साली का नशा : क्यों देनी पड़ी 5 लोगों को जान

भरी दोपहर का वक्त था. आलोक की दुकान में मटकतीलचकती अमिषा घुसते ही बोली, ‘‘क्यों जीजाजी, अब लेडीज का भी सामान बेचने लगे?’’

‘‘आप के लिए ही तो लाए हैं,’’ आलोक मुसकराते हुए बोला.

‘‘मेरे लिए! क्या मतलब है आप का?’’ अमिषा बोली.

‘‘मतलब यह कि अब आप को अंडरगारमेंट्स के लिए दूसरी दुकान पर नहीं जाना पड़ेगा. ब्रांडेड आइटम लाया हूं. एकदम आप की फिटिंग के लायक.’’ आलोक दुकान के एक कोने की ओर इशारा करते हुए बोला, जहां मौडलों की बड़ी फोटो लगी थी.

‘‘जीजाजी, तब तो आप को सेल्सगर्ल रखनी पड़ेगी,’’ अमिषा झट से बोल पड़ी.

‘‘सेल्सगर्ल क्यों, ग्राहक को मैं नहीं दिखा सकता क्या?’’ आलोक बोला.

‘‘अच्छा चलो, मैं ट्रायल करती हूं. मेरे लिए दिखाइए.’’

‘‘तुम्हारा साइज तो मुझे पता है,’’ आलोक चुटकी लेते हुआ बोला.

‘‘धत्त! बड़े बेशर्म हो.’’ यह कहती अमिषा शरमाती हुई जैसे मटकती आई थी, वैसी ही तेज कदमों से चली गई. आलोक देर तक उसे जाते देखता रहा.

यह बात 2 साल पहले की है. अधेड़ उम्र के आलोक माथुरकर नागपुर में गारमेंट की दुकान चलाता था. दुकान से मात्र 10 मीटर की दूरी पर ही बोबडे परिवार रहता था. बोबडे परिवार से उस का गहरा रिश्ता था, कारण वह उस की ससुराल थी.

परिवार में उस के 60 वर्षीय ससुर देवीदास बोबडे, 55 वर्षीया सास लक्ष्मी बाई और 22 वर्षीया अविवाहित साली अमिषा बोबड़े रहते थे. ससुर देवीदास एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते थे.

देवीदास की बड़ी बेटी विजया से आलोक ने प्रेम विवाह किया था. विजया भी विवाह से पहले अकसर आलोक की दुकान पर आती थी, वहीं वह आलोक से प्रेम करने लगी थी. अमिषा विजया से करीब 10 साल छोटी थी.

मिट गईं दूरियां

आलोक के पिता उपेंद्र माथुरकर सालों पहले रोजीरोटी के लिए नागपुर शहर आ कर बस गए थे. उन्होंने पांचपावली इलाके में कपड़ों की सिलाई का काम शुरू किया था. आलोक उन का इकलौता बेटा था.

उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा. इस कारण वह पिता के पुश्तैनी काम में लग गया था. कपड़े की सिलाई के अलावा कपड़े की अच्छी जानकारी थी, सो उस ने अच्छीखासी गारमेंट की दुकान खोल ली थी, जिस से परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई थी.

आलोक का अपना सुखीसंपन्न परिवार था. उस के 2 बच्चे थे, जिन में बेटी परी 14 साल की और बेटा साहिल 11 साल का था. विजया आलोक के साथ खुश रहते हुए दांपत्य जीवन का निर्वाह कर रही थी, लेकिन आलोक रंगीनमिजाज किस्म का आदमी था.

दूसरी लड़कियों पर नजरें रखना और फूहड़ मजाक करना उस की आदत में शामिल था. साली को देखते ही उस के मन में तरहतरह के रोमांटिक विचार उमड़ने लगते थे.

जब भी मौका लगता, दुकान से ससुराल चला जाता था, साली के साथ हंसीमजाक कर समय बिताया करता था. उस की सास न चाहते हुए भी चुप रहती थी.

मजाकमजाक में एक दिन आलोक ने साली को अकेला पा कर बांहों में भर लिया. अमिषा उस दिन किसी तरह से उस की बाहों से छूटी, लेकिन जल्द ही जीजा के आगे आत्मसमर्पण कर दिया. आलोक ने इस बारे में किसी को नहीं बताने की हिदायत दी.

अमिषा भी एक बार सैक्स का स्वाद लगने पर बेचैन रहने लगी. दूसरी तरफ आलोक उस के साथ अंतरंग संबंध बनाने के लिए मौके की तलाश में रहने लगा.

साली की सुंदरता और सैक्स का काकटेल उस के दिमाग में नशे की तरह छा गया था. और फिर उन्होंने अनैतिक संबंध को ही जीवन का एक हिस्सा बना लिया.

दोनों इस रिश्ते को ज्यादा दिनों तक छिपा कर नहीं रख पाए. पहले आलोक की पत्नी विजया ने जीजासाली को अंतरंग रिश्ते बनाते रंगेहाथों पकड़ा. उस ने अपने पति की जम कर झाड़ लगाई. बहन को भी समझाया. फिर भी दोनों अपनी मस्ती में डूबे रहे.

जल्द ही इस की भनक अमिषा की मां और पिता को भी लग गई. उन्होंने अमिषा को तो आडे़ हाथों लिया ही, साथ में आलोक माथुरकर को भी नहीं छोड़ा. हालांकि बेटी की इस हरकत पर उन्हें गहरा धक्का लगा था.

उन्होंने अमिषा को प्यार से समझाया. अपनी रिश्तेदारी, समाज में बदनामी और उस की बहन के घर की बरबादी का वास्ता दिया. मांबाप के समझानेबुझाने का असर अमिषा पर सिर्फ इतना हुआ कि उस ने आलोक से दूरियां बना लीं. यह बात जनवरी, 2021 की थी.

सिर से पांव तक अमिषा के रंग में डूबे आलोक को उस की दूरियां बरदाश्त नहीं हो रही थीं. वह जितना ही अमिषा के पास जाने की कोशिश कर रहा था, वह उस से उतनी दूर होती जा रही थी.

कई बार मौका देख कर अपनी ससुराल भी गया, लेकिन सासससुर के मौजूद रहने के कारण अमिषा से बात तक नहीं कर पाया. वह जब भी ससुराल जाता, उसे नसीहत सुनने को मिलती.

बेटी और दामाद का रिश्ता न खराब हो, इस के लिए उन्होंने अमिषा के योग्य कोई अच्छा सा लड़का ढूंढ कर उस की शादी कर देने में ही भलाई समझी.

इस बात की जानकारी जब आलोक  को लगी तो उस का खून खौल उठा. उस ने मन ही मन यह तय किया कि अगर अमिषा उस की नहीं तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. इसी बात को ले कर वह अमिषा को फोन पर तरहतरह की धमकियां भी देने लगा था.

अप्रैल, 2021 के महीने में लौकडाउन के समय तो आलोक ने हद ही कर दी. एक दिन दोपहर को मौका देख कर वह अपनी ससुराल गया. जाते ही अमिषा के साथ जोरजबरदस्ती करने लगा. वह अपनी हरकत में कामयाब होता, इस के पहले वहां अमिषा के मांबाप आ गए.

उन्होंने आलोक को न केवल डांटाफटकारा, बल्कि उस के खिलाफ स्थानीय थाने में शिकायत भी दर्ज करवा दी. पुलिस ने परिवारिक मामले को ध्यान में रखते हुए आलोक पर फौरी तौर पर काररवाई की. उस से माफीनामा लिखवाया और चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

बदले की आग

बात आईगई हो गई, किंतु आलोक अमिषा के साथ वासना पूर्ति की आग में तपता रहा. वह मौके की ताक में रहते हुए बदले की भावना से भी भर चुका था.

पुलिस के हस्तक्षेप के बाद अमिषा के घर वालों को थोड़ी राहत जरूर मिली थी, जबकि आलोक ने पुलिस की काररवाई और माफीनामे को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था. अब उसे अपनी ससुराल और अमिषा से नफरत हो गई थी. उन्हें सबक सिखाने के लिए उस ने एक खतरनाक योजना बना ली थी.

उस ने मई महीने में औनलाइन कुछ घरेलू सामान मंगाया. उस में उस ने एक लंबा मटन काटने का चाकू भी मंगवा लिया.

23 जून की रात 10 बजे के करीब आलोक अपनी ससुराल जा पहुंचा. घर पर अमिषा अकेली थी. पिता देवीदास अपनी ड्यूटी पर चले गए थे. मां लक्ष्मीबाई पड़ोस के बच्चे के नामकरण कार्यक्रम में गई हुई थी.

अमिषा अपने कमरे में बैठी अपनी दोस्त के साथ मोबाइल पर चैट कर रही थी. अचानक अपने कमरे में आलोक को देख वह चौंक गई. हड़बड़ाते हुए पूछा, ‘‘जीजाजी आप?’’

उस ने मोबाइल को वैसे ही छोड़ दिया. जिस में उन के बीच की बातें रिकौर्ड होने लगीं.

‘‘हां मैं, तुम किस से बातें कर रही थीं?’’ आलोक ने कहा.

‘‘आप से मतलब, मैं अपने मन की मालकिन हूं, जिस से चाहूंगी बात करूंगी.’’ अमिषा ने कड़क शब्दों में कहा.

आलोक जलभुन गया. वह बोला, ‘‘तुम ने मेरी शिकायत पुलिस में क्यों की थी?’’

‘‘आप की हरकत से घर वाले सब परेशान हो गए थे. बेशर्मी की हद होती है. सब के सामने मुझे जलील कर दिया.’’ अमिषा ने सख्ती से कहा.

इस बात पर आलोक का गुस्सा फूट पड़ा था. उस ने कहा, ‘‘अब मैं तुम्हें इस लायक ही नहीं छोड़ूंगा कि तुम पुलिस थाने जा सको.’’

यह कहते हुए आलोक ने अमिषा को पकड़ लिया था. अमिषा खुद को आलोक से छुड़ाने की कोशिश करने लगी. काफी कोशिशें कीं मगर सफल नहीं हुई. सैक्स का उन्माद उतर जाने के बाद ही अमिषा उस के चंगुल से आजाद हो पाई.

आलोक द्वारा हाथ से मुंह बंद किए जाने के कारण शोर नहीं मचा पाई. घर से बाहर जाने की कोशिश करने लगी. मगर आलोक ने उसे इस का मौका नहीं दिया. छिपा कर लाए चाकू से एक झटके में अमिषा का गला रेत दिया. वह जमीन पर गिर पड़ी.

खून से लथपथ अमिषा तड़पती रही और आलोक बुत बना उसे देख रहा. इस के पहले कि अमिषा के प्राणपखेरू उड़ते, कमरे में अमिषा की मां लक्ष्मीबाई आ गई. बेटी अमिषा की हालत देख कर चीखते हुए बोली, ‘‘आलोक, यह तुम ने क्या किया?’’

आलोक ने लक्ष्मीबाई के गले पर चाकू फिराते हुए कहा, ‘‘चिल्लाओ मत, पड़ोसी आ जाएंगे.’’

और फिर उस ने लक्ष्मीबाई का गला भी एक झटके में रेत डाला. आधे घंटे तक वहीं रहने के बाद वह अपने घर आ गया था.

बताते हैं कि अपनी ससुराल से वापस घर आने के बाद भी आलोक का क्रोध शांत नहीं हुआ. उसी क्रोध में उस ने पहले अपनी पत्नी की हत्या कर दी. फिर मासूम बेटे साहिल और बाद में बेटी परी को भी मौत की नींद सुला दिया.

अपने पूरे परिवार की हत्या के बाद आलोक का मन शांत हुआ, लेकिन वह विक्षिप्तावस्था में आ चुका था. उस ने कमरे के पंखे से लटक कर अपनी जीवनलीला भी समाप्त कर ली. इस तरह से एक घंटे के भीतर 6 हत्या- आत्महत्या की वारदात की जानकारी अगले रोज हुई.

जून महीने की 24 तारीख को दिन के करीब 11 बज चुके थे, नागपुर में में पाचपावली के रहने वाले आलोक माथुरकर का दरवाजा नहीं खुला था. उन के पड़ोस में रहने वाले भोसले परिवार को हैरानी हुई.

रोज सुबह 8 बजे फ्रैश हो कर अपने काम में लग जाने वाले का घर बंद होने पर भोसले परिवार के लोगों ने मकान की कालबेल दबाई. दरवाजा खटखटाया, आवाज दी.

कई बार ऐसा करने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला और न मकान के भीतर से कोई आवाज आई, तब वह किसी अनहोनी की आशंका से घबरा गए.

मकान के पीछे लगी खिड़की के पास गए. हलके से धक्के के साथ खिड़की खुल गई. भीतर का मंजर देख कर भोसले परिवार के होश उड़ गए. उन की आंखों के सामने आलोक का सब से छोटा बेटा खून से लथपथ जमीन पर पड़ा था.

उन्होंने मामले की खबर पहले मकान मालिक प्रमोद भिभिकर और फिर थानाप्रभारी जयेश भंडारकर को दी.

कई हत्याओं से सहमा शहर

थाने की ड्यूटी पर तैनात एसआई राज राठौर को मामले की डायरी बनाने का आदेश मिला. जबकि इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देने के बाद एएसआई संदीप बागुल, एसआई राज राठौर, हैडकांस्टेबल रवि पाटिल कुछ समय में ही घटनास्थल पर पहुंच गए. इस बीच यह खबर आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई थी.

पुलिस टीम ने दरवाजा तोड़ कर मकान में प्रवेश किया. अंदर 3 लाशें जमीन पर खून से सनी हुई थीं, जबकि एक पंखे से झूल रही थी. पंखे से झूलती लाश की पहचान आलोक माथुरकर के रूप में हुई और बाकी लाशें उस की पत्नी विजया और उस के बच्चों परी एवं साहिल की थीं.

थानाप्रभारी जयेश भंडारकर अपने सहायकों के साथ अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि तभी पुलिस कमिश्नर अमितेश कुमार, एडिशनल पुलिस कमिश्नर सुनील फुलारी के साथ फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

उसी समय उन्हें पास में ही एक दूसरे हत्याकांड की सूचना मिली. थानाप्रभारी ने पुलिस की दूसरी टीम को दूसरे घटनास्थल पर भेज दिया.

दोनों घटनास्थल महज 10 मीटर की दूरी पर ही थे. दूसरा स्थान आलोक की ससुराल था, जहां उस की सास लक्ष्मीबाई और साली अमिषा मृत पड़ी थीं. दोनों घटनाओं में सभी की गरदन भी चाकू से रेती गई थी.

परिवार के मुखिया देवीदास ने पुलिस को बताया कि सभी हत्याओं के पीछे उस के दामाद आलोक का ही हाथ है.

दोनों घटनास्थल की तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बाद लाशों का पंचनामा कर पोस्टमार्टम के लिए नागपुर मैडिकल कालेज भेज दिया गया. उस के एकमात्र गवाह के तौर पर देवीदास से थाने में पूछताछ की गई.

मौके पर बरामद मोबाइल की रिकौर्डिंग से आलोक और अमिषा के बीच संबंधों का खुलासा हो गया. फिंगरप्रिंट से भी आलोक द्वारा हत्याओं को अंजाम दिए जाने की पुष्टि हो गई.

एक ही दिन में 6 लोगों की हत्या और आत्महत्या के मामले की गुत्थी को कुछ घंटों में ही सुलझा लिया गया और जांच एडिशनल पुलिस कमिश्नर सुशील फुलारी को सौंप दी गई. 2 परिवारों में अगर कोई बचा था तो वह थे आलोक के ससुर देवीदास. उन की किस्मत थी जो उस रात अपनी ड्यूटी पर थे. किंतु वे उस किस्मत का क्या करते, जब उन्हें कोई अपना कहने वाला ही नहीं रहा.

ऊंचे ओहदे वाला रिश्ता : शक ने ली साक्षी की जान

हर मातापिता की इच्छा होती है कि उन के बच्चे पढ़ाईलिखाई कर के आगे बढ़ें, उन की शादियां हों और वे अपनी दुनिया में खुश रहें. अशोक कुमार की बेटी साक्षी इंडियन आर्मी में मिलिट्री नर्सिंग सर्विसेज में लेफ्टिनेंट थी. साल 2017 में उस का सेलेक्शन हुआ था.

दिल्ली के तिलकनगर इलाके के रहने वाले अशोक कुमार को बेटी के आर्मी में सेलेक्शन के वक्त बधाइयां देने वालों का तांता लग गया था. तब वह खुशी से फूले नहीं समाए. जाहिर है यह बड़े गर्व की बात थी.

साक्षी की शादी नवनीत शर्मा के साथ हुई थी. नवनीत वायुसेना में स्क्वाड्रन लीडर थे. दोनों ही हरियाणा की अंबाला छावनी में तैनात थे. उन का 2 साल का एक बेटा भी था.

लोग अशोक कुमार को खुशनसीब इंसान मानते थे. कामयाब बेटी के पिता होने के नाते लोगों का सोचना भी ठीक था, लेकिन किसी इंसान की असल जिंदगी में क्या कुछ चल रहा होता है, इस बात को कोई नहीं जान पाता.

अशोक कुमार के साथ भी कुछ ऐसा ही था. बेटी को ले कर वह परेशान रहते थे. इस की बड़ी वजह यह थी कि बेटी का वैवाहिक जीवन उम्मीदों के विपरीत था. 20 जून, 2021 की रात का वक्त था, जब अशोक कुमार के मोबाइल पर साक्षी का फोन आया. उन्होंने बेटी से बात शुरू की.

‘‘हैलो! साक्षी बेटा कैसी हो?’’

‘‘पापा, यहां कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा, मैं बहुत परेशान हो चुकी हूं.’’ साक्षी के लहजे में परेशानी छिपी हुई थी, जिसे अशोक कुमार ने भांप लिया था.

उन्होंने धड़कते दिल से पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा?’’

‘‘पापा, नवनीत मुझे लगातार परेशान करते हैं, हद इतनी हो गई है कि मेरे साथ मारपीट भी की जाती है. पता नहीं कब तक ऐसा चलेगा.’’ वह बोली.

‘‘सब्र कर बेटा. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. मैं समझाऊंगा उसे.’’ अशोक कुमार ने समझाया.

‘‘यह समझने वाले नहीं हैं. पता नहीं क्या होगा पापा. मैं बाद में बात करती हूं.’’ साक्षी ने सुबकते हुए फोन काट दिया.

बेटी की बातों से अशोक परेशान हो गए. उन्होंने अपने दामाद नवनीत का मोबाइल नंबर डायल किया, लेकिन कोई रिस्पांस नहीं मिला. उन्हें याद आया कि उन का नंबर दामाद ने ब्लौक किया हुआ था.

साक्षी भी यह बात अपने परिजनों को बता चुकी थी कि मायके वालों के नंबर ब्लौक लिस्ट में हैं.

इस के बाद उन्होंने साक्षी के ससुर चेतराम शर्मा को फोन किया, ‘‘भाईसाहब, आप ही बच्चों को समझाइए, काफी समय से यही सब चल रहा है. साक्षी का अभी फोन आया था और वह बता रही थी कि उस के साथ मारपीट भी की जा रही है.’’

‘‘देखिए भाईसाहब, यह उन का आपस का मामला है. नवनीत तो मेरी बात सुनता ही नहीं तो बताओ, मैं भी क्या कर सकता हूं.’’ चेतराम शर्मा बोले.

उन की बात सुन कर अशोक कुमार को बहुत निराशा हुई. इस से ज्यादा वह कर भी क्या कर सकते थे अलबत्ता वह चिंतित जरूर हो गए.

अशोक ने यह बात अपने बेटे सौरभ को बताई. उन का पूरा परिवार पूरी रात चैन की नींद नहीं सो सका. 21 जून की सुबह के करीब साढ़े 6 बजे नवनीत की मां लक्ष्मी का फोन आया और उन्होंने बताया कि साक्षी ने सुसाइड कर लिया है.

यह सुनते ही अशोक के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन का फोन केवल सूचनात्मक था. इस से ज्यादा उन्होंने कोई बात नहीं की. बेटी की मौत की खबर से अशोक के परिवार में कोहराम मच गया. आननफानन में पितापुत्र दिल्ली से अंबाला के लिए रवाना हो गए.

नवनीत और साक्षी रेसकोर्स स्थित आवास नंबर 115/04 में रहते थे. अशोक और सौरभ से वहां कोई बात करने को भी तैयार नहीं था. वह सीधे रेजीमेंट बाजार पुलिस चौकी पहुंचे और नवनीत व उस के परिजनों के खिलाफ बेटी को दहेज के लिए प्रताडि़त करने की तहरीर दे दी. पुलिस पहले ही इस मामले की तहकीकात में जुटी हुई थी.

दरअसल, पुलिस कंट्रोल रूम को 21 जून की सुबह इस घटना की सूचना मिली थी. कंट्रोल रूम से यह सूचना थाने को फ्लैश की गई. मामला हाईप्रोफाइल था, लिहाजा एसएसपी हमीद अख्तर ने अधीनस्थों को इस मामले में तत्काल सक्रिय होने के निर्देश दे दिए थे.

डीएसपी रामकुमार, इंसपेक्टर विजय व चौकी इंचार्ज कुशलपाल ने जांचपड़ताल शुरू की. पुलिस ने साक्षी के परिजनों की तहरीर पर दहेज उत्पीड़न की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. साक्षी के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. साथ ही उन के पति नवनीत को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

ओहदे थे ऊंचे पर जिंदगी थी नीरस

पुलिस की जांचपड़ताल और परिजनों से की गई पूछताछ में ऊंचे ओहदों के पीछे की ऐसी कहानी निकल कर सामने आई, जिस ने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया. देश सेवा के लिए आर्मी जौइन करने वाली साक्षी की निजी जिंदगी में वास्तव में अंधेरा लिए हुए एक बड़ा तूफान चल रहा था.

साक्षी और नवनीत के बीच जानपहचान थी. पहले दोनों के बीच दोस्ती हुई और फिर यह दोस्ती प्यार में बदल गई. नवनीत का परिवार हरियाणा के पंचकूला जिले के पिंजोर कस्बे का रहने वाला था. नवनीत स्क्वाड्रन लीडर थे और साक्षी लेफ्टिनेंट. दोनों ही ऊंचे पद पर थे.

12 दिसंबर, 2018 को दोनों विवाह बंधन में बंध गए. साक्षी के परिजनों की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थी. फिर भी उन्होंने अपनी हैसियत के अनुसार शादी में खर्च किया. शादी के बाद कुछ महीनों तक तो सब ठीक चलता रहा.

साक्षी ने एक बेटे को भी जन्म दिया. दोनों अच्छे पद पर थे. परिवार की खुशियों में चारचांद लगाने के लिए बेटा भी हो चुका था, लेकिन जिंदगी में कई बार पद और सुखसुविधाओं से खुशियों के मायने नहीं होते.

साक्षी और नवनीत के बीच मनमुटाव रहने लगा था. साक्षी ने शुरू में तो अपने परिवार में कुछ नहीं बताया, परंतु जब बात हद से ज्यादा बढ़ने लगी तो एक दिन उस ने अपने पिता को सारी बातें बताईं, ‘‘पापा, सोचा नहीं था कि ये लोग ऐसे होंगे.’’

बेटी की बात पर अशोक थोड़ा सकपका गए ‘‘मैं समझा नहीं बेटी?’’

‘‘पापा, ये लोग मुझे दहेज के लिए ताना मारते हैं. कभी कहते हैं कि गाड़ी नहीं दी, कभी कहते हैं कि रिश्तेदारों का मान नहीं रखा.’’ साक्षी ने बताया.

‘‘बेटी, इस से ज्यादा हम कर भी क्या सकते थे. तुम दोनों कमाते हो क्या किसी चीज की कोई कमी है. परिवार में यह सब बातें तो चलती रहती हैं. नवनीत को तुम समझाना.’’ अशोक ने कहा.

‘‘मैं ने बहुत समझाया है पापा, लाइफ को एडजस्ट तो बहुत कर रही हूं.’’ साक्षी बोली.

बेटी की बातें सुन कर अशोक कुमार को बहुत अफसोस हुआ. उन्होंने सोचा कि वक्त के साथ एक दिन सब ठीक हो जाएगा. यूं भी इंसान ऐसे मामलों में सकारात्मक ही सोचता है.

लालच ने घोली कड़वाहट

कहते हैं कि जब किसी परिवार में अनबन, शक और लालच जैसी चीजें घर कर जाएं, तो फिर कलह का वातावरण बन जाता है बिखराव बढ़ता चला जाता है.

साक्षी के परिवार में भी ऐसा ही हो रहा था. साक्षी के पिता और भाई ने भी नवनीत को समझाया, लेकिन उन्होंने उन्हें परिवार के मामले में दखल  न देने की नसीहत दे डाली.

साक्षी की जिंदगी में एक बार अनबन का सिलसिला शुरू हुआ, तो फिर उस ने रुकने का नाम नहीं लिया. बाद में हालात बिगड़ते देख अशोक खुद भी बेटी के घर गए और दोनों को समझा कर आए.

कुछ दिन तो सब ठीक रहा, बाद में स्थिति पहले जैसी ही हो गई. रिश्तों में दूरियां तब और भी बढ़ गईं जब नवनीत साक्षी पर शक करने लगे.

शक का दायरा इतना बढ़ गया कि नवनीत ने घर के बैडरूम तक में सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए. साक्षी के पिता और भाई फोन करते तो नवनीत झल्ला जाते. उन्होंने दोनों के नंबर तक ब्लौक कर दिए. साक्षी परिजनों को बताती थी कि उस के साथ मारपीट भी की जाने लगी है.

साक्षी के परिजनों को पूरी उम्मीद थी कि एक दिन सब ठीक जाएगा, लेकिन यह भी सच है कि इंसान सोचता कुछ है और हो कुछ और जाता है. परिवार के बिगड़े हालात के बीच आखिर साक्षी 20 जून, 2021 की रात जिंदगी की जंग हार गई.

पतिपत्नी के बीच अनबन में 20 जून को एक तूफान आया. दोनों के बीच झगड़ा और मारपीट हुई. साक्षी ने यह बात अपने पिता को भी फोन पर बताई थी. नवनीत के अनुसार, उन्होंने साक्षी को देर रात कपड़े के सहारे पंखे से झूलते हुए पाया. इस के बाद उन्होंने उसे नीचे उतारा और मिलिट्री हौस्पिटल ले गए, जहां डाक्टरों ने साक्षी को मृत घोषित कर दिया.

इस के बाद हौस्पिटल से पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी गई. साक्षी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण हैंगिग आया. नवनीत के घर पर लगे कैमरों की सीसीटीवी फुटेज डिलीट हो चुकी थी.

साक्षी के परिजनों का आरोप था कि सारी फुटेज को सच्चाई छिपाने के मकसद से डिलीट किया गया.

प्रताड़ना बनी मौत की वजह

साक्षी के परिजनों का साफ कहना था कि वह मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना से तंग आ चुकी थी. उन के दहेज के आरोपों में सच्चाई है तो सोचने वाली बात है कि बड़े पदों पर नौकरी करने वाले अच्छेखासे पढ़ेलिखे लोग भी दहेज के लालच में किस स्तर तक जा सकते हैं.

हालांकि दूसरी तरफ नवनीत शर्मा ने जेल जाने से पहले पुलिस कस्टडी में मीडिया के सामने अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों से साफ इंकार कर दिया.

साक्षी ने वास्तव में आत्महत्या की या उस की हत्या की गई, पुलिस इस पहलू की भी बारीकी से जांच कर रही थी. प्रकरण की और भी सच्चाई तो पुलिस की पूर्ण जांच के बाद ही सामने आएगी.

अदालत इस मामले में सबूतों के आधार पर फैसला भी करेगी. लेकिन जब साक्षी नवनीत और उन के परिजनों की फितरत को समझ गई थी और जब उस का वहां तालमेल नहीं बैठ रहा था, तब वह वक्त रहते ऐसे रिश्ते से पीछा छुड़ा लेती तो शायद ऐसी नौबत कभी नहीं आती.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

मौत की अनोखी साजिश: जिसे देख पुलिस भी चकरा गई

बात 31 जनवरी, 2021 की है. वरुण अरोड़ा ने अपनी पत्नी दिव्या को फोन किया, ‘‘दिव्या, आज तुम सब्जी मत बनाना, मैं शाम को आऊंगा तो होटल से तुम सब की पसंद की मछली करी ले कर आऊंगा.’’

रियल एस्टेट कारोबारी वरुण दक्षिणी दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-1 में रहता था. उस की ससुराल पश्चिमी दिल्ली के इंद्रपुरी  इलाके में थी. उस समय उस की पत्नी दिव्या अपने मायके इंद्रपुरी में थी. इसलिए वरुण ने दिव्या को फोन कर के मछली करी ले कर आने को कहा था.

मछली करी दिव्या और उस के मायके वालों को बहुत पसंद थी, इसलिए पति से बात करने के बाद दिव्या ने अपनी मम्मी अनीता से कह दिया कि आज वरुण इधर ही आ रहे हैं. वह होटल से मछली करी ले कर आएंगे. इसलिए आज सब्जी नहीं बनानी. नौकरानी से कह देना कि वह आज केवल रोटी बना दे.

शाम को वरुण अपनी ससुराल के लिए चला तो उस ने एक होटल से सब के लिए मछली करी पैक करा ली. उस की ससुराल में पत्नी के अलावा ससुर देवेंद्र मोहन शर्मा, सास अनीता शर्मा, साली प्रियंका और एक नौकरानी थी. उन सभी के हिसाब से वह काफी मछली करी ले कर आया था.

शाम को जब खाना खाने की बारी आई तब अरुण ने कहा कि उस का पेट खराब है, इसलिए वह खाना नहीं खाएगा. दिव्या ने उस से कहा भी कि वह उस के लिए खिचड़ी या और कोई चीज बनवा देगी, लेकिन वरुण ने मना कर दिया. उस ने केवल नींबू पानी पिया.

वरुण की लाई मछली करी घर के लोगों को बहुत स्वादिष्ट लगी. इसलिए सभी ने जी भर कर खाना खाया. वरुण के दोनों बच्चे उस समय तक सो गए थे. रात को वरुण ससुराल में ही सो गया और अगले दिन अपने घर चला गया.

इस के 2 दिन बाद दिव्या की मां अनीता को उल्टीदस्त की शिकायत हुई. उन्हें चक्कर भी आने लगे.

तबीयत जब ज्यादा खराब होने लगी तब अनीता शर्मा को सर गंगाराम अस्पताल ले जाया गया. वहां भी उन की तबीयत दिनप्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी. डाक्टर समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर उन्हें हुआ क्या है. हालत गंभीर होती देख उन्हें आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया.

इसी बीच अनीता की छोटी बेटी प्रियंका की भी हालत बिगड़ने लगी. उस का भी पेट खराब हो गया और उल्टियां होने लगीं. साथ ही उस का सिर भी घूम रहा था. प्रियंका को राजेंद्र प्लेस के पास स्थित बी.एल. कपूर अस्पताल में एडमिट करा दिया गया.

उधर ससुराल वालों की तबीयत खराब होने से वरुण मन ही मन खुश था, क्योंकि उस ने जो प्लान बनाया था वह सफल हो रहा था. 4-5 दिन बाद उस की पत्नी दिव्या को भी वही शिकायत होने लगी, जो उस की मां और बहन को हुई थी. दिव्या को भी सर गंगाराम अस्पताल में भरती करा दिया गया.

वरुण द्वारा लाई गई मछली करी उस की ससुराल के जिन लोगों ने खाई थी, उन सब की हालत बिगड़ने लगी. ससुर देवेंद्र मोहन शर्मा की भी अचानक तबीयत खराब हो गई. इस के अलावा घर की नौकरानी का भी यही हाल हुआ तो उसे भी डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भरती करा दिया गया. परिवार के सभी लोगों का अलगअलग अस्पतालों में इलाज चल रहा था.

इसी बीच बी.एल. कपूर अस्पताल में भरती वरुण की साली प्रियंका की 15 फरवरी, 2021 को इलाज के दौरान मौत हो गई. रिश्तेदार इसे फूड पौइजनिंग का मामला मान रहे थे. इसलिए उन्होंने इस की शिकायत पुलिस में न कर के उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

हालांकि वरुण अस्पताल में ससुराल के सभी लोगों की देखरेख कर रहा था, लेकिन अंदर ही अंदर वह खुश था क्योंकि उस का प्लान पूरी तरह सफल हो गया था.

उधर सर गंगाराम अस्पताल में लाई गई अनीता की भी 22 मार्च, 2021 को मृत्यु हो गई. डाक्टरों ने जब उन के यूरिन और ब्लड की जांच की तो उस में थैलियम नाम का एक जहरीला रसायन पाया गया.

डाक्टर समझ गए कि किसी ने उन्हें थैलियम जहर दे कर मारा है. अस्पताल द्वारा इस की सूचना पुलिस को दे दी गई. पुलिस  ने डाक्टरों से बात की तो उन्हें भी यह मामला संदिग्ध लगा. अनीता इंद्रपुरी में रहती थी, इसलिए इस की सूचना इंद्रपुरी थाने के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार को दी गई थी. वह तुरंत अस्पताल पहुंच गए.

थानाप्रभारी ने जब डाक्टर से बात की तो पता चला कि थैलियम एक अलग तरह का जहरीला रसायन होता है, जिस का असर बहुत धीरेधीरे होता है. इस के अलावा इस रसायन की एक खास बात यह है कि इस में किसी तरह की गंध और स्वाद नहीं होता. यह रंगहीन और गंधहीन होता है.

यह जानकारी मिलने के बाद थानाप्रभारी समझ गए कि जरूर इस मामले में कोई गहरी साजिश है. उन्होंने छानबीन की तो पता चला कि 15 फरवरी को अनीता की छोटी बेटी प्रियंका की भी बी.एल. कपूर अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई थी.

पुलिस ने बी.एल. कपूर अस्पताल के डाक्टरों से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि प्रियंका के शरीर में भी थैलियम के लक्षण पाए गए थे. इस के अलावा इस परिवार के अन्य सदस्य यानी अनीता की बड़ी बेटी दिव्या और अनीता के पति देवेंद्र मोहन शर्मा और नौकरानी भी अस्पताल में भरती थे.

इस से पुलिस समझ गई कि किसी ने गहरी साजिश के तहत पूरे परिवार को अपना शिकार बनाने की कोशिश की थी. थानाप्रभारी ने इस की सूचना एसीपी विजय सिंह को दी.

अब यह मामला जिले के पुलिस अधिकारियों तक पहुंच चुका था. डीसीपी के निर्देश पर एसीपी विजय सिंह ने इंद्रपुरी के थानाप्रभारी सुरेंद्र सिंह और मायापुरी के इंसपेक्टर प्रमोद कुमार को इस मामले की जांच में लगा दिया.

पुलिस ने देवेंद्र मोहन शर्मा और उन की बेटी दिव्या का इलाज कर रहे डाक्टरों से  फिर से बात की. इस के अलावा उन्होंने डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भरती उन की नौकरानी का इलाज कर रहे डाक्टरों से भी मुलाकात की. पुलिस को पता चला कि उपचाराधीन इन मरीजों के अंदर भी थैलियम रसायन पाया गया है.

अनीता के शव का डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में पोस्टमार्टम कराया गया. पुलिस ने वहां के डाक्टरों से इस की डिटेल्ड एटौप्सी रिपोर्ट ली. उस में बताया गया कि अनीता के शरीर में थैलियम था. अब तक की जांच से पुलिस को यह पता लग चुका था कि परिवार के सभी लोगों को कोई ऐसी चीज खिलाई गई थी, जिस में थैलियम रसायन मिला हुआ था. वह चीज क्या थी और किस ने खिलाई, यह जांच का विषय था.

इस परिवार का दामाद वरुण ही अस्पताल में उन सब की देखभाल कर रहा था. वरुण के चेहरे से सास और साली की मौत का गम साफ झलक रहा था. इस के अलावा वह डाक्टरों से लगातार अपनी पत्नी दिव्या और ससुर को बचाने की गुहार भी कर रहा था.

पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ानी थी, इसलिए पुलिस ने वरुण से इस बारे में पूछताछ की. वरुण ने पुलिस को बताया कि वह तो अपने घर ग्रेटर कैलाश में रहता है. ससुराल के सभी लोगों को अचानक क्या हो गया, इस की उसे कोई जानकारी नहीं है.

पुलिस को केस की तह तक जाना था, इसलिए वह वरुण को ग्रेटर कैलाश पार्ट-1 में स्थित उस के घर पर ले गई.

निशाने पर वरुण

पुलिस ने उस के घर की तलाशी ली तो एक गिलास में कुछ संदिग्ध चीज  दिखी. पुलिस ने वह गिलास अपने कब्जे में ले लिया और गिलास में क्या है, यह जानने के लिए उसे फोरैंसिक जांच के लिए भेज दिया. उस गिलास के अलावा पुलिस को वरुण के घर से अन्य कोई संदिग्ध चीज नहीं मिली.

पुलिस यह तो अच्छी तरह जान चुकी थी कि जिस ने भी इस परिवार को जहरीला पदार्थ दिया है, वह विश्वस्त होगा और उस का इन के घर आनाजाना भी रहा होगा. लिहाजा पुलिस ने देवेंद्र मोहन शर्मा के घर पर जो लोग आतेजाते थे, उन से एकएक कर पूछताछ शुरू कर दी. पुलिस बहुत तेजी के साथ जांच कर रही थी.

उधर फोरैंसिक जांच से पता चला कि वरुण के यहां से गिलास में जो चीज बरामद की गई थी, वह थैलियम नाम का जहरीला पदार्थ ही था. यह जानकारी मिलने के बाद वरुण पुलिस के शक के दायरे में आ गया. लिहाजा पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की.

आखिर वरुण ने सच उगल ही दिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी ससुराल के लोगों को थैलियम जहर दिया था. उन सभी का नामोनिशान मिटाने की वरुण ने जो कहानी बताई, वह हैरतअंगेज थी.

रियल एस्टेट कारोबारी वरुण ने करीब 12 साल पहले दिव्या से शादी की थी. दिव्या उस के साथ बहुत खुश थी. वरुण का कारोबार अच्छा चल रहा था, इसलिए दिव्या को कोई परेशानी नहीं थी. जीवन हंशीखुशी से चल रहा था. लेकिन बाद में उन के जीवन में एक समस्या खड़ी हो गई. समस्या यह कि शादी के कई साल बाद भी दिव्या मां नहीं बन पाई.

वरुण ने डाक्टरों से उस का इलाज भी कराया, लेकिन उस के घर में किलकारी नहीं गूंजी. जब पतिपत्नी हर तरफ से हताश हो गए, तब उन्होंने शादी के करीब 7 साल बाद आईवीएफ प्रोसेस का सहारा लिया. इस का सही परिणाम निकला और दिव्या ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया. जिस में एक बेटी थी और एक बेटा.

अब उन के घर में एक नहीं, बल्कि 2-2 बच्चों की किलकारियां गूंजने लगीं. उन की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. जुड़वां बच्चे होने के बाद दिव्या के मायके वाले भी बहुत खुश थे. दिव्या दोनों बच्चों की सही देखभाल कर रही थी. वक्त के साथ बच्चे करीब 4 साल के हो गए.

लगभग एक साल पहले वरुण के पिता की अचानक मौत हो गई. पिता की मौत के बाद वरुण की गृहस्थी में एक ऐसी समस्या ने जन्म ले लिया, जिस ने न सिर्फ वरुण के बल्कि वरुण की ससुराल वालों के जीवन को उजाड़ दिया.

बेटे के रूप में बाप की वापसी की चाहत

हुआ यह कि पिता की मौत के बाद दिव्या फिर से प्रैगनेंट हो गई. इस से वरुण बहुत खुश था. वह सोच रहा था कि उस की पत्नी की कोख में उस के पिता ही आए हैं. वह पत्नी की अच्छी तरह से देखभाल करने लगा.

उधर जिस महिला डाक्टर के पास  दिव्या अपना चैकअप कराने जाती थी, उस ने दिव्या से कहा कि इस बार उस का प्रैग्नेंट होना उस के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है. किसी तरह उस ने बच्चे को जन्म दे भी दिया तो उस का बच पाना मुश्किल होगा.

दिव्या ने यह बात वरुण को बताई तो उस ने उस की बात पर विश्वास नहीं किया. वरुण ने कहा कि डाक्टर झूठ बोल रही है. ऐसा कुछ नहीं होगा. वह उसे और होने वाले बच्चे को कुछ नहीं होने देगा. वरुण ने अबौर्शन कराने से साफ मना कर दिया. उस ने कहा कि बच्चे के रूप में उस के पिता आ रहे हैं, इसलिए वह किसी भी सूरत में उस का गर्भपात नहीं कराएगा.

दिव्या ने डाक्टर वाली बात अपने मायके में बताई तो उस की मां अनीता ने कहा कि यदि उस का गर्भपात नहीं कराएगा तो वह खुद उस के साथ जा कर उस का गर्भपात करा देगी . क्योंकि बेटी की जिंदगी का सवाल है. बेटी जीवित रहेगी तो बच्चा कभी भी हो जाएगा.

एक दिन वरुण की सास ने वरुण को अपने घर बुला कर समझाया कि जब डाक्टर बच्चा पैदा करने के लिए मना कर रही है तो ऐसे में उस का गर्भपात कराना ही बेहतर है. लेकिन वरुण अपनी जिद पर अड़ा था.

उस ने कहा कि वह किसी भी सूरत में उस का गर्भपात नहीं होने देगा. इस बात पर उन की आपस में खटपट भी हो गई. इतना ही नहीं, उस दिन ससुराल में वरुण की काफी बेइज्जती भी हुई.

वरुण की सास अनीता भी अपनी जिद पर अड़ी थी. उस ने वरुण की इच्छा के खिलाफ दिव्या का गर्भपात करा दिया. यह बात वरुण को बहुत बुरी लगी. उस ने सोचा कि उस की सास ने बच्चे का नहीं, बल्कि गर्भ में पल रहे उस के पिता को मारा है.

उसी समय वरुण ने तय कर लिया कि वह अपनी बेइज्जती करने वालों और गर्भपात कराने वाले अपने ससुरालियों को सबक सिखा कर रहेगा.

इस के बाद वरुण ससुराल वालों को सबक सिखाने के उपाय खोजने लगा. वह ऐसी तरकीब खोज रहा था, जिस से काम भी हो जाए और उस पर कोई शक भी न करे. इस बारे में वह इंटरनेट और यूट्यूब पर भी सर्च करता था.

खतरनाक रसायन थैलियम

इसी दौरान उसे थैलियम नामक जहरीले रसायन के बारे में जानकारी मिली. थैलियम एक ऐसा जहर होता है कि यह जिस व्यक्ति को दिया जाता है उसे शुरुआत में उल्टीदस्त, जी मिचलाने की शिकायत होती है और जल्दी ही उस की मृत्यु हो जाती है.

क्योंकि मृत व्यक्ति के शरीर पर जहर जैसे कोई भी लक्षण नहीं मिलते, इसलिए लोग यही समझते हैं कि उस की मौत फूड पौइजनिंग की वजह से हुई है.

यह जानकारी मिलने के बाद वरुण ने थैलियम रसायन पाने की कोशिश शुरू कर दी. आदमी कोशिश करे तो बेहतर रिजल्ट निकल ही आता है. यही वरुण के साथ भी हुआ. इस खोजबीन में उसे पंचकूला की एक लैबोरेटरी का पता चला. उस ने वहां औनलाइन संपर्क कर रिसर्च के नाम पर थैलियम मंगा लिया. अब उस का मकसद किसी तरह इसे अपने ससुराल वालों को खिलाना था.

इस के लिए उस ने सब से पहले अपने ससुराल वालों से संबंध सामान्य करने शुरू किए क्योंकि पत्नी का गर्भपात कराने के बाद उन से उस के संबंध बिगड़ गए थे.

इस साल जनवरी के अंतिम सप्ताह में वरुण की पत्नी दिव्या अपने दोनों बच्चों के साथ मायके गई हुई थी. अब तक ससुराल वालों से वरुण के संबंध नौर्मल हो चुके थे. वह फिर से ससुराल आनेजाने लगा था.

वरुण को पता था कि उस की ससुराल के लोगों को मछली करी बहुत पसंद है. योजना के अनुसार वरुण ने 31 जनवरी, 2021 को पत्नी दिव्या को फोन कर के कह दिया कि वह आज होटल से मछली करी ले कर आएगा, इसलिए घर पर सब्जी न बनवाए. दिव्या ने यह बात अपनी मम्मी अनीता को बता दी. जिस से उस दिन उन लोगों ने अपनी नौकरानी से केवल रोटियां ही बनवाई थीं.

योजना के अनुसार, वरुण ने एक होटल से मछली करी खरीदी और उस में थैलियम मिला दिया. फिर मछली करी ले कर ससुराल पहुंच गया. अपनी तबीयत खराब होने का बहाना बना कर उस ने उस दिन ससुराल में खाना नहीं खाया.

घर की नौकरानी सहित ससुराल के सभी लोगों ने मछली करी खाई, जिस से जहरीला रसायन थैलियम उन सब के शरीर में पहुंच गया और उस ने धीरेधीरे अपना असर दिखाना शुरू कर दिया.

इस के बाद उन लोगों की तबीयत खराब होने लगी तो उन सभी को अस्पताल में भरती कराया गया. वरुण के दोनों बच्चे उस के पहुंचने से पहले ही खाना खा कर सो गए थे, जिस से वे बच गए.

वरुण अस्पताल में देखभाल करने का नाटक इसलिए कर रहा था ताकि उस पर कोई शक न करे, लेकिन पुलिस जांच में उस की साजिश उजागर हो गई.

वरुण अरोड़ा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक वरुण के ससुर देवेंद्र मोहन शर्मा और नौकरानी की हालत गंभीर बनी हुई थी. जबकि दिव्या की 8 अप्रैल को मौत हो गई.

पुलिस जांच में पता चला कि दिल्ली में थैलियम रसायन दे कर किसी को मारने का यह पहला मामला है.

धीमी मौत देने वाला रसायन है थैलियम

थैलियम एक ऐसा जहरीला रसायन है, जिस से किसी व्यक्ति की तुरंत नहीं बल्कि धीमी मौत होती है. यह एक ऐसा कैमिकल एलिमेंट है, जो प्रकृति में मुक्त रूप में नहीं मिलता. यह बेहद  जहरीला होता है. आइसोलेट करने पर यह ग्रे रंग का दिखता है, मगर हवा के संपर्क में रंगहीन हो जाता है. इस में कोई गंध और कोई स्वाद नहीं होता.

पहले यह जहर चूहे और कीड़मकोड़े मारने में प्रयोग किया जाता था, लेकिन लोगों ने इस का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया तो कई देशों में इस के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई.

थैलियम नाम का यह जहर जैसे ही किसी व्यक्ति के अंदर पहुंचता है तो धीरेधीरे अपना असर दिखाता है. शुरुआती 48 घंटों में उल्टी, डायरिया, सिर घूमना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. कुछ दिन में यह नरवस सिस्टम को डैमेज करना शुरू कर देता है. फिर धीरेधीरे मांसपेशियां बेकार हो जाती हैं और याद्दाश्त चली जाती है. आखिर में व्यक्ति कोमा में चला जाता है. इस तरह धीरेधीरे उस की मौत हो जाती है.

जर्नल औफ क्लिनिकल ऐंड डायग्नोस्टिक रिसर्च में छपे शोध के अनुसार, 6 घंटे में यदि उस व्यक्ति का इलाज शुरू हो जाए तो उस की जान बच सकती है. थैलियम का एंटीडोट प्रशियन ब्लू है. इस के अलावा डायलिसिस भी इस का एक विकल्प है. कुछ ऐसी दवाएं भी दी जाती हैं, जिन से किडनी से थैलियम बाहर निकालने की क्षमता बढ़ जाए. डाक्टर ऐसी ही दवाएं पीडि़त व्यक्ति को देते हैं. जो लोग इस जहर से बच जाते हैं उन के बाल पूरी तरह से झड़ सकते हैं.

इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन की सीक्रेट पुलिस (मुखबरात) ने थैलियम का इस्तेमाल अपने दुश्मनों पर जम कर कराया. सलवा बहरानी, अब्दुल्ला अली, मजीदी जेहाद आदि कई ऐसे नाम हैं, जिन की हत्या इसी जहर से कराई गई थी.

वरुण को यह जानकारी इंटरनेट से मिली थी कि इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन ने इस जहर से अपने तमाम विरोधियों का खात्मा किया था. उस ने अपनी ससुराल वालों को सबक सिखाने के लिए थैलियम का उपयोग किया और उसे मछली करी में मिला कर सब को खिला दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भटकाव की राह पर : क्यों फिसल गई सुमन

महेंद्र सिंह को पिछले कुछ दिनों से अजय का अपने घर में आनाजाना ठीक नहीं लग रहा था. वह आता था तो उस की पत्नी सुमन उस से कुछ ज्यादा ही घुलमिल कर बातें करती थी. वैसे तो अजय उस के भाई का ही बेटा था, लेकिन महेंद्र सिंह को उस के लक्षण कुछ ठीक नहीं लग रहे थे.

अजय जब महेंद्र सिंह की मानसिक परेशानी का कारण बनने लगा तो एक दिन उस ने सुमन से पूछा कि अजय क्यों बारबार घर के चक्कर लगाता है. इस पर सुमन ने तुनकते हुए कहा, ‘‘अजय तुम्हारे भाई का बेटा है. वह आता है, तो क्या मैं इसे घर से निकाल दूं?’’

महेंद्र सिंह को सुमन की बात कांटे की तरह चुभी तो लेकिन उस के पास सुमन की बात का जवाब नहीं था. वह चुप रह गया.

महेंद्र सिंह कानपुर शहर के बर्रा भाग 6 में रहता था. वह मूलरूप से औरैया जिले के कस्बा सहायल का रहने वाला था. वह अपने भाइयों में सब से छोटा था. उस से बड़े उस के 2 भाई थे— मानसिंह और जयसिंह. सब से बड़े भाई मानसिंह के 2 बेटे थे अजय सिंह और ज्ञान सिंह. ज्ञान सिंह की शादी हो गई थी. अजय सिंह अविवाहित था.

महेंद्र सिंह की शादी जिला कन्नौज के कस्बा तिर्वा निवासी नरेंद्र सिंह की बेटी सुमन के साथ हुई थी. नरेंद्र के 2 बच्चे थे सुमन और गौरव. लाडली और बड़ी होने की वजह से सुमन शुरू से ही जिद्दी स्वभाव की थी. वह जो ठान लेती, वही करती.

शादी हो कर सुमन जब ससुराल आई, तो उसे ससुराल रास नहीं आई. चंद महीने बाद ही वह पति के साथ कानपुर आ कर रहने लगी. सुमन का पति महेंद्र सिंह दादानगर स्थित एक फैक्ट्री में सुरक्षागार्ड की नौकरी करता था. उस की आमदनी सीमित थी. इस के बावजूद सुमन फैशनपरस्त थी. वह अपने बनावशृंगार पर खूब खर्च करती थी.

लेकिन शुरूशुरू में जवानी का जुनून था, इसलिए महेंद्र सिंह ने इन सब पर ध्यान नहीं दिया था. उसे तो बस उस की अदाएं पसंद थीं. समय के साथ सुमन ने पूजा और विभा 2 बेटियों को जन्म दिया. शादी के कुछ समय बाद ही महेंद्र सिंह महसूस करने लगा था कि उस की पत्नी उस के साथ संतुष्ट नहीं है.

दरअसल, सुमन नरेंद्र सिंह की एकलौती बेटी थी और अपनी शादी के बारे में बड़ेबड़े ख्वाब देखा करती थी. लेकिन उस के पिता ने उस की शादी एक साधारण सुरक्षा गार्ड से कर दी थी, जिस से उस के सारे अरमान चूरचूर हो गए थे. और वह बच्चों और चौकेचूल्हे में उलझ कर रह गई थी. फिर भी जिंदगी की गाड़ी जैसेतैसे चलती रही. कहानी ने मान सिंह के बड़े बेटे ज्ञान सिंह की शादी के बाद एक नया मोड़ लिया.

ज्ञान सिंह की शादी के मौके पर सुमन ने महसूस किया कि अजय उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रख रहा है. वह खाने की थाली ले कर सुमन के पास आया और उस के सामने टेबल पर रखते हुए बोला, ‘‘यहां बैठ कर खाओ चाची.’’

सुमन मुसकरा कर थाली अपनी ओर खिसकाने लगी, तो अजय भी उस की ओर देख कर मुसकराते हुए चला गया. थोड़ी देर बाद वह वापस लौटा तो उस के हाथों में दूसरी थाली थी. वह सुमन के पास ही बैठ कर खाना खाने लगा.

खाना खातेखाते दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा, तो अजय बोला, ‘‘चाची तुम सुंदर भी हो और स्मार्ट भी. लेकिन चाचा ने तुम्हारी कद्र नहीं की.’’

अजय सिंह ने यह कह कर सुमन की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. ज्ञान सिंह की बारात करीब के ही गांव में जानी थी. शाम को रिश्तेदार व परिवार के लोग बारात में चले गए. लेकिन अजय बारात में नहीं गया.

उसी रात जब दरवाजे पर दस्तक हुई, तो सुमन ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर अजय खड़ा था. सुमन ने हैरानी से पूछा, ‘‘तुम… बारात में नहीं गए. यहां कैसे?’’

दरवाजा खुला था, अजय सिंह अंदर आ गया तो सुमन ने दरवाजा बंद कर दिया. सुमन की आंखें तेज थीं. उस ने अजय की आंखों की भाषा पढ़ ली.

‘‘चाची, मुझे तुम से कुछ कहना है. बहुत दिनों से सोच रहा हूं, पर मौका ही नहीं मिल पा रहा था. आज अच्छा मौका मिला, इसलिए मैं बारात में नहीं गया.’’ अजय ने कमरे में पड़े पलंग पर बैठते हुए कहा.

‘‘ऐसी क्या बात है, जिस के लिए तुम्हें मौके की तलाश थी?’’ सुमन ने पूछा, तो अजय तपाक से बोला, ‘‘चाची आया हूं तो मन की बात कहूंगा जरूर. तुम्हें बुरा लगे या अच्छा. दरअसल बात यह है कि तुम मेरे मन को भा गई हो और मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

‘‘प्यार…’’ सुमन ने अजय को गौर से देखा.

आज वह पहले वाला अजय नहीं था, जिसे वह बच्चा समझती थी. अजय जवान हो चुका था. पलभर के लिए सुमन डर गई. उस ने कभी नहीं सोचा था कि वह उस से ऐसा भी कुछ कह सकता है.

‘‘अजय, तुम यहां से जाओ, अभी इसी वक्त.’’ सुमन ने सख्ती से कहा, तो अजय ने पूछा, ‘‘चाची क्या तुम मेरी बात का बुरा मान गईं. मैं ने तो मजाक में कहा था.’’

‘‘अजय, मैं ने कहा न जाओ यहां से.’’ डांटते हुए सुमन ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया, तो उस के तेवर देख अजय डर कर वहां से चला गया.

अजय तो चला गया लेकिन सुमन रात भर सोच में डूबी अपने मन को टटोलती रही. वह सचमुच महेंद्र सिंह से संतुष्ट नहीं थी. उस की जिंदगी फीकी दाल और सूखी रोटी की तरह थी.

पिछले कुछ समय से महेंद्र सिंह की तबियत भी ढीली चल रही थी. ड्यूटी से आने के बाद वह खाना खाते ही सो जाता था. वह पति से क्या चाहती है, यह महेंद्र सिंह ने न तो कभी सोचा और न जानने की कोशिश की. यही वजह थी कि सुमन का मन विद्रोह कर उठा. उस ने मन को काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन न चाहते हुए भी उस की सोच नएनए जवान हुए अजय के आस पास ही घूमती रही. उस का मन पूरी तरह बेइमान हो चुका था.

आखिरकार उस ने निर्णय ले लिया कि अब वह असंतुष्ट नहीं रहेगी. चाहे इस के लिए रिश्तों को तारतार क्यों न करना पड़े.

कोई भी औरत जब बरबादी के रास्ते पर कदम रखती है तो उसे रोक पाना मुश्किल होता है. यही सुमन के मामले में हुआ. दूसरी ओर अजय यह सोच कर डरा हुआ था कि चाची ने चाचा को सब कुछ बता दिया तो तूफान आ जाएगा. इसी डर से वह सुमन से नहीं मिला.

इधर सुमन फैसला करने के बाद तैयार बैठी अजय का इंतजार कर रही थी. उस ने मिलने की कोशिश नहीं की, तो सुमन ने उसे स्वयं ही बुला लिया.

अजय आया तो सुमन ने उसे देखते ही उलाहने वाले लहजे में कहा, ‘‘मुझे राह बता कर खुद दूसरी राह चले गए. क्या हुआ, आए क्यों नहीं?’’

‘‘मैं ने सोचा, शायद तुम्हें मेरी बात बुरी लगी. इसीलिए…’’ अजय ने कहा तो सुमन बोली, ‘‘रात में आना, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

अजय सिंह समझ गया कि उस का तीर निशाने पर भले ही देर से लगा हो, पर लग गया है. वह मन ही मन खुश हो कर लौट गया. सुमन का पति महेंद्र सिंह दूसरे दिन ही बारात से लौटने के बाद वापस कानपुर आ गया था. लेकिन पत्नी व बच्चों को गांव में ही छोड़ गया था. इसी बीच सुमन और अजय नजदीक आने का प्रयास करने लगे थे.

सुमन ने अजय को मिलन का खुला आमंत्रण दिया था. अत: वह बनसंवर कर देर शाम सुमन के कमरे पर पहुंच गया. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो सुमन ने दरवाजा खोल कर उसे तुरंत अंदर बुला लिया. उस के अंदर आते ही सुमन ने दरवाजा बंद कर लिया.

अजय पलंग पर बैठ गया, तो सुमन उस के करीब बैठ कर उस का हाथ सहलाने लगी. अजय के शरीर में हलचल मचने लगी. वह समझ गया कि चाची ने उस की मोहब्बत स्वीकार कर ली. इसी छेड़छाड़ के बीच कब संकोच की सारी दीवारें टूट गईं, दोनों को पता हीं नहीं चला.

बिस्तर पर रिश्ते की मर्यादा भले ही टूट गई, लेकिन सुमन और अजय के बीच स्वार्थ का पक्का रिश्ता जरूर जुड़ गया. अपने इस रिश्ते से दोनों ही खुश थे.

सुमन अपनी मौजमस्ती के लिए पाप की दलदल में घुस तो गई, पर उसे यह पता नहीं था कि इस का अंजाम कितना भयंकर हो सकता है.

उस दिन के बाद अजय और सुमन बिस्तर पर जम कर सामाजिक रिश्तों और मानमर्यादाओं की धज्जियां उड़ाने लगे. अजय सुमन के लिए बेटे जैसा था और अजय के लिए वह मां जैसी. लेकिन वासना की आग ने उन के इन रिश्तों को जला कर खाक कर दिया था.

सुमन लगभग एक माह तक गांव में रही और गबरू जवान अजय के साथ मौजमस्ती करती रही. उस के बाद वह वापस कानपुर आ गई और पति के साथ रहने लगी. अजय और सुमन के बीच अब मिलन तो नहीं हो पाता था, लेकिन मोबाइल फोन पर दोनों की बात होती रहती थी. सुमन के बिना न अजय को चैन था और न अजय के बिना सुमन को.

आखिर जब अजय से न रहा गया तो वह सुमन के बर्रा भाग 6 स्थित घर पर किसी न किसी बहाने से आने लगा. उस ने सुमन के साथ फिर से संबंध बना लिए. कुछ दिनों तक तो सब गुपचुप चलता रहा. लेकिन फिर अजय का इस तरह सुमन के पास आनाजाना पड़ोसियों को खटकने लगा. लोगों को पक्का यकीन हो गया कि चाचीभतीजे के बीच नाजायज रिश्ता है.

नाजायज रिश्तों को ले कर पड़ोसियों ने टोकाटाकी की तो महेंद्र सिंह के होश उड़ गए. उस की पत्नी उसी के सगे भतीजे के साथ मौजमस्ती कर रही थी, यह बात भला वह कैसे बरदाश्त कर सकता था. वह गुस्से में तमतमाता घर पहुंचा. सुमन उस समय घर के कामकाज निपटा रही थी. उसे देखते ही वह गुस्से में बोला, ‘‘तेरे और अजय के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ सुमन ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘मतलब छोड़ो. यह बताओ कि अजय यहां क्या करने आता है?’’ महेंद्र सिंह ने पूछा तो सुमन बोली, ‘‘कैसी बातें कर रहे हो तुम? अजय तुम्हारा भतीजा है. बात क्या है. उखड़े हुए से क्यों लग रहे हो?’’

‘‘तू मेरी पीठ पीछे क्या करती है, मुझे सब पता है. तेरी पाप लीला पूरे मोहल्ले के सामने आ चुकी है. तूने मुझे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

‘‘अपनी पत्नी पर गलत इलजाम लगा रहे हो. तुम्हें शर्म आनी चाहिए.’’ सुमन ने रोते हुए कहा, तो महेंद्र सिंह बोला, ‘‘देखो, अब भी वक्त है. संभल जा, नहीं तो अंजाम अच्छा न होगा.’’

महेंद्र सिंह ने भतीजे अजय सिंह को भी फटकार लगाई और बिना मतलब घर न आने की हिदायत दी. महेंद्र सिंह की सख्ती से सुमन और अजय डर गए. अजय का आनाजाना भी कम हो गया. अब वह तभी आता जब उसे कोई जरूरी काम होता. वह भी चाचा महेंद्र सिंह की मौजूदगी में.

महेंद्र सिंह अपने बड़े भाई मान सिंह का बहुत सम्मान करता था. इसलिए उस ने अजय की शिकायत भाई से नहीं की थी. लौकडाउन के दौरान मान सिंह ने महेंद्र सिंह से 5 हजार रुपए उधार लिए थे और फसल तैयार होने के बाद रुपया वापस करने का वादा किया था.

अजय का आनाजाना कम हुआ तो महेंद्र सिंह ने राहत की सांस ली. उसे भी लगने लगा था कि अब सुमन और अजय का अवैध रिश्ता खत्म हो गया है. लिहाजा उस ने सुमन पर निगाह रखनी भी बंद कर दी थी.

20 जनवरी, 2021 की दोपहर 12 बजे महेंद्र सिंह ने पड़ोसियों को बताया कि उस की पत्नी सुमन ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. उस की बात सुन कर पड़ोसी सन्न रह गए. कुछ ही देर बाद उस के दरवाजे पर भीड़ बढ़ने लगी. इसी बीच महेंद्र सिंह ने पत्नी के मायके वालों तथा थाना बर्रा पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह घटनास्थल पर आ गए. उस समय महेंद्र सिंह के घर पर भीड़ जुटी थी. मृतका सुमन की लाश कमरे में पलंग पर पड़ी थी. उस के गले में फांसी का फंदा था, किंतु गले में रगड़ के निशान नहीं थे. फांसी के अन्य लक्षण भी नजर नहीं आ रहे थे.

संदेह होने पर थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह ने पुलिस अधिकारियों को सूचित किया तो कुछ देर बाद एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा डीएसपी विकास पांडेय आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन्हें भी महिला की मौत संदिग्ध लगी. फोरैंसिक टीम को भी आत्महत्या जैसा कोई सबूत नहीं मिला.

पुलिस अधिकारी मौकाएवारदात पर अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि मृतका सुमन के मायके पक्ष के दरजनों लोग आ गए. आते ही उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया और महेंद्र पर सुमन की हत्या का आरोप लगाया तथा उसे गिरफ्तार करने की मांग की.

चूंकि पुलिस अधिकारी वैसे भी मामले को संदिग्ध मान रहे थे, अत: पुलिस ने मृतका के पति महेंद्र सिंह को हिरासत में ले लिया तथा शव पोस्टमार्टम हेतु भेज दिया.

दूसरे रोज शाम 5 बजे मृतका सुमन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह को प्राप्त हुई. उन्होंने रिपोर्ट पढ़ी तो उन की शंका सच साबित हुई. रिपोर्ट में बताया गया कि सुमन ने आत्महत्या नहीं की थी, बल्कि गला दबा कर उस की हत्या की गई थी.

रिपोर्ट के आधार पर उन्होंने मृतका के पति महेंद्र सिंह से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया और उस ने पत्नी सुमन की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

महेंद्र सिंह ने बताया कि उस की पत्नी सुमन के भतीजे अजय सिंह से नाजायज संबंध पहले से थे.

उस ने कल शाम 4 बजे सुमन और अजय को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय अजय तो सिर पर पैर रख कर भाग गया. लेकिन सुमन की उस ने जम कर पिटाई की. देर रात अजय को ले कर उस का फिर सुमन से झगड़ा हुआ. गुस्से में उस ने सुमन का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

पुलिस और पड़ोसियों को गुमराह करने के लिए उस ने सुमन के शव को उसी की साड़ी का फंदा बना कर कुंडे से लटका दिया. सुबह वह बड़ी बेटी पूजा को ले कर डाक्टर के पास चला गया. उसे हल्का बुखार था. वहां से दोपहर 12 बजे वापस आया तो उस ने पत्नी द्वारा आत्महत्या कर लेने का शोर मचाया. उस के बाद पड़ोसी आ गए.

चूंकि महेंद्र सिंह ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह ने मृतका के भाई गौरव को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत महेंद्र सिंह के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे गिरफ्तार कर लिया.

22 जनवरी, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त महेंद्र सिंह को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. सुमन की मासूम बेटियां पूजा और विभा ननिहाल में नानानानी के पास रह रही थीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इज्जत के कबाड़ की गोली : क्यों पड़ी कामिनी के परिवार पर भारी

11सितंबर, 2020 की बात है. प्रशांत के घर उस के ससुर विनोद गौतम, उन का छोटा भाई महावीर सिंह और

बेटा रविकांत गौतम आए हुए थे. प्रशांत और उस के घर वालों ने उन की खूब खातिरदारी की. दरअसल, प्रशांत कुमार ने हाल ही में विनोद गौतम की बेटी कामिनी के साथ शादी की थी.

रात का खाना खाने के बाद प्रशांत के पिता रामऔतार अपने इन नए रिश्तेदारों के साथ बातचीत कर रहे थे. तभी विनोद गौतम के कहने पर रामऔतार ने बेटे प्रशांत और बहू कामिनी को बुलाया. उन दोनों को देख विनोद गौतम आपे से बाहर हो गया और उस ने दोनों को गोली मार दी. कामिनी लहूलुहान हो कर फर्श पर गिर गए. गोलियां चलते ही घर में अफरातफरी का माहौल हो गया. घर के लोगों ने रोनापीटना शुरू कर दिया.

रात 10 बजे गोलियों की आवाज गूंजी तो आसपास के लोगों ने सुनी. गांव वाले रामऔतार सिंह के घर की तरफ दौड़े. कोई समझ नहीं पा रहा था कि अचानक ऐसा क्या हो गया, जो गोली चल गई.  लोग जब घर में पहुंचे तो वहां की स्थिति दिमाग को सुन्न कर देने वाली थी.

लोगों के आने से पहले ही विनोद गौतम, उस का छोटा भाई महावीर सिंह और बेटा रविकांत गौतम वहां से भाग चुके थे. घर में खून ही खून फैला था. रामऔतार के बेटे प्रशांत और बहू कामिनी फर्श पर पड़े तड़प रहे थे. उन दोनों को देख यह बात सहज ही समझ आ रही थी कि उन दोनों को गोलियां लगी हैं.

इस की सूचना थाना टांडा को दे दी गई. थानाप्रभारी माधव सिंह बिष्ट पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. सब से पहले उन्होंने घायल कामिनी और प्रशांत को अपनी गाड़ी में डाला और इलाज के लिए रामपुर के जिला अस्पताल ले गए.

इस दौरान रामऔतार ने थानाप्रभारी को बता दिया था कि दोनों को गोली कामिनी के पिता विनोद गौतम ने मारी थी. वजह यह कि कुछ दिन पहले कामिनी ने अपने घर वालों को बिना बताए उन के बेटे प्रशांत से कोर्टमैरिज की थी.

थानाप्रभारी माधव सिंह बिष्ट विनोद गौतम को अच्छी तरह जानते थे, क्योंकि वह बहुजन समाज पार्टी का ऊधमसिंह नगर जिले का जिला अध्यक्ष था. नेता होने की वजह से आए दिन अखबारों में उस का नाम आता रहता था. विनोद कुमार गौतम मामूली इंसान नहीं था. राजनीति में उस की ऊंची पहुंच थी.

थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही रामपुर के एसपी शगुन गौतम जिला अस्पताल पहुंच गए. एसपी साहब ने दोनों घायलों का इलाज करने वाले डाक्टरों से बातचीत की. डाक्टरों ने बताया कि दोनों की हालत गंभीर है.

मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए एसपी गौतम ने इस की सूचना आईजी रमित शर्मा को दे दी. उन्होंने एसपी गौतम को स्पष्ट निर्देश दिए कि हमलावर चाहे कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, उस के खिलाफ तुरंत कड़ी काररवाई की जाए.

उधर प्रशांत कुमार और कामिनी की गंभीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने दोनों को मुरादाबाद के कौसमौस अस्पताल रेफर कर दिया. कौसमौस अस्पताल के डा. अनुराग अग्रवाल के नेतृत्व में डाक्टरों की एक टीम ने दोनों घायलों का इलाज शुरू कर दिया. प्रशांत को 2 गोलियां लगी थीं, जो उस के शरीर में फंसी हुई थीं. डाक्टरों की टीम ने उस के शरीर से दोनों गोलियां सफलतापूर्वक निकाल दीं.

एसपी शगुन कुमार गौतम ने आईजी साहब के निर्देश पर इस मामले को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी माधव सिंह बिष्ट और अजीमनगर के थानाप्रभारी सुभाष मावी को शामिल किया.

पुलिस टीम ने आरोपियों की तलाश शुरू कर दी. सभी आरोपी काशीपुर के निकटवर्ती गांव पैगा के रहने वाले थे. पुलिस टीम ने 13 सितंबर, 2020 को उन के घर दबिश दे कर तीनों अभियुक्तों विनोद गौतम, उस के छोटे भाई महावीर सिंह और बेटे रविकांत गौतम को गिरफ्तार कर लिया.पुलिस ने विनोद गौतम की निशानदेही पर उस की लाइसैंसी पिस्टल भी बरामद कर ली, जिस से जानलेवा हमला किया था.

तीनों से व्यापक पूछताछ की गई. पुलिस पूछताछ के बाद इस मामले की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की बुनियाद पर टिकी थी.

रामपुर जिले का एक गांव है सैदनगर. रामऔतार सिंह अपने 5 बच्चों के साथ इसी गांव में रहते थे. उन के 2 बेटे और 3 बेटियां थीं. प्रशांत कुमार उन का सब से बड़ा बेटा था. उस के चाचा कुंवरपाल सिंह की ससुराल काशीपुर में थी.

प्रशांत काशीपुर में रह कर पढ़ाई कर रहा था. काशीपुर में ही एक शादी समारोह में प्रशांत की मुलाकात कामिनी से हुई. कामिनी काशीपुर के गांव पैगा के रहने वाले विनोद गौतम की बेटी थी.

विनोद गौतम के 4 बेटियां और एक बेटा था, जिस में कामिनी सब से बड़ी थी. कामिनी भी काशीपुर के एक कालेज से पढ़ाई कर रही थी. कामिनी और प्रशांत दूर के रिश्तेदार थे. शादी समारोह में दोनों एकदूसरे को देख कर बहुत प्रभावित हुए. दोनों में आपस में काफी बातें हुईं. दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी  दे दिए. यह करीब 2 साल पहले की बात है.

इस के बाद दोनों फोन पर बातचीत करने लगे. जब भी खाली होते, दोनों के बीच खूब बातें होतीं. धीरेधीरे बातों का दायरा बढ़ता चला गया और उन के दिलों में प्यार के अंकुर फूट निकले. चाहतों की उड़ान में दोनों यह भी भूल गए कि वे आपस में रिश्तेदार हैं.

प्रशांत चाहता था कि वह आईएएस  अफसर बने, इसलिए उस ने ठाकुरद्वारा कस्बे की नालंदा आईएएस अकैडमी में कोचिंग करनी शुरू कर दी. उधर कामिनी काशीपुर के एक कालेज से बीए कर रही थी.

इसी दौरान प्रशांत का चयन उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर हो गया. प्रशांत ने सोचा कि नौकरी करते हुए अपनी सिविल सर्विस की तैयारी जारी रखेगा. पुलिस में चयन हो जाने के बाद उसे ट्रेनिंग के लिए मेरठ भेज दिया गया.

प्रशांत की नौकरी लग जाने के बाद कामिनी बहुत खुश हुई. दोनों के बीच पहले की तरह ही बातचीत चलती रही. इस बातचीत में तय हुआ कि प्रशांत की पुलिस ट्रेनिंग पूरी हो जाने के बाद दोनों शादी कर लेंगे.

कामिनी ने प्रशांत को बताया कि उस के पिता दबंग प्रवृत्ति के हैं, इसलिए यह शादी हरगिज नहीं होने देंगे. इस पर दोनों तय किया कि घर वालों को बिना बताए कोर्टमैरिज कर लेंगे.

ट्रेनिंग पूरी हो जाने के बाद प्रशांत की पहली पोस्टिंग बरेली स्थित पीएसी की 8वीं बटालियन में हो गई. 28 अगस्त, 2020 को प्रशांत छुट्टी ले कर अपने घर आया. इसी दौरान प्रशांत और कामिनी ने रामपुर की कोर्ट में शादी कर ली.

घटना से 4 दिन पहले की बात है, कामिनी अपने घर वालों को बिना बताए प्रशांत के घर यानी अपनी ससुराल पहुंच गई. घर से कामिनी के अचानक गायब हो जाने के बाद घर वाले परेशान हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि कामिनी अचानक कहां गायब हो गई. उन्होंने उसे अपने स्तर पर ढूंढना शुरू कर दिया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

जवान बेटी के घर से गायब हो जाने पर जो उस के मातापिता पर गुजरती है, उसे भुक्तभोगी ही समझ सकता है. विनोद गौतम का भी बुरा हाल था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि बेटी को कहां ढूंढे.

विनोद गौतम के एक रिश्तेदार सैदनगर में रहते थे. विनोद गौतम ने अपने रिश्तेदार से कामिनी के गायब होने के बारे में बात की. इस पर रिश्तेदार ने बताया कि कामिनी तो यहां प्रशांत के घर आई हुई है. साथ ही यह भी बता दिया कि शायद कामिनी और प्रशांत ने शादी कर ली है.

यह सुन कर विनोद गौतम के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. वह दबंग किस्म का व्यक्ति था. राजनीति में भी उस का काफी प्रभाव था. जब लोगों को यह बात पता चलेगी तो उस की समाज में क्या इज्जत रह जाएगी, यह सोचसोच कर वह परेशान था.

काफी सोचविचार के बाद विनोद गौतम ने 9 सितंबर को प्रशांत कुमार के पिता रामऔतार सिंह को फोन किया. उस ने रामऔतार से अपनी बेटी कामिनी के बारे में पूछा. उन्होंने बता दिया कि प्रशांत और कामिनी ने कोर्ट में शादी कर ली है. इस की खबर उन्हें भी शादी के बाद ही मिली.

यह सुन कर गौतम कुछ ज्यादा ही परेशान हो गया. उस ने गंभीर लहजे में रामऔतार से कहा कि तुम्हारे लड़के ने अच्छा नहीं किया. उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था. कम से कम रिश्तेदारी का तो लिहाज रखता. इस पर रामऔतार ने कहा कि यह जानकारी उन्हें बाद में मिली. अगर पहले पता होता तो वह उसे समझाते भी. वैसे भी दोनों बालिग हैं, इस में हम क्या कर सकते हैं. विनोद कुमार गौतम खून का घूंट पी कर रह गया.

उधर ससुराल में कामिनी खुश थी. ऐसे में विनोद गौतम की समझ में नहीं आ रहा कि क्या करे, क्योंकि बात उस की इज्जत से जुड़ी थी. काफी सोचविचार के बाद 9 सितंबर, 2020 को गौतम ने प्रशांत के पिता रामऔतार को फोन कर के कहा कि जो हो गया उसे छोड़ो.

हम चाहते हैं कि दोनों की शादी सामाजिक रीतिरिवाज से कर दी जाए. इस सिलसिले में बात करने के लिए हम सैदनगर आ रहे हैं. अपने साथ गांव के कुछ लोगों को भी लाएंगे, आप भी गांव के कुछ संभ्रांत लोगों को इकट्ठा कर लेना,  फिर इस बारे में बातचीत कर ली जाएगी.

विनोद गौतम अपने कई परिचितों और कुछ करीबियों को साथ ले कर तय समय पर सैदनगर पहुंच गया. उधर रामऔतार ने भी गांव के कुछ लोगों को इकट्ठा कर लिया था. सब लोग साथ बैठे और पंचायत शुरू हो गई.

पंचायत में विनोद गौतम ने अपनी इज्जत का वास्ता देते हुए कहा कि देखो गांव और समाज में हमारी बहुत बदनामी हो रही है. आप से अनुरोध है कि आप मेरी बेटी कामिनी को मेरे साथ घर भेज दें. इस पर रामऔतार सिंह ने साफ मना करते हुए कहा कि वह अपनी बहू को अभी नहीं भेजेंगे. फलस्वरूप विनोद गौतम मुंह लटका कर लौट गया.

10 सितंबर, 2020 को भी विनोद गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर फिर सैदनगर पहुंचा. इस बार भी उस ने कामिनी को साथ भेजने की बात कही, लेकिन कामिनी ने पिता से मना कर दिया कि वह अभी उन के साथ नहीं जाएगी.

विनोद गौतम को यह उम्मीद नहीं थी कि बेटी इतनी बदल जाएगी. वह उसे जबरदस्ती तो घर ले जा नहीं सकता था, इसलिए उस ने कामिनी को समझाने की काफी कोशिश की, पर कामिनी नहीं मानी. रामऔतार सिंह ने भी कह दिया कि जब बेटी जाने से मना कर रही है तो आप उसे फिर कभी ले जाना. इस बार भी विनोद गौतम को खाली हाथ लौटना पड़ा.

लेकिन वह हार मानने वालों में से नहीं था. वह चाहता था कि किसी भी तरह एक बार कामिनी उस के साथ घर पहुंच जाए, इस के बाद क्या करना है, वह तय करेगा. लिहाजा वह बेटी को घर लाने के उपाय सोचने लगा.

11 सितंबर, 2020 को भी विनोद गौतम अपने भाई महावीर सिंह और बेटे रविकांत के साथ फिर सैदनगर पहुंचा. चूंकि विनोद गौतम रामऔतार का नजदीकी रिश्तेदार बन चुका था, लिहाजा उन्होंने उन सब की खातिरदारी की.

रात का खाना खाने के बाद गौतम ने उन से कहा कि मेरी बात पर विश्वास करो. मैं कामिनी को घर ले जाना चाहता हूं और इस के बाद दोनों की शादी धूमधाम से करूंगा. अगर कामिनी घर चली जाएगी तो कम से कम समाज में मेरी इज्जत तो बनी रहेगी.

इस बार रामऔतार ने कहा कि हमारी तरफ से कोई रोक नहीं है. हम अपनी बहू को भेजने से मना नहीं कर रहे, पर आप सीधे उस से बात कर लें तो ज्यादा अच्छा है. अगर वह जाना चाहती है तो हमें कोई एतराज नहीं होगा. रामऔतार ने बात करने के लिए बहू कामिनी को कमरे में बुलाया.

कामिनी पति प्रशांत के साथ कमरे में आई तो वहां पहुंचते ही सब से पहले उस ने वहां बैठे अपने ससुर रामऔतार के पैर छुए. प्रशांत का चेहरा देखते ही गौतम का खून खौल उठा, लेकिन उस समय उस ने खुद पर कंट्रोल रखा.

विनोद कुमार गौतम ने कामिनी से बात की और उस से घर चलने को कहा. उस समय रात के करीब 10 बज रहे थे. पिता की बातों पर कामिनी का दिल पसीज भी गया. लेकिन उस ने कहा कि पापा अब तो रात ज्यादा हो गई है, सुबह मैं आप के साथ चलूंगी.

लेकिन गौतम अपनी जिद पर अड़ा हुआ था. वह कामिनी पर उसी समय साथ चलने के लिए दबाव डाल रहा था, पर कामिनी पिता के साथ रात में जाने को तैयार नहीं थी. वह बारबार कह रही थी कि अभी नहीं, सुबह चलेंगे.

प्रशांत और कामिनी विनोद गौतम के सामने खड़े थे. प्रशांत का चेहरा देख कर गौतम का धैर्य जवाब दे गया. उस के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी कि यह सब प्रशांत की वजह से ही हो रहा है, इसी के कारण समाज में उस की नाक कटी है, बदनामी हो रही है.

लिहाजा गुस्से में आगबबूला हुए विनोद गौतम ने अपनी अंटी से लाइसैंसी पिस्तौल निकाली और प्रशांत पर निशाना साधते हुए कई फायर किए. इन में से 2 गोलियां प्रशांत के लगीं और एक गोली कामिनी को. गोली लगते ही प्रशांत और कामिनी फर्श पर गिर पड़े.

कुछ ही पलों में फर्श पर खून फैल गया. अचानक मची अफरातफरी में मौके का फायदा उठा कर विनोद गौतम, उस का छोटा भाई महावीर सिंह और बेटा रविकांत गौतम वहां से भाग गए. जाते वक्त वे अपनी वैगनआर कार नंबर यूके06 पी7349 वहीं छोड़ गए.

बेटा और बहू को लहूलुहान हालत में देख कर रामऔतार के घर में चीखपुकार मचनी शुरू हो गई. उधर गोलियां चलने की आवाज सुन कर मोहल्ले वाले भी रामऔतार के घर पहुंच गए. उसी दौरान रामऔतार ने इस की सूचना थाना टांडा में दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी माधोसिंह बिष्ट कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गए और काररवाई शुरू की.

तीनों आरोपियों विनोद कुमार गौतम, महावीर सिंह और रविकांत से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

विनोद कुमार गौतम के जेल जाने के बाद बसपा हाईकमान ने उसे पार्टी से निष्कासित कर दिया. इस के अलावा जिला प्रशासन ने  उस के लाइसैंसी पिस्टल का लाइसैंस निरस्त करने की काररवाई शुरू कर दी.

कथा लिखने तक गंभीर रूप से घायल प्रशांत कुमार और उस की पत्नी कामिनी का मुरादाबाद के कौसमौस अस्पताल में इलाज चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेटी ही निकली मां की कातिल

फोटो: पंकज कुशवाहा 

10 अगस्त, 2020 की सुबह. जिला कौशांबी के गांव चपहुआ के लोग अपने खेतों की ओर जा रहे थे. तभी कुछ लोगों की नजर नाले के पास उगी झाडि़यों की तरफ गई. वहां कुछ था. उन लोगों ने करीब जा कर देखा तो किसी महिला की लाश पड़ी थी. ध्यान से देखने पर पता चला कि लाश उन के गांव की रहने वाली 45 वर्षीय गुडि़या की है.

गुडि़या बब्बू हसन की पत्नी थी, जो पिछले 2 दिनों से घर से गायब थी. काफी खोजबीन के बाद भी जब उस का पता नहीं चल पाया था तो बब्बू के साले यानी गुडि़या के भाई आफताब ने चरवा कोतवाली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

गुडि़या की गुमशुदगी दर्ज होते ही चरवा थाने की पुलिस उस की खोजबीन में जुट गई थी. पुलिस तो उस का पता नहीं लगा पाई, लेकिन 10 अगस्त को नाले के पास झाडि़यों में उस की लाश मिल गई.

लाश मिलने की सूचना किसी ने चरवा थाने को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी संतशरण सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और इस बात से एएसपी समरबहादुर को भी अवगत करा दिया.

थानाप्रभारी ने लाश की बारीकी से जांचपड़ताल की तो पाया कि मृतका के सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार कर उसे मौत के घाट उतारा गया था. मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने गुडि़या की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद पुलिस ने मृतका के भाई आफताब की तहरीर पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

मृतका गुडि़या की हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एएसपी समरबहादुर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में थानाप्रभारी संतशरण सिंह, एसआई शिवशरण, हेडकांस्टेबल शिवसागर, कांस्टेबल श्रवण कुमार, छाया शर्मा आदि को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर संतशरण सिंह ने सब से पहले मृतका की शादीशुदा बेटी सबीना से पूछताछ की, लेकिन उस का रोरो कर बुरा हाल था.  वह ठीक से कुछ नहीं बता पाई.पता चला कि सबीना अपनी बहनों रुबीना, गुलिस्ता और छोटे भाई हसनैन में दूसरे नंबर की थी. करीब 4 साल पहले उस की शादी कौशांबी के ही दारानगर निवासी जावेद अहमद से हुई थी.

पुलिस ने काफी कोशिश की, लेकिन हत्या को एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी कुछ पता नहीं चल सका. एएसपी समरबहादुर मामले की प्रगति की बराबर रिपोर्ट ले रहे थे.

थानाप्रभारी संतशरण सिंह ने इस बात का पता लगाना शुरू किया कि सबीना अपने पति को छोड़ कर मायके में क्यों रह रही थी, जबकि उस का अपने पति से तलाक भी नहीं  हुआ था.

पता चला कि सबीना का पति जावेद उम्रदराज था, जिसे वह पसंद नहीं करती थी, इसी वजह से वह अपने बच्चों को ले कर मायके में मां के पास रहती थी.

मुखबिरों का जाल बिछाया गया तो परतें खुलने लगीं, जिस में पुलिस को सबीना संदिग्ध नजर आई. पता चला कि सबीना का आए दिन अपनी मां गुडि़या के साथ विवाद होता था.

मांबेटी के बीच विवाद की क्या वजह थी, इस दिशा में पड़ताल की गई तो जानकारी मिली कि शादी के बाद भी सबीना का अपने ही गांव के मोइन से इश्क चल रहा था. अपनी मां की आंखों में धूल झोंक कर वह मोइन से खेतों में मिला करती थी.

पुलिस के लिए इतनी जानकारी पर्याप्त थी. चूंकि सबीना शुरू से ही संदेह के दायरे में थी, इसलिए आगे की काररवाई के लिए सबीना और उस के प्रेमी मोइन को पूछताछ के लिए थाने लाया गया और दोनों से पूछताछ की गई.

संदेह पर पुलिस की नजर

पूछताछ के दौरान शुरू में सबीना और उस का प्रेमी मोइन अपने आप को निर्दोष बताते रहे. मोइन ने तो यहां तक कहा कि हम दोनों एक ही गांव के रहने वाले हैं, इस लिहाज से हमारा रिश्ता भाईबहन जैसा है. हां, पड़ोसी होने के नाते मेरा इस के घर में शुरू से ही आनाजाना था. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि यह मेरी माशूका है. मैं इसे अपनी बहन मानता हूं. किसी ने आप को गलत सूचना दे कर हमें फंसाने और बदनाम करने की साजिश की है.

सबीना भी पीछे रहने वाली नहीं थी. उस ने भी मोइन की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मृतका मेरी सौतेली नहीं, सगी मां थी, जिस ने मुझे जन्म दिया था. मैं भला अपनी मां की हत्यारिन कैसे हो सकती हूं.’’

सबीना आवाज में थोड़ा तीखापन लाते हुए आगे बोली, ‘‘मोइन भाई से मेरा कोई ऐसावैसा संबंध नहीं है. आप लोग सुनीसुनाई बातों में आ कर नाहक हमें रुसवा करने पर तुले हैं. मैं आप की इस हरकत की शिकायत बड़े अधिकारियों से करूंगी.’’

थाने के अंदर मोइन और सबीना का यह ड्रामा काफी देर तक चला. लेकिन पुलिस के पास दोनों के अवैध संबंधों की पुख्ता जानकारी थी. इसलिए पुलिस ने जब अपना हथकंडा अपनाया तो दोनों थोड़ी ही देर में टूट गए और अपना गुनाह कबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद गुडि़या की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी.

जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही सबीना मोइन को चाहने लगी थी, मोइन उस का हमउम्र और पड़ोसी था. प्यार की छलांग में दोनों काफी आगे निकल चुके थे. उन्हें किसी की परवाह नहीं थी न गांव वालों की और न ही अपनेअपने घर वालों की.

दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे, उन का प्यार आंखों की बेकरारी से उतर कर शारीरिक संबंधों तक पहुंच गया था. जिस की जानकारी सबीना की मां गुडि़या को हुई तो उस ने बेटी को काफी समझाया पर सबीना कहां मानने वाली थी. उस पर तो मोइन के प्यार का नशा चढ़ा था, जिस की वह कोई भी कीमत अदा करने को तैयार थी.

जब वह नहीं मानी तो घर वालों ने उस की शादी कौशांबी जिले के दारानगर निवासी जावेद से तय कर दी. जावेद उम्र में उस से काफी बड़ा था.

सबीना ने इस शादी का विरोध किया लेकिन मांबाप, बहनोंबहनोइयों, नातेरिश्तेदारों के आगे उस की एक न चली और आननफानन में जावेद अहमद के साथ उस का निकाह हो गया. सबीना के सारे अरमान धरे रह गए.

समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. देखतेदेखते सबीना 3 बच्चों की मां बन गई. लेकिन उस के दिल को मोइन की मोहब्बत और साथ हमेशा सालता रहा.

अब उसे पति जावेद बूढ़ा नजर आने लगा था. किसी न किसी बात पर सबीना उस से झगड़ती रहती थी. फिर एक दिन वह भी आया जब पति से उस की कुछ ज्यादा ही कहासुनी हो गई. वह पति से नाराज हो कर अपने मायके आ गई. करीब साल भर से वह मायके में ही रह रही थी.

सबीना के मायके लौट आने से मोइन की तो जैसे लाटरी लग गई. फिर से दोनों का मिलन होने लगा. अब दोनों बेखौफ हो कर एकदूसरे से मिलते, सबीना की मां गुडि़या इस का पुरजोर विरोध करती थी. लेकिन सबीना के आगे उस की एक नहीं चलती थी. सबीना मां को सफाई दे कर मोइन के साथ मौजमस्ती करती रही.

एक दिन गुडि़या ने सबीना को मोइन के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. खेतों से लौट कर उस ने सबीना को अपने पति के पास लौट जाने को कहा, लेकिन सबीना मोइन के प्रेम में दीवानी थी. उस पर मां की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उलटे वह मां से लड़नेझगड़ने लगी.

फिर तो आए दिन मांबेटी के बीच झगड़ा होने लगा. मां उसे बारबार अपनी ससुराल जाने को कहती लेकिन वह ससुराल जाने से मना कर देती थी.

हत्या की योजना

आखिरकार रोजरोज की चिकचिक से आजिज सबीना ने एक कठोर निर्णय ले लिया. मोइन के प्यार में पागल, दीवानी बेटी ने अपनी मां की हत्या की साजिश रच डाली. उसे प्रेमी का प्रेम या हवस के आगे मां सब से बड़ी दुश्मन नजर आने लगी.

सबीना ने मां गुडि़या की हत्या की योजना प्रेमी मोइन को बता दी. पहले तो उस ने ऐसा करने से मना किया, लेकिन बाद में हत्या की योजना में शामिल हो गया. सबीना की तरह प्यार में अंधा मोइन प्रेमिका के लिए कुछ भी करने को तैयार था. मोइन ने अपनी योजना में अपने दोस्तों मोनू और मोहम्मद सद्दाम से बात की तो वे उस का साथ देने को तैयार हो गए थे.

तय योजना के अनुसार 8 अगस्त, 2020 को मोइन और उस के साथियों मोनू और मोहम्मद सद्दाम ने मिल कर गुडि़या को उस समय मौत के घाट उतार दिया, जब वह घूमने के लिए खेतों की तरफ निकली थी, उस की हत्या डंडे से पीटपीट कर की गई थी. सिर में भी डंडा मारा गया था जो जानलेवा साबित हुआ.

अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या के लिए प्रयुक्त डंडा, मृतका की एक जोड़ी चप्पलें बरामद कीं. गुडि़या की हत्या के आरोप में उस की बेटी सबीना, उस के आशिक मोइन मोनू उर्फ निहाल और मोहम्मद सद्दाम को जिला न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

सौजन्यमनोहर कहानियां, नवंबर 2020

सिर्फ एक भूल : भूल का पश्चाताप

कई बार घंटी बजाने पर भी न दरवाजा खुला, न अंदर कोई आहट हुई. अमूमन ऐसा होता नहीं है, लेकिन ऐसा ही हो रहा था. अबकी बार वेटर ने दरवाजा खटखटाया, एक नहीं कई बार. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

वेटर रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर दुर्गेश पटेल के पास पहुंचा. वह रिसैप्शनिस्ट से बातें कर रहे थे. वेटर ने तेजी से आ कर कहा, ‘‘सर, कमरा नंबर 303 का दरवाजा नहीं खुल रहा. मैं ने घंटी बजाई, दरवाजा थपथपाया, पर कोई नतीजा नहीं निकला.’’

‘‘कमरे में कोई है भी या यूं ही…’’

मैनेजर ने कहा तो वेटर की जगह रिसैप्शनिस्ट ने जवाब दिया, ‘‘हां, मैडम हैं कमरे में. उन का साथी बाहर गया है. कह रहा था थोड़ी देर में आता हूं, पर आया नहीं. मैं उसे फोन करता हूं.’’

रिसैप्शनिस्ट ने विजिटर्स रजिस्टर खोल कर कमरा नंबर 303 के कस्टमर का फोन नंबर देखा और उसे फोन मिला दिया. लेकिन फोन स्विच्ड औफ था. इस से वह घबराया. उस ने यह बात दुर्गेश पटेल को बताई. साथ ही यह भी कि चायनाश्ते के बरतन अंदर हैं. वेटर को मैं ने ही भेजा था.

बात चिंता की थी. वेटर, रिसैप्शनिस्ट और मैनेजर दुर्गेश पटेल तुरंत खड़े हो गए. कमरा नंबर 303 के सामने पहुंच कर मैनेजर दुर्गेश पटेल ने भी वही किया, जो वेटर कर चुका था. काफी प्रयास के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला और न ही कमरे के अंदर कोई हलचल हुई तो उन के मन में तरहतरह की शंकाएं जन्म लेने लगीं. उन्हें लगा कमरे के अंदर जरूर कोई गड़बड़ है. कमरे में ठहरा युवक थोड़ी देर में आने को कह कर गया था, लेकिन आया नहीं. उस ने अपना फोन भी बंद कर लिया था. कहीं उस ने ही तो कुछ नहीं किया.

कोई और रास्ता न देख मैनेजर दुर्गेश पटेल ने कमरे की दूसरी चाबी मंगा कर कमरा खोला तो अंदर का दृश्य देख कर होश उड़ गए. कमरे के बैड पर कस्टमर के साथ आई युवती चित पड़ी हुई थी. उस का चेहरा खून में डूबा हुआ था. मतलब उस के साथ आया युवक उस की हत्या कर के फरार हो गया था.

होटल नटराज उज्जैन का जानामाना होटल था, जिस के प्रबंधक और मालिक इंदौर के एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी थे. उन के होटल में इस तरह की घटना पहली बार घटी थी, इसलिए होटल के सभी कर्मचारी परेशान हो गए. होटल के अन्य ग्राहकों को जब इसबात की जानकारी मिली तो सब घबरा गए. जरा सी देर में होटल के कमरा नंबर 303 के सामने कस्टमर्स की भीड़ एकत्र हो गई.

मामला हत्या का था. होटल के प्रबंधक मालिक और पुलिस को खबर देना जरूरी था. मैनेजर दुर्गेश पटेल ने फोन से इस मामले की जानकारी थाना नानाखेड़ा के साथ होटल के मालिक को दे दी.

सूचना पाते ही थाना नानाखेड़ा के प्रभारी ओ.पी. अहीर पुलिस टीम के साथ होटल नटराज पहुंच गए. उन्होंने सरसरी तौर पर घटनास्थल का निरीक्षण किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने इस वारदात की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

कमरा नंबर 303 होटल की तीसरी मंजिल पर था. थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर ने देखा, जिस युवती का शव बैड पर खून से सराबोर पड़ा था, उस की उम्र 20-22 साल के आसपास थी. उस की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. चेहरेमोहरे से वह किसी सामान्य और शरीफ घर की दिख रही थी.

पुलिस समझ नहीं पाई

मंजर खौफनाक भी था और मार्मिक भी. जिसे देख पुलिस टीम भी स्तब्ध थी. पूछताछ में होटल मैनेजर दुर्गेश पटेल ने ओ.पी. अहीर को बताया कि मृतका जिस युवक के साथ आई थी, उस की उम्र 23 साल के आसपास रही होगी. उस की साथी युवती के कंधों पर एक कैरीबैग था. देखने में वह किसी कालेज की छात्रा लगती थी. उन्होंने शाम तक के लिए कमरा बुक करवाया था.

कमरा बुक करवाते समय उन्होंने खुद को पतिपत्नी बताया था. कमरा बुक करवाने के डेढ़ घंटे बाद युवक यह कह कर बाहर निकला था कि मैडम अंदर आराम कर रही हैं, उन का ध्यान रखना. वह किसी काम से बाहर जा रहा है. उस के जाने के कुछ समय बाद वेटर नाश्ते और चाय की प्लेट लेने गया तो मैडम ने दरवाजा नहीं खोला. काफी कोशिशों के बाद हम ने कमरे की दूसरी चाबी मंगा कर दरवाजा खोला. मैनेजर दुर्गेश पटेल ने बताया.

‘‘मृतका के साथी के बारे में कोई जानकारी है?’’ पुलिस टीम ने पूछा.

‘‘जी हां सर, उस का पूरा ब्यौरा विजिटर रजिस्टर में दर्ज है.’’ कहते हुए मैनेजर दुर्गेश पटेल ने रजिस्टर ला कर पुलिस के सामने रख दिया. पुलिस टीम ने विजिटर्स रजिस्टर देख कर उस युवक का नामपता हासिल कर लिया. आमतौर पर ऐसे लोग अपना नाम पता सही नहीं देते, लेकिन यहां ऐसा नहीं था. आगंतुक द्वारा दी गई जानकारी सही निकली.

युवक का नाम सुभाष पोरवाल था और युवती का नाम तनु परिहार. दोनों के परिवार वालों को मामले की जानकारी दे कर उन्हें होटल नटराज बुला लिया गया.  खबर मिलते ही दोनों के परिवार वाले जिस स्थिति में थे, उसी में होटल पहुंच गए. तनु परिहार के परिवार वालों की स्थिति काफी दयनीय थी. पुलिस टीम ने उन्हें सांत्वना दे कर संभाला.

थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर अपनी टीम के साथ अभी होटल कर्मचारियों और मृतकों के परिवार वालों से पूछताछ कर ही रहे थे कि एसपी मनोज सिंह, एसपी (सिटी) रूपेश द्विवेदी, सीएसपी एच.एम. बाथम और अरविंद नायक फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर को आवश्यक निर्देश दिए और अपने औफिस लौट गए.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर ने अपने सहायकों के साथ मृतका तनु परिहार के शव का निरीक्षण किया. तनु का शरीर बुरी तरह जख्मी था. उस के गले पर एक और पेट में 3 गहरे घाव थे, जो किसी तेजधार हथियार से वार करने से आए थे.

मृतका के शव का बारीकी से निरीक्षण कर के पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. प्राथमिक काररवाई से निपट कर थानाप्रभारी थाने लौट आए. तनु परिहार की मां को वह अपने साथ ले आए थे.

उस की मां की तहरीर पर सुभाष पोरवाल के खिलाफ हत्या  का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई. परिवार से पूछताछ करने के साथसाथ सुभाष के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया. साइबर सेल की सक्रियता से 24 घंटे में सुभाष को आगरा में खोज निकाला गया. आगरा गई पुलिस टीम सुभाष पोरवाल को गिरफ्तार कर उज्जैन ले आई. थानाप्रभारी ओ.पी. अहीर के सामने आते ही सुभाष पोरवाल ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस जांच और सुभाष पोरवाल के बयानों के अनुसार तनु परिहार हत्याकांड की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.

23 वर्षीय सुभाष साधारण लेकिन भरेपूरे स्वस्थ शरीर का युवक था. उस के पिता का नाम आत्माराम पोरवाल था, जो मूलरूप से गुजरात के पोरबंदर का रहने वाला था. सालों पहले आत्माराम रोजीरोटी की तलाश में उज्जैन आया था. बाद में वह अपने परिवार को भी उज्जैन ले आया और नानाखेड़ा इलाके में बस गया. वह आटोरिक्शा चलाता था.

आटोरिक्शा की कमाई से इस परिवार की गाड़ी आराम से चल जाती थी. सुभाष आत्माराम का एकलौता बेटा था. वह कुछ जिद्दी स्वभाव का था. वह जिस चीज की हठ कर लेता था, उसे हासिल कर के छोड़ता था.

सुभाष पोरवाल हट्टाकट्टा जवान था, फैशनपरस्त और दिलफेंक भी. पढ़ाईलिखाई में कभी उस का मन नहीं लगा. उस ने बड़ी मुश्किल से 10वीं पास की थी. पढ़ाई बंद हो जाने के बाद उस ने पिता की तरह ही आटोरिक्शा चलाना शुरू कर दिया था.

सुभाष पोरवाल जहां रहता था, उसी के सामने वाले मकान में ऋषि परिहार का परिवार रहता था. उन का अपना 5 सदस्यों का परिवार था. आय के लिए उन की छोटी सी किराने की दुकान थी. घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी.

दुकान से किसी तरह दालरोटी चल जाती थी. अपने 3 भाईबहनों में तनु सब से बड़ी थी. पिता ऋषि परिहार की मृत्यु  तभी हो गई थी, जब तनु बहुत छोटी थी. पति के निधन के बाद बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी मां आशा देवी के कंधों पर आ गई थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया. आशा का छोटा बेटा 7वीं में और दूसरा 9वीं कक्षा में पढ़ता था. बेटी तनु बीकौम सेकेंड ईयर की छात्रा थी.

तनु जितनी स्वस्थ, सुंदर और चंचल थी, उतनी ही सुशील, सभ्य और सरल स्वभाव की थी. वह किसी से भी ऐसी कोई बात नहीं करती थी, जिस से किसी का दिल दुखे. तनु के मधुर व्यवहार की वजह से आसपास के लोग उसे प्यार करते थे.

यही वज ह थी कि जैसे ही उस की हत्या की खबर इलाके में फैली, लोग थाना नानाखेड़ा के सामने इकट्ठा होने लगे. उन की मांग थी कि आरोपी सुभाष पोरवाल को जल्दी गिरफ्तार किया जाए.

स्थिति बिगड़ती देख एसपी (सिटी) रूपेश द्विवेदी ने इस आश्वासन पर लोगों को शांत कराया कि अभियुक्त को शीघ्र गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

वैसे तो आमनेसामने रहने के कारण तनु और सुभाष शुरू से एकदूसरे को देखते आए थे लेकिन दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर 5 साल पहले 17-18 साल की उम्र में फूटे थे. तनु परिहार के उभरते यौवन और सौंदर्य को देख सुभाष उस का दीवाना हो गया था. यही हाल तनु का भी था.

शुरूशुरू में तो तनु का ध्यान उस की ओर नहीं था, लेकिन धीरेधीरे उस का झुकाव भी सुभाष की ओर हो गया. इस की अहम कड़ी थी उस का आटोरिक्शा. तनु के करीब आने के लिए सुभाष ने अपने आटोरिक्शा का इस्तेमाल किया था.

जब तनु कालेज जाने के लिए निकलती, सुभाष अपना आटो ले कर उस की राह में आ खड़ा होता था. तनु को अपने आटो में बैठा कर वह उस के कालेज ले जाता और फिर उसे कालेज से ले कर उस के घर के करीब छोड़ देता था. बीच के समय में वह सवारियां ढोता था लेकिन तनु के कालेज के समय पर वह सवारियां नहीं लेता था. बीचबीच में जब भी मौका मिलता, दोनों साथसाथ घूमनेफिरने भी निकल जाते थे.

जैसेजेसे समय आगे बढ़ रहा था, वैसेवैसे दोनों का प्यार परिपक्व होता जा रहा था. दोनों एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगे थे. जब भी दोनों साथ होते थे, अपने भविष्य को ले कर तानेबाने बुनते थे. इस में आगे सुभाष रहता था. वह तनु को सपने दिखाता और तनु उन सपनों में खो जाती थी. दोनों शादी कर के अपना अलग संसार बसाना चाहते थे. घटना के एक महीने पहले दोनों ने सात फेरे भी ले लिए थे. 9 जुलाई, 2020 को दोनों ने उज्जैन कोर्ट में कोर्टमैरिज कर ली थी. इस के बाद 13 जुलाई को चिंतामणि गणेश मंदिर जा कर दोनों विधिविधान से शादी के बंधन में बंध गए थे.

सुभाष ने इस बात की जानकारी अपने परिवार को दे दी थी. परिवार वालों ने उस का यह रिश्ता स्वीकार भी कर लिया था. लेकिन तनु ऐसा नहीं कर पाई. भावनाओं में बह कर उस ने सुभाष से शादी तो कर ली थी लेकिन इस पर उस की मां की ममता और प्यार भारी पड़ रहा था.

मां ने जिन कठिनाइयों में खूनपसीना बहा कर उन्हें पालापोसा था, उसे देख वह मां से धोखा नहीं करना चाहती थी. उसे जब पता चला कि मां उस के योग्य लड़का तलाश कर रही है तो उसे लगा कि मां का दिल दुखाना ठीक नहीं है. इसलिए उस ने अपनी शादी का राज छिपाए रखना ही ठीक समझा.

जब सुभाष को पता चला कि तनु की मां उस के लिए वर ढूंढ रही है तो वह पत्नी होने के नाते तनु पर साथ रहने का दबाव बनाने लगा. लेकिन जब तनु इस के लिए तैयार नहीं हुई तो सुभाष का धैर्य टूट गया और उस ने तनु के प्रति एक खतरनाक निर्णय ले लिया. उस की सोच थी कि तनु उस की दुलहन है और उसी की रहेगी. इस के लिए उस ने एक तेजधार वाला चाकू खरीद कर अपने पास रख लिया था.

घटना वाले दिन सुभाष का मन बहुत उदास था. वह एक बार तनु से मिल कर उस का आखिरी फैसला जान लेना चाहता था. इस के लिए उस ने होटल नटराज को चुना था. होटल में कमरा खाली है या नहीं, यह जानने के लिए उस ने विकास के नाम से होटल मैनेजर दुर्गेश पटेल से बात की.

होटल से हरी झंडी मिलने के बाद सुभाष ने तनु को मैसेज भेज कर कुछ जरूरी बात करने के लिए बुलाया. सुभाष के इरादों से अनभिज्ञ तनु ने अपना कोचिंग बैग और पानी की बोतल उठाई और मां से कोचिंग के लिए कह कर सुभाष से मिलने पहुंच गई. सुभाष उसे अपने आटो से होटल नटराज ले गया.

होटल में कमरा बुक कर के दोनों कमरा नंबर 303 में चले गए. कमरे में आ कर सुभाष ने पहले चायनाश्ता मंगवाया, फिर तनु से साथ रहने वाली बात छेड़ दी. जिसे ले कर दोनों में बहस हो गई. सुभाष ने तनु को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जब हमारी शादी दोदो बार हो चुकी है तो तीसरी बार शादी की जरूरत क्यों और किसलिए?

‘‘वह हमारी भूल थी, गुजरे कल की बात. अब हमें आज का सोचना है. मैं अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती. मैं अपनी मां को धोखा नहीं दूंगी. मां पहले से बहुत दुखी हैं. मैं उन्हें और दुखी नहीं देख सकती. इसलिए मैं मां के देखे हुए लड़के के साथ शादी करूंगी.’’

‘‘और मैं क्या करूं?’’ सुभाष का चेहरा लाल हो गया. क्रोध में उठ कर उस ने कमरे में टहलते हुए कहा, ‘‘हम दोनों एकदूसरे को भूल जाएं?’’

तनु ने गरदन झुकाते हुए कहा, ‘‘हां.’’

रक्त में डूब गई प्रेम कहानी

‘‘ऐसा नहीं होगा, तुम मेरी थी मेरी ही रहोगी,’’ कहते हुए सुभाष ने छिपा कर लाए चाकू को बाहर निकाला और तनु की गरदन पर सीधा वार कर दिया. वार इतना तेज था कि तनु की आधी गरदन कट गई. तनु चीख कर बैड पर गिर गई. उस के बैड पर गिरने के बाद क्रोधित सुभाष ने उस के पेट में 3 वार और किए.

कुछ मिनट तड़पने के बाद जब तनु के प्राणपखेरू उड़ गए तब सुभाष ने उस का फोन उठाया और बहाना बना कर होटल से निकल गया. वहां से निकल कर वह अपने आटो से शाजापुर बसअड्डा पहुंचा. फिर वहां से बस पकड़ कर अपनी मौसी के यहां आगरा चला गया.

सुभाष पोरवाल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम ने तनु परिहार हत्याकांड से  संबंधित चाकू, तनु का मोबाइल फोन और आटोरिक्शा को अपने कब्जे में ले लिया. सुभाष को जिला सत्र न्यायालय के जज के सामने पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

सौजन्यमनोहर कहानियां, अक्टूबर 2020   

पति की औकात : पिंकी को महंगा पड़ा बाहरी प्यार

उस दिन जून 2020 की 6 तारीख थी. सुबह होने पर प्रियंका की आंखें खुलीं तो खिड़की से आती तेज रोशनी उस की आंखों में लगी. पिंकी ने आंखें बंद कर लीं, फिर आंखों को मलते हुए जम्हाई ले कर बैड पर उठ कर बैठ गई.

कुछ देर वह अलसाई सी बैठी रही, फिर मुंह घुमा कर बैड के दूसरे किनारे की ओर देखा तो पति चंदन वहां नहीं था.

शायद आज जल्दी उठ गया, बाहर होगा, सोच कर वह बैड से उठी और पैरों में चप्पल पहन कर बैडरूम से बाहर निकल आई.

जैसे ही वह बाहर आई तो बाहर का दृश्य देख कर सन्न रह गई. चंदन नायलौन की रस्सी से मुख्यद्वार की लोहे की चौखट से लटका था. यह देख पिंकी के मुंह से चीख निकल गई. चीखते हुए वह बाहर की तरफ भागी और पड़ोसियों को बुला लिया. पड़ोसियों ने आ कर देखा तो सब अपनेअपने कयास लगाने लगे. चंदन रेलवे में नौकरी करता था और पत्नी के साथ रहता था.

यह मामला सोनभद्र जिले के थाना कोतवाली राबर्ट्सगंज क्षेत्र के बिचपई गांव का था. किसी ने सुबह 8 बजे राबर्ट्सगंज कोतवाली को घटना की सूचना दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. चंदन की उम्र 34-35 वर्ष रही होगी. वह दरवाजे की लोहे की चौखट से नायलोन की रस्सी से लटका हुआ था. उस के पैर जमीन को छू रहे थे, घुटने मुड़े हुए थे.

देखने से लग रहा था जैसे चंदन ने आत्महत्या की हो, लेकिन पैर जमीन पर लगे होने से थोड़ा संदेह भी था कि क्या वाकई चंदन ने आत्महत्या की है या किसी ने उस की हत्या कर के आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की है.

इंसपेक्टर मिश्रा के दिमाग में ऐसी ही बातें उमड़घुमड़ रही थीं. फिर मिश्राजी ने सोचा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सारी हकीकत सामने आ जाएगी. उन्होंने सिर को झटका और सोचों के भंवर से बाहर आए.

उन्होंने पास में बैठी मृतक चंदन की पत्नी पिंकी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात में खाना खा कर दोनों साथ बैड पर सोए थे. सुबह उस की आंख खुली तो चंदन बैड पर नहीं था. वह बाहर आई तो चंदन को इस हालत में चौखट से लटकते हुए पाया.

इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा ने उस से और विस्तृत पूछताछ की तो पता चला वह चंदन के साथ जिस मकान में रह रही थी, वह पिंकी के पिता परमेश्वर भारती का था. वह खुद बीजपुर में रहते हैं. पिंकी और चंदन के दोनों बच्चे भी अपने नाना के पास रह रहे थे. पतिपत्नी के अलावा उस मकान में कोई नहीं रहता था.

चंदन बिचपई से 25 किमी दूर मदैनिया गांव का निवासी था, जो करमा थाना क्षेत्र में आता था. घटना की सूचना करमा थाने को दी गई, वहां से यह खबर चंदन के परिवार तक पहुंचा दी गई.

इंसपेक्टर मिश्रा ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया और कोतवाली लौट आए. 2 घंटे बाद चंदन का भाई अपने गांव से राबर्ट्सगंज कोतवाली पहुंचा. उस ने इंसपेक्टर मिश्रा को एक लिखित तहरीर दी, जिस में उस ने चंदन की हत्या का आरोप उस की पत्नी पिंकी उर्फ प्रियंका, ससुर परमेश्वर भारती, सास चमेली, साले पिंटू और पड़ोसी कृष्णा चौहान पर लगाया था. भाई ने तहरीर में कृष्णा से पिंकी के संबंध होने का जिक्र किया था.

तहरीर देख कर इंसपेक्टर मिश्रा चौंके. उन के मन का संदेह सच होता दिखने लगा. लाश की स्थिति देख कर उन्हें पहले ही चंदन के आत्महत्या पर संदेह था. पति की मौत पर पिंकी भी उतनी दुखी नहीं लग रही थी, उस का चीखनाचिल्लाना नाटक सा लग रहा था.

खैर, अब इंसपेक्टर मिश्रा को पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आने का इंतजार था. शाम को जब रिपोर्ट आई तो उस में चंदन की हत्या किए जाने की पुष्टि हो गई.

इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा ने चंदन की लिखित तहरीर के आधार पर पिंकी, कृष्णा चौहान, परमेश्वर भारती, चमेली और पिंटू के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर मिथिलेश मिश्रा ने केस की जांच शुरू करते हुए कृष्णा चौहान उर्फ किशन के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह आपराधिक प्रवृत्ति का था. बिचपई में वह पिंकी के घर के पड़ोस में अपनी मां के साथ किराए पर रहता था.

जांच के दौरान पूछताछ में यह भी पता चला कि कृष्णा का पिंकी के घर काफी आनाजाना था. वह घर से गायब भी था. पिंकी और कृष्णा की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो उस से भी दोनों के संबंधों की पुष्टि हो गई. इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा किशन उर्फ कृष्णा की गिरफ्तारी के प्रयास में लग गए.

11 जून को उन्होंने मुखबिर की सूचना पर राबर्ट्सगंज के रोडवेज बस स्टैंड से किशन और प्रियंका को गिरफ्तार कर लिया. भेद खुल जाने की आशंका से प्रियंका किशन के साथ कहीं भाग जाने की फिराक में थी, लेकिन पकड़ी गई.

कोतवाली ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने चंदन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या करने के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी—

उत्तर प्रदेश के जिला सोनभद्र के थाना करमा क्षेत्र के मदैनिया गांव में शंकर भारती रहते थे. वह रेलवे में थे. उन के परिवार में पत्नी कबूतरी के अलावा एक बेटी राजकुमारी और 2 बेटे चंद्रशेखर व चंदन थे.

उन्होंने सब से बड़ी बेटी राजकुमारी का विवाह समय रहते कर दिया था. बेटों में चंद्रशेखर बड़ा था. वह किसी के यहां कार ड्राइवर की नौकरी करता था. सब से छोटे चंदन ने बीए तक पढ़ाई की थी. सब कुछ अच्छा चल रहा था कि 2002 में शंकर भारती की मृत्यु हो गई.

मृतक आश्रित कोटे में नौकरी की बात आई तो आपसी सहमति से चंदन का नाम दिया गया. 2004 में चंदन रेलवे में भरती हो गया. वर्तमान में वह चुर्क में बतौर केबिनमैन कार्यरत था. रेलवे में नौकरी लगते ही चंदन के लिए रिश्ते आने लगे.

एनटीपीसी में इंजीनियर परमेश्वर भारती बीजपुर में रहते थे. परिवार में पत्नी चमेली और एक बेटी पिंकी उर्फ प्रियंका व 2 बेटे थे पिंटू और रिंकू.

पिंकी सब से बड़ी थी. उस ने बीए कर रखा था. परमेश्वर को चंदन के बारे में पता चला तो उन्होंने उस के बारे में जानकारी हासिल की. उस समय करमा थाने के जो इंसपेक्टर थे, वह परमेश्वर के रिश्तेदार थे. परमेश्वर ने उन से बात की तो उन्होंने पता करके परमेश्वर को बताया कि लड़का बहुत अच्छा और सीधासादा है. उस में कोई ऐब भी नहीं है, सरकारी नौकरी में है. फिर रिश्ता तय हुआ और 2005 में चंदन और पिंकी का विवाह हो गया.

पिंकी खबसूरत और पढ़ीलिखी थी. वह अच्छे खातेपीते परिवार से ताल्लुक रखती थी. विवाह के बाद जब वह अपनी ससुराल आई तो वहां का मकान और रहनसहन उसे अच्छा नहीं लगा. लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकती थी.

शादी के बाद पिंकी चंदन से जिद करने लगी कि वह बिचपई में रहे. बिचपई में पिंकी के पिता का एक मकान खाली पड़ा था. पिंकी ने उस में चंदन के साथ रहने की बात अपने पिता परमेश्वर से कर ली थी.

चंदन को मानना पड़ा

आए दिन पिंकी चंदन से बिचपई चल कर रहने की जिद करती. चंदन अपने परिवार के साथ रहना चाहता था, इसलिए पिंकी की बात पर ध्यान नहीं देता था. अपनी बात न मानते देख पिंकी बीवियों वाले हथकंडे अपनाने लगी. उस से नाराज हो कर बोलना बंद कर देती, खाना नहीं खाती थी. इस पर चंदन समझाता तो उस की बात सुनती तक नहीं थी. आखिर चंदन को उस की जिद के आगे झुकना ही पड़ा.

वह पिंकी के साथ बिचपई में अपने ससुर परमेश्वर के मकान में रहने लगा. कालांतर में प्रियंका 2 बेटों अमन और नमन की मां बनी. स्कूल जाने लायक तो प्रियंका ने उन्हें नाना परमेश्वर के पास भेज दिया.

चंदन कभीकभी शराब पी लेता था. पीने पर पिंकी कुछ कहती तो वह उस की पिटाई कर देता था. पिंकी भी चंदन के साथ कुछ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी. वह ज्यादातर मायके का ही गुणगान करती रहती थी.

चंदन अपने घरवालों से बात करता या उन की तारीफ करने लगता तो पिंकी के तनबदन में आग लग जाती थी. पत्नी के रूखे व्यवहार के कारण चंदन ज्यादा शराब पीने लगा था. शराब पीने के बाद दोनों में झगड़ा जरूर होता था.

किशन उर्फ कृष्णा चौहान फुलाइच तरवा आजमगढ़ का रहने वाला था. उस के पिता रामत चौहान ने 2 शादियां की थीं. रामत चौहान पहली पत्नी और उस की 2 बेटियों के साथ आजमगढ़ में रह रहा था. किशन उस की दूसरी पत्नी रमा का बेटा था.

कृष्णा अपनी मां के साथ डेढ़ साल से पिंकी के घर के पड़ोस में किराए पर रह रहा था. वह अपराधी प्रवृत्ति का था. राबर्ट्सगंज कोतवाली में उस पर 2019 में धारा 457/380/411 के तहत मुकदमा भी दर्ज था. 29 साल का किशन अविवाहित था.

पड़ोस में रहते हुए उस की नजर पिंकी पर गई तो उस की खूबसूरती देख कर किशन उस की ओर आकर्षित हो गया. चंदन ड्यूटी पर रहता था, प्रियंका घर में अकेली होती थी.

पड़ोसी होने के नाते पिंकी और किशन एकदूसरे को जानते  थे, पर अभी तक बात नहीं हुई थी. दोनों की नजर एकदूसरे पर पड़ती, तो जल्दी नहीं हटती थी.

एक दिन किशन सुबहसुबह पिंकी के घर पहुंच गया. हमेशा की तरह पिंकी उस समय भी अकेली थी. दरवाजा खटखटाने पर पिंकी ने दरवाजा खोला तो किशन को खडे़ पाया और मुंह से निकला, ‘‘अरे आप…’’

‘‘जी, मैं आप का पड़ोसी किशन.’’

‘‘जानती हूं आप को, बताने की जरूरत नहीं.’’ पिंकी ने मुस्करा कर कहा, ‘‘अरे अंदर आइए, बाहर क्यों खड़े हैं.’’

औपचारिकतावश पिंकी ने कहा तो किशन बोला, ‘‘चाय बनाने जा रहा था तो देखा चीनी नहीं है. अभी दुकानें भी नहीं खुली हैं. फिर सोचा पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है, इसलिए आप के पास चला आया. इस बहाने आप से परिचय भी हो जाएगा.’’

‘‘अच्छा किया. अब मैं खुद आप को चाय बना कर पिलाती हूं. उस के बाद आप चीनी भी ले जाइएगा.’’ कह कर पिंकी ने उसे कुरसी पर बैठाया और खुद चाय बनाने किचन में चली गई.

कामी नजर

किशन जिस जगह कुरसी पर बैठा था, ठीक उसी के सामने किचन थी. किशन चाय बनाती पिंकी को पीछे से ताड़ रहा था. पिंकी के शरीर की बेहतरीन बनावट उस की आंखों में प्यास जगा रही थी. इसी बीच पिंकी ने पलट कर उस की ओर देखा तो उसे अपनी ओर देखते पाया. एकाएक दोनों की आंखें मिलीं तो होंठ खिल उठे. चाय के कप टे्र में रख कर पिंकी किचन से बाहर आई और टे्र मेज पर रख कर किशन को चाय देते हुए पूछा, ‘‘आप लोग कुछ समय पहले यहां रहने आए हैं, इस से पहले कहां रहते थे?’’

‘‘भाभी, मैं पहले आजमगढ़ में रहता था. वहां मेरे पिता रहते हैं. यहां मैं अपनी मां के साथ रहता हूं.’’

फिर चाय का घूंट भरते हुए किशन पिंकी की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘वाह, आप चाय बहुत बढि़या बनाती हैं.’’

‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया.’’ तारीफ सुन कर पिंकी खुशी से बोली.

चाय पीतेपीते उन दोनों ने एकदूसरे के बारे में जानकारी ली. पिंकी को किशन से बात करना बहुत अच्छा लग रहा था. उस की बातें और बात करने का ढंग अलग ही था. काफी देर तक बातें करने के बाद किशन वहां से चला गया.

इस के बाद तो दोनों के बीच हर रोज बातें होने लगीं. किशन किसी न किसी बहाने से पिंकी के पास पहुंच जाता. पिंकी भी जान गई थी कि किशन उस से मिलने और बातें करने के लिए बहानों का सहारा लेता है. इसलिए एक दिन उस ने किशन से कह दिया कि उसे मिलने के लिए किसी बहाने की जरूरत नहीं है. वह ऐसे भी मिलने आ सकता है.

किशन खुश हो गया कि अब उसे बहाने नहीं बनाने पड़ेंगे. अब जब देखो किशन पिंकी के पास ही नजर आने लगा. घर के कामों में भी उस की मदद करने लगा. साथ में काम करतेकरते हंसीमजाक करते कब समय बीत जाता, पता ही नहीं चलता. चंदन के घर आने से पहले ही किशन वहां से चला आता था.

कुछ ही दिनों में दोनों काफी घुलमिल गए. दोनों को एकदूसरे के बिना कुछ अच्छा नहीं लगता था. किशन तो जानता था कि वह पिंकी को जी जान से चाहने लगा है. लेकिन अब पिंकी को भी एहसास होने लगा कि किशन चुपके से आ कर किस तरह उस की जिंदगी बन गया, उस के दिलोदिमाग पर छा गया.

पिंकी के दिमाग में सिर्फ उस की बातें ही घूमती रहती थीं. किशन पिंकी के दिलोदिमाग पर ऐसा छाया कि वह भी उस की ओर खिंचने लगी. जब प्यार का एहसास हुआ तो वह भी किशन से मजाक कर के लिपटनेचिपटने लगी. पिंकी का ऐसा करना किशन के लिए शुभ संकेत था कि वह उस की होने के लिए

बेताब है.

एक दिन दोनों पासपास बैठे किशन की लाई आइसक्रीम खा रहे थे. किशन ने अपनी आइसक्रीम खाई तो उस ने ऐसा मुंह बनाया जैसे उसे आइसक्रीम अच्छी न लगी हो. फिर उस ने पिंकी की आइसक्रीम की ओर देखा और तेजी से उस का हाथ पकड़ कर उस की आइसक्रीम की एक बाइट खा ली.

किशन की इस हरकत पर पिंकी भौंचक्की रह गई. फिर शरारती अंदाज में उस की पीठ पर प्यार से धौल जमाने लगी. उस के इस अंदाज से किशन हंसने लगा. फिर बोला, ‘‘आप की आइसक्रीम सच में बहुत मीठी है.’’

पिंकी उस से नाराज होने की बात कह कर चुपचाप बैठ गई तो किशन की नजर पिंकी के पिंक लिप्स पर गई, जहां कुछ आइसक्रीम लगी हुई थी. उसे शरारत सूझी, वह अपने चेहरे को पिंकी के चेहरे के पास ले गया और उस के चेहरे को अपने हाथों में ले कर उस के पिंक लिप्स को अपने होंठों से चाट लिया.

इस शरारत से पिंकी अचंभित रह गई, लेकिन इस शरारत ने उस के शरीर में आग भरने का काम किया. किशन भी अपने आप को नहीं रोक पाया. वह बराबर पिंकी के लिप्स को चूमने लगा तो पिंकी ने मस्त हो कर आंखें मूंद लीं. इस के बाद तो उन के बीच वही हुआ जो अकसर उन्माद के क्षणों में होता है. दोनों बहके तो ऐसे फिसले कि अपनी इच्छा पूरी करने के बाद ही अलग हुए.

उन के बीच एक बार जो अनैतिक रिश्ता बना तो वह बारबार दोहराया जाने लगा. लेकिन ऐसे रिश्ते की सच्चाई अधिक दिनों तक छिपी नहीं रह पाती. एक दिन चंदन ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया. इस के बाद किशन तो वहां से चला गया, लेकिन चंदन ने पिंकी को जम कर पीटा. साथ ही आगे से ऐसी नापाक हरकत न करने की हिदायत दी.

पिंकी के इस गलत कदम से चंदन परेशान रहने लगा. उस की अपने भाई चंद्रशेखर से बात होती रहती थी. उस ने भाई को भी पिंकी के किशन से अवैध संबंध के बारे में बता दिया.

दूसरी ओर पिंकी पर चंदन द्वारा की गई पिटाई और हिदायत का कोई असर नहीं हुआ. वैसे भी चंदन हर वक्त घर पर रह नहीं सकता था. इस के अलावा घर में पिंकी पर नजर रखने वाला कोई नहीं था. पिंकी पहले की तरह ही किशन के साथ रंगरलियां मनाती रही. वह चाहती थी कि उस के और किशन के रिश्ते पर कोई तर्कवितर्क न करे.

5/6 जून की रात किशन और पिंकी रंगरलियां मना रहे थे कि रात 12 बजे चंदन घर लौट आया. उस ने पिंकी और किशन को एक साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया तो वह उन से झगड़ने लगा. इस पर किशन ने पिंकी से कहा कि आज इस का काम खत्म कर देते हैं.

पिंकी भी उस की बात से सहमत थी, इसलिए उस का साथ देने लगी. वह घर में पड़ी नायलोन की रस्सी उठा लाई. दोनों ने मिल कर रस्सी से चंदन का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

चंदन की हत्या करने के बाद दोनों ने उस की लाश को नायलोन की रस्सी से बांध कर घर की लोहे की चौखट से लटका दिया, जिस से यह लगे कि चंदन ने आत्महत्या की है. इस के बाद किशन वहां से चला गया.

सुबह जब पुलिस आई तो पिंकी ने उस के आत्महत्या कर लेने की बात ही बताई. लेकिन उन दोनों की चाल काम न आई और दोनों पकड़े गए. आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी कर के दोनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व चंद्रशेखर से पूछताछ पर आधारित

सौजन्यमनोहर कहानियां, अक्टूबर 2020

एक जीजा की हसीन साली: प्यार में बर्बाद हुआ परिवार

अनिल के घर से आती रोनेचीखने की आवाजें सुन कर पड़ोसियों को हैरानी हुई कि ऐसी क्या बात हो गई, जोअनिल इतनी जोर से रो रहा है. वह रोते हुए चीख रहा था, ‘‘अनिता तुम्हें क्या हो गया, तुम उठ क्यों नहीं रही हो?’’

अनिल सुबकते हुए कह रहा था, ‘‘देखो, हमारा बेटा मयंक भी नहीं उठ रहा है?’’

चीखपुकार और रोने की आवाजें सुन कर आसपड़ोस के कुछ लोग अनिल के घर पहुंच गए. लोगों ने देखा, एक कमरे में अनिता और उन का बेटा मयंक पड़े थे. दोनों ना तो होश में थे और ना ही हिलडुल रहे थे. अनिल ने पड़ोसियों को आया देख कर कहा, ‘‘पता नहीं मेरी बीवी और बेटे को क्या हो गया है? कुछ बोल ही नहीं रहे हैं. लगता है, इन्होंने कुछ खा लिया है. उल्टियां भी हुई थीं.’’

पड़ोसियों ने भी अनिता और मयंक के हाथपैर हिला कर उन की स्थिति जानने की कोशिश की, लेकिन दोनों में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए. पड़ोस की भाभीजी बोली, ‘‘कल रात तक तो अनिता मुझ से खूब हंसहंस कर बात कर रही थी. रात ही रात में ऐसा क्या हो गया, जो मरणासन्न सी पड़ी है.’’

अनिता और मयंक के कुछ खाने की बात सुन कर पड़ोसियों की सुगबुगाहट शुरू हो गई. तभी अनिल रोतेरोते बोला, ‘‘भाई साहब, आजकल कोरोना की महामारी चल रही है, कहीं मेरी बीवी और बेटा कोरोना के शिकार तो नहीं हो गए.’’

कोरोना की बात सुन कर पड़ोसियों ने कहा, ‘‘अनिल, इन दोनों को अस्पताल ले जाओ. एक बार डाक्टर को दिखाओ. क्या पता किसी और वजह से बेहोशी आ गई हो?’’

अनिल ने रोतेबिलखते हुए अपने साले और एकदो दूसरे रिश्तेदारों को फोन किया. फिर पत्नी अनिता और बेटे मयंक को कांवटिया अस्पताल ले गया. अस्पताल की इमरजेंसी में डाक्टरों ने जांचपड़ताल के बाद मांबेटे को मृत घोषित कर दिया. डाक्टरों ने अनिल की बताई बातों और दोनों शवों के लक्षण देख कर यह अंदाजा लगा लिया कि दोनों की मौत जहरीला पदार्थ खाने से हुई है. मांबेटे की संदिग्ध मौत के कारण अस्पताल प्रशासन की ओर से इस संबंध में पुलिस को सूचना दे दी गई.

यह बात इसी साल 25 जून की है. अनिल शर्मा जयपुर में सूर्यनगर, नाड़ी का फाटक, लाइफलाइन डेंटल अस्पताल के पास स्थित मकान नंबर 12 में पत्नी अनिता और बेटे मयंक के साथ रहता था. अनिल जयपुर कलेक्ट्रेट में क्लर्क है.

अस्पताल की सूचना पर करधनी थाना पुलिस कांवटिया अस्पताल पहुंची और अनिता व मयंक के शव को कब्जे में ले कर पंचनामे की कार्यवाही की. इस के बाद दोनों शवों का पोस्टमार्टम कराया गया. करधनी थाना पुलिस ने मामला धारा 174 सीआरपीसी में दर्ज कर इस की जांच एएसआई प्रमोद कुमार को सौंप दी.

पुलिस ने मौकामुआयना किया. अनिता के पति अनिल और पड़ोसियों से पूछताछ की. पूछताछ में सामने आया कि पड़ोसियों ने अनिता के देवर सुनील को घटना से एक दिन पहले शाम को अनिल के घर पर आतेजाते देखा था. यह भी पता चला कि अनिल की साली पूजा भी वहां आतीजाती रहती थी.

संदेह हुआ तो जांच हुई शुरू

शुरुआती जांच में पुलिस अधिकारियों को मांबेटे की मौत का यह मामला संदिग्ध नजर आया. इस पर डीसीपी (जयपुर पश्चिम) प्रदीप मोहन शर्मा ने जांच के लिए अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त बजरंग सिंह के निर्देशन में एक टीम बनाई. इस टीम को झोटवाड़ा के एसीपी हरिशंकर शर्मा के सुपरविजन और करधनी थानाप्रभारी रामकिशन बिश्नोई के नेतृत्व में काम करना था.

इस टीम में एएसआई प्रमोद कुमार, हैडकांस्टेबल मनोज कुमार, कांस्टेबल नरेंद्र सिंह, अजेंद्र सिंह, बाबूलाल, रामसिंह, अमन, रविंद्र और महिला कांस्टेबल निशा को शामिल किया गया.

पुलिस ने जांच में तेजी लाते हुए अनिल, उस के छोटे भाई सुनील और साली पूजा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. इस के अलावा अनिल की गतिविधियों का भी पता लगाया. अनिल की ससुराल वालों की जानकारी भी हासिल की गई. अनिल की साली पूजा के बारे में भी जरूरी सूचनाएं जुटाई गईं.

पुलिस ने एकदो बार अनिल और पूजा से पूछताछ भी की. पुलिस की जांचपड़ताल तेज होती देख अनिल को लगा कि पुलिस गहराई में जा रही है. वह राजस्थान की राजधानी जयपुर की कलेक्ट्रेट में बाबू था. इसलिए उस का वास्ता सभी तरह के लोगों से पड़ता था. वैसे भी वह सरकारी कामकाज की सारी प्रक्रिया जानता था.

अनिल ने घटना के करीब एक हफ्ते बाद राजस्थान के पुलिस महानिदेशक कार्यालय में इस मामले की जांच के लिए एक परिवाद लगा दिया. दूसरी तरफ, कलेक्ट्रेट के अधिकारियों से पुलिस के एक उच्चाधिकारी को जांच के नाम पर अनिल को परेशान नहीं करने की सिफारिश कराई.

इन दोनों बातों से उस पर पुलिस का शक गहरा गया. कारण यह कि पुलिस ने अभी तक उस से कोई खास पूछताछ नहीं की थी, फिर भी उस ने कलेक्ट्रेट के अधिकारियों से सिफारिश लगवाई थी.

पुलिस को अनिल, सुनील और पूजा के मोबाइल की काल डिटेल्स मिली, तो उन में कई चौंकाने वाले पहलू सामने आए. तीनों के बयानों में काफी विरोधाभास था. पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल के बाद अनिल से सख्ती से पूछताछ की, तो उस की 38 साल की पत्नी अनिता और 14 साल के बेटे मयंक की मौत का राज खुल गया.

अनिल ने रचा बड़ा षडयंत्र

अनिल से पूछताछ के आधार पर उस के छोटे भाई सुनील और साली पूजा से भी पूछताछ की गई. इस पूछताछ के बाद पुलिस ने 30 जुलाई को अनिता और मयंक की हत्याओं के आरोप में अनिल, सुनील और पूजा को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में मांबेटे की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह अनिल का अपनी साली पूजा से प्रेम प्रसंग का परिणाम थी. जीजा अनिल के इश्क में पूजा इतनी निष्ठुर हो गई थी कि उस ने अपना घर बसाने के लिए बहन का घर उजाड़ने के साथ बहन और भांजे को भी मरवा दिया.

अनिल अपनी शादीशुदा साली के हुस्न का इतना दीवाना हो गया था कि उस ने पूजा से अवैध संबंधों का विरोध करने वाली पत्नी और बेटे को ही मौत की नींद सुला दिया. उस ने अपने भाई सुनील और साली पूजा के साथ मिल कर बीवीबच्चे की जान ले ली.

करीब 15 साल पहले अनिल शर्मा की शादी राजस्थान के सीकर जिले के लोसल कस्बे में रहने वाले अंजनी कुमार की बेटी अनिता से हुई थी. बड़ी बेटी अनिता की शादी के बाद अंजनी कुमार के परिवार में पत्नी मंजू, छोटी बेटी पूजा और बेटा अनुराग रह गए थे.

शादी के बाद अनिता खुश थी. पति अनिल सरकारी नौकरी में था. घर का खर्च आराम से चल जाता था. परिवार में ज्यादा जिम्मेदारियां भी नहीं थी. घर में केवल अनिल का छोटा भाई सुनील था. हंसीखुशी से दिन गुजर रहे थे. शादी के कुछ समय बाद ही अनिता ने एक दिन अनिल को खुशखबरी दी. अनिता के मुंह से जल्दी ही पिता बनने की बात सुन कर अनिल के जीवन में खुशियों के रंग भर गए.

आखिर वह दिन भी आ गया, अनिता ने बेटे को जन्म दिया. बेटा पा कर अनिल भी खुश था और अनिता भी. इन दोनों से ज्यादा खुश मंजू और अंजनी कुमार थे. वे दोनों नानानानी बन गए थे. नवासे ने उन के बुढ़ापे में भी खुशियों का चमन खिला दिया था. अनिल और अनिता ने बेटे का नाम मयंक रखा. मयंक समय के साथ बड़ा हो कर स्कूल जाने लगा.

पहले अनिल की पोस्टिंग सीकर में थी. इसी दौरान 14 जुलाई, 2014 को अनिल के ससुर अंजनी कुमार की संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई. सीकर जिले की लोसल थाना पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद आत्महत्या का मामला मानते हुए अंजनी कुमार की मौत की फाइल बंद कर दी.

पत्नी और बेटे की हत्या में अनिल की जयपुर में हुई गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में यह रहस्य भी उजागर हुआ है कि अंजनी कुमार की हत्या की गई थी. अंजनी कुमार की हत्या के बारे में बाद में बात करेंगे. पहले अंजनी कुमार की मौत के बाद की कहानी जान लें.

अनिल की ससुराल में ससुर अंजनी कुमार ही परिवार के मुखिया थे. उन की मौत से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. परिवार में दिवंगत अंजनी कुमार की पत्नी, एक जवान बेटी पूजा और छोटा बेटा अनुराग रह गए थे. घर में जवान बेटी हो और कोई बड़ा पुरुष ना हो, तो लोगों की गंदी नजरें पीछा करती ही हैं.

ऐसे समय में अनिल ने आगे बढ़ कर सहारा देने के लिए अपनी सास, साली और साले को सीकर में अपने साथ ही रख लिया. दोनों परिवार एकसाथ रहने लगे. इस दौरान अनिल और पूजा के बीच प्यार के बीज अंकुरित हो गए. घर में उन्हें ज्यादा मौका नहीं मिल पाता था, इसलिए मौका मिलने पर अनिल और पूजा घर से बाहर एकदूसरे की बांहों में समाने लगे.

इस बीच, अनिल ने अपने ससुर का प्लौट 30 लाख रुपए में बेच दिया और ससुराल वालों को बता दिया कि इस रकम से आप के लिए जयपुर में प्लौट ले लिया है. सास और सालासाली ने अनिल की बात पर भरोसा कर लिया. जबकि हकीकत यह थी कि अनिल ने ससुराल वालों के नाम से जयपुर में कोई प्लौट नहीं लिया था.

साल 2016 में अनिल का तबादला सीकर से जयपुर कलेक्ट्रेट में हो गया. तबादला होने पर अनिल को गुलछर्रे उड़ाने का बड़ा मौका हाथ लग गया. इस के लिए उस ने एक चाल चली. वह अपनी सास को विश्वास में ले कर साली पूजा तथा साले अनुराग को पढ़ाने के बहाने जयपुर ले आया, जबकि पत्नी अनिता व बेटे मयंक को सास की देखभाल के लिए सीकर में ही छोड़ दिया.

बीवी की जगह साली को लाया साथ

जयपुर आने के बाद अनिल को आजादी मिल गई. मन की मुराद पूरी करने के लिए वह साली पूजा को भी साथ ले आया था. जयपुर में उन्हें देखनेपूछने या टोकने वाला कोई नहीं था. इसलिए अनिल और पूजा को प्रेमबेल ज्यादा मजबूत होती गई.

जीजा के प्यार में डूबी पूजा अपनी बहन की ही सौतन बन कर अनिल से शादी करने के ख्वाब देखने लगी. अनिल को भी पता नहीं पूजा में ऐसा क्या दिखा कि वह भी उस से शादी रचाने को बेताब था. बस समस्या यह थी कि दोनों के बीच समाज और परिवार आड़े आ रहे थे.

इस बीच, अनिल ने जयपुर में मकान खरीद लिया और परिवार को जल्दी ही जयपुर ले आया. जयपुर आने पर अनिता को अनिल और पूजा की करतूतों का पता चल गया. अनिता ने इस का विरोध किया. फलस्वरूप घर में कलह होने लगी.

अनिल ने परिस्थितियां भांप कर सास, साली और साले को अपने मकान के पास ही दूसरा मकान दिलवा दिया. अनिता ने अपनी मां से पूजा की शादी जल्द से जल्द करने पर जोर दिया. अनिल ने साल 2018 में पूजा की शादी करवा दी.

भले ही पूजा की शादी हो गई थी, लेकिन वह तो जीजा अनिल को ही सपनों का राजकुमार मानती थी. यही कारण रहा कि पूजा शादी के बाद ससुराल बहुत कम जाती थी. जब भी वह ससुराल जाती, पति को नौकरी नहीं लगने का ताना मार कर उस से दूर ही रहती.

शादी के बाद भी पूजा और अनिल के बीच दूरियां कम नहीं हुई थी, बल्कि प्रेम की यह बेल एकदूसरे से गुंथ कर बढ़ती ही जा रही थी. इस बात पर अनिता और अनिल के बीच आए दिन झगड़ा होता था. इसी बीच, पूजा जयपुर में एक प्राइवेट नौकरी करने लगी.

अनिल और पूजा की राह में सब से बड़ा रोड़ा अनिता और मयंक थे. रोजाना के झगड़े से परेशान हो कर अनिल ने ऐसा षडयंत्र रचा कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे. अनिल ने इस षडयंत्र का मोहरा बनाया अपने छोटे सगे भाई सुनील को. उस ने सुनील शर्मा की शादी कराने और जयपुर में मकान दिलाने का लालच दिया.

सुनील की उम्र 30 साल से ज्यादा हो गई थी, लेकिन अभी तक उस की शादी नहीं हुई थी. वह बेरोजगार था. अनिल ने अपने भाई सुनील से कहा कि वह उस की शादी अपनी साली पूजा से करा देगा. पूजा भी तैयार है. लेकिन उस की भाभी अनिता और मयंक रोड़ा बने हुए हैं. अगर उन दोनों को ठिकाने लगा दिया जाए तो कोई परेशानी नहीं होगी.

पूजा तो अनिल की ग्रिप में पहले से ही थी, भाई भी मिल गया तो अनिल ने दोनों के साथ मिल कर अनिता और मयंक को रास्ते से हटाने की योजना बनाई.

इस के तहत अनिल ने मई के पहले सप्ताह में नींद की हाईडोज वाली गोलियां खरीदीं और अपने गांव धानोता जा कर सुनील को दे आया. साथ ही उसे पूरी योजना भी समझा दी.

कोरोना संक्रमण काल में लौकडाउन लगने के कारण मौका नहीं मिलने की वजह से सुनील जयपुर नहीं आ सका. अनिल ने 24 जून को अपने भाई सुनील को गांव से जयपुर अपने घर बुलाया. अनिल अपनी ड्यूटी पर चला गया. शाम को ड्यूटी पूरी कर के अनिल ने अपनी मोटरसाइकिल पर पूजा को साथ लिया. दोनों जयपुर स्थित अजमेर रोड पर एक होटल में पहुंचे और किराए पर एक कमरा ले लिया.

कुछ देर रुकने के बाद योजना के तहत दोनों ने कमरे में अपनेअपने बैग और मोबाइल छोड़ दिए. वे होटल से यह कह कर निकल गए कि कुछ देर में आएंगे. सुनील उसी दिन शाम को जयपुर स्थित अपने भाई के घर पहुंच गया.

होटल से निकल कर अनिल पूजा के साथ अपनी सास मंजू के घर जयपुर के चरणनदी मुरलीपुरा गया. वहां दोनों ने खाना खाया. कुछ देर बाद सास के घर से पूजा को मोटरसाइकिल पर बैठा कर अनिल अपने घर सूर्य नगर के लिए चल दिया. घर से कुछ पहले ही अनिल ने अपनी बाइक एक खाली प्लाट में खड़ी कर दी.

उस समय रात के करीब 11 बज रहे थे. अनिल व पूजा पैदल ही घर की ओर चल दिए. रास्ते में उन्हें सुनील मिला. सुनील ने बताया कि उस ने 13 गोलियां दूध में मिला कर भाभी अनिता और भतीजे मयंक को पिला दी हैं.

अंतिम घटनाक्रम

पूजा के साथ अनिल अपने घर में गया. सुनील बाहर खड़ा रहा. अनिल व पूजा ने देखा तो अनिता और मयंक बेहोश थे लेकिन उन की सांसें चल रही थीं. खेल बिगड़ता देख कर अनिल ने पहले से खरीदी हुई सल्फास की गोलियां नींबू की शिकंजी में मिला कर बेहोशी की हालत में ही अनिता और मयंक को मुंह खोल कर पिला दीं. एकदो गोलियां उन के मुंह में भी डालीं.

इस के बाद अनिल और पूजा मकान का गेट बंद कर वापस अजमेर रोड वाले होटल में चले गए. सुनील अपने गांव धानोता चला गया.

अगले दिन 25 जून को अनिल सुबह अकेला अपने घर पहुंचा और अनिता व मयंक की उल्टियों के बर्तन धो कर रोनाचीखना शुरू कर दिया. उस की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी एकत्र हो गए. बाद की कहानी आप पढ़ चुके हैं. अनिता और मयंक की हत्या का राज खुलने पर करधनी थाना पुलिस ने भादंसं की धारा 302, 201 व 120बी के तहत नामजद केस दर्ज कर लिया.

अब अनिल के ससुर अंजनी कुमार की मौत का मामला भी समझ लीजिए. सीकर के लोसल निवासी अंजनी कुमार की संदिग्ध मौत जुलाई 2014 में घर में बने पानी की हौदी में डूबने से हुई थी. उस समय लोसल थाना पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला मानते हुए फाइल बंद कर दी थी.

अब पत्नी और बेटे की हत्या में गिरफ्तार अनिल ने करधनी थाना पुलिस को पूछताछ में बताया कि अंजनी कुमार की हत्या की गई थी. उन की हत्या में रिश्तेदार और अन्य लोग शामिल थे.

अंजनी कुमार की हत्या किस मकसद से किनकिन लोगों ने की थी, इस का खुलासा अनिल ने किया है.

करधनी थाना पुलिस ने इस मामले में लोसल थाना पुलिस को सूचना भेज दी है. लोसल पुलिस इस मामले की जांच कर रही है. हो सकता है अंजनी कुमार की हत्या का कोई नया राज खुले.

बहरहाल, जीजासाली के अंधे प्रेम ने 3 परिवारों को बरबाद कर दिया. अनिल के साथ उस का भाई भी जेल की सलाखों के पीछे चला गया. पूजा ना तो अपने पति की हुई और ना ही जीजा की हो सकी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां, सितबंर 2020

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शक की इंतिहा

बेवजह शक का कीड़ा मन में बैठा लिया जाए तो जिंदगी दुश्वार हो जाती है. ये कहानी भी ऐसे ही एक शक्की पति सुदर्शन वाल्मीकि की है, जिस ने अपनी पत्नी पर किए गए शक की वजह से अपनी गृहस्थी खुद उजाड़ दी.

मध्य प्रदेश के जबलपुर के तिलवारा थाना क्षेत्र के अंतर्गत मदनमहल की पहाडि़यों के पास के एक इलाके का नाम भैरों नगर है,  इस जगह पर गिट्टी क्रेशर लगे होने के कारण इसे क्रेशर बस्ती के नाम से भी जाना जाता है. इसी बस्ती में दशरथ वाल्मीकि का परिवार रहता है. दशरथ के परिवार में उस की पत्नी के अलावा उस का 39 साल का बेटा सुदर्शन उर्फ मोनू वाल्मीकि, उस की पत्नी प्रीति और 22 माह की बेटी देविका भी रहती थी.

दशरथ के परिवार के सभी वयस्क सदस्य जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मैडिकल कालेज में साफसफाई का काम करते थे. सुदर्शन मैडिकल कालेज में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता था. परिवार के सदस्यों के कामधंधा करने से अच्छीखासी आमदनी हो जाती है और परिवार हंसीखुशी से अपनी जिंदगी गुजार रहा था.

17 जनवरी, 2020 की सुबह सभी लोग अभी बिस्तर से सो कर उठे भी नहीं थे कि सुदर्शन और उस की पत्नी ने घर में यह कह कर कोहराम मचा दिया कि उन की बेटी देविका बिस्तर पर नहीं है. उन्होंने अपने मातापिता को बताया कि शायद किसी ने देविका का अपहरण कर लिया है. देविका के दादादादी का तो यह खबर सुन कर बुरा हाल हो गया था. देविका को वे बहुत लाड़प्यार करते थे.

जैसे ही बस्ती में देविका के कमरे के भीतर से गायब होने की खबर फैली तो आसपास के लोगों की भीड़ सुदर्शन के घर पर जमा हो गई. लोगों को यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि कैसे कोई व्यक्ति इतनी छोटी सी बच्ची का अपहरण कर सकता है.

चूंकि कुछ दिनों पहले ही जबलपुर नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ते ने सुदर्शन के मकान का पिछला हिस्सा तोड़ दिया था, जिस की वजह से पीछे की ओर ईंटें जमा कर उस हिस्से को बंद कर दिया था.

लोगों ने अनुमान लगाया कि इसी दीवार की ईंटों को हटा कर अपहर्त्ता शायद अंदर घुसे होंगे. देविका की मां प्रीति लोगों को रोरो कर बता रही थी कि 16 जनवरी की रात वे अपनी बेटी देविका को बीच में लिटा कर ही सोए थे, पर अपहर्त्ताओं ने देविका के अपहरण को इतनी चालाकी से अंजाम दिया कि उन्हें इस की आहट तक नहीं हुई.

लोग यह समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर कौन ऐसा दुस्साहस कर सकता है कि अपने मां बाप के बीच सो रही बच्ची का अपहरण कर के ले जाए. मासूम बच्ची देविका की खोजबीन आसपास के इलाकों में लोगों द्वारा करने के बाद भी उस का कोई अतापता नहीं चला तो उस के गायब होने की रिपोर्ट जबलपुर के तिलवारा पुलिस थाने में दर्ज करा दी.

पुलिस थाने में सुदर्शन ने उस के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए बताया कि रात को 11 बजे वह खाना खा कर पत्नी और बच्ची के साथ सो गया था, रात लगभग 2 बजे देविका ने उठने की कोशिश की तो उसे दोबारा सुला दिया गया. सुबह 8 बजे वह सो कर उठे तो विस्तर से देविका गायब थी.

तिलवारा थाने की टीआई रीना पांडेय ने आईपीसी की धारा 363 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जानकारी तुरंत ही पुलिस के आला अधिकारियों को दे दी और वह घटनास्थल की ओर निकल पड़ीं. जैसे ही रीना पांडेय भैरों नगर पहुंचीं, वहां तब तक भारी भीड़ जमा हो चुकी थी.

उन्होंने एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी वहां बुला कर मौका मुआयना करवाया. खोजी कुत्ता

सुदर्शन के घर के आसपास ही चक्कर लगाता रहा.

घटना की गंभीरता को देखते हुए जबलपुर के एसपी अमित सिंह ने एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल एवं एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान के मार्गदर्शन में थानाप्रभारी तिलवारा रीना पांडेय के नेतृत्व में एक टीम गठित की. टीम में क्राइम ब्रांच के एएसआई राजेश शुक्ला, विनोद द्विवेदी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने भैरों नगर के तमाम लोगों से जानकारी ले कर कुछ संदिग्ध लोगों को पुलिस थाने में बुला कर पूछताछ भी की, मगर किसी से भी देविका का कोई सुराग हासिल नहीं हो सका. इस घटनाक्रम से भैरों नगर में रहने वाले वाल्मीकि समाज के लोगों की पुलिस के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी. उन्होंने प्रशासन के खिलाफ धरना देना शुरू कर दिया था. वे पुलिस प्रशासन से मांग कर रहे थे कि जल्द ही मासूम बच्ची देविका को खोज निकाला जाए.

इधर पुलिस प्रशासन की नींद हराम हो चुकी थी. देविका को गायब हुए एक माह से अधिक का समय बीत चुका था, पर पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा था कि देविका का अपहरण आखिर किसलिए किया गया है. यदि फिरोती के लिए अपहरण हुआ है तो अभी तक किसी ने फिरोती की रकम के लिए सुदर्शन के परिवार से संपर्क क्यों नहीं किया. पुलिस टीम को जांच करते एक माह से अधिक समय हो गया था,

लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी.

26 फरवरी 2020 को भैरों नगर की नई बस्ती इलाके में बने एक कुएं के इर्दगिर्द बच्चे खेल रहे थे. खेल के दौरान कुएं में अंदर झांकने पर उन्हें कोई चीज तैरती दिखाई दी, तो बच्चों ने चिल्ला कर आसपास के लोगों को इकट्ठा कर लिया. बस्ती के लोगों ने कुएं में उतराते शव को देखा तो इस की सूचना तिलवारा पुलिस को दे दी. सूचना पा कर पुलिस दल मौके पर पहुंचा और शव को कुएं से बाहर निकलवाया गया. शव की हालत इतनी खराब हो चुकी थी, कि उसे पहचान पाना मुश्किल था.

शव के सिर की ओर से रस्सी से लगभग 15 किलोग्राम वजन का पत्थर बंधा हुआ था. पुलिस की मौजूदगी में आसपास के लोगों ने मोटरपंप लगा

कर कुएं का पानी खाली किया तो कुएं की निचली सतह पर कपड़े मिले, जिस के आधार पर सुदर्शन के परिजनों द्वारा उस की पहचान देविका के रूप में की गई.

पुलिस ने काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डाक्टर द्वारा देविका की मृत्यु पानी में डूबने के कारण होनी बताई. परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर पुलिस ने प्रकरण में धारा 364, 302 और इजाफा कर दी.

अब पुलिस के सामने बड़ी चुनौती यही थी कि देविका के हत्यारे तक कैसे पहुंचा जाए. 40 दिनों तक चली तफ्तीश में टीआई रीना पांडेय को बस्ती के लोगों ने बताया था कि सुदर्शन और उस की पत्नी में अकसर विवाद होता रहता था. सुदर्शन अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था. जब सुदर्शन के शक का कीड़ा कुलबुलाता तो उन के बीच विवाद हो जाता.

इसी आधार पर पुलिस टीम को यह संदेह भी हो रहा था कि कहीं इसी वजह से सुदर्शन ने ही तो देविका की हत्या नहीं की? जांच टीम ने जब देविका की मां प्रीति और पिता सुदर्शन से अलगअलग पूछताछ की तो दोनों के बयानों में विरोधाभास नजर आया.

पूछताछ के दौरान प्रीति ने जब यह बताया कि कुछ माह पहले सुदर्शन देविका को जान से मारने का प्रयास कर चुका है, तो पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि देविका का कातिल उस का पिता ही है. जब पुलिस ने सुदर्शन से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जल्द ही अपना गुनाह कबूल कर लिया.

अपनी फूल सी नाजुक बेटी की हत्या करने का गुनाह करने वाले सुदर्शन उर्फ मोनू ने पुलिस को जो कहानी बताई उस ने तो बस यही साबित कर दिया कि अपने दिमाग में शक का कीड़ा पालने वाला मोनू देविका को अपनी बेटी ही नहीं मानता था.

सुदर्शन की शादी अब से 3 साल पहले बड़े धूमधाम से रांझी, जबलपुर निवासी प्रीति से हुई थी.

शादी के पहले से सुदर्शन रंगीनमिजाज नौजवान था और उस की आशिकमिजाजी शादी के बाद भी जारी रही. इसी के चलते भेड़ाघाट में एक लड़की के बलात्कार के मामले में शादी के 2 माह बाद ही उसे जेल की हवा खानी पड़ी थी.

जैसेतैसे वह कुछ माह बाद जमानत पर आया तो उसे मालूम हुआ कि उस की पत्नी गर्भ से है. बस उसी समय से सुदर्शन के दिमाग के अंदर शक का कीड़ा बैठ गया. वह बारबार यही बात सोचता कि मेरे जेल के अंदर रहने पर प्रीति गर्भवती कैसे हो गई.

देविका के जन्म के बाद तो अकसर पतिपत्नी में इसी बात को ले कर विवाद होता रहता. सुदर्शन प्रीति को हर समय यही ताने देता कि यह लड़की न जाने किस की औलाद  है. इसी तरह लड़तेझगड़ते जिंदगी गुजारते प्रीति फिर से गर्भवती हो गई.

पत्नी के चरित्र पर हरदम शक करने वाले सुदर्शन को लगता था कि देविका उस की बेटी नहीं है. उस का मन करता कि देविका का काम तमाम कर दे.

एक बार तो उस ने देविका को मारने की कोशिश भी की थी, मगर वह कामयाब न हो सका. पतिपत्नी के विवाद की वजह से देविका की देखभाल भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रही थी, जिस की वजह से वह अकसर बीमार रहती थी.

16 जनवरी, 2020 की रात 10 बजे सुदर्शन मैडिकल कालेज के बाहर बैठा अपने दोस्तों के साथ शराब पी रहा था. तभी उस की पत्नी प्रीति का फोन आया कि जल्दी से घर आ जाओ, देविका की तबीयत ठीक नहीं है. सुदर्शन को तो देविका की कोई फिक्र ही नहीं थी. वह तो चाहता था कि उस की मौत हो जाए.

इधर प्रीति देविका की तबीयत को ले कर परेशान थी. वह बारबार पति को फोन लगाती और वह जल्दी आने की कह कर शराब पीने में मस्त था.

प्रीति के बारबार फोन आने पर वह तकरीबन 11 बजे अपने घर पहुंचा तब तक उस के मातापिता दूसरे कमरे में सो चुके थे. देविका की तबीयत के हालचाल लेने की बजाय वह बारबार फोन लगाने की बात पर पत्नी से विवाद करने लगा, जिसे देख कर मासूम देविका रोने लगी.

सुदर्शन ने गुस्से में देविका का गला दबा दिया, जिस के कारण उस की मौत हो गई. देविका की हालत देख कर प्रीति जोरजोर से रोने लगी तो सुदर्शन ने उसे डराधमका कर चुप करा दिया. सुदर्शन ने प्रीति को धमकाया कि यदि इस के बारे में किसी को कुछ बताया तो वह उस के गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ उसे भी खत्म कर देगा. बेचारी प्रीति अपने होने वाले बच्चे की खातिर इस दर्द को चुपचाप सह कर रह गई.

सुदर्शन ने प्रीति को पाठ पढ़ाया कि सुबह लोगों को देविका के अपहरण की कहानी बता कर मामले को शांत कर देंगे.

इस के लिए उस ने घर के पिछले हिस्से में रखी कुछ ईंटों को हटा दिया, जिस से लोग यह अनुमान लगा सकें कि यहीं से घुस कर देविका का अपहरण किया गया है. रात के लगभग 2 बजे सुदर्शन एक रस्सी ले कर देविका के शव को कंधे पर रख कर घर के बाहर कुछ दूरी पर बने एक कुएं के पास ले गया.

वहां पर उस ने रस्सी के सहारे शव को एक पत्थर से बांध कर कुएं में फेंक दिया और वापस आ कर चुपचाप सो गया. सुबह उठते ही उस ने अपनी बेटी देविका के गायब होने की खबर फैला दी.

6 मार्च 2010 को जबलपुर के पुलिस कप्तान अमित सिंह, एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान, एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल, टीआई तिलवारा रीना पांडेय की मौजूदगी में प्रैस कौन्फ्रैंस कर हत्याकांड के राज से परदा उठाते हुए आरोपी को प्रेस के समक्ष पेश किया.

सुदर्शन को देविका की हत्या के अपराध में धारा 363, 364, 302, 201 आईपीसी के तहत गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जबलपुर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, अगस्त 2020