दूसरी लड़कियों की तरह बिंदिया की भी इच्छा थी कि उस की सुहागरात फिल्मों जैसी हो. शादी का धूमधड़ाका थम चुका था, अधिकांश मेहमान भी विदा हो गए थे. अपने कमरे में बैठी बिंदिया सुहागरात के खयालों में डूबी पति छोटेलाल का इंतजार कर रही थी. बिंदिया ने काफी दिन पहले से सुहागरात के बारे में न केवल काफी कुछ सोच रखा था, बल्कि मन ही मन उसे अमल में लाने की भी तैयारियां कर चुकी थी.
हालांकि बिंदिया बहुत ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी और न ही किसी मालदार घराने की थी. फिर भी सुहागरात और शादीशुदा जिंदगी को ले कर उस के सपने वैसे ही थे, जैसे उस ने फिल्मों और टीवी सीरियलों में देखे थे.
मसलन पति कमरे में दाखिल होगा, फिर आहिस्ता से दरवाजे की कुंडी बंद कर पलंग तक आएगा, प्यार भरी रोमांटिक बातें करेगा, धीरेधीरे उस के अंगअंग को सहलाएगा चूमेगा. फिर दोनों जिंदगी के सब से हसीन सुख के समंदर में गोते लगाते हुए कब सो जाएंगे, उन्हें पता नहीं चलेगा.
इन्हीं खयालों में डूबी बिंदिया ने जैसे ही किसी के आने की आहट सुनी, उस के शरीर का रोआंरोआं खड़ा हो गया. उस का हलक सूखने लगा और मारे शरम व डर के वह दोहरी हो गई. जिस रात का ख्वाब वह सालों से देख रही थी, वह आ पहुंची थी. छोटेलाल कमरे में दाखिल हो चुका था.
पर यह क्या, छोटेलाल ने उसे कुछ सोचनेसमझने का मौका ही नहीं दिया. कमरे में आते ही वह उस पर जानवरों की तरह टूट पड़ा. उस के शरीर से इत्र या परफ्यूम नहीं महक रहा था, बल्कि मुंह से शराब की गंध आ रही थी. छोटेलाल ने उस से कोई बातचीत नहीं की और उस के कपड़े जिस्म से उतारे नहीं बल्कि खींच कर अलग कर दिए. उसे लाइट बुझाने का भी होश नहीं था.
सुहागरात बनी बलातरात
जैसे ही बिंदिया का सांवला बदन छोटेलाल की आंखों में नुमाया हुआ, वह बजाय रोमांटिक होने के पूरी तरह वहशी हो गया. उस की हालत वैसी ही थी जैसे लाश के पास बैठे गिद्ध की होती है.
देखते ही देखते वह बिंदिया पर छा गया और कुछ देर बाद यानी अपनी प्यास बुझाने के बाद करवट बदल कर खर्राटे भरने लगा. बिंदिया के सपने चूरचूर हो चुके थे, उसे लग रहा था कि उस ने सुहागरात नहीं बल्कि बलातरात मनाई है, जिस में उस का रोल हवस मिटाने वाली गुडि़या जैसा था.
कुछ देर बाद वह सामान्य हुई तो गहरी नींद में सोऐ छोटेलाल को देख कर उस का मन गुस्से से भर उठा. शराब से तो उसे बचपन से ही नफरत थी. उसे क्या पता था कि उसे एक शराबी के पल्लू से बांध दिया जाएगा.
न घूंघट उठा, न छेड़छाड़ हुई और न ही प्यारभरी बातें हुईं. जो हुआ उसे याद कर बिंदिया का रोमरोम सुलग रहा था. उसे लग रहा था कि इस गंवार और जाहिल आदमी की पीठ पर लात मार कर उसे उठा कर बताए कि एक पत्नी सुहागरात की रात क्या चाहती है और कैसे चाहती है.
पर बेबसी ने उस के होंठ बांध दिए, क्योंकि उसे पहले ही बता दिया गया था कि अब पति ही तुम्हारा सब कुछ है. उस की मरजी को हुक्म मानना और जैसे भी हो, उसे खुश रखना क्योंकि अब वही तुम्हारा सब कुछ है.
अकसर सुहागरात को ही तय हो जाता है कि आने वाली जिंदगी कैसी होगी. यह बात बिंदिया को अब समझ आ गई थी कि अब जैसे भी हो बाकी की जिंदगी उसे इसी छोटेलाल के साथ काटनी है. जिस में रत्ती भर भी शऊर नहीं है और न ही वह पत्नी और शादीशुदा जिंदगी के मायने समझता है. इतना सब कुछ समझ आ जाने के बाद दुखी और सुबकती बिंदिया ने कपड़े पहने और सोने की कोशिश करने लगी.
राजस्थान का धौलपुर जिला मध्य प्रदेश के मुरैना और उत्तर प्रदेश के जिले आगरा को मिलाता हुआ है. आगरा के आमदोह गांव की बिंदिया की शादी धौलपुर के गांव छातीपुरा के छोटेलाल निषाद से हुई थी.
दोनों ही गरीब घर के थे, लिहाजा शादी से पहले ही बिंदिया ने मन ही मन तय कर लिया था कि पति जो भी रूखासूखा खिलाएगा, खा लेगी. जो भी पहनाएगा, पहन लेगी और जैसे भी रखेगा, रह लेगी. लेकिन जिएगी प्यार से, यही जज्बा जिंदगी को खुशहाल बनाता है, जिस के लिए पैसों की रत्ती भर भी जरूरत नहीं पड़ती.
पहली ही रात बिंदिया को समझ आ गया था कि उस के सपने अब कभी पूरे नहीं होने वाले, क्योंकि छोटेलाल दिन भर मेहनत मजदूरी करता था और रात को अकसर शराब पी कर उस के बदन को नोचने खसोटने लगता था. बेमन से बिंदिया उस का साथ देती थी, जिस के चलते पूरी तरह न तो उस के तन की प्यास बुझती थी और न छोटेलाल को उस के मन से कोई वास्ता ही था.
घरजमाई बन कर रहने लगा छोटेलाल
छीतापुरा में छोटेलाल को रोजाना काम नहीं मिलता था, इसलिए शादी के कुछ दिनों बाद वह आमदोह आ कर बस गया. यानी घरजमाई बन गया. मायके आ कर बिंदिया को भी थोड़ा सकून मिला. यहां कम से कम सब लोग जानेपहचाने तो थे, जिन से वह अपना दुखदर्द बांट सकती थी, हंसबोल सकती थी.
ससुराल आ कर भी छोटेलाल की आदतों में कोई बदलाव नहीं हुआ. उलटे उस की शराब की लत और बढ़ गई. जल्द ही उस की दोस्ती एक आटो ड्राइवर राजकुमार से हो गई, जो यारबाज आदमी था. वह छोटेलाल को कभीकभी दारूमुर्गे की पार्टी देता रहता था. देखते देखते दोनों में गहरी छनने लगी. राजकुमार कभीकभी छोटेलाल के घर यानी ससुराल में ही बैठ कर दावत देने लगा.
शराब से नफरत करने वाली बिंदिया को राजकुमार का आनाजाना खटका नहीं, क्योंकि उसे वह बचपन से ही जानती थी और यह भी जानती थी कि यह वही राजकुमार है, जिस ने जवानी के शुरुआती दिनों में उस के पीछे खूब चक्कर लगाए थे. उसे पटाने की कोशिश की थी, लेकिन बिंदिया ने ही उसे घास नहीं डाली थी.
बिंदिया जब पति के साथ आमदोह वापस आई तो उस की खिली और गदराई जवानी देख कर राजकुमार के मन में पुरानी हसरतें जोर मारने लगी थीं. बिंदिया के हावभाव और बातचीत से वह जल्द ही भांप गया था कि वह पति से खुश नहीं है.
एक सधे खिलाड़ी की तरह उस ने बिंदिया की तरफ प्यार या वासना कुछ भी कह लें, का दाना डाला तो यह जान कर उस का दिल बल्लियों उछलने लगा कि दाना चुगने में बिंदिया ने तनिक भी आनाकानी नहीं की थी. यानी आग दोनों तरफ बराबरी से लगी थी, इंतजार था मौके का. इस आग को धधकने में देर नहीं लगी और एक दिन जरा सी कोशिश करने पर बिंदिया पके आम की तरह राजकुमार की झोली में आ गिरी.
यह पका आम चोरी का था, जिसे राजकुमार मनमुआफिक अपनी मरजी से खा या चूस नहीं सकता था. दोनों को अपने तन और मन की आग बुझाने कस्बे से बाहर जंगलों में जाना पड़ता था. राजकुमार ठीक वैसी ही बातें करता था, जैसी कि बिंदिया चाहती थी. प्यार मोहब्बत और रोमांस की ये वे बातें थीं, जिन्हें वह पति छोटेलाल के मुंह से सुनने को तरसती रही थी.
छोटेलाल ने कभी उस की खूबसूरती की तारीफ नहीं की थी, पर राजकुमार तारीफों के पुल बांध देता था. बिंदिया इस पर और निहाल हो जाती थी. अब हालत यह थी कि छोटेलाल का हक उस के शरीर पर तो था, लेकिन मन पर नहीं. उस के मन पर तो राजकुमार ने कब्जा जमा लिया था.
गांव वालों ने आंखों में ही बना ली वीडियो
गांव में भले ही सीसीटीवी नहीं थे, लेकिन गांव वालों की नजर किसी कैमरे की मोहताज नहीं थी. जल्द ही लोगों को बिंदिया और राजकुमार के नाजायज संबंधों की भनक लग गई. किसी ने दोनों को जंगल में गुत्थमगुत्था होते देख लिया तो बिना स्मार्टफोन का इस्तेमाल किए दिमाग में बना उन के संबंधों का वीडियो औडियो गांव भर में वायरल हो गया.
हालांकि बिंदिया के पास मोबाइल फोन आ गया था, जिस के जरिए वह राजकुमार के संपर्क में रहती थी. दोनों घंटों प्यार और अभिसार की बातों में डूबे रहते थे. खासतौर से उस वक्त जब उस का पति घर पर नहीं होता था और जब होता था तब राजकुमार शराब की बोतल ले कर पहुंच जाता था. लेकिन इस बात की वह पूरी अहतियात बरतता था कि छोटेलाल के सामने कोई ऐसी बात या हरकत न हो, जिस से उस के मन में शक पैदा हो. क्योंकि इस से बनीबनाई बात बिगड़ने का पूरा अंदेशा था.
तमाम सावधानियों के बाद भी बात बिगड़ ही गई. गांव की चर्चा जब छोटेलाल के कानों में पहुंची तो पहले तो उसे यकीन नहीं हुआ, लेकिन इस धुएं की आग कहां है, यह देखने से वह खुद को रोक नहीं पाया. गलत नहीं कहा जाता कि शक का बीज एक बार दिमाग में घर कर ले तो बिना पेड़ बने सूखता या मरता नहीं.
यही छोटेलाल के साथ हुआ. लिहाजा उस ने मन का शक मिटाने या सच जान लेने की गरज से राजकुमार और बिंदिया की निगरानी शुरू कर दी. नतीजा भी जल्द सामने आ गया, जब उस ने एक दिन दोनों को आदिम हालत में रंगेहाथों पकड़ लिया.
रंगेहाथों पकड़ी गई बिंदिया
पत्नी को गैरमर्द की बाहों में बेशरमी से मचलता और लिपटता देख छोटेलाल का खून खौल उठा. उस ने राजकुमार को पकड़ने की कोशिश की तो वह अपने कपडे़ हाथ में ले कर नंगधडं़ग हालत में भाग निकला. लेकिन बेचारी बिंदिया इस हालत में कहां जाती. उस दिन छोटेलाल ने उस की तबीयत से धुनाई कर डाली. मार से बेहाल बिंदिया तरहतरह की कसमें खाते पति से माफी मांगती रही कि अब दोबारा ऐसा नहीं होगा.
छोटेलाल नाम का ही छोटा था, लेकिन दिल का बड़ा निकला. उस ने पत्नी को माफ कर दिया. इस पर बिंदिया ने चैन की सांस ली लेकिन अब राजकुमार का घर आनाजाना बंद हो गया था. दोनों में बातचीत भी नहीं होती थी. यह हालत ज्यादा दिनों तक नहीं रह पाई. छोटेलाल को पैसों की तंगी और शराब की तलब परेशान करने लगी थी.
पति को नर्म पड़ते देख बिंदिया ने राजकुमार को इशारा किया तो वह एक दिन छोटेलाल से माफी मांगने उस के घर जा पहुंचा. शराब की तलब की मजबूरी कह लें या फिर वाकई फिर बड़े दिल वाला कह लें, छोटेलाल ने उसे भी इस शर्त पर माफ कर दिया कि आइंदा वह कभी भी बिंदिया की तरफ आंख उठा कर नहीं देखेगा.
बात अंधा क्या चाहे दो आंखों वाली जैसी थी. दुश्मनी रफादफा हो गई तो फिर महफिल जमने लगी और दोनों दारूमुर्गे की दावत उड़ाने लगे. बिंदिया भी पति और यार की नजदीकियों से खुश थी. उसे राजकुमार से फिर आंख और इश्क लड़ाने का मौका मिल रहा था.
लेकिन अब छोटेलाल चौकन्ना था और पहले के मुकाबले सख्त भी हो चला था, इसलिए दोनों को परेशानी होने लगी. इतने नजदीक होने पर जिस्मों की दूरियां राजकुमार और बिंदिया की प्यास और भड़का रही थीं.
गांव में पहले ही इतनी बदनामी हो चुकी थी कि दोनों के दिलोदिमाग से शरमोहया नाम की चीज खत्म हो चुकी थी. तंग आ कर इन हैरान परेशान प्रेमियों ने वासना की आग में जलते एक सख्त फैसला ले लिया, जिस की 2 महीने तक किसी को हवा नहीं लगी.
पुलिस पहुंची बिंदिया के पास
वह बीते 5 जून की तारीख थी, जब कुछ पुलिस वाले आमदोह गांव पहुंचे और बिंदिया का पता पूछने लगे. बिंदिया जब पुलिस के सामने आई तो उस के चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी. पुलिस वालों ने छोटेलाल के बारे में पूछताछ की तो उस ने टरकाने की गरज से जवाब दिया कि वह तो कुछ दिनों से कहीं गए हुए हैं.
बिंदिया को अहसास नहीं था कि पुलिस वाले अपना पूरा होमवर्क कर के आए हैं. उन्होंने शुरुआती पूछताछ में ढील दी और फिर बिंदिया की निगरानी और पूछताछ शुरू की तो पता चला कि छोटेलाल के जाने के बाद राजकुमार का बिंदिया के घर आनाजाना बढ़ गया था. कुछ लोगों ने दोनों के नाजायज ताल्लुकात होने की बात भी दबी जुबान से कही.
असल में हुआ यूं था कि 5 मार्च को मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के गांव गुलेंदा निवासी मुन्ना सिंह ने नूराबाद थाने में खबर दी थी कि सुनरेखा नदी के किनारे एक लाश तैर रही है. खबर मिलते ही थानाप्रभारी विनय यादव हरकत में आ गए. घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने गांव वालों की मदद से लाश को बाहर निकाला.
लाश का मुआयना करने पर चोट के निशान नहीं पाए गए तो पुलिस वाले इसे हादसे से हुई मौत मानते रहे. लाश के पास से ऐसा कोई सबूत नहीं मिला था, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. लेकिन जब पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई तो उस में मौत की वजह जहर बताया गया.
पुलिस की दिक्कत यह थी कि लाख कोशिशों के बाद भी मृतक की पहचान का कोई सुराग नहीं मिल रहा था. इस के बाद भी पुलिस वालों ने हिम्मत नहीं हारी.
एसपी मुरैना असित यादव ने इस ब्लाइंड मर्डर की गुत्थी सुलझाने के लिए एसडीपीओ ओ.पी. रघुवंशी के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी, जिस में विनय यादव के अलावा एएसआई जयपाल सिंह, अजय बेशांदर, रामदास सिंह, हैडकांस्टेबल केशवचंद, धर्मवीर, मुन्ना सिंह, सुनील, सुरेंद्र सिंह, अजय और दीनदयाल को शामिल किया गया.
एक महीने तक पुलिस टीम मृतक की शिनाख्त की कोशिश में जुटी रही, तब कहीं जा कर पता चला कि मृतक छोटेलाल निषाद पुत्र पूरन निषाद निवासी छीतापुरा है. यहीं से पुलिस टीम को पता चला कि छोटेलाल कुछ महीनों पहले अपनी ससुराल आमदोह जा कर रहने लगा था.
जब पुलिस वालों को बिंदिया और राजकुमार के संबंधों के बारे में पता चला तो उन्होंने गुपचुप तरीके से बिंदिया के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि न केवल उस की और राजकुमार की लंबीलंबी बातें होती थीं, बल्कि हादसे के दिन दोनों के ही फोन की लोकेशन भी घटनास्थल की आ रही थी. अब कहने सुनने को कुछ खास नहीं बचा था.
पुलिस वालों ने जब बिंदिया से राजकुमार के बारे में पूछा तो वह यह कह कर साफ मुकर गई कि वह तो किसी राजकुमार को नहीं जानती. लेकिन पुलिस टीम जानती थी कि बिंदिया राजकुमार को कितने गहरे तक जानती है.
दोनों ने कबूला अपना गुनाह
राजकुमार और बिंदिया से अलगअलग पूछताछ की गई तो दोनों के बयानों में काफी विरोधाभास पाया गया. फिर जल्द ही दोनों ने अपना जुर्म कबूल लिया कि उन्होंने ही योजना बना कर छोटेलाल नाम का कांटा अपने रास्ते से हटाया था.
योजना के मुताबिक बिंदिया ने छोटेलाल के खाने में जहर मिला दिया था, जो राजकुमार ने उसे ला कर दिया था. जब जहर का असर हुआ तो छोटेलाल लुढ़क गया. उस के बेहोश होते ही दोनों एकदूसरे से लिपट गए और सब से पहले अपनी कई दिनों की हवस की प्यास बुझाई.
इस के बाद लाश ठिकाने लगाने के लिए राजकुमार ने फोन कर के अपने दोस्तों सुलतान कुशवाह व जंगबहादुर उर्फ गुड्डू जाटव को बुला लिया. चारों ने बेहोश छोटेलाल को आटोरिक्शा में बीच में इस तरह बैठाया कि कोई देखे तो लगे कि सवारियां बैठी हैं.
यह आटोरिक्शा आमदोह नगला थाना चौकी आगरा से होता हुआ गुलेंदा के पास पहुंचा, जहां सुनसान जगह देख इन्होंने छोटेलाल को नदी में फेंक दिया. जब 2 महीने तक कुछ नहीं हुआ तो दोनों बेफिक्र हो गए कि उन के गुनाह पर परदा पड़ा रहेगा.
पुलिस ने चारों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. नाजायज संबंधों के चलते प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या की एक और कहानी खत्म हुई, जो अपने पीछे कई सवाल भी छोड़ गई. मसलन मौजमस्ती के लिए लोग क्या कुछ नहीं कर गुजरते.
बिंदिया बजाए राजकुमार को यार बनाने के छोटेलाल को ही रास्ते पर लाने की कोशिश करती तो इस से बात बन सकती थी, लेकिन उसे अपने सपनों का राजकुमार, राजकुमार कुशवाह में दिखा और सपनों की जिंदगी जीने के लिए पति को ही निपटा दिया, जिस की सजा वह भोग रही है.
छोटेलाल जैसे पति भी अगर पत्नियों की भावनाओं को समझें, उन की कद्र करें तो न केवल हादसों से बच सकते हैं, बल्कि एक खुशहाल जिंदगी भी जी सकते हैं.