सुबह खेतखलिहान के काम से अपने घरों से निकले लोगों को गांव में एंबुलेंस गाड़ी के सायरन की आवाज सुनाई दी तो लोग किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत हो गए. घरों से बाहर निकले लोगों ने देखा कि एंबुलेंस के पीछे पुलिस की गाड़ी चल रही थी. यह देख कर लोगों की आपस में कानाफूसी होने लगी. कुछ लोग स्थिति को भांपने के लिए पुलिस की गाड़ी के पीछेपीछे चलने लगे.
एंबुलेंस और पुलिस की गाड़ी गांव के बाहर बने भगवान दास चढ़ार के घर के ठीक सामने खड़ी हो गईं. जैसे ही एंबुलेंस का गेट खुला तो सब से पहले गाड़ी से गांव के कल्लू चढ़ार की पत्नी प्रियंका, उस का भाई दीनदयाल और मां कलाबाई उतरे और उन्होंने रोनापीटना शुरू कर दिया.
लोगों की नजरें कुछ भांपने की कोशिश कर ही रही थीं कि पुलिस गाड़ी से उतरते ही थाना सिलवानी के टीआई भारत सिंह ने आसपास जमा लोगों को बताया कि कल्लू चढ़ार की किसी ने हत्या कर दी है. पोस्टमार्टम के बाद अब उस की डैडबौडी लाए हैं. घर के आसपास के लोगों ने एंबुलेंस से शव को बाहर निकाला और कल्लू के घर के आंगन में लिटा दिया. यह बात 21 अप्रैल, 2023 की है.
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के गांव बांगरोद के रहने वाले कल्लू चढ़ार की मौत की खबर आग की तरह पूरे गांव में फैल गई और छोटे से गांव में मातम छा गया. कल्लू की मौत को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं.
कल्लू के घर में उस के अंतिम संस्कार की तैयारी होने लगी. गांव की महिलाओं के साथ पुरुषों की काफी भीड़ कल्लू के घर पर जमा हो गई थी. जैसे ही अर्थी उठने की तैयारी हो रही थी गांव की एक बुजुर्ग महिला ने कहा, “कल्लू की बहू प्रियंका को अर्थी के पास ले आओ और उस की चूडिय़ां तोड़ दो.”
घर के भीतर से कुछ महिलाएं प्रियंका को पकड़ कर बाहर अर्थी के पास ले आईं. प्रियंका काफी देर तक अर्थी के पास सिर रख कर रोती रही, मगर प्रियंका ने अपनी चूडिय़ां नहीं तोड़ीं. महिलाएं बारबार चूड़ी तोडऩे के लिए प्रियंका का हाथ पकड़ रही थीं, तभी कल्लू की मां कलाबाई ने यह कह कर सब को चुप करा दिया, “अब बहू का सुहाग उजड़ ही गया है तो चूडिय़ां तोडऩे से क्या होगा, अब तो जल्दी से अर्थी उठाओ और बहू को और मत रुलाओ.”
इस के बाद परिवार के लोगों ने बिना देर किए अर्थी को कंधा दिया और शवयात्रा ले कर शमशान घाट के लिए निकल पड़ी.
चिता पर ही करने लगे कल्लू की शिनाख्त
पुलिस की टीम भी शवयात्रा के साथ चल रही थी. जैसे ही शवयात्रा श्मशान घाट पहुंची, वहां पहले से ही लकडिय़ों की चिता सजी हुई थी. रीतिरिवाज के अनुसार जैसे ही क्रियाकर्म की रस्म अदायगी कर कल्लू के शव को चिता पर लिटाया गया तो वहां पर मौजूद टीआई भारत सिंह ने गांव वालों से कहा, “आप सभी लोग कल्लू की बौडी को अच्छी तरह से देख लें, क्योंकि हमें शक है कि यह डैडबौडी कल्लू की नहीं है.”
टीआई के इतना कहते ही लोग चौकन्ने हो गए. अंतिम संस्कार के लिए आए कुछ लोगों ने कल्लू के शरीर से कपड़े भी हटा दिए और शव को बारीकी से देखने लगे.
गांव में रहने वाला कल्लू का एक हमउम्र युवक बोला, “साहब, कल्लू के एक पैर की 2 अंगुलियां जुड़ी हुई थीं, लेकिन इस डैडबौडी के किसी भी पैर की अंगुलियां जुड़ी हुई नहीं हैं.”
गांव का एक व्यक्ति बोला, “कल्लू का रंग तो काला है और वह शरीर से भी मोटा है, जबकि चिता पर जो लाश रखी है, उस का रंग गोरा है और वह दुबलापतला है.”
गांव के एक बुजुर्ग ने शव के हाथों को देख कर कहा, “कल्लू कैटरिंग का काम करता था और उस के एक हाथ पर जले का निशान था, मगर जिसे चिता पर लिटाया गया है उस के दोनों हाथों में इस तरह का कोई निशान नहीं है.”
गांव में रहने वाले एक मुसलिम युवक ने कहा, “यह डैडबौडी तो किसी मुसलिम युवक की लग रही है, क्योंकि इस का खतना हुआ है.”
मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के सिलवानी थाने की पुलिस टीम जिस आशंका के चलते कल्लू के गांव बांगरोद आई थीं, वह निराधार नहीं थी. दरअसल, 20 अप्रैल, 2023 को पुलिस को यह सूचना मिली थी कि गैरतगंज गाडरवारा स्टेट हाइवे 44 पर सिलवानी से 10 किलोमीटर दूर पठा गांव के मोड़ के पास देवेंद्र रघुवंशी के खेत में एक व्यक्ति की डैडबौडी पड़ी हुई है. यह सूचना गांव के ललित रघुवंशी ने दी थी.
सूचना पा कर थाने के टीआई भारत सिंह ने मौके पर जा कर देखा तो करीब 24-25 साल के नवयुवक का शव मूंग के खेत में पड़ा हुआ था. शव का सिर बुरी तरह से कुचला गया था. मृतक के गले में निशान मिले थे. शव के पास ही एक खून से सना हुआ पत्थर पड़ा हुआ था. मृतक के पास उस के जूते और एक रुमाल भी मिला था.
शव की हालत देख कर लग रहा था कि पहले गला घोंट कर हत्या की गई और फिर पहचान छिपाने के लिए मृतक का चेहरा कुचल दिया गया था. शव को घटनास्थल से ला कर सिलवानी अस्पताल की मोर्चरी में रखवाते वक्त पुलिस ने मृतक युवक के पैंट की जेबों की तलाशी ली तो पीछे के जेब में एक डायरी और आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड में युवक का नाम कल्लू चढ़ार, उम्र 34 साल, पता करोंद भोपाल का लिखा हुआ था.
पुलिस ने डायरी खोल कर देखी, जिस में एक मोबाइल नंबर मिला. डायरी में मिले मोबाइल नंबर पर जब एसआई आरती धुर्वे सिंह ने बात की तो फोन एक महिला ने उठाया.
“आप कौन बोल रही हैं. कल्लू चढ़ार कौन है, जानती हैं?” एसआई ने पूछा.
“मैं बांगरोद गांव से किरण बोल रही हूं. वो मेरे पति हैं.”
“मैं सिलवानी थाने से बोल रही हूं. कल्लू कहां है, कुछ पता है आप को?”
“वो 2 दिन पहले घर से बोरास घाट नर्मदा स्नान के लिए गए हुए हैं.”
“आप के घर में कोई पुरुष सदस्य हो तो उन से बात कराइए.”
“हां मेरे देवर हैं, उन से बात कराती हूं.” किरण ने अपने देवर दीनदयाल को फोन देते हुए कहा.
“हां मेम, मैं कल्लू का छोटा भाई दीनदयाल बोल रहा हूं.”
“तुम्हारे भाई कल्लू का सिलवानी के पास मर्डर हो गया है, सिलवानी थाने आ जाइए और शव की पहचान कर लीजिए.” एसआई ने फोन रखते हुए कहा.
वो लाश कल्लू की नहीं थी तो किस की थी? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.
अंत में अमितपाल ने फैसला लिया कि हरप्रीत कौर नाम की जिस लड़की से हरप्रीत की शादी हो रही है, उस लड़की की सुंदरता को नष्ट कर दिया जाए तो यह शादी अपने आप ही रुक जाएगी. पलविंदर ने भी उस की इस योजना का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘अगर हरप्रीत कौर के चेहरे पर तेजाब डाल कर जला दिया जाए तो हमारी योजना सफल हो जाएगी.’’
अमितपाल ने पलविंदर को यह काम करने के लिए 10 लाख रुपए की सुपारी दे दी और सवा लाख रुपए एडवांस भी दे दिए.
पलविंदर उसी दिन से इस योजना पर काम करने लगा. उस ने अपने साथ अपने चचेरे भाई सनप्रीत उर्फ सन्नी को शामिल कर लिया. दोनों कुरियर मैन बन कर बरनाला में जसवंत के घर पहुंच गए, लेकिन हरप्रीत से मुलाकात न होने पर उन की योजना सफल न हो सकी. उन्होंने 2-3 बार कोशिश की, लेकिन सफल न हो सके.
जैसेजैसे शादी के दिन निकट आते जा रहे थे, अमितपाल को इस बात की चिंता होने लगी थी कि कहीं उस के द्वारा दी गई धमकी झूठी न पड़ जाए. इसलिए उस ने पलविंदर पर दबाव डालना शुरू कर दिया. पलविंदर के कहने पर सन्नी ने राकेश कुमार प्रेमी, जसप्रीत और गुरुसेवक को अपनी इस योजना में शामिल कर लिया. इस के बाद उन्होंने हरप्रीत की रेकी करनी शुरू कर दी. इस काम के लिए वह कई बार बरनाला और लुधियाना भी गए.
उधर अमितपाल पैसों का लालच दे कर रंजीत सिंह के यहां काम करने वाले एक नौकर से फोन पर उन के यहां होने वाली हरेक गतिविधि की जानकारी लेती रही. कभीकभी वह अपने बच्चों से भी बात कर लेती थी. इस प्रकार घर बैठे वह पूरा नेटवर्क चलाती रही. रंजीत सिंह के यहां की हर खबर वह पलविंदर को बताती.
5 दिसंबर, 2013 को जब जसवंत सिंह का परिवार बरनाला से लुधियाना आ गया तो पलविंदर पूरी तैयारी के साथ लुधियाना चल पड़ा. उस ने अपने फूफा से यह कह कर उन की मारुति जेन कार संख्या पीबी03-5824 मांग ली कि वह अपने किसी दोस्त की शादी में जा रहा है. पलविंदर ने कार की नंबर प्लेट उतार कर उस पर पीबी11जेड9090 की फरजी नंबर प्लेट लगा दी. सभी लोग उसी कार से लुधियाना आ गए. एक दिन सभी लुधियाना रह कर हरप्रीत कौर की शादी की तैयारियों का जायजा लेते रहे.
6 दिसंबर को अमितपाल को रंजीत सिंह के नौकर और अपने बेटों द्वारा यह पता चला कि शादी वाले दिन यानी 7 दिसंबर को हरप्रीत कौर सुबह 7 बजे सराभानगर की किप्स मार्केट में स्थित लैक्मे सैलून ब्यूटीपार्लर में तैयार होने जाएगी. यह जानकारी उस ने पलविंदर को दे दी. जिस के बाद पलविंदर साथियों सहित किप्स बाजार पहुंच गया.
ठीक साढ़े 7 बजे हरप्रीत कार द्वारा पार्लर पहुंच गई. लेकिन उस समय उस के साथ उस के मातापिता और सहेलियां थीं, इसलिए वे काम को अंजाम न दे सके. मांबाप उसे ब्यूटीपार्लर में छोड़ कर कहीं चले गए. तब पलविंदर और उस के साथी बाहर खड़े हो कर हरप्रीत के तैयार हो कर लौटने का इंतजार करने लगे.
पलविंदर फोन द्वारा अमितपाल के संपर्क में था. जब 9 बजे तक हरप्रीत तैयार हो कर ब्यूटीपार्लर से बाहर नहीं निकली, तब वह पार्लर में चला गया और घटना को अंजाम दे डाला.
अमितपाल कौर से पूछताछ के बाद पुलिस ने पलविंदर सिंह उर्फ पवन उर्फ विक्की, मनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी, जसप्रीत सिंह, गुरुसेवक बराड़ और राकेश कुमार को अलगअलग जगहों से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें 9 दिसंबर, 2013 को न्यायालय में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर 3 दिनों के रिमांड पर ले कर अहम सुबूत इकट्ठे किए. फिर सभी अभियुक्तों को 12 दिसंबर को पुन: न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.
उधर डीएमसी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही हरप्रीत कौर की हालत दिनप्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी. उसे बचाने के लिए डाक्टरों की टीम लगी हुई थी. इसी दौरान घटना के 2 दिन बाद हरप्रीत को 2 बार होश आया. तब उस ने मां दविंदर से पूछा, ‘‘मां अब मेरी शादी होगी, क्या हनी (हरप्रीत) मुझ से शादी करेगा? क्या मैं ठीक हो जाऊंगी?’’
दविंदर कौर ने ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘हां बेटा, तू ठीक हो जाएगी.’’
पुलिस आयुक्त निर्मल सिंह ढिल्लो व थानाप्रभारी हरपाल सिंह को जब पता चला कि हरप्रीत को होश आ गया है तो वे उस से मिलने अस्पताल पहुंचे. पुलिस अधिकारियों से वह केवल इतना ही कह पाई, ‘‘सर, अपराधियों को सजा जरूर देना, उन्हें फांसी पर चढ़ा देना.’’ इस के बाद उस की हालत बिगड़ने लगी. उस की जुबान बंद हो गई.
उस के इलाज में जुटे डीएमसी अस्पताल के डाक्टरों ने जब देखा कि हरप्रीत की हालत सीरियस होती जा रही है तो उन्होंने उसे मुंबई के नेशनल बर्न सेंटर ले जाने की सलाह दी. तब पुलिस आयुक्त ने हरप्रीत कौर को मुंबई ले जाने के लिए एक विशेष विमान की व्यवस्था कराई और 13 दिसंबर, 2013 को विशेष विमान से उसे मुंबई भेजा. मुंबई के नेशनल बर्न सेंटर के डा. सुनील केसवानी के नेतृत्व में हरप्रीत कौर का इलाज शुरू हुआ.
वहां 20 दिनों तक इलाज होने के बाद हरप्रीत कौर की हालत में कोई सुधार न हुआ और 27 दिसंबर, 2013 को सुबह 5 बजे उस ने दम तोड़ दिया.
पुलिस आयुक्त निर्मल सिंह ढिल्लो ने हरप्रीत का शव लेने के लिए एक पुलिस पार्टी विमान द्वारा मुंबई भेजी. टीम ने मुंबई में ही हरप्रीत की लाश का पोस्टमार्टम कराया और विमान द्वारा डेड बाडी ले कर दिल्ली लौट आई. फिर सड़क मार्ग द्वारा बरनाला पहुंच कर उस के मातापिता को डेडबौडी सुपुर्द कर दी. हरप्रीत की मौत पर लोगों में आक्रोश बढ़ गया.
नारेबाजी करते हुए लोग सड़कों पर उतर आए तो प्रदेश सरकार के वित्तमंत्री परमिंदर सिंह ढींढसा मौके पहुंचे. उन्होंने मृतका के परिजनों को 5 लाख रुपए और परिवार के एक सदस्य को डीसी दफ्तर में नौकरी देने का वादा किया. इस के बाद ही हरप्रीत का अंतिम संस्कार किया गया.
यहां यह बताना आवश्यक है कि हरप्रीत पर तेजाब डाले जाने के बाद उस के ससुरालियों ने कोई सहायता नहीं की थी. सारा खर्च लुधियाना पुलिस आयुक्त निर्मल सिंह ढिल्लो और स्वयं सेवी संस्थाओं ने उठाया.
पुलिस ने अमितपाल और अन्य अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के भले ही जेल भेज दिया, लेकिन अमितपाल की सनक का खामियाजा हरप्रीत कौर ने दर्दनाक मौत के रूप में सहा.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
यदि लाडो को कुरेदा जाए तो दिव्या के विषय में बहुत कुछ मालूम हो सकता था. एसएचओ चतुर्वेदी कंचन के घर पहुंचे. कंचन पुलिस को दरवाजे पर देख कर डर गई. उस के चेहरे का रंग उड़ता देख इंसपेक्टर चतुर्वेदी ने भांप लिया कि वह बहुत कुछ जानती है.
“क्या नाम है तुम्हारा?” कंचन को घूरते हुए उन्होंने पूछा.
“कं…च..न.” कांपती आवाज में वह बोली.
“तुम्हारा भाई बनवारी लाडो को रात 11 बजे तुम्हारे घर ले कर आया था. उस के साथ उस की सहेली दिव्या भी थी, बनवारी ने उसे कहां छोड़ दिया.”
“म… मैं नहीं जानती साहब, बनवारी यहां तो लाडो को ही ले कर आया था. उस ने मुझे कुछ नहीं बताया.”
“लेकिन जब लाडो और दिव्या के मांबाप तुम्हारे घर बनवारी से पूछताछ करने आए तो तुम ने बनवारी को भगा दिया.”
“मैं ने नहीं भगाया, वो खुद चला गया.”
“कहां गया है?”
“मैं नहीं जानती. शायद घर गया होगा.”
“उस के घर का पता बताओ.” चतुर्वेदी ने पूछा.
बनवारी के डर से मुंह नहीं खोल रही थी लाडो
कंचन ने घर का पता बता दिया. एसएचओ ने अपने साथ आए हैडकांस्टेबल को 2 पुलिस वालों के साथ बनवारी के घर दबिश डालने के लिए भेज दिया. वह लाडो से पूछताछ करने के लिए रुक गए. वह बहुत डरी हुई थी.
लाडो से उन्होंने दिव्या के विषय में प्यार से पूछा, “तुम अपनी सहेली दिव्या के साथ लाला की परचून की दुकान पर गई थी, वहां से तुम कहां गई थी? और बनवारी तुम्हें कहां मिला था.”
लाडो ने कोई उत्तर नहीं दिया. वह जमीन की तरफ देखती रही. इंसपेक्टर चतुर्वेदी ने महसूस किया कि लाडो किसी सदमे से डरी हुई है. यह मुंह नहीं खोलेगी. वह कुछ सोचने लगे. यदि बनवारी लाडो को साथ लाया था तो दिव्या भी बनवारी के साथ जरूर रही होगी. कहीं ऐसा तो नहीं कि बनवारी ने ही दिव्या का रेप किया हो और उस की हत्या कर दी हो.
लाडो साथ थी, उस ने सब अपनी आंखों से देखा होगा. बनवारी ने उसे भी धमकाया होगा कि किसी से कुछ नहीं कहेगी. लाडो के भय का कारण यही हो सकता है. बनवारी ही दिव्या का कातिल है, उसी ने दिव्या को अपनी हवस का शिकार बनाया है.
चतुर्वेदी की नजर में बनवारी संदिग्ध बन गया था. उसे भगाने में कंचन का हाथ था, इसलिए वह भी दोषी थी. चतुर्वेदी विचारों के तानेबाने बना रहे थे, तभी हैडकांस्टेबल ने फोन कर के बताया कि बनवारी अपने घर से फरार है.
“उसे तलाश करो. अपने खास मुखबिर लगा दो. बनवारी इस केस का मुख्य अभियुक्त है.” इंसपेक्टर चतुर्वेदी ने आदेश दिया.
बनवारी छटा हुआ बदमाश था. वह पुलिस को छका रहा था. उस के बारे में जब मालूम होता कि वह फलां जगह पर है, पुलिस वहां पहुंचती तो वह वहां से भाग चुका होता था. मगर वह कब तक भागता. पुलिस के मुखबिर उस की टोह में लगे हुए थे.
6 सितंबर को उसे कोसीकलां में मुखबिर ने देखा तो थाना यमुनापार को सूचना दे दी. पुलिस ने बहुत सावधानी से उसे कोसीकलां पहुंच कर घेरे में लिया तो वह गोलियां चलाने लगा. पुलिस ने भी गोलियां दागीं. आखिर में गोलियां खत्म हो जाने पर बनवारी हाथ उठा कर दीवार की ओट से बाहर आ गया. उसे गिरफ्तार कर के थाने लाया गया.
उस पर पुलिस ने सख्ती की तो उस ने कुबूल कर लिया कि उसी ने दिव्या से रेप किया और भेद खुलने के डर से उस की गला घोंट कर हत्या कर दी थी. उस ने बताया कि 31 अगस्त, 2020 को वह लाला की परचून की दुकान पर सिगरेट लेने गया था. वहां अपनी भांजी लाडो के साथ दिव्या को देख कर उस के हवस का कीड़ा कुलबुलाने लगा.
वह दोनों को बाइक पर बिठा कर मावली गांव के एक खेत में ले गया. जहां उस ने अपनी भांजी लाडो के सामने ही दिव्या के साथ रेप कर उस की गला दबा कर हत्या कर दी. भांजी लाडो को उस ने डराधमका दिया था.
बनवारी से पूछताछ करने के बाद एसएचओ चतुर्वेदी ने उसे विधिवत गिरफ्तार कर लिया और कोर्ट में पेश कर दिया. वहां से उसे जेल भेज दिया गया. एसएचओ ने 5 दिन में बनवारी के खिलाफ पुख्ता सबूत, गवाह आदि एकत्र कर के पोक्सो कोर्ट के जज रामकिशोर यादव-3 की अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी.
यह केस 3 साल तक चला और अंत में डरी हुई लाडो का मुंह खुलवा कर डीजीसी (स्पैशल) वकील अलका उपमन्यु ने इस केस का रुख बदल दिया. लाडो ने अपने मामा बनवारी की करतूत कोर्ट को बताई.
कोर्ट में लाडो के बयान देने के बाद कोर्टरूम में सन्नाटा भर गया, जिसे माननीय जज राम किशोर यादव ने तोड़ा, “इस बच्ची लाडो का चश्मदीद बयान सुन लेने के बाद मुझे अपना फैसला सुनाने का रास्ता मिल गया है.
बनवारी को हुई सजा ए मौत
जज महोदय राम किशोर यादव थोड़ी देर के लिए रुके, फिर बोलने लगे, “यह वकील अलका उपमन्यु की सूझबूझ का कमाल है. इन्होंने उस बच्ची के मन से उस के मामा बनवारी का भय निकाल कर उसे न्याय के कटघरे में ला कर सच्चाई बयान करने के लिए तैयार किया. उन के उसी गवाह ने सारे केस का रुख पलट दिया. दूध का दूध और पानी का पानी हो गया.
यह कटघरे में खड़ा व्यक्ति अलका उपमन्यु की ठोस दलीलों के कारण ही आज हत्या, बलात्कार, अपहरण और साक्ष्य नष्ट करने का दोषी सिद्ध हुआ है. इस का अपराध अक्षम्य है. इस पर रहम नहीं किया जा सकता.
“इसे आईपीसी की धारा 363 (अपहरण), 376 (बलात्कार), 302 (हत्या) के लिए और 201 (साक्ष्य नष्ट करने) के लिए दोषी माना जाता है. पोक्सो अधिनियम 2012 की धारा 5/61 भी इस पर लगाई जाती है. यह सब 11 व्यक्तियों की गवाही, मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मृतका के स्लाइड सैंपल, डीएनए परीक्षण की बदौलत संभव हुआ. ये सब बातें इस अभियुक्त के खिलाफ जाती हैं, इसलिए इस का अपराध दुर्लभतम मान कर इसे मैं फांसी की सजा देता हूं. इसे तब तक फांसी पर लटकाया जाए, जब तक इस के प्राण न निकल जाएं.
“इस पर एक लाख रुपए का जुरमाना हत्या के लिए और रेप के लिए 30 हजार का जुरमाना भी लगाया जाता है. इस राशि का 80 प्रतिशत मृतका के पिता और मां को दिया जाए.”
सबूत न मिलने पर कंचन को बाइज्जत रिहा कर दिया गया
जज महोदय अपना फैसला सुना कर खड़े हो गए और अपने चैंबर में चले गए. फांसी की सजा सुनते ही कटघरे में खड़ा बनवारी रोने लगा. उसे उसी हालत में पुलिस वाले ले कर बाहर खड़ी कैदियों की गाड़ी की तरफ ले आए. उसे अब जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की तैयारी शुरू हो गई थी. फांसी की सजा पाने वाले व्यक्ति की मनोदशा को ध्यान में रख कर जेल अधीक्षक ने बनवारी को अपने संरक्षण में ले लिया. वह उसे अपनी निगरानी में रखना चाहते थे.
—कथा कोर्ट के जजमेंट व पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में दिव्या परिवर्तित नाम है.
इस के बाद एक दिन जसवंत सिंह के घर श्री गुरुग्रंथ साहिब का पाठ था. जो युवक पहले हरप्रीत कौर को गिफ्ट देने आए थे, वही दोनों उस दिन भी उन के यहां फिर आ गए. उस दिन भी वे हरप्रीत को गिफ्ट देने की बात कर रहे थे. वे हरप्रीत से मिलने की जिद कर रहे थे. जब जसवंत सिंह ने उन से कहा कि हरप्रीत किसी से नहीं मिलेगी. जो गिफ्ट है वह उन्हें ही दे दें तो उन्होंने गिफ्ट उन्हें नहीं दिया और वहां से चले गए.
शादी के लिए लड़के वालों ने लुधियाना का स्टर्लिंग रिजौर्ट बुक करा लिया था. तब फोन पर जसवंत सिंह को यह भी धमकी मिली कि वे लोग लुधियाना आएं. लेकिन उन्होंने धमकियों को गंभीरता से नहीं लिया. शादी की तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. शादी से 2 दिन पहले जसवंत सिंह परिवार के साथ लुधियाना पहुंच गए.
रंजीत सिंह बेटे की शादी पूरे शानोशौकत के साथ करना चहते थे. तभी तो उन्होंने स्टर्लिंग रिजौर्ट को किसी फिल्म के सैट जैसा सजवा रखा था. शादी के समारोह में पंजाब और कोलकाता के कई वीआईपी के भी शामिल होने की संभावना थी, लेकिन ऐन मौके पर अमितपाल ने पल भर में इस खुशी को रंज में बदल दिया. लाखों रुपए से बना शादी का मंडप भी वीरान हो गया. शादी समारोह में शामिल होने के लिए जो लोग रिजौर्ट पहुंच रहे थे, दुखद समाचार सुन कर वे अस्पताल पहुंचने लगे थे.
पूरे प्रकरण में अब सवाल यह उठता है कि आखिर बेकुसूर हरप्रीत कौर के ऊपर तेजाब क्यों डाला गया. उस की न तो तेजाब फेंकने वाले से कोई दुश्मनी थी और न डलवाने वाली अमितपाल कौर से. फिर हरप्रीत कौर इस की शिकार कैसे बनी? इस बारे में पूछताछ करने पर अमितपाल कौर की दिलचस्प कहानी सामने आई.
अमितपाल कौर उर्फ डिंपी उर्फ परी लुधियाना के दुगरी के रहने वाले सोहन सिंह की बेटी थी. सोहन सिंह सन 2003 में पटियाला आ गए थे और वहां ग्रिड रोड स्थित रंजीतनगर में एक कोठी खरीद कर रहने लगे थे. उन के 2 बच्चे थे. एक बेटा और एक बेटी अमितपाल कौर.
अमितपाल की शिक्षा लुधियाना में ही हुई थी. महत्त्वाकांक्षी अमितपाल बचपन से ही स्वच्छंद और अपनी इच्छा से जिंदगी जीने की आदी थी. वह खूबसूरत तो थी ही. अपनी आदतों की वजह से वह युवा होने से पहले ही बहक गई थी. कई युवकों से उस के संबंध बन गए थे. उस के जिद्दी और झगड़ालू स्वभाव की वजह से पिता भी उस पर अंकुश नहीं लगा पाए थे. थकहार कर उन्होंने उसे उसी के हाल पर छोड़ दिया था.
अपनी मरजी से जिंदगी जीते हुए सन 2003 में उस ने सरदार रंजीत सिंह के बड़े बेटे तरनजीत सिंह से विवाह कर लिया और उस के साथ कोलकाता चली गई थी. कोलकाता में तरनजीत सिंह बार का बिजनेस संभालता था. शुरूशुरू में अपने प्यार से अमितपाल कौर ने रंजीत सिंह के परिवार का दिल जीत लिया, जिस के बाद रंजीत सिंह ने उसे अपने एक बार का कैशियर मैनेजर बना दिया.
शादी के कुछ दिनों बाद ही अमितपाल को पता चला कि उस का पति नपुंसक है. भले ही वह करोड़ों की संपत्ति की मालकिन बन गई थी, लेकिन पति की एक कमी ने उसे चिड़चिड़ा बना दिया था. इस के बाद घर में क्लेश होना शुरू हो गया.
इस तरह दिनप्रतिदिन वह परिवार पर हावी होती गई. अपनी शारीरिक कमजोरी की वजह से तरनजीत उस के सामने कुछ नहीं बोल पाता था. फिर भी वह उसे प्यार से समझाता, लेकिन अमितपाल कौर उस की एक न सुनती. वह यह समझता था कि अमितपाल को शायद कोई मानसिक प्राब्लम है, जिस की वजह से वह अकसर टेंशन में रहती है. इसलिए अपनी शारीरिक और पत्नी की मानसिक बीमारी का इलाज कराने के लिए तरनजीत सिंह पत्नी के साथ विदेश चला गया.
दोनों वहीं पर कई साल रहे. वहीं पर अमित पाल ने जुड़वां बेटों को जन्म दिया. बाद में जिन के नाम अनंत और मिरर रखे गए. कुछ साल विदेश में रहने के बाद वे बच्चों के साथ कोलकाता लौट आए. वापस लौटने के बाद घरेलू झगड़ा, क्लेश कम होने के बजाय बढ़ता गया और तलाक तक की नौबत आ गई. तरनजीत सिंह का आरोप था कि अमितपाल कौर के कई लोगों से अवैध संबंध हैं. वह अधिकतर घर से बाहर रहती है और अपने प्रेमियों से मिलती है.
आखिर में इस विवाद का निपटारा तलाक होने पर ही खत्म हुआ. इस तलाक में अमितपाल कौर ने अपने ससुरालियों से करीब 74 लाख रुपए की चलअचल संपत्ति ली. तलाक के बाद अमितपाल दोनों बच्चों को तरनजीत के पास छोड़ कर मायके चली आई.
तरनजीत से तलाक होने के बाद अमितपाल पूरी तरह से आजाद हो गई थी. इस के बाद उस ने फरवरी, 2013 में एक एनआरआई अमरेंद्र सिंह से शादी कर ली. अमरेंद्र सिंह वेस्ट लंदन में रहता था. शादी के बाद वह वापस लंदन चला गया और अमितपाल अपने मायके पटियाला आ कर रहने लगी. लंदन जाने के बाद अमरेंद्र जैसे उसे भूल गया.
पटियाला में ही अमितपाल की मुलाकात पलविंदर सिंह उर्फ पवन से हुई. पलविंदर आपराधिक प्रवृत्ति का था, जिस वजह से उस के पिता अजीत सिंह ने उसे घर से बेदखल कर दिया था. अमितपाल को भी एक सहारे की जरूरत थी, इसलिए उस ने पलविंदर सिंह से नजदीकियां बना लीं. उन दोनों के बीच संबंध भी बन गए. फिर तो पलविंदर उस के इशारों पर नाचने लगा.
मार्च, 2013 में जब अमितपाल को इस बात का पता चला कि उस के पूर्व पति तरनजीत सिंह के छोटे भाई हरप्रीत की शादी बरनाला की एक खूबसूरत लड़की से तय हुई है तो बेवजह की एक सनक उसे चढ़ गई. उस ने ठान ली कि चाहे कुछ भी हो, वह उस के परिवार में किसी सदस्य की शादी नहीं होने देगी.
इसी ईर्ष्या के चलते उस ने अपने पूर्व ससुर रंजीत सिंह व पूर्व पति तरनजीत सिंह को भी धमकी दे डाली, ‘‘मैं तुम्हारे घर में दोबारा शहनाई नहीं बजने दूंगी.’’
ऐसी ही धमकी अमितपाल कौर ने तलाक के समय भी दी थी, इसलिए उन लोगों ने इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया था. अपने मन की बात उस ने अपने नए प्रेमी पलविंदर को भी बताई. अमितपाल के पास पैसे की कमी तो थी नहीं, जिस से वह कुछ भी करा सकती थी.
सब से पहले उस ने योजना बनाई कि कोलकाता जा कर इस परिवार का अनिष्ट किया जाए. काफी सोचनेविचारने के बाद भी वे दोनों ऐसा कोई ठोस विचार नहीं बना सके कि जिस से कोलकाता जा कर काम को आसानी से अंजाम दिया जा सके.
उधर नगरवासियों का पुलिस पर दबाव बढ़ रहा था, जिस से पुलिस अधिकारी भी इस संवेदनशील मामले को ले कर बहुत चिंतित थे. डीसीपी ने इस केस को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी हरपाल सिंह ग्रेवाल की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में सबइंस्पेक्टर मनजीत सिंह, हेडकांस्टेबल अमरजीत सिंह, स्वर्ण सिंह, कमलजीत सिंह, बिशन सिंह, सुरेंद्र सिंह, महिला कांस्टेबल कलविंदर कौर व राजवंत कौर को शामिल किया गया.
थानाप्रभारी अब हरप्रीत के घर वालों से बात करना चाहते थे. उस समय उस के घर वाले डीएमसी अस्पताल में ही थे, इसलिए वह अस्पताल पहुंच गए. पूछताछ के दौरान हरप्रीत की मां दविंदर कौर से उन्हें कई काम की बातें मालूम हुईं.
उन्होंने बताया कि जब से हरप्रीत की शादी तय हुई है, तब से 2 युवक उन्हें कभी फोन पर तो कभी घर पर आ कर धमकी देते आ रहे थे. वे कहते थे कि अपनी लड़की की शादी वहां न करो, जहां कर रहे हो. 2 दिन पहले भी एक अनजान युवक हमारे घर फिर आया था. उस ने हम से फिर कहा था कि हरप्रीत की शादी करने लुधियाना न जाएं.
‘‘क्या हरप्रीत कौर उस युवक को जानती हैं?’’
‘‘नहीं, मेरी बच्ची उन्हें नहीं जानती.’’ दविंदर कौर ने कहा.
बातचीत में दविंदर कौर ने पुलिस को आगे बताया था कि वह बरनाला की रहने वाली हैं और विशाल नाम के किसी लड़के को नहीं जानतीं.
यह मामला कहीं एकतरफा प्यार का तो नहीं है, यह जानने के लिए थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम बरनाला भेज दी और खुद एक बार फिर उसी ब्यूटीपार्लर में पहुंचे, जहां घटना घटी थी.
थानाप्रभारी ने ब्यूटीपार्लर के संचालक संजीव से पूछा, ‘‘हरप्रीत के मेकअप की बुकिंग किस ने करवाई थी और तब से अब तक पार्लर में हरप्रीत के बारे में किसकिस के फोन आए और फोन करने वालों से तुम्हारी क्याक्या बातें हुई थीं?’’
‘‘बुकिंग तो हरप्रीत कौर के घर वालों ने कराई थी, लेकिन यहां अमितपाल कौर नाम की एक महिला का फोन अकसर आता था. वह हरप्रीत कौर के बारे में ज्यादा पूछती थी. मसलन वह ब्यूटी ट्रीटमेंट लेने और मेकअप कराने कबकब पार्लर आएगी?’’
अमितपाल कौन है, इस बारे में थानाप्रभारी ने दविंदर कौर से बात की तो उन्होंने बताया कि अमितपाल कौर उर्फ परी उन के होने वाले दामाद हरप्रीत उर्फ हनी की तलाकशुदा भाभी है.
तलाकशुदा भाभी का ब्यूटीपार्लर में फोन कर हरप्रीत के विषय में पूछताछ करना थानाप्रभारी की समझ में नहीं आया. उन्होंने हरप्रीत कौर के होने वाले ससुर रंजीत सिंह से पूछा. रंजीत सिंह ने थानाप्रभारी को जो बात बताई, उस से उन के सामने मामले की तसवीर स्पष्ट होने लगी.
उन्होंने एक पुलिस टीम पटियाला स्थित अमितपाल कौर के घर भेज दी. अमितपाल घर पर ही मिल गई. पुलिस उसे ले कर लुधियाना आई. पूछताछ में अमितपाल पहले तो इधरउधर की बातें करती रही, लेकिन जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई तो पता चला कि हरप्रीत कौर पर तेजाब डलवाने की मास्टरमाइंड वही थी. दिल दहलाने वाले इस मामले की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—
पंजाब के बरनाला जिले के ढनोला रोड पर स्थित फतहनगर के रहने वाले जसवंत सिंह के परिवार में पत्नी दविंदर कौर के अलावा 2 बेटे और एक बेटी हरप्रीत कौर थी. बाल काटने की उन की एक दुकान थी. इसी पुश्तैनी काम से होने वाली आमदनी से वह घर का खर्च चलाते थे. तंगी झेल कर उन्होंने बच्चों की पढ़ाई कराई.
हरप्रीत कौर का पढ़ाई के प्रति उत्साह और लगन देख कर उन्होंने उसे बीएड कराया. वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, लेकिन आर्थिक हालात के कारण वह उसे और नहीं पढ़ा सके. तब हरप्रीत ने सिलाईकढ़ाई सीख ली. बेटी जवान थी और उस की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी, इसलिए जसवंत सिंह उस के लिए कोई अच्छा घरवर देखने लगे, ताकि वह उस के हाथ पीले कर सकें.
लुधियाना में हरप्रीत की बुआ भोली रहती थी. उस की मार्फत फरवरी, 2013 में हरप्रीत कौर की शादी की बात सरदार रंजीत सिंह के बेटे हरप्रीत सिंह उर्फ हनी से चली. रंजीत सिंह एक संपन्न व्यक्ति थे. वैसे तो वह मूलरूप से दोराहा के रहने वाले थे, लेकिन कई वर्ष पहले वह कोलकाता जा कर रहने लगे थे. वहां उन का होटल और बार का काफी बड़ा व्यवसाय था.
धनदौलत की उन के पास कमी न थी, इसलिए वह किसी गरीब और शरीफ खानदान की लड़की से अपने बेटे हरप्रीत उर्फ हनी की शादी करना चाहते थे. उन के पास जसवंत सिंह की बेटी हरप्रीत कौर की शादी का प्रस्ताव आया तो जांचपड़ताल करने के बाद उन्हें यह रिश्ता पसंद आया और उन्होंने बेटे की शादी के लिए हां कर दी और मार्च, 2013 में रिश्ता पक्का हो गया. 7 दिसंबर, 2013 को शादी का दिन भी मुकर्रर कर दिया गया.
जसवंत सिंह और रंजीत सिंह की हैसियत में जमीनआसमान का अंतर था. जसवंत सिंह तो बेटी के लिए अपनी हैसियत का परिवार देख रहे थे. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि बेटी के लिए इतना संपन्न परिवार मिलेगा. वह इस बात से खुश हो रहे थे कि बेटी को वहां किसी तरह की परेशानी नहीं होगी.
रिश्ता तय होने के कुछ दिनों बाद ही जसवंत सिंह के यहां किसी अज्ञात व्यक्ति के फोन आने शुरू हो गए. वह कहता था कि इस रिश्ते को तोड़ दो अन्यथा अंजाम अच्छा नहीं होगा. जसवंत सिंह परेशान होने लगे कि पता नहीं कौन है, जो इस तरह के फोन कर रहा है? उन्होंने इस बारे में अपने होने वाले समधी रंजीत सिंह से बात की.
तब रंजीत सिंह ने कहा, ‘‘कुछ लोगों से हमारी रंजिश है, इसलिए वही लोग आप के यहां फोन करते होंगे. लेकिन आप चिंता न करें. हमारी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं है.’’
समधी से बात हो जाने के बाद जसवंत सिंह शादी की तैयारियों में जुट गए. शादी की तारीख से करीब एक, डेढ़ महीने पहले 2 अनजान युवक जसवंत सिंह के घर बरनाला आए. उन के हाथों में कुछ सामान था. उन्होंने कहा था कि वह हरप्रीत कौर की होने वाली ससुराल की तरफ से आए हैं. ये गिफ्ट हरप्रीत कौर को ही देने हैं.
जसवंत सिंह के पास पहले भी धमकी भरे फोन आए थे. उन्हें उन दोनों युवकों पर शक हो रहा था, इसलिए उन्होंने उन्हें बेटी से मिलने से मना कर दिया. इस के बाद वे युवक लौट गए थे.
जसवंत सिंह ने इस बारे में रंजीत सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी होने वाली बहू को कोई गिफ्ट नहीं भेजा था. इस बात को ले कर वह भी परेशान थे कि ऐसा कौन सा शख्स है, जो इस रिश्ते को तोड़वाने की कोशिश लगातार कर रहा है. उन्होंने जसवंत सिंह से भी कह दिया था कि ऐसे लोगों से सतर्क रहें.
भांजी ने बनवारी के खिलाफ दी गवाही
लाडो कटघरे में आ कर खड़ी हो गई. उस ने बड़ी निर्भीकता से कहना शुरू किया, “उस रात दिव्या की मां ने दिव्या को लाला की दुकान पर सुई लाने भेजा था. उसे मैं मिल गई तो वह मेरे साथ लाला की दुकान पर गई थी. वहां बनवारी जो मेरा मामा लगता है और डहरुआ में ही रहता है, हमें मिल गया. उस ने हमें पास बुला कर कहा, ‘कोल्डड्रिंक पिओगी तुम दोनों.’
“हम ने हां कर दी तो वह लाला से कोल्डड्रिंक ले आया. उस ने गिलास, नमकीन, सौस और प्लेट खरीदी. बनवारी मामा हम दोनों को बाइक पर बिठा कर एक गांव मावली में बाजरे के खेत में ले गया. हम ने वहां लाने के बारे में पूछा तो बोला कि तुम यहां आराम से कोल्डड्रिंक पीना, मैं दारू पी लूंगा. वहां बनवारी ने हमें गिलास में कोल्डड्रिंक भर कर पीने को दी. हम कोल्डड्रिंक पी रही थीं, मामा दारू पी रहा था.
“जब वह दारू पी चुका तो उस ने अचानक दिव्या को दबोच लिया. दिव्या चीखी तो उसे थप्पड़ मार कर जमीन पर गिरा दिया, उस की पाजामी उतार कर यह उस के साथ गंदा काम करने लगा. दिव्या रोती चीखती रही, मैं भी बदहवास हो कर चीखती रही. इस ने दिव्या को लहूलुहान कर के छोड़ा. वह दर्द से रोने लगी थी. कहने लगी मां को बताऊंगी. इस पर मामा ने उस का गला पकड़ कर दबाया तो वह छटपटा कर मर गई. इस ने मुझे धमकाया कि किसी से गांव में कहा तो मेरा भी गला दबा देगा.
“मैं बहुत डर गई थी. यह मुझे बाइक पर बिठा कर मेरी मां कंचन के नौगांव ले गया और जब मेरी मां ने मेरे लिए परेशान हो रहे छोटे मामा को बताया कि मुझे बनवारी घर ले आया है तब मेरे छोटे मामा भोला हमें दिव्या के पिता और चाचा के साथ गांव में ढूंढ रहे थे. दिव्या के दोनों चाचा संतोष और दाजू ने कहा कि वेनौगांव आ रहे हैं तो मां को मामा बनवारी यह कह कर भाग गया कि उसे कोई जरूरी काम है. मैं ने सब अपनी आंखों से देखा है.”
एडवोकेट किशन बेधडक़ गहरी सांस भर कर कुरसी पर आ बैठे. अब उन के पास कहने को कुछ नहीं बचा था. पूरी कहानी समझने के लिए हमें घटना के अतीत में जाना होगा.
बनवारी की नीयत हुई खराब
रात के 8 बजने को आए थे. परचून की दुकान पर दाल लेने गई दिव्या अभी तक वापिस नहीं आई थी.
“कहां मर गई यह लडक़ी. आधा घंटे से ऊपर हो गया दुकान पर गए, अभी तक नहीं लौटी.” दिव्या की मां अपने आप में बड़बड़ाने लगी.
“अरी क्या हुआ, क्यों बड़बड़ा रही हो?” दिव्या के पिता ने हाथ का थैला खूंटी पर टांगते हुए पूछा.
“आप की लाडली को आधा घंटा पहले लाला की दुकान पर दाल लेने भेजा था, अभी तक वापस नहीं आई है.”
“आधा घंटा हो गया?” दिव्या का पिता हैरानी से बोला, “तुम ने देखा नहीं जा कर?”
“मैं मसाला पीसने बैठी थी… अब जा कर देखती हूं.”
“ठहरो, मैं देख कर आता हूं.” दिव्या के पिता ने कहा और तेजी से वह बाहर निकल गया.
मथुरा के यमुनापार की इस बस्ती में लाला की परचून की दुकान थी. दिव्या का पिता दुकान पर पहुंचा तो लाला दुकान बंद करने के लिए सामान अंदर रख रहा था. वहां लाला के अलावा कोई और नहीं था. दिव्या के पिता की धडक़नें बढ़ गईं. वह अपनी बेटी को वहां न देख कर घबरा गया.
उस ने लाला से पूछा, “मेरी बेटी दिव्या आधा घंटा पहले यहां दाल लेने आई थी लाला, वह घर नहीं पहुंची है.”
“दाल लेने आई थी? नहीं, दिव्या बेटी ने तो मुझ से दाल नहीं मांगी, वह तो यहां अपनी सहेली लाडो के साथ आई थी. फिर मुझे नहीं पता, मैं सामान देने में व्यस्त था.”
“कहां चली गई यह लडक़ी,” बड़बड़ाते हुए वह घर लौट आया. उस ने अपनी पत्नी को बताया कि दिव्या दुकान पर और रास्ते में कहीं नहीं दिखाई दी है तो उस की पत्नी घबरा गई. वह तेजी से घर से निकली, पीछे उस का पति भी था. बेटी को ले कर मांबाप हुए परेशान दोनों अपनी बेटी को बस्ती में तलाश करने लगे.
दिव्या की मां लाडो के घर भी गई. मालूम हुआ वह भी घर पर नहीं है. वह भी अपनी बेटी के लिए परेशान हो गए. अब दोनों ही अपनीअपनी बेटी को तलाश करने लगे. दिव्या और लाडो साथ ही थीं. दोनों में से कोई एक भी मिल जाती तो मालूम हो जाता दूसरी कहां पर है.
पूरी बस्ती छान डाली गई, लेकिन दोनों लड़कियों का कुछ पता नहीं चला. एक घंटे से ऊपर होने को आया, तब लाडो की अच्छी खबर फोन द्वारा मिली. लाडो की ममेरी बहन कंचन ने फोन कर पापा को बताया कि लाडो अपने मामा बनवारी के साथ उस के घर आई है. बनवारी अच्छा आदमी नहीं था. उस का नाम सुनते ही दिव्या के पिता और मां घबरा गए.
“कंचन से पूछो लाडो वहां आई है तो दिव्या कहां पर है?” दिव्या की मां ने परेशान स्वर में कहा.
“कंचन… लाडो के साथ दिव्या भी थी. दिव्या भी वहां आई होगी?”
“नहीं, दिव्या तो यहां नहीं आई है.” कंचन ने बताया, “बनवारी केवल लाडो को ही साथ लाया है.”
“तुम बनवारी को रोक कर रखो, हम तुम्हारे घर आ रहे हैं.” लाडो के पिता ने कहा और फोन काट कर बोला, “बनवारी बुरा आदमी है. मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है. अभी बनवारी कंचन के यहां ही है. उस से मालूम होगा, दिव्या कहां पर है. आओ.”
सभी लगभग भागते हांफते हुए कंचन के घर पहुंचे जो उसी बस्ती में था. वहां कंचन और लाडो ही मिली. बनवारी वहां से नौ दो ग्यारह हो चुका था.
“तुम ने बनवारी को क्यों जाने दिया?” दिव्या के पिता ने गुस्से से पूछा.
“मैं ने रोका, लेकिन वह एक जरूरी काम की कह कर चला गया.” कंचन ने बताया.
उन लोगों ने लाडो से दिव्या के विषय में पूछा तो वह कुछ भी नहीं बता पाई. वह बहुत डरी हुई और सदमे में नजर आ रही थी.
पहली सितंबर, 2020 को थाना यमुनापार में दिव्या का पिता रोते हुए पहुंचा. एसएचओ महेंद्र प्रताप चतुर्वेदी उस वक्त अपने कक्ष में आ कर सुबह का अखबार पढ़ रहे थे. उस ने एसएचओ को बेटी के गायब होने की पूरी बात बता दी.
एसएचओ ने दिव्या की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. एक कांस्टेबल ने आ कर एसएचओ को बताया, “साहब, कंट्रोल रूम से एक संदेश हमारे लिए फ्लैश किया जा रहा है. हमारे थाना क्षेत्र के गांव मावली में एक लडक़ी की क्षतविक्षत लाश पड़ी हुई है. हमें तुरंत वहां पहुंचने के लिए कहा गया है.”
एसएचओ चतुर्वेदी के जेहन में तुरंत खयाल आया. कहीं वह लाश दिव्या की न हो. कुछ सोच कर उन्होंने दिव्या के पिता से कहा, “कंचन से हम बाद में मिल लेंगे. पास के मावली गांव में किसी लडक़ी की लाश पड़ी होने की सूचना मिल रही है. आओ, पहले मावली गांव चलते हैं.”
कुछ ही देर में यमुना पार थाने की पुलिस मावली गांव की ओर रवाना हो गई थी.
बच्ची के साथ बलात्कार के मिले संकेत
मावली गांव के एक खेत में 9 साल की मासूम लडक़ी का क्षतविक्षत शव पड़ा हुआ था. उस के शरीर पर नोंचखसोट के चिह्न थे. उस के नीचे के कपड़े फटे हुए थे और खून के धब्बे उस पर दिखाई दे रहे थे. पहली नजर में लग रहा था कि उस मासूम के साथ दुष्कर्म हुआ है.
लाश देख कर दिव्या का पिता दहाड़ मार कर रोने लगा. एसएचओ को उस के रोने से ही पता चल गया कि यह बच्ची उस की बेटी दिव्या है, जिस की गुमशुदगी की वह रिपोर्ट लिखवाने आया था. एसएचओ ने फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुलवा लिया और उच्चाधिकारियों को इस लाश की जानकारी दे दी.
मौके पर आसपास के खेत वाले इकट्ठा हो गए थे. आवश्यक काररवाई निपटा लेने के बाद एसएचओ फोरैंसिक टीम का कार्य पूरा होने का इंतजार करते रहे. फिर उन्होंने दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.
थाने में आ कर उन्होंने अज्ञात बलात्कारी और हत्यारे के खिलाफ एफआईआर 287/2020 में आईपीसी की धाराएं 363, 366, 302, 376 और 201 लगा कर उस पर पोक्सो एक्ट की धारा-6 भी लगा दी.
अब उन्हें दिव्या के हत्यारे तक पहुंचना था. सुखिया के अनुसार दिव्या के साथ लाडो भी थी और लाडो अपने मामा के साथ रात को 11 बजे अपनी मौसी कंचन के घर आ गई थी. दिव्या लापता थी जिस के विषय में वह कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी.
कैसे पकड़ा गया मासूम दिव्या का अपराधी? पढ़िए कहानी के अगले अंक में.
मन में हजारों सपने संजोए हरप्रीत कौर ने दहलीज से बाहर कदम रखा तो उस के पांव जमीन पर नहीं टिक रहे थे. भावी पिया की डोर से बंधने में केवल 3 घंटे बचे थे. इसलिए वह अपने होने वाले पति की सूरत मन में बसाए इंद्रधनुषी सपनों की डोर में बंधी दूर उड़ी जा रही थी. 3 घंटे बाद यानी 10 बजे लुधियाना के महंगे और प्रसिद्ध स्टर्लिंग रिजौर्ट में उस की शादी हरप्रीत सिंह के साथ होनी थी.
रिजौर्ट में शादी का मंडप सजा हुआ था. मात्र 3 घंटे बाद उसे हरप्रीत सिंह की अर्धांगिनी बन जाना था. इसी सुखद अहसास और कल्पनाओं में वह खोई हुई थी. तभी उस की मां दविंदर कौर ने आवाज दी तो उस की तंद्रा टूटी. वह बोली, ‘‘जी मम्मी.’’
‘‘बेटा क्या सोच रही हो? 7 बज चुके हैं, जल्दी चलो. ब्यूटीपार्लर में तुम्हें काफी टाइम लगेगा.’’ दरअसल हरप्रीत को मेकअप कराने के लिए ब्यूटीपार्लर जाना था.
‘‘हां मम्मीजी, चलो मैं तैयार हूं.’’ हरप्रीत कौर बोली.
इस के बाद हरप्रीत कौर अपने मातापिता और सखियों के साथ इनोवा कार से साढ़े 7 बजे लुधियाना के सराभानगर स्थित लैक्मे सैलून नाम के ब्यूटीपार्लर पहुंच गई. उस के मेकअप के लिए लैक्मे सैलून को पहले से ही बुक करा रखा था. सैलून संचालक को 3 हजार रुपए भी पेशगी दे दिए थे.
सैलून पहुंचते ही संचालक संजीव गोयल ने हरप्रीत का मेकअप कराना शुरू कर दिया. उस समय हरप्रीत बहुत खुश थी. उसी दौरान करीब 9 बजे एक युवक पार्लर में घुसा. उस ने स्वेटशर्ट से अपना सिर ढक रखा था और मुंह पर रूमाल बांध रखा था. संजीव ने सोचा कि युवक ने ठंड से बचने के लिए यह किया होगा. उस के हाथ में प्लास्टिक का एक डिब्बा था.
पार्लर में घुसते ही वह उधर ही गया, जिधर हरप्रीत कौर का मेकअप किया जा रहा था. जितने बेधड़क तरीके से वह मेकअप केबिन में घुसा इसे देख कर संजीव गोयल ने सोचा कि यह शायद हरप्रीत कौर का कोई परिचित होगा और डिब्बे में दुलहन के लिए नाश्ता वगैरह लाया होगा. इसीलिए उस ने उस युवक को रोकने की कोश्शि नहीं की.
वह युवक लंबेलंबे डग भरता हुआ हरप्रीत के पास पहुंचा और ऊंची आवाज में धमकी देते हुए बोला, ‘‘मैं यह शादी हरगिज नहीं होने दूंगा.’’
उस अनजान युवक को यह कहता देख हरप्रीत चौंकी. वह समझ नहीं पा रही थी कि यह युवक न मालूम कौन है, जो इस तरह की बातें कर रहा है. वह उस युवक से बोली, ‘‘आप कौन हैं और इस तरह की बातें क्यों कर रहे हैं?’’
उस की बात का कोई जवाब देने के बजाय उस युवक ने एक पत्र हरप्रीत को पकड़ा दिया. हरप्रीत सोचने लगी कि पता नहीं यह कौन है और उस से क्या चाहता है? फिर भी उस ने उस युवक द्वारा दिए गए पत्र पर एक नजर डाली और गुस्से से उस पत्र को जमीन पर फेंक दिया. इस से पहले कि वह उस युवक से कुछ कह पाती, उस युवक ने डिब्बे में पड़ा तरल पदार्थ हरप्रीत के चेहरे पर फेंक दिया और उस डिब्बे को वहीं फेंक कर भाग खड़ा हुआ. यह सारा घटनाक्रम केवल 8 सेकेंड में घटा था, इसलिए कोई कुछ समझ नहीं पाया.
कुछ सेकेंड बाद हरप्रीत ने चीखना शुरू किया. हरप्रीत को तैयार कर रही ब्यूटीशियनों और बराबर की सीट पर बैठी एक और लड़की ने हरप्रीत की तरफ देखा तो उस के शरीर से धुआं उठ रहा था. यह देखते उन सभी को समझते देर न लगी कि उस युवक ने हरप्रीत के ऊपर तेजाब डाला है. वे चीखने लगीं.
आवाज सुन कर संजीव गोयल केबिन में पहुंचे तो पता चला कि जो युवक अंदर आया था, उस ने मेकअप करा रही हरप्रीत कौर के ऊपर तेजाब डाल दिया है. उस युवक को पकड़ने के लिए संजीव गोयल जब तक सैलून से बाहर आया, तब तक वह युवक मारुति जेन कार से भाग गया था. संजीव ने उस की कार का नंबर देख लिया था. उस कार में अन्य कई लोग बैठे थे.
हरप्रीत की हालत बहुत नाजुक थी. तेजाब इतनी अधिक मात्रा में डाला गया था कि वह उस के चेहरे से ले कर छाती, जांघों आदि से होता हुआ उस चेयर तक पहुंच गया था, जिस पर वह बैठी थी. तेजाब से उस चेयर की सीट तक जल गई थी. हरप्रीत तेजाब की जलन से तड़प रही थी. तेजाब की छीटें ब्यूटीशियनों पर भी पड़ी थीं.
संजीव ने तुरंत पुलिस कंट्रोल रूम को घटना की खबर दे दी और हरप्रीत कौर व अन्य घायलों को डीएमसी अस्पताल ले गया. सूचना मिलते ही सराभानगर के थानाप्रभारी हरपाल सिंह ग्रेवाल पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां उन्हें पता चला कि घायलों को डीएमसी अस्पताल पहुंचाया गया है तो वह भी अस्पताल पहुंच गए.
हरप्रीत की हालत बेहद नाजुक थी, इसलिए उसे आईसीयू में शिफ्ट कर के इलाज शुरू कर दिया गया. अन्य घायलों को उपचार के बाद अस्पताल ने छुट्टी कर दी. मामला बेहद गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना आला अधिकारियों को दे दी. जिस के बाद लुधियाना के पुलिस आयुक्त निर्मल सिंह ढिल्लो, अतिरिक्त आयुक्त जोगिंदर सिंह, सहायक आयुक्त हर्ष बंसल सहित कई उच्चाधिकारी डीएमसी अस्पताल पहुंच गए.
हरप्रीत के ऊपर तेजाब डालने की खबर उस के घरवालों और ससुराल पक्ष के लोगों को मिली तो वे भी अस्पताल पहुंच गए. हरप्रीत की हालत देख कर वे स्तब्ध थे और समझ नहीं पा रहे थे कि यह सब किस ने और क्यों किया, क्योंकि उन की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी.
इस के बाद तो जिस ने भी यह खबर सुनी, वह डीएमसी अस्पताल की तरफ चल दिया, जिस से कुछ ही देर में अस्पताल के अंदर और बाहर लोगों का हुजूम जमा हो गया. हरप्रीत से पहले शहर में ही राजवंत और उस की 2 सहेलियों पर भी तेजाब डाला गया था, जिन में से एक लड़की की मौत भी हो गई थी और राजवंत 50 प्रतिशत से अधिक जल गई थी. इसी कारण स्वयंसेवी संस्थाओं, सामाजिक संगठनों के अलावा आम जनता में पहले से आक्रोश भरा हुआ था. आंदोलनों के जरिए इन का गुस्सा पुलिस प्रशासन पर फूट पड़ा था.
डीएमसी अस्पताल के अंदर और बाहर लगे हुजूम में आक्रोश था. लोग कह रहे थे कि पुलिस के निष्क्रिय रहने की वजह से एक और तेजाब कांड हो गया. अगर पुलिस राजवंत और उस की सहेलियों पर तेजाब डालने वालों के खिलाफ कठोर काररवाई करती तो तेजाब डालने की यह घटना कतई न होती. भीड़ को देखते हुए भारी मात्रा में पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई थी. उधर डाक्टरों ने बताया कि हरप्रीत कौर 50 प्रतिशत से अधिक जली है और उस की हालत नाजुक है. इस वजह से पुलिस उस का बयान भी नहीं ले पा रही थी.
थानाप्रभारी हरपाल सिंह को यह मामला प्रेमसंबंध का लग रहा था. क्योंकि जितने भी इस प्रकार के तेजाब कांड हुए हैं, उन में से ज्यादातर केसों में सिरफिरे मजनुओं का ही हाथ रहा है. थानाप्रभारी ने जो जानकारी जुटाई, उस से पता चला कि सुबह 10 बजे हरप्रीत कौर की कोलकाता के रहने वाले हरप्रीत उर्फ हनी से शादी होने वाली थी. हनी के घरवालों ने शादी का प्रोग्राम लुधियाना के स्टर्लिंग रिजौर्ट में रखा था. वे सब लुधियाना के होटल में ठहरे हुए थे.
अब सवाल यह था कि ऐसा कौन सा शख्स था, जिस ने शादी से कुछ समय पहले ही शादी की खुशी को मातम में बदल दिया था. लेकिन इतना तो तय था कि वारदात में हरप्रीत कौर के किसी परिचित का हाथ रहा होगा, जिसे हरप्रीत कौर के यहां होने वाले हर कार्यक्रम की जानकारी थी.
इस बारे में पुलिस को हरप्रीत कौर, उस के घरवालों या ससुराल पक्ष के लोगों से बात कर के कोई क्लू मिलने की संभावना थी. हरप्रीत बयान देने की पोजीशन में नहीं थी और अन्य लोगों से थानाप्रभारी ने बाद में बात करना मुनासिब समझा. वह पहले उस ब्यूटीपार्लर में पहुंच गए, जहां यह घटना घटी थी.
ब्यूटीपार्लर में कई सीसीटीवी कैमरे लगे थे. थानाप्रभारी हरपाल सिंह ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी और उस पत्र को भी देखा, जो हमलावर ने हरप्रीत कौर को दिया था. पत्र लिखने वाले ने अपना नाम विशाल लिखा था. सीसीटीवी फुटेज में जो शख्स दिखा था, उस ने अपने चेहरे पर रूमाल बांध रखा था और अपने सिर को स्वेटशर्ट से ढक रखा था. जिस से उस शख्स की शिनाख्त नहीं हो सकी थी.
पार्लर के संचालक संजीव से पुलिस को हमलावर की मारुति जेन कार का नंबर पीबी11-जेड9090 मिला. थानाप्रभारी को इस कार नंबर से हमलावर तक पहुंचने की उम्मीद थी, लेकिन जांच की गई तो यह कार नंबर फरजी पाया गया, जिस से थाना पुलिस की तफ्तीश आगे नहीं बढ़ सकी.
मथुरा के यमुनापार की पोक्सो कोर्ट में एडीजे विशेष न्यायाधीश राम किशोर यादव-3 की अदालत में आज दिनांक 25 जुलाई, 2023 दिन मंगलवार को लोगों की भारी भीड़ थी. इस की वजह यह थी कि उस दिन कोर्ट में 3 साल पहले 9 साल की नाबालिग बेटी दिव्या का बलात्कार कर हत्या करने के दोषी 42 साल के बनवारी लाल और उस की बहन कंचन को सजा सुनाई जानी थी.
सुबह से ही मीडिया जगत के लोग, वकील, पुलिस अधिकारी और डहरुआ गांव के पीडि़ता के परिजन, पड़ोसी और अन्य लोग दोषी बनवारी लाल को मिलने वाली सजा को सुननेजानने के लिए कोर्टरूम में आ चुके थे.
ठीक 10 बजे न्यायाधीश राम किशोर यादव अपने चैंबर कोर्ट रूम में अपनी कुरसी के पास आए तो सभी उन के सम्मान में उठ कर खड़े हो गए. राम किशोर यादव अपने स्थान पर बैठ गए.
अभियुक्त बनवारी लाल और उस की बहन कंचन को कटघरे में ला कर खड़ा कर दिया गया था. दोनों सिर झुका कर खड़े हुए थे. माननीय न्यायाधीश ने एक सरसरी नजर दोनों अभियुक्तों पर डालने के बाद सामने बड़ी मेज के ऊपर अपने दस्तावेजों का अवलोकन कर रहे बचाव पक्ष के वकील किशन सिंह बेधडक़ और सरकारी वकील (अभियोजन पक्ष) स्पैशल डीजीसी अलका उपमन्यु की ओर देखा.
न्यायाधीश ने उन्हें इशारा कर के कहा, “मिस्टर बेधडक़, आप आखिरी बहस के लिए तैयार हैं न. मैं पहला मौका आप को दे रहा हूं. आप अपनी दलील रखिए. सुश्री अलका उपमन्यु आप भी तैयार रहिए.”
“मैं तैयार हूं सर,” अलका उपमन्यु ने उठ कर आदर से सिर झुकाते हुए कहा.
वकीलों में जम कर हुई बहस
बचाव पक्ष के एडवोकेट किशन सिंह बेधडक़ अपनी जगह से उठ कर जज साहब के सामने आ गए. अपने कोट की कौलर ठीक करते हुए बेधडक़ ने बड़े जोश भरे स्वर में कहा, “जनाब, मैं पहले भी यह कह चुका हूं कि मेरा मुवक्किल बनवारी निर्दोष है.
उस 31 अगस्त, 2020 की रात को वह अपने घर पर ही था. वह मृतका दिव्या और अपनी भांजी लाडो को ले कर मावली गांव गया ही नहीं, क्योंकि इस का कोई सबूत मेरी अजीज दोस्त अलका उपमन्यु कोर्ट में पेश नहीं कर पाई हैं. मेरे मुवक्किल को फंसाया जा रहा है, वह निर्दोष है.”
अलका उपमन्यु मुसकराती हुई अपनी जगह से उठीं और बोलीं, “माननीय जज साहब, मैं ने 15 दिन पहले ही वे सभी साक्ष्य जो मावली गांव के बाजरे के खेत में घटनास्थल पर फोरैंसिक टीम और यमुनापार थाने के पुलिस इंसपेक्टर को जांच के दौरान मिले थे, कोर्ट के सामने रख दिए थे. मैं मिस्टर बेधडक़ की कमजोर याद्दाश्त के लिए फिर से सभी साक्ष्यों का ब्यौरा दे देती हूं.
“घटनास्थल से मृतका दिव्या की खून सनी पाजामी बरामद हुई थी, रक्त के नमूने की विधि विज्ञान प्रयोगशाला द्वारा जांच रिपोर्ट. वैजाइनल स्लाइड व स्वैब. नेल क्रीपिंग, स्कैल्प हेअर, टी शर्ट, पांव में बांधा गया काला धागा, राखी, रबर बैंड, मौके से एकत्र की गई खून आलूदा मिट्टी और सीएमओ साहब की ओर से जारी पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जिस में 9 साल की अबोध नाबालिग बालिका के साथ हैवानियत से किए गए बलात्कार होने की पुष्टि हुई है. ये सभी चीजें मैं ने कोर्ट को पहले ही सौंप दी थीं.
“इस के अलावा घटनास्थल से बनवारी लाल द्वारा प्रयोग किया गया शराब का पौआ, बीयर की कैन, पानी के 3 पाउच, 2 खाली और एक भरा हुआ. नमकीन, खाली प्लेट, 3 सौस के पाउच और एक रौयल स्टेग क्वार्टर का खाली पौआ और प्लास्टिक के 2 खाली गिलास बरामद हुए थे.
“इन के अलावा बनवारी द्वारा घटना के वक्त पहने हुए कपड़ों का पुलिंदा, जिन पर दिव्या की वैजाइना से निकले खून के धब्बे मिले थे. ये सभी पुख्ता सबूत मैं ने कोर्ट को पहले ही दे दिए थे. इन के अलावा मैं ने इस घटना से जुड़े 11 गवाहों की पेशी कोर्ट में करवा दी है. मैं इन के नाम फिर से कोर्ट के सामने रख देती हूं. इस से पहले आप यह भी जान लें कि इस घटना के वादी दिव्या के पिता ने 31 अगस्त, 2020 को अपनी बेटी और उस के साथ गई बनवारी की भांजी लाडो की घर वापसी न होने पर पूरी रात दोनों लड़कियों को तलाश किया था.
“उस के 2 भाई सोनू और संतोष गांव नौगांव भी उसी रात गए थे, क्योंकि यह सभी लोग जब दिव्या और लाडो को गांव में और आसपास के खेतों में ढूंढ रहे थे, तब बनवारी की बहन कंचन द्वारा अपने छोटे भाई भोला को फोन द्वारा बताया गया था कि वह लाडो की चिंता न करे. लाडो को बनवारी अपनी बाइक पर बिठा कर उस के घर नौगांव, छाता (मथुरा) में ले कर आया है.
“यह सुन कर वादी संतोष और सोनू उसी रात नौगांव गए थे. वहां लाडो तो मिल गई थी, लेकिन बनवारी को कंचन ने अपने घर से भगा दिया था, इसलिए इस घटना में कंचन भी शामिल हो गई थी. इसे मालूम हो गया था कि बनवारी क्या कुछ कर के उस के घर आया है. सब जान कर भी इस ने बनवारी को भाग जाने में मदद की थी, इसलिए यह भी पूरी तरह दोषी है.”
कुछ क्षण रुकने के बाद अलका उपमन्यु बोलीं, “मैं उन 11 गवाहों के नाम दोहरा रही हूं, जो मृतका दिव्या की तलाश और तहकीकात से जुड़े हुए हैं. वादी दिव्या के पिता जिस ने पहली सितंबर, 2020 को यमुनापार थाने में अपनी बेटी दिव्या के अपहरण और बलात्कार होने की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. उस ने बनवारी पर दिव्या के अपहरण और बलात्कार करने का संदेह जाहिर किया था.
“संतो उर्फ सत्य प्रकाश, अशोक, डा. करीम अख्तर कुरैशी, सोनू, भोला, संतोष कुमार, डा. विपिन गौतम, इंसपेक्टर महेंद्र प्रताप चतुर्वेदी, रिटायर्ड हैडकांस्टेबल कैलाशचंद, विजय सिंह और घटना के समय वहां मौजूद रही लाडो.
“ये सब गवाह और साक्ष्य पुलिस द्वारा तैयार किए गए थे मी लार्ड,” किशन सिंह बेधडक़ ने टोका, “पुलिस झूठे गवाह और ऐसे साक्ष्य तैयार कर के मेरे मुवक्किल को फंसाना चाहती है. ऐसा एक भी गवाह अलकाजी के पास नहीं है, जो चश्मदीद हो, जिस ने मावली गांव में बनवारी को दिव्या के साथ बलात्कार करते हुए देखा हो.”
“है मी लार्ड,” अलका उपमन्यु जोश में बोली, “मैं जानती थी कि मेरे अजीज दोस्त बेधडक़ साहब ऐसी ही बात कह कर बनवारी को निर्दोष साबित करने की कोशिश करेंगे. मैं ने एक चश्मदीद गवाह को बचा कर रखा हुआ था. मैं उसे बुला रही हूं.” अलका उपमन्यु ने पेशकार को इशारा किया तो वह बाहर जा कर 12 साल की एक लडक़ी को कोर्ट रूम में ले आया.
“यह बनवारी की भांजी लाडो है मी लार्ड. मृतका दिव्या की सहेली है. यही 31 अगस्त, 2020 की शाम 8 बजे के आसपास गांव में लाला की दुकान पर दिव्या के साथ कुछ सामान लेने गई थी. बेटी लाडो, तुम इस गवाह के कटघरे में आ जाओ और कोर्ट को बताओ कि 31 अगस्त, 2020 की रात को क्या हुआ था.”
क्या बताया लाडो ने अपनी गवाही में? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.