कि जब पति और बेटी खत्म हो गए तो हेमवती को अपनी बेटी को साथ ले कर कहीं चली गई. अगर उसे वहां से जाना था तो गांव में उस के पति की 16 बीघा जमीन पड़ी थी, जिस के सहारे हीरालाल के घर का खर्च चलता था. गांव में उस का मकान भी था. वह गांव आ कर रह सकती थी.

उसी समय नरेंद्र ने दुर्गाप्रसाद को बताया कि ससुर के घर के पास ही मेरा भी मकान है. जिस पर एकमात्र बची बेटी लीलावती का मालिकाना हक कराने के लिए मुझे हीरालालजी के मृत्यु प्रमाण पत्र की जरूरत है. आप लोग उन के परिवार के लोग हो, यह काम आप ही करा सकते हो. दुर्गा प्रसाद को विश्वास नहीं हुआ नरेंद्र की बात सुनते ही दुर्गा प्रसाद का दिमाग घूम गया. उन्हें उस की बात में कुछ झोल नजर आया. दुर्गा प्रसाद ने यह बात हीरालाल के बटाईदार कुंवर सैन के घर जा कर उन्हें बताई. साथ ही नरेंद्र की बातों पर कुछ शक भी जाहिर किया. यह बात सुन कर कुंवर सैन ने उसे बंटाई का हिस्सा देने से भी साफ मना कर दिया तो नरेंद्र वापस अपने घर चला आया.

नरेंद्र की बातों पर शक हुआ तो 27 अगस्त, 2020 को दुर्गा प्रसाद हीरालाल के बटाईदार कुंवर सैन को साथ ले कर उन की मौत की सच्चाई जानने के लिए रुद्रपुर ट्रांजिट कैंप पहुंचे. हीरालाल के घर पर ताला लगा हुआ था. यह देख कर उन्होंने पड़ोसियों से उन के बारे में जानकारी लेनी चाही तो पता चला कि हीरालाल के घर पर पिछले 15 महीने से ताला लटका हुआ है. इस दौरान उन्होंने कभी भी हीरालाल और उन के परिवार वालों को यहां आतेजाते नहीं देखा. यह बात सामने आते ही दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन को हैरानी हुई, क्योंकि नरेंद्र ने उन्हें बताया था कि हीरालाल ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली थी. लेकिन उस के पड़ोसियों को इस बात की जानकारी तक नहीं थी.

नरेंद्र का झूठ सामने आते ही दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन समझ गए कि हीरालाल की संपत्ति हड़पने की मंशा से उन के दामाद नरेंद्र ने कोई चक्रव्यूह रच कर उन्हें मौत Family Crime के घाट उतार दिया. हीरालाल के परिवार के साथ किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए दुर्गा प्रसाद और कुंवर सैन उसी दिन ट्रांजिट कैंप थाने पहुंच गए. यह बात उन्होंने थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी को बताई. मामला एक ही परिवार के 4 लोगों के लापता होने का था, इसलिए उन्होंने इसे गंभीरता से लिया. दुर्गाप्रसाद और कुंवर सैन से जरूरी जानकारी लेने के बाद उन्हें घर भेज दिया गया. फिर थानाप्रभारी जोशी ने इस मामले की सच्चाई जानने के लिए गुप्तरूप से जांचपड़ताल करानी शुरू की. सादे वेश में जा कर पुलिस ने नरेंद्र गंगवार को अपने कब्जे में लिया, ताकि वह फरार न हो सके.

थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी ने नरेंद्र से हीरालाल और उन के परिवार के सदस्यों के बारे में कड़ी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ के दौरान नरेंद्र शुरू में तो इधरउधर की कहानी गढ़ता रहा. लेकिन जैसे ही पुलिस की सख्ती बढ़ी तो उस का धैर्य जवाब दे गया. उस के बाद उस ने अपने ससुराल वालों की हत्या अपने किराएदार विजय के सहयोग से करने की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ के दौरान नरेंद्र गंगवार ने बताया कि 20 अप्रैल, 2019 को सुबह साढ़े 5 बजे उस ने अपने किराएदार विजय के साथ मिल कर सासससुर और 2 सालियों को डंडे से पीट कर मौत के घाट उतारा. फिर उन की लाशों को उन्हीं के मकान में गड्ढा खोद कर दफन कर दिया.

नरेंद्र द्वारा 4 लोगों की हत्या कर घर में ही दफनाने वाली बात सामने आते ही थानाप्रभारी भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने इस बात की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दी. थानाप्रभारी ने आननफानन में तत्परता से नरेंद्र के सहयोगी रहे उस के किराएदार विजय को भी हिरासत में ले लिया. यह जानकारी मिलते ही ट्रांजिट कैंप के साथसाथ थाना पंतनगर, थाना रुद्रपुर और थाना किच्छा से भी पुलिस टीमें हीरालाल के मकान पर पहुंच गईं. देखते ही देखते आजादनगर की मुख्य सड़क पुलिस छावनी में तब्दील हो गई. आजादनगर के आसपास यह नजारा देख लोग हैरत में पड़ गए. घटना की जानकारी मिलते ही एसएसपी दिलीप सिंह व आईजी (कुमाऊं) अजय कुमार रौतेला भी घटनास्थल पर पहुंचे.

पुलिस द्वारा हीरालाल के घर का दरवाजा खोलने से पहले ही वहां तमाशबीनों का जमावड़ा लग गया. पुलिस ने नरेंद्र की निशानदेही पर मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में दिन के 3 बजे 4 मजदूरों को लगा कर खुदाई शुरू कराई. लगभग 2 घंटे के अथक प्रयास के बाद पुलिस लाशों तक पहुंची. लगभग साढ़े 4 फीट की गहराई में एक के ऊपर एक 4 लाशें पड़ी मिलीं, जो प्लास्टिक की थैलियों में पैक थीं. इस हृदयविदारक दृश्य को देख कर लोगों के होश उड़ गए. लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो उन के सामने है वह सच है या सपना. पुलिस ने थैलियों को खोल कर लाशों की जांचपड़ताल की. लाशों को देख कर पुलिस हैरान थी कि सभी लाशें अभी तक अच्छी हालत में थीं. पुलिस को उम्मीद थी कि 15 महीनों के लंबे अंतराल के दौरान लाशें कंकाल में बदल चुकी होंगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं था. उसी गड्ढे से पुलिस ने लकड़ी के डंडे के आकार की एक फंटी बरामद की. नरेंद्र ने उसी फंटी से चारों को मारने की बात स्वीकार की थी.

घटनास्थल पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने सैंपल एकत्र किए. फिर उन्हें जांच के लिए सुरक्षित रख लिया. पुलिस ने चारों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं और इस मामले को गंभीरता से लेते हुए 4 डाक्टरों के पैनल द्वारा वीडियोग्राफी के साथ पोस्टमार्टम कराया. यह कुमाऊं का पहला ऐसा सनसनीखेज  मामला था, जिस ने तहलका मचा दिया था. हीरालाल का अपना कोई बेटा नहीं था तो उन्होंने बेटियों का ही पालनपोषण अच्छे से किया था. बड़ी बेटी लीलावती ने गलत कदम उठाया तो उसे भी सहन करते हुए उन्होंने उस के पति नरेंद्र को बेटे का दरजा दे कर उसे अपने घर में शरण दी. इस के बावजूद उस ने ऐसा कदम उठाया कि ससुराल का वजूद ही खत्म कर डाला. यह कहानी जितनी सनसनीखेज थी, उस से कहीं ज्यादा हृदयविदारक भी थी.

हीरालाल का परिवार उत्तर प्रदेश के जिला बरेली, तहसील मीरगंज के गांव पैगानगरी में रहता था गांव में उन का परिवार सुखीसंपन्न माना जाता था. गांव में उन की जुतासे की करीब 60 बीघा जमीन थी. औलाद के नाम पर 3 बेटियां थीं लीलावती उर्फ लवली, पार्वती और सब से छोटी दुर्गा. उन की पत्नी हेमवती सहित घर में कुल 5 सदस्य थे. घर में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. हीरालाल की बस एक ही परेशानी थी कि उन का कोई बेटा नहीं था. जो घर धनधान्य से भरपूर हो और घर में उस का कोई वारिस न हो तो चिंतित रहना स्वभाविक ही है. हीरालाल ने बेटे की चाह के चलते इधरउधर काफी हाथपांव मारे. कई डाक्टरों और तांत्रिकों से मिले लेकिन उन की बेटे की इच्छा पूरी न हो सकी.

बाद में इस सोच को बदल कर उन्होंने अपना पूरा ध्यान बेटियों की परवरिश में लगा दिया. समय के साथ बेटियां समझदार हुईं तो हीरालाल ने सोचा कि उन्हें अपनी बेटियों को गांव के माहौल से बचा कर शहर में अच्छी शिक्षा दिलानी चाहिए. जिस से वे पढ़लिख कर कुछ बन जाएं. इसी सोच के चलते हीरालाल ने सन 2007 में अपनी खेती की जमीन में से 44 बीघा जमीन बेच दी. उस पैसे को ले कर हीरालाल अपने परिवार के साथ गांव से रुद्रपुर के ट्रांजिट कैंप थानांतर्गत राजा कालोनी में आ कर रहने लगे. उन्होेंने अपना मकान बना लिया था. रुद्रपुर आ कर हीरालाल ने अपनी तीनों बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए अच्छे स्कूल में दाखिला दिला दिया था.

बेटियों की तरफ से निश्चिंत हो कर हीरालाल ने बाकी बचे पैसों से प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया. जमीन के पैसे से ही उन्होंने आसपास कई प्लौट खरीद कर डाल दिए थे. उसी दौरान हीरालाल की मुलाकात नरेंद्र गंगवार से हुई. राहु बन कर कुंडली में बैठा नरेंद्र नरेंद्र गंगवार रामपुर जिले के थाना ऐरो बिलासपुर के गांव खेड़ासराय का रहने वाला था. वह उसी मोहल्ले में किराए के मकान में रहता था. नरेंद्र गंगवार सिडकुल की एक फैक्ट्री में काम करता था. उस ने हीरालाल से एक प्लौट खरीदने की इच्छा जताई. इस पर हीरालाल ने उसे अपने घर के सामने पड़ा प्लौट दिखाया तो वह नरेंद्र को पसंद आ गया. उस ने हीरालाल से वह प्लौट खरीद कर उस की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली.

प्लौट के चक्कर में नरेंद्र की हीरालाल से जानपहचान हुई तो वह उन के संपर्क में रहने लगा था. इसी बहाने वह हीरालाल के घर भी आनेजाने लगा था. घर आनेजाने के दौरान ही नरेंद्र की नजर हीरालाल की बड़ी बेटी लीलावती पर पड़ी. लीलावती देखनेभालने में सुंदर थी और उस समय पढ़ भी रही थी. उस की सुंदरता को देखते ही नरेंद्र उसे पाने के लिए लालायित हो उठा. वह जब भी हीरालाल के घर जाता तो उस की निगाहें उसी पर टिकी रहती थीं. लीलावती नरेंद्र के बारे में पहले ही सब कुछ जान चुकी थी. जब उस ने नरेंद्र को अपनी ओर आकर्षित होते देखा तो उस के दिल में भी चाहत पैदा हो गई.

दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति प्यार उमड़ा तो वे प्रेम की राह पर बढ़ चले.  लीलावती स्कूल जाती तो नरेंद्र घंटों तक उस की राह तकता रहता. उस के स्कूल जाने का फायदा उठाते हुए वह घर से बाहर ही उस से मुलाकात करने लगा. प्रेम बेल फलीफूली तो मोहल्ले वालों की नजरों में किरकरी बन कर चुभने लगी. कुछ ही समय बाद दोनों की प्रेम कहानी हीरालाल के सामने जा पहुंची. अपनी बेटी की करतूत सुन कर हीरालाल को बहुत दुख हुआ. वह अपनी बेटियों को बेटा समझ पढ़ालिखा रहे थे, ताकि वे किसी काबिल बन जाएं. लेकिन बड़ी बेटी की करतूत सुन कर उसे गहरा सदमा पहुंचा. यह जानकारी मिलने पर उस ने लीलावती को समझाया और नरेंद्र के घर आने पर पाबंदी लगा दी. इस पर दोनों मोबाइल पर बात कर अपने दिल की पीड़ा एकदूसरे से साझा करने लगे.

इस प्रेम कहानी के चलते लीलावती ने सन 2008 में घर वालों को बिना बताए नरेंद्र से लव मैरिज कर ली. शादी के बाद लीलावती उस के साथ किराए के मकान में रहने लगी. लीलावती की इस करतूत से हीरालाल और उन की पत्नी हेमवती दोनों को जबरदस्त आघात पहुंचा. बेटी के कारण मियांबीवी मोहल्ले में सिर उठा कर चलने लायक नहीं रहे. इसी वजह से हीरालाल ने अपनी बेटी लीलावती से संबंध खत्म कर दिए. लेकिन हेमवती मां थी. मां का दिल तो वैसे भी बहुत कोमल होता है. भले ही लीलावती ने नरेंद्र के साथ शादी कर अपनी दुनिया बसा ली थी, लेकिन मां होने के नाते हेमवती उस के लिए परेशान रहने लगी थी. जब बेटी के बिना उस से नहीं रहा गया तो वह पति को बिना बताए उस से मिलने लगी.

हेमवती जब कभी घर में कुछ अच्छा बनाती, चुपके से लीलावती को पहुंचा आती. साथ ही वह उस की आर्थिक मदद भी करने लगी थी. धीरेधीरे यह बात हीरालाल को भी पता चल गई. शुरूशुरू में तो इस बात को ले कर दोनों में विवाद हो गया. लेकिन हीरालाल भी दिल के कमजोर इंसान थे. बेटी की परेशानी को देखते हुए उन का दिल भी पसीज गया. नरेंद्र बना घरजंवाई शादी के कुछ समय बाद ही हीरालाल ने नरेंद्र को अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया और बेटीदामाद दोनों को घर ले आए. नरेंद्र घरजंवाई की हैसियत से ससुर हीरालाल के मकान में ही रहने लगा. उसी दौरान नरेंद्र कई बार हीरालाल के साथ उन के गांव पैगानगरी भी गया था. हीरालाल का गांव में मकान था, जो खाली पड़ा था.

साथ ही उन की बची हुई 16 बीघा जमीन भी थी, जिसे उन्होंने बंटाई पर दे रखा था. इस जमीन से उन्हें हर साल इतना रुपया मिल जाता था कि उन के परिवार की गुजरबसर ठीक चल रही थी. वह प्रौपर्टी खरीदबेच कर जो कमाते थे वह अलग था. ससुर के साथ रह कर नरेंद्र उन की एकएक बात अपने दिमाग में उतारने लगा. मम्मीपापा के घर पर रहते हुए ही लीलावती 4 बच्चों, 2 बेटियों और 2 बेटों की मां बनी. हीरालाल के घर पर रहते हुए नरेंद्र नौकरी करने के साथसाथ उन के काम में भी हाथ बंटाने लगा था. हालांकि नरेंद्र के चारों बच्चों का खर्च भी हीरालाल स्वयं ही वहन कर रहे थे. इस के बावजूद नरेंद्र अपने खर्च के लिए हीरालाल से पैसे ऐंठता रहता था.

हीरालाल की अभी 2 बेटियां शादी के लिए बाकी थीं. वह समय से उन की शादी करना चाहते थे. लेकिन जब से नरेंद्र इस घर में आया था, अपनी सालियों को फूटी आंख नहीं देखना चाहता था. नरेंद्र तेजतर्रार और चालाक था. लीलावती से शादी करने के बाद उस की निगाह हीरालाल की संपत्ति पर जम गई थी. जिसे देख वह भविष्य के सुनहरे सपनों में खोया रहता था. उसी दौरान उस ने हीरालाल पर उस के हिस्से की संपत्ति उस के नाम कराने का दबाव बनाना शुरू किया. लेकिन हीरालाल का कहना था कि जब तक उन की दोनों बेटियां विदा नहीं हो जातीं, वह अपनी किसी भी संपत्ति का बंटवारा नहीं करेंगे. हीरालाल जब नरेंद्र की हरकतों से परेशान हो उठे तो उन्होंने नरेंद्र के प्लौट पर मकान बनवा दिया. बाद में नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को साथ ले कर नए मकान में चला गया.

हीरालाल ने सोचा था कि नरेंद्र अपने घर में जाने के बाद सुधर जाएगा. लेकिन घर आमनेसामने होने के कारण उस के बीवीबच्चे हीरालाल के घर पर ही पड़े रहते थे. बच्चों के सहारे आ कर वह फिर से बदतमीजी पर उतर आता था. लेकिन ससुर होने के नाते हीरालाल सब कुछ सहन करते रहे. उसी दौरान नरेंद्र ने अपने मकान में विजय नाम का एक किराएदार रख लिया. विजय गंगवार जिला बरेली के थाना देवरनियां के गांव दमखोदा का रहने वाला था. विजय गंगवार से नरेंद्र पहले से ही परिचित था. दोनों में खूब पटती थी. विजय गंगवार अभी कुंवारा था. नरेंद्र ने विजय गंगवार के सामने अपने ससुर की सारी संपत्ति की पोल खोल कर दी, जिस की वजह से उस के मन में भी लालच जाग उठा. उस ने भी नरेंद्र की तरह हीरालाल की मंझली बेटी पार्वती पर निगाहें गड़ा दीं. लेकिन पार्वती समझदार थी. विजय के लाख कोशिश करने के बाद भी वह उस के प्रेम जाल में नहीं फंसी.

जम गई नजर ससुर की संपत्ति पर मन में संपत्ति का लालच आते ही वह अपने ससुर के साथसाथ बाकी लोगों को भी मौत के घाट उतारने के लिए षडयंत्र रचने लगा. लेकिन वह अपनी किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. नरेंद्र को यह भी पता लग गया था कि विजय उस की साली के पीछे पड़ा है. तभी उस के दिमाग में एक आइडिया आया. उस ने वह बात विजय को बताते हुए धमकाया कि जो वह कर रहा है वह ठीक नहीं है. अगर इस बात का पता उस के ससुर को चल गया तो परिणाम बहुत गलत होगा. नरेंद्र की बात सुन कर विजय घबरा गया. इस के बाद विजय नरेंद्र की हां में हां मिलाने लगा. फिर आए दिन नरेंद्र अपने घर पर विजय की दावत करने लगा. उस समय तक हीरालाल का परिवार हंसीखुशी से रह रहा था. लेकिन नरेंद्र को उन के परिवार की खुशियां कचोटती थीं.

वह मन ही मन अपने ससुराल वालों से खार खाने लगा था. उसी दौरान उस ने विजय को अपने ससुर की संपत्ति Family Crime से कुछ हिस्सा देने की बात कहते हुए अपनी षडयंत्रकारी योजना में शामिल कर लिया. फिर 17 अप्रैल, 2019 को नरेंद्र ने अपने किराएदार विजय के साथ मिल कर ससुराल वालों की हत्या की योजना को अंतिम रूप दे दिया. इस योजना के बनते ही नरेंद्र ने अपने बीवीबच्चों को देवरनियां बरेली में अपने फूफा के घर भेज दिया ताकि उन्हें उस की साजिश का पता न चल सके. बीवीबच्चों को बरेली भेजने के बाद वह विजय के साथ मिल कर इस घटना को अंजाम देने के लिए मौके की तलाश में लग गया. लेकिन उसे मौका नहीं मिल पा रहा था. नरेंद्र और विजय को यह भी डर था कि अगर इस योजना में वे किसी तरह से फेल हो गए तो न घर के रहेंगे न घाट के.

नरेंद्र जानता था कि उस की सास सुबह दूध लेने जाती है. उस वक्त उस का ससुर और दोनों सालियां सोई रहती हैं. घर का गेट खुला रहता है. उस वक्त तक पड़ोसी भी सोए होते हैं. घटना को अंजाम देने के लिए नरेंद्र को यह समय सही लगा. 20 अप्रैल, 2019 को नरेंद्र गंगवार और विजय गंगवार सुबह जल्दी उठ गए थे. दोनों हेमवती के दूध लेने जाने का इंतजार करने लगे. हेमवती उस दिन सुबह के साढ़े 5 बजे अपनी बेटी पार्वती को साथ ले कर दूध लाने के लिए घर से निकली. उन के घर से निकलते ही नरेंद्र विजय को साथ ले कर ससुर हीरालाल के घर में घुस गया. उस समय तक हीरालाल सो कर उठ गए थे. सुबहसुबह दोनों को अपने घर में आया देख हीरालाल ने नरेंद्र से आने का कारण पूछा तो उस ने कहा कि आज मैं आखिरी बार आप से पूछने आया हूं कि आप मेरे हिस्से की संपत्ति मुझे देते हो या नहीं.

पूरे परिवार की हत्या सुबहसुबह दामाद के मुंह से इस तरह की बात सुन हीरालाल का पारा चढ़ गया. दोनों के बीच विवाद बढ़ा तो पूर्व योजनानुसार नरेंद्र ने वहां रखी लकड़ी की फंटी से पीटपीट कर बड़ी ही बेरहमी से हीरालाल की हत्या कर दी. अपने पापा के चीखने की आवाज सुन कर बेटी दुर्गा उन के बचाव में आई तो दोनों ने उसे भी फंटी से पीटपीट कर मार डाला. दोनों को मौत की नींद सुलाने के बाद नरेंद्र और विजय हेमवती और पार्वती के आने का इंतजार करने लगे. जैसे ही उन दोनों ने घर में प्रवेश किया दरवाजे के पीछे खड़े नरेंद्र और विजय ने उन्हें भी पीटपीट कर मार डाला. सासससुर और दोनों सालियों को खत्म करने के बाद नरेंद्र और विजय ने चारों को घसीट कर एक कमरे में ले जा कर डाल दिया.

कमरे में ले जाने के बाद भी नरेंद्र और विजय को उन की मौत पर विश्वास नहीं हुआ तो दोनों ने एकएक कर सब की नब्ज चैक की. जब उन्हें पूरा यकीन हो गया कि चारों मौत की नींद सो चुके हैं, तो दोनों ने मकान में फैले खून को धो कर साफ किया और घर के बाहर ताला लगा कर अपने घर आ गए. इस खूनी वारदात को अमलीजामा पहनाने के बाद दोनों ने उन लाशों को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. नरेंद्र जानता था कि उन की लाश को घर से बाहर ले जा कर ठिकाने लगाना उन के लिए खतरे से खाली नहीं है. इसलिए दोनों ने तय किया कि बाजार से प्लास्टिक शीट ला कर लाशों को उस में लपेटा घर में ही गड्ढा खोद कर दफन कर दिया जाए. लाशों पर प्लास्टिक शीट लिपटी होने के कारण उन के सड़ने के बाद भी बदबू बाहर नहीं निकल पाएगी.

20 अप्रैल, 2019 को ही नरेंद्र बाजार से प्लास्टिक शीट खरीद लाया. उसी रात दोनों ने ससुर हीरालाल के मकान में जा कर चारों लाशों को प्लास्टिक शीट में पैक कर दिया. अगले दिन 21 अप्रैल, 2019 की सुबह नरेंद्र विजय को साथ ले कर ससुर के घर में गया. फिर दोनों ने अपनी योजना के मुताबिक जीने के नीचे गड्ढा खोदना शुरू किया. कुछ पड़ोसियों ने नरेंद्र से हीरालाल के घर में अचानक काम कराने के बारे में पूछा तो नरेंद्र ने कहा कि वह मकान बेच कर कहीं दूसरी जगह चले गए. घर में रिपेयरिंग का काम चल रहा है. वैसे भी उस मोहल्ले में नरेंद्र से कोई ज्यादा मतलब नहीं रखता था. यही कारण था कि हीरालाल के परिवार के बारे में किसी ने भी नरेंद्र से ज्यादा पूछताछ नहीं की. नरेंद्र ने विजय के साथ मिल कर लगभग 6 घंटे में एक गहरा गड्ढा खोदा. उस के बाद दोनों ने प्लास्टिक में पैक चारों लाशें गड्ढे में डाल दीं.

चारों लाशों को गड्ढे में दफन कर के उन्होंने वहां पर पक्का फर्श बना दिया. चारों लाशों को ठिकाने लगाने के बाद नरेंद्र ने हीरालाल के घर के मुख्य दरवाजे पर ताला डाल दिया. घर के अंदर कब्रिस्तान हीरालाल के घर पर अचानक ताला देख लोगों को हैरत तो जरूर हुई. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि हीरालाल रात ही रात में अपने परिवार को ले कर अचानक कहां गायब हो गए. लेकिन नरेंद्र से किसी ने पूछने की हिम्मत नहीं की. ससुराल वालों को ठिकाने लगा कर नरेंद्र अपने बीवीबच्चों को बरेली से घर ले आया. घर आते ही लीलावती की नजर पिता के मकान की ओर गई, जहां पर ताला लगा था.

लीलावती ने उन के बारे में पति से पूछा, तो उस ने बताया कि उस के पापा अपना मकान बेच कर हल्द्वानी चले गए हैं. उन्होंने वहां पर ही अपना प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया है. यह सुन कर लीलावती चुप हो गई. इस के आगे उसे नरेंद्र से ज्यादा पूछने की हिम्मत नहीं थी. उसे पता था कि उस के पिता और नरेंद्र की आपस में नहीं बनती है. नरेंद्र ने हीरालाल के पूरे परिवार को मौत की नींद सुला दिया था, इस के बाद भी उस के मन में किसी तरह का खौफ नहीं था. इस घटना को अंजाम देने के बाद नरेंद्र ने हीरालाल के मकान को किराए पर उठा दिया. लेकिन कुछ समय बाद किराएदार मकान छोड़ कर चला गया तो उस ने मकान पर फिर से ताला लगा दिया.

उस दिन के बाद उस ने कभी भी उस मकान का ताला नहीं खोला था. अगर नरेंद्र संपत्ति हड़पने के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने में जल्दबाजी न करता तो यह राज शायद राज ही बन कर रह जाता. इस केस के खुलते ही पुलिस ने आरोपी नरेंद्र गंगवार और विजय गंगवार को भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. चारों शवों के पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शव उन के रिश्तेदार दुर्गा प्रसाद को सौंप दिए थे. उन का दाह संस्कार बरेली के मीरगंज गांव पैगानगरी के पास भाखड़ा नदी किनारे किया गया. नरेंद्र गंगवार इतना शातिर इंसान था कि उस ने दुर्गा प्रसाद को इस केस में फंसाने की कोशिश की. लेकिन सच्चाई सामने आते ही पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया.

हालांकि इस केस की रिपोर्ट दुर्गा प्रसाद की ओर से ही दर्ज कराई गई थी. फिर भी इस केस के खुल जाने के बाद पुलिस दुर्गा प्रसाद और अन्य के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच में जुटी थी. पुलिस ने लीलावती से पूछताछ करने के बाद उसे छोड़ दिया था. वह नरेंद्र के फूफा के साथ बहेड़ी चली गई थी. केस की जांच थानाप्रभारी ललित मोहन जोशी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

Love Crime : प्रेमी जोड़े का गला घोंटा, चेहरे पर तेजाब डाला फिर लाशों को लटका दिया

Love Crime : बंटी और सुखदेवी चचेरेतहेरे भाईबहन जरूर थे लेकिन वे एकदूसरे से दिली मोहब्बत करते थे. दोनों के घर वालों ने शादी करने से मना कर दिया तो अपनी शादी से एक दिन पहले दोनों घर से भाग गए. इस के बाद जो हुआ, उस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी…

बंटी की अजीब सी स्थिति थी. उस का दिमाग तो चेतनाशून्य हो चला था. साथ ही उस के दिमाग में एक तूफान सा मचा हुआ था. यही तूफान उसे चैन नहीं लेने दे रहा था. बेचैनी का आलम यह था कि वह कभी बैठ जाता तो कभी उठ कर चहलकदमी करने लगता. अचानक उस का चेहरा कठोर होता चला गया, जैसे वह किसीफैसले पर पहुंच गया था, उस फैसले के बिना जैसे और कुछ हो नहीं सकता था. बंटी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले के थाना धनारी के गांव गढ़ा में रहता था. उस के पिता का नाम बिन्नामी और माता का नाम शीला था. बिन्नामी खेतीकिसानी का काम करते थे.

22 वर्षीय बंटी इंटर पास था. उस के बड़े भाई 25 वर्षीय संदीप का विवाह हो चुका था. बंटी से छोटे 2 भाई तेजपाल (14 वर्ष) और भोलेशंकर (9 वर्ष) के अलावा छोटी बहनें कश्मीरा, सोमवती और राजवती थीं, जोकि क्रमश: 17 वर्ष, 7 वर्ष और 5 वर्ष की थीं. उस के पड़ोस में उस के ताऊ तुलसीदास रहते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा देवी और उन के 6 बेटै रामपाल, विनीत उर्फ लाला, किशोरी, गोपाल उर्फ रामगोपाल, धर्मेंद्र और कुलदीप उर्फ सूखा थे. इस के अलावा इकलौती बेटी थी 21 वर्षीय सुखदेवी, जोकि सब भाइयों से छोटी थी. रिश्ते में बंटी और सुखदेवी तहेरे भाईबहन थे. बचपन से दोनों साथ खेलेघूमे. हर समय एकदूसरे का साथ दोनों को खूब भाता था. समय के साथ ही बचपन का यह खेल कब जवानी के प्यार की तरफ बढ़ने लगा, उन को एहसास भी नहीं हुआ.

जवान होती सुखदेवी के सौंदर्य को देखदेख कर बंटी आश्चर्यचकित हो गया था. सुखदेवी पर छाए यौवन ने उसे एक आकर्षक युवती बना दिया था. उस के नयननक्श में अब गजब का आकर्षण पैदा हो गया था.  हिरनी जैसे नयन, गुलाब की पंखुडि़यों जैसे होंठ, जिन का रसपान करना हर नौजवान की हसरत होती है. उस के गालों पर आई लाली ने उसे इतना आकर्षक बना दिया था कि बंटी खुद पर काबू न रख सका और उसे देख कर उसे पाने को लालायित हो उठा. सुखदेवी के यौवन में वह इस कदर खो गया कि उस के बदन को ऊपर से नीचे तक निहारता रह गया. उस के छरहरे बदन में यौवन की ताजगी, कसक और मादकता की साफसाफ झलक दिखती थी.

बंटी अपनी तहेरी बहन के मादक सौंदर्य को बस देखता रह गया और उस की चाहत में डूबता चला गया. वह इस बात को भी भूल गया कि वह उस की तहेरी ही सही, लेकिन बहन तो है. बंटी जब सुखदेवी के घर गया तो उसे एकटक देखने लगा. उधर सुखदेवी इस बात से बेखबर अपने काम में व्यस्त थी. जब उस की मां रमा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ सुखिया, देख बंटी आया है.’’ तो उस का ध्यान बंटी की तरफ गया. चाहने लगा था सुखदेवी को सुखदेवी को भी बंटी पसंद था, मगर उस रूप में नहीं जिस रूप में उसे बंटी देख रहा था और उसे पाने की चाह में तड़पने लगा था.

रमा देवी ने फिर आवाज लगाई. सुखदेवी ने तुरंत एक गिलास पानी और थोड़ा मीठा ला कर बंटी के सामने रख दिया. पानी का गिलास हाथ में पकड़ाते हुए बोली, ‘‘क्या हाल हैं जनाब के?’’

जब बंटी ने उस से पानी का गिलास लिया तो उस का स्पर्श पा कर वह पहले से अधिक व्याकुल हो उठा. उस के साथ सुंदर सपनों में खो गया. इधर सुखदेवी ने उस के गालों को खींच कर कहा, ‘‘कहां खो गए जनाब?’’

इस के बाद वह चाय बनाने चली गई. बंटी का सारा ध्यान तो सुखदेवी की तरफ ही था, जो किचन में उस के लिए चाय बना रही थी. वह तो इस कदर व्याकुल था कि दिल हुआ किचन में जा कर खड़ा हो जाए. उधर जब सुखदेवी चाय ले कर आई तो बंटी की बेचैनी थोड़ी कम हुई. सुखदेवी ने जब बंटी को चाय दी तो उस ने पुन: उसे छूना चाहा, मगर नाकाम रहा. तभी उस की ताई को कुछ काम याद आ गया और वह उठ कर बाहर चली गईं. इधर बंटी की धड़कनें रेल के इंजन की तरह दौड़ने लगीं. वह घबराने लगा. मगर एक खुशी भी थी कि उस तनहाई में वह सुखदेवी को देख सकता है. फिर सुखदेवी अपने काम में लग गई, मगर बंटी के कहने पर वह उस के करीब ही चारपाई पर बैठ गई. उस के शरीर के स्पर्श ने उसे गुमशुदा कर दिया.

उस का दिल तो चाह रहा था कि वह उसे अपनी बांहों में भर ले और प्यार करे, मगर न जाने कैसी झिझक उसे रोक देती और वह अपने जज्बातों पर काबू किए उस की बातें सुनता जा रहा था. वह बारबार हंसती तो बंटी के मन में फूल खिल उठते थे. थोड़ी ही देर में बंटी को न जाने क्या हुआ, वह उठा और जाने लगा. तभी सुखदेवी ने उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

मगर बंटी ने बिना कुछ कहे अपना हाथ छुड़ाया और वहां से चला गया. सुखदेवी उस से बारबार पूछती रही. मगर वह रुका नहीं और बिना पीछे देखे चला गया. प्यार के इजहार का नहीं मिला मौका बंटी को उस दिन के बाद कुछ अच्छा न लगता, वह तो बस सुखदेवी के खयालों में ही खोया रहता था, मगर चाह कर भी वह उस से मन की जता नहीं पाता था. उस के मन में पैदा हुई दुविधा ने उसे अत्यंत उलझा रखा था. तहेरी बहन से प्रेम की इच्छा ने उस के दिलोदिमाग को हिला रखा था. मगर सुखदेवी के यौवन का रंग बंटी पर खूब चढ़ चुका था. उस के यौवन की किसी एक बात को भी वह भुला नहीं पा रहा था.

एक दिन बंटी घर पर अकेला था और सुखदेवी के खयालों में खोया हुआ था. वह चारपाई पर लेटा था, तभी सुखदेवी उस के घर पहुंची और बिना कुछ कहे सीधे अंदर चली गई. बंटी उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. कुछ देर तक वह उसे देखता ही रहा था. तभी सुखदेवी ने सन्नाटा भंग करते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है? क्या मुझे बैठने तक को नहीं कहोगे?’’

‘‘कैसी बात कर रही हो, आओ तुम्हारा ही घर है.’’ बंटी ने कहा तो सुखदेवी वहीं पड़ी चारपाई पर बैठ गई.

सुखदेवी ने बैठते ही बंटी को देखा और कहने लगी, ‘‘क्या बात है आजकल तुम घर नहीं आते? मुझ से कोई गलती हो गई है कि उस दिन तुम बिना कुछ कहे घर से चले आए.’’

बंटी मूक बैठा बस सुखदेवी को निहारे जा रहा था. सुखदेवी ने जब उसे चुप देखा तो बंटी के करीब पहुंच कर वह बैठ गई और उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोली, ‘‘बोलो न क्या हुआ? तुम इतने चुपचुप क्यों हो, क्या कोई बात है जो तुम्हें बुरी लग गई है. मुझे बताओ न, तुम तो हमेशा हंसते थे, मुझ से ढेर सारी बातें करते थे. मगर अब क्या हुआ है तुम्हें, तुम इतने खामोश क्यों हो?’’

मगर उधर बंटी तो एक अलग ही दुविधा में फंसा हुआ था. सुखदेवी की बातों को सुन कर अचानक ही बंटी उस की ओर घूमा और उसे बड़े गौर से देखने लगा. तभी सुखदेवी ने उस से पूछा कि वह क्या देख रहा है, मगर बंटी जड़वत हुआ उसे घूरता ही जा रहा था. सुखदेवी भी उस की निगाह के एहसास को महसूस कर रही थी, शायद इसलिए वह भी खामोश नजरें झुकाए वहीं बैठी रही थी. बंटी उस से प्रेम का इजहार करना चाहता था, मगर इस दुविधा में उलझा हुआ था कि वह मेरी तहेरी बहन है. मगर अंत में प्रेम की विजय हुई. उस ने सुखदेवी के चेहरे को अपने हाथों में ले लिया. बंटी के इस व्यवहार से सुखदेवी थोड़ा घबरा गई. मगर अपनी धड़कनों पर काबू पा कर उस ने अपनी दोनों मुट्ठियों को बहुत जोर से भींचा और अपनी आंखें बंद कर लीं.

तभी बंटी ने उस से आंखें खोलने को कहा, मगर सुखदेवी हिम्मत न कर सकी. फिर दोबारा कहने पर सुखदेवी ने अपनी पलकें उठाईं और फिर तुरंत झुका लीं. तभी बंटी ने उस की आंखों को चूम लिया. सुखदेवी घबरा गई’ उस ने वहां से उठना चाहा. मगर बंटी ने उसे उठने नहीं दिया. वह शर्म के मारे कांपने लगी. उस के होंठों की कंपकंपाहट से बंटी अच्छी तरह वाकिफ था. मगर वह तो उस दिन अपने प्यार का इजहार कर देना चाहता था. तभी उस ने सुखदेवी की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, मैं सचमुच तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

बंटी की इन बातों को सुन कर सुखदेवी आश्चर्यचकित हो गई और उस ने बंटी को समझाना चाहा, मगर बंटी तो अपनी जिद पर ही अड़ा रहा. सुखदेवी ने कहा, ‘‘बंटी, मैं तुम्हारी बहन हूं. हमारा प्यार कोई कैसे स्वीकार करेगा.’’

मगर बंटी ने इन सब बातों को खारिज करते हुए सुखदेवी को अपनी बांहों में समेट लिया और बड़े प्यार से उस के होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी. सुखदेवी के लिए यह किसी पुरुष का पहला स्पर्श था, जिस ने उसे मदहोश होने पर मजबूर कर दिया और बंटी की बांहों में कसमसाने लगी. सुखदेवी चाह कर भी अपने आप को उस से अलग नहीं कर पा रही थी. लगातार कुछ क्षणों तक चले इस प्रेमालाप से सुखदेवी मदमस्त हो गई, तभी अचानक बंटी उस से अलग हो गया. प्यार को लग गई हवा सुखदेवी तड़प उठी. बंटी के स्पर्श से छाया खुमार जल्दी ही उतरने लगा. वह बिना कुछ कहे घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी तो पीछे से बंटी ने उसे कई आवाजें लगाईं, मगर सुखदेवी नजरें झुकाए चुपचाप बाहर चली गई.

बंटी घबरा सा गया. उस के दिल में हजारों सवाल सिर उठाने लगे और इसी दुविधा में फंसा रहा कि सुखदेवी उस का प्यार ठुकरा न दे या कहीं ताऊताई को उस की इस हरकत के बारे में न बता दे. इसी सोच में बंटी परेशान रहा और पूरी रात सो न सका, बस बिस्तर पर करवटें बदलता रहा. उधर सुखदेवी का हाल भी बंटी से जुदा न था. वह भी पूरे रास्ते बंटी द्वारा कहे हर लफ्ज के बारे में सोचती गई. घर पहुंच कर बिना कुछ खाएपीए वह अपने बिस्तर पर लेट गई. मगर उस की आंखों में नींद भी कहां थी. वह भी इसी सोच में डूबी रही. बंटी का प्यार दस्तक दे चुका था. वह भी बिस्तर पर पड़ीपड़ी करवटें बदलती जा रही थी. सुखदेवी भी अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई और वह भी बंटी से प्यार कर बैठी. अपने इस फैसले को दिल में लिए सुखदेवी बहुत बेकरारी से सुबह का इंतजार करने में लगी रही.

पूरी रात आंखोंआंखों में कटने के बाद सुखदेवी सुबह जल्दीजल्दी घर का सारा काम कर के अपनी मां को बता कर बंटी के घर चली गई. सुखदेवी के कदम खुदबखुद आगे बढ़ते जा रहे थे. वह बस कभी बंटी के प्रेम स्नेह के बारे में सोचती तो कभी समाज व लोकलाज के बारे में, रास्ते में जाते वक्त कई बार वापस होने को सोचा, मगर हिम्मत न जुटा सकी. क्योंकि बंटी के उस जुनून को भी भुला नहीं पा रही थी. लेकिन कहीं न कहीं उस के दिल में भी बंटी के लिए प्रेम की भावना उछाल मार रही थी. इन्हीं सोचविचार में वह बंटी के घर के दरवाजे पर पहुंच गई लेकिन अंदर जाने की हिम्मत न जुटा सकी. तभी बंटी की नजर उस पर पड़ गई और फिर उसे अंदर जाना ही पड़ा.

उधर बंटी का चेहरा एकदम पीला पड़ा हुआ था. बस एक रात में ही ऐसा लग रहा था कि वह कई दिनों से बिना कुछ खाएपीए हो. उस की आंखें लाल थीं, जिस से साफ पता चल रहा था कि वह न तो रात भर सोया है और न ही कुछ खायापीया है. उस की आंखों को देख कर सुखदेवी समझ चुकी थी कि वह बहुत रोया है. सुखदेवी को इस का आभास हो चुका था कि बंटी उस से अटूट प्रेम करता है. उस ने आते ही बंटी से पूछ लिया कि वह रोया क्यों था? बस फिर क्या था, इतना सुनते ही बंटी की आंखें फिर छलक आईं. उस की आंखों से छलके आसुंओं ने सुखदेवी को इस दुविधा में उतार दिया कि अब उसे न समाज की सोच, न अपने परिजनों का भय रह गया, वह उस से लिपट गई और उस के चेहरे को चूमने लगी.

उस के बाद उस ने अपने हाथों से बंटी को खाना खिलाया. फिर दोनों तन्हाई में एक कमरे मे बैठ गए. तन्हाई के आलम में बंटी से रहा न गया और उस ने सुखदेवी को अपनी बांहों में भर लिया, सुखदेवी ने विरोध नहीं किया. दोनों ने लांघ दी सीमाएं सुखदेवी ने इस से पहले कभी ऐसे एहसास का अनुभव नहीं किया था. बंटी का हर स्पर्श सुखदेवी की मादकता को और भड़का रहा था. उस दिन बंटी ने सुखदेवी को पूरी तरह पा लिया. सुखदेवी को भी यह अनुभव आनन्दमई लग रहा था. उसे वह सुख प्राप्त हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था. उस दिन के बाद सुखदेवी के मन में भी बंटी के लिए प्यार और बढ़ गया. अब उस के लिए बंटी सब कुछ था.

एक बार जब उस पर जिस्मानी ताल्लुकात कायम हुआ तो बस यह सिलसिला चलता ही रहा. दोनों घंटोंघंटों बातें करते. एकदूसरे के बगैर दोनों के लिए रहना अब मुश्किल होता जा रहा था. लेकिन एक दिन उन के प्यार का भेद उन के परिजनों के सामने खुल गया तो कोहराम सा मच गया. उन को समझाया गया कि उन के बीच खून का संबंध होने के कारण उन की शादी नहीं हो सकती लेकिन वे प्रेम दीवाने कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे. आखिर रिश्ते में दोनों भाईबहन थे, ऐसे में समाज उन की शादी पर अंगुलियां उठाता और उन का जीना मुहाल हो जाता. परिजनों के विरोध से दोनों परेशान रहने लगे. इसी बीच बंटी के परिजनों ने उस की शादी बदायूं जनपद के गांव तिमरुवा निवासी एक युवती से तय कर दी.

शादी की तारीख तय हुई 26 जून, 2020. इस से सुखदेवी तो परेशान हुई ही बंटी भी बेचैन हो उठा. बेचैनी में काफी देर तक वह सोचता रहा, फिर उस ने फैसला कर लिया कि वह अब अपने प्यार को ले कर कहीं और चला जाएगा, जहां प्यार के दुश्मन उन को रोक न सकें. अपने फैसले से उस ने सुखदेवी को भी अवगत करा दिया. सुखदेवी भी उस के साथ घर छोड़ कर दूर जाने को तैयार हो गई. शादी की तारीख से एक दिन पहले 25 जून, 2020 को बंटी सुखदेवी को घर से ले कर भाग गया. उन के भाग जाने की भनक दोनों के घर वालों को लग गई. उन्होंने तलाशा लेकिन कोई पता नहीं चला. प्रेमी युगल के मिले शव पहली जुलाई को गढ़ा गांव के जंगल में देवराज उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में बंटी और सुखदेवी की लाशें शीशम के एक पतले  से पेड़ पर लटकी मिलीं.

गांव के कुछ लड़के उधर आए तो उन्होंने यह देखी थीं. दोनों के घर वालों को उन लड़कों ने जानकारी दे दी. सूचना पा कर बंटी के घर वाले और गांव के लोग तो पहुंच गए, लेकिन सुखदेवी के घर वाले वहां नहीं पहुंचे. संबंधित थाना धनारी को घटना की सूचना दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी की सूचना पर एएसपी आलोक जायसवाल और सीओ (गुन्नौर) डा. के.के. सरोज भी वहां पहुंच गए. सुखदेवी और बंटी की लाशें एक ही पेड़ से लटकी हुई थीं. सुखदेवी के गले में हरे रंग के दुपट्टे का फंदा था तो बंटी के गले में प्लास्टिक की रस्सी का. दोनों के चेहरे किसी तेजाब जैसे पदार्थ से झुलसे हुए थे. प्रथमदृष्टया मामला आत्महत्या का था, लेकिन दोनों के चेहरे झुलसे होने से हत्या का शक भी जताया जा रहा था.

फिलहाल मौके पर मौजूद मृतक बंटी के पिता बिन्नामी से पुलिस अधिकारियों ने आवश्यक पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिशानिर्देश दे कर दोनों अधिकारी चले गए. इस के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर भड़ाना ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का सही कारण नहीं आ पाया. 7 जुलाई, 2020 को सुखदेवी के भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा का गढ़ा के जंगल में नीम के पेड़ से लटका शव मिला. जहां सुखदेवी और बंटी के शव मिले थे, उस से कुछ दूरी पर ही कुलदीप का शव मिला. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना  पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. सीओ के.के. सरोज भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए.

कुलदीप का शव प्लास्टिक की रस्सी से लटका हुआ था और उस का चेहरा भी तेजाब से झुलसा हुआ प्रतीत हो रहा था. लाश का निरीक्षण करने पर पता चला कि तीनों की मौत का तरीका एक जैसा ही था. मुआयना करने के बाद पुलिस को इस मामले में भी हत्या की साजिश नजर आ रही थी. पहले बंटी व सुखदेवी की मौत और अब सुखदेवी के भाई कुलदीप की मौत सिर्फ आत्महत्या नहीं हो सकती थी. हां, आत्महत्या का रूप दे कर हत्यारों ने गुमराह करने का प्रयास जरूर किया था. कुलदीप के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि कुलदीप 25 जून से ही लापता था. लेकिन सुखदेवी और बंटी की मौत के बाद घर वाले पुलिस के पास जाने से डर रहे थे, इसलिए पुलिस तक सूचना नहीं पहुंची.

गढ़ा गांव में 3 हत्याओं के बाद एसपी यमुना प्रसाद एक्शन में आए. उन्होंने शीघ्र ही केस का खुलासा करने के निर्देश इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिए. मृतक बंटी के पिता बिन्नामी की तहरीर पर इंसपेक्टर भड़ाना ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302/201/34 के तहत मुकदमा थाने में दर्ज करा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने सुखदेवी के घर वालों से पूछताछ की तो सुखदेवी का भाई विनीत उर्फ लाला और किशोरी घर से गायब मिले. पुलिस ने दोनों की तलाश की तो गढ़ा के जंगल से दोनों को हिरासत में ले लिया. उन से पूछताछ की गई तो इन 3 हत्याओं का परदाफाश हो गया. उन से पूछताछ में कई और लोगों के शामिल होने का पता चला.

इस के बाद पुलिस ने गढ़ा गांव के ही जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी और श्योराज को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और घटना के बारे में विस्तार से बता दिया. पता चला कि सुखदेवी और बंटी के घर से लापता हो जाने के बाद उन के घर वाले काफी परेशान हो गए थे. जबकि बंटी सुखदेवी के साथ अपने गन्ने के खेत में छिप गया था. गांव के जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी ने 26 जून को उन्हें देख लिया. उस ने दोनों के खेत में छिपे होने की बात जा कर सुखदेवी के भाई विनीत उर्फ लाला को बता दी. विनीत ने यह बात अपने भाई किशोरी और गांव के श्योराज को बताई. समाज में बदनामी के डर से विनीत ने जगपाल से अपनी बहन सुखदेवी और बंटी को मारने की बात कही और बदले में ढाई लाख रुपया देने को कहा. जगपाल पेशे से अपराधी था, इसलिए वह हत्या करने को तैयार हो गया.

विनीत ने उसे ढाई लाख रुपए ला कर दे दिए. इस के बाद योजना बना कर रात 11 बजे चारों बंटी के खेत में पहुंचे. वे शराब और तेजाब की बोतल साथ ले गए थे. वहां पहुंच कर चारों ने बंटी और सुखदेवी को दबोच लिया. श्योराज ने बंटी को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर श्योराज पास में ही जगपाल के ट्यूबवेल पर पड़े छप्पर में लगी प्लास्टिक की रस्सी निकाल लाया. इस के बाद सुखदेवी के गले को उसी के हरे रंग के दुपट्टे से और बंटी के गले को प्लास्टिक की रस्सी से घोंट कर मार डाला. इसी बीच विनीत का छोटा भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा वहां आ गया. उस ने दोनों हत्याएं करते उन लोगों को देख लिया. विनीत ने उसे समझाबुझा कर वहां से वापस घर भेज दिया. इस के बाद वे लोग दोनों की लाशों को कुछ दूरी पर देवराज यादव उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में ले गए.

वहां शीशम के पेड़ से दोनों की लाशों को दुपट्टे व रस्सी की मदद से लटका दिया. इस के बाद उन की पहचान मिटाने के लिए दोनों के चेहरों पर तेजाब डाल दिया. फिर वापस अपने घरों को लौट गए. कुलदीप को दौरे पड़ते थे, उन दौरों की वजह से उस का दिमाग भी सही नहीं था, उस पर भरोसा करना ठीक नहीं था. वह घटना का लगातार विरोध भी कर रहा था. इस पर चारों लोगों ने योजना बनाई कि कुलदीप को भी मार दिया जाए, नहीं तो वह उन लोगों का भेद खोल देगा. 2 जुलाई, 2020 को विनीत और उस के तीनों साथी कुलदीप को बहाने से रात को जंगल में ले गए. वहां गांव के नेकपाल यादव के खेत में कुलदीप का गला पीले रंग के दुपट्टे से घोंट कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश को नीम के पेड़ से दुपट्टे से बांध कर लटका दिया.

और उस के चेहरे पर भी तेजाब डाल दिया. फिर निश्चिंत हो कर घरों को लौट गए. कुलदीप की हत्या उन के लिए बड़ी गलती साबित हुई. थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या के एवज में दिए गए ढाई लाख रुपए, शराब के खाली पव्वे और तेजाब की खाली बोतल बरामद कर ली. फिर आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद चारों अभियुक्तों विनीत उर्फ लाला, किशोरी, जगपाल और श्यौराज को न्यायालय में पेश किया गया, वहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Extramarital Affair : गन्ने के खेत में बुला कर पत्नी ने कराई हत्या

Extramarital Affair : पतिपत्नी के बीच सब से बड़ी डोर विश्वास होती है, जिस के सहारे घरगृहस्थी चलती है. इसी विश्वास के नाते लाखों लोग घर से सैकड़ोंहजारों किलोमीटर दूर नौकरियां करते हैं. लेकिन जब किसी तीसरे की वजह से विश्वास की डोर कमजोर पड़ती है तो कई जिंदगियों में जलजला सा…

जिला मुरादाबाद से करीब 19 किलोमीटर दूर है थाना मूंढापांडे. इसी थाना क्षेत्र का एक गांव है जैतपुर विशाहट. रोहित सिंह इसी गांव का मूल निवासी था. वैसे वह अपनी पत्नी अन्नू के साथ मुरादाबाद शहर में रहता था. मुरादाबाद की पीतल बस्ती के कमल विहार में उस ने 400 वर्गगज में अपना मकान बनवा रखा था. रोहित पेशे से ट्रक ड्राइवर था और बरेली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी करता था. रोहित हफ्ते में कम से कम एक बार अपने गांव जैतपुर जरूर जाता था. गांव में उस के पिता सत्यभान सिंह परिवार के साथ रहते थे. रोहित का गांव मूंढापांडे कस्बे से करीब 6 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह गांव से बाइक से मूंढापांडे तक आता था और वहां पर भारतीय स्टेट बैंक के पास एक मोटर मैकेनिक की दुकान पर बाइक खड़ी कर के बस से बरेली चला जाता था.

23 अगस्त, 2020 को रोहित बरेली जाने के लिए अपने गांव जैतपुर विशाहट से दोपहर करीब 12 बजे बाइक ले कर  निकला. रात करीब 8 बजे रोहित के पिता सत्यभान सिंह ने रोहित को फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. पिता ने उसे कई बार फोन मिलाया लेकिन हर बार फोन बंद मिला. ऐसा कभी नहीं होता था, इसलिए फोन न मिलने से सत्यभान सिंह चिंतित हुए. उन्होंने बरेली की उस ट्रांसपोर्ट कंपनी में फोन किया, जहां रोहित नौकरी करता था. पता चला रोहित उस दिन अपनी ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं था. सत्यभान परेशान हो गए. उन्होंने मुरादाबाद में रह रही रोहित की पत्नी अन्नू से पूछा तो उस ने  बताया कि वह मुरादाबाद नहीं आए, अपनी ड्यूटी पर ही होंगे. जबकि रोहित ड्यूटी पर नहीं पहुंचा था.

बेटे की चिंता में सत्यभान और उन के घर वालों को रात भर नींद नहीं आई. सुबह होने पर वह उस मोटर मैकेनिक की दुकान पर पहुंचे, जहां रोहित अपनी बाइक खड़ी किया करता था. मैकेनिक ने बताया कि रोहित ने उस के यहां बाइक खड़ी नहीं की थी और न ही आया था. उधर अन्नू भी पति का फोन बंद मिनने से परेशान थी. अपनी चिंता वह ससुर से व्यक्त कर रही थी. सत्यभान ने अपने तमाम रिश्तेदारों के यहां भी फोन कर के रोहित के बारे में  पता किया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. अंतत: सत्यभान ने 24 अगस्त, 2020 को थाना मूंढापांडे में बेटे रोहित की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थानाप्रभारी नवाब सिंह ने गुमशुदगी दर्ज होने के बाद जरूरी काररवाई  शुरू कर दी.

2 दिन हो गए, रोहित का कहीं पता नहीं चला. घरवाले उस की चिंता में परेशान थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. 25 अगस्त, 2020 मंगलवार  के अखबारों में अमरोहा देहात थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति की लाश मिलने की खबर छपी. लाश गांव कंकरसराय के गन्ने के एक खेत से मिली थी. उस का सिर कुचला हुआ था. सत्यभान के एक रिश्तेदार अमरोहा में रहते थे. रिश्तेदार ने सत्यभान को गन्ने के खेत में लाश मिली होने की जानकारी दी. साथ ही यह भी बताया कि मृतक के हाथ पर रोहित लिखा हुआ है, इसलिए आप अमरोहा देहात थाने आ कर लाश देख लें.

खबर मिलते ही सत्यभान सिंह 26 अगस्त को परिवार के लोगों के साथ अमरोहा देहात थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी ने सत्यभान को बरामद लाश के फोटो व कपड़े दिखाए. कपड़ों से सत्यभान ने पहचान लिया कि कपड़े उन के बेटे रोहित के हैं. थानाप्रभारी लाश की शिनाख्त के लिए उन्हें जिला अस्पताल ले गए. मोर्चरी में रखी लाश देखते ही सत्यभान फूटफूट कर रोने लगे. वह लाश उन के बेटे रोहित की ही थी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. पोस्टमार्टम हो जाने के बाद लाश उसी दिन मृतक के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम में पता चला कि रोहित की मौत गला दबाने से हुई थी. इस के अलावा उस के सिर और लिंग को ईंट से बुरी तरह कुचला गया था. चूंकि गुमशुदगी का मामला थाना मूंढापांडे में दर्ज हुआ था, इसलिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट थाना मूंढापांडे पुलिस के पास आ गई.

थानाप्रभारी नवाब सिंह मामले को सुलझाने में जुट गए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारे की मृतक रोहित से कोई गहरी दुश्मनी थी, इसलिए उस ने इतनी क्रूरता दिखाई. उन्होंने मृतक के पिता से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश वगैरह तो नहीं है? अगर उन्हें किसी पर कोई शक हो तो बता दें. सत्यभान सिंह ने मुरादाबाद की पीतल बस्ती के कमल विहार निवासी अजय पाल व 2 अन्य लोगों पर शक जताया. इस के बाद थानाप्रभारी ने एक टीम गठित की और 28 अगस्त को नामजद आरोपी अजय पाल और उस के साथी कुलदीप सैनी को मुरादाबाद स्थित उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने मान लिया कि रोहित की हत्या उन्होंने ही की थी और यह सब कुछ मृतक की पत्नी अन्नू के इशारे पर किया था.

पुलिस ने अन्नू और अजय पाल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना के दिन दोनों ने आपस में कई बार बात की थी और एकदूसरे को मैसेज भी भेजे थे. दोनों से पूछताछ के बाद रोहित की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी. करीब 10 साल पहले रोहित सिंह की शादी संभल जिले के गांव भोजपुर की अन्नू के साथ हुई थी. उस समय रोहित मुरादाबाद में आटोरिक्शा चलाया करता था. रोहित का गांव मुरादाबाद शहर से करीब 19 किलोमीटर दूर था, इसलिए उसे रोजाना आनेजाने में परेशानी होती थी. इस परेशानी से बचने के लिए उस ने मुरादाबाद की पीतल बस्ती में 400 वर्गगज का एक प्लौट खरीद लिया.

5 साल पहले उस ने प्लौट पर अपना मकान बनवा लिया. उस की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. उस के 2 बच्चे थे, एक बेटा और एक बेटी. रोहित का एक दोस्त था अजय पाल. वह भी मुरादाबाद में आटोरिक्शा चलाता था. इसलिए दोनों की दोस्ती हो गई थी. शाम को दोनों अकसर साथ बैठ कर शराब पीते थे. अजय पाल का रोहित के घर आनाजाना लगा रहता था. बाद में रोहित सिंह की बरेली की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी लग गई. वह ट्रांसपोर्ट कंपनी का ट्रक चलाता था, जिस की वजह से वह कईकई दिन बाद घर लौटता था. उसी दौरान अजय पाल के रोहित की पत्नी अन्नू से अवैध संबंध बन गए. पति की गैरमौजूदगी में अन्नू अपने प्रेमी के साथ खूब मौजमस्ती करती थी. उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था, इसलिए किसी का डर भी नहीं था.

रोहित जब बरेली से घर लौटता तो पत्नी को फोन कर के सूचना दे देता था. अन्नू सतर्क हो जाती और प्रेमी से भी सतर्क रहने के लिए कह देती थी. घर लौटने के बाद रोहित की अपने दोस्त अजय पाल के साथ महफिल सजती थी. रोहित दोस्त पर विश्वास करता था, यह अलग बात थी कि वही दोस्त विश्वास की आड़ में उस के घर में सेंध लगा चुका था. 2-3 दिन घर रुकने के बाद रोहित मातापिता से मिलने अपने गांव जैतपुर वशाहट जाता और फिर अगले दिन वहीं से ड्यूटी पर बरेली चला जाता था. उधर अन्नू और अजय पाल के संबंध गहरे होते जा रहे थे. उन्होंने जीवन भर साथ रहने की कसम खा ली थी. अजय अन्नू पर घर से भाग चलने का दबाव डालता था, लेकिन अन्नू घर से भागने को मना कर देती. वह कहती थी कि घर से भागने की जरूरत क्या है, यदि रोहित का काम तमाम कर दो तो रास्ता अपने आप साफ हो जाएगा.

अन्नू के प्यार में अंधे हो चुके अजय पाल को प्रेमिका की यह सलाह बहुत अच्छी लगी. उस ने अन्नू से वादा कर दिया कि वह रोहित का काम तमाम करा देगा. इस के बाद अन्नू और अजय पाल ने रोहित को ठिकाने लगाने की योजना बनानी शुरू कर दी. अजय ने इस बारे में अपने दोस्त कुलदीप सैनी से बात की. वह भी अजय का साथ देने को तैयार हो गया. फिर वे उचित मौके का इंतजार करने लगे. 23 अगस्त, 2020 को उन्हें यह मौका मिल गया. क्योंकि उस दिन रोहित ड्यूटी से अपने घर मुरादाबाद आया हुआ था और उसी दिन उसे मुरादाबाद से अपने गांव जैतपुर वशाहट जाना था. सुबह 9 बजे नाश्ता करने के बाद वह बाइक से गांव जाने के लिए निकल गया.

अन्नू ने यह जानकारी फोन से अजय को दे दी. योजना के अनुसार अजय पाल अपने साथी कुलदीप सैनी को ले कर पीतल बस्ती के आगे गुलाबबाड़ी में सड़क किनारे खड़े हो कर रोहित के आने का इंतजार करने लगा. रोहित वहां पहुंचा तो अजय ने हाथ दे कर उस की बाइक रुकवाई. अजय ने कुलदीप का परिचय रोहित से कराते हुए कहा कि इस की बहन मूंढापांडे में रहती है. हम लोग वहीं जा रहे हैं. तुम हमें मूंढापांडे छोड़ कर अपने गांव निकल जाना. रोहित दोस्त की बात नहीं टाल सका. वह दोनों को अपनी बाइक पर बैठा कर चल दिया. अजय पाल और कुलदीप को मूंढापांडे छोड़ने के बाद रोहित अपने गांव जैतपुर विशाहट चला गया. उस ने अजय को बता दिया कि वह मातापिता से मिलने के बाद आज ही ड्यूटी पर बरेली चला जाएगा. उस का गांव मूंढापांडे से करीब 6 किलोमीटर दूर था.

अजय पाल को अपनी योजना को अंजाम देना था, इसलिए वह मूंढापांडे में ही रोहित के लौटने का इंतजार करने लगा. अजय को यह बात पता थी कि रोहित अपनी बाइक मूंढापांडे में एक मैकेनिक के पास खड़ी कर के बस से बरेली जाता है, इसलिए अजय और कुलदीप उस के आने का इंतजार करने लगे. मातापिता से मिलने के बाद रोहित ड्यूटी पर जाने के लिए घर से निकल गया. उसे अपनी बाइक मैकेनिक के पास खड़ी करनी थी, लेकिन उस से पहले ही रास्ते में उसे अजय पाल और कुलदीप  खड़े मिले. उन्हें देखते ही रोहित ने बाइक  रोक दी. उस ने पूछा, ‘‘तुम लोग अभी तक यहीं हो.’’

‘‘हां, हम तुम्हारे आने का इंतजार कर रहे थे.’’ अजय बोला.

‘‘क्यों, क्या कोई खास बात है?’’ रोहित ने पूछा.

‘‘हां भाई, बात खास है तभी तो तुम्हारा इंतजार कर रहे थे.’’ अजय ने कहा.

‘‘बताओ क्या बात है?’’

‘‘रोहित बात यह है कि यहां पर कुलदीप के किसी के पास मोटे पैसे फंसे हुए थे. आज सारे पैसे मिल गए. इसलिए हम लोग बहुत खुश हैं और इसी खुशी में आज पार्टी करना चाहते हैं.’’ अजय बोला.

‘‘नहीं यार, अभी तो मैं ड्यूटी पर जा रहा हूं. फिर कभी पार्टी कर लेंगे.’’

‘‘अरे यार, एकएक पेग लेने में क्या बुराई है.’’ अजय ने जोर डाला.

रोहित अपने दोस्त की बात को टाल नहीं सका. तभी अजय का दोस्त कुलदीप सैनी एक बोतल और पकौड़े ले आया. तीनों ने पकौड़े के ठेले पर ही शराब पीनी शुरू कर दी. रोहित पर नशा ज्यादा चढ़ गया तो वह बोला, ‘‘आज मैं ड्यूटी नहीं जाऊंगा.’’ वे तीनों बाइक से दलपतपुर जीरो पौइंट हाइवे पर आ गए. हाइवे से सटा हुआ एक गांव है मछरिया. वहीं पर कुलदीप ने रोहित का मोबाइल ले कर उस की बैटरी निकाल दी, ताकि उस का किसी से संपर्क न हो सके.

इस के बाद तीनों हाइवे से होते हुए कस्बा पाकवड़ा पहुंचे. पाकवड़ा में तीनों ने फिर शराब पी और खाना खाया. खाना खाने के बाद रोहित ने घर चलने को कहा तो अजय बोला, ‘‘अभी चलते हैं. हमें अमरोहा में कुछ जरूरी काम है. अमरोहा यहां से थोड़ी ही दूर है. बस, काम निपटा कर आ जाएंगे.’’

अजय और कुलदीप अपनी योजना के अनुसार रोहित को अमरोहा ले गए. रात करीब 10 बजे तीनों अमरोहा देहात के गांव कंकरसराय पहुंचे. उस समय तक रोहित को ज्यादा नशा चढ़ चुका था. नशे की हालत में दोनों उसे गन्ने के खेत में ले गए और गला दबा कर उस की हत्या कर दी. रोहित की हत्या करने के बाद उन्होंने उस का सिर ईंट से कुचल दिया, जिस से उस का चेहरा पहचान में न आ सके. इस के अलावा उन्होंने उस के लिंग को भी ईंट से कुचल दिया. हत्या से पहले अजय के मोबाइल पर रोहित की पत्नी अन्नू का फोन आया था. अंजू ने उस से कहा था कि किसी भी हालत में रोहित को जिंदा मत छोड़ना.

मरने से पहले रोहित दोनों के सामने गिड़गिड़ाया था कि यार मुझ से क्या गलती हो गई, मुझे क्यों मार रहे हो लेकिन उन का दिल नहीं पसीजा. कुलदीप ने रोहित की टांगें पकड़ लीं और अजय ने गला दबा कर उस की हत्या कर दी थी. अजय ने हत्या की जानकारी अन्नू को दे दी थी. हत्यारों को  विश्वास था कि यहां रोहित की लाश कुछ दिनों में सड़गल जाएगी और पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंचेगी लेकिन उन की यह सोच गलत साबित हुई. वे पुलिस के हत्थे चढ़ ही गए. अभियुक्त अजय पाल और कुलदीप सैनी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें रोहित की हत्या कर शव छिपाने के आरोप में गिरफ्तार कर 28 अगस्त, 2020 को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया.

इस मामले में मृतक रोहित की पत्नी अन्नू का भी हाथ था, इसलिए पुलिस ने 29 अगस्त को अन्नू को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में अन्नू ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. पुलिस ने उसे भी न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Stories : पत्नी ने पति को लॉकअप में बंद करने की दी धमकी तो पति ने कर दी हत्या

Crime Stories : मानव मन की मनमानी उड़ान तभी तक ठीक होती है, जब तक मर्यादा में रहे. जबजब मन की उड़ान ने मर्यादाओं की देहरी को लांघा, तबतब वजूद मिटे हैं. प्रियंका ने भी…

प्रियंका कानपुर जिले के गांव मझावन निवासी राजकुमार विश्वकर्मा की सब से छोटी बेटी थी. सन 2015 में उस की शादी अशोक विश्वकर्मा से हो गई. अशोक कानपुर शहर की इंदिरा बस्ती में किराए के मकान में रहता था और लोडर चलाता था. खूबसूरत पत्नी पा कर अशोक अपने को खुशकिस्मत समझ रहा था, जबकि प्रियंका दुबलेपतले सांवले अशोक को पा कर मन ही मन अपनी बदकिस्मती पर रोती थी. पत्नी खूबसूरत हो, तो पति उस के हुस्न का गुलाम बन जाता है. अशोक भी प्रियंका का शैदाई बन गया. प्रियंका ने अशोक की कमजोरी का फायदा उठा कर उसे अपनी अंगुलियों पर नचाना शुरू कर दिया. वह सुबह 8 बजे घर से निकलता और फिर रात 8 बजे ही घर लौटता था. वह पूरी पगार प्रियंका के हाथ पर रख देता था.

अशोक मूलरूप से सरसौल का रहने वाला था. उस के 2 भाई सर्वेश व कमलेश थे. मातापिता की मृत्यु के बाद तीनोें भाइयों में घर, खेत का बंटवारा हो गया था. कमलेश खेती करता था, जबकि सर्वेश प्राइवेट नौकरी कर रहा था. अशोक की अपने भाई कमलेश से नहीं पटती थी, इसलिए अशोक ने अपने हिस्से की जमीन बंटाई पर दे रखी थी. घर में प्रियंका को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. पहली बात तो यह थी कि पति कम कमाता था, ऊपर से वह स्मार्ट भी नहीं था. अत: वह पत्नी के दबाव में रहता था. प्रियंका को सिर्फ इस बात की खुशी थी कि पति उस की जीहुजूरी करता है. अपनी दूसरी हसरतें पूरी न हो पाने की वजह से वह मन ही मन खिन्न रहती थी.

अशोक विश्वकर्मा का एक दोस्त था राकेश. हृष्टपुष्ट, हंसमुख व स्मार्ट. वह बिजली मेकैनिक था. किदवई नगर में वह रामा इलैक्ट्रिकल्स की दुकान पर काम करता था. जिस दिन अशोक काम पर नहीं जाता था, उस दिन वह दुकान पर पहुंच जाता. दोनों खातेपीते और खूब बतियाते. खानेपीने का इंतजाम राकेश ही करता था. एक सुबह अशोक ड्यूटी पर जाने को निकला, तो राकेश को कह गया कि उस के घर की बिजली बारबार चली जाती है, जा कर फाल्ट देख आए. दोपहर को समय निकाल कर राकेश, अशोक के घर पहुंचा, तो उस समय भी बिजली नहीं आ रही थी. गरमी के दिन थे और उमस भी खूब हो रही थी. पसीने से बेहाल प्रियंका अपनी साड़ी के आंचल को ही पंखा बना कर हवा कर रही थी. उस का खुला वक्षस्थल राकेश की आंखों के आगे कामना की रोशनी बिखेरने लगा.

राकेश को आया देख कर प्रियंका ने आंचल संभाला और चहकती हुई बोली, ‘‘वाह देवर जी, शादी के दिन दिखे, उस के बाद कभी घर नहीं आए.’’

‘‘अब आ तो गया हूं, भाभी.’’ राकेश मुसकराया.

‘‘वह तो बिजली ठीक करने आए हो, तुम्हारे पास हम जैसे गरीबों से मिलने का वक्त कहां है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है भाभी, काम में इतना व्यस्त रहता हूं कि समय नहीं मिलता. फिर भैया से कभीकभी मुलाकात हो ही जाती है.’’

राकेश ने अपने औजारों का थैला टेबल पर रखा और बिजली की लाइन पर नजर डाली, ‘‘भाभी एक स्टूल तो दो.’’

प्रियंका फटाफट स्टूल ले आई. स्टूल रखने को वह झुकी, तो आंचल गिर गया. एक बार फिर से राकेश की आंखों में हुस्न की चांदनी कौंधी. प्रियंका ने आंचल संभाला फिर हंसती हुई बोली, ‘‘मैं तो तंग आ गई हूं इस बिजली से. कभीकभी रात को 2-2 घंटे अंधेरे में रहना पड़ता है.’’

राकेश ने टकटकी लगा कर प्रियंका की आंखों में देखा, ‘‘शादी वाले दिन तो आप को ठीक से देखा नहीं था. खूबसूरत तो तब भी थी आप, पर अब तो आप के हुस्न में गजब का निखार आ गया है. आप तो खुद ही रोशनी का खजाना हैं, आप के आगे बिजली की क्या हैसियत?’’

राकेश ने प्रशंसा का पुल बना कर प्रियंका के दिल में घुसपैठ करनी चाही.

‘‘हटो, बहुत मजाक करते हो तुम.’’ प्रियंका हया से लजाई, ‘‘फटाफट लाइन जोड़ दो. देखो मैं पसीने से भीगी जा रही हूं.’’

राकेश ने लाइन जोड़ कर स्विच औन किया तो पंखा चल पड़ा और कमरा रोशनी से भर गया. प्रियंका ने प्रशंसा भरी निगाहों से उसे देखा और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे लिए शरबत बनाती हूं.’’

प्रियंका ने प्यार से राकेश को शरबत पिलाया. दोनों के बीच कुछ देर बातें हुईं फिर राकेश सामान थैले में रख कर जाने लगा तो प्रियंका ने पूछा, ‘‘अच्छा ये तो बताओ, कितने पैसे हुए?’’

‘‘किस बात के?’’

‘‘अरे तुम ने बिजली ठीक की है.’’

‘‘अच्छा भाभी, अपनों से भी कोई पैसे लेता है. एक मिनट में बेगाना बना दिया. देना ही है तो कोई ईनाम दो.’’ राकेश के होंठों पर अर्थपूर्ण मुसकान तैरने लगी.

‘‘मांगो क्या चाहिए?’’

‘‘तुम्हारा प्यार चाहिए भाभी. पहली ही नजर में तुम मेरी आंखों में रचबस गई हो.’’

‘‘धत पहली ही बार में सब कुछ पा लेना चाहते हो.’’ कह कर प्रियंका ने नजरें झुका लीं.

‘‘ठीक है, दूसरी बार में पा लूंगा. जब मुझे ईनाम देने का मन हो फोन कर के बुला लेना.’’ राकेश ने एक पर्चे पर अपना मोबाइल नंबर लिख कर प्रियंका को दे दिया. उस के बाद अपना थैला उठाया और फिर चला गया.

जब राकेश अपने प्यार का ट्रेलर दिखा गया, तो प्रियंका के कदम क्यों नहीं बहकते. पूरी रात वह राकेश के बारे में सोचती रही. अभी एक सप्ताह भी न बीता था कि प्रियंका ने राकेश का नंबर मिला दिया. उस ने फोन उठाया तो प्रियंका ने खनकती आवाज में झूठ बोला, ‘‘बिजली फिर चली गई है, ठीक कर जाओ.’’

राकेश इसी इंतजार में बैठा था. उस ने भी सांकेतिक शब्दों में कहा, ‘‘ठीक है भाभी, अपने हुस्न की रोशनी बिखेर कर रखो. मै अभी आ रहा हूं.’’

राकेश दोस्त के घर पहुंचा तो बिजली आ रही थी. उस ने चाहत भरी नजरों से प्रियंका को देखा, जो मंदमंद मुसकरा रही थी. राकेश ने पूछा, ‘‘भाभी, झूठ क्यों बोला?’’

‘‘झूठ कहां बोला,’’ प्रियंका ने मदभरी नजरों से उसे देखा, ‘‘बत्ती आ रही है पर मेरे मन में अंधेरा है. पंखा चल रहा है, पर मैं अंदर से पसीने से तर हूं.’’

खुला आमंत्रण पा कर राकेश 2 कदम आगे बढ़ा और प्रियंका को अपनी बांहों में भर लिया. फिर तो कमरे में अनीति का अंधेरा गहराता चला गया. प्रियंका की चूडि़यां राकेश की पीठ पर बजने लगीं और दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. अविवाहित राकेश ने पहली बार यह सुख पाया था. इसलिए वह तो निहाल हो ही गया. प्रियंका भी राकेश की कायल हो गई. थकी सांसों वाले अशोक से वह पहले ही ऊब गई थी, राकेश का साथ मिला तो प्रियंका अपनी सारी मर्यादा भूल गई. अवैध संबंधों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. जिस रात अशोक लोडर पर माल लाद कर दूसरे शहर जाता, उस रात प्रियंका फोन कर राकेश को घर बुला लेती फिर रात भर दोनों रंगरलियां मनाते.

अशोक को इस बात की भनक भी नहीं थी कि उस का दोस्त उस की बीवी का बिस्तर सजा रहा है. राकेश का बारबार अशोक के घर आना पासपड़ोस के लोगों को खलने लगा. उन के बीच कानाफूसी होने लगी कि राकेश और अशोक की बीवी प्रियंका के बीच नाजायज रिश्ता है. एक कान से दूसरे कान होते हुए जब यह बात अशोक के कानों तक पहुंची तो उस का माथा ठनका. उस ने इस बाबत प्रियंका से जवाब तलब किया तो वह साफ मुकर गई. यही नहीं वह त्रियाचरित्र दिखा कर अशोक पर ही हावी हो गई. अशोक उस समय तो चुप हो गया परंतु उस के मन में शक जरूर पैदा हो गया. अब वह घर पर नजर रखने लगा. इस का परिणाम भी जल्द ही उस के सामने आ गया.

उस रोज अशोक दोपहर को घर आया तो राकेश उस के घर की तरफ से आता दिखा. उस ने आवाज दे कर राकेश को रोकने का प्रयास भी किया. पर वह उस की आवाज अनसुनी कर स्कूटर से भाग गया. घर पहुंच कर अशोक ने पत्नी से पूछा, ‘‘प्रियंका, क्या राकेश घर आया था?’’

‘‘नहीं तो. यह तुम राकेश…राकेश क्या रटते रहते हो. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं. क्या मैं बदचलन हूं, वेश्या हूं? हे भगवान! मुझे मौत दे दो.’’

औरत के आंसू मर्द की कमजोरी बन जाते है. जब प्रियंका आंसू बहाने लगी तो अशोक को झुकना पड़ा. उस ने वादा किया कि अब वह उस पर शक नहीं करेगा. आंसुओं से प्रियंका ने अशोक का शक तो दूर कर दिया, किंतु मन ही मन वह डर भी गई थी. उस ने राकेश को भी बता दिया कि अशोक उन दोनों पर शक करने लगा है, हमें अब सतर्कता बरतनी होगी. इंदिरा बस्ती में अशोक का एक रिश्तेदार शिव रहता था. एक रोज उस ने बताया कि राकेश उस के घर अकसर आता है. प्रियंका का उस से लगाव है. उस के आते ही प्रियंका दरवाजा बंद कर लेती है. बंद दरवाजे के पीछे क्या होता होगा, यह तो तुम भी जानते हो और मैं भी जानता हूं. इसलिए प्रियंका को समझाओ कि वह घर की इज्जत नीलाम न करे.

शिव की बात अशोक को तीर की तरह चुभी. वह शराब के ठेके पर गया और जम कर शराब पी. नशे में धुत हो कर वह घर पहुंचा और पत्नी से पूछा, ‘‘प्रियंका, सचसच बता, तेरा राकेश के साथ टांका कब से भिड़ा है?’’

‘‘नशे में तुम यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो. मैं तुम्हें सुबह जवाब दूंगी.’’ प्रियंका बोली.

‘‘नहीं, मुझे अभी और इसी वक्त जवाब चाहिए.’’ अशोक ने जिद की.

‘‘राकेश से मेरा कोई गलत संबंध नहीं हैं.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘साली, बेवकूफ बनाती है. पूरी बस्ती जानती है कि तू राकेश के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है. आज मैं भी जान गया, इसलिए तुझे ऐसी सजा दूंगा कि तू बरसों तक नहीं भूलेगी.’’ कहते हुए अशोक ने प्रियंका को जम कर पीटा. कहते हैं शक की विषबेल बहुत जल्दी पनपती है. अशोक के साथ भी यही हुआ. दिन पर दिन उस का शक बढ़ता गया. आए दिन दोनों के बीच कलह व मारपीट होने लगी. कभी प्रियंका भारी पड़ती तो कभी अशोक प्रियंका की देह सुजा देता. इस कलह के कारण राकेश ने प्रियंका से मिलना तथा उस के घर आना बंद कर दिया था. अशोक राकेश को भी खूब खरीखोटी सुनाता था. कई बार उस ने दुकान पर जा कर भी उसे सब के सामने जलील किया था.

9 जुलाई, 2020 की शाम अशोक को पता चला कि दोपहर में राकेश उस के घर के आसपास मंडरा रहा था. इस पर उसे शक हुआ कि वह जरूर प्रियंका से मिलने आया होगा. अत: राकेश को ले कर अशोक और प्रियंका में पहले तूतूमैंमैं हुई फिर अशोक ने प्रियंका की पिटाई कर दी. गुस्से में प्रियंका थाना किदवई नगर जा कर पति प्रताड़ना की शिकायत कर दी. शिकायत मिलते ही थानाप्रभारी धनेश कुमार ने 2 सिपाहियों को भेज कर अशोक को थाने बुलवा लिया. थाने पर उस ने सच्चाई बताई, परंतु पुलिस ने उस की एक न सुनी और हवालात में बंद कर दिया. अशोक रात भर हवालात में रहा. सुबह माफी मांगने तथा फिर झगड़ा न करने पर उसे थाने से घर जाने दिया गया.

पत्नी द्वारा थाने में बंद करवाना अशोक को नागवार लगा था. वह मन ही मन जलभुन उठा था. 10 जुलाई की सुबह जब वह घर पहुंचा तो प्रियंका पड़ोस की महिलाओं से पति को पिटवाने और बंद करवाने की शेखी बघार रही थी. पति को सामने देख कर उसे सांप सूंघ गया. वह घर के अंदर चली गई. दोपहर लगभग 12 बजे दोनों में फिर राकेश को ले कर बहस होने लगी. इसी बीच प्रियंका ने दोबारा लौकअप में बंद कराने की धमकी दी तो अशोक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने कमरे में रखी लोहे की रौड उठाई और प्रियंका पर प्रहार करने लगा. रौड के प्रहार से प्रियंका का सिर फट गया. वह चीखतेचिल्लाते घर के बाहर निकली और गली में गिर पड़ी. कुछ ही देर में उस की सांसें थम गईं. हत्या करने के बाद अशोक फरार हो गया.

मकान मालिक कमल कुमार व अन्य लोग बाहर निकले तो खून से सना प्रियंका का शव गली में पड़ा था. इस के बाद तो इंदिरा बस्ती में सनसनी फैल गई. सैकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ आई. इसी बीच मकान मालिक कमल कुमार ने थानाप्रभारी धनेश कुमार को इस की सूचना दे दी. थानाप्रभारी ने अपने आला अधिकारियों को इस घटना से अवगत करा दिया. कुछ ही देर में एसपी (साउथ) दीपक भूकर, तथा एसएसपी प्रीतिंदर सिंह घटनास्थल आ गए. उन्होंने शव का निरीक्षण किया फिर मकान मालिक कमल कुमार तथा अन्य लोगों से पूछताछ की. उस के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया.

चूंकि पूछताछ से यह बात साफ हो गई थी कि अशोक ने ही अपनी पत्नी प्रियंका की हत्या की है. इसलिए थानाप्रभारी धनेश कुमार ने मकान मालिक कमल कुमार की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत अशोक विश्वकर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उस की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गए. रात 10 बजे धनेश कुमार को पता चला कि अशोक सोंटा वाले मंदिर के पास मौजूद है. इस सूचना पर वह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और हत्यारोपी अशोक को हिरासत में ले लिया. उसे थाना किदवई नगर लाया गया.

थाने में जब उस से प्रियंका की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं उस ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड भी बरामद करा दी, जो उस ने घर के अंदर छिपा दी थी. पूछताछ में अशोक ने बताया कि प्रियंका बदचलन थी, अपनी गलती मानने के बजाय वह उस पर हावी हो जाती थी. इसलिए उस ने गुस्से में उस की हत्या कर दी. उसे इस गुनाह की सजा का खौफ नहीं है. 11 जुलाई, 2020 को थानाप्रभारी ने अभियुक्त अशोक विश्वकर्मा को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित