Kanpur News : कंपनी के घाटे से परेशान फर्टिलाइजर कंपनी के डायरेक्‍टर ने बाथरूम में खुद को मारी गोली

18 मार्च, 2020 को जेपी ग्रुप के चेयरमैन ने कंपनी के उच्चाधिकारियों के साथ एक अहम मीटिंग फिक्स की थी, जिस में कानपुर फर्टिलाइजर ऐंड केमिकल लिमिटेड के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को भी विशेष मंत्रणा के लिए बुलाया गया था. सुनील जोशी मीटिंग के लिए गेस्टहाउस पहुंचे भी लेकिन…

18 मार्च, 2020 को जेपी ग्रुप के चेयरमैन मनोज गौर ने कंपनी के उच्चाधिकारियों की एक अहम बैठक बुलाई थी. यह बैठक कानपुर (कैंट) स्थित कंपनी के आलीशान गेस्टहाउस में दोपहर 12 बजे शुरू होनी थी. बैठक में शामिल होने के लिए चेयरमैन मनोज गौर के अलावा वाइस चेयरमैन ए.के.जैन, प्रेसीडेंट (एडमिनिस्ट्रेशन) अनिल मोहन, डायरेक्टर स्तर के पदाधिकारी रमेश चंद्र तथा वीरेंद्र सिंह गेस्टहाउस आ चुके थे. वे सब मीटिंग की तैयारी में व्यस्त थे. इसी अहम बैठक में जेपी गु्रप की कंपनी कानपुर फर्टिलाइजर ऐंड कैमिकल लिमिटेड के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को भी शामिल होना था. जोशी स्वरूपनगर स्थित रतन मैजेस्टिक अपार्टमेंट के प्रथम तल पर अपने परिवार के साथ रहते थे.

मीटिंग को ले कर वह सुबह से ही उलझन में थे. पति को परेशान देख उन की पत्नी मेनका ने पूछा भी पर उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं बताया. हां, इतना जरूर कहा कि आज वह एमडी से बात कर ही लेंगे. डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी ने उलझन के कारण नाश्ता भी नहीं किया और प्रात: 9 बजे अपनी निजी कार से गेस्टहाउस के लिए रवाना हो गये. 20 मिनट बाद वह कैंट स्थित कंपनी के गेस्टहाउस पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद कर्मचारी से मनोज गौर के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि चेयरमैन साहब रात को ही गेस्टहाउस आ गए थे. इस समय वह बाथरूम में हैं. मीटिंग 12 बजे के बाद शुरू होगी.

इस के बाद सुनील कुमार जोशी कमरे में चले गए. उन्होंने कर्मचारी गौतम राजपूत से पानी लाने को कहा. गौतम पानी लेने चला गया, लेकिन उस के आने से पहले ही वह बाथरूम चले गए. कुछ देर बाद ही बाथरूम से गोली चलने की आवाज आई. आवाज सुन कर किचन में नाश्ता तैयार कर रहे बुद्धराम कुशवाहा, गौतम राजपूत व जितेंद्र रूम में आ गए. उन तीनों ने बाथरूम का दरवाजा खोला तो उन के होश गुम हो गए. बाथरूम के अंदर सुनील कुमार जोशी खून से लथपथ मरणासन्न स्थिति में पड़े थे. कर्मचारियों ने तुरंत जा कर प्रेसीडेंट (एडमिनिस्ट्रेशन) अनिल मोहन को घटना की जानकारी दी.

मामला गंभीर देख कर अनिल मोहन फौरन वहां जा पहुंचे, जहां सुनील कुमार जोशी खून के सैलाब में डूबे पड़े थे. उन की हालत गंभीर थी. अनिल मोहन ने कर्मचारियों की मदद से उन्हें कार में बिठाया और कानपुर के चर्चित अस्पताल रीजेंसी ले गए. चूंकि सुनील कुमार जोशी की हालत नाजुक थी, अत: उन्हें गहन चिकित्सा यूनिट में भरती किया गया. लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी डाक्टर उन्हें बचा नहीं पाए. सुनील जोशी द्वारा खुदकुशी की कोशिश किए जाने की जानकारी मिलते ही उन की पत्नी मेनका जोशी तत्काल रीजेंसी अस्पताल पहुंचीं. लेकिन वहां पहुंच कर उन्हें पता चला कि उन के पति की मृत्यु हो गई है. इस सदमे को बरदाश्त कर पाना मेनका जोशी के लिए बहुत मुश्किल था.

परिवार की महिलाओं व कंपनी के बड़े अधिकारियों ने जैसेतैसे उन्हें धैर्य बंधाया. इस के बाद मेनका अस्पताल से घटनास्थल गेस्टहाउस को रवाना हो गईं. इधर प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन ने डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी द्वारा गोली मार कर आत्महत्या कर लेने की सूचना थाना कैंट पुलिस को दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी आदेश चंद्र पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जाने से पहले उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी इस घटना के बारे में सूचित कर दिया था. थाने से कंपनी का गेस्टहाउस दो किलोमीटर दूर था. अत: पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. चूंकि गेस्टहाउस में बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक थी, अत: भीड़ ज्यादा नहीं थी. गेस्टहाउस के कर्मचारी, पदाधिकारी तथा मृतक के परिजन ही वहां मौजूद थे.

थानाप्रभारी आदेशचंद्र घटनास्थल पर पहुंचे ही थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंत देव, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल तथा डीएसपी अरविंद कुमार चतुर्वेदी भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. अधिकारियों की उपस्थिति में फोरैंसिक टीम ने जांच शुरू की. कमरे से अटैच बाथरूम में खून फैला हुआ था. वहीं पिस्टल भी पड़ी थी. जांच से पता चला कि डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी ने .30 बोर की इंग्लिश पिस्टल से खुद को गोली मारी थी. टीम ने जांच के लिए ब्लड सैंपल और पिस्टल से फिंगरप्रिंट ले लिए. पास ही कारतूस का खोखा पड़ा था. टीम ने उसे भी सुरक्षित कर लिया. फोरैंसिक टीम ने पिस्टल से मैगजीन निकाली तो उस में 5 गोलियां मौजूद थीं. सभी बरामद वस्तुओं को टीम ने जांच हेतु सुरक्षित कर लिया.

पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन्हें कमरे में मृतक सुनील कुमार जोशी का मोबाइल फोन रखा मिल गया. एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल ने मोबाइल फोन खंगाला तो उन्हें चौंकाने वाली जानकारी मिली. मृतक सुनील कुमार जोशी ने प्रात: 9 बज कर 26 मिनट पर एग्जीक्यूटिव कमेटी के वाट्सऐप गु्रप में जो मैसेज किया, उस से साफ जाहिर था कि उन की मनोदशा ठीक नहीं थी. मैसेज में उन्होंने लिखा था कि 30 साल से कंपनी की सेवा कर रहा हूं. अच्छे और बुरे दिन देखे. लेकिन अब मेरे सामने कोई रास्ता नहीं है.

घटनास्थल (गेस्टहाउस) पर जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने जब उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि घटना के वक्त वह अपने रूम के बाथरूम में थे. इसी दौरान अनिल मोहन सुनील को अस्पताल ले जा चुके थे. गेस्टहाउस कर्मचारियों से उन्हें घटना की जानकारी हुई तो वह अवाक रह गए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बताया कि फर्टिलाइजर कंपनी में करोड़ों का स्क्रैप बेचा गया था, जिसे बिना किसी लिखापढ़ी तथा कंपनी के अधिकारियों को जानकारी दिए बिना उठवा दिया गया था. इसी को ले कर कंपनी में विवाद की स्थिति थी. मनोज गौर ने बताया कि इस मामले को ले कर उन्होंने कई बार सुनील जोशी से बात करने की कोशिश की, मगर वह उन का फोन ही नहीं उठाते थे और बात करने से बचते थे.

स्क्रैप बिक्री घोटाले को ले क र ही उन्होंने आज कानपुर स्थित कंपनी के गेस्टहाउस में मीटिंग रखी थी. शायद वह इस मीटिंग को फेस करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे. गेस्टहाउस आए जरूर पर उन्होंने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली. गेस्टहाउस में ही मनोज गौर का सामना सुनील जोशी की पत्नी मेनका जोशी से हो गया जो रिश्ते में उन की भतीजी लगती थी. गमगीन भतीजी को देख कर चेयरमैन मनोज गौर भावुक हो गए और बोले, ‘‘सुनील से गलती हो गई थी, तो मुंह छिपाने से क्या फायदा था. कंपनी के जिम्मेदार पद पर हो कर भी फोन नहीं उठा रहे थे. सामने आ कर स्थितियां स्पष्ट करते तो कोई रास्ता निकाला जाता.’’

मेनका जोशी ने अपने फूफा मनोज गौर की बात को गौर से सुना जरूर, पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की. जाने वाला हमेशा के लिए जा चुका था. अब कुछ कहनेसुनने से क्या फायदा था. वह चुपचाप सुबकती रही और आंखों से आंसू बहाती रहीं. एसएसपी अनंत देव तिवारी इस हाईप्रोफाइल मामले पर पैनी नजर रखे हुए थे और बड़ी बारीकी से जांच में जुटे थे. इसी कड़ी में उन्होंने प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि घटना के समय वह अपने रूम में थे. तभी 3 कर्मचारी बदहवास हालत में उन के रूम में आए और बताया कि डायरेक्टर सुनील जोशी ने बाथरूम में खुद को गोली मार ली है. वह लहूलुहान बाथरूम में पड़े हैं. यह सुनते ही वह अवाक रह गए. फिर वह सुनील जोशी को कार से रीजेंसी अस्पताल ले गए और भरती कराया. उस के बाद थाना छावनी पुलिस तथा सुनील की पत्नी मेनका को इस घटना के बारे में सूचना दी.

अनंत देव तिवारी ने गेस्टहाउस के कर्मचारियों से पूछताछ की तो गौतम राजपूत, बुद्धराम कुशवाहा तथा जितेंद्र ने बताया कि वे तीनों रसोइया हैं. उस वक्त वे किचन में नाश्ता तैयार कर रहे थे. जब बाथरूम से गोली चलने की आवाज आई तो उन लोगों ने वहां पहुंच कर देखा कि सुनील जोशी तड़प रहे थे. शायद उन्होंने खुद को गोली मार ली थी. वे तीनों घबरा गए और तुरंत जा कर अनिल मोहन को जानकारी दी. फिर वही घायल सुनील जोशी को अस्पताल ले गए. कंपनी के गेस्टहाउस (घटनास्थल) में मृतक सुनील जोशी की पत्नी मेनका जोशी, उन का साला सोनू तथा परिवार के अन्य लोग मौजूद थे.

पुलिस अधिकारियों ने जब मेनका जोशी से पूछताछ की तो वह बोलीं कि उन के पति ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उन की हत्या की गई है. वह रिपोर्ट दर्ज करा कर सीबीआई जांच की मांग करेंगी. पुलिस अधिकारियों ने जब उन से सुनील की पिस्टल के संबंध में पूछा तो मेनका ने बताया कि इंगलिश पिस्टल लाइसेंसी है तथा उन के पति सुनील की है. मृतक सुनील जोशी के साले सोनू का आरोप था कि जिस बाथरूम में सुनील को गोली लगी थी, वहां खून की मोटी परत जमी थी. इस से जाहिर है कि गोली लगने के बाद वह काफी देर तक फर्श पर पड़े रहे और खून निकलता रहा. उन्हें तत्काल अस्पताल नहीं ले जाया गया.

सोनू ने यह भी आरोप लगाया कि जब गेस्टहाउस में आधा दर्जन से अधिक उच्चपदस्थ अधिकारी मौजूद थे तब गोली लगने के बाद सुनील को अस्पताल ले जाने के लिए अकेले प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन ही आगे आए. बाकी अस्पताल में उन्हें देखने तक नहीं गए. अत: रिपोर्ट दर्ज करा कर सीबीआई जांच की मांग की जाएगी. सुनील जोशी के परिवार के एक सदस्य ने आरोप लगाया कि कंपनी का निदेशक मंडल अपने कारनामों को सुनील पर थोप कर बचने का प्रयास कर रहा था. किस ने गलत किया है, इस का फैसला करने के लिए ही बैठक बुलाई गई थी. अपने ऊपर लगे आरोपों से सुनील बेहद नाराज थे. मीटिंग से पहले आत्महत्या की बात गले नहीं उतर रही. अत: रिपोर्ट दर्ज करा कर जांच की मांग करेंगे.

घटनास्थल पर जांचपड़ताल तथा पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारी सर्वोदय नगर स्थित रीजेंसी अस्पताल पहुंचे, जहां मृतक सुनील जोशी का शव रखा था. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया तो पाया कि सुनील ने दाईं कनपटी में पिस्टल सटा कर गोली मारी थी, जो बाईं कनपटी से पार हो गई थी. मृतक सुनील की उम्र 50 वर्ष के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट थे. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने सुनील के शव का पंचनामा भरवा कर तथा सीलमोहर करा कर पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारी इस मामले पर आपस में गंभीरता से विचारविमर्श करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सुनील जोशी ने आत्महत्या ही की है. कारण उन पर करोड़ों रुपए का स्क्रैप बेचने तथा रुपयों का जमा खर्च का हिसाब न देने का आरोप कंपनी के उच्चपदस्थ अधिकारियों ने लगाया था. इसी की जवाबदेही के लिए कानपुर में बैठक बुलाई गई थी. सुनील गेस्टहाउस आ गए, लेकिन वह बैठक में शामिल होने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और खुदकुशी कर ली. फिर भी मृतक के घर वाले यदि कोई तहरीर देते हैं, तो रिपोर्ट दर्ज कर जांच की जाएगी.

पुलिस जांच से इस रहस्यमयी आत्महत्या की जो घटना प्रकाश में आई, उस का विवरण इस प्रकार है—कानपुर महानगर का एक पौश इलाका है स्वरूप नगर. स्वरूप नगर में ज्यादातर बंगले औद्योगिक घरानों के हैं. क्षेत्र में कई अपार्टमेंट भी हैं, जिन में संपन्न परिवार रहते हैं. स्वरूप नगर में ही रतन मैजेस्टिक अपार्टमेंट है. इस अपार्टमेंट के भूतल पर कानपुर फर्टिलाइजर के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मेनका जोशी के अलावा एक बेटा और बेटी हैं. मेनका के पिता अनिल कुमार शर्मा कानपुर शहर के संपन्न और सम्मानित व्यक्ति थे. वह कानपुर के पूर्व मेयर रह चुके थे. मेनका के बाबा रतन लाल शर्मा भी मेयर रह चुके थे. पितापुत्र के कार्यकाल को आज भी लोग याद करते हैं.

अनिल कुमार शर्मा ने अपनी बहन की शादी जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर के साथ की थी, जबकि बेटी मेनका की शादी डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी के साथ की थी. इस तरह रिश्ते में मनोज गौर मेनका के फूफा थे. कानपुर के औद्योगिक क्षेत्र पनकी में फर्टिलाइजर कंपनी की स्थापना कब और कैसे हुई, इस के लिए अतीत की ओर जाना होगा. विदेशी कंपनी आईसीआई ने पनकी में उर्वरक कारखाना लगाया था. इस का उद्घाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 6 दिसंबर, 1969 को किया था. उस समय यह देश का पहला यूरिया बनाने वाला कारखाना था, जो नेप्था से चलता था.

वर्ष 1993 में विदेशी कंपनी आईसीआई ने कारखाना गोयनका गु्रप को बेच दिया. तब इस का नाम डंकन्स फर्टिलाइजर लिमिटेड किया गया. घाटे के कारण वर्ष 2002 में गोयनका ने कारखाना बंद कर दिया. इस के बाद जनवरी, 2012 में जेपी गु्रप के चेयरमैन जे.पी. गौर व मनोज गौर ने डंकन्स को खरीद लिया और नाम रखा कानपुर फर्टिलाइजर्स ऐंड कैमिकल लिमिटेड. यह उत्तर भारत का सब से बड़ा संयंत्र है. इस की उत्पादक क्षमता 2200 टन प्रति दिन है. कारखाने में 1000 कुशल श्रमिक कार्य करते है. प्लांट में ऊर्जा संरक्षण का पूरा सिस्टम लगाया गया है तथा प्लांट को गेल से सीधे प्राकृतिक गैस सप्लाई होती है.

सुनील कुमार जोशी कानपुर फर्टिलाइजर के ही डायरेक्टर नहीं थे, बल्कि 9 अन्य कंपनियों के भी डायरेक्टर थे. उन का जीवन हर तरह से खुशहाल था. उन्होंने अपनी मेहनत व लगन से और डायरेक्टर जैसे पदों पर रह कर खूब दौलत कमाई. सुनील को लग्जरी कारों और आलीशान घर का बहुत शौक था. वह हर साल लग्जरी कारों पर करोड़ों रुपए खर्च करते थे. उन्होंने दिल्ली और कानपुर में 2 आलीशान बंगले बनवाए थे. उन के शौक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने दिल्ली वाले बंगले का रेनोवेशन कराने के नाम पर ही 5 करोड़ रुपया पानी की तरह बहा दिया था.

डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को फिल्मों में भी दिलचस्पी थी. इस के लिए उन्होंने बौलीवुड में भी निवेश किया था. उन्होंने बौलीवुड हस्तियों के मैनेजर रहे अनिदा सील के साथ मिल कर एक कंपनी बनाई, जिस में उन की पत्नी मेनका जोशी निदेशक थीं. कंपनी की पहली फिल्म में गोविंदा का लीड रोल था. लेकिन फिल्म बौक्स औफिस पर औंधे मुंह गिरी. पहली ही फिल्म में हुए घाटे को ले कर उन का विवाद भी हुआ था. जिसे खत्म करने के लिए गोविंदा कई दिन कानपुर में रहे. डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी और जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर के बीच दूरियां तब बढ़ीं, जब सुनील जोशी ने सतना के एक ठेकेदार के मार्फत कंपनी का 10 करोड़ का स्क्रैप बेच दिया. स्क्रैप बेचे जाने की जानकारी उन्होंने चेयरमैन मनोज गौर को भी नहीं दी और न ही यह बताया कि रुपया कब, कहां और कैसे खर्च किया.

कानपुर फर्टिलाइजर कंपनी में जब स्क्रैप बेचने को ले कर स्थितियां स्पष्ट हुईं तो सुनील जोशी और मनोज गौर के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो गई. कंपनी की माली हालत को ले कर चेयरमैन मनोज गौर पहले से ही तनाव में थे ऊपर से करोड़ों का स्क्रैप बिक जाने के मामले ने आग में घी का काम किया. हालात यहां तक आ गए थे कि मनोज गौर, सुनील जोशी से स्क्रैप बिक्री का हिसाब जानना चाह रहे थे. मगर दोनों के बीच बात नहीं हो पा रही थी. इसी तनाव के बीच जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर ने फर्टिलाइजर कंपनी को बंद करने का फैसला कर लिया. दरअसल कंपनी को यूरिया खाद बनाने के एवज में सरकार से सब्सिडी मिलती है, तभी कम दाम पर किसानों तक खाद पहुंचती है.

पिछले 8 महीने से करीब 1200 करोड़ की सब्सिडी सरकार ने रोक दी थी, जिस से कंपनी की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी और 1000 कामगारों को वेतन देना भी मुश्किल हो गया था. यद्यपि कंपनी में उत्पादन ठीक हो रहा था. स्क्रैप बिक्री का हिसाब जानने तथा कंपनी में तालाबंदी को लेकर ही जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर ने 18 मार्च को बैठक बुलाई थी. चूंकि सुनील जोशी को मीटिंग में स्क्रैप बिक्री का हिसाब देना था. साथ ही वह तालाबंदी भी नहीं चाहते थे, अत: वह परेशान हो उठे. जैसेजैसे बैठक की तारीख नजदीक आती जा रही थी, उन की उलझन बढ़ती जा रही थी.

18 मार्च, 2020 की सुबह सुनील जोशी जल्दी ही उठ गए. उन्होंने रात में ही निश्चय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है. उलझन के चलते वह बैठक में जाने को तैयार हुए, फिर बिना खाएपिए ही अपनी कार से गेस्टहाउस के लिए निकल गए. सुबह 9:20 पर वह गेस्टहाउस के रूम में पहुंच गए. उन्होंने कर्मचारी से पानी मांगा, लेकिन पानी पिए बिना ही वह बाथरूम में चले गए. फिर उन्होंने कंपनी गु्रप पर एक मैसेज डाला, जिस में उन्होंने लिखा—

‘डियर आल, जिंदगी ने बीते 30 सालों में मुझे बहुत कुछ सिखाया. इस दौरान बहुत से उतारचढ़ाव देखे. जिंदगी में बहुत से अच्छेबुरे लोग भी आए. हमेशा यही सोचता था कि जिंदगी कुछ बुरा नहीं दिखाएगी. व्यापारिक परिवेश में पैदा होने के कारण हमेशा यही सोचता था कि जिंदगी ऐसे ही उतारचढ़ाव के साथ ही चलती है. पर जब हमारे पास परिवार होता है, तो जिंदगी के उतार बहुत परेशान करते है. बहुत सारे लोगों ने मुझे प्यार व इज्जत दी है. मैं ने हमेशा संतुलित जीवन जीने का प्रयास किया है. आज मेरे लिए रास्ते बंद हो चुके हैं और इस अंधेरी गुफा में मुझे कोई रोशनी दिखाई नहीं दे रही है. मेरे पास संसाधन नहीं है कि मेरा परिवार मेरे बगैर जिंदगी गुजार सके. एक घर दिल्ली में और एक घर कानपुर में ही है.

मैं श्री मनोज गौर से निवेदन करना चाहता हूं कि वह मेरा कर्ज चुकाने में मेरे परिवार की मदद करें. इस के लिए वह दिल्ली वाला मकान बेच दें. जो पैसा बचे उसे वह एफडी करा दें, जिस से मेरा परिवार जीवनयापन कर सके. इतना सब करने के लिए 12 माह का समय लगेगा. इतने समय के लिए कंपनी के निदेशकों से निवेदन है कि अगले 15 माह के लिए मेरा वेतन मुझे मिलता रहे. मेरे बच्चे अभी छोटे हैं और उन्हें अभी बहुत सारा समर्थन चाहिए. यह मेरे परिवार की गलती नहीं कि मैं जीवन में फेल हो गया. सभी को प्रेम और समर्थन के लिए बहुतबहुत धन्यवाद. लव यू आल. सुनील जोशी.’

इस मैसेज को भेजने के बाद सुनील जोशी ने अपनी लाइसैंसी इंग्लिश पिस्टल निकाली और दाईं कनपटी में सटा कर गोली दाग दी. गोली उन की बाईं कनपटी को पार कर बाहर निकल गई और वह फर्श पर गिर पड़े. बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया. जांचपड़ताल के दौरान मृतक सुनील की पत्नी मेनका, साले सोनू और परिवार के एक अन्य सदस्य ने पुलिस को दिए बयान में सुनील जोशी द्वारा आत्महत्या किए जाने की बात को नकार कर उन की हत्या की आशंका जताई थी. साथ ही रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही थी. लेकिन हफ्ता 2 हफ्ता बीत जाने के बाद भी कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई. अत: पुलिस इस मामले को आत्महत्या मान कर फाइल बंद करने की तैयारी पूरी कर चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Crime Stories : गुरुजी से बदला लेने के लिए शिष्‍य ने किया उनके पूरे परिवार का कत्‍ल

Crime Stories : हिमांशु ने जो किया, वह जघन्य अपराध है. जिस की उसे सजा भी मिलेगी. लेकिन यह भी सोच का विषय है कि क्या कोई बिना वजह 4-4 लाशें बिछा सकता है? इस के 3 कारण हो सकते हैं, एक तो यह कि उस ने किसी बड़े लालच में ऐसा किया हो, या उस का गुस्सा इस स्थिति तक पहुंच गया हो जहां सोचनेसमझने की क्षमता खत्म हो जाती है. या फिर कोई दुश्मनी कि…

42 वर्षीय अजय पाठक जानेमाने सिंगर थे. भजन गायन में उन का देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी नाम था. वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला शामली के लाइनपार क्षेत्र में स्थित पंजाबी कालोनी में अपने परिवार के साथ रहते थे. यह एक पौश कालोनी है. उन के परिवार में पत्नी स्नेहलता के अलावा एक बेटी वसुंधरा (15 वर्ष) और बेटा भागवत (10 वर्ष) था. जिस मकान में उस का परिवार रहता था, उस के भूतल पर अजय पाठक के चाचा दर्शन पाठक रहते थे. 31 दिसंबर, 2019 की सुबह जब बुजुर्ग दर्शन पाठक सो कर उठे तो उन्हें अपने भतीजे अजय और उस के बच्चों की आवाज सुनाई नहीं दी.

दर्शन जब उन्हें देखने ऊपर की मंजिल पर गए तो वहां ताला लगा मिला. उन की ईको स्पोर्ट कार भी वहां नहीं थी. यह देख कर वह समझे कि अजय बीवीबच्चों के साथ ससुराल करनाल गया होगा. क्योंकि अजय ने उन से पिछली शाम ही कहा था कि वह कल सुबह करनाल जाएगा. जब भी अजय को ससुराल जाना होता था वह सुबह 5 बजे के करीब बीवीबच्चों को ले कर निकल जाया करते थे. यही सोच कर दर्शन पाठक अपने रोजमर्रा के कामों में लग गए. अजय पाठक के अन्य भाई उसी कालोनी में अलगअलग मकानों में रहते थे. शाम के समय जब वह चाचा दर्शन पाठक के पास आए तो उन्हें पता चला कि अजय अपनी बीवी और बच्चों के साथ ससुराल करनाल गए हैं.

उसी समय एक भाई दिनेश ने अजय से बात करने के लिए उन का फोन मिलाया. लेकिन अजय का फोन स्विच्ड औफ था. इस के बाद दिनेश ने अजय की ससुराल वालों को फोन किया तो उन्होंने बताया कि अजय और स्नेहलता में से कोई भी यहां नहीं आया है. यह सुन कर वह आश्चर्यचकित रह गए. अजय और उन के बच्चे करनाल नहीं पहुंचे तो कहां चले गए. अजय की कार भी नहीं थी. इस से उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वह कार से बच्चों को ले कर कहीं घूमने निकल गया हो. लेकिन अजय के फोन का स्विच्ड औफ होना घर वालों के मन में शक पैदा कर रहा था. दिनेश पाठक ने अजय की पत्नी स्नेहलता का फोन मिलाया तो उन के फोन ने भी आउट औफ कवरेज एरिया बताया.

दोनों के ही फोन कनेक्ट न हो पाने पर घर वालों की चिंता बढ़नी लाजिमी थी. यह जानकारी मिलने पर दिनेश पाठक के घर के अन्य लोग और पड़ोसी भी आ गए. अजय के मकान के ऊपर के फ्लोर का ताला बंद था. वहां मौजूद सभी लोगों को जिज्ञासा हुई कि क्यों न ऊपर के फ्लोर के दरवाजे पर लगा ताला तोड़ कर अजय के कमरे को देख लिया जाए. लिहाजा अजय के भाई ताला तोड़ने की कोशिश करने लगे. किसी तरह ताला टूटा तो लोग कमरे में पहुंचे, लेकिन वहां का दृश्य देख सब की चीख निकल गई. कमरे में अजय पाठक, पत्नी स्नेहलता और 15 वर्षीय बेटी वसुंधरा की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं.

दृश्य बड़ा ही वीभत्स था, घर में 3-3 लाशें देख कर घर में चीखपुकार होने लगी. रोने की आवाज सुन कर मोहल्ले के लोग भी वहां पहुंच गए. सभी आश्चर्यचकित थे कि आखिर इतने भले इंसान और उस के घर परिवार को किस ने मौत के घाट उतार दिया.

घर में अजय का 10 वर्षीय बेटा भागवत कहीं नजर नहीं आया. वह तो गायब था ही, अजय की कार भी लापता थी. इस से लोगों ने अनुमान लगाया कि हत्यारे भागवत का अपहरण कर ले गए होंगे. पंजाबी कालोनी थाना आदर्शनगर क्षेत्र में आती थी. इसी दौरान मोहल्ले के किसी व्यक्ति ने थाना आदर्शनगर में फोन कर के इस तिहरे हत्याकांड की सूचना दे दी. थानाप्रभारी कर्मवीर सिंह उस समय थाने में ही मौजूद थे. सूचना मिलते ही वह पुलिस टीम के साथ पंजाबी कालोनी स्थित अजय पाठक के घर पहुंच गए. उस समय वहां भारी तादाद में लोग जमा थे. कर्मवीर उस कमरे में पहुंचे, जहां तीनों लाशें पड़ी थीं.

घटनास्थल का दृश्य बड़ा ही भयावह था. अजय पाठक, उन की पत्नी स्नेहलता और बेटी वसुंधरा की लाशें फर्श पर पड़ी थीं. उन सभी के गले किसी धारदार हथियार से काटे गए थे, जिस से कमरे के फर्श पर खून ही खून फैला हुआ था. कमरे की अलमारियां खुली हुई थीं और सामान फर्श पर फैला हुआ था. इस से यही लग रहा था कि हत्यारों ने अलमारी में कोई खास चीज ढूंढने की कोशिश की थी. थानाप्रभारी ने इस मामले की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. मामला एक प्रतिष्ठित परिवार और जानेमाने सिंगर की हत्या से जुड़ा था, इसलिए कुछ ही देर में एसपी विनीत जायसवाल और डीएम अखिलेश कुमार सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

एक ही परिवार के 3 लोगों की लाशें देख कर डीएम और एसपी भी आश्चर्यचकित रह गए. लोगों ने उन्हें बताया कि मृतक अजय पाठक का 10 वर्षीय बेटा भागवत गायब है. इस के अलावा अजय पाठक की ईको स्पोर्ट कार भी लापता थी. पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे भागवत का अपहरण कर ले गए हैं. पुलिस को गायब हुए भागवत की भी चिंता होने लगी. हत्यारे बच्चे को कोई नुकसान न पहुंचा सकें, इसलिए एसपी विनीत जायसवाल ने सीमावर्ती जिलों के पुलिस कप्तानों से फोन से संपर्क कर घटना की जानकारी दे दी और कह दिया कि हत्यारे ईको स्पोर्ट कार में 10 वर्षीय बच्चे भागवत को भी साथ ले गए हैं. इस सूचना के बाद आसपास के जिलों की पुलिस भी सतर्क हो गई. पुलिस बैरिकेड्स लगा कर कारों की चैकिंग करने लगी. पर वह ईको स्पोर्ट्स कार नहीं मिली.

31 दिसंबर, 2019 की रात के समय पानीपत पुलिस रोड गश्त पर थी, तभी रात करीब 12 बजे टोलप्लाजा के पास एक जलती कार दिखी. पुलिस जब वहां पहुंची तो कार के पास एक युवक खड़ा मिला. पुलिस ने उस से कार में आग लगने की वजह जाननी चाही तो वह वहां से भागने लगा. लेकिन पुलिस ने उसे दबोच लिया और तुरंत फायर ब्रिगेड को सूचना दे दी. पुलिस ने देखा तो यह वही ईको स्पोर्ट्स कार थी, जिस के गायब होने की सूचना शामली पुलिस ने दी थी. पानीपत पुलिस ने उस युवक से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम हिमांशु सैनी निवासी झाड़खेड़ी, थाना कैराना बताया.

उस ने पुलिस को बताया कि उस ने ही शामली में भजन गायक अजय पाठक, उन की पत्नी और बेटी की हत्या की है और कार की डिक्की में उन के बेटे भागवत की लाश है, जो उस ने जला दी है. पुलिस ने हिमांशु सैनी को हिरासत में ले लिया. तब तक फायर ब्रिगेड कर्मचारी भी आ गए थे. उन्होंने कुछ ही देर में कार की आग बुझा दी. इस के बाद पानीपत पुलिस ने भागवत का अधजला शव बरामद कर उसे सिविल अस्पताल भेज दिया. हिमांशु को हिरासत में लेने की जानकारी शामली पुलिस को भी दे दी गई. पानीपत पुलिस हिमांशु को ले कर थाना सदर लौट आई.

अजय पाठक के भाइयों वगैरह को जब 10 वर्षीय भागवत की भी हत्या की जानकारी मिली तो उन्हें एक और झटका लगा. हिमांशु सैनी को वह अच्छी तरह जानते थे, वह अजय पाठक का शिष्य था. वह भी सिंगर था और उन के घर आताजाता था. वही घर का सर्वनाश करने वाला निकलेगा, ऐसा उन्होंने सोचा तक नहीं था. अगले दिन यानी पहली जनवरी, 2020 को थाना आदर्श मंडी पुलिस के साथ विजय पाठक और उन के रिश्तेदार पानीपत के थाना सदर पहुंच गए ताकि पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए भागवत की लाश शामली ले आएं, लेकिन जली हुई लाश का पोस्टमार्टम करने वाला डाक्टर उस दिन छुट्टी पर था.

घर वालों को शामली के अस्पताल से पोस्टमार्टम के बाद 3 अन्य लाशें भी लेनी थीं, लिहाजा वे पानीपत से शामली लौट आए. शामली के सरकारी अस्पताल में अजय पाठक, उन की पत्नी स्नेहलता और बेटी वसुंधरा की लाशें पोस्टमार्टम के बाद उन के घर वालों को सौंप दी गईं. उधर शामली के थाना आदर्श मंडी के थानाप्रभारी कर्मवीर सिंह हत्यारोपी हिमांशु सैनी को पूछताछ के लिए पानीपत से आदर्श मंडी ले आए. शामली के लोगों को जब यह जानकारी मिली कि जघन्य हत्याकांड को अंजाम देने वाले हिमांशु सैनी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है तो हजारों लोग थाना आदर्श मंडी के बाहर एकत्र हो गए. लोग मांग कर रहे थे कि हत्यारे को उन के हवाले किया जाए, उसे वे खुद सजा देंगे.

भीड़ का गुस्सा स्वाभाविक था, लेकिन पुलिस को तो कानून के हिसाब से चलना पड़ता है. लिहाजा वहां पहुंचे एसपी विनीत जायसवाल ने भीड़ को समझाया और भरोसा दिया कि वह हत्यारे को सख्त सजा दिलाने की कोशिश करेंगे. इस के बाद भीड़ शांत हुई. एसपी विनीत जायसवाल की मौजूदगी में थानाप्रभारी कर्मवीर सिंह ने अभियुक्त हिमांशु सैनी से इस चौहरे हत्याकांड के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो इस जघन्य हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर शामली के लाइनपार इलाके में स्थित है पंजाबी कालोनी. हंसराज पाठक अपने परिवार के साथ यहीं पर रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 6 बेटे थे, क्रमश: सूरज पाठक, विनय पाठक, दिनेश पाठक, हरिओम पाठक, कपिल पाठक और अजय पाठक. अजय सब से छोटे थे. पाठक परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का था. शहर में होने वाली रामलीला में इस परिवार के बच्चे अलगअलग किरदार का अभिनय करते थे. अजय ने 15 साल की उम्र से रामलीला में भिन्नभिन्न किरदारों का अभिनय करना शुरू कर दिया था.

इस के बाद अजय पाठक की रुचि गायन के प्रति हो गई. वह भजन गाने लगे. उन की आवाज और भजन गाने का अंदाज लोगों को बहुत पसंद आया, जिस से उन की ख्याति बढ़ने लगी. इसी दौरान उन का विवाह स्नेहलता से हो गया. समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. अजय पाठक के सितारे बुलंदियां छूने लगे थे. भजन गायन के क्षेत्र में उन की पहचान बन चुकी थी. इस के साथ ही वह 2 बच्चों, एक बेटी वसुंधरा और बेटे भागवत के पिता बन गए थे. भजन गायन में उन्होंने अपनी अलग पहचान तो बनाई, साथ ही काफी पैसा भी कमाया. उन की अपनी जागरण मंडली थी, जिस में संगीत से जुड़े कई कलाकार शामिल थे.

हिमांशु सैनी करीब ढाई साल पहले अजय पाठक के संपर्क में आया था. वह नजदीक के ही कस्बा कैराना  का रहने वाला था. हिमांशु अजय पाठक से बहुत प्रभावित था. वह उन की तरह सिंगर बनना चाहता था. इस बारे में उस ने अजय से बात की तो उन्होंने उसे अपनी मंडली में शामिल कर लिया. भजन मंडली में रह कर हिमांशु गानाबजाना सीखने लगा. शिष्य की मर्यादा निभाते हुए हिमांशु अपने गुरु अजय पाठक की खूब सेवा करता था. जब वह अजय के घर जाता तो उन के पैर तक दबाता था. अजय भी हिमांशु की लगन से खुश थे. वह उसे अपने हुनर देने लगे. इन ढाई सालों में हिमांशु गानेबजाने के काफी गुर सीख गया था. गुरु के घर उस का अकसर आनाजाना लगा रहता था. कई बार वह उन के यहां ठहर भी जाता था.

पिछले कुछ दिनों से हिमांशु कुछ ज्यादा ही परेशान था. इस की वजह यह थी कि उस ने एक बैंक से 5 लाख रुपए का लोन ले रखा था, जिस की किस्तें वह अदा नहीं कर पा रहा था. इस के अलावा उस ने कुछ लोगों से भी पैसे उधार ले रखे थे. उन पैसों को भी वह नहीं चुका पा रहा था, जिस से वह आए दिन लोगों के तगादों से परेशान हो गया था. बैंक ने तो उसे पैसे रिकवरी का नोटिस भी भेज दिया था, जिस से उस की चिंताएं बढ़ती जा रही थीं. इस सब की जानकारी उस ने अपने गुरु अजय पाठक को भी दे दी थी. हिमांशु का आरोप है कि अजय पाठक पर उस के मेहनताने के 60 हजार रुपए बकाया थे. वह उन से जब भी अपने पैसे मांगता तो वह उसे न सिर्फ टाल देते बल्कि गालियां देते हुए बेइज्जत भी कर देते थे.

हिमांशु पाईपाई के लिए मोहताज था. ऐसे में उसे पैसे मिलना तो दूर, बेइज्जती सहनी पड़ती थी. हिमांशु की समझ में नहीं आता था कि वह करे तो क्या करे. हिमांशु चारों तरफ से परेशानियों से घिरा था. 30 दिसंबर, 2019 की शाम को अजय पाठक किसी कार्यक्रम से घर लौटे. उस समय हिमांशु भी उन के साथ था. अजय ने अपने मकान के ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाले चाचा दर्शन पाठक से कह दिया था कि कल सुबह उसे बच्चों के साथ करनाल जाना है. अजय के अन्य 5 भाइयों में से सब से बड़े सूरज पाठक लुधियाना में रहते हैं, बाकी सभी पंजाबी कालोनी में ही अलगअलग रहते हैं. 30 दिसंबर को हिमांशु अपने गुरु अजय के कहने पर वहीं रुक गया. रात का खाना खाने के बाद हिमांशु ने अजय पाठक के पैर दबाए.

उसी समय हिमांशु ने अजय के सामने अपनी समस्या रखते हुए अपने पैसे मांगे. हिमांशु का आरोप है कि अजय ने उस दिन भी अपशब्द कहते हुए उसे बेइज्जत किया. यह बात हिमांशु को नागवार लगी. उसी समय उस ने एक भयानक फैसला कर लिया. उस ने तय कर लिया कि वह आज इस बेइज्जती का जवाब जरूर देगा. लिहाजा वह मौके का इंतजार करने लगा. कुछ देर बाद अजय पाठक और परिवार के सभी लोग गहरी नींद में सो गए, लेकिन हिमांशु की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उस के दिमाग में खूनी योजना घूम रही थी. रात करीब साढ़े 4 बजे वह आहिस्ता से अपने बिस्तर से उठा.

हिमांशु वहां अकसर आताजाता रहता था, इसलिए उसे पता था कि घर में कौन सी चीज कहां रखी है. वह चुपके से मकान के निचले हिस्से में गया. वहां कार में रखी छोटी तलवार और चाकू ले आया. इन्हीं हथियारों से उस ने सब से पहले अपने गुरु अजय पाठक पर वार कर के उन्हें मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद उस ने अजय की पत्नी स्नेहलता, 15 वर्षीय बेटी वसुंधरा और 10 वर्षीय भागवत को एकएक कर के मौत के घाट उतारा. चूंकि ये सभी लोग गहरी नींद में थे, इसलिए वार करते वक्त उन की चीख तक नहीं निकली. चारों को मौत के घाट उतारने के बाद उस ने घर की अलमारियों के ताले तोड़ कर नकदी और ज्वैलरी ढूंढी, लेकिन उस के हाथ कुछ नहीं लगा.

इस के बाद उस ने भागवत की लाश उठा कर अजय की कार में रखी, फिर ऊपर वाले फ्लोर का ताला बंद कर के वह कार ले कर निकल गया. ताकि लोग समझें कि बदमाश लूट और हत्या के बाद भागवत का अपहरण कर के ले गए. दिन में वह इधरउधर घूमता रहा. रात के समय वह पानीपत के टोलप्लाजा के पास पहुंचा. हिमांशु भागवत के शव को आग के हवाले कर के सारे सबूत नष्ट करना चाहता था ताकि पुलिस उस तक न पहुंच सके. लेकिन वह पानीपत पुलिस के हत्थे चढ़ गया. हिमांशु से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे कैराना के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इसी दौरान कचहरी में वकीलों ने हिमांशु को घेर लिया और पुलिस की गिरफ्त से उसे छीनने का प्रयास करने लगे. पुलिस ने जैसेतैसे वकीलों को शांत कर हत्यारोपी को जेल तक पहुंचाया.

मशहूर भजन गायक अजय पाठक और उन के पूरे परिवार की हत्या के बाद फेसबुक पर उन के द्वारा गाई एक गजल तेजी से वायरल होने लगी. वह गजल उन के साथ घटी घटना पर सटीक बैठती है—

जमाना दोस्त हो जाए तो बहुत मोहतात हो जाना, किसी के रंग बदलने में जरा सी देर लगती. बहुत ही मोतबर हैं जिन को मोहब्बत रास आ जाए, किसी को राह बदलने में जरा सी देर लगती.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Mathura News : कर्ज चुकाने के लिए पड़ोसी के बच्‍चे को किया किडनैप, मांगे 20 लाख

Mathura News : अमित बाहर से आने वालों को वृंदावन घुमाता था. गौवर्धन की परिक्रमा कराता था, लेकिन महाराष्ट्र से आई मधु के प्यार में ऐसा पड़ा कि उस के साथ घर बसा लिया, अमित ने मधु से खुद को पैसे वाला बताया. इस का नतीजा तब सामने आया जब…

लौकडाउन में जहां लोगों का बाहर निकलना प्रतिबंधित है वहीं अपराधियों के हौसले और भी बुलंदी पर हैं. लौकडाउन की वजह से लोग घर से बाहर न निकलने को मजबूर हैं, लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो बिना निकले पेट नहीं पाल सकते. ऐसे ही लोगों में हैं अपराधी. दरअसल, अपराधियों की सोच यह होती है कि पुलिस तो कोरोना के चलते व्यवस्था ठीक करने में लगी है, क्यों न इस मौके का फायदा उठाया जाए. जनपद मथुरा के राया कस्बे की परशुराम कालोनी में रहने वाले लेखपाल राजेंद्र प्रसाद की बीवी कुसुम घर के कामों में व्यस्त थीं. सुबह 11 बजे फुर्सत मिलने पर उन्हें घर के बाहर चबूतरे पर खेल रहे अपने 3 वर्षीय बेटे युवान उर्फ गोलू की याद आई.

वे उसे बुलाने घर के बाहर आईं. चबूतरे पर उन की दोनों बेटियां खेल रहीं थीं. उन्होंने पूछा, ‘‘गोलू कहां है.’’ इस पर बेटियों ने कहा, ‘‘हमें नहीं मालूम.’’

गोलू अक्सर पड़ौसी अमित के घर उन के बच्चे के साथ खेलने चला जाता था. यह सोच कर कि गोलू वहीं होगा. कुसुम अमित के घर पहुंची. उन्होंने अमित की बीवी मधु से गोलू के बारे में पूछा  तो मधु ने बताया, गोलू व दोनों बहनें आईं थीं सभी बच्चे खेल कर चले गए. कुसुम ने घबराते हुए कहा, ‘‘गोलू कहीं दिखाई नहीं दे रहा. पता नहीं कहां चला गया है.’’

मधु ने कहा किसी के घर खेल रहा होगा. कुसुम ने उसे मौहल्ले में तलाश किया, लेकिन कोई पता नहीं लगा. कुसुम ने यह जानकारी पति राजेंद्र को दी. राजेंद्र और पड़ौसी गोलू को मोहल्ले के साथसाथ कालोनी के आसपास भी तलाशने लगे. तभी कुसुम को घर के पास गोलू की चप्पलें मिल गईं. चप्पलों में एक पर्ची लगी थी. पर्ची में लिखा था, आप का बेटा सही सलामत है, 20 लाख रुपए ले कर हाथिया आ जाना. पर्ची पढ़ते ही हड़कंप मच गया. बेटे के अपहरण से राजेंद्र और कुसुम का बुरा हाल था. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. यह 8 मई, 2020 की बात है. सूचना पर थाना राया के थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा मौके पर पहुंच गए.

उन की सूचना पर एसपी देहात श्रीश चंद्र और सीओ (महावन)  विजय सिंह चौहान भी आ गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के साथ ही चप्पलों में लगी पर्ची भी कब्जे में ले ली. पुलिस ने घटनास्थल से थोड़ी दूर लगे शिवकुमार लेखपाल के यहां के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी खंगाली, लेकिन उस में कोई भी आताजाता नहीं दिखा. पुलिस ने गोलू के घरवालों के साथ मौहल्ले का एकएक घर छान मारा, लेकिन गोलू के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.  इस के बाद पिता राजेंद्र प्रसाद ने थाना राया में अज्ञात के विरूद्ध अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया. सर्विलांस टीम से भी मदद ली गई, लेकिन समस्या यह थी कि अपहरणकर्ताओं ने अभी तक बच्चे के घरवालों को फिरौती के लिए फोन नहीं किया था. घटना के बाद से पुलिस कई स्थानों पर दबिश भी दे चुकी थी.

लौकडाउन के कारण पुलिस ने राया से ले कर मथुरा एनएच-2 और एक्सप्रेस-वे तक को सील कर रखा था. ऐसे में बच्चे का अपहरण और फिरौती पुलिस के लिए चुनौती बन गई थी. क्योंकि गाड़ी में बच्चे को ले जाने के लिए पुलिस के हर बैरियर पर चैकिंग से गुजरना पड़ता था. इस के साथ ही एक्सप्रेस वे से ले कर एनएच-2 पर भी वाहन चैकिंग हो रही थी, वहां जा कर भी खोजबीन की गई. पुलिस ने लौकडाउन में ड्यूटी पर लगे पुलिसकर्मियों से भी पूछताछ की, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहा. गोलू के अचानक अपहरण हो जाने की खबर पूरी कालौनी में फैल चुकी थी. लौकडाउन होने के बावजूद तमाम पुरूष, महिलाएं व बच्चे राजेंद्र के घर पर जुटने लगे.

सब की जुबान पर एक ही बात थी कि आखिर 3 साल के गोलू का अपहरण कौन कर ले गया? गोलू के अपहरण से मां कुसुम और दोनों बहनों का रोरो कर बुरा हाल था. थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा ने राजेंद्र से पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से रंजिश वगैरह तो नहीं हैं? या तुम्हें किसी पर कोई शक है तो बताओ. राजेंद्र के इनकार करने पर थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘आप के पास अपहरणकर्ताओं का कोई फोन आए तो बताना.’’ कालोनी में बच्चे के अपहरण के बाद तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गई थी. पुलिस ही नहीं लोगों को डर सता रहा था कि लौकडाउन के चलते बदमाश फिरौती की रकम न मिलने पर कहीं बच्चे की हत्या न कर दें. गोलू के घरवालों की पूरी रात आंखों में कटी. घर में चूल्हा भी नहीं जला.

दूसरे दिन शनिवार की सुबह अपहर्त्ता लेखपाल राजेंद्र के बच्चे गोलू को कालोनी से 15 किमी दूर राया सादाबाद रोड पर गांव तंबका के पास छोड़ गए. ग्रामीणों को बालक रोता हुआ मिला. इस पर उन्होंने पुलिस को सूचना दी. सूचना पर पीआरवी 112 मौके पर पहुंची और गोलू को कब्जे में ले लिया. बालक की बरामदगी की सूचना जैसे ही घर वालों को मिली उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. पुलिस ने गाड़ी भेज कर बच्चे के मातापिता को पुलिस चौकी बिचपुरी पर बुला लिया. गोलू को देखते ही मां की आंखों से खुशी के आंसू छलक आए. मां की गोद में आते ही गोलू मां से लिपट गया. उन्होंने उसे सीने से लगा लिया. बदमाशों ने 20 लाख की फिरौती मांगी थी, जो नहीं दी गई. जल्द ही बदमाशों को गिरफ्तार कर पूरे मामले कर खुलासा कर दिया जाएगा.

परशुराम कालोनी से राया सादाबाद रोड पर जाने के 3 रास्ते हैं. मुख्य मार्ग मांट रोड, फिर हाथरस रोड और फिर यहां से सीधा राया सादाबाद रोड है. इस दौरान रेलवे फाटक, नेहरू पार्क आदि स्थानों पर भी लौकडाउन के चलते पुलिस मौजूद रहती है. यहां से राया सादाबाद रोड पर जाने के लिए 2 रास्ते और भी हैं. बच्चे के अपहरण के बाद पुलिस ने इन सभी रास्तों पर नाकेबंदी कर दी थी. इस के बावजूद बदमाशों ने सुबह 5 बजे तंबका गांव के मंदिर पर बालक को छोड़ दिया. पुलिस इस क्षेत्र के आगे तथा पीछे मौजूद थी परंतु उसे बदमाशों की गतिविधि की भनक तक नहीं लग सकी थी. अपहर्त्ताओं ने बालक के अपहरण में चौपहिया वाहन का इस्तेमाल किया था. इस की पुष्टि बच्चे गोलू ने भी की. साथ ही बताया कि बदमाशों ने उस के सिर पर कपड़ा डाला और गाड़ी में ले गए.

सवाल यह था कि चौपहिया वाहन लौकडाउन के चलते इतनी दूर कैसे चला गया? बालक तो बरामद हो गया लेकिन सघन चैकिंग का दावा कर रही पुलिस बदमाशों को नहीं पकड़ सकी थी. इस से पुलिस की किरकिरी हो रही थी. अपहरणकर्ताओं की चुनौती को पुलिस ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया. पुलिस अधिकारियों ने वारदात के तरीके से यह निष्कर्ष निकाला कि यह किसी संगठित गिरोह की गतिविधि नहीं थी. इसलिए पुलिस ने अब लेखपाल राजेंद्र के नजदीकी लोगों की छानबीन शुरू करने का निर्णय लिया.

पुलिस मान रही थी कि फिरौती के लिए जिन्होंने पर्ची लिखी, वे बहुत कम पढ़ेलिखे थे. क्योंकि पर्ची में पहले 10 और बाद में 20 लाख की फिरौती लिखी गई थी. एसपी देहात श्रीश चंद्र ने बताया कि इस संबंध में जहां लेखपाल के नजदीक रहे लोगों की जानकारी ले रहे हैं, वहीं मामले की जांच गहनता से फिर से की जाए. ताकि बच्चे के अपहर्त्ताओं तक पहुंचा जा सके. पुलिस ने गोलू की मां से पर्ची मिलने के बारे में पूछताछ की. उस से जानकारी मिली कि गोलू की चप्पलों को उठाते वक्त नीचे दबी फिरौती की पर्ची उड़ गई थी, उस समय उस ने गौर नहीं किया था. बाद में पर्ची पड़ौस में रहने वाले अमित की पत्नी मधु ने ला कर दी थी. इस पर पुलिस ने मधु से पूछताछ की, मधु इनकार करने लगी. मधु की हरकत से पुलिस को उस पर शक हो गया.

पुलिस ने 12 मई को मधु को हिरासत में लेने के बाद उस से सख्ती से पूछताछ की. इस पर मधु ने फिरौती की पर्ची कुसुम को देने की बात स्वीकार करते हुए गोलू के अपहरण में अपने पति अमित, सगे देवर विनय उर्फ वीनू तथा ममेरे देवर विशाल के शामिल होने की बात बताई. पुलिस ने इस संबंध में अमित, मधु, विशाल निवासी तिरवाया, थाना राया को गिरफ्तार कर लिया. अमित का भाई  विनय निवासी टोंटा, हाथरस फरार था. गिरफ्तार तीनों आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. पूछताछ करने पर गोलू के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.—

अमित मैजिक चालक था. महाराष्ट्र की मधु नाइक मथुरा में गोवर्धन की परिक्रमा के लिए आई थी. अमित ने मधु को अपनी मैजिक में बैठा कर गोवर्धन की परिक्रमा कराई. इस मुलाकात के बाद दोनों का झुकाव एकदूसरे के प्रति हो गया. बाद में उस ने 2015 में मधु से प्रेम विवाह कर लिया. उस ने मधु से खुद को बहुत पैसे वाला बताया था. जबकि वह टेंट की सिलाई का काम करने के साथ ही मैजिक भी चलाता था. शादी के बाद शानोशौकत में धीरेधीरे उस पर 5 लाख रुपए का कर्जा हो गया. इस वारदात से 2 माह पहले ही अमित ने परशुराम कालोनी में रामबाबू का मकान किराए पर लिया था. इस से पहले वह भोलेश्वर कालोनी में किराए पर रहता था. वह मूल रूप से टोंटा, हाथरस का रहने वाला था. पड़ोसी होने के नाते गोलू व उस की बहनें उस के यहां खेलने आती थीं.

कर्जा चुकाने के लिए दंपति ने गोलू के अपहरण की साजिश रची थी. इस योजना में अमित ने पत्नी मधु के साथ ही अपने छोटे भाई विनय उर्फ वीनू व मामा के लड़के विशाल को भी शामिल कर लिया था. गोलू रोजाना की तरह 8 मई को भी अपनी 2 बहनों के साथ पड़ोसी अमित के घर खेलने आया था. उस दिन दोनों बहनें घर के अंदर लूडो खेलती रहीं और योजना के मुताबिक मधु ने गोलू को अपने पति अमित के साथ मैजिक में बैठा दिया और कहा, ‘‘अंकल तुम्हें घुमाने ले जा रहे हैं. बच्चे को बहलाफुसला कर अमित गोलू को कच्चे रास्ते से होता हुआ छोटे भाई वीनू के पास नगला टोंटा, हाथरस ले गया.  वहां वीनू को बच्चा देने के बाद कहा, ‘‘जब विशाल फोन करे बच्चे को तभी छोड़ना.’’

बच्चे के अपहरण के बाद पुलिस का दवाब बढ़ा तो अपहरणकर्ता डर गए. पकड़े जाने के भय से उन्होंने बालक को दूसरे दिन बिना फिरौती वसूले ही छोड़ दिया. यह बालक गांव तंबका के पास ग्रामीणों को रोता हुआ मिला था. एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने प्रैस वार्ता में बताया, शादी के बाद अमित पर 5 लाख का कर्जा हो गया था उसे उतारने के लिए दंपति ने गोलू के अपहरण की साजिश रची थी. पुलिस का दवाब बढ़ा तो इन लोगों ने बच्चे को अगले दिन ही सड़क पर छुड़वा दिया था. प्रोत्साहन के लिए वरिष्ठ अधिकारियों ने टीम में शामिल एसपी देहात श्रीश चंद्र, सीओ विनय चौहान, थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा, स्वाट व सर्विलांस टीम को 50 हजार रुपए के इनाम की घोषणा की है. गिरफ्तार तीनों आरोपियों को पुलिस ने अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

दंपति का एक साल का बेटा भी उन के साथ जेल में है क्योंकि उस की सुपुर्दगी लेने वाला कोई नहीं था. जबकि चौथे आरोपी विनय उर्फ वीनू की पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही है. अपने को अमीर दिखाने के चक्कर में यदि अमित ने अपने सिर पर कर्ज का बोझ न चढ़ाया होता तो आज उस की हंसती खेलती जिंदगी होती लेकिन पैसे की झूठी शान दिखाने में उसे जुर्म का सहारा लेना पड़ा, जिस के चलते परिवार सहित जेल की हवा खानी पड़ी.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Murder Stories : दोस्त की पत्नी को फंसाकर किया दोस्त का ही कत्ल

Murder Stories : राधा ईश्वर दयाल से शादी करने के बाद खुश नहीं थी. अपनी महत्त्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए उसने पति के दोस्त छोटेलाल से संबंध बना लिए. इस के बाद राधा ने जो चाल चली वह इतनी खतरनाक…

साधारण परिवार में पलीबढ़ी राधा को न सिर्फ अपने परिवेश से नफरत थी, बल्कि गरीबी को भी वह अभिशाप समझती थी. लिहाजा होश संभालने के बाद से ही उस ने खुद को सतरंगी सपनों में डुबो दिया था. वह सपनों में जीने की कुछ यूं अभ्यस्त हुई कि गुजरते वक्त के साथ उस ने हकीकत को सिरे से नकार दिया. हकीकत क्या है, वह जानना ही नहीं चाहती थी. मगर बेटी की बढ़ती उम्र के साथसाथ पिता श्रीकृष्ण की चिंताएं भी बढ़ती जा रही थीं. राधा के पिता श्रीकृष्ण कन्नौज के तालग्राम थानाक्षेत्र के अमोलर गांव में रहते थे.

वह मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे अपने परिवार का गुजारा कर रहे थे. परिवार में पत्नी गीता के अलावा 3 बेटियां थीं, पुष्पा, सुषमा और राधा. पुष्पा और सुषमा का उन्होंने विवाह कर दिया था. अब केवल राधा बची थी. राधा अभी किशोरावस्था में ही थी, जब उस के पिता श्रीकृष्ण ने उस के लिए रिश्ता ढूंढना शुरू कर दिया था. वह बेटी के हाथ पीले कर के अपने फर्ज से मुक्ति पा लेना चाहते थे. राधा अब तक यौवन की दहलीज पार कर चुकी थी. गेहुंआ रंग, छरहरी काया और बड़ीबड़ी आंखें उस का आकर्षण बढ़ाती थीं. कुल मिला कर वह आकर्षक युवती थी. उस के यौवन की चमकदमक से गांव के लड़कों की भी आंखें चुंधियाने लगी थीं. वे राधा के आगेपीछे मंडराने लगे थे. यह देख कर राधा मन ही मन खुश होती थी. लेकिन वह किसी को भी घास नहीं डालती थी.

आखिरकार उस के पिता ने अपनी कोशिशों के बूते पर उस के लिए एक लड़का तलाश कर लिया. उस का नाम ईश्वर दयाल था. वह कन्नौज के ही तिर्वा थानाक्षेत्र के मलिहापुर गांव का निवासी था. ईश्वर के पिता बच्चनलाल का देहांत हो चुका था. मां लक्ष्मी के अलावा उस के 2 बड़े भाई राजेश और राजवीर थे. पिता की मृत्यु के बाद सभी भाई आपसी सहमति से बंटवारा कर के अलगअलग रह रहे थे. घर का बंटवारा जरूर हो गया था लेकिन उन के दिल अब भी नहीं बंटे थे. सुखदुख में सब साथ खड़े होते थे. भाइयों की तरह ईश्वर दयाल भी मेहनतमजदूरी करता था. उधर घर वालों ने करीब 8 साल पहले राधा का विवाह ईश्वर दयाल से कर जरूर दिया था लेकिन वह पति से खुश नहीं थी. इस की वजह यह थी कि राधा ने जिस तरह के पति के सपने संजोए थे, ईश्वर दयाल वैसा नहीं था.

वह तो एक सीधासादा इंसान था, जो अपने परिवार में खुश था और उस की दुनिया भी अपने परिवार तक ही सीमित थी. राधा की तरह वह न तो ऊंचे सपने देखता था और न ही उस की महत्त्वाकांक्षाएं ऊंची थीं. ऊपर से उसे पहननेओढ़ने, सजनेसंवरने का शौक भी नहीं था. राधा को पति ईश्वर दयाल का सीधापन बहुत अखरता था. वह चाहती थी कि उस का पति बनसंवर कर रहे. उसे घुमाने ले जाए, सिनेमा दिखाए. मगर ईश्वर दयाल को यह सब करने में संकोच होता था. उस की यह मजबूरी राधा को नापसंद थी. लिहाजा उस का मन विद्रोह करने लगा. वक्त गुजरता रहा. इसी बीच राधा 2 बेटियों और 1 बेटे की मां बन गई तो ईश्वर दयाल खुशी से फूला नहीं समाया.

उसे लगा अब राधा अपनी जिद छोड़ कर गृहस्थी में रम जाएगी. लेकिन जिस नदी को हिलोरें लेनी ही हों, उसे भला कौन रोक सकता है. ईश्वर दयाल से राधा की कामना का वेग थमा नहीं था. वह तो बस मौके की तलाश में थी. जब परिवार बढ़ा तो ईश्वर दयाल की जिम्मेदारियां भी बढ़ गईं. वह सुबह काम पर निकलता तो शाम को ही घर आता. ईश्वर दयाल के गांव में ही छोटेलाल रहता था. वह गांव का संपन्न किसान था. परिवार में उस की पत्नी श्यामा और 2 बेटियां और एक बेटा था. एक ही गांव में रहने के कारण ईश्वर दयाल और छोटेलाल की दोस्ती थी. दोनों ही शराब के शौकीन थे. उन की जबतब शराब की महफिल जम जाती थी.

अधिकतर छोटेलाल ही शराब की पार्टी का खर्चा किया करता था. एक दिन छोटेलाल मटन लाया. मटन की थैली ईश्वर दयाल को देते हुए बोला, ‘‘आज हम भाभी के हाथ का पका हुआ मटन खाना चाहते हैं.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं, राधा बहुत स्वादिष्ट मटन बनाती है. एक बार तुम ने खा लिया तो अंगुलियां चाटते जाओगे. ’’ कहते हुए ईश्वर दयाल ने मटन की थैली राधा को पकड़ा दी. इस के बाद ईश्वर दयाल और छोटेलाल साथ लाई शराब की बोतल खोल कर बैठ गए. बातें करते हुए छोटेलाल शराब तो ईश्वर दयाल के साथ पी रहा था लेकिन उस का मन राधा में उलझा हुआ था और निगाहें लगातार उस का पीछा कर रही थीं. छोटेलाल को उस की खूबसूरती भा गई थी. जैसेजैसे नशा चढ़ता गया, वैसेवैसे उस की निगाहों में राधा का शबाब नशीला होता गया.

शराब का दौर खत्म हुआ तो राधा खाना परोस कर ले आई. खाना खा कर छोटेलाल ने राधा और उस के द्वारा बनाए गए खाने की दिल खोल कर तारीफ की. राधा भी उस की बातों में खूब रस ले रही थी. खाना खाने के बाद छोटेलाल अपने घर लौट गया. इस के बाद तो ईश्वर दयाल के घर रोज ही महफिल सजने लगी. छोटेलाल ने राधा से चुहलबाजी करनी शुरू कर दी. राधा भी उस की चुहलबाजियों का जवाब देती रही. राधा की आंखों में छोटेलाल को अपने लिए चाहत नजर आने लगी थी. उस के अंदाज भी कुछ ऐसे थे जैसे कि वह खुद उस के करीब आना चाहती है.

दरअसल, राधा को छोटेलाल में वह सब खूबियां नजर आई थीं, जो वह चाहती थी. छोटेलाल अच्छे पैसे कमाता था और खर्च भी दिल खोल कर करता था. ऐसे में मन मार कर ईश्वर दयाल के साथ रह रही राधा के सपनों को नए पंख लग गए. छोटेलाल का झुकाव अपनी तरफ देख कर वह बहुत खुश थी. हर रोज की मुलाकात के बाद वे दोनों एकदूसरे से घुलतेमिलते चले गए. छोटेलाल हंसीमजाक करते हुए राधा से शारीरिक छेड़छाड़ भी कर देता था. राधा उस का विरोध नहीं करती, बल्कि मुसकरा देती. हरी झंडी मिल जाने पर छोटेलाल राधा को जल्द से जल्द पा लेना चाहता था, इसलिए उस ने मन ही मन एक योजना बनाई.

एक दिन जब वह ईश्वर दयाल के साथ उस के घर में बैठा शराब पी रहा था तो उस ने खुद तो कम शराब पी लेकिन ईश्वर को जम कर शराब पिलाई. देर रात शराब की महफिल खत्म हुई तो दोनों ने खाना खाया. छोटेलाल ने भरपेट खाना खाया जबकि ईश्वर दयाल मुश्किल से कुछ निवाले खा कर एक तरफ लुढ़क गया. छोटेलाल की मदद से राधा ने ईश्वर दयाल को चारपाई पर लेटा दिया. इस के बाद हाथ झाड़ते हुए राधा बोली, ‘‘अब इन के सिर पर कोई ढोल भी बजाता रहे तो भी यह सुबह से पहले जागने वाले नहीं.’’

फिर उस ने छोटेलाल की आंखों में झांकते हुए भौंहें उचकाईं, ‘‘तुम घर जाने लायक हो या इन के पास ही तुम्हारी चारपाई भी बिछा दूं.’’

छोटेलाल के दिल में उमंगों का सैलाब उमड़ पड़ा. वह सोचने लगा कि राधा भी चाहती है कि वह यहीं रुके और उस के साथ प्यार का खेल खेले. इसलिए बिना देर किए उस ने कहा, ‘‘हां, नशा कुछ ज्यादा हो गया है, मेरा भी बिस्तर लगा दो.’’

इस के बाद राधा ने छोटेलाल के लिए भी चारपाई बिछा कर बिस्तर लगा दिया. वह खुद बच्चों के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई. छोटेलाल की आंखों में नींद नहीं थी. उस की आंखों के सामने बारबार राधा की खूबसूरत काया घूम रही थी. उस के कई बार मिले शारीरिक स्पर्श से वह रोमांचित हुआ था. उस स्पर्श की दोबारा अनुभूति पाने के लिए वह बेकरार था. ईश्वर दयाल की ओर से वह निश्चिंत था. इसलिए वह दबेपांव चारपाई से उठा और ईश्वर दयाल के पास जा कर उसे हिला कर देखा. उस पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह धड़कते दिल से उस कमरे की ओर बढ़ गया, जिस में राधा बच्चों के साथ सो रही थी.

कमरे में चारपाई पर बच्चे लेटे थे. जबकि राधा जमीन पर बिस्तर लगा कर लेटी थी. कमरे में जल रही लाइट को बंद कर के छोटेलाल राधा के पास जा कर बिस्तर पर लेट गया. जैसे ही उस ने राधा को बांहों में भरा तो वह दबी जुबान में बोली, ‘‘अब यहां क्यों आए हो, जाओ यहां से.’’

‘‘अब तुम को अपने प्यार का असली मजा देने आया हूं.’’ कह कर उस ने राधा को अपने अंदाज में प्यार करना शुरू कर दिया. इस के बाद तो मानो दो जिस्मों के अरमानों की होड़ लग गई. कपड़े बदन से उतरते गए और हसरतें बेलिबास होती गईं. फिर उन के बीच वह संबंध बन गया जो सिर्फ पतिपत्नी के बीच में होना चाहिए. एक ने अपने पति के साथ बेवफाई की थी तो दूसरे ने दोस्त के साथ दगाबाजी. उस रात के बाद राधा और छोटेलाल एकदूसरे को समर्पित हो गए. राधा छोटेलाल के संग पत्नी धर्म निभाने लगी तो छोटेलाल ने भी राधा को अपना सब कुछ मान लिया.

राधा के संग रास रचाने के लिए छोटेलाल हर दूसरेतीसरे दिन ईश्वर दयाल के घर महफिल जमाने लगा. ईश्वर दयाल को वह नशे में धुत कर के सुला देता, उस के बाद राधा के बिस्तर पर पहुंच जाता. अब वह दिन में भी राधा के पास पहुंचने लगा था. उस के आने से पहले ही राधा बच्चों को घर के बाहर खेलने भेज देती थी. फिर दोनों निश्चिंत हो कर रंगरलियां मनाते थे. 13 जनवरी, 2020 को अचानक ईश्वर दयाल गायब हो गया. घर वालों ने उसे काफी तलाश किया. तलाश करने पर देर रात गांव से डेढ़ किलोमीटर दूर कलुआपुर गांव के माध्यमिक विद्यालय के पास सड़क किनारे ईश्वर दयाल की लाश पड़ी मिली.

परिजनों ने जब लाश देखी तो फूटफूट कर रोने लगे. इसी बीच किसी ने घटना की सूचना कोतवाली तिर्वा को दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. पहली नजर में मामला एक्सीडेंट का लग रहा था. लाश के ऊपर किसी वाहन के टायर के निशान मौजूद थे. लाश के पास ही एक गमछा पड़ा मिला. परिजनों से पूछा गया कि क्या वह गमछा ईश्वर दयाल का है, तो उन्होंने मना कर दिया. इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा चौंके कि अगर ईश्वर दयाल की मौत एक्सीडेंट से हुई है तो किसी और का गमछा यहां कैसे आ गया. इस का मतलब यह कि ईश्वर दयाल की हत्या कर के उसे एक्सीडेंट का रूप दिया गया है.

यह गमछा हत्यारे का है, जो जल्दबाजी में छूट गया है. इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा ने उस गमछे को अपने कब्जे में ले लिया. फिर आवश्यक पूछताछ के बाद उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस के बाद 14 जनवरी, 2020 की सुबह 10 बजे ईश्वर दयाल की मां लक्ष्मी देवी की लिखित तहरीर पर इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा ने थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा ने सर्वप्रथम घटना की रात घटनास्थल पर मौजूद रहे मोबाइल नंबरों की डिटेल्स निकलवाई. जब डिटेल्स सामने आई तो उस में कुछ नंबर ही थे. उन नंबरों में से 3 फोन नंबर ऐसे थे, जिन की लोकेशन एक साथ आ रही थी. उन नंबरों में एक नंबर मलिहापुर के छोटेलाल का था.

छोटेलाल के बारे में जानकारी जुटाई गई तो पता चला, उस की ईश्वर दयाल से गहरी दोस्ती थी. वह ईश्वर दयाल के घर आताजाता था. छोटेलाल के उस की पत्नी से अवैध संबंध थे. इस के बाद इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा ने 23 फरवरी, 2020 को राधा, उस के प्रेमी छोटेलाल, छोटेलाल के दोस्त गिरिजाशंकर और रिश्तेदार सुघर सिंह को गिरफ्तार कर लिया. गिरिजाशंकर और सुघर सिंह के मोबाइल नंबर की लोकेशन छोटेलाल के फोन नंबर की लोकेशन के साथ मिली थी. इस के बाद कोतवाली में जब उन से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर के हत्याकांड की वजह भी बता दी.

छोटेलाल और राधा के बीच नाजायज संबंधों का सिलसिला अनवरत चल रहा था. लेकिन उस में खलल तब पड़ा, जब ईश्वर दयाल ने राधा के मोबाइल में छोटेलाल का नंबर देखा. इतना ही नहीं, हर रोज उस नंबर पर कईकई बार काफी देर तक बात की गई थी. यह देख कर ईश्वर दयाल का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने राधा से पूछा तो वह बहाने बनाने लगी. इस पर ईश्वर दयाल ने राधा की जम कर पिटाई कर दी.  उस पिटाई से राधा अपने पति ईश्वर दयाल के प्रति नफरत से भर उठी. इस के बाद ईश्वर दयाल उन दोनों के मिलने पर बाधक बनने लगा. दोनों किसी तरह मिलते भी तो वह उन का विरोध करता. इस पर राधा ने ईश्वर दयाल को अपनी जिंदगी से हमेशा के लिए हटाने का फैसला कर लिया.

उस ने छोटेलाल से कहा कि ईश्वर दयाल के रहते हम एक नहीं हो सकते. उस का इलाज करना ही पड़ेगा. फिर छोटेलाल ईश्वर दयाल को ठिकाने लगाने की जुगत में लग गया. राधा ने अपनी मां गीता से बात की तो गीता भी अपनी बेटी के कुकृत्य में शामिल हो गई. गीता जानती थी कि छोटेलाल के साथ राधा ज्यादा खुश रहेगी. इसलिए वह उस का साथ देने को तैयार हो गई. छोटेलाल ने अपने दोस्त गिरिजाशंकर निवासी भूलभुलियापुर थाना तिर्वा और रिश्तेदार सुघर सिंह से बात की. सुघर सिंह मैनपुरी जिले के थाना किसनी के गांव बसहत का रहने वाला था. इस समय वह कन्नौज की छिबरामऊ तहसील में रह रहा था. वह तहसील में कार्यरत चपरासी सरोज की मारुति वैन चलाता था.

छोटेलाल ने दोनों से बात कर के उन को ईश्वर दयाल की हत्या करने को तैयार कर लिया. उस के बाद योजना बना कर राधा और उस की मां गीता को बता दिया. योजनानुसार, 13 जनवरी 2020 को सुघर सिंह चपरासी सरोज की मारुति वैन ले कर आ गया. उस में छोटेलाल और गिरिजाशंकर सवार हो गए. छोटेलाल ने ईश्वर दयाल को शराब पीने को बुलाया तो वह उस के पास आ गया. उसे छोटेलाल और गिरिजाशंकर ने पिछली सीट पर अपने बीच में बैठा लिया. इस के बाद सभी ने गांव से निकल कर कुछ दूरी पर शराब पी. ईश्वर दयाल के नशे में होने पर छोटेलाल और गिरिजाशंकर ने गला दबा कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद कलुआपुर के माध्यमिक विद्यालय के पास पहुंच कर उस की लाश सड़क किनारे डाल दी.

सुघर सिंह ने ईश्वर दयाल को कई बार कार के पहियों से कुचला, ताकि उस की मौत महज एक हादसा समझी जाए. इसी बीच उधर आ रहे किसी दूसरे वाहन की लाइट उन पर पड़ी तो हड़बड़ी में वे लोग वैन में बैठ कर वहां से भाग निकले. इसी हड़बड़ी के कारण छोटेलाल का गमछा ईश्वर दयाल की लाश के पास गिर गया था. इसी से पुलिस को शक हो गया कि ईश्वर दयाल की हत्या की गई है. अंतत: आरोपी कानून की गिरफ्त में आ गए. पुलिस ने उन की गिरफ्तारी के बाद हत्या में प्रयुक्त मारुति वैन नंबर यूपी78ई जे2368 और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया.

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक राधा की मां गीता फरार थी. पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए प्रयासरत थी.॒

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP News : पत्नी की हत्या कर शव पर एक क्विंटल का पत्थर बांधकर बांध में फेंका

UP News :कभीकभी अचानक ऐसा कुछ हो जाता है कि हम समझ तक नहीं पाते कि यह सब कैसे और क्यों हुआ. सच यह है कि यह वक्त की ताकत होती है, जो इंसान के कर्म के हिसाब से अपनी मौजूदगी का अहसास कराती है. भरत दिवाकर ने नमिता को ठिकाने लगाने की जो योजना बनाई थी, उस ने बनाते हुए सोचा भी नहीं होगा कि इस का उलटा भी हो सकता है. आखिर यह सब…,

15 जनवरी, 2020. उत्तर प्रदेश का जिला चित्रकूट. थाना भरतकूप के थानाप्रभारी संजय उपाध्याय अपने औफिस में बैठे थे. तभी भरतकूप के ही रहने वाले यशवंत सिंह उन के पास आए. यशवंत सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर्ड सबइंसपेक्टर थे. यशवंत सिंह ने थानाप्रभारी को अपना परिचय दिया तो उन्होंने उन को सम्मान से कुरसी पर बैठाया. इस के बाद उन्होंने उन से आने का कारण पूछा तो यशवंत सिंह ने कहा, ‘‘सर, एक बहुत बड़ी प्रौब्लम आ गई है.’’

‘‘बताएं, क्या बात है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘कल से मेरी बेटी नमिता का कहीं पता नहीं चल रहा है. मुझे आशंका है कि उस के पति पूर्व ब्लौक प्रमुख भरत दिवाकर ने उस की हत्या कर के लाश कहीं गायब कर दी है.’’

‘‘क्या?’’ यह सुनते ही एसओ संजय उपाध्याय चौंके, ‘‘आप की बेटी की हत्या कर के लाश गायब कर दी?’’

‘‘हां सर, भरत भी कल से ही लापता है. उस का भी कहीं पता नहीं है.’’ यशवंत सिंह ने बताया.

‘‘ठीक है, आप एक तहरीर लिख कर दे दें. मैं मुकदमा दर्ज कर आवश्यक काररवाई करता हूं. इस बारे में जैसे ही मुझे कोई सूचना मिलती है, आप को इत्तला कर दूंगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

यशवंत सिंह ने अपने 35 वर्षीय दामाद भरत दिवाकर को नामजद करते हुए लिखित तहरीर दे दी. उस तहरीर के आधार पर पुलिस ने नमिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल की तो मामला सही पाया गया. पड़ताल के दौरान एसओ उपाध्याय को पता चला कि 14 जनवरी, 2020 की रात करीब 10 बजे भरत दिवाकर को पत्नी नमिता के साथ गाड़ी में एक मिठाई की दुकान पर देखा गया था. उस के बाद से ही दोनों लापता थे. मामला गंभीर था. एसओ संजय उपाध्याय ने इसे बहुत संजीदगी से लिया. उन्होंने इस की सूचना एसपी अंकित मित्तल, एएसपी बलवंत चौधरी और सीओ (सिटी) रजनीश यादव को दे दी.

मामला समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व ब्लौक प्रमुख व उस की पत्नी के रहस्यमय ढंग से लापता होने से जुड़ा था. वैसे भी भरत दिवाकर कोई छोटामोटा आदमी नहीं था. वह खुद तो पूर्व ब्लौक प्रमुख था ही, उस की दादी दशोदिया देवी भी पूर्व ब्लौक प्रमुख थीं. दशोदिया देवी शहर की जानीमानी हस्ती थीं. इस परिवार का रुतबा था, शान थी, ऐसे में पुलिस का परेशान होना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं थी. भरत दिवाकर और उस की पत्नी नमिता का पता लगना जरूरी था. उसी दिन सुबह 11 बजे के करीब भरत दिवाकर की बहन सुमन के मोबाइल पर एक काल आई थी. काल भरत दिवाकर के ड्राइवर रामसेवक निषाद ने की थी. उस ने सुमन को बताया कि भरत भैया रात करीब 2-3 बजे बरुआ सागर बांध पर आए थे. उन की गाड़ी में बोरे में कोई वजनी चीज थी. उन के साथ मैं भी था.

हम दोनों बोरे में भरी चीज को ले कर बांध के किनारे पहुंचे. वहां पहले से एक नाव खड़ी थी. हम दोनों बोरे को ले कर नाव पर सवार हुए और आगे बढ़ गए. बोरा बांध में पलटते वक्त अचानक नाव पानी में पलट गई. अपनी जान बचा कर मैं तो किसी तरह तैर कर पानी से बाहर निकल आया, लेकिन भैया पानी में डूब गए. रामसेवक निषाद की बाद सुन कर सुमन हतप्रभ रह गई. उस ने यह बात अपनी मां चुनबुद्दी देवी से बताई तो मां के भी होश फाख्ता हो गए. बीती रात से मांबेटी भरत के घर लौटने का इंतजार कर रही थीं. लेकिन वह घर नहीं लौटा. उस का फोन भी नहीं लग रहा था.

भरत दिन में भले ही कहीं भी रहता हो, शाम होते ही घर लौट आता था. जब वह रात भर घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों को चिंता हुई. वे लोग उस की तलाश में जुट गए. उस के सारे यारदोस्तों से फोन कर के पूछ लिया गया, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला. जब सुबह 11 बजे रामसेवक ने फोन से सुमन को सूचना दी तो घर वाले समझे कि भरत के साथ अनहोनी हो चुकी है. फिर क्या था, घर में कोहराम मच गया, रोनापीटना शुरू हो गया. ऐसे में सुमन ने थोड़े संयम से काम लिया.

उस ने भाई के साथ हुई अनहोनी की जानकारी समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष अनूप कुमार को दे कर मदद की गुहार लगाई. क्योंकि उस समय सुमन को यही ठीक लगा. भरत के बांध में डूबने की जानकारी होते ही वह भी सकते में आ गया. जिस बरुआ सागर बांध में घटना घटी थी, वह भरतकूप थाना क्षेत्र में पड़ता था. अनूप ने इस की जानकारी भरतकूप थाने के एसओ संजय उपाध्याय को दे दी. एसओ संजय ने शिवराम चौकीप्रभारी अजीत सिंह को सूचित किया और मौके पर पहुंचने के आदेश दिए. अजीत सिंह के मौके पर पहुंचने के कुछ देर बाद एसओ संजय सिंह पुलिस टीम के साथ बरुआ सागर बांध पहुंच गए.

बांध के किनारे भरत दिवाकर की सफेद रंग की कार यूपी26डी 3893 लावारिस खड़ी मिली. कार की तलाशी ली गई तो उस में एक पैर की लेडीज चप्पल मिली. सुमन ने चप्पल पहचान ली. वह चप्पल उस की भाभी की थी. पुलिस ने बरामद चप्पल साक्ष्य के तौर पर अपने कब्जे में ले ली. नमिता और भरत दिवाकर के गायब होने की खबर जिले भर में फैल गई. धीरेधीरे बांध पर लोगों की भीड़ जमा होने लगी. थोड़ी देर में  एएसपी बलवंत चौधरी, सीओ रजनीश यादव, कोतवाल अनिल सिंह, सपा के जिलाध्यक्ष अनूप कुमार और भरत दिवाकर के घर वाले भी पहुंच गए.

एएसपी बलवंत चौधरी ने एक नाव की व्यवस्था कराई. नाव के साथ ही एक गोताखोर और एक बड़े जाल का इंतजाम भी करवाया गया. पूरा इंतजाम हो जाने के बाद उन्होंने भरत का पता लगाने के लिए नाव में सवार हो कर बांध में उतरने का फैसला किया. पुलिस गोताखोर के साथ पूरा दिन बांध की खाक छानती रही लेकिन न तो भरत का कोई पता चला और न ही नमिता का. उधर पुलिस ने भरत दिवाकर के ड्राइवर रामसेवक निषाद को हिरासत में ले कर पूछताछ जारी रखी थी. लगातार चली कड़ी पूछताछ के बाद रामसेवक पुलिस के सामने टूट गया. उस ने जुर्म कबूलते हुए पुलिस को बताया कि भरत ने अपनी पत्नी नमिता की हत्या कर दी थी.

वे दोनों उस की लाश को बोरे में भर कर ठिकाने लगाने के लिए बरुआ बांध लाए थे. लाश ठिकाने लगाने में मैं ने उन का साथ दिया. गाड़ी में से लाश निकाल कर हम ने एक बोरे में भर दी. फिर हम ने दूसरे बोरे में करीब एक क्विंटल का पत्थर भर कर नमिता की कमर में बांध दिए, ताकि लाश पानी के ऊपर न आ सके और उस की मौत का राज सदा के लिए इसी बांध में दफन हो कर रह जाए. रामसेवक के बयान से साफ हो गया था कि भरत दिवाकर ने ही अपनी पत्नी नमिता की हत्या की थी और लाश ठिकाने लगाने के चक्कर में वह पानी में गिर कर डूब गया था. खैर, उस दिन पुलिस की मेहनत का कोई खास परिणाम नहीं निकला. शवों की बरामदगी के लिए एसपी अंकित मित्तल ने इलाहाबाद के स्टेट डिजास्टर रिस्पौंस फंड (एसडीआरएफ) से संपर्क कर मदद मांगी.

अगली सुबह यानी 16 जनवरी, 2020 की सुबह 11 बजे एसडीआरएफ की टीम चित्रकूट पहुंची और अपने काम में जुट गई. बांध काफी बड़ा और गहरा था. टीम को सर्च करते हुए सुबह से शाम हो गई, इस बीच नमिता की लाश तो मिल गई, लेकिन भरत दिवाकर का कहीं पता नहीं चला. बांध से नमिता की लाश मिलने के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि भरत की लाश भी इसी बांध में कहीं फंसी पड़ी होगी. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के नमिता की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पुलिस को नमिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई.

रिपोर्ट में उस का गला दबा कर हत्या करने की पुष्टि हुई. यानी भरत दिवाकर ने नमिता की गला दबा कर हत्या की थी. अब सवाल यह था कि उस ने उस की हत्या क्यों की? इस का जवाब भरत से ही मिल सकता था, जबकि वह अभी भी लापता था. सच्चाई का पता लगाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी. आखिरकार नौवें दिन यानी 22 जनवरी को उस समय भरत दिवाकर का चैप्टर बंद हो गया, जब उस की लाश बांध के अंदर पानी में उतराती हुई मिली. इस से लोगों के बीच चल रही तरहतरह की अटकलों पर हमेशा के लिए विराम लग गया. नमिता हत्याकांड राज बन कर रह गया था. इस राज से परदा उठाना पुलिस के लिए लाजिमी हो गया था.

उधर पुलिस ने नमिता की लाश मिलने के बाद पति भरत दिवाकर और ड्राइवर रामसेवक निषाद के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर रामसेवक को गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भरत दिवाकर के साथ नमिता की लाश ठिकाने लगाने में उस का साथ दिया था. रामसेवक और घर वालों से हुई पूछताछ के बाद नमिता हत्याकांड की कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व एसआई यशवंत सिंह भरतकूप इलाके में परिवार के साथ रहते हैं. पत्नी विमला देवी और पांचों बच्चों के साथ वह खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे. उन के बच्चों में 4 बेटियां और एक बेटा था. बेटियों में नमिता उर्फ मीनू तीसरे नंबर की थी. बेटा सब से बड़ा था. यशवंत सिंह ने उस की गृहस्थी बसा दी थी. चारों ननदों में से अर्चना की नमिता से ही अच्छी पटती थी. अर्चना नमिता की भाभी ही नहीं, अच्छी सहेली भी थी. वह अपने दिल की हर बात, हर राज भाभी से शेयर करती थी. भरत दिवाकर से प्रेम वाली बात जब नमिता ने अर्चना से बताई तो वह चौंके बिना नहीं रह सकी. ननद नमिता को उस ने बड़े प्यार से समझाया कि अपनी और घर की मानमर्यादा का खयाल जरूर रखे. कहीं कोई ऐसा कदम न उठाए जिस से जगहंसाई हो.

भाभी को उस ने विश्वास दिलाया कि वह कोई ऐसा काम नहीं करेगी, जिस से मांबाप का सिर समाज में झुके. उस के बाद उस ने भाभी से अपने प्यार की कहानी सिलसिलेवार बता दी थी. बात नमिता के कालेज के दिनों की है. उन्हीं दिनों कालेज में भरत दिवाकर भी पढ़ता था. कालेज में नमिता की खूबसूरती के खूब चर्चे थे. नमिता के दीवानों में भरत दिवाकर भी था, जो उस की खूबसूरती पर फिदा था. कालेज में आने के बाद भरत पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय नमिता के पीछे चक्कर काटता रहता था. आखिरकार नमिता कुंवारे दिल को कब तक अपने दुपट्टे के पीछे छिपाए रखती. अंतत: उस के दिल के दरवाजे पर भरत दिवाकर के प्यार का ताला लग ही गया.

खूबसूरत नमिता ने भरत की आंखों के रास्ते उस के दिल की गहराई में मुकाम बना लिया था. दिन के उजाले में भरत की आंखों के सामने मानो हर घड़ी नमिता की मोहिनी सूरत थिरकती रहती थी. नमिता के दिल में भी ऐसी ही हलचल मची थी, जैसे किसी शांत सरोवर में किसी ने कंकड़ फेंक कर लहरें पैदा कर दी हों. भरत दिवाकर और नमिता के दिलों में मोहब्बत की मीठीमीठी लहरें उठने लगीं. दोनों एकदूसरे की सांसों में समा चुके थे. चाहत दोनों ओर थी, सो धीरेधीरे बातें शुरू हुईं और फिर दोनों मिलने भी लगे. इस से चाहत भी बढ़ती गई और नजदीकियां भी. प्यार की इस बुनियाद को पक्का करने के लिए दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

प्यार की राह में नमिता ने कदम आगे बढ़ा तो लिया था, लेकिन उस के अंजाम को सोच कर वह सिहर उठी थी. वह जानती थी कि उस के प्यार पर उस के पिता स्वीकृति की मोहर नहीं लगाएंगे. अपने प्यार को पाने के लिए उसे घर वालों से बगावत करनी होगी. इस के लिए वह मानसिक रूप से तैयार थी. आखिरकार सन 2014 में नमिता ने घरपरिवार से बगावत कर के प्यार की राह थाम ली और भरत दिवाकर की दुलहन बन गई. भरत और नमिता ने कोर्टमैरिज कर ली. अनमने ढंग से ही सही भरत के घर वालों ने नमिता को स्वीकार कर लिया था.

बेटी द्वारा उठाए कदम से यशवंत सिंह की बरसों की कमाई सामाजिक मानमर्यादा धूमिल हो गई थी. पिता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का अपना खून अपनों को ही कलंकित कर देगा. जिस दिन बेटी ने अपनी मरजी से पिता की दहलीज लांघी थी, उसी दिन से उन्होंने सीने पर पत्थर रख कर नमिता से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था. परिवार से उन्होंने कह दिया था कि आज के बाद नमिता हमारे लिए मर चुकी है. गलती से जिस ने भी उस से रिश्ता जोड़ने की कोशिश की, वह भी मरे के समान होगा. यशवंत सिंह के फैसले से सब डर गए और अपनेअपने दिलों से नमिता की यादों को सदा के लिए निकाल फेंका. उस दिन के बाद यशवंत सिंह के घर में नमिता नाम का चैप्टर बंद हो गया.

भरत दिवाकर नमिता को पा कर बेहद खुश था, नमिता भी खुश थी. दिवाकर की रगों में दशोदिया देवी के खानदान का खून दौड़ रहा था, जहां से राजनीति की धारा फूटती थी. लोग दशोदिया देवी की कूटनीति का लोहा मानते थे तो पौत्र कहां पीछे रहने वाला था. उसे जो पसंद आ जाता था, उसे हासिल कर के ही दम लेता था. इसी के चलते वह अपनी पसंद की दुलहन घर लाया था. भरत ने दादी से राजनीति का ककहरा सीख लिया था. राजनीति के अखाड़े में मंझा पहलवान बन कर उतरे भरत ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. वह जानता था कि राजनीति अवाम पर हुकूमत करने के लिए एक सुरक्षा कवच है और बहुत बड़ी ताकत भी. वह इस ताकत को हासिल कर के ही रहेगा.

अपनी मेहनत और संपर्कों के बल पर उस ने पार्टी और कर्वी ब्लौक में अच्छी छवि बना ली थी. इस का परिणाम भरत के हक में बेहतर साबित हुआ. भरत दिवाकर कर्वी ब्लौक का प्रमुख चुन लिया गया. ब्लौक प्रमुख चुने जाने के बाद यानी सत्ता का स्वाद चखते ही उस के पांव जमीन पर नहीं रहे. सत्ता के गुरूर में भरत अंधा हो चुका था. इतना अंधा कि वह यह भी भूल गया था उस की एक पत्नी है, जिस ने अपने परिवार से बगावत कर के उस का दामन थामा था. पत्नी के प्रति फर्ज को भी वह भूल गया था. कल तक भरत जिस नमिता के पीछे भागतेभागते थकता नहीं था, अब उसे देखने के लिए उस के पास वक्त नहीं होता था. यह बात नमिता को काफी खलती थी. इस की एक खास वजह यह थी कि न तो उसे परिवार का प्यार मिल रहा था और न ही किसी का सहयोग.

घर भौतिक सुखसुविधाओं से भरा था. भरत के मांबाप ने नमिता को भले ही अपना लिया था, लेकिन उसे बहू का दरजा नहीं दिया गया था. कोई उस से बात तक करना पसंद नहीं करता था. ऐसे में पति का ही एक सहारा था. लेकिन वह भी सत्ता की चकाचौंध में खो गया था. अब नमिता को अपनी भूल का अहसास हो रहा था. मांबाप की बात न मान कर उस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी. अब वह वापस घर भी नहीं लौट सकती थी. पिता ने उस से सारे रिश्ते तोड़ कर सदा के लिए दरवाजा बंद कर दिया था.

नमिता को भविष्य की चिंता सताने लगी थी. चिंता करना इसलिए जायज था, क्योंकि वह भरत के बच्चे की मां बन चुकी थी. समय के साथ उस ने एक बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम तान्या रखा गया था. बेटी के भविष्य को ले कर नमिता चिंता में डूबी रहती थी. ससुराल की रुसवाइयां और पति की दूरियां नमिता के लिए शूल बन गई थीं. भरत कईकई दिनों तक घर से बाहर रहता था और जब लौटता था तो शराब के नशे में धुत होता था. पति का घर से बाहर रहना फिर भी नमिता ने सहन कर लिया था, लेकिन शराब पी कर घर आना उसे कतई बरदाश्त नहीं था.

एक रात वह पति के सामने तन कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं नहीं जानती थी कि आप ऐसे निकलेंगे. आप ने मेरी जिंदगी नर्क से बदतर बना दी और खुद शराब की बोतलों में उतर गए. मैं सिर्फ इस्तेमाल वाली चीज बन कर रह गई हूं, जिसे इस्तेमाल कर के कपड़े के गट्ठर की तरह कोने में फेंक दिया गया है. कभी सोचा आप ने कि मैं आप के बिना कैसे जीती हूं?’’

दोनों हथेलियों से आंसू पोंछते हुए वह आगे बोली, ‘‘मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस के लिए मैं अपना सब कुछ न्यौछावर कर रही हूं, वह शराबी निकलेगा, सितमगर निकलेगा. अरे मेरा न सही कम से कम बेटी के बारे में तो सोचते, जो इस दुनिया में अभीअभी आई है. कैसे जालिम पिता हो आप, ढंग से गोद में उठा कर प्यार भी नहीं कर सकते?’’

नशे में धुत भरत चुपचाप खड़ा पत्नी की डांट सुनता रहा. उस से ढंग से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. शरीर हवा में झूमता रहा. फिर वह बिस्तर पर जा गिरा और पलभर में खर्राटें भरने लगा. नमिता से जब बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने अपनी नाक पल्लू से ढंक ली. फिर उसे घूरती हुई बोली, ‘‘मेरी तो किस्मत ही फूटी थी जो इन से शादी कर ली. उधर मायका छूट गया और इधर… कितनी बदनसीब हूं मैं जो किसी के कंधे पर सिर रख कर आंसू भी नहीं बहा सकती.’’

उस दिन के बाद पति और पत्नी के बीच तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. पतिपत्नी के साथ हाथापाई की नौबत आने लगी. अब तो जब भी भरत शराब के नशे में घर लौटता, अकारण ही पत्नी के साथ मारपीट करता. दोनों के रोजरोज की किचकिच से घर युद्ध का मैदान बन गया था. बेटे और बहू के झगड़ों से तंग आ कर मांबाप ने उन्हें घर छोड़ कहीं और चले जाने को कह दिया. मांबाप का तल्ख आदेश सुन कर भरत गुस्से में तिलमिला उठा. उस ने सारा दोष पत्नी के मत्थे मढ़ दिया कि उसी की वजह से घर में अशांति फैली है. गलत वह खुद था न कि नमिता. लेकिन पुरुष होने के नाते उस की नजर में गलत नमिता थी, सो वह नमिता को ही मिटाने की सोचने लगा.

नमिता से छुटकारा पाने के लिए भरत ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. योजना को अंजाम देने के लिए उस ने मोहल्ले में ही थोड़ी दूरी पर किराए का एक कमरा ले लिया और पत्नी और बेटी को ले कर वहां शिफ्ट कर गया. अपनी खतरनाक योजना में उस ने अपने ड्राइवर और ठेका पट्टी की देखभाल करने वाले रामसेवक निषाद को मिला लिया. दरअसल भरत का 5 साल का ब्लौक प्रमुख का कार्यकाल पूरा हो चुका था, ब्लौक प्रमुख की कुरसी जा चुकी थी. उस के बाद उसे भरतकूप थानाक्षेत्र स्थित बरुआ सागर बांध का ठेका पट्टा मिल गया था. उस ने वहां बड़े पैमाने पर मछलियां पाल रखी थीं. मछलियों के व्यापार से उसे काफी अच्छी आय हो जाती थी. इस की देखरेख उस ने अपने विश्वासपात्र ड्राइवर रामसेवक को सौंप रखी थी. वह मछलियों की रखवाली भी करता था और मालिक की गाड़ी भी चलाता था. यह बात अक्तूबर 2019 की है.

राजनीति के मंझे खिलाड़ी भरत दिवाकर ने पत्नी नमिता से छुटकारा पाने की ऐसी योजना बना रखी थी कि किसी को उस पर शक ही न हो. उस ने ऐसा जाल इसलिए बिछाया था ताकि उस का राजनीतिक कैरियर बचा रहे. इस के बाद उस ने पत्नी को विश्वास में लेना शुरू कर दिया. भरत ने नमिता को यकीन दिलाते हुए कहा, ‘‘नमिता, बीते दिनों जो हुआ उसे भूल जाओ. अब से हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं, जहां हमारे अलावा चौथा कोई नहीं होगा. जो हुआ, अब वैसा कभी नहीं होगा. इसीलिए मैं ने घर वालों से दूर हो कर यहां अलग रहने का फैसला किया है.’’

पति की बातें सुन कर नमिता की आंखें भर आईं. दरअसल, भरत चाहता था कि नमिता उस के बिछाए जाल में चारों ओर से घिर जाए. अपने मकसद में वह कामयाब भी हो गया था. भोलीभाली नमिता पति के छलावे को नहीं समझ पाई थी. अपनी योजना के अनुसार भरत ने 14 जनवरी, 2020 को बेटी तान्या को बड़ी साली के घर पहुंचा दिया. रात 8 बजे के करीब भरत नमिता से बोला, ‘‘एक दोस्त के यहां पार्टी है. पार्टी में शहर के बड़ेबड़े नामचीन लोग शामिल हो रहे हैं, तुम भी अच्छे कपड़े पहन कर तैयार हो जाओ. बहुत दिन से मैं ने तुम्हें कहीं घुमाया भी नहीं है. आज पार्टी में चलते हैं.’’

यह सुन कर नमिता खुश हुई. वह फटाफट तैयार हो गई. रात करीब 9 बजे दोनों अपनी कार से मुलायमनगर की एक मिठाई की दुकान पर पहुंचे. वहां से भरत ने मिठाई खरीदी. यहीं पर भरत से एक चूक हो गई. मिठाई खरीदते समय उस की और नमिता की एक साथ की तसवीर सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई. यही नहीं, वहां से निकलने के बाद दोनों ने एक होटल में खाना भी खाया. वहां भी खाना खाते समय दोनों सीसीटीवी में कैद हो गए. इसी सीसीटीवी फुटेज के जरिए पुलिस की जांच को गति मिली थी. बहरहाल, खाना खाने के बाद भरत और नमिता होटल से निकले. भरत ने ड्राइवर रामसेवक को इशारों में संकेत दिया कि कार बरुआ सागर बांध की ओर ले चले.

मालिक का इशारा पा कर उस ने यही किया. रामसेवक कार ले कर सुनसान इलाके में स्थित बांध की ओर चल दिया. भरत और नमिता कार की पिछली सीट पर बैठे थे. गाड़ी जैसे ही शहर से दूर सुनसान इलाके की ओर बढ़ी, तो निर्जन रास्ते को देख नमिता को पति पर शक हुआ क्योंकि उस ने पार्टी में जाने की बात कही थी. नमिता ने जैसे ही सवालिया नजरों से पति की ओर देखा तो वह समझ गया कि नमिता खतरे को भांप चुकी है. आखिर उस ने चलती कार में ही अपने मजबूत हाथों से नमिता का गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया. योजना के मुताबिक, भरत ने पहले से ही कार की पीछे वाली सीट के नीचे एक प्लास्टिक का बड़ा बोरा रख लिया था. यही नहीं, बरुआ सागर बांध में लाश ठिकाने लगाने के लिए दिन में ही एक नाव की व्यवस्था भी कर ली थी.

इस काम के लिए भरत ने हरिहरपुर निवासी नाव मालिक रामसूरत से एक नाव की व्यवस्था करने के लिए कह दिया था. बदले में उस ने रामसूरत को कुछ रुपए एडवांस में दे दिए थे. रामसूरत ने भरत से नाव के उपयोग के बारे में पूछा तो उस ने डांट कर चुप करा दिया था. सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. लाश ठिकाने लगाने के लिए भरत रात 12 बजे के करीब कार ले कर बरुआ सागर बांध पहुंचा. बांध से कुछ दूर पहले रामसेवक ने कार रोक दी. दोनों ने मिल कर कार में से नमिता की लाश नीचे उतारी और उसे बोरे में भर दिया. फिर बोरे के मुंह को प्लास्टिक की एक रस्सी से कस कर बांध दिया.

उस के बाद बोरे के एक सिरे को भरत ने पकड़ लिया और दूसरा सिरा रामसेवक ने. दोनों बोरे को ले कर नाव के करीब पहुंच गए. वहां दोनों ने एक दूसरे बोरे में करीब एक क्विंटल का बड़ा पत्थर भर दिया, जिसे लाश की कमर में बांध दिया गया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि लाश उतरा कर पानी के ऊपर न आने पाए और राज हमेशा के लिए पानी में दफन हो कर रह जाए. भरत दिवाकर और रामसेवक ने दोनों बोरों को उठा कर नाव में रख दिया. फिर दोनों नाव में इत्मीनान से बैठ गए. नाव की पतवार रामसेवक ने संभाल रखी थी. कुछ ही देर में दोनों नाव ले कर बीच मंझधार में पहुंच गए, जहां अथाह गहराई थी. भरत ने रामसेवक को इशारा किया कि लाश यहीं ठिकाने लगा दी जाए.

इत्तफाक देखिए, जैसे ही दोनों ने लाश नाव से गिरानी चाही, नाव में एक तरफ अधिक भार हो गया और वह पानी में पलट गई. नाव के पलटते ही लाश सहित वे दोनों भी पानी में जा गिरे. रामसेवक तैरना जानता था, इसलिए वह तैर कर पानी से निकल आया और बांध पर खड़े हो कर मालिक भरत की बाट जोहने लगा. घंटों बीत जाने के बाद जब वह पानी से बाहर नहीं आया तो रामसेवक डर गया कि कहीं मालिक पानी में डूब तो नहीं गए. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो वह अपने घर लौट आया और इत्मीनान से सो गया. अगली सुबह यानी 15 जनवरी को उस ने भरत की छोटी बहन सुमन को फोन कर के भरत के बरुआ सागर बांध में डूब जाने की जानकारी दी.

इधर बेटी के अचानक लापता होने से परेशान पिता यशवंत सिंह ने भरत दिवाकर को आरोपी मानते हुए भरतकूप थाने में शिकायत दर्ज करा दी. बाद में बरुआ सागर बांध से नमिता की लाश पाए जाने के बाद पुलिस ने भरत दिवाकर और रामसेवक निषाद के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. घटना के 9 दिनों बाद उसी बरुआ सागर से भरत दिवाकर की भी सड़ीगली लाश बरामद हुई, जो भोलीभाली पत्नी नमिता की हत्या को राज बनाना चाहता था. प्रकृति में भरत दिवाकर को अपने तरीके से अनोखी मौत दे कर नमिता को हाथोंहाथ इंसाफ दे दिया.

—कथा में कुछ नाम परिवर्तित हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP Crime : शादी से इनकार करने पर प्रेमी ने प्रेमिका का गला कैंची से काट डाला

UP Crime : अगर किसी युवक या युवती का प्रेम मिलन हुआ हो, लेकिन बाद में राहें अलगअलग हो गई हों तो कभी आमनेसामने पड़ने पर उन की मोहब्बत के मुरझाए फूल फिर से मुसकराने लगते हैं. लेकिन शादीशुदा होने की स्थिति में यह घातक होता है. सोना और आशीष को भी पहली मोहब्बत का…

उस दिन मार्च, 2020 की 17 तारीख थी. शाम के 4 बजे थे. मकान मालकिन पुष्पा किचन में चाय बनाने जा रही थी. तभी किसी ने डोरबैल बजाई. पुष्पा ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर 2 महिलाएं खड़ी थीं. उन में एक जवान थी, जबकि दूसरी अधेड़ उम्र की थी. पुष्पा ने अजनबी महिलाओं को देख कर परिचय पूछा तो उन्होंने कोई जवाब न दे कर पर्स से एक फोटो निकाली और पुष्पा को दिखाते हुए पूछा, ‘‘क्या यह आप के मकान में रहता है?’’

पुष्पा ने फोटो गौर से देखी फिर बोली, ‘‘हां, यह तो आशीष है. अपनी पत्नी सोना के साथ पिछले 6 महीने से हमारे मकान में रह रहा है. उस की पत्नी सोना कहीं बाहर काम करती है. इसलिए सप्ताह में 2-3 दिन ही आ पाती है. आज वह 12 बजे घर आई थी. आशीष भी घर पर था, लेकिन आधा घंटा पहले कहीं चला गया है.’’

मकान मालकिन पुष्पा से पूछताछ करने के बाद दोनों महिलाएं वापस चली गईं. दरअसल, ये महिलाएं गीता और उन की बहू ज्योति थीं, जो सरायमीता पनकी, कानपुर की रहने वाली थीं. सोना गीता की बेटी थी और आशीष सोना का प्रेमी था. आशीष ने कुछ देर पहले ज्योति के मोबाइल पर काल कर के जानकारी दी थी कि उस ने उस की ननद सोना को मार डाला है और उस की लाश दबौली निवासी पुष्पा के मकान में किराए वाले कमरे में पड़ी है, आ कर लाश ले जाओ.  ज्योति ने यह बात अपनी सास गीता को बताई. फिर सासबहू जानकारी लेने के लिए पुष्पा के मकान पर पहुंची, लेकिन वहां हत्या जैसी कोई हलचल न होने से दोनों वापस लौट आई थीं.

चाय पीतेपीते पुष्पा के मन में आशीष को ले कर कुछ शंका हुई तो वह पहली मंजिल स्थित उस के कमरे पर पहुंची. कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी और अंदर से खून बह कर बाहर की ओर आ रहा था. खून देख कर पुष्पा चीख पड़ी. मालकिन की चीख सुन कर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू तथा शिवानंद आ गए. इस के बाद पुष्पा ने कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर झांका तो उन की आंखें फटी रह गईं. कमरे में फर्श पर खून से लथपथ सोना की लाश पड़ी थी. लाश से खून रिस कर कमरे के बाहर तक आ गया था. सोना की लाश देख कर किराएदार भी भयभीत हो उठे. इस के बाद तो हत्या की खबर थोड़ी देर में पूरे दबौली (उत्तर) में फैल गई. लोग पुष्पा के मकान के बाहर जुटने लगे.

शाम लगभग 5 बजे पुष्पा ने थाना गोविंद नगर फोन कर के किराएदार आशीष की पत्नी सोना की हत्या की जानकारी दे दी. हत्या की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने इस घटना से अधिकारियों को अवगत कराया और पुलिस टीम के साथ दबौली (उत्तर) स्थित पुष्पा के मकान पर जा पहुंचे. मकान के बाहर भीड़ जुटी थी. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. भीड़ को पीछे हटा कर थानाप्रभारी अनुराग सिंह पुलिस टीम के साथ मकान की पहली मंजिल स्थित उस कमरे में पहुंचे जहां लाश पड़ी थी. सोना की हत्या बड़ी निर्दयता से की गई थी. लाश के पास ही खून से सनी कैंची तथा मोबाइल पड़ा था. देखने से लग रहा था कि हत्या के पहले मृतका से जोरजबरदस्ती की गई थी. विरोध करने पर उस के पति आशीष ने कैंची से वार कर उस की हत्या कर दी थी. न केवल सोना के पेट में कैंची घोंपी गई थी, बल्कि उस के गले को भी कैंची से छेदा गया था.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसएसपी अनंत देव, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता और सीओ (गोविंद नगर) मनोज कुमार गुप्ता भी वहां आ गए. अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और इंसपेक्टर अनुराग सिंह से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. फोरैंसिक टीम ने निरीक्षण कर घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए. कैंची, दरवाजा और मेज पर रखे गिलास से फिंगरप्रिंट उठाए. जमीन पर फैले खून का नमूना भी जांच हेतु लिया गया.

निरीक्षण के दौरान सीओ मनोज कुमार गुप्ता की नजर मेज पर रखे लेडीज पर्स पर पड़ी. उन्होंने पर्स की तलाशी ली तो उस में साजशृंगार का सामान, कुछ रुपए तथा एक आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड में युवती का नाम सोना सोनकर, पिता का नाम मुन्ना लाल सोनकर, निवासी सराय मीता, पनकी कानपुर दर्ज था. गुप्ताजी ने 2 सिपाहियों को आधार कार्ड में दर्ज पते पर सूचना देने के लिए भेज दिया. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने मकान मालकिन पुष्पा देवी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति देवकीनंदन की मृत्यु हो चुकी है. 2 बेटे हैं, अजय व राकेश, जो बाहर नौकरी करते हैं. मकान के भूतल पर वह स्वयं रहती है, जबकि पहली मंजिल पर बने कमरों को किराए पर उठा रखा है.

मकान में 4 किराएदार शिवानंद, कमल, सुनील व टिंकू पहले से रह रहे थे. 6 महीना पहले आशीष नाम का युवक एक युवती के साथ किराए पर कमरा लेने आया था. उस ने उस युवती को अपनी पत्नी बताया, साथ ही यह भी बताया कि उस की पत्नी सोना दूरदराज नौकरी करती है. वह सप्ताह में 2 या 3 दिन ही आया करेगी. मैं ने उसे रूम का किराया 1600 रुपए बताया तो वह राजी हो गया और किराएदार के रूप में रहने लगा. उस की पत्नी सोना सप्ताह में 2 या 3 दिन आती थी. पुष्पा ने बताया कि आज 12 बजे सोना आशीष से मिलने आई थी. उस के बाद कमरे में क्या हुआ, उसे मालूम नहीं. आशीष 3 बजे चला गया था. उस के जाने के बाद 2 महिलाएं उस के बारे में पूछताछ करने आईं.

लेकिन आशीष रूम में नहीं था, यह जान कर वे दोनों चली गईं. महिलाओं की बातों से मुझे कुछ शक हुआ, तो मैं आशीष के रूम पर गई. वहां कमरे के बाहर खून देख कर मैं चीखी तो बाकी किराएदार आ गए. उस के बाद मैं ने यह सूचना पुलिस को दे दी. घटनास्थल पर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू व शिवानंद भी मौजूद थे. सीओ मनोज कुमार गुप्ता ने उन से पूछताछ की तो उन सब ने बताया कि आशीष ने उन से सोना को अपनी पत्नी बताया था. वह हफ्ते में 2-3 बार आती थी. कमरा बंद कर दोनों खूब हंसतेबतियाते थे, कभीकभी उन दोनों में तूतूमैंमैं भी हो जाती थी. आज सोना 12 बजे आई थी. बंद कमरे में दोनों का झगड़ा हो रहा था. तेज आवाजें आ रही थीं. लेकिन हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया. घटना की जानकारी तब हुई, जब मकान मालकिन चीखी.

किराएदारों से पूछताछ में एक किराएदार कमल ने बताया कि आशीष ने एक बार बताया था कि वह कानपुर के गजनेर का रहने वाला है. सीओ मनोज कुमार गुप्ता अभी किराएदारों से पूछताछ कर ही रहे थे कि मृतका सोना की मां गीता, बहन बरखा, निशू, भाभी ज्योति तथा भाई विक्की, सूरज, सनी और पीयूष आ गए. सोना का शव देख सभी दहाड़ मार कर रोने लगे. किसी तरह पुलिस अधिकारियों ने उन्हें शव से अलग किया और फिर पूछताछ की. एसपी अपर्णा गुप्ता को मृतका की मां गीता ने बताया कि 3 साल पहले उन की बेटी सोना की आशीष से दोस्ती हो गई थी. दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. जब उसे दोनों की दोस्ती की बात पता चली तो उस ने सोना का विवाह कर दिया.

लेकिन सोना की अपने पति व ससुरालियों से नहीं पटी, वह मायके आ कर रहने लगी. अपने खर्चे के लिए उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में नौकरी कर ली. इस बीच आशीष ने सोना को फिर अपने प्रेम जाल में फंसा लिया और वह उसे अपने कमरे पर बुलाने लगा. कभीकभी वह घर भी आ जाता था. हम सब उसे अच्छी तरह जानते थे. पिछले कुछ दिनों से वह सोना पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन सोना शादी को राजी नहीं थी. आज भी आशीष ने सोना को अपने रूम में बुलाया और शादी का दबाव डाला. उस के न मानने पर आशीष ने जोरजबरदस्ती की और बेटी को मार डाला. सोना को मौत की नींद सुलाने के बाद आशीष ने मेरी बहू ज्योति के मोबाइल पर हत्या की सूचना दी कि आ कर लाश ले जाओ. तब उस के सभी बेटे काम पर गए थे.

वह बहू ज्योति को साथ ले कर दबौली आई और मकान मालकिन पुष्पा से मिली. लेकिन पुष्पा ने यह कह कर लौटा दिया कि आशीष अभी घर पर नहीं है. पुष्पा अगर हमें आशीष के कमरे तक जाने देती तो शायद उस की बेटी की जान बच जाती. पूछताछ के बाद एसपी अपर्णा गुप्ता ने थानाप्रभारी अनुराग सिंह को आदेश दिया कि वह मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजे और रिपोर्ट दर्ज कर के कातिल आशीष को गिरफ्तार करें. उस की गिरफ्तारी के लिए उन्होंने सीओ मनोज कुमार गुप्ता के निर्देशन में एक पुलिस टीम भी गठित कर दी. पुलिस अधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने घटनास्थल से बरामद खून सनी कैंची, सोना का मोबाइल फोन और पर्स आदि चीजें जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लीं.

इस के बाद मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भेज दिया गया. थाने लौट कर अनुराग सिंह ने मृतका के भाई सूरज की तहरीर पर धारा 302 आईपीसी के तहत आशीष के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस टीम आशीष की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गई. पुलिस टीम ने मृतका सोना का मोबाइल फोन खंगाला तो आशीष का नंबर मिल गया, जिसे सर्विलांस पर लगा दिया गया. सर्विलांस से उस की लोकेशन गीतानगर मिली. पुलिस टीम रात 2 बजे गीतानगर पहुंची, लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही आशीष का फोन स्विच्ड औफ हो गया, जिस से उस की लोकेशन मिलनी बंद हो गई. निराश हो कर पुलिस टीम वापस लौट आई.

निरीक्षण के दौरान एक किराएदार ने सीओ मनोज कुमार गुप्ता को बताया था कि आशीष कानपुर देहात के गजनेर कस्बे का रहने वाला है. इस पर उन्होंने एक पुलिस टीम को गजनेर भेज दिया, जहां आशीष की तलाश की गई. सादे कपड़ों में गई पुलिस टीम ने दुकानदारों व अन्य लोगों को आशीष की फोटो दिखा कर पूछताछ की. लेकिन फोटो में आशीष चश्मा लगाए हुए था, जिस की वजह से लोग उसे पहचान नहीं पा रहे थे. पुलिस टीम पूछताछ करते हुए जब मुख्य रोड पर आई तो एक पान विक्रेता ने फोटो पहचान ली. उस ने बताया कि वह अजय ठाकुर है जो कस्बे के लाल सिंह का छोटा बेटा है. आशीष के पहचाने जाने से पुलिस को अपनी मेहनत रंग लाती दिखी. पुलिस टीम लाल सिंह के घर पहुंची. पुलिस ने लाल सिंह को फोटो दिखाई तो वह बोला, ‘‘यह फोटो मेरे बेटे आशीष सिंह की है.

घर के लोग उसे अजय ठाकुर के नाम से बुलाते हैं. आशीष कानपुर में नौकरी करता है. मेरा बड़ा बेटा मनीष सिंह भी गीतानगर, कानपुर में रहता है. पर आप लोग हैं कौन और आशीष की फोटो क्यों दिखा रहे हैं. उस ने कोई ऐसावैसा काम तो नहीं कर दिया?’’

पुलिस टीम ने अपना परिचय दे कर बता दिया कि उन का बेटा सोना नाम की एक युवती की हत्या कर के फरार हो गया है. पुलिस उसी की तलाश में आई है. अगर वह घर में छिपा हो तो उसे पुलिस के हवाले कर दो, वरना खुद भी मुसीबत में फंस जाओगे. पुलिस की बात सुन कर लाल सिंह घबरा कर बोला, ‘‘हुजूर, आशीष घर पर नहीं आया है. न ही उस ने मुझे कोई जानकारी दी है.’’

यह सुन कर पुलिस ने लाल सिंह को हिरासत में ले लिया. चूंकि लाल सिंह का बड़ा बेटा गीतानगर में रहता था और आशीष के मोबाइल फोन की लोकेशन भी गीता नगर की ही मिली थी. पुलिस को शक हुआ कि अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह अपने बड़े भाई के घर में छिपा हो सकता है. पुलिस टीम लाल सिंह को साथ ले कर वापस कानपुर आ गई और उस के बताने पर गीता नगर स्थित बड़े बेटे मनीष के घर छापा मारा. छापा पड़ने पर घर में हड़कंप मच गया. पिता के साथ पुलिस देख कर आशीष ने भागने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और थाना गोविंद नगर ले आई. थाना गोविंद नगर में जब आशीष सिंह से सोना की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. आशीष ने बताया कि शादी के पहले से दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. सोना के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उस की शादी कर दी, लेकिन सोना की पति से पटरी नहीं बैठी.

वह ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी. उस के बाद दोनों के बीच फिर से अवैध संबंध बन गए. सोना के कहने पर ही उस ने किराए का कमरा लिया था, जहां दोनों का शारीरिक मिलन होता था. आशीष ने बताया कि घटना वाले दिन सोना 12 बजे आई थी. आशीष ने उस से कहा कि वह पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन वह नहीं मानी. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ. झगड़े के बीच आशीष ने यह सोच कर प्रणय निवेदन किया कि यौन प्रक्रिया में गुस्सा शांत हो जाता है, लेकिन सोना ने उसे दुत्कार दिया. शादी की बात न मानने और प्रणय निवेदन ठुकराने की वजह से आशीष को गुस्सा आ गया और उस ने पास रखी कैंची उठा कर सोना के पेट में घोंप दी. फिर उसी कैंची से उस का गला भी छेद डाला. हत्या करने के बाद वह फरार हो गया था.

चूंकि आशीष सिंह ने सोना की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था और पुलिस आला ए कत्ल भी बरामद कर चुकी थी, इसलिए थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

कानपुर महानगर के पनकी थाना क्षेत्र में एक मोहल्ला है सराय मीता. मुन्नालाल सोनकर अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. मुन्नालाल सोनकर नगर निगम में सफाई कर्मचारी था. उसे जो वेतन मिलता था, उसी से परिवार का भरणपोषण होता था. मुन्नालाल अपनी बड़ी बेटी बरखा की शादी कर चुका था. बरखा से छोटी सोना 18 साल की हो गई थी. वह चंचल स्वभाव की थी. पढ़ाईलिखाई में मन लगाने के बजाए वह सजनेसंवरने पर ज्यादा ध्यान देती थी. नईनई फिल्में देखना, सैरसपाटा करना और आधुनिक फैशन के कपड़े खरीदना उस का शौक था. मुन्नालाल सीधासादा आदमी था. रहनसहन भी साधारण था. वह बेटी की फैशनपरस्ती से परेशान था.

सोना अपनी मां गीता के साथ दादानगर स्थित एक लोहा फैक्ट्री में काम करती थी. वहां से उसे जो वेतन मिलता था, उसे वह अपने फैशन पर खर्च करती थी. जिद्दी स्वभाव की सोना को बाजार में जो कपड़ा या अन्य सामान पसंद आ जाता, वह उसे खरीद कर ले आती. मातापिता रोकतेटोकते तो वह टका सा जवाब दे देती, ‘‘मैं ने सामान अपने पैसे से खरीदा है. फिर ऐतराज क्यों?’’

उस के इस जवाब से सब चुप हो जाते थे. सोना की अपनी भाभी ज्योति से खूब पटरी बैठती थी. सोना दादानगर स्थित जिस लोहा फैक्ट्री में काम करती थी, आशीष सिंह उसी में सुपरवाइजर था. वह मूलरूप से जिला कानपुर के देहात क्षेत्र के कस्बा गजनेर का रहने वाला था. उस का घरेलू नाम अजय था. लोग उसे अजय ठाकुर कहते थे. उस के पिता गांव में किसानी करते थे. सोना लोहा फैक्ट्री में पैकिंग का काम करती थी. निरीक्षण के दौरान एक रोज आशीष सिंह की निगाह खूबसूरत सोना पर पड़ी. दोनों की नजरें मिलीं तो दोनों कुछ देर तक आकर्षण में खोए रहे. जब आकर्षण टूटा तो सोना मुसकरा दी और नजरें झुका कर पैकिंग में जुट गई. नजरें मिलने का सुखद अहसास दोनों को हुआ.

अगले दिन सोना कुछ ज्यादा ही बनसंवर कर आई. आशीष उस के पास पहुंचा और इशारे से उसे अपने औफिस के कमरे में आने को कहा. वह उस के औफिस में आई तो आशीष ने उस से कुछ कहा, जिसे सुन कर सोना सकपका गई. वह यह कह कर वहां से चली गई कि कोई देख लेगा. सोना की ओर से हरी झंडी मिली तो आशीष बहुत खुश हुआ. आशीष सिंह पढ़ालिखा हृष्टपुष्ट युवक था. वह अच्छाखासा कमा भी रहा था. लेकिन वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप था. उस की पत्नी से नहीं बनी तो वह घाटमपुर स्थित अपने मायके में रहने लगी थी. आशीष सिंह ने सोना से यह बात छिपा ली थी. उस ने उसे खुद को कुंवारा बताया था.

सोना सजीले युवक आशीष से मन ही मन प्यार करने लगी और मां से नजरें बचा कर आशीष से फैक्ट्री के बाहर एकांत में मिलने लगी. दोनों के बीच प्यार भरी बातें होने लगीं. धीरेधीरे आशीष सोना का दीवाना हो गया. सोना भी उसे बेपनाह मोहब्बत करने लगी. प्यार परवान चढ़ा तो देह की प्यास जाग उठी. एक रोज आशीष सोना को अपने दादानगर वाले कमरे पर ले गया, जहां वह किराए पर रहता था. सोना जैसे ही कमरे में पहुंची, आशीष ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. आशीष के स्पर्श से सोना को बहकते देर नहीं लगी. आशीष जो कर रहा था, सोना को उस की अरसे से तमन्ना थी. इसलिए वह भी आशीष का सहयोग करने लगी. कुछ देर बाद आशीष और सोना अलग हुए तो बहुत खुश थे. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. जब भी मन होता, शारीरिक संबंध बना लेते.

आशीष कमरे में अकेला रहता था, जिस से दोनों आसानी से मिल लेते थे. लेकिन कहते हैं कि प्यार चाहे जितना चोरीछिपे किया जाए, एक न एक दिन उस का भेद खुल ही जाता है. एक शाम सोना और गीता एक साथ फैक्ट्री से निकली तो कुछ दूर चल कर सोना बोली, ‘‘मां, मुझे गोविंद नगर बाजार से कुछ सामान लेना है. तुम घर चलो, मैं आ जाऊंगी.’’

गीता ने कुछ नहीं कहा. लेकिन उसे सोना पर संदेह हुआ. इसलिए उस ने सोना का गुप्तरूप से पीछा किया और उसे आशीष के साथ रंगेहाथ पकड़ लिया. गीता ने सोना को फटकारा और भलाबुरा कहा. साथ ही प्रेम से सिर पर हाथ रख कर समझाया भी, ‘‘बेटी, आशीष ठाकुर जाति का है और तुम दलित की बेटी हो. आशीष के घर वाले दलित की बेटी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए मेरी बात मानो और आशीष का साथ छोड़ दो, इसी में हम सब की भलाई है.’’

गीता का पति मुन्नालाल सफाईकर्मी था और शराब पीने का आदी. स्वभाव से वह गुस्सैल था. इसलिए गीता ने सोना की असलियत उसे नहीं बताई. इस के बजाए उस ने पति पर सोना का विवाह जल्द से जल्द करने का दबाव बनाया. इसी के साथ गीता ने सोना का फैक्ट्री जाना भी बंद करा दिया और उस पर कड़ी नजर रखने लगी. उस ने अपनी बहू ज्योति तथा बेटों को भी सतर्क कर दिया था कि वह जहां भी जाए, उस के साथ कोई न कोई रहे. मांभाइयों के कड़े प्रतिबंध के कारण सोना का आशीष से मिलन बंद हो गया. इस से सोना और आशीष परेशान हो उठे. दोनों मिलन के लिए बेचैन रहने लगे.

सोना को इस बात की भनक लग चुकी थी कि उस के घर वाले उस की शादी के लिए लड़का देख रहे हैं. जबकि सोना के सिर पर अब भी आशीष के प्यार का भूत सवार था. इधर मुन्नालाल की खोज भीमसागर पर समाप्त हुई. भीमसागर का पिता रामसागर दादानगर फैक्ट्री एरिया के मिश्रीलाल चौराहे के निकट रहता था. नहर की पटरी के किनारे उस का मकान था. रामसागर लकड़ी बेचने का काम करता था. उस का बेटा भीमसागर भी उस के काम में मदद करता था. मुन्नालाल ने भीमसागर को देखा तो उसे सोना के लिए पसंद कर लिया. हालांकि सोना ने शादी से इनकार किया, लेकिन मुन्नालाल ने उस की एक नहीं सुनी. अंतत: सन 2017 के जनवरी महीने की 10 तारीख को सोना का विवाह भीमसागर के साथ कर दिया गया.

भीमसागर की दुलहन बन कर सोना ससुराल पहुंची तो सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया. सुंदर पत्नी पा कर भीमसागर भी खुश था, वहीं उस के मातापिता भी बहू की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. सब खुश थे, लेकिन सोना खुश नहीं नहीं थी. सुहागरात को भी वह बेमन से पति को समर्पित हुई. भीमसागर तो तृप्त हो कर सो गया, पर सोना गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही. न तो उस के जिस्म की प्यास बुझी थी, न रूह की.  उस रात के बाद हर रात मिलन की रस्म निभाई जाने लगी. चूंकि सोना इनकार नहीं कर सकती थी, सो अरुचि से पति की इच्छा पूरी करती रही.

घर वालों की जबरदस्ती के चलते सोना ने विवाह जरूर कर लिया था, पर वह मन से भीमसागर को पति नहीं मान सकी थी. अंतरंग क्षणों में वह केवल तन से पति के साथ होती थी, उस का प्यासा मन प्रेमी में भटक रहा होता था. 3-4 महीने तक सोना ने जैसेतैसे पति से निभाया, उस के बाद दोनों के बीच कलह होने लगी. कलह का पहला कारण सोना का एकांत में मोबाइल फोन पर बातें करना था. भीमसागर को शक हुआ कि सोना का शादी से पहले कोई यार था, जिस से वह चोरीछिपे एकांत में बातें करती है. दूसरा कारण उस की फैशनपरस्ती तथा घर से बाहर जाना था. भीमसागर के मातापिता चाहते थे कि बहू मर्यादा में रहे और घर के बाहर कदम न रखे.

लेकिन सोना को घर की चारदीवारी में रहना पसंद नहीं था. वह स्वच्छंद हो कर घूमती थी. इन्हीं 2 बातों को ले कर सोना का भीमसागर और ससुराल के लोगों से झगड़ा होने लगा. आजिज आ कर साल बीततेबीतते सोना ससुराल छोड़ कर मायके आ कर रहने लगी.  गीता ने सोना को बहुत समझाया और ससुराल भेजने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं मानी. 6 महीने तक सोना घर में रही, उस के बाद उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में आया की नौकरी कर ली. वह सुबह 8 बजे घर से निकलती, फिर शाम 5 बजे तक वापस आती. इस तरह वह मांबाप पर बोझ न बन कर खुद अपना भार उठाने लगी.

एक शाम सोना स्कूल से लौट रही थी कि दादानगर चौराहे पर उस की मुलाकात आशीष से हो गई. बिछड़े प्रेमी मिले तो दोनों खुश हुए. आशीष उसे नजदीक के एक रेस्तरां में ले गया, जहां दोनों ने एकदूसरे को अपनी व्यथाकथा सुनाई. बातोंबातों में आशीष उदास हो कर बोला, ‘‘अरमान मैं ने सजाए और तुम ने घर किसी और का बसा दिया.’’

सोना के मुंह से आह सी निकली, ‘‘हालात की मजबूरी इसी को कहते हैं. घर वालों ने मेरी मरजी के बिना शादी कर दी. मैं ने मन से उसे कभी पति नहीं माना. साल बीतते उस से मेरा मनमुटाव हो गया और मैं उसे छोड़ कर मायके आ गई.’’ आशीष मन ही मन खुश हुआ. फिर बोला, ‘‘क्या अब भी तुम मुझे पहले जैसा प्यार करती हो?’’

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है. सच तो यह है कि मैं तुम्हें कभी भुला ही नहीं पाई. सुहागरात को भी तुम्हारी ही याद आती रही.’’ इस के बाद सोना और आशीष का फिर मिलन होने लगा. दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता भी बन गया. आशीष कभीकभी सोना के घर भी जाने लगा. गीता को आशीष का घर आना अच्छा तो नहीं लगता था, पर उसे मना भी नहीं कर पाती थी. हालांकि गीता निश्चिंत थी कि सोना की शादी हो गई है. अब आशीष जूठे बरतन में मुंह नहीं मारेगा. पर यह उस की भूल थी. सोना के कहने पर आशीष ने अगस्त, 2019 में दबौली (उत्तरी) में किराए पर एक कमरा ले लिया. कमरा पसंद करने सोना भी आशीष के साथ गई थी. उस ने मकान मालकिन को बताया कि सोना उस की पत्नी है. मकान में अन्य किराएदार थे, उन को भी आशीष ने सोना को अपनी पत्नी बताया था.

सोना अब इस कमरे पर आशीष से मिलने आने लगी. सोना के आते ही रूम का दरवाजा बंद हो जाता और शारीरिक मिलन के बाद ही खुलता. किसी को ऐतराज इसलिए नहीं होता था, क्योंकि उन की नजर में सोना उस की पत्नी थी. आशीष के रूम में आतेजाते सोना को एक रोज एक फोटो हाथ लग गई, जिस में वह एक युवती और एक मासूम बच्चे के साथ था. इस युवती और बच्चे के संबंध में सोना ने आशीष से पूछा तो वह बगलें झांकने लगा. अंतत: उसे बताना ही पड़ा कि वह शादीशुदा है और तसवीर में उस की पत्नी व बच्चा है.

लेकिन मनमुटाव के चलते पत्नी घाटमपुर स्थित अपने मायके में रह रही है. यह पता चलने के बाद सोना का आशीष से झगड़ा हुआ. लेकिन आशीष ने किसी तरह सोना को मना लिया. आशीष को लगा कि सच्चाई जानने के बाद सोना कहीं उस का साथ न छोड़ दे. इसलिए वह उस पर दबाव डालने लगा कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन सोना ने यह कह कर मना कर दिया कि पहले तुम अपनी पत्नी को तलाक दो. तभी मैं अपने पति से तलाक लूंगी. इस के बाद तलाक को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा होने लगा.

17 मार्च की दोपहर 12 बजे सोना दबौली स्थित आशीष के रूम पर पहुंची. आशीष ने उसे फोन कर के बुलाया था. सोना के आते ही आशीष ने रूम बंद कर लिया फिर दोनों में बातचीत होने लगी. बातचीत के दौरान आशीष ने सोना से कहा कि वह अपने पति से तलाक ले कर उस से शादी कर ले, पर सोना इस के लिए राजी नहीं हुई. उलटे पलटवार करते हुए वह बोली, ‘‘पहले तुम अपनी पत्नी से तलाक क्यों नहीं लेते, एक म्यान में 2 तलवारें कैसे रहेंगी?’’

तलाक को ले कर दोनों में गरमागरम बहस होने लगी. बहस के बीच आशीष ने प्रणय निवेदन किया, जिसे सोना ने ठुकरा दिया. इस पर आशीष जबरदस्ती पर उतर आया और सोना के कपड़े खींच कर उसे अर्धनग्न कर दिया. सोना भी बचाव में भिड़ गई. तलाक लेने से इनकार करने और शारीरिक संबंध न बन पाने से आशीष का गुस्सा आसमान पर जा पहुंचा. उस ने दीवार में बनी अलमारी में रखी कैंची उठाई और सोना के पेट में घोंप दी. सोना पेट पकड़ कर फर्श पर तड़पने लगी. उसी समय आशिष ने सोना के गले को कैंची से छेद डाला. सोना पेट पकड़ कर तड़पने लगी. उसी समय उस ने सोना के गले को कैंची से छेद डाला. कुछ देर बाद सोना ने दम तोड़ दिया.

सोना की हत्या करने के बाद आशीष ने कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद की और मकान के बाहर आ गया. बाहर आ कर उस ने सोना की भाभी ज्योति को सोना की हत्या की जानकारी दी, फिर फरार हो गया. इस घटना का भेद तब खुला, जब मकान मालकिन पुष्पा पहली मंजिल पर स्थित आशीष के कमरे पर पहुंची. पुष्पा ने इस घटना की सूचना थाना गोविंद नगर को दे दी. जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या की बात सामने आई.  20 मार्च, 2020 को थाना गोविंद नगर पुलिस ने अभियुक्त आशीष सिंह को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट ए.के. सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Lucknow News : शादी कराने का झांसा देकर बेटी के प्रेमी को घर बुलाया और कर दी हत्या

Lucknow News : अब्दुल मलिक अगर सूफिया से प्यार न करता होता तो उस के बुलावे पर उस के घर न जाता. सूफिया तो उस की दीवानी थी ही, क्योंकि वह घर वालों के अत्याचार सह कर भी अपनी बात पर अड़ी थी. अपने इसी प्यार की खातिर दोनों ने…

अब्दुल मलिक का प्रौपर्टी डीलिंग का काम था, लेकिन कोरोना महामारी के चलते पूरे देश में लौकडाउन था. अब्दुल मलिक का औफिस भी बंद था. 4 अप्रैल, 2020 को शाम के वक्त वह घर में ही था कि उस के मोबाइल पर किसी का फोन आया. अब्दुल मलिक ने स्क्रीन पर नजर डाली तो उस के चेहरे पर मुसकान दौड़ गई, नंबर उस की प्रेमिका सूफिया का था. घर वालों के सामने वह प्रेमिका से खुल कर बात नहीं कर सकता था, लिहाजा कमरे से बाहर निकल गया. अब्दुल मलिक लखनऊ के थाना सआदतगंज के नौबस्ता मंसूरनगर में रहता था. उस की प्रेमिका सूफिया का घर उस के घर से करीब 100 मीटर दूर था.

बाहर जा कर वह सूफिया से धीरेधीरे बात करने लगा. सूफिया ने उसे बताया कि उस के अब्बू और भाई ने उस की पिटाई की है और वह उस से कुछ बात करना चाहते हैं. उन्होंने तुम्हें अभी घर बुलाया है, थोड़ी देर के लिए घर आ जाओ. सूफिया की बात सुन कर अब्दुल मलिक परेशान हो गया. उस ने उसी समय फोन कर के अपने दोस्त अब्दुल वसी को बुलाया और मोटरसाइकिल पर दोस्त को ले कर सूफिया के घर पहुंच गया. सूफिया के घर उस के परिवार के लोगों के अलावा उस के ताऊ सुलेमान भी अपने दोनों बेटों रानू और तानू के साथ मौजूद थे. अब्दुल मलिक और अब्दुल वसी जब वहां पहुंचे तो घर में शांति थी. वहां मौजूद सब लोग उन दोनों को इस तरह से देखने लगे जैसे उन्हें उन के ही आने का इंतजार हो. सूफिया भी अपने कमरे से बाहर निकल आई.

सूफिया के बाहर आते ही उस का भाई दानिश भड़क उठा. वह तेज आवाज में बोला, ‘‘अभी तुझे इतना समझाया था, तेरी समझ में कुछ नहीं आया जो यार की आवाज सुनते ही बाहर आ गई. लगता है तू ऐसे नहीं मानेगी. अब देखता हूं कि तुझे बचाने के लिए कौन आता है.’’

इतना कह कर वह सूफिया पर टूट पड़ा और कमरे में रखे डंडे से उस की पिटाई करने लगा. घर वालों ने कुछ देर पहले ही उस की काफी पिटाई की थी, जिस से उस का बदन दुख रहा था. फिर से पिटाई होने पर वह बुरी तरह कराहने लगी. उस का दुख और कराहट अब्दुल मलिक से देखी नहीं गई. लिहाजा वह प्रेमिका को बचाने के लिए आगे आया. जैसे ही वह सूफिया को बचाने के लिए बढ़ा, तभी दानिश बहन को छोड़ अब्दुल मलिक पर टूट पड़ा. सूफिया ने मलिक को बचाने का प्रयास किया तो उस के पिता उस्मान और ताऊ सुलेमान आ गए. उन दोनों ने सूफिया को धक्का दे कर अलग गिरा दिया. फिर वे दोनों भी मलिक पर टूट पड़े.

अपने दोस्त को बचाने के लिए वसी आगे आया तो सुलेमान के दोनों बेटे रानू और तानू ने अब्दुल वसी को दबोच लिया और उस की पिटाई करने लगे. वे सब अब्दुल मलिक और वसी पर अपनी भड़ास उतार रहे थे. सूफिया लहूलुहान हो चुकी थी. इतने पर भी वह किसी तरह अपने प्रेमी को बचाने की कोशिश करती रही. पर उस की कोशिश नाकामयाब रही. इसी दौरान अब्दुल वसी किसी तरह उन के चंगुल से छूट कर वहां से निकला. वहां से भाग कर वह सीधे थाना सआदतगंज पहुंचा, क्योंकि नौबस्ता मंसूरनगर इसी थाने के अंतर्गत आता है. लौकडाउन वैसे ही पुलिस का सिरदर्द बना हुआ. जिस समय अब्दुल वसी सआदतगंज थाने पहुंचा, उस समय एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) विकासचंद्र त्रिपाठी, एसीपी अनिल कुमार यादव के साथ सर्किल के पुलिसकर्मियों के साथ मीटिंग कर रहे थे.

अब्दुल वली ने यह जानकारी एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) विकासचंद्र त्रिपाठी को दी. वह खुद भी घायल था. एडिशनल डीसीपी ने मामले को गंभीरता से लेते हुए थानाप्रभारी को तुरंत मौकाएवारदात पर रवाना कर दिया. इस के बाद वसी ने फोन कर के यह सूचना अपने दोस्त अब्दुल मलिक के पिता अब्दुल करीम को भी दे दी. उस्मान और उस के घर के लोगों द्वारा अपने बेटे की पिटाई करने की खबर सुन कर करीम भौंचक रह गए. वह भी परिवार के लोगों के साथ गुस्से में उस्मान के घर की तरफ दौड़े. उस के घर वाले जब उस्मान के घर पहुंचे तो पहले ही वहां पुलिस मौजूद थी. लेकिन वहां का माहौल बड़ा गमगीन था. घर में अब्दुल मलिक और उस की प्रेमिका सूफिया की लाशें पड़ी थीं. दोनों ही लाशें खून से लथपथ थीं. खून लगे डंडों के अलावा वहां खून सनी ईंटें भी पड़ी थीं. लग रहा था कि दोनों की हत्या डंडों से पीटपीट कर की गई थी.

जवान बेटे की लाश देख कर अब्दुल करीम का कलेजा गले में आ गया. वह बिलखबिलख कर रोने लगे. पुलिस ने उस्मान से उन दोनों हत्याओं के बारे में पूछताछ की तो उस ने बड़ी सहजता से स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी बेटी सूफिया और अब्दुल मलिक की हत्या की है. पुलिस ने उस्मान को उसी समय हिरासत में ले लिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इस दोहरे हत्याकांड की जानकारी दे दी. सूचना पा कर एडिशनल डीसीपी (पश्चिम) विकासचंद्र त्रिपाठी और एसीपी अनिल कुमार यादव कुछ ही देर में मौके पर पहुंच गए. उन्होंने भी मौकामुआयना करने के बाद आरोपी उस्मान से पूछताछ की. पुलिस ने मौके से सारे सबूत अपने कब्जे में ले लिए.

अब्दुल मलिक की हत्या की सूचना मिलते ही उस के घर में जैसे कोहराम मच गया. उस की पत्नी तो रोतरोते बारबार बेहोश हो रही थी. महिलाएं किसी तरह उसे संभाले हुई थीं. इस दोहरे हत्याकांड की खबर सुन कर मोहल्ले के कई लोग उस्मान के घर के सामने जमा होने लगे, लेकिन लौकडाउन की वजह से उन्हें एक साथ एकत्र नहीं होने दिया गया. अधिकांश को पुलिस ने उन के घर भेज दिया. मृतकों के परिवार के जो नजदीकी लोग वहां बचे थे, उन्हें सोशल डिस्टैंस की बात कह कर एकदूसरे से एक मीटर दूर खड़े रहने के निर्देश दिए. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने अब्दुल मलिक और सूफिया के शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए.

उस्मान ने अपनी बेटी और उस के प्रेमी मलिक की हत्या खुद अकेले ही करने की बात कही थी, लेकिन यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी कि अकेला आदमी 2 जनों की हत्या, वह भी डंडे से पीट कर कैसे कर सकता है. इसलिए पुलिस ने उस्मान से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सच्चाई उगल दी. उस्मान ने बताया कि दोनों की हत्या में उस के साथ उस का बेटा दानिश भी था. पूछताछ में यह भी पता लगा कि इस दोहरे हत्याकांड में उस्मान का बड़ा भाई सुलेमान, सुलेमान के दोनों बेटे रानू व तानू भी शामिल थे. मुस्तैदी दिखाते हुए पुलिस ने दानिश को भी उसी समय हिरासत में ले लिया. इस के बाद पुलिस ने सुलेमान के घर दबिश दे कर उसे व उस के बेटे रानू को भी हिरासत में ले लिया जबकि दूसरा बेटा तानू फरार हो गया था.

चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई. उन सब से अब्दुल मलिक और सूफिया की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो उन्होंने जो कहानी बताई, वह प्यार की बुनियाद पर रचीबसी निकली—

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का एक थाना है सआदतगंज. शहर में स्थित इस थाने के अंतर्गत आता है नौबस्ता मंसूरनगर. यहीं पर अब्दुल मलिक अपनी पत्नी और 4 बच्चों के साथ रहता था. वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. उस के घर से कोई 100 मीटर दूर उस्मान और सुलेमान रहते थे. अब्दुल मलिक के पिता अब्दुल करीम और सुलेमान की आपस में अच्छी दोस्ती थी. पारिवारिक संबंधों की वजह से उन का एकदूसरे के घर आनाजाना था. अब्दुल मलिक भी उन के यहां आताजाता था. वहीं पर उस की मुलाकात उस्मान की 19 वर्षीय बेटी सूफिया से हुई. सूफिया बहुत खूबसूरत थी. हालांकि 32 वर्षीय अब्दुल मलिक शादीशुदा था, लेकिन इस के बावजूद उस का मन सूफिया पर डोल गया. उस ने उस की छवि अपने दिल में बसा ली. यह करीब एक साल पहले की बात है.

सूफिया भी जवानी के उफान पर थी. उस की हसरतें उड़ने के लिए फड़फड़ा रही थीं. चूंकि अब्दुल मलिक शादीशुदा होने की वजह से इस मामले में अनुभवी था, लिहाजा उस ने अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से उसे अपने प्यार के जाल में फंसा लिया. इस तरह दोनों के बीच प्यार का सफर शुरू हो गया. लेकिन इस सफर का अंत क्या होगा, इस बात पर दोनों में से किसी ने भी गंभीरता से नहीं सोचा. अब्दुल मलिक और उस्मान के पारिवारिक संबंधों की आड़ में उन का प्यार अमरबेल की तरह बढ़ता गया. दोनों के ही घर वालों ने अब्दुल मलिक और सूफिया की बातों को कभी शक के नजरिए से नहीं देखा. बाद में जब अब्दुल मलिक का उस्मान के घर आनेजाने का सिलसिला ज्यादा बढ़ गया और उस के आने पर सूफिया की खुशी उस के चेहरे पर झलकने लगी तो उन्हें दोनों के संबंधों पर शक होने लगा.

दोनों की पोल एक दिन तब खुली जब दानिश के एक दोस्त ने दोनों को लखनऊ के गौतमबुद्ध पार्क में झाड़ी की ओट में बैठ कर बातचीत करते देख लिया. उस दोस्त ने यह बात सूफिया के भाई दानिश को बता दी. दानिश के लिए यह बेइज्जती वाली बात थी. लिहाजा उस ने इस बारे में अपनी अम्मीअब्बू को बता दिया. इस के बाद सूफिया के घर वालों को यह बात समझने देर नहीं लगी कि अब्दुल मलिक का उन के घर आने का असली मकसद क्या है. बहरहाल, उन्होंने ज्यादा होहल्ला करने के बजाए सूफिया को ही समझाया. इस के अलावा उन्होंने अब्दुल मलिक के पिता अब्दुल करीम से भी इस बारे में शिकायत की. चूंकि अब्दुल करीम सूफिया के ताऊ सुलेमान के दोस्त थे, इसलिए सुलेमान ने भी अब्दुल करीम से बात की. करीम ने बेटे मलिक को समझाया कि वह शादीशुदा और 4 बच्चों का बाप है, इसलिए इस तरह की हरकतों से बाज आए.

घर वालों के समझानेबुझाने पर अब्दुल मलिक और सूफिया कुछ दिनों तक नहीं मिले. हां, फोन पर बातें जरूर कर लेते थे. दोनों ने तय कर लिया था कि चाहे कोई भी उन के ऊपर बंदिशें लगाए, जुदा नहीं होंगे. उन का प्यार हमेशा बरकरार रहेगा. अब्दुल मलिक ने जब उस्मान के घर जाना बंद कर दिया तो वे लोग समझ गए कि अब मलिक और सूफिया ने मिलनाजुलना छोड़ दिया है, जबकि हकीकत कुछ और ही थी. दोनों प्रेमियों के दिलों में प्यार की आग ठंडी नहीं पड़ी थी, बल्कि मुलाकात न होने पर उन की चाहत और बढ़ गई थी. आखिर चोरीछिपे उन्होंने घर के बजाय रेस्टोरेंट आदि जगहों पर मिलना शुरू कर दिया था. लेकिन उन की यह लुकाछिपी ज्यादा दिनों तक बरकरार नहीं रह सकी.

एक दिन सूफिया के भाई दानिश ने खुद अपनी बहन सूफिया को आलमबाग इलाके में अब्दुल मलिक की मोटरसाइकिल पर घूमते देख लिया. यह देख कर उस का खून खौल उठा, लेकिन उस समय वह कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि मलिक की मोटरसाइकिल आगे निकल गई थी. उस दिन सूफिया जब घर लौटी तो दानिश ने उसे आड़ेहाथों लिया. बेटे की शिकायत पर उस के पिता उस्मान ने सूफिया की जम कर पिटाई की. इतना ही नहीं, उस ने बेटी को हिदायत दी कि अगर उस ने मलिक से मिलना नहीं छोड़ा तो अंजाम बुरा होगा. उस्मान इस बात को नहीं जानता था कि प्यार पर जितना पहरा बैठाया जाता है, वह उतना ही मजबूत होता है. यही हाल अब्दुल मलिक और सूफिया के प्यार का था. वे तन से ही नहीं, मन से भी एकदूसरे के हो चुके थे.

यह बात अब्दुल मलिक की पत्नी को भी पता थी. उस ने भी अपने शौहर को बहुत समझाया पर उस ने पत्नी की बातों को तवज्जो नहीं दी. इस के बाद उस की बीवी ने उस से झगड़ना शुरू कर दिया. नतीजा यह निकला कि उस के प्रेम संबंध को ले कर घर में कलह रहने लगी. मलिक को उस के घर वाले भी समझातेसमझाते हार चुके थे, पर उस ने सूफिया से मिलना नहीं छोड़ा. सूफिया ने भी घर वालों की परवाह न कर के अब्दुल मलिक के घर जाना शुरू कर दिया. सूफिया की इस जिद से उस के घर वाले भी तंग आ चुके थे. वे उसे समझाने के साथ उस की पिटाई करकर के उकता गए थे. पूरे मोहल्ले में उन के घर की खूब बदनामी हो रही थी.

उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे में वे क्या करें. शनिवार 4 अप्रैल, 2020 की बात थी. दोपहर के बाद सूफिया अपने प्रेमी अब्दुल मलिक से मिलने उस के घर गई. यह जानकारी जब सूफिया के घर वालों को हुई तो उस के घर लौटने पर भाई और अब्बा ने उस की पिटाई की. जानकारी मिलने पर सूफिया के ताऊ और उस के दोनों बेटे रानू और तानू भी सूफिया को समझाने के लिए पहुंच गए. सूफिया ने पिटने के बाद भी कह दिया कि चाहे उस की जान चली जाए, वह अब्दुल मलिक को नहीं छोड़ेगी. इस जिद पर उस के घर वालों ने उस की और पिटाई की. सूफिया की जिद पर घर वाले समझ गए कि अब वह किसी भी कीमत पर मानने वाली नहीं है. इस के लिए वह अब्दुल मलिक को ही कसूरवार मान रहे थे. उस की वजह से ही उन की इज्जत पूरे मोहल्ले में तारतार हो रही थी. इसलिए उन्होंने तय कर

लिया कि वे मलिक को इस की सजा जरूर देंगे. पिटाई के बाद सूफिया अपने कमरे में चली गई थी. इस के बाद घर के सभी लोगों ने योजना बनाई कि किसी बहाने से अब्दुल मलिक को बुला कर उसे ऐसी सजा दी जाए कि उस के घर वाले भी याद रखें. योजना के अनुसार उन्होंने सूफिया से कहा कि तू अब्दुल मलिक को फोन कर के बुला ले. उस से भी पूछ लें कि वह शादीशुदा होने के बावजूद तुझ से शादी करने को तैयार है भी या नहीं. अपने घर वालों की यह बात सुन कर सूफिया थोड़ी खुश हुई कि शायद घर वाले उस की शादी मलिक से कराने के लिए राजी हो गए हैं. इसलिए उन के कहने पर उस ने प्रेमी अब्दुल मलिक को अपने घर बुला लिया. सूफिया के कहने पर अब्दुल

मलिक अपने दोस्त वसी को मोटरसाइकिल पर बिठा कर सूफिया के घर पहुंच गया. लेकिन सूफिया के घर वाले तो पूरी योजना बनाए बैठे थे. जैसे ही वह वहां पहुंचा, सभी उस पर डंडा ले कर टूट पड़े. किसी तरह वसी वहां से जान बचा कर भागा और सीधे थाने पहुंच गया. इसी दौरान उस्मान और उस के भाई सुलेमान व उन के बच्चों ने अब्दुल मलिक व सूफिया की डंडों से पीटपीट कर हत्या कर दी और ईंट मारमार कर उन के सिर फोड़ दिए. चारों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने अब्दुल करीम की शिकायत पर चारों आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 147, 323, 302, 506 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने वारदात में प्रयुक्त 3 डंडे, ईंट भी बरामद कर ली. चारों आरोपियों उस्मान, दानिश, सुलेमान और रानू को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें लखनऊ कारागार भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

Uttar Pradesh Crime : सपा एमलसी कमलेश पाठक की दबंगई की कहानी

Uttar Pradesh Crime : समाजवादी पार्टी से एमएलसी कमलेश पाठक दबंग नेता थे. उन के पास करोड़ों की अचल संपत्ति थी. इस के बावजूद वह एक मंदिर की बेशकीमती जमीन को कब्जाना चाहते थे. मुनुवां चौबे और इलाके के लोग इस का विरोध कर रहे थे. शहर कोतवाल और चौकी इंचार्ज की मौजूदगी में उन के बीच ऐसा खूनी तांडव…

उत्तर प्रदेश के औरैया शहर के मोहल्ला नारायणपुर में 15 मार्च, 2020 को सुबहसुबह खबर फैली कि पंचमुखी हनुमान मंदिर के पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक ब्रह्मलीन हो गए हैं. जिस ने भी यह खबर सुनी, पुजारी के अंतिम दर्शन के लिए चल पड़ा. देखते ही देखते उन के घर पर भीड़ बढ़ गई. चूंकि पंचमुखी हनुमान मंदिर की देखरेख एमएलसी कमलेश पाठक करते थे और उन्होंने ही अपने रिश्तेदार वीरेंद्र स्वरूप को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया था, अत: पुजारी के निधन की खबर सुन कर वह भी लावलश्कर के साथ नारायणपुर पहुंच गए. उन के भाई रामू पाठक और संतोष पाठक भी आ गए.

अंतिम दर्शन के बाद एमएलसी कमलेश पाठक और उन के भाइयों ने मोहल्ले वालों के सामने प्रस्ताव रखा कि पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक इस मंदिर के पुजारी थे, इसलिए इन की भू समाधि मंदिर परिसर में ही बना दी जाए. यह प्रस्ताव सुनते ही मोहल्ले के लोग अवाक रह गए और आपस में खुसरफुसर करने लगे. चूंकि कमलेश पाठक बाहुबली पूर्व विधायक, दरजा प्राप्त राज्यमंत्री और वर्तमान में वह समाजवादी पार्टी से एमएलसी थे. औरैया ही नहीं, आसपास के जिलों में भी उन की तूती बोलती थी, सो उन के प्रस्ताव पर कोई भी विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा सका. नारायणपुर मोहल्ले में ही शिवकुमार चौबे उर्फ मुनुवा चौबे रहते थे.

उन का मकान मंदिर के पास था. कमलेश पाठक व मुनुवा चौबे में खूब पटती थी, सो मंदिर की चाबी उन्हीं के पास रहती थी. पुजारी उन्हीं से चाबी ले कर मंदिर खोलते व बंद करते थे. मोहल्ले के लोगों ने भले ही भय से मंदिर परिसर में पुजारी की समाधि का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था किंतु शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे व उन के अधिवक्ता बेटे मंजुल चौबे को यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था. मंजुल भी दबंग था, मोहल्ले में उस की भी हनक थी. दरअसल, पंचमुखी हनुमान मंदिर की एक एकड़ बेशकीमती जमीन बाजार से सटी हुई थी. शिवकुमार चौबे व उन के बेटे मंजुल चौबे को लगा कि कमलेश पाठक दबंगई दिखा कर पुजारी की समाधि के बहाने जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं. चूंकि इस कीमती भूमि पर मुनुवा व उन के वकील बेटे मंजुल चौबे की भी नजर थी, सो उन्होंने भू समाधि का विरोध किया.

मंजुल चौबे को जब मोहल्ले वालों का सहयोग भी मिल गया तो कमलेश पाठक ने विरोध के कारण भू समाधि का विचार त्याग दिया. इस के बाद उन्होंने धूमधाम से पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक की शवयात्रा निकाली और यमुना नदी के शेरगढ़ घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया. शाम 3 बजे अंतिम संस्कार के बाद कमलेश पाठक वापस मंदिर परिसर आ गए. उस समय उन के साथ भाई रामू पाठक, संतोष पाठक, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू, सरकारी गनर अवनीश प्रताप, कथावाचक राजेश शुक्ल तथा रिश्तेदार आशीष दुबे, कुलदीप अवस्थी, विकास अवस्थी, शुभम अवस्थी और कुछ अन्य लोग थे. इन में से अधिकांश के पास बंदूक और राइफल आदि हथियार थे. कमलेश पाठक ने मंदिर परिसर में पंचायत शुरू कर दी और शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे को पंचायत में बुलाया.

मुनुवा चौबे का दबंग बेटा मंजुल चौबे उस समय घर पर नहीं था. अत: वह बड़े बेटे संजय के साथ पंचायत में आ गए. पंचायत में दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान कमलेश पाठक ने मुनुवा चौबे से मंदिर की चाबी देने को कहा, लेकिन मुनुवा ने यह कह कर चाबी देने से इनकार कर दिया कि अभी तक मंदिर में तुम्हारा पुजारी नियुक्त था. अब वह मोहल्ले का पुजारी नियुक्त करेंगे और मंदिर की व्यवस्था भी स्वयं देखेंगे. मुनुवा चौबे की बात सुन कर एमएलसी कमलेश पाठक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. दोनों के बीच विवाद होने लगा. इसी विवाद में कमलेश पाठक ने मुनुवा चौबे के गाल पर तमाचा जड़ दिया. मुनुवा का बड़ा बेटा संजय बीचबचाव में आया तो कमलेश ने उसे भी पीट दिया. मार खा कर बापबेटा घर चले गए. इसी बीच कुछ पत्रकार भी आ गए.

मंदिर परिसर में विवाद की जानकारी हुई, तो नारायणपुर चौकी के इंचार्ज नीरज त्रिपाठी भी आ गए. थानाप्रभारी एमएलसी कमलेश पाठक की दबंगई से वाकिफ थे, सो उन्होंने विवाद की सूचना औरैया कोतवाल आलोक दूबे को दे दी. सूचना पाते ही आलोक दूबे 10-12 पुलिसकर्मियों के साथ मंदिर परिसर में आ गए और कमलेश पाठक से विवाद के संबंध में आमनेसामने बैठ कर बात करने लगे. उधर अधिवक्ता मंजुल चौबे को कमलेश पाठक द्वारा पिता और भाई को बेइज्जत करने की बात पता चली तो उस का खून खौल उठा. उस ने अपने समर्थकों को बुलाया फिर भाई संजय,चचेरे भाई आशीष तथा चचेरी बहन सुधा को साथ लिया और मंदिर परिसर पहुंच गया.

पुलिस की मौजूदगी में कमलेश पाठक और मंजुल चौबे के बीच तीखी बहस होने लगी. इसी बीच मंजुल चौबे के समर्थकों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी. एक पत्थर एमएलसी कमलेश पाठक के पैर में आ कर लगा और वह घायल हो गए. कमलेश पाठक के पैर से खून निकलता देख कर उन के भाई रामू पाठक, संतोष पाठक का खून खौल उठा. उन्होंने पुलिस की मौजूदगी में फायरिंग शुरू कर दी. उन के अन्य समर्थक भी फायरिंग करने लगे. कमलेश पाठक का सरकारी गनर अवनीश प्रताप व ड्राइवर छोटू भी मारपीट व फायरिंग करने लगे. संतोष पाठक की ताबड़तोड़ फायरिंग में एक गोली मंजुल की चचेरी बहन सुधा के सीने में लगी और वह जमीन पर गिर कर छटपटाने लगी. चंद मिनटों बाद ही सुधा ने दम तोड़ दिया.

चचेरी बहन सुधा को खून से लथपथ पड़ा देखा तो मंजुल चौबे उस की ओर लपका. लेकिन वह सुधा तक पहुंच पाता, उस के पहले ही एक गोली उस के माथे को भेदती हुई आरपार हो गई. मंजुल भी धराशाई हो गया. फायरिंग में मंजुल गुट के कई समर्थक भी घायल हो गए थे और जमीन पर पड़े तड़प रहे थे. फिल्मी स्टाइल में हुई ताबड़तोड़ फायरिंग से इतनी दहशत फैल गई कि पुलिसकर्मी अपनी जान बचाने को भाग खड़े हुए. मीडियाकर्मी भी जान बचा कर भागे. जबकि तमाशबीन घरों में दुबक गए. खूनी संघर्ष के बाद एमएलसी कमलेश पाठक अपने भाई रामू, संतोष तथा अन्य समर्थकों के साथ फरार हो गए. खूनी संघर्ष के दौरान घटनास्थल पर कोतवाल आलोक दूबे तथा चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी मय पुलिस फोर्स के मौजूद थे. लेकिन पुलिस नेअपने हाथ नहीं खोले और न ही किसी को चेतावनी दी.

हमलावरों के जाने के बाद कोतवाल आलोक दूबे ने निरीक्षण किया तो 2 लाशें घटनास्थल पर पड़ी थीं. एक लाश शिवकुमार चौबे के बेटे मंजुल चौबे की थी तथा दूसरी उस की चचेरी बहन सुधा की. घायलों में संजय चौबे, अंशुल चौबे, अंकुर शुक्ला तथा अजीत एडवोकेट थे. सभी घायलों को कानपुर के हैलट अस्पताल भेजा गया. कोतवाल आलोक दूबे ने डबल मर्डर की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी सुनीति, एएसपी कमलेश दीक्षित, सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव तथा डीएम अभिषेक सिंह भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा कोतवाल आलोक दूबे से जानकारी हासिल की. डीएम अभिषेक सिंह ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया जबकि एसपी सुनीति ने घटना के संबंध में जानकारी हासिल की.

चूंकि डबल मर्डर का यह मामला अति संवेदनशील था और कातिल रसूखदार थे. इसलिए एसपी सुश्री सुनीति ने घटना की जानकारी आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल तथा एडीजी जयनारायण सिंह को दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल पर आसपास के थानों की पुलिस फोर्स तथा फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जांच कर साक्ष्य जुटाए तथा फिंगरप्रिंट लिए. डबल मर्डर से चौबे परिवार में कोहराम मचा हुआ था. शिवकुमार चौबे उर्फ मुनुवा मंदिर परिसर में बेटे की लाश के पास गुमसुम बैठे थे. वहीं संजय भाई की लाश के पास  बैठा फूटफूट कर रो रहा था. आशीष चौबे भी अपनी बहन सुधा के पास विलाप कर रहा था. संजय चौबे व उन की बहन रागिनी एसपी सुश्री सुनीति के सामने गिड़गिड़ा रहे थे कि हमलावरों को जल्दी गिरफ्तार करो वरना वे लोग इस से भी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं.

एसपी सुनीति मृतकों के घर वालों को हमलावरों की गिरफ्तारी का भरोसा दे ही रही थीं कि सूचना पा कर एडीजी जयनारायण सिंह तथा आईजी मोहित अग्रवाल घटनास्थल पर पहुंच गए. अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर एसपी सुनीति ने घटना के संबंध में जानकारी ली. पुलिस अधिकारी इस बात से आश्चर्यचकित थे कि पुलिस की मौजूदगी में फायरिंग हुई और 2 हत्याएं हो गईं. उन्होंने सहज ही अंदाजा लगा लिया कि हमलावर कितने दबंग थे. आईजी मोहित अग्रवाल ने घटनास्थल पर मौजूद मृतकों के घर वालों से बात की. शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे ने बताया कि बाहुबली कमलेश पाठक मंदिर की बेशकीमती जमीन पर कब्जा करना चाहता था. जबकि उन का परिवार व मोहल्ले के लोग विरोध कर रहे थे.

पुजारी की मौत के बाद वह मंदिर की चाबी मांगने आए थे. इसी पर उन से विवाद हुआ और पुलिस की मौजूदगी में कमलेश पाठक, उन के भाइयों तथा सहयोगियों ने फायरिंग शुरू कर दी. मुनुवा चौबे ने आरोप लगाया कि अगर पुलिस चाहती तो फायरिंग रोकी जा सकती थी. लेकिन शहर कोतवाल आलोक दूबे एमएलसी कमलेश पाठक के दबाव में थे. इसलिए उन्होंने न तो हमलावरों को चेतावनी दी और न ही उन के हथियार छीनने की कोशिश की. शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे का आरोप सत्य था, अत: आईजी मोहित अग्रवाल ने एसपी सुनीति को आदेश दिया कि वह दोषी पुलिसकर्मियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करें.

आदेश पाते ही सुनीति ने कोतवाल आलोक दूबे तथा चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी को निलंबित कर दिया. इस के बाद जरूरी काररवाई पूरी कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम हेतु औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. बवाल की आशंका को भांपते हुए पुलिस ने रात में ही पोस्टमार्टम कराने का निश्चय किया. इसी के मद्देनजर पोस्टमार्टम हाउस में भारी पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई थी. इस दुस्साहसिक घटना को आईजी मोहित अग्रवाल तथा एडीजी जयनारायण सिंह ने बेहद गंभीरता से लिया था. दोनों पुलिस अधिकारियों ने औरैया कोतवाली में डेरा डाल दिया. हमलावरों को ले कर औरैया शहर में दहशत का माहौल था और मृतकों के घर वाले भी डरे हुए थे.

दहशत कम करने तथा मृतकों के घर वालों को सुरक्षा देने के लिए पुलिस अधिकारियों ने पुलिस का सख्त पहरा लगा दिया. एक कंपनी पीएसी तथा 4 थानाप्रभारियों को प्रमुख मार्गों पर तैनात किया गया. इस के अलावा 22 एसआई व 48 हेडकांस्टेबलों को हर संदिग्ध व्यक्ति पर निगाह रखने का काम सौंपा गया. घर वालों की सुरक्षा के लिए 3 एसआई और आधा दरजन पुलिसकर्मियों को लगाया गया. तब तक रात के 10 बज चुके थे. तभी एसपी सुनीति की नजर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे 2 वीडियो पर पड़ी. वायरल हो रहे वीडियो संघर्ष के दौरान हो रही फायरिंग के थे, जिसे किसी ने मोबाइल से बनाया था. एक वीडियो में एमएलसी का गनर अवनीश प्रताप सिंह एक युवक की छाती पर सवार था और पीछे खड़ा युवक उसे डंडे से पीटता दिख रहा था.

उसी जगह कमलेश पाठक गनर की कार्बाइन थामे खड़े दिख रहे थे. दूसरे वायरल हो रहे वीडियो में कमलेश पाठक के भाई संतोष पाठक व अन्य फायरिंग करते नजर आ रहे थे. वीडियो देख कर एसपी सुनीति ने गनर अवनीश प्रताप सिंह को निलंबित कर दिया. साथ ही साक्ष्य के तौर पर दोनों वीडियो को सुरक्षित कर लिया. पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर औरैया कोतवाली में हमलावरों के खिलाफ 3 अलगअलग मुकदमे दर्ज किए गए. पहला मुकदमा मृतका सुधा के भाई आशीष चौबे की तहरीर पर भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 504, 506 के तहत दर्ज किया गया. इस मुकदमे में एमएलसी कमलेश पाठक, उन के भाई संतोष पाठक, रामू पाठक, रिश्तेदार विकल्प अवस्थी, कुलदीप अवस्थी, शुभम अवस्थी, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू, गनर अवनीश प्रताप सिंह, कथावाचक राजेश शुक्ला तथा 2 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया.

दूसरी रिपोर्ट चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी ने उपरोक्त 9 नामजद तथा 10-15 अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कराई. उन की यह रिपोर्ट 7 क्रिमिनल ला अमेडमेंट एक्ट की धाराओं में दर्ज की गई. आरोपियों के खिलाफ तीसरी रिपोर्ट आर्म्स एक्ट की धाराओं में दर्ज की गई. आईजी मोहित अग्रवाल व एडीजी जयनारायण सिंह ने नामजद अभियुक्तों को पकड़ने के लिए एसपी सुनीति, एएसपी कमलेश दीक्षित तथा सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव की अगुवाई में 3 टीमें बनाईं. इन टीमों में तेजतर्रार इंसपेक्टर, दरोगा व कांस्टेबलों को शामिल किया गया. सहयोग के लिए एसओजी तथा क्राइम ब्रांच की टीम को भी लगाया गया. हत्यारोपी बाहुबली एमएलसी कमलेश पाठक औरैया शहर के मोहल्ला बनारसीदास में रहते थे, जबकि उन के भाई संतोष पाठक व रामू पाठक पैतृक गांव भड़ारीपुर में रहते थे जो औरैया से चंद किलोमीटर दूर था.

गठित पुलिस टीमों ने आधी रात को भड़ारीपुर गांव, बनारसीदास मोहल्ला तथा विधिचंद्र मोहल्ला में छापा मारा और 6 नामजद अभियुक्तों को मय असलहों के धर दबोचा. सभी को औरैया कोतवाली लाया गया. पकड़े गए हत्यारोपियों में एमएलसी कमलेश पाठक, उन के भाई संतोष, रामू, गनर अवनीश प्रताप सिंह, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू तथा कथावाचक राजेश शुक्ला थे. 3 हत्यारोपी शुभम अवस्थी, विकल्प अवस्थी तथा कुलदीप अवस्थी विधिचंद्र मोहल्ले में रहते थे. वे अपनेअपने घरों से फरार थे, इसलिए पुलिस के हाथ नहीं आए. पुलिस ने पकड़े गए अभियुक्तों के पास से एक लाइसेंसी रिवौल्वर, 13 कारतूस, 4 तमंचे 315 बोर व 8 कारतूस, सेमी राइफल व 23 कारतूस, गनर अवनीश प्रताप सिंह की सरकारी कार्बाइन व उस के कारतूस बरामद किए.

16 मार्च की सुबह मंजुल चौबे व सुधा चौबे का शव पोस्टमार्टम के बाद भारी पुलिस सुरक्षा के बीच उन के नारायणपुर स्थित घर लाया गया. शव पहुंचते ही दोनों घरों में कोहराम मच गया. पति का शव देख कर आरती दहाड़ें मार कर रो पड़ी. आरती की शादी को अभी 2 साल भी नहीं हुए थे कि उस का सुहाग उजड़ गया था. उस की गोद में 3 माह की बच्ची थी. मंजुल चौबे की बहनें रश्मि, रागिनी व रुचि भी शव के पास बिलख रही थीं. सुबह 10 बजे मंजुल व सुधा की शवयात्रा कड़ी सुरक्षा के बीच शुरू हुई. सुरक्षा की जिम्मेदारी सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव को सौंपी गई थी. अंतिम यात्रा में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था,

जिसे संभालना पुलिस के लिए मुश्किल हो रहा था. कुछ देर बाद शवयात्रा यमुना नदी के शेरगढ़ घाट पहुंची, वहीं पर दोनों का अंतिम संस्कार हुआ. एसपी सुनीति ने गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों से पूछताछ की. इस पूछताछ के आधार पर इस खूनी संघर्ष की जो कहानी प्रकाश में आई, उस का विवरण कुछ इस प्रकार है—

गांव भड़ारीपुर औरैया जिले के कोतवाली थाना क्षेत्र में आता है. ब्राह्मण बहुल इस गांव में राम अवतार पाठक अपने परिवार के साथ रहते थे. सालों पहले भड़ारीपुर इटावा जिले का गांव था. जब विधूना तथा औरैया तहसील को जोड़ कर औरैया को नया जिला बनाया गया, तब से यह भड़ारीपुर गांव औरैया जिले में आ गया. राम अवतार पाठक इसी गांव के संपन्न किसान थे. उन के 3 बेटे रामू, संतोष व कमलेश पाठक थे. चूंकि वह स्वयं पढ़ेलिखे थे, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को भी पढ़ायालिखाया. तीनों भाइयों में कमलेश ज्यादा ही प्रखर था. उस की भाषा शैली भी अच्छी थी, जिस से लोग जल्दी ही प्रभावित हो जाते थे. कमलेश पाठक पढ़ेलिखे योग्य व्यक्ति जरूर थे, लेकिन वह जिद्दी स्वभाव के थे. अपने मन में जो निश्चय कर लेते, उसे पूरा कर के ही मानते थे. यही कारण था कि 20 वर्ष की कम आयु में ही औरैया कोतवाली में उन पर हत्या का मुकदमा दर्ज हो गया था.

कुछ साल बाद कमलेश और उन के भाई संतोष और रामू की दबंगई का डंका बजने लगा. लोग उन से भय खाने लगे. अपनी फरियाद ले कर भी लोग उन के पास आने लगे थे. जो काम पुलिस डंडे के बल पर न करवा पाती, वह काम कमलेश का नाम सुनते ही हो जाता. जब तक कमलेश गांव में रहे, तब तक गांव में उन की चलती रही. गांव छोड़ कर औरैया में रहने लगे तो यहां भी अपना साम्राज्य कायम करने में जुट गए. उन दिनों औरैया में स्वामीचरण की तूती बोलती थी. वह हिस्ट्रीशीटर था. गांव से आए युवा कमलेश ने एक रोज शहर के प्रमुख चौराहे सुभाष चौक पर हिस्ट्रीशीटर स्वामीचरण को घेर लिया और भरे बाजार में उसे गिरागिरा कर मारा.

इस घटना के बाद कमलेश की औरैया में भी धाक जम गई. अब तक वह स्थायी रूप से औरैया में बस गए थे. बनारसीदास मोहल्ले में उन्होंने अपना निजी मकान बनवा लिया. दबंग व्यक्ति पर हर राजनीतिक पार्टी डोरे डालती है. यही कमलेश के साथ भी हुआ. बसपा, सपा जैसी पार्टियां उन पर डोरे डालने लगीं. कमलेश को पहले से ही राजनीति में रुचि थी, सो वह पार्टियों के प्रमुख नेताओं से मिलने लगे और उन के कार्यक्रमों में शिरकत भी करने लगे. वैसे उन्हें सिर्फ एक ही नेता ज्यादा प्रिय थे सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव. सन 1985 के विधानसभा चुनाव में कमलेश पाठक को औरैया सदर से लोकदल से टिकट मिला. इस चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की और 28 वर्ष की उम्र में विधायक बन गए. लेकिन विधायक रहते सन 1989 में उन्होंने लोकदल के विधायकों को तोड़ कर मुलायम सिंह की सरकार बनवा दी.

इस के बाद से वह मुलायम सिंह के अति करीबी बन गए. लोग उन्हें मिनी मुख्यमंत्री कहने लगे थे. वर्ष 1990 में सपा ने उन्हें एमएलसी बनाया और 1991 में कमलेश दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री बने. सन 2002 के विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह ने कमलेश पाठक को कानपुर देहात की डेरापुर सीट से मैदान में उतारा. इस चुनाव में उन के सामने थे भाजपा से भोले सिंह. यह चुनाव बेहद संघर्षपूर्ण रहा. दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंदिता में जम कर गोलियां चलीं. इस के बाद ब्राह्मणों ने एक मत से कमलेश पाठक को जीत दिलाई. तब से उन्हें ब्राह्मणों का कद्दावर नेता माना जाने लगा.

चुनाव के बाद मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री बनने के बाद मुलायम सिंह ने औरैया को जिला बनाने के नियम को रद्द कर दिया. इस पर कमलेश ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. उन्होंने जिला बचाओ आंदोलन छेड़ कर जगहजगह धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया. मुख्यमंत्री मुलायम सिंह औरैया में सभा करने आए तो उन्होंने गोलियां बरसा कर उन के हैलीकाप्टर को सभास्थल पर नहीं उतरने दिया. एक घंटा हेलीकाप्टर हवा में उड़ता रहा, तब कहीं जा कर मानमनौव्वल के बाद उतर सका. इस घटना के बाद मुलायम सिंह नाराज हो गए, लेकिन दबंग नेता की छवि बना चुके कमलेश पाठक के आगे उन की नाराजगी ज्यादा दिन टिक न सकी. सन 2007 में नेताजी ने उन्हें पुन: टिकट दे दिया, लेकिन कमलेश दिबियापुर विधानसभा सीट से हार गए.

साल 2009 में कमलेश पाठक ने जेल में रहते सपा के टिकट पर अकबरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा पर हार गए. इस के बाद उन्होंने साल 2012 में सिकंदरा विधानसभा से चुनाव लड़ा, पर इस बार भी हार गए. हारने के बावजूद वर्ष 2013 में कमलेश पाठक को राज्यमंत्री का दरजा दे कर उन्हें रेशम विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया. इस के बाद 10 जून 2016 को समाजवादी पार्टी से उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना कर भेजा. वर्तमान में वह सपा से एमएलसी थे. सपा सरकार के रहते कमलेश पाठक ने अपनी दबंगई से अवैध साम्राज्य कायम किया. उन्होंने ग्राम समाज के तालाबों तथा सरकारी जमीनों पर कब्जे किए. उन्होंने पक्का तालाब के पास नगरपालिका की जमीन पर कब्जा कर गेस्टहाउस बनवाया. साथ ही औरैया शहर में 2 आलीशान मकान बनवाए. अन्य जिलों व कस्बों में भी उन्होंने भूमि हथियाई.

जिले का कोई अधिकारी उन के खिलाफ जांच करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था. कमलेश की राजनीतिक पहुंच से उन के भाई संतोष व रामू भी दबंग बन गए थे. दबंगई के बल पर संतोष पाठक ब्लौक प्रमुख का चुनाव भी जीत चुका था. दोनों भाइयों का भी क्षेत्र में खूब दबदबा था. सभी के पास लाइसैंसी हथियार थे. कमलेश पाठक की दबंगई का फायदा उन के भाई ही नहीं बल्कि शुभम, कुलदीप तथा विकल्प अवस्थी जैसे रिश्तेदार भी उठा रहे थे. ये लोग कमलेश का भय दिखा कर शराब के ठेके, सड़क निर्माण के ठेके तथा तालाबों आदि के ठेके हासिल करते और खूब पैसा कमाते. ये लोग कदम दर कदम कमलेश का साथ देते थे और उन के कहने पर कुछ भी कर गुजरने को तत्पर रहते थे.

कमलेश पाठक ने अपनी दबंगई के चलते धार्मिक स्थलों को ही नहीं छोड़ा और उन पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया. औरैया शहर के नारायणपुर मोहल्ले में स्थित प्राचीन पंचमुखी हनुमान मंदिर पर भी कमलेश पाठक ने अपना कब्जा जमा लिया था. साथ ही वहां अपने रिश्तेदार वीरेंद्र स्वरूप पाठक को पुजारी नियुक्त कर दिया था. कमलेश की नजर इस मंदिर की एक एकड़ बेशकीमती भूमि पर थी. इसी नारायणपुरवा मोहल्ले में पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास शिवकुमार उर्फ मुनुवां चौबे का मकान था. इस मकान में वह परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे संजय, मंजुल और

3 बेटियां रश्मि, रुचि तथा रागिनी थीं. तीनों बेटियों तथा संजय की शादी हो चुकी थी. मुनुवां चौबे मोहल्ले के सम्मानित व्यक्ति थे. धर्मकर्म में भी उन की रुचि थी. वह हर रोज पंचमुखी हनुमान मंदिर में पूजा करने जाते थे. पुजारी वीरेंद्र स्वरूप से उन की खूब पटती थी. पुजारी मंदिर बंद कर चाबी उन्हीं को सौंप देता था. मुनुवां चौबे का छोटा बेटा मंजुल पढ़ाई के साथसाथ राजनीति में भी रुचि रखता था. उन दिनों कमलेश पाठक का राजनीति में दबदबा था. मंजुल ने कमलेश पाठक का दामन थामा और राजनीति का ककहरा पढ़ना शुरू किया. वह समाजवादी पार्टी के हर कार्यक्रम में जाने लगा और कई कद्दावर नेताओं से संपर्क बना लिए. कमलेश पाठक का भी वह चहेता बन गया.

मंजुल औरैया के तिलक महाविद्यालय का छात्र था. वर्ष 2003 में उस ने कमलेश पाठक की मदद से छात्र संघ का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस के बाद मंजुल ने अपनी ताकत बढ़ानी शुरू कर दी. उस ने अपने दर्जनों समर्थक बना लिए. अब उस की भी गिनती दबंगों में होने लगी. इसी महाविद्यालय से उस ने एलएलबी की डिग्री हासिल की और औरैया में ही वकालत करने लगा. मंजुल के घर के पास ही उस के चाचा अरविंद चौबे रहते थे. उन के बेटे का नाम आशीष तथा बेटी का नाम सुधा था. मंजुल की अपने चचेरे भाईबहन से खूब पटती थी. सुधा पढ़ीलिखी व शिक्षिका थी. पर उसे देश प्रदेश की राजनीति में भी दिलचस्पी थी.

मंजुल की ताकत बढ़ी तो कमलेश पाठक से दूरियां भी बढ़ने लगीं. ये दूरियां तब और बढ़ गईं, जब मंजुल को अपने पिता से पता चला कि कमलेश पाठक मंदिर की बेशकीमती भूमि पर कब्जा करना चाहता है. चूंकि मंदिर मंजुल के घर के पास और उस के मोहल्ले में था, इसलिए मंजुल व उस का परिवार चाहता कि मंदिर किसी बाहरी व्यक्ति के कब्जे में न रहे. वह स्वयं मंदिर पर आधिपत्य जमाने की सोचने लगा. पर दबंग कमलेश के रहते, यह आसान न था. 16 मार्च, 2020 को थाना कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त कमलेश पाठक, रामू पाठक, संतोष पाठक, अवनीश प्रताप, लवकुश उर्फ छोटू तथा राजेश शुक्ला को औरैया कोर्ट में सीजेएम अर्चना तिवारी की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें इटावा जेल भेज दिया गया.

दूसरे रोज बाहुबली कमलेश पाठक को आगरा सेंट्रल जेल भेजा गया. रामू पाठक को उरई तथा संतोष पाठक को फिरोजाबाद जेल भेजा गया. लवकुश, अवनीश प्रताप तथा राजेश शुक्ला को इटावा जेल में ही रखा गया. 18 मार्च को पुलिस ने अभियुक्त कुलदीप अवस्थी, विकल्प अवस्थी तथा शुभम को भी गिरफ्तार कर लिया. उन्हें औरैया कोर्ट में अर्चना तिवारी की अदालत मे पेश कर जेल भेज दिया गया. म

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Agra News : पत्‍नी ने खिलाई नींद की गोली, प्रेमी ने हंसिए से रेता गला

Agra News : गत वर्ष नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट आई थी जिस में कहा गया था कि बच्चों और किशोरों के साथ यौन संबंध बनाने वाले निकट संबंधी होते हैं. लेकिन इस रिपोर्ट में यह जिक्र नहीं था कि मायके से बने यौन संबंध जब ससुराल तक जाते हैं तो क्या होता है. विक्रम की जान ऐसे ही…

जिला आगरा की तहसील एत्मादपुर के थाना बरहन के क्षेत्र में एक गांव है खांडा. यहां के निवासी सुरेंद्र सिंह का 27 वर्षीय बेटा विक्रम सिंह उर्फ नितिन नोएडा के सेक्टर-6 में स्थित एक प्राइवेट कंपनी में कंप्यूटर आपरेटर था. उस की शादी नवंबर 2015 में अछनेरा थानांतर्गत कुकथला निवासी किशनवीर सिंह की बेटी रानी उर्फ रवीना के साथ हुई थी. दोनों का 2 साल का एक बेटा है. विक्रम नोएडा में अपने मातापिता, भाई अमित, बीवी व बच्चे के साथ रहता था. कोरोना वायरस फैलने और लौकडाउन की घोषणा के बाद 27 मार्च, 2020 को विक्रम परिवार सहित अपने गांव खांडा आ गया था. इस के लिए विक्रम को 50 किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ा था. उस के पिता सुरेंद्र सिंह नोएडा में ही रह गए थे.

विक्रम को घर आए 5 दिन हो गए थे. 31 मार्च की रात विक्रम अपनी बीवी रानी के साथ कमरे में सोने चला गया. जबकि उस की मां कृपा देवी मकान की छत पर सोने चली गई. छोटा भाई अमित गांव में ही रहने वाली मौसी के यहां सो रहा था. रात डेढ़ बजे रानी अचानक कमरे से चीखती हुई बाहर निकली और छत पर बने कमरे में सो रही सास को जगा कर बताया कि विक्रम ने आत्महत्या कर ली है. यह सुनते ही कृपा देवी बदहवास सी नीचे उतर कर कमरे में पहुंचीं. कमरे का मंजर देख उन के होश उड़ गए. बिस्तर पर विक्रम खून से लथपथ पड़ा था. उस की गरदन से खून निकल रहा था. जिस से तकिया व चादर खून से रंग गए थे.

घटना की जानकारी मिलते ही मृतक का चचेरा भाई राजेश सिकरवार घटनास्थल पर पहुंच गया. विक्रम की मौत की जानकारी होते ही परिवार की महिलाओं में कोहराम मच गया. राजेश ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थाना बरहन के थानाप्रभारी महेश सिंह पुलिस टीम के साथ मौकाए वारदात पर पहुंच गए. तब तक सुबह हो चुकी थी. हत्या की जानकारी होते ही आसपड़ोस के लोग एकत्र हो गए थे. पूछताछ में मां कृपा देवी ने बताया, ‘‘रात सभी ने हंसीखुशी खाना खाया था. उस समय विक्रम के चेहरे पर किसी प्रकार का कोई तनाव नहीं दिख रहा था. न ही उस ने किसी बात का जिक्र किया था. उस ने अचानक आत्महत्या क्यों कर ली, समझ से परे है.’’

सूचना मिलते ही सीओ (एत्मादपुर) अतुल सोनकर भी पहुंच गए. फोरैंसिक टीम भी बुला ली गई थी. मृतक की बीवी रानी से भी पूछताछ की गई. उस ने बताया कि खाना खाने के बाद हम लोग कमरे में सो गए. रात में पति से झगड़ा हुआ था, हो सकता है उन्होंने गुस्से में गला काट कर आत्महत्या कर ली हो. मुझे तो आंखें खुलने पर घटना के बारे में पता चला, तभी मैं ने शोर मचाया और सास को छत पर जा कर जगाया. विक्रम ने बंद कमरे में आत्महत्या कैसे की? यह रानी नहीं बता सकी. पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक का गला रेता हुआ था. लेकिन कमरे में कोई चाकू या धारदार हथियार नहीं मिला था.

रानी की यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी कि बिस्तर पर आत्महत्या करते समय रानी भी सो रही थी लेकिन उसे आत्महत्या की कोई जानकारी नहीं हुई. ऐसा कैसे हो सकता है? पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. घटना की जानकारी मिलने पर मृतक के पिता भी नोएडा से आ गए. उन्होंने अपनी बहू रानी पर आरोप लगाते हुए कहा कि इस के प्रेम संबंध उस के फुफेरे भाई प्रताप सिंह उर्फ अनिकेत से हैं, जो खांडा का रहने वाला है. सुरेंद्र सिंह ने पहली अप्रैल को पुलिस को दी गई अपनी तहरीर में भी विक्रम की हत्या का आरोप रानी अनिकेत पर लगाया. इस पर पुलिस रानी को पूछताछ के लिए अपने साथ थाने ले गई.

मृतक के घरवालों ने पुलिस को बताया कि विक्रम की पत्नी रानी हर महीने बीमारी का बहाना बना कर इलाज के नाम पर विक्रम से दवाइयों का 28,000 रुपए तक का बिल लेती थी. इतना ही नहीं उस ने अपने खर्चे पूरे करने के लिए 10 हजार रुपए में अपनी सोने की चेन भी गिरवी रख दी थी. पुलिस ने थाने में रानी से घटना के बारे में गहराई से पूछताछ की, ‘‘जब विक्रम ने चाकू से अपना गला अपने आप काट कर आत्महत्या की है तो चाकू भी वहीं होना चाहिए था.’’ इस पर रानी ने चुप्पी साध ली. पुलिस ने यह भी पूछा, ‘‘अगर विक्रम की हत्या किसी बाहरी व्यक्ति ने की तो कमरे का दरवाजा किस ने खोला? और वह आदमी कौन था?’’

इन सवालों के भी रानी के पास कोई जवाब नहीं थे. उस की चुप्पी सच्चाई बयां कर रही थी. पहले दिन तो रानी पुलिस को गुमराह करती रही, लेकिन दूसरे दिन यानी 2 अप्रैल, 2020 को पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई. उस ने पति की हत्या का जुर्म कबूल करते हुए बताया कि उस ने अपने प्रेमी फुफेरे भाई प्रताप जो गांव में ही रहता है के साथ मिल कर रात में विक्रम की हत्या कर दी थी. पुलिस पूछताछ में विक्रम की हत्या की जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी—

रानी की शादी उस के बुआ के बेटे प्रताप ने अपने ही गांव खांडा निवासी विक्रम सिंह से कराई थी. बहन के घर प्रताप का आनाजाना था. दोनों के बीच 2 साल से नजदीकियां बढ़ गई थीं. धीरेधीरे दोनों का प्रेमसंबंध नाजायज संबंधों में बदल गया. बीवी की हरकतें देख कर विक्रम को उस पर शक हो गया था. यह बात रानी ने प्रताप को बताई. इस पर उस ने रानी के घर आना बंद कर दिया था. रानी जब मायके जाती तो प्रताप वहां पहुंच जाता था. वहां दोनों किसी तरह मिल कर अपने दिल की प्यास बुझा लेते थे. जब रानी गांव में रहती थी, तो पति से रुपए मंगा कर अपने प्रेमी के ऊपर खर्च करती थी. इस की जानकारी होने पर विक्रम ने बीवी के मायके जाने पर रोक लगा दी थी. उस ने रानी को समझाया भी, लेकिन रानी पर पति की बातों का कोई असर नहीं हुआ. इस पर विक्रम रानी को नोएडा में अपने साथ रखने लगा था.

लौकडाउन होने पर विक्रम परिवार सहित 5 दिन पहले गांव आया था. गांव आने पर रानी को पता चला कि प्रताप की शादी तय हो गई है. 25 अप्रैल को उस की बारात जानी थी. रानी को यह बात नागवार गुजरी. वह चाहती थी कि प्रताप शादी न करे. वह उस के बिना नहीं रह सकती. वह प्रताप से मिलना चाहती थी. जबकि विक्रम उसे घर से बाहर नहीं जाने दे रहा था. इस पर उस ने मोबाइल पर प्रताप से बात की. इस बातचीत के दौरान मिल कर विक्रम की हत्या की योजना बनाई. योजना के मुताबिक रानी ने 31 मार्च की रात आलू की सब्जी में नींद की 8 गोलियां मिला कर विक्रम को खिला दीं. गोलियां प्रताप ने ला कर दी थीं.

रात करीब एक बजे विक्रम की तबियत खराब हुई. उस ने रानी से कहा कि उसे बैचेनी हो रही है. इस पर रानी ने पति को अंगूर खिलाए. फिर जैसे ही वह सोया, रानी ने मैसेज कर के प्रताप को बुला लिया. प्रताप और रानी ने उस का गला दबा दिया. वह जिंदा न बच जाए. इस के लिए हंसिए से उस का गला भी रेत दिया. हत्या के बाद प्रताप हंसिया ले कर फरार हो गया. रानी और प्रताप की साजिश थी कि विक्रम की हत्या कर उसे आत्महत्या का रूप दे देंगे. अगर विक्रम की मां रात में चिल्लाचिल्ला कर भीड़ जमा न करती तो वे ऐसा प्रयास भी करते. लेकिन हड़बड़ाहट में रानी मौके से खून नहीं साफ  कर सकी थी.

रानी को पुलिस ने 3 अप्रैल को कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस हत्यारोपी प्रताप की तलाश में जुट गई. 3 अप्रैल को ही पुलिस ने प्रताप को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल हंसिया भी बरामद कर लिया.  रानी ने रिश्तों को कलंकित कर एक हंसतेखेलते परिवार को उजाड़ लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पहले महाकुंभ लाया, फिर बीवी की हत्या कर दी : वजह जान कर चौंक जाएंगे

UP Crime : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुई एक सनसनीखेज वारदात ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. आरोप है कि एक पति ने पहले तो पत्नी को कुंभ स्नान कराने के बहाने बुलाया फिर उस की बेरहमी से हत्या कर दी. जिस किसी ने भी इस घटना के बारे में सुना, वह हैरान रह गया. इस दिल दहला देने वाली घटना की पूरी कहानी जान कर आप के भी रौंगटे खड़े हो जाएंगे।

प्रयागराज की घटना

घटना उतर प्रदेश के प्रयागराज की है, जहां भारत से ले कर दुनियाभर से लोग महाकुंभ  (Mahakumbh) स्नान के लिए आए थे. इसी भीड़ का फायदा उठा कर पति ने अपनी पत्नी मीनाक्षी को दिल्ली से बुला कर हत्या कर दी और मौके से फरार हो गया, लेकिन सीसीटीवी फुटेज और मृतका मीनाक्षी के बेटे की मदद से पुलिस ने कातिल पति को अरैस्ट कर लिया है.

कातिल पति अपनी पत्नी को झूंसी इलाके के एक लौज में बेरहमी से मार कर फरार हो गया. बताया जा रहा है कि कातिल पति का दूसरी महिला से अवैध संबंध चल रहा था, इसलिए उस ने अपनी पत्नी को मौत के घाट उतार दिया.

अवैध संबंध का निकला चक्कर

कातिल पति अशोक वाल्मिकी ने दिल्ली से अपनी पत्नी मीनाक्षी को महाकुंभ स्नान के लिए प्रयागराज बुलाया. महाकुंभ स्नान को ले कर मीनाक्षी बहुत खुश थी और इसीलिए संगमतट पर स्नान करने आई थी.

अशोक ने अपनी पत्नी मीनाक्षी के साथ एक वीडियो भी बनाया और सोशल मीडिया पर भी पोस्ट किया. ऐसा इसलिए ताकि सभी को लगे कि वे महाकुंभ स्नान करने आए हैं.

रात में अशोक ने अपनी पत्नी के लिए झूंसी के एक लौज में ₹500 में एक कमरा लिया. लेकिन पत्नी को बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि आज उस की आखिरी रात होगी. रात जब गहराई तो आरोपी अशोक ने बाथरूम में पत्नी मीनाक्षी की बेरहमी से हत्या कर दी और सामान लेने के बहाने लौज से रात को ही फरार हो गया.

महिला की लाश देख चौंके लोग

सुबह होने पर जब लौज के स्टाफ ने बाथरूम में एक महिला की लाश देखी तो वे चौंक गए. तुरंत घटना की सूचना पुलिस को दी गई, लेकिन लौज में आईडी जमा न होने की वजह से मृतक महिला की पहचान मुश्किल थी.

कातिल पति का खुलासा

जब पुलिस कातिल का सुराग ढूंढ़ने लगी तो आसपास के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाले गए. इन्हीं फुटेज के आधार पर कातिल की पहचान हो गई. इसी दौरान मीनाक्षी का बेटा अश्विनी 21 फरवरी, 2025 को मां को खोजतेखोजते प्रयागराज पहुंच गया. वह झूंसी थाने में भी गया और थाने में एक तसवीर को देख कर बोला कि यह मेरी मां है, जो महाकुंभ मेले में खो गई है. जब पुलिस ने अश्विनी को लौज से वरामद लाश दिखाई तो अश्विनी फफकफफक कर रो पङा.

प्रेम प्रसंग के चक्कर में मारा पत्नी को

पुलिस के द्वारा कातिल अशोक को अरैस्ट कर लिया गया है, जहां उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया है. अशोक ने बताया कि उस का एक महिला के साथ अवैध संबंध चल रहा था और पत्नी उस का विरोध करती थी. इसी कारण उस ने पत्नी को महाकुंभ स्नान के बहाने बुला कर उस की हत्या कर दी.

कैसे पकड़ा गया कातिल

पुलिस ने अशोक के बेटे के जरिए उसे बुलाया और बहराना में पहुंचते ही अरैस्ट कर लिया. जब पुलिस ने अशोक से पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म कबुल कर लिया, जिस के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.