
12 दिसंबर, 2019 की सुबह तिर्वा-कन्नौज मार्ग पर आवागमन शुरू हुआ तो कुछ लोगों ने ईशन नदी पुल के नीचे एक महिला का शव पड़ा देखा. कुछ ही देर में पुल पर काफी भीड़ जमा हो गई. पुल पर लोग रुकते और झांक कर लाश देखने की कोशिश करते और चले जाते.
कुछ लोग ऐसे भी थे जो पुल के नीचे जाते और नजदीक से शव की शिनाख्त करने की कोशिश करते. यह खबर क्षेत्र में फैली तो भुडि़या और आसपास के गांवों के लोग भी आ गए. भीषण ठंड के बावजूद सुबह 10 बजे तक सैकड़ों लोगों की भीड़ घटनास्थल पर जमा हो गई. इसी बीच भुडि़यां गांव के प्रधान जगदीश ने मोबाइल फोन से यह सूचना थाना तिर्वा को दे दी.
सूचना मिलते ही तिर्वा थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने लाश मिलने की सूचना जिले के पुलिस अधिकारियों को दी, और लाश का निरीक्षण करने लगे. महिला का शव पुल के नीचे नदी किनारे झाडि़यों में पड़ा था. उस की उम्र 25-26 साल के आसपास थी. वह हल्के हरे रंग का सलवारकुरता और क्रीम कलर का स्वेटर पहने थी, हाथों में मेहंदी, पैरों में महावर, चूडि़यां, बिछिया पहने थी और मांग में सिंदूर. लगता जैसे कोई दुलहन हो.
मृतका का चेहरा किसी भारी चीज से कुचला गया था, और झुलसा हुआ था. उस के गले में सफेद रंग का अंगौछा पड़ा था. देख कर लग रहा था, जैसे महिला की हत्या उसी अंगौछे से गला कस कर की गई हो. पहचान मिटाने के लिए उस का चेहरा कुचल कर तेजाब से जला दिया गया था.
महिला की हत्या पुल के ऊपर की गई थी और शव को घसीट कर पुल के नीचे झाडि़यों तक लाया गया था. घसीट कर लाने के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. महिला के साथ बलात्कार के बाद विरोध करने पर हत्या किए जाने की भी आशंका थी.
थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा अभी शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह, एएसपी विनोद कुमार तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम प्रभारी राकेश कुमार को बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम प्रभारी ने वहां से सबूत एकत्र किए.
अब तक कई घंटे बीत चुके थे, घटनास्थल पर भीड़ जमा थी. लेकिन कोई भी शव की शिनाख्त नहीं कर पाया. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने महिला के शव के बारे में भुडि़या गांव के ग्राम प्रधान जगदीश से बातचीत की तो उन्होंने कहा, ‘‘सर, यह महिला हमारे क्षेत्र की नहीं, कहीं और की है. अगर हमारे क्षेत्र की होती तो अब तक शिनाख्त हो गई होती.’’
एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को भी ग्राम प्रधान की बात सही लगी. उन्होंने थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द महिला की हत्या का खुलासा करें.
थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने आवश्यक काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दी. किसी थाने में मृतका की गुमशुदगी दर्ज तो नहीं है, यह जानने के लिए उन्होंने वायरलैस से सभी थानों में अज्ञात महिला की लाश मिलने की सूचना प्रसारित करा दी.
इस के साथ ही उन्होंने क्षेत्र के सभी समाचार पत्रों में महिला की लाश के फोटो छपवा कर लोगों से उस की पहचान करने की अपील की.
इस का परिणाम यह निकला कि 13 दिसंबर को अज्ञात महिला के शव की पहचान करने के लिए कई लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. लेकिन उन में से कोई भी शव को नहीं पहचान पाया. शाम 4 बजे 3 डाक्टरों के एक पैनल ने अज्ञात महिला के शव का पोस्टमार्टम शुरू किया.
मिला छोटा सा सुराग
पोस्टमार्टम के पहले जब महिला के शरीर से कपड़े अलग किए गए तो उस की सलवार के नाड़े के स्थान से कागज की एक परची निकली, जिस पर एक मोबाइल नंबर लिखा था. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम करने के बाद रिपोर्ट के साथ वह मोबाइल नंबर लिखी परची भी थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा को दे दी.
दूसरे दिन थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अवलोकन किया. रिपोर्ट के मुताबिक महिला की हत्या गला दबा कर की गई थी. चेहरे को भारी वस्तु से कुचला गया था और उसे तेजाब डाल कर जलाया गया था. बलात्कार की पुष्टि के लिए 2 स्लाइड बनाई गई थीं.
थानाप्रभारी ने परची पर लिखे मोबाइल नंबर पर फोन मिलाया तो फोन बंद था. उन्होंने कई बार वह नंबर मिला कर बात करने की कोशिश की लेकिन वह हर बार वह नंबर स्विच्ड औफ ही मिला.
टी.पी. वर्मा को लगा कि यह रहस्यमय नंबर महिला के कातिल तक पहुंचा सकता है, इसलिए उन्होंने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि घटना वाली रात वह नंबर पूरी रात सक्रिय रहा था. इतना ही नहीं, रात 1 से 2 बजे के बीच इस नंबर की लोकेशन भुडि़या गांव के पास की मिली. इस नंबर से उस रात एक और नंबर पर कई बार बात की गई थी. उस नंबर की लोकेशन भी भुडि़या गांव की ही मिल रही थी.
थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने दोनों नंबरों की जानकारी निकलवाई तो पता चला कि वे दोनों नंबर विजय प्रताप और अजय प्रताप पुत्र हरिनारायण, ग्राम पैथाना, थाना ठठिया, जिला कन्नौज के नाम से लिए गए थे. इस से पता चला कि विजय प्रताप और अजय प्रताप दोनों सगे भाई हैं.
15 दिसंबर, 2019 की रात 10 बजे थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने पुलिस टीम के साथ थाना ठठिया के गांव पैथाना में हरिनारायण के घर छापा मारा. छापा पड़ते ही घर में भगदड़ मच गई.
एक युवक को तो पुलिस ने दबोच लिया, किंतु दूसरा मोटरसाइकिल स्टार्ट कर भागने लगा. इत्तफाक से गांव की नाली से टकरा कर उस की मोटरसाइकिल पलट गई. तभी पीछा कर रही पुलिस ने उसे दबोच लिया. मोटरसाइकिल सहित दोनों युवकों को थाना तिर्वा लाया गया.
थाने पर जब उन से नामपता पूछा गया तो एक ने अपना नाम विजयप्रताप उर्फ शोभित निवासी ग्राम पैथाना थाना ठठिया जिला कन्नौज बताया. जबकि दूसरा युवक विजय प्रताप का भाई अजय प्रताप था.
अजय-विजय को जब मृतका के फोटो दिखाए गए तो दोनों उसे पहचानने से इनकार कर दिया. दोनों के झूठ पर थानाप्रभारी वर्मा को गुस्सा आ गया. उन्होंने उन से सख्ती से पूछताछ की तो विजय प्रताप ने बताया कि मृत महिला उस की पत्नी नीलम थी. हम दोनों ने ही मिल कर नीलम की हत्या की थी और शव को ईशन नदी के पुल के नीचे झाडि़यों में छिपा दिया था.
अजय और विजय ने हत्या का जुर्म तो कबूल कर लिया. किंतु अभी तक उन से आला ए कत्ल बरामद नहीं हुआ था. थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने इस संबंध में पूछताछ की तो उन दोनों ने बताया कि हत्या में प्रयुक्त मफलर तथा खून से सनी ईंटें उन्होंने ईशन नदी के पुल के नीचे झाडि़यों में छिपा दी थीं.
थानाप्रभारी उन दोनों को ईशन नदी पुल के नीचे ले गए. वहां दोनों ने झाडि़यों में छिपाई गई ईंट तथा मफलर बरामद करा दिया. पुलिस ने उन्हें साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया.
विजय प्रताप के पास मृतका नीलम के मामा श्यामबाबू का मोबाइल नंबर था. उस नंबर पर टी.पी. वर्मा ने श्यामबाबू से बात की और नीलम के संबंध में कुछ जानकारी हासिल करने के लिए थाना तिर्वा बुलाया. हालांकि उन्होंने श्यामबाबू को यह जानकारी नहीं दी कि उस की भांजी नीलम की हत्या हो गई है.
श्यामबाबू नीलम को ले कर पिछले 2 सप्ताह से परेशान था. वजह यह कि उस की न तो नीलम से बात हो पा रही थी और न ही उस के पति विजय से. थाना तिर्वा से फोन मिला तो वह तुरंत रवाना हो गया.
मामा ने बताई असल कहानी
कानपुर से तिर्वा कस्बे की दूरी लगभग सवा सौ किलोमीटर है, इसलिए 4 घंटे बाद श्यामबाबू थाना तिर्वा पहुंच गया. थाने पर उस समय थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा मौजूद थे. वर्मा ने उसे एक महिला का फोटो दिखते हुए पूछा, ‘‘क्या तुम इस महिला हो पहचानते हो?’’
शराब ठेके से महेश की आमदनी बढ़ी तो वह ठाठबाट से रहने लगा. उस का विवाह नीतू से हुआ था. शादी के बाद महेश ने दुर्गामाता मंदिर के पास 2 मंजिला मकान बनवा लिया था, जबकि सत्येंद्र व कुलदीप पुराने वाले मकान में रहते थे.
कालांतर में नीतू 2 बेटियों रीतू, गार्गी की मां बनी. नीतू के दोनों बच्चे खूबसूरत थे. महेश व नीतू उन्हें भरपूर प्यार करते थे और किसी भी चीज की कमी का अहसास नहीं होने देते थे.
महेश से छोटा सत्येंद्र था. सत्येंद्र का विवाह शशि के साथ हुआ था. शशि अपनी जेठानी नीतू से भी ज्यादा खूबसूरत थी. वह व्यवहारकुशल तथा घरेलू काम में भी निपुण थी. शादी के 3 साल बाद शशि ने एक खूबसूरत बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने कन्हैया रखा.
कन्हैया के जन्म से सत्येंद्र के घर में खुशियों की बहार आ गई. कन्हैया के जन्म के 2 साल बाद शशि ने एक और बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने लौकिक रखा. प्यार से लौकिक को वह कृष्णा कह कर बुलाती थी. कृष्णा और कन्हैया दोनों ही नटखट और मनमोहक बालक थे.
कृष्णा-कन्हैया का ताऊ महेश भी दोनों को खूब प्यार करता था. महेश भले ही निर्मल मन का था, लेकिन उस की पत्नी नीतू के मन में मैल था. वह दिखावे के तौर पर कृष्णा-कन्हैया से प्यार करती थी, पर अंदर ही अंदर जलती थी. दरअसल, उस के मन में सदैव इस बात की टीस रहती थी कि उस की देवरानी शशि के 2 बेटे हैं, जबकि उस की केवल 2 बेटियां हैं.
नीतू को इस बात का भी मलाल था कि परिवार की बुजुर्ग महिलाएं देवरानी शशि की खूबसूरती और अच्छे बर्ताव का बखान करती हैं, जबकि उसे देख कर मुंह फेर लेती हैं.
नीतू और शशि की आर्थिक स्थिति में जमीनआसमान का अंतर था. नीतू का पति महेश शराब ठेकेदार था. उस की आमदनी अच्छी थी. जबकि शशि का पति सत्येंद्र उस के ठेके पर सेल्समैन था. उसे सीमित पैसा मिलता था. शशि सीमित आमदनी में भी खुश रहती थी, जबकि उस की जेठानी नीतू अच्छी आमदनी के बावजूद परेशान रहती थी.
हालांकि नीतू पैसे के घमंड में शशि पर रौब गांठती रहती थी और यह अहसास दिलाती रहती थी कि उस के पति के रहमोकरम पर ही उस के परिवार का भरणपोषण होता है. नीतू शशि को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं गंवाती थी.
शशि का बड़ा बेटा कन्हैया अब तक 4 साल का तथा छोटा लौकिक उर्फ कृष्णा 2 साल का हो गया था. कृष्णा तेज कदमों से दौड़ने लगा था. बातें भी करने लगा था. अब वह अपनी ताई नीतू के घर भी पहुंचने लगा था.
नीतू की बड़ी बेटी रितु तो हरिद्वार में पढ़ती थी किंतु छोटी बेटी 10 वर्षीय गार्गी कृष्णा को बहुत प्यार करती थी. वह उस से खूब हंसतीबतियाती थी.
लेकिन 3 सितंबर, 2019 को गार्गी से कृष्णा का साथ सदा के लिए छूट गया. हुआ यह कि गार्गी सुबह 10 बजे घर से कुछ दूर गोबर लेने गई थी. वहां उस की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी. शायद उसे किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया था. गार्गी की मौत से घर में कोहराम मच गया.
गार्गी की मौत को अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि कृष्णा का जन्मदिन आ गया. 10 सितंबर को कृष्णा का जन्मदिन था. शशि हर साल बच्चों का जन्मदिन धूमधाम से मनाती थी.
10 सितंबर को वह कृष्णा का बर्थडे भी धूमधाम से मनाना चाहती थी. इस की जानकारी शशि की जेठानी नीतू को हुई तो उस ने इस बारे में शशि से बात कर के कहा कि इस साल धूमधाम से कृष्णा का जन्मदिन न मनाए. लेकिन शशि नहीं मानी और ताना मारा, ‘‘कोई मरे या जिए, हमें इस से कोई वास्ता नहीं. हम तो अपने कृष्णा का जन्मदिन खूब धूमधाम से मनाएंगे.’’
शशि ने जैसा कहा था, उस ने वैसा ही किया. 10 सितंबर को उस ने कृष्णा का जन्मदिन खूब धूमधाम से मनाया. उस ने घरपरिवार के लोगों को खाना खिलाया. लेकिन नीतू कृष्णा के जन्मदिन की खुशी में शामिल नहीं हुई. वह देवरानी शशि के तानों से विचलित हो उठी.
आखिर उस ने निश्चय किया कि वह शशि को ऐसा जख्म देगी, जिस से वह खून के आंसू रोएगी और उस का जख्म जिंदगी भर नहीं भरेगा. शशि को जख्म देने के लिए उस ने जो रास्ता चुना, वह कलेजे को चीर देने वाला था. यह रास्ता था कृष्णा की मौत.
नीतू का पति महेश अपने व्यवसाय में व्यस्त रहता था. इसलिए उसे पता ही नहीं चला कि उस की पत्नी के मन में क्या चल रहा है. वह क्या षडयंत्र रचने वाली है, नीतू ने स्वयं भी पति को अंधेरे में रखा और कुछ नहीं बताया.
16 सितंबर, 2019 की शाम 5 बजे लौकिक उर्फ कृष्णा अपने घर के बाहर खेल रहा था, तभी नीतू की निगाह कृष्णा पर पड़ी.
उस ने इशारे से कृष्णा को बुलाया और फिर घर के अंदर ले गई. इस के बाद नीतू ने मुख्य दरवाजा बंद किया और कृष्णा को दूसरी मंजिल पर स्थित कमरे में ले गई.
वहां उस ने कृष्णा को पटक कर दोनों हाथों से गला दबा कर उसे मार डाला. हत्या के बाद कमरे में ही शव पर पत्थर रख कर दबा दिया और ऊपर से कपड़ा डाल कर ढक दिया. फिर कमरे में ताला लगा कर भूतल पर आ गई.
इधर शशि घरेलू काम में व्यस्त थी. उसे जब फुरसत मिली तो उसे कृष्णा की याद आई. उस ने कृष्णा को घर में खोजा तो वह दिखाई नहीं पड़ा.
इस के बाद शशि ने कृष्णा की तलाश पासपड़ोस में की, लेकिन वह कहीं नहीं दिखा. सभी जगह खोजने के बाद भी जब वह नहीं मिला तो उस ने पति को सूचना दी.
उधर नीतू अपने घर में 2 दिन तक मासूम कृष्णा के शव को दबाए रही. जब शव से बदबू आने लगी तो पकडे़ जाने के डर से उस ने 18 सितंबर की रात 10 बजे कृष्णा के शव को खिड़की से नीचे फेंक दिया.
उस के बाद घर के पिछवाड़े आ कर शव को मिट्टी से ढक दिया. कमरे में फैली दुर्गंध को उस ने खिड़की खोल कर निकालने का प्रयास किया, लेकिन इस काम में वह पूरी तरह से सफल न हो सकी. आखिर पुलिस की खोजी कुतिया ने हत्या का सुराग दे दिया.
पुलिस ने नीतू से पूछताछ के बाद 20 सितंबर, 2019 को उसे फिरोजाबाद कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. नीतू के इस जघन्य कृत्य से उस का पति महेश बेहद शर्मिंदा है.
मनीष वैन ले कर नरौरा गांव आता. वैन को वह सड़क किनारे खड़ा कर सुनीता से मिलने पहुंच जाता. उस से मिल कर वह वापस लौट जाता. मनीष के आने की खबर घरवालों को कभी लगती तो कभी नहीं लगती थी. चूंकि मनीष, मौजीलाल का भांजा था. अत: उसे तथा उस की पत्नी चंद्रावती को उस के वहां आने पर कोई एतराज न था.
लेकिन एक रोज दोनों की चोरी पकड़ी गई. उस रोज मनीष आया और सुनीता से छेड़छाड़ करने लगा. तभी अचानक सुनीता की सास चंद्रावती आ गई. उस ने दोनों को अश्लील हरकत करते देख दिया. चंद्रावती ने बहू की शिकायत पति व बेटे से कर दी. मौजीलाल ने सुनीता को फटकार लगाई, ‘‘बहू, तुम्हें मर्यादा में रहना चाहिए. तुम इस घर की इज्जत हो. आइंदा इस बात का खयाल रखना.’’
सास की शिकायत और ससुर की नसीहत सुनीता को नागवार लगी. वह तुनक गई और घर में कलह करने लगी. वह कभी खाना बनाती तो कभी सिर दर्द का बहाना बना लेती. बच्चे भूख से बिलबिलाते तो वह उन की पिटाई करने लगती.
पति समझाने की कोशिश करता तो वह उस पर भी बरस पड़ती, ‘‘दिन भर साफसफाई करूं, खाना बनाऊं, बच्चों को पालूं और फिर ऊपर से बदचलनी का तमगा. कान खोल कर सुन लो, कि अब मैं सासससुर के साथ नहीं रह पाउंगी. तुम्हें मेरे साथ अलग रहना होगा.’’
राजेश में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह पिता से अलग रहने की बात कह सके. लेकिन जब मौजीलाल को बहू के त्रियाचरित्र और अलग रहने की बात पता चली तो उन्होंने देर नहीं की और वह पत्नी के साथ दूसरे मकान में रहने लगे.
सासससुर ने एक तरह से सुनीता से नाता ही तोड़ लिया. सुनीता के बच्चे दादीदादा से हिलेमिले थे, अत: उन का समय उन्हीं के घर बीतता था. रात को तीनों बच्चे दादीदादा के घर ही सो जाते थे. सासससुर के अलग हो जाने के बाद सुनीता पूरी तरह स्वच्छंद हो गई. अब उसे मनीष से मिलने पर रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. मनीष, ज्यादातर ऐसे समय में आता जब राजेश घर के बाहर होता या फिर खेत पर काम करता होता और बच्चे भी स्कूल में होते.
मनीष वैन चालक था. वह स्वयं तो शराब पीता ही था, उस ने राजेश को भी शराब की आदत डाल दी थी. शराब के बहाने अब मनीष वहां देर शाम आने लगा. आते ही राजेश के साथ महफिल जमती फिर खाना खा कर मनीष कभी चला जाता तो कभी रात में वहीं रुक जाता था. चूंकि राजेश को मुफ्त में शराब पीने को मिलती थी, इसलिए वह मनीष के रुकने पर एतराज नहीं करता था.
एक शाम मनीष हाथ में शराब की बोतल थामे सुनीता के घर पहुंचा तो पता चला राजेश पहले से नशे में धुत है. वह कस्बा नर्वल गया था, वहीं से पी कर लौटा था. आते ही वह चारपाई पर पसर गया था. मनीष का मन खुशी से उछल पड़ा. सुनीता और मनीष ने खाना खाया फिर कुछ देर बाद हसरतें पूरी करने के लिए पीछे वाले कमरे में पहुंच गए.
इधर देर रात राजेश की नींद टूटी तो उस ने देखा सुनीता अपने बिस्तर पर नहीं है. आधे घंटे तक सुनीता नहीं आई तो राजेश का माथा ठनका. वह पत्नी को ढूंढने निकला तो सुनीता पीछे वाले कमरे में मनीष के साथ थी. दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में देख कर राजेश का खून खौल गया.
राजेश को आया देख कर मनीष तो भाग गया, पर सुनीता कहां जाती. राजेश ने सुनीता को कमरे में ले जा कर उस का मुंह दबा कर राजेश ने उसे खूब पीटा. मुंह दबा होने के कारण सुनीता चीखचिल्ला भी नहीं सकी. जब वह अधमरी हो गई तब राजेश ने उसे छोड़ दिया. मौके की नजाकत समझ कर सुनीता ने भी राजेश से माफी मांग ली. बच्चों की खातिर राजेश ने उसे माफ कर दिया.
अब राजेश और मनीष के बीच दरार पड़ गई थी. दोनों ने साथ खानापीना छोड़ दिया था. राजेश ने मनीष के घर आने पर भी प्रतिबंध लगा दिया. सुनीता को ले कर दोनों में झगड़ा बढ़ा तो रिश्ते भी सार्वजनिक हो गए.
गांव के लोग ही नहीं बल्कि नातेरिश्तेदार भी जान गए थे कि मनीष और सुनीता के बीच नाजायज रिश्ता है. राजेश की चारे तरफ बदनामी होने लगी थी. राजेश ने मनीष की शिकायत बुआफूफा से भी की लेकिन मनीष पर कोई असर न पड़ा.
मनीष और सुनीता एक दूसरे के इस कदर दीवाने थे कि मिलन को बेकरार रहते थे. मनीष ने सुनीता को एक मोबाइल फोन दे रखा था. इसी मोबाइल से सुनीता मनीष से बात करती और मौका मिलते ही मनीष को मिलने के लिए बुला लेती. मिलने के दौरान वे सतर्कता बरतते थे.
सतर्कता के बावजूद एक दोपहर राजेश ने सुनीता को मनीष की बाहों में मचलते देख लिया. उस ने सुनीता पर हाथ उठाया, तभी मनीष ने राजेश का हाथ पकड़ कर मरोड़ दिया और बोला, ‘‘खबरदार जो भाभी पर हाथ उठाया. तुम ने जो देखा उसे भूल जाओ. हम दोनों के बीच बाधा मत बनो. इसी में तुम्हारी भलाई है.’’
धमकी देने के बाद मनीष चला गया. उस के बाद राजेश फिर से पत्नी को पीटने के लिए लपका. तब सुनीता भी पति से भिड़ गई और बोली, ‘‘मारपीट कर तुम मुझे चोट तो पहुंचा सकते हो, लेकिन मनीष के मिलने से नहीं रोक पाओगे. अपनी सेहत दुरुस्त रखना चाहते हो तो हमारे रास्ते में न आओ.’’
मनीष और सुनीता की धमकी से राजेश को लगा कि उन दोनों के इरादे नेक नहीं हैं. वह दोनों उस की जान के दुश्मन बन सकते हैं. इसलिए वह कानपुर शहर गया और अपनी जान माल की हिफाजत के लिए एक तेजधार वाला चाकू खरीद लाया. इस के बाद वह सुनीता पर कड़ी निगरानी रखने लगा.
इस का परिणाम यह हुआ कि सुनीता सितंबर के प्रथम सप्ताह में अपने प्रेमी मनीष के साथ भाग गई. राजेश गुप्त रूप से पत्नी की खोज करता रहा. आखिर वह बुआफूफा की शरण में गया. फूफा कल्लू के प्रयास से 2 दिन बाद सुनीता वापस घर आ गई.
राजेश ने बच्चों की वजह से सुनीता से कुछ नहीं कहा और उसे घर में रख लिया. सुनीता को न पति की फिक्र थी और न ही बच्चों की. बच्चे भी मां से कन्नी काटने लगे थे. वह ज्यादा समय दादादादी के घर ही बिताते थे और रात को वहीं सो जाते थे. सुनीता खुद तो खापी लेती थी, लेकिन पति को तरसाती थी. ऐसे में राजेश ज्यादातर बाहर ही खातापीता था.
राजेश अब सुनीता की हर गतिविधि पर नजर रखने लगा था. काम छोड़ कर वह बीचबीच में किसी बहाने घर आ जाता था. सुनीता सब समझ रही थी, धीरेधीरे एक महीना बीत गया. सुनीता और मनीष की मुलाकात नहीं हो सकी. उन की मोबाइल पर तो बात हो जाती थी लेकिन राजेश की दिन रात की कड़ी निगरानी से उन्हें मौका नहीं मिल पा रहा था. आखिर एक दिन उन्हें यह मौका मिल ही गया.
12 अक्तूबर, 2019 को मनीष के चचेरे भाई राजे का तिलक था. मनीष के पिता कल्लू ने उस से कहा कि वह नरौरा जा कर मामामामी को ले आए. पिता के अनुरोध पर मनीष वैन ले कर 11 अक्तूबर की रात 11 बजे नरौरा गांव पहुंचा. उस ने अपनी वैन सड़क किनारे खड़ी कर दी और फिर सुनीता से मोबाइल पर बात की. दरअसल मनीष वह रात सुनीता के साथ गुजारना चाहता था.
उस ने सोचा था कि सुबह मामामी को ले कर अपने गांव लौट जाएगा. फोन पर सुनीता ने मनीष को जानकारी दी कि राजेश घर पर है पर वह बाहर वाले कमरे में गहरी नींद में सो रहा है. इस जानकारी पर मनीष ने सुनीता से कहा कि वह दरवाज खोल कर रखे. चंद मिनट में वह दरवाजे पर पहुंच रहा है. रात के सन्नाटे में मनीष, सुनीता के दरवाजे पर पहुंचा.
सुनीता उस के आने का ही इंतजार कर रही थी. उस के पहुंचते ही सुनीता ने उसे घर के अंदर कर के दरवाजा बंद कर दिया. सुनीता, मनीष को ले कर पीछे वाले कमरे में पहुंची. मनीष ने अपने कपड़े उतार कर खूंटी पर टांग दिए और मोबाइल फोन स्टूल पर रख दिया. इस के बाद वह जमीन पर बिछे बिस्तर पर सुनीता के साथ लेट गया और जिस्म की प्यास बुझाने लगा.
इधर आधी रात के बाद राजेश लघुशंका के लिए कमरे से बाहर आया तो उसे पीछे वाले कमरे में खुसरफुसर सुनाई दी. वह दवे पांव कमरे के बाहर पहुंचा और खिड़की से झांक कर देखा. वहां का दृश्य देख उस की आंखों में खून उतर आया.
कमरे के अंदर सुनीता और मनीष आपत्तिजनक स्थिति में थे. वह वापस अपने कमरे में आया और चाकू ले कर पुन: उस कमरे में पहुंच गया जहां मनीष और सुनीता देह सुख भोग रहे थे.
उस ने मनीष और सुनीता को धिक्कारा तो दोनों उठ खड़े हुए. गुस्से में राजेश ने मनीष की कमर पर लात जमाई तो वह नशे में होने के कारण लड़खड़ा कर गिर पड़ा. उसी समय राजेश ने उस पर चाकू से हमला कर दिया.
प्रेमी की जान खतरे में देख कर सुनीता पति से भिड़ गई. तब उस ने सुनीता को परे ढकेल दिया. चाकू के हमले से घायल मनीष को राजेश उस के सिर के बाल पकड़ कर घसीटता हुआ आंगन में लाया और चाकू से मनीष की गरदन रेत दी.
प्रेमी की मौत से सुनीता घबरा गई. वह अपनी जान बचा कर दरवाजे की ओर भागी. लेकिन राजेश पर तो खून सवार था. उस ने लपक कर सुनीता को पकड़ लिया और बोला, ‘‘भागकर कहां जाएगी बदचलन.
आज मैं तुझे भी सबक सिखा कर ही दम लूंगा’’ कहते हुए राजेश ने सुनीता पर चाकू से हमला कर दिया. उस ने उस के शरीर पर कई वार किए, फिर चाकू से उस की गरदन रेत दी. खून से सना चाकू उस ने लाशों के बीच फेंक दिया, फिर वह लाशों को काफी देर कर टुकुरटुकुर देखता रहा.
सुबह 4 बजे राजेश वारदात की सूचना देने ग्राम प्रधान इस्लामुलहक के घर पहुंचा. उस ने दरवाजा पीटा, लेकिन जब किसी ने दरवाजा नहीं खोला तब उस ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी. कंट्रोल रूप की सूचना पर नर्वल थानाप्रभारी रामऔतार घटना स्थल पर पहुंचे.
13 अक्तूबर, 2019 को थाना नर्वल पुलिस ने अभियुक्त राजेश कुरील को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट जे.एन. पारासर की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
25 सितंबर, 2017 को सुबह के कोई 10 बजे तिमारपुर थाने के ड्यूटी औफिसर को सूचना मिली कि वजीराबाद में गली नंबर-6 में राजकुमार के मकान में एक लड़की की हत्या हो गई है. इस सूचना पर सबइंसपेक्टर मनीष कुमार कांस्टेबल धर्मेंद्र के साथ वजीराबाद में राजकुमार के मकान पर पहुंच गए. वहां कुछ लोग खड़े आपस में बातचीत कर रहे थे.
पुलिस को आया देख सब ने उन्हें अंदर जाने का रास्ता दे दिया. सबइंसपेक्टर मनीष कुमार कांस्टेबल के साथ मकान में पहुंचे तो वहां ड्राइंगरूम के आगे लौबी में एक औरत की लाश पड़ी थी. उस के मुंह में सफेद रंग का कपड़ा ठूंसा हुआ था. गले पर धारदार हथियार से कई वार किए गए थे. पास में एक चाकू भी पड़ा था. पुलिस ने अनुमान लगाया कि इसी चाकू से उसे घायल किया होगा. पास में रखी वाशिंग मशीन के ऊपर एक पेचकस भी पड़ा हुआ था, जिस पर खून लगा था.
एसआई मनीष कुमार जब घर का निरीक्षण करते हुए बाथरूम की तरफ गए तो बाथरूम में भी एक लड़की की लाश मिली. उस के गले पर भी धारदार हथियार से कई वार किए गए थे. घर में 2-2 लाशें मिलने पर वह हैरान रह गए.
मामले की गंभीरता को समझते हुए एसआई मनीष कुमार ने इस मामले की जानकारी थानाप्रभारी ओमप्रकाश सिन्हा को देने के बाद सूचना क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और एफएसएल टीम को भी दे दी.
पड़ोसियों ने पुलिस को बताया कि मरने वालों में एक मकान मालिक राजकुमार यादव की बेटी सोनी तथा दूसरी उस के भांजे मोहित की पत्नी प्रेमलता है. इसी दौरान थानाप्रभारी ओमप्रकाश सिन्हा, एसआई हरेंद्र कुमार और कांस्टेबल सुनील व विनोद के साथ वहां पहुंच गए.
एसआई मनीष कुमार ने उन्हें सारे घटनाक्रम के बारे में जानकारी दी. इसी बीच क्राइम टीम और एफएसएल की टीम भी वहां आ गई. क्राइम टीम ने मौके के साक्ष्य उठाए और घटनास्थल की फोटोग्राफी की.
थानाप्रभारी ओमप्रकाश सिन्हा ने लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि प्रेमलता अपने पति मोहित के साथ 8-9 दिन पहले ही सोनी की देखभाल करने के लिए यहां आई थी. पता चला कि सोनी के पिता राजकुमार यादव 2 दिन पहले अपने बेटे के साथ कानपुर स्थित अपने रिश्तेदार के यहां सगाई कार्यक्रम में गए हुए हैं. घर पर केवल सोनी, प्रेमलता और प्रेमलता का पति मोहित ही थे.
सोनी और प्रेमलता की हत्या हो चुकी थी और मोहित घर से फरार था. उस का फोन नंबर मिलाया गया तो फोन भी स्विच्ड औफ मिला. इस से पुलिस को उसी पर शक होने लगा. थानाप्रभारी ने सोनी के पिता राजकुमार को भी फोन कर के घटना की जानकारी दे दी.
ड्राइंगरूम में बाईं ओर बैड के नीचे शराब की बोतल, बीयर की एक कैन और ग्रे रंग का एक बैग मिला. बैडरूम में टूटे हुए 2 मोबाइल फोन मिले, जिस में एक मोबाइल पर थोड़ा सा खून भी लगा था.
पुलिस ने सारे सबूत अपने कब्जे में ले लिए. फिर मौके की काररवाई पूरी कर के दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए सब्जीमंडी मोर्चरी भेज दीं. इस के बाद पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर आगे की काररवाई शुरू कर दी. आगे की जांच इंसपेक्टर संजीव वर्मा के हवाले कर दी.
जांच हाथ में आते ही इंसपेक्टर संजीव वर्मा ने राजकुमार यादव को फोन किया तो उन्होंने बताया कि वह कानपुर से दिल्ली के लिए निकल चुके हैं. इस के बाद राजकुमार ने फरार हुए अपने भांजे का मोबाइल नंबर मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला.
मोहित के फरार होने से साफ लग रहा था कि उसी ने इस दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया है. राजकुमार ने एसआई मनीष कुमार को मोहित का मोबाइल नंबर दे दिया तब उन्होंने उस के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगाने के बाद उस की काल डिटेल्स निकलवा ली.
मोहित के फोन की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो उस की पहली लोकेशन कश्मीरी गेट बसअड्डे की मिली. इस बीच राजकुमार यादव भी कानपुर से वजीराबाद स्थित अपने घर लौट आए. वह सीधे तिमारपुर थाने पहुंचे. बेटी और भांजे की पत्नी की हत्या पर उन्हें गहरा दुख हुआ. इंसपेक्टर संजीव वर्मा ने उन से कुछ देर बात की.
राजकुमार ने बताया कि मोहित उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के गांव पंचलखा का रहने वाला है. उस की तलाश के लिए इंसपेक्टर संजीव वर्मा राजकुमार को साथ ले कर उस के गांव के लिए निकल गए.
वह रास्ते में ही थे कि उसी दौरान थानाप्रभारी ओमप्रकाश सिन्हा ने उन्हें फोन कर के जानकारी दी कि मोहित के फोन की लोकेशन उस के गांव की ही आ रही है. इस से स्पष्ट था कि वह पुलिस से बचने के लिए अपने गांव पहुंच गया है.
देर रात को दिल्ली पुलिस टीम स्थानीय पुलिस को साथ ले कर मोहित के गांव पंचलखा पहुंच गई. पर उस के घर पर ताला बंद मिला. तब पुलिस ने उसे और भी कई जगहों पर खोजा पर उस का पता नहीं लगा. सुबह करीब 6 बजे गांव वालों से पुलिस को पता चला कि मोहित ने अपने ताऊ के ट्यूबवैल पर आत्महत्या कर ली है. वह ट्यूबवैल वहां से 2 किलोमीटर दूर गांव सट्टी के खेतों में था.
दिल्ली पुलिस वहां पहुंची तो वह ट्यूबवैल की कोठरी के भीतर लटका हुआ मिला. वह अपनी पैंट गले में बांध कर लटक गया था. उस के कपड़ों पर खून लगा हुआ था और एक हाथ की नस भी कटी हुई थी. वहीं पर एक ब्लेड भी पड़ा मिला.
आत्महत्या की बात सुन कर मोहित के घर वाले भी वहां पहुंच गए. स्थानीय पुलिस ने जरूरी काररवाई कर उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. दिल्ली पुलिस की टीम जिस मकसद से वहां गई थी, वह पूरा नहीं हो सका.
दिल्ली पुलिस ने मोहित के घर वालों से बात की और दिल्ली लौट आई. राजकुमार और मोहित के घर वालों से बात करने के बाद इस मामले की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली.
उत्तरी दिल्ली के वजीराबाद में राजकुमार यादव का एक 5 मंजिला मकान है, जिस में वह अपने परिवार के साथ रहते हैं. कुछ साल पहले राजकुमार की पत्नी की बीमारी के चलते मौत हो गई थी. अब उन के परिवार में एक बेटी सोनी और बेटा साहिल ही थे. वह अपने बच्चों के साथ ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे. उन्होंने ऊपर की मंजिलें किराए पर उठा रखी थीं. किराए से उन्हें अच्छीखासी रकम मिल जाती थी, जिस से घर का गुजारा बड़े आराम से चल जाता था.
घटना से करीब 10 दिन पहले सोनी का पथरी का औपरेशन हुआ था. चूंकि ऐसे समय में उस की देखभाल के लिए घर में कोई महिला नहीं थी, इसलिए राजकुमार ने अपने भांजे मोहित तथा उस की पत्नी प्रेमलता को सोनी की देखभाल के लिए दिल्ली बुला लिया. मोहित उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के गांव पंचलखा में रहता था.
घटना से 2 दिन पहले राजकुमार अपने बेटे साहिल के साथ कानपुर स्थित अपने एक रिश्तेदार के यहां सगाई कार्यक्रम में शामिल होने गए थे. घर पर सोनिया, मोहित और उस की पत्नी प्रेमलता ही रह गए थे.
12वीं पास मोहित की शादी साढ़े 3 महीने पहले एमए पास प्रेमलता के साथ सामाजिक रीतिरिवाज से हुई थी. प्रेमलता उस से ज्यादा पढ़ीलिखी थी इसलिए वह उसे ज्यादा अहमियत नहीं देती थी. पत्नी के इसी व्यवहार की वजह से उस की उस से कहासुनी होती रहती थी. वह अपना पत्नीधर्म भी नहीं निभा रही थी. पति की इच्छा को दरकिनार कर वह कभी सिरदर्द का बहाना बना देती तो कभी कुछ और. मोहित को उस की हरकतें नागवार लगतीं.
पत्नी के चालचलन को देख कर मोहित को उस पर शक होने लगा. वह किसी से फोन पर भी काफी देर तक बातें करती रहती थी. जब वह पूछता कि किस से बात करती है तो वह कोई न कोई बहाना बना देती थी. इस से मोहित को विश्वास हो गया कि जरूर किसी न किसी के साथ इस का चक्कर चल रहा है.
जब किसी इंसान के दिमाग में कोई शक बैठ जाता है तो वह आसानी से दूर नहीं हो पाता बल्कि बढ़ता ही जाता है. मोहित अब यह पता लगाने में जुट गया कि आखिर वह कौन है, जिस की वजह से उस के घर में कलह होती है.
एक दिन उस ने पत्नी का फोन चैक किया तो उस ने वह नंबर हासिल कर लिया, जिस पर वह घंटों तक बातें करती थी. वह नंबर आगरा के किसी व्यक्ति का था. किसी तरह से मोहित ने आखिर पता लगा ही लिया कि उस व्यक्ति से प्रेमलता का आज से नहीं बल्कि करीब 4 साल पहले से अफेयर चल रहा है.
मोहित को अब पता चला कि इसी वजह से पत्नी उसे नहीं चाहती. मोहित ने ये बातें अपने घर वालों तक को बता दीं. मोहित पत्नी को समझाने की बहुत कोशिश करता लेकिन वह उस की बातों को एक तरह से अनसुना कर देती थी. जिस से उन के संबंध असामान्य बनते चले गए. इसी बीच उन के दिल्ली के वजीराबाद में रहने वाले मामा राजकुमार ने सोनी की देखभाल के लिए उस की पत्नी प्रेमलता को बुलाया तो वह पत्नी को ले कर मामा के यहां दिल्ली आ गया.
सोनी और प्रेमलता में गहरी छनती थी, इसलिए प्रेमलता के आने पर वह बहुत खुश हुई. दोनों ननदभाभी खाली समय में हंसीठिठोली करते रहते. लेकिन मोहित पत्नी की बेवफाई से इतना आहत था कि यहां आ कर भी उस के दिलोदिमाग पर प्रेमलता की बदचलनी की बात हावी रहती. जिस की वजह से वह अधिकतर समय शराब के नशे में डूबा रहने लगा.
दिल्ली में भी मौका मिलने पर प्रेमलता अपने प्रेमी से बात करती रहती. और तो और उस ने दिल्ली में भी पति को लिफ्ट नहीं दी. वह उसे अपने पास तक नहीं फटकने देती.
पुलिस के अनुसार घटना वाले दिन भी रात को मोहित ने पहले शराब पी होगी. संभव है कि इसी दौरान प्रेमलता मोबाइल पर अपने प्रेमी से बातें कर रही हो. पत्नी को फोन पर बातें करते देख कर मोहित को गुस्सा आ गया होगा. इस के बाद उस ने किचन के चाकू और पेचकस से उस पर हमला कर दिया होगा.
शोर सुन कर उस समय सोनी वहां आई होगी तो उस ने उस की भी हत्या कर डाली. क्योंकि कभीकभी परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि व्यक्ति एक हत्या के चक्कर में कई हत्याएं कर बैठता है.
पुलिस ने प्रेमलता के मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवा कर अध्ययन किया तो उस में एक नंबर ऐसा मिला जिस पर वह ज्यादा देर तक बातें करती थी. यह नंबर आगरा के उस के प्रेमी का ही निकला.
बहरहाल, मोहित की आत्महत्या और 2 हत्याओं का अध्याय बंद हो गया, जिस से 3 परिवारों की जिंदगियां प्रभावित हो गईं.
-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
रामकिशोर को चूंकि रिया पहली नजर में ही पसंद आ गई थी, इसलिए उन्होंने तुरंत हां कर दी. सौदा पट गया तो साजिद ने फोन पर उन से कहा कि आप वहीं इंतजार करें, एक स्कोडा कार आप को लेने आ रही है. इस कार का नंबर उस ने रामकिशोर को बता दिया.
इंतजार के 10 मिनट 10 साल सरीखे बीते, जिन में रामकिशोर रिया के संगमरमरी जिस्म के उतारचढ़ावों की कल्पना में डूबे रहे. जैसे ही कार उन के नजदीक आई तो वे फुरती से उस में बैठ गए. मानो देर हो गई तो गंगा डुबकी का मुहूर्त हाथ से निकल जाएगा.
मकान के भव्य कमरे में जैसे ही रिया रामकिशोर के सामने पड़ी, तो उन के रहेसहे होश भी उड़ गए. सचमुच रिया संगमरमर की शिला जैसी थी और फिगर भी वही था जो साजिद ने बताया था. खजुराहो और अजंता एलोरा की मैथुनरत मूर्तियां भी रामकिशोर को साकार होती लग रही थीं.
आम भारतीय ग्राहक की सहज होने की कमजोरियां ऐसे वक्त में ही उजागर होती हैं. रामकिशोर रिया से उस की राष्ट्रीयता वगैरह पूछने लगे. अच्छा तो यह रहा कि उन्होंने उस से उस की जाति और गोत्र वगैरह नहीं पूछे.
उधर रिया इस बेवजह और फिजूल की संगोष्ठी के मूड में कतई नहीं थी, फिर भी उस ने औपचारिक लेकिन पेशेवर अंदाज में जवाब दे दिया कि वह उजबेकिस्तान ताशकंद की रहने वाली है और इन बेकार की बातों में वक्त जाया करने से कोई फायदा नहीं, आप तो बस अपना काम करो और बढ़ लो.
रिया को मालूम था कि रामकिशोर ने उस की सिंगल यानी एक बार के लिए बुकिंग कराई है, जिस का चार्ज 10 हजार रुपए है और टाइम लिमिट 40 मिनिट. उसे रामकिशोर की बातों पर झल्लाहट आ रही थी कि आया है मौजमस्ती करने और देह सुख लेने, लेकिन बात 1966 में हुए ताशकंद समझौते की कर रहा है. इस ऐतराज पर रामकिशोर को गुस्सा आ गया और उन्होंने पूछा कि पूरी रात का क्या लोगी तो रिया ने झट जवाब दिया 25 हजार रुपए.
रामकिशोर की हालत बार में बैठे उस शराबी की तरह हुई जा रही थी, जो जाता तो एकदो पैग पीने की गरज से है लेकिन नशा न होते देख फुल बोतल गटक जाता है. लिहाजा वे 25 हजार देने को तैयार हो गए जो रिया ने तुरंत रखवा लिए. शर्त या प्रावधान यह भी था कि रामकिशोर जैसे चाहेंगे वैसे वह उन्हें मजा या सुख कुछ भी कह लें, देगी.
पैसे दे कर रामकिशोर ने अपनी यह ख्वाहिश रिया को बता दी कि वे औरल सैक्स चाहते हैं तो उस ने कोई नानुकुर नहीं की क्योंकि पैकेज में यह शामिल था लेकिन उस बाबत उस ने लाइट बंद की तो रामकिशोर बोले यह सब मैं रोशनी में चाहता हूं.
इस पर रिया ने उन से कहा कि रोशनी में करवाना है तो 2 हजार रुपए एक्स्ट्रा देने होंगे. इस पर भी वे तैयार हो गए तो रिया ने ये पैसे भी नकद ले लिए और जैसा वे चाहते थे, करना शुरू कर दिया.
यही वह वक्त था जब पुलिस के भेजे सिपाही ने साजिद से एक लड़की के बाबत सौदा तय कर अपने अधिकारियों को छापा मारने का सिगनल दे दिया था. फिल्मी स्टाइल में पुलिस ने छापा मारा और हमेशा की तरह एकएक कर 4 कालगर्ल्स और 4 ग्राहकों को आपत्तिजनक अवस्था में पकड़ा, जिन में से एक रामकिशोर मीणा भी थे.
हर छापे की तर्ज पर ही मकान से आपत्तिजनक सामग्री जिन में कंडोम, ब्लू फिल्मों की सीडी और कामोत्तेजक दवाएं वगैरह होती हैं, भी जब्त हुईं और पंचनामा भी बन गया. साजिद के साथ उस की पत्नी शबनम भी गिरफ्तार कर लिए गए. पकड़ी गई लड़कियों में से 2 नेपाली थीं और एक पश्चिम बंगाल की थी.
पुलिसिया खानापूर्तियों के बाद पता चला कि रिया टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थी और वह दिल्ली के मालवीय नगर में रहती है. वह कोई 7 साल से यह धंधा कर रही थी और 17 साल की उम्र में ही इस धंधे में आ गई थी. साजिद ने एक दलाल अजय से उसे 15 दिन के लिए डेढ़ लाख रुपए में हायर किया था या ठेके पर लिया था एक ही बात है. पता यह भी चला कि इन कालगर्ल्स का सारा खर्च मेजबान दलाल उठाते हैं जो देश के विभिन्न हिस्सों में घूम कर धंधा करती हैं. भोपाल में रिया और दूसरी कालगर्ल्स का खर्च साजिद उठा रहा था. नेपाली लड़कियां रिया के मुकाबले सस्ती थीं.
देखा जाए तो साजिद घाटे का सौदा नहीं कर रहा था, क्योंकि रिया औसतन उसे 30 हजार रुपए रोज दिलवा रही थी यानी 15 दिन के साढ़े 4 लाख रुपए. अजय को डेढ़ लाख देने के बाद साजिद बचे 3 लाख रुपए में से अगर एक लाख खर्च भी कर रहा था तो 15 दिन में 2 लाख रुपए तो कमा ही रहा था. इतनी ही रकम वह पत्नी शबनम और दूसरी कालगर्ल्स से बना रहा था.
इस कहानी के लिखे जाने तक रिया के बारे में पुलिस और जानकारियां जुटाने में लगी थी और सभी की एचआईवी जांच भी करा रही थी क्योंकि कुछ महीने पहले ही एक छापे में कुछ अफ्रीकन लड़कियां पकड़ी गई थीं, जिन में से 2 की रिपोर्ट एचआईवी पाजिटिव आई थी.
एक साजिद का गिरोह पकड़े जाने से यह नहीं माना जा सकता कि देहव्यापार बंद हो गया. हां, इतना जरूर हर किसी को समझ आ गया कि अब देहव्यापार काफी हाईटेक हो चला है और भोपाल जैसे शहर में भी विदेशी कालगर्ल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है.
रामकिशोर मीणा जैसे पकड़े गए लोग अपनी इच्छाओं को नहीं, बल्कि किस्मत को कोसते नजर आते हैं कि उन्होंने छापे वाले दिन ही सौदा क्यों किया या छापा उसी दिन क्यों पड़ा जिस दिन उन्होंने सौदा किया था.
रही बात साजिद की तो उसे कोई खास नुकसान होगा, ऐसा लग नहीं रहा. जमानत पर छूट जाने के बाद वह कहीं और जा कर कारोबार जमा लेगा. लेकिन मुकदमा लंबा खींचने में वह कोई कसर नहीं छोड़ेगा. जिस ने भी इस छापे की खबर पढ़ी उस ने साजिद को कोसा कि कैसा बेशर्म आदमी था जो बीवी को भी देहव्यापार की दलदल में घसीट लाया. शायद ही कोई इस बात का जवाब दे पाए कि गरीबी भुखमरी और अभावों की दलदल इस सब से बेहतर थी क्या?
इस के महीने भर बाद ही उस ने मीनाक्षी की शादी एक दूसरे लड़के के साथ तय कर दी थी. यह शादी उस के गांव में होने वाली थी. इसलिए पूरा परिवार मीनाक्षी को गांव नुमाईडाही ले कर चला गया था.
9 मार्च, 2019 को मीनाक्षी की बारात आने वाली थी. सभी मीनाक्षी की शादी की तैयारी में लगे थे. लेकिन मीनाक्षी वहां से फरार होने का रास्ता खोज रही थी. इस बीच मौका पा कर मीनाक्षी ने बृजेश को फोन किया. बृजेश ने उसे मध्य प्रदेश के शहर सतना पहुंचने को कहा.
मीनाक्षी शादी के 15 दिन पहले 22 फरवरी, 2019 को अपना घर छोड़ कर सतना पहुंच गई, वहां बृजेश ने अपने दोस्तों के साथ उस का स्वागत किया. फिर आर्यसमाज मंदिर में जा कर दोनों ने विवाह कर लिया. मंदिर में शादी करने के बाद उन्होंने 2 मई, 2019 को मुंबई पहुंच कर कोर्टमैरिज कर ली. इस के बाद दोनों मुंबई के नारायण नगर के शिवपुरी चाल में किराए का रूम ले कर रहने लगे. बृजेश अपनी दुकान पर बैठने लगा था.
मीनाक्षी के इस कदम से राजकुमार चौरसिया की समाज, गांव और नातेरिश्तेदारी में काफी बदनामी हुई थी. बेटी की वजह से उस का सिर शर्म से झुक गया था. उसे पता चल गया था कि बेटी ने बृजेश से शादी कर ली है. जिस की टीस उस के मन की गहराई में जा कर बैठ गई थी.
कुछ दिनों बाद मीनाक्षी ने अपनी मां से फोन पर बात करनी शुरू कर दी थी. परिवार वालों ने मीनाक्षी को इस शर्त पर माफ कर दिया था कि वह कभी बृजेश के साथ मुंबई से गांव या ससुराल नहीं जाएगी.
मगर ऐसा हुआ नहीं. समय अपनी गति से चल रहा था. मीनाक्षी गर्भवती हो गई थी. इस बीच बृजेश और मीनाक्षी ने यह योजना बनाई कि डिलिवरी के बाद वे दोनों गांव जा कर बच्चे को अपने मांबाप का आशीर्वाद दिलवाएंगे.
इस बात की भनक जब राजकुमार को लगी तो वह अपनी इज्जत को ले कर परेशान हो गया. वह गांव में दोबारा अपनी बेइज्जती नहीं करवाना चाहता था, इसलिए उस ने बेटी मीनाक्षी के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया. उस ने सोच लिया कि वह ऐसा करेगा कि न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.
योजना के अनुसार, 13 जुलाई 2019 की रात राजकुमार चौरसिया ने मीनाक्षी को फोन कर के 14 जुलाई को अपने घर बुलाया और कहा कि जिस तरह से तुम लोगों ने शादी की थी, उस में वह उन्हें कुछ नहीं दे पाया था, इसलिए उस ने उस के और दामाद के लिए कुछ कपड़े आदि खरीद कर रखे हैं. वह आ कर कपड़े वगैरह ले जाए.
पिता से फोन पर बात होने पर मीनाक्षी काफी खुश हुई. उस ने यह बात पति बृजेश को बताई तो बृजेश ने उसे पिता के पास जाने से मना कर दिया. लेकिन फिर भी मीनाक्षी नहीं मानी. क्योंकि वह तो इस विश्वास में थी कि पिता ने उसे माफ कर दिया है.
इसलिए पिता का थोड़ा प्यार पा कर वह उन से मिलने उस के घर चली गई थी. रात 12 बजे जब बृजेश दुकान से घर आया तो उसे मीनाक्षी घर पर नहीं मिली. वह समझ गया कि वह अपने पिता के पास ही गई होगी.
उस ने उसी समय मीनाक्षी और उस के पिता राजकुमार चौरसिया को फोन किया, लेकिन फोन बंद आ रहा था. काम से थका होने के कारण उस ने घर में रखा खाना खाया और फिर सो गया. सुबह उसे पुलिस वालों ने आ कर जगाया था.
हुआ यह था कि 14 जुलाई, 2019 की रात 10 बजे जब मीनाक्षी पिता राजकुमार चौरसिया के घर पहुंची तो घर में उस समय कोई नहीं था. राजकुमार के परिवार वाले उस रात बाहर एक रिश्तेदार के यहां चले गए थे. राजकुमार चौरसिया पूरी तैयारी के साथ बेटी मीनाक्षी का इंतजार कर रहा था.
मीनाक्षी जैसे ही घर में दाखिल हुई तो राजकुमार उठ कर खड़ा हो गया और जैसे ही आशीर्वाद लेने के लिए वह पिता के पैर छूने को नीचे झुकी, तभी राजकुमार ने चाकू से उस के ऊपर हमला कर दिया. हमला करते समय राजकुमार ने मीनाक्षी का मुंह दबा रखा था, जिस कारण उस की चीख घुट कर ही रह गई थी.
मीनाक्षी की हत्या करने के बाद उस के शव को रिक्शा स्टैंड के पीछे डाल कर वह फरार हो गया और सीधे अपने गांव चला गया था.
पुलिस टीम ने राजकुमार चौरसिया से विस्तृत पूछताछ कर उसे उस की बेटी मीनाक्षी चौरसिया की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक राजकुमार चौरसिया जेल में बंद था. मामले का आरोपपत्र इंसपेक्टर विलाख दातीर तैयार कर रहे थे.
सौजन्य: मनोहर कहानियां
कुछ ऐसा ही हाल कंचन का भी था. वह भी अपनी बरबादी का कारण प्रमोद को मानती थी. इसलिए वह प्रमोद को अकसर ताना मारती रहती थी. इसी के बाद दोनों में लड़ाईझगड़ा होता और मारपीट हो जाती. कंचन प्रमोद से पीछा छुड़ाना चाहती थी, इसलिए उस ने प्रमोद से पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उस ने जिला कौशांबी के रहने वाले अपने एक परिचित सुरेश दूबे से बात की. वह कौशांबी के मंझनपुर में भार्गव इंटर कालेज में बाबू था. सुरेश ने कंचन का भार्गव इंटर कालेज में दाखिला ही नहीं करा दिया, बल्कि उसे इंटर पास भी कराया.
इस के बाद सुरेश दूबे ने ही डिग्री कालेज मंझनपुर से कंचनलता को प्राइवेट फार्म भरवा कर बीए करा दिया. सन 2010 में कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर की भरती हुई तो कंचनलता होमगार्ड में प्लाटून कमांडर बन गई. वर्तमान में वह महिला थाना कौशांबी में तैनात थी. प्लाटून कमांडर होने के बाद कंचन कौशांबी में रहने लगी तो प्रमोद मीरजापुर में अकेला ही रहता रहा. दोनों बच्चे भी बाहर रहते थे. प्रमोद कालीन बुनाई का काम करता था. वह अकेला पड़ गया तो कारखाना मालिक ने उस से कारखाने में ही रहने को कहा. इस से दोनों का ही फायदा था.
मालिक को कम पैसे में चौकीदार मिल गया तो प्रमोद को सोने के भी पैसे मिलने लगे थे. अब प्रमोद 24 घंटे कारखाने में ही रहने लगा था. पतिपत्नी में वैसे भी नहीं पटती थी.अलगअलग रहने से दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. कंचनलता जब तक प्रमोद के साथ रही, डर की वजह से उस ने मायके वालों से संपर्क नहीं किया था. लेकिन जब वह कौशांबी में अकेली रहने लगी तो वह घर वालों से संपर्क करने की कोशिश करने लगी.
करीब 21 साल बाद उस ने अपने परिचित सुरेश दूबे को संत कबीर नगर में रहने वाली अपनी बहन के यहां भेज कर अपने बारे में सूचना दी. इस के बाद बहन को उस का मोबाइल नंबर मिल गया. दोनों बहनों की बातचीत होने लगी. बहन ने ही उसे मायके का भी नंबर दे दिया था.
कंचन की मायके वालों से बातें होने ही लगीं, तो वह मायके भी गई.अंबरीश गाजियाबाद की एक मोटर पार्ट्स की दुकान में नौकरी करता था. वह मोटर पार्ट्स लाने ले जाने का काम करता था, इसलिए उस का हर जगह आनाजाना लगा रहाता था. उसे भी बहन कंचन का नंबर मिल गया था, इसलिए वह भी बहन से बातें करने लगा था.
अंबरीश बहन से अकसर प्रमोद का मीरजापुर वाला घर दिखाने को कहता था, क्योंकि वह प्रमोद की हत्या कर अपने परिवार की बदनामी और बरबादी का बदला लेना चाहता था. अपनी इसी योजना के तहत वह 1 फरवरी, 2020 को दिल्ली से चल कर 2 फरवरी को मंझनपुर में रह रही बहन कंचन के यहां पहुंचा.
अगले दिन यानी 3 फरवरी की सुबह उस ने कंचन को विश्वास में ले कर उस का मोबाइल फोन बंद कर के कमरे पर रखवा दिया. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस मोबाइल की लोकेशन से अपराधियों तक पहुंच जाती है. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर दिया. दिन के 10 बजे वह कंचन को मोटरसाइकिल से ले कर मीरजापुर के लिए चल पड़ा.
दोनों 4 बजे के आसपास मीरजापुर पहुंचे. पहले उन्होंने विंध्याचल जा कर मां विंध्यवासिनी के दर्शन किए. इस के बाद दोनों इधरउधर घूमते हुए रात होने का इंतजार करने लगे.रात 11 बजे जब दोनों को लगा कि अब तक कारखाने में काम करने वाले मजदूर चले गए होंगे और प्रमोद सो गया होगा तो कंचन उसे ले कर कारखाने पर पहुंच गई. कंचन अंबरीश को कारखाना दिखा कर बाहर ही रुक गई.
अंबरीश अकेला कारखाने के अंदर गया तो प्रमोद को सोते देख खुश हुआ. क्योंकि अब उस का मकसद आसानी से पूरा हो सकता था. उस ने देर किए बगैर वहां रखी ईंटों में से एक ईंट उठाई और प्रमोद के सिर पर दे मारी. ईंट के प्रहार से प्रमोद उठ कर बैठ गया पर वह अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उस के पहले ही अंबरीश ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कसना शुरू कर दिया.
अपने बचाव में प्रमोद ने संघर्ष किया, जिस से अंबरीश को भी चोटें आईं. पर एक तो प्रमोद पहले ही ईंट के प्रहार घायल हो चुका था, दूसरे अंगौछा से गला कसा हुआ था, इसलिए काफी प्रयास के बाद भी वह स्वयं को नहीं बचा सका.
गला कसा होने की वजह से वह बेहोश हो गया तो अंबरीश ने उसी ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. खुद को बचाने के लिए प्रमोद संघर्ष करने के साथसाथ ‘बचाओ…बचाओ’ चिल्ला भी रहा था.
उस की ‘बचाओ…बचाओ’ की आवाज सुन कर कंचन जब अंदर आई, तब तक अंबरीश उस की हत्या कर चुका था. अंबरीश का काम हो चुका था, इसलिए वह बहन को ले कर रात में ही मोटरसाइकिल से मंझनपुर चला गया.
अगले दिन पुलिस ने जब कंचनलता को प्रमोद की हत्या की सूचना दे कर थाना विंध्याचल बुलाया तो कंचन ने अंबरीश को खलीलाबाद भेज दिया. इस की वजह यह थी कि प्रमोद जब खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब उसे चोटें आ गई थीं.उस के शरीर पर चोट के निशान देख कर पुलिस को शक हो जाता और वे पकड़े जाते. अंबरीश को खलीलाबाद भेज कर कंचनलता सुरेश दुबे के साथ थाना विंध्याचल आई. इस के बाद वह भी फरार हो गई.
दोनों ने बड़ी होशियारी से प्रमोद की हत्या की, पर कारखाने में लगे सीसीटीवी ने उन की पोल खोल दी. और वे पकड़े गए. अंबरीश की निशानदेही पर पुलिस ने झाडि़यों से वह ईंट बरामद कर ली थी, जिस से प्रमोद की हत्या की गई थी.
इस तरह प्रमोद की नादानी से दो परिवार बरबाद हो गए. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस के पास प्रमोद के घर का पता नहीं था, इसलिए पुलिस ने थाना विंध्याचल को उस की हत्या की सूचना दे कर थाना सहजनवां पुलिस को खबर भिजवाई.
शंटू किसी भी तरह रूबी को हासिल करना चाहता था. इस के लिए उस ने रूबी को तमाम सुविधाएं देने के साथ अपनी निजी सचिव बना लिया. अब वह हर समय शंटू के साथ रहती थी. दोनों एकदूसरे का शिकार करने पर तुले थे, पर तीर चलाने में पहल कोई नहीं कर रहा था.
रूबी को सरप्राइज देने के लिए शंटू ने जालंधर के रामामंडी क्षेत्र में एक कोठी खरीदी और उस की चाबी रूबी को देते हुए कहा, ‘‘आज से तुम इस कोठी में रहोगी. यह तुम्हारे लिए है.’’
रूबी की खुशी का ठिकाना न रहा. क्योंकि उस ने सोचा भी नहीं था कि शंटू इतनी जल्दी उस की झोली में आ गिरेगा. उसी शाम उस नई कोठी में रूबी के सामने जब शंटू ने प्यार का इजहार किया तो रूबी को जैसे मनचाही मुराद मिल गई. इसी दिन का तो उसे इंतजार था. दोनों ने ही उस दिन अपनी इच्छा पूरी की. इस के बाद रूबी पति को छोड़ कर शंटू द्वारा दी गई कोठी में रहने लगी.
शंटू का भी अधिकांश समय रूबी के साथ उसी नई कोठी में गुजरने लगा. घर पर काम का बहाना बना कर वह रूबी की बांहों में पड़ा रहता. 3 साल कब गुजर गए, पता ही नहीं चला और न ही उन के संबंधों की बात किसी को कानोकान पता चली. पर अवैध संबंध कभी न कभी खुल ही जाते हैं.
दिसंबर, 2016 में परमजीत कौर को अपने पति और रूबी के नाजायज संबंधों की भनक लग गई. इस बारे में जब उस ने शंटू से पूछा तो वह साफ मुकर गया. पर परमजीत के पास पुख्ता सबूत थे. उस ने यह बात अपनी सास दलजीत कौर को बताई. फिर एक दिन वह अपनी ननद और सास को ले कर रामामंडी वाली कोठी पर पहुंची.
रूबी कोठी में ही थी. तीनों ने मिल कर रूबी की खूब बेइज्जती की और उसे धक्के मार कर कोठी से बाहर कर अपना ताला लगा दिया. शंटू को जब इस बात का पता चला तो उसे अपने घर वालों पर बड़ा गुस्सा आया. घर आ कर उस ने खूब झगड़ा किया और पिता जगजीत सिंह से साफ कह दिया, ‘‘मैं पम्मी से तलाक ले कर रूबी से शादी कर के उसे इस घर की बहू बनाना चाहता हूं.’’
‘‘तेरी मति मारी गई है क्या, जो इस उम्र में पागलों जैसी बातें कर रहा है. शांति से अपने बीवीबच्चों के साथ रह.’’ जगजीत सिंह ने डांटा.
जगजीत सिंह और दलजीत कौर ने बेटे को बहुत समझाया, पर शंटू तो रूबी के मोहजाल में इस कदर जकड़ा था कि वह किसी भी सूरत में उस से दूर होने को तैयार नहीं था. शंटू की ससुराल वालों और अन्य रिश्तेदारों ने यह बात सुनी तो सभी उन की कोठी पर आ गए.
सभी ने शंटू को फटकार लगाते हुए समझाया, तब कहीं जा कर यह मामला शांत हुआ. उस समय सभी बड़ेबूढ़ों के दबाव में आ कर शंटू शांत हो गया, पर दिनरात वह पम्मी से पीछा छुड़ा कर रूबी से ब्याह रचाने के बारे में सोचता रहता था. वह इस बात को अच्छी तरह समझ गया था कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं यानी पम्मी के रहते हुए वह रूबी को कभी इस घर की बहू नहीं बना सकता.
शंटू के पैट्रोल पंप पर कुछ समय पहले तक गांव ढिलवां निवासी विपिन नौकरी करता था. विपिन अपराधी प्रवृत्ति का था. उस पर कई मुकदमे चल रहे थे. एक दिन अचानक रास्ते में शंटू की मुलाकात विपिन से हो गई. गाड़ी रोक कर उस ने विपिन को अपने साथ बिठा लिया. शंटू ने उसे अपने और रूबी के रिश्ते के बारे में बता कर कहा, ‘‘पम्मी के रहते रूबी को अपना बनाना असंभव है. तू बता पम्मी का इलाज कैसे किया जाए?’’
‘‘जी, मैं क्या बताऊं?’’ विपिन ने असमंजस में कहा, ‘‘आप किसी वकील से सलाह ले लो.’’
‘‘नहीं, पम्मी का बड़ा सीधा इलाज है.’’ शंटू ने कहा.
‘‘वह क्या जी?’’ विपिन ने हैरानी से पूछा.
‘‘पम्मी का काम तमाम कर दे. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.’’ शंटू ने सुझाव दिया.
‘‘ठीक है जी, हटा देते हैं रस्ते से.’’ विपिन अब पूरी बात समझ गया था. मुद्दे पर आते हुए उस ने कहा, ‘‘पर यह काम मैं अकेला नहीं कर सकूंगा. दूसरे बदले में कितने रुपए मिलेंगे?’’
‘‘पहले तू आदमी का इंतजाम कर ले, रुपयों की बात तभी कर लेंगे.’’ शंटू ने कहा.
अगले ही दिन विपिन ने गांव सरहाल कलां चब्बेवाल निवासी अमृतपाल को शंटू से मिलवाया. उस का बड़ा भाई विदेश में नौकरी करता था. वह भी मलेशिया में नौकरी करता था. 3 साल नौकरी कर के वह 6 महीने पहले ही घर लौटा था. यहां आ कर उस ने पैट्रोल पंप के शेड बनाने का काम शुरू कर दिया था.
उसी दौरान उस की मुलाकात विपिन से हुई थी. अमृतपाल साफसुथरी छवि वाला आदमी था, पर पैसों की वजह से उसे लालच आ गया. उस ने इस काम के लिए 15 लाख रुपए मांगे. सौदेबाजी के बाद मामला 8 लाख रुपए में तय हो गया. शंटू ने उसी समय विपिन को 1 लाख 40 हजार रुपए एडवांस दे दिए. इन रुपयों से विपिन और अमृतपाल उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद गए और वहां से किसी से एक पिस्तौल और गोलियां खरीद लाए.
शंटू ने अपनी पत्नी परमजीत कौर उर्फ पम्मी की हत्या की सुपारी अपनी प्रेमिका रूबी के कहने पर दी थी. हत्या की योजना बन जाने के बाद शंटू ने विपिन और अमृतपाल को अपनी कोठी का पूरा नक्शा समझाते हुए एकएक बात बारीकी से समझा दी कि कैसे उन्हें कोठी में दाखिल होना है और कैसे हत्या करनी है. उस के बाद फ्रिज के पीछे टंगी पिछले दरवाजे की चाबी से ताला खोल कर बाहर निकल जाना है.
शंटू ने विपिन और अमृतपाल को अपने घर के सभी सदस्यों की भी पूरी जानकारी दे दी थी कि कौन किस वक्त कहां होता है. हत्या करवाने के लिए शंटू ने शाम 4 से 5 बजे का टाइम तय किया था. क्योंकि वह जानता था कि उस समय परमजीत कौर कोठी में अकेली होती है.
21 फरवरी, 2017 को शंटू की योजनानुसार विपिन और अमृतपाल उस की कोठी नंबर 141 पर पहुंचे. उन्होंने यह कह कर घर में लगे सीसीटीवी कैमरों के कनेक्शन काट दिए कि शंटू भाई ने कहा है कि इन पुराने कैमरों की जगह अब नए मौडर्न कैमरे लगाए जाएंगे. इसी बहाने वे कोठी के अंदरूनी भाग को पूरी तरह देखसमझ आए. अगले दिन 22 फरवरी, 2017 को दोनों फिर से कोठी पर गए और वहां रखा डिजिटल वीडियो रिकौर्डर और मौनीटर भी उठा लाए.
23 फरवरी, 2017 की शाम करीब 4 बजे दोनों फिर कोठी पर पहुंचे और अपनी योजनानुसार इस हत्याकांड को अंजाम दे कर चुपचाप निकल गए. बात केवल परमजीत कौर उर्फ पम्मी की हत्या करने की हुई थी. इसलिए विपिन और अमृतपाल दलजीत कौर और खुशवंत कौर की हत्या नहीं करना चाहते थे, लेकिन हालात ऐसे बन गए कि उन्हें उन की भी हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
शंटू को इस बात की आशंका बिलकुल नहीं थी कि उस की मां की भी मौत हो सकती है. वह अपनी मां से बेहद प्यार करता था. इस का उसे बहुत पश्चाताप है. रिमांड के दौरान पूछताछ करते समय वह अपनी मां को बारबार याद कर के रोने लगता था. उसे इस बात का अफसोस है कि उस की अय्याशियों और बेवजह की हठधर्मी से उस के परिवार का विनाश हो गया.
विपिन और अमृतपाल फरार हो गए थे. उन की तलाश में पुलिस की एक टीम दिल्ली और गाजियाबाद भी गई, पर वे पुलिस के हाथ नहीं लग सके. पुलिस ने अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और तेजिंदर कौर उर्फ रूबी को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया है. कथा लिखे जाने तक विपिन और अमृतपाल गिरफ्तार नहीं हो सके थे.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
भरत दिवाकर नमिता को पा कर बेहद खुश था, नमिता भी खुश थी. दिवाकर की रगों में दशोदिया देवी के खानदान का खून दौड़ रहा था, जहां से राजनीति की धारा फूटती थी. लोग दशोदिया देवी की कूटनीति का लोहा मानते थे तो पौत्र कहां पीछे रहने वाला था. उसे जो पसंद आ जाता था, उसे हासिल कर के ही दम लेता था. इसी के चलते वह अपनी पसंद की दुलहन घर लाया था.
भरत ने दादी से राजनीति का ककहरा सीख लिया था. राजनीति के अखाड़े में मंझा पहलवान बन कर उतरे भरत ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. वह जानता था कि राजनीति अवाम पर हुकूमत करने के लिए एक सुरक्षा कवच है और बहुत बड़ी ताकत भी. वह इस ताकत को हासिल कर के ही रहेगा.
अपनी मेहनत और संपर्कों के बल पर उस ने पार्टी और कर्वी ब्लौक में अच्छी छवि बना ली थी. इस का परिणाम भरत के हक में बेहतर साबित हुआ.
भरत दिवाकर कर्वी ब्लौक का प्रमुख चुन लिया गया. ब्लौक प्रमुख चुने जाने के बाद यानी सत्ता का स्वाद चखते ही उस के पांव जमीन पर नहीं रहे. सत्ता के गुरूर में भरत अंधा हो चुका था. इतना अंधा कि वह यह भी भूल गया था उस की एक पत्नी है, जिस ने अपने परिवार से बगावत कर के उस का दामन थामा था. पत्नी के प्रति फर्ज को भी वह भूल गया था.
कल तक भरत जिस नमिता के पीछे भागतेभागते थकता नहीं था, अब उसे देखने के लिए उस के पास वक्त नहीं होता था. यह बात नमिता को काफी खलती थी. इस की एक खास वजह यह थी कि न तो उसे परिवार का प्यार मिल रहा था और न ही किसी का सहयोग.
घर भौतिक सुखसुविधाओं से भरा था. भरत के मांबाप ने नमिता को भले ही अपना लिया था, लेकिन उसे बहू का दरजा नहीं दिया गया था. कोई उस से बात तक करना पसंद नहीं करता था. ऐसे में पति का ही एक सहारा था. लेकिन वह भी सत्ता की चकाचौंध में खो गया था.
अब नमिता को अपनी भूल का अहसास हो रहा था. मांबाप की बात न मान कर उस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी. अब वह वापस घर भी नहीं लौट सकती थी. पिता ने उस से सारे रिश्ते तोड़ कर सदा के लिए दरवाजा बंद कर दिया था.
नमिता को भविष्य की चिंता सताने लगी थी. चिंता करना इसलिए जायज था, क्योंकि वह भरत के बच्चे की मां बन चुकी थी. समय के साथ उस ने एक बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम तान्या रखा गया था. बेटी के भविष्य को ले कर नमिता चिंता में डूबी रहती थी.
ससुराल की रुसवाइयां और पति की दूरियां नमिता के लिए शूल बन गई थीं. भरत कईकई दिनों तक घर से बाहर रहता था और जब लौटता था तो शराब के नशे में धुत होता था. पति का घर से बाहर रहना फिर भी नमिता ने सहन कर लिया था, लेकिन शराब पी कर घर आना उसे कतई बरदाश्त नहीं था.
एक रात वह पति के सामने तन कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं नहीं जानती थी कि आप ऐसे निकलेंगे. आप ने मेरी जिंदगी नर्क से बदतर बना दी और खुद शराब की बोतलों में उतर गए. मैं सिर्फ इस्तेमाल वाली चीज बन कर रह गई हूं, जिसे इस्तेमाल कर के कपड़े के गट्ठर की तरह कोने में फेंक दिया गया है. कभी सोचा आप ने कि मैं आप के बिना कैसे जीती हूं?’’
दोनों हथेलियों से आंसू पोंछते हुए वह आगे बोली, ‘‘मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस के लिए मैं अपना सब कुछ न्यौछावर कर रही हूं, वह शराबी निकलेगा, सितमगर निकलेगा. अरे मेरा न सही कम से कम बेटी के बारे में तो सोचते, जो इस दुनिया में अभीअभी आई है. कैसे जालिम पिता हो आप, ढंग से गोद में उठा कर प्यार भी नहीं कर सकते?’’
नशे में धुत भरत चुपचाप खड़ा पत्नी की डांट सुनता रहा. उस से ढंग से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. शरीर हवा में झूमता रहा. फिर वह बिस्तर पर जा गिरा और पलभर में खर्राटें भरने लगा.
नमिता से जब बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने अपनी नाक पल्लू से ढंक ली. फिर उसे घूरती हुई बोली, ‘‘मेरी तो किस्मत ही फूटी थी जो इन से शादी कर ली. उधर मायका छूट गया और इधर… कितनी बदनसीब हूं मैं जो किसी के कंधे पर सिर रख कर आंसू भी नहीं बहा सकती.’’
उस दिन के बाद पति और पत्नी के बीच तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. पतिपत्नी के साथ हाथापाई की नौबत आने लगी. अब तो जब भी भरत शराब के नशे में घर लौटता, अकारण ही पत्नी के साथ मारपीट करता. दोनों के रोजरोज की किचकिच से घर युद्ध का मैदान बन गया था. बेटे और बहू के झगड़ों से तंग आ कर मांबाप ने उन्हें घर छोड़ कहीं और चले जाने को कह दिया.
मांबाप का तल्ख आदेश सुन कर भरत गुस्से में तिलमिला उठा. उस ने सारा दोष पत्नी के मत्थे मढ़ दिया कि उसी की वजह से घर में अशांति फैली है. गलत वह खुद था न कि नमिता. लेकिन पुरुष होने के नाते उस की नजर में गलत नमिता थी, सो वह नमिता को ही मिटाने की सोचने लगा.
नमिता से छुटकारा पाने के लिए भरत ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. योजना को अंजाम देने के लिए उस ने मोहल्ले में ही थोड़ी दूरी पर किराए का एक कमरा ले लिया और पत्नी और बेटी को ले कर वहां शिफ्ट कर गया. अपनी खतरनाक योजना में उस ने अपने ड्राइवर और ठेका पट्टी की देखभाल करने वाले रामसेवक निषाद को मिला लिया.
दरअसल भरत का 5 साल का ब्लौक प्रमुख का कार्यकाल पूरा हो चुका था, ब्लौक प्रमुख की कुरसी जा चुकी थी. उस के बाद उसे भरतकूप थानाक्षेत्र स्थित बरुआ सागर बांध का ठेका पट्टा मिल गया था. उस ने वहां बड़े पैमाने पर मछलियां पाल रखी थीं. मछलियों के व्यापार से उसे काफी अच्छी आय हो जाती थी. इस की देखरेख उस ने अपने विश्वासपात्र ड्राइवर रामसेवक को सौंप रखी थी. वह मछलियों की रखवाली भी करता था और मालिक की गाड़ी भी चलाता था. यह बात अक्तूबर 2019 की है.