Maharashtra Crime : खाने में जहर खिलाकर पति को मार डाला

Maharashtra Crime : जब महिलाएं पति की व्यस्तता या किसी मजबूरी की वजह से अन्य पुरुष से संबंध बनाती हैं, तब उन्होंने कल्पना भी नहीं की होती है कि यह उन की बरबादी की शुरुआत है. सेना के जवान संजय की पत्नी शीतल ने भी यही किया. नतीजा यह निकला कि उस का पति संजय…

38 वर्षीय संजय भोसले महाराष्ट्र के जनपद सतारा के गांव एक्सल का रहने वाला था. उस के पिता पाडूरंग भोसले की जो थोड़ीबहुत खेती की जमीन थी, उस की उपज से वह परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. गांव में उन की काफी इज्जत और प्रतिष्ठा थी. वह सीधेसरल स्वभाव के व्यक्ति थे. संजय भोसले एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस की नौकरी भारतीय थल सेना में बतौर ड्राइवर लग गई थी. पुणे में 6 माह की ट्रेनिंग के बाद उस की पोस्टिंग हो गई थी. संजय की नौकरी लग चुकी थी, इसलिए मातापिता उस की शादी करना चाहते थे.

मराठी समाज में जब लड़की शादी योग्य हो जाती है तो लड़की वाले लड़के की तलाश में नहीं जाते, बल्कि लड़के वालों को ही लड़की की तलाश करनी होती है. इसलिए पाडूरंग भोसले भी बेटे संजय के लिए लड़की की तलाश में जुट गए. उन्होंने जब यह बात अपने नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों में चलाई तो उन के एक रिश्तेदार ने शीतल जगताप का नाम सुझाया. 28 वर्षीय शीतल पुणे शहर के तालुका बारामती, गांव ढाकले के रहने वाले बवन विट्ठल जगताप की बेटी थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वह उच्चशिक्षित भी थी. वह डी.फार्मा कर चुकी थी. पाडूरंग भोसले ने बवन विट्ठल से मुलाकात कर अपने बेटे संजय के लिए उन की बेटी शीतल का हाथ मांगा.

संजय पढ़ालिखा था और सेना में नौकरी कर रहा था, इसलिए विट्ठल ने सहमति दे दी. फिर घरवालों ने शीतल और संजय की मुलाकात कराई. हालांकि संजय शीतल से 10 साल बड़ा था, लेकिन वह सरकारी मुलाजिम था, इसलिए शीतल ने उसे पसंद कर लिया. बाद में सामाजिक रीतिरिवाज से अक्तूबर 2008 में दोनों का विवाह हो गया. जहां संजय शीतल को पा कर अपने आप को खुशनसीब समझ रहा था, वहीं शीतल भी मजबूत कदकाठी वाले फौजी संजय से शादी कर के गर्व महसूस कर रही थी. लेकिन शीतल का यह वहम शीघ्र ही धराशायी हो गया. शीलत के हाथों की मेंहदी का रंग अभी छूटा भी नहीं था कि संजय की छुट्टियां खत्म हो गईं. अपनी नईनवेली दुलहन शीलत को उस के मायके छोड़ कर संजय को अपनी ड्यूटी पर जाना पड़ा. जबकि शीतल चाहती थी कि संजय उस के पास कुछ दिन और रहे.

एक खतरनाक इलाके में पोस्टिंग होने के कारण संजय को बहुत कम छुट्टी मिलती थी. ऐसे में शीतल को ज्यादातर समय अपने मायके और ससुराल में ही बिताना पड़ता था. साल दो साल में जब भी संजय को छुट्टी मिलती तभी वह घर आ पाता था. इस बीच शीतल एक बच्चे की मां बन गई थी. आज के जमाने में कोई भी पत्नी अपने पति से दूर नहीं रहना चाहती. लेकिन किसी मजबूरी के चलते उसे समझौता करना पड़ता है. यही हाल शीतल का भी था. उसे अपने मन और तन की प्यास को दबाना पड़ा था. 8 साल इसी तरह बीत गए. इस के बाद संजय का ट्रांसफर पुणे के सेना कैंप में हो गया. शीतल के लिए यह खुशी की बात थी. यहां उसे रहने के लिए सरकारी आवास भी मिल गया था, सो संजय शीतल को पुणे ले आया.

पति के संग रह कर शीतल खुश तो जरूर थी. लेकिन वह खुशी अभी भी उसे नहीं मिल रही थी, जो एक औरत के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है. यहां भी संजय पत्नी को पूरा समय नहीं दे पाता था. भटकने लगा शीतल का मन हालांकि शीतल 10 वर्षीय बच्चे की मां थी. लेकिन हसरतें अभी भी जवान थीं, जो पति के संपर्क के लिए तरस रही थीं. शीतल का दिन तो बच्चे और घर के कामों में गुजर जाता था लेकिन रात उस के लिए पहाड़ सी बन जाती. एक कहावत है कि नारी सहनशील और बड़े ही धीरज वाली होती है. लेकिन थोड़ी सी सहानुभूति पाने पर वह बहुत जल्दी बहक भी जाती है और उस का फायदा कुछ मनचले लोग उठा लेते हैं.

यही हाल शीतल का भी हुआ. उस के कदम बहक गए. जिस का फायदा योगेश कदम ने उठाया. वह उस की निजी जिंदगी में कब आ गया, इस का शीतल को आभास ही नहीं हुआ. संजय को जो सरकारी क्वार्टर मिला था, किसी वजह से 3 साल बाद उसे वह छोड़ना पड़ा. वह अपनी फैमिली ले कर पुणे के नखाते नगर स्थित अंबर अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल के फ्लैट में आ गया. जिस फ्लैट में संजय भोसले अपनी पत्नी और बच्चे को ले कर रहने के लिए आया था. उसी के ठीक सामने वाले फ्लैट में योगेश कदम रहता था. वह एक कैमिकल कंपनी में नौकरी करता था. पड़ोसी होने के नाते पहले ही दिन दोनों का परिचय हो गया. बाद में योगेश का संजय के यहां आनाजाना शुरू हो गया.

अविवाहित योगेश कदम ने जब से शीतल को देखा था, तब से वह उस का दीवाना हो गया था. ऐसा ही हाल शीतल का भी था. जबजब वह योगेश कदम को देखती, उस के मन में एक हूक सी उठती थी. शारीरिक रूप से भी योगेश कदम उस के पति संजय भोसले से ज्यादा मजबूत था. जबजब दोनों की नजरें एकदूसरे से टकरातीं, दोनों के दिलों में हलचल सी मच जाती थी. उन की नजरों में जो चमक होती थी, उसे अच्छी तरह से महसूस करते थे. यही कारण था कि उन्हें एकदूसरे के करीब आने में समय नहीं लगा. योगेश कदम यह बात अच्छी तरह से जानता था कि शीतल अकसर घर में अकेली रहती है. बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद और कभीकभी संजय भोसले की नाइट ड्यूटी लग जाने पर योगेश को शीतल से बात करने का मौका मिल जाता था.

बाद में उस ने शीतल के पति संजय से भी दोस्ती बढ़ा ली, जिस के बहाने वह जबतब शीतल के घर आनेजाने लगा. इस तरह शीतल और योगेश के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. जब एक बार मर्यादा की सीमा टूटी तो टूटती ही चली गई. जब भी शीतल और योगेश कदम को मौका मिलता, अपने तनमन की प्यास बुझा लेते थे. योगेश कदम से मिलन के बाद शीतल खुश रहने लगी. उस के चेहरे का रंगरूप बदल गया. वह योगेश के प्यार में इतनी दीवानी हो गई थी कि अब वह पति संजय भोसले की उपेक्षा भी करने लगी. पत्नी के इस बदले रंगरूप और व्यवहार को पहले तो संजय समझ नहीं पाया. लेकिन जब तक समझ पाया, तब तक काफी देर हो चुकी थी.

मामला नाजुक था. लिहाजा एक दिन संजय ने पत्नी को काफी समझाया मानमर्यादा और समाज की दुहाई दी, लेकिन शीतल पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. पहले तो शीतल घर में ही योगेश के साथ रंगरलियां मनाती थी लेकिन जब संजय ने उस पर निगाह रखनी शुरू कर दी तो वह प्रेमी के साथ मौल और रेस्टोरेंट वगैरह में आनेजाने लगी. जब यह बात संजय को पता चली तो उस ने पत्नी पर सख्ती दिखानी शुरू कर दी. तो इस से शीतल बगावत पर उतर आयी. नतीजा मारपीट तक पहुंच गया. दोनों के बीच अकसर रोजाना ही झगड़ा होता. रोजरोज की कलह से शीतल भी उकता गई. लिहाजा उस ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को ही ठिकाने लगाने की योजना बना ली,

लेकिन किसी कारणवश यह योजना सफल नहीं हो सकी. पत्नी की हरकतों से तंग आ कर आखिरकार संजय भोसले ने कहीं दूर जा कर रहने का फैसला किया. यह करीब 5 महीने पहले की बात है. बनने लगी बरबादी की भूमिका साल 2019 के अक्तूबर माह में एक माह की छुट्टी ले कर संजय भोसले ने अपना घर बदल दिया. वह पत्नी और बच्चे को ले कर पुणे के नखाते कालेबाड़ी स्थित एक सोसाइटी में आ गया. लेकिन उसे यहां भी राहत नहीं मिली. शीतल के व्यवहार में जरा भी परिवर्तन नहीं आया. बच्चे के स्कूल और पति के ड्यूटी पर जाने के बाद शीतल फोन कर योगेश को फ्लैट पर बुला लेती थी. किसी तरह यह जानकारी संजय को मिल जाती थी. पत्नी की हठधर्मिता से वह इस प्रकार टूट गया कि उस ने शराब का सहारा ले लिया. शराब के नशे में वह पत्नी को अकसर मारतापीटता था.

इस के अलावा अब वह कभी भी वक्तबेवक्त घर आने लगा, जिस से शीतल और योगेश के मिलनेजुलने में परेशानियां खड़ी हो गईं. इस से छुटकारा पाने के लिए शीतल ने फिर वही योजना बनाई, जो पहले बनाई थी. मौका देख कर शीतल ने योगेश कदम से कहा, ‘‘योगेश तुम अगर मुझ से प्यार करते हो और मुझे पूरी तरह अपना बनाना चाहते हो तो तुम्हें संजय के लिए कोई कठोर कदम उठाना होगा, मतलब उसे हम दोनों के बीच से हटाना पड़ेगा.’’ योगेश कदम भी यही चाहता था. वह इस के लिए तुरंत तैयार हो गया. 8 नवंबर, 2019 की सुबह करीब 5 बजे शिवपुर पुलिस चौकी पर तैनात एसआई समीर कदम को जो सूचना मिली उसे सुन कर वह चौंके.

सूचना देने वाले एंबुलेंस ड्राइवर सूफियान मुश्ताक मुजाहिद, निवासी गांव बेलु, जनपद पुणे ने उन्हें बताया कि शिवपुर टोलनाका क्रौस पुणे सतारा हाइवे पर स्थित होटल गार्गी और कंदील के बीच सर्विस रोड पर एक युवक बुरी तरह घायल पड़ा है. एसआई समीर कदम ने बिना किसी विलंब के इस मामले की जानकारी रायगढ़ थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े के अलावा पुलिस कंट्रोलरूम को दी और अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर एसआई अभी वहां का मुआयना कर ही रहे थे कि थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े, एसपी संदीप पाटिल और एएसपी अन्नासो जाधव मौकाएवारदात पर आ गए. तब तक वहां पड़ा युवक मर चुका था. उसे देख कर मामला रोड ऐक्सीडेंट का लग रहा था. इसलिए घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर शव पोस्टमार्टम के लिए पुणे के ससून अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस को घटना से एक मोबाइल फोन, ड्राइविंग लाइसेंस और एक डायरी मिली, जिस से पता चला कि मृतक का नाम संजय भोसले है. पुलिस ने फोन से उस की पत्नी शीतल का फोन नंबर हासिल कर के उसे पुलिस चौकी शिवपुर बुला लिया. संजय भोसले की पत्नी शीतल ने संजय भोसले के मोबाइल फोन और ड्राइविंग लाइसेंस को पहचान लिया और दहाड़े मारमार कर रोने लगी. पूछताछ में शीतल ने कहा कि उसे नहीं पता है कि संजय घटनास्थल तक कैसे पहुंच गए. आखिर सच आ ही गया सामने शीतल ने आगे बताया कि कल रात उन्होंने परिवार के साथ खाना खाया था. रात 10 बजे के करीब उसे और बच्चे को सोने के लिए बेडरूम में भेज कर खुद हाल में सो गए थे. इस के बाद क्या हुआ, वह कुछ नहीं जानती.

मामला काफी उलझा हुआ था. जांच अधिकारी ने उस समय तो शीतल को घर जाने दिया था. लेकिन उन्होंने उसे क्लीन चिट नहीं दी. उन्हें शीतल के घडि़याली आंसुओं पर संदेह था. बाकी की रही सही कसर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पूरी कर दी. रिपोर्ट में बताया गया कि मामला दुर्घटना का नहीं है, उसे सल्फास नामक जहरीला पदार्थ दिया गया था, जिस का सेवन तकरीबन 12 घंटे पहले किया गया था. यह जहर कहां से आया, क्यों आया यह जांच का विषय था. पुलिस टीम ने जब गहराई से जांचपड़ताल की और शीतल के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स देखी तो तो वह पुलिस के रडार पर आ गई.

पुलिस ने जब शीतल से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और अपना गुनाह कबूल कर के प्रेमी योगेश कदम और उस के सहयोगियों का नाम बता दिए. उस ने बताया कि जिस जहरीले पदार्थ से संजय की मौत हुई, वह जहर 7 नवंबर, 2019 को योगेश कदम अपनी कंपनी से लाया था. उस ने वही जहर संजय के खाने में मिला दिया था. जहर खाने से जब उस की मौत हो गई तब उस ने योगेश को वाट्सएप मैसेज भेज कर जानकारी दे दी थी. अब समस्या संजय के शव को ठिकाने लगाने की थी. योगेश ने अपने 2 दोस्तों मनीष कदम और राहुल काले के साथ मिल कर इस का बंदोबस्त पहले ही कर रखा था. उन्होंने एक कार किराए पर ली, उस कार से योगेश रात 2 बजे के करीब शीतल के घर पहुंचा और अपने दोस्तों के साथ संजय भोसले के शव को कार में डाल लिया,

जिसे ये लोग यह सोच कर पुणे सतारा रोड की सर्विस लेन पर डाल आए कि मामला दुर्घटना का लगेगा, लेकिन इस में वह कामयाब नहीं हो सके. शीतल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने मामले के अन्य अभियुक्तों की धड़पकड़ तेज कर दी और जल्दी ही संजय भोसले हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार शीतल संजय भोसले, योगेश कमलाकर राव कदम, मनीष नारायन कदम और राहुल अशोक काले को थानाप्रभारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष पेश किया. उन्होंने भी आरोपियों से पूछताछ की. इस के बाद उन्हें भादंवि की धारा 302, 201, 120बी, 109 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर पुणे की नरवदा जेल भेज दिया.

 

Agra News : पत्‍नी ने खिलाई नींद की गोली, प्रेमी ने हंसिए से रेता गला

Agra News : गत वर्ष नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट आई थी जिस में कहा गया था कि बच्चों और किशोरों के साथ यौन संबंध बनाने वाले निकट संबंधी होते हैं. लेकिन इस रिपोर्ट में यह जिक्र नहीं था कि मायके से बने यौन संबंध जब ससुराल तक जाते हैं तो क्या होता है. विक्रम की जान ऐसे ही…

जिला आगरा की तहसील एत्मादपुर के थाना बरहन के क्षेत्र में एक गांव है खांडा. यहां के निवासी सुरेंद्र सिंह का 27 वर्षीय बेटा विक्रम सिंह उर्फ नितिन नोएडा के सेक्टर-6 में स्थित एक प्राइवेट कंपनी में कंप्यूटर आपरेटर था. उस की शादी नवंबर 2015 में अछनेरा थानांतर्गत कुकथला निवासी किशनवीर सिंह की बेटी रानी उर्फ रवीना के साथ हुई थी. दोनों का 2 साल का एक बेटा है. विक्रम नोएडा में अपने मातापिता, भाई अमित, बीवी व बच्चे के साथ रहता था. कोरोना वायरस फैलने और लौकडाउन की घोषणा के बाद 27 मार्च, 2020 को विक्रम परिवार सहित अपने गांव खांडा आ गया था. इस के लिए विक्रम को 50 किलोमीटर पैदल भी चलना पड़ा था. उस के पिता सुरेंद्र सिंह नोएडा में ही रह गए थे.

विक्रम को घर आए 5 दिन हो गए थे. 31 मार्च की रात विक्रम अपनी बीवी रानी के साथ कमरे में सोने चला गया. जबकि उस की मां कृपा देवी मकान की छत पर सोने चली गई. छोटा भाई अमित गांव में ही रहने वाली मौसी के यहां सो रहा था. रात डेढ़ बजे रानी अचानक कमरे से चीखती हुई बाहर निकली और छत पर बने कमरे में सो रही सास को जगा कर बताया कि विक्रम ने आत्महत्या कर ली है. यह सुनते ही कृपा देवी बदहवास सी नीचे उतर कर कमरे में पहुंचीं. कमरे का मंजर देख उन के होश उड़ गए. बिस्तर पर विक्रम खून से लथपथ पड़ा था. उस की गरदन से खून निकल रहा था. जिस से तकिया व चादर खून से रंग गए थे.

घटना की जानकारी मिलते ही मृतक का चचेरा भाई राजेश सिकरवार घटनास्थल पर पहुंच गया. विक्रम की मौत की जानकारी होते ही परिवार की महिलाओं में कोहराम मच गया. राजेश ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थाना बरहन के थानाप्रभारी महेश सिंह पुलिस टीम के साथ मौकाए वारदात पर पहुंच गए. तब तक सुबह हो चुकी थी. हत्या की जानकारी होते ही आसपड़ोस के लोग एकत्र हो गए थे. पूछताछ में मां कृपा देवी ने बताया, ‘‘रात सभी ने हंसीखुशी खाना खाया था. उस समय विक्रम के चेहरे पर किसी प्रकार का कोई तनाव नहीं दिख रहा था. न ही उस ने किसी बात का जिक्र किया था. उस ने अचानक आत्महत्या क्यों कर ली, समझ से परे है.’’

सूचना मिलते ही सीओ (एत्मादपुर) अतुल सोनकर भी पहुंच गए. फोरैंसिक टीम भी बुला ली गई थी. मृतक की बीवी रानी से भी पूछताछ की गई. उस ने बताया कि खाना खाने के बाद हम लोग कमरे में सो गए. रात में पति से झगड़ा हुआ था, हो सकता है उन्होंने गुस्से में गला काट कर आत्महत्या कर ली हो. मुझे तो आंखें खुलने पर घटना के बारे में पता चला, तभी मैं ने शोर मचाया और सास को छत पर जा कर जगाया. विक्रम ने बंद कमरे में आत्महत्या कैसे की? यह रानी नहीं बता सकी. पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक का गला रेता हुआ था. लेकिन कमरे में कोई चाकू या धारदार हथियार नहीं मिला था.

रानी की यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी कि बिस्तर पर आत्महत्या करते समय रानी भी सो रही थी लेकिन उसे आत्महत्या की कोई जानकारी नहीं हुई. ऐसा कैसे हो सकता है? पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. घटना की जानकारी मिलने पर मृतक के पिता भी नोएडा से आ गए. उन्होंने अपनी बहू रानी पर आरोप लगाते हुए कहा कि इस के प्रेम संबंध उस के फुफेरे भाई प्रताप सिंह उर्फ अनिकेत से हैं, जो खांडा का रहने वाला है. सुरेंद्र सिंह ने पहली अप्रैल को पुलिस को दी गई अपनी तहरीर में भी विक्रम की हत्या का आरोप रानी अनिकेत पर लगाया. इस पर पुलिस रानी को पूछताछ के लिए अपने साथ थाने ले गई.

मृतक के घरवालों ने पुलिस को बताया कि विक्रम की पत्नी रानी हर महीने बीमारी का बहाना बना कर इलाज के नाम पर विक्रम से दवाइयों का 28,000 रुपए तक का बिल लेती थी. इतना ही नहीं उस ने अपने खर्चे पूरे करने के लिए 10 हजार रुपए में अपनी सोने की चेन भी गिरवी रख दी थी. पुलिस ने थाने में रानी से घटना के बारे में गहराई से पूछताछ की, ‘‘जब विक्रम ने चाकू से अपना गला अपने आप काट कर आत्महत्या की है तो चाकू भी वहीं होना चाहिए था.’’ इस पर रानी ने चुप्पी साध ली. पुलिस ने यह भी पूछा, ‘‘अगर विक्रम की हत्या किसी बाहरी व्यक्ति ने की तो कमरे का दरवाजा किस ने खोला? और वह आदमी कौन था?’’

इन सवालों के भी रानी के पास कोई जवाब नहीं थे. उस की चुप्पी सच्चाई बयां कर रही थी. पहले दिन तो रानी पुलिस को गुमराह करती रही, लेकिन दूसरे दिन यानी 2 अप्रैल, 2020 को पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई. उस ने पति की हत्या का जुर्म कबूल करते हुए बताया कि उस ने अपने प्रेमी फुफेरे भाई प्रताप जो गांव में ही रहता है के साथ मिल कर रात में विक्रम की हत्या कर दी थी. पुलिस पूछताछ में विक्रम की हत्या की जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी—

रानी की शादी उस के बुआ के बेटे प्रताप ने अपने ही गांव खांडा निवासी विक्रम सिंह से कराई थी. बहन के घर प्रताप का आनाजाना था. दोनों के बीच 2 साल से नजदीकियां बढ़ गई थीं. धीरेधीरे दोनों का प्रेमसंबंध नाजायज संबंधों में बदल गया. बीवी की हरकतें देख कर विक्रम को उस पर शक हो गया था. यह बात रानी ने प्रताप को बताई. इस पर उस ने रानी के घर आना बंद कर दिया था. रानी जब मायके जाती तो प्रताप वहां पहुंच जाता था. वहां दोनों किसी तरह मिल कर अपने दिल की प्यास बुझा लेते थे. जब रानी गांव में रहती थी, तो पति से रुपए मंगा कर अपने प्रेमी के ऊपर खर्च करती थी. इस की जानकारी होने पर विक्रम ने बीवी के मायके जाने पर रोक लगा दी थी. उस ने रानी को समझाया भी, लेकिन रानी पर पति की बातों का कोई असर नहीं हुआ. इस पर विक्रम रानी को नोएडा में अपने साथ रखने लगा था.

लौकडाउन होने पर विक्रम परिवार सहित 5 दिन पहले गांव आया था. गांव आने पर रानी को पता चला कि प्रताप की शादी तय हो गई है. 25 अप्रैल को उस की बारात जानी थी. रानी को यह बात नागवार गुजरी. वह चाहती थी कि प्रताप शादी न करे. वह उस के बिना नहीं रह सकती. वह प्रताप से मिलना चाहती थी. जबकि विक्रम उसे घर से बाहर नहीं जाने दे रहा था. इस पर उस ने मोबाइल पर प्रताप से बात की. इस बातचीत के दौरान मिल कर विक्रम की हत्या की योजना बनाई. योजना के मुताबिक रानी ने 31 मार्च की रात आलू की सब्जी में नींद की 8 गोलियां मिला कर विक्रम को खिला दीं. गोलियां प्रताप ने ला कर दी थीं.

रात करीब एक बजे विक्रम की तबियत खराब हुई. उस ने रानी से कहा कि उसे बैचेनी हो रही है. इस पर रानी ने पति को अंगूर खिलाए. फिर जैसे ही वह सोया, रानी ने मैसेज कर के प्रताप को बुला लिया. प्रताप और रानी ने उस का गला दबा दिया. वह जिंदा न बच जाए. इस के लिए हंसिए से उस का गला भी रेत दिया. हत्या के बाद प्रताप हंसिया ले कर फरार हो गया. रानी और प्रताप की साजिश थी कि विक्रम की हत्या कर उसे आत्महत्या का रूप दे देंगे. अगर विक्रम की मां रात में चिल्लाचिल्ला कर भीड़ जमा न करती तो वे ऐसा प्रयास भी करते. लेकिन हड़बड़ाहट में रानी मौके से खून नहीं साफ  कर सकी थी.

रानी को पुलिस ने 3 अप्रैल को कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस हत्यारोपी प्रताप की तलाश में जुट गई. 3 अप्रैल को ही पुलिस ने प्रताप को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल हंसिया भी बरामद कर लिया.  रानी ने रिश्तों को कलंकित कर एक हंसतेखेलते परिवार को उजाड़ लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Bihar Crime : प्रेमी संग रची साजिश और पति को शराब पिला कर हमेशा के लिए सुला दिया

Bihar Crime : लड़कियों या महिलाओं पर बुरी नजर वालों को पता होता है कि उन तक पहुंचने के लिए पहली सीढ़ी उन की तारीफ करना है. रतन ने इसी युक्ति से पुष्पा को पटाया. पति से नाखुश पुष्पा उस के प्रेमजाल में फंस गई और फिर दोनों ने मिल कर…

सांवले रंग का धनंजय सामान्य कदकाठी वाला युवक था. उस की एकमात्र खूबी यही थी कि वह सरकारी नौकरी में था. कहने का अभिप्राय यह कि वह जिंदगी भर अपने परिवार का बोझ अपने कंधों पर उठा सकता था. बिहार के जिला गोपालगंज के बंगरा बाजार निवासी रामजी मिश्रा ने धनंजय की यही खूबी देख कर उस से अपनी बेटी ब्याही थी. मांबाप ने कहा और खूबसूरत पुष्पा शादी के बंधन में बंध कर मायके की ड्योढ़ी छोड़ ससुराल आ गई. लेकिन उसे धक्का तब लगा, जब उस ने पति को देखा. वह जरा भी उस के जोड़ का नहीं था. पत्नी यदि खूबसूरत हो तो पति उस के हुस्न का गुलाम बन ही जाता है. धनंजय भी पुष्पा का शैदाई बन गया. पुष्पा ने धनंजय की कमजोरी का फायदा उठा कर उसे अपनी उंगलियों पर नचाना शुरू कर दिया.

पुष्पा को धनंजय चाहे जैसा लगा हो, लेकिन धनंजय खूबसूरत, पढ़ीलिखी बीवी पा कर खुश था. धनंजय सुबह 9 बजे घर से निकलता था, तो फिर रात 8 बजे के पहले घर नहीं लौटता था. पीडब्ल्यूडी में लिपिक के पद पर कार्यरत धनंजय की ड्यूटी पड़ोसी जिले सीवान में थी. धनंजय को अपने गांव अमवां से सीवान आनेजाने में 2 घंटे लग जाते थे. धनंजय को जितनी पगार मिलती थी, वह पूरी की पूरी पुष्पा के हाथ पर रख देता था. धंनजय के 2 भाई और थे, बड़ा रंजीत और छोटा राजीव. रंजीत मुंबई में तो राजीव दिल्ली में नौकरी करता था. विवाह के बाद से ही धनंजय पुष्पा के साथ अलग घर में रह रहा था. कालांतर में पुष्पा 2 बच्चों की मां बनी. एक बेटा था सौरभ और एक बेटी साक्षी.

गत वर्ष मई महीने में धनंजय के साले का विवाह देवरिया की भुजौली कालोनी में हुआ था. विवाह में धनंजय पांडे की मुलाकात दुलहन के चचेरे भाई रतन पांडे से हुई. मुलाकात के दौरान दोनों की काफी बातें हुई. इसी बातचीत के दौरान धनंजय ने उस से देवरिया में मकान किराए पर दिलाने को कहा तो रतन ने हामी भर दी. विवाह में शामिल  होने के बाद धनंजय और पुष्पा बच्चों के साथ वापस लौट आए. रतन पांडे देवरिया के थाना गौरीबाजार के सिरजम हरहंगपुर निवासी सुभाष पांडेय का बेटा था. सुभाष पांडेय टीवी मैकेनिक थे. 24 वर्षीय रतन 4 बहनों में दूसरे नंबर का था. इंटर पास रतन देवरिया में मोबाइल कंपनी ‘एमआई’ के कस्टमर केयर सेंटर में नौकरी करता था और देवरिया खास में ही किराए पर कमरा ले कर रह रहा था.

धनंजय से बात होने के कुछ ही दिनों के अंदर रतन ने धनंजय को शहर के इंदिरा नगर मोहल्ले में सौरभ श्रीवास्तव का मकान किराए पर दिलवा दिया. धनंजय अपनी पत्नी पुष्पा और दोनों बच्चों के साथ उसी मकान में रहने लगा. बिहार का सीवान जिला उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की सीमा से सटा है. इसलिए धनंजय को वहां से सीवान जाने में कोई दिक्कत नहीं होती थी, वह अपनी ड्यूटी पर रोजाना आनेजाने लगा. बच्चों का एडमीशन भी पास के एक स्कूल में करा दिया था. धनंजय रोजाना सुबह निकल जाता और देर रात वापस लौटता था. बच्चे भी स्कूल चले जाते थे. पुष्पा घर पर अकेली रह जाती थी. ऐसे में रतन का पुष्पा के पास आनाजाना बढ़ गया. रतन पुष्पा की खूबसूरती पर पहले ही मर मिटा था.

इसीलिए उस ने पुष्पा के नजदीक रहने के लिए धनंजय को देवरिया में किराए पर मकान दिलवाया था. धनंजय के कहने पर वह उस के बच्चों सौरभ और साक्षी को ट्यूशन पढ़ाने लगा था. बच्चों के जन्म के बाद से धनंजय अब पुष्पा में पहले जैसी रुचि नहीं लेता था. वैसे भी जैसेजैसे वैवाहिक जीवन आगे बढ़ता है, कई पतिपत्नी एकदूसरे में दोष खोजने लगते हैं, जो उन के बीच विवाद की जड़ बनते हैं. धनंजय भी पुष्पा में कमियां निकालने लगा था. वैसे भी पुष्पा को तो वह कभी नहीं भाया था, किसी तरह उस के साथ अपनी जिंदगी काट रही थी. जब धनंजय उस के दोष और गलतियां निकालता था तो पुष्पा के अंदर दबा गुस्सा गुबार बन कर बाहर निकल पड़ता था, जिस पर धनंजय उस की पिटाई कर देता था. ऐसा अधिकतर धनंजय के शराब के नशे में होने पर ही होता था. धनंजय मारपिटाई पर उतर आया तो पुष्पा को उस से हद से ज्यादा नफरत हो गई.

रतन ने उस के घर आना शुरू किया तो पुष्पा की नजर उस पर टिकने लगीं. रतन गोराचिट्टा, स्मार्ट और कुंवारा था. पुष्पा ने ऐसे ही युवक की कामना की थी. विवाह से पहले उस की 2 ही इच्छाएं थीं, एक तो उस का जीवनसाथी सरकारी नौकरी वाला हो और दूसरा वह खूबसूरत व स्मार्ट हो. उस की जोड़ी उस के साथ ‘रब ने बना दी जोड़ी’ जैसी हो. उस की एक इच्छा तो पूरी हो गई थी लेकिन दूसरी इच्छा ने उसे रूला दिया. धनंजय ने कभी भी पुष्पा की तारीफ  नहीं की थी, लेकिन रतन पुष्पा की जम कर तारीफ करता था, साथ ही हंसीमजाक भी. पुष्पा सोचती थी कि रतन को सुंदरता की कद्र करनी आती है, लेकिन धनंजय को नहीं.

रतन लतीफे सुना कर पुष्पा को खूब हंसाता था. उस की पसंदनापसंद की चीजों का ख्याल रखता था. पुष्पा साड़ी या सलवारसूट पहनती तो उसे अपनी राय बताता. इन बातों से पुष्पा मन ही मन बहुत खुश होती. धीरेधीरे पुष्पा को भी रतन की आदत पड़ गई. उस के बिना अब उसे अच्छा नहीं लगता, घर में सब सूनासूना सा महसूस होता. रतन ने पुष्पा को इतनी खुशियां दीं कि वह सोचने को मजबूर हो गई कि काश! मेरा पति रतन जैसा होता, तो कितना अच्छा होता…?

एकांत क्षणों में पुष्पा, रतन की तुलना धनंजय से करने लगती और यह सोच कर मायूस हो जाती कि धनंजय रतन के आगे किसी मामले में नहीं ठहरता. पुष्पा रतन के बारे में ज्यादा सोचती तो उस का मन उस की बांहों में ही सिमटने को मचल उठता. पुष्पा और रतन की निगाहों में एकदूसरे के लिए तड़प भरी रहती थी. पानी का गिलास, चाय का कप लेतेदेते हुए दोनों की अंगुलियों का स्पर्श होता तो दोनों ही ओर चिंगारियां छूटने लगतीं. पुष्पा का रतन रतन का व्यक्तित्व पुष्पा के दिल में हलचल मचाए हुए था तो पुष्पा की आकर्षक देहयष्टि रतन के युवा मन में सरसराहट भरती रहती थी. वह पुष्पा से बिना नजरें मिलाए उस का दीदार करता रहता. उसे पूरी तरह पा कर न सही, स्पर्श कर के ही सुख लूटता रहता.

रतन कुछ कारणों से अपने गांव चला गया तो पुष्पा खुद को फिर तन्हा महसूस करने लगी. उसे ऐसा लगा, जैसे उस की रूह निकल कर चली गई हो और मुरदा जिस्म वहां रह गया हो. धनंजय सीवान से अपनी ड्यूटी से वापस लौटता, रात में जब वह उस से संसर्ग करता, तब भी वह मुर्दों की तरह निष्क्रिय पड़ी रहती. धनंजय उस के व्यवहार से इसलिए स्तब्ध नहीं हुआ, क्योंकि वह जानता था कि पुष्पा उस से बिलकुल खुश नहीं है. उधर गांव गए रतन का हाल भी ऐसा ही था. पुष्पा को याद कर के वह रात भर करवटें बदलता रहता, आंखें बंद करता तो सपने में पुष्पा ही नजर आती. जो वह हकीकत में करने की ख्वाहिश रखता था, उसे कल्पना में ही कर के खुद को तसल्ली दे लेता था.

आखिर रतन गांव से शहर लौटा तो पुष्पा से मिलने गया. पुष्पा उस समय अकेली थी. उसे रतन की यादों ने बेहाल कर रखा था. रतन को देखते ही पुष्पा का चेहरा खिल उठा. रतन के अंदर आते ही पुष्पा ने लपक कर दरवाजा बंद कर दिया. फिर नाराजगी प्रकट करते हुए बोली, ‘‘क्या इस तरह मुझे तड़पाना अच्छा लगता है तुम्हें?’’

‘‘मैं समझा नहीं.’’ रतन अंजान बनते हुए बोला.

‘‘कितने दिन हो गए तुम्हें. मैं तुम्हारी सूरत देखने को तरस गई थी.’’ पुष्पा ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘सच,’’ रतन खुश होते हुए बोला,‘‘मैं यही सुनने को तो गैरहाजिर था. मैं देखना चाहता था कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितनी चाहत है. अगर ऐसा नहीं करता, तो तुम शायद आज अपने दिल की बात मुझ से न कहतीं.’’

‘‘तुम सच कह रहे हो रतन. तुम ने मुझ पर न जाने कैसा जादू कर दिया है कि मैं हर पल तुम्हारे बारें में ही सोचती रहती हूं.’’ कहते हुए उस ने रतन के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘यही हाल मेरा भी है पुष्पा. जिस दिन तुम्हारा दीदार नहीं होता, वह दिन पहाड़ सा लगता है.’’ पुष्पा की पतली कमर में हाथ डालते हुए रतन ने उसे अपने करीब खींचा और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

पुष्पा के होंठों में ऐसी तपन थी, कि रतन को लगा जैसे उस ने अंगारों को छू लिया हो. पुष्पा के होंठों से अपने होंठ अलग करते हुए उस ने पुष्पा की सुरमई आंखों में झांका, तो लगा जैसे उन में पूरा मयखाना समाया हो. पुष्पा की नशीली आंखों, फूलों जैसे रुखसार, सुराही जैसी गरदन और उस के नाजुक अंगों को देख कर रतन के रोमरोम में लहर सी दौड़ गई. गजब तो तब हुआ, जब पुष्पा ने अपने बंधे हुए गेसू खोल दिए. थोड़ी देर पहले ही उस ने सिर धोया था. सावन की घटाओं से भी श्यामवर्ण गेसू कमर के नीचे उभारों को छूने लगे, तो रतन बोल पड़ा, ‘‘वाह पुष्पा, क्या लाजवाब हुस्न है तुम्हारा.’’

पुष्पा ने खिलखिला कर हंसते हुए पूछा, ‘‘वो कैसे?’’

‘‘आइने में देख लो, खुद समझ जाओगी.’’

‘‘वो तो मैं तुम्हारी आंखों में देख कर समझ रही हूं.’’

‘‘क्या देख रही हो मेरी आंखों में?’’ रतन ने पूछा.

‘‘बेईमानी. किसी का माल हड़पने के लिए नीयत खराब कर रहे हो.’’ पुष्पा ने हौले से रतन के गाल पर चपत लगाई.

‘‘अगर वह माल लाजवाब और मीठा हो तो उसे उठा कर मुंह में रख लेने में कैसी झिझक. सच में दिल कर रहा है कि आज मैं तुम्हें लूट ही लूं.’’

‘‘तो रोका किस ने है?’’ कहते हुए पुष्पा रतन के गले से झूल गई और बोली,‘‘आओ लूट लो मेरे हुस्न के इस अनमोल खजाने को. मैं तो कब से तुम्हें सौंपने को बेताब थी.’’

रतन का गला सूखने लगा था, ‘‘कोई आ गया तो?’’

‘‘कोई नहीं आ रहा अभी, तुम निश्चिंत रहो.’’

इस के बाद दोनों वासना के खेल में डूबते चले गए. घर की तनहाई दोनों के दिलों की ही नहीं जिस्मों के मिलन की भी साक्षी बन गई. इस के बाद तो रोज ही उन के बीच यह खेल खेला जाने लगा. रतन ने पुष्पा को दिया अपने नाम वाला सिम रतन ने पुष्पा को एक सिम खरीद कर दे दिया. उस ने सिम को अपने मोबाइल में डाल लिया. पुष्पा इस सिम का इस्तेमाल केवल रतन से बात करने के लिए करती थी. धनंजय की अनुपस्थिति में रतन पूरे दिन पुष्पा के साथ उस के घर में मौजूद रहता. उस के साथ समय बिताता तो उन पलों को अपने स्मार्टफोन में भी कैद कर लेता. वह अपने मोबाइल से अंतरंग पलों के फोटो और वीडियो भी बनाता था.

18 अप्रैल की सुबह बंद चीनी मिल के परिसर में कुछ युवक लकड़ी लेने गए. इस बीच उन की नजर एक पेड़ के नीचे पड़ी एक लाश पर गई. उन्होंने आसपास के लोगों को बताया तो चंद मिनटों में वहां काफी भीड़ इकट्ठा हो गई. 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को लाश मिलने की सूचना दी गई. घटनास्थल थाना कोतवाली देवरिया में आता था, इसलिए कंट्रोल रूम से यह सूचना कोतवाली पुलिस को दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर टीजे सिंह अपनी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मृतक की उम्र 40-42 वर्ष रही होगी. उस के चेहरे को किसी भारी वस्तु से कूंचा गया था. चेहरा क्षतविक्षत होने के कारण मृतक की पहचान होना मुश्किल था. उस के गले पर भी कसे जाने के निशान मौजूद थे.

घटनास्थल पर लाश से कुछ दूरी पर खून से सना एक ईंट का टुकड़ा पड़ा मिला. हत्यारे ने उसी ईंट के टुकड़े से मृतक का चेहरा कुचला था. इंसपेक्टर टीजे सिंह निरीक्षण कर ही रहे थे कि तभी एसपी डा. श्रीपति मिश्र, एएसपी शिष्यपाल, सीओ सिटी निष्ठा उपाध्याय समेत अन्य अधिकारी भी वहां पहुंच गए. अधिकारियों ने भी लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया. इंसपेक्टर टीजे सिंह के आदेश पर कुछ सिपाहियों ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो कपड़ों से मृतक का आधार कार्ड मिल गया, जिस में मृतक का नाम धनंजय पांडे लिखा था और पता देवरिया की सीमा से सटे बिहार के गोपालगंज जिले के कुचायकोट थाना क्षेत्र में आने वाले गांव अमवा का लिखा था.

मृतक के घर वालों को कुचायकोट थाना पुलिस के जरीए सूचना भेजी गई. इस के बाद पुलिस अधिकारी इंसपेक्टर टीजे सिंह को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर वापस लौट गए. सूचना पर मृतक के घर वाले और ससुराल वाले वहां पहुंचे. उन लोगों ने धनंजय की लाश की शिनाख्त कर दी. लाश की शिनाख्त होने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया. कोतवाली लौट कर इंसपेक्टर टीजे सिंह ने धनंजय पांडे के ससुर रामजी मिश्रा की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के विरूद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. केस की जांच शुरू करते हुए इंसपेक्टर टीजे सिंह ने सर्वप्रथम पुष्पा से पूछताछ की, जो कि घटना से एक महीने पहले से अपने मायके में रह रही थी.

उन्होंने पुष्पा से पूछा, ‘‘धनंजय की किसी से कोई दुश्मनी थी या उस का किसी से हाल ही में कोई लड़ाईझगड़ा हुआ था?’’

‘‘सर, उन की किसी से दुश्मनी नहीं थी और न ही उन का किसी से लड़ाईझगड़ा हुआ था. वह तो सुबह अपने आफिस के लिए निकल जाते थे और रात में लौटते थे.’’

‘‘फिर भी कोई दुश्मनी रही हो, याद करने की कोशिश कीजिए.’’

‘‘सर, मेरी जानकारी में तो नहीं है, अगर औफिस में कोई बात हुई हो तो मुझे पता नहीं. मेरे पति आफिस की कोई भी बात मुझे नहीं बताते थे.’’

पुष्पा बड़े ही सहज भाव से सवालों का जवाब दे रही थी. उस के चेहरे के भावों और बोलने के अंदाज से यह कतई नहीं झलक रहा था कि वह पति की मौत से गमगीन है. यह बात मन में शक पैदा करने वाली थी. पुष्पा के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुए इंसपेक्टर टीजे सिंह ने एक और सवाल दागा, ‘‘घर में कौनकौन आता था?’’

‘‘सर, हम देवरिया में किराए पर रह रहे थे. हमारी किसी से जानपहचान नहीं है. इसलिए कोई भी नहीं आताजाता था.’’

‘‘कोई भी नहीं?’’ इंसपेक्टर टीजे सिंह ने उस की आंखों से आंखें मिला कर उस का सच और झूठ पकड़ने के लिए एक बार फिर एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. इंसपेक्टर सिंह को घुमाती रही पुष्पा इंसपेक्टर टीजे सिंह द्वारा इस तरह पूछने पर पुष्पा एक पल के लिए हड़बड़ाई, लेकिन अगले ही पल खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘जी सर कोई नहीं, बस मेरे बच्चों को पढ़ाने के लिए रतन पांडे आता था. वह हमारा दूर का रिश्तेदार है, उसी ने हमें देवरिया में रहने के लिए किराए पर मकान दिलवाया था.’’

‘‘तो बताना चाहिए था न… मैं दोबारा न पूछता तो आाप बताती भी नहीं.’’

‘‘सर, वह तो घर का ही है, बाहर का नहीं, इसीलिए नहीं बताया.’’ पुष्पा ने सफाई दी.

‘‘ये आप हमें तय करने दें कि कौन क्या है, हमारे निशाने पर सभी होते हैं चाहे घर के हों या बाहर के. वैसे भी अधिकतर केसों में हत्यारा घर का अपना ही कोई निकलता है.’’ कह कर टीजे सिंह ने पुष्पा की तरफ  देखा तो उस के चेहरे पर आने वाले भाव देख कर वह मुस्करा उठे और फिर उठते हुए बोले, ‘‘खैर अब मैं चलता हूं, जरूरत पड़ी तो आप से दोबारा पूछताछ करूंगा.’’

‘‘जी सर.’’

टीजे सिंह वहां से चले गए. वहां से निकलने से पहले वह पुष्पा का मोबाइल नंबर लेना नहीं भूले. इंसपेक्टर सिंह ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई साथ ही जिस मोबाइल में सिम पड़ा था. उस मोबाइल में दूसरे सिम भी डाले गए थे तो उन सिम के नंबरों की भी डिटेल्स देने को कहा गया. जब पुष्पा के बताए नंबर की काल डिटेल आई तो उस में कुछ खास नहीं मिला. लेकिन साथ में एक और नंबर की काल डिटेल्स आई थी. वह नंबर भी पुष्पा अपने डबल सिम वाले मोबाइल में प्रयोग कर रही थी. लेकिन उस नंबर के बारे में पुष्पा ने कुछ नहीं बताया था. उस नंबर से केवल एक नंबर पर ही रोज बात की जाती थी. उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर रतन पांडे के नाम पर था. रतन वही था जो धनंजय के घर ट्यूशन पढ़ाने आता था. उस का पता किया तो वह घर से फरार मिला.

20 अप्रैल को इंसपेक्टर टीजे सिंह ने एक मुखबिर की सूचना पर अमेठी तिराहे के खोराराम मोड़ से रतन पांडे को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो रतन ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया, साथ ही हत्या की वजह भी बता दी. इस के बाद इंसपेक्टर सिंह पुष्पा को उस के मायके से गिरफ्तार कर के थाने ले आए.

थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बरगलाने की कोशिश की कि रतन ने उस के अश्लील फोटो व वीडियो बना लिए थे, जिन के सहारे वह उसे ब्लैकमेल कर रहा था. उसी ने उस के पति की हत्या की है. लेकिन जब सख्ती दिखाई गई तो उस ने सच उगल दिया. पुष्पा रतन को अपनी जान से भी ज्यादा चाहने लगी थी, उसी के साथ विवाह कर के वह अपनी आगे की जिंदगी गुजारना चाहती थी. इस के लिए वह रतन के साथ भाग जाती और विवाह कर लेती. लेकिन जिंदगी सिर्फ प्यार से नहीं गुजरती, पैसों की भी जरूरत होती है. रतन छोटीमोटी नौकरी करता था, उस से उस का खुद का गुजारा ही नहीं हो पाता था. ज्यादा पैसा तो सरकारी नौकरी में ही मिलता है जो कि धनंजय के पास थी. इसलिए पैसों की उसे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई.

पुष्पा को सरकारी नौकरी का मोह था. इसलिए उस ने इस का रास्ता निकाल लिया. उस रास्ते पर चल कर उस की सारी इच्छाएं पूरी हो सकती थीं. वह रास्ता था धनंजय की मौत. धनंजय के मरने से पुष्पा को एक तो उस से छुटकारा मिल जाता, दूसरे उस की जगह मृतक आश्रित कोटे से उसे नौकरी मिल जाती और तीसरा वह रतन से विवाह कर के आराम से जिंदगी गुजार सकती थी. पुष्पा अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए पति के खून से हाथ रंगने को तैयार थी. वह यह भूल गई कि केवल सोचने भर से जिंदगी आसान नहीं हो जाती. सब कुछ मनचाहा नहीं होता.

वह जिस रास्ते पर चलने को आमादा थी उस पर उसे सरकारी नौकरी तो नहीं जेल की सलाखें जरूर मिलने वाली थीं. दूसरी ओर धनंजय को अपनी मौत के षड़यंत्र का कैसे पता चलता, जबकि उसे पुष्पा और रतन के अवैध संबंधों तक की जानकारी नहीं थी. पुष्पा अपने इरादों को अंजाम तक पहुंचाने को आतुर थी. रतन तो पहले से ही पुष्पा से बारबार धनंजय को मार देने की बात कहता रहता था. वह तो पुष्पा की तरफ से बस हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रहा था. पुष्पा ने अपने दिल की पूरी बात रतन को बता दी. इस के बाद दोनों ने धनंजय की हत्या की योजना बनाई. योजनानुसार 16 मार्च, 2020 को पुष्पा बच्चों के साथ अपने मायके गोपालगंज चली गई.

एक महीना पूरा होने पर 17 अप्रैल की शाम 4 बजे पुष्पा ने रतन को फोन कर के धनंजय की हत्या करने को कहा. काश! धनंजय शराब के लालच में न पड़ता 18 अप्रैल की रात 8 बजे के करीब रतन ने धनंजय को शराब पीने के लिए बंद चीनी मिल परिसर में बुलाया. धनंजय के वहां पहुंचने पर रतन ने एक ईंट के टुकडे़ से उस के सिर पर प्रहार किया. धनंजय दर्द से बिलबिला उठा. इसी बीच रतन ने पास में उगी गिलोय की बेल उखाड़ कर धनंजय के गले में डाल दी और पूरी ताकत से कस दिया.

दम घुटने से धनंजय की मौत हो गई. इस के बाद रतन ने धनंजय के चेहरे को बुरी तरह से कुचल दिया. फिर धनंजय की जेब से मोबाइल निकाल कर रतन वहां से चला गया. उस ने वाट्सऐप पर मैसेज कर के पुष्पा को धनंजय की मौत की जानकारी दे दी. पुष्पा द्वारा मैसेज देख लेने के बाद रतन ने वह मैसेज डिलीट कर दिया. लेकिन दोनों पकड़े गए. रतन ने अपना एंड्रायड मोबाइल फारमेट कर दिया था. इसलिए उस मोबाइल का डाटा रिकवर करने के लिए इंसपेक्टर टीजे सिंह ने मोबाइल में डाटा रिकवरी ऐप इंस्टाल किया और मोबाइल का पूरा डाटा रिकवर कर लिया. मोबाइल की गैलरी में रतन व पुष्पा के अनगिनत फोटो मिले, जिस में कई अश्लील भी थे, जिन को उन्होंने सुबूत के तौर रख लिया.

अभियुक्त रतन के पास से इंसपेक्टर सिंह ने धनंजय का मोबाइल भी सिम सहित बरामद कर लिया. हत्या में प्रयुक्त ईंट का टुकड़ा पहले ही घटनास्थल से बरामद हो गया था. कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के दोनों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज  दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Murder Story : 5 लाख की सुपारी देकर कराया पति का कत्ल

Murder Story : संगीता ने अपने घर वालों से विद्रोह कर के पप्पू से प्रेम विवाह किया था. वह उस के 2 बच्चों की मां भी बनी. पप्पू ने उसे गांव का उपमुखिया भी बनवाया और उस के लिए 2-2 जगह मकान भी बनवाए. लेकिन जब उस की जिंदगी में लल्लन आया तो…

बिहार का जिला पूर्णिया. दिन रविवार, तारीखऊ 26 मई, 2019. समय शाम के 7 बजे. पप्पू यादव पूर्णिया की प्रभात कालोनी स्थित घर से अपने गांव चनका जाने के लिए निकला. दरअसल, पप्पू के 2 मकान थे, एक पूर्णिया की प्रभात कालोनी में और दूसरा गांव चनका में. प्रभात कालोनी में वह पत्नी संगीता और दोनों बच्चों के साथ रहता था. उस की पत्नी संगीता गांव की उपमुखिया थी और अपने बच्चों के साथ ज्यादातर पूर्णिया में रहती थी. घर से निकल कर पप्पू जब जगैल चौक स्थित राइस मिल के पास पहुंचा, तभी पीछे से तेज गति से आई एक बाइक आई और उस के सामने आ कर रुकी.

अचानक यह होने पर पप्पू की बाइक उस बाइक से टकराने से बालबाल बची. जैसे ही पप्पू ने अपनी बाइक के ब्रेक लगाए, वह जमीन पर फिसल गई. बाइक के गिरते ही पप्पू भी नीचे जा गिरा. पप्पू के सामने जो बाइक आ कर रुकी थी, उस पर 2 युवक सवार थे. फुरती के साथ दोनों युवक बाइक से नीचे उतरे और पप्पू के सामने जा खड़े हुए. उन दोनों को देख कर पप्पू समझ गया कि इन के इरादे ठीक नहीं हैं. खतरा भांप कर पप्पू बाइक को वहीं छोड़ कर विपरीत दिशा में भागा, वे दोनों युवक भी उस के पीछे दौड़े. दौड़तेदौड़ते एक युवक ने कमर से पिस्तौल निकाल कर उस पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं.

उस ने 7 गोलियां चलाईं. जो पप्पू के सिर से ले कर कमर तक लगीं. गोलियां लगते ही पप्पू जमीन पर गिर गया. खून से तरबतर पप्पू कुछ तड़पता रहा फिर उस की मौत हो गई. उस के मरने के बाद बदमाश जिस ओर से आए थे, अपनी बाइक से उसी ओर भाग गए. दिनदहाड़े बाजार के नजदीक गोलियां चलने से बाजार में भगदड़ मच गई. लोग धड़ाधड़ अपनी दुकानों के शटर गिराने लगे. इसी बीच किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को हत्या की सूचना दे दी थी. वह इलाका श्रीनगर थाना क्षेत्र में आता था. पुलिस कंट्रोल रूम ने घटना की सूचना श्रीनगर थाने को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी संजय कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. उपमुखिया का पति था मृतक मौके पर पहुंच कर पुलिस ने लहूलुहान पड़े शख्स का मुआयना किया. उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी, वह मर चुका था. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही तो भीड़ में से एक युवक ने लाश की पहचान कर ली. उस ने बताया कि मृतक का नाम पप्पू यादव है. वह चनका पंचायत क्षेत्र की उपमुखिया संगीता का पति है. लाश की शिनाख्त होते ही पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली और उपमुखिया संगीता से फोन पर संपर्क कर उन्हें दुखद सूचना दे कर मौके पर बुलाया.

संगीता पति की हत्या की सूचना पाते ही दहाड़ें मार कर रोने लगी. घर पर वह जिस अवस्था में थी, उसी में बच्चों को साथ ले कर घटना स्थल पर पहुंच गई. बदमाशों ने पप्पू को गोलियों से छलनी कर दिया था. सूचना पा कर थोड़ी देर में एसपी विशाल शर्मा और एसडीपीओ (सदर) आनंद पांडेय भी मौके पर आ गए थे. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का मुआयना किया. मृतक के शरीर पर गोलियों के कई घाव थे. घटनास्थल से कुछ दूर उस की बाइक जमीन पर गिरी पड़ी थी. यह देख पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि पप्पू की हत्या बदमाशों ने लूट के लिए नहीं की है. अगर बदमाश लूट के लिए करते तो बाइक अपने साथ ले जाते.

चूंकि हत्या उपमुखिया के पति की हुई थी. इसलिए स्थिति विस्फोटक बन सकती थी, इस से पहले कोई व्यक्ति कानून अपने हाथ में लेता, एसएसपी ने जरूरी लिखापढ़ी पूरी करवा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल, पूर्णिया भिजवा दी. अगली सुबह यानी 27 मई को उपमुखिया संगीता के पति पप्पू यादव हत्याकांड को ले कर उपमुखिया के समर्थकों ने शहर में जगहजगह तोड़फोड़ की. वे हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे. एसपी विशाल शर्मा मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लोगों को आश्वासन दिया कि पप्पू यादव के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

विशाल शर्मा के आश्वासन के बाद आंदोलनकारी शांत हुए. इस के तुरंत बाद थानाप्रभारी संजय कुमार सिंह ने केस की जांच शुरू कर दी. प्रभात कालोनी पहुंच कर उन्होंने संगीता से मुलाकात की और उन से पूछा कि किसी पर कोई शक वगैरह हो तो बताएं. संगीता ने पति की हत्या में पट्टीदारों की भूमिका पर शक जाहिर किया. वर्षों से दोनों परिवारों के बीच जमीन को ले कर विवाद चल रहा था. संगीता के बयान के आधार पर पुलिस ने पट्टीदारों को हिरासत में ले लिया. उन से सख्ती से पूछताछ की गई, लेकिन पप्पू यादव की हत्या में उन की कोई भूमिका नजर नहीं आई तो पुलिस ने कुछ खास हिदायतें दे कर उन्हें छोड़ दिया. इस के अलावा पुलिस ने और भी कई संदिग्धों से पूछताछ की, लेकिन हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिल सका.

देखतेदेखते इस घटना को घटे 15 दिन बीत गए. पुलिस जांच जहां से चली थी, वहीं आ कर रुक गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि पप्पू की हत्या किस वजह से हुई और हत्यारा कौन है? इस के बाद थानाप्रभारी ने मृतक पप्पू और उस की पत्नी उपमुखिया संगीता के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस के अलावा सुरागरसी के लिए मुखबिरों को भी लगा दिया. दोनों की काल डिटेल्स का पुलिस ने बारीकी से अध्ययन किया. पुलिस को मिला सुराग संगीता की फोन की काल डिटेल्स देख कर पुलिस चौंकी. घटना से कुछ देर पहले और घटना से कुछ देर बाद संगीता की एक ही नंबर पर लंबी बातचीत हुई थी. खास बात यह थी कि उस नंबर पर संगीता की कई दिनों से लंबीलंबी बात हो रही थी. यह बातचीत अधिकतर रात के समय ही होती थी. यह बात पुलिस को हजम नहीं हो रही थी.

पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो वह मोबाइल नंबर लल्लन कुमार यादव, निवासी भोकराहा, पूर्णिया का निकला. इस जानकारी के बाद पुलिस लल्लन पर नजर रखने लगी. उस के बारे में गोपनीय तरीके से सारी जानकारी एकत्र की जाने लगीं. जांच में पता चला कि लल्लन यादव उपमुखिया संगीता का दूर के रिश्ते का देवर है. वह संगीता के प्रभातनगर कालोनी स्थित मकान पर अकसर आताजाता था. इसी दरम्यान दोनों के बीच प्रेम हो गया था. पुलिस को तब और हैरानी हुई, जब पता चला कि लल्लन यादव ने घटना से 2 दिन पहले संगीता के आईडीबीआई बैंक खाते से एक लाख रुपए निकाले थे. यह रुपए संगीता ने लल्लन को नई बाइक खरीदने के लिए दिए थे. इस से पुलिस को यकीन हो गया कि पप्पू की हत्या में मृतक की पत्नी संगीता और उस के प्रेमी लल्लन यादव का हाथ है.

पुलिस ने दोनों के घर दबिश दी तो दोनों ही फरार मिले. पप्पू यादव हत्याकांड को धीरेधीरे 3 महीने बीत चुके थे. इस दौरान मुखबिर ने पुलिस को इत्तला दी थी कि पप्पू की हत्या मुंगेर जिले के बरियापुर के रहने वाले शार्प शूटर संतोष चौधरी और उस के साथी निशांत यादव ने की थी. शार्प शूटर संतोष चौधरी का नाम सामने आते ही पुलिस चौंकी, क्योंकि संतोष कौन्ट्रैक्ट किलर था. पैसे ले कर हत्या करना उस का पेशा था. मुंगेर सहित बिहार के कई जिलों में उस के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास के कई मुकदमे दर्ज थे. वह पुलिस को चकमा देने में माहिर था. जिले के विभिन्न इलाकों में बड़ी घटनाओं को अंजाम देने के बावजूद वह केवल 1-2 बार जेल गया था.

शार्प शूटर संतोष की हुई तलाश पुलिस संतोष को पकड़ने की योजना बना ही रही थी कि 31 अगस्त, 2019 की शाम मुखबिर ने थानाप्रभारी संजय कुमार सिंह को एक ऐसी सूचना दी, जिसे सुनते ही उन की बांछे खिल उठीं. सूचना यह थी कि पप्पू यादव हत्याकांड को अंजाम देने वाला शार्प शूटर संतोष चौधरी अपने दोस्त निशांत यादव के साथ किसी टारगेट को पूरा करने के लिए अगली सुबह यानी पहली सितंबर, 2019 को आ रहा है. मुखबिर की सूचना पर थानाप्रभारी संजय कुमार सिंह ने उसी रात संतोष और निशांत को गिरफ्तार करने की रणनीति बनाई. उन्होंने इस मिशन को इतना गुप्त रखा कि टीम के 7 सदस्यों के अलावा 8वें को खबर तक नहीं लगने दी.

पहली सितंबर, 2019 की सुबह थानाप्रभारी संजय कुमार सिंह अपनी टीम के साथ खुट्टी धुनौल चौकी के पास सादा कपड़ों में दुपहिया वाहनों की चैकिंग में जुट गए. मुखबिर ने बदमाशों को यहीं आना बताया था. सुबह 8 बजे के करीब 2 युवक अपाचे मोटरसाइकिल पर चौकी की ओर आते दिखाई दिए. बाइक पर वही नंबर अंकित था जो मुखबिर ने बताया था. जैसे ही वे नजदीक आए पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया. तलाशी के दौरान बदमाशों के पास से एकएक लोडेड पिस्तौल, संतोष के पास से 5 जिंदा कारतूस और 2 मोबाइल फोन और निशांत के पास से एक मोबाइल फोन बरामद हुए. नाम पूछने पर दोनों ने अपने नाम संतोष चौधरी और निशांत यादव बताए.

3 महीनों से पुलिस को इन्हीं दोनों बदमाशों की तलाश थी. पुलिस दोनों को गिरफ्तार कर के थाने ले आई और उन से सख्ती से पूछताछ शुरू की तो दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. शूटर संतोष चौधरी ने पुलिस को बताया कि पप्पू की हत्या के लिए उस की पत्नी संगीता देवी ने लल्लन यादव के मार्फत 5 लाख की सुपारी दी थी. पेशगी के तौर पर लल्लन यादव ने उसे सवा लाख रुपए दिए थे. बाकी रुपए काम हो जाने के बाद देने का वादा किया था. जो अब तक नहीं मिला. उसी दिन मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने लल्लन यादव को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने लल्लन यादव का सामना जब संतोष चौधरी से कराया तो उस के होश उड़ गए.

अंतत: उस ने भी अपना जुर्म कबूलते हुए पुलिस को सब कुछ बता दिया. उस ने प्रेमिका के इशारे पर पप्पू की हत्या का तानाबाना बुना था. पप्पू की हत्या का खुलासा हो चुका था. तीनों आरोपियों लल्लन यादव, संतोष चौधरी और निशांत यादव से पूछताछ के बाद पप्पू यादव की हत्या की जो कहानी सामने आई इस प्रकार थी. 35 वर्षीय पप्पू यादव मूलरूप से पूर्णिया जिले के श्रीनगर थाना क्षेत्र के चनका गांव का रहने वाला था. 3 भाई बहनों में पप्पू सब से बड़ा था. धनदौलत और खेतीबाड़ी से मजबूत पप्पू मिलनसार और मेहनती था. उस ने अपनी मेहनत के बलबूते पर पैसा भी कमाया था और रुतबा भी.

बात सन 2007 की है. जातेआते पड़ोस के गांव की संगीता से पप्पू की आंखें लड़ गईं. दोनों का प्यार बढ़ा तो 31 जनवरी, 2008 को उन्होंने भाग कर पहले मंदिर में और फिर कोर्ट में शादी कर ली. शादी के बाद दोनों परिवारों के बीच खूब हंगामा हुआ था. इस के बाद संगीता के घर वालों ने उस से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था. पप्पू के घर वालों ने संगीता को बहू के रूप में स्वीकार लिया था. पप्पू और संगीता ने किया था प्रेम विवाह संगीता को जीवन साथी के रूप में पा कर पप्पू खुश था. वह उस से इतना प्यार करता था कि उस के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था. दोनों की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. समय के साथ संगीता 2 बच्चों की मां बन गई, जिस से परिवार की खुशियां और बढ़ गईं.

इसी दौरान गांव में हुए मुखिया के चुनाव में संगीता उपमुखिया चुन ली गई. उपमुखिया बन जाने के बाद पढ़ीलिखी संगीता के भाग्य ने करवट ली. गांव वालों के काम से संगीता और पप्पू का पूर्णिया शहर के अधिकारियों के पास आनाजाना शुरू हो गया. इसी के मद्देनजर पप्पू ने पूर्णिया की प्रभात कालोनी में भी मकान बनवा लिया था. शहर में मकान हो जाने के बाद संगीता का मन गांव में नहीं लगता था. बच्चों और पति के साथ वह शहर वाले मकान में आ गई थी. संगीता और पप्पू कभी गांव में रहते थे तो कभी पूर्णिया में. सन 2016 में पप्पू के दूर के रिश्ते का भाई लल्लन बीए की पढ़ाई के लिए पूर्णिया आया और किराए का कमरा ले कर अकेला रहने लगा. लल्लन जानता था उस के भाईभाभी भी पड़ोस में रहते हैं. कभीकभी वह उन से मिलने प्रभात कालोनी आ जाता और घंटों साथ बिता कर अपने कमरे पर लौट जाता था.

लल्लन की रिश्ते की भाभी संगीता चुलबुली और मजाकिया स्वभाव की थी, तो लल्लन भी कुछ कम नहीं था. 20-21 साल का लल्लन भी मजाकिया था. वह दिल खोल कर भाभी से मजाक करता था. लल्लन से बातें कर के संगीता को अच्छा लगता था. देवरभाभी के बीच का मजाक कभीकभी तो निम्न स्तर तक पहुंच जाता था. भद्दी मजाक सुन कर संगीता बुरा मानने के बजाय मजे लेती थी. मजाकमजाक में ही देवर और भाभी के बीच आंखें चार हुईं. यह सन 2016 की बात है जब लल्लन संगीता के संपर्क में आया था. लल्लन और संगीता का प्यार परवान चढ़ा तो दोनों अपनेअपने हिसाब से भविष्य के सपने देखने लगे. 2 बच्चों की मां संगीता यह भूल गई थी वह किसी और की पत्नी है. पप्पू के प्यार के लिए उन से घर वालों से बगावत कर के हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ा था. लल्लन के प्यार में वह सब कुछ भुला बैठी थी. उस की आंखों में सिर्फ लल्लन का प्यार झलकने लगा था.

दोनों के बीच प्यार का सिलसिला आगे बढ़ा तो लल्लन ने संगीता से बातचीत के लिए फरजी नाम और पते पर 2 मोबाइल सिम ले लिए. जिस में से एक सिम का उपयोग लल्लन खुद करता था और दूसरे मोबाइल फोन और सिम का इस्तेमाल संगीता करती थी. किसी को शक न हो, इसलिए दोनों बीचबीच में यह सोच कर सिम की अदलाबदली कर लेते थे, ताकि मामला अगर कभी पकड़ में आए तो पुलिस के हाथ उन तक नहीं पहुंच पाएं. पतिपत्नी के बीच लल्लन बना खलनायक पूर्णिया में रहते हुए लल्लन कुछ अपराधियों के संपर्क में आ गया था. पैसों की जरूरत के लिए वह अपराध की दलदल में भी उतर गया था. वह जिन बदमाशों के संपर्क में था, वे अवैध असलहों और कारतूसों के बड़े सप्लायर थे. इसी चक्कर में लल्लन 3 घटनाओं में अरोपी बन गया था.

अवैध असलहों की तस्करी के मामले में पुलिस ने उसे अगस्त 2018 में गिरफ्तार कर जेल भेजा था. पूर्णिया जेल में ही लल्लन की मुलाकात मुंगेर जिले के बरियारपुर के रहने वाले शूटर संतोष चौधरी से हुई. वह पैसे ले कर हत्याएं करता था. पप्पू को अपनी पत्नी संगीता और लल्लन के अवैध संबंधों की जानकारी हो गई थी. लल्लन को ले कर दोनों के बीच अकसर विवाद भी होता था. यह विवाद इतना बढ़ जाता था कि उन के बीच हाथापाई तक की नौबत आ जाती थी. संगीता किसी भी हालत में लल्लन से अलग होने के लिए तैयार नहीं थी. उस ने पति से साफ कह दिया था कि वह लल्लन के बिना नहीं जी सकती. भले ही जिस्म पर तुम्हारा (पप्पू) अधिकार हो लेकिन इस दिल पर लल्लन का अधिकार है, मुझे उस से कोई अलग नहीं कर सकता, तुम भी नहीं.

पत्नी का दोटूक जवाब सुनने के बाद पप्पू का पुरुषत्व ललकार उठा. वह क्या कोई भी पति सहन नहीं कर सकता कि उस की पत्नी उस के जीते जी किसी गैरमर्द की बाहों में झूले. संगीता और पप्पू अपनीअपनी जिद पर अड़े थे, जिस की वजह से दोनों की जिंदगी विवादों के ऐसे तूफान में घिर गई जिस से उन के जीवन का तिनकातिनका बिखेर दिया. घर से जैसे सुकून और शांति दोनों ही रूठ गईं. घर में आए दिन किचकिच होती रहती थी. संगीता पति को समझने लगी नासूर संगीता लल्लन के प्यार में पागल थी. जो पप्पू कभी उस के सपनों का राजकुमार था, वही उस के लिए खलनायक बन गया था. संगीता पप्पू नाम के खलनायक को अपनी जिंदगी से हमेशा के लिए उखाड़ फेंकना चाहती थी. इस के लिए वह लल्लन के जेल से आने का इंतजार कर रही थी. आखिर वह अपने प्रेमी की जमानत के लिए खुद आगे आई और वकील से बात कर उस की जमानत करा दी.

फरवरी 2019 में जब लल्लन जेल से बाहर आया तो उस ने पप्पू को अपने रास्ते से हटाने की योजना बनाई. दरअसल संगीता ने लल्लन से कह दिया था कि अगर मुझे पाना चाहते हो तो पप्पू नाम के कांटे को हमेशा के लिए रास्ते से हटा दो. अगर ऐसा नहीं कर सकते तो मुझे भूल जाओ, फिर कभी मेरे दरवाजे पर मत आना. प्रेमिका के गुस्से को देख कर लल्लन डर गया और उस ने उस की बात मानने के लिए हामी भर दी. उस दिन के बाद उस ने संतोष चौधरी की तलाश शुरू कर दी. संतोष भी जमानत पर जेल से बाहर आ चुका था. संतोष चौधरी से फोन पर बात कर लल्लन यादव ने पप्पू यादव की हत्या की बात की. 5 लाख रुपए में सौदा हो गया. संतोष ने पेशगी के रूप में 2 लाख रुपए मांगे. बाकी की रकम काम हो जाने के बाद देने की बात हुई.

हत्या के नाम पर लल्लन ने खरीदी बाइक लल्लन ने यह बात संगीता को बता दी. संगीता ने अपने आईडीबीआई बैंक एकाउंट से 2 लाख रुपए निकाल कर लल्लन को दे दिए. लल्लन ने चालाकी करते हुए उस पैसे में से शूटर को एक लाख 25 हजार रुपए दिए और बाकी रकम अपने पास रख ली. घटना से 2 दिन पहले लल्लन ने अपने लिए नई बाइक खरीदने के लिए संगीता से एक लाख रुपए की और डिमांड की. संगीता ने उसे एक लाख रुपए और दे दिए. सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था. संगीता और पप्पू के बीच मनभेद और मतभेद दोनों ही चल रहे थे. 26 मई, 2019 की शाम साढ़े 7 बजे जब शहर वाले घर से अपनी बाइक से गांव चनका के लिए निकला तो संगीता ने फोन कर के लल्लन को बता दिया. लल्लन ने यह बात शूटर संतोष चौधरी को बता दी.

लल्लन की काल आने के बाद संतोष चौधरी अपने साथ निशांत यादव को साथ ले कर जगैल चौक राइस मिल के पास घात लगा कर खड़ा हो गया. संतोष 2 दिन से पप्पू पर नजर रखे हुए था. वह उस की रेकी कर रहा था कि वह कब, कहां और कैसे जा रहा है. जब वह निश्चिंत हो गया था कि पप्पू के आनेजाने का एकमात्र रास्ता यही है तो वहीं घात लगा कर खड़ा हो गया. जैसे ही पप्पू अपनी बाइक से जगैल चौक राइस मिल के पास पहुंचा, पहले से मौजूद संतोष ने उस के पीछेपीछे अपनी बाइक लगा दी और ओवरटेक कर के उस की बाइक रोक ली. बाइक संभालते समय पप्पू फिसल कर जमीन पर जा गिरा. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, संतोष ने पिस्तौल निकाल कर उस पर तान दी. पप्पू जान बचा कर वहां से भागा तो संतोष और निशांत यादव ने उसे दौड़ा कर गोलियों से भून डाला.

पप्पू की हत्या करने के बाद संतोष चौधरी ने लल्लन को फोन कर के बता दिया था कि उस ने टारगेट पूरा कर दिया है. बाकी की रकम उसे जल्द से जल्द मिल जानी चाहिए. लल्लन ने फोन कर के यह बात संगीता को बता दी. पति की हत्या की खबर सुन कर संगीता खुश हुई. बाद में पुलिस द्वारा फोन करने पर वह घडि़याली आंसू बहाते हुए घटनास्थल पर पहुंची, लेकिन उस की चालाकी धरी की धरी रह गई. अंतत: वह वहां पहुंच गई, जहां उसे अपने कर्मों की सजा भोगनी है.

कथा लिखे जाने तक उपमुखिया संगीता गिरफ्तार की जा चुकी थी. तीनों आरोपियों लल्लन यादव, संतोष चौधरी और निशांत यादव के साथ वह भी जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गई. पुलिस ने केस की तफ्तीश कर चारों के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Chhattisgarh Crime : मुंह औन नाक पर टेप लगाकर पूरे परिवार के साथ दोस्‍त को भी मार डाला

Chhattisgarh Crime : 2 शादियां करने वाले रवि शर्मा ने योजना तो जोरदार बनाई थी, लेकिन वह यह भूल गया कि ऐसी योजनाएं सफल हों, जरूरी नहीं है. उस ने अपनी पत्नी मंजू, बेटी निशा और दोस्त को भले ही मार डाला पर…     छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की भिलाई नगरी इस्पात संयंत्र के कारण देश भर में विख्यात है. रवि शर्मा भिलाई के पौश इलाके तालपुरी इंटरनैशनल कालोनी में रहता था. 19 जनवरी, 2020 को वह किसी उधेड़बुन में घर से निकला. उस ने सोच रखा था कि आज उसे कुछ ऐसा करना है कि दूसरी पत्नी मंजू से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए.

इसी बारे में सोचते हुए वह पैदल ही स्थानीय सिविक सेंटर की ओर बढ़ गया. उस के कदम देसी शराब की दुकान के पास रुके. वहीं खड़ा हो कर वह हरेक आनेजाने वाले को ध्यान से देखने लगा. तभी अचानक उस की निगाह एक शख्स पर जा कर ठहर गई. रवि के दिमाग में जो खतरनाक प्लान था, उसे देखते ही पूरा होता दिखाई दिया. उस के पास जा कर चहकते हुए बोला, ‘‘अरे राजू, इधर आओ.’’

राजू ने उस की ओर देखा और मुसकराते हुए बोला, ‘‘भाई रवि, बहुत दिनों बात दिखे.’’

‘‘हां यार, आजकल काम कुछ ज्यादा बढ़ गया है,’’ कहते हुए रवि शर्मा ने उस के कंधे पर हाथ रख कर प्यार से कहा, ‘‘चलो, आज पार्टी करते हैं.’’

‘‘पार्टी! कैसी पार्टी भाई?’’ राजू ने पूछा.

‘‘बस तुम से मिलने की खुशी में. चलो, मैं बोतल ले आता हूं, घर चल कर खाएंगेपिएंगे.’’ रवि शर्मा ने राजू को उकसाया. राजू शराब की दुकान की ओर देखते हुए बोला, ‘‘वैसे तो मेरी इच्छा नहीं है, मगर तुम कह रहे हो तो चलो ठीक है.’’

‘‘ठीक है, तुम यहीं ठहरो मैं बोतल ले आऊं.’’ कह कर रवि राजू को वहीं ठहरने की बात कह कर सिविक सेंटर के पास स्थित शराब की दुकान की तरफ बढ़ गया. बढ़ते कदमों के साथ उस के चेहरे पर कई हावभाव आजा रहे थे. जल्दीजल्दी उस ने शराब खरीदी और राजू के पास आ गया. राजू उस की कदकाठी और उम्र का था, फिर भी रवि ने पूछा, ‘‘राजू, तुम्हारी उम्र क्या होगी?’’

‘‘32 साल,’’ राजू बोला.

‘‘मैं 35 साल का हूं. देखो, कितनी समानता है हम दोनों की उम्र और कदकाठी में.’’ कह कर रवि ने उस का हाथ हाथों में ले लिया. दोनों तालपुरी इंटरनैशनल कालोनी की तरफ चल दिए. रवि राजू को ले कर अपने घर पहुंचा. घर पहुंचते ही उस ने राजू को पत्नी मंजू से मिलाते हुए कहा, ‘‘मंजू, यह मेरा बहुत खास दोस्त राजू है, बहुत दिनों बाद मिला है. आज इस के साथ पार्टी होगी.’’

मंजू ने मुसकरा कर राजू का स्वागत किया. फिर रवि और राजू एक कमरे में बैठ गए. रवि ने पहले से ही साजिश रच ली थी. उसी योजना के तहत वह राजू को अपना शिकार बनाना चाहता था. उसी साजिश को अमलीजामा पहनाने के लिए रवि ने शराब गिलास में डालतेडालते चालाकी से राजू के गिलास में नींद की गोलियां डाल दीं. शराब के नशे के साथ राजू पर नींद की गोलियों का असर हुआ तो वह वहीं लुढ़क गया. उस के लुढ़कने से रवि खुश हुआ. वह मंजू के पास जा कर बोला, ‘‘मंजू, यह आदमी बहुत खतरनाक है. यह तुम्हारी और मेरी जिंदगी बरबाद करने पर तुला हुआ है.’’

‘‘कैसे?’’ मंजू ने उत्सुकतावश पूछा.

‘‘यह मुझे ब्लैकमेल करता है.’’ रवि ने कहा.

‘‘क्या कहता है?’’ मंजू ने पूछा.

‘‘कहता है कि पैसे दो नहीं तो हम दोनों के बारे में संगीता से शिकायत कर हमारा भंडाफोड़ कर देगा. अब मैं इसे पैसे कहां से दूं.’’ शर्मा ने असहाय भाव से कहा. दरअसल, रवि शर्मा की शादी संगीता से हुई थी, जिस से 2 बच्चे भी थे. इस के बाद भी उस ने मंजू को अपने जाल में फांस लिया और उसे अपनी दूसरी पत्नी बना कर उस के साथ रह रहा था. लेकिन मंजू उस के गले की फांस बन चुकी थी, इसलिए उस से छुटकारा पाने के लिए ही उस ने यह एक नई साजिश रची थी. इस के लिए उस ने मंजू से कहा, ‘‘मंजू, मैं राजू का काम खत्म करने वाला हूं. इस में तुम मेरी मदद करो. देखो, मना मत करना. तुम मेरी जिंदगी हो, तुम्हारे बगैर मैं कैसे जिंदा रहूंगा.’’

यह सुन कर मंजू शर्मा ने रवि की ओर प्यार से देखा. ‘‘मंजू, तुम मेरा साथ दो. इसे छत से नीचे फेंक देते हैं, इस का काम तमाम हो जाएगा.’’ वह बोला.

‘‘मगर कोई देख लेगा तो…और अगर यह घायल हो कर बच गया तो?’’ मंजू ने संशय व्यक्त किया. ‘‘तो ऐसा करते हैं, मैं इसे यहीं मौत की नींद सुला देता हूं. बेहोशी की हालत में ही इस के मुंह नाक पर टेप लगा देता हूं. सांस रुकने से यह छटपटा कर मर जाएगा. बाद में इसे कहीं ठिकाने लगा दूंगा.’’ रवि शर्मा की मीठीमीठी बातों में आ कर मंजू ने स्वीकृति दे दी. मंजू को छोड़ कर रवि शर्मा फिर राजू के पास आया, जो बेसुध पड़ा था.

रवि ने घर में पहले से ला कर रखा टेप निकाला और उस के मुंह और नाक पर अच्छे से चिपका दिया. इस के बाद उस के हाथपैर भी बांध दिए. फिर गमछे से उस का गला घोट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने उस के मुंह और नाक से टेप हटा दिया और हाथपांव खोल कर उसे अपने कपड़े पहना दिए. यह सब करतेकरते उस के दिमाग में यह योजना जन्म ले रही थी कि दूसरी पत्नी मंजू को कैसे ठिकाने लगाए. इसी उधेड़बुन में वह मंजू के पास जा कर बोला, ‘‘काम तमाम हो गया है. अब तुम और मैं जिंदगी भर मौजमजे करेंगे.’’

मंजू सहमी सी बिस्तर पर बैठी अपनी डेढ़ महीने की बच्ची को दूध पिला रही थी. पति की बात सुन कर वह उठ बैठी और घबरा कर पूछा, ‘‘क्या तुम ने सचमुच उसे मार डाला?’’

‘‘हां, और दूसरा रास्ता ही क्या था?’’

‘‘मुझे तो बहुत डर लग रहा है.’’ कह कर डरीसहमी मंजू पति रवि शर्मा की ओर देखने लगी.

‘‘अरे डरो नहीं, तुम्हें यह भूत बन कर नहीं डराएगा.’’ रवि शर्मा ने मंजू को कुछ डराने की नीयत से कहा तो मंजू डर कर कांपने लगी और नन्ही बालिका को सीने से लगा लिया. रवि मन ही मन खुश होते हुए बोला, ‘‘तुम नींद की एक गोली खा लो और आराम से सो जाओ. बाकी मैं देख लूंगा.’’

रवि ने एक गिलास में 6 गोलियां घोल कर मंजू को थमा दिया. मंजू डरी हुई थी. गोलियों का पानी पी कर वह सो गई तो रवि शर्मा अपनी सोचीसमझी योजना के तहत उस का काम तमाम करने की जुगत में लग गया. जब मंजू गहरी नींद में चली गई तो उस ने जैसे राजू को मौत के घाट उतारा था, वैसे ही वह मंजू के मुंहनाक पर टेप चिपकाने लगा. फिर उस के मुंह में कपड़ा ठूंस उस की भी गला घोट कर हत्या कर दी. डेढ़ माह की नन्ही बालिका निशा जब रोने लगी तो रवि शर्मा ने उसे गोद में उठा लिया. वह सोचने लगा, ‘अब क्या करूं?’

उस के दिमाग में आया कि निशा को भी मार दिया जाए. फिर सोचा नहीं…नहीं यह नन्ही बच्ची उस के प्यार की निशानी है. यह उसे ले जा कर संगीता की गोद में डाल देगा. जहां 2 बच्चे पल रहे हैं, ये भी पल जाएगी. लेकिन संशय यह था कि संगीता उसे स्वीकार करेगी या नहीं.

‘नहीं…नहीं, संगीता और बच्चे इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे.’ यह सोच कर उस की आंखें भर आईं. नन्ही सी बालिका निशा उसे बहुत प्यारी थी. जब वह मुसकराती तो रवि निहाल हो जाता था. वह उसे गोद में ले कर अचानक जोरजोर से रोने लगा. आंसू बह निकले तो मन थोड़ा मजबूत हुआ. उस ने सोचा कि जब इस की मां ही मर गई तो यह जिंदा रह कर क्या करेगी? रवि शर्मा ने यह निर्णय ले कर नन्ही बालिका की भी गला घोट कर हत्या कर दी और उसे मंजू के पास लिटा दिया. 3 हत्याएं कर के उस ने सोच लिया कि वह घटनास्थल पर ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देगा कि पुलिस तो क्या सीबीआई भी जांच करेगी तो उस तक नहीं पहुंच पाएगी.

रवि ने राजू को अपने कपड़े पहना ही दिए थे. उस ने तीनों लाशें एक कमरे में ला कर डाल दीं, फिर राजू के पास गैस चूल्हा रख कर गैस जला दी. धीरेधीरे वह राजू का सिर लकड़ी के गुटके से जलाने लगा. इसी दौरान उस ने घर के दरवाजे पर चाक से लिखा, ‘मैं मंजू से प्यार करता था, उस ने मुझ से शादी नहीं की. बदला…बदला, मैं रवि शर्मा के परिवार को मार रहा हूं. मंजू को मार रहा हूं. संजय आर्मी.’

रवि को लगा कि थोड़ी देर बाद गैस सिलेंडर से राजू जल जाएगा, घर में आग लग जाएगी. सिलेंडर ब्लास्ट हो जाएगा. सब जल कर खत्म  हो जाएंगे. लकड़ी के गुटके में आग लगाने के बाद वह स्कूटी से स्टेशन की ओर निकल गया, फिर वहां से ट्रेन पकड़ कर राउरकेला, ओडिशा चला गया. उसे अपनी पत्नी संगीता और बच्चों के पास जाना था. उस ने रायपुर स्टेशन पर पीसीओ से अपनी सास मालती सूर्यवंशी को तड़के में काल की, ‘‘आ कर देख लो, तुम्हारे दामाद और बेटी की मौत. दोनों जल कर मर रहे हैं.’’

इस के बाद वह संगीता से मिलने के लिए हमसफर एक्सप्रैस में चढ़ गया. रवि ने आग यह सोच कर लगाई थी कि जब घर में आग लग जाएगी तो तीनों लाशें जल जाएंगी. लेकिन लकड़ी के गुटके में आग लगने पर केल राजू का सिर व चेहरा ही जला था. इस के बाद आग आगे नहीं बढ़ पाई थी. 22 जनवरी, 2020 बुधवार की सुबह रिसाली अशोक नगर की रहने वाली मंजू की मां मालती सूर्यवंशी ने जब अज्ञात शख्स की धमकी सुनी तो वह घबराई और अपने पति और बेटे के साथ वह बेटी मंजू के घर पहुंची. वहां का भयावह दृश्य देख कर वह जोरजोर से रोने लगी. घटना की सूचना मालती ने कोतवाली पुलिस को दे दी. घटना की जानकारी मिलते ही भिलाई नगर कोतवाली के प्रभारी सुरेश धु्रव मौके पर पहुंचे. घटनास्थल पर 3 लाशें पड़ी थीं.

मालती सूर्यवंशी ने पुलिस को बताया कि उस की बेटी मंजू वहां अपने पति रवि शर्मा और बेटी निशा के साथ रह रही थी. पुलिस को उस ने यह भी जानकारी दी कि उसे सुबहसुबह मोबाइल पर एक धमकी भरी काल आई थी. प्रथमदृष्टया मामला हत्या का प्रतीत हो रहा था. पुलिस का ध्यान जांच के दरम्यान दरवाजे पर लिखे मैसेज पर गया, जिस का सार था, इस हत्याकांड को संजय देवांगन आर्मी ने अंजाम दिया है. पुलिस दल ने मौकामुआयना शुरू किया. फोरैंसिक टीम भी आ गई. जांच अधिकारी सुरेश धु्रव ने शहर में हुए तिहरे मर्डर की ब्यौरेवार जानकारी एसएसपी अजय, एडीशनल एसपी लखन पटले, एसपी (सिटी) अजीत कुमार यादव को दी. लखन पटले स्वयं मौके पर पहुंचे और टीआई सुरेश धु्रव को गंभीरता से जांच कर आरोपी को गिरफ्तार करने के सख्त निर्देश दिए.

यह ट्रिपल मर्डर अपने आप में अजीब पेंच लिए हुए था, जिसे ब्लाइंड मर्डर भी कह सकते हैं. जिस में सूत्र से सूत्र मिला कर आरोपी तक पहुंचना था. दूसरी ओर रिसाली अशोक नगर की ललिता भिलाई थाने पहुंची. उस ने बताया कि उस का पति राजू 21 जनवरी से लापता है. राजू की पत्नी ललिता ने बताया कि उस का पति कुछ समय से अस्वस्थ चल रहा था और घर पर ही आराम कर रहा था.  21 जनवरी, 2020 की शाम को वह घर से निकला था और फिर वापस नहीं लौटा था. एन. राजू के 2 बच्चे हैं. ललिता ने पुलिस को बताया कि वह कल्पकृति अपार्टमेंट में लोगों के यहां काम कर के परिवार का पालनपोषण करती है. घर वालों की बातों से यह साफ हो गया था कि घटनास्थल पर जिस की लाश मिली, वह रवि नहीं था. पुलिस ने वह लाश राजू की पत्नी ललिता को दिखाई तो उस ने उसे अपने पति के रूप में पहचान लिया.

शव की पहचान के साथ ही पुलिस के हाथ एक बड़ा क्लू हाथ लग चुका था. इधर जब ललिता की बहन रंगममा ने भी राजू की शिनाख्त कर ली तो मंजू की मां मालती सूर्यवंशी व घर वालों ने भी राजू के शव को गौर से देख कर बताया कि वह रवि शर्मा का शव नहीं है. रवि शर्मा और मंजू के विवाह की सारी कहानी मालती ने टीआई को बता दी. उस के अनुसार उस की बेटी मंजू सूर्यवंशी का विवाह पहले भी हुआ था. पहले पति महेश ने उसे छोड़ दिया था. मंजू नेहरू नगर, रायपुर में एक कपड़ा दुकान में नौकरी करती थी. यहीं उस की मुलाकात रवि शर्मा से हुई और फिर प्रेम संबंध होने पर दोनों ने 22 नवंबर, 2017 को विवाह कर लिया था. नवंबर 2019 में 2 वर्ष बाद मंजू को एक बेटी निशा हुई थी.

मां मालती ने बताया कि मंजू का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं था. रवि शर्मा की पहली शादी और बच्चों के बारे में जानकारी मिलने के बाद रवि और संगीता में कलह बढ़ती जा रही थी. रवि शराबी था और घर में रुपएपैसों की किल्लत रहती थी. मंजू अकसर मां से कहती थी कि मां मैं तो कुएं से निकल कर खाई में गिर गई. जांच अधिकारी सुरेश धु्रव ने जांच में तेजी ला कर रवि शर्मा के राउरकेला स्थित घर पत्नी और बच्चों के बारे में पता किया. उन्हें जानकारी मिली कि रवि शर्मा पत्नी संगीता से अकसर बात करता था. जब फोन पर संगीता से बात हुई तो उस ने बताया कि आज हमसफर एक्सप्रैस से रवि शर्मा राउरकेला, ओडिशा पहुंचने वाला है.

टीआई सुरेश धु्रव ने राउरकेला आरपीएफ व जीआरपी से बात कर के रवि शर्मा का फोटो भेज दिया. साथ ही बताया कि वह छत्तीसगढ़ में 3 हत्याएं कर के हमसफर एक्सप्रैस से राउरकेला पहुंच रहा है. राउरकेला में फोटो के आधार पर रवि शर्मा को धर दबोचने के लिए स्टेशन पर पूरी तैयारी हो गई. जब हमसफर एक्सप्रैस स्टेशन पर पहुंची तो रवि शर्मा जीआरपी के हत्थे चढ़ गया. उसे गिरफ्तार कर के भिलाई ला कर पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया. जांचपड़ताल में पहले तो रवि शर्मा ने बहुत होशियारी दिखानी चाही और खुद को बेगुनाह बताता रहा. मगर जब पुलिस ने उस के खिलाफ साक्ष्य दिखाने शुरू किए तो वह टूट गया और पूरा घटनाक्रम पुलिस के सामने बयान करता चला गया.

पुलिस को दिए इकबालिया बयान में रवि शर्मा ने बताया कि वह मूलत: गया, बिहार का निवासी है. उस की शादी सन 2015 में धनबाद की संगीता कुमारी से हुई थी. उस के 2 बच्चे हैं. वह कारपेंटर है और सन 2015 में काम की तलाश में रायपुर आ गया था. यहीं कपड़े की दुकान में उस की मुलाकात मंजू सूर्यवंशी से तब हुई जब वह वहां कारपेंटरी का काम करने गया था. दोनों का प्रेम परवान चढ़ा और शारीरिक संबंध बने तो मंजू ने शादी का दबाव डाला. ऐसा न करने पर उस ने बलात्कार के जुर्म में जेल भिजवाने की धमकी दी थी. विवश हो कर रवि शर्मा ने उस से शादी कर ली मगर वह आए दिन उस से झगड़ा करती. वह ढेर सारा रुपया चाहती थी.

उसी की जिद की वजह से भिलाई नगर की पौश कालोनी में किराए पर मकान ले कर रहना पड़ रहा था, उस का मन करता था कि वह पहली पत्नी संगीता और बच्चों के साथ बाकी का जीवन बिताए. लेकिन राह में रोड़ा मंजू थी. उसे हटाने के लिए अंत में उस ने खतरनाक कदम उठाया. अपने आप को बचाने के लिए अपनी कदकाठी के आदमी की जरूरत थी. ऐसे में उसे राजू सही लगा. फिर उस ने राजू को शराब पिला कर मार डाला और यह सिद्ध करने की कोशिश की कि राजू दरअसल राजू नहीं, बल्कि रवि शर्मा है.

पुलिस को जांच में मशक्कत करनी पड़े, इस के लिए उस ने चाक से दरवाजे पर संजय आर्मी एक काल्पनिक नाम लिखा ताकि पुलिस उसे ही ढूंढती रह जाए. मगर कहते हैं कि अपराधी लाख कोशिश कर ले, मगर कहीं न कहीं सच के सूत्र, सबूत ऐसे होते हैं जो चीखचीख कर आरोपी की चुगली करते हैं और एक दिन उसे सजा दिलाने में कामयाब हो जाते हैं. रवि शर्मा के साथ भी यही हुआ. वह चालाकी तो करता रहा मगर उस की सारी चालाकी धरी की धरी रह गई और 24 घंटों के भीतर ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने 23 जनवरी, 2020 को रवि शर्मा को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत के आधार पर

 

MP News : पिता ने बेटी को जबरन जहर पिलाया और पत्थर से कूच कर मार डाला

MP News : मांबाप अगर शुरू से ही जिद्दी बच्चों पर निगाह रखें और उन की गैरवाजिब बातों को न मानें तो बच्चों का स्वभाव बदल सकता है. अगर रोशनी के साथ ऐसा किया जाता तो स्थिति यहां तक न पहुंचती. बेटा हो या बेटी, कोई भी पिता ऐसा नहीं चाहता कि…

मां डू का नाम तो जरूर सुना होगा. वही मांडू जहां की रानी रूपमती थीं, बाजबहादुर थे. उन की प्रेमकहानी है. आज भी वहां की मिट्टी में सैकड़ों साल पहले की गंध है. इसी गंध के लिए फरवरी, खासकर वैलेंटाइन डे पर तमाम प्रेमी जोड़े मांडू पहुंचते हैं. संभव है, इसीलिए मांडू की धरा की मिट्टी से रसीली गंध फूटती हो. मांडू मध्य प्रदेश के जिला धार में आता है. लेकिन धार उतना प्रसिद्ध नहीं है, जितना मांडू. बात इसी मांडू की है. 6 फरवरी, 2020 को तिर्वा के रहने वाले अजय सिंह पाटीदार ने फोन पर थाना मांडू के प्रभारी जयराज सोलंकी को फोन पर बताया कि सातघाट पुलिया के पास एक किशोरी की लाश पड़ी है, जिस का सिर कुचला हुआ है.

उस वक्त शाम के 5 बजने को थे. सूचना मिलते ही टीआई जयराज सोलंकी पुलिस टीम ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां सातघाट पुलिया के पास सूखी नदी के किनारे, पत्थरों के बीच 17-18 साल की एक किशोरी का शव पड़ा था, जिस का सिर कुचल दिया गया था. मृतका ने स्कूल ड्रैस पहन रखी थी. साथ ही वह ठंड से बचने के लिए ट्रैकसूट पहने थी. टीआई सोलंकी ने अनुमान लगाया कि मृतका आसपास के किसी स्कूल में पढ़ती होगी. हत्या एक युवती की हुई थी, इसलिए हत्या के साथ बलात्कार की आशंका भी थी. अंधेरा घिरने में ज्यादा देर नहीं थी.

थानाप्रभारी ने आसपास के क्षेत्रों के लोगों को बुला कर लाश दिखाई. लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. इस पर अजय सिंह सोलंकी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए धार के जिला अस्पताल भेज दी. साथ ही इस मामले की सूचना एसपी आदित्य प्रताप सिंह को भी दे दी. एसपी के निर्देश पर वायरलैस से धार जिले के सभी थानों को स्कूल गर्ल का शव मिलने की सूचना दे दी गई. हाल ही में पदस्थ बीएसएफ के एक कांस्टेबल ने थाने आ कर थानाप्रभारी सोलंकी को बताया कि 6 फरवरी, 2020 की रात लगभग 7 साढ़े 7 बजे जब वह बागड़ी फांटा के पास स्थित पैट्रोल पंप पर अपनी मोटरसाइकिल में पैट्रोल डलवा रहा था, तभी वहां एक इनोवा गाड़ी आई, जिस में से युवक उतरा. उस ने पैट्रोल भरने वाले को 1000 रुपए दे कर कार में डीजल डालने को कहा.

इसी बीच कार में एक युवती की ‘बचाओ बचाओ’ की आवाज सुनाई दी. इस पर डीजल भरवाने के लिए उतरा युवक बिना डीजल डलवाए ही चला गया. उस ने पैट्रोल भरने वाले से हजार रुपए भी वापस नहीं लिए. बीएसएफ के कांस्टेबल ने यह भी बताया कि उस ने कार के बारे में पूछा था, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली. युवती का शव मांडू नालछा मार्ग पर मिला था. अजय सिंह सोलंकी ने पैट्रोल पंप पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी, जिस में संदिग्ध कार तो दिखी पर कार के नंबर को नहीं पढ़ा जा सका. नहीं हो पाई पहचान दूसरे दिन जिला अस्पताल में पोस्टमार्टम से पहले एफएसएल अधिकारी पिंकी मेहरडे ने शव की जांच की. पता चला कि हत्या के समय मृतका का मासिक धर्म चल रहा था, इसलिए बलात्कार की बात पोस्टमार्टम से ही साफ हो सकती थी.

एफएसएल अधिकारी ने यह शंका जरूर जाहिर की कि चूंकि शव के नाखून नीले पड़ गए हैं, इसलिए उस का सिर कुचलने से पहले उसे जहर दिए जाने की आशंका है. जबकि घटनास्थल की जांच में करीब 16 फीट की दूरी तक खून फैला मिला था. इस से अनुमान लगाया गया कि मृतका की हत्या वहीं की गई थी. दूसरे दिन जिला अस्पताल में युवती के शव का पोस्टमार्टम किया गया, जिस से पता चला कि हत्या से पहले उस के साथ बलात्कार नहीं हुआ था. पोस्टमार्टम तो हो गया, लेकिन हत्यारों तक पहुंचने के लिए उस की पहचान होना जरूरी था. क्योंकि बिना शिनाख्त के जांच की दिशा तय नहीं की जा सकती थी. चूंकि मृतका स्कूल ड्रैस में थी, इसलिए जिले के अलावा आसपास के जिलों के स्कूलों से भी किसी छात्रा के लापता होने की जानकारी जुटाई जाने लगी.

इसी दौरान खरगोन के गोगांव का रहने वाला एक दंपति शव की पहचान के लिए मांडू आया. उन की बेटी पिछले 4-5 दिनों से लापता थी. इस से पुलिस को शिनाख्त की उम्मीद बंधी, लेकिन शव देख कर उन्होंने साफ कह दिया कि शव उन की बेटी का नहीं है. इस के 4 दिन बाद एसपी धार आदित्य प्रताप सिंह ने इस केस की जांच की जिम्मेदारी एसडीओपी (बदनावर) जयंत राठौर को सौंप दी. साथ ही उन का साथ देने के लिए एक टीम भी बना दी, जिस में एसडीओपी (धामनोद) एन.के. कसौटिया, टीआई (मांडू) जयराज सिंह सोलंकी, टीआई (कानवन) कमल सिंह, एएसआई त्रिलोक बौरासी, प्रधान आरक्षक रविंद्र चौधरी, संजय जगताप, राजेंद्र गिरि, रामेश्वर गावड़, सखाराम, आरक्षक राजपाल सिंह, प्रशांत लोकेश व वीरेंद्र को शामिल किया गया.

5 दिन बीत जाने के बाद भी शव की शिनाख्त नहीं हो सकी, जो पहली जरूरत थी. इस पर एसडीओपी जयंत राठौर और एन.के. कसौटिया ने उस संदिग्ध कार को खोजने में पूरी ताकत लगा दी, जो घटना से एक रात पहले बागड़ी फांटा के पैट्रोल पंप पर देखी गई थी. सीसीटीवी फुटेज में कार का नंबर साफ नहीं दिख रहा था. पुलिस ने चारों तरफ 2 सौ किलोमीटर के दायरे में स्थित टोलनाकों के सीसीटीवी फुटेज खंगालनी शुरू कर दीं. लेकिन संदिग्ध इनोवा कार के नंबर की पहचान इस से भी नहीं हो सकी. हां, पुलिस को इतना सुराग जरूर मिल गया कि कार के नंबर के पीछे के 2 अंक 77 हैं और उस के सामने वाले विंडस्क्रीन पर काली पट्टी बनी है.

पुलिस के पास इस के अलावा कोई सुराग  नहीं था. एसडीओपी जयंत राठौर के निर्देश पर उन की पूरी टीम जिले भर में ऐसी कारों की खोज में जुट गई, जिस के रजिस्ट्रेशन नंबर में अंतिम 2 अंक 77 हों और उस की सामने वाली विंडस्क्रीन पर काली पट्टी बनी हो. इस कवायद में 460 इनोवा कारों की पहचान हुई. इन सभी के मालिकों से संपर्क किया गया. अंतत: इंदौर के मांगीलाल की इनोवा संदिग्ध कार के रूप में पहचानी गई, मांगीलाल ने बताया कि कुछ दिन पहले उन की कार उन के बेटे ऋषभ का दोस्त मुकेश, जो गांव पटेलियापुरा का रहने वाला है, मांग कर ले गया था.

मुकेश को कार चलाना नहीं आता था, इसलिए वह अपने एक दोस्त पृथ्वीराज सिंह को भी साथ लाया था. मांगीलाल से मुकेश और पृथ्वीराज के मोबाइल नंबर भी मिल गए. लेकिन दोनों के मोबाइल स्विच्ड औफ थे. पटेलियापुरा मांडू इलाके का ही छोटा सा गांव है. इसलिए एसडीओपी जयंत राठौर समझ गए कि उन की जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही है. शक को और पुख्ता करने के लिए उन्होंने साइबर सेल के आरक्षक प्रशांत की मदद से मुकेश और पृथ्वीराज सिंह के मोबाइल की लोकेशन निकलवाई. घटना वाली रात उन की लोकेशन उसी स्थान की मिली, जहां दूसरे दिन सुबह युवती की लाश मिली थी. सही दिशा में जांच

इस से यह साफ हो गया कि अज्ञात युवती की लाश का कुछ न कुछ संबंध मुकेश और पृथ्वीराज सिंह से रहा होगा, जिस के चलते जयंत राठौर ने गांव में अपने मुखबिर लगा दिए. जल्द ही पता चल गया कि मुकेश के चचेरे भाई ईश्वर पटेल की बेटी रोशनी 7 फरवरी से लापता है. उस ने बेटी के गायब होने की सूचना भी पुलिस को नहीं दी थी. पता चला रोशनी नालछा के उत्कृष्ट विद्यालय में 12वीं में पढ़ती थी. किशोर बेटी घर से गायब हो और पिता हाथ पर हाथ रख कर बैठा रहे, ऐसा तभी होता है जब पिता को बेटी का कोई कृत्य नश्तर की तरह चुभ रहा हो. बहरहाल, मृतका की शिनाख्त ईश्वर पटेल की बेटी रोशनी के रूप में हो गई.

एसडीओपी जयंत राठौर और एन.के. कसौटिया के निर्देश पर टीआई (मांडू) जयराज सोलंकी, टीआई (कानवन) गहलोत की टीम ने गांव से ईश्वर और उस की पत्नी को पूछताछ के लिए उठा लिया. जबकि ईश्वर का चचेरा भाई संदिग्ध मुकेश और उस का दोस्त पृथ्वीराज सिंह अपने घरों से लापता थे. संदिग्ध के तौर पर ईश्वर पटेल को पुलिस द्वारा उठा लिए जाने से गांव के लोग आक्रोशित हो गए. उन का कहना था कि ईश्वर ऐसा काम नहीं कर सकता. गांव के लोग इस बात से भी नाराज थे कि पुलिस द्वारा पिता को हिरासत में ले लिए जाने की वजह से रोशनी का अंतिम संस्कार नहीं हो पा रहा है. एसडीओपी जयंत राठौर को अभी मुकेश और पृथ्वीराज सिंह की तलाश थी, जो घटना के बाद गुजरात भाग गए थे.

दोनों की तलाश में मुखबिर लगे हुए थे, जिन से 14 फरवरी को दोनों के गुजरात से वापस लौटने की खबर मिली. पुलिस ने घेरेबंदी कर दोनों को बामनपुरी चौराहे पर घेर कर पकड़ लिया. थाने में पूछताछ के दौरान सभी आरोपी रोशनी की हत्या के बारे में कुछ भी जानने से इनकार करते रहे, लेकिन ईश्वर के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि जवान बेटी के लापता हो जाने के बाद उस ने पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज करवाई. उसे खोजने के बजाय वह घर में क्यों बैठा रहा. अंतत: थोड़ी सी नानुकुर के बाद वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि रोशनी अपने प्रेमी करण के साथ भागने की तैयारी कर रही थी. उसे इस बात की जानकारी लग चुकी थी, इसलिए अपनी इज्जत बचाने के लिए उस ने चचेरे भाई मुकेश से बात की. मुकेश ने अपने दोस्त के साथ मिल कर रोशनी की हत्या कर दी.

आरोपियों द्वारा पूरी कहानी बता देने के बाद पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. किशोरी रोशनी की हत्या के पीछे जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी. गांव पटेलियापुरा में रहने वाले ईश्वर पटेल की 19 वर्षीय बेटी रोशनी की खूबसूरती तभी चर्चा का विषय बन गई थी, जब उस ने किशोरावस्था में प्रवेश किया था. चंचल स्वभाव और पढ़नेलिखने में तेज रोशनी स्वभाव से काफी तेज थी. अगर पढ़ाईलिखाई में तेज होने के साथसाथ दिलदिमाग और चेहरामोहरा खूबसूरत हो तो ऐसी लड़की को पसंद करने वालों की कमी नहीं रहती. पिता ईश्वर पटेल बेटी की इन खूबियों से परिचित था, इसलिए उस ने नौंवी क्लास के बाद आगे पढ़ने के लिए उस का दाखिला नालछा के उत्कृष्ट विद्यालय में करा दिया था.

इंसान की हर उम्र की अपनी एक मांग होती है. रोशनी ने जब किशोरावस्था से यौवन में प्रवेश करने के लिए कदम बढ़ाए तो उसे किसी करीबी मित्र की जरूरत महसूस हुई. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब दिल किसी को ढूंढने लगे तो सब से पहले आसपास ही नजर जाती है, खासकर लड़कियों के मामले में. रोशनी के साथ भी यही हुआ. उसे करण मन भा गया. करण रोशनी के पिता के दोस्त का बेटा था. पारिवारिक दोस्ती के कारण रोशनी के हमउम्र करण का उस के घर में आनाजाना था. सच तो यह है कि करण रोशनी का तभी से दीवाना था, जब से उस ने अपना पहला पांव किशोरावस्था में रखा था. लेकिन रोशनी के तीखे तेवरों के कारण उस ने आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं की थी.

करण से हो गया प्यार करण के साथ रोशनी की अच्छी पटती थी. लेकिन उस ने करण की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया था. लेकिन जब उस के दिल में प्यार की चाहत जागी तो सब से पहले करण पर ही निगाहें पड़ीं. मन में कुछ हुआ तो वह करण का विशेष ध्यान रखने लगी. जब यह बात करण की समझ में आई तो उस ने भी हिम्मत कर के रोशनी की तरफ कदम बढ़ाने की कोशिश की. एक दिन मौका पा कर उस ने रोशनी को फोन लगा कर उस से अपने दिल की बात कह दी. रोशनी मन ही मन करण से प्यार करने लगी थी, इसलिए उस ने करण का प्यार स्वीकारने में जरा भी देर नहीं लगाई. इस के बाद दोनों घर वालों से नजरें बचा कर मिलने लगे.

रोशनी बचपन से ही जिद्दी और तेजतर्रार थी. यही वजह थी कि जब उस के सिर पर करण की दीवानगी का भूत चढ़ा तो उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह करण से ही शादी करेगी. इसी सोच के चलते वह करण पर खुल कर प्यार लुटाने लगी. इतना ही नहीं, छोटे से गांव में वह करण से चोरीछिपे मिलने से भी नहीं डरती थी. जब भी उस का मन होता, गांव के किसी सुनसान खेत में करण को मिलने के लिए बुला लेती. नतीजा यह हुआ कि एक रोज गांव के कुछ लोगों ने दोनों को सुनसान खेत में एकदूसरे का आलिंगन करते देख लिया. फिर क्या था, यह खबर जल्द ही रोशनी के पिता ईश्वर तक पहुंच गई.

ईश्वर को पहले तो इस बात पर भरोसा नहीं हुआ, लेकिन जब उस ने रोशनी और करण पर नजर रखना शुरू किया तो जल्द ही सच्चाई सामनेआ गई. ईश्वर पटेल यह बात जानता था कि रोशनी जिद्दी है, इसलिए उस ने उसे कुछ कहने के बजाय कुछ और ही फैसला कर लिया. उस ने रोशनी की शादी करने की ठान ली. रोशनी को बिना बताए उस ने बेटी के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. रोशनी के सौंदर्य और गुणों की चर्चा रिश्तेदारों और बिरादरी में थी. उस के लिए एक से बढ़ कर एक रिश्ते मिलने लगे. लेकिन रोशनी करण के साथ शादी करने का फैसला कर चुकी थी, इसलिए पिता द्वारा पसंद किए गए हर लड़के को वह नकारने लगी. इस से ईश्वर पटेल परेशान हो गया.

इसी बीच कत्ल से कुछ दिन पहले रोशनी के लिए एक अच्छा रिश्ता आया. इतना अच्छा कि इस से अच्छा वर वह बेटी के लिए नहीं खोज सकता था. इसलिए उस ने रोशनी पर दबाव डाला कि वह इस रिश्ते के लिए राजी हो जाए. लेकिन रोशनी टस से मस नहीं हुई. बेटी का हठ देख कर ईश्वर समझ गया कि रोशनी उस की नाक कटवाने पर तुली है. ईश्वर ने रोशनी पर नजर रखनी शुरू कर दी. इस से उस का अपने प्रेमी से मिलनाजुलना मुश्किल हो गया. यह देख कर रोशनी ने विद्रोह करने की ठान ली. उस ने वैलेंटाइन डे पर करण के साथ भाग कर शादी करने की योजना बना ली. चूंकि ईश्वर उस के ऊपर गहरी नजर रख रहा था, इसलिए उसे इस बात की जानकारी मिल गई.

कातिल ईश्वर जब कोई दूसरा रास्ता नहीं मिला तो उस ने अपनी इज्जत बचाने के लिए रोशनी को कत्ल करने की सोच ली. इस के लिए उस ने गांव में ही रहने वाले अपने चचेरे भाई मुकेश से बात की तो वह इस काम के लिए राजी हो गया. मुकेश को कार चलानी नहीं आती थी, इसलिए उस ने अपने एक दोस्त पृथ्वीराज सिंह पटेल को अपनी योजना में शामिल कर लिया. 5 फरवरी, 2020 को मुकेश अपने दोस्त ऋषभ से उस की इनोवा कार मांग कर ले आया और दोनों रोशनी के स्कूल पहुंच गए. दोनों ने मांडू घुमाने के नाम पर रोशनी और उस की एक सहेली पिंकी को कार में बैठा लिया.

मुकेश और पृथ्वी दोनों को ले कर दिन भर मांडू में घूमते रहे. इस बीच उन्होंने रोशनी को धामनोद ले जा कर नर्मदा पुल से फेंकने की योजना बनाई, लेकिन उस की फ्रैंड के साथ होने की वजह से उन्हें अपना इरादा बदलना पड़ा. शाम होने पर उन्होंने रोशनी की फ्रेंड पिंकी को सोड़पुर में उतार दिया. उस के बाद वे रोशनी को अज्ञात जगह की ओर ले कर जाने लगे. यह देख कर रोशनी ने अपने चाचा मुकेश से घर छोड़ने को कहा तो मुकेश बोला, ‘‘क्यों करण के संग मुंह काला करना है क्या?’’

चाचा के मुंह से ऐसी बात सुन कर वह डर गई. वह समझ गई कि मुकेश अब उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा. इसलिए उस ने अपने पिता को फोन कर जान की भीख मांगी. लेकिन ईश्वर ने उस की एक नहीं सुनी. इस बीच दोनों कार में डीजल डलवाने के लिए बागड़ी फांटे के पैट्रोल पंप पर रुके, जहां रोशनी के चिल्लाने पर एक पुलिस वाले को अपना पीछा करते देख वे वहां से डर कर भाग निकले. इस के बाद दोनों ने एक सुनसान इलाके में कार रोकी और रोशनी को जबरन जहर पिला दिया. फिर सातघाट पुलिया के पास ले जा कर उस का गला चाकू से रेतने के बाद पहचान छिपाने के लिए उस का चेहरा भी पत्थर से कुचल दिया.

आरोपियों ने सोचा था कि लाश की पहचान न हो पाने से पुलिस उन तक कभी पहुंच नहीं सकती, लेकिन एसडीओपी जयंत राठौर और एन.के. कसौटिया की टीम ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर उन्हें कानून की ताकत का अहसास करवा दिया.

Love Crime : मामा के प्यार में बेटी ने फावड़े से काटी मां और पापा की गर्दन

Love Crime : पिछले कुछ समय से करीबी रिश्तेदार ही अपनों के दुश्मन साबित हो रहे हैं. ऐसे में अपने स्वार्थों के चलते अगर घर का कोई सदस्य उन का साथ दे तो परिणाम बहुत घातक होते हैं. प्रवींद्र और संगीता सगे मामाभांजी थे, लेकिन जब उन्होंने मर्यादाएं लांघी तो अपने ही परिवार पर इतने भारी पड़े कि…

झा उस दिन जनवरी, 2020 की 2 तारीख थी. सुबह के 10 बज रहे थे. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह अपने कक्ष में मौजूद थे. तभी उन के कक्ष में सर्विलांस टीम प्रभारी शैलेंद्र सिंह ने प्रवेश किया. शैलेंद्र सिंह के अचानक आने पर वह समझ गए कि जरूर कोई खास बात है. उन्होंने पूछा, ‘‘शैलेंद्र सिंह, कोई विशेष बात?’’

‘‘हां सर, खास बात पता चली है, सूचना देने आप के पास आया हूं.’’ शैलेंद्र सिंह ने कहा.

‘‘बताओ, क्या बात है?’’ एसपी ने पूछा.

‘‘सर, 3 महीने पहले थाना गुरसहायगंज के गौरैयापुर गांव में जो डबल मर्डर हुआ था, उस के आरोपियों की लोकेशन पश्चिम बंगाल के हुगली शहर में मिल रही है. अगर पुलिस टीम वहां भेजी जाए तो उन की गिरफ्तारी संभव है.’’ शैलेंद्र सिंह ने बताया. शैलेंद्र सिंह की बात सुन कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह चौंक गए. इस की वजह यह थी कि इस दोहरे हत्याकांड ने उन की नींद उड़ा रखी थी. लोग पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर रहे थे. कानूनव्यवस्था को ले कर राजनीतिक रोटियां भी सेंकी जा रही थीं. दरअसल, गौरैयापुर गांव में रमेशचंद्र दोहरे और उन की पत्नी ऊषा की हत्या कर दी गई थी. उन की युवा बेटी संगीता घर से लापता थी. घर में लूटपाट होने के भी सबूत मिले थे. इसलिए यही आशंका जताई गई थी कि बदमाशों ने लूटपाट के दौरान दंपति की हत्या कर दी और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया.

लेकिन बाद में जांच से पता चला कि संगीता के अपने ममेरे भाई प्रवींद्र से नाजायज संबंध थे. इस से यह आशंका हुई कि कहीं इन दोनों ने ही तो इस हत्याकांड को अंजाम नहीं दिया. पुलिस उन की तलाश में जुटी थी और पुलिस ने उन दोनों की सही जानकारी देने वाले को 25-25 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर दिया था. उन के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगे थे, जिन की लोकेशन पश्चिम बंगाल के हुगली शहर की मिल रही थी. सर्विलांस टीम प्रभारी शैलेंद्र सिंह से यह सूचना मिलने के बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने तत्काल एएसपी के.सी. गोस्वामी को कार्यालय बुलवा लिया. उन्होंने उन्हें दोहरे हत्याकांड के आरोपियों के बारे में जानकारी दी. फिर उन के निर्देशन में एसपी ने एक पुलिस टीम गठित कर दी.

टीम में गुरसहायगंज के थानाप्रभारी नागेंद्र पाठक, इंसपेक्टर विजय बहादुर वर्मा, टी.पी. वर्मा, दरोगा मुकेश राणा, सिपाही रामबालक तथा महिला सिपाही कविता को सम्मिलित किया गया. यह टीम संगीता और प्रवींद्र की तलाश में पश्चिम बंगाल के हुगली शहर के लिए रवाना हो गई. 4 जनवरी को पुलिस टीम पश्चिम बंगाल के हुगली शहर पहुंच गई और स्थानीय थाना भद्रेश्वर पुलिस से संपर्क कर अपने आने का मकसद बताया. दरअसल, प्रवींद्र के मोबाइल फोन की लोकेशन उस समय भद्रेश्वर थाने के आरबीएस रोड की मिल रही थी, जो झोपड़पट्टी वाला क्षेत्र था. झोपड़पट्टी में ज्यादातर मजदूर लोग रह रहे थे. पुलिस टीम ने थाना भद्रेश्वर पुलिस की मदद से छापा मारा और एक झोपड़ी से संगीता और प्रवींद्र को हिरासत में ले लिया. जिस झोपड़ी से उन दोनों को हिरासत में लिया था, वह झोपड़ी नगमा नाम की महिला की थी.

पकड़ में आए प्रवींद्र और संगीता नगमा ने पुलिस को बताया कि करीब ढाई महीने पहले प्रवींद्र और संगीता ने झोपड़ी किराए पर ली थी. प्रवींद्र ने संगीता को अपनी पत्नी बताया था. दोनों मजदूरी कर अपना भरणपोषण करते थे. नगमा को जब पता चला कि दोनों हत्यारोपी हैं तो वह अवाक रह गई. पुलिस टीम ने संगीता और प्रवींद्र को हुगली की जिला अदालत में पेश किया. अदालत से ट्रांजिट रिमांड पर ले कर पुलिस दोनों को कन्नौज ले आई. एएसपी गोस्वामी तथा एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने संगीता और प्रवींद्र से एक घंटे तक पूछताछ की. पूछताछ में दोनों ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. हत्या का जुर्म कबूल करने के बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद ने प्रैसवार्ता कर दोहरे हत्याकांड का खुलासा किया.

प्रवींद्र और संगीता से की गई पूछताछ में मामाभांजी के कलंकित रिश्ते की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई—

उत्तर प्रदेश के कन्नौज का बड़ी आबादी वाला एक व्यापारिक कस्बा गुरसहायगंज है. यहां बड़े पैमाने पर आलू तथा तंबाकू का व्यवसाय होता है. बीड़ी के कारखानों में सैकड़ों मजदूर काम करते हैं. गुरसहायगंज कस्बा पहले फर्रुखाबाद जिले के अंतर्गत आता था लेकिन जब कन्नौज नया जिला बना तो यह कस्बा कन्नौज जिले का हिस्सा बन गया. इसी गुरसहायगंज कस्बे से करीब 5 किलोमीटर दूर सौरिख रोड पर बसा है एक गांव गौरैयापुर. कोतवाली गुरसहायगंज के अंतर्गत आने वाले इसी गांव में रमेशचंद्र दोहरे का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी ऊषा देवी के अलावा एक बेटी संगीता थी. रमेशचंद्र के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. उसी की उपज से वह परिवार का भरणपोषण करता था.

संगीता सुंदर थी. जब उस ने 17वां बसंत पार किया तो उस की सुंदरता में गजब का निखार आ गया, बातें भी बड़ी मनभावन करती थी. लेकिन पढ़ाईलिखाई में उस का मन नहीं लगता था. जिस के चलते वह 8वीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ सकी. इस के बाद वह घर के रोजमर्रा के काम में मां का हाथ बंटाने लगी. संगीता जिद्दी स्वभाव की थी. वह जिस चीज की जिद करती, उसे हासिल कर के ही दम लेती थी. संगीता के घर प्रवींद्र का आनाजाना लगा रहता था. वह संगीता की मां ऊषा देवी का सगा छोटा भाई था यानी संगीता का सगा मामा. वह हरदोई जिले के कतन्नापुर गांव का रहने वाला था और अकसर अपनी बहन ऊषा के ही घर पड़ा रहता था. जब भी आता हफ्तेदस दिन रुकता था. ऊषा का पति रमेशचंद्र इसलिए कुछ नहीं बोलता था क्योंकि वह उस का साला था.

संगीता और प्रवींद्र हमउम्र थे. प्रवींद्र उस से 2 साल बड़ा था. हमउम्र होने के कारण दोनों में खूब पटती थी. प्रवींद्र बातूनी था, इसलिए संगीता उस की बातों में रुचि लेती थी. ऊषा समझती थी कि प्रवींद्र को उस से लगाव है, इसलिए वह उस के घर आता है. लेकिन सच यह था कि प्रवींद्र की लालची नजर अपनी भांजी संगीता पर थी. वह उसे अपने प्रेम जाल में फंसाने के लिए आता था. प्रवींद्र ने अपने व्यवहार से बहन और बहनोई के दिल में ऐसी जगह बना ली थी कि वे उसे अपना हमदर्द समझने लगे थे. वे लोग उस से सुखदुख की बातें भी साझा करते थे. दरअसल, रमेशचंद्र उसे इसलिए वफादार समझने लगे थे क्योंकि प्रवींद्र उन के खेती के कामों में भी हाथ बंटाने लगा था. खाद बीज लाने की जिम्मेदारी भी वही उठाता था. इन्हीं सब कारणों से प्रवींद्र रमेश की आंखों का तारा बन गया था.

हमारे समाज में युवा हो रही लड़कियों के लिए तमाम बंदिशें होती हैं. वह किसी बाहरी लड़के से हंसबोल लें तो उन्हें डांट पड़ती है. यह उम्र जिज्ञासाओं की होती है. मन हवा में उड़ान भरने को मचलता है. पारिवारिक और सामाजिक वर्जनाओं की वजह से आमतौर पर देखा गया है कि लड़कियां अपने रिश्ते के करीबी युवक से ज्यादा घुल जाती हैं. वह उन का मामा, जीजा, चचेरा या मौसेरा या ममेरा भाई कोई भी हो सकता है. वे उसे ही अपना दोस्त बना लेती हैं. संगीता के सब से नजदीक मामा प्रवींद्र ही था, अत: उन दोनों में भी ऐसा ही रिश्ता था. प्रवींद्र की नजर थी खूबसूरत भांजी पर शुरुआती दिनों में जब प्रवींद्र ने बहन ऊषा के घर आना शुरू किया था, तब उस के मन में संगीता के लिए कोई गलत भावना नहीं थी. रिश्ते में वह उस की भांजी थी. किंतु भावनाओं में तूफान आते और रिश्ता बदलते कितनी देर लगती है.

संगीता से मेलमिलाप की वजह से प्रवींद्र की भावनाओं में भी तूफान आ गया और मामाभांजी के पवित्र रिश्ते पर कालिख लगनी शुरू हो गई. हुआ यह कि एक दिन प्रवींद्र ऊषा के घर पहुंचा तो वह परिवार सहित गांव में एक परिचित के घर समारोह में जाने को तैयार थी. संगीता भी खूब बनीसंवरी थी. उस ने गुलाबी सलवारसूट पहना था और खुले बाल कमर तक लहरा रहे थे. उस समय संगीता बेहद खूबसूरत दिख रही थी. संगीता का वह रूप प्रवींद्र की आंखों के रास्ते से दिल में उतर गया. प्रवींद्र के मन में कामना की ऐसी आंधी चली कि उस की धूल ने सारे रिश्तेनाते को ढक लिया. वह भूल गया कि संगीता उस की भांजी है. प्रवींद्र का मन चाह रहा था कि संगीता उस के सामने रहे और वह उसे अपलक देखता रहे, लेकिन ऐसा कहां संभव था. वे लोग तो समारोह में जाने को तैयार थे. प्रवींद्र को घर की तालाकुंजी दे कर वे सब चले गए. प्रवींद्र की नजरें तब तक संगीता का पीछा करती रहीं जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

उन के जाने के बाद प्रवींद्र खाना खा कर बिस्तर पर लेट गया. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उस की आंखों में संगीता का अक्स बसा था और जेहन में उसी के खयाल उथलपुथल मचा रहे थे. कई बार प्रवींद्र की अंतरात्मा ने उसे झिंझोड़ा, ‘संगीता तुम्हारी भांजी है, उस के बारे में गंदे विचार तक मन में लाना पाप है. संगीता के बारे में गलत सोचना बंद कर दो.’  प्रवींद्र ने हर बार यह सोच कर अंतरात्मा की आवाज को दबा दिया कि हर लड़की किसी न किसी की भांजी होती है. अगर लोग मामाभांजी का ही रिश्ता निभाते रहे तो चल गई दुनिया. कहते हैं कि बुरे विचार अच्छे विचारों को जल्दी ही दबा देते हैं. प्रवींद्र की अच्छाई पर बुराई हावी हो गई.

इधर ऊषा और रमेश रात को काफी देर से लौटे. सुबह वे जल्दी उठ कर अपनेअपने काम से लग गए. रमेशचंद्र और ऊषा खेत पर चले गए थे, जबकि संगीता घरेलू कामों में व्यस्त थी. प्रवींद्र की आंखें खुलीं तो उस की नजर आंगन में काम कर रही संगीता पर पड़ी. वह मुंह से तो कुछ नहीं बोला लेकिन टकटकी लगाए संगीता को देखने लगा. प्रवींद्र को इस तरह अपनी ओर ताकते देख संगीता ने टोका, ‘‘क्या बात है मामा, तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे. बस टकटकी लगा कर मुझे ही देखे जा रहे हो.’’

‘‘इसलिए देख रहा हूं कि तुम बहुत खूबसूरत हो. जी चाहता है कि तुम सामने खड़ी रहो और मैं तुम्हें देखता रहूं. यह कमबख्त नजरें तुम्हारे चेहरे से हटने का नाम ही नहीं ले रही हैं.’’ वह बोला. संगीता मामा के मन का मैल न समझ कर उन्मुक्त हंसी हंसने लगी. हंसी पर विराम लगा तो बोली, ‘‘यह कौन सी नई बात है. गांव में भी सब कहते हैं कि संगीता तुम खूबसूरत हो.’’

फिर वह शरारत से उस की आंखों में देखने लगी, ‘‘कैसे मामा हो जिसे आज पता चला कि मैं खूबसूरत हूं.’’

‘‘आज नहीं, मैं ने कल जाना कि तुम खूबसूरत हो.’’ प्रवींद्र के मन की बात उस की जुबान पर आ गई, ‘‘गुलाबी रंग का सलवारसूट तुम्हारे गोरे बदन पर बेहद फब रहा था. ऊपर से तुम्हारा मेकअप तो मेरे दिल पर बिजली गिरा गया. किसी दुलहन से कम नहीं लग रही थी तुम…’’

संगीता अपने सौंदर्य की तारीफ सुन कर गदगद हो गई, उस ने शरम से नजरें झुका लीं. साथ ही उस के मन में कांटा सा चुभा. वह सोचने लगी कि क्या मामा के दिल में खोट आ गया है, जो ऐसी बातें उस से कर रहे हैं. वह अभी ऐसा सोच ही रही थी कि तभी प्रवींद्र 2 कदम आगे बढ़ कर संगीता की कलाई पकड़ कर बोला, ‘‘संगीता, तुम वाकई बहुत खूबसूरत हो. मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

संगीता काफी दिनों से महसूस कर रही थी कि उस के मामा प्रवींद्र के मन में उस के लिए बेपनाह प्यार है. सच तो यह था कि संगीता भी मन ही मन मामा प्रवींद्र को चाहती थी. यही कारण था कि जब प्रवींद्र ने अपनी मोहब्बत का इजहार किया तो संगीता ने फौरन इकरार करते हुए कह दिया, ‘‘हां, मैं भी तुम्हें दिल की गहराइयों से चाहती हूं.’’

मोहब्बत को मिली जुबान खामोश मोहब्बत को जुबान मिली तो संगीता और प्रवींद्र की आशिकी के रंग निखरने लगे. प्रवींद्र का पहले से ही घर में आनाजाना था. रमेशचंद्र दोहरे भी उसे बेटे की तरह मानते थे, इसलिए संगीता से उस के मिलनेजुलने या एकांत में बातचीत करने में किसी प्रकार की बाधा नहीं थी. प्रवींद्र जब अपने गांव कतरतन्ना में होता तब वे दोनों मोबाइल फोन पर देर तक बातें करते थे. संगीता उसे अपना हालेदिल सुनाया करती. बहन के घर जाने में भाई को बहाने की जरूरत नहीं होती. संगीता के बुलाने पर वह उस के यहां आ जाता. सब उसे देख कर खुश होते कि देखो भाईबहन में कितना प्यार है. लेकिन यह तो केवल संगीता जानती थी कि प्रवींद्र किसलिए आता है. ज्योंज्यों दिन गुजरते गए, संगीता और प्रवींद्र की मोहब्बत के तकाजे भी बढ़ते गए. उन की चाहत तनहाई और खुफिया मुलाकात की मांग करने लगी. यह तकाजा पूरा करने के लिए उन दोनों ने किसी तरह की कोताही नहीं की.

रात को जब सब लोग सो जाते, तब संगीता और प्रवींद्र चुपके से उठ कर छत पर चले जाते और वहां एकदूजे की बांहों में खो जाते. तनहाई और रात के सन्नाटे में 2 जिस्म मिले तो जज्बात भड़कते ही हैं. संगीता और प्रवींद्र भी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं पा सके. पे्रमोन्माद में वे एकदूसरे को समर्पित हो गए. समय बीतता रहा. किसी को अब तक नहीं खबर नहीं थी कि संगीता और प्रवींद्र एकदूसरे से प्यार करते हैं. मन से ही नहीं, दोनों तन से भी एक हो चुके हैं. प्रवींद्र और संगीता के इश्क का खेल 2 सालों तक निर्बाध रूप से चलता रहा. लेकिन एक रोज उन का भांडा फूट ही गया. उस दिन शाम को प्रवींद्र आया तो पता चला रमेश जीजा रिश्तेदारी में उन्नाव गए हैं. वह 3 दिन बाद घर लौटेंगे. ऊषा आंगन में अकेली बैठी थी और संगीता रसोई में खाना बना रही थी. ज्यों ही प्रवींद्र ऊषा के पास आ कर बैठा, उस ने वहीं से रसोई की ओर मुंह कर आवाज दी, ‘‘बेटी संगीता, मामा आए हैं, इन के लिए भी खाना बना लेना.’’

प्रवींद्र चारपाई पर पसर गया और हंस कर बोला, ‘‘हां दीदी, मैं खाना भी खाऊंगा और रुकूंगा भी. जीजा बाहर गए हैं न इसलिए घर और तुम दोनों की देखभाल करना मेरा फर्ज है. वैसे भी दीदी तुम मुझे फोन पर बता देती तो मैं दौड़ा चला आता.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है,’’ ऊषा भी हंसने लगी, ‘‘मैं खुद तुझ से यहीं रुकने को कहने वाली थी. लेकिन तूने मेरे मुंह की बात छीन ली.’’

संगीता को पता चला कि मामा आए हैं तो उस का शरीर रोमांच से भर गया. वह जान गई कि आज की रात रंगीन होने वाली है. उस ने खाना बना कर तैयार किया फिर मां और मामा को खिलाया. उस के बाद खुद खाना खा कर घर की साफसफाई की. प्रवींद्र छत पर सोने चला गया और संगीता मां के साथ नीचे कमरे में पड़ी चारपाई पर लेट गई. कुछ देर बाद ऊषा तो सो गई लेकिन संगीता की आंखों में नींद नहीं थी. ऊषा जब गहरी नींद सो गई तो संगीता दबेपांव उठी और प्रवींद्र के पास छत पर जा पहुंची. प्रवींद्र भी उस के आने का ही इंतजार कर रहा था. संगीता के पहुंचते ही उस ने उसे बांहों में भर लिया.

इधर आधी रात को ऊषा की आंखें खुलीं तो उस ने संगीता को चारपाई से नदारद पाया. वह उसे खोजते हुए आंगन में आई तो उसे छत पर खुसरफुसर की आवाज सुनाई दी. वह जीने की ओर बढ़ी, तभी संगीता जीने से नीचे उतरी. शायद उसे मां के जागने का आभास हो गया था. कमरे में पहुंचते ही ऊषा ने पूछा, ‘‘संगीता, तू आधी रात को छत पर क्यों गई थी?’’

‘‘मामा उल्टियां कर रहे थे. उन्हें पानी देने गई थी.’’ संगीता ने बहाना बना दिया. ऊषा ने संगीता की बात पर विश्वास तो कर लिया किंतु उस के मन में शक का बीज अंकुरित होने लगा. अब वह दोनों पर कड़ी नजर रखने लगीं. संगीता और प्रवींद्र कड़ी निगरानी के कारण सतर्कता बरतने लगे थे, लेकिन सतर्कता के बावजूद एक रात ऊषा ने संगीता और प्रवींद्र को रंगेहाथ पकड़ लिया. उस रात ऊषा ने संगीता की जम कर फटकार लगाई और उस की पिटाई भी कर दी. उस ने छोटे भाई प्रवींद्र को भी भलाबुरा कहा और रिश्ते को कलंकित करने का दोषी ठहराया. इज्जत के नाम पर दबा दी बात अपराधबोध के कारण प्रवींद्र ने सिर झुका लिया. फिर जब ऊषा का गुस्सा ठंडा पड़ गया तो प्रवींद्र ने बहन के पैर पकड़ लिए, ‘‘दीदी, जवानी के जोश में हम और संगीता बहक गए थे. इस बार माफ कर दो. आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी.’’

चूंकि बेटी का मामला था. ज्यादा शोर मचाने से उसी की बदनामी होती, इसलिए ऊषा ने हिदायत दे कर प्रवींद्र को माफ कर दिया. प्रवींद्र अपने घर चला गया. इस के बाद करीब 3 महीने तक प्रवींद्र बहन के घर नहीं आया. हां, इतना जरूर था कि संगीता और प्रवींद्र जबतब मोबाइल फोन पर बात कर लेते थे और अपने दिल की लगी बुझा लेते थे. 3 माह बाद जब प्रवींद्र को संगीता की ज्यादा याद सताने लगी तो वह एक रोज बहन के घर आ पहुंचा. ऊषा ने प्रवींद्र के आने पर ऐतराज तो नहीं जताया, लेकिन संगीता से दूर रहने की हिदायत दी. प्रवींद्र अब ऊषा के सामने ही संगीता से बात करता तथा रात को घर के अंदर के बजाए घर के बाहर सोता. इस तरह प्रवींद्र का आनाजाना फिर से शुरू हो गया.

कहावत है कि आग और फूस एक साथ होंगे तो धुआं तो उठेगा ही और जलेंगे भी. संगीता और प्रवींद्र भी आगफूस की तरह थे. कुछ दिनों तक तो वे दोनों सुलगते रहे. आखिर में जब नहीं रहा गया तो वे पुन: सतर्कता के साथ मिलने लगे. ऊषा और रमेश दोनों ही संगीता व प्रवींद्र पर नजर रखते थे, परंतु वे उन की पकड़ में नहीं आए. संगीता अब तक 20 साल की उम्र पार करचुकी थी और उस के कदम भी बहक गए थे. इसलिए ऊषा और रमेश चाहते थे कि जितना जल्दी हो, उस के हाथ पीले कर दिए जाएं. संगीता का विवाह करने के लिए दोनों ने उपयुक्त घरवर की तलाश भी शुरू कर दी. संगीता को शादी वाली बात पता चली तो वह प्रवींद्र की छाती से मुंह छिपा कर बिलख पड़ी, ‘‘कुछ करो मामा, किसी दूसरे से मेरी शादी हो गई तो मैं जहर खा कर मर जाऊंगी.’’

प्रवींद्र की आंखें भी बरसने लगीं, ‘‘तुम्हारे बगैर मैं भी कहां जिंदा रह सकता हूं. तुम ने जहर खाया तो मैं भी जहर खा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर लूंगा.’’

‘‘हमारी आशिकी का जनाजा निकलने में देर नहीं है, इसलिए कह रही हूं कि जल्दी ही कुछ करो.’’

‘‘करना तो चाहता हूं पर समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं.’’ प्रवींद्र उलझन में पड़ा हुआ था, ‘‘हम दोनों की शादी हो नहीं सकती और हमेशा के लिए तुम्हें अपना बनाने का रास्ता सूझ नहीं रहा है.’’

‘‘प्रवींद्र, मुझे एक तरकीब सूझी है,’’ संगीता अचानक उल्लास से भर गई, ‘‘अगर तुम उस पर अमल करने को राजी हो जाओ तो हम हमेशा के लिए एक हो सकते हैं.’’

‘‘कैसी तरकीब?’’ प्रवींद्र ने पूछा.

‘‘चलो हम भाग चलें,’’ संगीता ने राह सुझाई, ‘‘दिल्ली, मुंबई जैसे शहर में हम अपने प्यार की अलग दुनिया बसाएंगे. वहां इतनी भीड़ रहती है कि कोई भी हमें ढूंढ नहीं सकेगा.’’

प्रवींद्र कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘संगीता, तुम्हारी तरकीब तो सही है लेकिन मुझे डर सता रहा है.’’

‘‘कैसा डर?’’ संगीता ने अचकचा कर पूछा.

‘‘यही कि मैं तुम्हें ले कर भागा तो तुम्हारे घर वाले मेरे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा देंगे. फिर पुलिस हमें पकड़ेगी. उस के बाद तुम अपने मातापिता के सुपुर्द कर दी जाओगी. और मैं जेल जाऊंगा. जब तक मैं जेल से बाहर आऊंगा, तब तक पता चलेगा कि घर वालों ने तुम्हें समझाबुझा कर किसी दूसरे से तुम्हारी शादी कर दी है. ऐसे मामलों में अकसर यही होता है.’’ प्रवींद्र बोला. प्रवींद्र की बात सुन कर संगीता के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं. अपनी बात का असर पड़ता देख प्रवींद्र आगे बोला, ‘‘दूसरी बात यह है कि घर से भाग कर दूसरे शहर में बसना आसान नहीं. उस के लिए पैसे चाहिए. और पैसे हमारे पास हैं नहीं.’’

संगीता कुछ देर सोच में डूबी रही. उस के बाद बोली, ‘‘प्रवींद्र, मुझे मातापिता का विरोध और तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं होती. हम हर हाल में अपना घर बसाना चाहते हैं. इस के लिए तुम कुछ भी करो, मैं तुम्हारा साथ दूंगी.’’

‘‘तो सुनो, एक तरकीब है मेरे पास. लेकिन उस के लिए तुम्हें अपना कलेजा मजबूत करना होगा. उस तरकीब से हमारी सारी समस्या हल हो जाएगी और धन भी मिल जाएगा.’’ प्रवींद्र ने कहा.

‘‘ऐसी कौन सी तरकीब है?’’ संगीता ने विस्मय से पूछा.

‘‘मुझे अपने बहनबहनोई और तुम्हें अपने मातापिता को मौत की नींद सुलाना होगा. फिर घर से नकदी और गहने ले कर फरार हो जाएंगे. इस तरकीब से किसी को हम पर शक भी नहीं होगा. लोग समझेंगे कि बदमाशों ने घर में लूट की और विरोध पर दोनों की हत्या कर दी और लड़की का अपहरण कर लिया.’’

बन गई खून बहाने की योजना संगीता, प्रवींद्र के प्यार में अंधी हो चुकी थी, इसलिए वह खूनी मांग सजाने को तैयार हो गई. उस ने प्रेमी मामा प्रवींद्र की तरकीब को मान लिया और अपनों का खून बहाने को राजी हो गई. इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने रमेशचंद्र और ऊषा के कत्ल की योजना बनाई. योजना के तहत प्रवींद्र अपने गांव चला गया ताकि बहन के पड़ोसियों को उस पर शक न हो. गांव में रहने के दौरान वह संगीता के संपर्क में बना रहा. 8 अक्तूबर, 2019 की सुबह प्रवींद्र ने संगीता से मोबाइल पर बात की और रात में घटना को अंजाम दे कर फरार होने की बात बताई. उस ने यह भी कहा कि वह रात 10 बजे उस के घर पहुंचेगा, दरवाजा खुला रखे. प्रेमी मामा से बात होने के बाद संगीता घर से भागने की तैयारी में जुट गई.

उस ने मां से चोरीछिपे बैग में अपने कपड़े तथा जरूरी सामान रख लिया. बैग को उस ने कमरे में रखे बड़े संदूक में छिपा दिया. अन्य दिनों के अपेक्षा उस शाम संगीता ने कुछ जल्दी खाना बना कर मांबाप को खिला दिया. खाना खा कर ऊषा और रमेश कमरे में पड़े तख्त पर जा कर लेट गए. कुछ देर बाद दोनों गहरी नींद सो गए. इधर रात 10 बजे प्रवींद्र संगीता के दरवाजे पर पहुंचा. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो संगीता ने दरवाजा खोल कर उसे घर के अंदर कर लिया. वह बेसब्री से उसी का इंतजार कर रही थी. संगीता प्रवींद्र को कमरे में ले गई. एकांत पा कर प्रवींद्र का मन मचल उठा और वह संगीता से शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा. प्रवींद्र की छेड़छाड़ से संगीता भी रोमांचित हो उठी. उस ने भी अपनी बांहें फैला दीं. इस के बाद कमरे में सीत्कार की आवाजें गूंजने लगीं.

उसी समय ऊषा की आंखें खुल गईं. वह बाथरूम जाने को आंगन में आई तो उसे संगीता के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनाई दीं. वह जान गई कि कमरे में बेटी के साथ कोई और भी है. वह दबेपांव कमरे में पहुंची और दोनों को रंगरलियां मनाते रंगेहाथ पकड़ लिया. ऊषा ने संगीता की चोटी पकड़ कर खींची और गाल पर तड़ातड़ तमाचे जड़ दिए. उसी समय प्रवींद्र ने बहन ऊषा का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘आज तुझे विरोध बहुत महंगा पड़ेगा.’’

इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने ऊषा को दबोच लिया और कमरे में पड़ी चारपाई पर गिरा कर उस के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. फिर वे दोनों उस कमरे में पहुंचे, जहां रमेशचंद्र तख्त पर सो रहे थे. उन दोनों ने मिल कर रमेश के भी हाथपांव रस्सी से बांध दिए. इस के बाद संगीता फावड़ा ले आई. उस ने मां की गरदन पर फावड़े से कई वार किए, जिस से उस की गरदन कट गई और बिस्तर खून से तरबतर हो गया. ऊषा की हत्या करने के बाद दोनों रमेश के पास पहुंचे. वहां प्रवींद्र ने फावड़े से गरदन पर वार कर उसे भी मौत की नींद सुला दिया. 2-2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद प्रवींद्र और संगीता ने मिल कर पूरे घर को खंगाला. कमरे में रखे बक्सों में लगे तालों की चाबी से खोला. फिर उस में रखी नकदी व जेवर को अपने कब्जे में कर लिए. इस के बाद दोनों इत्मीनान से घर से फरार हो गए.

दूसरे दिन सुबह 10 बजे तक जब रमेशचंद्र के घर में कोई हलचल नहीं हुई तो पड़ोसियों में चर्चा शुरू हुई. इसी बीच पड़ोसी राजू गौतम ने थाना गुरसहायगंज पुलिस को मोबाइल द्वारा सूचना दे दी. सूचना पाते ही कोतवाल नागेंद्र पाठक पुलिस टीम के साथ गौरैयापुर गांव स्थित रमेशचंद्र दोहरे के मकान पर आ गए. उन्होंने पुलिस के साथ घर में प्रवेश किया तो अवाक रह गए. 2 अलगअलग कमरों में ऊषा और रमेशचंद्र की निर्मम हत्या की गई थी. दोनों के हाथपैर भी बंधे हुए थे. खून से सना फावड़ा कमरे में पड़ा था. जाहिर था कि दोनों की हत्या फावड़े से वार कर के की गई थी. कमरे में रखे बक्सों के ताले खुले पड़े थे, सामान बिखरा था. ऐसा लग रहा था जैसे बदमाशों ने हत्या के बाद लूटपाट भी की थी. घर से मृतक दंपति की जवान बेटी संगीता गायब थी.

शुरू में पुलिस भी हुई गुमराह कोतवाल नागेंद्र पाठक ने डबल मर्डर की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा एएसपी के.सी. गोस्वामी भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का मुआयना किया वहीं फोरैंसिक टीम ने साक्ष्य जुटाए. पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दिया और हत्या में इस्तेमाल रस्सी व फावड़ा जाब्ते में शामिल कर लिए. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को जांच के बाद लगा कि दोहरे हत्याकांड को अंजाम बदमाशों ने दिया है और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया है, अत: उन्होंने इसी दिशा में जांच शुरू कराई.

जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि मृतका ऊषा देवी के भाई प्रवींद्र का घर में आनाजाना था. यह भी पता चला कि प्रवींद्र भी घर से फरार है. एक बात और भी चौंकाने वाली पता चली. वह यह कि प्रवींद्र और संगीता, जो रिश्ते में मामाभांजी हैं, के बीच नाजायज रिश्ता था और रमेश इस का विरोध करते थे. प्रवींद्र और संगीता पुलिस की रडार पर आए तो उन की तलाश शुरू हुई. उन की लोकेशन पता करने के लिए पुलिस ने दोनों के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. लेकिन मोबाइल बंद होने से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. पुलिस ने उन की खोज दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ आदि संभावित स्थानों पर की, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब पुलिस ने दोनों पर 25-25 हजार का ईनाम घोषित कर दिया.

इधर प्रवींद्र और संगीता डबल मर्डर करने के बाद बस द्वारा कानपुर आए. फिर ट्रेन से मुंबई पहुंचे. वहां वे एक हजार रुपए दे कर शमशाद नाम के  आटो ड्राइवर की झोपड़ी में रात भर रुके. फिर वहां से ट्रेन द्वारा हुगली शहर आए. हुगली शहर के भद्रेश्वर थानाक्षेत्र के आरबीएस रोड पर प्रवींद्र ने एक झोपड़ी किराए पर ले ली. झोपड़ी मालकिन नगमा को उस ने बताया कि वे दोनों पतिपत्नी हैं. प्रवींद्र वहां मेहनतमजदूरी कर अपना व संगीता का भरणपोषण करने लगा. धीरेधीरे 3 माह बीत गए. नए साल में प्रवींद्र ने अपने मजदूर साथी से 500 रुपए में एक मोबाइल फोन खरीदा और उस में अपना सिम कार्ड डाल कर चालू किया. मोबाइल फोन चालू होते ही पुलिस को उस की लोकेशन पता चल गई. उस की लोकेशन हुगली शहर की थी. यह जानकारी जब एसपी अमरेंद्र प्रसाद को मिली तो उन्होंने एक पुलिस टीम हुगली रवाना कर दी. वहां पुलिस ने प्रवींद्र व संगीता को हिरासत में ले लिया.

8 जनवरी, 2020 को थाना गुरसहायगंज पुलिस ने अभियुक्त प्रवींद्र तथा संगीता को जिला अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Agra Crime : प्‍लास्टिक की रस्‍सी से गर्लफ्रेंड का गला घोंटा, बॉक्‍स में पैक किया और फेंक दिया

Agra Crime : जो शादीशुदा जवान घर और पत्नी से दूर रहते हैं, उन में कई ऐसे भी होते हैं, जो घरवाली को भूल बाहर वाली ढूंढने लगते हैं. कुछ इस में कामयाब भी हो जाते हैं. लेकिन कभीकभी यह गलती इतनी भारी पड़ती है कि जान के लाले पड़ जाते हैं. किरन और आनंद के मामले में भी…

ताजनगरी आगरा. आगरा ताजमहल के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है. बस लोगों के देखने का अपनाअपना नजरिया है, क्योंकि ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो आगरा को जूतों के लिए भी जानते हैं. बड़ी कंपनियां अपने ब्रांड के जूते यहीं बनवाती हैं. रामसिंह एक बड़ी जूता कंपनी में काम करते थे. उन का घर आगरा प्रकाश नगर पथवारी बस्ती में था. रामसिंह के परिवार में उन की पत्नी सरोज, 3 बेटियां थीं. बेटा एक ही था सागर. 2007 में राम सिंह ने बड़ी बेटी लता का विवाह फिरोजाबाद के गांव हिमायूं पुर निवासी शशि पंडित से कर दिया. एकलौता बेटा सागर जूता फैक्टरी में जूतों के लिए चमडे़ की कटिंग का काम करता था. विवाह की उम्र हो गई तो 2012 में रामसिंह ने सागर का विवाह कर दिया. विवाह के बाद उस के 2 बच्चे हुए.

2014 में सागर का बाइक से एक्सीडेंट हो गया, जिस में उस की दांई आंख में चोट लगी, जिस से उस की आंख खराब हो गई, उसे नकली आंख लगवानी पड़ी. अपने एकलौते बेटे सागर की ऐसी हालत देख कर राम सिंह भी बीमार पड़ गए. वह तनाव में रहने लगे. नतीजा यह निकला कि वह हारपरटेंशन के मरीज हो गए और उन्हें घर में रहने को मजबूर होना पड़ा. दूसरी ओर सागर ठीक हो कर काम पर जाने लगा. लेकिन बड़े परिवार में अकेले उस की आय से क्या होता. घर के खर्चे, किरन की पढ़ाई का खर्च, पिता की दवाई का खर्च अलग, ऐसे में वह धीरेधीरे कर्ज में डूबने लगा. इसी बीच राम सिंह की मृत्यु हो गई. राम सिंह की मौत के बाद एक समय वह भी आया जब सागर को अपना घर बेचने की सोचनी पड़ी. सागर ने मकान बेच कर कर्जे चुकाए.

8 माह किराए पर रहने के बाद उस ने अपने पहले मकान के पास ही मकान ले लिया. उस मकान में 2 ही कमरे थे. जगह की कमी की वजह से सागर ने देवनगर नगला छउआ में किराए का एक और कमरा ले लिया. वहां वह अपनी पत्नी व बच्चों के साथ रहने लगा. सागर की मां सरोज घरों में झाड़ूपोछे का काम कर के घर का खर्च चलाने लगी. सागर की बहन किरन ने जीजान से पढ़ाई की. बीए करने के बाद उस ने बीएड भी कर लिया. आनंद उर्फ अतुल किरन की बड़ी बहन लता की ससुराल के पास रहता था. 35 वर्षीय अतुल न केवल शादीशुदा था बल्कि उस के 3 बच्चे भी थे. बीएससी पास आनंद खुराफाती दिमाग का था. उस ने फिरोजाबाद में फाइनेंस कंपनी खोली और लोगों को लालच दे कर खूब लूटा. जब लोग उसे तलाशने लगे तो वह आगरा भाग आया था.

आनंद ने लता के पति शशि से कहा कि उसे कहीं नौकरी पर लगवा दे. शशि उसे अच्छी तरह जानता था कि वह किस तरह का इंसान है, फिर भी उस की मदद की. शशि ने उसे आगरा के एक डाक्टर के यहां नौकरी पर लगवा दिया. इस के बाद आनंद ने बदलबदल कर 2-3 जगह और नौकरी की. फिर वह थाना जगदीशपुरा के गढ़ी भदौरिया स्थित ‘खुशी नेत्रालय’ में बतौर कंपाउंडर काम करने लगा. नेत्रालय में बने कमरे में ही वह रहता भी था. आनंद की तलाश में घर में घुसा आनंद आनंद ने शशि पंडित की ससुराल यानी किरन के घर आनाजाना शुरू कर दिया. वहां वह किरन से मिलने आता था. सांवले रंग की किरन आकर्षक नयननक्श वाली नवयुवती थी. सांचे में ढला उस का बदन किसी मूर्तिकार के हाथों का अद्भुत नमूना जान पड़ता था.

25 वर्षीय किरन पूरी तरह जवान हो गई थी. उस का पूरा यौवन खिल कर महकने लगा था. उस के ख्यालों में भी सपनों का राजकुमार दस्तक देने लगा था. अकेले बिस्तर पर पड़ी वह उसके ख्यालों में ही खोई रहती थी. सोचतेसोचते कभी हंसने लगती थी तो कभी लजा जाती थी. वह उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां ऐसा होना स्वाभाविक था. आनंद की नजर किरन पर पड़ी तो वह उस पर आसक्त हो गया. किरन के परिवार के बारे में वह सब कुछ जान गया था. ऐसे में वह किरन को अपने प्रेमजाल में फंसाने के जतन करने लगा. यह सब जानते हुए भी कि वह विवाहित है और किरन अविवाहित. आनंद ने अपने विवाहित होने की बात किरन और उस के घरवालों को नहीं बताई थी.

जब भी वह किरन के पास आता तो उस के आगे पीछे मंडराता रहता. उस की यह हरकत किरन से छिपी न रह सकी. किरन उस का विरोध नहीं कर सकी, क्योंकि कहीं न कहीं आनंद भी उसे पसंद आ गया था. दोनों के दिलों में प्रेम की भावना जन्म ले रही थी. लेकिन दोनों ने अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं होने दिया था. एक दिन किरन जब बाजार जाने के लिए बाहर निकली तो आनंद ने रास्ते में रोक कर उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. किरन ने उस की दोस्ती सहर्ष स्वीकार कर ली. दोनों की दोस्ती परवान चढ़ने लगी. दोनों साथ घूमते और मटरगश्ती करते. इस से दोनों में हद से ज्यादा अपनापन और घनिष्ठता आ गई. दोनों में से अगर कोई एक न मिलता तो दूसरे को अच्छा नहीं लगता था.

चेहरे से जैसे खुशी की रेखाएं ही मिट जाती थीं. दोनों की आंखें एकदूसरे को अहसास कराने लगीं कि वे एकदूसरे से प्यार करने लगे हैं. लेकिन इस अहसास के बावजूद दोनों यह दर्शाते थे जैसे उन को कुछ पता ही नहीं है. दोनों को एकदूसरे की बहुत चिंता रहती थी. अब जरूरत थी तो इस प्यार को शब्दों में पिरो कर इजहार कर देने की. आनंद ने अपने प्यार का इजहार करने के लिए प्रेमपत्र लिखने की सोची. वह किरन के सामने कहने से बचना चाह रहा था और मोबाइल पर प्रेम की बात कहने में मजा नहीं आता. इसलिए प्रेमपत्र में वह अपने जज्बातों को शब्दों में पिरो कर किरन तक पहुंचाना चाहता था, जिस से किरन उस के लिखे एकएक शब्द में छिपे प्रेम को दिल से समझ सके. उस ने बड़े आराम से एक प्रेमपत्र  लिखा. जब वह किरन से मिला तो प्रेमपत्र चुपचाप उस के पर्स में रख दिया.

पहलापहला प्यार किरन ने जब घर जा कर पर्स खोला तो उसे पत्र रखा दिखा. उस ने पत्र पढ़ा. जैसेजैसे वह पत्र पढ़ती जा रही थी, वैसेवैसे उस के दिल में भी प्यार का जोश हिलोरे मार रहा था. वह तो इसी इंतजार में थी कि आनंद कब उस से प्यार का इजहार करे. आनंद ने प्रेम का इजहार कर दिया था लेकिन किरन यह सब उस के मुंह से सुनना चाहती थी. इसलिए उस ने पत्र का जबाव नहीं दिया. जब पत्र का जबाव नहीं मिला तो आनंद बेचैन हो उठा. अगर किरन पत्र पढ़ कर नाराज होती तो उस से संबंध खत्म कर लेती लेकिन उस ने ऐसा भी नहीं किया. एक दिन आनंद किरन की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘किरन, मेरा दिल तुम्हारे पास है…’’

‘‘क्या…?’’ आश्चर्य में किरन के मुंह से यह शब्द निकला तो आनंद तुरंत बात बदलते हुए बोला,‘‘मेरा मतलब है कि मेरा दिल एक फिल्म देखने का है. फिल्म की मैटिनी शो की 2 टिकटें मेरे पास हैं. आज फिल्म देखने चलते हैं…चलोगी?’’

‘‘क्यों नहीं चलूंगी. वैसे भी पहली बार फिल्म दिखाने के लिए ले जा रहे हो.’’ किरन की बात सुन कर आनंद मुसकराया. फिर दोनों फिल्म देखने सिनेमाघर पहुंच गए. फिल्म शुरू हो गई लेकिन आनंद का दिल फिल्म देखने के बजाय किरन से प्यार करने को मचल रहा था. कुछ नहीं सूझा तो उस ने अपना हाथ किरन के हाथ पर रख दिया और उस के हाथ को धीरेधीरे सहलाने लगा. किरन ने सोचा कि शायद वह अंधेरे का फायदा उठा कर उस से प्यार का इजहार करना चाहता है, इसीलिए वह फिल्म दिखाने लाया है. जब काफी देर तक आनंद कुछ नहीं बोला तो किरन झुंझला उठी. इंटरवल होते ही वह आनंद से बोली,‘‘अन्नू, चलो अब मेरा मन फिल्म देखने का नहीं कर रहा है, कहीं और चलते हैं.’’

आनंद को पहली बार किसी ने प्यार का नाम दिया था, अन्नू. उसे किरन पर बहुत प्यार आ रहा था. इस पर आनंद उस के साथ तुरंत बाहर आ गया. थोड़ी देर बाद दोनों एक बाग में बैठे हुए थे. किरन का धैर्य जबाव दे गया था. वह आनंद से बोली,‘‘अन्नू, मुझे न जाने क्यों लगता है कि कई दिनों से तुम मुझ से कुछ कहना चाहते हो, लेकिन संकोचवश कह नहीं पा रहे हो.’’

किरन ने यह बात आनंद की आंखों में आंखें डाल कर कही थी. इस से आनंद का हौसला बढ़ा तो वह बोला,‘‘किरन, मैं ने कई बार तुम तक अपने दिल की बात पहुंचाई लेकिन तुम ने जबाव देना उचित न समझा.’’

‘‘यह भी तो हो सकता है कि मेरा मन उस बात को तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हो.’’ यह सुन कर आनंद चौंका.

उसे उम्मीद की एक किरण दिखी तो उस ने उत्साहित हो कर किरन का हाथ थाम लिया, ‘‘किरन, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. यही बात मैं तुम से कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन तुम्हारी तरफ से कोई जबाव न मिलने की वजह से मैं बेचैन था. अब मेरी मोहब्बत का आइना तुम्हारे हाथों में है, चाहो तो उस में अपना अक्स देख कर मेरी जिंदगी संवार दो या उस को चकनाचूर कर के मेरी सांसों की डोर तोड़ दो. फैसला कर लो, तुम्हें क्या करना है.’’

आनंद के प्रेम की गहराई देख कर किरन के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. वह अपना दूसरा हाथ आनंद के हाथ पर रखती हुई बोली, ‘‘अन्नू, मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं. मैं यह बात जान चुकी थी कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो लेकिन जुबां से प्यार का इजहार करने के बजाय तुम दूसरे तरीके अपना रहे थे. इस से मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी.’’

‘‘यह कोई जरूरी नहीं कि प्यार का इजहार जुबां से किया जाए, वह किसी भी तरीके से किया जा सकता है. यह अलग बात है कि तुम्हारे दिल में जुबां से इजहार सुनने की चाहत छिपी थी. लेकिन तुम्हारे जबाव न देने से मेरी कई रातें जागते हुए बीतीं.’’ आनंद ने एक पल में अपने दिल की तड़प को बयान कर दिया.

‘‘खैर जो हुआ सो हुआ. अब आगे से कोई गलती नहीं होगी, प्लीज मुझे माफ कर दो.’’ किरन ने इतनी मासूमियत से कहा कि आनंद ने मुस्कराते हुए उसे सीने से लगा लिया. सीने से लगते ही किरन ने भी प्यार में डूब कर अपनी आंखों के परदे गिरा दिए. दोनों एक अजीब सा सुकून महसूस कर रहे थे. वहां कुछ देर और रूक कर दोनों वापस लौट आए. प्यार का जादू इस के बाद तो दोनों के प्यार को मानो पंख ही लग गए. मिलने के लिए आनंद के पास वैसे ही जगह नहीं थी. जिस नेत्रालय में वह रहता था, उस के अलावा  उस का कोई ठिकाना नहीं था. एक दिन उस ने नेत्रालय के उसी कमरे में, जिस में वह रहता था, उस ने किरन के जिस्म से आनंद लेने का मन बना लिया.वह दिन भी आ गया, जब आनंद ने प्यार के पलों में किरन को बहका लिया और उस के जिस्म से अपने जिस्म का मेल करा दिया.

दोनों के मन के साथसाथ तन भी मिल गए. किरन के तन को पा कर आनंद काफी खुश था. इस के बाद तो यह मिलन बारबार दोहराया जाने लगा. 2016 में आनंद ने खुशी नेत्रालय में किरन की भी नौकरी लगवा दी. अब हर समय किरन और आनंद एकदूसरे के साथ होते. उन की मोहब्बत परवान चढ़ती रही. एक वर्ष बीततेबीतते दोनों के संबंध की जानकारी किरन की मां सरोज को हो गई. यह पता लगते ही उन्होंने किरन की नौकरी छुड़वा दी. लेकिन किरन फिर भी आनंद से मिलती रही. किरन तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि आनंद उस से प्यार का नाटक कर रहा है. शादी का झांसा दे कर वह उस के जिस्म से खेल रहा है. इस बीच किरन से विवाह के लिए कई रिश्ते आए. लेकिन उस ने मना कर दिया. उस के चक्कर में उस की छोटी बहन कविता का विवाह भी नहीं हो सकता था. किरन की मां सरोज व भाई सागर को मथुरा का एक अच्छा परिवार मिल गया.

उस परिवार का लड़का दिल्ली में रह कर सोफे बनाने का काम करता था. उस लड़के व उस के परिवार को कविता पसंद आ गई. परिवार अच्छा होने की वजह से सरोज ने उस युवक से अपनी बेटी कविता की कोर्ट मैरिज करा दी. यह पिछले साल नवंबर की बात है. इधर किरन अब जब भी आनंद से मिलती तो विवाह करने की जिद करती. अब आनंद के लिए  किरन को समझाना मुश्किल होने लगा. इसे ले कर वह तनाव में रहने लगा. कोराना वायरस का प्रकोप पूरे विश्व में फैला हुआ था. उस से बचाने के लिए भारत सरकार ने देश में लौकडाउन कर रखा था. उत्तर प्रदेश की बात करें तो ताज नगरी आगरा में कोरोना संक्रमितों की संख्या सब से अधिक थी.  21 अप्रैल की रात 9 बजे आगरा के थाना लोहामंडी क्षेत्र के हसनपुरा में रहने वाले वरुण प्रजापति ने गजानन नगर में रहने वाली डाक्टर गरिमा बंसल के घर के पास एक कार्टन बौक्स पड़ा देखा. आश्चर्य की बात यह थी कि वह बौक्स सफेद चादर में बंधा हुआ था.

वरूण ने आसपास के लोगों को बुलाया. लोगों के आने पर तरहतरह की बातें होने लगीं. यह रहस्य जानने को सभी बेकरार थे कि बौक्स में है क्या. पता चला कि वह कार्टन बौक्स दोपहर में वहां नहीं था, शाम को अंधेरा घिरने पर किसी ने उसे वहां डाला होगा. मामला संदिग्ध होने पर वरुण ने 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही एसपी सिटी रोत्रे बोहन प्रसाद व शाहगंज थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. जहां बाक्स मिला था, वहां से महज एक किलोमीटर की दूरी पर थाना शाहगंज था. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने वहां पहुंचने के बाद एक पुलिसकर्मी को पीपीई किट पहना कर 2 फुट का वह कार्टन बौक्स खुलवाया. बौक्स खुलने पर उस में एक युवती की लाश मिली. मृतका की उम्र लगभग 25-26 वर्ष रही होगी. उस के गले पर दबाने के निशान थे. मृतका ने नीले रंग का सलवारसूट पहन रखा था. उस के पैर दुपट्टे से बंधे हुए थे. दाएं हाथ पर किरन लिखा था.

बौक्स पर जो चादर बंधी थी, और वह बौक्स किसी अस्पताल के लग रहे थे. बौक्स दवाइयों में इस्तेमाल होने वाला था. चादर भी अस्पतालों में बिछाई जाने वाली थी. इस से लगा कि हत्यारे का कनेक्शन किसी हौस्पिटल से है. एक किलोमीटर तक के अस्पतालों की जानकारी एकत्र की गई तो ऐसा कोई हौस्पिटल नहीं मिला. मृतका की लाश के फोटो भी कोई नहीं पहचान पाया. मृतका की शिनाख्त नहीं हो पाई तो इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने लाश को मार्चरी में रखवा दिया. फिर थाने आ कर उन्होंने वरुण प्रजापति से लिखित तहरीर ली और अज्ञात के विरूद्ध भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

वह अभागी किरन ही थी अगले दिन एक महिला अपने बेटे के साथ शाहगंज थाने पहुंची और अपना नाम सरोज व बेटे का नाम सागर बताया. उन दोनों के अनुसार वे लाश मिलने की बात सुन कर थाने पहुंचे थे. सरोज की बेटी किरन घटना वाले दिन सुबह 10 बजे घर से निकली थी लेकिन वापस नहीं लौटी थी. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने उन्हें लाश का फोटो दिखाया तो सरोज रो पड़ी, वह लाश उस की बेटी किरन की ही थी. शिनाख्त होने पर इंसपेक्टर राघव ने उन से किरन के बारे में पूछताछ की. लेकिन सरोज ने कुछ भी ऐसा नहीं बताया जो पुलिस के काम का होता. वह किरन के प्रेमसंबंधों को बदनामी के डर से छिपा गईं.

इंसपेक्टर राघव ने बौक्स मिलने के स्थान की सीसीटीवी फुटेज खंगालनी शुरू की. सीसीटीवी फुटेज में एक व्यक्ति बाइक पर पीछे बौक्स रखे आता दिखाई दिया. उस इलाके की पूरी सीसीटीवी फुटेज देखते हुए इंसपेक्टर राघव खुशी नेत्रालय तक पहुंच गए. लौकडाउन की वजह से नेत्रालय बंद चल था, लेकिन उन्हें यह जानकारी मिल गई कि उस नेत्रालय में कोई रहता है. वह नेत्रालय पहुंचे तो आनंद ने गेट खोला. पुलिस को वहां आया देख कर वह चौंका और भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस से बच कर भाग नहीं पाया.  पुलिस को उस की हीरो सुपर स्पलैंडर बाइक भी वहीं खड़ी मिल गई. यह वही बाइक थी, जिस पर आनंद बौक्स रख कर फेेंकने ले गया था. उस के पास से किरन की पासबुक और आधार कार्ड भी बरामद हो गए.

थाने ला कर जब आनंद से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया और हत्या की वजह बता दी. किरन ने शादी करने की बात को ले कर आनंद का जीना हराम कर दिया था. दिन रात बस एक ही रट कि शादी कर लो. जबकि आनंद पहले से ही शादीशुदा था, वह तो उस के साथ खेल रहा था. ऐसे में शादी करने का तो सवाल ही नहीं उठता था. 21 अप्रैल की सुबह 10 बजे किरन घर से अपनी मां से कह कर निकली कि वह आनंद से मिलने जा रही है. किरन सीधे वहां से खुशी नेत्रालय पहुंची. लौकडाउन की वजह से नेत्रालय बंद था. लेकिन आनंद अंदर अपने कमरे में मौजूद था. आनंद और किरन बैठ कर बात करने लगे. बात बात में ही शादी को ले कर दोनों में विवाद होने लगा.

दोपहर साढ़े 12 बजे आनंद ने प्लास्टिक की रस्सी से किरन का गला घोंट दिया, जिस से किरन की मौत हो गई. आनंद ने किरन के पैरों को उस के दुपट्टे से बांध दिया. फिर नेत्रालय में रखे एक 2 फुट के कार्टन बौक्स और सफेद चादर को उठा लाया. कार्टन बौक्स में आंखों के लेंस आते थे. उस बौक्स में उस ने किसी तरह किरन की लाश को ठूंसा और कार्टन बंद कर के उसे उसी प्लास्टिक की रस्सी से बांध दिया, जिस से उस ने किरन का गला घोंटा था. इस के बाद कार्टन बौक्स को सफेद चादर से बांध कर रख दिया और रात होने का इंतजार करने लगा. वह साढ़े 7 घंटे लाश को अपने कमरे में रखे रहा. रात 8 बजे उस ने बौक्स को अपनी हीरो सुपर स्पलैंडर बाइक पर रखा और गजानन नगर में डा. गरिमा बंसल के घर के पास डाल दिया. फिर वहां से चला आया.

लेकिन उस का गुनाह छिप न सका और पकड़ा गया. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद अतुल कुमार उर्फ आनंद को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधा

Extramarital Affair : पड़ोसी के प्यार में पागल पत्नी ने कराया पति का कत्ल

Extramarital Affair : तमाम पतिपत्नियों की तरह कपिल और खुशबू में लड़ाईझगड़ा होता था. लेकिन खुशबू इस झगड़े को नाक का सवाल बना कर मायके चली गई, जहां उस के संबंध चंदन से बन गए. खुशबू को चंदन की यारी ऐसी भाई कि उस ने…

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना शाहीनबाग के अंतर्गत नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिल की ससुराल उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के आसफाबाद में थी. करीब 3 साल पहले किसी बात को ले कर उस का अपनी पत्नी खुशबू से विवाद हो गया था. तब खुशबू अपने मायके चली गई थी और वापस नहीं लौटी थी. इतना ही नहीं, ढाई साल पहले खुशबू ने फिरोजाबाद न्यायालय में कपिल के खिलाफ घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते का मुकदमा दायर कर दिया था. कपिल हर तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट जाता था और तारीख निपटा कर देर रात दिल्ली लौट आता था. 10 फरवरी, 2020 को भी वह इसी मुकदमे की तारीख के लिए दिल्ली से फिरोजाबाद आया था. वह रात को घर नहीं पहुंचा तो घर वालों ने उसे 11 फरवरी की सुबह फोन किया.

लेकिन उस का फोन बंद मिला. इस से घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने 11 फरवरी की शाम तक कपिल का इंतजार किया. इस के बाद उन की चिंता और भी बढ़ गई. 12 फरवरी को कपिल की मां ब्रह्मवती, बहन राखी, मामा नेमचंद और मौसी सुंदरी फिरोजाबाद के लिए निकल गए. कपिल की ससुराल वाला इलाका थाना रसूलपुर क्षेत्र में आता है, इसलिए वे सभी थाना रसूलपुर पहुंचे और कपिल के रहस्यमय तरीके से गायब होने की बात बताई. थाना रसूलपुर से उन्हें यह कह कर थाना मटसैना भेज दिया गया कि कपिल कोर्ट की तारीख पर आया था और कोर्ट परिसर उन के थानाक्षेत्र में नहीं बल्कि थाना मटसैना में पड़ता है.

इसलिए वे सभी लोग उसी दिन थाना मटसैना पहुंचे, लेकिन वहां भी उन की बात गंभीरता से नहीं सुनी गई. ज्यादा जिद करने पर मटसैना पुलिस ने कपिल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुमशुदगी दर्ज कर के उन्हें थाने से टरका दिया. इस के बाद भी वे लोग कपिल की फिरोजाबाद में ही तलाश करते रहे. इसी बीच 15 फरवरी की दोपहर को किसी ने थाना रामगढ़ के बाईपास पर स्थित हिना धर्मकांटा के नजदीक नाले में एक युवक की लाश पड़ी देखी. इस खबर से वहां सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में भीड़ एकत्र हो गई. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना रामगढ़ थाने में दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी श्याम सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने शव को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक के कानों में मोबाइल का ईयरफोन लगा था.

पुलिस ने युवक की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका. पुलिस ने उस अज्ञात युवक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भेज दी. कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी उस समय फिरोजाबाद में ही थीं. शाम के समय जब उन्हें बाईपास स्थित नाले में पुलिस द्वारा किसी अज्ञात युवक की लाश बरामद किए जाने की जानकारी मिली तो मांबेटी थाना रामगढ़ पहुंच गईं. उन्होंने थानाप्रभारी श्याम सिंह से अज्ञात युवक की लाश के बारे में पूछा तो थानाप्रभारी ने उन्हें फोन में खींचे गए फोटो दिखाए. फोटो देखते ही वे दोनों रो पड़ीं, क्योंकि लाश कपिल की ही थी. इस के बाद थानाप्रभारी ब्रह्मवती और उस की बेटी राखी को जिला अस्पताल की मोर्चरी ले गए.

उन्होंने वह लाश दिखाई तो दोनों ने उस की शिनाख्त कपिल के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने भी राहत की सांस ली. थानाप्रभारी ने शव की शिनाख्त होने की जानकारी एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह को दे दी और उन के निर्देश पर आगे की काररवाई शुरू कर दी. थानाप्रभारी श्याम सिंह ने मृतक कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी से बात की तो उन्होंने बताया कि कपिल की पत्नी खुशबू चरित्रहीन थी. इसी बात पर कपिल और खुशबू के बीच अकसर झगड़ा होता था, जिस के बाद खुशबू मायके में आ कर रहने लगी थी. राखी ने आरोप लगाया कि खुशबू ने ही अपने परिवार के लोगों से मिल कर उस के भाई की हत्या की है.

पुलिस ने राखी की तरफ से मृतक की पत्नी खुशबू, सास बिट्टनश्री, साले सुनील, ब्रजेश, साली रिंकी और सुनील की पत्नी ममता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस आरोपियों की तलाश में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी खुशबू व उस की मां को हिरासत में ले लिया. उन से कड़ाई से पूछताछ की गई. खुशबू से की गई पूछताछ में पुलिस को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी, बस यही पता चला कि कपिल पत्नी के चरित्र पर शक करता था. फिर भी पुलिस यह समझ गई थी कि एक अकेली औरत कपिल का न तो मर्डर कर सकती है और न ही शव घर से दूर ले जा कर नाले में फेंक सकती है. पुलिस चाहती थी कि कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आए.

इस बीच जांच के दौरान पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने थानाप्रभारी को बताया कि खुशबू चोरीछिपे अपने प्रेमी चंदन से मिलती थी. दोनों के नाजायज संबंधों का जो शक किया जा रहा था, उस की पुष्टि हो गई. जाहिर था कि हत्या अगर खुशबू ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी जरूर रहा होगा. इस बीच पुलिस की बढ़ती गतिविधियों और खुशबू को हिरासत में लिए जाने की भनक मिलते ही खुशबू का प्रेमी चंदन और उस का साथी प्रमोद फरार हो गए. इस से उन दोनों पर पुलिस को शक हो गया. उन की सुरागरसी के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. मुखबिर की सूचना पर घटना के तीसरे दिन पुलिस ने खुशबू के प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद को कनैटा चौराहे के पास से हिरासत में ले लिया. दोनों वहां फरार होने के लिए किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे.

थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई. थाने में जब चंदन और प्रमोद से खुशबू का आमनासामना कराया गया तो तीनों सकपका गए. इस के बाद उन्होंने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने खुशबू, उस के प्रेमी चंदन उर्फ जयकिशोर निवासी मौढ़ा, थाना रसूलपुर, उस के दोस्त प्रमोद राठौर निवासी राठौर नगर, आसफाबाद को कपिल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी, मोटा सरिया व मोटरसाइकिल बरामद कर ली. खुशबू ने अपने प्यार की राह में रोड़ा बने पति कपिल को हटाने के लिए प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर हत्या का षडयंत्र रचा था. खुशबू ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

क्षिणपूर्वी दिल्ली की नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिलचंद्र की शादी सन 2015 में खुशबू के साथ हुई थी. शादी के डेढ़ साल तक सब कुछ ठीकठाक रहा. कपिल की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. करीब 3 साल पहले जैसे उस के परिवार को नजर लग गई. हुआ यह कि खुशबू अकसर मायके चली जाती थी. इस से कपिल को उस के चरित्र पर शक होने लगा. इस के बाद पतिपत्नी में तकरार शुरू हो गई. पतिपत्नी में आए दिन झगड़े होने लगे. गुस्से में कपिल खुशबू की पिटाई भी कर देता था. गृहक्लेश के चलते खुशबू अपने बेटे को ले कर अपने मायके में आ कर रहने लगी. ढाई साल पहले उस ने कपिल पर घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते के लिए फिरोजाबाद न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया.

मायके में रहने के दौरान खुशबू के अपने पड़ोसी चंदन से प्रेम संबंध हो गए थे. हालांकि चंदन शादीशुदा था और उस की 6 महीने की बेटी भी थी. कहते हैं प्यार अंधा होता है. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे थे. मायके में रहने के दौरान चंदन खुशबू के पति की कमी पूरी कर देता था. लेकिन ऐसा कब तक चलता. एक दिन खुशबू ने चंदन से कहा, ‘‘चंदन, हम लोग ऐसे चोरीछिपे आखिर कब तक मिलते रहेंगे. तुम मुझ से शादी कर लो. मैं अपने पति से पीछा भी छुड़ाना चाहती हूं. लेकिन वह मुझे तलाक नहीं दे रहा. अगर तुम रास्ते के इस कांटे को हटा दोगे तो हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

दोनों एकदूसरे के साथ रहना चाहते थे. चंदन को खुशबू की सलाह अच्छी लगी. इस के बाद खुशबू व उस के प्रेमी चंदन ने मिल कर एक षडयंत्र रचा. मुकदमे की तारीख पर खुशबू और कपिल की बातचीत हो जाती थी. खुशबू ने चंदन को बता दिया था कि कपिल हर महीने मुकदमे की तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट में आता है. 10 फरवरी को अगली तारीख है, वह उस दिन तारीख पर जरूर आएगा. तभी उस का काम तमाम कर देंगे. कपिल 10 फरवरी को कोर्ट में अपनी तारीख के लिए आया. कोर्ट में खुशबू व कपिल के बीच बातचीत हो जाती थी. कोर्ट में तारीख हो जाने के बाद खुशबू ने उसे बताया, ‘‘अपने बेटे जिगर की तबीयत ठीक नहीं है. वह तुम्हें बहुत याद करता है. उस से एक बार मिल लो.’’

अपने कलेजे के टुकड़े की बीमारी की बात सुन कर कपिल परेशान हो गया और तारीख के बाद खुशबू के साथ अपनी ससुराल पहुंचा. कपिल शराब पीने का शौकीन था. खुशबू के प्रेमी व उस के दोस्त ने कपिल को शराब पार्टी पर आमंत्रित किया. शाम को ज्यादा शराब पीने से कपिल नशे में चूर हो कर गिर पड़ा. कपिल के गिरते ही खुशबू ने उस के हाथ पकड़े और प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद ने साथ लाई रस्सी से कपिल के हाथ बांधने के बाद उस के सिर पर मोटे सरिया से प्रहार कर उस की हत्या कर दी. कपिल की हत्या इतनी सावधानी से की गई थी कि पड़ोसियों को भी भनक नहीं लगी. हत्या के बाद उसी रात उस के शव को मोटरसाइकिल से ले जा कर बाईपास के किनारे स्थित नाले में डाल दिया गया. 15 फरवरी को शव से दुर्गंध आने पर लोगों का ध्यान उधर गया.

एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह ने बताया कि कपिल की हत्या के मुकदमे में नामजद आरोपियों की भूमिका की जांच की जा रही है. जो लोग निर्दोष पाए जाएंगे, उन्हें छोड़ दिया जाएगा. पुलिस ने तीनों हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. निजी रिश्तों में आई खटास के चलते खुशबू ने अपनी मांग का सिंदूर उजाड़ने के साथ पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया. वहीं कांच की चूडि़यों से रिश्तों को जोड़ने के लिए मशहूर सुहागनगरी फिरोजाबाद को रिश्तों के खून से लाल कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Stories : प्रेमिका ने प्रेमी संग पहले सुहागरात मनाई फिर पेड़ से लटक कर की आत्महत्या

Love Stories : रचना और नीरज बचपन से ही एकदूसरे को प्यार करते थे. उन का प्यार शारीरिक आकर्षण नहीं बल्कि प्लैटोनिक था, जिस में रूह को अलग तरह की अनुभूति होती है. जब घर वालों ने रचना की शादी तय कर दी तो दोनों के पास…

इसे नादानी और कम उम्र के प्यार का नतीजा कहना रचना और नीरज के साथ ज्यादती ही कहा जाएगा. दरअसल, यह दुखद हादसा सच्चे और निश्छल प्यार का उदाहरण है. जरूरत इस प्यार को समझने और समझाने की है, जिस से फिर कभी प्यार करने वालों की लाशें किसी पेड़ से लटकती हुई न मिलें. विश्वप्रसिद्ध पर्यटनस्थल खजुराहो से महज 8 किलोमीटर दूर एक गांव है बमीठा, जहां अधिकांशत: पिछड़ी जाति के लोग रहते हैं. खजुराहो आने वाले पर्यटकों का बमीठा में देखा जाना आम बात है, इन में से भी अधिकतर विदेशी ही होते हैं. बमीठा से सटा गांव बाहरपुरा भी पर्यटकों की चहलपहल से अछूता नहीं रहता.

लेकिन इस गांव में लोगों पर विदेशियों की आवाजाही का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि वे इस के आदी हो गए हैं. भैरो पटेल बाहरपुर के नामी इज्जतदार और खातेपीते किसान हैं. कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपनी 18 वर्षीय बेटी रचना की शादी नजदीक के गांव हीरापुर में अपनी बराबरी की हैसियत वाले परिवार में तय कर दी थी. शादी 11 फरवरी को होनी तय हुई थी, इसलिए भैरो पटेल शादी की तारीख तय होने के बाद से ही व्यस्त थे. गांव में लड़की की शादी अभी भी किसी चुनौती से कम नहीं होती. शादी के हफ्ते भर पहले से ही रस्मोरिवाजों का जो सिलसिला शुरू होता है, वह शादी के हफ्ते भर बाद तक चलता है. ऐसी ही एक रस्म आती है छई माटी, जिस में महिलाएं खेत की मिट्टी खोद कर लाती हैं.

बुंदेलखंड इलाके में इस दिन महिलाएं गीत गाती हुई खेत पर जाती हैं और पूजापाठ करती हैं. यह रस्म रचना की शादी के 4 दिन पहले यानी 7 फरवरी को हुई थी. हालांकि फरवरी का महीना लग चुका था, लेकिन ठंड कम नहीं हुई थी. भैरो पटेल उत्साहपूर्वक आसपास के गांवों में जा कर बेटी की शादी के कार्ड बांट रहे थे. कड़कड़ाती सर्दी में वे मोटरसाइकिल ले कर अलसुबह निकलते थे तो देर रात तक वापस आते थे. 7 फरवरी को भी वे कार्ड बांट कर बाहरपुर की तरफ वापस लौट रहे थे कि तभी उन की पत्नी का फोन आ गया. मोटरसाइकिल किनारे खड़ी कर उन्होंने पत्नी से बात की तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

पत्नी ने घबराहट में बताया कि जब वह छई माटी की रस्म पूरी कर के घर आई तो रचना घर में नहीं मिली. वह सारे गांव में बेटी को ढूंढ चुकी है. पत्नी की बात सुन कर उन्होंने बेसब्री से पूछा, ‘‘और नीरज…’’

‘‘वह भी घर पर नहीं है,’’ पत्नी का यह जवाब सुन कर उन के हाथपैर सुन्न पड़ने लगे. जिस का डर था, वही बात हो गई थी. 20 वर्षीय नीरज उन्हीं के गांव का लड़का था. उस के पिता सेवापाल से उन के पीढि़यों के संबंध थे. लेकिन बीते कुछ दिनों से ये संबंध दरकने लगे थे, जिस की अपनी वजह भी थी. इस वजह पर गौर करते भैरो पटेल ने फिर मोटरसाइकिल स्टार्ट की और तेजी से गांव की तरफ चल पड़े. रचना और नीरज का एक साथ गायब होना उन के लिए चिंता और तनाव की बात थी. 4 दिन बाद बारात आने वाली थी. आसपास के गांवों की रिश्तेदारी और समाज में बेटी की शादी का ढिंढोरा पिट चुका था.

यह सवाल रहरह कर उन के दिमाग को मथ रहा था कि कहीं रचना नीरज के साथ तो नहीं भाग गई. अगर ऐसा हुआ तो वे और उन की इज्जत दोनों कहीं के नहीं रहेंगे. ‘फिर क्या होगा’ यह सोचते ही शरीर से छूटते पसीने ने कड़ाके के जाड़े का भी लिहाज नहीं किया. गांव पहुंचे तो यह मनहूस खबर आम हो चुकी थी कि आखिरकार रचना और नीरज भाग ही गए. काफी ढूंढने के बाद भी उन का कोई पता नहीं चल पा रहा था. घर आ कर उन्होंने नजदीकी लोगों से सलाहमशविरा किया और रात 10 बजे के लगभग चंद्रपुर पुलिस चौकी जा कर बेटी की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी. उन्होंने नीरज पर रचना के अपहरण का शक भी जताया. थाना इंचार्ज डी.डी. शाक्य ने सूचना दर्ज की और काररवाई में जुट गए.

बुंदेलखंड इलाके में नाक सब से बड़ी चीज होती है. एक जवान लड़की, जिस की शादी 4 दिन बाद होनी हो, अगर दुलहन बनने से पहले गांव के ही किसी लड़के के साथ भाग जाए और यह बात सभी को मालूम हो तो लट्ठफरसे और गोलियां चलते भी देर नहीं लगती. इसलिए पुलिस वालों ने फुरती दिखाई और रचना और नीरज की ढुंढाई शुरू कर दी. डी.डी. शाक्य ने तुरंत इस बात की खबर बमीठा थाने के इंचार्ज जसवंत सिंह राजपूत को दी. वह भी बिना वक्त गंवाए चंद्रपुर चौकी पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने अपनी संक्षिप्त मीटिंग में तय किया कि दोनों अभी ज्यादा दूर नहीं भागे होंगे, इसलिए तुरंत छतरपुर बस स्टैंड और खजुराहो रेलवे स्टेशन की तरफ टीमें दौड़ा दी गईं. रचना और नीरज कहीं भी जाते, उन्हें जाना इन्हीं दोनों रास्तों से पड़ता.

पुलिस ने खजुराहो रेलवे स्टेशन और छतरपुर बस स्टैंड सहित आसपास के गांवों में खाक छानी, लेकिन रचना और नीरज को नहीं मिलना था सो वे नहीं मिले. आधी रात हो चली थी, इसलिए अब सुबह देखेंगे सोच कर बात टाल दी गई. इधर बाहरपुर में भी मीटिंगों के दौर चलते रहे, जिन में नीरज और रचना के परिवारजनों को बच्चों के भागने से ज्यादा चिंता अपनी इज्जत की थी, खासतौर से भैरो सिंह को, क्योंकि वे लड़की वाले थे. ऐसे मामलों में छीछालेदर लड़की वाले की ही ज्यादा होती है. बस एक बार रचना मिल जाए तो सब संभाल लूंगा जैसी हजार बातें सोचते भैरो सिंह बारबार कसमसा उठते थे. अंत में उन्होंने भी हालात के आगे हथियार डाल दिए कि अब सुबह देखेंगे कि क्या करना है.

सुबह सूरज उगने से पहले ही नीरज की मां रोज की तरह उठ कर मवेशियों को चारा डालने गांव के बाहर अपने खेतों की तरफ गईं तो आम के पेड़ को देख चौंक गईं. रोशनी पूरी तरह नहीं हुई थी, इसलिए वे एकदम से समझ नहीं पाईं कि पेड़ पर यह क्या लटक रहा है. जिज्ञासावश वह पेड़ के नजदीक पहुंचीं, तो ऊपर का नजारा देख उन की चीख निकल गई. पेड़ पर रचना और नीरज की लाशें झूल रही थीं. वह चिल्लाते हुए गांव की तरफ भागीं. देखते ही देखते बाहरपुर में हाहाकार मच गया. अलसाए लोग खेत की तरफ दौड़ने लगे. कुछ डर और कुछ हैरानी से सकते में आए लोग अपने ही गांव के बच्चों की एक और प्रेम कहानी का यह अंजाम देख रहे थे. भीड़ में से ही किसी ने मोबाइल फोन पर पुलिस चौकी में खबर कर दी.

पुलिस आती, इस के पहले ही लव स्टोरी पूरी तरह लोगों की जुबान पर आ गई. इस छोटे से गांव में सभी एकदूसरे को जानते हैं. गांव में एक ही मिडिल स्कूल है, इस के बाद की पढ़ाई के लिए बच्चों को चंद्रपुर जाना पड़ता है. नीरज की रचना से बचपन से ही दोस्ती थी. आठवीं के बाद उन्हें भी चंद्रपुर जाना पड़ा. सभी बच्चे एक साथ जाते थे और एक साथ वापस आते थे. सब से समझदार और जिम्मेदार होने के चलते आनेजाने का जिम्मा नीरज पर था. बच्चे खेलतेकूदते मस्ताते आतेजाते थे. यहीं से इन दोनों के दिलों में प्यार का बीज अंकुरित होना शुरू हुआ.

दोनों जवानी की दहलीज पर पहला कदम रख रहे थे. बचपना जा रहा था और दोनों में शारीरिक बदलाव भी आ रहे थे. साथ आतेजाते रचना और नीरज में नजदीकियां बढ़ने लगीं और कब दोनों को प्यार हो गया, उन्हें पता ही नहीं चला. हालत यह हो गई थी कि दोनों एकदूसरे को देखे बगैर नहीं रह पाते थे. यह प्यार प्लैटोनिक था, जिस में शारीरिक आकर्षण कम एक रोमांटिक अनुभूति ज्यादा थी. बाहरपुर से ले कर चंद्रपुर तक दोनों तरहतरह की बातें करते जाते थे तो रास्ता छोटा लगता था. रचना को लगता था कि यूं ही नीरज के साथ चलती रहे और रास्ता कभी खत्म ही न हो. यही हालत नीरज की भी थी. उस का मन होता कि रचना की बातें सुनता रहे, उस के खूबसूरत सांवले चेहरे को निहारता रहे और उसे निहारता देख रचना शर्म से सर झुकाए तो वह बात बदल दे.

दुनियादारी, समाज, धर्म और जाति की बंदिशों और उसूलों से परे यह प्रेमी जोड़ा अपनी एक अलग दुनिया बसा बैठा था. अब दोनों आने वाली जिंदगी के सपने बुनने लगे थे. ख्वाबों में एकदूसरे को देखने लगे थे. अब तक घर और गांव वाले इन्हें बच्चा ही समझ रहे थे. इधर इन ‘बच्चों’ की हालत यह थी कि दिन में कई दफा एकदूसरे को ‘आई लव यू’ बोले बगैर इन का खाना नहीं पचता था. दोनों एकदूसरे की पसंद का खास खयाल रखते थे, यहां तक कि टिफिन में खाना भी एकदूसरे की पसंद का ले जाते थे और साथ बैठ कर खाते थे.

प्यार का यह रूप कोई देखता तो निहाल हो उठता, लेकिन सच्चे और आदर्श वाले प्यार को नजर जल्द लगती है यह बात भी सौ फीसदी सच है. रचना तो नीरज के प्यार में ऐसी खोई कि कौपीकिताबों में भी उसे प्रेमी का चेहरा नजर आता था. नतीजतन 9वीं क्लास में वह फेल हो गई. इस पर घर वालों ने स्कूल से उस का नाम कटा दिया. लेकिन उस के दिलोदिमाग में नीरज का नाम कुछ इस तरह लिखा था कि दुनिया की कोई ताकत उसे मिटा नहीं सकती थी. स्कूल जाना बंद हुआ तो वह बिना नीरज के और बिना उस के नीरज छटपटाने लगा. दिन भर घर में पड़ी रचना मन ही मन नीरज के नाम की माला जपती रहती थी और नीरज दिन भर उस की याद में खोया रहता था.

सुबह जैसे ही स्कूल जाने का वक्त होता था तो रचना हिरणी की तरह कुलांचे मारते सड़क पर आ जाती थी. दोनों कुछ देर बातें करते और फिर शाम का इंतजार करते रहते. जैसे ही आने का वक्त होता था तो रचना गांव के छोर पर पहुंच जाती. दोनों का दिल से अख्तियार हटने लगा था. कुछ ही दिनों बाद जैसे ही नीरज बच्चों के साथ वापस आता तो दोनों खेतों में गुम हो जाते थे और सूरज ढलने तक अकेले में बैठे एकदूसरे की बांहों में समाए दुनियाजहान की बातें करते रहते. बात छिपने वाली नहीं थी. साथ के बच्चों ने जब उन्हें इस हालत में देखा तो बात उन से हो कर बड़ों तक पहुंची. भैरो सिंह को जब यह बात पता चली तो उन्होंने वही गलती की जो आमतौर पर ऐसी हालत में एक पिता करता है.

गलती यह कि रचना पर न केवल बंदिशें लगाईं बल्कि आननफानन में उस की शादी भी तय कर दी. उन का इरादा जल्दी से जल्दी बेटी को विदा कर देना था, ताकि कोई ऐसा हादसा न हो जिस की वजह से उन की मूंछें झुक जाएं. यह रचना और नीरज के लिए परेशानियों भरा दौर था. दोनों के घर वालों ने साफतौर पर चेतावनी दे दी थी कि उन की शादी नहीं हो सकती, लिहाजा दोनों एकदूसरे को भूल जाओ. शादी तय हुई और तैयारियां भी शुरू हो गईं तो दोनों हताश हो उठे. दोनों जवानी में पहला पांव रखते ही साथ जीनेमरने की कसमें खा चुके थे, लेकिन घर वालों से डरते और उन का लिहाज करते थे. इसी समय उन्हें समाज की ताकत और अपनी बेबसी का अहसास हुआ. यह भी वे सोचा करते थे कि आखिर उन की शादी पर घर वालों को ऐतराज क्यों है.

प्रेम प्रसंग आम हो चुका था, इसलिए दोनों का मिलनाजुलना कम हो गया था. शादी की रस्में शुरू हुईं तो रचना को लगा कि वह बगैर नीरज के नहीं रह पाएगी. फिर भी वह खामोशी से वह सब करती जा रही थी जो घर वाले चाहते थे. रचना अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ी थी, जहां से कोई रास्ता नीरज की तरफ नहीं जाता था. घर वालों के खिलाफ भी वह नहीं जा पा रही थी और नीरज को भी नहीं भूल पा रही थी. उसे लगने लगा था कि वह बेवफा है. ऐसे में जब मंगेतर देवेंद्र का फोन आया तो वह और भी घबरा उठी. क्योंकि इन सब बातों से अंजान देवेंद्र भी प्यार जताते हुए यह कहता रहता था कि हम दोनों अपनी सुहागरात 11 फरवरी को नहीं बल्कि 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे पर मनाएंगे.

नीरज के अलावा कोई और शरीर को छुए, यह सोच कर ही रचना की रूह कांप उठती थी. लिहाजा उस ने जी कड़ा कर एक सख्त फैसला ले लिया और नीरज को भी बता दिया. जिंदगी से हताश हो चले नीरज को भी लगा कि जब घर वाले साथ जीने का मौका नहीं दे रहे तो न सही, रचना के साथ मरने का हक तो नहीं छीन सकते. 7 फरवरी की दोपहर जब मां दूसरी महिलाओं के साथ छई माटी की रस्म के लिए खेतों पर गई तो रचना घर से भाग निकली. नीरज उस का इंतजार कर ही रहा था. दोनों ने आत्महत्या करने से पहले पेड़ के नीचे सुहागरात मनाई और नीरज ने रचना की मांग में सिंदूर भी भरा, फिर दोनों एकदूसरे को गले लगा कर फंदे पर झूल गए.

दोनों के शव जब पेड़ से उतारे गए तो गांव वाले गमगीन थे. जिन्होंने अभी अपनी जिंदगी जीनी शुरू भी नहीं की थी, वे बेवक्त मारे गए थे. दोनों के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था. पोस्टमार्टम के बाद शव घर वालों को सौंप दिए गए और दोनों का एक ही श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार हुआ. प्रेमियों का इस तरह एक साथ या अलगअलग खुदकुशी कर लेना कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस मामले से यह तो साफ हो गया कि सच्चा प्यार मर जाना पसंद करता है, जुदा होना नहीं. ऐसे प्रेमी जब परंपराएं, धर्म, जाति वगैरह की दीवारें तोड़ने में खुद को असमर्थ पाते हैं, तो उन के पास सिवाय आत्महत्या के कोई भी रास्ता नहीं रह जाता, जिन की मंशा घर वालों और समाज को उन की गलती का अहसास कराने की भी होती है.

भैरो सिंह और सेवापाल जैसे पिता अगर वाकई बच्चों को प्यार करते होते तो उन की इच्छा और अरमानों का सम्मान करते, उन्हें पूरा करते लेकिन इन्हें औलाद से ज्यादा अपने उसूल प्यारे थे तो क्यों न इन्हें ही दोषी माना जाए.