रैगिंग और प्रताड़ना ने ली डाक्टर पायल की जान

करीब साढ़े 3 साल पहले सन 2016 के जनवरी माह में दलित छात्र रोहित वेमुला ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी. हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पीएचडी की पढ़ाई करने वाले दलित स्कालर रोहित के मानसिक उत्पीड़न का मामला उस समय देशभर में गूंजा था. रोहित ने अपनी जान देने से पहले एक सुसाइड नोट लिखा था, जिस में कई मार्मिक टिप्पणियां थीं.

इस सुसाइड नोट में लिखी गई बातों पर उस समय देश भर में जम कर बहस हुई. जातिवादी व्यवस्था को देश का सब से बड़ा खतरा बताया गया. शिक्षण संस्थानों, कालेजों और यूनिवर्सिटी कैंपस में बढ़ते जातिवाद पर रोक लगाने की मांग उठी. संविधान में वर्णित समानता और सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों की रक्षा पर भी जोर दिया गया.

इन बातों को 3 साल से ज्यादा का समय बीत गया. इस दौरान कई बार इन मुद्दों पर गर्मागर्मी के बीच बहस और चर्चाएं होती रहीं लेकिन धरातल पर कोई बदलाव नहीं आया. स्कूल से ले कर उच्च शिक्षा के प्रतिष्ठानों में रैगिंग होती रही. कभी शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना तो कभी मौखिक रूप से अभद्र टीका टिप्पणियां.

रैगिंग के नाम पर हर साल हजारों विद्यार्थी अपने सीनियर्स का भयावह व्यवहार झेलते रहे और उन के इशारों पर नाचते रहे. मैडिकल, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट जैसे उच्च शिक्षा के संस्थानों में रैगिंग के नाम पर कई बार सीनियर विद्यार्थियों का अमानवीय व्यवहार सामने आया.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खिलाफ कड़े निर्देश जारी किए हुए हैं. कई राज्यों में रैगिंग पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून भी बनाए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने 11 फरवरी, 2009 को स्पष्ट कहा था कि रैगिंग में लिप्त पाए गए विद्यार्थियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के सख्ती से पालन कराने के निर्देश भी दिए गए. इस के बावजूद अभी तक रैगिंग की घटनाएं नहीं रुकीं हैं.

22 मई को मुंबई में एक दलित डाक्टर रैगिंग की कुत्सित मानसिकता की भेंट चढ़ गई. महाराष्ट्र के जलगांव के आदिवासी परिवार की डाक्टर पायल तड़वी मुंबई में रह कर डाक्टरी की स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही थी. अपनी साथी महिला डाक्टरों के तानों से तंग आ कर उस ने जान दे दी.

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                   डाक्टर पायल तड़वी अपने माता पिता के साथ

डा. पायल तड़वी ने मौत को गले लगाने से पहले मां को बताई थी कथा

डा. पायल तड़वी मुंबई के बी.वाई.एल. नायर हौस्पिटल की रेजिडेंट डाक्टर थी. वह इस हौस्पिटल से जुड़े मैडिकल कालेज में पोस्ट ग्रैजुएशन की सेकंड ईयर की स्टूडेंट थी. वह गायनोकोलौजी की पढ़ाई कर रही थी. डा. पायल इस हौस्पिटल से जुड़े टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज के हौस्टल में रहती थी. करीब 26 साल की डा. पायल शादीशुदा थी. उस के पति डा. सलमान मुंबई में ही एच.बी.टी. मैडिकल कालेज एंड कूपर हौस्पिटल में एनेस्थेसिओलौजी डिपार्टमेंट में सहायक प्रोफेसर हैं.

टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज के हौस्टल के अपने कमरे में डा. पायल की रहस्यमय परिस्थति में मौत हो गई. डा. पायल उस दिन दोपहर में हौस्पिटल से अपने कमरे पर आई थी. इस के बाद शाम करीब 4 बजे उस ने अपनी मां आबिदा को फोन किया था. फोन पर उस ने मां से अपनी 3 सीनियर डाक्टर्स द्वारा प्रताडि़त और शोषण करने की बात कही थी.

तब मां ने पायल से पूछा, ‘‘आज कोई नई बात हुई क्या?’’

रुआंसी होते हुए पायल बोली, ‘‘मम्मी, अब मैं ज्यादा बरदाश्त नहीं कर पाऊंगी. आप को पता ही है कि मेरी सीनियर्स डा. हेमा, डा. भक्ति और डा. अंकिता मुझ से चिढ़ती हैं. वे रोजाना मुझे किसी न किसी बात पर प्रताडि़त करती रहती हैं.’’

मां आबिदा ने डा. पायल को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘बेटी मुझे पता है तुम पर अत्याचार हो रहा है, लेकिन तुम अपने काम पर ध्यान दो. जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.’’

डा. पायल ने मां की दी हुई दिलासा पर मन को शांत करते हुए कुछ देर इधरउधर की बातें की.

बाद में शाम को 6-7 बजे के बीच आबिदा ने पायल को फिर फोन लगाया. उस समय उस के फोन की घंटी बजती रही पर वह काल रिसीव नहीं कर रही थी. इस पर आबिदा ने सोचा कि पायल शायद टौयलेट गई होगी. कुछ देर बाद उन्होंने दोबारा पायल को फोन लगाया, लेकिन इस बार भी कोई जवाब नहीं मिला. इस पर आबिदा चिंतित हो गईं.

आबिदा मुंबई में ही थीं. उन्होंने हौस्टल जा कर पायल के बारे में पता लगाने की सोची. वे बेटी के हौस्टल के लिए चल दी. इस बीच, शाम करीब साढ़े 7 बजे पायल की एक साथी डाक्टर ने डिनर पर चलने के लिए पायल के कमरे का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला. कई बार दरवाजा पीटने पर जब नहीं खुला, तो साथी डाक्टर ने हौस्टल के सिक्योरिटी गार्ड को सूचना दी.

हौस्टल के सिक्योरिटी गार्ड ने भी वहां पहुंच कर कमरे का दरवाजा खटखटाया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. तब तक हौस्टल में रहने वाली कई डाक्टर वहां एकत्र हो गई थीं. काफी प्रयासों के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, तो हौस्टल के गार्ड ने कमरे का दरवाजा तोड़ दिया.

दरवाजा टूटते ही अंदर का नजारा देख कर हौस्टल का गार्ड और वहां मौजूद डाक्टर सब हतप्रभ रह गए. कमरे के अंदर पायल छत पर लगे पंखे से लटकी हुई थी. उस के गले में दुपट्टे का फंदा लगा था.

हौस्टल के गार्ड की मदद से डाक्टरों ने पायल के शव को पंखे से नीचे उतारा. उन्होंने पायल की नब्ज और स्टेथेस्कोप से उस के दिल की धड़कनें देखीं, लेकिन उस में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए. फिर भी वे बड़ी उम्मीद के साथ पायल को तत्काल हौस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में ले गए. वहां डाक्टरों ने आवश्यक जांचपड़ताल के बाद डा. पायल को मृत घोषित कर दिया.

इस बीच हौस्पिटल प्रशासन ने डा. पायल के पति डा. सलमान को फोन कर कहा कि डा. पायल की हालत नाजुक है. डा. सलमान उस समय जैकब सर्किल स्थित अपने घर पर थे. सूचना मिलने के 10 मिनट के भीतर वे हौस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंच गए. उस समय डाक्टर अपने प्रयासों में जुटे हुए थे. डा. सलमान ने भी पायल की जान बचाने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन सब कुछ खत्म हो चुका था.

उधर, डा. पायल की मां आबिदा व अन्य परिजन हौस्टल पहुंच गए. वहां पर उन्हें पता चला कि पायल अपने कमरे में पंखे से लटकी हुई थी और उसे उस के साथी डाक्टर हौस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में ले गए हैं, तो वे वहां पहुंच गए. इमरजेंसी वार्ड में उन्हें डा. पायल के पति डा. सलमान भी मिल गए.

3 महिला डाक्टरों के खिलाफ मां ने दर्ज कराई रिपोर्ट

डा. पायल को मृत देख कर आबिदा और डा. सलमान रोने लगे. पायल के साथी डाक्टरों की आंखों से भी आंसू टपकने लगे. किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उन के साथ पढ़ने और अपने काम के प्रति समर्पित साथी डा. पायल अब उन के बीच नहीं रही.

हौस्टल प्रशासन ने डा. पायल की मौत की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस ने हौस्पिटल पहुंच कर शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. तब तक रात के करीब 10 बज गए थे. इसलिए पोस्टमार्टम दूसरे दिन होना था.

बाद में पुलिस ने हौस्टल में डा. पायल के कमरे में पहुंच कर जांचपड़ताल की. हौस्टल में रहने वाली डाक्टरी की छात्राओं और कर्मचारियों से प्रारंभिक पूछताछ की. रात ज्यादा हो जाने के कारण पुलिस ने डा. पायल का कमरा बंद करवा दिया.

अगले दिन 23 मई, 2019 को देशभर में लोकसभा चुनाव की मतगणना हो रही थी. इसलिए डा. पायल की आत्महत्या का मामला चुनावी सुर्खियों में दब गया.

इस बीच, डा. पायल की मां आबिदा ने अग्रीपाड़ा पुलिस थाने पहुंच कर 3 सीनियर महिला डाक्टरों हेमा आहूजा, डा. भक्ति मेहर और डा. अंकिता खंडेलवाल के खिलाफ  रिपोर्ट दर्ज करा दी. तीनों आरोपी डाक्टर गायनोकोलोजिस्ट थीं.

पुलिस ने एससी/एसटी एक्ट, आत्महत्या के लिए उकसाने, एंटी रैगिंग एक्ट और इंफारमेशन टेक्नौलोजी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया. आबिदा ने पुलिस को बताया कि जब से उन की बेटी पायल का एडमिशन बी.वाई.एल. नायर हौस्पिटल एंड कालेज में हुआ था, तब से उसे सीनियर डाक्टरों द्वारा परेशान किया जा रहा था. इस संबंध में हमने कालेज प्रशासन से भी शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

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चुनाव परिणाम का शोर थमने पर डा. पायल की आत्महत्या के मामले ने तूल पकड़ लिया. दलित डाक्टर को प्रताडि़त कर आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने के मामले में विभिन्न संगठनों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए.

महाराष्ट्र एसोसिएशसन औफ रेजिडेंट डाक्टर (मार्ड) ने घटना की निंदा करते हुए तीनों आरोपी सीनियर डाक्टरों की सदस्यता निरस्त कर दी. वहीं, नायर हौस्पिटल के डीन डा. रमेश भारमल ने मामले की आंतरिक जांच के आदेश दे कर 6 सदस्यीय कमेटी गठित कर दी. इसके अलावा 2 सीनियर डाक्टरों को नोटिस दे कर उन से इस मामले में जवाब मांगा गया.

मार्ड की अध्यक्ष डा. कल्याणी डोंगरे ने कहा कि डा. पायल जिंदगी के हर पल को एंजौय करती थी. सोशल मीडिया पर भी एक्टिव थी, आत्महत्या वाले दिन भी उस ने हौस्पिटल में 2 सर्जरी की थीं.

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डा. पायल की मौत को ले कर मुंबई में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन को देखते हुए पुलिस कमिश्नर ने जोन-3 के डीसीपी अविनाश कुमार और अन्य अधिकारियों को इस मामले की गंभीरता से जांच करने और आरोपी डाक्टरों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए.

पुलिस ने मामले की जांच में तेजी लाते हुए रैगिंग के नाम पर डा. पायल को प्रताडि़त करने के सबूत जुटाए. पायल की मां आबिदा ने उस के मोबाइल के वे स्क्रीनशौट पुलिस को उपलब्ध कराए, जिन में आरोपी डाक्टरों की ओर से उसे जातिसूचक शब्दों से प्रताडि़त किया गया था.

घर वालों का आरोप था कि हौस्टल के कमरे में डा. पायल पंखे से लटकी मिलने के काफी देर बाद तक उस का कमरा खुला हुआ रहा था. इस दौरान तीनों आरोपी डाक्टर वहां देखी गई थीं. उन्होंने ने शक जताया कि यदि डा. पायल ने आत्महत्या की है तो उस ने कमरे में कोई सुसाइड नोट जरूर छोड़ा होगा, लेकिन वहां कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. आरोपी डाक्टरों ने पायल का लिखा सुसाइड नोट संभवत: नष्ट कर दिया.

मामले की आंतरिक जांच के लिए बनाई गई 6 सदस्यीय कमेटी की जांच रिपोर्ट आने के बाद 27 मई को नायर अस्पताल प्रशासन ने डा. पायल को परेशान करने और उस पर जातिगत टिप्पणियां करने के आरोप में 4 डाक्टरों को निलंबित कर दिया.

इन में प्रसूति विभाग की प्रमुख डा. यी चिंग लिंग के अलावा तीनों आरोपी सीनियर रेजिडेंट डा. हेमा आहूजा, डा. भक्ति मेहर और डा. अंकिता खंडेलवाल शामिल थीं. अगले आदेश तक चारों निलंबित डाक्टरों के बौंबे म्युनिसिपल कारपोरेशन (बीएमसी) के किसी भी अस्पताल में काम करने पर रोक लगा दी गई. नायर अस्पताल भी बीएमसी की ओर से संचालित है.

दूसरी ओर, 27 मई को महाराष्ट्र महिला आयोग ने नायर अस्पताल प्रशासन को नोटिस भेज कर मामले की पूरी जानकारी मांगी. आयोग ने अस्पताल को नोटिस भेज कर रैगिंग रोकने के लिए अब तक उठाए गए कदमों का विवरण भी मांगा. साथ ही यह भी पूछा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं रोकने के लिए अस्पताल प्रशासन ने क्या कदम उठाए हैं.

सीनियर छात्र अब भी रैगिंग को अपना अधिकार समझते हैं

अस्पताल प्रशासन की एंटी रैगिंग कमेटी की जांच रिपोर्ट में डा. पायल के मानसिक शोषण और जातिगत टिप्पणियां करने की बात सही पाई गई. यह रिपोर्ट महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी औफ हेल्थ साइंस को सौंप दी गई. रिपोर्ट आने के बाद मैडिकल एजुकेशन विभाग ने 4 सदस्यीय कमेटी बना कर मौजूदा एंटी रैगिंग नियमों की समीक्षा कर रिपोर्ट देने को कहा.

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इस बीच, डा. पायल तड़वी की आत्महत्या का मामला देशभर में सुर्खियों में छा गया. शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में कहा कि पायल की दर्दनाक दास्तान महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील कहलाने वाले समाज पर सवालिया निशान है.

डा. पायल के पिता सलीम, मां आबिदा व पति डा. सलमान को साथ ले कर कई दलित और जनजातीय संगठनों ने 28 मई, 2019 को अस्पताल के बाहर प्रदर्शन कर आरोप लगाया कि मुमकिन है कि तीनों महिला डाक्टरों ने पायल की हत्या की हो, इसलिए सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करे. पायल के आदिवासी समुदाय से होने के कारण तीनों सीनियर डाक्टर उसे प्रताडि़त करती थीं.

लगातार हो रहे विरोध और प्रदर्शनों को देखते हुए दबाव में आई पुलिस ने डा. भक्ति मेहर को 28 मई को और डा. हेमा आहूजा एवं डा. अंकिता खंडेलवाल को भी उसी रात गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपी महिला डाक्टरों को पुलिस ने 29 मई को अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें 31 मई तक पुलिस रिमांड पर भेज दिया.

पायल की मौत का मामला लगातार संवेदनशील और गंभीर होता जा रहा था. इसलिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के आदेश पर मुंबई के पुलिस कमिश्नर ने 30 मई को इस की जांच का काम क्राइम ब्रांच को सौंप दिया.

क्राइम ब्रांच ने मामले की जांचपड़ताल शुरू कर 31 मई को कुछ डाक्टरों से पूछताछ की. इस के अलावा राजा ठाकरे को इस मामले में विशेष सरकारी वकील नियुक्त किया गया. क्राइम ब्रांच तीनों आरोपियों को रिमांड पर लेना चाहती थी, लेकिन इस से पहले ही पुलिस रिमांड की अवधि पूरी होने पर अदालत ने 31 मई को तीनों आरोपी डाक्टरों को 10 जून तक के लिए न्यायिक हिरासत में भायखला जेल भेज दिया.

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                                              तीनों आरोपी महिला डाक्टर

बाद में क्राइम ब्रांच ने बौंबे हाईकोर्ट में अरजी दायर कर तीनों आरोपी महिला डाक्टरों का पुलिस रिमांड मांगा. रिमांड तो नहीं मिला, लेकिन न्यायमूर्ति एस. शिंदे ने 9 जून को सुबह 9 से शाम 6 बजे के बीच तीनों आरोपी डाक्टरों से पूछताछ की अनुमति जरूर दे दी. अपने आदेश में उन्होंने यह भी कहा कि शुरुआत में ही मामले की जांच योग्य अधिकारियों को सौंपनी चाहिए थी.

मामले की जांचपड़ताल के लिए दिल्ली से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग का 5 सदस्यीय दल 6 जून को मुंबई पहुंच गया. आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार की अगुवाई में इस दल ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव, स्वास्थ्य सचिव, मुंबई के पुलिस आयुक्त सहित उच्चाधिकारियों से बैठक कर डा. पायल तड़वी मामले की तथ्यात्मक जानकारी हासिल की. दल ने नायर अस्पताल और टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज के प्रबंधन से जुड़े लोगों से भी मुलाकात की.

निशाना थी डा. पायल तड़वी की पृष्ठभूमि

महाराष्ट्र के जलगांव की रहने वाली डा. पायल आदिवासी समाज से थी. एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने 1 मई, 2018 को गायनोकोलोजी में पोस्ट ग्रैजुएशन के लिए मुंबई के टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज में एडमिशन लिया था. यह मैडिकल कालेज मुंबई के ही बी.वाई.एल. नायर अस्पताल से संबद्ध है.

कालेज में एडमिशन लेने के कुछ दिन बाद ही कुछ सीनियर महिला डाक्टर रैगिंग के नाम पर उसे प्रताडि़त करने लगीं. पायल को जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया जाता था. डा. हेमा आहूजा और डा. भक्ति मेहर कुछ दिनों के लिए डा. पायल की रूममेट रही थीं. आबिदा का आरोप है कि उन की बेटी के साथ प्रताड़ना की शुरुआत उसी समय हुई थी.

दोनों रूममेट सीनियर डाक्टर पायल की बेडशीट से अपने गंदे पैर पोंछती थीं. उस का सामान इधरउधर फेंक देती थीं. बाद में दोनों सीनियर डाक्टर हेमा आहूजा और डा. भक्ति मेहर दूसरा कमरा आवंटित होने पर उस में रहने लगी थीं, लेकिन उन के अत्याचार कम होने के बजाय बढ़ते गए.

उन के साथ डा. अंकिता खंडेलवाल भी पायल को टौर्चर करती थी. कहा जाता है कि तीनों सीनियर डाक्टर कई बार मरीजों के सामने ही पायल को बुरी तरह डांटती थीं. उस की फाइलों को मुंह पर फेंक देती थीं.

वे पायल को औपरेशन थिएटर में भी नहीं घुसने देती थीं, जबकि उस की पढ़ाई के लिहाज से थिएटर में होने वाले औपरेशन देखना और समझना उस के लिए बेहद जरूरी था. वे वाट्सएप गु्रप पर भी पायल की खिल्ली उड़ाती थीं.

पायल ने सीनियर डाक्टरों की ओर से प्रताडि़त करने की बात अपनी मां आबिदा को बताई थी. आबिदा ने बेटी को छोटी मोटी बातों पर ध्यान नहीं देने और पढ़ाई पर फोकस रखने की सलाह दी थी. जब पायल पर अत्याचार ज्यादा बढ़े, तो दिसंबर 2018 में उस ने अपने परिवार से इस की शिकायत की. इस पर पायल के पति डा. सलमान ने पायल के डिपार्टमेंट में लिखित शिकायत की. इस शिकायत पर डा. पायल की यूनिट बदल दी गई.

यूनिट बदलने पर डा. पायल को कुछ राहत जरूर मिली. अब उसे सीधे तौर पर प्रताडि़त नहीं किया जाता था, बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से उसे मानसिक यंत्रणा दी जाती थी. कुछ दिनों बाद डा. पायल को वापस पुरानी यूनिट में भेज दिया गया, तो उस पर तीनों सीनियर डाक्टरों के अत्याचार बढ़ गए. डा. पायल और उस के परिजनों ने इस बारे में बाद में भी कई बार शिकायतें की, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

डा. सलमान के अनुसार, घटना से एक दिन पहले 21 मई को डा. पायल ने फोन कर उन्हें बताया था कि वह अपने दोस्तों के साथ हौस्टल से बाहर मोहम्मद अली रोड पर होटल में डिनर पर जा रही है. पति डा. सलमान से हुई इस आखिरी बातचीत में डा. पायल ने अगले दिन मिलने का वादा किया था.

होटल में डिनर के दौरान सभी दोस्तों ने सेल्फी ली थी. डा. पायल ने भी सेल्फी ली थी. डा. पायल ने यह सेल्फी वाट्सएप के एक गु्रप पर पोस्ट कर दी थी. इस सेल्फी को लेकर सीनियर डाक्टरों हेमा, डा. भक्ति और डा. अंकिता ने सोशल मीडिया पर डा. पायल का खूब मजाक बनाया और उसे मानसिक रूप से प्रताडि़त किया.

डिनर करने पर मारे ताने

22 मई, 2019 को डा. पायल की सुबह से नायर हौस्पिटल में ड्यूटी थी. ड्यूटी के दौरान सीनियर डाक्टर हेमा, डा. भक्ति और डा. अंकिता ने होटल में डिनर करने को ले कर डा. पायल को खूब ताने मारे. इस के बावजूद डा. पायल अपने काम में जुटी रही. उसने 2 सर्जरी में सीनियर डाक्टरों का सहयोग भी किया.

दोपहर करीब ढाई बजे वह अस्पताल से निकल कर हौस्टल में अपने कमरे पर पहुंची. शाम करीब 4 बजे पायल ने अपनी मां आबिदा को मोबाइल पर काल कर कहा था कि मम्मी अब बरदाश्त नहीं होता. इस पर आबिदा ने पायल को जल्दी ही सब ठीक होने की दिलासा देते हुए दामाद डा. सलमान के साथ समय बिताने को कहा था ताकि मन कुछ शांत हो सके.

इस के बाद शाम करीब साढ़े 7 बजे डा. पायल अपने कमरे में पंखे से लटकी हुई मिली. कथा लिखे जाने तक मुंबई क्राइम ब्रांच इस मामले की जांच कर रही थी. तीनों आरोपी महिला डाक्टर न्यायिक अभिरक्षा में जेल में थीं. डा. पायल के परिजनों का आरोप है कि अगर उन की शिकायत पर अस्पताल प्रशासन ने ध्यान दे कर कोई काररवाई की होती तो आज पायल जीवित होती.

राज्य अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग ने पुलिस की जांच में कई खामियां मानी हैं. डा. पायल के मामले की जांच के लिए आयोग ने 4 लोगों की एक कमेटी बनाई थी. इस में एक रिटायर्ड आईएएस और आईपीएस अधिकारी के अलावा एक भूतपूर्व जज और आयोग के सचिव को शामिल किया गया. इस कमेटी ने मौका मुआयना कर अपनी रिपोर्ट बनाई, लेकिन इसे अंतिम रूप नहीं दिया है. रिपोर्ट में कहा है कि पुलिस ने कई महत्त्वपूर्ण बातों को जांच में शामिल नहीं किया. सही धाराएं भी नहीं लगाई गईं.

इस कमेटी ने जांच में देखा कि पायल के बैड और पंखे के बीच करीब 9 फीट का अंतर है. बिना टेबल या कुरसी लगाए पंखे तक नहीं पहुंचा जा सकता जबकि कमरे में कोई टेबल या कुरसी नहीं थी. कमेटी ने जांच एजेंसी से सीसीटीवी फुटेज और विसरा रिपोर्ट भी मांगी है. कमेटी यह भी जांच कर रही है कि सबसे पहले शिकायत मिलने पर अस्पताल प्रशासन ने स्थानीय पुलिस को सूचित क्यों नहीं किया.

चौंकाने वाली बात यह भी है कि पिछले 7 सालों में महाराष्ट्र में रैगिंग से जुड़े 248 मामले सामने आए हैं. इस में 17 प्रतिशत यानी 43 मामले मैडिकल कालेजों से जुड़े हुए हैं. इन में 7 मामले मुंबई के मैडिकल कालेजों के हैं.

पुलिस भले ही इस मामले में सारे सबूत जुटा ले और अदालत आरोपी डाक्टरों को सजा भी दे दे, लेकिन सवाल यह उठता है कि उच्च शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग पर प्रभावी तरह से रोक क्यों नहीं लग पा रही है. इस के अलावा सवाल यह भी है कि जातिवाद का जहर कब तक फैलता रहेगा?

डा. पायल की मौत किसी भी संवेदनशील मन को झकझोर देने वाली है. यह घटना जहां समाज के लिए शर्मिंदगी का सबक है, वहीं यह सोचने को भी मजबूर करती है कि ऐसी स्थितियों के चलते शिक्षा व्यवस्था क्या नई पीढ़ी में स्वस्थ मानसिकता का विकास कर पाएगी.