रास न आया ब्याज

गांव पनवारी में रहने वाले सोहनवीर सिंह से हुआ था. सोहनवीर प्राइवेट नौकरी करता था. उस की इतनी कमाई नहीं थी कि घर का खर्च आसानी से चल पाता. चंचल इस से खुश नहीं थी लेकिन अपना भाग्य मान कर वह पति सोहनवीर के साथ निर्वाह कर रही थी.

सोहनवीर पत्नी भक्त था, वह चंचल से बेइंतहा प्यार करता था. पति के इस बर्ताव ने आहिस्ताआहिस्ता चंचल के स्वभाव को बदल दिया.

एक शाम जब सोहनवीर लौटा तो चंचल ने उसे हाथपैर धोने के लिए गरम पानी दिया. हाथमुंह धो कर सोहनवीर रसोई में चंचल के पास ही बैठ गया, जहां चंचल उस के लिए गरम रोटियां सेंक रही थी. खाना खा कर सोहनवीर उठा और बैड पर जा कर लेट गया. सारा काम खत्म करने के बाद चंचल भी उस के पास आ कर बैड पर लेट गई.

चंचल को पति के मुंह से शराब की गंध महसूस हुई तो बोली, ‘‘तुम ने शराब पी है?’’

‘‘हां आज ज्यादा ठंड लग रही थी इसीलिए, लेकिन कल से नहीं पीऊंगा, वादा करता हूं.’’ सोहनवीर गलती मान कर बोला.

‘‘आज माफ किए देती हूं, आइंदा शराब पी कर घर में आए तो घर में घुसने नहीं दूंगी. फिर ठंड में सारी रात बाहर ही ठिठुरते रहना, समझे.’’ चंचल ने आंखें दिखा कर कहा.

उस रात सोहनवीर ने चंचल से वादा तो किया कि दोबारा शराब को हाथ नहीं लगाएगा, लेकिन वो वादा रात के साथ ही कहीं खो गया. अगले दिन सोहनवीर शराब के नशे में घर लौटा तो पतिपत्नी के बीच कहासुनी हो गई. इस के बाद चंचल फिर से पति सोहनवीर से चिढ़ने लगी. अब सोहनवीर चंचल को जरा भी नहीं सुहाता था. वह उस से हमेशा कटीकटी रहने लगी.

सोहनवीर चूंकि चंचल का पति था, इसलिए वह चाहे जैसा भी था, उसे उस के साथ रहना ही था. दिन गुजरते गए, समय पंख लगा कर उड़ने लगा. लाख कोशिशों के बाद भी चंचल सोहनवीर की शराब छुड़वा पाने में असफल रही. समय के साथ चंचल एक बेटे और एक बेटी की मां भी बन गई.

इस बीच सोहनवीर शराब का आदी हो गया था. शराब के चक्कर में उस ने कई लोगों से पैसे भी उधार लिए थे. वह पहले उधार लिए गए पैसे चुका नहीं पाता था, फिर से उधार मांगने लगता था. इसी के चलते लोगों ने उसे उधार देना बंद कर दिया था.

लोग तगादा करते तो सोहनवीर उन के सामने आने से बचने लगा. इस पर लोग उस के घर के बाहर आ कर तगादा करने लगे. सोहनवीर घर नहीं होता तो लोग चंचल को ही बुराभला बोल कर चले जाते थे.

चंचल चुपचाप सब के ताने सुनती, फिर दरवाजा बंद कर के रोती रहती. पति से कुछ कहती तो उस के सितम उस के जिस्म पर उभर कर दिखाई देने लगते.

एक दिन दोपहर में सोहनवीर कमरे में खाना खा रहा था. तभी किसी ने जोरजोर से दरवाजे की कुंडी बजाई. सोहनवीर समझ गया कि कोई लेनदार दरवाजे पर आया है. उस ने चंचल से कहा, ‘‘तुम जा कर देखो और मुझे पूछे तो दरवाजे से ही चलता कर देना.’’

‘‘हां, यही काम तो है मुझे कि हर किसी से झूठ बोलती रहूं.’’ कह कर चंचल झल्ला कर उठी.

सोहनवीर उसे लाल आंखों से घूर रहा था. चंचल ने दरवाजा खोला तो सामने एक व्यक्ति खड़ा था. उसे देख कर चंचल ने पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘मैं शिशुपाल सिंह हूं. कहां है सोहनवीर, जब से पैसा लिया है, दिखाई ही नहीं दे रहा.’’ शिशुपाल रूखे स्वर में बोला.

‘‘वो तो घर पर नहीं हैं, आप बाद में आ जाना.’’

‘‘मेरा यही काम है क्या. लोगों को पैसा दे कर भलाई करूं और जब पैसे लेने का वक्त आए तो देनदार घर से गायब मिले. कहे देता हूं, इस तरह नहीं चलेगा. अपने आदमी को कहना मेरा पैसा वापस कर दे, वरना अच्छा नहीं होगा.’’ शिशुपाल कड़क कर बोला.

‘‘आप नाराज क्यों होते हैं, वो आएंगे तो मैं बोल दूंगी. मैं ने तो आप को पहली बार देखा है.’’ चंचल बोली.

और भी हिदायतें दे कर शिशुपाल सिंह वहां से चला गया. चंचल ने दरवाजा बंद किया और फिर से आ कर रोटियां सेंकने लगी.

‘‘सारी उम्र लोगों की गालियां सुनवाते रहना लेकिन ये दारू मत छोड़ना.’’ चंचल गुस्से में पति से बोली.

‘‘ऐ तू मुझे आंखें दिखाती है, साली मैं तेरा मर्द हूं. जानती है पति परमेश्वर होता है. तू है कि मुझे ही आंखें दिखा रही है.’’ सोहनवीर चिल्ला कर बोला.

‘‘पति के अंदर परमेश्वर वाले गुण हों तभी तो. तुम में पति जैसा है कुछ.’’ चंचल बोली तो सोहनवीर उस के बाल पकड़ कर रसोई से बाहर ले आया और लातघूंसों से बुरी तरह पिटाई करने लगा.

चंचल रोतीबिलखती खुद को पति के हाथों से छुड़ाती रही लेकिन सोहनवीर उसे तब तक पीटता रहा, जब तक खुद थक नहीं गया. चंचल रात भर दर्द से तड़पती रही और सोहनवीर शराब पी कर एक ओर लुढ़क गया.

3-4 दिन बाद शिशुपाल एक बार फिर से पैसों की वसूली के लिए सोहनवीर के घर आया तो इत्तेफाक से दरवाजा खुला था. शिशुपाल भीतर घुसता चला आया. चंचल आइने में देख कर बाल संवार रही थी. शिशुपाल पर नजर पड़ी तो उस ने मुसकरा कर कहा, ‘‘अरे शिशुपालजी आप! अरे आप खड़े क्यों हैं, बैठिए न.’’

शिशुपाल चुप था और एकटक चंचल की ओर देख रहा था. चंचल उस के करीब आई और कुरसी उठा कर उस की ओर सरकाते हुए बोली, ‘‘आप बैठिए, मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘नहीं, मुझे चाय नहीं पीनी. मैं तो सोहनवीर से मिलने आया था. कहां है वो मेरे पैसे कब देगा?’’ शिशुपाल ने पूछा.

‘‘आप के पैसे मिल जाएंगे, चिंता मत कीजिए.’’ चंचल अब भी मुसकरा रही थी. वह रसोई में चली गई और 2 कप चाय और प्लेट में बिस्कुट, नमकीन ले आई. उस ने शिशुपाल की ओर चाय का कप बढ़ाते हुए कहा, ‘‘कितने रुपए हैं आप के?’’

‘‘आप को नहीं मालूम.’’ शिशुपाल ने कप हाथ में ले कर पूछा.

‘‘जब पति पत्नी को सारी बातें बताए, तभी उसे हर बात की जानकारी रहती है. जो आदमी पत्नी को सिवाय पैर की जूती के कुछ नहीं समझता वो…खैर जाने दीजिए मैं भी कहां आप से अपना रोना ले कर बैठ गई.’’ चंचल बोल रही थी, शिशुपाल खामोशी से उस की बातें सुन रहा था.

काफी देर तक इंतजार के बाद भी सोहनवीर घर नहीं आया तो शिशुपाल जाने लगा. चंचल ने उसे थोड़ी देर और रुकने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं रुका. चंचल ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया और बोली, ‘‘वो आएंगे तो मैं आप को फोन कर के बता दूंगी.’’

शिशुपाल वहां से चला गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि सोहनवीर की पत्नी चंचल उस पर इतनी मेहरबान क्यों हो गई. फिर उस ने सिर को झटका और सोचने लगा कि उसे तो अपने पैसे चाहिए चाहे पत्नी दे या पति. सोचता हुआ वह अपने घर पहुंच गया.

शिशुपाल सिंह संपन्न किसान था. करीब 18 साल पहले उस का विवाह सीता से हुआ था. सीता से उसे 2 बेटे और एक बेटी हुई. करीब डेढ़ साल पहले आपसी विवाद के कारण सीता हमेशा के लिए घर छोड़ कर चली गई. शिशुपाल अकेला पड़ गया. गांव के लोगों को वह ब्याज पर पैसा देता था.

एक दिन सोहनवीर ने उस से किसी जरूरी काम के लिए पैसे उधार मांगे तो शिशुपाल ने दे दिए. पैसे उधार मिलने के बाद सोहनवीर ने शिशुपाल की तरफ जाना ही छोड़ दिया. काफी समय बीतने के बाद सोहनवीर शिशुपाल से नहीं मिला तो शिशुपाल सोहनवीर के घर तक पहुंच गया.

सोहनवीर घर पर नहीं मिला तो चंचल ने शिशुपाल की आवभगत की. शिशुपाल उस दिन ये कह कर चला गया कि 4 दिन बाद फिर आएगा.

4 दिन गुजर गए. चंचल को आज शिशुपाल का इंतजार था. पति और बच्चे तो सुबह ही चले गए थे. उन के जाने के बाद चंचल ने घर का सारा काम खत्म किया और खुद सजसंवर कर बैठ गई. अपने बताए समय पर शिशुपाल सोहनवीर के घर पहुंच गया. दरवाजे की कुंडी खड़की तो चंचल ने घड़ी की ओर देखा, ठीक 11 बज रहे थे.

चेहरे पर मुसकान बिखेर कर एक बार वह आइने के सामने आ कर मुसकराई, फिर मन ही मन लजाई, उस ने साड़ी के पल्लू से खुद को लपेटा और सामने के बालों को गोल कर गालों पर गिरा लिए. चंचल का निखरा गोरा बदन दूध की तरह दमक रहा था.

उस ने दरवाजा खोला तो सामने शिशुपाल खड़ा था. उसे देखते ही चंचल ने मुसकान बिखेरी और निगाहें नीची कर लीं. फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘अंदर आइए न.’’

‘‘जी, सोहनवीर नहीं है क्या?’’ शिशुपाल ने हिचकिचा कर पूछा.

‘‘मैं तो हूं, आप की ही राह देख रही थी.’’ चंचल बोल पड़ी.

‘‘जी आप मेरी राह!’’ शिशुपाल चौंका तो चंचल ने बिना किसी हिचक के उसे हाथ बढ़ा कर अंदर आने का इशारा किया. शिशुपाल अंदर आ गया तो चंचल ने अंदर से कुंडी लगा दी और पलट कर शिशुपाल से बोली, ‘‘आप अभी तक खड़े हैं.’’

चंचल ने कुरसी निकाल कर देनी चाही तो शिशुपाल बोला, ‘‘आज मैं अपने पैसे ले कर ही जाऊंगा, बुलाओ सोहनवीर को जो मुंह छिपा कर बैठा है.’’

‘‘आप के तो दिमाग में दिन रात पैसा ही पैसा सवार रहता है. ये देखो कितना पैसा है मेरे पास.’’ चंचल ने स्वयं ही साड़ी का पल्लू हटा कर उस से कहा. यह देख शिशुपाल ठगा सा देखता रह गया. उस की निगाहें चंचल के तराशे हुए जिस्म पर थीं. वह अपलक देखे जा रहा था.

‘‘सचमुच सांचे में तराशा हुआ बदन है तुम्हारा.’’ शिशुपाल बोला.

चंचल ने झट से पल्लू से खुद को लपेट लिया. शिशुपाल चंचल के दिल की मंशा जान चुका था. उस ने चंचल को लपक कर अपनी ओर खींचा और बाजुओं में जकड़ लिया.

चंचल के सारे बदन में एक अजीब सा रोमांच उठने लगा. उस ने दोनों बांहें शिशुपाल के कंधों पर जमा लीं. शिशुपाल ने चंचल को बांहों में उठा कर पलंग पर लिटा दिया. वह सुहागन हो कर भी शादीशुदा औरत की सारी मर्यादाएं भूल कर वासना के अंधे कुंए में कूद पड़ी थी, जिस में कूदने के बाद चंचल ने असीम आनंद का अनुभव किया.

वह शिशुपाल की दीवानी हो गई. उस ने कहा, ‘‘अब बताओ इस दौलत में सुख है या फिर तुम्हारी तिजोरी वाली दौलत में?’’

‘‘सच कहूं तो मैं ने जब पहली बार तुम्हें देखा था तो तिजोरी की दौलत को भूल गया था और तुम्हारी इस दौलत का दीवाना हो गया था.’’

शिशुपाल की बांहों की गरमी पा कर चंचल को लगने लगा था कि अब उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गईं. चंचल अब शिशुपाल के वश में हो चुकी थी. जब जी करता दोनों एकदूसरे में समा जाते थे.

21 जुलाई, 2020 की सुबह शिशुपाल खेत से चारा लाने की बात कह कर घर से निकला लेकिन दोपहर तक नहीं लौटा. घरवालों ने उसे सभी जगह तलाशा, लेकिन कोई पता नहीं चला. कई दिन बाद भी जब शिशुपाल का पता नहीं लगा तो उस के भाई नवल सिंह ने 30 जुलाई को सिकंदरा थाने में शिशुपाल के गुम होने की सूचना दी. जिस पर इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने गुमशुदगी दर्ज कर जांच एसआई अमित कुमार को सौंप दी.

पुलिस ने हर जगह शिशुपाल का पता किया लेकिन कुछ पता नहीं लगा. इस पर पुलिस ने जानकारी जुटा कर पता किया कि शिशुपाल से कौनकौन मिलने आता है और शिशुपाल कहांकहां जाता था. इसी जांच में सोहनवीर पुलिस के शक के दायरे में आ गया. पता चला कि शिशुपाल हर रोज सब से ज्यादा समय सोहनवीर के घर बिताता था.

शिशुपाल और सोहनवीर के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स की जांच की गई तो जानकारी मिली कि घटना वाले दिन सुबह साढ़े 10 बजे दोनों के बीच बात हुई थी. फोन सोहनवीर ने किया था. उसी के बाद से शिशुपाल लापता हो गया था.

12 अगस्त, 2020 को इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने पुलिस टीम के साथ जा कर सोहनवीर सिंह को उस के घर से हिरासत में ले लिया. थाने  ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने शिशुपाल की हत्या कर देने की बात स्वीकार कर ली.

इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने उस की निशानदेही पर अंशुल एपीआई के पास निर्माणाधीन इमारत के पास सीवर नाले से शिशुपाल की लाश बरामद कर ली. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद वह थाने लौट आए.

पुलिस ने सोहनवीर के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करने के बाद उस से विस्तृत पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि शिशुपाल और चंचल के नाजायज रिश्ते की इमारत जैसेजैसे बनती गई, वह लोगों की नजरों में आने लगी थी. लोगों की नजरों में बात आई तो सोहनवीर तक पहुंचते देर नहीं लगी. तब सोहनवीर ने अपने घर की इज्जत पर हाथ डालने वाले शिशुपाल को जान से मार देने का फैसला कर लिया.

उस ने घटना से 1-2 दिन पहले मोबाइल पर शिशुपाल से बात की और कहा कि कुछ परेशानी थी, इस वजह से वह उस का पैसा नहीं दे पाया लेकिन अब जल्द ही दे देगा. शिशुपाल तो वैसे भी अपनी दी गई रकम का ब्याज उस की पत्नी के बदन से वसूल रहा था. इसलिए उस ने कह दिया कि ठीक है जब पैसा हो जाए दे देना.

21 जुलाई, 2020 की सुबह शिशुपाल चारा लाने के लिए घर से खेत की तरफ जाने के लिए निकला. वह खेत पर था तब करीब साढ़े 10 बजे सोहनवीर ने फोन कर के उसे मिलने के लिए बुलाया. शिशुपाल उस के पास पहुंचा तो सोहनवीर उसे अंशुल एपीआई के पास निर्माणाधीन इमारत में ले गया. वहीं पर उस ने कोल्ड ड्रिंक में कीटनाशक मिला कर शिशुपाल को पिला दी, जिसे पीने के कुछ ही देर में शिशुपाल की मौत हो गई. सोहनवीर ने शिशुपाल की लाश इमारत के पास वाले सीवर नाले में डाल दी और घर चला गया.

कागजी खानापूर्ति करने के बाद इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने सोहनवीर को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में चंचल परिवर्तित नाम है)

सौजन्य: सत्यकथा, सितंबर 2020

एक सिपाही की प्रेम लीला

विकास पालीवाल 

सिपाही यतेंद्र कुमार यादव ने 26 अप्रैल, 2020 को रात 9 बजे अपने चचेरे साले सुरजीत

के मोबाइल पर फोन किया. फोन सुरजीत के छोटे भाई योगेंद्र ने उठाया. यतेंद्र ने कहा, ‘‘सुनो, जैसे ही गेट में घुसोगे, घुसते ही नेमप्लेट लगी है. उस के ऊपर ग्रिल है, चाबी वहीं रखी है और अंदर पिंकी (पत्नी) आंगन में है. आप उन लोगों (ससुरालीजनों) को बता देना. मतलब हम ने पिंकी को गोली मार दी है. साफसीधी बात है.’’

योगेंद्र ने पूछा, ‘‘कब?’’

यतेंद्र ने बताया, ‘‘आज रात में.’’

‘‘बच्चियां कहां हैं?’’

इस पर यतेंद्र ने कहा, ‘‘बच्चियां भी गायब हैं. आप उन को (ससुरालीजनों को) बता देना, बहुत सोचसमझ कर ही कोई कदम उठाएं. हमें जो करना था कर दिया. आप समझदार हो, जो भी गलती हुई माफ करना. अभी चाहो अभी काल कर लो. रात की बात है. जो भी काररवाई करवानी है करवाओ.’’

उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जनपद के शिकोहाबाद थानांतर्गत हाइवे स्थित आवास विकास कालोनी 3/39 के सेक्टर-3 में 32 वर्षीय सरोज देवी उर्फ पिंकी अपनी 3 बेटियों 10 साल की आकांक्षा, 8 साल की आरती व सब से छोटी 4 साल की अन्या के साथ अपने निजी मकान में रहती थीं. सरोज का पति यतेंद्र कुमार यादव आगरा के थाना सैंया में डायल 112 पर सिपाही पद पर तैनात था.

बीचबीच में यतेंद्र घर पर अपनी पत्नी व बेटियों के पास आताजाता रहता था. कहते हैं कभीकभी खून सिर चढ़ कर बोलता है. यही बात यतेंद्र के साथ भी हुई.

उस ने अपनी पत्नी की हत्या करने के बाद अपने चचेरे साले को फोन कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी और अपने ससुरालीजनों को सूचना देने व आगे की काररवाई करने को कहा. इस के साथ ही उस ने उन्हें धमकी भी दी कि वे जो भी काररवाई करें, खूब सोचसमझ कर करें.

योगेंद्र ने पूरी बात रिकौर्ड कर ली थी. उसे जैसे ही बहनोई यतेंद्र से अपनी चचेरी बहन पिंकी की हत्या की जानकारी मिली उस के हाथपैर फूल गए. उस समय लौकडाउन चल रहा था. उसे इस बात की जानकारी थी कि पिंकी और यतेंद्र के बीच विवाद चल रहा है. लेकिन हालात हत्या तक पहुंच जाएगा, इस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.

योगेंद्र ने रात में ही पिंकी के मायके में फोन कर अपने चचेरे भाई हरिओम को घटना की जानकारी दी. हरिओम ने जैसे ही बहन पिंकी की हत्या की खबर बताई, घर में कोहराम मच गया. रोनापीटना शुरू हो गया.

इस से पहले 26 अप्रैल की सुबह 9 बजे हरिओम के पास आवास विकास कालोनी में रहने वाले एक परिचित का फोन आया था. उस ने बताया कि वह उस की बहन सरोज उर्फ पिंकी के घर गया था. मकान का गेट अंदर से बंद था. कई आवाजें देने पर भी गेट नहीं खुला.

इस पर हरिओम ने अपने बहनोई यतेंद्र व बहन सरोज उर्फ पिंकी के मोबाइलों पर फोन किया, लेकिन किसी ने भी फोन नहीं उठाया. हरिओम ने अनुमान लगाया कि वे लोग कहीं गए होंगे, मोबाइल घर पर भूल गए होंगे.

रात को हरिओम के पास योगेंद्र का फोन आने पर बहनोई यतेंद्र द्वारा बहन सरोज उर्फ पिंकी की हत्या किए जाने की जानकारी हुई. हरिओम ने थाना शिकोहाबाद पुलिस को घटना की जानकारी दे दी.

इस पर थाना पुलिस रात में ही आवास विकास कालोनी स्थित उस मकान पर पहुंची, लेकिन मकान का दरवाजा बंद देख कर लौट गई. पुलिस ने हरिओम से थाने आने को कहा.

इन सब बातों के चलते काफी रात हो गई. इस के साथ ही लौकडाउन के चलते और गांव में एक गमी होने के कारण हरिओम व उस के घरवाले शिकोहाबाद नहीं आ पाए थे.

दूसरे दिन 27 अप्रैल को सुबह होते ही हरिओम यादव अपने पिता रामप्रकाश व अन्य रिश्तेदारों के साथ शिकोहाबाद की आवास विकास कालोनी पहुंच गए और पुलिस को सूचना दी. घर वालों के आने की सूचना पर थानाप्रभारी अनिल कुमार पुलिस टीम के साथ आवास विकास कालोनी पहुंच गए.

हरिओम ने पुलिस को बताया कि बहनोई यतेंद्र ने फोन पर ताऊ के लड़के योगेंद्र को मकान की चाबी ग्रिल के ऊपर रखी होने की जानकारी दी थी. इस पर चाबी को तलाशा गया. बताई गई जगह पर चाबी मिल गई. मकान का ताला खोल कर पुलिस अंदर गई.

आंगन में सरोज की खून से लथपथ लाश पड़ी हुई थी. तीनों बच्चियां भी गायब थीं. थानाप्रभारी अनिल कुमार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

सूचना पर सीओ इंदुप्रभा सिंह व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार फोरैंसिक टीम को ले कर मौकाएवारदात पर पहुंच गए. हत्या की जानकारी होते ही कालोनी के लोग भी एकत्र हो गए. सिपाही द्वारा पत्नी की हत्या किए जाने की खबर से सनसनी फैल गई.

पुलिस अधिकारियों ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका के शरीर पर चोटों के साथ ही गोलियों के 4 निशान भी मिले. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर पूरे घर से साक्ष्य जुटाए. लाश के पास की दीवारों पर खून के छींटे मिलने के साथ ही टूटी हुई चूडियां भी मिलीं. इस से अनुमान लगाया कि मृतका ने अंतिम सांस तक पति के साथ संघर्ष किया था.

हरिओम ने हत्यारोपी सिपाही यतेंद्र द्वारा किए गए फोन की रिकौर्डिंग भी पुलिस अधिकारियों को सुनवाई.

मकान से पुलिस को 2 मोबाइल फोन मिले. यह मृतका के बताए जा रहे थे. पुलिस ने फोनों के लौक खुलवा कर जांच कराने की बात कही. तीनों बेटियों के स्कूल आईडी कार्ड घर के बाहर पड़े मिले.

4 साल पहले यतेंद्र ने अपने परिचित के जरिए शिकोहाबाद की आवास विकास कालोनी में प्लौट खरीदा और रजिस्ट्री पत्नी सरोज के नाम कराई थी. इस के बाद मकान बनवाया था.

आवास विकास कालोनी का इलाका आबादी से दूर होने से सिपाही यतेंद्र ने सुरक्षा की दृष्टि से 5 सीसीटीवी कैमरे लगवा रखे थे. शातिर सिपाही ने पत्नी की हत्या के बाद सारे सुबूत मिटाने की कोशिश की थी. वह घर के अंदर और बाहर लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग डिलीट करने के बाद तीनों बेटियों को ले कर इस तरह घर निकला कि किसी को कानोंकान भनक तक नहीं लगी.

पूछताछ में मृतका के भाई हरिओम यादव व पिता रामप्रकाश ने बताया कि यतेंद्र के मथुरा की एक युवती से अवैध संबंध थे. इस के चलते पतिपत्नी में विवाद होता रहता था. यतेंद्र मकान बेचने का दबाव बनाने के साथ ही दहेज की मांग को ले कर बहन पिंकी का उत्पीड़न करता था. सरोज की शिकायत पर घर वालों ने यतेंद्र को कई बार समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा. यतेंद्र आए दिन पिंकी के साथ मारपीट करता था और इसी के चलते यतेंद्र ने उस की हत्या कर दी.

घटना के बाद से तीनों बच्चियां भी गायब थीं. घर वालों को आशंका थी कि आरोपी ने बच्चियों के साथ कोई अनहोनी न कर दी हो. पड़ोसियों ने बताया कि रात में उन्हें गोली चलने की आवाज सुनाई नहीं दी.

मृतका के भाई हरिओम यादव की तहरीर पर पुलिस ने सिपाही यतेंद्र कुमार यादव, उस के पिता रामदत्त व यतेंद्र के बहनोई हरेंद्र के खिलाफ सरोज की गोली मार कर हत्या करने का केस दर्ज कर लिया.

पुलिस का अनुमान था कि कालोनी हाइवे के किनारे स्थित है, मकान दूरी पर बने हैं. रात का समय होने पर संभव है कि पड़ोसियों को गोली की आवाज सुनाई न दी हो. एक पड़ोसी ने इतना जरूर बताया कि शनिवार की शाम सरोज को घर के दरवाजे पर बैठा देखा था.

एसपी (ग्रामीण) ने बताया कि या तो कैमरे बंद किए गए थे या फिर रिकौर्डिंग डिलीट कर दी गई थी. आगरा से जानकारी करने पर पता चला कि यतेंद्र 26 अप्रैल को दोपहर 2 बजे से अनुपस्थित चल रहा था, उस के खिलाफ आगरा में रपट लिखी गई है.

पुलिस का मानना था कि हो सकता है कि तीनों बेटियों को आरोपी यतेंद्र अपने साथ ले गया हो. बेटियों को ले कर वह कहां गया, इस का कोई पता नहीं चल रहा था.

पुलिस व फोरैंसिक टीम ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भिजवा दिया.

हत्यारोपी सिपाही की गिरफ्तारी के लिए लौकडाउन में पुलिस ने 3 टीमें गठित कीं. इन टीमों ने मैनपुरी और इटावा स्थित सिपाही के घर व रिश्तेदारियों के अलावा आगरा व मथुरा में भी दबिशें दीं.

मथुरा के थाना हाइवे क्षेत्र निवासी उस की प्रेमिका से भी पूछताछ की गई लेकिन हत्यारोपी सिपाही का कोई सुराग नहीं मिला. प्रेमिका ने पुलिस को बताया कि यतेंद्र से एक साल से बात नहीं हुई है.

आरोपी का एक मामा भी कांस्टेबल था. मामा के मोबाइल की भी काल डिटेल्स खंगाली गई. जांच में पता चला कि मामा के मोबाइल पर एक भी फोन आरोपी का नहीं आया था. आरोपी की तलाश में पुलिस द्वारा लगातार दबिशें दिए जाने पर भी पुलिस के हाथ खाली थे. सरोज उर्फ पिंकी इटावा जनपद के थाना भरथना अंतर्गत गांव नगला नया कुर्रा निवासी रामप्रकाश यादव की बड़ी बेटी थी. स्वभाव से मिलनसार. पिंकी की शादी 2008 में मैनपुरी जनपद के कुर्रा थानांतर्गत गांव अंबरपुर सौंख निवासी रामदत्त यादव के बेटे यतेंद्र कुमार यादव के साथ हुई थी. यतेंद्र 2005 बैच का सिपाही है.

ससुरालीजनों ने बताया कि डेढ़ साल पहले यतेंद्र की तैनाती मथुरा जनपद के थाना हाइवे में हुई थी. ड्यूटी के दौरान यतेंद्र की मुलाकात उसी क्षेत्र की रहने वाली एक युवती से हुई. दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ा तो वह यह भी भूल गया कि पहले से शादीशुदा है.

सिपाही यतेंद्र अपनी प्रेमिका को ले कर फरार हो गया. जब ये बात प्रेमिका के घरवालों को पता चली तो उन्होंने थाना हाइवे में मुकदमा दर्ज करा दिया. इस संबंध में यतेंद्र कुमार सस्पेंड भी रहा था. 2 माह बाद युवती वापस आ गई और उस ने सिपाही यतेंद्र के पक्ष में बयान दिया था. बाद में यह मामला रफादफा हो गया था.

पति की इस करतूत से पिंकी को गहरी ठेस लगी. दोनों के बीच इस बात को ले कर तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. इस के चलते जीवन भर साथ निभाने वाली पत्ली पिंकी पति की नजरों में खटकने लगी थी.

घटना के 3 दिन बाद मृतका पिंकी की तीनों बेटियां नाना के गांव नगला नया कुर्रा से 3-4 किलोमीटर दूर रौरा गांव की रोड पर मिलीं. उन्हें दिन के समय यतेंद्र छोड़ गया था. बच्चियों को देख कर गांववालों ने उन से पूछताछ की. इस पर सब से बड़ी लड़की आकांक्षा ने अपने नाना रामप्रकाश यादव के साथ ही गांव का नाम भी बता दिया.

पास का गांव होने के कारण गांव वाले उन के परिवार को जानते थे. गांव वालों ने तीनों बच्चियों को उन के गांव पहुंचा दिया. बच्चियों ने बताया कि पापा उन्हें कार से छोड़ कर चले गए थे.

बच्चियों के मिलने की सूचना पुलिस को भी दे दी गई. आकांक्षा ने बताया कि उस ने पापा को मम्मी को गोली मारते देखा था. हम लोग डर गए थे.

घटना के बाद आरोपी सिपाही की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने काफी प्रयास किए, लेकिन सफलता न मिलने पर एसएसपी सचिंद्र पटेल ने इसे गंभीरता से लिया और आरोपी पर 15 हजार का इनाम घोषित कर दिया. उन्होंने थानाप्रभारी अनिल कुमार को उस की गिरफतारी के भी निर्देश दिए.

आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई. लौकडाउन में फरार चल रहे हत्यारोपी सिपाही यतेंद्र को पुलिस ने शिकोहाबाद के सुभाष तिराहे से लगभग एक माह बाद 24 मई की सुबह पौने 6 बजे तब गिरफ्तार कर लिया, जब वह कहीं जाने के लिए वाहन का इंतजार कर रहा था. सिपाही के कब्जे से 32 बोर की देशी पिस्टल भी बरामद हुई. इसी पिस्टल से उस ने अपनी पत्नी पिंकी की हत्या की थी.

पुलिस ने सिपाही यतेंद्र के खिलाफ हत्या के साथ ही 25 आर्म्स एक्ट के अंतर्गत भी मुकदमा दर्ज किया. थाने में एसपी ग्रामीण राजेश कुमार ने प्रैसवार्ता में हत्यारोपी यतेंद्र कुमार यादव उर्फ सिंटू की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

घटना के बाद वह बच्चियों को नाना के गांव के पास छोड़ गया था. पुलिस ने उस के घर से गिरफ्तारी से 15 दिन पूर्व कार बरामद कर ली थी. विवेचना में यह बात सामने आई कि सिपाही के एक युवती से प्रेम संबंधों को ले कर पिछले डेढ़ साल से पतिपत्नी के बीच कलह शुरू हो गई थी.

यतेंद्र पत्नी पर मकान को बेचने का दबाव डालता था. 26 अप्रैल को यतेंद्र आगरा से शिकोहाबाद स्थित अपने घर आया हुआ था. पुरानी बातों को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद हो गया. मामला इतना बढ़ा कि यतेंद्र ने पत्नी सरोज उर्फ पिंकी के साथ मारपीट की. इस से भी जब उस का मन नहीं भरा तो उस ने साथ लाई देशी 32 बोर की पिस्टल से 4 गोलियां उस के सीने में उतार दीं.

घटना को अंजाम देने से पहले उस ने अपनी तीनों बेटियों को मकान के बाहर खड़ी कार में बैठा दिया था. बड़ी बेटी आकांक्षा अपने पिता की करतूत को पूरी तरह समझ गई थी, लेकिन पिता द्वारा धमकी देने से वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकी थी.

घटना को अंजाम देने के बाद सिपाही यतेंद्र तीनों बेटियों को ले कर फरार हो गया. गिरफ्तारी के बाद आरोपी सिपाही ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

सुंदर, सुशील पत्नी के होते हुए भी युवती से प्रेम संबंधों के चलते सिपाही यतेंद्र ने अपनी खुशहाल जिंदगी को ग्रहण लगा लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020

जहरीली निकली इश्क की दवा

22अप्रैल, 2020 को लाठगांव पिपरिया में सहकारी समिति के माध्यम से गेहूं की खरीदी चल रही थी. गांव के हीरालाल विश्वकर्मा को भी अपना गेहूं बेचने जाना था. वह अपने बड़े बेटे मोहन का इंतजार कर रहे थे. मोहन खेतों पर था. उस का दोस्त कुंजी भी उस के साथ था.

दरअसल, गांव के ही देवेंद्र पटेल से बंटाई पर लिए गए खेत पर गेहूं की फसल की मड़ाई हो रही थी. मोहन और कुंजी बीती रात 9 बजे खाना खा कर खेत पर गए थे. सुबह 11 बजे के बाद भी मोहन घर नहीं आया तो हीरालाल ने उसे फोन किया. लेकिन रिंग जाने पर भी फोन रिसीव नहीं हुआ. हीरालाल को लगा कि थ्रेशर की आवाज में फोन की रिंग सुनाई नहीं दी होगी. हीरालाल अपने छोटे बेटे को साथ ले कर गेहूं बेचने सहकारी समिति चला गया.

हीरालाल गेहूं बेच कर दोपहर के 2 बजे घर आया तो उस की पत्नी ने बताया कि मोहन अभी तक खेत से नहीं लौटा है. इस से उसे लगा कि थ्रेशर में कोई खराबी आने की वजह से फसल की मड़ाई पूरी नहीं हो पाई होगी, इसलिए मोहन घर नहीं आया होगा.

जल्दी से खाना खा कर हीरालाल खुद ही खेत पर चला गया. दूर से ही खेत में रखे गेहूं और भूसे के ढेर को देख कर हीरालाल खुश हुआ कि रात में फसल की मड़ाई हो गई है. लेकिन जब पास जा कर देखा तो उस के मुंह से चीख निकल गई. बिस्तर पर उस के बेटे मोहन विश्वकर्मा और उस के दोस्त कुंजी यादव की रक्तरंजित लाशें पड़ी थीं.

जैसेतैसे खुद को संभाल कर हीरालाल ने गांव के को

टवार (चौकीदार) द्वारा इस वारदात की सूचना पुलिस चौकी झोतेश्वर को दिलवा दी. सूचना मिलने पर थाना गोटेगांव के टीआई प्रभात शुक्ला और झोतेश्वर पुलिस चौकी की एसआई अंजलि अग्निहोत्री पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

लौकडाउन में हुए दोहरे हत्याकांड से पूरे जिले में सनसनी फैल गई थी. घटना को ले कर गांव में आक्रोश न फैले, इसलिए कलेक्टर दीपक सक्सेना और एसपी डा. गुरुकरण सिंह ने शाम के समय घटनास्थल का दौरा किया और पुलिस को जरूरी निर्देश दिए. उन्होंने गांव वालों को आश्वस्त किया कि हत्यारों को जल्द ही पकड़ लिया जाएगा.

पुलिस टीम ने जरूरी लिखापढ़ी के बाद दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए गोटेगांव के सरकारी अस्पताल भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद शवों को उन के घर वालों के सुपुर्द कर दिया गया. पुलिस की उपस्थिति में लाठगांव में दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

पुलिस टीम ने जब मृतकों के घर वालों के साथ गांव के कुछ लोगों से पूछताछ की तो मामला नाजायज प्रेम संबंधों से जुड़ा हुआ निकला. कुंजी यादव की दादी ने तो पुलिस के सामने दोनों की हत्या का शक गांव के शिवराज उर्फ गुड्डा ठाकुर पर व्यक्त किया.

इस से पुलिस की राह आसान हो गई. जब पुलिस टीम गुड्डा ठाकुर के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर के पास ही रहने वाले उस के भाई ने बताया कि गुड्डा उस के घर दोपहर को खाना खाने आया था. भाई ने बताया कि वह ज्यादा समय जामुनपानी गांव के खेत में बनी टपरिया (झोपड़ी) में रहता है.

पुलिस टीम ने 22 अप्रैल, 2020 की रात खेत में बनी गुड्डा ठाकुर की झोपड़ी में दबिश दी तो वह वहां नहीं मिला. 23 अप्रैल के तड़के पुलिस ने फिर झोपड़ी में दबिश दी. मगर पुलिस को देख कर उस की झोपड़ी में मौजूद कुत्ता दूर से ही भौंकने लगा. जिस पर गुड्डा ठाकुर बिस्तर से उठा और चड्ढीबनियान में ही जंगल की ओर भाग गया.

जब पुलिस झोपड़ी में पहुंची तो चूल्हे की आग गरम थी. बिस्तर बिछा हुआ था. उस के कपड़े और जूते रखे थे. झोपड़ी में पुलिस को गुड्डा ठाकुर की बैंक पासबुक और फोटो मिली.

23 अप्रैल, 2020 की शाम 5 बजे पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि गुड््डा झोतेश्वर के मंदिर के पास घूम रहा है. एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने पुलिस टीम के साथ जा कर झोतेश्वर मंदिर के आसपास के पूरे क्षेत्र की घेरेबंदी कर दी. लेकिन गुड्डा पुलिस से बच कर संकरे रास्तों से भाग गया. अंतत: उसे झोतेश्वर में हनुमान टेकरी मंदिर के पास से पकड़ लिया गया.

थाना गोटेगांव ले जा कर उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने पिपरिया लाठगांव निवासी मोहन और कुंजी यादव की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी. गुड्डा के पुलिस को दिए गए बयान के अनुसार हत्या का कारण दोस्ती में विश्वासघात था. मोहन ने उस की पत्नी रति से नाजायज संबंध बना रखे थे.

पिपरिया लाठगांव नरसिंहपुर जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर है. हीरालाल का परिवार इसी गांव में किसानी करता है. हीरालाल के 2 बेटों में 30 साल के बड़े बेटे मोहन की शादी हो चुकी थी. उस के 2 बच्चे भी हैं.

मोहन और कुंजी गुड्डा ठाकुर के अच्छे दोस्त थे. दोस्ती के चलते दोनों गुड्डा के घर आतेजाते थे. मोहन की नजर गुड्डा की खूबसूरत बीवी रति (परिवर्तित नाम) पर टिकी थी. तीखे नैननक्श और गठीले बदन की रति से मोहन हंसीमजाक कर लिया करता था.

जब भी गुड्डा ठाकुर घर से बाहर रहता, मोहन उस के घर पहुंच जाता. हंसीमजाक का सिलसिला बढ़ते देख एक दिन मोहन ने रति से कहा, ‘‘रति भाभी, तुम मुझे बहुत सुंदर लगती हो, जी चाहता है कि तुम पर मैं अपना सब कुछ लुटा दूं.’’

रति भी मोहन को मन ही मन चाहने लगी थी. उस ने भी कह दिया, ‘‘तुम्हें रोका किस ने है.’’

रति की इस सहमति पर मोहन का दिल मचल गया. वह रति से बोला, ‘‘तो हुस्न के इस खजाने को लूटने का मजा कब मिलेगा?’’

रति मानो प्यासी बैठी थी. उस ने कह दिया, ‘‘रात में तुम्हारा दोस्त गन्ने के खेत में पानी देने जाता है, तभी घर आ जाना.’’

तमाम लोग क्षणिक दैहिक सुख के लिए अंधे हो जाते हैं. उन्हें न समाज में बदनामी का डर रहता है और न ही अपने बीवीबच्चों की फिक्र. मोहन भी रति से शारीरिक संबंध बनाने के लिए कोई भी हद पार करने तैयार था. रति की सहमति मिलते ही मोहन के मन की मुराद पूरी हो गई.

रात में जब गुड्डा खेत पर गया था, मौका पा कर मोहन रति के पास पहुंच गया. निगरानी के लिए उस ने गुड्डा के घर के बाहर कुंजी को खड़ा कर दिया था. रति भी जैसे उसी के इंतजार में मूड बनाए बैठी थी.

मोहन के आते ही उस ने घर का दरवाजा बंद किया और मोहन के सीने में सिमट गई. मोहन रति को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘आज तो मेरी प्यास बुझा दो रानी.’’

फिर दोनों पास पड़े बिस्तर पर लेट गए. दोनों के अंदर मचल रहा वासना का तूफान तभी शांत हुआ, जब उन के जिस्मों की प्यास बुझ गई.

मोहन और रति के नाजायज संबंधों का यह खेल परवान चढ़ने लगा. धीरेधीरे इस की चर्चा गांव के गलीमोहल्लों से हो कर रति के पति गुड्डा के कानों तक भी पहुंच गई थी.

नाजायज संबंधों की जानकारी होने पर गुड्डा ने मोहन को समझाने का प्रयास किया. मगर मोहन ने अपनी गलती मानने के बजाए उलटे गुड्डा की मर्दानगी का मजाक बनाना शुरू कर दिया. रति के मोहन से बने इन नाजायज संबंधों से पतिपत्नी के बीच आए दिन झगड़े और मारपीट होने लगी. इस के चलते करीब 2 महीने पहले रति अपने मायके गांव घरगवां चली गई.

गुड्डा अपनी घरगृहस्थी उजड़ने से परेशान रहने लगा. समाज में भी उस की बदनामी हो गई थी. गुड्डा का मन अब किसी काम में नहीं लगता था. उस के दिल में मोहन के प्रति इतनी नफरत भर गई थी कि उसे देखते ही उस का खून खौलने लगा था.

उस के दिमाग में बारबार यही खयाल आता था कि मोहन की वजह से उस की पत्नी उसे छोड़ कर चली गई. वह मोहन को अपने रास्ते से हटाने के बारे में सोचता रहता था.

एक दिन गुड्डा ने अपनी यह योजना कुंजी यादव के घर जा कर बता दी. उस ने कुंजी के घर वालों से साफ शब्दों में कहा, ‘‘मोहन उस की बीवी पर बुरी नजर रखता था, इसलिए वह मोहन को जान से मारना चाहता है.’’ फिर उस ने कुंजी के पिता को समझाया, ‘‘तुम्हारे बेटे कुंजी ने अगर मोहन के साथ रहना नहीं छोड़ा तो उस की भी खैर नहीं.’’

इस बात को ले कर कुंजी के घर वालों ने कुंजी को मोहन के साथ न रहने की हिदायत भी दी लेकिन कुंजी ने उन का कहना नहीं माना.

प्रतिशोध की आग में जल रहे गुड्डा ने निश्चय कर लिया था कि वह मोहन को मौत के घाट उतार कर ही दम लेगा. गुड्डा को यह तो पता था ही कि मोहन और कुंजी रोज खेतों पर जाते हैं. 21 अप्रैल की रात वह अपने खेत की टपरिया से मोहन और कुंजी पर नजर रख रहा था. फसल की मड़ाई पूरी होने के बाद जब दोनों खेत पर सो गए तो रात करीब 2 बजे वह कुल्हाड़ी ले कर उन के पास पहुंच गया.

गहरी नींद सो रहे मोहन और कुंजी के सिर पर लगातार कई वार कर के गुड्डा ने उन्हें हमेशा के लिए गहरी नींद सुला दिया. कुंजी ने चेतावनी के बाद भी उस का कहा नहीं माना था. मोहन की हत्या का कोई सबूत और गवाह न मिल सके, इसलिए गुड्डा ने कुंजी की भी हत्या कर दी थी.

गुड्डा के बयानों के आधार पर मोहन विश्वकर्मा और कुंजी यादव की हत्या के आरोप में आईपीसी की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर गुड्डा ठाकुर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

नाजायज संबंधों का अकसर इसी तरह दुखद अंत होता है. इस मामले में भी शादीशुदा होने के बावजूद विश्वासघात कर के दोस्त की पत्नी से नाजायज संबंध रखने वाले मोहन और इन संबंधों में सहयोग करने वाले कुंजी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. पत्नी की बेवफाई से हुई बदनामी ने गुड्डा ठाकुर को दोहरी हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020

पुत्रवती होने का नुस्खा : छोटा भाई बना हत्यारा

35 वर्षीय शिवकुमार सिंह उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के गांव लखनेपुर का निवासी था. उस के पिता उदयभान सिंह खेतीबाड़ी का काम करते थे. शिवकुमार के 3 भाई थे. एक बड़ा राजकुमार और 2 छोटे नरेश और देवकुमार. राजकुमार का विवाह हो चुका था, वह पिता के साथ खेती के काम में हाथ बंटाता था. शिवकुमार का विवाह करीब 12 साल पहले उमा से हुआ था. बाद में वह 2 बेटियों की मां बनी.

उमा जब पहली बार गर्भवती हुई, तब उस की चाह बेटे की थी. यह चाहत दूसरी बार भी बनी रही. दोनों बार उमा को निराश होना पड़ा.

शिवकुमार को पता था कि बेटा न होने से उमा दुखी है. वह उसे समझाता भी था, लेकिन वह बेटा न होने के गम में घुलती रहती है. यह अलग बात है कि कई मायनों में बेटियां बेटों से लाख गुना बेहतर होती हैं.

उमा के जी में तो आग लगी रहती कि सब के बेटे हुए, पर उसे नहीं हुआ. उस में ऐसी कौन सी कमी है, जो बेटी पर बेटी हो गई.

बच्चों के बड़े होने पर खर्च तो बढ़ा, लेकिन आमदनी उस हिसाब से नहीं बढ़ी. शिवकुमार बाहर जा कर काम करने की सोचने लगा. उस के गांव के कुछ लोग फरीदाबाद में काम करते थे. शिवकुमार ने उन से बात की तो दोस्तों ने काम पर लगवाने का वादा कर उसे फरीदाबाद बुला लिया. शिवकुमार पत्नी और बच्चों को छोड़ कर फरीदाबाद चला गया.

फरीदाबाद में एक फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. वहां काम पर लगने के कुछ दिन बाद ही उस ने किराए पर कमरा ले लिया. रहने का सही ठिकाना हुआ तो वह गांव आ कर पत्नी उमा और दोनों बेटियों को अपने साथ फरीदाबाद ले गया. इस तरह उस की गृहस्थी की गाड़ी ठीकठाक चलने लगी.

शिवकुमार का छोटा भाई देवकुमार गांव में बेरोजगार घूमता था. उस ने कुछ दिनों बाद देवकुमार को भी फरीदाबाद बुला लिया. उस ने उसे भी काम पर लगवा दिया. दोनों भाई अच्छा कमाने लगे.

उमा के लिए फरीदाबाद अजनबी शहर था. वह दिन भर कमरे में ही रहती थी और कमरे में 2 ही इंसान थे, जिन से वह बात कर सकती थी, एक पति और दूसरा देवर.

पति से तो उमा सीमित बात करती लेकिन देवर देवकुमार से खूब गपशप करती थी. देवकुमार उमा से आयु में छोटा था और अविवाहित भी. वैसे भी देवरभाभी का रिश्ता होने के कारण उन में खूब पटती थी.

पहले तो उमा के प्रति देवकुमार की नीयत में खोट नहीं थी. लेकिन जब से उमा ने उस के सामने बेटा न होने का राग अलापना शुरू किया, तब से देवकुमार की नीयत डोलने लगी. भाभी की इसी कमजोरी का लाभ उठा कर देवर देवकुमार अपना उल्लू सीधा करने की सोचने लगा.

एक दिन काम से वापस आ कर देवकुमार जब उमा के पास बैठा तो उमा ने फिर अपने दुखड़े का पुलिंदा खोल दिया, ‘‘पता नहीं, मैं ने ऐसा कौन सा अपराध किया था, जिस का दंड बेटियों के तौर पर मुझे मिल रहा है.’’

देवकुमार को अपना उल्लू सीधा करने की दिशा मिल गई, ‘‘भाभी, बेटा और बेटी तो समान होते हैं, फिर तुम्हें बेटियों से चिढ़ क्यों है.’’

‘‘मुझे बेटियों से चिढ़ नहीं, अपने नसीब से शिकायत है.’’ उमा बोली, ‘‘2 बेटियों में से एक भी बेटा हो गया होता तो आज मेरे कलेजे में आग न लगी होती. कम से कम बुढ़ापे का सहारा और चिता में आग देने वाला भी तो कोई होना चाहिए. बेटा न होने से हमारे बाद तुम्हारे भैया का वंश ही खत्म हो जाएगा.’’

‘‘भाभी, विश्वास रखो,’’ देवकुमार ने आकाश की ओर उंगली उठाई, ‘‘नीली छतरी वाले के घर देर है, अंधेर नहीं. भाभी, लगातार 2 बेटियां होने से तुम खुद को दोषी क्यों मानती हो,’’ देवकुमार ने स्वार्थ की बिसात पर शातिर चाल चली, ‘‘तुम्हारी यह इच्छा जरूरी पूरी होगी.’’

उमा ने उस की आंखों में देखा, ‘‘यह तुम किस आधार पर कह रहे हो?’’

‘‘इसलिए कि शायद तुम्हें पता नहीं कि बेटा हो या बेटी, उस के लिए जिम्मेदार मां नहीं पिता होता है.’’

उमा ने चौंक कर उस की ओर देखा,‘‘मैं समझी नहीं, खुल कर बोलो.’’

‘‘भाभी जमीन को जोत कर उस में जिस पौधे का बीज डाला जाए, वही पौधा उगता है.’’ देवकुमार ने कायदे से समझाया, ‘‘अगर बीज खराब हो तो वह अंकुरित नहीं होता, मिट्टी में ही पड़ा रह कर सड़ जाता है.’’

‘‘हां, सड़ जाता है.’’

‘‘और बीज कमजोर होता है, तो उस से निकला पौधा भी कमजोर होता है न.’’

‘‘हां, होता है.’’

‘‘बस बेटियां होने की भी यही वजह है.’’ देवकुमार ने उमा को अपने शब्दों में समझा कर उस की दुखती रग पर उंगली रखी, ‘‘शिवकुमार भैया अंदर से कमजोर हैं. दरजन भर बच्चे पैदा कर लो, लड़की ही होगी. और तुम लड़के के लिए तरसती रहोगी.’’

उमा गहरी सोच में डूब गई. देवकुमार ने उस की भावनाओं पर एक और चोट की, ‘‘मेरी बात का विश्वास न हो तो किसी पढ़े लिखे समझदार व्यक्ति से पूछ लो.’’

उमा की सोच और गहरी हो गई. उमा को इसी भंवर में फंसा छोड़ कर देवकुमार सोने चला गया. मन ही मन खुश होते हुए वह सोच रहा था कि तीर सही निशाने पर लगा है, असर जरूर देखने को मिलेगा. देवकुमार का सोचना सही था. उस की बात ने उमा के दिल पर गहरा असर किया था.

उमा कुछ देर बाद सोच के भंवर से निकली और उस ने तय किया कि वह पता करेगी कि क्या वास्तव में संतान के लिंग धारण का जिम्मेदार पिता होता है.

अगले ही दिन बीमारी का बहाना बना कर उमा एक लेडी डाक्टर के यहां गई. उस ने डाक्टर से पूछा तो उस ने कहा कि संतान के लिंग निर्धारण का उत्तरदायी पिता होता है. डाक्टर ने उमा को एक्सवाई की थ्योरी भी समझा दी.

लेडी डाक्टर के जवाब से उमा के मन पर छाया अपराधबोध छंट गया. अब पति से उसे चिढ़ हो गई. वह सोचने लगी कि जरूर उसे पता होगा कि वह बेटा पैदा करने लायक नहीं. इसीलिए लड़कियों की हिमायत करता है.

उस दिन जब देवकुमार वापस आया तो उमा बोली, ‘‘तुम ने बता कर बहुत अच्छा किया, हकीकत बता कर मेरी आंखें खोल दीं.’’

‘‘भाभी, यह तो अच्छी बात है.’’

‘‘और अच्छी बात तब होगी, जब तुम यह बताओ कि तुम्हारे भैया का इलाज कहां कराऊं, जिस से हमारे आंगन में भी बेटा खेलेकूदे.’’

देवकुमार समझ रहा था कि भाभी बेटा पैदा करने के लिए उतावली है और उस के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती है. अत: उस ने जाल फैलाया, ‘‘भाभी, भैया का इलाज तो संभव नहीं है, लेकिन तुम जरूर पुत्रवती हो सकती हो.’’

‘‘वो कैसे?’’ उमा की आंखों में उम्मीद की किरण दिखने लगी.

‘‘तुम्हें किसी दूसरे से नियोग करना होगा.’’ वह बोला.

‘‘नियोग में क्या करना होगा?’’ उमा ने पूछा.

‘‘तुम्हें पराए मर्द के साथ मिलन करना होगा.’’ देवकुमार ने बताया.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो’’ उमा आंखें दिखाने लगी, ‘‘ऐसी बात कहते हुए तुम्हें शर्म आनी चाहिए. तुम्हारे भैया ने सुना तो न जाने क्या कर डालेंगे.’’

‘‘तो फिर बेटियों से ही संतोष करो.’’

उमा कई दिन तक सोचती रही. उस ने अपनी इच्छा दबाने का भी प्रयास किया, परंतु नाकाम रही. किसी भी दशा में वह बेटे को जन्म देना चाहती थी. बहुत सोचने के बाद वह पतित होने को तैयार हो गई.

दूसरे दिन उस ने देवकुमार को अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘ मैं तुम्हारी सलाह पर अमल करने को तैयार हूं. सवाल यह है कि यह काम होगा कैसे?’’

‘‘भाभी, काम भी हो जाएगा और किसी को भनक तक नहीं लगेगी.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘मैं हूं न, मेरी नसों में भी वही खून है, जो भैया के शरीर में है. खून वही रहेगा, पर शरीर बदल जाएगा. इस तरह भैया की नस्ल भी खराब नहीं होगी.’’

‘‘सोच कर बताऊंगी.’’

उमा ने काफी सोचा. फिर फैसला किया कि उसे हर हाल में बेटा चाहिए, इस के लिए वह देवकुमार से नियोग करेगी. अगले दिन उमा ने देवकुमार को नियोग करने की सहमति दे दी.

देवकुमार बेताब था तो उमा शर्म से गड़ी जा रही थी. देवकुमार ने उसे बांहों में ले कर प्यार करना शुरू किया तो उस की शर्म जाती रही. फिर वे वासना के सागर में गोते लगाने लगे. देवकुमार के नए जोश और उमा के अनुभव ने ऐसा कमाल दिखाया कि इस पहले मिलन से वे एकदूसरे के दीवाने हो गए.

कई महीने बीतने के बाद उमा को देवकुमार से गर्भ नहीं ठहरा, पर अवैध संबंध का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा. उमा तन से देवकुमार की हुई तो उसे मन से भी उस की होते देर नहीं लगी.

कोरोना महामारी के चलते देश में लौकडाउन हुआ तो 24 मई, 2020 को शिवकुमार पत्नी, बच्चों और देवकुमार के साथ फरीदाबाद से गांव वापस आ गया. फरीदाबाद में तो शिवकुमार के न रहने पर दोनों खूब मस्ती करते थे. लेकिन गांव आने पर शिवकुमार के साथसाथ घर के और लोग भी थे. उन सब की नजरों  से बच कर मिलना आसान नहीं था लेकिन दोनों किसी तरह मिल कर मिलन का आनंद ले लेते थे.

14 जुलाई, 2020 की सुबह शिवकुमार की लाश घर से 200 मीटर दूर भीटे में पड़ी मिली. सुबह गांव की महिलाएं उधर गईं तो देखा, तब उन्होंने इस की जानकारी घरवालों को दी. घरवाले वहां पहुंच कर रोनेबिलखने लगे. गांव के ही शुभम सिंह नाम के व्यक्ति ने पुलिस को घटना की सूचना दी.

सूचना पा कर एसओ मनबोध तिवारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक शिवकुमार की लाश का उन्होंने निरीक्षण किया. उस के सिर पर किसी तेज धारदार हथियार के गहरे निशान थे. आसपास का निरीक्षण करने पर घटना से संबंधित कोई सुराग हाथ नहीं लगा.

पूछताछ के दौरान परिजन कुछ भी बताने से हिचक रहे थे. घटना की सूचना देना तो दूर वह लाश का अंतिम संस्कार करने की तैयारी कर रहे थे. इस पर एसओ को शक हो गया कि मृतक के घर वाले जानते हैं कि किस ने उन के बेटे की हत्या की है.

लेकिन हत्यारा भी कोई अपना करीबी होने के कारण मुंह नहीं खोल रहे हैं. फिलहाल एसओ मनबोध तिवारी ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

पुलिस ने शिवकुमार के पिता उदयभान सिंह की तरफ से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसओ मनबोध तिवारी ने घटना के संबंध में गांव वालों से पूछताछ की तो पता चला कि घटना वाले दिन शाम को शिवकुमार का अपने भाई देवकुमार से झगड़ा हुआ था. इस से पहले भी दोनों भाइयों का एकदो बार झगड़ा हो चुका था. देवकुमार घर से फरार भी था. इसलिए एसओ तिवारी का शक देवकुमार पर पुख्ता हो गया.

17 जुलाई, 2020 को उन्होंने मुखबिर की सूचना पर धनपतगंज से देवकुमार को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म  स्वीकार कर लिया.

घटना से 3 दिन पहले शिवकुमार ने उमा और देवकुमार को आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. जिस के बाद शिवकुमार ने दोनों को मारापीटा. इस के बाद शिवकुमार का देवकुमार से कई बार झगड़ा हुआ.

13 जुलाई को घटना वाली रात भी दोनों में उमा को ले कर झगड़ा हुआ. उसी रात शिवकुमार का अचानक पेट खराब हो गया. उसे दस्त हो गए. वह भीटे (गांव के बाहर स्थित टीले) की तरफ गया. पहले से जाग रहे देवकुमार ने उसे जाते देखा तो उसे भाई को सबक सिखाने का अच्छा मौका मिल गया. उस ने घर में रखी कुल्हाड़ी उठा ली और उस के पीछेपीछे हो लिया.

भीटे में पहुंचते ही देवकुमार ने पीछे से शिवकुमार के सिर पर कुल्हाड़ी से कई वार किए. शिवकुमार जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. चंद पलों में ही उस की मौत हो गई. भाई को मारने के बाद देवकुमार घर से फरार हो गया.

लेकिन उस का गुनाह छिप न सका और वह पकड़ा गया. देवकुमार की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी भी बरामद हो गई. आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद देवकुमार को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

सौजन्य: सत्यकथा, अगस्त, 2020

प्यार की भोथरी धार : प्रेमी को दी मौत की सजा

उत्तर प्रदेश के शहर बरेली का एक थाना है बिशारतगंज. इस्माइलपुर गांव इसी थाना क्षेत्र में आता है. गुड्डू अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा बेटी बेबी और एक बेटा प्रकाश था. बेटी बीए फाइनल में पढ़ रही थी. गुड्डू खेतीकिसानी करता था. इसी से उस के परिवार की गुजरबसर होती थी.

बेबी के घर के पास गांव के 22 वर्षीय अमित गुप्ता की किराने की दुकान थी. बेबी घर का खानेपीने का सामान अमित की दुकान से लाती थी. इसी आनेजाने में वह मन ही मन अमित को पसंद करने लगी थी. लेकिन उस ने अपने मन की बात अमित पर जाहिर नहीं होने दी थी.

अमित के पिता रामकुमार का कई साल पहले निधन हो गया था, मां अभी थी. भाईबहनों से उस का परिवार भरा पूरा था. अमित का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो उस ने परचून की दुकान खोल ली थी.

एक दिन बेबी जब अमित की दुकान पर पहुंची, तो वहां उस के अलावा कोई ग्राहक नहीं था. सौदा लेने के बाद चलते समय उस ने अमित से कहा, ‘‘तुम बहुत सुंदर हो.’’

अकसर ऐसी प्यार भरी बातें चाहने वाले लड़के अपनी प्रेमिका से कहते हैं. जबकि यहां यह बात एक युवती कह रही थी. सुन कर अमित के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. उस ने भी मुसकरा कर कह दिया, ‘‘अच्छा…’’ और बेबी शरमा कर वहां से चली गई.

दुकान पर आतेजाते उसे अमित अच्छा लगने लगा था. काफी दिनों तक तो उस ने अपने दिल पर काबू रखा था. लेकिन उस दिन उस ने हिम्मत कर के अमित से सुंदर लगने वाली बात कह ही दी थी.

अब बेबी इसी ताक में रहने लगी कि जब अमित की दुकान पर कोई ग्राहक न हो तभी सामान लेने जाए. एक दिन उसे यह मौका मिल गया. सामान लेते समय अमित ने उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘उस दिन तुम क्या कह रही थीं?’’

‘‘कुछ भी तो नहीं,’’ बेबी ने भोली बन कर हंसते हुए कहा, ‘‘तुम सच में बड़े भोले हो, तुम्हारी यह अच्छाई मुझे बहुत पसंद है.’’

अपनी प्रशंसा सुन कर अमित खुश हो गया. वह बोला, ‘‘बेबी तुम भी बहुत अच्छी लगती हो मुझे. जब भी तुम आती हो मेरे दिल की धड़कने बढ़ जाती हैं.

‘‘अच्छा…’’ इतना कह कर बेबी मुसकराती हुई वहां से चली गई.

बेबी और अमित करीबकरीब हमउम्र थे. दोनों के बीच बातचीत का दायरा बढ़ता गया और नजदीकियां सिमटती गईं. अमित जब भी बेबी को देखता, खुशी के मारे उस का दिल बागबाग हो उठता. बेबी भी अमित को देख कर खुश हो जाती थी.

धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. जब तक दोनों एकदूसरे को देख नहीं लेते, दिलों को चैन नहीं मिलता था. दोनों के इस प्रेमप्रसंग की किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी. यहां तक कि उन के घर वालों तक को भी नहीं.

बाद में दोनों दुकान के अलावा चोरीछिपे भी मिलने लगे. हालांकि दोनों की जाति अलगअलग थी, इस के बावजूद उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया था. एक बार बेबी ने अमित से पूछ लिया, ‘‘अमित, वैसे तो मैं जातपात में विश्वास नहीं करती, पर समाज से डर कर तुम मुझे कहीं भूल तो नहीं जाओगे?’’

इस पर अमित ने उस के होंठों पर हाथ रख कर चुप कराते हुए कहा, ‘‘बेबी, अगर हमारा प्यार सच्चा है तो चाहे कितनी भी बाधाएं आएं, हम जुदा नहीं होंगे.’’

दोनों ने फैसला किया कि एकदूसरे के लिए ही जिएंगे.

आखिर किसी तरह बेबी के घर वालों को पता चल गया कि उन की बेटी का गांव के ही दूसरी जाति के युवक से प्रेमप्रसंग चल रहा है. इस से घर वालों की चिंता बढ़ गई.

गुड्डू ने पत्नी से कहा कि वह बेटी पर ध्यान दे. उस के पांव बहक रहे हैं. हाथ से निकल गई या कोई ऊंचनीच कर बैठी तो समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. उसे अमित के करीब जाने से मना कर दे.

बेबी की मां ने समझदारी दिखाते हुए यह बात बेटी को सीधे तरीके से न कह कर अप्रत्यक्ष ढंग से समझाई. वह जानती थी कि बेटी सयानी हो चुकी है. सीधेसीधे बात करने से उसे बुरा लग सकता था. वैसे भी बेबी जिद्दी स्वभाव की थी, जो मन में ठान लेती थी, उसे पूरा करती थी.

बेबी अपनी मां की बात को अच्छी तरह समझ गई थी कि वह क्या कहना चाहती है. लेकिन उस के सिर पर अमित के इश्क का भूत सवार था. उसे अमित के अलावा किसी और की बात समझ में नहीं आती थी. उस ने मां से साफसाफ कह दिया कि वह अमित से प्यार करती है और शादी भी  उसी से करेगी.

अमित और बेबी जान चुके थे कि उन के प्यार के बारे में दोनों के घर वालों को पता लग चुका है. दोनों परिवार इस रिश्ते को किसी भी तरह स्वीकार नहीं करेंगे, इस बात को ले कर अमित काफी परेशान रहने लगा था.

बेबी किसी भी तरह अपने मांबाप की बात मानने को तैयार नहीं हुई. अमित और बेबी के प्रेम प्रसंग के चर्चे अब गांव में भी होने लगे थे. बात जब हद से आगे निकलने लगी तो गुड्डू ने बिरादरी में होने वाली बदनामी से बचने के लिए अपने चचेरे भाई सचिन से इस संबंध में बात की. निर्णय लिया गया कि बिना देरी किए बेबी के लिए लड़का तलाश कर उस के हाथ पीले कर दिए जाएं.

इस की भनक जब बेबी को लगी तो उस ने विरोध किया. उस ने कह दिया कि अभी वह पढ़ रही है. पढ़ाई पूरी नहीं हुई है. इसलिए शादी नहीं करेगी. वह पढ़ाई कर के नौकरी करना चाहती है.

लेकिन चाचा सचिन ने उस की बात का विरोध करते हुए कहा, ‘‘पढ़ाई का शादी से कोई संबंध नहीं होता. पढ़ने से तुम्हें ससुराल में भी कोई नहीं रोकेगा.’’

घर वालों ने भागदौड़ कर बदायूं के दातागंज में बेबी की शादी तय कर दी. एक माह बाद यानी 16 जून, 2020 को गांव में बेबी की बारात आनी थी.

जब अमित को इस बात का पता चला, तो उस का दिल टूट गया. उस ने बेबी के साथ भविष्य के जो सपने संजोए थे, बिखरते दिखे. एक दिन अमित बेबी के घर जा पहुंचा. उस ने बेबी के घर वालों को बताया कि वह और बेबी एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.

घर में मौजूद बेबी ने भी अमित के अलावा किसी दूसरे के साथ शादी करने से इनकार कर दिया. लेकिन बेबी के घर वालों के सामने अमित और बेबी की एक नहीं चली. घर वालों ने अमित से बेबी की शादी से साफ मना कर दिया. उन्होंने कहा कि बेबी की शादी अपनी जाति के लड़के से ही करेंगे.

बेबी की शादी में मात्र 2 दिन शेष रह गए थे. 2 दिन बाद प्रेमिका के घर शहनाइयां बजने वाली थीं. अमित को कुछ सूझ नहीं रहा था. उस की हालत पागलों जैसी हो गई थी. अमित की दुकान भी कई दिनों से बंद थी. उस का मन बेबी में अटका हुआ था. वह किसी तरह एक बार बेबी से मिल कर दिल की बात कहना चाहता था. लेकिन बेबी पर उस के घर वालों का कड़ा पहरा था.

बेबी के परिवार में खुशियों का माहौल था. शादी की तैयारियों में घर वालों के साथसाथ रिश्तेदार व गांव के परिचित भी लगे हुए थे. 14 जून की सुबह 5 बजे बेबी अपनी बुआ, तहेरी बहन और ताई के साथ खेतों की ओर निकली.

आधे घंटे बाद बेबी खेत से घर लौट रही थी. वह अपने घर के दरवाजे के पास पहुंची तभी अमित आ गया. उस ने बेबी से साथ चलने को कहा. पर बेबी ने उस के साथ जाने से मना कर दिया. अमित ने अपने प्यार की दुहाई दी, लेकिन बेबी पर कोई असर नहीं हुआ. इस से अमित आपा खो बैठा और साथ लाए तंमचे से बेबी के ऊपर फायर कर दिया.

गोली बेबी की कमर व बांह में लगी, वह चीख कर वहीं गिर पड़ी. बेबी को गोली मारने के बाद अमित तमंचा लहराता हुआ गांव के बाहर भागा. कुछ देर बाद पता चला कि अमित ने बेबी के घर से लगभग 400 मीटर दूर ग्राम प्रधान के घर के पास खाली मैदान में खुद को गोली मार ली है.

सुबहसुबह गांव में गोली चलने की आवाज सुन कर गांव वाले एकत्र हो गए. अमित की रक्तरंजित लाश देख कर गांव में हड़कंप मच गया, जिस ने भी यह दृश्य देखा वह सन्न रह गया. किसी ने अमित के घर वालों को घटना की जानकारी दे दी.

जानकारी मिलते ही अमित के घर वाले घटनास्थल की ओर दौड़े, अमित के सीने में गोली लगी थी. उस की मौत हो चुकी थी. लाश के पास ही तमंचा पड़ा था. अमित की मौत की खबर सुन कर उस की मां रोतेरोते बेहोश हो गई.

चौकीदार नत्थूलाल की सूचना पर थाने से पुलिस टीम के साथ एसआई खेम सिंह गांव इस्माइलपुर पहुंच गए. गांव की सीमा पर भीड़ जुटी थी.

एसआई ने मैदान में युवक की लाश के पास सिपाही तैनात करने के साथ ही घायल बेबी को एंबुलेंस से मझगवां अस्पताल भिजवाया, जहां से उसे जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया.

इस बीच जानकारी होने पर थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह व सीओ आंवला रामप्रकाश भी घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने पुलिस के आला अधिकारियों को भी घटना की जानकारी दे दी. इस पर एसएसपी शैलेश पांडेय व एसपी (देहात) संसार सिंह भी घटनास्थल पर आ गए. फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया गया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. साथ ही गांव वालों से पूछताछ भी की. मृतक व घायल युवती के घर वालों से भी घटना के संबंध में जानकारी हासिल की गई.

युवक के घर वालों ने जहां युवती के घर वालों पर औनरकिलिंग का आरोप लगाया, वहीं युवती के घर वालों ने बताया कि मृतक ने हमारी बेटी को गोली मार कर घायल किया और फिर खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली.

पुलिस ने मौकाएवारदात से 312 बोर का एक तमंचा बरामद किया. इस के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. फोरैंसिक टीम ने भी युवती के दरवाजे के पास से व युवक की लाश के आसपास जांच कर आवश्यक साक्ष्य जुटाए.

बेबी की गंभीर हालत को देखते हुए उसे जिला अस्पताल से एक निजी मिशन अस्पताल में ले जाया गया. इस सनसनीखेज घटना के बाद गांव में तनाव की स्थिति बन गई थी. इसे देखते हुए गांव में पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई.

पुलिस भले ही प्रेमिका को गोली मार कर प्रेमी द्वारा खुदकुशी करने की बात कह रही थी, लेकिन गांव के बहुत से लोगों के गले यह बात नहीं उतर रही थी. उन का कहना था कि यदि अमित अपनी प्रेमिका को गोली मार कर उस के साथ अपना भी जीवन खत्म करना चाहता था तो उस ने खुदकुशी करने के लिए वहां से लगभग 400 मीटर दूर जगह क्यों चुनी.

दूसरी बात खुदकुशी करने वाला तमंचे से गोली अकसर अपनी कनपटी पर मारता है, जबकि अमित के सीने में गोली लगी थी. तमंचा उस के शव से 3 मीटर दूर पड़ा मिला. वहीं खोखा भी एक ही मिला, जबकि गोली 2 चली थीं. गांव में प्रेमप्रसंग में हत्या किए जाने का शक जाहिर किया जा रहा था.

बेबी की मां का कहना था कि प्रेम प्रसंग नहीं था. उन की बेटी व मृतक की बहन पक्की सहेली थीं. नौकरी के लिए फार्म भरने को बेटी ने उसे अपने प्रमाणपत्र दिए थे. मृतक की बहन अब उन्हें नहीं लौटा रही थी. जिन्हें न देने की वजह से दोनों परिवारों में तनातनी थी. बेबी अमित से प्यार नहीं करती थी.

अमित की मां के अनुसार युवती की शादी तय हो जाने व उस के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगाने से अमित मानसिक रूप से परेशान था. कुछ दिन पहले उस ने नींद की गोलियां खा कर भी जान देने की कोशिश की थी. वह बेबी से शादी करना चाहता था. लड़की भी अमित से शादी की जिद पर अड़ी थी. उस के घर वालों ने धमकी दी थी कि तुझे और अमित दोनों को मार देंगे. इस के बाद भी लड़की नहीं मान रही थी.

मां ने बताया कि सुबह अमित के पास वीरपाल प्रधान का फोन आया था. वह उसे बुला रहे थे, वह उसी समय घर से चला गया था. इस के बाद यह घटना हो गई.

वहीं पोस्टमार्टम हाउस पर पहुंचे अमित के बड़े भाई राजबाबू के अनुसार अमित पिछले 2 साल से बेबी के संपर्क में था, 3 माह पूर्व दोनों ने गुपचुप तरीके से कोर्टमैरिज कर ली थी. इस बात की जानकारी घटना से कुछ दिन पहले ही अमित ने घर वालों को दी थी. लेकिन हम ने उस की बात पर विश्वास नहीं किया था.

उधर युवती भी दूसरी जगह शादी नहीं करना चाहती थी. वह भी अमित से शादी की जिद पर अड़ी थी. उस ने अपने घर वालों से कह दिया था कि बारात लौटा दो. यह जानकारी मिलने पर बेबी के घर वालों ने प्रधान से साजिश कर पहले अपनी बेटी और फिर उस के भाई को गोली मार दी.

शाम को पोस्टमार्टम के बाद अमित के घर वालों ने मझगवां-आंवला मार्ग पर उस का शव रख कर हंगामा किया. घर वालों का आरोप था कि अमित की हत्या बेबी के घर वालों ने की है. पुलिस उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं कर रही है.

सूचना पर मौके पर पहुंचे एसडीएम कमलेश कुमार सिंह व सीओ रामप्रकाश ने उन्हें समझाया, लेकिन जब वे नहीं माने तब हलका बल प्रयोग कर उन्हें वहां से हटा दिया.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में अमित द्वारा सल्फास खाने की भी पुष्टि हुई थी. रिपोर्ट के मुताबिक गोली ऐन दिल पर लगी थी, छर्रे आसपास भी धंसे थे. घायल युवती के पिता गुड्डू ने थाने में मृतक अमित व उस के भाइयों के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई.

बेबी के पिता की तहरीर पर पुलिस ने आत्महत्या करने वाले प्रेमी अमित सहित उस के भाइयों राजबाबू, अजय, सुमित, कल्लू व विनोद गुप्ता के खिलाफ जान से मारने की नीयत से हमला करने की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

वहीं एसआई खेम सिंह की ओर से भी मृतक पर अवैध तमंचा रखने तथा खुदकुशी करने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया गया. रिपोर्ट में मृतक पर एकतरफा प्यार करने का भी आरोप लगाया गया था.

इस तरह एक प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत हो गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, अगस्त, 2020

वो नहीं मानी : गलतियों ने दी शीला को सजा

छत्तीसगढ़ का औद्योगिक नगर कोरबा एशिया के नक्शे में अपनी कोयला खदानों, सार्वजनिक क्षेत्र के एल्युमिनियम कारखाने, एनटीपीसी के विद्युत प्लांट के कारण अहम स्थान रखता है. 30 वर्षीय खूबसूरत शीला अपने दूसरे पति दिनेश कंवर और बच्चे के साथ कोरबा के उपनगर कटघोरा में किराए के मकान में रहती थी.

15 नवंबर, 2019 की शाम शीला के मोबाइल पर पति दिनेश कंवर की काल आई. दिनेश ने घबराए स्वर में कहा, ‘‘शीला, तुम कहां हो? बहुत बुरी खबर है.’’

पति की बात सुन कर शीला घबरा गई. वह बोली, ‘‘मैं कटघोरा बसस्टैंड पर हूं. क्या हो गया, जो इतना घबराए हुए हो?’’

‘‘शीला, तुम कहीं मत जाना, मैं आ रहा हूं. नरेश चाचा के लड़के का एक्सीडेंट हो गया है. हमें उन के यहां जाना है.’’ दिनेश ने कहा.

पति की बातें सुन कर शीला कंवर चिंतित हो उठी. वह घर से कोरबा जाने के लिए निकली थी, मगर पति की बातें सुन उस ने अपना इरादा बदल दिया. उस समय शीला के साथ उस की फ्रैंड धनश्री और मीना भी थीं. उस ने दोनों को बताया कि अचानक घर में जरूरी काम आ गया है, इसलिए वह कोरबा नहीं जा पाएगी. वे दोनों चली जाएं.

इस पर धनश्री ने तुनक कर कहा, ‘‘ये क्या बात हुई, छोटी सी बात पर तुम कोरबा जाने का प्रोग्राम कैंसिल कर रही हो. इस से तो पूरा खेल बिगड़ जाएगा.’’

‘‘अरे यार, तुम जानती नहीं हो. दिनेश आजकल छोटीछोटी बातों पर उखड़ जाता है. बातबात में मुझ पर शक करता है. अगर मैं घर नहीं गई तो वह फिर झगड़ा करेगा.’’ शीला ने दोनों फ्रैंड्स को समझाते हुए कहा. इस पर धनश्री बोली, ‘‘अरे यार,  ज्यादा भाव खा रहा है तो छोड़ दे इसे भी.’’

‘‘नहीं यार, वह जैसा भी है मुझे बहुत चाहता है. कमाता कम है मगर दिल से प्यार करता है. ऐसा पति मिलना मुश्किल है. पहले वाला तो मेरी सुनता भी नहीं था, मगर यह सुनता तो है.’’ शीला ने कहा.

‘‘क्या सुनता है?’’

‘‘मेरी हर बात सुनता है. मैं ही उस की नहीं सुनती. तुझे पता है, अपने हाथ और सीने पर उस ने मेरे नाम का टैटू भी बनवाया है. अब तू ही सोच, क्या ऐसा प्यार करने वाला पति फिर मिलेगा? हां, थोड़ा कड़क है, वो चाहता है कि मैं उस के हिसाब से चलूं, घर पर रहूं, कहीं आऊंजाऊं नहीं, मगर…’’

‘‘तू तो पूरी पागल हो गई है.’’ धनश्री ने हंस कर ठिठोली की.

‘‘औरत को हर कदम पर पति की जरूरत होती है. बाप न हो तो बच्चों पर भी गलत असर पड़ता है. हर बात माननी जरूरी नहीं, मगर कुछ तो मानना ही पड़ता है. इसलिए आज तुम लोग जाओ, हम कल मिलते हैं.’’ कह कर शीला ने मीना और धनश्री को कटघोरा बसस्टैंड पर छोड़ कर घर की ओर रुख किया.

शीला कटघोरा के स्टेट बैंक के पास किराए के मकान में रहती थी. उस का दूसरे पति दिनेश कंवर से 3 साल का बेटा अमन था. जब शीला घर पहुंची तो शाम के 5 बज रहे थे. थोड़ी देर बाद घबराया हुआ दिनेश वहां पहुंचा.

दिनेश और शीला ने 4 साल पहले विवाह किया था. शीला अपने पूर्व पति महेश महंत को छोड़ चुकी थी. महेश से उस का 10 साल पहले विवाह हुआ था. वह कटघोरा में कपड़े की दुकान में काम करता था.

लगभग 7 साल तक दोनों की गृहस्थी जैसेतैसे चली और अंतत: शीला ने सामाजिक रूप से महेश महंत से तलाक ले लिया और उस से अलग रहने लगी.

इसी बीच उस की मुलाकात 30 साल के दिनेश कंवर से हुई. दिनेश कटघोरा से बिलासपुर, रायपुर ट्रक चलाता था. वह कोयला खदान में ड्राइवर था. जो भी कमाता, वह सब शीला पर लुटा देता था. दिनेश के दिलफेंक अंदाज के कारण शीला ने उस के साथ मंदिर में शादी कर ली और उस के साथ रहने लगी.

दिनेश घर पहुंचा तो उस ने बाहर से ही आवाज दी, ‘‘शीला कहां हो?’’

पति का तेज स्वर सुन कर शीला घर से बाहर आई तो देखा सामने पति दिनेश और उस का हमउम्र चाचा नरेश खड़े थे.

दिनेश ने कहा, ‘‘चलो, चलते हैं. देखो, चाचा भी आए हैं. बांगो के आगे राजू का एक्सीडेंट हो गया है. जाने के लिए मैं ने बोलेरो मंगाई है.’’

शीला पति की बात सुन गंभीर हो गई. बच्चे को पड़ोसी की देखरेख में छोड़ वह दिनेश के भाई सोनू और चाचा नरेश के साथ बोलेरो में बैठ गई.

बोलेरो संतोष यादव चला रहा था. गाड़ी आगे बढ़ी तो बांगो का घना जंगल शुरू हो गया. करीब 30 किलोमीटर आगे बालागांव के निकट एक जगह दिनेश ने संतोष से कह कर बोलेरो रुकवाई. तभी दिनेश ने बहाने से शीला को भी बोलेरो से उतार लिया.

शीला बाहर आई तो दिनेश कंवर का बोलने का लहजा बदल गया. वह शीला पर चीखा, ‘‘तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. मेरी गैरमौजूदगी में तुम अय्याशी करती हो. मुझे तुम्हारी पलपल की खबर मिल जाती है.’’ वह शीला को गालियां देने लगा.

अचानक माहौल बदला देख शीला घबराई. दिनेश कह रहा था, ‘‘कल दोपहर तुम प्रकाश के साथ थी. बोलो, सच है कि नहीं. मैं…मैं तुम से कितना प्यार करता हूं और तुम बेवफा निकली…’’

यह सुन शीला के चेहरे का रंग फीका पड़ गया, क्योंकि उस की चोरी पकड़ी गई थी.

‘‘मैं आज तुझे बेवफाई की सजा दूंगा.’’ कहते हुए वह बोलेरो में रखी लोहे की रौड उठा लाया और उस के सिर पर 2-3 वार कर दिए. शीला वहीं गिर गई. थोड़ी देर तड़प कर उस की मृत्यु हो गई. पास खड़े चाचा नरेश कोरची और सोनू ने मृत पड़ी शीला को उठाया और बोलेरो में डाला और खुद भी बैठ गए. बोलेरो चालक संतोष यादव यह सब देख रहा था. दिनेश ने उसे पैसों का लालच दे कर साथ मिला लिया था.

गाड़ी में शीला की लाश रख कर ये लोग आगे बढ़े. शीला की लाश को ठिकाने लगाना जरूरी थी. चाचा नरेश ने दिनेश से कहा, ‘‘इस को कहीं दफन कर देते हैं. ऐसे लाश फेंक देंगे तो जरूर पकड़े जाएंगे. मैं ने कहीं सुना है कि लाश दफन करने से चंद दिनों में मिट्टी में मिल जाती है. हम ने इसे दफन कर दिया तो किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’

दिनेश को चाचा की राय अच्छी लगी. उस ने कहा, ‘‘चाचा, एक काम और करते हैं. इस के कपड़े वगैरह भी उतार देते हैं क्योंकि कपड़ों से लाश की शिनाख्त हो सकती है.’’

‘‘ठीक है.’’ चाचा नरेश ने स्वीकृति दी.

कुछ दूर गाड़ी चलने के बाद सलिहाभाटा गांव का बुड़बुड़ नाला आया. वहां पहुंच कर संतोष ने गाड़ी रोक दी तो दिनेश, चाचा नरेश और नाबालिग सोनू ने लाश ठिकाने लगाने की जुगत लगानी शुरू की. उन्होंने नाले में उतर कर एक गड्ढा खोदा ताकि लाश को उस में दफन किया जा सके.

थोड़ी मशक्कत के बाद गड्ढा खुद गया तो शीला की लाश उस गड्ढे में डाल, ऊपर से मिट्टी भर दी. फिर चारों कटघोरा के लिए निकल गए.

19 नवंबर, 2019 को सलिहाभाटा का एक किसान बैजू बुड़बुड़ नाले के पास अपने मवेशी चरा रहा था.

उस की नजर नाले की तरफ गई तो उसे एक इंसान का हाथ दिखाई दिया. बैजू चौंका, उस ने पास जा कर देखा तो उस के होश उड़ गए. वह सचमुच किसी इंसान का ही हाथ था. आसपास दुर्गंध फैली हुई थी.

बैजू भागता हुआ गांव के कोटवार (चौकीदार) लालू के पास पहुंचा और यह जानकारी उसे दी. लालू गांव के कुछ लोगों के साथ घटनास्थल पर पहुंचा तो वहां बुरी तरह बदबू फैली हुई थी, लाश आधी बाहर थी, आधी मिट्टी में दबी हुई थी. कोटवार घटना की जानकारी देने के लिए बांगो थाने के लिए रवाना हो गया.

बांगो थाना कटघोरा से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर है. थाना कोरबा-अंबिकापुर फोरलेन पर सड़क के एक किनारे है. यहां छत्तीसगढ़ का बहुउद्देशीय हसदेव बांगो बांध है, जो पर्यटन के लिहाज से जाना जाता है.

बांगो थाने के टीआई एस.एस. पटेल थाने में ही थे. चौकीदार लालू ने उन्हें नाले के किनारे लाश दबी होने की सूचना दी.

चौकीदार लालू की बात सुन टीआई एस.एस. पटेल पुलिस टीम ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जब वह सलिहाभाटा स्थित बुड़बुड़ नाले के पास पहुंचे तो वहां लोगों का हुजूम लगा हुआ था. टीआई पटेल ने मामले की गंभीरता को समझते हुए एसडीपीओ संदीप मित्तल को पूरी जानकारी दी. वह भी वहां पहुंच गए.

जब मिट्टी हटवाई गई तो गड्ढे में एक महिला की नग्न लाश निकली. वहां से कुछ दूरी पर झाडि़यों में महिला के कपड़े और चप्पल पड़ी थीं. अंदाजा लगाया गया कि कपड़े और चप्पल मृतका के होंगे. सबूत एकत्र करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

मौके पर ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से महिला की लाश की शिनाख्त हो पाती. केवल उस के एक हाथ पर ‘ॐ’ गुदा हुआ था. एसडीपीओ संदीप मित्तल ने इस ब्लाइंड मर्डर को खोलने की जिम्मेदारी टीआई एस.एस. पटेल को दी.

पटेल के सामने कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी थीं. पुलिस ने आसपास के गांवों के लोगों को बुला कर शिनाख्त कराने की कोशिश की. पुलिस ने शव के चेहरे का फोटो ले कर पोस्टर और पैंफ्लेट छपवाए और आसपास के ग्रामीण बाजारों में बंटवाए. पुलिस जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि जिस तरह से हत्या कर के शव दफन किया गया था, उस से जाहिर था मृतका की हत्या कहीं और की गई थी और शव वहां दफनाया गया था.

21 नवंबर को दोपहर में एक महिला बांगो थाने पहुंची. टीआई एस.एस. पटेल से मिल कर उस ने उन्हें पैंफ्लेट देते हुए कहा कि इस में जिस महिला की हत्या की बात कही गई है, वह उस की फ्रैंड शीला कंवर हो सकती है. एस.एस. पटेल ने महिला का नाम पूछा तो उस ने अपना नाम धनश्री बताते हुए कहा कि वह शीला की फ्रैंड है. कुछ दिनों से शीला दिखाई नहीं दे रही है.

पुलिस ने धनश्री को शीला के अन्य फोटोग्राफ्स और कपड़े दिखाए तो उस की आंखों में आंसू छलक आए. क्योंकि वह शीला के ही थे. एक जगह हाथ में ॐ भी लिखा था, जिसे उस ने पहचाना और कपड़ों की भी शिनाख्त कर दी. उस ने बताया, ‘‘सर, 15 नवंबर को हम साथ थे. तब शीला यही कपड़े पहने थी.’’

धनश्री ने टीआई को अपने मोबाइल में वही कपड़े पहने शीला का फोटो दिखाया.

टीआई को लगा कि अब उन के हाथ जो सिरा आ गया है, उस के सहारे वह आसानी से शीला कंवर के हत्यारों तक पहुंच जाएंगे. धनश्री से बातचीत कर के टीआई ने शीला के घर वालों की जानकारी ले ली और पता ले कर जांच प्रारंभ कर दी. पटेल ने धनश्री से शीला के पति का मोबाइल नंबर भी ले लिया था.

उन्होंने शीला के पति दिनेश कंवर का नंबर मिलाया तो वह स्विच्ड औफ था. पुलिस को सब से पहले उसी से पूछताछ करनी थी. दिनेश का फोन नहीं मिला तो शीला के मातापिता को फोन कर के कोरबा जिले के दीपका टाउन बुलाया. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस जब शीला की लाश उन के सुपुर्द करने लगे तो उस के पिता मोहन महंत ने हाथ खड़े कर के कहा, ‘‘साहब, शीला तो हमारे लिए बहुत पहले ही मर चुकी थी.’’

उस ने बताया कि 5 साल पहले शीला ने दिनेश कंवर से प्रेम विवाह कर लिया था. उस के बाद से उन का उस से संबंध विच्छेद हो गया था और सामाजिक परंपरा के कारण वह शीला का अंतिम संस्कार नहीं कर सकते.

पुलिस ने शीला का अंतिम संस्कार अपने खर्चे पर कराया. अंतिम संस्कार के बाद पुलिस दिनेश कंवर की तलाश में जुट गई. पुलिस की क्राइम टीम ने जांच में पाया कि उसका मोबाइल बीचबीच में औन हो रहा था और लगातार उस की लोकेशन बदल रही थी.

ऐसी स्थिति में पुलिस की यह शंका बलवती होती गई कि शीला की हत्या में उस के पति का हाथ हो सकता है. जांच में यह तथ्य भी सामने आ चुका था कि दिनेश कंवर और शीला में अकसर विवाद होता था. शीला तीखे नाकनक्श की सुंदर महिला थी, जिसे कोई भी एक नजर देख फिदा हो जाता.

इसी के चलते उस के कदम बहक गए थे. वह महंगे शौक पाले हुए थी. पुलिस की जांच में यह तथ्य भी सामने आ गया कि उस की दोस्ती कई पुरुषों से थी.

दरअसल, कोरबा का इंडस्ट्रियल एरिया होने की वजह से वहां तमाम ऐसे लोग रहते थे, जिन्हें महिलाओं की जरूरत होती थी. शीला और उस की फ्रैंड्स उन्हीं लोगों के पास जाती थीं.

क्राइम टीम ने आखिरकार 23 नवंबर, 2019 को कोरबा जिले के चोटिया के पास से दिनेश को हिरासत में ले लिया. उसे थाने ला कर टीआई एस.एस. पटेल व एसडीपीओ संदीप मित्तल ने शीला की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने पुलिस को पूरा घटनाक्रम बता दिया.

उस के इकबालिया बयान के अनुसार शीला और दिनेश की मुलाकात लगभग 5 साल पहले हुई थी और वह उसे देखते ही पसंद करने लगा था. धीरेधीरे दोनों के संबंध बने और उन्होंने विवाह कर लिया.

कुछ समय सुखमय बीता, मगर धीरेधीरे शीला का सच उस के सामने आने लगा. उसे उस के कई परिचित बताने लगे कि शीला को तो आज एक पुरुष के साथ देखा था. यह बारबार जानसुन कर वह गुस्से से भर उठता और प्रयास करता कि शीला सिर्फ उस की हो कर रहे. मगर उस की सारी कोशिश बेकार साबित हुईं.

एक साल बाद शीला ने एक बेटे अमन को जन्म दिया. मगर इस के बाद भी शीला नहीं सुधरी. उस का अन्य पुरुषों से मेलजोल बना रहा. घटना के एक दिन पहले दिनेश के एक मित्र ने उसे बताया कि शीला को एक पुरुष के साथ कोरबा में देखा था. उस ने व्यंगपूर्ण शब्दों में कहा, ‘‘यार, तू अपनी बीवी को संभाल नहीं पाता, कैसा मर्द है तू?’’

यह बात दिनेश को चुभ गई. उस ने उसी समय से शीला की हत्या करने की योजना बनानी शुरू कर दी. दिनेश ने अपने हमउम्र चाचा नरेश से मदद मांगी तो वह तैयार हो गया. जब दोनों शीला की हत्या की योजना बना रहे थे, उन की बातें सुन दिनेश का छोटा भाई सोनू भी उस में शामिल हो गया. वह भी अपनी भाभी शीला के चरित्रहीन होने से खुद को अपमानित महसूस किया करता था.

अंतत: योजना बनी कि 15 नवंबर को शीला को जंगल में ले जा कर उस का काम तमाम कर दिया जाए. उसी योजना के अनुसार दिनेश ने बोलेरो किराए पर ले ली. चालक संतोष यादव, जो दिनेश का दोस्त भी था, का सहयोग ले कर उन्होंने शीला की हत्या कर के सलिहाभाटा के बुड़बुड़ नाले में दफन कर दिया.

पुलिस ने दिनेश कंवर के बयान के आधार पर उस के चाचा नरेश, भाई आकाश उर्फ सोनू और बोलेरो चालक संतोष यादव को गिरफ्तार कर लिया. उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें कटघोरा जेल भेज दिया गया. जबकि आकाश उर्फ सोनू को बाल सुधार गृह भेजा गया.

—कथा में आकाश नाम परिवर्तित है

सौजन्यसत्यकथा, जून 2020

 

2 सिपाही, 2 गोली : पत्नी के अवैध सम्बन्ध ने बनाया हत्यारा

रंजिश उस विषबेल की तरह होती है, जो बड़े पेड़ों से भी लिपट जाए तो धीरेधीरे उस के वजूद को लीलने लगती है. दिल्ली पुलिस के 4 मई, 2020 की बात है. मनोज की आंखें खुलीं तो उस ने पास रखे मोबाइल फोन पर नजर डाली. उस समय सुबह के साढ़े 6 बज चुके थे. वह फटाफट उठा और फ्रैश होने चला गया. दरअसल, मनोज दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल था और घर पर रहने के दौरान टहलने जरूर जाता था. उस दिन वह देर से सो कर उठा, इसलिए जल्दबाजी में मौर्निंग वाक पर जाने के लिए तैयारहो गया.

मनोज परिवार सहित हरियाणा के जिला झज्जर के कस्बा बहादुरगढ़ स्थित लाइनपार की वत्स कालोनी में रहता था. मनोज की गली में ही रमेश कुमार भी रहता था. वह रिश्ते में मनोज का चाचा था, लेकिन दोनों हमउम्र थे इसलिए उन की आपस में खूब पटती थी. मनोज चाचा रमेश को साथ ले कर टहलने जाता था.

मनोज तैयार हो कर चाचा रमेश कुमार के यहां पहुंचा, फिर दोनों नजदीक ही स्थित मुंगेशपुर ड्रेन पर पहुंच कर नहर के किनारे टहलने लगे. दोनों अकसर वहीं पर मौर्निंग वाक करते थे. उन्हें वहां पहुंचे कुछ ही देर हुई थी कि उन के पास एक बाइक आ कर रुकी, बाइक पर अंगौछे से अपना चेहरा ढंके 2 युवक बैठे थे.

इस से पहले कि मनोज और रमेश कुछ समझ पाते, बाइक पर पीछे बैठे युवक ने पिस्टल निकाल कर मनोज पर निशाना साधते हुए गोली चला दी. लेकिन रमेश ने फुरती दिखाते हुए मनोज को धक्का दे दिया, जिस से मनोज नीचे गिर गया. लेकिन पिस्टल से चली गोली रमेश के सिर में जा लगी. गोली लगते ही रमेश जमीन पर गिर पड़ा.

एक गोली चलाने के बाद भी बदमाश रुका नहीं, उस ने मनोज पर दूसरी गोली चलाई जो उस के पेट में जा लगी. मनोज को गोली मारने के बाद बाइक सवार फरार हो गए. उधर गोली लगते ही मनोज अपनी जान बचाने के लिए वहां से भागा.

मनोज ने घायलावस्था में ही अपने भाई संदीप को फोन कर के अपने साथ घटी घटना की जानकारी देते हुए तुरंत मौके पर पहुंचने को कहा. संदीप अपने एक दोस्त को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गया. सिर में गोली लगने से रमेश की मौत हो चुकी थी और मनोज पेट में उस जगह को हाथ से दबाए हुए था, जिस जगह गोली लगी थी.

संदीप ने दोस्त की मदद से मनोज को स्कूटी पर बैठाया और इलाज के लिए सिविल अस्पताल ले गया, लेकिन अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों ने मनोज को मृत घोषित कर दिया. इस गोली कांड की सूचना जब पुलिस को मिली तो थाना लाइनपार के थानाप्रभारी देवेंद्र कुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. डीएसपी राहुल देव भी वहां आ गए.

लौकडाउन के समय में एक पुलिसकर्मी और एक अन्य व्यक्ति की दिनदहाड़े हुई हत्या पर जिला पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस के अलावा बहादुरगढ़ क्षेत्र में भी सनसनी फैल गई. लोगों में कोरोना को ले कर पहले से ही भय व्याप्त था, इस दोहरे हत्याकांड पर वे और ज्यादा असुरक्षित महसूस करने लगे.

रमेश कुमार और कांस्टेबल मनोज की हत्या के बाद उन के घरों में कोहराम मच गया. दोनों ही शादीशुदा थे. उन के बीवीबच्चों का रोरो कर बुरा हाल था. पुलिस अधिकारी घर वालों को समझाने की कोशिश कर रहे थे. सूचना पा कर झज्जर से पुलिस कप्तान भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया, इस संबंध में मृतकों के घर वालों से पूछताछ की.

मनोज के भाई संदीप कुमार ने आरोप लगाया कि इस हत्याकांड को इसी कालोनी के रहने वाले फौजी रणबीर सिंह और उस के घर वालों ने अंजाम दिया है. पुलिस कप्तान ने थानाप्रभारी देवेंद्र कुमार को आदेश दिए कि वह केस को खोलने के लिए जरूरी काररवाई करें.

कप्तान साहब ने सीआईए की 2 टीमों को भी हत्यारों का पता लगाने के लिए लगा दिया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने सिविल अस्पताल जा कर दिल्ली पुलिस के जवान मनोज कुमार की लाश का भी मुआयना किया.

थानाप्रभारी देवेंद्र कुमार ने घटनास्थल का मुआयना करने के बाद रमेश कुमार की लाश भी पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पुलिस टीमें तत्परता से इस काम में जुट गईं. चूंकि मृतक सिपाही मनोज कुमार के भाई संदीप ने हत्या का आरोप कालोनी में रहने वाले बीएसएफ के जवान रणबीर सिंह और उस के घर वालों पर लगाया था, इसलिए पुलिस को सब से पहले फौजी रणबीर से पूछताछ करनी थी.

पुलिस टीम जब फौजी रणबीर के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. उस के घर वाले भी पुलिस को सही बात नहीं बता सके. पुलिस को यह पहले ही पता लग चुका था कि रणबीर कुछ दिनों पहले ही छुट्टी ले कर घर आया था.

इस के बाद पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी. उस के घर के बाहर पुलिस की चौकसी बढ़ा दी. इतना ही नहीं, मुखबिरों को भी लगा दिया. फौजी रणबीर की तलाश के साथसाथ पुलिस ने शक के आधार पर आपराधिक प्रवृत्ति के कई लोगों को भी पूछताछ के लिए उठा लिया.उन सभी से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ की गई. कई तरह से की गई पूछताछ के बाद भी उन बदमाशों से काम की कोई जानकारी नहीं मिल सकी तो उन्हें हिदायतें दे कर घर भेज दिया गया.

घटना के 3 दिन बाद मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने फौजी रणबीर को हिरासत में ले लिया. उस से कांस्टेबल मनोज और उस के चाचा रमेश कुमार की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई. उस ने पुलिस से कहा कि मनोज और उस के घर वाले उस से दुश्मनी रखते हैं. वह भला उन दोनों को क्यों मारेगा.

‘‘जब तुम ने उन्हें नहीं मारा तो घर से लापता क्यों हुए?’’ थानाप्रभारी ने पूछा. ‘‘नहीं सर, मैं लापता नहीं हुआ था बल्कि बहादुरगढ़ में किसी से मिलने गया था.’’ फौजी ने सफाई दी.

पुलिस को लगा कि शायद अब यह आसानी से सच्चाई नहीं बताएगा, लिहाजा उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल मनोज कुमार और रमेश की हत्या उस ने खुद तो नहीं की, लेकिन 20 लाख रुपए की सुपारी दे कर उस ने यह काम दूसरे लोगों से कराया था.

इस की वजह यह थी कि मनोज ने रणवीर जीना दुश्वार कर रखा था. कई बार समझाने के बाद भी, उस ने समाज में न तो अपनी इज्जत का ध्यान रखा और न ही रणवीर की. पूरे समाज में उस ने खूब बेइज्जती कराई थी.

फौजी ने इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह अवैध संबंधों की बुनियाद पर रचीबसी निकली—

हरियाणा के जिला झज्जर के कस्बा बहादुरगढ़ के लाइनपार क्षेत्र में स्थित वत्स कालोनी का रहने वाला रणबीर सीमा सुरक्षा बल में कांस्टेबल था. उस की शादी रूबी (परिवर्तित नाम) से हुई थी. बीएसएफ में होने की वजह से वह काफीकाफी दिनों बाद ही घर आ पाता था. इसी वत्स कालोनी में मनोज कुमार भी रहता था, जो दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल था. वह भी शादीशुदा था.

बताया जाता है कि मनोज और रूबी के बीच अवैध संबंध हो गए थे. किसी तरह यह जानकारी रणबीर को हुई तो उस ने न सिर्फ अपनी पत्नी रूबी को बल्कि मनोज को भी बहुत समझाया, लेकिन दोनों ने ही उस की बातों पर अमल नहीं किया.

इस के बाद रणबीर ने पत्नी के साथ सख्ती की, लेकिन वह तो एक तरह से ढीठ हो गई थी. रणबीर भले ही अपनी ड्यूटी पर रहता था, लेकिन उस का ध्यान पत्नी की ओर ही लगा रहता था.

उस के शुभचिंतक फोन पर ही उस की पत्नी की करतूतें उसे बताते रहते थे. रणबीर पत्नी के बारे में सुनसुन कर परेशान हो गया था. लिहाजा उस ने कुछ दिनों पहले पत्नी को तलाक दे दिया था.

फौजी रणबीर से तलाक लेने के बाद रूबी वत्स कालोनी में ही किराए का मकान ले कर रहने लगी. तलाक के बाद वह एक तरह से आजाद हो गई थी. उस ने मनोज से भी संबंध खत्म नहीं किए थे. यह जानकारी फौजी रणबीर को भी मिल चुकी थी.

रणबीर के मन में बस एक बात ही घूम रही थी कि मनोज की वजह से उस के जीवन में अशांति आई थी, तो क्यों न उस को ही ठिकाने लगा दिया जाए. इसी काम के मकसद से कुछ दिन पहले वह छुट्टी ले कर घर आया.

मनोज को ठिकाने लगवाने के लिए उस ने बहादुरगढ़ की लाइनपार स्थित फ्रैंड्स कालोनी में रहने वाले पवन से बात की. पवन मूलरूप से सोनीपत के जौली गांव का रहने वाला था. 2 लाख रुपए में पवन से मनोज की हत्या की बात तय हो गई. फौजी ने उसी समय 5 हजार रुपए उसे एडवांस के तौर पर भी दे दिए.

पवन की दोस्ती पश्चिमी दिल्ली के रघुबीर नगर निवासी तेजपाल उर्फ घूणी से थी. पवन और तेजपाल वैसे तो पेंटर थे, लेकिन पैसों के लालच में मनोज की हत्या करने को राजी हो गए. बातचीत तय हो जाने के बाद पवन और तेजपाल कांस्टेबल मनोज की रेकी करने लगे. उन्होंने उस की हत्या हरियाणा में ही करनी तय की.

रेकी के बाद उन्हें पता चला कि मनोज रोजाना मौर्निंग वाक के लिए मुंगेशपुर ड्रेन पर जाता है. सुबह के समय नहर के किनारे सुनसान रहते हैं, इसलिए दोनों को यही समय ठीक लगा.

4 मई, 2020 को मनोज कुमार अपने दूर के रिश्ते के चाचा रमेश कुमार के साथ सुबह 7 बजे के करीब मुंगेशपुर में नहर किनारे घूमने गया, तभी पवन और तेजपाल मोटरसाइकिल से वहां पहुंचे और उन्होंने मनोज के चक्कर में रमेश को भी मौत के घाट उतार दिया.

फौजी रणबीर से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी दिन अन्य आरोपियों पवन और तेजपाल उर्फ धूणी को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने उन के पास से .32 एमएम की पिस्टल व 7 जीवित कारतूस और वारदात में इस्तेमाल की गई बाइक भी बरामद कर ली.

तीनों आरोपियों के खिलाफ हत्या और हत्या की साजिश रचने का मुकदमा दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी देवेंद्र कुमार ने उन्हें कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. घटना में रूबी की कोई भूमिका सामने नहीं आई थी. मामले की जांच थानाप्रभारी देवेंद्र कुमार कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

सौजन्यसत्यकथा, जून 2020

एक सहेली ऐसी भी : अपनी खुशियों के लिए किया कत्ल

जिला अलीगढ़, उत्तर प्रदेश. तारीख 10 मार्च, 2020. अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क क्षेत्र की कुंवरनगर कालोनी. उस दिन होली थी. कुंवरनगर कालोनी के भूरी सिंह ने दोस्तों और परिचितों के साथ जम कर होली खेली. होली खेलने के बाद वह नहाधो कर सो गया. भूरी सिंह सटरिंग का काम करता था. शाम को सो कर उठने के बाद वह अपनी पत्नी रूबी से यह कह कर कि ठेकेदार से अपने रुपए लेने जा रहा है, घर से निकल गया.

जब वह देर रात तक घर वापस नहीं आया तो पत्नी को उस की चिंता हुई. रात गहराने लगी तो रूबी ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के मोबाइल से पति को फोन किया, लेकिन उस का फोन रिसीव नहीं हुआ.

दूसरे दिन 11 मार्च की सुबह 7 बजे लोगों ने कालोनी से निकलने वाले नाले में एक लाश उल्टी पड़ी देखी. इस जानकारी से कालोनी में सनसनी फैल गई. आसपास के लोग जमा हो गए. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में थाना गांधी पार्क के थानाप्रभारी सुधीर धामा पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए.

इसी बीच भूरी सिंह की पत्नी रूबी को किसी ने नाले में लाश मिलने की जानकारी दी. रूबी तत्काल वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने लाश को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक की शिनाख्त घटनास्थल पर पहुंची उस की पत्नी रूबी व छोटे भाई किशन लाल गोस्वामी ने भूरी सिंह गोस्वामी के रूप में की.

थानाप्रभारी ने इस घटना की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी. कुछ ही देर में एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

पति की लाश देख रूबी बिलखबिलख कर रो रही थी. मोहल्ले की महिलाओं ने उसे किसी तरह संभाला.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.  मृतक के मुंह पर टेप लगा था और उस के हाथपैर रस्सी से बंधे हुए थे.

जांच के दौरान फोरैंसिक टीम ने देखा कि मृतक भूरी की गरदन पर चोट का निशान है. भूरी सिंह की हत्या किस ने और क्यों की, इस का जवाब किसी के पास नहीं था. सवाल यह भी था कि हत्यारे हत्या कर लाश को मृतक के छोटे भाई के घर के पास नाले में क्यों फेंक गए थे?

पुलिस का अनुमान था कि हत्यारे भूरी सिंह की हत्या किसी अन्य स्थान पर करने के बाद लाश को उस के छोटे भाई किशन गोस्वामी के घर के पास फेंक गए होंगे. होली का त्यौहार होने के कारण आवागमन कम होने से हत्यारों को लाश फेंकते किसी ने नहीं देखा होगा. पुलिस को मृतक की जेब से उस का मोबाइल भी मिल गया था.

थानाप्रभारी ने रूबी से उस के पति के बारे में पूछताछ की. रूबी ने बताया, ‘मंगलवार रात 9 बजे पति के मोबाइल पर पेमेंट ले जाने के लिए ठेकेदार का फोन आया था. इस के बाद वह घर से निकल गए और फिर नहीं लौटे. काफी रात होने पर उन्हें फोन किया, लेकिन काल रिसीव नहीं हुई थी.’

परिवार वालों को यह जानकारी नहीं थी कि भूरी सिंह किस ठेकेदार के पास रुपए लेने गया था. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई तो पता चला कि भूरी सिंह की हत्या तार अथवा रस्सी से गला घोटने से हुई थी. मृतक के भाई किशनलाल गोस्वामी की तहरीर पर पुलिस ने मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी, उस के किराएदार डब्बू, डब्बू की पत्नी रजनी और दूसरे किराएदार हरिओम और डब्बू के एक दोस्त आसिफ के विरुद्ध हत्या का केस दर्ज कर लिया.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंध थे. इस का भूरी सिंह विरोध करता था. इस बात को ले कर रूबी और भूरी सिंह में आए दिन झगड़ा होता रहता था. घटना से 10 दिन पहले भी रूबी व किराएदार डब्बू ने मिल कर भूरी सिंह को पीटा था.

घटना वाली रात डब्बू ने अपने दोस्त आसिफ को घर बुलाया और पांचों नामजदों ने मिल कर भूरी की हत्या कर दी. हत्या के बाद लाश को मकान से कुछ दूर नाले में फेंक दिया.

सुबह रूबी ने अपने आप को साफसुथरा दिखाने के लिए पुलिस को कपोलकल्पित कहानी सुनाई थी कि भूरी सिंह ठेकेदार से पेमेंट लेने गया था, जो लौट कर घर नहीं आया.

पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद जांच शुरू कर दी. सीओ (द्वितीय) पंकज श्रीवास्तव ने बताया कि मृतक की लाश से उस का मोबाइल बरामद हुआ था, जिस की मदद से कुछ तथ्य सामने आए. पुलिस केस की गहनता से जांच कर रही थी. नतीजतन पुलिस ने घटना के दूसरे दिन ही इस हत्या की गुत्थी सुलझा ली.

दरअसल, पुलिस ने भूरी सिंह की हत्या के आरोप में मृतक की पत्नी रूबी व उस के किराएदार डब्बू की पत्नी रजनी को हिरासत में ले कर पूछताछ की. शुरुआती पूछताछ में दोनों पुलिस को बरगलाने की कोशिश करने लगीं. लेकिन जब सख्ती हुई तो दोनों एकदूसरे को देख कर टूट गईं और अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

12 मार्च को एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता के दौरान जो कुछ बताया, वह चौंकाने वाला था. दरअसल, सभी समझ रहे थे कि भूरी सिंह की हत्या उस की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंधों के बीच रोड़ा बनने के चलते की गई थी, लेकिन हकीकत कुछ और ही थी, जिसे सुन कर पुलिस ही नहीं सभी हक्केबक्के रह गए.

भूरी सिंह की हत्या का कारण था 2 महिलाओं के समलैंगिक संबंध. रूबी और रजनी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. दोनों ने इस हत्याकांड के पीछे जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी—

भूरी सिंह की हत्या पूरी प्लानिंग के तहत की गई थी. इन दोनों महिलाओं ने ही उस की हत्या की पटकथा एक माह पहले लिख दी थी, जिसे अंजाम तक पहुंचाया होली के दिन गया.

भूरी सिंह की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उस का विवाह पत्नी की बहन यानी साली रूबी से करा दिया गया था. भूरी सिंह दूसरी पत्नी रूबी से उम्र में 11 साल बड़ा था. भूरी सिंह के पहली पत्नी से 3 बेटे व 1 बेटी थी.

भूरी सिंह सीधेसरल स्वभाव का था. वह केवल अपने काम से काम रखता था. ऐसे व्यक्ति का सीधापन कभीकभी उस के लिए ही घातक साबित हो जाता है. भूरी सिंह जैसा था, उस की पत्नी रूबी ठीक उस के विपरीत थी. वह काफी तेज और चंचल स्वभाव की थी.

घर वालों ने उस की शादी भूरी सिंह से इसलिए की थी ताकि बहन के बच्चों की देखभाल ठीक से हो जाए. वह मजबूरी में भूरी सिंह का साथ निभा रही थी. अपनी ओर भूरी सिंह द्वारा ध्यान न देने से जवान रूबी की रातें करवटें बदलते कटती थीं.

भूरी सिंह अपने बड़े भाई के मकान में किराए पर रहता था. पड़ोस में ही रजनी भी किराए के मकान में रहती थी. दोनों हमउम्र थीं. एकदूसरे के यहां आनेजाने के दौरान जानेअनजाने सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो, वीडियो देखतेदेखते दोनों में नजदीकियां हो गईं, फिर दोस्ती गहरा गई.

दोनों के बीच समलैंगिक संबंध बन गए और एकदूसरे से पतिपत्नी की तरह प्यार करने लगीं. रूबी पत्नी तो रजनी पति का रिश्ता निभाने लगी.

दोनों सोशल मीडिया की इस कदर मुरीद थीं कि अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर बिताती थीं. दोनों अपने इस रिश्ते के वीडियो तैयार कर के टिकटौक पर भी अपलोड करती थीं. उन के कई वीडियो वायरल हो चुके थे.

डब्बू और रजनी की शादी को 5 साल हो गए थे. उन का कोई बच्चा नहीं था. इसलिए भी दोनों महिलाओं के रिश्ते और गहरे हो गए. बाद में दोनों ने साथ रहने की कसमें खाते हुए कभी जुदा न होने का फैसला लिया.

इस बीच भूरी सिंह ने अपना मकान बनवा लिया था. रूबी और रजनी के बीच बने संबंध इस कदर प्रगाढ़ हो चुके थे कि घटना से एक साल पहले पति भूरी सिंह से जिद कर के रूबी ने अपने मकान की ऊपरी मंजिल पर एक कमरा और बनवा लिया था. फिर रजनी को उस के पति डब्बू के साथ किराएदार बना कर रख लिया, ताकि उन के संबंधों के बारे में किसी को पता न चल सके.

एक ही मकान में रहने से अब दोनों महिलाएं बिना किसी डर के आपस में मिल लेती थीं. भूरी सिंह सटरिंग के काम के लिए सुबह ही निकल जाता था और देर शाम लौटता था. इस के चलते दोनों सहेलियों में पिछले 2 सालों में गहरे समलैंगिक संबंध बन गए थे. दोनों एकदूसरे से बिना मिले नहीं रह पाती थीं.

इन अनैतिक संबंधों को बनाए रखने के लिए दोनों काफी गोपनीयता बरतती थीं. फिर भी उन की पोल खुल ही गई. एक माह पहले ही भूरी सिंह को अपनी पत्नी रूबी  और किराएदार रजनी के बीच चल रहे अनैतिक संबंधों का पता चल गया. दोनों महिलाओं के बीच चल रहे प्रेम संबंधों का पता चलने के बाद भूरी सिंह के होश उड़ गए. वह परेशान रहने लगा.

उस ने इन अनैतिक संबंधों को गलत बताते हुए विरोध किया. उस ने पत्नी रूबी को समझाया और रजनी से दूर रहने को कहा. इन्हीं संबंधों को ले कर दोनों में विवाद होने लगा. भूरी सिंह ने रूबी को सुधर जाने की हिदायत देते हुए कहा कि वह अपने मकान में रजनी को किराएदार नहीं रखेगा.

दूसरे दिन भूरी सिंह के काम पर जाने के बाद रूबी ने यह बात रजनी को बताई. भूरी सिंह उन के प्रेम संबंधों में बाधक बन रहा था, इस से दोनों परेशान हो गईं. काफी विचारविमर्श के बाद दोनों ने राह के रोड़े भूरी सिंह को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद भी दोनों के संबंध चलते रहे. हां, अब दोनों थोड़ी होशियारी से मिलती थीं.

होली वाले दिन शाम को रूबी और रजनी ने भूरी सिंह को जम कर शराब पिलाई. इस के चलते भूरी सिंह नशे में बेसुध हो गया, तो दोनों ने उस के हाथपैर रस्सी से बांधे और मुंह पर टेप लगाने के बाद रस्सी से गला घोंट कर हत्या कर दी.

रात होने पर दोनों ने लाश को पड़ोस में रहने वाले छोटे भाई किशनलाल के घर के पास नाले में फेंक दिया ताकि शक भाई  के ऊपर जाए. बुधवार को कुंवर नगर कालोनी में नाले में उस का शव मिला.

पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर रूबी ने अफवाह फैला दी कि उस का पति भूरी सिंह ठेकेदार से रुपए लेने की बात कह कर घर से निकला था, लेकिन देर रात तक जब घर वापस नहीं आया, तब उस ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के फोन से काल थी. जबकि हकीकत वह स्वयं जानती थी.

पुलिस ने इस हत्याकांड का खुलासा करने के साथ ही दोनों महिलाओं की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी व टेप बरामद कर लिया. दोनों महिलाओं को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

हालांकि भारतीय दंड संहिता की धारा-377 को वैध कर दिया गया है यानी समलैंगिकता अब हमारे देश में कानूनन अपराध नहीं है, अर्थात आपसी सहमति से 2 व्यस्कों के बीच समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं रहा. लेकिन हमारे देश में अभी तक इसे पूरी तरह अपनाया नहीं गया है. इसी के चलते लोग अपने संबंधों को समाज में स्थापित करने के लिए अपराध की राह पर चल पड़ते हैं. भूरी सिंह हत्याकांड के पीछे भी यही कारण प्रमुख रहा.

दोनों महिलाओं के अनैतिक संबंधों के चलते उन के परिवार उजड़ गए. भूरी सिंह की मौत के बाद उस के चारों अबोध बच्चे अनाथ हो गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यसत्यकथा, मई 2020

देवर की दीवानी

खूबसूरत नैननक्श वाली अमनदीप कौर लखीमपुर खीरी के थाना कोतवाली गोला के अंतर्गत आने वाले गांव रेहरिया निवासी सरदार बलदेव सिंह की बेटी थी. अमनदीप के अलावा बलदेव सिंह की 2 बेटियां और एक बेटा और था. वह उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में नौकरी करते थे. चूंकि वह सरकारी कर्मचारी थे, इसलिए उन्होंने अपने चारों बच्चों की परवरिश अच्छे तरीके से की थी.

अमनदीप कौर खूबसूरत लड़की थी. उसे सिनेमा देखना, सहेलियों के साथ दिन भर मौजमस्ती करना पसंद था. खुद को वह किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं समझती थी.

अमनदीप की आधुनिक सोच को देख कभीकभी बलदेव सिंह भी सोच में पड़ जाते थे. एक दिन अमनदीप की मां सुप्रीति कौर ने पति से कहा, ‘‘बेटी अब सयानी हो गई है. कोई अच्छे घर का लड़का देख कर जल्दी से इस के हाथ पीले कर दो तो अच्छा है.’’

पत्नी की बात बलदेव सिंह की समझ में आ गई. वह अमनदीप के लिए वर की तलाश में लग गए. इस काम के लिए बलदेव सिंह ने अपने रिश्तेदारों से भी कह रखा था. उन के दूर के एक रिश्तेदार ने उन्हें संदीप नाम के एक लड़के के बारे में बताया.

संदीप लखीमपुर खीरी की तिकुनिया कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव रायपुर कल्हौरी के रहने वाले मेहर सिंह का बेटा था. मेहर सिंह के पास अच्छीखासी खेती की जमीन थी. संदीप के अलावा मेहर सिंह की 3 बेटियां व एक बेटा और था.

सन 2001 में मेहर सिंह ने पंजाब में हर्निया का औपरेशन कराया था, लेकिन औपरेशन के दौरान ही उन की मृत्यु हो गई थी. इस के बाद परिवार का सारा भार उन की पत्नी प्रीतम कौर पर आ गया था. उन्होंने बड़ी मुश्किलों से अपने बच्चों की परवरिश की. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, प्रीतम कौर उन की शादी करती रहीं.

संदीप की शादी के लिए बलदेव सिंह की बेटी अमनदीप कौर का रिश्ता आया. यह रिश्ता प्रीतम कौर और परिवार के अन्य लोगों को पसंद आया. तय हो जाने के बाद संदीप और अमनदीप का सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह कर दिया गया. यह करीब 8 साल पहले की बात है.

कहा जाता है कि पतिपत्नी की जिंदगी में सुहागरात एक यादगार बन कर रह जाती है. लेकिन अमनदीप कौर के लिए यह काली रात साबित हुई. उस रात संदीप का जोश अमनदीप के लिए पानी का बुलबुला साबित हुआ, अमनदीप की खामोशी और संजीदगी उस के होंठों पर आ गई. वह नफरतभरी निगाहों से संदीप की तरफ देख कर बिफर पड़ी, ‘‘मुझे तुम से इस तरह ठंडेपन की उम्मीद नहीं थी.’’

पत्नी की बात से संदीप का सिर शर्मिंदगी से झुक गया. वह बोला, ‘‘दरअसल, मैं बीमार चल रहा हूं. शायद इसी कारण ऐसा हुआ. तुम चिंता मत करो, मैं जल्द ही तुम्हारे काबिल हो जाऊंगा.’’ संदीप ने सफाई दी.

इस के बाद संदीप ने अपने खानपान में सुधार किया. शराब का सेवन कम कर दिया, जिस का फल उसे जल्द ही मिला. वह पत्नी को भरपूर प्यार करने लायक बन गया. वक्त के साथ अमनदीप गर्भवती हो गई और उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम दलजीत रखा गया. इस के बाद उस ने एक बेटी सीरत कौर को जन्म दिया. इस वक्त दोनों की उम्र क्रमश: 6 और 4 साल है.

संदीप का परिवार बढ़ा तो खर्च भी बढ़ गया. वह पहले से और भी ज्यादा मेहनत करने लगा. जब वह शाम को थकहार कर घर लौटता तो शराब पी कर आता और खाना खा कर सो जाता. कभीकभी अमनदीप की चंचलता उसे विचलित जरूर कर देती, लेकिन एक बार प्यार करने के बाद संदीप करवट बदल कर सो जाता तो उस की आंखें सुबह ही खुलतीं.

लेकिन वासना की भूख ऐसी होती है कि इसे जितना दबाने की कोशिश की जाए, उतना ही धधकती है. अमनदीप अपनी ही आग में झुलसतीतड़पती रहती.

ऐसे में वह चिड़चिड़ी हो गई, बातबात में संदीप से उलझ जाती. शराब पी कर आता तो दोनों में जम कर बहस होती. कभीकभी संदीप उसे पीट भी देता था.

करीब 2 साल पहले संदीप की मां का देहांत हो गया था. घर पर संदीप, उस की पत्नी अमन और उस के बच्चे व छोटा भाई गुरदीप रहता था.

संदीप तो अधिकतर खेतों पर ही रहता था. वह कभी देर शाम तो कभी देर रात घर लौटता था. अमनदीप के दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे. घर पर रह जाते थे गुरदीप और अमनदीप. गुरदीप अमनदीप को संदीप से लाख गुना अच्छा लगने लगा था. गुरदीप जब भी काम से बाहर जाता तो अमनदीप उस के वापस आने के इंतजार में दरवाजे पर ही खड़ी रहती.

एक दिन अमनदीप जब इंतजार करतेकरते थक गई तो अंदर जा कर चारपाई पर लेट गई. कुछ ही देर में दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो अमनदीप ने दरवाजा खोला और उसे अंदर आने को कह कर लस्तपस्त भाव में जा कर फिर लेट गई.

गुरदीप ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, इस तरह क्यों पड़ी हो? लगता है अभी नहाई नहीं हो?’’

अमनदीप ने धीरे से कहा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है, कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’’

गुरदीप ने जल्दी से झुक कर अमनदीप की नब्ज पकड़ कर देखा. उस के स्पर्श मात्र से अमनदीप के शरीर में झुरझुरी सी फैल गई. नसें टीसने लगीं और आंखें एक अजीब से नशे से भर उठीं. आवाज जैसे गले में ही फंस गई. उस ने भर्राए स्वर में कहा, ‘‘तुम तो ऐसे नब्ज टटोल रहे हो जैसे कोई डाक्टर हो.’’

‘‘बहुत बड़ा डाक्टर हूं भाभी,’’ गुरदीप ने हंस कर कहा, ‘‘देखो न, नाड़ी छूते ही मैं ने तुम्हारा रोग भांप लिया. बुखार, हरारत कुछ नहीं है. सीधी सी बात है, संदीप भैया सुबह काम पर चले जाते हैं तो देर शाम को ही लौटते हैं.’’

अमनदीप के मुंह का स्वाद जैसे एकाएक कड़वा हो गया. वह तुनक कर बोली, ‘‘शाम को भी वह लौटे या न लौटे, मुझे उस से क्या.’’

गुरदीप ने जल्दी से कहा, ‘‘यह बात नहीं है, वह तुम्हारा खयाल रखते हैं.’’

‘‘क्या खाक खयाल रखता है,’’ कहते ही उस की आंखों में आंसू छलछला आए.

भाभी अमनदीप को सिसकते देख कर गुरदीप व्याकुल हो उठा. कहने लगा, ‘‘रो मत भाभी, नहीं तो मुझे दुख होगा. तुम्हें मेरी कसम, उठ कर नहा आओ. फिर मन थोड़ा शांत हो जाएगा.’’

गुरदीप के बहुत जिद करने पर अमनदीप को उठना पड़ा. वह नहाने की तैयारी करने लगी तो वह चारपाई पर लेट गया. गुरदीप का मन विचलित हो रहा था. अमनदीप की बातें उसे कुरेद रही थीं. उस से रहा नहीं गया, उस ने बाथरूम की ओर देखा तो दरवाजा खुला था. गुरदीप का दिल एकबारगी जोर से धड़क उठा. उत्तेजना से शिराएं तन गईं और आवेग के मारे सांस फूलने लगी.

गुरदीप ने एक बार चोर निगाह से मेनगेट की ओर देखा, मेनगेट खुला मिला. उस ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और कांपते पैरों से बाथरूम के सामने जा खड़ा हुआ.

अमनदीप उन्मुक्त भाव से बैठी नहा रही थी. उस समय उस के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था. निर्वसन यौवन की चकाचौंध से गुरदीप की आंखें फटी रह गईं. वह बेसाख्ता पुकार बैठा, ‘‘भाभी…’’

अमनदीप जैसे चौंक पड़ी, फिर भी उस ने छिपने या कपड़े पहनने की कोई आतुरता नहीं दिखाई. अपने नग्न बदन को हाथों से ढकने का असफल प्रयास करती हुई वह कटाक्ष करते हुए बोली, ‘‘बड़े शरारती हो तुम गुरदीप. कोई देख ले तो…कमरे में जाओ.’’

लेकिन गुरदीप बाथरूम में घुस गया और कहने लगा, ‘‘कोई नहीं देखेगा भाभी, मैं ने बाहर वाले दरवाजे में कुंडी लगा दी है.’’

‘‘तो यह बात है, इस का मतलब तुम्हारी नीयत पहले से ही खराब थी.’’

‘‘तुम भी तो प्यासी हो भाभी. सचमुच भैया के शरीर में तुम्हारी कामनाएं तृप्त करने की ताकत नहीं है.’’ कहतेकहते गुरदीप ने अमनदीप की भीगी देह बांहों में भींच ली और पागल की तरह प्यार करने लगा. पलक झपकते ही जैसे तूफान उमड़ पड़ा. जब यह तूफान शांत हुआ तो अमनदीप अजीब सी पुलक से थरथरा उठी.

उस दिन उसे सच्चे मायने में सुख मिला था. वह एक बार फिर गुरदीप से लिपट गई और कातर स्वर में कहने लगी, ‘‘मैं तो इस जीवन से निराश हो चली थी, गुरदीप. लेकिन तुम ने जैसे अमृत रस से सींच कर मेरी कामनाओं को हरा कर दिया.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हें कई बार बेचैन देखा था, भाई से तृप्त न होने पर मैं ने तुम्हें रात में कई बार तन की आग ठंडी करने के लिए नंगा नहाते देखा है. तुम्हारी देह की खूबसूरती देख कर मैं तुम पर लट्टू हो गया था. मैं तभी से तुम्हारा दीवाना बन गया था. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं लेकिन तुम ने कभी मौका ही नहीं दिया.’’

‘‘बड़े बेशर्म हो तुम गुरदीप. औरत भी कहीं अपनी ओर से इस तरह की बात कह पाती है.’’

‘‘अपनों से कोई दुराव नहीं होता, भाभी. सच्चा प्यार हो तो बड़ी से बड़ी बात कह दी जाती है. आखिर भैया…’’

‘‘मेरे ऊपर एक मेहरबानी करो गुरदीप, ऐसे मौके पर संदीप की याद दिला कर मेरा मन खराब मत करो. हम दोनों के बीच किसी तीसरे की जरूरत ही क्या है. अच्छा, अब तुम कमरे में जा कर बैठो.’’

‘‘तुम भी चलो न.’’ कहते हुए गुरदीप ने अमनदीप को बांहों में उठा लिया और कमरे में ले जा कर पलंग पर डाल दिया. अमनदीप ने कनखी से देखते हुए झिड़की सी दी, ‘‘कपड़े तो पहनने दो.’’

‘‘क्या जरूरत है…आज तुम्हारा पूरा रूप एक साथ देखने का मौका मिला है तो मेरा यह सुख मत छीनो.’’

गुरदीप बहुत देर तक अमनदीप की मादक देह से खेलता रहा. एक बार फिर वासना का ज्वार आया और उतर गया.

लेकिन यह तो ऐसी प्यास होती है कि जितना बुझाने का प्रयास करो, उतनी और बढ़ती जाती है. फिर अमनदीप के लिए तो यह छीना हुआ सुख था, जो उस का पति कभी नहीं दे सका. वह बारबार इस अलौकिक सुख को पाने के लिए लालायित रहती थी.

दोनों इस कदर एकदूसरे को चाहने लगे कि अब उन्हें अपने बीच आने वाला संदीप अखरने लगा. हमेशा का साथ पाने के लिए संदीप को रास्ते से हटाना जरूरी था.

25 फरवरी, 2020 की रात संदीप शराब पी कर आया तो झगड़ा करने लगा. उस ने अमनदीप से मारपीट शुरू कर दी. इस पर अमनदीप ने गुरदीप को इशारा किया. इस के बाद अमनदीप ने गुरदीप के साथ मिल कर संदीप को मारनापीटना शुरू कर दिया.

किचन में पड़ी लकड़ी की मथनी से अमनदीप ने संदीप के सिर के पिछले हिस्से पर कई प्रहार किए. बुरी तरह मार खाने के बाद संदीप बेहोश हो गया. लेकिन सिर पर लगी चोट से काफी खून बह जाने से उस की मृत्यु हो गई.

संदीप की मौत के बाद दोनों काफी देर तक सोचते रहे कि अब वह क्या करें. इस के बाद सुबह होने तक उन्होंने फैसला कर लिया कि उन को क्या करना है.

सुबह दोनों बच्चों के साथ वह घर से निकल गए. साढ़े 11 बजे गुरदीप ने अपनी बड़ी बहन राजविंदर को फोन किया कि उस ने और अमनदीप ने संदीप को मार दिया है. कह कर काल काट दी और अपना फोन बंद कर लिया.

इस के बाद राजविंदर ने यह बात रोते हुए अपने पति रेशम सिंह को बताई. दोनों संदीप के मकान पर आए तो वहां संदीप की लाश पड़ी देखी. इस के बाद राजविंदर ने तिकुनिया कोतवाली में घटना की सूचना दी.

सूचना मिलते ही कोतवाली इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मकान में घुसने पर पहले बरामदा था, उस के बाद सामने 2 कमरे और दाईं ओर एक कमरा था. सामने वाले बीच के कमरे में 3 चारपाई पड़ी थीं. कमरे के बीच में जमीन पर संदीप की लाश पड़ी थी. उस के सिर पर गहरी चोट थी, पुलिस ने सोचा कि शायद उसी चोट से अधिक खून बहने के कारण उस की मौत हुई होगी.

कमरे में ही खून लगी लकड़ी की मथनी पड़ी थी. इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने खून से सनी मथनी अपने कब्जे में ले ली. पूरा मौकामुआयना करने के बाद इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद कोतवाली आ कर राजविंदर कौर से पूछताछ की तो उन्होंने पूरी बात बता दी. राजविंदर की तरफ से पुलिस ने अमनदीप और गुरदीप सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस उन की तलाश में जुट गई.

इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद को एक मुखबिर से सूचना मिली कि अमनदीप और गुरदीप सिंह लखीमपुर की गोला कोतवाली के ग्राम महेशपुर फजलनगर में अपने रिश्तेदार देवेंद्र कौर के यहां शरण लिए हुए हैं.

इस सूचना पर पुलिस ने 3 फरवरी, 2020 को सुबह करीब सवा 5 बजे उस रिश्तेदार के यहां दबिश दे कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. कोतवाली ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयान कर दी.

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने हत्यारोपी गुरदीप सिंह और अमनदीप कौर को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, अप्रैल 2020

हक की लड़ाई : बेटे ने मांगा डेढ़ करोड़ का मुआवजा

कहते हैं कि कुछ रिश्ते खून के होते हैं बाकी सब संयोग से बनते हैं, लेकिन खास बात यह भी है कि रिश्तों की यह दुनिया जितनी सुकून देती है, उतनी ही उलझनें भी पैदा करती है. क्योंकि कभी रिश्ते फूलों की तरह महकते हैं तो कभी कांटे बन कर जिंदगी के सुख और चैन ही छीन लेते हैं.

लेकिन संयोग से बने रिश्तों से अलग कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं, जो बनते नहीं, बल्कि किन्हीं वजहों से बनाए जाते हैं. कुछ रिश्ते जताए जाते हैं तो कुछ सिर्फ दिखाए जाते हैं. ऐसा ही एक रिश्ता है एक मां और एक बेटे के बीच का, जिस का राज जब खुला तो मामला उच्च न्यायालय तक पहुंच गया.

आरती महास्कर वह नाम है, जो पिछले कई दिनों से मुंबई में ही नहीं बल्कि देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है. आरती पर आरोप है कि उन्होंने 38 साल पहले अपने ही बेटे श्रीकांत सबनीस को 2 साल की उम्र में चलती ट्रेन में जानबूझ कर छोड़ दिया और अभिनेत्री बनने के सपने लिए मायानगरी मुंबई आ गईं.

अब ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर की कहानी परदे के पीछे से झांक रही है. इतना ही नहीं, वह इंसानी रिश्तों की अहमियत और उन के बदलते मिजाज को ले कर तमाम सवाल खड़े कर रही है.

उन तमाम सवालों का जवाब क्या होगा? इसे कोई नहीं जानता, लेकिन बेटे ने जो सवाल खड़ा कर दिया, उस का जवाब दे पाना आरती महास्कर नाम की उस मां के लिए शायद बेहद मुश्किल हो गया है. क्या है श्रीकांत सबनीस की कहानी? इसे जानने के लिए हमें उस के अतीत के पन्नों को खंगालना होगा, वह कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

उस रोज जनवरी, 2020 की 6 तारीख थी. मुंबई उच्च न्यायालय परिसर में वादकारियों की चहलकदमी बदस्तूर जारी थी. सौम्य, सजीला, गोरा और गठीले बदन वाला बेहद हैंडसम श्रीकांत सबनीस न्यायाधीश ए.के. मेनन के कक्ष में उन के सामने सावधान की मुद्रा में खड़ा था. उस की उम्र यही कोई 40 वर्ष थी.

काला कोट पहने लगभग श्रीकांत की ही उम्र के एडवोकेट संजय कुमार, जो श्रीकांत के वकील थे, हाथों में फाइल लिए अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में जज के सामने खड़े थे. फाइल के भीतर कुछ जरूरी दस्तावेज थे, उन्हीं दस्तावेजों की एकएक प्रति न्यायाधीश मेनन के सामने डेस्क पर रखी थी, जिन्हें जज साहब पढ़ने में तल्लीन थे.

सफेद रंग के पन्नों पर नीली स्याही से उकेरे गए शब्द जैसेजैसे श्री मेनन पढ़ते गए, आश्चर्य और हैरत के महासागर में डूबतेउतराते गए. शायद यह देश की पहली चौंकाने वाली घटना थी, जिस में याचिकाकर्ता श्रीकांत सबनीस ने अपनी सगी मां ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर से मानसिक आघात की क्षतिपूर्ति के बदले डेढ़ करोड़ रुपए का मुआवजा मांगा था.

मां से मांगे गए मुआवजे के पीछे रोंगटे खड़े कर देने वाली जो पीड़ा एक कहानी के रूप में परोसी, वाकई वह किसी रोमांचित कर देने वाली फिल्मी पटकथा से कम नहीं थी.

बात करीब 41 साल पहले सन 1978 के आसपास की है. पुणे (महाराष्ट्र) के दीपक सबनीस के साथ खूबसूरत ऊषा सबनीस दांपत्य सूत्र में बंधी तो उस का जीवन चांदनी की भीनी खुशबू की तरह महक उठा. घर में चारों ओर खुशियां छाई थीं. मां के समान दुलारने वाली सास थीं तो पिता की तरह प्यार देने वाले ससुर.

सखी समान राज छिपाने वाली हरदिल अजीज ननद थी तो सच्चे और वफादार दोस्तों के समान देवर, मिलाजुला कर घर के सदस्यों का भरपूर प्यार ऊषा के खाते में आया था.

कुल मिला कर ऊषा सबनीस वहां बहुत खुश थी. इन्हीं खुशियों के बीच वह एक बेटे की मां बन गई, जिस का नाम श्रीकांत सबनीस रखा. उन के जीवन में श्रीकांत के आने से चारों ओर बहार सी छा गई थी.

दीपक सबनीस पत्नी से खुश थे ही, बेटे के जन्म के बाद वह और निहाल हो गए. भौतिक सुखसुविधाओं की तमाम वस्तुएं घर में थीं, इसलिए उन्हें अब किसी और चीज की लालसा नहीं थी. उसी में वह खुशहाल जीवन जी रहे थे.

इस के विपरीत ऊषा की आकांक्षाएं अनंत थीं. बचपन से ही उस की ख्वाहिश रुपहले परदे पर खुद को दिखाने की थी. ऊषा फिल्मी दुनिया में जाना चाहती थी.

वह जब भी कोई फिल्म देखती तो अभिनेत्री के स्थान पर खुद को रख कर देखती थी. ऐसा कर के ऊषा के मन को भरपूर सुकून मिलता था और मन ही मन वह खूब खुश हुआ करती थी. खुली आंखों से देखे गए सपनों को वह पति से शेयर भी करती.

दीपक उस का मन रखने के लिए हां तो कह देता लेकिन सच्चे दिल से उसे पत्नी की ये बातें अच्छी नहीं लगती थीं. वह कभी नहीं चाहता था कि उस की पत्नी फिल्मी दुनिया की ओर रुख करे.

दीपक सबनीस यही चाहता था कि ऊषा एक कुशल गृहिणी की तरह घर में रह कर सासससुर और बच्चे की सेवा करे लेकिन ऊषा की सोच इस के विपरीत थी. उसे तो हीरोइन बनने की सनक सवार थी. इतना ही नहीं, उस ने ठान लिया था कि उसे अपने सपने पूरे करने के लिए राह की हर मुश्किलों को पार कर के आगे बढ़ते जाना है. इस बात को ले कर अकसर उस का पति दीपक से विवाद भी हो जाया करता था.

बात सन 1981 के सितंबर की है. आंखों में अभिनेत्री बनने के सपने लिए ऊषा 2 साल के बेटे श्रीकांत को अपने साथ ले कर पुणे से मुंबई चल दी थी. उस ने कहीं सुना था कि फिल्मी दुनिया में कुंवारियों को हीरोइन के रूप में तरजीह दी जाती है. हालांकि शरीर की कसावट से वह अविवाहित लगती थी, लेकिन वास्तव में उस के पास तो अपना खुद का बेटा था. बेटे को ले कर वह परेशान थी.

उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने 2 साल के बेटे का क्या करे? मुंबई पहुंच चुकी ऊषा की समझ में जब कुछ नहीं आया तो उस ने अपने दुधमुंहे बेटे श्रीकांत को जानबूझ कर ट्रेन के डिब्बे में किसी निर्मोही की तरह बिलखता छोड़ दिया और सपनों की तलाश में मायानगरी में गुम हो गई.

ट्रेन में 2 साल के रोते बच्चे की आवाज टीटीई के कानों के परदे से टकराई थी. बच्चे की करुण क्रंदन सुन कर टीटीई ने डिब्बे के अंदर झांका तो बच्चे को अकेला रोता देख कर उस का हृदय भर आया था.

ट्रेन में सवार सभी यात्री उस में से उतर कर अपनेअपने गंतव्य स्थान को जा चुके थे. 2 साल का बच्चा ही डिब्बे में अकेला मां की गोद पाने के लिए बिलख रहा था. उस की मां उस के आसपास कहीं नहीं दिख रही थी.

प्लेटफार्म पर मौजूद तमाम यात्रियों से उस ने बच्चे के बारे में पूछताछ की थी, लेकिन किसी ने उस नन्हीं सी जान को नहीं पहचाना. टीटीई की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? अंत में टीटीई ने बच्चे को राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) को सौंप दिया. जीआरपी ने लिखापढ़ी करने के बाद वह बच्चा अनाथाश्रम को सौंप दिया था.

दुधमुंहे श्रीकांत का अपना भरापूरा परिवार था. घर था, प्यार करने वाले दादादादी और पिता थे, फिर भी वह अनाथों की तरह अनाथाश्रम में पहुंच गया था. वहां वह अन्य अनाथ बच्चों की तरह पल रहा था. उन अजनबी चेहरों के बीच नन्हा श्रीकांत अपनों को तलाशता रहता. उन में उस का अपना कोई नहीं था. अनजान और अजनबी चेहरों को देख कर वह अकसर रोता ही रहता था.

अगले दिन स्थानीय अखबारों में नन्हें श्रीकांत के ट्रेन में पाए जाने की खबर प्रमुखता से प्रकाशित की गई थी. समाचारपत्रों के माध्यम से लावारिस श्रीकांत की तसवीर राजस्थान के एक दंपति ने भी देखी. उस दंपति की अपनी कोई औलाद नहीं थी, जिस के बाद उस दंपति ने श्रीकांत को गोद ले लिया.

बाद में यह जानकारी श्रीकांत की नानी को मिली तो वह तड़प कर रह गईं. उन्होंने राजस्थान के उस दंपति से श्रीकांत को मांगा तो उन्होंने बच्चा देने से इनकार कर दिया. तब नानी ने कोर्ट की शरण ली. आखिर उन्होंने 4 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ कर राजस्थानी दंपति से श्रीकांत को हासिल कर लिया. उस समय श्रीकांत करीब 6 साल का हो चुका था. इस के बाद वह अपनी नानी के पास ही पलाबढ़ा.

तकदीर का खेल देखिए, जिस मजबूत वृक्ष के सहारे श्रीकांत को घनी छाया मिल रही थी, वही उस से सदा के लिए छिन गई. सन 1991 में उस की नानी सदा के लिए दुनिया छोड़ गईं. नानी के देहांत के बाद वह अपनी मौसी आशा के साथ रहने लगा. अब तक श्रीकांत की जिंदगी खानाबदोश की जिंदगी हो गई थी.

मौसी आशा से उसे पिछली जिंदगी की सारी सच्चाई पता चली तो श्रीकांत का कलेजा फट गया. मां पर उसे काफी गुस्सा आया लेकिन वह नहीं जानता था कि इस वक्त उस की मां कहां हैं? लेकिन मन ही मन उस ने ठान लिया कि मां को एक न एक दिन जरूर ढूंढ़ निकालेगा. तब उस से अपनी त्रासद जिंदगी के एकएक पल का हिसाब मांगेगा.

नानी के बाद सहारा बनी मौसी आशा ने श्रीकांत को एक नई जिंदगी दी. सन 2006 में उन्होंने श्रीकांत की शादी करा दी. नई जिंदगी की शुरुआत श्रीकांत ने अपने तरीके से की. वह बतौर एक मेकअप आर्टिस्ट अपने पैरों पर मजबूती से खड़ा हो गया और मां की तलाश में पुणे से मुंबई आ गया.

मुंबई के जुहू में किराए का कमरा ले कर पत्नी के साथ रहने लगा. वह जानता था कि उस की मां मुबंई में रहती है. दिनरात वह यही कोशिश करता था कि किसी तरह उस की मां से मुलाकात हो जाए.

आखिर श्रीकांत की यह इच्छा भी पूरी हो गई. सन 2017 में श्रीकांत सबनीस को सोशल मीडिया की मदद से किसी तरह मां का पता चल गया. वह उस तक पहुंचा था. लेकिन मां की सच्चाई जान कर वह हैरान रह गया था. मां ऊषा सबनीस से अब आरती महास्कर बन चुकी थी और किसी धनाढ्य उदय महास्कर से शादी कर के अपना संसार बसा चुकी थी. ऊषा से आरती महास्कर का चोला ओढ़े ऊषा ने पति से अपना अतीत छिपा लिया था.

उस ने यह बात दूसरे पति से कभी नहीं बताई थी कि पुणे के रहने वाले दीपक सबनीस से उस की शादी हुई थी. उस से अपना एक बेटा भी है, जिसे उस ने हीरोइन बनने की लालसा में मुंबई की ट्रेन में लावारिस छोड़ दिया था.

आरती महास्कर उर्फ ऊषा सबनीस ने यह राज अपने सीने में हमेशा के लिए दफन कर लिया था और उदय महास्कर के साथ नई जिंदगी की पारी शुरू कर दी थी. बाद के दिनों में उस से 2 बच्चे भी हुए, जो आज भी हैं.

कहते हैं, ठान लो तो पत्थर के सीने से भी दूध निकाल सकते हैं. श्रीकांत ने ऐसा ही कुछ किया था. मौसी आशा द्वारा बताई अतीत को सच साबित करने के लिए श्रीकांत ने सोशल मीडिया का सहारा लिया और साथ ही अपने परिचितों से अपनी मां का पता लगाने का आग्रह भी किया. उस की मेहनत रंग लाई. डेढ़ साल बाद यानी सितंबर, 2018 में आखिरकार श्रीकांत ने मां ऊषा उर्फ आरती महास्कर का मोबाइल नंबर ढूंढ ही लिया.

उस ने मां से बात की. लेकिन मां आरती महास्कर ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. उस ने मां को याद दिलाने के लिए 38 साल पहले घटी पूरी घटना विस्तार से बताई तब जा कर उस की मां ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर ने यह तो स्वीकार किया कि वह उसी का बेटा है.

38 सालों से सीने में दबा राज अचानक सामने आया तो आरती महास्कर विचलित सी हो गई. वह सोच नहीं पा रही थी कि वह इस राज को राज कैसे रखेगी. बच्चों के सामने जब यह सच्चाई खुल कर आएगी तो क्या होगा? यह सोच कर आरती महास्कर कांप गई थी.

इस से पहले कि आरती की सच्चाई खुल कर सब के सामने आती, उस ने पति उदय महास्कर को सारी सच्चाई बता दी. किसी तरह पतिपत्नी ने मामला आपस में फिलहाल सुलझा लिया था. एक दिन आरती और उदय महास्कर ने श्रीकांत को अपने पास बुलाया और उसे समझाया कि यह बात उन के बेटों से कभी नहीं बताएगा कि वह उन्हीं का बेटा है, नहीं तो उन के घर में भूचाल आ जाएगा.

श्रीकांत को मां और सौतेले पिता से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वे उसे अपना बेटा नहीं स्वीकारेंगे. मां के इनकार से उस का कलेजा छलनीछलनी हो गया था. उसी समय उस ने फैसला किया कि वह मां को इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगा.

38 सालों से जिस तरह वह अपनों के होते हुए भी उन के प्यार के लिए तरसा है, अनाथों की तरह यहांवहां जीया है, उन सब का हिसाब उन से जरूर लेगा. उस के बाद श्रीकांत मां के पास से लौट आया और मुंबई हाईकोर्ट की शरण में जा पहुंचा.

6 जनवरी, 2020 को श्रीकांत ने न्यायाधीश ए.के. मेनन की अदालत में एक याचिका दायर की. याचिका में उस ने लिखा था कि 38 साल पहले सन 1981 में मां ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर ने मुझे मुंबई (तब बंबई) स्टेशन पर ट्रेन में छोड़ दिया था.

मां भी यह मान चुकी थी कि ट्रेन में वह उसे छोड़ गई थी. मां ने यह तो माना कि वह उस का बेटा है. यह भी बताया कि कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों के चलते उसे छोड़ना पड़ा था, लेकिन वह अब मिलना नहीं चाहती.

तब मैं ने वहीं जा कर मां और अपने सौतेले पिता उदय महास्कर से मुलाकात की. वहां उन दोनों ने कहा कि वह अपनी सच्चाई उन के बच्चों के सामने नहीं बताए. मैं एक तो पहले से ही परेशान था, लेकिन अपनी मां और सौतेले पिता की यह शर्त सुन कर और ज्यादा परेशान हो गया.

याचिका में श्रीकांत ने कहा कि कोर्ट मां को मुझे अपना बेटा घोषित करने और यह ऐलान करने का आदेश दे कि उस ने 2 साल की उम्र में उसे छोड़ दिया था. मैं ने बरसों तक मानसिक आघात सहा है और असुविधाओं को झेला है.

मां से बिछुड़ने पर जिंदगी दर्दभरी हो गई. मां की ममता को अनाथों की तरह तरसा है. मातापिता के होते हुए भी अनाथों की तरह रहा हूं. तब तक भिखारी की तरह जीना पड़ा, जब तक अपनी नानी के पास नहीं पहुंच गया. जिस ममता के लिए मैं तरसा हूं, मुझे बेटे का दरजा न देने के एवज में डेढ़ करोड़ का मुआवजा दें.

याचिकाकर्ता श्रीकांत सबनीस ने आगे बताया कि मैं अपने अतीत से बेखबर था. मेरी मौसी ने मुझे अतीत की पूरी हकीकत बयान की.

इस के बाद सोशल मीडिया की मदद से किसी तरह मैं अपनी मां ऊषा तक पहुंचा, लेकिन अब मां ऊषा सबनीस से आरती महास्कर बन चुकी थी और अपने दूसरे पति उदय महास्कर के साथ संसार बसा चुकी थी. अपनी पहचान बताने के बावजूद आरती महास्कर ने उसे सब के सामने बेटा स्वीकारने से इनकार कर दिया.

इसी के बाद श्रीकांत ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और पिछले 38 साल तक झेले मानसिक संत्रास के लिए डेढ़ करोड़ रुपए के मुआवजे की भी मांग की.

इस घटना ने देश भर में सनसनी पैदा कर दी थी. इस के बाद श्रीकांत सबनीस और आरती महास्कर के बीच जंग शुरू हो गई थी. यह मामला अभी भी न्यायालय में चल रहा है. कथा लिखे जाने तक मुकदमे में काररवाई जारी थी.

—कथा सोशल मीडिया पर आधारित