इस से रमित बुरी तरह डर गया. उस ने अपना पीछा छुड़ाने के लिए निशा के पिता को चैक काट कर दे दिए. उस ने चैक तो दे दिए, लेकिन चैक देने के बाद वह परेशान रहने लगा. क्योंकि उस के खाते में पैसे नहीं थे. उसे पता था कि अगर चेक बाउंस हो गए तो एक और नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. इसलिए उस ने इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने के लिए एक भयानक योजना बना डाली.
रोशनलाल के परिवार में गहरी पैठ होने की वजह से रमित उन के परिवार की हर गतिविधियों को जानता था. वह यह भी जानता था कि हर रविवार की सुबह रोशनलाल और निशा हैबोवाल स्थित राधास्वामी सत्संग भवन में सत्संग सुनने जाते हैं. रविवार को साप्ताहिक अवकाश होने की वजह से लुधियाना के सारे बाजार और उद्योग बंद रहते हैं. रमित की फैक्ट्री भी उस दिन बंद थी. इन्हीं बातों के मद्देनजर रमित ने शनिवार शाम यानी 21 अगस्त को रोशनलाल को फोन कर के कहा, ‘‘पापा, मैं कल सुबह एटीएम से रुपए निकाल कर आप को दे दूंगा. आप चैक बैंक में मत डालना.’’
अगले दिन सुबह जब रोशनलाल और निशा सत्संग के लिए जा रहे थे तो रास्ते में ही रमित ने उन्हें अपनी कार में बिठा लिया. हालांकि रोशनलाल ने बहुत कहा कि रुपए निकालने ही तो हैं, सत्संग के बाद निकाल लेंगे. लेकिन रमित ने यह कह कर उन्हें खामोश कर दिया कि वह पैसे दे देगा तो उस के सिर से बोझ उतर जाएगा.
रमित की गाड़ी दुगड़ी स्थित एटीएम पर रुकी. उस ने यह कह कर रोशनलाल को वहीं उतार दिया कि वह 10 मिनट वहीं रुकें, एटीएम कार्ड वह घर भूल आया है. झूठ बोल कर वह निशा को साथ ले कर सीधा फैक्ट्री पहुंचा. फैक्ट्री ले जा कर उस ने निशा को केबिन में बिठा दिया और पहले से खरीद कर रखा चाकू निकाल कर उस पर चाकू से ताबड़तोड़ वार कर उस की हत्या कर दी.
निशा की हत्या कर के उस ने अपने 2 कर्मचारियों विजय व कुमार की मदद से निशा की लाश प्लास्टिक के एक बोरे में भरी और उन्हीं की मदद से वह बोरा कार की डिग्गी में रख कर जस्सियां के एक खाली प्लाट में फेंक आया. इस के बाद वह दुगड़ी स्थित एटीएम पर पहुंचा, जहां रोशनलाल खड़ा था. वह उसे भी कार में बैठा कर फैक्ट्री ले आया. निशा की तरह उस ने उस की भी हत्या कर दी और उस की लाश भी प्लास्टिक के बोरे में भर कर दोराहा नहर में फेंक दी.
बापबेटी की हत्या करने के बाद रमित कार से सीधा रोशनलाल के घर पहुंचा. कार उस ने मकान के पीछे वाली गली में खड़ी कर दी. इस के बाद वह मकान के भीतर गया. पहले वाले कमरे में शकुंतला बैठी थी. रमित ने चाकू निकाल कर उस पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. वह ढेर हो गई. इस के बाद वह भीतर वाले कमरे में पहुंचा, जहां राजेश टीवी देख रहा था.
कमरे में पहुंचते ही उस ने सब से पहले टीवी की आवाज तेज की और फिर राजेश पर अचानक हमला बोल दिया. अचानक हमला हुआ था, फिर भी अपाहिज राजेश चीखाचिल्लाया. उस ने रमित का विरोध करते हुए आखिरी क्षणों तक उस के साथ संघर्ष किया. राजेश की हत्या करने के बाद रमित बाथरूम में हाथमुंह धोना चाहता था, लेकिन उसी समय मोहल्ले वालों ने बाहर का दरवाजा तोड़ना शुरू कर दिया.
हड़बड़ाहट में वह चाकू वहीं छोड़ कर मकान के पिछले दरवाजे से भाग निकला. पूरे परिवार की हत्या करने के बाद वह पुन: फैक्ट्री आया, जहां उस ने हाथमुंह धोया. चार लोगों की हत्याएं करने में चाकू की कुछ खरोंचे उस के हाथ पर भी लग गई थीं. उस ने दुगड़ी की एक डिस्पेंसरी में जा कर हाथ पर पट्टी करवाई और फिर आगे के बारे में सोचने लगा. पर वह कुछ सोचता या करता, इस से पहले ही वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.
पुलिस ने रमित भंडारी के साथ उस के दोनों कर्मचारियों को भी हिरासत में ले कर अगले दिन मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट परमिंदर कौर की अदालत में पेश कर के 5 दिनों के रिमांड पर ले लिया. रिमांड की अवधि में रमित की निशानदेही पर जस्सियां से निशा की तथा दोराहा नहर के किनारे से रोशनलाल की लाश बरामद कर ली. पुलिस ने रमित की 2 कारें भी जब्त कर लीं. पुलिस ने 7-7 लाख रुपए के वे 2 चैक भी बरामद किए, जो रमित ने रोशनलाल को दिए थे. तलाशी लेने पर निशा के पर्स से डेढ़ लाख कैश भी मिला था.
इस तरह यह हत्याकांड पुलिस कमिश्नर ईश्वर सिंह की देखरेख में एसीपी नरेंद्र रूबी व अन्य अधिकारियों की सूझबूझ से 24 घंटे के भीतर ही सुलझा लिया गया. एक तरह से इस में रुपए दे कर दुश्मन बनाने वाली बात हुई थी. रोशनलाल रमित को रुपए दे कर न उस की सहायता करता और न ही उस का परिवार यूं बेमौत मारा जाता. शायद सांप को दूध पिलाने का यही अंजाम होता है.
रमित की यह बात हमारे गले नहीं उतर रही थी. इस में कई ऐसे पेंच थे, जो समझ से बाहर थे. मैं ने रमित से पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ कि इस वक्त निशा कहां है?’’
मेरे सवाल पर वह बौखला उठा और झल्ला कर बोला, ‘‘मैं क्या जानूं, भाग गई होगी अपने किसी यार के साथ.’’
‘‘तुम्हें कैसे पता?’’ मैं ने पूछा तो रमित बोला, ‘‘जनाब ऐसी औरतें यही तो करती हैं. एक से दिल भर गया तो दूसरे के पास और दूसरे से भर गया तो तीसरे के पास.’’
‘‘वाह रमित कुमार.’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं ने तो तुम से केवल निशा के बारे में पूछा था और तुम ने पूरी रामायण सुना दी. खैर छोड़ो, यह बताओ कि तुम्हें ब्लैकमेल तो निशा कर रही थी, फिर तुम ने उस की मां और भाई की हत्या क्यों की?’’
मेरे इस सवाल पर वह बगले झांकने लगा. मैं ने उसे चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘देखो, हमें सब पता है. अच्छा यही है कि तुम हमें पूरी बात सचसच बता दो, वरना तुम्हें फांसी के फंदे से कोई नहीं बचा सकता.’’
मेरी बात सुन कर उस ने गर्दन झुका ली. मैं इंसपेक्टर हरपाल सिंह, निर्मल सिंह और बिट्टन कुमार को साथ ले कर उस की मौसी की फैक्ट्री पहुंचा. वहां रमित की कार बाहर ही खड़ी थी. कार का बारीकी से मुआयना किया गया तो उस में कई जगह खून के धब्बे दिखाई दिए. ठीक वैसे ही खून के धब्बे फैक्ट्री के औफिस में भी मिले. फैक्ट्री की अच्छी तरह तलाशी लेने पर हमें एक लेडीज सैंडिल भी मिली. फैक्ट्री में 2 कर्मचारी मिले, जिन के नाम विजय प्रसाद और कुमार थे. विजय प्रसाद गहरी कोठी, थाना नोतन, जिला पश्चिमी चंपारण (बिहार) का रहने वाला था तो कुमार गांव मुकार, जिला प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था.
दोनों से पूछताछ करने पर इस दोहरे हत्याकांड के साथसाथ रिटायर्ड स्टेशन मास्टर रोशनलाल और उस की बेटी निशा की गुमशुदगी का रहस्य भी खुल गया. मेरे आदेश पर इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने विजय प्रसाद और कुमार को पुलिस हिरासत में ले लिया. रमित भंडारी को हम ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. अब तक की तफ्तीश, रमित भंडारी और फैक्ट्री से दबोचे गए दोनों कर्मचारियों से की गई पूछताछ के बाद इस जघन्य हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह स्वार्थ के रिश्तों और विश्वास की नींव पर झूठ का महल खड़ा करने जैसी थी.
36 वर्षीया निशा काफी खूबसूरत, मिलनसार व हंसमुख स्वभाव की युवती थी. संभवत: उस का यही स्वभाव उस की और उस के परिवार की हत्या का कारण बना था. सीधीसादी निशा की बीए पास करने के बाद शादी हो गई थी. लेकिन पति से उस की नहीं बनी, जिस से जल्दी ही उस का तलाक हो गया था. निशा ने इसे भाग्य मान कर चुपचाप स्वीकार कर लिया और मन ही मन तय कर लिया कि अब वह कभी शादी नहीं करेगी. गुजरबसर के लिए उस ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली.
सन 2008 में जब निशा का परिवार चंद्रनगर, सुंदरनगर में रहता था, तभी अचानक एक दिन निशा की मुलाकात रमित भंडारी से हुई. रमित महत्त्वाकांक्षी, चतुरचालाक युवक था. उस ने शादीशुदा होते हुए भी अपनी शादी की बात निशा से छिपा ली थी. हालांकि निशा ने कभी शादी न करने का फैसला किया था. लेकिन रमित ने उस की सोई कामनाओं को जगा कर उस से शादी करने का वादा कर लिया. न चाहते हुए भी निशा धीरेधीरे रमित के आकर्षण में बंधती चली गई. जल्दी ही दोनों के बीच आंतरिक संबंध बन गए. एक दिन निशा ने रमित को अपने घर ले जा कर उस का परिचय अपने मातापिता से करवा दिया.
रोशनलाल के परिवार की समस्या यह थी कि उस के परिवार में कोई भी युवा पुरुष नहीं था. बेटा राजेश था भी तो अपाहिज था. इसीलिए पूरा परिवार रमित से खुश रहता था और उसे बेटे की तरह मानता था. निशा का भी सोचना था कि उस की अन्य बहनें दूर रहती थीं, अगर शादी के बाद रमित उस के मातापिता और अपाहिज भाई का खयाल रखेगा तो इस से अच्छा और क्या हो सकता था.
समय के साथ निशा और रमित के आपसी संबंध बन गए थे. सन् 2009 के अंत में रोशनलाल स्टेशन मास्टर से रिटायर हो गए थे. उन्हें रिटायरमेंट पर काफी रुपए मिले थे. कुछ दिनों बाद उन्होंने चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख रुपए में बेच दिया था. नया मकान लेने के बाद भी उन के पास 35-40 लाख रुपया बच गया था.
एक दिन जब रमित रोशनलाल के घर आया तो बहुत परेशान था. पूरे परिवार ने उस की परेशानी का कारण पूछा, पर उस ने कुछ नहीं बताया. बाद में उस ने निशा को अलग ले जा कर बताया, ‘‘निशा, मुझे बिजनैस में बहुत बड़ा घाटा हो गया है. बाजार का लाखों रुपया देना है. अगर मैं ने रुपए नहीं दिए तो मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाऊंगा.’’
‘‘तुम्हें कितने रुपए चाहिए?’’ निशा ने पूछा तो रमित बोला, ‘‘यही कोई 40-45 लाख…’’
रमित की बात सुन कर निशा हतप्रभ रह गई. पल भर बाद वह कुछ सोच कर बोली, ‘‘रमित, पापा के पास 30-35 लाख रुपए होंगे, वे तुम्हें इनकार नहीं करेंगे. जब तुम्हारा बिजनैस ठीक हो जाए तो पापा के पैसे लौटा देना.’’
‘‘वह सब तो ठीक है, पर मैं तुम्हारे पापा से रुपए नहीं मांगूगा. मुझे शर्म आती है.’’ रमित ने अभिनय करते हुए कहा तो निशा बोली, ‘‘ठीक है, तुम रुपए मत मांगना. रुपए मैं मांग लूंगी, पर तुम साथ तो चलो.’’
निशा के समझाने पर रमित उस के साथ चलने को तैयार हो गया. निशा ने जब अपने पिता रोशनलाल को रमित की परेशानी का कारण बताया तो वे हंसते हुए बोले, ‘‘तुम भी कमाल करते हो बेटा, यह घर तुम्हारा है. यहां की हर चीज पर तुम्हारा अधिकार है. रुपए मेरे पास बढ़ तो रहे नहीं हैं. तुम अपना काम निपटा लो. जब आ जाएं तो मुझे लौटा देना.’’
अगले दिन ही रोशनलाल ने रमित को 35 लाख रुपए कैश दे दिए. रुपए लेते समय उस ने वादा किया था कि वह एक महीने में रुपए लौटा देगा. लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी जब उस ने न तो पैसे लौटाए और न कभी इस विषय में बात की तो रोशनलाल और निशा को चिंता होने लगी. उसी बीच कहीं से निशा को पता चल गया कि रमित शादीशुदा है. उस ने उस से झूठ बोला था.
इस बात से निशा के दिल को बहुत ठेस पहुंची. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि पिता का पैसा वापस मिलने के बाद वह रमित से संबंध तोड़ लेगी. यह बात उस ने रमित से कह भी दी थी, लेकिन समस्या यह थी कि रमित पैसा लौटाने का नाम नहीं ले रहा था. इस पर निशा ने उसे धमकी देते हुए कहा कि अगर उस ने शराफत से उस के पिता का पैसा नहीं लौटाया तो वह अपने और उस के संबंधों की बात उस की मां और पत्नी को बता देगी.
क्रमशः
पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी, जिस के अनुसार मौत का कारण अधिक खून बह जाना था. फगवाड़ा से शकुंतला के मायके वाले आ गए थे. पोस्टमार्टम के बाद लाशें उन्हें सौंप दी गई थीं. मृतका के भाइयों ने दोनों लाशों का अंतिम संस्कार कर दिया था. मैं ने उन से भी पूछताछ की. उन्होंने केवल इतना ही बताया था कि रोशनलाल ने रिटायर होने के बाद चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख में बेचा था. नया मकान उन्होंने 35-40 लाख रुपए में खरीदा था.
कुछ पैसा उन्हें रिटायर होने पर मिला था. कुल मिला कर उन के पास करीब 35 लाख रुपए थे. रुपए उन्होंने कहां रखे थे या किसी को दिए थे, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. फलस्वरूप बात वहीं की वहीं रह गई. मैं ने सोचा था कि शायद मृतका के मायके वालों से काम की कोई बात पता चल जाएगी, पर मायूस ही होना पड़ा. घूमफिर कर हमारी नजर फिर रमित भंडारी पर ही जा कर टिक गई थी.
रमित ने आधा घंटे बाद आने को कहा था. मैं ने घड़ी देखी. अब तक पौन घंटा हो चुका था. मैं ने सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार से कहा कि वह रमित को फोन कर के पूछे. बिट्टन कुमार ने बताया कि उस ने 10 मिनट में आने को कहा है, लेकिन वह दस मिनट बाद भी नहीं आया. इस प्रकार 10-10 मिनट करतेकरते उस ने 2 घंटे बरबाद कर दिए. उधर पुलिस के सिर पर उच्च अधिकारियों की तलवार लटक रही थी.
मेरी टीम की जान सांसत में थी. मुझे रमित भंडारी पर गुस्सा आ रहा था. जब बात बरदाश्त के बाहर हो गई तो मैं ने भंडारी से मोबाइल पर खुद बात की. मैं ने उसे डांटते हुए कहा कि वह तुरंत मेरे औफिस पहुंचे. उस ने मुझ से भी 10 मिनट का समय मांगा. जब वह 10 मिनट तक नहीं आया तो मैं ने फिर फोन किया. लेकिन इस बार उस के फोन का स्विच बंद मिला. इस के बाद उस के फोन का स्विच हमेशा के लिए बंद हो गया.
रमित के इस व्यवहार से मुझे उस पर संदेह हुआ. मैं समझ गया कि वह जानबूझ कर पूछताछ से बचना चाहता था. मैं ने हरपाल सिंह से उस के फोन की लोकेशन पता करने को कहा. इंसपेक्टर हरपाल ने रमित के फोन की लोकेशन चैक करवाई तो उस की लोकेशन जस्सियां रोड, लुधियाना की मिली. इस से यह बात साफ हो गई कि वह हम से झूठ बोल रहा था. इस से उस पर हमारा संदेह और बढ़ गया.
अभी मैं और हरपाल सिंह इस मुद्दे पर बातें कर ही रहे थे कि सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने आ कर बताया कि रमित भंडारी अपनी मौसी की फैक्ट्री नैना क्वायर प्रोडक्ट्स में कहने को तो मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव था, लेकिन एक तरह से उस गद्दा फैक्ट्री का सर्वेसर्वा वही था. बिट्टन कुमार ने यह भी बताया कि रिटायर्ड स्टेशन मास्टर रोशनलाल की छोटी बेटी निशा से उस के मधुर संबंध थे. वह उस के घर खूब आताजाता था. रोशनलाल ने उसे अपना बेटा बना रखा था.
मेरे लिए यह जानकारी काफी थी. इस से मुझे पक्का यकीन हो गया था कि वह इस दोहरे हत्याकांड का रहस्य जरूर जानता होगा. इसीलिए पुलिस के सामने आने से कतरा रहा था. मुझे समय बेकार करना उचित नहीं लगा. इसलिए मैं ने इंसपेक्टर हरपाल सिंह को तुरंत पुलिस टीम के साथ घाघरा रोड पहुंचने को कहा.
एक टीम मैं ने एसीपी परमजीत सिंह पन्नू की अगुवाई में तैयार करवाई. रमित भंडारी हमें फैक्ट्री के पास ही मिल गया. उस से वहीं पूछताछ की गई. वह हमें बहकाने की कोशिश करने लगा. वह हर सवाल का जवाब घुमाफिरा कर दे रहा था. उस के चेहरे पर काफी उलझन और घबराहट के मिलेजुले भाव थे. बात करते हुए वह हकला भी रहा था. तभी अचानक मेरा ध्यान उस के हाथ की ओर चला गया. उस के हाथ पर ताजी पट्टी बंधी थी. मैं ने इस बारे में पूछा तो वह बोला, ‘‘ऐसे ही मामूली सी खरोंच आ गई थी. सावधानी के तौर पर मैं ने पट्टी बंधवा ली.’’
खरोंच कैसे और किस चीज से आई, यह वह नहीं बता सका. इस बातचीत के बाद मेरा शक विश्वास में बदलने लगा. मैं ने उसे अपने औफिस चलने को कहा.
औफिस आ कर इंसपेक्टर हरपाल सिंह और बिट्टन कुमार ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने शकुंतला और राजेश की हत्या की बात स्वीकार कर ली. मैं ने कारण पूछा तो उस ने कोई कारण नहीं बताया. लेकिन जब थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने बताया कि रिटार्यड स्टेशन मास्टर रोशनलाल की बेटी निशा उसे ब्लैकमेल कर रही थी. उस के अनुसार निशा के साथ उस के तीन सालों से अवैध संबंध थे. वह शादीशुदा था, जबकि निशा तलाकशुदा थी.
निशा बहुत ही खूबसूरत थी. पहली मुलाकात में ही दोनों एकदूसरे पर फिदा हो गए थे. दोनों के संबंध इतनी तेजी से परवान चढ़े कि रमित आए दिन उस के घर आनेजाने लगा. परिवार के लोगों को भी उस का आनाजाना अच्छा लगता था. शकुंतला तो उसे बेटाबेटा कहते नहीं थकती थी. निशा के साथ रमित के संबंधों की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. वे लोग अपने घर के छोटे से ले कर बडे़ कामों तक में रमित की सलाह लेने लगे थे.
रमित के अनुसार पिछले कुछ समय से निशा उसे ब्लैकमेल कर रही थी. वह कई बार उस की मांग पूरी भी कर चुका था. उस के घर वाले भी इस बात का फायदा उठा रहे थे. कुछ ही दिनों पहले निशा ने उस से 50 हजार रुपए की मांग की थी, लेकिन उस ने इतना पैसा देने से मना कर दिया था. शनिवार को निशा ने रमित की मां को फोन कर के कहा था कि वह उन्हें कुछ राज बताना चाहती है.
उसी दिन निशा ने फोन पर रमित को भी धमकी दी थी कि उस ने दोनों के निजी संबंधों की सीडी बनवा रखी है. अगर उस ने 50 हजार रुपए नहीं दिए तो वह उस सीडी को उस की मां और पत्नी को दे देगी. इसी बात से गुस्से में उस ने निशा से बदला लेने के लिए उस की मां और भाई की हत्या कर दी थी.
क्रमशः
22 अगस्त, 2010 की सुबह 10 बजे पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना मिली कि हैबोवाल की दुर्गापुरी कालोनी की गली नंबर 5 के मकान नंबर- 7187/1 में 2 लोगों की हत्या हो गई है. सूचना मिलते ही थाना सलेम टाबरी के थानाप्रभारी इंसपेक्टर निर्मल सिंह, सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर हरपाल सिंह, इंसपेक्टर दविंद्र कुमार, एसएचओ डिवीजन नंबर 4 तथा दुर्गापुरी पुलिसचौकी इंचार्ज सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार मेरे पहुंचने से पहले ही घटनास्थल पर पहुंच गए थे. जिस मकान में हत्याएं हुई थीं, उस के बाहर लोगों की काफी भीड़ लगी थी.
पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने सुबह लगभग साढ़े 9 बजे मकान के भीतर तेज चीखों की आवाजें सुनी थीं. चूंकि उस वक्त अंदर तेज आवाज में टीवी चल रहा था, इसलिए यह समझना मुश्किल था कि आवाजें टीवी की थीं या मकान में रहने वालों की. मकान का दरवाजा अंदर से बंद था. थोड़ी देर बाद जब पड़ोसियों को लगा कि चीखें टीवी की नहीं, बल्कि उस में रहने वालों की थीं तो उन्होंने मुख्य द्वार तोड़ कर भीतर जा कर देखा.
अंदर अलगअलग कमरों में 2 लाशें पड़ी थीं. इस के बाद घटना की सूचना पुलिस को दी गई थी. मैं ने मकान के भीतर जा कर देखा. एक कमरे में अधेड़ उम्र की महिला की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उस के शरीर पर तेजधार हथियार के कई घाव थे, जिस में से खून रिस रहा था. दूसरे कमरे में लगभग 40 वर्षीय एक व्यक्ति की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उस के शरीर पर भी तेजधार हथियार के घाव थे. वह विकलांग था. उस की व्हीलचेयर वहीं पास में उलटी पड़ी थी. देखने से ही लग रहा था कि विकलांग होने के बावजूद उस ने हत्यारों का विरोध किया था. दोनों को ही बड़ी बेरहमी से मारा गया था.
मैं ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में रखा टीवी अभी भी चल रहा था. मेरे इशारे पर सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने टीवी बंद कर दिया. क्राइम टीम और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को भी बुलाया गया था, साथ ही डौग स्क्वायड को भी. जासूस कुत्ते लाश को सूंघ कर मकान के पिछवाड़े जा कर रुक गए. संभवत: हत्यारे वहां से किसी सवारी में बैठ कर गए थे.
मकान की अच्छी तरह छानबीन की गई. लूटपाट के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे. हत्याएं शायद आपसी रंजिश के कारण हुई थीं. टीवी के पास खून सना एक खंजरनुमा चाकू पड़ा था. मैं ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को उसे संभाल कर रखने के लिए कहा. हत्याएं शायद चाकू से की गई थीं. मैं पुलिस टीम के साथ मुआयना कर रहा था कि पड़ोसियों से पता चला कि यहां सिर्फ हत्याएं ही नहीं हुई थीं, बल्कि इस परिवार के 2 अन्य लोग लापता भी थे.
इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने पूछताछ के आधार पर मुझे बताया कि इस परिवार के मुखिया का नाम रोशनलाल था और वह रेलवे से रिटायर्ड था. इस के पहले यह परिवार चंद्रनगर में रहता था. रोशनलाल की पत्नी का नाम शकुंतला था. दोनों की 4 संतानें थीं, जिन में सब से बड़ी 47 वर्षीया बेटी स्वीटी शादीशुदा थी और इंग्लैंड में रहती थी. दूसरे नंबर का बेटा राजेश कुमार उर्फ राजू अपाहिज था, लेकिन घर में काम कर के लगभग 10 हजार रुपए महीना कमा लेता था.
तीसरे नंबर की बेटी सीमा भी शादीशुदा थी, लेकिन 3 साल पहले पीलिया से उस की मृत्यु हो चुकी थी. सब से छोटी 36 वर्षीया निशा थी. बीए पास निशा किसी प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थी. लगभग 2 महीने पहले इन लोगों ने अपना चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख रुपए में बेचा था. लगभग डेढ़ महीने पहले ही यह परिवार इस मकान में रहने आया था. यह मकान उन्होंने 40 लाख रुपए में खरीदा था. कत्ल शकुंतला और राजेश कुमार उर्फ राजू का हुआ था. जबकि रोशनलाल और निशा गायब थे.
मैं ने इंसपेक्टर निर्मल सिंह को आदेश दिया कि लाशों का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दें. साथ ही इंसपेक्टर हरपाल सिंह से कहा कि पड़ोसियों से पूछताछ कर के बापबेटी की तलाश में संभावित जगहों पर छापे मारें. जबकि सबइंस्पेक्टर बिट्टन कुमार को मैं ने अस्पतालों, बसस्टैंड, रेलवे स्टेशन पर बापबेटी की तलाश करवाने तथा जिले के अन्य सभी थानों में उन का हुलिया बता कर वायरलैस मैसेज भिजवाने की जिम्मेदारी सौंपी.
चूंकि यह केस पुलिस कमिश्नर की नजर में आ गया था, इसलिए इन कामों से फारिग हो कर उन्हें रिपोर्ट देने मैं उन के औफिस पहुंच गया. मैं ने अपनी परेशानी बता कर उन से कहा, ‘‘सर, समस्या यह है कि यह परिवार मोहल्ले में नया है. पड़ोसियों को इन के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं है.’’
‘‘ठीक है, जैसा भी हो हर नजरिए से जांच करो. इस के लिए कई टीमें बना कर लगाओ. और हां, सब से जरूरी है बापबेटी का पता लगाना.’’
कमिश्नर साहब के पास से लौट कर मैं ने एक बार फिर घटनास्थल पर जा कर पड़ोसियों से पूछताछ की. काफी लंबी छानबीन के बाद काम की एक बात पता चली. मैं ने जब रोशनलाल के घर पर आनेजाने वाले लोगों की लिस्ट बनाई तो पता चला कि रमित कुमार भंडारी उर्फ रिकी नाम का एक युवक रोशनलाल के घर कुछ ज्यादा ही आताजाता था. मैं ने हरपाल सिंह से रमित के बारे पता लगाने को कहा.
हरपाल सिंह ने पता लगा कर बताया कि रमित कुमार भंडारी जस्स्यिं रोड, तरसेम कालोनी के मकान नंबर बी34/6614 में रहता था. वह रमित का मोबाइल नंबर भी ले आए थे. मेरे कहने पर सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने रमित को फोन किया, पर उस ने फोन नहीं उठाया. जब उसे कई बार फोन किया गया तो उधर से कंप्यूटराइज्ड आवाज आने लगी कि यह नंबर पहुंच के बाहर है.
काफी कोशिशों के बावजूद हमें तफ्तीश को आगे बढ़ाने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था. कह सकते हैं कि हम अंधेरे में तीर मार रहे थे. ऐसे में जांच आगे बढ़ाने के लिए हमें केवल रमित भंडारी ही एकमात्र सहारा नजर आ रहा था. हमारी सारी उम्मीदें उसी पर टिकी थीं. इसलिए हम उस का नंबर मिलाते रहे.
आखिर उस ने फोन उठा लिया. सबइंस्पेक्टर बिट्टन कुमार ने उसे मेरे औफिस आने को कहा. उस ने बताया था कि उस समय वह जालंधर में है और आधे घंटे में हाजिर हो जाएगा. मैं अपने औफिस में बैठा उस का इंतजार करता रहा.
इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने कहीं से मृतका शकुंतला के मायके का पता ढूंढ़ निकाला था. उस के पिता जगतराम की फगवाड़ा में टेलरिंग की दुकान थी. पता मिल गया तो इस घटना की सूचना मृतका के भाइयों अशोक, सुखविंदर और जसविंदर को दे दी गई थी.
क्रमशः