पत्नी जब बन जाए प्रेमिका

29 मार्च, 2019 की घटना है. सुबह के 7 बज चुके थे. इंदौर के खजराना क्षेत्र में रहने वाले बाबूलाल, रमेशचंद्र बंसी तथा गोलू ने झलारिया रोड पर स्थित बद्री पटेल के फ्लैट के सामने वाले मैदान में प्लास्टिक के बोरे देखे तो वे वहीं रुक गए.

उन बोरों में किसी की लाश थी. लाश को 2 बोरों में इस तरह से बंद किया गया था कि एक बोरा चेहरे से कमर तक लाश को ढके था तो दूसरा बोरा पैरों की तरफ से लाश को पहना कर कमर में बांध दिया गया था. बीच में जो खाली जगह बची थी, उस में से नीली जींस व शर्ट बाहर झांक रही थी. इस से लग रहा था कि उन बोरों में किसी की लाश है.

उन्होंने यह जानकारी उधर से गुजर रहे लोगों के अलावा फोन कर के थाना खजराना को दे दी. लाश मिलने की सूचना पाते ही टीआई प्रीतम सिंह प्रधान आरक्षी प्रवेश सिंह, आरक्षी प्रवीण सिंह पंवार आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. तब तक वहां तमाम लोग एकत्र हो गए थे.

टीआई ने वहां पहुंच कर देखा कि एक प्लौट के किनारे पर बोरों में बंद एक लाश पड़ी थी. लाश वाले बोरे के पास एक युवती बैठी रो रही थी. टीआई के पूछने पर उस ने बताया कि बोरे में बंद लाश उस के शौहर बबलू खान की है. दुश्मनी के चलते किसी ने उस की हत्या कर दी है.

यह सुन कर टीआई चौंके कि बोरे में बंद लाश को उस महिला ने पति के रूप में कैसे शिनाख्त कर ली. इस बारे में उन्होंने उस से पूछा तो महिला ने बताया कि उस का शौहर कल शाम से लापता है. आज लाश मिलने की सूचना पर जब वह यहां आई तो जींस और शर्ट देख कर वह समझ गई कि यह उस के पति बबलू की ही लाश है. महिला ने अपना नाम फिरोजा बताया.

शव बोरे से बाहर निकलवाने से पहले टीआई ने इस की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी तो कुछ ही देर में एसपी (पश्चिम) मोहम्मद यूसुफ फोरैंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए. पुलिस ने बोरों से लाश बाहर निकलवाई तो वास्तव में वह लाश फिरोजा के पति बबलू खान की ही निकली. इस के बाद तो फिरोजा दहाड़ें मार कर रोने लगी. उस का घर वहां से 300 मीटर दूर खिजराबाद कालोनी में था.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो उस के सिर पर चोट का निशान मिला. इस के अलावा उस के गले को धारदार हथियार से काटा गया था. पुलिस ने अनुमान लगाया कि पहले बबलू के सिर पर वार किया गया होगा. फिर उस के बेहोश हो जाने के बाद उस का गला रेता गया होगा.

लगभग 34 साल का बबलू काफी मजबूत कदकाठी का था. अनुमान था कि उस के कत्ल में एक से अधिक लोग शामिल रहे होंगे. बहरहाल, पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इस के बाद टीआई ने बबलू के परिवार वालों से बात की. उस के भाई ने बताया कि रात में लगभग साढ़े 4 बजे बबलू की बीवी फिरोजा ने उसे फोन कर के बताया था कि तुम्हारे भाई अभी तक घर नहीं लौटे हैं. उन का मोबाइल भी बंद है.

इस के बाद टीआई प्रीतम सिंह ने बबलू खान की पत्नी फिरोजा से पूछा तो उस ने बताया कि रात लगभग एक बजे मेरे शौहर के मोबाइल पर उन के पार्टनर कमल राठी का फोन आया था. फोन सुन कर उन्होंने कहा कि कमल राठी की गाड़ी पकड़ी गई है. उसे छुड़ाने जा रहा हूं.

इतना कह कर उन्होंने घर से 70-80 हजार रुपए लिए और कुछ देर में वापस आने की बात कह कर चले गए.  उन के जाने के कुछ देर बाद मुझे नींद आ गई. सुबह साढ़े 4 बजे मेरी नींद खुली तो मैं ने देखा वह घर नहीं लौटे थे. मैं ने उन के मोबाइल पर फोन लगाया तो वह बंद था. फिर मैं ने कमल राठी को फोन लगाया. उन्होंने बताया कि बबलू खान रात में उन के पास आया ही नहीं था.

यह सुन कर मैं डर गई. उसी समय मैं ने अपने देवर को फोन लगा कर यह खबर दी. देवर ने भी उन्हें खोजने की कोशिश की लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला. उड़ती खबर सुन कर जब मैं सुबह यहां पहुंची तो इन की लाश मिली.

पुलिस ने जब लाश की तलाशी ली तो बबलू की जेब से 10 हजार रुपए और एक जवान खूबसूरत युवती की तसवीर मिली. पुलिस ने मौके से सबूत जुटाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के साथ ही पुलिस ने हत्या का केर्स दर्ज कर के मामले की जांच शुरू कर दी. चूंकि फिरोजा ने बताया था कि पति के मोबाइल पर आखिरी काल कमल राठी की आई थी, इसलिए पुलिस ने पहले कमल से ही पूछताछ की.

कमल राठी ने टीआई प्रीतम सिंह को बताया कि बीती रात उस ने बबलू खान को फोन किया ही नहीं था. इस से पुलिस को लगा कि फिरोजा झूठ बोल रही है. अगर यह मान भी लिया जाता कि वह सच बोल रही है तो फिर बबलू ने पत्नी से कमल राठी का फोन आने की झूठी बात क्यों कही थी. इसी दौरान टीआई को मृतक की जेब में मिली उस खूबसूरत जवान युवती की तसवीर याद आ गई जो तलाशी के दौरान 10 हजार रुपयों के साथ मिली थी.

इस से टीआई ने अनुमान लगाया कि हो सकता है जिस महिला की फोटो बबलू की जेब से मिली है, उस महिला के साथ बबलू के अवैध संबंध रहे हों. क्योंकि फिरोजा का कहना था कि उस का पति घर से 70-80 हजार रुपए ले कर निकला था. जबकि लाश की तलाशी में केवल 10 हजार रुपए ही उस की जेब से मिले थे.

ऐसे में संभावना यह थी कि बाकी का पैसा मृतक ने फोटो वाली युवती के संग अय्याशी में उड़ा दिया हो. हो सकता है कि अय्याशी के दौरान किसी बात पर तकरार होने से युवती के परिजन या उस के दूसरे साथियों ने बबलू का कत्ल कर दिया होगा.

पूछताछ में फिरोजा ने बताया था कि उस के शौहर को पराई जवान लड़कियों की संगत की लत थी. लेकिन अब सवाल यह था कि मामला अगर यही था तो हत्यारे जेब में 10 हजार रुपए और सोने की चेन व अंगूठी क्यों छोड़ कर गए.

दूसरी सब से बड़ी बात यह थी कि यदि बबलू की जेब से पैसे फोटो वाली युवती ने निकलवाए थे तो वह जेब में अपनी फोटो क्यों छोड़ती. टीआई प्रीतम सिंह को पूरे मामले में बड़ी साजिश नजर आने लगी. घुमाफिरा कर उन्हें फिरोजा पर ही शक हो रहा था. पुलिस ने मृतक की बीवी फिरोजा की कुंडली खंगाली तो पूरी कहानी साफ नजर आने लगी.

फिरोजा के फोन की काल डिटेल्स से पता चला कि उस रोज उस ने रात 2 बजे के आसपास मनसबनगर खजराना में रहने वाले इम्तियाज से काफी कम समय के अंतर में 2 बार बात की थी. यह बात फिरोजा ने पुलिस से छिपाई थी. जबकि उस का कहना था कि बबलू के जाने के बाद उस की नींद सुबह 4 बजे टूटी थी.

इस से पुलिस ने अपने मुखबिर को इम्तियाज की जानकारी जुटाने में लगा दिया. पता चला कि 29 साल का इम्तियाज बबलू के चचाजान का बेटा यानी 28 साल की फिरोजा का चचेरा देवर है. पुलिस को इम्तियाज के मोबाइल की लोकेशन भी रात में एक बजे से सुबह 3 बजे के आसपास फिरोजा के घर की मिली. पुलिस ने इम्तियाज को उसी रोज शाम को उस के घर से हिरासत में ले लिया.

इम्तियाज को पुलिस की ऐसी सक्रियता का जरा भी इल्म नहीं था, सो उस का चौंकना लाजिमी था. टीआई प्रीतम सिंह ने उस से सीधे सवाल किया, ‘‘आधी रात को तुम अपनी भाभी फिरोजा के साथ उस के घर पर क्या कर रहे थे?’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं जनाब, भाभी मां के समान होती है.’’ वह बोला.

‘‘तो मैं ने कब कहा कि बीवी जैसी होती है. मैं तो केवल यह पूछ रहा हूं कि बबलू तो रात एक बजे घर से कहीं जाने को बोल कर निकल गया था जो वापस नहीं लौटा. इस बीच रात को तुम्हारी फिरोजा से फोन पर गुफ्तगू हुई. इस के बाद तुम फिरोजा के पास चले गए थे.’’ टीआई ने कहा.

‘‘जी, यह सही नहीं है. न मेरी फिरोजा भाभी से बात हुई और न मैं उन के घर गया.’’ इम्तियाज ने सफाई दी.

इम्तियाज ने यह सफेद झूठ बोला था. क्योंकि पुलिस के पास फिरोजा के साथ रात में फोन पर बात होने का सबूत था, इसलिए मुंह खुलवाने के लिए पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो इम्तियाज जल्द ही टूट गया.

उस ने न केवल फिरोजा के साथ इश्क के चक्कर में बबलू की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली, बल्कि  इस राज को भी बेपरदा कर दिया कि इस जुर्म में फिरोजा भी बराबर से शरीक थी. इसलिए रात में ही पुलिस ने फिरोजा को भी हिरासत में ले लिया. पूछताछ के बाद दोनों ने बबलू की हत्या की चौंकाने वाली कहानी बताई.

इंदौर की न्यू खिजराबाद कालोनी में अपनी खूबसूरत बेगम फिरोजा के साथ रहने वाले हबीब उर्फ बबलू एक स्क्रैप कारोबारी था. वह गुजरात से पुराना सरिया ला कर इंदौर और आसपास के इलाकों में थोक में सप्लाई करता था. सांवेर रोड पर उस की स्क्रैप की दुकान और गोदाम था. बबलू के धंधे में कमल राठी भी उस का सहयोग करता था.

करीब 7 साल पहले बबलू का विवाह फिरोजा से हुआ था. फिरोजा निहायत ही खूबसूरत थी. हालांकि वह तलाकशुदा थी लेकिन उस की खूबसूरती पर बबलू इतना फिदा हुआ कि उस ने तलाकशुदा होने के बावजूद उस से निकाह कर लिया.

निकाह के 2 साल तक तो बबलू फिरोजा के पल्लू से बंधा रहा, लेकिन फिर धीरेधीरे धंधे पर ध्यान देना शुरू किया तो जल्द ही आम पारिवारिक जिंदगी जीने लगा. लेकिन फिरोजा को तो अपने शौहर को हमेशा अपने पल्लू में बांध कर रखने की आदत थी. सो उसे पति की यह बेरुखी रास नहीं आई.

लेकिन सच्चाई केवल इतनी ही नहीं थी. एक सच यह भी था कि बबलू को पराई औरतों के संग वक्त बिताने की लत शादी के पहले से ही थी. यह बात कुछ समय तक तो फिरोजा से छिपी रही, लेकिन कब तक छिपती. जल्द ही उसे पति की इस हरकत का पता चला तो उस ने इम्तियाज के बारे में सोचना शुरू कर दिया.

29 वर्षीय इम्तियाज बबलू का सगा चचेरा भाई था, जो पास में ही मनसब नगर में रहता था. वह उसी रोज से फिरोजा को हसरतभरी निगाहों से देखा करता था, जिस रोज फिरोजा बबलू की बेगम बन कर आई थी. देवरभाभी के रिश्ते का फायदा उठा कर उस ने कुछ समय तक फिरोजा की नजदीकी पाने की कोशिश भी की थी.

इस बात को फिरोजा भी समझती थी पर उस ने उसे लिफ्ट नहीं दी. दूसरे उस समय बबलू दिनरात फिरोजा के पास ही बना रहता था सो उसे सफलता नहीं मिली. लेकिन जब फिरोजा ने शौहर की अय्याशियों की कहानी सुनी तो उसे इम्तियाज का ध्यान आया.

इम्तियाज पहले तो रोज किसी न किसी बहाने उस के घर आता रहता था, लेकिन फिरोजा की बेरुखी को देखते हुए उस का आनाजाना काफी कम हो गया था. इसलिए कुछ दिन बाद एक रोज जब इम्तियाज फिरोजा के घर आया तो फिरोजा ने आगे बढ़ कर उस का स्वागत किया और काफी दिनों बाद आने की शिकायत भी की.

फिरोजा के बदले व्यवहार से इम्तियाज चौंक गया, सो उस रोज के बाद वह आए दिन जानबूझ कर फिरोजा से मिलने ऐसे समय में घर आने लगा जब बबलू अपनी दुकान पर निकल जाता था.

फिरोजा समझ चुकी थी कि इम्तियाज उसे अब भी चाहता है. इसलिए वह इम्तियाज के साथ घुलमिल कर बात करने लगी. जिस का नतीजा यह हुआ कि एक रोज डरतेडरते इम्तियाज ने फिराजा का हाथ पकड़ ही लिया.

‘‘यूं डर कर औरत का हाथ पकड़ने वाले मर्द मुझे अच्छे नहीं लगते. औरत का हाथ थामो तो कलेजा रखो वरना इसी बस्ती में इन आंखों की मस्ती और हुस्न के दीवाने बहुत हैं.’’ फिरोजा ने अदा के साथ आंखें मटकाते हुए इम्तियाज से कहा.

यह सुन कर एक पल के लिए इम्तियाज रुका फिर उस ने झटके से खींच कर फिरोजा को अपनी गोद में गिराते हुए कहा, ‘‘हिम्मत की बात न करो, अगर बबलू की बीवी न होतीं तो कब का उठा कर ले गया होता.’’

‘‘मुझ से कहा तो होता एक बार, उठाने की जरूरत ही नहीं पड़ती, खुद साथ चल देती.’’ कहते हुए फिरोजा ने इम्तियाज को अपनी बांहों के घेरे में जोर से कस लिया.

इस के बाद डरने का कोई कारण इम्तियाज के पास नहीं रह गया था. दोनों ने ही अपनी हदें पार कर के अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

इस घटना के बाद तो मानो दोनों केवल इसी सुख के लिए जिंदा थे. इम्तियाज दिन भर फोन हाथ में पकडे़ रहता और इधर जैसे ही फिरोजा को मौका मिलता, वह इम्तियाज को फोन कर के अपने घर बुला लेती.

2 साल तक दोनों की प्रेमलीला बिना रुकावट के चलती रही. इधर वक्त के साथ बबलू भी दूसरी औरतों के फेर में फिरोजा की तरफ से बेपरवाह होता जा रहा था. फिरोजा कभी कुछ कहती तो उलटे वह उस से मारपीट भी करने लगा था.

इसी दौरान कुछ समय पहले बबलू ने शुजालपुर में 8 बीघा जमीन का सौदा कर उस की रजिस्ट्री फिरोजा के नाम करवा दी. बस इस जमीन के कागज हाथ में आते ही फिरोजा और इम्तियाज का दिमाग घूमना शुरू हो गया. उन्हें लगा कि यदि किसी तरह बबलू से छुटकारा मिल जाए तो वे दोनों इस जमीन पर खेती किसानी कर आसानी से जिंदगी बिता सकते हैं.

इसलिए फिरोजा ने कुछ दिनों से ऐसी हरकतें करनी शुरू कर दीं कि बबलू गुस्से में आ कर उसे तलाक दे दे. बबलू को गुस्सा तो बहुत आता था लेकिन गुस्से में वह तलाक के बदले उस की पिटाई कर देता. इस दौरान बबलू की गैरमौजूदगी में अकसर फिरोजा के पास इम्तियाज के आने से मोहल्ले में दोनों के अवैध संबंधों की चर्चा भी होने लगी थी.

इसलिए दोनों को डर लगने लगा था कि कहीं यह बात बबलू के कानों तक पहुंच गई तो उन का सारा खेल बिगड़ जाएगा, इसलिए दोनों ने महीने भर पहले बबलू की हत्या की योजना बनाने के बाद उस पर अमल करना शुरू कर दिया.

योजना के अनुसार, इम्तियाज ने बड़ी मात्रा में नींद की गोलियां ला कर फिरोजा को दे दीं. फिरोजा यह गोलियां रात के खाने में मिला कर बबलू को खिलाने लगी. उस का सोचना था कि गोली खा कर सोने से बबलू किसी दिन सोता ही रह जाएगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

फिर 28-29 मार्च को फिरोजा ने खाने में और अधिक गोलियां मिला कर बबलू को खिला दीं. इस से बबलू गहरी नींद में चला गया, मगर उस की सांस चलती रही. यह देख कर फिरोजा ने रात डेढ़ बजे अपने प्रेमी देवर इम्तियाज को फोन कर घर बुला लिया.

फिरोजा ने उस से कहा कि इस का आज ही काम तमाम कर दो. तब इम्तियाज ने गहरी नींद में सो रहे बबलू के सिर पर लाठी से जोरदार प्रहार किया. इस से बबलू बेहोश हो गया तो उस ने बड़ा सा चाकू उस के गले में अंदर तक डाल कर चाबी की तरह घुमा दिया.

कुछ ही देर में बबलू की मौत हो गई. इस के बाद दोनों को उस की लाश ठिकाने लगाने की सूझी. इस के लिए इम्तियाज नरवल में रहने वाले अपने दोस्त कादिर से उस की एक्टिवा ले आया था. फिर दोनों ने मिल कर लाश को प्लास्टिक के 2 बोरे पहना कर बंद कर दिया. फिर कमरे का खून साफ करने के बाद दोनों ने सैक्स का खेल खेला.

इस के बाद एक्टिवा पर लाश रख कर इम्तियाज उसे इंदौर से दूर फेंकने के लिए घर से निकला. लेकिन लाश को पकड़ने वाला कोई नहीं था. जैसे ही वह एक्टिवा पर लाश ले कर घर से निकला तो गली के आवारा कुत्ते उस के पीछे दौड़ते हुए भौंकने लगे.

कुत्तों से बचने के लिए इम्तियाज ने एक्टिवा की गति बढ़ा दी जिस से संतुलन बिगड़ जाने से लाश घर से 300 मीटर दूर ही नीचे गिर गई. इस से इम्तियाज डर गया और लाश एक खाली प्लौट में फेंक कर अपने घर चला गया.

घर जा कर उस ने फिरोजा को पूरी बात बता दी कि लाश उस ने कहां फेंकी है. इसलिए सुबह लाश मिलने पर फिरोजा बिना चेहरा देखे ही उसे बबलू की लाश बताते हुए रोने लगी. जिस से पुलिस को उस पर शक हो गया था.

पुलिस ने इम्तियाज और फिरोजा की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त लाठी, चाकू और एक्टिवा भी बरामद कर ली. पुलिस ने मात्र 10 घंटे में ही इस हत्याकांड का खुलासा कर अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इंदौर संभाग के एडीजी वरुण कपूर, डीआईजी (एसएसपी) रुचिका वर्धन ने इस केस को खोलने वाली पुलिस टीम को बधाई दी.

मास्टरनी की खूनी डिग्री : अवैध संबंधों में हुई सीआरपीएफ जवान की हत्या

फर्रूखाबाद के कोतवाली इंसपेक्टर संजीव राठौर अपने औफिस में बैठे थे, तभी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने  उन के औफिस में प्रवेश किया. दिखने में वह संभ्रांत लग रहा था, लेकिन उस के माथे पर परेशानी की लकीरें थीं. राठौर ने उस व्यक्ति को सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया फिर पूछा, ‘‘आप कुछ परेशान दिख रहे हैं. आप अपनी परेशानी बताएं ताकि हम आप की मदद कर सकें.’’

‘‘सर, मेरा नाम रमेशचंद्र दिवाकर है. मैं एटा जिले के अलीगंज थाना अंतर्गत झकरई गांव का रहने वाला हूं. मेरा छोटा भाई दिनेश कुमार दिवाकर पत्नी व बच्चों के साथ आप के ही क्षेत्र के गांव झगुवा नगला में रहता है. दिनेश सीआरपीएफ की 75वीं बटालियन में है और श्रीनगर में तैनात है.

‘‘दिनेश 15 दिन की छुट्टी ले कर 6 जून को आया था, लेकिन वह घर नहीं पहुंचा. उस ने मुझे रात साढ़े 10 बजे मोबाइल पर फोन कर के जानकारी दी थी कि वह घर के नजदीक पहुंच गया है. लेकिन 8 जून को उस की पत्नी रमा ने मेरी मां को जानकारी दी कि दिनेश घर आया ही नहीं है. उस का फोन भी नहीं लग रहा है. श्रीनगर कंट्रोल रूम को भी रमा ने दिनेश का फोन बंद होने की जानकारी दी है. भाई के लापता होने से मैं परेशान हूं और इसी सिलसिले में आप के पास आया हूं. इस मामले में आप मेरी मदद कीजिए.’’

यह बात 10 जून की है. कोतवाल संजीव राठौर ने रमेशचंद्र दिवाकर की बात गौर से सुनी, फिर बोले, ‘‘झगुवा नगला गांव, पांचाल घाट पुलिस चौकी के अंतर्गत आता है. 8 जून को इस गांव के बाहर एक युवक की अधजली लाश बरामद हुई थी. अज्ञात में पंचनामा भर कर लाश को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया था. लाश की कुछ फोटो हैं, आप उन्हें देख लो.’’

श्री राठौर ने लाश के फोटो मंगवाए फिर रमेशचंद्र को देखने के लिए थमा दिए. रमेशचंद्र ने सभी फोटो गौर से देखे और फफक पड़े, ‘‘सर, ये फोटो मेरे भाई दिनेश की लाश के हैं.’’

इस के बाद रमेशचंद्र ने मोबाइल फोन से घर वालों को सूचना दी तो घर में हाहाकार मच गया.

थानाप्रभारी संजीव राठौर ने रमेशचंद्र को धैर्य बंधाया, फिर मृतक के संबंध में जानकारियां जुटाईं. इस के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘रमेशजी, आप को किसी पर शक है?’’

‘‘हां, है.’’ रमेशचंद्र गंभीर हो कर बोले.

‘‘किस पर?’’ संजीव राठौर ने अचकचा कर पूछा.

‘‘भाई दिनेश की पत्नी रमा और उस के आशिक अनमोल उर्फ अमन पर. हत्या की जानकारी रमा के भाई राहुल को भी होगी, लेकिन वह बहन के गुनाह को छिपाना चाहता है.’’

रमेशचंद्र दिवाकर की बात सुन कर संजीव राठौर चौंके. उन्होंने इस घटना की सूचना एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा को दे दी. उन्होंने मामले को गंभीरता से लेते हुए दिनेश की हत्या का परदाफाश करने के लिए एडिशनल एसपी त्रिभुवन सिंह के निर्देशन में एक स्पैशल टीम बना दी. टीम में तेजतर्रार सबइंसपेक्टर, कांस्टेबल तथा महिला सिपाहियों को शामिल किया गया.

रमा ने किया गुमराह

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक दिनेश के बड़े भाई रमेशचंद्र दिवाकर से पूछताछ की तथा उन का बयान दर्ज किया. पूछताछ में रमेशचंद्र ने बताया कि दिनेश 6 जून की रात घर आया था, लेकिन रमा यह कह कर गुमराह कर रही है कि वह घर नहीं आया. रमा के घर से 200 मीटर दूर अधजली लाश खेत में पाई गई थी, लेकिन वह लाश की शिनाख्त के लिए नहीं गई.

एक रोज बाद रमा ने अपने आप को बचाने के लिए सास को पति के लापता होने की जानकारी दी. सब से अहम बात यह कि जब वह झगुवा नगला स्थित रमा के घर गया तो उस ने अपने बच्चों से बात नहीं करने दी.

घर में ताला बंद कर वह भाई राहुल के साथ ससुराल यानी हमारे यहां आ गई. रमा मायके न जा कर ससुराल इसलिए आई ताकि ससुराल वाले उस पर शक न करें. गुमराह करने के लिए ही उस ने श्रीनगर कंट्रोल रूम को फोन किया था.

रमेशचंद्र ने जो अहम जानकारी दी थी, उस से पुलिस टीम ने एएसपी त्रिभुवन सिंह को अवगत कराया तथा हत्या का परदाफाश करने के लिए रमा तथा उस के सहयोगियों की गिरफ्तारी के लिए अनुमति मांगी. त्रिभुवन सिंह ने तत्काल पुलिस टीम को अनुमति दे दी.

अनुमति मिलने पर पुलिस टीम ने रमा की ससुराल झकरई (एटा) में छापा मारा. रमा घर पर ही थी. पुलिस को देख कर वह रोनेधोने का नाटक करने लगी. लेकिन पुलिस टीम ने उस की एक नहीं सुनी और उसे गिरफ्तार कर फर्रूखाबाद कोतवाली ले आई.

रमा का मायका फर्रूखाबाद के चीनीग्राम में था. पुलिस टीम ने वहां छापा मार कर रमा के भाई राहुल दिवाकर को भी गिरफ्तार कर लिया. रमा का प्रेमी अनमोल उर्फ अमन फर्रूखाबाद जिले के थाना मेरापुर के गांव गुठना का रहने वाला था. पुलिस टीम ने उस के घर छापा मारा तो वह घर से फरार था.

घर पर उस के पिता महेश दिवाकर मौजूद थे. उन्होंने बताया कि अनमोल 2 दिन से घर नहीं आया है. पुलिस टीम ने जब उन्हें बताया कि पुलिस को एक हत्या के मामले में अनमोल की तलाश है तो वह आश्चर्यचकित रह गए.

जब पुलिस टीम लौटने लगी तब अनमोल के पड़ोसियों ने बताया कि अनमोल का एक जिगरी दोस्त है रामगोपाल, जो परचून की दुकान चलाता है. अनमोल जब भी फुरसत में होता है, तब रामगोपाल की दुकान पर पहुंच जाता है. दोनों घंटों बतियाते और अपने दिल की बात एकदूसरे को बताते हैं. रामगोपाल को पता होगा कि अनमोल कहां है.

दोस्त से मिली खास जानकारी

यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने रामगोपाल को उस की परचून की दुकान से हिरासत में ले लिया और थाना कोतवाली ला कर जब उस से अनमोल के संबंध में पूछताछ की गई तो वह उस की जानकारी से मुकर गया.

इस पर पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तब उस ने बताया कि अनमोल का एक दोस्त कमलकांत शर्मा है, जो उसी के गांव गुठना का रहने वाला है. कमलकांत उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही है और इन दिनों कानपुर देहात जिले के महाराजपुर थाने में तैनात है. अनमोल संभवत: कमलकांत के ही संरक्षण में होगा.

रामगोपाल से अनमोल के संबंध में अहम जानकारी मिली तो पुलिस टीम ने महाराजपुर थाने से संपर्क कर के सिपाही कमलकांत शर्मा से मोबाइल पर बात की. कमलकांत ने पुलिस टीम के प्रभारी संजीव राठौर को बताया कि अनमोल उस के पास है और वह पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करना चाहता है.

यह सुनते ही पुलिस टीम की बांछें खिल गईं. इस के बाद पुलिस टीम सिपाही कमलकांत के आवास पर पहुंची और अनमोल को फर्रूखाबाद कोतवाली ले आई. अनमोल को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस टीम ने उस के दोस्त रामगोपाल को थाने से रिहा कर दिया.

पुलिस टीम ने थाना कोतवाली पर अनमोल उर्फ अमन से दिनेश कुमार की हत्या के संबंध में पूछताछ शुरू की तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि वह दिनेश की पत्नी रमा से प्यार करता है. दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए थे. दिनेश नाजायज संबंधों का विरोध करता था. इसलिए हम दोनों ने मिल कर उस की हत्या कर दी और शव को खेत में फेंक कर जला दिया.

अनमोल ने यह भी बताया कि उसे दिनेश की हत्या का कोई अफसोस नहीं है बल्कि खुशी है कि उस की जान बच गई. क्योंकि दिनेश उसे व उस की प्रेमिका को ही मारने आया था. इसी वजह से वह घर में बिना किसी को बताए छुट्टी ले कर घर आ गया था. पूछताछ के बाद अनमोल ने हत्या में प्रयुक्त रायफल भी बरामद करा दी, जो उस ने छिपा दी थी.

हो गया हत्या का परदाफाश

रमा का सामना जब अनमोल से हुआ तो उस ने गरदन झुका ली और पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. रमा ने बताया कि पति दिनेश को उस पर शक हो गया था इसीलिए उस ने प्रेमी के साथ मिल कर उसे मौत की नींद सुला दिया. हत्या में उस के भाई राहुल का हाथ नहीं है. लेकिन उसे हम दोनों द्वारा हत्या किए जाने की जानकारी हो गई थी.

पूछताछ के बाद रमा ने घर में खड़ी लाल रंग की वह स्कूटी बरामद करा दी, जिस पर रख कर उस के प्रेमी अनमोल ने लाश खेत में फेंकी थी. राहुल ने पूछताछ में साफ इनकार कर दिया कि उसे हत्या की जानकारी थी, लेकिन पुलिस ने उस की इस बात को खारिज कर दिया.

पुलिस टीम ने दिनेश कुमार की हत्या का परदाफाश करने तथा अभियुक्तों को पकड़ने की जानकारी एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा तथा एएसपी त्रिभुवन सिंह को दी. इस के बाद उन्होंने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता की और अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

चूंकि अभियुक्तों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए कोतवाली प्रभारी संजीव राठौर ने मृतक के बड़े भाई रमेशचंद्र दिवाकर को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत रमा, अनमोल तथा राहुल के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और तीनों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में एक अध्यापिका की पापलीला की सनसनीखेज कहानी सामने आई.

उत्तर प्रदेश का फर्रूखाबाद शहर आलू और बीड़ी उत्पादन के लिए दूरदूर तक मशहूर है. यहां पर आलू खुदाई और बीड़ी बनाने वाले मजदूर ठेके पर काम करते हैं. आलू खुदाई का काम तो मात्र 3 महीने ही चलता है लेकिन बीड़ी बनाने का काम पूरे साल चलता है. यहां का बीड़ी उत्पादन का कारोबार कई राज्यों में फैला है.

बीड़ी व्यापार के लिए दूरदूर से व्यापारी आते हैं. इसे मजदूरों का शहर भी कहा जाता है. इस शहर का नाम फर्रूखाबाद कैसे पड़ा, इस की भी एक कहावत है. पहले फरख बात में बाद उस को कहते फर्रूखाबाद. यानी बात में फरख और विवाद. हर बात में झूठ फरेब का बोलबाला.

इसी फर्रूखाबाद जिले का एक गांव है चीनीग्राम. इसी गांव में देवकरन दिवाकर अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मालती के अलावा बेटी रमा तथा बेटा राहुल था. देवकरन दिवाकर प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. घर में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं.

उन की बेटी रमा खूबसूरत थी. जवानी की राह पर कदम रखते ही उस की सुंदरता में और निखार आ गया. उसे चाहने वाले अनेक थे. लेकिन वह किसी को भाव नहीं देती थी.

रमा बनना चाहती थी टीचर

रमा जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़ नेलिखने में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में पास कर छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर से बीए और बीएड किया था.

उसी दरम्यान उत्तर प्रदेश सरकार ने प्राथमिक शिक्षकों की भरती का विज्ञापन जारी किया. रमा ने भी आवेदन किया लेकिन किसी कारणवश परीक्षा रद्द हो गई, जिस से रमा की शिक्षक बनने की तमन्ना अधूरी रह गई.

देवकरन को जवान बेटी के ब्याह की चिंता सताने लगी थी. इसलिए वह उस के लिए उपयुक्त लड़का तलाशने लगे. बेटी की इच्छानुसार वह किसी शिक्षक वर की तलाश में थे, लेकिन कोई शिक्षक वर मिल नहीं रहा था. उन्हीं दिनों एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्हें दिनेश कुमार के बारे में पता चला.

दिनेश कुमार के पिता राजेश दिवाकर एटा जिले के झकरई गांव में रहते थे. उन के 2 बेटे रमेशचंद्र व दिनेश कुमार थे. राजेश एक संपन्न किसान थे. वह बड़े बेटे रमेशचंद्र का विवाह कर चुके थे जबकि छोटा दिनेश कुमार अभी कुंवारा था. दिनेश सीआरपीएफ की 75वीं बटालियन में श्रीनगर में तैनात था.

राजेश ने दिनेश को देखा तो उन्होंने उसे अपनी बेटी रमा के लिए पसंद कर लिया. दोनों तरफ से बातचीत हो जाने के बाद जनवरी, 2006 में सामाजिक रीतिरिवाज से दिनेश और रमा का विवाह धूमधाम से हो गया.

पढ़ीलिखी व सुंदर बहू पा कर दिनेश के घर वाले फूले नहीं समा रहे थे. ससुराल में रमा को सभी का भरपूर प्यार मिला. घर में उसे किसी चीज की कमी नहीं थी. इस तरह से रमा का सुखमय जीवन व्यतीत होने लगा.

शादी के बाद भी शिक्षक बनने की तमन्ना रमा के दिल में थी. इस बाबत उस ने पति दिनेश और सासससुर से बात की तो उन्हें भी कोई ऐतराज नहीं था.

जब शिक्षक की भरती निकली तो रमा ने भी आवेदन कर दिया. उस ने पति दिनेश से अनुरोध किया कि वह किसी भी तरह से उसे नौकरी दिलवाने की कोशिश करें. दिनेश ने पत्नी की बात मान कर जीजान से कोशिश की तो रमा का चयन हो गया. उसे फर्रूखाबाद के राजेपुरा थानांतर्गत चाचूपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षिका के पद पर नौकरी मिल गई.

मायके से ही करने लगी ड्यूटी

नौकरी लग जाने के बाद रमा का ससुराल में रहना नामुमकिन सा हो गया. दरअसल, उस की ससुराल एटा जिले में थी और नौकरी फर्रूखाबाद जिले में लगी थी, जो उस के घर के नजदीक थी. इसलिए रमा मायके में रह कर अपनी ड्यूटी करती रही.

मायके से आनेजाने का साधन भी था और उस के रहने तथा खानेपीने की उचित व्यवस्था भी थी. सो उसे कोई परेशानी नहीं थी. इस के बावजूद दिनेश ने घूस दे कर रमा का तबादला एटा कराने का प्रयास किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.

रमा का मायके में रहना न तो उस के पति दिनेश को पसंद था और न ही सासससुर को. लेकिन रमा की सरकारी नौकरी थी, इसलिए वे ज्यादा ऐतराज भी नहीं कर सकते थे. लेकिन कुछ दिनों बाद दिनेश ने मायके में रहने पर ऐतराज जताया तो रमा ने फर्रूखाबाद या उस के आसपास जमीन या प्लौट खरीद कर मकान बनाने की सलाह पति को दी.

रमा की सलाह मान कर दिनेश ने कोशिश शुरू की तो उस ने फर्रूखाबाद शहर से सटे झगुआ नगला गांव में एक प्लौट खरीद लिया और वहां 3 कमरे बनवा दिए. पूजापाठ कराने के बाद रमा इसी मकान में रहने लगी. स्कूल आनेजाने में पत्नी को परेशानी न हो, इस के लिए दिनेश ने एक स्कूटी यूपी78ए-0522 भी खरीद कर उसे दे दी.

रमा अब तक एक बेटी और एक बेटे की मां बन चुकी थी. बच्चों की देखरेख व घरेलू काम के लिए उस ने एक महिला को अपने यहां नौकरी पर रख लिया था. इस के अलावा रमा का भाई राहुल भी वहां आताजाता रहता था ताकि बहन के मन में असुरक्षा की भावना पैदा न हो. रमा की सास उर्मिला भी कभीकभी उस के पास आतीजाती रहती थी.

रमा को अपनी जवानी पर था गर्व

रमा 2 बच्चों की मां जरूर बन गई थी लेकिन उस का शारीरिक आकर्षण कम नहीं हुआ था. वह बनसंवर कर और महंगा काला चश्मा लगा कर स्कूटी पर घर से निकलती तो लोग उसे मुड़मुड़ कर देखते थे. रमा को स्वयं भी अपनी जवानी पर गर्व था.

लेकिन ऐसी जवानी का क्या, जिस का कोई कद्रदान न हो. दरअसल रमा का पति दिनेश सीआरपीएफ की 75वीं बटालियन में श्रीनगर में तैनात था. उसे तीसरे चौथे महीने बड़ी मुश्किल से महीना या 15 दिन की छुट्टी मिलती थी.

दिनेश जब साथ होता तो रमा की जिंदगी में बहार आ जाती थी. वह उस के साथ खूब मौजमस्ती करती. लेकिन उस के जाने के बाद उस के जीवन में नीरसता आ जाती. उस का दिन तो स्कूल में बच्चों के बीच कट जाता लेकिन रात करवटें बदलते बीतती थीं. कभीकभी वह सोचती कि उस ने सैनिक के साथ ब्याह कर के भारी भूल की है. उसे तो ऐसा मर्द चुनना चाहिए था, जो उस की तमन्नाओं को पूरा करता.

रमा के मन में पति के प्रति हीनभावना पैदा हुई तो उस का मन भटकने लगा. अब वह जिस्मानी सुख के लिए किसी युवक की तलाश में जुट गई.

रमा ने ढूंढ लिया प्रेमी

उन्हीं दिनों एक रोज रमा की मुलाकात अनमोल उर्फ अमन से हुई. अनमोल फर्रूखाबाद जिले के थाना मेरापुर के गांव गुठना का रहने वाला था. उस के पिता महेशचंद्र दिवाकर सेना में थे किंतु अब रिटायर हो चुके थे. उन के परिवार में पत्नी राजवती के अलावा बेटा अनमोल तथा एक बेटी थी.

महेशचंद्र भी संपन्न किसान थे. उन के पास 20 बीघा उपजाऊ जमीन थी. कृषि उपज के साथ उन्हें पेंशन भी अच्छीखासी मिलती थी. उन के दोनों बच्चे पढ़नेलिखने में तेज थे. बेटी बीए करने के बाद बीएड कर रही थी जबकि अनमोल का चयन बीटीसी में हो गया था. वह एटा से 2 वर्षीय बीटीसी की ट्रेनिंग कर रहा था.

रमा की बुआ प्रीति की शादी अनमोल के ताऊ सुरेशचंद्र दिवाकर के बेटे मुकेश के साथ हुई थी इसलिए अनमोल रमा का खास रिश्तेदार भी था.

अनमोल शरीर से हृष्टपुष्ट व सुदर्शन युवक था. वह रहता भी ठाटबाट से था. रमा उसे अच्छी तरह जानती थी. अत: उस रोज अनमोल रमा के घर अचानक पहुंचा तो उसे देख कर रमा आश्चर्यचकित रह गई. दोनों एकदूसरे को कुछ देर तक अपलक देखते रहे.

रमा की खूबसूरती ने अनमोल के दिल में हलचल मचा दी. कुछ पलों के बाद रमा के होंठ फड़के, ‘‘मेरी याद कैसे आ गई अमन. तुम ने तो मुझे भुला ही दिया.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. तुम्हारी याद तो मुझे हमेशा सताती रहती है. आज फर्रूखाबाद शहर में कुछ काम था. तुम्हारी याद आई तो अपने कदम रोक नहीं पाया और चला आया. तुम से मिल कर दिल को बड़ा सुकून मिला. अब मैं चलता हूं. मौका मिला तो फिर आऊंगा.’’

‘‘अरे वाह, ऐसे कैसे चले जाओगे. आज इतने दिनों बाद तो आए हो. कम से कम एक कप चाय तो पीते जाओ.’’ रमा ने मुसकराते हुए कहा.

अनमोल भी यही चाहता था. कुछ देर में ही रमा 2 कप चाय बना कर ले आई. चाय पीने के दौरान अनमोल की नजरें रमा की देह पर ही टिकी रहीं. इस दौरान जब दोनों की नजरें टकरातीं, अनमोल मुसकरा देता. उस की मुसकराहट से रमा के दिल में हलचल मच जाती. वह सोचती काश ऐसे पुरुष का साथ मिल जाए तो उस के जीवन में बहार आ जाए.

अनमोल रमा से मिल कर अपने घर लौटा तो रमा का खूबसूरत चेहरा उस के दिलो दिमाग में ही घूमता रहा. दूसरी ओर रमा का भी यही हाल था. वह अनमोल की आंखों की भाषा पढ़ चुकी थी. अनमोल जानता था कि रमा का पति फौज में है. वह महीना-15 दिन की  छुट्टी पर आता है और फिर चला जाता है. इसलिए रमा देह सुख की अभिलाषी है. अगर उस की तरफ कदम बढ़ाया जाए तो सफलता मिल सकती है.

अनमोल अब अकसर रमा के घर आने लगा. वह उस के बच्चों के लिए कुछ न कुछ जरूर लाता. रमा के बच्चे भी उस से हिलमिल गए और उसे अंकल कह कर बुलाने लगे. रमा और अनमोल दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़क रहे थे. लेकिन अपनी बात जुबान पर लाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे.

एक दिन अनमोल सुबह 10 बजे रमा के घर पहुंच गया. रमा उस समय घर पर अकेली ही थी. उस के बच्चे स्कूल गए थे और वह बनसंवर कर बाजार जाने की तैयारी कर रही थी. अनमोल को देख कर वह मुसकरा कर बोली, ‘‘अरे अमन तुम, इस वक्त. बच्चे तो स्कूल गए हैं.’’

अनमोल रमा के चेहरे पर नजरें गड़ा कर बोला, ‘‘रमा, आज मैं बच्चों से नहीं तुम से मिलने आया हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ रमा खिलखिला कर हंसी, ‘‘इरादा तो नेक है.’’

‘‘नेक है तभी तो अकेले में मिलने चला आया. रमा, मैं तुम से बहुत प्यार करने लगा हूं.’’ अनमोल ने सीधे ही मन की बात कह दी.

‘‘अनमोल, तुम ने यह बात कह तो दी लेकिन जानते हो प्यार की राह में कितने कांटे हैं,’’ रमा ने गंभीरता से कहा, ‘‘मैं शादीशुदा और 2 बच्चों की मां हूं.’’

‘‘जानता हूं, फिर भी जब तुम चाहोगी, मैं सारी बाधाओं को तोड़ दूंगा.’’ अनमोल ने रमा के करीब जा कर कहा.

इस के बाद अनमोल के गले में बांहें डाल कर रमा ने कहा, ‘‘अमन, मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं. लेकिन शर्म की वजह से दिल की बात नहीं कह पा रही थी.’’

अनमोल ने रमा को पकड़ कर सीने से लगा लिया. फिर तो मर्यादा भंग होते देर नहीं लगी. जिस्मानी रिश्ते की नींव पड़ गई तो वासना का महल खड़ा होने लगा. अनमोल को जब भी मौका मिलता, वह रमा के घर आ जाता और इच्छा पूरी कर के चला जाता.

धीरेधीरे समय बीतता गया तो अमन ने भी अपना दायरा बढ़ा दिया. अब वह कई कई दिनों तक रमा के घर रुक कर मौजमस्ती करता. रमा रात को अपने बच्चों को डांटडपट कर दूसरे कमरे में सुला देती और खुद प्रेमी अनमोल के साथ रात भर जिस्मानी सुख क ा आनंद उठाती.

कहावत है कि औरत जब फिसलती है तो वह सारी मर्यादाओं को ताख पर रख देती है. रमा फिसली तो उस ने भी सारी मर्यादाओं पर पलीता लगा दिया. अनमोल के इश्क में अंधी रमा यह भूल गई कि वह 2 बच्चों की मां है. उस के परिवार की मानमर्यादा है और उस का पति देश की सुरक्षा में अपनी जान हथेली पर रखे हुए है.

बच्चों ने बता दी रमा की करतूत

अनमोल के आने का सिलसिला बढ़ता गया तो पासपड़ोस के लोगों की नजरों में दोनों खटकने लगे. कुछ महीने बाद दिनेश छुट्टी पर आया तो लोगों ने रमा और अनमोल के बारे में उसे बताया.

पड़ोसियों की बात सुन कर दिनेश का माथा ठनका. उस ने अपनी बेटी व बेटे से पूछा तो दोनों ने बताया कि अमन अंकल घर आते हैं और रात को घर में रुकते हैं. मासूमों ने यह बात भी बताई कि मम्मी उन दोनों को अपने कमरे में नहीं लिटातीं. वह उन्हें डांट कर दूसरे कमरे में बंद कर देती हैं. खुद अमन अंकल के साथ सोती हैं.

दिनेश पत्नी रमा पर बहुत अधिक भरोसा करता था. लेकिन आज उस का भरोसा टूट गया था. उस ने गुस्से में पूछा, ‘‘रमा, हमारी गैरमौजूदगी में अनमोल यहां क्यों आता है? वह रात में क्यों रुकता है? तुम दोनों के बीच क्या खिचड़ी पकती है. वैसे मुझे उड़ती खबर मिली है कि तुम्हारे और अनमोल के बीच नाजायज संबंध हैं.’’

रमा न डरी न लजाई. बेबाक आवाज में बोली, ‘‘जिन के पति परदेश में होते हैं, उन की पत्नियों पर ऐसे ही इलजाम लगाए जाते हैं. इस में नया कुछ नहीं है. पड़ोसियों ने कान भरे और तुम ने सच मान लिया. तुम्हें अपनी पत्नी पर भरोसा करना चाहिए.’’

लेकिन दिनेश ने रमा की एक न सुनी. उस ने उसे जम कर पीटा और सख्त हिदायत दी कि अनमोल घर आया तो उस की खैर नहीं. उस ने अनमोल को भी उस के गांव जा कर फटकारा और उस के मांबाप से उस की शिकायत की.

दिनेश जितने दिन घर में रहा, अनमोल को ले कर उस का झगड़ा पत्नी से होता रहा. बात बढ़ जाती तो दिनेश रमा की पिटाई भी कर देता. छुट्टी खत्म होने के बाद दिनेश अपनी ड्यूटी पर चला गया.

दिनेश के जाते ही रमा और अनमोल का मिलन फिर से शुरू हो गया. हां, इतना जरूर हुआ कि अनमोल अब दिन के बजाए रात को आने लगा था. प्रेमिका की पिटाई से अनमोल आहत था. उस का मन करता कि वह दिनेश को सबक सिखा दे.

रमा जान चुकी थी कि उस के बच्चे उस की शिकायत दिनेश से कर देंगे, इसलिए वह अब बच्चों से भी सतर्क रहने लगी थी. बच्चों के सो जाने के बाद ही वह अनमोल को फोन कर घर बुलाती थी. अनमोल शराब पीता था. उस ने रमा को भी शराब का चस्का लगा दिया था. बिस्तर पर जाने से पहले दोनों जाम टकराते थे.

मई के महीने में दिनेश छुट्टी ले कर घर आया तो पता चला कि अनमोल मना करने के बावजूद उस के घर आता है. रमा उसे मना करने के बजाए उस के साथ शराब पीती है. यह सब जान कर दिनेश का खून खौल उठा.

उस ने जम कर रमा की पिटाई की और धमकी दी कि जिस दिन वह दोनों को साथ देख लेगा, उसी दिन उन के सीने में गोली उतार देगा. उस ने रमा के नाजायज रिश्तों की जानकारी अपने भाई रमेशचंद्र को भी दे दी. कुछ दिन घर रुक कर वह फिर वापस श्रीनगर चला गया.

लेकिन इस बार दिनेश का मन ड्यूटी पर नहीं लगा. उस ने किसी तरह अपने अधिकारी से आने के 20 दिन बाद ही 15 दिन की छुट्टी मंजूर करा ली. इस बार दिनेश ने छुट्टी मंजूर होने तथा घर आने की सूचना किसी को नहीं दी. हर बार वह छुट्टी मिलने की सूचना फोन से पत्नी को दे देता था. इस की वजह यह थी कि वह अचानक घर पहुंच कर देखना चाहता था कि पत्नी पीठ पीछे क्या करती है.

इधर दिनेश के जाते ही रमा और अनमोल फिर से मौजमस्ती में डूबने लगे. उन दोनों को विश्वास था कि अब 4 महीने बाद ही दिनेश छुट्टी ले कर घर आएगा.

लेकिन दिनेश 6 जून, 2019 की रात 11 बजे ही अपने घर झगुआ नगला आ गया. दरअसल वह दोनों को रंगेहाथ पकड़ने तथा उन का काम तमाम करने ही आया था. उस रात रमा का प्रेमी अनमोल घर पर ही था और रमा के साथ बिस्तर पर था.

दिनेश ने दरवाजा पीटा तो रमा घबरा गई. दोनों ने जल्दीजल्दी अपने कपड़े दुरुस्त किए और रमा ने अनमोल को दूसरे कमरे की टांड पर छिपा दिया. फिर उस ने जा कर दरवाजा खोला तो सामने उस का पति दिनेश खड़ा था. उस की आंखों में क्रोध की ज्वाला भड़क रही थी.

दिनेश ने देर से दरवाजा खोलने की बाबत रमा से पूछा तो रमा ने गहरी नींद में होने का बहाना बनाया. इस पर दिनेश को शक हुआ तो उस ने रमा का हाथ मरोड़ दिया और पिटाई कर दी.

दिनेश को शक था कि अनमोल घर के अंदर ही कहीं है. अपने शक की पुष्टि के लिए उस ने सभी कमरों की तलाशी ली, लेकिन उसे अनमोल कहीं दिखाई नहीं दिया. अनमोल के न मिलने से दिनेश का गुस्सा कुछ कम हो गया. उस ने कहा कि तुम दोनों को आज मैं एक साथ पकड़ लेता तो दोनों ही जिंदा न रहते.

इस के बाद रमा ने अपने लटके झटके दिखा कर दिनेश का बाकी बचा गुस्सा शांत किया. फिर रमा ने पति को बिस्तर पर संतुष्ट किया.

देह सुख प्राप्त करने के बाद दिनेश गहरी नींद में सो गया. पति के सो जाने के बाद रमा ने अनमोल को टांड से नीचे उतारा. दोनों ने आंखों ही आंखों में इशारा किया फिर दोनों गहरी नींद में सो रहे दिनेश के पास पहुंचे.

दिनेश की रायफल कमरे में ही रखी थी. अनमोल ने लपक कर रायफल उठाई और दिनेश के सीने में 2 गोलियां दाग दीं. दिनेश खून से लथपथ हो कर तड़पने लगा. इसी समय उस की छाती पर सवार हो कर रमा ने तार से उस का गला घोंट दिया.

हत्या करने के बाद दिनेश के शव को उन दोनों ने कमरे में छिपा दिया और बाहर से ताला बंद कर दिया. सवेरा होने से पहले उन्होंने कमरे से खून आदि साफ कर दिया था.

7 जून को दिनेश का शव कमरे में ही बंद रहा. बच्चों ने कमरा खोलने की जिद की तो रमा ने उन्हें बुरी तरह पीट दिया. फिर रात होने पर अनमोल ने दिनेश के शव को बोरी में भरा और स्कूटी पर रख कर गांव के बाहर खेत में फेंक दिया. लाश पहचानी न जाए, इस के लिए उस ने पैट्रोल डाल कर शव को जला दिया.

खून सनी चादर भी उस ने जला दी तथा दिनेश का बैग जिस में उस के कपडे़ वगैरह थे, बस स्टौप जा कर दिल्ली जाने वाली रोडवेज की एक बस में रख दिया तथा मोबाइल तोड़ कर फेंक दिया. ये सब करने के बाद अनमोल फरार हो गया.

8 जून को झगुआ नगला गांव के लोगों ने खेत में जली लाश देखी तो सूचना फर्रूखाबाद कोतवाली पुलिस को दी. शव की पहचान न होने से पुलिस ने शव अज्ञात में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इधर 8 जून को ही रमा ने सास उर्मिला को फोन कर जानकारी दी कि दिनेश छुट्टी ले कर घर आया, लेकिन घर नहीं पहुंचा.

तब 10 जून को रमेशचंद्र भाई का पता लगाने फर्रूखाबाद आया और कोतवाली में अज्ञात शव की फोटो देख कर दिनेश की पहचान की. इस के बाद शक के आधार पर उन्होंने रमा, उस के भाई राहुल तथा प्रेमी अनमोल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. कोतवाली पुलिस ने तीनों को पकड़ कर पूछताछ की तो हत्या का परदाफाश हुआ.

13 जून, 2019 को फर्रूखाबाद कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त अनमोल, राहुल और रमा को फर्रूखाबाद की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. रमा की बेटी तथा बेटा अपने दादादादी के पास सुरक्षित थे.

अनमोल ने दिनेश को रायफल से 2 गोलियां मारी थीं. रात के सन्नाटे में गोलियों की आवाज पड़ोसियों ने जरूर सुनी होगी, लेकिन पुलिस इस बात का पता नहीं लगा पाई कि पड़ोसियों ने गोली की आवाज सुनने वाली बात जानबूझ कर छिपाए रखी या इस की कोई दूसरी वजह थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इश्क में दिल हुआ बागी : प्रेमी ही बना अपराधी

गुरुवार 10 फरवरी, 2022 का दिन ढल चुका था. शाम के यही कोई 6 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के जिला भिंड के सिटी कोतवाली स्थित थाने के ड्यूटी अफसर थाने पहुंचे ही थे कि एक युवक बदहवास हालत में थाना परिसर में दाखिल हुआ. उस के बाल बिखरे हुए थे. कपड़ों पर भी खून के ताजा दाग लगे हुए थे.

पहरा ड्यूटी पर मुस्तैदी के साथ तैनात संतरी ने उसे रोकने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह सीधे ड्यूटी अफसर के सामने जा खड़ा हुआ और फिर हाथ जोड़ कर नमस्कार कर अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘सर, मेरा नाम रितेश शाक्य है. मैं भिंड जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर नौकरी करता हूं और गांधीनगर में अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता हूं.

कुछ देर पहले मैं ने स्टाफ नर्स के पद पर काम करने वाली अपनी प्रेमिका नेहा की गोली मार कर हत्या कर दी है. उस की लाश नवीन आईसीयू वार्ड के स्टोर रूम में पड़ी हुई है. सर, क्योंकि मैं ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर के बड़ा अपराध किया है, अत: मुझे गिरफ्तार कर लीजिए.

युवक की बातें सुन कर ड्यूटी पर तैनात सुरजीत तोमर सन्न रह गए. वह आंखें फाड़े उस युवक को देखने लगे कि कहीं यह नशेड़ी या सनकी तो नहीं है जो इस तरह की बात कर रहा है.

हालांकि थाने में आ कर कोई इस तरह का मजाक करने का साहस तो नहीं कर सकता, इसलिए जब उन्होंने उस युवक को गौर से देखा तो मासूम सा दिखने वाला वह युवक काफी संजीदा लगा. इस का मतलब साफ था कि वह जो कुछ कह रहा है, सच है.

तोमर ने इस बात की जानकारी कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरजीत यादव को दी तो उन्होंने तुरंत उस युवक को हिरासत में लेने के निर्देश दिए. तोमर ने तुरंत युवक को हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी उस समय क्षेत्र में थे. सूचना पा कर वह तुरंत थाने पहुंच गए.

सुरजीत यादव ने आरोपी रितेश से पूछताछ करने के बाद अस्पताल परिसर में स्थित पुलिस चौकी पर तैनात कांस्टेबल नागेंद्र राजावत से बात की तो उन्होंने भी घटना की पुष्टि कर दी.

साथ ही यह भी बताया कि घटना के विरोध में अस्पताल की नर्सें और अन्य कर्मचारी अस्पताल में धरने पर बैठ गए हैं. धरने को ले कर लोगों में काफी आक्रोश है.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी शैलेंद्र सिंह को दी. इस के बाद एसपी के आदेश पर जिले के कई थानों की पुलिस जिला अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने सब से पहले अस्पताल के स्टोर रूम में पहुंच कर स्टाफ नर्स नेहा की लाश अपने कब्जे में ली. वह वहां खून से लथपथ पड़ी थी.

उस की कनपटी के बाईं ओर गोली मारी गई थी. वह सलवारसूट के ऊपर सफेद रंग का एप्रिन पहने हुए थी, जो खून से भीगा हुआ था.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद वहां मौजूद नर्सों से पूछताछ करने पर यह मालूम हुआ कि मृतका आज ड्यूटी खत्म होने के बाद छुट्टी की एप्लीकेशन दे कर एक सप्ताह के लिए अपने मातापिता के पास अपना जन्मदिन मनाने के लिए मंडला जाने वाली थी. इस से पहले कि नेहा अवकाश पर मंडला के लिए रवाना हो पाती, यह घटना घट गई.

नेहा का जन्मदिन 14 फरवरी, 2022 को उस के गृहनगर मंडला में धूमधाम से मनाया जाने वाला था. स्टाफ नर्स की हत्या के बाद दिए जा रहे धरने से स्वास्थ्य सेवा लड़खड़ा जाने और वहां से तनावपूर्ण हालात के बारे में सूचना पा कर एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान एसपी (सिटी) आनंद राय, एसडीएम उदय सिंह सिकरवार फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए थे.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सबूत जुटाए. फोरैंसिक टीम का काम खत्म होते ही एसपी ने सीएमओ डा. अजीत मिश्रा, सिविल सर्जन डा. अनिल गोयल सहित जिला स्वास्थ्य अधिकारी डा. देवेश शर्मा की मौजूदगी में घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण तो किया ही, साथ ही जिला अस्पताल में कार्यरत स्टाफ से पूछताछ कर नेहा के अतीत के बारे में जानकारी एकत्र की.

इस से पता चला कि जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर कार्यरत रितेश नेहा से प्रेम करता था और उस से मिलने उस के धर्मपुरी स्थित कमरे पर भी आताजाता रहता था. लेकिन आज उन दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ, किसी को पता नहीं था.

इस के बाद पुलिस ने नेहा के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और उस के परिजनों को भी इस घटनाक्रम से अवगत कराते हुए शीघ्र भिंड आने के लिए कहा.

वहीं इस हत्याकांड की विवेचना का दायित्व सीएसपी आनंद राय को सौंप दिया. इस से पहले जिला अस्पताल पुलिस चौकी में तैनात कांस्टेबल नागेंद्र राजावत की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 तथा आर्म्स एक्ट 25, 27, 54, 59 के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया.

जिला अस्पताल की नर्स नेहा चंदेला की हत्या के विरोध में नर्सों का दूसरे दिन भी धरना जारी रहा. इस से जिला अस्पताल के अंदर वार्डों में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह लड़खड़ा गई थी. तमाम लोग अपने मरीज की वक्त पर देखभाल न होने की वजह से मरीज को बिना छुट्टी के ही बेहतर उपचार के लिए वहां से ग्वालियर ले कर रवाना हो गए.

हड़ताली नर्सों को समझाने के लिए एसडीएम उदय सिंह सिकरवार, सीएमओ डा. अजीत मिश्रा, सिविल सर्जन डा. अनिल गोयल ने काफी जतन किया, लेकिन जब वे इस में सफल नहीं हुए तो उन्हें थकहार कर नर्सेज एसोसिएशन की प्रांतीय अध्यक्ष रेखा पवार को ग्वालियर वाहन भेज कर बुलाना पड़ा, जिस के बाद उन की समझाइश पर आक्रोशित नर्सें शाम 4 बजे काम पर लौटने के लिए राजी हुईं.

हालांकि इस से पहले जिला अस्पताल के द्वार पर ताला जड़े रहने से उपचार के अभाव में नयापुरा निवासी फिरोज खान की बेगम नाजिया की मृत्यु हो गई थी.

रोज की तरह 10 फरवरी, 2022 को भी नेहा चंदेला अपनी ड्यूटी पर पहुंच कर अपने कामकाज में जुट गई थी. शाम के कोई 5 बजे के करीब उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी तो उसे हैरानी हुई कि ड्यूटी समाप्त होने को है इस वक्त कौन फोन कर रहा है.

लेकिन जब मोबाइल फोन की स्क्रीन पर चिरपरिचित नंबर देखा तो वह चौंकी भी और परेशान भी हुई कि रितेश कैसा बेशरम शख्स है जो उस के मना करने के बावजूद भी हाथ धो कर पीछे पड़ गया है.

फोन रिसीव न करना शिष्टाचारवश उसे उचित नहीं लगा, क्योंकि वह इस बात को भलीभांति जानती थी कि रितेश तब तक काल करता रहेगा, जब तक कि वह उस की काल रिसीव नहीं कर लेगी.

लिहाजा नेहा ने मन मार कर रितेश का फोन रिसीव कर लिया तो रितेश ने उस से अनुरोध किया, ‘‘आज शाम छुट्टी खत्म करने के बाद मंडला जाने से पहले प्लीज एक मर्तबा तुम मुझ से अकेले में मुलाकात कर लो. इस के बाद मुझे कभी भी तुम से बात करने का मौका नहीं मिलेगा.’’

नेहा असमंजस में पड़ गई कि क्या करे क्या न करे. रितेश शाक्य नेहा का बौयफ्रैंड था. वह भी उसी अस्पताल में वार्डबौय था.

6 दिसंबर को नेहा की सगाई गौरव पटेल के साथ तय हो जाने के बाद उस ने रितेश से न सिर्फ बातचीत करनी बंद कर दी थी, बल्कि मेलमुलाकात करनी भी लगभग बंद कर दी थी. नेहा ने रितेश से साफतौर पर कह दिया था कि मेरी सगाई हो जाने के बाद मैं अब तुम से किसी भी तरह का रिश्ता नहीं रखना चाहती.

नेहा का रिश्ता तय होने से खार खाए बैठे रितेश ने नेहा से मोबाइल पर गिड़गिड़ाते हुए कहा था कि आज मिलने के बाद आइंदा वह न तो कभी फोन करेगा और न कभी मिलने की कोशिश करेगा, यह उस का वायदा है.

जिस दिन से नेहा ने रितेश से बात करनी और अकेले में मेलमुलाकात का सिलसिला बंद किया था, उसी दिन से रितेश काफी तनाव में रहने लगा था. रितेश के अनुरोध पर नेहा ने ड्यूटी खत्म होने के बाद स्टोररूम में सिर्फ अंतिम बार बात करने के लिए इस शर्त के साथ अनुमति दे दी थी कि वह अपनी बात मनवाने के लिए किसी तरह की हठ नहीं करेगा.

ड्यूटी समाप्त होने से कुछ समय पहले शाम 5 बज कर 10 मिनट पर रितेश कमर में देशी पिस्टल लगा कर स्टोररूम में दाखिल हुआ. रितेश को देख कर नेहा ने रूखी आवाज में कहा, ‘‘जो भी बात करनी है जल्दी करो, मुझे छुट्टी का एप्लीकेशन दे कर मंडला के लिए निकलना भी है.’’

वार्डबौय रितेश को इतनी तो समझ थी ही कि जिस नम्रता के साथ अपनी प्रेमिका से अंतिम बार मिलने के बहाने स्टोररूम में दाखिल हुआ है, उसी का आश्रय ले कर वह अपनी बात मनवाने के लिए नेहा पर दबाव बनाने का प्रयास करेगा.

बातचीत की शुरुआत में ऐसा हुआ भी. उस ने नेहा से एक बार फिर गुजारिश की कि वह उस का ज्यादा वक्त नहीं लेगा, सिर्फ 10 मिनट ही इत्मीनान के साथ बातचीत करेगा.

नेहा चूंकि जिला अस्पताल में ड्यूटी पर थी, इसलिए उसे किसी तरह का खतरा रितेश से महसूस नहीं हुआ. नेहा का सोचना था कि रितेश अंतिम बार उस से इत्मीनान के साथ बातचीत कर अपनी भड़ास निकाल लेगा तो उस की शादी करने वाली हठ खत्म हो जाएगी.

इस के बाद हमेशा के लिए उस का रितेश से पीछा छूट जाएगा. यही सब सोच कर उस ने रितेश को बातचीत करने के लिए अपनी सहमति दी थी. उस वक्त उसे इस बात का कतई अंदेशा नहीं था कि आज रितेश के सिर पर हैवानियत सवार है. और वह उसे चिरनिद्रा में सुलाने की मंशा से आ रहा है.

बातचीत का दौर शुरू करने से पहले जैसे ही रितेश ने कमर में लगा देसी पिस्टल निकाल कर मेज पर रखा तो नेहा को यह समझते जरा भी देर नहीं लगी कि उस ने रितेश को बातचीत के लिए बुला कर बहुत बड़ी मुसीबत मोल ले ली है.

नेहा के साथ बातचीत का दौर शुरू होते ही रितेश ने नेहा से दोटूक शब्दों में कहा, ‘‘तुम सिर्फ मेरी हो, मेरी ही रहोगी. मैं हरगिज किसी भी सूरत में तुम्हारी शादी गौरव पटेल के साथ नहीं होने दूंगा. बोलो, मेरे से शादी करोगी या नहीं?’’

नेहा ने रितेश से कहा, ‘‘तुम पहले से ही शादीशुदा ही नहीं 2 बच्चों के बाप भी हो. इसलिए मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. मेरे मांबाप ने जिस लड़के से मेरा रिश्ता तय किया है, मैं उसी के साथ शादी करूंगी.’’

इतना सुनते ही रितेश बुरी तरह बौखला गया. उस ने तत्काल मेज पर रखी देसी पिस्टल उठा कर उस की नाल का रुख नेहा की बाएं कनपटी की ओर कर के ट्रिगर दबा दिया. गोली लगते ही नेहा कुरसी पर बैठे ही बैठे चिरनिद्रा में डूब गई.

गोली चलने की आवाज सुनते ही अस्पताल का स्टाफ स्टोर रूम की ओर गया तो नेहा को कुरसी पर लहूलुहान देख कर सभी के जैसे होश उड़ गए. वार्डबौय रितेश के हाथ में तमंचा देख कर उन्हें वाकया समझने में देर नहीं लगी. रितेश सभी को धमकाते हुए अस्पताल से निकल कर सिटी कोतवाली थाने में चला गया और आत्मसमर्पण कर दिया.

कार्यवाहक थानाप्रभारी सुरजीत यादव ने मृतका के मातापिता का पता ले कर उस के घर वालों को मंडला फोन कर के घटना की सूचना दे दी. सूचना पा कर नेहा का बड़ा भाई करीबी रिश्तेदारों को ले कर दूसरे दिन भिंड पहुंच गया.

पुलिस ने रितेश के पिता को भी थाने बुला कर पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रितेश का नेहा नाम की नर्स से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जिस की वजह से रितेश की अपनी पत्नी से भी अनबन चल रही थी. वह नेहा से शादी करना चाह रहा था, लेकिन उन्हें इस बात की कतई जानकारी नहीं थी कि वह उक्त नर्स की हत्या कर देगा.

पूछताछ के बाद रितेश के पिता को घर जाने की अनुमति दे दी गई. पोस्टमार्टम के बाद नेहा का शव उस के घर वाले अंतिम संस्कार के लिए मंडला ले आए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नेहा की मौत गोली लगने से हुई थी.

जांच में पुलिस को पता चला कि नेहा और रितेश के इश्क की नींव वर्ष 2018 में उस वक्त रखी गई, जब वह मंडला से भिंड जिला अस्पताल में बतौर स्टाफ नर्स की नौकरी करने आई थी.

उन दोनों की पहली मुलाकात अस्पताल परिसर में बनी चाय की गुमटी पर हुई थी. उस समय नेहा चाय पीने वहां आई थी, संयोग से तभी रितेश भी वहां पर चाय पीने आया हुआ था. चूंकि रितेश भी जिला अस्पताल में वार्डबौय के पद पर कार्यरत था.

दरअसल, वह नेहा से काफी सीनियर था इसलिए नौकरी के साथ शुरुआती दौर में नर्स के कार्य के गुर सिखाने में उस ने नेहा की काफी मदद की थी.

नेहा उस के इस उपकार से काफी प्रभावित हुई थी. दोनों की जान पहचान होने के बाद उन के बीच मोबाइल पर बातचीत होनी शुरू हो गई. हालांकि रितेश की नौकरी 2009 में संविदा वार्डबौय के तौर पर भिंड के जिला अस्पताल में लगी थी. लेकिन उसे इस बात की उम्मीद थी कि निकट भविष्य में वह स्थाई हो जाएगा. नेहा से मोबाइल पर होने वाली लंबी बातचीत से उस की दोस्ती गहरी होती गई और मित्रता कब इश्क में बदल गई पता नहीं चला.

कहते हैं कि इश्क अंधा होता है वह जातपात के भेद को नहीं मानता. नेहा और रितेश अलगअलग जाति के थे, इस के बावजूद भी रितेश ने तय कर रखा था कि वे ताउम्र साथ रहेंगे और दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें जुदा नहीं कर सकेगी.

नेहा से रोज मुलाकात कर के वह अपने भावी जीवन के सुनहरे सपने देखने लगा था. कहते हैं कि इश्क को कितना भी छिपाने का जतन किया जाए, वह छिपता नहीं है.

नेहा के साथ काम करने वाले स्टाफ से ले कर रितेश के घर वालों को पता चल गया था कि ड्यूटी खत्म होने के बाद रितेश नेहा को बाइक पर ले कर खुल्लम खुल्ला घूमता फिरता है.

रितेश नेहा के प्यार में इतना दीवाना हो गया था कि वह अपनी पत्नी प्रीति की भी उपेक्षा करने लगा था. इस बारे में प्रीति ने रितेश से बात की तो उस ने झिड़कते हुए साफतौर पर कह दिया था कि वह नेहा से सिर्फ प्यार ही नहीं करता है, बल्कि उसे अपने दिल की रानी बना चुका है. निकट भविष्य में वह उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने वाला है.

पति का यह फैसला सुनने के बाद प्रीति भी परेशान रहने लगी कि आखिर वह पति को कैसे समझाए. इस बात को ले कर उन दोनों का आपस में झगड़ा भी रहता था.

रितेश से विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी बरामद कर लिया. इस के बाद उसे भिंड जिला अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

रितेश ने नासमझी और मूर्खतापूर्ण कदम उठा कर न सिर्फ नेहा को असमय मौत की नींद सुला दिया, बल्कि अपने सुनहरे भविष्य पर भी कालिख पोत ली. रितेश के जेल जाने के बाद उस के दोनों मासूम बच्चों सहित पत्नी के भविष्य पर भी ग्रहण लग गया है.

—पंकज द्विवेदी

हवस का शिकार पति

ज्यों ज्यों रात बीतती जा रही थी, त्योंत्यों महाराज सिंह की चिंता बढ़ती जा रही  थी. उन की निगाह कभी घड़ी की सुइयों पर टिक जाती तो कभी दरवाजे पर. बात ही कुछ ऐसी थी, जिस से वह बेहद परेशान थे.

उन का बेटा सुनील कुमार जो उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में टीचर था, घर नहीं लौटा था. वह घर से यह कह कर कार से निकला था कि घंटे 2 घंटे में लौट जाएगा, लेकिन आधी रात बीत जाने पर भी वह वापस नहीं आया था. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. यह बात 30 मई, 2019 की है.

सुबह हुई तो महाराज सिंह ने अपने कुनबे वालों को सुनील कुमार के लापता होने की जानकारी दी तो वे भी चिंतित हो उठे और महाराज सिंह के साथ सुनील को ढूंढने में जुट गए. महाराज सिंह ने मोबाइल से फोन कर के नाते रिश्तेदारों से बेटे के बारे में पूछा. लेकिन सुनील कुमार का कोई पता नहीं चला.

दुर्घटना की आशंका को देखते हुए इटावा, भरथना, सैफई आदि के अस्पतालों में भी जा कर देखा गया, लेकिन सुनील की कोई जानकारी नहीं मिली.

घर वालों के साथ बेटे की खोजबीन कर महाराज सिंह शाम को घर लौटे तो उन की बहू रेखा दरवाजे पर ही खड़ी थी. उस ने महाराज सिंह से पूछा, ‘‘पिताजी, उन का कहीं कुछ पता चला?’’

जवाब में ‘नहीं’ सुन कर रेखा फूटफूट कर रोने लगी. महाराज सिंह ने उसे धैर्य बंधाया, ‘‘बहू, सब्र करो. सुनील जल्द ही वापस आ जाएगा.’’

सुनील कुमार का एक दोस्त था सुखवीर सिंह यादव. वह भी टीचर था और कुसैली गांव में रहता था. उस का सुनील के घर खूब आनाजाना था. महाराज सिंह ने उसे सुनील के लापता होने की जानकारी दी तो वह तुरंत उन के यहां आ गया और महाराज सिंह के साथ सुनील की खोज में जुट गया. वह उन के साथ जरूरत से कुछ ज्यादा ही अपनत्व दिखा रहा था.

उस ने महाराज सिंह से कहा कि वह परेशान न हों, सुनील मनमौजी है इसलिए बिना कुछ बताए कहीं घूमनेफिरने चला गया होगा. कुछ दिन घूमघाम कर वापस लौट आएगा.

महाराज सिंह की बहू रेखा जो अब तक आंसू बहा रही थी, सुखवीर के आने के बाद उस के आंसू रुक गए. वह भी सुखवीर की हां में हां मिलाने लगी थी. वह अपने ससुर महाराज सिंह को तसल्ली दे रही थी कि पिताजी सुखवीर भाईसाहब सही कह रहे हैं. वह कहीं घूमने चले गए होंगे जल्दी ही लौट आएंगे. घबराने की जरूरत नहीं है.

बहू के इस बदले हुए व्यवहार से महाराज सिंह को आश्चर्य तो हुआ लेकिन उन्होंने उस से कुछ कहासुना नहीं. महाराज सिंह बेटे की खोज कर ही रहे थे कि एक अज्ञात नंबर से उन के मोबाइल पर काल आई. फोन करने वाले ने बताया कि सुनील की कार कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर कार पार्किंग में खड़ी है.

यह बताने के बाद उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. महाराज सिंह ने कुछ और जानकारी के लिए काल बैक की तो स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद उन्होंने कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे.

रेखा के पास पति की कार की डुप्लीकेट चाबी थी. वह पति के दोस्त सुखवीर सिंह तथा ससुर महाराज सिंह के साथ कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंची. वहां पार्किंग में सुनील की कार खड़ी थी. पार्किंग वालों को उन लोगों ने सुनील के बारे में बताया, फिर तीनों वहां से कार ले कर लौट आए. घर पहुंच कर सुखवीर सिंह और रेखा ने महाराज सिंह को एक बार फिर धैर्य बंधाया.

लेकिन जब एक सप्ताह बीत गया और सुनील वापस नहीं आया तो महाराज सिंह का धैर्य जवाब देने लगा. उन्होंने बहू रेखा पर दबाव डाला कि वह थाने जा कर सुनील की गुमशुदगी दर्ज कराए. रेखा रिपोर्ट दर्ज कराना नहीं चाहती थी, लेकिन दबाव में उसे तैयार होना पड़ा.

8 जून, 2019 को रेखा अपने ससुर महाराज सिंह के साथ थाना चौबिया पहुंची और थानाप्रभारी सतीश यादव को अपना परिचय देने के बाद पति सुनील कुमार के सप्ताह भर पहले लापता होने की जानकारी दी. बहू के साथ आए महाराज सिंह ने भी थानाप्रभारी से बेटे को खोजने की गुहार लगाई.

थानाप्रभारी सतीश यादव ने सुनील कुमार की गुमशुदगी दर्ज कर के उन दोनों से कुछ जरूरी जानकारियां हासिल कीं, फिर उन्हें भरोसा दिया कि वह सुनील को ढूंढने की पूरी कोशिश करेंगे.

सुनील कुमार गांव केशवपुर राहिन के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक  था. उस का समाज में अच्छा सम्मान था. उस के अचानक लापता होने से विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षकों व आसपास के कई गांवों के शिक्षकों में बेचैनी थी. पुलिस की निष्क्रियता से उन का रोष बढ़ता जा रहा था. शिक्षक भी अपने स्तर से सुनील कुमार की खोज कर रहे थे, पर उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी.

आखिर जब शिक्षकों के सब्र का बांध टूट गया तो उन्होंने और माखनपुर गांव के लोगों ने थाना चौबिया के सामने धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया. सूचना पा कर इटावा के एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा, एडिशनल एसपी (सिटी) डा. रामयश सिंह तथा एडिशनल एसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह थाना चौबिया पहुंच गए.

उन्होंने धरनाप्रदर्शन कर रहे शिक्षकों को समझा कर आश्वासन दिया कि सुनील कुमार की खोज के लिए एक स्पैशल टीम गठित की जाएगी ताकि जल्द से जल्द उन का पता चल सके. एसएसपी के इस आश्वासन के बाद शिक्षकों ने आंदोलन समाप्त कर दिया.

इस के बाद एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा ने एक स्पैशल टीम गठित कर दी. टीम में थाना चौबिया प्रभारी सतीश यादव, क्राइम ब्रांच प्रभारी सत्येंद्र यादव, सीओ (सैफई), अपराध शाखा तथा फोरैंसिक टीम के सदस्यों को शामिल किया गया. टीम का संचालन एडिशनल एसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह तथा एडिशनल एसपी (सिटी) डा. रामयश सिंह को सौंपा गया.

पुलिस टीम ने जांच शुरू की तो पता चला कि लापता शिक्षक सुनील कुमार की दोस्ती कुसैली गांव के शिक्षक सुखवीर सिंह यादव से है. उस का सुनील के घर बेधड़क आनाजाना था.

पुलिस टीम ने गुप्त रूप से पड़ोसियों से पूछताछ की तो पता चला कि सुखवीर सिंह यादव सुनील की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आता था. यह भी पता चला कि सुनील की पत्नी रेखा और सुखवीर के बीच नाजायज संबंध हैं. रेखा सुखवीर के साथ घूमने भी जाती थी.

अवैध रिश्तों की जानकारी मिली तो पुलिस टीम का माथा ठनका. टीम को शक हुआ कि कहीं अवैध रिश्तों के चलते इन दोनों ने सुनील को ठिकाने तो नहीं लगा दिया.

बहरहाल, पुलिस टीम को पक्का विश्वास हो गया था कि सुनील के लापता होने का भेद रेखा और सुखवीर के पेट में ही छिपा है. लिहाजा पुलिस ने 15 जून, 2019 को शक के आधार पर रेखा और सुखवीर को उन के घरों से हिरासत में ले लिया.

थाने ले जा कर पुलिस ने उन दोनों के मोबाइल कब्जे में ले कर उन की काल डिटेल्स की जांच की तो 30 मई की शाम से ले कर रात तक दोनों की कई बार बात होने की पुष्टि हुई. सुखवीर के मोबाइल से एक और नंबर पर कई बार बात हुई थी. उस नंबर के बारे में पूछने पर सुखवीर ने बताया कि यह नंबर उस के रिश्तेदार रामप्रकाश यादव का है, जो औरैया जिले के ऐरवा कटरा थाना के बंजाराहारा गांव में रहता है.

पुलिस टीम ने रेखा और सुखवीर सिंह से लापता शिक्षक सुनील कुमार के संबंध में पूछताछ शुरू की. सख्ती करने पर दोनों टूट गए.

उस के बाद सुखवीर सिंह ने जो बताया, उसे सुन कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. उस ने बताया कि सुनील कुमार अब इस दुनिया में नहीं है. उस ने अपने रिश्तेदार रामप्रकाश की मदद से उस की हत्या कर शव के टुकड़ेटुकड़े कर गड्ढे में डाल कर जला दिए. फिर झुलसे हुए शव को गड्ढे में ही दफन कर दिया.

पुलिस टीम सुनील कुमार के शव को बरामद करने के लिए सुखवीर को साथ ले कर उस के गांव कुसैली पहुंची. गांव में उस के 2 मकान थे. एक मकान में वह स्वयं रहता था तथा दूसरा खाली पड़ा था.

इसी खाली मकान में उस ने अपने दोस्त का शव दफनाया था. सुखवीर की निशानदेही पर पुलिस टीम ने एक कमरे में खुदाई कराई तो गड्ढे से सुनील कुमार की लाश के जले हुए टुकड़े बरामद हो गए.

टीम ने शव बरामद होने की जानकारी एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा को दी तो वह मौकामुआयना करने वहां पहुंच गए. बुलाई गई फोरैंसिक टीम ने भी साक्ष्य जुटाए. जिस फावड़े से हत्या की गई थी, उसे भी बरामद कर लिया गया.

यह जानकारी जब गांव वालों को हुई तो वहां भीड़ जुट गई. मृतक के घर वाले भी वहां आ पहुंचे. बढ़ती भीड़ को देखते हुए एसएसपी ने आसपास के थानों से भी पुलिस फोर्स बुला ली. महाराज सिंह बेटे का शव देख कर बदहवास थे. उन की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

पुलिस टीम ने भारी पुलिस सुरक्षा के बीच मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए इटावा भेज दी. सुखवीर सिंह की निशानदेही पर हत्या में शामिल उस के रिश्तेदार रामप्रकाश को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब रेखा और सुखवीर से उस का सामना हुआ तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. रामप्रकाश ने बताया कि सुखवीर सिंह ने उसे हत्या करने में सहयोग करने के लिए 10 हजार रुपए दिए थे.

इस के बाद एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैसवार्ता की और तीनों कातिलों को पत्रकारों के सामने पेश कर शिक्षक सुनील कुमार की हत्या का खुलासा कर दिया. पुलिस कप्तान ने केस का खुलासा करने वाली टीम को 10 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा की.

कानपुर देहात जिले का बड़ी आबादी वाला एक कस्बा है रूरा. इसी रूरा कस्बे में भगवानदीन अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रुचि के अलावा 2 बेटियां रेखा व बरखा थीं. भगवानदीन गल्ले का व्यापार करते थे. इस धंधे में उन्हें अच्छी कमाई होती थी. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

भगवानदीन स्वयं तो ज्यादा पढ़लिख नहीं पाए थे, लेकिन वह बेटियों को पढ़ालिखा कर योग्य बनाना चाहते थे. उन की बड़ी बेटी रेखा खूबसूरत और पढ़नेलिखने में तेज थी. वह बीए में पढ़ रही थी, उसी दौरान उसे शिक्षा मित्र के पद पर नौकरी मिल गई. वह गुलाबपुर भोरा गांव के प्राथमिक स्कूल में पढ़ाने लगी.

जब रेखा शादी योग्य हुई तो भगवानदीन उस के लिए वर की खोज में जुट गए. रेखा चूंकि शिक्षक थी, इसलिए भगवानदीन उस के लिए शिक्षक वर की ही तलाश रहे थे. काफी दौड़धूप के बाद भगवान दीन को रेखा के लिए सुनील कुमार पसंद आ गया.

सुनील कुमार इटावा जिले के माखनपुर गांव के रहने वाले महाराज सिंह का बेटा था. सुनील के अलावा महाराज सिंह की एक बेटी थी, जिस की वह शादी कर चुके थे. सुनील उच्चतर माध्यमिक विद्यालय केशवपुर रोहिन में पढ़ाता था.

उम्र में सुनील रेखा से करीब 7 साल बड़ा था, पर वह सरकारी नौकरी पर था इसलिए रेखा को भी उस से शादी करने में कोई आपत्ति नहीं थी. अंतत: जनवरी 2008 में उन का विवाह हो गया.

ससुराल में रेखा खुश थी. दोनों का दांपत्य जीवन सुखमय बीतने लगा. सुनील के पास कार थी. छुट्टी वाले दिनों में वह रेखा को कार से घुमाने के लिए निकल जाता था, जिस से उस की खुशियां और भी बढ़ जाती थीं.

समय बीतता गया और रेखा एक के बाद एक 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई. बच्चों के जन्म से घर में किलकारियां गूंजने लगी थीं. रेखा के ससुर महाराज सिंह घर में केवल खाना खाने के लिए ही आते थे. उन का ज्यादातर समय खेतों पर ही बीतता था. वहां उन्होंने एक कमरा भी बनवा लिया था. वह उसी कमरे में रहते थे. वहां रह कर वे ट्यूबवेल तथा फसल की रखवाली करते थे.

रेखा 3 बच्चों की मां जरूर बन गई थी, लेकिन उस की सुंदरता में कमी नहीं आई थी. इस के अलावा वह बिस्तर पर पति का रोजाना ही साथ चाहती थी. लेकिन सुनील उस का साथ नहीं दे पाता था, जिस की वजह से रेखा के स्वभाव में बदलाव आ गया था. वह बात बेबात पति से झगड़ने लगी.

सुनील कुमार का एक शिक्षक दोस्त सुखवीर सिंह यादव था. वह चौबिया थाने के कुसैली गांव का रहने वाला था. दोनों दोस्तों में खूब पटती थी. सुखवीर की आर्थिक स्थिति सुनील से बेहतर थी. वह ठाटबाट से रहता था.

एक रोज सुनील ने अपने दोस्त सुखवीर सिंह यादव को पार्टी देने के लिए अपने घर बुलाया. उस रोज पहली बार सुखवीर ने रेखा को देखा था. पहली नजर में ही रेखा उस की आंखों में रचबस गई. खानेपीने के दौरान सुखवीर की निगाहें रेखा की खूबसूरती पर ही टिकी रहीं. रेखा भी अपनी खूबसूरती का जादू चला कर सुखवीर के दिल को घायल करती रही.

पार्टी के बाद सुखवीर जब जाने लगा तो उस ने रेखा से कहा, ‘‘भाभी, आप बेहद खूबसूरत हैं.’’

यह सुन रेखा सुखवीर को गौर से निहारने लगी फिर उस ने मुसकरा कर सिर झुका लिया. रेखा को दिल में बसा कर सुखवीर चला गया.

इस के बाद सुनील व सुखवीर जब कभी मिलते तो सुनील उसे घर ले आता. सुखबीर चाहता भी यही था. रेखा व उस के बच्चों को रिझाने के लिए कभी वह खानेपीने की चीजें लाता तो कभी खिलौने.

रेखा इन चीजों को थोड़ा नानुकुर के बाद स्वीकार कर लेती थी. सुनील को शक न हो या बुरा न लगे, इस के लिए वह सुनील की भी खातिरदारी करता. दरअसल, सुखवीर बियर पीने का शौकीन था. उस ने इस का चस्का सुनील को भी लगा दिया था.

30-32 वर्षीय सुखवीर शरीर से हृष्टपुष्ट व हंसमुख स्वभाव का था. रेखा से नजदीकी बनाने के लिए वह खूब खर्च करता था. कभीकभी वह रेखा के हाथ पर भी हजार 2 हजार रुपए रख देता था. रेखा मुसकरा कर उन्हें रख लेती थी.

बाद में सुखवीर सुनील की गैरमौजूदगी में भी आने लगा था. वह रेखा को भाभी कहता था. इस बहाने वह उस से खुल कर हंसीमजाक भी करनेलगा. रेखा उस की हंसीमजाक का बुरा नहीं मानती थी, बल्कि सुखवीर की रसीली बातें उस के दिल में हलचल पैदा करने लगी थीं.

सच तो यह है कि रेखा भी सुखवीर को चाहने लगी थी. क्योंकि सुखवीर एक तो उम्र में उस के बराबर था, दूसरे वह हंसमुख स्वभाव का था.

एक रोज सुखवीर स्कूल न जा कर रेखा के घर जा पहुंचा. उस समय रेखा घर में अकेली थी. बच्चे स्कूल गए थे और पति सुनील अपनी ड्यूटी पर. घर का कामकाज निपटा कर रेखा नहाधो कर सजीसंवरी बैठी थी कि सुखवीर आ गया. रेखा की खूबसूरती पर रीझ कर सुखवीर बोला, ‘‘भाभी, बनसंवर कर किस का इंतजार कर रही हो. क्या सुनील भैया जल्दी घर आने वाले हैं?’’

‘‘उन्हें मेरी फिक्र ही कब रहती है, जो जल्दी घर आएंगे.’’ रेखा तुनक कर बोली.

‘‘भैया को फिक्र नहीं तो क्या हुआ, मुझे तो आप की फिक्र है. मैं तो रातदिन तुम्हारी ही खूबसूरती में डूबा रहता हूं.’’ कहते हुए सुखवीर ने दरवाजा बंद किया और रेखा को अपनी बांहों में भर लिया. इस के बाद उस ने रेखा से छेड़छाड़ शुरू कर दी.

दिखावे के लिए रेखा ने उस की छेड़छाड़ का हलका विरोध किया, लेकिन जब उसे सुखद अनुभूति होने लगी तो वह भी उस का सहयोग करने लगी. इस तरह दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

एक ओर सुखवीर जहां रेखा से मिले सुख से निहाल था, वहीं रेखा भी थकी सांसों वाले पति सुनील से ऊब गई थी. सुखवीर का साथ पा कर वह फूली नहीं समा रही थी. उन दोनों ने एक बार मर्यादा की सीमा लांघी तो फिर लांघते ही चले गए. दोनों को जब भी मौका मिलता, एकदूसरे में समा जाते.

सुनील पत्नी के प्रेम प्रसंग से अनभिज्ञ था. उसे पत्नी व दोस्त दोनों पर भरोसा था. लेकिन दोनों ही उस के विश्वास का गला घोंट रहे थे.

सुनील भले ही पत्नी के प्रेम प्रसंग से अनभिज्ञ था, लेकिन पासपड़ोस के लोगों में रेखा और सुखवीर के नाजायज रिश्तों की चर्चा चल पड़ी थी. लेकिन उन दोनों ने इस की परवाह नहीं की. सुखवीर रेखा का दीवाना था तो रेखा उस की मुरीद. रेखा पत्नी तो सुनील की थी, लेकिन उस पर अधिकार उस के प्रेमी सुखवीर का हो गया था.

रेखा और सुखवीर के संबंधों के चर्चे गांव की हर गली के मोड़ पर होने लगे तो बात सुनील के कानों तक पहुंची. उस ने इस बारे में पत्नी से पूछा, ‘‘रेखा, आजकल तुम्हारे और सुखवीर के बारे में गांव में जो चर्चा है, क्या वह सच है?’’

‘‘कैसी चर्चा?’’

‘‘यही कि तुम्हारे और सुखवीर के बीच नाजायज संबंध हैं.’’

‘‘गांव वाले हमें बदनाम करने के लिए तुम्हारे कान भर रहे हैं. इस के बाद भी अगर तुम्हें अपने दोस्त पर भरोसा नहीं तो उस से साफसाफ कह दो कि वह घर न आया करे.’’

सुनील ने उस समय पत्नी की बात पर भरोसा कर लिया, लेकिन उस के मन में शक जरूर बैठ गया. अब वह दोनों को रंगेहाथ पकड़ने की जुगत में लग गया. उसे यह मौका जल्द ही मिल गया.

उस रोज रविवार था. सुनील ने रेखा से कहा कि वह किसी काम से इटावा जा रहा है, देर शाम तक ही वापस आ पाएगा.

इधर सुनील घर से निकला उधर रेखा ने फोन कर के सुखवीर को घर बुला लिया. आते ही सुखवीर ने रेखा को बांहों में कैद किया और बिस्तर पर जा पहुंचा. इसी दौरान रेखा को दरवाजा पीटने की आवाज सुनाई दी. रेखा ने कपड़े दुरुस्त करने के बाद दरवाजा खोला तो सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया और उस की घिग्घी बंध गई.

सुनील पत्नी की घबराहट भांप गया. रेखा को परे ढकेल कर सुनील घर के अंदर गया तो कमरे में उस का दोस्त सुखवीर बैठा मिला. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.

सुनील को देख कर सुखवीर चेहरे पर बनावटी मुसकान बिखेरते हुए बोला, ‘‘आप तो इटावा गए थे. रेखा ने चंद मिनट पहले ही बताया था. मैं इधर से चौबिया जा रहा था तो सोचा आप से मिलता चलूं.’’

सुनील बोला, ‘‘हां दोस्त, गया तो इटावा था लेकिन यह सोच कर वापस आ गया कि तुम दोनों घर में क्या गुल खिला रहे हो, यह भी देख लूं. बहरहाल, तुम ने दोस्ती का अच्छा फर्ज निभाया और मेरी ही इज्जत पर डाका डाल दिया. तुम दोस्त नहीं, दुश्मन हो. अब तुम्हारी खैरियत इसी में है कि आज के बाद हमारे घर में कदम मत रखना.’’

सुखवीर एक तरह से रंगेहाथ पकड़ा गया था. इसलिए वह बिना जवाब दिए ही घर से चला गया. उस के बाद सुनील का सारा गुस्सा रेखा पर उतरा. उस ने पत्नी को बेतहाशा पीटा. रेखा पिटती रही लेकिन अपराध बोध के कारण उस ने जवाब नहीं दिया.

उस दिन के बाद रेखा और सुखवीर का मिलना बंद हो गया. सुनील और सुखवीर की दोस्ती में भी गांठ पड़ गई. लेकिन यह दूरियां अधिक दिनों तक नहीं चल पाईं. एक दिन जब दोनों का सामना हुआ तो सुखवीर ने पैर पकड़ कर सुनील से माफी मांग ली.

सुनील साफ दिल का था इसलिए उस ने उसे माफ कर दिया. इस के बाद दोनों में पहले जैसी दोस्ती हो गई. फिर से सुखवीर के घर आनेजाने लगा. रेखा इस से बहुत खुश थी.

एक रोज सुनील घर से निकला तो इत्तफाक से सुखवीर आ गया. रेखा और सुखवीर अपने प्यार के सिलसिले में बातें करने लगे. तभी रेखा बोली, ‘‘सुखवीर इस तरह लुकाछिपी का खेल कब तक चलेगा?’’

‘‘जब तक तुम चाहोगी.’’

‘‘नहीं, मुझे यह पसंद नहीं. अब मैं कोई स्थाई समाधान चाहती हूं.’’ रेखा ने कहा.

‘‘मतलब?’’ सुखवीर चौंकते हुए बोला.

‘‘मतलब यह कि मैं सुनील से छुटकारा चाहती हूं. अब मैं तुम से तभी बात करूंगी, जब तुम सुनील से छुटकारा दिला दोगे.’’

सुखवीर कुछ पल गहरी सोच में डूबा रहा फिर बोला, ‘‘ठीक है, मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है.’’

इस के बाद रेखा और सुखवीर ने मिल कर सुनील की हत्या की योजना बनाई. अपनी इस योजना में सुखवीर ने अपने एक रिश्तेदार रामप्रकाश को 10 हजार रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया.

योजना के अनुसार, 30 मई, 2019 की शाम 4 बजे सुखवीर सिंह अपने दोस्त सुनील कुमार के घर पहुंचा और उस ने उसे पार्टी की दावत दी. सुनील राजी हो गया तो सुखवीर ने अपने रिश्तेदार रामप्रकाश को फोन कर घर पहुंचने को कहा.

शाम लगभग 6 बजे सुखवीर, सुनील को साथ ले कर अपने गांव कुसैली आ गया. सुनील अपनी कार से आया था. सुखवीर ने सुनील को अपने खाली पड़े मकान में ठहराया. फिर वहीं पर पार्टी की व्यवस्था की. रात 8 बजे के लगभग रामप्रकाश भी कुसैली पहुंच गया. उस के बाद तीनों ने मिल कर बियर की पार्टी की. खाने पीने के बाद सुनील वहीं चारपाई पर सो गया.

आधी रात को जब गांव में सन्नाटा पसर गया तब सुखवीर और रामप्रकाश ने गहरी नींद सो रहे सुनील को दबोच लिया और फावड़े से गरदन काट कर उसे मौत की नींद सुला दी. इस के बद उन दोनों ने शव को दफनाने के लिए कमरे में गहरा गड्ढा खोदा और शव को फावड़े से काट कर कई टुकड़ों में विभाजित कर गड्ढे में डाल दिया.

लाश के उन टुकड़ों पर उस ने केरोसिन उड़ेल कर आग लगा दी फिर उन अवशेषों को गड्ढे में दफन कर दिया. सुबह होने से पहले रामप्रकाश ने गड्ढे को समतल कर गोबर से लीप दिया और उस के ऊपर चारपाई बिछा दी.

लोगों को गुमराह करने के लिए सुखवीर सुनील की कार को कानपुर ले आया और कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन के बाहर पार्किंग में खड़ी कर वापस आ गया. 3 दिन बाद उस ने ही अज्ञात फोन नंबर से फोन कर कार पार्किंग में खड़ी होने की सूचना सुनील के पिता महाराज सिंह को दे दी.

इधर रात 8 बजे महाराज सिंह खेत से घर भोजन करने आए तो पता चला कि सुनील कार ले कर कहीं गया है और वापस नहीं आया. महाराज सिंह यह सोच कर घर में रुक गए कि बच्चेबहू घर में अकेले हैं. जब तक सुनील वापस नहीं आया तो उन की चिंता बढ़ती गई.

धीरेधीरे एक सप्ताह बीत गया पर सुनील का पता न चला, तब महाराज सिंह ने बहू रेखा पर दबाव डाल कर थाना चौबिया में गुमशुदगी दर्ज कराई.

17 जून, 2019 को थाना चौबिया पुलिस ने सुखवीर सिंह यादव, रामप्रकाश यादव तथा रेखा से विस्तार से पूछताछ करने के बाद तीनों को 17 जून को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें इटावा की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लाश को मिला नाम

पंचकूला के थाना मनसादेवी के पास सेक्टर-5 के निकट मजदूरों और कामगारों ने अपने रहने के लिए कच्चे  झोपड़ीनुमा मकान बना रखे हैं. 27 अप्रैल, 2019 की सुबह 6 बजे इन्हीं झुग्गियों की कुछ महिलाएं जंगल की तरफ गईं तो उन्होंने झाडि़यों के बीच एक लाश से धुआं उठते देखा.

यह देखते ही महिलाएं उलटे पांव भागती हुई बस्ती में लौट आईं. उन्होंने शोर मचा कर यह बात सब को बताई. लाश के जलने की बात सुन कर बस्ती के लोग महिलाओं द्वारा बताई जगह पर पहुंच गए. उन्होंने भी वहां एक लाश से धुआं उठते देखा. लाश बुरी तरह झुलस चुकी थी.

इसी दौरान किसी ने पुलिस कंट्रोलरूम को फोन किया. चंडीगढ़ पुलिस कंट्रोलरूम ने घटना की सूचना संबंधित थाना मनीमाजरा को भेज दी. थोड़ी देर बाद थाना मनीमाजरा पुलिस मौके पर पहुंची तो उस ने बताया कि जिस जगह लाश पड़ी है, वह क्षेत्र के पंचकूला इलाके में आता है.

मनीमाजरा पुलिस ने यह खबर पंचकूला के थाना मनसादेवी को भेज दी. सूचना मिलने पर थाना मनसादेवी के एसएचओ विजय कुमार अपनी टीम के साथ तुरंत मौके पर पहुंच गए. साथ ही उन्होंने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी दी.

कुछ ही देर में डीसीपी कमलदीप गोयल, एसीपी (क्राइम) नुपूर बिश्नोई, पंचकूला क्राइम इनवैस्टीगेशन एजेंसी के प्रभारी अमन कुमार फोरैंसिक टीम सहित मौके पर पहुंच गए. जिस लाश के बारे में सूचना दी गई थी, वह मनसादेवी कौंप्लेक्स, विश्वकर्मा मंदिर की बैक साइड पर थाना मनसादेवी से मात्र 500 मीटर की दूरी पर झाडि़यों में पड़ी थी.

पुलिस जब वहां पहुंची, तब भी शव से धुआं उठ रहा था. इस से पुलिस को लगा कि कुछ देर पहले ही शव में आग लगाई गई थी. वह लाश किसी युवती की थी. पुलिस ने मौके पर देखा कि उस के गले में फंदा लगा हुआ था. युवती की जीभ भी बाहर निकली हुई थी और टांगें पूरी तरह फैली हुई थीं. यह सब देख कर दुष्कर्म की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता था.

मौके पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने भी वहां से कुछ सबूत जुटाए. झाडि़यों पर पड़ी बोरी भी कब्जे में ले ली गई. पुलिस की प्राथमिक जांच में सामने आया कि युवती की किसी अन्य जगह पर गला घोंट कर हत्या करने के बाद शव को यहां ठिकाने लगाने की कोशिश की गई थी.

शिनाख्त जरूरी थी

झाडि़यों के पास कच्चे रास्ते पर किसी दोपहिया वाहन के टायरों के निशान भी मिले. ऐसा लगता था, युवती का शव किसी वाहन से वहां तक लाया गया होगा. पुलिस को लगा, जब हत्यारे शव लाए होंगे तो कहीं न कहीं किसी सीसीटीवी कैमरे में कैद जरूर हुए होंगे. युवती के शरीर पर घाव के कई निशान भी मिले.

बहरहाल, मनसादेवी थाना पुलिस ने घटनास्थल पर सब से पहले पहुंचे पीसीआर में तैनात हैडकांस्टेबल सतीश की सूचना पर हत्या और लाश को ठिकाने लगाने की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. शव को सेक्टर-6 जनरल अस्पताल की मोर्चरी में 72 घंटों के लिए सुरक्षित रखवा दिया गया.

लाश इतनी बुरी तरीके से जल चुकी थी कि उस की शिनाख्त करनी बहुत मुश्किल थी. पुलिस के सामने पहला अहम काम था शव की शिनाख्त कराना. उस के बाद ही हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था.

पुलिस ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों को चैक किया. चंडीगढ़ पुलिस से भी घटनास्थल के रास्ते की तरफ आने वाले क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरों को चैक करने की सहायता मांगी गई. इस काम में सीआईए, सेक्टर-19, क्राइम ब्रांच और कई थानों की टीमें लगी थीं.

मृतका के फोटो भी सभी थानों में भिजवा दिए गए थे और पिछले माह लापता हुई 20 से 30 साल की युवतियों के रिकौर्ड भी खंगाले गए. इस के अलावा अधजले शव की पहचान के लिए डीसीपी कमलदीप गोयल के आदेश पर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर की पुलिस को भी सूचना भेज दी गई.

सीआईए इंसपेक्टर अमन कुमार ने सीसीटीवी कैमरे में दिखने वाली एक कार के चालक को हिरासत में ले लिया था, लेकिन लंबी पूछताछ के बाद जब उस से हत्या के संबंध में कोई क्लू नहीं मिला तो उसे छोड़ दिया गया. वहीं मनसादेवी थाना पुलिस ने भी इस मामले में कई संदिग्ध लोगों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ की, पर कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस इस मामले की हर पहलू से जांच कर रही थी.

कार चालक को सीआईए ने भले ही छोड़ दिया था, लेकिन उसे क्लीन चिट नहीं दी थी क्योंकि उस की काले रंग की अल्टो कार की लोकेशन आईटी पार्क से मनसादेवी कौंप्लेक्स के बीच रात एक से 3 बजे के बीच ट्रेस की गई थी.

पुलिस ने मृतका की शिनाख्त के लिए गली गली में उस के पोस्टर लगवा दिए थे, इस के अलावा विभिन्न अखबारों, लोकल टीवी चैनलों पर भी उस की फोटो दिखाई गई थी. इस का नतीजा यह निकला कि लाश मिलने के 2 दिन बाद अखबार से खबर पढ़ कर इंदिरा कालोनी निवासी लल्लन प्रसाद थाना मनसादेवी पहुंच गया.

उस ने एसएचओ से कहा, ‘‘साहब, अखबार में जो अधजली लाश बरामद होने की खबर छपी है, वह लाश मेरी बेटी गुरप्रीत की है.’’

लल्लन की बात सुन कर एसएचओ ने उस से पूछा, ‘‘आप को किसी पर शक है?’’

‘‘हां साहब, मुझे शक नहीं विश्वास है कि यह काम मेरी बेटी के प्रेमी ने किया होगा.’’ लल्लन ने फूटफूट कर रोते हुए यह बात पुलिस को बताई.

लल्लन ने बताया कि उस की बेटी गुरप्रीत नौवीं कक्षा में पढ़ती थी. उस का प्रेम प्रसंग इंदिरा कालोनी के ही रहने वाले एक लड़के से चल रहा था. वह लड़का दूसरी बिरादरी का था, इसलिए हम ने अपनी बेटी को समझाया और जब वह नहीं मानी तो हम ने 2 महीने पहले उस की मंगनी अपनी रिश्तेदारी के एक लड़के के साथ तय कर दी थी.

वह 23 मार्च, 2019 को सुबह 8 बजे स्कूल जाने के लिए घर से निकली थी. लेकिन शाम तक नहीं लौटी. हम ने भी इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि गुरप्रीत इस से पहले भी अपने प्रेमी के साथ घर से चोरीछिपे कई बार जा चुकी थी. लेकिन 1-2 दिन बाद वह अपने आप ही घर लौट आती थी. उन्हें उम्मीद थी कि इस बार भी वह 1-2 दिन में लौट आएगी. पर इस बार ऐसा नहीं हुआ.

जब 2 दिन तक वह घर नहीं लौटी तो हम ने पहले तो रिश्तेदारी में बेटी की तलाश की, लेकिन जब उस का कहीं कुछ पता नहीं चला तो चंडीगढ़ के मनीमाजरा थाने में उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी. वह तो नहीं मिली लेकिन इस बार उस की मौत की खबर जरूर मिल गई.

हालांकि पहले तो पुलिस ने उस की बातों पर विश्वास नहीं किया, लेकिन जब युवती की फोटो सीआईए प्रभारी के पास पहुंची तो वह भी दंग रह गए.

पहचान ली गई लाश

उन्होंने तुरंत वह फोटो मनसादेवी थानाप्रभारी को भेजी और दावा करने वाले व्यक्ति को एसएचओ विजय कुमार के पास भेज दिया. विजय कुमार ने उसे मोर्चरी में रखी झुलसी हुई लाश को पहचानने के लिए अस्पताल चलने को कहा. इस पर लल्लन अपनी पत्नी प्रभा के साथ अस्पताल पहुंच गया.

दोनों को मोर्चरी में रखी लाश दिखाई दी तो लल्लन प्रसाद और उस की पत्नी प्रभा ने लाश को पहचान कर उस की शिनाख्त अपनी बेटी गुरप्रीत के रूप में की. अखबारों से मिली जानकारी के बाद उसी दिन अधजले शव की पहचान के लिए अस्पताल में 60 से अधिक लोग पहुंचे थे, जिस में ट्राइसिटी के अलावा पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर आदि जगहों के लोग भी शामिल थे, जिन की बेटियां, पत्नियां पिछले कुछ महीनों से लापता थीं. लेकिन शव की शिनाख्त उन में से किसी ने भी नहीं की थी.

30 अप्रैल, 2019 को डाक्टरों के पैनल ने लाश का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि मृतका की हत्या गला घोंट कर की गई थी और उस के पेट में चाकू से 3 वार भी किए गए थे. महिला 5 माह की गर्भवती थी. अंत में कागजी काररवाई करने के बाद उस की लाश लल्लन के हवाले कर दी गई थी. उसी दिन उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया था.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस को अब लल्लन की बेटी के हत्यारों और हत्या के कारण का पता लगाना था. इस के पहले कि इस मामले में पुलिस आगे कुछ कर पाती, अगले दिन दिनांक 30 अप्रैल को कहानी में एक नया मोड़ आ गया.

कहानी में आया नया मोड़

इस ट्विस्ट से पंचकूला पुलिस भी आश्चर्यचकित रह गई. लल्लन अपनी जिस बेटी गुरप्रीत का अंतिम संस्कार कर चुका था, वही गुरप्रीत अपने गायब होने के करीब 38 दिनों बाद 30 अप्रैल को रात करीब 9 बजे आईटी थाने में अचानक पहुंच गई.

उस ने पुलिस को बताया कि मैं जिंदा हूं, मेरे प्रेमी को बेवजह मेरी हत्या के आरोप में फंसाया जा रहा है. इस में मेरे पिता की कोई चाल हो सकती है. गुरप्रीत ने बताया कि वह जहां भी गई थी, अपनी मरजी से गई थी. जब उस ने समाचारपत्रों में अपनी हत्या की खबर पढ़ी तो वह हैरान रह गई. इसलिए सच्चाई बताने के लिए वह सीधे थाने चली आई.

आईटी थानाप्रभारी लखबीर सिंह ने इस बात की सूचना एसएचओ मनसादेवी को देने के बाद देर रात तक गुरप्रीत से पूछताछ की. अगले दिन यानी पहली मई को उस का मैडिकल करवाने के बाद उसे सिटी मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर उस का इकबालिया बयान दर्ज करवाया.

एसएचओ मनसादेवी विजय कुमार ने जब लल्लन और उस की पत्नी प्रभा को थाने बुला कर इस बारे में पूछा तो वह गिड़गिड़ा कर कहने लगा, ‘‘साहब, आप ने लाश और उस के जो फोटो हमें दिखाए थे, उस के नाक और कान मेरी बेटी से बिलकुल मिलते थे. इसीलिए हम ने उसे अपनी बेटी की लाश समझा.’’

लल्लन तो इतनी बात कह कर बच निकला पर पंचकूला पुलिस को इस मामले से बचना इतना आसान नहीं था. उस की खिल्ली उड़ रही थी. बहरहाल, गुरप्रीत के लौट आने से लल्लन और चंडीगढ़ पुलिस ने तो चैन की सांस ली पर पंचकूला पुलिस की मुश्किलें बढ़ गई थीं.

लल्लन के गलत शिनाख्त करने के बाद पुलिस ने मृतका को गुरप्रीत मान कर उस का अंतिम संस्कार करवा दिया था और आस लगाए बैठी थी कि लाश की शिनाख्त हो गई है तो उस के हत्यारे भी जल्द पकड़े जाएंगे, पर नए हालात में पुलिस के हाथ खाली थे.

पुलिस एक ऐसी अंधेरी खाई में घुस चुकी थी, जहां से जल्दी निकलना संभव नहीं था. न तो पुलिस के पास मृतका के बारे में कोई जानकारी थी और न हत्यारों का कोई सुराग. कुल मिला कर पुलिस को इस ब्लाइंड केस को सुलझाने के लिए नए सिरे से तहकीकात करनी थी. क्योंकि मृतका गर्भवती थी, इसलिए पुलिस अब इसे औनर किलिंग के एंगल से भी देख रही थी.

दूसरी ओर लल्लन की बेटी के वापस आने से उस के तथाकथित प्रेमी की मां ताज ने अपने रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों के साथ थाने जा कर हंगामा खड़ा कर दिया और थाने में बैठे लल्लन और उस की पत्नी प्रभा को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘मैं कहती थी न कि मेरा बेटा ऐसा कभी नहीं कर सकता, वह गुरप्रीत से सच्ची मोहब्बत करता है, उस की हत्या नहीं कर सकता. लल्लन और उस के परिवार ने पुरानी रंजिश निकालने के  लिए मेरे बेटे को फंसाने की कोशिश की है.’’

आखिर लाश की हो गई शिनाख्त

अब थाना मनसादेवी पुलिस इस की जांच करने में जुट गई कि आखिर वह युवती कौन थी, जिस का अंतिम संस्कार लल्लन ने अपनी बेटी गुरप्रीत जान कर किया. थोड़ी कोशिश के बाद मनसादेवी पुलिस को मृतका के बारे में एक छोटी सी जानकारी मिली.

पता चला कि वह लाश सूरजपुर की रहने वाली किसी युवती की थी. पुलिस जब सूरजपुर पहुंची तो वहां मृतका का पिता ऋषिपाल मिला. मनसादेवी पुलिस ने ऋषिपाल से बात की तो उस ने बताया कि उस की बेटी आरती 26 अप्रैल की रात से लापता है. उस ने पुलिस में गुमशुदगी दर्ज करा दी है.

इस बार पुलिस कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. पुलिस ने युवती की झुलसी हुई लाश के जो सैंपल सुरक्षित रखे हुए थे, उन से ऋषिपाल का डीएनए मैच करवा कर देखा तो वह मिल गया. इस से यह बात भी साबित हो गई कि मृतका ऋषिपाल की ही बेटी थी. अब इस बात की पुष्टि हो गई कि वह अधजला शव ऋषिपाल की 28 वर्षीय बेटी सुनीता उर्फ आरती का था.

सुनीता शादीशुदा महिला थी. उस की 11 साल की एक बेटी भी है. सुनीता की शादी लगभग 12 साल पहले हुई थी. पिछले 3-4 सालों से उस की अपने पति से अनबन चल रही थी, जिस कारण वह अपने मातापिता और भाई भाभी के साथ सूरजपुर में ही रह रही थी.

पुलिस ने मृतका के परिजनों से उस का मोबाइल नंबर ले कर उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की. उस में एक ऐसा नंबर हाथ लगा, जिस से मृतका की घंटों तक बातें हुआ करती थीं. वह नंबर चेक टाउन के रहने वाले 26 वर्षीय आनंद नाम के युवक का था.

पुलिस ने आनंद के नंबर की जांच की तो 27 अप्रैल, 2019 को उस के फोन की लोकेशन भी उसी जगह की मिली, जहां सुनीता उर्फ आरती की झुलसी हुई लाश मिली थी. सारे सबूत मिल जाने के बाद 3 मई, 2019 को सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर अमन कुमार ने अपनी टीम के साथ मनीमाजरा, पीपली से आनंद और उस के छोटे भाई आजाद को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ के दौरान आनंद ने बिना कोई नौटंकी किए अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उस ने ही सुनीता उर्फ आरती की हत्या की थी, क्योंकि वह उसे शादी करने के लिए ब्लैकमेल कर रही थी.

हालांकि बाद में ब्लैकमेल वाली बात झूठी साबित हुई थी. बहरहाल, उसी दिन डीएसपी कमल गोयल ने प्रैसवार्ता कर इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया था. अगले दिन आनंद और आजाद को अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड के दौरान की गई विस्तृत पूछताछ में इस हत्याकांड की कहानी कुछ इस प्रकार सामने आई.

जिस प्रकार मृतका सुनीता उर्फ आरती का अपने पति से विवाद चल रहा था और वह अपनी बेटी के साथ अपने भाई के घर अकेली रह रही थी, ठीक उसी तरह से आनंद भी अपनी पत्नी के साथ विवाद के चलते अकेला अपने मांबाप के साथ रह रहा था.

आज से लगभग 9 महीने पहले सुनीता अपनी भाभी के साथ किसी शादी में जाने के लिए लहंगा खरीदने सेक्टर-19 की मार्केट स्थित एक शोरूम में गई थी. आनंद भी उसी शोरूम पर काम करता था. यहीं दोनों की पहली मुलाकात हुई थी और पहली नजर में ही दोनों एकदूसरे को अपना दिल दे बैठे थे. दोनों ने अपने अपने फोन नंबर एकदूसरे को दे दिए थे और अकसर रात को फोन पर घंटों बातें किया करते थे.

अकेले रहने के कारण दोनों देहसुख पाने के लिए तड़प रहे थे. सो इस के बाद दोनों के बीच संबंध बन गए थे. पहले तो दोनों बाहर कहीं होटल आदि में मिल कर अपनी प्यास बुझा लिया करते थे, लेकिन बाद में मृतका आनंद के घर पीपली टाउन जाने लगी थी.

वैसे इन दोनों के संबंधों का दोनों के घर वालों को पता था. उन दोनों के बीच सब ठीकठाक ही चल रहा था. दोनों खुश भी थे और आपस में शादी कर लेना चाहते थे.

एक दिन अचानक सुनीता को पता चला कि वह गर्भवती हो गई है तो उस ने यह बात आनंद को बताते हुए कहा कि वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है और अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. आनंद को यह बात अच्छी नहीं लगी. उस ने बात टालते हुए कहा, ‘‘इस बारे में बाद में बात करेंगे.’’

सुनीता को उस का यह रूखा व्यवहार अच्छा नहीं लगा. कहां तो उस ने सोचा था कि बच्चे वाली बात सुन कर आनंद खुश हो जाएगा, लेकिन यहां तो बात उलटी ही निकली. बच्चे की बात को ले कर दोनों के बीच तनाव पैदा हो गया था. आरती जब भी आनंद से शादी की बात करती तो वह टाल देता था. इसी तरह तनाव भरे माहौल में समय बीतता गया और आरती के पेट में पल रहा बच्चा 5 माह का हो गया था.

अब तो आरती के शरीर में भी परिवर्तन आ गया था. दूसरी ओर आनंद शादी से साफ इनकार करने लगा था. दरअसल आनंद शुरू से ही शादी वादी के लिए तैयार नहीं था. वह बस मुफ्त में मजे लेने के पक्ष में था. उस का कहना था कि हम दोनों केवल अपने अपने शरीर की जरूरतें पूरी करते हैं. जबकि सुनीता इस मामले में गंभीर थी.

छली गई थी सुनीता

आनंद हर समय सुनीता पर इस बात का दबाव डालता था कि वह अबार्शन करवा कर इस मुसीबत से छुटकारा पा ले. एक दिन तो शादी को ले कर हो रही बहस के दौरान उस ने आरती से यहां तक कह दिया, ‘‘मैं कैसे मान लूं कि यह बच्चा मेरा ही है. क्या पता मेरे अलावा तुम्हारे संबंध न जाने किनकिन लोगों के साथ होंगे.’’

यह बात आरती को बहुत बुरी लगी. इस बात को ले कर दोनों में काफी नोकझोंक हुई. आनंद सुनीता से अपना पीछा छुड़ाने की पहले से ही योजना बना चुका था. अब उसे अपनी योजना को अमली जामा पहनाना था. 26 अप्रैल को दोनों की फोन पर शादी वाली बात को ले कर काफी बहस हुई. अंत में आनंद ने उसे रात 8 बजे घर पर मिलने के लिए बुलाया.

जब सुनीता वहां पहुंची तो आनंद के साथ उस का छोटा भाई आजाद भी था. आनंद ने फिर से उसे गर्भपात कराने के लिए कहा, जबकि सुनीता किसी भी कीमत पर गर्भपात कराने के लिए तैयार नहीं थी. वह अपनी बात पर अड़ी थी. इसे ले कर आनंद और सुनीता के बीच झगड़ा हो गया.

आनंद ने सुनीता पर अबार्शन का दबाव बनाने के लिए गुस्से में आ कर कई थप्पड़ मारे. इस पर सुनीता ने गुस्से में आ कर अपना गला अपनी चुन्नी से दबा लिया, जिस से वह बेहोश हो कर जमीन पर पड़ी थी. तभी दोनों भाइयों ने वह चुन्नी और खींच दी, जिस से उस का गला घुटने से मौत हो गई और उस की जीभ भी बाहर निकल आई. इस के बाद आनंद ने चाकू से पेट और आसपास के हिस्से में 3 वार किए.

हत्या करने के बाद दोनों भाइयों ने सुनीता के शव को जूट की बोरी में डाला और लाश को सुनीता की ही एक्टिवा पर अगले हिस्से में रख लिया. मनीमाजरा से चल कर दोनों भाई मनसादेवी थाने के क्षेत्र में पहुंचे, जहां उन्होंने सुनीता का शव झाडि़यों में डाल दिया. वहां घुप्प अंधेरा था और जगह भी एकदम सुनसान थी.

लाश को ठिकाने लगाने के लिए उन्हें यह जगह ठीक लगी. इस के बाद दोनों भाई मनीमाजरा स्थित पैट्रोल पंप पर पहुंचे, जहां उन्होंने एक्टिवा की टंकी फुल करवाई और वापस लाश के पास पहुंच गए.

एक्टिवा की टंकी से पैट्रोल निकाल कर उन्होंने लाश पर छिड़का और आग लगा कर वहां से अपने घर चले आए. यह बात 26-27 अप्रैल की रात की है. हालांकि आरोपियों ने अपनी तरफ से हत्या का कोई सबूत नहीं छोड़ा था, फिर भी पुलिस मोबाइल डिटेल्स के सहारे दोनों हत्यारोपियों तक पहुंच ही गई.

दोनों भाइयों से पूछताछ करने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड अवधि के दौरान सीआईए पुलिस ने मृतका की एक्टिवा और हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. मामले की तफ्तीश चल रही है. पुलिस महिला की हत्या के आरोपी आनंद और आजाद को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है.

पुलिस को संदेह है कि इस हत्याकांड में कोई और भी शामिल हो सकता है. पुलिस सभी पहलुओं पर जांच कर रही है. इस के अलावा पुलिस यह भी जांच कर रही है कि 38 दिनों तक गुरप्रीत आखिर कहां और किस के साथ रही थी.

प्यार की खातिर : बचपन के प्यार को पाने की जिद

शाम का वक्त था. दिल्ली के वसंत कुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल का पूरा स्टाफ अपनी ड्यूटी पर था. तभी एक युवक अस्पताल के स्ट्रेचर को ठेलता हुआ अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंचा और बदहवासी में बोला, ‘‘डाक्टर साहब, मेरी वाइफ ने जहर खा लिया है, इसे बचा लो वरना मैं जी नहीं सकूंगा.’’

उस की बात सुन कर अस्पताल के डाक्टरों ने उस युवती का चैकअप शुरू किया. उस की नब्ज और धड़कन गायब थीं. चैकअप के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. डाक्टर द्वारा पूछे जाने पर मृतका के साथ आए युवक राहुल मिश्रा ने बताया कि उस ने औफिस से लौटने के बाद पूजा को फर्श पर बेसुध पड़े देखा, उस की बगल में ही एक सुसाइड नोट पड़ा था.

नोट को पढ़ने के बाद उस की समझ में आया कि पूजा ने जहर खा लिया है. इस के बाद वह पूजा को गाड़ी में डाल कर सीधे अस्पताल ले आया.

चूंकि मामला सुसाइड का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने पूजा राय की मौत की सूचना इलाके के थाना किशनगढ़ को दे दी. थोड़ी ही देर में किशनगढ़ थाने की पुलिस वहां पहुंच गई. पूजा की लाश को अपने कब्जे में ले कर पुलिस राहुल मिश्रा से घटना के बारे में पूछताछ करने लगी.

पूछताछ के दौरान राहुल मिश्रा ने पुलिस को बताया कि वह गुड़गांव की एक बड़ी कंपनी में मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर तैनात है. थोड़ी देर पहले जब वह फ्लैट में पहुंचा तो पूजा फर्श पर पड़ी थी और उस के बगल में सुसाइड नोट रखा था, जिस में उस ने सुसाइड करने की बात लिखी थी.

पूजा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए सफदरजंग अस्पताल भेज कर थानाध्यक्ष राजेश मौर्य पूजा के पति राहुल मिश्रा के साथ उस के फ्लैट में पहुंचे. राहुल ने उन्हें पूजा का लिखा हुआ सुसाइड नोट सौंप दिया. कमरे का मुआयना करने के बाद थानाध्यक्ष राजेश मौर्य किशनगढ़ थाना लौट गए. पहली नजर में उन्हें यह मामला सुसाइड का ही लग रहा था.

उसी दिन यानी 16 मार्च, 2019 को किशनगढ़ थाने में सीआरपीसी 173 के तहत यह मामला दर्ज कर लिया गया. अगले दिन डाक्टरों की एक टीम ने पूजा राय का पोस्टमार्टम किया. उस का विसरा भी जांच के लिए रख लिया गया. इस दौरान थानाध्यक्ष राजेश मौर्य ने पूजा के मायके सिंदरी, झारखंड को इस घटना की सूचना दे कर उस के पिता सुरेश राय को दिल्ली बुला लिया.

सुरेश राय ने अपने दामाद पर आरोप लगाते हुए थानाध्यक्ष राजेश मौर्य से कहा, ‘‘मेरी बेटी पूजा ने सुसाइड नहीं किया है, बल्कि उस की हत्या की गई है.’’

राजेश पर आरोप लगने के बाद पुलिस ने 18 मार्च को 3 डाक्टरों के पैनल से पूजा का पोस्टमार्टम कराया. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम के बाद उस के विसरा को जांच के लिए भेज दिया. करीब एक महीने के बाद 27 अप्रैल, 2019 को पूजा का पोस्टमार्टम तथा विसरा रिपोर्ट आ गई, जिस में उस के मरने का कारण उस के सिर में घातक चोट का लगना तथा जहर मिला जूस पीना बताया गया.

इस के बाद पुलिस ने 31 अप्रैल को पूजा राय की हत्या का मामला आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत दर्ज कर लिया. इस मामले की तफ्तीश थानाध्यक्ष राजेश मौर्य को सौंपी गई.

केस की जांच संभालते ही थानाध्यक्ष राजेश मौर्य ने अपने आला अधिकारियों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट तथा केस में आए इस बदलाव से अवगत करा दिया. साउथ वेस्ट दिल्ली के डीसीपी देवेंद्र आर्य इस मामले में पहले से ही दिलचस्पी ले रहे थे.

उन्होंने केस का खुलासा करने के लिए एसीपी ईश्वर सिंह की निगरानी में एक टीम बनाई, जिस में थानाध्यक्ष राजेश मौर्य, इंसपेक्टर संजय शर्मा, इंसपेक्टर नरेंद्र सिंह चहल, एसआई मनीष, पंकज, एएसआई अजीत, कांस्टेबल गौरव आदि को शामिल किया गया.

थानाध्यक्ष ने उसी दिन मृतका के पति राहुल मिश्रा को थाने बुला कर उसे बताया कि पूजा ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि किसी ने उस की हत्या की है. इसलिए वह इस मामले को सुलझाने में सहयोग करें.

थानाध्यक्ष की बात सुन कर राहुल को हैरानी हुई. वह बोला, ‘‘सर, पूजा की तो किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. ऐसे में भला उस की हत्या कौन कर सकता है? अगर ऐसा है तो मेरी पत्नी के हत्यारे का पता लगा कर उसे जल्द से जल्द पकड़ने की कोशिश करें.’’

‘‘चिंता मत करो, पुलिस अपना काम करेगी. बस आप जांच में सहयोग करते रहना.’’ थानाध्यक्ष ने कहते हुए राहुल से उस से और पूजा से मिलने आने वाले सभी लोगों के फोन नंबर ले कर सभी नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की बारीकी से जांच की. राहुल की काल डिटेल्स में एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर उस की ज्यादा बातें होती थीं.

वह नंबर पद्मा तिवारी का था, जो दिल्ली के मयूर विहार में रहती थी. राहुल ने बताया कि पद्मा उस की दोस्त है. घटना वाले दिन भी पद्मा ने शाम के वक्त राहुल के मोबाइल पर फोन कर उस से काफी देर तक बातें की थीं. इस से दोनों ही पुलिस के शक के दायरे में आ गए.

इस के बाद थानाध्यक्ष राजेश मौर्य ने राहुल के फ्लैट पर पहुंच कर वहां आसपड़ोस में रहने वालों से पूछताछ की तो पता चला कि 16 मार्च, 2019 की सुबह पद्मा तिवारी पूजा से मिलने उस के फ्लैट पर आई थी. इस के बाद किसी ने पूजा को फ्लैट से बाहर निकलते नहीं देखा था. अलबत्ता शाम के वक्त राहुल पूजा को बेहोशी की हालत में ले कर फोर्टिस अस्पताल गया था.

थानाध्यक्ष को अब मामला कुछकुछ समझ में आने लगा था, लेकिन उस वक्त उन्होंने राहुल मिश्रा से ऐसा कुछ नहीं कहा जिस से उसे पता चले कि उन्हें उस के ऊपर शक हो गया है.

राहुल से पूछताछ के बाद जब वह अपनी टीम के साथ वहां से चलने को हुए तो राहुल को फिर से थाने में आने का आदेश दिया. इस के अलावा उन्होंने राहुल की दोस्त पद्मा तिवारी को भी फोन कर उसे किशनगढ़ थाने में पहुंच कर मामले की जांच में सहयोग करने के लिए कह दिया.

जब राहुल और पद्मा किशनगढ़ थाने में पहुंचे तो उन दोनों से उन की काल डिटेल्स तथा उन के द्वारा पूर्व में दिए गए बयानों में आ रहे विरोधाभासों के आधार पर अलगअलग पूछताछ की गई तो उन के बयानों में फिर से काफी विरोधाभास नजर आया.

सुसाइड नोट की राइटिंग की जांच के लिए पुलिस ने पद्मा की हैंडराइटिंग की जांच की. इस जांच में पुलिस को सुसाइड नोट की राइटिंग और पद्मा की हैंडराइटिंग काफी हद तक एक जैसी लगी.

तीखे पुलिसिया सवालों से आखिर पद्मा टूट गई. उस ने पूजा की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. फिर राहुल ने भी मान लिया कि पूजा की हत्या पूरी तरह सुनियोजित थी. इतना ही नहीं, घटना वाले दिन पद्मा ने उस के मोबाइल पर फोन कर उसे पूजा की हत्या की जानकारी दी थी.

उन्होंने पूजा की हत्या क्यों की, इस बारे में जब उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो पूजा राय की हत्या के पीछे जो तथ्य उभर कर सामने आए, वह बचपन के प्यार को पाने की जिद की एक हैरतअंगेज कहानी थी.

कहा जाता है कि बचपन की दोस्ती और स्कूल के दिनों का प्यार भुलाए नहीं भूलता. और जब शादी के बाद वही बचपन का प्यार उस के शादीशुदा जीवन में अचानक सामने आ कर खड़ा हो जाए तो जिंदगी किस दोराहे या चौराहे पर पहुंचेगी, यह अनुमान लगाना आसान नहीं होता. कुछ ऐसा ही हुआ 32 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर राहुल मिश्रा और उस के बचपन की दोस्त 33 वर्षीय एमबीए पद्मा तिवारी के साथ.

राहुल मिश्रा अपने पिता रामदेव मिश्रा के साथ झारखंड के शहर सिंदरी में रहता था. वह वहां के डिनोबली स्कूल में पढ़ता था. पद्मा तिवारी भी उस के क्लास में थी. पद्मा तिवारी के मातापिता भी सिंदरी में रहते थे. दोनों बचपन से ही एकदूसरे के दोस्त थे. उम्र बढ़ने के साथ उन की दोस्ती प्यार में बदल गई.

12वीं पास करने के बाद दोनों आगे की पढ़ाई के लिए न चाहते हुए भी एकदूसरे से बिछड़ गए, क्योंकि राहुल मिश्रा ने ग्वालियर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली थी और सन 2010 में गुड़गांव स्थित एक कंपनी में उस की नौकरी लग गई. राहुल अपनी नौकरी में व्यस्त था. उस का पद्मा तिवारी से एक तरह से संपर्क टूट गया था.

सन 2015 में राहुल मिश्रा के स्कूल के दोस्तों ने एक वाट्सऐप ग्रुप बनाया, जिस में राहुल मिश्रा और पद्मा तिवारी का नाम भी शामिल था. इस ग्रुप के द्वारा पद्मा ने राहुल मिश्रा से मोबाइल फोन पर संपर्क किया. चूंकि उन की काफी दिनों बाद बातचीत हुई थी, इसलिए वे बहुत खुश हुए.

बातचीत से पता चला कि पद्मा ने नोएडा में रह कर एमबीए किया था. उस के बाद उसे नोएडा की एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई थी. इस समय वह नोएडा में नौकरी कर रही थी, जहां उसे अच्छी खासी तनख्वाह मिलती थी. इस के बाद दोनों लगातार एकदूसरे से फोन पर बातें करने लगे.

इस से उन के स्कूल के दिनों का प्यार फिर से जीवित हो गया. अब दोनों ही अच्छी सैलरी ले रहे थे, इसलिए उन का जब मन होता, वे इधर उधर घूम कर दिल की बातें कर लेते थे. उन की नजदीकियां उस मुकाम पर पहुंच चुकी थीं कि अब दोनों को कोई जुदा नहीं कर सकता था.

लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. सन 2017 में जब राहुल मिश्रा के घर में उस की शादी की बात चली तो उन लोगों ने अपनी बहू के रूप में सिंदरी की ही रहने वाली पूजा राय को पसंद कर लिया. इस पर राहुल ने अपने घर वालों को बताया कि वह सिंदरी की रहने वाली सहपाठी पद्मा तिवारी से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है.

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                                                 राहुल और पूजा

राहुल ने घर वालों को यह भी बताया कि एमबीए करने के बाद पद्मा नोएडा की एक कंपनी में ऊंचे पद पर नौकरी कर रही है. लेकिन राहुल के पिता रामदेव मिश्रा ने राहुल की बात को हलके में लिया और उस की बात अनसुनी करते हुए पूजा से ही उस की शादी पक्की कर दी.

बनने लगी हत्या की योजना

राहुल को इस बात का दुख हुआ. वह अब ऐसा उपाय सोचने लगा कि किसी तरह उस की पूजा से शादी टूट जाए. उस ने तय कर लिया कि वह पूजा से मिल कर बता देगा कि उस का पद्मा के साथ अफेयर चल रहा है.

एक दिन वह पूजा राय के पास पहुंचा और अपने व पद्मा तिवारी के बीच सालों से चले आ रहे अफेयर की बात यह सोच कर बता दी कि यह सुन कर शायद वह उस से शादी करने से मना कर देगी. लेकिन पूजा समझदार लड़की थी.

वह राहुल की इस बात पर नाराज नहीं हुई बल्कि उसे उस की साफगोई अच्छी लगी कि राहुल दिल का साफ है जो उस ने यह बात उसे बता दी. यानी अपने होने वाले पति के मुंह से उस के पुराने अफेयर के बारे में जानकारी मिलने के बाद भी पूजा उस से शादी के लिए तैयार थी.

अप्रैल, 2017 में राहुल मिश्रा की शादी पूजा राय से हो गई. शादी के बाद राहुल पूजा को ले कर दिल्ली आ गया और साउथ दिल्ली के किशनगढ़ इलाके में किराए का एक फ्लैट ले कर रहने लगा. राहुल से शादी कर के पूजा बहुत खुश थी.

उस ने तय कर लिया था कि वह राहुल को इतना प्यार देगी कि वह अपना पिछला प्यार भूल जाएगा. पूजा ने राहुल की सेवा करने में सचमुच कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक कि महंगाई के कारण घर चलाने के लिए जब अधिक रुपयों की जरूरत महसूस हुई तो उस ने भी नौकरी करने का फैसला कर लिया.

उधर राहुल पूजा से शादी के बाद भी पद्मा को अपने दिल से नहीं निकाल सका. पद्मा का हाल भी राहुल की तरह ही था. दोनों वक्त निकाल कर एकदूसरे से मिलतेजुलते रहे. पद्मा मयूर विहार में एक किराए के फ्लैट में रहती थी.

अक्तूबर 2018 में जब पूजा की नौकरी करने के लिए उस का बायोडाटा तैयार करने की बात आई तो राहुल ने इसी बहाने पद्मा को अपने फ्लैट पर बुला लिया. पद्मा ने पूजा का बायोडाटा तैयार कर दिया. आगे चल कर पूजा को भी गुड़गांव की एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई. इस के बाद पद्मा किसी न किसी बहाने उस के यहां आती रही.

जब पद्मा का राहुल के यहां ज्यादा आनाजाना बढ़ गया तो पूजा को पद्मा और राहुल के रिश्तों पर शक हो गया. उसे पद्मा का बारबार फ्लैट पर आना अखरने लगा. तब पूजा उस के साथ रूखा व्यवहार करने लगी.

इतना ही नहीं, वह पद्मा को हंसीमजाक के दौरान राहुल को ले कर कुछ ऐसी बात कर देती जिसे सुन कर वह तिलमिला कर रह जाती थी. पर पद्मा दिल के हाथों मजबूर थी. वह राहुल को बहुत चाहती थी. इसलिए उस ने राहुल के फ्लैट पर आना नहीं छोड़ा. इसलिए पूजा के व्यंग्य करने के बाद भी वह उस के यहां आती रही.

पद्मा ने ही ली पूजा की जान

लेकिन जब पूजा ने उस के और राहुल के रिश्तों को ले कर जलीकटी सुनानी जारी रखीं तो एक दिन उस ने यह बात राहुल को बताई और इस का कोई हल निकालने को कहा. पद्मा की बात सुन कर राहुल को अपनी पत्नी पर बहुत गुस्सा आया. उसी दिन दोनों ने मिल कर निश्चय कर लिया कि वे इस के बदले पूजा को जरूर सबक सिखाएंगे. दोनों ने इस के लिए एक योजना भी बना ली.

16 मार्च, 2019 को शनिवार का दिन था. योजना के अनुसार राहुल सुबह तैयार हो कर गुड़गांव स्थित अपने औफिस चला गया. चूंकि पूजा की उस दिन छुट्टी थी, इसलिए वह फ्लैट पर अकेली आराम कर रही थी. राहुल के जाने के कुछ देर बाद पद्मा पूजा से मिलने फ्लैट पर पहुंची तो पूजा ने उस से कहा कि उसे किसी काम से बाहर निकलना है, इसलिए वह उसे अधिक समय नहीं दे पाएगी.

इस पर पद्मा ने उस से कहा, ‘‘कुछ देर बातचीत कर के मैं चली जाऊंगी तो तुम चली जाना.’’

पद्मा अपने साथ 2 गिलास फ्रूट जूस ले कर आई थी. उस ने दोनों गिलास पूजा के सामने टेबल पर रख दिए. उस वक्त काम करने वाली आया घर का कामकाज निपटा रही थी. इस बीच पूजा ने पद्मा के साथ नाश्ता किया. जब आया अपना काम खत्म कर वहां से चली गई तो पद्मा ने पूजा से जूस पी लेने के लिए कहा.

जैसे ही पूजा ने जूस पीने के लिए गिलास उठाना चाहा तो पद्मा ने कहा कि वह उस के लिए एक गिलास पानी ले आए. यह सुन कर पूजा जूस का गिलास वहीं छोड़ कर पानी लाने के लिए चली गई.

पूजा के जाते ही पद्मा ने अपने कपड़ों में छिपा कर लाया जहरीला पदार्थ उस के गिलास में डाल कर मिला दिया. पूजा किचन से पानी का गिलास ले कर लौटी और गिलास पद्मा को दे दिया. इस के बाद पूजा ने पद्मा द्वारा लाया जूस का गिलास उठाया और धीरेधीरे पूरा जूस खत्म कर दिया.

जूस पीने के थोड़ी देर बाद अचानक उस की तबीयत खराब होने लगी. उल्टी और पेट दर्द की शिकायत होने पर उस ने फ्लैट से बाहर निकलना चाहा लेकिन पद्मा ने उसे पकड़ कर दबोच लिया. पूजा के बेहोश होने पर पद्मा ने उस का सिर बारबार फर्श से पटका ताकि उस के जीवित रहने की संभावना न रहे.

पूजा की हत्या करने के बाद पद्मा ने फ्लैट को अच्छी तरह साफ किया और पेपर के बने उन दोनों गिलासों को अपने साथ ले कर वहां से मयूर विहार अपने कमरे पर लौट आई. शाम को उस ने अपने प्रेमी राहुल मिश्रा को फोन कर बता दिया कि आज उस ने उस की पत्नी पूजा का किस्सा तमाम कर दिया है.

साथ ही उस ने यह भी बताया कि उस ने पूजा के पास में सुसाइड नोट भी लिख कर छोड़ दिया है, जिसे पढ़ कर पुलिस और तमाम लोग यह समझेंगे कि पूजा ने किसी कारण परेशान हो कर सुसाइड कर लिया है.

शाम के वक्त राहुल औफिस से अपने फ्लैट पर पहुंचा तो योजना के अनुसार पूजा की डैडबौडी को ले कर वसंत कुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल पहुंचा और वहां डाक्टर से नाटक करते हुए अपनी पत्नी की जान बचा लेने की गुहार लगाई.

लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हेड इंजरी तथा पूजा को जूस में जहर देने की बात सामने आई, जिस से राहुल और पद्मा द्वारा रचे गए पूजा के नकली सुसाइड के रहस्य से पदा हटा दिया.

अगले दिन पुलिस ने दोनों आरोपियों को अदालत में पेश कर दिया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

पति की दूरी ने बढ़ाया प्रेमी से प्यार

घटना मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र की है. 17 मार्च,  2019 की दोपहर 2 बजे का समय था. इस समय अधिकांशत:  घरेलू महिलाएं आराम करती हैं. ग्वालियर के पुराने हाईकोर्ट इलाके में स्थित शांतिमोहन विला की तीसरी मंजिल पर रहने वाली मीनाक्षी माहेश्वरी काम निपटाने के बाद आराम करने जा रही थीं कि तभी किसी ने उन के फ्लैट की कालबेल बजाई. घंटी की आवाज सुन कर वह सोचने लगीं कि पता नहीं इस समय कौन आ गया है.

बैड से उठ कर जब उन्होंने दरवाजा खोला तो सामने घबराई हालत में खड़ी अपनी सहेली प्रीति को देख कर वह चौंक गईं. उन्होंने प्रीति से पूछा, ‘‘क्या हुआ, इतनी घबराई क्यों है?’’

‘‘उन का एक्सीडेंट हो गया है. काफी चोटें आई हैं.’’ प्रीति घबराते हुए बोली.

‘‘यह तू क्या कह रही है? एक्सीडेंट कैसे हुआ और भाईसाहब कहां हैं?’’ मीनाक्षी ने पूछा.

‘‘वह नीचे फ्लैट में हैं. तू जल्दी चल.’’ कह कर प्रीति मीनाक्षी को अपने साथ ले गई.

मीनाक्षी अपने साथ पड़ोस में रहने वाले डा. अनिल राजपूत को भी साथ लेती गईं. प्रीति जैन अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल पर स्थित फ्लैट नंबर 208 में अपने पति हेमंत जैन और 2 बच्चों के साथ रहती थी.

हेमंत जैन का शीतला माता साड़ी सैंटर के नाम से साडि़यों का थोक का कारोबार था. इस शाही अपार्टमेंट में वे लोग करीब साढ़े 3 महीने पहले ही रहने आए थे. इस से पहले वह केथ वाली गली में रहते थे. हेमंत जैन अकसर साडि़यां खरीदने के लिए गुजरात के सूरत शहर आते जाते रहते थे. अभी भी वह 2 दिन पहले ही 15 मार्च को सूरत से वापस लौटे थे.

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मीनाक्षी माहेश्वरी डा. अनिल राजपूत को ले कर प्रीति के फ्लैट में पहुंची तो हेमंत की गंभीर हालत देख कर वह घबरा गईं. पलंग पर पड़े हेमंत के सिर से काफी खून बह रहा था. वे लोग हेमंत को तुरंत जेएएच ट्रामा सेंटर ले गए, जहां जांच के बाद डाक्टरों ने हेमंत को मृत घोषित कर दिया.

पुलिस केस होने की वजह से अस्पताल प्रशासन द्वारा इस की सूचना इंदरगंज के टीआई को दे दी. इस दौरान प्रीति ने मीनाक्षी को बताया कि उसे एक्सीडेंट के बारे में कुछ नहीं पता कि कहां और कैसे हुआ.

प्रीति ने बताया कि वह अपने फ्लैट में ही थी. कुछ देर पहले हेमंत ने कालबेज बजाई. मैं ने दरवाजा खोला तो वह मेरे ऊपर ही गिर गए. उन्होंने बताया कि उन का एक्सीडेंट हो गया. कहां और कैसे हुआ, इस बारे में उन्होंने कुछ नहीं बताया और अचेत हो गए. हेमंत को देख कर मैं घबरा गई. फिर दौड़ कर मैं आप को बुला लाई.

अस्पताल से सूचना मिलते ही थाना इंदरगंज के टीआई मनीष डाबर मौके पर पहुंचे तो प्रीति जैन ने वही कहानी टीआई मनीष डाबर को सुनाई, जो उस ने मीनाक्षी को सुनाई थी.

एक्सीडेंट की कहानी पर संदेह

टीआई मनीष डाबर को लगा कि हेमंत की कहानी एक्सीडेंट की तो नहीं हो सकती. इस के बाद उन्होंने इस मामले से एसपी नवनीत भसीन को भी अवगत करा दिया. एसपी के निर्देश पर टीआई अस्पताल से सीधे हेमंत के फ्लैट पर जा पहुंचे.

उन्होंने हेमंत के फ्लैट की सूक्ष्मता से जांच की. जांच में उन्हें वहां की स्थिति काफी संदिग्ध नजर आई. प्रीति ने पुलिस को बताया था कि एक्सीडेंट से घायल हेमंत ने बाहर से आ कर फ्लैट की घंटी बजाई थी, लेकिन न तो अपार्टमेंट की सीढि़यों पर और न ही फ्लैट के दरवाजे पर धब्बे तो दूर खून का छींटा तक नहीं मिला. कमरे में जो भी खून था, वह उसी पलंग के आसपास था, जिस पर घायल अवस्था में हेमंत लेटे थे.

बकौल प्रीति हेमंत घायलावस्था में थे और दरवाजा खुलते ही उस के ऊपर गिर पड़े थे, लेकिन पुलिस को इस बात का आश्चर्य हुआ कि प्रीति के कपड़ों पर खून का एक दाग भी नहीं था.

टीआई मनीष डाबर ने इस जांच से एसपी नवनीत भसीन को अवगत कराया. इस के बाद एडीशनल एसपी सत्येंद्र तोमर तथा सीएसपी के.एम. गोस्वामी भी हेमंत के फ्लैट पर पहुंच गए. सभी पुलिस अधिकारियों को प्रीति द्वारा सुनाई गई कहानी बनावटी लग रही थी.

प्रीति के बयान की पुष्टि करने के लिए टीआई ने फ्लैट के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज अपने कब्जे में लिए. फुटेज की जांच में चौंकाने वाली बात सामने आई. पता चला कि घटना से करीब आधा घंटा पहले हेमंत के फ्लैट में 2 युवक आए थे. दोनों कुछ देर फ्लैट में रहने के बाद एकएक कर बाहर निकल गए थे.

उन युवकों के चले जाने के बाद प्रीति भी एक बार बाहर आ कर वापस अंदर गई और कपड़े बदल कर मीनाक्षी को बुलाने तीसरी मंजिल पर जाती दिखी.

मामला साफ था. सीसीटीवी फुटेज में घायल हेमंत घर के अंदर या बाहर आते नजर नहीं आए थे. अलबत्ता 2 युवक फ्लैट में आते जाते जरूर दिखे थे. प्रीति ने इन युवकों के फ्लैट में आने के बारे में कुछ नहीं बताया था. जिस की वजह से प्रीति खुद शक के घेरे में आ गई.

जो 2 युवक हेमंत के फ्लैट से निकलते सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए थे, पुलिस ने उन की जांच शुरू कर दी. जांच में पता चला कि उन में से एक दानाखोली निवासी मृदुल गुप्ता और दूसरा सुमावली निवासी उस का दोस्त आदेश जैन था.

दोनों युवकों की पहचान हो जाने के बाद मृतक हेमंत की बहन ने भी पुलिस को बताया कि प्रीति के मृदुल गुप्ता के साथ अवैध संबंध थे. इस बात को ले कर प्रीति और हेमंत के बीच विवाद भी होता रहता था.

यह जानकारी मिलने के बाद टीआई मनीष डाबर ने मृदुल और आदेश जैन के ठिकानों पर दबिश दी लेकिन दोनों ही घर से लापता मिले. इतना ही नहीं, दोनों के मोबाइल फोन भी बंद थे. इस से दोनों पर पुलिस का शक गहराने लगा.

लेकिन रात लगभग डेढ़ बजे आदेश जैन अपने बडे़ भाई के साथ खुद ही इंदरगंज थाने आ गया. उस ने बताया कि मृदुल ने उस से कहा था कि हेमंत के घर पैसे लेने चलना है. वह वहां पहुंचा तो मृदुल और प्रीति सोफे के पास घुटने के बल बैठे थे जबकि हेमंत सोफे पर लेटा था.

इस से दाल में कुछ काला नजर आया, जिस से वह वहां से तुरंत वापस आ गया था. उस ने बताया कि वह हेमंत के घर में केवल डेढ़ मिनट रुका था. आदेश के द्वारा दी गई इस जानकारी से हेमंत की मौत का संदिग्ध मामला काफी कुछ साफ हो गया.

दूसरे दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. रिपोर्ट में बताया गया कि हेमंत के माथे पर धारदार हथियार के 5 और चेहरे पर 3 घाव पाए गए. उन के सिर पर पीछे की तरफ किसी भारी चीज से चोट पहुंचाई गई थी, जिस से उन की मृत्यु हुई थी.

इसी बीच पुलिस को पता चला कि मृतक की पत्नी प्रीति जैन रात के समय घर में आत्महत्या करने का नाटक करती रही थी. सुबह अंतिम संस्कार के बाद भी उस ने आग लगा कर जान देने की कोशिश की. पुलिस उसे हिरासत में थाने ले आई.

दूसरी तरफ दबाव बढ़ने पर मृदुल गुप्ता भी शाम को अपने वकील के साथ थाने में पेश हो गया. पुलिस ने प्रीति और मृदुल से पूछताछ की तो बड़ी आसानी से दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उन्होंने स्वीकार कर लिया कि हेमंत की हत्या उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से की थी.

पूछताछ के बाद हेमंत की हत्या की कहानी इस तरह सामने आई—

हेमंत के बड़े भाई भागचंद जैन करीब 20 साल पहले ग्वालियर के खिड़की मोहल्लागंज में रहते थे. हेमंत का अपने बड़े भाई के घर काफी आनाजाना था. बड़े भाई के मकान के सामने एक शुक्ला परिवार रहता था. प्रीति उसी शुक्ला परिवार की बेटी थी. वह हेमंत की हमउम्र थी.

बड़े भाई और शुक्ला परिवार में काफी नजदीकियां थीं, जिस के चलते हेमंत का भी प्रीति के घर आनाजाना हो जाने से दोनों में प्यार हो गया. यह बात करीब 18 साल पहले की है. हेमंत और प्रीति के बीच बात यहां तक बढ़ी कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन प्रीति के घर वाले इस के लिए राजी नहीं थे. तब दोनों ने घर वालों की मरजी के खिलाफ प्रेम विवाह कर लिया था.

इस से शुक्ला परिवार ने बड़ी बेइज्जती महसूस की और वह अपना मोहल्लागंज का मकान बेच कर कहीं और रहने चले गए जबकि प्रीति पति के साथ कैथवाली गली में और फिर बाद में दानाओली के उसी मकान में आ कर रहने लगी, जिस की पहली मंजिल पर मृदुल गुप्ता अकेला रहता था. यहीं पर मृदुल की प्रीति के पति हेमंत से मुलाकात और दोस्ती हुई थी.

हेमंत ने साड़ी का थोक कारोबार शुरू कर दिया था, जिस में कुछ दिन तक प्रीति का भाई भी सहयोगी रहा. बाद में वह कानपुर चला गया. इधर हेमंत का काम देखते ही देखते काफी बढ़ गया और वह ग्वालियर के पहले 5 थोक साड़ी व्यापारियों में गिना जाने लगा. हेमंत को अकसर माल की खरीदारी के लिए गुजरात के सूरत शहर जाना पड़ता था.

हेमंत का काम काफी बढ़ चुका था, जिस के चलते एक समय ऐसा भी आया जब महीने में उस के 20 दिन शहर से बाहर गुजरने लगे. इस दौरान प्रीति और दोनों बच्चे ग्वालियर में अकेले रह जाते थे. इसलिए उन की देखरेख की जिम्मेदारी हेमंत अपने सब से खास और भरोसेमंद दोस्त मृदुल को सौंप जाता था.

हेमंत मृदुल पर इतना भरोसा करता था कि कभी उसे बाहर से बड़ी रकम ग्वालियर भेजनी होती तो वह मृदुल के बैंक खाते में ही ट्रांसफर कर देता था. इस से हेमंत की गैरमौजूदगी में भी मृदुल का प्रीति के घर में लगातार आनाजाना बना रहने लगा था.

प्रीति की उम्र 35 पार कर चुकी थी. वह 2 बच्चों की मां भी बन चुकी थी लेकिन आर्थिक बेफिक्री और पति के अति भरोसे ने उसे बिंदास बना दिया था. इस से वह न केवल उम्र में काफी छोटी दिखती थी बल्कि उस का रहनसहन भी अविवाहित युवतियों जैसा था.

कहते हैं कि लगातार पास बने रहने वाले शख्स से अपनापन हो जाना स्वाभाविक होता है. यही प्रीति और मृदुल के बीच हुआ. दोनों एकदूसरे से काफी घुलेमिले तो थे ही, अब एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए थे. उन के बीच दोस्तों जैसी बातें होने लगी थीं, जिस के चलते एकदूसरे के प्रति उन का नजरिया भी बदल गया था. इस का नतीजा यह हुआ कि लगभग डेढ़ साल पहले उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए.

दोस्त बन गया दगाबाज

प्रीति का पति ज्यादातर बाहर रहता था और मृदुल अभी अविवाहित था. इसलिए दैहिक सुख की दोनों को जरूरत थी. उन्हें रोकने टोकने वाला कोई नहीं था. क्योंकि खुद हेमंत ने ही मृदुल को प्रीति और बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंप रखी थी. इसलिए हेमंत के ग्वालियर में न रहने पर मृदुल की रातें प्रीति के साथ उस के घर में एक ही बिस्तर पर कटने लगीं.

दूसरी तरफ प्रीति के नजदीक बने रहने के लिए मृदुल जहां हेमंत के प्रति ज्यादा वफादारी दिखाने लगा, वहीं जवान प्रेमी को अपने पास बनाए रखने के लिए प्रीति न केवल उसे हर तरह से सुख देने की कोशिश करने लगी, बल्कि मृदुल पर पैसा भी लुटाने लगी थी.

इसी बीच करीब 6 महीने पहले एक रोज जब हेमंत ग्वालियर में ही बच्चों के साथ था, तब बच्चों ने बातों बातों में बता दिया कि मम्मी तो मृदुल अंकल के साथ सोती हैं और वे दोनों दूसरे कमरे में अकेले सोते हैं.

बच्चे भला ऐसा झूठ क्यों बोलेंगे, इसलिए पलक झपकते ही हेमंत सब समझ गया कि उस के पीछे घर में क्या होता है. हेमंत ने मृदुल को अपनी जिंदगी से बाहर कर दिया और उस के अपने यहां आनेजाने पर भी रोक लगा दी.

इस बात को ले कर उस का प्रीति के साथ विवाद भी हुआ. प्रीति ने सफाई देने की कोशिश भी की लेकिन हेमंत ने मृदुल को फिर घर में अंदर नहीं आने दिया. इस से प्रीति परेशान हो गई.

दोनों अकेलेपन का लाभ न उठा सकें, इसलिए हेमंत अपना घर छोड़ कर परिवार को ले कर अपनी बहन के साथ आ कर रहने लगा. ननद के घर में रहते हुए प्रीति और मृदुल की प्रेम कहानी पर ब्रेक लग गया. लेकिन हेमंत कब तक अपना परिवार ले कर  बहन के घर रहता, सो उस ने 3 महीने पहले पुराना मकान बेच कर इंदरगंज में नया फ्लैट ले लिया. यहां आने के बाद प्रीति और मृदुल की कामलीला फिर शुरू हो गई.

प्रीति अपने युवा प्रेमी की ऐसी दीवानी थी कि उस ने मृदुल पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह उसे अपने साथ रख ले. इस पर जनवरी में मृदुल ने प्रीति से कहीं दूर भाग चलने को कहा लेकिन प्रीति बोली, ‘‘यह स्थाई हल नहीं है. पक्का हल तो यह है कि हम हेमंत को हमेशा के लिए रास्ते से हटा दें.’’

मृदुल को भी अपनी इस अनुभवी प्रेमिका की लत लग चुकी थी, इसलिए वह इस बात पर राजी हो गया. जिस के बाद दोनों ने घर में ही हेमंत की हत्या करने की योजना बना कर 17 मार्च, 2019 को उस पर अमल भी कर दिया.

योजना के अनुसार उस रोज प्रीति ने पति की चाय में नींद की ज्यादा गोलियां डाल दीं, जिस से वह जल्द ही गहरी नींद में चला गया. फिर मृदुल के आने पर प्रीति ने गहरी नींद में सोए पति के पैर दबोचे और मृदुल ने हेमंत की गला दबा दिया.

इस दौरान हेमंत ने विरोध किया तो दोनों ने उसे उठा कर कई बार उस का सिर दीवार से टकराया, जिस से उस के सिर से खून बहने लगा और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

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टीआई मनीष डाबर ने प्रीति और मृदुल से विस्तार से पूछताछ के बाद दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से प्रीति को जेल भेज दिया और मृदुल को 2 दिनों के रिमांड पर पुलिस को सौंप दिया ताकि उस से वह कपड़े बरामद हो सकें जो उस ने हत्या के समय पहन रखे थे.

कथा लिखने तक पुलिस मृदुल से पूछताछ कर रही थी. हेमंत की हत्या में आदेश जैन शामिल था या नहीं, इस की पुलिस जांच कर रही थी.

बेलघाट अरुण मर्डर केस : ऐसी बहन किसी की ना हो

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर में एक गांव है बनकट, जो थाना बेलघाट के क्षेत्र में आता है. पश्चिम बंगाल में कोयले की खदान में काम करने वाला रामसिधारे अपने परिवार के साथ बनकट गांव में रहता था.

रामसिधारे के परिवार में पिता वंशराज के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा था. उस की पत्नी विमला की करीब 5 साल पहले मृत्यु हो गई थी. उस ने अपनी बड़ी बेटी माधुरी की शादी पत्नी की मौत के कुछ दिनों बाद पड़ोस के गांव बरपरवा बाबू के रहने वाले जितेंद्र के साथ कर दी थी. रामसिधारे के कंधों पर 3 बच्चों की जिम्मेदारी बची थी.

चूंकि रामसिधारे पश्चिम बंगाल में रहता था, इसलिए बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी उस के पिता वंशराज के ऊपर थी. वह ही उन की परवरिश कर रहे थे. रामसिधारे के घर पर न रहने के बावजूद तीनों बच्चे ठीक पढ़ रहे थे. बेटा अरुण और बेटी साधना हाईस्कूल में थे और मंझली बेटी पूजा स्नातक पास कर चुकी थी. घर में रह कर वह कंपीटिशन की तैयारी कर रही थी.

बीच बीच में रामसिधारे बच्चों की कुशलक्षेम लेने घर आता रहता था, ताकि बच्चों को मां की कमी न खले. कुछ दिन बच्चों के बीच बिता कर वह फिर नौकरी पर लौट जाता था. पिता के प्यार और दुलार से बच्चों को कभी मां की कमी नहीं खली थी.

31 जनवरी, 2019 की बात है. रात 10 बजे घर के सभी लोगों ने साथ बैठ कर खाना खाया और फिर सोने के लिए अपने अपने कमरे में चले गए. बच्चों के दादा वंशराज दालान में सो रहे थे, जबकि पूजा, साधना और अरुण अलगअलग कमरों में सो रहे थे.

अगली सुबह पूजा और साधना रोजाना की तरह सुबह 6 बजे उठीं. घर का मुख्यद्वार खोल कर उन्होंने बाहर जाना चाहा तो दरवाजा नहीं खुला. किसी ने शायद बाहर से दरवाजे पर कुंडी लगा दी थी.

काफी प्रयास के बाद जब दरवाजा नहीं खुला तो दोनों बहनें यह सोच कर भाई अरुण के कमरे में गईं कि उस से कह कर दरवाजा खुलवाने का प्रयास करेंगी. लेकिन अरुण अपने कमरे में नहीं मिला. यह देख दोनों बहनें हैरान रह गईं कि बिना किसी को कुछ बताए इतनी सुबह वह कहां चला गया. उन्होंने घर का कोनाकोना छान मारा, लेकिन अरुण कहीं नहीं मिला.

तब दोनों बहनें दालान में सो रहे दादा वंशराज के पास पहुंचीं, उन्हें जगा कर दोनों ने अरुण के बारे में पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि उन्हें कोई जानकारी नहीं है और न ही उसे बाहर जाते हुए देखा. बुजुर्ग वंशराज भी पोते के अचानक गायब होने से स्तब्ध थे.

अरुण के रहस्यमय ढंग से गायब हो जाने से घर वाले परेशान हो गए. ऊपर से मकान का मेनगेट भी बाहर से बंद था. अंतत: साधना ने पड़ोस में रहने वाले चचेरे बाबा नंदू को फोन किया और बाहर से लगी मेनगेट की कुंडी खोलने को कहा. उस ने नंदू बाबा को यह भी बताता कि किसी ने शरारतवश कुंडी लगा दी होगी. कुछ देर में वह दरवाजे की कुंडी खोल कर अंदर आए.

उन्हें अरुण के गायब होने की बात पता चली तो वह भी परेशान हो गए. घर के सभी लोग अरुण को गांव में ढूंढने लगे. कुछ ही देर में पूरे गांव में अरुण के गायब होने की बात फैल गई. यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि घर में सोया अरुण आखिर गायब कैसे हो गया?

अरुण की तलाश में दादा वंशराज, नंदू, पूजा और साधना अलगअलग दिशाओं में निकल गए. इस से पहले पूजा और साधना ने अपने रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को फोन कर के अरुण का पता लगा लिया था.

बहरहाल, अरुण की तलाश करते करते 3 घंटे बीत गए. उस के न मिलने से सभी परेशान थे. उसे ले कर उन के मन में बुरे खयाल आ रहे थे. पता नहीं नंदू के मन में क्या आया कि वह अपने आलू के खेत की तरफ मुड़ गए. आलू का वह खेत वंशराज के घर से मात्र 50 मीटर दूर था.

नंदू आलू के खेत में पहुंचे तो उन्हें खेत के बीचोबीच कोई औंधे मुंह पड़ा दिखा. जब वह उस के नजदीक पहुंचे और ध्यान से देखा तो चौंके. क्योंकि वह अरुण का शव था. किसी ने गला रेत कर उस की हत्या कर दी थी. नंदू दौड़ेदौड़े गांव पहुंचे और यह जानकारी बड़े भाई वंशराज को दी.

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              अरुण

अरुण की हत्या की बात सुन कर घर में रोनापीटना शुरू हो गया. वंशराज और उन की दोनों पौत्रियां पूजा और साधना रोते बिलखते आलू के खेत में पहुंचीं, जहां अरुण की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. अरुण की हत्या की सूचना मिलते ही गांव वाले भी मौके पर पहुंच गए. इसी बीच किसी ने इस घटना की सूचना बेलघाट थाने को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुरेशचंद्र राम पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने सीओ (गोला) सतीशचंद्र शुक्ला और एसपी (दक्षिण) विपुल कुमार श्रीवास्तव को भी सूचना दे दी. सूचना मिलने पर दोनों पुलिस अधिकारी मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

पुलिस ने घटनास्थल की जांच की तो पता चला हत्यारों ने अरुण की हत्या किसी तेज धारदार हथियार से गला रेत कर की थी. उस का कसरती बदन देख कर लगता था कि हत्यारों की संख्या 2 से 3 रही होगी क्योंकि वह अकेले आदमी के वश में नहीं आ सकता था. खेत में संघर्ष का कोई निशान भी नहीं मिला था. इस बात ने मामले को और भी पेचीदा बना दिया था.

पुलिस ने मौके की और गहराई से जांच की. जिस जगह पर अरुण की लाश पड़ी थी, वहां खून सूख कर काला पड़ चुका था. इस से यही अनुमान लगाया जा रहा था कि घटना को 8-10 घंटे पहले अंजाम दिया गया होगा. लाश के अलावा पुलिस को मौके पर कुछ और नहीं मिला था.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भिजवा दी. मृतक अरुण की बड़ी बहन पूजा उर्फ सोनाली ने गांव के ही 5 व्यक्तियों पर हत्या का आरोप लगाते हुए थानाप्रभारी सुरेशचंद्र राम को नामजद तहरीर दी.

पूजा की तहरीर के आधार पर पुलिस ने अशोक मौर्या, चंद्रशेखर मौर्या, इंद्रजीत मौर्या, विनोद मौर्या और दशरथ मौर्या के खिलाफ भादंवि की धाराओं 147, 148, 149, 302, 506, 120बी और 3(1) एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

चूंकि यह मामला एससीएसटी एक्ट से जुड़ा था, इसलिए जांच की जिम्मेदारी सीओ सतीशचंद्र शुक्ला को सौंप दी गई. सीओ साहब ने सब से पहले वादी पूजा उर्फ सोनाली से अरुण की हत्या के संबंध में जानकारी ली. पूजा ने बताया कि करीब डेढ़ साल पहले अरुण को दशरथ मौर्या ने जेल भिजवाया था. वह उस की बेटी कंचन से प्यार करता था. कंचन भी उस से प्रेम करती थी. एक दिन दोनों ही घर छोड़ कर भाग गए थे.

दशरथ मौर्या ने नाबालिग बेटी कंचन को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट बेलघाट थाने में दर्ज करा दी थी. पुलिस ने कोशिश कर के अरुण और कंचन को ढूंढ निकाला और अरुण को जेल भेज दिया था. जुलाई, 2018 में वह जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आया था.

भाई के जेल से आने के बाद से ही ये लोग उस की जान के पीछे पड़े थे. पूजा ने उन्हें बताया कि दशरथ मौर्या ने अपने चारों बेटों अशोक, चंद्रशेखर, इंद्रजीत और विनोद के साथ मिल कर अरुण की हत्या कर दी है.

सीओ सतीशचंद्र शुक्ला ने पूजा के बयान की पड़ताल की तो उस की बात सच निकली. इस के बाद सतीशचंद्र पुलिस टीम के साथ दशरथ मौर्या के घर पहुंच गए. मौके से अशोक, चंद्रशेखर और इंद्रजीत दबोच लिए गए. विनोद और उस का पिता दशरथ पुलिस के पहुंचने से पहले फरार हो गए थे. तीनों को हिरासत में ले कर वह थाने आ गए.

सीओ शुक्ला ने हिरासत में लिए गए अशोक मौर्या से दशरथ और विनोद के ठिकाने के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘सर, अरुण की हत्या हम ने नहीं की और न ही मेरे पिता फरार हैं. वह तो छोटे भाई विनोद के साथ घटना से 2 दिन पहले कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज चले गए थे.’’

अशोक मौर्या ने आगे बताया, ‘‘साहब, अरुण पिछले साल मेरी बहन कंचन को बहलाफुसला कर घर से भगा ले गया था. उस के खिलाफ बेलघाट थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया गया था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. जुलाई में अरुण जमानत पर जेल से आ गया. उस के बाद से हम खुद ही कंचन की निगरानी करते रहे. फिर दोबारा वह कंचन से कभी नहीं मिला और हम ने भी यह बात भुला दी. फिर हम उस की हत्या भला क्यों करेंगे?’’

अशोक के बयान ने सीओ शुक्ला को सोचने पर विवश कर दिया था. इधर 2 फरवरी को अरुण की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि उस की हत्या पहले गला दबा कर की गई. फिर किसी तेज धार हथियार से उस का गला रेता गया था.

उधर जांच में यह बात भी सामने आ गई कि दशरथ मौर्या और उस का बेटा विनोद मौर्या वाकई घटना से 2 दिन पहले यानी 29 जनवरी को कुंभ स्नान करने प्रयागराज गए थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट को पढ़ने और घटना की पड़ताल करने के बाद सीओ सतीशचंद्र शुक्ला के गले से यह बात नीचे नहीं उतरी कि जब आरोपी दशरथ मौर्या और उस का बेटा विनोद 2 दिन पहले ही घटनास्थल से 200 किलोमीटर दूर प्रयागराज चले गए थे तो वह भला हत्या कैसे कर सकते थे? इस में जरूर कोई बड़ा पेंच था.

इस के बाद सीओ सतीशचंद्र शुक्ला ने एक बार फिर से पूजा को थाने बुला कर पूछताछ की और जांचपड़ताल के लिए उस का मोबाइल फोन मांगा. सीओ शुक्ला के फोन मांगने पर पूजा सकपका गई और फोन देने में आनाकानी करने लगी.

पूजा की यह हरकत सतीश शुक्ला को थोड़ी अजीब लगी. उन्होंने पूछताछ कर के उसे घर भेज दिया. इस के बाद उन्होंने पूजा के मोबाइल फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेलस की जांच में पता चला कि उस के फोन पर घटना वाली रात में 11 बज कर 58 मिनट तक बातचीत हुई थी. फिर उसी नंबर पर सुबह करीब सवा 7 बजे भी बात हुई थी.

पूजा की जिस फोन नंबर पर बात हुई थी, पुलिस ने उस फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई. वह नंबर बेलघाट थाने के बरपरवा बाबू निवासी धर्मेंद्र कुमार का निकला.

धर्मेंद्र मृतक अरुण के सगे बहनोई का छोटा भाई था. पुलिस ने धर्मेंद्र को हिरासत में ले लिया. थाने में उस से सख्ती से पूछताछ की गई. धर्मेंद्र कोई पेशेवर अपराधी नहीं था, इसलिए उस ने बड़ी आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने पुलिस को बताया कि अरुण की हत्या उस ने अपने प्रेमिका पूजा उर्फ सोनाली के साथ मिल कर की थी. धर्मेंद्र के बयान के बाद पुलिस उसे जीप में बैठा कर पूजा को गिरफ्तार करने बनकट गांव पहुंची.

दरवाजे पर पुलिस को आया देख पूजा के दादा वंशराज ने पुलिस से अरुण के हत्यारों के बारे में पूछताछ की तो पुलिस ने उन्हें भरोसा दिया कि पुलिस अपना काम कर रही है. हत्यारे जल्द ही सलाखों के पीछे होंगे. फिर उन्होंने उन से पूजा के बारे में पूछताछ की. पूजा उस समय घर में ही थी.

पुलिस के वहां आने की जानकारी होते ही पूजा भी कमरे से बाहर निकल आई. तभी महिला कांस्टेबल ने पूजा को जीप में बैठा लिया. यह देख कर वंशराज हैरान रह गए. वह भी नहीं समझ पाए कि पुलिस पूजा को अपने साथ क्यों और कहां ले जा रही है.

लेकिन जैसे ही पूजा की नजरें जीप में बैठे युवक पर पड़ीं तो वह चौंक गई. क्योंकि वह उस का ही प्रेमी था. अब पूजा को यह समझते देर नहीं लगी कि उस की रची हुई कहानी से परदा उठ चुका है. पुलिस अरुण के कातिलों तक पहुंच चुकी थी.

पुलिस ने थाने में पूजा और धर्मेंद्र को आमनेसामने बैठा कर अरुण की हत्या के बारे में पूछताछ की तो पूजा ने खुद पुलिस के सामने घुटने टेक दिए. उस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए कहा कि उस ने प्रेमी धर्मेंद्र के साथ मिल कर अपने एकलौते भाई को मार डाला. पूजा के बयान से उस के भाई अरुण की रूह कंपाने वाली जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

21 वर्षीय पूजा थी तो इकहरे बदन और साधारण शक्लसूरत की, लेकिन उस के नैननक्श तीखे थे. पूजा के पिता पश्चिम बंगाल में नौकरी करते थे. दादा वंशराज ही बच्चों की देखभाल करते थे. पूजा की बड़ी बहन माधुरी की शादी बनकट से थोड़ी दूर बरपरवा बाबू के जितेंद्र के साथ 5 साल पहले हुई थी.

जितेंद्र सीआरपीएफ में नौकरी करता था. जितेंद्र से छोटे 4 भाई और थे. इन में तीसरे नंबर का भाई धर्मेंद्र था. ग्रैजुएशन करने के बाद धर्मेंद्र ने पुलिस में भरती होने की तैयारी शुरू कर दी थी. पिता पंजाब में काम करते हैं.

बड़े भाई की ससुराल आतेजाते 4 साल पहले धर्मेंद्र और पूजा के बीच नजदीकी बढ़ गई थी. धर्मेंद्र पूजा की खूबसूरती पर मर मिटा था. चूंकि दोनों के बीच रिश्ता भी मजाक का था, इसलिए मजाक मजाक में वह खूबसूरत साली पूजा को छेड़ता रहता था. इसी छेड़छाड़ के दौरान दोनों में कब प्यार के अंकुर फूटे, न पूजा ही जान सकी और न ही धर्मेंद्र.

                    हत्यारी बहन पूजा

पूजा से प्यार होने के बाद धर्मेंद्र का भाई की ससुराल में आना जाना कुछ ज्यादा ही हो गया था. पूजा के गांव के बगल वाले गांव में धर्मेंद्र की ननिहाल थी. वह जब भी अपनी ननिहाल आता तो पूजा से मिलने जरूर आता था. धर्मेंद्र को देखते ही पूजा का चेहरा खुशी से खिल उठता था. उसे देख कर वह भी खुशी से झूम उठता था.

पूजा और धर्मेंद्र यह जान कर बेहद खुश रहते थे कि पिछले 4 सालों से उन के प्यार पर किसी की नजर नहीं गई थी. पर शायद यह दोनों की बहुत बड़ी भूल थी. पूजा के छोटे भाई अरुण को बहन और जीजा के भाई धर्मेंद्र के रिश्तों पर शक हो गया था.

वह समझ गया था कि दोनों के बीच कुछ खिचड़ी पक रही है. लेकिन वह यह सोच कर चुप हो जाता था कि दोनों के बीच मजाक का रिश्ता है, ऐसा थोड़ाबहुत तो चलता ही है जबकि उन के बीच तो कोई दूसरी ही खिचड़ी पक रही थी.

जब से अरुण को धर्मेंद्र पर शक हुआ था, तब से वह उसे देखते ही अंदर ही अंदर जलभुन जाता था. वह नहीं चाहता था कि धर्मेंद्र वहां आए. अरुण पूजा को भी उस से दूर रहने के लिए समझाता था. उस के हावभाव से पूजा समझ गई थी कि अरुण को उस पर शक हो गया है. ये बात उस ने प्रेमी धर्मेंद्र को बता कर सतर्क कर दिया था.

उस दिन के बाद से धर्मेंद्र जब भी पूजा से मिलने भाई की ससुराल आता तो अरुण को देख कर सतर्क हो जाता और पूजा से कम ही बातचीत करता, जिस से अरुण को लगे कि उन के बीच कोई ऐसीवैसी बात नहीं है.

धर्मेंद्र और पूजा को अब अरुण प्यार के बीच का कांटा लगने लगा था. इतना ही नहीं, प्यार में अंधी पूजा धर्मेंद्र के साथ मिल कर एकलौते भाई को रास्ते से हटाने का ताना बाना बुनने लगी थी. ऐसी खतरनाक योजना बनाते हुए उसे एक बार भी यह खयाल नहीं आया कि जिस भाई की कलाई पर वह राखी बांधती रही, उसी भाई की जान लेने पर क्यों तुली हुई है.

बहरहाल, बात 31 जनवरी, 2019 की है. रात 10 बजे के करीब घर के सभी लोग खाना खा कर अपनेअपने कमरे में सो रहे थे. उस रोज भाई की ससुराल में धर्मेंद्र भी रुका था. वह अपनी ननिहाल आया था. वहां से वह रात में पैदल ही ससुराल पहुंच गया.

धर्मेंद्र अपने साले अरुण के साथ उसी के बिस्तर पर सो रहा था. रात 2 बजे के करीब अरुण की अचानक आंखें खुल गईं. उसे किसी के खुसरफुसर की आवाजें आ रही थीं. उस ने जब अपने बिस्तर पर देखा तो चौंका क्योंकि उस के साथ सो रहा धर्मेंद्र वहां नहीं था.

दबे पांव अरुण पूजा के कमरे में पहुंच गया. कमरे के अंदर का नजारा देख का उस का खून खौल उठा. धर्मेंद्र पूजा को अपनी बांहों में भरे आलिंगनबद्ध था. यह देख कर अरुण जोर से धर्मेंद्र को भद्दीभद्दी गालियां देने लगा.

अरुण को वहां देख कर दोनों घबरा गए और डर भी गए कि कहीं घर वाले जाग गए तो उन की पोल खुल जाएगी और बदनामी होगी. तभी धर्मेंद्र ने अरुण के मुंह पर कस कर हाथ रख लिया. यह देख घबराती हुई पूजा बोली, ‘‘तुम चिल्लाओ मत, हम दोनों जल्द ही एकदूसरे से शादी करने वाले हैं.’’

यह सुन कर अरुण उस पर भड़कते हुए बोला, ‘‘मैं अपने जीते जी ऐसा नहीं होने दूंगा.’’

पूजा ने भाई को बातों में उलझा कर उस के गले में अपना दुपट्टा डाल दिया. फिर धर्मेंद्र और पूजा फुरती से उस दुपट्टे को पकड़ कर खींचने लगे, जिस से गला घुट कर अरुण की मौत हो गई.

अरुण मर चुका है. यह सोच कर दोनों के हाथपांव फूल गए. पूजा और धर्मेंद्र लाश को ठिकाने लगाने को ले कर परेशान थे. दोनों सोच रहे थे कि सुबह होते ही भाई की अचानक मौत हो जाने से घर वाले परेशान हो जाएंगे. बात पुलिस तक पहुंच गई तो पकड़े भी जा सकते हैं.

तभी पूजा को अरुण और दशरथ मौर्या की बेटी कंचन की प्रेम कहानी याद आ गई. खुद को बचाने के लिए पूजा ने यह कहानी बना डाली. इस कहानी से वह 2 निशाने साध रही थी. पहला अरुण की हत्या का दोष दशरथ और उस के परिवार पर लग जाता. क्योंकि कंचन और अरुण को ले कर दोनों परिवारों के बीच विवाद चल रहा था. दूसरा उन दोनों पर किसी को शक भी नहीं होता.

खैर, पूजा की मदद से अरुण की लाश को ठिकाने लगाने के लिए धर्मेंद्र ने उसे अपनी पीठ पर उठा लिया और घर से 50 मीटर दूर नंदू के आलू के खेत में फेंक आया. कहीं भाई जीवित तो नहीं रह गया, यह जानने के लिए पूजा ने अरुण की नब्ज टटोली, उसे शक हुआ कि उस की सांस चल रही है.

फिर क्या था, वह दौड़ी दौड़ी कमरे में आई और डिब्बे में रखा ब्लेड निकाल कर खेत पर पहुंच गई. अपने ही हाथों से उस ने भाई का गला रेत दिया. फिर दोनों घर आ गए. खून से सने हाथपैर धो कर दोनों निश्चिंत हो गए. सुबह होते ही धर्मेंद्र घर लौट गया. घर जाते समय वह पूजा के घर के मेनगेट की कुंडी बाहर से बंद कर गया था ताकि लोगों को यही लगे कि दशरथ और उस के घर वालों ने उसे धोखे से बुला कर हत्या कर लाश आलू के खेत में फेंक दी.

केस का खुलासा हो जाने के बाद पुलिस ने दशरथ मौर्या और उस के बेटों के नाम रोजनामचे से हटा कर पूजा और धर्मेंद्र को आरोपी बनाते हुए उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कंचन नाम परिवर्तित है.

अपना कातिल ढूंढने वाली औरत

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का डा. राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय देश भर में प्रसिद्ध है. थाना कृष्णानगर क्षेत्र में आने वाले इस विश्वविद्यालय की पार्किंग बाउंड्री वाल के बाहर है. 23 मार्च, 2019 को जब मौर्निंग वाक पर निकले कुछ लोग उधर से गुजरे तो उन की निगाह फुटपाथ पर पड़े एक बड़े से बैग पर चली गई.

सामान्य रूप से लोगों ने समझा कि या तो कोई अपना बैग वहां रख कर भूल गया है या मौर्निंग वाक पर आए किसी व्यक्ति ने उसे वहां रख दिया है, जो वापस लौटते वक्त ले लेगा. हालांकि बैग का बड़ा साइज इन संभावनाओं को नकार रहा था.

लेकिन लोगों की यह सोच तब बदल गई, जब लौटते समय भी उन्होंने बैग को वहीं पड़े देखा. बैग में विस्फोटक रखे होने की आशंका के चलते किसी ने भी उसे हाथ लगाने की हिम्मत नहीं की. इस से बेहतर यही था कि पुलिस को बुला लिया जाए. ऐसा ही किया भी गया.

सूचना मिलते ही थाना कृष्णानगर के थानाप्रभारी दिनेश मिश्रा अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने बैग खोला तो उस के होश उड़ गए. बैग में 30-40 साल की किसी महिला का सिर, दोनों पैर और दोनों हाथ थे. बैग में 521 प्रीमियम राइस की 25 किलो की बोरी और बेबी क्लब का बैग निकले. चावल की बोरी में महिला के पैर और सिर था, जबकि बेबी क्लब के बैग में दोनों हाथ रखे हुए थे. मृतका ने सोने की अंगूठी पहन रखी थी और एक हाथ पर टैटू गुदा हुआ था.

हाल फिलहाल पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि उस महिला के धड़ को कहां और कैसे खोजा जाए. पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीमों ने धड़ को खोजने की कोशिश की. इस के लिए डौग स्क्वायड की भी मदद ली गई. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

एसएसपी कलानिधि नैथानी और सीओ लालप्रताप सिंह भी वहां पहुंच गए थे. उन्होंने भी लाश के टुकड़ों और उस जगह को अपने नजरिए से देखा समझा. प्रथम संभावना में उस महिला को घरेलू हिंसा की शिकार माना गया.

अंतत: यह तय हुआ कि बरामद अंगों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाए और जितनी भी संभावनाएं हों, सभी की सिलसिलेवार जांच की जाए. पुलिस ने केस दर्ज कर के आसपास के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली. साथ ही जो भी तरीके हो सकते थे, पुलिस ने उन तरीकों से भी महिला की पहचान कराने की कोशिश की. साथ ही धड़ की खोजबीन भी जारी रखी.

जिस जगह पर बैग रखा मिला था, उस के आसपास की छानबीन में पुलिस को लाल स्याही से हाथ से लिखे एक पत्र के दरजनों टुकड़े मिले, जिन्हें समेट कर सावधानी से रख लिया गया. एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि अलसुबह 4 बजे जब वह मौर्निंग वाक पर जा रहा था तो उस ने एक व्यक्ति को पीठ पर बोरा लाद कर ले जाते देखा था. इतना ही नहीं, उस ने फुटपाथ पर बोरा भी उस के सामने ही रखा था.

पुलिस द्वारा सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गईं तो उन में से एक फुटेज में एक व्यक्ति को पीठ पर बैग लाद कर ले जाते हुए देखा गया. लेकिन बैग ले जा रहे व्यक्ति का चेहरा साफ नहीं था, इसलिए उसे पहचानना संभव नहीं था.

महिला की पहचान के लिए कोई रास्ता न निकलता देख पुलिस ने महिला के हाथ में पहनी अंगूठी, हाथ पर बने टैटू, लाश वाला बैग, उस के अंदर मिली चावल की बोरी और बेबी क्लब का बैग वगैरह चीजों का कोलाज बना कर जारी किया. साथ ही घोषणा की कि उस महिला की पहचान करने या उस के बारे में सूचना देने वाले को 25 हजार रुपए का नकद ईनाम दिया जाएगा.

25 मार्च रविवार की सुबह बीबीखेड़ा निवासी महिला कीर्ति सिंह जब दूध ले कर लौट रही थी तो उस ने न्यू कांशीराम कालोनी के पास स्थित हैमिल्टन स्कूल के पीछे से गुजरते समय तेज बदबू महसूस की. उस ने देखा तो पौलीथिन में कुछ लिपटा नजर आया. कीर्ति ने घर जा कर यह बात अपने पति अमरेंद्र सिंह को बताई. अमरेंद्र ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के सूचना दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना पारा को दी. पुलिस ने वहां पहुंच कर देखा तो पौलीथिन में लिपटा उसी महिला का धड़ मिला, जिस का सिर और हाथपांव डा. राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के बाहर पार्किंग में पड़े थैले में रखे मिले थे. हत्यारे ने महिला के धड़ को लाल काले रंग की दरी में लपेट कर प्लास्टिक की बोरी में डाला था ताकि खून न बहे.

एसपी (पूर्व) सुरेशचंद रावत सहित क्राइम ब्रांच, फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड भी मौके पर पहुंचे. थाना पारा और थाना कृष्णानगर की पुलिस तो वहां थी ही. कृष्णानगर थानाक्षेत्र जहां महिला का सिर और पैर मिले थे, वहां से थाना पारा का वह इलाका जहां धड़ मिला था, के बीच 6 किलोमीटर की दूरी थी.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे ने कृष्णानगर या पारा के आसपास किसी घर में महिला की हत्या की होगी और लाश के टुकड़ों को 2 जगहों पर इसलिए फेंका होगा कि पुलिस असमंजस में पड़ जाए कि हत्या कृष्णानगर क्षेत्र में हुई या पारा क्षेत्र में. यह सब उस ने पुलिस से बचने के लिए किया होगा. पुलिस का यह भी अनुमान था कि हत्यारा कोई एक ही व्यक्ति रहा होगा.

प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने धड़ को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. धड़ और अन्य अंग एक ही महिला के हैं, इस का पता लगाने के लिए डीएनए कराने को लिखा गया. घटना का खुलासा जल्दी हो, इस के लिए एसएसपी कलानिधि नैथानी ने एसपी (पूर्वी) सुरेशचंद्र रावत के नेतृत्व में सीओ क्राइम, सीओ कृष्णानगर और डीसीआरबी प्रभारी को खुलासे की जिम्मेदारी सौंपते हुए 3 पुलिस टीमें बनाईं.

इन टीमों ने उसी दिन यानी 24 मार्च की शाम तक 20 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. इस के साथ ही पुलिस अधिकारियों ने लखनऊ जोन के सभी जिलों के थानों में दर्ज महिलाओं की गुमशुदगी व अपहरण के मुकदमों की जानकारी मांगी. गहन छानबीन के मद्देनजर बीट के 100 सिपाहियों को घूमघूम कर महिला की पहचान कराने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में भेजा गया. महिला से संबंधित जानकारी पुलिस को देने के लिए जगहजगह पोस्टर भी लगवाए गए.

पारा क्षेत्र में रहने वाले बाबूलाल कनौजिया ने 25 मार्च को थाना पारा में गुमशुदगी दर्ज कराई कि उस का भाई सुनील कनौजिया 2 हफ्ते से लापता है. बाबूलाल ने यह भी बताया कि सुनील पिछले 4-5 महीने से अपनी पत्नी भारती पांडेय के साथ हंसखेड़ा, न्यू कांशीराम कालोनी में किराए के मकान में रह रहा था.

सुनील की कोई जानकारी न मिलने पर उस के भाई बाबूलाल ने थाना चौकी के चक्कर लगाने शुरू कर दिए थे. इस मामले की जांच कर रहे सबइंसपेक्टर ने सुनील के फोटो लगा पोस्टर छपवा कर विभिन्न जगहों पर लगवाने को कहा.

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         हत्यारा पति सुनील कनौजिया

लेकिन बाबूलाल के पास सुनील का कोई फोटो नहीं था. अंतत: सुनील के गुम होने के 11वें दिन यानी 4 अप्रैल को फोटो की तलाश में जांच अधिकारी बाबूलाल के साथ सुनील के कमरे पर पहुंचे. ताला तोड़ने के अलावा उन के पास कोई विकल्प नहीं था.

ताला तोड़ कर कमरे के अंदर छानबीन की गई तो यह रहस्य सामने आया कि सुनील की पत्नी भारती पांडेय भी लापता थी. पुलिस ने कमरे से मिले सुनील और भारती पांडेय के सामूहिक फोटो और कृष्णानगर क्षेत्र में मिली लाश के अंगों के फोटो आसपड़ोस के लोगों को दिखाए तो कई लोगों ने सोने की अंगूठी, टैटू और चेहरा पहचान लिया. ये चीजें भारती पांडेय की ही थीं.

पुलिस ने कमरे को खंगाला तो टंकी के पाइप में रखे युवक के गीले कपड़ों पर खून के धब्बे नजर आए. इस के साथ ही यह बात भी साफ हो गई कि जिस महिला का धड़, सिर और अन्य अंग मिले थे, उस की हत्या इसी कमरे में की गई थी यानी वह भारती पांडेय ही थी.

छानबीन में भारती के बारे में कई जानकारियां मिलीं

पुलिस ने मकान मालिक दिलीप कुमार को बुला कर इस मामले में पूछताछ की. उस ने बताया कि भारती पांडेय नाम की महिला ने 5 महीने पहले 18 सौ रुपए महीने पर उन के मकान का कमरा किराए पर लिया था. उस ने आईडी की प्रति देते हुए बताया था कि वह नाका क्षेत्र की एक कंपनी में काम करती है. आईडी में भारती के पति का नाम रामगोपाल पांडेय और नाका के होलीग्राम स्कूल आर्यनगर का पता दर्ज था.

इसपर पुलिस ने नाका क्षेत्र में रामगोपाल की तलाश शुरू की. जांच के दौरान खुलासा हुआ कि पश्चिम बंगाल के कोलकाता की मूल निवासी भारती पांडेय 12 साल पहले अपने बेटे राजकुमार के साथ लखनऊ आई थी. उस ने रामगोपाल पांडेय से दूसरी शादी की थी. बाद में उस ने रामगोपाल को छोड़ कर सुनील से शादी कर ली थी. सुनील से भारती को कोई बच्चा नहीं था.

भारती ने पहली शादी कोलकाता में और दूसरी गोंडा के कर्नलगंज निवासी रामगोपाल पांडेय जो होलीग्राम स्कूल का रिक्शाचालक था, से की थी. रामगोपाल पांडेय ने भारती के बेटे राजकुमार को अपना लिया था. तीनों लोग नेवाजखेड़ा में रहने लगे थे. भारती इलाके की एक चाऊमीन फैक्ट्री में काम कर के घर के खर्च में हाथ बंटाने लगी थी. इस बीच उस ने 2 बेटियों चांदनी व लक्ष्मी को जन्म दिया था.

शव की शिनाख्त के लिए पुलिस की एक टीम भारती पांडेय के दूसरे पति रामगोपाल पांडेय की तलाश में गोंडा भेजी गई. पुलिस रामगोपाल व उस की एक बेटी को लखनऊ ले आई. रामगोपाल ने बैग में मिले शरीर के टुकड़ों की पहचान अपनी पूर्वपत्नी भारती पांडेय के रूप में कर दी.

रामगोपाल ने पुलिस को जानकारी दी कि भारती के पहले पति का बेटा राजकुमार पश्चिम बंगाल में अपनी ननिहाल में रहता है. कोलकाता से आई भारती 8 साल रामगोपाल की पत्नी बन कर उस के साथ रही. इस के बाद उस के संबंध सुनील कनौजिया से हो गए. भारती का हाथ थामने से पहले सुनील ने अपनी पहली पत्नी से नाता तोड़ लिया था.

बाबूलाल व अन्य लोगों से पूछताछ में खुलासा हुआ कि सुनील की पहली पत्नी इंदिरानगर इलाके में रहती है. भारती पांडेय की हत्या के बाद सुनील के पहली पत्नी के पास लौटने की संभावना को देखते हुए पुलिस ने जांच की, लेकिन सुनील वहां नहीं मिला.

छानबीन में पता चला कि चाऊमीन फैक्ट्री में काम करने के दौरान दिलफेंक भारती की आंखें फ्रेमिंग का काम करने वाले सुनील कनौजिया से लड़ गई थीं. सुनील एल्युमीनियम के फ्रेम तैयार करने वाली जिस दुकान में काम करता था, वह चाऊमीन फैक्ट्री के सामने थी. जब भी भारती फैक्ट्री से निकलती, उस की नजर दुकान पर काम करते सुनील पर ही टिकी होतीं. जब कभी नजरें मिल जातीं तो दोनों मुसकरा देते थे. यह सिलसिला काफी दिनों तक चला. इस बीच दोनों की बातचीत होने लगी और फिर दोस्ती हो गई.

कोलकाता से साथ लाए बेटे और रामगोपाल से पैदा अपनी दोनों बेटियों को छोड़ कर भारती ने साढ़े 3 साल पहले सुनील का हाथ थाम लिया था.

रामगोपाल ने दोनों बच्चियों की देखरेख के लिए भारती को काफी समझाया. लेकिन उस के सिर पर चढ़े इश्क के भूत के आगे उसे हार माननी पड़ी. भारती को समझाने का कोई नतीजा न निकलने पर वह तीनों बच्चों को ले कर गोंडा स्थित अपने घर चला गया.

भारती करीब ढाई साल सुनील के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रही. पिछले साल दोनों ने राजाजीपुरम की महिला शक्ति कल्याण समिति द्वारा आयोजित सामूहिक विवाह कार्यक्रम में शादी कर ली थी.

पुलिस ने भारती व सुनील की शादी कराने वाली संस्था की अध्यक्ष रजनी यादव व कालोनी में रहने वाले भारती के पड़ोसियों से पूछताछ की. पता चला कि भारती का फिर किसी से अफेयर हो गया था और वह अकसर फोन पर बातचीत करती रहती थी, जिसे ले कर उस का पति सुनील उस पर शक करता था. वह उसे फोन पर बात करने से मना करता था, लेकिन भारती पर इस का कोई असर नहीं होता था.

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    मृतका भारती पांडेय

भारती के आचरण पर शक

इसी बात को ले कर दोनों में आए दिन झगड़ा होने लगा था. इस पर भारती ने पति को छोड़ कर दिलीप कुमार के मकान में किराए का अलग कमरा ले लिया था. कई दिन तक भारती के न मिलने पर सुनील उस की तलाश करता रहा और आखिरकार किसी तरह उस के कमरे तक पहुंच ही गया.

सुनील ने उस से पूछा कि वह उसे अकेला छोड़ कर बिना बताए क्यों चली आई? इस बात को ले कर उस ने भारती को डांटाफटकारा, जिस ले कर दोनों में झगड़ा हो गया. हालांकि बाद में वह भारती के पास ही रहने लगा था. हालांकि कमरा लेते वक्त भारती ने मकान मालिक को बताया था कि उस का पति बाहर काम करता है और वह यहां अकेली रहेगी.

पुलिस ने भारती पांडेय के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालने के बाद सुनील के भाई बाबूलाल से गहराई से पूछताछ की. सुनील अपने भाई बाबूलाल की दुकान पर ही काम करता था. पुलिस ने उसी दुकान के शीशा कटिंग व फ्रेमिंग के कारीगर प्रेमप्रकाश व नरेंद्र को हिरासत में ले कर पूछताछ की, ये दोनों भारती से परिचित थे.

पड़ताल में जुटे पुलिस अफसरों का मानना था कि तीसरा पति सुनील कनौजिया भारती की अन्य लोगों से नजदीकी से नाराज था, इसीलिए उस ने उस की हत्या की थी. हत्या में अन्य लोगों के शामिल होने की भी पुलिस गहनता से जांच में लग गई. पुलिस ने आशंका व्यक्त की कि फ्रेमिंग के लिए एल्युमीनियम काटने वाली आरी से भारती के शव के टुकड़े किए गए थे.

पुलिस का मानना था कि फोन पर बातचीत को ले कर हुए विवाद के बाद 23 मार्च की रात में सुनील ने भारती की गला दबा कर हत्या की होगी और उस के बाद आरी से उस के टुकड़े किए होंगे. बाद में वह उन टुकड़ों को 2 अलगअलग जगहों पर फेंक कर फरार हो गया होगा. जांच के दौरान यह भी पता चला कि भारती का मोबाइल 22 मार्च को बंद हो गया था.

सुनील के बड़े भाई बाबूलाल ने पुलिस को बताया कि सुनील 24 मार्च की रात में उस के घर आया था. इस दौरान उस ने खाना भी खाया था. भतीजी ने जब सुनील से पूछा, ‘‘चाचा, चाची को साथ क्यों नहीं लाए?’’ तो सुनील ने कहा, ‘‘तुम्हारी चाची भारती अपने मायके गई हुई है.’’

सुनील ने 25 मार्च को अपना फोन स्विच्ड औफ कर लिया था. जिस के बाद से उस का कोई सुराग नहीं लग पा रहा था.

कमरे में टंकी के पाइप पर सुनील की पीली जींस व काली शर्ट पर खून के हलके धब्बों के अलावा कोई साक्ष्य नहीं मिला. इस पर एसएसपी कलानिधि नैथानी ने फोरैंसिक टीम भेज कर जांच कराई.

बेंजिडाइन टेस्ट में कमरे में रखे वाइपर, प्लास्टिक के टब, स्टील के मग और फर्श पर खून के धब्बे नजर आने लगे. फोरैंसिक जांच में सुनील की जींस और टीशर्ट पर मिले खून के धब्बों में भारती के ब्लड सेल्स मिलने की पुष्टि हुई. हालांकि सुनील ने पूरा कमरा साफ कर दिया था, लेकिन बेंजिडाइन टेस्ट की वजह से खून के धब्बे मिल ही गए.

पुलिस व क्राइम ब्रांच की टीम ने इस बीच विधि विश्वविद्यालय की तरफ जाने वाले विभिन्न मार्गों के सीसीटीवी कैमरों के 22 मार्च की शाम से 23 मार्च की सुबह तक के फुटेज खंगाले, लेकिन सुनील या अन्य कोई संदिग्ध नजर नहीं आया.

एक फुटेज में बैग लादे एक युवक दिखा भी, लेकिन उस का चेहरा साफ नहीं दिखाई दे रहा था. अपर पुलिस अधीक्षक नगर (पूर्वी) का कहना है कि मार्ग से गुजरे एक आटो को संदेह के घेरे में लिया गया है. आशंका है कि सुनील 22 मार्च की रात आटो या किसी अन्य वाहन से भारती पांडेय के हाथ, पैर व सिर से भरा बैग ले कर राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के सामने उतरा होगा और वहां बैग को छोड़ कर चला गया होगा.

भारती का मोबाइल 22 मार्च को बंद हुआ. इस के अगले दिन कृष्णानगर इलाके में बैग में महिला के शरीर के टुकड़े और 24 मार्च को पारा इलाके में बोरी में धड़ बरामद होने की खबर विभिन्न अखबारों में छपी, टीवी चैनलों के साथ सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई, लेकिन भारती के किसी भी दोस्त ने उस की सुध नहीं ली.

पुलिसकर्मियों ने उस के हाथ व चेहरे के फोटो ले कर कांशीराम कालोनी के लोगों से संपर्क किया, पोस्टर लगवाए, लेकिन उसे किसी ने नहीं पहचाना. न भारती के लापता होने की जानकारी पुलिस को दी. भारती का जेठ बाबूलाल भी चुप्पी साधे रहा. सुनील कनौजिया के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालने पर पुलिस को पता चला कि उस ने 25 मार्च को अपने भाई बाबूलाल कनौजिया से बात करने के बाद फोन बंद कर लिया था.

इस पर पुलिस ने बाबूलाल से कड़ाई से पूछताछ की, तब खुलासा हुआ कि भारती की अन्य युवकों से दोस्ती के चलते सुनील बेहद नाराज था. जब सुनील 24 मार्च को भाई के घर खाना खाने आया तब उस ने पत्नी की हत्या की कोई जानकारी नहीं दी थी.

सुनील ने 25 मार्च को बाबूलाल को फोन किया था. उस ने बताया, ‘‘भाई, मैं ने अपनी भारती की हत्या कर दी है. उस के शव को भी ठिकाने लगा दिया है.’’

सुनील ने आगे कहा, ‘‘अब वह आत्महत्या करने जा रहा है.’’

बाबूलाल ने बताया कि वह सुनील से कुछ कहता, इस से पहले ही सुनील ने फोन काट दिया था. फिर उस ने अपना फोन बंद कर दिया था. इस के बाद ही बाबूलाल ने पारा थाने में सुनील की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. भारती का मोबाइल 22 मार्च को बंद हुआ. इस के अगले ही दिन कृष्णानगर में बैग में उस की लाश मिली.

भारती की हत्या कर शव के टुकड़े करने के मामले में पुलिस आरोपित पति सुनील की लोकेशन का पता नहीं लगा पाई. हालांकि 25 मार्च के बाद से आरोपित का मोबाइल बंद है. इस मामले में पुलिस ने कई जगहों पर दबिश दी, लेकिन लापता कथित हत्यारे पति सुनील का कोई सुराग नहीं मिला.

इंसपेक्टर कृष्णानगर दिनेश मिश्रा के मुताबिक मामले की छानबीन की जा रही है. महिला के जेठ बाबूलाल से कई चरणों में पूछताछ की गई.

कपड़ों की तरह प्रेमियों को बदलने वाली स्वार्थी भारती ने अपने बच्चों की तरफ भी ध्यान नहीं दिया. उन्हें छोड़ कर उस ने अपने तीसरे प्रेमी के साथ शादी रचा ली. लेकिन जब वह चौथे प्रेमी से इश्क लड़ाने लगी तो उसे अपनी जान गंवानी पड़ी. उस के तीसरे पति ने उस की हत्या कर उस की लाश को टुकड़ों में बांट दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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