वचन-भाग 3 : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

राणा ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ने उसे जाते हुए देखा है. हालांकि ठीकठीक नहीं कह सकता, परंतु पहचान तो उसे अवश्य लूंगा. उस के मुख की सुंदरता मेरी आंखों में खपी जाती है.’’

राजा की बात सुन कर सब चुप हो गए और सवारी महल की ओर चली. जब राणा फाटक पर पहुंचे तो हाथी से उतर कर आज्ञा दी, ‘‘एकएक आदमी मेरे सामने से हो कर निकल जाएं.’’

आज्ञानुसार बारीबारी से सभी लोग राणा के सामने से निकल कर महल में चले गए. जब गुलाब सिंह जाने लगा तो राणा ने उसे देख कर पूछा, ‘‘क्या सिंह को तुम ने मारा है?’’

गुलाब सिंह ने सिर झुका कर कहा, ‘‘जिस को श्रीमान कहें, वही सिंह का वध कर सकता है. सिंह की मृत्यु तो आप की आज्ञा के अधीन है.’’

राणा बोले, ‘‘मैं समझता हूं, सिंह तुम ने ही मारा है परंतु मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि तीव्रगति से दौड़ते घोड़े ने मुझे इतना अवसर न दिया कि मैं मारने वाले को ठीक से पहचान सकता.’’

अजीत सिंह भी निकट था, वह बोला, ‘‘अनाथों के नाथ, सिंह के कान और पूंछ नहीं हैं, इस से ज्ञात होता है कि उस को मारने वाले ने प्रमाण के लिए उस के कान और पूंछ काट लिए हैं.’’

राणा ने गुलाब सिंह से कहा, ‘‘कान और पूंछ हाजिर करो.’’

गुलाब सिंह ने तुरंत घोड़े की जीन के नीचे से निकाल कर उन्हें राणा के सामने पेश किया. राणा बोले, ‘‘राजपूतो, तुम बड़े वीर हो. आज से तुम मेरे संग रहो. मैं तुम्हें अपना अंगरक्षक नियुक्त करता हूं.’’

हालांकि दोनों राजपूत संग रहते थे परंतु रात के समय दोनों को अलगअलग हो जाना पड़ता था. अजीत सिंह तो रात को दरबार में रहता था और राजबाला (गुलाब सिंह) की ड्यूटी राजा के सुख भवन में थी. एक दिन राजबाला अपनी बेबसी पर नीचे स्वर में मल्हार के राग गाने लगी.

अजीत सिंह ने राजबाला के राग को सुना. उस के हृदय में भी वही भाव उद्दीप्त हो गया. उस ने भी राजबाला के राग में स्वर मिला दिया. राणा की रानी बहुत चतुर थी. दोनों गाने वालों के राग की आवाज रात के समय उस के कानों में पड़ी.

उस ने राणा से कहा, ‘‘मुझे ज्ञात होता है कि ये दोनों राजपूत जो तुम्हारी सेवा में हैं स्त्री और पुरुष हैं. यह जो पुरुष रानी निवास पर पहरे पर है, अवश्य यह स्त्री है. कोई कारण है, जिस से ये एकदूसरे से नहीं मिलते और मन ही मन कुढ़ते हैं.’’

राणा खूब ठहाके मार कर हंसे फिर बोले, ‘‘खूब, तुम्हें खूब सूझी. ये दोनों सालेबहनोई हैं. सदा से संग रहते हैं. आज यह यहां ड्योढ़ी पर हैं कि कभी अलग नहीं होंगे. इन दोनों में गाढ़ी प्रीत है.’’

रानी बोली, ‘‘महाराज, आप जो कहते हैं सत्य होगा, परंतु मेरी भी बात मान लीजिए. इन की परीक्षा कीजिए. अपने आप ही झूठसच ज्ञात हो जाएगा.’’

राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ और तुरंत ही अजीत सिंह और गुलाब सिंह दोनों को अपने महल में बुला भेजा. दोनों बड़े डरे कि क्या बात है. कोई नई आफत तो नहीं आई.

उन्होंने राणा के सामने जा कर प्रणाम किया. तब राणा ने पूछा, ‘‘गुलाब सिंह और अजीत सिंह यह बताओ कि तुम दोनों मर्द हो या तुम में से कोई स्त्री है?’’

दोनों चुप थे. क्या उत्तर देते. राणा ने फिर वही प्रश्न किया, ‘‘तुम दोनों बोलते क्यों नहीं? तुम्हें जो दुख हो कहो. मेरे अधिकार में होगा तो अभी इसी समय दूर कर दूंगा. लाज, भय की कोई बात नहीं.’’

अजीत सिंह ने सिर झुका कर राणा को अपनी सारी कहानी कह सुनाई. राणा ने उसी समय दासी को बुला कर कहा, ‘‘देखो, यह जो बहन मरदाना वेश में खड़ी है, मेरी पुत्री है. इस को अभी महल में ले जा कर स्त्रियों के कपड़े पहना दो और महल में रहने के लिए अलग स्थान दो, हर प्रकार से इन को आराम दो.’’

राजबाला राणा को प्रणाम कर उन की आज्ञा मान कर उसी समय सिर झुका कर महल में चली गई.

इस के बाद राणा ने अजीत सिंह से कहा, ‘‘राजपूत, मैं तेरे बापदादा के नाम को जानता हूं. तेरा वचनबद्ध होना धन्य है. मैं ने आज तक अपनी आयु में ऐसा योगी नहीं देखा था. तू मनुष्य नहीं देवता है. जा महल में अब अपनी स्त्री से बात कर.’’

रात को किसी को नींद नहीं आई. सुबह होते ही राणा ने 20 हजार रुपए सूद सहित अजीत सिंह को दिए.

वह उसी समय ऊंटनी पर चढ़ कर जैसलमेर की ओर चल दिया. कई दिन के सफर के बाद अजीत सिंह जैसलमेर मोहता सेठ के पास पहुंचा और सूद सहित 20 हजार रुपए सौंप दिए.

एक बरस से अजीत सिंह का कोई अतापता नहीं था. बनिया अपने रुपयों से निराश हो गया था परंतु उसे कोई रंज न था. क्योंकि वह अजीत सिंह के पिता अनार सिंह से बहुत कुछ ले चुका था. रुपए वापस पा कर सेठ बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘तुम वास्तव में क्षत्रिय हो, तुम जानते हो कि वचन क्या होता है. तुम महान हो.’’

अजीत सिंह सेठ के रुपए दे कर उदयपुर आया और राणा के पैरों पर गिर पड़ा, ‘‘आप ने मेरी लाज रख ली.’’

राणा ने राजबाला को प्राणरक्षक देवी का खिताब दिया. वह उदयपुर में इसी नाम से विख्यात थीं. वह जब कभी राणा के महल में उन के होते हुए जाती, राणा बेटी कह कर पुकारते थे.

पतिपत्नी दोनों राणा के कृपापात्र बन गए. राणा उन्हें बहुत प्यार करते थे, मानो वे उन के ही बेटेबेटी हों. राजबाला और उस के पति के लिए एक अलग से महल बनवा दिया गया और उन्हें एक जागीर भी अलग प्रदान की कई.

सेठ के रुपए चुका कर उदयपुर जाने के बाद उस रात जब बिस्तर पर अजीत सिंह और राजबाला सोए, तब उन के बीच तलवार नहीं थी. दोनों ने अपना वचन धर्म निभाया था और उस दिन दो जिस्म एक जान बन गए थे.

वचन-भाग 2 : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

सेठ मोहता ने अजीत सिंह को बड़े ध्यान से देख कर कहा, ‘‘ये लो, ये 20 हजार रुपए रखे हैं. लेकिन एक शर्त है, वो यह कि तुम यह वचन दो कि जब तक तुम मेरे रुपए वापस न लौटा दोगे, तब तक अपनी पत्नी से मिलन नहीं करोगे. अगर ऐसा करते हो तो यह रुपए ले लो.’’

ऐसे वचन को निभाना बड़ी कठिन बात थी. परंतु रुपए मिलने का और कोई उपाय भी तो न था. अत: वह राजी हो गया और रुपए ले कर अपनी ससुराल वैशालपुर आया.

अपने वचन के अनुसार प्रताप सिंह ने दोनों का विवाह कर दिया. यह किसी को जरा भी खबर न हुई कि रुपए कहां से आए. विवाह के बाद रीतिरिवाज के अनुसार दूल्हा दुलहन दोनों के लिए एक महल दे दिया गया. वे कई दिन तक उस में रहे, परंतु सेज पर सोते समय अजीत सिंह अपने और पत्नी के बीच नंगी तलवार रख कर सोता था.

राजबाला को उन के इस प्रकार के बर्ताव से बड़ा आश्चर्य हुआ और मन ही मन सोचने लगी, ‘सचमुच मेरे पति बड़े सुंदर हैं, चतुर और वीर हैं, पर नामालूम बीच में नंगी तलवार रख कर सोने का क्या मतलब है?’

कई दिन इसी तरह बीत गए, परंतु राजबाला को इतना साहस नहीं हुआ कि कुछ पूछती. अंत में एक दिन दोनों में बातचीत होने लगी. राजबाला ने साहस कर के पूछा, ‘‘प्राणनाथ, मैं देखती हूं कि आप प्राय: ठंडी और गहरी सांसें लेते रहते हैं. इस से पता चलता है कि आप को कोई बड़ा कष्ट हो रहा है. मैं तो आप के चरणों की दासी हूं, मुझ से छिपाना उचित नहीं है. मैं विचार करूंगी कि किस प्रकार आप की चिंता दूर हो सकती है.’’

राजबाला की बात सुन कर उस का दिल भर आया और मुंह नीचा कर के उस ने चुप्पी साध ली. राजबाला ने फिर कहा, ‘‘स्वामी, घबराने की कोई बात नहीं है. इस संसार में सभी पर विपत्ति आती है. चिंता व्यर्थ है. संसार में हर रोग की दवा है. आप चिंता न कीजिए, मुझ से कहिए. यथासंभव मैं आप की सहायता करूंगी. यदि मेरे मरने से भी आप को सुख मिलता है या आप का भला होता है तो मेरे प्राण आप की सेवा को हर समय तैयार हैं.’’

राजबाला का इतना कहना था कि अजीत सिंह ने राजबाला का हाथ पकड़ लिया और दुखभरे शब्दों में अपनी सब कथा कह सुनाई.

जब अजीत सिंह यह सब कह चुका तो राजबाला ने कहा, ‘‘स्वामी, आप ने बड़ा त्याग कर के मुझे मोल लिया है. मैं कभी आप की इस कृपा को नहीं भूल सकती. पर यह ऐसी जगह नहीं है, जहां 20 हजार रुपए मिल सकें. इसलिए इसे छोड़ना उचित है.

‘‘मैं इसी समय मरदाना वेश धारण करती हूं. मैं और आप संगसंग रहेंगे. जब कोई आप से मेरे बारे में पूछे तो आप साले बहनोई बताएं. चलिए, परदेश चल कर महाजन के 20 हजार रुपए चुकाने का उपाय करें.’’

आधी रात का समय था, जब पतिपत्नी में इस प्रकार की बातचीत हुई. सब लोग बेसुध सो रहे थे. राजबाला ने मरदाना वेश धारण किया. अजीत सिंह और राजबाला दोनों महल से बाहर आए और घोड़ों पर सवार हो कर चल दिए.

कई दिन के सफर के बाद 2 सुंदर बांके युवक घोड़ों पर सवार उदयपुर में दिखाई दिए. उस समय मेवाड़ की राजगद्दी पर महाराज जगत सिंह राज करते थे. राणा महल की छत पर बैठे नगर को देख रहे थे. नए राजपूतों को देख कर उन का हाल जानने के लिए राणा ने 2 दूतों को भेजा.

थोड़ी देर में दोनों राजपूत राणा के सामने लाए गए. जब दोनों राजपूत प्रणाम कर चुके तो महाराज ने पूछा, ‘‘तुम कौन हो? कहां से आए हो? और कहां जा रहे हो?’’

अजीत सिंह ने उत्तर दिया, ‘‘महाराज, हम दोनों राजपूत हैं. मेरा नाम अजीत सिंह और ये मेरे साले हैं. इन का नाम गुलाब सिंह है. नौकरी की तलाश में आप के यहां आए हैं. सौभाग्य से आप के दर्शन हो गए. अब आगे क्या होगा, नहीं मालूम.’’

राजा राजपूतों के ढंग को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और राजपूतों के नाम पर मोहित हो कर महाराज ने हंस कर उत्तर दिया, ‘‘तुम लोग मेरे यहां रहो. एक हवेली तुम्हारे रहने के लिए दी जाती है. खानपान के लिए अतिरिक्त 5 हजार रुपए और दिए जाएंगे.’’

राजबाला और अजीत सिंह दोनों अब उदयपुर में रहने लगे, परंतु 20 हजार रुपए की चिंता सदा लगी रहती थी. रुपए जुटाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. वह वर्षा ऋतु के आरंभ में यहां आए थे और वर्षा ऋतु बीत गई.

फिर दशहरे का त्यौहार आया. इस पर राजपूताना में बड़ा उत्सव मनाया जाता है. उदयपुर में पाड़े (भैंसे) का वध किया जाता है. महाराज के साथ सब सामंत, जागीरदार, सरदार घोड़ों पर सवार हुए. उन के साथ गुलाब सिंह और अजीत सिंह भी चल दिए.

इतने में ही एक गुप्तचर ने आ कर खबर दी, ‘‘महाराज की जय हो. पाड़े के स्थान पर एक सिंह की खबर है.’’

राणा ने राजपूतों से कहा, ‘‘वीरों, आज का दिन धन्य है जो सिंह आया है. ऐसा अवसर बड़ी कठिनाई से मिलता है. अब पाड़े का ध्यान छोड़ कर सिंह का शिकार करो.’’

बस, फिर क्या था. हांके वालों ने सिंह को जा कर घेर लिया और उस के निकलने के लिए केवल एक ही रास्ता रखा जिधर राजा और सरदार उस सिंह का इंतजार कर रहे थे.

महाराज हाथी पर थे. वह चाहते थे कि स्वयं सिंह का शिकार करें. इसलिए उन्होंने और सरदारों को उचितउचित स्थान पर खड़ा कर दिया. जब सिंह ने देखा कि उसे लोग घेर रहे हैं तो वह राणा की ओर बढ़ा.

उसे देख का राणा डर गए क्योंकि उन्होंने  पहले कभी इतना बड़ा सिंह नहीं देखा था. उसे मारना आसान काम नहीं था. सब सरदार लोग भी डर गए. सिंह झपट कर राणा के हाथी पर आया और उस के मस्तक से मांस का लोथड़ा नोच कर पीछे हट गया.

राणा के हाथ से भय के मारे तीरकमान भी छूट गए. सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि गुलाब सिंह ने दूर से देखा और अजीत सिंह से कहा, ‘‘ठाकुर साहब, महाराज की जान खतरे में है. उन्हें ऐसे कठिन समय में छोड़ना अति कायरता की बात है. मुझ से अब देखा नहीं जाता. प्रणाम, मैं जाता हूं.’’

तभी गुलाब सिंह का घोड़ा तीर की तरह सनसनाता हुआ आगे बढ़ा, हाथी अपना धैर्य छोड़ चुका था. सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि हवा के झोंके की तरह आ कर गुलाब सिंह ने उसे अपने भाले के निशाने पर ले लिया. भाले सहित सिंह जमीन पर गिरा.

बस, फिर क्या था, सवार ने एक ऐसा हाथ तलवार का मारा कि सिंह का सिर अलग जा गिरा. उसी समय उस के कान और पूंछ काट कर घोड़े की जीन के नीचे रख कर लोगों के बीच जा पहुंचा और बातचीत करने लगा.

परंतु उस ने इस काम को इतनी फुरती में किया कि किसी को ज्ञात भी न हुआ कि वह घुड़सवार कौन था, जिस ने सिंह को मारा. सिंह के मरने पर चारों ओर राजा की जयजयकार होने लगी. सब लोगों ने अपनीअपनी जगह से आ कर राजा को घेर लिया. सरदारों ने कहा, ‘‘ईश्वर ने आज बड़ी दया की. हम सब की जान में जान आई.’’

जब सभी बधाई दे चुके तो राजा ने कहा, ‘‘वह कौन बहादुर था, जिस ने आज मेरी प्राणों की रक्षा की. उस को मेरे सामने लाओ. मैं उसे ईनाम दूंगा.’’

परंतु मारने वाला बहुत दूर खड़ा था. वह अपने को उजागर करना भी नहीं चाहता था. राणा ने थोड़ी देर तक राह देखी. परंतु जब कोई नहीं आया तो खुशामदी दरबारी लोग अपनेअपने मित्रों के नाम बताने लगे.

अधूरी मौत-भाग 5 : क्यों अपने ही पति की खूनी बन गई शीतल

शीतल अब निश्चिंत हो गई. वह सोचने लगी, इस स्थिति से कैसे निपटा जाए. अगर वह सचमुच एक आत्मा हुई तो..? अरे उस ने खुद ने ही तो बता दिया है कि जहां भगवान होते हैं, वहां वह ठहर ही नहीं सकता. मतलब भगवान को साथ ले जाना होगा. और अगर वह खुद कोई फ्रौड हुआ, तो अपनी आत्मरक्षा के लिए रिवौल्वर साथ ले जाऊंगी. शीतल ने निर्णय लिया.

सुबह उठ कर उस ने अपने दोनों हाथों की कलाइयों, बाजुओं, गले यहां तक कि कमर में भी भगवान के फोटो वाली लौकेट पहन लिए, ताकि वह आत्मा उसे छूने से पहले ही समाप्त हो जाए. साथ ही रिवौल्वर भी अपने पर्स में रख ली.

ड्राइवर आज छुट्टी पर था. उस ने खुद गाड़ी चलाने का निर्णय लिया. वह निर्धारित समय से 15 मिनट पहले ही सुनसान पहाड़ी पर पहुंच गई. लेकिन अनल उस से भी पहले से वहां पहुंचा हुआ था.

‘‘ऐसा लगता है, तुम सुबह से ही यहां आ गए हो.’’ शीतल अनल की तरफ देखते हुए बोली.

‘‘शीतू, मैं तो रात से ही तुम्हारे इंतजार में बैठा हूं.’’ अनल बोला.

‘‘कौन सी इच्छा पूरी करना चाहते हो अनल?’’ शीतल अपने आप को संभालती हुई बोली.

‘‘बस एक ही इच्छा है, जो मैं मर कर भी नहीं जान पाया…’’ अनल थोड़ा रुकता हुआ बड़ी संजीदगी से बोला, ‘‘…कि तुम ने मुझे उस ऊंची पहाड़ी से धक्का क्यों दिया? इस का जवाब दो, इस के बाद मैं सदासदा के लिए तुम्हारी जिंदगी से दूर चला जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हें यह जवाब जानने का पूरा हक है. और यह सुनसान जगह उस के लिए उपयुक्त भी है. अनल तुम तो मेरी पारिवारिक स्थिति अच्छी तरह से जानते ही हो. मैं बचपन से बहनों के उतारे हुए पुराने कपड़े और बचीखुची रोटियों के दम पर ही जीवित रही हूं. लेकिन किस्मत ने मुझे उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया, जहां मेरे चारों ओर खानेपीने और पहनने ओढ़ने की बेशुमार चीजें बिखरी पड़ी थीं.

‘‘यह सब वे खुशियां थीं जिस का इंतजार मैं पिछले 23 साल से कर रही थी. एक तुम थे कि मुझे मां बनाने पर तुले थे. और मैं जानती थी, एक बार मां बनाने के बाद मेरी सारी इच्छाएं बच्चे के नाम पर कुरबान हो जातीं. और यह भी संभव था कि एक बच्चे के 3-4 साल का होने के बाद मुझ से दूसरे बच्चे की मांग की जाती.

‘‘अब तुम ही बताओ मेरी अपनी सारी इच्छाओं का क्या होता? क्या बच्चे और परिवार के नाम पर मेरी ख्वाहिशें अधूरी नहीं रह जातीं?

‘‘मैं अपनी इच्छाओं को किसी के साथ भी बांटना नहीं चाहती थी. न तुम्हारे साथ न बच्चों के साथ. मैं भरपूर जिंदगी जीना चाहती हूं सिर्फ अपने और अपने लिए.

‘‘उस पहाड़ी को देखते ही मैं ने मन ही मन योजना बना ली थी. इसी कारण स्टाइलिश फोटो के नाम पर ऐसा पोज बनवाया, जिस से मुझे धक्का देने में आसानी हो.’’

शीतल ने अपनी योजना का खुलासा किया, ‘‘मैं अब तक इस बात को भी अच्छी तरह से समझ चुकी हूं कि तुम कोई आत्मा नहीं हो. लेकिन मैं तुम्हें इसी पल आत्मा में तब्दील कर दूंगी.’’ कहते हुए शीतल ने अपने पर्स से रिवौल्वर निकालते हुए कहा, ‘‘हां, तुम्हारी लाश पुलिस को मिल जाएगी, तो मुझे बीमे का क्लेम भी आसानी से मिल जाएगा.’’ शीतल ने आगे जोड़ा.

‘‘देखो शीतल, दोबारा ऐसी गलती मत करो. तुम्हारे पीछे पुलिस यहां पर पहुंच ही चुकी है.’’ अनल शीतल को चेताते हुए बोला.

‘‘मूर्ख, मुझे छोटा बच्चा समझ रखा है क्या? तुम कहोगे पीछे देखो और मैं पीछे देखूंगी तो मेरी पिस्तौल छीन लोगे.’’ शीतल कातिल हंसी हंसते हुए बोली.

शीतल गोली चलाती, इस से पहले ही उस के पैर के निचले हिस्से पर किसी भारी चीज से प्रहार हुआ.

‘‘आ आ आ मर गई… ’’ कहते हुए शीतल जमीन पर गिर गई और हाथों से रिवौल्वर छूट गई. उस ने पीछे पलट कर देखा तो सचमुच में पुलिस खड़ी थी और साथ में वीर भी था.

‘‘आप का कंफेशन लेने के लिए ही यह ड्रामा रचा गया था मैडम. इस सारे घटनाक्रम की वीडियोग्राफी कर ली गई है. अनल ने कपड़ों में 3-4 स्पाइ कैमरे लगा रखे थे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘आप को कुछ जानना है?’’

‘‘हां इंसपेक्टर, मैं यह जानना चाहती हूं कि अनल का भूत कैसे पैदा किया गया? वह मेरी गैलरी में कैसे चढ़ा और उतरा? वह मेरे अलावा किसी और को दिखाई क्यों नहीं दिया?’’ शीतल ने अपनी जिज्ञासा रखी.

‘‘यह वास्तव में ठीक उसी तरह का शो था जैसा कि कई शहरों में होता है. लाइट एंड साउंड शो के जैसा लेजर लाइट से चलने वाला. इस की वीडियो अनल व वीर ने ही बनाई थी और इस का संचालन आप के बंगले के सामने बन रही एक निर्माणाधीन बिल्डिंग से किया जाता था.’’ इंसपेक्टर ने बताया, ‘‘और आप के ड्राइवर और चौकीदार तो बेचारे इस योजना में शामिल हो कर आप के साथ नमकहरामी नहीं करना चाहते थे. लेकिन जब उन्हें थाने बुलाया और पूरा मामला समझाया गया तो वह साथ देने को तैयार हो गए. ड्राइवर की आज की छुट्टी भी इसी पटकथा का एक हिस्सा है.’’

‘‘पहाड़ी पर इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी अनल बच कैसे गया?’’ शीतल ने हैरानी से पूछा.

‘‘यह सारी कहानी तो मिस्टर अनल ही बेहतर बता सकेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘शीतल, मैं 50 मीटर लुढ़कने के बाद खाई में उगे एक पेड़ पर अटक गया. इतना लुढ़कने और कई छोटेबड़े पत्थरों से टकराने के कारण मैं बेहोश हो गया. तुम ने लगभग 100 मीटर दूर पुलिस को घटनास्थल बताया. तुम चाहती थी कि मेरी लाश किसी भी स्थिति में न मिले.

‘‘पहले दिन पुलिस तुम्हारे बताए स्थान पर ढूंढती रही, मगर अंधेरा होने के कारण चली गई. लेकिन दूसरे दिन पुलिस ने उस पूरे इलाके में सर्चिंग की तो मैं एक पेड़ पर अटका हुआ बेहोश हालत में दिखाई दिया. चूंकि यह स्थान तुम्हारे बताए गए स्थान से काफी दूर और अलग था, अत: पुलिस को तुम पर शक पहले दिन से ही हो गया था. और वह मेरे बयान लेना चाहती थी. पुलिस ने तुम्हें बताए बिना मुझे अस्पताल में भरती करवा दिया. कुछ समय बेहोश रहने के बाद मैं कोमा में चला गया.

‘‘लगभग एक महीने के बाद मुझे होश आया और मैं ने अपना बयान पुलिस को दिया. तुम से गुनाह कबूल करवाना मुश्किल था, इसीलिए पुलिस से मिल कर यह नाटक करना पड़ा.’’ अनल ने बताया.

‘‘चलो, अब समझ में आ गया भूत जैसी कोई चीज नहीं होती.’’ शीतल बोली.

‘‘मैं ने तुम से वायदा किया था कि आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे तो यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी. मेरी अनुपस्थिति में  पिताजी का खयाल रखने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’ अनल हाथ जोड़ते हुए बोला.

अधूरी मौत-भाग 4 : क्यों अपने ही पति की खूनी बन गई शीतल

शीतल की तीक्ष्ण बुद्धि यह समझ गई की वीर दोस्ती के नाम पर धोखा दे रहा है. और हो न हो, यह वही शख्स है जो उसे रातों में डरा रहा है. यह मुझे डरा कर सारा पैसा हड़पना चाहता है. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी और इसे रंगेहाथों पुलिस को पकड़वाऊंगी.

रोजाना की तरह आज भी लगभग 8 बजे शाम को वह क्लब जाने के लिए निकली. आज शीतल बेफिक्र थी, क्योंकि उसे पता चल चुका था कि पिछले दिनों हो रही घटनाओं के पीछे किस का हाथ है. अब उस का डर निकल चुका था. उस ने वीर को सबक सिखाने की योजना पर भी काम चालू कर दिया था.

बंगले की गली से निकल कर जैसे ही वह मुख्य सड़क पर आने को हुई तो कार की हैडलाइट सामने खड़े बाइक सवार पर पड़ी. उस बाइक सवार की शक्ल हूबहू अनल के जैसी थी.

अनल…अनल कैसे हो सकता है. ओहो तो वीर ने उसे डराने के लिए यहां तक रच डाला कि अनल का हमशक्ल रास्ते में खड़ा कर दिया. अपने आप से बात करते हुए शीतल बोली,  ‘‘हद है कमीनेपन की.’’

‘‘जी मैडम, कुछ बोला आप ने?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘नहीं कुछ नहीं. चलते रहो.’’ शीतल बोली.

‘‘मैडम, मैं कल की छुट्टी लूंगा.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘क्यों?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी को झाड़फूंक करवाने ले जाना है.’’ ड्राइवर बोला, ‘‘उस पर ऊपर की हवा का असर है.’’

‘‘अरे भूतप्रेत, चुड़ैल वगैरह कुछ नहीं होता. फालतू पैसा मत बरबाद करो.’’ शीतल ने सीख दी.

‘‘नहीं मैडम, अगर मरने वाले की कोई इच्छा अधूरी रह जाए तो वह इच्छापूर्ति के लिए भटकती रहती है. उसे भी मुक्त करा दिया जाना चाहिए.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘अधूरी इच्छा?’’ बोलने के साथ ही शीतल को याद आया कि अनल की मौत भी तो एक अधूरी इच्छा के साथ हुई है. तो अभी जो दिखाई पड़ा, वह अनल ही था? अनल ही साए के माध्यम से उसे अपने पास बुला रहा था? उस के प्राइवेट नंबर पर काल कर रहा था? पिछले 12 घंटों से जीने की हिम्मत बटोरने वाली शीतल पर एक बार फिर डर का साया छाने लगा था.

क्लब की किसी भी एक्टिविटी में उस का दिल नहीं लगा. आज वह इस डर से क्लब से जल्दी निकल गई कि दिखाई देने वाला व्यक्ति कहीं सचमुच अनल तो नहीं. अभी कार क्लब के गेट के बाहर निकली ही थी कि शीतल की नजर एक बार फिर बाइक पर बैठे अनल पर पड़ी, जो उसे बायबाय करते हुए जा रहा था. लेकिन इस बार उस ने रंगीन नहीं एकदम सफेद कपड़े पहने थे.

‘‘ड्राइवर उस बाइक का पीछा करो.’’ पसीने में नहाई शीतल बोली. उस की आवाज अटक रही थी घबराहट के मारे.

‘‘बाइक? कौन सी बाइक मैडम?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘अरे, वही बाइक जो वह सफेद कपड़े पहने आदमी चला रहा है.’’ शीतल कुछ साहस बटोर कर बोली.

‘‘मैडम मुझे न तो कोई बाइक दिखाई पड़ रही है, न कोई इस तरह का आदमी. और जिस तरफ आप जाने का बोल रही हैं, वह रास्ता तो श्मशान की तरफ जाता है. आप तो जानती ही हैं, मैं अपने घर में इस तरह की एक परेशानी से जूझ रहा हूं. इसीलिए इस वक्त इतनी रात को मैं उधर जाने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’ ड्राइवर ने जवाब दिया.

अब शीतल का डर और भी अधिक बढ़ गया. वह समझ चुकी थी, उसे जो दिखाई दे रहा है वह अनल का साया ही है. अब उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह पंक्तियों की आवाज भी अनल की ही थी. क्या चाहता है अनल का साया उस से?

शीतल अभी यह सब सोच ही रही थी कि कार बंगले के उस मोड़ पर आ गई, जहां उस ने जाते समय अनल को बाइक पर देखा था. उस ने गौर से देखा उस मोड़ पर अभी भी एक बाइक पर कोई खड़ा है. अबकी बार कार की हैडलाइट सीधे खड़े हुए आदमी के चेहरे पर पड़ी.

उसे देख कर शीतल का चेहरा पीला पड़ गया. उसे लगा जैसे उस का खून पानी हो गया है, शरीर ठंडा पड़ गया है. वह अनल ही था. वही सफेद कपड़े पहने हुए था.

‘‘देखो भैया, उस मोड़ पर बाइक पर एक आदमी खड़ा है सफेद कपड़े पहन कर.’’ डर से कांपती हुई शीतल बोली.

‘‘नहीं मैडम, जिसे आप सफेद कपड़ों में आदमी बता रहीं हैं वो वास्तव में एक बाइक वाली कंपनी के विज्ञापन का साइन बोर्ड है जो आज ही लगा है.’’ ड्राइवर ने कहा और गाड़ी बंगले की तरफ मोड़ दी.

ड्राइवर की बात सुन कर फुल स्पीड में चल रहे एयर कंडीशन के बावजूद शीतल को इतना पसीना आया कि उस के पैरों में कस कर बंधी सैंडल में से उस के पंजे फिसलने लगे, कदम लड़खड़ाने लगे.

वह लड़खड़ाते कदमों से ड्राइवर के सहारे बंगले में दाखिल हुई. और ड्राइंगरूम के सोफे  पर बैठ गई. वह सोच ही रही थी कि अपने बैडरूम में जाए या नहीं. तभी शीतल अचानक बजी डोरबेल की आवाज से डर गई. किसी अनहोनी की आशंका से पसीनेपसीने होने लगी.

शीतल उठ कर बाहर जाना नहीं चाहती थी. वह ड्राइंगरूम की खिड़की से देखने लगी.

चौकीदार ने मेन गेट पर बने स्लाइडिंग विंडो से देखने की कोशिश की, मगर उसे कोई दिखाई नहीं दिया. अत: वह छोटा गेट खोल कर बाहर देखने लगा. ज्यों ही उस ने गेट खोला शीतल को सामने के लैंपपोस्ट के नीचे खड़ा अनल दिखाई दिया. इस बार उस ने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे और वह दोनों बाहें फैलाए हुए था. चौकीदार उसे देखे बिना ही सड़क पर अपनी लाठी फटकारने लगा और जोरों से विसलिंग करने लगा.

इस का मतलब था कि चौकीदार को अनल दिखाई नहीं पड़ा. इसीलिए वह उस से बात न कर के जमीन पर लाठी फटकार कर अपनी ड्यूटी की खानापूर्ति कर रहा था.

शीतल सोचने लगी उस दिन अगर उस की इच्छापूर्ति कर देती तो शायद अनल इस रूप में नहीं आता और उसे इस तरह डर कर नहीं रहना पड़ता. कल ड्राइवर के साथ वह भी उस झाड़फूंक करने वाले ओझा के पास जाएगी. पुलिस से शिकायत करने से कुछ नहीं होगा.

शीतल अभी पूरी तरह से निर्णय ले भी नहीं पाई थी कि मोबाइल पर आई काल की रिंग से डर कर वह दोहरी हो गई. उस के हाथपैर कांपने लगे. वह जानती थी कि इस समय फोन करने वाला कौन होगा.

उस ने हिम्मत कर के मोबाइल की स्क्रीन पर देखा. इस बार किसी का नंबर डिसप्ले हो रहा था. नंबर अनजाना जरूर था, मगर यह नंबर उस के लिए एक प्रमाण बन सकता है. यही सोच कर उस ने फोन उठा लिया. उसे विश्वास था कि उसे फिर वही पंक्तियां सुनने को मिलेंगी.

लेकिन उस का अनुमान गलत निकला.

‘‘हैलो शीतू?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क..क..कौन हो तुम?’’ शीतल बहुत हिम्मत कर के अपनी घबराहट पर नियंत्रण रखते हुए बोली.

‘‘तुम्हें शीतू कौन बुला सकता है. कमाल हो गया, तुम अपने पति की आवाज तक नहीं पहचान पा रही हो. अरे भई, मैं तुम्हारा पति अनल बोल रहा हूं.’’ उधर से आवाज आई.

‘‘तु..तु…तुम तो मर गए थे न?’’ शीतल ने हकलाते हुए पूछा.

‘‘हां, मगर मेरी वह अधूरी मौत थी, इट वाज जस्ट ऐन इनकंपलीट डेथ. क्योंकि मैं अपनी एक अधूरी इच्छा के साथ मर गया था. इस कारण मुझे तुम से मिलने वापस आना पड़ा.’’ अनल बोला.

‘‘तुम अपनी इच्छापूर्ति के लिए सीधे घर पर भी आ सकते थे. मुझे इस तरह परेशान करने की क्या जरूरत है?’’ शीतल सहमे हुए स्वर में बोली.

‘‘देखो शीतू, मैं अब आत्मा बन चुका हूं और आत्मा कभी भी उस जगह पर नहीं जाती, जहां पर भगवान रहते हैं. पिताजी ने बंगला बनवाते समय हर कमरे में भगवान की एकएक मूर्ति लगाई थी. यही मूर्तियां मुझे तुम से मिलने से रोकती हैं. लेकिन मैं तुम से आखिरी बार मिल कर जाना चाहता हूं. बस मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो.’’ उधर से अनल अनुरोध करता हुआ बोला.

‘‘मगर एक आत्मा और शरीर का मिलन कैसे होगा?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मैं एक शरीर धारण करूंगा, जो सिर्फ तुम को दिखाई देगा और किसी को नहीं. जैसे आज ड्राइवर व चौकीदार को दिखाई नहीं दिया.’’ अनल ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है, बताओ कहां मिलना है?’’ शीतल ने पूछा, ‘‘मैं भी इस डरडर के जीने वाली जिंदगी से परेशान हो गई हूं.’’ शीतल ने कहा.

‘‘शहर के बाहर सुनसान पहाड़ी पर जो टीला है, उसी पर मिलते हैं, आखिरी बार.’’ अनल बोला,  ‘‘दोपहर 12 बजे.’’

‘‘ठीक है मैं आती हूं.’’ शीतल बोली.

अधूरी मौत-भाग 3 : क्यों अपने ही पति की खूनी बन गई शीतल

शीतल की जिंदगी में बदलाव अब स्पष्ट दिखाई देने लगा था. एक दिन शीतल क्लब से रात 12 बजे लौटी. कार से उतरते हुए उसे घर की दूसरी मंजिल पर किसी के खड़े होने का अहसास हुआ.

उस ने ध्यान से देखने की कोशिश की मगर धुंधले चेहरे के कारण कुछ समझ में नहीं आ रहा था. आश्चर्य की बात यह थी कि जिस गैलरी में वह शख्स खड़ा था, वह उस के ही बैडरूम की गैलरी थी. और वह ऊपर खड़ा हो कर बाहें फैलाए शीतल को अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था.

शीतल अपने बैडरूम की तरफ भागी, मगर वह बाहर से उसी प्रकार बंद था जैसे वह कर के गई थी. दरवाजा बाहर से बंद होने के बावजूद कोई अंदर कैसे जा सकता है, यह सोच कर वह गैलरी की तरफ गई. गैलरी की तरफ जाने वाला दरवाजा भी अंदर से लौक था.

शीतल ने सोचा शायद कोई चोर होगा, अत: वह सुरक्षा के नजरिए से अपने साथ बैडरूम में रखी अनल की रिवौल्वर ले कर गैलरी में गई. मगर वहां कोई नहीं था. शीतल को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था.

उस ने चौकीदार को आवाज दी. चौकीदार के आने पर उस ने पूछा, ‘‘ऊपर कौन आया था?’’

‘‘नहीं मैडम, ऊपर तो क्या आप के जाने के बाद बंगले में कोई नहीं आया.’’ चौकीदार ने जवाब दिया.

सुबह जैसे ही शीतल की नींद खुली, उसे रात की घटना याद आ गई.

शाम को शीतल पूरी तरह चौकन्नी थी. वह कल जैसी गलती दोहराना नहीं चाहती थी. बंगले से निकलते समय उस ने खुद अपने बैडरूम को लौक किया और चौकीदार को लगातार राउंड लेने की हिदायत दी.

रात को वह क्लब से घर लौटी, तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो..’’

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, मैं ने जो भी चाहा मिल गया…’’ दूसरी तरफ से किसी पुरुष के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी.

‘‘कौन है?’’ शीतल ने तिलमिला कर पूछा.

जवाब में वह व्यक्ति वही गीत गुनगुनाता रहा. शीतल ने झुंझला कर फोन काट दिया और आए हुए नंबर की जांच करने लगी. मगर स्क्रीन पर नंबर डिसप्ले नहीं हो रहा था. उसे याद आया यह तो वही पंक्तियां थीं, जो वह उस हिल स्टेशन पर होटल में अनल के सामने बुदबुदा रही थी.

कौन हो सकता है यह व्यक्ति? मतलब होटल के कमरे में कहीं गुप्त कैमरा लगा था जो उस होटल में रुकने वाले जोड़ों की अंतरंग तसवीरें कैद कर उन्हें ब्लैकमेल करने के काम में लिया जाता होगा. लेकिन जब उन्हें उस की और अनल की ऐसी कोई तसवीर नहीं मिली तो इन पंक्तियों के माध्यम से उस का भावनात्मक शोषण कर ब्लैकमेल कर रुपए ऐंठना चाहते होंगे.

शीतल बैडरूम में जाने के लिए सीढि़यां चढ़ ही रही थी कि एक बार फिर से मोबाइल की घंटी बज उठी. इस बार उस ने रिकौर्ड करने की दृष्टि से फोन उठा लिया. फिर वही आवाज और फिर वही पंक्तियां. उस ने फोन काट दिया. मगर फोन काटते ही फिर घंटी बजने लगी. बैडरूम का लौक खोलने तक 4-5 बार ऐसा हुआ.

झुंझला कर शीतल ने मोबाइल ही स्विच्ड औफ कर दिया. उसे डर था कि यह फोन उसे रात भर परेशान करेगा और वह चैन से नहीं सो पाएगी.

शीतल कपड़े चेंज कर के आई और लाइट्स औफ कर के लेटी ही थी कि उस के बैडरूम में लगे लैंडलाइन फोन पर आई घंटी से वह चौंक गई. यह तो प्राइवेट नंबर है और बहुत ही चुनिंदा और नजदीकी लोगों के पास थी. क्या किसी परिचित के यहां कुछ अनहोनी हो गई. यही सोचते हुए उस ने फोन उठा लिया.

फोन उठाने पर फिर वही पंक्तियां कानों में पड़ने लगीं. शीतल बुरी तरह से घबरा गई. एसी के चलते रहने के बावजूद उस के माथे पर पसीना उभर आया. कोई उसे डिस्टर्ब न करे, इसलिए उस ने लैंडलाइन फोन का भी प्लग निकाल कर डिसकनेक्ट कर दिया.

फोन डिसकनेक्ट कर के वह मुड़ी ही थी कि उस की नजर बैडरूम की खिड़की पर लगे शीशे की तरफ गई. शीशे पर किसी पुरुष की परछाई दिख रही थी, जो कल की ही तरह बाहें फैलाए उसे अपनी तरफ बुला रहा था.

वह जोरों से चीखी और बैडरूम से निकल कर नीचे की तरफ भागी. चेहरे पर पानी के छीटें पड़ने से शीतल की आंखें खुलीं.

‘‘क्या हुआ?’’ उस ने हलके से बुदबुदाते हुए पूछा.

घर के सारे नौकर और चौकीदार शीतल को घेर कर खड़े थे और उस का सिर एक महिला की गोद में था.

‘‘शायद आप ने कोई डरावना सपना देखा और चीखते हुए नीचे आ गईं और यहां गिर कर बेहोश हो गईं.’’ चौकीदार ने बताया.

‘‘सपना…? हां शायद,’’ कुछ सोचते हुए शीतल बोली, ‘‘ऐसा करो, वह नीचे वाला गेस्टरूम खोल दो, मैं वहीं आराम करूंगी.’’

सुबह उठ कर शीतल पुलिस में शिकायत करने के बारे में सोच ही रही थी कि एक नौकर ने आ कर सूचना दी.

‘‘मैडम, वीर सर आप से मिलाना चाहते हैं.’’

‘‘वीर? अचानक? इस समय?’’ शीतल मन ही मन बुदबुदाते हुई बोली.

‘‘भाभीजी जैसा कि आप ने कहा था मैं ने इंश्योरेंस कंपनी के औफिसर्स से बात की है. चूंकि यह केस कुछ पेचीदा है फिर भी वह कुछ लेदे कर केस निपटा सकते हैं.’’ वीर ने कहा.

‘‘कितना क्या और कैसे देना पड़ेगा? हमारी तरफ से कौनकौन से पेपर्स लगेंगे?’’ शीतल ने शांत भाव से पूछा.

‘‘हमें उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले तीन केस की ऐसी रिपोर्ट निकलवानी होगी, जिस में लिखा होगा कि उस खाई में गिरने के बाद उन लोगों की लाशें नहीं मिलीं.

‘‘इस काम के लिए अधिकारियों को मिलने वाली राशि का 25 परसेंट मतलब ढाई करोड़ रुपए देना होगा. यह रुपए उन्हें नगद देने होंगे. कुछ पैसा अभी पेशगी देना होगा बाकी क्लेम सेटल होने के बाद. चूंकि बात मेरे माध्यम से चल रही है अत: पेमेंट भी मेरे द्वारा ही होगा.’’ वीर ने बताया.

‘‘ढाई करोड़ऽऽ..’’ शीतल की आंखें चौड़ी हो गईं, ‘‘यह कुछ ज्यादा नहीं हो जाएगा?’’ वह बोली.

‘‘देखिए भाभीजी, अगर हम वास्तविक क्लेम पर जाएंगे तो सालों का इंतजार करना होगा. शायद कम से कम 7 साल. फिर उस के बाद कोर्ट का अप्रूवल.’’ वीर ने अपना मत रखा.

‘‘आप क्या चाहते हैं, इस डील को स्वीकार कर लिया जाए?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘जी मेरे विचार से बुद्धिमानी इसी में है.’’ वीर बोला, ‘‘अभी हमें सिर्फ 25 लाख रुपए देने हैं. ये 25 लाख लेने के बाद इंश्योरेंस औफिस एक लेटर जारी करेगा, जिस के आधार पर हम उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले 3 केस की केस हिस्ट्री लेंगे.

‘‘इस हिस्ट्री के आधार पर कंपनी हमारे क्लेम को सेटल करेगी और 10 करोड़ का चैक जारी करेगी.’’ वीर ने पूरी योजना विस्तार से समझाई.

‘‘ठीक है 1-2 दिन में सोच कर बताती हूं. 25 लाख का इंतजाम करना भी आसान नहीं होगा.’’ शीतल बोली.

‘‘अच्छा भाभीजी, मैं चलता हूं.’’ वीर उठते हुए नमस्कार की मुद्रा बना कर बोला.

दो गज जमीन के नीचे: क्यों बेमौत मारा गया वो शख्स

दरअसल मैं इस कहानी में कोई नहीं हूं, न ही इस में मौजूद पात्रों से अब मेरा कोई रिश्ता है. कह सकते हैं कि मैं वह हूं जो इन सब के बीच न हो कर भी हो. वजूद सिर्फ दो जोड़ी आंखों का मानिए, जो हमेशा इन पात्रों के इर्दगिर्द मौजूद है.

कहानी के इन मुख्य चरित्रों के सामने दूर की एक बिल्डिंग में मेरा निवास है और सरकारी स्कूल में सामान्य सी टीचर हूं. वैसे सामान्य रह कर भी असामान्य हो जाने के गुर में मैं माहिर हूं. ये आप पर आगे की कडि़यों में जाहिर होगा.  तो चलिए हमारी इन दो आंखों के जरिए आप उन पात्रों के जीवन में प्रवेश करें जिन्होंने अपने स्वार्थ, छोटी सोच और छल की वजह से यह कहानी रची.

दूसरी मंजिल पर स्थित मेरे फ्लैट की खिड़की की सीध में एक 3 मंजिला बिल्डिंग है. इस में कुल 8 फ्लैट हैं. इन में से नीचे वाले पीछे के एक फ्लैट पर हमारी नजर रहेगी और ठीक इस बिल्डिंग के पीछे वाली बिल्डिंग में हमारी अदृश्य आवाजाही होगी.

8 फ्लैटों के समूह वाली बिल्डिंग का नाम ‘भव्य निलय’ और पीछे वाली दुमंजिली बिल्डिंग का नाम ‘निरंजन कोठी’ है. निरंजन कोठी का मालिक निरंजन बत्रा 52 साल का एक हट्टाकट्टा अधेड़ है, जिस के चलनेफिरने और बात करने का लहजा मात्र 35 साल के व्यक्ति जैसा है.

उस की पहचान में शायद ही कोई ऐसी युवती हो जो उस के शोख लहजों पर फिदा न हो. उस की एक खास विशेषता यह भी है कि वह अपना कारोबार बहुत बदलता है. कभी टूरिज्म ट्रैवल, कभी साइबर कैफे और मोबाइल शौप, कभी स्टेशनरी तो कभी ठेकेदारी, बंदा बड़ा अनप्रेडिक्टेबल है. कहूं तो रहस्यमय भी. वो अकेला जीना और अकेला राज करना चाहता है, लेकिन उसे स्त्रियों की कमी नहीं है. लिहाजा वह उन का उपयोग कर के फेंकने से नहीं कतराता.

निरंजन की फिलहाल एक बीवी है जिस की उम्र 24 साल है. हुआ यह था कि पहली शादी वाली पत्नी के चले जाने के बाद उस ने 9 साल बिना शादी के बिताए और लड़कियों से उस के संबंध जारी रहे. अभी ऐसे ही दिन निकल रहे थे कि वह 21 साल की एक लड़की से ब्याह कर बैठा.

यह लड़की उस के साइबर कैफे में अकसर ही आती थी. निरंजन लड़कियों को शीशे में उतारने की कला में माहिर था. इस लड़की के साइबर कैफे से उस के घर तक पहुंचने में ज्यादा दिन नहीं लगे.

रात भर की रंगीनियों के बाद जब सुबह लड़की की आंखें खुलीं तो उसे दिमाग कुछ ठिकाने पर महसूस हुआ. उसे घर में विधवा मां की याद आई. उस की बेचैनी की सुध हुई और वह घर वापस जाने के लिए तड़प उठी. लेकिन तब तक उस के अनजाने ही उस की जिंदगी पर निरंजन की पकड़ मजबूत हो गई थी.

निरंजन के सख्त रवैए से भयभीत हो लड़की घबरा गई. वह उस की हर शर्त को मानने के प्रस्ताव पर तुरंत राजी हो गई. निरंजन ने उसे उस की कोठी पर आते रहने का फरमान सुनाया. स्थिति कुछ ऐसी थी कि उसे लाचार हो कर मानना पड़ा.

यह सब 6 महीने चला और लड़की गर्भवती हो गई. रायता अब ज्यादा ही फैल चुका था. लड़की ने छिपे हुए बटन कैमरे से खुद निरंजन के साथ के अंतरंग क्षणों का वीडियो बना लिया. फिर वह वीडियो क्लिप निरंजन को भेज कर धमकी दी, ‘सारा बिजनैस ठप हो जाएगा अगर मैं ने यह वीडियो वायरल कर दी तो.

‘‘मैं तो गरीब घर की लड़की हूं और क्या लुटेगा. बहुत हुआ तो शहर छोड़ दूंगी. लेकिन इस तरह लूट कर मुझे फेंकने नहीं दूंगी. मेरी मां को बेइज्जती से बचाने का एक ही रास्ता है कि तुम मुझे और मेरे होने वाले बच्चे को अपना लो. मुझ से शादी कर लो.’

समाज में निरंजन बड़े धौंस से रहता था. कोठी, गाड़ी, एक साथ कई बिजनैस, उस का डीलडौल सब उस की धौंस की वजह से थे. आखिर ऊंट आ ही गया पहाड़ के नीचे.

इस तरह लड़की नताशा उस की बीवी बन गई. अभी 4 साल हुए थे उन की शादी को. फिर यूं अचानक निरंजन बत्रा की लाश रात गए उस की कोठी पर मिलना, पुलिस की रेड, नताशा को पुलिस कस्टडी में लिया जाना, जमानत पर सुबह तक उस का घर वापस आ जाना, माजरा आखिर क्या था?

रात से ले कर सुबह तक कोठी में अंदरबाहर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. मीडिया वाले भी थे, पुलिस सब को बाहर ठेल रही थी. नताशा काले ब्लाउज, नेट वाली जौर्जेट की वाइट साड़ी में उन्मुक्त केश आंखों में आंसू हौल के फर्श पर बिखरी सी बैठी थी. इस के बावजूद लोगों के आकर्षण का केंद्र थी.

उस की आंखों में खुद को निर्दोष साबित करने की पीड़ा थी या वियोग की पीड़ा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता था. हां, मेरे होंठों पर जरूर विद्रूप की एक हलकी रेखा फैल गई. मैं ने इसे खुद से छिपाते हुए भी तुरंत वहां से दूर हट जाना ही ठीक समझा.

4-5 दिनों तक निरंजन बत्रा के घर भीड़ लगी रही. मांबाप कोई थे नहीं और संतान अब तक उस ने होने नहीं दी थी. किसी भी तरह उस ने अपने आसपास परिवार पैदा नहीं होने दिया. उसे उस की स्वच्छंदता में खलल नहीं चाहिए थी. नताशा इस वक्त अकेली ही जूझ रही थी.

निरंजन की मौत के बाद चचेरे, ममेरे भाई आसपास मंडराते नजर आए. 4 साल निरंजन के साथ रह कर नताशा इतनी तो चतुर हो ही गई थी कि चील, बाज और गिद्धों को पहचान ले. उस ने बड़ी ही चतुराई से उन्हें नजरअंदाज करते हुए रफादफा किया.

नताशा अब कठघरे में थी. सारा शक उसी पर था. जांच जारी थी. यह बात भी सच थी कि रात के 11 बजे जब कत्ल का खुलासा हुआ, तब तक नताशा और निरंजन घर में अकेले थे और दोनों इस के पहले तक चीखचीख कर लड़ रहे थे, पड़ोसियों ने सुना था.

पुलिस अपनी ओर से शिनाख्त में व्यस्त थी, लेकिन मैं नताशा से मिलने के लिए उतावली थी. क्या निरंजन जैसे सख्त जान आदमी नताशा जैसी साधारण डीलडौल वाली लड़की से मात खाया होगा.

रात के 10 बज रहे थे जब मैं ने नताशा का दरवाजा खटखटाया. घर में छोटा सा टेलरिंग शौप चलाने वाली विधवा मां की जिस मुरछाई सी बेटी के रूप में नताशा ने इस घर में अपनी उपस्थिति की मुहर लगाई थी, आज वह सिग्नेचर पूरी तरह बदल चुका था.

थकी बोझिल और चिंतित रहने के बावजूद वह अपनी शौर्ट्स और क्रौप टौप में गजब ढा रही थी. वैसे उस के चेहरे पर उलझन की लकीरें साफ थीं, मुझे देख कर अवाक रह गई. शायद इसलिए कि मुझे कभी देखा नहीं था.

मैं ने उस से कहा, ‘‘मैं पर्णा हूं, तुम्हारी मदद कर सकती हूं.’’  ‘‘किस सिलसिले में?’’

‘‘मासूम क्यों बनती हो? मुझ से मदद लिए बिना तुम इस भंवर से पार नहीं पा सकती.’’

‘‘आइए, अंदर आइए. आप कौन हैं? कैसे मदद करेंगी मेरी?’’

सीआईडी की तरह पूरे हौल का नजरों से मुआयना करते हुए मैं ने पूछा, ‘‘कहां पड़ी थी लाश और किस हाल में थी?’’

सवाल पूछा तो सही लेकिन मेरा ध्यान कहीं और चला गया था.  कुछ भी तो नहीं बदला था. बस कुछ सामान इधर से उधर हुए थे और कुछ नए जुड़े थे.

नताशा ने जो कुछ कहा, उस का आधा हिस्सा ही कानों तक पहुंचा और बाकी मैं स्वयं ही देख कर समझने की कोशिश कर रही थी. नताशा कुछ उतावली हो रही थी, ‘‘आप किस तरह मदद करेंगी?’’

‘‘निरंजन के बारे में तुम कितना आश्वस्त हो? मैं जानती हूं वह चंचल मति था, नई लड़कियां उस की बहुत बड़ी कमजोरी थीं.’’

‘‘सच मानिए, मैं ने उसे नहीं मारा. मैं उसे मार भी नहीं सकती. खासकर चाकू घोंप कर तो कभी नहीं.’’ बेसहारा नताशा जैसे अंधेरे में ही तिनके को पकड़ने की कोशिश में लगी थी.

‘‘लेकिन तुम ने पहले उसे शराब में जहर मिला कर पिलाया, तब चाकू से…’’  ‘‘मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया, उलटा उसी ने…’’ ‘‘उसी ने? क्या किया था उस ने?’’

‘‘मैं अभी हफ्ते भर पहले मिसकैरेज से निकली हूं. उस ने मुझ से छिपा कर दवा दे दी थी ताकि मेरा बच्चा खत्म हो जाए.’’ ‘‘अच्छा, तो इस बार भी?’’  ‘‘मतलब… इस बार भी मतलब?’’ मुझे पढ़ने की नाकाम कोशिश में उस का चेहरा लाल हो गया था, फिर उस ने आगे कुछ समझने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘हां, इस बार भी. शादी कर तो ली थी उस ने, लेकिन बाद में उसे लगा कि मेरे बच्चे के कारण वह जिम्मेदारियों में बंध जाएगा, इसलिए पहली बार भी मुझे मजबूर किया था उस ने.’’

नताशा का ध्यान खुद की तरफ ही था, ‘‘अच्छा ही है.’’ मैं ने बात बढ़ाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें कैसे पता कि उस ने दवा खिलाई थी?’’

‘‘उस ने शरबत में घोल कर दवा खिलाई थी. जब तक समझ पाती पी चुकी थी मैं. बेबी नष्ट करने को ले कर वह वैसे भी मुझ से लड़ता रहता था.’’

‘‘कहीं और अफेयर था उस का?’’

अचानक जैसे होश आया हो उसे. एक सहारे के फेर में कहीं उस ने राज तो जाया नहीं कर दिए? शायद उसे निरंजन के लड़ते रहने की बात जाहिर करने का अफसोस था क्योंकि इस से नताशा के कत्ल का अंदेशा पुख्ता होता था.

उस ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘आप हैं कौन? बताती क्यों नहीं?’’

‘‘मैं जो कोई भी हूं, बस जानो कि तुम से सहानुभूति है और मुझे लगता है कि इस मामले में तुम निर्दोष हो.’’

‘‘दीदी. मैं आप को दीदी कह सकती हूं? बड़ी ही हैं आप मुझ से.’’

‘‘20 साल बड़ी हूं तो कह ही सकती हो. इतना जान लो निरंजन ने अपनी पहली बीवी के बच्चे को भी मारा था.’’

‘‘क्या कहती हैं आप? आप को कैसे पता?’’ ‘‘तुम मेरा परिचय ढूंढने की कोशिश मत करो, बस जानकारी जुटाओ.’’

निरंजन बिंदास किस्म का इंसान था. वह अपने अटल यौवन और शोख अंदाज का भरपूर लाभ उठाना चाहता था. स्त्रियां उस के डीलडौल और मस्ताने अंदाज पर दीवानी भी थीं. उस का पहला बच्चा 3 साल का  मेंटली रिटार्डेड बेटा था. उस की बड़ी जिम्मेदारी बन कर उभर रहा था.

एक तरह से उस की आजादी पर पहरा. उस की मां के नौकरी पर जाने और आया की जरा सी लापरवाही ने उसे अपने बच्चे को मार देने को उकसाया और वह कर गुजरा.

नौकरी से आ कर मरे हुए बच्चे को जब सीने से लगा कर उस मां ने कसम खाई कि निरंजन को बेमौत मरते देख कर ही उसे चैन मिलेगा, तब उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह कानून की नजर में निरंजन का अपराध साबित कर सके.

‘‘दीदी, अब आप ही बताइए कि मैं इस जाल से कैसे मुक्ति पाऊं? अभी हम लोग रात गए बच्चे के मिसकैरेज को ले कर लड़ ही रहे थे कि वह दनदनाता हुआ घर से निकल गया. इस के पहले मैं लोगों से सुन चुकी थी कि निरंजन भव्य निलय में रहने वाले एक दंपति के घर रोजाना जाने लगा है.’’

‘‘जहरा खातून और अली बाबर के घर?’’  ‘‘हां, आप को कैसे मालूम?’’

बात बनाने वाली औरतें उसे खूब पसंद हैं. जहरा खातून इसी ढांचे की है, पति कमाता नहीं है अलबत्ता बीवी के कपड़े की दुकान में सेल्समैन जरूर है. जहरा ने निरंजन को तीरेनजर से आरपार कर रखा था. पान वाले होंठ, रसीले गुलाबी. पायल वाली ठुमकती एडि़यां और लचकती कमर से निरंजन बेकाबू था.

वैसे तो वह कंजूस था, लेकिन मनपसंद औरतों पर लुटाने में उसे कोई गुरेज भी नहीं था. वह और जहरा इसी ताक में रहते कि कब अली बाबर घर से बाहर हो और उन्हें अकेले में मौका मिले. लेकिन मौके थे कि लंबे समय तक मिले नहीं. दोनों झल्लाए हुए थे.

‘‘दीदी, निरंजन के घर से बाहर हो जाने के बाद मैं सोफे पर पसरी पड़ी थी. मैं अंदर से मर चुकी थी. पत्नी के नाते उस से मेरा लगाव अब बिलकुल ही खत्म था. उस ने मेरी हैसियत जबरदस्ती गले पड़ी वाली कर रखी थी. अपनी जिंदगी वह अलग जीता था. मैं बस तड़पतड़प कर जी रही थी.

‘‘अभी मैं सोफे पर ही पड़ी थी कि वह धड़धड़ाते हुए अंदर आया और मुझे संभलने का मौका दिए बगैर मेरी नाक पर दवा लगा रुमाल रख दिया. जहां तक मुझे याद है, उस के साथ जहरा खातून भी थी.’’

‘‘यानी तुम तब बेहोश थी जब तुम्हारे घर कुछ खतरनाक खेल खेले गए?’’ ‘‘जी.’’

‘‘इसलिए तुम पुलिस की पूछताछ का जवाब नहीं दे पा रही हो. और बेहोश करने के बाद काम आया कपड़ा बाद में लाश के पास पाया गया.’’

‘‘जी दीदी, मगर आप? आप प्लीज बताइए, आप हैं कौन? क्यों मेरी मदद कर रही हैं?’’  ‘‘निरंजन के पास पैसा तो काफी था. क्या वह घर की तिजोरी में पैसे अब भी रखता था?’’  ‘‘हां, कभी जरूरत पड़े तो.’’

‘‘सही फरमाया, काले कामों में सफेद पैसे जरूरत के वक्त काम नहीं आते. तो हम एक बढि़या वकील करते हैं और जरूरत हुई तो खुफिया एजेंसी की मदद लेंगे. रही बात मेरी, तो सही समय आने दो अभी तुक्का मत लगाना.’’

मैं ने उसे गहरी मुसकान से देखा और घर से निकल गई. मेरी खुद की जांच अपने तरीके से चल रही थी. नताशा को सरकारी वकील दिया गया था लेकिन उस के लिए मेरे खुद के वकील लगाने के प्रस्ताव को कोर्ट से मंजूरी मिल गई.

हम ने अपने स्तर पर नए सिरे से पड़ताल शुरू की.  इधर जब से यह केस हुआ था, न जाने क्यों जहरा तो जहरा, उस का पति अली बाबर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. उन का कारोबार घर में ही था और वह अच्छे खातेपीते लोग थे. अचानक घर में ताला लगा नजर आने लगा. लोगों के बीच कानाफूसी हुई, लेकिन मर्डर मिस्ट्री में कौन नाक डाले. वैसे भी जमाने में नाक ही ऐसी चीज है जिस की फिक्र में बड़ेबड़े संभले रहते हैं.

लेकिन मुझे तसल्ली नहीं थी. मैं ने एक रात 12 बजे अपने डर और दायरों को दरकिनार करते हुए भव्य निलय का रुख किया.

जहरा के घर क्या वाकई ताला जड़ चुका है या कुछ और बाकी भी है.  भव्य निलय जाने से पहले मैं ने हिम्मत बटोरी, क्योंकि कई रिस्क लेने थे. और हां, ये लेने ही थे क्योंकि इस के बिना मैं खुद भी बेचैन थी.

मैं ने बुरका पहना, छोटी सी अटैची ली, भव्य निलय के फाटक पर पहुंची. यहां गार्ड को जवाब देना था, कहा, ‘‘जहरा आपा से मिलने आई हूं. उन की खाला की बेटी हूं.’’

‘‘पर मैडम, वे तो यहां नहीं हैं.’’  ‘‘अरे, फिर मैं इतनी रात गए कहां रुकूंगी. मेरी ट्रेन लेट हो गई, अब तो कोई होटल भी नहीं मिलेगा, कुछ करो.’’ मैं ने गार्ड को 50 रुपए का नोट थमाया.

नोट की चोट सीधे दिमाग पर पड़ती है. बंदा ढीला पड़ गया. मुझे पीछे गली वाले दरवाजे की तरफ ले गया और बताया कि जहरा ने किसी को भी बताने को मना किया है. दरअसल पुलिस से पंगा है. इन की निगरानी की वजह से इन के घर के सामने दरवाजे पर ताला लगा है.

‘‘अच्छा है, आप उन का साथ दे रहे हैं वरना मेरी आपा का क्या होता.’’

मैं ने जहरा को फोन लगाने का नाटक किया और उसे लगे हाथ वहां से रवाना कर दिया. गार्ड के जाने के बाद मैं खिड़की से नजारे देखने की कोशिश करने लगी. आश्चर्य! यह निरंजन था जहरा के साथ. मेरा अंदेशा सही था. निरंजन और जहरा अपनी मनमानी पर थे, आजादी के जश्न में मग्न.

उन्हें इस तरह कैमरे में कैद कर और खुद को उन्हें देखते रहने की जिल्लत से बचा कर मैं निकलने को हुई. एक अच्छेखासे अभिनय के साथ मैं गार्ड के सामने से गुजरी. गार्ड कहता रह गया, ‘‘अरे मैडम, कहां जा रही हो?’’

मैं सिसकते हुए दौड़ती रही और कहती रही, ‘‘आपा के साथ पता नहीं कौन गैरमर्द है. मुझे घुसने ही नहीं दिया. जाने आपा कैसे बदल गईं.’’

इतनी देर में मैं काफी तेज भाग कर गली में आ चुकी थी और गार्ड के भौचक रह जाने से ले कर मेरे नदारद होने तक कई मिनट के फासले बड़ी सफाई से अंधरे में गुम हो चुके थे.

मेरे दिमाग में गुत्थी लगभग सुलझ चुकी थी, लेकिन साबित कैसे किया जाए. ये लोग खर्च बचाने और सुरक्षित रहने के लिए खुद के ही घर में अय्याशी करते हैं लेकिन बाहर वालों की आंखों में धूल झोंके रखने के लिए बाहर ताला लगाते हैं.

यानी लगे हाथ यह भी बात है कि निरंजन अगर जिंदा है तो लाश किस की है? और अली बाबर के बाहर माल लेने जाने की बात भी कहां तक सच्ची है?

इन्हें रंगेहाथ पकड़ कर जिरह करनी पड़ेगी. मैं ने वकील से पहले अकेले में मिलना सही समझा. उन्हें वीडियो रिकौर्डिंग दिखाई और सारी बातें बताईं.

वकील ने कहा, ‘‘मैडम आप ने लगभग एंड गेम खेल लिया है समझो, खुफिया एजेंसी की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

बात साफ थी कि निरंजन और जहरा की अय्याशी की वजह से ये सारे खूनी तमाशे हुए और नताशा की सफाई कार्यक्रम के तहत उसे फंसाने की साजिश की गई. लेकिन सवाल यह था कि आखिर लाश किस की थी? कहीं जहरा के शौहर अली बाबर की तो नहीं? लाश को उन्होंने बुरी तरह गोद दिया था, चेहरा तेजाब से झुलसाया गया था. वे शायद इस खुशफहमी में थे कि निरंजन की अनुपस्थिति को उस का कत्ल मान लिए जाने में दिक्कत नहीं आएगी.

खून हुए महीना भर हो चुका था. जांच के पीछे से उन की रंगरलियां तो जहरा के घर में चल ही रही थीं लेकिन सवाल यह था कि उन की जिंदगी की गाड़ी चल कैसे रही थी? न तो निरंजन बिजनैस संभाल रहा था और न ही जहरा कपड़े बेच रही थी. जमापूंजी के लिए दिन में उन्हें बैंक भी तो जाना था. कौन था जो उन की मदद कर रहा था?’’

खैर, ढेरों सवालों के साथ वकील साहब और मैं पुलिसिया जांच के संपर्क में थे.

हम ने पुलिस को वीडियो दिखाया और दोनों को तब धर दबोचा गया, जब दोनों रात में जहरा के घर मौज में डूबे थे. निरंजन के चेहरे का पानी उतर चुका था. वह बदहवास सा पुलिस की गिरफ्त में था. उस ने सोचा नहीं था कि उस की चालाकी इस तरह पकड़ी जा सकेगी.

दरअसल, उसे उस सामान्य सी टीचर की असामान्य सी उपस्थिति का अंदाजा नहीं था. मैं ने पुलिस से अनुरोध किया था कि अगर परिणाम जल्द चाहते हैं, तो मुझे भी जिरह का मौका दिया जाए. प्लानिंग के अनुसार वकील, पुलिस और जज की उपस्थिति में शुरुआती जिरह के लिए निरंजन की कोठी का चयन किया गया.

नताशा के सामने निरंजन और जहरा को बिठाया गया. मैं ने सवाल पूछने की इजाजत मांगी. ये सवाल कायदे के अनुसार संबंधित अधिकारियों को पहले ही बताए जा चुके थे.

कई सवालों की बेल मेरा सवाल था— ‘‘नताशा, यदि निरंजन मर चुका होता तो उस की पूरी संपत्ति तुम्हारी होती. क्योंकि उस की पहली बीवी का कोई अतापता नहीं है. तो अचानक निरंजन को जिंदा देख कर तुम्हें लगा नहीं कि मुसीबत वापस कैसे आई?

‘‘क्योंकि तुम तो यही जानती थी कि वह मर चुका था. जिस

किसी ने भी मारा हो, आखिर लाश तो पुलिस तुम्हारे घर से ले गई थी. दूसरे क्या तुम अब खुश हो कि तुम हत्या के आरोप से छूट सकती हो?’’

‘‘मैं ने किसी की भी हत्या तो की नहीं थी, इसलिए मेरे छूट जाने का मुझे पूरा विश्वास था. लेकिन उस के आने से मेरी पुरानी मुसीबत के दोहराव की पूरी संभावना न हो, इस का डर था.’’

‘‘कौन सी मुसीबत?’’  ‘‘गुलामी.’’

मैं दूसरे सवाल पर आ गई, ‘‘नताशा क्या तुम जानती हो कि हम ने जान लिया है कि पिछले दिनों तुम ने ही उन खूनियों को निरंजन की इस कोठी में आसरा दिया और पुलिस को इस बारे में इत्तला भी नहीं दी? जबकि तुम जानती हो हत्या उस ने की है.’’

‘‘उसे पैसे और रहने के लिए सुरक्षित आसरा चाहिए था. वह आसानी से मुझे अपनी कोठी और दुकान नहीं देना चाहता था. वैसे भी इस के बिना 30 साल की जहरा भला उस के साथ कितने दिन रहती? फिर अली बाबर भी पैसे के लिए अपनी बीवी को निरंजन के हवाले करने से गुरेज नहीं करता था. तो इसे अली बाबर को भी पैसे देने होते थे.’’

‘‘उस ने तुम से संपर्क कब साधा?’’

‘‘आप के मुझ से बात कर के चले जाने के लगभग महीने भर बाद वह और जहरा आए थे. मैं बेतरह चौंक पड़ी थी, कहा उस के रहने के लिए उसे कोठी में बने सुसज्जित तहखाना दे दूं. जैसे मैं दुकान संभाल रही हूं, वैसे ही संभालती रहूं, कोठी में भी अपना आधा हिस्सा समझूं.

‘‘बस जहरा के साथ मुझे उस के रिश्ते में परेशानी न हो और उसे कमाई का सारा हिसाब बताती रहूं साथ ही उस के डिमांड को पूरा करती रहूं. अगर इस बीच उसे धोखे में रख कर कोई कदम उठाया तो वह मेरी जिंदगी का आखिरी दिन होगा.’’

‘‘तो तुम मान गई?’’ ‘‘मेरे सामने वापसी का कोई चारा नहीं था. उधर मेरी मां मर चुकी थी. किराए का घर था जो हाथ से जा चुका था. इन की बात नहीं मानती तो ये दोनों मिल कर मेरा कत्ल कर देते.’’

पुलिस अब निरंजन से मुखातिब थी. उस से कहा, ‘‘चलो, अब तुम भी अली बाबर के कत्ल का किस्सा सुना ही दो.’’

मैं ने निरंजन को चौंकते देखा. पुलिस के अधिकारी उसे चौंकते देख भी अनजान से बने रहे. उन्होंने दोबारा दबाव बनाया, ‘‘क्या हुआ, बोलते क्यों नहीं बाबर को कैसे और क्यों मारा तुम दोनों ने?’’

‘‘हम ने उसे नहीं मारा.’’ निरंजन ने इसी में कुछ मौके तलाशने शुरू कर दिए ताकि पुलिस को बरगला कर फिलहाल केस लटकाया जा सके.

‘‘अली बाबर मरा नहीं है, चाहो तो उसे फोन कर लो. हम ही बात करवा सकते हैं.’’ कहते हुए निरंजन और जहरा के चेहरों पर उम्मीद  की लकीरें दिखने लगी थीं.

‘‘चलो, फोन लगाओ.’’ पुलिस के कहते ही निरंजन ने एक नंबर डायल किया और तुरंत उधर से हैलो की आवाज सुनाई पड़ी जैसे कोई तैयार ही बैठा था.

पुलिस के अधिकारी ने तुरंत फोन उस के हाथ से ले कर जैसे ही हैलो कहा, उस तरफ की आवाज लड़खड़ा गई.

‘‘क्यों गार्ड जी, मायके की याद आ रही थी जो कानून से खेल गए?’’ पुलिस के इतना कहते ही निरंजन और जहरा के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘धोखा नहीं दे सकते जनाब, हम आप जैसों को रास्ते पर लाने के लिए ही पैदा हुए हैं, समझे. वो लाश तुम्हारी नहीं थी, ये तो फोरैंसिक विभाग ने पहले ही पता कर लिया था, मगर वो अली बाबर की भी नहीं थी. कहो क्यों?’’ पुलिस की बातें सुन निरंजन और जहरा आंखें चुराने की कोशिश करते दिखे.

‘‘अली बाबर पैसों का भूखा था और इस का फायदा उठा कर तुम ने उसे तस्करी के जाल में फांस कर यहां से दूर उत्तर प्रदेश के उस के गांव भेज रखा है. पहले तो उस से गांजे की तस्करी करवाते हो. उसे उस का थोड़ाबहुत हिस्सा दे कर भविष्य के स्वप्नजाल में उलझा कर उसे गांव में ही छिपे रहने को कहते हो. इधर गार्ड को अली बाबर बना कर पेश करते हो ताकि मनमरजी उस से कहला सको.

‘‘अली बाबर हमारे कब्जे में है समझे. अब सीधे मुंह बता दो कि वह लाश किस की थी और तुम ने नताशा की आंखों में धूल झोंक कर उसे इस कत्ल में फांसा किस तरह?’’

‘‘नताशा से शादी के बाद मैं घर में मन रमाने को राजी नहीं था और न ही बच्चे पैदा करने में दिलचस्पी दिखाई. तब नताशा मेरे साथ लड़ाई करने लगी. अपनी आजादी में खलल पड़ता देख मैं परेशान हो गया. तब तक जहरा का जादू भी मुझ पर चलने लगा था. मैं ने अली बाबर को बिजनैस के सिलसिले में बाहर भेजने का प्लान बनाते हुए अपनी दुकान पर एक अच्छे हैंडसम लड़के को रख लिया.

‘‘बच्चे मुझे पसंद नहीं थे. बेकार समय खराब करते हैं, जिम्मेदारी बढ़ाते हैं सो नताशा को कहीं और व्यस्त करना जरूरी था ताकि वह मेरे अलावा भी कुछ सोच सके. मुझे ऐसे भी दूसरे बिजनैस संभालने पड़ते तो मैं ने उसे दुकान पर भेजना शुरू किया. अकेलेपन में उस की घनिष्ठता उस लड़के के साथ बढ़ती रही और इस में मेरी शह पा कर उन का डर खत्म हो गया.’’

अवाक थी मैं. ये कैसा इंसान था. उस ने आगे कहना जारी रखा, ‘‘अंतत: इन की दोस्ती शरीर के आखिरी पड़ाव में पहुंचने लगी और तब मैं बहुत बुरा महसूस करने लगा जब मेरी ब्याहता मेरे ही शह पर मेरी दुकान पर काम करने वाले लड़के से गर्भवती हो गई.

‘‘उस बच्चे की जिम्मेदारी मुझ पर सौंपने की कोशिश करने लगी. अगर वह चुपचाप बात यहीं खत्म कर लेती तो कोई बात नहीं थी, लेकिन उस ने बच्चे के लिए सोचना शुरू कर दिया था, जबकि उस लड़के को इन बातों से कोई मतलब नहीं था. जो भी करना था, वही करती लेकिन बच्चे वाले पचड़े से मुझे दूर ही रखती.’’

इस बात पर उन तीनों के अलावा सब भौचक थे. हमारी गुत्थी अब आखिरी मंजिल पर लगभग पहुंचने वाली थी. सभी सांसें रोके उस की बात सुन रहे थे.

उस ने कहना जारी रखा, ‘‘हम उसे बहला कर जहर वाली शराब पिला कर अपने साथ लाए थे. तब नताशा आंखें बंद किए सोफे पर पड़ी थी. इस के पहले घर से निकलते वक्त नताशा के साथ महीने भर का गर्भ गिर जाने को ले कर काफी लड़ाई हुई थी. क्योंकि मैं ने उसे मिसकैरेज की दवा उस की गैरजानकारी में पिलाई थी.

मैं ने और जहरा ने मिल कर नताशा के नाक पर बेहोशी की दवा वाला रूमाल रखा. फिर हम ने उस अधमरे शख्स को सोफे पर लिटा कर चाकू से कई वार कर के खत्म किया, तेजाब से चेहरा जलाया और उस की मौत का यकीन हो जाने पर नताशा को फंसाने का सारा इंतजाम कर लिया.

‘‘मैं अपने गांव की तरफ भाग निकला और हमारे प्लान के मुताबिक जहरा ने यह सोच कर कत्ल का हल्ला किया कि इस से कभी मेरी खबर नहीं ली जाएगी और हम चुपचाप सब कुछ समेट कर विदेश चले जाएंगे, नताश केस में फंस जाएगी. अली बाबर से जहरा का संपर्क टूट जाएगा और उसे रुपए देने से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाएगी.’’

‘‘वो शख्स आखिर कौन था, जिस की हत्या हुई?’’ हमारे वकील अब साफ शब्दों में सुनना चाह रहे थे.

‘‘वही लड़का, जिसे मैं ने दुकान पर रख कर नताशा के साथ मिलनेजुलने के मौके दिए.’’

पुलिस अधिकारियों की ओर देखते हुए वकील ने कहा, ‘‘इन का उद्देश्य एक साथ कई तीर मारना था. बीवी से ले कर उस के बौयफ्रैंड, इधर खुद के रंगरलियों पर खर्च के लिए गांजे की तस्करी और अय्याशी के लिए पार्टनर पति को दूर रखने की चालाकी, अपने खून का नाटक रच अय्याशी को छिपाने की कोशिश, बीवी को खून के इलजाम में अंदर कर खुद की संपत्ति को बीवी के नाम करने से बचाने की चेष्टा. एक साथ कितने स्वार्थ?’’

अब नताशा चुप नहीं रह पाई. मेरी ओर देख कर उस ने पूछा, ‘‘लेकिन आप ने अब तक नहीं बताया कि आप कौन हैं?’’

मेरे चेहरे पर मुसकान थी. खुद की कही बात का मैं ने लाज रखा था. अब परदा उठना ही चाहिए.

‘‘मैं निरंजन की पहली बीवी हूं और इस ने मेरे बेटे की पहली बलि ली थी. इसे याद होगा या नहीं, मुझे इस की वह बात हर पल याद रही जो इस ने मुझ से कहा था. याद है निरंजन, क्या कहा था तुम ने?

‘‘स्कूल से लौटने के बाद जब मैं ने अपने 3 साल के बेटे के कत्ल का दोषी पाया तुम्हें, तभी मैं ने बददुआ दी कि एक मां को रुला कर तुम ने अच्छा नहीं किया. इस ने मुझ से कहा था क्या कर लेगी तू, एक सरकारी स्कूल की मामूली सी टीचर.’’

निरंजन चौंका और मेरी ओर देखता रहा. मैं ने तुरंत अपने आधे ढंके चेहरे को सब के सामने अनावृत्त कर दिया. मेरे चेहरे के साथ अब सारे परदे अनावृत्त हो गए थे. हट गए थे.

पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘निरंजन की पहली बीवी पर्णा का साथ मिला तो हम इतने पेचीदे राज आसानी से सुलझा पाए, पर नताशा का अपराध छिपा कर अपराधी को पनाह देने के एवज में कुछ सजा तो स्वीकार करनी पड़ेगी.’’

बेमौत मरे एक शख्स की लाश के 2 गज जमीन के नीचे जितने भी राज दफन थे, उन का खुलासा होना और दोषियों का सजा पाना कानून की जीत थी. और इस जीत का जश्न मैं अपने बेटे की यादों में महसूस कर पा रही हूं.