मुख्यमंत्री की प्रेमिका : क्या था मीनाक्षी के खूबसूरत यौवन के पीछे का सच? – भाग 2

ऊपर से देख कर कोई पता नहीं लगा सकता था कि मीनाक्षी का अपार्टमैंट मंत्रीजी के अपार्टमैंट से गुप्त रास्ते से जुड़ा हुआ है.

मंत्रीजी के जाने के बाद नौकरानी भी चली गई. मीनाक्षी ने बजर दबाया. मंत्रीजी ने वार्डरोब में स्थित गुप्त दरवाजा खोल दिया.  मीनाक्षी मंत्रीजी के रूम में आ कर उन की बांहों में समा गई. फिर काफी देर तक उन के बीच प्रेमालाप का दौर चला. फिर दोनों संतुष्ट हो गंभीर मंत्रणा में खो गए.

‘‘आज एक नई बात सुनी है,’’ चेतन ने कहा.

‘‘क्या?’’

‘‘मुख्यमंत्री कामता प्रसाद तुम्हें अपने पाले में करना चाहता है.’’

‘‘फिर?’’

‘‘क्या इरादा है?’’ मीनाक्षी की आंखों में आंखें डालते हुए थोड़ी शरारत से मंत्रीजी ने पूछा.

‘‘उस के पाले में चली जाती हूं, अगर वह मुझे मंत्री या अपनी पत्नी बनाए तो,’’ उसी शोखी के साथ मीनाक्षी ने कहा.

‘‘मंत्री बनना तो समझ आता है मगर पत्नी बनना कैसे?’’

‘‘सीएम की पत्नी सुपर सीएम होती है,’’ इस समझदारी वाले जवाब पर दोनों ही खिलखिला कर हंस पड़े.

‘‘आप की अपनी मंजिल भी तो मुख्यमंत्री की कुरसी है,’’ थोड़ी देर रुक कर मीनाक्षी ने कहा.

‘‘पार्टी में अभी मेरे समर्थक कम हैं. समर्थक बढ़ाने में अभी समय लगेगा. कामता प्रसाद काफी पुराना और घाघ है.’’

‘‘पार्टी के बड़े नेताओं को अपने समर्थन में करने के लिए आप को क्या करना होगा?’’

‘‘ढेर सारे रुपए जुटाने पड़ेंगे, मजबूत लौबिंग करनी पड़ेगी. साथ ही हुस्न और शबाब का जलवा दिखाना पड़ेगा.’’

‘‘पैसे की बात समझ आती है मगर यह लौबिंग क्या होती है?’’

‘‘राजनीति पैसे के बिना नहीं चलती. रुपए बड़े व्यापारियों और उद्योगपतियों से मिलते हैं और अफसरशाही के समर्थन के बिना कोई भी राजनेता सफल नहीं होता.’’

‘‘मगर आप को अफसरशाही पूरा समर्थन दे रही है. व्यापारी भी रुपएपैसे दे रहे हैं.’’

‘‘वह सब राज्य स्तर पर है. मुख्यमंत्री बनने के लिए केंद्र स्तर पर समर्थन जरूरी है.’’

‘‘इस के लिए पहला कदम क्या है?’’

‘‘ये सब मिलनेजुलने से ही शुरू होता है. रुपए से ज्यादा हुस्न और शबाब का अपना असर है,’’ मंत्रीजी ने गहरी नजरों से अपने अंकपाश में समाई मीनाक्षी को देखते हुए कहा.

मीनाक्षी उन का इशारा समझ गई.

मंत्रीजी के साथ उन की विशेष सलाहकार ने राजधानी के विशेष दौरे शुरू कर दिए. मीनाक्षी के रूपयौवन से प्रभावित हो अनेक वरिष्ठ नेताओं ने चेतन के पक्ष में अपना मत बना लिया. उम्रदराज होते हुए भी अनेक वरिष्ठ नेताओं की भूख बरकरार थी. उन को मंत्रीजी की खासमखास ने बखूबी संतुष्ट किया.

व्यापारियों और उद्योगपतियों को उभरते नेता चेतन में अपना हित ज्यादा दिखा. अफसरशाही को भी चेतन में अपने हित ज्यादा सुरक्षित नजर आए.

पुराने मुख्यमंत्री पुराने विचारों के हैं उन के नेतृत्व में राज्य तरक्की नहीं कर सकता. उन को हटा कर नए विचारों का नेता लाना ही होगा.

मुख्यमंत्री या तो शक्तिपरीक्षण कर अपना बहुमत सिद्ध करे या त्यागपत्र दे. ऐसी मांग दिनप्रतिदिन की जाने लगी.

मजबूर हो कर वर्तमान मुख्यमंत्री को अपनी पार्टी के विधायकों व हाईकमान की राय लेनी पड़ी. सभी ने उन्हें नकार दिया और चेतन को नया मुख्यमंत्री बना दिया गया.

चेतन के साथ मीनाक्षी का रुतबा भी अपनेआप बढ़ गया. वह अब सुपर सीएम समझी जाती थी. उस के ब्यूटीपार्लर का क्रेज अपनेआप बढ़ गया था. अब वह मीनाक्षी से मीनाक्षी मैडम बन गई थी. साथ ही इज्जत में भी इजाफा हुआ था.

मैडम मीनाक्षी, अब ब्यूटीपार्लर में कम आती थी. मगर दक्षता से ग्राहकों को अरेंज किया जाता था. खास काम के लिए खास मैनेजर था. मैडम अब ‘मिस दस परसैंट’ थी. किसी भी काम को सुलझाने के लिए ली जाने वाली फीस का 10 प्रतिशत थी.

ऐसा काम आने पर मैडम के खास मैनेजर द्वारा पहले पार्टी को जांचापरखा जाता था. फिर उसे ‘सेफ’ समझ अपौइंटमैंट फिक्स होता. फिर मामला आगे बढ़ता. ‘स्पैशल ट्रीटमैंट’ के लिए पार्टी ऐडवांस फीस दे कर मैडम के अपार्टमैंट में स्थित विशेष ब्यूटीपार्लर आती.

मुख्यमंत्री भी थोड़ेथोड़े अंतराल पर स्पैशल ट्रीटमैंट के लिए या एकांत चिंतन के लिए अपने अपार्टमैंट आते. उन की विशेष सलाहकार उन का तनाव दूर करती.

मीनाक्षी के परिवार की आर्थिक स्थिति भी पूरी तरह से सुधर गई थी. उस के दोनों भाई शहर के पौश इलाके में कोठियों में रहते थे. वे बड़े व्यापारी थे. बहनें व जीजा भी सब तरह से संपन्न थे.

मगर मीनाक्षी खुद क्या थी? उस के पास अकूत पैसा था. अनेक नामीबेनामी संपत्तियां थीं. मगर उस का अपना वजूद क्या था?

हर कोई उस को एक ढकीछिपी  कौलगर्ल, वेश्या या दलाल ही समझता था. राजनीति में कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता.

मीनाक्षी कभीकभी अपने मातापिता से भी मिलने जाती थी.

‘‘तेरे पास सबकुछ है, तू अब अपना घर क्यों नहीं बसाती?’’ मां के इस सवाल पर मीनाक्षी सोच में पड़ गई. कौन करेगा उस से शादी? क्या मुख्यमंत्री चेतन, जो उस की देह को इतने सालों से भोग रहा था, उस से शादी कर सकता था?

कितने छोटेबड़े राजनेता उस को भोग चुके थे. मगर इस सब में चेतन का ही हित था. क्या वह उस से शादी कर सकता था? क्या कोई बड़ा राजनेता, उद्योगपति, व्यापारी, बड़ा अफसर उस को अपनी पुत्रवधू या पत्नी बना सकता था? कोई शरीफ खानदान या परिवार उस को अपनी बहू कबूल कर सकता था?

सवाल सीधा था, साधारण था. मुख्यमंत्री थोड़ेथोड़े अंतराल पर स्पैशल ट्रीटमैंट के लिए मीनाक्षी के पार्लर में आते थे. कभीकभार विशेष सलाहकार के तौर पर मीनाक्षी को देश के कई भागों में या कभीकभी विदेशों में भी ले जाते थे.

मगर वह तो हर जगह विशेष नजरों से ही देखी जाती थी. मुख्यमंत्री की पत्नी साधारण शक्लसूरत की थी. मात्र मिडिल पास थी. मुख्यमंत्री 3 बच्चों के पिता थे.

साधारण मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखती मुख्यमंत्री की पत्नी सहज बुद्धि की थी. कभीकभी किसी दौरे पर, विदेश यात्रा पर मुख्यमंत्रीजी का परिवार और विशेष सलाहकार मीनाक्षी भी साथ होती थी.

मगर जो सम्मान या प्रतिष्ठा कम पढ़ीलिखी आम शक्लसूरत की मुख्यमंत्री की पत्नी को मिलती वह ऊंची पढ़ीलिखी बेहद खूबसूरत मीनाक्षी को नहीं मिलती थी क्योंकि हर कोई इस सचाई से वाकिफ था कि वह सीएम की ‘वो’ थी.

एक शाम सीएम रात्रि विश्राम के लिए मीनाक्षी के पास अपार्टमैंट में आए और सुबहसवेरे वे चले गए. साथ ही उन का लावलश्कर भी चला गया. मीनाक्षी को भी दूर के शहर में रिश्तेदारी में जाना था. सुबहसुबह वह भी चली गई.

मुख्यमंत्री की प्रेमिका : क्या था मीनाक्षी के खूबसूरत यौवन के पीछे का सच? – भाग 1

‘‘कंबल ले लीजिए,’’ अलसाई सी सोने की कोशिश करती मीनाक्षी पर कंबल डालते हुए चेतन ने कहा. कंबल ओढ़ कर वह आराम से सो गई.

विधानसभा चुनाव सिर पर थे. दोनों एक प्रमुख राजनीतिक दल के कार्यकर्ता थे. चेतन सब से वरिष्ठ था. वह एक तरह से कर्ताधर्ता था. उस की हैसियत छोटेमोटे प्रभावशाली क्षेत्रीय नेता जैसी बन गई थी.

मीनाक्षी एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार से थी. वह ग्रेजुएट थी. कई जगह कोशिश करने के बावजूद उसे कोई नौकरी नहीं मिली थी. उस के एक परिचित ने उसे कुछ महिलाओं को इकट्ठा कर एक चुनावी सभा में लाने को कहा. इस काम के लिए उसे 5 हजार रुपए मिले थे. कुल 25 महिलाओं को वह सभा में ले गई थी. 100 रुपए हर महिला को देने के बाद उस के पास 2,500 रुपए बच गए थे. फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा.

इसी दौरान उस की मुलाकात चेतन से हुई थी. वह अधेड़ उम्र का छुटभैया नेता था. मीनाक्षी उम्र में उस से काफी छोटी थी. दोनों का परिचय हुआ फिर घनिष्ठता बढ़ी. देखते ही देखते यह घनिष्ठता सारी सीमाएं लांघ गई. मगर उन के संबंध ढकेछिपे ही रहे.

चुनावी दौर खत्म हुआ. चेतन और मीनाक्षी की पार्टी चुनाव जीत गई. सत्ता पक्ष की पार्टी का मुख्य कार्यकर्ता होने से चेतन की पूछ बढ़ गई. वह बड़ेबड़े लोगों के काम करवाने लगा. उन से वह खूब पैसा वसूलता.

इस तरह उस के आर्थिक हालात भी सुधरने लगे. साथ ही उस की खासमखास मीनाक्षी की भी पार्टी में अच्छी स्थिति हो गई और धीरेधीरे वह एक हस्ती बन गई. मीनाक्षी ने ब्यूटीशियन का कोर्स किया हुआ था. एक पौश कालोनी के बड़े शौपिंग मौल में उस ने ब्यूटीपार्लर खोल लिया.

आर्थिक हालात और ज्यादा सुधरे तो चेतन ने एक पौश इलाके के एक अपार्टमैंट में अगलबगल 2 बड़े फ्लैट, एक अपने नाम से और एक अपनी प्रेमिका मीनाक्षी के नाम से खरीद लिए.

एक दक्ष कारीगर द्वारा चेतन ने दोनों अपार्टमैंट्स के बीच वार्डरोब के अंदर से ही एक गुप्त दरवाजा बनवा दिया. इस का पता चेतन और मीनाक्षी के सिवा किसी अन्य को नहीं था.

चेतन का राजनीतिक कैरियर धीरेधीरे चढ़ता गया. वह पहले नगर पार्षद, फिर विधानसभा सदस्य, फिर मंत्री और अब मुख्यमंत्री पद का प्रमुख दावेदार बन गया था.

साथ ही उस की खासमखास समझी जाने वाली मीनाक्षी का कद और रुतबा भी काफी ऊंचा हो चला था. राजनीतिक क्षेत्र में उस को कोई भी सौदा पटाने, लेनदेन की रकम पहुंचाने या विवाद निबटाने के लिए उपयुक्त समझा जाता था.

मीनाक्षी काफी सुंदर होने के साथसाथ चालाक भी थी. वह जानती थी कि पैसे के साथ हुस्न और शबाब का अपना रौब होता है. उस की अपनी पार्टी में उस पर जान छिड़कने वाले अनेक लोग थे. मगर वह बिना जांचेपरखे और उस की अहमियत समझे किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी.

चेतन अब मंत्री बन गया था. उस का स्थान मंत्रिमंडल में दूसरा था. वर्तमान मुख्यमंत्री उस के बढ़ते प्रभाव से चिंतित थे.

‘‘चेतन पार्टी हाई कमान पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है,’’ मुख्यमंत्री कमला प्रसाद ने अपने सहयोगियों से बात करते हुए कहा.

‘‘सर, इस में उस की खासमखास मीनाक्षी का हाथ है,’’ मुख्यमंत्री के पीए ने कहा.

‘‘इस लड़की को क्या हम अपनी तरफ नहीं मिला सकते?’’

‘‘नामुमकिन है सर. यह चेतन के प्रति पूरी वफादार है.’’

‘‘इस का संबंध पार्टी मामलों से है या और कुछ भी है?’’

‘‘इन में सबकुछ है. यह चेतन की पत्नी से भी बढ़ कर है. पिछले यूरोप के दौरे के दौरान यह भी साथ गई थी. मंत्रीजी के खानेपीने, पहनने के कपड़ों का चुनाव, किस से मिलना है किस से नहीं, सब यही तय करती है.’’

‘‘इन दोनों में दूसरे के लिए सीढ़ी कौन है?’’ मुख्यमंत्री के इस सवाल पर उन के सहयोगी एकदूसरे की तरफ देखने लगे.

‘‘सर, कई लोग कहते हैं कि चेतन को ऊंचा उठाने में मीनाक्षी का हाथ है. कई कहते हैं मीनाक्षी चेतन का साथ हो जाने से रसूख वाली बनी है. सचाई जो भी हो, वे एकदूसरे के पूरक हैं,’’ पीए ने कहा.

‘‘मीनाक्षी हमारी तरफ नहीं आ सकती?’’

‘‘सर, आप को अपनी तरफ ला कर क्या करना है?’’ पवन, जो सीएम का खास सलाहकार था, के इस सवाल पर सब हंस पड़े. मुख्यमंत्री भी हंसने लगे.

‘एक खूबसूरत जवान औरत का मुख्यमंत्री ने क्या करना था?’ यह बात सीधी भी थी और मूर्खतापूर्ण भी.

चेतन मुख्यमंत्री के मुकाबले कम उम्र का था. एक तरह से जवान था जबकि मुख्यमंत्री 60 पार कर चुके थे.

मुख्यमंत्री मंदमंद मुसकरा रहे थे. मीनाक्षी के खूबसूरत जवान शरीर से उन्हें क्या करना था. उन्हें तो अपने काम से मतलब था. असल में वे इस बात के कायल थे कि मीनाक्षी अपने रूपयौवन से बड़े नेताओं को लुभा कर अपने प्रेमी चेतन के लिए तरक्की के रास्ते बनाती थी.

मगर क्या किसी औरत के प्रेम को भी कोई दूसरा यों पा सकता था? मीनाक्षी ने अपने रिहायशी अपार्टमैंट में ही एक ब्यूटीपार्लर भी खोल रखा था. जिन को वह अपने ब्यूटीपार्लर में ट्रीटमैंट नहीं दे पाती थी या जो स्पैशल ट्रीटमैंट चाहते थे वे स्पैशल आवर में अपार्टमैंट में आ जाते थे. इस के लिए उन्हें फीस भी ज्यादा देनी पड़ती थी.

थोड़ेथोड़े अंतराल पर मंत्रीजी भी स्पैशल ट्रीटमैंट, जिस में बौडी मसाज, हैड मसाज और अन्य उपचार शामिल थे, के लिए मीनाक्षी के पास आते थे.

आज मंत्रीजी को आना था. मीनाक्षी अपनी नौकरानी, जो उस की औल इन औल थी, के साथ स्पैशल खाना बनवा रही थी.

कभी यही चेतन मीनाक्षी को साइकिल के कैरियर पर बिठा सभाओं व कार्यक्रमों में लाता ले जाता था. फिर साइकिल की जगह मोटरसाइकिल या स्कूटर आ गया था. और अब लावलश्कर के साथ मंत्रीजी विदेशी कार में आते थे.

मंत्रीजी आ गए. कमांडो दस्ता बाहर पहरे पर खड़ा हो गया. मंत्रीजी अकेले ब्यूटीपार्लर में चले गए. पहले मालिश से उन की थकावट और तनाव दूर करने का उपचार हुआ. फिर हर्बल स्नान, फिर डिं्रक्स का हलकाफुलका दौर चला. फिर खाना सर्व हुआ.

खाना खाने के बाद मंत्रीजी अपने अपार्टमैंट में रात्रिविश्राम के लिए चले गए. मंत्रीजी ज्यादातर अपने सरकारी आवास पर परिवार सहित रहते थे. लेकिन कभीकभी विशेष बैठक या विशेष चिंतन हेतु अपने अपार्टमैंट में अकेले विश्राम करने आ जाते थे.

वचन : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

वैशालपुर के ठाकुर प्रताप सिंह की बेटी थी राजबाला. वह बेहद सुंदर और धैर्यवान होने के साथ चतुर भी थी. आसपास के रजवाड़ों में ऐसी गुणों की खान कोई न थी. राजबाला का गोरा रंग, सुतवां नाक, कजरारे बड़ेबड़े नैन और गुलाब की पंखुडि़यों जैसे गुलाबी होंठ, भरा और कसा बदन, कमर तक लटकती स्याह काली केशराशि और मोहक मुसकान देख कर लोग उसे ऐसे ताकते रह जाते थे, जैसे वह किसी दूसरे लोक से आई कोई अप्सरा हो.

मगर हकीकत में वह कोई अप्सरा नहीं, बल्कि राजपूत बाला राजबाला थी. अपने पति को वह प्राणों से अधिक प्यार करती थी और जीवन भर कभी भी ऐसा अवसर न आया, जब उस ने पति की इच्छा के खिलाफ कोई काम किया हो.

राजबाला का विवाह अमरकोट रियासत की सोडा राजधानी के राजा अनार सिंह के पुत्र अजीत सिंह से हुआ था. अनार सिंह के पास बहुत बड़ी सेना थी, जिस से कभीकभी वह लूटमार भी किया करते थे.

एक बार ऐसा हुआ कि राव कोटा का राजकोष कहीं से आ रहा था. इस की खबर अनार सिंह को लग गई. तब अनार सिंह अपनी सेना ले कर राजकोष लूटने चल पड़े. राव कोटा के सिपाही बड़े वीर थे. दोनों सेनाओं में जम कर युद्ध हुआ. अंत में अनार सिंह की पराजय हुई और उन की सारी सेना तितरबितर हो गई.

इस पराजय के कारण अनार सिंह का सोडा में रहना असंभव हो गया. कोटा के राजा राव ने अनार सिंह की जागीर छीन ली और उन्हें देश निकाले का फरमान सुना दिया. अनार सिंह अब अपने किए पर पछता रहे थे.

मगर जो होना था, वह तो हो चुका था. अंत में वह सोडा को छोड़ कर काले वस्त्र धारण कर काले घोड़े पर बैठ कर स्याह काली रात के अंधेरे में दूसरे राज्य के एक छोटे से गांव में जा बसे.

अनार सिंह का हाथ तो पहले से ही तंग था, अब हालत और भी खराब हो गए. कहावत है कि रिजक (धन) बिन राजपूत कैसा. यहां तक कि देश निकाला मिलने के थोड़े समय बाद में दुख और लाज के मारे उन्होंने प्राण त्याग दिए.

अनार सिंह की मृत्यु के बाद उन की पत्नी ठकुरानी अपने पुत्र अजीत सिंह को बड़े कष्ट उठा कर पालने लगी. अजीत सिंह की उम्र उस समय 13 वर्ष रही होगी. किंतु बांकपन और वीरता में वह अपनी उम्र के बालकों से कहीं बढ़ कर था. इस कुल की धीरेधीरे यह दुर्दशा हो गई कि अजीत सिंह की माता दूसरों का कामकाज कर के निर्वाह करने लगी. इस प्रकार उस दुखिया की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई.

राजबाला के साथ अजीत सिंह के विवाह की बातचीत उस के पिता के जीते जी हो गई थी. हालांकि अनार सिंह का यह कुल अति दरिद्र हो गया था. परंतु राजपूत लोग सदा से अपने वचन का सम्मान करते थे.

राजपूतानियां भी प्राय: अति हठी होती थीं. एक बार जब किसी के साथ उन का नाम निकल जाए, फिर वह कभी किसी दूसरे के साथ विवाह करना उचित नहीं समझती थीं.

अजीत सिंह अब बिलकुल अनाथ था. वह किसी प्रकार अपना निर्वाह न कर सकता था. किंतु उसे आशा थी कि उस के युवा होने पर शायद कोटा का राजा उस के पिता की जागीर उसे दे देगा, जिस का वह वारिस है. बस, वह इसी आशा से जी रहा था.

एक बार अजीत सिंह ने एक राजपूतानी को प्रताप सिंह के यहां इसलिए भेजा था कि वह अपनी पुत्री का विवाह उस के साथ करने को राजी है या नहीं? उस समय राजबाला भी युवती थी. वह विवाह का समाचार सुन कर अपनी सहेलियों से कहने लगी, ‘‘बहनो, मैं ने अपने पति को नहीं देखा, वह कैसे हैं?’’

सहेलियां बोलीं, ‘‘तुम्हारे पति अति सुंदर, बुद्धिमान और वीर हैं.’’

पति की प्रशंसा सुन कर राजबाला अति प्रसन्न हुई और कहने लगी, ‘‘मेरे पति वीर हैं, चतुर हैं और सुंदर हैं. ये ही सब बातें एक राजपूत में होनी चाहिए. सब कहते हैं कि उन के पास धन नहीं है. न सही, जहां बुद्धि और पराक्रम है, वहां धन अपने आप ही आ जाता है.’’

राजबाला ने किसी तरह उस राजपूतानी से मिल कर कहा, ‘‘तुम जा कर मेरे पति से कहो कि यहां लोग तुम्हारी दरिद्रता का समाचार कहते रहते हैं, परंतु मैं आज से ही नहीं, कई सालों से आप की हो चुकी हूं. आप मेरे पति हैं, मैं आप की बुराई सुनना नहीं चाहती. इसलिए आप स्वयं आ कर पिताजी से कह कर मुझे ले जाएं. मैं गरीबी और अमीरी में सदा आप का साथ दूंगी. किसी का वश नहीं कि मेरी बात को टाल सके. यदि विवाह होगा तो आप के साथ होगा, नहीं तो राजबाला प्रसन्नतापूर्वक प्राण त्याग करेगी.’’

जिस समय राजपूतानी ने राजबाला का यह संदेश अजीत सिंह को सुनाया. वह बहुत खुश हुआ और कहने लगा, ‘‘यह कैसे संभव है कि मेरे जीते जी कोई और राजबाला को ब्याह ले जाए.’’

राजबाला के कहे अनुसार अजीत सिंह ने उस के पिता प्रताप सिंह को विवाह के लिए कहलवा भेजा. जिस के जवाब में प्रताप सिंह ने कहा, ‘‘विवाह को तो हम तैयार हैं. क्योंकि हम ने तुम्हारे पिता को वचन दिया था. परंतु इस समय तुम्हारी आर्थिक हालत सही नहीं है. ऐसा करो कि तुम 20 हजार रुपए इकट्ठा कर के लाओ, जिस से यह मालूम हो कि तुम मेरी बेटी को सुखी रख सकोगे. जब तक तुम्हारे पास 20 हजार रुपए न हों तो विवाह के बारे में भी तुम्हारा सोचना व्यर्थ है.’’

आखिर प्रताप सिंह की बात भी उचित थी. कोई भी पिता अपनी ऐशोआराम में पली बेटी का विवाह ऐसे किसी व्यक्ति के साथ कैसे कर सकता है, जिस का खुद निर्वाह करना मुश्किल होता हो.

अजीत सिंह सोच में डूब गया. परंतु बेचारा क्या करता. अंत में उसे जैसलमेर के एक सेठ मोहता का ध्यान आया, जिस के यहां से उस के पिता का लेनदेन था.

वह सेठ मोहता के पास गया और उस से कहा, ‘‘सेठजी, तुम मेरे घराने के पुराने महाजन हो. 20 हजार रुपए के बिना मेरा विवाह नहीं हो रहा है. विवाह करना जरूरी है, परंतु तुम जानते हो कि मेरे पास इस समय न जागीर है, न ही कुछ और है. अगर पुराने संबंधों का विचार कर के और मुझ पर विश्वास करते हुए मुझे 20 हजार रुपए दे सको तो दे दो. मैं सूद सहित वापस कर दूंगा.’’

सेठ मोहता ने अजीत सिंह को बड़े ध्यान से देख कर कहा, ‘‘ये लो, ये 20 हजार रुपए रखे हैं. लेकिन एक शर्त है, वो यह कि तुम यह वचन दो कि जब तक तुम मेरे रुपए वापस न लौटा दोगे, तब तक अपनी पत्नी से मिलन नहीं करोगे. अगर ऐसा करते हो तो यह रुपए ले लो.’’

ऐसे वचन को निभाना बड़ी कठिन बात थी. परंतु रुपए मिलने का और कोई उपाय भी तो न था. अत: वह राजी हो गया और रुपए ले कर अपनी ससुराल वैशालपुर आया.

अपने वचन के अनुसार प्रताप सिंह ने दोनों का विवाह कर दिया. यह किसी को जरा भी खबर न हुई कि रुपए कहां से आए. विवाह के बाद रीतिरिवाज के अनुसार दूल्हा दुलहन दोनों के लिए एक महल दे दिया गया. वे कई दिन तक उस में रहे, परंतु सेज पर सोते समय अजीत सिंह अपने और पत्नी के बीच नंगी तलवार रख कर सोता था.

राजबाला को उन के इस प्रकार के बर्ताव से बड़ा आश्चर्य हुआ और मन ही मन सोचने लगी, ‘सचमुच मेरे पति बड़े सुंदर हैं, चतुर और वीर हैं, पर नामालूम बीच में नंगी तलवार रख कर सोने का क्या मतलब है?’

कई दिन इसी तरह बीत गए, परंतु राजबाला को इतना साहस नहीं हुआ कि कुछ पूछती. अंत में एक दिन दोनों में बातचीत होने लगी. राजबाला ने साहस कर के पूछा, ‘‘प्राणनाथ, मैं देखती हूं कि आप प्राय: ठंडी और गहरी सांसें लेते रहते हैं. इस से पता चलता है कि आप को कोई बड़ा कष्ट हो रहा है. मैं तो आप के चरणों की दासी हूं, मुझ से छिपाना उचित नहीं है. मैं विचार करूंगी कि किस प्रकार आप की चिंता दूर हो सकती है.’’

राजबाला की बात सुन कर उस का दिल भर आया और मुंह नीचा कर के उस ने चुप्पी साध ली. राजबाला ने फिर कहा, ‘‘स्वामी, घबराने की कोई बात नहीं है. इस संसार में सभी पर विपत्ति आती है. चिंता व्यर्थ है. संसार में हर रोग की दवा है. आप चिंता न कीजिए, मुझ से कहिए. यथासंभव मैं आप की सहायता करूंगी. यदि मेरे मरने से भी आप को सुख मिलता है या आप का भला होता है तो मेरे प्राण आप की सेवा को हर समय तैयार हैं.’’

राजबाला का इतना कहना था कि अजीत सिंह ने राजबाला का हाथ पकड़ लिया और दुखभरे शब्दों में अपनी सब कथा कह सुनाई.

जब अजीत सिंह यह सब कह चुका तो राजबाला ने कहा, ‘‘स्वामी, आप ने बड़ा त्याग कर के मुझे मोल लिया है. मैं कभी आप की इस कृपा को नहीं भूल सकती. पर यह ऐसी जगह नहीं है, जहां 20 हजार रुपए मिल सकें. इसलिए इसे छोड़ना उचित है.

‘‘मैं इसी समय मरदाना वेश धारण करती हूं. मैं और आप संगसंग रहेंगे. जब कोई आप से मेरे बारे में पूछे तो आप साले बहनोई बताएं. चलिए, परदेश चल कर महाजन के 20 हजार रुपए चुकाने का उपाय करें.’’

आधी रात का समय था, जब पतिपत्नी में इस प्रकार की बातचीत हुई. सब लोग बेसुध सो रहे थे. राजबाला ने मरदाना वेश धारण किया. अजीत सिंह और राजबाला दोनों महल से बाहर आए और घोड़ों पर सवार हो कर चल दिए.

कई दिन के सफर के बाद 2 सुंदर बांके युवक घोड़ों पर सवार उदयपुर में दिखाई दिए. उस समय मेवाड़ की राजगद्दी पर महाराज जगत सिंह राज करते थे. राणा महल की छत पर बैठे नगर को देख रहे थे. नए राजपूतों को देख कर उन का हाल जानने के लिए राणा ने 2 दूतों को भेजा.

थोड़ी देर में दोनों राजपूत राणा के सामने लाए गए. जब दोनों राजपूत प्रणाम कर चुके तो महाराज ने पूछा, ‘‘तुम कौन हो? कहां से आए हो? और कहां जा रहे हो?’’

अजीत सिंह ने उत्तर दिया, ‘‘महाराज, हम दोनों राजपूत हैं. मेरा नाम अजीत सिंह और ये मेरे साले हैं. इन का नाम गुलाब सिंह है. नौकरी की तलाश में आप के यहां आए हैं. सौभाग्य से आप के दर्शन हो गए. अब आगे क्या होगा, नहीं मालूम.’’

राजा राजपूतों के ढंग को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और राजपूतों के नाम पर मोहित हो कर महाराज ने हंस कर उत्तर दिया, ‘‘तुम लोग मेरे यहां रहो. एक हवेली तुम्हारे रहने के लिए दी जाती है. खानपान के लिए अतिरिक्त 5 हजार रुपए और दिए जाएंगे.’’

राजबाला और अजीत सिंह दोनों अब उदयपुर में रहने लगे, परंतु 20 हजार रुपए की चिंता सदा लगी रहती थी. रुपए जुटाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. वह वर्षा ऋतु के आरंभ में यहां आए थे और वर्षा ऋतु बीत गई.

फिर दशहरे का त्यौहार आया. इस पर राजपूताना में बड़ा उत्सव मनाया जाता है. उदयपुर में पाड़े (भैंसे) का वध किया जाता है. महाराज के साथ सब सामंत, जागीरदार, सरदार घोड़ों पर सवार हुए. उन के साथ गुलाब सिंह और अजीत सिंह भी चल दिए.

इतने में ही एक गुप्तचर ने आ कर खबर दी, ‘‘महाराज की जय हो. पाड़े के स्थान पर एक सिंह की खबर है.’’

राणा ने राजपूतों से कहा, ‘‘वीरों, आज का दिन धन्य है जो सिंह आया है. ऐसा अवसर बड़ी कठिनाई से मिलता है. अब पाड़े का ध्यान छोड़ कर सिंह का शिकार करो.’’

बस, फिर क्या था. हांके वालों ने सिंह को जा कर घेर लिया और उस के निकलने के लिए केवल एक ही रास्ता रखा जिधर राजा और सरदार उस सिंह का इंतजार कर रहे थे.

महाराज हाथी पर थे. वह चाहते थे कि स्वयं सिंह का शिकार करें. इसलिए उन्होंने और सरदारों को उचितउचित स्थान पर खड़ा कर दिया. जब सिंह ने देखा कि उसे लोग घेर रहे हैं तो वह राणा की ओर बढ़ा.

उसे देख का राणा डर गए क्योंकि उन्होंने  पहले कभी इतना बड़ा सिंह नहीं देखा था. उसे मारना आसान काम नहीं था. सब सरदार लोग भी डर गए. सिंह झपट कर राणा के हाथी पर आया और उस के मस्तक से मांस का लोथड़ा नोच कर पीछे हट गया.

राणा के हाथ से भय के मारे तीरकमान भी छूट गए. सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि गुलाब सिंह ने दूर से देखा और अजीत सिंह से कहा, ‘‘ठाकुर साहब, महाराज की जान खतरे में है. उन्हें ऐसे कठिन समय में छोड़ना अति कायरता की बात है. मुझ से अब देखा नहीं जाता. प्रणाम, मैं जाता हूं.’’

तभी गुलाब सिंह का घोड़ा तीर की तरह सनसनाता हुआ आगे बढ़ा, हाथी अपना धैर्य छोड़ चुका था. सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि हवा के झोंके की तरह आ कर गुलाब सिंह ने उसे अपने भाले के निशाने पर ले लिया. भाले सहित सिंह जमीन पर गिरा.

बस, फिर क्या था, सवार ने एक ऐसा हाथ तलवार का मारा कि सिंह का सिर अलग जा गिरा. उसी समय उस के कान और पूंछ काट कर घोड़े की जीन के नीचे रख कर लोगों के बीच जा पहुंचा और बातचीत करने लगा.

परंतु उस ने इस काम को इतनी फुरती में किया कि किसी को ज्ञात भी न हुआ कि वह घुड़सवार कौन था, जिस ने सिंह को मारा. सिंह के मरने पर चारों ओर राजा की जयजयकार होने लगी. सब लोगों ने अपनीअपनी जगह से आ कर राजा को घेर लिया. सरदारों ने कहा, ‘‘ईश्वर ने आज बड़ी दया की. हम सब की जान में जान आई.’’

जब सभी बधाई दे चुके तो राजा ने कहा, ‘‘वह कौन बहादुर था, जिस ने आज मेरी प्राणों की रक्षा की. उस को मेरे सामने लाओ. मैं उसे ईनाम दूंगा.’’

परंतु मारने वाला बहुत दूर खड़ा था. वह अपने को उजागर करना भी नहीं चाहता था. राणा ने थोड़ी देर तक राह देखी. परंतु जब कोई नहीं आया तो खुशामदी दरबारी लोग अपनेअपने मित्रों के नाम बताने लगे.

राणा ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ने उसे जाते हुए देखा है. हालांकि ठीकठीक नहीं कह सकता, परंतु पहचान तो उसे अवश्य लूंगा. उस के मुख की सुंदरता मेरी आंखों में खपी जाती है.’’

राजा की बात सुन कर सब चुप हो गए और सवारी महल की ओर चली. जब राणा फाटक पर पहुंचे तो हाथी से उतर कर आज्ञा दी, ‘‘एकएक आदमी मेरे सामने से हो कर निकल जाएं.’’

आज्ञानुसार बारीबारी से सभी लोग राणा के सामने से निकल कर महल में चले गए. जब गुलाब सिंह जाने लगा तो राणा ने उसे देख कर पूछा, ‘‘क्या सिंह को तुम ने मारा है?’’

गुलाब सिंह ने सिर झुका कर कहा, ‘‘जिस को श्रीमान कहें, वही सिंह का वध कर सकता है. सिंह की मृत्यु तो आप की आज्ञा के अधीन है.’’

राणा बोले, ‘‘मैं समझता हूं, सिंह तुम ने ही मारा है परंतु मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि तीव्रगति से दौड़ते घोड़े ने मुझे इतना अवसर न दिया कि मैं मारने वाले को ठीक से पहचान सकता.’’

अजीत सिंह भी निकट था, वह बोला, ‘‘अनाथों के नाथ, सिंह के कान और पूंछ नहीं हैं, इस से ज्ञात होता है कि उस को मारने वाले ने प्रमाण के लिए उस के कान और पूंछ काट लिए हैं.’’

राणा ने गुलाब सिंह से कहा, ‘‘कान और पूंछ हाजिर करो.’’

गुलाब सिंह ने तुरंत घोड़े की जीन के नीचे से निकाल कर उन्हें राणा के सामने पेश किया. राणा बोले, ‘‘राजपूतो, तुम बड़े वीर हो. आज से तुम मेरे संग रहो. मैं तुम्हें अपना अंगरक्षक नियुक्त करता हूं.’’

हालांकि दोनों राजपूत संग रहते थे परंतु रात के समय दोनों को अलगअलग हो जाना पड़ता था. अजीत सिंह तो रात को दरबार में रहता था और राजबाला (गुलाब सिंह) की ड्यूटी राजा के सुख भवन में थी. एक दिन राजबाला अपनी बेबसी पर नीचे स्वर में मल्हार के राग गाने लगी.

अजीत सिंह ने राजबाला के राग को सुना. उस के हृदय में भी वही भाव उद्दीप्त हो गया. उस ने भी राजबाला के राग में स्वर मिला दिया. राणा की रानी बहुत चतुर थी. दोनों गाने वालों के राग की आवाज रात के समय उस के कानों में पड़ी.

उस ने राणा से कहा, ‘‘मुझे ज्ञात होता है कि ये दोनों राजपूत जो तुम्हारी सेवा में हैं स्त्री और पुरुष हैं. यह जो पुरुष रानी निवास पर पहरे पर है, अवश्य यह स्त्री है. कोई कारण है, जिस से ये एकदूसरे से नहीं मिलते और मन ही मन कुढ़ते हैं.’’

राणा खूब ठहाके मार कर हंसे फिर बोले, ‘‘खूब, तुम्हें खूब सूझी. ये दोनों सालेबहनोई हैं. सदा से संग रहते हैं. आज यह यहां ड्योढ़ी पर हैं कि कभी अलग नहीं होंगे. इन दोनों में गाढ़ी प्रीत है.’’

रानी बोली, ‘‘महाराज, आप जो कहते हैं सत्य होगा, परंतु मेरी भी बात मान लीजिए. इन की परीक्षा कीजिए. अपने आप ही झूठसच ज्ञात हो जाएगा.’’

राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ और तुरंत ही अजीत सिंह और गुलाब सिंह दोनों को अपने महल में बुला भेजा. दोनों बड़े डरे कि क्या बात है. कोई नई आफत तो नहीं आई.

उन्होंने राणा के सामने जा कर प्रणाम किया. तब राणा ने पूछा, ‘‘गुलाब सिंह और अजीत सिंह यह बताओ कि तुम दोनों मर्द हो या तुम में से कोई स्त्री है?’’

दोनों चुप थे. क्या उत्तर देते. राणा ने फिर वही प्रश्न किया, ‘‘तुम दोनों बोलते क्यों नहीं? तुम्हें जो दुख हो कहो. मेरे अधिकार में होगा तो अभी इसी समय दूर कर दूंगा. लाज, भय की कोई बात नहीं.’’

अजीत सिंह ने सिर झुका कर राणा को अपनी सारी कहानी कह सुनाई. राणा ने उसी समय दासी को बुला कर कहा, ‘‘देखो, यह जो बहन मरदाना वेश में खड़ी है, मेरी पुत्री है. इस को अभी महल में ले जा कर स्त्रियों के कपड़े पहना दो और महल में रहने के लिए अलग स्थान दो, हर प्रकार से इन को आराम दो.’’

राजबाला राणा को प्रणाम कर उन की आज्ञा मान कर उसी समय सिर झुका कर महल में चली गई.

इस के बाद राणा ने अजीत सिंह से कहा, ‘‘राजपूत, मैं तेरे बापदादा के नाम को जानता हूं. तेरा वचनबद्ध होना धन्य है. मैं ने आज तक अपनी आयु में ऐसा योगी नहीं देखा था. तू मनुष्य नहीं देवता है. जा महल में अब अपनी स्त्री से बात कर.’’

रात को किसी को नींद नहीं आई. सुबह होते ही राणा ने 20 हजार रुपए सूद सहित अजीत सिंह को दिए.

वह उसी समय ऊंटनी पर चढ़ कर जैसलमेर की ओर चल दिया. कई दिन के सफर के बाद अजीत सिंह जैसलमेर मोहता सेठ के पास पहुंचा और सूद सहित 20 हजार रुपए सौंप दिए.

एक बरस से अजीत सिंह का कोई अतापता नहीं था. बनिया अपने रुपयों से निराश हो गया था परंतु उसे कोई रंज न था. क्योंकि वह अजीत सिंह के पिता अनार सिंह से बहुत कुछ ले चुका था. रुपए वापस पा कर सेठ बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘तुम वास्तव में क्षत्रिय हो, तुम जानते हो कि वचन क्या होता है. तुम महान हो.’’

अजीत सिंह सेठ के रुपए दे कर उदयपुर आया और राणा के पैरों पर गिर पड़ा, ‘‘आप ने मेरी लाज रख ली.’’

राणा ने राजबाला को प्राणरक्षक देवी का खिताब दिया. वह उदयपुर में इसी नाम से विख्यात थीं. वह जब कभी राणा के महल में उन के होते हुए जाती, राणा बेटी कह कर पुकारते थे.

पतिपत्नी दोनों राणा के कृपापात्र बन गए. राणा उन्हें बहुत प्यार करते थे, मानो वे उन के ही बेटेबेटी हों. राजबाला और उस के पति के लिए एक अलग से महल बनवा दिया गया और उन्हें एक जागीर भी अलग प्रदान की कई.

सेठ के रुपए चुका कर उदयपुर जाने के बाद उस रात जब बिस्तर पर अजीत सिंह और राजबाला सोए, तब उन के बीच तलवार नहीं थी. दोनों ने अपना वचन धर्म निभाया था और उस दिन दो जिस्म एक जान बन गए थे.

अपने हिस्से की ईमानदारी : अंबर को बफादारी का क्या सिला मिला

प्रस्तुति: कलीम उल्लाह

नादिर गुलशन इकबाल के एक शानदार मकान में रहता था. उस के पास बहुत पैसा था. वह कोई काम नहीं करता था. बस, जरूरतमंद लोगों को पैसे ब्याज पर देता था. इस काम से उसे अच्छीखासी आमदनी थी और उस से बहुत आराम से गुजारा होता था. नादिर का कहना था कि यही उस का बिजनैस है और बिजनैस से मुनाफा लेना कोई बुरी बात नहीं है.

कर्ज के तौर पर दिए गए पैसों का ब्याज वह हर महीने वसूल करता था. नादिर ने पैसे वसूल करने के लिए कुछ कारिंदे भी रखे हुए थे. अगर कोई आदमी पैसे देने में आनाकानी करता था तो कारिंदे गुंडागर्दी पर उतर आते थे, कर्जदार के हाथपैर तोड़ देते थे और कभीकभी गोलियां भी मार देते थे. नादिर ने आसपास के थानेदारों को पटा रखा था.

एक दिन नादिर का दोस्त अकरम अपने एक परिचित युवक नोमान को ले कर उस के पास आया. नोमान एक शरीफ आदमी लग रहा था. उस के चेहरे से दुख और परेशानी झलक रही थी.

अकरम ने नादिर से नोमान का परिचय कराया और कहा, ‘‘नादिर भाई, ये आजकल कुछ परेशानी में फंसे हुए हैं. आप इन की मदद कर दीजिए. नोमान आप का पैसा जल्द वापस कर देंगे. इन का होजरी का कारोबार है.’’

‘‘अच्छा, कितने पैसों की जरूरत है आप को?’’ नादिर ने पूछा.

नोमान ने कहा, ‘‘नादिर भाई, मुझे 5 लाख की जरूरत है. मैं ने आज तक किसी से कर्ज नहीं लिया, लेकिन इस बार मजबूर हो गया हूं.’’

‘‘लेकिन अकरम,’’ नादिर ने अपने दोस्त की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘इस बंदे की जमानत कौन लेगा?’’

‘‘नादिर साहब,’’ नोमान बोला, ‘‘मैं एक शरीफ आदमी हूं. सदर में मेरी दुकान और अल आजम स्क्वायर में मेरा फ्लैट है. मैं आप के पैसे ले कर कहीं भागूंगा नहीं.’’

‘‘आप भाग ही नहीं सकते,’’ नादिर हंसते हुए बोला, ‘‘खैर, 5 लाख के लिए आप को हर महीने 50 हजार ब्याज देना पड़ेगा, आप को मंजूर है?’’

नोमान ने 50 हजार ब्याज देने से इनकार कर दिया. लेकिन अकरम के कहने पर नादिर 30 हजार महीना ब्याज पर राजी हो गया. नादिर ने कहा कि ब्याज की रकम कम करना उस के नियम के खिलाफ है लेकिन नोमान एक अच्छा आदमी लग रहा है, इसलिए इतनी छूट दे दी.

नादिर के दोस्त अकरम ने कहा, ‘‘नादिर भाई, मैं ने आप दोनों को मिलवा दिया है. अब जो भी मामला है, वह आप दोनों का है. आप हर तरह से तसल्ली करने के बाद इन्हें पैसा दें. फिर इन्होंने मूल रकम या ब्याज दिया या नहीं या आप ने इन के साथ कोई ज्यादती की, मुझे इस से कोई लेनादेना नहीं. आगे आप दोनों जानें.’’

‘‘ठीक है यार, मैं तुझ पर कोई इलजाम नहीं लगाऊंगा. अब यह मेरा मामला है, लेकिन मैं नोमान का मकान जरूर देखूंगा.’’ नादिर ने अकरम से कहा.

नोमान तुरंत बोला, ‘‘क्यों नहीं नादिर भाई, आप जब चाहें मकान देख लें बल्कि आप शुक्रवार को आ जाएं, मैं घर पर ही रहूंगा. दोनों एक साथ बैठ कर चाय पिएंगे.’’

अपनी संतुष्टि के लिए नादिर शुक्रवार को नोमान का घर देखने पहुंच गया. नोमान का फ्लैट बहुत अच्छा था. नोमान ने नादिर को देख कर फौरन फ्लैट का दरवाजा खोल दिया और कहा, ‘‘वेलकम नादिर भाई, मैं तो समझ रहा था कि शायद आप ने यूं ही कह दिया. आप तशरीफ नहीं लाएंगे.’’

‘‘क्यों नहीं आऊंगा. हमारे धंधे में जबान की बहुत अहमियत होती है. जो कह दिया, सो कह दिया.’’ नादिर बोला.

नोमान ने नादिर को ड्राइंगरूम में बिठा दिया. नादिर को पूरी तरह तसल्ली हो गई कि उस का पैसा कहीं नहीं जाएगा. वैसे भी नोमान शरीफ आदमी दिखाई दे रहा था.

‘‘माफ करना नादिर भाई, आज बेगम घर पर नहीं हैं, इसलिए आप को मेरे हाथ की चाय पीनी पड़ेगी.’’

‘‘अरे, इस की जरूरत नहीं है,’’ नादिर बोला.

‘‘यह तो हो ही नहीं सकता,’’ नोमान ने कहा, ‘‘मैं अभी हाजिर हुआ.’’

नोमान अंदर किचेन की तरफ चला गया. इस दौरान नादिर फ्लैट का निरीक्षण करता रहा. चाय और नमकीन आदि से निपटने के बाद नोमान ने पूछा, ‘‘तो फिर आप ने क्या फैसला किया?’’

‘‘ठीक है,’’ नादिर ने हामी भरी, ‘‘मुझे आप की तरफ से इत्मीनान हो गया है. मैं कल आऊंगा पैसे ले कर.’’

नोमान ने उस का शुक्रिया अदा किया और कहा, ‘‘यकीन करें, अगर इतनी जरूरत न होती तो मैं कभी पैसे नहीं लेता.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ नादिर मुसकरा दिया, ‘‘हम जैसों को जरूरत में ही याद किया जाता है. अब मैं चलता हूं.’’

नादिर अपने घर वापस आ गया. उस ने अपने दोस्त अकरम को फोन कर दिया, जिस ने नोमान का परिचय कराया था, ‘‘हां भाई, मुझे बंदा ठीक लगा. घर भी देख लिया है उस का. उसे कल पैसे दे दूंगा.’’

दूसरे दिन शाम को नादिर 5 लाख रुपए ले कर नोमान के घर पहुंच गया. दस्तक के जवाब में एक युवती ने दरवाजा खोला. वह एक सुंदर औरत थी. नादिर के अंदाज के अनुसार उस की उम्र 28-30 साल थी. वह प्रश्नसूचक नजरों से नादिर को देख रही थी.

‘‘मुझे नोमान से मिलना है,’’ नादिर ने कहा, ‘‘मेरा नाम नादिर है.’’

‘‘ओह! आप नादिर साहब हैं. नोमान ने मुझे आप के बारे में बताया था. मैं उन की मिसेज अंबर हूं. आप अंदर आ जाएं. नोमान शावर ले रहे हैं. मैं उन्हें बता देती हूं.’’

नादिर अंदर जा कर बैठ गया, उसी ड्राइंगरूम में जहां कल बैठा था. नोमान की पत्नी अंदर चली गई. नादिर को वह स्त्री बहुत अच्छी लगी थी. वैसे तो वह बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थी, लेकिन उस में एक खास किस्म की कशिश जरूर थी. नादिर ने बहुत कम औरतों में ऐसा आकर्षण देखा था.

कुछ देर बाद नोमान की पत्नी अंबर चाय आदि ले कर आई और नादिर से बोली, ‘‘ये लें, चाय पिएं. नोमान आ रहे हैं.’’

वैसे तो अंबर चाय दे कर चली गई थी, लेकिन नादिर के लिए वह अभी तक उसी ड्राइंगरूम में थी. उस के बदन की खुशबू से पूरा कमरा महक रहा था. नादिर उस स्त्री से बहुत प्रभावित हुआ.

कुछ देर बाद नोमान नहा कर आ गया. दोनों ने बहुत गर्मजोशी से हाथ मिलाया. नादिर बोला, ‘‘नोमान, मैं तुम्हारे 5 लाख रुपए ले आया हूं.’’फिर उस ने अपनी जेब से नोटों की गड्डी निकाल कर मेज पर रख दी.

नोमान ने कहा, ‘‘बहुतबहुत शुक्रिया, मैं अभी आया.’’

‘‘तुम कहां चल दिए,’’ नादिर ने पूछा.

‘‘पहचान पत्र की फोटो कौपी लेने,’’ नोमान ने बताया.

‘‘अरे, रहने दो,’’ नादिर बेतकल्लुफी से बोला, ‘‘उस की जरूरत नहीं है.’’

फिर कुछ देर बाद वह चला गया.

नादिर लड़कियों और औरतों का शिकारी था. उसे अंदाजा हो गया था कि नोमान की पत्नी अंबर को हासिल करना कोई मुश्किल काम नहीं होगा. उस ने अंबर की आंखों के इशारे देख लिए थे, जो बहुत सामान्य लगते थे, लेकिन नादिर जैसे लोगों के लिए इतना ही बहुत था.

नादिर को एक महीने तक इंतजार करना था. उस ने नोमान से कहा था, ‘‘आप मेरे पास आने का कष्ट न करें. मैं स्वयं ही ब्याज की किस्त लेने आ जाया करूंगा. कुछ गपशप भी हो जाएगी और चाय भी चलती रहेगी.’’

ब्याज की किस्त वसूल करने के सिलसिले में नादिर बहुत कठोर था. वह मोहलत देने का विरोधी था. अगर वह मोहलत देता भी था, तो रोजाना के हिसाब से जुरमाना भी वसूल करता था. नादिर के साथ उस के गुंडे भी होते थे, इसलिए कोई इनकार नहीं करता था.

नादिर अपने समय पर नोमान के घर ब्याज की रकम लेने के लिए पहुंच गया. नोमान किसी काम से बाहर गया हुआ था. घर पर सिर्फ उस की बीवी थी. उस ने नादिर को प्रेमपूर्वक घर के अंदर बुला लिया. फिर उस के लिए चाय बना कर ले आई और खुद भी उस के सामने बैठ गई. चाय पीने के दौरान उस ने कहा, ‘‘नादिर साहब, अगर इस बार नोमान को पैसे देने में कुछ देर हो जाए तो बुरा तो नहीं मानेंगे.’’

‘‘क्यों, खैरियत तो है?’’ नादिर ने पूछा.

‘‘कहां खैरियत, मेरी अम्मी बीमार हैं. नोमान ने इस बार के पैसे उन के इलाज में लगा दिए,’’ अंबर ने बताया.

‘‘अरे चलें, कोई बात नहीं, उस से कह देना फिक्र न करे.’’

‘‘नोमान कह रहे थे कि आप रोजाना के हिसाब से जुरमाना भी वसूल करते हैं,’’ नोमान की पत्नी बोली.

‘‘अरे, उस की फिक्र न करें. ऐसा होता तो है लेकिन यह उसूल, नियम सब के साथ नहीं होता. अपने लोगों को छूट देनी पड़ती है,’’ नादिर ने अपने लोगों पर खास जोर दिया.

नोमान की पत्नी अंबर मुसकरा दी. उस की मुसकराहट देख कर नादिर का दिल खुश हो गया. फिर चाय की प्याली समेटते हुए अंबर का हाथ नादिर के हाथ से टकरा गया. नादिर के पूरे वजूद में जैसे करंट सा दौड़ गया.

‘‘मुझे पैसों की ऐसी कोई जल्दी नहीं है,’’ नादिर ने चलते हुए कहा, ‘‘और नोमान को जुरमाना देने की भी जरूरत नहीं है.’’

‘‘आप का बहुतबहुत शुक्रिया, हमारा कितना खयाल रखते हैं,’’ अंबर गंभीरता से बोली.

नादिर मदहोशी जैसी स्थिति में अपने घर वापस आ गया. शुरुआत हो गई थी. वह सोचने लगा काश! नोमान के पास कभी पैसे न हों और वह इसी तरह उस के घर जाता रहे.

10 दिन गुजर गए. नोमान की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. नादिर सोचने लगा, ‘हो सकता है उस की सास की तबीयत ज्यादा खराब हो गई हो या कुछ इसी तरह की बात हो.’

नादिर स्थिति जानने के बहाने नोमान के फ्लैट पर पहुंच गया. दस्तक के जवाब में एक अजनबी आदमी ने दरवाजा खोला और प्रश्नसूचक नजरों से नादिर को देखने लगा.

‘‘मुझे नोमान से मिलना है,’’ नादिर ने कहा.

‘‘नोमान?’’ उस ने आश्चर्य से दोहराया, फिर तत्काल बोला, ‘‘अच्छा, आप शायद पिछले किराएदार की बात कर रहे हैं.’’

‘‘पिछला किराएदार?’’ नादिर को बड़ा आश्चर्य हुआ.

‘‘जी भाई, वह तो 3 दिन हुए फ्लैट खाली कर के चले गए,’’ उस ने बताया.

‘‘कहां गए हैं?’’ नादिर ने पूछा.

‘‘सौरी, मुझे यह नहीं मालूम,’’ उस ने जवाब दिया.

नादिर गुस्से से कांपता हुआ उस बिल्डिंग से बाहर आ गया. यह पहला मौका था कि किसी ने उस को इस तरह धोखा दिया था. उस ने एस्टेट एजेंट से मालूम करने की कोशिश की लेकिन वह भी यह नहीं बता सका कि नोमान ने कहां मकान लिया.

नादिर के लिए यह बहुत बड़ा धक्का था. अगर नोमान की बीवी अंबर उस के हाथ लग जाती तो फिर यह कोई नुकसानदायक सौदा नहीं होता. लेकिन कमबख्त नोमान तो अपनी पत्नी और सामान के साथ गायब था.

नोमान ने यह भी नहीं बताया था कि सदर में उस की दुकान कहां है. फिर भी वह पूरे सदर में उस को तलाश करेगा. बस, यही एक सहारा था. लेकिन उसे उम्मीद नहीं थी कि वहां नोमान मिल जाएगा. ऐसा ही हुआ भी, सदर में नोमान नहीं मिला. लेकिन नादिर ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने नोमान की तलाश जारी रखी. वह सोच रहा था कि नोमान कभी न कभी तो मिलेगा ही, शहर को छोड़ कर कहां जाएगा.

फिर एक दिन आखिर नोमान की पत्नी अंबर मिल ही गई. वह एक स्टोर से कुछ सामान खरीद रही थी. नादिर उस के बराबर में जा कर खड़ा हो गया. अंबर ने चौंक कर नादिर की तरफ देखा, ‘‘आप नादिर हैं न?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां, मैं नादिर हूं और तुम्हारा पति कहां है?’’

‘‘पति? कौन पति?’’ अंबर ने आश्चर्य से पूछा.

नादिर बोला, ‘‘मैं नोमान की बात कर रहा हूं.’’

‘‘वह मेरा पति नहीं है,’’ अंबर बोली.

‘‘क्या?’’ नादिर हैरान रह गया, ‘‘तो फिर कौन है?’’

‘‘बाहर आएं, बताती हूं,’’ अंबर बोली.

वह नादिर को ले कर स्टोर से बाहर आ गई.

‘‘हां, अब बताओ, तुम क्या कह रही थीं?’’ नादिर ने कहा.

‘‘मैं कह रही थी कि नोमान मेरा पति नहीं बल्कि कोई भी नहीं है. उस ने मुझे इस नाटक के लिए किराए पर लिया था. मैं एक कालगर्ल हूं. मेरा तो यही काम है. उस ने मुझे 25 हजार रुपए दिए थे. नोमान ने मुझ से कहा था कि मुझे उस की बीवी का रोल करना है. मैं ने अपनी ड्यूटी की. उस से मेहनताना

लिया, खेल खत्म. उस का रास्ता अलग,  मेरा अलग.’’

‘‘क्या तुम मुझे उस समय नहीं बता सकती थीं कि तुम उस की बीवी होने का नाटक कर रही हो?’’ नादिर ने गुस्से से पूछा.

‘‘नादिर साहब, हर धंधे का अपनाअपना उसूल होता है. मैं ने उसे जबान दी थी, फिर आप को यह सब कैसे बताती?’’ अंबर बोली.

‘‘अब वह कहां है?’’ नादिर बोला.

‘‘यह मैं नहीं जानती. मैं ने उस से अपना मेहनताना ले लिया था, अब वह कहीं भी जाए. मेरा उस से कोई लेनादेना नहीं है. हां, आप भी मेरा मोबाइल नंबर ले लें, अगर कभी आप को मेरी जरूरत पड़ जाए तो मैं हाजिर हो जाऊंगी.’’

नादिर अपने आप पर लानत भेजता हुआ घर वापस चला गया. आज जिंदगी में पहली बार उस ने बुरी तरह धोखा खाया था. और वह भी ऐसा जिस की चोट बरसों महसूस होती रहेगी. आखिर 5 लाख कम तो नहीं होते.

बुरे फंसे यार: जब लालच में फंसे चोर

प्रस्तुति: शकील 

जैकब प्लाजा फाउंटेन के पास बेखयाली में खड़ा था. उस की नजरें उस लड़की पर जमी थीं जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. कुछ और सिक्के पानी में फेंक कर वह चली गई. उस के बाद एक औरत आई. वह भी फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. जैकब सोचा करता था कि किसी तरह दौलत हाथ आ जाए. लेकिन लोग इतने होशियार हो गए हैं कि जल्दी बेवकूफ भी नहीं बनते.

जैकब आजकल बहुत कड़की में था. उस ने सिर उठा कर आसमान की ओर देखा तो अनायास उस की नजर टाउन प्लाजा की खिड़की पर पड़ गई. खिड़की देख उस के दिमाग में एक आइडिया आ गया. उस ने खिड़की को गौर से देखा. वह खिड़की फाउंटेन के ठीक ऊपर बिल्डिंग की चौथी मंजिल पर स्थित ज्वैलरी शौप की थी. उस के दिमाग में हलचल मच गई.

इस बीच कुछ बच्चे आ गए थे, जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रहे थे. जैकब वहां से टेलीफोन बूथ पर पहुंचा और अपने दोस्त ब्राउन को फोन लगाया. काफी दिनों से ब्राउन ने कोई वारदात नहीं की थी. पुलिस के पास उस का रिकौर्ड साफ था. जैकब ने कहा, ‘‘ब्राउन, एक अच्छा आइडिया है. हम दोनों मिल कर काम कर सकते हैं. मैं यहां फाउंटेन प्लाजा के पास हूं, आ जाओ. एक अच्छी जौब है.’’

‘‘मुझे बुद्धू तो नहीं बना रहे हो. मैं तुम्हें 2 घंटे बाद ब्रिज पार्क बार में मिलता हूं.’’ ब्रिज पार्क बार पुरसुकून जगह थी. जैकब और ब्राउन की मीटिंग के लिए एक अच्छी जगह. ब्राउन ने कहा, ‘‘अब बताओ, क्या कहानी है?’’

‘‘टाउन डायमंड एक्सचेंज के हम मुट्ठी भर पत्थर चुपचाप से उठा सकते हैं, जिस की कीमत करीब 5 लाख डौलर होगी.’’ जैकब ने धीरे से बताया.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो, यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम यह काम कर सकते हो. मैं तुम्हारा बाहर इंतजार करूंगा.’’

‘‘बहुत खूब. यानी पुलिस मुझे दबोच ले और तुम बाहर इंतजार करो.’’ ब्राउन ने गुस्से से कहा.

‘‘कोई किसी को नहीं पकड़ेगा. तुम मेरी बात तसल्ली से सुनो. तुम किसी अमीरजादे की तरह चौथी मंजिल पर ज्वैलरी शौप पर पहुंचोगे और हीरों की एक ट्रे निकलवाओगे. वक्त दोपहर का होगा. इस वक्त बहुत कम ग्राहक होते हैं. उसी वक्त मैं हाल में हंगामा फैलाने का इंतजाम करूंगा. तुम फौरन मुट्ठी भर कीमती हीरे उठा लेना.’’

‘‘फिर मैं क्या करूंगा? क्या पत्थरों को निगल जाऊंगा?’’

‘‘यार पूरी बात तो सुनो. ऐसा कुछ नहीं है. सब की नजर बचा कर तुम मुट्ठी भर हीरे खिड़की से बाहर फेंक देना.’’

‘‘तुम्हारी बातें मेरे सिर से गुजर रही हैं. एसी की वजह से सारी खिड़कियां बंद होंगी.’’

‘‘मैं ने आज ही खिड़की खुली देखी है. उसी को देख कर यह आइडिया आया, क्योंकि कोई भी 4 मंजिल तय कर के हीरों के साथ नीचे नहीं उतर सकता. लेकिन हीरे अकेले 4 मंजिल उतर सकते हैं.’’

‘‘जैकब, मुझे यह पागलपन लग रहा है.’’ ब्राउन ने कहा.

‘‘तुम बात समझो. खिड़की काउंटर से ज्यादा दूर नहीं है. तुम हीरे उठा कर पलक झपकते ही खिड़की से बाहर उछाल देना. तुम्हें काउंटर से हट कर खिड़की तक जाने की भी जरूरत नहीं होगी. तुम अपनी जगह पर ही खड़े रहना. अगर तुम पर शक होता भी है तो तुम्हारी तलाशी ली जाएगी. तुम्हें मशीन पर खड़ा किया जाएगा, पर तुम्हारे पास से कुछ नहीं निकलेगा. मजबूरन तुम्हें छोड़ कर के वे दूसरे ग्राहकों को देखेंगे.’’

‘‘चलो ठीक है, हीरे बाहर चले जाएंगे. पर क्या तुम उन्हें कैच करोगे? एक तरफ कहते हो कि तुम हाल में हंगामा करोगे फिर बाहर पत्थरों का क्या होगा?’’ ब्राउन ने ताना कसा.

‘‘यही तो मंसूबे की खूबसूरती है.’’ जैकब मुसकराया, ‘‘खिड़की के ठीक नीचे खूबसूरत फव्वारा और हौज है. हीरे हौज की गहराई में चले जाएंगे. जैसे कि बैंक की वालेट में बंद हों. कोई भी वहां हीरे गिरते नहीं देख सकेगा, न कोई बाद में देख सकता है क्योंकि यह शीशे की तरह सफेद है. कीमती पत्थरों की यही तो खूबी है, कलर, कैरेट और कट बहुत जरूरी होते हैं.’’

‘‘पर जब सूरज की किरणें पड़ेंगी तो?’’

‘‘सूरज की किरणें पड़ने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि पानी पर पूरे समय बिल्डिंग और पेड़ों का साया रहता है. मैं ने सब चैक कर लिया है. जब तक किसी को पता न हो कोई उन के बारे में नहीं जान सकता. 2-3 दिन बाद हम रात को आएंगे और आराम से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने समझाया.

ब्राउन ने सिर हिला कर कहा, ‘‘प्लान तो अच्छा है.’’

अगले दिन ठीक सवा 12 बजे ब्राउन टाउन प्लाजा की चौथी मंजिल पर पहुंच गया. गार्ड ने मामूली चैकिंग कर के उसे अंदर जाने दिया. हाल में बहुत कम ग्राहक थे. ब्राउन मौका देख कर ठीक खिड़की के सामने खड़ा हो गया. सिर झुका कर उस ने एक ट्रे की तरफ इशारा किया.

जैसे ही सेल्समैन ने ट्रे बाहर निकाली, जैकब प्रवेश द्वार के हैंडल पर हाथ रख कर झुका और धड़ाम से नीचे गिर गया. गेट पर खड़ा गार्ड उस की तरफ बढ़ा. अंदर के लोगों का ध्यान बंट गया. सब उस की तरफ देखने लगे.

‘‘मिस्टर, क्या हुआ? तुम ठीक हो न?’’ गार्ड ने उस पर झुक कर पूछा.

‘‘मुझे…मुझे…सांस…’’ फिर उस ने पानी के लिए इशारा किया.

कुछ कस्टमर भी वहां जमा हो गए. 2 सेल्समैन भी आ गए. एक पानी ले आया. बड़ी मुश्किल से उस ने थोड़ाथोड़ा पानी पीया. वह बुरी तरह हांफ रहा था.

जैकब की ऐक्टिंग बहुत शानदार थी. वह धीरेधीरे लड़खड़ाता हुआ लोगों के सहारे खड़ा हुआ. एक क्लर्क ने अपनी कुरसी पेश कर दी.

‘‘मैं शायद बेहोश हो गया था.’’ वह धीरे से बड़बड़ाया. ‘‘तुम्हें डाक्टर की जरूरत है?’’ क्लर्क ने पूछा.

‘‘नहीं…नहीं मुझे घर जाना है. आप का शुक्रिया. मैं अब ठीक महसूस कर रहा हूं.’’ उस ने ब्राउन की तरफ देखने की बेवकूफी नहीं की. बहुत धीरेधीरे गेट से बाहर निकल गया.

इमारत से निकल कर वह फव्वारे की तरफ पहुंच गया. वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी. फव्वारे की लंबीऊंची धाराएं बड़े हौज में गिर रही थीं. उस की तह में सिवाए सिक्कों के और कुछ नजर नहीं आ रहा था. जैकब का अंदाजा दुरुस्त था. खुशी में उस ने भी एक सिक्का उछाल दिया. वहां से वह सीधा अपने फ्लैट पर पहुंचा. 2 घंटे के बाद ब्राउन की काल आ गई.

‘‘काम हो गया?’’ जैकब ने बेचैनी से पूछा.

‘‘काम तो हो गया पर बस इतना ही वक्त मिला था कि हीरे पानी में फेंक दूं. उस के बाद तो हंगामा मच गया, पुलिस आ गई. मैं चुपचाप अपनी जगह पर खड़ा रहा. वहां से हिला तक नहीं.

शौप वालों ने कोई कसर उठा कर नहीं रखी. पुलिस भी मुस्तैद थी. मेरी 2 बार तलाशी ली गई, पर मेरे पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ. डायमंड एक्सचेंज वाले सख्त हैरान, परेशान थे.

‘‘किसी ने तुम्हारा जिक्र भी किया पर क्लर्क ने यह कह कर बात खत्म कर दी कि वह आदमी गेट के अंदर नहीं आया था. गेट से ही वापस चला गया था.

तुम्हारा मंसूबा शानदार था. शौप वाले मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन पकड़ कर भी नहीं रख सकते थे. मैं निश्चिंत था. हर तरह की जांच करने के बाद करीब ढाई घंटे में मुझे छोड़ दिया गया. चलो, कल मिलते हैं ब्रिज पार्क में.’’

अगले दिन दोनों ब्रिज पार्क में बैठे बियर पी रहे थे. दोनों के चेहरे चमक रहे थे. जैकब ने कहा, ‘‘हम दोनों ने मिल कर शानदार कारनामे को अंजाम दिया है. ब्राउन, यह तो बताओ फिर वहां क्या हुआ?’’

‘‘मुझ से बारबार पूछा गया कि मैं ने क्या देखा. मेरा एक ही जवाब था कि मैं ने कुछ नहीं देखा. हां, मैं ने हीरे की ट्रे जरूर निकलवाई थी. इस से पहले कि मैं हीरों को देखता, एक आदमी धड़ाम से गेट पर गिर गया. मेरा ध्यान भी दूसरों की तरह उस तरफ चला गया.

‘‘मेरे साथ 4 और ग्राहक थे. मेरी पोजीशन हर तरह से साफ थी. हम सब की तलाशी बारबार ली गई. तंग आ कर एक्सरे तक ले डाला.

शायद पुलिस सोच रही थी कि हमारे पास कोई छिपा हुआ पाउच होगा और उसी में हीरे होंगे. पर सब बेकार गया. कुछ हासिल नहीं हुआ. तंग आ कर मुझे छोड़ दिया गया. मेरे बाद भी 2 आदमियों की जांच हो रही थी.’’ ब्राउन ने कहकहा लगाते हुए कहा.

‘‘अब क्या इरादा है?’’ ब्राउन ने बेचैनी से पूछा.

‘‘आज रात को वहां से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने जवाब दिया.

ब्राउन बोला, ‘‘यार, घबराहट में मैं 5 हीरे ही बाहर फेंक सका.’’

जैकब ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. 5 लाख डौलर भी बहुत होते हैं.’’

जैकब और ब्राउन देर रात फव्वारे पर पहुंच गए. आज उन के ख्वाबों में रंग भरने की रात थी. दोनों ने जल्दी मुनासिब न समझी. दोनों एक कोने में काले कपड़ों में छिप कर बैठ गए. आधी रात तक का इंतजार किया.

लोगों की आवाजाही अब खत्म हो चुकी थी. फव्वारा अभी बंद था. पानी बिलकुल स्थिर था. इन्हें हीरे तलाश करने में मुश्किल नहीं हुई. 3 हीरे मिलने के बाद ब्राउन ने कहा, ‘‘जैकब, 3 काफी हैं, निकल चलते हैं.’’

‘‘नहीं यार, एक और तलाश कर लें फिर चलते हैं.’’ जैकब ने इसरार किया.

अचानक फ्लैश लाइट्स औन हो गईं. एकदम वे दोनों तेज रोशनी में नहा गए. एक कड़कती हुई आवाज सुनाई दी, ‘‘वहीं रुक जाओ.’’

दोनों अभी ही हौज से बाहर निकले थे. ‘मारे गए यार…’ जैकब ने फ्लैश लाइट्स से बाहर दौड़ लगाई. लेकिन पुलिस वाले गाड़ी से उतर कर वहां पहुंच गए. एक ने जैकब पर गन तान ली, दूसरे ने ब्राउन पर. दोनों हाथ ऊपर कर के खड़े हो गए. ‘‘ईजी औफिसर, गोली मत चलाना. आप ने हमें पकड़ लिया है.’’ ब्राउन ने डर कर कहा.

‘‘तुम ठीक समझे. जरा भी हलचल की तो गोली चल जाएगी.’’ गन वाला गुर्राया.

‘‘हौज से मिलने वाले सिक्के हर महीने चैरिटी के नाम पर यतीमखाने में दिए जाते हैं. तुम दोनों इतने बेईमान हो कि खैराती रेजगारी भी चुराने आ गए.

ठहरो, अभी तुम्हारी तलाशी होती है. जज कम से कम 3 महीने की सजा तो देगा ही. इन्हें गनपौइंट पर गाड़ी में डालो. पुलिस स्टेशन पर इन की तलाशी ली जाएगी.’’

दोनों मजबूरन हाथ उठाए उदास से गाड़ी में बैठ गए. ब्राउन धीरे से बोला, ‘‘बुरे फंसे यार.’’

वचन-भाग 1 : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

वैशालपुर के ठाकुर प्रताप सिंह की बेटी थी राजबाला. वह बेहद सुंदर और धैर्यवान होने के साथ चतुर भी थी. आसपास के रजवाड़ों में ऐसी गुणों की खान कोई न थी. राजबाला का गोरा रंग, सुतवां नाक, कजरारे बड़ेबड़े नैन और गुलाब की पंखुडि़यों जैसे गुलाबी होंठ, भरा और कसा बदन, कमर तक लटकती स्याह काली केशराशि और मोहक मुसकान देख कर लोग उसे ऐसे ताकते रह जाते थे, जैसे वह किसी दूसरे लोक से आई कोई अप्सरा हो.

मगर हकीकत में वह कोई अप्सरा नहीं, बल्कि राजपूत बाला राजबाला थी. अपने पति को वह प्राणों से अधिक प्यार करती थी और जीवन भर कभी भी ऐसा अवसर न आया, जब उस ने पति की इच्छा के खिलाफ कोई काम किया हो.

राजबाला का विवाह अमरकोट रियासत की सोडा राजधानी के राजा अनार सिंह के पुत्र अजीत सिंह से हुआ था. अनार सिंह के पास बहुत बड़ी सेना थी, जिस से कभीकभी वह लूटमार भी किया करते थे.

एक बार ऐसा हुआ कि राव कोटा का राजकोष कहीं से आ रहा था. इस की खबर अनार सिंह को लग गई. तब अनार सिंह अपनी सेना ले कर राजकोष लूटने चल पड़े. राव कोटा के सिपाही बड़े वीर थे. दोनों सेनाओं में जम कर युद्ध हुआ. अंत में अनार सिंह की पराजय हुई और उन की सारी सेना तितरबितर हो गई.

इस पराजय के कारण अनार सिंह का सोडा में रहना असंभव हो गया. कोटा के राजा राव ने अनार सिंह की जागीर छीन ली और उन्हें देश निकाले का फरमान सुना दिया. अनार सिंह अब अपने किए पर पछता रहे थे.

मगर जो होना था, वह तो हो चुका था. अंत में वह सोडा को छोड़ कर काले वस्त्र धारण कर काले घोड़े पर बैठ कर स्याह काली रात के अंधेरे में दूसरे राज्य के एक छोटे से गांव में जा बसे.

अनार सिंह का हाथ तो पहले से ही तंग था, अब हालत और भी खराब हो गए. कहावत है कि रिजक (धन) बिन राजपूत कैसा. यहां तक कि देश निकाला मिलने के थोड़े समय बाद में दुख और लाज के मारे उन्होंने प्राण त्याग दिए.

अनार सिंह की मृत्यु के बाद उन की पत्नी ठकुरानी अपने पुत्र अजीत सिंह को बड़े कष्ट उठा कर पालने लगी. अजीत सिंह की उम्र उस समय 13 वर्ष रही होगी. किंतु बांकपन और वीरता में वह अपनी उम्र के बालकों से कहीं बढ़ कर था. इस कुल की धीरेधीरे यह दुर्दशा हो गई कि अजीत सिंह की माता दूसरों का कामकाज कर के निर्वाह करने लगी. इस प्रकार उस दुखिया की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई.

राजबाला के साथ अजीत सिंह के विवाह की बातचीत उस के पिता के जीते जी हो गई थी. हालांकि अनार सिंह का यह कुल अति दरिद्र हो गया था. परंतु राजपूत लोग सदा से अपने वचन का सम्मान करते थे.

राजपूतानियां भी प्राय: अति हठी होती थीं. एक बार जब किसी के साथ उन का नाम निकल जाए, फिर वह कभी किसी दूसरे के साथ विवाह करना उचित नहीं समझती थीं.

अजीत सिंह अब बिलकुल अनाथ था. वह किसी प्रकार अपना निर्वाह न कर सकता था. किंतु उसे आशा थी कि उस के युवा होने पर शायद कोटा का राजा उस के पिता की जागीर उसे दे देगा, जिस का वह वारिस है. बस, वह इसी आशा से जी रहा था.

एक बार अजीत सिंह ने एक राजपूतानी को प्रताप सिंह के यहां इसलिए भेजा था कि वह अपनी पुत्री का विवाह उस के साथ करने को राजी है या नहीं? उस समय राजबाला भी युवती थी. वह विवाह का समाचार सुन कर अपनी सहेलियों से कहने लगी, ‘‘बहनो, मैं ने अपने पति को नहीं देखा, वह कैसे हैं?’’

सहेलियां बोलीं, ‘‘तुम्हारे पति अति सुंदर, बुद्धिमान और वीर हैं.’’

पति की प्रशंसा सुन कर राजबाला अति प्रसन्न हुई और कहने लगी, ‘‘मेरे पति वीर हैं, चतुर हैं और सुंदर हैं. ये ही सब बातें एक राजपूत में होनी चाहिए. सब कहते हैं कि उन के पास धन नहीं है. न सही, जहां बुद्धि और पराक्रम है, वहां धन अपने आप ही आ जाता है.’’

राजबाला ने किसी तरह उस राजपूतानी से मिल कर कहा, ‘‘तुम जा कर मेरे पति से कहो कि यहां लोग तुम्हारी दरिद्रता का समाचार कहते रहते हैं, परंतु मैं आज से ही नहीं, कई सालों से आप की हो चुकी हूं. आप मेरे पति हैं, मैं आप की बुराई सुनना नहीं चाहती. इसलिए आप स्वयं आ कर पिताजी से कह कर मुझे ले जाएं. मैं गरीबी और अमीरी में सदा आप का साथ दूंगी. किसी का वश नहीं कि मेरी बात को टाल सके. यदि विवाह होगा तो आप के साथ होगा, नहीं तो राजबाला प्रसन्नतापूर्वक प्राण त्याग करेगी.’’

जिस समय राजपूतानी ने राजबाला का यह संदेश अजीत सिंह को सुनाया. वह बहुत खुश हुआ और कहने लगा, ‘‘यह कैसे संभव है कि मेरे जीते जी कोई और राजबाला को ब्याह ले जाए.’’

राजबाला के कहे अनुसार अजीत सिंह ने उस के पिता प्रताप सिंह को विवाह के लिए कहलवा भेजा. जिस के जवाब में प्रताप सिंह ने कहा, ‘‘विवाह को तो हम तैयार हैं. क्योंकि हम ने तुम्हारे पिता को वचन दिया था. परंतु इस समय तुम्हारी आर्थिक हालत सही नहीं है. ऐसा करो कि तुम 20 हजार रुपए इकट्ठा कर के लाओ, जिस से यह मालूम हो कि तुम मेरी बेटी को सुखी रख सकोगे. जब तक तुम्हारे पास 20 हजार रुपए न हों तो विवाह के बारे में भी तुम्हारा सोचना व्यर्थ है.’’

आखिर प्रताप सिंह की बात भी उचित थी. कोई भी पिता अपनी ऐशोआराम में पली बेटी का विवाह ऐसे किसी व्यक्ति के साथ कैसे कर सकता है, जिस का खुद निर्वाह करना मुश्किल होता हो.

अजीत सिंह सोच में डूब गया. परंतु बेचारा क्या करता. अंत में उसे जैसलमेर के एक सेठ मोहता का ध्यान आया, जिस के यहां से उस के पिता का लेनदेन था.

वह सेठ मोहता के पास गया और उस से कहा, ‘‘सेठजी, तुम मेरे घराने के पुराने महाजन हो. 20 हजार रुपए के बिना मेरा विवाह नहीं हो रहा है. विवाह करना जरूरी है, परंतु तुम जानते हो कि मेरे पास इस समय न जागीर है, न ही कुछ और है. अगर पुराने संबंधों का विचार कर के और मुझ पर विश्वास करते हुए मुझे 20 हजार रुपए दे सको तो दे दो. मैं सूद सहित वापस कर दूंगा.’’

अधूरी मौत-भाग 2 : क्यों अपने ही पति की खूनी बन गई शीतल

‘‘अच्छा होता तुम भी हमारे साथ ऊपर चलते. एक टेंट तुम्हारे लिए भी लगवा देते.’’ अनल गाड़ी से उतरते हुए बोला.

‘‘नहीं साहब, मैं नहीं चल सकता. मैं आज अपने परिवार के साथ रहूंगा. यहां आप को टेंट 24 घंटे के लिए दिया जाएगा. उस में सभी सुविधाएं होती हैं. आप खाना बनाना चाहें तो सामान की पूरी व्यवस्था कर दी जाती है और मंगवाना चाहें तो ये लोग बताए समय पर खाना डिलीवर भी कर देते हैं. यहां कैंप फायर का अपना ही  मजा है. इस से जंगली जानवरों का खतरा भी कम रहता है.’’ ड्राइवर ने बताया.

लगभग एक घंटे की चढ़ाई के बाद दोनों पहाड़ी की सब से ऊंची चोटी पर थे.

‘‘हाय कितना सुंदर लग रहा है. यहां से घर, पेड़, लोग कितने छोटेछोटे दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे नीचे बौनों की बस्ती हो. मन नाचने को कर रहा है,’’ शीतल खुश हो कर बोली, ‘‘दूर तक कोई नहीं है यहां पर.’’

‘‘अरे शीतू, संभालो अपने आप को ज्यादा आगे मत बढ़ो. टेंट वाले ने बताया है ना नीचे बहुत गहरी खाई है.’’ अनल ने चेतावनी दी.

‘‘यहां आओ अनल, एक सेल्फी इस पौइंट पर हो जाए.’’ शीतल बोली.

‘‘लो आ गया, ले लो सेल्फी.’’ अनल शीतल के नजदीक आता हुआ बोला.

‘‘वाह क्या शानदार फोटो आए हैं.’’ शीतल मोबाइल में फोटो देखते हुए बोली.

‘‘चलो तुम्हारी कुछ स्टाइलिश फोटो लेते हैं. फिर तुम मेरी लेना.’’

‘‘अरे कुछ देर टेंट में आराम कर लो. चढ़ कर आई हो, थक गई होगी.’’ अनल बोला.

‘‘नहीं, पहले फोटो.’’ शीतल ने जिद की, ‘‘तुम यह गौगल लगाओ. दोनों हथेलियों को सिर के पीछे रखो. हां और एक कोहनी को आसमान और दूसरी कोहनी को जमीन की तरफ रखो. वाह क्या शानदार पोज बनाया है.’’ शीतल ने अनल के कई कई एंगल्स से फोटो लिए.

‘‘अब उसी चट्टान पर जूते के तस्मे बांधते हुए एक फोटो लेते हैं. अरे ऐसे नहीं. मुंह थोड़ा नीचे रखो. फोटो में फीचर्स अच्छे आने चाहिए. ओफ्फो…ऐसे नहीं बाबा. मैं आ कर बताती हूं. थोड़ा झुको और नीचे देखो.’’ शीतल ने निर्देश दिए.

तस्मे बांधने के चक्कर में अनल कब अनबैलेंस हो गया पता ही नहीं चला. अनल का पैर चट्टान से फिसला और वह पलक झपकते ही नीचे गहरी खाई में गिर गया. एक अनहोनी जो नहीं होनी थी हो गई.

‘‘अनल…अनल…अनल…’’ शीतल जोरजोर से चीखने लगी. उस ने ड्राइवर को फोन लगाया.

‘‘भैया, अनल पैर फिसलने के कारण खाई में गिर गए हैं. कुछ मदद करो.’’ शीतल जोर से रोते हुए बोली.

‘‘क्या..?’’ ड्राइवर आश्चर्य से बोला, ‘‘यह तो पुलिस केस है. मैं पुलिस को ले कर आता हूं.’’

लगभग 2 घंटे बाद ड्राइवर पुलिस को ले कर वहां पहुंच गया.

‘‘ओह तो यहां से पैर फिसला है उन का.’’ इंसपेक्टर ने जगह देखते हुए शीतल से पूछा.

‘‘जी.’’ शीतल ने जवाब दिया.

‘‘आप दोनों ही आए थे, इस टूर पर या साथ में और भी कोई है?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी, हम दोनों ही थे. वास्तव में यह हमारा डिलेड हनीमून शेड्यूल था.’’ शीतल ने बताया.

‘‘देखिए मैडम, यह खाई बहुत गहरी है. इस में गिरने के बाद आज तक किसी के भी जिंदा रहने की सूचना नहीं मिली है. सुना है.

‘‘आप के घर में और कौनकौन हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘अनल के पिताजी हैं सिर्फ. जोकि पैरालिसिस से पीडि़त हैं और बोलने में असमर्थ.’’ शीतल ने बताया, ‘‘इन का कोई भी भाई या बहन नहीं हैं. 5 साल पहले माताजी का स्वर्गवास हो गया था.’’

‘‘तब आप के पिताजी या भाई को यहां आना पड़ेगा.’’ इंसपेक्टर बोला

‘‘मेरे परिवार से कोई भी इस स्थिति में नहीं है कि इतनी दूर आ सके.’’ शीतल ने कहा.

‘‘आप के हसबैंड का कोई दोस्त भी है या नहीं.’’ इंसपेक्टर ने झुंझला कर पूछा.

‘‘हां, अनल का एक खास दोस्त है वीर है. उन्हीं ने हमारी शादी करवाई थी.’’ शीतल ने जवाब दे कर इंसपेक्टरको वीर का नंबर दे दिया.

इंसपेक्टर ने वीर को फोन कर थाने आने को कहा.

‘‘सर, लगभग 60 मीटर तक सर्च कर लिया मगर कोई दिखाई नहीं पड़ा. अब अंधेरा हो चला है, सर्चिंग बंद करनी पड़ेगी.’’ सर्च टीम के सदस्यों ने ऊपर आ कर बताया.

‘‘ठीक है मैडम, आप थाने चलिए और रिपोर्ट लिखवाइए. कल सुबह सर्च टीम एक बार फिर भेजेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘वैसे कल शाम तक मिस्टर वीर भी आ जाएंगे.’’

दूसरे दिन शाम के लगभग 4 बजे वीर थाने पहुंच गया. इंसपेक्टर ने पूरी जानकारी उसे देते हुए पूछा, ‘‘वैसे आप के दोस्त के और उन की पत्नी के आपसी संबंध कैसे हैं?’’

‘‘अनल और शीतल की शादी को 9 महीने हो चुके हैं और अनल ने मुझ से आज तक ऐसी कोई बात नहीं कही, जिस से लगे कि दोनों के बीच कुछ एब्नार्मल है.’’ वीर ने इंसपेक्टर को बताया.

‘‘और आप की भाभीजी मतलब शीतलजी के बारे में क्या खयाल है आपका?’’ इंसपेक्टर ने अगला प्रश्न किया.

‘‘जी, वो एक गरीब घर से जरूर हैं मगर उन की बुद्धि काफी तीक्ष्ण है. उन्होंने बिजनैस की बारीकियों पर अच्छी पकड़ बना ली है. अनल भी अपने आप को चिंतामुक्त एवं हलका महसूस करता था.’’ वीर ने बताया.

‘‘देखिए, आप के बयानों के आधार पर हम इस केस को दुर्घटना मान कर समाप्त कर रहे हैं. यदि भविष्य में कभी लाश से संबंधित कोई सामान मिलता है तो शिनाख्त के लिए आप को बुलाया जा सकता है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘जी बिलकुल.’’

‘‘वीर भैया, अनल की आत्मा की शांति के लिए सभी पूजापाठ पूरे विधिविधान से करवाइए. मैं नहीं चाहती अनल की आत्मा को किसी तरह का कष्ट पहुंचे.’’ शहर पहुंचने पर भीगी आंखों के साथ शीतल ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘जी भाभीजी आप निश्चिंत रहिए,’’ वीर बोला.

एक दिन वीर ने शीतल से कहा, ‘‘करीब 6 महीने पहले अनल ने एक बीमा पौलिसी ली थी, जिस में अनल की प्राकृतिक मौत होने पर 5 करोड़ और दुर्घटना में मृत्यु होने पर 10 करोड़ रुपए मिलने वाले हैं. यदि आप कहें तो इस संदर्भ में काररवाई करें.’’

‘‘वीर भाई साहब, आप जिस बीमे के बारे में बात कर रहे हैं, उस के विषय में मैं पहले से जानती हूं और अपने वकीलों से इस बारे में बातें भी कर रही हूं.’’ शीतल ने रहस्योद्घाटन किया.

अनल का स्वर्गवास हुए 45 दिन बीत चुके थे. अब तक शीतल की जिंदगी सामान्य हो गई थी. धीरेधीरे उस ने घर के सभी पुराने नौकरों को निकाल कर नए नौकर रख लिए थे. हटाने के पीछे तर्क यह था कि वे लोग उस से अनल की तरह नरम व पारिवारिक व्यवहार की अपेक्षा करते थे. जबकि शीतल का व्यवहार सभी के प्रति नौकरों जैसा व कड़ा था. नए सभी नौकर शीतल के पूर्व परिचित थे.

इस बीच शीतल लगातार वीर के संपर्क में थी तथा बीमे की पौलिसी को जल्द से जल्द इनकैश करवाने के लिए जोर दे रही थी.

पासवर्ड: प्यार की अनोखी कहानी

उस के पीछे कोई आ रहा है. उस ने पलट कर देखा तो उस के पीछे एक लड़की सीढि़यां चढ़ रही थी. उस ने उसे देखा तो उस की नजर उस के चेहरे से फिसल कर कहीं और ही मुड़ गई. उसे यह अनुभव पहली नजर में ही नहीं बल्कि उस ने जब भी लड़की को देखा, तबतब हुआ था. पता नहीं उस के चेहरे में ऐसा क्या था कि वह जब भी दिखाई दे जाती, अनायास प्रकाश की आंखें उस की ओर चली जाती थीं. मगर टिकी नहीं रहती थीं. क्या यह उस के आकर्षण की वजह से था. लेकिन उसे लगता था, आकर्षण के अलावा भी उस में कुछ और था.

सहज आत्मविश्वास और हर किसी के प्रति अवहेलना का भाव. अपने आकर्षक होने की सहज अनुभूति और मिलीजुली मासूमियत. जैसे उसे इस बात का गहरा अहसास हो कि वह युवा है, पर उसे इस का अहसास न हो कि जवानी क्या है. उस के चेहरे का खोजता हुआ भाव उस की सुंदरता को और बढ़ा देता था. उस की आंखों से ऐसा लगता था, जैसे वह बाहर कम अपने अंदर ज्यादा देखती है. चुस्त जींस और चुस्त टौप, मानो उस ने अपनी नजरों से नहीं, दूसरों की नजरों से प्रकाश की ओर देखा हो.

उस के बड़ेबड़े बालों और सुंदर चेहरे की बड़ीबड़ी आंखों के अलावा प्रकाश की नजर फिसल कर जहां मुड़ी थी, वह उसी में खो गया था, जिस की वजह से उस की चाल धीमी हो गई थी. पर उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा था. वह उसी तरह तेजी से सीढि़यां चढ़ती हुई उस के बगल से निकल गई.

प्रकाश को लगा, अब उसे भी चाल बढ़ानी होगी. क्योंकि अब वह यह देखे बिना नहीं रह सकता था कि वह किस फ्लैट में जाती है.

यह जानने के लिए प्रकाश ने अपनी चाल बढ़ा दी. वह उसी तीसरी मंजिल पर पहुंच कर रुक गई, जहां प्रकाश को जाना था. वह फ्लैट नंबर था 303. प्रकाश का फ्लैट नंबर 301 था. वह लड़की सामने वाले फ्लैट में आई है, यह जान कर उसे बहुत खुशी हुई. पर यह कौन है, क्योंकि उस फ्लैट में प्रकाश ने उसे आज पहली बार देखा था.

उसे लगा, कोई रिश्तेदार होगी, किसी काम से आई होगी. वह प्रकाश के मन को भा गई थी, इसलिए एक बार और देखने के लोभ में उस ने अपने फ्लैट का मुख्य दरवाजा खुला छोड़ दिया. इस में वक्त ने उस का साथ यह दिया कि उस दिन उस के फ्लैट में कोई नहीं था. सभी एक शादी में गए हुए थे. प्रकाश दरवाजे के बाहर नजरें टिकाए बेचैनी से ताक रहा था कि वह बाहर निकले ताकि वह उसे एक नजर देख ले.

घंटों बीत गए, पर वह नहीं निकली. वह टकटकी लगाए उस के फ्लैट का दरवाजा ताकता रहा. धीरेधीरे वह निराश होने लगा.

पर शाम होते ही फ्लैट का दरवाजा खुला. प्रकाश के शरीर में जैसे जान आ गई. एक बार उसे और देखने के लिए वह फुरती से उठा और बाहर आ गया. तब तक वह लिफ्ट में घुस गई थी. प्रकाश ने फटाफट दरवाजा लौक किया और लिफ्ट के चक्कर में न पड़ कर तेजी से सीढि़यां उतरने लगा. उस के ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचने के साथ ही लिफ्ट भी नीचे पहुंच गई थी. लिफ्ट का दरवाजा खोल कर वह बाहर निकली और सामने सड़क की ओर चल पड़ी.

लड़की के रेशम जैसे काले लंबे बाल, सुडौल देह, वह लड़की सुंदर ही नहीं प्रकाश को अद्भुत भी लगी. उस की चाल गजब की थी. उसे देख कर कोई भी उस के प्रेम में पड़ सकता था. प्रकाश की नजर उस पर से हट नहीं रही थी. वह मेनरोड पार कर के सामने दुकान पर पहुंच गई. अब प्रकाश उसे सामने से मन भर कर देखना चाहता था. इसलिए वह वहीं सोसाइटी के गेट पर खड़ा रहा. उसे सामने से आता देख वह खो गया.

इस के बाद तो क्रम सा बन गया. प्रकाश उस के आगेपीछे चक्कर लगाने लगा. इसी के साथ उस ने लड़की के बारे में एकएक जानकारी जुटा ली. उस का नाम श्रुति था. उस के सामने वाले फ्लैट में उस की मौसी रहती थीं. वह मौसी के यहां रह कर बीटेक की अपनी पढ़ाई कर रही थी. इस के पहले वह हौस्टल में रह कर पढ़ रही थी. वहां कोई बवाल हो गया था, जिस की वजह से वह मौसी के यहां रहने आ गई थी.

प्रकाश ने उस से बात करने की कोशिश शुरू कर दी. पर उस की बातों का वह छोटा सा जवाब दे कर उसे टाल देती थी. फिर भी वह उस के पीछे पड़ा रहा. प्रकाश अकसर देखता, वह उस के फ्लैट के दरवाजे के पास खड़ी हो कर अपने मोबाइल में कुछ करती रहती थी. ऐसे में जब प्रकाश से उस का सामना होता तो धीरे से मुसकरा देती. इस से प्रकाश को लगा कि शायद वह उसे पसंद करने लगी है. पर क्यों, यह उसे पता नहीं था.

पर एक दिन जब प्रकाश ने अपने ओपन वाईफाई में पासवर्ड सेट कर दिया तो सच्चाई का पता चल गया. उस के पासवर्ड सेट करने के बाद जब वह बाहर निकला तो वह उस की ओर बढ़ी. उसे अपनी ओर आते देख प्रकाश के दिल की धड़कन बढ़ गई. शरीर में रोमांच सा हुआ.

प्रकाश के पास आ कर उस ने अपनी आवाज में शहद सी मिठास लाते हुए कहा, ‘‘आप अपने वाईफाई का पासवर्ड दे देंगे क्या?’’

‘‘क्यों नहीं, श्योर. लाइए, मैं आप के मोबाइल में कनेक्ट कर देता हूं.’’

श्रुति ने मोबाइल दिया, तो प्रकाश ने कांपते हाथों से वाईफाई का पासवर्ड सेट कर दिया. उस ने थैंक्स कहते हुए उस का मोबाइल नंबर मांगा तो प्रकाश ने फटाफट अपना नंबर सेव करा दिया. प्रकाश ने उस का नंबर मांगा तो उस ने भी बेहिचक अपना नंबर बता दिया. प्रकाश को उस का नाम पता था, फिर भी बात को आगे बढ़ाने के लिए उस ने उस का नाम पूछा.

‘‘मेरा नाम श्रुति है.’’ कह कर वह चली गई.

नंबर मिलने के बाद प्रकाश वाट्सऐप पर गुडमौर्निंग और गुडनाइट के मैसेज भेजने लगा. श्रुति की ओर से बराबर जवाब भी आता था. अकसर जानबूझ कर प्रकाश पासवर्ड बदल देता था. श्रुति का तुरंत फोन आ जाता था. कभीकभार वह वाट्सऐप पर मैसेज कर के पूछ लेती थी. एक दिन पासवर्ड बदल कर जैसे ही प्रकाश बाहर निकला, श्रुति सामने आ गई. उस ने पासवर्ड पूछा तो जवाब में प्रकाश ने कहा, ‘‘आई लव यू.’’

गुस्सा हो कर श्रुति ने कहा, ‘‘मैं वाईफाई का पासवर्ड पूछ रही हूं और तुम ‘आई लव यू’ कह रहे हो. तुम इस तरह की बात करोगे, मैं ने कभी सोचा भी नहीं था.’’

इस के अलावा भी श्रुति ने बहुत कुछ कहा. प्रकाश जवाब में जो कुछ कहना चाहता था, वह उसे सुनने को तैयार ही नहीं थी. अपनी बात कह कर वह पैर पटकती हुई चली गई. प्रकाश ने वाट्सऐप पर रिक्वेस्ट की, पर उस ने मैसेज खोल कर देखा ही नहीं. अंत में प्रकाश ने टेक्स्ट मैसेज भेजा कि ‘आई लव यू’ मैं ने तुम्हें नहीं कहा, वह तो वाईफाई का पासवर्ड है.

अगले दिन श्रुति मिली तो उस ने कहा, ‘‘तुम ने ऐसा जानबूझ कर किया था न? ऐसा कर के मुझे परेशान किया. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए. तुम्हें बता दूं कि मुझे ऐसी बातों में रुचि नहीं है.’’

‘‘अगर किसी को किसी से पहली नजर में प्यार हो जाए तो…’’ प्रकाश ने कहा.

‘‘और दूसरी नजर में ब्रेकअप हो जाए तो…’’ जवाब में श्रुति ने कहा.

‘‘यह तुम्हारा वहम है.’’

‘‘और प्रेम हो जाए यह?’’ श्रुति ने कहा.

‘‘यह मेरा अनुभव है. किस से हुआ है प्रेम?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘मैं यह नहीं बताऊंगी. पर हुआ है, यह निश्चित है.’’

‘‘क्यों नहीं बता सकती?’’ प्रकाश ने सवाल कर दिया.

‘‘अगर वह मांगे तो जीवन ही नहीं, सांसें भी दे दूं,‘‘ श्रुति ने कहा, ‘‘तुम ने कभी किसी से प्यार किया है या सिर्फ वाईफाई का पासवर्ड ही ‘आई लव यू’ रखा है?’’

‘‘किया है न, तभी तो  ‘आई लव यू’ पासवर्ड रखा है. सीधेसीधे कहने की हिम्मत नहीं पड़ी तो पासवर्ड के बहाने कह दिया. अब तुम कहो, उस दिन तो तुम ने बहुत कुछ कह दिया. उस से तो..’’

‘‘मुझे अच्छे तो तुम भी लगते थे, पर तब तक इस बारे में कुछ सोचा नहीं था. पर जब सोचा तो लगा कि तुम ने यह पासवर्ड सेट करने के बजाय सच में ‘आई लव यू’ कहा होता तो…’’ श्रुति ने कहा.

उस की बात बीच में ही काट कर प्रकाश ने कहा, ‘‘तो क्या तुम भी..?’’

‘‘हां, पर अब यह पासवर्ड किसी दूसरी लड़की को मत बताना.’’ श्रुति ने कहा.

इसी के साथ दोनों हंस पड़े.

पत्थर दिल: प्यार की अजब कहानी

मैंने मोबाइल में समय देखा. 6 बजने में 5 मिनट बाकी थे. सुधा को अब तक आ जाना चाहिए था, वह समय की बहुत पाबंद थी. मेरी नजर दरवाजे पर टिकी थी. डेढ़, पौने 2 साल से यही क्रम चला आ रहा था. इस का क्या परिणाम होगा, मैं भी नहीं जानता था. फिर भी मैं सावधान रहता था. जो भी हो रहा था, वह उचित नहीं था, यह जानते हुए भी मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था.

माना कि वह मुझ पर मुग्ध थी, पर शायद मैं कतई नहीं था. मेरा हराभरा, भरापूरा संसार था. सुंदर, सुशील, गृहस्थ पत्नी, 2 बच्चे, प्रतिष्ठित रौबदाब वाली नौकरी.

15 साल के वैवाहिक जीवन में पत्नी से कभी किसी तरह की कोई किचकिच नहीं. यह अलग बात है कि कभी पल, 2 पल के लिए किसी बात पर तूतूमैंमैं हो गई हो. फिर भी अंदर से व्यवहारिक गृहस्थ कट रहा था कि अभी समय है, यहीं रुक जाओ, वापस लौट आओ.

वैसे सुधा के साथ मेरे जो संबंध थे, वे इतने छिछोरे नहीं थे कि एक झटके में तोड़े जा सकें या अलग हुआ जा सके. सब से बड़ी बात यह थी कि हम ने कभी मर्यादा लांघने की कोशिश नहीं की. हमारे रिश्ते पूरी तरह स्वस्थ और समझदारी भरे थे. कुछ हद तक मेरे बातचीत करने के लहजे और कलात्मक स्वभाव की वजह से वह मेरी ओर आकर्षित हुई थी. इस में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं था.

आप से 10 साल छोटी युवती आप से जबरदस्त रूप से प्रभावित हो और आप संन्यासी जैसा व्यवहार करें, यह संभव नहीं है. मैं ने भी खुद को काबू में रखने की कोशिश की थी, पर मेरी यह कोशिश बनावटी थी, क्योंकि शायद मैं उस से दूर नहीं रह सकता था. कोशिश की ही वजह से आकर्षण घटने के बजाय बढ़ता जा रहा था. लगता था कि यह छूटेगा नहीं. उस की नौसिखिया लेखकों जैसी कहानियां को मैं अस्वीकृत कर देता, वह शरमाती और निखालिस हंसी हंस देती. फिर फटी आंखों से मुझे देखती और अपनी कहानी अपने ही हाथों से फाड़ कर कहती, ‘‘दूसरी लिख कर लाऊंगी.’’

कह कर चली जाती. हमारे बीच किताबों का लेनदेन होने लगा था. उस की दी गई किताबें ज्यादातर मेरी पढ़ी होती थीं. कुछ मुझे पढ़ने जैसी नहीं लगती थीं, मैं उन्हें वापस कर देता था.

वह मेरे अहं को झकझोरती रहती थी. शायद मैं उसे हैरान करने वाली युक्तियों से ठंडक पहुंचाता रहता था. क्योंकि मैं पुरुष था. हमारे संबंध यानी रिश्ते भले ही चर्चा में नहीं थे, पर खुसरफुसर तो होने ही लगी थी. यहां एक बात स्पष्ट कर दूं कि हमारे बीच किसी भी तरह का शारीरिक संबंध नहीं था. इस तरह के रिश्ते के बारे में हम ने कभी सोचा भी नहीं था.

सुधा से इस तरह की मैं ने कभी अपेक्षा भी नहीं की थी. न ही मेरा कोई इरादा था. उस से मेरा रिश्ता मानसिक स्तर का था. जिस तरह लोगों के बीच समान स्तर का होता है, उसी तरह मेरा और उस का बौद्धिक रिश्ता था. ऐसा शायद समाज के डर से था, पर मैं उस से रिश्ता तोड़ने से घबरा रहा था. हमारा समाज स्त्रीपुरुष की दोस्ती को स्वस्थ नजरों से नहीं देखता. यह सत्य भी है, पर ये रिश्ते स्थूल थे. धरातल के थे. यह मान लेना चाहिए कि मेरे और सुधा के बीच रिश्ते पवित्र थे. उस के मन में मेरे प्रति जो आदर था, उसे मैं सस्ते में नहीं ले सकता था. इस बात पर मुझे जरा भी विश्वास नहीं था. कल शाम उस का फोन आया, ‘‘सर, कल शाम को 6 बजे मिल सकते हैं?’’

मना करने का मन था, इसलिए मैं ने पूछा, ‘‘ऐसा क्या काम है?’’

‘‘काम हो तभी मिल सकते हैं क्या सर?’’

‘‘ऐसा तो नहीं है, पर… ओके मिलते हैं, बस.’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया.

मेरे फोन रखते ही पत्नी ने पूछा, ‘‘कौन था?’’

मैं कुछ जवाब दूं, उस के पहले ही बोली, ‘‘सुधा ही होगी?’’

‘‘हां, मिलना चाहती है.’’

‘‘तुम नहीं मिलना चाहते?’’ बेधड़क सवाल. पत्नी के इस सवाल का जवाब हां या न में नहीं दिया जा सकता था.

मैं ने कहा, ‘‘डरता हूं सुरेखा, वह भी मेरी तरह लेखक बनना चाहती है. स्त्रीपुरुष का भेद किए बगैर मुझे उस की मदद करनी चाहिए, पर…’’

‘‘वह स्त्री है और सुंदर भी, इसीलिए तुम उदार बन रहे हो न? अगर ऐसा है तो घमंडी कहलाओगे.’’ कह कर पत्नी हंस पड़ी. 10वीं पास गांव की पत्नी का अलग ही रूप.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या करूं?’’   ‘‘मिलने के लिए तो कह चुके हो, अब पूछ रहे हो?’’

‘‘मैं उस अर्थ से नहीं पूछ रहा, मैं पूछ रहा हूं कि उस के साथ के रिश्ते को कैसे रोकूं सुरेखा. मुझे मेरी नहीं, उस की चिंता है. उसकी अभी नईनई शादी हुई है, वह मुझ पर मुग्ध है. उस की यह मुग्धता उस के दांपत्य में आग लगा सकती है. आई एम रियली कंफ्यूज्ड सुरेखा. वह बहुत ही प्यार करने वाली है.’’

‘‘स्पष्ट और सख्ती से कह दो, तुम्हें फोन न करे. जितना हो सके, उतना दूर रहो उस से.’’ पत्नी की सलाह व्यवहारिक थी.

मेरे भीतर का व्यवहारकुशल आदमी उस की बात से सहमत था पर बवाली मन? वह नहीं चाहता था. उसे इस बात में बिलकुल विश्वास नहीं था. वह सोच रहा था, जो तुम्हें पवित्रता से चाहे, तुम्हारा आदर करे, तुम्हारी दोस्ती के बदले गर्व महसूस करे, उस का अपमान, उस की उपेक्षा ठीक नहीं. इस तरह के आदमी की फिक्र तो सामान्य आदमी भी नहीं करता, तुम तो लेखक हो. लेखक तो समाज से ऊपर उठ कर सोचता है.

उस रात नींद नहीं आई. पूरी रात करवटें बदलता रहा. दिन में औफिस के समय बेध्यान हो जाता. पौने 6 बजे डायरेक्टर से अनुमति ले कर कौफी हाउस के लिए निकल पड़ता. कौफी हाउस नजदीक ही था. मैं गाड़ी से 5 मिनट में पहुंच गया. 6 बजने में 5 मिनट बाकी थे. मैं ने 2 कप कौफी का और्डर कर दिया.

‘अभी तक आई क्यों नहीं?’ मैं ने घबरा कर मोबाइल देखा. मुझे वहां आए करीब 10 मिनट हो गए थे. कोई मुश्किल तो नहीं आ गई. आजकल के पतियों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता. जबरदस्त नजर रखते हैं पत्नियों पर. मोबाइल पर रिसीव्ड और डायल्ड नंबर चैक करते हैं. वाट्सऐप और फेसबुक पर फ्रैंड लिस्ट के साथ मैसेंजर चैक करते हैं. कोई गलत संदेश तो नहीं भेज रहा.

मैं ने माथे का पसीना पोंछा. दरवाजे की तरफ देखा. खिड़की की तरफ ताका तो शाम की गुलाबी धूप छंटने लगी थी. मैं ने सामान्य हो कर बैठने की कोशिश की. आनेजाने वाले असहजता भांप सकते. आखिर 6 बज कर 10 मिनट पर सुधा आई. ब्लैक टीशर्ट और गाढ़ी नीली जींस में आकर्षक लग रही थी. मैं ने मन को लताड़ा, ‘‘तू तो कहता है कि शारीरिक आकर्षण नहीं है, मानसिक दोस्ती है तो फिर…’’

‘‘सौरी सर, आई एम लेट.’’

‘‘बैठो, मैं ने कौफी का और्डर कर दिया है.’’

‘‘थैंक्स सर, सब कुछ ठीक तो है न?’’

‘‘पर ज्यादा समय तक नहीं रहेगा.’’

वातावरण भारी हो उठा. इतना कह कर मैं चुप हो गया था. वह भी चुप थी. थोड़ी देर बाद उस ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘मैं आप को परेशान करती हूं न? सौरी सर, न चाहते हुए भी मैं ने आप को फोन किया. बात यह है कि एक सप्ताह के लिए मैं बाहर घूमने जा रही हूं, इसलिए सोचा कि सर को…’’

‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘जी गुजरात. द्वारिकाधीश.’’

‘‘पति के साथ जा रही हो, साथ में और कौनकौन जा रहा है?’’ मैं ने पूछा.

इसी के साथ मैं ने लंबी सांस छोड़ी. बेयरा 2 कप कौफी रख गया था. एक कप अपनी ओर खिसका कर दूसरा कप उस की ओर खिसका दिया. उसे कौफी ठंडी कर के पीने की आदत थी. मैं ने अपना कप उठा कर मुंह से लगाया.

कप टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘एंजौय करने का टाइम है, करो.’’

‘‘ईर्ष्या हो रही है क्या? मैं तो वही करना चाहती हूं, जो आप को अच्छा लगे. पर पास रहती हूं तो भी आप को अच्छा नहीं लगता और दूर जा रही हूं तो भी आप को अच्छा नहीं लग रहा. आखिर मैं करूं तो क्या करूं, मर जाऊं?’’

‘‘कौफी अच्छी है.’’ कह कर मैं ने चुस्की ली.

वह वैसे ही बैठी रही. वह कौफी ठंडी कर रही थी. मैं अपनी कौफी पी गया. कप टेबल पर रख कर उस की ओर देखा. पत्नी की याद आ गई. मन में आया कि कह दूं कि यह हमारी अंतिम मुलाकात है. अब हम आगे से नहीं मिलेंगे. तुम अपने परिवार में मन लगाओ, मैं अपने परिवार के साथ खुश सुखी हूं. तुम भी अपने परिवार के साथ खुश और सुखी रहो.

अब हमारी उम्र तुम्हारे साथ फाग गाने की नहीं रही. तुम मेरी आंखों के नीचे गड्ढे देख सकती हो. फैलते रेगिस्तान जैसा मेरा सिर. अब इस की विशालता पर गर्व महसूस नहीं किया जा सकता. मेरी बदरूपता का ढिंढोरा पीटता मेरा यह पेट…यह सब तो ठीक है, पर मैं एक जिम्मेदार व्यक्ति हूं सुधा.

‘‘कुछ मंगाना है गुजरात से? नमकीन, किताबें या कुछ और?’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं मंगाना.’’

‘‘कोई ख्वाहिश…मन्नत..?’’

‘‘कौन पूरी करेगा?’’

‘‘द्वारिकाधीश.’’ कहते हुए उस की आंखों में सावित्री की श्रद्धा थी.

मैं खिलखिला कर हंस पड़ा. पर उस की श्रद्धा की ज्योति जरा भी नहीं डगमगाई.

‘‘आप को हंसी आ रही है?’’ उस ने एकदम शांति से पूछा, धैर्य खोए बिना. एकदम अलग रूप. उस समय उस की आधुनिकता अदृश्य थी. मेरी नास्तिकता से वह अंजान नहीं थी. फिर भी उस का इस तरह से कहना मुझे हंसने के लिए प्रेरित कर रहा था. इस में कुछ अस्वाभाविक भी नहीं था. पढ़ीलिखी महिलाओं की इस तरह की इच्छाओं को मैं हंसी में उड़ाता था.

‘‘बोलो, क्या चाहते हो?’’ वह अभी भी पहले की ही तरह गंभीर थी.

मुझे मजाक सूझा, ‘‘मांगूं?’’

उस ने आंखों से ही ‘हां’ कहा.

‘‘सुधा, तुम मुझे पसंद नहीं या तुम्हारे प्रति आकर्षण नहीं, यह कह कर मैं खुद के साथ छल नहीं करूंगा. भगवान के प्रति मुझे जरा भी श्रद्धा नहीं है, पर तुम्हारी श्रद्धा की भी हंसी उड़ाने का मुझे कोई हक नहीं है. मुझे अब कोई लालसा नहीं है. मुझे जो मिला है, वह बहुत है. पत्नी, बच्चे, प्रतिष्ठा, पैसा और…’’

‘‘…और?’’

‘‘तुम्हारी जैसी सहृदय मित्र. आखिर और क्या चाहिए? बस, मुझे तुम से एक वचन चाहिए.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हमारे बीच यह पवित्रता इसी तरह बनी रहे. हमारी इस विरल मित्रता के बीच शरीर कभी न आए. मित्रता की पवित्रता हम इसी तरह बनाए रखें. हमारे बीच नासमझी की दीवार न खड़ी हो. बोलो, यह संभव है?’’

मेरे इतना कहतेकहते उस की आंखें भर आईं. कौफी का कप खिसका कर वह बोली, ‘‘मुझ पर विश्वास नहीं है सर, आप ने मुझे बहुत सस्ती समझा. स्त्री हूं न, इसीलिए. पर चिंता मत कीजिए, मैं वचन देती हूं कि…’’

इस के बाद बची कौफी एक बार में पी कर बोली, ‘‘आप लेखक हैं. हैरानी हो रही है कि आप लेखक हो कर भी कितने कठोर हैं. लेखक तो बहुत कोमल होता है. आप की तरह पत्थर दिल नहीं.’’

मैं सन्न रह गया. शायद अस्वस्थ भी. मैं ने अपना हाथ छाती पर रख कर देखा, दिल धड़क रहा है या नहीं.